इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 3

शशिबाला पहली बार दिल्ली आई थी. यहां आ कर उस का भी मन लग गया. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. मां बनने के बाद इंद्रपाल और शशिबाला की खुशी का ठिकाना न रहा.  उन के दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. इस के बाद शशिबाला एक और बेटी की मां बनी. 2 बच्चों के जन्म के बाद भी शशिबाला के हुस्न में जबरदस्त आकर्षण था. बल्कि इस के बाद तो उस के रूप में और भी निखार आ गया था.

इंद्रपाल जिस ठेकेदार के साथ काम करता था, उस का नाम टिंकू था. टिंकू बिहार के जिला मुंगेर के पहाड़पुर गांव के रहने वाले मुदीन सिंह का बेटा था. बीए पास टिंकू 3 साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था. काफी कोशिश के बाद जब उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो उस ने कंस्ट्रक्शन कंपनियों में लेबर सप्लाई का काम शुरू कर दिया. कंस्ट्रक्शन ठेकेदारों के संपर्क में रहरह कर उसे भी मकान बनवाने के काम का अनुभव हो गया. फिर उस ने भी बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के ठेके लेने शुरू कर दिए.

इंद्रपाल कुछ दिनों से टिंकू के साथ ही काम कर रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. टिंकू का काम उस्मानपुर में चल रहा था. वह वहीं अपने रहने के लिए किराए का कमरा देख रहा था, ताकि अपने काम पर नजर रख सके. किराए के कमरे के बारे में उस ने इंद्रपाल से बात की. इंद्रपाल न्यू उस्मानपुर के गौतम विहार में पवन शर्मा के यहां रहता था. उस ने 2 कमरे किराए पर ले रखे थे.

उस ने टिंकू से कहा, ‘‘मेरे पास 2 कमरे हैं. चाहो तो तुम उन में से एक कमरा ले सकते हो. एक में मेरा परिवार रह लेगा.’’

टिंकू जब उस का कमरा देखने गया तो इंद्रपाल ने अपनी बीवी को बताया कि यह हमारे ठेकेदार हैं और इन्हें हमारा कमरा पसंद आ गया तो यह यहीं रहेंगे. ठेकेदार के घर आने पर शशिबाला ने उस की जम कर खातिरदारी की.  29 साल का टिंकू शशिबाला की मेहमाननवाजी से बहुत प्रभावित हुआ. उसे इंद्रपाल का कमरा भी पसंद आ गया तो अगले दिन से वह वहां रहने लगा.

टिंकू कमरे पर अकेला रहता था. उस की आमदनी अच्छी थी, इसलिए वह जी खोल कर पैसे खर्च करता था. चूंकि शशिबाला बराबर वाले कमरे में रहती थी, इसलिए उस की बेटियों के लिए वह अकसर खानेपीने की चीजें लाता रहता था. जिस की वजह से दोनों बच्चियां उस से घुलमिल गई थीं. कभीकभी वह शराब पीता तो इंद्रपाल को भी अपने कमरे पर बुला लेता था. फ्री में शराब मिलने पर इंद्रपाल की भी मौज आ गई थी.

इंद्रपाल जो कमाता था, उस से उस के घर का गुजारा तो हो जाता था, लेकिन वह बीवीबच्चों की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था. जबकि टिंकू बहुत ठाठबाट से रहता था. 32 साल की शशिबाला की भी कुछ ख्वाहिशें थीं. पति की कमाई से उसे ख्वाहिशें पूरी होती नजर नहीं आ रही थीं. इसलिए उस ने अपने कदम टिंकू की तरफ बढ़ा दिए.

टिंकू जवान और अविवाहित था. अनुभवी शशिबाला ने अपने हुस्न के जाल में उसे जल्द ही फांस लिया. उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. यह करीब एक साल पहले की बात है.

अपनी उम्र से छोटे टिंकू के साथ संबंध बन जाने के बाद शशिबाला को अपना 40 वर्षीय पति बासी लगने लगा. अब वह उस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती. इंद्रपाल सुबह का घर से निकलने के बाद शाम को ही लौटता था, जबकि टिंकू का जब मन होता घर आ जाता था. मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इस तरह दोनों का यह खेल चलता रहा.

टिंकू अब शशिबाला को आर्थिक सहयोग भी करने लगा था. इस के अलावा वह उस के पसंद के कपड़े आदि भी खरीदवा देता. शशिबाला भी उस की खूब सेवा करती. पत्नी की बेरुखी को इंद्रपाल समझ नहीं पा रहा था.  वह पत्नी से इस की वजह पूछता तो वह उलटे उस पर झुंझला जाती. तब इंद्रपाल उस की पिटाई कर देता. अगर उस समय टिंकू घर पर होता तो बीचबचाव कर देता और नहीं होता तो शशिबाला को वह जम कर धुन डालता था.

पति द्वारा आए दिन पिटने से शशिबाला आजिज आ चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे पति की पिटाई से कैसे निजात मिले.  टिंकू के सामने उस की प्रेमिका की पिटाई हो, यह बात उसे अच्छी नहीं लगती थी. शशिबाला चाहती थी कि वह हमेशा टिंकू के साथ ही पत्नी की तरह रहे. लेकिन इंद्रपाल के होते हुए ऐसा मुमकिन नहीं था.

इस बारे में उस ने टिंकू से भी बात की तो टिंकू ने उसे भरोसा दिलाया कि समय आने दो, सब कुछ ठीक हो जाएगा. शशिबाला जानती थी कि टिंकू जो कहता है, उस काम को पूरा जरूर कर देता है. इसलिए उसे विश्वास था कि वह पति से छुटकारा दिलाने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा.

होली के मौके पर टिंकू ने इंद्रपाल के बीवीबच्चों पर खूब खर्च किया. खानेपीने के सामान के अलावा उस ने बच्चों को भी रंग और उन की पसंद की पिचकारियां दिलवाईं. बड़ी हंसीखुशी से त्यौहार मनाया. इंद्रपाल को भी जम कर शराब पिलाई.

18 मार्च, 2014 को इंद्रपाल का नशा उतरा तो किसी बात को ले कर उस की पत्नी से कहासुनी हो गई. उस समय दोनों बेटियां छत पर खेल रही थीं. दोनों के बीच झगड़ा बढ़ा तो इंद्रपाल ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. इत्तफाक से टिंकू उस समय कमरे पर ही था. शोरशराबा सुन कर टिंकू वहां पहुंच गया. उस ने जब इंद्रपाल को रोकना चाहा तो इंद्रपाल ने उल्टे उसे ही झटक दिया. इस पर टिंकू को भी गुस्सा आ गया. उस ने इंद्रपाल को जोर से धक्का दिया तो इंद्रपाल का सिर दीवार से टकरा गया.

दीवार से सिर टकराने पर इंद्रपाल बेहोश हो कर नीचे गिर गया. यह देख कर टिंकू और शशिबाला घबरा गए. उन दोनों ने सोचा कि इंद्रपाल शायद मर चुका है.

शशिबाला ने टिंकू से कहा, ‘‘अब सब कुछ तुम्हें ही संभालना है, मैं अभी अपनी बहन सुषमा के घर जा रही हूं. जब काम हो जाए तो फोन कर देना.’’

इंद्रपाल को ठिकाने लगाने का टिंकू के पास इस से अच्छा मौका नहीं था. उस ने उसी समय दोनों हाथों से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद इंद्रपाल का शरीर ठंडा पड़ता गया.  इंद्रपाल की हत्या के बाद उस के सामने इस बात की समस्या यह थी कि लाश को ठिकाने कहां लगाए. तब तक शशिबाला दोनों बेटियों को ले कर वहां से 200 मीटर दूर जयप्रकाश नगर में रहने वाली सुषमा के यहां चली गई थी.

कुछ देर सोचने के बाद टिंकू ने नांगलोई के चंदन विहार में रहने वाले अपने दोस्त संदीप को फोन कर के कहा, ‘‘यार संदीप, इस समय मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं. तू इसी समय मेरे कमरे पर आ जा.’’

23 वर्षीय संदीप भी मूलरूप से टिंकू के ही गांव का रहने वाला था. वह 3 साल पहले ही दिल्ली आया था. फिलहाल वह टिंकू के साथ ही राजमिस्त्री का काम कर रहा था. दोस्त टिंकू की परेशानी की बात सुन कर संदीप तुरंत अपने कमरे से निकल गया और रात करीब 8 बजे टिंकू के कमरे पर पहुंच गया.

जबरदस्ती का प्यार

ठगी का बड़ा खिलाड़ी – भाग 3

जानीमानी पार्टियों के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से ले कर वरिष्ठ अधिकारियों से उस के सीधे और मजबूत संबंध थे. उस का रसूख और राजशाही ठाठ देख कर बड़ेबड़े लोग प्रभाव में आ जाते थे.

अजय शर्मा उर्फ सरजू को जानने वाले बताते हैं कि वह नौवीं फेल था. उस के पिता का कभी छोटा सा क्लिनिक हुआ करता था. वह सिरसा में गोदाम रोड पर रहते थे. उस की प्रारंभिक शिक्षा यहीं हुई थी. वह बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी था. पढ़ाई में मन नहीं लगा, इस के बावजूद वह ऊंचे सपने देखने लगा.

कुछ लोग अपने सपनों को पढ़ाई और काबलियत के बलबूते पूरा करते हैं, परंतु कुछ लोग शौर्टकट के जरिए. फर्क इतना होताहै कि जो सपने काबलियत से पूरे होते हैं, वे स्थाई होते हैं, जबकि जिन्हें शौर्टकट के जरिए पूरा किया जाता है, उन की कोई बुनियाद नहीं होती, वे वक्ती होते हैं. यह फर्क कलांतर में आईने की तरह एकदम साफ दिखता है. इस बड़ी हकीकत से अंजान अजय का थकी सी जिंदगी में मन नहीं लगता था.

पढ़ा हुआ वह भले ही कम था, लेकिन दिमाग का तेज था. उस का व्यक्तित्व भी आकर्षक था. उस के आर्थिक हालात कतई अच्छे नहीं थे. उसे लगता था कि हवाई चप्पलों में टहलते हुए उस की उम्र यूं ही कट जाएगी. सन 1997 में ही यह बात उस की समझ में आ गई थी कि आज के जमाने में राजनीतिक ताकत से बड़ी कोई ताकत नहीं है. उस ने राजनीति से जुड़े लोगों से रिश्ते बनाने शुरू कर दिए, साथ ही गुजारे के लिए प्रौपर्टी का छोटामोटा काम करने लगा.

बातों से किसी को भी प्रभावित करने की कला उस में थी ही, उस की पैठ बढ़ी तो उस ने दिल्ली का रुख किया. इस के बाद उस ने कई सालों तक सिरसा की ओर पलट कर नहीं देखा. राजनीतिज्ञों की शागिर्दी के साथ उस ने लोगों के छोटेमोटे काम कराने शुरू किए तो उस के बदले वह पैसे लेने लगा. इसी के साथ प्रौपर्टी के काम में भी वह हाथ आजमाता रहा. कई शराब कारोबारियों से भी उस के रिश्ते बन गए थे.

विवादित प्रौपर्टी पर उस की खास नजर होती थी, क्योंकि वहां नेताओं और नौकरशाहों की पौवर का इस्तेमाल कर के वह अपने रिश्तों को भुना लेता था. हैसियत बढ़ी तो पंजाबी बाग जैसे पौश इलाके में किराए पर रहना शुरू कर दिया. इन्हीं कामों से उस ने इतनी दौलत कमाई कि 10 सालों में वह काफी दौलतमंद हो गया. इस बीच फिल्मों से प्रभावित हो कर उस ने अपना नाम अजय पंडित रख लिया.

अजय का काम करने का तरीका एकदम अलग था. उस ने तमाम चेलेचपाटे बना लिए थे, जो पहले शिकार को टारगेट करते थे. इस के बाद उसे शान दिखा कर संपर्क बढ़ा कर उसे राजनीतिक घरानों से ले कर बड़े नौकरशाहों से मिलवा कर अपना विश्वास जमाते. और जब विश्वास जम जाता था तो उसे कोई ख्वाब दिखा कर चाल चलना शुरू कर देते थे.

इस मामले में अजय करिश्माई व्यक्तित्व का स्वामी था. लोग न सिर्फ उस पर भरोसा कर लेते थे, बल्कि उसे काम के बदले मोटी रकम भी दे देते थे. जिन के काम नहीं होते थे, उन के रुपए फंस जाते थे. अजय रसूख की बदौलत तरहतरह के हथकंडे अपना कर ऐसे लोगों को किनारे कर देता था. किसी को राजनीतिक पार्टी का टिकट दिलाने, किसी को नौकरी, किसी को पैट्रोल पंप व गैस एजेंसी का लाइसैंस दिलाने तो किसी को बड़े काम के ठेके दिलाने का झांसा दे कर वह ठगी करता था. ऐसा भी नहीं था कि वह लोगों के काम बिलकुल नहीं कराता था. लेकिन जिन का काम नहीं होता था, उन के पैसे फंस जाना तय था.

दौलत और ताकत में इजाफा हुआ तो अजय ने छतरपुर में एक फार्महाउस किराए पर ले लिया. उस ने सिरसा के सैक्टर-20 में एक आलीशान कोठी बनवाई. कई लग्जरी गाडिय़ां खरीद लीं. राजनीतिक लोगों और नौकरशाहों पर भी उस का दबदबा रहता था. सरकारी सुरक्षा के अलावा प्राइवेट सिक्योरिटी में पहलवान जैसे लडक़ों को वह साथ रखता था.

अजय खुद को राजशाही घराने का बताता था. उस ने तमाम नामीगिरामी लोगों से संपर्क बना लिए थे. उस के रहनसहन, राजसी ठाटबाट, सुरक्षा तामझाम, लग्जरी गाडिय़ों और बड़े संपर्कों को देख कर कोई भी प्रभाव में आ जाता था. वह लोगों से बड़ेबड़े कामों को कराने के बदले मोटी रकम लेता था. राजनीतिक संबंधों को भुनाने का हुनर उसे खूब आता था.

उस ने सोनिया गांधी एसोसिएशन बना ली, जिस का वह खुद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गया. इसी के साथ उस ने ब्राह्मणसभा भी बनाई और उस का भी खुद ही अध्यक्ष बन गया. वह सफेदपोश बन कर ऐशोआराम की जिंदगी जीता था. अजय के जिंदगी जीने का अंदाज एकदम अलग था. वह रौबरुतबे से रहता था. उस का हुक्म बजाने के लिए नौकरों और सुरक्षाकॢमयों की फौज तैयार रहती थी.

राष्ट्रीय पहुंच के नेताओं से संबंध बनाए रखने की कला का वह बाजीगर था. लखपति लोगों के काम कराना वह अपनी तौहीन समझता था, इसलिए करोड़पति और अरबपति लोगों को ही अपना निशाना बनाता था. किसी का काम कराने के बदले वह करोड़ो रुपए एडवांस में ले लेता था. शातिर दिमाग अजय ने दिखावटी शान से ही बड़ोंबड़ों को झांसे में लिया था.

दौलत और रसूख हासिल करने के बाद अजय ने सन 2012 से सिरसा आना शुरू किया तो वह जब भी वहां आता, उसे देख कर लोगों की आंखें फटी रह जातीं. कारों और वीआईपी सिक्योरिटी ही नहीं, अजय हैलीकौप्टर से भी आता था. लोगों में जिज्ञासा बढ़ाने के लिए वह शहर के ऊपर हैलीकौप्टर का चक्कर लगवा कर एयरफोर्स स्टेशन पर उतरता था. तब लोगों को पता चल जाता था कि उन का अजय उर्फ सरजू आया है.

वह दान भी दोनों हाथों से करता था. यह दान वह धार्मिक आयोजनों, पूजास्थलों से ले कर गरीबों तक में करता था. उस ने दान भी इतना किया था कि उस की पहचान बड़े दानवीरों में होने लगी थी. उस के रसूख और दान देने की दिलदारी को देख कर लोग उसे कार्यक्रमों मे बुलाने लगे थे.

विशेष अवसरों पर जब उस के आने पर गरीबों की लाइन लगती थी तो उस के कारिंदे हजार व 5 सौ के नोटों की गड्डयां खोल कर उसे देते और वह बिना गिने बांटता चला जाता था. गरीबों के प्रति उस की यह दरियादिली जितनी सुर्खयों में आती, वह उतना ही खुश होता और गर्व महसूस करता. उस ने किसी गरीब को कभी हजार या 5 सौ से कम का नोट नहीं दिया, क्योंकि उस से कम देना वह अपनी तौहीन समझता था. उसे ऐसा करते देख बड़ेबड़े रईस भी हैरान रह जाते थे.

देह की राह के राही – भाग 3

पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना सिंहानी गेट के थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव, सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी, सबइंसपेक्टर विनोद कुमार त्यागी, अवधेश कुमार, हेडकांस्टेबल के.पी. सिंह के साथ नंदग्राम स्थिति मंजू शर्मा के घर पहुंच गए. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. क्योंकि उस के गले से चुन्नी लिपटी हुई थी, गले पर कसने के निशान भी थे.

सुमन को कमरा बबिता ने दिलाया था, इसलिए मंजू ने उसे भी सुमन की हत्या की सूचना दे दी थी, जिस से इस बात की सूचना सुमन के घर वालों तक पहुंच गई थी.

पुलिस घटनास्थल एवं लाश का निरीक्षण कर मकान मालकिन मंजू शर्मा से पूछताछ कर रही थी कि रोतेबिलखते सुमन के घर वाले भी पहुंच गए. थोड़ी देर के लिए वहां का माहौल काफी गमगीन हो गया.

पुलिस को मंजू शर्मा से मृतका के बारे में काफी जानकारी मिल चुकी थी. उस ने बताया कि मृतका यहां अकेली रहती थी. उस का अपने पति से कोई संबंध नहीं था. उस से मिलने एक लड़का आता था. कभीकभी वह उस के कमरे पर रुकता भी था. इस से पुलिस को लगा कि यह हत्या अवैध संबंधों की वजह से हुई है.

पुलिस ने सुमन के घर वालों को ढांढस बंधाया और घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए हिंडन स्थित मोर्चरी भिजवा दिया. इस के बाद थाना सिंहानी गेट पुलिस मृतका सुमन के घर वालों को साथ ले कर थाने आ गई, जहां मृतका की छोटी बहन राखी की ओर से सुमन की हत्या का मुकदमा धूकना निवासी सत्येंद्र त्यागी के बेटे राजीव उर्फ राजू उर्फ नोनू त्यागी के खिलाफ दर्ज कर लिया.

मामला हत्या का था और रिपोर्ट नामजद दर्ज थी, इसलिए क्षेत्राधिकारी अनुज यादव ने अगले दिन अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए थानाप्रभारी मनोज कुमार यादव के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.  इस टीम ने राजीव को गिरफ्तार करने के लिए धूकना स्थित उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस के बाद पुलिस टीम ने कई जगहों पर छापा मारा, लेकिन वह पुलिस टीम के हाथ नहीं लगा.

इस के बाद राजीव की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश चतुर्वेदी को सौंप दी गई. उन्होंने राजीव को काबू में करने के लिए उस का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से उन्हें उस की लोकेशन का पता चल गया.

मोबाइल के लोकेशन के आधार पर ही सीनियर सबइंसपेक्टर चंद्रप्रकाश ने अपनी टीम की मदद से गाजियाबाद के पुराने बसअड्डे के पास से 5 जून की शाम 7 बजे उसे गिरफ्तार कर लिया. राजीव को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने किसी भी तरह की बहानेबाजी किए बगैर सुमन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी.

शुरूशुरू में राजीव और सुमन का संबंध लेनदेन का रहा. वह सुमन के खर्च उठाता था और सुमन उसे औरत वाला सुख देती थी. राजीव ने सुमन से ये संबंध सिर्फ औरत का सुख पाने के लिए बनाए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद सुमन कहने लगी कि उसे उस से प्यार हो गया है. उसे खुश करने के लिए राजीव ने भी कह दिया कि वह भी उस से प्यार करता है.

सुमन ने राजीव की इस बात को सच माना और उस के साथ शादी के सपने ही नहीं देखने लगी, बल्कि उसे साकार करने की कोशिश भी करने लगी. राजीव उसे टालता रहा.  सुमन को जब लगा कि राजीव उसे टाल रहा है तो वह उस पर शादी के लिए दबाव बनाने के साथसाथ ज्यादा से ज्यादा माल झटकने की कोशिश करने लगी.

सुमन की हरकतों से राजीव को लगने लगा कि मौजमस्ती के लिए की गई यह दोस्ती गले का फांस बन रही है. वह सुमन से बचने की कोशिश करने लगा. लेकिन उस से मिलने वाले सुख के बिना वह रह नहीं सकता था, इसलिए मजबूर हो कर उसे उस के पास आता भी रहा.

3 जून की शाम को राजीव सुमन से मिलने आया तो सुमन ने एक बड़ी फरमाइश कर डाली. उस ने मुरादनगर में एक प्लौट दिलाने को कहा. हजारों की बात होती तो शायद राजीव तैयार भी हो जाता, लेकिन यहां तो मामला लाखों का था, इसलिए राजीव ने मना कर दिया. तब सुमन उसे फंसाने की धमकी देने लगी.

सुमन द्वारा धमकी देने पर राजीव को गुस्सा आ गया कि इस औरत के लिए उस ने कितना कुछ किया. उस का एहसान मानने के बजाय यह उसे बेनकाब करने की धमकी दे रही है. उसी गुस्से में उस ने सुमन के गले में पड़ी चुन्नी को पकड़ा और लपेट कर कस दिया. सुमन फर्श पर गिरी और मर गई. उसे उसी तरह छोड़ कर राजीव भाग गया. घबराहट में वह सुमन के कमरे का दरवाजा भी बंद करना भूल गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने राजीव के खिलाफ सारे सुबूत जुटा कर अगले दिन अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह देह का यह राही जेल पहुंच गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पंजाब की डाकू हसीना – भाग 3

इस टीम ने बड़ी सूझबूझ के साथ घटना के नौवें दिन यानी 19 जून, 2023 को उत्तराखंड के श्री हेमकुंड साहिब दरबार के बाहर से डाकू हसीना और उस के पति जसविंदर को उस समय गिरफ्तार किया, जब फ्रूटी लंगर में खड़े हो कर वे फ्रूटी लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा रहे थे. दोनों के फोटो मोबाइल में कैद कर लिए और कप्तान सिद्धू के पास भेज कर दोनों के फोटो को वेरीफाई करा लिया. भेजे गए फोटो से दोनों की तसदीक हो गई कि फोटो मनदीप उर्फ डाकू हसीना और उस के पति जसविंदर सिंह की है.

फिर क्या था? पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर उत्तराखंड से पंजाब ले आई. तलाशी के दौरान मनदीप के पास से 12 लाख रुपए और उस के पति के पास से एक करोड़ रुपए नकद बरामद हुए. वे अपनी कार में रुपए रख कर साथसाथ घूम रहे थे. मनदीप ने प्रार्थना की थी कि यदि वह अपने इरादे (लूटकांड) में सफल हुई तो हरिद्वार, केदारनाथ और श्री हेमकुंड साहिब के दर्शन करेगी, इसलिए डकैती के बाद वह धामों का दर्शन करने गई, जो पकड़ी गई.

खैर, 20 जून, 2023 को पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों के सामने लुटेरों को पेश कर उन के पास से बरामद कुल 6 करोड़ 96 लाख रुपए की रिकवरी दिखाई. उस के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर लुधियाना के ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल भेज दिया.

सभी आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद पुलिस द्वारा जो कहानी सामने आई, वो इस प्रकार निकली—

30 वर्षीय मनदीप कौर उर्फ मोना उर्फ डाकू हसीना मूलरूप से लुधियाना के डेहलों की रहने वाली थी. 3 भाईबहनों में वह बीच की थी, उस से बड़े भाई का नाम काका और सब से छोटे भाई का नाम हरप्रीत सिंह था, जो 18 साल का था. कुलवंत कौर मनदीप की मां का नाम है. उस के पिता की काफी समय पहले मौत हो चुकी थी.

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, मनदीप के जीवन के अतीत के पन्ने तंगहाली की काली रोशनाई से लिखे गए थे. पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद 3 बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी कुलवंत कौर के कंधों पर आ गई थी. तब बच्चों की उम्र 8 से 12 साल के बीच की रही होगी.

कुलवंत के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था. बच्चों की परवरिश कैसे करे? समझ नहीं पा रही थी. उसे जब कुछ नहीं सूझा तो उस ने घरों में बरतन मांजने का काम किया. उस कमाई से जो पैसे मिलते थे, उसे बच्चों की परवरिश, उन की शिक्षा और खाने में खर्च कर देती थी.

बच्चे धीरेधीरे बड़े होने लगे. बड़ा बेटा काका बहुत समझदार और मेहनती था. लोगों के घरों में मां को जब जूठन साफ करते देखता था तो उस के कलेजे पर सांप लोट जाता था. फिर वह इस लायक भी नहीं था कि मां को घर में बैठा कर उन्हें अच्छी जिंदगी दे सके. वह कसमसा कर रह जाता था.

मनदीप भी छोटी थी. वह भी घर की माली हालत का देख कर अपनी किस्मत पर आंसू बहाती थी. छोटी होने के साथसाथ उस के मखमली सपने थे, शहजादियों की तरह रहना चाहती थी. महंगी और चमचमाती लग्जरी कारों में घूमना चाहती थी. लजीज और शाही पकवान हर दिन खाना चाहती थी, जो उस के लिए सिर्फ मुंगेरी लाल के हसीन सपने से ज्यादा कुछ भी नहीं था.

घर की गरीबी और तंगहाली देख कर मोना ऊब चुकी थी. वह सोचती थी कि कैसे गरीबी नामक डायन से पीछा छूटेगा. वह कब मालामाल होगी? कब वह नोटों के बिस्तर पर सोएगी? यह प्रश्न उस के लिए सिर्फ प्रश्न बन कर ही रह गया था. उत्तर की तलाश में मृग बनी फिर रही थी.

मोना बला की खूबसूरत थी. उस के अंगअंग से जवानी की खुशबू फूट रही थी. शरीर का अंगअंग विकसित हो चुका था. दीवानों की कतारें लग चुकी थीं. मोना ऐसे किसी भी मनचले को दिल देना नहीं चाहती थी, जो उसे बीच मंझधार में छोड़ जाए. दिल तो उसे देना चाहती थी, जो उसे माल भी खिलाए और उस की डूबती नैया को भी पार लगाए.

शुरुआत में की थी ब्यूटीपार्लर में नौकरी

इस दौरान मोना ने एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर ली थी, उस नौकरी से वह अपना खर्च निकाल लेती थी. चार पैसे जब उस के हाथ में आने लगे तो उस के पांव बहकने लगे. घर से कईकई दिनों तक वह गायब रहती थी. इस दरमियान वह कहां जाती थी, किस से मिलती थी, क्या काम करती थी, घर वालों को कुछ भी नहीं बताती थी.

मोना के इस कृत्य से बड़ा भाई काका बहुत दुखी और परेशान रहता था. घरपरिवार की इज्जत की दुहाई दे कर वह उसे समझाता भी था डांटता भी था, लेकिन मां भाई के डांट का उस पर कोई असर नहीं होता. बेटी के पैरों में जंजीर डालने और उसे सुधारने के लिए मां ने बरनाला के रामगढिय़ा रोड के रहने वाले जसविंदर सिंह के साथ उस की शादी करा दी. यह शादी इसी साल फरवरी 2023 में हुई थी. बाद में पता चला कि मोना की यह तीसरी शादी थी. इस से पहले वह 2 शादियां पहले भी कर चुकी थी.

दूसरे पति के खिलाफ उस ने लुधियाना की कोर्ट में रेप का मुकदमा दर्ज करवाया था. यह बात उस का तीसरा पति जसविंदर सिंह भी जानता था. सनद रहे, मोना ने कब और कैसे पहले 2 शादियां की थीं, पुलिस इस की अलग से जांच का रही है. मुकदमे की पैरवी करने मोना खुद बरनाला से लुधियाना आती थी तो कभीकभी पति जसविंदर के साथ तो कभी छोटे भाई हरप्रीत सिंह के साथ, जो मोना की शादी के बाद से उस की ससुराल बरनाला में रहता था.

समय के साथ मोना के पास पैसे आते रहे. महंगा मोबाइल रखना उस का शौक था, वह अपने पास रखती भी थी और अपने भाई को महंगे मोबाइल देती. बहन की तरह उस का भाई हरप्रीत भी गजब का शातिर बन चुका था. मोना जल्द से जल्द अमीर बन जाना चाहती थी, इस के लिए साम, दाम, दंड और भेद कोई भी नीति अपनाने के लिए तैयार रहती थी.

इस के शातिरपन का नमूना तो देखिए. उस के घर पैसे लेने वालों के चक्कर लगते रहते थे. आए दिन दुकानदार या बैंक वाले किसी न किसी मामले को ले कर विवाद करते रहते थे. मोना कभी फ्रिज, एलसीडी या कोई भी घरेलू सामान दुकान से किस्तों पर खरीद लाती थी, एकदो किस्त देने के बाद पैसे नहीं देती थी. कई बार तो कुछ लोग घर से सामान तक उठा कर ले जाते थे.

छोटेमोटे खेल खेल कर मोना ऊब चुकी थी. वो एकबारगी लंबा हाथ मार कर रातोंरात अमीर बन जाना चाहती थी. उसी दौरान उस के दिमाग में एक विचार आया. वह विचार उस के साथी का था, जो डेहलों में पुराने उस के घर से पास वाले मकान में रहता था. उस का नाम मनजिंदर सिंह था. मनजिंदर उर्फ मनी सीएमएस कंपनी में नौकरी करता था. यह बात मोना जानती थी.

मोना के दिमाग में एक जबरदस्त प्लान आया. चूंकि वह मुकदमे के सिलसिले में अकसर लुधियाना आती रहती थी. इस दौरान मनजिंदर से मिलने सीएमएस कंपनी भी जाती थी. यह कंपनी विभिन्न एटीएम में रुपए भरने का काम करती थी. उस ने अपना प्लान जब मनाजिंदर का बताया तो डर के मारे कांप उठा. प्लान यह था जब कंपनी में बड़ी रकम इकट्ठा होवे, तब लूट की जाए. ऐसा करने पर एक बार में सभी की तकलीफें दूर हो सकती हैं. उन रुपयों से सुख की जिंदगी खरीदी जा सकती है.

मनजिंदर ने पहले तो नानुकुर किया, फिर वह लालच में मोना की प्लानिंग में शामिल हो गया. लेकिन 2 लोगों के बस में करोड़ों रुपए लूटना आसान नहीं था. उन्हें इस के लिए और बंदों की जरूरत थी. तब मोना और मनजिंदर ने अपने विश्वासपात्र 9 और लोगों को प्लान में शामिल कर लिया.

इन के अलावा प्लान में जो 9 लोग थे, उन के नाम मनदीप सिंह उर्फ विक्की, हरविंदर सिंह उर्फ लंबू, परमजीत सिंह उर्फ पम्मा, हरप्रीत सिंह (मोना का भाई 18 साल), नरिंदर सिंह उर्फ हैप्पी,पति जसविंदर सिंह, अरुण कुमार कोच, आदित्य कुमार उर्फ नन्नी और गुलशन थे.

तुझे राम कहें या राक्षस – भाग 2

बातों ही बातों में राहुल ने अपनी आगे की प्लानिंग भी बता दी कि अब वह इंदौर में ही रह कर कोई कारोबार करेगा और काम जमते ही मृणालिनी से शादी कर लेगा. मां तो घरजवांई चाहती ही थीं, लिहाजा उन्होंने तुरंत हां कर दी. दिल के हाथों मजबूर मृणालिनी भी इनकार नहीं कर पाईं. अगले 2 दिनों में ही राहुल ने मृणालिनी को बताया कि वह उस के लिए पिता की करोड़ों की जायदाद छोड़ आया है.

राहुल की लच्छेदार बातों का जादू और उस से भी ज्यादा उस की जरूरत, मांबेटी दोनों के सिर चढ़ कर बोल रही थी, इसलिए दोनों ने आंख मूंद कर उस की बातों पर विश्वास कर लिया. राहुल घर में घुसा तो वहीं का हो कर रह गया.

हफ्ते भर में ही फैसला ले लिया गया कि राहुल को बिजनैस शुरू करने के लिए पैसा मांबेटी देंगी. जब राहुल भी दुकान के लिए भागदौड़ करने लगा तो शक की कोई गुंजाइश नहीं रही. जल्द ही उस ने मृणालिनी को बताया कि न्यू पलासिया इलाके में एक दुकान की बात हो गई है, जिस में वह आटोमोबाइल पाट्र्स का बिजनैस शुरू करेगा.

दुकान का किरायाभाड़ा और पाट्र्स खरीदने के लिए राहुल ने करीब 15 लाख रुपए की जरूरत बताई. अपना सबकुछ राहुल को सौंप चुकी मृणालिनी ने अपनी अब तक की बचत के 5 लाख रुपए और उज्जैन में पड़े एक प्लौट को बेच कर मिले 10 लाख रुपए यानी 15 लाख रुपए राहुल को दे दिए.

जून की भीषण गर्मी खत्म हो चुकी थी. ढलती जुलाई की वह उमस भरी 26 तारीख थी, जब सुबहसुबह राहुल ने घर आ कर बताया कि माल आ गया है. मैं सामान का पेमेंट कर के और दुकान पर सामान लगवा कर कुछ घंटों में आता हूं. तैयारी पहले से हो रही थी, इसलिए मां बेटी ने पैसा देने में कोई ऐतराज नहीं किया. राहुल पैसा ले कर गया तो फिर वापस लौट कर नहीं आया.

रविवार 26 जुलाई, 2015 की देर रात तक मृणालिनी और उन की मां राहुल का इंतजार करती रहीं, पर वह घर नहीं लौटा तो वे चिंता में पड़ गईं. मृणालिनी ने राहुल को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला, इस से मांबेटी और घबरा उठीं.

मन में दबा शक यकीन में बदलने लगा था कि कहीं भोलाभाला, मायूस सा दिखने वाला और मीठीमीठी बातें करने वाला राहुल कोई ठग तो नहीं था, जो उन्हीं के घर में रह कर बड़े इत्मीनान से 15 लाख का चूना लगा गया. जैसेजैसे दोनों इस शक को दबाने की कोशिश करतीं, वैसेवैसे वह उन्हें और ज्यादा डराने लगता.

सदमे की सी हालत में आ चुकीं मृणालिनी बारबार इस उम्मीद के साथ राहुल का नंबर डायल कर रही थीं कि शायद इस बार घंटी जाए और काल रिसीव कर के एक महीने के ही सही राहुल जानेपहचाने अंदाज में कहे कि सौरी मोबाइल खराब हो गया था या उस की बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी, इसलिए काल पिक नहीं कर पाया.

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. मांबेटी ने सारी रात बुरे खयालों के साथ करवटें बदलते काटी. उन्हें जरा बहुत उम्मीद थी कि शायद सुबह को राहुल वापस आ जाए, लेकिन उसे नहीं आना था, सो नहीं आया. नतीजतन जल्द ही उन के सामने यह सच आ गया कि राहुल वाकई एक नंबर का ठग था और उस की बताई सारी बातें झूठी थीं. 15 लाख का तो दुख अपनी जगह था ही, लेकिन उस से भी बड़ा दुख यह था कि राहुल मृणालिनी को कहीं का नहीं छोड़ गया था.

कुछ दिन मृणालिनी और उन की मां ने राहुल के वापस आने की झूठी उम्मीद में काटे. लेकिन धोखा खाई मृणालिनी का दिल जानता था कि उस पर क्या गुजर रही है. मां की भी हालत ठीक नहीं थी. उन्होंने जिस आदमी पर बेटे जैसा भरोसा किया, वही सब कुछ लूट कर भाग गया था. महिलाओं का अकेलापन कभीकभी कैसे अभिशाप बन जाता है, यह मांबेटी की हालत देख कर समझा जा सकता था.

लेकिन मृणालिनी खामोश नहीं बैठी. कुछ ही दिनों में उन्होंने खुद को संभाल लिया और एक दिन ‘वी केयर फार यू’ के दफ्तर जा पहुंची, जो इंदौर में पीडि़त महिलाओं की मदद के लिए जाना जाता है. ‘वी केयर फार यू’ की इंचार्ज इंस्पेक्टर सीमा मलिक ने मृणालिनी की दास्तान सुनी और लिखित दरख्वास्त ले ली. परेशानी यह थी कि मृणालिनी के पास राहुल की कोई पुख्ता पहचान नहीं थी. ईमेल किया हुआ केवल एक फोटो भर था, जिस के सहारे राहुल को ढूंढ़ पाना भूसे के ढेर में सुई ढूंढऩे जैसी बात थी. दूसरा जरिया राहुल का मोबाइल नंबर था, जो लगातार बंद जा रहा था.

लंबे वक्त तक जब वी केयर फार यू मृणालिनी के लिए कुछ नहीं कर पाया तो वह अक्तूबर के शुरू में इंदौर के आईजी संतोष कुमार सिंह से मिलीं और सारी बात उन्हें बताईं. संतोष कुमार सिंह ने इस मामले को पूरी गंभीरता से लेते हुए थाना क्राइम ब्रांच के प्रभारी कैलाशचंद पाटीदार को सौंप दिया. कैलाशचंद पाटीदार ने अपनी टीम बना कर ठग राहुल की खोजबीन शुरू कर दी. राहुल तक पहुंचने का एकमात्र जरिया उस का मोबाइल नंबर था, जो 26 जुलाई से ही बंद था.

पुलिस टीम ने जब उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो हैरान रह गई, क्योंकि उस में जितने भी नंबर थे, वे सभी ऐसी महिलाओं के थे, जो अधेड़ थीं. इन में से कुछ से बातचीत करने पर राहुल का असली चेहरा सामने आ गया. वह एक पेशेवर और शातिर ठग था, जो अखबारों के वैवाहिक विज्ञापन देख कर उम्रदराज और हालात की मारी महिलाओं से संपर्क कर के शादी की पेशकश करता था और जहां बात जम जाती थी, वहां इसी तरह शादी कर लेता था.

लेकिन शादी कर के वह किसी के साथ जन्म भर नहीं, बल्कि 7 दिनों या 7 सप्ताह तक ही रहता था. इसी बीच वह अपनी बीवियों का मालमत्ता लपेट कर रफूचक्कर हो जाता था. मृणालिनी के मामले में भी उस ने ऐसा ही किया था. ज्यादा हैरान कर देने वाली दूसरी बात यह थी कि वह हर एक लडक़ी को अलग मोबाइल नंबर देता था, पर फोटो सभी को एक ही भेजता था. हां, अपना नाम जरूर सब को अलगअलग बताता था.

पुलिस टीम के सामने नई परेशानी यह थी कि ठगी की शिकार लड़कियां पूरा सच बताने में हिचकिचा रहीं थीं. वजह थी लोकलाज और बदनामी का डर. अधिकांश ने यह भी कहा था कि राहुल ने उन्हें ठगा भर है. उन से शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे. जैसे ऐसा कहने भर से उन्हें कोई चरित्र प्रमाण पत्र प्राप्त हो रहा हो. जाहिर है, यह खुद को खुद के पाकसाफ होने का दिलासा देने वाली बात थी.

बहरहाल, पुलिस के सामने राहुल की असल पहचान का संकट अभी भी मुंह बाए खड़ा था. कोई भी पीडि़ता पुख्ता तौर पर उस के बारे में जानकारी नहीं दे पा रही थी. आखिरकार काल डिटेल्स खंगालते- खंगालते जांच टीम की नजर एक मिसकाल पर पड़ी. इसे छोड़ कर राहुल ने दूसरे सभी नंबरों पर बात की थी. करने को कुछ और था नहीं, लिहाजा पुलिस वालों ने इसी मिसकाल को टारगेट किया. वजह उस के दूसरे तमाम नंबर फर्जी तरीके से हासिल किए गए निकल रहे थे. हर एक को ठगने या शादी करने के बाद वह इस्तेमाल किया नंबर हमेशा के लिए बंद कर देता था.

जब इस मिसकाल वाले नंबर की जांच की गई तो वह विदिशा का निकला. इस की जानकारी ले कर क्राइम ब्रांच ने विदिशा जा कर दबिश दी तो यह नंबर किसी राम नायडू का निकला, जो विदिशा की कृष्णा कालोनी में रहता था. काफी मशक्कत के बाद इस राम नायडू नाम के शख्स को पुलिस टीम ने इंदौर के ही नौलखा इलाके से गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल कर ली.

राहुल दीक्षित और राम नायडू का क्या संबंध है यह पहेली सुलझाने में पुलिस को ज्यादा देर नहीं लगी. पता चला कि राम नायडू ही राहुल दीक्षित था, जिस के कई और भी नाम थे.

पूछताछ में पता चला कि राम नायडू के पिता पी. वेंकटेश्वर आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे. पहले वह नागपुर में सेना में नौकरी करते थे. रिटायरमेंट के बाद वह बीएसएनएल में टैक्नीशियन के पद पर काम करने लगे थे. उन्होंने विदिशा में ही मकान बना लिया था. जब पुलिस ने राम नायडू उर्फ राहुल दीक्षित की जन्मकुंडली टटोली तो कई चौंका देने वाली बातें सामने आईं.

राम नायडू विदिशा में ही पैदा हुआ था, लेकिन उस के पिता ने पढ़ाई के लिए उसे भोपाल में रहने वाले उस के मामा ईश्वर प्रसाद के पास भेज दिया था. भोपाल में उस का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में करा दिया गया था. पढ़ाई में राम नायडू ठीकठाक था.

स्कूली पढ़ाई के बाद उस ने एम.पी. नगर प्रैस कौंप्लेक्स के पास नवीन कालेज में दाखिला ले लिया था. जब वह बीए के दूसरे साल में था तो उसे रंगमंच का शौक लग गया. अपनी चाहत पूरी करने के लिए वह देशभर में मशहूर भोपाल के कला केंद्र रवींद्र भवन से जुड़ गया. यहां उस की मुलाकात मशहूर कलाकार आलोक चटर्जी से हुई.

बड़े और प्रसिद्ध कलाकारों का सान्निध्य और प्रोत्साहन मिला तो उस का ध्यान पढ़ाई से उचट गया. वह मुंबई जा कर फिल्म इंडस्ट्री में जमने के सपने देखने लगा. राम नायडू चूंकि महत्त्वाकांक्षी था, इसलिए वह पढ़ाई अधूरी छोड़ कर मुंबई चला गया.

इश्क के दरिया में जुर्म की नाव – भाग 2

दूसरे सुषमा ने टिंकू वाली बात पुलिस को बताई तो शशिबाला उस के कान में खुसरफुसर क्यों कर रही थी? इस का मतलब यह हुआ कि शशिबाला और टिंकू की इस बीच फोन पर भी बातचीत होती रही होगी. इन सब बातों से शशिबाला पर इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह का शक का दायरा बढ़ता जा रहा था.

पहले तो पुलिस यही समझ रही थी कि इंद्रपाल के साथ टिंकू भी गायब है, लेकिन अब यह बात साफ हो चुकी थी कि टिंकू कहीं और रह रहा है. वह कहां रह रहा है, इस बात को शशिबाला जरूर जानती होगी. इसलिए इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने शशिबाला से ही टिंकू के बारे में पूछताछ की तो उस ने साफसाफ कह दिया कि उसे नहीं पता कि अब वह कहां रह रहा है?

जिस समय पुलिस शशिबाला से पूछताछ कर रही थी, सुषमा भी वहीं थी. तभी सुषमा के फोन की घंटी बजी. सुषमा ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से टिंकू की आवाज आई.   सुषमा को पता था कि पुलिस टिंकू से पूछताछ करना चाहती है, इसलिए उस ने अपने फोन के स्पीकर पर हथेली रखी, ताकि उस की आवाज टिंकू तक न पहुंचे.

फिर वह इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह से आहिस्ता से बोली, ‘‘सर, टिंकू का फोन आया है.’’

जितेंद्र सिंह ने उस से धीरे से कहा, ‘‘उसे तुम किसी तरह शास्त्री पार्क बुला लो.’’

सुषमा ने ऐसा ही किया. उस ने टिंकू से बात करनी शुरू की तो टिंकू ने कहा, ‘‘सुषमा जी, मैं आप से एक जरूरी बात करना चाहता हूं.’’

सुषमा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम शास्त्री पार्क बस स्टौप पर आ जाओ. मैं भी वहीं पहुंच रही हूं.’’

इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने सुषमा द्वारा टिंकू से कही गई बात सुन ली थी, इसलिए वह 2-3 पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सुषमा के साथ शास्त्री पार्क बस स्टौप पर पहुंच गए. पुलिस टीम सादा लिबास में थी.

सुबह साढ़े 10 बजे के करीब वहां एक युवक पहुंचा. वह जैसे ही सुषमा से बात करने लगा तो पुलिस ने सोचा कि यही टिंकू होगा, उसे दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम टिंकू बताया. उसे ले कर पुलिस थाने पहुंची तो उस से पहले शशिबाला थाने से जा चुकी थी. वह वहां से क्यों और कहां गई, यह बाद की बात थी. उस से पहले इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने टिंकू से इंद्रपाल के बारे में मालूमात की.

टिंकू पहले तो उन के सामने झूठ बोलता रहा. लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उस का झूठ ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने इंद्रपाल की हत्या करने के बाद उस की लाश को तीसरे पुश्ते के पास डाल दिया है. टिंकू ने बताया था कि उस की हत्या 18 मार्च को ही कर दी गई थी.

उस की लाश को जंगल में डाले हुए 6 दिन हो गए थे. लाश को कहीं जंगली जानवर वगैरह न खा गए हों, इसलिए पुलिस टिंकू को साथ ले कर तीसरे पुश्ते की तरफ चल दी. पुलिस के साथ इंद्रपाल के चाचा और चचेरा भाई भी था.

पुलिस तीसरे पुश्ते के पास यमुना खादर पहुंची और वहां टिंकू की निशानदेही पर झाडि़यों से प्लास्टिक का एक कट्टा बरामद किया. उस कट्टे का मुंह एक रस्सी से बंधा हुआ था. टिंकू ने बताया कि इंद्रपाल की लाश इसी कट्टे में है.  इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने फोन कर के क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी वहां बुलवा लिया. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के सामने जब उस कट्टे को खोला गया तो उस के अंदर रस्सी से लपेटा हुआ एक और कट्टा निकला.

उस कट्टे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लेकिन उस लाश का सिर गायब था. सिर के बारे में टिंकू से पूछा गया तो उस ने कहा कि सिर को जानवर खा गए होंगे. यह बात जितेंद्र सिंह के गले नहीं उतरी, क्योंकि जब प्लास्टिक के कट्टे रस्सी से बंद थे तो जानवर सिर कैसे खा सकते थे. इस का मतलब टिंकू उन से झूठ बोल रहा था. उन्होंने उस से सख्ती की तो उस ने बताया कि सिर पाइपलाइन के पास खादर में पानी के एक गड्ढे में डाल दिया था.

पुलिस वहां से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर टिंकू की बताई जगह पर पहुंची. वहां गैस पाइपलाइन के पास पानी से भरे एक गड्ढे में एक पौलीथिन की थैली दिखाई दी. उस थैली को निकलवाया गया तो उस में सिर निकला. सुषमा और इंद्रपाल के रिश्तेदारों ने उस की पहचान इंद्रपाल के सिर के रूप में की.

पुलिस ने इंद्रपाल के सिर और धड़ को कब्जे में ले कर पंचनामा करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाने लौट कर इंद्रपाल की गुमशुदगी के मामले को हत्या कर लाश को छिपाने की धाराओं में दर्ज कर लिया.

अब पुलिस यह जानना चाह रही थी कि जिस इंद्रपाल के साथ टिंकू की गहरी दोस्ती थी, उसी इंद्रपाल के उस ने टुकड़े क्यों कर दिए? यह जानने के लिए पुलिस ने टिंकू से पूछताछ की तो इंद्रपाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस की वजह उस की बीवी शशिबाला निकली.

इंद्रपाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के कस्बा सिंभावली के नजदीक बसे गांव भगवानपुर का रहने वाला था. सन 1999 में उस की शादी जिला हापुड़ के ही गांव पटना मुरादपुर की रहने वाली शशिबाला से हुई थी.   जिस दिन शशिबाला की शादी हुई थी, उसी दिन उस की छोटी बहन सुषमा की शादी विक्रम के साथ हुई थी. यानी दोनों बहनों की शादी एक ही मंडप के नीचे हुई थी.

शादी के 7 साल बाद भी शशिबाला जब मां नहीं बनी तो वह बहुत टेंशन में रहने लगी. इंद्रपाल भी परेशान रहता था. उस ने बीवी का इलाज करवाया. जिस की वजह से उस पर कुछ लोगों का कर्ज भी हो गया.   वह गांव में खेतीकिसानी करता था. इस काम से उसे अपने ऊपर का कर्ज उतरने की कोई उम्मीद नहीं थी. इसलिए उस ने दिल्ली जा कर कमाने की सोची. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में काम करते थे, इसलिए वह भी दिल्ली आ गया.

वह मामूली पढ़ालिखा था, इसलिए उसे उस की इच्छा के मुताबिक नौकरी नहीं मिली. तब उस ने मजबूरी में बेलदारी करनी शुरू कर दी. दिल्ली में इस काम के बदले उसे जो मजदूरी मिल रही थी, वह उस के हिसाब से अच्छी थी. इसलिए कुछ दिनों बाद ही वह पत्नी शशिबाला को भी दिल्ली लिवा लाया और उत्तरपूर्वी दिल्ली के न्यू उस्मानपुर में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

ठगी का बड़ा खिलाड़ी – भाग 2

करीब आधे घंटे बाद अजय पंडित से उन के मिलने की बारी आ गई. औपचारिक बातचीत के बाद उस ने पूछा, “इन लोगों ने बताया तो था आप के काम के बारे में, लेकिन आप खुद विस्तार से मुझे बताइए कि आप चाहते क्या हैं?”

“सर, मुझे करीब 2 सौ करोड़ का लोन चाहिए.”

सुरेंद्र की बात पर अजय इस तरह मुसकराया, जैसे यह बहुत छोटी बात हो. उस ने कहा, “2 सौ ही क्यों, आप 3 सौ करोड़ का लोन ले लीजिए. ऐसी कई विदेशी कंपनियां हैं, जो भारत में अपना पैसा निवेश करना चाहती है. बस, उन्हें गारंटी चाहिए, वह आप के लिए हम ले लेंगे. ब्याज भी केवल 7 प्रतिशत होगा. अभी पिछले महीने उन्होंने दिल्ली की एक पार्टी को 2 सौ करोड़ रुपए दिए भी हैं.”

यह सुन कर सुरेंद्र गुप्ता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

“बात करोड़ों की है, इसलिए एक बार कल मैं उन लोगों से बात कर लेता हूं. अगर उन्होंने कहीं इन्वैस्टमेंट नहीं किया होगा तो आप अपना काम पक्का समझिए.” कुछ पल रुक कर उस ने आगे कहा, “हां, एक जरूरी बात, कस्टम, पुलिस क्लियरैंस और सभी फाइल चार्ज आप को देने होंगे.”

“वह मैं दे दूंगा.” सुरेंद्र गुप्ता ने उत्साह से कहा. अच्छे माहौल में बातचीत के बाद सुरेंद्र खुशीखुशी वापस आ गए.

अजय के साथियों ने एक सप्ताह बाद ही सुरेंद्र गुप्ता को बता दिया कि उन का काम हो जाएगा. कागजी औपचारिकताओं और कमीशन के नाम पर पहली किश्त के रूप में उन्होंने एक करोड़ रुपए अजय तक पहुंचा दिए. इस के साथ अपने कुछ फोटो, प्रौपर्टी दस्तावेजों की फोटोकौपी भी दे दी थी.

अगले कुछ महीनों में कस्टम, पुलिस क्लीयरेंस, सिक्योरिटी और अन्य कमीशन के नाम पर उन्होंने 3 करोड़ रुपए और भी दे दिए. 3 सौ करोड़ के लोन के लिए यह रकम कुछ भी नहीं थी. इतना बड़ा लोन उन्हें मिलने जा रहा था, यही क्या कम था. इस बीच कई तरह के फार्म जो कस्टम, बैंकों और विदेशी मनी ट्रांसफर की सरकारी परमीशन से संबंधित थे, सुरेंद्र गुप्ता से हस्ताक्षर करा लिए गए थे.

कई बार इंसान जैसा सोचता है, वैसा होता नहीं. लोन मिलने की उम्मीद में समय और तारीखें बढ़ती चली गईं. सुरेंद्र बहुत खुश थे, लेकिन उन की खुशी को पहला झटका तब लगा, जब अजय के साथियों ने उन्हें नजरंदाज करना शुरू कर दिया. आशंकित हो कर सुरेंद्र गुप्ता ने अपने स्तर से अजय पंडित के बारे में पता लगाना शुरू किया, लेकिन उस के रसूख में कहीं कोई शक नहीं हुआ.

उन के एक परिचित ने यह जरूर कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें ठग लिया गया हो? यह ख्याल मन में आते ही उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अजय के साथियों से भी बात की. वे काम के लिए तो हामी भरते रहे, लेकिन टरकाते भी रहे. अजय से मिलने की उन्होंने कई कोशिशें कीं, लेकिन वीआईपी सुरक्षा के चक्रव्यूह में उन का उस से मिलना नहीं हो सका. वह हर बार नाकाम रहे. किसी से बात भी होती तो नेताओं का रौब दिखा दिया जाता.

सुरेंद्र ने जो रकम दी थी, वह कोई छोटी रकम नहीं थी. धीरेधीरे जब विश्वास हो गया कि उन्हें ठग लिया गया है तो वह बेचैन हो उठे. अजय पंडित भले ही रसूख वाला था, लेकिन करोड़ों रुपए की ठगी का मामला था, इसलिए सुरेंद्र भी कैसे चुप बैठते. उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का फैसला कर लिया. इस के बाद वह करनाल के एसपी पंकज नैन से मिले और उन्हें आपबीती सुनाई. पुलिस ने उन्हें शीघ्र काररवाई का आश्वासन दिया.

शिकायत पर गहराई से विचार कर के पुलिस अधिकारियों ने आपस में विचारविमर्श किया. पुलिस ने अजय के बारे में जानकारियां जुटाईं तो पता चला कि उस के बड़ेबड़े नेताओं से संबंध हैं. वह काफी उच्चस्तर पर संबंध रखने वाला आदमी है. उस की पैठ न केवल हर बड़ी पार्टी में हैं, बल्कि पुलिस प्रशासन, नौकरशाहों और उद्योगपतियों से भी उस के अच्छे रिश्तों की बात सामने आ रही थी.

निस्संदेह वह ऊंची पहुंच वाला आदमी था. ऐसे आदमी पर बिना पर्याप्त सबूत या एफआईआर के हाथ डालना संभव नहीं था. इस से पुलिस की काररवाई शुरू होने से पहले ही खत्म हो सकती थी. इसी छानबीन में पुलिस रिकौर्ड से पता चला कि सन 2013 में पानीपत शहर में अजय के खिलाफ नौकरी के नाम पर 20 लाख रुपए की ठगी का एक मामला दर्ज हुआ था. यह मामला अदालत में चल रहा था. इस से पुलिस का यह शक पुख्ता हो गया कि अजय राजनीतिक संबंधों की आड़ में लोगों के साथ ठगी कर रहा है.

इस के बाद थाना मधुबन में सुरेंद्र गुप्ता की तहरीर पर भादंवि की धारा 420 और 506 के तहत मामला दर्ज हो गया. इस के बाद अधिकारियों ने विचारविमर्श के बाद उस की गिरफ्तारी का फैसला कर लिया. प्रदेश पुलिस के मुखिया यशपाल सिंघल और आईजी हनीफ कुरैशी ने भी इस मामले में काररवाई के निर्देश दे दिए. इस के लिए एक स्पैशल इन्वैस्टीगेशन टीम भी बना दी गई. इस टीम में कई तेजतर्रार पुलिसकॢमयों को शामिल करते हुए इस की कमान डीएसपी जितेंद्र गहलावत को सौंप दी गई. अब पुलिस उसे घेरने की कोशिश में जुट गई.

16 जनवरी, 2016 को पुलिस ने चंडीगढ़अंबाला रोड पर अजय को पूछताछ के बहाने बुलाया गया तो उस ने अपनी पहुंच का हवाला दे कर पुलिस को रौब में लेने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने उस के प्रभाव में आए बिना उसे गिरफ्तार कर लिया. जबकि पुलिस ने इस गिरफ्तारी की तत्काल किसी को भनक नहीं लगने दी और अदालत में पेशी के बाद उसे 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

प्राथमिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे साथ ले कर छतरपुर स्थित फार्महाउस पर छापा मारा तो वहां से सुरेंद्र गुप्ता द्वारा दिए गए 2 करोड़ रुपए बरामद हो गए. हरियाणा पुलिस के लिए किसी मामले में अब तक बरामद की गई सब से बड़ी रकम थी. इसी के साथ अजय की गिरफ्तारी की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई.

पुलिस तब चौंके बिना नहीं रह सकी, जब उस के सामने 2 और ऐसे शिकायतकर्ता आ गए, जो अजय पंडित की ठगी का शिकार हुए थे. उन में से करनाल के वीरेंद्र सिंह से गैस एजेंसी और पैट्रोल पंप दिलाने के नाम पर डेढ़ करोड़ रुपए ठगे गए थे, जबकि पुणे के आर.एस. यादव से केंद्र सरकार में नेशनल सिक्योरिटी कमीशन में मेबर बनवाने के नाम पर 50 लाख रुपए की रकम ऐंठी गई थी.

पुलिस ने इन दोनों मामलों में भी मुकदमा दर्ज कर लिया और अजय पंडित से विस्तृत पूछताछ की. इस बीच उसे 21 जनवरी को पुन: अदालत में पेश किया गया. इस बार भी उसे 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

अजय पंडित से पूछताछ और उस के कारनामों की चर्चाओं एवं जांचपड़ताल में जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इसलिए चौंकाने वाली थी, क्योंकि एक नौवीं फेल शख्स ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और शातिर दिमाग के बल पर इतनी ऊंची पहुंच बना ली थी, जिस की जल्दी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.

देह की राह के राही – भाग 2

25 वर्षीया सुमन सिंह अपने 3 साल के बेटे तनुष के साथ उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के नंदग्राम में मंजू शर्मा के मकान में किराए पर रहती थी. उस के मकान का किराया 3 हजार रुपए महीना था. उस के पिता नत्थू सिंह अपनी पत्नी विमलेश और 4 बच्चों के साथ गाजियाबाद के इंद्रापुरम के न्यायखंड-3 में रहते थे.

नत्थू सिंह मूलरूप से मुरादनगर के रहने वाले थे. जहां वह चाट का ठेका लगाते थे. यह उन का पुश्तैनी धंधा था. गाजियाबाद आ कर भी उन्होंने अपने इसी काम को तरजीह दी और यहां वह अपना चाट का ठेला अपने एकलौते बेटे की मदद से न्यायखंड की मेन बाजार में लगाने लगे. यहां भी उन का धंधा बढि़या चल रहा था.

बच्चों में सुमन सब से बड़ी थी, इसलिए मांबाप की कुछ ज्यादा ही लाडली थी. लाड़प्यार से वह जिद्दी होने के साथसाथ बेलगाम भी हो गई थी. चाट के ठेले से इतनी कमाई नहीं होती थी कि नत्थू सिंह अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला पाते. लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उस के बच्चे अनपढ़ थे. जरूरत भर की शिक्षा उस ने सभी को दिला रखी थी.

कहा जाता है कि बेटी के सयानी होने की जानकारी मातापिता से पहले पड़ोसियों को हो जाती है. नत्थू सिंह की बेटी सुमन भी सयानी हो गई थी, बेटी वैसे ही जिद्दी और बेलगाम थी. कोई ऊंचनीच हो, नत्थू सिंह और विमलेश उस से पहले ही उस के हाथ पीले कर उसे विदा कर देना चाहते थे.

विमलेश ने जब इस बारे में नत्थू सिंह से बात की तो उस ने कहा, ‘‘मैं तो पूरा दिन घर से बाहर काम में लगा रहता हूं. अगर तुम्हीं कोई ठीकठाक लड़का देख कर शादी तय कर लो तो ज्यादा ठीक रहेगा. मेरे आनेजाने से नुकसान ही होगा.’’

इस तरह नत्थू सिंह ने यह जिम्मेदारी पत्नी पर डाल दी. विमलेश तेजतर्रार थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं ही कुछ करती हूं.’’

विमलेश ने कहा ही नहीं, बल्कि लड़के की तलाश भी शुरू कर दी. उस ने अपने तमाम रिश्तेदारों एवं परिचितों से सुमन के लायक लड़का बताने के लिए कह दिया.

विमलेश की यह कोशिश रंग लाई और जल्दी ही इस का सुखद नतीजा सामने आ गया. किसी से उसे पता चला कि गांव के रिश्ते की एक मौसी का एकलौता बेटा परवीन शादी लायक है. वह दिल्ली नगर निगम के उद्यान विभाग में माली था. उस के पिता सहदेव की मौत हो चुकी थी. यहां वह परिवार के साथ फरीदाबाद के लक्कड़पुर में रहता था.

सरकारी नौकरी वाला लड़का था, वेतन तो ठीकठाक था ही, उस के साथ भविष्य भी सुरक्षित था. यही सोच कर नत्थू सिंह और विमलेश ने परवीन के साथ सुमन की शादी फरवरी, 2008 में अपनी हैसियत के हिसाब से दहेज दे कर कर दी.

विदा हो कर सुमन ससुराल आ गई. तेजतर्रार, सपनों में जीने वाली सुमन ने जैसे पति की कामना की थी, परवीन उस का एकदम उलटा था. साधारण शक्लसूरत वाला परवीन बहुत ही सीधा था. वह न तो किसी से ज्यादा बातचीत करता था और न ही किसी से ज्यादा मेलजोल रखता था. अपने काम से काम रखने वाले परवीन का रवैया पत्नी के प्रति भी ऐसा ही था. शादी के बाद भी उस की इस आदत में कोई बदलाव नहीं आया तो सुमन परेशान रहने लगी.

सुमन तो अपनी ही तरह का खुशमिजाज पति चाहती थी, जो खुद भी हंसताबोलता रहे और दूसरों को भी बोलबोल कर हंसाता रहे. शाम को साथ घूमने जाने को कौन कहे, परवीन घर में भी सुमन से प्यार के 2 शब्द नहीं बोलता था. जब तक घर में रहता, मौनी बाबा की तरह चुप बैठा रहता. बोलता भी तो सिर्फ जरूरत भर की बात करता. पति की इस आदत से सुमन जल्दी ही ऊब गई.

सुमन को परवीन के साथ जिंदगी बोझ लगने लगी और घुटन सी होने लगी तो वह उसे छोड़ कर मायके आ गई. हालांकि अब तक वह परवीन के 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की 5 साल की बेटी तनु थी और 3 साल का बेटा तनुष. मात्र 6 साल ही उस का यह वैवाहिक संबंध चला था.

सुमन के घर वालों ने ही नहीं, परवीन के घर वालों ने भी बहुत कोशिश की कि परवीन और सुमन एक बार फिर साथ आ जाएं, लेकिन सुमन इस के लिए कतई तैयार नहीं हुई. दोनों बच्चे भी उसी के साथ थे. नत्थू सिंह का अपना छोटा सा मकान था, जिस में 9 लोग नहीं रह सकते थे. इस के अलावा सुमन को पता था कि मांबाप के घर से विदा होने के बाद अगर किसी वजह से बेटी वापस आ जाती है तो उसे पहले जैसा सम्मान नहीं मिलता.

सुमन के आने से रहने में तो परेशानी हो ही रही थी, मांबाप पर खर्च का बोझ भी बढ़ गया था. इसलिए अपने और बच्चों के गुजरबसर के लिए उस ने जोरशोर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी. परिणामस्वरूप जल्दी ही उसे गाजियाबाद की एक गारमेंट फैक्टरी में ‘पैकर’ की नौकरी मिल गई. रोजीरोटी का जुगाड़ हो गया तो समस्या आई रहने की, क्योंकि उस छोटे से घर में उतने लोगों का रहना मुश्किल हो रहा था.

सुमन की मां विमलेश ने गाजियाबाद के ही नंदग्राम इलाके में रहने वाली अपनी एक मुंहबोली बहन बबिता उर्फ पारो से बात की तो उस ने अपनी जिम्मेदारी पर मंजू शर्मा के मकान में पहली मंजिल के हिस्से को 3 हजार रुपए महीने के किराए पर दिला दिया. सुमन उसी मकान में अपने 3 वर्षीय बेटे तनुष के साथ रहने लगी, जबकि बेटी मांबाप के साथ रहती थी.

सुमन की जिंदगी पटरी पर आ रही थी कि एकाएक उस की नौकरी चली गई, जिस से जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी से उतर गई. सुमन के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. नौकरी चली जाने से वह आर्थिक परेशानियों में घिर गई. अब उसे मकान का किराया भी देना पड़ रहा था  मातापिता भी कब तक सहारा देते. संकट की इस घड़ी में एक बार फिर सहारा दिया मुंहबोली मौसी बबिता ने. उसी ने सुमन की दोस्ती धूकना गांव के रहने वाले राजीव त्यागी से करा दी, जो उस का पूरा खर्च उठाने लगा.

राजीव त्यागी के पिता सत्येंद्र त्यागी की नंदग्राम में बिजली के सामान की दुकान थी, जिसे बापबेटे मिल कर चलाते थे. दुकान ठीकठाक चलती थी, इसलिए राजीव के पास पैसों की कमी नहीं थी. पैसे वाला होने की वजह से सुमन का खर्च उठाने में उसे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी.

राजीव और सुमन का लेनदेन का यह संबंध प्यार में बदला तो सुमन को लगने लगा कि राजीव उस से शादी कर लेगा. वह राजीव से शादी करना भी चाहती थी, क्योंकि राजीव ठीक वैसा था, जैसा पति वह चाहती थी. लेकिन वह राजीव की पत्नी बन पाती, उस के पहले ही 3 जून, 2014 को उस की हत्या हो गई.

रात 9 बजे के आसपास मकान मालकिन मंजू शर्मा किसी काम से पहली मंजिल पर गईं तो उन्होंने देखा, सुमन का कमरा खुला पड़ा है. उन्होंने कमरे में झांका तो दरवाजे के पास ही वह चित पड़ी दिखाई दी. उस की चुन्नी गले में लिपटी थी, इसलिए उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उस की हत्या की गई है. उन्होंने इस बात की जानकारी पड़ोसियों को दे कर सुमन की हत्या की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दिला दी.

पंजाब की डाकू हसीना – भाग 2

इंसपेक्टर अरविंद सिंह ने इस की जानकारी सीपी मनदीप सिंह सिद्धू को दी. थोड़ी देर बाद जिले के तमाम पुलिस अफसर, एफएसएल टीम और मीडिया मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस अब इस बात की खोजबीन करने में जुट गई थी कि बदमाश वाहन यहीं क्यों छोड़ कर फरार हुए? किनकिन रास्तों से होती हुई ये वैन यहां तक पहुंची?

पुलिस ने जहांजहां संभावना थी, वहां के सीसीटीवी की फुटेज खंगाली मगर फुटेज में इस की कहीं तसवीर नहीं दिखी थी. इस से पुलिस का शक पुख्ता हो गया कि बदमाशों ने राष्ट्रीय राजमार्ग इस्तेमाल करने के बजाए गांव के रास्तों का इस्तेमाल किया था ताकि पुलिस उन तक किसी कीमत में न पहुंच सके. कुल मिला कर इस घटना ने पुलिस महकमे को हिला कर रख दिया था. पूरे दिन की जांच का कोई खास नतीजा नहीं निकला था. मतलब ये था पुलिस की जांच जहां से चली थी, वहीं आ कर खड़ी थी.

कर्मचारी मनजिंदर पर हुआ शक

अगले दिन यानी 11 जून, 2023 को पुलिस को एक चौंकाने वाली जानकारी मिली. सीएमएस कंपनी में करीब 300 कर्मचारी काम करते थे. पुलिस ने सभी वर्कर्स को सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक घटना का खुलासा नहीं हो जाता, तब कोई भी वर्कर न तो छुट्टी करेगा और न ही शहर छोड़ कर बाहर जाएगा. ऐसे में कंपनी का एक पुराना कर्मचारी मनजिंदर सिंह उर्फ मनी निवासी अब्बुवाल थाना डेहलो, लुधियाना काम पर नहीं आया था और घटना वाले दिन भी घर पर नहीं था. और तो और उस का फोन भी बंद आ रहा था.

प्रबंधक प्रवीण ने इस की जानकारी एडिशनल पुलिस कमिश्नर शुभम अग्रवाल को दे दी थी. एडिशनल सीपी अग्रवाल ने इंसपेक्टर सिंह को उस पर कड़ी नजर रखने की सख्त हिदायत दी, क्योंकि कंपनी में घटित घटना के बाद से उस का हावभाव कुछ अलग तरीके का ही दिख रहा था. ये बात मैनेजर प्रवीण को पता नहीं क्यों अजीब लग रही थी, इसीलिए उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को दे दी थी.

अब तक तक की जांच में पुलिस के शक की सूई बारबार वहीं जा कर टिक जा रही थी, जहां से संदिग्ध हालत में सीएमएस की कैश वैन बरामद की गई थी. पुलिस को अनुमान था कि लूटकांड से जुड़े लुटेरे इसी इलाके के इर्दगिर्द होंगे या छिपे होंगे. उस के बाद पुलिस ने उस इलाके के चारों ओर अपने मुखबिरों का जाल फैला दिया.

इस का सकारात्मक रिजल्ट पुलिस को मिला भी. मुखबिरों द्वारा पुलिस को सूचना मिली की कैश वैन बरामद स्थल से करीब 5 किलोमीटर की रेंज में कुछ लुटेरों की हलचल दिखी है, अगर सतर्कता बरती जाए तो लुटेरे काबू में किए जा सकते हैं. मुखबिर की इस सूचना के बाद पुलिस और ज्यादा सक्रिय हो गई थी और सादे वेश में जगरांव गांव में चारों तरफ फैल गई थी.

मुखबिर की निशानदेही पर गांव के बाहर झुरमुट में 2 युवक छिपे दिखे तो पुलिस ने दोनों युवकों, जिन की उम्र 25 से 30 के करीब थी, को हिरासत में ले ली. उन से मौके पर ही कड़ाई से पूछताछ करनी शुरू की. क्योंकि खबरी ने पुलिस को पक्की जानकारी थी कि लूटकांड के 2 आरोपी उक्त जगह छिपे बैठे हैं और उन के पास बड़ी रकम भी मौजूद है, जिसे काले रंग के पौलीथिन रख कर एक गड्ढे के भीतर छिपा रखे हैं.

दोनों आरोपियों ने खोल दिया डकैती का राज

कड़ाई से की गई पूछताछ में दोनों युवकों ने अपना नाम मंदीप सिंह उर्फ विक्की और हरविंदर सिंह उर्फ लंबू बताया. दोनों युवक कोठे हरिसिंह गांव के थे. पुलिस ने दोनों पर जब थोड़ी लगाम और कसी तो उन्होंने डर के मारे ऐसे राज उगल दिए, जिसे सुन कर पुलिस वाले ऐसे उछले थे जैसे उन्होंने बहुत बड़ी जंग फतह कर ली हो.

पुलिस के सामने विक्की और लंबू दोनों हाथ जोड़े गिड़गिड़ा उठे कि उन्हें मारना मत, वह सब सचसच बता देंगे. उस के बाद दोनों में से एक विक्की ने गड्ढे खोद कर उस में छिपा कर रख काले रंग की 2 पौलीथिन निकाल कर उन की ओर बढ़ा दीं. पुलिस वालों ने जल्दीजल्दी पौलीथिन खोल कर देखी तो उन के होश उड़ गए थे. दोनों पैकेट में 500-500 रुपए की गड्डियां थीं. ये वही रकम थी, जो 2 दिन पहले सीएमएस कंपनी में डकैती के दौरान उन्होंने लूटी थी.

एक पैकेट में 500 रुपए के 10 बंडल तो दूसरे पैकेट में 500 रुपए के 15 बंडल थे. हरेक बंडल में 5 लाख रुपए थे, जो प्लास्टिक की रस्सी से अलगअलग बंधे हुए थे. यह कुल रकम 1 करोड़ 25 लाख रुपए की हो रही थी, जिस में 75 लाख रुपए लंबू के थे और 50 लाख रुपए विक्की के थे.

मतलब मुखबिर ने पुलिस को जो सूचना दी थी शत प्रतिशत पक्की थी. 7 करोड़ रुपए लूट के असल आरोपी पुलिस के हाथ लग चुके थे. यह देख पुलिस की खुशी का ठिकाना नहीं था, पुलिस रुपए से भरे पैकेट और दोनों आरोपियों को अपने कब्जे में ले कर सराभा थाने ले आई.

दोनों आरोपियों से गहन पूछताछ शुरू की तो 7 करोड़ डकैती का पूरा मामला खुल कर सामने आ गया, लेकिन पुलिस ने इस बात को अतिगोपनीय ही रखा, ताकि मामला लीक न हो सके, नहीं तो बाकी के आरोपी फरार हो सकते थे.

खैर, इंसपेक्टर अरविंद सिंह ने लूटकांड के 2 आरोपियों के सवा करोड़ रुपए के साथ गिरफ्तार करने और मामले का खुलासा होने की सूचना कप्तान मनदीप सिंह सिद्धू को दिया तो वे खुशी से उछल उठे. इस के बाद उन्होंने उन्हें कुछ खास हिदायत दी और जौइंट पुलिस कमिश्नर सौम्या मिश्रा, एडिशनल पुलिस कमिश्नर शुभम अग्रवाल को आरोपियों से आगे की पूछताछ के लिए थाने भेज दिया.

अन्य आरोपियों की हुई धड़ाधड़ गिरफ्तारी

अपने कप्तान का आदेश पा कर दोनों अधिकारी थाने पहुंच कर गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों विक्की और लंबू से कड़ाई से पूछताछ शुरू की तो पूरा मामला परत दर परत खुलता गया. पूछताछ में विक्की और लंबू ने बताया कि लूटकांड की मास्टरमाइंड मनदीप कौर उर्फ मोना उर्फ डाकू हसीना है. उसी के इशारे पर यह डकैती डाली गई थी. मोना का साथ सीएमएस कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी मनजिंदर सिंह उर्फ मनी ने दिया था. इस के अलावा 6 और लोग घटना में शामिल थे.

सनद रहे, पुलिस का शक पहले से ही मनजिंदर सिंह पर शक था. उस के बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर अब्बुवाल से मनजिंदर सिंह उर्फ मनी को गिरफ्तार कर उस से डेढ़ करोड़ रुपए, परमजीत सिंह उर्फ पम्मा को गिरफ्तार कर उस के पास से 25 लाख रुपए, नरिंदर सिंह उर्फ हैप्पी को गिरफ्तार उस से 25 लाख रुपए और हरप्रीत सिंह को गिरफ्तार कर उस के पास से 25 लाख रुपए कैश बरामद किया.

उक्त चारों से पूछताछ के बाद पता चला कि अरुण कुमार कोच नामक एक और आरोपी के घर के पास खड़ी क्रूज गाड़ी में 2 करोड़ 25 लाख रुपए रखे हैं. पुलिस इन की निशानदेही पर क्रूज गाड़ी और उस में से एक करोड़ 55 लाख रुपए ही बरामद कर सकी थी. कार का शीशा तोड़ कर किसी ने 70 लाख रुपए गायब कर दिए थे.

6 आरोपियों से पुलिस ने कुल 5 करोड़ 7 सौ रुपए बरामद किए थे. इन 6 के अलावा 5 और आरोपी मनदीप कौर उर्फ मोना उर्फ डाकू हसीना, उस का पति जसविंदर सिंह, अरुण कुमार कोच, आदित्य कुमार उर्फ नन्नी और गौरव कुमार उर्फ गुलशन अभी भी पुलिस की पकड़ से बहुत दूर थे.

ऐसे पकड़ में आई डाकू हसीना

इन आरोपियों के पास कितनी नकदी है, किसी को पता नहीं था. अलबत्ता पुलिस कमिश्नर सिद्धू ने मास्टरमाइंड मनदीप कौर और उस के पति को गिरफ्तार करने के लिए सीआईए (काउंटर इनवैस्टीगेशन एजेंसी) के प्रभारी बेअंत जुनेजा और इंसपेक्टर कुलवंत सिंह को लगा दिया था.