राष्ट्रीय कृषक बैंक के अध्यक्ष जयगोपाल अपने केबिन में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे. आंखों के सामने से गुजरती पंक्तियों के साथ उन के चेहरे का तनाव बढ़ता जा रहा  था.

पत्र पढ़ कर उन्होंने एक ओर रखा और इंटरकौम का बटन दबा कर अपनी सैके्रेटरी नीलिमा से कहा, ‘‘नीलिमा, हमारी श्यामगंज शाखा में कोई अनुराग ठाकुर है. रिकौर्ड देख कर उस की पोजीशन पता करो और बताओ मुझे, जल्दी.’’

थोड़ी देर बाद नीलिमा हाथ में एक फाइल थामे राजगोपाल साहब के सामने खड़ी थी. वह फाइल देख कर बताने लगी, ‘‘सर, अनुराग ठाकुर वैसे तो कैशियर हैं, लेकिन फिलहाल एक्टिंग मैनेजर का काम देख रहे हैं. दरअसल, पूर्व मैनेजर राजेश की मौत के बाद वहां किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है. इसलिए अस्थाई तौर पर मैनेजर का काम उन्हीं को सौंप दिया गया था. वैसे भी वहां कोई ज्यादा काम नहीं है.’’

जयगोपाल साहब ने मेज पर रखा लेटर नीलिमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पढ़ो इसे, है तो गुमनाम, पर श्यामगंज से ही किसी ने भेजा है. हम इस लेटर को इग्नोर नहीं कर सकते.’’

नीलिमा फाइल साहब की मेज पर रख कर पत्र पढ़ने लगी. पत्र अध्यक्ष राजगोपाल के ही नाम आया था. लिखा था, ‘महोदय, हम खेतीबाड़ी कर के अपने खूनपसीने की कमाई आप के बैंक में जमा करते हैं. सुनने में आया है कि बैंक दिवालिया होने वाला है. वैसे भी यहां जो कुछ हो रहा है, उस के बाद यह तो होना ही था. पता चला है कि यहां के कैशियर अनुराग ठाकुर ने पिछले कुछ महीनों में लाखों का गबन किया है और वह गबन की रकम को शहर से बाहर ले जाने वाला है. जब तक इस तरफ आप का ध्यान जाएगा तब तक बैंक का दीवाला निकल चुका होगा.’

पत्र पढ़ कर नीलिमा ने कहा, ‘‘सर, यकीन नहीं होता. लेकिन…’’

‘‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं, एक लेटर बना कर लाओ, मैं आदेश जारी कर देता हूं. कल ही एक औडिटर को श्यामगंज रवाना करना है. छानबीन के बाद वह सीधे मुझे रिपोर्ट करेगा.’’

नीलिमा चली गई. उस ने बौस के आदेश का पालन किया. लेटर तैयार होते ही आदेश जारी हो गया. अगले दिन एक औडिटर को श्यामगंज भेज दिया गया. क्योंकि मामला अमानत में खयानत का था.

अचानक औडिटर को आया देख अनुराग ठाकुर को आश्चर्य हुआ. थोड़ा गुस्सा भी आया. उन्होंने तल्खी से कहा, ‘‘मेरे रिकौर्ड और लेजर की जांच करनी है? आखिर क्यों? महीने के बीच में ऐसा होता है क्या? न कोई नोटिफिकेशन, न कोई सूचना. यह कानून के खिलाफ है. ऐसी कौन सी आफत आ गई? अधिकारियों को कोई शक है तो मुझे हटा दें, तबादला कर दें.’’

औडिटर ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मिस्टर अनुराग, परेशानी की कोई बात नहीं है. समयसमय पर हम ऐसा करते रहते हैं. पहले भी कई शाखाओं में ऐसा हुआ है. वैसे आप चाहे तो अध्यक्ष का आदेश देख सकते हैं. यह रुटीन की काररवाई है. मुझे ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे लगेंगे.’’

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं.’’ अनुराग ठाकुर बोले, ‘‘लेकिन लोगों को पता लगेगा तो मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इस कस्बे की छोटी सी बैंक है ये, मुझे सब लोग जानते हैं. बात फैलते देर नहीं लगेगी. लोग सोचेंगे, जरूर मैं ने कोई हेराफेरी की होगी.’’

‘‘नहीं, किसी को पता नहीं चलेगा.’’ औडिटर ने शांत भाव से कहा, ‘‘बस आप किसी को मत बताना. मैं सब कुछ चुपचाप निपटा दूंगा.’’

औडिटर की विनम्रता देख कर अनुराग ठाकुर ने मूक स्वीकृति दे दी. औडिटर 1 घंटे में अपना काम निपटा कर लौट गया.

अगले दिन उस ने अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष राजगोपाल के सामने रख दी. रिपोर्ट के हिसाब से सब कुछ ठीक था. कहीं भी एक पैसे की हेराफेरी नहीं पाई गई थी. रिपोर्ट देख कर राजगोपाल बोले, ‘‘एक गुमनाम पत्र को हमें इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए थी.’’

बात वहीं खत्म हो गई.

सब कुछ ठीक चल रहा था. एक महीना ठीक से गुजर गया. महीना भर बाद बैंक अध्यक्ष राजगोपाल को फिर एक पत्र मिला. इस बार पत्र किसी दूसरे आदमी ने और दूसरी जगह से लिखा था. इस शिकायती पत्र में भी अनुराग ठाकुर को निशाना बना कर हेराफेरी की बात दोहराई गई थी. पत्र लिखने वाले ने दावा किया था कि बैंक के खातों की जांच ठीक से नहीं की गई थी.

कैशियर ने औडिटर को या तो बेवकूफ बना दिया था या फिर कुछ दे दिला कर संतुष्ट कर दिया था. आप को इस बात का अहसास तब होगा जब तीर कमान से निकल जाएगा. हो सकता है, आप इस अजनबी के खत पर ध्यान न दें. पर एक बार सोचें जरूर कि क्या इस मामले की दोबारा इंक्वायरी करानी चाहिए.

पत्र पढ़ कर राजगोपाल सोच में पड़ गए. वह दोबारा इंक्वायरी के पक्ष में नहीं थे. लेकिन उन के सामने पड़ा पत्र उन्हें बारबार सोचने को मजबूर कर रहा था. उन के मन में आया भी कि श्यामगंज ब्रांच में इंक्वायरी कर के आए औडिटर से पूछताछ करें. लेकिन उन के जहन में सवाल उठा कि उस ने कुछ गलत किया होगा तो वह सच क्यों बोले? यह भी संभव है कि अनुराग ठाकुर चतुर चालाक रहा हो और उस ने औडिटर को हिसाबकिताब में कुछ इस तरह उलझाया हो कि वह उस की चाल को पकड़ ही न पाया हो.

किसी ब्रांच में अगर कोई गड़बड़ी होती, वह भी आगाह करने के बाद तो इस की जिम्मेदारी राजगोपाल की ही बनती थी. अपनी इमेज बचाए रखने और संभावित गड़बड़ी से बचने के लिए दोबारा इंक्वायरी कराने में कोई हर्ज नहीं था. वैसे भी यह इंटरनल इंक्वायरी थी. इसलिए सोचविचार कर उन्होंने इस बार इस मामले को पूरी तरह खत्म करने के लिए 3 जिम्मेदार औडिटरों की टीम से जांच कराने का फैसला किया.

अध्यक्ष राजगोपाल ने उसी वक्त अपनी सेक्रैटरी नीलिमा को बुला कर आदेश का लेटर तैयार कराया और उस पर हस्ताक्षर कर दिए. अगले ही दिन 3 चुनिंदा औडिटरों की टीम श्यामगंज के लिए रवाना हो गई. औडिटरों ने श्यामगंज ब्रांच में पहुंच कर अनुराग ठाकुर को अपने आने का मकसद बताया तो वह नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर मामला क्या है? क्यों मेरी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है?’’

‘‘आप नाराज न हों मिस्टर अनुराग, कोई खास बात नहीं है.’’ एक औडिटर ने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘‘इस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हम अपना काम कर के चुपचाप चले जाएंगे.’’

अनुराग को गुस्सा तो आ रहा था, लेकिन ऊपरी आदेश था इसलिए चुप होना पड़ा. एक औडिटर अनुराग के साथ बैठ गया और बाकी 2 अपने काम में जुट गए. इस बार एकएक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया गया. इस काम में पूरे 7 घंटे लगे. अनुराग चुपचाप देखने के अलावा कुछ न कर सके.

औडिटरों की टीम अपना काम कर के हेड औफिस लौट गई. इस टीम को हिसाबकिताब में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी.

एक सप्ताह बाद राष्ट्रीय कृषक बैंक अध्यक्ष राजगोपाल अपने केबिन में बैठे थे. तभी नीलिमा ने आ कर कहा, ‘‘सर, श्यामगंज ब्रांच से मिस्टर अनुराग ठाकुर आए हैं और आप से मिलना चाहते हैं.’’ राजगोपाल ने नीलिमा से कहा कि उन्हें तुरंत अंदर भेज दें.

अनुराग अंदर आए तो अध्यक्ष राजगोपाल ने अपनी आदत के विपरीत उठ कर उन का स्वागत किया, उन से गर्मजोशी से हाथ मिलाया. लेकिन इस के बावजूद अनुराग ने खुशी का कोई इजहार नहीं किया. उन के चेहरे पर नागवारी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

औपचारिकता के बाद अनुराग ने एक लेटर राजगोपाल की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं अपने पद से इस्तीफा देना चाहता हूं. ये रहा मेरा रिजाइन लेटर.’’

राजगोपाल चौंके. फिर उन्हें बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों, इस्तीफा देने की क्या जरूरत पड़ गई. यह फैसला किस लिए?’’

‘‘सर, पिछले डेढ़ महीने से मुझ पर शक किया जा रहा है. मेरी ईमानदारी पर अंगुलियां उठ रही हैं. मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकता. मुझे इस से दिमागी तौर पर बहुत तकलीफ पहुंची है. मेरी साख खत्म हो गई है. बीवीबच्चे तक शक की नजरों से देखने लगे हैं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं.’’ अध्यक्ष राजगोपाल की बातों से गलती का अहसास साफ झलक रहा था. वह कुछ देर तक चुप बैठे गहराई से सोचते रहे. फिर अनुराग के चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोले, ‘‘हेड औफिस से जो गलती हुई है, उसे हम सुधार देते हैं. श्यामगंज ब्रांच में मैनेजर का पद अभी खाली पड़ा है. आप उसे स्थाई तौर पर संभाल लीजिए. आप की साख खुद ब खुद बन जाएगी. पद भी बढ़ेगा और वेतन भी. ईमानदार आदमी यूं ही नहीं मिलते. हम आप का इस्तीफा मंजूर नहीं कर सकते मिस्टर अनुराग. फाड़ कर फेंक दीजिए इसे.’’

अनुराग ने मैनेजर के हाथ से इस्तीफा लेते हुए हैरानी से पूछा, ‘‘क्या आप इस मामले में वाकई संजीदा हैं सर?’’

‘‘बिलकुल, मैं अभी सारी काररवाई पूरी करा देता हूं.’’ कह कर राजगोपाल ने इंटरकाम का बटन दबा कर अपनी सैके्रटरी नीलिमा को बुलाया.

मैनेजर बनने की खुशखबरी के साथ अनुराग ठाकुर श्यामगंज लौट आए. घर लौट कर उन्होंने यह खुशखबरी अपनी पत्नी को सुनाई. फिर सोफे पर पसरते हुए बोले, ‘‘पिछले 20 सालों से अपनी ईमानदारी को अपने ही कंधों पर उठाए घूम रहा था. कोई जानता ही नहीं था कि मैं ईमानदार हूं. क्या फायदा ऐसी ईमानदारी का? लेकिन मेरे बारे में अब सब जान गए कि मैं कितना ईमानदार हूं. अध्यक्ष तक को पता लग गया.’’

मिसेज अनुराग का चेहरा खुशी से दमक रहा था. अनुराग पत्नी का हाथ थाम कर बोले, ‘‘कमाल का दिमाग है तुम्हारा. आखिर तुम्हारे लेटर वाले आइडिए ने अपना कमाल दिखा ही दिया.’’

‘‘कमाल ही नहीं दिखाया, आप को मैनेजर भी बनवा दिया. ईमानदार मैनेजर.’’ कह कर मिसेज अनुराग खिलखिला कर हंस पड़ीं.

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