सवालों के घेरे में मोटिव, मर्डर, वेपन और चश्मदीद – भाग 3

हद तो तब हो गई, जब सीरत का कस्टडी रिमांड हासिल करने के लिए उसे सुबह अदालत में पेश किया गया. वहां माननीय जज से उस ने सीधे कहा कि एकम ने अपने लाइसैंसी रिवौल्वर से आत्महत्या की थी. डर जाने की वजह से वह उस की लाश को ठिकाने लगाने की भूल कर बैठी. अब पुलिस उसे एकम के कत्ल के झूठे केस में फंसा रही है.

माननीय जज ने सीरत को 2 दिनों के कस्टडी रिमांड में रखने का आदेश देते हुए पुलिस से कहा था कि मामला हाईप्रोफाइल है, जांच में कहीं कोई कमी नहीं होनी चाहिए. उसी दिन मोहाली के फेज-6 स्थित सिविल अस्पताल के 3 डाक्टरों मनहर सिंह, हिम्मत मोहन सिंह और कुलदीप सिंह ने एकम के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी और स्टिल फोटोग्राफी भी कराई गई.

अपनी रिपोर्ट में डाक्टरों ने लिखा कि गोली एकम के सिर में कान के पास से होते हुए दिमाग को चीर कर दूसरी तरफ निकल गई थी. लेकिन रिपोर्ट में एकम के जिस्म पर किसी चोट का कोई उल्लेख नहीं था. मृतक का विसरा ले कर रासायनिक परीक्षण के लिए खरड़ स्थित फोरैंसिक लैब में भिजवा दिया गया था. एकम के भाई और पिता को पहले से ही मोहाली पुलिस पर भरोसा नहीं था. उन का आरोप था कि एसपी पंधेर आरोपियों को बचा रहे हैं. इस बात की शिकायत करने के लिए वे 20 मार्च को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिले.

मुख्यमंत्री के आदेश पर एसपी पंधेर को इस केस से अलग कर मोहाली के युवा एसएसपी कुलदीप सिंह चाहल की अगुवाई में स्पैशल इनवैस्टीगेटिव टीम (एसआईटी) का गठन कर दिया गया, साथ ही यह आदेश भी पारित किया गया कि इस केस की छानबीन के संबंध में एसएसपी अपनी रिपोर्ट तैयार कर रोजाना मुख्यमंत्री को भेजा करेंगे. ऐसा ही किया भी जाने लगा था, लेकिन पूछताछ में समस्या यह आ रही थी कि जब सीरत से पूछताछ की जाने लगी तो वह कभी अपने कपड़े फाड़ने लगती तो कभी चीखचीख कर थाना सिर पर उठा लेती. वह अपने बच्चों से मिलवाने की जिद भी कर रही थी.

उस की हरकतों से परेशान हो कर पुलिस वाले थाने से बाहर निकल कर अधिकारियों को फोन करने लगते थे. सीरत के इसी नाटक में 2 दिन का कस्टडी रिमांड खत्म हो गया. अब उस का लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाने की कवायद शुरू की गई. उस की रिमांड अवधि भी 6 दिनों की करवा ली गई. लेकिन सीरत ने लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाने से मना कर दिया. इस बीच सीसीटीवी कैमरे की एक ऐसी फुटेज पुलिस के हाथ लग गई, जिस में सीरत अकेली सीढि़यों से सूटकेस घसीटते हुए नीचे ला रही थी और बारबार खून के धब्बे साफ कर रही थी.

इस से लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वाकई उस ने अकेले ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया हो और अब जानबूझ कर अन्य लोगों को फंसाने का प्रयास कर रही हो. जबकि उस की अपने भाई से पिछले लंबे अरसे से बोलचाल नहीं थी.

6 दिनों का कस्टडी रिमांड भी निकल गया. लेकिन पुलिस सीरत से जरूरी पूछताछ नहीं कर सकी. 27 मार्च को उसे अदालत में पेश कर के रिमांड अवधि बढ़ाने की मांग की गई तो सक्षम जज ने मना करते हुए सीरत को न्यायिक हिरासत में नाभा की हाई सिक्योरिटी जेल भेज दिया. अब पुलिस बिना अदालत की अनुमति के उस से एक भी सवाल नहीं पूछ सकती थी. जबकि एकम परिवार के सदस्य न्याय की खातिर बारबार पुलिस के बड़े अधिकारियों से गुहार लगा रहे थे.

3 अप्रैल, 2017 को सीरत के भाई विनय प्रताप सिंह बराड़ उर्फ विन्नी ने एसएसपी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई, जिस में वह बेकसूर पाया गया. उसे रिहा करने के अलावा पुलिस के पास कोई उपाय नहीं था. इसी तरह 10 अप्रैल को सीरत की मां जसविंदर कौर ने भी अपने वकील के साथ एसएसपी कुलदीप सिंह चाहल के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. उस से भी पुलिस ने पूछताछ की. वह भी पूछताछ में बेकसूर पाई गई तो उसे भी छोड़ दिया गया.

यह एक निहायत उलझा हुआ हाईप्रोफाइल केस था. सीरत के पिता का तभी देहांत हो गया था, जब वह काफी छोटी थी. उस का लालनपालन उस के मामा अजीत सिंह मोफर ने किया था, जो बाद में पंजाब की सरदूलगढ़ सीट से कांग्रेसी विधायक चुने गए थे. सीरत की मरजी के अनुसार एकम से शादी करवाने में भी उस के इस मामा ने अपना पूरा सहयोग दिया था. सीरत की अपने भाई से नहीं बनती थी. वह उस की शादी में भी शामिल नहीं हुआ था.

कहते हैं कि सीरत आधुनिक विचारों की खुले हाथों खर्च करने वाली औरत थी. सन 2011 में जिन दिनों एकम पंजाब एग्रो विभाग में मैनेजर के पद पर कार्यरत था, वहां करोड़ों रुपए का घोटाला हुआ था. इस बारे में आपराधिक केस भी दर्ज हुआ था, जिस में कुछ अन्य लोगों के अलावा एकम और सीरत भी आरोपी थे.

यह केस अभी भी मोहाली की एक अदालत में चल रहा है. एकम हत्याकांड में तभी कुछ सामने आ सकेगा, जब कड़ी से कड़ी जोड़ कर व्यापक छानबीन की जाएगी. पुलिस भी खुल कर सामने नहीं आ रही है. केस को ले कर उस के पास शायद कुछ ऐसे पत्ते हैं, जिन्हें वह अभी खोलना नहीं चाहती. वक्त आने पर ही शायद खोल कर केस को मजबूत करे.

अभी तक तो मर्डर का न मोटिव सामने आया है, न मर्डर वेपन ही विश्वसनीय लग रहा है और न ही इस कांड का कोई चश्मदीद गवाह है. फिलहाल औटोचालक का रोल भी परदे के पीछे कर दिया गया है.

एकम के उस रात शराब न पीने की पुष्टि हो चुकी है. कहा जाता है कि वह एक महीने पहले ही शराब पीना छोड़ चुका था. उस का लाइसैंसी रिवौल्वर भी तब से थाने में जमा था, जब पंजाब में विधानसभा के चुनाव हुए थे. ऐसे में वह पिस्तौल किस की थी, जिस से गोली चलने की बात मान कर मौके से कब्जे में लिया गया.

फिलहाल, केस की ताजा स्थिति यह है कि न्यायिक हिरासत की अवधि समाप्त होने पर सीरत जब मोहाली की अदालत में पेश हुई तो उस की हिरासत अवधि बढ़ाते हुए माननीय जज ने आदेश दिया कि आगे उस की पेशी वीडियो कौन्फ्रैंसिंग से हुआ करेगी. मतलब सीरत को निजी रूप से अदालत में पेश नहीं होना पड़ेगा. सीरत ने अपने बच्चों की कस्टडी हासिल करने की बात भी जज से कही थी, जिस के लिए उसे संबंधित अदालत में अर्जी लगाने को कहा गया.

पुलिस का कहना है कि इस केस में अभी भी जांच जारी है. फिलहाल इस में किसी को क्लीनचिट नहीं दी गई है. जिन्हें छोड़ा गया है, उन्हें पूछताछ के लिए कभी भी फिर से बुलाया जा सकता है.

सवालों के घेरे में मोटिव, मर्डर, वेपन और चश्मदीद – भाग 2

लेकिन लंबे अरसे बाद 8 मार्च की रात एकम सिंह अचानक पिता के पास जा पहुंचा. उस समय वह काफी दुखी और परेशान था. रोते हुए उस ने पिता को बताया था कि वह अपनी जिंदगी से काफी परेशान है. उस की पत्नी और सास उसे परेशान कर रही हैं. उस ने यह भी बताया था कि कल उस के साथ बड़ा धोखा हो सकता है. इस के अलावा भी उस ने कई और चौंकाने वाली बातें बताई थीं.

जसपाल सिंह ने उसे आश्वस्त किया था कि वह जल्दी ही उस के घर आ कर इस मामले में उस की पत्नी और सास से बात कर के उस की समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे. इस के बाद उन्होंने एकम से खाना खा कर जाने को कहा, लेकिन वह भूख न होने की बात कह कर चला गया था.

अगले दिन सवेरे ही दर्शन सिंह ढिल्लो को उस के किसी दोस्त ने फोन कर के एकम के साथ कोई हादसा होने की बात बताई थी. फोन सुनते ही वह उस के घर की ओर चल पड़ा था. एकम पहले चंडीगढ़ के सैक्टर-35 में किराए के मकान में रहता था, जहां वह 80 हजार रुपए महीना किराया देता था. करीब 20 दिनों पहले ही वह मोहाली में एक कनाल की इस कोठी की पहली मंजिल किराए पर ले कर बीवीबच्चों के साथ रहने आया था.

भाई के घर आने पर दर्शन सिंह को भाई के कत्ल के बारे में पता चला था तो उस ने फोन कर के पिता को भी बुला लिया था.

पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम का काम निपटाया गया. पुलिस ने दर्शन सिंह ढिल्लो की तहरीर पर भादंवि की धाराओं 302, 201 व 34 के तहत थाना मटौर में मुकदमा दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी.

चूंकि मृतक के सिर में गोली लगने का घाव साफ दिखाई दे रहा था, इसलिए पहली ही नजर में यह मामला गोली मार कर हत्या करने का लग रहा था. इसलिए मुकदमे में शस्त्र अधिनियम की धाराओं 25/54 एवं 59 का भी समावेश किया गया था.

दर्शन सिंह ने अपनी तहरीर में जिन लोगों को नामजद किया था, उस में सीरत कौर ढिल्लो, विनय सिंह बराड़ और जसविंदर कौर बराड़ थीं. इन में विनय एकम सिंह का साला था तो जसविंदर कौर सास. इन तीनों को मुख्यरूप से आरोपी बनाने के अलावा शिकायत में यह भी आशंका व्यक्त की गई थी कि वारदात के समय इन के साथ कुछ और लोग भी रहे होंगे.

इस की वजह मजबूत कदकाठी के लंबेतगड़े आदमी के साथ मारपीट करने और गोली मार कर हत्या करने के बाद उस की लाश को सूटकेस में ठूंस कर भरने का काम 2 महिलाएं और एक आदमी के वश की बात नहीं थी. फिर महिलाओं में भी एक औरत दुबलीपतली और बूढ़ी थी. मौके पर ही दर्शन सिंह ढिल्लो एक बात चीखचीख कर कह रहा था कि सीरत कौर पंजाब के एक बड़े कांग्रेसी नेता की सगी भांजी है, इसलिए पुलिस इस मामले को कतई गंभीरता से नहीं लेगी.

नामजद अभियुक्त फरार हो चुके थे. उन की तलाश में पुलिस ने भागदौड़ शुरू की. पुलिस को इस मामले में कोई सफलता मिलती, उस के पहले ही उसी दिन शाम को एक आदमी बड़ी सी गाड़ी में आया और नामजद मुख्य अभियुक्ता सीरत कौर को थाना मटौर में छोड़ गया. सीरत ने थानाप्रभारी के सामने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर औपचारिक पूछताछ शुरू की.

इस पूछताछ में पता चला कि सीरत की दोस्ती अपने भाई विनय प्रताप सिंह बराड़ के एक दोस्त से थी. इसी दोस्ती की वजह से उस ने भाई और उस के उस दोस्त के साथ मिल कर अपने पति को मौत के घाट उतार दिया था. इस बात की जानकारी उस की मां जसविंदर कौर को भी थी. सीरत के दोस्त ने एकम सिंह पर 2 गोलियां चलाई थीं. उन में से एक उस की खोपड़ी में लगी थी और दूसरी पिस्टल में ही फंस कर रह गई थी.

एकम को खत्म करने की योजना बना कर सभी शनिवार की रात घर आ गए थे. देर रात एकम घर आया तो पहले उस से मारपीट की गई. उस के बाद उसे जबरदस्ती बाथरूम में ले जाया गया और गोली मार दी गई. जब वह मर गया तो वहां पड़े खून के धब्बों को साफ कर के एकम की लाश को ठिकाने लगाने के लिए सूटकेस में ठूंस दिया गया.

सुबह सीरत अकेली सूटकेस को खींचती हुई नीचे ले आई. सूटकेस उतारते समय सीढि़यों में जहांतहां भी खून टपका, उस ने उसे साफ कर दिया. इस से पहले वह नीचे जा कर गाड़ी का गेट खोल कर इस बात का अंदाजा लगा आई थी कि सूटकेस को कहां रखना चाहिए.

इसी चक्कर में गाड़ी की चाबी डिक्की में गिर गई थी और इस बात से बेखबर सीरत ने डिक्की बंद कर दी थी. कार के दरवाजे खुले ही थे. सूटकेस नीचे ला कर जब वह सूटकेस गाड़ी में नहीं रख पाई तो वहां सवारी छोड़ने आए औटोचालक को रोक कर उस से मदद मांगी. सूटकेस रखवा कर वह चला तो गया, लेकिन सीरत को उस की बातों से लगा कि उसे उस पर शक हो गया है.

थोड़ी ही देर में सीरत कौर को पुलिस वैन आती दिखाई दी तो वह वहां से भाग गई. उस के बताए अनुसार, उस के साथ कोई अन्य औरत नहीं थी. औटोचालक ने पता नहीं क्यों झूठ बोला था. पुलिस की तो जैसे लौटरी निकल आई थी. जरा सी देर में बिना खास प्रयास के एक हाईप्रोफाइल मर्डर केस का खुलासा हो गया था. सीरत ने आत्मसमर्पण कर दिया था. अब अन्य अभियुक्तों को भी आसानी से पकड़ा जा सकता था.

परंतु रात में ही पुलिस की आशा निराशा में बदल गई. सीरत की गिरफ्तारी की सूचना पा कर रात में जब पुलिस के बड़े अधिकारी उस से पूछताछ करने थाने पहुंचे तो वह पिछले बयानों से मुकर गई. अब वह कहने लगी थी कि पति के अत्याचारों से तंग आ कर उस ने अकेले ही उस की हत्या की थी. एकम उस के चरित्र पर शक करते हुए उस से मारपीट करता था. पिछली रात भी वह शराब पी कर आया और उस से मारपीट करते हुए उस ने उस पर अपना रिवौल्वर तान दिया. मौका पा कर रिवौल्वर छीन कर उस ने उसी पर गोली चला दी.

रिवौल्वर के बारे में उस ने बताया कि वह घर की अलमारी में पड़ी है. लेकिन इस कांड में उस के साथ कोई और नहीं था. उस ने अकेले अपनी सुरक्षा को ध्यान में रख कर यह कत्ल किया है और वह अपना अपराध स्वीकार कर रही है.

सवालों के घेरे में मोटिव, मर्डर, वेपन और चश्मदीद – भाग 1

19 मार्च, 2017 की सुबह एक औटोचालक गुरुद्वारा के सामने खड़ी पीसीआर वैन के पास पहुंचा तो काफी बदहवास था. औटोचालक औटो चलाता हुआ आया था, जिस से उस के चेहरे पर हवा भी लगी होगी, पर उस हाल में भी उस के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा रही थीं. औटो से लगभग कूदता हुआ वह पीसीआर वैन के पास पहुंचा और वैन में बैठे सिपाहियों से बोला, ‘‘साहब, उधर एक कोठी में 2 औरतें एक बीएमडब्ल्यू कार में बड़े साइज का सूटकेस रख रही थीं. सूटकेस भारी था, इसलिए उन्होंने मेरा औटो रुकवा कर मुझ से मदद मांगी.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ वैन में बैठे एक सिपाही ने पूछा.

‘‘मैं सूटकेस गाड़ी में रखवाने लगा तो देखा उस में से खून रिस रहा था. जब मैं ने उन से खून के बारे में पूछा तो एक औरत ने अपना खून सना हाथ दिखाते हुए कहा कि सूटकेस नीचे उतारते वक्त उस के हाथ में चोट लग गई थी, यह उसी का खून है.’’

‘‘वहां हुआ क्या है, तुम यह क्यों नहीं बताते?’’ सिपाही ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मुझे लग रहा है कि किसी की हत्या कर के वे औरतें लाश को उस सूटकेस में रख कर कहीं फेंकने ले जा रही हैं. आप लोग वहां जल्दी पहुंचें वरना वे लाश ले कर निकल जाएंगी.’’ औटोचालक ने कहा.

जैसे ही औटोचालक ने लाश की बात कही, पीसीआर में बैठे सिपाहियों ने औटोचालक को गाड़ी में बिठाया और उसे ले कर मोहाली के फेज-3 बी-1 की कोठी नंबर 116 के सामने पहुंच गए. कोठी के सामने सिल्वर कलर की बीएमडब्ल्यू कार खड़ी थी, जिस का नंबर था सीएच04एफ 0027 था. उस समय वहां कार के अलावा कोई नहीं था. कोई औरत भी वहां नजर नहीं आई.

औटोचालक के कहने पर पीसीआर वैन से आए सिपाहियों ने बीएमडब्ल्यू का पिछला दरवाजा खोला तो उस में गहरे रंग का एक बड़ा सूटकेस रखा था, जिस से खून रिस कर बाहर आ रहा था. पीसीआर वैन के इंचार्ज ने तुरंत इस बात की सूचना संबंधित थाना मटौर को दे दी. थोड़ी ही देर में थाना मटौर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर बलजिंदर सिंह पन्नू पुलिस टीम के साथ वहां आ पहुंचे.

पुलिस को देख भीड़ जुटने लगी. उस भीड़ में से एक आदमी ने आगे आ कर अपना नाम दर्शन सिंह ढिल्लो बताते हुए कहा, ‘‘सर, अभीअभी मुझे किसी ने बताया है कि मेरे बड़े भाई एकम सिंह किसी हादसे का शिकार हो गए हैं. प्लीज, बताइए न मेरे भाई को क्या हुआ है?’’

बलजिंदर सिंह पन्नू अभी कुछ देर पहले ही वहां आए थे. वहां की स्थिति देख कर उन्होंने कोई काररवाई करने से पहले अपने अधिकारियों को सूचित करना उचित समझा. अधिकारियों को सूचना दे कर वह उन के आने का इंतजार कर रहे थे. इसलिए दर्शन को वह कुछ नहीं बता सके.

थोड़ी देर में डीएसपी (सिटी-1) आलम विजय सिंह के अलावा कुछ अन्य पुलिस अधिकारी भी वहां आ पहुंचे. इंसपेक्टर अतुल सोनी के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच की विशेष टीम भी आ गई थी. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीमों को भी बुला लिया गया था.

पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में मौके का नक्शा बना कर बीएमडब्ल्यू कार से सूटकेस निकलवा कर खोला गया तो उस में एक लंबेतगड़े आदमी की लाश निकली, जिसे इस तरह तोड़मोड़ कर ठूंसा गया था कि उस के घुटने उस की ठुड्डी को छू रहे थे. उसे देखते ही दर्शन सिंह ढिल्लो ने कहा कि यह लाश उस के बड़े भाई एकम सिंह ढिल्लो की है. उस ने बताया कि उस के भाई का कद सवा 6 फुट से ज्यादा लंबा और उन का वजन 90-95 किलोग्राम था. चौंकाने वाली बात यह थी कि जिस सूटकेस में लाश ठूंसी गई थी, उस का आकार 2 बाई ढाई फुट था.

पुलिस लाश का निरीक्षण कर रही थी कि मृतक एकम सिंह के पिता जसपाल सिंह भी आ गए. शायद उन्हें दर्शन ने फोन कर के बुला लिया था. लाश का पंचनामा तैयार कर उसे कब्जे में लेने के बाद पुलिस ने वहां मौजूद कुछ लोगों के बयान लेने के साथ दर्शन सिंह ढिल्लो और उस के पिता जसपाल सिंह से भी काफी विस्तार से पूछताछ की. ये बापबेटे मोहाली के फेज-6 में रहते थे. दोनों से हुई बातचीत में मृतक के बारे में जो पता चला, वह इस तरह से था…

सरदार जसपाल सिंह अपना कारोबार तो करते ही थे, साथसाथ पंजाब के जानेमाने मानवाधिकार कार्यकर्ता भी थे. दरअसल, खालिस्तान मूवमेंट के फाउंडर संत जरनैल सिंह भिंडरावाला से उन की अच्छी जानपहचान थी. उन के प्रति वह काफी हमदर्दी भी रखते थे. औपरेशन ब्लूस्टार के बाद जसपाल सिंह पूरी तरह ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट बन गए थे. 1990 में कुछ हार्डलाइनर्स सिखों से संबंध रखने के आरोप में वह पंजाब पुलिस द्वारा गिरफ्तार भी किए गए थे. समाज में उन का अच्छाखासा रुतबा था.

जसपाल सिंह ने 3 शादियां की थीं. इन दिनों वह अपनी तीसरी पत्नी और छोटे बेटे दर्शन सिंह के साथ रह रहे थे. दर्शन सिंह ढिल्लो की शादी कुछ दिनों पहले ही हुई थी, लेकिन जल्दी ही उस का पत्नी से तलाक हो गया था. बडे़ बेटे एकम सिंह ने सन 2005 में सीरत कौर से प्रेम विवाह किया था, जिस से उसे 2 बच्चे बेटा गुरनवाज सिंह और बेटी हुमायरा कौर हुई थी.

शादी के 6 महीने बाद ही 40 वर्षीय एकम सिंह पत्नी को ले कर अपने परिवार से अलग हो गया था. कुछ समय तक उस ने असम में नौकरी की. उस के बाद वहां से लौट कर वह चंडीगढ़ के एक बड़े होटल में काम करने लगा था. कुछ दिनों बाद उस ने यह नौकरी भी छोड़ दी थी. इस समय वह स्टोन क्रैशर व कंस्ट्रक्शन का कारोबार कर रहा था. मोहाली के कस्बा नयागांव में उस का अच्छा काम चल रहा था.

इस समय उस का बेटा 11 साल का था तो बेटी 6 साल की. दोनों चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ रहे थे. एकम की अपने छोटे भाई और पिता से बोलचाल नहीं थी. फिर भी उन्हें कहीं न कहीं से एकम के बारे में जानकारी मिलती रहती थी. बेटा बातचीत नहीं करना चाहता था तो वे क्या कर सकते थे. फिर भी जसपाल सिंह को यह जान कर खुशी थी कि एकम तरक्की कर रहा है. उन का सोचना था कि एकम अपने परिवार के साथ बहुत खुश है.

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 3

शादी की बात सुनते ही खुशबू सन्न रह गई. जिस की खातिर उस ने अपना घर त्यागा, वही किसी और का हो जाएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था. उस ने सोचा कि राहुल की जिस लड़की के साथ शादी होने जा रही है, उस से उस का रिश्ता एक दिन में तो तय नहीं हुआ होगा. राहुल को इस की पहले से ही जानकारी रही होगी, लेकिन उस ने यह बात उस से छिपाए रखी. इसलिए वह बोली, ‘‘राहुल ऐसी बात तो नहीं है कि घर वालों ने तुम्हारी मरजी के बिना शादी तय कर दी हो. जब तुम से पूछा होगा तो तुम्हें शादी के लिए मना कर देना चाहिए था. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया.’’

‘‘खुशबू, मैं चाह कर भी घर वालों की बात का विरोध नहीं कर सका. लेकिन तुम थोड़ी सूझबूझ से काम लो तो समस्या का हल निकल सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘इस का एक ही तरीका है कि शादी होने के बाद तुम भी उसे स्वीकार लो. यानी दोनों साथ रहो.’’

कोई भी औरत नहीं चाहती कि उस के पति को कोई दूसरी औरत बांटे, इसलिए राहुल की बात सुन कर खुशबू भड़क उठी, ‘‘राहुल, तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि दोनों एक साथ रहेंगी. यह हरगिज नहीं हो सकता. तुम एक बात और जान लो, 16 तारीख को जो तुम्हारी सगाई है, वह हरगिज नहीं होगी. उस दिन तुम घर नहीं जाओगे.’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मेरे घर न पहुंचने पर हंगामा हो जाएगा.’’

‘‘और गए तो यहां हंगामा हो जाएगा. अब खुद ही सोच लो कि क्या करना है?’’

खुशबू के सख्त तेवर देख कर राहुल परेशान हो गया. उस ने खुशबू को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह जिद पर अड़ी रही.  उसी दौरान राहुल ने तय कर लिया कि वह अपने घर वालों की इज्जत हरगिज खराब नहीं होने देगा, भले ही उसे खुशबू को रास्ते से क्यों न हटाना पड़े. इसी के मद्देनजर उस ने खुशबू को रास्ते से हटाने की योजना तैयार कर ली. योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए वह बाजार से एक छुरा भी खरीद लाया.

16 नवंबर, 2013 को राहुल के तिलक का कार्यक्रम निश्चित था. उस के कार्यक्रम में किसी तरह की कोई अड़चन न पड़े, इसलिए उस ने तिलक के कार्यक्रम से पहले ही खुशबू को ठिकाने लगाना उचित समझा. 15 नवंबर की शाम को खाना खाने के बाद खुशबू और राहुल सोने के लिए बिस्तर पर लेटे थे. थोड़ी देर बाद खुशबू को तो नींद आ गई, लेकिन राहुल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रात गहराने का इंतजार कर रहा था.

जब उसे लगा कि मकान मालिक वगैरह सो चुके हैं तो उस ने गहरी नींद में सोई खुशबू के गले पर छुरे से वार किया. एक ही बार में खुशबू की सांस की नली कट गई और वह छटपटाने लगी. वह छटपटाती हुई बेड से नीचे गिर गई और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

पत्नी को ठिकाने लगाने के बाद राहुल ने राहत की सांस ली और बाथरूम में जा कर खून से सने हाथपैर धोए. इस के बाद चादर से लाश ढंक कर वह सुबह को अपने गांव चला गया. उसी दिन उस के तिलक का कार्यक्रम था, जिस में उस के सभी सगेसंबंधी इकट्ठा हुए थे. उस कार्यक्रम में भी वह पूरी तरह सामान्य रहा. उस ने किसी को जरा भी महसूस नहीं होने दिया कि वह कोई बड़ा अपराध कर के आया है.

लाश को छिपाने के लिए राहुल 19 नवंबर को बाजार से खेलने का सामान रखने वाला एक बड़ा सा बैग खरीद कर अंबिका विहार वाले कमरे पर पहुंच गया. खुशबू की लाश को उस ने चादर में लपेट कर प्लास्टिक के एक बोरे में भर कर बंद कर दिया. उस बोरे को उस ने साथ लाए बैग में रख दिया. उस ने सोचा था कि शादी के बाद उस बैग को कहीं ठिकाने लगा देगा.

19 नवंबर को पत्नी की लाश को बैग में रखने के बाद वह शाम को कमरे का ताला लगा कर जीने से उतर ही रहा था कि उसी समय उसे मकान मालिक राजकुमार गिरि मिल गया. उस ने राहुल को अकेले जाते देखा तो उस ने वैसे ही खुशबू के बारे में पूछ लिया. इस पर राहुल ने कहा कि खुशबू की बहन की डिलीवरी होने वाली है, वह आगे निकल गई है. उसे उस की बहन के यहां छोड़ने जा रहा है.

मकान मालिक ने उस की बात पर विश्वास कर लिया. उसे क्या पता था कि उस का किराएदार उस के कमरे में एक बड़ा अपराध कर चुका है. अंबिका विहार से राहुल सीधे अपने गांव पहुंचा. अगले दिन 20 नवंबर को बड़ी धूमधाम के साथ उस की बारात बुलंदशहर पहुंची और वह शिखा को दुलहन बना कर घर ले आया.

राहुल निश्चिंत था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकेगी. 22 नवंबर को राजकुमार जब पहली मंजिल पर सफाई करने के लिए पहुंचा तो उसे बदबू महसूस हुई. क्योंकि बोरे में बंद लाश सड़ने लगी थी. राजकुमार की सूचना पर पुलिस उस के घर पहुंची और लाश के बारे में पता लगा. 23 नवंबर को राहुल खुशबू की लाश को ठिकाने लगाने के लिए अंबिका विहार वाले कमरे पर पहुंचा. जब वह करावलनगर में चौक के पास एक दुकान पर बैठा चाय पी रहा था, तब उसे यह पता नहीं था कि पुलिस उस के पीछे लगी हुई है. इसलिए पुलिस ने उसे आसानी से गिरफ्तार कर लिया.

राहुल शर्मा से पूछताछ के बाद जांच अधिकारी इंसपेक्टर अरविंद प्रताप सिंह ने 24 नवंबर को उसे कड़कड़डूमा कोर्ट में मुख्य महानगर दंडाधिकारी रविंद्र वेदी के समक्ष पेश कर उसे एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में पुलिस ने राहुल को उन जगहों पर ले जा कर तसदीक की, जहां से उस ने छुरा और बैग आदि खरीदे थे. फिर 25 नवंबर, 2013 को उसे पुन: अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया.

पति के जेल जाने के बाद शिखा की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उसे क्या पता था कि दुलहन बनने की जो खुशी वह मन में समेटे हुए थी, वह हाथ की मेहंदी धूमिल होने से पहले ही काफूर हो जाएगी. इस के बाद भी उसे उम्मीद है कि राहुल जल्द ही जेल से बाहर आ जाएगा.

(कहानी में शिखा परिवर्तित नाम है)

—कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित

नेताजी को समझ में आया कानून सबके लिए एक है – भाग 3

जेल जाने के बाद से ही कुशवाह जमानत हासिल करने के प्रयासों में जुटे थे, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने उन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2016 में आदेश दिया कि इस केस को 6 महीने में निपटाया जाए. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद धौलपुर के अपर जिला एवं सत्र न्यायालय में 6 महीने से इस मामले की निरंतर सुनवाई चल रही थी. सर्वोच्च न्यायालय की ओर से दी गई 6 महीने की अवधि 22 अगस्त, 2016 को पूरी हो गई तो कुशवाह ने अपने वकील के मार्फत अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश धौलपुर की अदालत में जमानत अर्जी दाखिल की, जिसे 2 सितंबर, 2016 को अदालत ने खारिज कर दिया.

इस के बाद 8 दिसंबर, 2016 को इस केस में फैसला सुना दिया गया. बाद में 13 दिसंबर को राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने धौलपुर से बसपा विधायक बी.एल. कुशवाह की सदस्यता समाप्त कर दी. इस के साथ ही धौलपुर विधानसभा सीट खाली होने की घोषणा कर दी गई. यह संयोग ही रहा कि बी.एल. कुशवाह सन 2013 में 8 दिसंबर को पहली बार विधायक चुने गए थे और ठीक 3 साल बाद 8 दिसंबर, 2016 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बाद में विधानसभा अध्यक्ष ने उन की सदस्यता भी 8 दिसंबर, 2016 से ही समाप्त की.

नरेश हत्याकांड के अभी 3 आरोपी फरार चल रहे हैं. इन में बी.एल. कुशवाह के भाई शिवराम और जितेंद्र कुशवाह के अलावा शूटर रोबिन शामिल हैं. रोबिन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर का रहने वाला है. पुलिस के अनुसार, रोबिन ने ही नरेश को गोली मारी थी. नरेश की हत्या के समय वह सत्येंद्र के साथ था. पुलिस की जांचपड़ताल एवं अदालत के फैसले में नरेश कुशवाह एवं सीमा उर्फ सुषमा कुशवाह के प्रेम प्रसंग की जो कहानी सामने आई है, वह इस प्रकार है—

धौलपुर के सदर थानान्तर्गत गांव झीलकापुरा के रहने वाले मेघसिंह कुशवाह के 5 बेटे थे. मेघसिंह गरीब किसान हैं. खेतीबाड़ी कर अपना गुजरबसर करते हैं. मेघसिंह का बेटा नरेश कुशवाह धौलपुर की कमला कालोनी में किराए का कमरा ले कर 12वीं की पढ़ाई कर रहा था. खर्च चलाने के लिए वह कुछ कामकाज भी करता था. इसी मकान में नरेश के ऊपर वाले कमरे में किराए पर बी.एल. कुशवाह की बहन सीमा उर्फ सुषमा अपनी बहन रिंकेश के साथ रहती थी. ये दोनों बहनें धौलपुर में गर्ल्स स्कूल में 9वीं कक्षा की छात्राएं थीं.

इसी दौरान नरेश का सीमा से प्रेम शुरू हुआ. दोनों एक साथ ही खाना बनाते और खाते थे. बाद में उन का प्यार परवान चढ़ता गया. सीमा ने तय कर लिया था कि वह शादी नरेश से ही करेगी. नरेश से वह उस के मोबाइल पर बात भी करती थी. नरेश ने उसे कई बार फोन करने को मना भी किया लेकिन वह दिल के हाथों मजबूर थी, इसलिए नहीं मानी.

नरेश उस से कहता था कि हम दोनों की शादी नहीं हो सकती, क्योंकि तुम बड़े और पैसे वाले घर की लड़की हो. इस पर सीमा नरेश से कहती कि चाहे कुछ भी हो जाए, शादी मैं तुम से ही करूंगी. मैं अपने भाइयों को तुम से शादी करने के लिए मना लूंगी. सीमा ने 2-3 बार नरेश की मां जमुनादेवी से भी बात की थी. उन्होंने उसे नरेश से बातें करने से मना किया था लेकिन सीमा ने नरेश की मां को समझाया कि इलेक्शन के बाद मैं अपने भाइयों को शादी के लिए मना लूंगी.

सीमा ने जमुनादेवी को बताया कि उस ने अपनी भाभी से भी यह बात बता दी है. जमुनादेवी ने नरेश को भी समझाया था कि सीमा पैसे वाले बड़े घर की लड़की है, जिस के साथ तेरी शादी नहीं हो सकती. तू उस से बात मत किया कर. इस पर नरेश ने कहा था कि सीमा खुद फोन करती है और कहती है कि शादी करूंगी तो तुझ से वरना मर जाऊंगी.

नरेश की हत्या से 20 दिन पहले जब दोनों बात कर रहे थे तो सीमा के छोटे भाई को पता चल गया. इस के बाद उस ने नरेश को धमकी दी कि तू उस की बहन का पीछा छोड़ दे वरना अंजाम ठीक नहीं होगा. नरेश की हत्या से 7-8 दिन पहले बनवारीलाल कुशवाह ने भी सीमा से प्रेम को ले कर नरेश को अंजाम भुगतने की धमकी दी थी.

सीमा नरेश को प्रेमपत्र भी लिखती थी. एक बार वह नरेश के साथ एक मंदिर में मनौती मांगने भी गई थी, वहां नरेश ने अपने एक चचेरे भाई को सीमा से मिलवाते हुए कहा था कि यह तेरी भाभी है. हम शादी की मन्नत मांगने आए हैं.

बाद में सीमा के लिखे प्रेमपत्र नरेश के एक बैग से मिले. यह बैग काफी दिनों तक धौलपुर में उसी मकान मालिक के पास पड़ा रहा, जिस में नरेश किराए का कमरा ले कर रहता था. पुलिस ने इन प्रेमपत्रों की लिखावट की पुष्टि के लिए सीमा की स्कूल की उत्तर पुस्तिकाओं व प्रेमपत्रों की हस्तलिपि की जयपुर में विधि विज्ञान प्रयोगशाला में जांच कराई. इस में दोनों हस्तलेख एक ही पाए गए थे.

जिस दिन नरेश की हत्या की गई थी, उस दिन सीमा जयपुर में थी. इस घटना का उसे बाद में पता चला था. नरेश की हत्या से पहले ही सीमा का रिश्ता धौलपुर के रहने वाले गोरेलाल कुशवाह के लड़के आकाश से तय कर दिया गया था.

नरेश हत्याकांड की जांच के दौरान 5 जनवरी, 2013 यानी नरेश की हत्या से करीब एक हफ्ते बाद धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज कराए अपने बयानों में सीमा ने अपने व नरेश के प्रेम संबंधों को सहज व स्वाभाविक रूप से स्वीकार किया था. हालांकि बाद में वह अपने बयान से पलट गई थी. इस पर जज साहब ने अपने फैसले में लिखा कि सीमा अभियुक्त बनवारीलाल कुशवाह की सगी छोटी बहन है. बनवारीलाल कुशवाह वर्तमान में धौलपुर से निर्वाचित विधायक हैं.

कोई लड़की जो अपने प्रेमी के साथ विवाह करना चाहती हो और इस के लिए अपने घर वालों तक से बगावत कर रही हो, वह तब तक ही अपने प्रेमी का साथ देगी, जब तक उस का अपना अंतिम उद्देश्य अर्थात प्रेमी के साथ विवाह न हो जाए. लेकिन जब उस का प्रेमी ही जीवित न हो तो उस का अपने परिवार वालों के साथ बगावत करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता. उस लड़की की लाचारी को शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता, जिसे उसी घर में रहना है, जिस घर का व्यक्ति उसी के प्रेम संबंधों के चलते उस के प्रेमी की हत्या के आरोप में जेल में बंद हो.

कथा अदालत के फैसले एवं विभिन्न रिपोर्ट्स पर आधारित

नेताजी को समझ में आया कानून सबके लिए एक है – भाग 2

इस बीच, बनवारीलाल कुशवाह ने सन 2013 के आखिर में हुए राजस्थान की 14वीं विधानसभा के चुनाव में धौलपुर सीट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में नामांकन पत्र दाखिल कर दिया. कहते हैं कि चिटफंड कंपनियों से मोटा पैसा कमाने और छोटे भाई बालकिशन की ससुराल राजनीतिक परिवार में होने के कारण बनवारीलाल कुशवाह की राजनीति में आने की इच्छा थी.

बनवारीलाल कुशवाह ने अपने संपर्कों के बल पर बसपा का टिकट हासिल कर लिया. राजस्थान में उस समय जनता महंगाई जैसे कारणों को ले कर सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की सरकार बदलना चाहती थी. इसलिए भाजपा के पक्ष में लहर चल निकली. भाजपा की लहर के बावजूद धौलपुर से बसपा के टिकट पर बनवारीलाल कुशवाह विधायक चुन लिए गए.

विधानसभा चुनाव के दौरान बनवारीलाल कुशवाह द्वारा भरे गए नामांकन पत्र के साथ 8 नवंबर, 2013 को नोटरी से सत्यापित शपथपत्र में उन्होंने खुद की वार्षिक आय 1 करोड़ 47 लाख 64 हजार 130 रुपए बताई, जबकि पत्नी शोभारानी की वार्षिक आय 38 लाख 55 हजार 750 रुपए बताई. शपथपत्र में बनवारीलाल ने खुद की ओर से 18 कंपनियों में 12 करोड़ 55 लाख रुपए एवं पत्नी शोभारानी की ओर से 15 कंपनियों में 2 करोड़ 85 लाख रुपए का निवेश बताया गया. शपथपत्र में कुशवाह ने धौलपुर के गांव जमालपुर में 3.83 एकड़ जमीन, दलेलपुर में 0.63 एकड़ जमीन और धौलपुर में 20,664 वर्गफुट गैर कृषि भूमि होना बताया. इस के अलावा उन्होंने दिल्ली एवं ग्वालियर में अपनी संपत्तियां होने की बात भी कही थी.

विधायक चुने जाने के बाद बनवारीलाल कुशवाह पर विधानसभा चुनाव में गलत शपथपत्र पेश करने के आरोप भी लगे. इस संबंध में कई लोगों की ओर से अलगअलग अधिकारियों को ज्ञापन भी दिए गए. ज्ञापन में आरोप लगाए थे कि बनवारीलाल कुशवाह मध्य प्रदेश में चिटफंड धोखाधड़ी मामले में आरोपी हैं. बनवारीलाल कुशवाह भले ही धौलपुर से विधायक चुने गए, लेकिन वे गिरफ्तारी के डर से राजस्थान विधानसभा के पहले सत्र में तय समय पर शपथ लेने नहीं पहुंचे.

बाद में 6 फरवरी, 2014 को वे शपथ लेने विधानसभा पहुंचे, उस से पहले ही पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले कर पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि वे अंतरिम जमानत पर हैं. बाद में पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. इस के बाद बनवारीलाल कुशवाह ने 7 फरवरी, 2014 को विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के चैंबर में शपथ ली. अगर वे चुनाव के 60 दिनों के भीतर शपथ नहीं लेते तो उन की विधानसभा सदस्यता रद्द हो सकती थी.

दूसरी ओर पुलिस नरेश हत्याकांड की जांच कर रही थी. एक साल से अधिक समय से मामले की जांच एक से दूसरे पुलिस अधिकारियों के बीच घूमती रही. मृतक नरेश के परिजनों द्वारा पुलिस पर लगातार काररवाई का दबाव बनाने से मामले की जांच में तेजी आई. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने अप्रैल 2014 में सत्येंद्र सिंह को नरेश की हत्या के आरोप में उत्तर प्रदेश की बुलंदशहर जेल से रिमांड लिया.

बुलंदशहर जिले के शिकारपुर थानाक्षेत्र के गांव करीरा के रहने वाले सत्येंद्र सिंह ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि नरेश की हत्या की साजिश धौलपुर विधायक बी.एल. कुशवाह और उस के साथियों ने रची थी. आवश्यक जांचपड़ताल के बाद धौलपुर पुलिस ने नरेश हत्याकांड में सत्येंद्र सिंह के विरुद्ध धारा 302, 120बी एवं 201 भादंसं के तहत और बनवारीलाल कुशवाह के विरुद्ध भादंसं की धारा 302 एवं 120बी के तहत मामला दर्ज कर लिया. इन के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी इस मामले में नामजद किया गया.

नरेश हत्याकांड में नाम आने से विधायक बनवारीलाल कुशवाह की मुश्किलें बढ़ गईं. कुशवाह के साथ उन के भाई शिवराम एवं चचेरे भाई जितेंद्र कुशवाह ने जून, 2014 में धौलपुर की अदालत में अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई. अदालत ने 6 जून, 2014 को तीनों कुशवाह भाइयों की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी. इस अर्जी में कुशवाह बंधुओं ने कहा कि नरेश की हत्या में उन्हें गलत फंसाया जा रहा है.

इस के जवाब में लोक अभियोजक अनंतराम त्यागी ने अदालत में दलील दी कि नरेश की हत्या के अपराध में पुलिस ने सत्येंद्र नामक व्यक्ति को पकड़ा था. उस ने पुलिस को बताया कि नरेश की हत्या की योजना विधायक बी.एल. कुशवाह और उस के साथियों ने बनाई थी. नरेश की हत्या के लिए 4 लाख रुपए की सुपरी दे कर बुलंदशहर से एक शूटर को भी बुलाया गया था.

त्यागी ने अदालत को बताया कि नरेश के परिजनों ने सत्येंद्र की शिनाख्त धौलपुर जिला कारागार में की थी. इस प्रकरण की जांच भरतपुर आईजी द्वारा की जा रही है. प्रारंभिक जांच में माना गया है कि नरेश हत्याकांड में बी.एल. कुशवाह का हाथ है. विधायक कुशवाह ने बाद में दूसरी अदालतों से इस मामले में अग्रिम जमानत हासिल करने के प्रयास किए, लेकिन उन्हें किसी भी अदालत से राहत नहीं मिली. पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिशों में जुटी थी.

इसी बीच विधायक के खिलाफ मामला होने के कारण इस प्रकरण की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गई. सीबीसीआईडी ने जांच कर के विधायक कुशवाह की गिरफ्तारी के प्रयास तेज कर दिए. पुलिस के बढ़ते दबाव को देख कर आखिरकार कुशवाह ने 13 अक्तूबर, 2014 को जयपुर स्थित पुलिस मुख्यालय में आत्मसमर्पण कर दिया. आत्मसमर्पण के बाद पुलिस ने विधायक बी.एल. कुशवाह को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इस की सूचना राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल को भी दे दी. कुशवाह के आत्मसमर्पण के मौके पर सीबीसीआईडी के डीआईजी डा. गिरराज मीणा ने बताया कि मामले की जांच के दौरान पुलिस को एक सिमकार्ड की जानकारी मिली थी. यह सिमकार्ड दिल्ली स्थित गरिमा होम्स एंड फार्म्स लिमिटेड के नाम थी, जो कंपनी के कर्मचारी सत्येंद्र सिंह को जारी हुई थी.

सत्येंद्र सिंह विधायक कुशवाह का गनमैन था. नरेश की हत्या के बाद से वह भी फरार था. उत्तर प्रदेश पुलिस ने सत्येंद्र को आर्म्स एक्ट में गिरफ्तार किया था. राजस्थान पुलिस सत्येंद्र को बुलंदशहर जेल से गिरफ्तार कर के लाई थी. डीआईजी डा. मीणा ने बताया था कि सत्येंद्र सिंह ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि उस ने अपने साथी रोबिन के साथ मिल कर नरेश की हत्या की थी.

इस हत्या की साजिश विधायक बी.एल. कुशवाह ने अपने साथियों के साथ रची थी. जांच में सामने आया कि नरेश और विधायक कुशवाह की बहन के प्रेम संबंध थे. वे दोनों शादी करना चाहते थे, इसीलिए बी.एल. कुशवाह और उन के भाई नरेश को अपनी बहन से दूर रहने की चेतावनी देते थे. बाद में बी.एल. कुशवाह और उस के साथियों ने धौलपुर के मनिया स्थित गेस्टहाउस में गनमैन सत्येंद्र के साथ मिल कर नरेश की हत्या की साजिश रची थी.

नरेश की हत्या के लिए घटना से कुछ दिन पहले शूटर रोबिन सिंह को धौलपुर लाया गया था. आत्मसमर्पण के बाद पुलिस ने बी.एल. कुशवाह को दूसरे दिन अदालत में पेश कर के रिमांड पर ले लिया. बाद में अदालत के आदेश पर उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में धौलपुर जिला जेल भेज दिया गया. आवश्यक जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने अक्तूबर, 2014 के आखिर में धौलपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट (एक) की अदालत में बी.एल. कुशवाह एवं सत्येंद्र सिंह के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिया.

यह प्रकरण विधिवत सुनवाई के लिए धौलपुर के सत्र न्यायालय में पहुंचा. जहां इस केस की सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायायाधीश ने शुरू की. इसी बीच कुशवाह ने अपनी मां की तबीयत खराब होने की बात कह कर मां की देखभाल के लिए अंतरिम जमानत की अर्जी लगाई. अदालत ने 27 मई, 2015 को कुशवाह को 2 लाख रुपए के मुचलके पर सशर्त अंतरिम जमानत दे दी. बाद में 10 जून को कुशवाह ने धौलपुर जिला कारागार में अपनी हाजिरी दी.

नेताजी को समझ में आया कानून सबके लिए एक है – भाग 1

उस दिन तारीख थी 8 दिसंबर. राजस्थान के शहर धौलपुर के कचहरी परिसर में उस दिन आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. सर्दी होने के बावजूद लोग 10 बजे से पहले ही कचहरी पहुंच गए थे. कारण यह था कि उस दिन बहुचर्चित नरेश कुशवाह हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था, जिस में अभियुक्त थे धौलपुर के बसपा विधायक बी.एल. कुशवाह. अदालत के फैसले से जहां एक तरफ विधायक बी.एल. कुशवाह के भविष्य का निर्णय होना था, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के कई प्रमुख दलों की निगाहें भी इस फैसले पर टिकी थीं.

इस की वजह यह थी कि विधायक को सजा होने पर बसपा की एक सीट कम हो जाती, जिस के लिए उपचुनाव होना तय था, क्योंकि राजस्थान में मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल दिसंबर 2018 तक था.  अदालत ने नरेश कुशवाह हत्याकांड का फैसला सुनाने की तारीख 8 दिसंबर पहले ही तय कर दी थी. सत्र न्यायाधीश सलीम बदर निर्धारित समय पर अदालत पहुंच गए. उन्हें ही इस केस का फैसला सुनाना था. पुलिस गार्ड भी अभियुक्तों बी.एल. कुशवाह और सत्येंद्र सिंह को जेल वैन में ले कर समय पर अदालत आ गए थे.

अपर सत्र न्यायाधीश के कुरसी संभालते ही अदालत में सन्नाटा छा गया. दोनों अभियुक्त तो अदालत में थे ही, मृतक नरेश कुशवाह के घर वाले, राज्य सरकार की ओर से नियुक्त लोक अभियोजक अजय कुमार गुप्ता, विपक्ष के वकील रामकुमार शर्मा और सत्येंद्र सिंह के वकील सुरेंद्र शर्मा भी अदालत में मौजूद थे. अदालत में शांति बनाए रखने का आदेश देने के बाद न्यायाधीश महोदय ने अपना फैसला सुनाना शुरू किया,

‘‘अदालत ने दंड के रूप में दी जाने वाली सजा पर दोनों पक्षों को ध्यान से सुना. अभियुक्तों के वकीलों का तर्क है कि इस से पहले अभियुक्तों ने कोई भी अपराध नहीं किया है. उन के विरुद्ध अपराध भी पहली बार सिद्ध हुआ है, जो जघन्य से जघन्यतम नहीं है. इसलिए उन्हें दिए जाने वाले दंड में नरमी बरती जानी चाहिए. जबकि लोक अभियोजक अजय कुमार गुप्ता ने नरेश कुशवाह हत्याकांड को जघन्य अपराध बताते हुए अधिकतम दंड देने की गुजारिश की है.’’

न्यायाधीश महोदय ने अपना फैसला सुनाते हुए आगे कहा, ‘‘दोनों पक्षों के तर्कों पर मनन करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि आरोपी बनवारी लाल कुशवाह की छोटी बहन सीमा कुशवाह का प्रेम संबंध नरेश कुशवाह के साथ था और वह नरेश से प्रेम विवाह करना चाहती थी. लेकिन दोनों परिवारों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में कोई बराबरी नहीं थी. सीमा का परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध और रौबरुतबे वाला था. जबकि नरेश एक साधारण किसान का बेटा था.

‘‘आरोपी बनवारी लाल को यह बात बरदाश्त नहीं थी कि उस की बहन ऐसे युवक से शादी करे जिस का परिवार उस के परिवार के साथ खड़ा होने लायक ही न हो, इसलिए उस ने नरेश कुशवाह की हत्या का षडयंत्र रचा और अपने निजी सुरक्षाकर्मी सत्येंद्र सिंह और उस के करीबी रोबिन सिंह को पैसा दे कर नरेश कुशवाह की हत्या करवा दी, जो औनर किलिंग की श्रेणी में आती है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी घटनाओं पर अत्यधिक कड़ा रुख अपनाते हुए दिशानिर्देश दिए हैं कि ऐसे अपराधियों को मृत्युदंड से दंडित किया जाना चाहिए.’’

न्यायाधीश श्री सलीम बदर ने इस संबंध में कुछ उदाहरण पेश करने के बाद कहा, ‘‘प्रस्तुत मामले में आरोपी बनवारीलाल कुशवाह ने अपने धनबल का प्रयोग कर के किराए के हत्यारों से नरेश कुशवाह की हत्या इसलिए कराई ताकि उस की बहन सीमा उर्फ सुषमा नरेश से प्रेम विवाह न कर सके. इस के लिए सत्येंद्र सिंह और रोबिन सिंह को पैसा दिया गया. इस केस की तमाम पत्रावलियों और साक्ष्यों पर गौर करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि इस केस की परिस्थितियां ऐसी नहीं हैं कि इसे जघन्य से जघन्यतम माना जाए.’’

न्यायाधीश महोदय ने एक नजर अदालत में मौजूद लोगों पर डाली और फिर अपना फैसला सुनाने लगे, ‘‘अदालत आरोपी सत्येंद्र सिंह जाट, निवासी जलालपुर करीरा, जिला बुलंदशहर को भादंसं की धारा 302 और धारा 120बी के तहत हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास व 10 हजार रुपए का दंड देती है.’’

कुछ देर रुक कर न्यायाधीश महोदय ने उचटती नजरों से बी.एल. कुशवाह की ओर देखा और फिर अपना फैसला सुनाने लगे, ‘‘आरोपी बनवारीलाल कुशवाह, निवासी जमालपुर, जिला धौलपुर पर भादंसं की धारा 120बी सपठित धारा 302 भादंवि के आरोप साबित हुए हैं. अत: बनवारीलाल कुशवाह को भी आजीवन कारावास और 10 हजार रुपए के अर्थदंड की सजा दी जाती है.’’

इस केस के अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध चूंकि अभी जांच चल रही थी, इसलिए न्यायाधीश महोदय ने पुलिस को आदेश दिया कि जल्दी से जल्दी जांच और गिरफ्तारी का काम किया जाए. अदालत का फैसला सुन कर विधायक बनवारीलाल कुशवाह व सत्येंद्र सिंह के चेहरे उतर गए. जबकि मृतक नरेश कुशवाह के पिता मेघसिंह और मां जमुना देवी ने इस फैसले पर खुशी जताई.

अदालत के निर्णय के बाद पुलिस बल ने दोनों आरोपियों को अपनी कस्टडी में ले लिया. अब उन्हें आगे की जिंदगी जेल में काटनी थी. दरअसल, 27 दिसंबर, 2012 को झीलकापुरा गांव के रहने वाले थानसिंह कुशवाह ने धौलपुर के सदर पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि 2 युवक लाल रंग की डिसकवर मोटरसाइकिल पर उन के घर आए और उस के भाई नरेश कुशवाह को बुला कर ट्यूबवेल पर ले गए.

कुछ देर बाद उस ने गोली चलने की आवाज सुनी तो वह छोटे भाई पुष्पेंद्र और अन्य ग्रामीणों के साथ खेत में स्थित ट्यूबवेल पहुंचा. वहां वे दोनों युवक नरेश को गोली मार रहे थे और कह रहे थे कि जान से मार डालो. जब हम लोग वहां पहुंचे तो दोनों हमलावर मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गए. हम नरेश को अस्पताल ले कर गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

उसी दिन पुलिस ने सदर थाने में मुकदमा संख्या 316/2012 धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया. हत्या की सूचना पर तत्कालीन पुलिस अधिकारियों में एएसपी किशन सहाय, सीओ सिटी दशरथ सिंह, थानाप्रभारी हवा सिंह आदि मौके पर पहुंचे. पुलिस ने मौका मुआयना कर के पूछताछ की लेकिन यह पता नहीं चला कि नरेश की हत्या करने वाले कौन थे और हत्या की वजह क्या थी.

पुलिस ने उसी दिन नरेश के शव का पोस्टमार्टम करा कर उस के घर वालों को सौंप दिया. पुलिस ने मामले की जांचपड़ताल शुरू की. पुलिस के सामने परेशानी यह थी कि हत्यारे अज्ञात थे. उन का कोई अतापता नहीं चल पा रहा था. पुलिस ने मृतक नरेश के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने इस बात की आशंका जताई कि नरेश की हत्या प्रभावशाली लोगों के इशारे पर की जा सकती है.

इन प्रभावशाली लोगों में बनवारीलाल कुशवाह का नाम सामने आया. बनवारीलाल कुशवाह का मध्य प्रदेश व अन्य कई जगहों पर चिटफंड का लंबाचौड़ा कारोबार होने की बात भी पता चली. यह भी पता चला कि बनवारीलाल कुशवाह मध्य प्रदेश के पूर्व गृह राज्यमंत्री और मौजूदा विधायक नारायण सिंह का रिश्तेदार है. नरेश की हत्या की वजह यह पता चली कि नरेश का बनवारीलाल कुशवाह की बहन सीमा उर्फ सुषमा से प्रेम प्रसंग चल रहा था.

सीमा नरेश से विवाह करना चाहती थी. बनवारीलाल इस के खिलाफ था. इस की वजह यह थी कि नरेश बेहद गरीब परिवार से था, जबकि सीमा आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से संपन्न परिवार की बेटी थी. बनवारीलाल ने एकदो बार दूसरों के माध्यम से नरेश को इस बात के लिए आगाह भी किया था, लेकिन सीमा नरेश से ही शादी करना चाहती थी. संभव है इसी बात को ले कर नरेश की हत्या की गई हो.

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 2

एकलौता बेटा होने की वजह से राहुल घर में सब का चहेता था. उसे सब आंखों पर बिठाए रखते थे. हाजीपुर वेहटा गांव में ही खुशबू नाम की एक खूबसूरत लड़की रहती थी. नजदीकी बढ़ाने के लिए गांव के कई लड़के उस पर डोरे डालने की कोशिश करते थे लेकिन वह उन्हें कतई लिफ्ट नहीं देती थी. इस की वजह यह थी कि वह राहुल शर्मा को चाहती थी.

जवान होने के बावजूद राहुल शर्मा अन्य लड़कों की तरह मटरगश्ती करता नहीं घूमता था, बल्कि अपना पूरा ध्यान प्रौपर्टी डीलिंग के काम में लगाता था. खुशबू राहुल के नजदीक आने की जुगत लगाती रहती थी. बताया जाता है कि एक दिन खुशबू राहुल की दुकान पर पहुंची और अपने एक जानकार का मकान बिकवाने के लिए राहुल से बात की. बातचीत के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए.

इस मुलाकात के बाद दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. धीरेधीरे राहुल को भी उस से बातें करना अच्छा लगने लगा. दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे और उन की प्रेम कहानी शुरू हो गई. उन के बीच होने वाली बातों का दायरा सिमटता गया. जल्दी ही स्थिति यह हो गई कि जब तक वे रोजाना बातें नहीं कर लेते, उन्हें चैन नहीं आता था. बाद में राहुल उसे दिल्ली घुमाने के लिए भी ले जाने लगा. इसी दौरान उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

दोनों ही बालिग थे, इसलिए उन्होंने शादी कर के ताउम्र साथ रहने का फैसला कर लिया. इस तरह कई सालों तक उन के प्रेम संबंधों की घर वालों को भनक नहीं लगी. लेकिन गांव के तमाम लोग उन के बारे में जानते थे. लिहाजा गांव वालों के मुंह से होती हुई यह बात राहुल के घर वालों के कानों तक भी पहुंच गई.

अपने एकलौते बेटे के बारे में जान कर आदेश कुमार परेशान हो उठे. उन्होंने उस की किसी अच्छे घर से शादी करने के सपने संजो रखे थे. उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि बेटा ऐसा कदम उठा सकता है. उन्होंने राहुल को समझाया तो उस ने पिता से झूठ बोल दिया, ‘‘मेरे बारे में जो भी बातें उड़ रही हैं, वे सरासर झूठी हैं. मेरा किसी लड़की से कोई संबंध नहीं है. और रही बात शादी की तो आप अपनी मरजी से किसी भी लड़की से मेरी शादी करा सकते हैं.’’

बेटे की बात सुन कर आदेश कुमार को लगा कि गांव वाले यूं ही राहुल के बारे में अफवाह उड़ा रहे हैं. उन्हें यह पता नहीं चल सका था कि बेटे ने उन के सामने कितनी चालाकी से झूठ बोला है. आदेश कुमार को बेटे पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस के लिए लड़की देखने लगे.

उधर पिता से बातें करने के बाद राहुल समझ गया कि उस के प्रेमसंबंधों की भनक घर वालों को लग गई है, इसलिए उस ने खुशबू से मिलने में एहतियात बरतनी शुरू कर दी. चूंकि गांव में भी उस के संबंधों की चर्चा थी इसलिए उस ने खुशबू के साथ रहने की दूसरी युक्ति सोची.

खुशबू एक सामान्य परिवार से थी. राहुल से प्रेमसंबंध की बात उस ने अपनी मां को बता रखी थी. राहुल एक अच्छे परिवार का इकलौता लड़का था. इसलिए मां ने भी सोचा था कि उस के साथ बेटी को कोई परेशानी नहीं होगी.  उस की खुशहाल जिंदगी को ध्यान में रखते हुए मां ने भी खुशबू का विरोध नहीं किया. इस तरह खुशबू बेधड़क अपने प्रेमी से मिलती रही.

एक दिन राहुल ने आदेश कुमार से कहा, ‘‘पापा, एक जानकार के जरिए मेरी गुड़गांव स्थित सैमसंग कंपनी में नौकरी लग रही है. आप तो औफिस में बैठते ही हैं, इसलिए मैं नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं.’’

‘‘तुम्हें नौकरी की क्या जरूरत है? अपना अच्छाखासा काम है, इसे ही आगे बढ़ाओ.’’ आदेश कुमार ने कहा तो राहुल बोला, ‘‘कुछ दिनों में नौकरी कर के भी देख लेता हूं. बाहर जाने से तजुर्बा मिलेगा, रात की शिफ्ट में काम कर के मैं सुबह को घर आ जाया करूंगा.’’  राहुल के जिद करने पर आदेश कुमार ने स्वीकृति दे दी.

दरअसल राहुल घर वालों की नजरों में एक अच्छा बेटा बने रहने के लिए उन का विश्वास बनाए रखना चाहता था. इसलिए उस ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के करावलनगर के अंबिका विहार में रामकुमार के यहां किराए पर एक कमरा ले लिया और खुशबू के साथ रहने लगा. मकान मालिक को उस ने खुशबू को अपनी पत्नी बताया था. इसी बीच दोनों ने एक मंदिर में शादी भी कर ली थी. राहुल रात में किराए के कमरे पर खुशबू के साथ रहता था और सुबह अपने घर चला जाता था.

राहुल ने घर वालों को बता रखा था कि उस की ड्यूटी रात की शिफ्ट में है. उस मकान में 11 महीने रहने के बाद वह पास में ही उमेश के घर रहने लगा. लेकिन उमेश का मकान उसे पसंद नहीं आया तो उस ने 15 दिनों बाद ही मकान बदल दिया और 15 अप्रैल, 2013 से वह अंबिका विहार की गली नंबर- 3 में राजकुमार गिरि के यहां रहने लगा.

खुशबू की अपने घर वालों से फोन पर अकसर बात होती रहती थी. खुशबू ने अपनी मां को बता दिया था कि राहुल ने अपने घरवालों की मरजी के खिलाफ उस से शादी की है, इसलिए घर वाले अभी नाराज हैं. उस की मां सोचती थी कि एक न एक दिन जब घर वालों का गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह खुशबू को बहू के रूप में स्वीकार कर लेंगे.

खुशबू राहुल के साथ खुश थी. राहुल भी उस का हर तरह से खयाल रख रहा था. उधर राहुल के घर वालों ने उस के लिए उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक लड़की देख ली थी. उन्होंने जब इस बारे में राहुल से बात की तो वह यह नहीं कह सका कि वह किसी और से प्यार करता है. वह बुलंदशहर वाली लड़की शिखा से शादी न करने की बात भी नहीं कह सका.

दोनों तरफ से जांचपरख के बाद राहुल का रिश्ता शिखा से तय हो गया. खुशबू को इस की भनक तक नहीं लगी. शिखा से शादी तय हो जाने के बाद राहुल असमंजस में पड़ गया, क्योंकि वह खुशबू से पहले ही शादी कर चुका था. उस की स्थिति यह थी कि वह न तो खुशबू को शिखा से शादी तय होने की बात बता सकता था और न ही घर वालों को खुशबू के बारे में बता पा रहा था. चालाकी दिखा कर वह जो खुशहाल जिंदगी जीने के सपने देख रहा था, अब वह उसी चालाकी के भंवर में फंस चुका था. कुछ नहीं सूझा तो वह उस भंवर से निकलने के उपाय खोजने लगा.

एक दिन उस ने खुशबू से कहा, ‘‘खुशबू मैं एक समस्या में फंसा हुआ हूं और समस्या भी ऐसी है, जिसे तुम ही सुलझा सकती हो.’’

यह सुन कर खुशबू ने चौंक कर पूछा, ‘‘क्या समस्या है, बताओ?’’

‘‘तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं. घर वालों की मरजी के बिना भी मैं तुम्हारे साथ रह रहा हूं. उन्हें तुम्हारे साथ रहने का तो पता नहीं है. इसलिए उन्होंने मेरे लिए बुलंदशहर में कोई लड़की देख कर मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है. 16 नवंबर को उन्होंने सगाई का दिन भी तय कर दिया है. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?’’

3 लव मैरिज के बाद भी बनी रही बेवफा – भाग 3

कुहनी पर पट्ïटी देख कर वह विनोद से बोली, ‘‘मैं किस तरह आप का शुक्रिया अदा करूं, आप ने मेरे घायल बेटे की पट्टी करवाई और उसे छोडऩे घर भी आ गए.’’

“मैं ने अपना इंसानी फर्ज निभाया है,’’ विनोद मुसकरा कर बोला, ‘‘वैसे आप का बेटा है बहुत समझदार. छोटा है लेकिन यह बराबर मुझे अपने घर तक ले कर आया है.’’

“इसे स्कूल से घर तक आने का रास्ता बखूबी पता है. रोज पैदल मेरे साथ स्कूल तक आताजाता है इसलिए.’’ महिला मुसकरा कर बोली, ‘‘शायद आज इस की जल्दी छुट्टी हो गई, तभी यह स्कूल से बाहर निकल आया. वैसे 12 बजे मैं इसे लेने स्कूल जाती हूं.’’ महिला ने कहा.

“जी, लेकिन स्कूल वालों की गलती है, जब तक पेरेंट न पहुंचे, बच्चे को अकेले स्कूल से बाहर नहीं आने देना चाहिए.’’

“हां, यह तो आप ठीक कह रहे हैं. मैं कल स्कूल की आया से कहूंगी.’’

“बिलकुल कहना, ताकि वह आगे ऐसी गलती न करे,’’ विनोद ने कहने के बाद अपना स्कूटर स्टार्ट करना चाहा तो महिला

चौंक कर बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हैं, यहां तक आए हैं तो एक कप चाय पी कर जाइए.’’

“जी, रहने दीजिए.’’

“नहीं, मैं इस मामले में बहुत सख्त हूं, यदि आप चाय नहीं पी कर जाएंगे तो आप से चाय के 10 रुपए वसूल कर लूंगी.’’ महिला ने इतनी बेबाकी से यह बात कही कि विनोद हंस पड़ा, ‘‘अब तो चाय पीनी ही पड़ेगी, क्योंकि मैं 10 रुपए आप को देने के मूड में नहीं हूं.’’

महिला हंस पड़ी, ‘‘मैं तो मजाक कर रही थी. आइए, मैं चाय बनाती हूं.’’ महिला ने विनोद को आदर से अपने कमरे में बिठाया. चाय बना कर लाने तक विनोद शर्मा से वह ऐसे घुलमिल गई जैसे बरसों की मुलाकात हो. उस ने अपना नाम अफसाना बताया. उस ने विनोद से वादा लिया कि वह वहां आता रहेगा. अफसाना मूलरूप से बिहार के सीतामढ़ी की रहने वाली थी, लेकिन बाद में उस का परिवार का सिद्धार्थ विहार में शिफ्ट हो गया.

विनोद से शादी के बाद बन गई भव्या शर्मा..

विनोद शर्मा ने चाय पीने के बाद यह वादा किया कि वह वहां आदिल से मिलने जरूर आया करेगा. उस ने यह वादा किया तो था हफ्ते में एक बार आने का, लेकिन उसे आदिल से ज्यादा अफसाना से लगाव हो गया था. वह शुरू में हफ्ते में एक बार फिर हर दूसरे दिन अफसाना से मिलने आने लगा. इन मुलाकातों ने दोनों के दिलों में प्यार का बीज बो दिया. वे दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे.

दोनों को अब एकदूसरे से मिले बगैर चैन नहीं आता था. एक दिन विनोद शर्मा ने अफसाना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा जो उस ने स्वीकार कर लिया. दोनों ने शादी कर ली और आदिल को साथ ले कर दोनों वृंदावन एनक्लेव में एक किराए का कमरा ले कर रहने लगे. विनोदने अफसाना का नाम भव्या शर्मा रख दिया.

पहले विनोद ही काम पर जाता था, उस की तनख्वाह से खर्चे पूरे नहीं होते थे. इसलिए अफसाना उर्फ भव्या शर्मा ने उसे घर बैठा दिया और खुद घर से बाहर कदम बढ़ा दिए. भव्या ने बताया कि वह आयुर्वेदिक दवा सप्लाई करने का काम करती है. इस सिलसिले में वह अकसर गाजियाबाद से बाहर रहती थी. जब लौटती तो ढेरों रुपया उस के पर्स में होते थे. विनोद की आंखें इतने रुपए देख कर चौंधिया जाती थीं. उसे संदेह होता था कि भव्या दवा बेचने की आड़ में कोई और धंधा करती है.

विनोद ने पुलिस को बताया कि वह घर में रहता था, उस का काम आदिल को स्कूल छोडऩा, लाना और उसे खाना बना कर खिलाने का था. भव्या ने एक प्रकार से उसे घर की औरत बना दिया था, इस बात को वह सहन नहीं कर पा रहा था, जिस से वह टेंशन में रहने लगा तो उस ने शराब पीनी शुरू कर दी. विनोद तब हैरान रह गया जब भव्या भी शराब पीने लगी थी. वह बिजनैस टूर कर के लौटती तो पी कर घर आती या घर में बैठ कर उस के सामने ही शराब पीती. उस ने कई बार भव्या को इस के लिए रोका, लेकिन वह नहीं मानी. इस बात पर दोनों में झगड़ा भी होने लगा था.

तीसरा पति बना हत्यारा…

इस बार वह इंदौर गई तो 24 दिसंबर, 2022 की रात को भव्या ने उसे वीडियो काल की. उस के साथ उस का दूसरा पति अनीस भी था. अनीस अंसारी ने विनोद की वीडियो काल पर भद्ïदीभद्ïदी गालियां दीं और विनोद को जान से मारने की धमकी दी. विनोद इसी बात से गुस्से में था कि भव्या ने उस से शादी कर लेने के बाद भी अपने दूसरे पति का साथ नहीं छोड़ा था. उस का वह पति इंदौर में उस के साथ था. इस से विनोद का खून खौल रहा था.

भव्या 25 तारीख को इंदौर से लौट कर आई तो शराब के नशे में थी. उस का विनोद से झगड़ा हुआ. वह गुस्से में उसे उलटासीधा बकने लगी. झगड़ा अनीस अंसारी को ले कर था, भव्या अभी भी उस के साथ मौजमस्ती कर रही थी. विनोद ने आदिल को खिलौना लाने को 100 रुपए दिए, क्योंकि वह भव्या को सबक सिखाना चाहता था.

आदिल खिलौना लाने के लिए बाजार चला गया तो विनोद ने भव्या पर किचन के चाकू से हमला कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. फिर उस ने तौलिए से चाकू साफ किया और उसे अलमारी के पीछे डाल दिया. उस ने भव्या के कपड़े भी चेंज किए. खून वाले कपड़े उस ने वाशिंग मशीन में डाल दिए. उस का फोन भी मशीन में डाल दिया.

आदिल बाजार से आया तो विनोद ने उस से कहा कि उस की मां थकी हुई है, सो रही है, उसे डिस्टर्ब न करे. आदिल अपनी चारपाई पर चला गया तो पकड़े जाने के डर से विनोद वहां से भाग गया.

पुलिस ने विनोद की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू व खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

3 लव मैरिज के बाद भी बनी रही बेवफा – भाग 2

घटनास्थल पर इलाके के लोगों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई थी. भीड़ पुलिस वैन को देख कर इधरउधर हट गई. इंसपेक्टर अनीता चौहान अपनी टीम के साथ उस कमरे में आ गईं, जिस में भव्या की लाश पड़ी हुई थी.

भव्या शर्मा के पेट पर चाकू का गहरा घाव था, जिस से खून बह कर फर्श पर फैल चुका था. उस की लाश पीठ के बल पड़ी हुई थी. इंसपेक्टर अनीता चौहान ने लाश का मुआयना किया. मृतका भव्या चेहरेमोहरे से बेहद खूबसूरत थी, उस की उम्र लगभग 35 वर्ष की लग रही थी. उस के शरीर पर जो सलवारकुरती थी, वह अस्तव्यस्त थी. सलवार का नाड़ा ठीक से नहीं बंधा था.

लाश के पास ही खून सना एक तौलिया पड़ा था. इंसपेक्टर अनीता ने इस हत्या की सूचना अधिकारियों को देने के बाद फोरैंसिक टीम और फोटोग्राफर को घटनास्थल पर आने के लिए फोन कर दिया.

पुलिस जुटी जांच में…

थोड़ी देर में पुलिस के अधिकारी और फोरैंसिक टीम फोटोग्राफर के साथ वहां आ गई. आला अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर अनीता चौहान को इस केस का हल करने की जिम्मेदारी सौंप दी. अनीता चौहान के सामने कत्ल करने वाले आरोपी विनोद शर्मा का नाम आ गया था. टीपू ने उसी पर अपना संदेह जताया था.

विनोद शर्मा यहां होगा, यह सोचना भी मूर्खता होती. अकसर कत्ल करने के बाद हत्यारा मौके फरार हो जाता है. विनोद शर्मा भी भाग गया होगा. उस की तलाश करने के लिए उस का हुलिया फोटो और उस के घर वालों तथा यारदोस्तों की जानकारी हासिल करना जरूरी था.

भव्या शर्मा मर्डर का खुलासा हो चुका था, अब उस के आरोपी को गिरफ्तार करना बाकी था. इंसपेक्टर अनीता चौहान ने मृतका के भाई टीपू को बुला कर विनोद शर्मा का हुलिया और एक फोटो हासिल किया. आदिल वहीं खड़ा सुबक रहा था. वह उस के पास आ गईं. आदिल 8 साल का हो गया था, वह नासमझ नहीं था. उस से इस हत्या की बाबत बहुत कुछ जानकारी मिल सकती थी.

उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ रख कर पूछा, ‘‘तुम्हारे पापा और मम्मी का क्या अकसर झगड़ा होता रहता था?’’

“हां, पापा मेरी अम्मी को मारतेपीटते भी थे. कुछ दिनों से वह रोज अम्मी से लड़ाई कर रहे थे.’’ आदिल ने सुबकते हुए बताया, ‘‘कल भी अम्मी जब इंदौर से लौट कर घर आई थी, पापा उस से लडऩे लगे थे.’’

“किस बात पर लड़े थे तुम्हारे पापा?’’ इंसपेक्टर अनीता ने पूछा.

“पापा कह रहे थे कि अम्मी मेरे असली पापा के साथ इंदौर में क्यों थी?’’

“तुम्हारे पापा यानी अनीस अंसारी? वह तुम्हारी अम्मी के साथ इंदौर गए थे?’’

“मालूम नहीं, अम्मी तो यहां से अकेली ही इंदौर गई थी. हो सकता है मेरे पापा अनीश वहां मिल गए हों?’’

“क्या तुम्हारी अम्मी बाहर जाती रहती थी?’’

“हां, वह दवा खरीद कर उसे बेचने बाहर जाती रहती थी.’’

“तुम्हारे पापा का कल तुम्हारी अम्मी से झगड़ा हुआ था, तब क्या तुम वहां मौजूद थे?’’

“था, लेकिन विनोद पापा ने मुझे सौ रुपए दे कर खिलौना लाने के लिए बाजार भेज दिया. मुझे चाबी वाली कार चाहिए थी, जिस की मैं कई दिनों से जिद कर रहा था. पापा ने रुपए दिए तो मैं बाजार चला गया. जब मैं वापस आया तो अम्मी फर्श पर मरी पड़ी थी, उन के पेट से खून बह रहा था. पापा वहां नहीं थे. मेरे पापा विनोद ने ही मेरी अम्मी को मारा है.’’

आरोपी विनोद की हुई तलाश…

टीपू पास आ गया था. इंसपेक्टर अनीता ने विनोद के घर वालों और उस के खास दोस्तों के विषय में उस से जानकारी ली. टीपू ने विनोद शर्मा का एक एड्रैस और बताया. वह विजय शर्मा का बेटा था जो ईपी-25/16, नई बस्ती, थाना अर्जुन नगर, जिला गुरुग्राम, हरियाणा में रहते थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद इंसपेक्टर अनीता चौहान ने भव्या शर्मा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

टीपू के द्वारा वादी के रूप में विजयनगर थाने में उसी दिन भादंवि की धारा 302 के तहत भव्या की हत्या का मामला पंजीकृत कर लिया गया. विनोद शर्मा वांछित अपराधी था. उस के फोटो की कौपियां पुलिस टीम को दे कर उन्हें विनोद की खोज में लगा दिया गया. अनीता चौहान ने अपने खास मुखबिर भी विनोद शर्मा की तलाश में दौड़ा दिए.

गाजियाबाद के बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन, ढाबों, होटलों में विनोद शर्मा की तलाश की जाने लगी. पुलिस की एक टीम को उस के पैतृक घर गुडग़ांव भेजा गया. पुलिस की मुस्तैदी और मुखबिरों की भागदौड़ का परिणाम अच्छा ही निकला. 2 दिन बाद एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीम ने विनोद शर्मा को डीपीएस कट के पास दिन में करीब साढ़े 11 बजे गिरफ्तार कर लिया.

भव्या शर्मा की हत्या 25 दिसंबर, 2022 को रात में की गई थी और 28 दिसंबर, 2022 को दोपहर में विनोद को गिरफ्तार कर लिया गया. यह पुलिस की बहुत बड़ी सफलता थी. विनोद शर्मा को थाना विजयनगर में लाया गया. वह समझ चुका था कि पुलिस ने उस पर हाथ क्यों डाला है. वह अब कुछ भी छिपाना नहीं चाहता था.

अनीता चौहान ने जब उस से सामने बिठा कर पूछताछ शुरू की तो उस ने अपनी पत्नी भव्या शर्मा हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह एक खुद्दार पति के विश्वास और पत्नी के प्रति समर्पण को पूरी तरह ठेस पहुंचाने वाली थी.

इस तरह हुआ अफसाना के घर आनाजाना…

नई बस्ती थाना अर्जुन नगर, गुडग़ांव (हरियाणा) का रहने वाला था विनोद शर्मा. वह दिल्ली से सटे गाजियाबाद में किराए का कमरा ले कर एक फैक्ट्री में काम करता था. शुरू से विनोद को अच्छा पहनने व खाने का शौक था. यहां भी वह जो कमाता था, अपने पहनने खाने पर खर्च कर देता था. कुछ पैसे जोड़ कर उस ने एक स्कूटर खरीद लिया था, उसी से वह अपनी फैक्ट्री आताजाता था.

एक दिन वह अपने काम पर जा रहा था तो उस ने सडक़ किनारे एक बच्चे को रोते हुए देख कर अपना स्कूटर रोक लिया. बच्चे की कुहनी छिली हुई थी, उस में से खून बह रहा था. विनोद ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटे,

तुम रो क्यों रहे हो?’’

“एक रिक्शे वाला टक्कर मार कर गिरा गया मुझे…’’ बच्चे ने रोते हुए बताया.

“ओह!’’ विनोद ने उसे प्यार से पुचकारा, ‘‘तुम कहां रहते हो?’’

“विजय नगर में. अम्मी मुझे लेने आएंगी.’’

“तुम अपना घर जानते हो?’’

“हां,’’ बच्चे ने सिर हिलाया.

“चलो, पहले मैं तुम्हारी डाक्टर से पट्ïटी करवाता हूं. फिर तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’

विनोद ने बच्चे को स्कूटर पर बिठाया और एक डाक्टर के पास ले जा कर उस की कुहनी पर पट्टी करवा दी. इस के बाद बच्चे को ले कर उस के द्वारा बताए एक मकान के सामने पहुंच गया.

“यही है मेरा घर,’’ बच्चा स्कूटर से उतर कर बोला. विनोद ने अपने स्कूटर को जब तक स्टैंड पर खड़ा किया, बच्चा दौड़ कर अपने कमरे में चला गया. जब वह बाहर आया तो उस के साथ एक 30-31 साल की सुंदर महिला थी.

“मुझे यह अंकल ले कर आए हैं अम्मी.’’ बच्चे ने अपनी मासूम आवाज में कहा. महिला ने हैरान नजरों से विनोद को देखा,

‘‘आदिल आप को कहां मिल गया, इसे तो स्कूल में छोड़ा था मैं ने?’’

“जी, यह स्कूल के सामने सडक़ पर खड़ा रो रहा था. कोई रिक्शेवाला इसे टक्कर मार गया होगा, कुहनी से खून बह रहा था. मैं ने डाक्टर से पट्टी करवा दी है.’’

“अरे, यह तो मैं ने देखा ही नहीं.’’ महिला घबराए स्वर में बोली और नीचे झुक कर अपने बेटे आदिल की कुहनी देखने लगी.