मेरी नहीं तो किसी की नहीं – भाग 2

रास्ते में उस ने एक पेड़ के नीचे बाइक खड़ी की. फिर रूपा को मालिक से हुई तकरार के बारे में बताया. सुन कर रूपा गंभीर हो गई. वह बोली, ‘‘उन्होंने जो कुछ कहा, वह अपनी जगह सही है. अच्छाखासा काम हाथ से निकल गया.’’

‘‘तुम क्यों परेशान हो रही हो रूपा, काम चला गया तो क्या हुआ. हाथपैर और मेरा हुनर थोड़े ही चला गया है.’’ चंद्रशेखर ने उसे समझाया, ‘‘काम करना है तो कहीं भी कर लेंगे. तुम पर ऐसी दरजनों गाडि़यां और नौकरियां कुरबान.’’

फिर चंद्रशेखर जेब के अंदर हाथ डाल कर बंद मुट्ठी निकाल कर बोला, ‘‘गेस करो रूपा, इस मुट्ठी में क्या है?’’

‘‘मुझे क्या मालूम.’’ वह बोली.

‘‘सोचो न.’’

‘‘टौफी है क्या?’’ रूपा ने पूछा.

‘‘नहीं…और कुछ, बताओ.’’

रूपा ने दिमाग पर जोर डाला. फिर उस ने अनभिज्ञता से कंधे उचकाए. तभी चंद्रशेखर बोला, ‘‘चलो, अपनी आंखें बंद करो…और हाथ आगे बढ़ाओ.’’

रूपा ने आंखें बंद कर के अपनी हथेलियां उस के सामने खोल दीं. तभी चंद्रशेखर ने रूपा की हथेली पर कुछ रख कर कहा, ‘‘अब अपनी आंखें खोलो.’’

रूपा ने आंखें खोलीं. एक अंगूठी थी जो अमेरिकन डायमंड की थी और जगमगा रही थी.

अंगूठी पर पेड़ के पत्तों से छन कर आती हुई सूर्य की किरणें पड़ रही थीं. और रिफ्लेक्ट हो कर सात रंगों की किरणें बिखर रही थीं. अंगूठी देख कर रूपा बहुत खुश हुई.

‘‘कैसा लगा?’’ चंद्रशेखर ने पूछा.

‘‘बहुत सुंदर…बहुत ही प्यारा है.’’

‘‘पहन कर दिखाओ जरा.’’

‘‘जब लाए ही हो तो तुम्हीं पहना दो न.’’ कहती हुई रूपा ने अपना हाथ चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया. रूपा के हाथ से अंगूठी ले कर रूपा को पहना दी. उस की अंगुली में अंगूठी अच्छी लग रही थी.

सड़क के किनारे गन्ने का एक खेत था. चंद्रशेखर ने उस ओर इशारा किया तो रूपा बोली, ‘‘गन्ना खाना चाहते हो तो जाओ ले आओ.’’

‘‘ऐसा करते हैं दोनों वहीं खेत में चलते हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं मुझे गन्ने के झुरमुटों से डर लगता है. मैं नहीं जाऊंगी.’’

चंद्रशेखर ने जिद की तो रूपा को झुकना पड़ा. फिर दोनों गन्ने के खेत की ओर बढ़े और खेत में भीतर घुस गए. दोचार कदम चलने के बाद रूपा ठिठकी. तो चंद्रशेखर बोला, ‘‘अरे, आओ न… आओ, आती क्यों नहीं. अच्छा सा गन्ना तोडें़गे.’’

डरतीझिझकती रूपा चंद्रशेखर के पीछे चलने लगी. गन्ने के सूखे भूरे पत्ते पैरों में दब कर चर्रमर्र की आवाज कर रहे थे. जब दोनों काफी भीतर घुस गए तब चंद्रशेखर ने अपनी बाइक और सड़क की ओर देखा. लेकिन झुरमुटों की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अचानक चंद्रशेखर ठिठका. उसे ठिठकते देख कर रूपा भी ठिठक पड़ी.

चंद्रशेखर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रूपा, यहां तक चली आई. गन्ना ही खाना होता तो इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी. पहले ही न तोड़ लेता.’’

‘‘फिर क्यों आए इतनी दूर? मैं अभी भी नहीं समझी.’’

चंद्रशेखर के होंठों पर शरारत उभर आई. वह रूपा के करीब पहुंचा

और उस के हाथों को अपने हाथ में ले लिया, ‘‘रूपा…’’

चंद्रशेखर ने तर्जनी अंगुली को अंगुली पर रखा तो रूपा बोली, ‘‘ओह… इसलिए मुझे यहां इतनी दूर लाए हो.’’

‘‘हां, तुम तो जानती हो कि वहां तो ऐसा कुछ कर नहीं पाते, जगह भी मुफीद नहीं थी. यहां भला हमें कौन देखेगा.’’ कह कर चंद्रशेखर ने रूपा को अपने बाहुपाश में लेना चाहा. वह कोई ठोस निर्णय ले पाता कि उस ने देखा रूपा उस के पीछे देख रही है.

वह पीछे पलटा तो एक गाय तेजी से दौड़ती आ रही थी. गाय के पीछे से रखवाली करने वाले किसान की हा…हू.. की आवाज उन दोनों के कानों तक पहुंची. रूपा बोली, ‘‘चलो, यहां से. गाय आ रही है. लगता है, किसान गांव के पीछेपीछे आ रहा है.’’

फिर कई गायों का झुंड गन्ने में घुस आया. किसान की आवाज भी करीब आती जा रही थी. फिर रूपा वहां नहीं ठहरी. वह हाथों से गन्ने के पत्तों को अलग करती हुई वहां से भागी. चंद्रशेखर भी हड़बड़ाए अंदाज में बाइक की ओर भागा.

रूपा हांफ रही थी. वह हांफती हुई बोली, ‘‘खा लिए गन्ने? ऊपर से देखो…’’ उस के सैंडिल की पट्टी एक ओर से उखड़ गई थी. पत्तों से हाथपैर अलग छिल गए थे.

रूपा बोली, ‘‘कहां ला कर फंसा दिया.’’

फिर दोनों वहां ठहरे नहीं. बाइक पर बैठ कर चले गए.

इस के बाद दोनों की मेलमुलाकातों की चर्चाएं पहले कानाफूसी में तब्दील हुईं. फिर बेलसोंडा में दोनों की मुलाकात और प्यार की चर्चाएं होने लगीं. यह बात रूपा के पिता सुरेंद्र और मां जमुना के कानों तक भी पहुंची.

चूंकि लड़की बालिग हो चुकी थी और बगावत पर उतर सकती थी. इसलिए सुरेंद्र ने रूपा को अपनी बड़ी बेटी हेमलता की ससुराल में उस के पास भेज दिया. रूपा हेमलता के यहां 20-25 दिन रह कर पिता के घर आ गई.

इस बीच चंद्रशेखर ट्रक चलाने लगा था. गुजरे हुए समय में रूपा और चंद्रशेखर ने सैकड़ों ख्वाब देखे थे. गांव आने के बाद कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा.

20-25 दिनों की जुदाई के बाद चंद्रशेखर और रूपा की मुलाकात हुई. चंद्रशेखर ने उस से शिकायत की, ‘‘रूपा, तुम अपनी बहन के पास रायपुर जा कर इतनी मशगूल हो गईं कि एक फोन तक नहीं किया.’’

‘‘मेरे पास फोन था ही कहां,’’ रूपा सफाई में बोली.

‘‘क्यों, कहां गया तुम्हारा फोन?’’

‘‘घर वालों ने ले लिया था.’’

‘‘नंबर तो जानती हो. फोन किसी से मांग लेती.’’

‘‘मैं दीदी की देखभाल में थी.’’

‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि मैं याद ही नहीं रहा तुम्हें.’’ चंद्रशेखर ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है. हमारा मिलना और हमारा प्यार गांव वालों की नजरों में आ चुका है. अब ऐसा लगता है कि हमें एकदूसरे से नहीं मिलना चाहिए.’’ रूपा बोली.

‘‘रूपा…तुम मिलने की बात पर अटकी हो, मैं तो तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ चंद्रशेखर बोला.

‘‘हमारे चाहने से क्या होगा? घर वालों और समाज की मंजूरी भी जरूरी है.’’ रूपा तनिक चिढ़ गई.

‘‘रूपा, तुम्हारी यह बात गलत है. बताओ, जब तुम ने मुझ से प्यारर किया था तो क्या घर, समाज और परिवार से पूछ कर किया था?’’

‘‘नहीं, उस वक्त मुझ पर घरपरिवार और समाज का दबाव नहीं था. और आज मैं इन तीनों की निगाहों में हूं. मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं इन से लड़ कर विद्रोह कर सकूं.’’ रूपा ने कहा.

‘‘यह बात तुम्हें उस वक्त सोचनी चाहिए थी, जब प्यार की डगर पर चंद कदम ही बढ़ी थीं. अब तो हम बहुत दूर निकल आए हैं रूपा. इस का मतलब, तुम मेरा साथ नहीं दोगी?’’

‘‘माना कि हम दोनों साल भर साथ रहे, दोस्त की तरह. लेकिन इस अपनेपन को प्यार का नाम नहीं दिया जा सकता.’’

कुछ पलों तक हैरानगी, बेचारगी से रूपा की ओर देख कर चंद्रशेखर बोला, ‘‘ऐसा मत कहो रूपा. हमारी चाहत को अपनेपन का लबादा मत ओढ़ाओ. मैं ने तुम्हें और खुद को ले कर ढेरों ख्वाब देखे हैं. तुम्हारे विचार जान कर जी चाहता है कि इसी सड़क पर किसी वाहन के नीचे कुचल कर मर जाऊं.’’

वह गहरी सांस ले कर फिर बोला, ‘‘सचमुच मैं बहुत दूर निकल आया हूं तुम्हारे साथ, अब वापस लौटना मुमकिन नहीं.’’

‘‘सड़क पर सिर पटक कर मरना चाहते हो, ऐसा कर के क्या यह जाहिर करना चाह रहे हो कि तुम मेरे बिना जी नहीं सकते?’’ रूपा तीखे शब्दों में बोली.

चंद्रशेखर रूपा की बात सुन कर पहली बार आपे से बाहर होता हुआ बोला, ‘‘मत भूलो रूपा कि जिस सड़क पर मैं स्वयं को फना करने का माद्दा रखता हूं. यहीं इस सड़क पर तुम्हारे साथ भी कर सकता हूं.’’

वह फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘प्लीज रूपा, ऐसा मत कहो.’’

‘‘चंद्रशेखर, तुम समझने का प्रयास नहीं कर रहे हो या फिर समझना नहीं चाहते.’’

‘‘रूपा, तुम क्या समझाना चाह रही हो? और मैं क्या नहीं समझ रहा हूं?’’

‘‘तो सुनो, फिर कह रही हूं कि जिसे तुम प्यार समझ रहे हो, वह प्यार नहीं. सिर्फ दोस्ती थी.’’ इस के बाद चंद्रशेखर के होंठों से बेबसी में शब्द निकले, ‘‘रूपा, जिस प्यार को तुम दोस्ती का नाम दे रही हो, इस से अच्छा है कि इसे बेनाम ही रहने दो. मैं देख रहा हूं तुम्हारा व्यवहार बदल रहा है.’’

चंद्रशेखर अभी कुछ और बोलने ही जा रहा था कि रूपा यह कहते हुए वहां से चली गई कि तुम्हें जो समझना है, समझते रहो. इतना मान कर चलो कि अब मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगी.

उलझी हुई पहेली, जो सुलझ गई – भाग 2

इसी उधेड़बुन में वे नव्या के मायके पहुंचे. नव्या के मांबाप फिर मुकुल का नाम ले कर शोर मचाने लगे. राघव ने उन को समझाया.

‘‘देखिए हम मुलजिम को जरूर पकड़ेंगे लेकिन जल्दबाजी किसी निर्दोष को फंसा सकती है, इसलिए हमारा सहयोग कीजिए.’’

नव्या के पिता ये सुन कर शांत हुए. उन्होंने हर तरह से सहयोग देने की बात कही.

राघव ने पूछा, ‘‘नव्या का मुकुल के अलावा किसी से कोई विवाद था?’’

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब.’’ नव्या के पिता बोले, ‘‘उस की तो सब से दोस्ती थी, बैंक में भी सब उस से खुश रहते थे.’’

‘‘और विमल से उस का क्या रिश्ता था?’’ राघव ने उन के चेहरे पर गौर से देखते हुए सवाल किया. वे इस पर थोड़ा अचकचा गए.

‘‘व…वो…वो…दोस्ती थी उस से भी… मुकुल बेकार में शक किया करता था उन के संबंध पर.’’

राघव ने इस समय इस से ज्यादा कुछ पूछना ठीक नहीं समझा. वो वहां से निकल गए. अगले कुछ दिन इधरउधर हाथपैर मारते बीते. उन्होंने नव्या के बैंक जा कर उस के बारे में जानकारियां जुटाईं. सब ने साधारण बातें ही बताई. कोई नव्या और विमल के रिश्तों के बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं था.

राघव ने नव्या के उस शाम बैंक से निकलते समय की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी. वह अकेली ही अपनी कार में बैठती दिख रही थी. राघव की अन्य कर्मचारियों से तो बात हुई, लेकिन विमल से मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि वह नव्या की मौत के बाद से ही छुट्टी पर चला गया था.

उन्होंने उस का पता निकलवाया और अपनी टीम के साथ उस के घर जा धमके. वह उन को देख कहने लगा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं खुद बहुत दुखी हूं नव्या के जाने से, पागल जैसा मन हो रहा मेरा, मुझे परेशान मत करिए.’’

विमल की हकीकत क्या थी?

‘‘हम भी आप के दुख का ही निवारण करने की कोशिश में हैं विमल बाबू.’’ राघव ने अपना काला चश्मा उतारते हुए कहा, ‘‘आप भी मदद करिए, हम दोषियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डालना चाहते हैं.’’

‘‘पूछिए, क्या जानना चाहते हैं आप.’’ वो सोफे पर निढाल होता बोला. सवालजवाब का दौर चलने लगा. विमल ने बताया कि उस ने उस दिन नव्या को औफिस के बाद अपने घर बुलाया था. लेकिन उस ने मना कर दिया कि पति से झगड़ा और बढ़ जाएगा. वह अपनी कार से निकल गई थी. उस ने अगले दिन किसी पारिवारिक कारण से औफिस न आने की बात की थी. हां, विमल ने भी ये नहीं स्वीकारा कि नव्या से उस की बहुत अच्छी दोस्ती से ज्यादा कोई नाता था.

‘‘ठीक है, विमल बाबू.’’ राघव ने उठते हुए कहा, ‘‘आप का धन्यवाद. फिर जरूरत होगी तो याद करेंगे… बस आप ये शहर छोड़ कर कहीं मत जाइएगा.’’

‘‘जी जरूर.’’

राघव की जीप वहां से चल दी. अब तक इस केस में कुछ भी ऐसा हाथ नहीं लग पाया था जिस से तसवीर साफ हो. उन्होंने अपने मुखबिरों के माध्यम से भी पता लगाना चाहा कि नव्या की हत्या के लिए क्या किसी लोकल गुंडे ने सुपारी ली थी. लेकिन ऐसा भी कुछ मालूम नहीं हो सका. किसी गैंग की भी ऐसी कोई सुपारी लेने की बात सामने नहीं आ पा रही थी.

शाम को राघव घर जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि सिपाही ने एक लिफाफा ला कर दिया और बोला, ‘‘साब, ये अभी आया डाक से… लेकिन भेजने वाले का कोई नाम, पता नहीं लिखा.’’

राघव ने लिफाफे को खोला. उस में एक सीडी और चिट्ठी थी. उन्होंने उसे पढ़ना शुरू किया. उस में लिखा था, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप को नव्या के बैंक में जो सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई, वो पूरी नहीं थी. विमल ने उस में पहले ही एडिटिंग करा दी थी. नव्या की मौत वाली शाम विमल उस के साथ उस की ही कार में निकला था. आप को इस बात का सबूत इस सीडी में मिल जाएगा.’’

चिट्ठी पढ़ते ही राघव की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने जल्दी से उसे अपने लेपटौप पर लगाया. वाकई वीडियो में विमल उस शाम नव्या की कार में अंदर बैठता दिख रहा था. राघव को अपना काम काफी हद बनता लगा. वे सिपाहियों के साथ सीधे विमल के घर पहुंचे. देखा कि वह कहीं जाने के लिए पैकिंग कर रहा था. राघव पुलिसिया अंदाज में उस से बोले, ‘‘कहां चले विमल बाबू? आप को शहर से बाहर जाने को मना किया था न?’’

वो उन्हें वहां पा कर घबरा गया और हकलाने लगा.

‘‘म…मैं क…कहीं नहीं जा रहा. बस सामान सही कर रहा था.’’

‘‘इस की जरूरत अब नहीं पड़ेगी.’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘चल थाने, वहीं सब सामान मिलेगा तुझे.’’

विमल कसमसाता रहा, खुद को निर्दोष बताता रहा लेकिन सिपाहियों ने उसे जीप में डाल लिया. लौकअप में राघव के थप्पड़ विमल को चीखने पर मजबूर कर रहे थे. वह किसी तरह बोला, ‘‘सर, मैं ने कुछ नहीं किया, हां मैं उस के साथ निकला जरूर था लेकिन रास्ते में उतर गया था, वो आगे चली गई थी.’’

‘‘तो हम से ये बात छिपाई क्यों?’’ राघव ने उसे कड़कदार 2 थप्पड़ और लगाते हुए पूछा.

‘‘म्म्म मैं घब…घबरा गया था साहब कि कहीं मेरा नाम शक के दायरे में न आ जाए.’’

राघव ने उस के सैंपल लैब में भिजवा दिए जिस से नव्या के गुप्तांगों और कपड़ों पर मिले वीर्य से उस का मिलान करा के जांच की जा सके. रिपोर्ट तीसरे दिन ही आ गई. सचमुच नव्या के जिस्म से जितने लोगों के वीर्य मिले थे, उन में एक विमल से मैच कर गया.

राघव ने मारमार के विमल की देह तोड़ दी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बोल, बोल तूने नव्या को क्यों मारा?’’

विमल ने खोला भेद, लेकिन अधूरा

‘‘साब मैं ने कुछ नहीं किया.’’ वो जोरजोर से रोते हुए बोला, ‘‘हां मैं ने कार में उस के साथ जिस्मानी संबंध जरूर बनाए थे लेकिन उस को मारा नहीं… मैं सैक्स कर के उतर गया था उस की गाड़ी से.’’

‘‘स्साला.’’ राघव का गुस्सा बढ़ता जा रह था. वे उस पर गरजे, ‘‘रुकरुक के बातें बता रहा है. जैसेजैसे भेद खुलता जा रहा है वैसेवैसे रंग बदल रहा है. तू मुझ से करेगा होशियारी?’’

उन्होंने फिर से मुक्का ताना लेकिन विमल बेहोश होने लगा था. वे उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकले.

‘‘इस को तब तक कुरसी से मत खोलना जब तक ये पूरी बात न बता दे.’’ शर्ट पहनतेपहनते उन्होंने सिपाही को आदेश दिया. वहां नव्या के मायके वाले भी आए हुए थे. विमल के बारे में जान कर उन्हें मुकुल पर लगाए अपने आरोपों पर बहुत पछतावा हो रहा था.

‘‘इस ने अपना जुर्म कबूल किया क्या इंसपेक्टर साहब?’’ नव्या के पिता ने जानना चाहा.

‘‘नहीं, अभी तक अपनी बेगुनाही का रोना रो रहा है. चालू चीज लगता है ये.’’ राघव ने लौकअप की ओर देख के उत्तर दिया. नव्या के मांबाप सीधे मुकुल के घर पहुंचे.

‘‘बेटा, हम को माफ कर देना, हम ने आप पर शक किया.’’ नव्या की मां उस से बोली. मुकुल ने धीरे से मुसकरा के सिर हिलाया. तब तक उस की मां चायपानी ले आई थी. कुछ दिन बीत गए. राघव ने विमल से सच जानने के लिए पूरा जोर लगा रखा था लेकिन वह यही दोहराता रहता कि वो निर्दोष है. उस के वकील के आ जाने से अब उस पर सख्ती करना भी मुश्किल लग रहा था.

जेल में बंद कैदियों की दास्तान

मुझे अपनी सहेली, जो कि जज हैं, के साथ जेल में सैक्स अपराध के आरोपों में बंद कैदियों से बात करने का मौका मिला था. एक 24 साला कैदी ने बताया, ‘‘मैं गांव का रहने वाला हूं. शहर में मैं एक कारखाने में काम करता था. मैं जिस मकान में रहता था, वे दोनों पतिपत्नी ही उस मकान में रहते थे. उन की शादी को कई साल हो चुके थे, मगर उन के कोई बच्चा नहीं हुआ था.

‘‘30 साला मकान मालिक भी एक कारखाने में चौकीदारी करता था और रात की ड्यूटी करता था. एक रात जब वह ड्यूटी पर चला गया, तो उस की पत्नी मेरे कमरे में आई. उस समय मैं शराब पी रहा था. उस ने इतने झीने कपड़े पहन रखे थे कि उस के शरीर के सभी मादक अंग साफसाफ दिखाई दे रहे थे.

‘‘वह मुझे देख कर मुसकराने लगी.  मैं हैरानी से उस की ओर देखने लगा, तो वह मुसकराते हुए बोली, ‘मुझे नहीं पिलाओगे क्या?’

‘‘इतना सुन कर मैं ने उसे एक पैग बनाया, तो उसे पी कर वह मुझ से बुरी तरह से लिपट कर बोली, ‘मैं अब रातभर तुम से मजे लूंगी. मेरा पति तो कुछ कर नहीं पाता है. वह जरा सी देर में पस्त हो जाता है. मैं प्यासी ही रह जाती हूं.’

‘‘इतना कह कर वह मेरा हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले गई और फिर हम दोनों ने वह किया, जो हमें नहीं करना चाहिए था. उस के बाद तो हम दोनों का यह रोजाना का ही खेल हो गया था.

‘‘एक साल तक हम दोनों का यह खेल चलता रहा, मगर एक रात उस का पति अचानक गांव से लौट आया.

‘‘मकान की एक चाबी उस के पास थी. जब कमरे में उस की बीवी नहीं मिली, तो वह मेरे कमरे पर आया. मेरे कमरे की लाइट जली हुई थी और कमरे का दरवाजा भी खुला हुआ था.

‘‘मैं और उस की बीवी अपने खेल में मस्त थे. यह देख कर उस ने अपने पड़ोसियों को वहां पर बुला लिया.

‘‘जब उस की बीवी ने अपने आपको फंसता हुआ देखा, तो वह रोते हुए बोली, ‘यह मुझे रोजाना जबरदस्ती पकड़ लेता है. मैं मना करती हूं, तो यह मेरे पति को जान से मारने की धमकी देता है. मैं डर कर इस की हवस का शिकार होती हूं. इसे खूब मारो और पुलिस के हवाले कर दो, तभी इस नीच से हमारा पीछा छूटेगा.’

‘‘उस की इन बातों को सुन कर उस के पति और पड़ोसियों ने मुझे खूब मारा और फिर पुलिस के हवाले कर दिया था.

‘‘मेरे बारे में जब मांबाप को मालूम हुआ, तो उन्होंने दुखी हो कर खुदकुशी कर ली. मकान मालकिन के चक्कर में मेरी जिंदगी बरबाद हो गई है,’’ कहते हुए वह कैदी बुरी तरह रोने लगा.

एक 55 साला कैदी से भी बात करने का मौका मिला. वे बोले, ‘‘मैं एक गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्राचार्य था. मैं अनुशासनप्रिय था. मेरी इस बात के चलते शहर से रोजाना स्कूल आने वाली 2 टीचर मुझ से नाराज रहती थीं. वे रोज ही देर से स्कूल आती थीं.

‘‘एक दिन देर से आने वाली एक टीचर को अपने कमरे में बुला कर डांटा, तो उस ने अपना ब्लाउज फाड़ कर

बुरी तरह से दहाड़ मार कर रोते हुए ‘बचाओबचाओ’ की आवाज लगा कर स्टाफ को वहां बुला लिया.

‘‘जब स्टाफ वहां आया, तो उस ने रोते हुए बताया कि मैं उस की आबरू से खिलवाड़ कर रहा था. दूसरी टीचर भी सभी से कह रही थी कि यही हरकत मैं कई बार उस से भी कर चुका हूं.

‘‘तब तक गांव के और लोग भी वहां आ गए थे. उन्होंने मुझे टीचर के नाम पर  कलंक मान कर उसी समय पुलिस को फोन कर मुझे गिरफ्तार करा दिया था.

‘‘बाद में मुझे पता चला कि उन्हें अपनी एक रिश्तेदार प्राचार्य को मेरे उस स्कूल में लाना था, ताकि वे अपनी मरजी से स्कूल आएंजाएं.’’

उन प्राचार्य की दास्तान सुन कर मुझे और मेरी जज सहेली को यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि स्कूल के एक प्राचार्य के साथ ऐसी भी घिनौनी साजिश रच कर उन की जिंदगी बरबाद करने वाली टीचर भी शिक्षा विभाग में मौजूद हैं.

फिर हमें सैक्स अपराध के आरोप में जेल में बंद एक 40 साला कैदी ने बताया, ‘‘मैं अपने एक दोस्त की मदद करने की भूल की सजा भुगत रहा हूं.

‘‘उस की छोटी बहन की शादी थी. उस ने कहा कि मैं पैसे उधार ले कर उस की मदद कर दूं. मैं ने किसी जानपहचान वाले से पैसे उधार ले कर उस की मदद कर दी.

‘‘उस की बहन की शादी को काफी समय हो गया था, मगर मेरे उस दोस्त ने मुझे एक भी पैसा नहीं लौटाया था.

‘‘एक दिन मैं ने उस दोस्त से पैसे मांगे, तो वह साफ मुकर गया कि मैं ने उसे पैसे दिए ही नहीं थे.

‘‘मैं ने उसे याद दिलाते हुए पैसों के लिए कहा, तो दोस्त और उस की बीवी ने मुझे सैक्स अपराध के आरोप में जेल भिजवाने की साजिश रची.

‘‘मुझे उस की बीवी ने अपने घर पर बुलाया. मैं जब उस के घर गया, तो वह बड़े प्यार से बोली, ‘तुम्हारे दोस्त तो पैसों के इंतजाम के लिए बाहर गए हुए हैं.  3-4 दिन बाद लौटेंगे. तब तक आप यहीं रहें. मुझे मर्द के साथ सोए बगैर रात में नींद नहीं आती है. रातभर खूब मजे लेंगे,’ कह कर उस ने मुझे शराब पिलाई.

‘‘शराब पिलाने के बाद वह मुझ से बोली कि मैं उसे अपनी गोद में उठा कर पलंग पर ले जाऊं और उस के बदन के कपड़ों को फाड़ते हुए ऐसा करूं, जैसे तुम मुझ से जबरदस्ती कर रहे हो.

‘‘उस की इन बातों को सुन कर मैं ने ऐसा ही किया था. जब वह दर्द से चिल्लाने लगी, तो उस का पति आ गया.

‘‘अपनी बीवी को इस हालत में

देख वह बौखला गया. बोला, ‘तू ने मेरी बीवी के साथ यह क्या किया. अभी तुझे गिरफ्तार कराता हूं,’ कह कर उस ने मुझे गिरफ्तार करा दिया.’’

उस कैदी की दुखभरी दास्तान सुन कर मैं और मेरी जज सहेली मन ही मन सोच रही थीं कि यह कैसा जमाना आ गया है कि किसी पर रहम खा कर उस की मदद करते हैं, तो मदद पाने वाला अपनी मदद करने वाले के खिलाफ ही साजिश रच कर उस की जिंदगी तबाह कर देता है.

जेल से लौटते समय मैं और मेरी जज सहेली जेल में बंद सैक्स अपराध के इन आरोपी कैदियों की दास्तान सुन कर इसी नतीजे पर पहुंची थीं कि ज्यादातर  कैदी दूसरों की साजिश के शिकार हो कर ऐसी बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे हैं.

उलझी हुई पहेली, जो सुलझ गई – भाग 1

पेड़ो के नीचे एक लड़की का निर्वस्त्र शव बरामद हुआ था, जो खरोंचों से भरा था. आशंका थी कि बलात्कार के बाद उस की हत्या की होगी. मृतका के पास मिले कागजातों से पता चला कि वह शव असिस्टेंट बैंक मैनेजर नव्या का था. उस की कार भी वहां से कुछ दूर खड़ी मिली. पुलिस वाले मुस्तैदी से अपने काम में जुटे थे. तभी जीप रुकी और एसआई राघव उतरे.

‘‘लाश को सब से पहले किस ने देखा था?’’ राघव ने कांस्टेबल से पूछा.

‘‘इस आदिवासी लड़की ने सर.’’ कांस्टेबल एक दुबलीपतली लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘ये खाना बनाने के लिए यहां से सूखी लकडि़यां ले जाती है.’’

‘‘हुम्म.’’ राघव ने उस लड़की पर नजर डालते हुए अगला सवाल किया, ‘‘और मृतका के घर वाले…’’

‘‘ये हैं सर.’’ कांस्टेबल की उंगली घटनास्थल से थोड़ा हट के खड़े कुछ लोगों की ओर घूम गई. राघव उन के पास गए. एक से पूछा, ‘‘आप का मरने वाली से रिश्ता?’’

‘‘पति हूं उस का.’’ उस ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया.

‘‘नाम?’’

‘‘मुकुल.’’

‘‘और ये लोग…’’ राघव ने उस के साथ खड़े लोगों के बारे में जानना चाहा.

‘‘यह मेरा छोटा भाई प्रताप और ये मेरे पापा.’’ मुकुल ने वहां खडे़ नौजवान और बुजुर्ग से राघव का परिचय कराया. राघव गौर से मुकुल का चेहरा देख रहे थे. उस के चेहरे पर अपनी बीवी की मौत का कोई दुख दिखाई नहीं दे रहा था. उसी समय कुछ पुरुष और महिलाएं रोते हुए वहां पहुंचे. पुलिस उन को घेरे के अंदर जाने से रोकने लगी.

‘‘साहब, मैं इस का पिता हूं.’’ उन में से एक ने किसी तरह कहा.

‘‘हम यहां कुछ जरूरी काम कर रहे हैं.’’ एक कांस्टेबल ने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘थोड़ी देर में लाश आप को हैंडओवर कर देंगे.’’

एक औरत की स्थिति देख राघव ने अंदाजा लगा लिया कि वह मृतका की मां होगी. लाश का पंचनामा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. भीड़ छंटने लगी थी. शाम को राघव मुकुल के घर पूछताछ के लिए पहुंचे, वो घर पर अकेला मिला. उन्होंने उस से सवाल किया, ‘‘आप को अपनी पत्नी की मौत के बारे में किस से पता चला और आप उस समय कहां थे?’’

‘‘मुझे किसी सिपाही ने फोन किया था लाश मिलने के बारे में…’’ वह सिर झुकाएझुकाए बोला, ‘‘मैं यहीं पर था.’’

‘‘आप ने उसे आखिरी बार कब देखा?’’ उन्होंने अगला प्रश्न किया.

‘‘जब कल सुबह वो औफिस के लिए निकली थी.’’

‘‘उस के बाद बात नहीं हुई?’’

‘‘नहीं, उस को कौन सा मुझ से बात करना पसंद था.’’ मुकुल ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वो औफिसर हो गई थी, अपने बड़ेबड़े ओहदे वाले परिचितों से उस का ज्यादा संपर्क रहता था.’’

राघव समझ गए कि अहं के टकराव ने रिश्तों को तोड़ दिया है. अपनी बात कहतेकहते मुकुल रो पड़ा. उस ने अपनी जो पारिवारिक कहानी बताई, उस के अनुसार वह किराना स्टोर चलाता था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण खुद तो कभी नौकरी की तैयारी नहीं कर सका, लेकिन अपनी जिंदगी में ग्र्रैजुएट नव्या के आने के बाद उस को परीक्षाएं देने के लिए प्रेरित जरूर किया.

पति की कोशिश रंग लाई पर नव्या ने अपना अलग रंग दिखाया

नव्या भी पढ़ना चाहती थी लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उस के सपने चुरा लिए थे. वह खुशीखुशी मुकुल की बात मान गई. मुकुल ने उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने से ले कर हर तरह का सहयोग किया, जिस का सुखद परिणाम भी सामने आया. नव्या ने कुछ ही प्रयासों में बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर लिया.

मुकुल की खुशी का ठिकाना नहीं था लेकिन उस के अरमानों को किसी की नजर लग गई. नव्या का अफेयर अपने एक युवा अधिकारी विमल से चलने लगा. पति अब उसे गंवार और बेकार लगने लगा था. घर में झगड़े शुरू हो गए लेकिन मुकुल उसे तलाक देने में अपनी हार देख रहा था. इसलिए वह उसे तरहतरह से समझाने में लगा रहा. नव्या के घर वाले भी पशोपेश में पड़ गए थे. एक तरफ मुकुल जैसा मध्यवर्गीय लेकिन सुलझा हुआ दामाद, दूसरी ओर विमल की शानोशौकत.

राघव वहां से चल पड़े. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद नव्या का शव उस के मायके वालों को सौंप दिया गया. मुकेश ने उस पर कोई दावा नहीं जताया था और न ही दाहसंस्कार में उस के परिवार से कोई शामिल हुआ. नव्या के मांबाप लगातार मुकुल को खूनी बता रहे थे.

लेकिन राघव इस केस में आगे कुछ करने से पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख लेना चाहते थे. उन्होंने केस से जुड़े सभी लोगों को शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाने को कहा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार करने लगे.

जल्द ही वह भी आ गई. नव्या के साथ मौत से पहले सामूहिक बलात्कार की पुष्टि हुई. लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि मौत का कारण ज्यादा नींद की गोलियां लेना बताया गया था.

राघव का दिमाग चकराने लगा कि भला ये कौन से नए अपराधी आ गए जो जंगल में में जा कर बलात्कार करें और फिर नींद की गोली दे कर हत्या. मारना ही था तो गला दबा सकते थे, चाकू का इस्तेमाल कर सकते थे.

वैसे भी लाश की हालत से स्पष्ट था कि दोषियों ने हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं और अगर नव्या ने बलात्कार के कारण दुखी हो कर आत्महत्या की थी तो उस सुनसान इलाके में उस के पास नींद की गोलियां आईं कैसे? उस का तो बैग तक उस की कार में ही रह गया था. इस के अलावा किसी दवा का कोई खाली रैपर आदि भी वहां से नहीं मिला था.

मेरी नहीं तो किसी की नहीं – भाग 1

रूपा परेशान थी. सड़क किनारे खड़ी वह कभी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को देखती तो कभी कलाई घड़ी की ओर. जैसेजैसे घड़ी की सुइयां आगे को सरक रही थीं, उस की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. परेशान लहजे में वह स्वयं ही बड़बड़ाई, ‘लगता है, आज फिर लेट हो जाऊंगी कालेज के लिए.’

उस के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव नुमाया हो रहे थे. एक बार फिर उस ने उम्मीद भरी निगाहों से दाईं ओर देखा. कोई चार पहिया मार्शल गाड़ी आ रही थी. रूपा ने इशारा कर के गाड़ी रुकवा ली. ड्राइवर ने उस से पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘मैं कालेज जाने को लेट हो रही हूं. कोई साधन नहीं मिल रहा. अगर आप मुझे लिफ्ट दे देंगे तो मेहरबानी होगी.’’ रूपा बोली.

‘‘हां हां, मैं कालेज की ओर ही जा रहा हूं. आओ, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’ कहते हुए ड्राइवर ने गेट खोल दिया. रूपा तनिक झिझकी फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर जा बैठी.

बेलसोंडा से उस का कालेज करीब 8 किलेमीटर दूर महासमुंद में था. वह करीब 10 मिनट में अपने कालेज पहुंच गई.

कालेज के सामने पहुंचते ही ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी. उतर कर रूपा थैंक यू कह कर तेज कदमों से चली ही थी कि ड्राइवर ने उसे आवाज दी, ‘‘सुनो…’’

सुनते ही रूपा ने ड्राइवर की तरफ पलट कर देखा तो ड्राइवर ने रुमाल उठा कर रूपा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये शायद आप का है.’’

गुलाबी रंग के उस रुमाल के एक किनारे पर सफेद रंग के थागे से कढ़ाई की गई थी. उस पर रूपा लिखा हुआ था.

‘‘हां, मेरा ही है.’’ रूपा उस से रुमाल लेते हुए बोली.

‘‘आप का नाम रूपा है?’’ ड्राइवर ने पूछा. रूपा ने हौले से सिर हिला दिया और मुसकरा कर कालेज की तरफ चली गई.

ड्राइवर तब तक रूपा को देखता रहा जब तक वह दिखाई देती रही. रूपा के ओझल होते होने के बाद ही वह वहां से गया. युवक ड्राइवर का नाम चंद्रशेखर था और वह नदी मोड़ घोड़ारी का रहने वाला था. रूपा से वह बहुत प्रभावित हुआ.

इस रूट पर उस का अकसर आनाजाना होता था. इस के बाद वह रूपा के आनेजाने के समय उस रोड पर चक्कर लगाने लगा.

जब भी रूपा उसे मिलती, वह ऐसा जाहिर करता मानो अचानक उस से मुलाकात हो गई हो. वह रूपा को कार से उस के कालेज तक और कभी कालेज से उस के घर के पास तक छोड़ देता.

रूपा इस बात को समझने लगी थी कि इत्तफाक बारबार नहीं होता.

महीने में वह कई बार महासमुंद से बेलसोंडा और बेलसोंडा से महासमुंद आईगई होगी.

सफर भले ही 10 मिनट का होता था लेकिन दोनों को सुकून चौबीस घंटे के लिए मिल जाया करता था. इस बीच दोनों एकदूसरे के बारे  में काफी कुछ जान चुके थे. इस छोटी सी यात्रा के दरमियान दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और कभीकभी वे गाड़ी से लंबी दूरी के लिए घूमने निकलने लगे.

एक दिन चंद्रशेखर लौंग ड्राइव पर निकला तो मार्शल गाड़ी के मालिक ने उसे देख लिया. मालिक ने उस समय तो कुछ नहीं कहा लेकिन शाम को उस ने चंद्रशेखर से पूछा, ‘‘तुम गाड़ी में किस लड़की को बिठा कर घूमते हो?’’

‘‘साहब, किसी को ले कर नहीं घूमता. बस एकदो बार बेलसोंडा की रहने वाली एक लड़की को उस के कालेज तक छोड़ा था. इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

चंद्रशेखर ने आगे कहा, ‘‘साहब,मैं पूरी ईमानदारी के साथ आप की सेवा करता रहा हूं. आप के हर आदेश पर मैं ने तुरंत अमल किया है और आप इतनी सी बात को ले कर मुझ पर नाराज हो रहे हैं.’’

मार्शल के मालिक ने साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम्हारे लिए यह इतनी सी बात होगी लेकिन कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो जवाबदेही तो मेरी होगी. अगर तुम्हें नौकरी करनी है तो ठीक से करो. सैरसपाटे के इतने ही शौकीन हो तो खुद की गाड़ी खरीद लो. फिर जहां चाहो, जिसे चाहो बिठा कर घूमते रहना.’’ मालिक ने दोटूक कह दिया.

चंद्रशेखर को मालिक की बात चुभ गई. उस ने बिना किसी पूर्वसूचना के नौकरी छोड़ दी. दूसरेतीसरे दिन वह रूपा से एक निश्चित जगह पर मिलने पहुंचा. वह अपनी बाइक से गया था. बाइक की सीट पर बैठा वह रूपा का इंतजार कर रहा था.

कुछ देर बाद रूपा वहां पहुंची. रूपा के बोलने से पहले ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘बाइक पर बैठो.’’

रूपा बाइक पर बैठ गई तो वह बाइक ले कर चल दिया. उस वक्त उस की बाइक का रुख महासमुंद की ओर न हो कर रायपुर जाने वाली सड़क की ओर था. रूपा को यह पता नहीं था कि उस के प्रेमी ने नौकरी छोड़ दी है.

मामला कुछ और था

सुबह का वक्त था. शहर के किनारे बसे गांव की बड़ी सड़क पर भीड़ जमा थी. कुछ अखबारों के पत्रकार भी खड़े थे और थोड़ी ही देर में पुलिस भी वहां आ पहुंची. लोकल अखबार के एक पत्रकार ने अपने एक दोस्त को भी फोन कर के वहीं बुला लिया, जो लोकल न्यूज चैनल में पत्रकार था.

सड़क पर बारिश का पानी भरा पड़ा था. एक गड्ढे के पास एक जोड़ी चप्पलें पड़ी हुई थीं, जो किसी औरत की थीं.

पत्रकारों ने कैमरे से उन चप्पलों की कई तसवीरें पहले ही खींच ली थीं. पुलिस भी उन चप्पलों को देख कर तरहतरह की कानाफूसी कर रही थी.

कुछ ही देर में सारे पत्रकार एक नौजवान लड़के के पास जमा हो गए, जो लोटे में पानी लिए खड़ा था. शायद वह शौच के लिए जा रहा होगा, लेकिन तब तक पत्रकारों की टोली ने उसे रोक लिया. थोड़ी ही देर में पता चला कि उस नौजवान लड़के की वजह से ही यहां भीड़ जमा थी.

दरअसल, कुछ देर पहले जब वह लड़का शौच के लिए जा रहा था, तभी उस की नजर इन एक जोड़ी चप्पलों पर पड़ी थी, जो किसी औरत की ही थीं. उसे किसी अनहोनी का डर हुआ.

उस नौजवान लड़के ने झट से अपना कैमरे वाला मोबाइल फोन निकाला और उन चप्पलों की तसवीर खींच कर सोशल साइट पर डाल दी. नीचे लिख दिया, ‘आज फिर एक औरत दरिंदों की शिकार हो गई.’

चप्पलें भी इस तरह पड़ी हुई थीं, मानो सचमुच में वे किसी औरत के भागने के दौरान ही उतरी हों. जब लोगों ने उन चप्पलों वाली तसवीर को इंटरनैट पर नीचे लिखी हुई लाइन समेत देखा, तो हल्ला मच गया.

अखबार के एक पत्रकार की नजर भी इस तसवीर पर पड़ गई. वह तुरंत इस जगह आ पहुंचा. उस के पहुंचते ही दूसरे कई पत्रकार और पुलिस भी पहुंच गई. पत्रकारों और पुलिस के पहुंचते ही गांव के लोगों की भीड़ भी जमा हो गई.

गांव की कुछ औरतें, जो भीड़ में खड़ी थीं, अलगअलग तरह की बातें कर रही थीं. उन में से कुछ का कहना था कि उन्होंने रात को किसी जनाना चीख को अपने कानों से सुना था. इतना कहना था कि भीड़ में यह बात आग की तरह फैल गई.

पत्रकारों के कान में जब यह बात पड़ी, तो उन्होंने उन औरतों की तरफ अपना ध्यान लगा दिया. सब के सब औरतों से यही पूछते थे कि उन्होंने कितने बजे चीख सुनी थी? कितनी औरतों की चीख थी या सिर्फ एक औरत की चीख थी?

औरतें भरी भीड़ में अपना घूंघट भी ठीक से नहीं उठा पा रही थीं, तो बोलतीं क्या?

अखबारों के पत्रकार तो कौपी में खबर लिख रहे थे, तसवीरे खींच रहे थे, लेकिन लोकल टीवी चैनल के पत्रकार का कैमरा और माइक अभी तक इस जगह पर पहुंचा नहीं था. वैसे, उस ने फोन कर दिया था, तो थोड़ी ही देर में उस का कैमरामैन उस के पास पहुंचने ही वाला था.

पुलिस के आला अफसरों को भी इस घटना की खबर हो गई थी. वे वहां मौजूद पुलिस वालों से पलपल की जानकारी ले रहे थे. वह कौन औरत थी, जिस के साथ अनहोनी हुई थी, यह अभी तक पता नहीं चल सका था, जबकि पुलिस इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही थी.

पुलिस ने अब उस नौजवान लड़के से पूछताछ शुरू कर दी, जिस ने सब से पहले इन चप्पलों को पड़े हुए देखा था. नौजवान जितना खुल कर पत्रकारों से बोल रहा था, पुलिस से उतना ही दब कर बोल रहा था.

उस लड़के ने बताना शुरू किया, ‘‘साहब, मैं सुबह शौच के लिए जा रहा था कि तभी मेरी नजर इन बिखरी पड़ी चप्पलों पर पड़ गई.

‘‘मैं ने टैलीविजन पर अभी कुछ दिन पहले ही खबर देखी थी कि एक जगह इसी तरह औरतों के कपड़े बिखरे पड़े थे. बाद में पता चला कि वहां औरतों के साथ घिनौनी हरकत हुई थी.

‘‘यही सोच कर मैं ने इन चप्पलों की तसवीर खींच कर सोशल साइट पर डाल दी, फिर बाकी का तो आप जानते ही हैं.’’

उस नौजवान को ज्यादा बातें पता नहीं थीं, उस ने केवल चप्पलों को वहां  देख कर ही अंदाजा लगा लिया था. लेकिन औरतों की मंडली की तरफ से रात की चीख वाली खबर से लोगों की सोच यकीन में बदल गई.

गांव के लोग पत्रकारों से गांव की तारीफ कर कहते थे कि इस गांव में आज से पहले इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है, लेकिन आजकल पता नहीं चलता कि कब क्या हो जाए, पर एक बात पक्की है, यह जो भी हुआ है, इस को हमारे गांव के किसी आदमी ने अंजाम नहीं दिया होगा, यह जरूर कोई बाहर का आदमी होगा, जो इतनी घिनौनी हरकत कर गया.

इस बात पर गांव के सभी लोगों का एक मत था. औरतें भी यही कह रही थीं. उन का कहना था कि वे आधी रात को भी सड़कों पर निकली हैं, लेकिन गांव के किसी भी आदमी ने उन को बुरी नजर से नहीं देखा. यहां तक कि रात को गांव के कुत्ते भी औरतों पर नहीं भूंकते. हां, कोई मर्द रात में आए तो कुत्ते उसे घर का रास्ता दिखा देते हैं.

टैलीविजन चैनल के पत्रकार का कैमरा आ चुका था, जिसे उस का कैमरामैन ले कर आया था. पत्रकार और कैमरामैन दोनों ने मिल कर झटपट तैयारी की और कैमरा उन चप्पलों पर फोकस कर दिया.

कैमरा चालू हुआ. पत्रकार ने बोलना शुरू किया. इतने में लोगों का हुजूम टैलीविजन चैनल के पत्रकार के पीछे जा खड़ा हुआ.

लोगों को खुद को टैलीविजन पर दिखने का खासा खौक था. टीवी चैनल का पत्रकार जिस अंदाज में खबर को कह रहा था, उस के कहने के अंदाज से लोगों के सीने में धड़कनों का औसत बढ़ गया था.

कुछ की तो हालत ऐसी थी कि अगर वह दरिंदा इस वक्त उन के सामने आ जाता, तो वे उस का खून पी जाते. औरतें उस का मुंह नोच कर उसे चप्पलों से पीटपीट कर मार डालतीं, बच्चे उस की आंखें फोड़ देते.

लेकिन पुलिस वाले सहमे हुए खड़े थे. उन्हें देख कर लगता था, जैसे वे उस दरिंदे को बचा लेते या उसे छोड़ कर खुद यहां से भाग जाते.

टैलीविजन चैनल के पत्रकार ने उस नौजवान लड़के से कैमरे के सामने बात की, जिस ने सब से पहले इन चप्पलों को देखा था. वह नौजवान कैमरे के सामने 2-4 बातों को बढ़ाचढ़ा कर कह चुका था. पुलिस वाले भी उस की बातों को ध्यान से सुन रहे थे.

नौजवान लड़के ने अभी जो कहा, वह पुलिस के बारबार पूछने पर भी नहीं बताया था. शायद सारी बड़ी खबर वह टैलीविजन पर ही देना चाहता होगा.

नौजवान लड़के से पूछने के बाद पत्रकार ने पुलिस के दारोगा से बात करनी शुरू कर दी. नौजवान शौच के लिए खेतों की तरफ खिसकने लगा, शायद उस से अब रुका नहीं जा रहा था.

लेकिन, उस लड़के ने जातेजाते 2-3 लोगों को खुद के टैलीविजन पर आने की खबर फोन पर दे दी. अगर इस समय उसे शौच के लिए जाने की जल्दी न होती, तो वह यहीं पर खड़ा होता, लेकिन मामला उस के हाथ में नहीं था.

पूरा रास्ता लोगों से भर गया था. जो भी इस खबर को सुनता, सीधा वहीं दौड़ा चला आता. गहमागहमी का माहौल चल रहा था, तभी एक 20 साल की लड़की भीड़ में आ खड़ी हुई. उस की नजर उन चप्पलों पर पड़ी, तो बरबस ही उन की तरफ बढ़ गई. जब तक कोई उस से कुछ कहता, उस ने झट से दोनों चप्पलें उठा लीं.

लड़की के चप्पलें उठाते ही पुलिस वालों ने उसे रोक दिया. दारोगा कड़क आवाज में बोले, ‘‘ऐ लड़की, ये चप्पलें कहां लिए जाती हो…’’

लड़की को देख कर लगता था कि वह नींद से उठ कर आई थी.

वह भर्राई आवाज में बोली, ‘‘ये मेरी चप्पलें हैं. आप को यकीन न हो, तो मेरे घर में जा कर पूछ लो.’’

लड़की के इतना कहते ही पुलिस वाले सतर्क हो गए. पत्रकारों का हुजूम लड़की के बगल में आ कर खड़ा हो गया. भीड़ भी लड़की के इर्दगिर्द जमा हो गई.

दारोगा लड़की की बात ध्यान से सुन रहे थे. उन्होंने फिर से सवाल किया, ‘‘लेकिन, तुम्हारी चप्पलें यहां कैसे आ गईं? क्या तुम्हारे साथ कोई हादसा हुआ था?’’

लड़की ने फिर सहमी सी आवाज में बताया, ‘‘रात में मेरी भैंस खुल गई थी और इसी तरफ भाग आई. उस को पकड़ने के चक्कर में मैं भी उस के पीछे भाग ली, लेकिन भागते समय मेरी चप्पलें यहीं रह गईं.

‘‘भैंस को तो मैं पकड़ कर ले गई, लेकिन चप्पलों को डर के मारे लेने न आई. मैं ने सोचा कि सुबह ले जाऊंगी.’’

पत्रकारों और पुलिस वालों के मुंह हैरत से खुले हुए थे. दारोगा ने लड़की को ध्यान से देखा. उसे देख कर लगता था कि वह सच बोल रही है.

दारोगा ने पक्का करने के लिए फिर से पूछा, ‘‘बेटी, क्या सचमुच यही बात है? तुम कोई बात छिपा तो नहीं रही हो? अगर कोई बात हो, तो तुम बिना डरेसहमे हम से कह सकती हो.’’

लड़की अब खुद हैरत में पड़ गई. वह बोली, ‘‘मैं सच बोल रही हूं.’’

दारोगा ने उस लड़की और उस के पिता का नाम पूछ लिया, जिस से बाद में कोई बात होने पर उस से पूछताछ की जा सके.

यह देख कर पत्रकारों ने अपना सिर पीट लिया. उन में से एक कह रहा था कि अगर यह लड़की अभी न आती, तो न जाने कितना बड़ा बवाल खड़ा हो गया होता. टैलीविजन चैनल के पत्रकार ने भी अपना कैमरा बंद कर दिया. भीड़ से

भी लोगों के सवालजवाब की आवाजें आने लगीं.

पुलिस के पास फिर से बड़े अफसर का फोन आया. इस बार दारोगा ने पूरी बात उन्हें बताई. बड़े अफसर ने सोशल साइट पर उस नौजवान लड़के की डाली हुई तसवीर हटवाने की बात कह कर फोन काट दिया.

दारोगा ने उस नौजवान लड़के को तलाशना शुरू कर दिया, लेकिन वह कहीं नहीं दिखा. दारोगा ने सिपाहियों को उसे ढूंढ़ने का आदेश दे दिया. किसी लड़की ने बताया कि वह नौजवान उस तरफ के खेत में बैठा है. सिपाही भागते हुए उस नौजवान लड़के को पकड़ने के लिए खेत की तरफ जा पहुंचे.

सिपाहियों को अपनी तरफ आता देख वह जल्दी से उठ खड़ा हुआ और कपड़े ठीक कर खेत से बाहर निकल आया. सिपाही उस नौजवान लड़के को ले कर दारोगा के पास आ पहुंचे.

दारोगा ने उस नौजवान लड़के को फटकारते हुए कहा, ‘‘क्यों भाई, तुम ने बिना कुछ जाने ही चप्पलों की तसवीर खींच कर नीचे लिख दिया कि किसी औरत के साथ दरिंदगी हो गई है, जबकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है.

‘‘आज तो तुम्हें छोड़ दे रहे हैं, पर आगे से ऐसा कुछ हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं. अब जल्दी से उन तसवीरों को सोशल साइट से हटा दो.’’

लड़के ने फटाफट मोबाइल फोन निकाला और कुछ ही देर में अपनी डाली हुई तसवीरें हटा लीं.

दारोगा ने उस लड़के को जाने के लिए कह दिया और खुद भी उस जगह से चल दिए.

पत्रकारों की टोली भी वहां से चल दी. हर आदमी के पास किसी न किसी का फोन आ रहा था. लोग पूछ रहे थे कि क्या हुआ और हर आदमी यही कह रहा था कि मामला कुछ और था.

खुदकुशी : मेरी बेटी भागी तब मुझे महसूस हुआ

मेरी नजरें पंखे की ओर थीं. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मैं पंखे से झूल रहा हूं और कमरे के अंदर मेरी पत्नी चीख रही है. धीरेधीरे उस की चीख दूर होती जा रही थी. सालों के बाद आज मुझे उस झुग्गी बस्ती की बहुत याद आ रही थी जहां मैं ने 20-22 साल अपने बच्चों के साथ गुजारे थे.

मेरे पड़ोसी साथी चमनलाल की धुंधली तसवीर आंखों के सामने घूम रही थी. वह मेरी खोली के ठीक सामने आ कर रहने लगा था. उसी दिन से वह मेरा सच्चा यार बन गया था. उस के छोटेबड़े कई बच्चे थे.

समय का पंछी तेजी से पंख फैलाए उड़ता जा रहा था. देखते ही देखते बच्चे बड़े हो गए. चमनलाल का बड़ा बेटा जो 20-22 साल का था, बुरी संगत में पड़ कर आवारागर्दी करने लगा. घर में हुड़दंग मचाता. छोटे भाईबहनों को हर समय मारतापीटता.

चमनलाल उसे समझाबुझा कर थक चुका था. मैं ने भी कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. जब भी चमनलाल से इस बारे में बात होती तो मैं उसे ही कुसूरवार मान कर लंबाचौड़ा भाषण झाड़ता. शायद उस के जख्म पर मरहम लगाने के बजाय और हरा कर देता.

सुहानी शाम थी. सभी अपनेअपने कामों में मसरूफ थे. तभी पता चला कि चमनलाल की बेटी अपने महल्ले के एक लड़के के साथ भाग गई.

चमनलाल हांफताकांपता सा मेरे पास आया और यह खबर सुनाई तो उस के जख्म पर नमक छिड़कते हुए मैं बोला, ‘‘कैसे बाप हो? अपने बच्चों की जरा भी फिक्र नहीं करते. कुछ खोजखबर ली या नहीं? चलो साथ चल कर ढूंढ़ें. कम से कम थाने में तो गुमशुदगी की रिपोर्ट करा ही दें.’’

चमनलाल चुपचाप खड़ा मेरी ओर देखता रहा. मैं ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ.

मैं ने अपनी पत्नी से जब यह कहा तो वह रोनी सूरत बना कर बोली, ‘‘गरीब अपनी बेटी के हाथों में मेहंदी लगाए या उस के अरमानों की अर्थी उठाए…’’

मैं अपनी पत्नी का मुंह देखता रह गया, कुछ बोल नहीं पाया. जंगल की आग की तरह यह खबर फैल गई. लोग तरहतरह के लांछन लगाने लगे. जिस के मुंह में दांत भी नहीं थे, वह भी अफवाहें उड़ाने और चमनलाल को बदनाम कर के मजा लूट रहा था. किसी ने भी एक गरीब लाचार बाप के दर्द को समझने की कोशिश नहीं की. किसी ने आ कर हमदर्दी के दो शब्द नहीं बोले.

चमनलाल अंदर ही अंदर टूट गया था. उस ने चिंताओं के समंदर से निकलने के लिए शराब पीना शुरू कर दिया. गम कम होने के बजाय और बढ़ता गया. घर की सुखशांति छिन गई.

रोज शाम को वह नशे की हालत में घर आता और घर से चीखपुकार, गालीगलौज, लड़ाईझगड़ा शुरू हो जाता. चमनलाल जैसा हंसमुख आदमी अब पत्नी को पीटने भी लगा था. वह गंदीगंदी गालियां बकता था.

इधर, मिल में हड़ताल हो गई थी. दूसरे मजदूरों के साथसाथ चमनलाल की गृहस्थी का पत्ता धीरेधीरे पीला होने लगा था. आधी रात को चमनलाल ने मेरा दरवाजा खटखटाया. मेरे बच्चे सो रहे थे.

मैं ने दरवाजा खोला और चमनलाल को बदहवास देखा तो घबरा गया.

‘‘क्या बात है चमनलाल?’’ मैं ने हैरानी से पूछा.

चमनलाल उस वक्त बिलकुल भी नशे में नहीं था. वह रोनी सूरत बना कर बोला, ‘‘मेरा बड़ा बेटा दूसरी जात की लड़की को ब्याह लाया है और उसे इसी घर में रखना चाहता है लेकिन मैं उसे इस घर में नहीं रहने दे सकता.’’

मैं ने कहा, ‘‘उसे कहा नहीं कि दूसरी जगह ले कर रखे?’’

‘‘नहीं, वह इसी घर में रहना चाहता है. मेरी उस से बहुत देर तक तूतू मैंमैं हो चुकी है,’’ चमनलाल बोला.

मैं ने कहा, ‘‘रात में हंगामा खड़ा मत करो. अभी सो जाओ. सुबह देखेंगे.’’

अगली सुबह मैं जरा देर से उठा. बाहर भीड़ जमा थी. मैं हड़बड़ा कर उठा. बाहर का सीन बड़ा भयावह था. चमनलाल की पंखे से लटकी हुई लाश देख कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

उस के बाद से पुलिस का आनाजाना शुरू हो गया. कभी भी, किसी भी समय आती और लोगों से पूछताछ कर के लौट जाती. चमनलाल की मौत से लोग दुखी थे वहीं पुलिस से तंग आ गए थे.

मेरे मन में कई बुरे विचार करवट लेते रहे. क्या चमनलाल ने खुदकुशी की थी या किसी ने उस की… फिर… किस ने…? कई सवाल थे जिन्होंने मेरी नींद चुरा ली थी.

मेरी पत्नी और बच्चे डरेसहमे थे. पुलिस बारबार आती और एक ही सवाल दोहराती. हम लोग इस हरकत से परेशान हो गए थे.

इस बेजारी के चलते और बच्चों की जिद पर मैं उस महल्ले को छोड़ कर दूसरे शहर चला गया और उस कड़वी यादों को भुलाने की कोशिश करने लगा.

लेकिन सालों बाद चमनलाल की याद और उस की रोनी सूरत आंखों के सामने घूमने लगी. उस का दर्द आज मुझे महसूस होने लगा, क्योंकि आज मेरी बड़ी बेटी पड़ोसी के अवारा लड़के के साथ… वह मेरी… नाक कटा गई थी. मैं खुद को कितना मजबूर महसूस कर रहा था. आज मैं चमनलाल की जगह खुद को पंखे से लटका हुआ देख रहा था.

काली सोच : शुभा की आंखों पर कैसा परदा पड़ा था

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुसकरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिडि़या अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आई थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’

मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.

‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’

‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’

‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.

‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.

‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’

‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’

उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया. हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.

‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’

‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’

‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’

‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’

‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’

‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’ मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार डाल देती.

पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.

‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.

‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’

‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.

‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’

‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.

‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’

‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’

‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’

‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’

‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’

हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.

सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े. साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.

घर में एक अदृश्य तनाव अब हर समय पसरा रहता. जिस घर में पहले प्रिया की शरारतों व खिलखिलाहटों की धूप भरी रहती, वहीं अब सर्द खामोशी थी.

सभी अपनाअपना काम करते, लेकिन यंत्रवत. रिश्तों की गर्माहट पता नहीं कहां खो गईर् थी.

हम मांबेटी की बातें जो कभी खत्म ही नहीं होती थीं, अब हां…हूं…तक ही सिमट गई थीं.

जीवन फिर पुराने ढर्रे पर लौटने लगा था कि तभी एक रिश्ता आया. कुलीन ब्राह्मण परिवार का आईएएस लड़का दहेजमुक्त विवाह करना चाहता था. अंधा क्या चाहे, दो आंखें.

हम ने झटपट बात आगे बढ़ाई. और एक दिन उन लोगों ने मानसी को देख कर पसंद भी कर लिया. सबकुछ इतना अचानक हुआ था कि मुझे लगने लगा कि यह सब पुरोहितजी के बताए उपायोें के फलस्वरूप हो रहा है.

हंसीखुशी के बीच हम शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे कि पुरोहित दोबारा आए, ‘जयकारा हो बहूरानी.’

‘सबकुछ आप के आशीर्वाद से ही तो हो रहा है पुरोहितजी,’ मैं ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा.

‘इसीलिए विवाह का मुहूर्त निकालते समय आप ने हमें याद भी नहीं किया,’ वे नाराजगी दिखाते हुए बोले.

‘दरअसल, लड़के वालों का इस में विश्वास ही नहीं है, वे नास्तिक हैं. उन लोगों ने तो विवाह की तिथि भी लड़के की छुट्टियों के अनुसार रखी है, न कि कुंडली और मुहूर्त के अनुसार,’ मैं ने अपनी सफाई दी.

‘न हो लड़के वालों को विश्वास, आप को तो है न?’ पंडित ने छूटते ही पूछा.

‘लड़के वालों की नास्तिकता का परिणाम तो आप की बेटी को ही भुगतना पड़ेगा. यह मंगल दोष किसी को नहीं छोड़ता.’

‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’ जैसेतैसे मेरे मुंह से निकला. पुरोहितजी की बात से शादी की खुशी जैसे काफूर गई थी.

‘कुछ कीजिए पुरोहितजी, कुछ कीजिए. अब तक तो आप ही मेरी नैया पार लगाते आ रहे हैं,’ मैं गिड़गिड़ाई.

‘वह तो है बहूरानी, लेकिन इस बार रास्ता थोड़ा कठिन है,’ पुरोहित ने पान की गिलौरी मुंह में डालते हुए कहा.

‘बताइए तो महाराज, बिटिया की खुशी के लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं,’ मैं ने डबडबाई आंखों से कहा.

‘हर बेटी को आप जैसी मां मिले,’ कहते हुए उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, फिर मेरे कान के पास मुंह ले जा कर जो कुछ कहा उसे सुन कर तो मैं सन्न रह गई.

‘यह क्या कह रहे हैं आप? कहीं बकरे या कुत्ते से भी कोई मां अपनी बेटी की शादी कर सकती है.’

‘सोच लीजिए बहूरानी, मंगल दोष निवारण के लिए बस यही एक उपाय है. वैसे भी यह शादी तो प्रतीकात्मक होगी और आप की बेटी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए ही होगी.’

‘लेकिन पुरोहितजी, बिटिया के पापा भी तो कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन की सलाह के बिना…’

‘अब लेकिनवेकिन छोडि़ए बहूरानी. ऐसे काम गोपनीय तरीके से ही किए जाते हैं. अच्छा ही है जो यजमान घर पर नहीं हैं.

‘आप कल सुबह 8 बजे फेरों की तैयारी कीजिए. जमाई बाबू (बकरा) को मेरे साथी पुरोहित लेते आएंगे

और बिटिया को मेरे घर की महिलाएं संभाल लेंगी. ‘और हां, 50 हजार रुपयों की भी व्यवस्था रखिएगा. ये लोग दूसरों से तो 80 हजार रुपए लेते हैं, पर आप के लिए 50 हजार रुपए पर बात तय की है.’ मैं ने कहते हुए पुरोहितजी चले गए.

अगली सुबह 7 बजे तक पुरोहित अपनी मंडली के साथ पधार चुके थे. पुरोहिताइन के समझाने पर प्रिया बिना विरोध किए तैयार होने चली गई तो मैं ने राहत की सांस ली और बाकी कार्य निबटाने लगी.

‘मुहूर्त बीता जा रहा है बहूरानी, कन्या को बुलाइए.’ पुरोहितजी की आवाज पर मुझे ध्यान आया कि प्रिया तो अब तक तैयार हो कर आई ही नहीं.

‘प्रिया, प्रिया,’ मैं ने आवाज दी, लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं ने उस के कमरे का दरवाजा बजाया, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो मेरा मन अनजानी आशंका से कांप उठा.

‘सुनिए, कोई है? पुरोहितजी, पंडितजी, अरे, कोई मेरी मदद करो. मानसी, मानसी, दरवाजा खोल बेटा.’ लेकिन मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मेरे हितैषी होने का दावा करने वाले पुरोहित बजाय मेरी मदद करने के, अपने दलबल के साथ नौदोग्यारह हो गए थे.

हां, आवाज सुन कर पड़ोसी जरूर आ गए थे. किसी तरह उन की मदद से मैं ने कमरे का दरवाजा तोड़ा.

अंदर का भयावह दृश्य किसी की भी कंपा देने के लिए काफी था. मानसी ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस की रगों से बहता खून पूरे फर्श पर फैल चुका था और वह खुद एक कोने में अचेत पड़ी थी. मेरे ऊलजलूल फैसलों से बचने का वह यह रास्ता निकालेगी, यह मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

पड़ोसियों ने ही किसी तरह हमें अस्पताल तक पहुंचाया और सुशांत को खबर की. ऐसी बातें छिपाने से भी नहीं छिपतीं. अगली ही सुबह मानसी के ससुराल वालों ने यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि ऐसे रूढि़वादी परिवार से रिश्ता जोड़ना उन के आदर्शों के खिलाफ है.

‘‘यह सब मेरी वजह से हुआ है,’’ सुशांत से कहते हुए मैं फफक पड़ी.

‘‘नहीं शुभा, यह तुम्हारी वजह से नहीं, तुम्हारी धर्मभीरुता और अंधविश्वास की वजह से हुआ.’’

‘‘ये पंडेपुरोहित तो तुम जैसे लोगों की ताक में ही रहते हैं. जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और तुम फंस गईं जाल में. लेकिन यह समय इन बातों का नहीं. अभी तो बस यही कामना करो कि हमारी बेटी ठीक हो जाए,’’ कहते हुए सुशांत की आंखें भर आईं.

‘बधाई हो, मानसी अब खतरे से बाहर है,’ डा. रोहित ने आईसीयू से बाहर आते हुए कहा. ‘रोहित, विनोद का बेटा है, मानसी के लिए जिस का रिश्ता मैं ने महज विजातीय होने के कारण ठुकरा दिया था, इसी अस्पताल में डाक्टर है और पिछले 48  घंटों से मानसी को बचाने की खूब कोशिश कर रहा है. किसी अप्राप्य को प्राप्त कर लेने की खुशी मुझे उस के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही है. ऐसे समय में उस ने मानसी को अपना खून भी दिया है.

‘क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि रोहित सिर्फ व सिर्फ मेरी बेटी मानसी के लिए ही बना है?

‘मैं भी बुद्धू हूं.

‘मैं ने पहले बहुत गलतियां की हैं. अब और नहीं करूंगी,’ यह सब वह सोच रही थी.

रोहित थोड़ी दूरी पर नर्स को कुछ दवाएं लाने को कह रहा था. उस ने हिम्मत जुटा कर रोहित से आहिस्ता से कहा, ‘‘मानसी ने तो मुझे माफ कर दिया, पर क्या तुम व तुम्हारे परिवार वाले मुझे माफ कर पाएंगे.’’

‘कैसी बातें करती हैं आंटी आप, आप तो मेरी मां जैसी है.’ रोहित ने मेरे जुड़े हुए हाथों को थाम लिया था.

आज उन की भरीपूरी गृहस्थी है. रोहित के परिवार व मेरी बेटी मानसी ने भी मुझे माफ कर दिया है. लेकिन क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊंगी. शायद कभी नहीं.

इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंसने वाली मैं अकेली नहीं हूं. ऐसी घटनाएं हर वर्ग व हर समाज में होती रहती हैं. मैं आत्मग्लानि के दलदल में आकंठ डूब चुकी थी और अपने को बेटी का जीवन बिगाड़ने के लिए कोस रही थी.

दुकान और औरत : जिस्म के जाल से कैसे बचा रमेश

रमेश ने झगड़ालू और दबंग पत्नी से आपसी कलह के चलते दुखी जिंदगी देने वाला तलाक रूपी जहर पी लिया था. अगर चंद्रमणि उस की मां की सेवा करने की आदत बना लेती, तो वह उस का हर सितम हंसतेहंसते सह लेता, मगर अब उस से अपनी मां की बेइज्जती सहन नहीं होती थी.

ऐसी पत्नी का क्या करना, जो अपना ज्यादातर समय टैलीविजन देखने या मोबाइल फोन पर अपने घर वालों या सखीसहेलियों के साथ गुजारे और घर के सारे काम रमेश की बूढ़ी मां को करने पड़ें? बारबार समझाने पर भी चंद्रमणि नहीं मानी, उलटे रमेश पर गुर्राते हुए मां का ही कुसूर निकालने लगती, तो उस ने यह कठोर फैसला ले लिया.

चंद्रमणि तलाक पाने के लिए अदालत में तो खड़ी हो गई, मगर उस ने अपनी गलतियों पर गौर करना भी मुनासिब नहीं समझा. इस तरह रमेश ने तकरीबन 6 लाख रुपए गंवा कर अकेलापन भोगने के लिए तलाक रूपी शाप झेल लिया.

ऐसा नहीं था कि चंद्रमणि से तलाक ले कर रमेश सुखी था. खूबसूरत सांचे में ढली गदराए बदन वाली चंद्रमणि उसे अब भी तनहा रातों में बहुत याद आती थी, लेकिन मां के सामने वह अपना दर्द कभी जाहिर नहीं करता था. लिहाजा, उस ने अपना मन अपनी दुकानदारी में पूरी तरह लगा लिया.

रमेश मन लगा कर अपने जनरल स्टोर में 16-16 घंटे काम करने लगा… काम खूब चलने लगा. रुपया बरस रहा था. अब वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान खोलना चाहता था.

रविवार का दिन था. रमेश अपने कमरे में बैठा कुछ हिसाबकिताब लगा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा.

फोन उठाते ही किसी अजनबी औरत की बेहद मीठी आवाज सुनाई दी. रमेश का मन रोमांटिक सा हो गया. उस ने पूछा, तो दूसरी तरफ से घबराईझिझकती आवाज में बताया गया कि उस औरत की 5 साला बेटी से गलती हो गई. माफी मांगी गई.

‘‘अरेअरे, इस में गलती की कोई बात नहीं. बच्चे तो शरारती होते ही हैं. बड़ी प्यारी बच्ची है आप की. इस के पापा घर में ही हैं क्या?’’ रमेश ने पूछा, तो दूसरी तरफ खामोशी छा गई.

रमेश ने फिर पूछा, तो उस औरत ने बताया कि उस ने अपने पति का घर छोड़ दिया है.

‘‘ऐसा क्यों किया? यह तो आप ने गलत कदम उठाया. घर उजाड़ने में समय नहीं लगता, पर बसाने में जमाने लग जाते हैं. आप को ऐसा नहीं करना चाहिए था.

‘‘आप को अपनी गलती सुधारनी चाहिए और अपने पति के घर लौट जाना चाहिए,’’ रमेश ने बिना मांगे ही उस औरत को उपदेश दे दिया.

औरत ने दुखी मन से बताया, ‘ऐसा करना बहुत जरूरी हो गया था. अगर मैं ऐसा न करती, तो वह जालिम हम मांबेटी को मार ही डालता.’

‘‘देखो, घर में छोटेमोटे मनमुटाव होते रहते हैं. मिलबैठ कर समझौता कर लेना चाहिए. एक बार घर की गाड़ी पटरी से उतर गई, तो बहुत मुश्किल हो जाता है.

‘‘तुम्हारा अपने घर लौट जाना बेहद जरूरी है. लौट आओ वापस. बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा,’’ रमेश ने रास्ते से भटकी हुई उस औरत को समझाने की भरपूर कोशिश की, पर उस का यह उपदेश सुन कर वह औरत मानो गरज उठी, ‘जो आदमी अपराध कर के बारबार जेल जाता रहता है. जब वह जेल से बाहर आता है, तो मेहनतमजदूरी के कमाए रुपए छीन कर फिर नशे में अपराध कर के जेल चला जाता है, तो हम उस राक्षस के पास मरने के लिए रहतीं?

‘अगर तुम अब यही उपदेश देते हो, तो तुम ही हम मांबेटी को उस जालिम के पास छोड़ आओ. हम तैयार हैं,’ उस परेशान औरत ने अपना दर्द बता कर रमेश को लाजवाब कर दिया.

यह सुन कर रमेश को सदमा सा लगा. वह सोच रहा था कि जवान औरत अपनी मासूम बेटी के साथ अकेले बेरोजगारी की हालत में अपनी जिंदगी कैसे बिताएगी? यकीनन, ऐसे मजबूर इनसान की जरूर मदद करनी चाहिए.

वैसे भी रमेश को औरतों के सामान वाले जनरल स्टोर पर किसी औरत को रखना था, तभी तो वह रेडीमेड कपड़ों की दूसरी दुकान कर पाएगा. अगर यह मीठा बोलने वाली औरत ऐसे ही दुकान पर ग्राहकों से मीठीमीठी बातें करेगी, तो दुकान जरूर चल सकती है.

रमेश ने उस से पूछा, ‘‘क्या आप पढ़ीलिखी हैं?’’

‘क्या मतलब?’ उस औरत ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मुझे अपने जनरल स्टोर पर, जिस में लेडीज सामान ही बेचा जाता है, सेल्स गर्ल की जरूरत है. अगर आप चाहें, तो मैं आप को नौकरी दे सकता हूं. इस तरह आप के खर्चेपानी की समस्या का हल भी हो जाएगा.’’

‘क्या आप मुझे 10 हजार रुपए महीना तनख्वाह दे सकते हैं?’ उस औरत ने चहकते हुए पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं, अगर आप मेरी दुकान पर 12 घंटे काम करेंगी, तो मैं आप को 10 हजार रुपए से ज्यादा भी दे सकता हूं. यह तो तुम्हारे काम पर निर्भर करता है कि तुम आने वाले ग्राहकों को कितना प्रभावित करती हो.’’

‘काम तो मैं आप के कहे मुताबिक ही करूंगी. बस, मुझे मेरी बेटी की परेशानी रहेगी. अगर मेरी बेटी के रहने की समस्या का हल हो जाए, तो मैं आप की दुकान पर 15 घंटे भी काम कर सकती हूं. बेटी को संभालने वाला कोई तो हो,’ वह औरत बोली.

‘‘मैं आप की बेटी को सुबह स्कूल छोड़ आऊंगा. छुट्टी के बाद उसे मैं अपनी मां के पास छोड़ आया करूंगा. इस तरह आप की समस्या का हल भी निकल आएगा और घर में मेरी मां का दिल भी लगा रहेगा. आप की बेटी भी महफूज रहेगी,’’ रमेश ने बताया.

वह औरत खुशी के मारे चहक उठी, ‘फिर बताओ, मैं तुम्हारे पास कब आऊं? अपनी दुकान का पता बताओ. मैं अभी आ कर तुम से मिलती हूं. तुम मुझे नौकरी दे रहे हो, मैं तनमन से तुम्हारे काम आऊंगी. गुलाम बन कर रहूंगी, तुम्हारी हर बात मानूंगी.’

रमेश के मन में विचार आया कि अगर वह औरत अपने काम के प्रति ईमानदार रहेगी, तो वह उसे किसी तरह की परेशानी नहीं होने देगा. उस की मासूम बेटी को वह अपने खर्चे पर ही पढ़ाएगा.

तभी रमेश के मन में यह भी खयाल आया कि वह पहले उस के घर जा कर उसे देख तो ले. उस की आवाज ही सुनी है, उसे कभी देखा नहीं. उस के बारे में जानना जरूरी है. लाखों रुपए का माल है दुकान में. उस के हवाले करना कहां तक ठीक है?

रमेश ने उस औरत को फोन किया और बोला, ‘‘पहले आप अपने घर का पता बताएं? आप का घर देख कर ही मैं कोई उचित फैसला कर पाऊंगा.’’

वह औरत कुछ कह पाती, इस से पहले हीरमेश को उस के घर से मर्दों की आवाजें सुनाई दीं.

वह औरत लहजा बदल कर बोली, ‘अभी तो मेरे 2 भाई घर पर आए हुए हैं. तुम कल शाम को आ जाओ.

‘मैं तनमन से आप की दुकान में मेहनत करूंगी और आप की सेवा भी करूंगी. आप की उम्र कितनी है?’ उस औरत ने पूछा.

‘‘मेरी उम्र तो यही बस 40 साल के करीब होगी. अभी मैं भी अकेला ही हूं. पत्नी से आपसी मनमुटाव के चलते मेरा तलाक हो गया है,’’ रमेश ने भी अपना दुख जाहिर कर दिया.

यह सुन कर तो वह औरत खुशी के मारे चहक उठी थी, ‘अरे वाह, तब तो मजा आ जाएगा, साथसाथ काम करने में. मेरी उम्र भी 30 साल है. मैं भी अकेली, तुम भी अकेले. हम एकदूसरे की परेशानियों को दिल से समझ सकेंगे,’ इतना कह कर उस औरत ने शहद घुली आवाज में अपने घर का पता बताया.

उस औरत ने अपने घर का जो पता बताया था, वह कालोनी तो रमेश के घर से आधा किलोमीटर दूर थी. उस ने अपनी मां से औरत के साथ हुई सारी बातें बताईं.

मां ने सलाह दी कि अगर वह औरत ईमानदार और मेहनती है, तो उसे अभी उस के घर जा कर उस के भाइयों के सामने बात पक्की करनी चाहिए. रमेश को अपनी मां की बात सही लगी. उस ने फोन किया, तो उस औरत का फोन बंद मिला.

रमेश ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया और चल दिया उस के घर की तरफ. मगर घर का गेट बंद था. गली भी आगे से बंद थी. वहां खास चहलपहल भी नहीं थी. मकान भी मामूली सा था.

गली में एक बूढ़ा आदमी नजर आया, तो रमेश ने अदब से उस औरत का नाम ले कर उस के घर का पता पूछा. बूढ़े ने नफरत भरी निगाहों से उसे घूरते हुए सामने मामूली से मकान की तरफ इशारा किया.

रमेश को उस बूढ़े के बरताव पर गुस्सा आया, मगर उस की तरफ ध्यान न देते हुए बंद गेट तो नहीं खटखटाया, मगर गली की तरफ बना कमरा, जिस का दरवाजा गली की तरफ नजर आ रहा था, उसी को थपथपा कर कड़कती आवाज में उस औरत को आवाज लगाई.

थोड़ी देर में दरवाजा खुला, तो एक हट्टीकट्टी बदमाश सी नजर आने वाली औरत रमेश को देखते ही गरज उठी, ‘‘क्यों रे, हल्ला क्यों मचा रहा है? ज्यादा सुलग रहा है… फोन कर के आता. देख नहीं रहा कि हम आराम कर रहे हैं.

‘‘अगर हमारे चौधरीजी को गुस्सा आ गया, तो तेरा रामराम सत्य हो जाएगा. अब तू निकल ले यहां से, वरना अपने पैरों पर चल कर जा नहीं सकेगा. अगली बार फोन कर के आना. चल भाग यहां से,’’ उस औरत ने अपने पास खड़े 2 बदमाशों की तरफ देखते हुए रमेश को ऐसे धमकाया, जैसे वह वहां की नामचीन हस्ती हो.

‘‘अपनी आकौत में रह, गंदगी में मुंह मारने वाली औरत. मैं यहां बिना बुलाए नहीं आया हूं. मेरा नाम रमेश है.

‘‘अगर मैं कल शाम को यहां आता, तो तुम्हारी इस दुकानदारी का मुझे कैसे पता चलता. कहो तो अभी पुलिस को फोन कर के बताऊं कि यहां क्या गोरखधंधा चल रहा है,’’ रमेश ने धमकी दी.

रमेश समझ गया था कि उस औरत ने अपनी सैक्स की दुकान खूब चला रखी है. वह तो उस की दुकान का बेड़ा गर्क कर के रख देगी. उस ने मन ही मन अपनी मां का एहसान माना, जिन की सलाह मान कर वह आज ही यहां आ गया था.

उस औरत के पास खड़े उन बदमाशों में से एक ने शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘अबे, तू हमें पुलिस के हवाले करेगा? हम तुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’

पर रमेश दिलेर था. उस ने लड़खड़ाते उस शराबी पर 3-4 थप्पड़ जमा दिए. वह धड़ाम से जमीन चाटता हुआ नजर आया.

यह देख कर वह औरत, जिस का नाम चंपाबाई था, ने जूतेचप्पलों से पिटाई करते हुए कमरे से उन दोनों आशिकों को भगा दिया.

चंपाबाई हाथ जोड़ कर रमेश के सामने गिड़गिड़ा उठी, ‘‘रमेशजी, मैं अकेली औरत समाज के इन बदमाशों का मुकाबला करने में लाचार हूं. मैं आप की शरण में आना चाहती हूं. मुझ दुखियारी को तुम अभी अपने साथ ले चलो. मैं जिंदगीभर तुम्हारी हर बात मानूंगी.’’

चंपाबाई बड़ी खतरनाक किस्म की नौटंकीबाज औरत नजर आ रही थी. अगर आज रमेश आंखों देखी मक्खी निगल लेता, तो यह उस की गलती होती. वह बिना कोई जवाब दिए अपनी राह पकड़ घर की तरफ चल दिया.

हर दिन नया मर्द देखने वाली चंपाबाई अपना दुखड़ा रोते हुए बारबार उसे बुला रही थी, पर रमेश समझ गया था कि ऐसी औरतों की जिस्म की दुकान हो या जनरल स्टोर, वे हर जगह बेड़ा गर्क ही करती हैं.

एक और बलात्कारी : क्या सुमेर सिंह से बच पाई रूपा

रूपा पगडंडी के रास्ते से हो कर अपने घर की ओर लौट रही थी. उस के सिर पर घास का एक बड़ा गट्ठर भी था. उस के पैरों की पायल की ‘छनछन’ दूर खड़े बिरजू के कानों में गूंजी, तो वह पेड़ की छाया छोड़ उस पगडंडी को देखने लगा.

रूपा को पास आता देख बिरजू के दिल की धड़कनें तेज हो गईं और उस का दिल उस से मिलने को मचलने लगा. जब रूपा उस के पास आई, तो वह चट्टान की तरह उस के रास्ते में आ कर खड़ा हो गया.

‘‘बिरजू, हट मेरे रास्ते से. गाय को चारा देना है,’’ रूपा ने बिरजू को रास्ते से हटाते हुए कहा.

‘‘गाय को तो तू रोज चारा डालती है, पर मुझे तो तू घास तक नहीं डालती. तेरे बापू किसी ऐरेगैरे से शादी कर देंगे, इस से अच्छा है कि तू मुझ से शादी कर ले. रानी बना कर रखूंगा तुझे. तू सारा दिन काम करती रहती है, मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘गांव में और भी कई लड़कियां हैं, तू उन से अपनी शादी की बात क्यों नहीं करता?’’

‘‘तू इतना भी नहीं समझती, मैं तो तुझ से प्यार करता हूं. फिर और किसी से अपनी शादी की बात क्यों करूं?’’

‘‘ये प्यारव्यार की बातें छोड़ो और मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना घास का गट्ठर तुम्हारे ऊपर फेंक दूंगी,’’ इतना सुनते ही बिरजू एक तरफ हो लिया और रूपा अपने रास्ते बढ़ चली.

शाम को जब सुमेर सिंह की हवेली से रामदीन अपने घर लौट रहा था, तो वह अपने होश में नहीं था. गांव वालों ने रूपा को बताया कि उस का बापू नहर के पास शराब के नशे में चूर पड़ा है.

‘‘इस ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है. मैं अभी इसे ठीक करती हूं,’’ रूपा की मां बड़बड़ाते हुए गई और थोड़ी देर में रामदीन को घर ला कर टूटीफूटी चारपाई पर पटक दिया और पास में ही चटाई बिछा कर सो गई.

सुबह होते ही रूपा की मां रामदीन पर भड़क उठी, ‘‘रोज शराब के नशे में चूर रहते हो. सारा दिन सुमेर सिंह की मजदूरी करते हो और शाम होते ही शराब में डूब जाते हो. आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा? रूपा भी सयानी होती जा रही है, उस की भी कोई चिंता है कि नहीं?’’

रामदीन चुपचाप उस की बातें सुनता रहा, फिर मुंह फेर कर लेट गया. रामदीन कई महीनों से सुमेर सिंह के पास मजदूरी का काम करता था. खेतों की रखवाली करना और बागबगीचों में पानी देना उस का रोज का काम था.

दरअसल, कुछ महीने पहले रामदीन का छोटा बेटा निमोनिया का शिकार हो गया था. पूरा शरीर पीला पड़ चुका था. गरीबी और तंगहाली के चलते वह उस का सही इलाज नहीं करा पा रहा था. एक दिन उस के छोटे बेटे को दौरा पड़ा, तो रामदीन फौरन उसे अस्पताल ले गया.

डाक्टर ने उस से कहा कि बच्चे के शरीर में खून व पानी की कमी हो गई है. इस का तुरंत इलाज करना होगा. इस में 10 हजार रुपए तक का खर्चा आ सकता है.

किसी तरह उसे अस्पताल में भरती करा कर रामदीन पैसे जुटाने में लग गया. पासपड़ोस से मदद मांगी, पर किसी ने उस की मदद नहीं की.

आखिरकार वह सुमेर सिंह के पास पहुंचा और उस से मदद मांगी, ‘‘हुजूर, मेरा छोटा बेटा बहुत बीमार है. उसे निमोनिया हो गया था. मुझे अभी 10 हजार रुपए की जरूरत है. मैं मजदूरी कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा. बस, आप मुझे अभी रुपए दे दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें अभी रुपए दिए दे देता हूं, लेकिन अगर समय पर रुपए नहीं लौटा सके, तो मजदूरी की एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. बोलो, मंजूर है?’’

‘‘हां हुजूर, मुझे सब मंजूर है,’’ अपने बच्चे की जान की खातिर उस ने सबकुछ कबूल कर लिया.

पहले तो रामदीन कभीकभार ही अपनी थकावट दूर करने के लिए शराब पीता था, लेकिन सुमेर सिंह उसे रोज शराब के अड्डे पर ले जाता था और उसे मुफ्त में शराब पिलाता था. लेकिन अब तो शराब पीना एक आदत सी बन गई थी. शराब तो उसे मुफ्त में मिल जाती थी, लेकिन उस की मेहनत के पैसे सुमेर सिंह हजम कर जाता था. इस से उस के घर में गरीबी और तंगहाली और भी बढ़ती गई.

रामदीन शराब के नशे में यह भी भूल जाता था कि उस के ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं. दिन पर दिन उस पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा था. इस तरह कई महीने बीत गए. जब रामदीन ज्यादा नशे में होता, तो रूपा ही सुमेर सिंह का काम निबटा देती.

एक सुबह रामदीन सुमेर सिंह के पास पहुंचा, तो सुमेर सिंह ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कहा, ‘‘रामदीन, आज तुम हमारे पास बैठो. हमें तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हुजूर, आज कुछ खास काम है क्या?’’ रामदीन कहते हुए उस के पास बैठ गए.

‘‘देखो रामदीन, आज मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझ से जो कर्जा लिया है, वह तुम मुझे कब तक लौटा रहे हो? दिन पर दिन ब्याज भी तो बढ़ता जा रहा है. कुलमिला कर अब तक 15 हजार रुपए से भी ज्यादा हो गए हैं.’’

‘‘मेरी माली हालत तो बदतर है. आप की ही गुलामी करता हूं हुजूर, आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’

सुमेर सिंह हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘देख रामदीन, तू जितनी मेरी मजदूरी करता है, उस से कहीं ज्यादा शराब पी जाता है. फिर बीचबीच में तुझे राशनपानी देता ही रहता हूं. इस तरह तो तुम जिंदगीभर मेरा कर्जा उतार नहीं पाओगे, इसलिए मैं ने फैसला किया है कि अब अपनी जोरू को भी काम पर भेजना शुरू कर दे.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू यहां आ कर करेगी क्या?’’ रामदीन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘मुझे एक नौकरानी की जरूरत है. सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी. घर के कपड़ेलत्ते साफ करेगी. उस के महीने के हजार रुपए दूंगा. उस में से 5 सौ रुपए काट कर हर महीने तेरा कर्जा वसूल करूंगा.

‘‘अगर तुम यह भी न कर सके, तो तुम मुझे जानते ही हो कि मैं जोरू और जमीन सबकुछ अपने कब्जे में ले लूंगा.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू पेट से है और उस की कमर में भी हमेशा दर्द रहता है.’’

‘‘बच्चे पैदा करना नहीं भूलते, पर मेरे पैसे देना जरूर भूल जाते हो. ठीक है, जोरू न सही, तू अपनी बड़ी बेटी रूपा को ही भेज देना.

‘‘रूपा सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी और दोपहर को हमारे खेतों से जानवरों के लिए चारा लाएगी. घर जा कर उसे सारे काम समझा देना. फिर दोबारा तुझे ऐसा मौका नहीं दूंगा.’’

अब रामदीन को ऐसा लगने लगा था, जैसे वह उस के भंवर में धंसता चला जा रहा है. सुमेर सिंह की शर्त न मानने के अलावा उस के पास कोई चारा भी नहीं बचा था.

शाम को रामदीन अपने घर लौटा, तो उस ने सुमेर सिंह की सारी बातें अपने बीवीबच्चों को सुनाईं.

यह सुन कर बीवी भड़क उठी, ‘‘रूपा सुमेर सिंह की हवेली पर बिलकुल नहीं जाएगी. आप तो जानते ही हैं. वह पहले भी कई औरतों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर चुका है. मैं खुद सुमेर सिंह की हवेली पर जाऊंगी.’’

‘‘नहीं मां, तुम ऐसी हालत में कहीं नहीं जाओगी. जिंदगीभर की गुलामी से अच्छा है कि कुछ महीने उस की गुलामी कर के सारे कर्ज उतार दूं,’’ रूपा ने अपनी बेचैनी दिखाई.

दूसरे दिन से ही रूपा ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया. वह सुबहशाम उस की हवेली पर झाड़ूपोंछा करती और दोपहर में जानवरों के लिए चारा लाने चली जाती.

अब सुमेर सिंह की तिरछी निगाहें हमेशा रूपा पर ही होती थीं. उस की मदहोश कर देनी वाली जवानी सुमेर सिंह के सोए हुए शैतान को जगा रही थी. रूपा के सामने तो उस की अपनी बीवी उसे फीकी लगने लगी थी.

सुमेर सिंह की हवेली पर सारा दिन लोगों का जमावड़ा लगा रहता था, लेकिन शाम को उस की निगाहें रूपा पर ही टिकी होती थीं.

रूपा के जिस्म में गजब की फुरती थी. शाम को जल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर अपने घर जाने के लिए तैयार रहती थी. लेकिन सुमेर सिंह देर शाम तक कुछ और छोटेमोटे कामों में उसे हमेशा उलझाए रखता था. एक दोपहर जब रूपा पगडंडी के रास्ते अपने गांव की ओर बढ़ रही थी, तभी उस के सामने बिरजू आ धमका. उसे देखते ही रूपा ने अपना मुंह फेर लिया.

बिरजू उस से कहने लगा, ‘‘मैं जब भी तेरे सामने आता हूं, तू अपना मुंह क्यों फेर लेती है?’’

‘‘तो मैं क्या करूं? तुम्हें सीने से लगा लूं? मैं तुम जैसे आवारागर्दों के मुंह नहीं लगना चाहती,’’ रूपा ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘देख रूपा, तू भले ही मुझ से नफरत कर ले, लेकिन मैं तो तुझ को प्यार करता ही रहूंगा. आजकल तो मैं ने सुना है, तू ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया है. शायद तुझे सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में पता नहीं. वह बिलकुल अजगर की तरह है. वह कब शिकारी को अपने चंगुल में फंसा कर निगल जाए, यह किसी को पता नहीं.

‘‘मुझे तो अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं वह तुम्हें नौकरानी से रखैल न बना ले, इसलिए अभी भी कहता हूं, तू मुझ से शादी कर ले.’’ यह सुन कर रूपा का मन हुआ कि वह बिरजू को 2-4 झापड़ जड़ दे, पर फिर लगा कि कहीं न कहीं इस की बातों में सचाई भी हो सकती है.

रूपा पहले भी कई लोगों से सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में सुन चुकी थी. इस के बावजूद वह सुमेर सिंह की गुलामी के अलावा कर भी क्या सकती थी. इधर सुमेर सिंह रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए बेचैन हो रहा था, लेकिन रूपा उस के झांसे में आसानी से आने वाली नहीं थी.

सुमेर सिंह के लिए रूपा कोई बड़ी मछली नहीं थी, जिस के लिए उसे जाल बुनना पड़े.

एक दिन सुमेर सिंह ने रूपा को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘देखो रूपा, तुम कई दिनों से मेरे यहां काम कर रही हो, लेकिन महीने के 5 सौ रुपए से मेरा कर्जा इतनी जल्दी उतरने वाला नहीं है, जितना तुम सोच रही हो. इस में तो कई साल लग सकते हैं.

‘‘मेरे पास एक सुझाव है. तुम अगर चाहो, तो कुछ ही दिनों में मेरा सारा कर्जा उतार सकती हो. तेरी उम्र अभी पढ़नेलिखने और कुछ करने की है, मेरी गुलामी करने की नहीं,’’ सुमेर सिंह के शब्दों में जैसे एक मीठा जहर था.

‘‘मैं आप की बात समझी नहीं?’’ रूपा ने सवालिया नजरों से उसे देखा.

सुमेर सिंह की निगाहें रूपा के जिस्म को भेदने लगीं. फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम्हें आज ही एक सौदा करना होगा. अगर तुम्हें मेरा सौदा मंजूर होगा, तो मैं तुम्हारा सारा कर्जा माफ कर दूंगा और इतना ही नहीं, तेरी शादी तक का खर्चा मैं ही दूंगा.’’

रूपा बोली, ‘‘मुझे क्या सौदा करना होगा?’’

‘‘बस, तू कुछ दिनों तक अपनी जवानी का रसपान मुझे करा दे. अगर तुम ने मेरी इच्छा पूरी की, तो मैं भी अपना वादा जरूर निभाऊंगा,’’ सुमेर सिंह के तीखे शब्दों ने जैसे रूपा के जिस्म में आग लगा दी थी.

‘‘आप को मेरे साथ ऐसी गंदी बातें करते हुए शर्म नहीं आई,’’ रूपा गुस्से में आते हुए बोली.

‘‘शर्म की बातें छोड़ और मेरा कहा मान ले. तू क्या समझती है, तेरा बापू तेरी शादी धूमधाम से कर पाएगा? कतई नहीं, क्योंकि तेरी शादी के लिए वह मुझ से ही उधार लेगा.

‘‘इस बार तो मैं तेरे पूरे परिवार को गुलाम बनाऊंगा. अगर ब्याह के बाद तू मदद के लिए दोबारा मेरे पास आई भी तो मैं तुझे रखैल तक नहीं बनाऊंगा. अच्छी तरह सोच ले. मैं तुझे इस बारे में सोचने के लिए कुछ दिन की मुहलत भी देता हूं. अगर इस के बावजूद भी तू ने मेरी बात नहीं मानी, तो मुझे दूसरा रास्ता भी अपनाना आता है.’’

सुमेर सिंह की कही गई हर बात रूपा के जिस्म में कांटों की तरह चुभती चली गई. सुमेर सिंह की नीयत का आभास तो उसे पहले से ही था, लेकिन वह इतना बदमाश भी हो सकता है, यह उसे बिलकुल नहीं पता था.

रूपा को अब बिरजू की बातें याद आने लगीं. अब उस के मन में बिरजू के लिए कोई शिकायत नहीं थी.

रूपा ने यह बात किसी को बताना ठीक नहीं समझा. रात को तो वह बिलकुल सो नहीं पाई. सारी रात अपने वजूद के बारे में ही वह सोचती रही.

रूपा को सुमेर सिंह की बातों पर तनिक भी भरोसा नहीं था. उसे इस बात की ज्यादा चिंता होने लगी थी कि अगर अपना तन उसे सौंप भी दिया, तो क्या वह भी अपना वादा पूरा करेगा? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अपना सबकुछ गंवा कर भी बदनामी के अलावा उसे कुछ नहीं मिलेगा.

इधर सुमेर सिंह भी रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए उतावला हो रहा था. उसे तो बस रूपा की हां का इंतजार था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था. लेकिन रूपा ने उसे अब तक कोई संकेत नहीं दिया था. सुमेर सिंह ने मन ही मन कुछ और सोच लिया था.

यह सोच कर रूपा की भी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उसे खुद को सुमेर सिंह से बचा पाना मुश्किल लग रहा था. एक दोपहर जब रूपा सुमेर सिंह के खेतों में जानवरों के लिए चारा लाने गई, तो सब से पहले उस की निगाहें बिरजू को तलाशने लगीं, पर बिरजू का कोई अतापता नहीं था. फिर वह अपने काम में लग गई. तभी किसी ने उस के मुंह पर पीछे से हाथ रख दिया.

रूपा को लगा शायद बिरजू होगा, लेकिन जब वह पीछे की ओर मुड़ी, तो दंग रह गई. वह कोई और नहीं, बल्कि सुमेर सिंह था. उस की आंखों में वासना की भूख नजर आ रही थी.

तभी सुमेर सिंह ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ते हुए कहा, ‘‘हुं, आज तुझे मुझ से कोई बचाने वाला नहीं है. अब तेरा इंतजार भी करना बेकार है.’’

‘‘मैं तो बस आज रात आप के पास आने ही वाली थी. अभी आप मुझे छोड़ दीजिए, वरना मैं शोर मचाऊंगी,’’ रूपा ने उस के चंगुल से छूटने की नाकाम कोशिश की.

पर सुमेर सिंह के हौसले बुलंद थे. उस ने रूपा की एक न सुनी और घास की झाड़ी में उसे पूरी तरह से दबोच लिया.

रूपा ने उस से छूटने की भरपूर कोशिश की, पर रूपा की नाजुक कलाइयां उस के सामने कुछ खास कमाल न कर सकीं.

अब सुमेर सिंह का भारीभरकम बदन रूपा के जिस्म पर लोट रहा था, फिर धीरेधीरे उस ने रूपा के कपड़े फाड़ने शुरू किए.

जब रूपा ने शोर मचाने की कोशिश की, तो उस ने उस का मुंह उसी के दुपट्टे से बांध दिया, ताकि वह शोर भी न मचा सके.

अब तो रूपा पूरी तरह से सुमेर सिंह के शिकंजे में थी. वह आदमखोर की तरह उस पर झपट पड़ा. इस से पहले वह रूपा को अपनी हवस का शिकार बना पाता, तभी किसी ने उस के सिर पर किसी मजबूत डंडे से ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह ढेर हो गया.

रूपा ने जब गौर से देखा, तो वह कोई और नहीं, बल्कि बिरजू था. तभी वह उठ खड़ी हुई और बिरजू से लिपट गई. उस की आंखों में एक जीत नजर आ रही थी.

बिरजू ने उसे हौसला दिया और कहा, ‘‘तुम्हें अब डरने की कोई जरूरत नहीं है. मैं इसी तरह तेरी हिफाजत जिंदगीभर करता रहूंगा.’’ रूपा ने बिरजू का हाथ थाम लिया और अपने गांव की ओर चल दी.