मोहब्बत वाली गली – भाग 1

उन दिनों मेरी ड्यूटी मोहल्ला उस्मानाबाद में थी. छोटीछोटी तंग गलियों और गंदे जरजर मकानों से घिरा यह मोहल्ला उन शरीफ लोगों का था, जो अपनी इज्जत का भरम रखने के लिए दरवाजों पर टाट या कपड़े के परदे टांग दिया करते थे. इस से पहले मेरी ड्यूटी कई अच्छे इलाकों में रही थी, इसलिए इस इलाके में मेरी कोई खास रुचि नहीं थी. सच कहूं तो मेरा सारा दिन बोरियत भरा गुजरता था.

डाक विभाग में आए मुझे अधिक समय नहीं हुआ था. उम्र भी 19-20 साल से अधिक नहीं थी. चूंकि खुदा ने शक्लसूरत भी अच्छी दी थी, इसलिए कई लड़कियां मेरी ओर आकर्षित हो जाती थीं. उम्र के उस नाजुक दौर में कभीकभी मेरा झुकाव भी लड़कियों की ओर हो जाया करता था.

अब्बा डाक विभाग में क्लर्क थे. मैं ने मैट्रिक कर लिया तो उन्होंने मुझे अपने विभाग में क्लर्क बनवाने की कोशिश की, लेकिन वहां कोई जगह खाली नहीं थी, इसलिए उन्होंने मुझे पोस्टमैन बनवा दिया था. मैं ने कभी किसी ऊंची नौकरी का सपना नहीं देखा था. न ही पढ़नेलिखने के मामले में तेज था.

मैं जानता था कि अब्बा जैसी ही कोई नौकरी करनी पड़ेगी, इसलिए मैं डाकिए की नौकरी पा कर संतुष्ट था. शुरू शुरू में तो मुझे अपना काम बहुत अच्छा लगा. विभाग की ओर से मुझे साइकिल नहीं मिली थी, इसलिए मैं पैदल ही डाक बांटता था. डाक देते वक्त मेरा दरवाजे पर दस्तक देने का एक खास अंदाज था. साथ ही मुझे आवाज भी लगानी पड़ती थी, ‘पोस्टमैन’.

फिर मुझे साइकिल मिल गई, जिस की खास घंटी मेरे आने की सूचना होती थी. कभी मैं किसी के लिए खुशी का समाचार लाता और कभी दुख का. कुछ लोग मेरा इंतजार बड़ी बेचैनी से करते और कुछ लोग डाक लेते हुए भी कसमसाते.

पौश इलाकों में आमतौर से गेट के बाहर लेटरबौक्स लगा होता था, लेकिन मध्यमवर्गीय इलाकों के लोग दरवाजे पर आ कर डाक लेते थे. दोपहर के समय अकसर घर पर लड़कियां होती थीं, जो मुझे देख कर आपस में कानाफूसी करती थीं. कुछ तो मुझे देख कर फिकरे भी कसतीं. पहले तो मैं चुप रहा, लेकिन बाद में मैं एकाध को जवाब देने लगा था.

बाद में जब मेरी ड्यूटी मोहल्ला उस्मानाबाद में लगी तो मुझे बोरियत सी हुई. मेरी आदत थी कि साइकिल की घंटी बजाने के बाद दरवाजा खुलने का इंतजार किए बिना मैं खत को दरवाजे की झिर्री से अंदर फेंक देता था. इस की वजह यह थी कि कभी कोई दरवाजे पर आता भी तो वह गंदा सा बच्चा होता था या मैली कुचैली सी कोई औरत.

एक दिन मैं गली नंबर 2 से गुजर रहा था कि 7वें मकान के सामने एकदम ठिठक गया. साइकिल की चाल कम हो गई और मैं भूल गया कि मैं कोई आम युवक नहीं, बल्कि डाक विभाग का एक जिम्मेदार पोस्टमैन हूं. वह घर जिस के दरवाजे पर चिक पड़ी हुई थी, दूसरे घरों के मुकाबले में कुछ अच्छी हालत में थी. उस चिक से एक चांद जैसे चेहरे वाली लड़की झांक रही थी. मुझे आते देख कर उस का सुंदर गुलाबी चेहरा फूल की तरह खिल उठा.

मेरे होंठों पर भी हलकी सी मुसकराहट आ गई. मगर अगले ही क्षण यह सोच कर कि वह मेरा इंतजार क्यों करने लगी, मैं उदास हो गया. मेरा इंतजार भला कौन करता है, सब को अपनेअपने खतों का इंतजार रहता है. मैं ने सिर झुकाया और उस के दरवाजे के सामने से गुजर गया. वह भी अंदर चली गई. शायद दुखी हो कर, क्योंकि उस की डाक नहीं थी.

जाने क्यों वह लड़की मुझे अच्छी लगी. काले रेशमी बाल और गुलाबी चेहरे वाली वह लड़की जैसे मेरे सपने में दुलहन बन के उतर आई. शायद इसलिए कि अम्मी जब भी मेरी होने वाली पत्नी की बात करती थी तो मैं ऐसी ही लड़की की कल्पना करता था.

अब मैं रोजाना गली नंबर 2 से गुजरते हुए उस चिक वाले दरवाजे को जरूर देखता, मेरी साइकिल की घंटी सुन कर वह भी गली में झांकती. पलभर के लिए हम एकदूसरे को देखते और फिर मैं सिर झुकाए दरवाजे के सामने से गुजर जाता. वह भी अंदर चली जाती. उस के दरवाजे पर लगी सफेद नेमप्लेट पर मैं ने मलिक फजल लिखा देखा था.

मैं सोचता था कि कभी मलिक साहब का खत आए तो उस चिक वाली के ठीक से दर्शन हो जाएं, लेकिन ऐसा लगता था जैसे उन्हें कोई खत लिखता ही नहीं था. धीरेधीरे मुझे लगने लगा कि मेरे सपनों में बसने वाली वह लड़की वास्तव में मेरा इंतजार करती है. यह सोच कर मैं हवाओं में उड़ने लगता.

फिर अचानक एक दिन मुझे झटका सा लगा. दरअसल मैं डाकखाने से खत ले कर निकलते समय बिना वजह ही गली नंबर 2 के सातवें मकान का खत ढूंढा करता था. उस दिन मैं ने उस्मानाबाद की डाक देखी तो चौंका.

उस दिन की डाक में मकान नंबर 7 का एक खत था, लेकिन वह खत मलिक फजल के लिए नहीं अफरोज के नाम था. मैं समझ गया कि उस लड़की का नाम अफरोज है.

गुलाबी रंग का वह लिफाफा अफरोज के उस प्रेमी का रहा होगा, जिस के खत का वह इंतजार करती है. मैं ने सोचा, मैं भी कितना पागल हूं, वह इंतजार किसी और का करती थी और मैं समझ रहा था कि वह मेरा इंतजार करती है.

मैं ने लिफाफा उलटपलट कर देखा. उस पर कराची की ही मोहर थी. इस का मतलब था कि वह इसी शहर में कहीं रहता था. खत के कोने पर भेजने वाले का नाम वीए लिखा था. अगले दिन मैं डाक ले कर उस्मानाबाद गया तो वह दरवाजे पर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. चिक से झांकती हुई उस की काली आंखों में इंतजार के जलते दीप साफ नजर आ रहे थे.

आज मेरी हार्दिक इच्छा पूरी होने जा रही थी, लेकिन दिल उदास था. जिसे मैं चाहता था, वह किसी और को चाहती थी. मैं ने उस के दरवाजे के सामने साइकिल रोकी और डाक के थैले से वह खत निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. उसे खत देते हुए मेरी अंगुलियां कांप रही थीं और नजर उस के चेहरे पर थी. उस ने खत ले कर मुझे ऐसी निगाह से देखा, जैसे मैं ने जीवन का सब से बड़ा उपहार उसे दे दिया हो.

अगले दिन फिर वैसा ही खत अफरोज के नाम आया. उस ने उसी बेचैनी के साथ खत ले कर मुझे धन्यवाद दिया और मैं ने साइकिल आगे बढ़ा दी. अब हर दिन ऐसा होने लगा. मैं ने सोचा हो सकता है कि अफरोज और उस के प्रेमी ने आपसी सहमति से तय किया हो कि वे रोजाना एकदूसरे को खत लिखेंगे. जरूर वह भी रोज उसे इसी तरह एक खत भेजती होगी.

यह जानने के बाद भी कि वह किसी और को चाहती है, मेरे दिल में बनी उस की सूरत मिट नहीं सकी. अम्मा जब भी मेरी शादी की बात करती तो अफरोज की छवि मेरी आंखों में उतर आती. कभीकभी मेरा दिल चाहता कि मैं उस का खत खोल कर पढ़ लूं, लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका, क्योंकि यह अपराध था. आने वाली डाक पहुंचाना मेरी सरकारी ड्यूटी थी. बिना इजाजत किसी का खत पढ़ने का मुझे कोई हक नहीं था.

मनहूस कदम : खाली न गयी मजलूम की आह – भाग 1

सुबहसुबह ही एक तीखे नैननक्श की खूबसूरत लड़की अपनी मौसी के साथ मेरे औफिस में आई. बैठने के साथ ही लड़की ने कहा, ‘‘वकील साहब, क्या कोई आदमी भी  मनहूस हो सकता है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं हो सकता है.’’ जवाब में मैं ने कहा.

‘‘क्या उस की वजह से आसपास के लोग परेशानी में पड़ जाते हैं?’’

‘‘बीबी, तुम्हारा सवाल बड़ा पेचीदा है. एक बात बताओ, क्या अच्छाई आसपास रहने वालों के लिए खुशनसीबी ला सकती है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, अच्छाई तो सब के लिए अच्छी होती है.’’ लड़की ने जवाब दिया.

मैं ने उस के जवाब की सराहना की तो उस ने आगे कहा, ‘‘वकील साहब, मेरे शौहर ने अपनी मां के कहने पर मुझे घर से निकाल दिया है और अब तलाक देना चाहते हैं. मेरी सास का कहना है कि मैं मनहूस हूं. उन्होंने मेरे सारे गहने और नकद रकम भी रख ली है.’’

‘‘बीबी, पहले आप अपने बारे में तो बताइए.’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरा नाम ताहिरा है,’’ फिर बगल में बैठी औरत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘और यह मेरी मौसी फिरदौसी हैं. यही मेरी सब कुछ हैं. अगर यह न होतीं तो शायद मैं किसी कब्रिस्तान में होती.’’

‘‘क्या तुम्हारे मातापिता और भाईबहन नहीं हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं 4 भाइयों और पांच बहनों की एकलौती बहन हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘यह कैसी पहेली है?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह मेरे लिए भी एक पहेली ही है वकील साहब. बात यह है कि मेरे अब्बा ने भी 2 शादियां कीं और अम्मी ने भी 2 शादियां कीं. दरअसल मेरे अब्बा एक हादसे की वजह से अपनी पहली बीवी से बिछुड़ गए थे. मिलने की उम्मीद नहीं दिखाई दी तो रिश्तेदारों के कहने पर उन्होंने दूसरी शादी कर ली.

‘‘उस शादी से मैं पैदा हो गई. इस के बाद अम्मीअब्बा में मनमुटाव हो गया और उसी बीच अब्बा को अपनी पहली बीवी का सुराग लग गया. उन्होंने मेरी अम्मी को तलाक दे कर पहली बीवी के साथ अपना घर आबाद कर लिया.

‘‘कुछ अरसे के बाद मेरी अम्मी ने भी दूसरी शादी कर ली. अब मेरे अब्बा को पहली बीवी से 2 बेटे और 3 बेटियां हैं. दूसरी ओर मेरी अम्मी को दूसरी शादी से 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. इस तरह 2 हंसतेबसते घरों की मैं एक फालतू चीज हो गई.’’ ताहिरा ने आह भरते हुए कहा.

‘‘यह तो वाकई परेशानी वाली बात है. तुम्हारे शौहर ने तुम्हें तलाक की धमकी दी है या तलाक दे दिया है?’’ मैं ने नरमी से पूछा.

‘‘अभी तलाक इसलिए नहीं दिया है, क्योंकि तलाक के बाद हके मेहर देना होगा. वह मेहर की रकम देना नहीं चाहता.’’ ताहिरा की मौसी ने कहा.

मेरे पूछने पर ताहिरा ने बताया कि मेहर की रकम 32 हजार रुपए है. उस समय यह एक अच्छीखासी रकम थी.

‘‘शौहर का नाम क्या है?’’

‘‘अजीम बुखारी.’’ ताहिरा ने बताया.

‘‘तुम कह रही थी कि तुम्हारे कुछ गहने और पैसे भी उस के पास हैं?’’

‘‘मुझे नकद और गहने नहीं चाहिए. मैं अपने शौहर के साथ रहना चाहती हूं.’’

‘‘मैं कोशिश यही करूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारी देनदारी सामने आ जाए. कुछ लोग पैसे के दबाव में सुलहसफाई कर लेते हैं.’’

‘‘मेरे गहनों की कीमत 1 लाख रुपए के आसपास होगी. इतनी ही रकम अब्बा ने उसे दहेज का सामान खरीदने के लिए दी थी. लेकिन उस ने कुछ खरीदा नहीं था.’’

‘‘शादी के कितने दिनों बाद तुम्हें मनहूस कहा गया?’’

‘‘11 दिनों बाद. फिर 21 दिनों बाद मां के कहने पर मेरे शौहर ने मुझे घर से निकाल दिया. अब इस बात को 7 महीने हो रहे हैं.’’

‘‘ऐसी क्या बात थी, जिस से सास तुम्हारे खिलाफ हो गई?’’

कुछ देर सोच कर ताहिरा ने कहा, ‘‘शादी के तीसरे दिन 80-82 साल की बीमार और कमजोर मेरे शौहर की नानी गुजर गई थीं. सातवें दिन मेरे देवर की मोटरसाइकिल खो गई. फिर 11वें दिन मेरी सास ने कहा कि यह सब मेरी वजह से हो रहा है. इस मनहूस को घर से बाहर निकालो.’’

पूरी कहानी सुन कर मैं ने अजीम बुखारी के नाम एक नोटिस भिजवा दी. नोटिस भेजने के सातवें दिन एक दुबलापतला नौजवान मेरे औफिस में आया. उस ने एक सफेद लिफाफा मेरी ओर बढ़ाया तो मैं ने उसे बिठा कर पूछा, ‘‘मसला क्या है?’’

‘‘वकील साहब,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं इस तरह की धमकियों में आ कर उस चुड़ैल को दोबारा अपने घर में नहीं रख लूंगा. उस मनहूस की वजह से मैं अपना घर नहीं बरबाद कर सकता.’’

‘‘मैं भी उस मनहूस की वजह से तुम्हारा घर बरबाद नहीं कराना चाहता’ लेकिन शौहर होने के नाते तुम्हें उस के कानूनी हकूक तो पूरे करने ही पड़ेंगे,’’ मैं ने कहा.

‘‘उस मनहूस की वजह से मेरी नानी मर गईं, भाई की मोटरसाइकिल गायब हो गई. मां मरतेमरते बचीं.’’

वह कुछ और कहता, मैं ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘तुम कहां तक पढ़े हो?’’

‘‘मैं ने साइंस से इंटर किया है. अब एक फिल्म लैब में नौकरी करता हूं. रात को अपनी दुकान पर बैठता हूं, दिन में भाई बैठता है.’’

‘‘आदमी तो तुम पढ़ेलिखे हो, फिर यह अंधविश्वास तुम्हारे अंदर कहां से आ गया?’’

‘‘यह अंधविश्वास नहीं है सर, हकीकत है. वह जहां कदम रखती है, मुसीबत आ जाती है. आप को पता है, वह 13 साल में ही बेवा हो गई थी.’’

‘‘इस में अजीब क्या है, न जाने कितनी औरतें बेवा हो जाती हैं.’’

‘‘अरे साहब, मनहूस औरत अपने शौहर को खा गई थी.’’

मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘कच्चा या पक्का?’’

वह चिढ़ कर बोला, ‘‘मेरी बात को आप मजाक समझ रहे हैं. अरे इस के पैदा होने से पहले ही इस के बाप ने इस की मां को छोड़ दिया, क्योंकि उसे उस की पहली गुम हुई बीवी मिल गई. उस ने खुदा का शुक्र अदा किया और इस की मां को तलाक दे दिया.

‘‘कुछ अरसे बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और यह लड़की दोनों घरों के लिए फालतू की चीज बन गई. इस की मां को लगा कि यह मनहूस है, इसलिए उस ने जल्दी से एक अच्छे घर में इस की शादी कर दी. इस ने वहां कदम रखा ही था कि दूल्हे की फूफू के बीमार होने की खबर आई.

‘‘दूल्हा कार से फूफू को देखने जा रहा था तो रास्ते में कार ऐक्सीडेंट में दूल्हे के साथ ड्राइवर भी मारा गया. फूफू ने भी अस्पताल में दम तोड़ दिया. अब आप ही बताइए, ऐसी खतरनाक औरत को मैं घर में कैसे रख सकता हूं?’’

मुझे यकीन हो गया कि यह ताहिरा को अपने घर में नहीं रखेगा, इसलिए मैं ने हमदर्दी दिखाते हुए कहा, ‘‘शुक्र करो तुम बच गए. अब आगे क्या इरादा है?’’

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ें Emotional Kahani in Hindi का अगला भाग…

पवित्र प्रेम : गींदोली और कुंवर जगमाल की प्रेम कहानी – भाग 3

इधर गींदोली के मन में प्रेम का झरना फूट रहा था, उधर जगमाल उस के ख्वाबों से अनजान थे. वह तो तीजनियों को महेवा लाने की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानजी, कहीं हाथी खान हमारे साथ धोखा न कर जाए. हम शहजादी को तभी छोड़ेंगे, जब हमारी तीजनियां महेवा की धरती पर कदम रख देंगी.’’

अपने वादे के अनुसार हाथी खान तीजनियों को ले आया तो उसी मैदान में भौपजी शहजादी को ले गए. महमूद बेग ने तीजनियों को पहले छोड़ने का हुकुम दिया. तभी शहजादी जा कर अब्बा के कलेजे से लिपट गई. भौपजी सावधान था. तीजनियों को सुरक्षित घेरे में खेड़ रवाना किया ही था कि हाथी खान जगमाल के दल पर टूट पड़ा.

उस ने जासूस से जगमाल की ताकत का पता कर लिया था. पर यह उस की भूल थी. जगमाल के 3 तालियां बजाते ही तमाम ऐसे जवान वहां आ गए, जो कदकाठी और वेशभूषा में जगमाल की तरह थे. उन के वहां आते ही हाथी खान की सेना को पहचानना मुश्किल हो गया कि उन में जगमाल कौन है.

तभी हाथी खान की सेना में यह अफवाह फैल गई कि जगमाल को भूत सिद्धी हासिल है. तभी तो वहां पर उस के तमाम हमशक्ल आ गए हैं. डर की वजह से महमूद बेग और हाथी खान वहां से भाग खड़े हुए. अफरा तफरी में शहजादी गींदोली को भी वे अपने साथ नहीं ले जा सके.

उधर तीजनियों के सकुशल घर लौटने पर महेवा के घरों में दीपक जल उठे. इस के बाद ही जगमाल ने उजले कपड़े पहने. सिर पर केसरिया कसूंबल पाग बांधी. दाढ़ी बनाने के बाद अपने सांवले मुखड़े पर नोकदार मूंछें संवारते हुए वह अपने डेरे से निकले ही थे कि दासी ने आ कर जुहार की, ‘‘खम्मा घणी हुकुम, शहजादी गींदोली तो अपने डेरे में ही बैठी हैं?’’

‘‘क्या शहजादी अपने डेरे में है, ऐसा कैसे हो सकता है?’’ जगमाल चौंके.

‘‘हुजूर, आप खुद ही चल कर देख लीजिए.’’ दासी ने कहा.

जगमाल उसी समय गींदोली के डेरे पर  पहुंचे. सामने खड़ी शहजादी गींदोली मुसकरा रही थीं. वह जगमाल को एकटक देखती रहीं. जगमाल जड़वत हो गए. उन की नजरें धरती पर गड़ी थीं, वह खुद को संभाल कर बोले, ‘‘शहजादी गींदोली आप यहां?’’

‘‘हां कुंवर सा.’’ गींदोली पहली बार जगमाल से बिना परदे के बात कर रही थी, ‘‘मुझे महेवा छोड़ना अच्छा नहीं लगा कुंवरजी.’’

‘‘पर आप यहां कहां रहेंगी, कैसे रहेंगी, आप के अब्बा हुजूर परेशान होंगे? हम आप को अहमदाबाद पहुंचाने का प्रबंध करते हैं.’’

जगमाल एक ही सांस में इतना कुछ कह गया. पर गींदोली ने अहमदाबाद जाने से इंकार कर दिया. इस के बाद उस ने अपने मन की बात जगमाल को बता कर कहा कि अब वह उन के साथ ही रहेगी.

शहजादी की बात सुन कर जगमाल हतप्रभ रह गए कि यह क्या हो गया? उस ने ऐसा तो कभी नहीं सोचा था. उस के सामने एक तरह का धर्म संकट पैदा हो गया. उस ने गींदोली से अनुरोध किया, ‘‘शहजादी साहिबा, हमारी इज्जत उछाली जा रही है. आप मान जाएं और महेवा छोड़ दें.’’

मगर शहजादी अपने फैसले पर अटल थी. कुछ ही देर में पूरे महेवा में यह बात फैल गई कि शहजादी गींदोली जगमाल से प्यार करने लगी है और वह उन से शादी करना चाहती है, लेकिन कुंवर जगमाल जातिपांत के डर से उस से विवाह करने को तैयार नहीं हो रहे हैं. यह बात तीजनियों के कानों तक पहुंचीं. गींदोली ने उन की संकट के समय में देखभाल की थी, इसलिए उन्होंने गींदोली की सहायता करने का फैसला कर लिया.

उन्होंने जगमाल से अनुरोध किया कि वह शहजादी गींदोली के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें. उन्होंने उन की भी बात नहीं मानी. तब तीजनियों ने तय कर लिया कि जब तक कुंवर गींदोली के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे, वे घरों में चूल्हे नहीं जलाएंगी.

इस तरह तीजनियों ने अन्नपानी त्याग दिया. ऐसा करते हुए 3 दिन बीत गए.

तब महेवा के तमाम लोग कुंवर जगमाल के पिता रावल मल्लीनाथ के पास गए. उन्होंने उन से कुंवर जगमाल को समझाने का अनुरोध किया. रावल मल्लीनाथ ने जगमाल को समझाया. जगमाल को अपने पिता की बात मानने के लिए मजबूर होना पड़ा. आखिरकार गींदोली के प्रेम के आगे जगमाल की जातिपांत वाली सोच पराजित हो गई.

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पिता के कहने पर जगमाल गींदोली के डेरे पर पहुंचे. उन्होंने अपने कारिंदों को आदेश दिया कि शहजादी गींदोली की सवारी महल में पहुंचाई जाए. आदेश का पालन हुआ. महल में बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. तीजनियों ने खूब गीत गाए.

आज भी राजस्थान में जगमाल और गींदोली के गीत गाए जाते हैं. गणगौर विसर्जित करने के दिन सारा राजस्थान गींदोली को याद करता है. तीजनियां आज भी गींदोली को याद करती हैं. गींदोली और जगमाल का प्रेम आज भी पाबासर के हंस प्रेमी हृदय में तैर रहा है.

पवित्र प्रेम : गींदोली और कुंवर जगमाल की प्रेम कहानी – भाग 2

समय अपनी गति से गुजर रहा था. उधर प्रधान हुल भौपजी बहुत परेशान थे. उन्हें यह जानकारी मिल चुकी थी कि तीजनियां अब पाटण के बाग में हैं.

प्रधान हुल भौपजी अपने हुल पाटण भेज कर आगे की तैयारी में जुट गए. वह घोड़ों को पाटण के रास्तों पर दौड़ा रहे थे, ताकि उस रास्ते को घोड़े अच्छी तरह से पहचान जाएं, जिस से हमले के समय घोड़े रुके नहीं. उन जवानों का हुलिया राजकुमार जगमाल के हुलिए की तरह करा दिया गया था.

प्रधान हुल मौके की तलाश में लगे थे. आखिर उन के हाथ मौका लग ही गया. पाटण में गणगौर की सवारी बड़ी धूमधाम से निकल रही थी. हाथी खान भी खुश था. वह शहजादी को खुश करने में लगा था. शायद शहजादी रीझ कर उस से शादी कर ले. अगर ऐसा हो गया तो अहमदाबाद से पूरे गुजरात में उस का डंका बजेगा. इसी उम्मीद में वह शहजादी गींदोली की हर इच्छा पूरी कर रहा था.

तीजनियों के बगीचे की चौकसी उस ने बढ़ा दी थी, ताकि त्यौहार का फायदा उठा कर जगमाल वहां तक पहुंच न सके.

गणगौर के काफिले में प्रधान हुल भौपजी के साथी मौका मिलते ही घुस गए और गींदोली को पालकी से उठा कर यह जा वह जा करते हुए निकल गए. भौपजी ने गींदोली को अपने घोड़े पर बिठा कर ललकार लगाई, ‘‘महेवा के कुंवर जगमालजी का प्रधान हुल भौपजी तुम्हारी शहजादी को दिनदहाड़े ले जा रहा है. हिम्मत हो तो पकड़ लो.’’

इस के बाद पाटण अहमदाबाद के रास्ते पर दौड़ रहे प्रधान हुल के घोड़े के पीछे हाथी खान ने अपनी सेना के घुड़सवारों को लगा दिया. उन्होंने पचास कोस तक भौपजी का पीछा किया. लेकिन वे उन्हें पकड़ नहीं सके. प्रधान हुल शहजादी गींदोली को ले कर सीधे जगमाल के सामने पहुंचे. प्रधान के साथ एक रूपसी को देख कर जगमाल ने पूछा, ‘‘भौपजी, यह रूपसी कौन है?’’

‘‘हुजूर, यह सेनापति महमूद बेग की शहजादी गींदोली है. चरणों में हाजिर है.’’

जगमाल ने शहजादी को गौर से देखा. लगा जैसे आसमान से चांद उतर आया हो. रूपसी थरथर कांप रही थी. जगमाल गुस्से में बोले, ‘‘वाह प्रधानजी, वाह! अच्छा बदला लिया है. अच्छी बहादुरी दिखाई है. मुझे अपने यहां की वही तीजनियां चाहिए, जिन्हें हाथी खान ले गया था. किसी दूसरे की बहन बेटी नहीं.’’

‘‘वह भी हो जाएगा कुंवर सा, मैं ने ऐसा पांसा फेंका है, जिस से हाथी खान अब खुद तीजनियों को ले कर हाजिर होगा.’’ प्रधान हुल ने अपना इरादा व्यक्त किया.

जगमाल कुछ नहीं बोले. भौपजी ने गींदोली का अलग डेरा लगवा दिया और उस की सुरक्षा के अच्छे बंदोबस्त करा दिए. शहजादी गींदोली जगमाल की बातें सुन कर आश्चर्यचकित रह गई थी. अब उसे तीजनियों की वे बातें याद आ रही थीं, जिस में उन्होंने जगमाल की इंसानियत और बहादुरी की तारीफ के पुल बांधे थे. शहजादी ने तीजनियों से जगमाल की जो प्रशंसा सुनी थी, वह वैसा ही निकला था.

दूसरे दिन जगमाल गींदोली के डेरे पर उस का हालचाल लेने पहुंचे. उन के साथ भौपजी भी थे. वह पर्दे की ओट से बोले, ‘‘शहजादी गींदोली, प्रधान हुलजी आप को उठा लाए, इस के लिए मैं शर्मिंदा हूं. मैं वादा करता हूं कि आप को आप के मातापिता के पास इज्जत के साथ पहुंचा दिया जाएगा. बस आप अपने पिताजी को तीजनियों को छोड़ने का पत्र लिख दीजिए.’’

गींदोली ने चुपचाप सिर हिला कर स्वीकृति दे दी और अपने अब्बू के नाम एक पत्र लिख दिया.

बेटी के पत्र के जवाब में महमूद बेग का उत्तर उतावली के साथ आया. अपनी पुत्री को देखने को वह तड़प रहा था. गींदोली उसे प्राणों से भी अधिक प्यारी थी. उसे छुड़ाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. वह हाथी खान को उस दिन के लिए कोसने लगा, जिस दिन वह तीजनियों का अपहरण कर लाया था.

न हाथी खान तीजनियों को लाता और न ही गींदोली दुश्मन के हाथों में पहुंचती. पर अब क्या हो सकता था. वह विवश बैठा हाथ मल रहा था कि जगमाल का दूत गींदोली का पत्र ले कर पहुंचा. दूत को उस ने मानसम्मान दे कर विदा किया और अपना हरकारा संदेश के साथ महेवा भेज दिया.

दूत के पहुंचने के पहले ही महमूद बेग का हरकारा खेड़ पहुंच चुका था. महमूद बेग के दूत ने कुंवर जगमाल को महमूद बेग का संदेश सुनाया, ‘‘अहमदाबाद के जांबाज सुल्तान महमूद बेग ने फरमाया है कि आप के प्रधान हुल ने बड़ा ही खराब काम किया है. इसे हम कभी भी माफ नहीं करेंगे.’’

दूत के वाक्य पूरा करने से पहले ही भौपजी की तलवार तन गई. कुंवर जगमाल ने उन्हें शांत करते हुए दूत से कहा, ‘‘अपनी बात आगे बढ़ाओ.’’

दूत बोला, ‘‘सुल्तान अपनी शहजादी के बदले में तीजनियों को छोड़ने को तैयार हैं. पर पहले शहजादी गींदोली को हमारे साथ भेजना होगा.’’

दूत को आराम करने को कह कर जगमाल ने भौपजी के साथ विचारविमर्श किया. तय हुआ कि सुल्तान तीजनियों को ले कर मालाणी की सरहद तक आएं और बदले में गींदोली को ले जाएं. दूत जवाब ले कर चला गया.

जगमाल तीजनियों को लाने के दिन की प्रतीक्षा करने लगे. गींदोली अपने डेरे में अपनी आजादी के दिन का इंतजार कर रही थी. पर उस के मन में जगमाल की तसवीर उभर रही थी. जगमाल राजपूती वीरता का उदाहरण था. गींदोली के मन में यह वीरता समा गई.

तीजनियों के साथ हुई बातचीत गींदोली के मन में उभरने लगी कि हिंदू नारी जीवन में एक ही पुरुष की कामना करती है. गींदोली परेशान हो उठी. वह अपने दिमाग में जगमाल की तसवीर बसा चुकी थी और जगमाल था कि परदा हटा कर उसे एक नजर भी नहीं देख रहा था.

नवाब के दूत का संदेश ले कर आने पर जगमाल खुद गींदोली से मिला. वह परदे की ओट से ही बोला, ‘‘शहजादी, आप के अब्बा हुजूर का संदेश आया है. अब आप शीघ्र ही आजाद हो जाएंगी. हमें इस तकलीफ में आप को रखना पड़ा, इस के लिए मैं शर्मिंदा हूं.’’

जगमाल की इंसानियत देख कर वह मन ही मन बोली, ‘‘कुंवरजी, अब मैं अहमदाबाद के महलों में नहीं जाऊंगी. आप का खेड़ का यह डेरा ही मेरा जीवन है.’’

अपनी बात को वह जुबान पर इसलिए नहीं लाई, क्योंकि वह मुसलमान थी. उसे इस बात का अंदेशा था कि जगमाल उसे स्वीकार नहीं करेंगे. बादशाह अलाउद्दीन की पुत्री और वीरम देव सोनगरा की कहानी वह सुन चुकी थी. मरने से पहले तक वीरम देव ने शादी के लिए हां नहीं की थी.

प्रेम जातिपांत नहीं देखता, इसलिए उस ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह जगमाल से ही शादी करेगी. वह अपनी दासी से हिंदू रीतिरिवाजों के बारे में पूछने लगी. दासी हंस कर बोली, ‘‘शहजादी साहिबा, आप को क्या करना है इस सब से?’’

गींदोली ने उसे मन की बात बताई तो दासी की आंखें खुली की खुली रह गईं. दासी ने उसे अंजली और जेठवा की प्रेम कहानी सुनाई, जो गुजराती थे. प्रेम कहानी सुनने के बाद गींदोली के पोर पोर में प्यार का समावेश हो गया. वह सोचने लगी कि लोग जिस तरह प्रेम को ले कर सारस और चकवा की चर्चा करते हैं, अब उस में गींदोली और जगमाल के प्रेम की चर्चा भी शामिल हो जाएगी.

                                                                                                                                 क्रमशः

एहसान के बदले मिली मौत

पवित्र प्रेम : गींदोली और कुंवर जगमाल की प्रेम कहानी – भाग 1

सावन का महीना था. बरखा की रिमझिमरिमझिम फुहारें पड़ रही थीं. महेवा की धरती हरीभरी हो उठी थी. पेड़ों पर नएनए पत्ते उस हरियाली में एक नया उजास पैदा कर रहे थे. मंदमंद चलती पवन और आकाश में तैरती बादलों की घटाओं ने सिणली के तालाब के आसपास की सुंदरता चौगुनी कर दी थी. बादलों की गर्जना के साथ मोरों की पीऊपीऊ मन को मोह रही थी.

तालाब के किनारे के पेड़ों पर पड़े झूलों पर झूला झूलते हुए महिलाएं यानी तीजनियां समूह में सावन के गीत गा रही थीं. बीचबीच में उन की हंसी की खिलखिलाहट सिणाली के तालाब पर इत्र सी तैर रही थी. अचानक ही उन के झूले रुक गए और झूला झूल रही महिलाएं ‘बचाओ…बचाओ…’ चिल्लाने लगीं.

वातावरण में गीतों की जगह चीखपुकार गूंजने लगी. क्योंकि गीत गा रही तीजनियों को पाटण का सूबेदार  हाथी खान अपने साथ ले जा रहा था. जब तक गांव वालों को इस बात की खबर लगती, तब तक हाथी खान उन महिलाओं को ले कर जा चुका था.

गांव के लोग हाथ मलते रह गए. उस समय महेवा के राजकुमार जगमाल अपनी रियासत से बाहर गए हुए थे. उन के अलावा और किसी में इतना साहस नहीं था कि वह हाथी खान का पीछा करता. हाथी खान के इस दुस्साहस से गांव वाले बहुत नाराज थे. यह 15वीं शताब्दी की बात है.

उस समय राजकुमार जगमाल के पिता रावल माला महेवा में तप कर रहे थे. यही रावल माला अपनी भक्तिमती पत्नी रूपांदे की संगति में रावल मल्लीनाथ कहलाए थे. आज उन्हीं के नाम पर यह प्रदेश मालानी कहलाता है. वह तपस्वी और संत के अलावा बड़े ही बलशाली योद्धा भी थे.

राजकुमार जगमाल भी पिता की तरह युद्ध कला में बड़े ही निपुण और बलशाली योद्धा थे. महेवा लौटने पर जब उन्हें पता चला कि पाटण का सूबेदार हाथी खान उन के राज्य की महिलाओं का अपहरण कर ले गया है तो उन का खून खौल उठा.

उन्होंने अपने प्रधान हुल भौपजी से कहा, ‘‘ठाकुर सा, हाथी खान ने हमारे राज्य की महिलाओं का अपहरण कर के हमारी इज्जत उतार दी है. हमें उन महिलाओं को मुक्त करा कर हाथी खान को सबक सिखाना जरूरी हो गया है.’’

भौपजी नम्रता से बोले, ‘‘हम उन महिलाओं को मुक्त तो कराएंगे ही, साथ ही इस का बदला लेने के लिए हाथी खान को सबक भी सिखाएंगे. मैं वादा करता हूं कि अहमदाबाद की छाती चीर कर उन महिलाओं को महेवा ले आऊंगा. वे एक बार फिर बेखौफ हो कर सिणली तालाब की पाल पर झूले झूलती दिखेंगी.

मगर राजकुमार जगमाल को चैन कहां था. जब तक वे महिलाएं सकुशल घर नहीं आ जातीं, तब तक उन्होंने पगड़ी न बांधने, हजामत न बनाने और धुले कपड़े न पहनने की प्रतिज्ञा कर ली थी. उसी समय सिर पर काला कपड़ा बांध कर वह अहमदाबाद पर चढ़ाई करने की योजना बनाने लगे.

उधर हाथी खान ने उन महिलाओं को पाटण के किले में कैद कर दिया था. दरअसल हाथी खान सिपहसालार था, जो अहमदाबाद के अपने सुल्तान महमूद बेग को सदैव खुश रखने में लगा रहता था. अपने आका को खुश करने के लिए ही उस ने यह काम किया था. यद्यपि उस के सैनिक चाहते थे कि इन सुंदर महिलाओं का बंटवारा कर लिया जाए, पर उस ने किसी की भी नहीं सुनी. उस ने साफ साफ कह दिया था कि सुल्तान महमूद बेग जैसा कहेंगे, वैसा ही किया जाएगा.

उधर पाटण के किले में बंद महेवा की उन तीजनियों ने अन्नजल लेने से मना कर दिया था. हाथी खान ने उन्हें सुल्तान महमूद बेग को खुश करने का लालच दिया. उस ने कहा कि अगर वे ऐसा करती हैं तो पूरी जिंदगी शानोशौकत के साथ कटेगी. तीजनियों ने हाथी खान की बात नहीं मानी. उन्होंने हाथी खान से साफ कह दिया था कि वे मर जाएंगी, लेकिन परपुरुष को अपना शरीर नहीं छूने देंगी.

अहमदाबाद में सुल्तान महमूद बेग की बेटी गींदोली को जब पाटण के किले में महेवा से अपहरण कर के लाई तीजनियों को कैद में रखने की सूचना मिली तो वह अपने पिता महमूद बेग से बोली, ‘‘अब्बा हुजूर, सुना है कि आप के सिपहसालार हाथी खान ने महेवा लूटा है और लूट का बहुत सा माल ला कर पाटण के किले में रखा है?’’

‘‘तुम ने ठीक सुना है शहजादी. हाथी खान एक बहादुर सिपाही है. उस ने हमारा नाम रोशन किया है.’’

‘‘पर अब्बा हुजूर, सुना है कि लूट में वह वहां से औरतें भी लाए हैं और उन्हें आप के हरम में भेजना चाहते हैं. यह तो ठीक नहीं है अब्बा हुजूर.’’

‘‘मर्दों की बातों में दखलंदाजी नहीं किया करते शहजादी.’’ महमूद बेग ने यह बात नाराजगी से कही, पर जब उस ने बेटी की आंखों में आंसू देखे तो वह तड़प उठा. वह उसे समझाते हुए बोला, ‘‘रोओ मत, रोओ मत मेरी दुलारी. अच्छा यह बताओ कि तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘मैं उन औरतों से मिलना चाहती हूं अब्बा हुजूर. सुना है, उन्होंने अन्नजल त्याग दिया है. अगर उन्होंने खानापीना छोड़ दिया है तो वे फिर जिंदा कैसे रहेंगी अब्बा?’’ गींदोली ने भोलेपन से पूछा तो महमूद बेग ने कहा, ‘‘यही तो मुसीबत है इन हिंदू औरतों की, मरने पर तुल जाती हैं. किसी की सुनती ही नहीं हैं.’’

अब्बू के मना करने के बावजूद शहजादी गींदोली पाटण किले में कैद तीजनियों से मिलने जा पहुंची.

शहजादी सुखसुविधाओं में पलीबढ़ी थी, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती ही नहीं थी. इसलिए बंदी तीजनियों को देख कर वह सिहर उठी. उस ने एक रूपसी से कहा, ‘‘क्यों सता रही हो अपने आप को बहन. मान जाओ इन लोगों की बात. औरत को आखिर क्या चाहिए. घरबार, धनदौलत और सुखी जीवन. यहां तुम्हें यह सब कुछ मिलेगा. यहां तुम्हें महेवा से भी ज्यादा सुख मिलेगा…’’

शहजादी गींदोली अपनी बात पूरी कर पाती, उस के पहले ही रूपसी का झन्नाटेदार थप्पड़ शहजादी के गाल पर पड़ा. थप्पड़ लगते ही शहजादी का गाल लाल हो गया. उसे थप्पड़ मारने के बाद रूपसी ने थू कह कर मुंह बनाते हुए जमीन पर थूक दिया.

सैनिकों ने रूपसी की पिटाई शुरू कर दी, पर गींदोली ने उन्हें रोक दिया. शहजादी गींदोली ने समझाबुझा कर आखिरकार उन्हें खाना खाने के लिए मना ही लिया. उन्होंने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह उन्हें यहां से निकलने में मदद करेगी. अपने अब्बा से कह कर आखिरकार शहजादी ने उन्हें कैदखाने से निकलवा कर पाटण के बाग में रहने की व्यवस्था करा दी. इस के अलावा उन्हें अच्छे कपड़े भी उपलब्ध करा दिए, ताकि रूपसियों का मन बदल जाए.

सुल्तान महमूद बेग भी खुश था. हाथी खान अपनी तरक्की का इंतजार कर रहा था. उस ने पाटण के बाग की चौकसी के पुख्ता इंतजाम कर दिए थे.

                                                                                                                                     क्रमशः

बहुत हुआ अब और नहीं

जब पुलिस की जीप एक ढाबे के आगे आ कर रुकी, तो अब्दुल रहीम चौंक गया. पिछले 20-22 सालों से वह इस ढाबे को चला रहा था, पर पुलिस कभी नहीं आई थी. सो, डर से वह सहम गया. उसे और हैरानी हुई, जब जीप से एक बड़ी पुलिस अफसर उतरीं.

‘शायद कहीं का रास्ता पूछ रही होंगी’, यह सोचते हुए अब्दुल रहीम अपनी कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया कि साथ आए थानेदार ने पूछा, ‘‘अब्दुल रहीम आप का ही नाम है? हमारी साहब को आप से कुछ पूछताछ करनी है. वे किसी एकांत जगह बैठना चाहती हैं.’’

अब्दुल रहीम उन्हें ले कर ढाबे के कमरे की तरफ बढ़ गया. पुलिस अफसर की मंदमंद मुसकान ने उस की झिझक और डर दूर कर दिया था.

‘‘आइए मैडम, आप यहां बैठें. क्या मैं आप के लिए चाय मंगवाऊं?

‘‘मैडम, क्या आप नई सिटी एसपी कल्पना तो नहीं हैं? मैं ने अखबार में आप की तसवीर देखी थी…’’ अब्दुल रहीम ने उन्हें बिठाते हुए पूछा.

‘‘हां,’’ छोटा सा जवाब दे कर वे आसपास का मुआयना कर रही थीं.

एक लंबी चुप्पी के बाद कल्पना ने अब्दुल रहीम से पूछा, ‘‘क्या आप को ठीक 10 साल पहले की वह होली याद है, जब एक 15 साला लड़की का बलात्कार आप के इस ढाबे के ठीक पीछे वाली दीवार के पास किया गया था? उसे चादर आप ने ही ओढ़ाई थी और गोद में उठा उस के घर पहुंचाया था?’’

अब चौंकने की बारी अब्दुल रहीम की थी. पसीने की एक लड़ी कनपटी से बहते हुए पीठ तक जा पहुंची. थोड़ी देर तक सिर झुकाए मानो विचारों में गुम रहने के बाद उस ने सिर ऊपर उठाया. उस की पलकें भीगी हुई थीं. अब्दुल रहीम देर तक आसमान में घूरता रहा. मन सालों पहले पहुंच गया. होली की वह मनहूस दोपहर थी, सड़क पर रंग खेलने वाले कम हो चले थे. इक्कादुक्का मोटरसाइकिल पर लड़के शोर मचाते हुए आतेजाते दिख रहे थे.

अब्दुल रहीम ने उस दिन भी ढाबा खोल रखा था. वैसे, ग्राहक न के बराबर आए थे. होली का दिन जो था. दोपहर होती देख अब्दुल रहीम ने भी ढाबा बंद कर घर जाने की सोची कि पिछवाड़े से आती आवाजों ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया. 4 लड़के नशे में चूर थे, पर… पर, यह क्या… वे एक लड़की को दबोचे हुए थे. छोटी बच्ची थी, शायद 14-15 साल की.

अब्दुल रहीम उन चारों लड़कों को पहचानता था. सब निठल्ले और आवारा थे. एक पिछड़े वर्ग के नेता के साथ लगे थे और इसलिए उन्हें कोई कुछ नहीं कहता था. वे यहीं आसपास के थे. चारों छोटेमोटे जुर्म कर अंदर बाहर होते रहते थे.

रहीम जोरशोर से चिल्लाया, पर लड़कों ने उस की कोई परवाह नहीं की, बल्कि एक लड़के ने ईंट का एक टुकड़ा ऐसा चलाया कि सीधे उस के सिर पर आ कर लगा और वह बेहोश हो गया. आंखें खुलीं तो अंधेरा हो चुका था. अचानक उसे बच्ची का ध्यान आया. उन लड़कों ने तो उस का ऐसा हाल किया था कि शायद गिद्ध भी शर्मिंदा हो जाएं. बच्ची शायद मर चुकी थी.

अब्दुल रहीम दौड़ कर मेज पर ढका एक कपड़ा खींच लाया और उसे उस में लपेटा. पानी के छींटें मारमार कर कोशिश करने लगा कि शायद कहीं जिंदा हो. चेहरा साफ होते ही वह पहचान गया कि यह लड़की गली के आखिरी छोर पर रहती थी. उसे नाम तो मालूम नहीं था, पर घर का अंदाजा था. रोज ही तो वह अपनी सहेलियों के संग उस के ढाबे के सामने से स्कूल जाती थी.

बच्ची की लाश को कपड़े में लपेटे अब्दुल रहीम उस के घर की तरफ बढ़ चला. रात गहरा गई थी. लोग होली खेल कर अपनेअपने घरों में घुस गए थे, पर वहां बच्ची के घर के आगे भीड़ जैसी दिख रही थी. शायद लोग खोज रहे होंगे कि उन की बेटी किधर गई.

अब्दुल रहीम के लिए एकएक कदम चलना भारी हो गया. वह दरवाजे तक पहुंचा कि उस से पहले लोग दौड़ते हुए उस की तरफ आ गए. कांपते हाथों से उस ने लाश को एक जोड़ी हाथों में थमाया और वहीं घुटनों के बल गिर पड़ा. वहां चीखपुकार मच गई.

‘मैं ने देखा है, किस ने किया है.

मैं गवाही दूंगा कि कौन थे वे लोग…’ रहीम कहता रहा, पर किसी ने भी उसे नहीं सुना.

मेज पर हुई थपकी की आवाज से अब्दुल रहीम यादों से बाहर आया.

‘‘देखिए, उस केस को दाखिल करने का आर्डर आया है,’’ कल्पना ने बताया.

‘‘पर, इस बात को तो सालों बीत गए हैं मैडम. रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई थी. उस बच्ची के मातापिता शायद उस के गम को बरदाश्त नहीं कर पाए थे और उन्होंने शहर छोड़ दिया था,’’ अब्दुल रहीम ने हैरानी से कहा.

‘मुझे बताया गया है कि आप उस वारदात के चश्मदीद गवाह थे. उस वक्त आप उन बलात्कारियों की पहचान करने के लिए तैयार भी थे,’’ कल्पना की इस बात को सुन कर अब्दुल रहीम उलझन में पड़ गया.

‘‘अगर आप उन्हें सजा दिलाना नहीं चाहते हैं, तो कोई कुछ नहीं कर सकता है. बस, उस बच्ची के साथ जो दरिंदगी हुई, उस से सिर्फ वह ही नहीं तबाह हुई, बल्कि उस के मातापिता की भी जिंदगी बदतर हो गई,’’ सिटी एसपी कल्पना ने समझाते हुए कहा.

‘‘2 चाय ले कर आना,’’ अब्दुल रहीम ने आवाज लगाई, ‘‘जीप में बैठे लोगों को भी चाय पिलाना.’’

चाय आ गई. अब्दुल रहीम पूरे वक्त सिर झुकाए चिंता में चाय सुड़कता रहा.

‘‘आप तो ऐसे परेशान हो रहे हैं, जैसे आप ने ही गुनाह किया हो. मेरा इरादा आप को तंग करने का बिलकुल नहीं था. बस, उस परिवार के लिए इंसाफ की उम्मीद है.’’

अब्दुल रहीम ने कहा, ‘‘हां मैडम, मैं ने अपनी आंखों से देखा था उस दिन. पर मैं उस बच्ची को बचा नहीं सका. इस का मलाल मुझेआज तक है. इस के लिए मैं खुद को भी गुनाहगार समझता हूं.

‘‘कई दिनों तक तो मैं अपने आपे में भी नहीं था. एक महीने बाद मैं फिर गया था उस के घर, पर ताला लटका हुआ था और पड़ोसियों को भी कुछ नहीं पता था.

‘‘जानती हैं मैडम, उस वक्त के अखबारों में इस खबर ने कोई जगह नहीं पाई थी. दलितों की बेटियों का तो अकसर उस तरह बलात्कार होता था, पर यह घर थोड़ा ठीकठाक था, क्योंकि लड़की के पिता सरकारी नौकरी में थेऔर गुनाहगार हमेशा आजाद घूमते रहे.

‘‘मैं ने भी इस डर से किसी को यह बात बताई भी नहीं. इसी शहर में होंगे सब. उस वक्त सब 20 से 25 साल के थे. मुझे सब के बाप के नामपते मालूम हैं. मैं आप को उन सब के बारे में बताने के लिए तैयार हूं.’’

अब्दुल रहीम को लगा कि चश्मे के पीछे कल्पना मैडम की आंखें भी नम हो गई थीं.

‘‘उस वक्त भले ही गुनाहगार बच गए होंगे. लड़की के मातापिता ने बदनामी से बचने के लिए मामला दर्ज ही नहीं किया, पर आने वाले दिनों में उन चारों पापियों की करतूत फोटो समेत हर अखबार की सुर्खी बनने वाली है.

‘‘आप तैयार रहें, एक लंबी कानूनी जंग में आप एक अहम किरदार रहेंगे,’’ कहते हुए कल्पना मैडम उठ खड़ी हुईं और काउंटर पर चाय के पैसे रखते हुए जीप में बैठ कर चली गईं.

‘‘आज पहली बार किसी पुलिस वाले को चाय के पैसे देते देखा है,’’ छोटू टेबल साफ करते हुए कह रहा था और अब्दुल रहीम को लग रहा था कि सालों से सीने पर रखा बोझ कुछ हलका हो गया था.

इस मुलाकात के बाद वक्त बहुत तेजी से बीता. वे चारों लड़के, जो अब अधेड़ हो चले थे, उन के खिलाफ शिकायत दर्ज हो गई. अब्दुल रहीम ने भी अपना बयान रेकौर्ड करा दिया. मीडिया वाले इस खबर के पीछे पड़ गए थे. पर उन के हाथ कुछ खास खबर लग नहीं पाई थी.

अब्दुल रहीम को भी कई धमकी भरे फोन आने लगे थे. सो, उन्हें पूरी तरह पुलिस सिक्योरिटी में रखा जा रहा था. सब से बढ़ कर कल्पना मैडम खुद इस केस में दिलचस्पी ले रही थीं और हर पेशी के वक्त मौजूद रहती थीं. कुछ उत्साही पत्रकारों ने उस परिवार के पड़ोसियों को खोज निकाला था, जिन्होंने बताया था कि होली के कुछ दिन बाद ही वे लोग चुपचाप बिना किसी से मिले कहीं चले गए थे, पर बात किसी से नहीं हो पाई थी.

कोर्ट की तारीखें जल्दीजल्दी पड़ रही थीं, जैसे कोर्ट भी इस मामले को जल्दी अंजाम तक पहुंचाना चाहता था. ऐसी ही एक पेशी में अब्दुल रहीम ने सालभर बाद बच्ची के पिता को देखा था. मिलते ही दोनों की आंखें नम हो गईं.

उस दिन कोर्ट खचाखच भरा हुआ था. बलात्कारियों का वकील खूब तैयारी के साथ आया हुआ मालूम दे रहा था. उस की दलीलों के आगे केस अपना रुख मोड़ने लगा था. सभी कानून की खामियों के सामने बेबस से दिखने लगे थे.

‘‘जनाब, सिर्फ एक अब्दुल रहीम की गवाही को ही कैसे सच माना जाए? मानता हूं कि बलात्कार हुआ होगा, पर क्या यह जरूरी है कि चारों ये ही थे? हो सकता है कि अब्दुल रहीम अपनी कोई पुरानी दुश्मनी का बदला ले रहे हों? क्या पता इन्होंने ही बलात्कार किया हो और फिर लाश पहुंचा दी हो?’’ धूर्त वकील ने ऐसा पासा फेंका कि मामला ही बदल गया.

लंच की छुट्टी हो गई थी. उस के बाद फैसला आने की उम्मीद थी. चारों आरोपी मूंछों पर ताव देते हुए अपने वकील को गले लगा कर जश्न सा मना रहे थे. लंच की छुट्टी के बाद जज साहब कुछ पहले ही आ कर सीट पर बैठ गए थे. उन के सख्त होते जा रहे हावभाव से माहौल भारी बनता जा रहा था.

‘‘क्या आप के पास कोई और गवाह है, जो इन चारों की पहचान कर सके,’’ जज साहब ने वकील से पूछा, तो वह बेचारा बगलें झांकनें लगा.

पीछे से कुछ लोग ‘हायहाय’ का नारा लगाने लगे. चारों आरोपियों के चेहरे दमकने लगे थे. तभी एक आवाज आई, ‘‘हां, मैं हूं. चश्मदीद ही नहीं भुक्तभोगी भी. मुझे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए.’’

सब की नजरें आवाज की दिशा की ओर हो गईं. जज साहब के ‘इजाजत है’ बोलने के साथ ही लोगों ने देखा कि उन की शहर की एसपी कल्पना कठघरे की ओर जा रही हैं. पूरे माहौल में सनसनी मच गई.

‘‘हां, मैं ही हूं वह लड़की, जिसे 10 साल पहले होली की दोपहर में इन चारों ने बड़ी ही बेरहमी से कुचला था, इस ने…

‘‘जी हां, इसी ने मुझे मेरे घर के आगे से उठा लिया था, जब मैं गेट के आगे कुत्ते को रोटी देने निकली थी. मेरे मुंह को इस ने अपनी हथेलियों से दबा दिया था और कार में डाल दिया था.

‘‘भीतर पहले से ये तीनों बैठे हुए थे. इन्होंने पास के एक ढाबे के पीछे वाली दीवार की तरफ कार रोक कर मुझे घसीटते हुए उतारा था.

‘‘इस ने मेरे दोनों हाथ पकड़े थे और इस ने मेरी जांघें. कपड़े इस ने फाड़े थे. सब से पहले इस ने मेरा बलात्कार किया था… फिर इस ने… मुझे सब के चेहरे याद हैं.’’

सिटी एसपी कल्पना बोले जा रही थीं. अपनी उंगलियों से इशारा करते हुए उन की करतूतों को उजागर करती जा रही थीं. कल्पना के पिता ने उठ कर 10 साल पुराने हुए मैडिकल जांच के कागजात कोर्ट को सौंपे, जिस में बलात्कार की पुष्टि थी. रिपोर्ट में साफ लिखा था कि कल्पना को जान से मारने की कोशिश की गई थी.

कल्पना अभी कठघरे में ही थीं कि एक आरोपी की पत्नी अपनी बेटी को ले कर आई और सीधे अपने पति के मुंह पर तमाचा जड़ दिया.

दूसरे आरोपी की पत्नी उठ कर बाहर चली गई. वहीं एक आरोपी की बहन अपनी जगह खड़ी हो कर चिल्लाने लगी, ‘‘शर्म है… लानत है, एक भाई होते हुए तुम ने ऐसा कैसे किया था?’’

‘‘जज साहब, मैं बिलकुल मरने की हालत में ही थी. होली की उसी रात मेरे पापा मुझे तुरंत अस्पताल ले कर गए थे, जहां मैं जिंदगी और मौत के बीच कई दिनों तक झूलती  रही थी. मुझे दौरे आते थे. इन पापियों का चेहरा मुझे हर वक्त डराता रहता था.’’

अब केस आईने की तरह साफ था. अब्दुल रहीम की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. कल्पना उन के पास जा कर उन के कदमों में गिर पड़ी.

‘‘अगर आप न होते, तो शायद मैं जिंदा न रहती.’’

मीडिया वाले कल्पना से मिलने को उतावले थे. वे मुसकराते हुए उन की तरफ बढ़ गई.

‘‘अब्दुल रहीम ने जब आप को कपड़े में लपेटा था, तब मरा हुआ ही समझा था. मेज के उस कपड़े से पुलिस की वरदी तक के अपने सफर के बारे में कुछ बताएं?’’ एक पत्रकार ने पूछा, जो शायद सभी का सवाल था.

‘‘उस वारदात के बाद मेरे मातापिता बेहद दुखी थे और शर्मिंदा भी थे. शहर में वे कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे थे. मेरे पिताजी ने अपना तबादला इलाहाबाद करवा लिया था.

‘‘सालों तक मैं घर से बाहर जाने से डरती रही थी. आगे की पढ़ाई मैं ने प्राइवेट की. मैं अपने मातापिता को हर दिन थोड़ा थोड़ा मरते देख रही थी.

‘‘उस दिन मैं ने सोचा था कि बहुत हुआ अब और नहीं. मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए परीक्षा की तैयारी करने लगी. आरक्षण के कारण मुझे फायदा हुआ और मनचाही नौकरी मिल गई. मैं ने अपनी इच्छा से इस राज्य को चुना. फिर मौका मिला इस शहर में आने का.

‘‘बहुत कुछ हमारा यहीं रह गया था. शहर को हमारा कर्ज चुकाना था. हमारी इज्जत लौटानी थी.’’

‘‘आप दूसरी लड़कियों और उन के मातापिता को क्या संदेश देना चाहेंगी?’’ किसी ने सवाल किया.

‘‘इस सोच को बदलने की सख्त जरूरत है कि बलात्कार की शिकार लड़की और उस के परिवार वाले शर्मिंदा हों. गुनाहगार चोर होता है, न कि जिस का सामान चोरी जाता है वह.

‘‘हां, जब तक बलात्कारियों को सजा नहीं होगी, तब तक उन के हौसले बुलंद रहेंगे. मेरे मातापिता ने गलती की थी, जो कुसूरवार को सजा दिलाने की जगह खुद सजा भुगतते रहे.’’

कल्पना बोल रही थीं, तभी उन की मां ने एक पुडि़या अबीर निकाला और उसे आसमान में उड़ा दिया. सालों पहले एक होली ने उन की जिंदगी को बेरंग कर दिया था, उसे फिर से जीने की इच्छा मानो जाग गई थी.

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 3

डर के मारे वह ऊपर की ओर भागे. कमरे में रखी बड़ी सी कुरसी पर 5-6 कंबल ओढ़ कर छिप गए. कदमों की आहट उन्हें साफ सुनाई दे रही थी, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहे थे.

सन्नाटे को चीरती हुई एक मर्दाना आवाज गूंजी, ‘‘डा. फेंज गनीमत इसी में है कि तुम जहां भी छिपे हो निकल आओ वरना हम तो तुम्हें ढूंढ ही लेंगे.’’

यह आवाज थमी नहीं कि दूसरी आवाज उभरी, ‘‘आज बच नहीं पाओगे डा. फेंज.’’

खौफ से डा. फेंज की नसों का खून जम सा गया. वह सांस खींचे दुबके रहे. तभी पहले वाली आवाज फिर गूंजी, ‘‘डा. फेंज, हमें बता दो कि तुम ने नकद राशि कहां छिपा रखी है? हम तुम्हारी जान बख्श देंगे.’’

कंबलों में हलचल सी हुई. डा. फेंज में जाने कहां से हिम्मत आ गई कि वह झटके से बाहर आ गए. 2 लोग उन्हें खोज रहे थे. उन्होंने फुर्ती से एक युवक का सिर पकड़ कर खिड़की की चौखट से दे मारा. चीख के साथ उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. दूसरा उन की ओर लपका. उस ने डा. फेंज की कलाई पकड़ कर फर्श पर गिरा दिया.

इस के बाद घसीटता हुआ दीवार तक ले गया और उन का सिर पकड़ कर जोर से दीवार से मारा. इसी के साथ उस के घायल साथी ने डा. फेंज पर कुल्हाड़ी से जोरदार वार सिर पर किया. बस, एक ही वार में हलकी सी चीख के साथ वह बेहोश हो गए. इस के बाद भी दोनों युवकों ने ताबड़तोड़ कई वार उन के सिर और सीने पर किए. उन्हें लगा कि डा. फेंज खत्म हो गए हैं, लेकिन यह उन का भ्रम था.

डा. फेंज की सांसें चल रही थीं. दोनों का अगला निशाना वहां रखी अलमारी थी. अलमारी के दरवाजे को कुल्हाड़ी से तोड़ कर उसे खंगाला तो उस में 5 हजार यूरो मिले, जिन्हें ले कर दोनों भाग खड़े हुए. उन के जाने के बाद घिसटघिसट कर डा. फेंज उस टेबल तक आए, जहां फोन रखा था. किसी तरह नंबर मिला कर उन्होंने पुलिस को कराहती आवाज में घटना की सूचना दी.

10 मिनट में टौप एक्शन पुलिस फोर्स वहां पहुंच गई. गंभीर रूप से घायल डा. फेंज को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 11 सप्ताह तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए डा. फेंज ने आखिर 26 मार्च, 2008 को दम तोड़ दिया.

पुलिस जांच में मिले सुबूत डा. फेंज की पत्नी ततजाना के दोषी होने का इशारा कर रहे थे. ततजाना को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस का तर्क था कि एक साल से डा. फेंज से उस का कोई संबंध नहीं था. वह अपने प्रेमी हीलमुट बेकर के साथ रह रही थी. मगर उस की कोई भी दलील काम नहीं आई. मई, 2008 में अदालत के आदेश पर उसे डा. फेंज की हत्या और चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया.

16 महीने बर्लिन कोर्ट में यह मुकदमा चला. लेकिन सुबूतों और गवाहों के अभाव में अक्तूबर, 2009 को कोर्ट ने ततजाना को बेगुनाह करार देते हुए जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया.

कहा जाता है कि ततजाना को अपनी बदसूरती के चलते पहले जीवन से खास लगाव नहीं रहा था. लेकिन जब डा. फेंज ने 20 औपरेशन कर के उसे खूबसूरती का तोहफा दिया तो उस के अंदर की दम तोड़ चुकी महत्त्वाकांक्षाएं और हसरतें फिर से उमंगे भरने लगी थीं. इसी के चलते उस ने अपने से 44 साल बड़े डा. फेंज के प्यार को स्वीकार कर के शादी कर ली थी, क्योंकि डा. फेंज के पास अरबों डौलर की दौलत थी.

पुलिस के अनुसार शादी के बाद 9 सालों तक ततजाना ने ऐश की जिंदगी बसर करते हुए अपने सभी अरमान पूरे कर लिए. इस के बाद उस का मन डा. फेंज से भर गया तो वह कार व्यापारी हीलमुट बेकर के पहलू में जा गिरी. वह उस के साथ एक साल रही, लेकिन डा. फेंज को उस ने तलाक नहीं दिया. शायद उस की निगाह डा. फेंज की बेशुमार दौलत पर थी. उस पर उस का कब्जा डा. फेंज की मौत के बाद ही हो सकता था. इसी वजह से उस ने डा. फेंज की हत्या पेशेवर हत्यारों से करवा दी थी. लेकिन सुबूतों के अभाव में वह निर्दोष मानी गई.

खैर, सच्चाई चाहे जो भी रही हो, जेल से रिहा होने के बाद ततजाना डा. फेंज की बेवा होने के नाते उस की 11 मिलियन यू.एस. डौलर की एकलौती वारिस हो गई. उस की जिंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. पार्टीक्लबों में रात रंगीन करना, पुरुष मित्रों की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना, महंगी कारों में घूमना और भोग विलास भरा जीवन उस की दिनचर्या में शुमार हो गया.

एक हाईफाई पार्टी में ही ततजाना की मुलाकात नवंबर, 2011 में जर्मनी के सेक्सोनिया राज्य के आखिरी राजा 68 वर्षीय प्रिंस वौन हौमजोर्लन से हुई तो वह उस से दिल लगा बैठी. प्रिंस वौन भी उस की खूबसूरती और जवानी के ऐसे दीवाने हुए कि बस उसी के हो कर रह गए. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन प्रिंस वौन की पत्नी और बच्चों के रहते यह संभव नहीं था.

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 2

सन 1992 तक बीसों औपरेशन के बाद ततजाना का कायाकल्ल्प हो गया. इस बीच ततजाना का इलाज करते करते डा. फेंज कब उस की चाहत के मरीज बन गए, वह जान नहीं पाए. वह खुद हैरान थे, ऐसा कैसे हो गया. वह हजारों युवतियों की सर्जरी कर चुके थे, लेकिन जो निखार ततजाना के शरीर में आया था, ऐसा किसी अन्य युवती के शरीर में उन्होंने अनुभव नहीं किया था.

अपनी सुंदरता देख कर ततजाना बेहद खुश थी. इस के बावजूद वह आईने का सामना करने से कतरा रही थी. इस दौरान डा. फेंज ने अनुभव किया था कि बदसूरती से उपजी हीनभावना की शिकार ततजाना आईने से न केवल डरती है, बल्कि उस से नफरत करती है. इसीलिए इलाज के बाद वह उसे आदमकद आईने के सामने ले गए थे. ततजाना चाह कर भी आईने के सामने आंख नहीं खोल पा रही थी. खोलती भी कैसे, आखिर कितनी टीस दी थी इस आईने ने.

डा. फेंज ने आगे बढ़ कर ततजाना का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘पलकें उठा कर तो देखो, आईना खुद शरमा रहा है तुम्हारी खूबसूरती को देख कर. देखो, यह कह भी रहा है, ‘मेरा जवाब तू है, तेरा जवाब कोई नहीं.’’’

डरते हुए ततजाना ने नजरें उठा कर देखा, वाकई वह हैरान रह गई थी. उस के अंधेरे अतीत की परछाई भी नहीं थी उस के चेहरे पर. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने चेहरे को छू कर देखा. उस की नजरों में डा. फेंज के लिए एहसान और दिल में आदर तथा प्यार की तह सी जमी थी. वह अंजान तो नहीं थी. उसे अहसास हो गया था कि डा. फेंज के दिल में उस के लिए मोहब्बत का अंकुर फूट चुका है. लेकिन उस ने दिल की बात जुबान पर नहीं आने दी.

वह ऐसा समय था, जब डा. फेंज अपनी शादीशुदा जिंदगी के नाजुक दौर से गुजर रहे थे. आखिर वह समय आ ही गया, जब पत्नी उन्हें तलाक दे कर अपने एकलौते बच्चे को ले कर सदा के लिए उन की जिंदगी से दूर चली गई.

तनहाई के इस आलम में उन्हें ततजाना के प्यार के सहारे की जरूरत थी. लेकिन वह इजहार नहीं कर रहे थे. इसी तरह साल गुजर गया. दरअसल डा. फेंज जहां उम्र के ढलान पर थे, वहीं ततजाना यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी.

वह 66 साल के थे, जबकि ततजाना मात्र 23 साल की थी. लेकिन यह भी सच है कि प्यार न सीमा देखता है न मजहब और न ही उम्र. एक दिन फेंज और ततजाना साथ बैठे कौफी पी रहे थे, तभी डा. फेंज ने कहा, ‘‘ततजाना, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हारी इस खूबसूरती ने मुझे दीवाना बना दिया है.’’

‘‘यह खूबसूरती आप की ही दी हुई तो है. एक नई जिंदगी दी है आप ने मुझे. इसलिए इस पर पहला हक आप का ही बनता है.’’ ततजाना बोली.

‘‘नहीं ततजाना, मैं हक नहीं जताना चाहता. अगर दिल से स्वीकार करोगी, तभी मुझे स्वीकार होगा. मैं एहसानों का बदला लेने वालों में से नहीं हूं.’’ डा. फेंज ने कहा.

‘‘मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूं कि आप ने मेरी अंधेरी जिंदगी को रोशनी से सराबोर किया है. आप की तनहाई में साथ छोड़ दूं, यह कैसे हो सकता है. इस तनहाई में आप मुझे तनमन से अपने नजदीक पाएंगे. आप यह न समझें कि मैं यह बात एहसान का कर्ज अदा करने की गरज से नहीं, दिल से कह रही हूं.’’

सन 1999 में डा. फेंज से ततजाना ने विवाह कर लिया. शादी के बाद जहां डा. फेंज की तनहा जिंदगी में फिर से बहारें आ गईं, वहीं ततजाना भी एक काबिल और अरबपति पति की संगिनी बन कर खुद पर इतराने लगी.

अब सब कुछ था उस के पास. रहने को आलीशान महल, महंगी कारें, सोने हीरों के गहने और कीमती लिबास. जिंदगी के मायने ही बदल गए थे उस के. अब वह बेशुमार दौलत की मालकिन थी. हाई सोसाइटियों में उसे तवज्जो मिल रही थी, जिस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी.

ततजाना अपने जीवन की रंगीनियों में इस कद्र डूब गई कि अतीत की परछाई भी उस के पास नहीं फटक रही थी. डा. फेंज भी उस की खूबसूरती में खोए रहते थे. दोनों का 9 साल का दांपत्यजीवन कैसे गुजर गया, उन्हें पता ही नहीं चला. अचानक इस रिश्ते में तब दरार पड़ने लगी, जब ततजाना को तनहा छोड़ कर डा. फेंज अपने मरीजों में व्यस्त रहने लगे. बस यहीं से ततजाना के कदमों का रुख बदल गया.

उसी दौरान एक पार्टी में ततजाना की मुलाकात कारों के व्यापारी 60 वर्षीय हीलमुट बेकर से हुई. उस ने उस की आंखों में अपने प्रति चाहत देखी तो उस की ओर झुक गई. बेकर का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ततजाना उस की ओर झुकती चली गई. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो दोनों पर मोहब्बत का रंग चढ़ने लगा. जिस्मों के मिलन के बाद वह और निखर आया. अब ततजाना का अधिकतम समय बेकर की बांहों में गुजरने लगा. हद तो तब होने लगी, जब ततजाना डा. फेंज को अनदेखा कर के रातें भी बेकर के बिस्तर पर गुजारने लगी.

डा. फेंज सोच रहे थे कि ततजाना नादान है, राह भूल गई है. समझाने पर मान जाएगी. मगर ऐसा हुआ नहीं. एक रात डा. फेंज बेसब्री से ततजाना का इंतजार कर रहे थे. सारी रात बीत गई, ततजाना लौट कर नहीं आई. डा. फेंज ने कई संदेश भिजवाए लेकिन जवाब में बेरुखी ही मिली.

इसी तरह एक साल गुजर गया. डा. फेंज ने यह तनहाई कैसे काटी, इस का सुबूत था उन का बिगड़ा दिमागी संतुलन. अगर हवा से खिड़कियों के परदे भी हिलते तो उन्हें लगता कि यह ततजाना के कदमों की आहट है. वह आ गई है.

डा. फेंज 5 जनवरी, 2005 की सुबह अपनी क्लीनिक में अकेले ही खयालों में खोए बैठे थे. वह सोच रहे थे कि काश ततजाना आ जाती. अचानक खिड़की के शीशे जोर से खड़खड़ाए. शीशा टूट कर बाहर की तरफ गिर गया. घबरा कर उन्होंने उधर देखा तो 2 मानव आकृतियां दिखाई दीं. उन्होंने अपने चेहरे ढक रखे थे. डरेसहमे डा. फेंज ने ततजाना को फोन किया. घंटी बजती रही, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. तभी लगा, किसी ने खिड़की को ही उखाड़ दिया है.

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 1

तेज होती तालियों की गूंज उसे इस बात का अहसास करा रही थी कि वह ‘मिस जर्मनी’ के खिताब की हकदार है. वैसे तो 100 से ज्यादा सुंदरियां प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं, लेकिन उन में से कोई भी उस से ज्यादा सुंदर नहीं थी. उस ने चोर निगाहों से सब को देखा. हर निगाह उसी की खूबसूरती को निहार रही थी. उस की झील सी नीली आंखें, रेशम की तरह मुलायम गाल, गुलाब की पंखुडि़यों से नाजुक होंठ, जिसे कोई होंठों से भी छू ले तो निशान पड़ जाए. चेहरा ही क्या, अंग अंग का कोई जवाब नहीं था.

आखिरी राउंड पूरा हो चुका था. सभी दिल थामे जजों के फैसले के इंतजार में बैठे थे. सभी सुंदरियों के दिल धकधक कर रहे थे. तभी स्टेज से एक आवाज उभरी, ‘‘अब सभी अपना दिल थाम लें. इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. इस सौंदर्य प्रतियोगिता में वैसे तो हर हसीना की खूबसूरती काबिलेतारीफ है, लेकिन ‘मिस जर्मनी’ का ताज जिस के सिर की शोभा बनेगा, वह खूबसूरत होने के साथसाथ खुशनसीब भी है. उस खूबसूरत हसीना का नाम है, मिस ततजाना.’’

एक बार फिर हौल तालियों से गूंज उठा. मुसकान और अदाएं बिखेरती ततजाना आगे आई तो पूर्व मिस जर्मनी के हाथों में हीरों जडि़त ताज उस के माथे को चूमने को बेताब था. खुशी के अांसू छलक आए जब ततजाना के सिर पर ताज सजाया गया. होंठ थरथरा रहे थे उस के, लेकिन चाह कर भी जुबान नहीं खुल रही थी. तभी उस के कानों में आवाज पड़ी. ‘‘तत, आज कालेज नहीं जाना क्या? देखो, कितना समय हो गया है?’’

ततजाना की आंखें खुल गईं. वह जो खूबसूरत सपना देख रही थी, टूट गया. वह फुसफुसाई, ‘‘कुदरत ने तो मेरे साथ मजाक किया ही था, अब ख्वाब भी मेरी बदसूरती का उपहास उड़ाने लगे हैं.’’

एक लंबी आह भरी ततजाना ने. ‘काश! ख्वाब सच होता.’ लेकिन काश और हकीकत की लंबी दूरी आईने तक पहुंचते ही खत्म हो गई. आईना सच कह रहा था. कुदरत ने वाकई उस के साथ नाइंसाफी की थी. चेहरा तो बदसूरत था ही, शरीर भी लड़कों की तरह सपाट.

उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. उस ने एक बार फिर पहले कुदरत को कोसा और उस के बाद जननी को. वह इतनी बदसूरत थी तो जन्म देते ही मां ने उस का गला क्यों नहीं दबा दिया? मर जाती तो अच्छा रहता. उसे ये दिन देखने के लिए जिंदा क्यों रखा? कब तक वह इस बदसूरत शरीर का बोझ ढोती रहेगी?

ततजाना की कोई सहेली तक नहीं थी. चाहने वाले किसी लड़के की बात तो उस के लिए सपने जैसी थी. कालेज हो, कोई पार्टी हो या घर, हर जगह उस के साथ तनहाई ही रहती थी. बात यहीं तक रहती तो ठीक था, उस समय ततजाना का दिल रो उठता, जब कालेज में लड़के लड़कियां उस का मजाक उड़ाते. वह खून का घूंट पी कर रह जाती. उसे जिंदगी से कोफ्त होने लगती, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

मां अकसर समझाती रहती, ‘‘बेटा, सूरत ही सब कुछ नहीं होती, सीरत अच्छी होनी चाहिए.’’

‘‘सीरत कौन देखता है मां, पूरी दुनिया खूबसूरती की गुलाम है.’’ कह कर ततजाना सिसक उठती, ‘‘कोई विरला ही सीरत देखता है. लेकिन मेरे भाग्य में वह भी नहीं है. भाग्यशाली ही होती तो बदसूरत क्यों होती?’’

मां चुप हो जाती. सच्चाई उसे भी पता थी. उसे भी चिंता खाए जा रही थी कि कौन थामेगा बेटी का हाथ? जिंदगी में वह किसी की मोहताज न रहे, यही सोच कर वह ततजाना को पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स करवा रही थी. होश संभालने के बाद अखबार में छपे उस विज्ञापन को देख कर पहली बार उस के चेहरे पर उम्मीद की कुछ लकीरें उभरी थीं.

वह विज्ञापन मशहूर प्लास्टिक सर्जन डा. फेंज जसेल का था. विज्ञापन के अनुसार, डा. फेंज पूरे यूरोप में विख्यात थे. उन्होंने अपने नरीम्बर्ग स्थित ‘नरीम्बर्ग विला क्लीनिक’ में जाने कितनों को नई जिंदगी दी थी प्लास्टिक सर्जरी कर के.

सन 1973 में जन्मी ततजाना 18 साल की हो गई थी. जब से वह समझदार हुई थी, बदसूरती को ले कर वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी. लेकिन डा. फेंज का विज्ञापन पढ़ कर उस के मन में आशा की एक किरण जागी थी. कुदरत को चुनौती देने वाला कोई तो है इस धरती पर. लेकिन अगले ही पल उस की यह उम्मीद धूल में मिलती नजर आई, जब उसे खयाल आया कि डा. फेंज की फीस कितनी होगी?

वह शक्लसूरत ही नहीं, रुपयोंपैसों से भी गरीब थी. घर की हालत बस काम चलाऊ थी. वह इस से बेखबर नहीं थी. फिर भी खयाल आया कि एक बार मां से बात कर ले. लेकिन तुरंत ही इस खयाल को त्याग देना पड़ा, क्योंकि घर चलाने के लिए मां एक ड्राइविंग स्कूल चलाती थी. बाप भी सौतेला था, इसलिए उस से उम्मीद करना बेकार था.

बदसूरती ने वैसे तो ततजाना को तोड़ कर रख दिया था. एक तरह से जीवन से मोह खत्म सा हो गया था, इस के बावजूद आत्मविश्वास कहीं दबा बैठा था. वही ततजाना को हिम्मत दे रहा था. उस ने मां को दिल की बात बताई और बाम्बर्ग जहां वह रहती थी, उसे छोड़ कर जा पहुंची नरीम्बर्ग डा. फेंज जसेल की क्लीनिक.

कारीगरी का बेहतरीन नमूना था नरीम्बर्ग विला. सफेद संगमरमर से बने भव्य महल में डा. फेंज का निवास और क्लीनिक दोनों थे. अपनी हैसियत देख कर ततजाना के पांव ठिठक रहे थे. किसी तरह साहस बटोर कर उस ने रिसेप्शन पर बैठी खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से डा. फेंज से मिलने का टाइम लिया. आशा निराशा में डूबती ततजाना सोफे पर बैठ गई. करीब आधे घंटे बाद उसे डा. फेंज से मिलने का मौका मिला. अधेड़ डा. फेंज के चेहरे पर जवानों सी ताजगी थी.

कहते हैं, अगर डाक्टर का व्यक्तित्व अच्छा हो तो मरीज इलाज से पहले ही आधा ठीक हो जाता है. ततजाना को कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. डा. फेंज जसेल ने उस की जांच के बाद कहा कि इलाज के बाद उस की खूबसूरती ऐसी निखर जाएगी कि देखते ही बनेगी. मगर इस के लिए उन्हें 20 औपरेशन करने पड़ेंगे और एक औपरेशन का खर्च 70 हजार डालर के करीब आएगा.

इलाज का खर्च सुन कर ततजाना का खूबसूरत बन जाने का उत्साह तुरंत मायूसी में बदल गया. डा. फेंज ने उस के मन की बात भांप ली. उन्होंने कहा, ‘‘खर्च ज्यादा है, उठा नहीं पाओगी?’’

ततजाना कुछ कहती, उस के पहले ही डा. फेंज ने कुछ सोचते हुए गंभीरता से कहा, ‘‘इस का भी रास्ता है, अगर तुम चाहो तो…’’

नजर उठा कर ततजाना ने डा. फेंज को देखा. वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन जुबान चिपक सी गई. उस के चेहरे के भावों को पढ़ कर डा. फेंज ने आगे कहा, ‘‘घबराने या मायूस होने की जरूरत नहीं है. बस, तुम्हें मेरे क्लीनिक में नौकरी करनी होगी. वेतन के बदले मैं तुम्हारी सर्जरी कर दूंगा.’’

अपना सपना साकार होता देख ततजाना की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. गला भर्रा उठा और होंठ थरथराए, ‘‘मुझे मंजूर है.’’

ततजाना बस इतना ही कह पाई.

सन 1986 में ततजाना अपना घर छोड़ कर नरीम्बर्ग आ गई, एक नए जीवन की शुरुआत की उम्मीद ले कर. वह लगन से अपनी ड्यूटी करने लगी तो डा. फेंज ने उस के शरीर की सर्जरी शुरू कर दी. पहला औपरेशन उस के सपाट स्तनों का हुआ, जो कामयाब रहा. इस के बाद आंखों के पास नाक, गाल, ठोढी और गर्दन की सर्जरी हुई.