फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 3

तुषार ने 4-5 दिनों में पेपर तैयार कर के दीपिका को दिए तो वह धर्मसंकट में पड़ गई कि सिग्नेचर करूं या न करूं. इसी उधेड़बुन में 3 दिन बीत गए तो घर में झाड़ूपोंछा लगाने वाली सरोजनी अचानक उस से बोली, ‘‘मेमसाहब, सुना है कि आप बैंक से लोन ले कर तुषार बाबू को देंगी?’’

‘‘तुम्हें किस ने बताया?’’ दीपिका ने हैरत से पूछा.

‘‘कल आप के घर से काम कर के जा रही थी तो बरामदे में तुषार बाबू और उस की मां के बीच हुई बात सुनी थी. तुषार बाबू कह रहे थे, ‘चिंता मत करो मां. लोन ले कर दीपिका रुपए मुझे दे देगी तो उसे घर में रहने नहीं दूंगा. उस पर तरहतरह के इल्जाम लगा कर घर से बाहर कर दूंगा.’’

सरोजनी चुप हो गई तो दीपिका को लगा उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी. पर जल्दी ही उस ने अपने आप को संभाल लिया. सरोजनी को डांटते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो.’’

सरोजनी डांट खा कर पल दो पल तो चुप रही. फिर बोली, ‘‘कुछ दिन पहले मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हुई थी तो आप ने रुपए से मेरी बहुत मदद की थी. इसीलिए मैं ने कल जो कुछ भी सुना था, आप को बता दिया.’’

वह फिर बोली, ‘‘मेमसाहब, तुषार बाबू से सावधान रहिएगा. वह अच्छे इंसान नहीं हैं. उन की नजर हमेशा अमीर लड़कियों पर रहती थी. उन्होंने आप से शादी क्यों की, मेरी समझ से बाहर की बात है. इस में भी जरूर उन का कोई न कोई मकसद होगा.’’

शक घर कर गया तो दीपिका ने अपने मौसेरे भाई सुधीर से तुषार की सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया. सुधीर पुलिस इंसपेक्टर था. सुधीर ने 10 दिन में ही तुषार की जन्मकुंडली खंगाल कर दीपिका के सामने रख दी.

पता चला कि तुषार आवारा किस्म का था. प्राइवेट जौब से वह जो कुछ कमाता था, अपने कपड़ों और शौक पर खर्च कर देता था. वह आकर्षक तो था ही, खुद को ग्रैजुएट बताता था. अमीर घर की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर उन से पैसे ऐंठना वह अच्छी तरह जानता था.

दीपिका को यह भी पता चल चुका था कि उस से 50 लाख रुपए ऐंठने का प्लान तुषार ने अपनी मां के साथ मिल कर बनाया था.  मां ऐसी लालची थी कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकती थी. उस ने तुषार को दीपिका से शादी करने की इजाजत इसलिए दी थी कि तुषार ने उसे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. विवाह के एक साल बाद तुषार ने अपना वादा पूरा भी कर दिया था.

तुषार पर दीपिका से किसी भी तरह से रुपए लेने का जुनून सवार था. रुपए के लिए वह उस के साथ कुछ भी कर सकता था.  तुषार की सच्चाई पता लगने पर दीपिका को अपना अस्तित्व समाप्त होता सा लगा. अस्तित्व बचाने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए दीपिका ने तुषार को कह दिया कि वह बैंक से किसी भी तरह का लोन नहीं लेगी.

तुषार को बहुत गुस्सा आया, पर कुछ सोच कर अपने आप को काबू में कर लिया. उस ने सिर्फ  इतना कहा, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’

कुछ दिन खामोशी से बीत गए. तुषार और उस की मां ने दीपिका से बात करनी बंद कर दी.

दीपिका को लग रहा था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. पर क्या, समझ नहीं पा रही थी.

एक दिन सास तुषार से कह रही थी, ‘‘दीपिका को कब घर से निकालोगे? उस ने तो लोन लेने से भी मना कर दिया है. फिर उसे बरदाश्त क्यों कर रहे हो?’’

‘‘उस से तो 50 लाख ले कर ही रहूंगा मां.’’ तुषार ने कहा.

‘‘पर कैसे?’’

‘‘उस का कत्ल कर के.’’

उस की मां चौंक गई, ‘‘मतलब?’’

‘‘मुझे पता था कि फरजी कागजात पर वह लोन नहीं लेगी. इसलिए 7 महीने पहले ही मैं ने योजना बना ली थी.’’

‘‘कैसी योजना?’’

‘‘दीपिका का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा करा चुका हूं. उस का प्रीमियम बराबर दे रहा हूं. उस की हत्या करा दूंगा तो रुपए मुझे मिल जाएंगे, क्योंकि नौमिनी मैं ही हूं.’’

तुषार की योजना पर मां खुश हो गई. कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘अगर पुलिस की पकड़ में आ जाओगे तो सारी की सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा मां. दीपिका की हत्या कुछ इस तरह से कराऊंगा कि वह रोड एक्सीडेंट लगेगा. पुलिस मुझे कभी नहीं पकड़ पाएगी. बाद में गौरांग का भी कत्ल करा दूंगा.’’

कुछ देर चुप रह कर तुषार ने फिर कहा, ‘‘दीपिका की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर बैंक में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी. फिर किसी अमीर लड़की से शादी करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

दीपिका ने दोनों की बात मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. मांबेटे के षडयंत्र का पता चल गया था. अब उस का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था.

इसलिए एक दिन वह बेटे गौरांग को ले कर किसी बहाने से मायके चली गई. सारा घटनाक्रम मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने तुषार से तलाक लेने की सलाह दी. दीपिका तुषार को सिर्फ तलाक दे कर नहीं छोड़ना चाहती थी. बल्कि वह उसे जेल की हवा खिलाना चाहती थी. यदि उसे यूं छोड़ देती तो वह फिर से किसी न किसी लड़की की जिंदगी बरबाद कर देता.

फिर थाने जा कर दीपिका ने तुषार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. सबूत में मोबाइल में रिकौर्ड की गई बातें पुलिस को सुना दीं. तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर तुषार को गिरफ्तार कर लिया. कुछ महीनों बाद ही दीपिका ने तुषार से तलाक ले लिया. इस के बाद पापा ने उसे फिर से शादी करने का सुझाव दिया.

शादी के नाम का कोई ठप्पा अब दीपिका नहीं लगाना चाहती थी. पापा को समझाते हुए बोली, ‘‘मुझे किस्मत से जो मिलना था, मिल चुका है. फिलहाल जिंदगी से बहुत खुश भी हूं. फिर शादी क्यों करूं. आप ही बताइए पापा कि इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? खुशी और संतुष्टि, यही न? बेटे की परवरिश करने से जो खुशी मिलेगी, वही मेरी उपलब्धि होगी. फिर मैं बारबार किस्मत आजमाने क्यों जाऊं?’’

पापा को लगा कि दीपिका सही रास्ते पर है. फिर वह चुप हो गए.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 2

5 दिन बाद दीपिका जब कुछ सामान्य हुई तो मां ने उसे समझाते हुए गर्भपात करा कर दूसरी शादी करने की सलाह दी.

कुछ सोच कर दीपिका बोली, ‘‘मम्मी, गलती मैं ने की है तो बच्चे को सजा क्यों दूं. मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं बच्चे को जन्म दूंगी. उस के बाद ही भविष्य की चिंता करूंगी.’’

दीपिका को ससुराल आए 20 दिन हो चुके थे तो अचानक तुषार आया. वह बोला, ‘‘मुझे विश्वास है कि तुम बदचलन नहीं हो. तुम्हारे पेट में मेरे भाई का ही अंश है.’’

‘‘जब तुम यह बात समझ रहे थे तो उस दिन अपना मुंह क्यों बंद कर लिया था, जब सभी मुझे बदचलन बता रहे थे?’’ दीपिका ने गुस्से में कहा.

‘‘उस दिन मैं तुम्हारे भविष्य को ले कर चिंतित हो गया था. फिर यह फैसला नहीं कर पाया था कि क्या करना चाहिए.’’ तुषार बोला.

दीपिका अपने गुस्से पर काबू करते हुए बोली, ‘‘अब क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम से शादी कर के तुम्हारा भविष्य संवारना चाहता हूं. तुम्हारे होने वाले बच्चे को अपना नाम देना चाहता हूं. इस के लिए मैं ने मम्मीपापा को राजी कर लिया है.’’

औफिस और मोहल्ले में वह बुरी तरह बदनाम हो चुकी थी. सभी उसे दुष्चरित्र समझते थे. ऐसी स्थिति में आसानी से किसी दूसरी जगह उस की शादी होने वाली नहीं थी, इसलिए आत्ममंथन के बाद वह उस से शादी के लिए तैयार हो गई.

दीपिका बच्चे की डिलीवरी के बाद शादी करना चाहती थी, लेकिन तुषार ने कहा कि वह डिलीवरी से पहले शादी कर के बच्चे को अपना नाम देना चाहता है. ऐसा ही हुआ. डिलीवरी से पहले उन दोनों की शादी हो गई.

जिस घर से दीपिका बेइज्जत हो कर निकली थी, उसी घर में पूरे सम्मान से तुषार के कारण लौट आई थी. फलस्वरूप दीपिका ने तुषार को दिल में बसा कर प्यार से नहला दिया और पलकों पर बिठा लिया. तुषार भी उस का पूरा खयाल रखता था. घर का कोई काम उसे नहीं करने देता था. काम के लिए उस ने नौकरी रख दी थी. तुषार का भरपूर प्यार पा कर दीपिका इतनी गदगद थी कि उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

डिलीवरी का समय हुआ तो बातोंबातों में तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘तुम अपने बैंक की डिटेल्स दे दो. डिलीवरी के समय अगर मेरे एकाउंट में रुपए कम पड़ जाएंगे तो तुम्हारे एकाउंट से ले लूंगा.’’

दीपिका को उस की बात अच्छी लगी. बैंक की पासबुक, डेबिट कार्ड और ब्लैंक चैक्स पर दस्तखत कर के पूरी की पूरी चैकबुक उसे दे दी.

नौरमल डिलीवरी से बेटा हुआ तो उस का नाम गौरांग रखा गया. 6 महीने बाद तुषार ने हनीमून पर शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया तो दीपिका ने मना नहीं किया.  वहां से लौट कर आई तो बहुत खुश थी. तुषार का अथाह प्यार पा कर वह विक्रम को भूल गई थी.

गौरांग एक साल का हो गया था. फिर भी दीपिका ने तुषार से डेबिट कार्ड और दस्तखत किए हुए चैक्स वापस नहीं लिए थे. इस की कभी जरूरत महसूस नहीं की थी. तुषार ने उस के अंधकारमय जीवन को रोशनी से नहला दिया था. ऐसे में भला वह उस पर अविश्वास कैसे कर सकती थी.

जरूरत तब पड़ी, जब एक दिन दीपिका के पिता को बिजनैस में कुछ नुकसान हुआ और उन्होंने उस से 3 लाख रुपए मांगे. तब दीपिका ने पिता का एकाउंट नंबर तुषार को देते हुए कहा, ‘‘तुषार, मेरे एकाउंट से पापा के एकाउंट में 3 लाख रुपए ट्रांसफर कर देना.’’

इतना सुनते ही तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे एकाउंट में रुपए हैं कहां. मुश्किल से 2-4 सौ रुपए होंगे.’’

दीपिका को झटका लगा. क्योंकि उस के एकाउंट में तो 12 लाख रुपए से अधिक थे. आखिर वे पैसे गए कहां.

उस ने तुषार से पूछा, ‘‘मेरे एकाउंट में उस समय 12 लाख रुपए से अधिक थे. इस के अलावा हर महीने 40 हजार रुपए सैलरी के भी आ रहे थे. सारे के सारे पैसे कहां खर्च हो गए?’’

तुषार झुंझलाते हुए बोला, ‘‘कुछ तुम्हारी डिलीवरी में खर्च हुए, कुछ हनीमून पर खर्च हो गए. बाकी रुपए घर की जरूरतों पर खर्च हो गए. तुम्हारे पैसों से ही तो घर चल रहा है. मेरी सैलरी और पापा की पेंशन के पैसे तो शिखा की शादी के लिए जमा हो रहे हैं.’’

तुषार का जवाब सुन कर दीपिका खामोश हो गई. पर उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस के साथ कहीं कुछ न कुछ गलत हो रहा है.  डिलीवरी के समय उसे छोटे से नर्सिंगहोम में दाखिल किया गया था. उस का बिल मात्र 30 हजार रुपए आया था. हनीमून पर भी अधिक खर्च नहीं हुआ था. जिस होटल में ठहरे थे, वह बिलकुल साधारण सा था. उन का खानापीना भी सामान्य हुआ था.

जो होना था, वह हो चुका था. उस पर बहस करती तो रिश्ते में खटास आ जाती. लिहाजा उस ने भविष्य में सावधान रहने की ठान ली.

तुषार से अपनी बैंक पास बुक, चैकबुक और डेबिट कार्ड ले कर उस ने कह दिया कि वह घर खर्च के लिए महीने में सिर्फ 10 हजार रुपए देगी. सैलरी के बाकी पैसे गौरांग के भविष्य के लिए जमा करेगी और शिखा की शादी में 2 लाख रुपए दे देगी.  दीपिका के निर्णय से तुषार को दुख हुआ, लेकिन वह उस समय कुछ बोला नहीं.

अगले दिन ही दीपिका ने बैंक से ओवरड्राफ्ट के जरिए पैसे ले कर अपने पिता को दे दिए. पर उन्हें यह नहीं बताया कि तुषार ने उस के सारे रुपए खर्च कर दिए हैं.

कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य रहा. उस के बाद अचानक तुषार ने उस से कहा, ‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘क्यों?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘बिजनैस करना चाहता हूं. इस के लिए तैयारी कर ली है, पर तुम्हारी मदद के बिना नहीं कर सकता.’’

‘‘तुम्हारी मदद हर तरह से करूंगी. बताओ, मुझे क्या करना होगा?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘तुम्हें अपने नाम से 50 लाख रुपए का लोन बैंक से लेना है. उसी रुपए से बिजनैस करूंगा. मेरा कुछ इस तरह का बिजनैस होगा कि लोन 5 साल में चुकता हो जाएगा.’’

‘‘इतने रुपए का लोन मुझे नहीं मिलेगा. अभी नौकरी लगे 5 साल ही तो हुए हैं.’’

‘‘मैं ने पता कर लिया है. होम लोन मिल जाएगा.’’

‘‘होम लोन लोगे तो बिजनैस कैसे करोगे. इस लोन में फ्लैट या कोई मकान लेना ही होगा.’’ दीपिका ने बताया.

‘‘इस की चिंता तुम मत करो. मैं ने सारी व्यवस्था कर ली है. तुम्हें सिर्फ होम लोन के पेपर्स पर दस्तखत कर बैंक में जमा करने हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, तुम करना क्या चाहते हो. ठीक से बताओ.’’

तुषार ने अपनी योजना दीपिका को बताई तो वह सकते में आ गई. दरअसल तुषार ब्रोकर के माध्यम से फरजी कागजात पर होम लोन लेना चाहता था. इस में उसे 3 महीने बाद पूरे रुपए कैश में मिल जाता. बाद में ब्रोकर अपना कमीशन लेता. दीपिका ने इस काम के लिए मना किया तो तुषार ने उसे अपनी कसम दे कर कर अंतत: मना लिया.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 1

विक्रम से शादी कर दीपिका ससुराल आई तो खुशी से झूम उठी. यहां उस का इतना भव्य  स्वागत होगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.  सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ससुराल में रस्में चलती रहीं. इस के बाद वह कमरे में आराम करने लगी.

शाम करीब 4 बजे कमरे में विक्रम आया और दीपिका से बोला, ‘‘मेरा एक दोस्त बहुत दिनों से कैंसर से जूझ रहा था. उस के घर वालों ने फोन पर अभी मुझे बताया है कि उस का देहांत हो गया है. इसलिए मुझे उस के घर जाना होगा.’’

दीपिका का ससुराल में पहला दिन था, इसलिए उस ने पति को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन विक्रम उसे यह समझा कर चला गया, ‘‘तुम चिंता मत करो, देर रात तक वापस आ जाऊंगा.’’

विक्रम के जाने के बाद उस की छोटी बहन शिखा दीपिका के पास आ गई और उस से कई घंटे तक इधरउधर की बातें करती रही. रात के 9 बजे दीपिका को खाना खिलाने के बाद शिखा उस से यह कह कर चली गई कि भाभी अब थोड़ी देर सो लीजिए. भैया आ जाएंगे तो फिर आप सो नहीं पाएंगी.

ननद शिखा के जाने के बाद दीपिका अपने सुखद भविष्य की कल्पना करतेकरते कब सो गई, उसे पता ही नहीं चला.

दीपिका अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. उस से 3 साल छोटा उस का भाई शेखर था. वह 12वीं कक्षा में पढ़ता था. पिता की कपड़े की दुकान थी. ग्रैजुएशन के बाद दीपिका ने नौकरी की तैयारी की तो 10 महीने बाद ही एक बैंक में उस की नौकरी लग गई थी.

2 साल नौकरी करने के बाद पिता ने विक्रम नाम के युवक से उस की शादी कर दी. विक्रम की 3 साल पहले ही रेलवे में नौकरी लगी थी. उस के पिता रिटायर्ड शिक्षक थे और मां हाउसवाइफ थीं.  विक्रम से 3 साल छोटा उस का भाई तुषार था, जो 10वीं तक पढ़ने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था. तुषार से 4 साल छोटी शिखा थी, जो 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

पति के जाने के कुछ देर बाद दीपिका गहरी नींद सो रही थी, तभी ननद शिखा उस के कमरे में आई. उस ने दीपिका को झकझोर कर उठाया. शिखा रो रही थी. रोतेरोते ही वह बोली, ‘‘भाभी, अनर्थ हो गया. विक्रम भैया दोस्त के घर से लौट कर आ रहे थे कि रास्ते में उन की बाइक ट्रक से टकरा गई. घटनास्थल पर उन की मृत्यु हो गई. पापा को थोड़ी देर पहले ही पुलिस से सूचना मिली है.’’

यह खबर सुनते ही दीपिका के होश उड़ गए. उस समय रात के 2 बज रहे थे. क्या से क्या हो गया था. पति की मौत का दीपिका को ऐसा गम हुआ कि वह उसी समय बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद उसे होश आया तो अपने आप को उस ने घर के लोगों से घिरा पाया. पड़ोस के लोग भी थे. सभी उस के बारे में तरहतरह की बातें कर रहे थे. कोई डायन कह रहा था, कोई अभागन तो कोई उस का पूर्वजन्म का पाप बता रहा था.  रोने के सिवाय दीपिका कर ही क्या सकती थी. कुछ घंटे पहले वह सुहागिन थी और कुछ देर में ही विधवा हो गई थी. खबर पा कर दीपिका के पिता भी वहां पहुंच गए थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने विक्रम का शव घर वालों को सौंप दिया था. तेरहवीं के बाद दीपिका मायके जाने की तैयारी कर रही थी कि अचानक सिर चकराया और वह फर्श पर गिर कर बेहोश हो गई. ससुराल वालों ने उठा कर उसे बिस्तर पर लिटाया. मेहमान भी वहां आ गए.

डाक्टर को बुलाया गया. चैकअप के बाद डाक्टर ने बताया कि दीपिका 2 महीने की प्रैग्नेंट है. पर वह बेहोश कमजोरी के कारण हुई थी.

2 सप्ताह पहले ही तो दीपिका बहू बन कर इस घर में आई थी तो 2 महीने की प्रैग्नेंट कैसे हो गई. सोच कर सभी लोग परेशान थे. दीपिका के पिता भी वहीं थे. वह सकते में आ गए.

दीपिका को होश आया तो सास दहाड़ उठी, ‘‘बता, तेरे पेट में किस का पाप है? जब तू पहले से इधरउधर मुंह मारती फिर रही थी तो मेरे बेटे से शादी क्यों की?’’

दीपिका कुछ न बोली. पर उसे याद आया कि रोका के 2 दिन बाद ही विक्रम ने उसे फोन कर के मिलने के लिए कहा था. उस ने विक्रम से मिलने के लिए मना करते हुए कहा, ‘‘मेरे खानदान की परंपरा है कि रोका के बाद लड़की अपने होने वाले दूल्हे से शादी के दिन ही मिल सकती है. मां ने आप से मिलने से मना कर रखा है.’’

विक्रम ने उस की बात नहीं मानी थी. वह हर हाल में उस से मिलने की जिद कर रहा था. तो वह उस से मिलने के लिए राजी हो गई.

शाम को छुट्टी हुई तो दीपिका ने मां को फोन कर के झूठ बोल दिया कि आज औफिस में बहुत काम है. रात के 8 बजे के बाद ही घर आ पाऊंगी. फिर वह उस से मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में चली गई. उस दिन के बाद भी उन के मिलनेजुलने का कार्यक्रम चलता रहा. विक्रम अपनी कसम दे दे कर उसे मिलने के लिए मजबूर कर देता था. वह इतना अवश्य ध्यान रखती थी कि घर वालों को यह भनक न लगे.

एक दिन विक्रम उसे बहलाफुसला कर एक होटल में ले गया. कमरे का दरवाजा बंद कर उसे बांहों में भरा तो वह उस का इरादा समझ गई. दीपिका ने शादी से पहले सीमा लांघने से मना किया लेकिन विक्रम नहीं माना. मजबूर हो कर उस ने आत्मसमर्पण कर दिया.

गलती का परिणाम अगले महीने ही आ गया. जांच करने पर पता चला कि वह प्रैग्नेंट हो गई है. विक्रम का अंश उस की कोख में आ चुका था. वह घबरा गई और उस ने विक्रम से जल्दी शादी करने की बात कही.

‘‘देखो दीपिका, सारी तैयारियां हो चुकी हैं. बैंक्वेट हाल, बैंड वाले, बग्गी आदि सब कुछ तय हो चुके हैं. एक महीना ही तो बचा है. घर वालों को सच्चाई बता दूंगा तो तुम ही बदनाम होगी. तुम चिंता मत करो. शादी के बाद मैं सब संभाल लूंगा.’’

जब सास उसे तरहतरह के ताने देने लगी तो दीपिका ने आखिर चुप्पी तोड़ दी. उस ने सभी के सामने सच्चाई बता दी. पर उस का सच किसी ने स्वीकार नहीं किया. सभी ने उस की कहानी मनगढ़ंत बताई.

आखिर अपने सिर बदचलनी का इलजाम ले कर दीपिका मातापिता के साथ मायके आ गई.  वह समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करे. भविष्य अंधकारमय लग रहा था. होने वाले बच्चे की चिंता उसे अधिक सता रही थी.

ईमानदार : क्या फल मिला अनुराग को उसकी ईमानदारी का?

राष्ट्रीय कृषक बैंक के अध्यक्ष जयगोपाल अपने केबिन में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे. आंखों के सामने से गुजरती पंक्तियों के साथ उन के चेहरे का तनाव बढ़ता जा रहा  था.

पत्र पढ़ कर उन्होंने एक ओर रखा और इंटरकौम का बटन दबा कर अपनी सैके्रेटरी नीलिमा से कहा, ‘‘नीलिमा, हमारी श्यामगंज शाखा में कोई अनुराग ठाकुर है. रिकौर्ड देख कर उस की पोजीशन पता करो और बताओ मुझे, जल्दी.’’

थोड़ी देर बाद नीलिमा हाथ में एक फाइल थामे राजगोपाल साहब के सामने खड़ी थी. वह फाइल देख कर बताने लगी, ‘‘सर, अनुराग ठाकुर वैसे तो कैशियर हैं, लेकिन फिलहाल एक्टिंग मैनेजर का काम देख रहे हैं. दरअसल, पूर्व मैनेजर राजेश की मौत के बाद वहां किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है. इसलिए अस्थाई तौर पर मैनेजर का काम उन्हीं को सौंप दिया गया था. वैसे भी वहां कोई ज्यादा काम नहीं है.’’

जयगोपाल साहब ने मेज पर रखा लेटर नीलिमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पढ़ो इसे, है तो गुमनाम, पर श्यामगंज से ही किसी ने भेजा है. हम इस लेटर को इग्नोर नहीं कर सकते.’’

नीलिमा फाइल साहब की मेज पर रख कर पत्र पढ़ने लगी. पत्र अध्यक्ष राजगोपाल के ही नाम आया था. लिखा था, ‘महोदय, हम खेतीबाड़ी कर के अपने खूनपसीने की कमाई आप के बैंक में जमा करते हैं. सुनने में आया है कि बैंक दिवालिया होने वाला है. वैसे भी यहां जो कुछ हो रहा है, उस के बाद यह तो होना ही था. पता चला है कि यहां के कैशियर अनुराग ठाकुर ने पिछले कुछ महीनों में लाखों का गबन किया है और वह गबन की रकम को शहर से बाहर ले जाने वाला है. जब तक इस तरफ आप का ध्यान जाएगा तब तक बैंक का दीवाला निकल चुका होगा.’

पत्र पढ़ कर नीलिमा ने कहा, ‘‘सर, यकीन नहीं होता. लेकिन…’’

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, एक लेटर बना कर लाओ, मैं आदेश जारी कर देता हूं. कल ही एक औडिटर को श्यामगंज रवाना करना है. छानबीन के बाद वह सीधे मुझे रिपोर्ट करेगा.’’

नीलिमा चली गई. उस ने बौस के आदेश का पालन किया. लेटर तैयार होते ही आदेश जारी हो गया. अगले दिन एक औडिटर को श्यामगंज भेज दिया गया. क्योंकि मामला अमानत में खयानत का था.

अचानक औडिटर को आया देख अनुराग ठाकुर को आश्चर्य हुआ. थोड़ा गुस्सा भी आया. उन्होंने तल्खी से कहा, ‘‘मेरे रिकौर्ड और लेजर की जांच करनी है? आखिर क्यों? महीने के बीच में ऐसा होता है क्या? न कोई नोटिफिकेशन, न कोई सूचना. यह कानून के खिलाफ है. ऐसी कौन सी आफत आ गई? अधिकारियों को कोई शक है तो मुझे हटा दें, तबादला कर दें.’’

औडिटर ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मिस्टर अनुराग, परेशानी की कोई बात नहीं है. समयसमय पर हम ऐसा करते रहते हैं. पहले भी कई शाखाओं में ऐसा हुआ है. वैसे आप चाहे तो अध्यक्ष का आदेश देख सकते हैं. यह रुटीन की काररवाई है. मुझे ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे लगेंगे.’’

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं.’’ अनुराग ठाकुर बोले, ‘‘लेकिन लोगों को पता लगेगा तो मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इस कस्बे की छोटी सी बैंक है ये, मुझे सब लोग जानते हैं. बात फैलते देर नहीं लगेगी. लोग सोचेंगे, जरूर मैं ने कोई हेराफेरी की होगी.’’

‘‘नहीं, किसी को पता नहीं चलेगा.’’ औडिटर ने शांत भाव से कहा, ‘‘बस आप किसी को मत बताना. मैं सब कुछ चुपचाप निपटा दूंगा.’’

औडिटर की विनम्रता देख कर अनुराग ठाकुर ने मूक स्वीकृति दे दी. औडिटर 1 घंटे में अपना काम निपटा कर लौट गया.

अगले दिन उस ने अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष राजगोपाल के सामने रख दी. रिपोर्ट के हिसाब से सब कुछ ठीक था. कहीं भी एक पैसे की हेराफेरी नहीं पाई गई थी. रिपोर्ट देख कर राजगोपाल बोले, ‘‘एक गुमनाम पत्र को हमें इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए थी.’’

बात वहीं खत्म हो गई.

सब कुछ ठीक चल रहा था. एक महीना ठीक से गुजर गया. महीना भर बाद बैंक अध्यक्ष राजगोपाल को फिर एक पत्र मिला. इस बार पत्र किसी दूसरे आदमी ने और दूसरी जगह से लिखा था. इस शिकायती पत्र में भी अनुराग ठाकुर को निशाना बना कर हेराफेरी की बात दोहराई गई थी. पत्र लिखने वाले ने दावा किया था कि बैंक के खातों की जांच ठीक से नहीं की गई थी.

कैशियर ने औडिटर को या तो बेवकूफ बना दिया था या फिर कुछ दे दिला कर संतुष्ट कर दिया था. आप को इस बात का अहसास तब होगा जब तीर कमान से निकल जाएगा. हो सकता है, आप इस अजनबी के खत पर ध्यान न दें. पर एक बार सोचें जरूर कि क्या इस मामले की दोबारा इंक्वायरी करानी चाहिए.

पत्र पढ़ कर राजगोपाल सोच में पड़ गए. वह दोबारा इंक्वायरी के पक्ष में नहीं थे. लेकिन उन के सामने पड़ा पत्र उन्हें बारबार सोचने को मजबूर कर रहा था. उन के मन में आया भी कि श्यामगंज ब्रांच में इंक्वायरी कर के आए औडिटर से पूछताछ करें. लेकिन उन के जहन में सवाल उठा कि उस ने कुछ गलत किया होगा तो वह सच क्यों बोले? यह भी संभव है कि अनुराग ठाकुर चतुर चालाक रहा हो और उस ने औडिटर को हिसाबकिताब में कुछ इस तरह उलझाया हो कि वह उस की चाल को पकड़ ही न पाया हो.

किसी ब्रांच में अगर कोई गड़बड़ी होती, वह भी आगाह करने के बाद तो इस की जिम्मेदारी राजगोपाल की ही बनती थी. अपनी इमेज बचाए रखने और संभावित गड़बड़ी से बचने के लिए दोबारा इंक्वायरी कराने में कोई हर्ज नहीं था. वैसे भी यह इंटरनल इंक्वायरी थी. इसलिए सोचविचार कर उन्होंने इस बार इस मामले को पूरी तरह खत्म करने के लिए 3 जिम्मेदार औडिटरों की टीम से जांच कराने का फैसला किया.

अध्यक्ष राजगोपाल ने उसी वक्त अपनी सेक्रैटरी नीलिमा को बुला कर आदेश का लेटर तैयार कराया और उस पर हस्ताक्षर कर दिए. अगले ही दिन 3 चुनिंदा औडिटरों की टीम श्यामगंज के लिए रवाना हो गई. औडिटरों ने श्यामगंज ब्रांच में पहुंच कर अनुराग ठाकुर को अपने आने का मकसद बताया तो वह नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर मामला क्या है? क्यों मेरी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है?’’

‘‘आप नाराज न हों मिस्टर अनुराग, कोई खास बात नहीं है.’’ एक औडिटर ने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘‘इस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हम अपना काम कर के चुपचाप चले जाएंगे.’’

अनुराग को गुस्सा तो आ रहा था, लेकिन ऊपरी आदेश था इसलिए चुप होना पड़ा. एक औडिटर अनुराग के साथ बैठ गया और बाकी 2 अपने काम में जुट गए. इस बार एकएक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया गया. इस काम में पूरे 7 घंटे लगे. अनुराग चुपचाप देखने के अलावा कुछ न कर सके.

औडिटरों की टीम अपना काम कर के हेड औफिस लौट गई. इस टीम को हिसाबकिताब में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी.

एक सप्ताह बाद राष्ट्रीय कृषक बैंक अध्यक्ष राजगोपाल अपने केबिन में बैठे थे. तभी नीलिमा ने आ कर कहा, ‘‘सर, श्यामगंज ब्रांच से मिस्टर अनुराग ठाकुर आए हैं और आप से मिलना चाहते हैं.’’ राजगोपाल ने नीलिमा से कहा कि उन्हें तुरंत अंदर भेज दें.

अनुराग अंदर आए तो अध्यक्ष राजगोपाल ने अपनी आदत के विपरीत उठ कर उन का स्वागत किया, उन से गर्मजोशी से हाथ मिलाया. लेकिन इस के बावजूद अनुराग ने खुशी का कोई इजहार नहीं किया. उन के चेहरे पर नागवारी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

औपचारिकता के बाद अनुराग ने एक लेटर राजगोपाल की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं अपने पद से इस्तीफा देना चाहता हूं. ये रहा मेरा रिजाइन लेटर.’’

राजगोपाल चौंके. फिर उन्हें बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों, इस्तीफा देने की क्या जरूरत पड़ गई. यह फैसला किस लिए?’’

‘‘सर, पिछले डेढ़ महीने से मुझ पर शक किया जा रहा है. मेरी ईमानदारी पर अंगुलियां उठ रही हैं. मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकता. मुझे इस से दिमागी तौर पर बहुत तकलीफ पहुंची है. मेरी साख खत्म हो गई है. बीवीबच्चे तक शक की नजरों से देखने लगे हैं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं.’’ अध्यक्ष राजगोपाल की बातों से गलती का अहसास साफ झलक रहा था. वह कुछ देर तक चुप बैठे गहराई से सोचते रहे. फिर अनुराग के चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोले, ‘‘हेड औफिस से जो गलती हुई है, उसे हम सुधार देते हैं. श्यामगंज ब्रांच में मैनेजर का पद अभी खाली पड़ा है. आप उसे स्थाई तौर पर संभाल लीजिए. आप की साख खुद ब खुद बन जाएगी. पद भी बढ़ेगा और वेतन भी. ईमानदार आदमी यूं ही नहीं मिलते. हम आप का इस्तीफा मंजूर नहीं कर सकते मिस्टर अनुराग. फाड़ कर फेंक दीजिए इसे.’’

अनुराग ने मैनेजर के हाथ से इस्तीफा लेते हुए हैरानी से पूछा, ‘‘क्या आप इस मामले में वाकई संजीदा हैं सर?’’

‘‘बिलकुल, मैं अभी सारी काररवाई पूरी करा देता हूं.’’ कह कर राजगोपाल ने इंटरकाम का बटन दबा कर अपनी सैके्रटरी नीलिमा को बुलाया.

मैनेजर बनने की खुशखबरी के साथ अनुराग ठाकुर श्यामगंज लौट आए. घर लौट कर उन्होंने यह खुशखबरी अपनी पत्नी को सुनाई. फिर सोफे पर पसरते हुए बोले, ‘‘पिछले 20 सालों से अपनी ईमानदारी को अपने ही कंधों पर उठाए घूम रहा था. कोई जानता ही नहीं था कि मैं ईमानदार हूं. क्या फायदा ऐसी ईमानदारी का? लेकिन मेरे बारे में अब सब जान गए कि मैं कितना ईमानदार हूं. अध्यक्ष तक को पता लग गया.’’

मिसेज अनुराग का चेहरा खुशी से दमक रहा था. अनुराग पत्नी का हाथ थाम कर बोले, ‘‘कमाल का दिमाग है तुम्हारा. आखिर तुम्हारे लेटर वाले आइडिए ने अपना कमाल दिखा ही दिया.’’

‘‘कमाल ही नहीं दिखाया, आप को मैनेजर भी बनवा दिया. ईमानदार मैनेजर.’’ कह कर मिसेज अनुराग खिलखिला कर हंस पड़ीं.

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 3

फखरू चाचा की बातें सुन कर अमीर का दिल तड़प उठा. वह थके कदमों से अपने बेडरूम मे चला गया. वैसे तो शहरीना को घर छोड़े हुए एक महीने से ज्यादा हो गया था, मगर अमीर को लगता था कि उस का वजूद यहीं है. उस की चूडि़यों की खनक उसे अकसर सोते से जगा देती थी. मगर शहरीना वहां कहां होती थी. वह तड़प कर फिर सोने की कोशिश करने लगता था.

फखरू चाचा की बातों ने जब से उस की सोचों में दरार डाल दी थी, तब से वह शहरीना की याद में खोया रहने लगा था. अब वह औफिस आते जाते खोजती नजरों से भीड़ में उसे तलाशता हुआ उस की एक झलक देखने को बेकरार रहता था.

‘उफ, कहां चली गई हो शेरी, तुम क्यों मुझे तनहा छोड़ गई?’ अमीर ने कार की स्टीयरिंग पर हाथ मारते हुए बेबसी से सोचा. तभी अचानक उस की नजर सड़क किनारे खड़ी शहरीना पर पड़ी. वह गुलाबी कमीज, दुपट्टा और बाटल ग्रीन सलवार में किसी सवारी का इंतजार कर रही थी. कंधे पर लटका बैग और हाथ में पकड़ी फाइल उस के नौकरीपेशा होने की गवाह थी. अमीर तेजी से कार से उतर कर उस के पास जा पहुंचा, ‘‘शेरी…शेरी.’’

‘‘आप…आप यहां?’’ शहरीना उसे अपने सामने देख कर हैरत से सिर्फ इतना ही कह सकी.

‘‘हां मैं. चलो शेरी, मैं तुम्हें लेने आया हूं.’’ अमीर ने हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मुझे आप के साथ नहीं जाना. मुझे आप…’’ शहरीना उस का हाथ झटक कर आगे बढ़ गई.

‘‘मोहतरमा, मैं तुम्हारा शौहर हूं और जबरदस्ती तुम्हें अपने साथ ले जा सकता हूं.’’ कह कर अमीर ने उस की कलाई पकड़ कर कार का दरवाजा खोला और उसे अंदर धकेल दिया. इस के बाद खुद दूसरी तरफ से कार में बैठ कर गाड़ी स्टार्ट कर दी.

थोड़ी ही देर में अमीर अपने घर पहुंच गया और शहरीना का हाथ पकड़ कर घसीटते हुए बेडरूम में ले आया.

शहरीना ने तड़प कर कहा, ‘‘छोड़ो मेरा हाथ, मुझे आप की कोई बात नहीं सुननी.’’

‘‘मगर मुझे अपनी बात तुम्हें सुनानी है. देखो, आई एम वेरी सौरी.’’ अमीर ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं अपने उस दिन के रवैये से बहुत दुखी हूं.’’

‘‘क्या आप के इस तरह सौरी कह देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा. आप ने तो मुझे अपनी ही नजरों में गिरा दिया है. आप ने मेरी मोहब्बत की तौहीन की है.’’ शहरीना बुरी तरह सिसक उठी.

‘‘मैं मानता हूं कि मुझ से गलती हुई है. लेकिन मेरे इस रवैये के पीछे जो वजह थी, तुम्हें उस का पता नहीं. मैं कभी औरत जात की बहुत इज्जत करता था. मैं ने एक सफेदपोश घराने में आंख खोली थी, जहां खुशहाली नहीं थी. हमारी छोटी सी उम्र में ही पहले अम्मी का, फिर अब्बू का इंतकाल हो गया. तब मेरे बाबा जान ने हम लोगों की परवरिश की. हमें किसी चीज की कमी नहीं होने दी.

‘‘जब उन की मौत हुई तो मैं 19 का और समीर भाई 21 साल के थे. हम लोगों का न तो कोई ददियाल था और न ही ननिहाल. अत: पेट भरने के लिए समीर भाई ने एक प्राइवेट फर्म में नौकरी कर ली. तब तक वे गे्रजुएशन कर चुके थे. वे नौकरी के साथसाथ पढ़ाई भी कर रहे थे, ताकि अच्छी नौकरी मिल सके.

‘‘जल्दी ही उन्होंने एमबीए कर लिया और उसी कंपनी में जूनियर एग्जीक्यूटिव के पद पर जा पहुंचे. अब तक हम लोग सैटल हो चुके थे. तब पड़ोस की आंटी रहमान के कहने पर समीर भाई शादी के लिए तैयार हो गए. मैं ने सोचा था कि समीर भाई की शादी के बाद घर में जो एक औरत की कमी है, वह दूर हो जाएगी. लेकिन अशमल भाभी शादी के बाद कुछ ही दिनों तक सामान्य रहीं. फिर तो आए दिन समीर भाई और अशमल भाभी में चखचख होने लगी.

‘‘भाभी दौलत को ज्यादा अहमियत देती थीं. भाई को उन की गरीबी के ताने देती थीं. जब वह अपनी सहेलियों की दौलत के किस्से व्यंग्य के साथ सुनाती थीं तो समीर भाई की गैरत पर सीधे तीर की तरह लगता था. वह भाई को रिश्वत लेने के लिए भी उकसाती थीं, मगर उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया. जल्दी ही वह गर्भवती हो गई. फिर भाभी ने सनी की पैदाइश के बाद भाई से तलाक देने को कहा, क्योंकि उन्होंने एक दौलतमंद आसामी को पसंद कर लिया था.

भाभी के इस रवैये से हम दोनों भाई बहुत हर्ट हुए. लेकिन उन की धमकियों और बदनामी के डर से भाई ने उन्हें तलाक दे दिया. वह मासूम सनी को हमारी गोद में डाल कर चली गईं. समीर भाई पत्थर की तरह हो गए. सनी की देखभाल पहले भी फखरू चाचा की बाजी करती थीं, बाद में भी वही करने लगीं. फिर समीर भाई का मन यहां नहीं लगा. वह सनी को हम लोगों के पास छोड़ कर कनाडा चले गए. ये तमाम हालात मेरे अंदर के मर्द को औरत से नफरत करने को मजबूर करते चले गए.’’

अमीर लगातार बोलता जा रहा था. उस की बातें सुन कर शहरीना भी बिखर गई थी. अमीर ने आगे कहा, ‘‘बस शेरी. फिर मैं ने तय कर लिया कि मुझे खूब दौलत कमानी है. मैं ने अपनी पढ़ाई पूरी कर के एक कंपनी में नौकरी कर ली और उस कंपनी के कुछ शेयर भी खरीद लिए. मैं ने अपना मकान बेच कर एक फ्लैट खरीदा और बाकी पैसे से शेयर खरीदे.

फिर एक दिन ऐसा आया कि मैं उस कंपनी के शेयर होल्डरों में सब से ऊपर पहुंच गया और कंपनी मेरे हाथ में आ गई. वक्त गुजरता रहा. फखरू चाचा की बीवी की मौत के बाद सनी को परवरिश का मसला सामने आया तो मैं ने तुम से शादी कर ली. लेकिन अशमल भाभी जैसी औरत को मैं देख चुका था, इसलिए…’’

‘‘इसलिए आप मेरा भी खुदगर्ज और लालची औरतों में शुमार करते रहे.’’ शहरीना की रुआंसी आवाज ने अमीर को तड़पा दिया.

‘‘आई एम सौरी. मैं कह रहा हूं ना कि मैं गलती पर था. लेकिन अगर तुम मेरी जगह होतीं तो तुम भी यही करतीं.’’ अमीर ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘शेरी, फखरू चाचा कह रहे थे कि तुम मुझ से बहुत मोहब्बत करती हो. प्लीज, उस मोहब्बत की खातिर ही मुझे माफ कर दो. मेरा वादा है कि तुम जो भी मांगोगी, वह दूंगा.’’

शहरीना ने तड़प कर कहा, ‘‘मुझे आप से पहले भी कुछ नहीं चाहिए था. सिर्फ एक मुहब्बत की खातिर ही तो…’’ शहरीना की आवाज भर्रा गई.

‘‘सिर्फ एक मोहब्बत?’’ अमीर ने उस की तरफ देखा और पूछा. मगर फिर शहरीना की हैरान, मासूम, हिरनी जैसी आंखों और खामोश लबों को देखते हुए शरारती अंदाज में बोला, ‘‘मैं तुम्हें इतनी मोहब्बत दूंगा कि तुम्हारा दामन तंग पड़ जाएगा.’’ फिर वह उस के करीब जा कर उस पर झुकते हुए बोला, ‘‘लेकिन बदले में तुम्हें एक काम करना होगा.’’

‘‘क्या?’’ इस मोहब्बत पर शहरीना ने धड़कते लहजे में पूछा.

‘‘तुम्हें हमारी फेमिली को पूरा करना होगा. बोलो, मंजूर है.’’ अमीर उस के कान के करीब फुसफुसाते हुए बोला.

यह सुन कर शर्म से सुर्ख चेहरा लिए शहरीना ने अमीर के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. गलतफहमी के बादल छंट गए थे और रास्ते रोशन हो गए थे. अब सब कुछ साफसाफ नजर आ रहा था बहुत दूर तक.

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 2

जिस वक्त अमीर कमरे में दाखिल हुआ, शहरीना सोफे से पीठ टिकाए खुद में मुसकरा रही थी. वह अपने खयालों में इतनी खोई थी कि अमीर के आने का पता भी नहीं चला. जब अमीर उस के सामने आ कर खड़ा हो गया तो वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘अमीर… आप… आप कब आए?’’

शहरीना के चेहरे पर शर्म की एक लहर आ कर गुजर गई.

‘‘उस वक्त जब तुम किसी खूबसूरत ख्याल में खोई हुई थीं.’’ अमीर ने कोट उतार कर तीखे अंदाज में कहा, ‘‘क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम किस ख्याल में डूबी हुई थीं कि तुम्हें न तो अपनी खबर थी और न मेरे आने की.’’

‘‘वह अमीर, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी हुए एक साल हो गया है और मैं चाहती हूं कि…’’ शहरीना झिझक कर रुक गई, फिर कड़ी हिम्मत कर के बोली, ‘‘मेरा मतलब है कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं और …और चाहती हूं कि… कि… हमें अपनी फेमिली पूरी कर लेनी चाहिए.’’ शर्मिंदगी ओढ़ कर आखिर शहरीना ने अपनी बात कह ही दी.

पहले तो अमीर की कुछ समझ में ही नहीं आया, लेकिन दूसरे ही पल वह उस की बात का मतलब समझ गया. उस के माथे पर लकीरें उभर आईं. वह तीखे लहजे में बोला, ‘‘हमारी फेमिली आफ्टर आल पूरी है.’’

‘‘नहीं अमीर, मेरा मतलब है कि हमारा अपना बच्चा…’’

‘‘आई एम सौरी शेरी. मैं इस बारे में सोच भी नहीं सकता.’’ अमीर उस के चेहरे पर नजरें जमा कर बोला.

‘‘लेकिन अमीर, क्यों… मैं…’’ शहरीना के स्वर में हल्का सा दर्द था.

‘‘वह इसलिए कि मुझ से सनी का दुख बरदाश्त नहीं होगा.’’ अपने सीने पर रखे शहरीना के हाथों को झटक कर अमीर उठ खड़ा हुआ.

‘‘जी… मैं…’’ शहरीना उस की बात को ले कर सोच में पड़ गई.

‘‘शटअप… और आगे इस मसले पर मुझ से बात मत करना.’’ कहते हुए अमीर गुस्से से उबलता बाहर निकल गया.

शहरीना अंदर ही अंदर कुढ़ती बेड पर गिर पड़ी. पिछले कुछ महीने से वह अपनी इस इच्छा को दबाती चली आ रही थी. आज दिल के हाथों मजबूर हो कर कहा भी तो क्या मिला, सिवाय तड़प के.

अमीर के इस व्यवहार ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया. और फिर इसी वजह से छोटेमोटे झगड़े रोज की बात बन गए. दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. उस दिन तो हद ही हो गई. बात बहुत मामूली थी, मगर अमीर ने उसे इतना तूल दिया कि वह लड़ाईझगड़े तक जा पहुंची. शहरीना ने धीरे से कहा, ‘‘अमीर, प्लीज बात को इतना मत बढ़ाएं कि…’’

‘‘कि… क्या कर लोगी तुम? यह घर छोड़ कर चली जाओगी तो चली जाओ. मगर नहीं, तुम जैसी ऐशोआराम पर मरने वाली औरतें इतनी आसानी से ऐसी जिंदगी छोड़ कर कहां जा सकती हैं? तुम भी मुझे छोड़ कर भला कहां जा सकती हो? तुम ने तो इस ऐशोइशरत और दौलत के लिए ही मुझ से शादी की थी.’’ अमीर ने व्यंग्य से कहा.

शहरीना मुंह पर हाथ रखे फटी आंखों से अमीर को ताकते हुए उस की बातें सुनती रही. गुस्से से सुर्ख चेहरा लिए कुछ दूरी पर खड़ा अमीर उसे बदला हुआ लग रहा था. जिसे वह जानती थी, आज वह अमीर नहीं था. एक साल का मोहब्बत भरा साथ देने वाला अमीर उसे ही खुदगर्ज और दौलत का भूखा होने का ताना दे रहा था. जिस के लिए उस का पोरपोर मोहब्बत में डूबा था, वही उस की मोहब्बत की तौहीन कर के चला गया था.

शाम को अमीर जब घर में दाखिल हुआ तो पोर्च से लाउंज और लाउंज से बेडरूम तक पूरा घर खामोशी में डूबा था. अमीर को जहां आश्चर्य हुआ, वहीं उसे सुबह की घटना याद आ गई. कशमकश में डूबा वह अपने बेडरूम में दाखिल हुआ. शहरीना वहां भी नहीं थी. पर हां, उस का लिखा एक खत मेज पर जरूर रखा था. उस ने खत उठा लिया और जल्दी जल्दी पढ़ने लगा, उस में लिखा था—

‘‘अमीर औसाफ,

मैं आप का घर छोड़ कर जा रही हूं. कहां, यह फिलहाल मैं भी नहीं जानती. अपने भाइयों के दरवाजे पर जाना मुझे मंजूर नहीं, क्योंकि उन की नजरों में आप का एक मुकाम है. आप का मुकाम तो मेरे में दिल में भी था, लेकिन आप की बातों ने आप का वह मुकाम मेरी नजरों में गिरा दिया. आप ने यहां तक कह दिया कि तुम भला मुझे छोड़ कर कैसे जा सकती हो और यह कि मैं ने तुम से दौलत की वजह से शादी की थी. मैं पिछले एक साल से आप का तीखा रवैया इसलिए बरदाश्त करती आ रही थी कि मैं आप से मोहब्बत करती हूं. लेकिन अब बरदाश्त नहीं हुआ तो आप का घर छोड़ने पर मजबूर हो गई.

‘‘कहते हैं कि जब मोहब्बत दोतरफा होती है, तभी अच्छी होती है. एकतरफा मोहब्बत दुख ही देती है. आप अब तक मेरे मोहब्बत भरे रवैये और जज्बे को दौलत की तराजू में तौलते रहे हैं. इस से ज्यादा मेरी मोहब्बत की तौहीन और क्या होगी. मुझे आप की दौलत और ऐशोइशरत से कोई सरोकार नहीं है. इसलिए आप के द्वारा दिए गए सभी तोहफे और जेवर ‘लौकर’ में छोड़ कर जा रही हूं.              फकत-शहरीना’’

खत पढ़ कर अमीर के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई. वह व्यंग्य भरे लहजे में कहने लगा, ‘वक्ती जज्बात में बह कर तुम ऐशोइशरत और आराम छोड़ कर चली तो गईं, मगर देखना, तुम्हें बहुत जल्द वापस लौटना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद वह डाइनिंग टेबल पर बैठा सनी से पूछ रहा था, ‘‘सनी बेटा. तुम ने खाना खा लिया?’’

‘‘नहीं अंकल.’’

‘‘क्यों बेटा, अब तो काफी समय हो गया है? तुम ने अब तक खाना क्यों नहीं खाया?’’ अमीर ने मोहब्बत से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘आंटी आज घर पर नहीं हैं ना. मुझे तो खाना वही खिलाती थीं.’’

‘‘अच्छा ठीक है. चलो, आज आप के अंकल आप को खाना खिलाएंगे.’’

‘‘मगर अंकल, वह आंटी…’’ 8 वर्षीय सनी ने कुछ कहना चाहा.

‘‘आंटी को छोड़ो और तुम खाना खाओ.’’

शहरीना के चले जाने से जहां सनी की देखरेख नहीं हो पा रही थी, वहीं पूरा घर अस्तव्यस्त हो गया था. ठीक से साफसफाई भी नहीं हो रही थी. नौकर नौकरानी टाइम पास करते रहते थे. बेडरूम, बाथरूम, लाउंज आदि अस्तव्यस्त और धूलगर्द से अटे रहते थे. यह सब देख कर अमीर चिल्लाने लगता. सनी की ड्रेस भी मैली रहती थी. कभीकभी वह उसी स्थिति में स्कूल चला जाता था तो उसे डांट खानी पड़ती थी.

यह सब बातें जब अमीर को मालूम पड़तीं तो वह नौकरों को डांटने लगता. लेकिन उन पर कोई भी असर नहीं होता था. एक दिन सनी ने अमीर से कहा, ‘‘अंकल ,मेरी शर्ट नहीं मिल रही है. पता नहीं कहां चली गई. आंटी सारी चीजें संभाल कर रखती थीं. मैं होमवर्क भी नहीं कर पाता हूं और रोज स्कूल भी देर से पहुंचता हूं. अब आप जल्दी से खुद जा कर आंटी को ले आएं, तब मैडम मुझे फिर से अच्छा बच्चा कहने लगेंगी.’’

‘‘हां, अमीर बेटा. सनी ठीक कह रहा है. आप शेरी बेटी को वापस ले आओ. वह बहुत अच्छी बच्ची है.’’ फखरू ने कहा. वह उस वक्त से उस के साथ रह रहे थे, जब अमीर के पिता औसाफ अहमद जिंदा थे. फखरू चाचा नौकर कम, बल्कि घर के सदस्य की तरह थे. औसाफ अहमद की मृत्यु के बाद उन्होंने और उन की बाजी ने अमीर और समीर का हर तरह से खयाल रखा था. यही नहीं, सनी की पैदाइश के बाद जब समीर की बीवी सनी को समीर की गोद में डाल कर खुद चलती बनी थी तो भी फखरू चाचा और उन की बीवी ने उस नन्हे बच्चे की देखभाल की थी.

‘‘लेकिन चाचा…’’ अमीर ने तड़प कर कुछ कहना चाहा.

‘‘नहीं बेटा. गलती तुम्हारी है. हर औरत तुम्हारी भाभी अशमल की तरह नहीं होती. शेरी जैसी नेक लड़की का अशमल से मिलान करना उस की तौहीन है. शेरी आप से बहुत मोहब्बत करती थी. सनी का बहुत खयाल रखती थी. घर में नौकर चाकर होने के बावजूद वह आप का एकएक काम खुद करती थी. बेटा, शेरी बेटी की फितरत मैं अच्छी तरह जानता हूं. उसे दौलत का कोई लालच नहीं है. वह तो बस आप की मोहब्बत के सहारे जीती थी. मगर आप ने उस पर शक कर के अच्छा नहीं किया.’’ फखरू चाचा ने जो कुछ अनुभव किया और देखा था, सचसच कह दिया.

सिर्फ एक मोहब्बत : छंट गए गलतफहमी के बादल – भाग 1

दिसंबर की ठिठुरती सर्दी के दिन थे. उतनी रात को हर आदमी बिस्तर में दुबका हुआ था, लेकिन शहरीना इस सर्दी से  बेखबर खिड़की खोले दीवार से टेक लगाए लगातार बाहर की तरफ देख रही थी. इंतजार के पल कितने दर्दनाक होते हैं, यह वही जानती थी. यही इंतजार उस का नसीब बन गया था.

पहले दिन से ही अमीर उसे इंतजार कराने लगा था. हमेशा की तरह आज भी सुबह जाते समय उस ने शाम को तैयार रहने के लिए कहा था, क्योंकि आज उन की शादी की पहली सालगिरह थी, जिस की याद शहरीना ने अमीर को उठते ही दिला दी थी. शहरीना इस अवसर को यादगार बनाना चाहती थी.

शहरीना शाम 7 बजे से तैयार बैठी थी, लेकिन 7 से 8 बजे और 8 से 9, मगर अमीर अभी तक नहीं आया था. किन्हीं अंदेशों के तहत शहरीना ने उस के औफिस में फोन किया तो वहां से जवाब मिला कि साहब मीटिंग में हैं. यह सुन कर वह झुंझला उठी थी. लेकिन वह जानती थी कि अमीर के लिए बिजनेस ही सब कुछ है, इसलिए अकसर वह शहरीना को भूल भी जाता था. लेकिन शहरीना के दिल में मोहब्बत की बेमिसाल महक थी, जो उसे सब्र करने को उकसाती रहती थी.

एक बजने वाला था, तब अमीर की गाड़ी का हौर्न सुनाई दिया. तब तक शहरीना क्षुब्ध हो कर लेट गई थी. अमीर जब कमरे में दाखिल हुआ तो वह कंबल ओढ़े आंख बंद किए लेटी रही. कुछ देर वह उसे देखता रहा, उस के बाद डे्रसिंग रूम की ओर चला गया.

अगली सुबह हमेशा की तरह शहरीना 5 बजे उठ गई और नमाज पढ़ने के बाद 8 साल के सनी को तैयार करने लगी. उसे स्कूल भेजने के बाद वह कमरे में आई ताकि अमीर को उठा सके. रात की नाराजगी या दुख की कोई भी झलक उस के चेहरे पर नहीं थी. उस ने गुस्से का तमाम गुबार सुबह के उजाले में उड़ा दिया था. जब वह कमरे में पहुंची तो अमीर न केवल उठ चुका था, बल्कि नहाधो कर फ्रेश भी हो गया था.

‘‘आई एम सौरी. रात को मैं कुछ लेट हो गया था. एक्चुअली मीटिंग में… खैर, मैं तुम्हारा गिफ्ट लेना नहीं भूला. यह लो अपना गिफ्ट.’’ अमीर औसाफ ने ब्रीफकेस खोल कर मखमली डिब्बा आगे करते हुए माफी मांगने के अंदाज में कहा. लेकिन उस के लहजे में शर्मिंदगी जरा भी नहीं थी.

‘‘कोई बात नहीं.’’ शहरीना ने लापरवाही से कहा.

‘‘मुझे मालूम था कि तुम ने बुरा नहीं माना होगा. अच्छा लो अपना गिफ्ट और देखो कि मैं तुम्हारे लिए कितना कीमती गिफ्ट लाया हूं.’’

‘‘अगर आप यह गिफ्ट कीमत का अंदाजा लगाने के लिए मुझे दे रहे हैं तो यह बिलकुल बेमोल हैं. हां, अगर सिर्फ मोहब्बत के जज्बे से दिया जा रहा है तो दुनिया की हर कीमती चीज से बढ़ कर मेरे लिए कीमती है.’’ शहरीना ने क्षुब्ध हो कर कहा.

‘‘मेरा यह मकसद नहीं था. बहरहाल अगर तुम्हें पसंद आए तो पहन लेना.’’ अमीर ने मखमली डिब्बा बेड के एक कोने में रखते हुए सामान्य स्वर में कहा. अमीर की इन बातों से साफ जाहिर था कि शहरीना की बात उसे अच्छी नहीं लगी.

‘‘सनी बेटे, क्या बात है? आज तुम उदास क्यों हो?’’ अगली सुबह तीनों टीवी लाउंज में बैठे थे तो अमीर ने पूछा.

‘‘अंकल, काफी दिनों से पापा का फोन नहीं आया.’’

‘‘तो क्या हुआ, मैं अपने बेटे की पापा से बात करवा देता हूं. लेकिन मेरी एक शर्त है कि तुम्हें खूब पढ़ाई करनी होगी और हमेशा फर्स्ट आना होगा.’’

‘‘अंकल, वह तो मैं करता ही हूं. आप आंटी से पूछ लें. क्यों आंटी?’’ सनी ने गवाही के लिए शहरीना की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘बिलकुल. सनी रोजाना न सिर्फ होमवर्क करता है, बल्कि रेगुलर स्कूल भी जाता है. इसलिए सनी की फर्स्ट पोजीशन पक्की है.’’ शहरीना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वाकई, अच्छा तुम बड़े हो कर क्या बनोगे?’’

सनी से कुछ बोलते न बना तो अमीर ने ही कहा, ‘‘मेरा बेटा बड़ा हो कर बिजनेसमैन बनेगा, ताकि इस के पास दौलत की कमी न रहे.’’

शहरीना ने कुछ कहना चाहा तो अमीर ने कहा, ‘‘अगर दौलत की रेलपेल नहीं होगी तो कोई भी औरत तुझे नहीं पूछेगी.’’ यह कहते हुए अमीर एक झटके से उठा और अंदर की तरफ बढ़ गया. शहरीना के चेहरे पर कई रंग आए और चले गए.

अमीर के जाते ही शहरीना की सहेली नाहीद का फोन आ गया. फोन पर शहरीना अपनी सब से प्यारी सहेली की आवाज सुन कर खिल उठी थी. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो नाहीद?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. तुम अपनी सुनाओ. शादी के बाद तो तुम ने फोन करना ही छोड़ दिया.’’ नाहीद ने शिकायत की.

‘‘बस यार, क्या बताऊं. तुम तो जानती ही हो कि नई जिंदगी में कदम रखते ही सौ झमेले गले लग जाते हैं.’’

‘‘छोड़ो यार, मुझे मालूम है कि तुम्हारी न तो सास है और न ही कोई ननद. अमीर भाई के एकलौते भाई तुम्हारी शादी से बहुत पहले ही कनाडा चले गए हैं. लेदे कर उन का एक छोटा सा बच्चा है, जो तुम्हें क्या कहता होगा. तुम तो अपने घर में ऐश कर रही हो. दौलत की रेलपेल से खुशियों में डूबी होगी.’’ नाहीद नानस्टाप बोलती जा रही थी.

‘‘दौलत खुशियों की जमानत तो नहीं होती.’’ अचानक शहरीना के मुंह से निकल गया.

‘‘क्या बात है शेरी, लगता है तुम अपनी जिंदगी में खुश नहीं हो?’’

‘‘नहीं नाहीद, मेरे कहने का मतलब यह था कि अमीर सुबह ही निकल जाते हैं और देर रात को लौटते हैं. मैं सारा दिन बोर होती रहती हूं. वैसे अमीर मेरा बहुत खयाल रखते हैं.’’ शहरीना ने बातें बनाईं.

‘‘खैर, तुम्हारी बात भी ठीक है, लेकिन तुम्हारी शादी को एक साल हो गया है. हमें खुशखबरी कब दे रही हो?’’ ताहीद के लहजे में हमदर्दी थी.

‘‘अभी तो ऐसी कोई बात नहीं है, फिर सनी तो है ना…’’ नाहीद की बात सुन कर शहरीना गुलजार हो गई थी. जिस बात को वह आज तक महसूस करती आई थी और जुबान तक न ला सकी थी, वही बात आज नाहीद उस से कह रही थी, ‘‘नहीं यार, अपने बच्चे की बात कुछ और ही होती है. तुम किसी लेडी डाक्टर से मिलो. समझी मेरी बात…’’

यह कह कर नाहीद ने फोन काट दिया, ‘‘मैं तुम्हें फिर फोन करूंगी, उजमा के अब्बू आ गए हैं.’’

बहुत देर तक नाहीद की बात शहरीना के कानों में गूंजती रही. वह ख्वाबों की दुनिया में खो गई, ‘मेरा भी एक बच्चा होगा प्यारा, गोलमटोल सा. जो मुझे अम्मी कहेगा और अमीर को…’

महामिलन : दो जिस्म एक जान थे वो