हाईप्रोफाइल हसीनाओं का रंगीन खेल – भाग 2

उमेश निराला कालेज में इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उमेश और अनीता की मुलाकातें धीरेधीरे बढ़ती गईं और दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो उनके बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं.

उमेश और अनीता का अवैध रिश्ता आम हुआ तो अनीता के पिता को बड़ा दुख हुआ. उन्होंने बेटी को समझाया, घरपरिवार की इज्जत का वास्ता दिया, लेकिन अनीता की समझ में नहीं आया. वह तो आसमान में उड़ने लगी थी. उस ने उमेश के अलावा और भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी. अनीता की बदचलनी का असर उस की दोनों छोटी बहनों पर भी पड़ने लगा. वे भी उसी की राह पर चल पड़ी थीं.

अनीता के कदम बहके तो पिता को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. उन्होंने उस के हाथ पीले करने को स्वयं तो दौड़धूप शुरू की ही, नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया कि वह अनीता के लिए कोई लड़का बताएं. एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था राघवेंद्र कुमार शुक्ला.

राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे के रहने वाले थे. उन के 3 बच्चों में राघवेंद्र सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा तो था किंतु बेरोजगार था. उस का मन खेती में नहीं लगता था और उसे नौकरी भी नहीं मिल रही थी. सो वह आवारा घूमता था. अनीता के पिता ने राघवेंद्र को देखा तो यह सोच कर उसे पसंद कर लिया कि पढ़ालिखा है. शरीर से भी स्वस्थ है, नौकरी आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी.

देवनारायण ने राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला से उस के ब्याह की बात चलाई तो वह राजी हो गए. इस के बाद सन 2010 में अनीता की शादी राघवेंद्र के साथ हो गई.शादी के बाद अनीता ससुराल आई तो सभी ने उस के रूप की तारीफ की. राघवेंद्र भी सुंदर पत्नी पा कर इतरा उठा. सब खुश थे पर अनीता खुश नहीं थी. उसे एक तो बेरोजगार पति मिला था, दूसरे उस की स्वच्छंदता पर प्रतिबंध लग गया था. इसलिए वह परेशान रहती थी. घर से बाहर आनेजाने को ले कर उस की तूतूमैंमैं पति से भी होती थी और सासससुर से भी.

अनीता ने जैसेतैसे 3 साल ससुराल में बिताए. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बनी. उस के बाद अनीता को ले कर घर में कलह होने लगी. दरअसल, अनीता ने शादी के पहले के अपने प्रेमियों के साथ घूमनाफिरना शुरू कर दिया था. उन के साथ वह बहाने से उन्नाव तो कभी बदरका घूमने निकल जाती थी. राघवेंद्र तथा उस के परिवार से यह बात अधिक दिनों तक छिपी नहीं रही.

वह समझ गए कि अनीता बदचलन है. राघवेंद्र ने पत्नी पर अंकुश लगाना चाहा तो वह पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘ज्यादा टोकाटाकी की तो थाने जा कर घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगी. सभी जेल में दिखाई दोगे. इज्जत नीलाम होगी अलग से.’’धमकी से डर कर राघवेंद्र ने अनीता को उस की मरजी और हाल पर छोड़ दिया. अनीता ने पति को तो दबाव में ले लिया पर ससुराल वालों को नहीं दबा सकी. वह घर में ऐसी औरत को भला कैसे बरदाश्त करते जो बदचलन हो.

लिहाजा सब मिल कर उसे घर से निकालने पर तुल गए.अनीता जानती थी कि अकेली औरत कटी पतंग की तरह होती है. नाम के लिए ही सही, लेकिन पुरुष साथ हो तो वह अनेक मुसीबतों से सुरक्षित रहती है. अपनी इसी सोच के तहत अनीता घर से तो निकली पर पति को भी साथ ले गई. अनीता पति के साथ कानपुर आ गई और किदवईनगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. वहां राघवेंद्र दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. अनीता ने भी नौकरी ढूंढ ली और काम पर जाने लगी.

छोटीछोटी उन नौकरियों में वेतन भी मामूली था और मेहनत अधिक थी. अत: आमदनी बढ़ाने के लिए अनीता ने किसी दूसरे काम की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में अनीता एक कालगर्ल रैकेट की सरगना से जा टकराई. सरगना ने जौब दिलाने का झांसा दे कर अनीता को अपने जाल में फंसाया और फिर देहव्यापार के धंधे में उतार दिया. अनीता खूबसूरत और जवान थी. उस की डिमांड अधिक होती थी, अत: वह खूब पैसे कमाने लगी.राघवेंद्र प्राइवेट नौकरी करता रहा और अनीता देहव्यापार के गंदे तालाब की मछली बनी रही. हालांकि राघवेंद्र को पत्नी का धंधा कतई पसंद नहीं था, मगर वह उसे रोक नहीं पाता था. जब भी अनीता से कुछ कहता तो वह उसे डराधमका कर चुप रहने को विवश कर देती थी. तब राघवेंद्र खून का घूंट पी कर रह जाता.

अनीता ने जब जिस्मफरोशी के धंधे के सभी गुर सीख लिए तो उस ने अपना अलग रैकेट बना लिया. उस के रैकेट में पेशेवर कालगर्ल्स थीं. इस के अलावा वह अपने स्तर से नई कालगर्ल भी तैयार करती थी. इस के लिए अनीता गरीब मजबूर व सुंदर लड़कियों को टारगेट करती. वह उन्हें रुपयों या फिर नौकरी दिलाने का लालच दे कर अपने जाल में फंसाती फिर देहव्यापार में उतार देती. शर्मनाक बात तो यह रही कि अनीता ने अपनी जवान व खूबसूरत सगी बहनों को भी देह के धंधे में उतार दिया. उन के पति ही उन की दलाली करने लगे.

अनीता घर में ही देहव्यापार करती थी. वह ग्राहक से फुल नाइट के 5 से 10 हजार रुपए लेती थी. जो ग्राहक कालगर्ल को बाहर ले जाना चाहते थे, उन्हें अतिरिक्त चार्ज देना पड़ता था. कालगर्ल का सारा खर्चा कस्टमर को ही देना पड़ता था.पुलिस के भय से अनीता किसी एक मकान में लंबे अरसे तक नहीं रहती थी. स्थानीय पुलिसकर्मियों से वह सांठगांठ बनाए रखती थी. 2019 के जनवरी महीने में अनीता ने चकेरी थाने के श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एक मकान 15 हजार रुपए महीने के किराए पर लिया. यह मकान अजय सिंह का था.

इसी किराए के मकान में अनीता अपना हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट का संचालन करने लगी थी. उस ने अपना दायरा भी बढ़ा लिया था. वह शहर के बाहर भी कालगर्ल्स भेजने लगी थी. अनीता ने शहर के बाहर कालगर्ल भेजने का 25 हजार रुपया तय कर रखा था. वह वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो भेज कर सौदा तय करती थी और ग्राहकों की डिमांड पर दूसरे शहरों से भी कालगर्ल्स बुलाती थी.बड़े शहरों के जिस्मफरोशी के दलाल उस के संपर्क में थे. अनीता का पति राघवेंद्र भी अब पत्नी के अनैतिक धंधे में शामिल हो गया था. पैसों का लेनदेन वही करने लगा था.

रामपुरम में अनीता का धंधा खूब फलफूल रहा था कि पड़ोसियों की नजर उस के धंधे पर पड़ गई. उन्होंने इस की जानकारी आईजी मोहित अग्रवाल को दी और उस के सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया.
पुलिस छापे में पकड़ी गई अंकिता, अनीता की सगी बहन थी. वह अपने पति आशुतोष झा के साथ नौबस्ता थाना क्षेत्र के पशुपतिनगर में रहती थी. वहीं पर एक मंदिर में दोनों की मुलाकात हुई, जो बाद में प्यार में बदल गई. तब अंकिता ने आशुतोष के साथ प्रेम विवाह किया था. आशुतोष मधुबनी, बिहार का रहने वाला था.आशुतोष से शादी करने के बाद अंकिता पशुपतिनगर में रहने लगी. आशुतोष प्राइवेट नौकरी करता था. इस नौकरी से वह न तो अपनी जरूरतें पूरी कर पाता था और न ही अंकिता की ख्वाहिशें. 2-3 सालों में ही प्यार का नशा उतर गया था और वे दोनों आर्थिक परेशानी से जूझने लगे थे. अंकिता सदैव चिंताग्रस्त रहने लगी थी.

हाईप्रोफाइल हसीनाओं का रंगीन खेल – भाग 1

उस दिन जनवरी, 2020 की 5 तारीख थी. आईजी मोहित अग्रवाल अपने कार्यालय में कानपुर शहर की कानूनव्यवस्था पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे थे. दरअसल, नागरिकता कानून को ले कर शहर में धरनाप्रदर्शन जारी थे, जिस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी. इस बिगड़ती कानूनव्यवस्था को सुधारने के लिए ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बुलाया था ताकि शहर में कोई हिंसक प्रदर्शन न हो और अमनचैन कायम रहे.

दोपहर 12 बजे मीटिंग समाप्त होने के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने अपनी समस्या समाधान के लिए आए आगंतुकों से मिलना शुरू किया. इन्हीं आगंतुकों में अधेड़ उम्र के 2 व्यक्ति भी थे, जो आईजी साहब से मिलने आए थे. अपनी बारी आने पर वे दोनों आईजी साहब के कक्ष में पहुंचे और हाथ जोड़ कर अभिवादन किया.

आईजी साहब ने उन पर एक नजर डाली. कुरसी पर बैठने का संकेत किया. इस के बाद उन से पूछा, ‘‘आप लोगों का कैसे आगमन हुआ? बताइए, क्या समस्या है?’’ तभी उन में से एक ने कहा, ‘‘सर, हम चकेरी थाने के श्यामनगर मोहल्ले में रहते हैं. हमारे घर के पास अजय सिंह का आलीशान मकान है. उस मकान में वह खुद तो नहीं रहते लेकिन उन्होंने मकान किराए पर दे रखा है. मकान की पहली मंजिल पर 2 अफसर रहते हैं पर भूतल पर जो किराएदार है, उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं. उस के घर पर अपरिचित युवकयुवतियों का आनाजाना लगा रहता है. हम लोगों को शक है कि वह किराएदार अपनी पत्नी के सहयोग से सैक्स रैकेट चलाता है.

‘‘सर, हम लोग इज्जतदार हैं. इन लोगों के आचारव्यवहार का असर हमारी बहूबेटियों पर पड़ सकता है. इसलिए आप से विनम्र निवेदन है कि इस मामले में उचित कानूनी काररवाई करने का कष्ट करें.’’आईजी मोहित अग्रवाल ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और फिर उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस सूचना की जांच कराएंगे. अगर सूचना सही पाई गई तो दोषियों के खिलाफ काररवाई की जाएगी.  ‘‘ठीक है, लेकिन सर हमारा नाम गुप्त रहना चाहिए वरना वे लोग हमारा जीना दूभर कर देंगे.’’ जाते समय उन में से एक बोला.आईजी मोहित अग्रवाल को आगंतुकों ने जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंकाने वाली थी. एकबारगी तो उन्हें उन की खबर पर विश्वास नहीं हुआ, पर इसे अविश्वसनीय समझना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को कार्यालय बुलवा लिया.

एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव आईजी कार्यालय पहुंचे तो मोहित अग्रवाल ने उन्हें आगंतुकों द्वारा दी गई सूचना के बारे में बताया और कहा कि अगर सूचना की पुष्टि होती है तो दोषियों के खिलाफ जल्द काररवाई करें.  एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव ने चकेरी थानाप्रभारी रणजीत राय को इस गुप्त सूचना की सत्यता लगाने के निर्देश दिए, तो थानाप्रभारी ने मुखबिरों को लगा दिया.उसी दिन शाम 5 बजे मुखबिरों ने थानाप्रभारी रणजीत राय को इस बारे में जो जानकारी दी, उस ने सूचना की पुष्टि कर दी.

उन्होंने बताया कि श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एचएएल अफसर का एक मकान है, जिस की देखरेख उस का बेटा अजय सिंह करता है.  इस मकान की पहली मंजिल पर पैरा मिलिट्री फोर्स के 2 अफसर रहते हैं. भूतल पर राघवेंद्र शुक्ला अपनी पत्नी अनीता के साथ रहता है. अनीता ही अपने पति के साथ मिल कर वहां सैक्स रैकेट का चलाती है. इस मकान में वह पिछले एक साल से रह रही है.

मुखबिरों से पुख्ता जानकारी मिलने की सूचना थानाप्रभारी ने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को दे दी. इस के बाद राजेश यादव ने सैक्स रैकेट का परदाफाश करने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह, थानाप्रभारी रणजीत राय, एसआई (क्राइम ब्रांच) डी.के. सिंह, अर्चना, कांस्टेबल अनूप कुमार, अनुज, मनोज, कविता, रीता आदि को शामिल किया.

5 जनवरी, 2020 को रात 8 बजे थानाप्रभारी रणजीत राय ने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह के निर्देश पर अनीता शुक्ला के रामपुरम स्थित मकान पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर थानाप्रभारी वहीं ठिठक गए.

कमरे में एक महिला अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर चित पड़ी थी. उस के साथ एक युवक कामक्रीड़ा में लीन था. पुलिस पर निगाह पड़ते ही युवकयुवती ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया, पर दरवाजे पर खड़े पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.दूसरे कमरे में 2 अन्य युवतियां सजीसंवरी बैठी थीं. शायद वे ग्राहक के आने के इंतजार में थीं. महिला दरोगा अर्चना ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया. इसी समय 3 युवतियों तथा 2 युवकों ने मुख्य दरवाजे की ओर भागने का प्रयास किया, किंतु सीओ श्वेता सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.

इस तरह पुलिस छापे में सरगना सहित 6 युवतियां, 2 दलाल तथा एक ग्राहक पकड़ा गया. मकान की तलाशी ली गई तो वहां से कामवर्धक दवाएं, स्प्रे, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक सामग्री के अलावा 4 मोबाइल फोन तथा कुछ नगदी भी बरामद हुई. पुलिस पकड़े गए युवकयुवतियों को थाना चकेरी ले आई.

जिस मकान में सैक्स रैकेट चलता था, उस का मालिक अजय सिंह था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी थाने बुलवा लिया. अजय सिंह एक अफसर का बेटा था, अत: उसे छोड़ने के लिए थानाप्रभारी के पास रसूखदारों के फोन आने लगे.लेकिन इंसपेक्टर रणजीत राय ने जांचपड़ताल के बाद ही रिहा करने की बात कही. अजय सिंह ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि उस ने तो उन लोगों को मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी.

सीओ श्वेता सिंह ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवकयुवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपना नाम अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, पूनम, नीलम तथा नेहा बताया. इन में अनीता शुक्ला सैक्स रैकेट की संचालिका थी. अंकिता तथा सरिता अनीता की सगी छोटी बहनें थीं. तीनों बहनें जिस्मफरोशी के धंधे में लिप्त थीं.युवकों ने अपने नाम राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी बताए. इन में राघवेंद्र शुक्ला और आशुतोष झा सगे साढ़ू थे और अपनीअपनी पत्नियों के लिए दलाली करते थे. जबकि लालकुर्ती कैंट (कानपुर) का रहने वाला सत्यम द्विवेदी ग्राहक था.

चूंकि सैक्स रैकेट के सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, अत: सीओ श्वेता सिंह ने स्वयं वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7 के तहत अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, नीलम, पूनम, नेहा, राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.इन सब से पुलिस ने जब पूछताछ की तो देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनी अलगअलग मजबूरी बताई.

कालगर्ल्स सरगना अनीता उन्नाव जिले के बेहटा गांव की निवासी थी. उस की 2 छोटी बहनें और थीं, जिन के नाम अंकिता तथा सरिता थे. इन 3 बहनों का एक इकलौता भाई भी था, जो बचपन में ही रूठ कर घर से चला गया था. वह दिल्ली में रहता है और दाईवाड़ा (नई सड़क) स्थित एक किताब की दुकान में काम करता है.अनीता खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के पैर डगमगा गए. उस का मन पढ़ाई में कम और प्यारमोहब्बत में ज्यादा रमने लगा. वह बीघापुर स्थित पार्वती इंटर कालेज में 10वीं में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते ही उस की मुलाकात उमेश से हुई.

कर्ज चुकाने को भुलाया फर्ज

कां चनगरी के नाम से प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश के शहर फिरोजाबाद के थाना उत्तर का घनी आबादी वाला मोहल्ला है आर्यनगर. इसी मोहल्ले की गली नंबर-9 में रहते हैं कोयला व्यवसाई लोकेश जिंदल उर्फ बबली. उन की के.डी. कोल ट्रेडर्स नाम से फर्म है.

पहली अप्रैल, 2022 को शाम साढ़े 4 बजे लोकेश के दरवाजे पर लगी कालबैल को किसी ने बजाया. उस समय घर में नौकरानी रेनू शर्मा के अलावा लोकेश की 74 वर्षीय मां कमला अग्रवाल दूसरी मंजिल पर मौजूद थीं.

घंटी की आवाज सुन कर रेनू ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर 2 युवक खड़े थे. कारोबारी को पूछते हुए दोनों युवक दूसरी मंजिल पर कारोबारी की मां कमला देवी के पास पहुंच गए.

दोनों युवक कमला देवी से बातचीत करने लगे. कुछ देर बाद कमला देवी ने रेनू को बुलाया और दोनों मेहमानों के लिए चाय बनाने को कहा. रेनू किचन में चाय बनाने चली गई. जब वह चाय ले कर कमरे में पहुंची तो वहां का नजारा देख कर सन्न रह गई.

माताजी बिस्तर पर लहूलुहान पड़ी थीं. वाशबेसिन का शीशा टूटा पड़ा था. कांच के कुछ टुकड़े बिस्तर पर भी पड़े थे. बदमाशों ने कमला देवी का कांच से गला रेत कर हत्या कर दी थी.

कमरे का यह दृश्य देख कर रेनू की चीख निकल गई. एक बदमाश ने रेनू को दबोच लिया. उस की पिटाई कर उसे भी कांच के टुकड़े से घायल कर दिया. धमकी दी कि अगर शोर मचाया तो उसे भी मार देंगे. बदमाश कमरे की अलमारी में रखी नकदी व आभूषण लूट कर भाग गए.

बदमाशों के जाने के बाद रेनू ने शोर मचाया. शोर सुन कर पड़ोसी आ गए. बिस्तर पर कमला देवी की लाश पड़ी थी. इस के साथ ही रेनू घायल थी. वह घबराई हुई थी और रो रही थी.

उस दिन अर्पित मां तथा बुआ व चाचा के परिवार के सदस्यों के साथ आसफाबाद स्थित डीडी टाकीज में 3 से 6 बजे शो की मूवी देखने गए हुए थे. वे सब घर से दोपहर ढाई बजे निकले थे. शाम 5 बजे पड़ोसी भाटिया ने फोन कर उन्हें घटना की जानकारी दी.

सभी लोग शो छोड़ कर दौड़ेदौड़े घर पहुंचे. वहां भीड़ और पुलिस को देखते ही परिजनों में हाहाकार मच गया.

इस से पहले सूचना मिलने पर थाना उत्तर के थानाप्रभारी संजीव कुमार दुबे अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पंहुच गए थे. तब तक वहां भीड़ जमा हो चुकी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना से अवगत कराया.

इस पर एसएसपी आशीष तिवारी, एसपी (सिटी) मुकेशचंद्र मिश्र व अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एसएसपी आशीष तिवारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने देखा कि कमला देवी की मौत हो चुकी थी. कमरे में सामान बिखरा पड़ा था. अलमारी खुली पड़ी थी. मृतका के गले, सिर पर चोट के निशान थे. बैड के नीचे खून से सना तकिया पड़ा था.

पुलिस ने टापा कलां निवासी घायल नौकरानी रेनू शर्मा को उपचार के लिए प्राइवेट ट्रामा सेंटर भेज दिया. जरूरी काररवाई निपटाने के बाद कमला देवी के शव को मोर्चरी भिजवा दिया.

शहर के व्यस्ततम और तंग गलियों वाले आर्यनगर में दिनदहाड़े दिल दहलाने वाली घटना से सनसनी फैल गई. लोगों के मन में इस बात को ले कर आक्रोश था कि घटनास्थल से थाना कुछ ही दूरी पर स्थित होने के बावजूद पुलिस सूचना देने के आधे घंटे बाद घटनास्थल पर आई.

गुस्साए लोगों को एसएसपी आशीष तिवारी ने भरोसा दिया कि इस जघन्य घटना का शीघ्र खुलासा कर दिया जाएगा.

कोयला कारोबारी लोकेश जिंदल पिछले 15 दिनों से व्यापार के सिलसिले में गुवाहाटी गए हुए थे. घर पर उन की पत्नी शोभा व बेटा अर्पित थे. अर्पित अपनी मां, चाचा व बुआ के परिवार के साथ मूवी देखने चला गया था.

ऐसा लगता था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को पहले से घर की पूरी स्थिति का पता था. पुलिस समझ गई थी कि घटना को अंजाम परिचितों द्वारा ही दिया गया है.

उपचार के बाद रेनू से पुलिस ने पूछताछ की. रेनू ने बताया कि वह युवकों को नहीं पहचानती. उस ने पूरी घटना पुलिस को बताते हुए कहा, जब उस ने दरवाजा खोला तो 2 लोग खड़े थे.

लोकेश बाबूजी को पूछते हुए दोनों अंदर चले आए और सीधे दूसरी मंजिल पर कमरे में माताजी के पास बैठ कर बातें करने लगे. इस से लगा कि वह घरवालों के परिचित हैं. इस तरह नौकरानी ने पूरी बात पुलिस को बता दी.

कारोबारी की मां की हत्या व लूट की गुत्थी नौकरानी के बयानों से उलझ गई थी. जिस तरह से कमला देवी की हत्या की गई, उस से यह बात समझ नहीं आ रही थी कि हत्यारों ने वाशबेसिन पर लगे शीशे को तोड़ कर कांच से हत्या क्यों की?

यदि वे हत्या व लूट करने ही आए थे तो अपने साथ कोई हथियार क्यों नहीं लाए? कमला देवी ने चाय बनाने को कहा तो जरूर वे परिचित ही होंगे.

घटना के बाद कमला देवी के कमरे में पुलिस को कई अहम सुराग मिले. इन में नौकरानी रेनू की चूडि़यां, चप्पल व कान के कुंडल आखिर वहां कैसे आ गए?

रेनू का कहना था कि बदमाशों द्वारा उस के साथ बुरी तरह मारपीट करने के दौरान ये सभी चीजें वहां गिर गई थीं. नौकरानी के बयानों के हिसाब से पुलिस को साक्ष्य नहीं मिले.

परिवार की महिलाओं ने बताया कि यहां से 6 किलोमीटर दूर आसफाबाद स्थित भारत टाकीज में परिवार के सदस्य मूवी ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने गए थे. इस बात की जानकारी केवल रेनू व मां को थी. चाय के प्याले भी नहीं मिले.

जिस बरतन में रेनू द्वारा चाय बनाने की बात कही जा रही थी, वह किचन में उसी जगह पर रखा मिला. जहां घर वाले उसे छोड़ कर गए थे. चाय बनाने के कोई सबूत भी नहीं दिखाई दे रहे थे. आसपास के लोगों ने भी 2 लोगों के बाइक से आनेजाने की पुष्टि नहीं की.

इन सब बातों के चलते पुलिस के संदेह की सुई नौकरानी पर भी घूम रही थी. परिवार की महिलाओं ने पुलिस से आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग करते हुए न्याय की गुहार लगाई.

पूछताछ के दौरान घर वालों ने बताया कि नौकरानी रेनू उन के यहां स्थाई रूप से काम नहीं करती थी. नौकरानी को जरूरत पड़ने पर बुलाया जाता था. बीचबीच में वह अपनी मरजी से आतीजाती थी.

शुक्रवार को सभी लोग पिक्चर देखने जा रहे थे, इसलिए मां की देखभाल के लिए उसे बुला लिया था. 3 माह पहले मां की बैक बोन का औपरेशन कराया गया था. तब से ज्यादातर समय वह बिस्तर पर ही गुजारती थीं. लेकिन बेंत के सहारे आसानी से चलफिर लेती थीं.

ऐसा लगता था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को पहले से ही घर की पूरी स्थिति का पता था कि पहली अप्रैल शुक्रवार को घर में कौनकौन था. एसएसपी आशीष तिवारी ने घटना के खुलासे के लिए फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

बदमाशों तक पहुंचने के लिए पुलिस ने क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने के साथ ही आसपास के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

एसओजी के साथ ही 3 थानों की 5 पुलिस टीमें खुलासे के लिए गठित कीं. घटना की जानकारी मिलने पर सदर विधायक मनीष असीजा के साथ ही कई भाजपा नेता भी वहां पहुंच गए. विधायक ने परिजनों को ढांढस बंधाया.

पुलिस टीम में शामिल हत्याकांड का परदाफाश करने वाली टीम में एसपी (सिटी) मुकेश कुमार मिश्र, सीओ (सिटी) हरिमोहन सिंह, थानाप्रभारी (उत्तर) संजीव कुमार दुबे, एसओजी प्रभारी रवि त्यागी, थानाप्रभारी (दक्षिण) रामेंद्र कुमार शुक्ला, थानाप्रभारी (लाइनपार) आजाद पाल, महिला थानाप्रभारी हेमलता, थानाप्रभारी (रामगढ़) हरवेंद्र मिश्रा शामिल थे.

लोकेश जिंदल के मकान पर बदमाशों द्वारा दिनदहाड़े हत्या व लूट को अंजाम दिया गया था. वहां से एसपी (सिटी) मुकेश चंद्र मिश्र का कार्यालय व थाना (उत्तर) करीब 500 मीटर की दूरी पर है. वहीं नगर विधायक मनीष असीजा का आवास महज डेढ़ सौ मीटर व शिकोहाबाद विधायक मुकेश वर्मा का आवास मात्र 50 मीटर दूर है.

इस के बाद भी बदमाश बेखौफ हो कर वारदात को अंजाम दे कर साफ निकल गए. पुलिस को इस की भनक तक नहीं लगी. मामला लोकेश जिंदल की तहरीर पर दर्ज कर लिया गया.

सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस को अगर उम्मीद थी तो नौकरानी रेनू शर्मा से ही थी. वही मौके की प्रत्यक्षदर्शी थी. वही बदमाशों के हुलिया की सही जानकारी दे सकती थी, जिस से बदमाश पुलिस की गिरफ्त में आ सकते थे.

पुलिस ने रेनू को विश्वास में ले कर उस से बदमाशों के बारे में गहनता से पूछताछ की. पुलिस ने उसे न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया. तब रेनू ने पुलिस को सारी घटना बता दी. तब पुलिस ने बिना देरी किए रात में ही लोहिया नगर से तरुण गोयल को गिरफ्तार कर लिया.

दूसरे दिन 2 अप्रैल को एसएसपी आशीष तिवारी ने प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर आर्यनगर में हुई हत्या व लूट की घटना का परदाफाश करते हुए जानकारी दी कि कर्ज में डूबे रिश्तेदार ने ही हत्या व लूट की घटना को अंजाम दिया था.

बदमाश एक ही था. वह भी कोई बाहरी व्यक्ति न हो कर मृतका की बेटी का दामाद था. दामाद होने के कारण उस का घर आनाजाना था उसे सभी सम्मान देते थे. नौकरानी रेनू शर्मा उस से अच्छी तरह परिचित थी.

पुलिस ने हत्यारोपी को गिरफ्तार करने के साथ ही उस के कब्जे से लूटे गए 77,620 रुपए तथा ज्वैलरी जिस में सोने की 4 चूडि़यां, कानों के टौप्स, 2 अंगूठियां, चांदी के नोट के साथ आलाकत्ल पेचकस भी बरामद कर लिया.

आरोपी ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. कमला देवी की हत्या लूट के उद्देश्य से की गई थी. पुलिस को वारदात के 12 घंटे बाद ही आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई थी.

हत्या व लूट की वारदात को तरुण गोयल ने अंजाम दिया था. वह मूलरूप से मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के बंगला एरिया के मकान नंबर 195 का निवासी है. तरुण मृतका कमला देवी की बेटी रंजना उर्फ पिंकी का दामाद है. वह मेरठ में सेनेटरी का काम करता था. उस का अच्छा कारोबार था.

परिजनों के अनुसार क्रिकेट मैचों पर औनलाइन सट्टा खेलने के कारण उस पर 50-60 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. तब वह लौकडाउन में भाग कर फिरोजाबाद आ गया था.

वह फिरोजाबाद के थाना उत्तर के लोहिया नगर की गली नंबर 2 में घरजमाई बन कर रहने लगा था. यहां रह कर वह सेनेटरी का काम करता था.

तरुण को पता चला कि उस के और नानी सास के परिजन शुक्रवार को एक साथ फिल्म देखने गए हैं और नानी सास ही घर पर अकेली हैं.

उस की नजर नानी सास कमला देवी के रुपयों व आभूषणों पर थी. उसे पता था कि लोकेश का कोयले का बड़ा व्यवसाय है. उस ने सुनियोजित षडयंत्र रचा और पहली अप्रैल, 2022 की शाम साढ़े 4 बजे वह आर्यनगर में उन के घर पर पहुंच गया.

घंटी बजाने पर रेनू ने दरवाजा खोल दिया. घर पर नौकरानी रेनू को देख कर उसे अपनी योजना पर पानी फिरते दिखा. लेकिन लालच के चलते वह खुद को रोक नहीं सका. दूसरी मंजिल पर वह सीधे कमला देवी के कमरे में पहुंचा.

उस समय कमला देवी सो रही थीं. तरुण ने जैसे ही कमरे में रखी अलमारी खोली. आहट सुन कर कमला देवी जाग गईं. इस पर कमला देवी ने टोका. तभी तरुण ने कमरे में रखे पेचकस से उन के सिर पर वार किया.

शोर मचाने पर तरुण ने वाशबेसिन के शीशे को तोड़ दिया और उस के कांच से कमला देवी का गला रेत दिया.

आवाज सुन कर रेनू कमरे में आ गई. तरुण ने उसे दबोच लिया और मारपीट करते हुए कांच से उस के शरीर पर वार किए. तरुण ने रेनू की हत्या करने के लिए उस के गले में शीशा फंसा दिया. मगर रेनू गिड़गिड़ाई और पेट में पल रहे बच्चे की दुहाई व राज किसी को न बताने की बात कह कर अपनी जान बचाई.

आरोपी ने रेनू को धमकी देते हुए कहा कि वह घर में 2 बदमाशों के आने की कहानी सभी को बताए. लेकिन उस का नाम हरगिज अपनी जुबान पर न लाए, वरना अंजाम बुरा होगा. इस के बाद अलमारी से नकदी व जेवर लूट कर भाग गया.

रेनू ने घटना के बाद हत्यारे द्वारा दी गई धमकी को ध्यान में रखते हुए वैसा ही किया. वह पुलिस को घुमाती रही. इस से पुलिस का शक उसी पर बढ़ता गया. कई घंटे की पूछताछ के बाद आखिर रेनू ने सारा भेद खोल दिया.

हत्याकांड के बाद तरुण खून लगे कपड़े बदलने के लिए अपने घर गया, कपड़े बदले, इस के बाद थाना उत्तर से पुलिस को बुलाने की बात पर वह स्वयं अपनी बाइक से थाने पहुंचा और घटना की जानकारी दी.

वारदात के बाद वह लगातार घटनास्थल पर ही रहा ताकि घटना पर नजर रख सके. उसे पता था कि नौकरानी रेनू उस के खिलाफ कुछ नहीं बोलेगी और वह बच निकलेगा.

पुलिस द्वारा नानी सास की हत्या कर उन के यहां लूट करने वाले बेटी के दामाद तरुण गोयल को जब जेल ले जाया जा रहा था, तब पत्रकारों ने उस से प्रश्न किया कि जब नौकरानी रेनू शर्मा तुम्हें अच्छी तरह जानती थी, तब तुम ने उस चश्मदीद गवाह को क्यों छोड़ दिया था?

इस पर तरुण ने कहा कि रेनू ने गर्भवती होने की बात बताते हुए 2 जिंदगियों की हत्या नहीं करने की बात कह कर जान की भीख मांगी थी. इस पर उसे जिंदा छोड़ दिया. आरोपी तरुण गोयल को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया.

आरोपी औनलाइन सट्टा खेलने से कर्जदार हो गया था. उस के शौक भी शानोशौकत वाले थे. उस ने परिस्थितियों का हल निकालने की कोशिश नहीं की.

पैसे के जुनून के चलते घिनौनी साजिश रच कर हत्या व लूट जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दे कर रिश्तों में जहर घोलने का काम ही किया. कातिल दामाद के शैतानी दिमाग ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा    द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जैंट्स पार्लरों में चलता जिस्म का खेल

बिहार की राजधानी पटना के तकरीबन हर इलाके में जैंट्स पार्लरों की भरमार सी है. चमचमाते और रंगबिरंगे पार्लर मनचले नौजवानों और मर्दों को खुलेआम न्योता देते रहते हैं. इन पार्लरों के आसपास गहरा मेकअप किए इठलातीबलखाती और मचलती लड़कियां मोबाइल फोन पर बातें करती दिख जाती हैं. अपने परमानैंट ग्राहकों को सैक्सी बातों से रिझातीपटाती नजर आ ही जाती हैं. वैसे, इन पार्लरों में हर तरह की ‘सेवा’ दी जाती है. कुरसी के हैडरैस्ट के बजाय लड़कियों के सीने पर सिर रख कर शेव बनवाने और फेस मसाज का मजा लीजिए या फिर लड़कियों के गालों पर चिकोटियां काटते हुए मसाज का मजा लीजिए.

फेस मसाज, हाफ बौडी मसाज से ले कर फुल बौडी मसाज की सर्विस हाजिर है. जैसा काम, वैसी फीस यानी पैसा फेंकिए और केवल तमाशा मत देखिए, बल्कि खुद भी तमाशे में शामिल हो कर जिस्मानी सुख का भरपूर मजा उठाइए.

जैंट्स पार्लरों में ग्राहकों से मनमाने दाम वसूले जाते हैं. शेव बनवाने की फीस 5 सौ से एक हजार रुपए तक है. फेस मसाज कराना है, तो एक हजार से 2 हजार रुपए तक ढीले करने होंगे. हाफ बौडी मसाज के लिए 3 हजार से 5 हजार रुपए देने पड़ेंगे और फुल बौडी मसाज के तो कोई फिक्स दाम नहीं हैं.

पटना के बोरिंग रोड, फ्रेजर रोड, ऐक्जिबिशन रोड, डाकबंगला रोड, कदमकुआं, पीरबहोर, मौर्यलोक कौंप्लैक्स, स्टेशन रोड, राजा बाजार, कंकड़बाग, एसके नगर वगैरह इलाकों में जैंट्स मसाज पार्लरों की भरमार है.

पिछले कुछ महीनों में पुलिस की छापामारी से जैंट्स पार्लरों का धंधा कुछ मंदा तो हुआ?है, पर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. थानों की मिलीभगत से जैंट्स पार्लरों का खेल चल रहा है.

कुछ साल पहले तक मसाज पार्लरों में नेपाली और बंगलादेशी लड़कियों की भरमार थी, पर अब उन की तादाद कम हुई है. बिहार और उत्तर प्रदेश की  लड़कियां अब उन में काम कर रही हैं. इन में ज्यादातर गरीब घरों की लड़कियां ही होती हैं, जो पेट की आग बुझाने के लिए यह धंधा करने को मजबूर हैं.

फ्रेजर रोड के एक पार्लर में काम करने वाली सलमा बताती है कि उस का शौहर उसे छोड़ कर मुंबई भाग गया. अपनी 7 साल की बेटी को पालने के लिए उसे मजबूरी में मसाज पार्लर में काम करना पड़ा.

इसी तरह पति की मौत हो जाने के बाद ससुराल वालों की मारपीट की वजह से रोहतास से भाग कर पटना पहुंची सोनी काम की खोज में बहुत भटकी, पर उसे कोई काम नहीं मिला. बाद में उस की सहेली ने उसे जैंट्स पार्लर में काम दिलाया.

सोनी बताती है कि पहले तो उसे मर्दों की सैक्सी निगाहों और हरकतों से काफी शर्म आती थी. कई बार यह काम छोड़ने का मन किया, पर अब इन सब की आदत हो गई है.

समाजसेवी प्रवीण सिन्हा कहते हैं कि ऐसे पार्लरों में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों और औरतों के पीछे बेबसी और मजबूरी की कहानी होती है. कुछ लड़कियां ही ऐसी होती हैं, जो ऐशमौज करने और महंगे शौक पूरा करने के लिए मसाज करने और जिस्म बेचने का काम करती हैं.

वहां आसपास रहने वाले लोगों की कई शिकायतों के बाद कभीकभार पुलिस जागती है और एकसाथ कई मसाज पार्लरों पर छापामारी कर कई लड़कियों, पार्लर चलाने वालों और दर्जनों ग्राहकों को पकड़ कर ले जाती है.

पुलिस देह धंधा करने के आरोप में लड़कियों और ग्राहकों की धरपकड़ करती है. 2-3 दिनों तक तो पार्लर पर ताला दिखता है और फिर पुलिस, कानून और समाज के ठेकेदारों को ठेंगा दिखाते हुए धंधा चालू हो जाता है और बेधड़क चलता रहता है.

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि जिस्मानी धंधे की शिकायत मिलने के बाद ही पुलिस छापामारी करती है. प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट के तहत शिकायतों के बाद छापामारी की जाती है. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां या औरतें यह नहीं बताती हैं कि उन्हें जबरदस्ती या लालच दे कर काम कराया जा रहा है. वे तो पुलिस को यही बयान देती हैं कि वे अपनी मरजी से काम कर रही हैं. अगर वे देह बेचने को मजबूर नहीं की गई हैं, तो प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट बेमानी हो जाता है. इस से कानून कुछ नहीं कर पाता है.

पुलिस के एक रिटायर्ड अफसर की मानें, तो ऐसे पार्लरों पर छापामारी पुलिस के लिए पैसा उगाही का जरीया भर है. पुलिस को पता है कि ऐसे मसाज पार्लरों पर कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है, वह महज रोबधौंस दिखा कर ‘वसूली’ कर लड़कियों और संचालकों को छोड़ देती है. जो पार्लर सही समय पर थानों में चढ़ावा नहीं चढ़ाते हैं, वहीं छापामारी की जाती है.

पटना हाईकोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि जिस्म के धंधे और यौन शोषण की शिकायत पर कानूनी कार्यवाही तभी हो सकती है, जब वह दबाव बना कर कराया जा रहा हो. जब किसी औरत का जबरन या खरीदफरोख्त के लिए यौन शोषण नहीं किया जा रहा है, तो वह कानूनन देह धंधा नहीं माना जाएगा.

मसाज पार्लरों से पकड़ी गई लड़कियां कभी यह नहीं कहती हैं कि उन से जबरन कोई काम कराया जा रहा है, फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि किसी जैंट्स पार्लर में जिस्मफरोशी का धंधा चलता है?

आधी रात के बाद हुस्न और हवस का खेल

18 नवंबर, 2016 की रात के यही कोई डेढ़ बजे मुंबई से सटे जनपद थाणे के उल्लासनगर के थाना विट्ठलवाड़ी के एआई वाई.आर. खैरनार को सूचना मिली कि आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेक्स की तीसरी मंजिल स्थित एक फ्लैट में काले रंग के बैग में लाश रखी है. सूचना देने वाले ने बताया था कि उस का नाम शफीउल्ला खान है और उस फ्लैट की चाबी उस के पास है.

35 साल का शफीउल्ला पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. रोजीरोटी की तलाश में वह करीब 8 साल पहले थाणे आया था, जहां वह उल्लासनगर के आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेकस के तीसरी मंजिल स्थित फ्लैट नंबर 308 में अपने परिवार के साथ रहता था. वह राजमिस्त्री का काम कर के गुजरबसर कर रहा था.

उस के फ्लैट से 2 फ्लैट छोड़ कर उस का मामा राजेश खान अपनी प्रेमिकापत्नी खुशबू उर्फ जमीला शेख के साथ रहता था. 10-11 महीने पहले ही खुशबू राजेश खान के साथ इस फ्लैट में रहने आई थी. वह अपना कमातीखाती थी, इसलिए वह राजेश खान पर निर्भर नहीं थी. राजेश खान कभीकभार ही उस के यहां आता था. ज्यादातर वह पश्चिम बंगाल स्थित गांव में ही रहता था.

18 नवंबर की दोपहर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर जा रहा था, तभी इमारत की सीढि़यों पर उस की मुलाकात राजेश खान से हो गई. उस समय काफी घबराया होने के साथसाथ वह जल्दबाजी में भी था. लेकिन शफीउल्ला सामने पड़ गया तो उस ने रुक कर कहा, ‘‘शफी, अगर तुम मेरे साथ नीचे चलते तो मैं तुम्हें एक जरूरी बात बताता.’’

‘‘इस समय तो मैं कहीं नहीं जा सकता, क्योंकि मुझे बहुत तेज भूख लगी है. जो भी बात है, बाद में कर लेंगे.’’ कह कर शफीउल्ला जैसे ही आगे बढ़ा, राजेश खान ने पीछे से कहा, ‘‘यह रही मेरे फ्लैट की चाबी, रख लो. तुम्हारी मामी मुझ से लड़झगड़ कर कहीं चली गई है. मैं उसे खोजने जा रहा हूं. मेरी अनुपस्थिति में अगर वह आ जाए तो यह चाबी उसे दे देना. बाकी बातें मैं फोन से कर लूंगा.’’

राजेश खान से फ्लैट की चाबी ले कर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर चला गया तो राजेश खान नीचे उतर गया.  करीब 12 घंटे बीत गए. इस बीच न राजेश खान आया और न ही उस की पत्नी खुशबू आई. शफीउल्ला को चिंता हुई तो उस ने दोनों को फोन कर के संपर्क करना चाहा. लेकिन दोनों के ही नंबर बंद मिले.

शफीउल्ला सोचने लगा कि अब उसे क्या करना चाहिए. वह कुछ करता, उस के पहले ही रात के करीब एक बजे उस के फोन पर राजेश खान का फोन आया. उस के फोन रिसीव करते ही उस ने पूछा, ‘‘तेरी मामी आई या नहीं?’’

‘‘नहीं मामी तो अभी तक नहीं आई. यह बताओ कि इस समय तुम कहां हो?’’ शफीउल्ला ने पूछा.

‘‘तुम्हें राज की एक बात बताता हूं. अब तुम्हारी मामी कभी नहीं आएगी, क्योंकि मैं ने उसे मार दिया है. इस में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए. मेरे फ्लैट के बैडरूम में बैड के नीचे काले रंग का एक बैग पड़ा है, उसी में तुम्हारी मामी की लाश रखी है. तुम उसे ले जा कर कहीं फेंक दो. जल्दबाजी में मैं उसे फेंक नहीं पाया. इस समय मैं ट्रेन में हूं और गांव जा रहा हूं.’’

खुशबू की हत्या की बात सुन कर शफीउल्ला के होश उड़ गए. उस ने उस बैग के बारे में आसपड़ोस वालों को बताया तो सभी इकट्ठा हो गए. उन्हीं के सुझाव पर इस बात की सूचना शफीउल्ला ने थाना विट्ठलवाड़ी पुलिस को दे दी थी.

एआई वाई.आर. खैरनार ने तुरंत इस सूचना की डायरी बनवाई और थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट तथा पुलिस कंट्रोल रूम एवं पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर वह कुछ सिपाहियों के साथ राजाराम कौंपलेक्स पहुंच गए. रात का समय था, फिर भी उस फ्लैट के बाहर इमारत के काफी लोग जमा थे. उन के पहुंचते ही शफीउल्ला ने आगे बढ़ कर उन्हें फ्लैट की चाबी थमा दी.

फ्लैट का ताला खोल कर वाई.आर. खैरनार सहायकों के साथ अंदर दाखिल हुए तो बैडरूम में रखा वह काले रंग का बैग मिल गया. उन्होंने उसे हौल में मंगा कर खुलवाया तो उस में उन्हें एक महिला की लाश मिली.

बैग से बरामद लाश की शिनाख्त की कोई परेशानी नहीं हुई. शफीउल्ला ने उस के बारे में सब कुछ बता दिया. लाश बैग से निकाल कर वाई.आर. खैरनार जांच में जुट गए. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट, एसीपी अतितोष डुंबरे, एडिशनल सीपी शरद शेलार, डीसीपी सुनील भारद्वाज, अंबरनाथ घोरपड़े के साथ आ पहुंचे.

फोरैंसिक टीम के साथ पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण किया. अपना काम निपटा कर थोड़ी ही देर में सारे अधिकारी चले गए.

लाश के निरीक्षण में स्पष्ट नजर आ रहा था कि मृतका की बेल्ट से जम कर पिटाई की गई थी. उस के शरीर पर तमाम लालकाले निशान उभरे हुए थे. कुछ घावों से अभी भी खून रिस रहा था. उस के गले पर दबाने का निशान था. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर के सुरेंद्र शिरसाट ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए उल्लासनगर के मध्यवर्ती अस्पताल भिजवा दिया.

घटनास्थल की पूरी काररवाई निपटा कर सुरेंद्र शिरसाट थाने लौट आए और सहयोगियों से सलाहमशविरा कर के इस हत्याकांड की जांच एआई वाई.आर. खैरनार को सौंप दी.

वाई.आर. खैरनार ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में उन्होंने एआई प्रमोद चौधरी, ए. शेख के अलावा हैडकांस्टेबल दादाभाऊ पाटिल, दिनेश चित्ते, अजित सांलुके तथा महिला सिपाही ज्योति शिंदे को शामिल किया.

पुलिस को शफीउल्ला से पूछताछ में पता चल गया था कि राजेश खान ने कत्ल कर के गांव जाने के लिए कल्याण रेलवे स्टेशन से ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ ली है. अब पुलिस के लिए यह चुनौती थी कि वह गांव पहुंचे, उस के पहले ही उसे पकड़ ले. अगर वह गांव पहुंच गया और उसे पुलिस के बारे में पता चल गया तो वह भाग सकता था.

इस बात का अंदाजा लगते ही पुलिस टीम ने जांच में तेजी लाते हुए राजेश खान के मोबाइल की लोकेशन पता की तो वह जिस ट्रेन से गांव जा रहा था, वहां से उसे गांव पहुंचने में करीब 10 घंटे का समय लगता.

पुलिस टीम किसी भी तरह उसे हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी, इसलिए वाई.आर. खैरनार ने सीनियर अधिकारियों से बात कर के राजेश खान की गिरफ्तारी के लिए एआई ए. शेख और हैडकांस्टेबल माने को हवाई जहाज से कोलकाता भेज दिया. दोनों राजेश के पहुंचने से पहले ही हावड़ा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए और उसे गिरफ्तार कर लिया.

26 साल के राजेश खान को मुंबई ला कर पूछताछ की गई तो उस ने खुशबू से प्रेम होने से ले कर उस की हत्या तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

राजेश खान पश्चिम बंगाल के जनपद मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. गांव में वह मातापिता एवं भाईबहनों के साथ रहता था. गांव में उस के पास खेती की जमीन तो थी ही, बाजार में कपड़ों की दुकान भी थी, जो ठीकठाक चलती थी. उसी दुकान के लिए वह कपड़ा लेने थाणे के उल्लासनगर आता था. वह जब भी कपड़े लेने उल्लासनगर आता था, अपने भांजे शफीउल्ला से मिलने जरूर आता था.

24 साल की खुशबू उर्फ जमीला से राजेश खान की मुलाकात उस की कपड़ों की दुकान पर हुई थी. वह उसी के गांव के पास की ही रहने वाली थी. उस की शादी ऐसे परिवार में हुई थी, जिस की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. वह जिन सपनों और उम्मीदों के साथ ससुराल आई थी, वे उसे पूरे होते नजर नहीं आ रहे थे. खुली हवा में सांस लेना घूमनाफिरना, मनमाफिक पहननाओढ़ना उस परिवार में कभी संभव नहीं था.

इसलिए जल्दी ही वहां खुशबू का दम घुटने लगा. खुली हवा में सांस लेने के लिए उस का मन मचल उठा. दुकान पर आनेजाने में जब उस ने राजेश खान की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो उठी.

चाहत दोनों ओर थी, इसलिए कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. जल्दी ही उन की हालत यह हो गई कि दिन में जब तक दोनों एक बार एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन्हें चैन नहीं मिलता. उन के प्यार की जानकारी गांव वालों को हुई तो उन के प्यार को ले कर हंगामा होता, उस के पहले ही वह खुशबू को ले कर मुंबई आ गया और किराए का फ्लैट ले कर उसी में उस के साथ रहने लगा. मुंबई में उस ने उस से निकाह भी कर लिया.

मुंबई पहुंच कर खुशबू ने आत्मनिर्भर होने के लिए एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर ली. इस से राजेश खान चिंता मुक्त हो गया. वह महीने में 10-15 दिन मुंबई में खुशबू के साथ रहता था तो बाकी दिन गांव में रहता था.

मुंबई आ कर खुशबू में काफी बदलाव आ गया था. ब्यूटीपार्लर में काम करने के बाद उस के पास जो समय बचता था, उस समय का सदुपयोग करते हुए अधिक कमाई के लिए वह बीयर बार में काम करने चली जाती थी. पैसा आया तो उस ने रहने का ठिकाना बदल दिया. अब वह उसी इमारत में आ कर रहने लगी, जहां शफीउल्ला अपने परिवार के साथ रहता था. वहां उस ने सुखसुविधा के सारे साधन भी जुटा लिए थे.

खुशबू के रहनसहन को देख कर राजेश खान के मन संदेह हुआ. उस ने उस के बारे में पता किया. जब उसे पता चला कि खुशबू ब्यूटीपार्लर में काम करने के अलावा बीयर बार में भी काम करती है तो उस ने उसे बीयर बार में काम करने से मना किया. लेकिन उस के मना करने के बावजूद खुशबू बीयर बार में काम करती रही. इस से राजेश खान का संदेह बढ़ता गया.

18 नवंबर की सुबह खुशबू बीयर बार की ड्यूटी खत्म कर के फ्लैट पर आई तो राजेश खान को अपना इंतजार करते पाया. उस समय वह काफी गुस्से में था. उस के पूछने पर खुशबू ने जब सीधा उत्तर नहीं दिया तो वह उस पर भड़क उठा. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो खुशबू ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वहीं करूंगी.’’

‘‘खुशबू, तुम मेरी पत्नी ही नहीं, प्रेमिका भी हो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. तुम अपनी ब्यूटीपार्लर वाली नौकरी करो, मैं उस के लिए मना नहीं करता. लेकिन बीयर बार में काम करना मुझे पसंद नहीं है. मैं नहीं चाहता कि लोग तुम्हें गंदी नजरों से ताकें.’’

‘‘मैं जो कर रही हूं, सोचसमझ कर कर रही हूं. अभी मेरी कमानेखाने की उम्र है, इसलिए मैं जो करना चाहती हूं, वह मुझे करने दो.’’ कह कर खुशबू बैडरूम में जा कर कपड़े बदलने लगी.

राजेश खान को खुशबू से ऐसी बातों की जरा भी उम्मीद नहीं थी. वह भी खुशबू के पीछेपीछे बैडरूम में चला गया और उसे समझाने की गरज से बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझे प्यार नहीं करती. लगता है, तुम्हारी जिंदगी में कोई और आ गया है?’’

‘‘तुम्हें जो समझना है, समझो. लेकिन इस समय मैं थकी हुई हूं और मुझे नींद आ रही है. अब मैं सोने जा रही हूं. अच्छा होगा कि तुम अभी मुझे परेशान मत करो.’’

खुशबू की इन बातों से राजेश खान का गुस्सा बढ़ गया. उस की आंखों में नफरत उतर आई. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मेरी नींद को हराम कर के तुम सोने जा रही हो. लेकिन अब मैं तुम्हें सोने नहीं दूंगा.’’

यह कह कर राजेश खान खुशबू की बुरी तरह से पिटाई करने लगा. हाथपैर से ही नहीं, उस ने उसे बेल्ट से भी मारा. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो फर्श पर पड़ी दर्द से कराह रही खुशबू के सीने पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

खुशबू के मर जाने के बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे जेल जाने का डर सताने लगा. वह लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने लाश को फ्लैट में ही छिपा कर गांव भाग जाने में अपनी भलाई समझी. उस का सोचना था कि अगर वह गांव पहुंच गया तो पुलिस उसे कभी पकड़ नहीं पाएगी.

उस ने बैडरूम मे रखे खुशबू के बैग को खाली किया और उस में उस की लाश को मोड़ कर रख कर उसे बैड के नीचे खिसका दिया. वह दरवाजे पर ताला लगा कर बाहर निकल रहा था, तभी उस का भांजा शफीउल्ला उसे सीढि़यों पर मिल गया, जिस की वजह से खुशबू की हत्या का रहस्य उजागर हो गया.

घर की चाबी शफीउल्ला को दे कर वह सीधे कल्याण रेलवे स्टेशन पहुंचा और वहां से कोलकाता जाने वाली ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ कर गांव के लिए चल पड़ा.

राजेश खान से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ अपराध संख्या 324/2016 पर खुशबू की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच एआई वाई.आर. खैरनार कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिस्म की खातिर किया इश्क

मीना अपने 3 भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं, खूबसूरत भी थी. उस का परिवार औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर में रहता था. उस के पिता अमर सिंह रेलवे में पथ निरीक्षक थे. उस ने इंटर पास कर लिया तो मांबाप उस के विवाह के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू की तो उन्हें कंचौसी कस्बा के रहने वाले राम सिंह का बेटा अनिल पसंद आ गया.

जून, 2008 में मीना की शादी अनिल से हो गई. मीना सुंदर तो थी ही, दुल्हन बनने पर उस की सुंदरता में और ज्यादा निखार आ गया था. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की खूब तारीफ की. अपनी प्रशंसा पर मीना भी खुश थी. मीना जैसी सुंदर पत्नी पा कर अनिल भी खुश था.

दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चल पड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद आर्थिक परेशानियों ने उन की खुशी को ग्रहण लगा दिया. शादी के पहले अनिल छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर लेता था. लेकिन शादी के बाद मीना के आने से जहां अन्य खर्चे बढ़ ही गए थे, वहीं मीना की महत्त्वाकांक्षी ख्वाहिशों ने उस के इस खर्च को और बढ़ा दिया था. आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए वह कस्बे की एक आढ़त पर काम करने लगा था.

आढ़त पर काम करने की वजह से अनिल को कईकई दिनों घर से बाहर रहना पड़ता था, जबकि मीना को यह कतई पसंद नहीं था. पति की गैरमौजूदगी में वह आसपड़ोस के लड़कों से बातें ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हंसीमजाक भी करने लगी थी. शुरूशुरू में तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो अनिल के मातापिता से यह देखा नहीं गया और वे यह कह कर गांव चले गए कि अब वे गांव में रह कर खेती कराएंगे.

सासससुर के जाने के बाद मीना को पूरी आजादी मिल गई थी. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए उस ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो उसे राजेंद्र जंच गया. फिर तो वह उसे मन का मीत बनाने की कोशिश में लग गई. राजेंद्र मूलरूप से औरैया का रहने वाला था. उस के पिता गांव में खेती कराते थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. बीकौम करने के बाद वह कंचौसी कस्बे में रामबाबू की अनाज की आढ़त पर मुनीम की नौकरी करने लगा था.

राजेंद्र और अनिल एक ही आढ़त पर काम करते थे, इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी. अनिल ने ही राजेंद्र को अपने घर के सामने किराए पर कमरा दिलाया था. दोस्त होने की वजह से राजेंद्र अनिल के घर आताजाता रहता था. जब कभी आढ़त बंद रहती, राजेंद्र अनिल के घर आ जाता और फिर वहीं पार्टी होती. पार्टी का खर्चा राजेंद्र ही उठाता था.

राजेंद्र पर दिल आया तो मीना उसे फंसाने के लिए अपने रूप का जलवा बिखेरने लगी. मीना के मन में क्या है, यह राजेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गया. क्योंकि उस की निगाहों में जो प्यास झलक रही थी, उसे उस ने ताड़ लिया था. इस के बाद तो मीना उसे हूर की परी नजर आने लगी थी. वह उस के मोहपाश में बंधता चला गया था.

एक दिन जब राजेंद्र को पता चला कि अनिल 2 दिनों के लिए बाहर गया है तो उस दिन उस का मन काम में नहीं लगा. पूरे दिन उसे मीना की ही याद आती रही. घर आने पर वह मीना की एक झलक पाने को बेचैन था. उस की यह ख्वाहिश पूरी हुई शाम को. मीना सजधज कर दरवाजे पर आई तो उस समय वह उसे आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसे देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा.

राजेंद्र को पता ही था कि अनिल घर पर नहीं है, इसलिए वह उस के घर जा पहुंचा. राजेंद्र को देख कर मीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम आढ़त से बड़ी जल्दी आ गए, वहां कोई काम नहीं था क्या?’’

‘‘काम तो था भाभी, लेकिन मन नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ मीना ने पूछा.

‘‘सच बता दूं भाभी.’’

‘‘हां, बताओ.’’

‘‘भाभी, तुम्हारी सुंदरता ने मुझे विचलित कर दिया है, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कद्र न हो.’’ मीना ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘क्या अनिल भाई, तुम्हारी कद्र नहीं करते?’’

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो. तुम जानते हो कि तुम्हारे भाई साहब महीने में 10 दिन तो बाहर ही रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें करवटों में बीतती हैं.’’

‘‘भाभी जो दुख तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम्हारी यादों में रातरात भर करवट बदलता रहता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो हमारी समस्या खत्म हो सकती है.’’ कह कर राजेंद्र ने मीना को अपनी बांहों में भर लिया.

मीना चाहती तो यही थी, लेकिन उस ने मुखमुद्रा बदल कर बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे.’’

‘‘प्लीज भाभी शोर मत मचाओ, तुम ने मेरा सुखचैन सब छीन लिया है.’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं राजेंद्र, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’

‘‘नहीं भाभी, अब यह मुमकिन नहीं है. कोई पागल ही होगा, जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर पीछे हटेगा.’’ कह कर राजेंद्र ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए मीना न…न…न… करती रही, जबकि वह खुद राजेंद्र के शरीर से लिपटी जा रही थी. राजेंद्र कोई नासमझ बच्चा नहीं था, जो मीना की हरकतों को न समझ पाता. इस के बाद वह क्षण भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी.

एक बार मर्यादा भंग हुई तो राजेंद्र को हरी झंडी मिल गई. उसे जब भी मौका मिलता, वह मीना के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर के वापस आ जाता. मीना अब खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस की शारीरिक भूख मिटने लगी थी, साथ ही आर्थिक समस्या का भी हल हो गया था. मीना जब भी राजेंद्र से रुपए मांगती थी, वह चुपचाप निकाल कर दे देता था.

काम कोई भी हो, ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहता. ठीक वैसा ही मीना और राजेंद्र के संबंधों में भी हुआ. उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगीं. ये बातें अनिल के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उसे बात में सच्चाई नजर आई. क्योंकि उस ने मीना और राजेंद्र को खुल कर हंसीमजाक करते हुए कई बार देखा था. तब उस ने इसे सामान्य रूप से लिया था. अब पडोसियों की बातें सुन कर उसे दाल में काला नजर आने लगा था.

अनिल ने इस बारे में मीना से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘पड़ोसी हम से जलते हैं. राजेंद्र का आनाजाना और मदद करना उन्हें अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इस तरह की ऊलजुलूल बातें कर के तुम्हारे कान भर रहे हैं. अगर तुम्हें मुझ पर शक है तो राजेंद्र का घर आनाजाना बंद करा दो. लेकिन उस के बाद तुम दोनों की दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. वह हमारी आर्थिक मदद करना बंद कर देगा.’’

अनिल ने राजेंद्र और मीना को रंगेहाथों तो पकड़ा नहीं था, इसलिए उस ने मीना की बात पर यकीन कर लिया. लेकिन मन का शक फिर भी नहीं गया. इसलिए वह राजेंद्र और मीना पर नजर रखने लगा. एक दिन राजेंद्र आढ़त पर नहीं आया तो अनिल को शक हुआ. दोपहर को वह घर पहुंचा तो उस के मकान का दरवाजा बंद था और अंदर से मीना और राजेंद्र के हंसने की आवाजें आ रही थीं. अनिल ने खिड़की के छेद से अंदर झांक कर देखा तो मीना और राजेंद्र एकदूसरे में समाए हुए थे.

अनिल सीधे शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. इस के बाद घर लौटा और दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद मीना ने दरवाजा खोला तो राजेंद्र कमरे में बैठा था. उस ने राजेंद्र को 2 तमाचे मार कर बेइज्जत कर के घर से भगा दिया. इस के बाद मीना की जम कर पिटाई की. मीना ने अपनी गलती मानते हुए अनिल के पैर पकड़ कर माफी मांग ली और आइंदा इस तरह की गलती न करने की कसम खाई.

अनिल उसे माफ करने को तैयार नहीं था, लेकिन मासूम बेटे की वजह से अनिल ने मीना को माफ कर दिया. इस के बाद कुछ दिनों तक अनिल, मीना से नाराज रहा, लेकिन धीरेधीरे मीना ने प्यार से उस की नाराजगी दूर कर दी. अनिल को लगा कि मीना राजेंद्र को भूल चुकी है. लेकिन यह उस का भ्रम था. मीना ने मन ही मन कुछ दिनों के लिए समझौता कर लिया था.

अनिल के प्रति यह उस का प्यार नाटक था, जबकि उस के दिलोदिमाग में राजेंद्र ही बसता था. उधर अनिल द्वारा अपमानित कर घर से निकाल दिए जाने पर राजेंद्र के मन में नफरत की आग सुलग रही थी. उन की दोस्ती में भी दरार पड़ चुकी थी. आमनासामना होने पर दोनों एकदूसरे से मुंह फेर लेते थे. मीना से जुदा होना राजेंद्र के लिए किसी सजा से कम नहीं था.

मीना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. अनिल ने मीना का मोबाइल तोड़ दिया था, इसलिए उस की बात भी नहीं हो पाती थी. दिन बीतने के साथ मीना से न मिल पाने से उस की तड़प बढ़ती जा रही थी. आखिर एक दिन जब उसे पता चला कि अनिल बाहर गया है तो वह मीना के घर जा पहुंचा. मीना उसे देख कर उस के गले लग गई. उस दिन दोनों ने जम कर मौज की.

लेकिन राजेंद्र घर के बाहर निकलने लगा तो पड़ोसी राजे ने उसे देख लिया. अगले दिन अनिल वापस आया तो राजे ने उसे राजेंद्र के आने की बात बता दी. अनिल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह चुप रहा. उसे लगा कि जब तक राजेंद्र जिंदा है, तब तक वह उस की इज्जत से खेलता रहेगा. इसलिए इज्जत बचाने के लिए उस ने अपने दोस्त की हत्या की योजना बना डाली.

उस ने मीना को उस के मायके दिबियापुर भेज दिया. उस ने उसे भनक तक नहीं लगने दी थी कि उस के मन में क्या चल रहा है. मीना को मायके पहुंचा कर उस ने राजेंद्र से पुन: दोस्ती गांठ ली. राजेंद्र तो यही चाहता था, क्योंकि दोस्ती की आड़ में ही उस ने मीना को अपनी बनाया था. एक बार फिर दोनों की महफिल जमने लगी.

एक दिन शराब पीते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘अनिलभाई, तुम ने मीना भाभी को मायके क्यों पहुंचा दिया? उस के बिना अच्छा नहीं लगता. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि उस के बिना तुम्हारी रातें कैसे कटती हैं?’’

अनिल पहले तो खिलखिला कर हंसा, उस के बाद गंभीर हो कर बोला, ‘‘दोस्त मेरी रातें तो किसी तरह कट जाती हैं, पर लगता है तुम मीना के बिना बेचैन हो. खैर तुम कहते हो तो मीना को 2-4 दिनों में ले आता हूं.’’

अनिल को लगा कि राजेंद्र को उस की दोस्ती पर पूरा भरोसा हो गया है. इसलिए उस ने राजेंद्र को ठिकाने लगाने की तैयारी कर ली. उस ने राजेंद्र से कहा कि वह भी उस के साथ मीना को लाने चले. वह उसे देख कर खुश हो जाएगी. मीना की झलक पाने के लिए राजेंद्र बेचैन था, इसलिए वह उस के साथ चलने को तैयार हो गया.

5 जुलाई, 2016 की शाम अनिल और राजेंद्र कंचौसी रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि इटावा जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन 2 घंटे से अधिक लेट है. इसलिए दोनों ने दिबियापुर (मीना के मायके) जाने का विचार त्याग दिया. इस के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे और शराब की बोतल, पानी के पाउच और गिलास ले कर कस्बे से बाहर पक्के तालाब के पास जा पहुंचे.

वहीं दोनों ने जम कर शराब पी. अनिल ने जानबूझ कर राजेंद्र को कुछ ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह काफी नशे में हो गया. वह वहीं तालाब के किनारे लुढ़क गया तो अनिल ने ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. राजेंद्र की हत्या कर के अनिल ने उस के सारे कपडे़ उतार लिए और खून सनी ईंट के साथ उन्हें तालाब से कुछ दूर झाडि़यों में छिपा दिया. इस के बाद वह ट्रेन से अपनी ससुराल दिबियापुर चला गया.

इधर सुबह कुछ लोगों ने तालाब के किनारे लाश देखी तो इस की सूचना थाना सहावल पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह यादव फोर्स ले कर घटनास्थल पहुंच गए. तालाब के किनारे नग्न पड़े शव को देख कर धर्मपाल सिंह समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है.

लाश की शिनाख्त में पुलिस को कोई परेशानी नहीं हुई. मृतक का नाम राजेंद्र था और वह रामबाबू की आढ़त पर मुनीम था. आढ़तिया रामबाबू को बुला कर राजेंद्र के शव की पहचान कराई गई. उस के पास राजेंद्र के पिता रामकिशन का मोबाइल नंबर था. धर्मपाल सिंह ने उसी नंबर पर राजेंद्र की हत्या की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर बेटे की लाश देख कर रामकिशन फफक कर रो पड़ा. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. धर्मपाल सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक राजेंद्र कंचौसी कस्बा के कंचननगर में किराए के कमरे में रहता था. उस की दोस्ती सामने रहने वाले अनिल से थी, जो उसी के साथ काम करता था.

राजेंद्र का आनाजाना अनिल के घर भी था. उस के और अनिल की पत्नी मीना के बीच मधुर संबंध भी थे. अनिल जांच के घेरे में आया तो धर्मपाल सिंह ने उस पर शिकंजा कसा. उस से राजेंद्र की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो पहले वह साफ मुकर गया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि राजेंद्र ने उस की पत्नी मीना से नाजायज संबंध बना लिए थे, जिस से उस की बदनामी हो रही थी. इसीलिए उस ने उसे ईंट से कुचल कर मार डाला है. अनिल ने हत्या में प्रयुक्त ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद करा दिए, जिसे उस ने तालाब के पास झाडि़यों में छिपा रखे थे.

अनिल ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक ने पिता रामकिशन को वादी बना कर राजेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिल को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

पहली ही रात भागी दुल्हन

26 साल के छत्रपति शर्मा की आंखों में नींद नहीं थी. वह लगातार अपनी नईनवेली बीवी प्रिया को निहार रहा था. जैसे ही प्रिया की नजरें उस से टकराती थीं, वह शरमा कर सिर झुका लेती थी. 20 साल की प्रिया वाकई खूबसूरती की मिसाल थी. लंबी, छरहरी और गोरे रंग की प्रिया से उस की शादी हुए अभी 2 दिन ही गुजरे थे, लेकिन शादी के रस्मोरिवाज की वजह से छत्रपति को उस से ढंग से बात करने तक का मौका नहीं मिला था.

छत्रपति मुंबई में स्कूल टीचर था. उस की शादी मध्य प्रदेश के सिंगरौली शहर के एक खातेपीते घर में तय हुई थी और शादी मुहूर्त 23 नवंबर, 2017 का निकला था. इस दिन वह मुंबई से बारात ले कर सिंगरौली पहुंचा और 24 नवंबर को प्रिया को विदा करा कर वापस मुंबई जा रहा था. सिंगरौली से जबलपुर तक बारात बस से आई थी. जबलपुर में थोड़ाबहुत वक्त उसे प्रिया से बतियाने का मिला था, लेकिन इतना भी नहीं कि वह अपने दिल की बातों का हजारवां हिस्सा भी उस के सामने बयां कर पाता.

बारात जबलपुर से ट्रेन द्वारा वापस मुंबई जानी थी, जिस के लिए छत्रपति ने पहले से ही सभी के रिजर्वेशन करा रखे थे. उस ने अपना, प्रिया और अपनी बहन का रिजर्वेशन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस के एसी कोच में और बाकी बारातियों का स्लीपर कोच में कराया था. ट्रेन रात 2 बजे के करीब जब जबलपुर स्टेशन पर रुकी तो छत्रपति ने लंबी सांस ली कि अब वह प्रिया से खूब बतियाएगा. वजह एसी कोच में भीड़ कम रहती है और आमतौर पर मुसाफिर एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.

ट्रेन रुकने पर बाराती अपने स्लीपर कोच में चले गए और छत्रपति, उस की बहन और प्रिया एसी कोच में चढ़ गए. छत्रपति की बहन भी खुश थी कि उस की नई भाभी सचमुच लाखों में एक थी. उस के घर वालों ने शादी भी शान से की थी.

जब नींद टूटी तो…

कोच में पहुंचते ही छत्रपति ने तीनों के बिस्तर लगाए और सोने की तैयारी करने लगा. उस समय रात के 2 बजे थे, इसलिए डिब्बे के सारे मुसाफिर नींद में थे. जो थोड़ेबहुत लोग जाग रहे थे, वे भी जबलपुर में शोरशराबा सुन कर यहांवहां देखने के बाद फिर से कंबल ओढ़ कर सो गए थे. छत्रपति और प्रिया को 29 और 30 नंबर की बर्थ मिली थी.

जबलपुर से जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, छत्रपति फिर प्रिया की तरफ मुखातिब हुआ. इस पर प्रिया ने आंखों ही आंखों में उसे अपनी बर्थ पर जा कर सोने का इशारा किया तो वह उस पर और निहाल हो उठा. दुलहन के शृंगार ने प्रिया की खूबसूरती में और चार चांद लगा दिए थे. थके हुए छत्रपति को कब नींद आ गई, यह उसे भी पता नहीं चला. पर सोने के पहले वह आने वाली जिंदगी के ख्वाब देखता रहा, जिस में उस के और प्रिया के अलावा कोई तीसरा नहीं था.

जबलपुर के बाद ट्रेन का अगला स्टौप इटारसी और फिर उस के बाद भुसावल जंक्शन था, इसलिए छत्रपति ने एक नींद लेना बेहतर समझा, जिस से सुबह उठ कर फ्रैश मूड में प्रिया से बातें कर सके.

सुबह कोई 6 बजे ट्रेन इटारसी पहुंची तो प्लैटफार्म की रोशनी और गहमागहमी से छत्रपति की नींद टूट गई. आंखें खुलते ही कुदरती तौर पर उस ने प्रिया की तरफ देखा तो बर्थ खाली थी. छत्रपति ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. वह उस के वापस आने का इंतजार करने लगा.

ट्रेन चलने के काफी देर बाद तक प्रिया नहीं आई तो उस ने बहन को जगाया और टायलेट जा कर प्रिया को देखने को कहा. बहन ने डिब्बे के चारों टायलेट देख डाले, पर प्रिया उन में नहीं थी. ट्रेन अब पूरी रफ्तार से चल रही थी और छत्रपति हैरानपरेशान टायलेट और दूसरे डिब्बों में प्रिया को ढूंढ रहा था.

सुबह हो चुकी थी, दूसरे मुसाफिर भी उठ चुके थे. छत्रपति और उस की बहन को परेशान देख कर कुछ यात्रियों ने इस की वजह पूछी तो उन्होंने प्रिया के गायब होने की बात बताई. इस पर कुछ याद करते हुए एक मुसाफिर ने बताया कि उस ने इटारसी में एक दुलहन को उतरते देखा था.

इतना सुनते ही छत्रपति के हाथों से जैसे तोते उड़ गए. क्योंकि प्रिया के बदन पर लाखों रुपए के जेवर थे, इसलिए किसी अनहोनी की बात सोचने से भी वह खुद को नहीं रोक पा रहा था. दूसरे कई खयाल भी उस के दिमाग में आजा रहे थे. लेकिन यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि आखिरकार प्रिया बगैर बताए इटारसी में क्यों उतर गई? उस का मोबाइल फोन बर्थ पर ही पड़ा था, इसलिए उस से बात करने का कोई और जरिया भी नहीं रह गया था.

एक उम्मीद उसे इस बात की तसल्ली दे रही थी कि हो सकता है, वह इटारसी में कुछ खरीदने के लिए उतरी हो और ट्रेन चल दी हो, जिस से वह पीछे के किसी डिब्बे में चढ़ गई हो. लिहाजा उस ने अपनी बहन को स्लीपर कोच में देखने के लिए भेजा. इस के बाद वह खुद भी प्रिया को ढूंढने में लग गया.

भुसावल आने पर बहन प्रिया को ढूंढती हुई उस कोच में पहुंची, जहां बाराती बैठे थे. बहू के गायब होने की बात उस ने बारातियों को बताई तो बारातियों ने स्लीपर क्लास के सारे डिब्बे छान मारे. मुसाफिरों से भी पूछताछ की, लेकिन प्रिया वहां भी नहीं मिली. प्रिया नहीं मिली तो सब ने तय किया कि वापस इटारसी जा कर देखेंगे. इस के बाद आगे के लिए कुछ तय किया जाएगा. बात हर लिहाज से चिंता और हैरानी की थी, इसलिए सभी लोगों के चेहरे उतर गए थे. शादी की उन की खुशी काफूर हो गई थी.

प्रिया मिली इलाहाबाद में, पर…

इत्तफाक से उस दिन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस खंडवा स्टेशन पर रुक गई तो एक बार फिर सारे बारातियों ने पूरी ट्रेन छान मारी, लेकिन प्रिया नहीं मिली.

इस पर छत्रपति अपने बड़े भाई और कुछ दोस्तों के साथ ट्रेन से इटारसी आया और वहां भी पूछताछ की, पर हर जगह मायूसी ही हाथ लगी. अब पुलिस के पास जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. इसी दौरान छत्रपति ने प्रिया के घर वालों और अपने कुछ रिश्तेदारों से भी मोबाइल पर प्रिया के गुम हो जाने की बात बता दी थी.

पुलिस वालों ने उस की बात सुनी और सीसीटीवी के फुटेज देखी, लेकिन उन में कहीं भी प्रिया नहीं दिखी तो उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इधर छत्रपति और उस के घर वालों का सोचसोच कर बुरा हाल था कि प्रिया नहीं मिली तो वे घर जा कर क्या बताएंगे. ऐसे में तो उन की मोहल्ले में खासी बदनामी होगी.

कुछ लोगों के जेहन में यह बात बारबार आ रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रिया का चक्कर किसी और से चल रहा हो और मांबाप के दबाव में आ कर उस ने शादी कर ली हो. फिर प्रेमी के साथ भाग गई हो. यह खयाल हालांकि बेहूदा था, जिसे किसी ने कहा भले नहीं, पर सच भी यही निकला.

पुलिस वालों ने वाट्सऐप पर प्रिया का फोटो उस की गुमशुदगी के मैसेज के साथ वायरल किया तो दूसरे ही दिन पता चल गया कि वह इलाहाबाद के एक होटल में अपने प्रेमी के साथ है. दरअसल, प्रिया का फोटो वायरल हुआ तो उसे वाट्सऐप पर इलाहाबाद स्टेशन के बाहर के एक होटल के उस मैनेजर ने देख लिया था, जिस में वह ठहरी हुई थी. मामला गंभीर था, इसलिए मैनेजर ने तुरंत प्रिया के अपने होटल में ठहरे होने की खबर पुलिस को दे दी.

एक कहानी कई सबक

छत्रपति एक ऐसी बाजी हार चुका था, जिस में शह और मात का खेल प्रिया और उस के घर वालों के बीच चल रहा था, पर हार उस के हिस्से में आई थी.

इलाहाबाद जा कर जब पुलिस वालों ने उस के सामने प्रिया से पूछताछ की तो उस ने दिलेरी से मान लिया कि हां वह अपने प्रेमी राज सिंह के साथ अपनी मरजी से भाग कर आई है. और इतना ही नहीं, इलाहाबाद की कोर्ट में वह उस से शादी भी कर चुकी है.

बकौल प्रिया, वह और राज सिंह एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं, यह बात उस के घर वालों से छिपी नहीं थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी छत्रपति से तय कर दी थी. मांबाप ने सख्ती दिखाते हुए उसे घर में कैद कर लिया था और उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था, जिस से वह राज सिंह से बात न कर पाए.

4 महीने पहले उस की शादी छत्रपति से तय हुई तो घर वालों ने तभी से उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. लेकिन छत्रपति से बात करने के लिए उसे मोबाइल दे दिया जाता था. तभी मौका मिलने पर वह राज सिंह से भी बातें कर लिया करती थी. उसी दौरान उन्होंने भाग जाने की योजना बना ली थी.

प्रिया के मुताबिक राज सिंह विदाई वाले दिन ही जबलपुर पहुंच गया था. इन दोनों का इरादा पहले जबलपुर स्टेशन से ही भाग जाने का था, लेकिन बारातियों और छत्रपति के जागते रहने के चलते ऐसा नहीं हो सका. राज सिंह पाटलिपुत्र एक्सप्रैस ही दूसरे डिब्बे में बैठ कर इटारसी तक आया और यहीं प्रिया उतर कर उस के साथ इलाहाबाद आ गई थी.

पूछने पर प्रिया ने साफ कह दिया कि वह अब राज सिंह के साथ ही रहना चाहती है. राज सिंह सिंगरौली के कालेज में उस का सीनियर है और वह उसे बहुत चाहती है. घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती की थी. प्रिया ने बताया कि अपनी मरजी के मुताबिक शादी कर के उस ने कोई गुनाह नहीं किया है, लेकिन उस ने एक बड़ी गलती यह की कि जब ऐसी बात थी तो उसे छत्रपति को फोन पर अपने और राज सिंह के प्यार की बात बता देनी चाहिए थी.

छत्रपति ने अपनी नईनवेली बीवी की इस मोहब्बत पर कोई ऐतराज नहीं जताया और मुंहजुबानी उसे शादी के बंधन से आजाद कर दिया, जो उस की समझदारी और मजबूरी दोनों हो गए थे.

जिस ने भी यह बात सुनी, उसी ने हैरानी से कहा कि अगर उसे भागना ही था तो शादी के पहले ही भाग जाती. कम से कम छत्रपति की जिंदगी पर तो ग्रहण नहीं लगता. इस में प्रिया से बड़ी गलती उस के मांबाप की है, जो जबरन बेटी की शादी अपनी मरजी से करने पर उतारू थे. तमाम बंदिशों के बाद भी प्रिया भाग गई तो उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ. उलटे 8-10 लाख रुपए जो शादी में खर्च हुए, अब किसी के काम के नहीं रहे.

मांबाप को चाहिए कि वे बेटी के अरमानों का खयाल रखें. अब वह जमाना नहीं रहा कि जिस के पल्लू से बांध दो, बेटी गाय की तरह बंधी चली जाएगी. अगर वह किसी से प्यार करती है और उसी से शादी करने की जिद पाले बैठी है तो जबरदस्ती करने से कोई फायदा नहीं, उलटा नुकसान ज्यादा है. यदि प्रिया इटारसी से नहीं भाग पाती तो तय था कि मुंबई जा कर ससुराल से जरूर भागती. फिर तो छत्रपति की और भी ज्यादा बदनामी और जगहंसाई होती.

अब जल्द ही कानूनी तौर पर भी मसला सुलझ जाएगा, लेकिन इसे उलझाने के असली गुनहगार प्रिया के मांबाप हैं, जिन्होंने अपनी झूठी शान और दिखावे के लिए बेटी को किसी और से शादी करने के लिए मजबूर किया. इस का पछतावा उन्हें अब हो रहा है.

जरूरत इस बात की है कि मांबाप जमाने के साथ चलें और जातिपांत, ऊंचनीच, गरीबअमीर का फर्क और खयाल न करें, नहीं तो अंजाम क्या होता है, यह प्रिया के मामले से समझा जा सकता है. – कथा में प्रिया परिवर्तित नाम है.

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 3

नाबालिग निर्भया की हालत देख कर जोट्टा सिंह द्रवित हो उठे. उस की हालत काफी गंभीर थी. उसे तत्काल मैडिकल सहायता की जरूरत थी. मामला संगीन था, इसलिए पुलिस को भी सूचना देना जरूरी था. उन्होंने तुरंत एसपी भुवन भूषण यादव को मामले की जानकारी दे दी.

एसपी के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी सहयोगियों के साथ सरदारी बुआ के घर पहुंच गईं. अब तक मंजू परिवार के साथ फरार हो चुकी थी. बाल संरक्षण कमेटी के संरक्षण में निर्भया को हनुमानगढ़ के जिला चिकित्सालय में भरती कराया गया.

शुरुआती पूछताछ में पुलिस को पता चला कि निर्भया दिल्ली के अमन विहार की रहने वाली थी. हनुमानगढ़ पुलिस ने दिल्ली के थाना अमन विहार पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि निर्भया के पिता कुंदन (बदला हुआ नाम) ने फरवरी महीने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

सूचना पा कर थाना अमन विहार पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ दर्ज मुकदमे में गोलू, मंजू, निशा, सुनील बागड़ी आदि को नामजद कर लिया. इस के बाद दिल्ली पुलिस की सबइंसपेक्टर मनीषा शर्मा पुलिस टीम के साथ हनुमानगढ़ पहुंची और निर्भया का बयान ले कर लौट गई.

पुलिस टीम के साथ आए निर्भया के पिता ने बेटी की हालत देखी तो गश खा कर गिर गए. मामला मीडिया द्वारा जगजाहिर हुआ तो शहर में भूचाल सा आ गया. निर्भया को न्याय दिलाने के लिए हनुमानगढ़ में भी मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए. श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कैंडल मार्च निकाला गया.

हनुमानगढ़ पुलिस दिल्ली में मुकदमा दर्ज होने की बात कह कर मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन लोग मैदान में उतर आए. लोगों का कहना था कि यहां के आरोपियों से दिल्ली पुलिस को कोई सरोकार नहीं रहेगा. निर्भया का बुरा करने वालों को किए की सजा दिलाने के लिए यहां भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए.

लोगों के गुस्से को देखते हुए हनुमानगढ़ पुलिस बेबस हो गई. तीसरे दिन महिला पुलिस थाने में मंजू, गोलू, निशा, मुकेश, सोनू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 370, 372, 373, 376 (डी), 377, 3/4 पौक्सो एक्ट व हरिजन उत्पीड़न अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद डीएसपी वीरेंद्र जाखड़ को मामले की जांच सौंप दी गई.

जानकारी मिलने पर 30 मार्च, 2017 को राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्षा मनन चतुर्वेदी हनुमानगढ़ आईं और स्वास्थ्य केंद्र जा कर उपचाराधीन निर्भया से मिलीं. बच्ची की हालत देख कर वह रो पड़ीं. इस मामले में एक भी गिरफ्तारी न होने से उन्होंने पुलिस को आड़े हाथों लिया और शीघ्र गिरफ्तारी के आदेश दिए. 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्भया को अपनी पढ़ाई जारी रखने और वरिष्ठ अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करते हुए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया. कुछ संस्थाओं ने ही नहीं, जन साधारण ने भी निर्भया की आर्थिक मदद की.

आखिर कौन थी निर्भया, वह कैसे चकलाघर संचालिका मंजू अग्रवाल के पास पहुंची? पुलिस जांच में पता चला कि सुरेशिया में ही किराएदार के रूप में मंजू के पड़ोस में सुनील बागड़ी रहता था. इस के पहले वह पश्चिमी दिल्ली के अमन विहार में रहता था. सुनील मंजू का राजदार था और एक दो बार उस के लिए बाहर से लड़की ला चुका था.

एक दिन सुनील मंजू के पास बैठा था तो उस ने कहा, ‘‘अरे सुनील बाबू, आजकल मेरा धंधा बड़ा मंदा है. कोई बढि़या सी लड़की की व्यवस्था कर देते तो धंधा चमक उठता. ऐसे माल के लिए मैं लाख, डेढ़ लाख रुपए खर्च करने को तैयार हूं.’’

‘‘मैडम, यह कौन सा मुश्किल काम है. मैं आज ही अपने साथी से कहे देता हूं.’’ सुनील ने कहा.

दिल्ली में सुनील के पड़ोस में ही गोलू और निशा रहते थे. निशा का पति ट्रक चलाता था, जबकि गोलू टैंपो चलाता था. निशा और उस के पति में किसी बात को ले कर खटपट हो गई तो निशा पति से अलग हो कर गोलू के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी. सुनील ने मंजू की मंशा गोलू और निशा को बताई तो लाखों मिलने की उम्मीद में उन के मुंह में पानी आ गया.

निशा के पड़ोस में ही रहती थी निर्भया. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी और दसवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी खींच रहे थे. आकर्षक कदकाठी और मनमोहक नयननक्श वाली निर्भया गोलू और निशा की निगाह में चढ़ गई. दोनों ने उसे मंजू के अड्डे पर पहुंचाने का मन बना लिया.

बस फिर क्या था. निशा और गोलू निर्भया पर डोरे डालने लगे. निशा को गोलू ने अपनी भाभी बताया था. जानपहचान बढ़ी तो निशा और गोलू निर्भया को गिफ्ट के साथ नकदी भी देने लगे. निशा ने निर्भया से कहा था कि वह गोलू से उस की शादी करा कर उसे अपनी देवरानी बनाना चाहती है.

फिसलन भरी राह पर आखिर एक दिन निर्भया फिसल ही गई और निशा तथा गोलू के साथ भाग गई. उसे ले जा कर पहले गोलू ने उस से शादी की. फिर 4-5 दिनों बाद वे उसे ले कर हनुमानगढ़ पहुंचे और सुनील बगड़ी के माध्यम से मंजू को सौंप दिया गया. निर्भया के गायब होने पर कुंदन ने थाना अमन विहार में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

हनुमानगढ़ पुलिस जब मुख्य अपराधियों को 3-4 दिनों तक गिरफ्तार नहीं कर सकी तो लोग नाराजगी व्यक्त करने गले. मीडिया भी पुलिस की भद्द पीट रही थी. साइबर क्राइम एक्सपर्ट हैडकांस्टेबल गुरसेवक सिंह ने मंजू के परिवार की लोकेशन पता कर रहे थे, पर शातिर मंजू पुलिस के पहुंचने से पहले ही उड़नछू हो जाती थी.

आखिर पांचवें दिन मंजू की आंख मिचौली खत्म हो गई. वह अपने बेटे मुकेश और बहू सोनू के साथ हरियाणा के ऐलनाबाद में पुलिस के हत्थे चढ़ गई. अदालत में पेश किए जाने पर अदालत ने तीनों को विस्तृत पूछताछ के लिए 10 दिनों  की पुलिस रिमांड पर सौंप दिया था.

मंजू से पूछताछ के बाद स्थानीय पुलिस ने पहले ग्राहक अख्तर खान सहित, 15 सौ रुपए में कमरा उपलब्ध कराने वाले संगम होटल के मैनेजर कृष्णलाल घूडि़या, दलाल गुड्डी मेघवाल और निर्भया का बुरा करने वाले विजय (रावतसर), नवीन खां, मंजूर खां (मोधूनगर) पूर्णचंद सिंधी (हनुमानगढ़) बिजली मैकेनिक जगदीश काला उर्फ अमरजीत आदि 15 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

अब दिल्ली पुलिस मंजू सोनू, मुकेश आदि को प्रोटक्शन वारंट पर अपनी सुपुर्दगी में लेने की कोशिश कर रही है. दिल्ली के दोनों आरोपी गोलू और निशा तिहाड़ जेल पहुंच गए हैं. हनुमानगढ़ पुलिस के लिए वे दोनों भी वांटेड हैं.

स्वास्थ्य लाभ के बाद निर्भया दिल्ली लौट गई थी. जिंदगी बरबाद करने वाले आरोपियों को फांसी की सजा की मांग करने वाली निर्भया की पुकार अब अदालत के फैसले पर निर्भर करेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पटरियों पर बलात्कार : समाज में होता अपराध – भाग 3

मीडिया में बात आने के बाद पुलिस हुई सक्रिय

24 घंटे थाने दर थाने भटकने के बाद तीनों का भरोसा पुलिस और इंसाफ से उठने लगा था. मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस बगैर किसी अड़चन के मन चुका था, जिस में पुलिस का भारीभरकम अमला तैनात था.

2 नवंबर, 2017 को जब अनामिका के साथ हुए अत्याचारों की भनक मीडिया को लगी तो अगले दिन के अखबार इस जघन्य, वीभत्स और शर्मनाक बलात्कार कांड से रंगे हुए थे, जिन में पुलिस की लापरवाही, मनमानी और हीलाहवाली पर खूब कीचड़ उछाली गई थी.

लोग अब बलात्कारियों से ज्यादा पुलिस को कोसने लगे थे. जब आम लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा तो स्थापना दिवस की खुमारी उतार चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आला पुलिस अफसरों की बैठक ली.

मीटिंग में सक्रियता और संवेदनशीलता दिखाते मुख्यमंत्री ने डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला और डीआईजी संतोष कुमार सिंह की जम कर खिंचाई की और टीआई जीआरपी हबीबगंज मोहित सक्सेना, एमपी नगर थाने के टीआई संजय सिंह बैंस और हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव के अलावा जीआरपी के एक सबइंसपेक्टर भवानी प्रसाद उइके को तत्काल सस्पेंड कर दिया.

कानूनी प्रावधान तो यह है कि छेड़खानी और दुष्कर्म के मामलों में पुलिस को एफआईआर लिखना अनिवार्य है. आईपीसी की धारा 166 (क) साफसाफ कहती है कि धारा 376, 354, 326 और 509 के तहत हुए अपराधों की एफआईआर दर्ज न करने पर दोषी पुलिस वालों को 6 महीने से ले कर 2 साल तक की सजा दी जा सकती है. किसी भी सूरत में कोई भी पुलिस वाला इन धाराओं के अपराध की एफआईआर लिखने से मना नहीं कर सकता. चाहे घटनास्थल उस की सीमा में आता है या नहीं.

गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 3 नवंबर को अमर और राजेश उर्फ चेतराम को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन चौथा अपराधी रमेश मेहरा पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका. बाद में पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस गिरफ्तारी पर भी पुलिस की हड़बड़ी और गैरजिम्मेदाराना बरताव उजागर हुआ.

छानबीन में यह बात सामने आई कि गिरफ्तार किए गए अभियुक्त बेहद शातिर और नशेड़ी हैं. वे हबीबगंज इलाके के आसपास की झुग्गियों में ही रहते थे. ये लोग पन्नियां बीनने का काम करते थे. लेकिन असल में इन का काम रेलवे का सामान लोहा आदि चोरी कर कबाडि़यों को बेचने का था.

जांच में पता चला कि आरोपियों में सब से खतरनाक गोलू उर्फ बिहारी है. गोलू ने अपनी नाबालिगी में ही हत्या की एक वारदात को अंजाम दिया था. उस ने एक पुलिसकर्मी के बेटे की हत्या की थी.

इतना ही नहीं एक औरत से उस के नाजायज संबंध हो गए थे, जिस से उस के एक बच्चा भी हुआ था. गोलूकितना बेरहम है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी माशूका से हुए बेटे को वह उस के पैदा होने के 4 दिन बाद ही रेल की पटरी पर रख आया था, जिस से ट्रेन से कट कर उस की मौत हो गई थी.

दूसरा आरोपी अमर उस का साढ़ू है. अमर भी शातिर अपराधी है कुछ दिन पहले ही वह अरेरा कालोनी में रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के यहां चोरी करने के आरोप में पकड़ा गया था. पूछताछ में आरोपियों ने अपने नशे में होने की बात स्वीकारी और यह भी बताया कि अनामिका आती दिखी तो उन्होंने लूटपाट के इरादे से पकड़ा था लेकिन फिर उन की नीयत बदल गई.

मुख्यमंत्री के निर्देश पर एसआईटी को दिया केस

अनामिका बलात्कार मामले का शोर देश भर में मचा. इस से पुलिस प्रशासन की जम कर थूथू हुई. शहर में लगभग 50 जगहों पर विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों ने धरनेप्रदर्शन किए. विरोध बढ़ता देख मुख्यमंत्री ने जांच के लिए एसआईटी टीम गठित करने के निर्देश दे डाले. कांग्रेसी सांसदों ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ने भी सरकार और लचर कानूनव्यवस्था की जम कर खिंचाई की. बचाव की मुद्रा में आए राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने एक बचकाना बयान यह दे डाला कि क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों में ऐसा नहीं होता.

भोपाल में जो हुआ, वह वाकई मानव कल्पना से परे था. जनाक्रोश और दबाव में पुलिस ने एक और भारी चूक यह कर डाली कि जल्दबाजी में नाम की गफलत में एक ड्राइवर राजेश राजपूत को गिरफ्तार कर डाला. बेगुनाह राजेश से जुर्म कबूलवाने के लिए उसे थाने में अमानवीय यातनाएं दी गईं.

बकौल राजेश, ‘मुझे गिरफ्तार कर गुनाह स्वीकारने के लिए जम कर लगातार मारा गया. प्लास्टिक के डंडों से बेहोश होने तक मारा जाता रहा. इस दौरान एक महिला पुलिस अधिकारी ने उस से कहा था कि तू गुनाह कबूल कर जेल चला जा और वहां बेफिक्री से कुछ दिन काट ले क्योंकि रिपोर्ट दर्ज कराने वाली मांबेटी फरजी हैं.’

राजेश के मुताबिक उस का मोबाइल फोन पुलिस ने छीन लिया. उसे पत्नी से बात भी नहीं करने दी गई थी. हकीकत में राजेश राजपूत हादसे के वक्त और उस दिन भोपाल में था ही नहीं. वह शिवसेना के एक नेता के साथ इंदौर गया था.

उस की पत्नी दुर्गा को जब किसी से पता चला कि उस के पति को पुलिस ने गैंगरेप मामले में गिरफ्तार कर रखा है तो वह घबरा गई. दुर्गा जब थाने पहुंची तो पति की एक झलक दिखा कर उसे दुत्कार कर भगा दिया गया. इस के बाद वह अपने पति की बेगुनाही के सबूत ले कर वह यहांवहां भटकती रही, तब कहीं जा कर उसे 3 नवंबर को छोड़ा गया.

थाने से छूटे राजेश ने बताया कि वह हबीबगंज स्टेशन के बाहर भाजपा कार्यालय के पीछे की बस्ती में रहता है. जिनजिन पुलिस अधिकारियों ने उस के साथ ज्यादती की है, वह उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगा.

अनामिका की हालत पुलिसिया पूछताछ और मैडिकल जांच में बेहद खराब हो चली थी लेकिन अच्छी बात यह थी कि इस बहादुर लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. मीडिया के सपोर्ट और संगठनों के धरनेप्रदर्शनों ने उस के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया. अब वह आईपीएस अधिकारी बन कर सिस्टम को सुधारना चाहती है. उस के मातापिता भी उसे हिम्मत बंधाते रहे और हरदम उस के साथ रहे, जिस से भावनात्मक रूप से वह टूटने व बिखरने से बच गई.

बवाल शांत करने के उद्देश्य से सरकार ने भोपाल के आईजी योगेश चौधरी और रेलवे पुलिस की डीएसपी अनीता मालवीय को भी पुलिस हैडक्वार्टर भेज दिया. अनीता मालवीय इस बलात्कार कांड पर ठहाके लगाती नजर आई थीं, जिस पर उन की खूब हंसी उड़ी थी.

डाक्टरों ने डाक्टरी जांच में की बहुत बड़ी गलती हर कोई जानता है कि ऐसी सजाओं से लापरवाह और दोषी पुलिस कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ता. आज नहीं तो कल वे फिर मैदानी ड्यूटी पर होंगे और अपने खिलाफ लिए गए एक्शन का बदला और भी बेरहमी से अपराधियों के अलावा आम लोगों से लेंगे.

सरकारी अमले किस मुस्तैदी से काम करते हैं, इस की एक बानगी फिर सामने आई. अनामिका की मैडिकल जांच सुलतानिया जनाना अस्पताल में हुई थी. प्रारंभिक रिपोर्ट में एक जूनियर डाक्टर ने लिखा था कि संबंध ‘विद कंसर्न’ यानी सहमति से बने थे. इस रिपोर्ट में एक हास्यास्पद बात एक्यूज्ड की जगह विक्टिम शब्द का प्रयोग किया था. इस पर भी काफी छीछालेदर हुई. तब सीनियर डाक्टर्स ने गलती स्वीकारते हुए इसे लिपिकीय त्रुटि बताया, मानो कुछ हुआ ही न हो.

रेलवे की नई एसपी रुचिवर्धन मिश्रा ने इसे मानवीय त्रुटि बताया तो भोपाल के कमिश्नर अजातशत्रु श्रीवास्तव ने लापरवाही बरतने वाली डाक्टरों खुशबू गजभिए और संयोगिता को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. ये दोनों डाक्टर इस के पहले ही अपनी गलती स्वीकार चुकी थीं. उन की यह कोई महानता नहीं थी बल्कि मजबूरी हो गई थी. बाद में रिपोर्ट सुधार ली गई.

अगर वक्त रहते इस गलती की तरफ ध्यान नहीं जाता तो इस का फायदा केस के आरोपियों को मिलता. वजह बलात्कार के मामलों में मैडिकल रिपोर्ट काफी अहम होती है. तरस और हैरानी की बात यह है कि जिस लड़की के साथ 6 दफा बलात्कार हुआ,उस की रिपोर्ट में सहमति से संबंध बनाना लिख दिया गया.

शायद इस की आदत डाक्टरों को पड़ गई है या फिर इस की कोई और वजह हो सकती है, जिस की जांच किया जाना जरूरी है. अनामिका बलात्कार कांड में एक भाजपा नेता का नाम भी संदिग्ध रूप से आया था, जो बारबार पुलिस थाने में आरोपियों के बचाव के लिए फोन कर रहा था.

पुलिस ने चारों दुर्दांत वहशी दरिंदों गोलू चिढार उर्फ बिहारी, अमर, राजेश उर्फ चेतराम और रमेश मेहरा से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

अनामिका चाहती है कि इन दरिंदों को चौराहे पर फांसी दी जाए पर बदकिस्मती से देश का कानून ऐसा है, यहां पीडि़ता की भावनाओं की कोई कीमत नहीं होती. भोपाल बार एसोसिएशन ने यह एक अच्छा संकल्प लिया है कि कोई भी वकील इन अभियुक्तों की पैरवी नहीं करेगा.

गुस्साए आम लोग भी कानून में बदलाव चाहते हैं. उन का यह कहना है कि सुनवाई में देर होने से अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं और ऐसे अपराधों को शह मिलती है.

हालांकि खुद को आहत बता रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शीघ्र नया विधेयक ला कर कानून बनाने की बात कर चुके हैं और मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने की बात कर चुके हैं, पर सच यह है कि अब कोई उन पर भरोसा नहीं करता. खासतौर से इस मामले में पुलिस की भूमिका को ले कर तो वे खुद कटघरे में हैं.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनामिका परिवर्तित नाम है.