राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 3

एक दिन सूरजभान ने घर छोड़ा, तो नशे में अवध ने कहा, ‘‘हर बार बाहर से चले जाते हो. इसे अपना ही घर समझो. चलो, कुछ खा लेते हैं.’’

सूरजभान ने कहा, ‘‘भैया, घर पहुंचने में देर हो जाएगी. रात हो रही है, फिर कभी सही.’’

‘‘नहीं, रोज यही कहते हो. देर हो जाए तो यहीं रुक जाना. मोबाइल से घर पर बता दो कि अपने दोस्त के यहां रुक गए हो…’’ फिर अवध ने रूपमती को आवाज दी, ‘‘कुछ बनाओ मेरा दोस्त, मेरा भाई आया है.’’

रूपमती को तो मनचाही मुराद मिल गई. जिस से छिपछिप कर मिलना पड़ता था, उसे उस का पति घर ले कर आ रहा है. खा पीकर अवध तो नशे में सोता, तो सीधा अगले दिन के 10-11 बजे ही उठता. इस बीच रूपमती और सूरजभान का मधुर मिलन हो जाता और सुबह जल्दी उठ कर वह अपने घर चला जाता.

सूरजभान की पत्नी अनुपमा गुस्से की आग में जल रही थी. उस का जलना लाजिमी भी था. उस का पति महीनों से रातरात भर गायब रहता था. सुबह आ कर सो जाता और खाना खाने के बाद जो दोपहर से काम पर जाने के बहाने से निकलता, फिर दूसरे दिन सुबह ही वापस आता.

अनुपमा जानती थी कि उस का पति रातभर किसी बाजारू औरत के आगोश में रहता होगा. वह अपने पति को रिझाने का हर जतन कर चुकी थी, लेकिन उसे सिवाय गालियों के कुछ और नहीं मिलता था.

ससुर से शिकायत करने पर भी अनुपमा को यही जवाब मिला कि पतिपत्नी के बीच में हम क्या बोल सकते हैं. काम पर आतेजाते उस की नजर नौकर दारा पर पड़ती रहती. उस के कसे हुए शरीर, ऊंची कदकाठी, कसरती बदन को देख कर अनुपमा के बदन में चींटियां सी रेंगने लगतीं.

एक दिन अनुपमा ने दारा को बुला कर कहा, ‘‘तुम केवल मेरे पति के नौकर नहीं हो, बल्कि इस पूरे परिवार के भरोसेमंद हो. पूरे परिवार के प्रति तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’

‘‘जी मालकिन,’’ दारा ने सिर झुका कर कहा.

‘‘तो बताओ कि तुम्हारे मालिक कहां और किस के पास आतेजाते हैं? उन की रातें कहां गुजरती हैं?’’ क्या तुम्हें अपनी छोटी मालकिन का जरा भी खयाल नहीं है?’’ अनुपमा ने अपनेपन की मिश्री घोलते हुए कहा.

‘‘मालकिन, अगर मालिक को पता चल गया कि मैं ने आप को उन के बारे में जानकारी दी है, तो वे मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे,’’ दारा ने अपनी मजबूरी जताई.

‘‘तुम निश्चिंत रहो. तुम्हारा नाम नहीं आएगा.’’

‘‘लेकिन मालकिन.’’

अनुपमा ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा, ‘‘इधर देखो. मैं भी औरत हूं. मेरी भी कुछ जरूरतें हैं.’’

दारा ने सिर उठा कर देखा. मालकिन की साड़ी का पल्लू नीचे गिरा हुआ था. उस ने ब्लाउज में मालकिन को पहली बार देखा था. पेट से ले कर कमर तक बदन की दूधिया चमक से दारा का मन चकाचौंध हो रहा था. उस के शरीर में तनाव आने लगा, तभी मालकिन ने अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक किया.

‘‘सुनो दारा, मालिक वही जो मालिकन के साथ रहे. तुम भी मालिक बन सकते हो. लेकिन तुम्हें कुछ करना होगा,’’ अनुपमा ने अपने शरीर का जाल दारा पर फें का. उस की स्वामीभक्ति भरभरा कर गिर पड़ी.

‘‘आप का हुक्म सिरआंखों पर. आप जो कहेंगी, आज से दारा वही करेगा. आज से मैं केवल आप का सेवक बनूंगा,’’ दारा ने कहा.

‘‘तो सुनो, उस कलमुंही का कुछ ऐसा इंतजाम करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’’ अनुपमा ने कहा.

‘‘जो हुक्म,’’ कह कर दारा चला गया.

दारा के सामने मालकिन का दूधिया शरीर घूम रहा था. सब से पहले उस ने रूपमती के पति अवध को खत्म करने की योजना बनाई.

इस बार रात में रूपमती ने सूरजभान से कहा, ‘‘मेरा मरद तो अब किसी काम का है नहीं. अब तो वह हमें  साथ देख लेने के बाद भी चुप रहता है. वह तो शराब का गुलाम हो चुका है. उस ने शराब पीने में खेतीबारी बेच दी. तुम ने उसे जुए की लत में ऐसा उलझाया कि यह घर तक गिरवी रखवा दिया. कम से कम अब तो मुझे औलाद का सुख मिलना चाहिए. आज की रात मुझे तुम से औलाद का बीज चाहिए.’’

सूरजभान ने रूपमती की बंजर जमीन में अपने बीज डाल दिए.

सुबह सूरजभान के निकलते ही दारा शराब की बोतल ले कर पहुंचा और उस ने अवध को जगाया.

‘‘तुम्हारा मालिक तो चला गया,’’ अवध ने दरवाजा खोल कर कहा.

‘‘हां, लेकिन उन्होंने तुम्हारे लिए शराब भेजी है,’’ दारा ने शराब की बोतल थमाते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, क्या बात है तुम्हारे मालिक की,’’ कह कर अवध ने बोतल मुंह से लगा ली.

थोड़ी ही देर में शराब में मिला हुआ जहर अपना असर दिखाने लगा. अवध को जलन से भयंकर पीड़ा होने लगी. वह कसमसाने लगा, लेकिन ज्यादा नशे के चलते उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. वह उसी हालत में तड़पता रहा और हमेशा के लिए सो गया.

दारा ने सोचा तो यह था कि रूपमती के पति की हत्या के आरोप में सूरजभान जेल चले जाएंगे और वह मालकिन के शरीर का मालिक बनेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दरअसल, रूपमती ने दारा को शराब की बोतल देते देख लिया था. वह समझ चुकी थी कि सूरजभान का खानदान उस के पीछे लग चुका है और उस की जान को भी खतरा हो सकता है. सूरजभान उस के पति की जान नहीं ले सकता. उस ने तो उसे हर ओर से नकारा बना दिया था. फिर ऐसा करने से पहले वह उस से पूछता जरूर. इस का साफ मतलब था कि इस में सूरजभान के परिवार के लोग शामिल हो चुके हैं और अगला नंबर उस का होगा.

रूपमती ने सूरजभान को बताया, तो सूरजभान ने कहा, ‘‘तुम यहां से कहीं दूर चली जाओ और अपनी नई जिंदगी शुरू करो. मैं तुम्हें हर महीने रुपए भेजता रहूंगा. अगर तुम्हारी कोई औलाद हुई, तो उस की जिम्मेदारी भी मेरी. लेकिन ध्यान रखना कि यह संबंध और होने वाली औलाद दोनों नाजायज हैं. भूल कर भी मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’

अपनी जान के डर से रूपमती को दूर शहर में जाना पड़ा. जाने से पहले वह अपने पति के कातिल दारा को जेल भिजवा चुकी थी. सूरजभान या उस की पत्नी अनुपमा ने उसे बचाने की कोई कोशिश नहीं की थी.

वजह, चुनाव होने वाले थे. वे दारा से मिलने या उसे बचाने की कोशिश में जनता के साथसाथ विपक्ष को भी कोई होहल्ला मचाने का मौका नहीं देना चाहते थे.

इस के बाद सूरजभान की जिंदगी में न जाने कितनी रूपमती आई होंगी. अब वह राजनीति का उभरता सितारा था. अपने पिता की विरासत को गांव की सरपंची से निकाल कर वह विधानसभा तक में कामयाबी के झंडे गाड़ चुका था. उस के काम से खुश हो कर पार्टी ने उसे मंत्री पद भी दे दिया था.

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 1

रूपमती चीखनेचिल्लाने लगी. प्रेमी के ऊपर से हट कर वह अपने कपड़े ले कर अवध की तरफ ऐसे दौड़ी मानो अवध की गैरहाजिरी में उस की पत्नी के साथ जबरदस्ती हो रही थी.

प्रेमी जान बचाने के लिए भागा और अवध अपनी पत्नी के साथ रेप करने वाले को मारने के लिए दौड़ा. जैसा रूपमती साबित करना चाहती थी, अवध को वैसा ही लगा.

जब रूपमती ने देखा कि अवध कुल्हाड़ी उठा कर प्रेमी की तरफ दौड़ने को हुआ है, तो उस के अंदर की प्रेमिका ने प्रेमी को बचाने की सोची.

रूपमती ने अवध को रोकते हुए कहा, ‘‘मत जाओ उस के पीछे. आप की जान को खतरा हो सकता है. उस के पास तमंचा है. आप को कुछ हो गया, तो मेरा क्या होगा?’’

तमंचे का नाम सुन कर अवध रुक गया. वैसे भी वह गुस्से में दौड़ा था. कदकाठी में सामने वाला उस से दोगुना ताकतवर था और उस के पास तमंचा भी था.

रूपमती ने जल्दीजल्दी कपड़े पहने. खुद को उस ने संभाला, फिर अवध से लिपट कर कहने लगी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप आ गए. आज अगर आप न आते, तो मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहती.’’

अवध अभी भी गुस्से में था. रूपमती उस के सीने से चिपटी हुई यह जानना चाहती थी कि वह क्या सोच रहा है? कहीं उसे उस पर शक तो नहीं हुआ है?

अवध ने कहा, ‘‘लेकिन, तुम तो उस के ऊपर थीं.’’

रूपमती घबरा गई. उसे इसी बात का डर था. लेकिन औरतें तो फरिश्तों को भी बेवकूफ बना सकती हैं, फिर उसे तो एक मर्द को, वह भी अपने पति को बेवकूफ बनाना था.

सब से पहले रूपमती ने रोना शुरू किया. औरत वही जो बातबात पर आंसू बहा सके, सिसकसिसक कर रो सके. उस के रोने से जो पिघल सके, उसी को पति कहते हैं.

अवध पिघला भी. उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं ठीक समय पर आ गया और वह भाग गया. तुम्हारी इज्जत बच गई. अब रोने की क्या बात है?’’

‘‘आप मुझ पर शक तो नहीं कर रहे हैं?’’ रूपमती ने रोते हुए पूछा.

‘‘नहीं, मैं सिर्फ पूछ रहा हूं,’’ अवध ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

रूपमती समझ गई कि सिर पर हाथ फेरने का मतलब है अवध को उस पर यकीन है, लेकिन जो सीन अवध ने अपनी आंखों से देखा है, उसे झुठलाना है.

पहले रूपमती ने सोचा कि कहे, ‘उस आदमी ने मुझे दबोच कर अपनी ताकत से जबरदस्ती करते हुए ऊपर किया, फिर वह मुझे नीचे करने वाला ही था कि आप आ गए.’

लेकिन जल्दी ही रूपमती ने सोचा कि अगर अवध ने ज्यादा पूछताछ की, तो वह कब तक अपने झूठ में पैबंद लगाती रहेगी. कब तक झूठ को झूठ से सिलती रहेगी. लिहाजा, उस ने रोतेसिसकते एक लंबी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘आज से 6 महीने पहले जब आप शहर में फसल बेचने गए थे, तब मैं कुएं से पानी लेने गई थी. दिन ढल चुका था.

‘‘मैं ने सोचा कि अंधेरे में अकेले जाना ठीक नहीं होगा, लेकिन तभी दरवाजा खुला होने से न जाने कैसे एक सूअर अंदर आ गया. मैं ने उसे भगाया और घर साफ करने के लिए घड़े का पानी डाल दिया. अब घर में एक बूंद पानी नहीं था.

‘‘मैं ने सोचा कि रात में पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ सकती है. क्यों न एक घड़ा पानी ले आऊं.

‘‘मैं पानी लेने पनघट पहुंची. वहां पर उस समय कोई नहीं था. तभी वह आ धमका. उस ने बताया कि मेरा नाम ठाकुर सूरजभान है और मैं गांव के सरपंच का बेटा हूं.

‘‘वह मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा. उस ने मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे कपड़े उतार डाले. मैं दौड़ते हुए कुएं के पास पहुंच गई.

‘‘मैं ने रो कर कहा कि अगर मेरे साथ जबरदस्ती की, तो मैं कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगी. उस ने डर कर कहा कि अरे, तुम तो पतिव्रता औरत हो. आज के जमाने में तुम जैसी सती औरतें भी हैं, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘‘लेकिन तभी उस ने कैमरा निकाल कर मेरे फोटो खींच लिए और माफी मांग कर चला गया.

‘‘मैं डरी हुई थी. जान और इज्जत तो बच गई, पर फोटो के बारे में याद ही नहीं रहा.

‘‘दूसरे दिन मैं हिम्मत कर के उस के घर पहुंची और कहा कि तुम ने मेरे जो फोटो खींचे हैं, वे वापस कर दो, नहीं तो मैं बड़े ठाकुर और गांव वालों को बता दूंगी. थाने में रिपोर्ट लिखाऊंगी.

‘‘उस ने डरते हुए कहा कि मैं फोटो तुम्हें दे दूंगा, पर अभी तुम जाओ. वैसे भी चीखनेचिल्लाने से तुम्हारी ही बदनामी होगी और सब बिना कपड़ों की तुम्हारे फोटो देखेंगे, तो अच्छा नहीं लगेगा. मैं तुम्हारे पति की गैरहाजिरी में तुम्हें फोटो दे जाऊंगा.

‘‘आप 2 दिन की कह कर गए थे. मैं ने ही उसे खबर पहुंचाई कि मेरे पति घर पर नहीं हैं. फोटो ला कर दो.

‘‘सूरजभान फोटो ले कर आया, लेकिन मुझे अकेला देख उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस ने फिर मेरे कपड़े उतारने की कोशिश की और मुझे नीचे पटका.

‘‘मैं ने पूरी ताकत लगाई. खुद को छुड़ाने के चक्कर में मैं ने उसे धक्का दिया. वह नीचे हुआ और मैं उस के ऊपर आ गई. अभी मैं उठ कर भागने ही वाली थी कि आप आ गए…’’

रूपमती ने अवध की तरफ रोते हुए देखा. उसे लगा कि उस के ऊपर उठने वाले सवाल का जवाब अवध को मिल गया था और उस का निशाना बिलकुल सही था, क्योंकि अवध उस के सिर पर प्यार से दिलासा भरा हाथ फिरा रहा था.

अवध ने कहा, ‘‘मुझे इस बात की खुशी है कि तुम ने पनघट पर अकेले बिना कपड़ों के हो कर भी जान पर खेल कर अपनी इज्जत बचाई और आज मैं आ गया. तुम्हारा दामन दागदार नहीं हुआ.’’

रूपमती ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘आप क्या सोचते हैं कि मैं उसे कामयाब होने देती? मैं ने नीचे तो गिरा ही दिया था बदमाश को. उस के बाद उठ कर कुल्हाड़ी से उस की गरदन काट देती. और अगर कहीं वह कामयाब हो जाता, तो तुम्हारी रूपमती खुदकुशी कर लेती.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. अकेले इतना सबकुछ सहती रही…’’ अवध ने रूपमती के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं बड़े ठाकुर, गांव वालों और पुलिस से बात करूंगा. तुम्हें डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. जब तुम इतना सब कर सकती हो, तो मैं भी पति होने के नाते सूरजभान को सजा दिला सकता हूं. वे फोटो लाना मेरा काम है,’’ अवध ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसा मत करना. मेरी बदनामी होगी. मैं जी नहीं पाऊंगी. आप के कुछ करने से पहले वह मेरे फोटो गांव वालों को दिखा कर मुझे बदनाम कर देगा.

‘‘पुलिस के पास जाने से क्या होगा? वह लेदे कर छूट जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जहर ला कर दे दें. मैं मर जाऊं, फिर आप जो चाहे करें,’’ रूपमती रोतेरोते अवध के पैरों पर गिर पड़ी.

‘‘तो क्या मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं? कुछ न करूं?’’ अवध ने कहा, ‘‘तुम्हारी इज्जत, तुम्हारे फोटो लेने वाले को मैं यों ही छोड़ दूं?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा? लेकिन हमें चालाकी से काम लेना होगा. गुस्से में बात बिगड़ सकती है,’’ रूपमती ने अवध की आंखों में झांक कर कहा.

‘‘तो तुम्हीं कहो कि क्या किया जाए?’’ अवध ने हथियार डालने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘आप सिर्फ अपनी रूपमती पर भरोसा बनाए रखिए. मुझ से उतना ही प्यार कीजिए, जितना करते आए हैं,’’ कह कर रूपमती अवध से लिपट गई. अवध ने भी उसे अपने सीने से लगा लिया.

अगले दिन गांव के बाहर सुनसान हरेभरे खेत में सूरजभान और रूपमती एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

सूरजभान ने कहा ‘‘तुम तो पूरी गिरगिट निकलीं.’’

‘‘ऐसी हालत में और क्या करती? वह 2 दिन की कह कर गया था. मुझे क्या पता था कि वह अचानक आ जाएगा. तुम ने अंदर से कुंडी बंद करने का मौका भी नहीं दिया था…’’ रूपमती ने सूरजभान के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘मुझे कहानी बनानी पड़ी. तुम भागते हुए मेरे कुछ फोटो खींचो. कहानी के हिसाब से मुझे तुम से अपने वे फोटो हासिल करने हैं. तुम से फोटो ले कर मैं उसे दिखा कर फोटो फाड़ दूंगी, तभी मेरी कहानी पूरी होगी.’’

सूरजभान ने कैमरे से उस के कुछ फोटो लेते हुए कहा, ‘‘लेकिन आज नहीं मिल पाएंगे. 1-2 दिन लगेंगे.’’

‘‘ठीक है, लेकिन सावधान रहना. फोटो मिलने के बाद वह मेरी इज्जत लूटने वाले के खिलाफ कुछ भी कर सकता है,’’ रूपमती ने हिदायत दी.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं निबट लूंगा,’’ सूरजभान ने कहा.

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 4

काररवाई शुरू हुई. अभियोजन की तरफ से बिल्डिंग के मालिक दाऊद साहब को बुलाया गया. वकील ने 10 मिनट तक ढीलीढाली जिरह की. उस के बाद मेरा नंबर आया. मैं ने पूछा, ‘‘छत की चाबी आप के पास रहती है. घटना वाले दिन किसी ने आप से चाबी मांगी थी?’’

‘‘जी नहीं, चाबी किसी ने नहीं मांगी थी.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि 17 अप्रैल की रात को कातिल रियाज और मृतक नादिर में किसी एक के पास छत के दरवाजे की चाबी थी या दोनों के पास थी. उसी से दोनों छत पर पहुंचे थे. दाऊद साहब, आप के खयाल से नादिर की हत्या किस ने की होगी?’’

दाऊद ने रियाज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इसी ने मारा है और कौन मारेगा? इन्हीं दोनों में झगड़ा चल रहा था.’’

‘‘आप ने सरकारी वकील को बताया है कि रियाज आवारा, बदमाश और काफी झगड़ालू है. आप भी उसी बिल्डिंग में रहते हैं. आप का रियाज से कितनी बार लड़ाईझगड़ा हुआ है?’’

‘‘मुझ से तो उस से कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ. झगड़ालू मैं ने उसे नादिर से बारबार झगड़ा करने की वजह से कहा था.’’

‘‘इस का मतलब आप के लिए वह अच्छा था. आप से कभी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं हुआ था.’’

‘‘जी, आप ऐसा ही समझिए.’’ दाऊद ने गोलमोल जवाब दिया.

‘‘सभी को पता है कि 2 साल पहले रजिया से मिलने के लिए नादिर ने छत के दरवाजे में लगे ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवाई थी. जब इस बात की सब को जानकारी हुई तो बड़ी बदनामी हुई. उस के बाद आप ने छत के दरवाजे का ताला तक बदल दिया था. हो सकता है, इस बार भी उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो और छत पर किसी से मिलने जाता रहा हो? इस बार लड़की कौन थी, बता सकते हैं आप?’’

‘‘इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता. हां, हो सकता है उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो. लड़की के बारे में मैं कैसे बता सकता हूं. हो सकता है, रियाज को पता हो.’’

‘‘आप रियाज का नाम क्यों ले रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि वह भी फौजिया से प्यार करता था या उसे इस प्यार की जानकारी थी.’’

मैं ने भेद उगलवाने की गरज से कहा, ‘‘दाऊद साहब, यह तो सब को पता है कि रियाज फौजिया से शादी करना चाहता था और इस के लिए उस ने रिश्ता भी भेजा था. जबकि नादिर उसे रियाज के खिलाफ भड़काता था. कहीं नादिर फौजिया के साथ ही छत पर तो नहीं था? इस का उल्टा भी हो सकता है?’’

दाऊद जिस तरह फौजिया को नादिर से जोड़ रहा था, यह उस की गंदी सोच का नतीजा थी या फिर उस के दिमाग में कोई और बात थी. उस ने पूछा, ‘‘उल्टा कैसे हो सकता है?’’

‘‘यह भी मुमकिन है कि घटना वाली रात नादिर फौजिया से मिलने बिल्डिंग की छत पर गया हो और…’’

मेरी अधूरी बात पर उस ने चौंक कर मेरी ओर देखा. इस के बाद खा जाने वाली नजरों से मेरी ओर घूरते हुए बोला, ‘‘और क्या वकील साहब?’’

‘‘…और यह कि फौजिया के अलावा कोई दूसरी लड़की भी तो हो सकती है? किसी ने फौजिया को आतेजाते देखा तो नहीं, इसलिए वहां दूसरी लड़की भी तो हो सकती थी. इस पर आप को कुछ ऐतराज है क्या?’’

हड़बड़ा कर दाऊद ने कहा, ‘‘भला मुझे क्यों ऐतराज होगा?’’

‘‘अगर मैं कहूं कि वह लड़की उसी बिल्डंग की रहने वाली थी तो..?’’

‘‘…तो क्या?’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘बिल्डिंग का मालिक होने के नाते आप को उस लड़की के बारे में पता होना चाहिए. अच्छा, मैं आप को थोड़ा संकेत देता हूं. उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है और आप का उस से गहरा ताल्लुक है, जिस के इंतजार में नादिर छत पर बैठा था.’’

मैं असलियत की तह तक पहुंच चुका था. बस एक कदम आगे बढ़ना था. मैं ने कहा, ‘‘दाऊद साहब, नाम मैं बताऊं या आप खुद बताएंगे? आप को एक बार फिर बता दूं कि उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है, जिस का इश्क नादिर से चल रहा था और यह बात आप को मालूम हो चुकी थी. अब बताइए नाम?’’

दाऊद गुस्से से उबलते हुए बोला, ‘‘अगर तुम ने मेरी बेटी मनीजा का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा.’’

मैं ने जज साहब की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे अब इन से कुछ नहीं पूछना. मेरे हिसाब से नादिर का कत्ल इसी ने किया है. रियाज बेगुनाह है. इस की नादिर से 2-3 बार लड़ाई हुई थी, इस ने धमकी भी दी थी, लेकिन इस ने कत्ल नहीं किया. धमकी की वजह से उस पर कत्ल का इल्जाम लगा दिया गया. अब हकीकत सामने है सर.’’

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया, क्योंकि वह बेगुनाह था. दाऊद के व्यवहार से उसे नादिर का कातिल मान लिया गया था. जब अदालत के हुक्म पर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती के बाद उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

नादिर एक दिलफेंक आशिकमिजाज लड़का था. जब फौजिया ने उसे घास नहीं डाली तो उस ने इश्क का चक्कर दाऊद की बेटी मनीजा से चलाया. वह उस के जाल में फंस गई. दाऊद को अपनी बेटी से नादिर के प्रेमसंबंधों का पता चल गया. नादिर के इश्कबाजी के पुराने रिकौर्ड से वह वाकिफ था.

दाऊद ने बेटी के प्रेमसंबंधों को उछालने या उसे समझाने के बजाय नादिर की जिंदगी का पत्ता साफ करने का फैसला कर लिया. वह मौके की ताक में रहने लगा. रियाज और नादिर के बीच लड़ाईझगड़े और दुश्मनी का माहौल बना तो दाऊद ने नादिर के कत्ल की योजना बना डाली.

दाऊद को पता था कि नादिर ने मनीजा की मदद से छत की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली है. घटना वाली रात को वह दबे पांव मनीजा के पहले छत पर पहुंच गया. नादिर छत पर मनीजा का इंतजार कर रहा था, तभी पीछे से अचानक पहुंच कर दाऊद ने उस की खोपड़ी पर वजनी रेंच से वार कर दिया.

एक ही वार में नादिर की खोपड़ी फट गई और वह मर गया. उस की जेब से चाबी निकाल कर दाऊद दरवाजे में ताला लगा कर नीचे आ गया.

मैं ने दाऊद से कहा कि वह बिल्डिंग का मालिक था. नादिर को वहां से निकाल सकता था. मारने की क्या जरूरत थी? जवाब में उस ने कहा, ‘‘मैं उस बदमाश को छोड़ना नहीं चाहता था. घर बदलने से उस की बुरी नीयत नहीं बदलती. वह मेरी मासूम बच्ची को फिर बहका लेता या फिर किसी सीधीसादी लड़की की जिंदगी बरबाद करता.’’

इस तरह नादिर को मासूम लड़कियों को अपने जाल में फंसाने की कड़ी सजा मिल गई थी.

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 3

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी. लोहे के वजनी रेंच से वार किया गया था.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 2

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश को आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, क्योंकि छत की चाबी उन के पास रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब 15-20 ब्लौक छत पर लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया है. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. उसी का नतीजा यह कत्ल है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. 9 बजे तक वह घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 1

मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारों की तरह घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं्?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

बुरे फंसे यार: जब लालच में फंसे चोर

प्रस्तुति: शकील 

जैकब प्लाजा फाउंटेन के पास बेखयाली में खड़ा था. उस की नजरें उस लड़की पर जमी थीं जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. कुछ और सिक्के पानी में फेंक कर वह चली गई. उस के बाद एक औरत आई. वह भी फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. जैकब सोचा करता था कि किसी तरह दौलत हाथ आ जाए. लेकिन लोग इतने होशियार हो गए हैं कि जल्दी बेवकूफ भी नहीं बनते.

जैकब आजकल बहुत कड़की में था. उस ने सिर उठा कर आसमान की ओर देखा तो अनायास उस की नजर टाउन प्लाजा की खिड़की पर पड़ गई. खिड़की देख उस के दिमाग में एक आइडिया आ गया. उस ने खिड़की को गौर से देखा. वह खिड़की फाउंटेन के ठीक ऊपर बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर स्थित ज्वैलरी शौप की थी. उस के दिमाग में हलचल मच गई.

इस बीच कुछ बच्चे आ गए थे, जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रहे थे. जैकब वहां से टेलीफोन बूथ पर पहुंचा और अपने दोस्त ब्राउन को फोन लगाया. काफी दिनों से ब्राउन ने कोई वारदात नहीं की थी. पुलिस के पास उस का रिकौर्ड साफ था. जैकब ने कहा, ‘‘ब्राउन, एक अच्छा आइडिया है. हम दोनों मिल कर काम कर सकते हैं. मैं यहां फाउंटेन प्लाजा के पास हूं, आ जाओ. एक अच्छी जौब है.’’

‘‘मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहे हो. मैं तुम्हें 2 घंटे बाद ब्रिज पार्क बार में मिलता हूं.’’ ब्रिज पार्क बार पुरसुकून जगह थी. जैकब और ब्राउन की मीटिंग के लिए एक अच्छी जगह. ब्राउन ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या कहानी है?’’

‘‘टाउन डायमंड एक्सचेंज के हम मुट्ठी भर पत्थर चुपचाप से उठा सकते हैं, जिस की कीमत करीब 5 लाख डौलर होगी.’’ जैकब ने धीरे से बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम यह काम कर सकते हो. मैं तुम्हारा बाहर इंतजार करूंगा.’’

‘‘बहुत खूब. यानी पुलिस मुझे दबोच ले और तुम बाहर इंतजार करो.’’ ब्राउन ने गुस्से से कहा.

‘‘कोई किसी को नहीं पकड़ेगा. तुम मेरी बात तसल्ली से सुनो. तुम किसी अमीरजादे की तरह चौथी मंजिल पर ज्वैलरी शौप पर पहुंचोगे और हीरों की एक ट्रे निकलवाओगे. वक्त दोपहर का होगा. इस वक्त बहुत कम ग्राहक होते हैं. उसी वक्त मैं हाल में हंगामा फैलाने का इंतजाम करूंगा. तुम फौरन मुट्ठी भर कीमती हीरे उठा लेना.’’

‘‘फिर मैं क्या करूंगा? क्या पत्थरों को निगल जाऊंगा?’’

‘‘यार पूरी बात तो सुनो. ऐसा कुछ नहीं है. सब की नजर बचा कर तुम मुट्ठी भर हीरे खिड़की से बाहर फेंक देना.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरे सिर से गुजर रही हैं. एसी की वजह से सारी खिड़कियां बंद होंगी.’’

‘‘मैं ने आज ही खिड़की खुली देखी है. उसी को देख कर यह आइडिया आया, क्योंकि कोई भी 4 मंजिल तय कर के हीरों के साथ नीचे नहीं उतर सकता. लेकिन हीरे अकेले 4 मंजिल उतर सकते हैं.’’

‘‘जैकब, मुझे यह पागलपन लग रहा है.’’ ब्राउन ने कहा.

‘‘तुम बात समझो. खिड़की काउंटर से ज्यादा दूर नहीं है. तुम हीरे उठा कर पलक झपकते ही खिड़की से बाहर उछाल देना. तुम्हें काउंटर से हट कर खिड़की तक जाने की भी जरूरत नहीं होगी. तुम अपनी जगह पर ही खड़े रहना. अगर तुम पर शक होता भी है तो तुम्हारी तलाशी ली जाएगी. तुम्हें मशीन पर खड़ा किया जाएगा, पर तुम्हारे पास से कुछ नहीं निकलेगा. मजबूरन तुम्हें छोड़ कर के वे दूसरे ग्राहकों को देखेंगे.’’

‘‘चलो ठीक है, हीरे बाहर चले जाएंगे. पर क्या तुम उन्हें कैच करोगे? एक तरफ कहते हो कि तुम हाल में हंगामा करोगे फिर बाहर पत्थरों का क्या होगा?’’ ब्राउन ने ताना कसा.

‘‘यही तो मंसूबे की खूबसूरती है.’’ जैकब मुसकराया, ‘‘खिड़की के ठीक नीचे खूबसूरत फव्वारा और हौज है. हीरे हौज की गहराई में चले जाएंगे. जैसे कि बैंक की वालेट में बंद हों. कोई भी वहां हीरे गिरते नहीं देख सकेगा, न कोई बाद में देख सकता है क्योंकि यह शीशे की तरह सफेद है. कीमती पत्थरों की यही तो खूबी है, कलर, कैरेट और कट बहुत जरूरी होते हैं.’’

‘‘पर जब सूरज की किरणें पड़ेंगी तो?’’

‘‘सूरज की किरणें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि पानी पर पूरे समय बिल्डिंग और पेड़ों का साया रहता है. मैं ने सब चैक कर लिया है. जब तक किसी को पता न हो कोई उन के बारे में नहीं जान सकता. 2-3 दिन बाद हम रात को आएंगे और आराम से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने समझाया.

ब्राउन ने सिर हिला कर कहा, ‘‘प्लान तो अच्छा है.’’

अगले दिन ठीक सवा 12 बजे ब्राउन टाउन प्लाजा की चौथी मंजिल पर पहुंच गया. गार्ड ने मामूली चैकिंग कर के उसे अंदर जाने दिया. हाल में बहुत कम ग्राहक थे. ब्राउन मौका देख कर ठीक खिड़की के सामने खड़ा हो गया. सिर झुका कर उस ने एक ट्रे की तरफ इशारा किया.

जैसे ही सेल्समैन ने ट्रे बाहर निकाली, जैकब प्रवेश द्वार के हैंडल पर हाथ रख कर झुका और धड़ाम से नीचे गिर गया. गेट पर खड़ा गार्ड उस की तरफ बढ़ा. अंदर के लोगों का ध्यान बंट गया. सब उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मिस्टर, क्या हुआ? तुम ठीक हो न?’’ गार्ड ने उस पर झुक कर पूछा.

‘‘मुझे…मुझे…सांस…’’ फिर उस ने पानी के लिए इशारा किया.

कुछ कस्टमर भी वहां जमा हो गए. 2 सेल्समैन भी आ गए. एक पानी ले आया. बड़ी मुश्किल से उस ने थोड़ाथोड़ा पानी पीया. वह बुरी तरह हांफ रहा था.

जैकब की ऐक्टिंग बहुत शानदार थी. वह धीरेधीरे लड़खड़ाता हुआ लोगों के सहारे खड़ा हुआ. एक क्लर्क ने अपनी कुरसी पेश कर दी.

‘‘मैं शायद बेहोश हो गया था.’’ वह धीरे से बड़बड़ाया. ‘‘तुम्हें डाक्टर की जरूरत है?’’ क्लर्क ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं मुझे घर जाना है. आप का शुक्रिया. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं.’’ उस ने ब्राउन की तरफ देखने की बेवकूफी नहीं की. बहुत धीरेधीरे गेट से बाहर निकल गया.

इमारत से निकल कर वह फव्वारे की तरफ पहुंच गया. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. फव्वारे की लंबीऊंची धाराएं बड़े हौज में गिर रही थीं. उस की तह में सिवाए सिक्कों के और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जैकब का अंदाजा दुरुस्त था. खुशी में उस ने भी एक सिक्का उछाल दिया. वहां से वह सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा. 2 घंटे के बाद ब्राउन की काल आ गई.

‘‘काम हो गया?’’ जैकब ने बेचैनी से पूछा.

‘‘काम तो हो गया पर बस इतना ही वक्त मिला था कि हीरे पानी में फेंक दूं. उस के बाद तो हंगामा मच गया, पुलिस आ गई. मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा. वहां से हिला तक नहीं.

शौप वालों ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी. पुलिस भी मुस्तैद थी. मेरी 2 बार तलाशी ली गई, पर मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ. डायमंड एक्सचेंज वाले सख्त हैरान, परेशान थे.

‘‘किसी ने तुम्हारा जिक्र भी किया पर क्लर्क ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि वह आदमी गेट के अंदर नहीं आया था. गेट से ही वापस चला गया था.

तुम्हारा मंसूबा शानदार था. शौप वाले मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पकड़ कर भी नहीं रख सकते थे. मैं निश्चिंत था. हर तरह की जांच करने के बाद करीब ढाई घंटे में मुझे छोड़ दिया गया. चलो, कल मिलते हैं ब्रिज पार्क में.’’

अगले दिन दोनों ब्रिज पार्क में बैठे बियर पी रहे थे. दोनों के चेहरे चमक रहे थे. जैकब ने कहा, ‘‘हम दोनों ने मिल कर शानदार कारनामे को अंजाम दिया है. ब्राउन, यह तो बताओ फिर वहां क्या हुआ?’’

‘‘मुझ से बारबार पूछा गया कि मैं ने क्या देखा. मेरा एक ही जवाब था कि मैं ने कुछ नहीं देखा. हां, मैं ने हीरे की ट्रे जरूर निकलवाई थी. इस से पहले कि मैं हीरों को देखता, एक आदमी धड़ाम से गेट पर गिर गया. मेरा ध्यान भी दूसरों की तरह उस तरफ चला गया.

‘‘मेरे साथ 4 और ग्राहक थे. मेरी पोजीशन हर तरह से साफ थी. हम सब की तलाशी बारबार ली गई. तंग आ कर एक्सरे तक ले डाला.

शायद पुलिस सोच रही थी कि हमारे पास कोई छिपा हुआ पाउच होगा और उसी में हीरे होंगे. पर सब बेकार गया. कुछ हासिल नहीं हुआ. तंग आ कर मुझे छोड़ दिया गया. मेरे बाद भी 2 आदमियों की जांच हो रही थी.’’ ब्राउन ने कहकहा लगाते हुए कहा.

‘‘अब क्या इरादा है?’’ ब्राउन ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आज रात को वहां से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने जवाब दिया.

ब्राउन बोला, ‘‘यार, घबराहट में मैं 5 हीरे ही बाहर फेंक सका.’’

जैकब ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. 5 लाख डौलर भी बहुत होते हैं.’’

जैकब और ब्राउन देर रात फव्वारे पर पहुंच गए. आज उन के ख्वाबों में रंग भरने की रात थी. दोनों ने जल्दी मुनासिब न समझी. दोनों एक कोने में काले कपड़ों में छिप कर बैठ गए. आधी रात तक का इंतजार किया.

लोगों की आवाजाही अब खत्म हो चुकी थी. फव्वारा अभी बंद था. पानी बिलकुल स्थिर था. इन्हें हीरे तलाश करने में मुश्किल नहीं हुई. 3 हीरे मिलने के बाद ब्राउन ने कहा, ‘‘जैकब, 3 काफी हैं, निकल चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, एक और तलाश कर लें फिर चलते हैं.’’ जैकब ने इसरार किया.

अचानक फ्लैश लाइट्स औन हो गईं. एकदम वे दोनों तेज रोशनी में नहा गए. एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘वहीं रुक जाओ.’’

दोनों अभी ही हौज से बाहर निकले थे. ‘मारे गए यार…’ जैकब ने फ्लैश लाइट्स से बाहर दौड़ लगाई. लेकिन पुलिस वाले गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच गए. एक ने जैकब पर गन तान ली, दूसरे ने ब्राउन पर. दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो गए. ‘‘ईजी औफिसर, गोली मत चलाना. आप ने हमें पकड़ लिया है.’’ ब्राउन ने डर कर कहा.

‘‘तुम ठीक समझे. जरा भी हलचल की तो गोली चल जाएगी.’’ गन वाला गुर्राया.

‘‘हौज से मिलने वाले सिक्के हर महीने चैरिटी के नाम पर यतीमखाने में दिए जाते हैं. तुम दोनों इतने बेईमान हो कि खैराती रेजगारी भी चुराने आ गए.

ठहरो, अभी तुम्हारी तलाशी होती है. जज कम से कम 3 महीने की सजा तो देगा ही. इन्हें गनपौइंट पर गाड़ी में डालो. पुलिस स्टेशन पर इन की तलाशी ली जाएगी.’’

दोनों मजबूरन हाथ उठाए उदास से गाड़ी में बैठ गए. ब्राउन धीरे से बोला, ‘‘बुरे फंसे यार.’’

वचन-भाग 1 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

वैशालपुर के ठाकुर प्रताप सिंह की बेटी थी राजबाला. वह बेहद सुंदर और धैर्यवान होने के साथ चतुर भी थी. आसपास के रजवाड़ों में ऐसी गुणों की खान कोई न थी. राजबाला का गोरा रंग, सुतवां नाक, कजरारे बड़ेबड़े नैन और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे गुलाबी होंठ, भरा और कसा बदन, कमर तक लटकती स्याह काली केशराशि और मोहक मुसकान देख कर लोग उसे ऐसे ताकते रह जाते थे, जैसे वह किसी दूसरे लोक से आई कोई अप्सरा हो.

मगर हकीकत में वह कोई अप्सरा नहीं, बल्कि राजपूत बाला राजबाला थी. अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करती थी और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उस ने पति की इच्छा के खिलाफ कोई काम किया हो.

राजबाला का विवाह अमरकोट रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनार सिंह के पुत्र अजीत सिंह से हुआ था. अनार सिंह के पास बहुत बड़ी सेना थी, जिस से कभीकभी वह लूटमार भी किया करते थे.

एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कहीं से आ रहा था. इस की खबर अनार सिंह को लग गई. तब अनार सिंह अपनी सेना ले कर राजकोष लूटने चल पड़े. राव कोटा के सिपाही बड़े वीर थे. दोनों सेनाओं में जम कर युद्ध हुआ. अंत में अनार सिंह की पराजय हुई और उन की सारी सेना तितरबितर हो गई.

इस पराजय के कारण अनार सिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया. कोटा के राजा राव ने अनार सिंह की जागीर छीन ली और उन्हें देश निकाले का फरमान सुना दिया. अनार सिंह अब अपने किए पर पछता रहे थे.

मगर जो होना था, वह तो हो चुका था. अंत में वह सोडा को छोड़ कर काले वस्त्र धारण कर काले घोड़े पर बैठ कर स्याह काली रात के अंधेरे में दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव में जा बसे.

अनार सिंह का हाथ तो पहले से ही तंग था, अब हालत और भी खराब हो गए. कहावत है कि रिजक (धन) बिन राजपूत कैसा. यहां तक कि देश निकाला मिलने के थोड़े समय बाद में दुख और लाज के मारे उन्होंने प्राण त्याग दिए.

अनार सिंह की मृत्यु के बाद उन की पत्नी ठकुरानी अपने पुत्र अजीत सिंह को बड़े कष्ट उठा कर पालने लगी. अजीत सिंह की उम्र उस समय 13 वर्ष रही होगी. किंतु बांकपन और वीरता में वह अपनी उम्र के बालकों से कहीं बढ़ कर था. इस कुल की धीरेधीरे यह दुर्दशा हो गई कि अजीत सिंह की माता दूसरों का कामकाज कर के निर्वाह करने लगी. इस प्रकार उस दुखिया की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई.

राजबाला के साथ अजीत सिंह के विवाह की बातचीत उस के पिता के जीते जी हो गई थी. हालांकि अनार सिंह का यह कुल अति दरिद्र हो गया था. परंतु राजपूत लोग सदा से अपने वचन का सम्मान करते थे.

राजपूतानियां भी प्राय: अति हठी होती थीं. एक बार जब किसी के साथ उन का नाम निकल जाए, फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ विवाह करना उचित नहीं समझती थीं.

अजीत सिंह अब बिलकुल अनाथ था. वह किसी प्रकार अपना निर्वाह न कर सकता था. किंतु उसे आशा थी कि उस के युवा होने पर शायद कोटा का राजा उस के पिता की जागीर उसे दे देगा, जिस का वह वारिस है. बस, वह इसी आशा से जी रहा था.

एक बार अजीत सिंह ने एक राजपूतानी को प्रताप सिंह के यहां इसलिए भेजा था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उस के साथ करने को राजी है या नहीं? उस समय राजबाला भी युवती थी. वह विवाह का समाचार सुन कर अपनी सहेलियों से कहने लगी, ‘‘बहनो, मैं ने अपने पति को नहीं देखा, वह कैसे हैं?’’

सहेलियां बोलीं, ‘‘तुम्हारे पति अति सुंदर, बुद्धिमान और वीर हैं.’’

पति की प्रशंसा सुन कर राजबाला अति प्रसन्न हुई और कहने लगी, ‘‘मेरे पति वीर हैं, चतुर हैं और सुंदर हैं. ये ही सब बातें एक राजपूत में होनी चाहिए. सब कहते हैं कि उन के पास धन नहीं है. न सही, जहां बुद्धि और पराक्रम है, वहां धन अपने आप ही आ जाता है.’’

राजबाला ने किसी तरह उस राजपूतानी से मिल कर कहा, ‘‘तुम जा कर मेरे पति से कहो कि यहां लोग तुम्हारी दरिद्रता का समाचार कहते रहते हैं, परंतु मैं आज से ही नहीं, कई सालों से आप की हो चुकी हूं. आप मेरे पति हैं, मैं आप की बुराई सुनना नहीं चाहती. इसलिए आप स्वयं आ कर पिताजी से कह कर मुझे ले जाएं. मैं गरीबी और अमीरी में सदा आप का साथ दूंगी. किसी का वश नहीं कि मेरी बात को टाल सके. यदि विवाह होगा तो आप के साथ होगा, नहीं तो राजबाला प्रसन्नतापूर्वक प्राण त्याग करेगी.’’

जिस समय राजपूतानी ने राजबाला का यह संदेश अजीत सिंह को सुनाया. वह बहुत खुश हुआ और कहने लगा, ‘‘यह कैसे संभव है कि मेरे जीते जी कोई और राजबाला को ब्याह ले जाए.’’

राजबाला के कहे अनुसार अजीत सिंह ने उस के पिता प्रताप सिंह को विवाह के लिए कहलवा भेजा. जिस के जवाब में प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘विवाह को तो हम तैयार हैं. क्योंकि हम ने तुम्हारे पिता को वचन दिया था. परंतु इस समय तुम्हारी आर्थिक हालत सही नहीं है. ऐसा करो कि तुम 20 हजार रुपए इकट्ठा कर के लाओ, जिस से यह मालूम हो कि तुम मेरी बेटी को सुखी रख सकोगे. जब तक तुम्हारे पास 20 हजार रुपए न हों तो विवाह के बारे में भी तुम्हारा सोचना व्यर्थ है.’’

आखिर प्रताप सिंह की बात भी उचित थी. कोई भी पिता अपनी ऐशोआराम में पली बेटी का विवाह ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कैसे कर सकता है, जिस का खुद निर्वाह करना मुश्किल होता हो.

अजीत सिंह सोच में डूब गया. परंतु बेचारा क्या करता. अंत में उसे जैसलमेर के एक सेठ मोहता का ध्यान आया, जिस के यहां से उस के पिता का लेनदेन था.

वह सेठ मोहता के पास गया और उस से कहा, ‘‘सेठजी, तुम मेरे घराने के पुराने महाजन हो. 20 हजार रुपए के बिना मेरा विवाह नहीं हो रहा है. विवाह करना जरूरी है, परंतु तुम जानते हो कि मेरे पास इस समय न जागीर है, न ही कुछ और है. अगर पुराने संबंधों का विचार कर के और मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे 20 हजार रुपए दे सको तो दे दो. मैं सूद सहित वापस कर दूंगा.’’

वचन-भाग 3 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

राणा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने उसे जाते हुए देखा है. हालांकि ठीकठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो उसे अवश्य लूंगा. उस के मुख की सुंदरता मेरी आंखों में खपी जाती है.’’

राजा की बात सुन कर सब चुप हो गए और सवारी महल की ओर चली. जब राणा फाटक पर पहुंचे तो हाथी से उतर कर आज्ञा दी, ‘‘एकएक आदमी मेरे सामने से हो कर निकल जाएं.’’

आज्ञानुसार बारीबारी से सभी लोग राणा के सामने से निकल कर महल में चले गए. जब गुलाब सिंह जाने लगा तो राणा ने उसे देख कर पूछा, ‘‘क्या सिंह को तुम ने मारा है?’’

गुलाब सिंह ने सिर झुका कर कहा, ‘‘जिस को श्रीमान कहें, वही सिंह का वध कर सकता है. सिंह की मृत्यु तो आप की आज्ञा के अधीन है.’’

राणा बोले, ‘‘मैं समझता हूं, सिंह तुम ने ही मारा है परंतु मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि तीव्रगति से दौड़ते घोड़े ने मुझे इतना अवसर न दिया कि मैं मारने वाले को ठीक से पहचान सकता.’’

अजीत सिंह भी निकट था, वह बोला, ‘‘अनाथों के नाथ, सिंह के कान और पूंछ नहीं हैं, इस से ज्ञात होता है कि उस को मारने वाले ने प्रमाण के लिए उस के कान और पूंछ काट लिए हैं.’’

राणा ने गुलाब सिंह से कहा, ‘‘कान और पूंछ हाजिर करो.’’

गुलाब सिंह ने तुरंत घोड़े की जीन के नीचे से निकाल कर उन्हें राणा के सामने पेश किया. राणा बोले, ‘‘राजपूतो, तुम बड़े वीर हो. आज से तुम मेरे संग रहो. मैं तुम्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त करता हूं.’’

हालांकि दोनों राजपूत संग रहते थे परंतु रात के समय दोनों को अलगअलग हो जाना पड़ता था. अजीत सिंह तो रात को दरबार में रहता था और राजबाला (गुलाब सिंह) की ड्यूटी राजा के सुख भवन में थी. एक दिन राजबाला अपनी बेबसी पर नीचे स्वर में मल्हार के राग गाने लगी.

अजीत सिंह ने राजबाला के राग को सुना. उस के हृदय में भी वही भाव उद्दीप्त हो गया. उस ने भी राजबाला के राग में स्वर मिला दिया. राणा की रानी बहुत चतुर थी. दोनों गाने वालों के राग की आवाज रात के समय उस के कानों में पड़ी.

उस ने राणा से कहा, ‘‘मुझे ज्ञात होता है कि ये दोनों राजपूत जो तुम्हारी सेवा में हैं स्त्री और पुरुष हैं. यह जो पुरुष रानी निवास पर पहरे पर है, अवश्य यह स्त्री है. कोई कारण है, जिस से ये एकदूसरे से नहीं मिलते और मन ही मन कुढ़ते हैं.’’

राणा खूब ठहाके मार कर हंसे फिर बोले, ‘‘खूब, तुम्हें खूब सूझी. ये दोनों सालेबहनोई हैं. सदा से संग रहते हैं. आज यह यहां ड्योढ़ी पर हैं कि कभी अलग नहीं होंगे. इन दोनों में गाढ़ी प्रीत है.’’

रानी बोली, ‘‘महाराज, आप जो कहते हैं सत्य होगा, परंतु मेरी भी बात मान लीजिए. इन की परीक्षा कीजिए. अपने आप ही झूठसच ज्ञात हो जाएगा.’’

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और तुरंत ही अजीत सिंह और गुलाब सिंह दोनों को अपने महल में बुला भेजा. दोनों बड़े डरे कि क्या बात है. कोई नई आफत तो नहीं आई.

उन्होंने राणा के सामने जा कर प्रणाम किया. तब राणा ने पूछा, ‘‘गुलाब सिंह और अजीत सिंह यह बताओ कि तुम दोनों मर्द हो या तुम में से कोई स्त्री है?’’

दोनों चुप थे. क्या उत्तर देते. राणा ने फिर वही प्रश्न किया, ‘‘तुम दोनों बोलते क्यों नहीं? तुम्हें जो दुख हो कहो. मेरे अधिकार में होगा तो अभी इसी समय दूर कर दूंगा. लाज, भय की कोई बात नहीं.’’

अजीत सिंह ने सिर झुका कर राणा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई. राणा ने उसी समय दासी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, यह जो बहन मरदाना वेश में खड़ी है, मेरी पुत्री है. इस को अभी महल में ले जा कर स्त्रियों के कपड़े पहना दो और महल में रहने के लिए अलग स्थान दो, हर प्रकार से इन को आराम दो.’’

राजबाला राणा को प्रणाम कर उन की आज्ञा मान कर उसी समय सिर झुका कर महल में चली गई.

इस के बाद राणा ने अजीत सिंह से कहा, ‘‘राजपूत, मैं तेरे बापदादा के नाम को जानता हूं. तेरा वचनबद्ध होना धन्य है. मैं ने आज तक अपनी आयु में ऐसा योगी नहीं देखा था. तू मनुष्य नहीं देवता है. जा महल में अब अपनी स्त्री से बात कर.’’

रात को किसी को नींद नहीं आई. सुबह होते ही राणा ने 20 हजार रुपए सूद सहित अजीत सिंह को दिए.

वह उसी समय ऊंटनी पर चढ़ कर जैसलमेर की ओर चल दिया. कई दिन के सफर के बाद अजीत सिंह जैसलमेर मोहता सेठ के पास पहुंचा और सूद सहित 20 हजार रुपए सौंप दिए.

एक बरस से अजीत सिंह का कोई अतापता नहीं था. बनिया अपने रुपयों से निराश हो गया था परंतु उसे कोई रंज न था. क्योंकि वह अजीत सिंह के पिता अनार सिंह से बहुत कुछ ले चुका था. रुपए वापस पा कर सेठ बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम वास्तव में क्षत्रिय हो, तुम जानते हो कि वचन क्या होता है. तुम महान हो.’’

अजीत सिंह सेठ के रुपए दे कर उदयपुर आया और राणा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘आप ने मेरी लाज रख ली.’’

राणा ने राजबाला को प्राणरक्षक देवी का खिताब दिया. वह उदयपुर में इसी नाम से विख्यात थीं. वह जब कभी राणा के महल में उन के होते हुए जाती, राणा बेटी कह कर पुकारते थे.

पतिपत्नी दोनों राणा के कृपापात्र बन गए. राणा उन्हें बहुत प्यार करते थे, मानो वे उन के ही बेटेबेटी हों. राजबाला और उस के पति के लिए एक अलग से महल बनवा दिया गया और उन्हें एक जागीर भी अलग प्रदान की कई.

सेठ के रुपए चुका कर उदयपुर जाने के बाद उस रात जब बिस्तर पर अजीत सिंह और राजबाला सोए, तब उन के बीच तलवार नहीं थी. दोनों ने अपना वचन धर्म निभाया था और उस दिन दो जिस्म एक जान बन गए थे.