भारी पड़ी प्रेमी से शादी करने की जिद – भाग 2

निर्मला की लाश पर कुरती के अलावा केवल पैंटी थी. ऐसी हालात में महिला पति या प्रेमी के साथ ही रह सकती है. हो सकता है, दोनों में किसी बात को ले कर तकरार हुई हो. बाद में वह बाथरूम में नहाने गई होगी तभी उस के साथी ने उस की हत्या कर दी. पुलिस प्रेम प्रसंग और प्रापर्टी हड़पने के मामले को ध्यान में रखते हुए भी जांच कर रही थी.

निर्मला ने कुछ पैसे इकट्ठे कर के बाहरी दिल्ली के नरेला क्षेत्र में एक आवासीय प्लाट खरीदा था, जिस की कीमत अब काफी बढ़ चुकी है. इसलिए यह भी अनुमान लगाया जा रहा था कि किसी ने प्रापर्टी हड़पने के लिए उसे मार दिया हो. निर्मला का पति मेहरूलाल सोनीपत के गन्नौर थाने के अंतर्गत पुगथला गांव में रहता था. यह काम उस के पति ने तो नहीं कर दिया, यह जानने के लिए पुलिस ने मेहरूलाल को थाने बुला कर पूछताछ की.

मेहरूलाल ने पुलिस को बताया कि सन 2004 से उस का निर्मला से कोई वास्ता नहीं है. वह कहां रहती है, क्या करती है इस से उसे कोई मतलब नहीं. उस की हत्या के बारे में भी उसे कोई जानकारी नहीं है. निर्मला के पड़ोसियों से पुलिस ने पूछा. तो पता चला कि निर्मला के यहां एक आदमी आता था. वह आदमी कौन है यह तो पता नहीं लेकिन वह वकीलों की तरह काला कोट पहन कर आता था.

निर्मला अस्पताल में बने फ्लैट नंबर 108 में 7-8 महीने पहले ही आई थी. यहां आने से पहले वह अस्पताल के बराबर में मुस्कान हौस्टल में किराए पर रहती थी. हौस्टल में रहने वाले लोगों से बात की तो उन्होंने भी बताया कि निर्मला से मिलने एक वकील आता था. वह वकील कौन था, कहां रहता था, पुलिस को पता नहीं चला.  इस बारे में पुलिस ने एक बार फिर मृतका के भाई आनंद कुमार से बात की. बहन से मिलने कौन वकील जाता था इस की जानकारी आनंद कुमार को भी नहीं थी.

सघन तफ्तीश करते हुए 2 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस के हाथ ऐसा कोई क्लू नहीं मिल रहा था जिस से हत्यारे तक पहुंचा जा सके. पुलिस ने निर्मला के मोबाइल फोन की कालडिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला जिस पर निर्मला की काफीकाफी देर तक बातें होती थीं. जाहिर है वह शख्स निर्मला का कोई नजदीकी ही रहा होगा तभी तो वह उस से ज्यादा बातें करती थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की छानबीन की तो पता चला कि वह हरियाणा के सोनीपत जिले के राठघना रोड निवासी विश्वबंधु का था.

पुलिस ने विश्वबंधु के बारे में गोपनीय रूप से जांच की तो पता चला कि वह एक वकील है जो हरियाणा की सोनीपत कोर्ट और दिल्ली की तीसहजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करता है. यह जानकारी मिलते ही जांच टीम चौंक गई कि निर्मला से उस के फ्लैट पर मिलने के लिए एक वकील जाता था. कहीं वो वकील विश्वबंधु ही तो नहीं है.

चूंकि विश्वबंधु एक वकील था इसलिए पुलिस बिना कोई ठोस सुबूत के उसे गिरफ्तार करने से कतरा रही थी. पुलिस नहीं चाहती थी कि वकील के गिरफ्तार करने पर कोई हंगामा खड़ा हो.  विश्वबंधु के बारे में सोनीपत और दिल्ली में जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस ने 25 सितंबर, 2014 को उसे हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उस से नर्स निर्मला देवी की हत्या की बाबत बात की तो उस ने बताया कि उस की हत्या से उस का कोई लेनादेना नहीं है.

थानाप्रभारी यशपाल सिंह ने उसे निर्मला के फोन की काल डिटेल्स दिखाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी निर्मला से वक्त बेवक्त क्या बातें होती थीं?’’

‘‘निर्मला मेरी क्लाइंट थी. उस ने अपने पति के खिलाफ कोर्ट में जो केस डाल रखे थे, उन्हें मैं ही देख रहा था. उन के केसों के बारे में ही उस से बातें होती थीं.’’ एडवोकेट विश्वबंधु ने कहा.

‘‘जितनी देर तक तुम्हारी निर्मला से बातें होती थीं, मुझे नहीं लगता कि वह बातें केस के बारे में होती होंगी. मान भी लें कि तुम उस से केस के सिलसिले में बातें करते थे तो निर्मला के अलावा तुम्हारे और भी क्लाइंट हैं, क्या तुम उन से भी इतनी देर बातें करते हो?’’

‘‘यह जरूरी नहीं है कि सभी क्लाइंटों की समस्या एक जैसी हो. केस को ले कर निर्मला कभीकभी ज्यादा परेशान हो जाती थी तो वह मुझे फोन कर के अपनी परेशानी बता देती थी. इंसपेक्टर साहब इस से ज्यादा मुझे निर्मला से कोई मतलब नहीं था. आप मुझे इस मामले में बेजवह घसीट रहे हैं.’’ विश्वबंधु बोला.

‘‘वकील साहब, तुम भले ही झूठ बोलो लेकिन ऐसी कोई तो खास वजह है जिस से तुम निर्मला के घर आते थे, वहां रुकते थे.’’

‘‘ये आप क्या कह रहे हैं?’’

‘‘हमें तुम्हारे बारे में काफी जानकारी मिल चुकी है. इसलिए तुम हम से सच्चाई छिपाने की कोशिश मत करो. 17 सितंबर को तुम्हारी निर्मला से फोन पर आखिरी बार बात हुई थी. उस दिन के बाद  निर्मला की फोन पर किसी से बात नहीं हुई. अब बेहतर यही होगा कि वकील साहब तुम हकीकत खुद ही बता दो.’’

इतना सुनने के बाद विश्वबंधु खामोश हो गया. इंसपेक्टर यशपाल सिंह से इजाजत ले कर वह सिगरेट पीने लगा. कुछ ही देर में उस ने कई सिगरेट पी डालीं. उस समय वह काफी तनाव में दिख रहा था. थानाप्रभारी उस की बौडी लैंग्वेज देख कर सारा माजरा समझ रहे थे. उन्होंने भी उस से कुछ नहीं कहा. कुछ देर बाद विश्वबंधु को पुलिस के सामने मजबूरन स्वीकार करना पड़ा कि निर्मला देवी की हत्या उस ने ही की थी.

एडवोकेट विश्वबंधु से पूछताछ के बाद नर्स निर्मला देवी की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली….

निर्मला देवी हरियाणा के सोनीपत जिले के थाना खरखौदा के गांव बरौना के रहने वाले चंदर सिंह की बेटी थी. बताया जाता है कि अपनी 7 बहनों में वह मंझली थी. 7 बहनों के बीच एक ही भाई था आनंद कुमार.  चंदर सिंह एक संपन्न किसान थे. वह गांव में रहते जरूर थे लेकिन उन की सोच अन्य गांव वालों से अलग थी. उसी सोच की बदौलत उन्होंने अपने सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई.

निर्मला ने स्टाफ नर्स की पढ़ाई की. इस के बाद 1994 में दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में उस की नौकरी लग गई. बाद में उस के भाई आनंद कुमार की भी एक बैंक में अधिकारी के पद पर नौकरी लग गई.  लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में नौकरी लगने के बाद निर्मला अस्पताल के बराबर में ही स्थित मुस्कान हौस्टल में रहने लगी.

जैसेजैसे बच्चे सयाने होते गए, चंदर सिंह ने उन की शादी कर दी. 15 मार्च 1999 को उन्होंने निर्मला की शादी भी सोनीपत जिले के ही गन्नौर थाने के अंतर्गत स्थित गांव पुगथला के रहने वाले मेहरूलाल के साथ कर दी. शादी के कुछ दिनों बाद से ही निर्मला के पति से मतभेद शुरू हो गए. जिस की आंच उन के रिश्ते पर आनी शुरू हो गई. इस बीच निर्मला ने एक बेटे को जन्म दिया.

भारी पड़ी प्रेमी से शादी करने की जिद – भाग 1

निर्मला देवी दिल्ली में स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल में नर्स थी. वह मूल रूप से हरियाणा के सोनीपत जिले के बरौना गांव की रहने वाली थी. पिता की मौत हो चुकी थी. घर पर मां और भाईबहन थे. उन से मिलने वह हर शनिवार दिल्ली से अपने गांव चली जाती थी. लेकिन 20 सितंबर, 2014 को वह गांव नहीं पहुंची तो छोटे भाई आनंद कुमार ने निर्मला को फोन किया. आनंद कुमार खरखौदा में स्थित एक बैंक में औफिसर हैं. आनंद कुमार ने उस का फोन नंबर मिलाया लेकिन घंटी बजने के बाद भी निर्मला ने फोन नहीं उठाया.

आनंद कुमार ने सोचा कि वह शायद किसी काम में व्यस्त होगी इसलिए उस ने थोड़ी देर बाद बहन को फिर फोन किया. इस बार भी निर्मला के फोन की घंटी बज रही थी लेकिन वह फोन नहीं उठा रही थी. आनंद कुमार ने ऐसा कई बार किया. कई बार फोन करने के बाद भी निर्मला ने फोन नहीं उठाया तो आनंद ने यह बात अपनी मां को बताई. बेटी फोन क्यों नहीं उठा रही, यह सोच कर मां भी परेशान हो उठीं. शाम तक निर्मला के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो घर के सभी लोग चिंतित हो गए.

निर्मला लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल परिसर में बने जिस फ्लैट में रहती थी, वह आनंद कुमार ने देखा ही था, इसलिए बहन को देखने के लिए वह अपने दूसरे बहनोई को ले कर रात साढ़े 9 बजे के करीब उस के फ्लैट नंबर 108 पर पहुंच गए. यह फ्लैट तीसरी मंजिल पर स्थित था. फ्लैट के बाहर जो लोहे का दरवाजा लगा हुआ था उस की कुंडी बाहर से बंद थी.

आनंद कुमार ने कुंडी खोली तो दूसरे जाली वाले दरवाजे की कुंडी भी बाहर से बंद मिली. इस तरह कुंडी लगा कर वह कहां चली गई वह बुदबुदाने लगे. जालीदार दरवाजे की कुंडी खोल कर वह फ्लैट में दाखिल हुए. कमरे का बल्ब जल रहा था और कूलर भी चल रहा था लेकिन वहां निर्मला दिखाई नहीं दी. उन्हें कमरे का सामान बिखरा हुआ जरूर दिखाई दिया. यह देख कर आनंद कुमार की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह कमरे के बाद बालकनी में पहुंचे.

निर्मला वहां भी नहीं दिखी तो किचिन में देखने के बाद वह आवाज लगाते हुए बाथरूम की तरफ बढ़े. बाथरूम में घुप्प अंधेरा था. उन्होंने अपने मोबाइल फोन की रोशनी बाथरूम में डाली तो उन की चीख निकल गई. निर्मला औंधे मुंह वहां पड़ी थी.

उस का सिर पानी से भरी बाल्टी में डूबा हुआ था. इस के अलावा उस के सिर पर पानी से भरी एक टब रखी हुई थी और वह अर्द्धनग्नावस्था में थी. आनंद कुमार ने बहन को कई आवाजें दीं और उस के शरीर को हिलायाडुलाया. जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह समझ गए कि किसी ने बहन की हत्या कर दी है. यह देख कर आनंद कुमार और उस के बहनोई सकते में आ गए कि निर्मला के साथ यह सब किस ने किया है?

आनंद ने सामने के फ्लैट नंबर 107 में रहने वाले पवन को आवाज दे कर बुलाया और घटना के बारे में बताया. इस के बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को खबर कर दी कि किसी ने उन की बहन को मार दिया है. घर पर मां भी निर्मला का इंतजार कर रही थीं. आनंद कुमार ने अपनी मां को भी फोन कर के बता दिया कि निर्मला को किसी ने मार दिया है. बेटी की हत्या की बात सुन कर मां भी दहाड़े मार कर रोने लगीं.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल मध्य जिला के आई.पी. एस्टेट थानाक्षेत्र में आता है. अस्पताल परिसर में एक पुलिस चौकी भी है. पुलिस कंट्रोल रूम से यह खबर अस्पताल की पुलिस चौकी और आईपी एस्टेट थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही चौकी इंचार्ज विवेक सिंह एएसआई तसबीर सिंह और हेड कांस्टेबल अजीत सिंह को ले कर फ्लैट नंबर 108 पहुंच गए. तब तक फ्लैटके बाहर आसपास के लोग भी इकट्ठे हो गए थे.

चौकी इंचार्ज विवेक सिंह ने देखा कि निर्मला देवी का सिर पानी से भरी बाल्टी में डूबा हुआ था. वह कुरती और पैंटी पहने हुए थी. उस की कुरती के साथ की सलवार बेड पर रखी हुई थी. घर में रखा सामान भी कमरे में इधरउधर पड़ा था. उन्होंने पूरे हालात से थानाप्रभारी यशपाल सिंह को अवगत करा दिया. तो वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. नर्स निर्मला की हत्या की सूचना उन्होंने एसीपी सुकांत बल्लभ और अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार को भी दे दी.

थोड़ी ही देर में थानाप्रभारी के अलावा जिले के अन्य पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया. टीम ने मौके से कई महत्त्वपूर्ण सुबूत इकट्ठे किए. मौके का मुआयना करने के बाद पुलिस अधिकारियों को इस बात का तो पक्का विश्वास हो गया कि हत्यारा मृतक का परिचित ही रहा होगा क्योंकि दरवाजे की जांच करने के बाद यही लगा कि हत्यारे की क्वार्टर में फें्रडली एंट्री हुई थी.

पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि क्या दिल्ली में अकेले रहने के दौरान निर्मला का किसी के साथ प्यार का कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था? अगर ऐसा है तो क्या मर्डर में उसी प्रेमी का हाथ तो नहीं? क्योंकि बाथरूम में जिस तरह अर्द्धनग्नावस्था में उस की लाश मिली थी उस से यही संकेत मिल रहा था.

कमरे में जो सामान इधरउधर पड़ा हुआ था उस से साफ संकेत मिल रहे थे कि हत्या करने के बाद हत्यारे ने कोई चीज ढूंढ़ी हो. मृतका के भाई आनंद कुमार से पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ कर जानना चाहा कि उस की किसी से दुश्मनी वगैरह तो नहीं थी.

आनंद कुमार ने बताया कि निर्मला की वैसे तो किसी से दुश्मनी नहीं थी, मगर उस के पति से दहेज प्रताड़ना व प्रापर्टी हड़पने और तलाक का केस चल रहा था. वह यहां पर अकेली रहती थी. आनंद कुमार से प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने निर्मला देवी की लाश का पंचनामा तैयार कर के पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस घटना के बाद अन्य फ्लैट में रह रही नर्सों में भी भय व्याप्त हो गया.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आलोक कुमार ने हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी सुकांत बल्लभ के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी यशपाल सिंह, अतिरिक्त थानाप्रभारी अशोक कुमार, एसआई विवेक सिंह, एएसआई तसबीर सिंह, विजेंद्र, हेडकांस्टेबल अजीत सिंह, कांस्टेबल अमित कुमार, किरन पाल आदि को शामिल किया गया.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त ने हौजकाजी के थानाप्रभारी जरनैल सिंह और मध्य जिला के स्पेशल स्टाफ की टीम को भी इस मामले की जांच में लगा दिया.  जांच शुरू करते ही पुलिस टीम ने सब से पहले निर्मला के मायके वालों से ही पूछताछ की तो पता चला कि वह सन 2004 से अपने पति मेहरूलाल से अलग रह रही थी. उन दोनों का 14 साल का बेटा था, जो पिता मेहरूलाल के साथ ही रहता था.

उन के बयानों से यह बात निकल कर आई कि निर्मला के जीवन में कुछ न कुछ उथलपुथल थी. 18 सितंबर को निर्मला ने अपनी छोटी बहन नन्हीं देवी को फोन कर के बताया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. वह जी.बी. पंत अस्पताल में इलाज कराने जा रही है. जिस विभाग में निर्मला की ड्यूटी थी, वहां से पता चला कि वह 18 और 19 सितंबर को अपनी ड्यूटी पर भी नहीं आई थी.

निर्मला के साथ काम करने वाली अन्य नर्सों ने बताया कि निर्मला का व्यवहार सामान्य रहता था. पड़ोसियों ने बताया कि वह किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखती थी और घर का दरवाजा भी अकसर बंद रखती थी.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 4

सितंबर महीने में एजाज की मुलाकात बरेली की रहने वाली एक अन्य युवती आबिदा (परिवॢतत नाम) से हुई तो उस ने उसे अपने प्रेमजाल में फांस लिया. इस के पीछे भी उस का मकसद था. वह आसमा को हमेशा के लिए छोड़ कर उस युवती से निकाह कर के आगरा में अपना ठिकाना बनाना चाहता था. क्योंकि आगरा स्थित एयरबेस की सूचनाएं उसे जुटानी थीं.

आसमा उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. इस बोझ से भी वह छुटकारा पाना चाहता था. दिली मोहब्बत तो उसे नई महबूबा से भी नहीं थी. अपना कौंट्रैक्ट पूरा कर के फरवरी, 2016 में उसे पाकिस्तान चले जाना था.

अपने मिशन के तहत उस ने भारतीय वायुसेना द्वारा मिराज विमान की यमुना एक्सप्रेस वे पर की गई इमरजैंसी लैंडिंग  संबंधी वीडियो, बरेली छावनी स्थित विभिन्न इकाइयों की जानकारी, बरेली एयरबेस व सुखोई-30 फाइटर जैट की जानकारी, हरिद्वार, मेरठ छावनी सैन्य इकाइयों के स्कैच व उन के मूवमेंट आदि की जानकारी आईएसआई को उपलब्ध करा दी थी. भारत में होने वाली सांप्रदायिक घटनाओं की पूरी जानकारी भी वह पाकिस्तान भेजता था.

भारत में आतंकी गतिविधियों और जासूसी के मामलों में खुफिया एजेंसियां और स्पैशल टास्क फोर्स जांचपड़ताल में जुटी रहती हैं. इसी कड़ी में पुलिस महानिदेशक जगमोहन यादव को कुछ खुफिया सूचनाएं मिलीं तो उन्होंने एसटीएफ के आईजी सुजीत पांडेय को वह सूचनाएं दे दीं. उन्होंने उन से उन सूचनाओं पर काम करने को कहा. आईजी पांडेय ने वे सूचनाएं अधीनस्थों को निर्देशित कर दीं.

एसटीएफ के एसएसपी अमित पाठक ने प्रदेश भर की यूनिटों को सतर्क कर दिया. ये सूचनाएं पाकिस्तान में सोशल नेटवॄकग साइटों के जरिए संपर्क करने की थीं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसा एजेंट सक्रिय था, जो देश की रक्षा महत्त्व की सूचनाएं पाकिस्तान भेज रहा था. इस से खुफिया एजेंसियां, आर्मी इंटेलीजैंस आदि सतर्क हो गईं.

कई महीने तक बारीकी से पड़ताल की गई. इसी पड़ताल में कलाम पर नजर गई. उस की सोशल आईडी और मेल की जांच की गई. जब विश्वास हो गया कि कलाम पाकिस्तान से जुड़ा है और उस की गतिविधियां संदिग्ध हैं तो उस का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की बातचीत सुनी गई. इस सब से पता चला कि वह 3 भाषाएं जानता है और भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम दे रहा है.

उस की जड़ों की गहराई तक पहुंचने के लिए उस के मोबाइल की डिटेल्स हासिल की गई तो उस की लोकेशन अलगअलग जिलों के अलावा दिल्ली की भी पाई गई. उस नंबर का इस्तेमाल वह पाकिस्तान में भी बातचीत के लिए कर रहा था. इसी दौरान पता चला कि उस का असली नाम एजाज है.

जब साफ हो गया कि उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं तो उसे दबोचने की योजना बनाई गई. उस के पीछे मुखबिरों को लगा दिया गया. जब पता चला कि वह महत्त्वपूर्ण दस्तावेज दिल्ली में अपने साथियों को पहुंचाने जाएगा, तो उस की लोकेशन पता की जाने लगी. सॢवलांस के जरिए उस की लोकेशन मेरठ की मिलनी शुरू हुई तो एसटीएफ ने बिना देरी किए टीम बना कर उसे दबोच लिया. एजाज बरामद दस्तावेजों को दिल्ली ले जा रहा था. गिरफ्तारी के बाद उस ने नपेतुले जवाब दे कर एसटीएफ को भी उलझा दिया, लेकिन रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में उस की परतें खुलने लगीं.

उस के परिवार के बड़े हस्तियों से रिश्तों का राज भी खुल गया. आईएसआई उसे अब तक 5 लाख 8 हजार रुपए दे चुकी थी. भारत में उस का खर्चा सीमित था और वह साधारण अंदाज में जीवनयापन कर रहा था, इसलिए दी गई रकम वह अपने परिवार को भिजवा चुका था. यह रकम उस के खाते में दुबई, सउदी अरब और जम्मूकश्मीर से ट्रांसफर की गई थी.

पुलिस ने वेस्ट बंगाल में एजाज के संरक्षणदाता रहे मोहम्मद इरशाद, उस के बेटे अशफाक, उस के भाई इरफान और जहांगीर को भी नामजद कर लिया था. उन की तलाश में एक टीम हवाई जहाज से कोलकाता भेजी गई. तत्काल शिकंजा कस कर इरशाद, अशफाक और जहांगीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि इरफान हाथ नहीं आ सका.

रिमांड के दौरान अदालत की अनुमति ले कर एजाज की उस के घर एक पीसीओ से बात कराई गई. उस ने अपनी मां और बहनों से बातचीत की. इस बातचीत को बतौर सबूत रिकौर्ड कर के रख लिया गया. रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने एजाज को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

एजाज से बरामद इलैक्ट्रौनिक यंत्रों को एफएसएल जांच के लिए सीबीआई की फोरैंसिक लैब भेज दिया गया. इस बीच आसमा के पिता बरेली पहुंचे और सामान के साथ बेटी को अपने साथ ले गए. आसमा का कहना था कि उसे पता नहीं था कि वह इस तरह धोखे का शिकार हो जाएगी. वह देश का बुरा चाहने वाले शौहर से अब कभी नहीं मिलेगी. वह कोख में पल रही उस की निशानी को जन्म तो देगी, लेकिन उसे अफसोस रहेगा कि वह ऐसे दुश्मन की निशानी है, जो मुल्क की तबाही के ख्वाब देख रहा था.

एसटीएफ ने आसमा और उस के पिता से भी पूछताछ की. एजाज के परिवार के पाकिस्तानी हस्तियों से रिश्तों से संबंधित रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी गई है. कथा लिखे जाने तक खुफिया एजेंसियां और एसटीएफ आईएसआई के भारत में फैले नेटवर्क को खत्म करने की कोशिश में लगी थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार का बदसूरत चेहरा

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 3

आईएसआई ने भारत में जासूसी करने के लिए उस से 3 सालों का कौंट्रैक्ट किया. इस के बदले उसे 50 हजार रुपए महीने देना तय हुआ. भारत में उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड की विभिन्न सैन्य व वायुसेना की इकाइयों से संबंधित गुप्त सूचनाएं, प्रतिबंधित महत्त्व के दस्तावेज और भारतीय सेना की गतिविधियों की सूचना एकत्र कर के आईएसआई को भेजना था.

इरादों को मजबूत कर के अपने मिशन को पूरा करने के लिए एजाज अपने पासपोर्ट के साथ कराची होते हुए 31 जनवरी, 2013 को ढाका पहुंचा. वहां उस की मुलाकात आईएसआई के एजेंट प्रोबीन से हुई. प्रोबीन ने उस से पाकिस्तानी पहचान संबंधी दस्तावेज हासिल कर के कहा, “जब मिशन पूरा कर के तुम वापस जाओगे, तब ये चीजें तुम्हें वापस मिल जाएंगी. वैसे मिशन को बड़ी होशियारी से अंजाम देना मियां, क्योंकि भारत की खुफिया एजेंसियां बहुत सतर्क रहती हैं.”

“फिक्र न कीजिए, मैं हर तरह से फिट हूं.” एजाज ने आत्मविश्वास से जवाब दिया.

प्रोबीन ने कुछ दिन उसे अपने पास रख कर सावधानी बरतने के गुर सिखाए. इस के बाद 9 फरवरी को नदी के रास्ते भारतबांग्लादेश सीमा पार करा दी. यहां उस की मुलाकात वेस्ट बंगाल के माटियाबुर्ज, साउथ चौबीस परगना निवासी इरशाद हुसैन से हुई. यहां उस ने कपड़ों की फेरी लगाने का काम किया और हिंदी सीखी. एजाज यहीं रह कर हिंदी लिखनेपढऩे और बोलने का पूरा अभ्यास किया.

इरशाद, उस का बेटा और 2 भाई आईएसआई के लिए काम करते थे. इरशाद ने उसे गोपनीय दस्तावेज पाकिस्तान भेजने के सारे गुर सिखाए. इस दौरान उसे नई पहचान देने के लिए उस का नाम मोहम्मद कलाम रख दिया गया. इसी नाम से उस के जूनियर हाईस्कूल के शैक्षिक प्रमाणपत्र बनवाए गए. उस का एक मतदाता पहचान पत्र व राशनकार्ड भी बनवाया गया, जिन के आधार पर सैंट्रल बैंक औफ इंडिया में उस का खाता खोलवा दिया गया. इन प्रमाण पत्रों पर उसे बिहार के नाड़ी गांव का निवासी बताया गया था.

नई पहचान के बाद वह बिहार के एक वीडियोग्राफर रईस के साथ काम करने लगा, क्योंकि यह काम वह पहले से जानता था. वीडियोग्राफी के काम से जुड़े रहने से उसे अपने मिशन में बेहद आसानी हो सकती थी. एजाज भारत के दिल्ली समेत कई इलाकों में घूमा. ऐसा कर के वह यहां की भौगोलिक स्थिति को समझना चाहता था. यहां आ कर उसे पता चला कि उस के जैसे तमाम जासूस हैं, लेकिन वे सब भारतीय हैं. उन के जरिए भी उसे काम लेने को कहा गया था.

उन्हीं के जरिए उस ने प्रमुख आर्मी एरिया का पता लगाया. आईएसआई जानना चाहती थी कि किनकिन छावनयिों में कौनकौन अधिकारी तैनात हैं. उन के व उन के परिवारों के कौंटैक्ट नंबर क्या हैं और आर्मीमैन किस तरह के अभ्यास करते हैं. यह सब इतना आसान नहीं था, लेकिन ट्रेङ्क्षनगशुदा होने के चलते एजाज ने अपने काम को अंजाम देना शुरू कर दिया.

कौंट्रैक्ट के लिहाज से उसे भारत में फरवरी, 2016 तक रहना था. लोगों के बीच आसानी से घुलनेमिलने और मकान किराए पर लेने के लिए वह चाहता था कि गृहस्थी बसा ली जाए. इस से शक की गुंजाइश कम हो जाती. इसी बीच उस की मुलाकात आसमा से हुई तो उस ने उस से मोहब्बत का नाटक कर के निकाह कर लिया. आसमा के पिता शमशेर की किराने की दुकान थी. एजाज ने भी उन की दुकान संभाली. इस के साथ ही वह वीडियोग्राफी छोड़ कर फेरी लगा कर कपड़े बेचने का काम करने लगा.

जनवरी, 2015 में वह बरेली आ गया. बरेली में सेना और वायुसेना की बड़ी विंग है. उन पर उसे काम करना था. बरेली में उस ने फोटो स्टूडियो वालों के साथ दिखावे के लिए काम शुरू कर दिया. वह कंप्यूटर का मास्टर था. सही बात यह थी कि वह फोटो व वीडियोग्राफी की आड़ में जासूसी कर रहा था.

बरेली आ कर उस ने चंद महीनों में ही 3 ठिकाने बदल दिए. उस पर किसी भी तरह का शक न हो, इस के लिए उसे करना जरूरी था. बाद में उस ने 6 जून को शाहबाद में वसीम उल्लाह का मकान किराए पर ले लिया. अब उसे अपने काम में आसानी हो गई. उस के साथी उस के संपर्क में रहते थे और सूचनाओं का आदानप्रदान करते रहते थे.

वह फेसबुक, वाइबर, स्काईप, ईमेल के जरिए संपर्क में रहता था. वह औडियोवीडियो कौङ्क्षलग करता था. मोबाइल इंटरनेट के जरिए वह लाइव तसवीरें भी आईएसआई को दिखाता था. उस ने अलगअलग नामों से इंटरनेट पर अपने कई सोशल एकाउंट बना रखे थे. अपने पाकिस्तानी आकाओं से वह रात में 11 से 2 बजे के बीच संपर्क करता था. मेल में वह मैसेज लिख कर फोटो व वीडियो अटैच कर के ड्राफ्ट बौक्स में डाल देता था. उस की मेल आईडी का पासवर्ड आईएसआई के पास भी होता था. वे उस में से मैसेज निकाल लेते थे.

भारतीय एजेंसियां चूंकि संदिग्ध मेल पतों की निगरानी करती हैं. इसलिए इस से बचने के लिए वह ऐसे तरीके अपनाता था. उस के आका पाकिस्तानी सीमा पर बने एक्सचेंज से (वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल) तकनीक के जरिए बात करते थे. इस से नंबर तो भारत का शो होता था, लेकिन बात पाकिस्तान में होती थी. कलाम ने फेसबुक पर भी अपने एकाउंट बना रखे थे. अपने फेसबुक दोस्तों की लिस्ट में उस ने लड़कियों, कालेजों के छात्रों और पुलिसकॢमयों को जोड़ा था.

आसमा कभी उस की हकीकत नहीं जान पाई. उसे ख्वाबों में भी गुमान नहीं था कि उस का शौहर पाकिस्तानी जासूस है. वह 7 माह की गर्भवती थी. एजाज ने घर पर भी कंप्यूटर लगा रखा था, जिस पर वह शादियों की वीडियो मिक्सिंग के साथ इंटरनेट के जरिए सूचनाओं का आदानप्रदान करता था.

आसमा सीधीसादी अनपढ़ युवती थी. इन सब बातों को वह समझ नहीं पाती थी. डूंगल के जरिए वह हाईस्पीड इंटरनेट कनेक्शन इस्तेमाल करता था. उस का सब से ज्यादा संपर्क आईएसआई के एसपी सलीम से था. अपने मिशन के लिए वह आगरा, मथुरा, मेरठ, दिल्ली, लैंसडाउन, रुडक़ी, सहारनपुर, रानीखेत, हरिद्वार, शाहजहांपुर व लखनऊ तक जाता था. जाते समय वह आसमा से यही बताता था कि शादी में वीडियोग्राफी करने बाहर जा रहा है.

कई स्लीङ्क्षपग मौड्यूल्स उस के संपर्क में रहते थे. वे ऐसे लोग थे, जो हाईलाइट हुए बिना रुपयों के लालच में जानकारी जुटा कर उसे देते थे. शाहबाद में रहते हुए उस ने एक दलाल के माध्यम से अपना आधार कार्ड भी बनवा लिया था. एजाज हंसमुख स्वभाव का था. वह लोगों से खूब मिलजुल कर रहता था. उस की असलियत से हर कोई बेखबर था. खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए उस ने पासपोर्ट बनवाने की कोशिश भी शुरू कर दी थी.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 3

पहले तो ओमवीर को विश्वास नहीं हुआ. उसे हसीन सपने दिखाने वाली पूजा किसी दूसरे से कैसे प्यार कर सकती है? लेकिन जब उसे पूजा के बदले व्यवहार की याद आई तो गुस्से में वह पागल हो उठा. क्योंकि उस ने दिमाग में बैठा लिया था कि पूजा उस की है और उसी की रहेगी. वह किसी दूसरे की कैसे हो सकती है. अपनी यह बात कहने के लिए वह पूजा से मिलने का मौका तलाशने लगा. पूजा उसे मिली तो उस ने उस का हाथ पकड़ कर चेतावनी वाले अंदाज में कहा, ‘‘पूजा, तुम ने मेरी मोहब्बत को ठुकरा कर अच्छा नहीं किया. एक बात याद रखना, मैं तुम्हें किसी दूसरे की कतई नहीं होने दूंगा.’’

पूजा ने झटके से हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आज के बाद अगर तुम ने मेरा रास्ता रोका तो ठीक नहीं होगा. मैं आज ही तुम्हारी शिकायत घर में करूंगी.’’

पूजा ने कहा ही नहीं, आ कर पिता से ओमवीर की शिकायत कर भी दी. अनोखेलाल ने ओमवीर की शिकायत नेम सिंह से की तो उस ने कहा, ‘‘तुम निश्चिंत रहो, मैं उसे समझा दूंगा.’’

नेम सिंह ने बेटे को समझाया जरूर, लेकिन उस के मन में क्या है, यह वह भी नहीं जान सका. ओमवीर प्रेमिका की बेवफाई की आग में जल रहा था. इस आग को शांत करने के लिए उस ने तय कर लिया कि अब वह उसे उस की बेवफाई की सजा जरूर देगा. उस का प्यार पूरी तरह नफरत में बदल चुका था. जबकि पूजा इस सब से बेखबर थी.

ओमवीर मौके की तलाश में था. 17 अक्तूबर, 2013 को वह पूजा के स्कूल जाने वाले रास्ते पर हंसिया ले कर खड़ा हो गया. पूजा अब निश्चिंत थी कि उस ने ओमवीर की शिकायत अपने पिता से कर दी है, इसलिए वह उस के रास्ते में नहीं आएगा. अनोखेलाल भी निश्चिंत था कि उस ने नेम सिंह से शिकायत कर दी है, इसलिए उस ने ओमवीर को डांटफटकार दिया होगा. जबकि ओमवीर अपनी जिद पर अड़ा था. नगला टिकुरिया से नगला भुलरिया तक जाने का रास्ता सुनसान रहता था. पूजा अपनी 2 सहेलियों के स्कूल जा रही थी. बीच रास्ते में आमेवीर ने उसे रोक कर कहा, ‘‘पूजा, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘यह क्या बदतमीजी है. मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ पूजा ने गुस्से में कहा.

ओमवीर ने हंसिया लहराते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो काट कर रख दूंगा.’’

हंसिया देख कर पूजा की सहेलियां बगल हो गईं. इस के बाद ओमवीर पूजा को खेत में खींच ले गया. दोनों लड़कियों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? वे कुछ करने की सोच ही रही थीं कि उन्हे पूजा की चीख सुनाई दी. वे समझ गईं कि क्या हुआ है. दोनों कालेज की ओर भागीं.  कालेज पहुंच कर उन्होंने प्रिंसिपल को पूरी बात बताई. प्रिंसिपल ने तुरंत पुलिस को फोन किया.

दूसरी ओर आमेवीर ने पूजा पर हंसिए से वार किया तो वह जान की भीख मांगने लगी. लेकिन ओमवीर पर तो शैतान सवार था. उस ने पूजा की गर्दन पर लगातार कई वार किए. जब उसे लगा कि पूजा मर गई है तो वह भाग निकला.

थोड़ी ही देर में पूरे इलाके में खबर फैल गई कि एक लड़के ने किसी लड़की की हत्या कर दी है. लोग वहां पहुंचने लगे. सूचना पा कर थाना अमांपुर पुलिस भी आ गई. अनोखेलाल ने भी सुना कि किसी लड़की की हत्या कर दी गई है तो उत्सुकतावश वह भी वहां पहुंच गया. जब उस ने लाश देखी तो पता चला कि वह तो उस की बेटी पूजा है. वह सिर पीटपीट कर रोने लगा.

घटनास्थल पर आई पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतका इसी की कोई है. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थाना अमांपुर के थानाप्रभारी ने जब अनोखेलाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मृतका उस की बेटी पूजा है. जिस की हत्या गांव के ही ओमवीर ने की है. सूचना पा कर एसपी विनय कुमार यादव, एएसपी आर.एन. शर्मा और सीओ सरबजीत सिंह भी आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने गांव वालों से पूछताछ की तो लोगों ने बताया कि आरोपी ओमवीर के पिता नेम सिंह पर भी कत्ल का मुकदमा चल रहा है. इस समय वह जमानत पर छूट कर आया है. उस ने मृतका के दादा की हत्या की थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अनोखेलाल की ओर से थाना अमांपुर पुलिस ने पूजा की हत्या का मुकदमा ओमवीर, उस के भाई मुकेश तथा पिता नेम सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. पुलिस ने उसी दिन रात को ओमवीर को गिरफ्तार कर लिया, जबकि मुकेश और नेम सिंह फरार हो गए थे. पूछताछ में ओमवीर ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या में प्रयुक्त हंसिया भी बरामद करा दिया था.

अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मुखबिरों की मदद से पुलिस ने 27 अक्तूबर, 2013 को लखीमपुर से मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया. उस से की गई पूछताछ के आधार नेम सिंह भी पकड़ा गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने इन दोनों को भी अदालत में पेश किया, जहां से इन्हें भी जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 2

दोनों कारें जिस तेजी से आई थीं, उसी तेजी से वहां से चलीं तो तकरीबन 15 मिनट बाद वे नजदीक के थाना सदर बाजार आ कर रुकीं. कार में सवार सभी लोग नीचे उतरे और उस युवक को नीचे उतार कर हवालात में डाल दिया. थाने में उस युवक के बैग और पर्स की तलाशी ली गई तो उस में से भारतीय सेना के गोपनीय दस्तावेज, राष्ट्रीय महत्व की कई गुप्त सूचनाएं, पहचान पत्र, बरेली व बिहार के पतों के वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, दिल्ली मैट्रो का ट्रैवलर कार्ड, भारत समेत 3 देशों की करेंसी, एटीएम कार्ड, 16 जीबी के पैनड्राइव और सिमकार्ड आदि चीजें मिलीं.

पुलिस ने उस के खिलाफ 3/9 औफिशियल सीक्रेट एक्ट, 14 विदेशी एक्ट व आईपीसी की धारा 467, 468, 471, 380, 420, 411 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

दरअसल, जिस युवक को पकड़ कर पुलिस लाई थी, वह कोई और नहीं, आसमा का शौहर मोहम्मद कलाम था. उसे पकडऩे वाली थाने की पुलिस नहीं, स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के एसपी शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव और सीओ अमित कुमार के नेतृत्व वाली टीम थी. कलाम कई महीने से एसटीएफ और खुफियां एजेंसियों के टौप सीक्रेट मिशन के टौप टारगेट पर था.

उस का नाम मोहम्मद कलाम नहीं, मोहम्मद एजाज था. वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सॢवसेज इंटेलीजैंस (आईएसआई) का उत्तर प्रदेश में अब तक का सब से बड़ा एजेंट था और बड़ी होशियारी से अपने मिशन को अंजाम दे रहा था. बेहद शातिराना अंदाज वाला एजाज मूलरूप से पाकिस्तान का रहने वाला था. पहचान बदल कर उस ने हिंदुस्तान में ऐसी कामयाब पैठ बनाई थी कि आसमा से निकाह तक कर लिया था. अपने मिशन के लिए वह पूरी तरह प्रशिक्षित था. 3 भाषाओं पर उस की अच्छी पकड़ थी और हाईटैक टैक्नोलौजी के जरिए अपने आकाओं से बराबर संपर्क में रहता था. उस के मंसूबे बेहद खतरनाक थे.

औपचारिक पूछताछ के बाद एजाज के मंसूबों की कडिय़ों को जोडऩे के लिए एसटीएफ की एक टीम उसे ले कर बरेली उस के घर पहुंची और छापा मार कर उस के घर की तलाशी ले कर कंप्यूटर, डाटा कार्ड, कई वीडियो कैसेट, हिंदी उर्दू की कुछ किताबें और कुछ जरूरी कागजात बरामद किए.

आसमा को जब पता चला कि उस का शौहर पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट है तो उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ. उस के रिश्ते का आईना चटक कर बिखर गया. आसपड़ोस के लोग भी हैरान थे कि जो शख्स उन के बीच नेकियां दिखा कर सादगी से रह रहा था, वह देश का दुश्मन था.

आईएसआई एजेंट की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक बड़ी कामयाबी थी. सन 2012 के बाद पहली बार कोई पाकिस्तान एजेंट पकड़ा गया था. यह खबर सुॢखयां बनने के बाद खुफिया एजेंसियों तक पहुंच गईं. एजाज से पूछताछ की गई तो उस ने हर सवाल का नपातुला जवाब दिया, जैसे वह ऐसे हालातों के लिए भी तैयार था.

उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. 24 घंटे के अंदर उसे अदालत में पेश किया जाना जरूरी था, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उसे स्पैशल जज संजय सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

एजाज से विस्तृत पूछताछ की जानी जरूरी थी, इसलिए अगले दिन पुलिस ने उस के रिमांड की अरजी दाखिल की तो अदालत ने उसे 7 दिनों के रिमांड पर दे दिया. पुलिस एजाज को थाने ले आई, जहां पूछताछ के लिए एक टीम का गठन पहले ही कर लिया गया था. इस टीम में इंटेलीजैंस ब्यूरो के स्थानीय एडिशनल डायरेक्टर एस.के. सिंह , एसपी स्वप्निल ममगई, सीओ वीर कुमार, आर्मी इंटेलीजैंस के मेजर मोती कुमार, थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी गजेंद्रपाल सिंह व सबइंसपेक्टर धर्मेंद्र कुमार को शामिल किया गया था.

इस के अलावा एसटीएफ, स्थानीय पुलिस, राज्य व केंद्रीय इंटेलीजैंस ब्यूरो, आर्मी इंटेलीजैंस, मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा, सीओ (अभिसूचना) वी.के. शर्मा, दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच व उत्तराखंड इंटेलीजैंस ने भी एजाज से गहन पूछताछ की. इस पूछताछ में एजाज ने तमाम चौंकाने वाले राज उगले. एजाज की जड़ें बहुत गहरी थीं. वह 3 सालों के कौंट्रैक्ट पर भारत आया आईएसआई का बेहद खास मोहरा था.

अपने मिशन के जुनून में उस ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस के निशाने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, एनसीआर के जिले और उत्तराखंड था. मिशन की कामयाबी के लिए वह आसमा जैसी भोलीभाली युवती की जिंदगी से भी खेल गया था. इस बीच उस ने एक और युवती को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. उस के आईएसआई का एजेंट बनने से ले कर भारत आने और पहचान बदल कर रहने तक का हर पहलू चौंकाने वाला था.

मोहम्मद एजाज पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद शहर के तारामंडी चौक निवासी मोहम्मद इशहाक का बेटा था. आॢथक रूप से समृद्ध इशहाक एग्रीकल्चरल रिसर्च सैंटर में नौकरी करते थे. हालांकि सन 2004 में उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी रुखसाना के अलावा 5 बेटे अशफाक, मुश्तियाक, फहद, एजाज, इश्तियाक तथा 3 बेटियां शबनम, शहजाद और शाजिदा थीं.

एजाज के सभी भाई वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी व प्रोसैङ्क्षसग का काम करते थे. हाईस्कूल पास एजाज भी इसी काम में लग गया था. पंजाबी और उर्दू भाषा उसे आती थी. इशहाक के परिवार के संपर्क कई नामी हस्तियों से थे. उस के भाई सरकार के लिए भी फोटोग्राफी करते थे, शायद इसी वजह से उन के संबंध बड़े लोगों से थे. देखने में सीधासादा दिखने वाला एजाज तेजतर्रार युवक था.

पाकिस्तान में एक दर्जन से भी ज्यादा आतंकी व कट्टर संगठन आईएसआई के इशारे पर काम करते हैं. ऐसे संगठनों को उसी के जरिए देशीविदेशी आॢथक मदद मिलती है. इन संगठनों का काम किसी न किसी तरीके से भारत में अराजकता और ज्यादा से ज्यादा तबाही फैलाना होता है. सैन्य छावनियां उस के निशाने पर होती हैं.

आईएसआई का आतंकी संगठनों के क्रियाकलापों और उन के प्रशिक्षण केंद्रों तक में सीधा दखल होता है. उस के अपने प्रशिक्षक भी वहां होते हैं. आतंकियों के अलावा वह अपने जासूस भी तैयार करती है, जिन्हें मोहरा बना कर आईएसआई अपने मकसद पूरा करती है. इस के पीछे उस की सोच बदनामी से बचना होता है. सीधेसादे लोगों की उन्हें कभी धर्म के नाम पर तो कभी पैसे का लालच दे कर बरगलाया जाता है. झूठे वीडियो दिखाए जाते हैं कि भारत में मुसलमानों पर किस तरह अत्याचार हो रहा है. नई उम्र के लडक़ों को तरजीह दे कर उन्हें बहलाफुसला कर प्रशिक्षण केंद्रों तक लाया जाता है. भटके युवाओं के लिए उन के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं.

सन 2012 में एजाज की जानपहचान आईएसआई के कुछ अधिकारियों से हुई. उन्हें वह काम का युवक लगा तो उन्होंने उसे अपने साथ शामिल कर के एक साल तक गहन प्रशिक्षण दिया. यह प्रशिक्षण उस ने एसपी सलीम की देखरेख में लिया. उसे जासूसी के गुर सिखाए गए, भारत के रहनसहन के बारे में बताया गया.

यही नहीं, भारत की सैन्य गतिविधियों की जानकारी बारीकी से दी गई. उसे समझाया गया कि सेना में बिग्रेड, यूनिट व कमांड में क्या फर्क है. औपरेशन ङ्क्षवग कौन सी होती है, आर्मी औफिसर के रैंक और स्टार के बारे में बताया गया. आर्मी यूनिट के अफसरों के पदों के बारे में भी समझाया गया, ताकि वह अफसर का बैच देख कर उस के पद को जान सके.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 2

मामला इज्जत का था, इसलिए अनोखेलाल से रहा नहीं गया. न चाहते हुए भी उस ने पूजा से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा और ओमवीर का क्या चक्कर है?’’

एकाएक बाप के इस सवाल से पूजा घबरा गई. उस का कलेजा धड़कने लगा. कांपते स्वर में बोली, ‘‘मैं समझी नहीं पापा.’’

‘‘देखो बेटा, ओमवीर हमारे दुश्मन का बेटा है. उस के बाप ने हमारे ताऊ की हत्या की है. इसलिए तुम्हारा उस से दूर रहना ही ठीक रहेगा.’’

पिता की इन बातों से पूजा समझ गई कि आगे का रास्ता कांटों भरा है. पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए अनोखेलाल को लगा कि बेटी उस के कहने का मतलब समझ गई है. वह निश्चिंत हो गया. लेकिन पूजा को अब परिवार से ज्यादा ओमवीर प्रिय लगने लगा था. ओमवीर मिला तो उस ने कहा, ‘‘ओमवीर अगर तुम अपनी मोहब्बत को पाना चाहते हो तो कोई कामधाम करो, जिस से वक्तजरूरत हम कहीं लुकछिप कर रह सकें. अगर इसी तरह घूमते रहे तो मुझे खो दोगे. और हां, पापा को कहीं से हमारे मिलनेजुलने का पता चल गया है. इसलिए अब बहुत संभल कर मिलना.’’

इस के बाद ओमवीर काम के लिए इधरउधर हाथपैर मारने लगा. क्योंकि अपने प्यार को पाने के लिए उस पर जुनून सवार था. आसपास उसे कोई काम नहीं मिला तो उस ने सूरत में रहने वाले अपने एक दोस्त को फोन किया. उस का वह दोस्त वहां किसी कपड़े की फैक्ट्री में नौकरी करता था. ओमवीर ने उस से कोई काम दिलाने को कहा तो उस ने उसे सूरत बुला लिया. ओमवीर जानता था कि गांव में रहते हुए वह पूजा को कभी नहीं पा सकेगा. क्योंकि पूजा के घर वालों से उस की ऐसी दुश्मनी थी कि कभी सुलह हो ही नहीं सकती थी. इसलिए पूजा को पाने के लिए उसे भगा कर ले जाना पड़ेगा.

यही वजह थी कि वह दोस्त के कहने पर सूरत चला गया. पूजा ने भी उसे विश्वास दिलाया था कि वह उस के लौटने का इंतजार करेगी. इसलिए ओमवीर निश्चिंत हो कर चला गया था.

दोस्त ने सूरत में ओमवीर को काम दिला दिया था. वह वहां आराम से नौकरी करने लगा था. दूसरेतीसरे दिन वह फोन से पूजा से बात कर लेता था. कुछ दिनों तक तो यह सिलसिला ठीकठाक चलता रहा, लेकिन धीरेधीरे पूजा की ओर से आने वाले फोन कम होने लगे. ओमवीर उसे फोन करता तो बातचीत से उसे लगता कि पूजा अब पहले की तरह उस से बात नहीं करती. उसे बात करने के बजाय फोन काटने में ज्यादा रुचि रहती है. कुछ दिनों बाद पूजा का फोन स्विच औफ बताने लगा.

ओमवीर परेशान हो उठा. पूजा का फोन बंद हो गया था. उस ने उसे अपना नया नंबर भी नहीं दिया था. उसे लगा, पूजा किसी परेशानी में पड़ गई है. अब उसे सूरत आने का पछतावा होने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हो गया कि पूजा उस से बात नहीं कर रही है. उसी बीच गांव गया एक लड़का सूरत आया तो ओमवीर ने उस से गांव का हालचाल पूछा. इस के बाद उस ने पूजा के बारे में पूछा तो उस लड़के ने कहा, ‘‘वह तो मजे में है. मस्ती में घूम रही है.’’

पूजा मजे में है, मस्ती में घूम रही है, यह बात ओमवीर के गले नहीं उतरी. उस के बिना पूजा मजे में कैसे रह सकती है? क्योंकि उस के सूरत आते समय पूजा कह रही थी कि वह उस से दूर रह कर जी नहीं पाएगी. तरहतरह की बातें सोच कर ओमवीर को लगा कि अब यहां उस का रहना ठीक नहीं है. अगर वह यहां रहा तो उस का प्यार उस का नहीं रहेगा.

यही सोच कर ओमवीर लगीलगाई नौकरी छोड़ कर गांव वापस आ गया. घर वालों से उस ने बताया कि वह छुट्टी ले कर आया है. जबकि वह नौकरी छोड़ कर आया था.

अगले ही दिन वह पूजा से मिलने के लिए स्कूल जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो गया. पूजा उसे देख कर हैरान रह गई. वह सहेलियों के साथ थी, इसलिए ओमवीर ने उस से सिर्फ यही कहा था कि वह शाम को तालाब पर उस का इंतजार करेगा. अगर वह तालाब पर नहीं आएगी तो वह उस के घर पहुंच जाएगा.

पूजा बिना कुछ कहे चली गई. पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर को गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन वह कुछ कह नहीं सका था. उसे अहसास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. अब उसे शाम का इंतजार था. उसे पता था कि पूजा उस के जुनूनी प्यार को बखूबी जानती है, इसलिए शाम को तालाब पर आएगी जरूर. किसी तरह दिन बिता कर शाम होते ही वह तालाब पर पहुंच गया. थोड़ी देर में पूजा आती दिखाई दी तो उस ने राहत की सांसें ली. आते ही पूजा ने पूछा, ‘‘बोलो, क्या बात है?’’

‘‘यह क्या, पहले तो तुम्हें यह पूछना चाहिए कि मैं वापस क्यों आ गया?’’

‘‘मैं ने नहीं पूछा तो चलो तुम खुद ही बता दो.’’ पूजा ने कहा.

‘‘तुम ने अपना पुराना नंबर बंद कर दिया और नया नंबर नहीं दिया तो मजबूर हो कर मुझे वापस आना पड़ा.’’ कह कर ओमवीर ने पूजा का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने अपना हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘बस, इतनी सी बात के लिए तुम अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ कर चले आए. तुम तो जानते ही हो कि इस साल मेरी बोर्ड की परीक्षा है. मैं पढ़ाई में लगी हूं. फिलहाल फालतू की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है.’’

‘‘क्या कहा, मेरा प्यार अब फालतू की बात हो गया. तुम्हारी ही वजह से मैं सूरत में पड़ा था और तुम्हारी ही वजह से लगी लगाई नौकरी छोड़ आया हूं. अब तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं है. लगता है, तुम बदल गई हो?’’

‘‘तुम ने तो पढ़ाई छोड़ दी है, इसलिए पढ़ाई के महत्त्व को तुम समझ नहीं सकते. लेकिन मुझे पढ़ाई के महत्त्व का पता है. इसलिए मैं अभी फालतू की बातों में पड़ कर डिस्टर्ब नहीं होना चाहती.’’

‘‘मेरे प्यार का क्या होगा?’’ ओमवीर ने पूछा तो पूजा बोली, ‘‘पहले पढ़ाई, उस के बाद प्यार. वैसे भी हमारे और तुम्हारे यहां से दुश्मनी है. मेरे घर वाले कतई नहीं चाहेंगे कि मैं तुम से संबंध रखूं.’’

ओमवीर समझ गया कि अब यह पहले वाली पूजा नहीं रही. यह बदल गई है. इस बदलाव के पीछे जरूर कोई राज है. पूजा जाने लगी तो उस ने पूछा, ‘‘अब कब मिलोगी?’’

‘‘तुम्हें सूरत जा कर अपनी नौकरी करनी चाहिए,’’ पूजा ने कहा, ‘‘यहां मेरे पीछे नहीं घूमना चाहिए.’’

ओमवीर के गांव आने से अनोखेलाल परेशान हो उठा था. क्योंकि वह जानता था कि अब गांव वाले फिर पूजा और ओमवीर को ले कर तरहतरह की चर्चाएं करेंगे.

दूसरी ओर ओमवीर इस बात को ले कर परेशान था कि पूजा उस की उपेक्षा क्यों कर रही है. इस के समाधान के लिए एक दिन उस ने पूजा को फिर घेरा. तब पूजा ने कहा, ‘‘मुझे अपनी पढ़ाई की चिंता है और तुम्हें अपने प्यार की पड़ी है. तुम्हारे इस प्यार से पेट भरने वाला नहीं है. भूखे पेट प्यार भी अच्छा नहीं लगता. मेरी तुम से यही प्रार्थना है कि तुम अपने काम से काम रखो और मुझे अपना काम करने दो.’’

पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पूजा बदल क्यों गई? अचानक उसे खयाल आया कि कहीं पूजा किसी दूसरे से तो प्यार नहीं करने लगी. इस के बाद वह अपने हिसाब से इस बारे में पता करने लगा. थोड़े प्रयास के बाद उसे पता चला कि पूजा का अब अल्लीपुर के योगेंद्र से चक्कर चल रहा है.

पाक खुफिया एजेंट पर पुलिस का शिकंजा – भाग 1

बिस्तर पर लेटी आसमा अपनी मोहब्बत की निशानी के तौर पर आने वाले बच्चे की कल्पनाओं में डूबी थी. मां बनने का अहसास उस की भावनाओं को ममता के दरिया में बहाए ले जा रहा था. उस ने बचपन से गरीबी देखी थी, लेकिन जब से उस की जिंदगी में मोहम्मद कलाम दाखिल हुआ था, खुशियां जैसे उस की झोली में खुदबखुद चली आई थीं.

सांवली रंगत वाली आसमा भले ही बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस की दिल की खूबसूरती का कलाम कायल हो गया था. हर इंसान का अपना मिजाज होता है. वह उस की छोटीबड़ी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर के खुशियों को तरजीह देता था. आसमा शबनमी सोच के सागर में और डूबती, तभी उसे अपने सिरहाने किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. बेखयाली में उस ने देखा और मुसकरा दिया, क्योंकि वह उस का शौहर कलाम था, “अरे आप कब आए?”

“अभीअभी, जब तुम कहीं खयालों में गुम थीं. वैसे क्या सोच रही थीं?” कलाम ने बैठते हुए पूछा.

“आप के ही बारे में सोच रही थी. मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूं कलाम.”

इस पर कलाम ने मुसकरा कर कहा, “तुम्हारी अहमियत मेरी जिंदगी में सांसों से भी कहीं ज्यादा है आसमा. दुनिया के हर खजाने को मैं तुम्हारी खुशियों के लिए कुरबान कर सकता हूं.”

“मेरी खुशकिस्मती, जो मुझे तुम जैसा नेक शौहर मिला.”

“फर्ज अदायगी में मेरी नेकियां सलामत रहें.”

“एक दिन आप की नेकियां हमारी और आने वाले बच्चे की इज्जत अफजाई का सबब बनेंगी.”

“आसमा, कल मुझे किसी काम से मेरठ जाना होगा.”

“तुम इतनी मेहनत करते हो, अकसर बाहर जाते रहते हो, ऐसा क्या जरूरी काम है?”

“मैं मेहनत के जरिए तुम्हें खुशियां दे कर एक अच्छा शौहर बनने की कोशिश कर रहा हूं.”

“लेकिन हम तो खुश हैं. ऐसे वक्त पर मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है कलाम. मैं चाहती हूं कि नए मेहमान के आने तक तुम कहीं भी आनाजाना बंद कर दो.” आसमा ने कलाम का हाथ थाम कर कहा.

“ठीक है, मैं 2 दिन बाद लौट कर आऊंगा तो फिर कहीं नहीं जाऊंगा.” कलाम ने कहा और वहां से उठ कर कमरे में रखे कंप्यूटर पर कुछ काम करने लगा.

आसमा और कलाम उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में दीवानखाना चौराहे के पास मोहल्ला शाहबाद में वसीम उल्लाह के एक पुराने मकान की दूसरी मंजिल पर किराए पर रहते थे. उन की ङ्क्षजदगी बेहद साधारण थी. आसमा दिल की अच्छी थी और कलाम आसपड़ोस में सभी से घुलमिल कर रहता था. दिखावे की जिंदगी से उसे परहेज था. उस की आदतों और व्यवहार की लोग तारीफें किया करते थे.

कलाम शादियों की वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम करता था. फोटोग्राफी उस का शौक था और पेशा भी. कलाम बिहार का रहने वाला था. एक साल पहले उस की मुलाकात बिहार के ही आरा जनपद के गांव अजीमाबाद की रहने वाली आसमा से हुई तो दोनों आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिलों में उतर गए.

आसमा का परिवार बेहद साधारण था. कलाम ने आसमा के साथ दुनिया बसाने की उम्मीदों में निकाह की पेशकस की तो आसमा के पिता शमशेर मना नहीं कर सके. कलाम अच्छा लडक़ा था. कलाम ने बताया था कि उस के परिवार में कोई नहीं है, वह दुनिया में अकेला है. दोनों की रजामंदी के बाद अक्तूबर, 2014 में उन का निकाह कर दिया गया था.

निकाह के बाद कलाम घरजंवाई बन कर 2 महीने शमशेर के घर रहा. इस के बाद वह आसमा को ले कर बरेली आ गया और वहां किराए का मकान ले कर रहने लगा. घर चलाने के लिए उस ने वीडियोग्राफी करने वालों के साथ वीडियो एडिटिंग और मिक्सिंग का काम शुरू कर दिया.

मुलाकात के दौरान कम वक्त में ही किसी को अपना बना लेने का हुनर कलाम को अच्छी तरह आता था. वह लोगों से बहुत जल्दी घुलमिल जाता था. कलाम लोगों की मदद भी कर दिया करता था. यही वजह थी कि हर कोई उस की नेकियों का कायल था. काम का सिलसिला बता कर कलाम अकसर बाहर आताजाता रहता था. 26 नवंबर, 2015 को भी कलाम आसमा से मेरठ जाने की बात कह कर घर से निकला था.

उम्मीदें और विश्वास करना हर इंसान की फितरत है, लेकिन आने वाले कल में यह अंदाजा किसी को नहीं होता कि उस की उम्मीदें पूरी होंगी और विश्वास का वजूद कायम रहेगा. वक्त और हालात कब करवट ले ले, इस बात कोई नहीं जानता. कलाम आसमा का शौहर था. उस के निकाह को भी एक साल बीत चुका था. खुशियां उस की धडक़नों में बिखरी हुई थीं, लेकिन वह अपने शौहर की बहुत सी हकीकतों से वाकिफ नहीं थी.

आसमा नहीं जानती थी कि वक्त के साथ उस की जिंदगी का नाजुक रिश्ता आंखों को आंसुओं से तर कर के तपते रेगिस्तान की गरम रेत पर पड़ कर दिल पर भी छाले देने वाला है. ऐसे छाले जिन का कोई मरहम नहीं होगा, वह दर्द की एक अनचाही सौगात दे जाएंगे.

उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद का कैंट रेलवे स्टेशन आर्मी एरिया से एकदम सटा है. वहां पहुंचने के सभी रास्ते इसी एरिया से गुजरते हैं. चौबीसों घंटे लोगों की आवाजाही का सिलसिला जारी रहता है. 27 नवंबर की दोपहर तकरीबन 3 बजे का वक्त था. सफेद रंग की 2 कारें तेजी से स्टेशन के एकदम सामने आ कर रुकीं. दोनों कारों में बैठे लोग बिजली की सी फुरती से उतरे. उन में से कुछ लोगों के हाथों में अत्याधुनिक हथियार थे.

हथियारबंद लोग तो टिकट काउंटर के आसपास ही रुक गए, जबकि बगैर हथियार वाले 5 लोग गलियारे को पार करते हुए प्लेटफौर्म पर पहुंच गए. वहां तमाम लोग मौजूद थे और काफी चहलपहल थी. उन लोगों ने अपनी नजरों को खास अंदाज में चारों ओर इस तरह दौड़ाया, जैसे उन्हें किसी की तलाश हो. तभी उन में से एक अपने साथियों से मुखातिब हुआ, “हमारा मकसद पूरा होगा क्या?”

“बिलकुल सर, आज हमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है.” उन में से एक ने आत्मविश्वास भरे लहजे में बोला.

“ठीक है.” उसी दौरान उन सभी की नजरें प्लेटफौर्म पर बने एक टी स्टाल की ओट ले कर बेफिक्री भरे अंदाज में खड़े एक युवक पर जा कर ठहर गईं. वह स्मार्ट सा नौजवान था. उस ने ब्लैक कलर का ट्राउजर और उसी से मिलतीजुलती हाईनेक वुलन जैकेट पहन रखी थी. उस के कंधे पर एक लैपटौप वाला बैग झूल रहा था. उसे देख कर आने वाले सभी लोगों ने एकदूसरे से थोड़ा दूरियां बनाईं और फिर आहिस्ताआहिस्ता चल कर उस के इर्दगिर्द फैल गए. युवक की नजरें उन से चार हुईं, लेकिन उस ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया और जेब से मोबाइल निकाल कर उस के कीपैड पर अंगुलियां चलाने लगा.

उन लोगों के हावभाव देख कर शायद उस युवक को अहसास हो गया कि वे उसी की तरफ आ रहे हैं. वे जैसे ही उस के नजदीक पहुंचे, वह युवक आगे बढ़ा. लेकिन तभी उन लोगों में से एक शख्स बोला, “रुकिए मिस्टर.”

“जी फरमाइए.” उस ने पलट कर बेपरवाही से कहा.

“तुम्हें तो दिल्ली जाना है?”

“जी, लेकिन मैं ने आप को पहचाना नहीं. क्या आप मुझे जानते हैं?”

“हम तो तुम्हारे साए से भी वाकिफ हैं मियां. लेकिन दुख इस बात का है कि आप से पहले मिल नहीं सके.” एक दूसरे शख्स ने आगे आ कर उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा तो वह युवक असमंजस में पड़ गया.

वैसे तो वे सभी बेहद चालाकी से उस के नजदीक आए थे, लेकिन वह उन से तेज निकला. पलक झपकते ही हिरन सी तेजी से उस ने छलांग लगा दी. बाजी पलट सकती है, शायद यह बात आने वालों को पहले से पता थी. इसलिए वे सब भी होशियार थे. उन में से एक ने चंद कदम दौड़ कर फुरती से उसे पकड़ लिया. पकड़ मजबूत थी, इसलिए कोशिश के बावजूद वह युवक हिल नहीं सका. युवक अपनी बेबसी पर छटपटा कर रह गया. तुरंत उस की तलाशी ली गई. उस का बैग, पर्स व मोबाइल उन लोगों ने अपने कब्जे में ले लिया.

“कोई वैपन तो नहीं है?” किसी ने पूछा तो तलाशी लेने वाले ने कहा, “नहीं सर.”

आननफानन में वे उसे खींच कर स्टेशन के बाहर लाए और फुरती से कार में धकेल कर खुद भी कार में बैठे और जिस तरह तेजी से आए थे, उसी तरह चले गए. यह सब फिल्मी अंदाज में हुआ था. लोगों की भीड़ भी जमा हो गई थी, लेकिन उन लोगों के हथियार देख कर कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के थाना अमांपुर के गांव टिकुरिया के रहने वाले अनोखेलाल की पत्नी बेटी को जनम दे कर गुजर गई थी. सब  इस बात को ले कर परेशान थे कि उस नवजात बच्ची को कौन संभालेगा. लेकिन उस बच्ची की जिम्मेदारी अनोखेलाल की बहन ने ले ली तो उसे अपने अन्य बच्चों की चिंता हुई. उस के 3 बच्चे और थे. जिन में सब से बड़ी बेटी अनिता थी तो उस के बाद बेटा सुनील तो उस से छोटी पूजा.

पत्नी की मौत के बाद बड़ी बेटी अनिता ने घर संभाल लिया था. अपनी जिम्मेदारी निभाने में उस की पढ़ाई जरूर छूट गई थी, लेकिन भाईबहनों की ओर से उस ने बाप को निश्चिंत कर दिया था. घरपरिवार संभालने के चक्कर में बड़ी बेटी की पढ़ाई छूट ही गई थी. अब अनोखेलाल सुनील और पूजा को खूब पढ़ाना चाहता था.

पूजा खूबसूरत थी ही, पढ़ाई में भी ठीकठाक थी. उस का व्यवहार भी बहुत अच्छा था, इसलिए उस से घर वाले ही नहीं, सभी खुश रहते थे. समय के साथ अनोखेलाल पत्नी का दुख भूलने लगा था. अब उस का एक ही उद्देश्य रह गया था कि किसी तरह बच्चों की जिंदगी संवर जाए. बाप बच्चों का कितना भी खयाल रखे, मां की बराबरी कतई नहीं कर सकता. इस की वजह यह होती है कि पिता को घर के बाहर के भी काम देखने पड़ते हैं.

अनोखेलाल की छोटी बेटी पूजा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. वह पढ़लिख कर अध्यापिका बनना चाहती थी. इस के लिए वह मेहनत भी खूब कर रही थी. लेकिन जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह मोहब्बत के जाल में ऐसी उलझी कि उस का सपना ही नहीं टूटा, बल्कि जिंदगी से ही हाथ धो बैठी.

गांव का ही रहने वाला ओमवीर अचानक पूजा की जिंदगी में आ गया. जबकि ओमवीर और पूजा के घर वालों के बीच बरसों से दुश्मनी चली आ रही थी.

ओमवीर के पिता नेम सिंह ने पूजा के दादा गंगा सिंह (अनोखेलाल के ताऊ) की हत्या कर दी थी. हत्या के इस मामले में वह जेल भी गया था. कुछ दिनों पहले ही वह जमानत पर जेल से बाहर आया था. इतनी बड़ी दुश्मनी होने के बावजूद पूजा ओमवीर को दिल दे बैठी थी.

स्कूल आतेजाते जब कभी पूजा दिखाई दे जाती, ओमवीर उसे चाहतभरी नजरों से ताकता रहता. क्योंकि पूजा उसे बहुत अच्छी लगती थी. शुरूशुरू में तो पूजा ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो दुश्मन के बेटे के लिए जवानी की दहलीज पर कदम रख रही पूजा का दिल धड़क उठा. इस के बाद वह भी अपने पीछेपीछे आने वाले ओमवीर को पलटपलट कर देखने ही नहीं लगी, बल्कि नजर मिलने पर मुसकराने भी लगी.

गांव से स्कूल का रास्ता खेतों के बीच से होने की वजह से लगभग सुनसान रहता था. इसलिए गांव की लड़कियां एक साथ स्कूल जाती थीं. लड़कियों के साथ होने की वजह से ओमवीर को पूजा से अपने दिल की बात कहने का मौका नहीं मिलता था. लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. ओमवीर पूजा के पीछे पड़ा ही था. पूजा के मन में भी उस के लिए चाहत जाग उठी थी.

पूजा को भी पता था कि वह सहेलियों के साथ रहेगी तो ओमवीर से उस की बात कभी नहीं हो सकेगी. उस से बात करने के लिए ही एक दिन वह घर से थोड़ा देर से निकली. वह जैसे ही गांव से बाहर निकली, ओमवीर उस के पीछेपीछे चल पड़ा. खेतों के बीच सुनसान जगह देख कर ओमवीर उस के पास जा कर बोला, ‘‘आज तुम अकेली ही स्कूल जा रही हो?’’

पूजा का दिल धड़क उठा. उस ने कांपते स्वर में कहा, ‘‘आज मुझे थोड़ी देर हो गई, इसलिए बाकी सब चली गईं.’’

‘‘पूजा, मुझे तुम से कुछ कहना था?’’ ओमवीर ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं क्या कहना चाहता हूं?’’ ओमवीर ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं बेवकूफ थोड़े ही हूं? तुम कितने दिनों से मेरे पीछे पड़े हो. कोई लड़का किसी लड़की के पीछे क्यों पड़ता है, इतना तो मुझे भी पता है.’’ पूजा ने बेबाकी से कहा तो ओमवीर में भी हिम्मत आ गई. उस ने कहा, ‘‘क्या करूं, तुम मुझे इतनी अच्छी लगती हो कि मन यही करता है कि हर वक्त तुम्हीं को देखता रहूं.’’

‘‘तो देखो न, मना किस ने किया है.’’ पूजा ढि़ठाई से बोली.

‘‘सिर्फ देखने से ही मन नहीं भरता. पूजा, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. इस के लिए भी मैं ने कहां मना किया है. भई तुम्हारा मन है, वह किसी से भी प्यार कर सकता है.’’ कह कर पूजा हंस पड़ी तो ओमवीर को भी हंसी भी आ गई.

इस तरह दोनों ने जो चाहा था, वह पूरा हो गया. दोनों खुशीखुशी स्कूल चले गए. इस के बाद तो दोनों अकसर गांव के लड़केलड़कियों का साथ छोड़ कर खेतों के बीच मिलने लगे. इन मुलाकातों के साथ उन का प्यार बढ़ता गया. तब न पूजा को इस बात की चिंता थी और न ही ओमवीर को कि उन के इस प्यार का अंजाम क्या होगा? हर चिंता से मुक्त दोनों अपनी प्यारभरी दुनिया में डूबे रहते.

चोरीछिपे होने वाली मुलाकातों से दोनों दिनोंदिन करीब आते जा रहे थे. एक दिन ऐसा भी आया जब दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. उसी बीच अनोखेलाल ने अनिता की शादी कर दी तो घर की सारी जिम्मेदारी पूजा पर आ गई. पूजा ने घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अनोखेलाल का भी कहना था कि अगर पढ़लिख कर वह कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी संवर जाएगी अन्यथा अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए वह उस की शादी कर देगा.

पूजा पढ़ रही थी, जबकि ओमवीर ने पढ़ाई छोड़ दी थी. उस का बड़ा भाई मुकेश बाप के साथ खेती के कामों में उस की मदद करता था. पढ़ाई छोड़ कर ओमवीर को भी लगने लगा कि उसे भी कुछ करना चाहिए. क्योंकि वह पूजा को दीवानगी की हद तक प्यार करता था. और पूजा उसे तभी मिल सकती थी, जब वह उस के लायक बन जाए. इस के लिए वह भी पिता के साथ लग गया. उस ने पूजा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. इसलिए वह उस की खातिर कुछ भी करने को तैयार था.

संयोग से उसी बीच किसी दिन गांव के किसी आदमी ने पूजा को ओमवीर के साथ देखा तो उसे बड़ी हैरानी हुई. उस ने यह बात अनोखेलाल को बताई तो वह भी हैरान रह गया. अपनी इस होनहार बेटी से उसे इस तरह की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. दुश्मन के बेटे से अपनी बेटी का मिलनाजुलना वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. उस ने अपनी आंखों से कुछ देखा नहीं था, इसलिए वह पूजा से सीधे कुछ कह भी नहीं सकता था. फिर गांव में तो इस तरह की चर्चाएं होती ही रहती हैं.