दर्द जब हद से गुजर जाए – भाग 2

उसी बीच बाबा दिल्ली से आया तो सगुना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. सगुना मुंह लटकाए दरवाजे पर बैठी थी. उस तरह बैठी देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, लगता है आज तुम खुश नहीं हो, क्या बात है, मुझे बताओ. मैं भी तो तुम्हारा कुछ लगता हूं.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम्हारे भैया से कब से एक फोन के लिए कह रही हूं. उन के पास पैसा ही नहीं रहता कि एक फोन ला कर दे दें. फोन न होने की वजह से मायके का हालचाल भी नहीं मिल पाता.’’

‘‘बस, इतनी सी बात के लिए मुंह लटकाए बैठी हैं. इस बार आऊंगा तो आप के लिए मोबाइल ले कर आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.

सगुना ने उसे घूर कर देखा. वह उस के लिए इतने पैसे खर्च करने को तैयार है. उस का कितना खयाल रखता है. अगले दिन बाबा दिल्ली चला गया. लेकिन अगली बार आया तो सगुना के हाथ पर एकदम नया मोबाइल रख दिया. सगुना हैरान रह गई. वह पति से कब से मोबाइल लाने को कह रही थी. वह सुन ही नहीं रहा था. बाबा से सिर्फ जिक्र किया और उस ने मोबाइल ला कर दे दिया. यह उस का कितना खयाल रखता है.

सगुना को हैरान और सोच में डूबा देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, तुम हैरान क्यों हो रही हो. सच्चाई यह है कि मैं तुम से प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें वे सारी खुशियां देना चाहता हूं, जो मुन्नाभाई तुम्हें नहीं दे पा रहे हैं.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है देवरजी.’’ सगुना ने उलझन में कहा, ‘‘मैं शादीशुदा हूं. मैं तुम से प्यार कैसे कर सकती हूं?’’

‘‘प्यार करने वाले कुछ नहीं देखते. उन्हें सिर्फ अपने प्यार की चिंता होती है. अच्छा, यह बताओ, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करती?’’ बाबा ने सगुना की आंखों में झांकते हुए पूछा.

सगुना ने सिर झुका लिया. बाबा ने इधरउधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस के गालों को छू कर होंठों से लगाया और मुसकराते हुए चला गया. सगुना उसे तब तक देखती रही, जब तक बाबा दिखाई देता रहा. आंखों से ओझल होते समय बाबा ने हाथ हिलाया तो उसी तरह हाथ हिला कर सगुना ने भी जवाब दिया.

बाबा का दिया मोबाइल सगुना ने छिपा कर रख दिया. फिर 2 दिनों बाद वह मायके गई और वहां से लौटी तो मुन्नालाल को बताया कि भाई ने उसे मोबाइल खरीद कर दे दिया है. मुन्नालाल ने सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, अब सगुना उसे मोबाइल के लिए परेशान तो नहीं करेगी. उसे क्या पता था कि यह मोबाइल उस का घर बारबाद करने के लिए आया है.

इस के बाद सगुना और बाबा के बीच बात होने लगी. इस बातचीत ने दोनों को और करीब ला दिया. फिर अगली बार बाबा गांव आया तो बेखौफ सगुना से मिला और पति के प्यार की प्यासी सगुना को बाबा से इतना प्यार मिला कि वह मुन्नालाल के प्रति बेवफा हो गई. दिल में उस ने मुन्नालाल की जगह बाबा को बैठा लिया.

कुछ दिनों तक तो सगुना और बाबा के संबंधों की किसी को खबर नहीं लगी. लेकिन जब बाबा का मुन्नालाल के घर कुछ ज्यादा ही आनाजाना हो गया तो उसे ले कर कानाफूसी होने लगी. किसी पड़ोसी ने जब मुन्नालाल को बताया कि बाबा उस की गैरमौजूदगी में उस के घर आताजाता है तो पहले तो उस ने जम कर सगुना की ठुकाई की, उस के बाद बोला, ‘‘आज के बाद बाबा घर में दिखाई दिया तो अच्छा नहीं होगा.’’

इस के बाद उस ने सगुना का मोबाइल फोन ले कर देखा तो उस की जिस नंबर पर सब से ज्यादा बात हुई थी वह बाबा का नंबर था. मुन्नालाल के मन में शक का बीज पड़ गया. उसे एक बार फिर अपनी गृहस्थी बरबाद होती नजर आने लगी.

शक ने मुन्नालाल को पागल कर दिया. वह बातबात में सगुना से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा. उस की मारपीट से तंग आ कर एक दिन सगुना ने फोन पर बाबा से साफ कह दिया, ‘‘तुम्हारी वजह से मैं रोज पिटती हूं. तुम मुझे अपने साथ ले चलो, वरना मुझे छोड़ दो.’’

‘‘ठीक है, तुम तैयार रहना मैं जल्दी ही घर आ रहा हूं. इस बार मैं तुम्हें भी साथ ले आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.

इस के बाद एक दिन सगुना गायब हो गई. परेशान मुन्नालाल भाई नरेश के पास पहुंचा और सारी बात बताई. नरेश तो कुछ नहीं बोला, लेकिन उस के बेटे सुलखान ने कहा, ‘‘चाची की वजह से गांव में हमारी बहुत बदनामी हुई है. अगर चाची लौट कर नहीं आती तो समाज में हमारा उठनाबैठना मुश्किल हो जाएगा.’’

इस के बाद काफी सोचविचार कर दोनों भाई बाबा के पिता मुलायम सिंह के पास पहुंचे, जब इन लोगों ने उसे बताया कि बाबा सगुना को भगा ले गया है तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. लेकिन जब इन लोगों ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने सगुना को बाबा के पास से ला कर उन के हवाले नहीं किया तो वे बापबेटे के खिलाफ सगुना को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे.

ग्रामप्रधान ने भी मुलायम सिंह पर दबाव बनाया तो मुलायम सिंह ने बेटे को फोन किया. सचमुच सगुना उसी के साथ थी. उस ने उसे गांव ले कर आने को कहा. इस तरह लगभग सप्ताह भर बाद सगुना एक बार फिर मुन्नालाल के पास आ गई.

बेटा दोबारा इस तरह का काम न करे, मुलायम सिंह ने उस के लिए लड़की तलाशने लगा. जल्दी ही उस ने हरदोई में उस की शादी तय कर दी. जब इस बात की जानकारी सगुना को हुई तो उस ने बाबा को फोन कर के साफसाफ कह दिया कि अब वह उस के बिना कतई नहीं रह सकती. तब उस ने उसे आश्वासन दिया कि शादी के बाद भी वह उसी का रहेगा.

मुन्नालाल पत्नी पर नजर रखता था. लेकिन बाबा के प्यार में पागल सगुना को अब उस की जरा भी परवाह नहीं रह गई थी. यही वजह थी कि अब वह आक्रामक होती जा रही थी. दूसरी ओर मुन्नालाल परेशान  था कि अगर सगुना चली गई तो इस के बाद कोई उसे अपनी लड़की देने वाला नहीं है.

बाबा की शादी रेखा से हो गई थी. बाबा के घर वाले चाहते थे कि वह अपनी पत्नी को दिल्ली ले जाए. इस शादी से मुन्नालाल ने भी राहत महसूस की थी कि बाबा नईनवेली दुलहन पा कर सगुना को भूल जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. क्योंकि कुछ दिनों बाद बाबा नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.

बेटी बनी गवाह : मां को मिली सजा

काल बनी एक बहू – भाग 1

कमला जोशी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 25 किलोमिटर दूर थाना प्रेमनगर के संपन्न गांव श्यामपुर में रहती थीं. उन के परिवार में 2 बेटे बड़ा राजेंद्र और छोटा दीपक था. दोनों बेटों का वह विवाह कर चुकी थीं. राजेंद्र खेतीबाड़ी संभालता था, जबकि दीपक भारतीय सेना में नौकरी कर रहा था. दीपक की पत्नी चंचल कमला के पास ही रहती थी. वह देहरादून में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी. वह स्कूटी से आतीजाती थी.

कमला जोशी के पास करोड़ों की प्रौपर्टी थी. घर से लगी रही उन की 4 बीघा जमीन थी, देहरादून में भी उन्होंने प्लौट खरीद रखा था. उन का परिवार वैसे तो खुशहाल था, लेकिन उन्हें एक बात की हमेशा फिक्र लगी रहती थी. दरअसल राजेंद्र का विवाह उन्होंने 7-8 साल पहले कर दिया था, लेकिन अनबन के चलते एक साल बाद ही उस का पत्नी से तलाक हो गया था.

राजेंद्र का एक बेटा था भास्कर, जिसे उस ने अपने पास ही रख लिया था. 7 वर्षीय भास्कर परिवार में सभी का लाडला था. कमला उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुकी थीं. वह चाहती थीं कि किसी भी तरह बड़े बेटे की गृहस्थी दोबारा बस जाए तो उन की जिम्मेदारी पूरी हो जाए. इस से एक तो राजेंद्र को सहारा मिल जाता और भास्कर को मां का प्यार.

उन की छोटी बहू चंचल सुंदर होने के साथसाथ पढ़ीलिखी और समझदार थी. वह हर तरह से परिवार के सभी सदस्यों का खयाल रखती थी. थोड़ी परेशानी तब होती थी, जब चंचल दीपक के पास चली जाती थी. दीपक की तैनाती उड़ीसा में थी. नवंबर के दूसरे सप्ताह में भी चंचल दीपक के पास चली गई थी. बड़े बेटे का घर बसाने के लिए कमला ने अपने कई नातेरिश्तेदारों से कह रखा, लेकिन उस की उम्र और एक बेटा होने की वजह से कोई उस से रिश्ता करने को तैयार नहीं था.

इस के बावजूद कमला ने प्रयास नहीं छोड़ा. आखिरकार किसी ने उन्हें पिथौरागढ़ में एक रिश्ता बताया. कमला इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थीं. अपने स्तर से उन्होंने जो जानकारियां जुटाईं, उस हिसाब से लडक़ी और उस का परिवार दोनों ही बहुत अच्छे थे. बातचीत हो जाने के बाद कमला ने वादा कर लिया कि वह जल्द ही लडक़ी देखने आएंगी. दीपक अपनी मां और भाई से बात करता रहता था.

27 नवंबर, 2015 की सुबह उस ने राजेंद्र के मोबाइल पर फोन किया तो उस की बात कमला से हुईं. उन्होंने उसे बताया कि वे लोग रास्ते में हैं और लडक़ी देखने के लिए पिथौरागढ़ जा रहे हैं. कमला ने बताया था कि उन के साथ राजेंद्र और भास्कर भी हैं.

मां के साथ हुई दीपक की यह आखिरी बातचीत थी. क्योंकि उस ने शाम के वक्त मां के मोबाइल पर फोन किया तो वह स्विच औफ मिला. इस के बाद रात से सुबह हो गई, लेकिन दीपक की मां से दोबारा बात नहीं हो सकी. इस से उस की चिंता बढ़ गई. उस ने किसी तरह पता कर के लडक़ी वालों के यहां पिथौरागढ़ फोन किया तो पता चला कि वे वहां पहुंचे ही नहीं थे, जबकि वे लोग उन का इंतजार कर रहे थे.

दीपक ने अपने नातेरिश्तेदारों को भी फोन किए, पर घर वालों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. उस का मन तरहतरह की आशंकाओं से घिरने लगा. वे घर भी वापस नहीं पहुंचे थे. दीपक इस से परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वे लोग गए तो कहां गए. कुछ नहीं सूझा तो उस ने छुट्टी ली और पत्नी चंचल के साथ अगले दिन घर पहुंच गया. जब वह अपने स्तर से उन की खोजबीन में नाकाम रहा तो उस ने स्थानीय थाना प्रेमनगर में अपनी मां, भाई और भतीजे की गुमशुदगी दर्ज करा दी. दीपक ने एसएसपी डा. सदानंद दाते से भी मिल कर परिवार को खोजने की गुजारिश की.

पुलिस ने खोजबीन शुरू की तो पता चला कि 28 नवंबर को उन की कार नंबर – यूके 07 एपी 5359 उत्तर प्रदेश के रामपुर जनपद के बिलासपुर इलाके में लावारिस हालत में पाई गई थी. दीपक ने पुलिस को बताया कि राजेंद्र कार चलाना नहीं जानते थे. पिथौरागढ़ जाने के लिए वे कोई ड्राइवर कर के गए होंगे. लेकिन उन के साथ ड्राइवर कौन गया था, यह उसे पता नहीं था.

एसपी (सिटी) अजय कुमार के निर्देश पर पुलिस ने बिलासपुर पहुंच कर कार की जांचपड़ताल की. कार में सभी सामान सुरक्षित था. बारीकी से जांच की गई तो उस में एक्सिस बैंक के एटीएम की एक परची मिली. वह उपनगर काशीपुर की थी. इस से अनुमान लगाया गया कि काशीपुर में उन्होंने एटीएम का इस्तेमाल किया होगा. सदानंद दाते ने एक पुलिस टीम काशीपुर के लिए रवाना कर दी.

पुलिस ने एटीएम के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. इस फुटेज से पता चला कि राजेंद्र और उस की मां कमला करीब 8 मिनट एटीमए केबिन में रहे थे. बाद में उन के पास एक लंबातगड़ा युवक भी आया था, जिस से उन्होंने कुछ बात की थी. संभावना थी कि वही ड्राइवर रहा होगा.

हालांकि उस का चेहरा बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं था, लेकिन पुलिस को उम्मीद थी कि उस के जरिए अब जोशी परिवार के लापता होने का सुराग मिल जाएगा. लेकिन यह उम्मीद ज्यादा नहीं टिक सकी, पता चला कि वह वहां का सिक्योरिटी गार्ड था. इस से केवल यह पता चला कि जोशी परिवार काशीपुर तक सुरक्षित था.

जोशी परिवार रहस्यमय हालात में कहां लापता हो गया, कोई नहीं जानता था. इसी बीच ऊधमसिंहनगर में सितारगंज के सिडकुल के पास एक बच्चे का शव पड़ा मिला. शव मुख्य सडक़ से करीब 30 मीटर अंदर झाडिय़ों में मिला था. शव मिलने की सूचना पर थानाप्रभारी सी.एस. बिष्ट मौके पर पहुंचे. बच्चे की हत्या गरदन काट कर की गई थी. इस की सूचना आला अधिकारियों को दी गई तो एएसपी टी.डी. वैला भी घटनास्थल पर पहुंचे.

मौके पर पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने उस के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस की सूचना मिलने पर दीपक भी सितारगंज पहुंचा. शव देख कर वह बिलख पड़ा. वह शव उस के भतीजे भास्कर का था. सितारगंज पुलिस ने बच्चे की हत्या, अपहरण और साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर लिया.

जो जोशी परिवार लापता था. उस में से एक बच्चे भास्कर की हत्या की जा चुकी थी. उन की कार भी बरामद हो चुकी थी. जबकि कमला और राजेंद्र का कुछ पता नहीं था. ऊधमसिंहनगर के एसएसपी केवल खुराना ने इस मामले की तह तक जाने और गहनता से जांच कर ने के लिए एएसपी टी.डी. वैला, एएसपी काशीपुर कमलेश उपाध्याय और सीओ खटीमा लोकजीत सिंह के नेतृत्व में पुलिस की 3 टीमों का गठन किया.

लेकिन उन्हें घटना के तार देहरादून से जुड़े होने का अंदेशा था. सब से अहम बात यह थी कि राजेंद्र जिस ड्राइवर को अपने साथ ले कर गया होगा, वह कार ड्राइवर कौन था, यह पता लगाना जरूरी था. ड्राइवर का पता चलने पर ही अहम सुराग मिल सकते थे. पुलिस ने जोशी परिवार के आसपास रहने वालों से भी पूछताछ की, लेकिन ड्राइवर के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सका.

ड्राइवर को उन्होंने हायर किया था या कोई जानपहचान वाला चालक था, इस बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा था. हां, यह आशंका जरूर प्रबल हो गई थी कि जोशी परिवार किसी बड़ी साजिश का शिकार हुआ है. भास्कर का शव मिलने के बाद राजेंद्र और उस की मां के जीवित होने की उम्मीद कम ही रह गई थी.

चोट : मिला कत्ल का सुराग – भाग 1

योगेन नपे तुले कदमों से आगे बढ़ते हुए साफ महसूस कर रहा था कि आगे चल रही महिला उस से डर रही है. उस अंधेरे कौरीडोर में वह बारबार पीछे मुड़ कर देख रही थी. उस की आंखों में एक अंजाना सा डर था और वह बेहद घबराई हुई लग रही थी. शायद उसे लग रहा था कि वह उस का पीछा कर रहा है.

बिजनैस सेंटर में ज्यादातर औफिस थे, जिन में अब तक काफी बंद हो चुके थे. इस बिजनैस सेंटर में खास बात यह थी कि इस के औफिस में किसी भी समय आयाजाया जा सकता था. इसीलिए सेंटर के गेट पर एक रजिस्टर रख दिया गया था, जिस में आनेजाने वालों को अपना नामपता और समय लिखना होता था.

महिला रजिस्टर में अपना नामपता और समय लिख कर तेजी से आगे बढ़ गई. उस के बाद योगेन भी नामपता और समय लिख कर महिला के साथ लिफ्ट में सवार हो गया था. लिफ्ट में महिला ने एक बार भी नजर उठा कर उस की ओर नहीं देखा. शायद वह अपने खौफ पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी.

योगेन ने लिफ्ट औपरेटर से कहा, “सातवीं मंजिल पर जाना है.”

इस पर महिला ने चौंक कर उस की ओर देखा, क्योंकि उसे भी उसी मंजिल पर जाना था. यह सोच कर उस की सांस रुकने लगी कि यह आदमी क्यों उस के पीछे लगा है?

चंद पलों में ही सातवीं मंजिल आ गई. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही महिला तेजी से निकली और उसी रफ्तार से आगे बढ़ गई. उस की ऊंची ऐड़ी के सैंडल फर्श पर ठकठक बज रहे थे. तेजी से चलते हुए उस ने पलट कर देखा तो गिरतेगिरते बची. योगेन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस महिला को कैसे समझाए कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा, इसलिए उसे उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है.

आगे बढ़ते हुए योगेन दोनों ओर बने धुंधले शीशे वाले औफिसों पर नजर डालता जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से दरवाजों पर लिखे नंबर ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे. कौरीडोर खत्म होते ही महिला बाईं ओर मुड़ गई. वह भी उसी ओर मुड़ा तो महिला और ज्यादा सहम गई.

वह और तेजी से आगे बढ़ कर एक औफिस के आगे रुक गई. उस की लाइट जल रही थी. दरवाजे के हैंडल पर हाथ रख कर उस ने योगेन की ओर देखा. लेकिन वह उस के करीब से आगे बढ़ गया. आगे बढ़ते हुए योगेन ने दरवाजे पर नजर डाली थी. उस पर डा. साहिल परीचा के नाम का बोर्ड लगा था. उस के आगे बढ़ जाने से महिला हैरान तो हुई ही, उसे यकीन भी हो गया कि वह उस का पीछा नहीं कर रहा था.

योगेन अंधेरे में डूबे दरवाजों को पार करते हुए आगे बढ़ता रहा. उस कौरीडोर में आखिरी दरवाजे से रोशनी आ रही थी. आगे बढ़ते हुए उस ने अपनी दोनों जेबें थपथपाई. एक जेब में पिस्तौल था, जिसे इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. दूसरी जेब में 50 लाख रुपए की कीमत का बहुमूल्य हीरे का नेकलैस मखमल की एक डिब्बी में रखा था. जिसे लेने से पहले योगेन ने अच्छी तरह चैक किया था. वह वही नेकलैस पहुंचाने यहां आया था.

दरवाजा खोलने से पहले योगेन ने पलट कर देखा तो वह महिला अभी तक दरवाजे पर खड़ी उसी को देख रही थी. योगेन ने उसे घूरा तो वह हड़बड़ा कर जल्दी से अंदर चली गई. योगेन ने एक बार फिर खाली कौरीडोर को देखा और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

सामने रिसैप्शन में बैठी लड़की उसे देख कर मुसकराते हुए उठी और उस के गले लग गई. योगेन कुछ कहता, उस के पहले ही वह बोली, “तुम एकदम सही समय साढ़े 8 बजे आए हो डियर. उसे साथ ले आए हो न?”

“हां, ले आया हूं.” योगेन ने जेब पर हाथ फेरते हुए कहा.

“कैसा है, क्या बहुत खूबसूरत है?” लड़की ने बेचैनी से पूछा.

योगेन ने लड़की का हाथ पकड़ कर उस के बाएं हाथ की हीरे की अंगूठी देखते हुए कहा, “रीना, नेकलैस के सारे हीरे इस से बड़े और काफी कीमती हैं.”

“योगेन, फिर कभी ऐसा मत कहना. मेरे लिए यह अंगूठी दुनिया की सब से कीमती चीज है. जानते हो क्यों? क्योंकि इसे तुम ने दिया है. यह तुम्हारे प्यार की निशानी है.” रीना योगेन की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा.

रीना की इस बात पर योगेन मुसकराया.

रीना ने अपने बैग से टिशू पेपर निकालते हुए कहा, “तुम्हारे गाल पर मेरी लिपस्टिक का निशान लग गया है…” रीना इतना ही कह पाई थी कि उस की आंखें हैरानी से फैल गईं और आगे की बात मुंह में ही रह गई.

रीना की हालत से ही योगेन अलर्ट हो गया. वह समझ गया कि उस के पीछे जरूर कोई मौजूद है. उस ने मुडऩे की कोशिश की कि तभी उस के सिर के पिछले हिस्से पर कोई भारी चीज लगी और वह रीना की बांहों में गिर कर बेहोश हो गया. जब उसे होश आया तो उसे लगा कि वह किसी मुलायम चीज पर लेटा है. सिर के पिछले हिस्से में तेज दर्द हो रहा था. उस के होंठों से कराह निकली. आंखें खोलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा.

उसे लगा जैसे उस की आंखों पर भारी बोझ रखा है. फिर भी उस ने हिम्मत कर के आंखें खोल दीं. लेकिन तेज रोशनी से उस की आंखें बंद हो गईं. उस के कानों में कुछ आवाजें पड़ रही थीं. कोई कह रहा था, “ओह गाड, यह क्या हुआ?”

“पता नहीं, मैं ने इसे इसी तरह पड़ा पाया था.” किसी ने जवाब दिया.

“अरे इसे होश आ रहा है.” किसी ने कहा.

इस के बाद 2-3 लोगों ने मिल कर योगेन को उठाया तो उस के हलक से कराह निकल गई.

“आराम से, शायद यह जख्मी है. शायद इसे दिमागी चोट आई है. रुको डा. परीचा के औफिस में लाइट जल रही है. मैं उन्हें बुला कर लाता हूं.” किसी ने भारी आवाज में कहा.

“ठीक है, डाक्टर को जल्दी ले कर आओ.” किसी अन्य ने कहा.

अब तक योगेन को पूरी तरह से होश आ गया था. कोई धीरेधीरे उस के शरीर को टटोल रहा था. शायद चोट तलाश रहा था. जैसे ही उस का हाथ योगेन के सिर के पीछे पहुंचा, उसके मुंह से कराह निकल गई. उस का शरीर कांप उठा.

“इस का मतलब सिर के पिछले हिस्से में काफी गहरी चोट लगी है. इसे उठा कर सोफे पर लिटाओ, उस के बाद देखता हूं.”

योगेन को उठा कर मुलायम और आरामदेह सोफे पर लिटा दिया गया. इस के बाद कोई उस के जख्म की जांच करने लगा तो उसे तकलीफ हुई और वह दोबारा बेहोश हो गया.

दर्द जब हद से गुजर जाए – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना बेवर के गांव बर्रा के रहने वाले मुन्नालाल कठेरिया का दांपत्य  जीवन गुस्से की वजह से कभी भी  सुखमय नहीं रहा. गुस्से की ही वजह से आज वह अपनी तीसरी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में है. उस की पहली पत्नी की मौत हो गई थी तो उस के गुस्सैल स्वभाव से आजिज आ कर दूसरी पत्नी ने उस के साथ रहने से मना कर दिया था. काफी कोशिश कर के उस के भाई नरेश ने उस की तीसरी शादी औरैया के रमपुरा कटरा के रहने वाले डबली की बेटी सगुना से करा कर एक बार फिर उस की गृहस्थी आबाद करा दी थी.

डबली के 2 बेटे, उमेश और सतीश के अलावा एक बेटी सगुना थी. लेकिन घर के हालात कुछ ऐसे थे कि उसे अपनी एकलौती बेटी का ब्याह मुन्नालाल जैसे आदमी से करना पड़ा था, जिस की 2 शादियां पहले ही हो चुकी थीं. मांबाप की मजबूरी की वजह से सगुना कुर्बान हो गई थी. लेकिन मुन्नालाल से उसे कभी वह जुड़ाव नहीं हो सका था, जो पतिपत्नी में होता है. इस की वजह थी मुन्नालाल का गुस्सैल स्वभाव और उम्र में अंतर.

सगुना गरीब बाप की बेटी थी, इसलिए उसे पता था कि ब्याह के बाद अब उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका है. न चाहते हुए भी वह मुन्नालाल से जुड़ने की कोशिश करने लगी थी.  समय के साथ मुन्नालाल सगुना के 2 बच्चों अलकेश और अतुल का बाप बन गया. इस के बावजूद उस के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया. बातबात में भड़क उठने वाले मुन्नालाल को गुस्सा चढ़ता तो उसे अच्छेबुरे का खयाल नहीं रहता.

ऐसे में सगुना का मन आहत होता रहता, क्योंकि मुन्नालाल गुस्से में गालीगलौज तो करता ही था, मारपीट करने में भी पीछे नहीं रहता था. सगुना ने जब इस बात की शिकायत मांबाप से की तो मांबाप ने ही नहीं, भाइयों ने भी साफसाफ कह दिया था कि अब उस का घर वही है और उसे अपनी तरह से संभालना है. हां, भाइयों ने इस बात का आश्वासन जरूर दिया था कि वे मुन्नालाल को समझाएंगे. इन बातों से साफ हो गया था कि चाहे जो भी हो, उसे हर हाल में मुन्नालाल के साथ ही रहना था.

चारों ओर से निराश सगुना मुन्नालाल में मन लगाने की कोशिश कर रही थी कि तभी अचानक एक दिन मायके से लौटते समय बेवर बसस्टैंड पर उस की मुलाकात गांव के ही रहने वाले बाबा से हो गई. गांव के रिश्ते से वह उस का देवर लगता था. वह बच्चों को ले कर टैंपो पकड़ने के लिए सड़क की ओर बढ़ रही थी, तभी बाबा ने उस के पास आ कर कहा था, ‘‘कहां से आ रही हो भाभी?’’

‘‘मां के यहां गई थी, वहीं से आ रही हूं.’’

‘‘मैं भी घर चल रहा हूं.’’ सगुना का बैग उठाते हुए बाबा ने कहा, ‘‘लाइए, अनुज को मुझे दे दीजिए.’’

बाबा ने सड़क पर आ कर टैंपो रुकवाया और सगुना के बगल में बैठ कर एक बच्चा उस की गोद में बैठा दिया और दूसरा अपनी गोद में बैठा लिया. टैंपो चला तो बाबा ने पूछा, ‘‘भाभी, आप मुन्नाभाई के साथ कैसे रह लेती हो?’’

‘‘मजबूरी है, क्या कर सकती हूं. इस के अलावा कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं है.’’ सगुना ने उदास हो कर कहा.

‘‘भाभी, आप जवान भी हैं और खूबसूरत भी. मुन्ना भाई जैसे आदमी को ले कर क्या बैठी हैं.’’

‘‘भैया, 2 बच्चों की मां को कौन पूछेगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो आप बहुत अच्छी लगती हैं.’’ बाबा ने कहा तो सगुना हैरानी से उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप मुझे अच्छी लगती हैं तो अच्छी लगती हैं. इस में मतलब की क्या बात?’’ बाबा ने कहा.

सगुना बेवकूफ नहीं थी कि अच्छी लगने का मतलब न समझती. लेकिन वह 2 बच्चों की मां थी तो बाबा कुंवारा था. हालांकि दोनों की उम्र में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. लेकिन एकाएक उस पर विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता था. फिर भी सगुना बाबा के बारे में सोचने को मजबूर हो गई थी.

बाबा गांव के ही मुलायम सिंह का बेटा था. वह दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में नौकरी करता था. महीने-2 महीने पर गांव आता रहता था. शहर में रहने की वजह से वह बनठन कर रहता था, इसलिए मुन्नालाल जैसे लोग उसे शोहदा कहते थे. यही वजह थी कि एक दिन जब सगुना को बाबा से बात करते मुन्नालाल ने देख लिया तो बोला, ‘‘तुझे बात करने के लिए यही शोहदा मिला था. ऐसे लोगों को मुंह लगाना ठीक नहीं है.’’

‘‘दिल्ली में कमाता है, इसलिए बनठन कर रहता है. मुझे तो उस में शोहदे वाले कोई लक्षण नहीं दिखाई देते.’’ सगुना ने कहा.

‘‘तू मुझ से ज्यादा जानती है क्या. मुझे पता है, वह क्या करता है और कैसे रहता है.’’

मुन्नालाल ने पत्नी को झिड़का तो सगुना चुप हो गई. वह जानती थी इस से बहस करना ठीक नहीं है. इसे कब गुस्सा आ जाए, पता नहीं. गुस्सा आ गया तो वह मारपीट भी कर सकता था. इसलिए बात बदलते हुए उस ने कहा, ‘‘तुम तो मोबाइल फोन लाने गए थे. उस का क्या हुआ?’’

‘‘ला दूंगा भई मोबाइल फोन. मैं भी चाहता हूं कि हमारे पास भी मोबाइल हो, लेकिन अभी पैसे नहीं हैं. कुछ दिन और रुको. पैसों की व्यवस्था कर के खरीद दूंगा.’’

सगुना को लगता था कि अगर उस के पास भी मोबाइल फोन हो तो घर बैठे वह मांबाप और भाइयों का हालचाल ले लेती. आज सब के पास तो मोबाइल है. मुन्नालाल जिस घर में रहता था, उसी के आधे हिस्से में उस का भाई नरेश पत्नी रामकली तथा 5 बच्चों के साथ रहता था. सगुना को जब कभी मांबाप का हालचाल लेना होता था, जेठ के घर जा कर फोन कर लेती थी.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 7

मेरा खौफ, डर सब खत्म हो चुका था. डीसी साहब चूंकि अभी एक दुख उठा चुके थे, इसलिए वह जरूरत से ज्यादा डरे हुए थे. यह डर वक्त गुजरने के साथसाथ बढ़ता जा रहा था. अब नौबत यहां तक आ पहुंची थी कि इस मसले पर एसपी और डीएसपी साहब बहुत गंभीर नजर आने लगे थे. कोई भी जरा सा रिस्क लेने को तैयार नहीं था.

मैं ने वरदी उतारी और लपेट कर झाडिय़ों में छिपा दी. इस के बाद धीरेधीरे आगे बढऩे लगा. मैं कोहनियों और घुटनों के बल रेंगता रहा. बस के करीब पहुंच कर बस के पहियों के बीच से निकल कर ड्राइविंग सीट की तरफ से बाहर निकल आया. बस के बगल में छिप कर मैं ने अंगुली से लोहे की चादर को बजाया. ठकठक की आवाज पैदा की.

थोड़ा रुक कर फिर ठकठक की. इस बार चलने और बड़बड़ाने की आवाज आई. मैं एकदम अलर्ट था. मैं बैठा हुआ था. सिर ऊंचा था, नजर खिडक़ी पर जमी थी. मुझे खिडक़ी से किसी की ठोढ़ी और नाक की चोंच नजर आई. बदरू आवाज की वजह जानने को नीचे झांक रहा था.

लेकिन उस ने गरदन खिडक़ी से बाहर निकालने की गलती नहीं की. फिर भी मैं उस की जगह जान चुका था. बहुत तेजी से अपनी जगह पर उछल कर खड़ा हो गया और उस के बाल मुट्ठी में पकड़ लिए. इस के पहले कि वह कुछ समझ पाता, मैं ने एक जोरदार झटका दिया, जिस से उस का आधा धड़ खिडक़ी से बाहर आ गया.

उस के दाएं हाथ में हथगोला बम मुझे दिखाई दिया. उसी समय बस में लड़की की चीखें गूंजी. उन में भगदड़ मच गई. मैं ने बहुत नफरत और गुस्से से दूसरा झटका मारा तो झनाके की आवाज से खिडक़ी का शीशा टूट गया और बदरू कांटे में फंसी मछली की तरह तड़प कर नीचे आ गिरा. वह अपना दायां हाथ मुंह की तरफ बढ़ा रहा था. अगर वह कामयाब हो जाता तो तबाही मच जाती. मैं ने उस की दाहिनी कलाई थाम कर बालों को जोर से झटका दिया.

वह सैफ्टी पिन खींचने के लिए बम को अपने मुंह के करीब ला रहा था. मैं पूरी ताकत से उस का हाथ मुंह से दूर रखने की कोशिश कर रहा था. मैं ने बस की खिड़कियों में कुछ लड़कियों के खौफजदा चेहरे देखे, मैं ने चिल्ला कर कहा, “भाग जाओ तुम लोग.”

मेरी आवाज सुन कर वे सब जैसे होश में आईं. अब तक कुछ लड़कियां दरवाजे की सिटकनी खोल चुकी थीं. फिर मैं ने लड़कियों के भागने की और चीखने की आवाजें सुनीं. मैं ने पूरी ताकत से बदरू का हाथ मरोड़ दिया. बम उस के हाथ से छूट कर नीचे गिर गया. बम जैसे ही नीचे गिरा, मैं ने खड़े हाथ का एक जोरदार वार उस की गरदन पर किया तो उस की पकड़ ढीली पड़ गई.

मैं ने उस का सिर जमीन से टकराया तो कराह के साथ उस ने हाथपैर फेंक दिए. मुझे यकीन था कि वह एक घंटे से पहले होश में नहीं आएगा. उसी वक्त मैं ने बस के अंदर जूतों की ठकठक सुनी. मेरे साथी बस में दाखिल हो चुके थे. मैं तेजी से भागता हुआ वहां आया, जहां अपने कपड़े रखे थे. उन्हें उठा कर झाडिय़ों की आड़ लेता हुआ सडक़ पर आ गया.

कुछ अरसे बाद मैं इनायत खां की बेटी नजमा और शारिक की शादी में शामिल हुआ. दोनों खानदानों में सुलह हो चुकी थी. शादी खूब धूमधाम से हुई. शादी में पुलिस के बड़े अफसर और दूसरे विभाग के भी बड़े अफसर शामिल थे. दूल्हा अपने दोस्तों में खुश बैठा था. सब से ज्यादा गुरविंदर सिंह खुश था.

निकाह हो चुका था. खाने का इंतजार हो रहा था. मेरे साथ ही बैठे एसपी साहब एक डाक्टर और जज साहब से बस वाले हादसे की डिटेल बता रहे थे. एसपी साहब कह रहे थे, “4 बजे सुबह हम बस पर छापा मारने ही वाले थे (वैसे छापे का कोई प्रोग्राम नहीं था) कि हालात एकदम बदल गए. उसी वक्त मुलजिम का एक साथी वहां पहुंचा. न जाने क्यों बदरू और उस का झगड़ा हो गया. लड़कियों ने उन दोनों को गुत्थमगुत्था देखा तो बस से भाग निकलीं.”

बात खत्म होने पर एसपी साहब ने मुसकरा कर मेरी ओर देख कर कहा, “हमारे डिपार्टमेंट में कुछ ऐसे लोग हैं, जिन पर मुझे फख्र है.”

इस के पहले जब भी इस हादसे का जिक्र हुआ था, उन्होंने मुझे मुसकरा कर तारीफी नजरों से देखा था. एक बार तो उन्होंने कह भी दिया था, “नवाज खां, कभी उस पतलून वाले का पता तो लगाओ, पुलिस में उस जवान को भरती कर लेंगे.”

चुप रहने में ही मेरी भलाई थी. दरअसल एसपी जानते थे कि उस रात बदरू को मार कर बेहोश करने वाला मैं ही था.

दूसरी बीवी का खूनी खेल

बेवफा पत्नी और वो : पति को मिली मौत

चुनाव नजदीक होने की वजह से 11 नवंबर, 2013 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में चुनाव प्रचार शबाब पर था. तमाम पुलिसकर्मी दीवाली के बाद से ही दिनरात चुनावी ड्यूटी कर रहे थे. प्रचार का शोर, नेताओं की सभाएं और जनसंपर्क खत्म होने के बाद ही पुलिसवालों को थोड़ा सुकून मिल सकता था. रात 10 बजे तक चुनावी होहल्ला कम हुआ तो रोजाना की तरह पुलिस वालों ने इत्मीनान की सांस ली.

थाना पिपलानी के थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया खापी कर अगले दिन के कार्यक्रमों के बारे में सोच रहे थे कि तभी उन्हें फोन द्वारा सूचना मिली कि बरखेड़ा पठानिया के एक खंडहर में एक युवक की अधजली लाश पड़ी है. घटनास्थल पर जाने के लिए वह तैयार हो कर थाने से निकल ही रहे थे तो गेट पर सीएसपी कुलवंत सिंह मिल गए. उन्हें भी साथ ले कर वह बताए गए पते पर रवाना हो गए.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया अपनी जीप से बरखेड़ा के सेक्टर-ई स्थित एक खंडहरनुमा मकान पर पहुंच गए. फोन करने वाले ने उन्हें यहीं अधजली लाश पड़ी होने की बात बताई थी. वहां उन्हें कुछ जलने की गंध महसूस हुई, इसलिए वह समझ गए कि लाश यहीं पड़ी है. वह साथियों के साथ खंडहर के अंदर पहुंचे तो सचमुच वहां कोने में एक युवक की झुलसी लाश पड़ी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ देर पहले ही वह जलाई गई थी.

पुलिस की जीप देख कर आसपास के कुछ लोग आ गए. पुलिस ने उन लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन चेहरा झुलस जाने की वजह से कोई उसे पहचान नहीं सका. लाश का चेहरा ही ज्यादा जला था. जबकि उस के कपड़े काफी हद तक जलने से बच गए थे. शायद हत्यारों ने ऐसा इसलिए किया था कि उस की शिनाख्त न हो सके. पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में 5 हजार रुपए के अलावा घरेलू गैस की एक परची मिली. वह परची प्रियंका गैस एजेंसी की थी, जिस में उपभोक्ता का नाम मनीष तख्तानी लिखा था.

परची पर पंचवटी कालोनी का पता भी था. मृतक सोने की अंगूठी पहने था. पुलिस ने सारी चीजें कब्जे में ले लीं. इस के बाद थानाप्रभारी ने फोन कर के थाने से एक कांस्टेबल को मनीष तख्तानी के घर का पता बता कर वहां जाने को कहा.

मरने वाले की जेब से मिली नकदी और अंगूठी से साफ था कि यह हत्या लूटपाट के इरादे से नहीं की गई थी. हत्या के पीछे कोई दूसरी वजह थी. मरने वाले की कदकाठी ठीकठाक थी. एक आदमी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. इस का मतलब हत्यारे एक से ज्यादा थे.

थाने से भेजा गया कांस्टेबल पंचवटी कालोनी के मकान नंबर ए-43 पर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात दिलीप तख्तानी से हुई. उस ने उन्हें बताया कि बरखेड़ा के एक खंडहर में एक लाश मिली है, जिस की पैंट की जेब से गैस की एक परची मिली है, जिस पर मनीष तख्तानी लिखा है. यह मनीष कौन है?

यह बात सुन कर दिलीप के होश उड़ गए, क्योंकि मनीष उन्हीं का बेटा था. वह बोले, ‘‘आप को धोखा हुआ है. मेरा बेटा कहीं गया हुआ है, वह थोड़ी देर में आ जाएगा.’’

दिलीप तख्तानी ने यह बात कह तो दी, लेकिन उन का मन नहीं माना. उन्होंने उसी समय घर से कार निकाली और उस कांस्टेबल के साथ उस जगह के लिए रवाना हो गए, जहां लाश पड़ी थी. कदकाठी और अधजले कपड़ों को देखते ही दिलीप तख्तानी रो पड़े. उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे मनीष की ही है.

दिलीप तख्तानी के अनुसार, मनीष दुकान से कार से निकला था. लेकिन उस खंडहर के आसपास कहीं कोई कार नजर नहीं आई. मनीष का मोबाइल फोन भी नहीं मिला था. थानाप्रभारी ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद सर्विलांस सेल के माध्यम से उन्होंने मनीष के फोन की लोकेशन का पता कराया तो उस की लोकेशन एमपीनगर (जोन-1) के पास चेतक ब्रिज की मिली.

थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया उसी समय चेतक ब्रिज पर जा पहुंचे. वहां उन्हें एक कार दिखाई दी. दिलीप तख्तानी ने कार पहचान कर बताया कि मनीष की ही कार है. कार का मुआयना किया गया तो सीटों पर खून के धब्बे नजर आए. मनीष का मोबाइल भी कार में ही पड़ा था. कार की इग्नीशन में चाबी भी लगी थी. यह सब देख कर यही लगा कि मनीष की हत्या कार में ही की गई थी. उस के बाद हत्यारे लाश को ठिकाने लगाने के लिए खंडहर में ले गए थे. पुलिस ने कार और अन्य सामान को भी कब्जे में ले लिया.

अब तक की जांच में पता चल गया था कि मनीष शहर के जानेमाने बिजनेसमैन दिलीप तख्तानी का बेटा था. पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. मनीष के घर वालों के अनुसार मनीष हंसमुख स्वभाव का था. उस का पूरा ध्यान अपने बिजनेस पर रहता था.

उस की पत्नी सपना का रोरो कर बुरा हाल था. आंखें सूज चुकी थीं. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया था कि मनीष को कई लोगों से पैसा लेना था. लगता है, उसी लेनदेन के चक्कर में उस की हत्या की गई है. पुलिस को सपना की बात में दम नजर आया, इसलिए पुलिस ने इस बात को ध्यान में रख कर आगे की जांच शुरू की. मनीष की उम्र भी 32-33 साल थी, इसलिए पुलिस जांच में लव ऐंगल को भी ध्यान में रख जांच कर रही थी.

पुलिस ने मनीष की एमपीनगर जोन-2 स्थित दुकान पर काम करने वाले नौकरों से पूछताछ की तो पता चला कि 11 नवंबर, 2013 की शाम को 4 बजे के आसपास उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद उन्होंने दुकान संभालने वाले अपने मामा विनोद तख्तानी से कहा था कि उन्हें लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह दुकान बंद कर देंगे. इतना कह कर मनीष अपनी कार से चले गए थे.

पुलिस को जब पता चला कि शाम को किसी का फोन आने के बाद मनीष दुकान से निकला था, इसलिए पुलिस मनीष के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर यह जानने की कोशिश करने लगी कि उस के फोन पर किस का फोन आया था.

पुलिस को जल्दी ही पता चल गया कि 11 नवंबर की शाम 4 बजे मनीष की जिस नंबर से बात हुई थी, वह नंबर हर्षदीप सलूजा का था. पुलिस ने हर्षदीप सलूजा के बारे में मनीष के घरवालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के एक परिचित का बेटा जिन से उन के पारिवारिक संबंध हैं. दोनों ही परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना है. घर वालों की इस बात से पुलिस संतुष्ट नहीं हुई. वह एक बार हर्षदीप से पूछताछ करना चाहती थी.

पुलिस हर्षदीप को थाने बुला कर पूछताछ करती, उस के पहले ही पुलिस को पता चला कि मृतक मनीष की पत्नी सपना एक महीने पहले बिना बताए कहीं चली गई थी. तब मनीष ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज कराई थी. बाद में वह अपने आप घर आ गई तो पुलिस ने इसे घरेलू विवाद मान कर कोई तूल नहीं दिया.

हत्यारों का पता न लगने पर व्यापारियों की नाराजगी बढ़ती जा रही थी. पुलिस ने इलाके के कई बदमाशों को उठा कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा नहीं हुआ था. इस का नतीजा यह निकला कि मनीष के हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए सिंधी समुदाय आक्रोशित हो कर सड़क पर उतर आया. पुलिस अधिकारियों ने लोगों को जल्द से जल्द केस खोलने का आश्वासन दे कर आक्रोशित लोगों को शांत किया.

इस के बाद पुलिस की कई टीमें बना कर इस मामले की छानबीन में लगा दी गईं. उसी दौरान मनीष के चाचा ने हत्या का इशारा हर्षदीप की तरफ किया. पुलिस को हर्षदीप पर पहले से ही शक था, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने बुला लिया गया.

पूछताछ में वह पहले मनीष की हत्या से इनकार करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस से पूछा कि हत्या वाले दिन उस ने सपना से 2 बार और मनीष को एक बार फोन कर के क्या बात की थी तो पुलिस की इस बात का उस के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी. मजबूर हो कर उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की, वह बहुत ही चौंकाने वाली निकली.

भोपाल की पंचवटी कालोनी के ए ब्लौक में रहने वाले दिलीप तख्तानी का एक ही बेटा था मनीष तख्तानी. दिलीप तख्तानी मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे. देश विभाजन की त्रासदी झेल कर वह अकेले ही भारत आए थे और यहां उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते अपना प्लाईवुड का बिजनेस स्थापित किया. वह शहर के जानेमाने बिजनेसमैन थे. शहर के विभिन्न इलाकों में उन की प्लाईवुड की कुल 6 दुकानें थीं. करोड़ों की हैसियत रखने वाले दिलीप ने अपनी सभी दुकानें एकलौते बेटे मनीष के नाम खोली थीं. उन्होंने बेटे को बिजनेस के सारे गुण सिखा कर उसे एमपीनगर जोन-2 की दुकान सौंप दी थी.

बेटे ने बिजनेस संभाल लिया तो दिलीप ने खंडवा की रहने वाली सपना से उस की शादी कर दी. यह 6 साल पहले की बात है. शादी के वक्त मनीष का परिवार ईदगाह हिल्स में रहता था. वहीं पड़ोस में हर्ष का भी परिवार रहता था. दिलीप तख्तानी ने अपने एकलौते बेटे मनीष की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया था. पूरे हफ्ते मोहल्ले में जश्न का माहौल रहा था. नाचनेगाने वालों में हर्ष अव्वल था. उस वक्त उस की उम्र महज 17 साल थी. वह मनीष को पूरा सम्मान देते हुए भइया कहता था.

मनीष की खूबसूरत बीवी सपना को देख कर किशोर हर्ष के दिलोदिमाग में कुछकुछ होने लगा था. फिर तो सपना भाभी को देखने और उस से बातें करने के लिए वह मनीष के यहां कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा था. किसी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शादी के 2 साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम इशिता रखा गया.

मनीष को अपने कारोबार में काफी समय देना पड़ता था. पारिवारिक संबंधों के चलते हर्ष के घर आनेजाने पर न तो कोई रोकटोक थी, न ही किसी को ऐतराज था. बातचीत के दौरान वे काफी करीब आ गए थे. मोहब्बत और वासना का अंकुर कब हर्ष और सपना के दिलों में फूटा और फलाफूला, इस का अहसास उन्हें शायद हद से गुजर जाने के बाद हुआ.

उसी दौरान तख्तानी परिवार पंचवटी कालोनी स्थित अपने नए मकान में रहने आ गया, जबकि हर्षदीप सलूजा के घर वाले अवधपुरी में शिफ्ट हो गए. दोनों ही परिवार अलगअलग जगहों पर रहने जरूर चले गए, लेकिन हर्ष और सपना की मेलमुलाकातों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. दोनों अब घर से बाहर खासतौर से गुरुद्वारों में मिलने लगे थे.

बाद में हर्ष ने एक अलग मकान किराए पर ले लिया, जिस में हर्ष से मिलने के लिए सपना अकसर आनेजाने लगी. वहीं वे अपनी हसरतें पूरी करते थे. कभीकभी सपना मनीष से मायके जाने की बात कह कर घर से निकल जाती. लेकिन वह मायके न जा कर हर्ष के कमरे पर पहुंच जाती. वहां 1-2 दिन रह कर वह ससुराल लौट आती.

ससुराल में भी सपना अलग कमरे में सोती थी. रात होने पर हर्ष खिड़की के रास्ते सपना के कमरे में आ जाता था और इच्छा पूरी कर के अपने घर चला जाता था. लंबे समय तक दोनों का इसी तरह मिलनाजुलना चलता रहा. मजे की बात यह थी कि हर्ष और सपना के घर वालों में से किसी को भी उन के अवैध संबंधों के बारे में भनक नहीं लगी.

एक शादीशुदा औरत के कदम बहकते हैं तो उसे तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है. सपना अब दो नावों पर सवार थी. हर्ष सपना को ले कर गंभीर था. वह उस के साथ अलग दुनिया बसाने के सपने देखने लगा था. परेशानी तब शुरू हुई, जब हर्ष सपना से शादी करने की जिद करने लगा. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दे दी कि अगर उस ने शादी से मना किया तो वह आत्महत्या कर लेगा.

हर्ष की इस जिद से सपना की नींद उड़ गई. उस के सामने एक तरफ घर की इज्जत और मानमर्यादाएं थीं तो दूसरी तरफ हर्षदीप का समर्पण था. जिस की वजह से वह भंवर में फंस चुकी थी. इस बीच सपना का व्यवहार मनीष के प्रति काफी बदल गया था.

सपना के बदले व्यवहार पर मनीष को शक हुआ तो उस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से मनीष को पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातचीत हर्ष से होती थी. उस ने जब उस से पूछा कि वह हर्ष से इतनी देर क्यों बातें करती है तो उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. लेकिन बाद में नारमल हो कर माफी मांग प्यार जताने लगी. मनीष सपना को बहुत चाहता था, इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. यही नहीं, उस ने उसे एक महंगी कार दिलाई और खर्च के लिए एटीएम कार्ड भी दे दिया.

बकौल हर्ष, वह और सपना एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे, इसलिए किसी भी कीमत पर शादी करना चाहते थे. लेकिन मनीष इस में आड़े आ रहा था. कई बार उस ने सपना से शादी करने को कहा. लेकिन हर बार सपना शादीशुदा होने और मनीष का बहाना बना कर उस की बात टाल गई. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि सपना को पाने के लिए वह मनीष नाम के इस अड़ंगे को अपने रास्ते से हटा देगा. इस के लिए उस ने किराए के हत्यारों का सहारा लिया. भाड़े के हत्यारे कौन थे, पुलिस के पूछने पर हर्ष ने 2 लोगों के नाम बताए थे.

उन दोनों को भी पुलिस ने धर दबोचा. लेकिन किसी की हत्या की बात से वे साफ मुकर गए. वारदात के वक्त उन के मोबाइल फोन की लोकेशन भी दूसरी जगह की मिली थी. लेकिन अमीन नाम का तीसरा युवक, जो हर्ष का नौकर भी था और दोस्त भी, ने पूछताछ में बताया कि हर्ष अकसर उस से पूछता रहता था कि किसी की हत्या का सब से आसान और सुरक्षित तरीका कौन सा है, तब उस ने बताया था कि अगर किसी की हत्या अकेले की जाए तो पकड़े जाने की गुंजाइश कम रहती है.

भाड़े के हत्यारों की बात झूठी निकली तो अकेले हर्ष ने कैसे मनीष की हत्या की, इस सवाल का जवाब हालफिलहाल यही समझ में आ रहा है कि हर्ष ने मनीष की हत्या का पूरा मन बना कर 11 नवंबर, 2013 को मनीष को फोन कर के किसी बहाने से चेतक ब्रिज के पास बुलाया. उस ने 6 महीने पहले एक पिस्टल भी खरीद ली थी. पूरी तैयारी के साथ वह मोटरसाइकिल से चेतक ब्रिज पहुंच गया. मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी कर के वह मनीष की कार में पीछे की सीट पर बैठ कर बातें करने लगा. उसी दौरान हर्ष ने पहली गोली मनीष के सिर पर मारी. उस के बाद बाहर आ कर 2 गोलियां और मारीं.

मनीष की मौत हो गई तो हर्ष ने उस की लाश को बगल वाली सीट पर इस तरह से बैठाया कि देखने में वह जीताजागता इंसान लगे. ऐसा हुआ भी. चुनाव के दौरान चल रही वाहनों की भारी चैकिंग से बचने के लिए वह मनीष की लाश सहित कार को बरखेड़ा ले गया. वहां खंडहरनुमा मकान में लाश डाल कर उस के चेहरे पर ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगा दी. लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह फिर चेतक ब्रिज आ गया.

रास्ते से फोन कर के उस ने अपने नौकर अमीन को पानी ले कर बुलाया और खून के धब्बे धोए. कार में चाबी उस ने इस उम्मीद के साथ लगी छोड़ दी थी कि किसी और की नजर इस पर पड़ जाए और वह कार चुरा ले जाए. इस से कत्ल की गुत्थी और उलझ जाती.

बहरहाल ऐसा नहीं हो सका. मनीष की हत्या का राज खुल गया. हर्ष ने यह भी बताया कि मनीष की हत्या की बात सपना को मालूम थी. उस ने हत्या के लिए डेढ़ लाख रुपए भी देने का वादा किया था. एडवांस के रूप में उस ने 50 हजार रुपए दिए भी थे.

हर्ष से पूछताछ के बाद पुलिस ने सपना को भी थाने बुला लिया. उस से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने भी स्वीकार किया कि वह हर्ष से प्यार करती थी. लेकिन उस ने शादी की बात से इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि शादी के लिए वह मना करती थी तो हर्ष खुदकुशी कर लेने या मनीष की हत्या करने की धमकी देता था. उस की इस बात से वह डर जाती थी. अंत में उस ने कहा कि न तो उसे हत्या के बारे में कुछ मालूम था, न ही उस ने कोई पैसे दिए थे.

पुलिस ने हर्षदीप सलूजा, अमीन और सपना से विस्तार से पूछताछ कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. इस घटना में सब से बड़ा नुकसान इशिता का हुआ, जो मां के गुनाह की सजा अपनी मौसी के पास रह कर भुगत रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 6

मैं ने लड़की से उस के जख्म के बारे में पूछा तो वह बोली, “इंसपेक्टर साहब, वह चरस के नशे में लड़कियों से बेहूदा हरकतें कर रहा था. मुझ से बरदाश्त नहीं हुआ तो मैं ने मना किया. वह मेरे पीछे पड़ गया. मुझे बाजुओं से पकड़ कर अगली सीट पर ले जाने लगा. लेक्चरार जो वहीं थी, उन्होंने उस पर अपना पर्स दे मारा. लेकिन पिस्तौल नहीं गिरा. उस ने उन पर गोली चला दी, जो बाजू में लगी. वह सीटों के बीच गिर पड़ीं. मैं ने उस बास्टर्ड के लंबे बाल पकड़ लिए.

अगर उस वक्त कोई अन्य लड़की मदद को आ जाती तो हम उस का तियापांचा कर देते. लेकिन सभी इतनी डरी हुई थीं कि कोई भी आगे नहीं बढ़ी. उस ने फिर गोली चला दी, जो मेरी जांघ में लगी. उस के बाद अस्पताल पहुंच कर मुझे होश आया.”

मैं लड़की से बातें कर रहा था कि डाक्टर ने आ कर मुझ से कहा, “पुलिस स्टेशन से आप का फोन आ गया है.”

मैं ने जा कर फोन रिसीव किया. एसपी साहब ने मुझे फौरन बुलाया था. मैं समझ गया कि मीङ्क्षटग में कोई खास फैसला हुआ है. जब मैं वहां पहुंचा तो एसपी साहब ने कहा, “नवाज खान, कमिश्नर साहब ने हमें एक कोशिश करने की इजाजत दी है, लेकिन बहुत मुश्किल से. उन का आदेश है कि सवारियों में से किसी का भी कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. मैं ने उन्हें यकीन दिलया है और वादा किया है कि ऐसा ही होगा. हम ने एक प्लान बनाया है. क्या तुम इस के लिए अपनी मरजी से खुद को पेश कर सकते हो?”

“जनाब, मैं तो पहले ही खुद को पेश कर चुका हंू, आदेश दीजिए कि मुझे करना क्या है?” मैं ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा.

एसपी साहब ने सारा प्लान मुझे समझाया. उस वक्त 3 बज रहे थे. प्लान बहुत ज्यादा महत्त्व का तो नहीं था, पर नजमा, शारिक और गुरविंदर के लिए कुछ करने का मौका था.

सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. सख्त सर्दी थी. चारों ओर गहरा अंधेरा था. कुत्तों के भौंकने की आवाज कभीकभी सुनाई दे रही थी. हम झाडिय़ों के बीच खड़े थे. 30 गज के फासले पर बस हलकी सी दिखाई दे रही थी, जिस में कालेज की लड़कियां ,लेक्चरार और एक 3 साल की बच्ची पिछले 14 घंटे से जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी.

मेरे साथ पुलिस के 6 जवान 2 इंसपेक्टर और कई सबइंसपेक्टर थे. मैं अभीअभी वहां पहुंचा था. लेकिन बाकी के लोग शाम से ही वहां जमे थे. मैं ने उन से अब तक की प्रगति के बारे में पूछा. उस के बाद मैं बस तक जाने को तैयार हो गया. मैं आम सिपाही की ड्रैस में था. हाथों में एक बड़ा टिफिन था, जिस में 2-3 आदमियों का खाना था.

दरअसल, बदरू ने करीब डेढ़ घंटे पहले भूख से बेहाल हो कर खाने की फरमाइश की थी. उस की यही फरमाइश मीङ्क्षटग में इस काररवाई का सबब बनी थी. 14 घंटों में पहली बार कोई आदमी बस के करीब जा रहा था. इस से पहले शाम को 2 सिपाही जख्मी औरतों को बस के बाहर से उठा कर लाने के लिए गए थे, लेकिन उस वक्त उजाला था. किसी काररवाई का मौका नहीं था. चांद की रोशनी में बस का साया किसी भूत की तरह लग रहा था.

एक इंसपेक्टर ने थोड़ा आगे बढ़ कर जोर से चिल्ला कर कहा, “बदरू, सिपाही खाना ला रहा है, ले लो.”

कोई जवाब नहीं आया, केवल खिडक़ी का शीशा खोलने की आवाज आई. मैं धडक़ते दिल के साथ झाडिय़ों में से निकला और टिफिन ले कर बस की ओर बढ़ा. हमारे मंसूबों की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती थी कि बदरू खुद खाना लेने के लिए हाथ बाहर निकाले या कम से कम खिडक़ी में नजर आए. मैं नपेतुले कदमों से बस के करीब पहुंचा. अपने रिवाल्वर को हाथ लगा कर देखा. बस के करीब पहुंच कर मैं ने टिफिन ऊपर उठाया.

उस वक्त मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब खिडक़ी में एक लडक़ी का डरासहमा चेहरा दिखाई दिया. उस ने हाथ बढ़ा कर मुझ से टिफिन थाम लिया. बस के अंदर अंधेरा था. किसी के रोने की आवाज आ रही थी. उसी वक्त मुझे लडक़ी के सिर के ऊपर 2 लाल चमकती आंखें और मुलजिम का सिर दिखाई दिया. वह झाडिय़ों में छिपे किसी दरिंदे की तरह लग रहा था. मैं ने जरा पीछे हट कर बस के दरवाजे पर दबाव डाला, वह बंद था.

अब लौट आने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. देरी मुलजिम को शक में डाल सकती थी. मुरदा कदमों के साथ मैं लौट आया. एसपी साहब वायरलैस पर रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे. मैं ने उन्हें नाकामी की खबर दी.

उन्होंने फैसला सुना दिया, “नवाज खान, अब तुम लौट आओ. कमिश्नर साहब ने सख्त हिदायत दी है कि इस के आगे कोई काररवाई नहीं होगी. उन का आदेश है कि तुम तुरंत थाने पहुंचो. इनायत खां से बात हो चुकी है, वह राजी है. उन का आदेश है कि बस की लड़कियों को जल्द से जल्द रिहा कराया जाए.”

मैं एसपी साहब की बात का मतलब अच्छी तरह समझ रहा था. एक मासूम लडक़ी को एक दरिंदे के हवाले किया जा रहा था. मेरा दिमाग भन्ना गया. लानत है ऐसी नौकरी और ऐसी जिंदगी पर. यह समझौता नहीं, कत्ल था. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, मेरी नौकरी और जान चली जाएगी या डिप्टी कमिश्नर की बेटी और नवासी को नुकसान पहुंचेगा. पर मैं यह जुल्म नहीं होने दूंगा.

मैं ने एक फैसला किया और अपनी जगह पर खड़ा हो गया. एक सबइंसपेक्टर ने पूछा, “क्या हुआ जनाब?”

“कुछ नहीं, मैं वापस थाने जा रहा हूं. एसपी साहब ने बुलाया है.”

साथियों से अलग हो कर मैं सडक़ की ओर आया और बाएं घूम कर झाडिय़ों में दाखिल हो गया. करीब एक फर्लांग का चक्कर काट कर मैं बस की दूसरी तरफ निकला. अब मैं अपनी काररवाई के लिए आजाद था. इस काररवई का इरादा ही मेरी कामयाबी थी. मैं सुकून में था. जब इंसान खतरे में कूदने की ठान ले तो रास्ता आसान लगता है.