दगाबाज सनम : हनीट्रैप में फंसे नेताजी – भाग 2

अपनी करनी पर अवधेश पछता रहा था. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. काफी देर तक वह उसी तरह बैठा सोचता रहा कि अब क्या करे. काफी सोचविचार के बाद दिमाग कुछ दुरुस्त हुआ तो उस ने उठ कर कपडे़ पहने और खुद को दुरुस्त कर के क्षेत्रीय थाना सेक्टर-39 जा पहुंचा.

थानाप्रभारी धर्मेंद्र चौधरी से मिल कर उस ने अपना परिचय दे दिया. लेकिन सच्चाई बताने के बजाय उस ने एक दूसरी ही कहानी बता कर थाना सेक्टर-39 रिपोर्ट दर्ज करा दी. उस ने थानाप्रभारी को बताया, ‘‘पिछले कई दिनों से कोई फोन कर के मुझ से मिलने की गुजारिश कर रहा था. मैं ने उसे औफिस में आ कर मिलने को कहा. लेकिन औफिस आने में उस ने असमर्थता व्यक्त की.

जब वह बारबार मिलने के लिए कहने लगा तो मैं ने उस से मिलने का मन बना लिया. उसी से मिलने के लिए मैं 11 बजे के करीब नोएडा स्थित जीआईपी मौल अपनी गाड़ी से पहुंच गया. तय प्रोग्राम के अनुसार वहां गेट के बाहर खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. उसे फोन किया तो इस बार दूसरी ओर से किसी महिला की आवाज आई. महिला की आवाज सुन कर मैं चौंका.’’

महिला ने कहा, ‘‘आप इंतजार कीजिए. मैं थोड़ी देर में पहुंच रही हूं.’’

थोड़ी देर बाद एक लड़की आ कर अवधेश की कार के पास खड़ी हो गई. वह उसे पहचानता नहीं था. उस ने उसे पहचानने की कोशिश की, लेकिन पहचान नहीं सका. लड़की कार का दरवाजा खोल कर उस की बगल वाली सीट पर बैठ कर बोली, ‘‘सर, मैं आप से पहली बार मिल रही हूं, लेकिन मैं अपनी इस पहली मुलाकात को यादगार बनाना चाहती हूं.’’

लड़की ने उसे काफी प्रभावित किया था. वह उस की बात पर विचार कर ही रहा था कि तभी लड़की के मोबाइल पर किसी का फोन आया. लड़की ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘मैं अभी एक जरूरी मीटिंग में हूं, बाद में फोन करना.’’

इतना कह कर लड़की ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘सर, मैं आप की जनभावना पार्टी में शामिल हो कर पार्टी की कार्यकर्ता बनना चाहती हूं, क्योंकि राजनीति में मुझे बहुत रुचि है.’’

वह लड़की अभी उस से बातें कर रही थी कि 2 लड़के आ कर वहां खड़े हो गए. उन के साथ एक महिला भी थी. उन तीनों को देख कर अवधेश की कार में बैठी लड़की ने हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘आइए, मैं आप लोगों का ही इंतजार कर रही थी.’’

अवधेश कुछ समझ पाता, उस के पहले ही बगल में बैठी लड़की अपनी ओर का दरवाजा खोल कर जैसे ही उतरी, तुरंत उस का परिचित युवक उस की जगह पर बैठ गया. दोनों महिलाएं पीछे की सीट पर बैठ गईं तो दूसरा युवक अवधेश को धकेल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.

अब वह दोनों युवकों के बीच फंस गया था. उन लोगों ने उसे चुप रहने की धमकी दे कर उस की कार तेज रफ्तार से भगा दी. चलती गाड़ी में ही उन्होंने उस के पर्स से 12 हजार रुपए निकाल लिए. थोड़ी दूर जाने के बाद उसे जान से मारने की धमकी दे कर उसे भी कार से उतार दिया और खुद कार ले कर फरार हो गए. उस के बाद किसी तरह पूछतेपाछते हुए वह थाने तक पहुंचा है. इतना सब बता कर अवधेश ने अपनी कार दिलाने की गुजारिश की.

बात पूरी होतेहोते अवधेश की आंखें छलक पड़ी थीं. उसे इस तरह परेशान देख कर थानाप्रभारी ने उसे आश्वासन दे कर अपराध संख्या 19/2014 पर भादंवि की धारा 392, 386, 120बी, 34 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर इस मामले की जांच जीआईपी के चौकीप्रभारी सबइंसपेक्टर विवेक शर्मा के नेतृत्व में एक टीम बना कर सौंप दी. उन की इस टीम में कांस्टेबल सिंकू चौधरी, ओमप्रकाश राय, सुदेश कुमार और महिला कांस्टेबल चित्रा चौधरी को शामिल किया गया था.

सबइंसपेक्टर विवेक शर्मा ने उस मोबाइल नंबर पर फोन मिलाया तो वह बंद मिला. उन्होंने उस नंबर को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस की आईडी निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर सुहैल खान के नाम था, जो मकान नंबर बी-17डी, मेनरोड, मंडावली, दिल्ली में रहता था. पुलिस अवधेश को साथ ले कर उस पते पर पहुंची तो वहां उसे सुमन मिली.

अवधेश ने सुमन को पहचान कर पुलिस को बताया कि दोनों महिलाओं में एक यही थी. पुलिस सुमन को नोएडा ले आई. पूछताछ में सुमन ने अपने अन्य साथियों के बारे में बता दिया. इस के बाद पुलिस ने उस के साथियों मनोज कुमार, नीरज और शालिनी की तलाश में कई जगहों पर छापे मारे, लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं लगे. शायद उन्हें सुमन के पकड़े जाने की भनक लग गई थी, इसलिए वे अपनेअपने ठिकानों से फरार हो चुके थे.

सुमन से की गई पूछताछ में अवधेश मिश्रा को लूटने और ब्लैकमेल करने की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

दरअसल अवधेश मिश्रा ने अपने लूटे जाने के बारे में पुलिस को जो बताया था, वह पूरी तरह से सच नहीं था. उस की कार और रुपए जरूर अभियुक्त ले गए थे, लेकिन उस ने अपने अपहरण की कोशिश की जो बात पुलिस को बताई थी, वह झूठ थी. इस मामले में सच्चाई यह थी.

इस कहानी की शुरुआत 5-6 साल पहले से हुई थी. तब सुमन की शादी नहीं हुई थी. 33 वर्षीया सुमन अपने परिवार के साथ दिल्ली के पांडवनगर के गणेशनगर में रहती थी. उस के पड़ोस में ही मूलरूप से झारखंड का रहने वाला अवधेश मिश्रा भी अपने परिवार के साथ रहता था. 45 वर्षीय अवधेश मिश्रा इलाके का जानामाना आदमी था. इस की वजह यह थी कि वह ‘जनभावना पार्टी’ का राष्ट्रीय अध्यक्ष था.

सुमन भाईबहनों में सब से बड़ी थी, इसलिए घर या बाहर के कामों के लिए ज्यादातर उसे ही बाहर जाना पड़ता था. जब कभी किसी सरकारी दफ्तर का काम होता था, वह काम आसानी से हो जाए, इस के लिए वह अवधेश मिश्रा की मदद लेती थी. चूंकि अवधेश नेता था, इसलिए कैसा भी काम होता था, वह एक बार में ही करवा देता था.

लगातार अवधेश से मिलने की वजह से सुमन की उस से अच्छी जानपहचान हो गई थी. सुमन देखने में भी ठीकठाक थी और पढ़ीलिखी होने की वजह से बातें भी ढंग से करती थी. इसलिए अवधेश जब उसे देखता, उस का दिल उस के लिए मचल उठता था. यही वजह थी कि वह उसे चाहत से एकटक ताकता रहता था.

अय्याश फर्जी जज की ठगी – भाग 1

6 अगस्त, 2014 को हरियाणा के जिला गुड़गांव के सेक्टर 17-18 थाने में एक महिला थानाप्रभारी  से मिली. 26-27 साल की वह महिला पहनावे से अच्छे परिवार की लग रही थी. तीखे नयननक्श वाली बेहद खूबसूरत उस महिला ने अपना नाम मेनका बताया था. जैसा उस का नाम था वैसी ही वह खूबसूरत भी थी.

थानाप्रभारी को अपना परिचय देने के बाद उस ने बताया कि उस के प्रेमी आशीष बिश्नोई ने उस की अश्लील फिल्म बना रखी है. उस फिल्म के जरिए वह उसे काफी दिनों से ब्लैकमेल कर रहा है. इस के अलावा फरजी जज बन कर उस ने गुड़गांव के तमाम लोगों से करोड़ों रुपए भी ठगे हैं.

मामला गंभीर था, थानाप्रभारी ने इस मामले से पुलिस उपायुक्त को अवगत कराया चूंकि अपराध महिला के साथ हुआ था, इसलिए पुलिस उपायुक्त ने रिपोर्ट दर्ज कर के शीघ्र ही उचित काररवाई करने के निर्देश दिए.

निर्देश मिलते ही थानाप्रभारी ने आशीष बिश्नोई पुत्र रामकिशन, निवासी सेक्टर-13 हिसार के खिलाफ भादंवि की धाराओं 419, 420, 467, 468, 471, 506 व 66ई/72 आईटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

आशीष वर्तमान में गुड़गांव सेक्टर-53 स्थित गुडलक सोसाइटी और ग्रांड रेजीडेंसी में रह रहा था. लेकिन उस ने ये दोनों फ्लैट खाली कर दिए थे. फ्लैट खाली कर के वह कहां गया, यह किसी को पता नहीं था. आशीष के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होने के बाद संयुक्त पुलिस आयुक्त (क्राइम) विवेश शर्मा ने इस मामले की जांच में सेक्टर-46 की सीआईए (क्राइम ब्रांच) टीम को भी लगा दिया.

सीआईए के इंसपेक्टर यशवंत सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में एसआई सुरेंद्र सिंह, दिलीप सिंह, सुरेश कुमार, हेडकांस्टेबल राजवीर सिंह, संदीप कुमार, बिजेंद्र सिंह, कांस्टेबल नरेश आदि को शामिल किया गया. सीआईए टीम के पास आशीष के गुड़गांव और हिसार के पते थे. पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए उस के गुड़गांव वाले फ्लैटों पर दबिश दी. वह वहां नहीं मिला तो पुलिस टीम 7 अगस्त को हिसार स्थित उस के घर पहुंच गई.

घर पर आशीष बिश्नोई के पिता रामकिशन मिले. आशीष उस समय शहर में कहीं गया हुआ था. कुछ देर बाद वह घर लौटा तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. आशीष ने पुलिस पर रौब जमाने की कोशिश तो की, लेकिन उस की एक न चली.

हिरासत में ले कर पुलिस टीम गुड़गांव लौट आई. सीआईए औफिस में जब उस से मेनका द्वारा लगाए गए आरोपों की बाबत पूछताछ की गई तो वह पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा. लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो उस ने स्वीकार किया कि उस का नाम आशीष बिश्नोई नहीं बल्कि आशीष सेन है. आशीष ने यह भी माना कि उस ने अपनी प्रेमिका मेनका की ब्लू फिल्म बनाई थी.

शादीशुदा होते हुए भी 2 अन्य युवतियों को अपने प्रेम जाल में फांस कर उन के साथ लिवइन रिलेशन में रहने से ले कर नकली जज बनने तक की आशीष ने जो कहानी बताई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.

33 वर्षीय आशीष सेन हरियाणा के हिसार के सेक्टर-13 में रहने वाले रामकिशन सेन का बेटा था. ग्रैजुएशन करने के बावजूद वह बेरोजगार था. उस के पिता हुडा में ड्राफ्ट्समैन थे और मां सिंचाई विभाग में नौकरी करती थीं. खेतीकिसानी के अलावा मांबाप कमा रहे थे, इसलिए घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. बीए पास करने के बाद पिता ने उस की शादी कर दी.

शादी के बाद वैसे तो आशीष का सारा खर्च घर वाले उठाते थे, लेकिन उन सब के अलावा कुछ खर्चे होते हैं, जिन्हें पूरा करने की मांग पत्नी पति के अलावा और किसी से नहीं करती. इसी के मद्देनजर आशीष ने नौकरी तलाशनी शुरू कर दी. इसी बीच फरजी आईडी कार्ड से मोबाइल सिमकार्ड खरीदने के आरोप में उसे जेल जाना पड़ा. यह सन 2004 की बात है.

कुछ दिन जेल में रह कर आशीष रिहा हो कर घर आ गया था. जेल जाने पर आशीष सुधरने के बजाय और ज्यादा दबंग हो गया था. उस की पत्नी 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, जिस से उस के खर्चे और ज्यादा बढ़ गए थे. वह नौकरी की तलाश में सन 2006 में हिसार से गुड़गांव आ गया.

कोशिश करने के बाद भी आशीष को ढंग की नौकरी नहीं मिली. उस के पास हलके वाहन चलाने का ड्राइविंग लाइसेंस था. वह कार चलाना जानता ही था. उसी दौरान एक जानने वाले के सहयोग से उस की नौकरी गुड़गांव के ही एक काल सेंटर में ड्राइवर के पद पर लग गई.

वहां दो-ढाई साल नौकरी करने के दौरान ही उस के निशा नाम की एक लड़की से प्रेम संबंध हो गए. खुद के शादीशुदा होते हुए भी उस ने निशा से 2009 में एक मंदिर में शादी कर ली और उस के साथ गुड़गांव में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. उस ने निशा से खुद को अविवाहित बताया था.

हिसार में रह रही उस की पत्नी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं लगी कि उस के पति ने उस से विश्वासघात करते हुए गुड़गांव में दूसरी शादी कर ली है. वह 10-15 दिन में पत्नी से मिलने हिसार पहुंच जाता था. पत्नी जब उस के साथ गुड़गांव चलने की बात कहती तो वह बहाना बना देता कि वहां उस के पास रहने की कोई व्यवस्था नहीं है, वह खुद दोस्त के पास रहता है. बहरहाल, आशीष दोनों बीवियों के बीच बड़ी चालाकी से सामंजस्य बैठाए रहा. इस बीच निशा एक बेटी की मां बन चुकी थी.

आशीष अक्सर जींद कोर्ट जाता रहता था. वहां पर कुछ लोगों से उस के अच्छे संबंध भी बन गए थे. कोर्ट आनेजाने से वह यह बात समझ गया था कि जज का रुतबा बड़ा होता है. उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न फरजी जज बन कर लोगों से मोटा पैसा कमाया जाए. क्योंकि ड्राइवर की नौकरी से उस की आकांक्षाएं पूरी होती नजर नहीं आ रही थीं. इसी बात को ध्यान में रख कर उस ने कई जोड़ी महंगे कपड़े लिए और शहर के धनाढ्य लोगों में घुसपैठ बनाने की कोशिश करने लगा.

वह बड़ेबड़े होटलों में होने वाली पार्टियों में बिना बुलाए शरीक होने लगा. पार्टियों में वह जिन लोगों से मिलता, अपना परिचय अंडर ट्रेनिंग जज के रूप में देता. इसी दौरान उस की मुलाकात मेनका से हुई. मेनका से भी उस ने खुद को अंडर ट्रेनिंग जज बताया था. उस से मिल कर मेनका बहुत प्रभावित हुई. दोनों के बीच दोस्ती हुई और फोन पर देर तक बातें होने लगीं.

दगाबाज सनम : हनीट्रैप में फंसे नेताजी – भाग 1

अपनी सफेद रंग की डीएल-13 सीसी 2442 नंबर की होंडा इमेज कार के इंडीकेटर जलाए अवधेश मिश्रा जीआईपी मौल की पार्किंग में सब से अलग  खड़ी किए ड्राइविंग सीट पर बैठा बेचैनी से पहलू बदल रहा था. कभी उस की नजर गाड़ी के दोनों ओर लगे मैजिक मिरर पर जाती तो कभी कलाई घड़ी या फिर बगल की सीट पर रखे मोबाइल फोन पर. बेचैनी काफी बढ़ गई तो वह होंठों ही होंठों में बड़बड़ाया, ‘किसी भी चीज की एक हद होती है, 10 बजे आने को कहा था, 11 बज रहे हैं. न खुद आई और न फोन किया. मैं फोन करता हूं तो उठाती भी नहीं है.’

न जाने कितनी बार अवधेश के मन में आया कि अब उसे वापस चले जाना चाहिए. लेकिन सुमन से मिलने की लालसा उसे रोक देती कि थोड़ी देर और इंतजार कर ले. शायद वह आ ही जाए. ऐसा करतेकरते उसे लगा कि अब उसे चले जाना चाहिए, वह नहीं आएगी. उस ने कार स्टार्ट भी कर ली. लेकिन तभी उस की नजर मैजिक मिरर पर गई तो पीछे से सुमन आती दिखाई दे गई. सुमन को आते देख उस का गियर पर गया हाथ रुक गया. सुमन करीब आई और कार का दरवाजा खोल कर उस की बगल वाली सीट पर बैठते हुए बोली, ‘‘आई एम रियली वैरी सौरी. क्या करती, ट्रैफिक जाम में इस तरह से फंस गई कि समय पर पहुंच ही नहीं सकी.’’

‘‘तुम फोन नहीं कर सकती थी तो कम से कम मेरा ही फोन उठा लिया होता. मन को संतोष हो जाता.’’ अवधेश ने झल्ला कर कहा.

‘‘सौरी तो कह दिया, अब क्या मेरी जान ले कर संतोष होगा.’’ सुमन ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अब यह बताओ कि चलना कहां है?’’ अवधेश ने पूछा.

‘‘हम ने जहां चलने के लिए पहले से तय कर रखा है.’’ सुमन ने अवधेश की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराते हुए कहा.

‘‘इस का मतलब आज पूरी तैयारी कर के आई हो. ठीक है, वहीं चलते हैं. आज का तुम्हारा पूरा दिन मेरे लिए है न?’’ अवधेश ने पूछा.

‘‘हां भई, अब चलो. वैसे भी देर हो गई है. और देर मत करो.’’ बेचैन सी होते हुए सुमन ने कहा.

‘‘ठीक है बाबा, चल रहा हूं.’’ कह कर अवधेश ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

बातें करते हुए दोनों 15-20 मिनट में निठारी स्थित ‘सूर्या गेस्टहाउस’ जा पहुंचे. अवधेश ने गेस्टहाउस में कमरा बुक कराया और सुमन के साथ कमरे में चला गया. अवधेश कमरे में पहुंचा ही था कि सुमन ने पर्स से मोबाइल निकाला और कोने में जा कर बात करने लगी. उसे फोन पर बात करते देख अवधेश ने कहा, ‘‘कहा तो था कि आज का पूरा दिन मेरे लिए है. यह बीच में कौन आ गया, फोन कर के किस से बात कर रही हो?’’

सुमन ने फोन काट कर कहा, ‘‘सौरी, कुछ जरूरी काम था, फोन कर के उसी के लिए कह रही थी. अब न किसी को फोन करूंगी, न किसी का फोन रिसीव करूंगी. चाहो तो इसे अपने पास रख लो.’’ सुमन ने अपना मोबाइल फोन अवधेश की ओर बढ़ाते हुए कहा.

‘‘इसे अपने पास ही रखो.’’ अवधेश ने कमरे में पडे़ बेड पर बैठ कर जूते उतारते हुए कहा.

जूते वगैरह उतार कर दोनों ने हाथमुंह धोए और बेड पर आ कर बैठे ही थे कि चायनाश्ता आ गया. चायनाश्ते का आर्डर अवधेश कमरा बुक कराते समय ही दे आया था. चायनाश्ता करने के बाद लड़का बरतन उठाने आया तो अवधेश ने खाने का आर्डर देते हुए कहा. ‘‘खाना 2 बजे ले आना. और हां, इस बीच बिलकुल डिस्टर्ब मत करना.’’

इस तरह एकांत में अवधेश सुमन से बहुत दिनों बाद मिला था, इसलिए वह उस के साथ का एक भी पल बेकार नहीं जाने देना चाहता था. उस ने अपने तो कपड़े उतारे ही, सुमन के भी कपड़े उतार कर उसे बांहों में भर लिया. अवधेश सुमन को पा कर दीनदुनिया भूलता, उस के पहले ही कमरे में होने वाली चहलपहल सुन कर वह एकदम से सुमन से अलग हो गया.

उस ने दरवाजे की ओर देखा तो उसे कमरे के अंदर 2 युवक और एक महिला दिखाई दी. उन में से एक युवक के हाथों में वीडियो कैमरा था. उन्हें देख कर अवधेश सन्न रह गया. वह समझ गया कि बंद कमरे में उस ने सुमन के साथ जो किया है, वह सब कैमरे में रिकौर्ड हो चुका है. झटके से उस ने खुद को चादर से ढका और गुस्से में बोला, ‘‘तुम लोग कौन हो और इस कमरे में यह क्या कर रहे हो?’’

तीनों खिलखिला कर हंसने लगे. अवधेश उन्हें हैरानी से ताक रहा था. सुमन उस के बगल से उठी और आराम से कपड़े पहन कर उन्हीं तीनों के बगल जा खड़ी हुई. उस ने भी हंसी में उन लोगों का साथ दिया तो अवधेश को समझते देर नहीं लगी कि यह सब सुमन का ही कियाधरा है. उस ने सुमन को घूरते हुए कहा, ‘‘तो यह सब तुम्हारी साजिश थी?’’

‘‘बड़ी जल्दी समझ गए.’’ सुमन ने कुटिल मुसकान बिखेरते हुए कहा.

अवधेश नादान नहीं था. उसे पता था कि यह सब क्यों किया गया है. इसलिए उन के कुछ कहने से पहले ही उस ने पूछा, ‘‘तुम लोग चाहते क्या हो?’’

‘‘पहले तो हम तुम्हें लूटना चाहते हैं.’’ कह कर उन लोगों ने अवधेश की पैंट से पर्स निकाल उस में रखे 12 हजार रुपए निकाल कर अपनी जेब में रख लिए. इस के बाद उस की कार की चाबी ले कर दोनों में से एक युवक ने कहा, ‘‘हम जो चाहते हैं, अब तुम वह सुनो. किसी को कुछ बताए बगैर तुम्हें हम लोगों को 4 लाख रुपए देने होंगे. अगर तुम ने पैसे नहीं दिए तो हम ने तुम्हारी सुमन के साथ जो वीडियो बनाई है, वह ‘यूट्यूब’ पर डाल देंगे. इस के बाद तुम्हारा यह खेल सारी दुनिया देखेगी.

‘‘यही नहीं, हम एक काम और करेंगे. इस में से कुछ फोटो बनवा कर तुम्हारी पत्नी को भी दे आएंगे. वह भी देख लेगी कि उस के पतिपरमेश्वर क्याक्या करते हैं. अगर तुम्हारा मन इतने से भी नहीं भरेगा तो इस फिल्म को टीवी पर चला कर सब को दिखा देंगे. तब तुम इस तरह बदनाम हो जाओगे कि किसी को मुंह दिखने लायक नहीं रहोगे. अब तुम जानो कि तुम्हें अपनी इज्जत प्यारी है या 4 लाख रुपए. तुम हमें पैसे दे दो, हम तुम्हें यह फिल्म वापस कर देंगे.’’

‘‘अगर तुम लोगों ने ऐसा किया तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा.’’ अवधेश ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘अगर तुम मुंह दिखाने लायक रहना चाहते हो तो 4 लाख रुपए दे दो.’’ उसी युवक ने कहा.

‘‘4 लाख रुपए… इतनी बड़ी रकम का इंतजाम मैं कहां से करूंगा?’’ अवधेश गिड़गिड़ाया.

‘‘बदनामी से बचना है, तो रुपयों का इंतजाम करना पड़ेगा.’’ इस बार सब ने एक साथ कहा.

अवधेश मिन्नतें करता रहा, लेकिन उन लोगों पर कोई असर नहीं हुआ. उन में से एक ने अवधेश की चादर खींच कर कहा, ‘‘जब अय्याशी कर रहे थे तो तुम्हें पता नहीं था कि पैसे कहां से आएंगे. सारा मजा मुफ्त में ही लेना चाहते थे.’’

इस के बाद उसी युवक ने अवधेश के पास आ कर उस के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार कर कहा, ‘‘एक बात का ध्यान रखना. अगर तुम पुलिस के पास गए तो तुम्हारी यह फिल्म सारी दुनिया देखेगी.’’

इस के बाद अवधेश को उसी तरह छोड़ कर वे चारों हंसते हुए कमरे से बाहर निकल गए. अवधेश की कार की चाबी भी वे साथ ले गए थे. गेस्टहाऊस की पार्किंग में खड़ी उस की कार को ले कर वे चले गए.

बेटे के लिए बलि चढ़ी मां

ठाणे जिले के अंतर्गत आता है वसई का धानीव बाग गांव. 17 नवंबर, 2013 को यहां से सोपारा फाटा की तरफ जानेवाले रास्ते के किनारे झाडि़यों में एक अंजान महिला की लाश पड़ी मिली. इस सिरविहीन लाश के पास एक गाउन और एक गद्दी पड़ी हुई थी. धानीव गांव के लोगों को जब झाडि़यों में बिना सिर वाली लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो तमाम गांव वाले वहां पहुंच गए. गांव वालों ने यह जानकारी मुखिया अविनाश पाटिल को दी तो वह भी वहां आ गए.

गांव का मुखिया होने के नाते अविनाश पाटिल ने फोन कर के महिला की लाश मिलने की जानकारी थाना वालीव पुलिस को दे दी. सुबहसुबह खबर मिलते ही वालीव के वरिष्ठ पुलिस इंसपेक्टर राजेंद्र मोहिते पुलिस टीम के साथ मुखिया द्वारा बताई उस जगह पर पहुंच गए, जिस जगह पर लाश पड़ी थी. राजेंद्र मोहिते ने वहां का बारीकी से निरीक्षण किया तो वहां काफी मात्रा में खून फैला हुआ था, जो सूख कर काला पड़ चुका था. वहीं पर एक चौकी के पास पूजा का कुछ सामान भी रखा था.

इस से उन्होंने अनुमान लगाया कि किसी तांत्रिक वगैरह ने सिद्धि साधना या अन्य काम के लिए महिला की बलि चढ़ाई होगी.महिला की गरदन को उन्होंने आसपास काफी तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने अपर पुलिस अधिक्षक संग्राम सिंह निशाणदार और उपविभागीय अधिकारी प्रशांत देशपांडे को फोन द्वारा इस की जानकारी दी. उक्त दोनों अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि मृतका का सिर नहीं मिल पा रहा था, इसलिए घटनास्थल पर मौजूद लोगों में से कोई भी उस अधेड़ उम्र की शिनाख्त नहीं कर सका. बहरहाल, पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को जे.जे. अस्पताल की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया और उच्चाधिकारियों के निर्देश पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और अन्य धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

महिला की हत्या क्यों और किस ने की, यह पता लगाने के लिए उस की शिनाख्त होनी जरूरी थी. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में सहायक पुलिस इंसपेक्टर आव्हाड तायडे, सहायक सबइंसपेक्टर प्रकाश सावंत, हवलदार सुभाष गोइलकर, पुलिस नायक अशोक चव्हाण, कांस्टेबल अनवर, मनोज चव्हाण, शिवा पाटिल, 2 महिला कांस्टेबल फड और पाटिल को शामिल किया गया.

पुलिस टीम लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश में लग गई. सब से पहले टीम ने सिरविहीन महिला की लाश के फोटो मुंबई के समस्त थानों में भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में इस कदकाठी की महिला की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. इस के अलावा उन्होंने पूरे जिले में सार्वजनिक जगहों पर महिला की शिनाख्त के संबंध में पैंफ्लेट भी चिपकवा दिए. पुलिस टीम को इस केस पर काम करते हुए करीब 3 हफ्ते बीत गए, लेकिन लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी.

8 दिसंबर, 2013 को उदय गुप्ता नाम का एक व्यक्ति भिवंडी के शांतीनगर थाने पहुंचा. उस ने बताया कि उस की मां कलावती गुप्ता पिछले महीने की 17 तारीख से लापता है. शांति नगर थाने के नोटिस बोर्ड पर वालीव थाना क्षेत्र में मिली एक अज्ञात महिला की सिरविहीन लाश की फोटो लगी हुई थी. इसलिए थानाप्रभारी ने उदय गुप्ता से कहा, ‘‘पिछले महीने वालीव थाना क्षेत्र में एक अज्ञात महिला की लाश मिली थी, जिस का फोटो नोटिस बोर्ड पर लगा हुआ है. आप उस फोटो को देख लीजिए.’’

उदय गुप्ता तुरंत नोटिस बोर्ड के पास गया और वहां लगे फोटो को देखने लगा. उन में एक फोटो पर उस की नजर पड़ी. उस फोटो को देख कर उदय गुप्ता रुआंसा हो गया. क्योंकि उस की मां फोटो में दिखाई दे रही महिला की कद काठी से मिलतीजुलती थी और वैसे ही कपड़े पहने हुए थी. उस तसवीर के नीचे वालीव थाने का फोन नंबर लिखा था.  उदय गुप्ता तुरंत वालीव थाने जा कर वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते से मिला और अपनी मां के गायब होने की बात बताई. राजेंद्र मोहिते उदय गुप्ता को जे.जे. अस्पताल ले गए.

मोर्चरी में रखी लाश और उस के कपड़े जब उदय गुप्ता को दिखाए गए तो वह फूटफूट कर रोने लगा. उस ने लाश की पहचान अपनी मां कलावती गुप्ता के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. उदय गुप्ता ने यह सूचना अपने पिता रामआसरे गुप्ता को दे दी थी. खबर मिलते ही वह वालीव थाने पहुंच गए थे.

वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक राजेंद्र मोहिते ने घर वालों से पूछा कि कलावती गुप्ता जब घर से निकली थी तो उस के साथ कौन था. उदय ने बताया, ‘‘उस दिन मां एक परिचित रामधनी यादव के साथ गई थी. उस के बाद वह वापस नहीं लौटी. हम ने रामधनी से पूछा भी था, लेकिन उस ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था.’’

रामधनी यादव सांताकु्रज क्षेत्र स्थित गांव देवी में रहता था. पुलिस टीम ने पूछताछ के लिए रामधनी यादव को उठा लिया. उस से कलावती गुप्ता की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाई गई थी और इस में कई और लोग शामिल थे. उस से की गई पूछताछ में कलावती गुप्ता की बलि चढ़ाए जाने की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी.

55 वर्षीया कलावती गुप्ता मुंबई के सांताकु्रज (पूर्व) के वाकोला पाइप लाइन के पास गांवदेवी में रहती थी. उस के 2 बेटे थे उदय गुप्ता और राधेश्याम गुप्ता. राधेश्याम विकलांग था और अकसर बीमार रहता था. बेटे की वजह से कलावती काफी चिंतित रहती थी. एक दिन पास के ही रहने वाले रामधनी ने उसे सांताकु्रज की एअर इंडिया कालोनी क्षेत्र के कालिना में रहने वाले ओझा सर्वजीत कहार के बारे में बताया.

बेटा ठीक हो जाए, इसलिए वह रामधनी के साथ ओझा के पास गई. इस के बाद तो वह हर मंगलवार और रविवार को रामधनी के साथ उस तांत्रिक के पास जाने लगी. सिर्फ कलावती का बेटा ही नहीं, बल्कि रामधनी की बीवी भी बीमार रहती थी. रामधनी उसे भी उस तांत्रिक के पास ले जाता था. रामधनी का एक भाई था गुलाब शंकर यादव. गुलाब की बीवी बहुत तेजतर्रार थी. वह किसी न किसी बात को ले कर अकसर उस से झगड़ती रहती थी. जिस से घर में क्लेश रहता था. घर का क्लेश किसी तरह खत्म हो जाए, इस के लिए गुलाब भी उस तांत्रिक के पास जाता था.

एक दिन तांत्रिक सर्वजीत कहार ने रामधनी और गुलाब को सलाह दी कि अगर वह किसी इंसान की बलि चढ़ा देंगे तो सारी मुसीबतें हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी. दोनों भाई अपने घर में सुखशांति चाहते थे, लेकिन बलि किस की चढ़ाएं, यह बात उन की समझ में नहीं आ रही थी.

इसी बीच उन के दिमाग में विचार आया कि कलावती की ही बलि क्यों न चढ़ा दी जाए. कलावती सीधीसादी औरत थी, साथ ही वह खुद भी तांत्रिक के पास जाती थी. इसलिए वह उन्हें आसान शिकार लगी. यह बात उन लोगों ने तांत्रिक से बताई. चूंकि बलि देना तांत्रिक के बस की बात नहीं थी, इसलिए उस ने अपने फुफेरे भाई सत्यनारायण, उस के बेटे पंकज नारायण और श्यामसुंदर से बात की तो वे यह काम करने के लिए तैयार हो गए.

15 नवंबर, 2013 को सांताकु्रज के वाकोला इलाके में रहने वाले गुलाब शंकर यादव के घर तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर, सत्यनारायण, पंकज और रामधनी ने एक मीटिंग कर के योजना बनाई कि कलावती की कब और कहां बलि देनी है. उन्होंने बलि चढ़ाने के लिए मुंबई से काफी दूर नालासोपारा के वसई इलाके में स्थित मातामंदिर को चुना. इसी के साथ तांत्रिक ने रामधनी को पूजा के सामान की लिस्ट भी बनवा दी.

अगले दिन 16 नवंबर, 2013 को रामधनी कलावती गुप्ता के घर पहुंच गया. उस ने उस से कहा कि अगर उसे अपने बेटे की तबीयत हमेशा के लिए ठीक करनी है तो आज नालासोपारा स्थित माता के मंदिर में होने वाली पूजा में शामिल होना पड़ेगा. यह पूजा तांत्रिक सर्वजीत ही कर रहे हैं. बेटे की खातिर कलावती तुरंत रामधनी के साथ चलने को तैयार हो गई. रामधनी कलावती को ले कर पहले अपने भाई गुलाब यादव के घर गया.

वहां योजना में शामिल अन्य लोग भी बैठे थे. कलावती को देख कर वे लोग खुश हो गए और पूजा का सामान और कलावती को ले कर सीधे नालासोपारा स्थित मंदिर पहुंच गए. वहां पहुंच कर ओझा ने एक गद्दी डाल कर उस पर पूजा का सारा सामान रख कर मां काली की पूजा करनी शुरू कर दी. उस ने कलावती के हाथ में भी एक सुलगती हुई अगरबत्ती दे दी तो वह भी पूजा करने लगी.

थोड़ी देर में तांत्रिक इस तरह से नाटक करने लगा, जैसे उस के अंदर देवी का आगमन हो गया हो. वहां मौजूद अन्य लोग तांत्रिक के सामने हाथ जोड़ कर अपनीअपनी तकलीफें दूर करने को कहने लगे. रामधनी ने कलावती से कहा कि वह भी सिर झुका कर देवी से अपनी परेशानी दूर करने को कहे. भोलीभाली कलावती को क्या पता था कि सिर झुकाने के बहाने उस की बलि चढ़ाई जाएगी.

उस ने जैसे ही तांत्रिक के चरणों में सिर झुकाया, श्यामसुंदर गुप्ता ने पीछे से उस के बाल कस कर पकड़ते हुए चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. चाकू लगते ही कलावती खून से लथपथ हो कर तड़पने लगी. वहां मौजूद अन्य लोगों ने उसे कस कर दबोच लिया और उसी चाकू से उस की गरदन काट कर धड़ से अलग कर दी.

कलावती की बलि चढ़ा कर रामधनी और उस का भाई खुश हो रहे थे कि अब उन के यहां की सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी. वे कलावती की कटी गरदन को वहां से दूर डालना चाहते थे, ताकि उस की लाश की शिनाख्त न हो सके. उन लोगों ने उस की गरदन को अपने साथ लाई गई काले रंग की प्लास्टिक की थैली में रख लिया. तत्पश्चात वह थैली मुंबई अहमदाबाद राजमार्ग पर स्थित वासाडया ब्रिज से नीचे पानी में फेंक दी.

रामधनी से पूछताछ के बाद पुलिस ने कलावती गुप्ता की हत्या में शामिल रहे अन्य अभियुक्तों, तांत्रिक सर्वजीत कहार, श्यामसुंदर जवाहर गुप्ता, सत्यनारायण और पंकज को भी गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर कलावती का सिर, हत्या में प्रयुक्त चाकू और अन्य सुबूत बरामद कर लिए. पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

ढोंगी तांत्रिक, पाखंडी आए दिन लोगों को अपने चंगुल में फांसते रहते हैं. इन के चंगुल में फंस कर अनेक परिवार बर्बाद हो चुके हैं. ऐसे तांत्रिकों, पाखंडियों पर शिकंजा कसने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने जादूटोना प्रतिबंध विधेयक पारित किया था.

यह विधेयक पिछले 18 सालों से विवादों से घिरा हुआ था. लेकिन इस बिल को पारित हुए एक दिन भी नहीं बीता था कि 55 वर्षीय कलावती गुप्ता की बलि चढ़ा दी गई. सरकार को चाहिए कि इस बिल को सख्ती के साथ अमल में लाए, ताकि तांत्रिकों, पाखंडियों पर अंकुश लग सके. द्

चोरी का चिराग : नवजात शिशु की चोरी

पूजा के नजदीक कंबल में लिपटे नवजात पर एक नजर डालते ही सुषमा खुशी से चहकी, “तेरा बेटा चांद जैसा है बेटी.”

“नजर लगाओगी क्या मम्मी अपने पोते को?” पास में खड़े जगबीर ने प्यार से अपनी सास को टोका.

“नहीं, मेरी नजर तो दुश्मन को भी नहीं लगती, यह तो मेरे घर का चिराग है.” सुषमा हंस कर बोली, “बताओ, क्या नाम रखोगे अपने लाल का?”

“मैं ने अक्षय नाम सोचा है मम्मी.” जगबीर ने प्यार भरी नजर से अपने बेटे की ओर देख कर पत्नी से पूछा, “क्यों, तुम्हें अक्षय नाम कैसा लग रहा है पूजा?”

“आप नाम रख रहे हैं तो अच्छा ही है.” पूजा मुसकरा कर बोली.

वहीं पर जगबीर की बड़ी साली गीता भी अपने 4 महीने के बेटे आयुष के साथ थी. वह पूजा की देखभाल के लिए आई थी. वह भी बोली, “अक्षय नाम तो बहुत अच्छा है.”

जगबीर कुछ कहता, तभी गार्ड ने वहां आ कर कहा, “आप लोग अब बाहर जाइए, मिलने का वक्त समाप्त हो गया है, चलिए बाहर…”

“अपना और मुन्ने का ध्यान रखना पूजा.” जगबीर ने कहा, “हम बाहर यहीं बरामदे में हैं. किसी चीज की जरूरत पड़े तो बुलवा लेना.”

“ठीक है.” पूजा ने धीरे से कहा.

पूजा की बहन गीता, मां सुषमा और पति जगबीर उस वार्ड से निकल कर बाहर बरामदे में आ गए. यहां पर अंदर वार्ड में अपने मरीज की तीमारदारी के लिए आए हुए घर वालों ने अपनीअपनी चादर दरी बिछा रखी थी. सुषमा और जगबीर ने एक खाली जगह पर चादर बिछा ली और बैठ गए.

“चाय लाऊं मम्मी?” जगबीर ने पूछा.

“चाय रहने दो बेटा, मन नहीं कर रहा.”

जगबीर, उस की सास और बड़ी साली गीता अस्पताल के बरामदे में ही लेट गए. इस दौरान उन के पास एक युवक आया था, जिस ने उन से मेलजोल बढ़ा लिया था. वह युवक सुबह भी वहीं था. गीता के 4 वर्षीय बेटे आयुष को वह बहुत दुलार कर रहा था. उसे वह खिलाता, इधरउधर घुमाता, फिर वहीं छोड़ जाता था. आयुष भी उस से काफी घुलमिल गया था. उस युवक ने गीता को मुंहबोली बहन बना लिया था. यानी उस युवक ने गीता और उस के बेटे का विश्वास जीत लिया था. गीता का भाई विजय भी अस्पताल पहुंचा तो उस युवक ने विजय से भी दोस्ती सी कर ली.

कुछ समय बाद जगबीर अपनी सास को छोडऩे के लिए अस्पताल से बाहर आया तो उस समय गीता अपने 4 वर्षीय बेटे आयुष को दूध पिलाने लगी. उसी समय गीता के मोाबइल पर छोटी बहन पूजा ने फोन किया. वह बोली, “दीदी, मुझे भूख लगी है, मुझे आ कर खाना खिला दो.”

उस समय गीता का भाई विजय वहीं था. गीता अपने बेटे को विजय के पास छोड़ कर पूजा को खाना खिलाने के लिए वार्ड में चली गई. तभी वह युवक भी विजय के पास पहुंचा. वह आयुष को खिलाने के बहाने से ले गया. विजय ने यही सोचा कि हर बार की तरह वह आयुष को थोड़ी देर में घुमाफिरा कर ले आएगा.

थोड़ी देर बाद वार्ड से गीता वापस आई तो उस ने आते ही विजय से आयुष के बारे में पूछा. कुछ देर तक जब वह युवक आयुष को ले कर नहीं लौटा तो दोनों भाईबहन ने उसे अस्पताल में इधरउधर खोजा लेकिन न तो आयुष दिखा और न ही वह युवक. इस के बाद उन्होंने पुलिस को बच्चा चोरी की सूचना दे दी.

पुलिस आ गई हरकत में

दिल्ली के थाना नार्थ रोहिणी के एसएचओ भूपेश कुमार को कंट्रोल रूम से सूचना दी गई कि अंबेडकर अस्पताल से एक बच्चे को चुरा लिया गया है. अस्पताल से बच्चा चोरी की खबर सुनते ही एसएचओ भूपेश कुमार तुरंत रजिस्टर में अपनी रवानगी दर्ज करा दी और अपनी टीम के साथ अंबेडकर अस्पताल पहुंच गए.

6 फरवरी, 2023 और दिन सोमवार था. भूपेश कुमार सोमवार को अपने लिए शुभ मानते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह चोरी हुए बच्चे को अवश्य ही तलाश कर लेंगे. वह चोरी हुए बच्चे की मां गीता के पास पंहुचे. गीता अभी भी रो रही थी. जगबीर बड़ी साली को दिलासा दे रहा था. एसएचओ भूपेश कुमार ने उस के चेहरे पर नजरें डाल कर सहानुभूति से पूछा, “क्या तुम्हारा ही बच्चा चोरी किया गया है.”

“जी,” गीता ने सिर हिलाया.

“तुम कहां रहते हो?”

“जी, हम भलस्वा जेजे कालोनी से आए हैं. यह मेरी बड़ी साली गीता है. इन्हीं के 4 वर्षीय बेटे आयुष को चुरा लिया है. यह वार्ड में भरती बेटी पत्नी की देखरेख के लिए आई थीं.”

“तुम्हारा नाम क्या है?”

“जी जगबीर.” जगबीर ने बताया, “साहब, आप देख लीजिए इन की हालत, दोपहर से रो रही हैं.”

“देखो जगबीर, मैं तुम्हारा दुख समझ सकता हूं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि इन के बच्चे को सकुशल वापस ले कर आऊंगा और चोर को जेल में डलवा दूंगा. तुम मुझ पर विश्वास करो. तुम अपने घर का पता और मोबाइल नंबर मुझे नोट करवा दो.”

जगबीर ने अपना घर का एड्रैस और मोबाइल नंबर एसएचओ भूपेश की लिखवा दिया. एसएचओ भूपेश कुमार जगबीर और गीता को ले कर थाने लौट आए. उन्होंने गीता को वादी बना कर उस के बच्चे के चोरी हो जाने की घटना की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

जगबीर के जाने के बाद एसएचओ भूपेश कुमार ने इस बच्चा चोरी की घटना की जानकारी रोहिणी जिले के डीसीपी को दे कर उन से राय मांगी. डीसीपी अमृता गोगुलोथ ने एसएचओ के निर्देशन में एक टीम का गठन कर दिया, जिस में एसआई पवन, हैडकांस्टेबल अमित, योगेंद्र और सोनू को शामिल किया गया. उन्होंने एसएचओ भूपेश कुमार को अस्पताल और आसपास के इलाकों के सीसीटीवी खंगालने के निर्देश दिए.

एसएचओ भूपेश कुमार ने अपनी टीम के साथ अंबेडकर अस्पताल जा कर वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. अस्पताल के मेनगेट पर भी एक कैमरा लगा हुआ था, उस की फुटेज निकलवा कर देखी गई. दोपहर 3-सवा 3 बजे के आसपास पुलिस टीम को उस फुटेज में 2 महिलाएं और एक पुरुष संदिग्ध अवस्था में नजर आए. उन में से एक महिला के पास बच्चा दिखाई दे रहा था. बच्चे को उस महिला ने अपनी गोद में बैठा रखा था.

ईरिक्शा से दिखी उम्मीद की किरण

दोनों महिलाएं सडक़ पर एक बैटरी रिक्शा में बैठती नजर आईं. उस बैटरी रिक्शा पर कोई नंबर नहीं था. उस पर ‘ठुकराल’लिखा था. पुलिस टीम ने बैटरी रिक्शा के रंग और ‘लोगो’ को अपनी जांच के लिए नोट कर लिया. पुलिस जानती थी, दिल्ली में लाखों बैटरी रिक्शा चल रहे थे. इसी रोहिणी क्षेत्र में भी ऐसे हजारों रिक्शा हो सकते थे, इन में से वह संदिग्ध बैटरी रिक्शा तलाश करना आसान काम नहीं था, लेकिन पुलिस टीम उस रिक्शे की तलाश में जी जान से लगी रही.

अंबेडकर अस्पताल के सामने पचासों रिक्शा सवारी उतारते और चढ़ाते थे, वहां पर खास नजर रखी गई. एसएचओ भूपेश कुमार को विश्वास था कि वह बैटरी रिक्शा उसी इलाके में चलता है, वह उस अस्पताल के सामने फिर आ सकता है. अंबेडकर अस्पताल के सामने हैडकांस्टेबल अमित और सोनू की ड्यूटी लगाई गई. एसआई पवन अपने साथ हैडकांस्टेबल योगेंद्र को ले कर रोहिणी के मेन चौराहों, बस स्टैंड और सडक़ों पर उस बैटरी रिक्शे की तलाश कर रहे थे. चौराहों पर बैटरी रिक्शा की बहुत अधिक संख्या रहती है, वहां ज्यादा नजर रखी गई.

4 दिन की कड़ी मेहनत के बाद पुलिस टीम को सफलता मिल गई. वह बैटरी रिक्शा जो पुलिस की नजर में संदिग्ध था, पकड़ में आ गया. उस रिक्शे का चालक 25 वर्षीय सुनील कुमार था. उसे पकड़ कर उस के बैटरी रिक्शा सहित थाने में लाया गया. सुनील काफी डरा हुआ था. वह बारबार पूछ रहा था, “मैं ने किया क्या है साहब, मुझे क्यों गिरफ्तार किया गया है?”

एसएचओ भूपेश कुमार ने उसे कुरसी पर बिठा कर उस की आंखों में झांकते हुए पूछा, “तुम ने 6 फरवरी की दोपहर 3 बजे के आसपास अपने रिक्शे में 2 महिलाओं को बिठाया था. उन की गोद में एक बच्चा था.”

“साहब, मेरा काम ही सवारी ढोना है. दिन भर में कितनी ही महिलाएं मेरे रिक्शे में बैठतीउतरती रहती हैं. उन के पास बच्चे भी होते हैं.”

“मैं 6 फरवरी की बात कर रहा हूं. दिमाग पर जोर डालो और बताओ वे दोनों महिलाएं अस्पताल के पास से तुम्हारे रिक्शे में बैठने के बाद कहां उतरी थीं?”

सुनील सोच में पड़ गया. थोड़ी ही देर में वह उतावले स्वर में बोला, “उन में से एक महिला की गोद में बच्चा था साहब… आप उन्हीं के विषय में तो नहीं पूछ रहे हैं?”

“मैं उन्हीं महिलाओं के विषय में पूछ रहा हूं. वह 2 महिलाएं थीं.”

“हां साहब, वह 2 थीं. उन्होंने अस्पताल के सामने से मेरा रिक्शा सिर्फ अपने लिए बुक किया था. मुझे इसलिए याद है कि उन्होंने मेरा 100 रुपए किराया औनलाइन पेमेंट के जरिए दिया था. मैं ने उन्हें सैक्टर-18 रोहिणी में उतारा था.”

“ओह! फिर तो तुम्हारे मोबाइल में उस महिला का मोबाइल नंबर आ गया होगा, जरा देखो तो?” भूपेश कुमार उत्साह में भर कर बोले.

औनलाइन पेमेंट से पकड़े गए बच्चा चोर

सुनील ने किराए का औनलाइन पेमेंट करने वाली महिला के मोबाइल नंबर को ढूंढ कर एसएचओ साहब को नोट करवा दिया. एसएचओ भूपेश कुमार ने वह नंबर एक कागज पर नोट कर लिया.

“वह बच्चा अंबेडकर अस्पताल से चुराया गया है. तुम ने उन महिलाओं का इस काम में साथ दिया, इसलिए तुम्हें गिरफ्तार किया जा रहा है.” भूपेश कुमार ने रिक्शा चालक सुनील से कहा तो वह रोने लगा.

एसएचओ भूपेश कुमार ने एसआई पवन को उस महिला से बात करने के लिए कहा. पवन ने उस रिक्शे वाले से प्राप्त मोबाइल नंबर को अपने मोबाइल से मिलाया तो दूसरी और घंटी बजने के बाद काल रिसीव कर के पूछा गया, “आप कौन हैं और किस से मिलना है?” आवाज किसी महिला की थी.

“जी, मैं रोहिणी पोस्ट औफिस से डाकिया दुलीचंद बोल रहा हूं. आप की एक रजिस्ट्री आई है, उस पर पता ठीक से नहीं लिखा गया है, आप अपना पता नोट करवा दें, जिस से मैं वह रजिस्ट्री सही जगह पर पहुंचा सकूं.” दूसरी ओर से बात करने वाली महिला ने अपना नाम रीना बताया, उस ने अपने घर का पता भी नोट करवा दिया. एसआई पवन मुसकराए. उन के द्वारा फेंका गया तीर सही निशाने पर जा कर लगा था.

पुलिस टीम ने एसआई पवन के नेतृत्व में उसी वक्त रीना के घर रेड डाली. इस टीम में 2 महिला कांस्टेबल भी शामिल की गई थीं.

साढ़े 3 लाख रुपए में चुराया था बच्चा

दरवाजा खोलने वाली महिला स्वयं रीना थी. पुलिस को देख कर वह डर कर अंदर की तरफ भागी. महिला कांस्टेबल ने अंदर प्रवेश कर के उसे पकड़ लिया. उसी कमरे में 2 महिलाएं और बैठी थीं. उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया. पुलिस को देख कर तीनों के चेहरों के रंग उड़ गए थे.  कमरे में चोरी हुआ आयुष सो रहा था. उसे हैडकांस्टेबल योगेंद्र ने अपने कब्जे में ले लिया.

पता चला कि बच्चा आलोक ने अस्पताल से चुरा कर इन महिलाओं को दिया था. पुलिस ने सीमा की निशानदेही पर आलोक को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस टीम बच्चा चोरों को ले कर थाने में आ गई. उन से वहां पूछताछ की गई तो एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ, जिसे सुन कर पुलिस दंग रह गई.  अंबेडकर अस्पताल से आयुष की चोरी करने वाली सीमा और रानी थीं. रीना, रानी की बहन थी. आयुष को रीना की बेटे की चाह वाली सनक के कारण चुराया गया था.

रीना को शादी के बाद 3 बेटियां पैदा हुई थीं. वह बेटे की कामना में तड़प रही थी, चौथी बार गर्भधारण करने में उस को फिर से बेटी पैदा न हो जाए, रीना इस बात से डर रही थी. वह फिर से गर्भाधारण नहीं करना चाहती थी. उस ने बेटे के लिए एक रास्ता खोज निकाला. रीना ने अपनी बहन को साढ़े 3 लाख रुपए दे कर एक बच्चा कहीं से खरीद कर या चोरी कर के लाने को कहा.

रीना की बहन ने अपनी पक्की सहेली सीमा को अपनी बहन की इच्छा बता कर रुपयों का लालच दिया तो उस ने रानी का साथ देने के लिए हां कर दी. फिर इन दोनों ने अपने जानकार आलोक से संपर्क किया. उस से लडक़ा उपलब्ध कराने का साढ़े 3 लाख रुपए में सौदा हुआ था. तब आलोक ने ही गीता के बेटे आयुष को गायब कर सीमा के हवाले कर दिया था.

एसएचओ भूपेश कुमार ने जगबीर और गीता को फोन कर के थाने बुला लिया और उस के बेटे को उस के हवाले कर दिया. यह जानकारी भूपेश कुमार ने डीसीपी को भी दे दी. उन्होंने 5 दिन में गीता के 4 वर्षीय बेटे आयुष को सकुशल ढूंढ निकालने के लिए पुलिस टीम की पीठ थपथपा कर शाबाशी दी.

आयुष की चोरी में शामिल आलोक, रीना, सीमा और रानी को रोहिणी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कोख से जनी एक बेटी भी बेटे के समान होती है यदि रीना इस बात को समझती तो वह बेटे की चाह वाला गुनाह नहीं करती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. तथ्यों का नाट्य रूपांतरण है.

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 6

आखिर मेरी जिंदगी में वह दिन भी आ गया, जिस की तमन्ना हर लड़की के दिल में अंगड़ाइयां लेती रहती हैं. मगर मैं उस दिन के हर सपने से पहले ही बेहिस हो चुकी थी. मेरे बेजान से जिस्म को एक मूरत की तरह सजा कर सुलतान अहमद के पहलू में ला बैठाया गया. इस से पहले अम्मी की बात मेरे दिल में फांस की तरह गड़ गई. उन्होंने कहा था कि मैं हमेशा अपने शौहर की वफादार बन कर रहूं.

सुलतान अहमद का घराना पौश कालोनी ‘सोसाइटी’ के एक बड़े से बंगले में रहता था. सुहाग का कमरा बड़ी खूबसूरती से सजाया गया था. उसी सजे हुए कमरे में उस शख्स का इंतजार कर रही थी, जिसे मेरा मालिक बना दिया गया था. दिल की धड़कनों में कोई सनसनी नहीं थी. फिर भी जैसे ही दरवाजे पर आहट हुई, मेरे अंदर जमी बर्फ पिघलने लगी. एक नई भावना अंगड़ाई ले कर जागने लगी, जो शायद निकाह के 2 बोलों का असर था.

वह मेरे सामने बैठते हुए बोले, ‘‘क्या आप यकीन करेंगी कि मैं ने आप की तसवीर भी नहीं देखी है. यह सब मेरी बहनों की शरारत है. वे मुझे सरप्राइज देना चाहती थीं. उन का कहना था कि आप ख्वाबों की शहजादियों से भी ज्यादा हसीन हैं और यह मेरी खुशकिस्मती है कि आप मेरा नसीब हैं,’’ यह कहतेकहते वह मेरे करीब झुक आए, ‘‘क्यों न हम तसदीक कर लें. इसी बहाने मुंह दिखाई भी हो जाएगी.’’

उन्होंने अचानक घूंघट उलट दिया. मैं उन का चेहरा न देख सकी, मगर वह एक झटके से मुझ से दूर हो गए. थोड़ी देर तक वह बेचैनी से कमरे में टहलते रहे. फिर सर्द सी आवाज में बोले, ‘‘आप चाहें तो आराम फरमाएं.’’ यह कह कर उन्होंने तकिया उठाया और करीब पड़े सोफे पर लेट गए.

मैं डे्रसिंग टेबल के आईने में जेवर उतारते हुए खुद को देख रही थी कि आखिर कहां कमी रह गई थी, जो वह अचानक यों मुझ से बेजार हो गए. जब मैं लिबास बदल कर पास आई तो वह लेटे थे. शायद सो गए थे. मगर मुझे अभी सारी रात अपनी बदनसीबी का मातम करना था.

उस दिन के बाद मैं ने कभी सुलतान अहमद के रवैये में अपने लिए मोहब्बत महसूस नहीं की. उन्होंने मेरे वे सभी हक अदा किए, जो एक पति पर लाजिम हो सकते हैं, सिवाय उस चाहत के, बीवी अपने पति से जिस की तलबगार होती है. मैं शायद सारी उम्र इस बात से बेखबर रहती कि सुलतान अहमद के इस रवैये की वजह क्या है, अगर उन को हार्टअटैक न होता.

यह हमारी शादी की 22वीं सालगिरह थी. मेहमानों के रुखसत होने के बाद अचानक उन्होंने सीने में तकलीफ की शिकायत की और फिर देखते ही देखते उन की हालत बिगड़ती चली गई. उन को फौरी तौर पर अस्पताल ले जाया गया. वह दरम्याने दर्जे का हार्टअटैक था. तीसरे दिन डाक्टरों ने उन की हालत खतरे से बाहर करार दे कर उन्हें एक प्राइवेट कमरे में शिफ्ट कर दिया. इन 3 दिनों में मेरी हालत दीवानी जैसी हो गई थी. मैं हर लमहे उन के बेड से लगी रहती थी. इस सारे वक्त एक लमहे के लिए सो न सकी थी.

रात के किसी पहर उन्होंने पानी मांगा. मैं ने जल्दी से पानी गिलास में निकाल कर उन्हें दिया. उन्होंने पानी पी कर गिलास मुझे थमाया और बड़ी कमजोर सी आवाज में बोले, ‘‘गुल, मैं तुम से बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ मैं ने उन के सीने पर हौले से हाथ रखा, ‘‘यह सब मेरा फर्ज है. आप की खिदमत तो मेरे लिए इबादत का दर्जा रखती है.’’ मेरा लहजा शिकायती हो गया.

‘‘मैं जानता हूं,’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसीलिए तो शर्मिंदा हूं. सारी उम्र तुम्हें सच्ची खुशी न दे सका. मेरी बात सुनो. कुछ कहो मत. यह हकीकत है कि मैं ने सारी उम्र तुम्हें सिवाय बेरुखी के और कुछ नहीं दिया, मगर मैं मजबूर था. जब से तुम्हें देखा, मैं एक आग में जल रहा था, जो मुझे अंदर ही अंदर भस्म किए जा रही थी.’’

कमजोर आवाज में बोलतेबोलते उन का लहजा जज्बाती हो गया, मगर उन्होंने जो कहा, उसे सुन कर मेरा वजूद जैसे भूडोल के घेरे में आ गया, ‘‘तुम्हें वह रात याद होगी, जब तुम भयभीत और उजड़ीउजड़ी सी दौड़ रही थीं और साहिली सड़़क पर एक गाड़ी के नीचे आतेआते बची थीं? फिर उस गाड़ी वाले ने तुम्हें तुम्हारे घर तक पहुंचाया था.’’

‘‘मगर… मगर आप को यह सब कैसे पता चला?’’

‘‘इसलिए कि वह शख्स मैं ही था,’’ उन्होंने ठहरेठहरे लहजे में कहा, ‘‘जब मैं ने तुम्हें अपनी दुलहन के रूप में देखा तो मत पूछो, मुझ पर क्या गुजरी थी. वह खयाल बारबार मुझे किसी नाग की तरह डसने लगा था कि मेरी बीवी शादी से पहले किसी दूसरे मर्द से मोहब्बत करती थी. क्यों, मैं ठीक कह रहा हूं न?’’ उन्होंने मेरी आंखों में झांका और मेरी निगाहें झुक गईं.

उन्होंने बात जारी रखी, ‘‘मगर मैं खुद को तसल्ली दे लिया करता था कि तुम ने उस का असली नफरत भरा रूप देख कर उसे अपने दिल से निकाल दिया होगा. फिर भी अपने दिल को न समझा सका. मैं तुम से मोहब्बत न कर सका.’’

बोलतेबोलते थक कर वह चुप हो गए. फिर शायद सो गए, मगर मुझे तकलीफों के एक नए भंवर में डाल दिया. उन्होंने मुझे वह सब याद दिला दिया, जो मैं भूल जाना चाहती थी. बेशक वह मेरे सब से बड़े मोहसिन थे. पहले उन्होंने मुझे उस रात घर पहुंचा कर रुसवाई से बचाया, फिर मुझ से शादी कर  के मुझे इज्जत बख्शी. फिर भी वह सब ख्वाबख्वाब सा था.

पूरे परिवार को लील गया सूदखोरों का आतंक

समस्तीपुर जिले में विद्यापति नगर थाना क्षेत्र के मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मनोज झा के परिवार में थोड़ी चहलपहल थी. कई दिनों बाद परिवार में खुशी का माहौल बना था. क्योंकि मनोज झा की 2 महीने पहले ब्याही गई बेटी निभा अपने पति आशीष के साथ मायके आई थी.

उन के लिए साधारण दिनों से अच्छा अलग खाना पकाया जाना था. शाम होने से पहले मनोज झा मछली ले कर आए थे. मछली देख कर उन की पत्नी सुंदरमणी देवी तुनकती हुई बोली, ‘‘ई मछली पकतई कैसे?’’

‘‘काहे की भेलई?’’ मनोज झा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘की भेलई! गैस सिलेंडर ले गेलई हरामजादा!’’ सुंदरमणी बोली.

‘‘के ले गेलई, अहां के बुझौव्वल काहे बुझाव छियय हो सत्यम के माई.’’ मनोज बोले.

‘‘अरे मनोज, हम बताव छियय. सहुकरवा के दूगो आदमी आइल छियय. खूब गोस्सा में गारीगलौज कैलकय. हम केतनो समझैलियय, लेकिन नय मानलौ औ सिलेंडर उठा के लो गेलौ.’’ मनोज झा की विधवा मां सीता देवी दुखी मन से बोलीं.

‘‘ओक्कर ई मजाल, किश्त के सूद लेवे के बाद ई हरकत कईलकय. अच्छा, कल्हे जा के ओकरा से फरिया लेव. लकड़ी पर पकावे के इंतजाम कअर्.’’ सुंदरमणी की ओर मुंह कर मनोज बोले.

अपने पिता, मां और बाबूजी की बातें निभा भी सुन रही थी. वह जानती थी कि उस के पिता पिछले 5 साल से कर्ज में डूबे हैं. कर्ज की किश्तें नहीं चुकाने के चलते घर की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई है. उन्होंने बड़ी दीदी किरण की शादी में जो कर्ज लिया था, वह अभी तक नहीं चुक पाया था. वह उदास मन से मछली का थैला ले कर आंगन में धोने चली गई.

निभा के दिमाग में अचानक किरण की शादी का वह दृश्य घूम गया. बारात आने वाली थी. सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन मनोज झा एक कोने में उदास बैठे थे. उन के सामने गांव का एक आदमी भी बैठा था. वह एकदम से झकाझक कुरता पायजामे में दबंग की तरह दिख रहा था.

उस ने पिता मनोज का हाथ पकड़ रखा था. निभा उन के लिए एक गिलास पानी और प्लेट में नाश्ता ले कर गई थी. दरअसल, वह संभ्रांत व्यक्ति चौधरी था. गांव का ही था और गांव में किसी की भी मदद के लिए तत्पर रहता था. राजनीति करता था. किसानों और छोटेछोटे काम करने वालों के लिए जरूरी पूंजी का कर्ज देता था.

निभा ने उसे बोलते हुए सुना, ‘‘देख मनोज, तेरा दुख मुझ से छिपा नहीं है. बाबूजी के कर्ज का तू मेरा कर्जदार है, वह आज नहीं तो कल चुका ही देगा. लेकिन शादीब्याह के मौके पर तुम्हें अकेला कैसे छोड़ सकता हूं….अरे मेरा भी फर्ज है कि नहीं. गांव की बेटी है. अच्छे से शादी संपन्न हो जानी चाहिए. बराती के स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. बाजाबत्ती के लिए हम ने इंतजाम कर दिया है. गांव वालों को भी लगना चाहिए कि ब्राह्मण परिवार की शादी है.’’

‘‘बाबूजी, ई नाश्ता और पानी,’’ निभा बोली.

‘‘हांहां, लाओ बेटी.’’ चौधरी हाथ बढ़ा कर निभा के हाथ से प्लेट लेते हुए बोला, ‘‘पानी यहीं नीचे रख दे. और तू जा! मम्मी दादी की मदद कर.’’

‘‘अरे निभा इतना धीमेधीमे क्यों साफ कर रही है, जरा तेजी से हाथ चला. अंधेरा होने से पहले मछली तल लेना है. लाइट भी कट गई है.’’ मम्मी की आवाज सुन कर पुरानी यादों में खोई निभा हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘हां मम्मी, अभी करती हूं.’’

‘‘क्या हुआ बेटी, लगता है तू कहीं खोई हुई थी,’’ मां सुंदरमणी बोली.

‘‘हां मम्मी, चौधरी का आदमी किस्त लेने आया था न?’’ निभा ने सवाल किया.

‘‘अरे बेटी तू क्यों इन बातों को याद करती हो… तू और दामादजी तो 1-2 दिन की हमारे मेहमान हो. अपने परिवार के बारे सोचो.’’ मां ने समझाया.

‘‘नहीं मां, बताओ न दीदी की शादी का कर्ज ही अभी तक चला आ रहा है न?’’ निभा ने जानने की जिद की.

‘‘क्या करोगी जान कर, वह एक कर्ज थोड़े है. कर्ज पर कर्ज लद चुका है. कोरोना में काम खत्म हो गया तो कर्ज और बढ़ गया. अब तो क्या बताऊं…’’ मां मायूस हो गई और आंचल के पल्लू से नम हो चुकी आंखें पोछती हुई चली गई.

आर्थिक तंगी से जूझते हुए एक परिवार की यह बात 5 जून, 2022 की है. उस परिवार के मुखिया 45 वर्षीय मनोज झा थे, लेकिन परिवार की सब से बड़ी सदस्या 66 वर्षीया सीता देवी थीं. उन के पति की साल भर पहले आकस्मिक मौत हो गई थी. बताते हैं कि वह भी कर्ज में डूबे थे और उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

परिवार के दूसरे सदस्यों में मनोज झा की 42 वर्षीया पत्नी सुंदरमणी के अलावा 2 बेटे सत्यम (8) और शिवम (7) थे. मनोज की दोनों बेटियों किरण और निभा की शादी हो चुकी थी और वे अपनीअपनी ससुराल में रह रही थीं. हालांकि दोनों बेटियां अपने मायके का हालसमाचार लेती रहती थीं और बीचबीच में उन से मिलने आतीजाती रहती थी.

इसी सिलसिले में निभा अपने पति के साथ मायके आई थी. उस के आने की सूचना मां ने फोन पर पति को देते हुए चावल और आटा लाने को भी कहा था. यह सब निभा ने भी सुन लिया था. मायके में अपने मातापिता, दादी, छोटेछोटे भाइयों की हालत देख कर उसे बहुत दुख हुआ था.

अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद मनोज झा अपने दामाद की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे. उन को स्पैशल खाना खिलाने के लिए मछली ले कर आए थे. घर के आंगन में मछली और चावल पकते हुए रात के करीब 9 बज गए थे. सीता देवी और सुंदरमणी को छोड़ कर सभी ने मछली भात खाया था. शिवम और सत्यम के लिए उस दिन का बेहद ही मजेदार खाना था, लेकिन रात को लालटेन की रोशनी में मछली खाने में उसे काफी समय लग गया था.

रात के साढ़े 10 बज चुके थे. छोटे से घर में सभी के लिए सोने का इंतजाम भी करना था. उस काम में निभा ने अपनी मां की मदद की. उस दिन गरमी अधिक थी. सोने के इंतजाम के तौर पर मनोज झा ने अपने छोटे बेटे को ले कर गेट पर अपना बिस्तर लगा लिया, जबकि सासबहू और सत्यम एक कमरे में चले गए. निभा ने अपने पति के साथ उस के ठीक बगल के कमरे में अपना बिछावन लगा ली.

अगले दिन निभा की नींद शोरगुल के साथ टूटी. सूरज निकल चुका था और बाहर गेट पर कई लोग उस के पापा को पुकार रहे थे. उन में एक आवाज उस के चचेरे भाई की भी थी. उस ने तुरंत अपने पति को जगाया और कमरे से बाहर आई. बाहर आते ही उस की नजर बगल के कमरे में खुले दरवाजे पर गई. उस के बाहर ही कुछ लोग खड़े थे. दरवाजे से उस के पिता, मां और दादी फंदे से झूलते दिख रहे थे. उन के बाद पीछे की ओर उस के दोनों भाई भी फंदे में लटके थे.

इस दृश्य को देख कर निभा वहीं धड़ाम से गिर पड़ी. उसे पति ने किसी तरह संभाला. उस समय सुबह के करीब 6 बज चुके थे. उस दृश्य को देख कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने कहा उन्हें मार कर फांसी पर लटका दिया गया है. तो कोई कहने लगा मनोज ने सभी को जहर दे कर मार डाला, फिर उन्हें फांसी पर लटका दिया होगा.

इस घटना ने दिल्ली में बुराड़ी की सामूहिक आत्महत्या की घटना की याद ताजा कर दी. घर और गांव में कोहराम मच गया. एक परिवार के सामूहिक मौत की खबर जंगल में आग की तरह पूरे गांव से हो कर जिला मुख्यालय तक जा पहुंची.

घटना की सूचना पा कर दलसिंह सराय के एसडीपीओ दिनेश पांडेय समेत विद्यापति नगर थाने की पुलिस पूरे फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गई. इसी बीच मनोज झा की बड़ी बेटी किरण और परिवार के दूसरे सदस्यों को इस की सूचना मिल गई. वे लोग भी तुरंत वहां पहुंच गए.

राजधानी पटना से फोरैंसिक विभाग की 5 सदस्यीय टीम भी पहुंच गई. सभी ने घटनास्थल का जायजा लिया. निरीक्षण के बाद टीम के सदस्यों ने शवों को फांसी के फंदे से उतार कर समस्तीपुर सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. इसी के साथ मनोज झा के घर को जांच के लिए सील कर दिया गया.

घटना के बाद से मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मीडिया, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं समेत गैर राजनीतिक संस्थाओं के लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया, जो कई दिनों तक जारी रहा. मनोज झा के परिजनों से उस रोज की पारिवारिक गतिविधियों के बारे में जुटाई गई जानकारी के मुताबिक सीता देवी ने एक दिन पहले ही अपनी बेटी यानी मनोज की बहन रीना झा से बात की थी. उन्होंने उस से अपने घर की माली हालत का दुख सुनाया था.

यहां तक कहा था कि सूदखोर घर का गैस सिलेंडर तक ले जा चुके हैं. गांव में रहने की इच्छा अब नहीं होती है. हर दूसरे दिन साहूकार का आदमी कर्ज की किश्त मांगने आ धमकता है. उसी दिन उन की बात पोती किरण से भी उस की ससुराल में हुई थी. गांव में सीता देवी सहायता समूह का संचालन करती थी. वह ‘जीविका दीदी’ का भी काम संभालती थी. जबकि मनोज खैनी की दुकान चला कर परिवार का पेट भरता था.

मनोज झा की एकलौती बहन रीना ने भी पुलिस को बताया कि उस के भाई मनोज ने लोन पर गाड़ी ले कर काम शुरू किया था, लेकिन लोगों ने उस गाड़ी को भी सही से चलने नहीं दिया. फिर उस ने गांव में ही छोटी सी खैनी की दुकान खोली थी. वह भी गांव के दबंगों ने बंद करवा दी थी. दबंगों द्वारा भतीजे को मारने की धमकी दी जाती थी. भाई ने अपनी बड़ी बेटी किरण कुमारी की शादी के लिए गांव के साहूकार से 3 लाख रुपए कर्ज लिया था. उस की शादी 28 जून, 2017 को धूमधाम से हुई थी.

साहूकार 5 वर्ष पहले लिए गए 3 लाख रुपए कर्ज का सूद सहित 17 लाख रुपए मांग रहा था, जिस से वह परेशान था. उस की किश्त चुकाता था, जिसे वह किश्त को सूद के रूप में रख लेता था और उस का कर्ज बढ़ता ही जा रहा था. किरण के पति गोविंद झा ने बताया कि साहूकार ने कई किश्तों में 3 लाख रुपए का कर्ज दिया था, जिस में कुछ पैसा उन के ससुर ने साहूकार को कई किश्तों में लौटाया भी था. इस की जानकारी डायरी में लिखी मिली है.

इस मामले के तूल पकड़ने पर घटना के दूसरे दिन राजग सरकार के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री एवं स्थानीय सांसद नित्यानंद राय पहुंचे. मृतक मनोज झा की बेटियों से मिले. उन्होंने उन से गुहार लगाई कि कर्ज देने वालों ने उन के जमीन के कागज ले लिए हैं. और अब उन्हें भी अपनी जान का खतरा लग रहा है.

मनोज झा की बेटी किरण ने बताया कि साहूकार के आतंक के चलते उस के दादा रतिकांत झा ने भी मौत को गले लगा लिया था. उन की मृत्यु 16 अगस्त, 2021 को हुई थी. लेकिन उस वक्त गांव वालों ने मामला सलटाने की बात कह कर चुप करा दिया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उन की मौत का कारण नहीं मालूम हो पाया था. सभी का मऊ गांव में ही प्रशासन की देखरेख में गंगा की सहायक नदी वाया के तट अखाड़ा घाट पर दाह संस्कार करवा दिया गया. इस मौके पर परिजनों, रिश्तेदारों व ग्रामीणों की मौजूदगी में सभी शवों की मुखाग्नि मनोज झा के छोटे दामाद पटना जिले के खुसरूपुर निवासी आशीष मिश्रा ने दी. इस मौके पर अंचलाधिकारी अजय कुमार व थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार सहित अन्य लोग मौजूद थे.

इस मामले को ले कर किरण ने विद्यापतिनगर थाने में एक रिपोर्ट लिखवाई, जिस में गांव के श्रवण झा, उस के बेटे मुकुंद कुमार झा और अर्जुन सिंह के बेटे बच्चा सिंह पर कर्ज का रुपया वापस करने के लिए हमेशा प्रताडि़त करने और घर में घुस कर हत्या करने का आरोप लगाया.

वहीं घटना के विभिन्न पहलुओं पर नजर रखते हुए पुलिस जांच में जुट गई थी. कथा लिखे जाने तक घटना में आरोपी बनाए गए श्रवण झा और उस के बेटे मुकुंद कुमार झा ने दलसिंहसराय कोर्ट में 14 जून को आत्मसमर्पण कर दिया था. जबकि बच्चा सिंह फरार था. थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार ने कहा कि पुलिस आगे की काररवाई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर करेगी. उन्होंने मनोज झा के खानदान में बची बेटियों की सुरक्षा का भी आश्वासन दिया.

तंत्र मंत्र: पैसों के लिए दी इंसानी बलि

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 5

अभी सड़क पर मैं ने कदम रखा ही था कि दाईं तरफ से एक तेज रोशनी मेरे करीब आ कर रुक गईं. फिर मैं ने आंसुओं से धुंधलाई हुई आंखों से एक शख्स को गाड़ी से उतर कर अपनी तरफ बढ़ते देखा. वह कोई मर्द था.

‘‘अंधी हैं आप? अभी मेरी गाड़ी के नीचे आ जातीं.’’ उस शख्स ने मेरे सामने आ कर गुस्से से कहा.

‘‘प्लीज, मुझे बचा लीजिए. मैं कुछ दरिंदों के चंगुल से निकल कर भागी हूं.’’ मैं ने रोते हुए कहा. वह गौर से मेरा जायजा ले रहा था.

‘‘रात को तनहा भटकने वाली लड़कियों के पीछे दरिंदे लग ही जाते हैं.’’ उस ने रुखाई से कहा. मैं फूटफूट कर रोने लगी.

वह शख्स बौखला गया, ‘‘मोहतरमा! खुदा के लिए चुप हो जाएं. अगर इस वक्त कोई यहां आ गया तो आप को यों रोती हुई और आप का हुलिया देख कर न जाने मेरे बारे में किस गलतफहमी में पड़ जाए.’’

तब मैं ने एक नजर खुद पर डाली. मेरे कपड़े कई जगह से फट गए थे. रेतमिट्टी से अटी हुई हालत बेहद खराब थी. मैं ने जल्दी से दुपट्टे को ठीक किया.

‘‘आप को कहां जाना है?’’ उस ने पूछा.

मैं ने बिना उस की ओर देखे उसे अपने इलाके का नाम बताया.

‘‘बैठिए.’’ उस ने एक गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘मगर…’’ मैं ने कहना चाहा.

‘‘अगरमगर कुछ नहीं. आप को मुझ पर भरोसा करना होगा, वरना मैं चलता हूं. आप किसी भरोसे वाले का इंतजार करें.’’ वह कुछ गुस्से से बोला, ‘‘मुमकिन है कि पीछे से वही बदमाश आ जाएं, जिन से बच कर आप भागी हैं.’’

वह सही कह रहा था. मैं डर कर जल्दी से गाड़ी में बैठ गई. उस ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. वह मेरे जानेपहचाने रास्ते पर सफर करती हुई मेरे इलाके में दाखिल हुई. मैं इशारे से उसे रास्ता बताती गई. मैं ने अपनी गली से कुछ पहले उतरना मुनासिब समझा. मेरे उतरते ही उस ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. तब मुझे खयाल आया कि अपने मोहसिन का नाम तक नहीं पूछा, यहां तक कि उस का चेहरा तक ठीक से न देख सकी थी.

खुदा ने मेरी इज्जत महफूज रखी थी, मगर मैं घर वालों की पूछताछ से किसी तरह नहीं बच सकती थी. उस समय रात के साढ़े 8 बज रहे थे और मैं कभी इतनी देर तक घर से गायब नहीं रही थी. बहरहाल, हिम्मत कर के घर की तरफ चल पड़ी. खुशकिस्मती से हमारी गली के सभी खंभों के बल्ब शरारती लड़कों ने तोड़ दिए थे. उस लमहे मुझे अंधेरा बहुत गनीमत लगा कि उस ने मेरे शिकस्ता वजूद को दूसरों की नजरों से आने से बचा लिया था.

अम्मी जैसे दरवाजे से लगी मेरे इंतजार में थीं. हल्की सी दस्तक के जवाब में फौरन दरवाजा खोल दिया. उन के चेहरे पर परेशानी जैसे जम कर रह गई थी. मुझे देखते ही उन की आंखों में खून उतर आया. इत्तेफाक से बाकी सब घर वाले टीवी लाउंज में बैठे प्रोग्राम देख रहे थे. मैं फौरी तौर पर अब्बू और भाइयों की नजरों में गिरने से बच गई थी. अम्मी एक शब्द बोले बगैर मुझे अंदर कमरे में ले गईं और दरवाजा बंद कर के दांत पीसती हुई धीरे से बोलीं, ‘‘कहां से आ रही है कमीनी?’’

जवाब में मैं ने हिचकियों के बीच पूरी कहानी सुनाई.

‘‘चुप कर जा जलील!’’ उन्होंने मुझे थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘मैं ने तेरे बापभाइयों से यह बात छिपाई है. और तू टेसुवे बहा कर उन्हें बताने जा रही है. जा, दफा हो जा. अपना हुलिया ठीक कर.’’

मैं ने गुसलखाने में जा कर नहाया और साफसुथरा जोड़ा पहन लिया. रात सब के सोने के बाद अम्मी मरहम ले कर मुझे लगाने लगीं. तब मैं उन से लिपट कर रोने लगी. मैं ने माफी मांगी तो वह दबी आवाज में बोलीं, ‘‘बेटी, मां तो औलाद की बड़ी से बड़ी गलती माफ कर देती है. मगर तूने मेरा ऐतबार खो दिया है.’’

उन की बात तल्ख सही, लेकिन सच थी. मैं ने जान निसार करने वाले मांबाप की मोहब्बत को नजरअंदाज कर के और एक बेहद गंदे शख्स पर ऐतबार कर के उन्हें धोखा दिया था. मुझे पता था कि अम्मी अब मुझ पर ऐतबार नहीं करेंगी. इसलिए कालेज जाने का खयाल तो मैं दिल से निकाल ही चुकी थी. इस के अलावा भी मैं ने घर से निकलना बंद कर दिया था.

राहेल के साथ संबंध उस दिन से खत्म हो गया था. मैं ने खुदा का शुक्र अदा किया कि राहेल के पास मेरा कोई खत या तसवीर नहीं थी, वरना उस जैसे कमीने का कोई भरोसा नहीं था कि वह मुझे ब्लैकमेल न करता. अब सारा दिन बोरियत से बचने के लिए मैं घर के कामों में खुद को व्यस्त रखने लगी. इस के अलावा कोर्स की किताबें मंगवा कर सेकेंड ईयर के इम्तिहान की तैयारी शुरू कर दी.

अम्मी मेरे इस बदलाव से बहुत खुश थीं. वह मुझे सारे घरेलू मामलों में माहिर करना चाहती थीं. हमेशा मुझे कुछ न कुछ सिखाने की केशिश करती रहतीं. मैं भी मेहनत कर रही थी.  मैं ने इंटर का इम्तिहान आसानी से पास कर लिया. अम्मी मुझे इम्तिहान दिलाने ले जाया करती थीं.

एक साल गुजरने के बावजूद अम्मी की बेऐतबारी पहले दिन की ही तरह कायम रही. उन की आंखों में लहराते शक के नाग जैसे हर लमहे मुझे डसते रहते थे. अब वह बड़ी सरगर्मी से मेरे लिए आए हुए रिश्तों की छानबीन में लगी थीं. मुझे मर्द के नाम से वहशत होती थी, मगर मैं अम्मी के आगे मजबूर थी. उन्हीं रिश्तों में सुलतान अहमद का रिश्ता भी था. वह हुकूमत में एक अच्छे ओहदे पर लगे हुए थे. खानदानी थे और हमारी बिरादरी से ताल्लुक रखते थे. मतलब यह कि वह हर दृष्टि से मेरे लिए मुनासिब थे.

अम्मी ने अब्बू और बहनों की रजामंदी पा कर सुलतान अहमद के घर वालों को हां कर दी. मेरी ससुराल वालों को शादी की जल्दी थी. अम्मी को भी कोई ऐतराज नहीं था. उन्होंने अच्छीखासी तैयारी पहले ही कर रखी थी. तारीख तय होते ही घर में चहलपहल शुरू हो गई.

एक दिन बड़ी आपा ने मुझे एक लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘दूल्हे मियां की तसवीर देख ले. बाद में हम से कुछ न कहना.’’

मैं ने लिफाफा ले कर बेजारी से एक तरफ डाल दिया कि देख लूंगी. अब जब शादी में चंद रोज बाकी रह गए तो मुझे दूल्हे की तसवीर दिखाने का खयाल आ रहा था. अपनी इस बेकद्री पर मैं खून के आंसू बहा कर रह गई. कहां वह कि मेरी छोटी सी छोटी चीज भी मेरी मरजी के बगैर नहीं पसंद की जाती थी, कहां यह सितम कि जिंदगी भर का साथी बगैर मुझ से पूछे, मेरी मरजी जाने चुन लिया गया था. अपनी इस हद तक बेकद्री की सारी जिम्मेदारी भी मुझ पर आयद होती थी.

                                                                                                                                               क्रमशः

अमीर बनने की चाहत – भाग 4

29 नवंबर को रविवार था. जयकरन को मैच खेलने जरूर आना था. इसी दिन उन्होंने जयकरन का अपहरण करने का फैसला कर लिया. उन्होंने सोच लिया कि जयकरन को वे अपने किड्स स्कूल के क्वार्टर में ही ले जाएंगे. उस दिन किड्स स्कूल भी बंद था, इसलिए जयकरन को उन्होंने वहां रखने की सोची. रोजाना की भांति वे जयकरन से मिले. जयकरन दोपहर में क्रिकेट खेल कर घर जाने लगा तो दीपक ने उसे अपने पास बुलाया, “जयकरन, आओ हमारे साथ. अभी 20 मिनट में वापस आते हैं.”

“कहां जा रहे हो भैया?”

“अभी थोड़ा घूम कर आते हैं. हमें किसी से पैसे लेने हैं. साथ ही घूमना भी हो जाएगा. आज तो वैसे भी संडे है. तुम भी फ्री हो.” संदीप ने बात घुमाते हुए कहा.

जयकरन उन पर भरोसा करता था. वैसे भी वह बच्चा था. आने वाले खतरे से अनजान जयकरन उन के साथ कार में बैठ गया. इत्तफाक से उन्हें किसी ने नहीं देखा. दीपक उसे ले कर सीधे स्कूल के अंदर क्वार्टर पर पहुंचा. कमरे में पहुंचते ही दीपक व संदीप अपनी असलियत पर आ गए.

जयकरन को दहशतजदा करने के लिए उन्होंने उसे पीटना शुरू कर दिया और उसे बता दिया कि पैसे के लिए उन्होंने उस का अपहरण किया है. जयकरन ‘भैया…भैया’ करता रहा, लेकिन उन्होंने डरेसहमे जयकरन के हाथपैर बांध दिए. उस का मोबाइल छीन कर उन्होंने स्विच्ड औफ कर दिया. अनीता घर पहुंची तो यह देख कर उन्होंने विरोध किया.

तब दीपक मां से दुव्र्यवहार पर उतर आया, “इस मामले में बहस मत करो मां, वरना इस के साथ तुम्हें भी गोली मार दूंगा. मैं यह सब करने के लिए मजबूर हूं. बस तुम लोग एक 2 दिन चुपचाप रहो.”

बेटे के इस रवैए से अनीता भी घबरा गई. दीपक ने सब से छोटे भाई आयुष को डरधमका दिया. जयकरन को घर में छोड़ कर दोनों सोसाइटी चले गए. वहां जयकरन की ढूंढ़ मची तो वे भी ङ्क्षचतित हो कर उसे खोजने का ढोंग करने लगे. उधर रात में बिट्टू ने जयकरन को खाना खिलाया. जयकरन का मन तो नहीं था, लेकिन डर की वजह से उस ने खाना खा लिया.

अगली सुबह संदीप व दीपक स्कूल स्थित घर आ गए. दीपक ने जयकरन को धमकाते हुए समझाया, “एकदो दिन में हम तुम्हारी बात तुम्हारे पापा से कराएंगे.”

“ज…ज…जी भैया.” दहशत में आए जयकरन ने डर से हां में हां मिलाई.

“पता है क्या कहोगे?ï” दीपक ने पूछा तो जयकरन ने इनकार में गरदन हिलाई. इस पर दीपक ने उसे समझाया, “तुम कहना कि पापा अगर तुम मुझ से प्यार करते हो तो इन लोगों को 2 करोड़ रुपए दे दो, वरना ये लोग मुझे मार डालेंगे.”

“भैया, जैसा आप कहोगे, मैं वैसा ही कह दूंगा.” जयकरन ने डर कर जवाब दिया.

उस दिन सोमवार था. स्कूल भी खुलना था. जयकरन शोर न मचाए, इस के लिए दीपक ने नाश्ता करा कर उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. यह इंजेक्शन दीपक ने अपने एक दोस्त के माध्यम से 500 रुपए में खरीदा था. पुलिस मोबाइल के जरिए उन्हें पकड़ न सके, इसलिए उन्होंने अपने मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया.

बिट्टू को फिरौती के लिए फोन करने के लिए जयकरन का मोबाइल ले कर 15 किलोमीटर दूर भेजा गया. वहां से 2 करोड़ की फिरौती का फोन कर के वह वापस आ गया. बिट्टू से फोन कराना इसलिए जरूरी था, क्योंकि जयकरन के घर वाले दीपक व संदीप की आवाज पहचानते थे. तीनों ने तय कर लिया था कि उन्होंने फिरौती की रकम की शुरुआत 2 करोड़ से की है तो सौदेबाजी होने पर करोड़ तो मिल ही जाएंगे.

इस से भी ज्यादा खतरनाक योजना उन्होंने यह बनाई कि रकम मिलते ही वे जयकरन की हत्या के बाद लाश को हरिद्वार ले जा कर ठिकाने लगा देंगे. जयकरन चूंकि उन्हें पहचानता था, इसलिए उसे जिन्दा छोडऩा उन के लिए खतरनाक था. हरिद्वार में दीपक का एक चाचा रहता था. दीपक ने उसे भी फोन कर के इशारों से अपनी बात समझा दी थी.

रकम मिलने तक वह जयकरन को इसलिए जिन्दा रखना चाहते थे, ताकि विश्वास दिलाने के लिए उस के घर वालों से उस की बात कराई जा सके. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि यदि रकम नहीं मिली तो भी जयकरन को मार देंगे. दोनों ही सूरतों में जयकरन का मरना तय था.

उधर फिरौती का फोन पहुंचते ही सोसायटी में पुलिस की गतिविधियां बढ़ गईं. शाम तक उन्होंने मौके की नजाकत परखने का निर्णय लिया. उन्हें दोबारा शाम को फोन करना था, इसलिए इंतजार करने लगे. इन लोगों ने अपनेअपने मोबाइल औफ कर लिए थे. उन्हें उम्मीद थी कि पुलिस जयकरन का मोबाइल दूसरी जगह इस्तेमाल करने की वजह से धोखा खा कर दिशा भटक जाएगी, लेकिन उन तक नहीं पहुंच पाएगी, यह उन की अपनी सोच थी. शक की बिनाह पर वह शिकंजे में आ गए.

उधर पूछताछ के बाद स्कूल संचालिका व आरोपियों की मां को छोड़ दिया गया. स्कूल में क्या कुछ चल रहा था, रिचा सूद वाकई इस से पूरी तरह अंजान थीं. पुलिस ने अपहरण में प्रयुक्त कार भी बरामद कर ली. अगले दिन यानी 1 दिसंबर को प्राथमिक उपचार के बाद पुलिस ने संदीप को डिस्चार्ज करा लिया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अपने से बड़ी उम्र के युवकों से दोस्ती करने की आदत ही जयकरन को भारी पड़ गई थी. वहीं दीपक, संदीप व बिट्टू ने राह से भटकने के बजाय मेहनत की राह अपना कर जिंदगी को संवारने की कोशिश की होती तो उन का भविष्य चौपट होने से बच जाता.

कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी जेल में थे और उन की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस दीपक के चाचा की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित