दिल मांगे मोर – भाग 3

इरफान की पत्नी को पता नहीं था कि पति के किसी दूसरी औरत से भी संबंध हैं. पत्नी के इसी विश्वास का इरफान फायदा उठा रहा था. यही नहीं, अब वह नूर फातिमा से निकाह करने की भी सोचने लगा था. उस ने इस बारे में उस से बात की तो वह भी तैयार हो गई. रही बात नबी मोहम्मद की तो उस ने भी सहमति जता दी.

इस के बाद इरफान ने नबी मोहम्मद की मौजूदगी में नूर फातिमा से निकाह कर लिया. यह एक साल पहले की बात है. नूर फातिमा ने इरफान से निकाह जरूर कर लिया था, लेकिन रहती वह नबी मोहम्मद के साथ ही थी. इरफान 1-2 दिन के अंतर पर फातिमा के पास आता रहता था. इस तरह इरफान की 2 नावों की सवारी चलती रही.

चूंकि इरफान का कपड़ों की सेल का काम अच्छा चल रहा था, इसलिए उस ने मारुति कार नबी मोहम्मद को दे दी और अपने लिए सेंट्रो कार खरीद ली. दोनों ही अलगअलग जगहों पर सेल लगाने लगे. कपड़ों की सेल से जो पैसे आते थे, नबी उन्हें इरफान को दे देता था. बदले में इरफान उसे उस की मजदूरी दे देता था.

धीरेधीरे नबी मोहम्मद का स्वभाव बदलने लगा. वह चिड़चिड़ा हो गया. इरफान उस के यहां आता तो वह शराब के नशे में उसे गालियां देता और मारपीट करने पर उतारू हो जाता. इस के अलावा वह इरफान से पैसे ऐंठता. इरफान उस के मुताबिक पैसे देने में आनाकानी करता तो वह उस की पत्नी शहनाज के सामने उस की पोल खोलने की धमकी देता. मजबूरी में इरफान को उस के द्वारा मांगे गए पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ता.

इरफान की इसी कमजोरी का नबी मोहम्मद फायदा उठा रहा था. आए दिन की इस ब्लैकमेलिंग से इरफान परेशान रहने लगा था. उस ने नबी को कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. इरफान को डर लगा रहता था कि कहीं नबी मोहम्मद शहनाज को फातिमा के बारे में बता न दे.   यही वजह थी कि वह इस डर को हमेशा के लिए खत्म करना चाहता था.

इस के 2 ही रास्ते थे. पहला यह कि वह हमेशा के लिए फातिमा से संबंध खत्म कर ले और दूसरा यह कि नबी मोहम्मद का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दे. नबी मोहम्मद को पैसे देने के बाद भी उसे इस बात का विश्वास नहीं था कि वह अपना मुंह बंद रखेगा. इस के लिए उस के दिमाग में एक ही आइडिया आया कि वह नबी मोहम्मद को ठिकाने लगा दे. ऐसा करने से उस की परेशानी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.

नबी मोहम्मद को ठिकाने लगाने वाली बात उस ने नूर फातिमा को भी नहीं बताई. इस काम को वह अकेला अंजाम नहीं दे सकता था, इसलिए उस ने अपने साथ काम करने वाले राकेश और सूरज हाशमी से बात की. राकेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के नगला भवानी गांव का रहने वाला था और दिल्ली में कच्ची कालोनी, मदनपुर खादर में रहता था. जबकि सूरज हाशमी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शुक्लागंज का रहने वाला था. वह भी दिल्ली में रह कर इरफान के साथ कपड़ों की सेल लगाता था.

इरफान ने दोनों साथियों के साथ नबी मोहम्मद को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. योजनानुसार इरफान ने 9 दिसंबर की शाम को नबी मोहम्मद को फोन कर के दिल्ली में जैतपुर के पुश्ते पर बुलाया. नबी मोहम्मद शराब के नशे में था. नबी मोहम्मद इस से पहले भी इरफान के बताए गए पते पर पहुंचता रहता था. इसलिए फोन आने पर 9 दिसंबर की रात करीब साढे़ 9 बजे मारुति कार नंबर डीएल 2सी आर 5093 से नोएडा से वह दिल्ली के लिए चल पड़ा.

उधर इरफान भी राकेश और सूरज हाशमी को अपनी सेंट्रो कार नंबर एचआर 26पी 6738 में बिठा कर जैतपुर पुश्ता की तरफ चल पड़ा. श्रीराम चौक से निकलने के बाद यमुना खादर में उन्होंने कार एक किनारे खड़ी कर दी और नबी मोहम्मद का इंतजार करने लगे. नबी मोहम्मद की गाड़ी दिखते ही इरफान ने उसे रुकवा लिया. फिर वे उसे यमुना खादर की तरफ ले गए. नबी मोहम्मद कुछ समझ पाता, तीनों ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी.

नबी मोहम्मद ने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन 3 लोगों के बीच वह अकेला निहत्था क्या कर सकता था. तीनों उसे पीटते हुए झाडि़यों में ले गए. पिटतेपिटते नबी लगभग अधमरा हो गया तो उसे जमीन पर गिरा कर वहीं पड़ी ईंट से उस के सिर और चेहरे को कुचलने लगे. थोड़ी देर में नबी मोहम्मद की मौत हो गई. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए इरफान ने साथ लाए छुरे से उस का गला भी काट दिया.

इरफान ने नबी मोहम्मद का मोबाइल फोन निकाल लिया. काम हो जाने के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए. लाश खादर में पड़ी थी, इसलिए जंगली जानवरों ने उस की गरदन और चेहरे का मांस खा लिया. अगले दिन इरफान मारुति कार से कुलेसरा नूर फातिमा के पास गया और उस ने नबी मोहम्मद का मोबाइल फोन उसे देते हुए कहा कि वह किसी काम से 2-3 दिनों के लिए बाहर गया है. मारुति कार फातिमा के यहां खड़ी कर के वह दिल्ली वापस आ गया.

पुलिस ने 11 दिसंबर की रात को ही इरफान के साथियों राकेश और सूरज हाशमी को भी गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने मारुति कार और सेंट्रो कार के अलावा मृतक और उन के मोबाइल फोन, छुरा आदि बरामद कर लिए. इस के बाद सभी को साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर कर रहे हैं.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी – भाग 3

प्रेम प्रसंग बढ़ने लगा तो पदम अब शादी के लिए रुपए भी जोड़ने लगा था. वह रजनी को पत्नी बना कर अपने घर ओडिशा ले जाना चाहता था, लेकिन एक दिन उस का ख्वाब बिखर गया.उस ने रजनी को एक युवक के साथ हाथ में हाथ डाले शौपिंग माल में खरीदारी करते हुए देखा. पदम वहां अपने लिए शर्ट खरीदने के लिए गया था. वह रजनी को चोरीछिपे देखता रहा.

शाम को उस ने रजनी से उस युवक के बारे में पूछा तो उस ने बड़ी बेशरमी से कहा, “वह विजय साचीदार है. तुम से अच्छा कमाता है. मैं उस के साथ खुश रह सकती हूं.”

“लेकिन तुम ने मेरे साथ शादी करने का वादा किया है रजनी, मुझे तुम छोड़ कर किसी दूसरे से दिल नहीं लगा सकती.”

“दिल मेरा है पदम…” रजनी कंधे झटक कर बोली, “मैं इसे कहीं भी लगाऊं. फिर तुम्हारे पास है भी क्या? किराए का कमरा है, फुटपाथ पर भजिया तलते हो. मैं एक ठेली वाले से शादी कर के अपनी जगहंसाई नहीं करवाना चाहती. अब तुम अपना रास्ता बदल लो.”

“नहीं. मैं अपना रास्ता नहीं बदलूंगा. रास्ता तुम्हें बदलना होगा रजनी. तुम मेरी थी, मेरी ही रहोगी.”

“कोई जबरदस्ती है तुम्हारी.” रजनी गुस्से से चीखी, “मैं विजय से शादी करूंगी, समझे.”

“मैं उस हरामी विजय को काट डालूंगा.” पदम गुस्से से बोला, “देखता हूं तुम कैसे उस से शादी करती हो.”

पदम कहने के बाद गुस्से में भरा वहां से चला गया. वह रात उस ने अपने ठेले पर फुटपाथ पर बिताई. वह विजय साचीदार के विषय में सोच रहा था जो उस के प्यार की राह में कांटा बन गया था. वह कब सोया उसे पता नहीं चला

रजनी के प्रेमी विजय की मिली लाश

4 सितंबर, 2001 दिन मंगलवार को मयूर विहार सोसायटी के शांतिनगर थाने में रजनी ने विजय साचीदार के लापता हो जाने की रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए पुलिस के सामने बयान दिया कि विजय साचीदार को जान से मारने की धमकी पदम चरण ने दी थी. पदम चरण शांतिनगर सोसायटी में तीसरी मंजिल पर किराए पर रहता है और गांधी चौक पर भजिया की ठेली लगाता है. विजय साचीदार को लापता करने में पदम चरण का हाथ हो सकता है. उसे गिरफ्तार कर के पूछताछ की जाए.

रजनी द्वारा लिखित रिपोर्ट के आधार पर पुलिस शांतिनगर सोसायटी में पदम चरण के कमरे पर पहुंची. वहां ताला बंद था. पदम चरण की तलाश में उस की भजिया की ठेली (गांधी चौक) पर पुलिस पहुंची तो ठेली पर कोई नहीं था. पदम चरण दोनों जगह से लापता था. इस से उस पर शक गहरा गया कि उस ने विजय साचीदार का अपहरण किया है और कहीं दुबक गया है.

पुलिस पदम चरण का मूल पता लगाने का प्रयास कर ही रही थी कि उसे उधना क्षेत्र (खाड़ी) में विजय साचीदास की लाश मिलने की सूचना कंट्रोल रूम द्वारा दी गई. उधना क्षेत्र की पुलिस को खाड़ी में एक युवक की लाश पड़ी मिली थी. उस युवक की तलाशी में आधार कार्ड मिला, जिस में उस का नाम विजय साचीदार, उस का फोटो और एड्रेस था.

आधार कार्ड से पता चला कि विजय साचीदार शांतिनगर थाना क्षेत्र में रहता था, इसलिए कंट्रोल रूम द्वारा इस थाने को सूचित किया गया. शांतिनगर थाने ने उधना क्षेत्र थाने से यह लाश अपने अधिकार में ले कर जांच की. विजय को गला दबा कर मारा गया था. विजय का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. इस मामले को भादंवि की धारा 302 में दर्ज कर के पदम चरण की तलाश शुरू कर दी गई.

पदम चरण के बारे में रजनी से बहुत कुछ मालूम हो सकता था. पुलिस ने रजनी को थाने में बुला कर पूछताछ की तो रजनी ने बताया कि पदम का ओडिशा के गंजाम जिले में बरहमपुर इलाके में घर है. इस से अधिक वह कुछ नहीं जानती. रजनी ने पदम से प्रेम करने के दौरान जो फोटो खींचे थे, वे भी उस ने पुलिस को दे दिए.

शांतिनगर थाने की पुलिस पदम की तलाश में ओडिशा गई. वहां उस के मांबाप को श्रीराम नगर में ढूंढ निकाला गया. उन्होंने बताया पदम कई दिनों बाद घर आया था, लेकिन एक रात रुक कर वह चला गया. वह कहां गया, यह उन्हें नहीं मालूम. पुलिस ओडिशा से खाली हाथ वापस आ गई. इस के बाद पदम को सालों पुलिस यहांवहां ढूंढती रही, लेकिन वह कहां छिप गया, पुलिस को पता नहीं चला.

पदम के ऊपर घोषित हुआ ईनाम

पुलिस द्वारा उस के ऊपर 45 हजार का ईनाम भी घोषित कर दिया गया, लेकिन सब व्यर्थ. हताश हो कर विजय साचीदास हत्या केस की फाइल पुलिस को ठंडे बस्ते में डालनी पड़ी. जून 2023 को पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने सूरत शहर के भगोड़े व मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की लिस्ट तैयार करवाई तो उस में 23 सालों से फरार चल रहे पदम चरण उर्फ चरण पांडा का भी नाम था. उस पर 45 हजार का ईनाम भी घोषित था.

पदम को पकडऩे का जिम्मा अपराध शाखा के एएसआई सहदेव, एएसआई जनार्दन हरिचरण और हैडकांस्टेबल अशोक को सौंपा गया. इस टीम की पहली सफलता यह थी कि 23 साल से फोन बंद कर के बिल में छिपे पदम ने मोबाइल फोन से अपने परिजनों से संपर्क किया था.

ओडिशा के गंजाम जिले में श्रीराम नगर इलाके से गोपनीय जानकारी अपराध शाखा को मिली तो पदम के परिजनों से पदम का नया नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया गया. उस की लोकेशन ट्रेस की गई तो वह मथुरा के बरसाना की थी.

क्राइम ब्रांच को बनना पड़ा साधु

अपराध शाखा की टीम मथुरा के बरसाना पहुंची. वहां से टोह लेती हुई नंदगांव पहुंच गई. यहां की पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज की मदद से साधु वेश बना कर 8 दिन आश्रमों, मठों में पदम को तलाश करती रही. अपने असली नाम छिपा कर 100 से ज्यादा धार्मिक स्थलों में उसे खोजा गया, फिर कुंजकुटी आश्रम में तलाश करने पंहुचे तो उन्हें साधु वेश में रह रहे पदम चरण को पकडऩे में सफलता मिल गई.

पदम चरण को शांतिनगर थाना (सूरत) में ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि विजय साचीदास उस के और रजनी के प्रेम में बाधा बन गया था. उसे समझाने पर भी वह नहीं माना तो उस का अपहरण कर के वह उद्यान खाड़ी क्षेत्र में ले गया और वहां गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद वह ओडिशा भाग गया.

एक रात रुक कर वह मथुरा आया, यहां नंदगांव के कुंजकुटी में साधु वेश बना कर रहने लगा. उसे लगा कि विजय की हत्या हुए 23 साल गुजर गए हैं, पुलिस खामोश बैठ गई है तो उस ने मोबाइल खरीद कर परिजनों से बात की. इसी क्लू द्वारा पुलिस उस तक पहुंची और वह पकड़ा गया.

पुलिस ने पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा को सक्षम न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

देह की राह के राही

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 2

सोनिया वाही को पति की चिंता खाए जा रही थी. जब उन्हें पता चला कि बैंक में पैसे डलवाने के लिए अपहर्त्ताओं ने बैंक एकाउंट नंबर दे दिए हैं तो वह राजेंदर सिंह पर दबाव बनाने लगीं कि जल्द से जल्द एकाउंट में पैसे जमा करा दें, ताकि पति जल्द घर आ जाएं.

राजेंदर सिंह दिल्ली पुलिस को बताए बिना उन के एकाउंट में पैसे जमा कराने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार से बात की. उन्होंने पुलिस को यह भी बता दिया कि अपहर्त्ता ने इस बार फोन अरुण वाही के नंबर से नहीं, बल्कि नए नंबर 8860103333 से किया था, इसी नंबर से मैसेज भी भेजा था.

पुलिस ने अपहर्त्ता के इस फोन नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया. पुलिस नहीं चाहती थी कि अपहर्त्ता अरुण वाही को कोई क्षति पहुंचाएं, इसलिए उन्होंने राजेंदर सिंह से कह दिया कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा भेजे गए दोनों बैंक खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दें. पुलिस के कहने पर राजेंदर सिंह ने आईसीआईसीआई के दोनों खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दिए.

पुलिस ने अपहर्त्ताओं द्वारा दिए गए खातों की जांच की तो पहला खाता इंफाल के रहने वाले किसी थांगन राकी नाम के व्यक्ति का और दूसरा इंफाल के ही लाइस रान थांबा का था. दिल्ली पुलिस ने इंफाल की पुलिस से जब इन के पते की जांच कराई तो पता चला कि इस पते पर इन नामों के लोग नहीं हैं. इस से यह पता चला कि दोनों बैंक खाते फरजी आईडी से खुलवाए गए थे.

अपहर्त्ताओं के जिस फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, उस की लोकेशन भी दिल्ली के चित्तरंजन पार्क स्थित मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. इस के अलावा पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर ज्यादा बात होती थी. वह नंबर था 8130973333. उधर पुलिस ने अरुण वाही के फोन की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उस में इसी नंबर से 18 दिसंबर की रात को ढाई बजे, साढ़े 3 बजे और पौने 4 बजे बात हुई थी.

8130973333 नंबर अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर और मिला, जिस पर लगातार कई बार बातें हुई थीं. वह नंबर गुड़गांव के जोगिंद्र नाम के व्यक्ति का था. एक पुलिस टीम गुड़गांव रवाना कर दी गई. जोगिंद्र पुलिस टीम को मिल गया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह नंबर रचना नाम की एक लड़की का है. वह लड़की बड़ी शातिर है. वह सोशल साइट के जरिए पहले लोगों से दोस्ती करती है, उस के बाद उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने की कोशिश करती है. जोगिंद्र ने बताया कि वह भी रचना का शिकार बन चुका है. उस ने पुलिस को रचना का फोटो भी उपलब्ध करा दिया.

जोगिंद्र से बात करने के बाद पुलिस के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. पुलिस ने रचना का मोबाइल फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. जांच के बाद पता चला कि उस ने फोन का सिम भी फरजी आईडी से लिया था. अब पुलिस के पास उस तक पहुंचने का जरिया केवल फोटो ही था.

2 दिन बीत गए थे, अरुण वाही के घर वालों को उन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था. सोनिया वाही इस बात को सोचसोच कर परेशान थीं कि पता नहीं वह किस हाल में होंगे. इस मामले में लगी पुलिस भी उन के पास जल्द से जल्द पहुंचने का जरिया ढूंढ़ रही थी.

पुलिस को ध्यान आया कि अपहर्त्ताओं ने जब राजेंदर सिंह को फोन किए थे तो उन की लोकेशन चित्तरंजन पार्क में मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. पुलिस टीम रचना का फोटो ले कर दिल्ली के चित्तरंजन पार्क इलाके में पहुंच गई. मंदाकिनी इनक्लेव में पहुंच कर पुलिस ने कोठियों के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को रचना का फोटो दिखा कर उन से पूछताछ की.

काफी मशक्कत के बाद एक सुरक्षा गार्ड ने लड़की का फोटो पहचान लिया. उस ने यह भी बता दिया कि यह लड़की 52/76 नंबर के मकान में रहती है. पुलिस जब वहां पहुंची तो उस मकान की तीसरी मंजिल पर रचना नाम की वही लड़की मिल गई, जिस का फोटो उन के पास था. उस के साथ 2 नाइजीरियन युवक भी थे.

उसी कमरे के एक कोने में अरुण वाही भी बैठे मिले. पुलिस के पास अरुण वाही का भी फोटो था, जो उन के बेटे निखिल ने दिया था. पुलिस ने सब से पहले अरुण वाही को अपने कब्जे में लिया. इस के बाद रचना सहित दोनों नाइजीरियन युवकों को हिरासत में ले लिया.

अरुण वाही को सकुशल बरामद कर के पुलिस खुश थी, क्योंकि पुलिस का पहला मकसद उन्हें सकुशल बरामद करना था. पुलिस तीनों को पूछताछ के लिए थाना जनकपुरी ले आई. रचना से जब पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. फिर उस ने सोशल साइट के जरिए लोगों को फांसने से ले कर उन्हें ब्लैकमेल करने तक की जो कहानी बताई, वह बड़ी दिलचस्प निकली.

रचना का पूरा नाम रचना नायक राजपूत था. वह मूलरूप से हरियाणा के शहर फरीदाबाद के रहने वाले प्यारेलाल की बेटी थी. प्यारेलाल की 7 बेटियां थीं, जिन में से रचना चौथे नंबर की थी. प्यारेलाल प्रौपर्टी डीलर थे. उसी से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. अन्य बेटियों की तरह वह रचना को भी पढ़ाना चाहते थे, लेकिन रचना ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

वह अति महत्त्वाकांक्षी थी. कुछ दिन घर बैठने के बाद उस ने फरीदाबाद के ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. यह नौकरी रचना ने अपने शौक पूरे करने के लिए की थी. लेकिन प्यारेलाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने उसे डांटा और उस की नौकरी छुड़वा दी. रचना को अपने पिता का यह तुगलकी फरमान अच्छा नहीं लगा. उन के दबाव में उस ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन घर वालों से नाराज हो कर वह पश्चिमी दिल्ली के नवादा क्षेत्र में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

दिल मांगे मोर – भाग 2

लाश की शिनाख्त होने पर पुलिस ने राहत की सांस ली. अब पुलिस का अगला काम हत्यारों का पता लगाना था. पुलिस ने सब से पहले नूर फातिमा से नबी मोहम्मद के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘वह मारुति कार सड़क के किनारे लगा कर कपड़ों की सेल लगाते थे. यह कार इरफान की थी और कपड़े भी इरफान ही बिकवाता था. उन्हें तो केवल मजदूरी मिलती थी. कभीकभी वह 1-2 दिनों बाद घर लौटते थे. इस के अलावा उन की रोजाना शराब पीने की आदत थी.

‘‘कल शाम को भी वह कार ले कर घर से निकले थे. रात को जब वह घर नहीं लौटे तो मैं ने सोचा कि कहीं चले गए होंगे. आज इरफान ने मारुति की चाबी और उन का मोबाइल फोन मुझे देते हुए कहा था कि नबी जरूरी काम से कहीं गया है. 1-2 दिन में आ जाएगा. लेकिन अब मुझे पता चल रहा है कि किसी ने उन की हत्या कर दी है.’’

कोई न कोई वजह जरूर रही होगी, जिस से उसे जान से हाथ धोना पड़ा. वह किनकिन लोगों के साथ शराब पीता था और उस की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं थी, इस बारे में पुलिस ने फातिमा से पूछा तो उस ने बताया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी रही हो, ऐसी जानकारी उसे नहीं है. उसे यह भी पता नहीं कि वह किसकिस के साथ शराब पीते थे.

पुलिस को फातिमा की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था, इसलिए पुलिस ने नबी मोहम्मद, नूर फातिमा और इरफान के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स से पुलिस को चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. पुलिस को पता चला कि 9 दिसंबर की शाम साढ़े 9 बजे इरफान और नबी मोहम्मद के फोनों की लोकेशन कालिंदी कुंज की जेजे कालोनी, पुस्ता रोड के पास थी और पुश्ते से थोड़ी दूर आगे ही यमुना खादर में नबी मोहम्मद की लाश मिली थी. इस का मतलब यह था कि उस रात दोनों साथसाथ थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने इरफान को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. पुलिस ने इरफान से पूछा, ‘‘9 दिसंबर की शाम को तुम कहां थे?’’

‘‘मैं शाम को अपने घर पर था. रात को भी मैं घर पर ही था.’’

‘‘नहीं, तुम झूठ बोल रहे हो. घर के बजाय तुम कहीं और थे?’’ इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने कहा.

‘‘सर, मैं सच बोल रहा हूं. उस रात मैं घर पर ही था. चाहें तो आप मेरे घर वालों से पूछ लें कि मैं कहां था.’’

इंसपेक्टर तोमर के पास इस बात के पुख्ता सुबूत थे कि इरफान और नबी मोहम्मद के फोन की लोकेशन पुश्ता रोड की थी. वह जान रहे थे कि इरफान झूठ बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ शुरू की. इस पूछताछ में वह सच उगलने को मजबूर हो गया.

उस ने स्वीकार कर लिया कि नबी मोहम्मद ने उस का जीना हराम कर दिया था, इसलिए मजबूरी में उसे उस की हत्या करनी पड़ी. उस ने बताया कि उसे मारने में उस के साथ उस के 2 दोस्त भी थे. इस के बाद उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी.

नबी मोहम्मद मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के गजरौला का रहने वाला था. उस की शादी नूर फातिमा से हुई थी. नबी मोहम्मद मेहनतमजदूरी करता था. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली, नोएडा में काम करते थे. उन लड़कों के पहनावे और खानपान में काफी अंतर था. उन के ठाठबाट देख कर नबी मोहम्मद के मन में भी घर से बाहर जा कर काम करने की इच्छा हुई. करीब 15 साल पहले काम की तलाश में वह नोएडा आ गया. क्योंकि नोएडा में उस का एक करीबी दोस्त रहता था.

यहां वह एक ठेकेदार के साथ मकानों की पुताई का काम करने लगा.  नबी ठीकठाक कमाने लगा तो गांव से पत्नी नूर फातिमा को भी नोएडा ले आया और कुलेसरा गांव में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. करीब 3 साल पहले की बात है. नबी मोहम्मद दिल्ली के मदनपुर खादर एक्सटेंशन की कच्ची कालोनी में रहने वाले मोहम्मद इरफान उर्फ फुरकान के यहां पुताई करने गया.

मोहम्मद इरफान भी मूलरूप से मुरादाबाद के गजरौला कस्बे का रहने वाला था. उस के परिवार में पत्नी शहनाज के अलावा 4 बच्चे थे. वह अलगअलग इलाकों में सड़क किनारे कार खड़ी कर के कपड़ों की सेल लगाता था. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करता था. उस के यहां कूलर का भी काम होता था. कुल मिला कर उस की अच्छीखासी आमदनी थी.

घर पर काम करते समय उस की नबी मोहम्मद से बात हुई तो पता चला कि वह भी गजरौला का ही रहने वाला है. इरफान को उस से सहानुभूति हो गई. नबी मोहम्मद अपने काम से परेशान था, इसलिए उस ने इरफान से अपने लिए कोई दूसरा काम बताने को कहा.

इरफान के कई तरह के काम थे. उसे अपने साथ काम करने के लिए एक विश्वसनीय आदमी की जरूरत थी. इसलिए उस ने नबी मोहम्मद को अपने साथ काम करने को कहा. नबी मोहम्मद तैयार हो गया और फिर वह उस के साथ काम करने लगा. नबी इरफान के साथ सेल लगा कर कपड़े बेचने लगा. इरफान के साथ नबी मोहम्मद के अलावा 2 अन्य लड़के भी काम करते थे.

चूंकि इरफान और नबी मोहम्मद एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन की आपस में अच्छी पटने लगी थी. इरफान का नबी मोहम्मद के घर भी आनाजाना हो गया. इरफान के ठाठबाट देख कर नबी मोहम्मद की बीवी नूर फातिमा उस से काफी प्रभावित हुई. वह बहुत महत्वाकांक्षी थी. पति की जो आमदनी थी, उस से उस की महत्वाकांक्षाएं पूरी होनी तो दूर, घर का खर्च तक नहीं चलता था.

नूर फातिमा का अपनी ओर होने वाला झुकाव 4 बच्चों का बाप इरफान समझ गया था. वह भी खुद को रोक नहीं सका और उसे चाहने लगा. वह नूर फातिमा की आर्थिक मदद भी करने लगा. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध भी कायम हो गए. लेकिन इस बात का नबी मोहम्मद को पता नहीं चला. करीब 1 साल तक उन के बीच इसी तरह का खेल चलता रहा.   इरफान नबी मोहम्मद को अकसर शराब पीने के लिए पैसे देता रहता था, इसलिए उस का इरफान पर विश्वास बना रहा. उसे पता नहीं था कि दोस्ती की आड़ में इरफान उस की पत्नी के साथ क्या गुल खिला रहा है.

कहते हैं, गलत काम की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती. एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. इरफान के साथ भी यही हुआ. एक दिन नबी मोहम्मद ने अपनी बीवी और इरफान को अपने ही कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. पोल खुलने पर इरफान और नूर फातिमा के चेहरों के रंग उड़ गए. वे घबरा उठे कि पता नहीं अब क्या होगा? लेकिन नबी मोहम्मद ने उस समय उन दोनों से कुछ नहीं कहा.

कोई भी मर्द अपनी पत्नी को किसी गैर की बांहों में देखेगा तो जाहिर है, उस का खून खौल उठेगा. मर्द भले ही बाहर गुलछर्रे उड़ाता फिरे, लेकिन अपनी पत्नी को वह खुद के साथ वफादार बनी रहने की उम्मीद रखता है. लेकिन पत्नी के बेवफा होने पर भी नबी मोहम्मद चुप रहा. उस के चुप रहने की वजह क्या थी, इस बात को न तो नूर फातिमा समझ सकी और न ही इरफान.

इरफान के जाने के बाद नूर फातिमा के मन में डर बना था कि कहीं पति उस की पिटाई न करे. लेकिन नबी ने ऐसा भी नहीं किया, बल्कि उस ने पत्नी से साफ कहा, ‘‘तू एक बात कान खोल कर सुन ले, इरफान तेरे साथ जो कुछ कर रहा है, वह मैं फ्री में हरगिज नहीं होने दूंगा. उस ने मुझे बेवकूफ समझ रखा है क्या. उस से कहना कि उसे मेरा रोजाना का खर्च पूरा करना होगा, वरना वह यहां न आए.’’

पति की बात सुन कर नूर फातिमा मन ही मन खुश तो हुई, लेकिन वह अचंभे में भी पड़ गई कि यह क्या कह रहा है. उस ने सोचा कि इरफान तो वैसे भी उस का आर्थिक सहयोग करता रहता है. उस के कहने पर वह थोड़ेबहुत पैसे पति के ऊपर भी खर्च कर देगा. यानी अब वह इरफान के साथ खुलेआम मौजमस्ती कर सकेगी.

नूर फातिमा ने यह बात इरफान को बताई तो वह भी खुश हुआ. क्योंकि अब वह बेधड़क हो कर नूर फातिमा से मिल सकेगा. इस के बाद इरफान नूर फातिमा के लिए खानेपीने का इंतजाम करने और बिना किसी डर के उस से मिलने लगा. नबी मोहम्मद को उन दोनों के संबंधों पर कोई ऐतराज नहीं था.

साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी – भाग 2

इन दिनों सूरत की पुलिस ने मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू कर रखी है. पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा ने 3 सितंबर, 2001 को विजय साचीदास नाम के युवक की हत्या कर दी थी, वह सूरत से भाग गया था. पुलिस उसे सालों तक सूरत और उस के पैतृक गांव ओडिशा के गंजाम जिले में तलाश करती रही. वह हाथ नहीं लगा तो उस पर 45 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया गया. निराश हो कर इस केस की फाइल बंद कर दी गई.

23 साल बाद पकड़ा गया हत्यारा

23 साल बाद विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल फिर से खोली गई. पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर ने भगोड़े मोस्टवांटेड अपराधियों को पकडऩे की मुहिम शुरू की थी. इसी मुहिम के तहत पीसीबी (प्रिवेशन औफ क्राइम ब्रांच) के 2 एएसआई और एक हैडकांस्टेबल को विजय साचीदास हत्याकांड की फाइल सौंपी गई.

हत्यारे पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा के बारे में पुलिस को पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए साधु बन गया है और इस समय उत्तर प्रदेश में रह रहा है. उसे ढूंढते हुए यह टीम मथुरा आई. साधु वेश बना कर इस टीम ने 8 दिनों में 100 से अधिक धार्मिकस्थल, आश्रम और मठों की खाक छानी. इसी दौरान एक सर्विलांस टीम ने सूचना दी कि पदम साधु बना हुआ मथुरा के नंदगांव में रह रहा है, इसलिए यह टीम साधु के वेश में कुंजकुटी आश्रम में पहुंची.

पदम उन्हें कुंजकुटी आश्रम में मिला. साधु वेश धारण कर के 23 साल से वह यहां छिपा बैठा था. तेजतर्रार अपराध शाखा की टीम ने उसे अपनी सूझबूझ से ढूंढ निकाला. पदम उर्फ चरण पांडा की कनपटी पर रिवौल्वर रख कर एएसआई सहदेव ने अपने साथियों को इशारा किया. वह तुरंत पदम के सिर पर पहुंच गए.

पदम को घेर कर हथकड़ी लगा दी गई.

आश्रम में हडक़ंप मच गया. एक साधु जो 23 साल से कुंजकुटी आश्रम में रह रहा था, उस के हाथ में हथकड़ी देख कर सभी आश्रमवासी चौंक गए.

एएसआई सहदेव ने उन्हें इस साधु पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा की हकीकत बताई तो सभी दंग रह गए. एक हत्यारा 23 सालों से साधु बन कर वहां रह रहा था. अपराध शाखा की टीम पदम उर्फ चरण पांडा को ले कर 28 जून, 2023 को मथुरा से सूरत के लिए रवाना हो गई. जाने से पहले उन्होंने नंदगांव पुलिस चौकी के इंचार्ज सिंहराज के पास अपनी रवानगी दर्ज करवा दी थी.

पदम को रजनी से हुआ प्यार

पदम उर्फ गोरांग चरण पांडा मूलरूप से ओडिशा के गंजाम जिले के श्रीराम नगर इलाके का निवासी था. उस का मांबाप और बहनभाई का एक बड़ा परिवार था, लेकिन इस परिवार के गुजरबसर के लिए ज्यादा कमाई नहीं थी. पदम के पिता मजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी को धकेल रहे थे.

पदम जवान हुआ तो घर की गरीबी उस से देखी नहीं गई. वह काम की तलाश में ट्रेन में सवार हो कर सूरत शहर आ गया. बहुत कम पढ़ालिखा था, इसलिए कोई अच्छी नौकरी तो मिलने वाली नहीं थी, मेहनत मजदूरी पदम करना नहीं चाहता था. यही करना था तो गंजाम जिले में ऐसे कामों की कमी नहीं थी.

बहुत सोचविचार कर के पदम ने गांधी चौराहे पर थोड़ी सी जगह ढूंढ कर भजिया (पकौड़े) की रेहड़ी लगा ली. पदम का यह काम चल निकला. उस ने शांतिनगर सोसायटी में रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. भजिया रेहड़ी से अच्छी कमाई हो रही थी. पदम बनसंवर कर रहने लगा. कमरे का किराया और अपना खर्चा निकाल कर वह अब गंजाम में अपने मांबाप के पास बचा हुआ पैसा भेजने लगा था.

शांतिनगर सोसायटी में ही किराए पर रजनी नाम की युवती रहती थी. रजनी 23 साल की साढ़े 5 फुट की नवयौवना थी. रंग गोरा, नाकनक्श तीखे, होंठ संतरे के फांक जैसे. जवानी के बोझ से लदी रजनी को देख कर कोई भी फिदा हो सकता था. पदम की नजर सीढिय़ों से उतरते हुए रजनी पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन का दीवाना हो गया. पहली नजर में ही उस को रजनी से प्यार हो गया.

रजनी ने भी किया प्यार का इजहार

वह रोज सीढिय़ों से चढ़ कर ऊपर तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में जाता तो रजनी के कमरे के सामने तब तक रुकता था, जब तक रजनी दरवाजे पर नहीं आ जाती थी. रजनी यह भांप चुकी थी कि इसी सोसाइटी में रहने वाला यह युवक उस का दीवाना है. अब वह पदम के शाम को लौट कर आने के वक्त पर खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी होने लगी थी.

उस की नजरें पदम से टकरातीं तो वह शरम से नजरें झुका लेती, ठंडी सांस भर कर आह भरता हुआ पदम सीढिय़ां चढ़ जाता था. पदम यह महसूस कर चुका था कि रजनी उसे चाहने लगी है. उस से मेलजोल बढ़ाने के इरादे से एक शाम वह भजिया मिर्च को अखबार में पैक कर के ले आया. रजनी अन्य दिनों की तरह उस दिन भी दरवाजे पर खड़ी मिली. पदम ने हिम्मत बटोर कर भजियामिर्च का पैकेट रजनी की तरफ बढ़ा दिया.

“क्या है इस में?” पहली बार उस की कोयल जैसी आवाज पदम के कानों में पड़ी.

“आप खुद देख लीजिए” पदम कह कर तेजी से सीढ़ियां चढ गया. दिन में रजनी उसे दिखाई नहीं देती थी, शायद वह कहीं काम पर जाती थी, लेकिन सुबह जब पदम सीढ़ियां उतर कर नीचे आया तो रजनी अपने दरवाजे पर खड़ी दिखाई दी.

पदम को देख कर वह मुसकराई, “भजिया स्वादिष्ट थी. कहां से लाए थे?”

“मेरे ठेले की है. मैं गांधी चौक पर भजिया का ठेला लगाता हूं, आप को भजिया स्वादिष्ट लगी है तो मैं रोज शाम को ले आया करूंगा.” पदम के स्वर में उत्साह भरा था.

“नहीं, अब तो मैं तुम्हारे पास गांधी चौक पर आ कर ही भजिया खाया करूंगी,” रजनी ने हंस कर कहा.

“मैं एक शर्त पर आप को भजिया खिलाऊंगा.”

“कैसी शर्त?”

“आप भजिया के पैसे नहीं देंगी.”

“ऐसा क्यों?” हैरानी से रजनी ने पूछा.

“अपनों से कोई पैसा नहीं लेता,” पदम ने हिम्मत बटोर कर कह डाला, “आप को दिल से प्यार करने लगा हूं मिस…”

हया से सिर झुका कर बोली रजनी, “मेरा नाम रजनी है, मैं भी आप को चाहने लगी हूं.”

पदम खुशी से उछल पड़ा. उस ने रजनी का हाथ पकड़ कर चूम लिया. रजनी शरमा कर अंदर भाग गई.

प्यार में मिला धोखा

उस दिन के बाद से रजनी शाम को उस के ठेले पर आने लगी. पदम उसे भजिया खिलाता. इस बीच दोनों प्यार भरी बातें करते. ये मुलाकातें भजिया की ठेली से हट कर सूरत के पिकनिक स्पौट, सिनेमा हाल और रेस्टोरेंट तक पहुंच गईं. पदम जो कमाता था, वह रजनी पर खर्च करने लगा. वह रजनी को सच्चे दिल से चाहने लगा था. रजनी से वह शादी करने का प्लान भी बना रहा था. रजनी से उस ने वादा भी ले लिया था कि वह उस से शादी करेगी.

दिल मांगे मोर – भाग 1

दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को दोपहर 3 बजे के आसपास सूचना मिली कि मदनपुर खादर के श्रीराम चौक से आगे यमुना खादर की झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. चूंकि यह इलाका दक्षिणपूर्वी  जिले के थाना जैतपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना जैतपुर को दे दी. इसी के साथ पीसीआर वैन भी सूचना में बताए पते पर रवाना कर दी गई. यह 10 दिसंबर, 2013 की बात है.

थाने में उस समय इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर मौजूद थे. जैसे ही उन्हें थानाक्षेत्र में लाश पड़ी होने की सूचना मिली, वह सबइंसपेक्टर नरेंद्र, हेमंत कुमार, हेडकांस्टेबल बलिंदर को ले कर श्रीराम चौक के लिए रवाना हो गए. श्रीराम चौक थाने से करीब 200 मीटर दूर था, इसलिए 5 मिनट में ही सभी वहां पहुंच गए.

वहां उन्हें पता चला कि लाश पुश्ता से करीब 500 मीटर दूर यमुना खादर की झाडि़यों में पड़ी है. वहीं से झाडि़यों के पास कुछ लोग खड़े दिखाई दिए तो इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर साथियों के साथ उसी जगह पहुंच गए. वहां पीसीआर वैन भी खड़ी थी. झाडि़यों के बीच में एक युवक की लाश पड़ी थी. उस की उम्र 25-30 साल रही होगी. वह युवक जींस और गुलाबी रंग का स्वेटर पहने था. उस का सिर और चेहरा कुचला हुआ था. पास ही एक ईंट पड़ी थी, जिस पर खून लगा था. उस में कुछ बाल भी चिपके हुए थे.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने इसी ईंट से इस का चेहरा इसलिए कुचला होगा, ताकि लाश की शिनाख्त न हो सके. लाश देख कर ही लग रहा था कि चेहरे और गरदन का मांस किसी जानवर ने खाया है. चेहरा कुचला होने की वजह से वहां मौजूद कोई भी आदमी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. तलाशी लेने पर उस की जेब से एक पर्स मिला, जिस में 6 फोटोग्राफ्स थे. उन में से 2 फोटोग्राफ्स पुरुष के थे और 4 किसी महिला के.

इस के अलावा पर्स में कुछ विजिटिंग कार्ड्स भी थे. वे सभी एसी, कूलर की सर्विस आदि से संबंधित थे. जेब में 1400 रुपए नकद के अलावा बैंक में पैसे जमा करने की एक स्लिप भी थी. वह स्लिप जामिया कोऔपरेटिव बैंक मदनपुर खादर की थी, जिस से नबी मोहम्मद ने शहनाज के खाते में जुलाई महीने में 40 हजार रुपए जमा किए थे. मृतक की जेब से नकदी मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी.

हत्या क्यों की गई और किस ने की, यह जांच का विषय बाद का था. सब से पहला काम लाश की शिनाख्त कराना था. उस की जेब से जो विजिटिंग कार्ड्स मिले थे, पुलिस ने उन में लिखे फोन नंबरों पर संपर्क किया तो उन में से किसी से मृतक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

अब पुलिस के पास केवल बैंक पर्ची बची थी. इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने आगे की जांच के लिए 2 कांस्टेबलों को जामिया कोऔपरेटिव बैंक भेज दिया. वहां से पता चला कि वह एकाउंट जिस शहनाज के नाम था, वह शाहीन बाग में रहती थी. वहां से शहनाज का मोबाइल नंबर भी मिल गया था.

घटनास्थल पर पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मोर्चरी में रखवा दिया. इस ब्लाइंड मर्डर को सुलझाने के लिए डीसीपी डा. पी. करुणाकरन ने सरिता विहार के एसीपी विपिन कुमार नायर की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी अरविंद कुमार, इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर, एसआई नरेंद्र, हेमंत कुमार, रोहित कुमार, हेडकांस्टेबल बलिंदर, रविंदर, कांस्टेबल विकास, कुलदीप, निरंजन, मामचंद, बृजपाल, हवा सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को बैंक से शहनाज का जो फोन नंबर मिला था, उसे अपने फोन से मिलाया. फोन इरफान नाम के किसी आदमी ने उठाया. इंसपेक्टर तोमर ने कहा, ‘‘हमें यमुना खादर की झाडि़यों से एक युवक की लाश मिली है. मरने वाले की जेब से कुछ फोटो भी मिले हैं. उन फोटोग्राफ्स को पहचानने के लिए तुम थाना जैतपुर आ जाओ.’’

‘‘सर, मैं तो इस समय बाहर हूं, लेकिन अपने छोटे भाई को थाने भेज रहा हूं.’’ इरफान ने जवाब दिया.

आधे घंटे बाद ही इरफान का भाई थाने आ गया. पुलिस ने जब उसे वे फोटो दिखाए तो उस ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. इंसपेक्टर तोमर ने अपने मोबाइल फोन से लाश के कुछ फोटो खींच लिए थे. खींचे गए वे फोटो जब उसे दिखाए गए तो वह लाश को भी नहीं पहचान सका. इस के 2 घंटे बाद इरफान भी थाने आ गया.

इंसपेक्टर तोमर ने जब पर्स में मिले फोटो उसे दिखाए तो फोटो देखते ही वह बोला, ‘‘ये फोटो तो नबी मोहम्मद के हैं.’’

यह जरूरी नहीं था कि पर्स में नबी मोहम्मद के फोटो मिले थे तो लाश भी उसी की रही हो. इसलिए उन्होंने मोबाइल फोन से खींचे गए लाश के फोटो इरफान को दिखाए तो उस ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. इरफान से पूछताछ में पता चला कि नबी मोहम्मद नोएडा के गांव कुलेसरा का रहने वाला था. चूंकि उस दिन अंधेरा घिर चुका था, इसलिए पुलिस ने अगले दिन नोएडा जाने का कार्यक्रम बनाया.

11 दिसंबर, 2013 को एक पुलिस टीम नोएडा के कुलेसरा स्थित नबी मोहम्मद के घर पहुंची. वहां नबी मोहम्मद की बीवी नूर फातिमा मिली. पुलिस ने जब उस से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘वह कल से कहीं गए हुए हैं. लेकिन मुझे बता नहीं गए कि वह कहां गए हैं? वैसे भी वह अकसर घर से बिना बताए 2-3 दिनों के लिए गायब हो जाते हैं. आज या कल लौट आएंगे. मगर आप लोग उन के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘दरअसल कल दिल्ली के यमुना खादर में एक लाश मिली है. थाने चल कर तुम लाश के फोटो और सामान देख लो.’’ पुलिस वालों ने कहा तो नूर फातिमा उन के साथ थाना जैतपुर आ गई.

इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने अपने मोबाइल फोन से खींचे गए लाश के फोटो पर फातिमा को दिखाए तो वह बोली, ‘‘वह कपड़े तो इसी तरह के पहने हुए थे, लेकिन चेहरा कुचला होने की वजह से पहचान में नहीं आ रहा है.’’

मृतक के पर्स से जो फोटो मिले थे, पुलिस ने उन्हें भी नूर फातिमा को दिखाए. पता चला कि उन में से 2 फोटो नबी मोहम्मद के थे और 4 नूर फातिमा के. लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस नूर फातिमा को एम्स की मोर्चरी ले गई. लाश का चेहरा भले ही कुचला हुआ था, मगर कपड़े और कदकाठी से उस ने तुरंत पहचान लिया. लाश उस के पति नबी मोहम्मद की ही थी. फातिमा फफकफफक कर रोने लगी.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 1

पंजाब के शहर लुधियाना के रहने वाले अरुण वाही पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. उन का काम ही ऐसा था कि उन्हें औडिट करने के लिए विभिन्न कंपनियों, फर्मों में जाना पड़ता था. कभीकभी तो उन्हें औडिट के लिए लुधियाना से बाहर भी जाना पड़ता था.

18 दिसंबर, 2013 को भी वह लुधियाना से सुबह 4 बजे की ट्रेन पकड़ कर दिल्ली की किसी कंपनी का औडिट करने के लिए निकले. घर से निकलते समय उन्होंने पत्नी सोनिया वाही को बता दिया था कि वह दिल्ली से 1-2 दिन में लौटेंगे.

जिस दिन अरुण वाही दिल्ली के लिए निकले थे, उसी दिन दोपहर करीब 12 बजे लुधियाना में रहने वाले उन के एक दोस्त राजेंदर सिंह के पास फोन आया. राजेंदर सिंह पंजाब नेशनल बैंक में नौकरी करते थे. चूंकि फोन अरुण के नंबर से आया था, इसलिए उन्होंने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘पहुंच गए दिल्ली?’’

‘‘हां, यह दिल्ली पहुंच गए और अब हमारे कब्जे में हैं.’’ दूसरी तरफ से आई इस आवाज को सुन कर राजेंदर सिंह चौंके, क्योंकि वह आवाज अरुण की नहीं, किसी और की थी. राजेंदर सिंह ने उन से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं?’’

‘‘हम आबिद एंटरप्राइजेज, जनकपुरी दिल्ली से बोल रहे हैं. हम ने अरुण वाही को अपने पास ही रोक रखा है. अगर इन्हें छुड़ाना हो तो हमारे खाते में 4 लाख रुपए जमा करा दें, अन्यथा…’’

‘‘नहीं, आप अरुण को कुछ नहीं कहना. आप ने जितने पैसे मांगे हैं, मिल जाएंगे. लेकिन इस से पहले आप हमारी अरुण से बात तो करा दीजिए.’’ राजेंदर सिंह ने कहा.

‘‘हां, कर लीजिए उन से बात.’’ कहते हुए अपहर्त्ता ने फोन अरुण वाही को दे दिया. कुछ बातें कर के राजेंदर सिंह को जब यकीन हो गया कि जिन से वह बात कर रहे हैं, वह अरुण वाही ही हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘देखो अरुण, मैं तुम से शौर्ट में बात करूंगा. अगर तुम्हें वहां कोई परेशानी न हो तो तुम न कहना और परेशानी हो तो हां में जवाब देना.’’

तब अरुण ने हां में जवाब दिया. इतना सुन कर वह समझ गए कि उन का दोस्त इस समय गहरे संकट में है. मामला गंभीर था, इसलिए राजेंदर सिंह ने अरुण वाही की पत्नी सोनिया वाही को फोन कर के पूरी बात बता दी.

पति के किडनैप हो जाने की खबर सुन कर सोनिया भी हैरान रह गईं कि पता नहीं किस ने यह किया होगा. वह राजेंदर सिंह से ही पूछने लगीं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? अरुण वाही का एक बेटा निखिल वाही भी चार्टर्ड एकाउंटेंट है. वह दिल्ली में ही था. सोनिया ने पति के किडनैपिंग की बात बेटे को बताई. निखिल उस समय नई दिल्ली एरिया में गोल डाकघर के पास स्थित एक कंपनी का औडिट कर रहा था. पिता के अपहरण की बात सुन कर वह घबरा गया.

चूंकि अपहरण की पहली काल पिता के दोस्त राजेंदर के मोबाइल पर आई थी, इसलिए उस ने सब से पहले उन्हीं से बात की. बातचीत में उसे जब पता चला कि अपहर्त्ताओं ने उस के पिता को दिल्ली में ही बंधक बना कर रखा है तो उस ने तुरंत दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन किया.

गोल डाकखाना क्षेत्र नई दिल्ली जिले में आता है, इसलिए अपहरण कर फिरौती मांगने की खबर पर नई दिल्ली जिला के थाना कनाट प्लेस की पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस तुरंत निखिल के पास पहुंची तो निखिल को राजेंदर सिंह और अपनी मां से जो जानकारी मिली थी, दिल्ली पुलिस को बता दी.

पुलिस को निखिल से यह पता लगा कि उस के पिता को जनकपुरी स्थित आबिद एंटरप्राइजेज में बंधक बना कर रखा गया है. कनाट प्लेस के थानाप्रभारी ने जनकपुरी के थानाप्रभारी राजकुमार से फोन पर बात की और निखिल वाही को थाना जनकपुरी भेज दिया. वहां पर निखिल वाही की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण कर फिरौती मांगने का मामला दर्ज कर लिया गया.

अपहरण का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इस में पुलिस पर इस बात का दबाव रहता है कि किसी भी तरह अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद किया जाए. थानाप्रभारी ने सीए के अपहरण की बात उपायुक्त रणवीर सिंह को बताई तो उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी का गठन कर दिया, जिस में एसआई घनश्याम किशोर, हेडकांस्टेबल बिजेंद्र सिंह, ओमबीर सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम को बताया गया था कि अरुण वाही को जनकपुरी के आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म में बंधक बना कर रखा गया है, इसलिए पुलिस टीम इस नाम की फर्म को खोजने में लग गई. जनकपुरी कोई छोटामोटा इलाका नहीं है. पुलिस की जो एक टीम बनी थी, उस के लिए यह काम आसान नहीं था. फर्म का जल्द पता लगाने के लिए डीसीपी ने 6 टीमें और बनाईं और सभी को इस मामले में लगा दिया.

सभी पुलिस टीमें अलगअलग तरीकों से आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म को ढूंढ़ने लगीं, लेकिन इस नाम की फर्म कहीं नहीं मिली. अब पुलिस के पास अपहर्त्ताओं तक जाने के लिए कोई रास्ता भी नहीं था. उन्होंने राजेंदर सिंह के पास फिरौती का जो फोन किया था, वह अरुण वाही के फोन से किया गया और उस की लोकेशन दिल्ली के चित्तरंजन पार्क की आ रही थी. एक पुलिस टीम चित्तरंजन पार्क भेजी गई.

इसी बीच राजेंदर सिंह के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने फोन कर के फिरौती की रकम 4 लाख से बढ़ा कर 6 लाख कर दी. दरअसल इस से पहले फोन करने पर राजेंदर सिंह ने 4 लाख रुपए देने में कोई आनाकानी नहीं की थी. अपहर्त्ताओं को लगा कि पार्टी मोटी है, इसलिए उन्होंने फिरौती की रकम बढ़ा दी.

इस पर राजेंदर सिंह ने कहा, ‘‘अभी हमारे पास 6 लाख रुपए नहीं हैं. हम 4 लाख रुपए भी इधरउधर से जुगाड़ कर के दे सकते हैं. अब आप यह बता दीजिए कि पैसे कहां पहुंचाने हैं?’’

‘‘आप को आने की जरूरत नहीं है. हम आप को बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर देंगे, उसी में आप पैसे जमा करा देना. एकाउंट में पैसे जमा होते ही हम वाही को छोड़ देंगे.’’ कहने के बाद अपहर्त्ता ने आईसीआईसीआई बैंक के 2 एकाउंट नंबर राजेंदर सिंह के फोन पर मैसेज कर दिए. ये नंबर थे 246301500161 और 264301500653. राजेंदर सिंह को यह जानकारी मिल चुकी थी कि निखिल ने दिल्ली के थाना जनकपुरी में रिपोर्ट दर्ज करा दी है और दिल्ली पुलिस इस मामले में तेजी से काररवाई कर रही है. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी राजकुमार राजेंदर सिंह से बात भी कर चुके थे.

साधु के वेश में 23 साल बाद मिला कातिल प्रेमी – भाग 1

उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी मथुरा के बरसाना का नंदगांव यहीं है कुंजकुटी आश्रम. तपती 25 जून, 2023 को जून की गरमी से बेहाल 3 साधुओं की टोली कुंजकुटी आश्रम के दरवाजे पर आ कर रुक गई. इन के शरीर पर लाल, पीले रंग के साधुओं वाले कपड़े थे, तीनों ने सिर पर सफेद, भगवा अंगौछे बांध रखे थे. गले में रुद्राक्ष की माला और माथे पर चंदन का लेप था. तीनों साधु पसीने से तरबतर थे.

कंधे पर लटक रही लाल रंग की झोली से भगवा रुमाल निकाल कर चेहरे का पसीना पोंछते हुए एक साधु हैरत से बोला, “दरवाजे पर क्यों रुक गए गुरुदेव, भीतर प्रवेश नहीं करेंगे क्या?”

“मछेंद्रनाथ, मैं किसी आश्रम वासी के बाहर आने की राह देख रहा हूं. बगैर इजाजत लिए किसी भी जगह प्रवेश करना उचित नहीं होता.”

“आप का कहना ठीक है गुरुदेव,” मछेंद्रनाथ विचलित हो कर बोला, “लेकिन मुझे जोरों की भूख लग रही है. हम अंदर जाते तो मैं पेट की भूख शांत कर लेता.”

उस की बात पर दोनों साधु हंसने लगे. हंसते हुए गुरुदेव, जिन का नाम हरिहरनाथ था, बोले, “देखा कालीनाथ, इस पेटू मछेंद्र को, इसे खाने के अलावा कुछ नहीं सूझता.”

फिर वह मछेंद्रनाथ की तरफ पलटे और कुछ कहना ही चाहते थे कि आश्रम के दरवाजे पर एक भगवा वस्त्र धारी दुबलापतला साधु आ गया.

“आप दरवाजे पर क्यों रुक गए?” उस साधु के स्वर में हैरानी थी, “कोई और आने वाला है क्या?”

“नहीं महाराज, हम तो अंदर आने की इजाजत की प्रतीक्षा में यहां रुक गए थे.” हरिहरनाथ ने मुसकरा कर कहा.

“यहां इजाजत कौन देगा जी, गुरुजी की ओर से इस आश्रम में हर किसी को आने की छूट है. आप लोग अंदर आ जाइए.”

हरिहरनाथ अपनी साधु टोली के साथ अंदर आ गए. आश्रम में एक ओर रहने के लिए कमरे बने हुए थे. सामने दाहिनी ओर छप्परनुमा शेड था. नीचे चबूतरा था, इस के बीच में अग्निकुंड बना हुआ था. अग्निकुंड में लकडिय़ों की धूनी सुलग रही थी. उस के आसपास कई जटाधारी साधु बैठे हुए थे. कुछ चिलम पी रहे थे. कुछ आपस में बातें कर रहे थे. एक साधु बैठा हुआ कोई धार्मिक ग्रंथ पढऩे में तल्लीन था.

तीनों साधुओं को वहां लाने वाला साधु आदर से बोला, “आप लोग चाहें तो स्नान आदि कर लीजिए. मैं आप के खाने का बंदोबस्त करता हूं, खापी कर आप आराम कर लेना. गुरुदेव अपने कक्ष में हैं, उन से आप की भेंट शाम को 5 बजे होगी.”

“ठीक है महाराज,” हरिहर मुसकरा कर बोले.

वह अपनी टोली के साथ आश्रम के कोने में लगे हैंडपंप पर आ गए. उन्होंने बाहर ही हैंडपंप पर नहानाधोना किया. फिर चबूतरे पर आ गए. उन्हें वहां भोजन परोसा गया. खापी लेने के बाद वे चटाइयों पर विश्राम करने के लिए लेट गए.

अन्य साधुओं से बढ़ाई घनिष्ठता

शाम को उन की मुलाकात इस आश्रम के गुरु महाराज से हुई. वह वयोवृद्ध थे. उन्हें हरिहरनाथ ने हाथ जोड़ कर प्रणाम करने के बाद बताया, “हम काशी विश्वनाथ होते हुए मथुरा आए थे. यहां आप के आश्रम कुंजकुटी की बहुत चर्चा सुनी तो आप के दर्शन करने आ गए. हम यहां कुछ दिन ठहरना चाहेंगे गुरुदेव.”

“आप का आश्रम है हरिहरनाथ, आप अपनी मंडली के साथ ताउम्र यहां रहिए. यह साधुसंतों का डेरा है, यहां कोई भी कभी भी आजा सकता है.”

“धन्यवाद गुरुदेव,” हरिहरनाथ ने कहा.

गुरु महाराज के पास से उठ कर हरिहरनाथ ने चबूतरे के एक कोने में अपने उठने बैठने की व्यवस्था कर ली. तीनों ने वहां चटाइयां बिछा कर बिस्तर लगा लिया.

2-3 दिनों में ही हरिहरनाथ, मछेंद्रनाथ और कालीनाथ वहां आनेजाने और रहने वाले साधुसंतों से घुलमिल गए थे. वह उन से आध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा करते. अपना मोक्ष पाने के लिए साधु वेश धारण करने की बात बता कर यह पूछते कि वह साधु क्यों बने? यह वेश धारण कर के उन्हें कैसा अनुभव हो रहा है?

आज उन्हें कुंजकुटी आश्रम में रुके हुए 4 दिन हो गए थे. गुरु हरिहरनाथ आज सुबह से ही उस साधु के साथ चिपके हुए थे जो पहले दिन उन्हें सब से अलग बैठा कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ता दिखाई दिया था. यह 50 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति था. दुबलापतला गेहुंए रंग का वह व्यक्ति लाल कुरता, पीली जैकेट और लुंगी पहनता था. उस की दाढ़ीमूंछ के बालों में सफेदी झलकने लगी थी. यह साधु पहले दिन से ही सभी से अलगथलग रहने वाला दिखाई दिया था.

हरिहरनाथ ने शाम को खाना खा लेने के बाद उस के साथ गांजे की चिलम भर कर पी. गांजे का नशा हरिहरनाथ के दिमाग पर छाने लगा तो वह सिर झटक कर बोले, “मजा आ गया आप की चिलम में महाराज, मैं ने पहली बार गांजा की चिलम पी है. यह नशा मेरा सिर घुमा रहा है.”

“मैं रोज पीता हूं हरिहरनाथ. इसे पी लेने के बाद न अपना होश रहता है, न दुनिया की फिक्र.”

“क्यों क्या आप का इस दुनिया में अपना कोई नहीं है?” हरिहरनाथ ने पूछा.

“थे. मांबाप, बहनभाई और…” बतातेबताते वह रुक गया.

“एक पत्नी.” हरिहरनाथ ने उस की बात को पूरा किया, “क्यों मैं ने ठीक कहा न?”

वह साधु हंस पड़ा, “पत्नी नहीं थी, वह मेरी प्रेमिका थी, मैं उसे बहुत प्यार करता था.”

“प्यार करते थे तो पत्नी क्यों नहीं बना सके उसे?”

“वह बेवफा निकली हरिहर,” वह साधु गहरी सांस भर कर बोला, “उस ने किसी और से दिल लगा लिया था.”

“ओह!” हरिहरनाथ ने अफसोस जाहिर किया, “ऐसी बेवफा प्रेमिका को तो सजा मिलनी चाहिए थी. मेरी प्रेमिका ऐसा करती तो मैं उस का गला काट देता.”

“नहीं हरिहर, मैं ने उस बेवफा से सच्ची मोहब्बत की थी. मैं उस के गले पर छुरी नहीं चला सकता था. मैं ने उस को नहीं, उस के प्रेमी को यमलोक पहुंचा दिया.”

“ओह! आप ने अपनी प्रेमिका के यार को ही उड़ा डाला.” हरिहर हैरानी से बोले, “फिर तो आप को कत्ल के जुर्म में सजा हुई होगी.”

गांजे के नशे में आई सच्चाई बाहर

चिलम का एक गहरा कश लगा कर धुंआ ऊपर छोड़ते हुए वह साधु हंसने लगा, “सजा किसे मिलती महाराज, कातिल तो कत्ल कर के फुर्र हो गया था. आज 23 साल हो गए उस बात को, मैं साधु बन कर यहां बैठा हूं, पुलिस वहां मेरे लिए हाथपांव पटक रही है. सुना है, मुझ पर 45 हजार रुपए का इनाम भी घोषित किया है पुलिस कमिश्नर ने.” साधु फिर हा…हा… कर के हंसने लगा.

हंसी थमी तो बोला, “हरिहर, मुझ पर पुलिस 45 हजार क्या 45 लाख का इनाम घोषित कर दे, तब भी वह मुझे नहीं पकड़ पाएगी.”

हरिहर के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. वह कमर की ओर हाथ बढ़ाते हुए बोले, “तुम ने सुन रखा होगा मिस्टर पदम, कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. देख लो, फांसी का फंदा तुम्हारे गले तक पहुंच गया.”

“पदम,” वह साधु चौंक कर बोला, “तुम मेरा नाम कैसे जानते हो हरिहर?”

हरिहर का हाथ कमर से निकल कर बाहर आया तो उस में रिवौल्वर था. रिवौल्वर साधु की कनपटी पर सटा कर हरिहर गुर्राए, “मैं तेरा नाम भी जानता हूं और तेरा भूगोल भी. तू सूरत में विजय साचीदास की हत्या कर के फरार हो गया था. आज 23 साल बाद तू हमारी पकड़ में आया है.”

आप को बताते चलें कि साधु के वेश में यह सूरत की क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार एएसआई सहदेव थे, इन के साथ जो 2 साधु वेशधारी मछेंद्रनाथ और कालीनाथ थे, उन के नाम जनार्दन हरिचरण और अशोक थे. ये दोनों भी सूरत की क्राइम ब्रांच में एएसआई और हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात हैं.

आरजू की लाश पर सजाई सेज