जाल में उलझी जिंदगी – भाग 4

उस के घर पर सेहन में 3 आदमी बैठे थे, जिन में एक जवान और 2 ज्यादा उम्र के थे. जवान लडक़ा देखने में जाहिद का भाई लगता था. दूसरे आदमियों के बारे में बताया कि वे उस के रिश्तेदार हैं, जो पास के गांव में रहते हैं. मुझे याद आया कि मुनव्वरी के बाप ने बताया था कि जाहिद की रिश्तेदारी पड़ोस के गांव में ऐसे लोगों से थी, जिन के यहां दुश्मनी में हत्या, मारकुटाई आम बात है.

मैं ने दोनों के नाम पूछे. दोनों चचाजाद भाई थे. दोनों के पिता के नाम पूछे तो पता चला कि उन में से एक के पिता को दफा 307 में 5 साल की जेल हुई थी. मैं ने उस से पूछा कि वह अपने पिता से जेल में मिलने जाता है या नहीं तो उस ने कहा कि मैं और घर वाले उन से मिलने जेल जाते रहते हैं. मैं जाहिद को कमरे में ले गया तो देखा वे दोनों जा रहे थे. मैं ने उन्हें आवाज दे कर कहा, “अभी जाओ नहीं, यहीं बैठो.”

जाहिद से मैं ने पूछा, “गहने कौन से ट्रंक में रखे थे.”

उस ने ट्रंक खोल कर दिखाया, “बस यही ट्रंक है. मैं ने आप से सच बताया था कि वह सब गहने ले गई है.”

मैं गहनों के बारे में ज्यादा गंभीर नहीं था. उस ने 2-3 बार कहा, “यही ट्रंक है. आप सब खोल कर देख लें. किसी में भी गहने नहीं मिलेंगे.”

मैं दूसरे कमरे में गया, उस में 2 पलंग थे, मैं कोई और सुराग तलाश रहा था. तभी मुझे एक पलंग के नीचे एक और ट्रंक दिखाई दिया. मैं ने जाहिद से कहा, “तुम तो कह रहे थे कि बस यही ट्रंक है तो यह ट्रंक किस का है?”

वह बोला, “ओह, मुझे यह याद नहीं रहा. मैं ने कहा था कि उस कमरे में यही ट्रंक है.”

वह अपनी कही बात को घुमाने की कोशिश करने लगा. उस की इस बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं समझ गया कि यह आदमी मुझे मूर्ख बना कर मुझ से कुछ छिपा रहा है. मैं ने गुस्से में कहा, “इस ट्रंक को बाहर निकाल कर खोलो.”

उस ने मेरी बात को अनसुना सा कर दिया. वह उस ट्रंक को खोलना नहीं चाह रहा था. मैं ने चीख कर कहा, “खोलो इस ट्रंक को, खोलते क्यों नहीं?”

उस ने ट्रंक को घसीटा. फिर मेरी ओर देख कर कहा, “ओह इस की चाबियां तो मेरे पास नहीं हैं. मेरी पत्नी के पास थीं, पता नहीं वह कहां रख गई है?”

मैं ने पास खड़े कांस्टेबल से लोहार को बुलाने को कहा.

“इस में आप को क्या मिलेगा मलिक साहब?” जाहिद ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

“मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि चाबियां ढूंढो, क्योंकि चाबियां घर में ही रखी हैं.” मैं ने कहा.

आखिर चाबियां घर में ही मिल गईं, ट्रंक खोल कर देखा तो उस में कुछ कपड़े और नीचे एक लंबे से डिब्बे में गहने रखे थे. गहने देखते ही जाहिद के हावभाव बदल गए.

“यह किस के गहने हैं?” मैं ने जाहिद से पूछा.

“ओह… गहने तो यहीं पड़े हैं. मुझे लगा था कि वह गहने साथ ले गई है.”

मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. अभी मैं यह देख रहा था कि यह आदमी मुझे किस तरह मूर्ख समझ कर कैसे खेल तमाशे कर रहा है. उस मकान में एक कमरा और था. मैं उस में गया तो वहां भी एक पलंग बिछा था. दीवार के साथ एक खूंटी पर 2 जोड़ी जनाना कपड़े टंगे थे. पलंग के नीचे एक जोड़ी जनाना चप्पलें पड़ी थीं. पलंग के तकिए की ओर दीवार के साथ 4 जोड़ी सैंडिलें और एक जरी की जूती रखी थी.

मैं ने जाहिद को बुला कर कहा, “यह तेरी पत्नी का कमरा है?”

“जी, वह इसी कमरे में सोती थी.”

“और तुम.”

“जी 6-7 महीने से हम दोनों अलगअलग कमरों में सो रहे थे.”

मैं ने मुनव्वरी की सहेलियों के बारे में पूछा तो जाहिद ने एक का नाम बताया. मैं ने उसे बुला कर पूछा, “मुनव्वरी अपने पति के बारे में तो तुम से बातें करती रही होगी, क्या बातें करती थी?”

उस लडक़ी का जवाब बहुत लंबा था. संक्षेप में यह कि जाहिद को मुनव्वरी ने शुरूशुरू में कबूल कर लिया था, लेकिन जाहिद इतना बेहूदा इंसान था कि मुनव्वरी पर चरित्रहीनता के झूठे आरोप लगाता रहता था. शादी से पहले मुनव्वरी का करामत से प्रेम था, लेकिन शादी के बाद खत्म हो गया था.

कोई एक साल पहले मुनव्वरी ने जाहिद के तानों से तंग आ कर करामत से मिलना शुरू कर दिया था. उस लडक़ी ने यह भी बताया कि पिछले 6 महीने से दोनों के संबंध ऐसे हो गए थे कि बोलचाल बंद थी. केवल काम की बातें होती थीं.

“क्या मुनव्वरी ने तुम से कभी कहा था कि वह घर से भाग जाएगी?” मैं ने पूछा.

“हां जी, यह तो उस ने कई बार कहा था. वह बहुत तंग हो गई थी. वह कहती थी कि अम्मी और अब्बा तलाक नहीं लेने देते. जी करता है कि कहीं भाग जाऊं. कभी वह इतनी दुखी होती थी कि कहती थी कि कुछ खा कर मर जाऊं.”

उस लडक़ी से मैं ने बहुत से सवाल पूछे. रात के 12 बज चुके थे. मैं ने उस से कहा, “एक सवाल और, जिस रात मुनव्वरी गई थी, उस रात को याद करो. जाते समय वह तुम से मिली थी या तुम उस के घर गई थीं?”

“वह आई थी, थोड़ी देर बैठी और चली गई थी. मैं ने उसे कुछ देर और बैठने को कहा तो उस ने बुरा सा मुंह बना कर कहा था कि गांव से उस के पति के 2 रिश्तेदार अभीअभी घर पहुंचे हैं. उन के लिए कुछ करना है.”

यह बात मेरे लिए बहुत खास थी. अब मुझे यह देखना था कि उस के वे यहां जो रिश्तेदार आए थे, वे कौन थे?

उस लडक़ी से बात कर के मैं कमरे में चला गया. जाहिद का भाई खड़ा था. मैं ने उस से पूछा कि उस रात जाहिद के कौन मेहमान आए थे? उस ने बताया कि यही दोनों थे, जो अब भी घर में बैठे हैं.

मैं ने उस से और कुछ नहीं पूछा. जाहिद, उस के भाई और उन दोनों रिश्तेदारों को मैं थाने ले आया. थाने ला कर मैं ने उन्हें बिठा दिया और सिपाहियों से कह दिया कि उन्हें एकदूसरे से दूर बिठा कर उन पर निगरानी रखी जाए.

देवर के इश्क़ में

गुनाह : भूल का एहसास

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 3

प्यारेलाल को जब पता चला कि रचना नाराज हो कर उन की बेटी के पास नवादा चली गई है तो उन्हें ज्यादा चिंता नहीं हुई. उन्होंने सोचा कि 2-4 दिन में गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह लौट आएगी. बहन के यहां रह कर रचना अपने लिए नौकरी तलाशने लगी. थोड़ी कोशिश करने के बाद नांगलोई में एक होम्योपैथी फार्मेसी में उस की नौकरी भी लग गई.

रचना स्वच्छंद विचारों की थी, इसलिए नवादा में अपनी बहन से भी उस की नहीं बनी तो बहन का मकान छोड़ कर वह द्वारका सेक्टर-7 में किराए पर रहने लगी. अब द्वारका में उस से कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उस का जहां मन करता, घूमतीफिरती थी. फेसबुक और अन्य सोशल साइटों के जरिए नएनए दोस्त बनाना उसे अच्छा लगता था. सोशल साइट के जरिए उस की दोस्ती नाइजीरियन युवक चिनवेंदु अन्यानवु से हुई.

चिनवेंदु जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से आईटी की पढ़ाई कर रहा था. धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ती गई तो वह रचना से मिलने दिल्ली आने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच प्यार हो गया. यह प्यार शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच गया. इस के बाद तो रचना उस की ऐसी दीवानी हुई कि अपनी नौकरी छोड़ कर उस के साथ जयपुर में लिव इन रिलेशन में रहने लगी. वह जयपुर में करीब एक साल रही.

चिनवेंदु का एक दोस्त था जेम्स विलियम. वह भी नाइजीरिया का ही रहने वाला था. वह ग्रेटर नोएडा के किसी इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रहा था. जेम्स अकसर चिनवेंदु से मिलने जयपुर जाता रहता था, इसलिए वह रचना को भी जान गया था.

जयपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद चिनवेंदु रचना को ले कर ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. वे दोनों जानते थे कि रचना सोशल साइट पर लोगों से दोस्ती करने में माहिर है. इसलिए दोनों युवकों ने लोगों से पैसे ऐंठने का नया आइडिया रचना को बताया तो रचना ने तुरंत हामी भर दी. फिर योजना बना कर किसी पैसे वाली पार्टी को फांसने का फैसला किया गया.

रचना ने सोशल साइट टैग्ड डौटकाम के जरिए नोएडा के मनीष नाम के युवक से दोस्ती की. मनीष को अपने जाल में पूरी तरह फांसने के बाद रचना ने उसे अपने कमरे पर बुलाया. बातचीत के बाद रचना और मनीष जब आपत्तिजनक स्थिति में पहुंच गए तो चिनवेंदु ने किसी तरह उन के फोटो खींच लिए. फिर क्या था, उन फोटोग्राफ के जरिए वह मनीष को ब्लैकमेल करने लगा. मगर मनीष ने पैसे देने के बजाय पुलिस को सूचना देने की धमकी दी.

इस से वे लोग डर गए और उन्होंने उसे कमरे से भगा दिया. पहला वार खाली जाने के बाद उन्होंने अब नया शिकार तलाशना शुरू किया. फिर रचना ने अगला शिकार गुड़गांव के रहने वाले जोगिंद्र को बनाया. जोगिंद्र से दोस्ती गांठने के बाद रचना ने उसे भी अपने कमरे पर बुलाया. उन्होंने जोगिंद्र को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की. लेकिन जोगिंद्र भी रचना और उस के साथियों की धमकी में नहीं आया. लिहाजा उन्होंने जोगिंद्र को भी कमरे से भगा दिया.

इस के बाद रचना और उस के साथियों ने दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में एक कमरा किराए पर लिया. रचना और उस के साथियों के 2 वार खाली जा चुके थे. अब वे मोटे आसामी की फिराक में थे. टैग्ड डौटकाम के जरिए अब रचना नया मुर्गा फांसने में जुट गई. रचना ने अरुण वाही से दोस्ती कर ली. अरुण वाही लुधियाना के सुंदरनगर के रहने वाले थे. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. 46 साल के अरुण वाही भी रचना के जाल में फंस गए. दोनों ने एकदूसरे को नेट के जरिए अपने फोटो भी भेज दिए.

अरुण वाही उस पर एक तरह से मोहित हो गए थे. सोशल साइट के जरिए वह एकदूसरे से बात करते रहते थे. रचना ने अरुण वाही को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया. 18 दिसंबर की रात को अरुण वाही की रचना से फोन पर 3 बार बात भी हुई थी. वह रचना से मिलने के लिए बेचैन थे, इसलिए 18 दिसंबर को सुबह 4 बजे लुधियाना से ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए निकल पड़े.

अरुण वाही को लेने रचना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई थी. वह स्टेशन से उन्हें कमरे पर ले गई. वाही ने सोचा कि वह उस से एकांत में मन की बात करेंगे, इसलिए किराए की कार से रचना के साथ चित्तरंजन पार्क स्थित उस के कमरे पर पहुंचे. वहां भी चिनवेंदु ने रचना के साथ आपत्तिजनक हरकतें करते हुए वाही के फोटो खींच लिए. फिर उन का मोबाइल जब्त करने के बाद उन से 4 लाख रुपए की मांग की.

अरुण वाही एक इज्जतदार परिवार से थे, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के लिए पैसे देने की हामी भी भर ली. फिर पैसे हासिल करने के लिए वाही ने लुधियाना में रहने वाले अपने दोस्त राजेंदर सिंह का नंबर उन लोगों को बता दिया. चिनवेंदु भारत में रह कर हिंदी सीख गया था. उस ने ही वाही के फोन से राजेंदर सिंह से बात कर के अरुण वाही के बदले 4 लाख रुपए देने की मांग की. बाद में उन्होंने जब राजेंदर सिंह को बैंक एकाउंट नंबर भेजा तो वाही के बजाए अपना फोन नंबर प्रयोग किया. उसी के जरिए वे लोग पुलिस के चंगुल में फंस गए.

पुलिस ने 20 दिसंबर, 2013 को अभियुक्त रचना नायक राजपूत, चिनवेंदु अन्यानवु और जेम्स विलियम को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के यहां पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन के पास से विभिन्न कंपनियों के 46 सिमकार्ड, 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, एक कैमरा, 3 लाख 98 हजार 5 सौ रुपए नकद बरामद किए. उन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना एसआई घनश्याम किशोर कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. राजेंदर सिंह और मनीष परिवर्तित नाम हैं.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 3

बातचीत वाली रात फिलिप की तबीयत ठीक नहीं थी. डाक्टर ने उसे कंपलीट रेस्ट के लिए कहा था. खानेपीने के बाद फिलिप ने डौल्टन और उस की पत्नी को सामने बैठा कर बड़ी होशियारी से बात शुरू की. एलेक्स और इजाबेला उस के बगल वाले सोफे पर बैठे थे. उन के चेहरे खुशी से खिले हुए थे.

फिलिप ने कहा, ‘‘मि. डौल्टन, जानते हो मैं ने तुम्हें यहां क्यों बुलाया है? दरअसल मैं स्पष्ट बात करने का आदी हूं. इस शादी से मैं जरा भी खुश नहीं हूं. इसलिए नहीं कि इजाबेला में कोई खराबी है. इस की वजह मेरा और तुम्हारा अतीत है, जिस का एलेक्स और इजाबेला से कोई ताल्लुक नहीं है. मैं यह जानना चाहता हूं कि इस शादी से तुम ने क्या उम्मीदें बांध रखी हैं?’’

फिलिप का यह सवाल इतना अजीब था कि सब हैरानी से उस का मुंह देखते रह गए. थोड़ी देर में डौल्टन ने खुद को संभाल कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, जो होना था, वह हो चुका है. अच्छा है, आप ने साफ बात की. मैं भी आप को बता दूं कि कभी मैं भी दौलतमंद था, लेकिन अब मुश्किल से गुजरबसर हो रहा है. इसलिए मैं अपनी बेटी के लिए कुछ नहीं कर सकता. जो करना है, वह आप को ही करना है.’’

डौल्टन की बात खत्म होते ही फिलिप ने कहा, ‘‘मुझे नहीं, जो कुछ करना है मि. डौल्टन आप को और एलेक्स को करना है. आप की बेटी एलेक्स से शादी कर रही है, मुझ से नहीं.’’

‘‘लेकिन एलेक्स आप का बेटा है. इसलिए आप इस बात को कतई पसंद नहीं करेंगे कि वह इजाबेला की कमाई खाए.’’

इस तरह डौल्टन ने फिलिप की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश की. जवाब में उस ने कहा, ‘‘पसंद ना पसंद का सवाल मेरे लिए नहीं, एलेक्स के लिए है. मेरी दुआएं उस के साथ हैं. वह पढ़ालिखा नौजवान है, अपनी जिंदगी खुद संवार सकता है. यतीम हो कर मैं ने अपनी जिंदगी खुद बनाई थी. किसी ने मेरी मदद भी नहीं की.’’

डौल्टन ने व्यंग्य से कहा, ‘‘शायद आप अपनी दौलत की बात कर रहे हैं? लेकिन आप भूल रहे हैं कि संयोग भी कोई चीज होती है. लेकिन हालात अब काफी बदल गए हैं.’’

‘‘मैं हालात का मुकाबला करने की हिम्मत रखता हूं.’’ एलेक्स ने विश्वास के साथ कहा.

‘‘लेकिन एलेक्स आप का एकलौता बेटा है,’’ एलेक्स की बात पूरी होते ही डौल्टन की बीवी ने कहा, ‘‘इसलिए वही आप की दौलत का वारिस है.’’

‘‘आप ने सही कहा, लेकिन मेरी मौत के बाद, पहले नहीं. मेरे बाप को छोड़ कर मेरे खानदान में कोई 90 साल से पहले नहीं मरा. इस तरह अभी मेरी आधी जिंदगी बाकी है. सौरी, इसलिए आप की यह उम्मीद जल्दी पूरी नहीं हो सकती.’’ फिलिप ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए जवाब दिया.

रोजा ने फिलिप को घूरा. उस की इस बात से डौल्टन और उस की पत्नी का चेहरा शरम और अपमान से लाल हो गया. एलेक्स के चेहरे की भी चमक खतम हो गई. वह एकदम से उठा और कमरे से निकल गया. इस के बाद डौल्टन, उस की पत्नी और बेटी भी उठ खड़ी हुई. निकलते समय दरवाजे के बाहर एलेक्स ने इजाबेला को रोकने की कोशिश की, ‘‘इजाबेला मेरी बात सुनो.’’

इजाबेला ने बगैर रुके ही कहा, ‘‘अगर एलेक्स तुम्हारे डैड को दौलत प्यारी है तो मेरे पापा को अपनी इज्जत. अब मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहती.’’

तीनों बाहर निकल गए. बाप को नफरत से देखते हुए एलेक्स ने कहा, ‘‘खलनायक की इतनी अच्छी भूमिका अदा करने के लिए आप को बहुतबहुत धन्यवाद. यही बात कोई और कहता तो शायद मैं उसे थप्पड़ मार देता.’’

फिलिप ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेवकूफ मत बनो एलेक्स. मैं तुम्हारे सामने यह साबित करना चाहता था कि वे इजाबेला की शादी तुम से सिर्फ मेरी दौलत के लिए करना चाहते थे. मेरी दौलत से तुम इजाबेला जैसी सैकड़ों लड़कियों से शादी कर सकते हो.’’

‘‘डैडी, औरत खरीदी जा सकती है, बीवी नहीं.’’ एलेक्स ने शांति से कहा. इस के बाद वह सिर थाम कर बैठ गया.

फिलिप को लगा, उस का तीर सही निशाने पर लगा है. उस ने प्यार से कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, जो कुछ मैं ने कहा है, वह सच था? तुम चाहो तो कल इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन तुम ने देखा न, वह तुम से नहीं, तुम्हारी दौलत से प्यार करती है. बहरहाल मेरा जो कुछ भी है, तुम्हारा है. मैं नहीं चाहता कि कोई तुम्हें उल्लू बना कर तुम्हारी दौलत ठग ले.’’

ये बातें फिलिप ने बेटे को उदास देख कर बहुत दूर की सोच कर कही थी. एलेक्स ने जवाब दिया, ‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं, कम से कम उसे मेरी बात तो सुननी ही चाहिए थी. खैर, अपने प्रोग्राम के मुताबिक मैं जा रहा हूं. आप की दौलत और इजाबेला की मुहब्बत, दोनों ने मुझे बरबाद कर दिया.’’

कह कर एलेक्स निढाल और मायूस सा अपने कमरे में चला गया.

मौसम अच्छा होने की वजह से फिलिप शाम को लंबी वाक पर निकल जाता था. रास्ते में ही डौल्टन का घर पड़ता था, जो उजड़ा और पुराना सा था. उस के हालात पहले से भी बुरे हो गए थे. उस की अखबार की नौकरी छूट गई थी. इजाबेला को मिलने वाले वेतन से घर चल रहा था.

उस की हालत देख कर फिलिप को काफी सुकून मिलता था, क्योंकि अपने पुश्तैनी मकान से निकाले जाने के बाद उस ने बहुत बुरे दिन देखे थे. पैसे के लिए उस ने इतनी मेहनत की थी कि उस की सेहत बरबाद हो गई थी. उसी की वजह से आज वह दिल का मरीज बन गया था. इस सब की वजह उसे डौल्टन लगता था.

कभीकभार फिलिप को खूबसूरत, स्मार्ट और ग्रेसफुल इजाबेला भी दिखाई दे जाती थी. कभी स्कूल से आती हुई तो कभी कोई काम करती हुई. इस में कोई शक नहीं था कि वह चाहे जाने लायक थी. अगर फिलिप की डौल्टन से दुश्मनी न होती तो निश्चित वह बेटे की पसंद को दाद देता.

इजाबेला से फिलिप की नजर मिल जाती तो वह मुसकरा देता. वह उस से नमस्ते करती. ऐसे में फिलिप यह जानने का प्रयास करता कि एलेक्स से जुदाई का उस पर क्या असर पड़ा है. पिछले एक साल से एलेक्स बाहर रह रहा था. शुरू में तो उस ने फिलिप से कोई संबंध नहीं रखा, लेकिन बाद में बापबेटे में फोन पर बातें होने लगी थीं. वह कंपनी के काम में काफी रुचि ले रहा था, इसलिए फिलिप को लगने लगा था कि वह उस का उत्तराधिकारी बनने का प्रयास कर रहा है.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 3

मैं ने करामत की पत्नी को वह लिफाफा और खत दिखा कर पूछा, “यह इकबाल कौन है.”

उस ने बताया, “करामत का एक दोस्त है और इसी मोहल्ले में रहता है. वह भी शहर के एक सरकारी औफिस में काम करता है.”

मैं ने उस की पत्नी से पूछा कि करामत किस समय घर से निकला था तो उस ने दुखी हो कर कहा, “वह शाम को खाना खा कर घर से निकलते थे और अपने दोस्तों में समय गुजार कर आधी रात को घर आ जाते थे.”

मोहल्ले के 2-4 आदमियों से पूछा कि रात को करामत और उस के दोस्त इकट्ठा हो कर क्या करते थे तो उन्होंने बताया कि वे ताश खेलते थे.

मैं ने पूछा, “जुआ भी खेलते थे?”

उन्होंने कहा, “नहीं, जुआ नहीं खेलते थे. कभी तमाशा देखने वाले भी आ जाते थे, तब महफिल रात तक जमी रहती थी.”

मैं ने करामत के दोस्त इकबाल का पता दे कर एसआई को यह कह कर उस के घर भेजा कि पूछ कर आए कि करामत वहां आया था या नहीं? उस के बाद मैं ने उस के उन दोस्तों को बुलवाया, जो उस के साथ ताश खेला करते थे. मैं ने उन से बारीबारी पूछताछ की तो सब ने यही बताया कि वह रात के साढ़े 12 बजे ताश खेल कर चला गया था.

साढ़े 12 बजे की बात सुन कर मुझे उस आदमी का खयाल आया, जिस ने कहा था कि उस ने करामत को रात साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था. मैं ने एक कांस्टेबल को भेज कर उस आदमी को बुलवाया, जिस ने करामत को ट्रेन में सवार होने की बात बताई थी.

जब मैं ने उस से कहा कि तुम ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला तो उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह मेरे चेहरे को देखते हुए बोला, “मैं ने झूठा बयान नहीं दिया.”

मैं कुछ देर तक चुप रहा, फिर पुलिसिया अंदाज से बोला, “करामत रात साढ़े 12 बजे तक ताश खेलता रहा था, जिस के 8-10 गवाह हैं. जबकि तुम ने बताया है कि तुम ने उसे साढ़े 11 बजे गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“मुझ से गलती हो गई, वह कोई और रहा होगा.”

“तुम ने बहुत बड़ी गलती की है, अब उस की सजा के लिए तैयार हो जाओ.” मैं ने हडक़ाया.

वह हाथ जोड़ कर उठ खड़ा हुआ, कांपती आवाज में बोला, “गरीब हूं हुजूर, 20 रुपए महीना वेतन मिलता है, छोटेछोटे 2 बच्चे हैं, 2 भाई हैं. इतने कम वेतन में गुजारा नहीं होता. जाहिद ने मुझ से कहा था कि ऐसा बयान दे दो, तुम्हें 15 रुपए दूंगा. आप जानते हैं हुजूर मेरे लिए 15 रुपए कितनी बड़ी रकम है. यह मेरे पूरे घर की रोटी का खर्च है. लालच में आ कर मैं ने यह बयान दे दिया था.”

“तुम ने यह क्यों कहा था कि करामत के पीछे एक आदमी था, जो कंबल ओढ़े था.” मैं ने उस से पूछा, “तुम ने यह क्यों नहीं कहा कि वह जाहिद की पत्नी थी.”

“मुझे जैसा जाहिद ने कहने को कहा था, मैं ने वैसा ही कह दिया.”

उस की बात सुन कर मुझे यही लगा कि जाहिद चालाक आदमी है, जबकि मैं उसे परेशान समझता रहा.

“अगर तुम्हें कुछ और पता हो तो बता दो, बाद में पता चला तो मैं तुम्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दूंगा.”

उस ने कसमें खा कर कहा कि इस के अलावा वह कुछ नहीं जानता. उस आदमी को मैं ने थाने में बिठाए रखा और जाहिद को बुलवा लिया. मेरे दिमाग में करामत के नाम का लिफाफा और स्लीपर अटक गए थे और यह भी कि वह घर में पहनने वाले कपड़ों में गया था.

जाहिद थाने आया तो मैं ने उस से पूछा, “जाहिद, तुम ने अपने तौर पर अपनी पत्नी को ढूंढऩे की कोशिश नहीं की?”

“मैं कैसे ढूंढ़ सकता हूं जी, पता नहीं वह अपने यार के साथ ट्रेन से कहां चली गई? एक आदमी को मैं आप के पास लाया भी था, जिस ने उन दोनों को गाड़ी में सवार होते देखा था.”

“वह आदमी अभी थाने में ही है. बस तुम मुझे इतना बता दो कि उस आदमी से तुम ने झूठ क्यों बुलवाया था?”

जवाब देने के बजाय वह मेरे मुंह को देखने लगा. कुछ देर बाद उस ने हिम्मत की, “मैं ने झूठ नहीं बुलवाया हुजूर, वह तो उस ने खुद ही बोला था.”

मैं ने कहा, “जाहिद, उस बेचारे को 2 साल के लिए क्यों अंदर करा रहे हो? वह बालबच्चों वाला आदमी है. तुम ने उसे झूठ बोलने के लिए 15 रुपए दिए थे. कह दो कि यह बात भी झूठी है.

“जाहिद, मुझे कुछ और भी सबूत मिले हैं. क्या तुम्हें पता नहीं कि आज सुबह मैं करामत के घर गया था?”

“पता है.”

“तो तुम्हें यह भी पता होगा कि खेतों में से करामत की कुछ चीजें बरामद हुई हैं. वे चीजें कुछ और ही कहानी कहती हैं.”

इतना सुन कर उस के चेहरे पर ऐसा बदलाव आया, जैसे सिनेमा के परदे पर एक स्लाइड के बाद दूसरे रंग की स्लाइड आ गई हो.

उस ने कांपती आवाज में कहा, “मलिक साहब. मैं ने सोचा है कि अगर मुझे पत्नी मिल जाती है तो मैं उस का क्या करूंगा? क्या ऐसी पत्नी को कोई इज्जतदार आदमी अपने घर में रख सकता है, जो गैरमर्द के साथ चली गई हो. मैं ने तय किया है कि तलाक दे कर कागज उस के बाप को दे दूंगा और आप को एक तहरीर दे कर अपनी रिपोर्ट वापस ले लूंगा.”

“और जो तुम्हारे इतने गहने चले गए हैं, उन का क्या होगा?” मैं ने पूछा.

“संतोष कर लूंगा. मेरा घर तो तबाह हो ही गया है.”

“फिर जानते हो क्या होगा?” मैं ने कहा, “तुम्हारा ससुर तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराएगा कि तुम ने उस की लडक़ी को गायब कर दिया है और उस के गहने तुम हजम कर गए हो.”

“मैं उस के गहने दे दूंगा.”

“कहां से दोगे?”

उस ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं ने उस के चेहरे पर एक और बदलाव देखा. मुझे लगा, जैसे उस ने अपनी पत्नी को बदनाम करने के लिए कोई चाल चली है. आगे की जांच के लिए मैं जाहिद को उस के घर ले गया.

भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी – भाग 3

काफी भटकने के बाद भी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो सकी तो उस ने अप्सरा की जूतियां और कपड़े वहीं झाड़ियों में छिपा दिए. इस के बाद लाश उठा कर उस ने कार की डिक्की में रखा और मंदिर लौट आया. अब उस के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी.

वह काफी देर तक विचार करता रहा. सोचते हुए वह मंदिर के पीछे गया. मंदिर के पीछे राजस्व विभाग की पुरानी इमारत है. वह सोचतेविचारते हुए मंदिर के पीछे टहल रहा था कि उस की नजर राजस्व विभाग की उस पुरानी इमारत के सामने बने मेनहोल पर पड़ी. उस पर नजर पड़ते ही उस की समस्या हल हो गई.

साईंकृष्णा तुरंत मंदिर में आया और कार की डिक्की से लाश निकाल कर ले जा कर मेनहोल का ढक्कन हटा कर लाश उसी में डाल दी और ढक्कन बंद कर मंदिर में वापस आ गया. रात में ही उस ने कार साफ की और अप्सरा का हैंडबैग वगैरह जला कर उस की राख भी उसी मेनहोल में ले जा कर फेंक दी. फिर वह आराम से सो गया.

अगले दिन सुबह वह अप्सरा के घर गया तो उस की मां ने कहा, “अप्सरा को कल रात से ही फोन कर रही हूं. उस का फोन ही नहीं लग रहा है. जब भी फोन करो, स्विच्ड औफ बताता है.”

“यही पता करने तो मैं भी आया हूं. मैं ने भी फोन किया था. उस का फोन बंद ही बताए जा रहा था. कहीं उस का फोन चोरी तो नहीं हो गया. पर फोन चोरी होता तो अपनी किसी सहेली के फोन से फोन कर सकती थी.” साईंकृष्णा ने कहा.

दुर्गंध न आने का कर दिया पुख्ता इंतजाम

अप्सरा के घर से लौट कर पुजारी साईंकृष्णा मेनहोल के पास गया तो उसे लगा कि मेनहोल से लाश के सडऩे की बदबू आ रही है. उसे लगा कि अगर यह बदबू फैली और मेनहोल का ढक्कन उठा कर देखा गया तो वह फंस जाएगा. उस ने ढक्कन के किनारे सीमेंट और कंक्रीट लगा कर 2 ट्रक लाल मिट्टी मंगा कर मेनहोल के ढक्कन के ऊपर डलवा दी, जिस से ढक्कन पूरी तरह बंद हो गया. अब वह निश्चिंत हो गया.

इसी तरह इंतजार में पूरा दिन भी बीत गया और रात भी. जब अप्सरा का कुछ पता नहीं चला तो 5 जून, 2023 को दोपहर के बाद पुजारी साईंकृष्णा अप्सरा की गुमशुदगी दर्ज कराने थाना आरजीआईए पहुंच गया. वहां गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद असलियत सामने आ गई और अप्सरा मर्डर केस में वह खुद ही पकड़ा गया. थाना शम्साबाद पुलिस ने वह पत्थर भी बरामद कर लिए, जिन से अप्सरा की हत्या की गई थी. गौशाला के पास से अप्सरा की जूतियां और कपड़े भी मिल गए थे.

पुलिस ने पुजारी अय्यागिरि वेंकट सूर्या साईंकृष्णा के खिलाफ हत्या (धारा 302) और सबूत मिटाने (धारा 120) के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे रंगा रेड्डी कोर्ट में पेश किया, जहां से 14 दिनों के रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में पुलिस ने उस से पूछताछ कर कुछ और सबूत जुटाए. रिमांड अवधि पूरी होने पर उसे दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से कातिल पुजारी को जेल भेज दिया गया.

पुजारी की पापलीला और अप्सरा की हत्या को ले कर मीडिया में अप्सरा की एक से एक फोटो के साथ पुजारी के फोटो दिखाए जा रहे थे. तभी इस मामले में एक और नया रहस्य निकल कर सामने आया.

अप्सरा और उस की मां अरुणा एक साल पहले ही हैदराबाद रहने आई थीं. इस के पहले दोनों चेन्नै में रहती थीं. अप्सरा की हत्या का समाचार सुन कर चेन्नै की धनलक्ष्मी राजा नाम की एक महिला ने सोशल मीडिया पर अप्सरा के फोटोग्राफ्स, वीडियो और आडियो डाल कर हडक़ंप मचा दिया.

सामने आई नई जानकारी

धनलक्ष्मी ने वीडियो वायरल कर के कहा था कि दुनिया में देर है पर अंधेर नहीं है. प्रकृति हर किसी को उस के कर्म की सजा देती है. मेरा एकलौता बेटा कार्तिक सौफ्टवेयर इंजीनियर था. उसे अप्सरा से प्यार हो गया. उस की सुंदरता पर वह ऐसा मोहित हुआ था कि मेरे मना करने के बावजूद उस ने उस रूपसुंदरी से विवाह कर लिया.

विवाह कर के घर आते ही अप्सरा ने हम दोनों को परेशान करना शुरू कर दिया था. मेरा बेटा तो सीधासादा था और वह महारानी हर शनिवार और रविवार को बाहर घूमने जाती और हद से ज्यादा खर्च कराती. इस मामले में उस की मां अरुणा भी बेटी का पक्ष ले कर मेरे बेटे को धमकाती. जब देखो तब लड़ाईझगड़ा कर के मांबेटी ने कार्तिक का जीना हराम कर दिया था.

एक दिन घर में थोड़ा ज्यादा झगड़ा हो गया. अप्सरा ऐसी बिफरी की मुझे और कार्तिक को गंदीगंदी गालियां देने लगी. कार्तिक को भी गुस्सा आ गया. उस ने अप्सरा पर हाथ उठा दिया. इस के बाद अप्सरा थाने चली गई और कार्तिक के खिलाफ तरहतरह के आरोप लगा कर शिकायत दर्ज करा दी. अप्सरा की सुंदरता देख कर पुलिस ने भी फटाफट मुकदमा दर्ज कर लिया और कार्तिक को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद अप्सरा अपनी मां के साथ चेन्नै से हैदराबाद चली गई.

करीब डेढ़ महीने बाद कार्तिक जमानत पर जेल से बाहर आया. जेल जाने से उस की नौकरी भी चली गई थी, जिस की वजह से वह भारी डिप्रेशन में आ गया. मां धनलक्ष्मी ने उसे बहुत समझाया, हिम्मत दी. पर अप्सरा ने उसे जिस तरह परेशान किया था, उस से वह इस हद तक टूट गया था कि वह इस हादसे से उबर नहीं पाया और जेल से बाहर आने के चौथे दिन उस ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

धनलक्ष्मी ने कार्तिक और अप्सरा के विवाह के जो फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए थे, उन्हें ले कर लोगों में यही चर्चा हो रही थी कि अप्सरा की वजह से जिस तरह कार्तिक की मां बिलख रही है, ठीक उसी तरह से बेटी के मौत हो जाने पर अब खुद अरुणा को भी बिलखना पड़ रहा है.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 2

सोनिया वाही को पति की चिंता खाए जा रही थी. जब उन्हें पता चला कि बैंक में पैसे डलवाने के लिए अपहर्त्ताओं ने बैंक एकाउंट नंबर दे दिए हैं तो वह राजेंदर सिंह पर दबाव बनाने लगीं कि जल्द से जल्द एकाउंट में पैसे जमा करा दें, ताकि पति जल्द घर आ जाएं.

राजेंदर सिंह दिल्ली पुलिस को बताए बिना उन के एकाउंट में पैसे जमा कराने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार से बात की. उन्होंने पुलिस को यह भी बता दिया कि अपहर्त्ता ने इस बार फोन अरुण वाही के नंबर से नहीं, बल्कि नए नंबर 8860103333 से किया था, इसी नंबर से मैसेज भी भेजा था.

पुलिस ने अपहर्त्ता के इस फोन नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया. पुलिस नहीं चाहती थी कि अपहर्त्ता अरुण वाही को कोई क्षति पहुंचाएं, इसलिए उन्होंने राजेंदर सिंह से कह दिया कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा भेजे गए दोनों बैंक खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दें. पुलिस के कहने पर राजेंदर सिंह ने आईसीआईसीआई के दोनों खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दिए.

पुलिस ने अपहर्त्ताओं द्वारा दिए गए खातों की जांच की तो पहला खाता इंफाल के रहने वाले किसी थांगन राकी नाम के व्यक्ति का और दूसरा इंफाल के ही लाइस रान थांबा का था. दिल्ली पुलिस ने इंफाल की पुलिस से जब इन के पते की जांच कराई तो पता चला कि इस पते पर इन नामों के लोग नहीं हैं. इस से यह पता चला कि दोनों बैंक खाते फरजी आईडी से खुलवाए गए थे.

अपहर्त्ताओं के जिस फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, उस की लोकेशन भी दिल्ली के चित्तरंजन पार्क स्थित मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. इस के अलावा पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर ज्यादा बात होती थी. वह नंबर था 8130973333. उधर पुलिस ने अरुण वाही के फोन की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उस में इसी नंबर से 18 दिसंबर की रात को ढाई बजे, साढ़े 3 बजे और पौने 4 बजे बात हुई थी.

8130973333 नंबर अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर और मिला, जिस पर लगातार कई बार बातें हुई थीं. वह नंबर गुड़गांव के जोगिंद्र नाम के व्यक्ति का था. एक पुलिस टीम गुड़गांव रवाना कर दी गई. जोगिंद्र पुलिस टीम को मिल गया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह नंबर रचना नाम की एक लड़की का है. वह लड़की बड़ी शातिर है. वह सोशल साइट के जरिए पहले लोगों से दोस्ती करती है, उस के बाद उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने की कोशिश करती है. जोगिंद्र ने बताया कि वह भी रचना का शिकार बन चुका है. उस ने पुलिस को रचना का फोटो भी उपलब्ध करा दिया.

जोगिंद्र से बात करने के बाद पुलिस के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. पुलिस ने रचना का मोबाइल फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. जांच के बाद पता चला कि उस ने फोन का सिम भी फरजी आईडी से लिया था. अब पुलिस के पास उस तक पहुंचने का जरिया केवल फोटो ही था.

2 दिन बीत गए थे, अरुण वाही के घर वालों को उन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था. सोनिया वाही इस बात को सोचसोच कर परेशान थीं कि पता नहीं वह किस हाल में होंगे. इस मामले में लगी पुलिस भी उन के पास जल्द से जल्द पहुंचने का जरिया ढूंढ़ रही थी.

पुलिस को ध्यान आया कि अपहर्त्ताओं ने जब राजेंदर सिंह को फोन किए थे तो उन की लोकेशन चित्तरंजन पार्क में मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. पुलिस टीम रचना का फोटो ले कर दिल्ली के चित्तरंजन पार्क इलाके में पहुंच गई. मंदाकिनी इनक्लेव में पहुंच कर पुलिस ने कोठियों के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को रचना का फोटो दिखा कर उन से पूछताछ की.

काफी मशक्कत के बाद एक सुरक्षा गार्ड ने लड़की का फोटो पहचान लिया. उस ने यह भी बता दिया कि यह लड़की 52/76 नंबर के मकान में रहती है. पुलिस जब वहां पहुंची तो उस मकान की तीसरी मंजिल पर रचना नाम की वही लड़की मिल गई, जिस का फोटो उन के पास था. उस के साथ 2 नाइजीरियन युवक भी थे.

उसी कमरे के एक कोने में अरुण वाही भी बैठे मिले. पुलिस के पास अरुण वाही का भी फोटो था, जो उन के बेटे निखिल ने दिया था. पुलिस ने सब से पहले अरुण वाही को अपने कब्जे में लिया. इस के बाद रचना सहित दोनों नाइजीरियन युवकों को हिरासत में ले लिया.

अरुण वाही को सकुशल बरामद कर के पुलिस खुश थी, क्योंकि पुलिस का पहला मकसद उन्हें सकुशल बरामद करना था. पुलिस तीनों को पूछताछ के लिए थाना जनकपुरी ले आई. रचना से जब पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. फिर उस ने सोशल साइट के जरिए लोगों को फांसने से ले कर उन्हें ब्लैकमेल करने तक की जो कहानी बताई, वह बड़ी दिलचस्प निकली.

रचना का पूरा नाम रचना नायक राजपूत था. वह मूलरूप से हरियाणा के शहर फरीदाबाद के रहने वाले प्यारेलाल की बेटी थी. प्यारेलाल की 7 बेटियां थीं, जिन में से रचना चौथे नंबर की थी. प्यारेलाल प्रौपर्टी डीलर थे. उसी से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. अन्य बेटियों की तरह वह रचना को भी पढ़ाना चाहते थे, लेकिन रचना ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

वह अति महत्त्वाकांक्षी थी. कुछ दिन घर बैठने के बाद उस ने फरीदाबाद के ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. यह नौकरी रचना ने अपने शौक पूरे करने के लिए की थी. लेकिन प्यारेलाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने उसे डांटा और उस की नौकरी छुड़वा दी. रचना को अपने पिता का यह तुगलकी फरमान अच्छा नहीं लगा. उन के दबाव में उस ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन घर वालों से नाराज हो कर वह पश्चिमी दिल्ली के नवादा क्षेत्र में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 2

इजाबेला बहुत ही खूबसूरत लंबीछरहरी लड़की थी. उस के चेहरे पर ऐसी कशिश थी कि उस की उम्र का कोई भी नौजवान उस की ओर आकर्षित हो सकता था. फिलिप के दिमाग में खतरे की घंटी बज उठी.

तभी डौल्टन ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘मि. फिलिप, हम चाहते हैं कि पुरानी बातों को भुला कर अब हम अच्छे दोस्त बन जाएं.’’

‘‘ऐसा कुछ मेरे लिए मुमकिन नहीं है.’’ फिलिप ने बेरुखी से कहा.

डौल्टन भौचक्का रह गया. वह कुछ कहता, उस के पहले ही फिलिप ने उठते हुए कहा, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए, रात काफी हो चुकी है.’’

फिलिप एलेक्स के करीब पहुंचा और उस का बाजू पकड़ कर बोला, ‘‘एलेक्स बेहतर होगा कि तुम भी हमारे साथ चलो, काफी वक्त हो गया है.’’

‘‘डैडी, मैं अभी रुकना चाहता हूं, आप और आंटी जाइए. मैं बाद में आ जाऊंगा.’’ एलेक्स ने इत्मीनान से कहा.

घर आते हुए फिलिप ने बहन रोजा से कहा, ‘‘डौल्टन के यहां पार्टी में आ कर हम ने गलती तो नहीं की? कहीं ऐसा न हो, हमें बाद में पछताना पड़े.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया, जो हमें पछताना पड़ेगा?’’ रोजा ने पूछा.

‘‘डौल्टन ने अपनी खूबसूरत बेटी को चारा बना कर मेरे बेटे के पास भेजा है, ताकि वह उसे अपने जाल में फंसा सके.’’

‘‘तुम्हारा मतलब इजाबेला से है?’’

‘‘हां, देखा नहीं, वह एलेक्स से कैसे हंसहंस कर बातें कर रही थी.’’

‘‘फिलिप, तुम नफरत में अंधे हो चुके हो. ऐसा कुछ भी नहीं है.’’

‘‘मैं बहुत दूर की सोचने वालों में हूं. यह जायदाद और दौलत मैं ने अपनी अक्ल और इसी सोच की बदौलत बनाई है. मुझे साफ दिख रहा है कि डौल्टन इजाबेला को माध्यम बना कर मेरी दौलत हड़पना चाहता है. क्योंकि उसे पता है कि एलेक्स मेरा एकलौता बेटा है और यह सब उसी का है.’’

रोजा ने फिलिप को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘मन में तसल्ली रखो, ऐसा कुछ नहीं है.’’

फिलिप स्टडी रूम में बैठ कर एलेक्स का इंतजार करने लगा. जब वह आया तो उसे देख कर फिलिप को लगा कि उस का बेटा इतना खूबसूरत है कि कोई भी लड़की उसे पसंद कर सकती है.

उसे इस तरह बैठे देख एलेक्स ने कहा, ‘‘लगता है, आप को पार्टी पसंद नहीं आई?’’

‘‘रोजा ने मुझे वहां जाने के लिए मजबूर किया था, वरना मैं ऐसे लोगों के यहां कतई नहीं जाता.’’

‘‘ऐसे लोगों से आप का मतलब, कहीं आप इजाबेला के बारे में तो..?’’

‘‘तुम इजाबेला के बारे में मेरे विचार क्यों जानना चाहते हो?’’

‘‘इसलिए कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं.’’ एलेक्स ने कहा.

फिलिप एकदम से उठ कर गुस्से से चीखा, ‘‘तुम पागल तो नहीं हो गए हो एलेक्स? मैं तुम्हें भी अपनी तरह दूर तक सोचने वाला समझता था. तुम ने एक ही मुलाकात में इतना बड़ा फैसला ले लिया. अपनी और उस की हैसियत देखो, डौल्टन की हमारे आगे क्या औकात है? और वह लड़की, जो गंवार सी है, तुम से उम्र में भी 4 साल बड़ी है.’’

‘‘डैड, आप नफरत में भले ही आंटी की दलीलें रद्द कर देते हैं, लेकिन मैं अपनी चाहत में आप की सारी दलीलें रद्द करने को मजबूर हूं. मुझे पहली मुलाकात में ही वह बहुत अच्छी लगी, इसीलिए मैं ने उस से शादी का फैसला कर लिया है.’’

गुस्से में गिलास दीवार पर मारते हुए फिलिप ने कहा, ‘‘बंद करो यह बकवास. वह कमीना मुझ से बदला लेना चाहता है. इसीलिए अपनी बेटी को तुम्हारे पीछे लगा दिया है. वह मेरी जायदाद पाने के लिए बेटी का इस्तेमाल कर रहा है.’’

‘‘डैड, मुझे मालूम था कि आप यही कहेंगे, इसलिए मैं इजाबेला से शादी कर के कैलिफोर्निया जा रहा हूं. आप चाहें तो मुझे अपनी जायदाद से बेदखल कर सकते हैं.’’

एलेक्स की बात खत्म होते ही रोजा कमरे में दाखिल हुई. फिलिप ने उस से कहा, ‘‘देखा तुम ने, सुनी इस की बातें. मैं नशे में नहीं हूं.’’

रोजा व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘भइया, शराब के नशे से ज्यादा घातक दौलत का नशा होता है.’’

एलेक्स पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया.

फिलिप ने झुंझला कर कहा, ‘‘रोजा, वह गरीब, गंवार मेरा रिश्तेदार कैसे बन सकता है?’’

‘‘तुम्हारे दौलत के गुरूर की वजह से ही तुम्हारी बीवी तुम्हें ठुकरा कर चली गई. अब तुम्हारे बेटे की बारी है, जिसे तुम कहते हो कि बीवी से ज्यादा प्यार करते हो. लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें सब से ज्यादा प्यार दौलत से है.’’ रोजा ने तल्खी से कहा.

‘‘रोजा, मैं एलेक्स के लिए इजाबेला के बारे में सोच भी नहीं सकता.’’

‘‘तो क्या तुम उस की शादी किसी प्रिंसेस से कराना चाहते हो?’’

फिलिप गुस्से से पैर पटक कर रह गया. 2 सप्ताह तक खामोशी रही. एलेक्स ने फिलिप से कोई बात नहीं की. उस ने भी उस से कुछ नहीं पूछा. लेकिन रोजा से उसे पता चला कि एलेक्स इजाबेला से रोज मिलता था.  फिलिप समझ गया कि मामला बहुत आगे बढ़ चुका है. ऐसे में अगर वह जल्दबाजी में कोई फैसला लेता है तो बेटे को हमेशा के लिए खो सकता है.

उस ने काफी सोचविचार कर एक योजना बनाई और एलेक्स को पास बैठा कर बड़े प्यार से बोला, ‘‘मुझे अफसोस है कि उस दिन मैं ने तुम से प्यार से बात नहीं की. शायद ऐसा उम्र के अंतर की वजह से हुआ है. मुझे लगता है कि मैं तुम्हें इजाबेला से शादी की इजाजत दे दूं.’’

एलेक्स इस तरह खामोश बैठा रहा, जैसे उस की बात से उसे कोई खुशी नहीं हुई. फिलिप ने कहा, ‘‘एक शर्त है. शर्त क्या, तुम्हारे लिए चैलेंज है. तुम इजाबेला से शादी कर सकते हो, लेकिन एक साल बाद भी तुम्हारे जज्बात वही रहने चाहिए, जो इस समय हैं. तब मैं समझूंगा कि भावनाओं में बह कर तुम ने यह फैसला नहीं लिया है.’’

‘‘मुझे मंजूर है. मैं यह शर्त आप की दौलत के लिए नहीं, बल्कि यह साबित करने के लिए मान रहा हूं कि प्यार का संबंध दौलत से नहीं, दिल से होता है. अब यह बताइए कि मुझे कहां जाना होगा?’’ एलेक्स ने गंभीरता से जवाब दिया.

फिलिप ने उस की अक्लमंदी की दाद दी. उस ने कहा, ‘‘तुम जहां चाहो, जा सकते हो. लेकिन उस से पहले मैं डौल्टन और उस के परिवार वालों से मिलना चाहता हूं. क्योंकि मैं इजाबेला और तुम्हारी उपस्थिति में उन से कुछ बातें करना चाहता हूं.’’

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 2

सबइंसपेक्टर इनाम को मैं ने जबलपुर में फौजी के पास भेजा. फौजी का पता उस के पिता से ले लिया था. उसे भेज कर मैं ने अपने मुखबिरों को लगा दिया कि वह करामत, मुनव्वरी, जाहिद, करामत की पत्नी और उन सब के परिवार के बारे में पता करे.

अगले दिन मुनव्वरी का पति जाहिद एक आदमी को ले कर मेरे पास आया. उस आदमी ने बताया कि उस के एक रिश्तेदार का उस के पास खत आया था कि वह रात की गाड़ी से अपने मातापिता और बच्चों के साथ आ रहा है. अपने उन रिश्तेदारों को लेने के लिए वह कल रात स्टेशन पहुंचा. जिस गाड़ी से उन्हें आना था, वह आई, लेकिन वे रिश्तेदार प्लेटफौर्म पर दिखाई नहीं दिए.

मैं काफी देर तक उन्हें इधरउधर घूम कर देखता रहा. उसी समय मैं ने वहां करामत को देखा. वह जबलपुर जाने वाली गाड़ी में रात साढ़े 11 बजे सवार हो रहा था. उस के पीछे एक आदमी भी था. उस ने सिर पर कंबल इस तरह से ओढ़ा हुआ था कि उस का मुंह दिखाई नहीं दे रहा था. वह भी करामत के पीछेपीछे गाड़ी में चढ़ गया था.

मुझे कल ही पता चला कि जाहिद की पत्नी घर से गायब हो गई है. मैं ने जाहिद को करामत और कंबल ओढ़े आदमी के साथ ट्रेन में सवार होने की बात बताई तो जाहिद ने झट से कह दिया कि उस के साथ कंबल ओढ़े हुए मुनव्वरी ही थी. जाहिद के साथ आए उस आदमी को मैं ने गवाहों की सूची में शामिल कर लिया और उस से कह दिया कि मेरे पूछे बिना वह कहीं बाहर नहीं जाएगा.

2 दिनों बाद सबइंसपेक्टर जबलपुर से वापस आ गया. उस ने बताया कि करामत वहां नहीं पहुंचा है.

उसी बीच मुनव्वरी का पिता मलिक नूर अहमद मेरे औफिस में आया. आते ही उस ने कप्तान की तरह पूछा, “थानेदार साहब तफ्तीश कहां तक पहुंची है?” मैं ने उसे गोलमोल जवाब दे दिया.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मुझे यह मामला कुछ और ही दिखाई देता है. मुझे लगता है कि जाहिद ने ही मेरी बेटी और करामत को कहीं गायब करा दिया है. यह भी हो सकता है हत्या करा दी हो.”

“मलिक नूर अहमद साहब.” मैं ने कहा, “क्या आप ने हत्यारे देखे हैं? अलगअलग आदमियों को उन के घरों से गायब कराना, उन की हत्या कराना, कोई ऐसेवैसे आदमी का काम नहीं है. यह किसी पक्के उस्ताद का काम है. मैं ने जाहिद को परखा है, वह ऐसा आदमी नहीं है.”

“मलिक साहब, आप ने केवल जाहिद को देखा है,” उस ने एक गांव का नाम ले कर कहा, “आप ने उस के रिश्तेदारों को नहीं देखा. वे मामूली बात पर हत्याएं कर देते हैं. लड़ाई और मारकुटाई को तो वे मामूली बात समझते हैं.”

जिस गांव का उस ने नाम लिया था, वह गांव मेरे ही थाने में आता था. मुझे उस गांव का एक घराना याद आ गया. उस घराने ने हर थानेदार को मुसीबत में डाला हुआ था. उस गांव में वास्तव में ज्यादातर लोग खुराफाती किस्म के थे.

उस ने कहा, “मलिक साहब, मैं ने अपनी बेटी जाहिद को दे तो दी थी, लेकिन बेटी ने उस के घर में एकएक दिन एकएक साल के बराबर काटे हैं. वह उसे गालियां देता था, मारता था और सब से गंदी हरकत यह थी कि वह उसे चरित्रहीन कहता था.”

मैं ने पूछा, “चरित्रहीनता का आरोप किसी एक आदमी के साथ लगाता था या वैसे ही चरित्रहीन कहता था.”

“अजी उस की एक बात हो तो बताऊं, पूरा मोहल्ला उस से बहुत दुखी था. आप इस केस को इस तरह न लें कि करामत उसे ले कर भाग गया है, इस केस को दूसरे तरीके से भी देखें.” उस ने मशविरा दिया.

मलिक नूर अहमद ने मेरा इतना दिमाग चाटा कि मैं कुछ सोचने के काबिल नहीं रहा. उस ने चलतेचलते एक बात यह भी कही कि उस की बेटी मुनव्वरी अपने पति से इतनी तंग थी कि उसे उस घर से भाग जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझा.

उसी दिन उसी मोहल्ले का एक सम्मानित आदमी मेरे पास एक डाक का लिफाफा ले कर आया. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में एक पत्र और 5-5 के 3 नोट निकले. लिफाफा करामत के नाम था. लिफाफा लाने वाले के साथ एक आदमी और था. उसी के खेत में यह लिफाफा पड़ा मिला था. उस समय गेंहू की फसल एक फुट ऊंची थी.

मैं उन्हें ले कर खेत में उस जगह पहुंचा, जहां लिफाफा पड़ा मिला था. साफ लग रहा था कि वहां से 2-3 आदमी गुजरे हैं. पास के 2 और खेतों को देखा तो वहां भी पौधे टूटे हुए थे. वे मेंड़ों पर सीधे चलते गए थे. जहां से लिफाफा मिला था, उस से लगभग 200 गज दूर एक पैर का स्लीपर मिला था. उन दिनों लोग घरों में स्लीपर पहना करते थे. वह स्लीपर नया था. पुराना होता तो मैं समझ लेता कि इसे फेंका गया होगा.

उस स्लीपर को उठा कर मैं आगे चला गया. जहां खेत खत्म होते थे, वहां जमीन डेढ़-दो गज नीची ढलान पर थी. आगे झाडिय़ां थीं. दूसरा स्लीपर झाडिय़ों में मिला. मैं वहीं रुक गया और जिस आदमी को वह लिफाफा मिला था, उसे दौड़ा कर मैं ने करामत के बाप और भाइयों को बुलवा लिया. बाप और भाइयों को वे स्लीपर दिखा कर पूछा कि वे करामत के तो नहीं हैं.

उन्होंने बताया कि करामत तो उन से अलग दूसरी जगह पर अपनी पत्नी के साथ रहता था, इसलिए कह नहीं सकते कि स्लीपर किस के हैं. फिर मैं उन स्लीपरों को ले कर करामत के घर पहुंचा. वहां उस की पत्नी मिली. करामत की पत्नी को मैं ने वे स्लीपर दिखा कर पूछा, “क्या करामत ऐसे स्लीपर पहनता था?”

“ये उन्हीं के लगते हैं,” उस ने कहा, “2-3 दिन पहले ही तो उन्होंने खरीदे थे.”

“घर में उस के और भी कोई जूते हैं?” मैं ने पूछा.

उस ने कहा, “जी हां, 2 जोड़ी जूते पड़े हैं.”

मेरे कहने पर वह जूते उठा लाई. मैं ने स्लीपर और जूतों के तलवे देखे, दोनों का साइज एक जैसा था. मैं ने पूछा, “करामत के पास कितने जोड़े हैं?”

“यही 2 जोड़े हैं, जिन्हें वह बाहर जाने पर पहनते थे और यह स्लीपर घर में पहनने के हैं.”

“जरा याद करो कि जब वह घर से निकला था तो क्या पहने था?” मैं ने पूछा.

“मुझे अच्छी तरह याद है, वह यही स्लीपर पहने थे. पाजामा और कमीज पहनी थी, ऊपर पुराना स्वेटर था.”

इस तरह कुरेदतेकुरेदते पता चला कि करामत दफ्तर जाता था तो सलवारकमीज और अच्छे प्रकार का स्वेटर और कोट पहनता था. अगर उसे शहर से बाहर जाना होता था तो वह यही कपड़े पहनता था. चूंकि वह एक औरत को ले कर गया है, निश्चित उस ने अच्छे कपड़े पहने होंगे.