
जब तक बीजी और बाबूजी जिंदा थे और सुमन की शादी नहीं हुई थी, तब तक सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने की उदासी का अहसास इतना गहरा नहीं था. घर की रौनक उदासी के अहसास को काफी हद तक हलका किए रहती थी. लेकिन सुमन की शादी के बाद पहले बाबूजी, फिर जल्दी ही बीजी की मौत के बाद हालात एकदम से बदल गए. घर में ऐसा सूनापन आया कि सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने का अहसास कटार की तरह चुभने लगा. उन्हें लगता था कि ठीक समय पर कोई बच्चा गोद न ले कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की.
लेकिन इसे गलती भी नहीं कहा जा सकता था. अपनी औलाद अपनी ही होती है, इस सोच के साथ वंदना और सुरेश आखिर तक उम्मीद का दामन थामे रहे. लेकिन उन की उम्मीद पूरी नहीं हुई. कई रिश्तेदार अपना बच्चा गोद देने को तैयार भी थे, लेकिन उन्होंने ही मना कर दिया था. उम्मीद के सहारे एकएक कर के 22 साल बीत गए.
अब घर काटने को दौड़ता था. भविष्य की चिंता भी सताने लगी थी. इस मामले में सुरेश अपनी पत्नी से अधिक परेशान था. आसपड़ौस के किसी भी घर से आने वाली बच्चे की किलकारी से वह बेचैन हो उठता था. बच्चे के रोने से उसे गले लगाने की ललक जाग उठती थी. सुबह सुरेश और वंदना अपनीअपनी नौकरी के लिए निकल जाते थे. दिन तो काम में बीत जाता था. लेकिन घर आते ही सूनापन घेर लेता था. सुरेश को पता था कि वंदना जितना जाहिर करती है, उस से कहीं ज्यादा महसूस करती है.
कभीकभी वंदना के दिल का दर्द उस की जुबान पर आ भी जाता. उस वक्त वह अतीत के फैसलों की गलती मानने से परहेज भी नहीं करती थी. वह कहती, ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि अतीत में किए गए हमारे कुछ फैसले सचमुच गलत थे. सभी लोग बच्चा गोद लेने को कहते थे, हम ने ऐसा उन की बात मान कर गलती नहीं की?’’
‘‘फैसले गलत नहीं थे वंदना, समय ने उन्हें गलत बना दिया.’’ कह कर सुरेश चुप हो जाता.
ऐसे में वंदना की आंखों में एक घनी उदासी उतर आती. वह कहीं दूर की सोचते हुए सुरेश के सीने पर सिर रख कर कहती, ‘‘आज तो हम दोनों साथसाथ हैं, एकदूसरे को सहारा भी दे सकते हैं और हौसला भी. मैं तो उस दिन के खयाल से डर जाती हूं, जब हम दोनों में से कोई एक नहीं होगा?’’
‘‘तब भी कुछ नहीं होगा. किसी न किसी तरह दिन बीत जाएंगे. इसलिए ज्यादा मत सोचा करो.’’ सुरेश पत्नी को समझाता, लेकिन उस की बातों में छिपी सच्चाई को जान कर खुद भी बेचैन हो उठता.
भविष्य तो फिलहाल दीवार पर लिखी इबारत की तरह एकदम साफ था. सुरेश को लगता था कि वंदना भले ही जुबान से कुछ न कहे, लेकिन वह किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है. घर के सूनेपन और भविष्य की चिंता ने सुरेश के मन को भी भटका दिया था. उसे भी लगता था कि घर की उदासी और सूनेपन में वंदना कहीं डिप्रैशन की शिकार न हो जाए.
लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी था कि उम्र के इस पड़ाव पर किसी बच्चे को गोद लेना क्या समझदारी भरा कदम होगा? सुरेश 50 की उम्र पार कर चुका था, जबकि वंदना भी अगले साल उम्र के 50वें साल में कदम रखने जा रही थी. ऐसे में क्या वे बच्चे का पालनपोषण ठीक से कर पाएंगे?
काफी सोचविचार और जद्दोजहद के बाद सुरेश ने महसूस किया कि अब ऐसी बातें सोचने का समय नहीं, निर्णय लेने का समय है. बच्चा अब उस की और वंदना की बहुत बड़ी जरूरत है. वही उन के जीवन की नीरसता, उदासी और सूनेपन को मिटा सकता है.
सुरेश ने इस बारे में वंदना से बात की तो उस की बुझी हुई आंखों में एक चमक सी आ गई. उस ने पूछा, ‘‘क्या अब भी ऐसा हो सकता है?’’
‘‘क्यों नहीं हो सकता, हम इतने बूढ़े भी नहीं हो गए हैं कि एक बच्चे को न संभाल सकें.’’ सुरेश ने कहा.
बच्चे को गोद लेने की उम्मीद में वंदना उत्साह से भर उठी. लेकिन सवाल यह था कि बच्चा कहां से गोद लिया जाए. किसी अनाथालय से बच्चा गोद लेना असान नहीं था. क्योंकि गोद लेने की शर्तें और नियम काफी सख्त थे. रिश्तेदारों से भी अब कोई उम्मीद नहीं रह गई थी. किसी अस्पताल में नाम लिखवाने से भी महीनों या वर्षों लग सकते थे.
ऐसे में पैसा खर्च कर के ही बच्चा जल्दी मिल सकता था. मगर बच्चे की चाहत में वे कोई गलत और गैरकानूनी काम नहीं करना चाहते थे. जब से दोनों ने बच्चे को गोद लेने का मन बनाया था, तब से वंदना इस मामले में कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही थी. शायद उस के नारी मन में सोई ममता शिद्दत से जाग उठी थी.
एक दिन शाम को सुरेश घर लौटा तो पत्नी को कुछ ज्यादा ही जोश और उत्साह में पाया. वह जोश और उत्साह इस बात का अहसास दिला रहा था कि बच्चा गोद लेने के मामले में कोई बात बन गई है. उस के पूछने की नौबत नहीं आई, क्योंकि वंदना ने खुद ही सबकुछ बता दिया.
वंदना के अनुसार, वह जिस स्कूल में पढ़ाती थी, उस स्कूल के एक रिक्शाचालक जगन की बीवी को 2 महीने पहले दूसरी संतान पैदा हुई थी. उस के 2 बेटे हैं. जगन अपनी इस दूसरी संतान को रखना नहीं चाहता था. वह उसे किसी को गोद देना चाहता था.
‘‘उस के ऐसा करने की वजह?’’ सुरेश ने पूछा, तो वंदना खुश हो कर बोली, ‘‘वजह आर्थिक हो सकती है. मुझे पता चला है, जगन पक्का शराबी है. जो कमाता है, उस का ज्यादातर हिस्सा पीनेपिलाने में ही उड़ा देता है. शराब की लत की वजह से उस का परिवार गरीबी झेल रहा है. मैं ने तो यह भी सुना है कि शराब की ही वजह से जगन ने ऊंचे ब्याज पर कर्ज भी ले रखा है. कर्ज न लौटा पाने की वजह से लेनदार उसे परेशान कर रहे हैं.
सुनने में आया है कि एक दिन उस का रिक्शा भी उठा ले गए थे. उन्होंने बड़ी मिन्नतों के बाद उस का रिक्शा वापस किया था. मुझे लगता है, जगन अपना यह दूसरा बच्चा किसी को गोद दे कर जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहता है. इसी बहाने वह अपने सिर पर चढ़ा कर्ज भी उतार देगा.’’
‘‘इस का मतलब वह अपनी मुसीबतों से निजात पाने के लिए अपने बच्चे का सौदा करना चाहता है?’’ सुरेश ने व्यंग्य किया.
‘‘कोई भी आदमी बिना किसी स्वार्थ या मजबूरी के अपना बच्चा किसी दूसरे को क्यों देगा?’’ वंदना ने कहा तो सुरेश ने पूछा, ‘‘जगन की बीवी भी बच्चा देने के लिए तैयार है?’’
‘‘तैयार ही होगी. बिना उस के तैयार हुए जगन यह सब कैसे कर सकता है?’’
वंदना की बातें सुन कर सुरेश सोच में डूब गया. उसे सोच में डूबा देख कर वंदना बोली, ‘‘अगर तुम्हें ऐतराज न हो तो मैं जगन से बच्चे के लिए बात करूं?’’
‘‘बच्चा गोद लेने का फैसला हम दोनों का है. ऐसे में मुझे ऐतराज क्यों होगा?’’ सुरेश बोला.
‘‘मैं जानती हूं, फिर भी मैं ने एक बार तुम से पूछना जरूरी समझा.’’
2 दिनों बाद वंदना ने सुरेश से कहा, ‘‘मैं ने स्कूल के चपरासी माधोराम के जरिए जगन से बात कर ली है. वह हमें अपना बच्चा पूरी लिखापढ़ी के साथ देने को राजी है. लेकिन इस के बदले 15 हजार रुपए मांग रहा है. मेरे खयाल से यह रकम ज्यादा नहीं है?’’
‘‘नहीं, बच्चे न तो बिकाऊ होते हैं और न उन की कोई कीमत होती है.’’
‘‘मैं जगन से उस का पता ले लूंगी. हम दोनों कल एकसाथ चल कर बच्चा देख लेंगे. तुम कल बैंक से कुछ पैसे निकलवा लेना. मेरे खयाल से इस मौके को हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए.’’ वंदना ने बेसब्री से कहा.
उस की बात पर सुरेश ने खामोशी से गर्दन हिला दी.
अगले दिन सुरेश शाम को वापस आया तो वंदना तैयार बैठी थी. सुरेश के आते ही उस ने कहा, ‘‘मैं चाय बनाती हूं. चाय पी कर जगन के यहां चलते हैं.’’
कुछ देर में वंदना 2 प्याले चाय ला कर एक प्याला सुरेश को देते हुए बोली, ‘‘वैसे तो अभी पैसों की जरूरत नहीं लगती. फिर भी तुम ने बैंक से पैसे निकलवा लिए हैं या नहीं?’’
‘‘हां.’’ सुरेश ने चाय की चुस्की लेते हुए उत्साह में कहा.
चाय पी कर दोनों घर से निकल पड़े. आटोरिक्शा से दोनों जगन के घर जा पहुंचे. जगन का घर क्या 1 गंदी सी कोठरी थी, जो काफी गंदी बस्ती में थी. उस के घर की हालत बस्ती की हालत से भी बुरी थी. छोटे से कमरे में एक टूटीफूटी चारपाई, ईंटों के बने कच्ची फर्श पर एक स्टोव और कुछ बर्तन पड़े थे. कुल मिला कर वहां की हर चीज खामेश जुबान से गरीबी बयां कर रही थी.
जगन का 5 साल का बेटा छोटे भाई के साथ कमरे के कच्चे फर्श पर बैठा प्लास्टिक के एक खिलौने से खेल रहा था, जबकि उस की कुपोषण की शिकार पत्नी तीसरे बच्चे को छाती से चिपकाए दूध पिला रही थी. इसी तीसरे बच्चे को जगन सुरेश और वंदना को देना चाहता था. जगन ने पत्नी से बच्चा दिखाने के लिए मांगा.
पत्नी ने खामोश नजरों से पहले जगन को, उस के बाद सुरेश और वंदना को देखा, फिर कांपते हाथों से बच्चे को जगन को थमा दिया. उसी समय सुरेश के मन में शूल सा चुभा. उसे लगा, वह और वंदना बच्चे के मोह में जो करने जा रहे हैं, वह गलत और अन्याय है.
जगन ने बच्चा वंदना को दे दिया. बच्चा, जो एक लड़की थी सचमुच बड़ी प्यारी थी. नाकनक्श तीखे और खिला हुआ साफ रंग था. वंदना के चेहरे के भावों से लगता था कि बच्ची की सूरत ने उस की प्यासी ममता को छू लिया था.
बच्ची को छाती से चिपका कर वंदना ने एक बार उसे चूमा और फिर जगन को देते हुए बोली, ‘‘अब से यह बच्ची हमारी हुई जगन. लेकिन हम इसे लिखापढ़ी के बाद ही अपने घर ले जाएंगे. कल रविवार है. परसों कचहरी खुलने पर किसी वकील के जरिए सारी लिखापढ़ी कर लेंगे. एक बात और कह दूं, बच्चे के मामले में तुम्हारी बीवी की रजामंदी बेहद जरूरी है. लिखापढ़ी के कागजात पर तुम्हारे साथसाथ उस के भी दस्तखत होंगे.’’
‘‘हम सबकुछ करने को तैयार हैं.’’ जगन ने कहा.
‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हें कुछ पैसे दे रहे हैं, बाकी के सारे पैसे तुम्हें लिखापढ़ी के बाद बच्चा लेते समय दे दूंगी.’’
जगन ने सहमति में गर्दन हिला दी. इस के बाद वंदना ने सुरेश से जगन को 3 हजार रुपए देने के लिए कहा. वंदना के कहने पर उस ने पर्स से 3 हजार रुपए निकाल कर जगन को दे दिए.
जगन को रुपए देते हुए सुरेश कनखियों से उस की पत्नी को देख रहा था. वह बच्चे को सीने से कस कर चिपकाए जगन और सुरेश को देख रही थी. सुरेश को जगन की पत्नी की आंखों में नमी और याचना दिखी, जिस से सुरेश का मन बेचैन हो उठा.
जगन के घर से आते समय सुरेश पूरे रास्ते खामोश रहा. बच्चे को सीने से चिपकाए जगन की पत्नी की आंखें सुरेश के जेहन से निकल नहीं पा रही थीं, सारी रात सुरेश ठीक से सो नहीं सका. जगन की पत्नी की आंखें उस के खयालों के इर्दगिर्द चक्कर काटती रहीं और वह उलझन में फंसा रहा.
अगले दिन रविवार था. दोनों की ही छुट्टी थी. वंदना चाहती थी कि बच्चे को गोद लेने के बारे में किसी वकील से पहले ही बात कर ली जाए. इस बारे में वह सुरेश से विस्तार से बात करना चाहती थी. लेकिन नाश्ते के समय उस ने उसे उखड़ा हुआ सा महसूस किया.
उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछा, ‘‘मैं देख रही हूं कि जगन के यहां से आने के बाद से ही तुम खामोश हो. तुम्हारे मन में जरूर कोई ऐसी बात है, जो तुम मुझ से छिपा रहे हो?’’
सुरेश ने हलके से मुसकरा कर चाय के प्याले को होंठों से लगा लिया. कहा कुछ नहीं. तब वंदना ही आगे बोली. ‘‘हम एक बहुत बड़ा फैसला लेने जा रहे हैं. इस फैसले को ले कर हम दोनों में से किसी के मन में किसी भी तरह की दुविधा या बात नहीं होनी चाहिए. मैं चाहती हूं कि अगर तुम्हारे मन में कोई बात है तो मुझ से कह दो.’’
चाय का प्याला टेबल पर रख कर सुरेश ने एक बार पत्नी को गहरी नजरों से देखा. उस के बाद आहिस्ता से बोला, ‘‘जगन के यहां हम दोनों एक साथ, एक ही मकसद से गए थे वंदना. लेकिन तुम बच्चे को देख रही थी और मैं उसे जन्म देने उस की मां को. इसलिए मेरी आंखों ने जो देखा, वह तुम नहीं देख सकीं. वरना तुम भी अपने सीने में वैसा ही दर्द महसूस करती, जैसा कि मैं कर रहा हूं.’’
वंदना की आंखों में उलझन और हैरानी उभर गई. उस ने कहा, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, मैं समझी नहीं?’’
सुरेश के होठों पर एक फीकी मुसकराहट फैल गई. वह बोला, ‘‘जगन के यहां से आने के बाद मैं लगातार अपने आप से ही लड़ रहा हूं वंदना. बारबार मुझे लग रहा है कि जगन से उस का बच्चा ले कर हम एक बहुत बड़ा गुनाह करने जा रहे हैं. मैं ने तुम्हारी आंखों में औलाद के न होने का दर्द देखा है. मगर मुझे जगन की बीवी की आंखों में जो दर्द दिखा, वह शायद तुम्हारे इस दर्द से भी कहीं बड़ा था. इन दोनों दर्दों का एक ही रंग है, वजह भले ही अलगअलग हो.’’
बहुत दिनों से खिले हुए वंदना के चेहरे पर एकाएक निराशा की बदली छा गई. उस ने उदासी से कहा, ‘‘लगता है, तुम ने बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है?’’
‘‘मैं ने बच्चा गोद लेने का नहीं, जगन के बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है.’’
‘‘क्यों?’’ वंदना ने झल्ला कर पूछा.
‘‘जगन एक तरह से अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. वंदना यह फैसला उस का अकेले का है. इस में उस की पत्नी की रजामंदी बिलकुल नहीं है. जब वह बच्चे को अपने सीने से अलग कर के तुम्हें दे रही थी. तब मैं ने उस की उदास आंखों में जो तड़प और दर्द देखा था, वह मेरी आत्मा को आरी की तरह काट रहा है. हमें औलाद का दर्द है. अपने इस दर्द को दूर करने के लिए हमें किसी को भी दर्द देने का हक नहीं है.’’
सुरेश की इस बात पर वंदना सोचते हुए बोली, ‘‘हम बच्चा लेने से मना भी कर दें तो क्या होगा? जगन किसी दूसरे से पैसे ले कर उसे बच्चा दे देगा. हम जैसे तमाम लोग बच्चे के लिए परेशान हैं.’’
‘‘अगर हम बच्चा नहीं लेते तो किसी दूसरे को भी जगन को बच्चा नहीं देने देंगे.’’
‘‘वह कैसे?’’ वंदना ने पूछा.
‘‘जगन अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. अगर हम उस का कर्ज उतार दें तो वह बच्चा क्यों बेचेगा? पैसे देने से पहले हम उस से लिखवा लेंगे कि वह अपना बच्चा किसी दूसरे को अब नहीं देगा. इस के बाद अगर वह शर्त तोड़ेगा तो हम पुलिस की मदद लेंगे. साथ ही हम बच्चा गोद लेने की कोशिश भी करते रहेंगे. मैं कोई ऐसा बच्चा गोद नहीं लेना चाहता, जिस के पीछे देने वाले की मजबूरी और जन्म देने वाली मां का दर्द और आंसू हो.’’
सुरेश ने जब अपनी बात खत्म की, तो वंदना उसे टुकरटुकर ताक रही थी.
‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ सुरेश ने पूछा तो वह मुसकरा कर बोली, ‘‘देख रही हूं कि तुम कितने महान हो, मुझे तुम्हारी पत्नी होने पर गर्व है.’’
सुरेश ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर हलके से दबा दिया. उसे लगा कि उस की आत्मा से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है.
कल सुबह जब शायनी औफिस आई तो बहुत खुश थी बोली, “मां, बौस कह रहे थे अगर मैं ने उन की कंपनी को कौन्ट्रेक्ट दिलवा दिया तो जल्द ही मुझे प्रमोशन मिलेगी.’‘
उस के थोड़ी ही देर में शायनी का मैसेज आया कि आज कौन्ट्रेक्ट के लिए एक बहुत बड़े सेठ अवस्थी से मिलने जाना है. आज बहुत लेट हो जाएगी और मैं उस का इंतजार न कर के सो जाऊं, कल सुबह बात कर लेंगे. जैसे ही मैं ने अवस्थी नाम पढ़ा, मुझे घबराहट महसूस हुई. मैं ने शायनी को पूछा कि मीटिंग कब और कहां है तो उस ने मुझे बताया कि मीटिंग ओबराय होटल में रात को 10 बजे है.
यह सुन कर मेरा मन घबरा गया. उस समय अभी सुबह के 11 ही बजे थे और मैं उसी समय टैक्सी पकड़ कर मुंबई के लिए निकल पड़ी. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अपनी बेटी को उस दरिंदे से बचाऊं जो कि उसी का ही खून है.
मैं जैसे ही होटल पहुंची, लगभग 11 बज रहे थे. मैं पूरे रास्ते शायनी को फोन करती रही, मगर आज अचानक शायद उस का फोन खराब हो गया था. मैं ने रिसैप्शन पर अवस्थी का रूम पूछा तो उन्होंने बताने से इंकार कर दिया, बोले सर की मीटिंग चल रही है. मुझे कुछ आइडिया था ही कि शायद रूम का पता रिसैप्शन पर न बताएं, इसलिए एक शैंपेन की बोतल और केक भी रास्ते से ले कर साथ रख लिया था.
तब मैं ने एक नाटक रचा. उस केक और शैंपेन की बोतल को दिखा कर रिसैप्शन पर बैठी एक महिला से रिक्वेस्ट की कि अवस्थीजी मेरे पति हैं और वो बिजनैस में इतने बिजी रहते हैं कि अपना जन्मदिन तक भूल गए. मैं उन्हें सरप्राइज देने आई हूं.
इस तरह उन्हें यकीन दिला कर मैं रूम तक गई, लेकिन रूम के बाहर ‘डू नाट डिस्टर्ब’ का बोर्ड लटकता देख वेटर अंदर जाने से मना करने लगा. तब मैं ने वेटर को चुप रहने का इशारा कर के दरवाजा खटखटाया तो अंदर से बहुत ही गुस्से भरी आवाज आई, “कौन बदतमीज है. बाहर डू नाट डिस्टर्ब का बोर्ड नहीं दिखाई दिया.’‘
“सर, आप के लिए सरप्राइज है, प्लीज़ ओपन द डोर, प्लीज सर. इट्स ए ह्यूज सरप्राइज.’‘ मैं ने कहा.
सेठ तो वैसे ही लड़कियों का दीवाना था, सुरीली आवाज सुन कर दरवाजा खोल दिया. अब तक मैं वेटर को वापस भेज चुकी थी, सेठ के दरवाजा खोलते ही उसे नाइट गाउन में देख कर मेरा दिमाग झन्ना उठा और उसे धक्का दे कर मैं ट्रौली ले कर अंदर चली गई. अचानक इस तरह के व्यवहार की उम्मीद न होते हुए सेठ हड़बड़ा गया.
गुस्से से चिल्लाने लगा, “कौन हो तुम और इस तरह से अंदर क्यों आई?’‘
मुझे देखते ही शायनी मुझ से लिपट गई और रोने लगी बोली, “अच्छा हुआ आप आ गईं, वरना आज मैं कहीं की न रहती.”
मैं ने देखा 1-2 जगह से उस के कपड़े फटे हुए थे, जिन्हें देखते ही मुझे पुरानी सारी बातें याद आने लगीं. उस वक्त मुझे कुछ होश नहीं था. कुछ सोचने के बाद शीतल फिर से बोलने लगी कि अचानक मैं ने शैंपेन की बोतल उठाई और जोर से सेठ के सिर पर दे मारी. उस के सिर से खून की धारा बहने लगी. मैं लगातार उस पर वार कर रही थी और वह कुछ ही देर में ठंडा हो गया.
शायनी ने जब मुझे झिंझोड़ा तब मुझे होश आया कि मैं ने क्या किया. मगर, मुझे इस बात का बिलकुल भी अफसोस नहीं था और न है. मैं ने एक राक्षस को मारा है, एक पिता के हाथ से बेटी को अपवित्र होने से बचाया. धरती का थोड़ा सा बोझ कम कर दिया आज मैं ने. अब चाहे कानून मुझे फांसी दे दे, लेकिन मेरे मन में शांति है आज इंतकाम ले लिया मैं ने. इतना कह कर शीतल ने एक ठंडी सांस ली.
“इस समय आप की बेटी कहां है?’‘
“उसे मैं ने उसी समय टैक्सी में योगेश के पास भेज दिया था.’‘
“हां कुछ देर पहले एक गोरी, लंबी सी नीली ड्रेस में लड़की बारिश में भागते हुए होटल से बाहर आई और टैक्सी में बैठ कर चली गई.’‘
“हां, वो मेरी बेटी थी.’‘
आज मुंबई न्यूज की सब से बड़ी खबर, ‘देवता कहलाने वाला राक्षस अपनी ही बेटी को बेआबरू करने चला था, लेकिन बेटी की मां ने उस का कत्ल कर के बेटी को भी बचाया और अपना इंतकाम भी लिया,’ चर्चा का विषय बनी रही.
इस के बाद राहुल ने अपने दोस्त अमन को फोन किया, “हैलो अमन, मिल गया.’‘
“कौन, खूनी?’‘ अमन ने पूछा.
“नहीं, बारिश वाला प्यार.’‘
राहुल को अब उस लड़की का नाम भी पता चल चुका था, जो उस के दिल को पहली ही नजर में घायल कर गई थी. राहुल ने शीतल को भरोसा दिया कि वह अपने स्तर से उस की जमानत कराने का प्रयास करेगा. उस ने उस के मुंहबोले भाई का फोन नंबर भी ले लिया.
पुलिस ने शीतल से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया था. इस के बाद राहुल ने योगेश से संपर्क किया. फिर राहुल ने योगेश को अपने जानकार सीनियर वकील अवनीश गोयल से मिलवाया. अब राहुल ने अपने स्तर से मृतक सेठ अवस्थी की कुंडली खंगाल कर उस की अय्याशी के सारे सबूत इकट्ठे किए. अनाथ आश्रम की संचालिका और कई भुक्तभोगी लड़कियों ने भी सेठ अवस्थी के खिलाफ गवाही दी.
पुलिस हत्या के इस केस का न तो कोई चश्मदीद गवाह पेश कर सकी और न ही पुख्ता सबूत. इस का नतीजा यह हुआ कि कोर्ट ने शीतल को बाइज्जत बरी कर दिया.
शीतल राहुल के अहसान को कैसे भुला सकती थी. बाद में उसे पता चला कि राहुल उस की बेटी शायनी को दिल से चाहता है. यह बात उस ने शायनी से पूछी तो उस ने भी हां कर दी. इस के बाद शीतल और योगेश ने शायनी और राहुल का विवाह करा दिया. राहुल अपने बारिश वाले प्यार को पा कर फूला नहीं समा रहा था.
अगली सुबह राहुल कोर्ट की इजाजत ले कर पहुंच गया थाने और पुलिस हिरासत में लाई गई उस महिला से बात करने लगा, जिसे सब सेठ की बीवी समझ रहे थे. इधर सेठ की हत्या की खबर उस के घर तक पहुंची तो सब के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. घर में रोनाधोना शुरू हो गया. सभी इस बात पर ताज्जुब कर रहे थे कि हत्यारा कोई और नहीं सेठ की बीवी है. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था यह सब क्या मामला है.
उधर राहुल ने थाने में उस महिला से बात शुरू की, “मैडमजी, सब से पहले मैं ये जानना चाहूंगा कि आप कौन हैं?’‘
“क्यों, आप ने सुना नहीं, जो सब कह रहे हैं?’‘ वह महिला बोली.
“मैं ने सब सुना, लेकिन मैं जानता हूं आप वो नहीं है. और यही जानने आया हूं कि आप कौन हैं और किस बात का बदला लिया आप ने अवस्थीजी से?’‘
“क्यों देवता नहीं कहेंगे आप भी, सब लोग तो इसी नाम से पुकारते हैं. और आप केवल अवस्थीजी?’‘
“सही कहा आप ने, पहली बात आप उन की पत्नी नहीं, दूसरी आप ने अगर उन का खून किया तो किसी बात का बदला ही लिया होगा और बदला कभी देवता से नहीं लिया जाता, आप बताएं असलियत क्या है?’‘
उस महिला ने अपना नाम शीतल बताया. इस के बाद उस ने राहुल को बताया कि मुझे नहीं मालूम मुझे कब कौन मुंबई के शेल्टर होम (जहां बेघर, बेसहारा लोग आसरा पाते हैं) में छोड़ गया. जब से होश संभाला, अपने आप को वहीं पाया. वहां और भी बहुत सी लड़कियां थीं.
जब मैं छोटी थी तो अकसर औफिस से लड़कियों के रोने, चीखनेचिल्लाने की आवाजें आतीं और साथ में ये भी कोई कहता कि चुप कर हराम की औलाद, वरना यहीं खत्म कर दूंगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा. तेरा कोई आगेपीछे भी नहीं, जो तुझे बैठ कर रोएगा.
मैं तब इन बातों को नहीं समझ पाती थी, जब मैं 13 साल की हो गई तो कुछकुछ बात मुझे भी समझ आने लगी. एक दिन मैं उस शेल्टर में बने मंदिर से पूजा कर के रूम की तरफ जा रही थी तो सेठ अवस्थी (इस समय शीतल ने मुंह ऐसे बना लिया, जैसे किसी ने मुंह में जहर डाल दिया हो) जो कई अनाथ आश्रम, कई वृद्धाश्रम इत्यादि चलाते थे, जो नारी उत्थान की बड़ीबड़ी बातें करते थे, जिन्होंने न जाने कितनी गरीब लड़कियों का विवाह कराया, वही सेठ, उस शेल्टर होम में रोज आया करते थे.
उन की नजर मुझ पर पड़ गई और वार्डन से कहने लगे, “रियाजी, ये कोहिनूर कहां छिपा रखा था. हमारी तो नजर ही नहीं पड़ी अभी तक इस पर. हमें दिखाना तो चाहिए था, जरा बुलाओ एक झलक देखें तो.’
“शीतल बिटिया जरा इधर आओ, सर को भी प्रसाद दो.’‘ वार्डन ने आवाज दी.
मैं ने दोनों को प्रसाद दिया तो सेठ ने मेरा गाल थपथपा दिया.
दरअसल, मैं 13 साल की जरूर थी, मगर कद और शरीर से 16-17 साल की लगती थी. उस पर रंगरूप से भी गदगद थी.
अगले दिन वार्डन मेरे पास आई और बोली, “शीतल, तुम्हें सर बुला रहे हैं. शायद कोई काम हो, जाओ जरा मिल लो. और हां, जरा अच्छे से रैडी हो कर जाओ.’‘
मैं वार्डन की बात समझ चुकी थी, अब तक इतनी समझ आ गई थी मुझ में. मैं ने कहा, “मां, मैं? आप तो मेरी मां हो.’‘
वार्डन ने मुझे गले से लगाया और उस की आंखें भर आईं. बोली, “मुझे सब बच्चियां बेटी जैसी ही लगती हैं, लेकिन क्या करूं, इस पेट का सवाल खड़ा हो जाता है. मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची, तुझे जाना होगा. मैं मजबूर हूं, वरना सेठ हमें छोड़ेगा नहीं.’‘
और मुझे जाना पड़ा उस सेठ अवस्थी के पास जो अपनी हवस मिटाने के लिए आतुर बैठा था. मुझे देखते ही टूट पड़ा मुझ पर. मैं ने लाख मिन्नतें कीं, हाथ जोड़े, लेकिन उस ने मेरी एक न सुनी. मैं दर्द से तड़पती रही, रोती, चीखतीचिल्लाती रही. नहीं छोड़ा दरिंदे ने मुझे. और इस तरह अब रोज ही वह मुझे बुलाने लगा. वह बैल बन कर मुझे बंजर धरती समझ मुझ पर हल चलाता रहा.
लगभग 2 साल तक यह सिलसिला यूं ही चलता रहा और एक दिन मुझे एहसास हुआ कि मैं पेट से हूं. जब सेठ अवस्थी को पता चला तो अबार्शन करवाने के लिए कहा, लेकिन अब तक समय निकल चुका था. डाक्टर ने कहा कि समय अधिक हो गया है, अगर इस समय अबार्शन कराया तो लड़की की जान को भी खतरा हो सकता है. इस पर सेठ फिर भी जिद पर था कि अबार्शन कराया जाए, अगर लड़की मरती है तो मर जाए.
मैं न ही मरना चाहती थी न ही अबार्शन कराना. मैं उस शेल्टर होम से भाग निकली, इस में वार्डन ने मेरा साथ दिया, ताकि मैं आगे अपनी जिंदगी अपने लिए जी सकूं. मैं मुंबई से भाग कर दिल्ली चली गई. वहां रेलवे स्टेशन पर एक भला योगेश आदमी मिल गया, जिस ने मुझे सहारा दिया और बहन की तरह मेरी देखभाल की. मैं उस की मदद करने के लिए छोटेमोटे काम करने लगी. मुझे परी जैसी बेटी पैदा हुई, उस का नाम मेरे नाम से ‘श’ और मेरे मुंह बोले भाई के नाम योगेश से ‘य’ ले कर हम ने शायनी नाम रखा.
योगेश का भी परिवार था तो मैं ने सोचा कि आगे चल कर कोई बच्चों की वजह से परेशानी न आए, इसलिए मैं अलग घर में रहने लगी और भाई ने मुझे काम पर भी लगवा दिया था. मैं ने अपनी बेटी शायनी को पढ़ाया लिखाया, अपने पैरों पर खड़ा किया. अब तक मैं पिछले सब दुख भूल चुकी थी.
शायनी पढ़ाई में होशियार, बहुत ही लायक बेटी थी. एमबीए करते ही अच्छी कंपनी में जौब मिल गई. अभी 15 दिन पहले ही मुंबई ट्रांसफर हुआ. जब से मुंबई ट्रांसफर हुआ, तब से ही एक अजीब सा डर मेरे दिल में था. मैं शायनी को मुंबई नहीं भेजना चाहती थी, लेकिन उस के भविष्य की सोच कर चुप रह गई और तब योगेश भी कहने लगा,
“जीजी, शायनी बड़ी हो गई है. भलाबुरा सब जानती है, उसे जाने दो, जी लेने दो अपनी जिंदगी उसे.’‘
लेकिन मुझे क्या पता था कि यहां फिर से वही कहानी दोहराई जाएगी.
इतना कह कर शीतल चुप हो गई और एक ही सांस में सामने रखा गिलास का पूरा पानी पी गई.
“उस के बाद फिर ऐसा क्या हुआ मैडम कि आप यहां और सेठ का खून? आप तो दिल्ली में रहती है न?’‘
“हां, मैं अभी तक दिल्ली में ही थी. सोचा एक बार शायनी की सैटिंग हो जाए तो फिर मैं भी बेटी के पास जा कर रहूंगी. रोज रात को फ्री हो कर हम मांबेटी खूब सारी बातें किया करते थे. जब कभी शायनी मीटिंग से लेट हो जाती तो मुझे मैसेज कर के बता देती कि आज लेट बात करेंगे और हम तब बात करते जब वो फ्री हो जाती, मैं तब तक जागती रहती.’
कहीं शायनी उस दरिंदे सेठ के चंगुल में तो नहीं फंस जाएगी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.
राहुल मुंबई न्यूज का एक न्यूज रिपोर्टर था. 23 अक्तूबर को उस का जन्म दिन था, इसलिए वह दोस्तों के साथ पार्टी करने जा रहा था. उस दिन एक तो बारिश का सुहाना मौसम, उस पर यार दोस्तों का साथ मिल जाए तो मस्ती में सोने पे सुहागे वाला रंग चढ़ जाता है. राहुल मुंबई में अकेला रहता था, उस का परिवार कर्नाटक में था, क्योंकि उस के मम्मीपापा वहां एक स्कूल चलाते थे, इसलिए वह यहां अकेला ही रह रहा था.
राहुल पार्टी के लिए अपने दोस्तों को ले कर होटल के लिए निकला. उस ने गाड़ी ओबराय होटल के बाहर रोक कर कर दोस्तों से कहा, “यार तुम लोग गाड़ी में बैठो, बारिश तेज है. मैं जरा देख कर आता हूं कि अंदर कोई सीट है या नहीं. क्योंकि यहां भीड़ तो ऐसी होती है, जैसे पूरा मुंबई इसी होटल में आता है.’‘
जैसे ही राहुल कार का दरवाजा खोल कर होटल की तरफ बढ़ा, अचानक सामने से एक लड़की घबराई हुई लगभग भागते हुए आई और वह राहुल से टकरा गई. तभी वह लड़की राहुल की तरफ देख कर बोली, “ओह! आई एम सौरी.’‘
राहुल ने भी झट से कहा, “इट्स ओके, बाई द वे, हैव यू एनी प्राब्लम? मेरा मतलब है आप इस तरह बेतहाशा क्यों भाग रही हैं, कोई परेशानी हो तो कहिए.’‘
“जी नहीं, कोई परेशानी नहीं है. दरअसल, बारिश की वजह से मैं तेज आ रही थी.’‘
“जी, फिर ठीक है.’‘
इतने में जोर से बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमकी तो उस लड़की ने डर की वजह से राहुल को जकड़ लिया.
जैसे ही राहुल ने लड़की की नजदीकी महसूस की तो उस के शरीर में भी सिहरन पैदा हुई. एक तो दोनों का जवान खून, उस पर बारिश का कहर ढहाता मौसम था. सीने की धड़कन की तरह पास गोरी चिट्टी परियों जैसी हसीना, रूप की मल्लिका थी. उस का शरीर गुंथा हुआ था. उस की सांसों से सांसें टकराईं तो राहुल जैसे होशोहवास खो बैठा. वह बुत बना वहीं खड़ा था.
न जाने वह लड़की क्या बोल रही थी, उसे कुछ सुनाई नहीं दिया. उस की तंद्रा तब भी नहीं टूटी जब सामने से वहां टैक्सी आ कर रुकी. टैक्सी में बैठ कर वह उस की आंखों से ओझल हो गई. राहुल वहीं बारिश में ही बुत बना खड़ा रहा. गाड़ी में बैठे उस के दोस्त समझ नहीं पा रहे थे कि राहुल बारिश में खड़ा क्यों भीग रहा है.
तभी गाड़ी में से अमन बाहर निकला और उसे झिंझोड़ते हुए बोला, “ओए राहुल, क्या हुआ यार, वो लड़की क्या कह रही थी? कौन थी और कहां गई ? और तू यहां इस तरह इतनी बारिश में बुत बना क्यों खड़ा है?’‘
“अमन यार, पता नहीं कौन थी, कहां गई और क्या कह रही थी? लेकिन यार बारिश में मुझे वह जलपरी नजर आई. लगता है कोई जादू कर गई वो.’‘
“राहुल, लगता है तुझे उस से प्यार हो गया है.’‘ अमन मजाकिया लहजे में बोला.
“हां यार, शायद पहली नजर वाला, मुंबई की पहली बारिश का पहला प्यार.’‘
“चल अच्छा, अब अंदर तो चल या यहीं खड़े रहने का इरादा है क्या?’‘
“हां चल, मगर कौन थी वो इस का पता तो लगा कर रहूंगा. यार, दिल निकाल कर ले गई मेरा.’‘ राहुल बेमन से गाड़ी में चला गया, लेकिन उस के दिमाग में वह लड़की बस गई. राहुल सोचने लगा कि कल ही इस का पता करेगा और फिर अपने मम्मीपापा से कह कर उस के उस के साथ रिश्ते की बात करेगा.
जैसे ही गाड़ी होटल के गेट पर रुकी और सब उतर कर होटल में जाने लगे तो वहां खड़े वैले पार्किंग के ड्राइवर ने कहा, “सर, आज होटल में एंट्री नहीं है.’‘
“क्यों?’‘
“होटल में खून हो गया है.’‘
“क्या… खून?’‘
आश्चर्य से सब के मुंह खुले रह गए, क्योंकि ओबराय नामचीन होटलों में गिना जाता है. आज तक इस होटल के बारे में कभी कोई ऐसीवैसी बात नहीं सुनी थी. इस होटल में कोई ऐरागैरा नहीं आ सकता था, केवल नामचीन लोग जैसे बड़ेबड़े सेठसाहूकार या मंत्री लोग ही आते थे. भला ऐसे बड़े लोगों में क्या झगड़ा या खूनखराबा हो सकता है.
पूछने पर पता चला कि खून शहर के जानेमाने बिजनैस टाइकून सेठ अवस्थीजी का हुआ, उस पर और चौंकाने वाली बात कि कत्ल उन्हीं की बीवी ने किया था.
“भला ऐसा कैसे हो सकता है?’‘ राहुल सोचने लगा.
एक तो सेठ इतने भले इंसान, उस पर उन्हीं की बीवी कत्ल करे, सुन कर राहुल का दिमाग घूम गया.
सभी दोस्त दूसरे होटल जाने के लिए कह रहे थे, मगर राहुल के दिमाग में कोई खिचड़ी पकने लगी, साथ में उस के मस्तिष्क में यह बात भी बारबार आ रही थी कि बारिश वाली लड़की कौन थी?
इतने में पुलिस की जीप सायरन बजाती हुई होटल में पहुंची, जिस में 2 लेडीज पुलिस भी थीं. थोड़ी देर में पुलिस एक महिला को साथ लिए बाहर निकली और जीप में बैठ कर चली गई. तभी राहुल का फोन बज उठा. उस ने देखा एडिटर साहब का फोन था, उस ने दोस्तों से माफी मांग कर उन्हें फिर कभी पार्टी देने का वादा कर के विदा किया और बौस से बात करने लगा.
“हैलो सर.’‘
“राहुल, कहां हो तुम? इतनी बड़ी खबर पूरे शहर में फैल गई और तुम्हें पता तक नहीं, पूरी डिटेल्स ले कर पहुंचो औफिस.’‘
“सर मैं वहीं हूं, अभी थोड़ी देर में आता हूं.’‘ राहुल बोला.
उस समय किसी को भी होटल के अंदर जाने की पाबंदी थी, इसलिए राहुल थोड़ी ही देर में औफिस चला गया.
“सुना है कि सेठ अवस्थी की बीवी ने ही उस का खून किया? जल्दी से बाकी डिटेल्स बताओ ताकि सब से पहले हमारे ही अखबार में धांसू खबर छपे,’‘ एडिटर बोले.
“नहीं सर, अभी हम ये खबर नहीं छापेंगे.’‘ राहुल ने कहा.
“लेकिन क्यों? इतनी बड़ी खबर, मुंबई शहर का इतना बड़ा सेठ अपनी ही बीवी के हाथों क्यों और कैसे मारा गया. कल देखना हर पेपर के फ्रंट पेज की हैडिंग यही होगी, लेकिन हमारे पेपर में पूरी डिटेल्स होगी कि क्यों मारा उस की बीवी ने, यही तो कमाल है तुम्हारे अंदर. दूसरे पेपर में आधी खबर होती है और तुम जमीन खोद कर और आसमान फाड़ कर जो खबर लाते हो वो तहलका मचा देती है.’‘
लेकिन राहुल उलझा हुआ था, उसे लड़की और मर्डर का कनेक्शन जुड़ा हुआ लग रहा था, इसलिए वह बौस से बोला, “सर, छापने दीजिए सब को, ये खबर आधी सच्ची और आधी झूठी है. मुझे पूरी तरह इस की तह तक जाना है, जो दिख रहा है वो है नहीं, जो है वो दिख नहीं रहा.’‘
बौस यह जानते थे कि राहुल जब तक संतुष्ट न हो वो खबर नहीं देता, इसलिए वह भी चुप हो गए. लेकिन राहुल को चैन नहीं था. वह खबर की तह तक पहुंचना चाहता था. और उसी समय वह पुलिस स्टेशन पहुंच गया. उसी औरत से मिलने, जिसे पुलिस पकड़ कर ले गई थी.
वह एसएचओ से बोला, “सर, मुझे उस औरत से मिलना है, जिस ने उस देवतारूपी सेठ का कत्ल किया.’‘
“वह उन की बीवी है, उन से बिना कोर्ट की इजाजत कोई नहीं मिल सकता. कोर्ट से और्डर ले कर मिल लेना.’‘ एसएचओ ने कहा.
राहुल वापस चला गया और कोर्ट खुलने का इंतजार करने लगा. राहुल का मन यह मानने को तैयार नहीं था कि वह सेठ की बीवी है. और यही बात उस ने बौस से भी कही थी.
उस बारिश वाली लड़की का क्या संबंध था इस कत्ल से? कौन थी वो महिला जिसे पुलिस सेठ की बीवी बता रही थी? इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे कहानी के अगले भाग में.
जब पुलिस की जीप एक ढाबे के आगे आ कर रुकी, तो अब्दुल रहीम चौंक गया. पिछले 20-22 सालों से वह इस ढाबे को चला रहा था, पर पुलिस कभी नहीं आई थी. सो, डर से वह सहम गया. उसे और हैरानी हुई, जब जीप से एक बड़ी पुलिस अफसर उतरीं.
‘शायद कहीं का रास्ता पूछ रही होंगी’, यह सोचते हुए अब्दुल रहीम अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया कि साथ आए थानेदार ने पूछा, ‘‘अब्दुल रहीम आप का ही नाम है? हमारी साहब को आप से कुछ पूछताछ करनी है. वे किसी एकांत जगह बैठना चाहती हैं.’’
अब्दुल रहीम उन्हें ले कर ढाबे के कमरे की तरफ बढ़ गया. पुलिस अफसर की मंदमंद मुसकान ने उस की झिझक और डर दूर कर दिया था.
‘‘आइए मैडम, आप यहां बैठें. क्या मैं आप के लिए चाय मंगवाऊं?
‘‘मैडम, क्या आप नई सिटी एसपी कल्पना तो नहीं हैं? मैं ने अखबार में आप की तसवीर देखी थी…’’ अब्दुल रहीम ने उन्हें बिठाते हुए पूछा.
‘‘हां,’’ छोटा सा जवाब दे कर वे आसपास का मुआयना कर रही थीं.
एक लंबी चुप्पी के बाद कल्पना ने अब्दुल रहीम से पूछा, ‘‘क्या आप को ठीक 10 साल पहले की वह होली याद है, जब एक 15 साला लड़की का बलात्कार आप के इस ढाबे के ठीक पीछे वाली दीवार के पास किया गया था? उसे चादर आप ने ही ओढ़ाई थी और गोद में उठा उस के घर पहुंचाया था?’’
अब चौंकने की बारी अब्दुल रहीम की थी. पसीने की एक लड़ी कनपटी से बहते हुए पीठ तक जा पहुंची. थोड़ी देर तक सिर झुकाए मानो विचारों में गुम रहने के बाद उस ने सिर ऊपर उठाया. उस की पलकें भीगी हुई थीं. अब्दुल रहीम देर तक आसमान में घूरता रहा. मन सालों पहले पहुंच गया. होली की वह मनहूस दोपहर थी, सड़क पर रंग खेलने वाले कम हो चले थे. इक्कादुक्का मोटरसाइकिल पर लड़के शोर मचाते हुए आतेजाते दिख रहे थे.
अब्दुल रहीम ने उस दिन भी ढाबा खोल रखा था. वैसे, ग्राहक न के बराबर आए थे. होली का दिन जो था. दोपहर होती देख अब्दुल रहीम ने भी ढाबा बंद कर घर जाने की सोची कि पिछवाड़े से आती आवाजों ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया. 4 लड़के नशे में चूर थे, पर… पर, यह क्या… वे एक लड़की को दबोचे हुए थे. छोटी बच्ची थी, शायद 14-15 साल की.
अब्दुल रहीम उन चारों लड़कों को पहचानता था. सब निठल्ले और आवारा थे. एक पिछड़े वर्ग के नेता के साथ लगे थे और इसलिए उन्हें कोई कुछ नहीं कहता था. वे यहीं आसपास के थे. चारों छोटेमोटे जुर्म कर अंदर बाहर होते रहते थे.
रहीम जोरशोर से चिल्लाया, पर लड़कों ने उस की कोई परवाह नहीं की, बल्कि एक लड़के ने ईंट का एक टुकड़ा ऐसा चलाया कि सीधे उस के सिर पर आ कर लगा और वह बेहोश हो गया. आंखें खुलीं तो अंधेरा हो चुका था. अचानक उसे बच्ची का ध्यान आया. उन लड़कों ने तो उस का ऐसा हाल किया था कि शायद गिद्ध भी शर्मिंदा हो जाएं. बच्ची शायद मर चुकी थी.
अब्दुल रहीम दौड़ कर मेज पर ढका एक कपड़ा खींच लाया और उसे उस में लपेटा. पानी के छींटें मारमार कर कोशिश करने लगा कि शायद कहीं जिंदा हो. चेहरा साफ होते ही वह पहचान गया कि यह लड़की गली के आखिरी छोर पर रहती थी. उसे नाम तो मालूम नहीं था, पर घर का अंदाजा था. रोज ही तो वह अपनी सहेलियों के संग उस के ढाबे के सामने से स्कूल जाती थी.
बच्ची की लाश को कपड़े में लपेटे अब्दुल रहीम उस के घर की तरफ बढ़ चला. रात गहरा गई थी. लोग होली खेल कर अपनेअपने घरों में घुस गए थे, पर वहां बच्ची के घर के आगे भीड़ जैसी दिख रही थी. शायद लोग खोज रहे होंगे कि उन की बेटी किधर गई.
अब्दुल रहीम के लिए एकएक कदम चलना भारी हो गया. वह दरवाजे तक पहुंचा कि उस से पहले लोग दौड़ते हुए उस की तरफ आ गए. कांपते हाथों से उस ने लाश को एक जोड़ी हाथों में थमाया और वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा. वहां चीखपुकार मच गई.
‘मैं ने देखा है, किस ने किया है.
मैं गवाही दूंगा कि कौन थे वे लोग…’ रहीम कहता रहा, पर किसी ने भी उसे नहीं सुना.
मेज पर हुई थपकी की आवाज से अब्दुल रहीम यादों से बाहर आया.
‘‘देखिए, उस केस को दाखिल करने का आर्डर आया है,’’ कल्पना ने बताया.
‘‘पर, इस बात को तो सालों बीत गए हैं मैडम. रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई थी. उस बच्ची के मातापिता शायद उस के गम को बरदाश्त नहीं कर पाए थे और उन्होंने शहर छोड़ दिया था,’’ अब्दुल रहीम ने हैरानी से कहा.
‘मुझे बताया गया है कि आप उस वारदात के चश्मदीद गवाह थे. उस वक्त आप उन बलात्कारियों की पहचान करने के लिए तैयार भी थे,’’ कल्पना की इस बात को सुन कर अब्दुल रहीम उलझन में पड़ गया.
‘‘अगर आप उन्हें सजा दिलाना नहीं चाहते हैं, तो कोई कुछ नहीं कर सकता है. बस, उस बच्ची के साथ जो दरिंदगी हुई, उस से सिर्फ वह ही नहीं तबाह हुई, बल्कि उस के मातापिता की भी जिंदगी बदतर हो गई,’’ सिटी एसपी कल्पना ने समझाते हुए कहा.
‘‘2 चाय ले कर आना,’’ अब्दुल रहीम ने आवाज लगाई, ‘‘जीप में बैठे लोगों को भी चाय पिलाना.’’
चाय आ गई. अब्दुल रहीम पूरे वक्त सिर झुकाए चिंता में चाय सुड़कता रहा.
‘‘आप तो ऐसे परेशान हो रहे हैं, जैसे आप ने ही गुनाह किया हो. मेरा इरादा आप को तंग करने का बिलकुल नहीं था. बस, उस परिवार के लिए इंसाफ की उम्मीद है.’’
अब्दुल रहीम ने कहा, ‘‘हां मैडम, मैं ने अपनी आंखों से देखा था उस दिन. पर मैं उस बच्ची को बचा नहीं सका. इस का मलाल मुझेआज तक है. इस के लिए मैं खुद को भी गुनाहगार समझता हूं.
‘‘कई दिनों तक तो मैं अपने आपे में भी नहीं था. एक महीने बाद मैं फिर गया था उस के घर, पर ताला लटका हुआ था और पड़ोसियों को भी कुछ नहीं पता था.
‘‘जानती हैं मैडम, उस वक्त के अखबारों में इस खबर ने कोई जगह नहीं पाई थी. दलितों की बेटियों का तो अकसर उस तरह बलात्कार होता था, पर यह घर थोड़ा ठीकठाक था, क्योंकि लड़की के पिता सरकारी नौकरी में थेऔर गुनाहगार हमेशा आजाद घूमते रहे.
‘‘मैं ने भी इस डर से किसी को यह बात बताई भी नहीं. इसी शहर में होंगे सब. उस वक्त सब 20 से 25 साल के थे. मुझे सब के बाप के नामपते मालूम हैं. मैं आप को उन सब के बारे में बताने के लिए तैयार हूं.’’
अब्दुल रहीम को लगा कि चश्मे के पीछे कल्पना मैडम की आंखें भी नम हो गई थीं.
‘‘उस वक्त भले ही गुनाहगार बच गए होंगे. लड़की के मातापिता ने बदनामी से बचने के लिए मामला दर्ज ही नहीं किया, पर आने वाले दिनों में उन चारों पापियों की करतूत फोटो समेत हर अखबार की सुर्खी बनने वाली है.
‘‘आप तैयार रहें, एक लंबी कानूनी जंग में आप एक अहम किरदार रहेंगे,’’ कहते हुए कल्पना मैडम उठ खड़ी हुईं और काउंटर पर चाय के पैसे रखते हुए जीप में बैठ कर चली गईं.
‘‘आज पहली बार किसी पुलिस वाले को चाय के पैसे देते देखा है,’’ छोटू टेबल साफ करते हुए कह रहा था और अब्दुल रहीम को लग रहा था कि सालों से सीने पर रखा बोझ कुछ हलका हो गया था.
इस मुलाकात के बाद वक्त बहुत तेजी से बीता. वे चारों लड़के, जो अब अधेड़ हो चले थे, उन के खिलाफ शिकायत दर्ज हो गई. अब्दुल रहीम ने भी अपना बयान रेकौर्ड करा दिया. मीडिया वाले इस खबर के पीछे पड़ गए थे. पर उन के हाथ कुछ खास खबर लग नहीं पाई थी.
अब्दुल रहीम को भी कई धमकी भरे फोन आने लगे थे. सो, उन्हें पूरी तरह पुलिस सिक्योरिटी में रखा जा रहा था. सब से बढ़ कर कल्पना मैडम खुद इस केस में दिलचस्पी ले रही थीं और हर पेशी के वक्त मौजूद रहती थीं. कुछ उत्साही पत्रकारों ने उस परिवार के पड़ोसियों को खोज निकाला था, जिन्होंने बताया था कि होली के कुछ दिन बाद ही वे लोग चुपचाप बिना किसी से मिले कहीं चले गए थे, पर बात किसी से नहीं हो पाई थी.
कोर्ट की तारीखें जल्दीजल्दी पड़ रही थीं, जैसे कोर्ट भी इस मामले को जल्दी अंजाम तक पहुंचाना चाहता था. ऐसी ही एक पेशी में अब्दुल रहीम ने सालभर बाद बच्ची के पिता को देखा था. मिलते ही दोनों की आंखें नम हो गईं.
उस दिन कोर्ट खचाखच भरा हुआ था. बलात्कारियों का वकील खूब तैयारी के साथ आया हुआ मालूम दे रहा था. उस की दलीलों के आगे केस अपना रुख मोड़ने लगा था. सभी कानून की खामियों के सामने बेबस से दिखने लगे थे.
‘‘जनाब, सिर्फ एक अब्दुल रहीम की गवाही को ही कैसे सच माना जाए? मानता हूं कि बलात्कार हुआ होगा, पर क्या यह जरूरी है कि चारों ये ही थे? हो सकता है कि अब्दुल रहीम अपनी कोई पुरानी दुश्मनी का बदला ले रहे हों? क्या पता इन्होंने ही बलात्कार किया हो और फिर लाश पहुंचा दी हो?’’ धूर्त वकील ने ऐसा पासा फेंका कि मामला ही बदल गया.
लंच की छुट्टी हो गई थी. उस के बाद फैसला आने की उम्मीद थी. चारों आरोपी मूंछों पर ताव देते हुए अपने वकील को गले लगा कर जश्न सा मना रहे थे. लंच की छुट्टी के बाद जज साहब कुछ पहले ही आ कर सीट पर बैठ गए थे. उन के सख्त होते जा रहे हावभाव से माहौल भारी बनता जा रहा था.
‘‘क्या आप के पास कोई और गवाह है, जो इन चारों की पहचान कर सके,’’ जज साहब ने वकील से पूछा, तो वह बेचारा बगलें झांकनें लगा.
पीछे से कुछ लोग ‘हायहाय’ का नारा लगाने लगे. चारों आरोपियों के चेहरे दमकने लगे थे. तभी एक आवाज आई, ‘‘हां, मैं हूं. चश्मदीद ही नहीं भुक्तभोगी भी. मुझे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए.’’
सब की नजरें आवाज की दिशा की ओर हो गईं. जज साहब के ‘इजाजत है’ बोलने के साथ ही लोगों ने देखा कि उन की शहर की एसपी कल्पना कठघरे की ओर जा रही हैं. पूरे माहौल में सनसनी मच गई.
‘‘हां, मैं ही हूं वह लड़की, जिसे 10 साल पहले होली की दोपहर में इन चारों ने बड़ी ही बेरहमी से कुचला था, इस ने…
‘‘जी हां, इसी ने मुझे मेरे घर के आगे से उठा लिया था, जब मैं गेट के आगे कुत्ते को रोटी देने निकली थी. मेरे मुंह को इस ने अपनी हथेलियों से दबा दिया था और कार में डाल दिया था.
‘‘भीतर पहले से ये तीनों बैठे हुए थे. इन्होंने पास के एक ढाबे के पीछे वाली दीवार की तरफ कार रोक कर मुझे घसीटते हुए उतारा था.
‘‘इस ने मेरे दोनों हाथ पकड़े थे और इस ने मेरी जांघें. कपड़े इस ने फाड़े थे. सब से पहले इस ने मेरा बलात्कार किया था… फिर इस ने… मुझे सब के चेहरे याद हैं.’’
सिटी एसपी कल्पना बोले जा रही थीं. अपनी उंगलियों से इशारा करते हुए उन की करतूतों को उजागर करती जा रही थीं. कल्पना के पिता ने उठ कर 10 साल पुराने हुए मैडिकल जांच के कागजात कोर्ट को सौंपे, जिस में बलात्कार की पुष्टि थी. रिपोर्ट में साफ लिखा था कि कल्पना को जान से मारने की कोशिश की गई थी.
कल्पना अभी कठघरे में ही थीं कि एक आरोपी की पत्नी अपनी बेटी को ले कर आई और सीधे अपने पति के मुंह पर तमाचा जड़ दिया.
दूसरे आरोपी की पत्नी उठ कर बाहर चली गई. वहीं एक आरोपी की बहन अपनी जगह खड़ी हो कर चिल्लाने लगी, ‘‘शर्म है… लानत है, एक भाई होते हुए तुम ने ऐसा कैसे किया था?’’
‘‘जज साहब, मैं बिलकुल मरने की हालत में ही थी. होली की उसी रात मेरे पापा मुझे तुरंत अस्पताल ले कर गए थे, जहां मैं जिंदगी और मौत के बीच कई दिनों तक झूलती रही थी. मुझे दौरे आते थे. इन पापियों का चेहरा मुझे हर वक्त डराता रहता था.’’
अब केस आईने की तरह साफ था. अब्दुल रहीम की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. कल्पना उन के पास जा कर उन के कदमों में गिर पड़ी.
‘‘अगर आप न होते, तो शायद मैं जिंदा न रहती.’’
मीडिया वाले कल्पना से मिलने को उतावले थे. वे मुसकराते हुए उन की तरफ बढ़ गई.
‘‘अब्दुल रहीम ने जब आप को कपड़े में लपेटा था, तब मरा हुआ ही समझा था. मेज के उस कपड़े से पुलिस की वरदी तक के अपने सफर के बारे में कुछ बताएं?’’ एक पत्रकार ने पूछा, जो शायद सभी का सवाल था.
‘‘उस वारदात के बाद मेरे मातापिता बेहद दुखी थे और शर्मिंदा भी थे. शहर में वे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे थे. मेरे पिताजी ने अपना तबादला इलाहाबाद करवा लिया था.
‘‘सालों तक मैं घर से बाहर जाने से डरती रही थी. आगे की पढ़ाई मैं ने प्राइवेट की. मैं अपने मातापिता को हर दिन थोड़ा थोड़ा मरते देख रही थी.
‘‘उस दिन मैं ने सोचा था कि बहुत हुआ अब और नहीं. मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए परीक्षा की तैयारी करने लगी. आरक्षण के कारण मुझे फायदा हुआ और मनचाही नौकरी मिल गई. मैं ने अपनी इच्छा से इस राज्य को चुना. फिर मौका मिला इस शहर में आने का.
‘‘बहुत कुछ हमारा यहीं रह गया था. शहर को हमारा कर्ज चुकाना था. हमारी इज्जत लौटानी थी.’’
‘‘आप दूसरी लड़कियों और उन के मातापिता को क्या संदेश देना चाहेंगी?’’ किसी ने सवाल किया.
‘‘इस सोच को बदलने की सख्त जरूरत है कि बलात्कार की शिकार लड़की और उस के परिवार वाले शर्मिंदा हों. गुनाहगार चोर होता है, न कि जिस का सामान चोरी जाता है वह.
‘‘हां, जब तक बलात्कारियों को सजा नहीं होगी, तब तक उन के हौसले बुलंद रहेंगे. मेरे मातापिता ने गलती की थी, जो कुसूरवार को सजा दिलाने की जगह खुद सजा भुगतते रहे.’’
कल्पना बोल रही थीं, तभी उन की मां ने एक पुडि़या अबीर निकाला और उसे आसमान में उड़ा दिया. सालों पहले एक होली ने उन की जिंदगी को बेरंग कर दिया था, उसे फिर से जीने की इच्छा मानो जाग गई थी.
डर के मारे वह ऊपर की ओर भागे. कमरे में रखी बड़ी सी कुरसी पर 5-6 कंबल ओढ़ कर छिप गए. कदमों की आहट उन्हें साफ सुनाई दे रही थी, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहे थे.
सन्नाटे को चीरती हुई एक मर्दाना आवाज गूंजी, ‘‘डा. फेंज गनीमत इसी में है कि तुम जहां भी छिपे हो निकल आओ वरना हम तो तुम्हें ढूंढ ही लेंगे.’’
यह आवाज थमी नहीं कि दूसरी आवाज उभरी, ‘‘आज बच नहीं पाओगे डा. फेंज.’’
खौफ से डा. फेंज की नसों का खून जम सा गया. वह सांस खींचे दुबके रहे. तभी पहले वाली आवाज फिर गूंजी, ‘‘डा. फेंज, हमें बता दो कि तुम ने नकद राशि कहां छिपा रखी है? हम तुम्हारी जान बख्श देंगे.’’
कंबलों में हलचल सी हुई. डा. फेंज में जाने कहां से हिम्मत आ गई कि वह झटके से बाहर आ गए. 2 लोग उन्हें खोज रहे थे. उन्होंने फुर्ती से एक युवक का सिर पकड़ कर खिड़की की चौखट से दे मारा. चीख के साथ उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. दूसरा उन की ओर लपका. उस ने डा. फेंज की कलाई पकड़ कर फर्श पर गिरा दिया.
इस के बाद घसीटता हुआ दीवार तक ले गया और उन का सिर पकड़ कर जोर से दीवार से मारा. इसी के साथ उस के घायल साथी ने डा. फेंज पर कुल्हाड़ी से जोरदार वार सिर पर किया. बस, एक ही वार में हलकी सी चीख के साथ वह बेहोश हो गए. इस के बाद भी दोनों युवकों ने ताबड़तोड़ कई वार उन के सिर और सीने पर किए. उन्हें लगा कि डा. फेंज खत्म हो गए हैं, लेकिन यह उन का भ्रम था.
डा. फेंज की सांसें चल रही थीं. दोनों का अगला निशाना वहां रखी अलमारी थी. अलमारी के दरवाजे को कुल्हाड़ी से तोड़ कर उसे खंगाला तो उस में 5 हजार यूरो मिले, जिन्हें ले कर दोनों भाग खड़े हुए. उन के जाने के बाद घिसटघिसट कर डा. फेंज उस टेबल तक आए, जहां फोन रखा था. किसी तरह नंबर मिला कर उन्होंने पुलिस को कराहती आवाज में घटना की सूचना दी.
10 मिनट में टौप एक्शन पुलिस फोर्स वहां पहुंच गई. गंभीर रूप से घायल डा. फेंज को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 11 सप्ताह तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए डा. फेंज ने आखिर 26 मार्च, 2008 को दम तोड़ दिया.
पुलिस जांच में मिले सुबूत डा. फेंज की पत्नी ततजाना के दोषी होने का इशारा कर रहे थे. ततजाना को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस का तर्क था कि एक साल से डा. फेंज से उस का कोई संबंध नहीं था. वह अपने प्रेमी हीलमुट बेकर के साथ रह रही थी. मगर उस की कोई भी दलील काम नहीं आई. मई, 2008 में अदालत के आदेश पर उसे डा. फेंज की हत्या और चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया.
16 महीने बर्लिन कोर्ट में यह मुकदमा चला. लेकिन सुबूतों और गवाहों के अभाव में अक्तूबर, 2009 को कोर्ट ने ततजाना को बेगुनाह करार देते हुए जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया.
कहा जाता है कि ततजाना को अपनी बदसूरती के चलते पहले जीवन से खास लगाव नहीं रहा था. लेकिन जब डा. फेंज ने 20 औपरेशन कर के उसे खूबसूरती का तोहफा दिया तो उस के अंदर की दम तोड़ चुकी महत्त्वाकांक्षाएं और हसरतें फिर से उमंगे भरने लगी थीं. इसी के चलते उस ने अपने से 44 साल बड़े डा. फेंज के प्यार को स्वीकार कर के शादी कर ली थी, क्योंकि डा. फेंज के पास अरबों डौलर की दौलत थी.
पुलिस के अनुसार शादी के बाद 9 सालों तक ततजाना ने ऐश की जिंदगी बसर करते हुए अपने सभी अरमान पूरे कर लिए. इस के बाद उस का मन डा. फेंज से भर गया तो वह कार व्यापारी हीलमुट बेकर के पहलू में जा गिरी. वह उस के साथ एक साल रही, लेकिन डा. फेंज को उस ने तलाक नहीं दिया. शायद उस की निगाह डा. फेंज की बेशुमार दौलत पर थी. उस पर उस का कब्जा डा. फेंज की मौत के बाद ही हो सकता था. इसी वजह से उस ने डा. फेंज की हत्या पेशेवर हत्यारों से करवा दी थी. लेकिन सुबूतों के अभाव में वह निर्दोष मानी गई.
खैर, सच्चाई चाहे जो भी रही हो, जेल से रिहा होने के बाद ततजाना डा. फेंज की बेवा होने के नाते उस की 11 मिलियन यू.एस. डौलर की एकलौती वारिस हो गई. उस की जिंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. पार्टीक्लबों में रात रंगीन करना, पुरुष मित्रों की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना, महंगी कारों में घूमना और भोग विलास भरा जीवन उस की दिनचर्या में शुमार हो गया.
एक हाईफाई पार्टी में ही ततजाना की मुलाकात नवंबर, 2011 में जर्मनी के सेक्सोनिया राज्य के आखिरी राजा 68 वर्षीय प्रिंस वौन हौमजोर्लन से हुई तो वह उस से दिल लगा बैठी. प्रिंस वौन भी उस की खूबसूरती और जवानी के ऐसे दीवाने हुए कि बस उसी के हो कर रह गए. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन प्रिंस वौन की पत्नी और बच्चों के रहते यह संभव नहीं था.
सन 1992 तक बीसों औपरेशन के बाद ततजाना का कायाकल्ल्प हो गया. इस बीच ततजाना का इलाज करते करते डा. फेंज कब उस की चाहत के मरीज बन गए, वह जान नहीं पाए. वह खुद हैरान थे, ऐसा कैसे हो गया. वह हजारों युवतियों की सर्जरी कर चुके थे, लेकिन जो निखार ततजाना के शरीर में आया था, ऐसा किसी अन्य युवती के शरीर में उन्होंने अनुभव नहीं किया था.
अपनी सुंदरता देख कर ततजाना बेहद खुश थी. इस के बावजूद वह आईने का सामना करने से कतरा रही थी. इस दौरान डा. फेंज ने अनुभव किया था कि बदसूरती से उपजी हीनभावना की शिकार ततजाना आईने से न केवल डरती है, बल्कि उस से नफरत करती है. इसीलिए इलाज के बाद वह उसे आदमकद आईने के सामने ले गए थे. ततजाना चाह कर भी आईने के सामने आंख नहीं खोल पा रही थी. खोलती भी कैसे, आखिर कितनी टीस दी थी इस आईने ने.
डा. फेंज ने आगे बढ़ कर ततजाना का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘पलकें उठा कर तो देखो, आईना खुद शरमा रहा है तुम्हारी खूबसूरती को देख कर. देखो, यह कह भी रहा है, ‘मेरा जवाब तू है, तेरा जवाब कोई नहीं.’’’
डरते हुए ततजाना ने नजरें उठा कर देखा, वाकई वह हैरान रह गई थी. उस के अंधेरे अतीत की परछाई भी नहीं थी उस के चेहरे पर. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने चेहरे को छू कर देखा. उस की नजरों में डा. फेंज के लिए एहसान और दिल में आदर तथा प्यार की तह सी जमी थी. वह अंजान तो नहीं थी. उसे अहसास हो गया था कि डा. फेंज के दिल में उस के लिए मोहब्बत का अंकुर फूट चुका है. लेकिन उस ने दिल की बात जुबान पर नहीं आने दी.
वह ऐसा समय था, जब डा. फेंज अपनी शादीशुदा जिंदगी के नाजुक दौर से गुजर रहे थे. आखिर वह समय आ ही गया, जब पत्नी उन्हें तलाक दे कर अपने एकलौते बच्चे को ले कर सदा के लिए उन की जिंदगी से दूर चली गई.
तनहाई के इस आलम में उन्हें ततजाना के प्यार के सहारे की जरूरत थी. लेकिन वह इजहार नहीं कर रहे थे. इसी तरह साल गुजर गया. दरअसल डा. फेंज जहां उम्र के ढलान पर थे, वहीं ततजाना यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी.
वह 66 साल के थे, जबकि ततजाना मात्र 23 साल की थी. लेकिन यह भी सच है कि प्यार न सीमा देखता है न मजहब और न ही उम्र. एक दिन फेंज और ततजाना साथ बैठे कौफी पी रहे थे, तभी डा. फेंज ने कहा, ‘‘ततजाना, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हारी इस खूबसूरती ने मुझे दीवाना बना दिया है.’’
‘‘यह खूबसूरती आप की ही दी हुई तो है. एक नई जिंदगी दी है आप ने मुझे. इसलिए इस पर पहला हक आप का ही बनता है.’’ ततजाना बोली.
‘‘नहीं ततजाना, मैं हक नहीं जताना चाहता. अगर दिल से स्वीकार करोगी, तभी मुझे स्वीकार होगा. मैं एहसानों का बदला लेने वालों में से नहीं हूं.’’ डा. फेंज ने कहा.
‘‘मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूं कि आप ने मेरी अंधेरी जिंदगी को रोशनी से सराबोर किया है. आप की तनहाई में साथ छोड़ दूं, यह कैसे हो सकता है. इस तनहाई में आप मुझे तनमन से अपने नजदीक पाएंगे. आप यह न समझें कि मैं यह बात एहसान का कर्ज अदा करने की गरज से नहीं, दिल से कह रही हूं.’’
सन 1999 में डा. फेंज से ततजाना ने विवाह कर लिया. शादी के बाद जहां डा. फेंज की तनहा जिंदगी में फिर से बहारें आ गईं, वहीं ततजाना भी एक काबिल और अरबपति पति की संगिनी बन कर खुद पर इतराने लगी.
अब सब कुछ था उस के पास. रहने को आलीशान महल, महंगी कारें, सोने हीरों के गहने और कीमती लिबास. जिंदगी के मायने ही बदल गए थे उस के. अब वह बेशुमार दौलत की मालकिन थी. हाई सोसाइटियों में उसे तवज्जो मिल रही थी, जिस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी.
ततजाना अपने जीवन की रंगीनियों में इस कद्र डूब गई कि अतीत की परछाई भी उस के पास नहीं फटक रही थी. डा. फेंज भी उस की खूबसूरती में खोए रहते थे. दोनों का 9 साल का दांपत्यजीवन कैसे गुजर गया, उन्हें पता ही नहीं चला. अचानक इस रिश्ते में तब दरार पड़ने लगी, जब ततजाना को तनहा छोड़ कर डा. फेंज अपने मरीजों में व्यस्त रहने लगे. बस यहीं से ततजाना के कदमों का रुख बदल गया.
उसी दौरान एक पार्टी में ततजाना की मुलाकात कारों के व्यापारी 60 वर्षीय हीलमुट बेकर से हुई. उस ने उस की आंखों में अपने प्रति चाहत देखी तो उस की ओर झुक गई. बेकर का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ततजाना उस की ओर झुकती चली गई. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो दोनों पर मोहब्बत का रंग चढ़ने लगा. जिस्मों के मिलन के बाद वह और निखर आया. अब ततजाना का अधिकतम समय बेकर की बांहों में गुजरने लगा. हद तो तब होने लगी, जब ततजाना डा. फेंज को अनदेखा कर के रातें भी बेकर के बिस्तर पर गुजारने लगी.
डा. फेंज सोच रहे थे कि ततजाना नादान है, राह भूल गई है. समझाने पर मान जाएगी. मगर ऐसा हुआ नहीं. एक रात डा. फेंज बेसब्री से ततजाना का इंतजार कर रहे थे. सारी रात बीत गई, ततजाना लौट कर नहीं आई. डा. फेंज ने कई संदेश भिजवाए लेकिन जवाब में बेरुखी ही मिली.
इसी तरह एक साल गुजर गया. डा. फेंज ने यह तनहाई कैसे काटी, इस का सुबूत था उन का बिगड़ा दिमागी संतुलन. अगर हवा से खिड़कियों के परदे भी हिलते तो उन्हें लगता कि यह ततजाना के कदमों की आहट है. वह आ गई है.
डा. फेंज 5 जनवरी, 2005 की सुबह अपनी क्लीनिक में अकेले ही खयालों में खोए बैठे थे. वह सोच रहे थे कि काश ततजाना आ जाती. अचानक खिड़की के शीशे जोर से खड़खड़ाए. शीशा टूट कर बाहर की तरफ गिर गया. घबरा कर उन्होंने उधर देखा तो 2 मानव आकृतियां दिखाई दीं. उन्होंने अपने चेहरे ढक रखे थे. डरेसहमे डा. फेंज ने ततजाना को फोन किया. घंटी बजती रही, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. तभी लगा, किसी ने खिड़की को ही उखाड़ दिया है.
तेज होती तालियों की गूंज उसे इस बात का अहसास करा रही थी कि वह ‘मिस जर्मनी’ के खिताब की हकदार है. वैसे तो 100 से ज्यादा सुंदरियां प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं, लेकिन उन में से कोई भी उस से ज्यादा सुंदर नहीं थी. उस ने चोर निगाहों से सब को देखा. हर निगाह उसी की खूबसूरती को निहार रही थी. उस की झील सी नीली आंखें, रेशम की तरह मुलायम गाल, गुलाब की पंखुडि़यों से नाजुक होंठ, जिसे कोई होंठों से भी छू ले तो निशान पड़ जाए. चेहरा ही क्या, अंग अंग का कोई जवाब नहीं था.
आखिरी राउंड पूरा हो चुका था. सभी दिल थामे जजों के फैसले के इंतजार में बैठे थे. सभी सुंदरियों के दिल धकधक कर रहे थे. तभी स्टेज से एक आवाज उभरी, ‘‘अब सभी अपना दिल थाम लें. इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. इस सौंदर्य प्रतियोगिता में वैसे तो हर हसीना की खूबसूरती काबिलेतारीफ है, लेकिन ‘मिस जर्मनी’ का ताज जिस के सिर की शोभा बनेगा, वह खूबसूरत होने के साथसाथ खुशनसीब भी है. उस खूबसूरत हसीना का नाम है, मिस ततजाना.’’
एक बार फिर हौल तालियों से गूंज उठा. मुसकान और अदाएं बिखेरती ततजाना आगे आई तो पूर्व मिस जर्मनी के हाथों में हीरों जडि़त ताज उस के माथे को चूमने को बेताब था. खुशी के अांसू छलक आए जब ततजाना के सिर पर ताज सजाया गया. होंठ थरथरा रहे थे उस के, लेकिन चाह कर भी जुबान नहीं खुल रही थी. तभी उस के कानों में आवाज पड़ी. ‘‘तत, आज कालेज नहीं जाना क्या? देखो, कितना समय हो गया है?’’
ततजाना की आंखें खुल गईं. वह जो खूबसूरत सपना देख रही थी, टूट गया. वह फुसफुसाई, ‘‘कुदरत ने तो मेरे साथ मजाक किया ही था, अब ख्वाब भी मेरी बदसूरती का उपहास उड़ाने लगे हैं.’’
एक लंबी आह भरी ततजाना ने. ‘काश! ख्वाब सच होता.’ लेकिन काश और हकीकत की लंबी दूरी आईने तक पहुंचते ही खत्म हो गई. आईना सच कह रहा था. कुदरत ने वाकई उस के साथ नाइंसाफी की थी. चेहरा तो बदसूरत था ही, शरीर भी लड़कों की तरह सपाट.
उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. उस ने एक बार फिर पहले कुदरत को कोसा और उस के बाद जननी को. वह इतनी बदसूरत थी तो जन्म देते ही मां ने उस का गला क्यों नहीं दबा दिया? मर जाती तो अच्छा रहता. उसे ये दिन देखने के लिए जिंदा क्यों रखा? कब तक वह इस बदसूरत शरीर का बोझ ढोती रहेगी?
ततजाना की कोई सहेली तक नहीं थी. चाहने वाले किसी लड़के की बात तो उस के लिए सपने जैसी थी. कालेज हो, कोई पार्टी हो या घर, हर जगह उस के साथ तनहाई ही रहती थी. बात यहीं तक रहती तो ठीक था, उस समय ततजाना का दिल रो उठता, जब कालेज में लड़के लड़कियां उस का मजाक उड़ाते. वह खून का घूंट पी कर रह जाती. उसे जिंदगी से कोफ्त होने लगती, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.
मां अकसर समझाती रहती, ‘‘बेटा, सूरत ही सब कुछ नहीं होती, सीरत अच्छी होनी चाहिए.’’
‘‘सीरत कौन देखता है मां, पूरी दुनिया खूबसूरती की गुलाम है.’’ कह कर ततजाना सिसक उठती, ‘‘कोई विरला ही सीरत देखता है. लेकिन मेरे भाग्य में वह भी नहीं है. भाग्यशाली ही होती तो बदसूरत क्यों होती?’’
मां चुप हो जाती. सच्चाई उसे भी पता थी. उसे भी चिंता खाए जा रही थी कि कौन थामेगा बेटी का हाथ? जिंदगी में वह किसी की मोहताज न रहे, यही सोच कर वह ततजाना को पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स करवा रही थी. होश संभालने के बाद अखबार में छपे उस विज्ञापन को देख कर पहली बार उस के चेहरे पर उम्मीद की कुछ लकीरें उभरी थीं.
वह विज्ञापन मशहूर प्लास्टिक सर्जन डा. फेंज जसेल का था. विज्ञापन के अनुसार, डा. फेंज पूरे यूरोप में विख्यात थे. उन्होंने अपने नरीम्बर्ग स्थित ‘नरीम्बर्ग विला क्लीनिक’ में जाने कितनों को नई जिंदगी दी थी प्लास्टिक सर्जरी कर के.
सन 1973 में जन्मी ततजाना 18 साल की हो गई थी. जब से वह समझदार हुई थी, बदसूरती को ले कर वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी. लेकिन डा. फेंज का विज्ञापन पढ़ कर उस के मन में आशा की एक किरण जागी थी. कुदरत को चुनौती देने वाला कोई तो है इस धरती पर. लेकिन अगले ही पल उस की यह उम्मीद धूल में मिलती नजर आई, जब उसे खयाल आया कि डा. फेंज की फीस कितनी होगी?
वह शक्लसूरत ही नहीं, रुपयोंपैसों से भी गरीब थी. घर की हालत बस काम चलाऊ थी. वह इस से बेखबर नहीं थी. फिर भी खयाल आया कि एक बार मां से बात कर ले. लेकिन तुरंत ही इस खयाल को त्याग देना पड़ा, क्योंकि घर चलाने के लिए मां एक ड्राइविंग स्कूल चलाती थी. बाप भी सौतेला था, इसलिए उस से उम्मीद करना बेकार था.
बदसूरती ने वैसे तो ततजाना को तोड़ कर रख दिया था. एक तरह से जीवन से मोह खत्म सा हो गया था, इस के बावजूद आत्मविश्वास कहीं दबा बैठा था. वही ततजाना को हिम्मत दे रहा था. उस ने मां को दिल की बात बताई और बाम्बर्ग जहां वह रहती थी, उसे छोड़ कर जा पहुंची नरीम्बर्ग डा. फेंज जसेल की क्लीनिक.
कारीगरी का बेहतरीन नमूना था नरीम्बर्ग विला. सफेद संगमरमर से बने भव्य महल में डा. फेंज का निवास और क्लीनिक दोनों थे. अपनी हैसियत देख कर ततजाना के पांव ठिठक रहे थे. किसी तरह साहस बटोर कर उस ने रिसेप्शन पर बैठी खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से डा. फेंज से मिलने का टाइम लिया. आशा निराशा में डूबती ततजाना सोफे पर बैठ गई. करीब आधे घंटे बाद उसे डा. फेंज से मिलने का मौका मिला. अधेड़ डा. फेंज के चेहरे पर जवानों सी ताजगी थी.
कहते हैं, अगर डाक्टर का व्यक्तित्व अच्छा हो तो मरीज इलाज से पहले ही आधा ठीक हो जाता है. ततजाना को कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. डा. फेंज जसेल ने उस की जांच के बाद कहा कि इलाज के बाद उस की खूबसूरती ऐसी निखर जाएगी कि देखते ही बनेगी. मगर इस के लिए उन्हें 20 औपरेशन करने पड़ेंगे और एक औपरेशन का खर्च 70 हजार डालर के करीब आएगा.
इलाज का खर्च सुन कर ततजाना का खूबसूरत बन जाने का उत्साह तुरंत मायूसी में बदल गया. डा. फेंज ने उस के मन की बात भांप ली. उन्होंने कहा, ‘‘खर्च ज्यादा है, उठा नहीं पाओगी?’’
ततजाना कुछ कहती, उस के पहले ही डा. फेंज ने कुछ सोचते हुए गंभीरता से कहा, ‘‘इस का भी रास्ता है, अगर तुम चाहो तो…’’
नजर उठा कर ततजाना ने डा. फेंज को देखा. वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन जुबान चिपक सी गई. उस के चेहरे के भावों को पढ़ कर डा. फेंज ने आगे कहा, ‘‘घबराने या मायूस होने की जरूरत नहीं है. बस, तुम्हें मेरे क्लीनिक में नौकरी करनी होगी. वेतन के बदले मैं तुम्हारी सर्जरी कर दूंगा.’’
अपना सपना साकार होता देख ततजाना की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. गला भर्रा उठा और होंठ थरथराए, ‘‘मुझे मंजूर है.’’
ततजाना बस इतना ही कह पाई.
सन 1986 में ततजाना अपना घर छोड़ कर नरीम्बर्ग आ गई, एक नए जीवन की शुरुआत की उम्मीद ले कर. वह लगन से अपनी ड्यूटी करने लगी तो डा. फेंज ने उस के शरीर की सर्जरी शुरू कर दी. पहला औपरेशन उस के सपाट स्तनों का हुआ, जो कामयाब रहा. इस के बाद आंखों के पास नाक, गाल, ठोढी और गर्दन की सर्जरी हुई.