ज़रा सी भूल ने खोला क़त्ल का राज

इश्क जान भी लेता है – भाग 3

काफी समझाने के बावजूद भी जब मानसी ने उस की बात नहीं मानी तो अभिषेक उर्फ नीतू ने मानसी को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. उस ने उसे ठिकाने लगाने की योजना बना भी ली.

योजना के तहत 5 जुलाई, 2014 को नीतू अपने 2 दोस्तों खुशीराम और कपिल के साथ गुडग़ांव के सैक्टर-17 स्थित गंदे नाले के पास पहुंचा. नीतू मानसी का काम तमाम कर के लाश को उसी नाले में ठिकाने लगाना चाहता था, लेकिन मानसी को नाले के पास बुलाना आसान नहीं था, क्योंकि उस ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे.

नीतू जानता था कि मानसी बेहद लालची है. इसलिए उसे वहां बुलाने के लिए उस ने एक चाल चली. उस ने वहीं से मानसी को फोन किया. उस वक्त शाम को 5 बज रहे थे. उस ने कहा, “मानसी, मैं ने तुम्हारे लिए 8 तोले का एक हार बनवाया है. हार का डिजाइन इतना अच्छा है कि तुम्हें जरूर पसंद आएगा. आज रात ही मैं मुंबई जा रहा हूं. फिर हमारी मुलाकात हो या न हो, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम इस हार को ले लो.”

मानसी 8 तोला सोने के हार के लालच में आ गई. वह हार लेने के लिए साढ़े 5 बजे गंदे नाले के पास पहुंच गई. नीतू को देखते ही वह चहक कर बोली, “नीतू, तुम तो मुझे एकदम भूल गए. कभीकभार तो मुझ से मिलने आ जाय करो. मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूं.”

कुछ देर बाद नीतू के दोस्त खुशीराम और कपिल वहां पहुंचे तो वह चौंकी, क्योंकि वह पहले से उन्हें जानती थी. मानसी ने सोचा कि उन से उसे क्या मतलब. उसे तो हार ले कर वहां से निकल जाना है. उस ने नीतू का हाथ पकड़ते हुए कहा, “लाओ, वह हार कहां है.”

नीतू ने जेब से चाकू निकाल कर लहराया, “अब हार पहन कर क्या करोगी, जब तुम जीवित ही नहीं रहोगी.”

चाकू देख कर और उस की बातें सुन कर मानसी घबरा गई. इस से पहले कि वह कुछ कह पाती, अभिषेक ने चाकू से ताबड़तोड़ वार कर दिए. मानसी वहीं गिर गई और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. इस के बाद खुशीराम और कपिल ने उस की लाश उठा कर नाले में फेंक दी.

4 दिनों बाद 9 जुलाई, 2014 को नाले में महिला की लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजेंद्रपार्क पुलिस को मिली तो पुलिस ने नाले से लाश निकलवाई. लाश काफी सडग़ल गई थी. वह पूरी तरह कीचड़ में सनी हुई थी. मृतका कौन है, यह जानने के लिए पुलिस ने पहले लाश धुलवाई. उस का चेहरा गल चुका था, इसलिए वहां मौजूद भीड़ में से कोई भी उसे पहचान नहीं सका.

पुलिस को उस की बाईं हथेली पर नीतू नाम गुदा मिला. जब लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

अभिषेक उर्फ नीतू की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को पता चला कि 9 जुलाई, 2014 थाना राजेंद्रपार्क पुलिस ने नाले से जो महिला की लाश बरामद की थी, वह मानसी की थी. अगर नीतू पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता तो मानसी की हत्या का राज उजागर ही न हो पाता.

एक दिन गुडग़ांव के सैक्टर-28 स्थित एक कैफे में मोहित अपने दोस्तों के साथ मौजूद था, तभी अभिषेक उर्फ नीतू अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंचा. मोहित के दोस्तों ने नीतू का मजाक उड़ाया तो नीतू गालियां बकने लगा. तभी मोहित और उस के दोस्तों ने नीतू और उस के दोस्तों की पिटाई कर दी. उसी पिटाई का बदला लेने के लिए नीतू मौका ढूंढ़ रहा था.

25 अगस्त, 2015 की शाम को उसे यह मौका मिल गया. उसे पता चला कि मोहित अपने दोस्त सक्षम व मामा नाहर सिंह के साथ ओल्ड बौक्स कैफे में है तो वह अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया और मोहित की गोली मार कर हत्या कर दी.

मोहित की हत्या एवं मानसी की हत्या के आरोप में पुलिस ने अभिषेक उर्फ नीतू, ब्रजेश, दीपांकर, बौबी, आदित्य को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर के 2 दिनों की पुलिस रिमांड पर ले कर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर व मानसी की हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद कर लिया. मानसी की हत्या में शामिल खुशीराम और कपिल को गिरफ्तार करने पुलिस पहुंची तो वे घर से फरार मिले. कथा लिखे जाने तक वे पकड़े नहीं जा सके थे. इस के बाद सभी अभियुक्तों को 29 अगस्त, 2015 को पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 3

पुलिस ने प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को उसी समय हिरासत में ले लिया. रामसूरत लाख सफाई देता रहा कि उस का इस मामले से कोई संबंध नहीं है, पर पुलिस ने उस की एक न सुनी. हां, पुलिस ने उसे इतना भरोसा जरूर दिया कि अगर वह निर्दोष पाया गया तो उसे छोड़ दिया जाएगा. यह बात 27 नवंबर, 2015 सुबह 3 बजे की है.

एसीपी जसबीर ङ्क्षसह ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला को गिरफ्तार करने व कैश बरामद होने की जानकारी डीसीपी व अन्य अधिकारियों को दी तो डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा, जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया सहित कई अन्य अधिकारी भी ओखला के उस गोदाम पर पहुंच गए. सभी संदूकों को जब्त करने के बाद पुलिस प्रदीप शुक्ला और चौकीदार रामसूरत को थाने ले आई.

पुलिस यही अनुमान लगा रही थी कि इतनी बड़ी रकम को लूटने में जरूर किसी बड़े गैंग का हाथ रहा होगा, लेकिन थाने में प्रदीप शुक्ला से जब पूछताछ की गई तो पता चला कि इस लूट में उस के अलावा कोई दूसरा शामिल नहीं था और यह लूट भी कोई पहले से बनाई प्लाङ्क्षनग के तहत नहीं की गई थी, बल्कि अचानक यह सब किया गया था.

प्रदीप शुक्ला ने करीब 3 महीने पहले ही सिक्योरिटी एजेंसी एसआईएस में ड्राइवर की नौकरी जौइन की थी. उस की ड्यूटी विकासपुरी ब्रांच से कैश ले कर कंपनी के ओखला स्थित हैडऔफिस में पहुंचाने की थी. कभीकभी उसे एटीएम मशीनों में पैसे रखने वाली टीम के साथ भी भेज दिया जाता था.

प्रदीप ने बताया कि उस से जितना काम लिया जाता था, उस के मुताबिक उसे सैलरी नहीं मिलती थी. मजबूरी में उसे कम पैसों में वहां नौकरी करनी पड़ रही थी. इसीलिए कभीकभी उस के दिमाग में विचार आता था कि जो पैसे वह वैन में ले कर जाता है, अगर उसे मिल जाएं तो उस की पूरी ङ्क्षजदगी ठाठ से कटेगी. लेकिन यह उस की केवल सोच थी, उस ने वे पैसे ले कर भागने के बारे में कभी नहीं सोचा. बहरहाल कम वेतन मिलने की वजह से वह मानसिक तनाव में जरूर रहता था.

26 नवंबर को वह साढ़े 22 करोड़ रुपए विकासपुरी के करेंसी चेस्ट से ले कर चला. जब श्रीनिवासपुरी रेडलाइट के पास वैन का गनमैन विजय कुमार पटेल लघुशंका के लिए उतर गया तो अचानक उसे लालच आ गया. उस ने सोचा कि पैसे ले कर भागने का इस से अच्छा मौका उसे फिर कभी नहीं मिलेगा और वह नोटों से भरे उन 9 संदूकों को ले कर सीधे ओखला फेज-3 स्थित रामसूरत के पास पहुंच गया. वह उसे पहले से जानता था.

रामसूरत जिस गोदाम में चौकीदारी करता था, वहां पहले मॢसडीज कारों का वर्कशाप था. लेकिन कुछ सालों से वहां तार का काम होता था. यह गोदाम धु्रवकुमार नाम के एक बिजनेसमैन का था. रामसूरत धु्रवकुमार के यहां पिछले 22 सालों से नौकरी कर रहा था. प्रदीप की पत्नी शशिकला पहले इसी गोदाम में काम करती थी. तभी से प्रदीप की रामसूरत से जानपहचान थी. रामसूरत ने ही किसी से सिफारिश कर के प्रदीप की नौकरी एसआईएस सिक्योरिटी कंपनी में बतौर ड्राइवर लगवाई थी.

शाम को करीब 5 बजे प्रदीप कैश वैन ले कर रामसूरत के पास गोदाम में पहुंचा. प्रदीप ने रामसूरत को बताया कि उन 9 संदूकों में पन्नी के बंडल हैं. उन्हें वह बनारस ले जाएगा, जिस की एवज में उसे 10 हजार रुपए मिलेंगे. इस के बाद उस ने वैन से नोटों से भरे सारे संदूक उतार कर गोदाम के एक कमरे में रख दिए. फिर मौका मिलने पर उस ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए.

इस के बाद वह यह कह कर वैन ले कर चला गया कि थोड़ी देर में लेबर ले कर आ रहा है ताकि सभी संदूकों को पैक करा कर बनारस ले जा सके. इस पर रामसूरत मान गया. इस के बाद प्रदीप वैन को गोङ्क्षवदपुरी मेट्रो स्टेशन के पास छोड़ कर चला आया. लौटते समय रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि इस रकम को ले कर वह कहां जाए.

प्रदीप ने खर्चे के लिए एक संदूक से 11 हजार रुपए निकाल लिए थे. खानेपीने का कुछ सामान लेने के लिए वह बाजार चला गया. वहां से उस ने महंगी शराब खरीदी, होटल से चिकन पैक कराया. इस के बाद वह गोदाम लौट आया. उसे अकेले देख कर रामसूरत ने पूछा, ‘‘तुम तो पैङ्क्षकग के लिए लेबर लेने गए थे, लेबर कहां है?’’

इस पर प्रदीप ने बताया कि रात की वजह से लेबर नहीं मिली, सुबह को देखूंगा. रामसूरत ने भी उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वह वहां से चला गया. उस के जाने के बाद प्रदीप ने उन संदूकों के पास बैठ कर शराब पी और चिकन खाया. फिर वह कपड़ा बिछा कर वहीं सो गया. रामसूरत भी अपनी जगह पर जा कर सो गया.

सुबह 3 बजे के करीब किसी ने गेट खटखटाया तो रामसूरत की नींद खुली. वह गेट पर गया तो बाहर भारी संख्या में पुलिस को देख कर घबरा गया. पुलिस वालों ने जब उसे फोटो दिखाया तो वह समझ गया कि प्रदीप जरूर ही कोई गलत काम कर के भागा है. चाबी लेने के बहाने रामसूरत उस कमरे में आया जहां प्रदीप सो रहा था.

रामसूरत ने प्रदीप को जगा कर कहा, ‘‘ये पन्नी के बौक्स क्या तुम चोरी कर के लाए हो, जो पुलिस यहां आई है.’’ पुलिस का नाम सुनते ही प्रदीप डर गया. वह झट से बोला कि कोई भागने का रास्ता हो तो बताओ. इस से रामसूरत को विश्वास हो गया कि वह जरूर कोई गड़बड़ कर के आया है. इस से पहले कि प्रदीप वहां से भाग पाता, रामसूरत ने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.

प्रदीप मिन्नतें करते हुए दरवाजा खोलने को कहता रहा लेकिन रामसूरत ने उस की एक नहीं सुनी और वह गेट पर खड़े पुलिस वालों को उस कमरे में ले गया जहां प्रदीप था. प्रदीप ने एक संदूक से जो 11 हजार रुपए निकाले थे, उन में से वह साढ़े 10 हजार रुपए खर्च कर चुका था.

उस से पूछताछ के बाद पुलिस को जब यकीन हो गया कि इस लूट के मामले में उस के अलावा किसी और का हाथ नहीं है तो हिरासत में लिए गए बाकी लोगों को छोड़ दिया गया. साथ ही पुलिस ने ईमानदारी से अपना फर्ज निभाने वाले चौकीदार रामसूरत को धन्यवाद भी दिया. जौइंट सीपी रणवीर ङ्क्षसह कृष्णैया ने 10 घंटे के अंदर ही दिल्ली की सब से बड़ी कैश लूट का खुलासा कर रकम बरामद करने वाली पुलिस टीम की सराहना की.

प्रदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी नरेश सोलंकी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

उज्बेक डांसर का दुखद अंत – भाग 3

इस के बाद पुलिस ने गगन को 6 दिनों के कस्टडी रिमांड पर ले कर गहराई से पूछताछ की. पूछताछ में उस ने जो कुछ बताया, उस से इन हत्याओं का जो राज सामने आया, वह कुछ इस तरह से था.

गगन एक बड़ा सैक्स रैकेट चलाता था. उस के नेटवर्क में देसी ही नहीं, विदेशी लड़कियों की भी खूब डिमांड थी. सोनू पंजाबन के लिए काम कर चुके गगन के नेटवर्क में काफी रशियन लड़कियां थीं, जिन्हें वह दिल्ली, एनसीआर के अलावा चंडीगढ़, जयपुर और मुंबई की रेव पार्टियों में भेजता था. इस के लिए वह रूस में सैक्स रैकेट से जुड़े लोगों से संपर्क कर के लड़कियों को टूरिस्ट वीजा पर 3 महीने के लिए भारत बुलाता था.

भारत में रशियन लड़कियों की डिमांड पूरी करने के लिए सैक्स रैकेट से जुड़े लोग सीआईएस (कौमनवैल्थ औफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) से जुड़े देशों जैसे उज्बेकिस्तान व कजाकिस्तान की गरीब लड़कियों को अच्छी जिंदगी का लालच दे कर टूरिस्ट वीजा पर भारत ला कर देह धंधे के कारोबार से जोड़ देते थे.

गगन और उस की पत्नी माशा के इस धंधे की पार्टनर नाज उज्बेकिस्तान की रहने वाली थी. माशा लोगों को ब्लैकमेल करने में माहिर थी. नाज पहले खुद अपनी देह बेचती थी, उम्र ढलने पर उस की डिमांड कम हुई तो वह दूसरी लड़कियों से धंधा करवा कर उन की कमाई से कमीशन लेने लगी. वह ज्यादातर उज्बेक लड़कियों को ही पटाने की कोशिश करती थी.

शाखनोजा को देखते ही नाज उस पर लट्टू हो गई थी. उसे उस ने देहधंधे में उतारने की कोशिश भी की. इस कोशिश में जब उसे लगा कि वह ऐसीवैसी लड़कियों में नहीं है, तब उस ने उस की रूममेट बन कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश की. अमीर एवं प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखने वाली शाखनोजा एक प्रतिभावान कलाकार थी. उस की कला की कदर भी बढ़ रही थी. अपने नृत्य कार्यक्रमों से उसे अच्छा पैसा मिलने लगा था.

नाज के माध्यम से ही वह माशा और उस के पति गगन के संपर्क में आई. उसे इन की असलियत मालूम नहीं थी. अलबत्ता ये सभी उस से उम्र में बड़े थे, इस वजह से वह इन लोगों की बहुत इज्जत करती थी. शाखनोजा स्वभाव से थोड़ा भोली थी, जिस का फायदा उठाते हुए ये लोग उस से पैसे उधार मांगने लगे, जो बढ़तेबढ़ते 8 लाख रुपए तक पहुंच गए.

एक दिन शाखनोजा ने इन से अपने पैसे वापस मांगे तो नाराज हो कर इन लोगों ने उसे धमकाने के लिए 24 सितंबर, 2015 की रात धोखे से साउथ एक्सटेंशन में एक जगह बुला लिया. वहां थोड़ाबहुत हडक़ा कर इन लोगों ने उसे अपनी गाड़ी में जबरदस्ती बैठा लिया और चले गए.

कार गगन चला रहा था. माशा उस की बगल वाली सीट पर बैठी थी. पिछली सीट पर नाज लगातार शाखनोजा की पिटाई करते हुए उस का गला दबा कर उसे डरा रही थी. उसी बीच उबडख़ाबड़ जगह पर कार थोड़ा उछली तो नाज के हाथों का दबाव बढ़ गया, जिस की वजह से शाखनोजा की मौत हो गई.

ये लोग शाखनोजा को मारना नहीं चाहते थे, लेकिन जब वह मर गई तो उस की लाश को दिल्ली में फेंकना खतरे से खाली नहीं था. उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए इन्होंने एक सूटकेस का इंतजाम किया और उस में लाश को रख कर रात ही में पानीपत के कस्बा समालखा में एक जगह उस सूटकेस और लाश पर पैट्रोल छिडक़ कर आग लगा दी. इस तरह इन लोगों ने शाखनोजा से छुटकारा पा लिया.

इस घटना से गगन और माशा जरा भी नहीं घबराए, लेकिन नाज के दिलोदिमाग पर इस का गहरा असर पड़ा. उसे पकड़े जाने का भय सताने लगा. हालांकि कुछ दिनों बाद एक बार पुलिस उस से पूछताछ भी कर चुकी थी. तब गगन उस के लिए ढाल बन गया था. इस के बाद गगन को लगा कि यह डरपोक औरत खुद तो फंसेगी ही, अपने साथ उन्हें भी फंसाएगी. रहीसही कसर शाखनोजा के उस पत्र ने पूरी कर दी, जिस में उस ने अपनी जिंदगी से जुड़ी तमाम घटनाओं का जिक्र करते हुए एंबेसी को लिखा था. यह पत्र पुलिस को बाद में शाखनोजा के सामान से मिला था.

खैर, नाज को अपने लिए खतरा बनते देख गगन ने 5 अक्टूबर, 2015 को उसे भी गला घोंट कर मार दिया और उस की लाश को उत्तर प्रदेश के हापुड़ ले जा कर एक सुनसान जगह में पैट्रोल डाल कर जला दिया. पूछताछ के बाद गगन को उन दोनों जगहों पर ले जाया गया, जहां उस ने लाशें जलाई थीं. वहां के थानों में अधजली लाशें मिलने के मामले दर्ज थे. बरामदगी के नाम पर स्थानीय पुलिस को इन महिलाओं की अस्थियां ही मिल पाई थीं.

शाखनोजा की पहचान के लिए पुलिस ने उस की हड्डी एवं उस की मां शोखिस्ता का डीएनए टैस्ट करवाया है. मामले का खुलासा होने पर माशा भूमिगत हो गई थी. उस से पूछताछ के लिए पुलिस उस की तलाश कर रही थी. गगन से शाखनोजा की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें मिली हैं. ये तसवीरें उस ने उसे ब्लैकमेल करने के लिए 16 अगस्त को तब खींची थीं, जब एक नृत्य आयोजन के बाद उसे बेहोशी की दवा मिला कोला पिलाया गया था. यह षडयंत्र गगन का रचा था.

बहरहाल, जमिरा का कहना है कि उस की बहन को बैले डांसर कह कर उस की प्रतिभा का अपमान न किया जाए. वह एक अच्छी नर्तकी थी, जो अपनी कला को निखारने के लिए इंडिया आई थी. लेकिन यहां आ कर उसे बदनामी और निर्मम मौत मिली.

स्पा के दाम में फाइव स्टार सेक्स

इश्क जान भी लेता है – भाग 2

नाहर सिंह ने शादी नहीं की थी. वह अपनी बहनों और भांजों को बेहद चाहते थे. उन की बहनें भी संपन्न थीं. वह खुद भी उन के लिए काफी खर्च करते थे. अपने भांजों को भी वह जेब खर्च के लिए इतने पैसे देते थे, जिन से एक मध्यमवर्गीय परिवार का एक महीने का खर्च चल सकता था.

दरअसल, नाहर सिंह की सोच थी कि पढ़लिख कर उन के भांजों को कोई बहुत अच्छी नौकरी तो मिलेगी नहीं, इसलिए वह उन्हें नेता बनाना चाहते थे और नेता बनने के लिए शैक्षिक योग्यता की जगह दबंगई होनी चाहिए. अपनी इसी सोच के चलते वह मोहित और सचिन को दबंग बना रहे थे. मामा की शह पर मोहित कुछ ज्यादा ही बिगड़ चुका था. लोगों से मारपीट कर आतंक फैला कर उस ने इलाके में अपनी दबंगई कायम कर ली थी. वह कई संगीन वारदातों को भी अंजाम दे चुका था.

दरअसल, मोहित और अभिषेक उर्फ नीतू पहले दोस्त थे. उन के बीच दुश्मनी की शुरुआत सन 2012 में तब हुई थी, जब मानसी से नीतू ने कोर्टमैरिज कर ली थी.

मानसी मूलरूप से बिहार के रहने वाले फकीरेलाल की बेटी थी. फकीरेलाल गुडग़ांव की एक कंपनी में काम करते थे और गुडग़ांव के सैक्टर- 4 में किराए पर कमरा ले कर अपने बच्चों के साथ सपरिवार रहते थे. मानसी फैशनपरस्त और बिंदास लडक़ी थी. उस की कई लडक़ों से दोस्ती थी. वह उन के साथ कार या बाइक से घूमती, फिल्में देखती और महंगे रैस्टोरैंट में खाना खाती. कई युवकों से उस के शारीरिक संबंध भी थे.

रोजाना नएनए लडक़ों के साथ घूमते हुए उसे मोहल्ले के अनेक लोगों ने देखा था. उन्होंने उस की शिकायत फकीरेलाल से की तो उन्होंने उसे डांटा. लेकिन मानसी बहक कर उस ढलान पर पहुंच चुकी थी, जहां से वापस आना उस के लिए आसान नहीं था. इसलिए पिता के समझाने का उस पर जरा भी असर नहीं हुआ.

मानसी का अपने पुरुष दोस्तों के साथ घूमनेफिरने का सिलसिला कायम रहा. इस से मोहल्ले में फकीरेलाल की बदनामी हो रही थी. लाख समझाने के बावजूद भी जब मानसी नहीं मानी तो तंग आ कर फकीरेलाल ने उसे घर से निकाल दिया.

घर से निकालने पर मानसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, बल्कि वह सैक्टर-18 में किराए के फ्लैट में रहने लगी. अब उस से कोई टोकाटाकी करने वाला नहीं था, जिस से वह पूरी तरह से आजाद हो गई थी. उसे जब जहां मन होता, जाती थी. वह क्लबों और पबों में डांस भी करने लगी थी.

सन 2012 के फरवरी महीने में एक पब में मानसी की मुलाकात विक्की से हुई. पहली ही मुलाकात में मानसी विक्की के दिल में उतर गई. विक्की उस पर खूब रुपए लुटाता था. वह विक्की की गाड़ी में घूमतीफिरती. विक्की उस की हर फरमाइश पूरी करता. विक्की भी गुडग़ांव का रहने वाला था. वह भी एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखता था. विक्की और मोहित आपस में गहरे दोस्त थे.

विक्की ने मानसी से साफ कह दिया था, “मानसी, मैं तुम से शादी तो नहीं कर सकता. पर हां, तुम्हारा सारा खर्च ताउम्र उठाता रहूंगा. तुम्हें जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं होने दूंगा. परंतु बदले में मुझे तुम से इसी तरह का प्यार चाहिए. तुम एक बात का खास ध्यान रखना कि किसी दूसरे पुरुष ने तुम्हें छुआ भी तो मैं हरगिज बरदाश्त नहीं करूंगा.”

मानसी उस की शर्त मानने को तैयार हो गई. तब जिस फ्लैट में मानसी रहती थी, उस का किराया, कार, सौंदर्य प्रसाधन और खानेपीने का सारा खर्च विक्की उठाने लगा. वह हफ्ते में 1-2 बार उस से मिलने उस के फ्लैट पर पहुंच जाता था.

विक्की से मुलाकात के बाद मानसी ने अपने और पुरुष दोस्तों से मिलनाजुलना बंद कर दिया. विक्की उस से हफ्ते में 1-2 बार ही मिलने आता था. उस के जाने के बाद मानसी का मन नहीं लगता था. रोजना ही नएनए दोस्त बनाने वाली मानसी भला विक्की के साथ बंध कर कैसे रह सकती थी. लिहाजा उस ने फिर से लोगों से दोस्ती करनी शुरू कर दी.

उसी दौरान उस की मुलाकात अभिषेक उर्फ नीतू से हुई. नीतू की शानोशौकत देख कर मानसी का झुकाव उस की तरफ हो गया. नीतू हर मायने में उसे विक्की से अच्छा लगा. विक्की को जब यह बात पता चली तो उस ने मानसी से कहा, “मैं ने कहा था न कि अगर किसी पराए पुरुष ने तुम्हारे शरीर को छुआ भी तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा.”

“विक्की, मैं भी इंसान हूं और मेरी भी कुछ भावनाएं हैं,” मानसी ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा, “मैं भी चाहती हूं कि मेरा पति हो, घर हो, बच्चे हों. यह सब तुम्हारे साथ नहीं हो सकता. इसलिए मैं रखैल नहीं, पत्नी बन कर जीना चाहती हूं.”

मानसी की बात सुन कर विक्की को गुस्सा आ गया, वह चिल्लाते हुए बोला, “मानसी, मेरे जीतेजी तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगी.”

“चिल्लाओ मत. मैं तुम्हारी ब्याहता नहीं हूं, जो इस तरह मुझ पर अपना हक जता रहे हो.” मानसी भी गुस्से में आ गई. वह आगे बोली, “मैं नीतू से शादी कर रही हूं. वह तुम से ज्यादा दौलतमंद है और मेरे सारे अरमान पूरे करने की उस की हैसियत भी है. और सुन लो, आज के बाद मेरा तुम से कोई वास्ता नहीं.”

विक्की मानसी को धमकाते हुए वहां से चला गया. विक्की का पत्ता काटने के बाद अप्रैल, 2012 में अभिषेक उर्फ नीतू ने मानसी से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज की बात जब विक्की को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा. गुस्से में तिलमिलाया हुआ वह नीतू से मिला.

“नीतू जब तुम्हें यह बात पता थी कि मानसी मेरी रखैल है तो तुम ने उस से कोर्टमैरिज क्यों कर ली?” विक्की ने पूछा.

“विक्की, मैं ने मानसी के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की. वह राजी थी, तभी तो शादी हुई. अगर वह मुझे नहीं चाहती तो भला मैं उसे कैसे पा सकता था. उस ने जब अपनी मरजी से शादी की है तो इस में तुम्हारे लिए बुरा मानने वाली क्या बात है.” नीतू बोला.

“देख नीतू, तू मेरा दोस्त है, इसलिए तुझे एक बात बता रहा हूं कि मानसी जैसी लड़कियां उसी पर प्यार न्यौछावर करती हैं, जिस के पास दौलत होती है. उस ने तुझ से यह जानने के बाद शादी की है कि तेरे पास मुझ से ज्यादा दौलत है. एक दिन उसे तुझ से ज्यादा पैसे वाला कोई और मिल गया तो वह तुझे भी ठुकरा देगी. फिर तुझे भी उस की हकीकत पता चलेगी और उस दिन तू बहुत पछताएगा.” यह कह कर विक्की वहां से चला गया.

समय गुजरता रहा और 2 साल बीत गए. नीतू तो उसे पहले की तरह प्यार करता था, लेकिन मानसी का प्यार जरूर फीका पड़ गया. उस का नीतू से एक तरह से मन भर गया था. हालांकि नीतू उस पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था. इस के बावजूद वह नए दोस्तों को तलाशने लगी. इस की वजह साफ थी कि उसे अलगअलग लोगों के साथ मौजमस्ती करने की आदत जो पड़ गई थी.

अभिषेक ने जब उसे डांस क्लबों में जाने से मना किया तो मानसी ने साफ कह दिया, “नीतू, मैं कोई ङ्क्षपजरे में बंद हो कर रहने वाली चिडिय़ा नहीं हूं. मेरा जो मन करेगा, मैं वही करूंगी. तुम कभी मुझे रोकने की कोशिश भी मत करना.”

इस के बाद वह नीतू को छोड़ कर अलग किराए के मकान में रहने लगी. अभिषेक उस से मिलने आता तो वह उसे दुत्कार देती. इस बात का अभिषेक को बड़ा दुख होता था. लाखों रुपए उस पर खर्च करने के बावजूद उसे प्रेमिका की दुत्कार मिलती थी.

दिल्ली की सब से बड़ी लूट – भाग 2

पुलिस ने पूछताछ के लिए गनमैन विजय कुमार को हिरासत में ले लिया था. इस वारदात के पीछे पुलिस को 3 ऐंगल नजर आ रहे थे. पहला यह कि कैश वैन का ड्राइवर प्रदीप शुक्ला इतनी बड़ी लूट को अकेला अंजाम नहीं दे सकता था. उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर ही वारदात को अंजाम दिया होगा.

दूसरा ऐंगल यह लग रहा था कि किसी प्रोफेशनल गिरोह ने रास्ते में प्रदीप को काबू कर के उस का अपहरण कर लिया होगा और रकम व प्रदीप को वह अपनी गाड़ी में डाल कर ले गए होंगे. अगर ऐसा हुआ तो अपहत्र्ता प्रदीप की हत्या कर सकते थे.

तीसरा ऐंगल यह लग रहा था कि गनमैन विजय कुमार ने साजिश रच कर यह वारदात कराई है. गनमैन योजना के तहत लघुशंका के बहाने उतर गया होगा और उस के साथियों ने ड्राइवर का पीछा कर के वारदात को अंजाम दिया होगा. पुलिस इन तीनों संभावनाओं पर तहकीकात कर रही थी.

विकासपुरी से कैश ले कर वैन जिस रूट से होते हुए श्रीनिवासपुरी की रेडलाइट तक पहुंची थी, पुलिस ने यह पता लगाया कि इस रास्ते में कहांकहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. पुलिस यह जानना चाहती थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाश विकासपुरी से ही किसी गाड़ी से कैश वैन का पीछा कर रहे थे. इस के अलावा गोङ्क्षवदपुरी मैट्रो स्टेशन के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गई. क्योंकि कैश वैन लावारिस अवस्था में इसी मैट्रो स्टेशन के पास खड़ी मिली थी.

पुलिस की एक टीम विकासपुरी स्थित करेंसी चेस्ट पहुंची. वहां से पता चला कि एसआईएस की किसी भी वैन में रोजाना 10 करोड़ रुपए से ज्यादा नहीं रखे जाते थे तब पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि उस दिन वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए क्यों रखे गए?

इस के अलावा यहां एक खामी और सामने आई, वह यह थी कि हर दिन हरेक कैश वैन पर 2 गनमैन, एक ड्राइवर और एक कस्टोडियन सवार होता था लेकिन उस दिन कैश वैन में एक गनमैन और एक कस्टोडियन को क्यों नहीं भेजा गया? इतने ज्यादा कैश के साथ केवल एक ही गनमैन क्यों भेजा गया? कस्टोडियन सुरेश कुमार उस वैन में क्यों नहीं गया?

इस के अलावा पुलिस को यह भी पता चला कि वैन में रकम रखने की जिम्मेदारी कस्टोडियन की होती है, लेकिन उस वैन में साढ़े 22 करोड़ रुपए कस्टोडियन के बजाय किसी विक्रम नाम के कर्मचारी ने रखे थे. इन खामियों को देख कर पुलिस को शक हुआ कि लूट की योजना बनाने में यहां के कर्मचारियों का भी हाथ हो सकता है. इसीलिए पुलिस ने विक्रम, कस्टोडियन सुरेश कुमार और अन्य कई कर्मचारियों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

इस से पहले दिल्ली में कैश लूट के जो मामले हुए थे, उन में जिन बदमाशों के शामिल होने की बात सामने आई थी, पुलिस ने उन बदमाशों के डोजियर के आधार पर उन की तलाश शुरू कर दी. उन में से पुलिस के हाथ जितने भी बदमाश लगे, उन से भी सख्ती से पूछताछ की जाने लगी.

प्रदीप शुक्ला नाम का जो ड्राइवर कैश के साथ लापता था, पुलिस ने एसआईएस कंपनी से उस का फोटो और उस की डिटेल हासिल की तो पता चला कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिला बलिया का रहने वाला था और उस ने 10 सितंबर, 2015 को ही इस कंपनी में नौकरी जौइन की थी.

कंपनी में उस ने दक्षिणी दिल्ली के कोटला मुबारकपुर का पता लिखवाया था. पुलिस की एक टीम उस के कोटला मुबारकपुर वाले पते पर पहुंची तो पता चला कि वह पहले कभी इस पते पर रहता था. मकान मालिक ने पुलिस को बताया कि अब वह ओखला इंडस्ट्रियल एरिया के नजदीक हरकेशनगर में रहता है.

हरकेशनगर का पता ले कर पुलिस टीम जब उस के कमरे पर पहुंची तो वहां उस की पत्नी शशिकला और 3 बच्चे मिले. पुलिस ने जब शशिकला से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह अपनी ड्ïयूटी गए हैं. पुलिस ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रदीप घर में नोटों के बौक्स रख कर कहीं फरार हो गया हो और पत्नी झूठ बोल रही हो. यह शंका दूर करने के लिए पुलिस ने उस के कमरे की तलाशी ली, लेकिन वहां उसे कुछ नहीं मिला. पुलिस वहां से खाली हाथ लौट आई.

अब तक पुलिस की किसी भी टीम को ऐसा कोई क्लू नहीं मिल सका था, जिस से प्रदीप के बारे में कोई जानकारी मिल सकती. अब तक काफी रात हो चुकी थी. लेकिन पुलिस टीमें अपनेअपने काम में लगी थीं. पुलिस ने ड्राइवर प्रदीप शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा रखा था, इस से उस की आखिरी लोकेशन अपराह्न पौने 4 बजे श्रीनिवासपुरी की आ रही थी.

इस से यही लग रहा था कि वहां से कैश वैन सहित फरार होते समय उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि प्रदीप ने उसी दिन 26 नवंबर को आखिरी बार किसी अजीत के फोन पर बात की थी. बाद में पता चला कि अजीत भी हरकेशनगर में रहता है.

पुलिस अजीत के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उस से प्रदीप के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि प्रदीप से उस की कोई खास बात नहीं हुई थी, लेकिन उस ने प्रदीप को शाम 4-5 बजे के बीच ओखला फेज-3 में देखा था.

थानाप्रभारी नरेश सोलंकी अजीत को ले कर ओखला फेज-3 में उस जगह पहुंच गए, जहां उस ने प्रदीप को देखा था. वहां तमाम इंडस्ट्री हैं, इसलिए प्रदीप को ढूंढना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने इस बात से डीसीपी मनदीप ङ्क्षसह रंधावा को अवगत कराया तो उन्होंने उस इलाके में सर्च औपरेशन चलाने के निर्देश दिए.

सर्च औपरेशन में सरिता विहार के थानाप्रभारी मङ्क्षहदर ङ्क्षसह, नेहरू प्लेस पुलिस चौकी इंचार्ज मनमीत मलिक, एसआई राजेंद्र डागर, जितेंद्र ङ्क्षसह, हैडकांस्टेबल यतेंद्र आदि को भी लगा दिया गया. इस टीम का निर्देशन कालकाजी के एसीपी जसवीर ङ्क्षसह कर रहे थे.

पुलिस टीम हर फैक्ट्री में जाती और प्रदीप का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछती. इसी क्रम में पुलिस ओखला फेज-3 स्थित एक ढाबे पर पहुंची. वह ढाबा अजय का था. वह ढाबा देर रात तक खुला रहता था. पुलिस ने ढाबे वाले को प्रदीप का फोटो दिखाया तो उस ने बताया कि इसे उस ने यहीं पर रात साढ़े 9 बजे के करीब देखा था. ढाबे वाले से बात कर के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि प्रदीप ज़िंदा है. क्योंकि पुलिस को आशंका थी कि अपहत्र्ताओं ने उसे कहीं मार न दिया हो.

कैश कहां है, यह बात प्रदीप के मिलने पर ही पता लग सकती थी. इसलिए उसे ढूंढना जरूरी था. पुलिस को लगा कि कुछ घंटे पहले जब प्रदीप यहीं था तो जरूर यहीं कहीं छिपा होगा. इस के बाद पुलिस पूरे उत्साह से एकएक फैक्ट्री में जा कर उसे खोजने लगी.

खोजबीन करते हुए पुलिस ढाबे से करीब 50 गज दूर एक फैक्ट्री के गेट पर पहुंची तो उस में अंदर से ताला बंद था. गेट खटखटाने पर गेट पर एक अधेड़ उम्र का आदमी आया. वह उस फैक्ट्री का चौकीदार था. उस का नाम रामसूरत था. पुलिस ने चौकीदार को ड्राइवर प्रदीप शुक्ला का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा और गोदाम की तलाशी लेने के लिए कहा.

पुलिस को देख कर चौकीदार रामसूरत डर गया. वह गेट की चाबी लेने की बात कह कर अंदर गया और कुछ देर बाद लौट कर गेट खोल कर पुलिस को अंदर ले आया. उस ने एक कमरे का दरवाजा खोल कर कहा, ‘‘सर, जिस की आप को तलाश है, वह यह रहा.’’

पुलिस कमरे में घुसी तो सचमुच वहां फरार ड्राइवर प्रदीप शुक्ला मिल गया. उसी कमरे में कैश से भरे 9 संदूक भी रखे थे. यह सब देख कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में ले कर उन बक्सों की जांच की तो उन में से केवल एक बक्से की क्लिप हटी थी, बाकी 8 बक्से जैसे के तैसे थे.

उज्बेक डांसर का दुखद अंत – भाग 2

पुलिस ने इन लोगों के अलावा अन्य कई लोगों को भी संदेह के दायरे में रख कर पूछताछ की थी. लेकिन शाखनोजा के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी. शाखनोजा की मां व दोनों बहनों ने तब तक दिल्ली में ही रुके रहने का फैसला कर लिया, जब तक उस का पता न चल जाए. इस के लिए उन्होंने एक फ्लैट किराए पर ले लिया. इंसाफ की चाहत लिए एक दिन वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मिलीं. दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से तो वे रोजाना ही मिल रही थीं. इन लोगों द्वारा शाखनोजा के बारे में टुकड़ों में बताई गई बातों से उस का परिचय कुछ इस तरह से सामने आया.

घर में छोटी होने की वजह से शाखनोजा सब की लाडली थी. उस ने ताशकंद में रह कर स्कूली शिक्षा हासिल की थी, जहां अच्छे एकैडमिक ग्रेड हासिल करने के साथ वह डांस प्रतियोगिताओं में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

दरअसल, शाखनोजा का जन्म ऐसे कलाकारों के परिवार में हुआ था, जहां सभी को गीतसंगीत का शौक था. उस के पिता जानेमाने संगीतकार थे, लेकिन अज्ञात बीमारी के चलते वह तब दुनिया को अलविदा कह गए थे, जब शाखनोजा केवल 2 साल की थी. लेकिन शोखिस्ता ने अपनी इस बेटी को कभी भी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी थी.

शाखनोजा छुटपन से ही डांस विधा की ओर अग्रसर होने लगी थी. उस का शौक देखते हुए उस का दाखिला एक अच्छे डांस स्कूल में करवा दिया गया था, जहां उस ने बैले डांस से ले कर भारतीय फिल्मों के गीतों तक पर डांस करना सीखा. देखतेदेखते उस ने इंडियन फिल्मी गीतों पर डांस करने में महारत हासिल कर ली.

माधुरी दीक्षित अभिनीत ‘देवदास’ के गीत ‘मार डाला…’ पर तो वह इतना बढिय़ा डांस किया करती थी कि देखने वाले को एक बार विश्वास ही नहीं होता था कि डांस करने वाली लडक़ी भारतीय न हो कर विदेशी होगी. शायद इन नृत्यों की वजह से ही उसे भारत और यहां के कल्चर से प्यार हो गया था.

शाखनोजा सब से पहले एक एंबेसी इवेंट में भाग लेने के लिए सन 2008 में भारत आई थी. उन दिनों वह उज्बेकिस्तान में कोरियोग्राफी का एक विशेष क्रैश कोर्स कर रही थी. इस कोर्स को बीच में ही छोड़ कर वह इंडिया आ गई थी, जहां की संस्कृति ने उसे इस कदर मोह लिया था कि उस का मन यहीं बसने को बेचैन हो उठा था.

इस के बाद वह टूरिस्ट वीजा पर अकसर इंडिया आने लगी थी. इस से उसे दिल्ली की काफी जानकारी हो गई थी. वह जब भी भारत आती थी तो वह पहाडग़ंज के होटलों में या फिर किशनगढ़ के अपार्टमेंट्स में रुकती थी. किशनगढ़ में उस की मुलाकात नाज से हुई थी. बाद में दोनों रूममेट बन कर रहने लगी थीं.

नाज का पूरा नाम था एटाजहानोवा कुपालबायवेना. वह भी उज्बेकिस्तान की रहने वाली थी. नाज के माध्यम से शाखनोजा की दिल्ली में रहने वाले तमाम उज्बेकियों से जानपहचान हो गई थी. वह उन लोगों के पारिवारिक समारोहों में खूब बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगी थी. इसी सिलसिले में उस की मुलाकात एक अन्य उज्बेक युवती माशा व उस के भारतीय पति गगन से हुई थी.

शाखनोजा करीब रोजाना ही अपनी मां को फोन कर के एकएक बात के बारे में बताया करती थी. शोखिस्ता उस से मिलने एकदो बार दिल्ली भी आई थीं और बेटी के इधर के कई दोस्तों से मिली थीं. उन्होंने महसूस किया था कि यहां उन की बेटी ने अपनी अच्छी जगह बना ली है. उस की प्रशंसा करने वालों की कमी नहीं है.

शाखनोजा ने तब मां को बताया था कि यहां के सांस्कृतिक समारोहों के सहारे वह जल्दी ही भारतीय फिल्मों में भी काम हासिल कर लेगी. शोखिस्ता बेटी की सफलताओं से खुश हो कर उस के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हुई खुशीखुशी उज्बेकिस्तान लौटी थीं.

कुछ समय बाद एक दिन शाखनोजा ने फोन कर के उन्हें बताया कि उस के डांस प्रोग्राम इस कदर पसंद किए जाने लगे हैं कि वह मांग को पूरा करने में खुद को असमर्थ महसूस कर रही है. कभीकभी मोटे पैसों का लालच दिए जाने के बावजूद उसे कार्यक्रम छोडऩे पड़ते हैं. ऐसे ही एक बार शोखिस्ता को बेटी की ओर से इंडिया में बौयफ्रैंड बनाने और उस से गर्भ ठहरने का समाचार मिला. इस से शोखिस्ता को लगा कि शाखनोजा अब वहीं अपना घर बसा कर भारत में रह जाएगी. वैसे उन्हें इस बात का पहले से ही अहसास था कि शाखनोजा की जान इंडिया में अटकी रहती है.

फोन पर ऐसी ही बातों के बीच एक दिन शाखनोजा ने मां को कुछ ऐसा बताया, जिसे सुन कर वह परेशान हो गईं. शाखनोजा ने उन्हें बताया कि 16 अगस्त, 2015 को हुई एक पार्टी में वह इतना नाची कि थक कर चूर हो गई. डांस खत्म होने पर जब वह वहां बिछे एक काउच पर बैठी तो किसी ने उसे पीने को कोक का गिलास दिया, जिसे वह एक ही सांस में पी गई.

उसे पीने के बाद उस पर बेहोशी छाने लगी. उस के बाद जब वह चेतना में लौटी तो उस ने खुद को एक दूसरी जगह पर पाया. उस के शरीर पर कपड़े भी पहले वाले नहीं थे. वहां 2 लड़कियां थीं, जिन्होंने उसे बताया कि तंग कपड़ों की वजह से उस की तबीयत खराब हो गई थी. इसीलिए उसे यहां ला कर उस के उन कपड़ों को उतार कर ये ढीले कपड़े पहनाए गए हैं.

इस घटना के बाद से शाखनोजा थोड़ा परेशान रहने लगी थी. उस की बातें सुन कर शोखिस्ता भी बेचैन हो जाती थीं. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस मामले में वह बेटी से क्या कहें? कुछ कहने से वह और ज्यादा चिंता में पड़ सकती थी. इसलिए उन्होंने शाखनोजा से इतना ही कहा कि आगे से कहीं इतना न नाचे कि तबीयत खराब हो जाए.

उन्होंने बेटी को भले ही चेता दिया था, लेकिन उन्हें उस की चिंता सताती रहती थी कि अकेली रहते हुए वह कहीं किसी षडयंत्र का शिकार न हो जाए. इस के बाद शोखिस्ता इंडिया जा कर मामले की तह में पहुंचने का विचार करने लगी थीं.

इस घटना को घटे अभी सवा महीना ही बीता था कि 24 सितंबर की रात उन्हें बेटी के अपहरण की सूचना ने झकझोर कर रख दिया. वह तुरंत अपनी दूसरी बेटियों के साथ दिल्ली पहुंचीं और बेटी की तलाश में जुट गईं. पुलिस पर वह लगातार दबाव डालती रहीं कि इस मामले को वह हलके में न ले कर उन लोगों से सख्ती से पूछताछ करे, जिन पर उसे शक है.

शोखिस्ता का कहना था कि इस मामले को पुलिस हल्के में ले कर संदिग्ध लोगों से गंभीरता से पूछताछ नहीं कर रही है. आखिर पुलिस ने अपना रवैया बदला और संदिग्ध लोगों को फिर से थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ शुरू की. दूसरे लोगों के अलावा जब गगन से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने शाखनोजा को ही नहीं, नाज को भी मौत के घाट उतार कर उस की भी लाश जला दी है. यह सुन कर पुलिस दंग रह गई.

दिल्ली का साहिल साक्षी केस : प्यार पर नफरत के वार

इश्क जान भी लेता है – भाग 1

नाहर सिंह गुडग़ांव के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव इसलापुर के रहने वाले थे. गुडग़ांव, सोनीपत और हिसार में उन की हार्डवेयर की 3 दुकानें थीं. गांव में भी उन की कई एकड़ खेती की जमीन थी. इस के अलावा गुडग़ांव में उन के 2 आलीशान मकान थे. उन की 3 बहनें थीं, जिन की शादियां हो चुकी थीं.

छोटी बहन विमला की शादी दौलताबाद के रहने वाले देवेंद्र कुमार के साथ हुई थी. देवेंद्र भारतीय सेना में सूबेदार थे. उन की पोस्टिंग सिक्किम में थी. विमला घर पर ही रह कर बच्चों आदि को देखती थी. उन के 2 बेटे थे, सचिन और मोहित. दोनों ही जवान थे. बच्चों की देखरेख के लिए नाहर सिंह भी विमला के यहां ही रहते थे. देवेंद्र को फौज से जब भी छुट्टी मिलती थी, वह अपनी बीवीबच्चों के पास आ जाया करते थे.

25 अगस्त, 2015 की शाम लगभग 5 बजे नाहर सिंह छोटे भांजे मोहित और उस के दोस्त सक्षम के साथ गुडग़ांव के सैक्टर- 23 स्थित एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे, तभी वहां अभिषेक उर्फ नीतू अपने दोस्तों मन्ना, दीपांकर और नितेश के साथ आया. आते ही नीतू ने मोहित की मेज पर रखे कौफी के प्याले को उठा कर फेंक दिया.

नीतू की इस हरकत से मोहित और सक्षम को गुस्सा आ गया. पास बैठे नाहर सिंह समझ नहीं पाए कि नीतू ने ऐसा क्यों किया. इस से पहले कि नाहर सिंह कुछ कहते, सक्षम ने चिल्लाते हुए कहा, “लगता है, उस दिन की मार के तेरे निशान ठीक हो गए हैं, जो…”

उस की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि नीतू के दोस्त नितेश ने सक्षम के गाल पर जोरदार थप्पड़ मारते हुए कहा, “अपनी जुबान बंद रख, वरना अभी काट कर फेंक दूंगा.”

दोस्त की बेइज्जती मोहित बरदाश्त नहीं कर सका और नितेश से भिड़ गया, “तू ने इस पर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे की?”

“ओए चल दूर हट यहां से. अब बहुत भौंक चुका तू.” नीतू ने अंटी से रिवौल्वर निकाल कर मोहित पर तानते हुए कहा, “मैं अपना अपमान कभी नहीं भूलता. अपमान का बदला जब तक ले न लूं, चैन की नींद सोना हराम समझता हूं. तेरी कोई आखिरी ख्वाहिश हो तो अपने मामू को बता दे.”

इसी के साथ नीतू के दोस्तों ने नाहर सिंह को हथियारों के बल पर काबू कर लिया था. नीतू की धमकी पर मोहित आगबबूला हो कर नीतू को पीटने के लिए आगे बढ़ा ही था कि अभिषेक ने उस पर एक के बाद एक कई फायर झोंक दिए. गोलियां मोहित के सीने, पेट व आंख के पास लगीं. मोहित लहूलुहान हो कर नीचे गिर कर कराहने लगा.

उस समय कैफे में और भी लोग थे. गोलियों की आवाज सुन कर सभी चौंके. लेकिन हथियारों को देख कर किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं  हुई. वे सुरक्षित स्थान तलाशने लगे. अपने सामने भांजे के साथ हुई इस वारदात पर नाहर सिंह भी कुछ नहीं कर सके. मोहित की हत्या कर हमलावर कार से फरार हो गए.

नाहर सिंह ने तुरंत पुलिस को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. गोली मारने की खबर पाते ही थाना पालम विहार के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ थोड़ी ही देर में सैक्टर-23 के उस कैफे में पहुंच गए. मोहित की कुछ देर बाद ही मौत हो चुकी थी. पुलिस ने अपने आला अधिकारियों को भी इस हत्या की सूचना दे दी थी.

थानाप्रभारी ने नाहर सिंह से बात की तो उन्होंने पूरा वाकया बता दिया. इस के अलावा थानाप्रभारी ने कैफे के मैनेजर, वेटरों और वहां मौजूद ग्राहकों से भी पूछताछ की. इस के बाद घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. नाहर सिंह की तहरीर पर पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली. मामला एकदम स्पष्ट था. कैफे में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी साफ नजर आ रहा था कि मोहित पर गोलियां अभिषेक उर्फ नीतू ने चलाई थीं. इसलिए पुलिस को सिर्फ हत्याभियुक्तों को गिरफ्तार करना था.

उन की गिरफ्तारी के लिए पुलिस कमिश्नर नवदीप सिंह विर्क ने एसीपी (क्राइम) राजेश कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह राणा, एसआई सुखजीत सिंह, एएसआई सुरेश कुमार, सुनीता कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप, धीरज सर्वसुख के अलावा कांस्टेबल धर्मेंद्र, नीति आदि को शामिल किया गया.

अगले दिन 28 अगस्त को पुलिस ने नामजद अभियुक्तों के घरों पर दबिश दी तो वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले. फिर उसी दिन शाम के समय एक मुखबिर की सूचना पर गुडग़ांव के हिमगिरी चौक से अभिषेक उर्फ नीतू, ब्रजेश उर्फ नोनी, दीपांकर, बौबी तथा आदित्य को गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने में जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने मोहित की हत्या की वजह तो बता ही दी, साथ ही एक ऐसे हत्याकांड से भी परदाफाश किया, जिस की फाइल पुलिस बंद कर चुकी थी.

21 वर्षीय अभिषेक उर्फ नीतू एक अमीर बाप की बिगड़ी औलाद था. उस के पिता भानमल गुडग़ांव के धनवापुर गांव में अपने परिवार के साथ रहते थे. करीब 4 साल पहले एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने उन की 5 एकड़ जमीन 22 करोड़ में खरीदी थी. जमीन बेचने के बाद उन्होंने आलीशान मकान बनवाया, नौकर रखे और 2 कारें खरीदीं. तब से यह परिवार ठाठबाट से रह रहा था.

अचानक पैसा आता है तो अपने साथ कई बुराइयां भी लाता है. ऐसा ही इस परिवार में भी हुआ. अभिषेक उर्फ नीतू भानमल का एकलौता बेटा था, इसलिए वह उस की हर फरमाइश पूरी करते थे. अभिषेक अपने यारदोस्तों के साथ कार ले कर दिन भर इधरउधर घूमता और अय्याशी करता. वह अपने पिता से जितने पैसे मांगता, वह उसे मिल जाते थे. जिन्हें वह खुले हाथों से खर्च करता था. इसलिए उस के दोस्त भी उस से खुश रहते थे.

उस के खास दोस्तों में 20 वर्षीय ब्रजेश उर्फ नोनी, 19 वर्षीय दीपांकर, 20 वर्षीय बौबी, 18 वर्षीय आदित्य थे. ये सभी उस के घर के आसपास ही रहते थे. ये सभी कार से जब भी घूमने निकलते, इतना ऊधम मचाते थे कि राहगीर भी परेशान हो जाते थे. कोई इन का विरोध करता तो ये उस की पिटाई कर देते. एक तरह से इलाके में इन का आतंक छा चुका था.

पिता ने भी कभी नीतू पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की, जिस से वह और ज्यादा उद्दंड होता चला गया. बातबात पर सीधेसादे लोगों को पीटना, राह चलती लड़कियों को छेडऩा, शराब पी कर हुड़दंग मचाना, हवाई फायर कर के दहशत फैलाना आदि नीतू का जैसे शगल बन गया था.