जुर्म की आवाज – भाग 3

मैं ने गाड़ी उस की कार के आगे रोकी. हम दोनों अपनी कार से बाहर आ गए. हम ने अपने हथियार निकाल लिए और उन का रुख कार की तरफ कर दिया. वह कार में अपनी सीट पर बैठी रही.

‘‘अपने हाथ ऊपर उठाओ और कार से बाहर आओ.’’ मैं ने सख्ती से कहा, तो वह हैरान सी कार के बाहर आ गई. मोंक की पिस्तौल उस पर तनी हुई थी, इसलिए मैं ने अपनी पिस्तौल होलस्टर में रख ली और उसे हथकड़ी डालते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया जा रहा है.’’

‘‘मैं नहीं मानती, तुम यह कैसे कह सकते हो कि मैं ने कत्ल किया है?’’

‘‘हम पुलिस वाले हैं, सोचसमझ कर हाथ डालते हैं.’’ मोंक ने कहा.

सूचना पा कर रेमंड 20 मिनट में वहां पहुंच गए. जबकि फोरेंसिक टीम और पैरामैडिकल स्टाफ उन से पहले ही वहां पहुंच गए थे. इन्हें मैं ने बुलवाया था. ऊंचे ओहदे पर होने के बावजूद रेमंड का रवैया बड़ा दोस्ताना था. उन्होंने दोनों कारों को देखा. दोनों में काफी टूटफूट हो चुकी थी. कीसले को एंबुलेंस में बैठा लिया गया था.

रेमंड ने एंबुलेंस में बैठी कीसले पर नजर डाली. फिर वह मोंक से मुखातिब हुआ. ‘‘कमाल हो गया, किसी को मालूम भी नहीं कि कोई कत्ल हुआ है और तुम ने कातिल को पकड़ लिया. यह काम सिर्फ तुम ही कर सकते हो.’’

‘‘शुक्रिया चीफ.’’ मोंक ने उस के व्यंग्य पर ध्यान नहीं दिया.

‘‘लेकिन मोंक तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है. अगर लाश मिल जाती तो गिरफ्तारी हो सकती है, ऐसे नहीं.’’ रेमंड ने कहा.

‘‘उस का इस तरह गाड़ी ले कर भागना उस का जुर्म साबित करता है.’’ मैं ने कहा, तो रेमंड बोले, ‘‘नहीं गाड़ी ले कर भागने के कई कारण हो सकते हैं. तुम इसे इकबाले जुर्म नहीं कह सकते.’’

‘‘चीफ जब हम ने उस पर कत्ल का इल्जाम लगाया, तो उस ने हैरान हो कर कहा था, ‘तुम्हें कैसे पता चला?’

रेमंड ने बात काटी, ‘‘अगर यह इकबाले जुर्म है तो क्या उस ने तुम्हें बताया कि लाश कहां दफन है?’’

‘‘नहीं, न तो उस ने जुर्म कुबूल किया और न ही यह बताया कि उस के शौहर की लाश कहां दफन है?’’ मैं ने कहा, तो मोंक ने दखल दिया, ‘‘मैं साबित कर सकता हूं कि इस औरत ने अपने शौहर का कत्ल किया है.’’

मोंक ने डिटेल में बताया, ‘‘औरत की हथेली पर छाला, शादी की अंगूठी का न होना, सिरके की बोतल, काले बैग का टुकड़ा और गाड़ी के बंपर पर लगा कीचड़, ये सारे सुबूत हैं.’’

मोंक की बातें सुनने के बाद रेमंड सोच में पड़ गए. पलभर बाद बोले, ‘‘मोंक मैं तुम से सहमत हूं. पर इन सब तथ्यों पर न तो हम कत्ल का केस बना सकते हैं और न कत्ल की बात साबित कर सकते हैं. अच्छा यह बताओ, जब कीसले की गाड़ी की रफ्तार ज्यादा नहीं थी तो तुम ने गाड़ी क्यों रोकी?’’

‘‘उस की कार बहुत गंदी थी.’’ मोंक ने जवाब दिया, तो रेमंड अपना सिर पीटते हुए बोले, ‘‘मोंक गाड़ी गंदी होना गैरकानूनी नहीं है, इस के लिए हम कोई एक्शन नहीं ले सकते. मुझे लगता है कि तुम मेरी नौकरी खत्म करवा कर दम लोगे. यह बहुत अमीर औरत है और हम पर दावा दायर कर सकती है. वैसे भी उसे कातिल साबित करने के लिए हमारे पास कोई सुबूत नहीं हैं.’’

‘‘मि. रेमंड, क्या लाश मिलने पर आप की तसल्ली हो सकती है?’’ मोंक ने पूछा.

‘‘हां मोंक, लाश मिलने से हमारी पोजीशन मजबूत हो जाएगी.’’ रेमंड ने कहा, तो मोंक बोला,  ‘‘मुमकिन है, इस सिलसिले में कीसले मुंह न खोले, लेकिन उस की कार सब बता देगी.’’

मोंक कुछ सोचते हुए कीसले की कार की तरफ बढ़ा. मैं और रेमंड उस के पीछे थे. रेमंड ने जल्दी से कहा, ‘‘बिना वारंट के हम उस की गाड़ी का जीपीएस सिस्टम नहीं देख सकते मि. मोंक.’’

‘‘मुझे यह जानने की जरूरत नहीं है कि कार कहां से आ रही है.’’ मोंक ने पूरे विश्वास से कहा. फिर वह घूमघूम कर बारीकी से गाड़ी की जांच करने लगा.

गाड़ी पर निगाह जमाएजमाए उस ने कहा, ‘‘गाड़ी के निचले हिस्से और टायरों पर जो कीचड़ लगा है, उस पर पत्ते भी हैं. इस का मतलब यह कि गाड़ी जंगल की तरफ गई थी. जब हम ने कार रोकी थी तो उस पर लगा कीचड़ गीला थी. हवा, मौसम और गर्मी को देखते हुए यह अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है कि कब्र यहां से 5-6 मिनट की ड्राइव के फासले पर होगी.’’

‘‘चलो मान लिया कि लाश यहां से 5 मिनट के फासले पर है, पर उस तक पहुंचा कैसे जाएगा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘स्नेक की तलाश करने के बाद हम वहां तक पहुंच सकते हैं.’’

‘‘बीच में यह स्नेक कहां से आ गया?’’ रेमंड ने जल्दबाजी में पूछा.

‘‘कीसले ने स्नेक पर गाड़ी चढ़ा दी थी और वह टायरों के नीचे कुचल कर मर गया. मुझे इस की अगलीपिछली साइड के पहियों पर स्नेक के टुकड़े नजर आ रहे हैं.  शायद वह गाड़ी के नीचे आने के पहले मर चुका था.’’

‘‘पर तुम यह कैसे कह सकते हो कि स्नेक लाश दफन कर के वापस लौटते समय कीसले की गाड़ी से कुचला गया?’’

‘‘स्नेक के गोश्त के पीस कीचड़ के ऊपर लगे हैं, नीचे नहीं. इस का मतलब पहले कीचड़ लगा फिर स्नेक कुचला गया. अगर हम मरे हुए स्नेक को तलाश लें, तो मालूम हो जाएगा कि हम सही दिशा की तरफ जा रहे हैं.’’

‘‘लेकिन इस से यह कैसे जान सकेंगे कि वहां से आगे कहां जाना है?’’ रेमंड ने पूछा तो मोंक ने कार के पहिए की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘इस से अंदाजा होता है कि कीसले कार बहुत तेज रफ्तार से चला रही थी. जब वह एक तंग और कच्चे रास्ते पर मुड़ी, तो उस की कार किसी झाड़ या खंभे से टकरा गई, जिस से दाईं ओर की लाइट टूट गई.

‘‘इस टूटी हुई लाइट के अंदर भी कीचड़ लगा है. इस का मतलब लाइट कीचड़ में जाने के पहले टूटी थी. अब हमें बस, यह करना है कि हाईवे पर 5 किलोमीटर वापस जा कर एक मरे हुए स्नेक, कच्ची धूल भरी सड़क और किसी ऐसे खंभे या झाड़ को तलाशना है, जिस पर कार के रंग के लाल निशान हो. हमें अपनी सही दिशा मिल जाएगी. वहां हमें लाइट के टुकड़े और कीचड़ पर गाड़ी के टायरों के निशान भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रेमंड बोले, ‘‘फिर तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? लाश की तलाश क्यों नहीं शुरू करते? जब मिल जाए तो मुझे खबर कर देना.’’

जुर्म की आवाज – भाग 2

उस का इस तरह भागने का मतलब था कि एक तरह से वह अपना जुर्म कुबूल कर रही थी. कीसले के भागने से मैं हैरान परेशान था. मोंक ने झुंझला कर कहा, ‘‘अब खड़े क्यों हो, वह हम से बच कर भाग रही है.’’

मैं लपक कर गाड़ी में जा बैठा और गाड़ी का सायरन चालू कर दिया. हम कीसले की कार के पीछे रवाना हो गए. मेरी आंख में शायद धूल के कण चले गए थे, जो बड़ी तकलीफ दे रहे थे. मैं बारबार रूमाल से आंख पोंछ रहा था. मोंक ने रेडियो औन कर के यह खबर रेमंड को दे दी कि हम एक कातिल का पीछा कर रहे हैं.

मोंक ने उस औरत के लिए खुले रूप से कातिल शब्द इस्तेमाल किया था. इस का मतलब था कि मोंक को उस के कातिल होने का पक्का यकीन था.   हालांकि इस से पहले वह कभी भी कत्ल के किसी केस में नाकाम नहीं हुआ था. फिर भी उस का इतना आत्मविश्वास मुझे उलझन में डाल रहा था. हम तेजी से उस लाल कार के करीब पहुंचते जा रहे थे, जो 90 की स्पीड से दौड़ रही थी. हमारी स्पीड भी 90 के ऊपर थी. मैं ने मोंक से पूछा, ‘‘क्या हम कीसले को पकड़ पाएंगे?’’

‘‘तुम बिलकुल फिक्र मत करो नेल, हम उसे पकड़ लेंगे.’’ मोंक ने बड़े आत्मविश्वास से कहा. कीसले की कार के आगे एक ट्रक चल रहा था. उस ने उसे ओवरटेक करने की कोशिश की. सामने से 2 कारें आ रही थीं. उन्होंने उसे बचाने की कोशिश की, तो एक कार सड़क के किनारे बनी मुंडेर से टकरा गई, जबकि दूसरी कार पूरी तरह दाईं तरफ घूम गई.

इसी बीच लाल कार हमारी नजरों से ओझल हो गई. मैं ने स्पीड बढ़ाई, तो थोड़ी देर बाद वह कार फिर नजर आ गई. मैं ने मोंक ने कहा, ‘‘तुम्हें यह खयाल क्यों आया कि कीसले ने अपने शौहर का कत्ल किया है. क्या इस की कार के पिछले हिस्से में कोई लाश थी, जो मुझे नजर नहीं आई?’’

‘‘नहीं, लाश अंदर नहीं थी. वह लाश को पहले ही  ठिकाने लगा चुकी है. उस ने लाश को काले रंग के बड़े से प्लास्टिक के थैले से डाला था. फिर घसीटती उसे हुई एक कब्र तक ले गई थी. इतना ही नहीं, उस ने लाश को दफन करने के बाद कब्र पर पानी भी छिड़का था.’’

कीसले ने एक होंडा कार को ओवरटेक किया, जिस के फलस्वरूप कार के ड्राइवर को गाड़ी सड़क के एक तरफ उतारनी पड़ी. मुझे भी अपनी स्पीड कम करनी पड़ी. मैं ने मोंक से पूछा, ‘‘तुम यह सब इतने यकीन से कैसे कह सकते हो? तुम्हारी बातों से तो ऐसा लगता है, जैसे तुम चश्मदीद गवाह हो.’’

‘‘मैं अपनी आंखें खुली रखता हूं, इसलिए.’’ मोंक बोला.

‘‘ठीक है, पर तुम अगर मुझे हकीकत बताओगे, तो मुझे भी पता चल जाएगा. आखिर तुम्हारे साथ मैं भी भागदौड़ कर रहा हूं.’’ मैं ने रूखे लहजे में कहा.

मोंक ने व्यंग्य से मुसकराते हुए मुझे देख कर कहा, ‘‘इस लाल गाड़ी पर लगी कीचड़ से जाहिर होता है कि यह जंगल में गई थी. कार के पिछले बंपर से थोड़ा कीचड़ हटा हुआ है, इस का मतलब जब उस ने कार की डिक्की से प्लास्टिक के थैले में रखी लाश बाहर निकाली होगी, तो रगड़ से उस जगह का कीचड़ साफ हो गया होगा. पिछले हुक में प्लास्टिक के बैग का टुकड़ा भी फंसा हुआ है, जिस से पता चलता है कि डिक्की से प्लास्टिक बैग में रखी हुई कोई चीज निकाली गई है.’’

‘‘पर इस से यह तो साबित नहीं होता कि उस ने अपने शौहर को कत्ल कर के उस की लाश ठिकाने लगाई है.’’ मैं ने पूछा. तब तक हम लाल गाड़ी के काफी करीब पहुंच गए थे. मोंक ने गाड़ी पर नजरें जमाते हुए कहा, ‘‘तुम ने देखा होगा कि उस की अंगुली में शादी की अंगूठी नहीं थी, जो ये बताती है कि दोनों की आपस में नहीं बनती थी. उस की हथेली का छाला साबित करता है कि उस ने हालफिलहाल ही बेलचे से खुदाई की है.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो, यह मैं ने भी देखा था.’’

‘‘उसे चमड़े के दस्ताने पहन कर खुदाई करनी चाहिए थी.’’ मोंक बोला.

‘‘उस के बजाए उस ने रबर के दास्ताने पहन रखे होंगे, जो हाथों को कीचड़ और पानी से बचा सकते थे, लेकिन खुदाई के दौरान बेलचे के दस्ते की रगड़ से नहीं बचा सके. उस ने लंबी आस्तीनों की शर्ट, जींस व काला चश्मा पहन रखा था, जो उस के चेहरे के लिहाज से छोटा था. इसी वजह से उस की नाक और आंखों के नीचे का हिस्सा लाल सा हो गया था. लाश को दफन करने के बाद उस ने चश्मे, बेलचे और दास्तानों से तो छुटकारा पा लिया, लेकिन वह सिरके की वह बोतल फेंकना भूल गई, जिस पर तेजाब के धब्बे लगे थे. वैसे इस का वारदात से सीधा ताल्लुक नहीं है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘सिरके की बोतल कार में क्यों रखी थी?’’

इस पर मोंक बोला, ‘‘अगर कीसले के हाथों पर तेजाब लग जाता तो उस का असर खत्म करने के लिए सिरका बहुत फायदेमंद होता है.’’

मैं हैरतजदा सा उस की बातें सुन रहा था. जो मोंक ने देखा था, मैं ने भी वही सब देखा था, पर उस ने कितनी अकलमंदी से हर चीज का ताल्लुक कत्ल से जोड़ लिया था और उस की हर बात हकीकत सी लगती थी. निस्संदेह उस का दिमाग बहुत तेज था. इसीलिए वह जानामाना जासूस था. मुझ में मोंक की तरह चीजों को वारदात से जोड़ने की योग्यता नहीं थी. मैं ने थोड़ी रफ्तार बढ़ाई और कीसले की गाड़ी तक पहुंच गया.

जुर्म की आवाज – भाग 1

उस दिन हम लोग न्यूजर्सी रोड पर बिलबोर्ड के पीछे मोर्चा जमाए बैठे थे. कोई तेज रफ्तार गाड़ी आती, तो हम उसे रोक कर चालान काट देते. यह बड़ा बोरिंग काम था. क्योंकि तेज रफ्तार गाडि़यां कम ही आती थीं. हमारी परेशानी यह थी कि हमें अपना टारगेट पूरा करना था.

इस टारगेट के तहत हमें तेज रफ्तार गाडि़यों के ड्राइवर्स को पकड़ कर साढ़े 3 सौ डौलर्स के चालान काटने थे. एंडरयान मोंक और मैं यानी नेल थामस सोमवार की सुबह से पहाडि़यों के बीच से गुजरने वाली डबल लेन रोड पर मौजूद थे. यह पुरानी सड़क थी. ऐसी सड़क पर रफ्तार पर काबू रखना मुश्किल होता है.

इस जगह हमें 3 हफ्ते हो गए थे. मेरा काम अपराध के सुराग ढूंढना था. जबकि मोंक एक पुलिस कंसलटेंट और जासूस था. मैं मोंक का दोस्त भी था और शागिर्द भी. दरअसल मैं एक अच्छा जासूस बनने की धुन में उस के असिस्टेंट के तौर पर उस से जुड़ गया था.

हम यहां पुलिस चीफ रेमंड डशर और उन की बीवी फे्रंकी की मेहरबानी की वजह से आए थे. रेमंड एक जमाने में सानफ्रांसिसको के होमीसाइड जासूस रह चुके थे. फ्रेंकी मोंक के साथ काम कर चुकी थी. रेमंड बहुत ज्यादा व्यस्त चल रहे थे. उन दोनों ने कानून की मदद करने की बात कह कर हमें यहां गाडि़़यां चेक करने के लिए बुलाया था.

मैं इस से पहले भी कत्ल के कई केस हल करने में मोंक की मदद कर चुका था. पर कभी भी मेरे नाम से कामयाबी के झंडे नहीं गड़े थे. मैं मोंक के नाम के बाद ही अपना नाम देख कर खुश हो जाता था. मेरे लिए गर्व की बात यह थी कि मोंक के साथ रह कर मुझे भी पुलिस की वरदी पहनने को मिलती थी.

उस वक्त मोंक पैसेंजर सीट पर बैठा था, गन उस के हाथ में थी. वह अगले शिकार के इंतजार में था और अपनी फिलासफी सुना रहा था. मैं उस की हर बात ध्यान से सुनता था, क्योंकि उस की बातों में काम की कोई न कोई बात जरूर रहती थी. 2 दिनों बाद हमें अपने जरूरी कामों से सानफ्रांसिसको जाना था. वहां रेमंड ने हमें अपने डिपार्टमेंट में जौब की औफर दी थी, जो हम दोनों ने मंजूर कर ली थी.

मैं मोंक की बातें सुन रहा था कि इसी बीच लाल रंग की एक रेंजरोवर उस बिलबोर्ड के पास से तेजी से गुजरी, जिस के पीछे हमारी गाड़ी खड़ी थी.  गाड़ी के टायरों और निचले हिस्से पर कीचड़ लगा था. मोंक ने जल्दी से अपनी गन नीचे करते हुए कहा, ‘‘हमें इस गाड़ी का पीछा करना है.’’

मैं ने छत पर लगी बत्तियां जलाईं और सायरन का बटन दबा दिया. इस के साथ ही हमने लाल गाड़ी का पीछा शुरू कर दिया. चंद सेकेंड में हम उस कार के करीब पहुंच गए. हम ने ड्राइवर को रुकने का इशारा किया. इशारा समझ कर उस ने गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी. कार चलाने वाली एक औरत थी और उस की कार पर न्यूजर्सी की नेमप्लेट लगी थी.

मोंक ने मुंह बनाते हुए उस गाड़ी की तरफ देखा. गाड़ी के बंपर पर कीचड़ के साथसाथ पेड़ की डालियां और पत्ते चिपके हुए थे. मैं जानता था कि मोंक को गंदगी से सख्त नफरत है, इसीलिए उस की त्यौरियां चढ़ी हुई थीं.

मैं ने जल्दी से गाड़ी का नंबर अपने कंप्यूटर में टाइप किया, तो मुझे जरा सी देर में पता चल गया कि वह गाड़ी सिमेट की रहने वाली कीसले ट्यूरिक के नाम पर रजिस्टर्ड है. इस से पहले कभी भी उस गाड़ी का चालान नहीं हुआ था. न ही वह किसी हादसे से जुड़ी थी. मैं गाड़ी से बाहर आ कर ड्राइविंग सीट पर बैठी औरत के करीब पहुंच गया.

मोंक गाड़ी के पिछले हिस्से की तरफ पहुंचा और इतनी बारीकी से देखने लगा, जैसे वहां बैंक से लूटी गई रकम या कोकीन का जखीरा अथवा अगवा की हुई कोई लड़की मौजूद हो. कार की पिछली सीट उठी हुई थी, लेकिन वहां सिरके की एक बोतल के अलावा कुछ नहीं था. निस्संदेह सिरका रखना गैरकानूनी नहीं था.

औरत ने अपनी गाड़ी का शीशा नीचे किया, तो मेरी नाक से एक अजीब सी बदबू टकराई. गाड़ी के अंदर चमड़ा मढ़ा हुआ था. शायद ये उसी की बदबू थी. उस औरत की उम्र करीब 30 साल थी और वह देखने में काफी खूबसूरत थी. उस ने लंबी आस्तीन वाली फलालेन की शर्ट और पुरानी सी जींस पहन रखी थी.

उस औरत की आंखों के नीचे और नाक पर की कुछ स्किन सुर्ख नजर आ रही थी. जिस का मतलब था कि वह चश्मा लगाती थी. मैं ने नम्रता से कहा, ‘‘गुड मानिंग मैडम, क्या मैं आप का लाइसेंस देख सकता हूं? प्लीज रजिस्टे्रशन बुक भी दीजिए.’’ उस ने दोनों चीजें मेरी तरफ बढ़ा दीं. उसी वक्त मैं ने उस की हथेली पर अंगूठे से जरा नीचे एक छाला देखा, पर मैं ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया.

‘‘क्या बात है औफिसर…?’’ उस ने पूछा.

उस का लाइसेंस देखने के बाद इस बात की तसदीक हो गई कि वह कीसले ट्यूरिक ही है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि इस सड़क पर गाड़ी की रफ्तार कितनी होनी चाहिए?’’

‘‘55.’’ वह बोली.

‘‘क्या तुम जानती हो, तुम किस स्पीड से गाड़ी चला रही थी?’’

उस ने पूरे विश्वास से कहा, ‘‘55.’’

मेरी समझ में नहीं आया कि जब उस की स्पीड ठीक थी, तो उसे रोकने की वजह क्या है? मैं ने पीछे मुड़ कर मोंक से कहा, ‘‘इस की रफ्तार तो ठीक थी, फिर गाड़ी क्यों रुकवाई?’’ उस ने झुंझला कर कहा, ‘‘देखते नहीं, इस की गाड़ी पर कीचड़ लगा है और पिछले हिस्से के हुक में प्लास्टिक बैग का एक टुकड़ा भी फंसा है.’’

‘‘पर इस से ट्रैफिक कानून का तो कोई उल्लंघन नहीं होता.’’ मैं ने कहा. इसी बीच कीसले बोल उठी, ‘‘क्या मैं जा सकती हूं औफिसर?’’ मैं ने उस का लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन कार्ड उस की तरफ बढ़ाया, तो उस की उंगली पर हल्का सा सफेद दाग नजर आया, जिस से पता चलता था कि उस ने हाल ही में अपनी शादी की अंगूठी उतारी थी.

‘‘औफिसर जरा हटें, मुझे जाने दें.’’

‘‘हां.’’ मैं ने चौंकते हुए कहा, ‘‘तुम जा सकती हो.’’

‘‘नहीं. तुम नहीं जा सकती.’’ पीछे से मोंक की तेज आवाज सुनाई दी. मैं ने ठंडी सांस भर कर कहा, ‘‘तुम सिमेट वापस आने के बाद अपनी गाड़ी धुलवा लेना. मेरे साथी को गंदगी से सख्त नफरत है.’’

‘‘जी जरूर.’’ औरत ने जल्दी से कहा.

‘‘हम इसे यहां से जाने और कार धुलवाने की इजाजत हरगिज नहीं दे सकते.’’ मोंक ने आगे आ कर सख्त लहजे में कहा, तो मैं हैरान हुआ. मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि इस से अहम सुबूत भी धुल जाएंगे.’’ वह बोला.

‘‘कैसे सुबूत? यही कि कार पर कीचड़ लगा है?’’ मैं ने विरोध किया, तो मोंक ने जैसे धमाका किया, ‘‘नहीं, इस ने अपने शौहर का कत्ल किया है.’’

अभी मोंक की जुबान से ये शब्द निकले ही थे कि कीसले ने गाड़ी स्टार्ट की और तूफान की सी तेजी के साथ भगा कर ले गई. मैं ने जल्दी से पीछे हट कर रूमाल से चेहरा साफ किया.

अनोखा बदला : राधिका ने कैसे लिया बदला

‘‘तुम क्या क्या काम कर लेती हो?’’ केदारनाथ की बड़ी बेटी सुषमा ने उस काम वाली लड़की से पूछा. सुषमा ऊधमपुर से अपने बाबूजी का हालचाल जानने के लिए यहां आई थी.

दोनों बेटियों की शादी हो जाने के बाद केदारनाथ अकेले रह गए थे. बीवी सालभर पहले ही गुजर गई थी. बड़ा बेटा जौनपुर में सरकारी अफसर था. बाबूजी की देखभाल के लिए एक ऐसी लड़की की जरूरत थी, जो दिनभर घर पर रह सके और घर के सारे काम निबटा सके.

‘‘जी दीदी, सब काम कर लेती हूं. झाड़ूपोंछा से ले कर खाना पकाने तक का काम कर लेती हूं,’’ लड़की ने आंखें मटकाते हुए कहा. ‘‘किस से बातें कर रही हो सुषमा?’’ केदारनाथ अपनी थुलथुल तोंद पर लटके गीले जनेऊ को हाथों से घुमाते हुए बोले. वे अभीअभी नहा कर निकले थे. उन के अधगंजे सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘एक लड़की है बाबूजी. घर के कामकाज के लिए आई है, कहो तो काम पर रख लें?’’ सुषमा ने बाबूजी की तरफ देखते हुए पूछा. केदारनाथ ने उस लड़की की तरफ देखा और सोचने लगे, ‘भले घर की लग रही है. जरूर किसी मजबूरी में काम मांगने चली आई है. फिर भी आजकल घरों में जिस तरह चोरियां हो रही हैं, उसे देखते हुए पूरी जांचपड़ताल कर के ही काम पर रखना चाहिए.’

‘‘बेटी, इस से पूछ कि यह किस जाति की है?’’ केदारनाथ ने थोड़ी देर बाद कहा. ‘‘अरी, किस जाति की है तू?’’ सुषमा ने बाबूजी के सवाल को दोहराया.

‘‘मुझे नहीं मालूम. मां से पूछ कर बता दूंगी. वैसे, मां ने मेरा नाम बेला रखा है,’’ वह लड़की हर सवाल का जवाब फुरती से दे रही थी. ‘‘ठीक है, कल अपनी मां को ले आना,’’ सुषमा ने कहा.

‘‘जी दीदी, मैं कल सुबह ही मां को ले कर आ जाऊंगी,’’ बेला ने कहा और तेजी से वहां से चल पड़ी. ‘‘मां, मुझे काम मिल गया,’’ खुशी से चीखते हुए बेला अपनी मां राधिका से लिपट गई और बोली, ‘‘बहुत अच्छी हैं सुषमा दीदी.’’

बेला को जन्म देने के बाद राधिका अपने गांव को छोड़ कर शहर में आ गई थी. बेला को पालनेपोसने में उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी थी. उसे दूसरों के घरों की सफाई से ले कर कपड़े धोने तक का काम करना पड़ा था, तब कहीं जा कर वह अपना और बेला का पेट पाल सकी थी.

जब राधिका पेट से थी, तब से अपने गांव में उसे खूब ताने सुनने पड़े थे पर उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. वह अपने पेट में खिले फूल को जन्म देने का इरादा कर बैठी थी. ‘अरे, यह किस का बीज अपने पेट में डाल लाई है? बोलती क्यों नहीं करमजली? कम से कम बाप का नाम ही बता दे ताकि हम बच्चे के हक के लिए लड़ सकें,’ राधिका की मां ने उसे बुरी तरह पीटते हुए पूछा था.

मार खाने के बाद भी राधिका ने अपनी मां को कुछ नहीं बताया क्योंकि वह आदमी पैसे वाला था. समाज में उस की बहुत इज्जत थी और फिर राधिका के पास कोई सुबूत भी तो नहीं था. वह किस मुंह से कहेगी कि वह शादीशुदा है, किसी के बच्चे का बाप है. ‘एक तो हम गरीब, ऊपर से बिनब्याही मां का कलंक… हम किसकिस को जवाब देंगे, किसकिस का मुंह बंद करेंगे,’ राधिका की मां ने खीजते हुए कहा था.

‘क्या सोचा है तू ने, चलेगी सफाई कराने को?’ मां ने उस की चोटी मरोड़ते हुए पूछा था. ‘नहीं मां, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी. चाहो तो तुम लोग मुझे जान से मार दो, पर जीतेजी मैं इस बेकुसूर की हत्या नहीं होने दूंगी,’ राधिका ने रोते हुए अपनी मां से कहा था.

मां की बातों से तंग आ कर राधिका उसे बिना बताए अपने नानानानी के पास चली गई और उन्हें सबकुछ बता दिया. राधिका की बातें सुन कर नानी पिघल गईं और गांव वालों के तानों को अनसुना कर उस का साथ देने को तैयार हो गईं.

राधिका की मां व नानी यह नहीं जान पाईं कि आखिर वह चाहती क्या है? बच्चे को जन्म देने के पीछे उस का इरादा क्या था? ‘‘मां, चलना नहीं है क्या? सुबह हो गई है,’’ बेला ने सुबहसुबह मां को नींद से जगाते हुए कहा.

‘‘हां बेटी, चलना तो है. पहले तू तैयार हो जा, फिर मैं भी तैयार हो जाती हूं,’’ यह कह कर राधिका झटपट तैयार होने लगी. सुषमा ने दरवाजा खोल कर उन दोनों को भीतर बुला लिया. केदारनाथ अभी तक सो रहे थे.

‘‘तो तुम बेला की मां हो?’’ सुषमा ने राधिका की ओर देखते हुए पूछा. ‘‘जी मालकिन, हम ही हैं,’’ राधिका ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारी बेटी समझदार तो लगती है. वैसे, घर का सारा काम कर लेती है न?’’ राधिका ने फौरन जवाब दिया, ‘‘बिलकुल मालकिन, मैं ने इसे सारा काम सिखा रखा है.’’

‘‘तो ठीक है, रख लेते हैं. सारा दिन यहीं रहा करेगी. रात को भले ही अपने घर चली जाए.’’ सुषमा ने बेला को हर महीने 500 रुपए देने की बात तय कर ली.

‘‘कौन आया है बेटी? सुबहसुबह किस से बात कर रही हो?’’ केदारनाथ जम्हाई ले कर उठते हुए बोले. ‘‘कोई नहीं बाबूजी, काम वाली लड़की आई है, उसी से बात कर रही थी,’’ सुषमा ने जवाब दिया.

केदारनाथ बाहर निकले तो राधिका के लंबा सा घूंघट निकालने पर सुषमा को अजीब सा लगा. ‘‘अच्छा तो अब हम चलते हैं,’’ राधिका उठते हुए बोली.

‘‘तो ठीक है, कल से भेज देना बेटी को,’’ सुषमा ने बात पक्की कर के बेला को आने के लिए कह दिया. राधिका ने राहत की सांस ली. उसे लगा कि वह कीड़ा जो इतने सालों से उस के जेहन में कुलबुला रहा था, उस से छुटकारा पाने का समय आ गया है.

सुषमा को भी राहत मिली कि बाबूजी की देखभाल के लिए अच्छी लड़की मिल गई है. वह दूसरे दिन ही ससुराल लौट गई. ‘‘ऐ छोकरी, जरा मेरे बदन की मालिश कर दे. सारा बदन दुख रहा है,’’ केदारनाथ ने बादाम के तेल की शीशी बेला के हाथों में पकड़ाते हुए कहा.

बेला ने उन के उघड़े बदन पर तेल से मालिश करनी शुरू कर दी. ‘‘तेरे गाल बहुत फूलेफूले हैं. क्या खिलाती है तेरी मां?’’ केदारनाथ ने अकेलेपन का फायदा उठाते हुए पूछा.

‘‘मां,’’ बेला ने चीख कर अपनी मां को आवाज दी. राधिका वहीं थी. ‘‘शर्म करो केदार,’’ राधिका ने जोर से दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अपनी ही बेटी के साथ कुकर्म. बेटी, हट वहां से…’’

राधिका बोलती रही, ‘‘हां केदारनाथ, बरसों पहले जो कुकर्म तुम ने मेरे साथ किया था, उसी का नतीजा है यह बेला. तुम ने सोचा होगा कि राधिका चुप बैठ गई होगी, पर मैं चुप नहीं बैठी थी. मैं ने इसे जन्म दे कर तुम तक पहुंचाया है. ‘‘यह मेरी सोचीसमझी चाल थी ताकि तुम्हारी बेटी भी तुम्हारी करतूत को अपनी आंखों से देख सके.’’

केदारनाथ एक मुजरिम की तरह सिर झुकाए सबकुछ सुनता रहा. राधिका ने बोलना बंद नहीं किया, ‘‘हां केदार, अब भी तुम्हारे सिर से वासना का भूत नहीं उतरा है, तो ले तेरी बेटी तेरे सामने खड़ी है. उतार दे इस की भी इज्जत और पूरी कर ले अपनी हवस.

‘‘मैं भी बरसों पहले तुम्हारी हवस का शिकार हुई थी. तब मैं इज्जत की खातिर कितना गिड़गिड़ाई थी, पर तुम ने मुझे नहीं छोड़ा था. मैं तभी जवाब देती, पर मालकिन ने मेरे पैर पकड़ लिए थे, इसीलिए मैं चुप रह गई थी. ‘‘यह तो अच्छा हुआ कि बेला ने तुम्हारी नीयत के बारे में मुझे पहले ही सबकुछ बता दिया. इस बार बाजी मेरे हाथ में है.

‘‘क्या कहते हो केदार? शोर मचा कर भीड़ में तुम्हारा तमाशा बनाऊं,’’ राधिका सुधबुध खो बैठी थी और लगातार बोले जा रही थी. केदारनाथ की अक्ल मानो जवाब दे गई थी. अपनी इज्जत की धज्जियां उड़ती देख वे छत की तरफ भागे और वहां से कूद कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली.

बदलाव : उर्मिला ने चलाया अपने हुस्न का जादू – भाग 3

अवधेश सिंह के 2 बेटे थे. दोनों ही शादीशुदा थे. गांव में खेतीकिसानी करते थे. बेटों ने दूसरी शादी का विरोध किया, तो उस ने उन से रिश्ता ही तोड़ लिया. दरअसल, अवधेश सिंह औरत के बिना नहीं रह सकता था. वह वासना का भेडि़या था. भोलीभाली और गरीब लड़कियों को बहलाफुसला कर वह अपने घर लाता था, फिर तरहतरह का लोभ दिखा कर उन के साथ मनमानी करता था.

अवधेश सिंह सुबहसवेरे कभीकभी गंगा स्नान के लिए भी जाता था. उस दिन सुबह 8 बजे गए, तो उर्मिला पर उस की नजर चली गई. वह समझ गया कि उर्मिला कहीं दूर देहात की है. वह उस के चाल में जल्दी आ जाएगी.

वह उसे अपने घर ले जाने में कामयाब भी हो गया. अवधेश सिंह उर्मिला को निहायत ही भोलीभाली समझता था, पर वह उस की चालाकी समझ नहीं पाया. उसे लगा कि वह उर्मिला की बात मान लेगा, तो वह राजीखुशी उस का बिस्तर गरम कर देगी. फिर तो वह उर्मिला का दिल जीतने के लिए जीतोड़ कोशिश करने लगा. उस की हर जरूरत पर ध्यान देने लगा. महंगे से महंगा गिफ्ट भी वह उसे देने लगा.

इस तरह 10 दिन और बीत गए. इस बीच उर्मिला को राधेश्याम की कोई खबर नहीं मिली. उस के बाद एक दिन अचानक उर्मिला ने पति राधेश्याम को छोड़ अवधेश सिंह के साथ एक नई जिंदगी की शुरुआत करने का फैसला किया. हुआ यह कि एक दिन अवधेश सिंह दफ्तर से लौट कर रात में घर आया. उस समय रतन सो चुका था. आते ही उस ने उर्मिला को अपने कमरे में बुलाया. उर्मिला कमरे में आई, तो अवधेश सिंह ने झट से दरवाजा बंद कर दिया.

वह उर्मिला से बोला, ‘‘तुम मान जाओगी, तो जो कुछ कहोगी, वह सबकुछ करूंगा. तुम चाहोगी तो तुम से शादी भी कर सकता हूं.’’ उर्मिला उलझन में पड़ गई. बेशक, वह गांव से पति की तलाश में निकली थी, मगर शहरी चकाचौंध ने पति से उस का मोह भंग कर दिया था. अब वह गांव की नहीं, शहरी जिंदगी जीना चाहती थी.

अवधेश सिंह के प्रस्ताव पर वह यह सोचने लगी कि उस का पति मिल भी गया तो क्या वह अवधेश सिंह की तरह ऐशोआराम की जिंदगी दे पाएगा? अवधेश सिंह की उम्र भले ही उस से ज्यादा थी, मगर उस के पास दौलत की कमी नहीं थी. उस ने अवधेश सिंह का प्रस्ताव स्वीकार करने का फैसला किया.

अवधेश सिंह अपनी बात से मुकर न जाए, इसलिए उर्मिला ने लिखवा लिया कि वह उस से शादी करेगा. उस के बाद उर्मिला ने अपनेआप को उस के हवाले कर दिया. उर्मिला को पा कर अवधेश सिंह की खुशी का ठिकाना न रहा. उस ने अगले हफ्ते ही उस से शादी करने का फैसला किया.

उर्मिला भी जल्दी से जल्दी अवधेश सिंह से शादी कर लेना चाहती थी. 2 दिन बाद ही उस ने अपने भाई रतन को गांव जाने वाली ट्रेन में बिठा दिया. उस से कह दिया कि वह गांव लौट कर नहीं जाएगी. अवधेश सिंह के साथ शहर में ही रहेगी. शादी के 2 दिन बाकी थे, तो अचानक राधेश्याम के रूममेट राघव के फोन पर उर्मिला को बताया कि गणपत गांव से आ गया है.

उर्मिला हर हाल में अवधेश सिंह से शादी करना चाहती थी, इसलिए वह राधेश्याम का पता लगाने नहीं गई. तय समय पर उस ने अवधेश सिंह से शादी कर ली. एक महीने बाद अवधेश सिंह की गैरहाजिरी में राधेश्याम उर्मिला से मिला. ‘‘कहां थे इतने दिन…?’’ उर्मिला ने पूछा.

‘‘गांव से आने  बाद मैं एक अमीर विधवा औरत के प्रेमजाल में फंस गया था. अब मैं उस के साथ नहीं रहना चाहता.

‘‘गणपत से मुझे जैसे ही पता चला कि तुम अवधेश सिंह के घर पर हो, मैं यहां चला आया. अब मैं तुम्हारे साथ गांव लौट जाना चाहता हूं.’’

‘‘आप ने आने में बहुत देर कर दी. मैं ने अवधेश सिंह से शादी कर ली है. अब मैं आप के साथ नहीं जा सकती.’’ राधेश्याम सबकुछ समझ गया. उस ने उर्मिला से फिर कुछ नहीं कहा और चुपचाप वहां से लौट गया.

बदलाव : उर्मिला ने चलाया अपने हुस्न का जादू – भाग 2

‘दरअसल, उसे किसी अमीर औरत से प्यार हो गया था. वह उसी के साथ रहने चला गया था,’ 3 दोस्तों में से एक दोस्त ने बताया. उर्मिला को लगा, जैसे उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी और वह मर जाएगी. उस के हाथपैर सुन्न हो गए थे, मगर जल्दी ही उस ने अपनेआप को काबू में कर लिया.

उर्मिला ने पूछा, ‘वह औरत कहां रहती है?’

तीनों में से एक ने कहा, ‘यह हम तीनों में से किसी को पता नहीं है. सिर्फ गणपत को पता है. उस औरत के बारे में हम लोगों ने उस से बहुत पूछा था, मगर उस ने बताया नहीं था. ‘उस का कहना था कि उस ने राधेश्याम से वादा किया है कि उस की प्रेमिका के बारे में वह किसी को कुछ नहीं बताएगा.’

‘गणपत कौन…’ उर्मिला ने पूछा.

‘वह हम लोगों के साथ ही रहता है. अभी वह गांव गया हुआ है. वह एक महीने बाद आएगा. आप पूछ कर देखिएगा. शायद, वह आप को बता दे.’

‘मगर, तब तक मैं रहूंगी कहां?’

‘चाहें तो आप इसी कमरे में रह सकती हैं. रात में हम लोग इधरउधर सो लेंगे.’ मगर उर्मिला उन लोगों के साथ रहने को तैयार नहीं हुई. उसे पति की बात याद आ गई थी. गांव से विदा लेते समय राधेश्याम ने उस से कहा था, ‘मैं तुम्हें ले जा कर अपने साथ रख सकता था, मगर दोस्तों पर भरोसा करना ठीक नहीं है.

‘वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं. मगर कब उन की नीयत बदल जाए और तुम्हारी इज्जत पर दाग लगा दें, इस की कोई गारंटी नहीं है.’ उर्मिला अपने भाई रतन के साथ बड़ा बाजार की एक धर्मशाला में चली गई. धर्मशाला में उसे सिर्फ 3 दिन रहने दिया गया. चौथे दिन वहां से उसे जाने के लिए कह दिया गया, तो मजबूर हो कर उसे धर्मशाला छोड़नी पड़ी.

अब उर्मिला अपने भाई रतन के साथ गंगा किनारे बैठी थी कि अचानक उस के पास एक 40 साला शख्स आया. पहले उस ने उर्मिला को ध्यान से देखा, उस के बाद कहा, ‘‘लगता है कि तुम यहां पर नई हो. कहीं और से आई हो. काफी चिंता में भी हो. कोई परेशानी हो, तो बताओ. मैं मदद करूंगा…’’

वह शख्स उर्मिला को हमदर्द लगा. उस ने बता दिया कि वह कहां से और क्यों आई है.

वह शख्स उस के पास बैठ गया. अपनापन जताते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम अवधेश सिंह है. मेरा घर पास ही में है. जब तक तुम्हारा पति मिल नहीं जाता, तब तक तुम मेरे घर में रह सकती हो. तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

‘‘मेरी जानपहचान बहुतों से है. तुम्हारे पति को मैं बहुत जल्दी ढूंढ़ निकालूंगा. जरूरत पड़ने पर पुलिस की मदद भी लूंगा.’’ कुछ सोचते हुए उर्मिला ने कहा, ‘‘अपने घर ले जा कर मेरे साथ कुछ गलत हरकत तो नहीं करेंगे?’’

‘‘तुम पति की तलाश करना चाहती हो, तो तुम्हें मुझ पर यकीन करना ही होगा.’’

‘‘आप के घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘यहां मैं अकेला रहता हूं. मेरा बेटा और परिवार गांव में रहता है. मेरी पत्नी नहीं है. उस की मौत हो चुकी है.’’

‘‘तब तो मैं हरगिज आप के घर नहीं रह सकती. अकेले में आप मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं.’’ अवधेश सिंह ने उर्मिला को हर तरह से समझाया. उसे अपनी शराफत का यकीन दिलाया. आखिरकार उर्मिला अपने भाई रतन के साथ अवधेश सिंह के घर पर इस शर्त पर आ गई कि वह उस के घर का सारा काम कर दिया करेगी. उस का खाना भी बना दिया करेगी.

अवधेश सिंह के फ्लैट में 2 कमरे थे. एक कमरा उस ने उर्मिला को दे दिया. शुरू में उर्मिला अवधेश सिंह को निहायत ही शरीफ समझती थी, मगर 10 दिन होतेहोते उस का असली रंग सामने आ गया. अवधेश सिंह अकसर किसी न किसी बहाने से उस के पास आ जाता था. यहां तक कि जब वह रसोईघर में खाना बना रही होती, तो वह उस के करीब आ कर चुपके से उस का अंग छू देता था. कभीकभी तो उस की कमर को भी छू लेता था.

उर्मिला को यह समझते देर नहीं लगी कि उस का मन बेईमान है. वह उस का जिस्म पाना चाहता है.

एक बार उर्मिला का मन हुआ कि वह उस का घर छोड़ कर कहीं और चली जाए, मगर इस विचार को उस ने यह सोच कर तुरंत दिमाग से हटा दिया कि वह जाएगी तो कहां जाएगी? क्या पता दूसरी जगह कोई उस से भी घटिया इनसान मिल जाए.

गणपत के गांव से लौट आने तक उर्मिला को कोलकाता में रहना ही था. उस ने मीठीमीठी रोमांटिक बातों से अवधेश सिंह को उलझा कर रखने का फैसला किया. एक दिन उर्मिला रसोईघर में काम कर रही थी, अचानक वह वहां आ गया. उसी समय किसी चीज के लिए उर्मिला झुकी, तो ब्लाउज के कैद से उस के उभारों का कुछ भाग दिखाई पड़ गया.

फिर तो अवधेश सिंह अपनेआप को काबू में न रख सका. झट से उस ने कह दिया, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. तुम मेरी बन जाओ.’’

सही मौका देख कर उर्मिला ने अवधेश सिंह पर अपनी बातों का जादू चलाने का निश्चय कर लिया.

उर्मिला ने भी झट से कहा, ‘‘मैं भी अपना दिल आप को दे चुकी हूं.’’

अवधेश सिंह खुशी से झूम उठा. उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘सच कह रही हो तुम?’’

‘‘आप तो अच्छे आदमी नहीं हैं. मैं तो आप को शरीफ समझ कर अपना दिल दे बैठी थी, मगर आप ने तो मेरा हाथ पकड़ लिया.’’

अवधेश सिंह ने तुरंत हाथ छोड़ कर कहा, ‘‘तो क्या हो गया?’’

‘‘मेरी एक मुंहबोली भाभी कहती हैं कि किसी का प्यार कबूल करने से पहले कुछ समय तक उस का इम्तिहान लेना चाहिए.

‘‘वे कहती हैं कि जो आदमी झट से हाथ लगा दे, वह मतलबी होता है. प्यार का वास्ता दे कर जिस्म हासिल कर लेता है. उस के बाद छोड़ देता है, इसलिए ऐसे आदमियों के जाल में नहीं फंसना चाहिए.’’ ‘‘तुम मुझे गलत मत समझो उर्मिला. मैं मतलबी नहीं हूं, न ही मेरी नीयत खराब है. तुम जितना चाहो इम्तिहान ले लो, मुझे हमेशा खरा प्रेमी पाओगी.’’

‘‘तो फिर हाथ क्यों पकड़ लिया?’’

‘‘बस यों ही दिल मचल गया था.’’

‘‘दिल पर काबू रखिए. जबतब मचलने मत दीजिए. एक बात साफ बता देती हूं. ध्यान से सुन लीजिए.

‘‘अगर आप मेरा प्यार पाना चाहते हैं, तो सब्र से काम लेना होगा. जिस दिन यकीन हो जाएगा कि आप मेरे प्यार के काबिल हैं, उस दिन हाथ ही नहीं, पैर भी पकड़ने की छूट दे दूंगी. तब तक आप सिर्फ बातों से प्यार जाहिर कीजिए. हाथ न लगाइए.’’

‘‘वह दिन कब आएगा?’’ अवधेश सिंह ने पूछा.

‘‘कम से कम एक महीना तो लगेगा.’’ उर्मिला की चालाकी अवधेश सिंह समझ नहीं पाया और उस की शर्त को मान लिया. अवेधश सिंह सरकारी अफसर था. कोलकाता में वह अकेला ही रहता था. जब तक उस की पत्नी जिंदा थी, वह साल में 4-5 बार गांव जाता था. पत्नी की मौत के बाद उस ने गांव जाना ही छोड़ दिया था. बात यह थी कि पत्नी की मौत के बाद उस ने दूसरी शादी करने का निश्चय किया, जिस का उस के बेटों ने पुरजोर विरोध किया था.

बदलाव : उर्मिला ने चलाया अपने हुस्न का जादू – भाग 1

गांव से चलते समय उर्मिला को पूरा यकीन था कि कोलकाता जा कर वह अपने पति को ढूंढ़ लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोलकाता में 3 दिन तक भटकने के बाद भी पति राधेश्याम का पता नहीं चला, तो उर्मिला परेशान हो गई. हावड़ा रेलवे स्टेशन के नजदीक गंगा के किनारे बैठ कर उर्मिला यह सोच रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए. पास ही उस का 10 साला भाई रतन बैठा हुआ था.

राधेश्याम का पता लगाए बिना उर्मिला किसी भी हाल में गांव नहीं लौटना चाहती थी. उसे वह अपने साथ गांव ले जाना चाहती थी. उर्मिला सहमीसहमी सी इधरउधर देख रही थी. वहां सैकड़ों की तादाद में लोग गंगा में स्नान कर रहे थे.

उर्मिला चमचमाती साड़ी पहने हुई थी. पैरों में प्लास्टिक की चप्पलें थीं. उर्मिला का पहनावा गंवारों जैसा जरूर था, लेकिन उस का तनमन और रूप सुंदर था. उस के गोरे तन पर जवानी की सुर्खी और आंखों में लाज की लाली थी.

हां, उर्मिला की सखीसहेलियों ने उसे यह जरूर बताया था कि वह निहायत खूबसूरत है. उस के अलावा गांव के हमउम्र लड़कों की प्यासी नजरों ने भी उसे एहसास कराया था कि उस की जवानी में बहुत खिंचाव है.

सब से भरोसमंद पुष्टि तो सुहागसेज पर हुई थी, जब उस के पति राधेश्याम ने घूंघट उठाते ही कहा था, ‘तुम इतनी सुंदर हो, जैसे मेरी हथेलियों में चौदहवीं का चांद आ गया हो.’ उर्मिला बोली कुछ नहीं थी, सिर्फ शरमा कर रह गई थी. उर्मिला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक गांव की रहने वाली थी. उस ने 19वां साल पार किया ही था कि उस की शादी राधेश्याम से हो गई.

राधेश्याम भी गांव का रहने वाला था. उर्मिला के गांव से 10 किलोमीटर दूर उस का गांव था. उस के पिता गांव में मेहनतमजदूरी कर के परिवार का पालनपोषण करते थे. उर्मिला 7वीं जमात तक पढ़ी थी, जबकि राधेश्याम मैट्रिक फेल था. वह शादी के 2 साल पहले से कोलकाता में एक प्राइवेट कंपनी में चपरासी था.

शादी के लिए राधेश्याम ने 10 दिनों की छुट्टी ली थी, लेकिन उर्मिला के हुस्नोशबाब के मोहपाश में ऐसा बंधा कि 30 दिन तक कोलकाता नहीं गया. जब घर से राधेश्याम विदा हुआ, तो उर्मिला को भरोसा दिलाया था, ‘जल्दी आऊंगा. अब तुम्हारे बिना काम में मेरा मन नहीं लगेगा.’

उर्मिला झट से बोली थी, ‘ऐसी बात है, तो मुझे भी अपने साथ ले चलिए. आप का दिल बहला दिया करूंगी. नहीं तो वहां आप तड़पेंगे, यहां मैं बेचैन रहूंगी.  उर्मिला ने राधेश्याम के मन की बात कही थी. लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि 4 दोस्तों के साथ वह उर्मिला को रख नहीं सकता था.

सच से सामना कराने के लिए राधेश्याम ने उर्मिला से कहा, ‘तुम 5-6 महीने रुक जाओ. कोई अच्छा सा कमरा ले लूंगा, तो आ कर तुम्हें ले चलूंगा.’ राधेश्याम अंगड़ाइयां लेती उर्मिला की जवानी को सिसकने के लिए छोड़ कर कोलकाता चला गया.

फिर शुरू हो गई उर्मिला की परेशानियां. पति का बिछोह उस के लिए बड़ा दुखदाई था. दिन काटे नहीं कटता था, रात बिताए नहीं बीतती थी. तिलतिल कर सुलगती जवानी से उर्मिला पर उदासीनता छा गई थी. वह चंद दिन ससुराल में, तो चंद दिन मायके में गुजारती.

साजन बिन सुहागन उर्मिला का मन न ससुराल में लगता, न मायके में. मगर ऐसी हालत में भी उस ने अपने कदमों को कभी बहकने नहीं दिया था. पति की अमानत को हर हालत में संभालना उर्मिला बखूबी जानती थी, इसलिए ससुराल और मायके के मनचलों की बुरी कोशिशों को वह कभी कामयाब नहीं होने देती थी.

ससुराल में सासससुर के अलावा 2 छोटी ननदें थीं. मायके में मातापिता के अलावा छोटा भाई रतन था. उर्मिला ने जैसेतैसे बिछोह में एक साल काट दिया. मगर उस के बाद वह पति से मिलने के लिए उतावली हो गई. हुआ यह कि कोलकाता जाने के 6 महीने तक राधेश्याम ने उसे बराबर फोन किया. मगर उस के बाद उस ने फोन करना बंद कर दिया. उस ने रुपए भेजना भी बंद कर दिया.

राधेश्याम को फोन करने पर उस का फोन स्वीच औफ आता था. शायद उस ने फोन नंबर बदल दिया था. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राधेश्याम ने एकदम से परिवार से संबंध क्यों तोड़ दिया?

गांव के लोगों को यह शक था कि राधेश्याम को शायद मनपसंद बीवी नहीं मिली, इसलिए उस ने घर वालों व बीवी से संबंध तोड़ लिया है. लेकिन उर्मिला यह बात मानने के लिए तैयार नहीं थी. वह तो अपने साजन की नजरों में चौदहवीं का चांद थी. राधेश्याम जिस कंपनी में नौकरी करता था, उस का पता उर्मिला के पास था. राधेश्याम के बाबत कंपनी वालों को रजिस्टर्ड चिट्ठी भेजी गई.

15 दिन बाद कंपनी का जवाब आ गया. चिट्ठी में लिखा था कि राधेश्याम 6 महीने पहले नौकरी छोड़ चुका था. सभी परेशान हो गए. कोलकाता जा कर राधेश्याम का पता लगाने के सिवा अब और कोई रास्ता नहीं था. उर्मिला का पिता अपंग था. कहीं आनेजाने में उसे काफी परेशानी होती थी. वह कोलकाता नहीं जा सकता था.

उर्मिला का ससुर हमेशा बीमार रहता था. जबतब खांसी का दौरा आ जाता था, इसलिए वह भी कोलकाता नहीं जा सकता था. हिम्मत कर के एक दिन उर्मिला ने सास के सामने प्रस्ताव रखा, ‘अगर आप कहें, तो मैं अपने भाई रतन के साथ कोलकाता जा कर उन का पता लगाऊं?’

परिवार के लोगों ने टिकट खरीद कर रतन के साथ उर्मिला को हावड़ा जाने वाली ट्रेन में बिठा दिया. राधेश्याम जिस कंपनी में काम करता था, सब से पहले उर्मिला वहां गई. वहां के स्टाफ व कंपनी के मैनेजर ने उसे साफ कह दिया कि 6 महीने से राधेश्याम का कोई अतापता नहीं है. उस के बाद उर्मिला वहां गई, जहां राधेश्याम अपने 4 दोस्तों के साथ एक ही कमरे में रहता था. उस समय 3 ही दोस्त थे. एक गांव गया हुआ था.

तीनों दोस्तों ने उर्मिला का भरपूर स्वागत किया. उन्होंने उसे बताया कि 6 महीने पहले राधेश्याम यह कह कर चला गया था कि उसे एक अच्छी नौकरी और रहने की जगह मिल गई है. मगर सचाई कुछ और थी.

‘कैसी सचाई?’ पूछते हुए उर्मिला का दिल धड़कने लगा.

साधना कक्ष : बाबा ने की हद पार

बच्चा न ठहरने के चलते अंजलि को अकसर मोहन के ताने भी सुनने पड़ रहे थे इसलिए वह कुछ दिनों के लिए मायके में अपनी मां के पास चली आई.

मां को जब इस की वजह पता चली तो उस ने अंजलि से कहा कि वह एक पहुंचे हुए बाबा को जानती है जो बहुत सी औरतों की गोद हरी कर चुके हैं.

अंजलि झाड़फूंक करने वाले बाबाओं और पीरफकीरों पर जरा भी यकीन नहीं करती थी इसलिए उस ने मां को साफ मना कर दिया.

मां ने उस से कहा कि अगर वह बाबा के पास नहीं जाना चाहती है तो अपने पति के घर वापस लौट जाए.

जब अंजलि ने मोहन से बात की तो उस ने कहा कि वह उस से तलाक लेना चाहता है क्योंकि उसे बच्चा नहीं हो रहा है. ऐसे में अंजलि के पास मां की बात मानने के सिवा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा था.

एक दिन जब अंजलि मां के साथ बाबा के आश्रम पहुंची तो पता चला कि उस आश्रम में मर्दों के आने की मनाही थी. उस आश्रम में उस बाबा को छोड़ उस के तीमारदारों में सिर्फ औरतें ही शामिल थीं.

बाबा की शिष्याओं ने अंजलि से एक कागज के टुकड़े पर बिना किसी को दिखाए अपनी मनपसंद मिठाई का नाम लिखने को कहा.

अंजलि को कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन वह मां की इच्छा रखने के लिए सबकुछ करती गई.

अंजलि ने उस कागज पर मनपसंद मिठाई का नाम लिख कर उसे एक डब्बे में रख दिया जिस में बाबा की शिष्याओं ने ताला लगा कर अंजलि को यह कहते हुए उस के हाथ में थमा दिया कि वह इस डब्बे को ले कर साधना कक्ष में जाए.

बाबा अपनी चमत्कारी ताकतों की बदौलत यह जान गए होंगे कि उस ने इस कागज में क्या लिखा है.

साधना कक्ष में पहुंचने पर उसे वही मिठाई खाने को मिलेगी, जो उस ने इस कागज पर लिखी है.

अंजलि जब बाबा के पास साधना कक्ष में जाने लगी तो उस की मां भी उस के साथ हो ली.

बाबा ने अंजलि को वही मिठाई खाने को दी जो उस ने उस कागज पर लिखी थी तो वह हैरान रह गई, क्योंकि अंजलि के सिवा किसी को भी यह नहीं पता था कि उस ने उस कागज पर क्या लिखा है. उस ने बहुत दिमाग दौड़ाया लेकिन गुत्थी सुलझी नहीं.

समस्या जान कर बाबा ने अंजलि से कहा, ‘‘अगर तुम पेट से होना चाहती

हो तो तुम्हें रातभर इस कमरे में अकेले ही रहना होगा क्योंकि यह मेरा साधना कक्ष है. इस कक्ष में सोने से तुम्हारी गोद यकीनन हरी हो जाएगी.’’

अंजलि को इस कमरे में अकेले रात बिताने पर एतराज था. इस पर बाबा ने कहा, ‘‘इस कमरे में कोई और दरवाजा नहीं है और तुम अकेली ही रहोगी. तुम इस कमरे में अपने साथ लाए गए ताले को लगा लेना, जिस की एक चाबी तुम्हारी मां के पास रहेगी. कमरे में किसी के घुसने का सवाल ही नहीं उठता है.’’

अंजलि बेमन से कमरे में रात बिताने को तैयार हुई. बाबा और उस की मां जब कमरे से बाहर निकलने लगे तो बाबा बोला, ‘‘अंजलि, जो प्रसाद मैं ने तुम्हें दिया है, उसे अभी खा लो.’’

अंजलि ने मिठाई खा ली. बाबा ने बाहर निकलने के बाद कमरे में ताला लगा कर चाबी अंजलि की मां को दे दी.

उधर मिठाई खाने के बाद अंजलि पर अजीब सी खुमारी छाने लगी थी. वह अपनी सुधबुध खोने लगी थी और उस की नींद तब खुली, जब दूसरे दिन की सुबह उस की मां ने बंद कमरे का दरवाजा खोला.

अंजलि कमरे से बाहर निकलते समय सोच रही थी कि उस मिठाई में ऐसा क्या था, जिसे खाने के बाद उसे अजीब सी खुमारी छा गई और इस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं चला. लेकिन वह बेफिक्र भी थी, क्योंकि

उस कमरे की चाबी उस की मां के पास थी और कमरे में घुसने का कोई दूसरा दरवाजा भी नहीं था.

अंजलि को बाबा के आश्रम से लौटे 2 महीने बीत चुके थे कि एक दिन अचानक उसे उलटियां होने लगीं. उस ने अपने डाक्टर दोस्त रमेश से जब चैकअप कराया तो पता चला कि वह पेट से है.

डाक्टर रमेश की बात का अंजलि को यकीन ही नहीं हुआ क्योंकि उसे पति से अलग हुए 5 महीने से ऊपर बीत चुके थे, फिर वह पेट से कैसे हो सकती है?

अंजलि ने डाक्टर रमेश से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, आप एक बार फिर से रिपोर्ट देख लीजिए. कहीं ऐसा न हो कि जांच रिपोर्ट में कोई खामी हो.’’

लेकिन डाक्टर रमेश ने कहा कि उस की रिपोर्ट बिलकुल सही है और वह पेट से है.

घर पहुंचने पर अंजलि ने अपनी मां से पेट से होने की बात बताई तो मां की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. लेकिन जब अंजलि बोली कि वह मोहन से 5 महीने से मिली ही नहीं है, तो ऐसा कैसे हो सकता है.

अंजलि बोली, ‘‘मां, बाबा के आश्रम में मेरे साथ रेप किया गया है. कहीं तुम ने बाबा के साधना कक्ष की चाबी किसी को दी तो नहीं थी?’’

मां बोली, ‘‘नहींनहीं, मैं ने सारी रात चाबी अपने पास ही रखी थी और सुबह दरवाजा भी मैं ने ही खोला था.’’

अंजलि यह बात मानने को तैयार न थी. उस का कहना था कि बाबा के आश्रम में ही रेप हुआ है, जिस के चलते वह पेट से हुई है. लेकिन उस की मां बाबा के खिलाफ एक बात सुनने को राजी न थी. वह तो इसे बाबा का चमत्कार मान रही थी.

अंजलि ने यह बात जब मोहन को फोन कर के बताई तो उस ने उस पर ही चरित्रहीन होने का लांछन लगा दिया और कभी भी फोन न करने की बात कह कर फोन काट दिया.

उधर अंजलि को अब पूरा यकीन हो चुका था कि उस रात बाबा के आश्रम में उस के साथ कोई तो हमबिस्तर हुआ था. हो न हो, उस कमरे में कोई गुप्त दरवाजा है जिस के रास्ते कोई उस कमरे में घुसता है और साधना कक्ष में पेट से होने के लालच में रात बिताने वाली औरतों के साथ रेप करता है.

अंजलि ने अब निश्चय कर लिया था कि वह उस पाखंडी बाबा की हकीकत दुनिया के सामने ला कर रहेगी.

अंजलि ने अपने मन की बात मां को बताई तो मां बाबा के खिलाफ जाने को तैयार न हुई, पर जब अंजलि ने अपनी जान देने की बात कही तो मां उस का साथ देने को तैयार हो गई.

अंजलि इस बार फिर बाबा के आश्रम पहुंची और उस ने बाबा को बताया कि वह उन के चमत्कार से पेट से तो हो गई है, लेकिन उस का पति उस से तलाक ले कर दूसरी शादी करने जा रहा है. ऐसे में वह नहीं चाहती है कि वह पेट से हो, इसलिए वह चमत्कार कर के उसे पेट से होने से रोक लें.

बाबा ने अंजलि को एक पुडि़या दे कर कहा, ‘‘तुम इस चमत्कारी भभूत का सेवन करो. इस से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और पेट में पल रहा बच्चा भी अपनेआप छूमंतर हो जाएगा.’’

अंजलि बाबा के आश्रम से घर आई और उस बाबा द्वारा दी गई भभूत को डाक्टर रमेश के पास ले गई.

डाक्टर रमेश ने उस भभूत को लैब में टैस्ट के लिए भेजा तो उस में बच्चा गिराने की दवा निकली.

अब अंजलि को पूरा यकीन हो चुका था कि बाबा के आश्रम में औरतों के साथ जबरदस्ती सैक्स संबंध बनाने का खेल खेला जा रहा है.

अंजलि दोबारा उस बाबा के आश्रम में पहुंची और बाबा से बोली, ‘‘बाबा, आप की चमत्कारी भभूत के चलते पेट में पल रहा मेरा बच्चा अपनेआप छूमंतर हो गया है. मेरे पति मुझे अपनाने को तैयार हो गए हैं. उन्होंने एक शर्त रखी है कि इस बार मुझे वे तभी वापस ले जाएंगे, जब मैं वहां जाने पर पेट से हो जाऊं.

‘‘मैं चाहती हूं कि आप के चमत्कार से एक बार फिर मैं पेट से हो जाऊं, क्योंकि इस बार अगर मैं पेट से न हुई तो वे मुझे हमेशा के लिए छोड़ देंगे.’’

बाबा ने कहा, ‘‘तुम दोबारा पेट से हो सकती हो. बस, एक रात साधना कक्ष में गुजारनी होगी.’’

अंजलि साधना कक्ष में रात गुजारने को तैयार हो गई, पर इस बार उस ने पुलिस से मिल कर उस बाबा की असलियत बता दी थी. लेकिन पुलिस बिना सुबूत उस बाबा पर हाथ नहीं डाल सकती थी इसलिए पुलिस ने अंजलि को सुबूत इकट्ठा करने के लिए फिर से बाबा के पास जाने को कहा था.

इस बार अंजलि पूरी तैयारी के साथ बाबा के आश्रम में आई थी और बोली कि उस की माहवारी आने के बाद का 13वां दिन है.

साधना कक्ष में बैठा बाबा अंजलि के साथ आई दूसरी औरत को देख कर चौंक गया और पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

अंजलि ने बताया, ‘‘ये मेरी मौसी हैं. आज मां की तबीयत खराब होने के चलते मौसी के साथ आना पड़ा.’’

हकीकत तो यह थी कि अंजलि के साथ आई वह औरत पुलिस वाली थी. बाबा के आश्रम में महिला पुलिस भी श्रद्धालुओं के रूप में फैली हुई थी.

बाबा ने अंजलि को फिर वही मिठाई खाने को दी जो उस ने परची पर लिखी थी. लेकिन इस बार अंजलि को जरा भी हैरानी नहीं हुई क्योंकि उसे यह पता चल चुका था कि बाबा को परची पर लिखी गई हर बात पता चल जाती है. इस के पीछे कोई न कोई राज जरूर था, जिस से आज परदा उठने वाला था.

अंजलि इसी सोच में डूबी थी कि बाबा की आवाज उस के कानों में गूंजी, ‘‘अब तुम रात बिताने को तैयार हो. जाओ और मिठाई खा कर आराम करो.’’

इतना कह कर बाबा बाहर चला आया और अंजलि के साथ आई मौसी से साधना कक्ष में ताला लगवा कर अपनी आरामगाह में चला गया.

साधना कक्ष में बंद अंजलि ने इस बार बाबा की दी हुई मिठाई नहीं खाई. वह बाबा का हर राज जान लेना चाहती थी. उस ने जब कमरे को बारीकी से देखा तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया जिस से उस कमरे में आने के दूसरे रास्ते के बारे में पता चल पाए.

तभी अंजलि की नजर बाबा के साधना कक्ष के कोने में रखी अलमारी पर गई. उस ने जैसे ही अलमारी के दरवाजे का हैंडल पकड़ कर खोला तो दरवाजा खुल गया.

यह देख कर अंजलि चौंक गई, क्योंकि वह नाममात्र की अलमारी थी. इस कमरे में घुसने का एक खुफिया दरवाजा था, जो दूसरे कमरे में जा कर खुलता था. बगल वाले कमरे में एक बड़ी सी स्क्रीन लगी हुई थी जो पूरे आश्रम का नजारा दिखा रही थी.

तभी अंजलि की नजर एक छोटी सी स्क्रीन पर गई. उस ने उस स्क्रीन पर चल रहे नजारों में जो देखा, उस के बाद उसे परची पर लिखी हर बात के बारे में बाबा को पता चल जाने का सारा राज समझ में आ गया था, क्योंकि जहां पर बैठ कर औरतें अपनी मनपसंद मिठाई का नाम लिखती थीं, वहां आसपास छिपा हुआ कैमरा लगा था.

बाबा इस कमरे में बैठ कर जान लेता था कि किस ने कौन सी मिठाई का नाम लिखा है, फिर उस में वह बेहोशी की दवा मिला कर खुफिया दरवाजे से साधना कक्ष में आ जाता था.

अंजलि को उस कमरे में तरहतरह की मिठाइयां एक फ्रिज में रखी हुई भी मिल गई थीं. तभी उसे बगल के कमरे से कुछ खटपट की आवाज सुनाई दी. वह समझ गई कि इस कमरे में बाबा के आने का समय हो गया है. वह बड़ी सावधानी से साधना कक्ष में लौट आई. वह अपने साथ आई महिला पुलिस को फोन करना नहीं भूली.

अंजलि साधना कक्ष के बिस्तर पर बेहोशी का नाटक कर के पड़ी थी. बाबा साधना कक्ष में आ चुका था.

अंजलि सबकुछ कनखियों से देख रही थी. बाबा अपने कपड़े उतार चुका था. वह अंजलि के ऊपर झुकने ही वाला था कि अंजलि का झन्नाटेदार थप्पड़ बाबा के कान पर पड़ा.

बाबा खुद को संभालते हुए अंजलि पर झपटा लेकिन अंजलि का पैर बाबा के अंग वाले हिस्से पर पड़ा और वह गश खा कर गिर गया.

अंजलि जोर से चिल्लाई. इसी के साथ कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुल गया और एकसाथ कई पुलिस वाले कमरे में धड़धड़ाते हुए घुस आए.

बाबा खुद को संभालते हुए खुफिया दरवाजे की तरफ लपका. पुलिस वाले भी उसे पकड़ने के लिए उस तरफ लपके, लेकिन तब तक बाबा कहां छूमंतर हो गया, पता ही नहीं चला.

पुलिस चारों तरफ से आश्रम को घेर चुकी थी लेकिन बाबा आश्रम में कहीं नहीं मिला. तभी आश्रम की एक साध्वी ने जो बताया, उस से पुलिस वाले भी चौंक गए.

उस साध्वी ने बताया, ‘‘मेरी बहन भी इस बाबा के चक्कर में पड़ कर इस की शिष्या बन गई थी. लेकिन वह एक दिन बाबा का राज जान गई और उस ने बाबा की सारी करतूतों का वीडियो भी बना लिया था. तभी बाबा को यह बात पता चल गई और उस ने मेरी बहन को गायब करा दिया.

‘‘तब से मैं अपनी बहन की खोज में यहां पर बाबा की शिष्या बन कर उस के खिलाफ सुबूत इकट्ठा कर रही हूं. इसी दौरान आश्रम में बनाए गए खुफिया ठिकानों के बारे में भी मुझे पता चला.

‘‘बाबा ने आश्रम के अंदर एक खुफिया कमरा बना रखा है जिस में वह खुद के खिलाफ जाने वालों को न केवल कैद करता है बल्कि उन की हत्या कर के उन्हें वहीं दफना भी देता है.’’

उस शिष्या ने पुलिस वालों को आश्रम के पीछे झाड़झंखाड़ में बने एक गुप्त रास्ते से उस खुफिया कमरे तक पहुंचा दिया. वहां छिपा बाबा धर दबोचा गया. उस कमरे से पुलिस को भारी मात्रा में हथियार और कैद की गई औरतें भी मिलीं. उस कमरे में कई कब्रें भी थीं जिन की खुदाई से कई औरतों की अस्थियां बरामद हुईं.

अंजलि की सूझबूझ से पाखंडी बाबा के साधना कक्ष में औरतों के पेट से होने का राज खुल चुका था.

ऐसा भी होता है बौयफ्रैंड : क्या था दीपक का असली रंग

सफेद कपड़े पहने होने के बावजूद उस का सांवला रंग छिपाए नहीं छिप रहा था. करीब जा कर देखने से ही पता चलता था कि उस के गौगल्स किसी फुटपाथी दुकान से खरीदे गए थे. बालों पर कई बार कंघी फिरा चुका वह करीब 20-22 साल की उम्र का युवक पिछले एक घंटे से बाइक पर बैठा कई बार उठकबैठक लगा चुका था यानी कभी बाइक पर बैठता तो कभी खड़ा हो जाता. काफी बेचैन सा लग रहा था.

इस दौरान वह गुटके के कितने पाउच निगल चुका, उसे शायद खुद भी न पता होगा. गहरे भूरे रंग के गौगल्स में छिपी उस की निगाहों को ताड़ना आसान नहीं था. अलबत्ता जब भी उस ने उन्हें उतारने की कोशिश की, तो साफ जाहिर था कि उस की निगाहें गर्ल्स स्कूल की इमारत के दरवाजे से टकरा कर लौट रही थीं. तभी उस दरवाजे से एक भीड़ का रेला निकलता नजर आया. अब तक बेपरवाह वह युवक बाइक को सीधा कर तन कर खड़ा हो गया.

इंतजार के कुछ ही पल बेचैनी में गुजरे, तभी पसीनापसीना हुए उस लड़के के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उस ने एक बार फिर बालों पर कंघी फिराई और गौगल्स ठीक से आंखों पर चढ़ाए. मुंह की आखिरी पीक पिच्च से थूकते हुए होंठों को ढक्कन की तरह बंद कर लिया.

तेजी से अपनी तरफ आती लड़की को पहचान लिया था, वह प्रिया ही थी. प्रिया खूबसूरत थी और उस के चेहरे पर कुलीनता की छाप थी. खूबसूरत टौप ने उस में गजब की कशिश पैदा कर दी थी. बाइक घुमाते हुए उस ने पीछे मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसे एहसास हो गया था कि प्रिया बाइक की पिछली सीट पर बैठ चुकी है. तभी उसे अपनी पीठ पर पैने नाखून चुभने का एहसास हुआ और हड़बड़ाया स्वर सुनाई दिया, ‘‘प्लीज, जल्दी करो, मेरी सहेलियों ने देख लिया तो गजब हो जाएगा?’’

‘‘बाइक पर किक मारते ही लड़के ने पूछा, ‘‘कहां चलना है, सिटी मौल या…’’

फर्राटा भरती बाइक के शोर में लड़के को सुनाई दे गया था, ‘‘कहीं भी…जहां तुम ठीक समझो?’’

‘‘कहीं भी?’’ प्रिया की आवाज में घुली बेचैनी को वह समझ गया था. फिर भी मजाकिया लहजे में बोला. ‘‘तो चलें वहीं, जहां पहली बार…’’ बाकी शब्द पीठ पर चुभते नाखूनों की पीड़ा में दब गए. लेकिन इस बार उस के कथन में मजाक का पुट नहीं था… ‘‘तो फिर सिटी मौल चलते हैं?’’

‘‘नहीं, वहां नहीं,’’ प्रिया जैसे तड़प कर बोली, ‘‘तुम समझते क्यों नहीं दीपक, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

तभी दीपक ने अपना एक हाथ पीछे बढ़ा कर लड़की की कलाई थामने की कोशिश की तो उस ने अपना गोरा नाजुक हाथ उस के हाथ में दे दिया और उस की पीठ से चिपक गई? दीपक को बड़ी सुखद अनुभूति हुई, तभी बाइक जोर से डगमगाई. उस ने फौरन लड़की का हाथ छोड़ दिया और बाइक को काबू करने की कोशिश करने लगा.

‘‘क्या हुआ?’’ लड़की घबरा कर बोली. अब वह दीपक की पीठ से परे सरक गई.

‘‘बाइक का पहिया बैठ गया मालूम होता है,’’ दीपक बोला, ‘‘शायद पंचर है,’’ उस ने बाइक को सड़क के किनारे लगाते हुए खड़ी कर दी. अब तक वे शहर से काफी दूर आ चुके थे. यह जंगली इलाका था और आसपास घास के घने झुरमुट थे.

तब तक प्रिया उस के करीब आ गई थी. उस ने आसपास नजर डालते हुए कहा, ‘‘अब वापस कैसे चलेंगे?’’ उस के स्वर में घबराहट घुली थी. लड़के ने एक पल चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा, चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. दीपक ने प्रिया की कलाई थाम कर उसे अपनी तरफ खींचा. प्रिया ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया, लेकिन अगले ही पल अर्थपूर्ण स्वर से बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘तनहाई हो, लड़कालड़की दोनों साथ हों और मिलन का अच्छा मौका हो तो लड़का क्या करेगा?’’ उस ने हाथ नचाते हुए कहा.

प्रिया छिटक कर दूर खड़ी हो गई. ‘‘ये सब गलत है, यह सबकुछ शादी के बाद, अभी कोई गड़बड़ नहीं. अभी तो वापसी की जुगत करो,’’ प्रिया ने बेचैनी जताई, ‘‘कितनी देर हो गई? घर वाले पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगी?’’

दीपक ने बेशर्मी से कहा, ‘‘यह तुम सोचो,’’ इस के साथ ही वह ठठा कर हंस पड़ा और लपक कर प्रिया को बांहों में भर लिया, ‘‘ऐसा मौका बारबार नहीं मिलता, इसे यों ही नहीं गंवाया जा सकता?’’

‘‘लेकिन जानते हो, अभी मेरी उम्र शादी की नहीं है. अभी मैं सिर्फ 15 साल की हूं, इस के लिए तुम्हें 3 साल तक  इंतजार करना होगा,’’ प्रिया ने उस की गिरफ्त से मुक्त होने की कोशिश की.

‘‘लेकिन प्यार करने की तो है,’’ और उस की गिरफ्त प्रिया के गिर्द कसती चली गई. प्रिया का शरीर एक बार विरोध से तना, फिर ढीला पड़ गया. घास के झुरमुटों में जैसे भूचाल आ गया. करीब के दरख्तों पर बसेरा लिए पखेरू फड़फड़ कर उड़ गए.

करीब एक घंटे बाद दोनों चौपाटी पहुंचे और वहां बेतरतीब कतार में खड़े एक कुल्फी वाले से फालूदा खरीदा. गिलास से भरे फालूदा का हर चम्मच निगलने के बाद प्रिया दीपक की बातों पर बेसाख्ता खिलखिला रही थी. उन के बीच हवा गुजरने की भी जगह नहीं थी, क्योंकि दोनों एकदूसरे से पूरी तरह से सटे बैठे थे.

सलमान खान बनने की कोशिश में दीपक आवारागर्दी पर उतर आया था और उस ने प्रिया के गले में अपनी बांह पिरो दी थी. लेकिन इस पर प्रिया को कोई एतराज नहीं था. उस ने फालूदा खा कर गिलास ठेले वाले की तरफ बढ़ा दिया. प्रिया के पर्स निकालने और भुगतान करने तक दीपक कर्जदार की तरह बगलें झांकता रहा. उस ने ऐसे मौकों पर मर्दों वाली तहजीब दिखाने की कोई जहमत नहीं उठाई.

3 युवक एक मोटरसाइकिल पर आए और प्रिया के पास आ कर रुके. शायद ये दीपक के यारदोस्त थे. उन्होंने हाथ तो उस की तरफ हिलाया, लेकिन असल में सब प्रिया की तरफ देख रहे थे. प्रिया ने उड़ती सी नजर उन पर डाली और दूसरी तरफ देखने लगी.

उन्होंने दीपक का हालचाल पूछा तो वह उन की तरफ बढ़ा और दांत निपोरने के साथ ही मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे लड़के की पीठ पर धौल जमाया, ऐसे ही मूड बन गया था यार, आइसक्रीम खाने का..’’

‘‘बढि़या है…बढि़या है यार…’’ इस बार वह लड़का बोला जो बाइक चला रहा था. वह प्रिया से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘मैं, आप के फ्रैंड का जिगरी दोस्त.’’

यह सुन प्रिया मुसकराई. उस के चेहरे पर आए उलझन के भाव खत्म हो गए. लड़के ने उस की तरफ बढ़ने के लिए कदम बढ़ाए, लेकिन एकाएक ठिठक कर रह गया. प्रिया कंधे पर रखा बैग झुलाती हुई सामने पार्किंग में खड़ी अपनी स्कूटी की तरफ बढ़ी. उस लड़के ने खास अदा के साथ हाथ हिलाया. प्रिया एक बार फिर मुसकराई और स्कूटी से फर्राटे से आगे बढ़ गई.

यह देख चंदू निहाल हो गया. उस ने हकबकाए से खड़े दीपक पर फब्ती कसी. ‘‘अबे, क्यों बुझे हुए हुक्के की तरह मुंह बना रहा है? लड़की तू ने फंसाई तो क्या हुआ? दावत तो मिलबैठ कर करेंगे न?’’ तब तक दीपक भी कसमसा कर उन के बीच में सैंडविच की तरह ठुंस गया. बाइक फौरन वहां से भाग निकली. चंदू के ठहाके बाइक के शोर में गुम हो चुके थे.

2 महीने बाद… पुलिस स्टेशन के उस कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. पैनी धार जैसी नीरवता पुलिस औफिसर के सामने बैठी एक कमसिन लड़की की सिसकियों से भंग हो रही थी. उस का चेहरा आंसुओं से तरबतर था. वह कहीं शून्य में ताक रही थी. शायद कुरसी पर बैठे उस के मातापिता थे, उन के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. शर्म और ग्लानि के भाव उन पर साफ दिखाई दे रहे थे. पुलिस औफिसर शायद प्रिया की आपबीती सुन चुका था. उस का चेहरा गंभीर बना हुआ था. उन्होंने सवालिया निगाहों से प्रिया की तरफ देखा, ‘‘तुम्हारी उस लड़के से जानपहचान कैसे हुई?’’

प्रिया का मौन नहीं टूटा. इस बार औफिसर की आवाज में सख्ती का पुट था, ‘‘जो कुछ हुआ तुम्हारी नादानी से हुआ, लेकिन अब मामला पुलिस के पास है तो तुम्हें सबकुछ बताना होगा कि तुम्हारी उस से मुलाकात कैसे हुई?’’

प्रिया ने शायद पुलिस औफिसर की सख्ती भांप ली थी. एक पल वह उलझन में नजर आई, फिर मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘एक बार मैं शौप पर कुछ खरीद रही थी, लेकिन जब पैसे देने लगी तो हैरान रह गई, मेरा पर्स मेरी जेब में नहीं था. उधर, दुकानदार बारबार तकाजा कर कह रहा था, ‘कैसी लड़की हो? जब पैसे नहीं थे तो क्यों खरीदा यह सब.’ मुझे याद नहीं रहा कि पर्स कहां गिर गया था, लेकिन दुकानदार के तकाजे से मैं शर्म से गड़ी जा रही थी. तभी एक लड़का, मेरा मतलब, दीपक अचानक वहां आया और दुकानदार को डांटते हुए बोला, ‘कैसे आदमी हो तुम?’ लड़की का पर्स गिर गया तो इस का मतलब यह नहीं हुआ कि तुम उसे इस तरह बेइज्जत करो? अगले ही पल उस ने जेब से पैसे निकाल कर दुकानदार को थमाते हुए कहा, ‘यह लो तुम्हारे पैसे.’ इस के साथ ही वह मुझे हाथ पकड़ कर बाहर ले आया.’’

प्रिया ने डबडबाई आंखों से पुलिस औफिसर की तरफ देखा और बात को आगे बढ़ाया, ‘‘यह सबकुछ इतनी अफरातफरी में हुआ कि मैं उसे न तो पैसे देने से रोक सकी और न ही उस से अधिकारपूर्वक हाथ पकड़ कर खुद को शौप से बाहर लाने का कारण पूछ सकी.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ पुलिस औफिसर ने सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘फिर अगली मुलाकात कब हुई और यह मुलाकातों का सिलसिला कैसे चल निकला.’’

इस बार वहां बैठे दंपती एकटक बेटी की ओर देख रहे थे. उन की तरफ से आंखें चुराते हुए प्रिया ने बातों का सूत्र जोड़ा, ‘‘फिर यह अकसर स्कूल की छुट्टी के बाद मुझ से मिलने लगा. हम कभी आइसक्रीम शौप जाते, कभी मूवी या फिर घंटों गार्डन में बैठे बतियाते रहते.’’

‘‘मतलब वह लड़का पूरी तरह तुम्हारे दिलोदिमाग पर छा गया था?’’

प्रिया ने एक पल अपने मातापिता की तरफ देखा. उन का हैरत का भाव प्रिया से बरदाश्त नहीं हुआ, लेकिन पुलिस औफिसर की बातों का जवाब देते हुए उस ने कहा, ‘‘हां, मुझे यह अच्छा लगने लगा था. वह जब भी मिलता, मुझे गिफ्ट देता और कहता, ‘बड़ी हैसियत वाला हूं मैं, शादी तुम्हीं से करूंगा.’’

‘‘अभी शादी की उम्र है तुम्हारी?’’ पुलिस औफिसर के स्वर में भारीपन था. प्रिया चाह कर भी बहस नहीं कर सकी. उस ने सिर झुकाए रखा, ‘‘दरअसल, सहेलियां कहती थीं कि जिस का कोई बौयफ्रैंड नहीं उस की कोई लाइफ नहीं. बस, मुझे दीपक को पा कर लगा था कि मेरी लाइफ बन गई है.’’

‘‘क्योंकि तुम्हें बौयफ्रैंड मिल गया था, इसलिए,’’ पुलिस औफिसर ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘क्या उस से फ्रैंडशिप का तुम्हारे मातापिता को पता था? जब तुम देरसवेर घर आती थी तो क्या बहाने बनाती थी?’’ पुलिस औफिसर ने तीखी निगाहों से दंपती की तरफ भी देखा, लेकिन वे उन से आंख नहीं मिला सके.

उस की मम्मा ने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘‘हम से तो इतना भर कहा जाता था कि आज सहेली की बर्थडे पार्टी थी या ऐक्स्ट्रा क्लास में लेट हो गई या फिर…’’ लेकिन पति को घूरते देख उस ने अपने होंठ सी लिए.

पुलिस औफिसर ने बात काटते हुए कहा, ‘‘कैसे गैरजिम्मेदार मांबाप हैं आप? लड़की जवानी की दहलीज पर कदम रख रही है, उस के आनेजाने का कोई समय नहीं है, और आप को उस की कतई फिक्र नहीं है, लड़की की बरबादी के असली जिम्मेदार तो आप हैं. मेरी नजरों में तो सजा के असली हकदार आप लोग हैं.’’

लड़की को घूरते हुए पुलिस औफिसर ने बोला, ‘‘बौयफ्रैंड का मतलब भी समझती हो तुम? बौयफ्रैंड वह है जो हिफाजत करे, भलाई सोचे. तुम पेरैंट्स को बेवकूफ बना रही थी और लड़का तुम को  इमोशनली बेवकूफ बना रहा था.’’

पुलिस औफिसर के स्वर में हैरानी का गहरा पुट था, ‘‘कैसा बौयफ्रैंड था तुम्हारा कि उस ने तुम्हारे साथ इतना बड़ा फरेब किया? तुम्हें बिलकुल भी पता नहीं लगा. विश्वास कैसे कर लिया तुम ने उस का कि उस ने तुम्हारी आपत्तिजनक वीडियो क्लिपिंग बना ली और तुम्हें जरा भी भनक नहीं लगी?’’

‘‘वह कहता था कि मेरा फिगर मौडलिंग लायक है, मुझे विज्ञापन फिल्मों में मौका मिल सकता है, लेकिन इस के लिए मुझे बस थोड़ी झिझक छोड़नी पड़ेगी. काफी नर्वस थी मैं, लेकिन कोल्डड्रिंक पीने के बाद कौन्फिडैंस आ गया था.’’

झल्लाते हुए पुलिस औफिसर ने कहा, ‘‘नशा था कोल्डड्रिंक में क्या, और उस कौन्फिडैंस में तुम ने क्या कुछ गंवा दिया, पता नहीं है तुम्हें?’’ क्रोध से बिफरते हुए पुलिस औफिसर ने लड़की को खा जाने वाली नजरों से देखा.

खुश्क होते गले में प्रिया ने जोर से थूक निगला. उस ने बेबसी से गरदन हिलाई और चेहरा हथेली से ढांप कर फफक पड़ी. उस की सिसकियां तेज होती चली गईं. अपनी ही बेवकूफी के कारण उसे यह दिन देखना पड़ा था. दीपक पर उस ने आंख मूंद कर भरोसा कर लिया था, इसलिए उस के इरादे क्या हैं, यह नहीं समझ सकी. काश, उस ने समझदारी से काम लिया होता. पर अब क्या हो सकता था.