साजिश का तोहफा – भाग 1

महाराष्ट्र सरकार के अटार्नी जनरल नण्वीन करमाकर की पत्नी अवंतिका ने रात का खाना तैयार कर के खाने को कहा तो उन्होंने टीवी पर से नजरें हटा कर कहा, ‘‘खाना हम थोड़ा देर से खाएंगे. अभी कुछ लोग आने वाले हैं.’’

‘‘कौन?’’ अवंतिका ने पूछा.

‘‘वही स्वाति और मनोज, जिन की इसी दिवाली पर तुम ने शादी कराई थी.’’

‘‘मैं किसी की शादी कराने वाली कौन होती हूं.’’ अवंतिका ने कहा, ‘‘मैं ने तो सिर्फ उन का परिचय कराया था, बाकी के सारे काम तो उन्होंने खुद किए थे. कुछ भी हो, दोनों हैं बहुत अच्छे.’’

‘‘अगर तुम कह रही हो तो अच्छे ही होंगे.’’ नवीन करमाकर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यह सुन कर दुख होगा कि मनोज जैसे ही हनीमून से लौटा, उसे नौकरी से निकाल दिया गया. सोचो, उस के साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ. शायद इसी बारे में वह हम से मिलने आ रहा है?’’

‘‘शायद वे लोग आ भी गए.’’ अवंतिका ने कहा.

इतना कह कर अवंतिका बाहर आई और कुछ पल बाद लौटी तो उस के साथ मनोज और स्वाति थे. स्वाति छरहरे बदन की काफी सुंदर युवती थी तो मनोज भी उसी की तरह लंबे कद का मजबूत कदकाठी वाला युवक था. उस की काली आंखों से ईमानदारी साफ झलक रही थी. यह एक ऐसा जोड़ा था, जिसे देख कर कोई भी आकर्षित हो सकता था. लेकिन उस समय दोनों के चेहरों पर परेशानी साफ झलक रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद मनोज ने कहा, ‘‘आप तो अटार्नी जनरल हैं. मैं आप के पास इसलिए आया हूं कि आप मुझे पुलिस के हाथों पकड़वा दें.’’

मेहमान की इस इच्छा पर नवीन करमाकर ने हैरानी से कहा, ‘‘इस की भी कोई वजह होगी. बेहतर होगा कि पहले आप वजह बताएं. उस के बाद जो उचित होगा, वह किया जाएगा.’’

‘‘मेरा पूरा नाम मनोज सोलकर है,’’ मनोज ने कहा, ‘‘कोलाबा में जो सोलकर इंस्टीटयूट है, उसे तो आप जानते ही हैं, क्योंकि आप ने वहां पढ़ाई की थी.’’

मनोज के इतना कहते ही नवीन करमाकर को सोलकर इंस्टीटियूट याद आ गया. कोलाबा के उस वैभवशाली शिक्षा संस्थान और रिसर्च इंस्टीटयूट को सोमनाथ सोलकर ने सन 1970 में बनवाया था. वह खुद भी एक आविष्कारक थे. उन्हें नए नए आविष्कार करने में काफी दिलचस्पी रहती थी. उन्होंने काफी आविष्कार किए भी थे. इस संस्था की स्थापना उन्होंने विज्ञान और उद्योग के विकास के काम के लिए की थी.

‘‘मैं सोमनाथ सोलकर का पोता हूं.’’ मनोज सोलकर ने कहा तो नवीन करमाकर चौंके. वह कुछ कहते, उस के पहले ही मनोज ने कहा ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से वह मेरे बारे में कुछ नहीं जानते. क्योंकि काफी समय पहले मेरे मातापिता से उन का झगड़ा हो गया था तो उन्होंने संबंध खत्म कर लिए थे.

मैं 4 साल का था, तभी प्लेन क्रैश में मेरे पिता की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद मेरे दादाजी का व्यवहार मेरे और मेरी मां के प्रति और ज्यादा कठोर हो गया था. उन्होंने हम दोनों से कभी कोई संबंध नहीं रखा. मेरी मां ने नौकरी कर के मुझे पढ़ाया लिखाया. मां के प्रयास से ही किसी तरह मैं ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया तो था कि तुम्हारी मां को शहरी जीवन से घबराहट होने लगी थी, इसलिए कई सालों पहले वह देहाती इलाके में रहने चली गई थीं.’’ अवंतिका ने कहा.

‘‘जी हां, उन्होंने लोनावाला में अपने लिए एक मकान खरीद लिया था क्योंकि वह उन का पैतृक गांव था.’’ मनोज ने कहा, ‘‘तब तक मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. उस के बाद मैं ने एक स्कूल में नौकरी कर ली थी. मुझे पढ़ने का शौक था. फिर बच्चों को पढ़ाने के लिए भी पढ़ना पड़ता था, इसलिए मैं किताबें लेने के लिए सोलकर इंस्टीटयूट की लाइब्रेरी जाता रहता था. पिछले साल दिसंबर में मैं लाइब्रेरी से लौट रहा था तो मेरी मुलाकात इंस्टीटयूट के डायरेक्टर रमेश गायकवाड़ से हो गई.’’

‘‘एक तरह से रमेश गायकवाड़ ही इंस्टीटयूट के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. इंस्टीटयूट का सारा काम वही देखते हैं. उन्होंने कई बार मुझे आते जाते देखा था. उन्हें मेरे बारे में काफी कुछ पता था. वह मेरा नाम भी जानते थे. उस दिन मिलने पर उन्होंने मुझ से पूछा, ‘मुझे पता चला है कि तुम इस इंस्टीट्यूट के संस्थापक सोमनाथ सोलकर के पोते हो?’

‘‘जी मैं उन का पोता हूं.’’

‘‘तब तो आप को हमारे साथ काम करना चाहिए. सोलकर परिवार का सदस्य होने के नाते तुम्हारी जगह यहां है.’’

‘‘उस दिन हम दोनों के बीच काफी लंबी बातचीत हुई. मैं ने हामी भर दी कि स्कूल का कौंट्रैक्ट खत्म होने के बाद मैं यहां आ जाऊंगा. मैं बहुत खुश था, क्योंकि स्कूल में पढ़ाने का मुझे बहुत ज्यादा शौक नहीं था. इंस्टीटयूट के स्टाफ में शामिल के लिए मैं लालायित रहता था.’’

‘‘तो तुम्हें स्टाफ में शामिल कर लिया गया था?’’ नवीन करमाकर ने पूछा.

‘‘नहीं, रमेश गायकवाड़ ने मुझे अस्थाई नौकरी पर रखा था. उसी बीच मैं ने और स्वाति ने शादी का निर्णय लिया. मैं ने गायकवाड़ को बताया कि मैं शादी कर रहा हूं तो उस ने खुशी प्रकट करते हुए मुझे मुबारकबाद दी और हनीमून के लिए एक सप्ताह की छुट्टी भी दे दी. लेकिन हनीमून से लौट कर जब मैं इंस्टीट्यूट पहुंचा तो मुझे चोर कह कर नौकरी से निकाल दिया गया.’’

इतना कह कर मनोज ने एक लंबी सांस ली. इस के बाद कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘हुआ यह कि जब मैं उसे अपनी शादी के बारे में बताने गया था तो उस ने अपने औफिस में मौजूद तिजोरी खोल कर उस में से 10 हजार रुपए निकाल कर बड़ी शान से कहा था, ‘हमारे यहां हर कर्मचारी को शादी के समय कुछ रकम तोहफे में देने की परंपरा है.’

‘‘रकम थमाते समय जैसे उसे कुछ याद आया हो इस तरह घड़ी देखते हुए उस ने कहा, ‘मुझे जरा कस्टोडियन से बात करनी है. मैं बात कर के अभी आया.

‘‘अब कह रहा है कि जो रकम जो उस ने मुझे उपहार में दी थी, वह मैं ने चोरी की थी. उस का कहना है कि जब वह कस्टोडियन से मिलने चला गया था तो मैं ने तिजोरी से वह रकम चुरा ली थी, क्योंकि भूल से वह तिजोरी खुली छोड़ गया था.’

‘‘आज उस ने मुझ से कहा कि मैं सोलकर परिवार का सदस्य हूं, इसलिए वह मेरे खिलाफ कानूनी काररवाई नहीं करना चाहता, लेकिन बदले में मुझे यह शहर छोड़ कर जाना होगा. क्योंकि अगर कभी बात खुल गई तो इस से मेरी बड़ी बदनामी होगी.’’

साजिश का तोहफा – भाग 2

कहते कहते गुस्से की वजह से मनोज की आवाज थोड़ी ऊंची हो गई थी. उस ने आगे कहा, ‘‘लेकिन मैं अपना भविष्य बरबाद नहीं करना चाहता. चोरी का आरोप लगने के बाद मुझे कोई बढि़या नौकरी मिल नहीं पाएगी. फिर मैं खुद भी अपनी नजरों में गिरा रहूंगा. इस के अलावा वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता है. इसलिए मैं यह साबित करना चाहता हूं कि मुझ पर चोरी का यह जो आरोप लगा है, वह झूठा है.’’

इतना कह कर जैसे ही मनोज चुप हुआ, स्वाति बोली, ‘‘मनोज ने अभी तक इस घटना के बारे में अपनी मां को भी कुछ नहीं बताया है. फिर इतनी शर्मनाक बात बताई भी कैसे जा सकती है.’’

‘‘तुम बता सकते हो कि रमेश ने तुम्हारे साथ ऐसा क्यों किया?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मैं ने उस से पूछा तो था कि वह ऐसा क्यों हर रहा है? मैं चिल्लाया भी था कि अगर मैं चोर हूं तो वह पुलिस को बुलाए और रिपोर्ट लिखा कर मुझे जेल भिजवा दे. लेकिन उस ने जवाब देने के बजाय मुझे औफिस से निकाल दिया. वहां से आने के बाद मैं ने अपने एकाउंट से 10 हजार रुपए निकलवाए और एक आदमी के हाथों उस के पास भिजवा दिए. मैं इस मामले को किसी किनारे लगते देखना चाहता हूं, इसीलिए आप से कह रहा हूं कि आप मुझे गिरफ्तार करवा दीजिए. क्योंकि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे क्या करना चाहिए.’’

‘‘अभी तो अवंतिका के हाथ की बनी मिठाई खा कर कौफी पियो. कल रमेश गायकवाड़ से मिलते हैं. उस के बाद सोचते हैं कि इस मामले में हमें क्या करना चाहिए.’’ नवीन करमाकर ने कहा.

अगले दिन नवीन मनोज के साथ रमेश से मिलने सोलकर इंस्टीटयूट पहुंचे. नवीन ने अपने तौर पर फोन कर के रमेश से मुलाकात का समय ले लिया था. लेकिन जब दोनों रमेश के औफिस में दाखिल होने लगे तो गेटकीपर ने मनोज को रोक लिया, ‘‘डायरेक्टर साहब ने तुम्हें अंदर न जाने देने का आदेश दिया है. इसलिए तुम अंदर नहीं जा सकते.’’

अपने इस अपमान से मनोज का चेहरा गुस्से से सुर्ख पड़ गया, लेकिन वह कुछ बोला नहीं. वह वहीं बाहर ही बैठ गया. नवीन अंदर चले गए. रमेश ने बड़े ठंडे अंदाज से नवीन का स्वागत किया. उस की बगल में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पक्की उम्र का आदमी बैठा था. रमेश ने नवीन से उस का परिचय कराया.

उस आदमी का नाम शशांक ठाकरे था और वह इंस्टीटयूट का कानूनी सलाहकार था. परिचय करने के बाद रमेश ने कहा, ‘‘शायद आप उस नौजवान चोर के बारे में बात करना चाहते हैं, जिसे मैं ने अंदर आने से रोकवा दिया है. कृपया संक्षेप में बात करिएगा, मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘समय मेरे पास भी ज्यादा नहीं है.’’ नवीन ने कड़वे लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत ही संक्षेप में एकदम सीधी बात करूंगा. आप ने मनोज का इंस्टीट्यूट में आना तो बंद ही करा दिया है, अब उसे इस शहर से बाहर भेजना चाहते हैं, इस की कोई विशेष वजह?’’

रमेश के कोई जवाब देने से पहले ही संस्था के कानूनी सलाहकार शशांक ठाकरे ने कहा, ‘‘लगता है, आप उस के बचाव में आए हैं?’’

‘‘वही समझ लो. मैं चाहता हूं कि आप लोग उस के खिलाफ बाकायदा चोरी का मुकदमा दर्ज करवाएं और अपना आरोप सिद्ध करें. वरना मैं उस नौजवान को सलाह दूंगा कि वह आप के खिलाफ मानहानि का दावा करे.’’ नवीन ने कहा.

‘‘अगर ऐसी कोई कोशिश की जाती है तो मैं यही समझूंगा कि आप यह सब पैसे के लिए कर रहे हैं. हम इस बात को लोगों के सामने लाने की कोशिश् करेंगे. बहरहाल अब आप जा सकते हैं.’’ शशांक ठाकरे ने कहा.

बाहर आने के बाद नवीन ने कहा, ‘‘अंदर हुई बातचीत से मुझे यही लग रहा है कि किसी वजह से तुम्हारा इंस्टीट्यूट में आना जाना रमेश को परेशान कर रहा था. इसी वजह से उस ने ऐसा किया है. लेकिन वह चाहता तो तुम्हें किसी दूसरे तरीके से भी रोक सकता था.’’

‘‘लेकिन मुझे यहां आने से रोकने के लिए नौकरी देने और यह सब करने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘एक नौकर पर आरोप लगाना आसान ही नहीं होता, बल्कि थोड़ी कोशिश के बाद उसे सिद्ध भी किया जा सकता है.’’ नवीन ने कहा.

‘‘रमेश की कोशिश का संबंध तुम्हारे इस संस्था के संस्थापक के पोते होने से भी हो सकता है.’’

‘‘मुझे भी यही लगता है,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मेरे दादाजी कभी न कभी इस संस्था का दौरा करने तो आते ही होंगे. शायद रमेश नहीं चाहता कि उन से मेरी मुलाकात हो. आखिर वह मुझे उन से मिलने से रोकना क्यों चाहता था, उसे क्या डर था?’’

‘‘यह सब छोड़ो. मैं तुम्हारी ओर से मानहानि और तुम्हारे खिलाफ साजिश रचने का मुकदमा दायर करता हूं.’’ नवीन ने कहा.

मनोज ने सहमति जताई तो पूरी तैयारी कर के नवीन करमाकर ने उस की ओर से मानहानि की याचिका दायर कर दी. लेकिन उस याचिका पर जिस दिन सुनवाई होनी थी, उस दिन मनोज ने खुद आने के बजाय एक पत्र और उस के साथ चैक भेज दिया था.

फिर सुनवाई के समय नवीन ने वह पत्र और चैक अदालत को दिखाते हुए कहा, ‘‘योर औनर, मनोज सोलकर की ओर से मानहानि और उस के खिलाफ साजिश रचने की मैं ने जो याचिका दायर की थी, उस के संबंध में आज सुबह मुझे यह पत्र और चैक मिला. पत्र में उस ने लिखा है कि वह यह याचिका वापस लेना चाहता है, क्योंक वह यह शहर छोड़ कर जा रहा है. उस ने मुझे कष्ट देने के लिए क्षमा मांगते हुए मेरी फीस के तौर पर कुछ रकम का यह चैक भेजा है. पत्र पाने के बाद मैं अपने मुवक्किल के फ्लैट पर पहुंचा तो वह पत्नी के साथ सचमुच जा चुका था.’’

‘‘इस का मतलब इस याचिका को खारिज कर दिया जाए?’’ जज ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ नवीन ने कहा, ‘‘मुझे लगता है, यह पत्र दूसरे पक्ष ने उस पर कोई दबाव डाल कर लिखवाया है.’’

नवीन का इतना कहना था कि दूसरे पक्ष के वकील शशांक ठाकरे ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘योर औनर यह आरोप सरासर गलत है. अगर याचिका दायर करने वाला याचिका वापस ले रहा है तो उस पर कार्यवाही कर के याचिका को खारिज कर देना चाहिए. जब याचिका दायर करने वाला ही नहीं है तो उस पर कार्यवाही क्या होगी?’’

‘‘वकील साहब, शायद आप भूल गए हैं कि दीवानी के दावे में दोनों पक्षों की मौजूदगी जरूरी नहीं है.’’ नवीन ने कहा.

नवीन की बात काटते हुए शशांक ने कहा, ‘‘बात दरअसल यह है कि मनोज के वकील ने ही उस पर दबाव डाल कर यह दावा कराया है. शायद इस तरह वह कुछ रकम कमाना चाहते थे. लेकिन जब मनोज को लगा कि इस मामले में कुछ नहीं होने वाला तो उस ने पीछे हट जाना ही मुनासिब समझा. इस मामले में मैं मनोज सोलकर के वकील से पूरी जिरह करना चाहता हूं.’’

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल?

इनाम : इश्तेहार ने कैसे बदली गफूर की जिंदगी?

गफूर मियां की हेयर कटिंग और ड्रेसिंग की दुकान थी. दुकान खोलने के बाद सफाई आदि कर के गफूर मियां  अखबार खोल कर बैठ गए. अखबार पढ़ते पढ़ते उन की नजर एक इश्तहार पर पड़ी, जिस में लिखा था, ‘3 लाख का नकद ईनाम उस आदमी के लिए जो रुस्तम बटेरी का पता बताए या उस की गिरफ्तारी में मदद करे. बताने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा.

‘रुस्तम का कद 6 फीट 4 इंच, चौड़ा सीना, चौकोर चेहरा, भूरे बाल, कहींकहीं सफेदी, उम्र करीब 40 साल, गोरा रंग, काली आंखें, मजबूत शरीर. 2 खास निशानियों में एक यह कि उस के बाएं हाथ का अंगूठा थोड़ा कटा हुआ है और दूसरी यह कि उस का एक दांत सोने का है. वह बातें बहुत होशियारी से करता है. बेहद चालाक और खतरनाक है. दाढ़ी हलकी और मूंछें घनी हैं (अब शायद कुछ बदलाव आ गया हो).’

पुलिस की ओर से यह इश्तहार अखबार में दिया गया था. इश्तहार पढ़ कर उन की आंखों में चमक आ गई. उस इश्तहार में उन्हें 3 लाख रुपए का ईनाम दिखाई दे रहा था. उस इश्तहार को 2 दिन में वह 10-12 बार पढ़ चुके थे. सुबह से ले कर रात 8 बजे तक उन की दुकान पर सिर्फ 4 ग्राहक ही आए थे.

वैसे गफूर मियां हेयर कटिंग और ड्रेसिंग में माहिर थे. लेकिन पिछले एक साल से उन का धंधा बहुत मंदा चल रहा था. इस की वजह उन की दुकान के ठीक सामने नया खुलने वाला दिलदार खां का दिलखुश सैलून था. उस सैलून में चमकदमक के साथ नईनई तरह की मशीनें थीं. वहां आधुनिक मसाज का भी इंतजाम था, इसलिए ग्राहक मुंहमांगे पैसे तो देते ही थे, साथ ही खुश हो कर जाते थे.

गफूर मियां भी चाह रहे थे कि वह भी अपनी दुकान को आधुनिक लुक दें, लेकिन उन के सामने समस्या पैसों की थी. इसलिए वह सोच रहे थे कि किसी तरह यह 3 लाख का ईनाम उन्हें मिल जाए.

रुस्तम बटेरी 3 हफ्तों से गायब था. उस ने बड़ी बेदर्दी से अपनी खाला का कत्ल कर के जेवर उड़ाए थे. पुलिस तमाम कोशिशों के बावजूद 3 हफ्ते बाद भी उस का पता नहीं लगा पाई थी. तब खाला के बेटे ने यह 3 लाख रुपए का ईनाम रखवाया था. उम्मीद यह भी थी कि कहीं रुस्तम मुल्क से बाहर न भाग गया हो.

गफूर मियां ने एक बार फिर अखबार में छपा वह इश्तहार पढ़ा और दुआ मांगी ‘या खुदा यह ईनाम किसी तरह मुझे दिलवा दे या फिर कुछ ग्राहक ही भेज दे, जिस से आमदनी का कोई जरिया तो बने.’

रात के 8 बज रहे थे. सर्दी भी बढ़ चुकी थी. गफूर मियां ने दिलखुश सैलून देखने के लिए दरवाजा खोला कि एक आदमी लंबा कोट पहने हुए उन से टकरा गया. टकराते ही वह आदमी गुर्राया, ‘‘बेवकूफ, इस ठंड के मौसम में क्यों मेरे हाथ का घूंसा खाना चाहता है.’’

वह लंबाचौड़ा आदमी यकीनन ग्राहक था, उस का रुख दुकान की तरफ था. गफूर मियां ने फौरन उस का कंधा पकड़ कर कहा, ‘‘आइए जनाब, अंदर तशरीफ लाइए हुजूर.’’

जोर लगा कर वह उसे अंदर ले आए और कुरसी पेश करते हुए बोले, ‘‘तशरीफ रखिए जनाब.’’

उस ने गुर्रा कर पूछा, ‘‘सैलून कितने बजे तक खुला रहेगा?’’

गफूर मियां ने मीठे लहजे में कहा, ‘‘जनाब, वेसे 10 बजे तक खुला रहता है पर आप चाहेंगे तो मैं देर तक आप की खिदमत कर सकता हूं.’’

ग्राहक ने इत्मीनान से कोट उतारा और चारों तरफ एक सतर्क नजर डाली और कुरसी पर बैठ कर बोला, ‘‘काम बढि़या होना चाहिए. कटिंग करो, बाल छोटे कर दो, दाढ़ी बिलकुल साफ कर दो. मूंछें हलकी करो और बाल डार्क ब्राउन रंग दो. और हां, मूंछों का कलर हलका ब्राउन रखना.’’

गफूर मियां ने ग्राहक की ओर देखा. क्या शानदार आदमी था. हुस्न और सेहत का बेजोड़ नमूना. वह बोले, ‘‘जनाब, काम बहुत अच्छा होगा. आप इत्मीनान से बैठें.’’ और फिर मुस्तैदी से वह अपने काम में लग गए.

पहले कटिंग शुरू की. उन्होंने देखा उस आदमी के बाल बहुत रूखे और मोटे थे. उन पर बड़े भौंडे अंदाज में उन पर लाल रंग चढ़ा हुआ था.

‘‘यह औरतें भी अजीब दिमाग की होती हैं. उन की पसंद और नापसंद का कुछ ठिकाना नहीं रहता.’’ अजनबी ग्राहक ने कहा.

गफूर मियां बात शुरू होने पर बहुत खुश हुए. उन के अंदर का नाई जाग उठा. वह मीठे लहजे में बोले, ‘‘जनाब, क्या बात हो गई?’’

‘‘बात क्या होनी है. मेरी मंगेतर को पहले लाल बाल पसंद थे, लेकिन अब जिद पकड़ ली है कि बालों को डार्क ब्राउन करा लो, बहुत अच्छे लगेंगे. हुक्म दिया कि दाढ़ी भी साफ करा लो. मूंछें हलकी कर के लाइट ब्राउन करा दो. अब तुम ही बताओ कि मेरी क्या मजाल है कि उस की बात टाल दूं.’’

‘‘अच्छा, यह आप की मंगेतर की फरमाइश है.’’ गफूर मियां मुसकराते हुए बोले, ‘‘आप ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘अगले हफ्ते मेरा शादी का प्रोग्राम है.’’ वह बोला, ‘‘मैं 40 साल का हूं. कारोबार और दूसरी परेशानियों ने उम्र ज्यादा कर दी. वैसे मैं इस बात को मानता हूं कि शादी 40 साल के बाद ही करनी चाहिए. तुम बताओ, तुम्हारे कितने बच्चे हैं?’’

‘‘बच्चे नहीं जनाब, अभी तो बच्चों की मां ही नहीं आई है.’’

सुन कर वह चौंका, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी है?’’

‘‘जनाब, मैं 36 साल का हूं.’’ गफूर ने बताया.

‘‘पर लगते तो मुझ से भी बड़े हो?’’

‘‘क्या बताऊं जनाब, परेशानियों ने समय से पहले बूढ़ा बना दिया.’’

कटिंग खत्म हो चुकी थी. ग्राहक ने अंदाजा लगा लिया था कि नाई काफी तजुर्बेकार है और अपने काम में एक्सपर्ट है. उस ने बिलकुल उस के मनमाफिक कटिंग की थी. अब वह शेव की तैयारी कर रहा था.

‘‘अरे भाई, नाम क्या है तुम्हारा?’’ ग्राहक बोला.

‘‘जी, गफूर मियां.’’

‘‘अच्छा गफूर मियां, कोई अखबार हो तो दो पढ़ने को.’’

गफूर मियां ने सामने पड़ा अखबार उस की तरफ बढ़ाया. उस ने अपना बायां हाथ आगे बढ़ाया, तभी गफूर मियां को उस के हाथ का अंगूठा दिख गया जो आधा था. फिर अचानक ग्राहक ने फौरन सीधा हाथ बढ़ा कर अखबार छीन लिया. उस की नजर सब से पहले ईनाम वाले इश्तहार पर पड़ी.

‘पुलिस वालो, अपना वक्त बेकार कर रहे हो.’ वह आदमी बुदबुदाया. फिर बोला, ‘‘गफूर मियां, गोली मारो इस इश्तहार को. तुम अपना काम जल्द निपटाओ.’’

गफूर मियां ने शेविंग क्रीम लगाई और उस की दाढ़ी साफ करनी शुरू कर दी.

‘‘मियां इस धंधे में कितना कमा लेते हो?’’ उस ने पूछा.

‘‘बस जनाब, गुजारा हो जाता है.’’ गफूर ने जवाब दिया.

‘‘हा…हा…हा…’’ ग्राहक ने एक जोरदार ठहाका लगाया. तभी गफूर मियां ने आइने में उस के सोने के दांत की झलक देख ली.

यह देख कर वह खुश हो गया. सोचने लगा कि 3 लाख रुपए खुद मेरे पास चल कर आए हैं. पर उस मजबूत कदकाठी के शख्स पर काबू पाना नामुमकिन था. उस का तो एक मुक्का ही उस की गरदन तोड़ सकता था. आइने से ही 2 गहरी काली जालिम आंखें गफूर मियां को चेतावनी दे रही थीं.

वह जल्दीजल्दी अपना काम करने लगे. एक बार दिल में आया कि इसे यहां बिठा कर बाहर चला जाऊं और दरवाजा बंद कर दूं फिर पुलिस को बुला लूं. पर यह जालिम मुझे जाने दे, तब न. इस से बचना नामुमकिन है. अचानक गफूर मियां के दिल में एक खयाल आया. वह मुसकरा पड़े.

‘‘सामने वाले दिलखुश सैलून के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?’’ ग्राहक ने पूछा.

‘‘जनाब, कल का छोकरा है. हुनर हाथों में नहीं दिमाग में है. ग्राहकों को लूटता है. मसाज की आड़ में बेशर्मी होती है वहां.’’

‘‘यह काम तुम भी शुरू कर दो.’’

‘‘तौबातौबा हुजूर, मैं ऐसे कामों से दूर भागता हूं. वैसे भी पैसे की कमी है सरकार. अगर कुछ रकम मिल जाए तो दुकान की डेकोरेशन कराऊंगा और उस बदमाश दिलदार के आधे ग्राहक तो तोड़ ही लूंगा. आप को मालूम है जनाब, यह जो डाई आप के बालों में लगाऊंगा, मैं ने तैयार की है. केमिस्ट्री के एक होनहार स्टूडेंट से मेरी दोस्ती हो गई थी. उस के मशविरे पर मैं ने यह डाई बनाई है. यह स्किन को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाती और काफी दिनों तक बनी रहती है.’’ गफूर मियां ने डाई की शीशी दिखाते हुए कहा.

डाई करने से पहले बालों को सूखा करने में करीब 11 बज गए. सामने वाले दिलदार का सैलून भी बंद हो चुका था. डाई लगाने के बाद ग्राहक ने पैसे पूछे. गफूर मियां ने 75 रुपए बताए. ग्राहक ने सौ का नोट दिया. इस के बाद वह बाकी पैसे लिए बिना ही दुकान से निकल गया.

सड़क सुनसान हो चुकी थी. गफूर मियां ने जल्दीजल्दी सामान समेटा और दुकान बंद की. वह सीधे थाने जा पहुंचे. वहां उन्होंने सीनियर इंसपेक्टर अकरम अली से मिलने की गुजारिश की, जो इस केस को देख रहे थे.

गफूर ने अकरम अली से रिक्वेस्ट की कि अगर आप मेरी बात पर अमल करें तो कल आप रुस्तम बटेरी को गिरफ्तार कर सकते हैं.

अकरम अली ने उलझ कर पूछा, ‘‘कल क्या कोई चमत्कार हो जाएगा कि मैं रुस्तम को पकड़ लूंगा.’’

‘‘हुजूर, एक बार मेरी बात तसल्ली से सुन तो लीजिए. कल सुबह 9 बजे 2-3 सिपाहियों के साथ मेरे सैलून पर आ जाइए और आप का मुलजिम आप के हाथों में होगा.’’

पहले तो अकरम अली ने गफूर को टालना चाहा पर गफूर मियां की आवाज में बेहद यकीन था और आंखों में विनती थी. गफूर मियां ने फिर हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हुजूर, कल सुबह आप लोग सादे कपड़ों में मेरे सैलून के आसपास जरूर रहें.यह मेरी गुजारिश है. मैं इस बात का यकीन दिलाता हूं कि अगर आप नाउम्मीद हुए तो आप मुझे जेल में बंद कर देना.’’

‘‘गफूर मियां, तुम सारी बात खुल कर क्यों नहीं बता रहे हो? क्या आज रुस्तम तुम्हारी दुकान से बनठन कर चला गया और अब वह सवेरे तुम्हें टिप देने आएगा?’’

‘‘सर आप को यह सुबह पता चल जाएगा. मेरी इतनी दरख्वास्त मान लीजिए.’’

अकरम अली को गफूर मियां की बेचारगी पर रहम आ गया. उन्होंने उस से वादा कर लिया कि कल सुबह ठीक 9 बजे 2 सिपाहियों के साथ उस के सैलून के आसपास मौजूद रहेंगे.

रात भर गफूर मियां को ख्वाब में 3 लाख रुपए दिखते रहे. सवेरे जल्दी उठ कर तैयारी के बाद वह दुकान पहुंच गए और इंतजार शुरू कर दिया.

ठीक 9 बजे अकरम अली 2 सिपाहियों के साथ सादे कपड़ों में उन की दुकान के आसपास मंडराने लगे. इंतजार करतेकरते 10 बज गए पर रुस्तम नहीं आया. अब गफूर मियां को घबराहट होने लगी. ठीक साढ़े 10 बजे सैलून के बाहर एक टैक्सी रुकी और आंधीतूफान की तरह रात वाला ग्राहक अंदर दाखिल हुआ. उस ने काले रंग का चश्मा लगा रखा था. चेहरा भी ढका हुआ था.

अंदर पहुंचते ही वह गफूर मियां पर टूट पड़ा, ‘‘उल्लू के पट्ठे, कमीनेकुत्ते…’’ कहते हुए उस ने उस की गरदन पकड़ ली.

उसी वक्त सीनियर इंसपेक्टर अकरम अली और सिपाही अंदर आ गए. थोड़ी हाथापाई के बाद पिस्तौल के बल पर उसे काबू कर लिया गया. इस हाथापाई में उस का चश्मा और सिर से टोपी भी गिर गई.

कुछ राहगीर भी अंदर आ गए. सारे लोग सूरतेहाल देख कर हंस रहे थे क्योंकि रुस्तम बटेरी के बाल डार्क ब्राउन और मूंछें हरे रंग से रंगी हुई थीं. यूं लग रहा था जैसे कोई तोता इंसान बन गया हो.

अकरम अली ने गफूर मियां की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘मुबारक हो, तुम्हें 3 लाख रुपए का ईनाम मिल गया. तुम ने एक खतरनाक मुलजिम को पकड़वाया. आखिर यह सब कैसे हुआ?’’

‘‘जनाब मैं ने अपनी नई बनाई हुई डाई इस्तेमाल की थी. उस की खास बात यह है कि यह 6-7 घंटे तो ब्राउन रंग की रहती है फिर अपने ओरिजिनल कलर यानी गहरी हरी हो जाती है. यह कलर डाई मैं ने खासतौर से रंगीनमिजाज नौजवानों के लिए तैयार की है, जिन्हें रंगबिरंगे बाल पसंद होते हैं.

‘‘मुझे पक्का यकीन था कि रुस्तम सवेरे जब अपने हरे बाल देखेगा तो सीधा मेरी दुकान पर मेरी पिटाई करने के लिए जरूर पहुंचेगा, इसलिए सुबह तो उस को आना ही था. तभी तो मैं ने आप से गुजारिश की थी कि आप मेरी दुकान पर आएं.’’

गफूर मियां के कारनामे ने उन्हें रातोंरात इतना मशहूर कर दिया कि उन की दुकान पर खूब भीड़ रहने लगी. उन के दिन फिर गए और 3 लाख रुपए का ईनाम भी मिल गया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 5

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सच सच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यार मोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था. कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 4

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई.

मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है. मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सच सच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारी बारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 3

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेना देना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा?

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 2

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौन कौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरने मारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह निस्संतान औरतों को संतान देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गाली गलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से संतान ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी संतान समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरी शराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा, ‘‘मंजूरे, मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलग अलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का अर्थ यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 1

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी  खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था.

मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया. मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था. न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तों यारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.