मौज मस्ती के खेल में हत्या: रास न आया अवैध रिश्ता

मुंबई से सटे कल्याण तहसील के गांव राया के पुलिस चौकीदार किरण जाधव को किसी ने बताया कि गांव के बाहर नाले के किनारे बोरी में किसी की लाश पड़ी है. चूंकि किरण जाधव गांव में पुलिस की तरफ से चौकीदार था, इसलिए वह इस खबर को सुनते ही मौके पर पहुंच गया.

उसे जो सूचना दी गई थी, वह बिलकुल सही थी. इसलिए चौकीदार ने फोन कर के यह खबर टिटवाला थाने में दे दी. यह बात 23 जून, 2019 की है. थानाप्रभारी इंसपेक्टर बालाजी पांढरे को पता चला तो वह एसआई कमलाकर मुंडे और अन्य स्टाफ के साथ मौके पर पहुंच गए.

थानाप्रभारी जब मौके पर पहुंचे तो उन्हें वहां एक युवती की अधजली लाश मिली, जो एक बोरी में थी. बोरी और लाश दोनों ही अधजली हालत में थीं. मृतका की उम्र यही कोई 25-30 साल थी. लाश झुलसी हुई थी. उस की कमर पर काले धागे में पीले रंग का ताबीज बंधा था. जिस बोरी में वह लाश थी, उस में मुर्गियों के कुछ पंख चिपके मिले.

थानाप्रभारी ने यह खबर अपने अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम के साथ एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ और क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

तब तक वहां तमाम लोग जमा हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों ने उन सभी से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. फोरैंसिक टीम का जांच का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया.

इस ब्लाइंड मर्डर केस को सुलझाने के लिए ठाणे (देहात) के एसपी डा. शिवाजी राठौड़ ने 2 पुलिस टीमें बनाईं. पहली टीम का गठन एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ के नेतृत्व में किया. इस टीम में थानाप्रभारी बालाजी पांढरे, एसआई कमलाकर मुंडे, जितेंद्र अहिरराव, हवलदार अनिल सातपुते, दर्शन साल्वे, सचिन गायकवाड़ और तुषार पाटील आदि को शामिल किया गया.

दूसरी टीम क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले के नेतृत्व में बनाई गई. इस टीम में एपीआई प्रमोद गढ़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, बजरंग राजपूत, हेडकांस्टेबल अविनाश गर्जे, सचिन सावंत आदि थे. दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील कर रहे थे.

मृतका के गले में जो ताबीज था, पुलिस ने उस की जांच की तो उस पर बांग्ला भाषा में कुछ लिखा नजर आया. उस से यह अंदाजा लगाया गया कि युवती शायद पश्चिम बंगाल की रही होगी. जिस बोरी में शव मिला था, उस बोरी में मुर्गियों के पंख थे, जिस का मतलब यह था कि बोरी किसी चिकन की दुकान से लाई गई होगी.

पुलिस टीमों ने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच शुरू की. पुलिस ने टिटवाला में चिकन की दुकान चलाने वालों को अज्ञात युवती की लाश के फोटो दिखाए तो पुलिस को सफलता मिल गई. एक दुकानदार ने फोटो पहचानते हुए बताया कि वह टिटवाला के खड़वली इलाके में रहने वाली मोनी है, जो अकसर बनेली के चिकन विक्रेता आलम शेख उर्फ जाने आलम के यहां आतीजाती थी.

पुलिस टीम आलम शेख की चिकन की दुकान पर पहुंच गई. लेकिन आलम दुकान पर नहीं था. पुलिस ने उस के नौकर से पूछा तो उस ने बताया कि आलम शेख पश्चिम बंगाल स्थित अपने घर गया है. पुलिस ने आलम की दुकान की जांच की. इस के बाद पुलिस खड़वली इलाके में उस जगह पहुंची, जहां मोनी रहती थी. वहां के लोगों से बात कर के पुलिस को जानकारी मिली कि मोनी और आलम शेख के बीच नाजायज संबंध थे.

अवैध संबंधों और आलम शेख के दुकान से फरार होने से पुलिस समझ गई कि मोनी की हत्या में आलम शेख का ही हाथ होगा. पुलिस ने किसी तरह से आलम शेख का पश्चिम बंगाल का पता हासिल कर लिया. वह पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला था.

एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील ने एक पुलिस टीम बंगाल के सदईपुर भेज दी. वहां जा कर टिटवाला पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से आलम शेख को हिरासत में ले लिया.

आलम शेख को स्थानीय न्यायालय में पेश कर पुलिस ने उस का ट्रांजिट रिमांड ले लिया और थाना टिटवाला लौट आई. पुलिस ने आलम शेख से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मोनी के कत्ल की बात स्वीकार कर ली. उस से पूछताछ के बाद मोनी की हत्या की  कहानी इस प्रकार निकली—

मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला 33 वर्षीय आलम शेख उर्फ जाने आलम टिटवाला क्षेत्र में चिकन की दुकान चलाता था. करीब 4-5 महीने पहले उस की मुलाकात खड़वली क्षेत्र की रहने वाली मोनी से हुई.

मोनी आलम की दुकान पर चिकन लेने गई थी. पहली मुलाकात में ही आलम उस का दीवाना हो गया. उसी दिन बातचीत के दौरान आलम ने मोनी से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

इस के बाद मोनी अकसर उस की दुकान से चिकन लेने जाने लगी. नजदीकियां बढ़ाने के लिए आलम ने उस से चिकन के पैसे लेने भी बंद कर दिए. धीरेधीरे दोनों के संबंध गहराते गए और फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

कुछ दिनों बाद आलम शेख ने मोनी को खड़वली क्षेत्र में ही किराए का एक मकान भी ले कर दे दिया, जिस में मोनी अकेली रहने लगी. उस के अकेली रहने की वजह से आलम की तो जैसे मौज ही आ गई. जब उस का मन होता, मोनी के पास चला जाता और मौजमस्ती कर दुकान पर लौट आता.

उन के संबंधों की खबर मोहल्ले के तमाम लोगों को हो चुकी थी. आलम मोनी को आर्थिक रूप से भी सहयोग करता था. धीरेधीरे मोनी की आलम से पैसे मांगने की आदत बढ़ती गई. वह उस से ढाई लाख रुपए ऐंठ चुकी थी.

इतने पैसे ऐंठने के बाद भी वह उसे ब्लैकमेल करने लगी. वह आलम को धमकी देने लगी कि अगर उस ने बात नहीं मानी तो वह उस के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा देगी. मोनी की धमकी से आलम परेशान रहने लगा.

अंत में आलम शेख ने मोनी को रास्ते से हटाने की ठान ली. एक दिन आलम ने अपनी इस पीड़ा के बारे में अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को बताया और साथ ही मोनी की हत्या करने में उस से मदद मांगी. मनोरुद्दीन ने आलम को हर तरह का सहयोग देने की हामी भर दी. इस के बाद दोनों ने मोनी का काम तमाम करने की योजना बनाई.

योजना के अनुसार 22 जून, 2019 की रात को आलम शेख गले में अंगौछा बांध कर दुकान पर पहुंचा और वहां से एक खाली बोरी ले कर मोनी के घर पहुंच गया. उस वक्त मोनी सोई हुई थी. आलम ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. इस के बाद दोनों बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे. उसे अपनी बातों में उलझा कर आलम मौका देख रहा था. फिर मौका मिलते ही उस ने अंगौछा मोनी के गले में डाल कर पूरी ताकत से खींचना शुरू करदिया.

मोनी ज्यादा विरोध नहीं कर सकी. कुछ देर बाद जब उस की सांसें बंद हो गईं तब आलम ने मोनी के गले का अंगौछा ढीला किया. इस के बाद आलम ने अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी वहां बुला लिया.

दोनों ने साथ में लाई बोरी में शव डाला. फिर आलम शेख और मनोरुद्दीन उस बोरी को मोटरसाइकिल से ले कर निकल पड़े. रास्ते में उन्होंने एक पैट्रोलपंप से एक डिब्बे में पैट्रोल भी लिया. फिर उन्होंने शव को राया गांव के पास एक नाले के किनारे डाल दिया और पैट्रोल डाल कर जलाने की कोशिश की. पर शव झुलस कर रह गया. लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों वहां से चंपत हो गए.

आलम शेख उर्फ जानेआलम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने तक दोनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. मामले की जांच इंसपेक्टर बालाजी पांढरे कर रहे थे.

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

हत्यारा आशिक : धोकेबाज प्रेमी ने दी सजा

राजकुमार गौतम अपनी खूबसूरत पत्नी और ढाई वर्षीय बेटी नान्या के साथ 4 महीने पहले ही थाणे जिले के भादवड़ गांव में किराए पर रहने के लिए आया था. इस के पहले वह भिवंडी के अवधा गांव में रहता था. उस समय उस की पत्नी सपना लगभग 7 महीने की गर्भवती थी. दोनों का व्यवहार सरल और मधुर था. यही कारण था कि आसपड़ोस के लोगों में पतिपत्नी जल्दी ही घुलमिल गए थे.

वैसे बड़े महानगरों में रहने वाले लोग अपनी दोहरी जिंदगी जीते हैं. वे जल्दी किसी से घुलतेमिलते नहीं हैं. सभी अपने काम से मतलब रखते हैं. कौन क्या करता है, कैसे रहता है, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं रहता. लेकिन राजकुमार और सपना अपने पड़ोसियों से घुलमिल कर रहते थे.

पतिपत्नी का दांपत्य जीवन अच्छी तरह से चल रहा था. करीब 2 महीने बाद सपना ने दूसरी बच्ची को जन्म दिया. बच्ची स्वस्थ और सुंदर थी, जिसे देख दोनों खुश थे.

2 बेटियों के जन्म के बाद दोनों कुछ दिनों तक कोई बच्चा नहीं चाहते थे. लिहाजा सपना ने डिलिवरी के बाद कौपर टी लगवा ली थी. लेकिन कौपर टी लगने के बाद सपना के पेट में अकसर दर्द रहने लगा था. यह दर्द कभीकभी असहनीय हो जाता था, जिस की वजह से वह बेहोश तक हो जाती थी. यह बात उस के पड़ोसियों को भी मालूम थी.

घटना 4 फरवरी, 2019 की है. उस समय दोपहर के लगभग 3 बजे का समय था, जब पड़ोसियों ने राजकुमार की ढाई वर्षीय बेटी नान्या के रोने की आवाज सुनी. रोने की आवाज पिछले 15-20 मिनट से लगातार आ रही थी. पड़ोसी राम गणेश से नहीं रहा गया तो वह राजकुमार के घर पहुंच गए.

उन्होंने घर का जो दृश्य देखा उसे देख कर उन के होश उड़ गए. वह चीखते हुए भाग कर बाहर आ गए और चीखचीख कर आसपड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर लिया. लोगों ने चीखने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि राजकुमार की पत्नी का किसी ने गला काट दिया है.

यह सुन कर जब लोग राजकुमार के घर में गए तो उस की पत्नी फर्श पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस के गले के आसपास खून फैला हुआ था. उस की बेटी नान्या उस के पास बैठी अपने नन्हेनन्हे हाथों से मां को उठाने की कोशिश कर रही थी और दूसरी छोटी नवजात बच्ची बिस्तर पर पड़ी हाथपैर मार रही थी.

इस मार्मिक दृश्य को जिस ने भी देखा था, उस का कलेजा मुंह को आ गया. पड़ोसी दोनों बच्चियों को उठा कर घर से बाहर लाए. उन्होंने फोन कर के इस की जानकारी राजकुमार गौतम को दे दी और बेहोशी की हालत में पड़ी घायल सपना को उठा कर स्थानीय इंदिरा गांधी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने सपना को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल ने इस मामले की जानकारी पुलिस को दे दी.

वह इलाका शांतिनगर थाने के अंतर्गत आता था. यह सूचना पीआई किशोर जाधव को मिली तो वह एसआई संदीपन सोनवणे के साथ इंदिरा गांधी अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल जा कर उन्होंने डाक्टरों से बात की. इस के अलावा वह उन लोगों से मिले, जो सपना को उपचार के लिए अस्पताल लाए थे.

मृतका के पति राजकुमार ने बताया कि उस की पत्नी की जान कौपर टी के कारण गई है. कौपर टी की वजह से उस की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, जिस का इलाज चल रहा था. लेकिन कभीकभी दर्द जब असह्य हो जाता था, तब उस की सहनशक्ति जवाब दे देती थी. ऐसे में वह अपनी जान लेने पर आमादा हो जाती थी.

राजकुमार ने पत्नी की मौत की जो थ्यौरी बताई, वह टीआई के गले नहीं उतरी. उन्होंने यह तो माना कि तकलीफ में कभीकभी इंसान आपा खो बैठता है, लेकिन उस समय सपना की स्थिति ऐसी नहीं थी. डाक्टरों के बयानों से स्पष्ट हो चुका था कि आत्महत्या के लिए कोई अपना गला नहीं काट सकता.

मौत की सही वजह तो पोस्टमार्टम के बाद ही सामने आनी थी. लिहाजा टीआई किशोर जाधव ने सपना की संदिग्ध हालत में हुई मौत की जानकारी डीसीपी और एसीपी को देने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए उसी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दी.

अस्पताल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई किशोर जाधव सीधे घटनास्थल पर पहुंचे और वहां का बारीकी से निरीक्षण किया. घटनास्थल पर खून लगा एक स्टील का चाकू मिला, जिसे जाब्ते की काररवाई में शामिल कर के उन्होंने जांच के लिए रख लिया.

पीआई ने राजकुमार गौतम के बयानों के आधार पर सपना गौतम की मौत को आत्महत्या के रूप में दर्ज तो कर लिया था, लेकिन मामले की जांच बंद नहीं की थी. उन्हें सपना गौतम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. किशोर जाधव को लग रहा था कि दाल में कुछ काला है.

पोस्टमार्टम और फोरैंसिक रिपोर्ट आई तो पीआई चौंके. चाकू पर फिंगरप्रिंट मृतका के बजाए किसी और के पाए गए. इस का मतलब था कि सपना की हत्या की गई थी.

मामले की आगे की जांच के लिए पीआई किशोर जाधव ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में सहायक इंसपेक्टर (क्राइम), कांस्टेबल रविंद्र चौधरी, गुरुनाथ विशे, अनिल बलबी, किरण पाटिल, विजय कुमार, श्रीकांत पाटिल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने जांच शुरू कर दी. अपराध घर के अंदर हुआ था, इस का मतलब था कि अपराधी सपना का नजदीकी ही रहा होगा. इसलिए इंसपेक्टर राजेंद्र मायने ने संदेह के आधार पर सपना के पति राजकुमार गौतम से गहराई से पूछताछ की.

उन्होंने उस की कुंडली भी खंगाली. उस की अंगुलियों के निशान ले कर जांच के लिए भेज दिए गए. लेकिन उस के हाथों के निशानों ने चाकू पर मिले निशानों से मेल नहीं खाया. इस से पुलिस को राजकुमार बेकसूर लगा.

तब पुलिस ने उस के दोस्तों की जांच की. जांच में पता चला कि राजकुमार का एक दोस्त विकास चौरसिया उस की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आता था. विकास पान की एक दुकान पर काम करता था और राजकुमार के गांव का ही रहने वाला था. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी. पुलिस ने विकास का फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया और उस की तलाश शुरू कर दी.

वह अपने घर से गायब था. उस की तलाश के लिए पुलिस ने मुखबिर भी लगा दिए. एक मुखबिर की सूचना पर विकास को भिवंडी के सोनाले गांव से हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने विकास से सपना की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह खुद को बेकसूर बताता रहा. लेकिन सख्ती करने पर उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

25 वर्षीय राजकुमार गौतम उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गांव कारमियां शुक्ला का रहने वाला था. उस के पिता गौतमराम गांव के एक साधारण किसान थे. गांव में उन की थोड़ी सी काश्तकारी थी, जिस में उन की गृहस्थी की गाड़ी चलती थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण राजकुमार गौतम की कोई खास शिक्षादीक्षा नहीं हो पाई थी. जब वह थोड़ा समझदार हुआ तो उस ने रोजीरोटी के लिए मुंबई की राह पकड़ ली. उस के गांव के कई लोग रहते थे. मुंबई से करीब सौ किलोमीटर दूर तहसील भिवंडी के अवधा गांव में उन्हीं के साथ रह कर वह छोटामोटा काम करने लगा.

भिवंडी का अवधा गांव पावरलूम कपड़ों और कारखानों का गढ़ माना जाता है. राजकुमार गौतम ने भी पावरलूम कारखाने में काम कर कपड़ों की बुनाई का काम सीखा और मेहनत से काम करने लगा. जब वह कमाने लगा तो परिवार वालों ने उस की शादी पड़ोस के ही गांव की लड़की सपना से कर दी. यह सन 2016 की बात है.

राजकुमार गौतम खूबसूरत सपना से शादी कर के बहुत खुश था. वह शादी के कुछ दिनों बाद ही सपना को अपने साथ मुंबई ले गया. किराए का कमरा ले कर वह पत्नी के साथ रहने लगा. शादी के करीब डेढ़ साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम नान्या रखा गया.

इसी दौरान राजकुमार की विकास चौरसिया से मुलाकात हो गई. विकास चौरसिया पान की एक दुकान पर काम करता था. दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए उन के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई.

20 वर्षीय विकास एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह जो भी कमाता था, अपने खानपान और शौक पर खर्च करता था. राजकुमार गौतम ने जिगरी दोस्त होने की वजह से विकास की मुलाकात अपनी पत्नी से भी करवा दी थी. राजकुमार ने पत्नी के सामने विकास की काफी तारीफ की थी.

पहली मुलाकात में ही विकास सपना का दीवाना हो गया था. उस ने अपनी बेटी नान्या का जन्मदिन मनाया तो विकास चौरसिया को खासतौर पर अपने घर बुलाया. तब राजकुमार और सपना ने विकास की काफी आवभगत की थी. इस आवभगत में राजकुमार गौतम की सजीधजी बीवी सपना विकास के दिल में उतर गई.

वह जब तक राजकुमार के घर में रहा, उस की निगाहें सपना पर ही घूमती रहीं. जन्मदिन की पार्टी खत्म होने के बाद विकास चौरसिया सब से बाद में अपने घर गया था. उस समय उस ने नान्या को एक महंगा गिफ्ट दिया था. यह सब उस ने सपना को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किया था.

सपना की छवि विकास की नसनस और आंखों में कुछ इस तरह से समा गई थी कि उस का सारा सुखचैन छिन गया. उस का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. सोतेजागते उसे बस सपना ही दिख रही थी. वह उस का स्पर्श पाने के लिए तड़पने लगा था.

राजकुमार को अपनी दोस्ती पर पूरा विश्वास था. लेकिन विकास दोस्ती में दगा करने की फिराक में था. वह तो बस उस की पत्नी सपना का दीवाना था. वह सपना का सामीप्य पाने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा था.

इसीलिए मौका देख कर वह राजकुमार के साथ चाय पीने के बहाने अकसर उस के घर जाने लगा था. वह सपना के हाथों की बनी चाय की जम कर तारीफ करता था. औरत को और क्या चाहिए. विकास चौरसिया को यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि औरत अपनी तारीफ और प्यार की भूखी होती है. जो विकास ने सोचा था, वैसा ही कुछ हुआ भी. इस तरह दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. विकास बातचीत के बीच कभीकभी सपना से भद्दा मजाक भी कर लेता था, जिसे सुन कर सपना का चेहरा लाल हो जाता था और वह उस से नजरें चुरा लेती थी.

कुछ दिनों तक तो विकास राजकुमार के साथ ही उस के घर जाता था, लेकिन बाद में वह राजकुमार के घर पर अकेला भी आनेजाने लगा. वह चोरीछिपे सपना के लिए कीमती उपहार भी ले कर जाता था. उपहारों और अपनी लच्छेदार बातों में उस ने सपना को कुछ इस तरह उलझाया कि वह अपने आप को रोक नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह उस की गोदी में आ गिरी. सपना को अपनी बांहों में पा कर विकास चौरसिया के मन की मुराद पूरी हो गई.

एक बार जब मर्यादा की कडि़यां बिखरीं तो बिखरती ही चली गईं. अब स्थिति ऐसी हो गई थी कि बिना एकदूसरे को देखे दोनों को चैन नहीं मिलता था. उन्हें जब भी मौका मिलता, दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते. सपना और विकास चौरसिया का यह खेल बड़े आराम से लगभग एक साल तक चला. इस बीच सपना फिर से गर्भवती हो गई.

पहली बार सपना जब गर्भवती हुई थी तो वह अपनी डिलिवरी के लिए अपने गांव चली गई थी. इस बार सपना ने गांव न जा कर अपनी डिलिवरी शहर में ही करवाने का फैसला कर लिया था.

जब सपना की डिलिवरी के 3 महीने शेष रह गए तो राजकुमार अवधा गांव का कमरा खाली कर भादवड़ गांव पहुंच गया और भिवंडी के इंदिरा गांधी अस्पताल में सपना की डिलिवरी करवाई. डिलिवरी के बाद सपना ने पति की सहमति से कौपर टी लगवा ली. यह कौपर टी सपना को रास नहीं आई. इसे लगवाने के बाद सपना को दूसरे तरह की समस्याएं आने लगीं.

सपना की डिलिवरी के 25 दिनों बाद एक दिन दोपहर 2 बजे विकास चौरसिया मौका देख कर राजकुमार गौतम के घर पहुंच गया. उस समय सपना की बेटी नान्या घर के दरवाजे पर खेल रही थी. घर में घुसते ही उस ने दरवाजा बंद कर लिया. उस समय सपना अपने बिस्तर पर लेटी अपनी छोटी बेटी को दूध पिला रही थी. विकास के अचानक आ जाने से सपना उठ कर बैठ गई.

इस से पहले कि सपना कुछ कह पाती विकास ने उस के बगल में बैठ कर बच्ची का माथा चूमा और सपना को बांहों में लेते हुए उस से शारीरिक संबंध बनाने के लिए जिद करने लगा, जिस के लिए सपना तैयार नहीं थी.

सपना ने विकास को काफी समझाने की कोशिश की और कहा, ‘‘देखो, अभी मैं उस स्थिति में नहीं हुई हूं कि तुम्हारी यह इच्छा पूरी कर सकूं. आज तक मैं ने कभी तुम्हारी बातों से कभी इनकार नहीं किया है. आज मैं बीमार हूं, ऊपर से कौपर टीम लगवाई है. अभी तुम जाओ, जब मैं ठीक हो जाऊंगी तो आना.’’

लेकिन वासना के भूखे विकास पर सपना की बातों का कोई असर न हुआ. वह उस के साथ जबरदस्ती करने पर उतारू हो गया और उस पर भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ा. इस के पहले कि वह अपने मकसद में कामयाब होता, सपना नाराज हो गई और उस ने अपने ऊपर से विकास को नीचे फर्श पर धक्का दे दिया. फिर उठ कर वह उसे अपने घर से बाहर जाने के लिए कहने लगी.

सपना के इस व्यवहार और वासना के उन्माद में वह अपना होश खो बैठा. वह सीधे सपना की किचन में गया और वहां से स्टील का चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने सपना का गला काट दिया. सपना के गले से खून निकलने लगा और वह फर्श पर गिर पड़ी.

सपना के गले से बहते खून को देख कर विकास चौरसिया की वासना का उन्माद काफूर हो गया. वह डर कर वहां से चुपचाप निकल गया. उस के जाने के बाद दरवाजे पर खेल रही नान्या घर के अंदर आई और मां को उठाने लगी थी. सपना के न उठने पर वह उस से लिपट कर रोने लगी.

विकास चौरसिया से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

राजकुमार गौतम को जब यह मालूम पड़ा कि उस की पत्नी का आशिक और हत्यारा और कोई नहीं, बल्कि उस का अपना जिगरी दोस्त था तो उसे इस बात का अफसोस हुआ कि विकास जैसे आस्तीन के सांप को घर बुला कर उस ने कितनी बड़ी गलती की थी.

कथा लिखे जाने तक अभियुक्त विकास चौरसिया थाणे की तलौजा जेल में था. मामले की जांच इंसपेक्टर राजेंद्र मायने कर रहे थे.

कहानी सौजन्यसत्यकथा, मई 2019

प्यार पहुंचा 2 गज जमीन के नीचे

लड़की जब शादी योग्य हो जाती है तो वह अपने भावी जीवन को ले कर सपने बुनने लगती हैं, कुछ भावी पति के बारे में, कुछ घरपरिवार के बारे में और कुछ अपने लिए. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर मांबाप बचपन से ही बेटी के मन में यह बात बैठाना शुरू कर देते हैं कि शादी के बाद वह पराई हो जाएगी. कौन लड़की कैसे सपने बुनती है, यह उस की व्यक्तिगत और पारिवारिक स्थिति पर निर्भर करता है.

मुंबई के मानखुर्द की रहने वाली रोहिणी गुलाब मोहिते ने भी अपने जीवनसाथी को ले कर तरहतरह के सपने संजोए थे. पिता ने जब उस का विवाह मुंबई के ही अभिजीत घोरपड़े के साथ कर दिया तो अपने दिल में वह तमाम उमंगें लिए ससुराल चली गई.

रोहिणी को मनमुताबिक पति मिला, जिस से वह हर तरह खुश थी. अभिजीत उसे बहुत प्यार करता था. उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. इसी दौरान रोहिणी एक बच्चे की मां भी बन गई. परिवार में बच्चे के आने से उन की खुशी और बढ़ गई.

लेकिन उन की इस खुशी की उम्र बहुत कम निकली. बच्चा अभी अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पाया था कि अभिजीत की मृत्यु हो गई. पति की मौत के बाद रोहिणी की जिंदगी में अंधेरा छा गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे. कुछ नहीं सूझा तो वह अपने बच्चे को ले कर मायके आ गई.

पति की मौत के गम में वह दिन भर सोचती रहती. उसे न खाने की चिंता रहती न पीने की. वह हर समय गुमसुम रहती थी. घर वालों और अन्य लोगों के समझाने पर रोहिणी ने घर से बाहर निकलना शुरू किया. बाहर निकलने से रोहिणी धीरेधीरे सामान्य होती गई. किसी के सहयोग से उसे वाशी नवी मुंबई के एक अस्पताल में कौन्ट्रैक्ट पर नौकरी मिल गई.

वह रोजाना मानखुर्द से वाशी तक लोकल ट्रेन से अपडाउन करती थी. उसी दौरान रोहिणी के गांव के रहने वाले रामचंद्र तुकाराम जाधव के माध्यम से उस की मुलाकात सुनील शिर्के से हुई. सुनील भी उसी अस्पताल में नौकरी करता था, जिस में रोहिणी काम करती थी.

रोहिणी और सुनील अकसर साथसाथ ट्रेन से आतेजाते थे. रोजाना साथ आनेजाने से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. सुनील से दोस्ती के बाद रोहिणी खुश रहने लगी थी, क्योंकि वह उस से अपने मन की बात कह लेती थी. उसे सुनील का व्यवहार बहुत अच्छा लगता था. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई.

रोहिणी ने सुनील को अपने अतीत के बारे में सब कुछ बता दिया था. तब सुनील ने उसे भरोसा दिया कि वह उस से शादी कर के जीवन भर उस का साथ निभाएगा. कई सालों तक उन का प्यार उसी तरह चलता रहा.

इस बीच रोहिणी ने उस से कई बार शादी करने को कहा लेकिन वह बातें बना कर उसे टाल देता था. वक्त के साथ 5-6 साल बीत गए लेकिन सुनील ने उस से शादी नहीं की. रोहिणी समझ गई कि वह उस के साथ सिर्फ मौजमस्ती कर रहा है, लिहाजा वह सुनील पर शादी के लिए दबाव डालने लगी.

दूसरी ओर सुनील रोहिणी से इसलिए शादी नहीं कर रहा था, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस के 2 बच्चे भी थे. उस की पत्नी को इस बात की भनक तक नहीं थी कि सुनील के किसी दूसरी महिला से अवैध संबंध हैं.

शादी की बात को ले कर सुनील और रोहिणी के बीच झगड़े होने लगे थे. किसी तरह सुनील की पत्नी को पति के अवैध संबंधों की जानकारी मिल गई तो वह घर में क्लेश करने लगी. इस से सुनील दोनों तरफ से घिर गया था. एक ओर पत्नी थी तो दूसरी ओर रोहिणी. दो नावों की सवारी उस के लिए आसान नहीं थी.

सुनील रोहिणी से शादी करना चाहता था लेकिन पत्नी के रहते रोहिणी को घर लाना संभव नहीं था.

दूसरी ओर रोहिणी भी आसानी से मानने वाली नहीं थी. शादी के नाम पर सुनील पिछले 5-6 सालों से उस का शोषण करता आ रहा था. अंतत: उस ने रोहिणी से छुटकारा पाने का फैसला किया. इस संबंध में उस ने अपने दोस्तों रामचंद्र तुकाराव जाधव और विजय सिंह से बात की.

तीनों ने जब इस मुद्दे पर विचारविमर्श किया तो रोहिणी से छुटकारा पाने का एक ही उपाय नजर आया कि उस की हत्या कर दी जाए. लिहाजा तीनों ने उस की हत्या का फैसला कर लिया. इतना ही नहीं, हत्या कर लाश कहां ठिकाने लगानी है, इस की भी उन्होंने योजना तैयार कर ली.

योजना के अनुसार, 13 नवंबर 2018 को सुनील मुंबई से 129 किलोमीटर दूर रायगढ़ स्थित अपने मूल गांव सिरसाल गया. वहां उस ने अपने घर के करीब एक गहरा गड्ढा खोदा और मुंबई लौट आया.

अब उसे किसी बहाने से रोहिणी को वहां ले जाना था. इसलिए उस ने रोहिणी से कहा, ‘‘रोहिणी, लड़तेझगड़ते बहुत दिन हो गए. अब मैं ने तुम से शादी करने का फैसला कर लिया है. एक वकील मेरे जानकार हैं. हमें उन के पास चलना होगा. वह सारी कानूनी काररवाई कर देंगे. इस के बाद हम दोनों के साथ रहने में कोई समस्या नहीं होगी.’’

सुनील की बात सुन कर रोहिणी खुश हो गई. उस ने सुनील के साथ जाने के लिए हामी भर दी. 14 नवंबर, 2018 को रोहिणी सहेली की शादी में जाने का बहाना कर के अपने घर से निकल गई. सुनील उसे निर्धारित जगह पर मिल गया. उस के साथ रामचंद्र जाधव और विजय सिंह भी थे, जो एमएच23बी के4101 नंबर की कार ले कर आए थे. रोहिणी खुशीखुशी उस कार में बैठ गई.

इस कार से सब लोग 129 किलोमीटर दूर रायगढ़ पहुंचे. गांव पहुंच कर सुनील ने रोहिणी से शादी के बारे में बात की तो वह शादी करने की जिद पर अड़ी रही. सुनील ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी. मानती भी क्यों, सुनील उसे शादी का झांसा दे कर ही तो लाया था.

इस मुद्दे पर बात बढ़ी तो रोहिणी ने यह तक कह दिया कि अब वह चुप नहीं बैठेगी और पुलिस से शिकायत कर देगी. उसे जिद पर अड़ी देख रामचंद्र जाधव ने रोहिणी के सिर पर फावड़े के डंडे से जोरदार प्रहार किया.

प्रहार तेज था, जिस से रोहिणी जमीन पर गिर गई. विजय सिंह मोरे ने उस के दोनों हाथ पकड़ लिए और सुनील व रामचंद्र ने रोहिणी की साड़ी से ही उस का गला घोंट दिया.

रोहिणी की मौत हो जाने के बाद तीनों ने उस की लाश पहले से खोदे गए गड्ढे में दबा दी. लाश ठिकाने लगा कर वे लोग अपने घर लौट आए.

14 नवंबर को रोहिणी सहेली की शादी में जाने की बात कह कर घर से निकली थी. जब वह घर नहीं पहुंची तो उस के घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने अपने सभी परिचितों से रोहिणी के बारे में पूछा. जब कोई पता नहीं चला तो अगले दिन उस के भाई राजेंद्र गुलाब ने उस अस्पताल में जा कर पूछताछ की, जहां रोहिणी काम करती थी.

वहां से पता चला कि पिछले दिन रोहिणी अपनी ड्यूटी पर आई ही नहीं थी. यह जान कर राजेंद्र और ज्यादा परेशान हो गया. अंतत: 16 नवंबर, 2018 को राजेंद्र थाना मानखुर्द पहुंचा और बहन के लापता होने की बात पुलिस को बता दी.

राजेंद्र गुलाब घोरपड़े की शिकायत पर मानखुर्द पुलिस थाने के सीनियर पीआई नितिन बोबड़े ने 28 वर्षीय रोहिणी की गुमशुदगी दर्ज कर के जरूरी काररवाई करनी शुरू कर दी. उन्होंने रोहिणी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, लेकिन उस से कोई खास जानकारी नहीं मिली. जिस अस्पताल में रोहिणी काम करती थी, पुलिस ने वहां जा कर भी जांच की. वहां पता चला कि रोहिणी के उसी अस्पताल में नौकरी करने वाले सुनील शिर्के नाम के युवक से संबंध थे.

पुलिस ने वक्त न गंवा कर सुनील को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. उस से पूछताछ करने पर भी रोहिणी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

इस के बाद पुलिस ने रोहिणी के रिश्तेदारों आदि से भी पूछताछ की, लेकिन पुलिस को कहीं से भी रोहिणी के बारे में कोई क्लू नहीं मिल रहा था. पुलिस ने रोहिणी के बैंक खातों की जांच की तो पता चला कि रोहिणी के एसबीआई के खाते से एटीएम द्वारा 15 और 16 नवंबर, 2018 को 65 हजार रुपए निकाले गए थे.

ये पैसे किस ने निकाले, जानने के लिए पुलिस ने एटीएम के सीसीटीवी कैमरे को खंगाला तो फोटो पहचानने में नहीं आया. रोहिणी 14 नवंबर को घर से निकली थी, जबकि पैसे 16 नवंबर को निकाले गए थे.

इस से पुलिस को यही लगा कि या तो वह पैसे निकाल कर किसी के साथ भाग गई होगी या फिर उस के साथ कुछ गलत हुआ होगा. पुलिस फिर से एटीएम के सीसीटीवी की उसी धुंधली तसवीर की जांच करने लगी.

पुलिस ने वह तसवीर उस अस्पताल के कर्मचारियों को दिखाई, जहां रोहिणी नौकरी करती थी. इस जांच में पुलिस को नई जानकारी मिली. लोगों ने सीसीटीवी के उस फोटो की पहचान सुनील के दोस्त रामचंद्र तुकाराव जाधव के रूप में की.

पुलिस ने रामचंद्र के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह महाराष्ट्र के सतारा जिले से करीब 60 किलोमीटर दूर वानरवाडी गांव का रहने वाला है और मुंबई में आचरेकर नामक केबल औपरेटर के यहां नौकरी करता है.

पुलिस टीम केबल औपरेटर आचरेकर के औफिस पहुंच गई. आचरेकर से रामचंद्र के बारे में पूछताछ की गई, तो उस ने बताया कि रामचंद्र काफी दिनों पहले अपने गांव जाने की बात कह कर गया था और अभी तक नहीं लौटा है. पुलिस उस के गांव पहुंच गई. रामचंद्र गांव में मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाना मानखुर्द लौट आई. इस के साथ ही पुलिस ने सुनील को भी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने रोहिणी की हत्या की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने यह भी बता दिया कि उन लोगों ने अपने तीसरे साथी विजय सिंह मोरे के साथ मिल कर रोहिणी की हत्या की थी और उस की लाश रायगढ़ जिले के सिरसाल गांव में दफना दी थी.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर नितिन बोबड़े अपने सहयोगी इंसपेक्टर चंद्रकांत लोडगे, एसआई तुकाराम घाडगे, प्रताप देसाई, कृष्णात माने आदि के साथ तीनों आरोपियों को उस जगह ले गए, जहां उन्होंने रोहिणी का शव दफनाया था. माणगांव के तहसीलदार की मौजूदगी में रोहिणी की लाश गड्ढे से निकलवाई गई.

राजेंद्र ने लाश की पहचान अपनी बहन रोहिणी के रूप में की. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भायखला के सर जे.जे. अस्पताल भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी सुनील शिर्के, रामचंद्र तुकाराव जाधव और विजय सिंह मोरे से विस्तार से पूछताछ कर के उन्हें 6 फरवरी, 2019 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

सौजन्य- सत्यकथाअप्रैल 2018

6 महीने भी न चल सका 7 जन्मों का रिश्ता

अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. क्योंकि अब मेरा तुम्हारे बिना रहना संभव नहीं है. अगर तुम ने शादी में देर कर दी तो कहीं मेरे घर वाले किसी दूसरे से मेरी शादी न कर दें.’’

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निशातगंज की रहने वाली स्मिता विशाल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. जबकि विशाल और स्मिता की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था. विशाल देखने में स्लिम था, इसलिए उस की उम्र का पता नहीं चलता था.

विशाल को स्मिता से शादी करने में कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन वह चाहता था कि स्मिता अपनी पढ़ाई पूरी कर ले और उस की उम्र शादी लायक हो जाए. क्योंकि दोनों की जातियां अलगअलग थीं. इसलिए दोनों के ही घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं थे. उन्हें कोर्ट में शादी करनी पड़ती, जिस के लिए स्मिता का बालिग होना जरूरी था.

स्मिता के घर वालों को जैसे ही विशाल और उस के प्यार के बारे में पता चला था, उन्होंने स्मिता के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी थी. वे उस की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. इसी से स्मिता चिंतित थी और विशाल पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी.

विशाल उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर के गोला गोकरणनाथ स्थित बताशे वाली गली के रहने वाले आशुतोष सोनी का बेटा था. आशुतोष सोनी की वहां ज्वैलरी की दुकान थी. विशाल का छोटा भाई विकास पिता के साथ दुकान संभालता था, जबकि बड़ा भाई गौरव लखनऊ में रहता था. वह वहां किसी स्कूल में अध्यापक था.

विशाल और स्मिता की दोस्ती, जो प्यार में बदल गई विशाल खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, इस के लिए उस ने गहने बनाने का काम सीखा और लखनऊ की एक ज्वैलरी शौप में नौकरी कर ली. निशातगंज की जिस दुकान में विशाल काम करता था, स्मिता वहां आतीजाती थी. इसी आनेजाने में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो जल्दी ही उन में दोस्ती हुई और फिर यही दोस्ती प्यार में बदल गई.

स्मिता जब विशाल पर शादी के लिए कुछ ज्यादा ही दबाव डालने लगी तो उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘स्मिता हमें आज नहीं तो कल शादी करनी ही है. जबकि हमें पता है कि हमारी शादी का हमारे घर वाले विरोध कर रहे हैं. मैं अपने घर वालों की उतनी चिंता नहीं करता, जितनी तुम्हारे घर वालों की करता हूं. अगर हम ने घर वालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी कर ली तो मुझे तुम्हारे सहयोग की जरूरत पडे़गी. क्योंकि शादी के बाद तुम्हारे घर वाले पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. तब तुम बदल तो नहीं जाओगी?’’

‘‘तुम्हारे घर वाले भले ही इस शादी का विरोध न करें, पर मेरे घर वाले इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं हैं. रही बात बदल जाने की तो कान खोल कर सुन लो, मैं इस जन्म की ही बात नहीं कर रही, 7 जन्मों तक तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगी.’’ इतना कह कर स्मिता ने विशाल को गले लगा लिया.

स्मिता बालिग हो गई तो कुछ दिनों तक तैयारी कर के स्मिता और विशाल ने अप्रैल, 2017 में लवमैरिज कर ली. विशाल के घर वाले तो केवल उस से नाराज ही हुए, स्मिता के घर वालों ने तो उस से रिश्ता ही खत्म कर लिया, वे विशाल को धमकियां भी देने लगे. विशाल और स्मिता के एकजुट होने से धीरेधीरे उन का विरोध तो खत्म हो गया, पर उन दोनों का ही अपनेअपने घर वालों से कोई संबंध नहीं रह गया.

स्मिता और विशाल का प्यार जब कलह में बदल गया शादी के बाद विशाल और स्मिता अकेले पड़ गए थे. घर वालों से पूरी तरह से संबंध खत्म होने की वजह से गृहस्थी के खर्च का सारा बोझ विशाल के कंधों पर आ गया था. घर के किराए से ले कर खानेपहनने की पूरी व्यवस्था विशाल को अकेले करनी पड़ रही थी, जिस की वजह से उसे दुकान पर ज्यादा से ज्यादा काम करना पड़ रहा था.

विशाल मेहनती और व्यवहारकुशल तो था ही, गंभीर भी था. जबकि स्मिता उस के उलट चंचल स्वभाव की थी. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, इसलिए विशाल को उस की पढ़ाई का भी खर्च उठाना पड़ रहा था. जबकि स्मिता ने कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रही थी. वह खाना भी बाहर से ही मंगाती थी. शादी के बाद उस के शौक भी बढ़ गए थे.

नहीं बैठ सका विशाल और स्मिता में सामंजस्य विशाल को घर खर्च के अलावा स्मिता की पढ़ाई, उस के शौक और अन्य दूसरे खर्चे भी उठाने पड़ रहे थे. स्मिता को घर के कामकाज भी नहीं आते थे, जिस से विशाल को काफी परेशानी होती थी. परेशान हो कर एक दिन विशाल ने कहा, ‘‘स्मिता रोजरोज बाजार का खाना ठीक नहीं है. तुम कुछ भी बना लिया करो. मुझे दुकान पर जाना होता है. घर में खाना न बनने से बाजार से पूड़ीसब्जी मंगाता हूं. बाहर से खाना मंगाता हूं तो दोस्त कहते हैं कि घर में बीवी है, फिर भी बाजार का खाना खाते हो.’’

लेकिन स्मिता पर विशाल की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह सुबह देर तक सोती रहती थी. अकसर वह विशाल के दुकान पर जाने के बाद ही सो कर उठती थी. रात में 9 बजे वह घर आता तो स्मिता उस से बाहर चल कर खाने को कहती.

उस के इस व्यवहार से विशाल को गुस्सा तो बहुत आता था, पर वह कुछ कह नहीं पाता था. कभी कुछ कहता तो स्मिता सीधे कहती, ‘‘शादी से पहले तो तुम रोज बाहर खाने के लिए कहते थे. अब मैं बाहर खाने के लिए कहती हूं तो नाराज हो जाते हो.’’

‘‘स्मिता, शादी से पहले हम कुछ देर साथ रहने के लिए खाना खाने के लिए बाहर जाते थे. अब हम साथसाथ रहते हैं तो हमें घर पर ही खाना बनाना चाहिए. घर में बना कर खाने से पैसे भी कम खर्च होेते हैं और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.’’

‘‘विशाल, तुम तो जानते हो कि मुझे खाना बनाना नहीं आता. दाल खराब बन गई तो मैं खुद ही खाना नहीं खा पाऊंगी. इसलिए बाहर खा लेना ही ठीक रहेगा.’’ स्मिता कहती.

न चाहते हुए विशाल को स्मिता की बात माननी पड़ती. शादी से पहले स्मिता का जो व्यवहार विशाल को अच्छा लगता था, अब वही खराब लगने लगा था. वह स्मिता की बातों से तनाव में आ जाता, जिस की वजह से दोनों में झगड़ा होने लगता.

शादी के बाद धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच जहां सामंजस्य बैठता है, वहीं विशाल और स्मिता के बीच तनाव और टकराव रहने लगा था. खर्च बढ़ने की वजह से विशाल को साथियों से कर्ज लेना पड़ा. वह परेशान रहता था कि अगर खर्च इसी तरह होता रहा तो वह कहां से पूरा करेगा.

खर्च को ले कर ही विशाल और स्मिता के बीच झगड़ा बढ़ता गया. खर्च पूरा होता न देख, स्मिता विशाल से वह नौकरी छोड़ कर कहीं ज्यादा वेतन वाली नौकरी करने को कहने लगी. एक दिन तो स्मिता ने विशाल के मालिक को फोन कर के कह भी दिया कि अब विशाल उन के यहां नौकरी नहीं करेगा.

विशाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. इस से वह काफी परेशान हो उठा. स्मिता की हरकतों से तंग आ कर उस ने अपने साथियों को अपने घर वालों के मोबाइल नंबर नोट करा दिए कि अगर कभी उसे कुछ हो जाता है तो वे उस के घर वालों को खबर कर देंगे.

इस तरह सब खत्म हो गया   26 सितंबर, 2017 की सुबह की बात है. विशाल दुकान पर जाने को तैयार हो रहा था, तभी स्मिता उस से लड़ने लगी. गुस्से में उस ने विशाल का फोन छीन कर उस की दुकान के मालिक को फोन कर दिया कि आज से विशाल उन की दुकान पर काम नहीं करेगा.

मालिक ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘तुम विशाल से मेरी बात कराएं, क्योंकि तुम्हारी बात पर मुझ से यकीन नहीं है.’’

विशाल फोन मांगता रहा, पर स्मिता ने उसे फोन नहीं दिया. विशाल को यह बात काफी बुरी लगी. नाराज हो कर वह बाजार गया और वहां से नैप्थलीन की गोलियां खरीद लाया. उस ने स्मिता के सामने ही कई गोलियां निगल लीं. इस से स्मिता घबरा गई. उस की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे?

गोलियों ने अपना असर दिखाना शुरू किया. विशाल के मुंह से झाग निकलने लगा. घबराई स्मिता ने विशाल की दुकान के मालिक को फोन कर के बता दिया कि विशाल ने जहर खा लिया है.

इतना कह कर स्मिता ने तुरंत फोन काट दिया. इस के बाद दुकान के मालिक ने फोन किया तो उस ने फोन रिसीव नहीं किया, जिस से दुकान का मालिक भी घबरा गया. उस ने तुरंत दुकान पर काम करने वाले 2 लड़कों को स्मिता की मदद के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि विशाल रहता कहां है. जब तक पूछतेपूछते वे विशाल के घर पहुंचे, उस की हालत खराब हो चुकी थी.

स्मिता को कुछ समझ में नहीं आया तो डर कर उस ने भी बची हुई गोलियां खा लीं. विशाल के साथ काम करने वाले प्रदीप और नसीम जब उस के घर पहुंचे तो मकान मालिक को विशाल के जहर खाने वाली बात बताई. मकान मालिक दोनों को साथ ले कर पहली मंजिल पर स्थित विशाल के कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

किसी तरह उन्होंने दरवाजा खोला तो विशाल और स्मिता फर्श पर बेहोश पड़े मिले. स्मिता की चूडि़यां कमरे की फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. दोनों के मोबाइल फोन और चप्पलें पड़ी थीं. एक मोबाइल फोन टूटा पड़ा था. नैप्थलीन की कुछ गोलियां फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. प्रदीप और नसीम ने यह बात दुकान के मालिक अनुराज अग्रवाल को बताई तो उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया.

पूरा न हुआ 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा घटना की सूचना पा कर थाना गाजीपुर के एसएसआई ओ.पी. तिवारी, एसआई कमलेश राय अपनी टीम के साथ विशाल के कमरे पर पहुंचे तो दोनों को मरा समझ कर ले जाने लगे. लेकिन तभी उन्हें लगा कि विशाल की सांसे चल रही हैं. इस के बाद उन्हें रामनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना थानाप्रभारी गिरिजाशंकर त्रिपाठी को दी गई तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.

शादी के 6 महीने के अंदर ही युवा दंपत्ति द्वारा इस तरह जान देने की बात पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था. पुलिस ने जांच शुरू की तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उन की मौत नेप्थलीन की गोलियां खाने से हुई थी. इस के बाद पुलिस ने मान लिया कि दोनों ने आत्महत्या ही की है. पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

विशाल के भाई का कहना था कि विशाल ने अपनी परेशानी कभी किसी से नहीं बताई. शादी के बाद वह तनाव में रहता था, यह बात उन्हें विशाल के दोस्तों से पता चली थी. जिस स्मिता के लिए विशाल ने अपना घरपरिवार छोड़ कर 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था, वह उस के साथ 6 महीने भी नहीं बिता सका.

कई बार प्यार में अंधे हो कर लोग ऐसे बंधन मे बंध जाते हैं कि उस को निभाना मुश्किल हो जाता है. प्यार करने वाले अगर शादी करते हैं तो उन्हें स्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.

प्यार में एकदूसरे का साथ देने की कसमें खाना तो आसान है, लेकिन शादी के बाद जिम्मेदारियां पड़ती हैं तो पता चलता है कि प्यार के बाद शादी क्या चीज होती है. इसलिए काफी सोचसमझ कर ही प्यार के बाद शादी करनी चाहिए.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

भतीजे का बैर : चाचा को उतारा मौत के घाट

11सितंबर, 2019 को सुबह के समय तिलोनिया गांव के कुछ लोग जब गांव के बाहर स्थित तालाब के पास पहुंचे तो उन्हें कीचड़ में फंसी एक कार दिखाई दी. यह गांव राजस्थान के अजमेर जिले के थाना बांदरसिंदरी के अंतर्गत आता था. कार किस की है और यहां कैसे फंस गई, यह सोचते हुए लोग जब कार के पास पहुंचे तो वह लावारिस निकली. कार के ड्राइवर या मालिक का कोई पता नहीं था.

कीचड़ से कार निकालना आसान नहीं था, इसलिए गांव वालों ने गांव से एक ट्रैक्टर ला कर कार को कीचड़ से बाहर निकाला. कार के शीशों पर खून के धब्बे लगे दिखे तो ग्रामीणों को किसी गड़बड़ी का अंदेशा हुआ. उन्होंने कार के शीशों से अंदर झांक कर देखा. सीट पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. आननफानन में फोन कर के यह सूचना थाना बांदरसिंदरी को दी गई.

कार में लाश मिलने की सूचना पा कर थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. तब तक लाश देखने के लिए आसपास के गांवों के तमाम लोग आ चुके थे. पुलिस ने जांच की तो मृतक का चेहरा किसी वजनदार चीज से कुचला हुआ मिला. इस के अलावा उस के शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे, शरीर कई जगह से गुदा हुआ था.

थानाप्रभारी ने लोगों से मृतक के बारे में पूछा तो तिलोनिया के एक व्यक्ति ने लाश पहचान ली. उस ने बताया कि यह लाश माला गांव के रहने वाले फौजी प्रधान गुर्जर की है, कार भी उसी की है. पुलिस ने किसी तरह मृतक के घर वालों का फोन नंबर हासिल कर उन्हें सूचना दे दी.

सूचना पा कर मृतक के पिता गोप गुर्जर अपने परिचितों के साथ मौके पर आ गए. माला गांव से आए गोप गुर्जर ने मृतक की शिनाख्त अपने 35 वर्षीय बेटे प्रधान गुर्जर के रूप में की.

प्रधान गुर्जर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में था. इन दिनों उस की पोस्टिंग सिक्किम में थी. वह कुछ दिन पहले छुट्टी ले कर गांव आया था. गोप गुर्जर ने बताया कि प्रधान 10 सितंबर, 2019 की सुबह अजमेर जाने को कह कर करीब साढ़े 8 बजे घर से कार ले कर निकला था. उस के 2 छोटे भाई अजमेर के पास भूणाबाय स्थित एक डिफेंस एकेडमी में पढ़ रहे थे. प्रधान उन से ही मिलने गया था.

पुलिस को पता चला कि भाइयों से मिलने के बाद प्रधान जब गांव लौट रहा था. तब उस के साथ उस का रिश्ते का भतीजा जीतू उर्फ जीतराम गुर्जर और 2 अन्य लोग थे. पुलिस को यह जानकारी डिफेंस एकेडमी के संचालक शंकर थाकण ने दी थी. प्रधान गुर्जर और उस के तीनों साथी रात के करीब साढ़े 8 बजे एकेडमी से निकले थे, लेकिन घर नहीं पहुंचे थे.

बीएसएफ जवान की हत्या की वारदात से ग्रामीणों में रोष फैल गया. उन का कहना था कि प्रधान गुर्जर को तो मार ही डाला, साथ ही उस के भतीजे जीतू गुर्जर का भी कोई अतापता नहीं है. कहीं उस का भी तो मर्डर नहीं कर दिया गया.

गांव वालों के रोष को भांप कर थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत कराया. खबर मिलते ही सीओ (ग्रामीण) सतीश यादव घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि पुलिस हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी.

डिफेंस एकेडमी से खबर मिलते ही मृतक के छोटे भाई भी घटनास्थल पर आ गए. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. वे समझ नहीं पा रहे थे कि प्रधान की हत्या किस ने और क्यों की.

कार में एक डंडा भी पड़ा हुआ था, जिस पर खून लगा था. मृतक की पैंट उतरी हुई थी और उस की गुदा खून से सनी थी. इस से लगा कि हत्यारों ने वह डंडा मृतक की गुदा में डाला था. मतलब साफ था कि हत्यारा मृतक से बहुत ज्यादा नफरत करता था, तभी उस ने प्रधान की गुदा में लकड़ी का डंडा डालने के अलावा उस के शरीर को जगहजगह से गोद दिया था.

मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोपहर करीब सवा 12 बजे शव को पोस्टमार्टम के लिए किशनगढ़ के राजकीय यज्ञ नारायण अस्पताल भेज दिया. सैकड़ों गांव वाले अस्पताल भी पहुंच गए.

दोपहर करीब 2 बजे ग्रामीणों की भीड़ अचानक बिफर गई. उन्होंने पोस्टमार्टम करने का विरोध किया. उन का कहना था कि मृतक का भतीजा जीतू गुर्जर भी लापता है. पुलिस उस का भी पता लगाए कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.

भीड़ कोई हंगामा खड़ा न कर दे, इसलिए एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी भी अस्पताल पहुंच गए. मृतक के घर वाले और अन्य लोग जीतू गुर्जर का पता लगाने तक पोस्टमार्टम न कराने की बात पर अड़े थे.

बीएसएफ जवान प्रधान गुर्जर की हत्या की सूचना मिलने पर क्षेत्रीय विधायक सुरेश टांक और सांसद भागीरथ चौधरी भी राजकीय यज्ञ नारायण अस्पताल पहुंचे. दोनों नेताओं ने मृतक के परिजनों को ढांढस बंधाया और पुलिस अधिकारियों से घटना की जानकारी ली. सांसद भागीरथ चौधरी और विधायक सुरेश टांक के समझाने के बाद मृतक के परिजन और ग्रामीण पोस्टमार्टम के लिए राजी हुए.

इस के बाद पुलिस ने डा. गुरुशरण चौधरी, डा. सुनील बैरवा और डा. श्यामसुंदर के मैडिकल बोर्ड से शव का पोस्टमार्टम कराया. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद प्रधान गुर्जर का शव परिजनों को सौंप दिया.

मामला बीएसएफ जवान की हत्या का था, इसलिए एसपी कुंवर राष्ट्रदीप ने इस केस के खुलासे के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी के निर्देशन और सीओ (ग्रामीण) सतीश यादव के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम में थाना बांदरसिंदरी के थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा, थानाप्रभारी (अरांई) विक्रम सेवावत, एसआई इंद्र सिंह, एएसआई कुलदीप सिंह, हैडकांस्टेबल श्रवणलाल, भंवर सिंह, सिपाही जय सिंह, गोपाल, रामगोपाल जाट वगैरह शामिल थे.

लोगों की बातों में कई पेंच थे एसपी कुंवर राष्ट्रदीप का आदेश पाते ही टीम जांच में जुट गई. मृतक के परिवार वालों से मृतक के अजमेर जाने और शाम को अजमेर से वापस आने की बात सामने आई. इस पर पुलिस ने गेगल और जीवी के टोल बूथों पर लगे सीसीटीवी फुटेज खंगाले.

पुलिस टीम ने मृतक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर यह पता करने की कोशिश कि वह आखिरी बार किस के साथ रहा और किस के संपर्क में था. प्रधान गुर्जर अजमेर के भूणाबाय स्थित जीत डिफेंस एकेडमी में पढ़ रहे अपने भाइयों से भी मिलने गया था. इस बारे में पुलिस ने एकेडमी संचालक शंकर थाकण से भी पूछताछ की.

शंकर थाकण ने बताया कि रात 8 बजे प्रधान गुर्जर के साथ 3 लोग कार से आए थे. इन में एक उन का भतीजा जीतू था. जीतू कार से नीचे उतरा था, जबकि 2 युवक कार में ही बैठे रहे. वे दोनों कार से नीचे नहीं उतरे थे. प्रधान ने शंकर थाकण से अपने भतीजे जीतू का परिचय कराया था.

शंकर ने पुलिस को बताया कि उस ने प्रधान गुर्जर और उस के साथियों को चाय पिलाई थी. कार में बैठे 2 लोगों के लिए चाय कार में ही भेजी गई थी. उन से एकेडमी में आ कर चाय पीने का आग्रह किया गया था, मगर वे कार से नहीं उतरे थे.

चाय पीते समय प्रधान गुर्जर के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. उन्होंने फोन करने वाले से कहा था कि वह तुरंत किशनगढ़ जा कर मिलते हैं. इस के बाद वह उसी समय किशनगढ़ के लिए रवाना हो गए थे. तब तक रात के साढ़े 8 बज चुके थे.

जबकि प्रधान गुर्जर के पिता गोपी गुर्जर ने पुलिस को बताया कि प्रधान के मोबाइल पर फोन कर के उन्होंने ही उस के घर आने के बारे में पूछा था. तब उस ने बताया था कि वह अजमेर से निकल गया है और थोड़ी देर में घर पहुंच जाएगा. इस के बाद प्रधान का फोन बंद हो गया था.

इस पूछताछ एवं घटनाक्रम से पुलिस को लगा कि प्रधान गुर्जर के साथ जो लोग मौजूद थे, उन्होंने ही रास्ते में उस की हत्या की होगी.

मृतक प्रधान गुर्जर शादीशुदा था. उस के 2 बेटे भी थे, जिन की उम्र क्रमश: 3 साल और डेढ़ साल थी. ऐसे में किसी अवैध संबंध की गुंजाइश भी कम थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि प्रधान गुर्जर 10 सितंबर, 2019 को अपने भतीजे जीतू उर्फ जितेंद्र गुर्जर निवासी माला गांव और उस के दोस्त रामअवतार व हनुमान निवासी किशनगढ़ के साथ अजमेर दरगाह और पुष्कर घूमने आया था. पुलिस ने तीनों की तलाश की तो वे अपनेअपने घरों से फरार मिले. पुलिस ने उन के फोन की कालडिटेल्स और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज के आधार पर आखिर उन्हें ढूंढ ही लिया.

पुलिस ने जीतू को जयपुर से और उस के दोनों दोस्तों रामअवतार और हनुमान को किशनगढ़ से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने प्रधान गुर्जर की हत्या के संबंध में उन तीनों से अलगअलग पूछताछ की. अंतत: उन्होंने अपना अपराध कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने रातदिन एक कर के 24 घंटे में प्रधान फौजी की हत्या के रहस्य से परदा उठा दिया. पूछताछ करने के बाद आरोपियों ने बीएसएफ जवान प्रधान गुर्जर की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

24 घंटे में आई पूरी कहानी सामने  अजमेर जिले के उपखंड किशनगढ़ के अंतर्गत एक गांव है माला. यह गांव गुर्जर बाहुल्य है. यहां के अधिकांश गुर्जर खेतीबाड़ी, पशुपालन एवं दूध का कारोबार करते हैं. गोपी गुर्जर परिवार के साथ इसी गांव में रहते थे. वह खेतीबाड़ी करते थे.

गोपी का बड़ा बेटा प्रधान गुर्जर हंसमुख स्वभाव का गबरू जवान था. पढ़ाई के दौरान ही वह बीएसएफ में कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया था. बेटे की नौकरी से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई थी. इस के बाद उन्होंने प्रधान की शादी रूपा से कर दी.

इस परिवार की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. प्रधान को जब भी छुट्टी मिलती, वह घर आ जाता था. प्रधान का एक भतीजा था जीतू उर्फ जितेंद्र गुर्जर. प्रधान गुर्जर और जीतू गुर्जर के परिवारों में काफी सालों से बोलचाल बंद थी. लेकिन प्रधान और जीतू की आपस में बोलचाल थी.

काफी पहले प्रधान गुर्जर और जीतू के परिवारों में काफी बड़ा फसाद हुआ था. उस झगड़े के बाद दोनों परिवार एकदूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. लेकिन इस दुश्मनी के बावजूद जीतू का अपने चाचा प्रधान के यहां आनाजाना था.

प्रधान वैसे भी कम समय के लिए छुट्टी पर घर आता था, इसलिए वह दुश्मनी नहीं रखता था. प्रधान का कहना था कि भाइयों में अनबन हो सकती है, दुश्मनी नहीं पालनी चाहिए. जीतू की पत्नी बहुत खूबसूरत थी. वह रिश्ते के हिसाब से प्रधान की बहू लगती थी, मगर जीतू की शादी के बाद प्रधान जब छुट्टी पर गांव आया, तब उस ने जीतू की पत्नी को देखा था.

वह पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गया था. वह इतनी खूबसूरत थी कि देखने वाला अपलक देखता रह जाता था. फौजी प्रधान गुर्जर भी उसे देखता रह गया था. जीतू की पत्नी पढ़ीलिखी थी और सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहती थी. प्रधान से पहली मुलाकात में ही जीतू की पत्नी खुल गई थी. एक बार बातचीत हुई तो अकसर फौजी उस के आगेपीछे घूमने लगा.

दोनों सोशल मीडिया पर भी एकदूसरे से जुड़े थे. उन दोनों की नजदीकियां देख कर जीतू को जलन होने लगी थी. वह चाहता था कि उस की पत्नी प्रधान से दूर रहे. जीतू ने पत्नी से कहा भी कि वह प्रधान से बात न किया करे, मगर पत्नी खुले विचारों की थी. उस का कहना था कि बात करना गलत नहीं है. गलत तो बुरी सोच होती है.

पत्नी ने जीतू से कहा कि प्रधान अच्छा आदमी है. वैसे भी वह गांव में रहता कितने दिन है. चंद दिनों के लिए फौज से छुट्टी पर घर आता है. जीतू को ऐसा लग रहा था कि प्रधान से उस की पत्नी के अवैध संबंध हैं, इसीलिए वह उस की बात नहीं मान रही है. पति के सामने ही वह फौजी की प्रशंसा कर रही थी. इस से जीतू को पत्नी पर शक हो गया.

एक बार शक का कीड़ा दिमाग में घुसा तो वह तब तक कुलबुलाता रहा, जब तक उस ने कहर नहीं ढा दिया. पत्नी की जिद और व्यवहार की वजह से जीतू ने पिछले डेढ़दो साल से अपनी पत्नी से बात तक बंद कर रखी थी. कुछ ही दिन पहले जीतू का पत्नी से राजीनामा हुआ था.

पत्नी ने भी सोचा कि पति के कहे मुताबिक चलना सही है, इसलिए उस ने पति को विश्वास दिलाया कि वह प्रधान से बात नहीं करेगी. साथ ही प्रधान से भी कह देगी कि वह उस से बात न करे. पत्नी के इस आश्वासन पर जीतू फिर से पत्नी से हंसनेबोलने लगा.

लेकिन पति से वादा करने के बावजूद जीतू की पत्नी ने प्रधान गुर्जर से बातचीत करना बंद नहीं किया. वह चोरीछिपे मोबाइल पर भी प्रधान से बात कर लेती थी. यह सब बातें जीतू से छिपी न रह सकीं. इस से उसे विश्वास हो गया कि उस की पत्नी जरूर प्रधान के प्यार में फंस गई है.

बस जीतू ने उसी दिन मन ही मन अंतिम निर्णय कर लिया कि अब वह अपने चाचा प्रधान गुर्जर को मौत के घाट उतार कर ही शांत होगा. क्योंकि वह पत्नी को समझासमझा कर वह थक चुका था.

संदेह के दायरे बड़े होते गए  सितंबर, 2019 के पहले हफ्ते में प्रधान गुर्जर शिलौंग से छुट्टी ले कर गांव आया. प्रधान जीतू की पत्नी से भी मिला. जीतू से यह सहन नहीं हो रहा था. हद तो तब हो गई, जब प्रधान जीतू की पत्नी को अजमेर से अपनी गाड़ी में गांव लाने लगा.

जीतू की पत्नी कोचिंग करने अजमेर जाती थी. प्रधान स्वयं कार ले कर अजमेर जाता और कोचिंग की छुट्टी होने पर जीतू की पत्नी को अपनी कार में बैठा कर गप्पें मारते हुए गांव आता.

जीतू ने यह देखा तो उस का खून खौल उठा. उस ने निर्णय कर लिया कि वह प्रधान गुर्जर को इस तरह योजना बना कर मारेगा कि उस पर किसी को शक तक नहीं होगा.

जीतू ने इस काम को आसान करने के लिए अपने अजीज दोस्तों रामअवतार और हनुमान निवासी किशनगढ़ को अपने साथ मिला लिया. इन लोगों ने फौजी की हत्या के लिए 10 सितंबर, 2019 का दिन चुना गया.

10 सितंबर, 2019 को प्रधान गुर्जर अकेला ही दरगाह जाने के लिए घर से निकला था. किशनगढ़ में उसे उस का भतीजा जीतू मिला. अजमेर दरगाह और पुष्कर दर्शन के लिए वह भी उस के साथ चल दिया. योजना के अनुसार जीतू ने रामअवतार और हनुमान को अजमेर भेज दिया था.

जब प्रधान और जीतू अजमेर पहुंचे तो जीतू के दोस्त रामअवतार और हनुमान उन के साथ हो लिए. जीतू ने प्रधान से कहा, ‘‘चाचा, ये मेरे दोस्त हैं. दोनों जिगरी यार हैं. मैं ने ही इन्हें अजमेर दरगाह और पुष्कर में दर्शन को कहा था.’’

‘‘कोई बात नहीं जीतू, एक से भले दो और दो से भले चार. गाड़ी पर वजन थोड़े ही पड़ेगा.’’ प्रधान ने हंस कर कहा.

प्रधान गुर्जर की कार से चारों पहले अजमेर दरगाह गए. दर्शन के बाद पुष्कर गए और पूजाअर्चना की. पुष्कर से अजमेर लौटने के दौरान सब ने शराब पी और एक होटल पर खाना खाया. इस के बाद प्रधान अपने छोटे भाइयों से मिलने डिफेंस एकेडमी गया.

जीतू तो उस के साथ डिफेंस एकेडमी में गया, लेकिन रामअवतार और हनुमान गाड़ी में ही बैठे रहे. उन्हें डर था कि कोई पहचान न ले. इसलिए दोनों गाड़ी से नहीं उतरे. उन दोनों ने एकेडमी संचालक द्वारा भेजी चाय भी गाड़ी में ही पी थी.

योजनानुसार सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. डिफेंस एकेडमी से चारों गाड़ी में सवार हो कर गांव के लिए रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने फिर शराब पी. इस के बाद मंडावरिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोकी. चारों शराब के नशे में टल्ली थे. तेज आवाज में टेपरिकौर्डर चला कर सब ने जम कर डांस किया. इस के बाद जीतू ने फौजी प्रधान गुर्जर के चेहरे पर पीछे से बेसबाल बैट से हमला कर दिया. वह जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया.

बेहोश फौजी की पैंट खोल कर इन लोगों ने उस की गुदा में डंडा चढ़ाया. फौजी तड़प कर रह गया. उस की गुदा से काफी खून भी निकला. इस के बाद इन लोगों ने फौजी को बुरी तरह मारापीटा और जमीन पर घसीटने के बाद गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया.

फौजी की मौत के बाद इन लोगों ने उस की लाश गाड़ी में डाल दी. फिर फौजी की जेबों की तलाशी ली, कार की भी तलाशी ली गई ताकि कोई सबूत न छूट जाए. गाड़ी की आरसी जीतू ने जेब में रख ली. इस के बाद गाड़ी ले कर तिलोनिया की तरफ निकल गए.

हत्यारों की योजना थी कि लाश का चेहरा कुचल कर सुनसान जगह पर फेंक देंगे ताकि शव की शिनाख्त न हो सके. पहचान छिपाने के लिए ही मृतक का चेहरा कुचला गया था. फौजी की हत्या के बाद शव ठिकाने लगाने के बाद हत्यारे तिलोनिया से हरमाड़ा, सुरसुरा होते हुए नागौर और अन्य रास्तों से जयपुर की ओर जाने वाले थे.

आगे की योजना यह थी कि कहीं सुनसान जंगल में शव को ठिकाने लगा दिया जाएगा, लेकिन कार तिलोनिया के तालाब के पास कीचड़ में फंस गई. गाड़ी फंसने से मामला बिगड़ गया और वे सब प्रधान का शव और गाड़ी छोड़ कर चले गए. जातेजाते इन लोगों ने गाड़ी की चाबी, फौजी का मोबाइल फोन साथ ले लिया था.

तीनों अंधेरे में ही पैदल चल पड़े. रास्ते में इन्होंने गाड़ी की चाबी और आरसी फेंक दी. मोबाइल भी तोड़ कर फेंक दिया. 4-5 किलोमीटर साथ चलने के बाद जीतू जयपुर की तरफ चला गया, जबकि रामअवतार और हनुमान किशनगढ़ चले गए. तीनों अपने घर नहीं गए.

फेसबुक का जहर बना कारण  जीतू ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी और मृतक फौजी प्रधान गुर्जर के अवैध संबंध थे. प्रधान उस से सोशल मीडिया पर चैटिंग कर अश्लील वीडियो भेजने लगा था. इस की जानकारी हुई तो उस ने यह बातप्रधान गुर्जर की पत्नी रूपा गुर्जर को बता दी, लेकिन इस के बावजूद फौजी का रवैया नहीं सुधरा तो मजबूरी में फौजी को ठिकाने लगाना पड़ा.

पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्तों से पूछताछ के बाद प्रैसवार्ता करने का निर्णय लिया. उस दिन एसपी आईजी कार्यालय में एक मीटिंग में व्यस्त थे. एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी को शाम 4 बजे प्रैस कौन्फ्रैंस करनी थी, लेकिन इस से पहले ही सोशल मीडिया पर प्रैस नोट की प्रति आ गई. एसपी कुंवर राष्ट्रदीप को जब यह जानकारी मिली तो इस में सिपाही रामगोपाल का नाम सामने आया. उन्होंने रामगोपाल को निलंबित कर दिया.

दरअसल, इस केस को 24 घंटे के अंदर खोलने में सिपाही रामगोपाल का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था. इसलिए जैसे ही उस के हाथ इस मामले की प्रैस रिलीज की कौपी लगी तो उस ने वह सोशल साइट पर डाल दी जो वायरल होती हुई प्रैस कौन्फ्रैंस शुरू होने से पहले ही पत्रकारों के पास पहुंच गई थी. सिपाही रामगोपाल का अतिउत्साह उसी को महंगा पड़ गया.

पुलिस ने प्रधान गुर्जर की हत्या के आरोपियों जीतू गुर्जर, रामअवतार और हनुमान को 14 सितंबर, 2019 को अजमेर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें 3 दिन के पुलिस रिमांड पर जांच टीम को सौंप दिया गया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद अन्य सबूत जुटाए. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने प्रधान गुर्जर की लाश और गाड़ी दोनों को ठिकाने लगाने की योजना बना रखी थी.

प्रधान की लाश को वे लोग गांव की किसी सुनसान जगह पर ठिकाने लगाना चाहते थे. वहीं गाड़ी को भी गहरी नाड़ी (तालाब) में डुबोने की योजना थी, ताकि वारदात का किसी को पता न चले, लेकिन उन की योजना पर पानी फिर गया.

उधर 16 सितंबर, 2019 को सीमा सुरक्षा बल के जवान प्रधान गुर्जर के परिवार को विभाग की ओर से सहायता राशि सौंप दी गई. बल की ओर से आए अधिकारी ने मृतक प्रधान गुर्जर की पत्नी रूपा गुर्जर को चैंक सौंपा.

17 सितंबर को पुलिस ने जीतराम, रामअवतार एवं हनुमान को न्यायालय में पेश कर 3 दिन का पुलिस रिमांड बढ़वाया. रिमांड अवधि पूरी होने के बाद तीनों आरोपियों को फिर से 19 सितंबर, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

एक गुनाह मोहब्बत : क्यों बनी बेटी पिता की कातिल

मध्य प्रदेश के शहर ग्वालियर के थाना थाटीपुर के थानाप्रभारी आर.बी.एस. विमल 5 अगस्त की रात करीब 3 बजे इलाके की गश्त लगा कर थोड़ा सुस्ताने के मूड में थे. तभी उन के पास किसी महिला का फोन आया. महिला ने कहा, ‘‘सर, मैं तृप्तिनगर से बोल रही हूं. मेरे पति रविदत्त दूबे का मर्डर हो गया है. उन की गोली मार कर हत्या कर दी गई है,’’ इतना कहने के बाद महिला सिसकने लगी. अपना नाम तक नहीं बता पाई.

थानाप्रभारी ने उस से कहा भी, ‘‘आप कौन बोल रही हैं? घटनास्थल और आसपास की लोकेशन के बारे में कुछ बताइए. वहां पास में और कौन सी जगह है, कोई चर्चित दुकान, शोरूम या स्कूल आदि है तो उस का नाम बोलिए.’’

‘‘सर, मैं भारती दूबे हूं. तृंिप्तनगर के प्रवेश द्वार के पास ही लोक निर्माण इलाके में टाइमकीपर दूबेजी का मकान पूछने पर कोई भी बता देगा.’’

महिला बोली.  घटनास्थल का किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं करने की सख्त हिदायत देने के कुछ समय बाद ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ घनी आबादी वाले उस इलाके में पहुंच गए. थानाप्रभारी आर.बी.एस. विमल और एसआई तुलाराम कुशवाह के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों को अल सुबह देख कर वहां के लोग चौंक गए.

लोगों से भारती दूबे का घर मालूम कर के वह वहां पहुंच गए. जब वह पहली मंजिल पर पहुंचे तो एक कमरे में भारती के पति रविदत्त दूबे की लाश पड़ी थी. पुलिस के पीछेपीछे कुछ और लोग भी वहां आ गए. उन में ज्यादातर परिवार के लोग ही थे.

थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया तो बिस्तर पर जहां लाश पड़ी थी, वहां भारी मात्रा में खून भी निकला हुआ था. उन के पेट में गोली लगी थी.

मुंह से भी खून निकल रहा था, लाश की स्थिति को देख कर खुद गोली मार कर आत्महत्या का भी अनुमान लगाया गया, किंतु वहां हत्या का न कोई हथियार नजर आया और न ही सुसाइड नोट मिला.

घर वालों ने बताया कि उन्हें किसी ने सोते वक्त गोली मारी होगी. हालांकि इस बारे में सभी ने रात को किसी भी तरह का शोरगुल सुनने से इनकार कर दिया. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम भी बुला ली.

पुलिस को यह बात गले नहीं उतरी. फिर भी थानाप्रभारी ने हत्या के सुराग के लिए कमरे का कोनाकोना छान मारा. उन्होंने घर का सारा कीमती सामान भी सुरक्षित पाया. इस का मतलब साफ था कि बाहर से कोई घर में नहीं आया था.

अब बड़ा सवाल यह था कि जब बाहर से से कोई आया ही नहीं, तो रविदत्त  को गोली किस ने मारी? फोरैंसिक एक्सपर्ट अखिलेश भार्गव ने रविदत्त के पेट में लगी गोली के घाव को देख कर नजदीक से गोली मारे जाने की पुष्टि की.

जांच के लिए खोजी कुत्ते की मदद ली गई. कुत्ता लाश सूंघने के बाद मकान की पहली मंजिल पर चक्कर लगाता हुआ नीचे बने कमरे से आ गया. वहां कुछ समय घूम कर बाहर सड़क तक गया, फिर वापस बैडरूम में लौट आया. बैड के इर्दगिर्द ही घूमता रहा. उस ने ऐसा 3 बार किया. फिगरपिं्रट एक्सपर्ट की टीम ने बैडरूम सहित अन्य स्थानों के सबूत इकट्ठे किए.

इन सारी काररवाई के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. साथ ही भादंवि की धारा 302/34 के तहत अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. पुलिस को दूबे परिवार के बारे में भारती दूबे से जो जानकारी मिली, वह इस प्रकार थी—

ग्वालियर के थाटीपुर के तृप्तिनगर निवासी 58 वर्षीय रविदत्त दूबे अपनी पत्नी भारती, 2 बेटियों और एक बेटे के साथ रहते थे. रविदत्त लोक निर्माण विभाग में टाइमकीपर की नौकरी करते थे. उन की नियुक्ति कलेक्टोरेट स्थित निर्वाचन शाखा में थी.

साल 2006 में पहली पत्नी आभा की बेटे के जन्म देते वक्त मौत हो गई थी. उस के बाद उन्होंने साल 2007 में केरल की रहने वाली भारती नाम की महिला से विवाह रचा लिया था. वह अहिंदी भाषी और भिन्न संस्कार समाज की होने के बावजूद दूबे परिवार में अच्छी तरह से घुलमिल गई थी.

दूबे ने भारती से कोर्टमैरिज की थी. शादी के बाद भारती ने दिवंगत आभा के तीनों बच्चों को अपनाने और उन की देखभाल में कोई कमी नहीं रहने दी थी. बड़ी बेटी कृतिका की शादी नयापुरा इटावा निवासी राममोहन शर्मा के साथ हो चुके थी, किंतु उस का ससुराल में विवाद चल रहा था, इस वजह से वह पिछले 3 सालों से अपने मायके में ही रह रही थी. छोटी बेटी सलोनी अविवाहित थी.

पुलिस ने इस हत्या की गुत्थी को सुलझाने के लिए कई बिंदुओं पर ध्यान दिया. मृतक की पत्नी भारती और बड़ी बेटी कृतिका समेत छोटी बेटी सलोनी ने पूछताछ में बताया कि 4-5 अगस्त की आधी रात को तेज बारिश होने कारण लाइट बारबार आजा रही थी.

रात तकरीबन 9 बजे खाना खाने के बाद वे अपने घर की पहली मंजिल पर बने बैडरूम में सोने के लिए चली गई थीं. घटना के समय परिवार के सभी बाकी सदस्य एक ही कमरे में सोए हुए थे.

भारती और बड़ी बेटी कृतिका को रात के ढाई बजे हलकी सी आवाज सुनाई दी थी तो उन्होंने हड़बड़ा कर उठ कर लाइट का स्विच औन किया. इधरउधर देखा. वहां सब कुछ ठीक लगा. वह तुरंत बगल में रविदत्त दूबे के कमरे में गई. देखा बैड पर वह खून से लथपथ पड़े थे. उन के पेट से खून निकल रहा था.

कृतिका और भारती ने उन्हें हिलायाडुलाया तब भी उन में कोई हरकत नहीं हुई. नाक के सामने हाथ ले जा कर देखा, उन की सांस भी नहीं चल रही थी. फिर भारती ने दूसरे रिश्तेदारों को सूचित करने के बाद पुलिस को सूचित कर दिया.

थानाप्रभारी को दूबे हत्याकांड से संबंधित कुछ और जानकारी मिल गई थी, फिर भी वह हत्यारे की तलाश के लिए महत्त्वपूर्ण सबूत की तलाश में जुटे हुए थे. घटनास्थल पर तहकीकात के दौरान एसआई तुलाराम कुशवाहा को दूबे की छोटी बेटी पर शक हुआ था.

कारण उस के चेहरे पर पिता के मौत से दुखी होने जैसे भाव की झलक नहीं दिखी थी. उन्होंने पाया कि सलोनी जबरन रोनेधोने का नाटक कर रही थी. उस की आंखों से एक बूंद आंसू तक नहीं निकले थे.

घर वालों के अलगअलग बयानों के कारण दूबे हत्याकांड की गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती ही जा रही थी. उसे सुलझाने का एकमात्र रास्ता काल डिटेल्स को अपनाने की योजना बनी. मृतक और उस के सभी परिजनों के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई गई.

कब, किस ने, किस से बात की? उन के बीच क्याक्या बातें हुईं? उन में बाहरी सदस्य कितने थे, कितने परिवार वाले? वे कौन थे? इत्यादि काल डिटेल्स का अध्ययन किया गया. उन में एक नंबर ऐसा भी निकला, जिस पर हर रोज लंबी बातें होती थीं.

पुलिस को जल्द ही उस नंबर को इस्तेमाल करने वाले का भी पता चल गया. रविदत्त दूबे की छोटी बेटी सलोनी उस नंबर पर लगातार बातें करती थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो वह नंबर परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार का नहीं था बल्कि ग्वालियर में गल्ला कठोर के रहने वाले पुष्पेंद्र लोधी का निकला.

पुलिस इस जानकारी के साथ पुष्पेंद्र के घर जा धमकी. वह घर से गायब मिला. इस कारण उस पर पुलिस का शक और भी गहरा हो गया. फिर पुलिस ने 14 अगस्त की रात में उसे दबोच लिया.

उस से पूछताछ की. पहले तो उस ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की, लेकिन बाद में सख्ती होने पर उस ने दूबे की हत्या का राज खोल कर रख दिया.

साथ ही उस ने स्वीकार भी कर लिया कि रविदत्त दूबे की हत्या उस ने सलोनी के कहने पर की थी. उन्हें देशी तमंचे से गोली मारी थी. पुष्पेंद्र ने पुलिस को हत्या की जो वजह बताई, वह भी एक हैरत से कम नहीं थी. पुलिस सुन कर दंग रह गई कि कोई जरा सी बात पर अपने बाप की हत्या भी करवा सकता है.

बहरहाल, पुष्पेंद्र के अपराध स्वीकार किए जाने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल .315 बोर का तमंचा भी बरामद कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पुष्पेंद्र लोधी ने बताया कि वह पिछले एक साल से सलोनी का सहपाठी रहा है. सलोनी के एक दूसरे सहपाठी करण राजौरिया से प्रेम संबंध थे. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उस की तो सलोनी से केवल दोस्ती थी.

उस ने बताया कि एक बार करण के साथ सलोनी को रविदत्त दूबे ने घर पर ही एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले देख लिया था.

अपनी बेटी को किसी युवक की बांहों में देखना रविदत्त को जरा भी गवारा नहीं लगा. उन्होंने उसी समय सलोनी के गाल पर तमाचा जड़ दिया. बताते हैं कि तमाचा खा कर सलोनी तिलमिला गई थी.

उस ने अपने गाल पर पिता के चांटे का जितना दर्द महसूस नहीं किया, उस से अधिक उस के दिल को चोट लगी. उस वक्त करण तो चुपचाप चला गया, लेकिन सलोनी बहुत दुखी हो गई. यह बात उस ने अपने दोस्त पुष्पेंद्र को फोन पर बताई.

फोन पर ही पुष्पेंद्र ने सलोनी को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उस की सलाह सुनने को राजी नहीं हुई. करण के साथ पिता द्वारा किए गए दुर्व्यवहार और उस के सामने थप्पड़ खाने से बेहद अपमानित महसूस कर रही थी. अपनी पीड़ा दोस्त को सुना कर उस ने अपना मन थोड़ा हलका किया.

उस ने बताया कि उस घटना से करण भी बहुत दुखी हुआ था. उस के बाद से उस ने एक बार भी सलोनी से बात नहीं की, जिस से उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. सलोनी समझ रही थी कि उस के पिता उस की मोहब्बत के दुश्मन बन बैठे हैं.

इस तरह सलोनी लगातार फोन पर पुष्पेंद्र से अपने दिल की बातें बता कर करण तक उस की बात पहुंचाने का आग्रह करती रही. एक तरफ उसे प्रेमी द्वारा उपेक्षा किए जाने का गम था तो दूसरी तरफ पिता द्वारा अपमानित किए जाने की पीड़ा. सलोनी बदले की आग में झुलस रही थी. उस ने पिता को ही अपना दुश्मन समझ लिया था.

कुछ दिन गुजरने के बाद एक दिन पुष्पेंद्र की बदौलत सलोनी की करण से मुलाकात हो गई. उस ने मिलते ही करण से माफी मांगी, फिर कहा, ‘‘तुम अब भी दुखी हो?’’

‘‘मैं कर भी क्या सकता था उस वक्त?’’ करण झेंपते हुए बोला.

‘‘सारा दोष पापा का है, उन्होंने तुम्हें बहुत भलाबुरा कहा,’’ सलोनी बोली.

‘‘तुम्हें भी तो थप्पड़ जड़ दिया. कम से कम वह तुम्हारी राय तो जान लेते, एक बार…’’ करण बोला.

‘‘यही तकलीफ तो मुझे है. आव न देखा ताव, सीधे थप्पड़ जड़ दिया. मां रहती तो शायद यह सब नहीं होता. मां सब कुछ संभाल लेती.’’ कहती हुई सलोनी की आंखें नम हो गईं.

‘‘कोई बात नहीं, मैं उन से एक बार बात कर लूं?’’ करण ने सुझाव दिया.

‘‘अरे, कोई फायदा नहीं होने वाला, दीदी को ले कर वह हमेशा गुस्से में रहते हैं. दीदी की मरजी से शादी नहीं हुई थी. नतीजा देखो, उस का घर नहीं बस पाया. न पति अच्छा मिला और न ससुराल. 3 साल से मायके में हमारे साथ बैठी है.’’ सलोनी बिफरती हुई बोली.

‘‘तुम्हारी भी शादी अपनी मरजी से करवाना चाहते हैं क्या?’’ करण ने पूछा.

‘‘ऐसा करने से पहले ही मैं उन को हमेशा के लिए शांत कर दूंगी,’’ सलोनी गुस्से में बोली. ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ करण ने पूछा.

‘‘मेरा मतलब एकदम साफ है. बस, तुम को साथ देना होगा. उन के जीते जी हम लोग एक नहीं हो पाएंगे. हमारा विवाह नहीं हो पाएगा.’’ सलोनी बोली.  ‘‘मैं इस में क्या मदद कर सकता हूं?’’ करण ने पूछा.

इस पर सलोनी उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीमे से जो कुछ कहा उसे सुन कर करण चौंक गया, अचानक मुंह से आवाज निकल पड़ी, ‘‘क्या? यह क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘हां, मैं बिलकुल सही कह रही हूं, पापा को रास्ते से हटाए बगैर कुछ नहीं होगा. और हां, यह काम तुम्हें ही करना होगा.’’ सलोनी बोली.

‘‘नहींनहीं. मैं नहीं कर सकता हत्या जैसा घिनौना काम.’’ करण ने एक झटके में सलोनी के प्रस्ताव पर पानी फेर दिया. उस ने नसीहत देते हुए उसे भी ऐसा करने से मना किया.

सलोनी से दोटूक शब्दों में उस ने कहा कि भले ही वह उस से किनारा कर ले, मगर ऐसा वह भी कतई न करे. उस के बाद करण अपने गांव चला गया. उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया. करण से उस का एक तरह से संबंध खत्म हो चुका था. यह बात उस ने पुष्पेंद्र को बताई.

पुष्पेंद्र से सलोनी बोली कि करण के जाने के बाद उस का दुनिया में उस के सिवाय और कोई नहीं है, इसलिए दोस्त होने के नाते वह उस की मदद करे.

उस ने तर्क दिया कि अगर उस ने साथ नहीं दिया तो उस का हाल भी उस की बड़ी बहन जैसा हो जाएगा. एक तरह से सलोनी ने पुष्पेंद्र से हमदर्दी की उम्मीद लगा ली थी.

पुष्पेंद्र सलोनी की बातों में आ गया. वह उस की लच्छेदार बातों और उस के कमसिन हुस्न के प्रति मोहित हो गया था. मोबाइल पर घंटों बातें करते हुए सलोनी ने एक बार कह दिया था वह उसे करण की जगह देखती है. उस से प्रेम करती है.

करण तो बुजदिल और मतलबी निकला, लेकिन उसे उस पर भरोसा है. यदि वह उस का काम कर दे तो दोनों की जिंदगी संवर जाएगी. उस ने पुष्पेंद्र को हत्या के एवज में एक लाख रुपए भी देने का वादा किया.

पुष्पेंद्र पैसे का लालची था. उस ने सलोनी की बात मान ली और फिर योजनाबद्ध तरीके से 4 अगस्त, 2021 की रात को तकरीबन 10 बजे उस के घर चला गया. सलोनी ने उसे परिवार के लोगों की नजरों से बचा कर नीचे के कमरे में छिपा दिया, जबकि परिवार के लोग पहली मंजिल पर थे.

कुछ देर बाद जब घर के सभी सदस्य गहरी नींद में सो गए तो रात के ढाई बजे सलोनी नीचे आई और पुष्पेंद्र को अपने साथ पिता के उस कमरे में ले गई, जहां वह सो रहे थे.

रविदत्त अकेले गहरी नींद में पीठ के बल सो रहे थे. पुष्पेंद्र ने तुरंत तमंचे से रविदत्त के पास जा कर गोली मारी और तेजी से भाग कर अपने घर आ गया.

पुलिस के सामने पुष्पेंद्र द्वारा हत्या का आरोप कुबूलने के बाद उसे हिरासत में ले लिया गया. सलोनी को भी तुरंत थाने बुलाया गया. उस से जैसे ही थानाप्रभारी ने उस के पिता की हत्या के बारे में पूछा, तो वह नाराज होती हुई बोली, ‘‘सर, मेरे पिता की हत्या हुई है और आप मुझ से ही सवालजवाब कर रहे हैं.’’

यहां तक कि सलोनी ने परेशान करने की शिकायत गृहमंत्री तक से करने की धमकी भी दी.

थानाप्रभारी बी.एस. विमल ने जब पुष्पेंद्र लोधी से मोबाइल पर पिता की हत्या से पहले और बाद की बातचीत का हवाला दिया, तब सलोनी के चेहरे का रंग उतर गया. तब थानाप्रभारी विमल ने पुष्पेंद्र द्वारा दिए गए बयान की रिकौर्डिंग उसे सुना दी.

फिर क्या था, उस के बाद सलोनी अब झूठ नहीं बोल सकती थी. अंतत: सलोनी ने भी कुबूल कर लिया कि पिताजी की हत्या उस ने ही कराई थी.

पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को रविदत्त दूबे की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर दिया. वहां से उन्हें हिरासत में ले कर जेल भेज दया गया.

10 दिन का खूनी खेल : जौनी ने क्यों किये इतने अपराध

अपराध चाहे जैसा भी हो, अपराध ही होता है, सामाजिक समन्वय के विरुद्ध उठाया हुआ कदम. मानवीयता पर प्रहार. हर अपराध की सजा होती है. एक दिन से ले कर आजीवन तक. कालकोठरी से ले कर फांसी तक. वैसे यह भी सही है कि कुछ अपराधी कानून के बारीक छिद्रों का सहारा ले कर बच निकलते हैं और कई अपने दांवपेंचों से कानून की चौखट तक जाते ही नहीं. अश्विनी उर्फ जौनी ऐसा तो नहीं था, लेकिन उस की सोच जरूर कुछ ऐसी ही थी अपने बारे में.

अश्विनी उर्फ जौनी जिला बिजनौर के कस्बा बढ़ापुर का रहने वाला था. पढ़ालिखा, स्वस्थ सुंदर युवक. पिता सुभाष धामपुर की गन्ना सहकारी समिति में नौकरी करते थे. शिक्षा के महत्त्व को समझने वाले सुभाष ने अश्विनी को एमकौम तक पढ़ाया था. उस ने इंटरमीडिएट श्योहारा के स्कूल से किया. आगे की पढ़ाई के लिए उस के पिता सुभाष ने जौनी को उस के मामा हर्ष के घर दौलताबाद भेज दिया था. वहीं रह कर जौनी ने नजीबाबाद के कालेज से बीकौम और एमकौम की डिग्रियां हासिल कीं.

इस के अलावा मामा के घर रह कर उस ने कई डिप्लोमा भी किए, ताकि मौका मिलने पर किसी अच्छी नौकरी में निकल जाए. पढ़ाई के दौरान ही निकिता से उस की घनिष्ठता बढ़ी. निकिता दौलताबाद की रहने वाली थी. मतलब उस के मामा के गांव की. जौनी और निकिता की निकटता कई सालों तक बनी रही. बाद में यह बात भी सामने आई कि जौनी ने निकिता को प्रपोज किया था, लेकिन उस ने मना कर दिया था.

करीब 4-5 साल पहले की बात है, जब जौनी को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो वह दिल्ली से सटी औद्योगिक नगरी नोएडा चला गया था. वहां उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अगले 4 साल उस ने नोएडा में ही गुजारे. बीचबीच में घर भी चला जाता था. इस बीच निकिता को एयरहोस्टेस की नौकरी मिल गई थी और वह दुबई चली गई. कहते हैं जौनी और निकिता की फोन पर बराबर बातें होती थीं.

अश्विनी उर्फ जौनी दादा बीचबीच में बढ़ापुर स्थित अपने घर आता रहता था. करीब डेढ़ साल पहले अश्विनी जब घर आया हुआ था, तो उस के साथ एक बड़ा पंगा हो गया था. दरअसल, बढ़ापुर के ही मोहल्ला नोमी में भाजपा नेता भीमसेन का घर था. नेता होने के नाते भीमसेन की इलाके में तो दबंगई तो चलती ही थी, पुलिस विभाग में भी अच्छी पैठ थी.

भीमसेन के बेटे राहुल ने एक अनुसूचित जाति की लड़की से प्रेम विवाह किया था. जौनी और राहुल हमउम्र थे. साथसाथ उठनेबैठने और खानेपीने वाले. जौनी कभीकभी मजाक में राहुल की शादी को ले कर कमेंट कर देता था, जो गलत था. यह बात राहुल को बुरी लगती थी. इसी बात को ले कर एक दिन दोनों में विवाद हो गया.

बात बढ़ी तो राहुल और उस का चचेरा भाई कृष्णा जौनी से उलझ गए. दोनों ओर से मारपीट हुई. एक तरफ 2 भाई थे, दूसरी तरफ अकेला जौनी. इस के बावजूद जौनी दोनों पर भारी पड़ा तो भीमसेन के परिवार के लोग भी झगड़े में कूद पड़े और अश्विनी को नंगा कर के पिटाई कर दी.

बात थाने तक गई. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज न कर के दोनों पार्टियों को थाने बुलाया. यहां भीमसेन की नेतागिरी काम आई. पुलिस ने नेताजी के साथ आए लोगों, उन के बेटे राहुल और भतीजे कृष्णा को सम्मानपूर्वक कुरसियों पर बैठाया, जबकि अश्विनी को न केवल फर्श पर बैठाया गया, बल्कि 2-4 पुलिसिया हाथ भी जमाए गए. बातचीत के बाद पुलिस ने दोनों पार्टियों का लिखित समझौता करा दिया. इतना ही नहीं, पुलिस ने अश्विनी से नेताजी के पैर छू कर माफी भी मंगवाई.

अश्विनी को इस बेइज्जती से गहरी चोट पहुंची. उसे लगा कि इस बेइज्जती को ले कर वह गांव में नहीं रह पाएगा. इसलिए अपनी बेइज्जती का बोझ उठाए वह अपनी नौकरी पर नोएडा चला गया. नोएडा में फिर से काम शुरू करते हुए अश्विनी ने तय किया था कि गालों पर पड़े बेइज्जती के थप्पड़ को वहअपनी मेहनत के बोझ के नीचे दबा देगा.

अश्विनी कालेज टाइम से ही निकिता से प्यार करता था. हो सकता है यह उस का एकतरफा प्यार रहा हो लेकिन यह भी सच है कि उस की उम्मीद टूटी नहीं थी. वजह यह कि निकिता उस से बराबर बात करती थी. दोनों की बातचीत तब भी चलती रही, जब वह एयरहोस्टेस बन कर दुबई चली गई.

अश्विनी को अपनी मां से बहुत प्यार था. वह मां की हर बात मानता था. इसी साल जून में जब अश्विनी की मां का निधन हो गया तो उसे गांव आना पड़ा. मां की मृत्यु के बाद अश्विनी को लगने लगा था कि वह अनाथ हो गया है. यही वजह थी कि घर में उस का मन नहीं लगता था.

कभी वह कस्बा श्योहारा चला जाता, कभी नजीबाबाद तो कभी नगीना. या फिर वह गांव के हमउम्र लड़कों के साथ उठताबैठता. इस बीच उस ने उन राहुल और कृष्णा से भी दोस्ती गांठ ली थी, जिन की वजह से उस की बेइज्जती हुई थी और वह गांव छोड़ कर नोएडा चला गया था. अश्विनी को जब भी राहुल और कृष्ण मिलते तो वह उन से घुलमिल कर बातें करता, उन्हें नोएडा और दिल्ली की कहानियां सुनाता.

अश्विनी को घर आए 3 महीने हो गए थे. इस बीच उस ने निकिता को कई बार फोन किया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. निकिता दौलताबाद की थी. उस की जानकारी रखने के लिए अश्विनी ने उसी गांव की एक लड़की को बहन बना रखा था.

जब निकिता ने बात नहीं की तो अश्विनी ने अपनी तथाकथित बहन से उस के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह कई महीने पहले दुबई से लौट आई है. उसे यह भी जानकारी मिली कि निकिता की शादी मुरादाबाद के एक लड़के से तय हो गई है.

जौनी के खतरनाक इरादे  इस जानकारी से अश्विनी के दिल को गहरी चोट लगी. उस ने मन ही मन फैसला किया कि निकिता की शादी से पहले उस से एक बार मिलेगा जरूर. 26 सितंबर, 2019 को अश्विनी और कृष्णा की मुलाकात हुई तो उस ने कृष्णा से कहा, ‘‘मैं पुरानी बातें भूल चुका हूं, तुम भी भूल जाओ. शाम को पीनेपिलाने की महफिल जमाते हैं. राहुल को भी बुला लो.’’

‘‘पार्टी होगी कहां?’’ कृष्णा ने पूछा तो अश्विनी बोला, ‘‘उस की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दो. खानेपीने और जगह का इंतजाम मैं खुद कर लूंगा. बस तुम लोग पहुंच जाना. जगह के बारे में मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

बातचीत के बाद कृष्णा चला गया. उस ने राहुल से मिल कर कहा, ‘‘जौनी काफी पैसे कमा कर लौटा है. पुरानी बातें भुला देना चाहता है. शाम को पार्टी देने की बात कर रहा था. क्यों न हम भी सब भूलभाल कर उस की पार्टी में शामिल हों, चलेगा न?’’

‘‘ठीक है, पुरानी बातों को भुला देना ही बेहतर है. बता देना, कब कहां चलना है.’’ राहुल ने उस की बातों पर मुहर लगा दी.

शाम को अश्विनी ने फोन कर के कृष्णा को जगह बता दी, साथ ही कह दिया कि उस ने खानेपीने का सारा इंतजाम कर लिया है. अश्विनी ने जो जगह बताई थी, वह बढ़ापुर-जाखरी मार्ग किनारे के जंगल में थी.

नशा सिर चढ़ कर बोला कृष्णा और राहुल अपने चाचाताऊ के लड़कों दीपक और रवि को ले कर अश्विनी की बताई जगह पर पहुंच गए. अश्वनी उन सब को मुख्यमार्ग से करीब 200 मीटर अंदर जंगल में ले गया. वहां शराब, बीयर और खानेपीने की चीजों का पूरा इंतजाम था.

थोड़ी देर में पीनापिलाना शुरू हो गया. सब ने जम कर नशा किया. इस बीच छोटीछोटी बातों को ले कर अश्विनी और राहुल में झगड़ा होने लगा. धीरेधीरे बात इतनी बढ़ी कि नौबत मारपिटाई की आ गई. दोनों ओर के लोग बीयर की बोतलें तोड़ कर खूनखराबे पर उतर आए.

यह देख कृष्णा और राहुल को छोड़ कर बाकी युवक भाग खड़े हुए. ज्यादा नशे की वजह से राहुल और कृष्णा के पैर लड़खड़ा रहे थे. इसी बीच अश्विनी ने कमर से पिस्तौल निकाल कर पहले राहुल को 4 गोलियां मारीं, जिन में से 2 गोलियां उस के सिर में, एक सीने में और 1 पेट में लगी. फिर उस ने 3 गोलियां कृष्णा को मारीं, जो उस के सिर, सीने और पेट में लगीं. कृष्णा और राहुल को मौत के घाट उतार कर अश्विनी वहां से भाग गया.

खूनखराबे में लिपटी इस घटना की जानकारी दीपक ने पुलिस और कृष्णा राहुल के घर वालों को दी. सूचना मिलते ही थाना बढ़ापुर की पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. घटनास्थल पर पड़ी शराब, बीयर की बोतलों, 2 लाशों और बिखरे खून से अनुमान लगाया जा सकता था कि वहां क्या और कैसे हुआ होगा.

घटना की सूचना मिलने पर नगीना की सीओ अर्चना सिंह और बिजनौर के एसपी (देहात) विश्वजीत श्रीवास्तव भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल की भयावहता को देख कर उन्होंने कई थानों की पुलिस को जंगल में अश्विनी उर्फ जौनी को तलाशने का काम सौंपा.

प्राथमिक काररवाई से निपटने के बाद पुलिस ने राहुल और कृष्णा की लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस बीच भीमसेन ने थाना बढ़ापुर में राहुल और कृष्णा की हत्या का केस दर्ज कराया, जिस में अश्विनी उर्फ जौनी, उस के भाई रंजीत, पिता सुभाष, जौनी के चचेरे भाई रवि और मुरादाबाद निवासी बहनोई को नामजद किया गया.

घटना के अगले दिन बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी और मुरादाबाद रेंज के आईजी रमित शर्मा ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जिस जगह हत्याएं हुई थीं, उस से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हर जगह पुलिस तैनाती की वजह से अश्विनी भाग नहीं पाया होगा. संभावना थी कि वह कहीं जंगल में छिपा होगा.

आईजी के निर्देश पर बिजनौर के 20 थानों की पुलिस को अश्विनी को खोजने के लिए लगा दिया गया. जंगल को खंगालने के लिए ड्रोन कैमरे का भी सहारा लिया गया. लेकिन घरपरिवार और रिश्तेदारियों में कहीं भी अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. दरअसल दिनदहाड़े हुए इस हत्याकांड ने बिजनौर के पुलिस महकमे को हिला दिया था. ऊपर से दोनों मृतक भाजपा नेता के सगेसंबंधी थे, जिस से धरनेप्रदर्शनों का डर था.

पुलिस ने अश्विनी को पकड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन इस कवायद से हासिल कुछ नहीं हुआ. अश्विनी एक तरह से पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. पुलिस ने शराब पार्टी में शामिल दीपक से भी हर तरह से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया.

जौनी ने निकिता को उतारा मौत के घाट  पुलिस हर तरह की कोशिशों में लगी थी. इस बीच 5 दिन बीत गए. 30 सितंबर को अश्विनी श्योहारा के निकटवर्ती गांव दौलताबाद पहुंचा और एयरहोस्टेस निकिता के घर में घुस गया. निकिता उस वक्त घर में बैठी टीवी देख रही थी. अंदर जा कर अश्विनी ने निकिता को गोलियों से भून डाला.

निकिता सोच भी नहीं सकती थी कि अश्विनी ऐसा कुछ कर सकता है. गोलियां चलाते समय उस ने सिर्फ इतना ही कहा कि तू मेरी नहीं हो सकती तो किसी और की भी नहीं बनने दूंगा. अश्विनी के पिस्तौल की 7 गोलियां लगने के बाद निकिता दूसरे गेट की ओर भागी, लेकिन गिर पड़ी. जातेजाते उस ने धमकी दी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा.

निकिता पर गोलियां बरसाने के बाद अश्विनी दूसरे गेट से बाहर निकल कर पास ही सड़क पर जाते हुए एक बैटरी रिक्शा में बैठ गया. थोड़ा आगे जा कर वह उतरा और गन्ने के खेत में घुस गया.

निकिता 2 महीने पहले ही शादी के लिए दुबई से घर लौटी थी. उस की शादी मुरादाबाद के मोहल्ला कांशीराम नगर में रहने वाले नीतीश कुमार से तय हुई थी. नीतीश सीआईएसएफ में सबइंसपेक्टर हैं और विशाखापट्टनम में तैनात हैं. नीतीश के कहने पर निकिता ने अपनी नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था.

निकिता के पिता हरिओम शर्मा श्योहारा के विदुर ग्रामीण बैंक में नौकरी करते थे. घर वालों ने  इस घटना की सूचना हरिओम शर्मा को दी. शर्माजी की बैंक के पास ही थाना था. उन्होंने थाने जा कर यह बात थानाप्रभारी उदय प्रताप को बताई. उदय प्रताप उसी समय पुलिस टीम के साथ दौलताबाद के लिए रवाना हो गए.

बुरी तरह घायल निकिता को श्योहारा के एक प्राइवेट डाक्टर को दिखाया गया. उस डाक्टर ने निकिता को तुरंत बड़े अस्पताल ले जाने की राय दी. इस के बाद उसे मुरादाबाद के मशहूर कौसमोस अस्पताल ले जाया गया.

भरती होने के बाद अस्पताल के मशहूर डाक्टर अनुराग अग्रवाल ने निकिता का इलाज शुरू किया. उसे 7 गोलियां लगी थीं, जिन में गले में फंसी एक गोली घातक थी. बहरहाल, डा. अनुराग अग्रवाल के तमाम प्रयासों के बावजूद रात 9 बजे निकिता ने दम तोड़ दिया.

दूसरी ओर पुलिस ने ईरिक्शा के ड्राइवर द्वारा बताए गए गन्ने के खेत के साथसाथ आसपास के सभी गन्ने के खेतों में कौंबिंग की. लेकिन अश्विनी का कोई पता नहीं चला. उसी दिन आईजी (मुरादाबाद जोन) रमित शर्मा ने अश्विनी उर्फ जौनी को पकड़ने या पकड़वाने पर 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.

पुलिस ने आसपास के शहरों के बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों के अलावा अन्य तमाम जगहों के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

जब 2 दिन और बीत गए तो मुरादाबाद, बरेली परिक्षेत्र के एडीजे अविनाश चंद्र ने अश्विनी पर ईनाम राशि 50 हजार से बढ़ा कर एक लाख कर दी. इस के बाद पुलिस ने जौनी से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं. उस के फोन की लोकेशन का पता लगाने की कोशिश की गई. लेकिन उस का फोन 26 सितंबर से ही बंद था.

जब पुलिस की सभी कोशिशें बेकार गईं तो बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी ने जिले के सभी पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग की, जिस में तय हुआ कि बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों और आटोरिक्शा, ईरिक्शा के अड्डों पर विशेष रूप से नजर रखी जाए. इस अभियान में संजीव त्यागी खुद भी शामिल हुए.

3 अक्तूबर को किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि अश्विनी उर्फ जौनी को नगीना के तुलाराम हलवाई की दुकान पर रसगुल्ले खाते देखा गया है. तुलाराम के रसगुल्ले जिला भर में मशहूर हैं.

सूचना मिलते ही पुलिस चौराहे के पास स्थित तुलाराम की दुकान पर पहुंच गई, लेकिन तब तक जौनी वहां से जा चुका था. पूछताछ में पता चला कि जौनी ने वहां बैठ कर 8 रसगुल्ले खाए थे. बाद में वह बराबर में स्थित मोहन रेस्टोरेंट में भी गया था, जहां वह काफी देर बैठा रहा.

पुलिस ने रात में ही तुलाराम हलवाई की दुकान के आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस से यह जानकारी मिली कि चौराहे से जौनी हरिद्वार जाने वाली बस में सवार हुआ था. पुलिस ने हरिद्वार वाली बस को रुकवा कर चैक किया.

साथ ही पूरे नगीना को भी छान मारा. लेकिन अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. वह एक बार फिर पुलिस को चकमा दे गया था. अश्विनी को पकड़ने के लिए बिजनौर पुलिस जो भी कर सकती थी, उस ने किया. फिर भी रही खाली हाथ ही.

5/6 अक्तूबर की रात को बढ़ापुर के थानाप्रभारी कृपाशंकर सक्सेना ने बढ़ापुर की ओर आने वाले वाहनों की चैकिंग के लिए बैरिकेड लगा रखे थे. रात करीब 12 बजे पुलिस ने दिल्ली से आ रही एक बस को रोका. ड्राइवर ने बस सड़क किनारे लगा दी. बस में करीब एक दरजन यात्री थे.

10 दिन के खेल के बाद

कृपाशंकर सक्सेना ने 2 सिपाहियों मोनू यादव और बादल पंवार से बस की चैकिंग करने को कहा. चैकिंग के दौरान यात्री अलर्ट हो कर बैठ गए. कंडक्टर के आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा था. बस के किसी यात्री, यहां तक कि पुलिस ने भी नहीं सोचा था कि वह एक लाख का ईनामी अश्विनी उर्फ जौनी हो सकता है.

मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा युवक नींद में था, नींद में उस का सिर एक ओर को झुका हुआ था. सिपाही मोनू और बादल ने उस के कंधे पर हाथ रख कर मुंह से कपड़ा हटाया तो वह चौंक कर जागा. वह अश्विनी ही था.

सामने पुलिस को देख अश्विनी को लगा कि उस का खेल खत्म हो गया है. उस ने बिना देर किए कमर से पिस्तौल निकाली और दाईं कनपटी पर रख कर ट्रिगर दबा दिया. एक धमाके के साथ खून का फव्वारा छूटा और वह एक ओर को लुढ़क गया. पुलिस वाले समझ गए कि वह अश्विनी उर्फ जौनी ही था.

आंखों के सामने एक युवक को सुसाइड करते देख पूरी बस के यात्री सन्न थे. वैसे असलियत यह थी कि अगर अश्विनी के चेहरे पर कपड़ा न होता तो निस्संदेह पुलिस वाले उसे पहचान ही नहीं पाते. वजह यह कि वह पिछले 10 दिनों से छिपताछिपाता घूम रहा था, न खानापीना और न आराम. नहानाधोना तो दूर की बात थी.

बहरहाल, बस खाली करा कर पुलिस ने कंडक्टर से पूछताछ की. उस ने बताया कि जौनी नगीना रेलवे फाटक पर पैट्रोलपंप चौराहे से बस में सवार हुआ था. वह कंडक्टर से आगे वाली सीट पर बैठ गया. उस के पास केवल एक छोटा सा बैग था. कंडक्टर से टिकट लेते समय उस ने कहा था कि उसे बढ़ापुर से पहले उतरना है. इस पर कंडक्टर ने कहा, ‘‘जहां उतरना हो, उतर जाना लेकिन टिकट बढ़ापुर का ही लगेगा.’’

कंडक्टर से टिकट लेने के बाद उस ने मुंह पर सफेद कपड़ा लपेट लिया था.  पुलिस ने जौनी की लाश की तलाशी ली तो उस के पास यूएस मेड पिस्तौल के अलावा एक बैग मिला. उस के बैग में जैकेट व एक जोड़ी कपड़े थे. साथ ही सैमसंग का मोबाइल, 67 रुपए, 16 कारतूस, आधार कार्ड, पैन कार्ड और इनकम टैक्स का एक सर्टिफिकेट भी बैग में मिले.

दरअसल, जौनी कहीं से पिस्तौल हासिल कर के अकेला ही अपने दुश्मनों को खत्म करने निकला था. लेकिन उस के सामने 2 दिन में ही कई समस्याएं आ खड़ी हुई थीं. न उस के पास खाना खाने को पैसा था और न सोनेछिपने की जगह. किसी से उसे कोई मदद भी नहीं मिल पा रही थी. 26 सितंबर के बाद से उस ने अपना मोबाइल फोन भी इस्तेमाल नहीं किया था. कह सकते हैं कि वह किसी के भी संपर्क में नहीं था.

बहरहाल, जौनी की मौत के बाद पुलिस ने चैन की सांस ली. यह रहस्य ही रहा कि जौनी ने अपनी बेइज्जती के मामले को इतनी लंबी अवधि तक क्यों पाले रखा. जाहिर है जरूर कोई ऐसी बात रही होगी जो उस के दिल में कांटे की तरह नहीं चुभी, बल्कि छुरी बन कर दिल में उतरी होगी. वरना उच्चशिक्षा प्राप्त जौनी इतना बड़ा खूनी खेल नहीं खेलता.

जो भी हो, जौनी ने 3 कत्ल किए थे. पकड़ा जाता तो निस्संदेह या तो उस की पूरी जिंदगी जेल में बीतती या फिर उस के गले में फांसी का फंदा पड़ता.

लगता है कि इस बात को जौनी अच्छी तरह समझता था और उस ने अपनी मौत की राह पहले ही तय कर ली थी.

जौनी के 2 पत्र

26 सितंबर को राहुल और कृष्णा की हत्या के बाद भीमसेन कश्यप की शिकायत पर पुलिस ने अश्विनी उर्फ जौनी के अलावा उस के पिता, भाई और अन्य को भले ही केस में शामिल कर लिया था, लेकिन हकीकत यह थी कि जौनी खुद अपने घर वालों के व्यवहार से आहत था.

पुलिस को जौनी के लिखे 2 पत्र मिले थे, जिन में से एक उस की पैंट की जेब से मिला था और दूसरा उस के घर से. घर से मिले पत्र में यह बात साफ हो गई कि घर वाले उसे पसंद नहीं करते थे. उसे इस बात का दुख था कि घर वालों ने भी उस की भावनाओं को नहीं समझा.

घर से मिले पत्र में जौनी ने लिखा, ‘मेरी बहन को एक युवक ने छेड़ा तो मैं ने उसे सबक सिखाया. डांस करते हुए बहन की वीडियो बना ली गई तो मैं वीडियो बनाने वाले से भिड़ गया. बहन की शादी में जो बाइक दी गई, वह मैं ने अपने पैसों से, अपने नाम से खरीदी थी. बहन ने दूसरी जगह शादी की तब भी मैं ने पूरी तरह उस का साथ दिया. इस के बावजूद बहन ने मुझे गलत ठहराया.’

इस पत्र में जौनी ने और भी कई मामलों का जिक्र करते हुए घर वालों के गिलेशिकवों का जिक्र किया था. जबकि वह शुरू से ही उन की मदद करता आया था. जौनी की जेब से जो पत्र मिला, उस पत्र को वह पुलिस थाने तक पहुंचाना चाहता था. इस पत्र में उस ने लिखा कि वह जानता है कि उस ने 3 हत्याएं की हैं. लेकिन इस अपराध के लिए वह सरेंडर करना चाहता है.

उस ने आगे लिखा, बढ़ापुर थाने के कुछ पुलिसकर्मी बहुत अच्छे हैं. उन की वह इज्जत करता है. वह सरेंडर करना चाहता है, लेकिन उस के साथ मारपीट न हो, बेइज्जत न किया जाए. पुलिस अच्छा काम कर रही है, मुझे ढूंढ रही है. मैं सरेंडर करने को तैयार हूं.

लेकिन वह अपने इस पत्र को पुलिस तक पहुंचा नहीं पाया. हो सकता है, सुसाइड वाली रात वह सरेंडर करने के लिए ही बढ़ापुर जा रहा हो.

जो भी हो, मामला पत्रों का हो या फेसबुक का, अश्विनी उर्फ जौनी ने स्वयं को पीडि़त साबित करने की कोशिश की. लेकिन पीडि़त होने का मतलब यह नहीं है कि अपराधों की राह पर उतर जाओ.