मैडम जी : प्रमोदजी को बनाया निशाना

‘‘प्रमोदजी, मैं यह क्या सुन रही हूं…’’ गीता मैडम पार्टी के इलाकाई प्रभारी प्रमोदजी के दफ्तर में कदम रखते हुए बोली.

‘‘क्या हुआ मैडमजी… इतना गुस्सा क्यों हो?’’ प्रमोदजी के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वे मैडमजी के गुस्से की वजह जानते हैं.

‘‘प्रमोदजी, बताएं कि पार्टी ने आने वाले इलैक्शन में मेरी जगह उस कल की आई लड़की सारिका को टिकट देने का फैसला किया है. कल की आई वह लड़की आज आप के लिए इतनी खास हो गई है कि उस को मेरी जगह दी जा रही है?’’

‘‘अरे मैडमजी, आप कहां सब की बातों में आ रही हैं. आप तो पार्टी की पुरानी कार्यकर्ता हैं. आप ने तो पार्टी के लिए बहुतकुछ किया है. हम भी आप के बारे में सोचते, पर नेताजी के निर्वाचन समिति को आदेश हैं कि इस बार सब नए लोगों को ही आगे करना है…

‘‘दूसरी पार्टियां रोज नएनए चेहरों के साथ अखबारों में बने रहना चाहती हैं. बस, जनता को दिखाने के लिए हमारी पार्टी भी खूबसूरत चेहरों को आगे लाना चाहती है. ये कल के आए बच्चे हमारी और आप की जगह थोड़े ही ले सकते हैं,’’ बात करतेकरते प्रमोदजी ने अपना हाथ मैडमजी के हाथ पर रख दिया, ‘‘मैडमजी, हमारी नजर से देखो, तो उस सारिका से लाख गुना खूबसूरत हैं आप. पर नेताजी को कौन समझाए.’’

प्रमोदजी के चेहरे की मुसकान उन के इरादे साफ बता रही थी, पर छोटू की चाय ने उन को अपना हाथ मैडमजी के हाथ से हटाने पर मजबूर कर दिया.

छोटू चाय रख कर चला गया, तो मैडमजी ने फिर अपनी नाराजगी जताई, ‘‘प्रमोदजी, आप इन बातों से मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. आप के कहने पर मैं ने पिछली बार भी परचा नहीं भरा, क्योंकि आप चाहते थे कि आप की भाभी इलैक्शन लड़े. तब मैं भी नई थी और आप की बात मान गई थी.

‘‘पर अब क्या? सारिका 2 साल पहले पार्टी से जुड़ी है और उस को टिकट मिल रहा है. यह गलत है.

‘‘आप एक बार मेरी मुलाकात नेताजी से तो कराइए.

‘‘प्रमोदजी, मैं ने हमेशा वही किया है, जो आप ने कहा. कितनी बार आप के कहने पर झूठ भी बोला…यहां तक कि आप के कहने पर उस मनोहर पर गलत आरोप भी लगाए, ताकि आप इस कुरसी पर बने रहें. पर मुझे क्या मिला?

‘‘प्रमोदजी, आप जो कहेंगे, मैं करूंगी. बस, एक बार टिकट दिलवा दीजिए, फिर देखिए जीत तो मेरी पक्की है. आप समझ रहे हैं न,’’ इस बार मैडमजी ने प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया.

जब मैडमजी ने खुद प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया, तो उन की तो मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने मैडमजी को भरोसा दिया कि वे आज ही नेताजी से उन के लिए बात करेंगे.

मैडमजी अपना धूप का चश्मा सिर से वापस आंखों पर लगा कर दफ्तर से घर चली आईं.

‘‘क्या बात है गीता, आज जल्दी घर आ गईं? कोई पार्टी या मीटिंगविटिंग नहीं थी आज?’’

घर में आते ही मैडमजी सिर्फ गीता बन जाती थीं, जो मैडमजी को बिलकुल पसंद नहीं था.

अपने पति की यह बात सुन कर वे एकदम चिढ़ गईं और बिना जवाब दिए अपने कमरे में चली गईं.

मैडमजी को पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को कमी थी तो एक पहचान की. मैडमजी सुनने की आदत हो गई थी उन को. उन का यही सपना था कि लोग सलाम करें, हाथ जोड़ कर आगेपीछे घूमें. वे सत्ता का नशा चखना चाहती थीं और इस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थीं.

‘‘क्या बात है गीता, बहुत परेशान दिख रही हो?’’ कहते हुए समीर ने कमरे की बत्ती जलाई, तो मैडमजी को एहसास हुआ कि रात हो गई है.

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, सिरदर्द कर रहा है. दवा ली है. ठीक हो जाऊंगी. आप कहीं जा रहे हैं क्या?’’

‘‘हां… तुम को कल रात को बताया तो था कि मैं आज रात को 3 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं. अगर ज्यादा तबीयत खराब हो, तो डाक्टर बुला लेना,’’ समीर इतना कह कर कमरे से बाहर चला गया.

समीर के जाते ही गीता ने फोन उठा कर प्रमोदजी को मिला दिया, ‘‘हैलो प्रमोदजी, मैं बोल रही हूं. क्या आप ने नेताजी से बात की?’’

‘‘अरे मैडमजी, मैं आप के बारे में ही सोच रहा था. आज आप गजब की लग रही थीं. क्या मदहोश खुशबू आती है…अभी तो घर पर हूं, कल दफ्तर जा कर आप से बात करता हूं,’’ प्रमोदजी के पास से शायद उन की पत्नी की आवाज आ रही थी, इसलिए उन्होंने फोन जल्दी रख दिया.

मैडमजी भी कच्ची खिलाड़ी नहीं थी. सारी रात जाग कर उन्होंने सोच लिया था कि आगे क्या करना है, जिस से सारिका को टिकट न मिले और प्रमोद को भी सबक मिल जाए.

अगले दिन अपनी अलमारी से नोटों की 3 गड्डियां पर्स में डाल कर मैडमजी जल्दी ही घर से निकल गईं. सीधे कौफी हाउस पहुुंच कर वे पत्रकारों से मिलीं. उन्हें कुछ समझाया और एक नोट की गड्डी उन्हें दी.

फिर वे एक सुनसान जगह पर 6-7 लड़कों से मिलीं. नोटों की बाकी गड्डी और एक फोटो उन को दी. थोड़ी देर बात की और तेजी से निकल गईं. वहां से वे सीधे प्रमोदजी के दफ्तर पहुंच गईं.

वहां अभी कोई नहीं आया था. बस, छोटू सफाई कर रहा था. वे चुपचाप छोटू के पास गईं, उसे कुछ समझाया. उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रख दिया.

अब इंतजार था प्रमोदजी का. बाथरूम में जा कर मैडमजी ने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाई और प्रमोदजी का इंतजार करने लगीं.

दफ्तर में मैडमजी को देख कर प्रमोदजी पहले थोड़ा हैरान हुए, पर वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘मैडमजी, आप इतनी सुबहसुबह?’’

‘‘बस, क्या बताऊं प्रमोदजी, सारी रात सो नहीं पाई,’’ इतना कह कर मैडमजी ने साड़ी का पल्लू सरका दिया और बोलीं, ‘‘अरे, यह पल्लू भी न… माफ कीजिए,’’ फिर उन्होंने अदा से अलग पल्लू ठीक कर लिया.

‘‘मैडमजी, आज तो आप कहर बरपा रही हैं. यह रंग बहुत जंचता है आप पर,’’ प्रमोदजी मैडमजी के पास आ कर बोले.

‘‘आप भी न प्रमोदजी, बस कुछ भी…’’ मैडमजी ने अपना सिर प्रमोदजी के कंधे पर रख दिया.

उन्होंने मैडमजी की कमर पर हाथ रखना चाहा, पर उसी वक्त छोटू चाय ले कर आ गया और वे सकपका कर मैडमजी से दूर हो गए और बोले, ‘‘मैं ने तो चाय नहीं मंगवाई. चल, भाग यहां से.’’

‘‘प्रमोदजी, चाय मैं ने मंगवाई थी. रख दे यहां. चल, तू जा,’’ मैडमजी ने फिर अदा से प्रमोदजी की ओर देखा, पर प्रमोदजी को एहसास हो गया था कि वे पार्टी दफ्तर में हैं, इसलिए अपनी कुरसी पर जा कर बैठ गए.

मैडमजी खुश थीं कि छोटू एकदम सही वक्त पर आया.

‘‘प्रमोदजी, बातें तो होती ही रहेंगी. आप यह बताओ कि नेताजी से बात कब करोगे?’’

‘‘मैडमजी, बस आज ही… रैली के बारे में बात करने मैं आज ही पार्टी दफ्तर जा रहा हूं. आप के बारे में भी बात कर लूंगा.’’

‘‘पर आप को लगता है कि वे मानेंगे?’’ मैडमजी ने चिंता जताई.

‘‘अरे, वह सब आप मुझ पर छोड़ दो,’’ प्रमोदजी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नहीं, आप ही कह रहे थे न कल कि नए चहरे… बस, इसलिए पूछा… और नेताजी अपना फैसला बदलेंगे,’’ मैडमजी फिर अदा से बोलीं.

‘‘इतने सालों में आप हमें ठीक से जान नहीं पाई हैं. पार्टी में अच्छी पकड़ है हमारी. हाईकमान के फैसले को बदलना मेरे लिए कोई मुश्किल बात नहीं,’’ प्रमोदजी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे थे और मैडमजी कुरसी पर टेक लगा कर उन की बातें अपने फोन पर रिकौर्ड कर रही थीं.

प्रमोदजी आगे बोले, ‘‘मैडमजी, इतने साल तक पार्टी में झक नहीं मारी है मैं ने. हर किसी की कमजोरी जानता हूं. हर किसी को बोतल में उतार कर ही यहां तक पहुंचा हूं. आप ने तो देखा ही है कि जो मेरी बात नहीं मानता, उस का हाल उस मनोहर जैसा होता है.

‘‘बेचारा कुछ किए बिना ही जेल की हवा खा रहा है. और नेताजी के भी कई किस्से इस दिल में कैद हैं,’’ मैडमजी के सामने अपनी शान दिखाने के चक्कर में प्रमोदजी न जाने क्याक्या बोल गए.

मैडमजी का काम हो चुका था. वे किसी काम का बहाना कर के वहां से निकल गईं. अब उन्हें अगले काम के पूरा होने का इंतजार था. घर जाने का उन का मन नहीं था, इसलिए वे पास की कौफी शौप में जा कर बैठ गईं. समय देखा… अब तक तो खबर आ जानी चाहिए थी.

मैडमजी कौफी पी कर पैसे देने ही वाली थीं कि उन की नजर टैलीविजन पर गई. चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. पर्स उठा कर वापस प्रमोदजी के दफ्तर आ गईं.

प्रमोदजी फोन पर थे. वे काफी परेशान थे, ‘‘नहीं नेताजी, मुझे तो कुछ भी नहीं पता. यह खबर सच्ची है या नहीं… आप यकीन कीजिए, मुझे नहीं पता था कि सारिका कालेज में दाखिले के नाम पर छात्रों से पैसे लेती है…

‘‘पर नेताजी, आप मेरी बात तो सुनो. आप मुझे… ठीक है, जैसा आप कहो,’’ प्रमोदजी ने पलट कर के देखा, ‘‘अरे मैडमजी, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

‘‘क्या हुआ प्रमोदजी?’’ मैडमजी ने झूठी चिंता जताई.

‘‘हां मैडमजी, पार्टी दफ्तर से फोन था. कुछ लड़कों ने किसी टैलीविजन रिपोर्टर को इंटरव्यू दिया है कि कालेज में दाखिला करवाने के नाम पर सारिका ने उन से मोटी रकम ली है. अब देखो, इतना बड़ा कांड कर दिया और हमें कानोंकान खबर तक नहीं…’’

प्रमोदजी कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘नेताजी ने फिर हमें जिम्मेदारी दे दी है. उन का मानना है कि इस बार किसी भी बदनाम आदमी को टिकट तो क्या, पार्टी में भी जगह न दी जाए,’’ कहते हुए प्रमोदजी के चेहरे से एकदम चिंता के भाव गायब हो गए, जैसे उन के शैतानी दिमाग में कुछ आया हो.

‘‘मैडमजी, इस से पहले कि फिर कोई नया चेहरा सामने आए, मैं आप का नाम आगे कर देता हूं… कल नेताजी से मिलने जा रहा हूं, तो आज शाम को पहले आप से एक छोटी सी मुलाकात हो जाए… दफ्तर के पीछे वाले मेरे फ्लैट पर.’’

प्रमोदजी की बात सुन कर मैडमजी फिर मुसकारा दीं और बोलीं, ‘‘प्रमोदजी, नाम तो आप को मेरा ही लेना होगा और कान खोल कर सुन लो, अगर मेरे बारे में कोई गलत खयाल मन में भी लाए, तो आप भी इस पार्टी में नजर नहीं आएंगे.

‘‘…अब ध्यान से मेरी बात सुनो. जिन लड़कों ने सारिका पर इलजाम लगाया है, वे सारिका के साथसाथ आप का नाम भी ले सकते थे, पर मुझे इस पार्टी में लाने वाले आप थे, मैं ने हमेशा आप को अपने पिता जैसा माना, इसलिए अपनी परेशानी ले कर मैं आप के पास आई और आप मुझ पर ही गंदी नजर रखे हुए हैं. शर्म नहीं आई आप को…’’

इतना कह कर मैडमजी ने अपने मोबाइल फोन से अपनी और प्रमोदजी के बीच हुई सारी बातों की रिकौर्डिंग उन्हें सुना दी. प्रमोदजी को पसीने आ गए.

‘‘अब आप के लिए बेहतर होगा कि नेताजी को अभी फोन कर के मेरे नाम पर मुहर लगवा दीजिए, वरना कल आप की यह आवाज हर टैलीविजन चैनल पर सुनने को मिलेगी,’’ मैडमजी पर्स संभालते हुए तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गईं.

शाम होतेहोते मैडमजी के खास कार्यकर्ताओं के उन्हें टिकट मिलने की बधाई देने के फोन आने भी शुरू हो गए थे.

हुस्न का बदला : क्या प्रदीप वापस आया?

शीला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. पिछले एक महीने से वह परेशान थी. कालेज बंद होने वाले थे. प्रदीप सैमेस्टर का इम्तिहान देने के बाद यह कह कर गया था, ‘मैं तुम्हें पैसों का इंतजाम कर के 1-2 दिन बाद दे दूंगा. तुम निश्चिंत रहो. घबराने की कोई बात नहीं.’

‘पर है कहां वह?’ यह सवाल शीला को परेशान कर रहा था. उस की और प्रदीप की पहचान को अभी सालभर भी नहीं हुआ था कि उस ने उस से शादी का वादा कर उस के साथ…

‘शीला, तुम आज भी मेरी हो, कल भी मेरी रहोगी. मुझ से डरने की क्या जरूरत है? क्या मुझ पर तुम्हें भरोसा नहीं है?’ प्रदीप ने ऐसा कहा था. ‘तुम पर तो मुझे पूरा भरोसा है प्रदीप,’ शीला ने जवाब दिया था. शीला गांव से आ कर शहर के कालेज में एमए की पढ़ाई कर रही थी. यह उस का दूसरा साल था. प्रदीप इसी शहर के एक वकील का बेटा था. वह भी शीला के साथ कालेज में पढ़ाई कर रहा था. ऐयाश प्रदीप ने गांव से आई सीधीसादी शीला को अपने जाल में फंसा लिया था. शीला उसे अपना दोस्त मान कर चल रही थी. उन की दोस्ती अब गहरी हो गई थी. इसी दोस्ती का फायदा उठा कर एक दिन प्रदीप उसे घुमाने के बहाने पिकनिक पर ले गया. फिर वे मिलते, पर सुनसान जगह पर. इस का नतीजा, शीला पेट से हो गई थी. जब शीला को पता चला कि उस के पेट में प्रदीप का बच्चा पल रहा है, तो वह घबरा गई.

बमुश्किल एक क्लिनिक की लेडी डाक्टर 10 हजार रुपए में बच्चा गिराने को तैयार हुई. डाक्टर ने कहा कि रुपयों का इंतजाम 2 दिन में ही करना होगा. इधर प्रदीप को ढूंढ़तेढूंढ़ते शीला को एक हफ्ते का समय बीत गया, पर वह नहीं मिला. शीला ने उस का घर भी नहीं देखा था. प्रदीप के दोस्तों से पता करने पर ‘मालूम नहीं’ सुनतेसुनते वह परेशान हो गई थी. शीला ने सोचा कि क्यों न घर जा कर कालेज में पैसे जमा करने के नाम पर पिता से रुपए मांगे जाएं. सोच कर वह घर आ गई. उस की बातचीत के ढंग से पिता ने अपनी जमीन गिरवी रख कर शीला को 10 हजार रुपए ला कर दे दिए. वह रुपए ले कर ट्रेन से शहर लौट आई. टे्रन के प्लेटफार्म पर रुकते ही शीला ने जब अपने सूटकेस को सीट के नीचे नहीं पाया, तो वह घबरा गई. काफी खोजबीन की गई, पर सूटकेस गायब था. वह चीख मार कर रो पड़ी.

शीला गायब बैग की शिकायत करने रेलवे पुलिस के पास गई, पर पुलिस का रवैया ढीलाढाला रहा. अचानक पीछे से किसी ने शीला को आवाज दी. वह उस के बचपन की सहेली सुधा थी.

‘‘अरे शीला, पहचाना मुझे? मैं सुधा, तेरी बचपन की सहेली.’’

वे दोनों गले लग गईं.

‘‘कहां से आ रही है?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘घर से,’’ शीला बोली.

‘‘तू कुछ परेशान सी नजर आ रही है. क्या बात है?’’ सुधा ने पूछा.

शीला ने उस पर जो गुजरी थी, सारी बात बता दी. ‘‘बस, इतनी सी बात है. चल मेरे साथ. घर से तुझे 10 हजार रुपए देती हूं. बाद में मुझे वापस कर देना.’’ सुधा उसी आटोरिकशा से शीला को अपने घर ले कर पहुंची. शीला ने जब सुधा का शानदार घर देखा, तो हैरान रह गई.

‘‘सुधा, तुम्हारा झोंपड़पट्टी वाला घर? तुम्हारी मां अब कहां हैं?’’ शीला ने सवाल थोड़ा घबरा कर किया. ‘‘वह सब भूल जा. मां नहीं रहीं. मैं अकेली हूं. एक दफ्तर में काम करती हूं. और कुछ पूछना है तुझे?’’ सुधा ने कहा, ‘‘ले नाश्ता कर ले. मुझे जरूरी काम है. तू रुपए ले कर जा. अपना काम कर, फिर लौटा देना… समझी?’’ कह कर सुधा मुसकरा दी. शीला रुपए ले कर घर लौट आई. अगले दिन जैसे ही शीला आटोरिकशा से डाक्टर के क्लिनिक पर पहुंची, तो वहां ताला लगा था. पूछने पर पता चला कि डाक्टर बाहर गई हैं और 2 महीने बाद आएंगी. शीला निराश हो कर घर आ गई. उस ने एक हफ्ते तक शहर के क्लिनिकों पर कोशिश की, पर कोई इस काम के लिए तैयार नहीं हुआ. हार कर शीला सुधा के घर रुपए वापस करने पहुंची.

‘‘मैं पैसे वापस कर रही हूं. मेरा काम नहीं हुआ,’’ कह कर शीला रो पड़ी.

‘‘अरे, ऐसा कौन सा काम है, जो नहीं हुआ? मुझे बता, मैं करवा दूंगी. मैं तेरी आंख में आंसू नहीं देख सकती,’’ सुधा ने कहा.

शीला ने सबकुछ सचसच बता दिया. ‘‘तू चिंता मत कर. मैं सारा काम कर दूंगी. मुझ पर यकीन कर,’’ सुधा ने कहा. और फिर सुधा ने शीला का बच्चा गिरवा दिया. डाक्टर ने उसे 15 दिन आराम करने की सलाह दी.

शीला बारबार कहती, ‘‘सुधा, तुम ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है. यह एहसान मैं कैसे चुका पाऊंगी?’’

‘‘तुम मेरे पास ही रहो. मैं अकेली हूं. मेरे रहते तुम्हें कौन सी चिंता?’’ शीला अपना मकान छोड़ कर सुधा के घर आ गई. शीला को सुधा के पास रहते हुए तकरीबन 6 महीने बीत गए. पिता की बीमारी की खबर पा कर वह गांव चली आई. पिता ने गिरवी रखी जमीन की बात शीला से की. शीला ने जमीन वापस लेने का भरोसा दिलाया. जब शीला सुधा के पास आई, तो उस ने सुधा से कहा, ‘‘मुझे कहीं नौकरी पर लगवा दो. मैं कब तक तुम्हारा बोझ बनी रहूंगी? मुझे भी खाली बैठना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘ठीक है. मैं कोशिश करती हूं,’’ सुधा ने कहाएक दिन सुधा ने शीला से कहा, ‘‘सुनो शीला, मैं ने तुम्हारी नौकरी की बात की थी, पर…’’ कह कर सुधा चुप हो गई.

‘‘पर क्या? कहो सुधा, क्या बात है बताओ मुझे? मैं नौकरी पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ सुधा मन ही मन खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘ऐसा है शीला, तुम्हें अपना जिस्म मेरे बौस को सौंपना होगा, सिर्फ एक रात के लिए. फिर तुम मेरी तरह राज करोगी.’’ शीला ने सोचा कि प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका है. इस से सुधा का एहसान भी पूरा होगा और उस का मकसद भी. शीला ने अपनी रजामंदी दे दी. फिर सुधा के कहे मुताबिक शीला सजसंवर कर बौस के पास पहुंच गई. बौस के साथ रात बिता कर वह घर आ गई. साथ में सौसौ के 20 नोट भी लाई थी. और फिर यह खेल चल पड़ा. दिन में थोड़ाबहुत दफ्तर का काम और रात में ऐयाशी. अब शीला भी आंखों पर रंगीन चश्मा, जींसशर्ट, महंगे जूते, मुंह पर कपड़ा लपेटे गुनाहों की दुनिया की बेताज बादशाह बन गई थी.

कालेज के बिगड़ैल लड़के, अमीर कारोबारी, सफेदपोश नेता सभी शीला के कब्जे में थे. एक दिन शीला ने सुधा से कहा, ‘‘दीदी, मुझे लगता है कि अमीरों ने फरेब की दुकान सजा रखी है…’’ इतने में सुधा के पास फोन आया.

‘‘कौन?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘मैडम, मैं प्रदीप… मुझे शाम को…’’

‘‘ठीक है. 10 हजार रुपए लगेंगे. एक रात के… बोलो?’’

‘‘ठीक है,’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘कौन है?’’ शीला ने पूछा.

‘‘कोई प्रदीप है. उसे एक रात के लिए लड़की चाहिए.’’ शीला ने दिमाग पर जोर डाला. कहीं यह वही प्रदीप तो नहीं, जिस ने उस की जिंदगी को बरबाद किया था.

‘‘दीदी, मैं जाऊंगी उस के पास,’’ शीला ने कहा.

‘‘ठीक है, चली जाना,’’ सुधा बोली.

शीला ने ऐसा मेकअप किया कि उसे कोई पहचान न सके. दुपट्टे से मुंह ढक कर चश्मा लगाया और होटल पहुंच गई. शीला ने एक कमरा पहले से ही बुक करा रखा था, ताकि वही प्रदीप हो, तो वह देह धंधे के बदले अपना बदला चुका सके. प्रदीप नशे में झूमता हुआ होटल पहुंच गया. ‘‘मेरे कमरे में कौन है?’’ प्रदीप ने मैनेजर से पूछा. ‘‘वहां एक मेम साहब बैठी हैं. कह रही हैं कि साहब के आने पर कमरा खाली कर दूंगी. वैसे, यह उन्हीं का कमरा है. होटल के सभी कमरे भरे हैं,’’ कह कर मैनेजर चला गया. प्रदीप ने दरवाजा खोल कर देखा, तो खूबसूरती में लिपटी एक मौडर्न बाला को देख कर हैरान रह गया.

‘‘कमाल का हुस्न है,’’ प्रदीप ने सोफे पर बैठते हुए कहा.

‘‘यह आप का कमरा है?’’

‘‘जी,’’ शीला ने कहा.

‘‘मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘मोना.’’

‘‘आप कपड़े उतारिए और अपना शौक पूरा करें. समय बरबाद न करें. इसे अपना कमरा ही समझिए.’’ इस के बाद शीला ने प्रदीप को अपना जिस्म सौंप दिया. वे दोनों अभी ऐयाशी में डूबे ही थे कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी. प्रदीप मुंह ढक कर सोने का बहाना कर के सो गया. शीला ने दरवाजा खोला, तो पुलिस को देख कर वह जोर से चिल्लाई, ‘‘पुलिस…’’ ‘‘प्रदीप साहब, आप के खिलाफ शिकायत मिली है कि आप ने मोना मैडम के कमरे पर जबरदस्ती कब्जा जमा कर उन से बलात्कार किया है. आप को गिरफ्तार किया जाता है,’’ पुलिस ने कहा.

‘‘जी, मैं…’’ यह सुन कर प्रदीप की घिग्घी बंध गई. पुलिस ने जब प्रदीप को गिरफ्तार किया, तो मोना उर्फ शीला जोर से खिलखिला कर हंस उठी और बोली, ‘‘प्रदीपजी, इसे कहते हैं हुस्न का बदला…’’

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 2

रूपमती ने वापस जाते समय मन ही मन कहा, ‘मैं क्यों चिंता करूं. तुम मरो या वह मरे, मुझे क्या?

‘लेकिन हां, अवध को अचानक नहीं आना चाहिए था. उस के आने से मेरी मुश्किलें बढ़ गईं. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. सूरजभान को भी ध्यान रखना चाहिए था. इतनी जल्दबाजी ठीक नही. अब भुगतें दोनों.

‘मुझे तो दोनों चाहिए थे. मिल भी रहे थे, पर अब दोनों का आमनासामना हो गया है, तो कितना भी समझाओ, मानेंगे थोड़े ही.’

घर आने पर रूपमती ने अवध से कहा, ‘‘सूरजभान का कहना है कि मैं फोटो तुम्हारे पति को माफी मांग कर दूंगा. शराब के नशे में मुझ से गलती हो गई. इज्जत लूटने की कोशिश में कामयाब तो हुआ नहीं, सो चाहे वे जीजा बन कर माफ कर दें. मैं राखी बंधवाने को तैयार हूं. चाहे अपना छोटा भाई समझ कर भाई की पहली गलती को यह सोच कर माफ कर दें कि देवरभाभी के बीच मजाक चल रहा था.’’

अवध चुप रहा, तो रूपमती ने फिर कहा ‘‘देखोजी, वह बड़ा आदमी है. तुम उसे कुछ कर दोगे, तो तुम्हें जेल हो जाएगी. फिर तो पूरा गांव मुझ अकेली के साथ न जाने क्याक्या करेगा. फिर तुम क्या करोगे? माफ करना सब से बड़ा धर्म है. तुम कल मेरे साथ चलना. वह फोटो भी देगा और माफी भी मांगेगा. खत्म करो बात.’’

अवध छोटा किसान था. उस में इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह गांव के सरपंच के बेटे का कुछ नुकसान भी कर सके. पुलिस और कोर्टकचहरी के नाम से उस की जान सूखती थी. उस ने कहा, ‘‘ठीक है. अगर फोओ फोटो वापस कर के माफी मांग लेता है, तो हम उसे माफ कर देंगे. और हम कर भी क्या सकते हैं?’’

रूपमती अवध की तरफ से निश्चिंत हो गई. उस ने सूरजभान को भी समझा दिया था कि शांति से मामला हल हो जाए, इसी में तीनों की भलाई है. माफी मांग कर फोटो वापस कर देना.

रूपमती पति और प्रेमी को आमनेसामने कर के देखना चाहती थी कि क्या नतीजा होता है, अगर वे दोनों अपनी मर्दानगी के घमंड में एकदूसरे पर हमला करते हैं, तो उस के हिसाब से वह अपनी कहानी आगे बढ़ाने के लिए तैयार रखेगी. पति मरता है, तो कहानी यह होगी कि सूरजभान ने उस की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की. पति ने विरोध किया, तो सूरजभान ने उस की हत्या कर दी. बाद में भले ही वह सूरजभान से बड़ी रकम ले कर कोर्ट में उस का बचाव कर दे.

अगर प्रेमी मरता है, तो सच है कि सूरजभान ने उस के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की. पति ने पत्नी की इज्जत बचाने के लिए बलात्कारी की हत्या कर दी. अपनी तरफ से रूपमती ने सब ठीकठाक करने की, कोशिश की बाकी किस के दिल में क्या छिपा है, वह तो समय ही बताएगा.

रूपमती, अवध और सूरजभान आमनेसामने थे. सूरजभान ने माफी मांगते हुए फोटो लौटाई और कहा, ‘‘भैया, धन्य भाग्य आप के, जो आप को ऐसी चरित्रवान और पतिव्रता पत्नी मिलीं.’’

अवध ने भी कह दिया, ‘‘गलती सब से हो जाती है. तुम ने गलती मान ली. हम ने माफ किया.’’

रूपमती फोटो ले कर वापस आ गई. बिगड़ी बात संभल गई. मामला खत्म. रूपमती खुश हो गई. अब वह बहुत सावधानी से सूरजभान से मिलती थी.

वासना का दलदल आदमी को जब तक पूरा धंसा कर उस की जिंदगी खत्म न कर दे, तब तक उस दलदल को वह जीत का मैदान समझ कर खेलता रहता है. किसी की शराफत को वह अपनी चालाकी मान कर खुश होता है. ऐसा ही रूपमती ने भी समझा.

रूपमती और अवध अकेले रहते थे. रूपमती की एक ननद थी, जिस की शादी काफी दूर शहर में हो चुकी थी. उस के सासससुर बहुत पहले ही नहीं रहे थे. शादी के 8 साल बाद भी उस के कोई औलाद नहीं हुई. अवध मातापिता द्वारा छोड़ी खेतीबारी देखता था. इसी से उस की गुजरबसर चलती थी.

औलाद न होने का दोष तो औरत पर ही लगता है. रूपमती अपना इलाज करवा चुकी थी. डॉक्टरों ने उस में कोई कमी नहीं बताई थी. जब डाक्टर ने कहा कि अपने पति का भी चैकअप कराओ, तो अवध की मर्दानगी को ठेस पहुंची. उस का कहना था कि बच्चा न होना औरतों की कमी है. आदमी तो बीज डालता है. बीज में भी कहीं दोष होता है. औरत जमीन है. हां, जमीन बंजर हो सकती है.

अवध शराबी था और नशे की कोई हद नहीं होती जो हद पार कर दे उसी का नाम नशा है. वह रूपमती को बहुत चाहता था, लेकिन कभीकभी शराब के नशे में वह उसे बांझ कह देता और वंश चलाने के लिए दूसरी शादी की बात भी कर देता था.

रूपमती को यह बात बहुत बुरी लगती थी कि जिस में उस का दोष नहीं है, उस की सजा उसे क्यों मिले? फिर देहात की देहाती औरतों की सोच भी वही. जब रूपमती उन के आगे अपना दुखड़ा रोती, तो एक दिन एक औरत ने कह दिया कि वंशहीन होने से अवध की शराब की लत बढ़ती जा रही है. इस से पहले कि वह नशा कर के सब खेतीबारी बेच दे, अच्छा है कि औलाद के लिए तुम कोई सहारा खोजो. इसी खोज में वह सूरजभान से जुड़ गई. सूरजभान ने संबंध तो बना लिए, पर यह कह कर डरा भी दिया कि अगर बच्चा हमारे ऊपर गया, तो पूरे गांव में यह बात छिपी नहीं रहेगी.

सूरजभान गांव के जमीदार का बेटा था. उस के मातापिता के पास बहुत सारे खेत थे. सूरजभान शादीशुदा था. उस की पत्नी अनुपमा खूबसूरत थी. एक बच्चा भी था. सासससुर ने अपनी बड़ी हवेली में एक हिस्सा बेटे और बहू को अलग से दे रखा था.

सूरजभान का बेटा गांव के ही स्कूल में चौथी क्लास में पड़ता था. सूरजभान का एक नौकर था दारा. वह नौकर के साथसाथ उस का खास आदमी भी था. वह अखाड़े में कुश्ती लड़ता था. 6 फुट का नौकर दारा खेतीकिसानी से ले कर घरेलू कामकाज सब देखता था. उस का पूरा खर्च सूरजभान और उस का परिवार उठाता था.

सूरजभान के पिता ने हवेली के सब से बाहर का एक कमरा उसे दे रखा था, ताकि जब चाहे जरूरत पर घर के काम के लिए बुलाया जा सके बाहर काम के लिए भेजा जा सके या सूरजभान गांव में कहीं भी आताजाता, तो दारा को अपने साथ सिक्योरिटी गार्ड की तरह ले जाता.

बड़े आदमी का बेटा होने के चलते सूरजभान में कुछ बुराइयां भी थीं. मसलन, वह जुआ खेलता था, शराब पीता था. भले ही गांव में पानी भरने के लिए कोस जाना पड़े, लेकिन शराब की दुकान नजदीक थी.

सूरजभान ने दारा को यह काम भी सौंपा था कि अवध जब बाहर जाए, तो वह उस का पीछा करे. अवध के लौटने से पहले की सूचना भी दे, ताकि अगर वह रूपमती के साथ हो, तो संभल जाए. इस तरह दारा को भी रूपमती और सूरजभान के संबंधों की खबर थी.

एक दिन सूरजभान ने रूपमती से पूछा, ‘‘तुम्हारे पति को काबू में करने का कोई तो हल होगा?’’

‘‘है क्यों नहीं.’’

‘‘तो बताओ?’’

‘‘शराब.’’

2 नशेबाज जिगरी दोस्त से भी बढ़ कर होते हैं और शराब की लत लगने पर शराबी कुछ भी कर सकता है.

‘‘मिल गया हल,’’ सूरजभान ने खुश होते हुए कहा.

‘‘लेकिन, वह तुम्हारे साथ क्यों शराब लेगा?’’ रूपमती ने पूछा.

‘‘शराब की लत ऐसी है कि वह सब भूल कर न केवल मेरे साथ पी लेना, बल्कि अपने घर भी ला कर पिलाएगा, खासकर जब मैं उसे पिलाऊंगा और पिलाता ही रहूंगा.’’

रूपमती को भला क्या एतराज हो सकता था. अगर ऐसा कोई रास्ता निकलता है, तो उसे मंजूर है, जिस में पति ही उस के प्रेमी को घर लाए.

शराब की जिस दुकान पर अवध जाता था, उसी पर सूरजभान ने भी जाना शुरू कर दिया. पहलेपहले तो अवध ने उसे घूर कर देखा, कोई बात नहीं की. सूरजभान के नमस्ते करने पर अवध ने बेरुखी दिखाई, लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि अवध के पास पैसे नहीं थे. शराब की लत के चलते वह शराब की दुकान पर पहुंच गया. शराब की बोतल लेने के बाद उस ने कहा, ‘‘हमेशा आता हूं, आज उधार दे दो.’’

शराब बेचने वाले ने कहा, ‘‘यह सरकारी दुकान है. यहां उधार नहीं मिल सकता.’’

इस बात पर अवध बिगड़ गया, तभी सूरजभान ने आ कर कहा, ‘‘भैया को शराब के लिए मना मत किया करो. पैसे मैं दिए देता हूं.’’

‘‘लेकिन, तुम पैसे क्यों दोगे?’’ अवध ने पूछा.

‘‘भाई माना है. एक गांव के जो हैं,’’ सूरजभान ने कहा.

सूरजभान की भलमनसाहत और शराब देख कर अवध खुश हो कर सब भूल गया. सूरजभान ने रूपमती की खातिर अपनी जेब खोल दी. अब दोनों में दोस्ती बढ़ गई. दोनों शराब की दुकान पर मिलते, जम कर पीते और इस पिलाने में पैसा ज्यादा सूरजभान का ही रहता.

शराब की तलब मिटाने के चलते अवध पिछला सब भूल कर सूरजभान को अपना सचमुच का भाई मानने लगा. जब शराब का नशा इतना हो जाता कि अवध से चलते नहीं बनता, तो सूरजभान उसे घर छोड़ने जाने लगा.

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 5

लेकिन मुमताज को सत्ता की हवस थी. जब उस ने बारबार अपना शरीर देने की बात कही, तो सूरजभान को गुस्सा आ गया. वह चीख पड़ा, ‘‘क्या कीमत है तुम्हारे जिस्म की? मैं करोड़ों रुपए दे रहा हूं. बाजार में हजार भी नहीं मिलते. शादी कर के घर बसातीतो 5-10 लाख रुपए दहेज देती, तब कहीं जा कर कोई मिडिल क्लास लड़का मिलता. मुझ पर शोषण करने का आरोप लगाने से पहले सोचा है कि तुम जैसी लड़कियां हम जैसे बड़े लोगों का माली शोषण करती हो. अपने शरीर के दाम लगा कर सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बनाती हो.’’

मुमताज ने सूरजभान की नाराजगी देख कर कहा, ‘‘मैं ने आप की रासलीला को कैमरे में कैद कर लिया है. मैं आप का राजनीतिक कैरियर तो तबाह करूंगी ही, दूसरी पार्टी से पैसे और चुनाव का टिकट भी लूंगी.’’

बस, फिर क्या था. दूसरे दिन ही मुमताज की लाश मिली. खूब हल्ला हुआ. सूरजभान पर सीबीआई का शिकंजा कसा. खूब थूथू हुई. उस के खिलाफ कोई सुबूत था नहीं, इसलिए वह बाइज्जत रिहा हो गया.

एक और बात सूरजभान की यादों में बनी रही. जब वह पार्टी की एक महिला मंत्री, जिस की उम्र तकरीबन 40 साल रही होगी, के साथ अकेले डिनर पर था. उस ने पूछा था. ‘‘आप यहां तक कैसे पहुंचीं?’’

महिला मंत्री ने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया था, ‘‘औरत के लिए तो एक ही रास्ता रहता है. मैं जवान थी. खूबसूरत थी. पार्टी हाईकमान के बैडरूम से सफर शुरू किया और धीरेधीरे उन की जरूरत बन गई. उन की सारी कमजोरियां समझ लीं. वे मुझ पर निर्भर हो गए. लेकिन हां, कभी उन पर हावी होने की कोशिश नहीं की.

‘‘धीरेधीरे उन की नजरों में मैं चढ़ गई. एक चुनाव जीतने में उन की मदद ली, बाकी अपनी मेहनत.

‘‘हां, अब मैं जब चाहे अपनी पसंद के मर्द को बिस्तर तक लाती हूं. सब ताकत का. सत्ता का खेल है.’’

अब सूरजभान राजनीति का चाणक्य कहलाता था. वह राज्य सरकार से ले कर केंद्र सरकार में मंत्री पदों पर रह चुका था. जब उस की पार्टी की सरकार नहीं बनी, तब भी वह हजारों वोटों से चुनाव जीत कर विपक्ष का ताकतवर नेता होता था लेकिन अब उस की उम्र ढल रही थी. नए नेता उभर कर आ रहे थे. ऐसे में सूरजभान के पास संयास लेने के अलावा कोई चारा नहीं था. फिर भी पार्टी का वरिष्ठ नेता होने के चलते पार्टी उसे राष्ट्रपति पद देने के लिए विचार कर रही थी.

तभी रूपमती ने नया धमाका किया. यह धमाका सूरजभान के लिए बड़ा सिरदर्द था. वह जानता था कि रूपमती एक कुटिल औरत थी. उस ने अपनी जवानी से अच्छेअच्छों को घायल किया था. और बुढ़ापे में उस ने अपनी औलाद को ढाल बना कर इस्तेमाल किया. लेकिन इस बार उस का मुकाबला घाघ राजनीतिबाज से था. वैसे, रूपमती के पास कहने को बहुतकुछ था. उस के पति की हत्या, सूरजभान के के साथ उस के नाजायज संबंध. जब सूरजभान पहली बार मंत्री बना था, तो वह उस से मिलने आई थी और उस ने डरते हुए कहा था कि अब आप के पास पैसा और ताकत दोनों हैं. आप मुझे कभी भी मरवा सकते हैं. मैं आज के बाद आप से कभी नहीं मिलूंगी. आप मुझे 5 करोड़ रुपए दे दीजिए, हर महीने का झंझट खत्म. आप का बेटा बड़ा हो रहा है. मैं शादी कर के कहीं ओर बस जाऊंगी.

सूरजभान ने भी सोचा कि चलो पीछा छूट जाएगा. इस के बाद वह कभी नहीं आई.

आज जब कि सूरजभान की जिंदगी ही आखिरी पडा़व थी, पार्टी उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए बतौर उसी प्रकार तय कर चुकी थी ऐसे में रूपमती का आरोप था कि उस के बेटे सुरेश का पिता सूरजभान है और वह उसे अपना बेटा स्वीकार करे. इस में रूपमती का क्या फायदा हो सकता था? विरोधी पार्टी द्वारा मोटी रकम? क्या कोई राजनीतिक पद पाने की इच्छा?  जब मीडिया में बातें होने लगीं, तो सूरजभान ने कहा, ‘‘मैं इस औरत को जानता तक नहीं. यह औरत झूठ बोल रही है.’’

रूपमती ने भी मीडिया को बताया,  ‘‘इस से मेरे पुराने संबंध थे. गांव की राजनीति शुरू करने से पहले.’’

सूरजभान ने बयान दिया, ‘‘यह उस के पति का बच्चा होगा. मेरा कैसे हो सकता है?’’

‘‘नहीं, यह बच्चा सूरजभान का ही है,’’ रूपमती ने जवाब दिया.

‘‘इतने दिनों बाद सुध कैसे आई?’’

‘‘बेटे को उस का हक दिलाने के लिए.’’

मामला कोर्ट में चला गया. अनुपमा ने भी पति सूरजभान का पक्ष लिया. उन का बेटा विदेश में था. उसे इन सब बातों की खबर थी, लेकिन वह क्या कहता?

अनुपमा से पूछने पर उस ने कहा,  ‘‘मेरे पति देवता हैं. उन्हें बदनाम करने की साजिश की जा रही है, ताकि वे राष्ट्रपति पद के दावेदार न रहें.’’

जब कोर्ट ने डीएनए टैस्ट कराने का और्डर दिया, तो सूरजभान समझ गया कि पुराने पाप सामने आ कर दंड दे रहे हैं. इतनी ऊंचाई पर पहुंचने के लिए पाप की जो सीढि़यां लगाई थीं, आज वही सीढि़यां ऊंचाई से उतार फेंकने के लिए कोई दूसरा लगा रहा है.

सूरजभान ने सोचा, ‘जितना पाना था, पा चुका. जितना जीना था जी चुका अब तो जिंदगी की कुरबानी भी देनी पड़ी, तो दूंगा. डीएनए टैस्ट हो गया, तो सब साफ हो जाएगा. इस से बचना मुश्किल है, क्योंकि अदालत, मीडिया तक बात जा चुकी है. विपक्ष हंगामा कर रहा है.’

सूरजभान ने बहुत सोचा, फिर एक चिट्ठी लिखी. वह चिट्ठी भी राजनीति की तरह एकदम झूठी थी.

चिट्ठी इस तरह थी : ‘रूपमती नाम की औरत को मैं निजी तौर पर नहीं जानता. इस के बुरे दिनों में मैं ने इस के पति की कई बार पैसे से मदद की थी एक दिन यह मुझ से मिलने आई और कहने लगी कि राष्ट्रपति के चुनाव से हट जाओ या सौ करोड़ रुपए दो. मैं राष्ट्रपति पद से हटता हूं, तो यह मेरी पार्टी की बेइज्जती होगी. मैं ने जिंदगी भर देश की सेवा की है. सेवक के पास सौ करोड़ रुपए कहां से आएंगे? पार्टी और जनसेवा मेरी जिंदगी का मकसद रहे हैं. मैं तो पूरे देश की जनता को अपनी औलाद मानता हूं.

‘देश के 150 करोड़ लोग मेरे भाई, मेरे बेटे ही तो हैं, तो इस का बेटा भी मेरा हुआ. पर मैं ब्लैकमेल होने के लिए राजी नहीं हूं. मुझे डीएनए टैस्ट कराने से भी एतराज नहीं है, लेकिन विपक्ष इस समय कई राज्यों में है. उस के लिए डीएनए रिपोर्ट बदलवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मेरे चलते पार्र्टी की इमेज मिट्टी में मिले, यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता. रूपमती नाम की औरत झूठी है. यह विपक्ष की चाल है. मैं इस बुढ़ापे में तमाशा नहीं बनना चाहता. सो, जनहित पार्टी हित और इस औरत द्वारा बारबार ब्लैकमेल किए जाने से दुखी हो कर मैं अपनी जिंदगी को खत्म कर रहा हूं. जनता और पार्टी इस औरत को माफ कर दे. प्रशासन इस के खिलाफ कोई कदम न उठाए.’

दूसरे दिन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नेता सूरजभान को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. वह जहर खा चुका था और रूपमती को पुलिस ने आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोप में हिरासत में ले लिया.

पार्टी में शोक की लहर थी. जनता को अपने नेता के मरने का गहरा दुख हुआ. दाह संस्कार के बाद सूरजभान के बेटे को पार्टी प्रमुख ने महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी. बेटा अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए तैयार था. जनता के सामने साफ था कि नेता के बेटे को हर हाल में चुनाव में भारी वोटों से जिताना है. यही उस की अपने महान नेता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

सहानुभूति की इस लहर में सूरजभान का बेटा भारी वोटों से चुनाव जीता. सूरजभान के नाम पर शहर में मूर्तियां लगाए गईं. अब इस बात पर विचार किया जाता रहा था कि हवाईअड्डे का नाम भी सूरजभान एअरपोर्ट रखा जाए. कई फिल्मकार उस पर फिल्म बनाना चाहते थे.

राजनीति इसी को कहते हैं कि आदमी ठीक समय पर मरे, तो महान हो जाता है. इस बार रूपमती नाकाम हो गई. उस की कुटिलता, उस की चालाकी इस दफा हार गई. क्यों न हो, राजनीतिबाजों से जीतना किसी के बस की बात नहीं. उन्हें तो केवल इस्तेमाल करना आता है. सूरजभान ने तो अपनी मौत तक का इस्तेमाल कर लिया था.

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 4

राजनीति और सैक्स तो चोलीदामन के साथ जैसा है. सत्ता की ताकत और बेहिसाब पैसे से कौन प्रभावित नहीं होता. कितनी लड़कियां कभी नौकरी के लिए उस के पास आईं. वह कइयों के साथ संबंध भी बनाता गया.

इस तरह सूरजभान एक सरपंच के बेटे से ले कर देश की संसद में मंत्री बना था. इतना लंबा सफर तय करने में कितने लोग मारे गए, कितनी बेईमानियां, कितने घोटाले, कितने दंगेफसाद, कितने झूठ, कितने पाप करने पड़े, खुद उसे भी याद नहीं.

आज सूरजभान 70 साल का बूढ़ा हो चुका था. उसे याद रहा, तो सिर्फ इतना कि एक रूपमती थी. एक अवध था. वह अपनी पत्नी अनुपमा को एक बार मुख्यमंत्री के बिस्तर पर भी भेज चुका था. उस के बाद उस की अनुपमा से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं हुई. उस ने अनुपमा के लिए बंगला ले, गाड़ी, नौकरचाकर, तगड़े बैंक बेलैंस का इंतजाम कर दिया था और अनुपमा को समझा दिया था कि बहुतकुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है. राजनीति का ताज पहनने के लिए उस ने अपनी पत्नी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया था. उस का बेटा विदेश में बस चुका था.

सूरजभान को यह भी याद था कि विधानपरिषद में मंत्री चुने जाने के बाद दूसरी बार जब वह मंत्री चुना गया था, तब वह अनुपमा के पास गया था. तब उस ने वहां दारा को देखा था. दारा ने उस के पैर छुए थे उस ने अनुपमा से पूछा था कि दारा यहां कैसे? तो उस ने तीखे लहजे में जवाब दिया था, ‘‘मेरे कहने पर ही इस ने अवध की हत्या की थी, तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं इसे पनाह दूं. तुम्हारे पास तो न मेरे लिए पहले समय था, न अब. मुझे भी तो कोई विश्वासपात्र चाहिए. तुम तो छत पर चढ़ने के लिए सब को सीढ़ी बना लेते हो और ऊपर पहुंचने के बाद सीढ़ी को लात मार देते हो. कल उतरने की बारी आएगी, तो बिना सीढ़ी के कैसे उतरोगे?’’ अनुपमा बहुतकुछ कह चुकी थी.

सूरजभान कुछ नहीं बोला. वह फिर कभी अनुपमा से मिलने नहीं गया. रही सीढ़ी की बात, तो वह जानता था कि राजनीति में ऊपर उठने के लिए चाहे हजारों को सीढ़ी बना कर इस्तेमाल करो, लेकिन उतरने की जरूरत नहीं पड़ती. राजनीति में जब पतन होता है, तो आदमी सीधा गिर कर खत्म होता है.

सूरजभान का सब से मुश्किल भरा समय था मुमताज कांड. तब उस की काफी बदनामी हुई थी. हाईकमान ने यह कह कर फटकारा था कि या तो इस मामले को निबटाइए या इस्तीफा दे दीजिए. पार्टी की बदनामी हो रही है.

मुमताज की उम्र महज 23 साल थी. खूबसूरत, नाजुक अदाएं, लटकेझटकों से भरपूर. कालेज अध्यक्ष का चुनाव जीत कर वह खुश थी.

वह सूरजभान से मिलने आई. सूरजभान ने आशीर्वाद दिया, बधाई दी और अकेले में भोजन पर बुलाया.

भोजन के समय सूरजभान ने पूछा, ‘‘यह तो हुई तुम्हारी मेहनत की जीत. आगे बढ़ना है या बस यहीं तक?’’

‘‘नहीं सर, आगे बढ़ना है,’’

‘‘गौडफादर के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है.’’

‘‘सर, आप का आशीर्वाद रहा तो…’’

‘‘नगरनिगम के चुनाव के बाद महापौर, फिर विधायक और मंत्री पद भी.’’

‘‘क्या सर, मैं ये सब भी बन सकती हूं.’’ उस ने हैरानी से पूछा?

‘‘यह तो तुम पर है कि तुम कितना समझौता करती हो.’’

‘‘सर, मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

‘‘कुछ भी नहीं, सबकुछ.’’

‘‘हां सर, सबकुछ.’’

‘‘तो कुछ कर के दिखाओ.’’

मुमताज समझ गई कि उसे क्या करना है. उसी रात भोजन के बाद वह सूरजभान के बिस्तर पर थी.

लेकिन जब मुमताज को लगा कि उसे झूठे सपने दिखाए जा रहे हैं, तो उस ने शिकायत की कि ‘‘मुझे विधायकी का टिकट चाहिए.’’

सूरजभान ने समझाया, ‘‘देखो, तुम पहले नगरनिगम का चुनाव लड़ो. पार्टी में कई सीनियर नेता हैं. उन्हें टिकट न देने पर पार्टी में असंतोष फैलेगा. मुझे सब का ध्यान रखना पड़ता है. फिर हमें भी हाईकमान का फैसला मानना पड़ता है. सबकुछ मेरे हाथ में नहीं है.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘सबकुछ आप के हाथ में ही है. आप चाहते ही नहीं कि मैं आगे बढूं. मैं ने अपना जिस्म आप को सौंप दिया. आप को अपना सबकुछ माना. आप पर भरोसा किया और आप मुझे धोखा दे रहे हैं.’’

‘‘इस में धोखे की क्या बात है? चाहो तो मैं तुम्हारे अकाउंट में 5-10 करोड़ रुपए जमा करवा दूं.’’

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 3

एक दिन सूरजभान ने घर छोड़ा, तो नशे में अवध ने कहा, ‘‘हर बार बाहर से चले जाते हो. इसे अपना ही घर समझो. चलो, कुछ खा लेते हैं.’’

सूरजभान ने कहा, ‘‘भैया, घर पहुंचने में देर हो जाएगी. रात हो रही है, फिर कभी सही.’’

‘‘नहीं, रोज यही कहते हो. देर हो जाए तो यहीं रुक जाना. मोबाइल से घर पर बता दो कि अपने दोस्त के यहां रुक गए हो…’’ फिर अवध ने रूपमती को आवाज दी, ‘‘कुछ बनाओ मेरा दोस्त, मेरा भाई आया है.’’

रूपमती को तो मनचाही मुराद मिल गई. जिस से छिपछिप कर मिलना पड़ता था, उसे उस का पति घर ले कर आ रहा है. खा पीकर अवध तो नशे में सोता, तो सीधा अगले दिन के 10-11 बजे ही उठता. इस बीच रूपमती और सूरजभान का मधुर मिलन हो जाता और सुबह जल्दी उठ कर वह अपने घर चला जाता.

सूरजभान की पत्नी अनुपमा गुस्से की आग में जल रही थी. उस का जलना लाजिमी भी था. उस का पति महीनों से रातरात भर गायब रहता था. सुबह आ कर सो जाता और खाना खाने के बाद जो दोपहर से काम पर जाने के बहाने से निकलता, फिर दूसरे दिन सुबह ही वापस आता.

अनुपमा जानती थी कि उस का पति रातभर किसी बाजारू औरत के आगोश में रहता होगा. वह अपने पति को रिझाने का हर जतन कर चुकी थी, लेकिन उसे सिवाय गालियों के कुछ और नहीं मिलता था.

ससुर से शिकायत करने पर भी अनुपमा को यही जवाब मिला कि पतिपत्नी के बीच में हम क्या बोल सकते हैं. काम पर आतेजाते उस की नजर नौकर दारा पर पड़ती रहती. उस के कसे हुए शरीर, ऊंची कदकाठी, कसरती बदन को देख कर अनुपमा के बदन में चींटियां सी रेंगने लगतीं.

एक दिन अनुपमा ने दारा को बुला कर कहा, ‘‘तुम केवल मेरे पति के नौकर नहीं हो, बल्कि इस पूरे परिवार के भरोसेमंद हो. पूरे परिवार के प्रति तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’

‘‘जी मालकिन,’’ दारा ने सिर झुका कर कहा.

‘‘तो बताओ कि तुम्हारे मालिक कहां और किस के पास आतेजाते हैं? उन की रातें कहां गुजरती हैं?’’ क्या तुम्हें अपनी छोटी मालकिन का जरा भी खयाल नहीं है?’’ अनुपमा ने अपनेपन की मिश्री घोलते हुए कहा.

‘‘मालकिन, अगर मालिक को पता चल गया कि मैं ने आप को उन के बारे में जानकारी दी है, तो वे मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे,’’ दारा ने अपनी मजबूरी जताई.

‘‘तुम निश्चिंत रहो. तुम्हारा नाम नहीं आएगा.’’

‘‘लेकिन मालकिन.’’

अनुपमा ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा, ‘‘इधर देखो. मैं भी औरत हूं. मेरी भी कुछ जरूरतें हैं.’’

दारा ने सिर उठा कर देखा. मालकिन की साड़ी का पल्लू नीचे गिरा हुआ था. उस ने ब्लाउज में मालकिन को पहली बार देखा था. पेट से ले कर कमर तक बदन की दूधिया चमक से दारा का मन चकाचौंध हो रहा था. उस के शरीर में तनाव आने लगा, तभी मालकिन ने अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक किया.

‘‘सुनो दारा, मालिक वही जो मालिकन के साथ रहे. तुम भी मालिक बन सकते हो. लेकिन तुम्हें कुछ करना होगा,’’ अनुपमा ने अपने शरीर का जाल दारा पर फें का. उस की स्वामीभक्ति भरभरा कर गिर पड़ी.

‘‘आप का हुक्म सिरआंखों पर. आप जो कहेंगी, आज से दारा वही करेगा. आज से मैं केवल आप का सेवक बनूंगा,’’ दारा ने कहा.

‘‘तो सुनो, उस कलमुंही का कुछ ऐसा इंतजाम करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’’ अनुपमा ने कहा.

‘‘जो हुक्म,’’ कह कर दारा चला गया.

दारा के सामने मालकिन का दूधिया शरीर घूम रहा था. सब से पहले उस ने रूपमती के पति अवध को खत्म करने की योजना बनाई.

इस बार रात में रूपमती ने सूरजभान से कहा, ‘‘मेरा मरद तो अब किसी काम का है नहीं. अब तो वह हमें  साथ देख लेने के बाद भी चुप रहता है. वह तो शराब का गुलाम हो चुका है. उस ने शराब पीने में खेतीबारी बेच दी. तुम ने उसे जुए की लत में ऐसा उलझाया कि यह घर तक गिरवी रखवा दिया. कम से कम अब तो मुझे औलाद का सुख मिलना चाहिए. आज की रात मुझे तुम से औलाद का बीज चाहिए.’’

सूरजभान ने रूपमती की बंजर जमीन में अपने बीज डाल दिए.

सुबह सूरजभान के निकलते ही दारा शराब की बोतल ले कर पहुंचा और उस ने अवध को जगाया.

‘‘तुम्हारा मालिक तो चला गया,’’ अवध ने दरवाजा खोल कर कहा.

‘‘हां, लेकिन उन्होंने तुम्हारे लिए शराब भेजी है,’’ दारा ने शराब की बोतल थमाते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, क्या बात है तुम्हारे मालिक की,’’ कह कर अवध ने बोतल मुंह से लगा ली.

थोड़ी ही देर में शराब में मिला हुआ जहर अपना असर दिखाने लगा. अवध को जलन से भयंकर पीड़ा होने लगी. वह कसमसाने लगा, लेकिन ज्यादा नशे के चलते उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. वह उसी हालत में तड़पता रहा और हमेशा के लिए सो गया.

दारा ने सोचा तो यह था कि रूपमती के पति की हत्या के आरोप में सूरजभान जेल चले जाएंगे और वह मालकिन के शरीर का मालिक बनेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दरअसल, रूपमती ने दारा को शराब की बोतल देते देख लिया था. वह समझ चुकी थी कि सूरजभान का खानदान उस के पीछे लग चुका है और उस की जान को भी खतरा हो सकता है. सूरजभान उस के पति की जान नहीं ले सकता. उस ने तो उसे हर ओर से नकारा बना दिया था. फिर ऐसा करने से पहले वह उस से पूछता जरूर. इस का साफ मतलब था कि इस में सूरजभान के परिवार के लोग शामिल हो चुके हैं और अगला नंबर उस का होगा.

रूपमती ने सूरजभान को बताया, तो सूरजभान ने कहा, ‘‘तुम यहां से कहीं दूर चली जाओ और अपनी नई जिंदगी शुरू करो. मैं तुम्हें हर महीने रुपए भेजता रहूंगा. अगर तुम्हारी कोई औलाद हुई, तो उस की जिम्मेदारी भी मेरी. लेकिन ध्यान रखना कि यह संबंध और होने वाली औलाद दोनों नाजायज हैं. भूल कर भी मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’

अपनी जान के डर से रूपमती को दूर शहर में जाना पड़ा. जाने से पहले वह अपने पति के कातिल दारा को जेल भिजवा चुकी थी. सूरजभान या उस की पत्नी अनुपमा ने उसे बचाने की कोई कोशिश नहीं की थी.

वजह, चुनाव होने वाले थे. वे दारा से मिलने या उसे बचाने की कोशिश में जनता के साथसाथ विपक्ष को भी कोई होहल्ला मचाने का मौका नहीं देना चाहते थे.

इस के बाद सूरजभान की जिंदगी में न जाने कितनी रूपमती आई होंगी. अब वह राजनीति का उभरता सितारा था. अपने पिता की विरासत को गांव की सरपंची से निकाल कर वह विधानसभा तक में कामयाबी के झंडे गाड़ चुका था. उस के काम से खुश हो कर पार्टी ने उसे मंत्री पद भी दे दिया था.

Lady Don अस्मिता गोहिल, जिसका नाम सुनते लोग थर्रा उठते

गुजरात के सिल्क और डायमंड सिटी सूरत की गलियों में जिस समय खतरनाक हथियारों के साथ लेडी डौन (Lady Don) अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी निकलती थी, उस समय लोग थर्रा उठते थे. शहर के कारोबारियों और दुकानदारों की रूह कांप जाती थी. वे यह सोच कर डर जाते थे कि अब पता नहीं किस का नंबर आने वाला है. यह लेडी डौन सिर्फ गुंडागर्दी कर के रंगदारी ही नहीं वसूलती बल्कि फेसबुक और यूट्यूब पर भी काफी एक्टिव रहती थी.

सोशल मीडिया पर उस के 13 हजार से अधिक फालोअर्स हैं और ढाई हजार के करीब दोस्त हैं. आए दिन वह अपने फेसबुक एकाउंट पर नईनई वीडियो पोस्ट करती रहती है. कई वीडियो में वह अपने हाथों में नंगी तलवार और रिवौल्वर ले कर लोगों से रंगदारी वसूलती दिखी.

lady-don-asmita-gohil4

अपराध की दुनिया में अस्मिता उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने आप को बीते जमाने की लेडी डौन उर्फ गौड मदर संतोषबेन जाडेजा के रूप में देखना चाहती थी. यह प्रेरणा उसे संतोषबेन जाडेजा के जीवन पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ से मिली थी. यह फिल्म अस्मिता ने कई बार देखी थी. इस फिल्म का अस्मिता गोहिल पर गहरा असर पड़ा था.

जिस धमाके के साथ अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी ने सूरत की जमीन पर कदम रखा था, उसे देख कर सूरत के अधिकांश लोगों को लेडी डौन गौड मदर संतोषबेन जाडेजा की याद ताजा हो गई थी.

सारा शहर उस के कारनामों से भयभीत हो गया था. उस का खौफ सूरत शहर के लोगों के बीच कुछ इस प्रकार घर कर गया था कि कोई भी उस के खिलाफ पुलिस के पास जाने और बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. मजबूरन पुलिस को उस के वायरल हुए वीडियो को सबूत के तौर पर मान कर उस के खिलाफ काररवाई करनी पड़ी थी.

13 मार्च, 2017 के इस वीडियो में जहां सूरत के वराछा इलाके में लोग होली का त्यौहार मनाने में मस्त थे तो वहीं अस्मिता गोहिल अपने कारनामों में व्यस्त थी. वह अपने प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला और गोपाल विट्ठल जाधव के साथ हाथों में नंगी तलवार और चाकू लिए उन के बीच पहुंची थी. फिर उस ने भागीरथी मार्केट की गलियों में वहां के लोगों को डरातेधमकाते हुए वहां भय का माहौल बना दिया था. उस के डर से लोग सहम गए थे.

इस वीडियो के वायरल होते ही सूरत के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए थे. वे पता लगाने लगे कि ये कौन सी डौन थी, जिस के आतंक से वहां के लोग इतने सहमे हुए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीनियर पुलिस अधिकारियों ने वराछा के थानाप्रभारी मयूर पटेल से उस वीडियो की सच्चाई जानने के निर्देश दिए. सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी मामले की जांच में जुट गए.

जांच में थानाप्रभारी को पता लग गया कि वह लेडी और कोई नहीं, बल्कि अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी है. पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि इस लेडी डौन का प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा तो सूरत शहर का कुख्यात अपराधी है.

वह शहर के एक ट्रिपल मर्डर केस में वांछित है, जिस की काफी दिनों से पुलिस को तलाश है. इस के पहले कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ता अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी ने उस के साथ मिल कर वराछा की भागीरथी सोसायटी और मार्केट में कुछ इस तरह से अपना आतंक फैलाया कि मजबूरन लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस को वहां अपनी एक चौकी स्थापित करनी पड़ी थी.

उच्चाधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने अस्मिता और उस के प्रेमी की तलाश शुरू कर दी. उन के कई ठिकानों पर छापा मारने के बाद आखिरकार पुलिस को कामयाबी मिली और अस्मिता गोहिल पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने अस्मिता के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया. लेकिन सबूतों के अभाव में उसे जमानत मिल गई थी. यानी 3 महीने बाद वह जेल से बाहर आ गई थी.

lady-don-asmita-gohil4

3 महीने जेल में रहने के बाद भी अस्मिता उर्फ भूरी में कोई बदलाव नहीं आया था, बल्कि जेल जाने के बाद वह पूरी तरह निडर हो गई और पहले से ज्यादा आपराधिक मामलों में शामिल हो गई थी. वह संजय भूरा के जिगरी दोस्त राहुल उर्फ गोदो बामनिया और उस के दोस्तों को साथ ले कर सरेआम लोगों से रंगदारी वसूलती. इतना ही नहीं, वह लोगों के पैसे भी छीनने लगी.

20 वर्षीय सुंदरी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी गुजरात के सौराष्ट्र काठियावाड़ के उसी इलाके की रहने वाली थी, जिस इलाके की लेडी डौन संतोषबेन जाडेजा थी. काले साम्राज्य की दुनिया में वह भी संतोषबेन जाडेजा की तरह अपना दबदबा बना कर सूरत शहर के लोगों पर गौड मदर बन कर राज कायम करना चाहती थी.

गरीब परिवार की थी लेडी डौन अस्मिता

अस्मिता गोहिल काठियावाड़ के जिला सोमनाथ तालुका ऊना के गांगडा गांव के रहने वाले एक गरीब किसान जीमुआभाई गोहिल की बेटी थी. गांव में उन की थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर वह काश्तकारी करते थे. परिवार बड़ा होने के नाते उन्हें बाहर भी मेहनतमजदूरी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उन के परिवार की गाड़ी आगे सरकती थी.

उन के परिवार में पत्नी जसुबेन के अलावा एक बेटा और 6 बेटियां थीं. बेटा सब से छोटा था. अस्मिता गोहिल बड़ी बेटी होने के नाते पूरे परिवार की प्यारी और दुलारी थी. पिता ने तो अस्मिता को बेटे का स्थान दिया था.

चंचल स्वभाव की अस्मिता गोहिल का बचपन गरीबी में बीता था. यही कारण था कि वह अपनी उम्र के साथ तेजतर्रार और उग्र स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी युवती बन गई थी. जिन चीजों का उस के पास अभाव था, वह उन्हें पाने के सपने देखा करती थी. उन सपनों को पूरा करने का आइडिया उसे लेडी डौन संतोष बेन जाडेजा की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ देख कर मिल चुका था.

अस्मिता के पिता गरीब जरूर थे, लेकिन गांव में उन का मानसम्मान था. अन्य बच्चों की तरह वह अस्मिता को भी पढ़ाना चाहते थे लेकिन अस्मिता का मन स्कूल की पढ़ाई में कम और ग्लैमरस व आपराधिक गतिविधियों की तरफ अधिक रहता था.

किसी भी बात को ले कर वह अकसर अपने सहपाठियों से उलझ जाया करती थी. वह लड़कियों के बजाय लड़कों के साथ दिखना पसंद करती थी. यही वजह थी कि उस के दोस्तों में लड़कों की संख्या अधिक थी. उस की यह आदत घर वालों को पसंद नहीं थी.

सन 2015 के दौरान वह अपने ही गांव के एक बिगड़े हुए लड़के के साथ घर से गायब हो गई. थाने में उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला था. करीब एक साल तक गायब रहने के बाद एक दिन अस्मिता अपने प्रेमी के साथ खुद पुलिस थाने में हाजिर हो गई. दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने प्रेमी को जेल भेज दिया और अस्मिता को उस के मांबाप के हवाले कर दिया था.

lady-don-asmita-gohil

अस्मिता गोहिल के घर वालों ने उस के सारे गुनाह माफ कर के उसे अपने गले लगा लिया था, लेकिन एक साल तक बिगड़े हुए रईसजादे के साथ रहने के बाद अस्मिता को अपने घर का माहौल रास नहीं आया तो वह एक रात चुपके से घर से भाग कर सूरत में रहने वाले अपने मामा और मामी के पास चली गई थी. यहीं पर उस की मुलाकात भावनगर के रहने वाले कुख्यात अपराधी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा से हुई थी, जिस पर लूटपाट, मारपीट और मर्डर आदि के दरजनों मामले चल रहे थे.

संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा और अस्मिता गोहिल की दोस्ती का पता जब उस के मामामामी को चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अस्मिता को समझानेबुझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उन की कोई भी बात अस्मिता गोहिल के गले से नीचे नहीं उतरी थी.

प्रेमी के साथ रखा अपराध में कदम

मामामामी की बातों पर ध्यान देने के बजाय अस्मिता उन का घर छोड़ कर संजय उर्फ भूरा के साथ रहने के लिए चली गई और उस के साथ लिवइन में रहने लगी. संजय के साथ रहने और उस के साथ आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण लोग अस्मिता को भूरी डौन के नाम से पुकारने लगे थे.

ब्यूटी डौन बनी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी का इलाके में खासा नाम हो गया था. जब उस के पास पैसा आया तो वह अच्छे रहनसहन के साथ अपने शौक पूरे करने में लग गई. क्रूजर मोटरसाइकिल, लग्जरी कार उस की पसंद बन गई थी, जिस के साथ फोटो खिंचवा कर वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डालती रहती थी.

लोग उस की सुंदरता और अदाओं पर जम कर कमेंट करते थे. लेकिन जब वह उस का अपराधों से भरा प्रोफाइल देखते तो उन का सिर चकरा जाता था. अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने इन्हीं वाहनों पर सवार हो कर के लोगों से रंगदारी वसूलती थी.

आतंक का पर्याय बन चुकी लेडी डौन अस्मिता गोहिल के अपराधों की जानकारी तो समयसमय पर पुलिस को मिलती रहती थी, लेकिन किसी शिकायतकर्ता के सामने न आने के कारण पुलिस बेबस रहती थी. वह चाह कर भी उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर पाती थी.

मगर पुलिस भी हाथों पर हाथ रख कर नहीं बैठी थी. वह उस की हर हरकत पर नजर रख रही थी और इस में उसे सफलता भी मिली. पुलिस के हाथ अस्मिता गोहिल का एक और वीडियो लग गया, जिस से अस्मिता गोहिल और उस के साथियों के कारनामों का परदा हट गया था.

21 मई, 2018 को वायरल हुए इस वीडियो में अस्मिता गोहिल और उस के साथियों का चेहरा सामने आ गया था. उस दिन सुबह के साढ़े 6 बजे ही भागीरथी सोसायटी की मार्केट के एक एंब्रायडरी कारखाने में तोड़फोड़ करते हुए व उस के मालिक को डरातेधमकाते हुए अस्मिता उर्फ भूरी और उस के साथी कैमरे में कैद हो गए.

इस के एक घंटे बाद ही वह अपने एक और साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया के साथ अपनी क्रूजर मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वर्षा सोसायटी की एक पान की दुकान पर पहुंची. दुकानदार को डरा कर उस ने उस के गल्ले का सारा पैसा ले लिया. इतना ही नहीं, उस ने उसे भद्दी गालियां भी दीं.

आतंक बढ़ने पर कस गया शिकंजा

वह अपने हाथों में जिस समय नंगी तलवार ले कर पान की दुकान पर आई थी, उसी समय दुकान पर इक्केदुक्के ग्राहक चुपचाप वहां से खिसक गए. पान वाले के साथ ही साथ वहां से गुजरने वाला एक दूध वाला भी उस का शिकार बन गया था. राहुल और भूरी ने उसे रोक कर उस के पास से सारे पैसे छीन लिए थे.

एक ही दिन में अस्मिता गोहिल के अपराधों के 2 वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया था. सूरत पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने वराछा और शहर के अन्य थानों के थानाप्रभारियों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त काररवाई के आदेश दिए थे. पुलिस कमिश्नर के सख्त आदेश पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी को घटना के 5 दिनों बाद ही उस के साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.

अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी के खिलाफ सूरत शहर के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक मामले दर्ज हैं. लेडी डौन से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने इस बार उस पान वाले और एंब्रायडरी कारखाने के मालिक को भी ढूंढ कर उन की शिकायत ली फिर सीसीटीवी के फुटेज भी जब्त कर लिए.

इस के आधार पर भूरी के खिलाफ मामला दर्ज कर उस के साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया, भावेशभाई, रणछोड़ देसाई, संजय मनुभाई को 26 मई, 2018 को कोर्ट में पेश कर लाजपोर जेल भेज दिया.

लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी और उस के साथियों के जेल जाने के बाद सूरत शहर के कारखाना मालिकों और दुकानदारों के साथ ही साथ आम जनता ने भी राहत की सांस ली. लेकिन उस के डर से वे पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं.

उन का मानना है कि आज नहीं तो कल वह जेल से बाहर आएगी, मगर पुलिस का यह दावा है कि इस बार लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी के जेल से बाहर आने की संभावना न के बराबर है. क्योंकि इस बार उन के पास अस्मिता गोहिल के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. पुलिस के दावों में कितना दम है, यह तो वक्त ही बताएगा.

कथा लिखे जाने तक अस्मिता गोहिल अपने साथियों के साथ जेल की सलाखों में बंद अपनी रिहाई के दिन गिन रही थी.

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 1

रूपमती चीखनेचिल्लाने लगी. प्रेमी के ऊपर से हट कर वह अपने कपड़े ले कर अवध की तरफ ऐसे दौड़ी मानो अवध की गैरहाजिरी में उस की पत्नी के साथ जबरदस्ती हो रही थी.

प्रेमी जान बचाने के लिए भागा और अवध अपनी पत्नी के साथ रेप करने वाले को मारने के लिए दौड़ा. जैसा रूपमती साबित करना चाहती थी, अवध को वैसा ही लगा.

जब रूपमती ने देखा कि अवध कुल्हाड़ी उठा कर प्रेमी की तरफ दौड़ने को हुआ है, तो उस के अंदर की प्रेमिका ने प्रेमी को बचाने की सोची.

रूपमती ने अवध को रोकते हुए कहा, ‘‘मत जाओ उस के पीछे. आप की जान को खतरा हो सकता है. उस के पास तमंचा है. आप को कुछ हो गया, तो मेरा क्या होगा?’’

तमंचे का नाम सुन कर अवध रुक गया. वैसे भी वह गुस्से में दौड़ा था. कदकाठी में सामने वाला उस से दोगुना ताकतवर था और उस के पास तमंचा भी था.

रूपमती ने जल्दीजल्दी कपड़े पहने. खुद को उस ने संभाला, फिर अवध से लिपट कर कहने लगी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप आ गए. आज अगर आप न आते, तो मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहती.’’

अवध अभी भी गुस्से में था. रूपमती उस के सीने से चिपटी हुई यह जानना चाहती थी कि वह क्या सोच रहा है? कहीं उसे उस पर शक तो नहीं हुआ है?

अवध ने कहा, ‘‘लेकिन, तुम तो उस के ऊपर थीं.’’

रूपमती घबरा गई. उसे इसी बात का डर था. लेकिन औरतें तो फरिश्तों को भी बेवकूफ बना सकती हैं, फिर उसे तो एक मर्द को, वह भी अपने पति को बेवकूफ बनाना था.

सब से पहले रूपमती ने रोना शुरू किया. औरत वही जो बातबात पर आंसू बहा सके, सिसकसिसक कर रो सके. उस के रोने से जो पिघल सके, उसी को पति कहते हैं.

अवध पिघला भी. उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं ठीक समय पर आ गया और वह भाग गया. तुम्हारी इज्जत बच गई. अब रोने की क्या बात है?’’

‘‘आप मुझ पर शक तो नहीं कर रहे हैं?’’ रूपमती ने रोते हुए पूछा.

‘‘नहीं, मैं सिर्फ पूछ रहा हूं,’’ अवध ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

रूपमती समझ गई कि सिर पर हाथ फेरने का मतलब है अवध को उस पर यकीन है, लेकिन जो सीन अवध ने अपनी आंखों से देखा है, उसे झुठलाना है.

पहले रूपमती ने सोचा कि कहे, ‘उस आदमी ने मुझे दबोच कर अपनी ताकत से जबरदस्ती करते हुए ऊपर किया, फिर वह मुझे नीचे करने वाला ही था कि आप आ गए.’

लेकिन जल्दी ही रूपमती ने सोचा कि अगर अवध ने ज्यादा पूछताछ की, तो वह कब तक अपने झूठ में पैबंद लगाती रहेगी. कब तक झूठ को झूठ से सिलती रहेगी. लिहाजा, उस ने रोतेसिसकते एक लंबी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘आज से 6 महीने पहले जब आप शहर में फसल बेचने गए थे, तब मैं कुएं से पानी लेने गई थी. दिन ढल चुका था.

‘‘मैं ने सोचा कि अंधेरे में अकेले जाना ठीक नहीं होगा, लेकिन तभी दरवाजा खुला होने से न जाने कैसे एक सूअर अंदर आ गया. मैं ने उसे भगाया और घर साफ करने के लिए घड़े का पानी डाल दिया. अब घर में एक बूंद पानी नहीं था.

‘‘मैं ने सोचा कि रात में पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ सकती है. क्यों न एक घड़ा पानी ले आऊं.

‘‘मैं पानी लेने पनघट पहुंची. वहां पर उस समय कोई नहीं था. तभी वह आ धमका. उस ने बताया कि मेरा नाम ठाकुर सूरजभान है और मैं गांव के सरपंच का बेटा हूं.

‘‘वह मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा. उस ने मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे कपड़े उतार डाले. मैं दौड़ते हुए कुएं के पास पहुंच गई.

‘‘मैं ने रो कर कहा कि अगर मेरे साथ जबरदस्ती की, तो मैं कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगी. उस ने डर कर कहा कि अरे, तुम तो पतिव्रता औरत हो. आज के जमाने में तुम जैसी सती औरतें भी हैं, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘‘लेकिन तभी उस ने कैमरा निकाल कर मेरे फोटो खींच लिए और माफी मांग कर चला गया.

‘‘मैं डरी हुई थी. जान और इज्जत तो बच गई, पर फोटो के बारे में याद ही नहीं रहा.

‘‘दूसरे दिन मैं हिम्मत कर के उस के घर पहुंची और कहा कि तुम ने मेरे जो फोटो खींचे हैं, वे वापस कर दो, नहीं तो मैं बड़े ठाकुर और गांव वालों को बता दूंगी. थाने में रिपोर्ट लिखाऊंगी.

‘‘उस ने डरते हुए कहा कि मैं फोटो तुम्हें दे दूंगा, पर अभी तुम जाओ. वैसे भी चीखनेचिल्लाने से तुम्हारी ही बदनामी होगी और सब बिना कपड़ों की तुम्हारे फोटो देखेंगे, तो अच्छा नहीं लगेगा. मैं तुम्हारे पति की गैरहाजिरी में तुम्हें फोटो दे जाऊंगा.

‘‘आप 2 दिन की कह कर गए थे. मैं ने ही उसे खबर पहुंचाई कि मेरे पति घर पर नहीं हैं. फोटो ला कर दो.

‘‘सूरजभान फोटो ले कर आया, लेकिन मुझे अकेला देख उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस ने फिर मेरे कपड़े उतारने की कोशिश की और मुझे नीचे पटका.

‘‘मैं ने पूरी ताकत लगाई. खुद को छुड़ाने के चक्कर में मैं ने उसे धक्का दिया. वह नीचे हुआ और मैं उस के ऊपर आ गई. अभी मैं उठ कर भागने ही वाली थी कि आप आ गए…’’

रूपमती ने अवध की तरफ रोते हुए देखा. उसे लगा कि उस के ऊपर उठने वाले सवाल का जवाब अवध को मिल गया था और उस का निशाना बिलकुल सही था, क्योंकि अवध उस के सिर पर प्यार से दिलासा भरा हाथ फिरा रहा था.

अवध ने कहा, ‘‘मुझे इस बात की खुशी है कि तुम ने पनघट पर अकेले बिना कपड़ों के हो कर भी जान पर खेल कर अपनी इज्जत बचाई और आज मैं आ गया. तुम्हारा दामन दागदार नहीं हुआ.’’

रूपमती ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘आप क्या सोचते हैं कि मैं उसे कामयाब होने देती? मैं ने नीचे तो गिरा ही दिया था बदमाश को. उस के बाद उठ कर कुल्हाड़ी से उस की गरदन काट देती. और अगर कहीं वह कामयाब हो जाता, तो तुम्हारी रूपमती खुदकुशी कर लेती.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. अकेले इतना सबकुछ सहती रही…’’ अवध ने रूपमती के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं बड़े ठाकुर, गांव वालों और पुलिस से बात करूंगा. तुम्हें डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. जब तुम इतना सब कर सकती हो, तो मैं भी पति होने के नाते सूरजभान को सजा दिला सकता हूं. वे फोटो लाना मेरा काम है,’’ अवध ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसा मत करना. मेरी बदनामी होगी. मैं जी नहीं पाऊंगी. आप के कुछ करने से पहले वह मेरे फोटो गांव वालों को दिखा कर मुझे बदनाम कर देगा.

‘‘पुलिस के पास जाने से क्या होगा? वह लेदे कर छूट जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जहर ला कर दे दें. मैं मर जाऊं, फिर आप जो चाहे करें,’’ रूपमती रोतेरोते अवध के पैरों पर गिर पड़ी.

‘‘तो क्या मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं? कुछ न करूं?’’ अवध ने कहा, ‘‘तुम्हारी इज्जत, तुम्हारे फोटो लेने वाले को मैं यों ही छोड़ दूं?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा? लेकिन हमें चालाकी से काम लेना होगा. गुस्से में बात बिगड़ सकती है,’’ रूपमती ने अवध की आंखों में झांक कर कहा.

‘‘तो तुम्हीं कहो कि क्या किया जाए?’’ अवध ने हथियार डालने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘आप सिर्फ अपनी रूपमती पर भरोसा बनाए रखिए. मुझ से उतना ही प्यार कीजिए, जितना करते आए हैं,’’ कह कर रूपमती अवध से लिपट गई. अवध ने भी उसे अपने सीने से लगा लिया.

अगले दिन गांव के बाहर सुनसान हरेभरे खेत में सूरजभान और रूपमती एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

सूरजभान ने कहा ‘‘तुम तो पूरी गिरगिट निकलीं.’’

‘‘ऐसी हालत में और क्या करती? वह 2 दिन की कह कर गया था. मुझे क्या पता था कि वह अचानक आ जाएगा. तुम ने अंदर से कुंडी बंद करने का मौका भी नहीं दिया था…’’ रूपमती ने सूरजभान के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘मुझे कहानी बनानी पड़ी. तुम भागते हुए मेरे कुछ फोटो खींचो. कहानी के हिसाब से मुझे तुम से अपने वे फोटो हासिल करने हैं. तुम से फोटो ले कर मैं उसे दिखा कर फोटो फाड़ दूंगी, तभी मेरी कहानी पूरी होगी.’’

सूरजभान ने कैमरे से उस के कुछ फोटो लेते हुए कहा, ‘‘लेकिन आज नहीं मिल पाएंगे. 1-2 दिन लगेंगे.’’

‘‘ठीक है, लेकिन सावधान रहना. फोटो मिलने के बाद वह मेरी इज्जत लूटने वाले के खिलाफ कुछ भी कर सकता है,’’ रूपमती ने हिदायत दी.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं निबट लूंगा,’’ सूरजभान ने कहा.

कुकर्मी बाप की बेटियां

महाराष्ट्र के सतारा जिले की रहने वाली योगिता की शादी करीब 5 साल पहले संजय देवरे से हुई थी. पतिपत्नी दोनों पढ़ेलिखे थे और कमाते भी थे. संजय एक अच्छी कंपनी में काम करता था, तो बीकौम की पढ़ाई कर चुकी योगिता एक एकाउंटेंट के यहां नौकरी करती थी.

जब दोनों कमा रहे थे तो उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं था. भले ही दोनों पढ़ेलिखे थे लेकिन उन के विचारों में काफी अंतर था. दोनों छोटीछोटी बात पर बहस करने लगते थे, जिस से उन के बीच विवाद हो जाता था.
जिस से संजय योगिता की पिटाई कर देता था. यह बात योगिता को बहुत बुरी लगती थी. योगिता ने पति के साथ गृहस्थी को चलाने के तमाम सपने देखे थे. लेकिन शादी के कुछ ही दिनों बाद उसे पति से प्यार के बजाए पिटाई मिल रही थी. जिस से उस के सारे सपने बिखरते दिख रहे थे. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि वह ऐेसे पति के साथ नहीं रहेगी.

इसी दौरान योगिता ने एकाउंटेंट के यहां से नौकरी छोड़ कर एक बिल्डर के यहां नौकरी करनी शुरू कर दी. वहीं पर उस की मुलाकात सुशील मिश्रा नाम के युवक से हुई. सुशील मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. वह काम की तलाश में मुंबई आया था और अपनी बीवी बच्चों के साथ पालघर जिले के नालासोपारा में रहता था.

जिस बिल्डर के यहां योगिता नौकरी करती थी, सुशील उस के यहां बिल्डिंग बनाने का ठेका लेता था. इस वजह से सुशील का योगिता से अकसर मिलनाजुलना होता रहता था. बातूनी स्वभाव के सुशील ने जल्दी ही योगिता से दोस्ती कर ली. इस के बाद योगिता उस से अपने सुखदुख की बातें शेयर करने लगी.

सुशील अय्याश प्रवृत्ति का था. पार्वती नाम की एक महिला के साथ भी उस के अवैध संबंध थे. पार्वती बिल्डरों के यहां बेगार करती थी.

खिलाड़ी था सुशील

शादीशुदा पार्वती शराबी पति से त्रस्त हो कर पति और बच्ची को गांव में छोड़ कर अकेली ही नालासोपारा में रहने लगी थी. पार्वती अकेली ही रहती थी. सुशील ने उस के अकेलेपन का फायदा उठाया. पार्वती से नजदीकियां बन जाने पर जब उस का मन होता वह पार्वती के कमरे पर मौजमस्ती करने चला जाता था. कभीकभी वह उसे खर्चे आदि के पैसे भी दे देता था.

सुशील का मन पार्वती से भर चुका था, इसलिए अब वह योगिता से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश में जुट गया. वह योगिता से इस तरह बात करता कि योगिता को भी उस में अपनापन झलकने लगा.

एक दिन योगिता ने उसे पति से दूर रहने की वजह बता दी. सुशील ने उस से सहानुभूति जताते हुए कह दिया कि वह खुद को अकेला महसूस न करे. कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो उसे बता दे. जब भी वह उसे याद करेगी, हाजिर हो जाएगा.

योगिता को सुशील पसंद आ गया. जिस तरह के सुख व सहानुभूति वह पति से चाहती थी, वह सारे सुशील दे सकता था. लिहाजा एक दिन योगिता ने सुशील के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सुशील की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
मौका देख सुशील ने उस से कहा, ‘‘योगिता मैं भी तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, लेकिन मेरे साथ समस्या यह है कि मैं शादीशुदा और 2 बेटियों का पिता हूं और उन्हें छोड़ नहीं सकता.’’

यह सुन कर योगिता कुछ पल चुप रहने के बाद बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मुझे मंजूर है. यदि आप मेरे साथ शादी नहीं करोगे तब भी मैं बिना शादी के आप के साथ रह लूंगी. आप अपनी पत्नी को गांव छोड़ देना, यहां पर मैं दोनों बेटियों को अच्छे से संभाल लूंगी.’’

योगिता के इस प्रस्ताव से सुशील मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह योगिता के प्यार में इतना डूब चुका था कि उस ने पार्वती के पास जाना बंद कर दिया.
पार्वती इस बात को समझ गई थी कि योगिता ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया है, इसलिए वह योगिता से नफरत करने लगी.

दूसरी ओर सुशील पत्नी को गांव भेजने का उपाय खोजने लगा. एक दिन उस ने पत्नी को विश्वास में लेते हुए कहा, ‘‘गांव में मातापिता की तबीयत खराब है. ऐसा करो, तुम उन की देखभाल के लिए गांव चली जाओ. यहां बच्चों को मैं संभाल लूंगा, वैसे भी हमारी दोनों बेटियां अब बड़ी हो चुकी हैं.’’

पत्नी ने सुशील की बात मान ली तो वह उसे गांव छोड़ आया. इस के बाद योगिता अपने पति को कुछ बोल कर अपने कपड़े आदि ले कर सुशील के घर चली आई. उसे आया देख सुशील की लड़कियां समझ गईं कि इसी महिला के लिए उन के पिता ने मां को गांव का रास्ता दिखा दिया.

उस दिन सुशील को योगिता के साथ अपनी हसरत पूरी करनी थी, इसलिए शाम का खाना खाने के बाद वह योगिता को ले कर बेडरूम में घुस गया. रात में दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस से दोनों ही खुश थे.

अब योगिता सुशील के घर पत्नी की तरह रहने लगी. उसे वहां रहते हुए लगभग एक साल हो चुका था. योगिता का व्यवहार भी बदल चुका था जो सुशील की बेटियों को पसंद नहीं था. जब सुशील घर पर नहीं होता तब दोनों लड़कियां योगिता से झगड़ा मोल लेती थीं. शाम को जब सुशील घर लौटता तब योगिता उस से उन दोनों की शिकायत करती थी.

योगिता की बात पर वह बच्चों को ही डांट देता था. पिता के इस रवैये से दोनों लड़कियां काफी दुखी थीं. दोनों यही सोचती रहती थीं कि इस औरत से कैसे छुटकारा पाया जाए. क्योंकि उसी की वजह से उन की मां उन से दूर चली गई थी.

उसी की वजह से उन्हें रोजाना पिता की डांट भी सुननी पड़ती थी. सुशील की बड़ी बेटी सुधा और छोटी बेटी सुजाता (काल्पनिक नाम) की एक दिन पार्वती माने से जानपहचान हो गई थी.

फिर दोनों बहनों ने पार्वती को अपना दुखड़ा सुनाया और उस से योगिता को घर से बाहर करने का उपाय पूछा.

योगिता का बुरा वक्त

पार्वती भी योगिता से चिढ़ी हुई थी. क्योंकि उस ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया था. इसलिए वह दोनों बहनों की मदद करने को तैयार हो गई. पार्वती ने कहा कि इस का एक ही उपाय है कि योगिता का पता ही साफ कर दिया जाए. एक दिन सुशील को शादी के किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गुजरात जाना पड़ा. अच्छा मौका देख पार्वती, सुजाता और सुधा के प्रेमी शैलेश काले ने मिल कर योगिता की हत्या की साजिश रच डाली.

वारदात के दिन पार्वती और शैलेश काले सुजाता के घर के नजदीक पहुंचे. इमारत के गेट पर मौजूद सुरक्षा गार्ड को शराब का लालच दे कर वे दोनों इमारत में प्रवेश कर गए. उस वक्त योगिता कमरे में बेड पर गहरी नींद में सोई थी. उसी का फायदा उठा कर उन्होंने नींद में ही योगिता का गला चुनरी से घोंट दिया.

उस की हत्या करने के बाद शैलेश काले ने सुजाता के प्रेमी नीरज मिश्रा को फोन कर के आटो रिक्शा लाने को कहा. उस ने नीरज को बताया कि योगिता की तबीयत खराब है, उसे डाक्टर के पास ले जाना है. फिर पार्वती ने योगिता की लाश एक कंबल में लपेट कर आटो रिक्शा में रख दी. उन्होंने जंगल में ले जा कर लाश फेंक दी.

पहली अप्रैल, 2019 को किसी शख्स की नजर लाश पर गई तो उस ने फोन पर यह जानकारी पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना तुलिंज के सीनियर पीआई डानियल बेन, पीआई राकेश, हवलदार दीपक पाटिल, नायक नवनाथ वारडे को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश किसी महिला की थी और छिन्नभिन्न अवस्था में थी.

मौके की काररवाई के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन मृतका को कोई नहीं पहचान पाया. तब पुलिस ने लाश मोर्चरी में रखवा दी. हत्यारों तक पहुंचने से पहले महिला की लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने जिस जगह पर लाश मिली, उस जगह के सारे रास्तों के सीसीटीवी फुटेज की जांच की. इस में पुलिस को सफलता मिल गई.

फुटेज में एक आटोरिक्शा दिखाई दिया, जिस पर जाह्नवी लिखा था. पता लगाने पर जानकारी मिली कि आटोरिक्शा नीरज नाम के युवक का था. पुलिस ने नीरज को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बता दी. इस के बाद पुलिस ने पार्वती माने को भी हिरासत में ले लिया.

पार्वती ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को योगिता की हत्या की सारी कहानी सुना दी. जिस के बाद पुलिस ने 3 अप्रैल, 2019 को शैलेश काले, सुधा और सुजाता को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने सभी को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक दोनों बहनों की जमानत हो चुकी थी. मामले की तफ्तीश पीआई राकेश के. जाधव कर रहे थे.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019