शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 1

दोपहर के पौने 2 बजे के करीब ओमप्रकाश ने अपने साले संजय के मोबाइल पर फोन किया, ‘‘संजय नीतू कहां है? मैं बहुत देर से उस का नंबर मिला रहा हूं लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है. पता नहीं उस ने अपना फोन बंद क्यों कर रखा है. तुम देखो तो वो कहां है? और उस से मेरी बात भी करा देना.’’

नीतू ओमप्रकाश की पत्नी थी, जो उस समय अपने मायके में रह रही थी, यह बात 21 जून, 2014 की है.’’

संजय उस समय अपने घर पर नहीं था. उस ने उसी समय अपनी बहन नीतू का फोन नंबर मिलाया तो वास्तव में वह बंद था. नीतू के पास जो मोबाइल फोन था उस में वोडाफोन और आइडिया कंपनी के सिम थे. संजय ने उस के दोनों फोन नंबरों को कई बार मिलाया. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ बताया गया. इस बात को वह भी नहीं समझ पाया कि नीतू ने फोन बंद क्यों कर रखा है?

फिर संजय ने अपनी मां विजम को फोन किया, ‘‘मम्मी, नीतू कहां है? उस का फोन नहीं मिल रहा. जीजाजी उस से बात करना चाहते हैं. उस से कह देना कि वह जीजाजी से बात कर ले.’’

‘‘वो तो सुबह 11 बजे के करीब घर से नोएडा में उन के जाने के लिए निकली थी. कह रही थी कि ओमप्रकाश ने उसे पिक्चर दिखाने के लिए बुलाया है. क्या 3 घंटे में वो उन के पास पहुंची नहीं तो कहां चली गई?’’ विजम चिंतित होते हुए बोलीं.

विजम ने भी बेटी के दोनों नंबर अपने फोन से मिलाए तो वे बंद आ रहे थे. फिर उन्होंने अपने दामाद ओमप्रकाश से फोन पर बात की. ओमप्रकाश ने अपनी सास को बताया कि नीतू को उस ने पिक्चर देखने के लिए बुलाया जरूर था लेकिन वह उस के पास नहीं पहुंची.

नीतू और ओमप्रकाश की शादी करीब 6 महीने पहले ही हुई थी. फोन पर बात करते समय ओमप्रकाश समझ रहा था कि नीतू को ले कर सास बहुत परेशान हो रही है. वह उन्हें समझाते हुए बोला, ‘‘मम्मी आप परेशान मत होइए. ऐसा भी हो सकता है कि वह अपनी किसी सहेली के साथ पिक्चर देखने चली गई हो. एक दो घंटे में शायद वह घर पहुंच ही जाएगी. जब वह घर पहुंच जाए तो मेरी बात जरूर करा देना. इस समय मैं औफिस में हूं. औफिस की छुट्टी के बाद मैं भी आप से मिलने आ रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, वो घर आ जाएगी तो तुम्हारी बात करा दूंगी.’’ विजम बोली.

शाम हो गई. न तो नीतू ही घर लौटी और न ही उस का फोन मिला. विजम परेशान हुए जा रही थीं. उन्होंने यह बात पति दिनेश कुमार को भी बता दी. घर वालों ने नीतू की सहेलियों आदि से भी पूछताछ की लेकिन उस का पता नहीं चला. ओमप्रकाश ग्रेटर नोएडा में परी चौक के पास स्थित एक टेलीकौम कंपनी में काम करता था. औफिस की ड्यूटी पूरी करने के बाद वह कल्याणपुरी में स्थित अपनी ससुराल पहुंच गया.

तब तक नीतू घर नहीं लौटी थी. जिस की वजह से घर वाले परेशान थे. सभी इस बात से हैरान थे कि अपने फोन को कभी भी बंद न करने वाली नीतू ने आज अपना फोन बंद क्यों कर रखा है? वह बिना बताए इतनी देर तक गायब भी नहीं रही, फिर आज ऐसी कौन सी जगह पर है जहां उस ने अपना फोन तक बंद कर रखा है. सभी लोग बीचबीच में नीतू का फोन मिलाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन स्विच्ड औफ होने की वजह से उस का फोन नहीं मिल पाया.

आपस में सलाहमशविरा करने के बाद ओमप्रकाश अपने ससुर दिनेश कुमार को ले कर थाना कल्याणपुरी चला गया और थानाप्रभारी अरविंद कुमार को नीतू के लापता होने की जानकारी दी. दिनेश की सूचना पर थानाप्रभारी ने नवविवाहिता नीतू की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इस की जांच सबइंसपेक्टर संदीप कुमार को सौंपी गई.

एसआई संदीप कुमार ने काररवाई करते हुए सब से पहले वायरलैस से दिल्ली के समस्त थानों में नीतू का हुलिया आदि बताते हुए, उस के गायब होने की सूचना प्रसारित करा दी. नीतू के पास जो फोन था उस से भी कोई सुराग मिलने की संभावना थी, इसलिए उस के फोन में पड़े हुए वोडाफोन और आइडिया के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाने की काररवाई की.

अगले दिन एसआई संदीप कुमार ने नीतू की मां विजम से बात की तो उन्होंने बताया, ‘‘नीतू 8 जून को अपनी ससुराल से यहां आई थी. कल सुबह तकरीबन 11 बजे घर से निकलते समय उस ने बताया था कि ओमप्रकाश ने उसे नोएडा में पिक्चर देखने के लिए बुलाया है. वह उस के पास जा रही है.

‘‘मैं तो यही सोच रही थी कि वह ओमप्रकाश के पास ही होगी लेकिन दोपहर बाद जब ओमप्रकाश ने नीतू से बात कराने के लिए फोन किया तो पता चला कि वह उस के पास पहुंची ही नहीं है.’’

ओमप्रकाश उस समय ससुराल में ही था. एसआई संदीप ने ओमप्रकाश से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘सर, मैं ने नीतू को फोन कर के नोएडा आने को कहा था उस के पहुंचने के बाद हम लोग कोई मूवी वगैरह देखने जाते. उस ने मुझ से कहा भी था कि मैट्रो से नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच जाएगी.

‘‘मैं उस का सैक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर इंतजार करता रहा लेकिन वह वहां नहीं पहुंची तो मैं ने उसे फोन करने की कोशिश की, लेकिन उस का फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो सकी. फिर मैं अपने औफिस चला गया. मैं ने फिर संजय को फोन कर के नीतू का फोन बंद होने की बात बताई.’’

दोनों से बात करने के बाद एसआई संदीप यह समझ गए कि ओमप्रकाश ने नीतू को फिल्म देखने के लिए नोएडा बुलाया था. पति के पास जाने के लिए नीतू घर से निकली भी थी लेकिन वह पति के पास पहुंची थी या नहीं, इस बात पर संदेह था. उस समय वह विजम के घर से चले आए. और अपने स्तर से मामले की छानबीन में लग गए.  उन्होंने आसपास के लोगों से पूछा तो कुछ लोगों ने बता दिया कि उन्होंने नीतू को रिक्शे पर बैठे जाते देखा था.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल

एक जवान औरत की नौटंकी – भाग 3

रीता की तहरीर पर पुलिस ने दीपक कपूर व नीरू के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने नीरू को थाने बुला कर उस से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि अपनी सास की हत्या उसी ने की थी. दीपक का इस में कोई हाथ नहीं था, लेकिन पुलिस के सख्ती करने पर नीरू ने कुबूल किया कि हत्या में दीपक कपूर भी साथ था. फिर नीरू ने मीरा की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी:

प्रेमी गौरव कपूर की हत्या के बाद नीरू दुखी रहने लगी थी. इस के लिए वह सास को ही कुसूरवार मान रही थी. क्योंकि वही जेल में बंद पति से मिल कर उस के कान भरती थी. इसीलिए उस के पति ने गौरव को मरवा दिया था.

नीरू ने फैसला कर लिया था कि जिस तरह गौरव को तड़पा तड़पा कर मारा गया था, उसी तरह वह सास को भी तड़पा तड़पा कर मारेगी. सास की हत्या कैसे की जाए, इस बारे में उस ने दीपक के साथ सलाहमशविरा किया. फिर दोनों ने एक योजना बना ली. योजना के अनुसार 12 फरवरी, 2014 की शाम को उस ने दीपक को अपने घर बुला लिया. उस समय उस का बेटा कशिश भी घर पर था. बेटे को उस ने फोन रिचार्ज कराने के लिए घर से बाहर भेज दिया.

सास मीरा यादव उस समय कमरे में सोफे पर बैठी थी. नीरू ने सास के सिर पर जमीन में गड्ढा खोदने वाले सब्बल का भरपूर वार किया. एक ही बार में मीरा का सिर फट गया और वह सोफे पर लुढ़क गई. इस के बाद उस ने कई और वार उस के ऊपर किए. थोड़ी देर तड़पने के बाद मीरा यादव की मौत हो गई. सास की हत्या कर के नीरू को बड़ा सुकून मिला.

सास की हत्या करने के बाद सब्बल को उस ने छत पर रखे कूलर के पास छिपा कर रख दिया और दीपक के चले जाने के बाद पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के सास की हत्या की सूचना दे दी. जिस सब्बल से मीरा यादव की हत्या की गई थी, उसे बरामद करना भी जरूरी था.

नीरू ने बताया था कि वह सब्बल उस ने अपने घर में ही छिपा दिया है. थानाप्रभारी ने वह सब्बल बरामद करने के लिए एसआई हरिशंकर मिश्रा, राजेश यादव, महिला सिपाही श्यामा देवी और प्रीती शाक्य को नीरू यादव के साथ उस के फ्लैट पर भेजा. नीरू ने चौथी मंजिल पर स्थित फ्लैट में पहुंच कर छत पर रखे कूलर के पास छिपा कर रखा सब्बल निकाल कर पुलिस को दे दिया.

पुलिस फर्द बरामदगी की काररवाई करने लगी, तभी मौका देख कर नीरू अपने बेटे कशिश को ले कर कमरे में जाने लगी, तो महिला सिपाहियों ने उसे रोकने की कोशिश की. उसी दौरान उस ने अपने पालतू कुत्ते को उन पर छोड़ दिया. दोनों सिपाही डर के मारे पीछे हट गईं. मौका देख नीरू ने झट से अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

पुलिस ने आवाज लगा कर नीरू से दरवाजा खोलने को कहा, लेकिन उस ने दरवाजा नहीं खोला. इसी दौरान एसआई राजेश कुमार के पास थानाप्रभारी का फोन आया तो राजेश ने उन्हें नीरू वाली बात बताते हुए तुरंत फोर्स भेजने को कहा.

गौरव कपूर की हत्या की तफ्तीश पूरी होने से पहले पुलिस के सामने मीरा यादव की हत्या का मामला सामने आ गया था. इन बातों को देख कर थाना प्रभारी को यह अंदेशा हो रहा था कि कहीं कमरे में बंद हो कर नीरू कोई उल्टासीधा काम न कर बैठे, जिस से नई समस्या पैदा हो जाए. इसलिए वह आवश्यक पुलिस बल के साथ खुद भी उस के घर पहुंच गए. लेकिन वहां उस का कुत्ता खुला हुआ देख कर वह भी घबरा गए.

देखने में वह कुत्ता खतरनाक लग रहा था. हिम्मत कर के थानाप्रभारी आगे बढ़े तो कुत्ते ने उन पर हमला कर के उन्हें घायल कर दिया. किसी तरह कुत्ते को काबू में किया गया. उसी समय फ्लैट में जलने की बू आने लगी और धुआं निकलता हुआ दिखा. यह देख कर पुलिस के हाथपांव फूल गए, क्योंकि फ्लैट के अंदर नीरू अपने बेटे के साथ मौजूद थी.  पुलिस ने दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया.

किसी तरह 2 दरवाजे तोड़ने के बाद पुलिस अंदर पहुंची तो वहां आग लगी थी, धुआं फैला था. आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोगों ने अपने यहां से पानी ला कर आग बुझाई.  धुआं छटा तो नीरू और उस के 13 वर्षीय बेटे की तलाश शुरू की गई. दोनों कहीं नहीं दिखे तो बाथरूम का दरवाजा तोड़ा गया. मांबेटे वहीं मिले, लेकिन बाथरूम में काफी मात्रा में खून फैला हुआ था, वह खून उन की कलाई से बह रहा था. नीरू ने अपनी और बेटे की जान लेने की गरज से नस काट ली थी.

पुलिस ने तुरंत दोनों को एक निजी अस्पताल पहुंचाया. फलस्वरूप उन की जान बच गई. चूंकि नीरू सास की हत्या की अभियुक्त थी, इसलिए पुलिस उसे थाने ले आई. कत्ल के अलावा पुलिस ने उस पर पुलिस के काम में बाधा डालने, आत्महत्या का प्रयास करने तथा बेटे की नस काट कर हत्या का प्रयास करने की धाराएं 309, 353, 352, 307 भी जोड़ दीं.

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने नीरू को अदालत पर पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अगले दिन दीपक को भी गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने भी हत्या की बात कुबूल कर ली. उसे भी न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. दूसरी ओर दीपक के परिजनों का कहना है कि दीपक बेकुसूर है. उस का मीरा और नीरू से कोई लेनादेना नहीं था. उसे जबरदस्ती फंसा कर जेल भेजा गया है.

—कथा पुलिस सूत्रों, मीडिया रिपोर्टों पर आधारित

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़

एक जवान औरत की नौटंकी – भाग 2

चूंकि नीरू का पति फिर से जेल चला गया था, इसलिए उस ने गौरव से फिर मिलना शुरू का दिया. यह खबर राजा को जेल में मिली तो वह सुन कर तिलमिला उठा. 6 फरवरी, 2014 की रात 10 बजे गौरव अपने घर पर ही था. उसी समय उस के पास किसी का फोन आया कि केबिल खराब है, आ कर देख लो. फोन आने के फौरन बाद गौरव बाइक ले कर निकल पड़ा. वह अभी सेंटर पार्क फजलगंज के पास पहुंचा था कि उसे कुछ लड़कों ने घेर लिया.

इस से पहले कि गौरव कुछ समझ पाता, उन लड़कों ने उस पर लातघूंसों और चाकू से हमला कर दिया. उन के पास तमंचे भी थे. कुछ लोगों ने यह नजारा देखा, लेकिन उन लोगों के हथियारों को देख कर किसी ने पास जाने की हिम्मत नहीं की. उसी दौरान किसी व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचना दे दी कि सेंटर पार्क में एक युवक को कुछ लोग बुरी तरह मार रहे हैं.

सूचना पा कर फजलगंज पुलिस मौके पर पहुंची तो हमलावर फरार हो गए. वहां एक युवक की लहूलुहान लाश पड़ी थी. पुलिस उसे हैलट अस्पताल ले गई. लेकिन तब तक वह मर चुका था. पुलिस ने जब तलाशी ली तो जेब में एक आइडेंटी कार्ड मिला. जिस में गौरव कपूर नाम लिखा था. आईडी कार्ड पर लगी फोटो मरने वाले युवक के चेहरे से मेल खा रही थी, इसलिए पुलिस को लगा कि मरने वाले का नाम गौरव कपूर ही है.

पुलिस ने आइडेंटिटी कार्ड में लिखे फोन नंबर पर काल किया तो पता चला कि वह फोन नंबर गौरव के घर का है. पुलिस ने उस के घर वालों को इस हादसे की सूचना दे दी. घर के लोग तत्काल अस्पताल आ गए. उस के घर वालों को सांत्वना देने के बाद थानाप्रभारी अनिल कुमार शाही ने मृतक के पिता राजेश कपूर से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन के बेटे की रंजिश राजा यादव से थी.

पिछले साल भी राजा ने गौरव पर जानलेवा हमला किया था. राजा को शक है कि उस की पत्नी नीरू के अवैध संबंध उस के बेटे से थे. राजा ने खुद या फिर अपने गुर्गों से उन के बेटे की हत्या कराई है. अभी पिछले महीने भी खोया मंडी में उस के गुर्गों ने गौरव पर हमला किया था, जिस की सूचना थाने में दर्ज कराई गई थी.

9 फरवरी, 2014 को गौरव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उस की लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि गौरव की बाईं कनपटी पर गोली मारी गई थी. वह गोली दाईं आंख के नीचे से निकल गई थी. उस की नाक की हड्डियां भी टूटी मिलीं थीं. उस के शरीर पर धार और नोंकदार हथियार के कुल 10 घाव मिले.

एक गहरा वार दिल तक गया था, जबकि दूसरे वार से किडनी को क्षति पहुंची थी. इस के अलावा उस के चेहरे, हिप और छाती पर भी धारदार हथियारों के कई घाव मिले. डाक्टर ने उस की मौत का कारण अधिक खून बह जाना माना था.  राजेश कपूर की तहरीर पर पुलिस ने राजा यादव के अलावा रानी गंज निवासी अभिलाष द्विवेदी और 4 अन्य लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने तहकीकात की तो पता चला कि राजा यादव पहले से ही जेल में है. थानाप्रभारी अनिल कुमार शाही ने मुखबिर व सर्विलांस के जरिए अभिलाष और अमित को दबोच लिया. पूछताछ में दोनों ने बताया कि राजा यादव को शक था कि गौरव कपूर के उस की पत्नी नीरू यादव से नाजायज संबंध हैं. इसी वजह से उस ने गौरव को मारने की सुपारी उन्हें दी थी.

फजलगंज पुलिस अभी इस मामले की जांच कर रही थी कि किसी ने 12 फरवरी, 2014 को नजीराबाद थाना क्षेत्र में शिवधाम अपार्टमेंट में रह रही राजा यादव की बूढ़ी मां मीरा यादव की दिनदहाड़े बेरहमी से हत्या कर दी. पुलिस को यह खबर मृतका की बहू नीरू यादव ने दी.

खबर पा कर नजीराबाद थानाप्रभारी सैय्यद मोहम्मद अब्बास अपने साथ सबइंसपेक्टर राजबहादुर सिंह, हरीशंकर मिश्रा, राजेश कुमार, कांस्टेबल नागेश कुमार, धर्मेश कुमार, श्यामा देवी व प्रीति शाक्य को ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. पुलिस ने देखा कि सोफे पर एक बूढ़ी औरत खून से लथपथ पड़ी थी. मृतका 60 वर्षीया मीरा यादव थी. उस की सांस चल रही थी. आननफानन में फोन कर के एंबुलेंस बुला कर उसे हैलट अस्पताल पहुंचाया गया. डाक्टरों ने उस का तुरंत इलाज शुरू कर दिया. लेकिन वह बोलने की स्थिति में नहीं थीं. देर रात को उस ने दम तोड़ दिया.

पुलिस ने नीरू यादव से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की ननद रीता नर्सिंगहोम में अपनी ड्यूटी पर गई थी. जबकि वह बाजार गई हुई थी. देर शाम जब वह बाजार से लौटी तो सास को बुरी तरह घायल पाया. सास को उस हालत में देख कर वह घबरा गई और उस ने यह सूचना पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी सैयद मोहम्मद अब्बास ने जब उस से पूछा कि उस समय तुम्हारा बेटा कहां था तो नीरू ने बताया कि वह मोबाइल रिचार्ज कराने गया था.

थानाप्रभारी को इस बात पर हैरानी हुई कि घर में खतरनाक कुत्ता होते हुए भी कोई अनजान व्यक्ति वहां कैसे आ गया. जबकि कुत्ता खुला हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि हत्या में जरूर किसी परिचित का हाथ है. क्षेत्राधिकारी नजीराबाद ममता कुरील भी मौके पर पहुंच गईं. उन्होंने नीरू से बात की तो उन्हें भी लगा कि वारदात में जरूर किसी जानने वाले का हाथ है.

पुलिस दोनों हत्याओं की गुत्थी सुलझाने में लगी थी कि 12 फरवरी की देर रात मीरा की बेटी रीता यादव ने पुलिस को लिखित तहरीर दी, जिस में लिखा था कि उस की मां की हत्या उस की भाभी नीरू ने गौरव कपूर के चचेरे भाई दीपक कपूर के साथ मिल कर की है. रीता ने पुलिस को बताया कि रात में जब वह ड्यूटी से घर लौटी तब नीरू और दीपक घर की सीढि़यों से उतर रहे थे. वह दीपक को अपने घर में देख कर चौंकी भी. बाद में जब वह घर के अंदर पहुंची तो मां खून से लथपथ पड़ी थी.

मां की मजबूरी

पंजाब के जिला तरनतारन के थाना सरहाली का एक गांव है शेरों. इसी गांव की रहने वाली मनजीत  कौर के पति बलवंत सिंह की मृत्यु बहुत पहले हो गई थी. बलवंत सिंह की गांव में खेती की थोड़ी सी जमीन और रहने का अपना मकान था. कुल इतनी जायदाद मनजीत कौर को पति से मिली थी. इस के अलावा वह उसे 2 बेटे और 1 बेटी भी दे गया था.

जब बलवंत सिंह की मौत हुई थी, मनजीत कौर के तीनों बच्चे काफी छोटे थे. पति की मौत के बाद बड़ी मुश्किलों से उस ने तीनों बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया. उस का भविष्य और उम्मीदें इन्हीं बच्चों पर टिकी थीं. उस ने सोचा था कि बच्चे बड़े हो कर उस का सहारा बनेंगे. बच्चे किसी लायक हो जाएंगे तो उस के दिन बदल जाएंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

क्योंकि एक चीज चुपके से खलनायक की तरह मनजीत कौर के घर में दाखिल हो गई, जो उस के घरपरिवार को तबाही के रास्ते पर ले गई. वह चीज कुछ और नहीं, नशा था, हेरोइन, स्मैक और कैप्सूलों का. यह घातक नशा वैसे भी पंजाब के गांवों में कहर बरपा रहा है. मनजीत कौर के दोनों बेटे बड़े हुए तो उन्हें मेहनत और मशक्कत कर के कमाई करने का नशा लगने के बजाय घर को बरबाद करने वाला नशा लग गया.

इसी नशे की वजह से मनजीत कौर का एक बेटा बेवक्त काल के गाल में समा गया. बेटे की बेवक्त मौत ने मनजीत कौर को तोड़ कर रख दिया. एक जवान बेटे की बेवक्त मौत से डरी और घबराई मनजीत कौर को दूसरे बेटे निरमैल सिंह की चिंता सताने लगी. क्योंकि निरमैल सिंह भी नशे का आदी था. चिंतित मनजीत कौर को अचानक खयाल आया कि अगर वह बेटे की शादी कर दे तो शायद उस की नशा करने की आदत छूट जाए.

यह खयाल आते ही मनजीत कौर बेटे की शादी के लिए दौड़धूप करने लगी. उस की दौड़धूप का नतीजा यह निकला कि नशेड़ी निरमैल सिंह की गुरप्रीत कौर से शादी हो गई. शादी के बाद निरमैल सिंह में कुछ सुधार नजर आया तो मनजीत कौर को लगा कि धीरेधीरे बेटा सुधर जाएगा. वह नशे के बजाय अपनी शादीशुदा जिंदगी का आनंद लेता दिखाई दिया.

यह देख कर मनजीत कौर ने काफी राहत महसूस की. मगर इस राहत की उम्र बहुत लंबी नहीं थी. शादी के कुछ दिनों बाद तक बीवी के जिस्म की गर्मी में डूबे रहने के बाद निरमैल सिंह फिर से नशे की ओर मुड़ा तो पहले से भी ज्यादा शिद्दत के साथ. इस से घर में जबरदस्त कलहक्लेश रहने लगा.

मनजीत कौर की जान आफत में पड़ गई. पहले तो वह अकेली किसी तरह नशेड़ी बेटे से निपट लेती थी, लेकिन घर में बहू के आने से वह कुछ कमजोर सी पड़ गई थी. घर का खर्चा वैसे ही बढ़ गया था, इस के बावजूद अपनी जिम्मेदारियों से लापरवाह निरमैल सिंह जो भी कमाता था, अपने नशे में उड़ा देता था. इस से घर में अशांति और कलह का माहौल बनना स्वाभाविक था. घर के लगातार बिगड़ते माहौल से परेशान मनजीत कौर ने किसी तरह अपनी एकलौती बेटी राज कौर के हाथ पीले कर के उसे विदा कर दिया.

राज कौर की शादी से घर के हालात सुधरने के बजाय और खराब हो गए. उसी बीच नशेड़ी निरमैल एकएक कर के 2 बच्चों का बाप बन गया. बच्चों की जिम्मेदारी कंधों पर आने के बाद भी निरमैल में कोई बदलाव नहीं आया. उस की नशा करने की आदत वैसी की वैसी ही बनी रही. ऐसी हालत में घर का खर्चा कैसे चल सकता था?

घर को आर्थिक तंगी से उबारने के लिए चिंतित मनजीत कौर ने घर के एक हिस्से को रविंद्र सिंह को किराए दे दिया.

मां का यह कदम नशेड़ी निरमैल को बिलकुल पसंद नहीं आया. नाराज हो कर उस ने घर में जबरदस्त क्लेश किया. लेकिन जब मनजीत कौर ने किराएदार रखने का अपना फैसला नहीं बदला तो वह खामोश हो गया. अब उस की गिद्धदृष्टि किराए की रकम पर जम गई. किराए से आने वाले पैसे जहां मनजीत कौर का सहारा बन गए थे, वहीं यह बात निरमैल को बरदाश्त नहीं हो रही थी.

वह किराएदार रविंद्र सिंह से भी इस बात को ले कर झगड़ा करने लगा. वह किराया खुद लेना चाहता था, जबकि रविंद्र किराया मनजीत कौर को देता था. निरमैल की नशे की लत से वाकिफ रविंद्र सिंह किसी भी कीमत पर किराया उसे देने को तैयार नहीं था.

दूसरी ओर नशे में डूबे रहने वाले निरमैल का दिमाग इस तरह खराब रहने लगा था कि वह रिश्तों की मर्यादा तक भूल गया था. वह खीझ और हताशा में किराएदार रविंद्र सिंह और अपनी मां को ले कर उन के चरित्र पर अंगुली उठाने लगा था. मनजीत कौर के लिए यह जीतेजी मरने वाली बात थी. वह एक विधवा औरत थी और उस की उम्र 60 साल के ऊपर हो गई थी. अब इस उम्र में अगर मनजीत कौर के चरित्र पर उस की कोख से जन्मा बेटा ही अंगुली उठाए तो उस के लिए मरने वाली बात थी.

बेटे द्वारा चरित्र पर अंगुली उठाने से मनजीत कौर इतनी आहत हुई कि उस ने गुस्से में कहा, ‘‘दुनिया से डर बेटा, इतना भी हद से मत गुजर कि एक दिन मैं यह भी भूल जाऊं कि मैं तेरी मां हूं.’’

मनजीत कौर की इस चेतावनी को निरमैल समझ नहीं सका. नशे ने निरमैल को पूरी तरह नकारा बना दिया था. उस ने कामधंधा करना लगभग बंद कर दिया था. उसे नशे की तलब लगती तो उस की हालत पागलों जैसी हो जाती. वह नशे के लिए मां और पत्नी से पैसे मांगता. पैसे न मिलते तो वह उन दोनों से झगड़ा और मारपीट करता. यही नहीं, अंत में वह घर का कोई कीमती सामान उठा ले जाता और बाजार में बेच कर नशे का सामान खरीद लेता. इस हालत में मनजीत कौर के दिल से बेटे के लिए बददुआएं ही निकलतीं.

निरमैल के साथ रहना मनजीत कौर की मजबूरी थी. वह न तो अपना घर छोड़ सकती थी और न अपने नशेड़ी बेटे को. उस से घर से निकलने के लिए जरूर कहती थी. जबकि निरमैल से 2 बच्चों की मां बन चुकी गुरप्रीत कौर के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी. नशेड़ी और निखट्टू पति के दुर्व्यवहार और मारपीट से परेशान हो कर गुरप्रीत कौर एक दिन दोनों बच्चों को ले कर मायके चली गई.

मनजीत कौर ने बहू को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. उस ने कहा, ‘‘आप का बेटा इंसान नहीं, जानवर है. मुझे अपने बच्चों के भविष्य को देखना है. इस नरक में एक जानवर की बीवी बन कर रहने से कहीं अच्छा होगा कि मैं खुद को बेवा मान कर मायके में ही रहूं.’’

गुरप्रीत कौर चली गई. उस के बाद घर में रह गई मनजीत कौर, निरमैल सिंह और किराएदार रविंद्र सिंह. पत्नी और बच्चों के घर छोड़ कर चले जाने की हताशा में नशेड़ी निरमैल सिंह हिंसक हो उठा. अब उस के निशाने पर सीधे मनजीत कौर और रविंद्र सिंह थे.

मनजीत कौर के चरित्र पर एक बार फिर अंगुली उठा कर निरमैल सिंह किराएदार रविंद्र सिंह को घर से निकालने के लिए कहने लगा. इस पर मनजीत कौर ने बेटे को खरीखोटी सुनाते हुए कहा, ‘‘तुझ जैसे निखट्टू और ऐबी को जोरू तो पहले ही छोड़ कर चली गई. अब किराएदार को भी निकाल दिया तो गुजारा कैसे होगा? 2 वक्त की रूखीसूखी रोटी से भी जाएंगे.’’

‘‘अगर किरादार को नहीं निकालना तो जमीन बेच दो.’’ निरमैल ने कहा.

निरमैल की बात सुन कर मनजीत कौर के शरीर में जैसे आग लग गई. उस ने कहा, ‘‘पुरखों की मेहनत से बनाई गई जमीन तेरे नशे के लिए बेच दूं? ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं होगा. अब कभी मुझ से जमीन के बारे में बात मत करना. मैं तुझे बेच दूंगी, पर जमीन नहीं बेचूंगी’’

‘‘लगता है, यह जमीन अपने किराएदार यार के लिए रखेगी.’’ निरमैल ने कहा.

बेटे के मुंह से निकले इन शब्दों से मां का कलेजा छलनी हो गया. वह एक तरह से इंत्तहा थी. जिस हृदय में बेटे के लिए लबालब ममता होती है, मां के उसी हृदय में भयानक नफरत पैदा हो गई. ऐसी भयानक नफरत, जिस के चलते मां वह सब सोचने को मजबूर हो गई, शायद ही कोई विरली जन्म देने वाली मां सोचती है. बेटे के प्रति नफरत से भरी मनजीत कौर के मन में जो सोच पैदा हुई, उसे परिपक्व हो कर इरादे में बदलने में थोड़ा समय लगा. इस बीच वह खुद से ही लड़ती रही. वह जो कुछ करने की सोच रही थी, एक मां के लिए वैसा करना असान नहीं था.

दूसरी ओर मां के अंदर चल रहे अंतर्द्वंद्व से अनजान निरमैल उसे सताने से बाज नहीं आ रहा था. मां पर हाथ उठाना और उसे गालियां देना उस के लिए आम बात हो गई थी. घर की ऐसी कोई चीज नहीं बची थी, जिसे निरमैल ने अपनी नशे की भट्ठी में स्वाहा नहीं कर दिया था.

निरमैल की कोशिश अब यही थी कि किसी भी तरह मनजीत कौर गांव में मौजूद पुरखों की जमीन बेच दे. ऐसा करने के लिए वह उसे मजबूर भी कर रहा था. इस के लिए वह कुछ भी करने को अमादा दिखता था. मनजीत कौर को लगने लगा कि जमीन की खातिर किसी दिन नशेड़ी बेटा उस का गला घोंट देगा.

ऐसा खयाल आते ही वह सोच उस पर हावी होने लगी, जिस से वह पिछले काफी दिनों से लड़ रही थी. रिश्ते का मोह टूटते ही मनजीत कौर का दिमाग एक अपराधी की तरह काम करने लगा. जब उस के दिमाग में योजना का एक अस्पष्ट खाका तैयार हो गया तो उस ने अपनी उस योजना में शामिल करने के लिए बेटी राज कौर और दामाद किशन सिंह को अपने घर बुला लिया.

अपने भयानक इरादे से बेटी और दामाद को अवगत करा कर मनजीत कौर ने कहा, ‘‘मेरी कोख ही मेरी सब से बड़ी दुश्मन बन गई है. इस ने न केवल मुझे सताया है, बल्कि मेरी ममता को भी जलील किया है. नशे ने इसे इंसान से हैवान बना दिया है. लगता है नशे की ही वजह से यह किसी दिन मेरी जान लेने से भी परहेज नहीं करेगा.

लेकिन मैं इस के हाथों से मरना नहीं चाहती. जबकि मैं इस की नौबत ही नहीं आने देना चाहती. ऐसे बेटे के होने और न होने से क्या फर्क पड़ता है. मैं ने तुम लोगों को इसलिए  बुलाया है कि अगर मेरा इंसान से हैवान बना बेटा नहीं रहेगा तो मेरे बाद मेरी जमीन और घर के मालिक तुम लोग होगे. अब तुम लोगों को इस बात पर विचार करना है कि मैं जो करने जा रही हूं, उस में मेरा साथ देना है या नहीं?’’

मनजीत कौर क्या चाहती है, यह बेटी और दामाद को समझते देर नहीं लगी. उन्होंने मनजीत कौर का साथ देने की हामी भर दी. बेटे को खत्म करने की अपनी योजना में मनजीत कौर ने बेटी और दामाद को ही नहीं, किराएदार रविंद्र सिंह को भी शामिल कर लिया. इस के बाद में निरमैल को खत्म करने की पूरी योजना बन गई.

हमेशा की तरह 5 सितंबर की रात निरमैल सिंह नशे में डूबा घर आया और रोज की तरह मां से झगड़ा करने के घर के बाहर खुले आंगन में बेसुध सो गया. जब मनजीत कौर को यकीन हो गया कि निरमैल सिंह गहरी नींद सो गया है तो उस ने बड़ी ही खामोशी से बेटी राज कौर, दामाद किशन सिंह और किराएदार रविंद्र सिंह की मदद से गला घोंट कर अपने ही बेटे की हत्या कर दी. अपने इस बेटे से वह इस तरह परेशान और दुखी थी कि उसे मारते हुए उस के हाथ बिलकुल नहीं कांपे.

निरमैल की हत्या कर सब ने आंगन की कच्ची जमीन में गड्ढा खोद कर उसी में उस की लाश को गाड़ दिया.

जब कई दिनों तक निरमैल सिंह दिखाई नहीं दिया तो गांव वाले उस के बारे में पूछने लगे. इस तरह निरमैल सिंह का एकाएक गायब हो जाना गांव में चर्चा का विषय बन गया. जितने मुंह उतनी बातें होने लगीं. कोई कहता था कि निरमैल मां से झगड़ा कर के घर छोड़ चला गया है तो कोई कहता कि वह कामधंधे के सिलसिले में कहीं बाहर गया है. लेकिन कुछ लोग दबी जुबान से कुछ दूसरा ही कह रहे थे.

जब निरमैल के बारे में कोई सही बात सामने नहीं आई तो गांव के ही किसी मुखबिर ने थाना सरहाली पुलिस को खबर कर दी कि निरमैल का कत्ल हो चुका है और उस के कत्ल में किसी बाहरी व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस के घर वालों का ही हाथ है.

मुखबिर की इस खबर पर थाना सरहाली के थानाप्रभारी सर्वजीत सिंह मामले की तफ्तीश में जुट गए. तफ्तीश की शुरुआत में ही उन्हें लगा कि मुखबिर की खबर में दम है. उन्होंने शक के आधार पर 7 सितंबर को मनजीत कौर को हिरासत में ले लिया और थाने ला कर पूछताछ शुरू कर दी.

पहले तो मनजीत कौर झूठ बोल कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सी सख्ती की तो उस ने अपने बेटे के कत्ल की बात स्वीकार कर ली. उस ने कहा, ‘‘हां, मैं ने ही अपने बेटे को मारा है और मुझे इस का जरा भी अफसोस नहीं है. क्या करती, नशे ने उसे आदमी से हैवान बना दिया था. उस का मर जाना ही बेहतर था.’’

इस के बाद मनजीत कौर ने निरमैल की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. पूरी कहानी सुनने के बाद पुलिस ने मजिस्ट्रेट सुखदेव सिंह की मौजूदगी में आंगन की खुदाई कर के निरमैल सिंह की लाश बरामद कर के पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. हत्या में सहयोग करने वाली राज कौर, उस के पति किशन सिंह, किराएदार रविंद्र सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने सभी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 5

अंत में वही हुआ, जिस का डर था. अचानक दोपहर को सुरेंद्र के मोबाइल पर अहमदाबाद के एक पुलिस स्टेशन से फोन आया. फोन करने वाले इंसपेक्टर ने उसे धमकाते हुए कहा था कि उस का भाई यहां की एक लड़की को भगा ले गया है. उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज है. वह सब कुछ सचसच बता दे, वरना मुसीबत में पड़ सकता है.

सुरेंद्र ने कहा था कि उस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाले आज भी उसे नहीं पहचानते. वह उन से कभी मिला ही नहीं है. यह उस के छोटे भाई की ससुराल वालों की किसी रंजिश का मामला है, जिस में उस का भाई मोहरा बना है. अगर लड़की के मांबाप के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की जाए तो सारी हकीकत पता चल जाएगी.

अब तक बात और भी बिगड़ चुकी थी. रिश्तेदारी दुश्मनी में बदलने लगी थी. सुरेंद्र के घर वालों पर चारों ओर से दबाव पड़ रहा था. अच्छा था कि सुकृति साथ थी, वरना पुलिस कब का उसे अंदर कर चुकी होती.

सुरेंद्र को अपने वकील से जो पता चला, वह हैरान करने वाला था. अहमदाबाद से जो फोन सुरेंद्र को किया गया था, वह किसी पुलिस थाने से नहीं था. क्योंकि अहमदाबाद के किसी भी थाने में किसी लड़की की भगाने की कोई रिपोर्ट अभी तक दर्ज नहीं थी. यह सुरेंद्र और उस के घर वालों को डरानेधमकाने के लिए किया गया था. जिस से वह सीधेसीधे सौदेबाजी के लिए मजबूर हो जाए.

नाटकीय ढंग से एक दिन अचानक मनु और मिंटू अहमदाबाद में रश्मि के सामने प्रकट हो गए. इस के बाद रश्मि के फोन लगातार सुरेंद्र के पास आने लगे. जल्दी आओ, वरना मामला पुलिस में गया तो फिर कुछ नहीं हो सकेगा. सुरेंद्र को वकीलों ने मना किया कि कानूनी तौर पर उस का जाना ठीक नहीं है. बात उस पर भी थोपी जा सकती है.

लेकिन सुरेंद्र ने रिस्क लेना ही ज्यादा उचित समझा. फ्लाइट पकड़ कर वह मातापिता को साथ ले कर अहमदाबाद जा पहुंचा.

रश्मि ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, लेकिन थी बहुत बड़ी खिलाड़ी. उस ने बड़े प्रोफेशनली ढंग से बात को टैकल किया. एक तरफ वह केस दर्ज कराने की बात कर के डरा रही थी तो दूसरी ओर मामला रफादफा करने का लालच भी दे रही थी. बात वाकई गंभीर थी. मनु सिर झुकाए मौन खड़ा था.

कुल मिला कर बात लेनदेन पर आ गई. आंटी की ओर से एक मुश्त 20 लाख रुपए की मांग की गई. मांग भी इस ढंग से की गई कि कम ज्यादा करने की कोई गुंजाइश नहीं थी. मनु जैसे मन ही मन तौबा करते हुए अपनी बातों से संकेत कर रहा था कि इस बार बचा लो, भविष्य में इन लोगों से कोई संपर्क नहीं रखेगा. मां और सुरेंद्र ने अकेले में मनु से बात की. मनु ने सारी घटना संक्षेप में बता दी. पहले भी वे लोग उस से काफी पैसे इसी तरह ऐंठ चुके थे.

घर से भागने की योजना रश्मि की थी. दरअसल उसी ने सारी व्यवस्था की थी. इस बीच फोन पर वह उन्हें वापस न लौटने की बात कहती रही. उस की योजना थी कि वह अपनी बेटी की शादी मनु से कर देगी. तलाक की भी उसे कोई जरूरत नहीं पड़ेगी. लेकिन सुकृति ने धैर्य से काम लिया, इसलिए उस की योजना फेल हो गई. उस ने सोचा था कि नाराज हो कर सुकृति मांबाप के घर चली जाएगी. लेकिन सुकृति ने ऐसा नहीं किया, यहीं बात बिगड़ गई.

मनु कब तक घर से भागता फिरता. इसलिए रश्मि के जाल से मुक्त होने के लिए एक दिन वह वापस आ गया. रश्मि एक तीर से 2 शिकार करना चाहती थी. एक तरफ ऐसा कर के वह मिंटू को मनु के साथ ब्याह देना चाहती थी. क्योंकि उसे पता था कि मनु का परिवार काफी समृद्ध है. दूसरे इस घटना से उस के जेठ का घर भी तबाह हो जाने वाला था. अनजाने में वह अपनी 4 बीघा जमीन की कीमत वसूल कर सकती थी. अगर यह सब पूरे न भी हुए तो अंत में होने वाले समझौते से उसे ही लाभ होने वाला था.

मोलभाव के बाद अंत में 15 लाख रुपए पर समझौता हो गया. सब वापस लौट गए. लेकिन इस घटना ने सभी को ऐसा सबक सिखा दिया, जिस की कल्पना करना असंभव था. दूसरी ओर पैसों के लिए खून के रिश्तों को तारतार कर दिया था.

एक जवान औरत की नौटंकी – भाग 1

कानपुर के थाना नजीराबाद के लाजपत नगर का रहने वाला राजा यादव अपने इलाके का माना हुआ बदमाश था. उस के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे और थाने में उस की हिस्ट्रीशीट खुली हुई थी. इस वजह से वह या तो अकसर घर से फरार रहता था या फिर जेल में. ऐसे बदमाश जमाने के सामने खुद को भले ही दबंग समझते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि जब वे जेल से बाहर होते हैं तो उन के घर वालों का अमन चैन गायब रहता है. आए दिन उन्हें पुलिस से अपमानित होना पड़ता है.

राजा यादव के परिवार में पत्नी नीरू यादव और 3 वर्षीय बेटे कशिश के अलावा मां मीरा यादव थीं. उस के पिता केदारनाथ की कुछ दिनों पहले मौत हो चुकी थी. पति के अकसर जेल में बंद होने की वजह से उस की पत्नी नीरू को आर्थिक परेशानी उठानी पड़ रही थी. वह चूंकि पढ़ीलिखी थी, इसलिए एक जीवन बीमा कंपनी में एजेंट बन गई. इस काम में वह जीजान से मेहनत करने लगी तो उसे ठीकठाक आमदनी होने लगी.

नीरू जो काम करती थी वह ऐसा था, जिस की वजह से उसे दिन में अकसर बाहर रहना पड़ता था. उस की सास मीरा यादव को यह पसंद नहीं था कि बहू घर से बाहर घूमे. लेकिन वह यह भी समझती थी कि बहू के कमाने से ही घर का खर्च चल रहा है, इसलिए वह चाहते हुए भी नीरू को घर से बाहर घूमने से मना नहीं कर पाती थी.

मीरा यादव की 2 बेटियां थीं, जिन में से एक नवाबगंज, कानपुर में ब्याही थी, जबकि छोटी रीता यादव की शादी देहरादून में हुई थी. लेकिन पति से विवाद के चलते वह पिछले एक साल से मायके में रह रही थी. किसी पर बोझ न बने, इसलिए वह एक प्राइवेट नर्सिंगहोम में नौकरी करती थी.

कानपुर के ही थाना फजलगंज के अंतर्गत दर्शनपुरवा के रहने वाले राजेश कपूर के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे गौरव उर्फ गगन कपूर और प्रतीक कपूर थे. प्रतीक 8वीं में पढ़ता था जबकि गौरव बीए सेकेंड ईयर में. गौरव पढ़ाई के साथसाथ अपने चाचा के काम में हाथ बंटाता था. उस के चाचा केबिल औपरेटर थे. पूरे इलाके में उन के ही केबिल की सर्विस थी. गौरव कंप्लेंट डील करता था. कंज्यूमर की शिकायत आने पर वही शिकायत करने वाले के घर जा कर केबिल वगैरह चेक कर के शिकायत का निपटारा करता था.

पिछले साल जनवरी की बात है. नीरू के टीवी पर कोई भी चैनल नहीं आ रहा था. उस ने गौरव कपूर को फोन कर के शिकायत की कि उस के यहां केबिल नहीं आ रहा है. कंप्लेंट मिलने पर गौरव नीरू यादव के घर गया. उस समय नीरू की सास मीरा यादव कहीं गई हुई थीं और बेटा कशिश स्कूल में था. घर पर नीरू अकेली थी. 34 साल की नीरू भले ही एक बच्चे की मां थी, लेकिन अभी भी वह जवान थी. पति के अकसर घर से बाहर रहने की वजह से उस की शारीरिक भूख पूरी नहीं हो पाती थी.

गौरव कपूर गोराचिट्टा औसत कदकाठी का बलिष्ठ युवक था. वह पढ़ालिखा भी था. उसे देख कर उस की कामना जागी तो उस ने गौरव को अपने मन में बसा लिया. गौरव ने जब केबिल ठीक कर दिया तो नीरू ने उस की खूब खातिर की और प्यार भरी बातें भी. चायपानी के बाद गौरव जब वहां से जाने लगा तो नीरू बोली, ‘‘अब कब आओगे?’’

‘‘जब भी आप के यहां केबिल न आने की शिकायत मिलेगी, चला आऊंगा. हम तो आप के नौकर हैं.’’

‘‘मैं तुम्हें नौकर नहीं समझती, यह तो तुम्हारा काम है. तुम मुझे यह बताओ कि क्या केबिल ठीक करने ही आ सकते हो या ऐसे भी? अरे, मैं भी पंजाबन कुड़ी हूं. राजा से लवमैरिज की तो यादव बन गई. कम से कम अपना समझ कर ही आ जाया करो.’’ नीरू ने कहा तो गौरव बोला, ‘‘ठीक है, आप जब भी बुलाएंगी, मैं चला आऊंगा.’’

नीरू गौरव से जिस तरह अपनेपन से बातें कर रही थी, उस से उस ने यही अनुमान लगाया कि शायद वह उस का बीमा करना चाहती है. 2 दिनों बाद ही नीरू ने गौरव को अपने यहां बुलाया और बीमा की बातों के बजाय और बहुत सारी बातें कीं. इस के बाद नीरू जब भी अकेली होती, उसे बुला कर प्यार भरी बातें करती. इस से गौरव समझ गया कि नीरू का इरादा कुछ और ही है. फिर क्या था, गौरव ने भी खुद को नीरू के रंग में रंगना शुरू कर दिया. यानी उस का झुकाव भी नीरू की तरफ हो गया.

इस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. नीरू गौरव को कभी रेस्टोरेंट में ले जाती तो कभी उसे अपने घर बुला कर उस के साथ घंटों तक बातें करती. मीरा यादव को बहू की यह आदत अच्छी नहीं लगती थी. उस ने नीरू को कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने गौरव से मिलना नहीं छोड़ा. इस पर मीरा यादव बहू पर बदचलनी का लांछन लगाने लगी. लेकिन नीरू ने सास की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, वह गौरव से लगातार मिलती रही.

धीरेधीरे दोनों बेहद करीब आ गए. इस बीच मीरा ने बहू की बातें जेल में बंद अपने बेटे राजा यादव तक पहुंचा दी थीं. पत्नी की बदचलनी की बात सुन कर राजा को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन जेल में बंद होने की वजह से वह कड़वा घूंट पी कर रह गया.

कुछ दिनों बाद जब राजा जेल से जमानत पर बाहर आया तो सब से पहले उस ने पत्नी की खबर ली. फिर वह गौरव की तलाश में लग गया. अक्तूबर, 2013 में एक दिन लाजपत नगर में उसे गौरव दिख गया तो राजा ने उसे जम कर पीटा और गोली मार दी. गोली लगने से गौरव बुरी तरह घायल हो गया. उसे उस के घर वालों ने अस्पताल में भरती कराया. गौरव के बयान के आधार पर थाना नजीराबाद में राजा यादव के खिलाफ जान से मारने की कोशिश की रिपोर्ट दर्ज हुई. पुलिस ने राजा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. अस्पताल में कुछ दिनों इलाज कराने के बाद गौरव कपूर ठीक हो कर घर आ गया.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 3

दूसरी ओर शीलेश भी कम परेशान नहीं था. गांव के कुछ लोगों ने भी उस से कहा था कि जवान बीवी को इस तरह घर में छोड़ना ठीक नहीं है. उन लोगों के कहने का मतलब कुछ और था, जबकि शीलेश ने इस का मतलब वही लगाया, जो ममता ने उस के दिमाग में भरा था.

रुकुमपाल उस से बहुत कुछ कहना चाहता था, जबकि वह उस की कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं था. तनाव हद से ज्यादा हो गया तो शीलेश ने ठेके पर जा कर जम कर शराब पी. गिरतेपड़ते किसी तरह घर पहुंचा तो रुकुमपाल ने उसे संभालने की कोशिश की. तब वह बाप को धक्का दे कर गालियां देने लगा.

ममता ने सुना तो बहुत खुश हुई. वह यही तो चाहती थी. वह बापबेटे के बीच दीवार खड़ी करने में कामयाब हो गई थी. शीलेश चारपाई पर लुढ़का तो सुबह ही उठा. उठते ही उस ने कहा, ‘‘ममता, तुम अपना सारा सामान समेटो. हम दिल्ली चलेंगे.’’

ममता घबरा गई. उस का फेंका पासा उलटा पड़ रहा था. क्योंकि इस हालत में अगर वह दिल्ली चली गई तो फिर लौट नहीं सकती थी. हरीश दिल्ली जा नहीं सकता. तब वह उस से कैसे मिल सकती थी. अब वह इस सोच में डूब गई कि ऐसा क्या करे कि उसे दिल्ली भी न जाना पड़े और बुड्ढे से भी पिंड छूट जाए.

काफी सोचविचार कर उस ने तय किया कि वह दिल्ली जाने के बजाय इस कांटे को ही जड़ से निकलवा फेंकेगी. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें पता नहीं, मैं पेट से हूं. इस हालत में मैं दिल्ली नहीं जा सकती. अब तुम्हें सोचना है कि इस हालात में तुम मुझे अपने बाप से कैसे बचा सकते हो? कोई दूसरा होता तो वह ऐसे आदमी को खत्म कर देता, जो उस की पत्नी पर बुरी नजर रखता हो.’’

ममता ने यह चाल बहुत सोचसमझ कर चली थी. उस का सोचना था कि शीलेश अगर अपने बाप को मार देता है तो बाप की हत्या के आरोप में पति जेल चला जाएगा. उस के बाद वह पूरी तरह से आजाद हो जाएगी. फिर वह आराम से हरीश से मिल सकेगी.

इस के बाद अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए ममता ने त्रियाचरित्र फैला कर शीलेश के मन में बाप के प्रति ऐसा जहर भरा कि वह बाप का ऐसा दुश्मन बना कि उस की जान लेने को तैयार हो गया. उसे लगा कि ऐसे बाप को जीने का बिलकुल हक नहीं है, जो अपने बेटे की ही पत्नी पर गंदी नीयत रखता हो.

रुकुमपाल यह तो जान गया था कि पत्नी के कहने में आ कर बेटा उस के खिलाफ हो गया है. लेकिन उसे यह विश्वास नहीं था कि बेटा उस की जान भी ले सकता है. उस का सोचना था कि जब शीलेश को सच्चाई का पता चल जाएगा तो अपने आप सब ठीक हो जाएगा.

19 मार्च की शाम को शीलेश ने रुकुमपाल से खेतों से भूसा लाने को कहा. रुकुमपाल भूसा लाने के लिए खेतों की ओर चला तो शीलेश भी फावड़ा ले कर उस के पीछेपीछे वहां जा पहुंचा. उस के साथ ममता भी थी.

रुकुमपाल झुक कर भूसा निकालने लगा तो शीलेश ने पीछे से उस पर फावड़े से वार कर दिया. रुकुमपाल चीख कर गिर पड़ा. उस की चीख सुन कर आसपास के खेतों में काम कर रहे लोग उस की ओर दौड़े. वे रुकुमपाल के पास तक पहुंच पाते इस से पहले शीलेश ने बाप पर फावड़े से कई वार किए और भाग निकला. लेकिन गांव वालों ने उसे ही नहीं, ममता को भी उस के साथ भागते हुए देख लिया था.

गांव वालों ने घटना की सूचना कोतवाली देहात पुलिस को दी. सूचना पा कर कोतवाली प्रभारी पदम सिंह पुलिस बल के साथ गांव नगला समल पहुंच में रुकुमपाल के खेत पर गए. पहुंचते ही उन्होंने लाश को कब्जे में ले लिया. गांव वालों ने पूछताछ में बताया कि जब वे रुकुमपाल की चीख सुन कर उस की ओर दौड़े थे तो उन्हें मृतक का बेटा शीलेश और बहू ममता भागते ही दिखाई दिए थे.

पुलिस को लगा कि उन्हीं लोगों ने यह काम किया है, तभी भाग रहे थे अन्यथा बाप की चीख सुन कर वह बचाने दौड़ेगा, भागेगा नहीं. कोतवाली प्रभारी ने 2 सिपाहियों को घटनास्थल पर छोड़ा और खुद बाकी सिपाहियों को ले कर रुकुमपाल के घर जा पहुंचे.

शीलेश भागने की तैयारी कर रहा था. ममता भी उस के साथ थी. पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया. पुलिस ने मृतक की बेटी आशा को घटना की सूचना दी तो वह दादी रामरखी को साथ ले कर आ गई. रुकुमपाल की लाश देख कर रामरखी बेहोश हो गई तो आशा भी फूटफूट कर रोने लगी.

रामरखी को होश में लाया गया तो वह रोते हुए कहने लगी, ‘‘ममता ने ही अपने यार से मिलने के लिए मेरे बेटे को मरवाया है, क्योंकि मेरा बेटा उसे उस से मिलने से रोकता था.’’

जब आशा को पता चला कि शीलेश ने ही उस के पिता की हत्या की है तो उस का दुख और बढ़ गया. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद शीलेश और ममता को ले कर थाने आ गई.

थाने में शीलेश और ममता ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. इस के बाद ममता ने ससुर की हत्या करवाने के पीछे की अपने अवैध संबंधों की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर शीलेश ने अपना सिर पीट लिया.

लेकिन अब क्या हो सकता था. पत्नी के कहने में आ कर उस ने अपने बच्चों को तो अनाथ किया ही, उस बाप के खून से हाथ रंग लिए, जिस ने उसे बाप का ही नहीं, मां का भी प्यार दिया था. उस ने दादी के बुढ़ापे का सहारा छीनने के साथ भरापूरा परिवार बरबाद कर दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने शीलेश और ममता को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. रुकुमपाल का भी कैसा दुर्भाग्य था कि जिस बेटे से उस ने उम्मीद लगा रखी थी कि मरने पर उस का अंतिम संस्कार करेगा. उसी ने उसे मौत के घाट उतार दिया.