सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 2

पुलिस उस के हर संभावित  ठिकानों पर दबिश दे रही थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. पुलिस फिर भी भी हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं रही. उस की सुरागरसी के लिए अपने मुखबिरों को भी लगा दिया था. एक महीने बाद आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई और कसया तिराहा से उसे उस समय दबोच लिया गया, जब वह कहीं भागने के फिराक में बस के आने के इंतजार में खड़ा था. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई और उस से पूछताछ करनी शुरू की.

रोशन राय कानून का ही एक मंझा हुआ नुमाइंदा था. कानून के दांवपेंच जानता था, इतनी आसानी से पुलिस के सामने टूटने वाला नहीं था. यह बात इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह भी जानते थे कि रोशन कितना बड़ा घाघ और मक्कार किस्म का इंसान है, आसानी से वह टूटने वाला नहीं था. पुलिस ने जब उस के साथ सख्ती की, तब जा कर वह घुटने टेकने को मजबूर हुआ और कुबूलते हुए पत्नी सोनी की हत्या किए जाने की बात स्वीकार कर ली. फिर उस ने हत्या जो कहानी बयां की, हैरतअंगेज निकली—

सोनी को हुआ प्यार…

22 वर्षीय सोनी अंसारी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले की नेबुआ नौरंगिया थानाक्षेत्र के मंसाछापर मंगरुआ गांव की रहने वाली थी. 3 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. बाकी सब उस से छोटे थे. पिता इब्राहिम खान ट्रक ड्राइवर थे. वह माल सहित ट्रक ले कर जब बाहर जाते थे तो उन्हें घर लौटने में महीनों लग जाते थे. फिर पत्नी अश्मीना खातून परिवार की देखभाल करती थी. अश्मीना खातून के मजबूत कंधों पर बच्चों की परवरिश और उन की देखरेख की जिम्मेदारी थी, सो वह अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा भी रही थी.

अश्मीना के चारों बच्चों में सब से बड़ी बेटी सोनी बेहद समझदार और सुंदर थी. मन से भी, विचारों से भी. लिखनेपढऩे में भी वह ठीकठाक थी. उस के अब्बू इब्राहिम उसे लाड़प्यार भी बहुत करते थे, क्योंकि सोनी उन के दिल के सब से निकट थी. वह भी अपने अब्बू का बहुत खयाल रहती थी . काम से जब भी थकेहारे घर लौटते थे तो सोनी ही सब से पहले गिलास में पानी लिए उन के सामने खड़ी होती थी. बेटी के हाथ से पानी पी कर सारी थकान पल भर में छूमंतर हो जाती थी. ऐसा नहीं था कि वह अपने अब्बू की ही आंखों का तारा थी, बल्कि अपनी अम्मी की भी वह लाडली थी. अब्बू के साथसाथ अम्मी का भी वह खास खयाल रखती थी. जब कभी वह एकदो दिनों के लिए किसी रिश्तेदार के यहां घूमने चली जाती थी तो उस की अम्मी का दिल उदास सा रहता था. उस के घर वापस लौटते ही फिर से घर में वही रौनक लौट आती थी. सब के चेहरे खिल उठते थे.

सोनी, आधुनिक परिवेश में जी रही थी. उस के सपने रंगीन थे क्योंकि वह खुद ही रंगीनमिजाज की युवती थी. कामकाज से जब उसे फुरसत मिलती थी, पिता से मिले फोन में इंस्टाग्राम या फेसबुक खोल कर अपने परिचितों और दोस्तों को कमेंट बाक्स ‘हायहैलो’ लिख कर उन से हालचाल पूछ लिया करती थी. फेसबुक पर बहुत से नए दोस्त फ्रैंड रिक्वेस्ट डाले रहते थे, उन नए दोस्तों में कुछ चेहरे उस के नातेरिश्तेदारों के होते थे तो कुछ बिलकुल ही नए और अंजान चेहरे होते थे. उन्हीं अंजान चेहरों में एक चेहरा कुशीनगर जिले के कसया थाने के सिपाही रोशन राय का भी था.

पता नहीं क्यों सोनी उस चेहरे को देख कर उस पर आकर्षित हो गई थी और उस ने उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कल ली थी.

सोनी की ओर से फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकृत होते ही सिपाही रोशन ने ‘हाय’ का मैसेज डाल दिया तो उस ने भी उसी अंदाज में जवाब दे दिया. उन की ओर से जवाब मिलने के बाद दोनों के बीच मैसेज से बात होनी शुरू हो गई और दोनों के बीच दोस्ती पक्की हुई. यह सोशल मीडिया के प्यार की शुरुआत थी. यह सोशल मीडिया के प्यार की शुरुआत थी. दोस्ती पक्की हुई तो दोनों थोड़े और करीब आ गए. उन्होंने एकदूसरे को अपनाअपना मोबाइल नंबर दे दिया और पर बातचीत शुरू हुई. एकदूसरे का परिचय जब हुआ तो दोनों को ही पता चला कि वे एक ही जिले के रहने वाले हैं. इस से उन के बीच की रहीसही दूरियां और भी कम हो गईं और दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. वे एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

प्यार में कसमे वादे…

सोनी इस बात पर फूली नहीं समा रही थी कि जिस से वह प्यार करती है, वह एक पुलिस वाला है, यानी अब दुनिया उस की मुट्ïठी में है. सोनी जवान थी, सुंदर थी. फैशनपरस्त भी. उस के गोरे जिस्म पर कोई भी कपड़े उस की सुंदरता में चारचांद लगा देते थे. प्रेमिका की सुंदरता पर रोशन मर मिटता था. उसे अपनी बाइक पर बैठा कर घंटोंघंटों कुशीनगर के प्रसिद्ध बुद्ध मंदिर घुमाता था. उस पर खूब पैसे खर्च करता था. सोनी के कदमों में दुनिया की सारी खुशियां डालता था.

बात साल भर पहले की थी, जब रोशन पहली बार प्रेमिका सोनी को अपनी बाइक पर बैठा कर कुशीनगर के प्रसिद्ध बुद्ध मंदिर लाया था. मंदिर के प्रांगण में दूरदूर तक फैली मुलायम घास पर आमनेसामने बैठे आशिकी भरी नजरों से दोनों एकदूसरे को देखे जा रहे थे, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो आप?’’ दोनों के बीच पसरे सन्नाटे को सोनी ने तोड़ा.

“देख रहा हूं कि चांद जमीं पर उतर आया है.’’ सोनी की खूबसूरती की रोशन ने तारीफ की तो शरम से उस की नजरें झुक गईं. दोनों हथेलियों के बीच उस ने अपना चेहरा छिपा लिया था.

“इस में शरम जैसी क्या बात है? इश्क की आंखों से मैं ने जो देखा, शब्दों की थाली में मैं ने वही परोसा.’’

“वाह! आप तो शायरों जैसी बातें करते हैं. शब्दों की थाली में मैं ने वही परोसा, जुमला सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा है, कह नहीं सकती.’’

“जी शुक्रिया.’’ झुक कर हाथ से महबूबा को सलाम किया और आगे बोला, ‘‘इस नाचीज गरीब बंदे की तारीफ में कसीदे पढऩे के लिए.’’

“बातें करना तो कोई आप से सीखे. माशाअल्लाह! आप किसी से कम खूबसूरत नहीं हैं. आप बहुत सुंदर हैं, तभी तो मेरा दिल आप पर हार गया और मैं आप की बाहों में आ गिरी.’’

“मरते दम तक आप का साथ नहीं छोड़ेंगे, चाहे जमाना हमारा दुश्मन क्यों न बन जाए, चाहे राहों में कांटे क्यों न बिखेर दिए जाएं. चाहे नंगे पांव शोलों पर क्यों न चलना पड़े, दिल से आप को चाहा है, आप से प्यार किया है तो मर कर भी साथ निभाएंगे.’’ रोशन भावनाओं में बह गया था.

सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 1

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिला के गांव हेतिमपुर के टोला भैंसहा में जितेंद्र सिंह का अपना निजी 2 मंजिला मकान था. मकानकी दूसरी मंजिल को उन्होंने जटहां थाने में तैनात सिपाही रोशन राय को किराए पर दिया था. रोशन राय अपनी 22 वर्षीयपत्नी सोनी अंसारी के साथ 3 महीने से रह रहा था. उस मकान के नीचे वाले फ्लोर पर और भी किराएदार रहते थे. खुद जितेंद्र सिंह अपने दूसरे मकान में परिवार के साथ रहते थे, सिर्फ किराया वसूलने के लिए ही वह यहां आते थे.

25 जनवरी, 2023 की दोपहर से जितेंद्र सिंह की दूसरी मंजिल से तेज बदबू आ रही थी, जिस में सिपाही रोशन राय अपनीपत्नी के साथ रहता था. पते की बात तो यह थी रोशन राय के उस कमरे पर पिछले कई दिनों से ताला लगा हुआ था.लोगों ने उसे और उस की पत्नी सोनी को अंतिम बार 18 जनवरी, 2023 को देखा था. उस के बाद से किसी ने न तो रोशन राय को ही देखा था और न ही उस की पत्नी को, वे दोनों कहां गए थे, यह बात किसी को पता नहीं थी और उन्हीं के कमरे से दोपहर से तेज बदबू आ रही थी.

जैसेजैसे शाम ढलती गई, बदबू इतनी तेज बढ़ती गई कि पासपड़ोसियों को अपने घर में रहना दुश्वार हो गया था. अंत मेंकिराएदारों ने हार कर इस की जानकारी मकान मालिक जितेंद्र सिंह को दी. सूचना पा कर वे मौके पर पहुंचे और उन्होंने इसकी सूचना जटहां थाने के एसएचओ सुरेंद्र सिंह को दे दी. सभी लोगों को बंद कमरे में लाश होने की आशंका हो रही थी.सूचना पा कर वे दलबल के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने फोर्स की मदद से कमरे का ताला तुड़वाया.

दरवाजा खोल करपुलिस कमरे में घुसी तो वहां घुप्प अंधेरा था और मांस की सड़ांध ने सभी को नाक पर रुमाल रखने के लिए विवश कर दिया. मोबाइल की टौर्च के द्वारा बिजली का बोर्ड देख कर कमरे की लाइट औन की.एलईडी के प्रकाश से कमरा नहा उठा था. सड़ांध के मारे कमरे में खड़ा होना मुश्किल हुए जा रहा था. इस के बाद कमरे कीतलाशी कर यह देखने में जुट गई कि यह दुर्गंध आ कहां से रही है.

इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह कमरे से अटैच जैसे ही दूसरे कमरे में घुसे, भीतर का दृश्य देख कर उन के पैर वहीं थम गए थे. कमरे में पड़ी बैड के ऊपर किसी महिला की लाश बुरी तरह सड़चुकी थी. बदबू वहीं से आ रही थी. आशंका जताई जा रही थी कि हो न हो यह लाश सिपाही रोशन राय की पत्नी सोनी अंसारी ही होगी, क्योंकि पिछले कईदिनों से सोनी की अम्मी अश्मीना खातून अपनी बेटी को ले कर परेशान थी और वह इस संबंध में थाने में तहरीर भी दे चुकी थी कि पिछली 17 जनवरी को बेटी से मोबाइल पर बात हुई थी. उस के बाद फोन मिलाने पर न बेटी का फोन लग रहा थाऔर न दामाद का ही फोन लग रहा था

बैड के पास ही फर्श पर हड्ïिडयां और अंगरेजी शराब की एक बोतल रखी थी, जिस में कुछ शराब भी थी. इस से पुलिस कोलगा कि घटना से पहले यहां दारू की पार्टी भी हुई थी.यह बात इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह को तुरंत याद आई तो उन्होंने अपना शक दूर करने के लिए अश्मीना खातून को बुलाने के लिए बाइक से 2 सिपाहियों को उस के घर भेज दिया.  अश्मीना खातून इसी कुशीनगर के ही नेबुआ नौरंगिया के मंसाछापरमंगरुआ की रहने वाली थी.

सोनी की लाश की हुई शिनाख्त…

जैसे हो पुलिसकर्मियों ने एक महिला की लाश पाई जाने की सूचना अश्मीना खातून को दी और संग चल कर शिनाख्त करनेकी बात कही, वैसे ही उस का कलेजा धक से कर गया. और बदहवास हो कर इधरउधर टहलने लगी. तभी उस की दूसरी बेटी हाजरा कमरे से बाहर निकली और मां को ऐसी दशा में देख पुलिसकर्मियों से वजह पूछी तो उन्होंने फिर से वही बात दोहराई जो कुछ देर पहले उस से कह चुके थे.

बहरहाल, जैसेतैसे हाजरा ने मां अश्मीना खातून को संभाला और उसे अपने साथ ले कर घटनास्थल पहुंची. वहां मजमा लगा हुआ था. घटना की सूचना पा कर एएसपी रितेश प्रताप सिंह भी पहुंच चुके थे. कमरे के बाहर भीड़ देख कर अश्मीना खातून का कलेजा बैठा जा रहा था. जैसे ही कमरे में दाखिल हुई, लाश के कपड़े और उस की कदकाठी देख कर उसे अपनी बेटी सोनी अंसारी के रूप में शिनाख्त कर ली और छाती पीटपीट कर चीखनेचिल्लाने लगी.

पुलिस की आशंका आखिरकार सच साबित हुई. चूंकि पिछले कई दिनों से सोनी अंसारी लापता थी. न तो उस का फोन लग रहा था और न ही रितेश राय का ही फोन काम कर रहा था, इसलिए अश्मीना के साथसाथ घर वाले उसे ले कर चिंतित थे. आखिरकार, जिस अनहोनी को ले कर उस के घर वाले परेशान थे, वही अनहोनी घट गई. थोड़ी देर में कुशीनगर में सिपाही ने की हत्या की खबर फैल गई. घटना की सूचना एसपी धवल जायसवाल को भी मिल चुकी थी. वह भी कुछ देर बाद मौके पर पहुंच चुके थे.

एफएसएल टीम भी घटनास्थल पर पहुंच कर हत्या के साक्ष्य जुटाने में जुटी हुई थी. पते की बात तो यह थी कि जिस दिन से सोनी अंसारी लापता हुई थी, उसी दिन से सिपाही रोशन राय भी गायब था. उस का फोन बंद आ रहा था और वह ड्यूटी पर भी नहीं जा रहा था. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी थी कि पत्नी सोनी की हत्या में रोशन का हाथ हो सकता है, तभी तो वह फरार हो चुका है. एसपी धवल जायसवाल ने उसी क्षण उसे सस्पेंड कर दिया और उस की खोजबीन में पुलिस लगा दी ताकि वह जल्द से जल्द गिरफ्तार हो सके और पत्नी सोनी की हत्या का कारण सामने आ सके.

सिपाही रोशन राय पर लगाया आरोप…

खैर, पुलिस अपनी काररवाई में जुटी हुई थी. लाश को अपने कब्जे में ले इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया और मृतका का विसरा सुरक्षित करा दिया था, क्योंकि उसे मरे कई दिन बीत चुके थे, इसलिए विसरा सुरक्षित रखना पड़ा था ताकि उस रिपोर्ट से हत्या की असल वजह का पता चल सके. इधर पुलिस ने मृतका की मां अश्मीना खातून की तहरीर पर फरार सिपाही व दामाद रोशन राय के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर के रोशन राय की सरगर्मी से तलाश में जुट गए थे.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 4

हर रोज सुबह को बीना के सासससुर रेस्टोरेंट पर चले जाते थे. थोड़ी देर बाद देवर सुनील भी रेस्टोरेंट पर चला जाता था. एंजल के स्कूल का समय भी वही होता था. उधर सुधीर भी अपने काम के लिए सुबह को निकलता था तो शाम को वापस लौटता था.  सब के जाने के बाद बीना घर में अकेली रह जाती थी. यह समय उस के लिए उपयुक्त था, इसलिए अगले दिन ही उस ने फोन कर के मृदुल को घर बुला लिया.

बातचीत हुई तो मृदुल बीना से बोला, ‘‘एक बार फिर सोच लो, तुम्हें बहुत कठिन परीक्षा से गुजरना होगा जिस में तुम्हें काफी कष्ट सहना पड़ेगा.’’

‘‘मैं अपने पति के लिए किसी भी परीक्षा से गुजरने को तैयार हूं. हर कष्ट सहूंगी मैं. आप बताइए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘दरअसल, मैं काला जादू करूंगा. इस में थोड़ी तकलीफ तो होती है, पर रिजल्ट एक दम परफैक्ट आता है. अगर थोड़ा कष्ट सह सकती हो, तो कोई परेशानी ही नहीं है.’’

‘‘बताइए तो मुझे करना क्या होगा?’’

मृदुल ने कोई जवाब देने के बजाए पूरे मकान में घूम कर देखा. तभी उसे किचन में काफी ऊपर लगा लोहे का एक जंगला नजर आ गया. उसे देख कर वह बीना से बोला, ‘‘मैं इस जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे में फांसी का फंदा बनाऊंगा. वह फंदा गले में डाल कर तुम्हे स्टूल पर खड़ा होना पड़ेगा. फिर मैं तंत्रमंत्र से अपना काला जादू शुरू कर दूंगा. जब मंत्र पूरे हो जाएंगे तो तुम्हें यह कह कर पैर से स्टूल गिरा देना होगा कि मेरे पति के जीवन में कोई प्रेमिका न रहे. स्टूल गिरने से फांसी का फंदा तुम्हारे गले में कस जाएगा और तुम्हें तकलीफ होने लगेगी.’’

घबराई हुई बीना बड़े ध्यान से मृदुल की बात सुन रही थी. उसे शांत देख मृदुल बोला, ‘‘डरने की जरूरत नहीं है, तुम्हें जब ज्यादा तकलीफ होगी तो इशारा कर देना, मैं तुम्हें संभाल कर फंदा गले से निकाल दूंगा. इस क्रिया में होगा यह कि तुम्हारा गला घुटने से जितनी तकलीफ तुम्हें होगी, उस से चार गुना ज्यादा तकलीफ तुम्हारे पति की प्रेमिका को होगी. इस तरह मौत के डर से वह तुम्हारे पति का खयाल अपने मन से निकाल देगी.’’

एक पल रुक कर मृदुल बोला, ‘‘काले जादू का यह अनुष्ठान पूरे 40 दिन चलेगा, लेकिन रोजाना नहीं बल्कि हफ्ते में एक बार. अगर तुम तैयार हो तो हम आज से ही शुरू कर देते हैं. हां, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मैं हूं सब कुछ संभालने के लिए.’’

बीना डर तो रही थी, पर पति को बचाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. इसलिए बिना दूरगामी परिणाम सोचे उस ने हां कर दी. उस की स्वीकृति मिलते ही मृदुल ने जंगले में रस्सी बांध कर उस के दूसरे सिरे पर फांसी का फंदा बना दिया. इस के बाद उस ने बीना को स्टूल पर खड़ा कर के फंदा उस के गले में डाल दिया. शुरू में तो बीना को डर लग रहा था, लेकिन जब मृदुल उस के चारों ओर चक्कर लगा कर मंत्र पढ़ने लगा तो उस का डर कम हो गया.

करीब 20-25 मिनट का आडंबर रचने के बाद मृदुल ने बीना से स्टूल गिराने को कहा तो उस ने पैर से स्टूल गिरा दिया. स्टूल गिरते ही उस का गला रस्से के फंदे में फंस गया, लेकिन मृदुल ने फंदा कुछ इस तरह बनाया था कि उसे तकलीफ तो हो पर गला पूरी तरह न घुटे. इस तरह बीना ने 5-7 मिनट तकलीफ झेली, तत्पश्चात मृदुल ने उसे नीचे उतार लिया. यह सब आडंबर उस ने बीना का विश्वास जीतने के लिए किया था.

बीना का विश्वास जीतने के बाद मृदुल चला गया. बीना को उस पर किसी तरह का कोई संदेह नहीं था. इसी का लाभ उठा कर उस ने ऐसा 2 बार किया. अब बीना स्टूल को लात मार कर बेहिचक नीचे कूदने लगी थी. यानि मृदुल के लिए मैदान साफ था.

योजना पहले ही तैयार थी. 8 जून को रविवार था. उस दिन बीना का फोन आया तो मृदुल शाम 7 बजे अपने पिता श्याम कुमार और मनीष धूसिया के साथ उस के पास पहुंच गया. मनीष को उस ने इसलिए बाहर छोड़ दिया ताकि वह बाहर नजर रख सके. अपने पिता श्याम कुमार के साथ वह अंदर चला गया.

उस दिन मृदुल ने बीना से कहा, ‘‘आज आखिरी पूजा है, इसलिए मैं अपने चेले को भी साथ लाया हूं. आज काम हो जाएगा और अब किसी पूजा पाठ या तंत्रमंत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’ सुन कर बीना खुश हो गई. उस दिन भी मृदुल ने पूरी क्रिया दोहराई, लेकिन इस से पहले उस ने रस्सी में बने फांसी के फंदे को थोड़ा ढीला कर के ऐसा बना दिया था कि बीना के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. इस बार बीना को न बचाना था, न वह बच सकी. मृदुल और श्याम कुमार के सामने ही उस ने छटपटाते हुए दम तोड़ दिया.

बीना के घर आनेजाने के चक्कर में मृदुल को यह पता चल गया था कि थोड़ी सी कोशिश कर के जीने की कुंडी अंदर की तरह बाहर से भी खोली और बंद की जा सकती है. जाते वक्त उस ने इसी का लाभ उठाया. अपना काम कर के बाप बेटे मनीष धूसिया को ले कर वहां से फार हो गए.

पूरी कहानी पता चलने के बाद पुलिस ने मनीष धूसिया, रूबी यादव और तांत्रिक अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को भी गिरफ्तार कर लिया. श्याम कुमार को शुक्लागंज उन्नाव से पकड़ा गया. सभी आरोपियों को पुलिस ने 15 जुलाई को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल सभी जेल में हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 1

उत्तरपूर्वी दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर 3 के रहने वाले राजकुमार का बेटा राजेश्वर उर्फ मोनी देर रात तक घर लौट कर नहीं आया तो उन्हें बेटे की चिंता हुई. उस का फोन भी बंद था, इसलिए यह भी पता नहीं चल रहा था कि वह कहां है. उन्होंने उस के बारे में जानने की काफी कोशिश की, न जाने कितने फोन कर डाले, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

जब उन्हें बेटे के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन का जी घबराने लगा. एक बाप के लिए जवान बेटे का इस तरह लापता होना कितना दुखदाई हो सकता है, यह बात हर बाप को पता होगी. राजकुमार भी परेशान थे, क्योंकि वही उन का भविष्य था.  जब राजेश्वर का कहीं कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी बढ़ने लगी. अचानक आई इस आफत में उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. संयोग से उस समय घर में वही अकेले थे. घर के बाकी लोग शादी के चक्कर में बनारस गए हुए थे.

जब राजकुमार का धैर्य जवाब देने लगा तो उन्होंने राजेश्वर के गायब होने की सूचना पत्नी बिटई देवी को दी. उन्हें जैसे ही यह जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत गाड़ी पकड़ी और दिल्ली आ गईं. इस बीच दिल्ली में रहने वाले कुछ रिश्तेदार उन के घर आ गए थे.

राजकुमार और उन के रिश्तेदारों ने राजेश्वर की खोज में दिनरात एक कर दिया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. अपने हिसाब से खोजतेखोजते 4 दिन बीत गए. लेकिन उस के बारे में कुछ पता न चलने से उन की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.

23 अप्रैल, 2014 की दोपहर को राजकुमार अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना खजूरी खास पहुंचे और थानाप्रभारी को प्रार्थनापत्र दे कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करने की प्रार्थना की. थाना खजूरी खास के थानाप्रभारी ने राजेश्वर की गुमशुदगी दर्ज कर के राजकुमार को आश्वासन भी दिया कि वह जल्दी से जल्दी उन के बेटे का पता लगाने का प्रयास करेंगे. लेकिन जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुलिस गुमशुदगी तो दर्ज कर लेती है, लेकिन खोजने की कोशिश नहीं करती, ऐसा ही इस मामले में भी हुआ. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर के समझ लिया था कि उस का फर्ज पूरा हो चुका है.

29 अप्रैल, 2014 दिन रविवार को सुबहसुबह राजकुमार को कहीं से पता चला कि 23 अप्रैल को थाना लोनी पुलिस ने एक मकान से एक युवक की लाश बरामद की थी. यह जानकारी होते ही राजकुमार पत्नी बिटई देवी को साथ ले कर थाना लोनी जा पहुंचे कि कहीं वह लाश उन के बेटे की तो नहीं थी.

उन्होंने थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव के सामने राजेश्वर का फोटो रख कर कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम राजकुमार है. यह मेरे बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की फोटो है, जो पिछले 10 दिनों से गायब है. मैं ने थाना खजूरी खास में इस की गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी है. आज सुबह ही मुझे पता चला है कि 23 तारीख को आप ने एक मकान से एक लड़के की लाश बरामद की थी. मैं उसी के बारे में पता करने आया हूं.’’

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने फोटो ले कर गौर से देखा. उस के बाद एक सिपाही को बुला कर कहा कि पुलिस चौकी लालबाग के प्रभारी एसआई विजय सिंह को फोन कर के कहो कि वह 23 तारीख को राजनजर कालोनी में मिली लाश के कपड़े और फोटो ले कर तुरंत थाने आ जाएं.

थोड़ी देर बाद सबइंसपेक्टर विजय सिंह थाने आए तो उन्होंने जो कपड़े और लाश के फोटो राजकुमार और बिटई देवी को दिखाए, उन्हें देखते ही वे दोनों रोने लगे. इस का मतलब था कि राजनगर कालोनी में मिली वह लाश राजकुमार के 25 वर्षीय बेटे राजेश्वर उर्फ मोनी की थी. जवान बेटे की हत्या हो जाने से राजकुमार और बिटई देवी का बुरा हाल था. साथ आए लोगों ने किसी तरह उन्हें संभाला.

थाना लोनी पुलिस ने लाश की शिनाख्त न होने की वजह से अब तक मुकदमा दर्ज नहीं किया था. राजकुमार ने लाश की शिनाख्त कर दी तो उन की ओर से थानाप्रभारी ने हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच इंद्रापुरी चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह को सौंप दी.

दरअसल, 23 अप्रैल, 2014 की सुबह थाना लोनी पुलिस को गाजियाबाद की राजनगर कालोनी के रहने वाले प्रदीप उर्फ बबलू ने सूचना दी थी कि उन के मकान के एक किराएदार के कमरे से बहुत ज्यादा बदबू आ रही है. उस कमरे में रहने वाला किराएदार कमरे में ताला बंद कर के 3 दिनों से गायब है. बदबू किसी जानवर के सड़ने जैसी है.

यह सूचना मिलते ही थाना लोनी के थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव पुलिस बल के साथ राजनगर कालोनी पहुंच गए थे. उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़वा कर अंदर प्रवेश किया तो कमरे में एक युवक की लाश पड़ी मिली. गरमी की वजह से वह फूल कर काफी हद तक सड़ गई थी. मृतक के शरीर पर किसी भी तरह की चोट का निशान नजर नहीं आ रहा था. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या जहर दे कर या गला दबा कर की गई थी.

थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने मकान मालिक प्रदीप से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के इस कमरे में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा रहता था. उस ने उसे यह कमरा 15 सौ रुपए महीने के किराए पर उसी महीने की 3 तारीख को दिया था. इस में वह अपनी पत्नी अनीता और 3 बच्चों के साथ रहता था.

प्रदीप से मृतक के बारे में पूछा गया तो वह उस के बारे में कुछ नहीं बता सका. मकान के अन्य किराएदार भी उस के बारे में कुछ अधिक नहीं बता सके. उन्होंने इतना जरूर बताया कि मृतक नीरज के घर अकसर आता रहता था. सुबह वह नीरज की पत्नी अनीता को मोटरसाइकिल पर बैठा कर निकल जाता था तो शाम को ही पहुंचाने आता था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 3

बीना समझ गई कि उसी की वजह से उस के घर में आग लगी हुई है. वह अपने गुस्से को जब्त नहीं कर सकी और उस ने रूबी के बाल पकड़ कर उस की धुनाई करनी शुरू कर दी. जरा सी देर में आसपड़ोस के लोग जमा हो गए. जब बीना ने उन्हें हकीकत बताई तो रूबी मुंह छिपा कर वहां से चली गई.

पिटपिटा कर रूबी लौट तो आई पर उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह बीना से बदला जरूर लेगी. लेकिन सवाल यह था कि कैसे? क्योंकि वह खुलेआम कुछ करती तो सुधीर उस से दूर जा सकता था. दूसरे जेल जाने का भी डर था, इसलिए उस दिन के बाद वह इस मुददे पर गंभीरता से सोचने लगी.

एक दिन सुबह रूबी अखबार पढ़ रही थी तो उस की नजर एक विज्ञापन पर ठहर गई. विज्ञापन बाबा अकबर शाह का था, जिसने विज्ञापन में प्रेमीप्रेमिका को मिलाने का दावा बड़ी गारंटी के साथ किया था. रूबी को तांत्रिक बाबा के दावों में दम नजर आया, तो उस ने बाबा अकबर शाह से मिलने का फैसला कर लिया.

बाबा अकबर शाह ने अपना अड्डा बर्रा में हरी मस्जिद के पास बना रखा था. रूबी उस से जा कर मिली और उसे अपनी और सुधीर की पूरी प्रेमकहानी सुना दी. साथ ही बीना के बारे मे भी बता दिया जिस की वजह से दोनों का मिलना मुमकिन नहीं था. अकबर शाह का असली नाम शाकिर अली था. वह नंबर एक का धूर्त था और रुबी जैसों को अपने जाल में फंसाने को तैयार बैठा रहता था. पूरी कहानी सुन कर उस ने रूबी से कहा, ‘‘इस का एक ही रास्ता है कि बीना को इस दुनिया से विदा करा दे.’’

‘‘अगर मैं ने ऐसा कुछ किया तो मैं तो फंस जाऊंगी. सुधीर तो मुझे क्या मिलेगा, उल्टे जेल जाना पड़ेगा.’’ रूबी ने कहा तो बाबा बोला, ‘‘तुम्हें तुम्हारा प्रेमी मिल जाएगा और जेल भी नहीं जाना पड़ेगा. यह काम मैं करुंगा, तुम नहीं.’’

‘‘मेरे और सुधीर के प्यार की कहानी तमाम लोग जान गए हैं. बीना और मेरा झगड़ा भी हुआ है. अगर उस का कत्ल होगा तो नाम तो मेरा ही आएगा, फिर कैसे बचूंगी मैं?’’

‘‘क्योंकि यह काम मैं तंत्रमंत्र से करूंगा. मेरी भेजी गई मूठ घर बैठे उस की जान ले लेगी, सब के सामने खून उगल कर मरेगी वह. इस तरह की मौत में तुम्हारा नाम कैसे आएगा?’’ बाबा ने कहा तो रूबी को यह युक्ति सही लगी. उस ने सुन रखा था कि तांत्रिक अपने तंत्रमंत्र से मूठ भेज कर किसी की भी जान ले सकते हैं. इसलिए उस ने पूछ लिया, ‘‘मुझे क्या करना होगा बाबा?’’

‘‘कुछ नहीं, बस 30 हजार रुपए खर्च करने हैं.’’

बीना की जान लेने के लिए रूबी को यह सही तरीका लगा. वह एचडीएफसी बैंक में अच्छीभली नौकरी करती थी, पैसों की उस के पास कोई कमी नहीं थी. थोड़ी सौदेबाजी के बाद उस ने बाबा अकबर शाह उर्फ शाकिर अली को 25 हजार रुपए दे दिए. उसे पूरा यकीन था कि अब जल्दी ही बीना उस के रास्ते से हट जाएगी. लेकिन हफ्तों से ज्यादा बीत जाने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो रूबी अकबर शाह के पास गई. उस ने बाबा से शिकायत की तो वह बोला, ‘‘कोशिश कर रहा हूं पर उस के सितारे बहुत अच्छे हैं. तुम चिंता मत करो, मैं ने उस का भी तोड़ निकाल लिया है. इस हफ्ते में बीना जरूर मर जाएगी.’’

रूबी बाबा की बात का यकीन कर के वापस आ गई. लेकिन जब एक हफ्ता बाद भी बीना को कुछ नहीं हुआ तो रूबी को बहुत गुस्सा आया. उस ने 25 हजार रुपए खर्च किए थे. वह गुस्से से दनदनाती हुई बाबा अकबर शाह के औफिस जा पहुंची. लेकिन अकबर शाह उसे नहीं मिला. अलबत्ता, वहां उसे हंसपुरम की आवास विकास कालोनी में रहने वाला मनीष धूसिया जरूर मिल गया. बाबा के पास आतेजाते मनीष धूसिया और रूबी का अच्छा परिचय हो गया था.

बातचीत हुई तो मनीष धूसिया ने रूबी से कहा, ‘‘बाबा की मूठ पता नहीं क्यों काम नहीं कर रही है. तुम चाहो तो मैं तुम्हारा काम दूसरे तरीके से करा सकता हूं. लेकिन इस के लिए 50 हजार रुपए लगेंगे.’’

रूबी किसी भी तरह बीना को रास्ते से हटाना चाहती थी ताकि सुधीर से शादी कर सके. इसलिए उस ने कहा, ‘‘मैं कितने भी पैसे खर्च करने को तैयार हूं, लेकिन तरीका ऐसा होना चाहिए कि उस की मौत कत्ल न लगे. क्योंकि कत्ल के मामले में मैं फंस जाऊंगी.’’

‘‘उस की चिंता छोड़ो, मैं ऐसी योजना बनाऊंगा कि काम भी हो जाएगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि बीना का कत्ल हुआ है.’’ मनीष ने कहा तो बीना ने उस की बात पर विश्वास कर लिया. उस ने रूबी को जल्दी ही उस आदमी से मिलाने का वादा किया जो उस का काम कर सकता था.

पैसा लेने के बाद जब मनीष धूसिया ने इस मुद्दे पर सोचना शुरू किया तो उस के दिमाग में मृदुल वाजपेयी का नाम आया. गांव राजेपुर, उन्नाव का रहने वाला मृदुल वाजपेयी पेशे से ड्राइवर था और फिलहाल नौबस्ता, कानपुर में रह रहा था. उस का पिता श्याम कुमार वाजपेयी शुक्लागंज, कानपुर में रहता था. मनीष धूसिया को पता था कि मृदुल पैसे के लिए परेशान है, उसे किसी की कर्ज की रकम चुकानी थी.

मनीष ने मृदुल से बात की तो वह पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो गया. जब बात हो गई तो मनीष ने मृदुल को रूबी से मिलवा दिया. उस ने इस काम के लिए 50 हजार रुपए मांगे. थोड़ी सौदेबाजी के बाद बीना की मौत की कीमत 40 हजार रुपए तय हो गई. रूबी ने इस शर्त के साथ पैसे दे दिए कि बीना की मौत आत्महत्या लगनी चाहिए ताकि किसी को उस पर शक न हो.

मृदुल और मनीष ने मिल कर बीना को ठिकाने लगाने के लिए एक अनोखी योजना तैयार की. इस योजना में मृदुल ने अपने पिता श्याम कुमार को भी शामिल कर लिया. अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए मृदुल ने सब से पहले फरजी आईडी से एक सिम खरीदा. उस सिम को अपने मोबाइल में डाल कर एक दिन वह बीना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. यह उसे पता ही था कि बीना दिन में घर में अकेली होती है.

डोरबेल बजाने पर बीना ने दरवाजा खोला, तो मृदुल ने खुद को तांत्रिक बताते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे पति ने मेरी भांजी को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा है. उसे समझा लो, वरना ऐसा तंत्रमंत्र करूंगा कि खून उगलउगल कर मरेगा.’’

बीना अपने पति से प्यार भी करती थी और यह भी जानती थी कि वह रंगीनमिजाज आदमी है. उस ने मृदुल की बातों पर यकीन कर लिया, साथ ही वह घबराई भी. उस ने मृदुल से कहा, ‘‘मैं उन्हें समझाने की कोशिश करूंगी. प्लीज, आप उन का अहित मत सोचिए.’’

‘‘उसे तुम नहीं, मैं ही सुधार सकता हूं. तुम अगर चाहो तो मैं उसे लाइन पर ला सकता हूं. लेकिन इस के लिए तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा.’’

‘‘बताइए कैसे?’’ बीना ने पूछा तो मृदुल बोला, ‘‘फिलहाल तो आप अपना मोबाइल नंबर मुझे दे दीजिए. क्योंकि यह मामला इतना आसान नहीं है. इस के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी. मैं अपना नंबर आप को दे देता हूं. जब भी आप के पास 2 ढाई घंटे का समय हो, मुझे बुला लीजिएगा. मैं अपना काम शुरू कर दूंगा.’’

बीना ने विश्वास कर के मृदुल को अपना फोन नंबर दे दिया. बातचीत के बाद मृदुल चला गया. जब से सुधीर रूबी के चक्कर में फंसा था, पत्नी के प्रति उस का व्यवहार बिल्कुल बदल गया था. दोनों के बीच लड़ाईझगड़े आम बात हो गई थी. बीना को इस बात का तो जरा भी आभास नहीं था कि रूबी सुधीर से शादी का सपना देख रही है. अलबत्ता, मृदुल की बातों से उसे यह जरूर यकीन हो गया था कि सुधीर रूबी की तरह ही किसी और लड़की से भी चक्कर चला रहा होगा. इसलिए वह चाहती थी कि किसी भी तरह उस का पति लाइन पर आ जाए और किसी दूसरी औरत के चक्कर में न पड़े. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 2

जांच के लिए ओमप्रकाश सिंह ने सुधीर से नंबर ले कर सब से पहले बीना के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. बीना ने आखिरी बार जिस नंबर पर बात की थी, उस पर ओमप्रकाश सिंह की निगाह टिक गई. कारण यह था कि उस नंबर से 31 मई से 8 जून तक 15 बार बातें हुई थीं. ओमप्रकाश सिंह ने वह नंबर सुधीर को दिखा कर पूछा कि वह किस का नंबर है, सुधीर उस नंबर के बारे में कुछ नहीं जानता था.

उस नंबर पर फोन किया गया तो वह बंद मिला. उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला उस नंबर से जो फोन किए गए थे, वह केवल बीना को ही किए गए थे. बीना ने भी उस नंबर पर कई बार बातें की थीं. बीना की हत्या के बाद उस नंबर से कोई फोन  नहीं हुआ था. इस का मतलब वह सिम केवल बीना से बात करने के लिए खरीदा गया था.

पुलिस ने उस नंबर की सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से यह जानकारी ली कि वह नंबर किस का है. जानकारी मिलने पर पुलिस उस आदमी तक पहुंच गई जिस के नाम पर सिम इश्यू हुआ था. लेकिन उस आदमी ने इस बात से इनकार कर दिया कि वह उस नंबर के बारे में कुछ जानता है. अलबत्ता, उस ने यह जरूर माना कि नंबर लेने के लिए फोटो और आईडी उस की ही इस्तेमाल हुई है.

उस व्यक्ति से पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि किसी ने सिम लेने के लिए फरजी तरीके से उस के फोटो और आईडी का इस्तेमाल किया था. इस के बाद यह मामला और भी पेचीदा हो गया.

स्थिति के मद्देनजर एसएसपी सुनील इमैनुएल ने इस मामले की विस्तृत जांच के लिए एक विशेष टीम का गठन किया जिस में एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा, सीओ ओमप्रकाश सिंह, सबइंसपेक्टर एनुद्दीन, आनंद शर्मा, हेड कांस्टेबल राजकिशोर, सिपाही अरविंद पांडेय, गौरव गुप्ता, भूपेंद्र सिंह और सर्विलांस विशेषज्ञ शिवभूषण को शामिल किया गया.

जिस नंबर से बीना को फोन किए जाते थे, वह चूंकि बंद था, इसलिए शिवभूषण ने सर्विलांस के माध्यम से उस फोन के आईएमईआई नंबर का सहारा लिया जिस में उस नंबर की सिम का इस्तेमाल किया गया था. युक्ति काम कर गई, पुलिस को इससे उस नंबर का पता चल गया जो उस वक्त उस मोबाइल में चल रहा था. उस नंबर का पता चलते ही पुलिस ने सर्विस प्रोवाइडर कंपनी से उस के धारक की जानकारी ले ली. पता चला वह सिम मृदुल वाजपेयी, निवासी नौबस्ता, कानपुर के नाम पर था. इस के बाद पुलिस ने तत्काल मृदुल वाजपेयी को हिरासत में ले कर उस से विस्तृत पूछताछ की.

थोड़ी सी सख्ती के बाद मृदुल वाजपेयी टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बीना की हत्या उसी ने की थी. साथ ही यह भी बता दिया कि इस मामले में उस के पिता श्याम कुमार वाजपेयी, रूबी यादव, मनीष धूसिया और तांत्रिक शाकिर अली उर्फ बाबा अकबर शाह भी शामिल थे.

पुलिस टीम ने उसी दिन ओमप्रकाश सिंह के निर्देशन में छापा मार कर श्याम कुमार वाजपेयी, मनीष धूसिया, रूबी यादव और बाबा अकबर शाह को गिरफ्तार कर लिया. इन लोगों से पूछताछ में आत्महत्या में हत्या की जो कहानी सामने आई वाकई हैरतअंगेज भी थी और आंखें खोलने वाली भी.

दरअसल सुधीर बिल्डिंग बनवाने के ठेके तो लेता ही था, समाजवादी पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता भी था. समाजवादी युवजन सभा का महासचिव होने के नाते पार्टी के शीर्ष नेताओं तक उस की सीधी पहुंच थी. इस नाते परिचितों, रिश्तेदारों में उस का खूब मानसम्मान था. एक बार सुधीर जब अपने एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने इटावा गया तो वहां उस की मुलाकात रूबी यादव से हुई.

22 साल की रूबी विश्व बैंक कालोनी, कानपुर के रहने वाले प्रमोद कुमार यादव की बेटी थी. वह एचडीएफसी बैंक में अकाउंटेंट कोआर्डिनेटर के पद पर काम कर रही थी. सुधीर और रूबी पहली बार मिले तो दोनों ही एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. बातचीत में दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी एकदूसरे को दे दिए.

इस मुलाकात के बाद सुधीर और रूबी जब कानपुर लौट आए तो दोनों के बीच फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं, जिनमें रोमांटिक बातें भी होती थीं. बातों का सिलसिला बढ़ा तो फिर मुलाकातें भी होने लगीं. सुधीर शादीशुदा था और एक बेटी का बाप भी. यह बात रूबी भी अच्छी तरह जानती थी. इस के बावजूद न तो रूबी ने इस बात की परवाह की और न सुधीर को अपनी पत्नी और बेटी का खयाल आया. रूबी के सामने उसे अपनी पत्नी बीना फीकी और उबाऊ लगने लगी थी.

धीरेधीरे सुधीर और रूबी की एकदूसरे के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. रूबी का तो यह हाल हो गया कि वह सुधीर को देखे बिना नहीं रह पाती थी. दोनों ही अपनेअपने प्यार का इजहार कर चुके थे. मोबाइल पर बातें होना तो आम बात थी, इस के लिए दोनों ही न दिन देखते थे न रात. इस का नतीजा यह हुआ कि बीना को सुधीर पर शक होने लगा कि उस की जिंदगी में कोई और औरत भी है.

बीना ने जब अपने स्तर पर पता लगने की कोशिश की तो उसे जल्दी ही पता चल गया कि वह रूबी नाम की एक लड़की से इश्क लड़ा रहा है. इस के बाद पतिपत्नी में आए दिन झगड़ेहोने लगे. बीना सद्गृहणी थी, उस की मजबूरी यह थी कि परिवार के सामने पति से खुल कर लड़ भी नहीं सकती थी. किसी से शिकायत करने से भी कोई फायदा नहीं था क्योंकि सुधीर पावरफुल नेता था. घर में भी उस की दंबगई चलती थी.

उधर गुजरते वक्त के साथ रूबी के दिल में सुधीर के लिए प्यार बढ़ता जा रहा था. सुधीर भी शादीशुदा और एक बेटी का बाप होने के बावजूद रूबी से ऐसे प्यार जताता था जैसे उस के बिना रह ही नहीं सकता. कभीकभी वह रूबी के सामने अपनी पत्नी की बुराई भी करता और अपनी मजबूरी जाहिर करते हुए कहता, ‘‘क्या करूं, मेरे मांबाप ने कमउम्र में ही मेरी शादी कर दी, उन की वजह से मैं उसे छोड़ भी नहीं सकता. मैं जैसी पत्नी की कल्पना करता था, तुम बिलकुल वैसी ही हो.’’

सुधीर की अपनत्व भरी प्यारीप्यारी बातें सुन कर रूबी फूली नहीं समाती थी. ऐसी बातें सुन कर उस के दिल में सुधीर के लिए और भी प्यार बढ़ जाता था. नतीजा यह हुआ कि वह सुधीर को सदा के लिए पाने की चाहत पाल बैठी.

इसी बीच एक ऐसी घटना घटी जिस ने रूबी के मन में बीना के प्रति जहर घोल दिया.  दरअसल सुधीर और रूबी प्राय: रोज ही बात किया करते थे. अचानक एक दिन सुधीर का मोबाइल पानी में गिर गया जिससे पानी उस के अंदर चला गया और मोबाइल बंद हो गया. इत्तेफाक से उस दिन सुधीर को लखनऊ जाना था. रूबी का नंबर उस के मोबाइल में तो फीड था, पर वैसे उसे याद नहीं था. इस वजह से वह उसे फोन कर के लखनऊ जाने की बात बता भी नहीं सका. वह उसे बिना बताए ही लखनऊ चला गया.

उधर रूबी बराबर उस का नंबर ट्राई कर रही थी. जब कई घंटे तक उस का फोन नहीं मिला तो वह हकीकत पता लगाने के लिए सुधीर के घर जा पहुंची. उस समय बीना घर में अकेली थी, सासससुर और देवर रेस्टोरेंट पर गए हुए थे. यह बीना और रूबी की पहली मुलाकात थी. बीना ने रूबी से उस का नाम पूछा तो उस ने बता दिया.

अंधे प्यार के अंधे रास्ते – भाग 1

आजाद कुटिया, बर्रा, कानपुर निवासी सुरेश यादव के 2 बेटे हैं- सुधीर और सुनील. परिवार हर तरह से संपन्न है, किसी चीज की कोई कमी नहीं. इस परिवार के 2 मकान हैं और दामोदर नगर, नौबस्ता में एक रेस्टोरेंट. सुरेश यादव पत्नी रंजना और छोटे बेटे सुनील के साथ रेस्टोरेंट खुद चलाते हैं. उन का बड़ा बेटा सुधीर बिल्डिंग बनवाने के ठेके लेता है, साथ ही वह समाजवादी पार्टी का नेता भी था.

सुधीर की शादी गांधी नगर, इटावा निवासी विजयकुमार यादव की बेटी बीना से हुई थी. बीना सीधीसादी औरत थी, सद्गृहणी. पूरे परिवार को बांध कर रखने वाली बीना एक बेटी एंजल की मां बन चुकी थी. 5 साल की एंजल सुबह स्कूल जाती थी और दोपहर को लौट आती थी. परिवार के अन्य सदस्य भी सुबहसुबह अपनेअपने कामों पर चले जाते थे. उन लोगों के जाने के बाद बीना घर में अकेली रहती थी.

8 जून को रविवार था, छुट्टी का दिन. उस दिन सुरेश यादव और रंजना जब रेस्टोरेंट पर जाने लगे तो एंजल भी उन के साथ चलने की जिद करने लगी. बीना ने भी सासससुर से उसे साथ ले जाने की सिफारिश की तो वे इनकार नहीं कर सके. मातापिता और बेटी के जाने के कुछ देर बाद सुधीर भी अपने काम पर चला गया. बाद में दोपहर में सुनील भी रेस्टोरेंट पर चला गया. घर में अकेली रह गई बीना.

रेस्टोरेंट का काम निपटा कर सुरेश यादव पत्नी रंजना और पोती एंजल के साथ रात 10 बजे घर लौटे तो हमेशा की तरह ऊपर जाने वाले जीने के दरवाजे की कुंडी अंदर से बंद थी. सुरेश और रंजना ने कई बार घंटी बजाई, बीना को आवाज दीं, लेकिन न तो दरवाजा खुला और न कोई हलचल सुनाई दी.

थोड़ी चिंता तो हुई, लेकिन सुरेश यादव और उन की पत्नी ने सोचा कि हो न हो घंटी खराब हो गई हो और बीना गहरी नींद में सो गई हो. वे लोग और भी जोरजोर से आवाजें देने लगे. उन की आवाजें सुन कर बीना तो कुंडी खोलने नहीं आई, अलबत्ता पड़ोस के लोग जरूर आ गए. वे लोग भी बीना को आवाज देने लगे, लेकिन इस का कोई लाभ नहीं हुआ.

सब लोगों को परेशान देख नन्हीं एंजल ने सुरेश यादव से कहा, ‘‘बाबा, मैं साइड में अंगुली डाल कर सिटकनी खोल देती हूं. कहो तो ट्राई करूं?’’

सुरेश यादव को उम्मीद की किरण दिखाई दी तो उन्होंने एंजल को गोद में उठा कर सिटकनी खोलने को कहा. 5 साल की एंजल ने अपनी पतली अंगुलियां साइड से डाल कर सिटकनी खोल दी. दरवाजा खुलते ही सब लोग बीना को आवाज देते हुए अंदर दाखिल हो गए. लेकिन अंदर भी जब बीना का कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने उस के कमरे में जा कर देखा.

बीना अपने कमरे में भी नहीं थी. इस पर रंजना ने सोचा कि हो सकता है बीना किचन में हो और आवाज न सुन पा रही हो. उन्होंने किचन में जा कर देखा तो वहां का दृश्य देख वह इतनी जोर से चीखीं कि सुरेश यादव और अंजलि के साथसाथ बाहर खड़े पड़ोसी भी उन की चीख सुन कर अंदर की तरफ दौड़े. किचन के अंदर का दृश्य देख कर सबकी आंखें फटी रह गईं.

किचन में ऊपर की तरफ लगे लोहे के जंगले से एक रस्सी बंधी थी और बीना उसी रस्सी से फांसी पर झूल रही थी. उस के पैरों के पास स्टूल लुढ़का पड़ा था. ऐसा लगता था जैसे उस ने आत्महत्या की हो. कुछ लोगों ने छू कर देखा तो उस के हाथपांव बिलकुल ठंडे थे. ऐसा लग रहा था जैसे उसे मरे हुए काफी देर हो चुकी है.

सुरेश यादव ने खुद को संभाल कर अपने बेटों सुधीर और सुनील को फोन कर के इस मामले की सूचना दी. उस समय सुधीर और सुनील दामोदर नगर स्थित अपना रेस्टोरेंट बंद करवा रहे थे. खबर मिलते ही दोनों घर की ओर दौड़े. बेटों को फोन करने के बाद सुरेश यादव ने 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को भी इस बारे में बता दिया. मामला थाना बर्रा क्षेत्र का था, इसलिए कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना बर्रा को दे दी गई.

खबर मिलते ही तत्कालीन थानाप्रभारी अजय प्रकाश श्रीवास्तव अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना किया, लोगों से पूछताछ की. मामला स्पष्ट रूप से आत्महत्या का लग रहा था, लेकिन परेशानी यह थी कि बीना ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा था. एक ग्रैजुएट औरत द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले में यह बात थोड़ी अजीब लग रही थी. जीने की कुंडी अंदर से बंद मिली थी, इसलिए संदेह की भी कोई गुंजाइश नहीं थी.

पुलिस ने प्राथमिक काररवाई कर के बीना की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. बीना के पति सुधीर यादव और सभी घर वालों को इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि जब घर में कोई ऐसीवैसी बात ही नहीं हुई थी, तो बीना ने आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाया. बहरहाल, सुधीर ने गांधीनगर, इटावा फोन कर के बीना की आत्महत्या की बात अपनी ससुराल वालों को भी बता दी. अगले दिन सुबह बीना के पिता विजय सिंह यादव, भाई संजीव कुमार यादव तथा मां कानपुर आ गए.

ये लोग सीधे पोस्टमार्टम हाउस जा पहुंचे. तब तक बीना का पोस्टमार्टम हो चुका था. शव देखने के बाद बीना के भाई संजीव सिंह एडवोकेट ने दोबारा पोस्टमार्टम कराने की मांग उठाई. बीना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में फांसी लगा कर आत्महत्या किए जाने की बात लिखी थी, जो कि उस के मायके वालों को स्वीकार नहीं थी.

अंतत: काफी जद्दोजहद के बाद जिलाधिकारी श्रीमती रोशन जैकब ने लाश का पुन: पोस्टमार्टम कराए जाने का निर्देश दिया. लेकिन दोबारा किए गए पोस्टमार्टम में भी फांसी लगा कर जान देने की बात ही सामने आई. इस के बावजूद बीना के मायके वालों को विश्वास नहीं हुआ कि बीना ने आत्महत्या की होगी. उन का कहना था कि उन की बेटी आत्महत्या नहीं कर सकती.

सोच कर चूंकि अविश्वास के बादल छाए थे, इसलिए विजय सिंह ने अपने बेटे संजीव सिंह एडवोकेट के साथ थाना बर्रा पहुंच कर पुलिस से दहेज हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा, लेकिन बर्रा पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस पर विजय सिंह एसएसपी सुनील इमैनुएल से मिले और शंका जाहिर की कि बीना ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस के ससुराल वालों ने उस की हत्या की है.

उन की बात सुन कर एसएसपी ने तत्कालीन सीओ गोविंद नगर राघवेंद्र सिंह यादव को निर्देश दे कर विजय सिंह को उन के पास भेज दिया. विजय सिंह अपने बेटे के साथ सीओ राघवेंद्र सिंह से मिले और उन से बीना के ससुराल वालों के खिलाफ दहेज हत्या का मामला दर्ज करने का अनुरोध किया.

सीओ के आदेश पर थाना बर्रा के तत्कालीन इंचार्ज अजय प्रकाश श्रीवास्तव ने भादंवि की धारा 498ए 302, 365 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया. केस चूंकि दहेज हत्या का दर्ज हुआ था इसलिए इस मामले की जांच सीओ राघवेंद्र सिंह यादव ने स्वयं अपने हाथ में ले ली.

केस दर्ज होते ही सपा नेता सुधीर यादव सहित सभी घर वाले भूमिगत हो गए. बाहर ही बाहर सुधीर यादव ने सीओ तक अप्रोच लगाई कि जांच पूरी करने के बाद ही उन की गिरफ्तारी की जाए. पर सीओ ने साफ कह दिया कि पहले जेल जाएं फिर जांच होगी. कोई रास्ता न देख सुधीर यादव ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. वहां से गिरफ्तारी का स्टे आर्डर मिल गया.

इसी दौरान सीओ गोविंद नगर राघवेंद्र सिंह यादव का तबादला हो गया, उन की जगह नए सीओ ओमप्रकाश सिंह ने चार्ज संभाला. सुधीर यादव ने अपने परिवार की गिरफ्तारी का स्टे आर्डर ले रखा था, इसलिए अब कोई परेशानी नहीं थी. वह कुछ सपा नेताओं के साथ सीओ ओमप्रकाश सिंह से मिले. सुधीर ने उन्हें बताया कि बीना की हत्या उन लोगों ने नहीं की है, बल्कि उन्हें जबरन फंसाया जा रहा है. सुधीर ने एक रहस्य की बात यह भी बताई कि बीना का मोबाइल कहीं नहीं मिला है.

प्रकाश सिंह ने बीना की फाइल मंगाई और एकएक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया. घटनास्थल की फोटो देखने के बाद उन्हें लगा कि जिस तरह रस्सी में फांसी के फंदे की नीचे और ऊपर गांठें लगाई गई थीं वह एक सामान्य महिला के वश की बात नहीं थी. इस से उन्हें भी यह मामला हत्या का ही लगा.

खून में डूबा प्यार

मंजू सिदार सैफ से पहली दफा मिलने वाली थी. लगभग एक साल से दोनों फेसबुक और वाट्सऐप पर ही बातें करते रहे थे. उन की दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी.

धीरेधीरे उन की दोस्ती परवान चढ़ती गई. उन्होंने तय किया कि पहली जनवरी को वे एक साथ पिक्चर देखने चलेंगे. जब मंजू सिदार और सैफ ने एकदूसरे को देखा तो दोनों बहुत खुश हुए. शोएब अहमद अंसारी ने मंजू को बताया कि उस ने टिकट ले ली है और मूवी शुरू होने में अभी थोड़ा समय है. क्यों न पास के रेस्टोरेंट में बैठ कर कुछ बातें कर लें.

मंजू की स्वीकृति के बाद दोनों रेस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. एकदूसरे को निकटता से समझने के प्रयास में मंजू और सैफ बातों में डूब गए. सैफ मंजू को पहली बार देख कर उस का दीवाना ही हो गया.

मंजू की बातों से सैफ मंत्रमुग्ध सा हो गया. उस दिन उस ने मौका हाथ से नहीं जाने दिया. पिक्चर देखने के बाद तीनों एक गार्डन में बैठ गए, जहां दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सैफ ने तो यहां तक कह दिया कि मैं शादी करूंगा तो तुम से ही करूंगा.

मंजू पहली ही मुलाकात में सैफ के व्यवहार से प्रभावित हो गई. वह बोली, ‘‘सैफ, मैं तुम्हें पसंद करती हूं. मगर शादी के लिए इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. अभी हम एकदूसरे को और समझ लें. वैसे भी अभी मेरी नर्सिंग की पढ़ाई पूरी नहीं हुई है. मैं रायपुर जा कर पढ़ाई पूरी कर लूं.’’

‘‘ठीक है, तुम सोच लो, मैं तो तुम्हारा हो गया. समझ लो, मैं तुम्हारी इच्छा का गुलाम हूं. जब तुम कहोगी, तब शादी कर लेंगे.’’ सैफ ने कहा.

यह सुन मंजू हंसते हुए बोली, ‘‘तुम मुसलिम हो न, मुझे जाने क्यों मुसलिम बहुत अच्छे लगते हैं. मैं शादी करूंगी, मगर थोड़ा समय दो.’’

मंजू के मुसलमान वाले फिकरे को सुन कर सैफ के कान खड़े हो गए. वह सोचने लगा कि मंजू कहीं उस के मुसलिम होने की वजह से उस से निकाह नहीं करना चाहती या और कोई बात है. सैफ ने मंजू की आंखों में झांकते हुए प्यार से कहा, ‘‘मंजू, अगर तुम्हें आपत्ति है तो मैं तुम्हारी खातिर अपना धर्म बदलने को तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, तुम्हें धर्म बदलने की कोई जरूरत नहीं है. न तुम धर्म बदलो और न मैं बदलूंगी. यह तय है.’’ मंजू बोली.

मंजू की बात सुन कर सैफ खुश हुआ. मंजू ने उस से कहा, ‘‘सैफ, मैं अभी पढ़ना चाहती हूं. मेरे जीवन का उद्देश्य पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना है. मैं नर्स बनना चाहती हूं. बस तुम मुझे थोड़ा समय दो.’’

सैफ ने उस की बातों पर अपनी स्वीकृति दे दी.

इस घटनाचक्र के बाद मंजू सिदार और सैफ अकसर मिलते और साथसाथ समय बिताते. उन की दोस्ती ने रंग लाना शुरू कर दिया. उन का प्यार बढ़ता गया.

शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ रायगढ़ के बोइरदादर कस्बे का रहने वाला था. रायगढ़ में उस की मोबाइल फोन और एक्सेसरीज की दुकान थी.

एक दिन जब दोनों मिले तो मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं अगले हफ्ते रायपुर जाऊंगी, क्योंकि वहीं रह कर मुझे पढ़ाई पूरी करनी है.’’

अब मंजू को पढ़ाई के लिए 2 साल रायपुर में रहना था. त्यौहार आदि पर वह साल में 1-2 बार ही रायगढ़ आ सकती थी.

मंजू की बातें सुन कर सैफ निराश हुआ. उसे निराश होते देख मंजू चहकी, ‘‘तुम इतने दुखी क्यों हो गए?’’

‘‘मैं क्या कहूं,’’ सैफ ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘मैं तो तुम्हारा गुलाम हूं, जो कहोगी सुनूंगा, करूंगा.’’

मंजू ने हंस कर कहा, ‘‘मगर एक खुशी की खबर है.’’

‘‘क्या?’’ सैफ उत्सुक हुआ.

‘‘उस से पहले हम शादी कर सकते हैं, अगर तुम चाहो तो…’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? अंधे से पूछ रही हो कि आंखें चाहिए, मैं तैयार हूं.’’ वह खुश हो कर बोला.

इस के बाद फैसला कर दोनों ने 21 मार्च, 2019 को रायगढ़ से नोटरी पब्लिक शपथ पत्र बनवा लिया और कोर्ट में औपचारिक रूप से विवाह कर लिया. इस विवाह के साक्षी दोनों के नजदीकी मित्र बने. दोनों ने तय किया कि कुछ समय दोनों अलगअलग ही रहेंगे, मगर जल्द ही एकदूसरे के हो जाएंगे.

मंजू छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ के विनीतानगर वार्ड में रहने वाले गजाधर सिदार की बेटी थी. गजाधर रायगढ़ तहसील में पटवारी हैं. उन की 2 बेटियां थीं मंजू और मनीषा. दोनों बेटियों को वह उन के मनमुताबिक पढ़ा रहे थे. दोनों बहनों में आपस में बहुत प्यार था.

मंजू सिदार की छोटी बहन मनीषा कहने को तो उस की बहन थी, लेकिन वह उस की दोस्त भी थी. वह भी मंजू और सैफ के विवाह की गवाह थी. एक दिन उस ने अपनी मां प्रभावती को बातों ही बातों में बता दिया कि मंजू दीदी ने शादी कर ली है.

यह बात जब मां प्रभावती और पिता गजाधर सिदार को पता चली तो दोनों मंजू से बेहद नाराज हुए. मां प्रभावती तो मानो टूट ही गईं. उस ने मंजू को प्यार से समझाया. साथ ही दुहाई दे कर कहा कि तुम गलत दिशा में जा रही हो. तुम ने जो कदम उठाया है, उस से तुम्हारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.

मां की सलाह से धीरेधीरे मंजू के विचार बदल गए. उसे समझ में आने लगा कि उस ने जीवन की बहुत बड़ी भूल की है. सैफ और उस के रास्ते बिलकुल अलग हैं. जब मंजू को यह बात समझ में आई तो धीरेधीरे उस ने सैफ से कन्नी काटनी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, उस ने सैफ से बातचीत भी बहुत कम कर दी. सैफ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मंजू उसे इग्नोर क्यों कर रही है.

एक दिन दोनों की मुलाकात हुई तो सैफ ने बहुत सारे गिफ्ट, जरूरी सामान और पैसे मंजू को देने चाहे. मगर मंजू ने लेने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘सैफ, तुम्हारे और मेरे रास्ते अब जुदाजुदा हैं.’’

सैफ मानो आसमान से जमीन पर गिर पड़ा. वह अचंभित सा मंजू को देखता रह गया.

मंजू ने आगे कहा, ‘‘सैफ, अच्छा तो यही रहेगा कि अब तुम मुझे भूल जाओ.’’

इस पर सैफ बोला, ‘‘मंजू, तुम ने मेरे साथ ब्याह किया है, कोर्ट मैरिज. और अब कहती हो भूल जाऊं. यह भला कैसे हो सकता है. मंजू अगर ऐसी बात थी तो तुम्हें विवाह नहीं करना चाहिए था. यह तो सरासर धोखा है.’’

‘‘नहींनहीं, यह धोखा नहीं बल्कि हमारा बचपना था. मुझ से भूल हुई. बिना मांबाप, परिवार की सहमति के भला विवाह कैसे हो सकता है?’’ वह बोली.

‘‘हम ने कोर्टमैरिज की है, उस का क्या होगा?’’

‘‘उन कागजों को जला दो.’’ मंजू ने सपाट स्वर में कहा.

मंजू की कठोरता देख शोएब अंसारी उर्फ सैफ का दिल टूट गया. उस की आंखों के आगे जैसे अंधेरा घिर आया. उस ने कातर स्वर में कहा, ‘‘मंजू, तुम चाहे जो सोचो, जो कहो, मगर मैं साफसाफ कहता हूं मैं ने सच्चे दिल से तुम्हें चाहा है और सदैव चाहता रहूंगा. मैं तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर चुका हूं.’’

मंजू सैफ की आंखों में देखती रही. उसे लगा सैफ उसे सचमुच दिल से चाहता है, उस का सिर घूम गया. फिर वह अपने घर चली गई.

10 दिसंबर, 2019 को मंगलवार था. उस दिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टिकरापारा के गोदावरी नगर स्थित फ्लैट के बाहर शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ अपने 2 साथियों गुलाम मुस्तफा (18 वर्ष) और रामलाल (15 वर्ष) के साथ खड़ा था.

मंजू वहीं फ्लैट में रह कर अपनी पढ़ाई कर रही थी. उस समय उस की छोटी बहन मनीषा भी उस के पास आई हुई थी. सैफ ने मुस्तफा से कहा, ‘‘देखो, मंजू ने मेरे साथ जो धोखा किया है, उसे मैं अब और बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मंजू मेरे साथ ऐसा करेगी, मैं ने कभी सोचा नहीं था. अब मैं ने फैसला कर लिया है कि ऐसी धोखेबाज को सबक जरूर सिखाना है. यानी उस का काम तमाम करना है. अगर तुम मेरा यह काम कर दोगे, तो मैं तुम्हें 7 लाख रुपए दूंगा.’’ कहतेकहते उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

सैफ की बात सुन गुलाम मुस्तफा बोला, ‘‘देख यार सैफ, तू गुस्सा न हो. तू उस से बात कर. हो सकता है अभी भी वह तेरी हो जाए. मगर सुन ले हमारे पैसे तुम्हें दोनों ही हालत में देने होंगे.’’

‘‘मेरा वादा है, पैसे जरूर दूंगा. बस मेरा काम हो जाए.’’ सैफ ने कहा.

‘‘आओ, फिर हम अपना काम करें.’’ गुलाम मुस्तफा ने कहा. मंजू घर में है या नहीं, पता लगाने के लिए सैफ ने उस के मोबाइल पर फोन कर कहा, ‘‘मंजू, मैं तुम से आखिरी बार कुछ बात करना चाहता हूं. उस के बाद तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगा.’’

मंजू सुबह का नाश्ता बना कर नर्सिंग कालेज जाने के लिए तैयार थी. उसे वहां 12 बजे पहुंचना था. उस ने सैफ को फ्लैट पर बुला लिया. सैफ और मुस्तफा फ्लैट में चले गए और रामलाल फ्लैट के बाहर ही खड़ा रहा. फ्लैट में प्रवेश करते ही सैफ ने देखा मंजू उस समय अपनी छोटी बहन मनीषा के साथ नाश्ता कर रही थी.

सैफ पास पहुंच कर बोला, ‘‘मंजू, मैं आखिरी बार तुम्हारे पास आया हूं, क्योंकि मैं रोजरोज की बातों से आजिज आ चुका हूं. बताओ, तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो?’’

यह सुनते ही मंजू और मनीषा नाश्ता छोड़ उस की ओर देखने लगीं. तभी मंजू बोली, ‘‘सैफ, मैं तो तुम्हें पहले ही बोल चुकी हूं कि अब तुम मुझे भूल जाओ. जो हुआ, वह भी भूल जाओ.’’

मंजू की तल्ख बातें सुन कर सैफ आपे में नहीं रहा. वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम ने रमन के साथ टिकटौक पर वीडियो क्यों डाला? क्या यह वीडियो अपलोड करना तुम्हारी फितरत को बयां नहीं करता?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘सीधी सी बात है, तुम ने मुझे बरबाद किया अब रमन को बरबाद करोगी. पहले मेरे साथ कोर्टमैरिज की, अब उसे फंसा रही हो.’’

‘‘नहीं, मेरी रमन के साथ शादी होने जा रही है.’’ मंजू ने एकाएक जैसे बड़े रहस्य से परदा उठा दिया.

‘‘मुझे छोड़ कर तुम किसी और के साथ शादी नहीं कर सकती.’’ सैफ तल्ख हो गया.

मंजू भी आगबबूला हो गई. दोनों में कहासुनी बढ़ती गई.

तभी सैफ ने वहीं रखा फ्राइंग पैन उठा कर मंजू के सिर पर दे मारा. जिस से मंजू की चीख निकल गई और उस के सिर से खून बहने लगा.

वह वहीं ढेर हो गई. बहन की गंभीर हालत देख कर मनीषा सैफ पर हमलावर हो उठी तो उस ने उसी फ्राइंग पैन से कई वार कर के मनीषा को भी मरणासन्न कर डाला. इस बीच गुलाम मुस्तफा उस का बराबर साथ दे रहा था. वह अपना गमछा ले कर मंजू के पास पहुंचा और गमछे से मंजू का गला घोंट दिया. फिर उसी गमछे से मनीषा का भी गला घोंट दिया, जिस से दोनों की ही मौत हो गई.

सैफ और गुलाम मुस्तफा दोनों ने उन के मोबाइल उठा कर अपने पास रख लिए. अपना काम निपटा कर जब वह घर से बाहर भागने को हुए तो घर के बाहर से किसी की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुन कर वे घबरा गए, जिस से जल्दबाजी में गुलाम मुस्तफा का एक जूता किसी चीज में फंस कर वहीं रह गया. वह दरवाजा खोल भाग खड़ा हुआ. इस दरमियान उस फ्लैट के बाहर दूसरी मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में वे सब कैद हो गए.

मंजू और मनीषा की चीखें सुन कर आसपड़ोस वाले भी वहां आ गए. उन्होंने फ्लैट की खिड़की से झांक कर देखा तो दोनों लड़कियों को लहूलुहान देख कर वह माजरा समझ गए.

उन्होंने सूचना फ्लैट मालिक इंद्रजीत सिंह को दे दी. इंद्रजीत फ्लैट पर पहुंचे तो वहां रहने वाली मंजू और उस की बहन को लहूलुहान हालत में देख कर वह घबरा गए. उन्होंने तुरंत फोन कर के थाना तिकरापारा पुलिस को सूचना दी.

सूचना पा कर टीआई कय्यूम मेमन पुलिस मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले दोनों बहनों को रायपुर के अंबेडकर हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल में 2 पुलिसकर्मियों को छोड़ कर टीआई कय्यूम मेमन घटनास्थल पर पहुंचे.

सूचना पा कर एसपी आरिफ एच. शेख और एएसपी (क्राइम) पंकज चंद्रा भी घटनास्थल पर पहुंचे. स्थिति का मुआयना कर उन्होंने इस दोहरे हत्याकांड को खोलने के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं. टीआई ने मंजू के घर भी फोन कर सूचना दे दी.

कुछ देर बाद मंजू के मातापिता और अन्य लोग अंबेडकर अस्पताल की मोर्चरी पहुंच गए. दोनों बेटियों के शव देख कर वे फूटफूट कर रोने लगे.

पिता गजाधर सिदार से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने रायगढ़ के ही रहने वाले शोएब अहमद अंसारी उर्फ सैफ पर अपना शक जताया. उन्होंने बताया कि उस ने उन की बेटी मंजू से कथित रूप से विवाह कर लिया था. मंजू जब रावतपुरा नर्सिंग कालेज, रायपुर में पढ़ाई कर रही थी, तब सैफ लगातार फोन कर के उसे परेशान किया करता था.

उन्होंने यह भी बताया कि सैफ ने उन की बेटी के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए थे. तब उन्होंने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. जिस पर पुलिस ने उसे पोक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा था.

गजाधर सिदार से यह जानकारी मिलने के बाद टीआई कय्यूम मेमन ने एक पुलिस टीम रायगढ़ के बोइरदादर भेजी, जहां का सैफ रहने वाला था. मगर पुलिस को जानकारी मिली कि वह पिछले 2 दिनों से गायब है.

पुलिस ने उस के मोबाइल को ट्रेस करना शुरू किया और सूत्रों से उस की जानकारी लेनी आरंभ की तो खबर मिली कि सैफ बिलासपुर से पेंड्रा के शहडोल मैहर होता हुआ रीवा पहुंच चुका है. रायपुर पुलिस ने 11 दिसंबर, 2019 को रीवा (मध्य प्रदेश) पुलिस की सहायता से तोपखाना के निकट छिप कर रह रहे सैफ को अपनी गिरफ्त में ले लिया.

सैफ से पूछताछ के बाद पुलिस ने गुलाम मुस्तफा को रायगढ़ से और नाबालिग रामलाल को जिला चांपा जांजगीर से अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन्होंने इकबालिया बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने मंजू और मनीषा की हत्या में सैफ की मदद की थी. सैफ ने बताया कि मंजू ने अपनी मरजी से उस के साथ कोर्टमैरिज की थी.

मगर उस के बाद मंजू अपना रंग दिखाने लगी, जिस से वह बहुत निराश हो गया था. मगर जब एक लड़के के साथ उस ने टिकटौक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया तो उस के तनबदन में आग लग गई और उस ने उसी दिन निर्णय लिया कि अब मंजू को मार डालेगा.

इस बारे में उस ने अपने दोस्तों गुलाम मुस्तफा और रामलाल के साथ प्लानिंग की. उस की मंशा सिर्फ मंजू की हत्या करने की थी, लेकिन घटना के समय मनीषा ने जिस तरह विरोध करना शुरू किया तो गुस्से में उन्होंने उस की भी हत्या कर दी.

पुलिस ने हत्यारोपी शोएब अहमद अंसारी, गुलाम मुस्तफा और रामलाल को भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, रायपुर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में रामलाल परिवर्तित नाम है.

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

दो पाटों के बीच : जितेंद्र ने दी प्यार की कुर्बानी

जितेंद्र सरिसाम और राधा कहार पैसों से भले ही गरीब थे, लेकिन सैक्स के मामले में किसी रईस से कम नहीं थे. भोपाल के पौश इलाके बागमुगालिया की रिहायशी कालोनी डिवाइन सिटी के एक 2 मंजिला बंगले में रहने वाले 26 वर्षीय जितेंद्र को अकसर अमीरों जैसी फीलिंग आती थी. भले ही वह जानतासमझता था कि इस महंगे डुप्लेक्स मकान में वह कुछ दिनों का मेहमान है, इस के बाद तो फिर किसी झोपड़े में आशियाना बनाना है.

दरअसल, जितेंद्र पेशे से मजदूर था. चूंकि रहने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए ठेकेदार ने उसे इस शानदार मकान में रहने की इजाजत दे दी थी, जो अभी बिका नहीं था. यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि जहांजहां भी कालोनियां बनती हैं, वहांवहां ठेकेदार या कंस्ट्रक्शन कंपनी मजदूरों को बने अधबने मकानों में रहने को कह देती हैं. इस से मकान और सामान की देखभाल भी होती रहती है और मजदूरों के वक्तबेवक्त भागने का डर भी नहीं रहता.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले छिंदवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के गांव गुरोकला का रहने वाला जितेंद्र देखने में हैंडसम लगता था और उन लाखों कम पढ़ेलिखे नौजवानों में से एक था, जो काम और रोजगार की तलाश में शहर चले आते हैं.

इन नौजवानों के बाजुओं में दम, दिलों में जोश और आंखों में सपने रहते हैं कि खूब मेहनत कर वे ढेर सा पैसा कमा कर रईसों सी जिंदगी जिएंगे. यह अलग बात है कि अपनी ही हरकतों और व्यसनों की वजह से वे कभी रईस नहीं बन पाते.

जितेंद्र भोपाल आया तो उस के सामने भी पहली समस्या काम और ठिकाने की थी. जानपहचान के दम पर भागदौड़ की तो न केवल मजदूरी का काम मिल गया बल्कि ठेकेदार ने रहने के लिए एक अधबना मकान भी दे दिया.

यह कमरा जितेंद्र के लिए जन्नत से कम साबित नहीं हुआ. आने के 4 दिन बाद ही उसे पता चला कि बगल वाले कमरे में एक अकेली औरत रहती है, जिस का नाम राधा है. बातचीत हुई और पहचान बढ़ी तो उसे यह जान कर खुशी हुई कि राधा भी उस की तरह न केवल अकेली है, बल्कि उस के ही जिले यानी छिंदवाड़ा की रहने वाली है.

35 वर्षीय राधा को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 13 साल के एक बेटे की मां भी है. गठीले कसे बदन की सांवली छरहरी राधा जैसी पड़ोसन पा कर जितेंद्र खुद को धन्य समझने लगा. जल्द ही दोनों में दोस्ती हो गई.

इस इलाके के लोग जब बाहर निकलते हैं तो उन की बातें अपने इलाके के इदगिर्द घूमती रहती हैं. जितेंद्र को राधा ने बता दिया कि उस की शादी कोई 15 साल पहले मदन कहार से हुई थी, जिस ने उसे छोड़ दिया है.

बेटा उस के पिता यानी अपने नाना के घर रहता है और जिंदगी गुजारने की गरज से वह भी उस की तरह मजदूरी कर रही है. कुल मिला कर वह इस दुनिया में अकेली है.

ऐसी ही बातों के दौरान एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘अकेली कहां हो, मैं जो हूं तुम्हारा.’’

इतना सुनने के बाद राधा बहुत खुश हुई और उसी रात दोनों एकदूसरे के हो भी गए. आग और घी पास रखे जाएं तो नतीजा क्या होता है, यह जितेंद्र और राधा की हालत देख कर समझा जा सकता था. जितेंद्र ने पहली बार और राधा ने मुद्दत बाद देहसुख का आनंद लिया तो दोनों एकदूसरे की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे.

दोनों दिन भर मजदूरी करते थे और शाम के बाद रात को एकदूसरे में समा जाते थे. धीरेधीरे दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे चूल्हाचौका एक हो गया, गृहस्थी के लिए आने वाला राशनपानी एक हो गया, खर्चे एक हो गए. फिर देखते ही देखते बिस्तर भी एक हो गया. यानी दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. दूसरे नए मजदूर साथी इन्हें मियांबीवी ही समझते थे, लेकिन पुराने जानते थे कि हकीकत क्या है.

प्यार और शरीर सुख में डूबतेउतराते जितेंद्र और राधा को दुनिया जमाने की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कहतासोचता है. वे तो अपनी दुनिया में मस्त थे, जहां तनहाई थी, सुकून था और प्यार के अलावा रोज तरहतरह से किया जाने वाला सैक्स था,जो मजे को दो गुना, चार गुना कर देता था.

देखा जाए तो दोनों वाकई स्वर्ग की सी जिंदगी जी रहे थे, जिस में कोई बाहरी दखल नहीं था. न तो कोई कुछ पूछने वाला था और न ही कोई रोकनेटोकने वाला. इन्हें और इन की जिंदगी देख कर कोई भी रश्क कर सकता था कि जिंदगी हो तो ऐसी, प्यार और शरीर सुख में डूबी हुई जिस में गरीबी या अभाव आड़े नहीं आते.

राधा को एक गबरू जवान का सहारा मिल गया था तो जितेंद्र को ऐसी पड़ोसन मिल गई थी, जो रोज उसे तरहतरह से कुछ इस तरह प्यार देती थी कि वह निहाल हो उठता था. और कभी थकता या ऊबता नहीं था. एक मर्द और औरत को भरपेट खाने के बाद इस से ज्यादा कुछ और ख्वाहिश भी नहीं रह जाती.

राधा पर भले ही कोई बंदिश नहीं थी, लेकिन जितेंद्र पर थी. इस साल की शुरुआत से ही उस के घर वाले उस पर शादी कर लेने का दबाव बना रहे थे, जिसे शुरू में तो वह तरहतरह के बहाने बना कर टरकाता रहा, लेकिन घर वालों खासतौर से गांव में रह रहे पिता भारत सिंह को उस की दलीलों और बहानों से कोई लेनादेना नहीं था.

उन की नजर में बेटा ठीकठाक कमाने लगा था, इसलिए अब उसे शादी के बंधन में बांधना जरूरी हो चला था, जिस से वह घरगृहस्थी बसाए और बहके नहीं.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि बेटा 4 साल पहले भोपाल आने के तुरंत बाद ही बहक चुका था. घर वालों का दबाव जितेंद्र पर बढ़ा तो उस ने शादी के बाबत हां कर दी.

लेकिन उस ने जब यह बात राधा को बताई तो वह बिफर उठी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह उसे किसी दूसरी औरत, चाहे वह उस की ब्याहता ही क्यों न हो, से बंटते नहीं देख सकती.

राधा की बात सुन कर जितेंद्र सकपका उठा. घर वालों को वह शादी के लिए न कहता तो वे भोपाल आ टपकते और राधा उस की मजबूरी को समझने के लिए तैयार नहीं थी.

अब एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी. धर्मसंकट में पड़े जितेंद्र ने राधा को तरहतरह से समझाया. घर वालों की दुहाई दी और यह वादा भी कर डाला कि वह होने वाली पत्नी रिनिता को भोपाल नहीं लाएगा, बल्कि बहाने बना कर उसे गांव में ही रहने देगा. अपने आशिक की इस मजबूरी से समझौता करते हुए राधा को आखिर तैयार होना ही पड़ा.

मई के महीने में जितेंद्र अपने गांव गुरीकला गया और सलैया गांव की रिनिता से उस की शादी हो गई. रिनिता काफी खूबसूरत भी थी और मासूम और भोली भी, जो शादी तय होने के बाद से ही सपने देख रही थी कि शादी के बाद वह पति के साथ भोपाल जा कर रहेगी. जब वह काम से लौटेगा तो उस के लिए अच्छाअच्छा खाना बना कर खिलाएगी और दोनों भोपाल घूमेंगेफिरेंगे.

इधर राधा चिलचिलाती गरमी के अलावा ईर्ष्या की आग में भी जल रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि नईनवेली पत्नी के चक्कर में फंस कर जितेंद्र उसे भूल जाए और 4 साल सुख भोगने के बाद वह फिर अकेली रह जाए.

रहरह कर उसे दिख रहा था कि जितेंद्र रिनिता की मांग में सिंदूर भर रहा है, उसे मंगलसूत्र पहना रहा है और उस के साथ सात फेरे लेने के बाद सुहागरात मना रहा है.

वह जलभुन कर खाक हुई जा रही थी. राधा के पास सांत्वना देने वाली एकलौती बात यह और थी कि जितेंद्र पत्नी को साथ ले क र नहीं आएगा और फिर दोनों पहले की तरह मौजमस्ती में डूब जाएंगे.

ऐसा हुआ भी, जितेंद्र शादी के कुछ दिनों बाद जब भोपाल आया तो उस समय वह अकेला था. यह देख राधा खुशी से फूली न समाई और उस की बांहों में झूल गई.

दोनों फिर अपनी दुनिया में मशगूल हो गए. शादी के बाद रिनिता के साथ सैक्स में जितेंद्र को वह मजा कतई नहीं आया था, जो भोपाल में राधा के साथ आता था. रिनिता शर्मीली थी और सैक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी, जबकि जितेंद्र पक्का खिलाड़ी था, जिसे नाजनखरे, मनाना और देरी बिलकुल पसंद नहीं आती थी.

बहाने बना कर वह रिनिता को घर छोड़ आया. जब उस ने रिनिता की कोई खोजखबर नहीं ली तो पिता भारत को चिंता हुई. लिहाजा 3 महीने इंतजार करने के बाद उन्होंने रिनिता को भोपाल भेज दिया.

अपने पिता से डरने वाला और उन का लिहाज करने वाला जितेंद्र रिनिता को भोपाल आया देख सकते में आ गया. जबकि राधा के तो मानो तनबदन में आग लग गई. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था, इसलिए वह कसमसा कर रह गई.

कुछ दिन तो दोनों सब्र का दामन थामे एकदूसरे से बेमन से दूर रहे, लेकिन अगस्त के महीने की बारिश राधा के तनमन को कुछ इस तरह सुलगा रही थी कि उस से जितेंद्र की दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी.

इधर रिनिता खुश थी. भीड़भाड़ वाले शहर की रौनक, मौसम और अपना घर इस नईनवेली को उत्साह और रोमांस से भर रहे थे लेकिन पति की बेरुखी की वजह से वह समझ नहीं पा रही थी. राधा को उस ने दूर से देखा भर था, जिस ने पड़ोसन होने का शिष्टाचार भी नहीं निभाया था. इसे वह शहर का दस्तूर मान कर चुप रही और रोज सजसंवर कर पति का दिल जीतने की कोशिश करती रही.

 

2 सितंबर को वह उस वक्त सन्न रह गई, जब उस ने दिनदहाड़े पति को राधा के साथ एकदम निर्वस्त्र हालत में रंगरलियां मनाते देख लिया. रिनिता पर बिजली सी गिरी. पति और पड़ोसन की बेशरमी और बेहयाई के दृश्य देख उस का सब कुछ लुट चुका था. पति की हकीकत उस के सामने थी कि क्यों वह पहले ही उस से खिंचाखिंचा रहता था.

जितेंद्र राधा के साथ रासलीला मना कर वापस आया तो भरी बैठी रिनिता ने उस से सवालजवाब करने के साथसाथ उस के नाजायज संबंधों पर पर भी सख्त ऐतराज जताया. पहले तो जितेंद्र ने सफाई दे कर उसे तरहतरह के बहाने और दलीलें दे कर बहलाने फुसलाने की कोशिश की, लेकिन कुछ देर पहले ही रिनिता ने जो देखा था, उस से कोई भी पत्नी समझौता नहीं कर सकती.

लिहाजा वह पति पर भड़क गई. बात बढ़ते देख रिनिता ने उसे धमकी दे दी कि सुबह होते ही वह ससुर को उस की सारी करतूत बता देगी.

इस पर जितेंद्र की रूह कांप उठी. उसे मालूम था कि सख्त और उसूलों के धनी उस के पिता को यह सब पता चलेगा तो वह उसे यहीं से छिंदवाड़ा तक घसीटते हुए ले जाएंगे और उस का जो हाल करेंगे, वह नाकाबिले बरदाश्त होगा.

पतिपत्नी में तूतू मैंमैं चल ही रही थी कि उसी समय राधा भी वहां आ पहुंची और जितेंद्र के पक्ष में बोलने लगी. राधा और रिनिता दोनों खूंखार बिल्लियों की तरह लड़ते हुए एकदूसरे को दोषी ठहराने लगीं.

इसी दौरान जितेंद्र ने फैसला ले लिया कि रिनिता उसे वह सुख नहीं दे सकती जोकि राधा देती है. लिहाजा उस ने उसी समय दोनों में से राधा को चुनने का फैसला ले लिया.

इस के बाद जितेंद्र ने पत्नी रिनिता की गरदन दबोच ली. राधा भी उस का साथ देने आ गई और दोनों ने उस का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटा कर रिनिता वहीं लुढ़क गई.

हत्या तो कर दी, लेकिन इस के बाद जितेंद्र और राधा दोनों घबरा उठे कि अब लाश का क्या करें, लेकिन कुछ तो करना ही था. उन्होंने उस की लाश बोरे में भर कर एक नाले में फेंक दी.

फिर 5 सितंबर को खुद को हैरानपरेशान दिखाता हुआ जितेंद्र बागमुगालिया थाने पहुंचा और अपनी पत्नी रिनिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई.

टीआई शैलेंद्र शर्मा को उस ने बताया कि उस की 22 वर्षीय पत्नी रिनिता 3 दिनों से गायब है, जिस की वह हर मुमकिन जगह तलाश कर चुका है लेकिन वह नहीं मिली. अनुभवी शैलेंद्र शर्मा ने जब सारी जानकारी ली तो उन्हें लगा कि आमतौर पर नवविवाहितों के नैतिकअनैतिक संबंध हादसे की वजह होते हैं.

उन्होंने जब और गहराई से जितेंद्र से सवालजवाब किए तो यह जान कर हैरान रह गए कि रिनिता तो भोपाल में एकदम नई थी. इसी पूछताछ में राधा का और जिक्र आया तो उन्हें कहानी कुछकुछ समझ आने लगी.

रिपोर्ट दर्ज कर टीआई ने जितेंद्र को जाने दिया, लेकन उस के पीछे अपने मुलाजिम लगा दिए, जो जल्द ही काम की यह जानकारी खोद कर ले आए कि जितेंद्र और राधा के कई सालों से नाजायज संबंध हैं और दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं.

मामला जब भोपाल (साउथ) एसपी संपत उपाध्याय के पास पहुंचा तो उन्होंने एएसपी संजय साहू और एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी को इस मामले की छानबीन के लिए लगा दिया.

पुलिस वालों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. 6 दिसंबर को इसी इलाके की एक और कालोनी रुचि लाइफस्केप के चौकीदार गोवर्धन साहू ने पुलिस को इत्तला दी कि कालोनी के पास बहने वाले नाले में एक बोरे में लाश तैर रही है.

लाश बरामद करने के लिए पुलिस टीम नाले के पास पहुंची तो लाश के बोरे के बाहर झांकते पैर साफ बता रहे थे कि वह किसी युवती की है. पुलिस बोरा खोल पाती, इस के पहले ही जितेंद्र वहां पहुंच गया और बिना लाश देखे ही कहने लगा कि यह उस की पत्नी रिनिता की लाश है.

बात अजीब थी लेकिन एक तरह से खुद जितेंद्र ने जल्दबाजी में अपने गुनाह की पोल खोल दी थी. फिर कहनेकरने को कुछ नहीं बचा था. अनिल त्रिपाठी ने जितेंद्र को बैठा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो उस ने सब कुछ उगल दिया, जिस की बिनाह पर राधा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

दरअसल, सितंबर के पहले सप्ताह में भोपाल में जोरदार बारिश हो रही थी. हत्या के बाद जितेंद्र और राधा ने रिनिता की लाश को बोरे में बंद कर यह सोचते हुए घर से कुछ ही दूरी पर नाले में फेंक दी थी कि वह पानी में बह जाएगी और कुछ दिनों में सड़गल जाएगी. फिर किसी को हवा भी नहीं लगेगी कि रिनिता कहां गई. बाद में जितेंद्र घर वालों के सामने उस के गायब होने का कोई भी बहाना बना देगा. इस के बाद दोनों पहले जैसी ही जिंदगी जिएंगे.

 

पर लाश नहीं बही तो दोनों को चिंता हुई. जितेंद्र जिस ने 3 दिन बाद पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी, वह दरअसल बोरे की निगरानी कर रहा था कि बोरा वहां से बहे तो पिंड छूटे. 6 दिसंबर को जब चौकीदार ने पुलिस को नाले में लाश पड़ी होने की खबर दी तो वह पुलिस टीम के पीछेपीछे ही पहुंच गया और बोरा खुलने से पहले लाश की पहचान भी कर ली.

अब राधा और जितेंद्र जेल में बैठे अपने मौजमस्ती के दिन याद करते कलप रहे हैं. दोनों को सजा होनी तय है, लेकिन बड़ी गलती जितेंद्र की है, जिस ने अधेड़ प्रेमिका की हवस के लिए बेगुनाह बीवी को ठिकाने लगाना ज्यादा बेहतर समझा.

नाजायज संबंधों का ऐसा अंजाम नई बात नहीं है, लेकिन अगर जितेंद्र घर वालों से बगावत कर के और उन की परवाह न करते हुए राधा से ही शादी कर लेता तो दोनों शायद हत्या के गुनाह से भी बच जाते.

लगता नहीं कि दोनों यह सब सोच रहे होंगे, बल्कि वे सोच रहे होंगे कि रिनिता की लाश बह कर सड़गल जाती तो रास्ते का कांटा निकल जाता.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

चाहत जब नफरत में बदली

जून, 2017 को अपने नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग कर के सोनी सिन्हा वाराणसी से उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना सरायलखंसी के मोहल्ला रस्तीपुर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन पुष्पा के घर पहुंची तो रात के 9 बज रहे थे. उसे एक अन्य कार्यक्रम में जाना था, इसलिए वह जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. उस के तैयार होतेहोते पुष्पा ने उस के लिए नाश्ता ला कर रख दिया. सोनी ने नाश्ता करने से मना किया तो उन्होंने उसे डांटने वाले अंदाज में प्यार से कहा, ‘‘जो लाई हूं, चुपचाप खा ले. तू हमेशा घोड़े पर सवार रहती है.’’

नाश्ते की प्लेट उठाते हुए सोनी ने कहा, ‘‘दीदी, आप मेरी कितनी फिक्र करती हैं. सचमुच मैं बड़ी भाग्यशाली हूं, जो मुझे आप जैसी बड़ी बहन मिली. पर मैं क्या करूं, काम के लिए तो जाना ही पड़ेगा. काम की ही वजह से कभी हमें बैठ कर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता.’’

बातें करतेकरते ही सोनी ने नाश्ता किया और घर से बाहर आ गई. बिजली न होने की वजह से उस समय गली में अंधेरा था. सोनी घर से थोड़ी दूर ही गई थी कि वह जोर से चीखी. उस की चीख सुन कर लोग टार्च ले कर बाहर आ गए. सोनी जमीन पर पड़ी कराह रही थी.

टार्च ले कर आए लोगों ने उस पर टार्च की रौशनी डाली तो देखा, उस के कपड़े खून से तर थे. एक लड़का हाथ में खून से सना चाकू लिए तेजी से भाग रहा था. पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि इसी लड़के ने सोनी पर चाकू से हमला किया है. उन्होंने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया.

शोर सुन कर पुष्पा और उस के पति मीरचंद भी वहां आ गए थे. पड़ोसियों ने हमला करने वाले लड़के की लातघूसों से पिटाई शुरू कर दी थी. लेकिन कसरती बदन वाला वह युवक मार खाते हुए उन के चंगुल से छूट कर अंधेरे का लाभ उठाते हुए भाग निकला था.

सोनी की गर्दन और शरीर पर कई जगह गहरे घाव हो गए थे. वहां से खून तेजी से बह रहा था. उस की हालत देख कर पुष्पा और मीरचंद घबरा गए. सोनी को जल्दी से जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उस का प्राथमिक इलाज कर के उसे बीएचयू के ट्रामा सेंटर ले जाने को कहा.

मीरचंद सोनी को ले कर बीएचयू के ट्रामा सेंटर पहुंचे, जहां उसे भर्ती कर लिया गया. 2 सिपाही मऊ से उस के साथ आए थे, इसलिए सोनी का इलाज शुरू होने में कोई परेशानी नहीं हुई. दरअसल, सोनी को अस्पताल ले जाने से पहले मीरचंद ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी को घटना की सूचना मिली तो वह मऊ के जिला चिकित्सालय पहुंच गए थे. सोनी की बिगड़ती हालत की वजह से वह उस का बयान तो नहीं ले सके, लेकिन एसपी अभिषेक यादव के आदेश पर वाराणसी जाते समय उस की सुरक्षा के लिए 2 सिपाहियों को उस के साथ जरूर भेज दिया था.

किस ने किया था सोनी पर हमला सोनी के जाने के बाद थानाप्रभारी सुनील तिवारी ने सोनी की बड़ी बहन पुष्पा से हमलावर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सोनी पर हमला राहुल गुप्ता ने किया था. वह सोनी का दोस्त था और उस से एकतरफा प्यार करता था.

इस के बाद पुष्पा से तहरीर ले कर राहुल गुप्ता के खिलाफ हत्या की कोशिश एवं एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना सरायलखंसी पुलिस ने राहुल गुप्ता की तलाश में कई जगहों पर छापे मारे, लेकिन वह मिला नहीं. सोनी कोई मामूली लड़की नहीं थी, इसलिए अगले दिन उस पर हुए हमले की खबर अखबारों में प्रमुखता से छपी.

दरअसल, सोनी भोजपुरी गीतों की लोकप्रिय गायिका थी. उस ने कई भोजपुरी फिल्मों में काम भी किया था. इसलिए पुलिस उस पर हमला करने वाले राहुल गुप्ता के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. लेकिन पूरा सप्ताह बीत जाने के बाद भी राहुल गुप्ता पुलिस की पकड़ में नहीं आया था. इस बीच पुलिस के लिए सुकून देने वाली बात यह रही कि सही इलाज मिल जाने से सोनी बच गई थी.

सोनी बयान देने लायक हो गई है, यह पता चलने पर सुनील तिवारी उस का बयान लेने बीएचयू पहुंच गए. गले में गहरा जख्म था, इसलिए सोनी को बाचतीत करने में परेशानी हो रही थी. खुशी की बात यह थी कि उस की आवाज जातेजाते बच गई थी, जबकि राहुल ने गले पर इसीलिए चाकू से वार किए थे कि वह कभी बोल न सके.

पुलिस को दिए अपने बयान में सोनी ने बताया था कि राहुल गुप्ता ने ही उस पर जानलेवा हमला किया था. वह पिछले कई दिनों से फोन कर के उसे परेशान कर रहा था. वह उस से प्यार करता था और उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. जबकि वह न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस से शादी करना चाहती थी. इसी बात से नाराज हो कर उस ने उसे जान से मारने की कोशिश की थी.

सोनी के इस बयान से साफ हो गया था कि यह मामला एकतरफा प्यार का था. राहुल सोनी से एकतरफा प्यार करता था. प्यार में असफल होने के बाद राहुल को सोनी से नफरत हो गई थी और उस ने उस की जान लेने की कोशिश की थी.

पुलिस से बचने के लिए राहुल अपने बहनोई के घर जा कर छिप गया था. अखबारों के माध्यम से जब राहुल के बहनोई को उस की करतूत का पता चला तो घबरा कर उन्होंने उस से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा. आखिर बहनोई के कहने पर थानाप्रभारी 3 जुलाई, 2017 को शाम को राहुल गुप्ता ने थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.

पुलिस ने राहुल गुप्ता से पूछताछ शुरू की  तो बिना किसी हीलाहवाली के उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. यही नहीं, उसने वह चाकू और अपने खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए. उस ने चाकू और कपड़े घर में ही छिपा कर रखे थे. इस के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पूछताछ में राहुल ने सोनी पर हमला करने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थीं—

21 साल की सोनी सिन्हा उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना घोसी के गांव सेमरा जमालपुर की रहने वाली थी. कैलाश प्रसाद की 5 संतानों में वह सब से छोटी थी. छोटी होने के नाते वह घर में सब की दुलारी थी. मांबाप से ले कर भाईबहन तक उसे हाथोंहाथ लिए रहते थे. वह 6 साल की थी, तभी भजन गा कर उस ने सब को चौंका दिया था.

जैसेजैसे सोनी बड़ी होती गई, उस की इस प्रतिभा में निखार आता गया. उस के गले से निकलने वाली स्वर लहरियां बुलंदियों को छूती गईं. उस की प्रतिभा को निखारने में घर वालों ने उस का पूरा साथ दिया.

गांव में रह कर उसे सही मंजिल नहीं मिल सकती थी, इसलिए घर वालों ने उसे उस की बड़ी बहन पुष्पा की ससुराल रस्तीपुर भेज दिया. यहीं रह कर सोनी ने गायन सीखा और जहांतहां गाने जाने लगी.

सन 2013 में सोनी को महुआ चैनल के रियालिटी शो में गाने का मौका मिला. अपनी सुरीली आवाज से उस ने जजों का दिल जीत लिया. 4 प्रतिभागियों को कड़ी टक्कर दे कर सोनी ने बाजी मार ली.

इस के बाद मऊ में एक कार्यक्रम हुआ, इस में भी उस ने बाजी मार ली. इस के बाद भोजपुरी गायकी में उस का नाम चर्चा में आ गया. उस ने ‘पूरा मऊ बाजार’, ‘माई हो फूकब पाकिस्तान के’, ‘अंगरेजी पिचकारी’, ‘चढ़ल फगुनवा’, ‘धंधा वाली’, ‘जवानी चाकलेट भइल’ और ‘कांवर भजन’ एलबम बनाए, जिन्होंने धूम मचा दिए. सोनी सिन्हा का सितारा बुलंदियों पर पहुंच गया. वह स्टेज शोे के अलावा शादीविवाहों में भी गाने जाती थी.

भाई की शादी में पहली बार मिला था राहुल सोनी से बात 2017 के अप्रैल महीने की है. बलिया जिले के थाना भीमपुरा के गांव बेलौझा के रहने वाले राहुल के भाई की शादी थी. रंगीनमिजाज उस के पिता चाहते थे कि बेटे की शादी में कोई नामीगिरामी गाने वाली आए, जिस से पार्टी में चार चांद लग जाए. अब तक पूर्वांचल में सोनी का बड़ा नाम हो चुका था. राहुल के पिता ने बारातियों के मनोरंजन के लिए सोनी को बुलवाया. सोनी समय पर अपना प्रोग्राम देने पहुंच गई.

खूबसूरत सोनी को राहुल ने पहली बार भाई की शादी में देखा था. तभी उस ने उसे दिल में उतार लिया था. राहुल भी छोटामोटा गायक था. वह आर्केस्ट्रा पार्टियों में गाता था. इसलिए सोनी से उस का परिचय हो गया. सोनी से उस की बातचीत भी होने लगी. धीरधीरे बातचीत का सिलसिला बढ़ता गया.

एक समय ऐसा भी आ गया, जब सोनी से बात किए बिना राहुल को चैन नहीं मिलता था. उसे सोनी से प्यार हो गया था. इसलिए वह उसी के ख्यालों में खोया रहने लगा था. राहुल गुप्ता गायक तो था ही, एक प्रतिष्ठित अस्पताल में कंपाउंडर भी था. यह बात सोनी को पता थी. उसी बीच सोनी के पिता कैलाश प्रसाद की तबीयत खराब हुई तो उस ने सोचा कि क्यों न राहुल की मदद से वह पिता को किसी अच्छे डाक्टर को दिखा दे.

जिस अस्पताल में राहुल काम करता था, सोनी ने राहुल की मदद से उसी अस्पताल में पिता को भरती करा दिया. राहुल की वजह से अस्पताल में कैलाश प्रसाद का बढि़या इलाज हुआ. वह जल्दी ही स्वस्थ हो गए. राहुल की इस सेवा से सोनी ही नहीं, उस के घर के सभी लोग काफी प्रभावित हुए. उस दिन के बाद राहुल जब भी उन के घर आता, घर वाले उसे काफी सम्मान देते. इस बीच सोनी से भी उस की गहरी दोस्ती हो गई थी.

राहुल अकसर सोनी के साथ उस के कार्यक्रमों में जाने लगा. दोस्ती की वजह से घर वालों ने किसी तरह की रोकटोक भी नहीं की. साथ आनेजाने और उठनेबैठने से दोनों के बीच काफी नजदीकी हो गई. सोनी भी राहुल से खूब घुलमिल गई. बातें भी उस से खुल कर हंसहंस कर करने लगी. राहुल ने इस का गलत मतलब निकाल लिया.

राहुल तो सोनी को चाहने ही लगा था, सोनी के बातव्यवहार से उसे लगा कि वह भी उसे चाहती है. जबकि सोनी उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. वह उसे सिर्फ अपना सच्चा दोस्त मानती थी. इस तरह देखा जाए तो राहुल के दिल में उस के प्रति एकतरफा प्यार था.

जून, 2017 की बात है. राहुल सेमरा जमालपुर स्थित सोनी के घर पहुंचा और सीधे सोनी के घर वालों से कहा कि वह सोनी से शादी करना चाहता है. उस की इस बात से सभी हैरान रह गए, क्योंकि उन लोगों ने सोचा भी नहीं था कि कभी इस तरह की भी बात हो सकती है. राहुल का यह व्यवहार और बात किसी को पसंद नहीं आई. लेकिन उन लोगों ने कुछ कहा नहीं, बाद में बताएंगे कह कर बात को टाल दिया.

कैलाश प्रसाद ने जब इस बारे में सोनी से बात की तो पिता की बात सुन कर सोनी भी दंग रह गई. उस ने कहा, ‘‘पापा, वह सिर्फ मेरा दोस्त है. मैं उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. अगर वह कुछ इस तरह की बात सोचता है तो यह उस का भ्रम है. खैर, मैं उस से पूछूंगी कि उस के मन में ऐसा ख्याल आया कैसे?’’

राहुल मिला तो सोनी ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह उसे सिर्फ दोस्त मानती है, उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. उस के लिए कभी उस के मन में ऐसी भावना आई भी नहीं. इसलिए उस के मन में जो गलतफहमी है, उसे वह निकाल दे. सम्मान देना या हंसहंस कर बातें करने का मतलब यह नहीं होता कि वह उस से प्यार करने लगी है.

सोनी ने राहुल से साफ कह दिया कि वह न उस से प्यार करती है और न उस से शादी करने का इरादा है. उस के मांबाप जहां कहेंगे, वह वहीं शादी करेगी. इसलिए अब वह कभी न उस से और न ही उस के घर वालों से इस तरह की बात करेगा.

प्यार करने वाले राहुल को कैसे हुई सोनी से नफरत सोनी का निर्णय सुन कर राहुल सन्न रह गया. उसे पैरों तले से जमीन खिसकती लग रही थी. पल भर तो उस की समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे. उसे गहरा सदमा लगा था, क्योंकि सोनी ने जो कहा था, वह दिल तोड़ने वाली बात थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सोनी उस के प्यार को इस तरह ठुकरा देगी. उस का सपना रेत के घरौंदे की तरह बिखर गया.

उस समय तो राहुल कुछ नहीं बोला, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. क्योंकि उस का मानना था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. 2 दिनों बाद उस ने सोनी को फोन किया, लेकिन राहुल का नंबर देख कर सोनी ने फोन रिसीव नहीं किया. उसी दिन ही नहीं, इस के बाद जब भी राहुल ने फोन किया, सोनी ने उस से बात नहीं की.

यह बात राहुल के लिए कष्ट देने वाली थी. इस की वजह यह थी कि वह सोनी के लिए तड़प रहा था. किसी तरह वह उस से बात कर के अपने दिल की बात कहना चाहता था. सोनी थी कि उस का फोन ही रिसीव नहीं कर रही थी. लेकिन राहुल ने सोनी को फोन करना बंद नहीं किया. परेशान हो कर सोनी ने एक दिन राहुल का फोन रिसीव कर लिया तो उस ने फोन रिसीव न करने की वजह पूछी. लेकिन सोनी ने बताने से मना कर दिया. इस पर राहुल, अपने किए की माफी मांग कर कहा, ‘‘सोनी, आजकल मैं काफी मुसीबत में हूं. मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. अगर मेरी मदद कर दो तो बड़ी कृपा होगी. पैसे मिलते ही मैं तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

बिना कोई जवाब दिए सोनी ने फोन काट दिया. इस के बाद राहुल ने सोनी को न जाने कितने फोन किए, सोनी ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. सोनी से एकतरफा प्यार करने वाला राहुल घायल सा हो गया.

जुनून की हद तक एकतरफा प्यार करने वाला राहुल दिनरात सोनी के ही ख्यालों में खोया रहता था. उसे लगता था कि वह उस के बिना जी नहीं पाएगा. किसी न किसी बहाने से वह सोनी के करीब जाना चाहता था, जबकि सोनी उस से दूर भाग रही थी. न जाने किसकिस से उस ने सोनी से बात कराने को कहा, लेकिन सोनी ने उस से बात नहीं की. इस तरह उस का प्यार नफरत में बदल गया. अब उस ने उसे सबक सिखाने का निश्चय कर लिया.

राहुल ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सोनी का ऐसा हश्र करेगा कि वह जिंदा रहते हुए भी लाश जैसी जिंदगी जिएगी. उसे अपनी जिस सुरीली आवाज पर नाज है, वह उसे हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर देगा. इस के बाद वह उस पर नजर रखने लगा. साथ रहतेरहते उसे सोनी की ज्यादातर गतिविधियों का पता था. वह कब उठती थी, कहां जाती थी, किस से मिलती थी, उसे सब पता था.

नफरत करने वाले राहुल ने कैसे सिखाया सबक उन दिनों सोनी वाराणसी में अपने एक भोजपुरी गाने के नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग में व्यस्त थी. राहुल को यह पता था. 27 जून, 2017 को वह रस्तीपुर स्थित बहन के घर आएगी, उसे यह भी पता था. इस के बाद उसे एक कार्यक्रम में जाना है, उसे यह भी पता था. इन्हीं जानकारियों के आधार पर वह सोनी के घर से थोड़ी दूरी पर गली में एक चाकू ले कर छिप कर बैठ गया.

संयोग से उसी बीच बिजली चली गई. इस से राहुल का काम और आसान हो गया. करीब साढ़े 9 बजे सोनी घर से निकल कर गली के मोड़ तक पहुंची थी कि घात लगाए बैठे राहुल ने सोनी पर हमला कर दिया. घायल होने पर सोनी चीखी, लेकिन राहुल बिना डरे अपना काम करता रहा.

सोनी की चीख सुन कर पड़ोसी बाहर आ गए. इस बीच राहुल सोनी के गले पर वार कर चुका था. मोहल्ले वालों ने टार्च की रोशनी में देखा कि एक लड़का सोनी पर चाकू से वार कर रहा है तो सब उस की ओर दौड़े. लोगों को आता देख कर राहुल भागा. लेकिन लोगों ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया. मारपीट के दौरान वह उन के चंगुल से निकल भागा. अंधेरा था फिर भी सोनी ने उसे पहचान लिया था.

पूछताछ और सबूत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. ताज्जुब की बात यह है कि उसे अपने किए पर जरा भी मलाल नहीं है. सोनी को अब राहुल से खतरा है, इसलिए वह होशियार रहती है. अस्पताल से छुट्टी पा कर वह घर आ चुकी है.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017