एक दिन की बात है. माखनदास मानिकपुरी ने सुभाषदास से जिज्ञासावश पूछा, ‘‘गुरु, क्या सचमुच कोई ऐसी अदृश्य ताकत है जो हमें रुपएपैसे से मालामाल कर सकती है? यह हनुमान सिक्का क्या है? इस के बारे में सुना तो मैं ने बहुत है, मगर…’’
संशय भाव से माखनदास के पूछने पर सुभाषदास ने जवाब दिया, ‘‘अरे, अगरमगर क्या होता है, क्या तुम्हें इस बात में शक है कि भूतप्रेत और आत्मा होती है. नहीं न…’’
‘‘ नहीं, कभी नहीं. यह तो मानना पड़ेगा कि आत्मा होती है भूतप्रेत होते हैं.’’ माखनदास ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा.
‘‘तो फिर इस में क्या इंकार कि इन शैतानी शक्तियों को अगर प्रसन्न कर लिया जाए तो उस के जरिए कुछ भी कियाकरवाया जा सकता है. और सुनो, हनुमान सिक्का अगर किसी को मिल जाए तो आदमी लखपति क्या करोड़पति बन सकता है. ऐसी ही कितनी विधाएं और साधनाएं हैं. मैं इस दिशा में सफलता की ओर बहुत आगे बढ़ चुका हूं. मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही मुझे इन शक्तियों का आशीर्वाद मिलने लगेगा.’’ सुभाषदास ने आंखें घुमाते हुए कहा.
‘‘गुरु, फिर तो आप मालामाल हो जाओगे, अब मुझे विश्वास हो चला है कि यह ताकत होती है. मुझे जो भी कहोगे, मैं करूंगा.’’ माखनदास खुश होते हुए बोला.
‘‘मुझे बहुत अफसोस होता है कि तुझ जैसा समझदार आदमी क्यों बारबार रास्ते से भटक जाता है. तुम ने पहले भी मेरा साथ दिया था और मैं ने इस दिशा में कई सफलताएं पाई हैं. तभी तो लोगों का हम पर भरोसा भी बना है.’’ सुभाषदास ने समझाया.
‘‘गुरु, जब सफलता नहीं मिलती तो मन टूट जाता है, कितने ही लोगों को मैं ने आप से मिलवाया और आप ने उन को हनुमान सिक्के, 21 नाखून के रास्ते बतलाए, तंत्रमंत्र भी किया… मगर लाभ कहां मिला? ऐसे में आप ही बताओ, मन कैसे नहीं विचलित होगा. फिर भी मैं मानता हूं कि तंत्रमंत्र की इस विद्या से कोई भी लखपति, करोड़पति बन सकता है. कई बार साधना में असफलता भी मिलती है. उस के कई कारण हो सकते हैं. आप में कूवत भी है.’’ माखनदास बोला.
‘‘होगा, जरूर होगा. हमें सफलता भी मिलेगी, लोगों को हमारी साधना का भी लाभ मिलेगा. बस, भरोसा रखो. एक दिन तुम भी देखना, किस तरह मैं तंत्रमंत्र की ताकत से तुम को भी मालामाल कर दूंगा. असल में हमें जैसी साधना करनी चाहिए उस में चूक हो रही है. यह मैं ने एहसास कर लिया है. कल देखना, देखते ही देखते मानो छप्पर फट जाएगा और सोनाचांदी बरसने लगेगा.’’ सुभाषदास ने अपनी लच्छेदार बातों से माखनदास को प्रभावित कर दिया था.
‘‘ऐसा है तो गुरु, कुछ जल्दी करो. क्यों हम अपना समय नष्ट कर रहे हैं.’’ माखनदास बोला.
‘‘ठीक है, तुम ने एक बार मुझे सुरेश साहू से मिलवाया था, उसे तुम फिर ले कर आओ. और सुनो, इस बार जो तंत्रमंत्र मैं करूंगा वह किसी भी हालत में खाली नहीं जाएगा. हम दोनों मालामाल हो जाएंगे.’’ सुभाषदास बोला.
‘‘ठीक है गुरु, मैं आज ही सुरेश से मिलता हूं और उसे आप के पास ले आता हूं. बेचारा कितने सालों से धन की खोज में लगा हुआ है. आप ने भी उसे आश्वासन दिया था.’’
‘‘ठीक है, उसे जितनी जल्दी हो सके लाओ, हम मुरू पथराली खार में तंत्र साधना करेंगे. यह साधना बहुत महत्त्वपूर्ण होगी और सफलता मिलने की पूरी शतप्रतिशत गारंटी है.’’
अगले ही दिन माखनदास ने सुरेश कुमार साहू की सुभाषदास से मुलाकात करवा दी. खरकेन में संतराम साहू का बड़ा बेटा सुरेश कुमार साहू सुभाषदास से मिल कर काफी प्रभावित हुआ. उस के सामने ही माखनदास ने कहा, ‘‘गुरु, यह हमारे गांव के खूब पैसे वाले हैं. पूरा परिवार सुखीसंपन्न और मानमर्यादा वाला है. अभी इन की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है. मगर इन्हें विश्वास है कि इन के पुश्तैनी घर में गड़ा धन रखा हुआ है. आप कृपा कर दो बड़ी मेहरबानी होगी.’’
सुभाषदास मानिकपुरी ने माखनदास की बातें सुन कर सुरेश साहू की ओर अपलक देखते हुए कहा, ‘‘मैं यहां बैठेबैठे सब ठीक कर सकता हूं. मैं देख रहा हूं कि तुम आने वाले समय में बहुत पैसे वाले बनने वाले हो, तुम्हारे मकान के नीचे खूब सोनाचांदी छिपा हुआ है, जो तुम्हारे पूर्वजों का है.’’
यह सुन कर सुरेश तांत्रिक सुभाषदास मानिकपुरी के पैरों पर गिर पड़ा और सविनय कहा, ‘‘गुरुदेव, हम पर कृपा करो. हम तो बरबाद हो गए हैं. अगर वह धन हमें मिल जाएगा तो हमारी जिंदगी संवर जाएगी. हमारे घर में खुशियां लौट आएंगी. हमारे कर्ज चुकता हो जाएंगे.’’
सुभाषदास ने सुरेश की अधीरता को भांपते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मदद अवश्य करूंगा. इस के लिए मुझे तुम्हारे घर आ कर के एक तांत्रिक साधना करनी पड़ेगी.’’
यह सुन कर सुरेश ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘गुरुदेव, हमारे घर का माहौल ठीक नहीं है. आप का वहां आना सब पसंद नहीं करेंगे, मेरा भाई और उस की पत्नी तो इस पर थोड़ा भी यकीन नहीं करते हैं.’’
इस पर हंसते हुए सुभाषदास ने मधुर वाणी में कहा, ‘‘दुनिया में ऐसे कितने ही लोग हैं, जो इस पर विश्वास नहीं करते. मगर जब वे देखेंगे कि पैसों की हांडी बाहर आ गई है, तो खुशी से नाच पड़ेंगे.’’
‘‘हां, यह बात तो सही है, मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं. कोई रास्ता निकालो गुरुदेव.’’ सुरेश बोला.
‘‘देखो भाई, तुम अपने घर में बात करो और उन्हें समझाओ. देखो अगर तंत्र साधना की तैयारी करोगे तो भला तो तुम्हारे परिवार का ही है. उन्हें इस साधना को घर में सुखशांति बनाए रखने वाला कह कर मना लो.’’
सुभाषदास की बातें सुन कर सुरेश समझ गया कि कैसे अपने परिवार के सदस्यों को इस साधना के बारे में आश्वस्त करना है. यही फैसला कर सुरेश साहू अपने घर पहुंचा और अपने भाई रामप्रसाद से बात की. उस ने कहा, ‘‘भैया, अगर आप बुरा न मानें तो सिर्फ एक बार घर में तांत्रिक साधना करवा लें. मुझे विश्वास है कि आप को भी यकीन हो जाएगा.’’
सुरेश साहू की बातें सुन कर बड़े भाई रामप्रसाद साहू ने कहा, ‘‘भाई, मुझे तो इस सब में कोई विश्वास ही नहीं है, मगर तुम चाहते हो तो एक बार पूजापाठ करवा कर देख लो.’’
यह सुन कर कि सुरेश साहू खुश हो गया और 2 दिन बाद ही सुभाषदास और माखनदास को तांत्रिक साधना के लिए घर बुला लिया. उन के घर पर सुभाषदास और माखनदास आए और रात भर तंत्र साधना करते रहे. उन्हें विश्वास दिलाया कि जैसे ही यह सिद्धि पूरी होगी, उन के घर में गड़ा हुआ रुपया उन्हें मिल जाएगा.
यह अनुष्ठान 3 दिन तक चला, जो रात के वक्त ही किए गए. इस के बदले में दोनों तांत्रिकों ने मोटी फीस वसूली. उस के बाद भी जब गड़ा धन नहीं निकल पाया तब दोनों तांत्रिक बगलें झांकने लगे.
सुभाषदास ने माखन से कहा, ‘‘भाई, मुझे लगता है यहां कोई गड़ा धन है ही नहीं.’’
माखनदास ने धीरे से कहा, ‘‘फिर आगे क्या होगा, सुरेश साहू तो हाथ से निकल जाएगा.’’
सुभाषदास ने कहा, ‘‘मैं ने तंत्र साधना पूरी कर ली है, अगर रुपए होते तो हमें इशारा मिल जाता. अब अगर यहां रुपए नहीं हैं तो मैं या तुम क्या कर सकते हैं. इन लोगों को गलतफहमी है कि उन के पूर्वजों ने पैसा जमीन में गाड़ कर रखा था.
‘‘यह भी हो सकता है कि आसपास के किसी जानकार तांत्रिक ने साधना कर पहले ही यहां का गड़ा धन दूसरे की जमीन में खींच कर निकलवा लिया हो. कई बार यह भी होता है कि गड़ा हुआ धन अपने आप कहीं दूसरी जगह चला जाता है.’’
माखन ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘हां, ऐसा हो सकता है, मैं ने भी सुना है.’’
क्रमशः