मनहूस कदम : खाली न गयी मजलूम की आह

महामिलन : दो जिस्म एक जान थे वो – भाग 1

मनचाहा शिकार तो मिल गया, लेकिन शिकारी थक कर चूर हो चुका था. एक तो थकान, दूसरे ढलती सांझ और तीसरे 10 मील  का सफर. उस में भी 3 मील पहाड़ी चढ़ाई, फिर उतनी ही ढलान. समर सिंह ने पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज पर निगाह डाल कर घोड़े की गरदन पर हाथ फेरा. फिर घोड़े की लगाम थामे खड़े सरदार जुझार सिंह की ओर देखा. उन की निगाह डूबते सूरज पर जमी थी.

समर सिंह उन्हें टोकते हुए थके से स्वर में बोले, ‘‘अंगअंग दुख रहा है, सरदार. ऊपर से सूरज भी पीठ दिखा गया. धुंधलका घिरने वाला है. अंधेरे में कैसे पार करेंगे इस पहाड़ी को?’’

जुझार सिंह थके योद्धा की तरह सामने सीना ताने खड़ी पहाड़ी पर नजर डालते हुए बोले, ‘‘थक तो हम सभी गए हैं हुकुम. सफर जारी रखा तो और भी बुरा हाल हो जाएगा. अंधेरे में रास्ता भटक गए तो अलग मुसीबत. मेरे खयाल से तो…’’ जुझार सिंह सरदार की बात का आशय समझते हुए बोले, ‘‘लेकिन इस बियाबान जंगल में कैसे रात कटेगी? हम लोगों के पास तो कोई साधन भी नहीं है. ऊपर से जंगली जानवरों का अलग भय.’’

पीछे खड़े सैनिक समर सिंह और जुझार सिंह की बातें सुन रहे थे. उन दोनों को चिंतित देख एक सैनिक अपने घोड़े से उतर कर सरदार के पास खड़ा हो गया. सरदार समझ गए, सैनिक कुछ कहना चाहता है.

उन्होंने पूछा तो सैनिक उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘सरदार, अगर रात इधर ही गुजारनी है तो सारा बंदोबस्त हो सकता है. आप हुक्म करें.’’

‘‘क्या बंदोबस्त हो सकता है, मोहकम सिंह?’’ जुझार सिंह ने सवाल किया तो सैनिक दाईं ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘ये छोटी सी पहाड़ी है. इस के पार मेरा गांव है. बड़ी खूबसूरत और रमणीक जगह है उस पार. इस पहाड़ी को पार करने के लिए हमें सिर्फ एक 2 मील चलना पड़ेगा. 1 मील की चढ़ाई और 1 मील उस ओर की ढलान. रास्ता बिलकुल साफ है. अंधेरा घिरने से पहले हम गांव पहुंच जाएंगे. मेरे गांव में हुकुम को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

जुझार सिंह ने प्रश्नसूचक नजरों से समर सिंह की ओर देखा. वह शांत भाव से घोड़े की पीठ पर बैठे थे. उन्हें चुप देख सरदार ने कहा, ‘‘सैनिक की सलाह बुरी नहीं है हुकुम. रात भी चैन से बीत जाएगी और इस बहाने आप अपनी प्रजा से भी मिल लेंगे. जो लोग आप के दर्शन को तरसते हैं, आप को सामने देख पलकें बिछा देंगे.’’

और ऐसा ही हुआ भी. मोहकम सिंह का प्रस्ताव स्वीकार कर के जब समर सिंह अपने साथियों के साथ उस के गांव पहुंचे तो गांव वालों ने उन के आगे सचमुच पलकें बिछा दीं.

छोटा सा पहाड़ी गांव था राखावास. साधन विहीन. फिर भी वहां के लोगों ने अपने राजा के लिए ऐसे ऐसे इंतजाम किए, जिन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. हुकुम के आने से मोहकम सिंह को तो जैसे पर लग गए थे. उस ने गांव के युवकों को एकत्र कर के सूखी मुलायम घास का आरामदेह आसन लगवाया. उस पर सफेद चादर बिछवाई. सरदार के लिए अलग आसन का प्रबंध किया और सैनिकों के लिए अलग. चांदनी रात थी, फिर भी लकडि़यां जला कर रोशनी की गई.

आननफानन सारा इंतजाम कराने के बाद गांव के कुछ जिम्मेदार लोगों को शिकार भूनने और बनाने की जिम्मेदारी सौंप कर मोहकम सिंह घोड़ा दौड़ाता हुआ 3 मील दूर समालखा गांव गया और वहां से वीरन देवल से 4 बोतल संतूरी ले आया. राजस्थान की बेहतरीन शराब जो केवल राजामहाराजाओं के लिए बनाई जाती थी.

अदना सा एक सिपाही कितने काम का साबित हो सकता है, यह बात समर सिंह को तब पता चली, जब अपने हाथों मारे गए शिकार के जायकेदार गोश्त और संतूरी का लुत्फ लेते हुए उन की नजर घुंघरू छनका कर मस्त अदाओं के साथ नाचती मौली पर पड़ी.

ऐसा रूपलावण्य, ऐसा अछूता सौंदर्य, ऐसा मदमाता यौवन और अंगअंग में ऐसी लोच समर सिंह ने पहली बार देखा था. उन के महल तक में नहीं थी ऐसी अनिंद्य सुंदरी. ऊपर से फिजाओं में रंग बिखेरती मौली का सधा हुआ स्वर और एक ही लय में बजते घुंघरुओं की रुनझुन. रहीसही कसर मानू की ढोलक की थाप पूरी कर रही थी. घुंघरुओं की रुनझुन और ढोलक की थाप को सुन लगता था, जैसे दोनों एकदूसरे के पूरक हों.

पूरक थे भी. मौली का सधा स्वर, घुंघरुओं की रुनझुन और मानू की ढोलक की थाप ही नहीं, बल्कि वे दोनों भी. यह अलग बात थी कि इस बात को गांव वाले जानते थे, पर समर सिंह और उस के साथी नहीं.

मौली और मानू खूब खुश थे. उन्हें यह सोच कर खुशी हो रही थी कि अपने राजा का मनोरंजन कर रहे हैं. इस के लिए उन दोनों ने अपनी ओर से भरपूर कोशिश भी की. लेकिन उन की सोच, उन के उत्साह, उन के समर्पण भाव और कला पर पहली बिजली तब गिरी, जब शराब के नशे में झूमते राजा समर सिंह ने मौली को पास बुला कर उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आज हम ने अपने जीवन में सब से बड़ा शिकार किया है. हमारी शिकार यात्रा सफल रही. ये रात कभी नहीं भूलेगी.’’

इस तरह मौली का हाथ कभी किसी ने नहीं पकड़ा था. मानू ने भी नहीं. मानू के हाथों का स्पर्श उसे अच्छा लगता था. लेकिन उस ने उस के पैरों के अलावा कभी किसी अंग को नहीं छुआ था. मौली के पैरों में भी उस के हाथों का स्पर्श तब होता था, जब वह अपने हाथों से उस के पैरों में घुंघरू बांधता था.

मौली को राजा द्वारा यूं हाथ पकड़ना अच्छा नहीं लगा. उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो समर सिंह उस की कलाई पर दबाव बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आज के बाद तुम सिर्फ हमारे लिए नाचोगी, हमारे महल में. हम मालामाल कर देंगे तुम्हें. तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को ही नहीं, इस गांव को भी.’’

घुंघरुओं की रुनझुन भी थम चुकी थी और ढोलक की थाप भी. सब लोग विस्मय से राजा की ओर देख रहे थे. कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. मानू भी अवाक बैठा था. मौली राजा से हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘मौली रास्ते की धूल है हुकुम…और धूल उन्हीं रास्तों पर अच्छी लगती है, जो उस की गगनचुंबी उड़ानों के बाद भी उसे अपने सीने में समेट लेते हैं. इस खयाल को मन से निकाल दीजिए हुकुम. मैं इस काबिल नहीं हूं.’’

समर सिंह ने लोकलाज की वजह से मौली का हाथ तो छोड़ दिया, लेकिन उन्हें मौली की यह बात अच्छी नहीं लगी.

रात बड़े ऐशोआराम से गुजरी. मोहकम सिंह और गांव वालों ने हुकुम तथा उन के साथियों की खातिरतवज्जो में कोई कसर न उठा रखी थी. सुबह जब सूरज की किरणों ने पहाड़ से उतर कर राखावास की मिट्टी को छुआ तो वहां का कणकण निखर गया.

राजा समर सिंह ने उस गांव का प्राकृतिक सौंदर्य देखा तो लगा जैसे स्वर्ग के मुहाने पर बैठे हों. मौली की तरह ही खूबसूरत था उस का गांव. चारों ओर खूबसूरत पहाडि़यों से घिरा, नीलमणि से जलवाली आधा मील लंबी झील के किनारे स्थित. पहाड़ों से उतर कर आने वाले बरसाती पानी का करिश्मा थी वह झील.

रवाना होने से पहले समर सिंह ने मौली के मांबाप को तलब किया. दोनों हाथ जोड़े आ खड़े हुए तो समर सिंह बोले, ‘‘तुम्हारी बेटी महल की शोभा बनेगी. उसे ले कर महल आ जाना. हम तुम्हें मालामाल कर देंगे.’’

‘‘मौली को हम महल ले आएंगे हुकुम,’’ मौली के मांबाप डरते सहमते बोले, ‘‘नाचनागाना हमारा पेशा है, पर मौली के साथ मानू को भी आप को अपनी शरण में लेना पड़ेगा. उस के बिना तो मौली का पैर तक नहीं उठ सकता.’’

‘‘हम समझे नहीं.’’ समर सिंह ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा तो मौली के पिता बोले, ‘‘मौली और मानू बचपन के साथी हैं. नाचगाना भी दोनों ने साथसाथ सीखा. बहुत प्यार है दोनों में. मौली तभी नाचती है, जब मानू खुद अपने हाथों उस के पांव में घुंघरू बांध कर ढोलक पर थाप देता है. आप लाख साजिंदे बैठा दें मौली नहीं नाचेगी हुकुम…इस बात को सारा इलाका जानता है.’’

‘‘हमारे लिए भी नहीं?’’ समर सिंह ने अपमान का सा घूंट पीते हुए गुस्से में कहा तो मौली के पिता बोले, ‘‘आप के लिए नाचेगी हुकुम…जरूर नाचेगी. लेकिन उस के साथ मानू का होना जरूरी है. सारा गांव जानता है, मौली और मानू दो जिस्म एक जान हैं. अलग कर के सिर्फ दो लाशें रह जाएंगी. उन्हें अलग करना संभव नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे मुंह से बगावत की बू आ रही है…और हमें बागी बिलकुल पसंद नहीं.’’ समर सिंह गुस्से में बोले, ‘‘मौली को खुद महल ले कर आते तो हम मालामाल कर देते तुम्हें, लेकिन अब हम खुद उसे साथ ले कर जाएंगे. जा कर तैयार करो उसे. यह हमारा हुक्म है.’’

अच्छा तो किसी को नहीं लगा, लेकिन राजा की जिद के सामने किस की चलती? वही हुआ, जो समर सिंह चाहते थे. रोतीबिलखती मौली को उन के साथ जाने को तैयार कर दिया गया. विदा बेला में मौली ने पहली बार मानू का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मौली तेरी है मानू, तेरी ही रहेगी. राजा इस लाश से कुछ हासिल नहीं कर पाएगा.’’

मानू के होंठों से जैसे शब्द रूठ गए थे. वह पलकों में आंसू समेटे चुपचाप देखता रहा. आंसू और भी कई आंखों में थे, लेकिन राजा के भय ने उन्हें पलकों से बाहर नहीं आने दिया. अंतत: मौली राखावास से राजा के साथ विदा हो गई.

क्या मौली महलों में रह कर मानू को भूल जाएगी? जानेंगे कहानी के अगले अंक में…

पवित्र प्रेम : गींदोली और कुंवर जगमाल की प्रेम कहानी

मनहूस कदम : खाली न गयी मजलूम की आह – भाग 5

उसी समय कमरे का दरवाजा खुला और ताहिरा अंदर आई. उस की नजर अजीम पर पड़ी तो वह वहीं ठिठक गई. कमरे में पल भर के लिए सन्नाटा पसर गया. अजीम ने खड़े हो कर कहा, ‘‘यासमीन, मैं नीचे तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

उस के जाने के बाद ताहिरा ने कहा, ‘‘मैं वेटिंग रूम में बैठती हूं. आप फ्री हो जाइए तो बात करती हूं.’’

‘‘मैं फ्री हूं. बताओ क्या बात है?’’ मैं ने फौरन कहा.

ताहिरा यासमीन की बगल वाली कुरसी पर बैठ गई. वह अपना चेहरा दोनों हाथों से ढांप कर रोने लगी तो मैं ने कहा, ‘‘अरे यह क्या बात है? इतने प्यारे चेहरे पर ये आंसू अच्छे नहीं लगते.’’

‘‘वकील साहब, यह कौन है?’’ यासमीन ने हमदर्दी से पूछा.

‘‘ताहिरा, अजीम बुखारी की पहली बीवी.’’

यासमीन हैरानी से उसे देखती रह गई. फिर एकदम से उठी और बिना कुछ कहे बाहर निकल गई. उस के जाने के बाद ताहिरा भी उठी और आंसू पोछते हुए बोली, ‘‘वकील साहब, फिर आऊंगी. अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘फिक्र करने की कोई बात नहीं है, सब ठीक ही होगा.’’ मैं ने उसे तसल्ली दी.

अगली पेशी पर अजीम बुखारी अदालत में आया तो काफी परेशान लग रहा था. मैं ने जिरह शुरू की, ‘‘बुखारी साहब, पर्सनल ला के हिसाब से कोई भी आदमी पहली बीवी की मौजूदगी में उस की इजाजत के बगैर दूसरी शादी नहीं कर सकता यानी दूसरी शादी के लिए पहली बीवी की रजामंदी जरूरी है. क्या आप ने दूसरी शादी अपनी पहली बीवी की रजामंदी से की है?’’

‘‘मुझे इस बारे में पता नहीं था.’’

मैं ने उस के निकाहनामे की नकल निकाल कर कहा, ‘‘मि. बुखारी, इस पर साफ लिखा है कि दूसरी शादी के लिए काउंसिल और पहली बीवी की तहरीरी इजाजत जरूरी है. क्या आप ने पहली बीवी से इजाजत ली थी?’’

‘‘मुझे उस से इजाजत की उम्मीद नहीं थी.’’

मैं ने जज से कहा, ‘‘सर, मुसलिम ला के अनुसार मेहर की रकम मौजूदा बीवी को देना जरूरी है. न देने पर 5 हजार रुपए जुरमाना और कैद की सजा भी दी जा सकती है. इसलिए मैं गुजारिश करूंगा कि मेरी मुवक्किल को जुरमाने के साथ मेहर की रकम दिलवाई जाए.’’

जज ने निकाहनामे की नकल देख कर कहा, ‘‘क्या इस निकाहनामे पर आप के ही दस्तखत हैं?’’

‘‘जी हां.’’ अजीम ने कहा.

जज ने गुस्से से अजीम को देखते हुए कहा, ‘‘आप एक हफ्ते के अंदर अपनी बीवी का मेहर अदा कर दें. और बेग साहब, आप मेहर की रकम की अदायगी तक जिरह रोके रखें.’’

इतना कह कर जज ने अगले हफ्ते की तारीख दे दी.

मैं बाहर निकला तो अजीम बुखारी ने मेरे पास आ कर कहा, ‘‘बेग साहब, अब तो आप को यकीन हो गया होगा कि ताहिरा मनहूस है. उस दिन आप की औफिस में देख कर ही मैं समझ गया था कि मेरे ऊपर कोई आफत आने वाली है. उस ने यासमीन को न जाने क्या सिखा दिया कि वह मेरी कोई बात ही मान नहीं रही है.’’

‘‘लेकिन उन दोनों की तो कोई बात ही नहीं हुई थी.’’

‘‘दोनों आप के औफिस के बाहर मिली थीं. यासमीन उसे अपने साथ ले कर कहीं गई थी. उस ने मेरी जिंदगी को नरक बना दिया है. कहती है कि जब तक मैं ताहिरा की एकएक पाई अदा नहीं कर दूंगा, वह मुझ से बात नहीं करेगी और न ही घर में दाखिल होने देगी.’’

‘‘मेरे खयाल से वह ठीक ही कह रही है.’’

‘‘इस औरत ने मेरे अमेरिका जाने की योजना को भी खतरे में डाल दिया है.’’ अजीम ने कहा, ‘‘आप मेरे साथ थोड़ी मेहरबानी करें. इस के गहने और मेहर की रकम मैं कल अदा किए देता हूं. मगर 1 लाख के लिए आप को कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा.’’

मैं ने सोचा, जो मिल रहा है, उसे क्यों छोड़ा जाए. इसलिए कहा, ‘‘ठीक है, तुम ये दोनों चीजें कल दे जाना. मै ताहिरा को बुलवा कर तुम्हें रसीद दिला दूंगा.’’

‘‘रसीद तो आप दे ही देंगे. मगर मुझे एक क्लीयरेंस सर्टिफिकेट की भी जरूरत पड़ेगी, जिस से मैं यासमीन को यकीन दिला सकूं कि मैं ने ताहिरा के सारे हक अदा कर दिए हैं.’’

मुझे लगा, यह मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहा है. मैं ने कहा, ‘‘क्लीयरेंस सर्टिफिकेट तो पूरी अदायगी के बाद ही मिलेगा.’’

‘‘तब तक तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी. मैं नौकरी से इस्तीफा दे चुका हूं. दुकान बेचने का भी इश्तिहार दे चुका हूं. अगर यासमीन को संतुष्ट नहीं किया तो वह अकेली ही अमेरिका चली जाएगी. मेरा बहुत घाटा हो जाएगा. जब मैं इतना देने को तैयार हूं तो बाकी भी दे दूंगा.’’

‘‘अजीम तुम जो भी दे रहे हो, वह यासमीन की ही वजह से दे रहे हो. खैर, तुम जो देने को कह रहे हो, कब ले आओ. अगर ताहिरा मान गई तो मैं सर्टिफिकेट दे दूंगा.’’

अगले दिन अजीम 32 हजार के बजाय 40 हजार रुपए और गहने ले कर आया. उस समय ताहिरा मेरे पास बैठी थी, इसलिए वह वेटिंग रूम में बैठ गया. उस ने कहा कि वह ताहिरा का सामना नहीं करना चाहता. ताहिरा ने सर्टिफिकेट देने की इजाजत दे दी. वह पैसे और गहने बैग में रख कर कागजात तैयार होने का इंतजार करने लगी.

थोड़ी देर खामोश रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘बेग साहब, मैं ने इस मामले पर गौर किया तो इस नतीजे पर पहुंची कि जब मेरा घर आबाद नहीं हो सकता तो अजीम जो दे रहा है, उसी में सब्र कर के उसे क्लीयरेंस सर्टिफिकेट दे देना चाहिए, क्योंकि मैं उस की जिंदगी में रोड़ा अटकाना नहीं चाहती. अब आप मुकदमे की काररवाई खत्म कर दें.’’

ताहिरा अपनी बात कह ही रही थी कि अचानक यासमीन औफिस में आई. आते ही उस ने कहा, ‘‘उम्मीद है, फैसला हो गया होगा?’’

‘‘जी हां,’’ ताहिरा ने नजरें झुकाए आहिस्ता से कहा, ‘‘अजीम ने सारे हक अदा कर दिए हैं.’’

‘‘बेग साहब, क्या मैं रसीद देख सकती हूं,’’ यासमीन ने कहा.

मैं ने रसीद उसे दी तो उसे देख कर उस ने कहा, ‘‘यह तो गहनों और 40 हजार की ही रसीद है. बाकी के ड्यूज?’’

‘‘मुझे और कुछ नहीं चाहिए. मैं क्लीयरेंस सर्टिफिकेट पर दस्तखत कर रही हूं.’’ ताहिरा ने कहा.

यासमीन ने बीच वाले दरवाजे में खड़ी हो कर कहा, ‘‘अजीम, तुम ने पूरी रकम देने की बात कही थी, फिर तुम ने ताहिरा को यह 40 हजार रुपए ही क्यों दिए?’’

‘‘बाकी रुपए मैं 2 दिनों में दे दूंगा.’’ अजीम ने झेंपते हुए कहा.

‘‘तुम ने 90 हजार में दुकान और 80 हजार में प्लौट बेचा है. तुम्हारे पास पैसे की कमी कैसे हो सकती है. तुम धोखेबाज हो, तुम ने कहा था कि प्लौट के पूरे पैसे ताहिरा को दोगे. आज तुम इस लड़की के साथ धोखा दे रहे हो, कल मेरे साथ भी ऐसा कर सकते हो. तुम्हें मुझ से भी ज्यादा मालदार, खूबसूरत और जवान औरत मिल जाएगी तो तुम मुझे छोड़ दोगे. मैं जा रही हूं. और हां, अब तुम मेरे पीछे मत आना.’’ कह कर यासमीन बाहर निकल गई.

ताहिरा रसीद पर दस्तखत कर के चली गई. अजीम उसे जाते देखता रहा. उस की आंखों में एक खालीपन झलक रहा था. वह उस से कुछ कहना चाहता था, पर कह नहीं सका. अगली पेशी पर अदालत के गेट पर ही अजीम बुखारी के वकील से भेंट हो गई. उस ने व्यंग्य से कहा, ‘‘बेग साहब, केस खारिज हो गया, फाइल बंद कर दें. दो दिनों पहले एक्सीडेंट में अजीम बुखारी मर गया. कुछ लोगों को उन का अंधविश्वास ही उन्हें ले डूबता है. उस का खयाल था कि उस की पहली बीवी मनहूस है. पर उस का एक्सीडेंट दूसरी शादी के बाद हुआ. अब किस पर इल्जाम लगाए. बहरहाल इल्जाम लगाने वाला ही नहीं रहा.’’

सच है, मजलूम की आह कभी खाली नहीं जाती. जुल्म करने वाला अपने किए की सजा जरूर पाता है. बाद में मुझे पता चला कि अजीम की मां को भी लकवा मार गया था. बिस्तर पर पड़ी वह भी अपने किए की सजा भोग रही थी. ताहिरा की जिंदगी में खुशियों ने दस्तक दी. एक पढ़ालिखा, समझदार शख्स उस का हमसफर बन गया. इस में कुछ मेरी कोशिश थी तो कुछ संयोग.

मनहूस कदम : खाली न गयी मजलूम की आह – भाग 4

वकील ने अजीम से पूछ कर तारीख ले ली. 3 तारीखें यूं ही निकल गईं. चौथी तारीख पर मैं ने उसे जिरह के लिए तलब कर लिया. उस की पूरी तैयारी नहीं थी. उस ने जवाब में लिखा था कि ताहिरा उस की बीवी जरूर थी, लेकिन वह शादी के कुछ दिनों बाद ही सारे गहने ले कर अपने किसी यार के साथ भाग गई थी. बदनामी के डर से उस ने रिपोर्ट नहीं लिखाई. वह खुद घर छोड़ कर गई थी. इसलिए उस ने मेंटीनेंस एलाउंस लेने से मना कर दिया था.

सच बोलने का हलफ लेने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘बुखारी साहब, बेगम ताहिरा का दावा है कि वह आप की कानूनी और शरई बीवी है. इस पर आप क्या कहना है?’’

‘‘जो बीवी महीनों से घर से गायब हो, उस का होना भी न होने के बराबर है.’’ अजीम ने जवाब में कहा तो जज ने टोका, ‘‘जज्बाती बयानबाजी की जरूरत नहीं है. हां या ना में जवाब दो.’’

उस ने जल्दी से कहा, ‘‘जी हां, वह शरई और कानूनी लिहाज से मेरी बीवी है, लेकिन प्रैक्टिकली कुछ भी नहीं है.’’

‘‘आप ने जवाब में लिखा है कि शादी के कुछ दिनों बाद वह अपने किसी यार के साथ भाग गई थी. क्या आप उस ‘यार’ का नाम बताएंगे?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं नाम कैसे बता सकता हूं. ऐसे काम कोई बता कर थोड़े ही करता है.’’ अजीम झुंझलाया.

‘‘यानी आप को ‘यार’ का नाम नहीं मालूम,’’ मैं ने कहा, ‘‘यह तो बता ही सकते हो कि वह रहने वाला कहां का था?’’

‘‘मुझे उस के बारे में कुछ नहीं पता.’’

‘‘आप को उस के बारे में कुछ नहीं पता?’’

इस बार जवाब उस के बजाय वकील ने दिया, ‘‘मेरे मुवक्किल ने अपने बयान में अंदेशा जाहिर किया है कि वह अपने किसी दोस्त के साथ भाग गई थी.’’

‘‘शुक्रिया वकील साहब,’’ मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब भागने का अंदेशा है यानी इस का कोई सुबूत आप के पास नहीं है.’’

मैं ने अगला सवाल किया, ‘‘आप का कहना है कि आप ने बदनामी की वजह से रिपोर्ट नहीं की. इस का मतलब आप ने सोच रखा था कि वह आएगी तो आप उसे रख लेंगे?’’

‘‘जी नहीं, यह तो कोई बेशरम आदमी ही सोच सकता है.’’

‘‘यानी आप उसे तलाक देना चाहते हैं?’’

‘‘जाहिर है, ऐसे में आदमी तलाक ही देगा.’’

‘‘बुखारी साहब, इस हादसे को 9 महीने हो चुके हैं, फिर आप ने अभी तक तलाक नहीं दिया?’’

‘‘मैं ने उस का खयाल ही दिल से निकाल दिया था.’’

‘‘ताहिरा की ओर से आप को एक नोटिस भेजी गई थी, जिस का आप ने जवाब भी दिया था?’’

‘‘जी हां.’’

मैं ने उस की नोटिस जज के सामने रखते हुए कहा, ‘‘बुखारी साहब, आप ने अपने जवाब में लिखा है कि ताहिरा घर बसाने लायक नहीं है, क्योंकि उस ने पहली शादी की बात छिपाई थी. वह मनहूस भी थी, जिस की वजह से आप का काफी नुकसान हुआ.’’

‘‘वकील साहब, मैं इस मामले को तूल नहीं देना चाहता, पर यह सच है कि वह मनहूस है.’’

‘‘बुखारी साहब, आप की दादीदादा और नाना कब मरे थे?’’

‘‘9-10 साल तो हो ही गए होंगे.’’

‘‘क्या आप अदालत को बताएंगे कि आप के दादादादी और नाना की मौत किस मनहूस की वजह से हुई थी?’’

‘‘वे तो अपनी मौत मरे थे.’’

‘‘फिर तो 82 साल की बूढ़ी आप की नानी भी अपनी मौत ही मरी होंगी? इस में ताहिरा को क्यों जोड़ दिया?’’

‘‘वकील साहब, ये बातें आप नहीं समझेंगे.’’

अब मैं जज से मुखातिब हुआ, ‘‘सर, इन की बातों से यह बात सामने आती है कि अजीम बुखारी अंधविश्वासी और कान का कच्चा आदमी है. इस ने इसी बात को ढाल बना कर अच्छी और समझदार बीवी को घर से निकाल दिया है.’’

जज से इतना कह कर मैं बुखारी की ओर मुड़ा, ‘‘बुखारी साहब, आप ने अभी कहा था कि ताहिरा मनहूस थी, इसलिए उसे घर से निकाल दिया है. जबकि जवाब में आप ने लिखा है कि वह अपने यार के साथ भाग गई थी. अब इस में कौन सी बात सही है?’’

‘‘वह घर से भाग गई थी.’’

‘‘यानी आप स्वीकार कर रहे हैं कि आप ने झूठ बोला था. जो आदमी एक बार झूठ बोल सकता है, वह बारबार झूठ बोल सकता है.’’

‘‘आप जो भी समझें. मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया.’’

‘‘बुखारी साहब, आप नौकरी के साथसाथ कारोबार भी करते हैं. आप को तनख्वाह तो मिलती ही है, कारोबार से भी ठीकठाक कमा लेते हैं. शादी के बाद आप ने अपने कारोबार में 1 लाख रुपए लगाए थे, जो आप के पास आप की बीवी के अमानत थे.’’

‘‘यह इल्जाम है. मैं किसी 1 लाख के बारे में नहीं जानता.’’

मैं ने बैंक स्लिप की फोटो कौपी दिखाते हुए कहा, ‘‘यह रकम मेरी मुवक्किल ने आप को दी थी, जिसे शादी के चौथे दिन आप ने अपने खाते में जमा कराया था.’’

‘‘वह मेरी अपनी रकम थी.’’

‘‘इतनी बड़ी रकम आप के हाथ कहां से लगी थी?’’ मैं ने पूछा.

बुखारी के वकील ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘सर, यह मेरे मुवक्किल का निजी मामला है. उसे रकम के बारे में बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.’’

अदालत ने इस तरह के सवाल पूछने से मना कर दिया. इसी के साथ अदालत का वक्त खत्म हो गया. बुखारी का वकील काफी लंबी तारीख लेना चाहता था, लेकिन मैं ने कहा कि जिरह अभी मुकम्मल नहीं हुई है, इसलिए अगले दिन की तारीख दे दी जाए. अदालत ने अगले दिन की तारीख दे दी.

शाम को अजीम बुखारी अपनी नई बेगम यासमीन के साथ मेरे औफिस आया. यासमीन ने कहा, ‘‘वकील साहब, आप ने तो समझौता कराने का वादा किया था?’’

‘‘वादा तो किया था, लेकिन मेरी मुवक्किल समझौता के लिए राजी नहीं है.’’

‘‘आखिर वह चाहती क्या है?’’ अजीम बुखारी ने नफरत से पूछा.

‘‘उस की पहली ख्वाहिश है कि किसी तरह समझौता हो जाए. अगर समझौता नहीं होता तो वह अपना हक ले कर ही मामला खत्म करेगी. जिस के बारे में मैं आप को पहले ही बता चुका हूं.’’

‘‘वकील साहब, आप सीरियस हैं?’’ यासमीन ने कहा, ‘‘आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे सभी चीजें अजीम के पास है.’’

‘‘जी हां, मैं सीरियस हूं. मैडम, आप अपने शौहर से पूछ सकती हैं. ताहिरा के गहने और रकम इन के पास है?’’

‘‘अजीम, तुम तो कह रहे थे कि यह सब झूठ है.’’

अजीम बुखारी नजरें चुराते हुए बोला, ‘‘मैं ने भी उस पर काफी पैसे खर्च किए हैं.’’

‘‘मि. बुखारी, जहां तक मुझे पता है, ताहिरा सिर्फ 21 दिन तुम्हारे घर में रही थी. इतने दिनों में तुम ने उस पर कौन सा कारू का खजाना लुटा दिया?’’

अजीम चुप रहा. यासमीन गुस्से से बोली, ‘‘बोलते क्यों नहीं, वकील साहब की बात का जवाब दो.’’

‘‘डियर, तुम भी किस बहस में उलझ गई. हम यहां लड़ने थोड़े ही आए हैं.’’ अजीम ने बात पलट दी.

क्या ताहिरा सच में मनहूस थी? जानने के लिए पढ़ें हिंदी इमोशनल कहानी का अंतिम भाग…

मोहब्बत वाली गली – भाग 3

सालों बाद जानीपहचानी गलियों से गुजरते हुए मुझे खुशी भी हो रही थी और अफरोज की याद भी आ रही थी. मैं सोच रहा था कि वह अपने अब्बू की एकलौती बेटी थी, इसलिए मलिक साहब का पुश्तैनी मकान उसी को मिला होगा. अगर उस ने और उस के पति ने मकान बेचा नहीं होगा तो संभवत: वह उसी मकान में रह रही होगी.

अगर ऐसा हुआ तो उस के दर्शन हो सकते थे. मैं उसे एक नजर देखना चाहता था, उस के पति को भी और शायद बच्चों को भी. लेकिन मेरे पास कोई बहाना नहीं था, उस मकान का दरवाजा खटखटाने का.

मैं सोच में डूबा आगे बढ़ रहा था. मोड़ से घूम कर जब मैं ने मकान नंबर 7 के सामने जा कर साइकिल की घंटी बजाई तो अंदर से अधेड़ उम्र की औरत ने चिक हटा कर बाहर झांका, तब तक मैं आगे बढ़ गया था. उस ने पीछे से आवाज दी, ‘‘ओ भैया डाकिए, कोई चिट्ठी है क्या मेरी?’’

मैं ने पीछे मुड़ कर देखा, खिचड़ी बालों और ढलती उम्र के बावजूद उसे पहचानने में मुझे जरा भी देर नहीं लगी. वह अफरोज ही थी, जो अपनी उम्र से 10-15 साल ज्यादा की लग रही थी. मैं लौट कर उस के पास आ गया. मेरे अंदर आंधियां सी चल रही थीं, दिल बैठा जा रहा था. मुझे जैसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. मैं ने आह सी भरते हुए पूछा, ‘‘तुम अफरोज ही हो न?’’

‘‘हां, और तुम वही जो मेरे गुलाबी खत लाया करते थे?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा, जैसे यकीन न हो रहा हो.

‘‘हां, वही हूं.’’ मैं ने डूबे से स्वर में कहा.

‘‘इतने दिन बाद मिले हो, चाय तो पीते जाओ. मुझे अच्छा लगेगा.’’ उस ने आग्रहपूर्वक कहा तो मैं साइकिल खड़ी कर के अंदर चला गया. मेरे मन में उस गुलाबी खत वाले को देखने की इच्छा थी, जो अफरोज का शौहर बना होगा और जिस की वजह से उस की यह हालत हुई होगी.

अंदर घर का हाल 19 साल पहले जैसा ही था. कहीं कोई बदलाव नहीं, अफरोज ने मुझे बैठने के लिए कुरसी दी. मैं ने इधरउधर देखा. घर में न कोई बच्चा था, न कोई और. वह चाय बनाने जाने लगी तो मैं ने पूछ लिया, ‘‘वह गुलाबी खत वाले साहब नजर नहीं आ रहे अफरोज?’’

अफरोज ने एक ठंडी सांस ली, फिर बोली, ‘‘वह खत तो मैं खुद ही लिखती थी, अपने खत अपने लिए.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’

‘‘ताकि तुम खत पहुंचाने आओ और मैं एक नजर तुम्हें देख सकूं. मुझे प्यार हो गया था तुम से, मुझे पता नहीं था कि प्यार इतना खतरनाक होता है.’’

मुझे काटो तो खून नहीं, मैं बुत बना बैठा रहा. अपने शब्दों से मेरी चुप्पी का ताला उस ने ही खोला, ‘‘चाह कर भी कभी कह नहीं सकी, शायद अब्बा की वजह से. सोचती थी, किसी न किसी दिन कहूंगी जरूर. लेकिन तुम ने आना ही बंद कर दिया.’’

मुझ में कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी, पर उस की बात सुनने के बाद सदमे से निकलने के लिए कुछ कहना तो था ही, सो बोला, ‘‘तुम्हारे अब्बा तुम्हें ले कर चिंतित रहते थे. मुझ से तुम्हारी शादी के बारे में जिक्र भी किया था उन्होंने. मेरे मन में उम्मीद भी जगी थी और मैं उन से बात भी करना चाहता था, लेकिन यह सोच कर चुप रह गया था कि तुम तो गुलाबी खत वाले से प्यार करती हो, रोजाना खत लिखता है वह तुम्हें.’’

‘‘नहीं, कोई नहीं था मेरी जिंदगी में तुम्हारे अलावा.’’ उस ने नजरें झुका कर दुखी स्वर में कहा तो मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने शादी की या नहीं?’’

‘‘नहीं, यह सोच कर बरसों तक तुम्हारा इंतजार करती रही कि शायद तुम फिर लौट कर आओगे, पर तुम नहीं आए. फिर अब्बा नहीं रहे तो अकेली रह गई. धीरेधीरे यह सोच कर इंतजार करना भी छोड़ दिया कि तुम ने अपनी गृहस्थी बसा ली होगी. गुजरबसर तो करनी ही थी, सो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी. अब तो अपने आप को ही भूल गई हूं.’’

मेरी आंखों से आंसुओं का झरना फूटने को तैयार था और वह दरिया की तरह शांत थी. अचानक उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है? देखा, प्यार तो कर लिया पर नाम कभी नहीं पूछा. मौका ही कहां मिला था.’’

‘‘अशरफ.’’

हिम्मत नहीं थी, जरूरत भी नहीं. फिर भी मैं ने सवाल किया, ‘‘अब भी प्यार करती हो मुझ से?’’

‘‘नहीं, न तुम से न अपने आप से. अब मैं सिर्फ उन बच्चों से प्यार करती हूं, जो मेरे पास पढ़ने आते हैं. किसी के प्यार की निशानी हैं.’’

मैं बुझे दिल से उठा और साइकिल उठा कर निकल आया मोहब्बत वाली उस गली से.

मनहूस कदम : खाली न गयी मजलूम की आह – भाग 3

लगभग डेढ़ महीने बाद ताहिरा ने आ कर बताया, ‘‘वकील साहब, अजीम ने चोरी से शादी कर ली है. अब वह जल्दी ही अमेरिका जाने वाला है.’’

मुझे इसी बात का इंतजार था. मैं ने पूछा, ‘‘शादी कब हुई?’’

‘‘एक हफ्ते पहले,’’ ताहिरा ने कहा, ‘‘अब वह जल्दी ही अमेरिका चला जाएगा.’’

‘‘तुम इस की चिंता मत करो, मैं अभी पता किए लेता हूं.’’ कह कर मैं ने मकबूल के घर का नंबर मिला कर बड़ी होशियारी से लड़की से ही पता कर लिया कि वह अमेरिका कब जा रही है. उस ने बताया था कि वह तो जल्दी ही चली जाएगी, लेकिन अजीम बुखारी बाद में आएगा, क्योंकि उसे कागजात तैयार कराने होंगे.

अगले दिन मैं ने अदालत में मुकदमा दाखिल कर दिया. अदालत ने सम्मन भिजवा कर सुनवाई के लिए 15 दिन बाद की तारीख दे दी. मैं ने अजीम बुखारी का पता उस के घर के बजाय मकबूल हुसैन के घर का दिया था. मेरा मकसद था कि मकबूल हुसैन और यासमीन, दोनों को अजीम बुखारी की पहली शादी का पता चल जाए.

सम्मन ले जाने वाले चपरासी को मैं ने कुछ रुपए दे कर ताकीद कर दी थी कि वह यासमीन या मकबूल हुसैन के सामने ही सम्मन तामील कराएगा. अगर अजीम घर में न हो तो घर वालों को सम्मन के बारे में बता देगा.

दोपहर बाद चपरासी ने लौट कर बताया कि सम्मन तामील हो गया है. अजीम घर पर ही था. दरवाजा उस की बीवी यासमीन ने खोला था. तब उस ने जोर से पुकार कर कहा था, ‘‘अजीम साहब, आप की पहली बीवी ताहिरा ने आप के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. यह उसी का सम्मन है.’’

उस की बात पर यासमीन बुरी तरह से चौंकी. चपरासी के हाथ से कागज ले कर उसे पढ़ा. फिर अजीम को खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोली, ‘‘अजीम, यह तो तुम्हारे नाम है. तुम्हारे फादर का भी नाम लिखा है. इस का मतलब तुम ने मेरे साथ फ्रौड किया है.’’

‘‘प्लीज, अभी शांत रहो. मैं तुम्हें सारी बात समझा दूंगा.’’ कह कर उस ने रसीद पर दस्तखत किए और चपरासी को थमा दिया.

3 बजे मैं ने मकबूल हुसैन के घर फोन किया तो फोन यासमीन ने उठा कर तेज लहजे में ‘हैलो’ कहा. वह गुस्से में लग रही थी. शायद अजीम से जम कर लड़ाई हुई थी.

मैं ने बड़ी नरमी से कहा, ‘‘मैं ताहिरा का वकील अमजद बेग बोल रहा हूं.’’

‘‘मुझे न आप से कोई मतलब है न अजीम से.’’ उस ने कहा.

‘‘चपरासी ने बताया था कि अजीम आप के ही यहां है. अजीम चाहे तो मैं अपनी मुवक्विल से उस का समझौता करा सकता हूं,’’ मैं ने ताहिरा के बारे में विस्तार से बता कर कहा, ‘‘वह बहुत नेक औरत है. इतना सब होने के बाद भी वह समझौते के लिए तैयार है.’’

मैं ने अजीम बुखारी और यासमीन के निकाहनामे की नकल निकलवा ली. उसी दिन शाम के वक्त एक दुबलीपतली औरत मेरे औफिस में आई. उस की उम्र 30 साल के आसपास थी, बाल कटे हुए थे, गाल अंदर धंसे हुए थे, रंग गोरा था. आते ही उस ने पूछा, ‘‘आप ही मिर्जा अमजद बेग एडवोकेट हैं?’’

‘‘जी हां.’’ मैं ने कहा.

‘‘मैं यासमीन बुखारी, आप से अजीम बुखारी वाले मामले में बातचीत करने आई हूं.’’

मैं ने उसे बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘कहिए, आप क्या कहना चाहती हैं?’’

‘‘मुझे अजीम ने उस औरत के बारे में सब बता दिया है. मैं इस मामले को खत्म करना चाहती हूं,’’ उस ने बेरुखी से कहा, ‘‘आप कुछ रकम दिलवा कर उस से मेरे शौहर का पीछा छुड़वा दीजिए.’’

‘‘उस की कुल अदायगी 1 लाख 42 हजार की है, गहने अलग से.’’

‘‘1 लाख 42 हजार,’’ वह चौंकी, ‘‘गरीब लोग इसी तरह फैलते हैं.’’

‘‘गरीबों में यही तो खराबी है.’’ मैं ने कहा, ‘‘मिसेज यासमीन, आप तो कुछ दिनों में चली जाएंगी, फिर यह समझौता कैसे होगा? आप केस खत्म हुए बगैर पैसे देंगी नहीं? मुझे अपनी मुवक्किल से भी बात करनी होगी कि वह राजी है या नहीं?’’

‘‘मैं अभी नहीं जा रही हूं वकील साहब. उम्मीद है कि 40-50 हजार में मामला निपट जाएगा. अगर बात बन जाती है तो मुझे फोन कर दीजिएगा.’’

‘‘कोशिश करूंगा. आप के शौहर ने तो वकील कर ही लिया होगा? आप अपने शौहर से जवाब दाखिल करा दीजिए. इस से हमारी पोजीशन साउंड हो जाएगी.’’ मैं ने सलाह दी.

‘‘उस ने किसी वकील से बात तो की है. मैं आप का यह संदेश उसे दे दूंगी.’’ कह कर वह बाहर निकल गई.

अजीम बुखारी ने अपने वकील से जवाब दाखिल करा दिया था. मेरे सामने पड़ने पर बोला, ‘‘बेग साहब, आप तो बड़े छिपे रुस्तम निकले. लेकिन आप ने जो चाल चली, वह मेरे लिए फायदेमंद रही. शादी की बात एक न एक दिन यासमीन को मालूम होनी ही थी, आप के जरिए मालूम होने से मेरे सिर से बोझ उतर गया.’’

मैं ने हंस कर कहा, ‘‘मैं हमेशा दूसरों का ही भला चाहता हूं.’’

‘‘लेकिन मेरी बेगम से आप ने मामला सुलटाने का जो वायदा किया था, उस का क्या हुआ?’’

‘‘अभी मेरी मुवक्किल से बात नहीं हुई है. लेकिन आप ने रकम काफी कम रखी है. इतने में बात बनना मुश्किल है.’’ मैं ने कहा.

अजीम मुझे एक किनारे ले जा कर बोला, ‘‘वकील साहब, आप बात कर लें. मैं 10-20 हजार रुपए और बढ़ा सकता हूं. लेकिन यह बात मेरी बेगम को मालूम नहीं होनी चाहिए. आप किसी तरह यह मामला जल्दी निपटवा दें. अगर मुझे अमेरिका जाने की जल्दी न होती तो मैं ताहिरा को एक पैसा न देता. केस भले ही बरसों चलता.’’

अजीम के जाने के बाद मैं ने उस के वकील से कहा, ‘‘आप का मुवक्किल मामला जल्द खत्म करवाना चाहता है. इसलिए आप एक हफ्ते की तारीख ले लें.’’

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ें Hindi Emotional Kahani का चौथा भाग…

मोहब्बत वाली गली – भाग 2

लगातार कई महीने तक खत आने से लिफाफे पर लिखा रहने वाला साफसुथरा पता मेरी आंखों में बस गया था. मैं मन ही मन सोचता था कि खत लिखने वाला भी अफरोज की तरह ही सुंदर होगा. फिर एक दिन अचानक एक अजीब घटना घटी.

उस दिन सुबह से ही बादल छाए थे. मैं डाक ले कर निकला तो फुहारें पड़ रही थीं. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था कि तेज बारिश होने लगेगी. मैं जल्दी से घर वापस लौटने का इरादा कर के उस्मानाबाद पहुंच गया. तब तक तेज बरसात होने लगी थी. पूरी तरह भीग जाने के बावजूद मैं सीधा उस के दरवाजे पर जा कर रुका.

डाक में उस दिन भी उस के नाम का लिफाफा था. मैं ने सोचा, मुझे भीगता देख कर वह अंदर आने के लिए कहेगी और अगर मौका मिला तो मैं उस के सामने अपना हालेदिल बयां कर दूंगा. मैं उस से कहूंगा कि मेरे जैसा प्यार करने वाला उसे कहीं नहीं मिलेगा. लेकिन जैसे ही मेरी साइकिल की घंटी बजने पर दरवाजे की चिक उठी, मेरे सारे अरमानों पर ओस पड़ गई.

चिक हटाने वाला एक बूढ़ा आदमी था. वह अफरोज का पिता भी हो सकता था, इसलिए मैं गुलाबी रंग का लिफाफा हाथ में दबाए सोच रहा था कि वह उसे दूं या न दूं. तभी उस के पिता के कंधों के ऊपर मुझे उस की काली आंखें दिखाई दीं, जिन्हें देख कर ऐसा लगा जैसे वह लिफाफा न देने की विनती कर रही हो. एक क्षण के लिए मेरी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूं, लेकिन मैं तुरंत ही संभल कर बोला, ‘‘चचा मियां, बारिश का बड़ा जोर है. क्या आप..?’’

‘‘हां..हां आओ, आओ बेटा.’’ बुजुर्ग ने मेरी बात पूरी होने से पहले ही बड़े प्यार से कहा और पीछे हट गया. वह बुजुर्ग अफरोज के पिता ही थे, मलिक साहब.

मैं अंदर चला गया. अंदर छोटा सा कमरा था, जिस में एक ओर चारपाई पर सफेद बिस्तर बिछा था और दूसरी ओर एक मेज के पास 2 कुर्सियां पड़ी थीं. मलिक साहब ने एक कुरसी मेरी ओर खिसका दी और दूसरी पर खुद बैठ गए.

‘‘बेटा अफरोज, अंगीठी जला कर ले आओ.’’ उन्होंने जोर से पुकारा. फिर मेरी ओर प्यार से देख कर बोले, ‘‘इस मौसम का भी कोई भरोसा नहीं, सुबह जब मैं दुकान पर गया था तो मौसम साफ था. फिर हलकीहलकी बूंदाबांदी होने लगी, लेकिन इस तरह अचानक तेज बारिश की उम्मीद नहीं थी.’’

इस के बाद वह इधरउधर की बातें करते रहे. इसी बीच अफरोज अंगीठी ले आई. बातोंबातों में जब उन्होंने कहा कि आजकल अच्छे लड़कों की कमी है तो मैं ने कहना चाहा कि मैं अच्छा लड़का हूं और आप का बोझ हलका करना चाहता हूं. लेकिन चाह कर भी मैं कुछ नहीं कह सका.

मलिक साहब बाप की हैसियत से अफरोज की बात कर रहे थे. उन्होंने बताया कि एक बेटी के अलावा उन की कोई औलाद नहीं है. कुछ समय पहले पत्नी की मौत हो गई थी. जमाना खराब है और बेटी अकेली, इसलिए उसे घर में ही रखते हैं. बाहर आनेजाने पर भी पाबंदी लगा रखी है.

मैं यह सोच कर दिल ही दिल में हंस रहा था कि वह अपनी बेटी के इश्क के बारे में कुछ नहीं जानते. साथ ही मन को तसल्ली भी दे रहा था कि उन की बेटी ने जिस का चुनाव किया होगा, वह मुझ से अच्छा ही होगा. मेरे मन ने चाहा कि मैं उन से कहूं कि चचा मियां, आप चिंता न करें. अफरोज ने आप का बोझ खुद ही हलका कर दिया है.

एक पल के लिए मन में खयाल भी आया कि मलिक साहब के सामने खुद को पेश कर दूं. लेकिन मैं ऐसा न कर सका. क्योंकि ऐसा करना एक तरह से जबरदस्ती होती. वह भी एक ऐसी लड़की के साथ, जो किसी से प्यार करती थी.

‘‘बेटा अफरोज, चाय बना ला.’’ मलिक साहब ने कहा तो वह किचन में चली  गई.

कुछ देर बाद वह चाय बना लाई. तभी मलिक साहब को खांसी उठी और वह थूकने के लिए बाहर चले गए. उसी वक्त मैं ने चुपके से गुलाबी लिफाफा उस के हाथ पर रख दिया. लिफाफा ले कर वह मेरी ओर देख कर मुसकराई और अंदर चली गई.

अधिकतर डाकियों की कईकई साल तक एक ही जगह ड्यूटी रहती थी, लेकिन शायद मैं नौकरी में नया था या अफरोज से रोज मिलना मेरे भाग्य में नहीं था. जो भी हो, जल्दी ही मेरी ड्यूटी उस्मानाबाद से बदल कर जौहराबाद में लगा दी गई.

अब साधारण डाक के अलावा मुझे रजिस्ट्री और मनीआर्डर बांटने का काम भी दे दिया गया था. वक्त के साथ सालों बीत गए. इस बीच मेरी शादी हो चुकी थी. जबतब ड्यूटी भी बदलती रहती थी. लेकिन मैं अफरोज को कभी नहीं भूल सका.

मैं अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहते हुए कभीकभी सोचता था कि अगर अफरोज ने मुझ से प्यार किया होता तो हम दोनों कितने खुश होते. अब तो वह न जाने किस घर में बैठी राज कर रही होगी. पता नहीं कौन था वह, जिसे वह चाहती थी. मुझे उस की किस्मत से ईर्ष्या होती थी. क्योंकि वह न होता तो मैं अपने सपनों की उस रानी को जरूर पा लेता जो आज भी मेरे दिल में बसी हुई थी.

19 साल बाद की बात है. एक दिन उस्मानाबाद का पोस्टमैन बीमार हो गया तो अपने इलाके के अलावा मुझे उस्मानाबाद की डाक भी बांटने के लिए दे दी गई. उस्मानाबाद के नाम पर मुझे अफरोज की याद आ गई. मन उस से मिलने, उसे देखने को मचल उठा. इसलिए सब से पहले मैं ने उस्मानाबाद की डाक में गली नंबर 2 के 7वें मकान की डाक ढूंढने की कोशिश की, लेकिन मुझे उस पते का कोई खत नहीं मिला.

मुझे यह सोच कर खुद पर हंसी आ गई कि 19 साल बीत गए, पता नहीं अफरोज कहां होगी. कितने बच्चों की मां होगी और मैं आज भी उसे देखने, उस से मिलने की सोच रहा हूं. बहरहाल, पता नहीं क्याक्या सोचते हुए मैं उस्मानाबाद पहुंच गया.

मनहूस कदम : खाली न गयी मजलूम की आह – भाग 2

मेरी हमदर्दी का नतीजा यह निकला कि उस ने सच्चाई बयां कर दी, ‘‘सच पूछो तो मेरी मां, मेरी दूसरी शादी करना चाहती है. संयोग से ग्रीनकार्डधारी लड़की मुझे मिल भी गई है. वह खूबसूरत तो है ही, 12 सौ डौलर तनख्वाह पाती है. वहां मेरी फोटोग्राफी का धंधा भी खूब चलेगा.’’

‘‘बहुत नसीब वाले हो भाई. उस खूबसूरत लड़की का नाम क्या है?’’ मैं ने पूछा.

वह खुश होते हुए बोला, ‘‘उस का नाम यासमीन है. वह एक कारोबारी परिवार की बेटी है. उस के बाप का बाजार में बहुत बड़ा होटल है.’’

‘‘भई तुम्हें यह शानदार चांस कैसे मिल गया?’’

‘‘दरअसल, उस लड़की का तलाक हो चुका है. दूसरे उम्र की कुछ ज्यादा है, लेकिन ऐसे में यह सब कौन देखता है?’’

मैं ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘कब तक जाने का प्लान है?’’

‘‘डेढ़-2 महीने तो लग ही जाएंगे. बस लड़की की ओर से जवाब का इंतजार है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मेरे नोटिस के बारे में तुम्हारा क्या इरादा है?’’

‘‘नोटिस के बारे में क्या सोचना, उस से घर थोड़े ही आबाद होते हैं.’’

‘‘अगर तुम दूसरी शादी करना चाहते हो तो ताहिरा के वाजिब हक दे कर उसे आजाद कर दो. सिर्फ 32 हजार मेहर के, 1 लाख दहेज वाले, 10 हजार मेंटीनेंस और गहने तो देने ही हैं,’’ मैं ने समझाया.

‘‘वकील साहब, यही तो मुश्किल है. इसी वजह से मैं उस मनहूस से जान नहीं छुड़ा सका. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं, फिर भी कोशिश कर के जल्दी ही उस के पैसे दे दूंगा.’’

‘‘ऐसा करो, 25 हजार इस हफ्ते दे दो, बाकी पैसे एक महीने बाद दे देना.’’

‘‘जी…’’ उस ने घबरा कर चालाकी से कहा, ‘‘आप अपनी मुवक्किल से कहें कि कुछ इंतजार कर ले. मैं दुकान बेच कर… अरे कुछ भी बेच कर उस का पैसा अदा कर दूंगा.’’

मैं समझ गया कि यह ताहिरा को तलाक दे कर उस के ड्यूज नहीं देना चाहता. यह देश छोड़ कर भाग जाने के लिए मोहलत मांग रहा है. मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी बीवी को 2 महीने टालने की कोशिश करूंगा, पर तुम इस नोटिस का जवाब तो लिख दो.’’

‘‘जवाब किस बात का? मैं आप को सौ रुपए दे रहा हूं. आप इस मामले को संभाल लीजिए.’’

मैं ने एक आंख दबा कर कहा, ‘‘मुझे अपने मुवक्किल को भी तो संतुष्ट करना होगा.’’

हिचकिचाते हुए उस ने कहा, ‘‘बताइए, क्या लिखूं?’’

‘‘हमें फर्ज अदायगी करनी है, इसलिए जो सच्चाई है, वही लिख दो. यह कोई फौजदारी केस तो है नहीं, मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी?’’

उस ने कुछ अपने दिमाग से, कुछ मेरी सलाह ले कर जवाब लिखा, ‘‘ताहिरा मेरी बीवी जरूर है, मगर घर में रखने लायक नहीं है. शादी के पहले उस के घर वालों ने बताया था कि वह कुंवारी है. जबकि वह अपने पहले शौहर को खा चुकी है. उस की वजह से मेरा भी काफी नुकसान हुआ है. वह मनहूस है. यह मियांबीवी का मामला है, मैं बहुत जल्दी उस के हक अदा कर दूंगा. मैं इस तरह की नोटिसों से बिलकुल नहीं डरता.’’

उसे साथ ले कर मैं ओथ कमिश्नर के पास गया और उस के इस लिखित बयान की वेरीफिकेशन करवा दी. वह इस बात से थोड़ा परेशान हुआ, पर मैं ने कहा कि यह कार्यवाही का एक हिस्सा है, इस से कोई फर्क नहीं पड़ेंगा.

तीसरे दिन ताहिरा आई तो मैं ने उसे अजीम बुखारी के आने की बात बता कर जब उस से पहली शादी के बारे में पूछा तो उस ने कुछ और ही कहानी सुनाई. ताहिरा के बताए अनुसार, शादी से पहले ही उस के शौहर की कार दुर्घटना में मौत हो गई थी. उस ने तो उस का मुंह भी नहीं देखा था.

इस के बाद उस के अब्बा ने यह शादी की थी. उस की यह शादी भी मात्र 11 दिनों ही चल सकी. उस के ससुराल आते ही कुछ घटनाएं घट गईं तो उसे मनहूस करार दे कर घर से निकाल दिया गया. इसलिए वह चाहती थी कि अजीम बुखारी उसे स्वीकार कर ले. अगर उस ने उसे स्वीकार नहीं किया तो लोग उसे सचमुच मनहूस मान लेंगे.

मैं ने ताहिरा पर एक नजर डाल कर कहा, ‘‘बीबी, तुम उस आदमी को पूरी तरह खयाल से निकाल दो. अब वह किसी भी सूरत में तुम्हें अपने घर रखने वाला नहीं है.’’

‘‘बेग साहब, अगर ऐसा हुआ तो लोग मेरा जीना हराम कर देंगे. आप किसी तरह समझौता करा दें. मैं उस का हर जुर्म सह लूंगी.’’

‘‘बीबी, तुम किस दुनिया में हो? अजीम बुखारी ने एक ग्रीनकार्डधारी तलाकशुदा औरत ढूंढ ली है. वह उस के साथ शादी कर के अमेरिका जाने की फिराक में है.’’

मेरी बात सुन कर ताहिरा गुस्से में बोली, ‘‘यह आप को किस ने बताया?’’

‘‘उसी ने बताया है.’’

‘‘लेकिन वकील साहब, मेरी इजाजत के बगैर वह दूसरी शादी कैसे कर सकता है?’’

‘‘हां, कानून तो यही है. शायद उस ने लड़की वालों को अपनी पहली शादी के बारे में नहीं बताया है. वह चुपचाप शादी कर के अमेरिका चला जाना चाहता है. पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. तुम अपना निकाहनामा और गहनों की रसीद मुझे दे दो. अगर 1 लाख रुपए का भी कोई सुबूत है तो वह भी दे जाओ.’’

‘‘1 लाख का तो कोई सुबूत नहीं है. शादी के तीसरे दिन वह रकम ले कर अजीम ने अपने एकाउंट में जमा कर दी थी.’’

‘‘तुम्हें वह एकाउंट नंबर मालूम है?’’

‘‘एकाउंट नंबर तो नहीं मालूम, पर बैंक की एक स्लिप मेरे पास है, जिसे अजीम ने दी थी.’’

ताहिरा ने एक मुड़ीमुड़ी बैंक स्लिप पर्स से निकाल कर दी तो मैं ने उसे फाइल में रख कर कहा, ‘‘ताहिरा बीवी, तुम किसी भी तरह अपने शौहर की सरगर्मियों पर नजर रखो.’’

‘‘ठीक है, मौसी से कह दूंगी, वह कोई न कोई इंतजाम कर लेंगी.’’

मैं ने उसे रुखसत करते हुए कहा, ‘‘इस से हमें उस की शादी के बारे में फौरन मालूम हो जाएगा.’’

2 दिनों बाद मैं ने अजीम बुखारी की मंगेतर के बाप के होटल में फोन किया. फोन लड़की के बाप मकबूल हुसैन ने ही उठाया. मैं ने बड़े अदब से कहा, ‘‘मकबूल साहब, मैं आजमी ज्वैलर्स से इब्राहीम बोल रहा हूं. मेरे पास एक साहब अजीम बुखारी आए हैं. उन्होंने हमारी दुकान से कुछ गहने खरीदे हैं. कैश कुछ कम पड़ गया है तो वह चैक दे रहे हैं. मैं ने चैक लेने से मना किया तो वह आप का रेफरेंस दे कर कह रहे हैं कि वह आप के होने वाले दामाद हैं. मैं आप को जानता हूं, इसलिए पूछ रहा हूं कि चैक लेने में कोई खतरा तो नहीं है?’’

‘‘खतरा तो कोई नहीं है, लेकिन उसे इतनी जल्दी क्यों पड़ी है? अभी तो शादी की तारीख भी तय नहीं हुई है.’’ उस ने नागवारी से कहा.

‘‘अरे मकबूल भाई, तारीख तय होने में कहां देर लगती है? गहने तो खरीदने ही पड़ेंगे. आप भी आइए.’’ मैं ने कहा.

‘‘इब्राहीम भाई, यह सारा काम मैं ने अपनी बेटी पर छोड़ रखा है. सब उसी की पसंद से होगा. 2 हफ्ते बाद वह अमेरिका से आएगी और शादी के फौरन बाद लौट जाएगी.’’ मकबूल हुसैन ने कहा.

मैं ने शुक्रिया कह कर फोन रख दिया. इस बातचीत से साफ हो गया कि अजीम बुखारी सच कह रहा था. लड़की सिर्फ शादी के लिए आ रही थी. मैं ने मेंटीनेंस और मेहर का केस तैयार कर लिया, मगर दाखिल नहीं किया.

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ें Hindi Emotional Story का तीसरा भाग…