शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 2

पूछताछ के दौरान इलियास ने पुलिस को बताया कि नसीमा के सिर व पेट में दर्द रहता था. उस का दिल्ली के सरकारी अस्पताल से इलाज चल रहा था. 7 फरवरी को उस का अल्ट्रासाउंड होना था. उस ने फोन पर यह बात इलियास को बता कर अस्पताल जाने के लिए कहा था. इलियास ने उसे जाने को कह दिया और उस शाम खुद गांव आ गया.

उसे हैरानी तब हुई, जब नसीमा देर रात तक घर नहीं आई. इलियास के अनुसार उस ने नसीमा से संपर्क करने की बहुत कोशिशें की. लेकिन नसीमा का मोबाइल बंद था. अगली सुबह जब उसे नसीमा की हत्या की खबर मिली तो वह हतप्रभ रह गया.

‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी?’’ एन.पी. सिंह ने पूछा तो वह बोला, ‘‘नहीं साहब, मैं तो सीधासादा आदमी हूं. मेरा तो कभी किसी से झगड़ा तक नहीं हुआ. कमाना और खाना, बस इसी में जिंदगी बीत रही है. पता नहीं मेरे परिवार को किस मनहूस की नजर लग गई.’’

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि जब इलियास और नसीमा की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी तो फिर नसीमा को कोई क्यों मारेगा? साथ ही यह भी कि उस के बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? यह बात साफ थी कि हत्यारे नसीमा या उस के बच्चों को जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.

ऐसे में नसीमा का मोबाइल इस मामले के खुलासे में महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता था. इस बीच मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई थी. नसीमा की गरदन व माथे पर तो 3 घाव थे, जबकि बच्चों के भी गले काटे गए थे. सभी की मृत्यु की एकमात्र वजह सांस की नली का कटना और अधिक रक्तस्राव होना थी.

अगले दिन पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से भी पूछताछ की. पुलिस को इलियास की पहली बीवी के बेटे आबिद पर भी शक हुआ. दरअसल कई बार युवा लड़के प्रौपर्टी और मनमुटाव के चलते सौतेली मां के हत्यारे बन जाते हैं. लेकिन जांचपड़ताल में पता चला कि नसीमा का आबिद से कोई मनमुटाव नहीं था. कभी किसी ने उन्हें लड़तेझगड़ते भी नहीं देखा था.

नसीमा व उस के बच्चों की हत्याएं साफ इशारा कर रही थीं कि यह वारदात लूटपाट के लिए नहीं, बल्कि किसी अपने ने की थी. नसीमा की मौत से चूंकि आबिद को ही कोई फायदा हो सकता था, इसलिए शक की सूई उसी पर ठहर गई. सौतेली मां की मौत की खबर पा कर वह भी गांव आ गया था.

सीओ एन.पी. सिंह और इंसपेक्टर अनिल कपरवाल ने आबिद से घुमाफिरा कर पूछताछ की. उस ने बताया कि घटना वाली रात वह दिल्ली में था. पुलिस ने उस के बयानों की न सिर्फ तसदीक कराई, बल्कि उस के मोबाइल की लोकेशन की भी पड़ताल कराई.

शाम तक इस बात की पुष्टि हो गई कि आबिद सच बोल रहा है. वह इस तरह का युवक नहीं था कि हत्या या कोई षड्यंत्र कर सके. पुलिस ने उस के छोटे भाई शाहिद से भी पूछताछ की. लेकिन पुलिस को कोई दिशा नहीं मिल सकी.

पुलिस असमंजस में थी. जो शक के दायरे में आया था वह कातिल नहीं निकला और जो कातिल थे उन का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. यह निश्चित था कि नसीमा की हत्या रात के वक्त की गई थी.

अनुमान था कि वह 1 बजे पैसेंजर ट्रेन से अहेड़ा स्टेशन पर उतर कर गांव की तरफ चली होगी. ऐसा भी कोई शख्स नहीं मिला जो बता सके कि उस ने नसीमा या उस के बच्चों को स्टेशन पर उतरते देखा था. घटना को 2 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी.

कोई और रास्ता न देख पुलिस ने नसीमा की काल डिटेल्स और फोन की लोकेशन निकलवाई. नसीमा की घटना वाले दिन इलियास से बात हुई थी. उस की लोकेशन शाहदरा के गुरु तेगबहादुर अस्पताल के अलावा, लोनी व अहेड़ा रेलवे स्टेशन पर पाई गई थी.

इस का मतलब उस का मोबाइल हत्या के बाद बंद किया गया था. लेकिन इस से किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. इस बीच पुलिस को पता चला कि 2 महीने पहले नसीमा ने इलियास के खिलाफ टटीरी पुलिस चौकी पर मारपीट करने की शिकायत दर्ज कराई थी. हालांकि इस विवाद को पुलिस ने सुलझा दिया था.

इलियास के कमजोर शरीर को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वह इतना बड़ा कांड कर सकता है. लेकिन जब इस मामले पर दूसरे नजरिए से सोचा गया तो यह बात निकल कर सामने आई कि अपराध की पृष्ठभूमि में शरीर से नहीं दिमाग से काम लिया जाता है.

जो लोग ज्यादा शातिर होते हैं वे जाहिर तक नहीं होने देते कि उन के मन में क्या चल रहा है. पुलिस को लगा कि हो न हो इलियास के मामले में भी ऐसा ही हो. पुलिस ने उसे शक के दायरे में ले कर उस के मोबाइल की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई.

पता चला दोपहर से ले कर रात तक उस के और नसीमा के मोबाइल की लोकेशन एक ही थी. इस का मतलब वे दोनों साथसाथ थे. जबकि उस ने पुलिस को बताया था कि वह शाम को घर आ गया था. जाहिर है वह झूठ बोल रहा था. लेकिन पुलिस इस संवेदनशील मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी, क्योंकि इलियास कोई ड्रामा भी खड़ा कर सकता था.

अपने पक्ष को और पुख्ता बनाने के लिए पुलिस ने उस की आउटगोइंग काल्स की जांच की. घटना वाले दिन उस की नसीमा के अलावा 3 और नंबरों पर बातें हुई थीं. पुलिस ने उन नंबरों का पता किया तो वे तीनों नंबर साजिद, परवेज व सलीम के नाम थे.

पुलिस को पता चला कि साजिद इलियास का ममेरा भाई, परवेज दोस्त व सलीम भांजा था. इस के बाद शक की सुई पूरी तरह इलियास पर ठहर गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि उन तीनों के मोबाइल की लोकेशन भी घटना वाली रात अहेड़ा स्टेशन के आसपास थी.

पुलिस ने सब से पहले उन्हीं तीनों पर शिकंजा कसने का फैसला किया. 12 फरवरी की शाम पुलिस ने एक सूचना के आधार पर परवेज व साजिद को गौरीपुर मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो जल्दी ही दोनों ने ऐसी बात बताई, जिसे सुन कर पुलिसकर्मी हैरान रह गए.

पता चला कि इस हत्याकांड का षड्यंत्र इलियास ने ही रचा था. उसी ने इन लोगों के साथ मिल कर वारदात को अंजाम दिया था. यह पता चलते ही पुलिस ने बिना समय गंवाए इलियास को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में पहले तो उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जब साजिद व परवेज को उस के सामने खड़ा किया गया तो वह टूट गया. उस से विस्तृत पूछताछ में चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई. बात कोई खास नहीं थी, बस इलियास के शक्की स्वभाव ने उसे कातिल बना दिया था.

इलियास शक्की स्वभाव का था. नसीमा से विवाह के बाद उस की जिंदगी आराम से बीत रही थी. नसीमा हंसमुख स्वभाव की थी. किसी से भी हंसबोल लेना उस का स्वभाव था. इलियास चूंकि दिल्ली में काम करता था, इसलिए कभी दिलशाद गार्डन में रुक जाता था तो कभी गांव आ जाता था.

करीब एक साल पहले उस ने नसीमा को मोबाइल ले कर दे दिया, ताकि वक्त जरूरत पर वह उसे फोन कर सके. इस से यह सुविधा हो गई थी कि इलियास घर फोन कर के न सिर्फ खैर खबर ले लिया करता था, बल्कि नसीमा अपने मायके भी बात कर लेती थी.

इसी के चलते कई बार ऐसा हुआ कि जब इलियास ने घर वाला नंबर मिलाया तो वह व्यस्त मिला. पूछने पर नसीमा ने बताया भी कि वह बिहार बात कर रही थी. इस के बावजूद इलियास ने उसे कई बार डांटा. वह शक्की तो था ही, उसे लगता था कि नसीमा किसी पुरुष से बात करती है.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 3

कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा. घर वालों का रागिनी से धीरेधीरे ध्यान हटने लगा था. फिर मौका देख कर रागिनी अपने प्रेमी राकेश से मिलने लगी. उस ने राकेश से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वह उसे यहां से कहीं दूर ले चले, जहां हमारे सिवाय कोई और न हो. राकेश ने उसे भरोसा दिया कि वह परेशान न हो, जल्द ही वह कोई बीच का रास्ता निकाल लेगा.

रागिनी इस बात से पूरी तरह मुतमईन थी कि अब तो घर वाले भी उस की ओर से बेपरवाह हो चुके हैं. लिहाजा वह पहले की तरह ही चोरीछिपे प्रेमी राकेश से मिलने लगी. यह रागिनी की सब से बड़ी भूल थी. उसे यह पता नहीं था कि घर वाले केवल दिखावे के तौर पर उस की तरफ से बेपरवाह हुए थे. लेकिन उन की नजरें हर घड़ी उसी पर जमी रहती थीं.

सिकंदर को पता चल गया था रागिनी फिर से राकेश से मिलने लगी है. इस बार सिकंदर ने रागिनी को राकेश के साथ बतियाते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया था. फिर क्या था, वह उसे वहीं से पकड़ कर घर ले आया और उस की खूब पिटाई की. इस बार पारसनाथ ने बेटे को पिटाई करने से नहीं रोका, बल्कि उस ने बेटी को सुधारने के लिए बेटे को पूरी आजादी दे दी थी.

पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. डांट या मार का रागिनी पर अब कोई असर नहीं होता. रागिनी की करतूतों से घर वालों की इज्जत तारतार हो रही थी. बहन के चलते परिवार की हो रही बदनामी को देख सिकंदर भी ऊब गया, इसलिए उस ने रागिनी की हत्या करने की ठान ली. इस बाबत उस के मांबाप में से किसी को कुछ भी नहीं बताया.

सिकंदर का एक जिगरी दोस्त था कामदेव सिंह. वह शाहपुर थानाक्षेत्र के व्यासनगर जंगल में रहता था. उस पर कई आपराधिक केस भी चल रहे थे. सिकंदर जानता था यह काम कामदेव आसानी से कर सकता है. दोस्त होने के नाते वह उस की बात कभी नहीं टालेगा. वैसे सिकंदर खुद भी इस काम को अकेला कर सकता था लेकिन वह खून के मजबूत रिश्तों की डोर से बंधा हुआ था. ऐसा करते हुए उस के हाथ कांप सकते थे.

सिकंदर ने कामदेव को रागिनी की करतूतें बता कर उसे रास्ते से हटाने की बात कही तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. दोनों ने दीपावली के दिन रागिनी की हत्या करने की योजना बना ली ताकि पटाखों के शोर में रागिनी की मौत की आवाज दब कर रह जाए.

लेकिन दोनों को दीपावली के दिन किसी वजह से यह मौका नहीं मिला. तब कामदेव ने सिकंदर को भरोसा दिया कि वह अकेला ही इस काम को अंजाम दे देगा. 20 नवंबर, 2018 की शाम रागिनी घर से साइकिल से कहीं जा रही थी. घर से थोड़ी दूर पर रास्ते में उसे कामदेव मिल गया.

कामदेव ने रागिनी को अपनी बातों में उलझा लिया और उसे प्रेमी राकेश से मिलाने की बात कह कर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. घंटों तक वह उसे इधरउधर घुमाता रहा. रागिनी के कुछ भी पूछने पर वह गोलमोल उत्तर दे कर उसे बहलाता रहा. रात करीब 10 बजे वह उसे चिलुआताल थाने से कुछ दूर उमरपुर गांव के बाग की ओर ले गया. तब तक चारों ओर गहरा सन्नाटा पसर गया था.

उस ने मोटरसाइकिल बाग में रोक दी और वे दोनों बाइक से नीचे उतर गए. रागिनी ने उस से फिर पूछा कि राकेश कहां है? तो कामदेव ने कहा, ‘‘बस कुछ देर और ठहर जाओ. वह आता ही होगा.’’ इतना कहते ही कामदेव ने कमर में खोंसा हुआ पिस्टल निकाला. पिस्टल देख कर रागिनी के होश उड़ गए.

अब वह समझ गई कि कामदेव ने उस के साथ बड़ा धोखा किया है. वह कुछ कह पाती, उस से पहले ही कामदेव ने उस के शरीर में पिस्टल से 5 गोलियां उतार दीं. गोलियां लगते ही रागिनी ने मौके पर दम तोड़ दिया. कहीं वह जीवित न रह जाए, इसलिए कामदेव ने साथ लाए पेचकस से उस के शरीर को गोद डाला.

उसे ठिकाने लगा कर वह वहां से इत्मीनान से घर चला गया. फिर सिकंदर को फोन कर के काम हो जाने की जानकारी दे दी. जिस पिस्टल से उस ने रागिनी की हत्या की थी, वह उस ने अपने कमरे की अलमारी में छिपा दी.

अगले दिन सिकंदर ने अफवाह फैला दी कि रागिनी फिर से अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई. 2 दिनों बाद पारसनाथ को सच्चाई का पता चल गया था. सच जान कर उस ने चुप्पी साध ली थी लेकिन उस की दोनों बेटियों ने राज से परदा उठा कर उन्हें बेनकाब कर दिया. नहीं तो सिकंदर और कामदेव ने मिल कर जो खतरनाक योजना बनाई थी, शायद पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाती.

मामले का खुलासा हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने पारसनाथ और उस की पत्नी को बेकसूर मानते हुए घर भेज दिया. पुलिस ने अभियुक्त सिकंदर और उस के दोस्त कामदेव को गिरफ्तार कर लिया. 7 दिसंबर, 2018 को एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को केस के खुलासे की जानकारी दी. दोनों हत्याभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 1

सुबह के करीब 7 बजे का वक्त था. परेशान सा इलियास घर के बरामदे में टहल रहा था. कभी वह दरवाजे पर जा कर बाहर झांकता, तो कभी गली में चक्कर लगा कर घर में लौट जाता. पड़ोस में रहने वाले लियाकत ने इलियास को परेशान देख कर पूछ लिया, ‘‘खैरियत तो हैं इलियास मियां, कुछ परेशान दिख रहे हो?’’

इलियास ने पहले उसे गहरी नजरों से देखा, फिर जवाब दिया, ‘‘हां, परेशानी की ही बात है.’’

‘‘क्या हुआ मियां, जरा हमें भी तो बताओ?’’

‘‘तुम्हारी भाभी का कुछ अतापता नहीं है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘कल वह दवा लेने दिल्ली गई थी, लेकिन अभी तक आई नहीं है. परेशानी यह है कि उस के साथ तीनों बच्चे भी हैं.’’

‘‘मोबाइल तो होगा उन के पास?’’ लियाकत ने जिज्ञासावश पूछा तो इलियास चिंता जाहिर करते हुए बोला, ‘‘हां है, लेकिन नंबर मिलामिला कर थक गया हूं. बराबर बंद आ रहा है. खुदा खैर करे, किसी परेशानी में न फंस गई हो वह.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचते हो इलियास भाई, आ जाएंगी.’’ लेकिन लियाकत के समझाने पर भी इलियास की परेशानी रत्ती भर कम नहीं हुई. इलियास की जगह कोई और भी होता तो ऐसे हालातों में वह भी इसी तरह परेशान होता.

इलियास उत्तर प्रदेश के जाट बाहुल्य बागपत जिले के कोतवाली क्षेत्र में आने वाले गांव चौहल्दा का रहने वाला था. वह दिल्ली के दिलशाद गार्डन इलाके की रेडीमेड गारमेंट्स फैक्ट्री में इस्तरी करने का काम करता था. उस के परिवार में पत्नी नसीमा, 7 साल का बेटा नाजिम, 5 साल की बेटी नाजिया और 4 साल के बेटे अकरम को मिला कर 5 सदस्य थे. नसीमा 7 महीने की गर्भवती थी.

इलियास दिल्ली में अकेला रहता था. बीचबीच में वह गांव आता रहता था. जबकि नसीमा बच्चों के साथ गांव में ही रहती थी. दुबलपतला इलियास किसी तरह मेहनत कर के अपने परिवार को पाल रहा था.

7 फरवरी, 2014 को नसीमा बच्चों के साथ दिल्ली गई थी, लेकिन अगले दिन तक भी वापस नहीं आई थी. इलियास इसी बात को ले कर किसी अनहोनी की आशंका से परेशान था.

इलियास व लियाकत इस मसले पर बात कर ही रहे थे कि तभी एक शख्स तेजी से साइकिल चलाते हुए उन के पास आया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. उस ने हांफते हुए बताया, ‘‘इलियास भाई गजब हो गया.’’

इलियास ने फटीफटी आंखों से उस की तरफ देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘किसी ने नसीमा भाभी का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘या अल्लाह,’’ इलियास अपने कानों पर हाथ रख कर चिल्लाया.

‘‘भाभी की लाश गांव के रास्ते पर पड़ी है.’’ उस ने बताया तो इलियास के होश उड़ गए. वह रोने बिलखने लगा तो जरा सी देर में लोग एकत्र हो गए. सभी दौड़ेदौड़े गांव के बाहर पहुंचे.

नसीमा की लाश अहेड़ा रेलवे स्टेशन से चौहल्दा गांव तक आने वाले रास्ते पर सड़क के किनारे खेत में पड़ी थी. वहां पहले से ही लोग जमा हो चुके थे. किसी ने बड़ी बेरहमी से नसीमा की गरदन और चेहरे पर वार किए थे. लाश के पास ही उस का मोबाइल पड़ा था. लाश को सुबह काम पर जा रहे ग्रामीणों ने देखा था. लाश देख कर उन्होंने नसीमा को पहचान लिया था. उन्हीं में से एक व्यक्ति ने गांव जा कर इलियास को इस बात की जानकारी दी थी.

नसीमा के बच्चों का कहीं पता नहीं था. ग्रामीणों ने आसपास तलाश शुरू की तो गेहूं के खेत में जो दृश्य देखने को मिला, उसे देख कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. तीनों बच्चों की भी लाशें वहां पड़ी थीं. उन की हत्या बेरहमी के साथ धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

इस चौहरे हत्याकांड से गांव में कोहराम मच गया. दिल दहला देने वाले इस दृश्य को देख कर लोगों की आंखें नम हो गईं. सभी के मन में एक ही सवाल था कि आखिर इन मासूमों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? इलियास का रोरो कर बुरा हाल था. लोग गमजदा इलियास को संभालने की कोशिश कर रहे थे.

लोगों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सनसनीखेज हत्याकांड की खबर मिलते ही थानाप्रभारी अनिल कपरवाल, सीओ एन.पी. सिंह और पुलिस अधीक्षक जितेंद्र कुमार शाही घटनास्थल पर आ गए. ग्रामीणों में भारी आक्रोश था.

निस्संदेह मामला गंभीर था. पुलिस ने शवों का निरीक्षण किया. सभी की गरदनों पर वार किए गए थे. घटनास्थल पर बिखरे खून से साफ पता चल रहा था कि हत्याएं उसी स्थान पर की गई थीं. हत्यारों ने नसीमा के मोबाइल के अलावा कोई सुबूत शवों के इर्दगिर्द नहीं छोड़ा था.

गमगीन माहौल में ही पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि नसीमा की तबीयत खराब थी. वह दिल्ली के शाहदरा स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल दवा लेने गई थी. शाम को संभवत: जब वह टे्रन से उतर कर गांव की तरफ जा रही थी, तभी उस की हत्या कर दी गई थी.

मामला चौहरे हत्याकांड का था, लिहाजा एसपी जे.के. शाही ने इस की सूचना मेरठ रेंज के आईजी आलोक शर्मा व डीआईजी के. सत्यनारायण को भी दे दी. पुलिस ने मौकामुआयना कर के शवों का पंचनामा किया और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. माहौल इस कदर गमगीन व गरमाया हुआ था कि इलियास से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी.

बड़ी घटना के मद्देनजर आईजी व डीआईजी बागपत आ गए. हत्याकांड की प्राथमिक जानकारी ले कर उन्होंने अधिकारियों को इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा किए जाने के निर्देश दिए. इसी बीच सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण पोस्टमार्टम हाउस पर जमा हो गए.

उन्होंने रोष प्रकट कर के पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. इतना ही नहीं शवों को उठा कर उन्हें दिल्लीयमनोत्री हाईवे पर रख कर जाम लगा दिया. पुलिस ने विरोध किया तो लोग हाथापई पर उतारू हो गए. इलियास पुलिसकर्मियों से उलझ गया. अधिकारियों ने इसे उस की बदहवासी समझा.

पुलिस अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाया और जल्दी ही हत्यारों को पकड़ने का आश्वासन दिया. जब ग्रामीण नहीं माने तो पुलिस ने बल प्रयोग किया और जबरन शव अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद शवों को ग्रामीणों के हवाले कर दिया गया. इस बीच इलियास की तरफ से थाने में अज्ञात हत्यारों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

सामूहिक हत्या के इस जघन्य मामले को खोलने के लिए पुलिस पर दबाव बना हुआ था. पुलिस अपनी जांच में लगी थी. इसी जांच में चौंकाने वाली बात यह पता चली कि मृतका इलियास की दूसरी बीवी थी. उस की पहली बीवी वरीसा बागपत के ही निनाना गांव की रहने वाली थी. उस के आबिद, आबिदा, शाहिदा, शाहिद और राशिद 5 बच्चे थे. 12 साल पहले बीमारी के चलते वरीसा का इंतकाल हो गया था.

इलियास के रिश्तेदारों ने बच्चों के छोटे होने का वास्ता दे कर उसे दूसरे निकाह का मशविरा दिया. यह लोगों के मशविरे का असर था या इलियास की ख्वाहिश कि उस ने 3 साल बाद नसीमा से निकाह कर लिया.

नसीमा मूलत: बिहार के बेगूसराय जिले की रहने वाली थी. गुजरते वक्त के साथ नसीमा भी 3 बच्चों नाजिम, नाजिया व अकरम की मां बन गई. इस बीच इलियास की पहली बीवी का बड़ा बेटा आबिद 18 साल का हो चुका था. वह दिल्ली में अपने एक रिश्तेदार के यहां रह कर मेहनत मजदूरी करता था. जबकि बेटियां और अन्य 2 बेटे इलियास के पास ही रहते थे.

जब कहीं से कोई लीड नहीं मिली तो इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सीओ एन.पी. सिंह के सुपुर्द कर दी गई. घटना की बारीकियों और हत्यारों तक पहुंचने के लिए ठोस तथ्यों की जरूरत थी. इस के लिए एन.पी. सिंह ने इलियास से पूछताछ की.

क्यों एक मां ने की कैंसर ग्रस्त बेटी की हत्या?

  23 अक्तूबर, 2018 की सुबह 5 बजे का समय था. गांव के लोग नींद से जाग कर दैनिककार्यों में लग गए थे. इसी बीच किसी के रोने चिल्लाने की आवाजें सुनाई देने लगीं. आवाजें संतोषी के घर से आ रही थीं. संतोषी अपने घर के बाहर बैठी थी, जमीन पर उस की 13 साल की बेटी अर्चना की लाश पड़ी थी.

गांव वालों ने पास जा कर देखा तो अर्चना की अचानक मौत से हतप्रभ हुए. लोगों ने संतोषी से पूछा तो उस ने बताया कि अर्चना के गले का कैंसर फट गया है. जब गांव के लोग एकत्र हुए तो उन के बीच तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. वजह यह थी कि अर्चना के गले पर तेज धारदार हथियार के निशान नजर आ रहे थे. यह घटना हरदोई जिले के सांडी थाना क्षेत्र के गांव नेकपुर में घटी थी.

इसी बीच किसी गांव वाले ने इस की सूचना सांडी थाने को दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी अरुणेश गुप्ता पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया तो गले में पतले फल वाले किसी धारदार हथियार से गला रेते जाने के निशान मिले.

जब इंसपेक्टर ने गला रेत कर हत्या किए जाने की बात बताई तो संतोषी बोली, ‘‘साहब, पिछले कुछ दिनों से अर्चना को गले का कैंसर था. मैं समझ रही थी कि वही कैंसर फट गया है. मैं और मेरे तीनों बेटे घर के बाहर बनी दोनों दुकानों में सो रहे थे. अर्चना अंदर कमरे में सो रही थी. सुबह जब मैं अंदर गई तो यह मरी पड़ी थी, गले से खून बह रहा था. मैं समझी इस का कैंसर फट गया है. मैं इसे उठा कर बाहर ले आई.’’

घर के अंदर जाने का एक ही रास्ता था, वह भी सामने से और दुकान के बराबर से हो कर जाता था, जो बंद था. घर के बाहर मेनगेट के बराबर में बनी 2 दुकानों में संतोषी और उस के तीनों बेटे सो रहे थे. ऐसे में हत्यारे ने कहां से आ कर घटना को अंजाम दे दिया,यह समझ के बाहर था.

घर का सभी सामान अपनी जगह पर था, कोई चीज गायब नहीं थी. अलावा अर्चना के मोबाइल के. अर्चना स्मार्टफोन इस्तेमाल करती थी. इसे ले कर थानाप्रभारी अरुणेश गुप्ता के दिमाग में कई सवाल घूम रहे थे.

सूचना पा कर एसपी आलोक प्रियदर्शी और एएसपी ज्ञानंजय सिंह भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बड़ी बारीकी से निरीक्षण किया. जब उन्होंने संतोषी से कई बिंदुओं पर पूछताछ की तो उन की समझ में आ गया कि हत्या किसी करीबी ने की है.

अफसर समझ गए कि वह करीबी संतोषी ही है. लेकिन उस समय संतोषी को हिरासत में लेना ठीक नहीं था. पुलिस ने फैसला किया कि पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही उस पर हाथ डाला जाएगा. इसलिए अर्चना के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय स्थित मोर्चरी भेज दिया गया.

थाने लौट कर थानाप्रभारी अरुणेश गुप्ता ने संतोषी के बड़े बेटे मोनू की लिखित तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

अरुणेश गुप्ता ने अपने स्तर से ग्रामीणों से पूछताछ की तो संतोषी के चरित्र पर कई लोगों ने अंगुलियां उठाईं. मुख्य संदिग्ध होने की वजह से पुलिस ने संतोषी को 29 अक्तूबर को हिरासत में लिया. उस से महिला आरक्षी की मौजूदगी में कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गई.

उस ने नशे में की गई अर्चना की हत्या का जुर्म स्वीकार करते हुए पूरी कहानी बयान कर दी. पूछताछ के बाद अरुणेश गुप्ता ने संतोषी के 15 वर्षीय बेटे मोनू और गांव के ही संतोषी के प्रेमी अभिमन्यु उर्फ अपन्नू उर्फ छोटे भैया को भी उसी दिन गिरफ्तार कर लिया.

संतोष उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के सांडी थाना क्षेत्र के गांव नेकपुर में अपनी पत्नी संतोषी के साथ रहता था. संतोषी से उस का विवाह 16 साल पहले हुआ था. कालांतर में वे 3 बेटों और एक बेटी के मांबाप बने. उन का बड़ा बेटा मोनू 15 साल का था और बेटी अर्चना 13 साल की. इस के अलावा उन के 9 और 8 साल के 2 बेटे और थे. संतोष टेलरिंग का काम करता था.

अर्चना पढ़ाई में काफी तेज थी. फिलहाल वह सांडी के नरपति सिंह इंटर कालेज में 8वीं कक्षा में पढ़ रही थी. अर्चना के बेहतर भविष्य के लिए संतोष ने 10 बीघा जमीन खरीद कर उस के नाम कर दी थी. उस से बड़े मोनू ने 7वीं तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल से नाता तोड़ लिया था.

4 बच्चों की मां बनने के बाद भी संतोषी की फरमाइशें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं. संतोषी काफी सुंदर महिला थी. जैसे जैसे संतानें होती गईं, वैसे वैसे उस के सौंदर्य में और भी निखार आता गया.

संतोष चाहता था कि संतोषी बच्चों की परवरिश पर ध्यान दे, लेकिन संतोषी थी कि उसे सजने संवरने से ही फुरसत नहीं थी. कोई उस की खूबसूरती की तारीफ कर देता तो वह फूली नहीं समाती थी. वह परिवार की बंदिशों में बंध कर घुटन महसूस करती थी. लेकिन सामाजिक रीतिरिवाज को मानना उस की मजबूरी थी.

संतोषी के विवाह को जितने साल गुजर गए थे, उतने साल में पत्नियां अपने पतियों पर हावी हो जाती हैं. संतोषी भी अपवाद नहीं थी. संतोष कभी कुछ कहता तो संतोषी उसे चुप करा देती थी. वह मन मसोस कर रह जाता था.

खुले स्वभाव के कारण संतोष किसी से बात करने में भी गुरेज नहीं करती थी. इसी वजह से वह कई पुरुषों के संपर्क में आ गई थी. उन में से एक सर्वेश भी था. सर्वेश उसी गांव में रहता था और लकड़ी की ठेकेदारी करता था.

5 साल पहले की बात है. सर्वेश और संतोष में दोस्ती हो गई. दोनों ही शराब के शौकीन थे. दोनों जबतब शराब की महफिल जमाते रहते थे. खानेपीने पर खर्चा सर्वेश ही किया करता था. एक दिन सर्वेश ने मीट खाने की इच्छा जताई, साथ में यह भी कहा कि कहीं अच्छा मीट खाने को नहीं मिलता.

सर्वेश के इतना कहते ही संतोष बोला, ‘‘यह बात पहले बता देता तो अब तक कई बार अच्छा बना मीट खा चुका होता.’’

सर्वेश ने उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो संतोष ने बताया कि उस की पत्नी संतोषी बहुत लजीज मीट बनाती है. वह जब कहे, बनवा देगा. यह सुन कर सर्वेश के मुंह में पानी आ गया. वह बोला आज शाम को ही मीट बनवाओ. संतोष ने सहमति दे दी.

शाम को संतोष सर्वेश को साथ ले कर घर पहुंचा और साथ लाई मीट की पौलीथिन संतोषी को देते हुए कहा, ‘‘संतोषी, आज ऐसा लजीज मीट पका कि सर्वेश अंगुलियां चाटता रह जाए.’’ इस के बाद संतोष और सर्वेश शराब की बोतल खोल कर बैठ गए.

सर्वेश बातें करते हुए शराब तो संतोष के साथ पी रहा था, लेकिन उस का मन संतोषी में उलझा हुआ था. निगाहें लगातार उस का पीछा कर रही थीं. सर्वेश को उस की खूबसूरती भा गई थी. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में संतोषी का शबाब नशीला होता गया.

शराब का दौर खत्म हुआ तो संतोषी खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर सर्वेश ने उस की दिल खोल कर तारीफ की. संतोषी भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद सर्वेश अपने घर लौट गया.

इस के बाद तो संतोष के घर करीबकरीब रोज ही महफिल सजने लगी. सर्वेश ने संतोषी से चुहलबाजी करनी शुरू कर दी. संतोषी भी उस की चुहलबाजियों का बराबर जवाब देती. संतोषी की आंखों में सर्वेश को अपने लिए चाहत नजर आने लगी थी. उस के अंदाज भी कुछ ऐसे थे, जैसे वह खुद उस के करीब आना चाहती हो.

दरअसल, संतोषी को सर्वेश में वे सब खूबियां नजर आई थीं जो वह चाहती थी. सर्वेश मजबूत कदकाठी और रोबीले चेहरे वाला आकर्षक मर्द था. वह पैसा भी अच्छा कमाता था, खर्च भी दिल खोल कर करता था. ऐसे में अब तक मन मार कर संतोष के साथ रह रही संतोषी के सपनों को नए पंख लग गए थे. अपनी तरफ सर्वेश का झुकाव देख कर वह बहुत खुश थी.

रोजरोज की मुलाकात के बाद दोनों एकदूसरे से घुलमिल गए. सर्वेश हंसीमजाक करते हुए संतोषी से शारीरिक छेड़छाड़ भी कर देता था, संतोषी विरोध करने के बजाए मुसकरा कर रह जाती थी. यह सब देख सर्वेश संतोषी को जल्द से जल्द पा लेने की सोचने लगा. इसी के मद्देनजर उस ने मन ही मन योजना बनाई.

एक दिन जब वह संतोष के साथ उस के घर में बैठा शराब पी रहा था तो उस ने खुद कम पी, लेकिन संतोष को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. सर्वेश ने भर पेट खाना खाया, जबकि संतोष मुश्किल से कुछ निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया.

सर्वेश की मदद से संतोषी ने संतोष को चारपाई पर लेटा दिया. इस के बाद हाथ झाड़ते हुए बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’ फिर उस ने सर्वेश की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारी चारपाई भी बिछा दूं?’’

सर्वेश के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ पड़ा. उसे लगा कि शायद संतोषी भी यही चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार का खेल खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर लगा दो.’’

संतोषी ने सर्वेश के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया. फिर वह दूसरे कमरे में सोने चली गई.

सर्वेश की आंखों में नींद नहीं थी. उस की आंखों के सामने बारबार संतोषी की खूबसूरत काया घूम रही थी. कई बार मिले उस के शारीरिक स्पर्श से वह काफी रोमांचित था. वह उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति के लिए बेकरार था.

संतोष की ओर से वह निश्चिंत था. इसलिए वह दबे पांव चारपाई से उठा और संतोष के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में संतोषी सो रही थी.

कमरे में संतोषी जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट को बंद कर के सर्वेश उस के पास बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने संतोषी को बांहों में भरा तो वह दबी जुबान से बोली, ‘‘अब यहां क्यों आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘तुम्हें प्यार का असली मजा देने आया हूं.’’ कह कर उस ने संतोषी को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो मानो 2 जिस्मों के अरमानों की होड़ सी लग गई. कपड़े बदन से उतरते गए और हसरतें बेलिबास होती गईं. फिर दोनों के बीच वह संबंध बन गए जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होने चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी.

उस रात के बाद संतोषी और सर्वेश एकदूसरे को समर्पित हो गए. संतोषी के संग रास रचाने के लिए सर्वेश हर दूसरे तीसरे दिन संतोष के घर महफिल जमाने लगा. संतोष को वह नशे में धुत कर के सुला देता, उस के बाद वह संतोषी के बिस्तर पर पहुंच जाता. बाद में वह दिन में भी संतोषी के पास पहुंचने लगा. उस के आने से पहले ही संतोषी बच्चों को खेलने भेज देती थी. फिर दोनों निश्चिंत हो कर रंगरलियां मनाते थे.

3 वर्ष पूर्व संतोष की संदिग्ध परिस्थितियों में सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. कुछ दिन का शोक मना कर संतोषी फिर से रंगरलियां मनाने में लग गई. अब उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. फलस्वरूप वह बेलगाम होती गई. यहां तक कि वह शराब भी पीने लगी.

सर्वेश का भाई अभिमन्यु उर्फ अपन्नू विवाहित था, उस के 2 बच्चे भी थे. वह सर्वेश के साथ ही लकड़ी की ठेकेदारी काम देखता था. संतोषी के रंगढंग से वह न केवल अच्छी तरह वाकिफ था, बल्कि उस की देह को भोगने की लालसा भी रखता था. इसलिए वह संतोषी के घर के चक्कर लगाने लगा.

संतोषी की जरूरतों को पूरी कर के वह उसे शीशे में उतारने की कोशिश करने लगा. संतोषी से उस की चाहत छिपी न रह सकी. वह खुश थी कि एक और उस की देह का पुजारी उस की जरूरतों का खयाल रखने के लिए खुदबखुद खिंचा चला आया था.

एक दिन संतोषी अपन्नू के साथ शराब पीने बैठी तो नशा चढ़ते ही बोली, ‘‘अपन्नू, तुम्हारी आंखों में मुझे अपने लिए चाहत दिख रही है. तुम मुझे पाने के लिए लालायित हो, यह जान कर भी कि मैं तुम्हारे भाई की माशूका हूं.’’

‘‘क्या करूं तुम हो ही इतनी मादक कि किसी का भी दिल पाने को मचल उठे. रही बात मेरे भाई की तो तुम उसे ब्याही तो हो नहीं कि कुछ करने से अनर्थ हो जाएगा. तुम्हारे प्यार के सागर में मैं भी डुबकी लगा लूंगा तो क्या फर्क पड़ेगा?’’ वह बोला.

‘‘बात तो सही कह रहे हो. मैं तुम्हें अपना तन तो सौंप दूंगी लेकिन बदले में तुम्हें मेरी सारी जरूरतों का खयाल रखना पड़ेगा. मंजूर हो तो बोलो…’’

अपन्नू ने लपक कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘मंजूर है.’’

उस का उतावलापन देख कर संतोषी मंदमंद मुसकराई, फिर उस की बांहों में कैद हो गई. दोनों के बीच वासना का खेल खेला जाने लगा. इस के बाद संतोषी दोनों भाइयों के साथ मौजमस्ती करने लगी.

संतोषी ने अपने बेटों को किसी तरह बहलाफुसला कर अपने पक्ष में कर लिया था, इसलिए वे विरोध नहीं करते थे. लेकिन संतोषी की एकलौती बेटी अर्चना इतनी बड़ी हो चुकी थी कि अपनी मां की गलत हरकतों को समझा सके. पढ़ने की वजह से भी उस में काफी समझदारी आ गई थी. अपन्नू ने कई बार नशे में अर्चना के साथ छेड़छाड़ की थी, जिस का अर्चना ने खुल कर विरोध किया था. इस की शिकायत अर्चना ने अपनी मां संतोषी से भी की, लेकिन संतोषी ने कुछ नहीं किया.

अर्चना उन दोनों के नाजायज संबंधों को सार्वजनिक करने की धमकी देती थी, जिस से संतोषी और अपन्नू घबरा गए थे. संतोषी ने हर तरीके से अर्चना को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी.

22 अक्तूबर की रात अपन्नू और संतोषी ने जम कर शराब पी और फिर एकदूसरे की बांहों में समाने ही वाले थे कि अर्चना आ गई. उस ने दोनों को देखा तो सब को बताने की धमकी देने लगी. इस पर संतोषी और अपन्नू ने उसे दबोच लिया. उस समय संतोषी का बड़ा बेटा मोनू भी वहां आ गया था.

संतोषी और मोनू ने अर्चना को पकड़ लिया. संतोषी ने अर्चना का मुंह दबाया तो मोनू ने उस के हाथपैर पकड़े. अपन्नू ने सब्जी काटने वाले छोटे चाकू से उस का गला रेत दिया, जिस से अर्चना की मृत्यु हो गई. इस के बाद अपन्नू वहां से चला गया.

सुबह होने पर संतोषी अर्चना की लाश को उठा कर घर के बाहर ले आई और कैंसर फटने से अर्चना की मौत होने का नाटक करने लगी. लेकिन उस का नाटक सफल नहीं हुआ और पकड़ी गई.

एसओ अरुणेश गुप्ता ने संतोषी की निशानदेही पर उस के घर के कमरे में रखे संदूक के नीचे से हत्या में इस्तेमाल किया गया सब्जी काटने वाला चाकू और संतोषी का खून सना सफेद रंग का ब्लाउज बरामद कर लिया. इस के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मोनू नाम परिवर्तित है.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 2

पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की तो पारसनाथ पाल ने कहा, ‘‘हां साहब, रागिनी मेरी ही बेटी थी. लेकिन उस ने हमें समाजबिरादरी में कहीं जीने लायक नहीं छोड़ा था. उस के कारण लोग हम पर थूथू कर रहे थे. लेकिन उस की हत्या मैं ने नहीं की है. उसे मेरे बेटे सिकंदर पाल ने अपने किसी दोस्त के साथ मिल कर मार डाला है.’’

इस के बाद एसओ अरुण पवार ने सिकंदर पाल से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि रागिनी की हत्या में उस के मांबाप की कोई भूमिका नहीं थी.

उस ने अपने दोस्त कामदेव सिंह निवासी व्यासनगर जंगल के साथ मिल कर उसे ठिकाने लगाया था. उस के बाद पुलिस ने व्यासनगर जंगल स्थित कामदेव के घर दबिश दी. कामदेव घर पर नहीं मिला. वह घटना के बाद से ही फरार चल रहा था. 2 दिनों के अथक प्रयास के बाद पुलिस ने उसे शाहपुर से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. सिकंदर पाल और कामदेव से की गई पूछताछ के बाद रागिनी पाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

रागिनी पाल मूलरूप से गोरखपुर के गुलरिहा इलाके की शिवपुर सहबाजगंज की रहने वाली थी. उस के पिता पारसनाथ पाल एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. पारसनाथ के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा सिकंदर था. अपनी सामर्थ्य के अनुसार उस ने सभी बच्चों को पढ़ाया.

समय बीतने के साथ जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. बड़ी बेटियों प्रमिला और सरिता के उस ने हाथ पीले कर दिए थे. सब से छोटी बेटी रागिनी अभी पढ़ रही थी.

उसी दौरान उस के पांव बहक गए. गांव के ही राकेश नाम के युवक के साथ उस के अवैध संबंध हो गए थे, जिस की चर्चा पूरे गांव में थी. किसी तरह यह खबर रागिनी की मां निर्मला के कानों में पड़ी तो उस ने इस की जानकारी अपने पति पारसनाथ को दी.

इतना सुनते ही पारसनाथ बोला, ‘‘क्या बक रही हो, तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है न?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक कह रही हूं.’’ निर्मला ने कहा.

‘‘तो तुम ने इस बारे में रागिनी से पूछा या नहीं?’’

‘‘नहीं, अभी तो नहीं. सयानी बेटी है, पूछने पर कहीं कुछ कर न बैठे, इसलिए चुप थी.’’

‘‘ऐसे चुप्पी साधे ही बैठे रहना, कहीं ऐसा न हो कि बेटी मुंह पर कालिख पोत कर फुर्र हो जाए.’’ पारसनाथ पत्नी निर्मला पर गुस्से से चिल्लाया, ‘‘क्या अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा?’’

‘‘नहीं, तुम अभी उस से कुछ नहीं कहना. मैं उस से बात कर के समझाती हूं.’’ निर्मला ने कहा.

इत्तफाक से अगले दिन रागिनी स्कूल नहीं गई थी. पति भी अपनी ड्यूटी जा चुके थे. तभी निर्मला ने अप्रत्यक्ष रूप से रागिनी से बात शुरू की, ‘‘पढ़ाई कैसी चल रही है बेटा?’’

‘‘ठीक, एकदम फर्स्ट क्लास. क्यों मां, क्या बात है जो आज मेरी पढ़ाई के बारे में पूछ रही हो.’’ रागिनी ने मां से पूछा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही पूछ रही थी. अच्छा बेटा, मैं तुम से एक बात पूछती हूं क्या सच बताओगी?’’ निर्मला ने कहा.

‘‘हां मां, पूछो, क्या पूछना चाहती हो?’’ रागिनी ने उत्तर दिया.

‘‘तुम कल किस लड़के के साथ घूम रही थी?’’ निर्मला ने पूछा तो रागिनी के चेहरे का रंग उड़ गया. वह एकदम से सकपका गई.

‘‘किसी भी लड़के के साथ नहीं. यह तुम क्या कह रही हो?’’ रागिनी हकलाते हुए बोली, ‘‘लगता है किसी ने तुम्हें गलत जानकारी दी है. यह बात सरासर झूठी है.’’ रागिनी नजरें चुराते हुए बोली, ‘‘क्या मां, तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘मुझे तुम पर पूरा भरोसा है बेटा. तुम ऐसीवैसी हरकत नहीं कर सकती, जिस से तुम्हारे मांबाप की जगहंसाई हो.’’ निर्मला ने समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, इज्जतआबरू और मानमर्यादा एक औरत के कीमती गहने हैं. बेटा, यदि कोई बात हो तो मुझे खुल कर बता दो. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ रागिनी विश्वास दिलाते हुए बोली. बेटी के इतना  कहने पर मां निर्मला उस के कमरे से चली गई.

मां के कमरे से जाने के बाद रागिनी इस बात से हैरान थी कि मां को सच्चाई का पता कैसे चल गया. उसे किस ने बताया होगा? वह इस बात से भी डर रही थी कि पापा और भाई को जब इस बारे में पता चलेगा तो घर में कयामत ही आ जाएगी.

जब से पत्नी ने पारसनाथ को बेटी के बारे में बताया था, वह परेशान हो गया था. अत: वह भी बेटी के बारे में उड़ रही खबर की सच्चाई पता लगाने में जुट गया. उसे पता चला कि पड़ोस के राकेश से रागिनी का काफी दिनों से चक्कर चल रहा है. यह जानकारी रागिनी के भाई सिकंदर को भी हो चुकी थी.

बहन के बारे में सुन कर उस का तो खून खौल उठा. उस ने रागिनी को समझाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आ जाए, समाज बिरादरी में बहुत बदनामी हो रही है. नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है. रागिनी ने किसी तरह भाई सिकंदर को विश्वास दिलाया कि कोई उसे बदनाम करने के लिए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहा है.

बात घटना से एक साल पहले की है. एक दिन अचानक रागिनी घर से गायब हो गई. जवान बेटी के अचानक गायब होने से घर वाले परेशान हो गए. बेटी को तलाशते हुए वह उस के प्रेमी राकेश के घर पहुंच गए तो पता चला कि राकेश भी उसी दिन से घर से गायब है.

फिर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रागिनी राकेश के साथ ही भाग गई है. चूंकि मामला नाबालिग बेटी का था, इसलिए बदनामी को देखते हुए पारसनाथ ने पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई.

पारसनाथ अपने बेटे सिकंदर के साथ मिल कर बेटी को अपने स्तर से तलाशते रहा. आखिर अपने स्रोतों से उन दोनों ने रागिनी को ढूंढ ही लिया. वह राकेश के साथ ही थी. घर ला कर सिकंदर ने रागिनी पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया था. कमरे में बंद कर के उस ने उस की डंडे से पिटाई शुरू कर दी. लेकिन पिता ने उसे बचा लिया था. तब सिकंदर ने बहन को हिदायत दी कि अगर आइंदा राकेश से मिलने की कोशिश की या उस के बारे में सोचा भी तो जान से हाथ धो बैठेगी. इस के बाद से घर वालों की उस पर नजरें जमी रहतीं.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का एक गांव है उमरपुर. यह गांव थाना चिलुआताल के अंतर्गत  आता है. गांव के बाहर आम का एक बड़ा बाग स्थित है. 21 नवंबर, 2018 को करीब 10 बजे गांव के ही विकास, राजन और अमन नाम के लड़के इस बाग में खेलने के लिए गए थे.

वहां पहुंच कर वे अपने खेल की दुनिया में रम गए थे. खेल के दौरान ही राजन चिल्लाता दौड़ता हुआ विकास और अमन के पास जा पहुंचा. उसे चिल्लाता देख दोनों परेशान हो गए. तभी विकास ने उस से पूछा, ‘‘अबे तू चिल्ला क्यों रहा है? वहां झाड़ी में क्या कोई भूत देख लिया जो चीख रहा है और तेरे माथे पर पसीना आ गया.’’

‘‘भूत नहीं, वहां झाडि़यों में एक लड़की की लाश पड़ी है.’’ लंबी सांसें भरता हुआ राजन बोला, ‘‘तुम्हें मेरी बातों पर यकीन न हो रहा हो तो आओ मेरे साथ, तुम्हें भी दिखाता हूं.’’ कह कर राजन झाड़ी की ओर बढ़ा तो उत्सुकतावश उस के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल दिए.

जब वह झाडि़यों के पास पहुंचे तो वास्तव में वहां एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाश देख कर वे अपना खेल खेलना भूल गए और सभी सिर पर पैर रखे चिल्लाते हुए गांव की ओर भागे.

गांव पहुंच कर उन्होंने इस की सूचना गांव वालों को दी. बच्चों की सूचना पर गांव के कई लोग लाश देखने के लिए आम के बाग में पहुंच गए. थोड़ी देर में वहां तमाशबीनों का मजमा जमा हो गया. सूचना पा कर गांव का चौकीदार आफताब आलम भी मौके पर पहुंच गया था.

लड़की की लाश देख कर चौकीदार आफताब आलम ने सूचना चिलुआताल के थानाप्रभारी अरुण पवार को फोन द्वारा दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण पवार मय फोर्स उमरपुर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश की दशा देख कर वह दंग रह गए. हत्यारों ने मृतका को 5 गोलियां मारी थीं. कनपटी और सीने में एकएक और पेट में 3 गोलियां मार कर उस की हत्या की थी. शरीर पर कई जगह नुकीले हथियार से गोदे जाने के निशान भी थे. खून भी सूख कर पपड़ी के रूप में जम गया था.

लाश से थोड़ी दूर पर कारतूस के 2 खोखे भी पड़े मिले. पुलिस ने वह कब्जे में ले लिए. मौके से कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से शव की पहचान हो सके. शव की शिनाख्त के लिए थानाप्रभारी पवार ने मौके पर जुटे ग्रामीणों से पूछताछ की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

इस का मतलब साफ था कि मृतका चिलुआताल की रहने वाली नहीं थी. यानी वह कहीं और की रहने वाली थी. थानाप्रभारी ने घटना की सूचना सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे, एसपी (उत्तरी) अरविंद कुमार पांडेय और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता को भी दे दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद सभी अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल की छानबीन कर वहां मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछताछ की लेकिन मौजूद लोगों ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेज दी. थाने लौट कर उन्होंने चौकीदार आफताब आलम की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और विवेचना शुरू कर दी.

थानाप्रभारी इस बात पर गौर कर रहे थे कि मासूम सी दिखने वाली युवती की भला किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे 5 गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया.

हत्यारे का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उस ने किसी नुकीली चीज से उस पर अनगिनत वार कर के अपनी भड़ास निकाली. इस से साफ पता चल रहा था कि हत्यारा मृतका से काफी खुन्नस खाया हुआ था. पुलिस को मामला प्रेम संबंधों का लग रहा था.

अगले दिन एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानाप्रभारी अरुण पवार को अपने औफिस बुला कर हत्या के इस केस के बारे में चर्चा की और जल्द से जल्द केस का खुलासा करने के निर्देश दिए.

घटना को एक सप्ताह बीत गया लेकिन न तो मृतका की शिनाख्त हो पाई थी और न ही किसी थाने में इस उम्र की किसी लड़की की गुमशुदगी दर्ज होने की सूचना मिली. जबकि मृतका की शिनाख्त के लिए जिले के सभी 26 थानों को मृतका का फोटो भेज दिया गया था. जांच टीम के लिए यह मामला काफी पेचीदा होता जा रहा था. तब थानाप्रभारी ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

7 दिनों बाद यानी 4 दिसंबर, 2018 को प्रमिला और सरिता नाम की 2 सगी बहनें थानाप्रभारी अरुण पवार से मिलीं. उन्होंने बताया कि उन की छोटी बहन 15 वर्षीय रागिनी जो गुलरिहा थाने के शिवपुर सहबाजगंज में रहती है. 20 नवंबर, 2018 की शाम को घर से साइकिल ले कर निकली थी, वह अभी तक घर नहीं लौटी है.

मांबाप ने कई दिनों तक रागिनी को इधरउधर तलाशा. लेकिन जब कहीं पता नहीं चला तो वह चुप हो कर बैठ गए. उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह कहां चली गई और किस हाल में है. भाई सिकंदर पाल भी रागिनी को तलाशने में कोई रुचि नहीं ले रहा. वह भी चुपी साधे बैठा है.

यह बात दोनों बहनों प्रमिला और सरिता को बड़ी अजीब लगी कि जिस की सयानी बेटी घर से लापता हो जाए, वह बाप हाथ पर हाथ धरे भला कैसे बैठा रह सकता है. कहीं न कहीं कोई पेंच जरूर है. तब से दोनों बहनों ने अपने स्तर से रागिनी की तलाश शुरू कर दी. उन्हें जब पता लगा कि उमरपुर गांव के आम के एक बाग में एक सप्ताह पहले पुलिस ने एक लड़की की लाश बरामद की थी, तो वे यहां चली आईं.

थानाप्रभारी ने अपने फोन में मौजूद उस लाश की फोटो और कपड़े दिखाए तो दोनों बहनों ने वह पहचानते हुए बताया कि यह फोटो और कपड़े उन की बहन रागिनी के हैं. लाश की शिनाख्त होने के बाद प्रमिला और सरिता ने बताया कि रागिनी की हत्या के पीछे उसे अपने घर वालों पर शक है. उन्होंने कहा कि उस के मांबाप और भाई सिकंदर पाल से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

प्रमिला और सरिता के बयानों को आधार बना कर पुलिस टीम ने 5 दिसंबर, 2018 को शिवपुर सहबाजगंज गांव में स्थित पारसनाथ पाल के घर पर सुबहसुबह दबिश दी.

संयोग से उस समय घर पर पारसनाथ पाल, उस की पत्नी और बेटा सिकंदर पाल तीनों मिल गए. पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

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5 अक्तूबर, 2018 सुबह करीब 9 बजे वोराले गांव की रहने वाली मालन म्हमाणे अपने घर की सफाई कर  रही थी, तभी उसे 2 खत मिले. मालन म्हमाणे ने वह खत ला कर अपने बेटे बालासाहेब म्हमाणे को देते हुए पढ़ कर सुनाने को कहा.

बालासाहेब म्हमाणे ने जब खतों को पढ़ा तो वह परेशान हो उठा. उस के चेहरे पर पसीना आ गया, क्योंकि वे दोनों खत उस की भांजी अनुराधा के द्वारा लिखे हुए थे. वह उन के यहां ही रह रही थी और एक दिन पहले ही अपनी मां के साथ अपने घर लौट गई थी. दोनों खतों में अनुराधा ने अपने पिता और सौतेली मां से अपनी जान को खतरा और अपनी हत्या का संदेह जताया था.

बेटे को परेशान देख कर मां मालन म्हमाणे भी घबरा गईं. उन्होंने बालासाहेब का कंधा हिलाते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ तुझे, यह खत किस के हैं, जो तू इतना परेशान हो गया?’’

बालासाहेब म्हमाणे ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां यह खत अनुराधा के हैं और इन में कुछ अच्छा नहीं लिखा है. उस के साथ कुछ गलत होने वाला है.’’

यह सुन कर मालन म्हमाणे के होश उड़ गए.

अनुराधा कैसी है, यह जानने के लिए मां ने उसी समय उसे फोन किया तो दूसरी ओर से किसी ने फोन नहीं उठाया. इस के बाद तो उन का और ज्यादा परेशान होना स्वाभाविक था. लिहाजा उन दोनों ने अनुराधा के गांव जाने की तैयारी कर ली.

उसी समय किसी ने उन्हें फोन कर के अनुराधा के बारे में जो बताया, उसे सुन कर मांबेटे के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्हें बताया गया कि अचानक तबीयत खराब हो जाने के कारण अनुराधा की मौत हो गई और रात में ही उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया.

मालन म्हमाणे ने अपने दामाद यानी अनुराधा के पिता को फोन किया तो उन्होंने भी अनुराधा की डेंगू से मौत हो जाने की पुष्टि की. यह बात मालन के गले नहीं उतरी थी. अनुराधा को भला ऐसी कौन सी बीमारी हो गई थी, जब वह यहां से गई थी तो भलीचंगी थी.

अपनी नातिन की मौत की बात मालन के गले नहीं उतर रही थी. आश्चर्य की बात यह थी रिश्तेदारों को कोई खबर दिए बिना उस का दाह संस्कार भी कर दिया गया था.

मालन को अनुराधा के मांबाप पर संदेह होने लगा. अनुराधा का मातम मनाने के लिए उस के घर न जा कर वह सीधे मंगलमेढ़ा पुलिस थाने पहुंच गई. थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे की सारी बातें बता कर उन्होंने अनुराधा के दोनों खत थानाप्रभारी को सौंप दिए.

मामला संदिग्ध भी था और सनसनीखेज भी. मंगलमेढ़ा थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उन की शिकायत दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम और फोरैंसिक टीम को दे दी. इस के बाद वह असिस्टेंट इंसपेक्टर वैभव मार्कंड, सिपाही दत्तात्रेय तोंदले, संजय गुंटाल को साथ ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

अनुराधा की अचानक मौत और उस के दाह संस्कार करने की खबर जब गांव में फैली तो गांव वाले हैरान रह गए. देखते ही देखते गांव के तमाम लोग अनुराधा के घर के सामने इकट्ठे हो गए.

पुलिस टीम ने अनुराधा के परिवार वालों और गांव वालों से उस के बारे में पूछताछ शुरू की. थोड़ी देर में जानकारी पा कर एसपी (ग्रामीण) मनोज पाटिल, एसडीपीओ दिलीप जगदाले भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. लोगों से बातचीत कर के और थानाप्रभारी को दिशानिर्देश दे कर अधिकारी अपने औफिस लौट गए.

अपने वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे उस जगह पर पहुंचे, जहां अनुराधा का अंतिम संस्कार किया गया था. वहां से उन्होंने अनुराधा के शव की राख का सैंपल लिया. जब अनुराधा के कमरे की तलाशी ली गई तो वहां जहरीले पदार्थ की एक शीशी मिली.

दोनों को परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. विस्तृत पूछताछ के लिए पुलिस अनुराधा के मांबाप को थाने ले आई. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि अनुराधा ने उन के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे, जिस से उन्हें उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. अनुराधा की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

20 वर्षीय अनुराधा देखने में जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही चंचल और महत्त्वाकांक्षी भी थी. जो उसे देखता था, अपने आप उस की तरफ खिंचा चला जाता था. लेकिन अनुराधा जिस की तरफ खिंची चली गई, वह उस के बचपन का दोस्त श्रीशैल विराजदार था.

अनुराधा के पिता विट्ठल विराजदार महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के तीर्थस्थल पंढरपुर, तालुका मंगलमेढ़ा, गांव सलगर के रहने वाले थे. तालुका मंगलमेढ़ा में उन की गिनती एक रसूखदार किसान के रूप में होती थी. उन की समाज में काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी.

एक अच्छे काश्तकार होने के साथ साथ वह मंगलमेढ़ा विद्या मंदिर हाईस्कूल में क्लर्क थे. वह इज्जतदार सामाजिक व्यक्ति थे, जबकि अनुराधा का स्वभाव अपने पिता से एकदम अलग था. वह खुले दिमाग की थी. उस के स्वभाव में इंसानियत भी थी और दया भी. वह ऊंचनीच, अमीरगरीब के भेदभाव को नहीं मानती थी.

अनुराधा अपनी बहन और भाई से बड़ी थी. जब वह 2-3 साल की थी, तभी उस की मां की मृत्यु हो गई थी. मां की मौत के बाद पिता के सामने बच्चों की देखभाल और काश्तकारी की वजह से समस्या खड़ी हो गई. इस समस्या के चलते वह किसी पर भी ध्यान नहीं दे पा रहे थे.

तब विट्ठल विराजदार ने अपने नातेरिश्तेदारों और परिवार वालों से सलाहमशविरा कर के दूसरी शादी करने का फैसला किया और पास के गांव की रहने वाली श्रीदेवी से दूसरा विवाह कर लिया.

श्रीदेवी ने विट्ठल विराजदार की गृहस्थी को संभल लिया. अपनी काश्तकारी संभालने के लिए विट्ठल ने कर्नाटक के सिंदगी के रहने वाले चिन्नप्पा विराजदार को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. इस के बाद विट्ठल विराजदार की गाड़ी पटरी पर आ गई.

श्रीशैल विराजदार और अनुराधा हमउम्र थे. श्रीशैल जब कभी अपने पिता से मिलने आता तो अनुराधा उस से घुलमिल जाती थी. उस समय वह यह नहीं जानती थी कि वह उन के नौकर का बेटा है.

कुछ दिनों तक तो श्रीदेवी अपनी सौतन के बच्चों की ठीक से देखभाल करती रही, लेकिन जब वह स्वयं मां बनी तो सौतन के बच्चों के प्रति उस का व्यवहार बदल गया. इसी बीच संदिग्ध परिस्थितियों में अनुराधा की छोटी बहन की मौत हो गई, जिस से अनुराधा को काफी दुख हुआ.

4 साल की हो चुकी अनुराधा को मां और सौतेली मां के बीच के फर्क का अंदाजा होने लगा था. यह फर्क भारी दरार में न बदल जाए, इसलिए विट्ठल विराजदार ने उसे कुछ दिनों के लिए वोराले गांव में उस की नानी और मामा के यहां भेज दिया.

वोराले गांव में अपनी नानी और मामा के साथ रह कर अनुराधा काफी होशियार और समझदार हो गई थी. उस ने जब 10वीं क्लास अच्छे अंकों से पास करती तो आगे की पढ़ाई के लिए विट्ठल विराजदार अनुराधा को अपने गांव ले आए और अच्छे कालेज में दाखिला दिलवा दिया.

अनुराधा डाक्टर बनना चाहती थी. उस की पढ़ाई में रुचि और मेहनत देख कर विट्ठल अनुराधा को डाक्टर के रूप में देखने लगे थे.

अनुराधा ने भी अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए जीतोड़ मेहनत की, जिस से 12वीं की परीक्षा में उस ने 99 प्रतिशत अंक हासिल किए. इस के बाद अनुराधा ने कर्नाटक के सिंदगी मैडिकल कालेज में एडमिशन ले लिया और कालेज के हौस्टल में रह कर मैडिकल की पढ़ाई करने लगी.

विट्ठल विराजदार की खेती संभालने वाला चिन्नप्पा विराजदार सिंदगी का रहने वाला था. उस का बेटा श्रीशैल अनुराधा का बचपन का दोस्त था. सिंदगी मैडिकल कालेज में आ जाने के बाद श्रीशैल कभीकभी अनुराधा से मिलने आने लगा. वह उस का पूरा ध्यान रखता था. कभीकभी अनुराधा भी श्रीशैल के घर पहुंच जाती थी. श्रीशैल के परिवार वाले अपने मालिक की बेटी की हैसियत से उस का आदरसत्कार करते थे.

छुट्टी के दिनों में श्रीशैल अनुराधा को ले कर इधरउधर घुमाने के लिए निकल जाता था. दोनों की बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला. जैसे जैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे उन के प्यार का रंग भी गहरा होता जा रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब अनुराधा और श्रीशैल ने एकदूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खा लीं.

किसी माध्यम से जब इस बात की जानकारी अनुराधा के पिता विट्ठल विराजदार को हुई तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने अनुराधा को ले कर जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरता हुआ नजर आया.

मामला काफी नाजुक था. मौका देख कर पतिपत्नी दोनों ने अनुराधा को काफी समझाया. उसे अपनी मान मर्यादा के बारे में सचेत किया. लेकिन श्रीशैल के प्यार में आकंठ डूबी अनुराधा पर उन की किसी बात का असर नहीं हुआ.

अनुराधा पर अपनी बातों का असर न होता देख विट्ठल विराजदार और उन की पत्नी श्रीदेवी परेशान हो उठे. उन्होंने श्रीशैल और अनुराधा को एकदूसरे से दूर करने के लिए अपने यहां काम कर रहे श्रीशैल के पिता को यह कह कर काम से निकाल दिया कि वह अपने बेटे को समझा दे. अगर उस ने उन की इज्जत से खेलने की कोशिश की तो परिणाम अच्छा नहीं होगा.

इस के साथसाथ उन्होंने अनुराधा को मैडिकल कालेज के हौस्टल से बुला कर घर पर पढ़ाई करने को कहा. इस के बावजूद श्रीशैल ने अनुराधा का पीछा नहीं छोड़ा तो विट्ठल विराजदार ने अपने सगे संबंधियों के साथ श्रीशैल को काफी मारापीटा.

उन लोगों ने परिवार वालों को यह धमकी भी दी कि वह उसे उन की बेटी अनुराधा से दूर रखें. विट्ठल विराजदार और सगे संबंधियों के खिलाफ श्रीशैल के परिवार वालों ने बीजापुर एसीपी औफिस में जा कर शिकायत की.

कहते हैं इश्क बगावत कर बैठे तो दुनिया का रुख मोड़ दे, महलों में आग लगा दे. यही हाल अनुराध और श्रीशैल का था. परिवार की सख्तियों के बावजूद उन के प्यार में कोई कमी नहीं आई थी. बल्कि उन का प्यार और मजबूत हो गया था. दोनों एकदूसरे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. उन की मुश्किलें अब पहले से जरूर ज्यादा बढ़ गई थीं, लेकिन अब वे सावधानी बरतने लगे थे.

श्रीशैल और अनुराधा अमीर गरीब, मानसम्मान की सीमाएं खत्म कर एक हो जाना चाहते थे. उन्हें तलाश थी तो सिर्फ एक मौके की. यह मौका उन्हें पहली अक्तूबर, 2018 को मिल गया. उस दिन कालेज के एक पेपर के बहाने अनुराधा घर से निकली तो वापस नहीं आई. उस ने अपने प्रेमी श्रीशैल के साथ बीजापुर जा कर कोर्टमैरिज कर ली. वहां से वह श्रीशैल के साथ उस के घर चली गई.

इस बात की जानकारी जब विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी को हुई तो उन का खून खौल उठा. अनुराधा ने अपने से कम हैसियत और कम पढ़ेलिखे नौकर के बेटे के साथ कोर्टमैरिज कर उन के अहं और मानसम्मान को जो ठेस पहुंचाई थी, वह उन की बरदाश्त के बाहर था. उन्हें अनुराधा से नफरत हो गई.

2 अक्तूबर, 2018 को विट्ठल विराजदार अनुराधा की ससुराल गए, वहां उन्होंने ठंडे दिमाग से उस के घर वालों और श्रीशैल से बातचीत की और शादी की कुछ रस्मों को निभाने के बहाने अनुराधा को अपने साथ ले आए. लेकिन वह अनुराधा को अपने घर लाने के बजाए अपनी ससुराल वोराले गांव ले कर गए. वहां अनुराधा के मामा और नानी को सारी बातें बता कर उसे समझाने के लिए कहा.

वह 2 दिनों तक अपनी ननिहाल में मामा और नानी के साथ रही, लेकिन डरी और सहमी सी. मामा और नानी ने उसे काफी समझाया, लेकिन अनुराधा के मन से पिता और सौतेली मां का भय कम नहीं हुआ.

उस ने 2 दिनों में अपने पिता और सौतेली मां के खिलाफ 2 लंबे खत लिखे, जिस में उस ने अपनी मौत हो जाने की जिम्मेदारी उन के ऊपर डाली और वह खत किचन में रख दिए, जो बाद में उस की नानी के हाथ लग गए थे.

4 अक्तूबर, 2018 को एक खतरनाक योजना बना कर विट्ठल विराजदार अपनी ससुराल आया और अपनी सास व साले से यह कह कर अनुराधा को अपने साथ ले गया कि उसे पेपर दिलवाने कालेज ले कर जाना है. अनुराधा की मौत से अनभिज्ञ उस की नानी और मामा ने उसे विट्ठल विराजदार के साथ भेज दिया.

घर के अंदर अनुराधा की सौतेली मां श्रीदेवी ने उस की मौत का सारा इंतजाम पहले ही तैयार कर रखा था. गांव आ कर विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी ने अनुराधा पर श्रीशैल से रिश्ता खत्म करने का दबाव बनाया, जिसे अनुराधा ने नकार दिया. इस से नाराज विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी ने अनुराधा को जबरन जहरीला पदार्थ पिला दिया, जिस की वजह से सुबह 4 बजे अनुराधा की मौत हो गई.

पुलिस के शिकंजे से बचने के लिए विट्ठल रात में ही अनुराधा के शव को अपने खेत में ले गया और जला दिया. सुबह को उस ने गांव में यह अफवाह फैला दी कि अनुराधा की डेंगू के कारण अचानक मौत हो गई थी. इसलिए उस ने रात में ही उस का दाह संस्कार कर दिया. इस तरह सिर्फ 5 दिन की दुलहन अनुराधा खोखली प्रतिष्ठा और अहं की आग में जल कर राख हो गई थी.

अनुराधा की मौत की खबर जब टीवी द्वारा श्रीशैल और उस के परिवार वालों को मिली तो उन पर वज्रपात सा हुआ. अनुराधा के मातापिता श्रीशैल को भी मारने वाले थे, मगर वह बच गया.

जांच अधिकारी सहायक इंसपेक्टर वैभव मार्कंड ने विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी से पूछताछ कर उन के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. बाद में दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस के साथ ही पुलिस ने अनुराधा की छोटी बहन की संदिग्ध स्थिति में हुई मौत की जांचपड़ताल भी शुरू कर दी थी.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 5

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सच सच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यार मोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था. कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.