एक विवाहित औरत का किसी पुरुष को इस तरह ताकने का मतलब राजेश्वर तुरंत समझ गया. बोतल खुली और शराब का दौर चलने लगा. दोनों ने एकएक पैग पिया था कि अनीता ने राजेश्वर की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘आज आप पहली बार हमारे घर आए हैं, इसलिए बिना खाना खाए मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी.’’
‘‘नहीं भाभी, आज नहीं. घर जाने में देर हो जाएगी तो घर वाले परेशान होंगे. अगली बार आऊंगा तो जरूर खा कर जाऊंगा. उसी बहाने आप से मिलने का मौका भी मिल जाएगा.’’ राजेश्वर ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.
‘‘आइएगा जरूर, मुझे आप का इंतजार रहेगा. अब भाभी कहा है तो मेरा आप पर कुछ तो हक बनता ही है.’’
‘‘कुछ नहीं, आप का मेरे ऊपर पूरा हक बनता है. जल्दी ही मैं आप के हाथ का खाना खाने आऊंगा.’’ राजेश्वर ने कहा और वहां से चला गया. यह बात बिलकुल सच है कि भूख आदमी के ईमान को कभी भी डिगा सकती है, चाहे वह पेट की भूख हो या शरीर की. भूखे इंसान को भटकने में देर नहीं लगती. और तब तो बिलकुल नहीं, जब सामने आंखों को भाने वाला खाना या साथी मौजूद हो.
ऐसा ही हुआ अनीता के साथ. राजेश्वर जैसे सजीले नौजवान को देख कर उस का भी ईमान डोल गया. कपड़ों की छपाई के गुर सीखने आया राजेश्वर अपने काम को भूल कर ज्यादा दिनों तक अनीता नाम की इस कामाग्नि से खुद को बचा नहीं सका और उस आग में खुद को स्वाहा कर दिया.
यह भी सच है कि जवानी नौजवानों को गुस्ताख बना देती है. जिस पर जवानी चढ़ती है वह अपने सामाजिक ही नहीं, पारिवारिक दायित्वों को भी भूल जाता है. ऐसा ही कुछ राजेश्वर के साथ भी हुआ. जवान हुए राजेश्वर को अपने मातापिता का सहारा बनना चाहिए था, जबकि वह एक विवाहिता औरत के प्रेम में ऐसा उलझा कि मांबाप का सहारा बनने के बजाय जान तक गंवा बैठा.
राजेश्वर अनीता के जाल में उलझा तो काम से लगातार गैरहाजिर रहने लगा. जब इस बात की खबर राजकुमार तक पहुंची तो उन्होंने पता किया कि राजेश्वर काम पर क्यों नहीं जाता. उन्हें जो जानकारी मिली, वह परेशान करने वाली थी. उन्हें पता चला कि उन का बेटा एक शादीशुदा औरत के चक्कर में पड़ गया है. वह उस पर काफी पैसा भी खर्च कर चुका है. उस ने अपनी जो मोटरसाइकिल बेची थी, उस का पैसा भी उस ने उसी पर खर्च किया था.
राजकुमार समझदार आदमी थे. उन्होंने दुनिया देखी थी. वह जानते थे कि सख्ती से बेटा बगावत कर सकता है, इसलिए एक दिन उन्होंने राजेश्वर को अपने पास बिठा कर प्यार से समझाया कि वह जो कर रहा है, वह न तो उस के लिए ठीक है और न घरपरिवार के लिए. अपना फर्ज समझते हुए राजेश्वर ने पिता की बातें ध्यान से सुनी ही नहीं, बल्कि वादा भी किया कि वह उन की बातों पर गौर करेगा. लेकिन पिता के पास से हटते ही उस ने पिता की जो बातें सुनी थीं, दूसरे कान से निकाल दीं. वह अनीता से पहले की ही तरह मिलता रहा.
राजकुमार ने जब देखा कि उन की बातों का बेटे पर कोई असर नहीं पड़ रहा है तो उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. हद तो तब हो गई, जब मार्च के अंतिम सप्ताह में राजेश्वर ने घर में रखे 10 तोले के सोने के गहने चोरी से ले जा कर अनीता को दे दिए. जब इस चोरी की जानकारी बिटई देवी को हुई तो बिना देर किए वह लोनी में रह रही अनीता के घर जा पहुंचीं. उन्होंने अनीता को बुराभला तो कहा ही, साथ ही धमकी भी दी कि अगर उस ने गहने वापस नहीं किए तो वह उस के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देंगी.
बिटई देवी ने अनीता को रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का भी डर था कि अगर बात पुलिस तक पहुंचेगी तो उन का बेटा भी इस मामले में फंसेगा. इसलिए वह सिर्फ धमकी ही दे कर रह गई थीं. लेकिन बिटई देवी की इस धमकी से अनीता और नीरज इस कदर डर गए थे कि वे बचने का रास्ता खोजने लगे. काफी सोचविचार कर उन्हें जो रास्ता सूझा, वह काफी खतरनाक था. फिर भी उन्होंने उसी पर चलने का निश्चय कर लिया.
19 अप्रैल की शाम को अनीता ने 7 बजे फोन कर के राजेश्वर को घर बुलाया और पति के साथ मिल कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. राजेश्वर की हत्या कर के लाश उन्होंने कमरे में ही छोड़ दी और बाहर से ताला लगा कर रात 2 बजे फरार हो गए.
राजेश्वर की हत्या की सारी कहानी उगलवा कर थाना लोनी पुलिस ने अगले दिन नीरज और अनीता को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. उन के बच्चों को घर वाले आ कर ले गए.