3 लव मैरिज के बाद भी बनी रही बेवफा – भाग 1

“मैं जबलपुर जा रही हूं विनोद, आदिल का ध्यान रखना.’’ भव्या ने अपना सफारी बैग तैयार करते हुए कहा.

“अरे!’’ विनोद शर्मा के चेहरे पर आश्चर्य उमड़ आया, ‘‘अभी 2 दिन पहले ही तो तुम जबलपुर से लौटी हो. फिर जबलपुर..?’’

भव्या ने आंखें नचाईं, ‘‘क्यों, क्या दोबारा जबलपुर जाने की सरकार द्वारा पाबन्दी लगी हुई है?’’

“मेरा यह आशय नहीं है भव्या, जबलपुर एक बार क्या सौ बार जाओ, भला वहां जाने की कैसी पाबंदी. मैं तो कह रहा हूं तुम परसों ही जबलपुर हो कर आई हो, अब फिर जा रही हो.’’

“मेरा काम ही ऐसा है विनोद. मुझे दवा सप्लाई करनी होती है, दवा की दुकानों से और्डर लेने होते हैं. मेरा आनाजाना तो लगा ही रहेगा.’’

“तुम्हें कितनी बार कहा है, मुझे काम करने दो, तुम घर का चूल्हा संभालो, लेकिन तुम्हेें मेरा काम पर जाना पसंद ही नहीं है.’’

“मैं जो कर रही हूं, वह तुम नहीं कर पाओगे, फिर तुम्हें घर रहने में क्या परेशानी है, तुम्हें मैं पूरी सुखसुविधा तो दे रही हूं…’’

“यही तो परेशानी है भव्या, तुम्हारे टुकड़ों पर पल रहा हूं. लोग मुझे ताना मारने लगे हैं, निकम्मा और कामचोर समझने लगे हैं.’’ विनोद गंभीर हो गया.

“लोग मेरे मुंह पर तो कुछ नहीं बोलते, तुम्हें कौन बोलता है, बताओ, मैं उस की जुबान खींच कर हाथ में दे दूंगी.’’ भव्या गुस्से से बोली, ‘‘मैं कमा रही हूं. घर मेरा है, उस का खर्च कैसे चलता है, उन्हें क्या लेनादेना… मैं…’’

“बस.’’ विनोद ने उस की बात काट कर जल्दी से कहा, ‘‘अब गुस्सा बढ़ा कर अपना दिमाग खराब मत करो. बैग तैयार हो गया है तो जाओ, मैं आदिल की देखभाल कर लूंगा. हां, जा रही हो तो मुझे हजार रुपए देती जाओ.’’

“इतने रुपयों का क्या करोगे?’’

“आदिल को चीज दिलानी होती है और रात को मुझे अकेले नींद नहीं आती है, शराब के एकदो पैग पी लेता हूं तो सुकून मिल जाता है.’’

“बस एक साल का सब्र कर लो. मैं एक साल में अच्छा सा मकान ले लूंगी, थोड़ा जरूरत का सामान भी बना लूंगी, तब तुम्हारे साथ ही सोया करूंगी.’’ भव्या ने मुसकरा कर कहा और पर्स में से 5-5 सौ के 2 नोट निकाल कर विनोद की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘रख लो, तुम भी क्या याद रखोगे एक कमाऊ बीवी से नाता जुड़ा है.’’

विनोद शर्मा इस बात पर खुल कर हंसने वाला था, लेकिन उस की नजर भव्या के पर्स से झांक रहे 5-5 सौ रुपयों की गड्डी पर चली गई. इतने रुपए देख कर उस के दिमाग में धमाके होने शुरू हो गए ‘उस की पत्नी भव्या अनैतिक काम करती है… वह अपना जिस्म बेचती है… घर में हरे नोटों की रेलमपेल ऐसे ही नहीं हो रही. आयुर्वेदिक दवा का छोटा सा कारोबार इतनी मोटी कमाई नहीं दे सकता. भव्या बदचलन है, भव्या से शादी कर के वह धोखा खा गया है.’

भव्या कब अपना बैग उठा कर निकल गई, विनोद को पता ही नहीं चला. वह भव्या को ले कर बुरे खयालों के भंवरजाल में उलझता जा रहा था.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के थाना विजय नगर में रोजाना की भांति कामकाज हो रहा था. इस थाने की इंसपेक्टर अनीता चौहान थी, जो अपने कक्ष में बैठी एक लूट व चोरी के मामले की फाइल देख रही थी कि कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी ने दरवाजे पर दस्तक दी. प्रभारी निरीक्षक ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. कांस्टेबल अक्षय को दरवाजे पर देख कर उन्होंने उसे अंदर आने की अनुमति दे दी. कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी ने उन की मेज के पास आ कर सैल्यूट करने के बाद बगैर किसी भूमिका के कहा,

‘‘आवास विकास कालोनी वृंदावन एनक्लेव में एक महिला का कत्ल हो गया है मैडम.’’

“ओह!’’ हाथ में पकड़ी कलम इंसपेक्टर अनीता चौहान के हाथ से छूट कर फाइल पर गिर गई, वह चौंकते हुए बोली,

‘‘सुबहसुबह यह खबर तुम्हें कहां से मिल गई अक्षय?’’

“मैडम, वादी टीपू यहां आया है, उसी ने यह खबर दी है.’’

“कहां है टीपू, उसे अंदर बुलाओ.’’ कुरसी की पुश्त से लगती हुई अनीता चौहान ने कहा. कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी बाहर चला गया. कुछ ही देर में वह एक व्यक्ति के साथ अंदर आया. अनीता चौहान ने उस व्यक्ति को सिर से पांव तक देखा. वह बहुत घबराया हुआ था.

“क्या नाम है तुम्हारा?’’ अनीता चौहान ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

“जी, मेरा नाम टीपू है. मैं वृंदावन एनक्लेव की 9/2763 आवास विकास कालोनी में रहता हूं. मेरे बहन और जीजा भी इसी कालोनी के मकान नंबर 9/2556 में रहते हैं. मेरी बहन भव्या शर्मा का रात को मेरे जीजा विनोद शर्मा ने मर्डर कर दिया है.’’

“मर्डर तुम्हारे जीजा विनोद शर्मा ने किया है, यह तुम किस आधार पर कह रहे हो?’’ इंसपेक्टर चौहान ने हैरानी से पूछा.

“मेरी बहन के बेटे आदिल ने मुझे बताया है कि कल शाम से उस की मां भव्या और पिता विनोद शर्मा में जम कर झगड़ा हुआ था. वह कत्ल होते नहीं देख पाया, क्योंकि झगड़ा बढऩे पर उस को विनोद ने खिलौना लाने के लिए बाहर भेज दिया था.’’

“बैठ जाओ.’’ इंसपेक्टर अनीता चौहान ने हाथ का इशारा कर के कहा तो टीपू सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

“क्या तुम्हारी बहन ने अपने समाज से बाहर शादी की थी? यह विनोद शर्मा…’’

“विनोद शर्मा हिंदू ही है मैडम. मेरी बहन बेबी उर्फ अफसाना ने उस से तीसरी शादी की थी. तब उस का नाम भव्या शर्मा रख दिया गया था.’’

“क्या कह रहे हो?’’ चौंक कर प्रभारी निरीक्षक ने टीपू की ओर देखा, ‘‘तुम्हारी बहन ने 3-3 शादियां की थीं?’’

4 नाम, 3 शादियां, 2 बार बदला धर्म…

“जी हां,’’ टीपू ने बताया, ‘‘मेरी बहन बेबी उर्फ भव्या ने अपनी मरजी से पहली शादी 2004 में दिल्ली के रहने वाले योगेंद्र कुमार से की थी. योगेंद्र से शादी कर उस ने अपना नाम अंजलि रख लिया था. उस से उसे एक बेटा निहाल हुआ था, जो अब 16 साल का हो चुका है. योगेंद्र से नहीं बनी तो उस ने 2017 में अनीस अंसारी से निकाह कर लिया. अनीस से शादी कर वह अफसाना बन गई. आदिल अनीस अंसारी का ही बेटा है. मेरी बहन की अनीस से भी पटरी नहीं बैठी तो उस ने 2019 में विनोद शर्मा से शादी कर ली. आदिल इसी के साथ रहता आया है. उस ने तीनों ही लवमैरिज की थीं.’’

“हूं, अब बात मेरी समझ में आई है. नामों के घालमेल ने मुझे तो उलझा ही दिया था.’’ इंसपेक्टर अनीता चौहान हलके से मुसकरा दीं. मन ही मन वह भव्या की स्वच्छंद जिंदगी का अनुमान कर इतना तो समझ ही चुकी थी कि भव्या शर्मा उर्फ अफसाना उर्फ बेबी रंगीन तबीयत की महिला रही है, जिस की एक भी पति से पटरी नहीं बैठ पाई है.

फिलहाल मामला हत्या का था, इसलिए कुछ ज्यादा न पूछ कर रोजनामचे में अपनी रवानगी दर्ज करके एसआई योगराज सिंह, हैडकांस्टेबल अमित राय और कांस्टेबल अक्षय त्रिपाठी को साथ ले कर टीपू के साथ घटनास्थल वृंदावन एनक्लेव की आवास विकास कालोनी के लिए रवाना हो गई.

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 1

22 नवंबर, 2013 की शाम को राजकुमार अपने घर की पहली मंजिल पर साफसफाई करने गया तो उसे वहां कुछ बदबू महसूस हुई. वह इधरउधर देखने लगा. जिस तरफ से बदबू आ रही थी, वह उसी तरफ बढ़ गया. बालकनी से होते हुए राजकुमार एक कमरे के पास पहुंचा तो वहां बदबू और बढ़ गई. वह समझ गया कि बदबू शायद उसी कमरे से आ रही है. उस कमरे में बाहर से ताला बंद था, क्योंकि उस में रहने वाला किराएदार राहुल 3 दिनों पहले अपनी पत्नी खुशबू को ले कर कहीं चला गया था.

कमरे से आने वाली बदबू किसी चूहे वगैरह के मरने की नहीं लग रही थी. किसी गड़बड़ी की आशंका से राजकुमार डर गया. वह सीधासादा आदमी था, इसलिए उस ने तुरंत 100 नंबर पर फोन कर दिया. पुलिस को जो काल मिली थी. उस में पता— मकान नंबर बी-13/1 बी, गली नंबर-3, अंबिका विहार, करावलनगर बताया गया था.  पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना करावलनगर को दे दी, साथ ही पीसीआर वैन भी बताए गए पते पर पहुंच गई. यह शाम करीब साढ़े 6 बजे की बात है. राजकुमार पुलिस वालों को पहली मंजिल पर स्थित उस कमरे पर ले गया, जिस में से बदबू आ रही थी.

चूंकि कमरे में बाहर से ताला बंद था, इसलिए पुलिस भी नहीं समझ पाई कि बदबू किस चीज की है. पीसीआर की काल मिलने पर थाना करावलनगर से एएसआई कविराज शर्मा और कांस्टेबल कृष्ण पाल को बताए गए पते पर भेजा गया. थाना पुलिस के पहुंचने तक राजकुमार के घर के पास काफी लोग जमा हो चुके थे. सभी तरहतरह के कयास लगा रहे थे. कविराज शर्मा ने भी उस कमरे के पास जा कर देखा, जिस में से दुर्गंध आ रही थी. कमरे पर लगे ताले को उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के आने से पहले छेड़ना उचित नहीं समझा.

उस कमरे में दरवाजे के ऊपर एक रोशनदान था. उस रोशनदान से कमरे में झांका जा सकता था. कविराज ने एक सीढ़ी मंगाई और उस पर चढ़ कर कमरे में झांक कर देखा. कमरे में घुप्प अंधेरा होने की वजह से कुछ दिखाई नहीं दिया. उन्होंने रोशनदान से टौर्च की रोशनी डाल कर अंदर देखा तो फर्श पर पड़े खून के साथसाथ एक बड़ा सा बैग भी दिखाई दिया. कविराज शर्मा माजरा समझ गए. उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया.

क्राइम टीम द्वारा बंद दरवाजे के फोटो वगैरह लेने के बाद कविराज शर्मा ने कमरे का ताला तोड़ा. जब दरवाजा खोला गया तो बदबू के भभके ने सभी को नाक बंद करने के लिए मजबूर कर दिया. अंदर कमरे में फर्श पर एक बड़ा सा लालकाले रंग का बैग रखा था. फर्श पर खून फैला था, जो सूख कर काला पड़ चुका था. बेड पर बिछी चादर और वहां रखी रजाई पर भी खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे. बेड पर चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. यह सब देख कर यही लगा कि इस बैग में किसी की लाश ही होगी.

बैग की चेन खुली थी. अंदर प्लास्टिक का एक बोरा रखा था. बोरा बैग से बाहर निकाला गया तो उस में से खून रिस रहा था. बोरा को खोला गया तो उस में से एक युवती की लाश निकली, जिस की गरदन कटी हुई थी. लाश सड़ चुकी थी. लाश देख कर राजकुमार ने बताया कि यह राहुल की बीवी खुशबू है. चूंकि राहुल वहां से गायब था, इसलिए यह बात साफ हो गई कि पत्नी की हत्या राहुल ने ही की है.

एएसआई कविराज ने इस मामले की सूचना थानाप्रभारी लेखराज सिंह को दी तो वह इंसपेक्टर अरविंद प्रताप सिंह और सबइंसपेक्टर जफर खान को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना कर के मकान मालिक राजकुमार गिरि से पूछताछ की. राजकुमार ने बताया कि राहुल शर्मा अपनी पत्नी खुशबू के साथ 15 अप्रैल, 2013 से वहां रह रहा था. 19 नवंबर को जब वह नीचे गैलरी में खड़ा था, तभी उस ने राहुल को जीने से उतरते देखा था.

पूछने पर राहुल ने बताया था कि खुशबू की बहन की डिलीवरी होनी है, इसलिए वह अपनी बहन के यहां जा रही है. वह आगे चली गई है. 19 तारीख के बाद राहुल वापस नहीं लौटा था. आज जब वह ऊपर की साफसफाई करने गया तो बदबू महसूस हुई. तब उस ने इस की सूचना पुलिस को दे दी थी. घनास्थल की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए गुरु तेग बहादुर अस्पताल भेज दी और हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस केस को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी लेखराज सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंस्पेक्टर अरविंद प्रताप सिंह, सबइंसपेक्टर जफर खान, सहायक सबइंसपेक्टर कविराज शर्मा, कांस्टेबल कृष्णपाल और दयानंद आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को राजकुमार से पता चला कि राहुल को अंबिका विहार के रहने वाले उस के एक परिचित उमेश ने किराए पर रखवाया था. इस से पहले राहुल के यहां किराए पर रहता था. पुलिस ने उमेश से संपर्क किया तो उस के पास से राहुल का फोन नंबर और पता मिल गया. वह लोनी क्षेत्र के गांव हाजीपुर वेहटा का रहने वाला था.

पुलिस ने राहुल का फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. हत्या करने के बाद कोई व्यक्ति घर पर मिले, ऐसा कम ही संभव होता है. फिर भी राहुल के बारे में पता लगाने के लिए पुलिस उस के गांव हाजीपुर वेहटा गई. पुलिस ने गोपनीय रूप से राहुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. इसी पूछताछ में पुलिस को एक चौंकाने वाली बात पता चली. चौंकाने वाली बात यह थी कि राहुल शर्मा ने 20 नवंबर को बुलंदशहर की एक लड़की से शादी की थी और यह शादी घर वालों की मरजी से सामाजिक रीतिरिवाज से हुई थी. सवाल यह था कि राजकुमार दिल्ली में खुशबू नाम की जिस लड़की के साथ रहता था, वह कौन थी?

बहरहाल पुलिस टीम दिल्ली लौट आई. पुलिस राहुल के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा कर बराबर वाच कर ही रही थी. 23 नवंबर की शाम को पता चला कि राहुल के फोन की लोकेशन करावलनगर चौक के आसपास है. राजकुमार गिरि राहुल को पहचानता था, इसलिए पुलिस टीम उसे अपने साथ ले कर करावलनगर चौक पहुंच गई.

पुलिस टीम सादा कपड़ों में थी. वह काफी देर तक राजकुमार को इधरउधर टहलाती रही. इसी बीच राजकुमार की नजर चाय की एक दुकान पर गई. राहुल शर्मा वहां एक बैंच पर बैठा चाय पी रहा था. राजकुमार के इशारे पर पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. थाने ला कर जब उस से खुशबू की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी ही आसानी से हत्या की बात कुबूल ली. उस से पूछताछ के बाद एक दिलचस्प कहानी पता चली.

राहुल शर्मा के पिता आदेश कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 ही बच्चे थे. बेटा राहुल और एक बेटी. हालांकि उन का छोटा सा परिवार था, लेकिन वह परिवार को हर तरह से खुश देखना चाहते थे. इसी चाह में वह गढ़मुक्तेश्वर से लोनी चले आए. लोनी में वह इसलिए आए, क्योंकि यह दिल्ली की सीमा से सटा हुआ था. उन्होंने सोचा था कि वहां रह कर अपने लिए दिल्ली में कोई कामधंधा खोज लेंगे.

थोड़ी कोशिश के बाद उन की दिल्ली होमगार्ड में नौकरी लग गई. शुरू में तो उन्हें होमगार्ड का काम करते हुए अच्छा लगा, लेकिन 5-6 सालों बाद ही इस काम से ऊबने लगे. वजह यह थी कि इस से उन्हें अच्छी आमदनी नहीं हो पाती थी. अब तक उन्होंने लोनी के पास के गांव वेहटा हाजीपुर वेहटा में मकान भी बना लिया था.  उन्होंने वेहटा रेलवे स्टेशन के नजदीक प्रौपर्टी डीलिंग की दुकान खोल ली. ड्यूटी से लौटने के बाद वह दुकान पर बैठते थे. उन का बेटा राहुल बड़ा हो चुका था, इसलिए पिता की गैरमौजूदगी में वह दुकान संभालता था.

आदेश कुमार का प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा जम गया तो उन्होंने होमगार्ड की नौकरी छोड़ दी और पूरे समय दुकान पर बैठने लगे. उन की मेहनत रंग लाने लगी. आमदनी बढ़ने लगी तो उन्होंने अपने प्रौपर्टी के बिजनैस को नए आयाम देने शुरू कर दिए. लोनी के नजदीक ही उन्होंने कई एकड़ जमीन खरीद ली. उस जमीन पर उन्होंने अपने बेटे के नाम पर ‘राहुल विहार’ नाम की कालोनी बसानी शुरू कर दी.