
जब से प्रो. वरिंदर कालेज के मास कम्युनिकेशन विभाग में आए थे, तब से इस विभाग में स्टूडेंट्स काफी बढ़ गए थे. हर स्टूडेंट प्रो. वरिंदर के पढ़ाने के तरीके से प्रभावित था. यह हिमाचल के रहने वाले थे और कालेज के हौस्टल में ही रहते थे. सभी स्टूडेंट्स उन के दीवाने थे, क्योंकि वह काफी हैंडसम थे.
किसी को भी अंदाजा नहीं था कि प्रो. वरिंदर का अश्लील वीडियो वायरल हो जाएगा. सभी तरफ इस वीडियो की ही चर्चा हो रही थी. प्रो. वरिंदर खुद हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है.
कालेज, शहर, देशविदेश में यह वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गया था. प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने प्रो. वरिंदर को अपनी केबिन में बुलाया और उस वायरल वीडियो के बारे में पूछा.
”सर, यह वीडियो मेरा नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने प्रिंसिपल साहब को सफाई दी.
”लेकिन वीडियो में तो आप ही हैं. वरिंदरजी, आप खुद देखो न, आप खुद हो, साथ में लड़की नैना है, जो बार बार आप से कई टौपिक पर पूछती रहती थी. यह कमरा, बैडरूम, दीवार अपने ही हैं. दीवार पर अलगअलग स्टिकर लगे हुए हैं. यह कमरा तो अपने ही हौस्टल का ही है. सौरी वरिंदरजी, हम कालेज की बदनामी नहीं करा सकते. जब तक यह वीडियो वाली बात साफ नहीं हो जाती, सच्चाई पता नहीं चल जाती, प्लीज आप कालेज मत आना. मुझे इस की जानकारी पुलिस को देनी पड़ेगी.’’
”पर सर, मैं नहीं हूं. जो लड़की है वह मेरी स्टूडेंट है, फिर मैं यह कैसे कर सकता हूं.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने कहा.
प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने खुद ही इंसपेक्टर को फोन मिलाया और कहा, ”मलकीतजी, कालेज जल्दी आना.’’
इंसपेक्टर मलकीत सिंह पिं्रसिपल का दोस्त था.
”कोई खास वजह?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.
”मेरे कालेज के प्रो. वरिंदर हैं, उन का एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है.’’
”अच्छा…. वो वाला वीडियो… यह तो काफी वायरल है. मैं आता हूं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.
प्रो. वरिंदर काफी उदास थे. उन का एक स्टूडेंट रमन उन्हें काफी हौसला दे रहा था. रमन मास कम्युनिकेशन का स्टूडेंट था. उसे तकनीकी जानकारी बहुत थी. अच्छे वीडियो बनाता था. उसे फोटोग्राफी का भी शौक था. मौडलिंग भी करता था. कालेज के स्टूडेंट्स को ले कर वह शार्ट मूवीज भी बनाता रहता था.
उस ने प्रो. वङ्क्षरदर से कहा, ”सर, आप चिंता न करें. हम इस का हल ढूंढ निकालेंगे.’’
प्रो. वरिंदर को रमन की बातें सुन कर हौसला मिलता था कि मेरा यह कितना खयाल रख रहा है.
इंसपेक्टर मलकीत सिंह पुलिस टीम के साथ कालेज पहुंच गए. कालेज में छुट्टी होने के कारण स्टूडेंट्स नहीं थे. पुलिस ने प्रिंसिपल गुरदयाल के साथ काफी लंबी बातचीत की. प्रो. वरिंदर को भी बुलाया.
”प्रो. साहब, यह वीडियो आप की है?’’ इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने पूछा.
”नहीं सर, मेरी नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने बताया.
”पर लग तो आप ही रहे हैं.’’
”नहीं सर, यह मेरी वीडियो नहीं है.’’
”यह लड़की कौन है?’’
”सर, यह लड़की नैना है. पर सर, मैं तो इस लड़की से मिला ही नहीं. बस यह किसी टौपिक के बारे में मुझ से पूछती और चली जाती थी. वह हमेशा अपनी सहेलियों के साथ ही आती थी.
“पर प्रोफेसर साहब, यह वीडियो तो आप की ही लगती है.’’
”नहीं इंसपेक्टर साहब, यह मैं नहीं हूं. आप मेरा रिकौर्ड चैक करवा सकते हैं.’’
”रिकौर्ड तो सामने ही है,’’ इंसपेक्टर मलकीत ने हंसते हुए कहा.
”नहीं सर, सच मानो मैं नहीं हूं.’’
वीडियो देख कर प्रिंसिपल को क्यों आया पसीना
इस मौके पर लड़की नैना को भी बुलाया गया, जो काफी रो रही थी. वह भी बोली, ”सर, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेली सर को मिली ही नहीं. जब भी मिली हूं तो मेरी सहेलियां नमिता, नीतिका साथ में ही होती थीं.’’
”बेटा हम समझते हैं, पर आप हमारा साथ दोगे तो अच्छा रहेगा.’’ इंसपेक्टर ने समझाया.
”सर, मैं सच कहती हूं, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेले कभी सर से मिली ही नहीं.’’
वे बात ही कर रहे थे कि प्रिंसिपल गुरदयाल के चेहरे पर पसीना छलक आया था. वह कोई वीडियो मोबाइल पर देख रहे थे, जिस में 2 निर्वस्त्र लड़कियां थीं…
इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने कहा, ”गुरदयाल सिंहजी क्या हुआ..?’’
प्रिंसिपल ने साइड में इंसपेक्टर मलकीत को ले जा कर वीडियो दिखाते हुए कहा, ”यह भी कालेज की लड़कियों का है जो बिलकुल नंगी हैं और एकदूसरे के साथ चिपक रही हैं.’’
नीचे एक मैसेज भी लिखा था ‘आप देखते जाओ, मेरे पास आप के कालेज के काफी वीडियो हैं. जो एक के बाद एक बाहर आऐंगे. हां प्रिंसिपल साहब, आप के वीडियो भी हैं मेरे पास… जितने मरजी एक्सपर्ट बुला लें, आप को नहीं पता चलेगा कि वीडियो कहां से लोड हो रही है.’
इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर और नैना को जाने को कहा.
”गुरदयालजी, यह मामला सिर्फ प्रो. वरिंदर और नैना का नहीं है. यह तो आप के कालेज का मामला लगता है. ये दोनों लड़कियां कौन हैं?’’
”ये हमारे कालेज की ही रानी और मोना हैं. ये इतनी घटिया हरकत कर सकती हैं, मैं ने सोचा नहीं था.’’
इंसपेक्टर ने प्रिंसिपल गुरदयाल, प्रो. वरिंदर, नैना, रानी, मोना सभी के मोबाइल नंबर लिए और कालेज से चले गए. उन को थाने से फोन आया था कि गांव के सरपंच ने अपनी बुजुर्ग मां को घर से बाहर निकाल दिया है, सारा गांव ही थाने आया है.
प्रिंसिपल की हालत बहुत खराब थी. प्रो. वरिंदर का मामला सुलझा नहीं था कि एक और वीडियो सामने आ गया. प्रिंसिपल सोच में डूबे थे कि स्टूडेंट रमन उन के पास आया, ”सर, मेरे कई दोस्त एक्सपर्ट हैं, जो पता लगा सकते हैं कि वीडियो कहां से अपलोड हो रहे हैं. ये साइबर एक्सपर्ट हैं.’’
रमन की बात प्रिंसिपल गुरदयाल को अच्छी लगी. रमन ने प्रिंसिपल के कहने पर अपने एक्सपर्ट दोस्तों को कालेज के बाहर ही रूम ले कर दे दिया. वे खोज खबर में लग गए. रमन अपने दोस्तों के साथ रात को जाम भी छलकाने लगा.
प्रिंसिपल गुरदयाल को उम्मीद थी कि बहुत जल्दी ही दोषी पकड़ा जाएगा.
शाम 5 बजे कालेज से सभी स्टूडैंट्स चले जाते थे. इंसपेक्टर मलकीत अपनी टीम के साथ आए और काफी बातें कीं.
”आप की पत्नी डा. नीता कहां है?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने प्रिंसिपल से पूछा.
पत्नी का नाम सुन कर प्रिंसिपल हैरान हो गए.
प्रिंसिपल का चेहरा पढ़ते हुए वह बोले, ”जी हां, आप की पत्नी डा. नीता जी…’’
”मेरी पत्नी से कई साल से बोलचाल बंद है. हमारे संबंध ठीक नहीं हैं. क्या यह मेरी पत्नी ने..?
”नहीं, नहीं… मैं ने ऐसा नहीं कहा. दरअसल, हम ने कालेज के कई पुराने लोगों से बात की तो पता चला कि आप की पत्नी के साथ आप के संबंध ठीक नहीं हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.
डा. नीता क्यों हुई पति के खिलाफ
इंसपेक्टर मलकीत ने उन से डा. नीता का मोबाइल नंबर लिया. उन्होंने डा. नीता को थाने बुलाया. पूछताछ करने पर डा. नीता ने कहा, ”इस प्रिंसिपल ने तो मेरी जिंदगी ही बरबाद कर दी. मैं पछता रही हूं इन से शादी कर के.’’
”डा. नीताजी, आप यह बताएं कि आप के पति प्रिंसिपल गुरदयाल कैसे आदमी हैं?
”बहुत ही घटिया हैं,’’ डा. नीता ने बिंदास कहा, ”मैं तो शादी कर के पछता रही हूं. मुझे पता है कि मैं ने अपनी बेटी को कैसे पाला. फिर विदेश भेजा, इन को तो पूरी जिंदगी कालेज से ही फुरसत नहीं मिली. मैं तो डाक्टर थी, काम अच्छा था तो मैं ठीक रही, नहीं तो मैं भी इन के साथ किताबों में गुम हो जाती.’’
”डा. नीता, कालेज के एक प्रोफेसर का वीडियो काफी वायरल हुआ है. इसी के लिए मैं ने आप को बुलाया है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.
”आप का मतलब यह मैं ने किया…’’
”नहीं, हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप ने किया, हमें तो सिर्फ यह जानना था कि आप के पास भी कारण है कि प्रिंसिपल साहब को बदनाम करने का…’’
”क्या फालतू सवाल है? मुझे इन को बदनाम करना होता तो 12 साल पहले ही कर देती, जब मैं इन से अलग हुई थी. नहीं, यह सब झूठ है. आप मेरा मोबाइल चैक कर सकते हैं… मेरा नंबर तो आप के पास है ही, मेरी बेटी का यह नंबर है.
आप के पास तो अडवांस टैक्निक है, आप पता कर सकते हैं. हमारे रिश्ते बेशक ठीक नहीं हैं, मैं एक डाक्टर के नाते ऐसा नहीं कर सकती. मेरी भी सोशल इमेज है. मेरे अस्पताल जा कर भी आप मेरे बारे में पूछ सकते हैं.’’ डा. नीता ने सफाई दी.
”वह हम पता लगा लेंगे, लेकिन जब तक यह केस हल नहीं हो जाता, आप शहर के बाहर हमें बता कर जाना.’’
रमन और उस की टीम कोई न कोई खबर बना कर प्रिंसिपल गुरदयाल से काफी पैसे ले चुकी थी. रमन और दोस्तों का शाम का दारू और लेट नाइट बार डांस अच्छा चल रहा था.
इंसपेक्टर ने प्रो. वरिंदर को फिर थाने बुलाया. उन्होंने पूछा, ”आप के प्रिंसिपल सर कैसे हैं?’’
”सर अच्छे हैं.’’
”उन के पत्नी के साथ रिलेशन कैसे हैं?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.
”इतना ही पता है कि पत्नी अलग रहती है और बेटी विदेश में है.’’
रमन प्रिंसिपल से जब भी मिलता तो कुछ न कुछ पैसे ले लेता.
”सर, ये वीडियो विदेश की आईडी से लोड किए गए हैं.’’ सीआईए स्टाफ के रणजीत सिंह की टीम ने जांच कर इंसपेक्टर मलकीत से कहा.
इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर को फिर बुलाया और उन से पूछा, ”आप की यहां पर कोई दुश्मनी, कालेज स्टडी समय हिमाचल में कोई दुश्मनी आदि तो नहीं थी?’’
”दुश्मनी तो मेरी किसी से नहीं… लेकिन एक बार रमन के साथ झगड़ा हुआ था, जब इस ने एक लड़की की कुछ अश्लील तसवीरें खींची थीं. मैं ने रमन को मना किया था तो उस ने सौरी भी बोला था कि आगे से ऐसा नहीं करेगा… यह बात जब प्रिंसिपल सर को पता चली तो उन्होंने रमन को थप्पड़ मारा था. यह मामला तो 2 साल पहले का है. पर रमन तो अब काफी बदल चुका है.’’ प्रो. वरिंदर ने बताया.
पुलिस ने कई ऐंगल से इस को ध्यान से देखा. अपने खबरी भी अलर्ट किए. हर छोटी से छोटी जानकारी हासिल की.
छात्रों ने प्रिंसिपल से किस बात का लिया बदला
संडे का दिन था, प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह नाश्ता कर रहे थे. तभी इंसपेक्टर मलकीत पुलिस टीम के साथ कालेज के हौस्टल में पहुंच गए. गुरदयाल ने उन से नाश्ता करने को कहा.
तभी इंसपेक्टर ने कहा, ”नहीं सर, पहले काम बाकी बातें और नाश्ता बाद में. प्रिंसिपल साहब, आप यह बताएं कि पिछले कुछ दिनों से आप एक नंबर पर पैसे ट्रांसफर कर रहे हैं. वह बैंक खाता यूपी का है, लेकिन पैसे कालेज के एटीएम से निकाले जा रहे हैं.’’
”पैसे… कौन से पैसे…’’ प्रिंसिपल ने अनजान बनते हुए कहा.
”प्रिंसिपल साहब, झूठ न बोलो, असल मुद्दे पर आओ.’’
प्रिंसिपल को पता चल गया था कि अब झूठ बोल कर कोई फायदा नहीं, इसलिए उन्होंने हकीकत बयां कर दी.
उन्होंने कहा, ”दरअसल, हमारे कालेज के स्टूडेंट रमन ने मुझ से कहा था कि उस के कई दोस्त साइबर एक्सपर्ट हैं. वह पता कर लेंगे कि वीडियो कहां से अपलोड हुई है.’’
”फिर पता चला?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.
”नहीं…’’
”प्रिंसिपल साहब, यह सब फ्रौड है. यह तो यूपी बिहार के टौप के क्रिमिनल हैं, जो आप को लाखों का चूना लगा रहे हैं.’’
प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी. कालेज के नजदीक नया बाजार में रमन को, जो घर किराए पर ले कर दिया था, पुलिस ने वहां रेड की तो सभी फरार हो चुके थे.
रमन के कई मोबाइल नंबर थे. पुलिस ने अलगअलग स्थानों पर रेड कर के रमन को रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया, लेकिन उस के साथी फरार हो गए.
थाने पहुंचते ही रमन ने सारे राज उगल दिए. उस ने कहा, ”मैं ने प्रिंसिपल साहब से बदला लेने के लिए यह सब किया. प्रिंसिपल साहब ने सब स्टूडैंट्स के सामने मुझे थप्पड़ मारे थे, वह भी प्रो. वरिंदर की वजह से. फिर मैं ने डीपफेक तकनीक से चेहरे बदल कर यह सब किया.’’
रमन ने आगे बताया, ”सर, इस वीडियो में वरिंदर सर नहीं हैं, न ही वह लड़की… यह सब मैं ने तैयार करवाए. जो 2 लड़कियों का वीडियो था, वह किसी विदेश की साइट से लिया वीडियो था. मेरे पास मौडलिंग की काफी फोटो थीं, उन्हीं से मैं ने आसानी से वीडियो तैयार कर लिया. वीडियो के पीछे जो बैकग्राऊंड है, वह हमारे कालेज की है.
रमन की स्टोरी सुन कर पुलिस हैरान थी.
पुलिस ने रमन के महंगे मोबाइल को जब देखा तो उस में और भी वीडियो मिले, जिन्हें देख कर इंसपेक्टर मलकीत हैरान रह गए. लड़कियों के नहाने के कई असल वीडियो भी थे. पुलिस ने रमन के कमरे की तलाशी ली तो वहां से ढेर सारी अश्लील मैगजीन, कई लड़कियों के नग्न फोटो, विदेशी अश्लील फिल्में, क्राइम पर लिखी गई कई किताबें मिलीं.
पुलिस यह भी देख कर दंग रह गई कि प्रिंसिपल गुरदयाल का वीडियो तैयार किया जा रहा था. वहां से पुलिस ने कंप्यूटर, सीडी, हार्डडिस्क, टूटा लैपटाप अपने कब्जे में ले लिया.
हकीकत सामने आने के बाद प्रिंसिपल साहब को विश्वास हो गया कि प्रो. वरिंदर बेकुसूर हैं, इसलिए उन्होंने प्रो. वरिंदर को फिर कालेज में रख लिया. इस के बाद उन्होंने कालेज में मोबाइल लाने पर सख्त पाबंदी लगा दी. डीपफेक का राज उजागर कर पुलिस ने रमन के साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.
खाने के थोड़ी देर बाद वही दुबली पतली खूबसूरत लड़की कमरे में आई, जो थोड़ी देर पहले शादा के साथ डोली में आई थी. उस का हुलिया एकदम बदला हुआ था. खूबसूरत टाइट सूट, सलीके से काढ़े गए बाल, हलका सा मेकअप, पर उस के चेहरे पर उदासी और बेबसी पहले से ज्यादा बढ़ गई थी. उस के पीछे बुलडौग की शक्ल का एक नौकर था. उस ने कड़े लहजे में लड़की से कहा, ‘‘साहब के पास बैठ कर इन की खिदमत करो.’’
अपनी बात कह कर कुछ कमीनगी से मुसकराता हुआ बाहर चला गया. लड़की डरी सहमी सी पलंग पर बैठ गई.
मैं ने लड़की की तरफ देखा. वह डर से कांप रही थी. मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, घबराओ मत. तुम्हारे साथ कुछ गलत नहीं होगा. तुम आराम से बैठो और बताओ कि तुम कौन हो?’’
वही पुरानी कहानी थी, गरीब बाप ने पैसे की खातिर बेटी को शादा के हाथों बेच दिया था. उस का नाम कमला था. मुझे शादा की यह खातिरदारी किसी जाल की तरह लग रही थी. मैं लड़की से इधरउधर की बातें करने लगा. उसी वक्त कोठी के पोर्च में किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई. मैं ने खिड़की का परदा हटा कर देखा और फिर से बिस्तर पर लेट गया. मैं ने कमला से कहा, ‘‘कमला, अब भेडि़या आ रहा है.’’
वह और ज्यादा डर गई. मैं ने रिवाल्वर हाथ में थाम लिया. कमला ने घबरा कर पूछा, ‘‘अब क्या होगा?’’
मैं ने उसे दिलासा दिया, ‘‘तुम घबराओ मत, मैं हूं. तुम इस अलमारी के पीछे छिप जाओ.’’
अब तक कमला मुझ से खुल गई थी. वह चुपचाप अलमारी के पीछे छिप गई. मैं रिवाल्वर हाथ में थाम कर कंबल ओढ़ कर बैठ गया. चंद लम्हे बाद दरवाजा खुला. नौकर और श्याम कमरे के अंदर आ गए. मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आओ श्याम, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.’’
मुझे देख कर श्याम को गहरा झटका लगा. उस के साथ शादा और मुच्छड भी थे. शादा ने गुस्से से पूछा, ‘‘लड़की कहां है?’’
मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लड़की की फिक्र मत करो, वह यहीं है. उसे बीच में लाए बिना जो प्रोग्राम तय करना है, मुझ से करो.’’
‘‘कैसा प्रोग्राम?’’
‘‘वही प्रोग्राम, जो तुम ने अनिल के साथ बनाया था. तुम ने उसे बेहिसाब शराब पिलाई थी न? यहां तक कि बेचारे को उठा कर गाड़ी में बैठाना पड़ा था.’’ मेरा लहजा और अंदाज बेहद सख्त था, जो उन्हें परेशान कर रहा था.
शादा ने श्याम के कान में कुछ कहा और मुलाजिम के साथ बाहर निकल गई. श्याम ने सिगरेट जलाते हुए मुझ से पूछा, ‘‘क्या चाहते हैं आप?’’
‘‘तुम्हारी गिरफ्तारी.’’
‘‘कोई और बात करो.’’
‘‘मुझे कोई और बात नहीं आती.’’
‘‘मैं तुम्हें 5 हजार दूंगा.’’
‘‘5 लाख भी नहीं चाहिए.’’
‘‘मैं आप को एक बंदे की गिरफ्तारी भी दूंगा, वह इकबाले जुर्म भी कर लेगा.’’ उस ने धीमे लहजे में कहा.
‘‘मुझे जिस को गिरफ्तार करना है, वह मेरे सामने है.’’ एकाएक श्याम की आंखें गुस्से से चमकने लगीं. वह अचानक मुझ पर झपटा, मैं उसे मारना नहीं चाहता था, मैं ने उस के पैरों पर गोली चलाई, जो उस के घुटने को छूती हुई निकल गई. श्याम पूरी ताकत से मुझ से टकराया, मेरा सिर जोरों से दीवार से जा लगा. आंखों के आगे सितारे नाचने लगे.
मेरा कंधा पहले से चोटिल था. उस पर जबरदस्त मार पड़ी. मेरा सारा बदन झनझना गया. उस का दूसरा वार ज्यादा खतरनाक था. जबकि मेरा एक हाथ सिरे से काम नहीं कर रहा था. रिवाल्वर हाथ से गिर गई. उस के हाथ में पता नहीं कहां से बिजली का एक तार आ गया. उस ने उसे मेरी गदर्न में लपेट कर कसना शुरू किया. मैं ने गला छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर नाकाम रहा.
गोली की आवाज ने भगदड़ मचा दी थी. दरवाजा जोर से भड़भड़ाया जा रहा था. जिसे श्याम ने बंद कर दिया था. मेरा दम घुट रहा था. मेरे गले से खर्रखर्र की आवाजें निकल रही थी. तार का दबाव बढ़ता जा रहा था. तभी कमला एकदम से अलमारी के पीछे से चीखती हुई बाहर निकली और तांबे का एक वजनी गुलदान उठा कर पूरी ताकत से श्याम के सिर पर दे मारा.
श्याम कराह कर बाजू में गिरा. उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. गुलदान की चोट लगने के बाद श्याम को संभलने का मौका नहीं मिला. एक मिनट में मेरे घूंसों और ठोकरों ने उस के कसबल निकाल दिए. जब श्याम बिलकुल ढेर हो गया तो कमला दौड़ कर किसी बच्ची की तरह मेरे कंधे से आ लगी.
उधर दरवाजे पर अब जोर के धक्के लग रहे थे. मैं ने कमला को श्याम पर नजर रखने को कहा और खिड़की से कूद कर बाहर निकल गया. मैं ने इमरान खां को आवाज दी तो वह अपने अमले के साथ पहुंच गया. हम सब कमरे में पहुंचे. श्याम और शादा की गिरफ्तारी के बाद यह बात साफ हो गई कि अनिल को मौत के घाट उतारने का सारा इंतजाम इसी सफेद कोठी में किया गया था.
शादा की अनिल से अच्छी पहचान थी. अनिल ने अपना हमदर्द समझ कर मुसीबत में शादा के यहां पनाह ली थी. पर उस ने धोखा दे कर उसे कातिलों के हाथों में सौंप दिया था. बिलकुल उसी तरह, जैसे उस ने मुझे पनाह दे कर श्याम को बुलवा लिया था.
अभी भी कहानी के कुछ हिस्से अंधेरे में थे. 3-4 दिनों में सारी सच्चाइयों के साथ पूरी कहानी पुलिस के सामने आ गई. श्याम का एक साथी अर्जुन सिंह सरकारी गवाह बन गया. उस के बयान से मेरे सारे अंदेशे सच साबित हुए.
कहानी की शुरुआत तब हुई, जब रत्ना को पता चला कि उस का मंगेतर श्याम किसी अंगे्रज लड़की में दिलचस्पी ले रहा है. उन दोनों को कई बार साथ देखा गया था. रत्ना श्याम को दिलोजान से प्यार करती थी.
किसी दूसरी लड़की की बात सुन कर वह बहुत दुखी हुई. जब अफवाहें ज्यादा जोर पकड़ने लगीं तो उस ने श्याम पर निगरानी रखनी शुरू कर दी. किसी तरह श्याम को यह बात पता चल गई. इसलिए वह रत्ना के डलहौजी आने पर सावधान हो जाता था. पर रत्ना तय कर चुकी थी कि वह सच्चाई जान कर रहेगी. मौत के पहले वह श्याम को दिखाने के लिए लाहौर स्थित अपने हौस्टल चली गई थी. एक रोज वहां रुक कर वह चुपचाप डलहौजी वापस आ गई.
उसे पता चला कि आज श्याम अपनी नई महबूबा से मूनलाइट क्लब में मिलेगा. यह पता चलने पर वह भी शाम को क्लब पहुंच गई. वहां उस ने श्याम को उस की अंगरेज महबूबा के साथ रंगरलियां मनाते देखा तो उस का पारा चढ़ गया. यह बात उस के बरदाश्त के बाहर थी.
बहुत ज्यादा दुखी हो कर रत्ना ने यह सोच कर कि उस धोखेबाज आदमी से वह ताल्लुक खत्म कर लेगी, वहां से लौटने का फैसला किया. लेकिन तभी उस पर श्याम की नजर पड़ गई. माजरा समझते ही वह दौड़ कर उस के पास आया. वह रत्ना जैसी खूबसूरत, दौलतमंद और पढ़ीलिखी लड़की को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था.
श्याम उस के पीछे दौड़ा और उसे समझाने की कोशिश करने लगा. पर रत्ना हकीकत जान चुकी थी. वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थी. क्योंकि उस के शुभचिंतकों ने उसे पहले ही सब बता दिया था.
श्याम ने जब बात बिगड़ती देखी तो जबरदस्ती उसे अपने साथ गाड़ी में ले गया. रत्ना उस की सूरत भी नहीं देखना चाहती थी. श्याम उसे मनाने के लिए उसे अपने फ्लैट पर ले गया. वहां दोनों में खासी तकरार हुई. इस झगड़े से श्याम को अंदाजा हो गया कि उस ने रत्ना को हमेशा के लिए खो दिया है. अब यह मंगनी टूट जाएगी. रत्ना किसी कीमत पर उस से शादी नहीं करेगी.
बस, यहीं से रत्ना की बदकिस्मती की शुरुआत हो गई. श्याम के इरादे खतरनाक हो गए. उस ने रत्ना को डराया धमकाया, मारापीटा. फिर गुस्से में हैवान बने श्याम ने रत्ना की इज्जत तारतार कर डाली. लुटीपिटी हालत में रत्ना मांबाप के सामने नहीं जाना चाहती थी. श्याम के चंगुल से छूटते ही वह दूसरी मंजिल की खिड़की से नीचे कूद गई. नीचे पक्का फर्श था. रत्ना के सिर में गहरी चोटें आईं और वह बेहोश हो गई.
श्याम ने अपने राजदार दोस्तों के साथ मिल कर दम तोड़ती रत्ना को कार में डाला और रात 11 बजे उस के घर के सामने डाल आया. तब तक रत्ना दम तोड़ चुकी थी. अनिल सिन्हा इस जुर्म का चश्मदीद गवाह था. दरअसल जिस वक्त रत्ना और श्याम मूनलाइट क्लब की लौबी में झगड़ रहे थे, अनिल वहीं खड़ा था. एक खूबसूरत लड़की को इस तरह लड़ते देख उस की दिलचस्पी बढ़ गई थी. वैसे भी वह रत्ना को थोड़ाबहुत जानता था.
दरअसल, जिस बैंक में वह काम करता था, वहां रत्ना का एकाउंट था. वह अकसर बैंक आती रहती थी. उसे यह भी पता था कि वह डा. प्रकाश की बेटी है. जब श्याम खींचतान कर रत्ना को कार में बिठा रहा था, अनिल को लगा, उसे रत्ना की टोह लेनी चाहिए. यही सोच कर उस ने अपनी गाड़ी फासला रखते हुए श्याम की कार के पीछे लगा दी. बड़ी होशियारी से पीछा करते हुए वह श्याम के फ्लैट तक पहुंच गया.
रत्ना और श्याम के फ्लैट में जाने के कुछ देर बाद वह भी ऊपर पहुंच गया और एक छज्जे के सहारे उस फ्लैट की बालकनी में उतर गया. उसे लग रहा था कि उस लड़की के साथ कुछ गलत हो रहा है. बंद खिड़की की हलकी सी दरार से अंदर का थोड़ा सा मंजर दिख रहा था. अंदर से रत्ना के रोने की आवाज आ रही थी. साथ ही गुस्से और दुख से बोलने की आवाजें भी, जिस से पता चल रहा था कि उस के साथ कितना बड़ा जुल्म हो चुका है.
तभी उस ने रत्ना को बाजू की खिड़की से नीचे कूदते देखा. इस दिल दहलाने वाले हादसे को देख कर उस की चीख निकल गई. जरा सी गलती से वह उसी वक्त श्याम की नजर में आ गया. श्याम के इशारे पर उस के खतरनाक गुंडे उस के पीछे लग गए.
जैसे ही उस की कार बड़ी सड़क पर पहुंची, अर्जुन सिंह और उस का साथी जीप ले कर उस के पीछे लग गए. जिंदगी और मौत की दौड़ काफी लंबी चली. आखिर उस ने अपनी कार एक बंद गली में छोड़ी और एक तंग गली से लंबा चक्कर काट कर रात 11 बजे हांफता कांपता घर पहुंचा.
वह यह देख कर हैरान रह गया कि श्याम के आदमी वहां पहले से मौजूद थे. दरअसल मौकाएवारदात पर उसे पहचान लिया गया था. इस से अनिल को लग रहा था कि उस की जान को खतरा है. उस ने पुलिस से संपर्क करना चाहा, पर नाकाम रहा. तभी न जाने कैसे उस के दिमाग में मेरा नाम आ गया. उस ने मुझे अमृतसर फोन कर के अपनी परेशानी बताई, पर बात पूरी न हो सकी.
दूसरे दिन सवेरे अमजद की साइकिल ले कर वह मुंह छिपा कर पीछे के रास्ते से पनाह की तलाश में सफेद कोठी पहुंचा. उसे मदद की उम्मीद वहां ले गई थी. शादा से उस के पुराने ताल्लुकात थे. उसे उम्मीद थी कि शादा उस की मदद करेगी.
उस को इस बात का जरा भी गुमान नहीं था कि शादा के श्याम से बहुत गहरे रिश्ते हैं. उस ने श्याम को बुलवा लिया. तब तक वह काफी हद तक आश्वस्त हो गया था कि शादा उस की पूरी मदद करेगी.
उस ने शादा के घर से मुझे दूसरा फोन किया था और बताया था कि वह अमृतसर आ रहा है. यही उस की आखिरी आवाज थी, जो मैं ने सुनी थी. उस के बाद वह दुश्मनों के चंगुल में फंस गया. उस की पनाहगाह उस की कत्लगाह बन गई. श्याम और उस के गुंडे साथियों ने पहले अनिल को खूब मारापीटा और फिर जबरदस्ती उसे अंधाधुंध शराब पिलाई. उस की कार वे लोग पहले ही हासिल कर चुके थे.
बेहोश अधमरे अनिल को उस की कार में डाल दिया गया और उस की कार कैंट रोड के एक खतरनाक मोड़ से खाई में लुढ़का दी गई. दोहरे कत्ल की इस संगीन वारदात के बड़े मुलजिम श्याम को सजाएमौत हुई. उस के 3 साथियों को 10-10 साल की सजा सुनाई गई. एक दो को हल्की सजाएं हुईं. शादा पर भी पेशा कराने के जुर्म में काररवाई हुई.
इस केस में मैं उस मासूम लड़की कमला को कभी न भूल सका. उस की बहादुरी ने मेरी जान बचाई थी. शायद उस ने मेरी शराफत और मोहब्बत का सिला इस तरह दिया था. इस केस में मैं ने उसे अलग कर के महफूज हाथों में सौंप दिया था, ताकि वह इज्जत से जिंदगी गुजार सके.
हम डा. प्रकाश के घर से निकल आए. मौसम काफी ठंडा था. रात के 8 बजे थे. उसी वक्त पास में एक लाल रंग की कार मोड़ काट कर आगे बढ़ गई. उस की ड्राइविंग सीट पर श्याम बैठा था. कुछ सोच कर मैं ने इमरान खां से फासला रख कर उस का पीछा करने को कहा. लाल रंग की वह कार मूनलाइट क्लब के सामने जा कर रुकी.
इस क्लब के ज्यादा मेंबर अंगरेज फौजी या अमीरों के लड़के थे. क्लब में काफी रश रहता था. इमरान खां ने मुझे बताया कि अनिल के कागजात में इस क्लब की मेंबरशिप का कार्ड भी था. हम दोनों अंदर क्लब में पहुंचे. अंदर काफी शोरशराबा था. लोग वहां की डांसरों के साथ डांस कर रहे थे. अंदर तंबाकू का धुआं और शराब की बू भरी थी.
मेरी नजर श्याम पर पड़ी. वह एक अंगरेज लड़की से हंसहंस कर बातें कर रहा था. उस के चेहरे पर गम की हलकी सी भी निशानी नहीं थी. वह उस श्याम से एकदम अलग लग रहा था, जिसे हम ने थोड़ी देर पहले देखा था. क्लब का मैनेजर इमरान का दोस्त था. उसे देख कर वह हमारे पास आया और हमें अपने कमरे में ले गया. दरवाजे के शीशे से श्याम साफ दिख रहा था.
मैं ने मैनेजर से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘इस का नाम श्याम है, अमीर घर का लड़का है.’’
‘‘इस के बारे में और कुछ बताइए. कोई वाकया, कोई झगड़ा या और कुछ.’’
वह कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘हां, कुछ दिनों पहले एक वाकया हुआ था. क्लब की लौबी में श्याम का एक लड़की से झगड़ा हुआ था. झगड़ा क्या तकरार हो रही थी. वह लड़की बिफरी हुई बाहर जा रही थी. जबकि श्याम मिन्नतें कर के उसे रोक रहा था. इस पर लड़की ने चीख कर गुस्से में कहा था, ‘तुम बहुत नीच इनसान हो, मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती.’ इस के बाद दोनों एकदूसरे से उलझते बाहर चले गए थे.’’
मैनेजर की इत्तला काबिले गौर थी. मैनेजर ने सोच कर जो दिन बताया था, वह अनिल की मौत के एक दिन पहले का था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘उस लड़की के बारे में कुछ बताओ, जिस से झगड़ा हो रहा था.’’
‘‘वह लड़की गोरी, खूबसूरत, लंबे बालों वाली थी और पहली बार क्लब आई थी. लहजे और अंदाज से वह उस की गर्लफ्रैंड लगती थी. क्लब में उसे शायद किसी और के साथ देख कर आपा खो बैठी थी. वह भले घर की शालीन लड़की थी.’’
इमरान खां ने कोट की जेब से रत्ना की फोटो निकाल मैनेजर को दिखाई. वह फोटो देखते ही बोल उठा, ‘‘हां, यही है वह लड़की, एकदम वही.’’
कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया. अगर मैनेजर के मुताबिक वह लड़की रत्ना ही थी तो निस्संदेह अनिल और रत्ना के साथ जरूर कोई हादसा पेश आया था. धीरेन पर से मेरा शक हट चुका था. पता नहीं क्यों श्याम शुरू से ही मुझे कुछ रहस्यमय लग रहा था. उस की आंखों में शातिराना चमक थी. क्लब में उसे बदले अंदाज में देख कर तो उस के प्रति मेरी सोच ही बदल गई थी.
क्योंकि मैनेजर के अनुसार जिस रोज श्याम क्लब की लौबी में रत्ना से झगड़ रहा था, उसी दिन उस का कत्ल हुआ था. मैं ने कहानी की कडि़यां मिलानी शुरू कीं. श्याम को किसी और लड़की के साथ देख कर रत्ना और उस की लड़ाई हुई होगी. जिस का अंजाम रत्ना की मौत के रूप में सामने आया. फिर अगले दिन अनिल वाला हादसा हो गया. निस्संदेह उलझा हुआ मसला था.
अब मेरे सामने दो ही रास्ते थे. एक तो यह कि श्याम को गिरफ्तार कर के कड़ाई से पूछताछ की जाए और दूसरा यह कि खामोशी से तफ्तीश कर मुलजिम के इर्दगिर्द शिकंजा कस कर उसे पकड़ा जाए.
दो दिन बाद की बात है. मैं इमरान खां के साथ थाने में बैठा था. एक अधेड़ उम्र का अमजद नाम का व्यक्ति मुझ से मिलने आया. उसे इमरान खां ने बुलवाया था. वह उन्हीं रामबाबू के घर काम करता था, जिन की कोठी के एक हिस्से में अनिल किराए पर रहता था. कभीकभी अमजद अनिल के लिए भी चायनाश्ता बना देता था. साथ ही उस के छोटेमोटे काम भी कर देता था. उस से अनिल के बारे में पूरी जानकारी मिल सकती थी. इस के लिए इमरान खां ने उसे थाने बुला लिया था.
बातचीत हुई तो अमजद ने बताया, ‘‘उस दिन इतवार था. अनिल साहब रात करीब 11 बजे घर लौटे. चाय के बारे में पूछने के लिए मैं उन के कमरे में गया. अचानक मेरी निगाह गैराज में चली गई. मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि उन की कार गैराज में नहीं थी. उस वक्त अनिल गली में खुलने वाली खिड़की के पास खड़े थे और खासे परेशान व घबराए हुए से गली में कुछ देख रहे थे. मैं ने चाय के लिए पूछा तो कहने लगे, ‘हां…हां, चाय बना लो, जाओ जल्दी.’
‘‘जब मैं चाय ले कर आया तो वह किसी दूसरे शहर फोन कर रहे थे. आवाज रुंधी थी, एकाध जुमला भी मैं ने सुना था. वह कह रहे थे, ‘मैं खतरा महसूस कर रहा हूं, क्या आप यहां आ सकते हैं?’ उन्होंने यह भी कहा था कि कुछ लोग मेरे पीछे लगे हैं.
‘‘यह सुन कर मैं परेशान हो गया. कुछ पूछने की हिम्मत न हुई, मैं अपने कमरे में आ गया. पर नींद नहीं आई. मैं बारबार खिड़की से झांकता रहा. उस वक्त एक सफेद वैगन घर के सामने खड़ी थी. सुबह अजान के वक्त अनिल साहब ने मुझे बुलाया. कमरा सिगरेट के टुकड़ों से भरा पड़ा था. उस वक्त मैं साइकिल पर दूध लेने जा रहा था. उन्होंने मुझ से कहा, ‘‘तुम अपनी साइकिल और चादर मुझे दे दो. मुझे एक जरूरी काम से कहीं जाना है.’’
‘‘साहब, अगर कोई खतरा हो तो पुलिस को खबर कर दें?’’
मैं ने कहा तो वह बोले, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. बस एक आदमी से पीछा छुड़ाना है. कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं. तुम अपनी साइकिल गली नंबर 14 की सफेद कोठी के सामने से ले लेना.’’
इस के बाद अनिल साहब मेरी साइकिल ले कर चले गए थे.
‘‘मैं एक, डेढ़ घंटे बाद सफेद कोठी के सामने से अपनी साइकिल ले आया और उसी दिन रात को एक्सीडेंट में अनिल साहब चल बसे. वह बहुत अच्छे इनसान थे.’’ अमजद ने रुंधे लहजे में अपनी बात खत्म की.
मैं ने अमजद से पूछा, ‘‘तुम जानते हो, सफेद कोठी में कौन रहता है?’’
‘‘हां, वहां शादा रहती है. वह अच्छी औरत नहीं है. वहां सब अय्याश और आवारा मर्द लोग आते हैं.’’
‘‘क्या अनिल भी वहां जाता था?’’ मैं ने पूछा तो उस ने हिचकते हुए कहा, ‘‘पहले कभीकभी जाते थे. लेकिन पिछले 5-6 महीने से मैं ने उन्हें उधर जाते नहीं देखा था.’’
अमजद से काफी अच्छी जानकारी मिल गई. सोचने के लिए कई मुद्दे भी मिल गए. एक बात साफ हो गई थी कि इस मामले में श्याम का हाथ जरूर था और अगर अनिल शादा के यहां जाने के बाद मारा गया था तो वह भी इस जुर्म से जुड़ी थी. इन सब सवालों के जवाब शादा के यहां गली नंबर 14 की सफेद कोठी से मिल सकते थे.
मैं इस इलाके में अजनबी था. वहां मुझे कोई नहीं पहचानता था. इसलिए सफेद कोठी में जाने की जिम्मेदारी मुझ पर आई. इस के लिए मैं ने हुलिया बदल लिया. मैं ने पहाड़ी लिबास पहना. सिर पर रंगीन टोपी, साथ ही एक देसी रिवाल्वर भी कमीज के नीचे रख लिया. मैं शादा के यहां उसी तरह जाना चाहता था, जिस तरह अनिल गया था.
जब मैं सफेद कोठी में पहुंचा तो एक मूंछों वाले हट्टेकट्टे आदमी ने मुझे रोक लिया. मैं ने शादा से मिलने को कहा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. इत्तफाक से उसी वक्त चार कहार एक डोली ले कर वहां पहुंच गए. उन दिनों डलहौजी में सवारी के लिए लकड़ी की बनी डोली आम थी.
डोली से एक गोरीचिट्टी मोटी सी औरत उतरी. उस की उम्र करीब 40-42 साल रही होगी. वही शादा थी. उस के साथ 14-15 साल की एक दुबलीपतली खूबसूरत लड़की भी थी, जो डरीसहमी सी शादा के पीछे खड़ी थी. मैं ने कहा, ‘‘शादाजी, मुझे आप से जरूरी काम है.’’
उस ने कड़े तेवरों से पूछा, ‘‘कैसा काम?’’
मैं ने घबराए अंदाज में कहा, ‘‘मैं बैंक औफिसर अनिल का दोस्त हूं. मुझे आप की पनाह की जरूरत है.’’
अनिल का नाम सुन कर शादा के चेहरे की बेरुखी हवा हो गई. अपने पीछे आने को कह कर वह अंदर दाखिल हो गई. मुझे सजे सजाए खूबसूरत ड्राइंगरूम में बैठा कर उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, यहां क्यों आए हो?’’
‘‘शादाजी, अनिल की तरह कुछ लोग मेरे पीछे पड़ गए हैं, वे मेरी जान लेना चाहते हैं. मैं उन्हें बड़ी मुश्किल से चकमा दे कर यहां तक पहुंचा हूं. अनिल ने मुझ से कहा था कि कोई मुश्किल पड़े तो शादाजी के पास चले जाना.’’
वह मुझे हैरत से देखते हुए बोली, ‘‘किन आदमियों की बात कर रहे हो तुम?’’
मैं ने कहा, ‘‘श्याम के आदमी हैं.’’
अंधेरे में चलाया मेरा तीन निशाने पर लगा. उस ने पहलू बदला, उस की आंखों में उलझन थी. बहरहाल वह अपनी कैफियत छिपाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है, अनिल ने कभी तुम्हारा जिक्र नहीं किया था.’’
मैं ने अपनी गोलमोल बातों से उस का शुबहा दूर करने की कोशिश की. ताबड़तोड़ अनिल के हवाले दिए. कुछ हद तक मुतमुइन हो कर वह मुझे वहीं छोड़ कर अंदर चली गई. शायद वह कहीं टेलीफोन कर रही थी. मैं सूरतेहाल का सामना करने को तैयार था. क्योंकि उस वक्त सफेद कोठी पूरी तरह पुलिस की निगरानी में थी. मैं ने इमरान खां को भी कह रखा था कि फायर होते ही अमले के साथ कोठी पर धावा बोल देना.
थोड़ी देर में शादा वापस लौट आई. कहने लगी, ‘‘अगर तुम अनिल के दोस्त हो तो हमारे भी दोस्त हुए. अपनी हिफाजत की फिक्र मुझ पर छोड़ दो. श्याम वगैरह बड़े खतरनाक लोग हैं. पर हम सब संभाल लेंगे.’’
मैं साफतौर पर महसूस कर रहा था कि फोन करने के बाद उस कर रवैया बहुत नरम और दोस्ताना हो गया था. वह थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘तुम कमरे में जाओ और फ्रैश हो कर आराम करो. वहां कपड़े भी रखे हैं. अभी मेरे कुछ मिलने वाले आए हुए हैं. मैं उन के साथ मसरूफ हूं. खाना वगैरह मैं भिजवा दूंगी.’’
मैं कमरे में आ गया. बड़ा शानदार कमरा था. उस से लगा साफसुथरा बाथरूम था. वहां एक सलवारकमीज टंगी थी. मैं ने जी भर कर गरम पानी से नहाया और कपड़े पहन कर लेट गया. कुछ देर में गरम खाना आ गया. मछली, कबाब, बिरयानी. मैं ने डरडर कर सूंघसूंघ कर खाना खाया कि कहीं खाने में लंबा लिटाने का इंतजाम न हो. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था.
पता चला कि उन की बेटी रत्ना देवी 2 रोज पहले ही तेज बुखार में बे्रन हैमरेज होने से मर गई थी. यह एक सनसनीखेज खबर थी, क्योंकि उस की मौत के 24 घंटे बाद ही अनिल के साथ हादसा पेश आया था. अनिल के शब्द मेरे दिमाग में घूमने लगे, ‘‘अगर मुझे कुछ हो गया तो इस की वजह रत्ना देवी वाला मामला होगा. रत्ना देवी डा. प्रकाश की बेटी है.’’
अनिल मुझ से अपनी पूरी बात नहीं कह पाया था. पता नहीं, वह आगे क्या कहना चाहता था. ऐसी क्या मुश्किल थी कि उस ने मुझे रात को फोन किया था और फिर बाद में मिलने पर विस्तार से बताने को कहा था.
मेरा दिमाग उलझ गया. डा. प्रकाश से मिलना जरूरी हो गया था. मेरे मुंह से पूरी बात सुन कर इंसपेक्टर इमरान खां को भी शक हो रहा था कि यह हादसा हुआ नहीं, बल्कि करवाया गया है. पहले इस हादसे की वजह अनिल का नशे में होना माना गया था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से भी उस के नशे में होने की पुष्टि हुई थी. फिर शराब की बोतल भी उस की कार में मिली थी.
इस से सोचा गया था कि नशे में वह कार पर कंट्रोल नहीं रख पाया होगा और कार खाई में जा गिरी होगी. उस के मिलनेजुलने वालों के मुताबिक कई दिनों से वह कुछ परेशान था. एक घंटे बाद हम दोनों अधेड़ उम्र के डा. प्रकाश के सामने बैठे थे. डा. प्रकाश का बेटा धीरेन भी वहां मौजूद था. दोनों थोड़े नरवस लग रहे थे.
अनिल के बारे में पूछने पर दोनों ने उसे जानने से साफ इनकार कर दिया. रत्ना के बारे में बताया कि वह लाहौर के मैडिकल कालेज में डाक्टरी के दूसरे साल में थी. उस की मंगनी हो चुकी थी. इस साल उस की शादी करने का इरादा था. अच्छीभली सेहतमंद लड़की थी. कुछ दिनों पहले बुखार आया, घर की दवा दी तो तबीयत संभल गई.
छुट्टियां खत्म होने की वजह से वापस लाहौर हौस्टल चली गई. एक ही दिन कालेज गई. उस की तबीयत फिर बिगड़ गई, जिस से डलहौजी वापस आना पड़ा. उसे तेज बुखार था. रात को जब तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और नाक से खून बहने लगा तो उसे अस्पताल ले जाने के बारे में सोचा. लेकिन इस से पहले ही उस ने दम तोड़ दिया.
ज्यादा सवाल करने पर धीरेन भड़क उठा. हम वहां से लौट आए. पता नहीं क्यों, मुझे लग रहा था कि वे लोग कुछ छिपा रहे हैं. डाक्टर के मुताबिक बे्रन हैमरेज से मौत हुई थी. पर मुझे शक था कि रत्ना की मौत के पीछे कोई राज था. उन लोगों के अनुसार मरने के एक दिन पहले वह कालेज गई थी. अब शायद वहां से ही कुछ पता चल सके.
जब मैं ने इमरान खां को इस बारे में बताया तो उस ने कहा, ‘‘नवाज साहब, रत्ना देवी के एक प्रोफेसर डा. लाल यहां रहते हैं. आजकल वह यहीं हैं. आप चाहें तो हम उन से मिल सकते हैं. मेरी अच्छी पहचान है उन से.’’
यह सोच कर कि क्या पता कोई सुराग मिल जाए, मैं ने उन से मिलने के लिए हां कर दी.
डा. लाल की कोठी बहुत खूबसूरत थी. वह एक समझदार इंसान लगे. रत्ना की मौत के बारे में सुन कर उन्होंने बड़ा अफसोस और रंज जाहिर किया. उन्होंने बताया कि मौत के एक दिन पहले वह कालेज आई थी. उस ने क्लास में मुझ से कुछ सवाल भी पूछे थे. वह पूरी तरह सेहतमंद थी.
राजदारी का वादा लेने के बाद उन्होंने जो बताया, बड़ा हैरान कर देने वाला था. डा. लाल ने बताया, ‘‘नवाज साहब, रत्ना बीमारी से नहीं मरी, बल्कि उसे कत्ल किया गया था. यहां तक कि उस की आबरू भी खराब की गई थी. अस्पताल में उस का पोस्टमार्टम हुआ था, जिस में उस के साथ हुई ज्यादती की बात सामने आई थी. लेकिन बाद में डा. प्रकाश ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर के मामला दबा दिया था.
‘‘डा. प्रकाश ने अपनी और अपने खानदान की इज्जत बचाने के लिए इस सदमे को सह लिया और यह सोच कर चुप्पी साध ली कि जो होना था, वह हो गया. पर मुझे लगा, उन की सोच गलत है. अगर इस तरह केस दबा कर मुजरिम को छोड़ दिया गया तो वह फिर किसी की इज्जत से खेलेगा.’’
डा. लाल की बातों से मेरा ध्यान अनिल की तरफ गया. वह रंगीनमिजाज जवान था. पैसा खर्च कर के लड़कियों को फंसाने का शौकीन. मुझे इस मामले की कडि़यां आपस में मिलती लग रही थीं. मैं ने सोचा कि हो सकता है, रत्ना से उस का चक्कर चला हो और जज्बात में बह कर उस ने उस की इज्जत से खिलवाड़ कर के उस का कत्ल कर दिया हो. बाद में जब यह बात रत्ना के भाई और बाप को पता चली हो तो उन लोगों ने अनिल को ठिकाने लगा दिया हो.
मुझे एक अहम सुबूत याद आया. अनिल की गाड़ी ‘फर्स्ट गियर में थी यानी उस की गाड़ी खाई में गिरी नहीं, बल्कि गिराई गई थी. इंजन स्टार्ट कर के पहले गियर में डाल कर गाड़ी को छोड़ दिया गया था और वह खाई में जा गिरी थी.’
दूसरे दिन मैं और इमरान खां डा. प्रकाश की कोठी पर पहुंचे. डा. प्रकाश घर पर नहीं थे. उन के बेटे धीरेन से मुलाकात हुई. उस के साथ रत्ना का मंगेतर भी था. लंबा, खूबसूरत जवान. उस के चेहरे पर गम के गहरे साए थे. नाम था श्याम. धीरेन से उस के बहुत करीबी ताल्लुकात थे.
मैं ने श्याम को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया. मुझे धीरेन से अकेले में बात करनी थी. मैं ने खुल कर कहा, ‘‘धीरेन मुझे सच्चाई पता चल चुकी है. रत्ना स्वाभाविक मौत नहीं मरी है.’’
सुन कर उस का चेहरा जर्द हो गया. वह हकला कर बोला, ‘‘आप को गलत खबर मिली है.’’
मैं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘अब लगे हाथों यह भी बता दो कि अनिल के कत्ल में तुम्हारे साथ कौनकौन शामिल था?’’
इस पर वह एकदम से तमक कर बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप गलत समझ रहे हैं. मैं किसी अनिल को नहीं जानता. मेरी स्वर्गवासी बहन के साथ आप यह नाम जोड़ कर उस का अपमान मत करिए. अगर आप यह समझते हैं कि मेरी बहन का मुजरिम अनिल है तो यह गलत है. आप यकीन करें, मैं किसी अनिल को जानता तक नहीं, जबकि आप उस के कत्ल से मुझे जोड़ रहे हैं.’’
मैं ने सुकून से कहा, ‘‘धीरेन, तुम ऐक्टिंग काफी अच्छी कर लेते हो.’’
इस पर वह चीख कर बोला, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, ऐक्टिंग नहीं कर रहा हूं. मैं कसम खा कर कहता हूं कि मुझे नहीं मालूम कि उस ने मेरी बहन के साथ क्या किया, आप ही बताइए क्या किया उस ने?’’
उस के लहजे में सच्चाई थी. उस का गुस्सा भी अपनी जगह ठीक था. उस के चीखने की आवाज सुन कर श्याम ने अंदर झांका. मैं ने उस से जल्दी से कहा, ‘‘आप बाहर बैठिए, कुछ नहीं हुआ है.’’
फिर धीरेन की तरफ देखा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. उस ने दर्दभरे लहजे में पूछा, ‘‘यह अनिल का क्या मामला है?’’
मैं ने उस से कहा, ‘‘पहले तुम रत्ना की हकीकत बताओ, फिर तुम्हें सब कुछ बताऊंगा.’’
‘‘इंसपेक्टर साहब, आप यकीन करें, हम सिर्फ इतना जानते हैं कि इतवार के दिन शाम 4 बजे वह घर से निकली थी. इस के ठीक 7 घंटे बाद रात 11 बजे उस की लाश घर के दरवाजे पर पड़ी मिली थी. उस का जिस्म जख्मी था. नाक, सिर और कान से खून बह रहा था. उस का जिस्म दरिंदगी का जीताजागता नमूना था.’’
मैं ने उस की बात काटी, ‘‘मुझे सारी बात शुरू से बताओ.’’
उस ने दर्दभरी आवाज में कहना शुरू किया. ‘‘यह गलत है कि रत्ना बीमार थी, वह बिलकुल सेहतमंद थी. 2 रोज पहले वह कालेज गई थी, पर सिर्फ एक दिन वहां रुक कर डलहौजी लौट आई थी. हमें ताज्जुब हुआ, पर वह काफी समझदार थी. इसलिए किसी ने उस से कुछ नहीं कहा. फिर शाम 4 बजे वह कुछ काम के बारे में कह कर बाहर चली गई.
‘‘जब वह देर रात तक नहीं लौटी तो हम सब परेशान हो गए. हम ने उस की सहेलियों को फोन किया, पर कुछ पता नहीं लगा. मैं गाड़ी ले कर अस्पताल गया, वहां रत्ना के मिलनेजुलने वालों से पूछा, वहां भी कोई जानकारी नहीं मिली. दरबदर भटक कर जब मैं रात करीब पौने 11 बजे घर पहुंचा तो घर के गेट पर मेरी बदनसीब बहन की लाश पड़ी थी.’’
वह मुंह छिपा कर रोने लगा. कुछ देर रुक कर मैं ने उस से पूछा, ‘‘रत्ना और श्याम, मंगनी के बाद मिलतेजुलते थे? क्या दोनों इस रिश्ते से खुश थे?’’
‘‘हां, दोनों खुश थे. दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. मुलाकात भी होती रहती थी. श्याम उस पर जान छिड़कता था. आप से मेरी एक दरख्वास्त है कि एक शरीफ लड़की की इज्जत की पर्दापोशी रखिएगा. जब तक बेइंतहा जरूरी न हो, उस की आबरू लुटने की बात बाहर मत आने दीजिएगा.’’
उन दिनों मैं अमृतसर में तैनात था. मेरी रात की ड्यूटी थी. गजब की सरदी पड़ रही थी. उसी वक्त फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ से तेज आवाज में कहा गया, ‘‘मैं अनिल बोल रहा हूं, डलहौजी से.’’
मुझे अचानक याद आ गया. अनिल सिन्हा बैंक में नौकरी करता था. पहले वह अमृतसर में तैनात था. बाद में ट्रांसफर हो कर डलहौजी चला गया था. एक मामले में मैं ने उस की मदद की थी. उस के बाद वह जब तब मेरे पास आने लगा था.
मैं ने उस से कहा, ‘‘कहो कैसे हो, बहुत दिनों बाद आवाज सुनाई दी?’’
कुछ पल सन्नाटा छाया रहा. किसी व्यस्त सड़क से गाडि़यों की आवाज आ रही थी. फिर अनिल की घबराई हुई आवाज आई, ‘‘नवाज साहब, मैं यहां एक मुश्किल में फंस गया हूं.’’
‘‘कैसी मुश्किल?’’
‘‘कुछ गड़बड़ हो गई है, कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं, मुझे खतरा महसूस हो रहा है. आप यहां आ सकते हैं क्या?’’
मैं ने हैरानी से कहा, ‘‘मैं वहां कैसे आ सकता हूं? वैसे परेशानी क्या है? हौसला रखो और मुझे बताओ.’’
‘‘नवाज साहब, बड़ा उलझा हुआ मसला है, फोन पर बताना मुश्किल है. अगर मुझे कुछ हो गया तो…’’ उस की आवाज रुंध गई, ‘‘देखें…देखें…’’
मैं ने उसे समझाया, ‘‘अनिल, घबराओ मत, मुझे बताओ क्या कोई झगड़ा हो गया है या कोई और बात है?’’
‘‘झगड़ा ही समझें, अगर मुझे कुछ हो जाए तो इस की वजह… रत्ना देवी वाले मामले को समझें. रत्ना देवी डाक्टर प्रकाश की बेटी है. वे लोग…’’
अनिल इतना ही बोल पाया था कि लाइन कट गई. मैं सोच में पड़ गया. अनिल की अधूरी बात ने मुझे बेचैन कर दिया. फिर उस का कोई और फोन नहीं आया. मैं उस के लिए परेशान हो गया. अनिल हंसमुख, बातूनी, पढ़ालिखा, स्मार्ट शख्स था और थोड़ा रंगीनमिजाज भी. लड़कियों से वह बहुत जल्दी बेतकल्लुफ हो जाता था.
मैं अगले दिन तक उस के फोन का इंतजार करता रहा. अगले दिन उस का फोन आ गया.इस बार उस की आवाज में घबराहट नहीं थी. वह बोला, ‘‘सब ठीक है नवाज साहब, मैं अमृतसर आ रहा हूं. अभी थोड़ी देर में बस पकड़ने वाला हूं. दोपहर तक पहुंच जाऊंगा.’’
यह मेरी और अनिल की आखिरी बातचीत थी. उस के फोन के बाद मैं 2 दिनों तक उस की राह देखता रहा. मैं ने उस के घर से पता करवाया, पर वह अमृतसर पहुंचा ही नहीं था. मैं उस के घर गया, लेकिन उस के घर वालों को किसी तरह की कोई जानकारी नहीं थी.
मैं ने उन पर कोई बात जाहिर नहीं होने दी. मैं वापस थाने पहुंचा ही था कि अनिल का एक पड़ोसी घबराया हुआ उस की मौत की खबर ले कर आ गया. एक दिन पहले डलहौजी में उस की मौत हो गई थी. मैं वापस उस के घर पहुंचा तो वहां कोहराम मचा हुआ था. उस की मां बहनें पछाड़े खा रही थीं.
मेरी आंखों के सामने अनिल का जिंदगी से भरपूर चेहरा घूम गया, कानों में उस के आखिरी शब्द गूंजने लगे. पता चला, डलहौजी से तार आया था, उसी से उस की मौत की जानकारी मिली थी. मैं वहां से सीधे डीएसपी के दफ्तर पहुंचा. उन्हें सारी बात बताई और तार दिखाया.
उस में लिखा था, ‘अनिल कैंट रोड पर कार हादसे में मारा गया.’
लेकिन मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था. उस ने मुझ से फोन पर जो बातें कही थीं, उन से मुझे शक था कि उस का कत्ल हुआ था. डीएसपी से इजाजत ले कर दूसरे दिन मैं डलहौजी के लिए रवाना हो गया. मेरे साथ अनिल का बड़ा भाई और मामू भी थे.
उस वक्त डलहौजी में बर्फबारी हो रही थी. पुलिस थाने पहुंच कर पता चला कि पोस्टमार्टम के बाद उस की लाश मुर्दाखाने में रखवा दी गई थी. वहां का एसएचओ इमरान खां काफी खुशमिजाज और मददगार था. उस से पता चला कि यह हादसा अनिल के नशे में होने की वजह से पेश आया था.
उस ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी. होटल से जब वह घर वापस जा रहा था तो रास्ते में उस की कार बेकाबू हो कर एक खाई में जा गिरी. अनिल की मौत मौके पर ही हो गई. उस की कार में आग लग गई थी, जिस की वजह से उस की लाश के कई हिस्से भी जल गए थे. मैं इमरान खां को साथ ले कर मौकाएवारदात पर गया.
पता चला, अनिल के साथ यह हादसा 3 दिनों पहले रात के 9 बजे पेश आया था. जहां घटना घटी थी, वहां सड़क ढलानदार थी. एक तरफ ऊंचा पहाड़ और दूसरी तरफ कोई 3 सौ फुट गहरी खाई थी. खाई में पहाड़ी नाला बहता था. नाले के किनारे एक जली हुई नीले रंग की कार का ढांचा पड़ा था.
जहां से कार खाई में गिरी थी, वहां एक मोड़ था. हम ने उसी मोड़ के करीब से नीचे उतरना शुरू किया. रास्ते में इमरान खां ने गाड़ी से कुचले हुए पौधे दिखाए. गाड़ी उन से टकरा कर गुजरी थी. गाड़ी के साथ काफी चीजें जल चुकी थीं.
मैं ने मौके से जमीनी शहादतें ढूंढ़ने की कोशिश की. कार को हिलाडुला कर देखा तो पता लगा कि गाड़ी में पहला गियर लगा हुआ था. यह सोचने वाली बात थी कि गाड़ी जहां से लुढ़की थी, वह जगह ढलान थी. कोई भी ड्राइवर गाड़ी को तीसरे या दूसरे गियर में ही रखता, पहले गियर का वहां कोई काम नहीं था.
मैं ने गियर बदलने की कोशिश की, पर वह टस से मस नहीं हुआ. इस का मतलब यह था कि कार गिरने के बाद गियर नहीं बदला गया था. मौके पर मौजूद लोगों से पूछताछ करने पर पता लगा कि करीबी बस्ती के लोग धमाके की आवाज सुन कर वहां पहुंचे थे. वहां एक शख्स को गाड़ी में जलते देख कर उन लोगों ने गाड़ी पर नाले का पानी डाला था. लेकिन इस से आग नहीं बुझ सकी. इस बीच 1-2 गाडि़यां भी रुक गई थीं. आग की लपटें कम होने पर जले हुए आदमी को गाड़ी से खींचा गया. तब तक वह मर चुका था.
मैं ने काररवाई करवा कर अनिल के भाई और मामू को लाश के साथ अमृतसर रवाना कर दिया और खुद उस लड़की रत्ना देवी की खोज में लग गया, जिस का जिक्र अनिल ने फोन पर किया था. मुझे लग रहा था कि डा. प्रकाश की बेटी रत्ना देवी का अनिल की मौत से कोई न कोई संबंध जरूर था. अनिल के औफिस में मालूमात करने पर किसी डा. प्रकाश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.
मैं ने उस के घर का पता लगाने का निश्चय किया. इस के लिए मैं और इमरान खां फोन डायरेक्टरी ले कर बैठ गए. डायरेक्टरी में डा. प्रकाश मिल गए. उन के पते में फोन नंबर भी मौजूद थे. मैं ने बारीबारी से हर डाक्टर को फोन कर के रत्ना देवी के बारे में पूछा. 3 जगह उलटे मुझ से पूछा गया, ‘‘कौन रत्ना देवी?’’
चौथे नंबर पर भारी आवाज में पूछा गया, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’
मैं ने फोन बंद कर दिया. मैं ने वह पता इमरान को दे कर डा. प्रकाश के बारे में जानकारी हासिल करने को कहा. इमरान ने जल्दी ही मुझे रिपोर्ट दे दी. डा. प्रकाश मेहरा पौश एरिया ‘बलवन’ में रहते थे. उन के परिवार में एक बेटा, 2 बेटियां और बीवी सहित 5 सदस्य थे. उन की एक बेटी का नाम रत्ना देवी था.
Top 10 Suspense Short Crime Stories In Hindi: अगर आपको भी है सस्पेंस (Suspense) से भरी क्राइम स्टोरीज (Crime Stories) पढ़ने का शौक तो आपकी पसंदीदा क्राइम मैगजीन मनोहर कहानियां लेकर आया है रहस्य से भरपूर टॉप 10 सस्पेंस शार्ट क्राइम स्टोरीज हिंदी.
‘‘ यह खून 15 मिनट बाद हुआ है.’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘उस बीच फुरकान तिजोरी में रखी चीजों का निरीक्षण करता रहा होगा, क्योंकि वह जानता था कि उस कमरे में कोई और नहीं आ सकता. 15 मिनट बाद मृत इरफान साहब ने गोलियां चला कर अपने पोते फुरकान का खून कर दिया. इत्तेफाक से उसी समय बदकिस्मती से सफदर खुली हुई खिड़की से अंदर आया. उस के लिए मैदान साफ था. वह तिजोरी से नकद और बांड ले कर भाग गया.’’
‘‘सवाल फिर वही है कि मौत के बाद खून किस तरह किया गया?’’ सरकारी वकील ने कहा.
पूरी Hindi Suspense Short Crime Stories पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
पूरा दिन बीत गया और उस कमरे में कोई हलचल नहीं हुई तो रात 10 बजे के करीब होटल मैनेजर दीपक यह पता करने के लिए कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे कि आखिर ऐसा क्या हुआ है कि करीब 30 घंटे से इस कमरे से कोई बाहर नहीं निकला है.
दीपक ने दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं, लेकिन अंदर किसी तरह की हलचल नहीं हुई. उन्होंने डुप्लीकेट चाबी से दरवाजा खोला. अंदर उन्हें जो दिखाई दिया, वह परेशान करने वाला था. वह भाग कर नीचे आए और होटल के मालिक करनदीप सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘सरदारजी, कमरा नंबर 104 में एक लाश पड़ी है.’’
पूरी suspense short crime stories पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
विवेक और सुदर्शन चुपचाप भंवर सिंह के पीछे चल दिए. हवेली के एक छोर पर जा कर उस ने एक दरवाजा खोला. दरवाजे के पास नीचे जाने के लिए सीढि़यां थीं. सीढि़यां उतर कर वे एक कमरे में पहुंचे. यह तहखाना था, जिस की दीवारों पर विचित्र सी आकृतियां बनी थीं. अंधेरे को दूर करने के लिए लालटेन की रोशनी कम थी.
‘‘भंवर सिंह यह सामने क्या है?’’ अंधेरे में नजर टिका कर विवेक और सुदर्शन ने पूछा.
‘‘साहबजी, यह नर कंकाल हैं.’’
‘‘किसलिए?’’ विवेक और सुदर्शन की आवाज कांप गई.
पूरी Suspense Short Crime Stories In Hindi पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि 2 नकाबपोश फुरती से पंडाल में पहुंचे. इस से पहले कि लोग कुछ समझ पाते, उन्होंने पीछे से विधायक सत्यजीत बिस्वास पर निशाना साध कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. गोलियां बरसा कर वे दोनों वहां से फरार हो गए. भागते हुए उन्होंने असलहे को वहीं पर फेंक दिया.
विधायक को 3 गोलियां लगी थीं. गोलियां लगते ही वह कुरसी पर गिर कर तड़पने लगे. गोली चलने से हाल में भगदड़ मच गई. जरा सी देर में वहां अफरातफरी का माहौल बन गया. तृणमूल कांग्रेस के नेता गौरीशंकर, रत्ना घोष सहित अन्य लोग आननफानन में गंभीर रूप से घायल विधायक बिस्वास को कार से जिला अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें देखते ही मृत घोषित कर दिया.
पूरी हिंदी सस्पेंस शार्ट क्राइम स्टोरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
पुलिस ने मौके पर पहुंच कर लाश को नाले से बाहर निकलवाया. बोरी में मृतक का सिर नहीं था. हां, धड़ जरूर था. कंधों से बाजू कटे हुए थे. कपड़ों के नाम पर मृतक के शरीर पर केवल अंडरवियर था. कई दिनों से लाश नाले के पानी में पड़ी रहने से बुरी तरह से गल चुकी थी, जिस की पहचान मुश्किल थी. वैसे भी बिना सिर के मृतक की शिनाख्त करना असंभव काम था.
पहचान के लिए मृतक के शरीर पर ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस के सहारे पुलिस उस की शिनाख्त कराती. सिर और बाजू कटी लाश मिलने से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी, दहशत का माहौल बन गया था.
पूरी सस्पेंस शार्ट क्राइम स्टोरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
पत्नी की मौत के बाद गुरदेव सिंह टूट से गए थे. जैसेतैसे उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश की. आज से करीब 15 साल पहले गुरदेव सिंह भी दुनिया छोड़ कर चले गए. पर मरने से पहले गुरदेव सिंह यह सोच कर बड़े बेटे जागीर सिंह का विवाह अपने एक जिगरी दोस्त की बेटी मंजीत कौर के साथ कर गए थे कि वह जिम्मेदारी के साथ उस का घर संभाल लेगी.
मंजीत कौर तेजतर्रार और झगड़ालू किस्म की औरत थी. उस ने घर की जिम्मेदारी तो संभाल ली, लेकिन पति और देवर की कमाई अपने पास रखती थी. दोनों भाई जमींदारों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के जो भी कमा कर लाते, मंजीत कौर के हाथ पर रख देते. लेकिन पत्नी की आदत को देखते हुए जागीर सिंह कुछ पैसे बचा कर रख लेता था.
पूरी short suspense crime stories पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
जब रिजोश शराब के नशे में धुत हो जाता था, तो वसीम उसे छोड़ने के बहाने उस के घर आ जाता. घर पहुंच कर वह लिजी से सहानुभुति बटोरने के लिए कहता कि रिजोश नशे में धुत सड़क पर पड़ा था, मैं ने देखा तो उठा कर ले आया. रिजोश को उस के कमरे तक पहुंचाने के लिए वह लिजी की मदद लेता और उसी दौरान लिजी के बदन को स्पर्श कर लेता था. लिजी चाह कर भी उस का विरोध नहीं कर पाती थी. लिजी जब नशे में चूर रिजोश को आड़े हाथों लेती, तो वह बीचबचाव करने लगता.
जब कई बार ऐसा हुआ तो मौका देख कर एक दिन वसीम ने हिम्मत कर के लिजी का हाथ पकड़ लिया. लिजी ने जब हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो वसीम ने उस का हाथ नहीं छोड़ा और कहा, ‘‘लिजी मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता.’’
पूरी suspense crime short stories पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
डिसिल्वा के दिल की धड़कन बढ़ गई. उसे लगा, कुदरत आज उस पर पूरी तरह मेहरबान है. मैरी खुद ही उसे बालकनी की ओर ले जा रही है. सब कुछ उस की योजना के मुताबिक हो रहा है. किसी की हत्या करना वाकई दुनिया का सब से आसान काम है.
डिसिल्वा मैरी के साथ बालकनी पर पहुंचा. उस ने झुक कर नीचे देखा. उसे झटका सा लगा. उस के मुंह से चीख निकली. वह हवा में गोते लगा रहा था. तभी एक भयानक चीख के साथ सब कुछ खत्म. वह नीचे छोटीछोटी छतरियों के बीच गठरी सा पड़ा था. उस के आसपास भीड़ लग गई थी. लोग आपस में कह रहे थे, ‘‘ओह माई गौड, कितना भयानक हादसा है. पुलिस को सूचित करो, ऐंबुलेंस मंगाओ. लाश के ऊपर कोई कपड़ा डाल दो.’’
पूरी Suspense Short Crime Stories पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
निरंजन की मौत के बाद चचेरे, ममेरे भाई आसपास मंडराते नजर आए. 4 साल निरंजन के साथ रह कर नताशा इतनी तो चतुर हो ही गई थी कि चील, बाज और गिद्धों को पहचान ले. उस ने बड़ी ही चतुराई से उन्हें नजरअंदाज करते हुए रफादफा किया.
नताशा अब कठघरे में थी. सारा शक उसी पर था. जांच जारी थी. यह बात भी सच थी कि रात के 11 बजे जब कत्ल का खुलासा हुआ, तब तक नताशा और निरंजन घर में अकेले थे और दोनों इस के पहले तक चीखचीख कर लड़ रहे थे, पड़ोसियों ने सुना था.
पुलिस अपनी ओर से शिनाख्त में व्यस्त थी, लेकिन मैं नताशा से मिलने के लिए उतावली थी. क्या निरंजन जैसे सख्त जान आदमी नताशा जैसी साधारण डीलडौल वाली लड़की से मात खाया होगा.
पूरी Top Suspense Short Crime Stories पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
रात ढाई बजे के करीब सिपाही रामकिशोर की नींद खुली तो वह लघुशंका के लिए बाहर निकला. उस की नजर तहसील परिसर में बने कुएं की ओर गई तो उस ने देखा कि कुएं के ऊपर लगे लोहे के जाल पर उस का साथी सिपाही रामप्रकाश वर्मा लटक रहा है.
यह देख रामकिशोर स्तब्ध रह गया. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. रामप्रकाश वर्मा बहुत ही खुशदिल युवा सिपाही था. उस से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. रामकिशोर कुएं के नजदीक पहुंचा तो पता चला कि मफलर का फंदा बना कर रामप्रकाश वर्मा ने आत्महत्या कर ली है.
पूरी सस्पेंस शार्ट क्राइम स्टोरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
अब तक के वैवाहिक जीवन में उन्हें इस तरह कभी दोबारा बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ी थी. आज चैक के नाम पर वह लीना को बेवकूफ बना रहे थे. राजकुमार को तिजोरी की चाभी ले कर आने को कहते हैं, तो लीना समझ जाएगी कि जरूर कोई गड़बड़ है. उसे इस हालत में चिंता में डालना ठीक नहीं है.
उन्हें लगा कि फोन कर के लीना को बता दें कि सैवी उन के साथ है. इस से लीना उस के लिए परेशान नहीं होगी. रात में वह लौटेंगे, तो सैवी उन के साथ होगी. जनार्दन ने गाड़ी आगे बढ़ाई. कालोनी से बाहर आ कर उन्होंने पार्क के पास सड़क के किनारे कार रोक दी. दुकान पर काफी भीड़भाड़ थी, इसलिए वहां से उन्होंने फोन करना ठीक नहीं समझा. उन्होंने पार्क की ओर देखा, कालू माली गेट पर खड़ा सिगरेट पी रहा था. उस की निगाहें उन्हीं पर जमी थीं.
पार्क में खेलने वाले बच्चे अपने अपने दादी दादा या मम्मियों के साथ चले गए थे या जा रहे थे. जनार्दन पार्क की ओर बढ़े. उन्हें अपनी ओर आते देख मुंह से सिगरेट का धुआं उगलते हुए कालू ने पूछा, ‘‘कोई काम है क्या साहब?’’
‘‘मेरी थोड़ी मदद करो कालू. मैं मोबाइल घर में भूल आया हूं. लौट कर जाऊंगा तो समय लगेगा. मुझे जल्दी से कहीं पहुंचना है. एक जरूरी फोन करना था. पार्क के फोन से एक फोन कर लूं?’’
कालू ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और मुंह से सिगरेट हटा कर धुआं उगलते हुए कहा, ‘‘क्या बात करते हैं साहब, यह भी कोई पूछने की बात है? आप का काम मेरा काम. यह फोन सरकार ने आप लोगों के लिए ही तो लगवाया है. फोन कमरे में मेज पर रखा है. जाइए, कर लीजिए.’’
पार्क के गेट के पास ही बाईं ओर 2 कमरों का एक छोटा सा बरामदे वाला मकान था. वही कालू का घर, औफिस स्टोर सब कुछ था. आगे वाले कमरे में कोने में रखी एक छोटी सी मेज पर फोन रखा था. पास ही टूटी हुई मूर्ति रखी थी. जनार्दन को याद आया, जब पार्क में फव्वारा बना था, तब उस में यही मूर्ति लगी थी. लेकिन कुछ ही दिनों में मूर्ति को बच्चों ने तोड़ दिया था.
जनार्दन को लगा, मूर्ति मेज के पीछे ठीक से नहीं रखी थी. स्वभाववश छोटीछोटी बातों का ध्यान रखने वाले जनार्दन ने मूर्ति को उठा कर ठीक से रखा. मूर्ति को ठीक करने के बाद उन्होंने फोन करने के लिए जैसे ही रिसीवर उठाया, उन्हें झटका सा लगा. रिसीवर को गौर से देखा, उस पर उन्हें काले काले दाग दिखाई दिए. वह सोच में डूब गए. उन्हें कुछ याद आने लगा, जिसे वह रिसीवर से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे.
अचानक दिमाग में बिजली सी कौंधी. समस्या के सारे समाधान अपने आप अपनी अपनी जगह फिट होते चले गए. एक ही झटके में उन की समझ में आ गया कि सैवी का अपहरण कोई देख क्यों नहीं सका. उन्हें विश्वास हो गया कि सैवी के अपहरण के किए गए फोनों से आने वाली आवाज कालू की थी. इस का मतलब सैवी को यहीं कहीं होना चाहिए. माली ने अपने इसी मकान में उसे कहीं छिपा रखा होगा.
मारे गुस्से के जनार्दन का शरीर कांपने लगा. लेकिन उन्होंने तुरंत अपने गुस्से को काबू में किया. दिमाग शांत और तीक्ष्ण बन गया. आखिर एक बैंकर का दिमाग था. वह जानते थे कि पहलवानी वाले शरीर का मालिक कालू काफी ताकतवर था. अब तक पार्क में सिर्फ कुछ बुजुर्ग और 2-4 महिलाएं बची थीं. वहां ऐसा कोई नहीं था जो कालू को रोक पाता, इसलिए जनार्दन कुछ ऐसा करना चाहते थे कि कालू भाग न सके. यही सोच कर उन्होंने आराम से रिसीवर रख दिया और मेज के पीछे रखी कांसे की मूर्ति उठा ली.
मूर्ति के वजन का अंदाजा लगा कर जनार्दन ने तुरंत कालू पर हमले की योजना बना ली. कालू पार्क की ओर मुंह किए बरामदे में खड़ा था. जनार्दन दबे पांव फुर्ती से 3 कदम आगे बढ़े और कालू की गर्दन पर मूर्ति का तेज प्रहार कर दिया. एक ही वार में कालू जमीन पर गिरा और बेहोश हो गया. जनार्दन ने तुरंत वहां पेड़ों को बांधने के लिए रखी प्लास्टिक की रस्सी उठाई और पीछे कर के उस के दोनों हाथ बांधने लगे. कालू की चीख सुन कर पार्क में बैठे बुजुर्ग और टहल रही महिलाएं वहां आ गईं. लेकिन तब तक जनार्दन कालू के हाथ बांध चुके थे.
उन लोगों से शांति से खड़े रहने को कह कर जनार्दन कालू के क्वार्टर में घुसे. पीछे के बंद कमरे में पड़ी चारपाई पर सैवी पड़ी थी. उस के मुंह पर कपड़ा बंधा था. उस भीषण गर्मी में अंदर का पंखा भी बंद था. जनार्दन ने जल्दी से मुंह पर बंधा कपड़ा खोला और बेटी को सीने से लगा कर बाहर आ गए.
जनार्दन के साथ पसीने से लथपथ उन की बेटी को देख कर लोग हैरान रह गए. रोने से सैवी की आंखों से बहे आंसुओं की लाइन गालों पर साफ नजर आ रही थी. सैवी को देख कर सभी समझ गए कि मामला क्या था.
पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया गया, कंट्रोल रूम की जीप पास में ही कहीं थी, 5 मिनट में आ गई. अब तक कालू को होश आ गया था. जनार्दन की गोद में सैवी को और पुलिस को देख कर वह समझ गया कि उस की पोल खुल चुकी है. थोड़ी देर में कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना पुलिस भी आ गई.
कालू को हिरासत में ले कर थानाप्रभारी ने जनार्दन से पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आप की बेटी का अपहरण कालू ने किया है?’’
बेटी की पीठ सहलाते हुए जनार्दन ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं यहां फोन करने न आया होता तो कालू की करतूत का पता न चलता. अपहर्त्ता मेरे आसपास ही है, इस बात का अंदाजा तो मुझे पहले ही हो गया था. लेकिन थोड़ी देर पहले एक घटना घटी थी, जिस की वजह से कालू पकड़ा गया.
‘‘शाम को एक बच्चे के घुटने में लगा सड़क का तारकोल कालू ने अपने अंगौछे से पोंछा था. उस के बाद इस ने मुझे फोन किया, इस ने अपनी आवाज बदलने के लिए रिसीवर पर अंगौछा रखने की युक्ति अपनाई थी. उसी समय इस के अंगोछे का तारकोल रिसीवर में लग गया होगा. वही दाग मैं ने रिसीवर पर देखा तो समझ गया कि जिस अंगोछे से बच्चे के घुटने का तारकोल साफ किया गया था, वही अंगोछा इस रिसीवर पर रखा गया था, जिस का तारकोल इस में लग गया है.’’
पुलिस कालू को पकड़ कर ले जाने लगी तो सैवी ने कहा, ‘‘डैडी, अब आप हमें पार्क में खेलने के लिए कभी नहीं आने देंगे?’’
‘‘क्यों नहीं आने देंगे बेटा,’’ जनार्दन ने बेटी का गाल चूमते हुए कहा, ‘‘बिलकुल आने दूंगा. बेटा हर आदमी कालू की तरह खराब नहीं होता. और जो खराब होता है, वह कालू की तरह जेल जाता है.’’
बेटी के अपहरण और बरामद होने की जानकारी लीना को हुई तो उस ने बेटी को सीने से लगा कर अपना सिर जनार्दन के कंधे पर रख दिया, ‘‘इतना बड़ा संकट आप ने अकेले कैसे झेल लिया. बेटी को मिलने में देर होती तो क्या करते?’’
‘‘कह देता कि वह मेरे साथ है. मैं जरूरी काम से बैंक में हूं. वह मिल जाती, मैं तभी घर लौटता.’’ जनार्दन ने लीना का सिर सहलाते हुए कहा.
जनार्दन ने बाथरूम से बाहर आ कर ड्राइंगरूम की खिड़की खोली. सिर बाहर निकाल कर इधरउधर देखा. उस गली में कुल 12 मकान थे. 6 एक तरफ और 6 दूसरी तरफ. उन के मकान के बाईं ओर एक मकान था. जबकि दाहिनी ओर 4 मकान थे. उस के बाद पार्क था. उसी तरह सामने की लाइन में 6 मकान थे. पार्क के आगे वाले हिस्से में माली का क्वार्टर था. उसी के सामने एक दुकान थी. इस इलाके में घर के रोजमर्रा के सामानों की वही एक दुकान थी.
कालोनी के अन्य 11 मकानों में रहने वालों को जनार्दन अच्छी तरह जानते थे. उन्हें लगता नहीं था कि इन लोगों में कोई ऐसा काम कर सकता है. दुकान का मालिक पंडित अधेड़ था. उसे भी जनार्दन अच्छे से जानते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि पंडित इस तरह का काम कतई नहीं कर सकता.
चाय पी कर वह बाहर निकलने लगे तो लीना ने कहा, ‘‘सैवी अभी तक नहीं आई. जाते हुए जरा उसे भी देख लेना.’’
‘‘आ जाएगी. अभी तो कालोनी के सभी बच्चे खेल रहे हैं. और हां, खाना खाने की इच्छा नहीं है, इसलिए खाना थोड़ा देर से बनाना.’’
लीना ने जनार्दन के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’
‘‘आज काम थोड़ा ज्यादा था, इसलिए भूख मर सी गई है.’’ जनार्दन ने सफाई दी तो लीना बोली, ‘‘इस तरह काम करोगे, तो कैसे काम चलेगा.’’
खिड़की से हवा का झोंका आया. उस में ठंडक थी. नहीं तो पूरे दिन आकाश से लू बरसी थी. पत्थर को भी पिघला दे, इस तरह की लू. जनार्दन सैवी के बारे में सोच रहे थे. बदमाशों ने उसे न जाने कहां छिपा रखा होगा? उस के हाथ पैर बांध कर इस भीषण गर्मी में कहीं फर्श पर फेंक दिया होगा. जनार्दन का मन द्रवित हो उठा और आंखें भर आईं.
‘‘मैं जरा चैक के इस बारे में पता कर लूं.’’ दूसरी ओर मुंह कर के जनार्दन घर से बाहर आ गए. गली सुनसान थी. वह पंडित की दुकान पर जा कर बोले, ‘‘कैसे हो पंडितजी, आज इधर कोई अनजान आदमी तो दिखाई नहीं दिया?’’
पंडित थोड़ी देर सोचता रहा. उस के बाद हैरान सा होता हुआ बोला, ‘‘नहीं साहब, कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया.’’ इस के बाद उस ने मजाक किया, ‘‘बैंक मैनेजर अब नौकरी बचाने के लिए खातेदारों की तलाश करने लगे हैं क्या?’’
पंडित के इस मजाक का जवाब दिए बगैर जनार्दन आगे बढ़ गए. वह पलट कर चले ही थे कि पंडित के दुकान में लगे फोन की घंटी बजी. पंडित ने रिसीवर उठाया, उस के बाद हैरानी से बोला, ‘‘अरे पांडेजी, आप का फोन है. ताज्जुब है, फोन करने वाले को यह कैसे पता चला कि आप यहां हैं?’’
जनार्दन ने फुर्ती से पंडित के हाथ से रिसीवर ले कर कहा, ‘‘हैलो.’’
वही पहले वाली जानी पहचानी घुटी हुई अस्पष्ट आवाज, ‘‘पांडेजी आप अपनी बेटी को जीवित देखना चाहते हैं, तो मैं जैसा कहूं, वैसा करो. देख ही रहे हो. आजकल एक्सीडेंट बहुत हो रहे हैं, आप की बेटी का भी हो सकता है. याद रखिएगा 9 बजे.’’
‘‘मुझे पता कैसे चलेगा…?’’ जनार्दन ने कहा. लेकिन उन की बात सुने बगैर ही अपहर्त्ता ने फोन काट दिया. उन्होंने तुरंत रिसीवर रख दिया और उत्सुकता की उपेक्षा कर के आगे बढ़ गए.
अब उन्हें 9 बजे का इंतजार करना था. वह परेशान हो उठे. इतनी देर तक वह अपना क्षोभ और सैवी के अपहरण की बात कैसे छिपा पाएंगे. क्योंकि घर पहुंचते ही लीना बेटी के बारे में पूछने लगेगी. उन्हें लगा लीना को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी. यही सोचते हुए वह कालोनी के गेट की ओर बढ़े. तभी उन्होंने देखा, कालू माली 2 बच्चों को गालियां देते हुए दौड़ा रहा था.
शायद उन्होंने फूल तोड़ लिए थे. गेट के बाहर आते ही एक बच्चा सड़क पर गिर पड़ा. भयंकर गर्मी से सड़क का पिघला तारकोल अभी ठंडा नहीं पड़ा था. वह बच्चे के घुटने में लग गया तो वह कुछ उस से और कुछ कालू माली के डर से रोने लगा. बड़बड़ाता हुआ कालू उस की ओर दौड़ा. उस ने बच्चे को उठा कर खड़ा किया और उस के घुटने में लगा तारकोल अपने अंगौछे से साफ कर दिया. तारकोल पूरी साफ तो नहीं हुआ फिर भी बच्चे को सांत्वना मिल गई. उस का रोना बंद हो गया.
कालू अपना अंगौछा रख कर खड़ा हुआ, तब तक जनार्दन उस के पास पहुंच गए. उन्हें देख कर वह जानेपहचाने अंदाज में मुसकराया. जनार्दन ने पूछा, ‘‘कालू, इधर कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया?’’
‘‘नहीं साहेब, अनजान पर तो मैं खुद ही नजर रखता हूं. आज तो इधर कोई अनजान आदमी नहीं दिखा.’’
जनार्दन घर की ओर बढ़े. अब 9 बजे तक इंतजार करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. वह जैसे ही घर पहुंचे, फोन की घंटी बजी. जनार्दन चौंके. अपहर्त्ता ने तो 9 बजे फोन करने को कहा था. फिर किस का फोन हो सकता है. कहीं अपहर्त्ता का ही फोन तो नहीं, यह सोच कर उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया.
उन के ‘हैलो’ कहते ही इस बार अपहर्त्ता ने कुछ अलग ही अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने 9 बजे फोन करने को कहा था. लेकिन 9 बजे फोन करता, तो आप के पास मेरी योजना को साकार करने के लिए समय कम रहता. इसलिए अभी फोन कर रहा हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो, जैसे ही बात खत्म हो, कार से बैंक की ओर चल देना.
‘‘बैंक के पीछे वाले दरवाजे से अंदर जाना और उसे खुला छोड़ देना. गार्ड को कहना वह आगे ही अपनी जगह बैठा रहे. तुम तिजोरी वाले स्ट्रांगरूम में जाना और तिजोरी खुली छोड़ देना. तिजोरी और स्ट्रांगरूम का दरवाजा खुला छोड़ कर तुम जा कर अपने चैंबर में बैठ जाना.
चैंबर का दरवाजा अंदर से बंद कर के साढ़े 10 बजे तक वहीं बैठे रहना. उस के बाद तुम्हें जो करना हो करना, मेरी ओर से छूट होगी.’’
‘‘और उस की सलामती का क्या?’’ जनार्दन ने लीना के आगे सैवी का नाम लिए बगैर पूछा, ‘‘मुझे कैसे विश्वास हो कि उस का कुछ…’’
अपहर्त्ता ने जनार्दन को रोक लिया, ‘‘मैं तुम्हें एक बात की गारंटी दे सकता हूं. अगर हमारी योजना में कोई खलल पड़ी, हमारे कहे अनुसार न हुआ या हमें रात 11 बजे तक पैसा ले कर शहर के बाहर न जाने दिया गया, तो तुम अपनी बेटी को जीवित नहीं देख पाओगे.’’
जनार्दन का कलेजा कांप उठा. उन्होंने स्वयं को संभाल कर कहा, ‘‘तुम जो कह रहे हो, यह सब इतना आसान नहीं है. तिजोरी में 2 चाभियां लगती हैं, एक चाभी मेरे पास है, तो दूसरी हमारे चीफ कैशियर राजकुमार के पास.’’
‘‘मुझे पता है. इसीलिए तो अभी फोन किया है और कार ले कर चल देने को कह रहा हूं. राजकुमार से मिलने का अभी तुम्हारे पास पर्याप्त समय है. उस से कैसे चाभी लेनी है. यह तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’
‘‘अगर वह घर में न हुआ तो…?’’
‘‘वह घर में ही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं ने इस बारे में पता कर लिया है. नहीं भी होगा तो फोन कर के बुला लेना.’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया.
रिसीवर रखते हुए जनार्दन का हाथ कांप रहा था. लीना ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है? तिजोरी की चाभी की क्या बात हो रही थी?’’
‘‘अरे उसी चैक की बात हो रही थी,’’ जनार्दन ने सहमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे अभी बाहर जाना होगा. थोड़ी परेशानी खड़ी हो गई है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है.’’
‘‘सैवी अभी तक नहीं आई है. जाते समय उसे घर भेज देना. बहुत खेल लिया.’’
सैवी का नाम सुनते ही जनार्दन का दिल धड़क उठा. उन्होंने घर से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’
जनार्दन ने कार निकाली. थोड़ी देर स्टीयरिंग पर हाथ रखे चुपचाप बैठे रहे. अपहर्त्ता की बात मानना उन की मजबूरी थी. उन्होंने समय देखा, राजकुमार शहर के दूसरे छोर पर रहता था. शाम के ट्रैफिक में आने जाने में कितना समय लग जाए, कहा नहीं जा सकता. उन्हेंने उसे फोन कर के चाबी के साथ बैंक में ही बुलाने की सोची.
असहाय क्रोध की एक सिहरन सी पूरे शरीर में दौड़ गई. लेकिन उस समय शांति और धैर्य की जरूरत थी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से क्रोध पर काबू पाया. घर से तो राजकुमार को फोन किया नहीं जा सकता था. मोबाइल फोन भी वह घर पर ही छोड़ आए थे. जिस से लीना फोन करे, तो पता चले कि फोन तो घर पर ही रह गया है. उस स्थिति में वह न उन के बारे में पता कर पाएगी, न सैवी के बारे में.