पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 4

रात आधी से ज्यादा गुजर गई थी. इंस्पेक्टर अनिल कार्तिकेय आरामकुर्सी पर जरूर बैठे थे, किंतु उन की आंखों में नींद नहीं थी. त्रिलोचन की हिदायत के अनुसार उन्होंने रजत के कमरे के बाहर 2 सिपाहियों को पहरे पर लगा दिया था और स्वयं भी उस कमरे के दरवाजे पर निगाहें जमाए हुए थे. कमरे के अंदर जीरो पावर के बल्ब की रोशनी थी. कमरे में लेटे रजत और सुकुमार सो चुके थे.

अचानक ही कमरे के अंदर से किसी की चीख उभरी. अनिल उछल कर कमरे की ओर भागे. दोनों सिपाही भी हड़बड़ा कर अंदर की ओर दौड़े. एक सिपाही ने लाइट जला दी. अंदर लोमहर्षक दृश्य था. रजत सफेद चादर ओढ़े करवट के बल लेटा था, उस की पीठ में चाकू घुसा हुआ था.

‘‘रजत…’’ इंसपेक्टर की लगभग चीत्कार सी निकल गई.

‘‘मैं यहां हूं अंकल…’’ दूसरे पलंग से दबीदबी सी आवाज सुनाई दी. अनिल ने देखा चादर के नीचे दुबका रजत सहमी हुई आंखों से उन की ओर ही ताक रहा था.

‘‘माइ गौड, तो क्या यह सुकुमार है?’’ अनिल के मुंह से निकला.

तभी बाहर गोली चलने के साथ ही 2 आदमियों के दौड़ने की पदचाप सुनाई दी. त्रिलोचन हांफते हुए अंदर दाखिल हुए.

‘‘गजब हो गया चाचाजी,’’ अनिल की असहज आवाज उभरी, ‘‘किसी ने सुकुमार को…’’

‘‘सुकुमार को?’’ त्रिलोचन के मुंह से हैरत से निकला. वह सुकुमार की नब्ज टटोलते हुए बोले, ‘‘इंस्पेक्टर, जल्दी करो. इसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना होगा.’’

आननफानन में सुकुमार को अस्पताल पहुंचा दिया गया. सुखनई के जंगल में भीड़ जमा थी. त्रिलोचन के साथ कुछ पुलिस वाले और एक क्रेन थी.

‘‘इंस्पेक्टर साहब,’’ त्रिलोचन ने अनिल को संबोधित किया, ‘‘आप की ड्यूटी क्रेन ड्राइवर के बगल में रहेगी. जैसे ही आप का मोबाइल बजे, आप क्रेन को ऊपर खींचने का इशारा कर दीजिएगा.’’

‘‘आप खतरा क्यों मोल ले रहे हैं चाचाजी? आप कहें तो किसी सिपाही को खाई में उतार देता हूं.’’

‘‘धन्यवाद, मैं यह काम खुद करना चाहता हूं. और नीरव, जब तुम्हारा मोबाइल बजे तो समझना कि क्रेन को रोकना है, विप्लव के मोबाइल के बजने का मतलब होगा कि क्रेन को नीचे जाना है.’’ त्रिलोचन ने दोनों बेटों के ऊपर गहरी नजर डाली. इस के बाद उन्होंने मास्क पहना और क्रेन की रस्सी के सहारे सुखनई नदी के कगार पर उगे घने जंगल के अंदर झूल गए.

कगार की दीवार पर लंबवत उगे पेड़ पतले लेकिन काफी घने थे. त्रिलोचन कुछ ही देर में उस अबूझ खाई में अदृश्य हो गए. अनिल का मोबाइल बजा और त्रिलोचन को धीरेधीरे ऊपर खींचा गया. लोगों की नजर उन पर पड़ी तो रोंगटे खड़े हो गए. त्रिलोचन के हाथों में एक कंकाल था.

कंकाल पर चिथड़ा चिथड़ा कपड़े झूल रहे थे. आंखों की जगह 2 गड्ढे नजर आ रहे थे. बड़ा ही भयावह दृश्य था.

दूसरे दिन सारे लोग हाल में जमा थे, त्रिलोचन अंदर आए तो सब की नजरें उन की ओर उठ गईं, उन्होंने बड़ा सा एक काला बैग थाम रखा था. त्रिलोचन ने वहां मौजूद लोगों के सामने अपना स्थान ग्रहण किया ही था कि उन्हें धुरंधर और उन की पत्नी सुखदेवी ने आ घेरा, ‘‘त्रिलोचनजी, हमारा बेटा कैसा है? कहां है वह उसे किस अस्पताल में रखा गया है?’’

त्रिलोचन ने एक पर्ची पर कुछ लिख कर सुखदेवी को थमा दी. पतिपत्नी ने पर्ची पर नजर डाली, फिर नासमझों की तरह अपनी जगह पर जा बैठे.

‘‘लेडीज ऐंड जेटलमेन,’’ त्रिलोचन उठ कर खड़े होते हुए बोले, ‘‘आज सच्चाई सब के सामने आ जाएगी. मयंक की हत्या हुई थी या उस की मौत एक हादसा थी, इस रहस्य पर से परदा उठने वाला है,’’ तभी एक व्यक्ति हाल में दाखिल हुआ.

‘‘मेजर चौहान, आप आगे आ जाइए.’’ त्रिलोचन का इशारा पा कर मेजर चौहान अगली पंक्ति में जा बैठे. वह वहां मौजूद ज्यादातर लोगों के लिए अपरिचित थे, पर उन्हें देख कर सुभाषिनी के चेहरे का रंग उड़ गया था.

‘‘जस दिन मयंक की मौत हुई, उस शाम को एक शिकार पार्टी सुखनई के जंगल में आदमखोर तेंदुए को मारने के लिए पहुंची थी.’’ त्रिलोचन ने कहना शुरू किया, ‘‘जहां मचान बनाए गए थे, वहां पर ज्यादातर पतले पेड़ थे, अत: एक पेड़ पर एक आदमी के बैठने के लिए मचान बनाया गया था. बलराम तोमर और उन की पत्नी सुभाषिनी के मचान पासपास के पेड़ों पर थे, उन से कुछ दूरी पर लगभग उसी स्थिति में मयंक और सुरबाला के मचान थे. धुरंधर तोमर का मचान मयंक के बाईं ओर वहां से लगभग 20 फुट दूर था.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘बलराम तोमर के पास मैनलिकर सूनर राइफल थी, धुरंधरजी चेक राइफल से लैस थे, मयंक डी.बी. गन लिए था और सुभाषिनीजी के पास माउजर व सुरबाला के पास प्वाइंट 32 बोर का रिवाल्वर था. ये इन लोगों के पारिवारिक हथियार थे.’’

त्रिलोचन ने सामने बैठे बलराम तोमर से पूछा, ‘‘मैं ने ठीक कहा न तोमर साहब?’’

‘‘बिलकुल ठीक.’’ तोमर साहब ने सहमति व्यक्त की.

‘‘शिकारियों की इस टोली के अलावा वहां एक और शिकारी मौजूद था.’’ यह  कहते हुए त्रिलोचन की नजर मेजर चौहान के ऊपर जा ठहरी, ‘‘एम आई राइट मेजर?’’

मेजर की निगाहें झुक गईं. त्रिलोचन आगे बोले, ‘‘मेजर ने अपनी जीप जंगल में काफी पीछे छोड़ दी थी और वहां से पैदल चलते हुए घटनास्थल पर पहुंच गए थे. इस के बाद यह मचानों से कुछ दूरी पर मौजूद एक झुरमुट में छिप कर अंधेरा होने का इंतजार करने लगे.’’

‘‘आप ने काफी हिम्मत दिखाई थी मेजर, आप झाडि़यों में छिप कर आदमखोर का इंतजार कर रहे थे?’’ अनिल के स्वर में तारीफ थी.

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब,’’ उस ने अनिल की ओर गर्दन घुमाई, ‘‘मेजर वहां तेंदुए का नहीं, एक इंसान का शिकार करने पहुंचे थे.’’

त्रिलोचन की बात सुन कर हाल में मौजूद हर शख्स चौंक गया.

‘‘यह किस की हत्या करना चाहते थे डैड?’’ विप्लव ने पूछा.

‘‘अपनी पूर्व पत्नी सुभाषिनी की.’’

लोग हैरान थे. सुरबाला की समझ में कुछ नहीं आया. वह बुदबुदाई, ‘‘अम्मा और इन की पूर्व पत्नी…?’’

‘‘मैं स्पष्ट करता हूं.’’ त्रिलोचन ने कहा, ‘‘सुभाषिनी की पहली शादी मेजर चौहान से हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद मेजर को कश्मीर जाने का अर्जेंट आदेश मिला. फलस्वरूप इन्हें कश्मीर में अपनी नई तैनाती पर जाना पड़ा. वहां शत्रु सेना बारबार घुसपैठ करने की कोशिश कर रही थी. इन्हें वहां गए कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन अचानक इन की चौकी पर हमला हुआ. मेजर के कई साथी शहीद हो गए. दुश्मन मेजर को जबरन बंधक बना कर अपने साथ ले गए.’’

हाल में एकदम सन्नाटा छा गया. त्रिलोचन पलभर रुक कर आगे बोले, ‘‘मेजर के लापता होने की खबर पा कर सुभाषिनी बेहाल हो गईं. सब से बड़ा झटका इन के मांबाप को लगा. मेजर के जिंदा होने की संभावना न के बराबर थी. इधर एक दूसरी समस्या उठ खड़ी हुई थी, अत: सुभाषिनी के मातापिता को उन के पुनर्विवाह का निर्णय लेना पड़ा.’’

त्रिलोचन सुभाषिनी पर एक नजर डाल कर आगे बोले, ‘‘फिर सुभाषिनी की बलराम तोमर से शादी कर दी गई, तोमर साहब विधुर थे. शादी के 2-3 हफ्ते बाद तोमर साहब को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा, वहां इन के चाचाजी गुजर गए थे और उन्हें उन की जमीन जायदाद का प्रबंध करना था.’’ तोमर साहब एकटक उन्हीं की ओर देख रहे थे.

त्रिलोचन ने पूछा.  ‘‘आप कुछ कहना चाहते हैं?’’

‘‘आप की जानकारी जबरदस्त है.’’

‘‘धन्यवाद, हां तो, मैं बता रहा था कि तोमर साहब को विदेश में कई महीने गुजारने पड़े. जब मयंक का जन्म हुआ और सुभाषिनी जी ने फोन पर उन्हें खबर दी तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. वह लौट आए.’’

त्रिलोचन ने बैग से एक पुरानी पत्रिका निकाली. उन्होंने देखा, विप्लव आतुरता से उन की ओर देख रहा था. उन्होंने पूछा, ‘‘हां, बोलो विप्लव.’’

‘‘डैड, मेरी पड़ताल से साबित हुआ है कि धुरंधर और सुभाषिनी कालेज में सहपाठी थे और दोनों के बीच रोमानी रिश्ते थे और बाद में भी…’’ वह कुछ कहतेकहते रुक गया.

सुभाषिनी का चेहरा रंगहीन हो गया और धुरंधर तोमर दांत पीसते हुए उठ खड़े हुए.

‘‘विप्लव, डोंट जंप टू द कन्क्लूजन. मेरी नजर में ये दोनों पाक दामन हैं.’’ त्रिलोचन के इस कथन का धुरंधर पर खासा असर हुआ और वह शांत हो कर अपनी कुर्सी पर बैठ गए.

‘‘मेरी बात अधूरी रह गई थी, मैं आप को बताना चाहता हूं कि कुछ समय बाद मेजर चौहान दुश्मन की गिरफ्त से छूट आए थे. लेकिन जब तक वह आए तब तक सुभाषिनी और तोमर साहब की शादी हो चुकी थी. इस का नतीजा यह निकला कि मेजर चौहान ने सुभाषिनी को बेवफा समझा, क्योंकि इन्होंने मेजर का इंतजार नहीं किया था और गर्भवती होने की वजह से दूसरी शादी के लिए राजी हो गई थीं. हालांकि ऐसा इन्होंने मजबूरी में किया था, लेकिन मेजर की नजरों में यह कुसूरवार थीं. इसलिए इन्होंने अपनी पूर्व पत्नी से बदला लेने का फैसला कर लिया.

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 3

उस हादसे को कई साल बीत गए थे. लेकिन आज अचानक रजत के रूप में मयंक सुरबाला के सामने आ गया था. सुरबाला अभी पुरानी यादों से उबर भी नहीं पाई थी कि उस का मोबाइल बज उठा. उस ने उठने की कोशिश करते हुए मोबाइल कान से लगाया.

‘‘सुरबालाजी,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘त्रिलोचन बोल रहा हूं, आप सुन रही हैं न?’’

‘‘जी, जी हां.’’

‘‘आप की जान को खतरा है. अपने कमरे के दरवाजे और खिड़कियां ठीक से बंद कर लीजिए और बाहर मत निकलिएगा.’’ इस के साथ ही संपर्क टूट गया. सुरबाला चेतावनी को ठीक से समझ भी नहीं पाई थी कि उस ने किसी को अंदर आते देखा. उस काली छाया के हाथ में हथियार जैसी कोई चीज मौजूद थी. सुरबाला भयभीत हो कर जोर से चीखी और गिरती पड़ती दूसरे दरवाजे से निकल कर सीढि़यों की ओर भागी. छाया हथियार ताने हुए उस के पीछे झपटी. लेकिन सास के कमरे में चली जाने की वजह से वह बच गई.

त्रिलोचन के 2 बेटे थे, नीरव और विप्लव. उन्होंने उन दोनों को अपने जासूसी के पेशे से जोड़ रखा था. विप्लव और नीरव अपनेअपने तरीके से पिता की मदद करते थे.

नीरव ने अपने सामने बैठे व्यक्ति का गौर से मुआयना किया और अपने शब्दों पर जोर देते हुए बोला, ‘‘मेजर चौहान, आप उस रात कहां थे जिस समय मयंक की हत्या हुई थी?’’

‘‘अपने घर पर, और कहां?’’

‘‘लेकिन हमारी तफ्तीश बताती है कि आप उस रात सुखनई के जंगल में मौजूद थे…’’ नीरव ने देखा, चौहान चौंक गए थे. नीरव ने बिना मौका दिए अगला सवाल दाग दिया, ‘‘क्या करने गए थे वहां?’’

‘‘शिकार…’’

‘‘जानवर का या इंसान का?’’

‘‘व्हाट डू यू मीन?’’ मेजर तैश में आ कर चिल्ला पड़े, ‘‘ठीक है, आप जासूस हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप मेरे ऊपर कोई भी आरोप लगा दें.’’

नीरव पर उन के चिल्लाने का कोई असर नहीं पड़ा. उस ने अपने बैग में हाथ डाल कर एक रिवाल्वर निकाली और सामने पड़ी मेज पर रख दी. रिवाल्वर बुरी तरह जंग लगी हुई थी. उसे देख मेजर के चेहरे पर विचित्र भाव उभर आए.

‘‘यह हथियार हमें उसी जंगल में मिला है और मुझे यकीन है कि यह आप का वही लाइसेंसी रिवाल्वर है, जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट आप ने जीतपुर थाने में दर्ज कराई थी. इस के चैंबर में अभी भी 2 खाली कारतूस मौजूद हैं. निस्संदेह आप को इस बात की जानकारी होगी कि उस रात उस जंगल में एक इंसान की जान चली गई थी.’’

मेजर के चेहरे का रंग उड़ गया, वह कुर्सी पर गिर से पड़े. नीरव ने उन से पूछताछ जारी रखी.

बरामदे में बैठे चाय पी रहे त्रिलोचन सामने बैठी पत्नी से पूछा, ‘‘विप्लव कहां है?’’

‘‘साहबजादे सो रहे हैं.’’

‘‘आप उसे बिगाड़ रही हैं, यह कोई सोने का वक्त है?’’ त्रिलोचन को गुस्सा आ गया. वह चाय का प्याला थामे विप्लव के कमरे में जा पहुंचे. उन्होंने झटके से बेटे के ऊपर से चादर खींच ली. उसी वक्त गर्म चाय की कुछ बूंदें छलक कर विप्लव की पीठ पर गिर गईं.

‘‘आ…’’ विप्लव बौखला कर उठ बैठा और अपनी पीठ सहलाने लगा.

‘‘मैं ने तुम्हें एक काम दिया था?’’

‘‘डैड, आज आप का काम हो जाएगा. लेकिन रिमाइंड करवाने का आप का यह तरीका कुछकुछ पुलिसवालों की थर्ड डिग्री जैसा है. प्लीज, आगे से ऐसा मत करिएगा.’’

त्रिलोचन मुसकुराते हुए बाहर निकल गए. चाय का प्याला उन्होंने मेज पर रखा और अपना बैग ले कर चले गए. उन का रुख बर्नेट अस्पताल की ओर था. अस्पताल में त्रिलोचन को अपने टारगेट तक पहुंचने में देर नहीं लगी.

‘‘बड़े मियां, मैं ने सुना है कि आप शायरी बहुत अच्छी करते हैं.’’ त्रिलोचन ने बर्नेट अस्पताल के उस बूढ़े क्लर्क की तारीफ की. साथ ही वह बारीकी से उस रजिस्टर के पन्ने भी निहार रहे थे, जिस के आधे से ज्यादा पृष्ठ जर्जर हो गए थे.

‘‘अमां लानत भेजिए हुजूर.’’ वह रद्दी की टोकरी में पीक थूकता हुआ बोला, ‘‘कम्बख्त यह भी कोई करने लायक काम है.’’

त्रिलोचन समझ गए कि जश्न अली बहुत काइयां है और उन के ऊपर निगाह जमाए हुए है. उस के रहते कुछ संभव नहीं होगा.

‘‘मुआफ करिएगा, एक जरूरी फोन आ रहा है.’’ त्रिलोचन मोबाइल कान से लगाते हुए बाहर निकल गए. बाहर आ कर उन्होंने अपने घर का नंबर डायल किया. मिनट भर बाद शैलजा ने फोन उठाया तो वह धीरे से बोले, ‘‘एक लैंडलाइन नंबर लिख लो और इस नंबर पर फोन कर के फोन उठाने वाले को कुछ देर उलझाए रखो.’’

पलभर बाद ही अंदर के कमरे में रखा टेलीफोन बज उठा. घंटी की आवाज सुन कर जश्न अली बुदबुदाया, ‘‘लीजिए, यह कम्बख्त भी घनघनाने लगा.’’

त्रिलोचन इसी मौके की ताक में थे, उन्होंने साथ लाए कैमरे से उस खास पेज का फोटो ले लिया.

विप्लव धुरंधर के सामने बैठा था. धुरंधर के चेहरे पर नागवारी के भाव थे. उन्होंने विप्लव को घूर कर देखा और नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘आप का पूरा परिवार ही हमारे पीछे पड़ गया है. पहले आप के पिताजी ने अच्छीखासी नौटंकी की, अब आप आ गए.’’

‘‘नौटंकी कौन कर रहा है, यह जल्दी ही पता चल जाएगा. फिलहाल तो यह बताइए कि आप अपनी भाभी सुभाषिनीजी को कब से जानते हैं?’’

‘‘जब से बड़े भैया से उन की शादी हुई.’’ धुरंधर ने बेलाग जवाब दिया.

‘‘पक्का?’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं कहना यह चाहता हूं…’’ विप्लव ने धुरंधर के चेहरे पर नजर जमा दी, ‘‘कि आप दोनों उस से भी काफी पहले से एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘यह आप के दिमाग की उपज है?’’

‘‘नहीं जी, मेरा दिमाग इतना उपजाऊ कहां है. यह तो लखनऊ के उस कालेज की पत्रिका की उपज है, जहां आप दोनों साथसाथ पढ़ते थे.’’ विप्लव ने हाथ में थामी हुई पत्रिका खोल कर धुरंधर के आगे रख दी. बीच के पन्ने पर एक समूह फोटो छपी थी, जिस में सुभाषिनी और धुरंधर पासपास खड़े थे. फोटो देख कर धुरंधर की निगाह झुक गई. विप्लव ने धुरंधर से कई बातें पूछीं और लौट आया.

हफ्ता भर बाद बलराम तोमर ने अपने हवेलीनुमा घर में शानदार दावत का आयोजन किया. जिस बड़े हाल में आयोजन था, उस के बीचोबीच एक बड़ा सा बैनर लगा था, जिस में लिखा था, ‘मयंक तुम्हारे आने की खुशी में आज पूरा घर खुश है.’

रजत अपने मातापिता के साथ बैठा मुसकरा रहा था. उस ने धुरंधर के बेटे सुकुमार से दोस्ती कर ली थी और उस से बतिया रहा था. सुरबाला की नजर त्रिलोचन पर पड़ी तो वह तुरंत उन के पास आ पहुंची. उस के हाथ में प्लास्टर बंधा हुआ था.

‘‘उस दिन आप की मेहरबानी से बच गई, सीढि़यों से गिरने पर हाथ जरूर टूटा गया, लेकिन जान…’’

‘‘खतरा अभी टला नहीं है.’’ त्रिलोचन के स्वर में उस के लिए चेतावनी थी.

‘‘मैं उस दिन से सासू मां के साथ ही सोती हूं.’’

रात के 10 बजतेबजते खानापीना खत्म हो गया.

‘‘आज सब को यहीं विश्राम करना है.’’ बलराम तोमर ने मेहमानों से कहा तो त्रिलोचन बोले, ‘‘हम आप से माफी चाहते हैं, एक जरूरी काम है, जिसे रात में खत्म करना है, वरना हम ठहर जाते.’’

त्रिलोचन ने तोमर साहब से अनुमति ली तो नीरव और विप्लव भी उठ खड़े हुए.

‘‘और हां, आप सब के लिए एक आवश्यक सूचना है.’’ त्रिलोचन ने पलटते हुए घोषणा की, ‘‘रजत को अपने पिछले जन्म की वे तमाम बातें भी याद आ गई हैं, जिन पर अभी तक परदा पड़ा हुआ था. इस सब पर हम कल चर्चा करेंगे. मेहरबानी कर के इस बारे में रजत को अभी तंग न करें.’’

त्रिलोचन अपने दोनों बेटों विप्लव और नीरव के साथ चले गए.

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 2

आगे वाली गाड़ी से रजत, उस के मातापिता तथा त्रिलोचन के उतरते ही पत्रकारों और टीवी चैनलों के रिपोर्टरों ने घेर लिया. रजत को देखने वालों की भीड़ पत्रकारों से ज्यादा बेताब थी तभी पुलिस की जीप आ पहुंची. जीप के रुकते ही कई सिपाही फुर्ती से उतरे और लोगों को धकियाते हुए रास्ता बनाने लगे.

‘‘चाचाजी, मुझे माफ करिएगा.’’ इंसपेक्टर अनिल ने आगे बढ़ कर त्रिलोचन का रास्ता लगभग रोकते हुए कहा, ‘‘मैं आप को यह सब नहीं करने दूंगा.’’

‘‘क्या नहीं करने देंगे इंस्पेक्टर साहब?’’ त्रिलोचन ने हैरानी से पूछा.

‘‘इस तरह से किसी के घर में घुसना गलत है, अतिक्रमण है यह…’’

‘‘इन लोगों को गिरफ्तार कर लीजिए दरोगाजी, ये हमारे खिलाफ साजिश करने आए हैं…’’ अचानक एक तेज आवाज गूंज उठी. त्रिलोचन ने मुड़ कर देखा, सफेद कुर्ता धोती पहने ऊंचातगड़ा एक आदमी भीड़ को चीर कर उन के सामने आ खड़ा हुआ. उस ने कंधे पर दोनाली बंदूक टांग रखी थी. त्रिलोचन और अनिल कुछ कहने ही वाले थे कि रजत अपनी मां से हाथ छुड़ा कर दौड़ा और उस व्यक्ति से जा कर लिपट गया.

‘‘चाचा, मैं आ गया…’’ रजत की आवाज में खुशी उमड़ी पड़ रही थी. वह व्यक्ति कुछ कहता या पूछता, इस के पहले ही रजत अपने मातापिता से मुखातिब हुआ, ‘‘मम्मी… पापा… ये मेरे चाचा हैं. धुरंधर चाचा.’’

धुरंधर तोमर के चेहरे पर हैरानगी उभर आई. वह चाह कर भी बच्चे को झिड़क नहीं सके.

‘‘आप ने इस बच्चे को आज से पहले कभी देखा है?’’ इंसपेक्टर अनिल ने पूछा.

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’ धुरंधर के मुंह से निकला.

‘‘इस के मांबाप को जानते हैं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर यह आप को कैसे जानता है?’’ धुरंधर कुछ कह पाते, इस के पहले ही एक महिला टीवी रिपोर्टर की आवाज गूंज उठी, ‘‘देखा आप ने, रजत यानी मयंक ने अपने पिछले जन्म के चाचा को पहचान लिया है.’’

‘‘जाहिर है, आप मुझे भी नहीं जानते?’’ त्रिलोचन धुरंधर की ओर उन्मुख हुए.

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘तो फिर आप किस आधार पर कह रहे हैं तोमर साहब कि आप के खिलाफ ये लोग साजिश कर रहे हैं?’’ इंसपेक्टर अनिल ने कहा.

‘‘यह तमाशा साजिश नहीं तो और क्या है?’’ धुरंधर को गुस्सा आ गया.

‘‘तो फिर आप इस का पर्दाफाश क्यों नहीं कर देते?’’ त्रिलोचन के स्वर में चुनौती थी.

‘‘मैं ने पुलिस को इसीलिए यहां बुलाया है.’’

‘‘तो ठीक है, पुलिस के सामने सारी जांचपड़ताल हो जाने दीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी.’’ कहते हुए त्रिलोचन अनिल की ओर मुड़े, ‘‘अगर यह सचमुच पूर्वजन्म का मयंक है तो यह इस अंजान गांव में हम सब को अपने पिछले जन्म के घर जरूर ले चलेगा.’’

अनिल ने मौन सहमति दी.

‘‘मयंक, अपने घर चलो.’’ त्रिलोचन का इशारा पाते ही रजत बेधड़क एक ओर बढ़ गया. उस के पीछे विशाल जनसमुदाय था.

सचमुच कमाल हो गया. रजत बेखौफ अपने पूर्व जन्म के घर में जा घुसा. उस ने अपने मातापिता यानी बलराम तोमर और सुभाषिनी को न केवल पहचाना, बल्कि उन से लिपट कर खूब रोया भी. उस ने अपनी चाची यानी धुरंधर तोमर की पत्नी सुखदेवी और दूसरे परिजनों को भी आसानी से पहचान लिया.

हद तो तब हो गई, जब उस ने सैकड़ों लोगों के बीच बैठी अपनी पत्नी सुरबाला को जा पहचाना. फिर भी सुरबाला को यकीन नहीं हुआ, धुरंधर तोमर की तरह उस के भी मन में अविश्वास के बादल घुमड़ रहे थे.

‘‘मुझे ऐसे विश्वास नहीं होगा. मुझे ऐसी कोई बात बताओ, जिसे मेरे अलावा सिर्फ मेरे पति जानते थे.’’ उस की अविश्वास भरी नजरें रजत के मासूम चेहरे पर ठहर गईं.

वह कई पलों तक कुछ सोचता रहा, फिर अचानक बोला, ‘‘तुम्हारी पीठ पर नीचे की ओर दाहिनी तरफ एक तिल है.’’

सुन कर सुरबाला भौंचक्की सी रह गई. यह सुन कर वहां मौजूद तमाशबीनों के मुंह भी खुले रह गए. फिर न जाने क्या हुआ कि सुरबाला रजत को गोद में उठा कर रो पड़ी.

‘‘तुम मुझे छोड़ कर क्यों चले गए थे…?’’ उस के आंसू उमड़उमड़ कर बहने लगे.

सब से मिलनेमिलाने के बाद रजत उसी शाम अपने मातापिता के साथ शहर लौट गया. वह सुरबाला से वादा कर गया था कि अगले हफ्ते फिर आएगा. उस रात बलराम तोमर के घर में कोई नहीं सो पाया. रजत अनेक झंझावात छोड़ गया था, जिन्होंने तोमर परिवार को सारी रात जगाए रखा.

बलराम तोमर खानदानी रईस थे. दोनों भाइयों का संयुक्त परिवार था. तीन सौ एकड़ जमीन के अलावा एक चीनी मिल भी थी. दोनों भाइयों के बीच सिर्फ एक चश्मओचिराग था, धुरंधर तोमर का 6-7 वर्षीय पुत्र सुकुमार. रजत उसे इसलिए नहीं पहचान पाया था, क्योंकि उस का जन्म मयंक की मौत के कई सालों बाद हुआ था.

मयंक की मौत की वह रात सुरबाला को आज भी ज्यों की त्यों याद थी.

तोमर परिवार ने एक एडवेंचर प्रोग्राम बनाया था, जिस में महिलाओं को भी शामिल किया गया था. उसी के तहत सुरबाला अपने पति, सासससुर व चचिया ससुर धुरंधर के साथ शिकार पर गई थी. यह उस के लिए पहला और आखिरी एडवेंचर था. सुखनई के जंगल में उन दिनों एक आदमखोर तेंदुए ने आतंक मचा रखा था. वह 20 किलोमीटर के दायरे में कई इंसानी जिंदगियां लील चुका था. इसी वजह से सरकार ने तोमर परिवार को उसे मारने की इजाजत दे दी थी.

तेंदुए को मारने के लिए तोमर परिवार ने जंगल में तीन मचान बनाए थे. अंधेरा घिरतेघिरते सभी लोग मचानों पर चढ़ कर बैठ गए. नीचे चारे के तौर पर एक बकरा बांध दिया गया था.

जिस मचान पर सुरबाला और मयंक बैठे थे, उस के ठीक सामने वाले मचान पर उस के सासससुर यानी बलराम तोमर और सुभाषिनी बैठे थे. धुरंधर तोमर का मचान उन से लगभग 20 फुट दूर बाईं ओर था. तीनों मचानों के नीचे बंधा बकरा साफ नजर आ रहा था, लेकिन जैसेजैसे अंधेरा घिरता गया, बकरे का अक्स धूमिल होता गया.

रात गहराने लगी थी, सुरबाला की पलकें नींद से बोझिल हो गई थीं. वह अपने आप को जगाए रखने की भरसक कोशिश कर रही थी. बकरा पता नहीं क्यों खामोश हो गया था. तभी अचानक गोली चलने, तेंदुए के गरजने और मयंक के नीचे गिरने की घटनाएं एक साथ घटीं.

तेंदुआ मयंक को बुरी तरह झंझोड़ने में लगा था. इतना दिल दहलाने वाला दृश्य था कि सुरबाला के हाथ से टार्च छूट कर नीचे गिर गई. इस के बाद किसी ने गोली नहीं चलाई. तेंदुआ मयंक को खींचता हुआ जंगल में गायब हो गया. जब उन लोगों को होश आया तो ताबड़तोड़ हवाई फायरिंग की गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रात भर उन लोगों की नीचे उतरने की भी हिम्मत नहीं हुई.

सुबह उन लोगों ने मयंक की तलाश में वन विभाग और पुलिस वालों के साथ पूरा जंगल छान मारा, लेकिन नाकामी ही हाथ लगी. सुरबाला का रोरो कर बुरा हाल था. बाद में भी काफी खोजबीन की गई, पर मयंक की लाश नहीं मिली.

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 1

खबर चौंकाने वाली थी इसलिए उन्होंने अखबार को कस कर पकड़ते हुए उसे फिर से पढ़ना शुरू किया. वह ‘मयंक ने पुनर्जन्म  लिया.’ शीर्षक को उन्होंने 2-3 बार पढ़ा.

खबर में छपा था, ‘शहर के कपड़ा व्यवसायी मनोहर अग्रवाल का 6 वर्षीय पुत्र रजत अपने आप को पूर्व जन्म का मयंक बताता है. उस का कहना है कि वह पिछले जन्म में नाहरगढ़ निवासी बलराम तोमर का पुत्र मयंक था. सुबूत के तौर पर उस ने कई घटनाएं बयान की हैं. उस का कहना है कि उस का घर नाहरगढ़ में है और उस के मातापिता और पत्नी सुरबाला उस का इंतजार कर रही होंगी. वह रोजाना नाहरगढ़ जाने की जिद करते हुए अपने मांबाप से कहता है कि अगर उसे उस के असली घर नहीं पहुंचाया गया तो वह खुद ही वहां चला जाएगा.’

तोमर साहब इस के आगे नहीं पढ़ सके. वह अखबार थामे घर के अंदर दौड़े.

‘‘अरे कहां हो तुम…’’ उन्होंने असंयत आवाज में अपनी पत्नी सुभाषिनी को पुकारा, ‘‘जरा यह समाचार पढ़ो.’’ वह ड्राइंगरूम में दाखिल हुए तो सुभाषिनी टीवी देखने में तल्लीन थीं.

‘‘टीवी बाद में देखना, पहले यह खबर पढ़ो.’’ तोमर साहब ने अखबार पत्नी के आगे फैला दिया.

‘‘आप पहले टीवी देखिए…’’ सुभाषिनी ने अखबार पर ध्यान न दे कर कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘देखिए, क्या आ रहा है.’’

तोमर साहब ने अखबार को भूल कर टीवी की ओर देखा.

‘‘पुनर्जन्म की ऐसी रोमांचक घटना इस के पहले आप ने शायद ही कहीं देखीसुनी होगी.’’ टीवी पर रिपोर्टर की पुरजोर आवाज गूंज रही थी.

‘‘अद्भुत बच्चा है रजत… रजत तुम्हारा नाम क्या है?’’ रिपोर्टर ने पास बैठे बच्चे की ओर माइक बढ़ाया तो टीवी स्क्रीन पर फैले उस के चेहरे का क्लोजअप तैश से भर उठा. वह झुंझलाते हुए बोला, ‘‘कितनी बार बताऊं आप को? मैं ने कहा न, मेरा नाम रजत नहीं, मयंक है. मयंक तोमर.’’

‘‘और आप के मातापिता का नाम?’’ रिपोर्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘बलराम तोमर और सुभाषिनी.’’ बच्चे ने झटके से जवाब दिया.

‘‘सुना आप ने.’’ सुभाषिनी का गला भर्रा गया, ‘‘हमारा लाडला लौट आया…’’ कहती हुई वह बाहर को भागीं. तोमर साहब स्तब्ध खड़े हुए थे. पूरा माजरा अकल्पनीय सा था.

‘‘बहू… ओ बहू…’’ सुभाषिनी ने उत्तेजित स्वर में पुकारते हुए जोरों से बाथरूम का दरवाजा खटखटाया.

मिनट भर बाद बाथरूम का दरवाजा खुला और अधभीगे कपड़ों में बाहर झांकते सुरबाला ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अम्मां? आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

‘‘चल कर पहले टीवी देखो,’’ वह सुरबाला को लगभग घसीटती हुई ड्राइंगरूम की ओर ले गईं. टीवी पर अभी भी वही समाचार चल रहा था. तोमर साहब पूर्ववत आंखें फाड़े समाचार देख रहे थे.

संवाददाता की आवाज गूंज रही थी, ‘‘विश्वास करना कठिन है, लेकिन यह सच है कि हर तरह से यह साबित हो रहा है कि कल का मयंक ही आज का रजत है…’’

अब तक सुरबाला की भी समझ में सब कुछ आ गया था. इस खबर को देखसुन कर उस का मुंह खुला रह गया. सुभाषिनी बाहर निकल गई थीं. वह वापस लौटीं तो साथ में उन के देवर धुरंधर थे.

‘‘भाभी, आप इन टीवी वालों को नहीं जानतीं. विज्ञापन हासिल करने के लिए ये उलटीसीधी खबरें फैलाते रहते हैं. कितने दुख की बात है कि ये अंधविश्वास से लड़ने के बजाय ऐसी बातों को बढ़ावा दे रहे हैं…’’ धुरंधर तोमर भाभी के मुंह से यह खबर सुन कर गुस्से में बोले, ‘‘आप तो पढ़ीलिखी हैं फिर भी…’’

‘‘पहले आप खबर तो देख लीजिए.’’

‘‘ननकू, हमारा मयंक वापस आ गया.’’ तोमर साहब छोटे भाई को देखते ही खुशी से चिल्ला उठे.

‘‘टीवी वालों की इस बकवास से मैं सहमत नहीं हूं बड़े भैया.’’ धुरंधर बेलाग स्वर में बोले, ‘‘भाभी तो शायद अपनी ममता के चलते अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर रहीं, कम से कम आप तो…’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो ननकू?’’ उन्होंने छोटे भाई को झिड़कने वाले अंदाज में कहा, ‘‘टीवी वाले, अखबार वाले और वहां मौजूद सारे लोग अंधविश्वास फैला रहे हैं? और अगर इसे सच भी मान लिया जाए तो सवाल यह है कि यह बच्चा कैसे वे सारी बातें बता रहा है, जो एकदम सच हैं.’’

‘‘मुझे तो यह कोई साजिश लग रही है. जरूर इस के पीछे कोई खतरनाक इरादे वाला शख्स है.’’ धुरंधर बोले.

‘‘पहले ठीक से खबर तो देख लो ननकू. सच्चाई को समझने की कोशिश करो… आखिर वहां हमारा कौन दुश्मन बैठा है, जो साजिश…’’

‘‘इस का पता तो पुलिस लगाएगी कि वह शातिर शख्स कौन है, जिस की निगाह हमारी जायदाद पर जमी हुई है.’’

‘‘इस सब से हमारी जायदाद का क्या लेनादेना है?’’ तोमर साहब छोटे भाई की बात सुन कर हैरान हुए.

‘‘आप कितने भोले हैं बड़े भैया.’’ धुरंधर बड़े भाई की बुद्धि पर तरस सा खाते हुए बोले, ‘‘यह लड़का जो मयंक होने का दावा कर रहा है, कल को हमारी संपत्ति का वारिस नहीं बन बैठेगा?’’

तोमर साहब के माथे पर बल पड़ गए, शायद इस पहलू की ओर उन्होंने अभी तक ध्यान नहीं दिया था.

‘‘आप देखिए टीवी, मैं तो कोतवाली जा रहा हूं.’’ कहते हुए धुरंधर बाहर निकल गए.

इंस्पेक्टर अनिल कार्तिकेय ने एसपी के औफिस में प्रवेश किया तो एसपी साहब बड़े गौर से एक फाइल देख रहे थे, जिस में अखबारों की कतरनें लगी हुई थीं.

‘‘सर, आप ने मुझे बुलाया?’’ इंसपेक्टर की आवाज से उन का ध्यान भंग हो गया.

‘‘यह त्रिलोचन कौन है और उस का असली कामधंधा क्या है?’’ एसपी ने नजरें उठा कर अनिल की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘त्रिलोचन…?’’

‘‘वही जो अपने आप को जासूस कहता है…’’

‘‘अच्छा, आप त्रिलोचनजी की बात कर रहे हैं, वह बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं सर.’’

‘‘आप का यह सम्मानित व्यक्ति एक रईस आदमी के खिलाफ साजिश कर रहा है.’’

‘‘जी?’’ इंस्पेक्टर अनिल चौंके.

‘‘ऐसा क्या किया है चाचाजी ने?’’

‘‘अच्छा तो त्रिलोचन आप के चाचा हैं?’’ एसपी की सख्त नजर इंसपेक्टर अनिल के चेहरे पर जम गई.

‘‘नहीं सर, मेरा मतलब वह…’’

‘‘सुनो इंस्पेक्टर, पुलिस की वर्दी पहनने के बाद सारे रिश्तेनाते भूल जाना चाहिए. हमारा काम है कानून तोड़ने वालों को सलाखों के पीछे भेजना.’’ एसपी का स्वर काफी सख्त था.

‘‘उन्होंने कानून तोड़ा है?’’

‘‘तोड़ने वाला है.’’ एसपी साहब इंस्पेक्टर को कतरन वाली फाइल थमाते हुए बोले, ‘‘लगता है आप को न तो अखबार पढ़ने का वक्त मिलता है, न ही टीवी देखने का.’’

‘‘जी सर, ड्यूटी के चलते कभीकभी…’’

‘‘आईसी तो कल आप को यह ड्यूटी नाहरगढ़ में करनी है, जहां त्रिलोचन पूरे तामझाम के साथ रजत नाम के लड़के को ले कर पहुंचने वाला है. वह यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि रजत नाहरगढ़ के जानेमाने व्यक्ति बलराम तोमर का पुत्र मयंक है, वह मयंक जो सालों पहले मर चुका है.’’

‘‘लेकिन सर, हमारे पास ऐसी कोई शिकायत…’’

‘‘शिकायत इसी फाइल में है.’’ एसपी ने फाइल अनिल के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘बलराम तोमर के छोटे भाई धुरंधर तोमर ने लिखित शिकायत की है.’’

गाडि़यों का काफिला नाहरगढ़ पहुंचा तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. आसपास के गांवों के भी हजारों लोग आ गए थे. सभी रजत की एक झलक पाने को बेताब थे.

जुर्म है बेटी का बाप होना

प्रीति मेरी एकलौती बेटी थी, मेरे न रहने पर मेरी करोड़ों की प्रौपर्टी उसी की थी, फिर भी उस की ससुराल वालों ने पैसे के लिए ही उसे मार डाला था. कोई मैं ही अकेला बेटी का बाप नहीं हूं. मेरी तरह यह पूरी दुनिया बेटी के बापों से भरी  पड़ी है. कम ही लोग हैं, जिन्हें बेटी नहीं है. लेकिन बेटी को ले कर जो दुख मुझे मिला है, वैसा दुख बहुत कम लोगों को मिलता है. यह दुख झेलने के बाद मुझे पता चला कि बेटी होना कितना बड़ा जुर्म है और उस से भी बड़ा जुर्म है बेटी का बाप होना.

अपनी मेहनत की कमाई खाने वाला मैं एक साधारण आदमी हूं. मैं ने सारी उम्र सच्चाई की राह पर चलने की कोशिश की. हेराफेरी, चालाकी, ठगी या गैरकानूनी कामों से हमेशा दूर रहा. कभी कोई ऐसा काम नहीं किया, जिस से दूसरों को तकलीफ पहुंचती. ईमानदारी और मेहनत की कमाई का जो रूखासूखा मिला, उसी में संतोष किया और उसी में अपनी जिम्मेदारियां निभाईं.

प्रीति मेरी एकलौती बेटी थी. वह बहुत ही सुंदर, समझदार और संस्कारवान बेटियों में थी. वह दयालु भी बहुत थी. सीमित साधनों की वजह से सादगी में रहते हुए उस ने लगन से अपनी पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी होते ही उसे बढि़या नौकरी भी मिल गई. नौकरी लगते ही मैं उस के लिए लड़के की तलाश में लग गया.

जल्दी ही मेरी तलाश खत्म हुई और मुझे उस के लायक बढि़या लड़का मिल गया. बेटी की खुशी और सुख के लिए मैं ने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च कर के धूमधाम से उस की शादी की. हालांकि लड़के वालों का कहना था कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए. उन्हें जिस तरह की पढ़ीलिखी और गुणवान लड़की चाहिए थी, प्रीति ठीक वैसी है. इसलिए उसे एक साड़ी में विदा कर दें.

लेकिन मैं बेटी का बाप था. मैं अपनी बेटी को खाली हाथ कैसे भेज सकता था. मैं ने अपनी लाडली बेटी को हैसियत से ज्यादा गहने, कपड़ा लत्ता और घरेलू उपयोग का सामान दे कर विदा किया. बारातियों की आवभगत में भी अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया, जिस से कोई बाराती कभी मेरी बेटी को ताना न मार सके.

शादी होने के बाद प्रीति ने नौकरी छोड़ दी थी. उस का ससुराल में पहला साल बहुत अच्छे से बीता. अपनी लाडली को खुश देख कर हम सभी बहुत खुश थे. उसी बीच प्रीति को एक कंपनी में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी मिल गई. उस का पति पहले से बढि़या नौकरी कर रहा था.

सब कुछ बहुत बढि़या चल रहा था. अचानक न जाने क्या हुआ कि प्रीति के पति के सिर पर नौकरी छोड़ कर अपना कारोबार करने का भूत सवार हो गया. वह कारोबार कर के करोड़पति बनने के सपने देखने लगा. कारोबार के लिए उसे जितनी बड़ी रकम की जरूरत थी, उतने पैसे उस के पास नहीं थे. तब उस ने प्रीति से मदद करने को कहा.

प्रीति के पास पैसे कहां थे. उस से मदद मांगने का मतलब था, वह मायके से मोटी रकम मांग कर लाए. इस तरह प्रीति की ससुराल वाले बहाने से दहेज में मोटी रकम मांगने लगे. प्रीति हमारी बेटी थी, उसे हमारी औकात अच्छी तरह पता थी. फिर वह उसूलों पर चलने वाली लड़की थी. उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मैं अपने मांबाप से एक कौड़ी भी नहीं मांगूंगी, क्योंकि यह एक तरह से दहेज है और दहेज लेना तथा देना दोनों ही गैरकानूनी है.’’

प्रीति सीधीसादी लड़की थी. उस का कहना था कि पतिपत्नी जितना कमाते हैं, उस में वे आराम से अपना गुजरबसर कर लेंगे. परिवार बढ़ेगा तो तरक्की के साथ वेतन भी बढ़ेगा. इसलिए उन्हें इसी में संतुष्ट रहना चाहिए.

लेकिन प्रीति के पति के मन में करोड़ों की कमाई का भूत सवार हो चुका था. इसलिए वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं था. बस फिर क्या था, पतिपत्नी के रिश्तों में खटास आने लगी. उन के बीच दरार पड़ गई, जो दिनोंदिन चौड़ी होती चली गई. उन के बीच प्यार तो उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन प्रीति ने मुझ से पैसा मांगने से मना कर दिया था.

फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब प्रीति के पति ने उस पर हाथ उठा दिया. एक बार हाथ उठा तो सिलसिला सा चल पड़ा. फिर तो पति ही नहीं, उस के घर के जिस भी व्यक्ति का मन होता, वही मेरी बेटी को अपमानित ही नहीं करता, बल्कि जब मन होता, पीट देता.

मैं ने जिंदगी में कोई गैरकानूनी काम नहीं किया था. लेकिन जब मुझे बेटी की प्रताड़ना का पता चला तो मैं बेचैन हो उठा. इंसान बच्चों के लिए ही कमाता है. अपनी सारी जिंदगी उन्हीं की खुशी में होम कर देता है. जिंदगी में वह जो बचाता है, उन्हीं के लिए छोड़ जाता है.

मेरे पास इतनी रकम नहीं थी कि मैं प्रीति की ससुराल वालों की मांग पूरी कर देता. मैं ने पत्नी से सलाह की. पत्नी ही मुझे क्या सलाह देती. उस ने बस यही कहा, ‘‘हमारे पास पुश्तैनी जमीन के अलावा कुछ नहीं है. इसे बेच कर उन लोगों की मांग पूरी कर दो. जब बेटी ही नहीं रहेगी तो हम इस का क्या करेंगे. आखिर यह सब सुखदुख के लिए ही तो है. दुख की इस घड़ी में इसे बेच कर झंझट खत्म कर दो.’’

किसी किसान के लिए जमीन सब कुछ होती है. उसे मांबाप कह लो या रोजीरोटी, वही उस के लिए सब कुछ है, उस से उस के परिवार का ही गुजरबसर नहीं होता, बल्कि उसी की बदौलत और न जाने कितने अन्य लोग पलते हैं. लेकिन अब अपनी खुशी या जिंदगी की चिंता कहां रह गई थी. अब चिंता बेटी की खुशी और जिंदगी की थी.

मैं ने तय कर लिया था कि जितनी जल्दी हो सकेगा, अपनी बिटिया की खुशी के लिए यानी उस पर होने वाले जुल्मों को बंद करवाने के लिए अपनी जमीन बेच कर उस की ससुराल वालों की मांग पूरी कर दूंगा. क्योंकि मुझे लगने लगा था कि उस की ससुराल वाले अब उस की जान ले कर ही मानेंगे.

मैं ने निश्चय किया था कि जमीन बेच कर प्रीति की ससुराल वालों की मांग पूरी कर दूंगा, उसी के अनुसार मैं ने जैसे ही जमीन बेचने की घोषणा की, लेने वालों की लाइन लग गई. लोग मुंहमांगी कीमत देने को तैयार थे. इस की वजह यह थी कि मेरी जमीन मुख्य सड़क के किनारे थी.

लेकिन मेरी वह जमीन बिकतेबिकते रह गई. दरअसल, प्रीति के दुख से हम पतिपत्नी काफी दुखी थे. हम दोनों मानसिक रूप से काफी परेशान थे. परेशानी से निजात पाने के लिए इंसान ऐसी जगहों पर जाना चाहता है, जहां किसी बात की चिंता न हो. चिंता से निजात पाने और उस का हल ढूंढ़ने के लिए मैं भी पत्नी को ले कर किसी एकांत जगह के लिए निकल पड़ा.

एक बस उत्तराखंड के लिए जा रही थी. मेरे मोहल्ले के भी कई लोग उस बस से जा रहे थे. मैं भी पत्नी के साथ उसी में सवार हो गया. लेकिन कुदरत ने वहां ऐसा तांडव मचाया कि हम लोगों को लगा कि अब कोई भी जीवित नहीं बचेगा. लेकिन सेना के जवानों ने हम सभी को बचा लिया. हम सभी को मौत के मुंह से बाहर खींच लाए. हमें तो सेना के जवानों ने बचा लिया, लेकिन दूसरी ओर प्रीति को कोई नहीं बचा सका.

दरअसल, प्रीति की ससुराल वालों को पता था कि मैं पत्नी के साथ उत्तराखंड घूमने गया हूं. जब उन्हें पता चला कि वहां भीषण प्राकृतिक आपदा आई है और उस में हम लोग फंस गए हैं तो उसी बीच उन लोगों ने प्रीति को इस तरह प्रताडि़त किया यानी मारा पीटा कि वह मर गई.

हम लोग आपदा में फंसे थे. फोन भी नहीं मिल रहा था, इसलिए प्रीति की ससुराल वालों ने हत्या को कुदरती मौत बता कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. पड़ोसियों में खुसुरफुसुर जरूर हुई, लेकिन किसी ने बात का बतंगड़ नहीं बनाया. उन्होंने अपना काम आसानी से कर डाला. प्रीति अपनी मौत मरी है, यह साबित करने के लिए उन्होंने उस की एक सहेली को बुला लिया था. सहेली को क्या पड़ी थी कि वह किसी तरह की कानूनी काररवाई करती. फिर उसे कुछ पता भी नहीं था.

हां, तो इस तरह मेरी बेटी प्रीति को मार दिया गया. एक सीधेसादे कत्ल को कुदरती मौत बता कर उन्होंने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया. मेरे घर लौट कर आतेआते उस के सारे कामधाम कर दिए गए थे. मैं ने थाने में प्रीति की हत्या की रिपोर्ट तो दर्ज करा दी, लेकिन मेरे पास उन के खिलाफ ऐसा कोई भी सुबूत नहीं है कि मैं दावे के साथ कह सकूं कि उन लोगों ने प्रीति की हत्या की है.

सुबूत न होने की वजह से पुलिस भी इस मामले की जांच आगे नहीं बढ़ा पा रही है. बहरहाल मैं कानून पर भरोसा करने वालों में हूं, इसलिए मुझे पूरा भरोसा है कि उन लोगों को उन के किए की सजा जरूर मिलेगी.

प्रीति ही मेरी एकलौती बेटी थी. मेरे पास करोड़ों की प्रौपर्टी है, अब वह मेरे किस काम की. प्रीति की ससुराल वालों को सोचना चाहिए था कि हमारे न रहने पर वैसे भी सब कुछ उन्हें ही मिलने वाला था. फिर वे उस का चाहे जैसे उपयोग करते. लेकिन उन्हें संतोष नहीं था.

अब मुझे लगता है कि बेटी सचमुच पराई होती है. अपनी होते हुए भी हम उसे अपनी नहीं कह सकते. तमाम नियमकानून हैं, अधिकार हैं, लेकिन लगता है कि वे सब सिर्फ कहनेसुनने के लिए हैं. अगर नियमकानून ही होते तो लोग उन से डरते. जिस तरह प्रीति मारी गई, शायद उस तरह बेटियां न मारी जातीं. अब मुझे लगता है कि बेटी का पैदा होना ही जुर्म है, उस से भी बड़ा जुर्म है बेटी का बाप होना.

—कथा सत्य घटना पर आधारित

तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं – भाग 5

‘‘कुछ समय बाद मैं और तुम सेवानिवृत्त हो गए. मैं अब वकील साहिबा को देखने के लिए नियमितरूप से मानसिक अस्पताल जाने लगा और उन के साथ काफी समय गुजारने लगा. एक दिन अस्पताल की डाक्टर ने मुझ से कहा, ‘देखिए, अब वह बिलकुल स्वस्थ हो गई है. वह वकालत फिर से कर पाएगी, यह तो नहीं कहा जा सकता मगर एक औरत की सामान्य जिंदगी जी पाएगी, बशर्ते उसे एक मित्रवत व्यक्ति का सहारा मिल सके जो उसे यह यकीन दिला सके कि वह उसे तन और मन से संरक्षण दे सकता है.

‘‘पत्नी की मृत्यु के बाद मैं ने अपनी संतानों द्वारा मुझे लगभग पूरी तरह इग्नोर कर दिए जाने के चलते गहराए अकेलेपन से छुटकारा पाने के लिए उन का दिल से मित्र बनने का संकल्प लिया. इस बारे में बच्चों से बात की, तो पुत्र ने तो केवल इतना कहा, ‘आप तो हमें भारतीय सभ्यता, संस्कृति और सामाजिक नैतिकता की बातें सिखाया करते थे,

अब हम क्या कहें.’ मगर बड़ी पुत्री ने कहा, ‘आया का देर से आने की सूचना देने के बावजूद आप का औफिस चले जाना और इस बीच उसी दिन मम्मी की दवाइयों का असर समय से पहले ही खत्म होने के कारण उन का बीच में जाग जाना व अपनी दवाइयां घातक होने की हद तक अपनेआप खा लेना पता नहीं कोई कोइंसीडैंट था या साजिश.

ऐसी क्या मजबूरी थी कि आप पूरे दिन की नहीं, तो आधे दिन की छुट्टी नहीं ले सके उस दिन. लगता है मम्मी ने डिप्रैशन में नींद की गोलियों के साथ ब्लडप्रैशर कम करने की गोलियां इतनी ज्यादा तादाद में खुद नहीं ली थीं. किसी ने उन्हें जान कर और इस तरह दी थीं कि लगे कि ऐसा उन्होंने डिप्रैशन की हालत में खुद यह सब कर लिया.’

‘‘यह सुन कर तो मैं स्तब्ध ही रह गया. छोटी पुत्री ने, ‘अब मैं क्या कहूं, आप हर तरह आजाद हैं. खुद फैसला कर लें,’ जैसी प्रतिक्रिया दी. तो एक बार तो लगा कि पत्नी की बची पड़ी दवाइयों की गोलियां मैं भी एकसाथ निगल कर सो जाऊं, मगर यह सोच कर कि इस से किसी को क्या फर्क पड़ेगा, इरादा बदल लिया और पिछले कुछ दिनों से सब से अलग इस गैस्टहाउस में रहने लगा हूं. परिचितों को इसी उपनगर में चल रहे किसी धार्मिक आयोजन में व्यस्त होने की बात कह रखी है.’’ यह सब कह कर मेरे मित्र शायद थक कर खामोश हो गए.

काफी देर मौन पसरा रहा हमारे बीच, फिर मित्र ने ही मौन भंग किया, और बड़े निर्बल स्वर में बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें इसलिए बुलाया है कि तुम बताओ, मैं क्या करूं?’’

मित्र के सवाल करने पर मुझे अपना फैसला सुनाने का मौका मिल गया. सो, मैं बोला, ‘‘अभिनव तुम्हें क्या करना है, तुम दोनों अकेले हो. वकील साहिबा के अंदर की औरत को तुम ने ही जगाया था और उन के अंदर की जागी हुई औरत ने तुम्हारे हताशनिराश जीवन में नई उमंग पैदा की और तुम्हारे परिवार को तनमन से अपने प्यार व सेवा का नैतिक संबल दे कर टूटने से बचाया.

ऐसे में उसे जीवन की निराशा से टूटने से उबार कर नया जीवन देने की तुम्हारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है. उस के द्वारा तुम्हारे परिवार पर किए गए एहसानों को चुकाने का समय आ गया है. तुम वकील साहिबा से रजिस्ट्रार औफिस में बाकायदा विवाह करो, जिस से वे तुम्हारी विधिसम्मत पत्नी का दर्जा पा सकें और भविष्य में कभी भी तुम्हारी संतानें उन्हें सता न सकें. तुम्हारे संतानों की अब अपनी दुनिया है, उन्हें उन की दुनिया में रहने दो.’’

मेरी बात सुन कर मित्र थोड़ी देर कुछ फैसला लेने जैसी मुद्रा में गंभीर रहे, फिर बोले, ‘‘चलो, उन के पास अस्पताल चलते हैं.’’

मित्र के साथ अस्पताल पहुंच कर डाक्टर से मिले, तो उन्होंने सलाह दी कि आप उन के साथ एक नई जिंदगी शुरू करेंगे, इसलिए उन्हें जो भी दें, वह एकदम नया दें और अपनी दिवंगत पत्नी के कपड़े या ज्वैलरी या दूसरा कोई चीज उन्हें न दें. साथ ही, कुछ दिन उस पुराने मकान से भी कहीं दूर रहें, तो ठीक होगा.

डाक्टर से सलाह कर के और उन्हें कुछ दिन अभी अस्पताल में ही रखने की अपील कर के हम घर लौटे तो पड़ोसी ने घर की चाबी दे कर बताया कि उन की छोटी बेटी सरकारी गाड़ी में थोड़ी देर पहले आई थी. आप द्वारा हमारे पास रखाई गई घर की चाबी हम से ले कर बोली कि उन्होंने मां की मृत्यु के बाद आप को अकेले नहीं रहने देने का फैसला लिया है, और काफी बड़े सरकारी क्वार्टर में वह अकेली ही रहती है, इसलिए अभी आप का कुछ जरूरी सामान ले कर जा रही है. आप ने तो कभी जिक्र किया नहीं, मगर बिटिया चलते समय बातोंबातों में इस मकान के लिए कोई ग्राहक तलाशने की अपील कर गई है.

ताला खोल कर हम अंदर घुसे तो पाया कि प्रशासनिक अधिकारी पुत्री उन के जरूरी सामान के नाम पर सिर्फ उन की पत्नी का सामान सारे वस्त्र, आभूषण यहां तक कि उन की सारी फोटोज भी उतार कर ले गई थी. एक पत्र टेबल पर छोड़ गई थी. जिस में लिखा था, ‘हम अपनी दिवंगता मां की कोई भी चीज अपने बाप की दूसरी बीवी के हाथ से छुए जाना भी पसंद नहीं करेंगे. इसलिए सिर्फ अपनी मां के सारे सामान ले जा रही हूं. आप का कोईर् सामान रुपयापैसा मैं ने छुआ तक नहीं है.

मगर आप को यह भी बताना चाहती हूं कि अब हम आप को इस घर में नहीं रहने देंगे. भले ही यह घर आप के नाम से है और बनवाया भी आप ने ही है, मगर इस में हमारी मां की यादें बसी हैं. हम यह बरदाश्त नहीं करेंगे कि हमारे बाप की दूसरी बीवी इस घर में हमारी मां का स्थान ले. आप समझ जाएं तो ठीक है. वरना जरूरत पड़ी तो हम कानून का भी सहारा लेंगे.’

पत्र पढ़ कर मित्र कुछ देर खिन्न से दिखे. तो मैं ने उन्हें थोड़ा तसल्ली देने के लिए फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर उन्हें थोड़ा पानी पीने को कहा तो वे बोले, ‘‘आश्चर्य है, तुम मुझे इतना कमजोर समझ रहे हो कि मैं इस को पढ़ कर परेशान हो जाऊंगा. नहीं, पहले मैं थोड़ा पसोपेश में था, मगर अब तो मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं इस मकान को जल्दी ही बेच दूंगा.

पुत्री की धमकी से डर कर नहीं, बल्कि अपने फैसले को पूरा करने के लिए. इस की बिक्री से प्राप्त रकम के 4 हिस्से कर के 3 हिस्से पुत्र और पुत्रियों को दे दूंगा, और अपने हिस्से की रकम से एक छोटा सा मकान व सामान्य जीवन के लिए सामान खरीदूंगा. उस घर से मैं उन के साथ नए जीवन की शुरुआत करूंगा. मगर तब तक तुम्हें यहीं रुकना होगा. तुम रुक सकोगे न.’’ कह कर उन्होंने मेरा साथ पाने के लिए मेरी ओर उम्मीदभरी नजर से देखा.

मेरी सांकेतिक स्वीकृति पा कर वे बड़े उत्साह से, ‘‘किसी ने सही कहा है, अ फ्रैंड इन नीड इज अ फ्रैंड इनडीड,’’ कहते हुए कमरे के बाहर निकले, दरवाजे पर ताला लगा कर चाबी पड़ोसी को दी और सड़क पर आ गए. नई जिंदगी की नई राह पर चलने के उत्साह में उन के कदम बहुत तेजी से बढ़ रहे थे.

तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं – भाग 4

‘‘इस तरह एक साल गुजर गया. उस दिन भी हाईकोर्ट में विभाग के विरुद्ध एक मुकदमे में मैं भी मौजूद था. विभाग के विरुद्ध वादी के वकील के कुछ हास्यास्पद से तर्क सुन कर जज साहब व्यंग्य से मुसकराए थे और उसी तरह मुसकराते हुए प्रतिवादी के वकील हमारी वकील साहिबा की ओर देख कर बोले, ‘हां वकील साहिबा, अब आप क्या कहेंगी.’

‘‘जज साहब के मुसकराने से अचानक पता नहीं वकील साहिबा पर क्या प्रतिक्रिया हुई. वे फाइल को जज साहब की तरफ फेंक कर बोलीं, ‘हां, अब तुम भी कहो, मैं, जवान हूं, सुंदर हूं, चढ़ाओ मुझे चने की झाड़ पर,’ कहते हुए वे बड़े आक्रोश में जज साहब के डायस की तरफ बढ़ीं तो इस बेतुकी और अप्रासंगिक बात पर जज साहब एकदम भड़क गए और इस गुस्ताखी के लिए वकील साहिबा को बरखास्त कर उन्हें सजा भी दे सकते थे पर गुस्से को शांत करते हुए जज साहब संयत स्वर में बोले, ‘वकील साहिबा, आप की तबीयत ठीक नहीं लगती, आप घर जा कर आराम करिए. मैं मुकदमा 2 सप्ताह बाद की तारीख के लिए मुल्तवी करता हूं.’

‘‘उस दिन जज साहब की अदालत में मुकदमा मुल्तवी हो गया. मगर इसके बाद लगातार कुछ ऐसी ही घटनाएं और हुईं. एक दिन वह आया जब एक दूसरे जज महोदय की नाराजगी से उन्हें मानसिक चिकित्सालय भिजवा दिया गया. अजीब संयोग था कि ये सभी घटनाएं मेरी मौजूदगी में ही हुईं.

‘‘वकील साहिबा की इस हालत की वजह खुद को मानने के चलते अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए औफिस से ही समय निकाल कर उनका कुशलक्षेम लेने अस्पताल हो आता था. एक दिन वहां की डाक्टर ने मुझ से उन के रिश्ते के बारे पूछ लिया तो मैं ने डाक्टर को पूरी बात विस्तार से बतला दी. डाक्टर ने मेरी परिस्थिति जान कर मुलाकात का समय नहीं होने पर भी मुझे उन की कुशलक्षेम जानने की सुविधा दी. फिर डाक्टर ने सीधे उन के सामने पड़ने से परहेज रखने की मुझे सलाह देते हुए बताया कि वे मुझे देख कर चिंतित सी हो कर बोलती हैं, ‘तुम ने क्यों कहा, मैं सुंदर हूं.’ और मेरे चले आने पर लंबे समय तक उदास रहती हैं.

‘‘बेटा उच्चशिक्षा के बाद और बड़ी बेटी व दामाद किसी विदेशी बैंकिंग संस्थान में अच्छे वेतन व भविष्य की खातिर विदेश चले गए थे. छोटी बेटी केंद्र की प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गई थी. मगर वह औफिसर्स होस्टल में रह रही थी. अब परिवार में मेरे और पत्नी के अलावा कोई नहीं था. उधर पत्नी के मन में मेरे और वकील साहिबा के काल्पनिक अवैध संबंधों को ले कर गहराते शक के कारण उन का ब्लडप्रैशर एकदम बढ़ जाता था, और फिर दवाइयों के असर से कईकई दिनों तक मैमोरीलेप्स जैसी हालत हो जाती थी.

‘‘इसी हालात में उन्हें दूसरा झटका तब लगा जब बेटे ने अपनी एक विदेशी सहकर्मी युवती से शादी करने का समाचार हमें दिया.

‘‘उस दिन मेरे मुंह से अचानक निकल गया, ‘अब मन्नू को तो वकील साहिबा ने नहीं भड़काया.’ मेरी बात सुन कर पत्नी ने कोई विवाद खड़ा नहीं किया तो मुझे थोड़ा संतोष हुआ. मगर उस के बाद पत्नी को हाई ब्लडप्रैशर और बाद में मैमोरीलेप्स के दौरों में निरंतरता बढ़ने लगी तो मुझे चिंता होने लगी.

‘‘कुछ दिनों बाद उन्हें फिर से डिप्रैशन ने घेर लिया. अब पूरी तरह अकेला होने कारण पत्नी की देखभाल के साथ दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करना बेहद कठिन महसूस होता था. रिटायरमैंट नजदीक था, और प्रमोशन का अवसर भी, इसलिए लंबी छुट्टियां ले कर घर पर बैठ भी नहीं सकता था. क्योंकि प्रमोशन के मौके पर अपने खास ही पीठ में छुरा भोंकने का मौका तलाशते हैं और डाक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों के असर से वे ज्यादातर सोई ही रहती थीं. फिर भी अपनी गैरहाजिरी में उन की देखभाल के लिए एक आया रख ली थी.

‘‘उस दिन आया ने कुछ देर से आने की सूचना फोन पर दी, तो मैं उन्हें दवाइयां, जिन के असर से वे कमसेकम 4 घंटे पूरी तरह सोईर् रहती थीं, दे कर औफिस चला गया था. पता नहीं कैसे उन की नींद बीच में ही टूट गई और मेरी गैरहाजिरी में नींद की गोलियों के साथ हाई ब्लडप्रैशर की दशा में ली जाने वाली गोलियां इतनी अधिक निगल लीं कि आया के फोन पर सूचना पा कर जब मैं घर पहुंचा तो उन की हालत देख कर फौरन उन्हें ले कर अस्पताल को दौड़ा. मगर डाक्टरों की कोशिश के बाद भी उन की जीवन रक्षा नहीं हो सकी.

‘‘पत्नी की मृत्यु पर बेटे ने तो उस की पत्नी के आसन्न प्रसव होने के चलते थोड़ी देर इंटरनैट चैटिंग से शोक प्रकट करते हुए मुझ से संवेदना जाहिर की थी, मगर दोनों बेटियां आईं थी. छोटी बेटी तो एक चुभती हुई खमोशी ओढ़े रही, मगर बड़ी बेटी का बदला हुआ रुख देख कर मैं हैरान रह गया.

वकील साहिबा को मौसी कह कर उन के स्नेह से खुश रहने वाली और बैंकसेवा के चयन से ले कर उस के जीवनसाथी के साथ उस का प्रणयबंधन संपन्न कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहने के कारण उन की आजीवन ऋ णी रहने की बात करने वाली मेरी बेटी ने जब कहा, ‘आखिर आप के और उन के अफेयर्स के फ्रस्टेशन ने मम्मी की जान ले ही ली.’ और मां को अपनी मौसी की सेवा की याद दिलाने वाली छोटी बेटी ने भी जब अपनी बहन के ताने पर भी चुप्पी ही ओढ़े रही तो मैं इस में उस का भी मौन समर्थन मान कर बेहद दुखी हुआ था.

तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं – भाग 3

‘‘दिन बीतते रहे. बातचीत में, हंसीमजाक से नजदीकी बढ़ते हुए उस दिन एक बात पर वे हंसी के साथ मेरी और झुक गईं तो मैं ने उन्हें बांहों में बांध लिया. उन्होंने एकदम तो कोई विरोध नहीं किया मगर जैसे ही उन्हें आलिंगन में कसे हुए मेरे होंठ उन्हें चूमने के लिए बढ़े, अपनी हथेली को बीच में ला कर उन्हें रोकते हुए वे बोलीं, ‘देखिए, लंबे समय से अपने घरपरिवार और अपनों से अलग रहते अकेलेपन को झेलती तल्ख जिंदगी में आप से पहली ही मुलाकात में आप के अंदर एक अभिभावक का स्वरूप देख कर आप मुझे अच्छे लगने लगे थे.

‘‘आप से बात करते हुए मुझे एक अभिभावक मित्र का एहसास होता है. आप के परिवार में आप की बेटियों से मिल कर उन के साथ बातें कर के समय बिताते मुझे एक पारिवारिक सुख की अनुभूति होती है. मेरे अंदर का मातृत्वभाव तृप्त हो जाता है. इसलिए आप से, आप के परिवार से मिले बिना रह नहीं पाती.

‘‘हमारा परिचय मजबूत होते हुए यह स्थिति भी आ जाएगी, मैं ने सोचा नहीं था. फिर भी आप अगर आज यह सब करना चाहेंगे तो शायद आप की खुशी की खातिर आप को रोकूंगी नहीं, मगर इस के बाद मैं एकदम, पूरी तरह से टूट जाऊंगी. मेरे मन में आप की बनाई हुई एक अभिभावक मित्र की छवि टूट जाएगी.

आप की बेटियों से मिल कर बातें कर के मेरे मन में उमंगती मातृत्व की सुखद अनुभूति की तृप्ति की आशा टूट जाएगी. मैं पूरी तरह टूट कर बिखर जाऊंगी. क्या आप मुझे इस तरह टूट कर बिखर जाने देंगे या एक परिपक्व मित्र का अभिभावक बन सहारा दे कर एक आनंद और उल्लास से पूर्ण जीवन प्रदान करेंगे, बोलिए?’

‘‘यह कहते भावावेश में उन की आवाज कांपने लगी और आंखों से आंसू बहने लगे. मेरी चेतना ने मुझे एकदम झकझोर दिया. जिस्म की चाहत का जनून एक पल में ठंडा हो गया. अपनी बांहों से उन्हें मुक्त करते हुए मैं बोला, ‘मुझे माफ कर देना. पलभर को मैं बहक गया था. मगर अब अपने मन का द्वार बंद मत करना.’

‘यह द्वार दशकों बाद किसी के सामने अपनेआप खुला है, इसे खुला रखने का दायित्व अब हम दोनों का है. आप और मैं मिल कर निभाएंगे इस दायित्व को,’ कह कर उन्होंने मेरा हाथ कस कर थाम लिया, फिर चूम कर माथे से लगा लिया.

‘‘उस दिन के बाद उन का मेरे घरपरिवार में आना ज्यादा नियमित हो गया. एक घरेलू महिला की तरह उन की नियमित देखभाल से बच्चे भी काफी खुश रहने लगे थे. एक दिन घर पहुंचने पर मैं बेहद पसोपेश में पड़ गया. मेरी बड़ी बेटी पत्नी के कमरे के बाहर बैठी हुई थी. और कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था.

मेरे पूछने पर बेटी ने बताया कि आज भी सेविका नहीं आई है और उसे पत्नी के गंदे डायपर बदलने में काफी दिक्कत हो रही थी. तभी अचानक मौसी आ गईं. उन्होंने मुझे परेशान देख कर मुझे कमरे के बाहर कर दिया और खुद मम्मी का डायपर बदल कर अब शायद बौडी स्पंज कर रही हैं. तभी, ‘मन्नो, दीदी के कपड़े देदे,’ की आवाज आई.

‘‘बेटी ने उन्हें कपड़े पकड़ा दिए. थोड़ी देर में वकील साहिबा बाहर निकलीं तो उन के हाथ में पत्नी के गंदे डायपर की थैली देख कर मैं शर्मिंदा हो गया और ‘अरे वकील साहिबा, आप यह क्या कर रही हैं,’ मुश्किल से कह पाया, मगर वे तो बड़े सामान्य से स्वर में, ‘पहले इन को डस्टबिन में डाल दूं, तब बातें करेंगे,’ कहती हुई डस्टबिन की तरफ बढ़ गईं.

‘‘डस्टबिन में गंदे डायपर डाल कर वाशबेसिन पर हाथ धो कर वे लौटीं और बोलीं, ‘मैं ने बच्चों को मुझे मौसी कहने के लिए यों ही नहीं कह दिया. बच्चों की मौसी ने अपनी बीमार बहन के कपड़े बदल दिए तो कुछ अनोखा थोड़े ही कर दिया,’ कहते हुए वे फिर बेटी से बोलीं, ‘अरे मन्नो, पापा को औफिस से आए इतनी देर हो गई और तू ने चाय भी नहीं बनाई. अब जल्दी से चाय तो बना ले, सब की.’

‘‘चाय पी कर वकील साहिबा चलने लगीं तो बेटी की पीठ पर हाथ रख कर बड़े स्नेह से बोलीं, ‘देखो मन्नो, आइंदा कभी भी ऐसे हालात हों तो मौसी को मदद के लिए बुलाने में देर मत करना.’

‘‘ऐसे ही दिन, महीने बीतते हुए 5 साल बीत गए. पत्नी इलाज के साथसाथ वकील साहिबा की सेवा से धीरेधीरे काफी स्वस्थ हो गईं. मगर उन के स्वास्थ्य में सुधार होते ही उन्होंने सब से पहले कभी उन की कालेजमेट रही और अब बच्चों की मौसी वकील साहिबा के बारे में ही एक सख्त एन्क्वायरी औफिसर की तरह उन से मेरा परिचय कैसे बढ़ा, वह घर कैसे और क्यों आने लगी, बेटियों से वह इतना क्यों घुलमिल गई, मैं उन के घर क्यों जाता हूं आदि सवाल उठाने शुरू कर दिए तो मैं काफी खिन्न हो गया.

मगर मैं ने अपनी खिन्नता छिपाए रखी, इस से पत्नी के शक्की स्वभाव को इतना प्रोत्साहन मिल गया कि एक दिन घर में मुझे सुनाने के लिए ही बेटी को संबोधित कर के जोर से बोली थी, ‘वकील साहिबा तेरे बाप की बीवी बनने के लिए ही तेरी मौसी बन कर घर में घुस आई. खूब फायदा उठाया है दोनों ने मेरी बीमारी का. मगर मैं अब ठीक हो गई हूं और दोनों को ठीक कर दूंगी.’

‘‘पत्नी का प्रलाप सुन कर बेटी कुढ़ कर बोली, ‘मम्मी, मौसी ने आप के गंदे डायपर तक कई बार बदले हैं, कुछ तो खयाल करो.’ यह कह कर अपनी मां की बेकार की बातें सुनने से बचने के लिए वह अपने कमरे में चली गई. वह अपनी मौसी की मदद से किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी.

‘‘इस के कुछ समय बाद बड़ी बेटी, जो ग्रेजुएशन पूरा होते ही वकील साहिबा के तन, मन से सहयोग के कारण बैंक सेवा में चयनित हो गई थी, ने अपने सहपाठी से विवाह करने की बात घर में कही तो पत्नी ने शालीनता की सीमाएं तोड़ते हुए अपनी सहपाठिनी वकील साहिबा को फोन कर के घर पर बुलाया और बेटी के दुस्साहस के लिए उन की अस्वस्थता के दौरान मेरे साथ उन के अनैतिक संबंधों को कारण बताए हुए उन्हें काफी बुराभला कह दिया.

‘‘इस के बावजूद भी बेटी के जिद पर अड़े रहने पर जब उन्होंने बेटी का विवाह में सहयोग करते हुए उस की शादी रजिस्ट्रार औफिस में करवा दी तब तो पत्नी ने उन के घर जा कर उन्हें बेहद जलील किया. इस घटना के बाद मैं ने ही उन्हें घर आने से रोक दिया. अब जब भी कोर्ट में उन से मिलता, उन का बुझाबुझा चेहरा और सीमित बातचीत के बाद एकदम खामोश हो कर ‘तो ठीक है,’ कह कर उन्हें छोड़ कर चले जाने का संकेत पा कर मैं बेहद खिन्न और लज्जित हो जाता था.

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार – भाग 3

जिस कमरे में अनवर मुझे ले गया, उस में हलका अंधेरा था. मैं ने देखा, एक कोने में एक लड़का फैल्ट हैट पहने म्यूजिक सुन रहा था. मैं अनवर की अम्मी के सीने से लग कर उन के मुंह से अपने लिए दुलहन शब्द सुनने को बेताब थी.

‘‘अम्मी को जल्दी बुलाइए न,’’ कह कर मैं अनवर को हैरानी से देखने लगी. दिल में तूफान सा छाया हुआ था जो अनवर की अम्मी के दीदार से ही शांत हो सकता था. बाहर अंधेरा स्याह होता जा रहा था.

‘‘अम्मी गुसलखाने में हैं.’’ अनवर ने मुझे कुरसी पर बैठा कर गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘तब तक कोक पियो.’’ अनवर की आंखों का बदलता रंग देख कर मैं ने जल्दी से कोक पी लिया. लेकिन यह क्या, मुझे सब कुछ धुआंधुआं सा लगने लगा. मैं होश खोती जा रही थी.

तभी अनवर ने मेरे गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. उस वक्त उस की आंखें बारूद उगल रही थीं. यह इंतकाम की आग थी. वह गुस्से में बोला, ‘‘मैं मवाली हूं, गुंडा हूं, बदचलन हूं. यही कहा था ना तेरी मां ने.’’

धीरेधीरे मैं पूरी तरह बेहोश हो गई, विरोध की कतई क्षमता नहीं थी. अनवर की दुलहन बनने का मेरा ख्वाब टूट चुका था. जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आना शुरू हुआ तो मुझे अनवर और उस के साथी की हंसी सुनाई दी. अनवर का दोस्त थोड़ी दूर गलियारे में उस से कह रहा था, ‘‘अनवर, आज जैसा मजा पहले कभी नहीं आया.’’

अनवर और उस के दोस्त की जहरीली हंसी मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभ रही थी. मैं लड़खड़ाते हुए उठी, पूरा बदन दर्द से बेहाल था. मेरे कपड़े, मेरा लहूलुहान जिस्म, मेरी तबाही की कहानी कह रहे थे. मैं चुपचाप बाहर आ गई. बाहर से स्कूटर ले कर मैं घर लौट आई. तब तक पूरा शहर अंधेरे के आगोश में डूब चुका था. गनीमत यह थी कि अब्बू टुअर पर थे. इस काली रात की कहानी जानने वाला मेरे अलावा कोई नहीं था.

मैं ने जब अम्मी को बताया तो वह चीख पड़ीं, मुझे बुरी तरह डांटा, पीटा. मैं सारी रात सिसकती रही. उस के बाद हर रात मेरी सिसकियां अंधेरों में घुटती रहीं. मम्मी भी किटी पार्टियां अटैंड करना, सैरसपाटा, शौपिंग सब भूल गई थीं. मेरी जैसी मांओं के लिए, जिन के पास अपने बच्चों की देखभाल का वक्त न हो, इस से बड़ी सजा और हो भी क्या सकती थी?

अम्मी ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि इस राज को परदे में ही रखूं. फिर जल्दीबाजी में मेरी शादी मेराज से कर दी गई थी. मेरी पसंदनापसंद या मरजी के बारे में पूछना भी मुनासिब नहीं समझा गया था. मैं होमली लड़की थी. शादी की बात आई तो नए अरमान फिर से जेहन में करवट लेने लगे. शौहर के कदमों के नीचे औरत का स्वर्ग होता है. मैं उसी स्वर्ग की कल्पना करने लगी.

मेरा निकाह हो गया. मैं सुहागसेज पर बैठी अपने शौहर के आने का बेताबी से इंतजार कर रही थी, मेरी आंखों में भावी जीवन के गुलाबी सपने तैर रहे थे. तभी किसी के कदमों की आहट पास आती सुनाई दी तो मैं खुद में सिमट गई. मैं ने घूंघट की ओट से देखा तो मेराज की सुनहरी शेरवानी से सजा फूलों सा महकता व्यक्तित्व नजर आया. उन्होंने धीरे से करीब आ कर मेरा घूंघट पलटा तो ऐसे चौंके जैसे किसी नागिन को देख लिया हो.

मुझे पर टेढ़ी नजर डाल कर मेराज बाहर चले गए. बस, उस दिन के बाद हम दोनों के बीच एक अदृश्य सी दीवार बन गई. हम ने सालों साथ गुजारे तो सिर्फ इसलिए क्योंकि दो बड़े परिवारों की इज्जत का मामला था. हम साथ रह कर भी नदी के दो किनारे बने रहे. मैं देवर और ननदों को पालने, बड़ा करने में लगी रही और मेराज बिजनैस में. मैं चाह कर भी नहीं जान पाई कि मेराज को मुझ से क्या शिकायत थी, वह मुझ से क्यों दूर रहना चाहते थे. अब तक यही स्थिति थी.

रात गहरा रही थी. नैनी झील के किनारे लगी लाइटों की रोशनी पानी की लहरों पर लहराती हुई बड़ी अच्छी लग रही थी, लेकिन अब उसे देखने का मन नहीं था. मैं मेराज के सीने से लिपटी उन में अपने हिस्से का प्यार खोज रही थी. मन चाह रहा था, सालों की चाह आज ही पूरी कर लूं.

तभी मेराज गंभीर स्वर में बोले, ‘‘क्या तुम किसी अनवर को जानती हो?’’

अनवर का नाम सुन कर मैं एक ही झटके में खयालों से बाहर आ गई. मैं ने डर कर कांपती आवाज में पूछा, ‘‘क्यों, आप उसे कैसे जानते हैं?’’

‘‘क्योंकि वह मेरा जिगरी दोस्त था. जिस रोज तुम उस के पास आई थीं, मैं ही कैप लगाए म्यूजिक सुन रहा था. अंधेरे की वजह से तुम मुझे पहचान नहीं सकी थीं. आगे क्या हुआ, तुम जानती ही हो. जब हमारा निकाह हुआ, मुझे भी मालूम नहीं था कि जिसे मेरा जीवनसाथी बनाया जा रहा है, वह तुम हो. यही वजह थी कि सुहागरात में घूंघट उठाते वक्त मैं चौंक गया था. गलती अनवर की थी और मैं उस में भागीदार था. इस के बावजूद मेरे मन में तुम्हें ले कर दुर्भावना बनी रही कि तुम्हें मेरी बीवी नहीं होना चाहिए था. लेकिन अब मेरी सोच बदल गई है. गलत मैं था, तुम नहीं.’’

लंबी खामोशी जब टूटती है तो उस की गूंज भी देर तक सुनाई देती है. डाल से बिछड़े पत्ते की तरह मैं बद्हवास थी, तभी इन का कोमल स्वर सुनाई दिया, ‘‘तुम ने वहां आ कर जो भूल की थी, उस में मैं भी तो बराबर का गुनहगार हूं.’’ इन के सीने से लगी मैं कांप रही थी. हम दोनों ही शर्मसार थे और एकदूसरे की चाहत में बेताब भी.

तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं – भाग 2

इस घटना के कुछ दिनों बाद शाम को मैं औफिस से घर लौटा तो वकील साहिबा मेरे घर पर मौजूद थीं और बेटियों से खूब घुममिल कर बातचीत कर रही थीं. मेरे पहुंचने पर बेटी ने चाय बनाई तो पहले तो उन्होंने थोड़ी देर पहले ही चाय पी है का हवाला दिया, मगर मेरे साथ चाय पीने की अपील को सम्मान देते हुए चाय पीतेपीते उन्होंने बेटियों से बड़ी मोहब्बत से बात करते हुए कहा, ‘देखो बेटी, मैं और तुम्हारी मम्मी एक ही शहर से हैं और एक ही कालेज में सहपाठी रही हैं, इसलिए तुम मुझे आंटी नहीं, मौसी कह कर बुलाओगी तो मुझे अच्छा लगेगा.

‘‘अब जब भी मुझे टाइम मिलेगा, मैं तुम लोगों से मिलने आया करूंगी. तुम लोगों को कोई परेशानी तो नहीं होगी?’ कह कर उन्होंने प्यार से बेटियों की ओर देखा, तो दोनों एकसाथ बोल पड़ीं, ‘अरे मौसी, आप के आने से हमें परेशानी क्यों होगी, हमें तो अच्छा लगेगा, आप आया करिए.

आप ने तो देख ही लिया, मम्मी तो अभी बातचीत करना तो दूर, ठीक से बोलने की हालत में भी नहीं हैं. वैसे भी वे दवाइयों के असर में आधी बेहोश सी सोई ही रहती हैं. हम तो घर में रहते हुए किसी अपने से बात करने को तरसते ही रहते हैं और हो सकता है कि आप के आतेजाते रहने से फिल्मों की तरह आप को देख कर मम्मी को अपना कालेज जीवन ही याद आ जाए और वे डिप्रैशन से उबर सकें.’

‘‘मनोचिकित्सक भी ऐसी किसी संभावना से इनकार तो नहीं करते हैं. अपनी बेटियों के साथ उन का संवाद सुन कर मुझे उन के एकदम घर आ जाने से उपजी आशंकापूर्ण उत्सुकता एक सुखद उम्मीद में परिणित हो गई और मुझे काफी अच्छा लगा.

‘‘इस के बाद 3-4 दिनों तक मेरा उन से मिलना नहीं हो पाया. उस दिन शाम को औफिस से घर के लिए निकल ही रहा था कि उन का फोन आया. फोन पर उन्होंने मुझे शाम को अपने औफिस में आने को कहा तो थोड़ा अजीब तो लगा मगर उन के बुलावे की अनदेखी भी नहीं कर सका.

‘‘उन के औफिस में वे आज भी बेहद सलीके से सजी हुई और किसी का इंतजार करती हुई जैसी ही मिलीं. तो मैं ने पूछ ही लिया कि वे कहीं जा रही हैं या कोई खास मेहमान आने वाला है?

‘‘मेरा सवाल सुन कर वे बोलीं, ‘आप बारबार यही अंदाजा क्यों लगाते हैं.’ यह कह कर थोड़ी देर मुझे एकटक देखती रहीं, फिर एकदम बुझे स्वर में बोलीं, ‘मेरे पास अब कोई नहीं आने वाला है. वैसे आएगा भी कौन? जो आया था, जिस ने इस मन के द्वार पर दस्तक दी थी, मैं ने तो उस की दस्तक को अनसुना ही नहीं किया था, पता नहीं किस जनून में उस के लिए मन का दरवाजा ही बंद कर दिया था. उस के बाद किसी ने मन के द्वार पर दस्तक दी ही नहीं.

‘‘आज याद करती हूं तो लगता है कि वह पल तो जीवन में वसंत जैसा मादक और उसी की खुशबू से महकता जैसा था. मगर मैं न तो उस वसंत को महसूस कर पाई थी, न उस महकते पल की खुशबू का आनंद ही महसूस कर सकी थी,’ यह कह कर वे खामोश हो गईं.

‘‘थोड़ी देर यों ही मौन पसरा रहा हमारे बीच. फिर मैं ने ही मौन भंग किया, ‘मगर आप के परिवारजन, मेरा मतलब भाई वगैरह, तो आतेजाते होंगे.’ मेरी बात सुन कर थोड़ी देर वे खामोश रहीं, फिर बोलीं, ‘मातापिता तो रहे नहीं. भाइयों के अपनेअपने घरपरिवार हैं. उन में उन की खुद की व्यस्तताएं हैं. उन के पास समय कहां है?’ कहते हुए वे काफी निराश और भावुक होने लगीं तो मैं ने उन की टेबल पर रखे पानी के गिलास को उन की ओर बढ़ाया और बोला, ‘आप थोड़ा पानी पी लीजिए.’

‘‘मेरी बात सुन कर भी वे खामोश सी ही बैठी रहीं तो मैं गिलास ले कर उन की ओर बढ़ा और उन की कुरसी की बगल में खड़ा हो कर उन्हें पानी पिलाने के लिए गिलास उन की ओर बढ़ाया. तो उन्होंने मुझे बेहद असहाय नजर से देखा तो सहानुभूति के साथ मैं ने अपना एक हाथ उन के कंधे पर रख कर गिलास उन के मुंह से लगाना चाहा. उन्होंने मेरे गिलास वाले हाथ को कस कर पकड़ लिया. तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ, और मैं ने सौरी बोलते हुए अपना हाथ खींचने की कोशिश की.

‘‘मगर उन्होंने तो मेरे गिलास वाले हाथ पर ही अपना सिर टिका दिया और सुबकने लगीं. मैं ने गिलास को टेबल पर रख दिया, उन के कंधे को थपथपाया. पत्नी की लंबी बीमारी के चलते काफी दिनों के बाद किसी महिला के जिस्म को छूने व सहलाने का मौका मिला था, मगर उन से परिचय होने के कम ही वक्त और अपने सरकारी पद का ध्यान रखते हुए मैं शालीनता की सीमा में ही बंधा रहा.

‘‘थोड़ी देर में उन्हें सुकून महसूस हुआ तो मैं ने कहा, ‘आई एम सौरी वकील साहिबा, मगर आप को छूने की मजबूरी हो गई थी.’ सुन कर वे बोलीं, ‘आप क्यों अफसोस जता रहे हैं, गलती मेरी थी जो मैं एकदम इस कदर भावुक हो गई.’ कह कर थोड़ी देर को चुप हो गईं, फिर बोलीं, ‘आप से एक बात कहना चाहती हूं. आप ‘मैं जवान हूं, मैं सुंदर हूं’ कह कर मेरी झूठी तारीफ कर के मुझे यों ही बांस पर मत चढ़ाया करिए.’ यह कहते हुए वे एकदम सामान्य लगने लगीं, तो मैं ने चैन की सांस ली.

‘‘उस दिन के बाद मेरा आकर्षण उन की तरफ खुद ही बढ़ने लगा. कोर्ट से लौटते समय वे अकसर मेरी बेटियों से मिलने घर आ जाती थीं. फिर घर पर साथ चाय पीते हुए किसी केस के बारे में बात करते हुए बाकी बातें फाइल देख कर सोचने के बहाने मैं लगभग रोज शाम को ही उन के घर जाने लगा.

पत्नी की मानसिक अस्वस्थता के चलते उन से शारीरिक रूप से लंबे समय से दूर रहने से उपजी खीझ से तल्ख जिंदगी में एक समवयस्क महिला के साथ कुछ पल गुजारने का अवसर मुझे खुशी का एहसास देने लगा.