इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 3

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी. लोहे के वजनी रेंच से वार किया गया था.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 2

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश को आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, क्योंकि छत की चाबी उन के पास रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब 15-20 ब्लौक छत पर लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया है. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. उसी का नतीजा यह कत्ल है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. 9 बजे तक वह घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 1

मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारों की तरह घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं्?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

बुरे फंसे यार: जब लालच में फंसे चोर

प्रस्तुति: शकील 

जैकब प्लाजा फाउंटेन के पास बेखयाली में खड़ा था. उस की नजरें उस लड़की पर जमी थीं जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. कुछ और सिक्के पानी में फेंक कर वह चली गई. उस के बाद एक औरत आई. वह भी फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. जैकब सोचा करता था कि किसी तरह दौलत हाथ आ जाए. लेकिन लोग इतने होशियार हो गए हैं कि जल्दी बेवकूफ भी नहीं बनते.

जैकब आजकल बहुत कड़की में था. उस ने सिर उठा कर आसमान की ओर देखा तो अनायास उस की नजर टाउन प्लाजा की खिड़की पर पड़ गई. खिड़की देख उस के दिमाग में एक आइडिया आ गया. उस ने खिड़की को गौर से देखा. वह खिड़की फाउंटेन के ठीक ऊपर बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर स्थित ज्वैलरी शौप की थी. उस के दिमाग में हलचल मच गई.

इस बीच कुछ बच्चे आ गए थे, जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रहे थे. जैकब वहां से टेलीफोन बूथ पर पहुंचा और अपने दोस्त ब्राउन को फोन लगाया. काफी दिनों से ब्राउन ने कोई वारदात नहीं की थी. पुलिस के पास उस का रिकौर्ड साफ था. जैकब ने कहा, ‘‘ब्राउन, एक अच्छा आइडिया है. हम दोनों मिल कर काम कर सकते हैं. मैं यहां फाउंटेन प्लाजा के पास हूं, आ जाओ. एक अच्छी जौब है.’’

‘‘मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहे हो. मैं तुम्हें 2 घंटे बाद ब्रिज पार्क बार में मिलता हूं.’’ ब्रिज पार्क बार पुरसुकून जगह थी. जैकब और ब्राउन की मीटिंग के लिए एक अच्छी जगह. ब्राउन ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या कहानी है?’’

‘‘टाउन डायमंड एक्सचेंज के हम मुट्ठी भर पत्थर चुपचाप से उठा सकते हैं, जिस की कीमत करीब 5 लाख डौलर होगी.’’ जैकब ने धीरे से बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम यह काम कर सकते हो. मैं तुम्हारा बाहर इंतजार करूंगा.’’

‘‘बहुत खूब. यानी पुलिस मुझे दबोच ले और तुम बाहर इंतजार करो.’’ ब्राउन ने गुस्से से कहा.

‘‘कोई किसी को नहीं पकड़ेगा. तुम मेरी बात तसल्ली से सुनो. तुम किसी अमीरजादे की तरह चौथी मंजिल पर ज्वैलरी शौप पर पहुंचोगे और हीरों की एक ट्रे निकलवाओगे. वक्त दोपहर का होगा. इस वक्त बहुत कम ग्राहक होते हैं. उसी वक्त मैं हाल में हंगामा फैलाने का इंतजाम करूंगा. तुम फौरन मुट्ठी भर कीमती हीरे उठा लेना.’’

‘‘फिर मैं क्या करूंगा? क्या पत्थरों को निगल जाऊंगा?’’

‘‘यार पूरी बात तो सुनो. ऐसा कुछ नहीं है. सब की नजर बचा कर तुम मुट्ठी भर हीरे खिड़की से बाहर फेंक देना.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरे सिर से गुजर रही हैं. एसी की वजह से सारी खिड़कियां बंद होंगी.’’

‘‘मैं ने आज ही खिड़की खुली देखी है. उसी को देख कर यह आइडिया आया, क्योंकि कोई भी 4 मंजिल तय कर के हीरों के साथ नीचे नहीं उतर सकता. लेकिन हीरे अकेले 4 मंजिल उतर सकते हैं.’’

‘‘जैकब, मुझे यह पागलपन लग रहा है.’’ ब्राउन ने कहा.

‘‘तुम बात समझो. खिड़की काउंटर से ज्यादा दूर नहीं है. तुम हीरे उठा कर पलक झपकते ही खिड़की से बाहर उछाल देना. तुम्हें काउंटर से हट कर खिड़की तक जाने की भी जरूरत नहीं होगी. तुम अपनी जगह पर ही खड़े रहना. अगर तुम पर शक होता भी है तो तुम्हारी तलाशी ली जाएगी. तुम्हें मशीन पर खड़ा किया जाएगा, पर तुम्हारे पास से कुछ नहीं निकलेगा. मजबूरन तुम्हें छोड़ कर के वे दूसरे ग्राहकों को देखेंगे.’’

‘‘चलो ठीक है, हीरे बाहर चले जाएंगे. पर क्या तुम उन्हें कैच करोगे? एक तरफ कहते हो कि तुम हाल में हंगामा करोगे फिर बाहर पत्थरों का क्या होगा?’’ ब्राउन ने ताना कसा.

‘‘यही तो मंसूबे की खूबसूरती है.’’ जैकब मुसकराया, ‘‘खिड़की के ठीक नीचे खूबसूरत फव्वारा और हौज है. हीरे हौज की गहराई में चले जाएंगे. जैसे कि बैंक की वालेट में बंद हों. कोई भी वहां हीरे गिरते नहीं देख सकेगा, न कोई बाद में देख सकता है क्योंकि यह शीशे की तरह सफेद है. कीमती पत्थरों की यही तो खूबी है, कलर, कैरेट और कट बहुत जरूरी होते हैं.’’

‘‘पर जब सूरज की किरणें पड़ेंगी तो?’’

‘‘सूरज की किरणें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि पानी पर पूरे समय बिल्डिंग और पेड़ों का साया रहता है. मैं ने सब चैक कर लिया है. जब तक किसी को पता न हो कोई उन के बारे में नहीं जान सकता. 2-3 दिन बाद हम रात को आएंगे और आराम से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने समझाया.

ब्राउन ने सिर हिला कर कहा, ‘‘प्लान तो अच्छा है.’’

अगले दिन ठीक सवा 12 बजे ब्राउन टाउन प्लाजा की चौथी मंजिल पर पहुंच गया. गार्ड ने मामूली चैकिंग कर के उसे अंदर जाने दिया. हाल में बहुत कम ग्राहक थे. ब्राउन मौका देख कर ठीक खिड़की के सामने खड़ा हो गया. सिर झुका कर उस ने एक ट्रे की तरफ इशारा किया.

जैसे ही सेल्समैन ने ट्रे बाहर निकाली, जैकब प्रवेश द्वार के हैंडल पर हाथ रख कर झुका और धड़ाम से नीचे गिर गया. गेट पर खड़ा गार्ड उस की तरफ बढ़ा. अंदर के लोगों का ध्यान बंट गया. सब उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मिस्टर, क्या हुआ? तुम ठीक हो न?’’ गार्ड ने उस पर झुक कर पूछा.

‘‘मुझे…मुझे…सांस…’’ फिर उस ने पानी के लिए इशारा किया.

कुछ कस्टमर भी वहां जमा हो गए. 2 सेल्समैन भी आ गए. एक पानी ले आया. बड़ी मुश्किल से उस ने थोड़ाथोड़ा पानी पीया. वह बुरी तरह हांफ रहा था.

जैकब की ऐक्टिंग बहुत शानदार थी. वह धीरेधीरे लड़खड़ाता हुआ लोगों के सहारे खड़ा हुआ. एक क्लर्क ने अपनी कुरसी पेश कर दी.

‘‘मैं शायद बेहोश हो गया था.’’ वह धीरे से बड़बड़ाया. ‘‘तुम्हें डाक्टर की जरूरत है?’’ क्लर्क ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं मुझे घर जाना है. आप का शुक्रिया. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं.’’ उस ने ब्राउन की तरफ देखने की बेवकूफी नहीं की. बहुत धीरेधीरे गेट से बाहर निकल गया.

इमारत से निकल कर वह फव्वारे की तरफ पहुंच गया. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. फव्वारे की लंबीऊंची धाराएं बड़े हौज में गिर रही थीं. उस की तह में सिवाए सिक्कों के और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जैकब का अंदाजा दुरुस्त था. खुशी में उस ने भी एक सिक्का उछाल दिया. वहां से वह सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा. 2 घंटे के बाद ब्राउन की काल आ गई.

‘‘काम हो गया?’’ जैकब ने बेचैनी से पूछा.

‘‘काम तो हो गया पर बस इतना ही वक्त मिला था कि हीरे पानी में फेंक दूं. उस के बाद तो हंगामा मच गया, पुलिस आ गई. मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा. वहां से हिला तक नहीं.

शौप वालों ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी. पुलिस भी मुस्तैद थी. मेरी 2 बार तलाशी ली गई, पर मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ. डायमंड एक्सचेंज वाले सख्त हैरान, परेशान थे.

‘‘किसी ने तुम्हारा जिक्र भी किया पर क्लर्क ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि वह आदमी गेट के अंदर नहीं आया था. गेट से ही वापस चला गया था.

तुम्हारा मंसूबा शानदार था. शौप वाले मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पकड़ कर भी नहीं रख सकते थे. मैं निश्चिंत था. हर तरह की जांच करने के बाद करीब ढाई घंटे में मुझे छोड़ दिया गया. चलो, कल मिलते हैं ब्रिज पार्क में.’’

अगले दिन दोनों ब्रिज पार्क में बैठे बियर पी रहे थे. दोनों के चेहरे चमक रहे थे. जैकब ने कहा, ‘‘हम दोनों ने मिल कर शानदार कारनामे को अंजाम दिया है. ब्राउन, यह तो बताओ फिर वहां क्या हुआ?’’

‘‘मुझ से बारबार पूछा गया कि मैं ने क्या देखा. मेरा एक ही जवाब था कि मैं ने कुछ नहीं देखा. हां, मैं ने हीरे की ट्रे जरूर निकलवाई थी. इस से पहले कि मैं हीरों को देखता, एक आदमी धड़ाम से गेट पर गिर गया. मेरा ध्यान भी दूसरों की तरह उस तरफ चला गया.

‘‘मेरे साथ 4 और ग्राहक थे. मेरी पोजीशन हर तरह से साफ थी. हम सब की तलाशी बारबार ली गई. तंग आ कर एक्सरे तक ले डाला.

शायद पुलिस सोच रही थी कि हमारे पास कोई छिपा हुआ पाउच होगा और उसी में हीरे होंगे. पर सब बेकार गया. कुछ हासिल नहीं हुआ. तंग आ कर मुझे छोड़ दिया गया. मेरे बाद भी 2 आदमियों की जांच हो रही थी.’’ ब्राउन ने कहकहा लगाते हुए कहा.

‘‘अब क्या इरादा है?’’ ब्राउन ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आज रात को वहां से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने जवाब दिया.

ब्राउन बोला, ‘‘यार, घबराहट में मैं 5 हीरे ही बाहर फेंक सका.’’

जैकब ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. 5 लाख डौलर भी बहुत होते हैं.’’

जैकब और ब्राउन देर रात फव्वारे पर पहुंच गए. आज उन के ख्वाबों में रंग भरने की रात थी. दोनों ने जल्दी मुनासिब न समझी. दोनों एक कोने में काले कपड़ों में छिप कर बैठ गए. आधी रात तक का इंतजार किया.

लोगों की आवाजाही अब खत्म हो चुकी थी. फव्वारा अभी बंद था. पानी बिलकुल स्थिर था. इन्हें हीरे तलाश करने में मुश्किल नहीं हुई. 3 हीरे मिलने के बाद ब्राउन ने कहा, ‘‘जैकब, 3 काफी हैं, निकल चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, एक और तलाश कर लें फिर चलते हैं.’’ जैकब ने इसरार किया.

अचानक फ्लैश लाइट्स औन हो गईं. एकदम वे दोनों तेज रोशनी में नहा गए. एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘वहीं रुक जाओ.’’

दोनों अभी ही हौज से बाहर निकले थे. ‘मारे गए यार…’ जैकब ने फ्लैश लाइट्स से बाहर दौड़ लगाई. लेकिन पुलिस वाले गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच गए. एक ने जैकब पर गन तान ली, दूसरे ने ब्राउन पर. दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो गए. ‘‘ईजी औफिसर, गोली मत चलाना. आप ने हमें पकड़ लिया है.’’ ब्राउन ने डर कर कहा.

‘‘तुम ठीक समझे. जरा भी हलचल की तो गोली चल जाएगी.’’ गन वाला गुर्राया.

‘‘हौज से मिलने वाले सिक्के हर महीने चैरिटी के नाम पर यतीमखाने में दिए जाते हैं. तुम दोनों इतने बेईमान हो कि खैराती रेजगारी भी चुराने आ गए.

ठहरो, अभी तुम्हारी तलाशी होती है. जज कम से कम 3 महीने की सजा तो देगा ही. इन्हें गनपौइंट पर गाड़ी में डालो. पुलिस स्टेशन पर इन की तलाशी ली जाएगी.’’

दोनों मजबूरन हाथ उठाए उदास से गाड़ी में बैठ गए. ब्राउन धीरे से बोला, ‘‘बुरे फंसे यार.’’

वचन-भाग 1 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

वैशालपुर के ठाकुर प्रताप सिंह की बेटी थी राजबाला. वह बेहद सुंदर और धैर्यवान होने के साथ चतुर भी थी. आसपास के रजवाड़ों में ऐसी गुणों की खान कोई न थी. राजबाला का गोरा रंग, सुतवां नाक, कजरारे बड़ेबड़े नैन और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे गुलाबी होंठ, भरा और कसा बदन, कमर तक लटकती स्याह काली केशराशि और मोहक मुसकान देख कर लोग उसे ऐसे ताकते रह जाते थे, जैसे वह किसी दूसरे लोक से आई कोई अप्सरा हो.

मगर हकीकत में वह कोई अप्सरा नहीं, बल्कि राजपूत बाला राजबाला थी. अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करती थी और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उस ने पति की इच्छा के खिलाफ कोई काम किया हो.

राजबाला का विवाह अमरकोट रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनार सिंह के पुत्र अजीत सिंह से हुआ था. अनार सिंह के पास बहुत बड़ी सेना थी, जिस से कभीकभी वह लूटमार भी किया करते थे.

एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कहीं से आ रहा था. इस की खबर अनार सिंह को लग गई. तब अनार सिंह अपनी सेना ले कर राजकोष लूटने चल पड़े. राव कोटा के सिपाही बड़े वीर थे. दोनों सेनाओं में जम कर युद्ध हुआ. अंत में अनार सिंह की पराजय हुई और उन की सारी सेना तितरबितर हो गई.

इस पराजय के कारण अनार सिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया. कोटा के राजा राव ने अनार सिंह की जागीर छीन ली और उन्हें देश निकाले का फरमान सुना दिया. अनार सिंह अब अपने किए पर पछता रहे थे.

मगर जो होना था, वह तो हो चुका था. अंत में वह सोडा को छोड़ कर काले वस्त्र धारण कर काले घोड़े पर बैठ कर स्याह काली रात के अंधेरे में दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव में जा बसे.

अनार सिंह का हाथ तो पहले से ही तंग था, अब हालत और भी खराब हो गए. कहावत है कि रिजक (धन) बिन राजपूत कैसा. यहां तक कि देश निकाला मिलने के थोड़े समय बाद में दुख और लाज के मारे उन्होंने प्राण त्याग दिए.

अनार सिंह की मृत्यु के बाद उन की पत्नी ठकुरानी अपने पुत्र अजीत सिंह को बड़े कष्ट उठा कर पालने लगी. अजीत सिंह की उम्र उस समय 13 वर्ष रही होगी. किंतु बांकपन और वीरता में वह अपनी उम्र के बालकों से कहीं बढ़ कर था. इस कुल की धीरेधीरे यह दुर्दशा हो गई कि अजीत सिंह की माता दूसरों का कामकाज कर के निर्वाह करने लगी. इस प्रकार उस दुखिया की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई.

राजबाला के साथ अजीत सिंह के विवाह की बातचीत उस के पिता के जीते जी हो गई थी. हालांकि अनार सिंह का यह कुल अति दरिद्र हो गया था. परंतु राजपूत लोग सदा से अपने वचन का सम्मान करते थे.

राजपूतानियां भी प्राय: अति हठी होती थीं. एक बार जब किसी के साथ उन का नाम निकल जाए, फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ विवाह करना उचित नहीं समझती थीं.

अजीत सिंह अब बिलकुल अनाथ था. वह किसी प्रकार अपना निर्वाह न कर सकता था. किंतु उसे आशा थी कि उस के युवा होने पर शायद कोटा का राजा उस के पिता की जागीर उसे दे देगा, जिस का वह वारिस है. बस, वह इसी आशा से जी रहा था.

एक बार अजीत सिंह ने एक राजपूतानी को प्रताप सिंह के यहां इसलिए भेजा था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उस के साथ करने को राजी है या नहीं? उस समय राजबाला भी युवती थी. वह विवाह का समाचार सुन कर अपनी सहेलियों से कहने लगी, ‘‘बहनो, मैं ने अपने पति को नहीं देखा, वह कैसे हैं?’’

सहेलियां बोलीं, ‘‘तुम्हारे पति अति सुंदर, बुद्धिमान और वीर हैं.’’

पति की प्रशंसा सुन कर राजबाला अति प्रसन्न हुई और कहने लगी, ‘‘मेरे पति वीर हैं, चतुर हैं और सुंदर हैं. ये ही सब बातें एक राजपूत में होनी चाहिए. सब कहते हैं कि उन के पास धन नहीं है. न सही, जहां बुद्धि और पराक्रम है, वहां धन अपने आप ही आ जाता है.’’

राजबाला ने किसी तरह उस राजपूतानी से मिल कर कहा, ‘‘तुम जा कर मेरे पति से कहो कि यहां लोग तुम्हारी दरिद्रता का समाचार कहते रहते हैं, परंतु मैं आज से ही नहीं, कई सालों से आप की हो चुकी हूं. आप मेरे पति हैं, मैं आप की बुराई सुनना नहीं चाहती. इसलिए आप स्वयं आ कर पिताजी से कह कर मुझे ले जाएं. मैं गरीबी और अमीरी में सदा आप का साथ दूंगी. किसी का वश नहीं कि मेरी बात को टाल सके. यदि विवाह होगा तो आप के साथ होगा, नहीं तो राजबाला प्रसन्नतापूर्वक प्राण त्याग करेगी.’’

जिस समय राजपूतानी ने राजबाला का यह संदेश अजीत सिंह को सुनाया. वह बहुत खुश हुआ और कहने लगा, ‘‘यह कैसे संभव है कि मेरे जीते जी कोई और राजबाला को ब्याह ले जाए.’’

राजबाला के कहे अनुसार अजीत सिंह ने उस के पिता प्रताप सिंह को विवाह के लिए कहलवा भेजा. जिस के जवाब में प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘विवाह को तो हम तैयार हैं. क्योंकि हम ने तुम्हारे पिता को वचन दिया था. परंतु इस समय तुम्हारी आर्थिक हालत सही नहीं है. ऐसा करो कि तुम 20 हजार रुपए इकट्ठा कर के लाओ, जिस से यह मालूम हो कि तुम मेरी बेटी को सुखी रख सकोगे. जब तक तुम्हारे पास 20 हजार रुपए न हों तो विवाह के बारे में भी तुम्हारा सोचना व्यर्थ है.’’

आखिर प्रताप सिंह की बात भी उचित थी. कोई भी पिता अपनी ऐशोआराम में पली बेटी का विवाह ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कैसे कर सकता है, जिस का खुद निर्वाह करना मुश्किल होता हो.

अजीत सिंह सोच में डूब गया. परंतु बेचारा क्या करता. अंत में उसे जैसलमेर के एक सेठ मोहता का ध्यान आया, जिस के यहां से उस के पिता का लेनदेन था.

वह सेठ मोहता के पास गया और उस से कहा, ‘‘सेठजी, तुम मेरे घराने के पुराने महाजन हो. 20 हजार रुपए के बिना मेरा विवाह नहीं हो रहा है. विवाह करना जरूरी है, परंतु तुम जानते हो कि मेरे पास इस समय न जागीर है, न ही कुछ और है. अगर पुराने संबंधों का विचार कर के और मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे 20 हजार रुपए दे सको तो दे दो. मैं सूद सहित वापस कर दूंगा.’’

वचन-भाग 3 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

राणा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने उसे जाते हुए देखा है. हालांकि ठीकठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो उसे अवश्य लूंगा. उस के मुख की सुंदरता मेरी आंखों में खपी जाती है.’’

राजा की बात सुन कर सब चुप हो गए और सवारी महल की ओर चली. जब राणा फाटक पर पहुंचे तो हाथी से उतर कर आज्ञा दी, ‘‘एकएक आदमी मेरे सामने से हो कर निकल जाएं.’’

आज्ञानुसार बारीबारी से सभी लोग राणा के सामने से निकल कर महल में चले गए. जब गुलाब सिंह जाने लगा तो राणा ने उसे देख कर पूछा, ‘‘क्या सिंह को तुम ने मारा है?’’

गुलाब सिंह ने सिर झुका कर कहा, ‘‘जिस को श्रीमान कहें, वही सिंह का वध कर सकता है. सिंह की मृत्यु तो आप की आज्ञा के अधीन है.’’

राणा बोले, ‘‘मैं समझता हूं, सिंह तुम ने ही मारा है परंतु मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि तीव्रगति से दौड़ते घोड़े ने मुझे इतना अवसर न दिया कि मैं मारने वाले को ठीक से पहचान सकता.’’

अजीत सिंह भी निकट था, वह बोला, ‘‘अनाथों के नाथ, सिंह के कान और पूंछ नहीं हैं, इस से ज्ञात होता है कि उस को मारने वाले ने प्रमाण के लिए उस के कान और पूंछ काट लिए हैं.’’

राणा ने गुलाब सिंह से कहा, ‘‘कान और पूंछ हाजिर करो.’’

गुलाब सिंह ने तुरंत घोड़े की जीन के नीचे से निकाल कर उन्हें राणा के सामने पेश किया. राणा बोले, ‘‘राजपूतो, तुम बड़े वीर हो. आज से तुम मेरे संग रहो. मैं तुम्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त करता हूं.’’

हालांकि दोनों राजपूत संग रहते थे परंतु रात के समय दोनों को अलगअलग हो जाना पड़ता था. अजीत सिंह तो रात को दरबार में रहता था और राजबाला (गुलाब सिंह) की ड्यूटी राजा के सुख भवन में थी. एक दिन राजबाला अपनी बेबसी पर नीचे स्वर में मल्हार के राग गाने लगी.

अजीत सिंह ने राजबाला के राग को सुना. उस के हृदय में भी वही भाव उद्दीप्त हो गया. उस ने भी राजबाला के राग में स्वर मिला दिया. राणा की रानी बहुत चतुर थी. दोनों गाने वालों के राग की आवाज रात के समय उस के कानों में पड़ी.

उस ने राणा से कहा, ‘‘मुझे ज्ञात होता है कि ये दोनों राजपूत जो तुम्हारी सेवा में हैं स्त्री और पुरुष हैं. यह जो पुरुष रानी निवास पर पहरे पर है, अवश्य यह स्त्री है. कोई कारण है, जिस से ये एकदूसरे से नहीं मिलते और मन ही मन कुढ़ते हैं.’’

राणा खूब ठहाके मार कर हंसे फिर बोले, ‘‘खूब, तुम्हें खूब सूझी. ये दोनों सालेबहनोई हैं. सदा से संग रहते हैं. आज यह यहां ड्योढ़ी पर हैं कि कभी अलग नहीं होंगे. इन दोनों में गाढ़ी प्रीत है.’’

रानी बोली, ‘‘महाराज, आप जो कहते हैं सत्य होगा, परंतु मेरी भी बात मान लीजिए. इन की परीक्षा कीजिए. अपने आप ही झूठसच ज्ञात हो जाएगा.’’

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और तुरंत ही अजीत सिंह और गुलाब सिंह दोनों को अपने महल में बुला भेजा. दोनों बड़े डरे कि क्या बात है. कोई नई आफत तो नहीं आई.

उन्होंने राणा के सामने जा कर प्रणाम किया. तब राणा ने पूछा, ‘‘गुलाब सिंह और अजीत सिंह यह बताओ कि तुम दोनों मर्द हो या तुम में से कोई स्त्री है?’’

दोनों चुप थे. क्या उत्तर देते. राणा ने फिर वही प्रश्न किया, ‘‘तुम दोनों बोलते क्यों नहीं? तुम्हें जो दुख हो कहो. मेरे अधिकार में होगा तो अभी इसी समय दूर कर दूंगा. लाज, भय की कोई बात नहीं.’’

अजीत सिंह ने सिर झुका कर राणा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई. राणा ने उसी समय दासी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, यह जो बहन मरदाना वेश में खड़ी है, मेरी पुत्री है. इस को अभी महल में ले जा कर स्त्रियों के कपड़े पहना दो और महल में रहने के लिए अलग स्थान दो, हर प्रकार से इन को आराम दो.’’

राजबाला राणा को प्रणाम कर उन की आज्ञा मान कर उसी समय सिर झुका कर महल में चली गई.

इस के बाद राणा ने अजीत सिंह से कहा, ‘‘राजपूत, मैं तेरे बापदादा के नाम को जानता हूं. तेरा वचनबद्ध होना धन्य है. मैं ने आज तक अपनी आयु में ऐसा योगी नहीं देखा था. तू मनुष्य नहीं देवता है. जा महल में अब अपनी स्त्री से बात कर.’’

रात को किसी को नींद नहीं आई. सुबह होते ही राणा ने 20 हजार रुपए सूद सहित अजीत सिंह को दिए.

वह उसी समय ऊंटनी पर चढ़ कर जैसलमेर की ओर चल दिया. कई दिन के सफर के बाद अजीत सिंह जैसलमेर मोहता सेठ के पास पहुंचा और सूद सहित 20 हजार रुपए सौंप दिए.

एक बरस से अजीत सिंह का कोई अतापता नहीं था. बनिया अपने रुपयों से निराश हो गया था परंतु उसे कोई रंज न था. क्योंकि वह अजीत सिंह के पिता अनार सिंह से बहुत कुछ ले चुका था. रुपए वापस पा कर सेठ बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम वास्तव में क्षत्रिय हो, तुम जानते हो कि वचन क्या होता है. तुम महान हो.’’

अजीत सिंह सेठ के रुपए दे कर उदयपुर आया और राणा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘आप ने मेरी लाज रख ली.’’

राणा ने राजबाला को प्राणरक्षक देवी का खिताब दिया. वह उदयपुर में इसी नाम से विख्यात थीं. वह जब कभी राणा के महल में उन के होते हुए जाती, राणा बेटी कह कर पुकारते थे.

पतिपत्नी दोनों राणा के कृपापात्र बन गए. राणा उन्हें बहुत प्यार करते थे, मानो वे उन के ही बेटेबेटी हों. राजबाला और उस के पति के लिए एक अलग से महल बनवा दिया गया और उन्हें एक जागीर भी अलग प्रदान की कई.

सेठ के रुपए चुका कर उदयपुर जाने के बाद उस रात जब बिस्तर पर अजीत सिंह और राजबाला सोए, तब उन के बीच तलवार नहीं थी. दोनों ने अपना वचन धर्म निभाया था और उस दिन दो जिस्म एक जान बन गए थे.

वचन-भाग 2 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

सेठ मोहता ने अजीत सिंह को बड़े ध्यान से देख कर कहा, ‘‘ये लो, ये 20 हजार रुपए रखे हैं. लेकिन एक शर्त है, वो यह कि तुम यह वचन दो कि जब तक तुम मेरे रुपए वापस न लौटा दोगे, तब तक अपनी पत्नी से मिलन नहीं करोगे. अगर ऐसा करते हो तो यह रुपए ले लो.’’

ऐसे वचन को निभाना बड़ी कठिन बात थी. परंतु रुपए मिलने का और कोई उपाय भी तो न था. अत: वह राजी हो गया और रुपए ले कर अपनी ससुराल वैशालपुर आया.

अपने वचन के अनुसार प्रताप सिंह ने दोनों का विवाह कर दिया. यह किसी को जरा भी खबर न हुई कि रुपए कहां से आए. विवाह के बाद रीतिरिवाज के अनुसार दूल्हा दुलहन दोनों के लिए एक महल दे दिया गया. वे कई दिन तक उस में रहे, परंतु सेज पर सोते समय अजीत सिंह अपने और पत्नी के बीच नंगी तलवार रख कर सोता था.

राजबाला को उन के इस प्रकार के बर्ताव से बड़ा आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगी, ‘सचमुच मेरे पति बड़े सुंदर हैं, चतुर और वीर हैं, पर नामालूम बीच में नंगी तलवार रख कर सोने का क्या मतलब है?’

कई दिन इसी तरह बीत गए, परंतु राजबाला को इतना साहस नहीं हुआ कि कुछ पूछती. अंत में एक दिन दोनों में बातचीत होने लगी. राजबाला ने साहस कर के पूछा, ‘‘प्राणनाथ, मैं देखती हूं कि आप प्राय: ठंडी और गहरी सांसें लेते रहते हैं. इस से पता चलता है कि आप को कोई बड़ा कष्ट हो रहा है. मैं तो आप के चरणों की दासी हूं, मुझ से छिपाना उचित नहीं है. मैं विचार करूंगी कि किस प्रकार आप की चिंता दूर हो सकती है.’’

राजबाला की बात सुन कर उस का दिल भर आया और मुंह नीचा कर के उस ने चुप्पी साध ली. राजबाला ने फिर कहा, ‘‘स्वामी, घबराने की कोई बात नहीं है. इस संसार में सभी पर विपत्ति आती है. चिंता व्यर्थ है. संसार में हर रोग की दवा है. आप चिंता न कीजिए, मुझ से कहिए. यथासंभव मैं आप की सहायता करूंगी. यदि मेरे मरने से भी आप को सुख मिलता है या आप का भला होता है तो मेरे प्राण आप की सेवा को हर समय तैयार हैं.’’

राजबाला का इतना कहना था कि अजीत सिंह ने राजबाला का हाथ पकड़ लिया और दुखभरे शब्दों में अपनी सब कथा कह सुनाई.

जब अजीत सिंह यह सब कह चुका तो राजबाला ने कहा, ‘‘स्वामी, आप ने बड़ा त्याग कर के मुझे मोल लिया है. मैं कभी आप की इस कृपा को नहीं भूल सकती. पर यह ऐसी जगह नहीं है, जहां 20 हजार रुपए मिल सकें. इसलिए इसे छोड़ना उचित है.

‘‘मैं इसी समय मरदाना वेश धारण करती हूं. मैं और आप संगसंग रहेंगे. जब कोई आप से मेरे बारे में पूछे तो आप साले बहनोई बताएं. चलिए, परदेश चल कर महाजन के 20 हजार रुपए चुकाने का उपाय करें.’’

आधी रात का समय था, जब पतिपत्नी में इस प्रकार की बातचीत हुई. सब लोग बेसुध सो रहे थे. राजबाला ने मरदाना वेश धारण किया. अजीत सिंह और राजबाला दोनों महल से बाहर आए और घोड़ों पर सवार हो कर चल दिए.

कई दिन के सफर के बाद 2 सुंदर बांके युवक घोड़ों पर सवार उदयपुर में दिखाई दिए. उस समय मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराज जगत सिंह राज करते थे. राणा महल की छत पर बैठे नगर को देख रहे थे. नए राजपूतों को देख कर उन का हाल जानने के लिए राणा ने 2 दूतों को भेजा.

थोड़ी देर में दोनों राजपूत राणा के सामने लाए गए. जब दोनों राजपूत प्रणाम कर चुके तो महाराज ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो? कहां से आए हो? और कहां जा रहे हो?’’

अजीत सिंह ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, हम दोनों राजपूत हैं. मेरा नाम अजीत सिंह और ये मेरे साले हैं. इन का नाम गुलाब सिंह है. नौकरी की तलाश में आप के यहां आए हैं. सौभाग्य से आप के दर्शन हो गए. अब आगे क्या होगा, नहीं मालूम.’’

राजा राजपूतों के ढंग को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और राजपूतों के नाम पर मोहित हो कर महाराज ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘तुम लोग मेरे यहां रहो. एक हवेली तुम्हारे रहने के लिए दी जाती है. खानपान के लिए अतिरिक्त 5 हजार रुपए और दिए जाएंगे.’’

राजबाला और अजीत सिंह दोनों अब उदयपुर में रहने लगे, परंतु 20 हजार रुपए की चिंता सदा लगी रहती थी. रुपए जुटाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. वह वर्षा ऋतु के आरंभ में यहां आए थे और वर्षा ऋतु बीत गई.

फिर दशहरे का त्यौहार आया. इस पर राजपूताना में बड़ा उत्सव मनाया जाता है. उदयपुर में पाड़े (भैंसे) का वध किया जाता है. महाराज के साथ सब सामंत, जागीरदार, सरदार घोड़ों पर सवार हुए. उन के साथ गुलाब सिंह और अजीत सिंह भी चल दिए.

इतने में ही एक गुप्तचर ने आ कर खबर दी, ‘‘महाराज की जय हो. पाड़े के स्थान पर एक सिंह की खबर है.’’

राणा ने राजपूतों से कहा, ‘‘वीरों, आज का दिन धन्य है जो सिंह आया है. ऐसा अवसर बड़ी कठिनाई से मिलता है. अब पाड़े का ध्यान छोड़ कर सिंह का शिकार करो.’’

बस, फिर क्या था. हांके वालों ने सिंह को जा कर घेर लिया और उस के निकलने के लिए केवल एक ही रास्ता रखा जिधर राजा और सरदार उस सिंह का इंतजार कर रहे थे.

महाराज हाथी पर थे. वह चाहते थे कि स्वयं सिंह का शिकार करें. इसलिए उन्होंने और सरदारों को उचितउचित स्थान पर खड़ा कर दिया. जब सिंह ने देखा कि उसे लोग घेर रहे हैं तो वह राणा की ओर बढ़ा.

उसे देख का राणा डर गए क्योंकि उन्होंने  पहले कभी इतना बड़ा सिंह नहीं देखा था. उसे मारना आसान काम नहीं था. सब सरदार लोग भी डर गए. सिंह झपट कर राणा के हाथी पर आया और उस के मस्तक से मांस का लोथड़ा नोच कर पीछे हट गया.

राणा के हाथ से भय के मारे तीरकमान भी छूट गए. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि गुलाब सिंह ने दूर से देखा और अजीत सिंह से कहा, ‘‘ठाकुर साहब, महाराज की जान खतरे में है. उन्हें ऐसे कठिन समय में छोड़ना अति कायरता की बात है. मुझ से अब देखा नहीं जाता. प्रणाम, मैं जाता हूं.’’

तभी गुलाब सिंह का घोड़ा तीर की तरह सनसनाता हुआ आगे बढ़ा, हाथी अपना धैर्य छोड़ चुका था. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि हवा के झोंके की तरह आ कर गुलाब सिंह ने उसे अपने भाले के निशाने पर ले लिया. भाले सहित सिंह जमीन पर गिरा.

बस, फिर क्या था, सवार ने एक ऐसा हाथ तलवार का मारा कि सिंह का सिर अलग जा गिरा. उसी समय उस के कान और पूंछ काट कर घोड़े की जीन के नीचे रख कर लोगों के बीच जा पहुंचा और बातचीत करने लगा.

परंतु उस ने इस काम को इतनी फुरती में किया कि किसी को ज्ञात भी न हुआ कि वह घुड़सवार कौन था, जिस ने सिंह को मारा. सिंह के मरने पर चारों ओर राजा की जयजयकार होने लगी. सब लोगों ने अपनीअपनी जगह से आ कर राजा को घेर लिया. सरदारों ने कहा, ‘‘ईश्वर ने आज बड़ी दया की. हम सब की जान में जान आई.’’

जब सभी बधाई दे चुके तो राजा ने कहा, ‘‘वह कौन बहादुर था, जिस ने आज मेरी प्राणों की रक्षा की. उस को मेरे सामने लाओ. मैं उसे ईनाम दूंगा.’’

परंतु मारने वाला बहुत दूर खड़ा था. वह अपने को उजागर करना भी नहीं चाहता था. राणा ने थोड़ी देर तक राह देखी. परंतु जब कोई नहीं आया तो खुशामदी दरबारी लोग अपनेअपने मित्रों के नाम बताने लगे.

अधूरी मौत-भाग 5 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, तो अपनी आत्मरक्षा के लिए रिवौल्वर साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया.

सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली.

ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों ओर खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स से रिवौल्वर निकालते हुए कहा, ‘‘हां, तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली.

शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, मैं 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया. तुम ने लगभग 100 मीटर दूर पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग की तो मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान पुलिस को दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.

दो गज जमीन के नीचे: क्यों बेमौत मारा गया वो शख्स

दरअसल मैं इस कहानी में कोई नहीं हूं, न ही इस में मौजूद पात्रों से अब मेरा कोई रिश्ता है. कह सकते हैं कि मैं वह हूं जो इन सब के बीच न हो कर भी हो. वजूद सिर्फ दो जोड़ी आंखों का मानिए, जो हमेशा इन पात्रों के इर्दगिर्द मौजूद है.

कहानी के इन मुख्य चरित्रों के सामने दूर की एक बिल्डिंग में मेरा निवास है और सरकारी स्कूल में सामान्य सी टीचर हूं. वैसे सामान्य रह कर भी असामान्य हो जाने के गुर में मैं माहिर हूं. ये आप पर आगे की कडि़यों में जाहिर होगा.  तो चलिए हमारी इन दो आंखों के जरिए आप उन पात्रों के जीवन में प्रवेश करें जिन्होंने अपने स्वार्थ, छोटी सोच और छल की वजह से यह कहानी रची.

दूसरी मंजिल पर स्थित मेरे फ्लैट की खिड़की की सीध में एक 3 मंजिला बिल्डिंग है. इस में कुल 8 फ्लैट हैं. इन में से नीचे वाले पीछे के एक फ्लैट पर हमारी नजर रहेगी और ठीक इस बिल्डिंग के पीछे वाली बिल्डिंग में हमारी अदृश्य आवाजाही होगी.

8 फ्लैटों के समूह वाली बिल्डिंग का नाम ‘भव्य निलय’ और पीछे वाली दुमंजिली बिल्डिंग का नाम ‘निरंजन कोठी’ है. निरंजन कोठी का मालिक निरंजन बत्रा 52 साल का एक हट्टाकट्टा अधेड़ है, जिस के चलनेफिरने और बात करने का लहजा मात्र 35 साल के व्यक्ति जैसा है.

उस की पहचान में शायद ही कोई ऐसी युवती हो जो उस के शोख लहजों पर फिदा न हो. उस की एक खास विशेषता यह भी है कि वह अपना कारोबार बहुत बदलता है. कभी टूरिज्म ट्रैवल, कभी साइबर कैफे और मोबाइल शौप, कभी स्टेशनरी तो कभी ठेकेदारी, बंदा बड़ा अनप्रेडिक्टेबल है. कहूं तो रहस्यमय भी. वो अकेला जीना और अकेला राज करना चाहता है, लेकिन उसे स्त्रियों की कमी नहीं है. लिहाजा वह उन का उपयोग कर के फेंकने से नहीं कतराता.

निरंजन की फिलहाल एक बीवी है जिस की उम्र 24 साल है. हुआ यह था कि पहली शादी वाली पत्नी के चले जाने के बाद उस ने 9 साल बिना शादी के बिताए और लड़कियों से उस के संबंध जारी रहे. अभी ऐसे ही दिन निकल रहे थे कि वह 21 साल की एक लड़की से ब्याह कर बैठा.

यह लड़की उस के साइबर कैफे में अकसर ही आती थी. निरंजन लड़कियों को शीशे में उतारने की कला में माहिर था. इस लड़की के साइबर कैफे से उस के घर तक पहुंचने में ज्यादा दिन नहीं लगे.

रात भर की रंगीनियों के बाद जब सुबह लड़की की आंखें खुलीं तो उसे दिमाग कुछ ठिकाने पर महसूस हुआ. उसे घर में विधवा मां की याद आई. उस की बेचैनी की सुध हुई और वह घर वापस जाने के लिए तड़प उठी. लेकिन तब तक उस के अनजाने ही उस की जिंदगी पर निरंजन की पकड़ मजबूत हो गई थी.

निरंजन के सख्त रवैए से भयभीत हो लड़की घबरा गई. वह उस की हर शर्त को मानने के प्रस्ताव पर तुरंत राजी हो गई. निरंजन ने उसे उस की कोठी पर आते रहने का फरमान सुनाया. स्थिति कुछ ऐसी थी कि उसे लाचार हो कर मानना पड़ा.

यह सब 6 महीने चला और लड़की गर्भवती हो गई. रायता अब ज्यादा ही फैल चुका था. लड़की ने छिपे हुए बटन कैमरे से खुद निरंजन के साथ के अंतरंग क्षणों का वीडियो बना लिया. फिर वह वीडियो क्लिप निरंजन को भेज कर धमकी दी, ‘सारा बिजनैस ठप हो जाएगा अगर मैं ने यह वीडियो वायरल कर दी तो.

‘‘मैं तो गरीब घर की लड़की हूं और क्या लुटेगा. बहुत हुआ तो शहर छोड़ दूंगी. लेकिन इस तरह लूट कर मुझे फेंकने नहीं दूंगी. मेरी मां को बेइज्जती से बचाने का एक ही रास्ता है कि तुम मुझे और मेरे होने वाले बच्चे को अपना लो. मुझ से शादी कर लो.’

समाज में निरंजन बड़े धौंस से रहता था. कोठी, गाड़ी, एक साथ कई बिजनैस, उस का डीलडौल सब उस की धौंस की वजह से थे. आखिर ऊंट आ ही गया पहाड़ के नीचे.

इस तरह लड़की नताशा उस की बीवी बन गई. अभी 4 साल हुए थे उन की शादी को. फिर यूं अचानक निरंजन बत्रा की लाश रात गए उस की कोठी पर मिलना, पुलिस की रेड, नताशा को पुलिस कस्टडी में लिया जाना, जमानत पर सुबह तक उस का घर वापस आ जाना, माजरा आखिर क्या था?

रात से ले कर सुबह तक कोठी में अंदरबाहर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. मीडिया वाले भी थे, पुलिस सब को बाहर ठेल रही थी. नताशा काले ब्लाउज, नेट वाली जौर्जेट की वाइट साड़ी में उन्मुक्त केश आंखों में आंसू हौल के फर्श पर बिखरी सी बैठी थी. इस के बावजूद लोगों के आकर्षण का केंद्र थी.

उस की आंखों में खुद को निर्दोष साबित करने की पीड़ा थी या वियोग की पीड़ा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता था. हां, मेरे होंठों पर जरूर विद्रूप की एक हलकी रेखा फैल गई. मैं ने इसे खुद से छिपाते हुए भी तुरंत वहां से दूर हट जाना ही ठीक समझा.

4-5 दिनों तक निरंजन बत्रा के घर भीड़ लगी रही. मांबाप कोई थे नहीं और संतान अब तक उस ने होने नहीं दी थी. किसी भी तरह उस ने अपने आसपास परिवार पैदा नहीं होने दिया. उसे उस की स्वच्छंदता में खलल नहीं चाहिए थी. नताशा इस वक्त अकेली ही जूझ रही थी.

निरंजन की मौत के बाद चचेरे, ममेरे भाई आसपास मंडराते नजर आए. 4 साल निरंजन के साथ रह कर नताशा इतनी तो चतुर हो ही गई थी कि चील, बाज और गिद्धों को पहचान ले. उस ने बड़ी ही चतुराई से उन्हें नजरअंदाज करते हुए रफादफा किया.

नताशा अब कठघरे में थी. सारा शक उसी पर था. जांच जारी थी. यह बात भी सच थी कि रात के 11 बजे जब कत्ल का खुलासा हुआ, तब तक नताशा और निरंजन घर में अकेले थे और दोनों इस के पहले तक चीखचीख कर लड़ रहे थे, पड़ोसियों ने सुना था.

पुलिस अपनी ओर से शिनाख्त में व्यस्त थी, लेकिन मैं नताशा से मिलने के लिए उतावली थी. क्या निरंजन जैसे सख्त जान आदमी नताशा जैसी साधारण डीलडौल वाली लड़की से मात खाया होगा.

रात के 10 बज रहे थे जब मैं ने नताशा का दरवाजा खटखटाया. घर में छोटा सा टेलरिंग शौप चलाने वाली विधवा मां की जिस मुरछाई सी बेटी के रूप में नताशा ने इस घर में अपनी उपस्थिति की मुहर लगाई थी, आज वह सिग्नेचर पूरी तरह बदल चुका था.

थकी बोझिल और चिंतित रहने के बावजूद वह अपनी शौर्ट्स और क्रौप टौप में गजब ढा रही थी. वैसे उस के चेहरे पर उलझन की लकीरें साफ थीं, मुझे देख कर अवाक रह गई. शायद इसलिए कि मुझे कभी देखा नहीं था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं पर्णा हूं, तुम्हारी मदद कर सकती हूं.’’  ‘‘किस सिलसिले में?’’

‘‘मासूम क्यों बनती हो? मुझ से मदद लिए बिना तुम इस भंवर से पार नहीं पा सकती.’’

‘‘आइए, अंदर आइए. आप कौन हैं? कैसे मदद करेंगी मेरी?’’

सीआईडी की तरह पूरे हौल का नजरों से मुआयना करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘कहां पड़ी थी लाश और किस हाल में थी?’’

सवाल पूछा तो सही लेकिन मेरा ध्यान कहीं और चला गया था.  कुछ भी तो नहीं बदला था. बस कुछ सामान इधर से उधर हुए थे और कुछ नए जुड़े थे.

नताशा ने जो कुछ कहा, उस का आधा हिस्सा ही कानों तक पहुंचा और बाकी मैं स्वयं ही देख कर समझने की कोशिश कर रही थी. नताशा कुछ उतावली हो रही थी, ‘‘आप किस तरह मदद करेंगी?’’

‘‘निरंजन के बारे में तुम कितना आश्वस्त हो? मैं जानती हूं वह चंचल मति था, नई लड़कियां उस की बहुत बड़ी कमजोरी थीं.’’

‘‘सच मानिए, मैं ने उसे नहीं मारा. मैं उसे मार भी नहीं सकती. खासकर चाकू घोंप कर तो कभी नहीं.’’ बेसहारा नताशा जैसे अंधेरे में ही तिनके को पकड़ने की कोशिश में लगी थी.

‘‘लेकिन तुम ने पहले उसे शराब में जहर मिला कर पिलाया, तब चाकू से…’’  ‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया, उलटा उसी ने…’’ ‘‘उसी ने? क्या किया था उस ने?’’

‘‘मैं अभी हफ्ते भर पहले मिसकैरेज से निकली हूं. उस ने मुझ से छिपा कर दवा दे दी थी ताकि मेरा बच्चा खत्म हो जाए.’’ ‘‘अच्छा, तो इस बार भी?’’  ‘‘मतलब… इस बार भी मतलब?’’ मुझे पढ़ने की नाकाम कोशिश में उस का चेहरा लाल हो गया था, फिर उस ने आगे कुछ समझने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘हां, इस बार भी. शादी कर तो ली थी उस ने, लेकिन बाद में उसे लगा कि मेरे बच्चे के कारण वह जिम्मेदारियों में बंध जाएगा, इसलिए पहली बार भी मुझे मजबूर किया था उस ने.’’

नताशा का ध्यान खुद की तरफ ही था, ‘‘अच्छा ही है.’’ मैं ने बात बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कैसे पता कि उस ने दवा खिलाई थी?’’

‘‘उस ने शरबत में घोल कर दवा खिलाई थी. जब तक समझ पाती पी चुकी थी मैं. बेबी नष्ट करने को ले कर वह वैसे भी मुझ से लड़ता रहता था.’’

‘‘कहीं और अफेयर था उस का?’’

अचानक जैसे होश आया हो उसे. एक सहारे के फेर में कहीं उस ने राज तो जाया नहीं कर दिए? शायद उसे निरंजन के लड़ते रहने की बात जाहिर करने का अफसोस था क्योंकि इस से नताशा के कत्ल का अंदेशा पुख्ता होता था.

उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘आप हैं कौन? बताती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं जो कोई भी हूं, बस जानो कि तुम से सहानुभूति है और मुझे लगता है कि इस मामले में तुम निर्दोष हो.’’

‘‘दीदी. मैं आप को दीदी कह सकती हूं? बड़ी ही हैं आप मुझ से.’’

‘‘20 साल बड़ी हूं तो कह ही सकती हो. इतना जान लो निरंजन ने अपनी पहली बीवी के बच्चे को भी मारा था.’’

‘‘क्या कहती हैं आप? आप को कैसे पता?’’ ‘‘तुम मेरा परिचय ढूंढने की कोशिश मत करो, बस जानकारी जुटाओ.’’

निरंजन बिंदास किस्म का इंसान था. वह अपने अटल यौवन और शोख अंदाज का भरपूर लाभ उठाना चाहता था. स्त्रियां उस के डीलडौल और मस्ताने अंदाज पर दीवानी भी थीं. उस का पहला बच्चा 3 साल का  मेंटली रिटार्डेड बेटा था. उस की बड़ी जिम्मेदारी बन कर उभर रहा था.

एक तरह से उस की आजादी पर पहरा. उस की मां के नौकरी पर जाने और आया की जरा सी लापरवाही ने उसे अपने बच्चे को मार देने को उकसाया और वह कर गुजरा.

नौकरी से आ कर मरे हुए बच्चे को जब सीने से लगा कर उस मां ने कसम खाई कि निरंजन को बेमौत मरते देख कर ही उसे चैन मिलेगा, तब उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कानून की नजर में निरंजन का अपराध साबित कर सके.

‘‘दीदी, अब आप ही बताइए कि मैं इस जाल से कैसे मुक्ति पाऊं? अभी हम लोग रात गए बच्चे के मिसकैरेज को ले कर लड़ ही रहे थे कि वह दनदनाता हुआ घर से निकल गया. इस के पहले मैं लोगों से सुन चुकी थी कि निरंजन भव्य निलय में रहने वाले एक दंपति के घर रोजाना जाने लगा है.’’

‘‘जहरा खातून और अली बाबर के घर?’’  ‘‘हां, आप को कैसे मालूम?’’

बात बनाने वाली औरतें उसे खूब पसंद हैं. जहरा खातून इसी ढांचे की है, पति कमाता नहीं है अलबत्ता बीवी के कपड़े की दुकान में सेल्समैन जरूर है. जहरा ने निरंजन को तीरेनजर से आरपार कर रखा था. पान वाले होंठ, रसीले गुलाबी. पायल वाली ठुमकती एडि़यां और लचकती कमर से निरंजन बेकाबू था.

वैसे तो वह कंजूस था, लेकिन मनपसंद औरतों पर लुटाने में उसे कोई गुरेज भी नहीं था. वह और जहरा इसी ताक में रहते कि कब अली बाबर घर से बाहर हो और उन्हें अकेले में मौका मिले. लेकिन मौके थे कि लंबे समय तक मिले नहीं. दोनों झल्लाए हुए थे.

‘‘दीदी, निरंजन के घर से बाहर हो जाने के बाद मैं सोफे पर पसरी पड़ी थी. मैं अंदर से मर चुकी थी. पत्नी के नाते उस से मेरा लगाव अब बिलकुल ही खत्म था. उस ने मेरी हैसियत जबरदस्ती गले पड़ी वाली कर रखी थी. अपनी जिंदगी वह अलग जीता था. मैं बस तड़पतड़प कर जी रही थी.

‘‘अभी मैं सोफे पर ही पड़ी थी कि वह धड़धड़ाते हुए अंदर आया और मुझे संभलने का मौका दिए बगैर मेरी नाक पर दवा लगा रुमाल रख दिया. जहां तक मुझे याद है, उस के साथ जहरा खातून भी थी.’’

‘‘यानी तुम तब बेहोश थी जब तुम्हारे घर कुछ खतरनाक खेल खेले गए?’’ ‘‘जी.’’

‘‘इसलिए तुम पुलिस की पूछताछ का जवाब नहीं दे पा रही हो. और बेहोश करने के बाद काम आया कपड़ा बाद में लाश के पास पाया गया.’’

‘‘जी दीदी, मगर आप? आप प्लीज बताइए, आप हैं कौन? क्यों मेरी मदद कर रही हैं?’’  ‘‘निरंजन के पास पैसा तो काफी था. क्या वह घर की तिजोरी में पैसे अब भी रखता था?’’  ‘‘हां, कभी जरूरत पड़े तो.’’

‘‘सही फरमाया, काले कामों में सफेद पैसे जरूरत के वक्त काम नहीं आते. तो हम एक बढि़या वकील करते हैं और जरूरत हुई तो खुफिया एजेंसी की मदद लेंगे. रही बात मेरी, तो सही समय आने दो अभी तुक्का मत लगाना.’’

मैं ने उसे गहरी मुसकान से देखा और घर से निकल गई. मेरी खुद की जांच अपने तरीके से चल रही थी. नताशा को सरकारी वकील दिया गया था लेकिन उस के लिए मेरे खुद के वकील लगाने के प्रस्ताव को कोर्ट से मंजूरी मिल गई.

हम ने अपने स्तर पर नए सिरे से पड़ताल शुरू की.  इधर जब से यह केस हुआ था, न जाने क्यों जहरा तो जहरा, उस का पति अली बाबर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उन का कारोबार घर में ही था और वह अच्छे खातेपीते लोग थे. अचानक घर में ताला लगा नजर आने लगा. लोगों के बीच कानाफूसी हुई, लेकिन मर्डर मिस्ट्री में कौन नाक डाले. वैसे भी जमाने में नाक ही ऐसी चीज है जिस की फिक्र में बड़ेबड़े संभले रहते हैं.

लेकिन मुझे तसल्ली नहीं थी. मैं ने एक रात 12 बजे अपने डर और दायरों को दरकिनार करते हुए भव्य निलय का रुख किया.

जहरा के घर क्या वाकई ताला जड़ चुका है या कुछ और बाकी भी है.  भव्य निलय जाने से पहले मैं ने हिम्मत बटोरी, क्योंकि कई रिस्क लेने थे. और हां, ये लेने ही थे क्योंकि इस के बिना मैं खुद भी बेचैन थी.

मैं ने बुरका पहना, छोटी सी अटैची ली, भव्य निलय के फाटक पर पहुंची. यहां गार्ड को जवाब देना था, कहा, ‘‘जहरा आपा से मिलने आई हूं. उन की खाला की बेटी हूं.’’

‘‘पर मैडम, वे तो यहां नहीं हैं.’’  ‘‘अरे, फिर मैं इतनी रात गए कहां रुकूंगी. मेरी ट्रेन लेट हो गई, अब तो कोई होटल भी नहीं मिलेगा, कुछ करो.’’ मैं ने गार्ड को 50 रुपए का नोट थमाया.

नोट की चोट सीधे दिमाग पर पड़ती है. बंदा ढीला पड़ गया. मुझे पीछे गली वाले दरवाजे की तरफ ले गया और बताया कि जहरा ने किसी को भी बताने को मना किया है. दरअसल पुलिस से पंगा है. इन की निगरानी की वजह से इन के घर के सामने दरवाजे पर ताला लगा है.

‘‘अच्छा है, आप उन का साथ दे रहे हैं वरना मेरी आपा का क्या होता.’’

मैं ने जहरा को फोन लगाने का नाटक किया और उसे लगे हाथ वहां से रवाना कर दिया. गार्ड के जाने के बाद मैं खिड़की से नजारे देखने की कोशिश करने लगी. आश्चर्य! यह निरंजन था जहरा के साथ. मेरा अंदेशा सही था. निरंजन और जहरा अपनी मनमानी पर थे, आजादी के जश्न में मग्न.

उन्हें इस तरह कैमरे में कैद कर और खुद को उन्हें देखते रहने की जिल्लत से बचा कर मैं निकलने को हुई. एक अच्छेखासे अभिनय के साथ मैं गार्ड के सामने से गुजरी. गार्ड कहता रह गया, ‘‘अरे मैडम, कहां जा रही हो?’’

मैं सिसकते हुए दौड़ती रही और कहती रही, ‘‘आपा के साथ पता नहीं कौन गैरमर्द है. मुझे घुसने ही नहीं दिया. जाने आपा कैसे बदल गईं.’’

इतनी देर में मैं काफी तेज भाग कर गली में आ चुकी थी और गार्ड के भौचक रह जाने से ले कर मेरे नदारद होने तक कई मिनट के फासले बड़ी सफाई से अंधरे में गुम हो चुके थे.

मेरे दिमाग में गुत्थी लगभग सुलझ चुकी थी, लेकिन साबित कैसे किया जाए. ये लोग खर्च बचाने और सुरक्षित रहने के लिए खुद के ही घर में अय्याशी करते हैं लेकिन बाहर वालों की आंखों में धूल झोंके रखने के लिए बाहर ताला लगाते हैं.

यानी लगे हाथ यह भी बात है कि निरंजन अगर जिंदा है तो लाश किस की है? और अली बाबर के बाहर माल लेने जाने की बात भी कहां तक सच्ची है?

इन्हें रंगेहाथ पकड़ कर जिरह करनी पड़ेगी. मैं ने वकील से पहले अकेले में मिलना सही समझा. उन्हें वीडियो रिकौर्डिंग दिखाई और सारी बातें बताईं.

वकील ने कहा, ‘‘मैडम आप ने लगभग एंड गेम खेल लिया है समझो, खुफिया एजेंसी की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

बात साफ थी कि निरंजन और जहरा की अय्याशी की वजह से ये सारे खूनी तमाशे हुए और नताशा की सफाई कार्यक्रम के तहत उसे फंसाने की साजिश की गई. लेकिन सवाल यह था कि आखिर लाश किस की थी? कहीं जहरा के शौहर अली बाबर की तो नहीं? लाश को उन्होंने बुरी तरह गोद दिया था, चेहरा तेजाब से झुलसाया गया था. वे शायद इस खुशफहमी में थे कि निरंजन की अनुपस्थिति को उस का कत्ल मान लिए जाने में दिक्कत नहीं आएगी.

खून हुए महीना भर हो चुका था. जांच के पीछे से उन की रंगरलियां तो जहरा के घर में चल ही रही थीं लेकिन सवाल यह था कि उन की जिंदगी की गाड़ी चल कैसे रही थी? न तो निरंजन बिजनैस संभाल रहा था और न ही जहरा कपड़े बेच रही थी. जमापूंजी के लिए दिन में उन्हें बैंक भी तो जाना था. कौन था जो उन की मदद कर रहा था?’’

खैर, ढेरों सवालों के साथ वकील साहब और मैं पुलिसिया जांच के संपर्क में थे.

हम ने पुलिस को वीडियो दिखाया और दोनों को तब धर दबोचा गया, जब दोनों रात में जहरा के घर मौज में डूबे थे. निरंजन के चेहरे का पानी उतर चुका था. वह बदहवास सा पुलिस की गिरफ्त में था. उस ने सोचा नहीं था कि उस की चालाकी इस तरह पकड़ी जा सकेगी.

दरअसल, उसे उस सामान्य सी टीचर की असामान्य सी उपस्थिति का अंदाजा नहीं था. मैं ने पुलिस से अनुरोध किया था कि अगर परिणाम जल्द चाहते हैं, तो मुझे भी जिरह का मौका दिया जाए. प्लानिंग के अनुसार वकील, पुलिस और जज की उपस्थिति में शुरुआती जिरह के लिए निरंजन की कोठी का चयन किया गया.

नताशा के सामने निरंजन और जहरा को बिठाया गया. मैं ने सवाल पूछने की इजाजत मांगी. ये सवाल कायदे के अनुसार संबंधित अधिकारियों को पहले ही बताए जा चुके थे.

कई सवालों की बेल मेरा सवाल था— ‘‘नताशा, यदि निरंजन मर चुका होता तो उस की पूरी संपत्ति तुम्हारी होती. क्योंकि उस की पहली बीवी का कोई अतापता नहीं है. तो अचानक निरंजन को जिंदा देख कर तुम्हें लगा नहीं कि मुसीबत वापस कैसे आई?

‘‘क्योंकि तुम तो यही जानती थी कि वह मर चुका था. जिस

किसी ने भी मारा हो, आखिर लाश तो पुलिस तुम्हारे घर से ले गई थी. दूसरे क्या तुम अब खुश हो कि तुम हत्या के आरोप से छूट सकती हो?’’

‘‘मैं ने किसी की भी हत्या तो की नहीं थी, इसलिए मेरे छूट जाने का मुझे पूरा विश्वास था. लेकिन उस के आने से मेरी पुरानी मुसीबत के दोहराव की पूरी संभावना न हो, इस का डर था.’’

‘‘कौन सी मुसीबत?’’  ‘‘गुलामी.’’

मैं दूसरे सवाल पर आ गई, ‘‘नताशा क्या तुम जानती हो कि हम ने जान लिया है कि पिछले दिनों तुम ने ही उन खूनियों को निरंजन की इस कोठी में आसरा दिया और पुलिस को इस बारे में इत्तला भी नहीं दी? जबकि तुम जानती हो हत्या उस ने की है.’’

‘‘उसे पैसे और रहने के लिए सुरक्षित आसरा चाहिए था. वह आसानी से मुझे अपनी कोठी और दुकान नहीं देना चाहता था. वैसे भी इस के बिना 30 साल की जहरा भला उस के साथ कितने दिन रहती? फिर अली बाबर भी पैसे के लिए अपनी बीवी को निरंजन के हवाले करने से गुरेज नहीं करता था. तो इसे अली बाबर को भी पैसे देने होते थे.’’

‘‘उस ने तुम से संपर्क कब साधा?’’

‘‘आप के मुझ से बात कर के चले जाने के लगभग महीने भर बाद वह और जहरा आए थे. मैं बेतरह चौंक पड़ी थी, कहा उस के रहने के लिए उसे कोठी में बने सुसज्जित तहखाना दे दूं. जैसे मैं दुकान संभाल रही हूं, वैसे ही संभालती रहूं, कोठी में भी अपना आधा हिस्सा समझूं.

‘‘बस जहरा के साथ मुझे उस के रिश्ते में परेशानी न हो और उसे कमाई का सारा हिसाब बताती रहूं साथ ही उस के डिमांड को पूरा करती रहूं. अगर इस बीच उसे धोखे में रख कर कोई कदम उठाया तो वह मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा.’’

‘‘तो तुम मान गई?’’ ‘‘मेरे सामने वापसी का कोई चारा नहीं था. उधर मेरी मां मर चुकी थी. किराए का घर था जो हाथ से जा चुका था. इन की बात नहीं मानती तो ये दोनों मिल कर मेरा कत्ल कर देते.’’

पुलिस अब निरंजन से मुखातिब थी. उस से कहा, ‘‘चलो, अब तुम भी अली बाबर के कत्ल का किस्सा सुना ही दो.’’

मैं ने निरंजन को चौंकते देखा. पुलिस के अधिकारी उसे चौंकते देख भी अनजान से बने रहे. उन्होंने दोबारा दबाव बनाया, ‘‘क्या हुआ, बोलते क्यों नहीं बाबर को कैसे और क्यों मारा तुम दोनों ने?’’

‘‘हम ने उसे नहीं मारा.’’ निरंजन ने इसी में कुछ मौके तलाशने शुरू कर दिए ताकि पुलिस को बरगला कर फिलहाल केस लटकाया जा सके.

‘‘अली बाबर मरा नहीं है, चाहो तो उसे फोन कर लो. हम ही बात करवा सकते हैं.’’ कहते हुए निरंजन और जहरा के चेहरों पर उम्मीद  की लकीरें दिखने लगी थीं.

‘‘चलो, फोन लगाओ.’’ पुलिस के कहते ही निरंजन ने एक नंबर डायल किया और तुरंत उधर से हैलो की आवाज सुनाई पड़ी जैसे कोई तैयार ही बैठा था.

पुलिस के अधिकारी ने तुरंत फोन उस के हाथ से ले कर जैसे ही हैलो कहा, उस तरफ की आवाज लड़खड़ा गई.

‘‘क्यों गार्ड जी, मायके की याद आ रही थी जो कानून से खेल गए?’’ पुलिस के इतना कहते ही निरंजन और जहरा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘धोखा नहीं दे सकते जनाब, हम आप जैसों को रास्ते पर लाने के लिए ही पैदा हुए हैं, समझे. वो लाश तुम्हारी नहीं थी, ये तो फोरैंसिक विभाग ने पहले ही पता कर लिया था, मगर वो अली बाबर की भी नहीं थी. कहो क्यों?’’ पुलिस की बातें सुन निरंजन और जहरा आंखें चुराने की कोशिश करते दिखे.

‘‘अली बाबर पैसों का भूखा था और इस का फायदा उठा कर तुम ने उसे तस्करी के जाल में फांस कर यहां से दूर उत्तर प्रदेश के उस के गांव भेज रखा है. पहले तो उस से गांजे की तस्करी करवाते हो. उसे उस का थोड़ाबहुत हिस्सा दे कर भविष्य के स्वप्नजाल में उलझा कर उसे गांव में ही छिपे रहने को कहते हो. इधर गार्ड को अली बाबर बना कर पेश करते हो ताकि मनमरजी उस से कहला सको.

‘‘अली बाबर हमारे कब्जे में है समझे. अब सीधे मुंह बता दो कि वह लाश किस की थी और तुम ने नताशा की आंखों में धूल झोंक कर उसे इस कत्ल में फांसा किस तरह?’’

‘‘नताशा से शादी के बाद मैं घर में मन रमाने को राजी नहीं था और न ही बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी दिखाई. तब नताशा मेरे साथ लड़ाई करने लगी. अपनी आजादी में खलल पड़ता देख मैं परेशान हो गया. तब तक जहरा का जादू भी मुझ पर चलने लगा था. मैं ने अली बाबर को बिजनैस के सिलसिले में बाहर भेजने का प्लान बनाते हुए अपनी दुकान पर एक अच्छे हैंडसम लड़के को रख लिया.

‘‘बच्चे मुझे पसंद नहीं थे. बेकार समय खराब करते हैं, जिम्मेदारी बढ़ाते हैं सो नताशा को कहीं और व्यस्त करना जरूरी था ताकि वह मेरे अलावा भी कुछ सोच सके. मुझे ऐसे भी दूसरे बिजनैस संभालने पड़ते तो मैं ने उसे दुकान पर भेजना शुरू किया. अकेलेपन में उस की घनिष्ठता उस लड़के के साथ बढ़ती रही और इस में मेरी शह पा कर उन का डर खत्म हो गया.’’

अवाक थी मैं. ये कैसा इंसान था. उस ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘अंतत: इन की दोस्ती शरीर के आखिरी पड़ाव में पहुंचने लगी और तब मैं बहुत बुरा महसूस करने लगा जब मेरी ब्याहता मेरे ही शह पर मेरी दुकान पर काम करने वाले लड़के से गर्भवती हो गई.

‘‘उस बच्चे की जिम्मेदारी मुझ पर सौंपने की कोशिश करने लगी. अगर वह चुपचाप बात यहीं खत्म कर लेती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस ने बच्चे के लिए सोचना शुरू कर दिया था, जबकि उस लड़के को इन बातों से कोई मतलब नहीं था. जो भी करना था, वही करती लेकिन बच्चे वाले पचड़े से मुझे दूर ही रखती.’’

इस बात पर उन तीनों के अलावा सब भौचक थे. हमारी गुत्थी अब आखिरी मंजिल पर लगभग पहुंचने वाली थी. सभी सांसें रोके उस की बात सुन रहे थे.

उस ने कहना जारी रखा, ‘‘हम उसे बहला कर जहर वाली शराब पिला कर अपने साथ लाए थे. तब नताशा आंखें बंद किए सोफे पर पड़ी थी. इस के पहले घर से निकलते वक्त नताशा के साथ महीने भर का गर्भ गिर जाने को ले कर काफी लड़ाई हुई थी. क्योंकि मैं ने उसे मिसकैरेज की दवा उस की गैरजानकारी में पिलाई थी.

मैं ने और जहरा ने मिल कर नताशा के नाक पर बेहोशी की दवा वाला रूमाल रखा. फिर हम ने उस अधमरे शख्स को सोफे पर लिटा कर चाकू से कई वार कर के खत्म किया, तेजाब से चेहरा जलाया और उस की मौत का यकीन हो जाने पर नताशा को फंसाने का सारा इंतजाम कर लिया.

‘‘मैं अपने गांव की तरफ भाग निकला और हमारे प्लान के मुताबिक जहरा ने यह सोच कर कत्ल का हल्ला किया कि इस से कभी मेरी खबर नहीं ली जाएगी और हम चुपचाप सब कुछ समेट कर विदेश चले जाएंगे, नताश केस में फंस जाएगी. अली बाबर से जहरा का संपर्क टूट जाएगा और उसे रुपए देने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी.’’

‘‘वो शख्स आखिर कौन था, जिस की हत्या हुई?’’ हमारे वकील अब साफ शब्दों में सुनना चाह रहे थे.

‘‘वही लड़का, जिसे मैं ने दुकान पर रख कर नताशा के साथ मिलनेजुलने के मौके दिए.’’

पुलिस अधिकारियों की ओर देखते हुए वकील ने कहा, ‘‘इन का उद्देश्य एक साथ कई तीर मारना था. बीवी से ले कर उस के बौयफ्रैंड, इधर खुद के रंगरलियों पर खर्च के लिए गांजे की तस्करी और अय्याशी के लिए पार्टनर पति को दूर रखने की चालाकी, अपने खून का नाटक रच अय्याशी को छिपाने की कोशिश, बीवी को खून के इलजाम में अंदर कर खुद की संपत्ति को बीवी के नाम करने से बचाने की चेष्टा. एक साथ कितने स्वार्थ?’’

अब नताशा चुप नहीं रह पाई. मेरी ओर देख कर उस ने पूछा, ‘‘लेकिन आप ने अब तक नहीं बताया कि आप कौन हैं?’’

मेरे चेहरे पर मुसकान थी. खुद की कही बात का मैं ने लाज रखा था. अब परदा उठना ही चाहिए.

‘‘मैं निरंजन की पहली बीवी हूं और इस ने मेरे बेटे की पहली बलि ली थी. इसे याद होगा या नहीं, मुझे इस की वह बात हर पल याद रही जो इस ने मुझ से कहा था. याद है निरंजन, क्या कहा था तुम ने?

‘‘स्कूल से लौटने के बाद जब मैं ने अपने 3 साल के बेटे के कत्ल का दोषी पाया तुम्हें, तभी मैं ने बददुआ दी कि एक मां को रुला कर तुम ने अच्छा नहीं किया. इस ने मुझ से कहा था क्या कर लेगी तू, एक सरकारी स्कूल की मामूली सी टीचर.’’

निरंजन चौंका और मेरी ओर देखता रहा. मैं ने तुरंत अपने आधे ढंके चेहरे को सब के सामने अनावृत्त कर दिया. मेरे चेहरे के साथ अब सारे परदे अनावृत्त हो गए थे. हट गए थे.

पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘निरंजन की पहली बीवी पर्णा का साथ मिला तो हम इतने पेचीदे राज आसानी से सुलझा पाए, पर नताशा का अपराध छिपा कर अपराधी को पनाह देने के एवज में कुछ सजा तो स्वीकार करनी पड़ेगी.’’

बेमौत मरे एक शख्स की लाश के 2 गज जमीन के नीचे जितने भी राज दफन थे, उन का खुलासा होना और दोषियों का सजा पाना कानून की जीत थी. और इस जीत का जश्न मैं अपने बेटे की यादों में महसूस कर पा रही हूं.