यादगार केस : दुआ को मिला इन्साफ – भाग 1

अतिरिक्त जिला जज आफाक अहमद ने सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा पर गहरी नजर  डाल कर कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारा आखिरी केस यादगार बन जाए, इसलिए खलील मंगी को कल जेल से अदालत लाने और फैसले के बाद हिफाजत से उस के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपना चाहता हूं.’’

सामने बैठे डीएसपी खावर रंधावा ने पहलू बदलते हुए कहा, ‘‘इस में यादगार बनने वाली क्या बात है? यह तो मेरा फर्ज है, जिसे मैं और मेरे साथी बखूबी निभाएंगे.’’

जज आफाक अहमद और डीएसपी खावर रंधावा पुराने दोस्त तो थे ही, समधी बन जाने के बाद उन की यह दोस्ती रिश्तेदारी में भी बदल गई थी.

‘‘मैं ने मंगी को रिहा करने का फैसला कर लिया है.’’ आफाक अहमद ने यह बात कही तो डीएसपी रंधावा को झटका सा लगा. हैरानी से वह अपने बचपन के दोस्त का चेहरा देखते रह गए. जबकि वह एकदम निश्चिंत नजर आ रहे थे. जिस आदमी के बारे में मीडिया और कानून के जानकार ही नहीं, पूरे देश में मशहूर था कि उन्होंने आज तक किसी भी गुनहगार को नहीं छोड़ा, शायद उन्होंने जिंदगी का मकसद ही गुनाहगार को सजा देना बना लिया था, आज वही शख्स एक घिनौने और बेरहम अपराधी को छोड़ने की बात कर रहा था.

उन्होंने कहा, ‘‘तुम उस घिनौने कातिल को छोड़ दोगे, जिस ने 15 साल की एक मासूम बच्ची को अपनी हवस का शिकार बना कर बेरहमी से मार डाला था. भई, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि तुम ऐसा काम करोगे. जिस आदमी की ईमानदारी और फर्ज अदायगी पर लोग आंख मूंद कर यकीन करते हों, वह भला ऐसा काम कैसे कर सकता है?’’

रंधावा की बातों में शिकायत थी. आफाक अहमद निराशा भरे अंदाज में अपना सिर कुरसी की पुश्त से टिकाते हुए धीरे से बोले, ‘‘जिस तरह मेरे आदेश पर तुम उस की हिफाजत करने के लिए मजबूर हो, उसी तरह कानूनी मजबूरियों की वजह से मैं भी उसे रिहा करने को मजबूर हूं.’’

रंधावा होंठ भींचे उन्हें देखते रहे तो आफाक अहमद ने आगे कहा, ‘‘तुम अदालती काररवाई के बारे में तो जानते ही हो. चश्मदीद गवाहों ने अपने बयान बदल दिए हैं, मैडिकल रिपोर्ट भी पैसे के बल पर बदलवा दी गई है, केवल घटना के आधार पर तो सजा नहीं दी जा सकती. फिर कोई मजबूत पक्ष भी नहीं है, इसलिए मुझे मजबूरन कल उसे रिहा करना होगा.’’

रंधावा के चेहरे पर निराशा के भाव साफ झलकने लगे. दोस्त वाकई बेबस था. मजबूत एफआईआर के साथ अगर गवाह अपने बयानों पर टिके रहते तो दुनिया की कोई भी ताकत खलील मंगी को फांसी पर चढ़ने से नहीं रोक सकती थी.

आफाक अहमद के कमरे में खामोशी छा गई. उस समय दीवार पर लगी आधा दरजन घडि़यों की टिकटिक की आवाज ही आ रही थी जो उन के कमरे की दीवारों पर चारों ओर लगी थीं. तरहतरह की नईपुरानी घडि़यों को जमा करना और उन्हें दीवारों पर लगाना आफाक अहमद का शौक था. रंधावा ने अचानक कहा, ‘‘फिर तो खलील के हाथों मारी गई दुआ के लिए दुआ ही की जा सकती है. उस का भाई शाद अली, जो कैप्टन था, अच्छा होगा वह अपने दावे में कामयाब हो जाए.’’

आफाक अहमद ने भी दुखी लहजे में कहा, ‘‘खुदा करे, वह अपने मकसद में कामयाब हो.’’

फौज में कैप्टन शाद अली ने 2 बार हिरासत के दौरान खलील मंगी पर कातिलाना हमला किया था. लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका था. उस के बाद वह एकदम से गायब हो गया था.

इलेक्ट्रौनिक मीडिया के जरिए उस ने दावा किया था कि अगर खलील मंगी को अदालत से रिहा किया तो वह अदालत में जज के सामने ही उसे जान से मार देगा. इस तरह की बातों को उछालने में मीडिया को वैसे भी बड़ा मजा आता है. इसलिए न्यूज चैनलों ने इसे बारबार दिखा कर लोगों में एक अजीब तरह का एक्साइटमेंट पैदा कर दिया था. इसीलिए यह फैसला मीडिया, अवाम और कानून के लिए एक चुनौती बन गया था.

कमरे की सभी घडि़यों ने 9 बजने की घोषणा की तो तरहतरह के म्यूजिक ने कमरे के सन्नाटे को भंग कर दिया. चंद पलों के लिए आफाक अहमद ने अपनी आंखें बंद कर लीं. ये आवाजें उन्हें बड़ा सुकून देती थीं. आवाजों के बंद होने पर उन्होंने कहा, ‘‘दोस्त हमें अपना फर्ज अदा करना है और उस सिरफिरे कैप्टन से मंगी को बचाना है. अब देखना है कि आखिर कौन कामयाब होता है?’’

रंधावा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी सारी दुआएं उस सिरफिरे कैप्टन के साथ हैं. खुदा करे वह अपने मकसद में कामयाब हो जाए. दिल तो चाहता है कि मैं ही उस की कोई मदद कर दूं. लेकिन अगले हफ्ते मैं खुद ही रिटायर हो रहा हूं. इसलिए अपने बेदाग कैरियर पर मैं कोई धब्बा नहीं लगने देना चाहता. इस इमेज को बनाने में मैं ने पूरी उम्र लगा दी है, अब उसे दांव पर नहीं लगा सकता. फिर भी दुआ तो कर ही सकता हूं कि शाद अली उस जालिम कातिल को बरी होने के बाद खत्म कर दे.’’

रंधावा के लहजे में नफरत साफ झलक रही थी.

आफाक अहमद ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘डीएसपी रंधावा, इसीलिए मैं ने तुम्हें इस काम के लिए चुना है, क्योंकि मुझे यकीन है कि यह मामला तुम्हारे लिए यादगार होगा.’’

डीएसपी रंधावा ने रात को ही अपने तेजतर्रार साथी इंसपेक्टर गुलाम भट्टी के साथ मिल कर अगले दिन की सुरक्षा व्यवस्था की पूरी योजना बना डाली थी. अतिरिक्त पुलिस बल की भी व्यवस्था कर ली गई थी. खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत ले आने और ले जाने की व्यवस्था पहले से ही थी. सुरक्षा की पूरी योजना बना कर गुलाम भट्टी ने कहा, ‘‘सर, हम लोगों को अपना पूरा ध्यान अदालत के कमरे पर रखना होगा.’’

रंधावा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मुझे तो लगता है कि अदालत के कमरे में खलील मंगी को मौत के घाट उतारने वाली बात उस ने केवल हमें भटकाने के लिए कही है. कैप्टन अदालत के बाहर कहीं पर भी उस पर हमला कर सकता है.’’

‘‘फिर तो बख्तरबंद गाड़ी को हमें अदालत के अहाते के बजाय अदालत के कमरे तक ले जाना चाहिए.’’ गुलाम भ्टटी ने कहा.

अगले दिन खलील मंगी को बख्तरबंद गाड़ी से अदालत के कमरे तक लाया गया. और जज आफाक अहमद की मेज के दाईं तरफ बने मुल्जिमों के कटघरे में खड़ा किया गया. उस की आंखों में जीत की चमक साफ झलक रही थी. उसे पूरा यकीन था कि थोड़ी देर में उसे रिहा कर दिया जाएगा. उस ने ताजा शेव किया हुआ या और कौटन का सफेद सलवार कुरता पहने था.

                                                                                                                                           क्रमशः

ट्रंक की चोरी : ईमानदार चोर ने किया साजिश का पर्दाफाश – भाग 1

निक वेल्वेर एक अलग तरह का चोर था. वह एक दिन सुबह साढ़े 10 बजे पब्लिक लाइब्रेरी में बैठा हुआ पिछले 2 घंटे से मैगजीन पढ़ रहा  था. इसी दौरान उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न वह चोरी के टौपिक पर एक किताब लिखे, जिस का शीर्षक हो ‘चोरी एक आर्ट’.

इस विषय पर क्याक्या लिखा जाए, इस बारे में वह सोच ही रहा था, तभी एक मोटा सा आदमी आ कर उस के पास वाली कुरसी पर बैठ गया. उस के बैठते ही निक उठने लगा. तभी वह मोटा आदमी बोला, ‘‘हैलो मिस्टर निक, शायद तुम मुझे नहीं जानते होगे लेकिन मैं तुम्हें जानता हूं. किसी के रेफरेंस से ही तुम्हारे पास तक पहुंचा हूं. मेरा नाम विक्टर एलियानोफ है.’’

निक विक्टर को गौर से देखने लगा तभी विक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलने यहां इसलिए आया हूं कि मैं तुम से एक ट्रंक चोरी करवाना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही वेल्वेर ने कहा, ‘‘जब आप को किसी ने मेरे पास भेजा है तो यह भी बताया होगा कि मैं सिर्फ फालतू और मामूली चीजों की ही चोरी करता हूं. ऐसी चीजों के चुराने में किसी को दुख भी नहीं होता.’’

‘‘हां, मैं जानता हूं. जिस संदूक के बारे में मैं बात कर रहा हूं वह पुराना और जंग लगा है. वह कोई 70-80 साल पुराना है.’’

‘‘जब इतना पुराना है, तब तो यह ऐतिहासिक महत्त्व की चीज होगी?’’

‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है. यह एक फालतू पुराना ट्रंक है. उसे कोई कबाड़ी भी लेना पसंद नहीं करेगा, डेढ़ फीट ऊंचा 2 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा है.’’

‘‘जब किसी महत्त्व का नहीं है, तो आप इसे चोरी करवाना क्यों चाहते हैं?’’

‘‘मैं समझता हूं कि इस बात से तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिए. तुम अपना काम करो और काम के जो पैसे बनते हैं लो.’’

‘‘मेरी फीस पता है, मैं 25 हजार डालर लेता हूं.’’

विक्टर ने एक लिफाफा निकाल कर उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये रहे 10 हजार डालर बाकी काम होने के बाद.’’

निक ने लिफाफा देखे बगैर पूछा, ‘‘अब यह बताओ कि ये ट्रंक किस जगह पर है?’’

विक्टर एलियानोफ ने एक कागज उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘ये है उस जगह का पता. उस इमारत के तहखाने में तुम्हें यह संदूक मिल जाएगा.’’

निक ने कागज को देखते हुए कहा, ‘‘ये जगह कस्बा ‘न्यूपालिट’ में है, जो यहां से करीब 100 मील दूर है.’’

‘‘तुम्हें ट्रंक चोरी करने में ज्यादा दिक्कत पेश नहीं आएगी. जिस घर में यह रखा है, उस घर के लोग न्यूयार्क गए हुए हैं. बस एक बूढ़ा चौकीदार वहां होता है. मुझे यकीन है कि तुम उस चौकीदार की आंखों से बच कर आसानी से अपना काम कर लोगे.’’ विक्टर ने कहा.

‘‘मुझे अपना काम करना आता है. तुम यह बताओ कि ट्रंक पहुंचाना कहां है?’’

विक्टर ने एक पता लिखी परची उसे देते हुए कहा, ‘‘ट्रंक इस अपार्टमेंट में पहुंचाना होगा. ये रही अपार्टमेंट की चाबी. काम खत्म होने के बाद तुम मुझे फोन कर देना, मैं मिल लूंगा.’’ विक्टर ने निक को अपना फोन नंबर देते हुए कहा.

उस समय मौसम सुहाना था. निक ने अपनी दोस्त ग्लोरिया को फोन किया, ‘‘ग्लोरिया, हम न्यूपालिट घूमने चलेंगे. वहां मछली का शिकार और बोटिंग करेंगे.’’

न्यूपालिट एक बहुत खूबसूरत जगह थी इसलिए वहां जाने की बात सुनते ही ग्लोरिया बहुत खुश हुई, उस ने निक के साथ घूमने के लिए हामी भर ली. थोड़ी देर बाद निक अपनी कार से एक निर्धारित जगह पर पहुंच गया. वहां उसे ग्लोरिया उस का इंतजार करती मिली.

ग्लोरिया को कार में बैठा कर वह न्यूपालिट की ओर चल दिया. ग्लोरिया निक के बारे में सब जानती थी. निक ने उसे नए केस के बारे में बता दिया. ग्लोरिया तो वहां जाने से खुश थी. न्यूयार्क की भीड़भाड़, उमस से दूर वे चले जा रहे थे.

दोपहर साढ़े 12 बजे वे लोग न्यूपालिट पहुंच गए. झील के किनारे मशहूर होटल माउंटेन हाऊस में उन्होंने कमरा बुक कराया. खाना खा कर दोनों घूमने निकल गए. उसी दौरान निक उस मकान को एक नजर देख लेना चाहता था, जहां से उसे ट्रंक चुराना था.

कुछ देर बाद वह उस अपार्टमेंट के पास पहुंच गया. वह अपार्टमेंट लाल पत्थरों से बना था. अपार्टमेंट के चारों तरफ पेड़ और हरियाली थी. बाहर लोहे का बड़ा सा गेट लगा था. सीढि़यों के पास बैठा एक बूढ़ा चौकीदार सिगरेट पीता नजर आया. उस के कंधे पर स्टेनगन टंगी थी. अपार्टमेंट की चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. पीछे की चारदीवारी एक पहाड़ी ढलान से मिली हुई थी.

अपार्टमेंट का मुआयना करने के बाद पूरे दिन प्रेमिका के साथ घूमता रहा. दोनों ने बोटिंग की, शिकार किया. अपना काम करने के लिए निक रात 10 बजे अकेला उस अपार्टमेंट की तरफ रवाना हो गया. रात सुनसान और अंधेरी थी. निक ने अपनी कार एक पेड़ के नीचे खड़ी कर दी. फिर वह बड़ी आसानी से दीवार कूद कर अपार्टमेंट की तरफ बढ़ ही रहा था कि सन्नाटे में किसी कार की आवाज आई. निक पौधों की आड़ में हो गया.

एक कार फाटक पर आ कर रुकी. 3 बार हार्न बजाने पर गेट पर लगी बड़ी लाइट जला कर स्टेनगनधारी चौकीदार गेट के पास पहुंच गया. तभी कार में से एक लड़की उतरी उस ने चौकीदार से कुछ कहा. वह लाइट में खड़ी थी. चौड़े भारी बदन की वह लड़की तंग जींस और स्कीवी पहने हुई थी. वह चौकीदार से हाथ हिलाहिला कर कुछ कह रही थी. इस के बाद वह वापस मुड़ कर चली गई. गेट पर खड़ा चौकीदार बड़े गौर से उसे देखता रहा.

निक को फ्लैट में घुसने का यह सही मौका लगा, वह फुरती से चुपचाप खुले दरवाजे से अंदर दाखिल हो गया. अंदर गहरा अंधेरा था. निक ने जेब से पेंसिल टौर्च निकाली पर जलाई नहीं. दाईं तरफ कोने के कमरे में हलकी रोशनी हो रही थी.

वह ऊपरी मंजिल की सीढि़यों पर झुक कर खड़ा हो गया. तभी उसे ऊपरी मंजिल से कुछ आहट महसूस हुई. 2-3 मिनट वह चुपचाप खड़ा रहा. फिर उसे दरवाजा बंद करने की आवाज आई. एक साया, जो शायद चौकीदार, हलकी लाइट वाले कमरे में चला गया. उस के बाद वहां की लाइट भी बंद हो गई.

निक दबेपांव वहां से निकला और तहखाने की सीढि़यां ढूंढ कर धीरेधीरे नीचे उतरने लगा. तहखाने में उस ने टौर्च जला कर देखा. वहां पुराना सामान, टूटा फरनीचर, रद्दी अखबार वगैरह पड़े थे. सब चीजों पर धूल चढ़ी हुई थी और वहां मकडि़यों के जाले थे. यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वहां कोई काफी दिनों से नहीं आया हो. एक कोने में पुराना, जंग लगा एक ट्रंक पड़ा था. निक समझ गया कि यही वह ट्रंक है.

अजीब बात यह थी कि ट्रंक पर धूल नहीं थी. जबकि वहां रखे हर सामान पर धूल चढ़ी हुई थी. निक ने उसे उठा कर सिर पर रखा. सीढि़यों के ऊपर पहुंच कर जरा रुक वह यह देखने लगा कि बाहर निकलने में उसे कोई खतरा तो नहीं है.

पूरी तरह सन्नाटा होने पर वह धीरे से दरवाजा खोल कर फ्लैट से बाहर निकल गया. आराम से चारदीवारी फांद कर वह बाहर पहुंचा. कार की डिक्की खोल कर ट्रंक उस में रखने लगा तभी उसे ट्रंक के अंदर से किसी चीज के खड़खड़ाने की आवाज आई. वैसी ही आवाज उसे ट्रंक उठाते समय भी आई थी. उस ने सोचा ट्रंक खोल कर देखा जाए कि उस में क्या है.

वह ट्रंक खोलने को हुआ उसी वक्त अपार्टमेंट के अंदर से कुछ उठापटक की आवाजें आने लगीं. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने जोर से दरवाजा बंद किया हो. फिर किसी के दौड़ने की आवाज, कुछ शोर, कुछ भारी चीज गिरने की आवाज के साथ फायर होने की 2 आवाजें सुनाई दीं. निक ने ट्रंक खोलने का इरादा छोड़ दिया. उस ने वहां से जल्द खिसकने में भलाई समझी.

                                                                                                                                           क्रमशः

उधार का चिराग – भाग 1

मुझे उन्होंने मारने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन संयोग अच्छा था कि मैं बच गया था. उन की चलाई गोली मेरे सिर को छूती हुई निकल गई थी. उस के बाद जान बचाने के  लिए मैं ने सरपट दौड़ लगा दी थी. जिन लोगों ने मुझे मारने की कोशिश की थी, उन से मेरी कोई दुश्मनी नहीं थी और जिस ने उन्हें इस काम के लिए भेजा था, उस से भी मेरी कोई दुश्मनी नहीं थी. इस के बावजूद मारने वाले मुझे मारना चाहते थे तो मरवाने वाला मुझे मरवाना चाहता था.

इस कहानी की शुरुआत उस दिन हुई थी, जिस दिन मेरे बौस अजहर अली ने मुझे अपने चैंबर में पहली बार बुलाया था. वह अपनी सख्ती और खड़ूसपने के लिए मशहूर थे. उन का एक्सपोर्टइंपोर्ट का बहुत बड़ा कारोबार था.  कंपनी के सारे कर्मचारी उन से बहुत डरते थे. चैंबर में घुसते ही उन्होंने बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘शहबाज तुम्हारा ही नाम है?’’

‘‘जी सर.’’ मैं ने बैठते हुए अदब से कहा था.

‘‘तुम यहां अकेले ही रहते हो या परिवार के साथ?’’

‘‘सर, मैं बिल्कुल ही अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है.’’

उन्होंने मुझे गौर से देखा. इस के बाद कुछ सोचते हुए पूछा, ‘‘अभी शादी भी नहीं की?’’

‘‘जी नहीं.’’

मुझे उन की बातों पर हैरानी हो रही थी. उन्होंने मेरे चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं. तुम काफी मेहनती और ईमानदार हो. मैं ने तुम्हारी रिपोर्ट देखी है. मैं तुम्हें प्रमोशन देना चाहता हूं. शाम को मेरे घर आ जाना, वहीं इत्मीनान से बातें करेंगे.’’

यह मेरी खुशनसीबी ही थी कि मुझे इस तरह का मौका मिल रहा था. शाम को मैं बौस अजहर अली के घर पहुंच गया. उन का घर बहुत शानदार था. ड्राइंगरूम बेशकीमती चीजों से सजा हुआ था. बाहर कई गाडि़यां खड़ी थीं. कई नौकर इधरउधर घूम रहे थे.

अजहर अली एक छरहरी खूबसूरत औरत के साथ ड्राइंगरूम में दाखिल हुए. उन्होंने औरत की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह मेरी वाइफ नाजनीन है.’’

मैं ने सलाम किया. सभी लोग बैठ गए. अजहर अली ने औफिस और काम की बातें शुरू कीं. उन्होंने कुछ खास जिम्मेदारियां सौंपते हुए ओहदा और वेतन बढ़ाने की बात कही. तभी उन के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया तो वह उठ कर बाहर चले गए.

उन के जाते ही नाजनीन अपनी जगह से उठी और मेरे पास आ कर बैठ गई. उस के परफ्यूम की खुशबू ने मुझे मदहोश सा कर दिया. मेरी धड़कन एकदम से बढ़ गई. उस ने बड़े प्यार से पूछा, ‘‘आप के शौक क्या क्या हैं, आप जिम जाते हैं?’’

‘‘मैडम, मैं इतने महंगे शौक कैसे पाल सकता हूं?’’ मैं ने कहा.

‘‘अब तुम गरीब नहीं रहोगे.’’ उस ने प्यार से कहा.

उस के इस अंदाज से मैं हैरान था. मैं ने कहा, ‘‘मैं समझा नहीं मैडम?’’

‘‘अजहर तुम पर मेहरबान हैं. वह तुम्हें अपनी फर्म का जनरल मैनेजर बनाने जा रहे हैं. इस के बाद पैसे की कमी कहां रहेगी. मैनेजर बनते ही तुम्हें क्लब की मैंबरशिप मिल जाएगी. बड़े आदमी बन जाओगे तो तुम्हें बड़े लोगों के साथ उठनाबैठना होगा न?’’

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि पहली मुलाकात में यह कैसी बातें कह रही हैं. अजहर अली लौट कर आए. आते ही उन्होंने कहा, ‘‘नाजनीन ने तुम्हें सब बता ही दिया होगा. मुझे एक जरूरी मीटिंग में जाना है, इसलिए मैं चलता हूं.’’

‘‘लेकिन सर मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि यह कैसे हो सकता है?’’ मैं ने घबरा कर कहा.

‘‘इस में समझना क्या है. बस यह समझो कि तुम्हारी किस्मत जाग उठी है. कल तुम औफिस जाओगे तो तुम्हें अपौइंटमेंट लेटर मिल जाएगा.’’

मैं परेशान था कि आखिर मुझ पर यह मेहरबानी क्यों हो रही है? मैनेजर की पोस्ट, तगड़ा वेतन, गाड़ी के साथसाथ अन्य तमाम सुविधाएं. आखिर यह सब क्यों किया जा रहा है?

अजहर अली अपनी बीवी को बाय कह कर चले गए. उन के जाने के बाद नाजनीन ने कहा, ‘‘अब तो तुम्हें यकीन हो गया होगा कि आप अमीर आदमी बन गए हैं. मैं भी यही चाहती हूं.’’

‘‘मुझे तो यह सब एक सपना सा लग रहा है.’’ मैं ने कहा.

‘‘लेकिन तुम्हारा सपना हकीकत बन गया है. अब तुम जा सकते हो.’’

अपने किराए के फ्लैट पर पहुंच कर भी मुझे यह सब एक सपना ही लग रहा था. मैं ने अपने उस किराए के छोटे से पुराने फ्लैट को देखा, अब मुझे एक शानदार घर मिलने वाला था. किस्मत मुझ पर मेहरबान जो थी. अगले दिन बौस ने मुझे अपने चैंबर में बुलाया तो मैं धड़कते दिल के साथ पहुंचा.

उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा लेटर तैयार हो गया है. अभी जो मैनेजर था, उस का ट्रांसफर कर दिया गया है. 3 दिन वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हें सारे काम समझा देगा.’’

मन यही कर रहा था कि मैं उठ कर नाचने लगूं. साथ काम करने वालों के लिए यह एक हैरानी की बात थी. सभी ने मुझे मुबारकबाद दी. मैनेजर का चैंबर काफी बड़ा और शानदार था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं बौस का शुक्रिया कैसे अदा करूं?

एकाउंटेंट ने मेरे चैंबर में आ कर मुझे मुबारकबाद दे कर कहा, ‘‘शहबाज साहब, आप इस फर्म के जनरल मैनेजर हो गए हैं. लेकिन एक बात याद रखना कि अब आप को दोधारी तलवार पर चलना होगा. जितना बड़ा ओहदा होता है, जिम्मेदारियां उतनी ही बढ़ जाती हैं.’’

इस के बाद वह मुझे औफिस के काम और जिम्मेदारियां समझाने लगा. काफी बड़ी फर्म थी. कुछ मैं पहले से जानता था, बाकी पहले के मैनेजर और एकाउंटेंट ने समझाना और सिखाना शुरू कर दिया.

3-4 दिनों बाद अजहर अली ने मुझे बुला कर पूछा, ‘‘शहबाज, कोई मुश्किल तो नहीं आ रही है? काम समझ में आ रहा है न?’’

मैं ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, ‘‘जी सर, सब ठीक चल रहा है.’’

उन्होंने मुझे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘आज शाम को तुम मेरे घर आ जाना. नाजनीन तुम्हें साथ ले जा कर क्लब का मेंबर बनवा देगी.’’

‘‘जी सर.’’

किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी. नाजनीन मेरी राह देख रही थी. उस ने आगे बढ़ कर बड़ी गर्मजोशी से मुझ से हाथ मिलाया. मैं थोड़ा नर्वस जरूर हुआ.

वह बहुत अच्छी तरह से तैयार हुई थी, जिस से बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. उस का परफ्यूम मुझे मदहोश कर रहा था. उस ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बहुत अच्छी लग रही हैं.’’ मैं ने कहा.

मेरे बाजू को थपथपाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब तुम्हें हाई सोसायटी के तौरतरीके सीखने पड़ेंगे.’’

गाड़ी वह खुद चला रही थी. मैं उस की बगल वाली सीट पर बैठा था. क्लब में उस ने अपने सभी जानने वालों से मेरा परिचय कराया. आधे घंटे में मैं क्लब का मेंबर बन गया. यह वह क्लब था, जिस के सामने से गुजरते हुए मैं सोचा करता था कि इस में क्या होता होगा, कैसे कैसे लोग आते होंगे? आज मैं खुद उस के अंदर था.                                                                                                                            

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 1

यह सच है कि अगर मेरे शौहर सुलतान अहमद मुझ से मेरी जान भी मांगते तो मैं देने में एक लमहे की भी देर न करती. उन का छोटे से छोटा काम  भी मैं खुद किया करती थी, हालांकि घर में नौकरनौकरानियां भी थीं. इस में ताज्जुब की कोई बात नहीं थी. अकसर औरतें अपने पतियों की ताबेदारी में खुशी महसूस करती हैं. फिर भी उन्होंने कभी मेरे साथ मुसकरा कर बात नहीं की थी.

दूसरों के सामने तो वह मेरे साथ नरम पड़ जाते थे, मगर तनहाई में या बच्चों के सामने बिलकुल अजनबी से बन जाते थे. ऐसा भी नहीं था कि वह स्वभाव से ऐसे थे. दूसरों के लिए वह बहुत हंसमुख थे. खासतौर पर बच्चों पर तो जान छिड़कते थे. उन के बीच वह बेतकल्लुफ दोस्त बन जाते थे.

उन की हर फरमाइश मुंह से निकलते ही पूरी किया करते, मगर मेरे लिए उन के पास सिवाय बेगानगी के और कुछ नहीं था. मुझे देखते ही सुलतान अहमद के चेहरे पर अजीब सी संजीदगी भरी सख्ती छा जाती. अगर वह बोल रहे होते तो मेरे आते ही खामोश हो जाते. हमारा बेडरूम साझा था, मगर वह वहां देर रात को आते थे. घर में उन का अधिक समय अपने स्टडी रूम में गुजरता था. वह कभी मेरे साथ शौपिंग के लिए नहीं गए.

सुलतान अहमद आला ओहदे पर लगे हुए थे. दफ्तर की तरफ से उन्हें मकान और गाड़ी मिली हुई थी. वह अपनी सारी तनख्वाह अपना खर्च निकाल कर मेरे हवाले कर देते थे और फिर पलट कर यह नहीं पूछते थे कि मैं ने क्या खर्च किया, कहां खर्च किया, क्यों खर्च किया और क्या बचाया.

उन का यह रवैया मैं कोई 1-2 साल से नहीं, बल्कि पिछले 25 सालों से बरदाश्त कर रही थी. एक चौथाई सदी के इस अरसे में उन की तरफ से चाहत का एक भी फूल मेरे आंचल में नहीं डाला गया था. इस सितम के बावजूद वह मेरे सिर का ताज थे. उन की सेवा करना, उन के काम करना मेरी जिंदगी का अहमतरीन मकसद था. सुलतान अहमद भी इतनी बेरुखी के बावजूद अपना हर काम मुझ से ही करवाना पसंद करते थे.

सुबह 8 बजे तक वह और बच्चे घर से निकल जाते थे. उन के जाने के बाद मैं नौकरानी से सफाई करवाती. फिर बर्तन और कपड़े धोने वाली आ जाती. मगर मैं सिर्फ अपने और बच्चों के कपड़े धुलवाती. सुलतान अहमद के कपड़े मैं अपने हाथों से ही धोया करती थी. फिर मैं दोपहर के खाने की तैयारी में लग जाती. बच्चे 1 बजे तक स्कूलकालेज से आ जाते थे और सुलतान अहमद भी दोपहर का खाना घर में ही आ कर खाते थे.

दफ्तर से आमतौर पर वह शाम 6 बजे तक आ जाते थे. फ्रेश हो कर लाउंज में बच्चों के पास बैठ जाते थे. इस दौरान वह उन के मनोविनोद और तालीमी सरगर्मियों के बारे में पूछते. चाय पीते और फिर अपने स्टडी रूम में चले जाते, जहां से वह रात के खाने के वक्त ही निकलते थे. खाने के बाद वह फिर स्टडीरूम में वापस चले जाते और लगभग 11, साढ़े 11 बजे बेडरूम में आते थे.

सुलतान अहमद आर्थिक मामलों में माहिर थे. वह आडिट और एकाउंट के विषय में खास अधिकार रखते थे. इस विषय पर उन की लिखी हुई किताबें बहुत मकबूल थीं. अपने स्टडी रूम में वह लिखनेपढ़ने का काम करते थे. इन सारी बातों से आप ने अंदाजा लगा लिया होगा कि उन के पास मेरे लिए एक लमहा भी नहीं था. यह मैं बता चुकी हूं कि सुलतान अहमद स्वभाव से ऐसे नहीं थे.

तब मुझे इतनी लंबी और कड़ी सजा देने की वजह क्या हो सकती थी, यह बताने के लिए मुझे अपनी जिंदगी की किताब के उन पन्नों को खोलना पड़ेगा, जिन की बातें आज तक किसी पर जाहिर नहीं की थीं. हमारे समाज में जब कोई औलाद लगातार तीसरी लड़की होने के नाते इस दुनिया में आंख खोलती है तो आमतौर पर उसे इस जुर्म की सजा तकरीबन उस सारे अरसे भुगतनी पड़ती है, जब तक वह बाप के घर रहती है.

मगर मेरी खुशकिस्मती थी कि जब बेटे की जगह मैं इस दुनिया में आई तो सब ने बड़ी मोहब्बत से मेरा स्वागत किया. यह मेरी खूबसूरती का करिश्मा था. दादी अम्मा, जो मेरी पैदाइश से पहले उठतेबैठते अम्मी को बेटा पैदा करने की याद दिलाना भूलती नहीं थी, मुझे देख कर खुश हो गईं. उन का कहना था कि हमारी 7 पीढि़यों में कोई इतनी हसीन बच्ची पैदा नहीं हुई.

मेरी पैदाइश के बाद भाइयों का जन्म शुरू हो गया. अब्बू तरक्की पर तरक्की करते गए. खुशहाली के सारे दरवाजे खुल गए. इस तरह मुझे पैदाइशी भाग्यशाली का दर्जा हासिल हो गया. होश संभालते ही मुझे जो पहला अहसास हुआ या फिर मेरे घर वालों ने अहसास दिलाया, वह यह था कि मैं बेहद खूबसूरत हूं.

स्कूल में दाखिले के समय मैं ने उस स्कूल में पढ़ने से साफ इनकार कर दिया, जहां मेरी दोनों बड़ी बहनें तालीम हासिल कर रही थीं. उस की बेरौनक इमारत, मामूली फर्नीचर और सादा लिबास लड़कियां मेरी पसंद से  कतई मेल नहीं खाती थीं. मैं ने अम्मीअब्बू से साफ कह दिया कि मैं उस गंदेसंदे स्कूल में उन गंदीसंदी लड़कियों के साथ हरगिज नहीं पढूंगी. यह सुनते ही दोनों बहनों ने हंगामा खड़ा कर दिया कि क्या हम गंदीसंदी हैं? अम्मी ने भी मेरी बात का बुरा तो माना, लेकिन दरगुजर कर गईं. उन्होंने दोनों बहनों को भी समझा लिया.

‘‘तो क्या तुझे किसी अंगरेजी स्कूल में पढ़ाऊं?’’ उन्होंने दबेदबे लहजे में कहा.

‘‘मैं ने कह दिया कि मैं उस स्कूल में नहीं पढूंगी, बस.’’ मैं ने ठुनक कर कहा.

अब्बू ने मेरी हिमायत की. उन्होंने अम्मी से कहा, ‘‘ठीक तो कह रही है मेरी बेटी. वह स्कूल भला इस के लायक है?’’

‘‘तो फिर दाखिल करा दें किसी बढि़या स्कूल में और दें भारी भरकम फीस.’’ अम्मी भन्ना कर बोलीं.

अब्बू ने भागदौड़ कर के मेरा दाखिला शहर के एक आला इंगलिश मीडियम स्कूल में करा दिया. घर से दूर होने की वजह से मुझे गाड़ी लेने और छोड़ने आया करती थी. स्कूल में मैं ने चुनचुन कर खूबसूरत और नफासतपसंद लड़कियों को सहेली बनाया. टीचरें भी मुझे पसंद करती थीं, जिस का सब से बड़ा फायदा मुझे तालीम हासिल करने में हुआ. मैं अपनी क्लास की बेहतरीन स्टूडेंट्स में गिनी जाती थी.

                                                                                                                                          क्रमशः

आंसुओं का कोई रंग नहीं होता 

शहर से दूर एक छोटे कस्बे को जाने वाली एकलौती टे्रन आधी दूरी तय करने के बाद पिछले 2 घंटे से इंजन में खराबी की वजह से रुकी हुई थी. खून जमा देने वाली सर्दी पड़ रही थी. टे्रन के डिब्बे में मौजूद एकमात्र यात्री को बंद खिड़की के शीशे से नाक टिकाए नीचे बेचैनी से टहलते कुछ यात्रियों को देखते देख रश्मि ने मन ही मन सोचा कि अमित भी घर में इसी तरह बेचैनी से टहलते हुए उस का इंतजार कर रहा होगा.

इंसपेक्टर अमित रश्मि का पति था. दोनों का विवाह 5 साल पहले हुआ था. शादी के 3 साल बाद मीना का जन्म हुआ था, जो अब 2 साल की थी और कंबल में लिपटी इस वक्त रश्मि की गोद में बड़े आराम से सो रही थी. एक महीने शहर में अपनी मां के पास रहने के बाद रश्मि आज दोपहर ही कस्बे के लिए रवाना हुई थी. उस ने फोन से अपने आने की सूचना अमित को दे दी थी.

रश्मि का खयाल था कि वह सूरज डूबने से पहले घर पहुंच जाएगी और शाम की चाय अमित के साथ पिएगी. लेकिन टे्रन के इंजन में आई खराबी की वजह से रास्ते में ही शाम हो गई थी. अब कड़ाके की इस ठंड में इंजन के ठीक होने या फिर शहर से दूसरा इंजन आने का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था.

रश्मि को मालूम था कि अमित उस से और अपनी बेटी मीना से जुनून की हद तक प्यार करता है. यह उस की मोहब्बत ही थी कि रश्मि उस की बीवी बन गई. बावजूद इस के कि स्वयं उस ने अमित से मोहब्बत नहीं की थी. अमित ने उसे एक होली मिलन समारोह में देखा था और उस की मां से मिल कर उसे अपनी पत्नी बनाने का प्रस्ताव रख दिया था. मम्मी ने न जाने अमित में ऐसा क्या देखा था कि उन्होंने उस से पूछना भी जरूरी नहीं समझा और हां कर दी. रश्मि ने भी अपनी इच्छाओं के विपरीत मम्मी की हां को अपनी पसंद बना लिया, क्योंकि वह मम्मी को हमेशा खुश देखना चाहती थी.

अमित की पत्नी बनने से पहले रश्मि के दिमाग में पल भर के लिए मोहित का विचार आया था. साधारण घर का मोहित भले ही एक छोटे से जनरल स्टोर पर सेल्समैन की नौकरी करता था, लेकिन उस के कदमों में सारे संसार की खुशियां डाल देना चाहता था. रश्मि भले ही मोहित से प्रेम करती थी, लेकिन मां की वजह से उस ने मोहित का मोह छोड़ दिया था. यहां तक कि उसे अपने विवाह की खबर तक भी नहीं दी थी.

शादी के बहुत दिनों बाद तक रश्मि को अमित के चेहरे में मोहित नजर आता रहा. लेकिन फिर समय के साथ धीरेधीरे अमित जैसे उस का वजूद बन गया. अब उस के सामने मोहित की नहीं बल्कि टूट कर प्यार करने वाले पति की तसवीर थी.

रश्मि ने अमित को दिल से कुबूल करना शुरू कर दिया था. और फिर उस की जिंदगी में बसंत के आगमन की तरह मीना का प्रवेश हुआ तो जैसे सब कुछ ही बदल गया. कस्बे में मौजूद एक मकान उन का घर बन गया और उस घर के आंगन में अमित, रश्मि और मीना के प्यार का गुलशन खिल गया.

शहर से कस्बे में जाने की वजह इंसपेक्टर अमित का तबादला था. कस्बे में उस का तबादला वहां बढ़ते हुए अपराधों और इंसपेक्टर अमित के अच्छे रिकौर्ड की वजह से हुआ था. रश्मि ने पिछला जो एक महीना शहर में अपनी मां के पास गुजारा था, काफी हद तक उस की वजह भी कस्बे में होने वाली आपराधिक गतिविधियां और इंसपेक्टर अमित की बढ़ी हुई जिम्मेदारी थी.

रश्मि हर हालत में अमित के साथ रहने की इच्छुक थी, लेकिन उस के मजबूर करने पर उसे शहर में मां के पास रहना पड़ा था. अब भी अमित ने उसे तब आने की इजाजत दी थी, जब उस ने आने के लिए फोन पर फोन किए.

गाड़ी अभी भी अपनी जगह जमी खड़ी थी. अचानक मीना नींद से जाग कर रोने लगी. तमाम कोशिशों के बावजूद वह रोए जा रही थी. रश्मि की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. दरअसल वह दूरी को ध्यान में रख कर मीना के लिए जो दूध लाई थी, वह खत्म हो चुका था. उसे क्या पता था कि गाड़ी खराब हो कर 2 घंटे तक रास्ते में खड़ी रहेगी.

मीना को चुप कराने की कोशिश करते हुए रश्मि ने बेचैनी से ट्रेन के खाली डिब्बे में नजर दौड़ाई. पूरे डिब्बे में या तो खाली सीटें नजर आ रही थीं या फिर बंद खिड़कियों के शीशों के पार गर्म कपड़ों में लिपटे बेचैनी से टहलते कुछ यात्री.

मीना को चुप कराने की सारी कोशिशों में नाकाम होने के बाद रश्मि ने कुछ सोच कर उसे अच्छी तरह कंबल में लपेटते हुए खिड़की का शीशा उठा दिया. इस के साथ ही डिब्बे में सर्दी की एक लहर दाखिल हुई. रश्मि ने दूर खड़े एक आदमी को बुलाने के लिए हाथ से इशारा किया.

वह आदमी काफी देर तक रश्मि के इशारे का मतलब नहीं समझ पाया और अपनी जगह खड़ा रहा. फिर ओवर कोट का कालर ठीक कर के दोनों हाथों को आपस में रगड़ते हुए छोटेछोटे कदमों से रश्मि की ओर बढ़ा. वह पास आया तो अचानक ठंडे वातावरण में गरमी आ गई. वह मोहित था. उसे देख रश्मि जहां हक्कीबक्की सी रह गई थी, वहीं मोहित की हालत भी किसी गूंगे जैसी हो गई.

जब शहर से आया हुआ दूसरा इंजन टे्रन को ले कर रवाना हुआ तो रश्मि के डिब्बे में बिलकुल खामोशी छाई थी. इस खामोशी में चार आंखें लगातार एकदूसरे को घूरे जा रही थीं. ये आंखें थीं रश्मि और मोहित की. दूध पीने के बाद मीना सो गई थी. उस के लिए दूध का इंतजाम मोहित ने किया था. वह टे्रन के दूसरे डिब्बे से मीना के लिए केवल दूध ही नहीं, बल्कि रश्मि के लिए भी खानेपीने की कुछ चीजें ले आया था.

‘‘रश्मि कैसी हो तुम?’’ मोहित ने पूछा तो रश्मि ने जवाब में उसे पिछले 5 सालों की पूरी कहानी सुना दी. उस की कहानी सुनते वक्त मोहित सिर झुकाए बैठा रहा.

रश्मि खामोश हुई तो मोहित ने उदास और भीगी आंखें उठाते हुए कहा, ‘‘मैं ने बहुत इंतजार किया, बहुत तलाश किया. लेकिन तुम ने कभी अपने घर का पता बताने की जरूरत ही नहीं समझी. ऐसे में मैं कितने घरों के दरवाजे खटखटाता? मैं ने तो बस तुम्हारे इंतजार को ही अपनी जिंदगी बना लिया.’’

मोहित थोड़ी देर चुप बैठा कुछ सोचता रहा. फिर अचानक उस ने रश्मि से पूछा, ‘‘अमित कैसा पति है? क्या वह तुम से उतना ही प्रेम करता है, जितना मैं ने किया था?’’

‘‘अमित बहुत अच्छा और प्यारा इंसान है, एक आइडियल पति. शायद वह मुझे तुम से भी ज्यादा मोहब्बत करता है. इसीलिए मैं तुम्हें भूलने में कामयाब रही.’’ रश्मि ने मोहित से नजरें चुराते हुए जवाब दिया तो दोनों के बीच एक बार फिर पूरी तरह खामोशी छा गई. ऐसा लगा जैसे दोनों बात करना भूल गए हों.

‘‘मोहित, तुम ने शादी कर ली?’’ काफी देर बाद रश्मि ने मीना के माथे को चूमते हुए सवाल किया.

‘‘नहीं, मैं शादी तो तब करता जब मुझे वह लड़की मिलती जो मेरे दिलोदिमाग में बसी थी, जिस से मुझे मोहब्बत थी. आज तक उसी लड़की को तलाश कर रहा था. उस की निशानी के तौर पर मेरे पास एक फोटो के अलावा कुछ नहीं था. मोहित ने सिर झुकाएझुकाए टूटे शब्दों में अपनी बात खत्म की और जेब से पर्स निकाल कर रश्मि के सामने खोल दिया.

पर्स के अंदर दाईं ओर लगे प्लास्टिक कवर के नीचे रश्मि की 5 साल पुरानी मुसकराती हुई फोटो लगी थी. उस की यह फोटो मोहित ने एक पार्क में खींची थी. तब जब रश्मि उस से मोहब्बत करती थी. लेकिन अब रश्मि उस वक्त की रश्मि चौहान नहीं, बल्कि अमित की पत्नी थी, एक बेटी की मां. एक घर की मालकिन.’’

‘‘यह फोटो तुम ने अब तक संभाल कर रख रखी है?’’ रश्मि ने प्रश्न किया तो मोहित ने भरे मन से जवाब में कहा, ‘‘सिर्फ फोटो ही नहीं, मैं ने अपनी मोहब्बत को भी बचा कर रखा है. लेकिन अब दिल टूटने का वक्त आ गया है.’’

मोहित ने आंखों में उतर आए आंसुओं को छिपाते हुए खिड़की का शीशा उठा दिया. ठंडी हवा का एक तेज झोंका डिब्बे में दाखिल हुआ, जिस से रश्मि कंपकंपा कर रह गई.

‘‘इसे बंद कर दो, प्लीज. ठंड बहुत है, मेरी बेटी बीमार हो जाएगी.’’ रश्मि ने कहा तो मोहित का हाथ हिला और झटके के साथ शीशा दोबारा खिड़की पर आ गिरा. तभी रश्मि ने देखा कि मोहित की अंगुली से खून बह रहा है. उस की अंगुली फे्रम के नीचे आ गई थी.

‘‘लो इसे जख्म पर बांध लो.’’ रश्मि ने अपना रूमाल मोहित की ओर बढ़ाते हुए कहा. मोहित ने रूमाल जख्म पर बांधने के बजाय अपनी जेब में रख लिया और फिर अपने लाल और गर्म खून से डिब्बे की दीवार पर जगहजगह रश्मि लिखते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारने के बहुत से ख्वाब देखे थे, लेकिन इन ख्वाबों की ताबीर के बीच मेरी हैसियत आड़े आ रही थी. मैं ने यह सोच कर बहुत कुछ हासिल किया कि तुम मुझे मिलोगी. लेकिन तुम नहीं मिलीं. तुम्हारे बिना सब कुछ बेकार है, रश्मि.’’

‘‘जब जिंदगी ने तुम्हें सब कुछ दे ही दिया है तो फिर खुशियों से मुंह क्यों मोड़ रहे हो? तुम्हें मुझ से अच्छी हजारों लड़कियां मिल जाएंगी. शादी कर लो मोहित और खुश रहो.’’ रश्मि ने मोहित की बात काटते हुए सलाह दी. डिब्बे में एक बार फिर खामोशी छा गई. इस खामोशी को मीना की आवाज ने तोड़ा. वह एक बार फिर जाग गई थी. मीना को गोद में उठा कर मोहित बहुत देर तक प्यार करता रहा.

फिर रश्मि को उस की बेटी वापस करते हुए बोला, ‘‘मुझे तुम से मोहब्बत थी, है और रहेगी. मैं तुम्हारी बेटी से भी मोहब्बत करने लगा हूं और शायद अमित से भी. मेरा खयाल है, हमें जिस से मोहब्बत हो उस से जुड़ी हर चीज, हर व्यक्ति से मोहब्बत करनी चाहिए. क्या तुम एक बार मुझे अपने माथे पर चुंबन लेने की इजाजत दोगी?’’

रश्मि ने आंखें बंद कर के गरदन झुका दी तो मोहित माथे का चुंबन ले कर मीना को प्यार करने लगा. जबकि रश्मि अपनी आंखों में उतर आए आंसुओं को पीने की कोशिश कर रही थी. ट्रेन धीमी होने लगी थी, स्टेशन आने वाला था, तभी मोहित झटके से डिब्बे के बाहर चला गया.

स्टेशन पर इंसपेक्टर अमित बेचैनी से रश्मि का इंतजार कर रहा था. वह जैसे ही ट्रेन से उतरी, अमित ने आगे बढ़ कर उस का हाथ थाम लिया. वह बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुए बोला, ‘‘जानेमन, मैं तुम्हारे और मीना के लिए बहुत चिंतित था. बताओ, यात्रा कैसी रही?’’

अमित के सवाल पर रश्मि अचानक सिसकियां ले कर रोने लगी. अमित ने उसे बड़े प्यार से चुप कराया. वह यही समझ रहा था कि उस की आंखों में महीने भर विछोह का गम सिमटा हुआ है, जो आंसू बन कर बह रहा है. वह पत्नी और बेटी को घर ले आया.

अमित सुबह से इमरजेंसी ड्यूटी पर गया हुआ था और रात के 12 बजे तक नहीं लौटा था. उस की गैरमौजूदगी में रश्मि पूरे समय मोहित के बारे में सोचती रही, जो उस के साथ ही कस्बे तक आया था. उसे यह डर सता रहा था कि अगर अमित को मोहित के बारे में पता चल गया तो कहीं कोई ऊंचनीच वाली बात न हो जाए.

हालांकि मोहित ने घर आने या आइंदा मुलाकात के बारे में कुछ नहीं कहा था. वह तो रश्मि का माथा चूमने के बाद देर तक खामोशी से बैठा मीना को प्यार करता रहा था. रश्मि ने कई बार उस से बात करनी चाही थी, लेकिन उस की खामोशी नहीं टूटी थी.

जब ट्रेन कस्बे के स्टेशन वाले प्लेटफार्म में दाखिल हुई थी तो उस ने ट्रेन के रुकने से पहले ही हमेशा खुश रहने की दुआ देते हुए छलांग लगा दी थी. हालांकि बात वहीं खत्म हो गई थी, लेकिन रश्मि तरहतरह के अंदेशों से घिरी अमित का इंतजार कर रही थी.

कालबेल की आवाज सुन कर रश्मि हड़बड़ा कर उठ बैठी. लाइट जला कर देखा तो घड़ी रात के डेढ़ बजा रही थी. वह दरवाजे पर पहुंची, आने वाला अमित ही था. अमित ने अंदर दाखिल होते ही रश्मि को हाथों में उठा लिया और फिर सारे कमरे में ठहाकों के साथ चक्कर लगाने के बाद उसे जमीन पर उतारते हुए बोला, ‘‘आज मैं बहुत खुश हूं रश्मि.’’

‘‘प्रमोशन हो गया क्या?’’ रश्मि ने मुसकराते हुए पूछा. वह जानती थी, अमित को काफी दिनों से प्रमोशन का इंतजार था.

‘‘प्रमोशन हुआ नहीं, आज एक बहुत पुराना दुश्मन हाथ आ गया. बहुत खतरनाक बदमाश था. इस से पहले भी उसे मैं ने ही गिरफ्तार किया था, लेकिन वह पुलिस की हिरासत से फरार हो गया था. बड़ेबड़े औफिसर उस से डरते थे.

‘‘फरार होने के बाद उस ने मुझे एक खत लिखा था, जिस में उस ने धमकी दी थी कि वह मेरे पूरे परिवार की हत्या कर देगा. इसीलिए मैं ने तुम्हें तुम्हारी मां के पास शहर भेज दिया था. तुम वापस आ गईं तो मैं बहुत परेशान था. मुझे अपनी जान की परवाह नहीं थी. चिंता सिर्फ तुम्हारी और मीना की थी. तुम दोनों मुझे अपनी जिंदगी से ज्यादा अजीज हो.’’ अमित मीना को प्यार से चूमने के बाद शरारत वाले अंदाज में रश्मि की ओर बढ़ा, लेकिन वह हंसते हुए दूर हो गई.

‘‘मेरा नाइट सूट लाओ, मैं सोने से पहले नहाना चाहता हूं. बहुत थक गया हूं.’’ अमित ने अंगड़ाई लेते हुए गरदन को झटका दे कर कहा.

‘‘ओ.के. अभी लाई.’’ रश्मि मुसकराती हुई अंदर अलमारी की तरफ जाने लगी.

‘‘सुनो.’’ अमित की आवाज पर रश्मि के उठे हुए कदम रुक गए.

‘‘पहले पूरी बात तो सुन लो. आज उस खतरनाक बदमाश से सामना हो गया. मेरा खयाल था पहले की तरह एक बार फिर उस से सख्त मुकाबला होगा. पहले भी मैं ने उसे अपनी जान खतरे में डाल कर कई साथियों की मदद से पकड़ा था. लेकिन आज वह मेरी गोली का निशाना बन कर गिरा और मर गया.

‘‘अगर न मरता तो शायद हम तीनों को मार देता या फिर मुझे सारी जिंदगी तड़पने के लिए छोड़ कर तुम्हें और मीना को मार डालता. कमाल का निशानेबाज था, आवाज पर गोली चलाना जानता था. लेकिन आज उस की मौत आ गई थी, इसलिए पिस्तौल भी इस्तेमाल नहीं कर सका. गोलियों से भरी पिस्तौल उस की जेब में ही रह गई.’’

‘‘अगर उस से मुकाबले में तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं भी मर जाती.’’ रश्मि ने रोते हुए कहा.

‘‘अरे पागल मुझे क्या होना था, अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं क्या करता? वह तो तुम्हें मारना चाहता था. हमारे पुलिस रिकौर्ड के हिसाब से वह खतरनाक अपराधी था. हर काम पूरी योजना बना कर करता था. तुम्हारी हत्या की योजना भी ले कर आया तो सारी जानकारी के साथ.

‘‘हैरत तो यह है कि उस बदमाश ने तुम्हारी एक पुरानी फोटो भी कहीं से प्राप्त कर ली थी. उस की कमीज की जेब से खून से सने एक लेडीज रूमाल में लिपटी यह फोटो मिली है, यह देखो.’’

खून से सनी उस फोटो में रश्मि एक पार्क के किसी कोने में खड़ी मुसकरा रही थी. फोटो देख कर रश्मि एक बार फिर सिसकियों के साथ रोने लगी. उस की वह फोटो उसी रूमाल में लिपटी थी, जो उस ने मोहित को ट्रेन में हाथ पर बांधने के लिए दी थी.

अमित समझ नहीं सका कि रश्मि की आंखों में खुशी की वजह से आंसू आए हैं या किसी और वजह से. पति की जिंदगी के लिए या अपनी जिंदगी के लिए. क्योंकि आंसूओं का न तो कोई रंग होता है और न फितरत.

अजीब फलसफा जिंदगी का

विदेश से आए उस लिफाफे को देख कर मुझे हैरानी हुई थी. क्योंकि मेरा अपना कोई ऐसा विदेश में नहीं रहता था, जो मुझे  चिट्ठी लिखता. लेकिन उस लिफाफे पर मेरा नामपता लिखा था. इस का मतलब लिफाफा चाहे जिस ने भी भेजा था, मेरे लिए ही भेजा गया था. लिफाफे पर भेजने वाले का नाम शहजाद मलिक लिखा था. दिमाग पर काफी जोर दिया, फिर भी शहजाद मलिक का नाम याद नहीं आया.

उत्सुकतावश मैं ने उसे खोला तो उस में से 2 सुंदर फोटो निकले. उन में से एक 2 नन्हेमुन्ने बच्चों की फोटो थी और दूसरी फोटो एक आदमी व एक औरत की. पहली नजर में मैं उन्हें पहचान नहीं पाया. तसवीरों के साथ एक चिट्ठी भी थी. मैं ने सरसरी नजर से उसे पढ़ा तो याद आया, ‘अरे यह तो शादा ने भेजी है. लेकिन वह तो कुवैत में रहता था, कनाडा कब चला गया.’

शहजाद उर्फ शादा की फोटो देख कर मुझे उस का अतीत याद आने लगा. लगभग 12 साल पहले मैं उस से मियांवाली की मशहूर सैंट्रल जेल की काल कोठरी में मिला था, जहां वह एक खूंख्वार अपराधी के रूप में बंद था. पूरी जेल में उस की दहशत थी. जेल में कैदियों का मनोवैज्ञानिक इलाज भी किया जाता था. शादे के इलाज के लिए भी तमाम प्रयोग किए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह पहले की ही तरह झगड़ाफसाद करता रहा. उस के इस झगड़े फसाद से कैदी तो आतंकित रहते ही थे, जेल के कर्मचारी भी डरते थे. यही वजह थी कि उसे काल कोठरी में अकेला छोड़ दिया गया था. तनहाई में रहतेरहते वह इंसान से हैवान बन गया था.

मैं ने जेल का चार्ज संभाला तो उस के अहाते में गया. मुझे उस के पास जाते देख मेरे डिप्टी जेलर ने कहा, ‘‘साहब, यहीं से लौट चलें. आगे जाना ठीक नहीं है.’’

‘‘क्यों? जब यहां तक आ गया हूं तो उन कैदियों से भी मिल लूं.’’ कहते हुए मैं ने डिप्टी जेलर ने साथ चल रहे अन्य कर्मचारियों की ओर देखा. सभी सहमे हुए से थे. वे आपस में खुसरपुसर करने लगे. तभी उन में से एक हवलदार ने कहा, ‘‘सर, उस में शादा बंद है.’’

‘‘शादा भी आदमी ही है, कोई खूंख्वार जानवर तो नहीं.’’ यह कह कर मैं आगे बढ़ा तो साथ चल रहे स्टाफ को मजबूरन मेरे साथ चलना पड़ा. जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, एक कोेठरी  से आवाज आई, ‘‘ओए…’’

‘ओए’ एक तरह से चेतावनी थी. इस का मतलब था, जो भी हो, यहां से वापस चले जाओ, वरना ठीक नहीं होगा. मैं बिना डरे आगे बढ़ता रहा. मेरे साथ लाठी लिए सिपाही भी थे. जब मैं शादा की कोठरी के सामने पहुंचा तो वह सख्त लहजे में बोला, ‘‘तो यह है नया साहब… पहले ही दिन मुझ से टक्कर लेने आ गया.’’

मैं पुराना जेलर था. न जाने कितने बिगड़े हुए कैदियों से मेरा सामना हो चुका था. इसलिए मैं मुसकराते हुए उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘नहीं शादे… मैं तुझ से टक्कर लेने नहीं, मिलने आया हूं.’’

‘‘मिलने आए हो… हा…हा…हा…’’ शादा मेरी खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज में हंसा.

‘‘शादे मैं तुम से विस्तार से बातें करना चाहता हूं. क्या तुम मेरे औफिस में आ सकते हो?’’

‘‘साहब, बातें करने के लिए इन लाठियों की भी जरूरत पड़ती है क्या? बातचीत तो मुंह से होती है, लाठियों से नहीं.’’

मैं समझ गया कि आदमी पढ़ालिखा है, लेकिन हालात ने इसे जंगली बना दिया है. सच भी है, हालात आदमी को शैतान और शैतान को भलामानुष बना देते हैं. शायद ऐसे ही किसी हालात का मारा यह भी है. मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम से वादा करता हूं कि औफिस में हम दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं होगा,’’ इस के बाद मैं ने अपने सफेद बालों की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पिता के समान हूं.’’

पता नहीं क्यों पिता का नाम सुन कर उस के माथे पर बल पड़ गए.  उस ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मेरी विनम्रता की वजह से वह चुप रह गया था.   थोड़ी देर बाद वह मेरे औफिस में आया. औफिस में मैं ने जिस शादे को देखा, वह जेल में बंद शादे से एकदम अलग था. वह 24-25 साल का जवान लड़का था, जो इस जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था. जब मैं ने उस से प्यार से बात की तो उस के अंदर का इंसान जाग गया.

शादा ने जो बताया उस के अनुसार उस का बाप इलाके का नंबरदार था. काफी जमीनें थीं उस के पास. रहने के लिए गांव के बाहर हवेली जैसा मकान था. काम करने के लिए नौकर थे. तब लोग उसे शहजादा कहते थे. उस ने इंटर अच्छे नंबरों से पास किया तो उस का दाखिला इंजीनियरिंग में हो गया. जब इंजीनियरिंग का उस का आखिरी साल था, तो उस की मां मर गई. मां के मरने के कुछ दिनों बाद ही उस के बाप ने पास के गांव की एक औरत से शादी कर ली.

उस औरत के पहले से ही 2 जवान बेटे थे, जो निठल्ले थे. वे दिन भर आवारों की तरह घूमते रहते थे. पढ़ाईलिखाई से उन्हें कोई मतलब नहीं था. शादे की सौतेली मां चाहती थी कि उस के बेटों की तरह शादा भी न पढ़ेलिखे. उस ने शादे के बाप को भड़काना शुरू किया, ‘वह जवान हो चुका है. चाहे तो अपने आप कमा कर पढ़ाई कर सकता है.’

बाप ने सौतेली मां की बात मानी. शादा ने पिता से बहुत मिन्नतें कीं कि उस का पढ़ाई का यह आखिरी साल है, इसलिए उस की पढ़ाई का खर्च उठाते रहें. पढ़ाई के बाद नौकरी लग जाएगी तो वह उन के पैसे वापस कर देगा. लेकिन उस के बाप ने उस की एक नहीं सुनी और पढ़ाई का खर्च तो देना बंद कर ही कर दिया, उसे जमीनजायदाद से भी बेदखल कर दिया. इस के बाद शादे के सभी रास्ते बंद हो गए. उस के पास कुछ भी नहीं रह गया. पढ़ाई की छोड़ो, उसे खानेपहनने तक के लाले पड़ गए. उस की पढ़ाई अधूरी रह गई. अपने ऊपर हुए अत्याचार से उसे इतना गुस्सा आया कि उसे अत्याचार करने वाले की हत्या कर देना ही ठीक लगा. उस ने यही किया भी. उस ने अपने बाप की हत्या कर दी.

शादा ने खुद अपराध स्वीकार किया था, इसलिए बचने का कोई सवाल ही नहीं था. सारे सुबूत और गवाह उस के खिलाफ थे, इसलिए अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुना दी थी. चूंकि वह जवान था, इसलिए अदालत ने उस के साथ थोड़ी नरमी बरती थी. जेल में वह अपने साथी कैदियों को डराधमका कर अपने आप को बड़ा साबित करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अंदर से वह अभी भी शहजाद था.

कुछ दिनों बाद मैं ने शहजाद से कहा कि अगर वह चाहे तो अपनी इंजीनियरिंग की तैयारी जेल में रह कर कर सकता है. मेरी इस बात पर वह मुझे हैरानी से देखने लगा. उसे मेरे चेहरे पर हमदर्दी की झलक दिखाई दी तो उस ने पूछा, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘मैं ने इंजीनियरिंग कालेज के प्रिंसिपल से बात की है. उन्होंने मदद का वादा किया है. उन्होंने तुम्हारे लिए इस संबंध में विशेष रूप से गवर्नर को लिखा है. उम्मीद है, वहां से स्पेशल केस के तौर पर तुम्हारे लिए मंजूरी मिल जाएगी.’’

मेरी बात सुन कर वह खुश हुआ. मैं ने अपने स्तर पर काररवाई की. नतीजतन जिस कोठरी में कभी गालियां गूंजती थी और लाठियां चलती थीं, अब वही कोठरी एक विद्यार्थी का कमरा बन गई थी. जेल के वैलफेयर फंड से उस के लिए किताबें मंगवा दी गई थीं. उस की ड्यूटी जेल में लगी मशीनों पर लगा दी गई थी.

पुलिस की देखरेख में वह कालेज भी जाता रहा. आखिर उस ने फाइनल परीक्षा दी. तमाम परेशानियों के बावजूद उस की प्रथम पोजीशन आई. जो शहजाद कभी जेल में आतंक का पर्याय था और खौफनाक कैदी के रूप में मशहूर था, अब वही शहजाद जेल का सब से अच्छा और मेहनती इंसान बन गया था. संयोग से उसी बीच जेल मंत्री जेल का निरीक्षण करने आए तो शहजाद ने उन के प्रति अभिनंदन पत्र प्रस्तुत करने के बाद मेरी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, जेलर फीरोज अली खां साहब की वजह से हूं. इन्होंने मुझे बहुत अच्छा रास्ता दिखाया.’’

मैं ने जेल मंत्री से सिफारिश की कि शहजाद की सजा कम कर दी जाए. जेल मंत्री की सिफारिश पर कुछ दिनों बाद शहजाद जेल से रिहा हो गया.

समय गुजरता रहा. कुछ दिनों बाद मैं अपनी नौकरी से रिटायर हो गया तो शहर से जुड़े एक गांव में जमीन खरीद कर मैं ने अपना एक छोटा सा फार्महाऊस बना लिया. मैं खेतों में थोड़ाबहुत काम करने के साथ पढ़ाईलिखाई कर के समय बिताने लगा. एक दिन मैं खेतों में काम कर रहा था, तभी घबराया हुआ शहजाद मेरे पास आया. उस के चेहरे पर कोठरी वाले शादे की परछाइयां झलक रही थीं. मैं ने उसे बिठा कर पानी पिलाया. उस के बाद पूछा, ‘‘समस्या क्या है, जो तुम इतना घबराए हुए हो?’’

‘‘मैं एक साल से कोशिश कर रहा हूं कि गांव की जमीन से मेरे हिस्से की कुछ जमीन मुझे मिल जाए तो मैं उसे बेच कर अपना वर्कशौप खोल लूं. पंचायत भी बुलाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मेरी सौतेली मां मुझे मेरी हत्या करवाने की धमकी दे रही है. उस ने अपने बेटों को मेरी हत्या के लिए मेरे पीछे लगा भी दिया है.’’

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उस से क्या कहूं. काफी सोचविचार कर मैं ने कहा, ‘‘बेटा शहजाद, तुम पढे़लिखे हो, तुम्हारे लिए काम की कोई कमी नहीं है, मैं चाहता हूं, तुम यह देश छोड़ कर कुवैत चले जाओ. वहां तुम्हें अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘यह सब इतना आसान है क्या? मेरे पास तो पैसा भी नहीं है.’’ वह बोला.

‘‘यह तुम मेरे ऊपर छोड़ दो. पासपोर्ट और नौकरी की व्यवस्था मैं करवाऊंगा. वहां जाने तक तुम किसी अच्छे वर्कशौप में नौकरी कर के अनुभव प्राप्त कर लो.’’

मैं ने शहजाद का पासपोर्ट अपने एक जानने वाले की मदद से बनवा दिया. कुवैत में मेरी जानपहचान के तमाम लोग थे, उन की मदद से मैं ने उस के लिए वहां नौकरी की व्यवस्था करवा दी. शहजाद कुवैत चला गया. उस की पढ़ाई, अनुभव और व्यवहार काम आया और उसे वहां एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई. कई सालों तक उस की चिट्ठियां आती रहीं. उस ने 2-3 बार ड्राफ्ट भी भेजे. लेकिन जब मैं ने उसे डांट कर ड्राफ्ट भेजने से मना किया तो उस ने ड्राफ्ट भेजने बंद कर दिए. उस ने अपने आखिरी खत में लिखा था कि वह कुवैत में बहुत मजे से है और अब शादी करने के बारे में सोच रहा है.

इस के बाद शहजाद का कोई खत नहीं आया. जब खत आने बंद हो गए तो उस के बारे में कोई अतापता नहीं चला. आज आने वाला खत उस के जीवन का नया मोड़ था, जिस में उस की पत्नी और बच्चे भी शामिल थे. उस ने लिखा था, ‘‘सरजी… आप को शायद आप का सिरफिरा बेटा न याद हो, लेकिन मैं आप को हमेशा याद रखता हूं. मेरी समझ में नहीं आता कि मैं आप के उपकारों का बदला कैसे चुकाऊं? अगर आप नहीं होते तो मैं आत्महत्या कर लेता या फिर किसी की हत्या कर के फांसी चढ़ जाता. आप को जान कर खुशी होगी कि आप का यह बेटा कनाडा में इंजीनियर है और खूब मजे की जिंदगी जी रहा है.’’

उस ने आगे लिखा था, ‘‘कुवैत में मैं ने एक पाकिस्तानी लड़की से शादी कर ली थी. उस के बाद मैं कनाडा आ गया था. मेरे दोनों बच्चे स्कूल जाते हैं, जिन की फोटो आप को भेज रहा हूं. ये आप के पोतापोती हैं. दूसरी फोटो मेरी और मेरी पत्नी की है. हम भले ही कनाडा मे रहते हैं, लेकिन मैं मियांवाली का रहने वाला हूं, इसलिए घर के बाहर भी मियांवाली हाऊस लिखवा रखा है. हमारा रहनसहन भी अपने देश जैसा ही है. हम विदेशी रंग में नहीं रंगे हैं.

‘‘मैं ने अपनी पत्नी को भी आप के बारे में सब बता दिया है. वह आप के बारे में जान कर बहुत खुश हुई और अपने ससुर से मिलने के लिए बेचैन है. इसलिए अब मेरी आप से एक विनती है, जिसे आप ठुकराएंगे नहीं. आप कनाडा आ जाइए. यहां आप की बहू और बच्चे आप का इंतजार कर रहे हैं. मैं ने आप के टिकट और वीजा का इंतजाम कर दिया है. कुछ दिनों में वे आप को मिल जाएंगे. यह आप की मोहब्बत का कर्ज है. खत का जवाब जरूर देंगे.’’

खत पढ़ कर मैं सोचने लगा कि हालात आदमी को शैतान तो शैतान को भलामानुष बना देते हैं. इस का सब से बड़ा उदाहरण शहजाद है.

कुछ दिनों बाद मैं कनाडा की यात्रा पर था. पूरे रास्ते मैं शहजाद, बहू और बच्चों के बारे में सोचता रहा. क्योंकि जिंदगी के आखिरी दिनों में यह मेरे लिए कुदरत का दिया इनाम था, जिस के लिए मैं सारी जिंदगी तरसता रहा था. इस की वजह यह थी कि मैं ने शादी नहीं की थी.

प्रस्तुति : एस.एम. खान

Top 11 Crime Stories In Hindi – रहस्यमयी और सनसनीखेज क्राइम स्टोरीज

Top 11 Crime stories In Hindi : समाज में अपराध दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं फिर चाहे वो परिवार हो या प्यार. लोगों में गुस्सा और अहंकार बढ़ता ही जा रहा है जिसकी वजह से लोग किसी की जान लेने से भी नहीं डरते. ऐसे में हम आपके लिए लाये हैं कुछ ऐसी ही क्राइम स्टोरीज (Crime Stories) जिन को पढ़कर आप भी चौंक जायेंगे कि कैसे हमारा समाज अपराध के शिकंजे में कसता जा रहा है. यहां आप पढ़ सकते हैं हमारी टॉप हिंदी क्राइम स्टोरीज. 

1. हवस का नतीजा: राज ने भाभी के साथ क्या किया

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

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2. जान लेने वाली पत्नियां

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महज 7 महीने के छोटे से वैवाहिक जीवन में कुसुम ने 14-15 बार मायके की ओर दौड़ लगाई थी. जब वह ससुराल में होती थी तो उस की मां रातदिन अपने नाती रिंकू के रोने की बात फोन पर बता कर उस को ससुराल में नहीं रहने देती थी. कुसुम को उस की मां हमेशा अपनी तबीयत का दुखड़ा बता कर बुलाती थी. कुसुम की गोद में रिंकू को डाल कर वह उस का भावनात्मक शोषण करती थी. इस तरह से मां ने एक पल भी कुसुम को ससुराल में चैन से अपने पति विनीत के साथ नहीं रहने दिया. इस से विनीत डिप्रैशन में चले गया तो मां ने नई चाल चली. वह कुसुम को सिखाने लगी कि तेरा आदमी नामर्द है, उसे छोड़ दे.

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3. मोहिनी : कौन सी गलती ने बर्बाद कर दिया परिवार

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कन्हैया सावधानी से उस के दरवाजे तक आ गया और वहां से उसे अपने आंगन तक ले जाने के लिए तो मोहिनी वहां मौजूद थी ही. तकरीबन 2 घंटे तक कन्हैया वहां रह कर मौजमजा लेता रहा, फिर जैसे आया था वैसे ही लौट गया. ठीक उसी समय अलग हुए बराबर के घर में सलोनी अपने छोटे भाई रमुआ के साथ पशुओं को खूंटे से बांध रही थी. आज रमुआ अपने साथ दोपहर का खाना नहीं ले जा सका था, इसी वजह से वह सवेरे ही पशुओं को हांक लाया था.

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4. पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 1

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कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

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5. पैसों के लालच में बुझ गई ‘रोशनी’

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मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए. रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए.

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6. नादान मोहब्बत का नतीजा 

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इरफान देखने में अच्छाखासा था और ठीकठाक कमाई भी कर रहा था, केवल एक ही बात थी कि वह मुसलमान था. पर आज के जमाने में तमाम अंतरजातीय विवाह होते हैं. यह सब सोच कर शिल्पी ने इरफान की मोहब्बत स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद वह अकसर उस के साथ घूमनेफिरने लगी. मोहल्ले वालों ने जब शिल्पी को इरफान के साथ देखा तो तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने रामअवतार को बताया कि वह अपनी बेटी को संभाले. वह एक मुसलमान लड़के के साथ घूमतीफिरती है. कहीं उस की वजह से कोई बवाल न हो जाए.

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7. मोहब्बत की परिणति : क्या कहानी है इस परिवार की

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सरेआम हुई इस वारदात ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी थी. गोली चलाने वाले कौन थे, किस तरफ भागे थे, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी खंगाले, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस ने पड़ोसियों से बात की तो उन्होंने बताया कि हम ने गोलियां चलने की आवाज तो नहीं सुनी अलबत्ता मार दिया…मार दिया… की चीखपुकार जरूर सुनी थी. जिस के बाद वे लोग पाराशर के मकान की तरफ दौड़े. हालांकि कुछ लोगों ने पाराशर के मकान से एक आदमी को भागते देखा, लेकिन वह कौन था, कैसे आया और कहां गया, इस बाबत कुछ नहीं बता पाए.

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8. प्रेम कहानी का भयानक अंत: क्यों हुआ प्यार का ऐसा अंजाम

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शिवम पर कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा तो वह परेशान हो गया. नंदिनी ने शिवम पर जो आरोप लगाए उस के अनुसार झगड़े के बाद शिवम सुलह और शादी कराने के लिए उसे एक मंदिर में ले गया. लेकिन मंदिर में पहले से कई लड़के मौजूद थे. शिवम और उस के साथियों ने वहीं पर नंदिनी के साथ गैंगरेप किया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे चुप रहने की धमकी भी दी. अपने साथ हुए इस धोखे पर नंदिनी ने भी सोच लिया कि वह अब चुप नहीं बैठेगी. उस ने मामला पुलिस में ले जाने और शिवम को सजा दिलाने की ठान ली.

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9. दुष्कर्मियों को सजा: निडरता की मिसाल बनी रीना

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इस के बाद उन सभी लड़कों ने रीना को अपनी हवस का शिकार बनाया. विरोध करने पर उस के साथ मारपीट कर के गालियां दी गईं. एक आरोपी ने ब्लैकमेल करने के लिए मोबाइल से उस की वीडियो भी बना ली, साथ ही धमकी दी कि जब भी बुलाएं आ जाना और अगर पुलिस में जाने की सोची तो उसे बदनाम कर दिया जाएगा. रीना रोईगिड़गिडाई, पर उन हैवानों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. बदनामी के डर से रीना इस घटना के बाद चुप रही. न परिवार को बताया और न ही पुलिस को. अलबत्ता वह घुटन भरी जिंदगी जीती रही. हालात और मजबूरी के आगे परेशान हो कर उस ने गांव छोड़ दिया और गुड़गांव जा कर नौकरी करने लगी.

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10. कोठा: उस लड़की ने धंधा करने से क्यों मना कर दिया

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दूसरे दिन रामू जीप ले कर रजनी को लेने दामोदर की खोली में पहुंचा, तो दामोदर वहां नहीं था. उस के कमरे के बाहर ताला लटका देखा. रामू तो समा गया कि दामोदर रजनी को ले कर कहीं भाग गया है. जब यह खबर चनकू बाई को मिली, तो वह गुस्से से तिलमिला उठी. उस ने फौरन शहर में गुंडे फैला दिए थे, ताकि दामोदर और रजनी शहर से बाहर न जाने पाएं. अब सारे शहर में चनकू बाई के आदमी घूम रहे थे, पर दामोदर और रजनी का कहीं अतापता नहीं था. रामू भी कुछ आदमियों को ले कर रेलवे स्टेशन पर तलाश कर रहा था. हथियारों से लैस चनकू बाई के आदमी टे्रन के हर डब्बे की तलाशी ले रहे थे.

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11. साधना कक्ष: बाबा ने की हद पार

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बाबा ने अंजलि को फिर वही मिठाई खाने को दी जो उस ने परची पर लिखी थी. लेकिन इस बार अंजलि को जरा भी हैरानी नहीं हुई क्योंकि उसे यह पता चल चुका था कि बाबा को परची पर लिखी गई हर बात पता चल जाती है. इस के पीछे कोई न कोई राज जरूर था, जिस से आज परदा उठने वाला था. अंजलि इसी सोच में डूबी थी कि बाबा की आवाज उस के कानों में गूंजी, ‘‘अब तुम रात बिताने को तैयार हो. जाओ और मिठाई खा कर आराम करो.’’ इतना कह कर बाबा बाहर चला आया और अंजलि के साथ आई मौसी से साधना कक्ष में ताला लगवा कर अपनी आरामगाह में चला गया.

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जुर्म की आवाज

मालकिन की इज्जत के साथ खेलता नौकर

शराब को भले ही सामाजिक बुराई माना जाता हो, लेकिन देश में शराब का अरबों का कारोबार चलता है. शाम ढलते ही शहरों के मयखानों, बार और नाइट क्लब आबाद होने लगते हैं.  शाम के तकरीबन साढ़े 7 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में नौचंदी थाना क्षेत्र के सूरजकुंड स्थित एक कैंटीननुमा मयखाने में शराब पीने वालों की भीड़ लगनी शुरू हो चुकी थी.

लोग मेजों पर खानेपीने का सामान सजाए बैठे थे. किनारे की एक मेज पर आमनेसामने 2 युवक बैठे शराब की चुस्कियां ले रहे थे. तभी अचानक 2 युवक उन के पास आ कर खड़े हो गए. उन के हाथों में पिस्तौलें थीं. उन में से एक युवक हवाई फायर करते हुए चिल्लाया, ‘‘अगर किसी ने भी शोरशराबा किया या भागा तो जिंदा नहीं बचेगा.’’

युवक की इस हरकत से वहां का माहौल दहशतजदा हो गया. लोग सकते में आ गए. कोई कुछ समझ पाता उस से पहले ही दोनों युवकों में से एक ने आमनेसामने बैठे युवकों में से एक ने उस के सिर, सीने और पेट को निशाना बना कर गोलियां चला दीं. गोलियां लगते ही युवक कुरसी पर लुढ़क गया.

इस के बाद दोनों युवक चले गए. टेबल पर रखा उस युवक का मोबाइल भी वे अपने साथ ले गए थे. गोलियां चलने से वहां अफरातफरी मच गई थी. किसी ने छिप कर जान बचाई तो किसी ने भाग कर. मृत युवक के साथ बैठा युवक भी भाग खड़ा हुआ था.

इसी बीच किसी व्यक्ति ने पुलिस को सूचना दे दी थी. वारदात की सूचना पा कर पुलिस भी वहां पहुंच गई. निरीक्षण में पता चला युवक मर चुका है. पूछताछ में जानकारी मिली कि दोनों हमलावर मोटरसाइकिल से आए थे. उन्होंने मृतक पर करीब 25 राउंड गोलियां चलाई थीं. मारा गया युवक अपने साथी के साथ पल्सर मोटरसाइकिल नंबर यूपी-15 बीए-4351 से आया था, जो बाहर खड़ी थी.

घटनास्थल से पुलिस को कारतूस के कई खोखे मिले. मृतक की शिनाख्त तुरंत नहीं हो सकी. उस के सीने, पेट और सिर पर 10 से ज्यादा गोलियों के निशान थे, लेकिन वहां किसी अन्य व्यक्ति को खरोंच तक नहीं आई थी. इस का मतलब हमलावर सिर्फ उसे ही मारने आए थे. जिस तरह उस पर गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब था कि हत्यारे उसे किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.

पुलिस को मृतक की जेबों की तलाशी में एक पर्स मिला, जिस में मिलें कागजों के आधार पर उस की शिनाख्त जुहेब आलम उर्फ साहिल खान के रूप में हुई. पुलिस ने पर्स में मिले पते पर उस की हत्या की सूचना दी तो थोड़ी देर में उस के घर वाले रोतेबिलखते हुए वहां आ पहुंचे.

पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक जुहेब शहर के ही थाना लालकुर्ती क्षेत्र के मैदा मोहल्ला स्थित जफर बिल्डिंग में रहने वाले सुलतान का बेटा था. उस के 2 भाई और थे, जुहेब एमबीए था और करीब 5 सालों से हापुड़ रोड स्थित कीर्तिका पब्लिकेशन में बतौर एकाउंटैंट नौकरी करता था. वह सुबह घर से निकलता था तो रात 10 बजे तक ही घर लौट पाता था.

जिस तरह उस की हत्या की गई थी, उस से यही लगता था कि उस की किसी से गहरी रंजिश थी. पुलिस ने उस के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी से भी जुहेब या परिवार की रंजिश होने से साफ मना कर दिया. लेकिन यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, क्योंकि कोई तो वजह थी, जिस के चलते उस का कत्ल किया गया था.

पुलिस ने पब्लिकेशन के मालिक अमित अग्रवाल से भी पूछताछ की. उन्होंने भी अपनी जानकारी में जुहेब की किसी से रंजिश होने की बात से इनकार कर दिया. उन्होंने बताया था कि उस दिन जुहेब शाम करीब साढ़े 6 बजे उन के यहां से निकला था. कैंटीन में उस के साथ गया दूसरा युवक कौन था, इस की जानकारी पुलिस को नहीं मिल सकी. कत्ल का राज उस युवक के सीने में दफन हो सकता था.

यह 20 फरवरी, 2017 की घटना थी. इस मामले में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ और एसपी (सिटी) आलोक प्रियदर्शी ने घटना के खुलासे के लिए डीएसपी विकास जायसवाल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. जिस में थानाप्रभारी मोहन सिंह, सबइंसपेक्टर अफसर अली, हैडकांस्टेबल धर्मराज, कांस्टेबल सतीश और राकेश को शामिल किया गया.

पुलिस के हाथ ऐसा कोई सबूत नहीं लगा, जिस से कत्ल का राज खुल पाता. सभी पहलुओं पर गौर किया गया तो सुई मृतक के मोबाइल पर जा कर अटक गई. हत्यारे जुहेब का मोबाइल फोन अपने साथ ले गए थे. मतलब उस के मोबाइल में कोई गहरा राज छिपा था. यह मामला प्रेमप्रसंग का लग रहा था, अगले दिन पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की छानबीन से पता चला कि जुहेब का नोएडा की रहने वाली किसी युवती से संबंध था. दोनों की अकसर बातें होती रहती थीं. युवती दूसरे संप्रदाय की थी. पुलिस की एक कड़ी मिली तो उस ने जांच आगे बढ़ाई. हत्या की वजह यह प्रेमप्रसंग भी हो सकता था. संभवत: मोबाइल फोन में युवती के फोटोग्राफ रहे होंगे, इसीलिए हत्यारे उसे अपने साथ ले गए थे. एक पुलिस टीम नोएडा गई और उस ने युवती को खोज निकाला.

पूछताछ में पता चला कि युवती और जुहेब का संपर्क सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए हुआ था. बाद में दोनों में बातें होने लगी थीं. जुहेब उस से मिलने नोएडा भी जाया करता था. इस बात की जानकारी घर वालों को हुई तो युवती का अलग संप्रदाय की होने की वजह से खासा हंगामा हुआ.

फरवरी के पहले सप्ताह में जुहेब नोएडा गया तो युवती के घर वालों ने उसे काफी डांटाफटकारा. जुहेब ने उस वक्त भविष्य में उस से किसी तरह का संबंध न रखने का वादा किया. लेकिन वह उस से संबंध तोड़ नहीं सका. इन सब बातों से पुलिस को युवती के घर वालों पर शक हुआ. बेटी के संबंधों से नाराज हो कर वे हत्या करा सकते थे.

पुलिस ने उन से गहराई से पूछताछ की, लेकिन उम्मीदों पर तब पानी फिर गया, जब उन्होंने जुहेब को डांटने फटकारने की बात तो स्वीकारी, लेकिन हत्या में किसी भी तरह का हाथ होने से मना कर दिया. तथ्यों की कसौटी पर उन के बयान खरे पाए गए तो पुलिस खाली हाथ लौट आई.

पुलिस ने अपना ध्यान जुहेब के मोबाइल फोन पर केंद्रित किया. पुलिस यह जान कर हैरान रह गई कि वह अपने मोबाइल में 3 सिमकार्ड का इस्तेमाल करता था. पुलिस ने उस के सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस की दोस्ती कई लड़कियों और महिलाओं से थी. एक चौंकाने वाली बात यह पता चली कि उस की जिस नंबर पर सब से अधिक बातें होती थीं, वह पब्लिकेशन हाउस की मालकिन का था. पुलिस ने पब्लिकेशन के मालिक अमित अग्रवाल की पत्नी नेहा (परिवर्तित नाम) से पूछताछ की.

नेहा ने बताया कि चूंकि उन का ज्यादातर काम जुहेब ही संभालता था इसीलिए उस की जुहेब से अकसर बातें होती थीं. पुलिस उस के इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई, क्योंकि दोनों के बीच देर रात तक लंबीलंबी बातें होती थीं. इस का राज नेहा ही बता सकती थी. इस का मतलब कुछ ऐसा जरूर था, जिसे नेहा छिपा रही थी. पुलिस ने 3 अन्य महिलाओं से भी पूछताछ की,  जिन से जुहेब की बातचीत होती थी.

इस के बाद पुलिस को शक हुआ कि जुहेब की हत्या के तार अग्रवाल परिवार से ही जुड़े हैं. पुलिस अभी तक जुहेब के उस साथी तक नहीं पहुंच सकी थी, जिस के साथ वह उस दिन शराब पी रहा था. वह कातिलों से मिला हुआ भी हो सकता था. संभव था कि उसे योजना बना कर वहां लाया गया हो और हत्यारों को इस की सूचना दे दी गई हो.

पुलिस ने रास्तों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई तो एक फुटेज में जो युवक उस के साथ मोटरसाइकिल पर बैठा नजर आया, उस की पहचान असब उर्फ बिट्टू के रूप में हुई. वह पब्लिकेशन हाउस में बतौर ड्राइवर नौकरी करता था. खास बात यह थी कि घटना के बाद उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था.

अब तक अग्रवाल परिवार पूरी तहर शक के घेरे में आ गया था. अपनी मालकिन से नजदीकियां जुहेब की हत्या की वजह हो सकती हैं, यह सोच कर पुलिस ने अमित अग्रवाल से पूछताछ की. लेकिन उस से काम की कोई बात पता नहीं चली. पुलिस ने नेहा के युवा बेटे मयंक अग्रवाल की काल डिटेल्स निकलवाई. घटना के समय उस का मोबाइल फोन बंद था, जबकि सीसीटीवी फुटेज के हिसाब से वह पब्लिकेशन के औफिस में ही था.

घटना के समय मोबाइल का बंद होना संदेह पैदा करता था. पुलिस ने जुहेब के कई दोस्तों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि जुहेब की नेहा से न केवल खासी नजदीकियां थीं, बल्कि वह उस पर काफी मेहरबान रहती थी.

आखिर 24 फरवरी को पुलिस ड्राइवर असब तक पहुंच ही गई. उसे कस्टडी में ले लिया गया, साथ ही पुलिस ने पूछताछ के लिए मयंक अग्रवाल को भी कस्टडी में ले लिया. दोनों से पुलिस ने गहराई से पूछताछ की तो ऐसा सच समने आया, जिसे जान कर पुलिस हैरान रह गई. महत्वाकांक्षी जुहेब जल्दी से जल्दी आगे बढ़ने की चाहत में बड़ी भूल कर बैठा था. वह घर की इज्जत और दौलत, दोनों से खेल रहा था. उस का यही खेल उस की जान पर भारी पड़ा.

अगले दिन पुलिस ने प्रैसवार्ता कर के पूरे मामले का खुलासा कर दिया. दरअसल, पब्लिकेशन हाउस में नौकरी के दौरान जुहेब की नेहा से नजदीकियां बढ़ गई थीं. इस की भी एक वजह थी. अमित अग्रवाल काम के सिलसिले में अकसर शहर से बाहर आतेजाते रहते थे. बेटा बाहर रह कर पढ़ रहा था. ऐसे में औफिस की जिम्मेदारी नेहा संभालती थी. यही नहीं, पब्लिकेशन के कागजों के अनुसार, मालकिन भी वही थी. वह आजादखयाल महिला थीं, जबकि जुहेब महत्त्वाकांक्षी और लच्छेदार बातों का बाजीगर था.

उस का यही अंदाज नेहा को भा गया. दोनों की उम्र में करीब 20 साल का फासला था. लेकिन आगे बढ़ने की ललक में जुहेब ने उम्र का फासला नजरअंदाज कर दिया था. वह जानता था कि कंपनी की असली मालकिन नेहा है, इसलिए मजे से नौकरी करने और आगे बढ़ने के लिए नेहा को अपने पक्ष में करना जरूरी है.

नेहा जितनी ज्यादा मेहरबान होगी, उस की जिंदगी में उतनी ही खुशियां आएंगी. यही सब सोच कर वह नेहा पर डोरे डालने लगा. उस की बातों में नेहा को भी रस आने लगा था. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में जुहेब नेहा का दिल जीतने में कामयाब हो गया.

जुहेब ने चालाकी दिखाई थी, लेकिन नेहा को तो समझदारी दिखाते हुए सतर्क हो जाना चाहिए था. पर वह खुद भी अंजाम की परवाह किए बिना उस के रंग में रंगने लगी थी. दोनों की बातें और मुलाकात रोज होती ही होती थी. इस के अलावा वे फोन पर भी बातें और चैटिंग करने लगे. भूल कुछ पलों के निर्णय पर निर्भर होती है. गलत निर्णयों के नतीजे बाद में कितने अच्छे और बुरे निकलेंगे, इस बात को पहले कोई नहीं सोचता. एक दिन ऐसा भी आया, जब दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूट गई. इस के बाद यह आए दिन का सिलसिला बन गया.

समय अपनी गति से चलता रहा. अमित को दोनों की नजदीकियों पर शक हुआ. जुहेब का आचरण उन्हें अच्छा नहीं लगा तो उन्होंने उसे नौकरी से निकालने का प्रयास किया. लेकिन हर बार नेहा ढाल बन कर खड़ी हो गई.

कहते हैं कि अनैतिक संबंध छिपाए नहीं छिपते. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. जब सब को यकीन हो गया कि दोनों के बीच अनैतिक संबंध हैं तो परिवार कलह का अखाड़ा बन गया. बात बढ़ती देख नेहा ने वादा किया कि वह अपनी गलती को सुधारने का प्रयास करेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

कुछ दिनों की खामोशी के बाद दोनों फिर से मिलनेजुलने लगे, उन की राह गलत है, दोनों ही जानते थे, लेकिन अपने संबंधों को वे प्यार का नाम दे कर खुश थे. जुहेब की वजह से एक हंसतेखेलते परिवार में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उसे ले कर घर में हमेशा तनाव रहने लगा था. अमित ने कई बार जम कर विरोध किया लेकिन जब स्थितियों में परिवर्तन नहीं आया तो एक दिन उन्होंने आत्महत्या के इरादे से अपने हाथ की नसें काट लीं. लेकिन समय से मिले उपचार की वजह से उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा.

जुहेब और नेहा, दोनों ही बदलने को तैयार नहीं थे. नेहा की मेहरबानियों का असर यह हुआ कि जुहेब की न सिर्फ तनख्वाह बढ़ती गई, बल्कि उस का ओहदा भी बढ़ता गया. एक साल पहले की बात है.

नेहा का बेटा मयंक एमबीए की पढ़ाई कर के घर लौट आया और उस ने बिजनैस संभालना शुरू कर दिया. वह दूर था तो उसे कुछ पता नहीं था. लेकिन घर आ कर उसे वे बातें भी पता चलने लगीं जो नहीं पता चलनी चाहिए थीं. सब कुछ जान कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई, वह जुहेब से नफरत करने लगा.

मयंक ने जुहेब की कई गलतियां पकड़ीं. जुहेब एकाउंटैंट था. हिसाबकिताब की सभी बारीकियां उस के हाथों में थीं. उस की नजर में जुहेब कंपनी को चूना लगा रहा था. उस ने नेहा से उस की शिकायतें कीं, लेकिन वह एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती थी. एक दिन मयंक ने अपनी मां से इस मुद्दे पर स्पष्ट कहा, ‘‘जब आप को पता है कि जुहेब गलत है और वह कंपनी को चूना लगा रहा है तो उसे हटाने में क्या बुराई है? मैं उसे फूटी आंख नहीं देखना चाहता.’’

‘‘चाहती तो मैं भी यही हूं, लेकिन…’’ नेहा ने अपनी बात अधूरी छोड़ी तो मयंक ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘तुम जानते हो कि कंपनी का सारा काम उसे पता है. लेनदारियां भी उसे मालूम हैं. उसे हटाया गया तो कंपनी को काफी नुकसान हो सकता है. तुम पूरी तरह काम संभाल लो, उस के बाद उसे बाहर कर देंगे.’’

मां की बात सुन कर मयंक सोच में पड़ गया. एक हद तक उन की बात ठीक भी थी. कई सालों में जुहेब कंपनी के हिसाबकिताब की सभी बारीकियां जान गया था. नेहा की तरफ से उसे मिली छूट का ही नतीजा था कि वह बड़े हिसाब अपने हाथों में रखता था.

पूछने या कहने पर भी वह मयंक या उस के पिता को हिसाब नहीं देता था. बात भी उतनी ही बताता था, जितनी वह जरूरी समझता था. जोर देने पर वह मयंक के साथ मारपीट करने तक पर उतारू हो जाता था.

मयंक को शक था कि उस ने कंपनी में लाखों का घोटाला किया है. ऐसे में मयंक की तिलमिलाहट और बढ़ गई. जुहेब शानदार लाइफ स्टाइल में जीता था. एक दिन नेहा के मोबाइल में मयंक ने जुहेब की चैटिंग देख ली. दोनों की बातें शर्मसार करने वाली थीं. मयंक खून का घूंट पी कर रह गया. सब कुछ जान कर भी वह कुछ नहीं कर पा रहा था.

घर में आए दिन झगड़ा होता रहता था. जुहेब के प्रति मयंक के मन में नफरत तो थी ही, यह नफरत तब और बढ़ गई जब नेहा ने उसे गिफ्ट में स्कूटी दी. मयंक को लगा कि अगर वक्त रहते उस ने कुछ नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं, जब जुहेब उस के परिवार को न सिर्फ बर्बाद कर देगा, बल्कि बिजनैस पर भी कब्जा कर लेगा.

इज्जत और दौलत की बर्बादी वह अपनी आंखों से देख रहा था. उसे लगा कि जब तक जुहेब का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किया जाएगा तब तक मां सुधरने वाली नहीं है. आखिर उस ने मन ही मन एक खतरनाक निर्णय ले लिया.

मयंक का एक मौसा था राजू उर्फ किशनपाल. वह मुजफ्फरनगर जिले के थाना रामराज क्षेत्र के गांव देवल का रहने वाला था. वह आपराधिक और दबंग प्रवृति का था. मयंक ने सारी बातें उसे बता कर जुहेब को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने को कहा तो वह बोला, ‘‘झगड़े की जड़ जुहेब को हटाने के लिए पेशेवर लोगों का इंतजाम करना होगा.’’

‘‘जो उचित लगे, आप करें जितना भी खर्चा होगा, मैं देने को तैयार हूं.’’ मयंक ने कहा.

राजू की पहचान ऐसे कई लोगों से थी, जो पैसे ले कर हत्या करते थे. उस ने मेरठ के शास्त्रीनगर के रहने वाले सारिक और नदीम से बात कर के उन्हें जुहेब की हत्या के लिए तैयार कर लिया. इस के बाद सभी ने मिल कर हत्या की योजना बना डाली.

योजना के तहत 20 फरवरी की सुबह राजू मेरठ आ कर मयंक से मिला. मयंक जानता था कि जुहेब और असब के बीच दोस्ती है, इसलिए उस ने असब को भी योजना में शामिल करने का फैसला किया. उस ने असब को औफिस से बाहर बुलवाया और उसे रुपयों का लालच दे कर अपने साथ शामिल कर लिया. तय हुआ कि असब जुहेब को सही ठिकाने पर ले कर जाएगा और फोन कर के राजू को इस बारे में बताएगा.

योजनानुसार राजू शूटरों के पास चला गया. सारिक और उस के साथी के पास पहले से ही हथियार थे. दिन में असब ने जुहेब से शाम को पीनेपिलाने की बात कही तो वह खुशीखुशी तैयार हो गया.

शाम को दोनों मोटरसाइकिल से शराब के ठेके पर पहुंचे तो असब ने फोन कर के राजू को सटीक जानकारी दे दी. इस के बाद राजू शूटर सारिक और नदीम के साथ वहां पहुंचा और चालाकी से जुहेब की पहचान करा दी. इस के बाद उन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

असब वहां से निकला और बाहर आ कर राजू तथा शूटरों से मिला. शूटरों ने उसे एक पिस्टल छिपा कर रखने के लिए दी और खुद चले गए. असब भी अपने मोबाइल का स्विच औफ कर के घर चला गया.

मयंक ने सोचा था कि योजनाबद्ध तरीके से काम करने की वजह से पुलिस इस मामले में उलझ कर रह जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. जुहेब और नेहा की नासमझी से 2 परिवारों पर मुसीबत आ गई. जुहेब को अपनी जान गंवानी पड़ी तो नेहा के बेटे मयंक को जेल जाना पड़ा. समय रहते अगर दोनों सुधर गए होते तो यह नौबत नहीं आती.

असब की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त 32 बोर का पिस्टल और कारतूस बरामद कर लिए. पुलिस ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों में से किसी की जमानत नहीं हो सकी थी. फरार आरोपियों की सरगर्मी से तलाश जारी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जुर्म की आवाज – भाग 4

हम ने जल्दी से गाड़ी स्टार्ट की और उस तरफ चल पड़े, जिधर कब्र होने का अंदाजा था. 20 मिनट में हम ने वह कब्र तलाश कर ली. अगले 10 मिनट में हमें एक गैस स्टेशन के पीछे कचरे के ड्रम में तेजाब की बोतल, बेलचा, दस्ताने और चश्मा भी मिल गया. वह गैस स्टेशन कच्ची सड़क से करीब 1 किलोमीटर दूर था.

शौहर की लाश मिलने के बाद भी कीसले ने जुबान नहीं खोली. वह बारबार वकील को बुलाने को कहती रही. रेमंड हम सब को साथ ले कर सिमेट के लिए रवाना हो गए. रास्ते में मोंक के सवालों ने कीसले को सच बोलने पर मजबूर कर दिया. कीसले का शौहर नारमन एक मशहूर आर्किटैक्ट था. वह खुद भी अच्छे जौब पर थी. इन लोगों का सिमेट में एक खूबसूरत बंगला था, पास में 4 कीमती कारें थीं. पतिपत्नी के दोस्तों के साथ शराब की शानदार महफिलें जमती थीं.

घटना से एक दिन पहले सुबह को नाश्ते पर नारमन ने कीसले को बताया कि वह पूरी तरह दिवालिया हो गया है. वह चोरीछिपे जुआ खेलने का आदी था और यह सोच कर बड़ीबड़ी बाजी खेलता था कि शायद किस्मत साथ दे दे और उस का नुकसान पूरा हो जाए. लेकिन उस की यह उम्मीद पूरी नहीं हुई और वह दलदल में फंसता चला गया. यहां तक कि इस के चलते वह दिवालिया हो गया.

इस से ज्यादा बुरी खबर यह थी कि जुए में लगातार हारने की वजह से नारमन का बैंक एकाउंट, जिस में कीसले की भी जमापूंजी थी, एकदम खाली हो गया था. शेयर्स और कीमती चीजें भी बिक गई थीं. इस से भी बुरी बात यह थी कि उस ने अपनी कंपनी में 3 लाख डौलर्स का गबन किया था. इस मामले में नारमन का जेल जाना तय था. उस के जेल जाने के बाद देनदारी के सारे मामले और तकाजे कीसले को अकेले बिना पैसे के भुगतने पड़ते.

इस खौफनाक हकीकत को जान कर कीसले की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. पहले तो उस की समझ में नहीं आया कि क्या करे? फिर वह गुस्से और हताशा में उठ कर किचन में गई. वहां से वह भारी फ्राइंगपैन उठा कर लाई और पीछे से नारमन के सिर पर 2 बार जोरदार वार किए. दूसरे वार ने नारमन की जान ले ली.

कीसले उस की लाश को घसीटते हुए गैराज में ले गई और उसे कचरा रखने वाली खाली थैली में डाल कर उस के मुंह पर एक डोरी बांध दी. इस के बाद  उस ने लाश गाड़ी में रखी और उसे ठिकाने लगाने के लिए रवाना हो गई. कीसले में इतनी ताकत थी कि बिना किसी की मदद के वह सब कुछ कर सकती थी. अगर ऐसा न होता तो उसे लाश के टुकड़े करने पड़ते.

पति की हत्या के बाद कीसले ने कंप्यूटर खोल कर नेट के जरिए ये मालूम किया कि लाश ठिकाने लगाने का बेहतरीन तरीका क्या है? उसे पता चला कि लाश दफन करने के बाद अगर उस पर तेजाब छिड़क दिया जाए तो वह जल्दी गल जाती है.

अब सवाल यह था कि लाश को कहां दफन करे? उसे याद आया कि कुछ साल पहले उस के शौहर ने एक प्लाट लेने का इरादा किया था. पर कीमत पर बात नहीं बन पाई थी और वह जमीन नहीं ले सका था.  वह जगह जंगल के किनारे बिलकुल सुनसान थी. वहां लाश के देख लिए जाने के चांसेज न के बराबर थे. लिहाजा वह बाजार जा कर वहां से लाश ठिकाने लगाने का जरूरी सामान ले आई.

रात गए उस ने अपनी गाड़ी निकाली और लाश को उसी जगह ले जा कर दफन कर दिया, वापस आते हुए उस ने रास्ते में गैस स्टेशन के पीछे कचरा घर में बेलचा, चश्मा और तेजाब की बोतल वगैरह फेंक दी.

‘‘दरअसल किसले ने सोचा था कि सब लोग यही समझेंगे कि नारमन गिरफ्तारी और बदनामी से बचने के लिए कहीं छिप गया है. किसी को इस बात का शक भी नहीं होगा कि उस की परेशान बीवी ने उसे मार डाला है. ऐसे केस में बीवी के मारने का खयाल भी किसी के दिल में नहीं आता, पर किस्मत ने उस का साथ नहीं दिया.

कीसले को ले कर हम पुलिस हेडक्वार्टर पहुंचे, जहां उस का वकील इंतजार में बैठा था. वह एक बड़ा महंगा और काबिल वकील था. पर जब उसे मालूम हुआ कि कीसले बयान दे चुकी है और उस ने जुर्म भी कुबूल कर लिया है, तो  उस ने उस के मुकदमे की पैरवी करने से साफ इनकार कर दिया. रेमंड जानते थे कि ऐसी स्थिति में कोई भी वकील उस का केस नहीं लेगा. इसलिए उन्होंने उस के लिए सरकारी वकील का इंतजाम कर दिया.

इस दौरान हम ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर के रेमंड के औफिस में जमा कर दी. उसे देख कर रेमंड ने कहा, ‘‘तुम दोनों मेरी बुद्धिमत्ता की दाद दो कि मैं ने कैसे आउट औफ वे जा कर तुम दोनों को यहां बुला लिया.’’

इस पर मोंक ने हंसते हुए कहा, ‘‘इस में आप की बीवी की मरजी भी शामिल है, क्योंकि वह मेरी तफ्तीश और मुजरिम पकड़ने की योग्यता से बहुत प्रभावित हैं. वैसे हमें अपने साथ रखने से आप भी तो फायदे में हैं. अब आप को कत्ल की खबर से पहले ही कातिल मिल जाएंगे.’’ कमरे में हम तीनों का कहकहा गूंज उठा.