शशिबाला पहली बार दिल्ली आई थी. यहां आ कर उस का भी मन लग गया. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. मां बनने के बाद इंद्रपाल और शशिबाला की खुशी का ठिकाना न रहा. उन के दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. इस के बाद शशिबाला एक और बेटी की मां बनी. 2 बच्चों के जन्म के बाद भी शशिबाला के हुस्न में जबरदस्त आकर्षण था. बल्कि इस के बाद तो उस के रूप में और भी निखार आ गया था.
इंद्रपाल जिस ठेकेदार के साथ काम करता था, उस का नाम टिंकू था. टिंकू बिहार के जिला मुंगेर के पहाड़पुर गांव के रहने वाले मुदीन सिंह का बेटा था. बीए पास टिंकू 3 साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था. काफी कोशिश के बाद जब उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो उस ने कंस्ट्रक्शन कंपनियों में लेबर सप्लाई का काम शुरू कर दिया. कंस्ट्रक्शन ठेकेदारों के संपर्क में रहरह कर उसे भी मकान बनवाने के काम का अनुभव हो गया. फिर उस ने भी बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के ठेके लेने शुरू कर दिए.
इंद्रपाल कुछ दिनों से टिंकू के साथ ही काम कर रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. टिंकू का काम उस्मानपुर में चल रहा था. वह वहीं अपने रहने के लिए किराए का कमरा देख रहा था, ताकि अपने काम पर नजर रख सके. किराए के कमरे के बारे में उस ने इंद्रपाल से बात की. इंद्रपाल न्यू उस्मानपुर के गौतम विहार में पवन शर्मा के यहां रहता था. उस ने 2 कमरे किराए पर ले रखे थे.
उस ने टिंकू से कहा, ‘‘मेरे पास 2 कमरे हैं. चाहो तो तुम उन में से एक कमरा ले सकते हो. एक में मेरा परिवार रह लेगा.’’
टिंकू जब उस का कमरा देखने गया तो इंद्रपाल ने अपनी बीवी को बताया कि यह हमारे ठेकेदार हैं और इन्हें हमारा कमरा पसंद आ गया तो यह यहीं रहेंगे. ठेकेदार के घर आने पर शशिबाला ने उस की जम कर खातिरदारी की. 29 साल का टिंकू शशिबाला की मेहमाननवाजी से बहुत प्रभावित हुआ. उसे इंद्रपाल का कमरा भी पसंद आ गया तो अगले दिन से वह वहां रहने लगा.
टिंकू कमरे पर अकेला रहता था. उस की आमदनी अच्छी थी, इसलिए वह जी खोल कर पैसे खर्च करता था. चूंकि शशिबाला बराबर वाले कमरे में रहती थी, इसलिए उस की बेटियों के लिए वह अकसर खानेपीने की चीजें लाता रहता था. जिस की वजह से दोनों बच्चियां उस से घुलमिल गई थीं. कभीकभी वह शराब पीता तो इंद्रपाल को भी अपने कमरे पर बुला लेता था. फ्री में शराब मिलने पर इंद्रपाल की भी मौज आ गई थी.
इंद्रपाल जो कमाता था, उस से उस के घर का गुजारा तो हो जाता था, लेकिन वह बीवीबच्चों की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था. जबकि टिंकू बहुत ठाठबाट से रहता था. 32 साल की शशिबाला की भी कुछ ख्वाहिशें थीं. पति की कमाई से उसे ख्वाहिशें पूरी होती नजर नहीं आ रही थीं. इसलिए उस ने अपने कदम टिंकू की तरफ बढ़ा दिए.
टिंकू जवान और अविवाहित था. अनुभवी शशिबाला ने अपने हुस्न के जाल में उसे जल्द ही फांस लिया. उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. यह करीब एक साल पहले की बात है.
अपनी उम्र से छोटे टिंकू के साथ संबंध बन जाने के बाद शशिबाला को अपना 40 वर्षीय पति बासी लगने लगा. अब वह उस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती. इंद्रपाल सुबह का घर से निकलने के बाद शाम को ही लौटता था, जबकि टिंकू का जब मन होता घर आ जाता था. मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इस तरह दोनों का यह खेल चलता रहा.
टिंकू अब शशिबाला को आर्थिक सहयोग भी करने लगा था. इस के अलावा वह उस के पसंद के कपड़े आदि भी खरीदवा देता. शशिबाला भी उस की खूब सेवा करती. पत्नी की बेरुखी को इंद्रपाल समझ नहीं पा रहा था. वह पत्नी से इस की वजह पूछता तो वह उलटे उस पर झुंझला जाती. तब इंद्रपाल उस की पिटाई कर देता. अगर उस समय टिंकू घर पर होता तो बीचबचाव कर देता और नहीं होता तो शशिबाला को वह जम कर धुन डालता था.
पति द्वारा आए दिन पिटने से शशिबाला आजिज आ चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे पति की पिटाई से कैसे निजात मिले. टिंकू के सामने उस की प्रेमिका की पिटाई हो, यह बात उसे अच्छी नहीं लगती थी. शशिबाला चाहती थी कि वह हमेशा टिंकू के साथ ही पत्नी की तरह रहे. लेकिन इंद्रपाल के होते हुए ऐसा मुमकिन नहीं था.
इस बारे में उस ने टिंकू से भी बात की तो टिंकू ने उसे भरोसा दिलाया कि समय आने दो, सब कुछ ठीक हो जाएगा. शशिबाला जानती थी कि टिंकू जो कहता है, उस काम को पूरा जरूर कर देता है. इसलिए उसे विश्वास था कि वह पति से छुटकारा दिलाने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा.
होली के मौके पर टिंकू ने इंद्रपाल के बीवीबच्चों पर खूब खर्च किया. खानेपीने के सामान के अलावा उस ने बच्चों को भी रंग और उन की पसंद की पिचकारियां दिलवाईं. बड़ी हंसीखुशी से त्यौहार मनाया. इंद्रपाल को भी जम कर शराब पिलाई.
18 मार्च, 2014 को इंद्रपाल का नशा उतरा तो किसी बात को ले कर उस की पत्नी से कहासुनी हो गई. उस समय दोनों बेटियां छत पर खेल रही थीं. दोनों के बीच झगड़ा बढ़ा तो इंद्रपाल ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. इत्तफाक से टिंकू उस समय कमरे पर ही था. शोरशराबा सुन कर टिंकू वहां पहुंच गया. उस ने जब इंद्रपाल को रोकना चाहा तो इंद्रपाल ने उल्टे उसे ही झटक दिया. इस पर टिंकू को भी गुस्सा आ गया. उस ने इंद्रपाल को जोर से धक्का दिया तो इंद्रपाल का सिर दीवार से टकरा गया.
दीवार से सिर टकराने पर इंद्रपाल बेहोश हो कर नीचे गिर गया. यह देख कर टिंकू और शशिबाला घबरा गए. उन दोनों ने सोचा कि इंद्रपाल शायद मर चुका है.
शशिबाला ने टिंकू से कहा, ‘‘अब सब कुछ तुम्हें ही संभालना है, मैं अभी अपनी बहन सुषमा के घर जा रही हूं. जब काम हो जाए तो फोन कर देना.’’
इंद्रपाल को ठिकाने लगाने का टिंकू के पास इस से अच्छा मौका नहीं था. उस ने उसी समय दोनों हाथों से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद इंद्रपाल का शरीर ठंडा पड़ता गया. इंद्रपाल की हत्या के बाद उस के सामने इस बात की समस्या यह थी कि लाश को ठिकाने कहां लगाए. तब तक शशिबाला दोनों बेटियों को ले कर वहां से 200 मीटर दूर जयप्रकाश नगर में रहने वाली सुषमा के यहां चली गई थी.
कुछ देर सोचने के बाद टिंकू ने नांगलोई के चंदन विहार में रहने वाले अपने दोस्त संदीप को फोन कर के कहा, ‘‘यार संदीप, इस समय मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं. तू इसी समय मेरे कमरे पर आ जा.’’
23 वर्षीय संदीप भी मूलरूप से टिंकू के ही गांव का रहने वाला था. वह 3 साल पहले ही दिल्ली आया था. फिलहाल वह टिंकू के साथ ही राजमिस्त्री का काम कर रहा था. दोस्त टिंकू की परेशानी की बात सुन कर संदीप तुरंत अपने कमरे से निकल गया और रात करीब 8 बजे टिंकू के कमरे पर पहुंच गया.