रहस्य में लिपटी विधायक की मौत: आखिर किसने की सत्यजीत बिस्वास की हत्या

37 वर्षीय विधायक सत्यजीत बिस्वास पश्चिम बंगाल के नदिया शहर स्थित कृष्णानगर मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में मांबहन के अलावा पत्नी रूपाली और 7 माह का बच्चा था. विधायक सत्यजीत बिस्वास काफी मिलनसार, मृदुभाषी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे, जिस की वजह से वह अपने विधानसभा क्षेत्र कृष्णागंज में काफी लोकप्रिय थे.

उन की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि वह दिनरात क्षेत्र के विकास के लिए तत्पर रहते थे. क्षेत्र के लोगों की मदद के लिए वह हर समय तैयार रहते थे. इसी के चलते क्षेत्र के लोग उन से खुश रहते थे.

वह 9 फरवरी, 2019 की खुशनुमा शाम थी. तृणमूल कांग्रेस के विधायक सत्यजीत बिस्वास अपनी पत्नी रूपाली बिस्वास के साथ डाइनिंग रूम में बैठे बातचीत करते हुए चाय की चुस्की ले रहे थे. उस वक्त उन का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

पति के चेहरे पर खुशी की ऐसी चमक रूपाली ने पहले कभी नहीं देखी थी. वह भी  पति की खुशी से खुश हो कर उन्हें निहार रही थीं. चाय की चुस्की के दौरान बीचबीच में विधायक की नजरें कलाई पर बंधी घड़ी पर चली जाती थीं.

‘‘क्या बात है जो आज इतने मुसकरा रहे हैं जनाब?’’ रूपाली ने पति को गुदगुदाने की कोशिश की.

‘‘अपने घर में बैठा हूं. खूबसूरत बीवी की छत्रछाया में. खुश होना मना है क्या?’’

यह सुन कर रूपाली शरमाने के बजाए संजीदा हो गईं. फिर पति को कुछ याद दिलाते हुए बोलीं, ‘‘नेताजी, यहां बैठेबैठे यूं ही बातें करते रहेंगे या जिस के लिए तैयार हो कर बैठे हैं, वहां भी जाएंगे.’’

‘‘अच्छा किया, तुम ने याद दिला दिया मैडम. ऐसा करो तुम भी तैयार हो जाओ. इसी बहाने तुम्हारा भी मूड बदल जाएगा और हमारा साथ भी बना रहेगा.’’ कलाई पर नजर डालते हुए सत्यजीत आगे बोले, ‘‘जल्दी करो, मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं बचा है. तुम तैयार हो जाओ. तब तक मैं एक काल कर लेता हूं.’’

इस के बाद रूपाली तैयार होने के लिए चली गई. 10 मिनट में वह तैयार हो कर पति के पास आ गईं. उन्होंने 7 महीने के बेटे को भी तैयार कर दिया था.

दरअसल, विधायक सत्यजीत बिस्वास को फुलबारी इलाके में सरस्वती पूजन के उद्घाटन कार्यक्रम में शरीक होना था, जिस में उन्हें मुख्य अतिथि बनाया गया था. इन के अलावा उस कार्यक्रम में तृणमूल कांग्रेस नेता गौरीशंकर, लघु उद्योग मंत्री रत्ना घोष सहित शहर के तमाम सम्मानित लोगों को भी आमंत्रित किया गया था.

सत्यजीत बिस्वास का वहां पहुंचना जरूरी था. इस के बाद वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ अपनी कार से कार्यक्रम स्थल फुलबारी पहुंच गए. कार्यक्रम स्थल उन के आवास से बमुश्किल 300 मीटर दूर स्थित था. वहां पहुंचने में उन्हें 3-4 मिनट का समय लगा होगा.

बुला रही थी मौत

बहुत बड़े मैदान में लगे पंडाल में कतार से कुर्सियां बिछी हुई थीं. आगे की कतार में बिछी स्पैशल कुर्सियों पर तमाम वीआईपी और नेता बैठे थे. आयोजकों की आंखें बारबार मुख्यद्वार पर जा कर टिक रही थीं. उन की परेशान आंखों से यही पता चल रहा था कि वह बड़ी बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रहे थे.

जैसे ही विधायक सत्यजीत बिस्वास ने पंडाल में प्रवेश किया, वहां का माहौल खुशनुमा हो गया. सरस्वती पूजन के उद्घाटन की सारी तैयारियां पहले से कर ली गई थीं. दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम मंच पर ही होना था. विधायक बिस्वास के पहुंचते ही आयोजक उन्हें, उन की पत्नी रूपाली बिस्वास और कुछ अन्य गणमान्य लोगों को मंच पर ले गए और दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम संपन्न कराया गया.

दीप प्रज्जवलित करने के बाद विधायक सहित तमाम अतिथि कुर्सियों पर जा बैठे. उस के थोड़ी देर बाद अतिथियों के स्वागत में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए. कार्यक्रम ने अतिथियों का मन मोह लिया. वे उस में तन्मयता से लीन हो कर लुत्फ उठा रहे थे. उस समय रात के करीब 9 बजे थे.

रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि 2 नकाबपोश फुरती से पंडाल में पहुंचे. इस से पहले कि लोग कुछ समझ पाते, उन्होंने पीछे से विधायक सत्यजीत बिस्वास पर निशाना साध कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. गोलियां बरसा कर वे दोनों वहां से फरार हो गए. भागते हुए उन्होंने असलहे को वहीं पर फेंक दिया.

विधायक को 3 गोलियां लगी थीं. गोलियां लगते ही वह कुरसी पर गिर कर तड़पने लगे. गोली चलने से हाल में भगदड़ मच गई. जरा सी देर में वहां अफरातफरी का माहौल बन गया. तृणमूल कांग्रेस के नेता गौरीशंकर, रत्ना घोष सहित अन्य लोग आननफानन में गंभीर रूप से घायल विधायक बिस्वास को कार से जिला अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें देखते ही मृत घोषित कर दिया.

टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या की सूचना मिलते ही सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खून में उबाल आ गया. कार्यकर्ता चारों ओर तोड़फोड़ करने लगे. तमाम लोग अपने लोकप्रिय युवा नेता को देखने अस्पताल भी पहुंचे.

उधर मौके पर मौजूद रही विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास को अभी भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो देखा, वो सच है. सत्यजीत बिस्वास उन को हमेशा के लिए अकेला छोड़ कर दुनिया से चले गए थे. रोरो कर उन का बुरा हाल हो गया था. किसी तरह रूपाली और उन के 7 माह के दुधमुंहे बेटे को घर पहुंचाया गया. विधायक बेटे की हत्या की खबर जैसे ही बूढ़ी मां को मिली, उन की तो आंखें पथरा गईं. घर में कोहराम मच गया था.

पार्टी महासचिव पार्थ चटर्जी ने विधायक बिस्वास की हत्या पर गहरा दुख प्रकट करते हुए कहा कि कातिल चाहे जितना भी कद्दावर क्यों हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

विधायक सत्यजीत की हत्या की सूचना मिलते ही एसपी रूपेश कुमार, एएसपी अमनदीप, डीएसपी सुब्रत सरकार, हंसखली के थानाप्रभारी अनिंदय बसु, कृष्णानगर के थानाप्रभारी राजशेखर पौल सहित जिले के तमाम पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने घटनास्थल को चारों ओर से घेर लिया था.

संदेह से भरे सवाल

एसपी रूपेश कुमार ने घटना के लिए हंसखली थाने के थानाप्रभारी अनिंदय बसु को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया. विधायक सत्यजीत बिस्वास की सुरक्षा में एक सुरक्षागार्ड लगाया गया था. घटना के समय वह मौके पर नहीं था.

जांचपड़ताल में पता चला कि सुरक्षागार्ड दिनेश कुमार उसी दिन छुट्टी ले कर घर चला गया था. यह बात किसी भी अधिकारी के गले नहीं उतर रही थी कि दिनेश आज ही छुट्टी पर घर क्यों गया? जिस तरह से विधायक बिस्वास की हत्या की गई थी, वह सुनियोजित थी. सुरक्षा गार्ड दिनेश कुमार को जिम्मेदार मानते हुए उसे भी निलंबित कर दिया.

बात यहीं पर खत्म नहीं हुई थी. टीएमसी कार्यकर्ता अपने लोकप्रिय विधायक की हत्या के लिए भाजपा के सांसद मुकुल राय को जिम्मेदार मान कर उन्हें हत्या का आरोपी बनाने के लिए पुलिस पर दबाव बना रहे थे. टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच से फैलता हुआ यह आरोप फिजाओं में घुल रहा था. लोग कह रहे थे कि सांसद मुकुल राय के इशारे पर शूटर अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने विधायक की हत्या को अंजाम दिया.

विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास भी पति की हत्या के लिए सांसद और कद्दावर नेता मुकुल राय को जिम्मेदार मान रही थीं. रूपाली की तहरीर पर हंसखली थाने में 4 आरोपियों मुकुल राय, अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल के खिलाफ हत्या का नामजद मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर मुकदमा दर्ज होने के कुछ देर बाद जांच थाना पुलिस से सीबीसीआईडी को सौंप दी गई. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही सीबीसीआईडी की टीम भवानी भवन से मौके पर जा पहुंची और जांच शुरू कर दी.

सूरज मंडल और कार्तिक मंडल फुलबारी माठ के आसपास रहते थे. पुलिस जानती थी कि जांच में जितना विलंब होगा, उतना ही आरोपी पकड़ से दूर होते जाएंगे. बगैर वक्त गंवाए सीबीसीआईडी ने रात में ही सूरज मंडल के घर दबिश दी. सूरज मंडल गिरफ्तार कर लिया गया. सूरज की निशानदेही पर ही कार्तिक मंडल को उस के घर से गिरफ्तार किया गया. अभिजीत पुंडरी को नहीं पकड़ा जा सका. वह फरार हो गया था.

गिरफ्तार दोनों आरोपियों सूरज मंडल और कार्तिक मंडल को सीआईडी गिरफ्तार कर के पूछताछ के लिए हंसखली थाने ले आई उन से पूरी रात पूछताछ की गई. पर वे दोनों खुद को बेकसूर बताते रहे.

अगले दिन अधिकारियों की मौजूदगी में उन से फिर पूछताछ की गई. सूरज मंडल ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उस ने विधायक बिस्वास की हत्या में खुद और कार्तिक मंडल के शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान सूरज ने बताया कि उस ने अपने घर के पास एक कटार, बातचीत में इस्तेमाल किए गए सिमकार्ड और कुछ अन्य दस्तावेज छिपा रखे हैं.

अगली सुबह सीआईडी की टीम उसे ले कर उस के घर पहुंची. उस के घर के बाहर पुलिस टीम ने जमीन की खुदाई की तो धारदार हथियार और बड़ी संख्या में सिमकार्ड बरामद किए, जो बंगाल के अलावा दूसरे राज्यों के भी थे. इस के अलावा उस के घर की तलाशी लेने पर वहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तसवीरें भी मिलीं. इस बरामदगी के बाद नाराज स्थानीय लोगों ने सूरज मंडल के घर के पास एकत्र हो कर विरोध प्रदर्शन किए.

इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब सांसद मुकुल राय को पता चला कि विधायक की हत्या में उन्हें भी नामजद आरोपी बनाया गया है.

मुकुल राय की सफाई

अपना नाम घसीटे जाने को ले कर सांसद मुकुल राय ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मैं कोलकाता में बैठा हूं और हत्या यहां से 120 किलोमीटर दूर नदिया जिले में विधायक के घर के पास हुई है. यह पूरी तरह से तृणमूल कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और पश्चिम बंगाल सरकार की विफलता है.

उन्होंने कहा कि घटना की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए, ताकि पूरे रहस्य से परदा उठ सके. आरोपों का खंडन करते हुए सांसद मुकुल राय ने कहा कि अभी ऐसी स्थिति है कि जो कुछ भी होगा, उस के लिए मेरा नाम घसीटा जाएगा. अगर दम है तो इस की निष्पक्ष एजेंसी से जांच करा लें. दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने सांसद मुकुल राय का समर्थन करते हुए घटना की सीबीआई जांच की मांग कर दी. उन्होंने भी यही कहा कि विधायक बिस्वास की हत्या आपसी गुटबाजी में की गई है. यही नहीं, जब भी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कुछ होता है तो वह उस का आरोप भाजपा पर मढ़ देती है.

कई बार तृणमूल खुद ऐसे काम कर के राजनैतिक विरोधियों को फंसाने की पूरी कोशिश करती है. सालों से टीएमसी में आपसी गुटबाजी चरम पर है, यह बात किसी से छिपी नहीं है.

खैर, सांसद मुकुल राय गिरफ्तारी से बचने के लिए कोलकाता उच्च न्यायालय की शरण में पहुंच गए. 12 फरवरी, 2019 को उन्हें बड़ी राहत मिल गई. कोलकाता हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी. हाईकोर्ट ने वरिष्ठ भाजपा नेता मुकुल राय की गिरफ्तारी पर 7 मार्च, 2019 तक रोक लगा दी. टीएमसी पार्टी ने आखिर सांसद मुकुल राय पर हत्या जैसा गंभीर आरोप क्यों लगाया, यह तो जांच का विषय है और पुलिस अपनी काररवाई कर रही है. आइए जानें कि यह मुकुल राय हैं कौन?

65 वर्षीय मुकुल राय मूलरूप से पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना के कंचरपाड़ा के रहने वाले हैं. इन के परिवार में पत्नी कृष्णा राय के अलावा एक बेटा है. भाजपा के सांसद मुकुल राय का राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस के लीडर के रूप में शुरू हुआ था. कांग्रेस के साथ लंबी पारी खेलने के दौरान पिछली मनमोहन सिंह की सरकार में वह केंद्रीय रेल मंत्री थे.

11 जुलाई, 2011 को असम में एक रेल दुर्घटना हुई थी. मुकुल राय रेलमंत्री होने के बावजूद मौके पर नहीं पहुंचे तो प्रधानमंत्री ने उन्हें पद से हटा दिया था और उन की जगह दिनेश त्रिवेदी को यह भार सौंप दिया था.

इस से पहले ममता बनर्जी के साथ मुकुल राय की खूब निभती थी. 1998 में जब ममता बनर्जी कांग्रेस से अलग हुईं तो उन्होंने एक नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. तब उन्होंने मुकुल राय को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था.

पहली बार सन 2001 में मुकुल राय को टीएमसी से एमएलए का टिकट मिला. वह जगतदला विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे थे. इस के बाद वह निरंतर पार्टी की सेवा करते रहे.

बाद में तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया. वह 28 मई, 2009 से 20 मार्च, 2012 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. सन 2012 में मुकुल राय सांसद चुन लिए गए. फिर 3 अप्रैल, 2012 से 11 अक्तूबर, 2017 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे.

राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं मुकुल राय

सारदा स्कीम घोटाले में सन 2015 में मुकुल राय और ममता बनर्जी का नाम आया. घोटाले में नाम आने के बाद ममता बनर्जी और मुकुल राय के बीच दूरी बन गई. फिर वे कभी एक नहीं हो सके.

तृणमूल कांग्रेस से मुकुल राय का मन भंग होने लगा था. ममता बनर्जी को उन पर संदेह होने लगा था कि वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. फिर क्या था, ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया.

पार्टी से निकाले जाने के बाद मुकुल राय ने 25 सितंबर, 2017 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस के बाद 11 अक्तूबर, 2017 को उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया और 3 नवंबर, 2017 को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली. तब से वह भाजपा में हैं.

भाजपा का दामन थामने के बाद से मुकुल राय पश्चिम बंगाल में भाजपा की जमीन बनाने में लग गए. उन्होंने टीएमसी के कार्यकर्ताओं को तोड़ कर भाजपा में शामिल करना शुरू कर दिया. वैसे भी वह पुराने सियासी खिलाड़ी थे. उन्हें जोड़तोड़ की राजनीति अच्छी तरह आती थी. इस से टीएमसी पार्टी घबरा गई. इस बीच नदिया जिले में उन का कई बार दौरा हो चुका था.

विधायक सत्यजीत बिस्वास मतुआ समुदाय से आते थे, जिस का बंगाल में अच्छाखासा आधार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी 2019 के अंतिम सप्ताह में मतुआ समुदाय को लुभाने के लिए ठाकुरनगर आए थे.

ठाकुरनगर के साथसाथ यह संप्रदाय नदिया और उत्तरी 24 परगना जिले में करीब 30 लाख की संख्या में मौजूद है और राज्य भर की कम से कम 10 से अधिक लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में काम करता है. मतुआ समुदाय पर सत्यजीत बिस्वास की अच्छीखासी पकड़ बनी हुई थी. उन की हत्या का एक कारण यह भी माना जा रहा है.

बहरहाल, आरोपी सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि विधायक की हत्या की योजना में निर्मल घोष और कालीपद मंडल भी शामिल थे. जांच में यह बात सच पाई गई.

इस के बाद पुलिस ने आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को पूछताछ में निर्मल और कालीपद मंडल ने बताया कि हत्या की साजिश अभिजीत पुंडरी ने रची थी और गोली मैं ने और कालीपद ने मारी थी. यह हत्या उन्होंने क्यों की, इस बारे में वे कुछ नहीं बता सके.

आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल की निशानदेही पर पुलिस ने उसी दिन अभिजीत पुंडरी को पश्चिम मिदनापुर जिले के राधामोहनपुर इलाके से गिरफ्तार कर लिया. जामातलाशी में उस से एक पिस्टल बरामद की गई.

पूछताछ में अभिजीत पुंडरी ने हत्या की साजिश रचने की बात कबूल ली थी. उसे हत्या की सुपारी किस ने दी थी, यह बात उस ने पुलिस को नहीं बताई. विधायक की हत्या में सांसद मुकुल राय की क्या भूमिका थी, इस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी.

विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या क्यों की गई, यह राज कहीं राज न रह जाए. आपसी गुटबाजी कह कर हत्या पर जो परदा डाला जा रहा है, क्या वह पर्याप्त वजह है? यह एक जलता हुआ सवाल है. इस सवाल का जवाब पुलिस को ही ढूंढना होगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनचाहा पति : परेशानी बनी मौत का कारण

घटना मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की है. 16 मार्च, 2019 को थाना शाहपुरा के गांव सारकुंड के डैम के पास लोगों की भीड़ जमा थी. लोग डैम के पानी पर तैर रही बोरी को देख रहे थे. उस बोरी को देख कर लोग अनुमान लगा रहे थे कि उस में किसी की लाश हो सकती है. जितने लोग उतनी बातें वहां होने लगीं.

सूचना मिलने पर गांव का चौकीदार गंगाराम भी वहां पहुंच गया. उस ने भी बोरी देखी तो उसे भी मामला संदिग्ध लगा. उस ने इस की सूचना थाना शाहपुरा के टीआई दीपक पाराशर को दे दी. आखिर बोरी में क्या है, जानने के लिए टीआई भी डैम के किनारे पहुंच गए.

उन्होंने 2 लोगों को डैम से वह बोरी निकलवाने के लिए भेजा. जब वे दोनों बोरी के पास पहुंचे तो पता चला बोरी वहां खड़े एक सूखे पेड़ के तने के निचले भाग से रस्सी से बंधी है. बोरी से तेज दुर्गंध आ रही थी. किसी तरह वे दोनों बोरी को डैम के बाहर ले आए. बोरी खुलवाई तो उस में एक जवान युवक की सड़ीगली लाश निकली. लाश की हालत देख कर लग रहा था कि युवक की हत्या एकडेढ़ हफ्ता पहले की गई होगी.

हत्यारों ने लाश की बोरी को पानी में खड़े सूखे पेड़ के तने के निचले हिस्से से इसलिए बांध दिया था, ताकि वह पानी से ऊपर न आए और पानी में सड़ कर ही नष्ट हो जाए लेकिन डैम के पानी का स्तर कम होने की वजह से बोरी दिख गई. इस से पुलिस को आभास हो गया कि हत्यारे बेहद शातिर हैं.

टीआई ने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दी तो एसपी कार्तिकेयन, एडिशनल एसपी गजेंद्र सिंह कंवर और डीएसपी महेंद्र मीणा भी मौके पर पहुंच गए.

एफएसएल टीम भी वहां आ चुकी थी. शव के क्षतिग्रस्त हो जाने की वजह से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. बुरी तरह डैमेज हो चुके शव का पोस्टमार्टम जिला अस्पताल में होना संभव नहीं था, इसलिए टीआई दीपक पाराशर ने उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिको लीगल संस्थान भेज दिया.

टीआई पाराशर के लिए यह मामला किसी चुनौती से कम नहीं था. इस चुनौती से निपटने के लिए पहली जरूरत मृतक की शिनाख्त की थी. इसलिए टीआई ने बैतूल के अलावा आसपास के जिलों के थानों में भी युवक के शव की फोटो के साथ अज्ञात लाश मिलने की जानकारी भेज दी.

टीआई पाराशर को जल्द ही जिले के चिचौली थाने में दर्ज हुई एक गुमशुदगी के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि चिचोली थाने में 21 फरवरी, 2019 को 22 वर्षीय राजकुमार की गुमशुदगी दर्ज हुई थी, जिस का अभी तक पता नहीं चल पाया था.

बरामद लाश और राजकुमार का हुलिया मिलताजुलता था. इसलिए टीआई ने राजकुमार के परिवार वालों को शाहपुरा बुला कर शव के कपड़े और कलाई में पहना कड़ा दिखाया तो उन्होंने बताया कि कपड़े और कड़ा तो राजकुमार के ही हैं.

इन चीजों से उस अज्ञात लाश की शिनाख्त राजकुमार के रूप में हो गई. इस के बाद टीआई ने मृतक के परिवार वालों से पूछताछ की तो उन्होंने राजकुमार के ससुराल वालों पर हत्या का शक जाहिर किया.

राजकुमार की ससुराल चिचौली थाने के आमढाना गांव में थी. यह गांव लाश मिलने के स्थान से ज्यादा दूर नहीं था. राजकुमार के परिवार वालों ने यह भी बताया कि दीवाली के बाद से राजकुमार की पत्नी लक्ष्मी उर्फ गौरा अपने मायके में रह रही थी.

राजकुमार पत्नी को लाने के लिए कई बार ससुराल जा चुका था. पर वह आने का नाम नहीं ले रही थी. इस बात को ले कर कई बार उस का ससुराल वालों से विवाद भी हुआ था. घर वालों ने बताया कि राजकुमार घर से नई साड़ी ले कर ससुराल से पत्नी को लाने की बात कह कर घर से निकला था, जिस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा.

इस जानकारी से टीआई दीपक पाराशर का शक राजकुमार की ससुराल वालों पर जा कर ठहर गया. लेकिन उन्होंने जल्दबाजी में सीधे हाथ डालने के बजाए पहले अपने मुखबिरों से जानकारी जुटाई कि जिस रोज राजकुमार घर से ससुराल के लिए निकला था. उस रोज उस की ससुराल की गतिविधियों में क्या कुछ नया था.

जल्द ही पता चल गया कि उस रोज राजकुमार की ससुराल में रात भर संदिग्ध गतिविधियां चलती रही थीं. उस का साला रामरतन और कुछ अन्य लोग रात को बाइक ले कर कहीं गए भी थे. इस जानकारी के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम भेज कर राजकुमार की पत्नी लक्ष्मी और उस के साले रामरतन को पूछताछ के लिए उठवा लिया.

दोनों से पूछताछ की गई तो वे इस बारे में कुछ भी जानने से इंकार करते रहे. उन्होंने बताया कि फरवरी के तीसरे हफ्ते में राजकुमार ससुराल आया ही नहीं था. जबकि आमढाना के कुछ लोग उस रोज राजकुमार के आमढाना में देखे जाने की बात बता चुके थे. इस से लग रहा था कि भाईबहन दोनों झूठ बोल रहे हैं.

इस के बाद टीआई ने दोनों से सख्ती बरती तो जल्द ही लक्ष्मी और रामरतन टूट ही गए. उन्होंने स्वीकार किया कि राजकुमार की आए दिन मारपीट से तंग आ कर उस की हत्या की गई थी. दोनों ने अपने उन साथियों के नाम भी बता दिए जो हत्या में साथ थे.

उन के द्वारा अन्य लोगों के नाम बताए जाने पर पाराशर ने त्वरित काररवाई करते हुए अन्य आरोपियों पप्पू निवासी शीतलझीरी और रिकेश निवासी नहरपुर, आमढाना को भी गिरफ्तार कर लिया.

साथ ही उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लाठी, डंडे और 2 मोटरसाइकिलें बरामद कर लीं. इन्हीं मोटरसाइकिलों पर राजकुमार की लाश को लाद कर डैम तक ले जाया गया था. इस के बाद विस्तार से की गई पूछताछ में पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

चोली थाने के अंतर्गत गोधरा गांव का रहने वाला 22 वर्षीय राजकुमार मजदूरों की ठेकेदारी का काम करता था. वह इलाके के मजदूरों को ठेकेदार के तौर पर आसपास के इलाकों में मजदूरी के लिए ले जाता था. इस से राजकुमार की माली हालत दूसरे मजदूरों से अच्छी थी, साथ ही मजदूरों का मुखिया होने के कारण वह अपने आप को खास समझता था.

राजकुमार चढ़ती जवानी के जोश में था सो जिन युवतियों को वह मजदूरी करवाने ले जाता था. उन के यौवन पर पहला हक भी खुद का समझता था. मजदूर युवती की अपनी मजबूरी होती थी. राजकुमार इस का भरपूर फायदा उठाता था.

इसी बीच सन 2017 के अंत में राजकुमार अपने साथ जिन मजदूरों की टोली को ले कर बैतूल में चीनी के क्रेशर पर काम करने गया था, उस टोली में आमढाना इलाके में सब से खूबसूरत मानी जाने वाली 19 साल की लक्ष्मी उर्फ गौरा भी शामिल थी. लक्ष्मी राजकुमार की टोली में पहली बार मजदूरी करने के लिए शामिल हुई थी.

राजकुमार की नजरें ऐसी नई युवतियों की तलाश में रहती थीं, सो लक्ष्मी को देखते ही उस ने उस का शिकार करने की ठान ली. इतना ही नहीं जिस रोज वह टोली को ले कर बैतूल पहुंचा उसी रात उस ने जबरदस्ती कर लक्ष्मी के साथ संबंध बना भी लिए. राजकुमार कई मजदूर युवतियों को शिकार बना चुका था. लेकिन गौरा उर्फ लक्ष्मी की बात कुछ और थी. लक्ष्मी की खूबसूरती और मादकता में राजकुमार का ऐसा मन रमा कि वह उसे भुला नहीं सका.

इतना ही नहीं, जब टोली काम खत्म कर वापस आई तो राजकुमार ने लक्ष्मी को अपने घर पर जबरन साथ रख लिया. आदिवासी समाज में यूं तो अवैध संबंधों का चलन कम नहीं है, लेकिन इस तरह बिना शादी किए किसी को साथ रखने की सामाजिक मान्यता नहीं थी.

इसलिए जब परिवार और समाज का दबाव बढ़ा तो राजकुमार ने लक्ष्मी की मरजी के बिना उस से शादी कर ली. क्योंकि वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता था. गरीबी के कारण राजकुमार की वासना को चुपचाप सहन कर रही लक्ष्मी को भरोसा था कि कभी तो उस की देह से इस पापी का मन भरेगा और उसे छुटकारा मिल जाएगा.

जबरन शादी करने के बाद लक्ष्मी के दिल में राजकुमार के प्रति नफरत का सैलाब उमड़ने लगा. इधर कुछ दिनों बाद वही हुआ जो लक्ष्मी ने सोचा था. राजकुमार को आए दिन लड़कियां बदलने की आदत थी. वह फिर और दूसरी मजदूर युवती के संग रासलीला रचाने लगा.

राजकुमार लक्ष्मी को दूसरी मजदूर लड़कियों की तरह गुलाम समझता था. जब वह उस के साथ जबान लड़ाने लगी तो राजकुमार को यह सब बुरा लगने लगा. उस की बढ़ती हिम्मत देख राजकुमार ने सुबहशाम उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. यह जानकारी जब लक्ष्मी के भाई रामरतन को हुई तो उस ने राजकुमार को समझाने की कोशिश की. लेकिन राजकुमार ने रामरतन की भी पिटाई कर दी.

साथ ही वह लक्ष्मी को भी रोजाना पीटने लगा. इस से तंग आ कर लक्ष्मी दीवाली के मौके पर राजकुमार को छोड़ कर अपने मायके चली गई.  लक्ष्मी के जाने के 2 दिन बाद राजकुमार ससुराल पहुंचा तो पता चला कि लक्ष्मी वहां से अपनी बहन के पास हरदा चली गई है. इस पर राजकुमार को शक हो गया कि लक्ष्मी के हरदा में अपने बहनोई से अवैध संबंध हैं.

उस ने हरदा जा कर लक्ष्मी और उस की बहन के पति दोनों के साथ मारपीट की और वापस घर आ गया. लक्ष्मी अब राजकुमार के साथ हरगिज नहीं रहना चाहती थी. इसलिए वह हरदा से चुपचाप होशंगाबाद चली गई. वहां रह कर वह मजदूरी करने लगी.

वहीं दूसरी ओर राजकुमार आए दिन आमढाना जा कर लक्ष्मी के लिए गालीगलौज करने लगा, वह उन्हें तंग कर के लक्ष्मी का पता मालूम करने की कोशिश करता. पता बताने के लिए कभी वह ससुर को पीट देता तो कभी साले को. और तो और कभी गुस्से में आ कर ससुराल के आंगन में घूम रहे मुरगामुरगी को पकड़ कर उन की गरदन मरोड़ देता. इस सब से ससुराल वाले उस से तंग आ चुके थे.

इसी बीच पास के एक गांव में लक्ष्मी के भाई रामरतन का रिश्ता पक्का हो गया. इस बात की खबर लगने पर राजकुमार समझ गया कि लक्ष्मी जहां भी होगी भाई की शादी में शामिल होने के लिए अपने घर जरूर आएगी.

इसलिए वह उस के मायके पर नजर रखने लगा. फरवरी में भाई की सगाई के मौके पर लक्ष्मी गांव आ गई. जिस दिन उस का पूरा घर सगाई करने पास के गांव गया, मौका देख कर राजकुमार अपनी ससुराल आमढाना पहुंच गया और लक्ष्मी को खींच कर अपने साथ लाने लगा.

लक्ष्मी के विरोध करने पर वह उस के संबंध बनाने की जिद पर अड़ गया. इस पर लक्ष्मी ने योजना से काम किया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘मैं साथ चलने को राजी हूं लेकिन घर वालों को आ जाने दो. फिर तुम दामाद की तरह आना और मैं पत्नी की तरह तुम्हारे साथ चलूंगी.’’

‘‘लेकिन नहीं चली तो याद रखना, तेरे घर वालों के सामने ही मैं तुझे जमीन पर गिरा कर क्या हाल करूंगा तूने सोचा भी नहीं होगा.’’ राजकुमार ने पत्नी को धमकी दी.

‘‘कर लेना बाबा, लेकिन तभी ना जब मैं साथ चलने को मना करूंगी. मैं ने घर वालों से बात कर ली है. वे सब तैयार हैं.’’ लक्ष्मी बोली.

राजकुमार पत्नी की बातों में आ कर वापस घर लौट गया और शाम को पत्नी के लिए नई साड़ी ले कर उसे लेने के लिए घर से निकल गया. दूसरी तरफ लक्ष्मी के परिवार वाले भाई की सगाई कर वापस आए तो उस ने उन्हें रोते हुए राजकुमार के वहां आने की बात बता दी थी.

घर वाले राजकुमार से पहले से ही तंग आ चुके थे. इसलिए उन्होंने उस का काम तमाम करने की ठान ली. शाम के समय राजकुमार जैसे ही गांव के पास पहुंचा तो लक्ष्मी के साथ उस के भाई रामरतन, शीतलझीरी निवासी पप्पू और नहरपुर आमढाना निवासी रिकेश ने उसे घेर कर लाठियों से पीटपीट कर अधमरा कर दिया.

इस के बाद उस के गले में कपड़ा लपेट कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को बोरे में भर कर डैम में खड़े एक पेड़ के तने के निचले भाग से बांध दिया. ताकि लाश पानी में ही गल कर तहसनहस हो गए.

लेकिन गरमी बढ़ने से पानी का स्तर घटा तो लाश पानी से ऊपर आ गई. केस का खुलासा हो गया. शाहपुरा टीआई दीपक पाराशर ने लक्ष्मी, रामरतन, पप्पू और रिंकेश से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

5 सालों का रहस्य : किस वजह से जागीर को जान गंवानी पड़ी

मनप्रीत कौर सालों के बाद मामा के घर आई थी. गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी ने मनप्रीत की खूब खातिरदारी की. मामामामी और मनप्रीत के बीच खूब बातें हुईं. बातोंबातों में मनप्रीत ने गुरप्रीत से पूछा, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हालचाल हैं. उन से मुलाकात होती है या नहीं?’’

‘‘नहीं, हम 5 साल पहले मिले थे अनाजमंडी में. जागीर उस समय परेशान भी था और दुखी भी. गले लग कर खूब रोया. उस ने बताया कि भाभी (मंजीत कौर) के किसी कुलवंत सिंह से संबंध हैं और दोनों मिल कर उस की हत्या भी कर सकते हैं.’’

गुरप्रीत ने यह भी बताया कि उस ने जागीर सिंह से कहा था कि वह भाभी का साथ छोड़ कर मेरे साथ मेरे घर में रहे. लेकिन उस ने इनकार कर दिया. वजह वह भी जानता था और मैं भी. उस ने मुझे समझाने के लिए कहा कि वह भाभी को अपने ढंग से संभाल लेगा. बस उस के बाद जागीर सिंह मुझे नहीं मिला.

‘‘वाह मामा वाह, बड़े मामा ने तुम से अपनी हत्या की आशंका जताई और आप ने 5 साल से उन की खबर तक नहीं ली?’’

‘‘खबर कैसे लेता, भाभी ने तो लड़झगड़ कर घर से निकाल दिया था. मैं उस के घर कैसे जाता? जाता तो गालियां सुननी पड़तीं.’’ गुरमीत ने अपनी स्थिति साफ कर दी.

बात चिंता वाली थी. मनप्रीत ने खुद ही बड़े मामा जागीर सिंह का पता लगाने का निश्चय किया. उस ने मामा के पैतृक गांव से ले कर गुरमीत द्वारा बताई गई संभावित जगह रेलवे बस्ती, गुरु हरसहाय नगर तक पता लगाया. उस की इस छानबीन में जागीर सिंह का तो कोई पता नहीं लगा, पर यह जानकारी जरूर मिल गई कि जागीर सिंह की पत्नी मंजीत कौर रेलवे बस्ती में किसी कुलवंत सिंह नाम के व्यक्ति के साथ रह रही है.

सवाल यह था कि मंजीत कौर अगर किसी दूसरे आदमी के साथ रह रही थी तो जागीर सिंह कहां था? मंजीत ने ये सारी बातें छोटे मामा गुरमीत को बताईं. इन बातों से साफ लग रहा था कि जागीर सिंह के साथ कोई दुखद घटना घट गई थी. सोचविचार कर गुरमीत और मंजीत ने थाना गुरसहाय नगर जा कर इस बारे में पूरी जानकारी थानाप्रभारी रमन कुमार को दी.

बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले गुरदेव सिंह के 2 बेटे थे जागीर सिंह और गुरमीत सिंह. उन के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस से जैसेतैसे घर का खर्च चलता था. सालों पहले उन के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. पत्नी के बीमार होने पर उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ी. इस के बावजूद वह उसे बचा नहीं पाए थे.

पत्नी की मौत के बाद गुरदेव सिंह टूट से गए थे. जैसेतैसे उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश की. आज से करीब 15 साल पहले गुरदेव सिंह भी दुनिया छोड़ कर चले गए. पर मरने से पहले गुरदेव सिंह यह सोच कर बड़े बेटे जागीर सिंह का विवाह अपने एक जिगरी दोस्त की बेटी मंजीत कौर के साथ कर गए थे कि वह जिम्मेदारी के साथ उस का घर संभाल लेगी.

मंजीत कौर तेजतर्रार और झगड़ालू किस्म की औरत थी. उस ने घर की जिम्मेदारी तो संभाल ली, लेकिन पति और देवर की कमाई अपने पास रखती थी. दोनों भाई जमींदारों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के जो भी कमा कर लाते, मंजीत कौर के हाथ पर रख देते. लेकिन पत्नी की आदत को देखते हुए जागीर सिंह कुछ पैसे बचा कर रख लेता था.

इसी बीच जागीर सिंह ने जैसेतैसे अपने छोटे भाई गुरमीत की भी शादी कर दी थी. गुरमीत की शादी के बाद मंजीत कौर और गुरमीत की पत्नी के बीच आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे थे. रोज के क्लेश से दुखी हो कर गुरमीत सिंह अपनी पत्नी को ले कर अलग हो गया. उस के अलग होने के बाद दोनों भाइयों का आपस में मिलना कभीकभार ही हो पाता था. ऐसे ही दोनों भाइयों का जीवनयापन हो रहा था.

समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा. इस बीच जागीर सिंह और मंजीत कौर के बीच की दूरियां बढ़ती गईं. उन के घर में हर समय क्लेश रहने लगा था.

जागीर सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब मंजीत कौर घर में टेंशन क्यों करती है. पहले तो उस के भाई गुरमीत की पत्नी की वजह से वह घर में झगड़ा करती थी, पर अब उसे भी घर से अलग हुए कई साल हो गए थे. फिर एक दिन जागीर सिंह को पत्नी द्वारा घर में कलह रखने का कारण समझ आ गया था.

दरअसल, मंजीत कौर के पड़ोसी गांव जुवाए सिंघवाला निवासी कुलवंत सिंह के साथ गलत संबंध थे. दोनों के बीच के संबंधों के बारे में उसे कई लोगों ने बताया था. लेकिन उसे लोगों की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. जब एक दिन उस ने दोनों को अपनी आंखों से देखा और रंगेहाथों पकड़ लिया तो अविश्वास की कोई वजह नहीं बची.

उस दिन वह सिरदर्द होने की वजह से समय से पहले ही काम से घर लौट आया था. तभी उसे पत्नी की सच्चाई पता चली थी. पत्नी की यह करतूत देख कर उसे गहरा आघात लगा.

शोर मचाने पर उस के घर की ही बदनामी होती, इसलिए उस ने पत्नी को समझाना उचित समझा. उस ने उस से कहा, ‘‘मंजीत, तुम जो कर रही हो उस से बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. समझदारी से काम लो. अब तक जो हुआ, उसे मैं भी भूल जाता हूं और तुम भी यह सब भूल कर आगे से एक नया जीवन शुरू करो.’’

उस समय तो मंजीत कौर ने अपनी गलती मान कर पति से माफी मांग ली, पर उस ने अपने प्रेमी कुलवंत से मिलनाजुलना बंद नहीं किया. बल्कि कुछ समय बाद ही उस ने कुलवंत के साथ मिल कर जागीर सिंह को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली.

मंजीत कौर ने घर में क्लेश कर पति जागीर सिंह को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह गांव वाला घर छोड़ कर गुरुसहाय नगर की रेलवे बस्ती में किराए का मकान ले कर रहे.

मकान बदलने की योजना कुलवंत ने बनाई थी. उसी के कहने पर मंजीत कौर ने यह फैसला लिया था. उस ने जानबूझ कर पति को मकान बदलने के लिए मजबूर किया था. पत्नी की बातों और हावभाव से जागीर सिंह को इस बात की आशंका होने लगी थी कि कहीं जागीर कौर उस की हत्या न करा दे. अचानक उन्हीं दिनों अनाजमंडी में जागीर सिंह की मुलाकात अपने छोटे भाई गुरमीत सिंह से हुई.

दोनों भाई आपस में गले मिल कर बहुत रोए. अपनेअपने मन का गुबार शांत करने के बाद जागीर सिंह ने अपने और मंजीत कौर के रिश्तों के बारे में उसे बताते हुए यह भी शक जताया था कि मंजीत कौर किसी दिन उस की हत्या करा सकती है.

गुरमीत सिंह ने बड़े भाई से कहा कि घर का माहौल ऐसा है तो उस का मंजीत कौर के साथ रहना ठीक नहीं है. उस ने जागीर सिंह को यह सलाह भी दी कि वह मंजीत कौर को छोड़ दे और बाकी जिंदगी उस के घर आ कर गुजारे. लेकिन जागीर सिंह ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं मंजीत को समझा कर उसे सीधे रास्ते पर ले आऊंगा.’’

इस बातचीत के बाद दोनों भाई अपनेअपने रास्ते चले गए थे. उस दिन के बाद वे दोनों आपस में फिर कभी नहीं मिले. यह बात सन 2013 के आसपास की है.

गुरमीत सिंह 5 वर्ष पहले अपने भाई से हुई मुलाकात को भूल गया था. एक दिन उस के घर उस के साले बलदेव सिंह की बड़ी बेटी मनप्रीत कौर मिलने के लिए आई और बातोंबातों में उस ने पूछ लिया, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हाल हैं और आजकल वह कहां रह रहे हैं?’’

गुरमीत सिंह ने उसे बताया कि करीब 5 साल पहले अनाजमंडी में मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने बताया था कि वह गुरु हरसहाय नगर में रह रहे हैं. उस दिन के बाद फिर कभी उन से नहीं मिला.

बहरहाल, 20 सितंबर 2018 को गुरमीत सिंह की तहरीर पर एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जरूरी जांच के बाद उन्होंने अगले दिन ही मंजीत कौर और कुलवंत को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर जब दोनों से जागीर सिंह के बारे में पूछताछ की तो मंजीत कौर ने बताया कि उस के पति के किसी महिला के साथ नाजायज संबंध थे. उस महिला की वजह से वह उससे मारपीट किया करता था. फिर 5 साल पहले एक दिन वह उस से झगड़ा और मारपीट करने के बाद घर से निकल गया. इस के बाद वह कहां गया, पता नहीं.

रमन कुमार समझ गए कि मंजीत झूठ बोल रही है. इसलिए उन्होंने उस से और उस के प्रेमी से सख्ती से पूछताछ की. आखिर उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि 5 साल पहले 23 अप्रैल, 2013 को उन्होंने जागीर सिंह की हत्या कर उस की लाश घर के सीवर में डाल दी थी.

मंजीत कौर ने बताया कि पिछले लगभग 12 सालों से कुलवंत के साथ उस के अवैध संबंध थे, जिन का जागीर सिंह को पता लग गया था और वह इस बात को ले कर उस से झगड़ा किया करता था. इसीलिए उस ने अपने प्रेमी कुलवंत के साथ मिल कर पति को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई.

योजनानुसार 23 अप्रैल, 2013 को जागीर सिंह को चाय में नशे की गोलियां मिला कर पिला दीं. जब वह बेहोश हो गया तो गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश सीवर में डाल दी.

एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को 21 सितंबर, 2018 को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों की निशानदेही पर गांव वालों, गांव के सरपंच और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में उस के घर के सीवर से हड्डियां बरामद कीं.

उस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारियों के साथ एफएसएल टीम भी मौजूद थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद हड्डियां एफएसएल टीम के सुपुर्द कर दीं.

दोनों हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 23 सितंबर, 2018 को मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्यसत्यकथा, मई 2019

कामुक तांत्रिक की काम विधा

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की रहने वाली तबस्सुम बेहद खूबसूरत थी. उस की शादी शहर के ही रहने वाले नफीस अहमद से हुई थी. नफीस का अपना कारोबार था जिस से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. नफीस से निकाह कर के तबस्सुम खुश थी. उसे नफीस अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही मिला था. नफीस भी तबस्सुम को बहुत प्यार करता था. तबस्सुम के व्यवहार की वजह से उस के सासससुर भी उसे बहुत चाहते थे. धीरेधीरे उन्होंने भी घर की बागडोर बहू तबस्सुम को सौंप दी थी. इस तरह हंसीखुशी के साथ उस का समय बीत रहा था.

हर सासससुर की तरह तबस्सुम के सासससुर भी यही चाहते थे कि उन की बहू जल्द मां बन जाए और यदि पहली बार में ही बेटे का जन्म हो जाए तो बात ही कुछ और होगी. फिर वह अपने पोते के साथ ही लगे रहेंगे. पर शादी को डेढ़दो साल हो गए, लेकिन वह मां नहीं बनी. धीरेधीरे 4 साल बीत गए लेकिन तबस्सुम गर्भवती नहीं हुई.

इस के बाद तो सासससुर ही नहीं बल्कि खुद तबस्सुम और नफीस भी परेशान रहने लगे. नफीस पत्नी को ले कर डाक्टर के पास गया. दोनों की कई तरह की जांच कराई गईं, जो सामान्य आईं. डाक्टर भी हैरान था कि सब कुछ सामान्य होने के बावजूद भी आखिर तबस्सुम को गर्भ क्यों नहीं ठहर रहा. फिर भी डाक्टर ने अपने हिसाब से उन दोनों का इलाज किया. इस के बावजूद भी तबस्सुम की कोख सूनी रही.

इस से तबस्सुम बहुत चिंतित रहने लगी. परेशान हाल इंसान को समाज में तमाम सलाहकार फ्री में मिल जाते हैं. लोग नफीस और तबस्सुम को भी तरहतरह की सलाह देने लगे. और वह सलाह भी उदाहरण के साथ देते थे कि फलां औरत वहां गई थी या उस डाक्टर, हकीम से इलाज कराया तो वह मां बन गई.

अपने मन में उम्मीद ले कर तबस्सुम भी लोगों की सलाह के अनुसार कई डाक्टरों, हकीमों के पास गई. तमाम धार्मिक स्थलों पर जा कर उस ने माथा टेका लेकिन उस की इच्छा पूरी नहीं हुई.

इस तरह शादी के 7 साल बाद भी तबस्सुम  की कोख नहीं भरी तो मोहल्ले के लोग ही नहीं, बल्कि सासससुर भी उसे बांझ समझने लगे. जो सास उसे सरआंखों पर बिठाए रहती थी वह ही उसे ताने देने लगी.

बातबात पर वह उसे बांझ कहती. अब तबस्सुम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. हां, नफीस उसे समझाने की कोशिश करता था. केवल उस का पति ही था, जो हमेशा उस की हिम्मत बढ़ाता था.

तबस्सुम को जिस घर की जिम्मेदारी दी गई थी, सास के तानों ने उस का उसी घर में रहना दूभर कर दिया था. उस के जीवन में शांति तो जैसे कोसों दूर चली गई थी, इसलिए उस घर में रहना उसे अब अच्छा नहीं लगता था.

अब वह उस घर के बजाए कहीं और रहना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो नफीस ने उस का साथ दिया और वह अपना घर छोड़ कर शहर की ही एडवोकेट कालोनी में किराए पर एक मकान में रहने लगा.

नफीस जिस कालोनी में रहता था, वह मकान शफीउल्लाह नाम के एक तांत्रिक का था. उस ने शहर के ही चंदननगर के एक मकान में अपना औफिस बना रखा था. वह यह धंधा कर के मोटी रकम कमा रहा था.

किराए के मकान में रहने पर तबस्सुम को एक सुकून यह मिल रहा था कि उसे यहां ताने देने वाला कोई नहीं था. इस तरह वह वहां रह कर शांति महसूस कर रही थी.

इस मकान में आए हुए तबस्सुम को करीब 20-22 दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर के समय में जब वह कमरे में अकेली थी तभी मकान मालिक तांत्रिक शफीउल्लाह उस के कमरे में आया और उस का हालचाल पूछने लगा.

औपचारिकतावश तबस्सुम ने उसे चाय बना कर पिलाई. इसी दौरान शफी ने उस से कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम संतान न होने की वजह से परेशान हो.  लेकिन अब चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हारी गोद भरने के लिए ही तुम्हें मेरे यहां किराएदार बना कर भेजा है.’’

तबस्सुम की कुछ समझ में नहीं आया तो शफी ने उसे बताया कि वह तंत्रमंत्र का बड़ा जानकार है. तंत्रमंत्र से संतानहीन महिला की गोद भरने में उसे महारथ हासिल है. न मालूम कितनी महिलाएं उस से यह लाभ ले चुकी हैं. जिस के चलते लोग उसे गोद स्पेशलिस्ट बाबा भी कहते हैं.

तुम चिंता मत करो जल्द ही वक्त आने पर वह अपनी तांत्रिक शक्ति से उस की गोद भर देगा. साथ ही उस ने यह भी सलाह दी कि वह इस बारे में अपने पति से कोई बात नहीं करे. शफी की बात सुन कर तबस्सुम खुश हो गई. उसे लगा कि सचमुच अब उस का सपना सच हो जाएगा.

उस दिन के बाद शफी उसे अकसर अपने एक कमरे में उस के पति की गैरमौजूदगी में पूजा के लिए बुलाने लगा. चूंकि पूजा के बारे में पति को कुछ भी बताने से तांत्रिक शफी ने उसे मना कर रखा था इसलिए यह सारे काम तबस्सुम अपने शौहर से छिपा कर कर रही थी.

शुरुआती दौर में तो शफी पूजा के दौरान पूरी शराफत दिखाता था लेकिन बाद में धीरेधीरे वह उसे कभीकभार छूने भी लगा. तबस्सुम को छूने का उस का लगातार क्रम बढ़ता गया. कभीकभार वह पूजा के नाम पर उस के वक्षस्थल पर भी हाथ रख देता था. तबस्सुम को यह अजीब सा लगा.

उसे तांत्रिक शफी की नीयत पर शक होने लगा. इसलिए वह उस की पूजा में अरुचि दिखाने लगी. इस से शफीउल्लाह को इस बात का अंदाजा होने लगा कि यह उस से दूरी बनाने लगी है. चिडि़या कहीं पिंजरे से उड़ न जाए, यह सोच कर शफी ने भी वक्त जाया करना उचित नहीं समझा.

19 सितंबर, 2018 को शफी को इस का मौका भी मिल गया. एक रात तबस्सुम का पति नफीस इंदौर से बाहर गया था. यह देख कर शफी ने उसे रात में पूजा करने को बुलाया.

तबस्सुम का मन तो नहीं हुआ लेकिन जब शफी ने उसे पूजा को अधूरा बीच में छोड़ देने  के नुकसान बता कर डराया तो वह उस रोज तांत्रिक के कहने पर आधी रात में नहाने के बाद खुले गीले बाल ले कर उस के कमरे में चली गई. पूजा करते समय शफीउल्लाह ने उसे पीने के लिए जन्नती जल के नाम पर पीला सा पानी दिया, जिसे पी कर तबस्सुम को चक्कर सा आने लगा.

इस के बाद पूजा करने के नाम पर शफी  काफी देर तक उस के शरीर से छेड़छाड़ करता रहा, फिर उस ने उसे जमीन पर लिटा दिया और खुद भी उस के ऊपर लेट गया. तबस्सुम पर बेहोशी सी छाई हुई थी. उस समय वह उस का विरोध करने की हालत में नहीं थी. शफी ने उस के साथ बलात्कार किया.

इस के बाद तबस्सुम को होश आया तो उस ने शफी को खरीखोटी सुनाई. उस के तेवर देख शफी ने कहा कि यह सब उस ने उस की भलाई के लिए ही किया है. अब पूजा पूरी हो गई है. वह अपने पति के साथ पहली बार सोते ही गर्भधारण कर लेगी. शफी ने उसे धमकाया कि इस बारे में यदि उस ने किसी को बताया तो वह अपनी व पति की जान खो देगी.

तबस्सुम जान गई थी कि यह पूरा नाटक शफी ने उसे हासिल करने के लिए किया था. उसे खुद से नफरत हो रही थी, इसलिए उस ने कमरे पर पहुंचने के बाद अगले दिन गले में फंदा डाल कर आत्महत्या करने की कोशिश की. लेकिन अचानक पति के आ जाने के बाद वह ऐसा नहीं कर सकी.

पति ने उसे बचा लिया. फिर तबस्सुम ने पति को सारी कहानी बता दी. नफीस ने उसी दिन तांत्रिक का कमरा खाली कर दिया. चूंकि तांत्रिक शफीउल्लाह ने तबस्सुम को डरा दिया था इसलिए उस के पति की भी तांत्रिक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं हुई.

इस वाकये को हुए करीब 3 सप्ताह गुजर गए. तभी तबस्सुम के दिमाग में आया कि तांत्रिक के खिलाफ पुलिस से शिकायत जरूर करनी चाहिए वरना वह किसी और को अपना शिकार बनाएगा.

इस के बाद वह 9 अक्तूबर, 2018 को पति को साथ ले कर खजराना थाने पहुंच गई. टीआई कमलेश शर्मा को तबस्सुम ने सारी बात विस्तार से बता दी. उस की शिकायत पर पुलिस ने तांत्रिक शफीउल्लाह के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह के घर दबिश डाली लेकिन वह घर पर नहीं मिला. वह फरार हो चुका था. तब पुलिस ने उस के पीछे मुखबिर लगा दिए.

10 अक्तूबर, 2018 को टीआई कमलेश शर्मा को मुखबिर द्वारा तांत्रिक के बारे में सूचना मिली. सूचना के बाद टीआई कमलेश शर्मा पुलिस टीम के साथ चंदननगर में स्थित एक मकान के पास पहुंचे.

उस समय रात हो चुकी थी. घर से लोभान के सुलगने की महक आ रही थी. टीआई ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद एक 26-27 साल की बेहद खूबसूरत युवती ने दरवाजा खोला. उस वक्त रात के 10 बजे थे. उस युवती के लंबे खुले बालों से टपकती पानी की बूंदों को देख कर लग रहा था कि वह अभीअभी नहा कर निकली है.

इतनी रात को उस के नहाने की बात आसानी से टीआई शर्मा के गले नहीं उतर रही थी. परंतु टीआई कमलेश शर्मा का टारगेट वह युवती नहीं बल्कि शफीउल्लाह था. उन्होंने उस युवती से शफीउल्लाह के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि बाबा अभी पूजा पर बैठ चुके हैं.

यह सुन कर टीआई ने कहा कि बाबा की पूजा हम थाने में करवा देंगे. फिर वह कमरे में घुस गए. पूजा का ढोंग कर रहे तांत्रिक शफीउल्लाह को उन्होंने गिरफ्तार कर लिया और इस की सूचना डीआईजी हरिनारायण चारी को दे दी. उन के निर्देश पर उन्होंने तांत्रिक के खिलाफ काररवाई शुरू की.

टीआई कमलेश शर्मा ने थाने ले जा कर शफीउल्लाह से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को नेक बंदा साबित करने पर तुला रहा. लेकिन पुलिस ने सख्ती की तो उस ने तंत्रमंत्र के नाम पर तबस्सुम को धोखे में रख कर उस के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार कर ली.

उस ने बताया कि वह आज फिर यही काम एक दूसरी महिला के साथ करने वाला था. वह अपने मकसद में सफल हो पाता उस से पहले वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

तथाकथित तांत्रिक शफीउल्लाह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह का मैडिकल करवा कर उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया.        द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में तबस्सुम और नफीस अहमद परिवर्तित नाम हैं.

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018

हैवानियत में 2 मासूमों की बलि

आरिफ से हिना को 2 बच्चे महक व अर्श हुए. आरिफ दकियानूसी विचारों वाला था. जबकि हिना खुले विचारों की थी. फलस्वरूप दोनों में अकसर मनमुटाव होने लगा. इसी के चलते सन 2015 में उन का तलाक हो गया था. तलाक के बाद हिना अपने बच्चों के साथ हरिद्वार के कस्बा मंगलौर के मोहल्ला पठानपुरा में मुशर्रत के मकान में किराए पर रहने लगी थी.

पति से अलग होने के बाद हिना के सामने अपना और बच्चों का खर्च चलाने की समस्या खड़ी हो गई. इस के लिए वह शादीविवाह में डांस करने लगी. डांस के लिए उसे बच्चों को अकेला छोड़ कर जाना होता था, इसलिए उस ने अपनी छोटी बहन आरजू को अपने पास बुला लिया, ताकि वह बच्चों का ध्यान रख सके.

पहली जनवरी, 2019 को हिना मुजफ्फरनगर गई थी. घर पर उस के दोनों बच्चों के अलावा छोटी बहन आरजू थी. उसी रात हिना जब वहां से घर लौटी तो दोनों बच्चे घर पर नहीं थे. उस ने आरजू से बच्चों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि शाम के समय अर्श और महक पास की दुकान से चौकलेट लेने गए थे, तब से वापस नहीं लौटे.

यह सुन कर हिना के होश उड़ गए. वह बोली, ‘‘वहां से कहां गए? तूने उन्हें ढूंढा नहीं?’’

‘‘मैं ने उन्हें बहुत ढूंढा, लेकिन उन का पता नहीं चला.’’ आरजू बोली.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इतनी रात को वह बच्चों को कहां ढूंढे, यह हिना की समझ में नहीं आ रहा था. जिस दुकान पर वे गए थे वह भी बंद हो चुकी थी. 4 साल के बेटे अर्श और 6 साल की बेटी महक की चिंता में हिना रात भर लिहाफ ओढ़े बैठी रही. बच्चों की चिंता में भूखप्यास तो दूर, उसे नींद तक नहीं आई. उस ने सारी रात जागते हुए गुजारी.

सुबह होते ही वह बच्चों की खोज में जुट गई. परचून की दुकान खुलने पर वह दुकान वाले के पास गई. दुकानदार ने बताया कि दोनों बच्चे उस की दुकान पर आए तो थे, लेकिन जब वह चौकलेट ले कर अपने घर लौट रहे थे तो उसी वक्त वहां 2 युवक आए थे. उन दोनों ने बच्चों को गोद में उठा लिया था. इस के बाद वे उन्हें एक सफेद रंग की कार में बैठा कर उन्हें ले गए. बच्चे उन के साथ इस तरह चले गए थे, मानो वे दोनों युवक उन के परिचित हों.

यह सुन कर हिना घबरा गई. उस ने सोचा कि ऐसा कौन परिचित हो सकता है, जो बच्चों को कार में बैठा कर ले गया. हिना को अपने तलाकशुदा पति आरिफ पर शक हुआ. फिर भी उस ने अपनी सभी रिश्तेदारियों में बच्चों को ढूंढा. पूरे दिन बच्चों को यहांवहां तलाशने के बाद भी जब उन का कहीं पता न चला तो हिना 2 जनवरी को ही शाम के समय हरिद्वार की कोतवाली मंगलौर पहुंच गई.

वहां मौजूद इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा को उस ने बच्चों के गायब होने की बात बता दी.

‘‘कल शाम बच्चों का अपरहण हुआ था, वारदात को 24 घंटे होने वाले हैं. तुम ने और तुम्हारी बहन ने घटना की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी?’’ इंसपेक्टर शर्मा ने नाराजगी भी जाहिर की.

‘‘सर, हम पहले तो बच्चों को आसपास ढूंढते रहे, इस के बाद सुबह से हम बच्चों को अपने रिश्तेदारों के घर जा कर ढूंढते रहे. जब वे वहां भी नहीं मिले तब हम यहां आए हैं.’’ हिना बोली.

‘‘ठीक है, तुम बच्चों के फोटो दे दो ताकि उन्हें तलाश करने में आसानी हो.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने कहा तो हिना ने अपने पर्स से दोनों बच्चों के फोटो निकाल कर दे दिए. हिना की तहरीर पर इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा ने 4 वर्षीय अर्श उर्फ चांद और 6 वर्षीय महक के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस की जानकारी उन्होंने सीओ (मंगलौर) मनोज कत्याल, एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व एसएसपी जन्मेजय खंडूरी को भी दे दी.

एक ही परिवार के 2 बच्चों के अपहरण की सूचना पा कर सीओ मनोज कत्याल और एसपी देहात मणिकांत मिश्रा कुछ देर में ही मंगलौर कोतवाली पहुंच गए. एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने इंसपेक्टर शर्मा को बच्चों के अपहरण के मामले में तेजी से काररवाई करने के निर्देश दिए.

इस के बाद कोतवाल शर्मा ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं. उस वक्त शाम के 6 बज चुके थे. उसी समय हिना 2 युवकों के साथ कोतवाली पहुंची. हिना ने अपने साथ आए एक युवक का परिचय कराते हुए बताया कि इन का नाम ताबीज है. यह पास के ही गांव बुक्कनपुर में रहते हैं और मेरे पारिवारिक मित्र हैं.

दूसरे युवक का नाम हिना ने आजम बताया. वह भी गांव बुक्कनपुर में रहता था. हिना ने बताया कि वे दोनों अकसर उस के घर पर आते रहते हैं. यदाकदा उस की मदद भी करते हैं. इस के बाद इंसपेक्टर शर्मा हिना, ताबीज व आजम को ले कर एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व सीओ मनोज कत्याल के पास पहुंचे.

उन के हावभाव से एसपी (देहात) को उन पर शक हुआ तो उन्होंने दोनों युवकों से बच्चों के अपहरण की बाबत पूछताछ की. दोनों ने बताया कि जब बच्चे गायब हुए थे तो वे अपने घरों पर थे. उन्हें बच्चों के गायब होने की जानकारी हिना से मिली थी.

काफी पूछताछ के बाद भी उन से बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर मणिकांत मिश्रा ने तत्काल उस दुकानदार को थाने बुलवाया, जिस के सामने 2 युवकों द्वारा दोनों बच्चों को गोद में उठा कर कार में ले जाया गया था.

जब दुकानदार वहां आया तो उस ने थाने में आए ताबीज व आजम को देख कर कहा कि ये दोनों ही अर्श व महक को अपने साथ ले गए थे. दुकानदार के यह बताते ही ताबीज व आजम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. ताबीज ने पुलिस को बताया कि वे दोनों बच्चों को अपने साथ ले तो गए थे, लेकिन बच्चों को चौकलेट दिलवा कर उन्हें उन के घर के पास छोड़ दिया था.

हिना ने भी दोनों अधिकारियों को बताया कि वे दोनों उस के परिवार के हितैषी हैं. ये उस के बच्चों का अपहरण नहीं कर सकते. इस के बाद जब एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने हिना की बहन आरजू से फोन पर बात की तो उस ने बताया कि बच्चे चौकलेट ले कर एक बार घर आए थे. उस के बाद ही वे लापता हुए थे.

इस से पुलिस को आरजू की बातों पर भी शक होने लगा, क्योंकि उस ने पहले बताया था कि बच्चे दुकान से चौकलेट ले कर घर लौटे ही नहीं थे. इस तरह ताबीज और आजम के साथ आरजू भी संदेह के दायरे में आ गई. अधिकारियों ने उस समय उन से और पूछताछ नहीं की, बल्कि उन सभी को घर भेज दिया. इस मामले की जांच एसआई चंद्रमोहन सिंह को सौंप दी गई.

एसआई चंद्रमोहन सिंह ने एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा को बताया कि जहां से हिना के बच्चों का अपहरण होना बताया जा रहा है, वह स्थान सीसीटीवी कैमरे की रेंज में नहीं है. चूंकि ताबीज व आजम शक के घेरे में थे, इसलिए उन्होंने एसआई चंद्रमोहन सिंह को निर्देश दिए कि उन दोनों से अलगअलग वीडियो रिकौर्डिंग के साथ पूछताछ करें.

3 जनवरी, 2019 को पुलिस ताबीज व आजम को थाने ले आई. दोनों ने पुलिस को बताया कि वे पहली जनवरी को अपनी कार से हिना के घर आए थे. हिना उस वक्त घर पर नहीं थी. घर पर हिना की बहन आरजू थी. अर्श व महक को चौकलेट दिलाने के बाद वे वापस अपने घर चले गए थे.

जिस तरह से दोनों युवकों ने बताया उस से पुलिस को ऐसा लगा वे दोनों रटीरटाई बात बोल रहे हों. इसलिए कोतवाल शर्मा ने एसआई चंद्रमोहन को निर्देश दिए कि वह ताबीज को अलग कमरे में ले जा कर पूछताछ करें. खुद कोतवाल आजम से पूछताछ करने लगे.

दूसरे कमरे में जाते ही ताबीज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने आजम के साथ हिना के दोनों बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया था. आजम ने भी यह अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद बच्चों के अपरहण की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

मंगलौर में रहते हुए घर का खर्च चलाने के लिए हिना शादियों में डांस करने लगी थी. एक दिन हिना पिरान कलियर में एक निकाह में डांस कर रही थी. इस निकाह में गांव बुक्कनपुर निवासी ताबीज भी शामिल था. हिना को डांस करते देख ताबीज उस की अदाओं पर फिदा हो गया.

डांस समाप्त होने के बाद ताबीज ने हिना के डांस की तारीफ की. इस के बाद उस ने हिना से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया. इस के बाद वह जबतब हिना से बात करने लगा. कुछ दिनों बाद ताबीज ने हिना के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. वह जब भी जाता, हिना व उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता था.

हिना से दोस्ती के बाद ताबीज ने उस के साथ निकाह करने के सपने भी देखने शुरू कर दिए. ताबीज के परिजन भी उस से हिना का निकाह कराने को तैयार थे लेकिन वह हिना के पहले शौहर के बच्चों को नहीं अपनाना चाहते थे.

ताबीज अच्छी तरह जानता था कि अगर उसे हिना से निकाह करना है तो हिना के बच्चों को रास्ते से हटाना होगा. इस बारे में उस ने हिना की छोटी बहन आरजू से बात की. आरजू भी दूसरी बार बहन का घर बसाने के लालच में ताबीज की इस दरिंदगी में शामिल हो गई.

घटना वाले दिन ताबीज अपनी वैगनआर कार से अपने दोस्त आजम के साथ हिना के घर के बाहर पहुंचा. वहां पर आरजू ने अर्श व महक को चौकलेट लेने के बहाने बाहर भेज दिया. बच्चे चूंकि ताबीज को पहचानते थे, इसलिए वे खुश हो कर उस के साथ कार में बैठ गए. उन मासूमों को क्या पता था कि वे दोनों उन्हें कार में बैठा कर घुमाने नहीं बल्कि मौत के घाट उतारने ले जा रहे हैं.

थोड़ी देर बाद आजम ने अर्श व महक को नशीली गोलियां मिली हुई चौकलेट खाने के लिए दीं. उस वक्त उन की कार मुजफ्फरनगर की ओर जा रही थी. कुछ ही देर में दोनों बच्चे नशे में बेसुध हो गए. जैसे ही कार गांव कुम्हेड़ा के पास गंगनहर पुल पर पहुंची तो ताबीज ने कार से दोनों बेसुध बच्चों को गंगनहर में फेंक दिया.

पुलिस ने आरजू को भी गिरफ्तार कर लिया और बच्चों के शवों की तलाश के लिए गोताखोरों की मदद ली. कई दिनों तक की खोजबीन के बाद भी दोनों बच्चों में से किसी का शव गोताखोरों को नहीं मिला. पुलिस ने ताबीज की निशानदेही पर उस के घर से अपहरण में इस्तेमाल की गई वैगनआर कार भी बरामद कर ली.

10 जनवरी, 2019 को मुजफ्फरनगर के थाना जानसठ के अंतर्गत पड़ने वाली गंगनहर की चित्तौड़ झाल पर तैनात कर्मचारी ने एक बच्ची का शव झाल में फंसा हुआ देखा, जिस की उम्र 5-6 साल थी.

उसे अखबारों की खबरों से यह पहले ही पता था कि हरिद्वार के मंगलौर थाने से 2 बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया गया था, जिन की लाशें गोताखोर भी नहीं ढूंढ पाए थे. इसलिए उस ने फोन कर के बच्ची की लाश मिलने की सूचना फोन द्वारा मंगलौर कोतवाली को दे दी.

यह खबर मिलते ही एसआई चंद्रमोहन चित्तौड़ झाल पर पहुंचे. शव को उन्होंने पहचान लिया. वह शव महक का ही था. जरूरी काररवाई कर के उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया. बाद में पुलिस को महक की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, उस में उस की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया.

पुलिस ने ताबीज, आजम और आरजू से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक ताबीज, आजम व आरजू जेल में बंद थे. पुलिस को अर्श का शव नहीं मिला था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथामार्च 201

फिरौती 5 करोड़ की: सरगम इलेक्ट्रॉनिक्स के मालिक के बेटे का अपहरण

आनंद कुमार पंजाबी बाग के ईस्ट एवेन्यू रोड पर स्थित अपनी कोठी में पत्नी रीना गुप्ता और बेटी के साथ रहते थे, जबकि बेटा सौरभ अपनी पत्नी पूनम के साथ कर्मपुरा की कोठी में रहता है. सौरभ रोजाना सुबह करीब 11 बजे अपनी होंडा सिटी कार नंबर डीएल07सी ई4000 से पश्चिम विहार के शोरूम के लिए निकल जाते और रात साढ़े 9 बजे शोरूम बंद करा कर घर लौटते थे. लेकिन 9 दिसंबर, 2017 को वह साढ़े 10 बजे तक भी घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी पूनम ने उन के मोबाइल पर फोन किया.

उधर से सौरभ ने रोने जैसी आवाज में कहा कि वह एक घंटे में घर पहुंच जाएंगे. सौरभ की ऐसी आवाज सुन कर पूनम परेशान हो गईं. क्योंकि जब भी वह पति से बात करती थीं, वह खुश हो कर बात करते थे. पति की बात से उन्हें लगा जैसे वह किसी परेशानी में हैं. उन का मन नहीं माना तो उन्होंने फिर से पति को फोन लगा दिया. पर इस बार उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. उन्होंने 2-3 बार फिर ट्राई किया, हर बार फोन बंद ही मिला. इस से पूनम की चिंता बढ़ गई.

पूनम ने यह बात फोन कर के अपनी सास रीना गुप्ता को बता दी. रीना गुप्ता ने भी सौरभ को फोन लगाया तो उन का फोन अब भी बंद आ रहा था. इस के बाद पूनम और उन के पति ने बेटे को कई बार फोन लगाया, लेकिन हर बार बंद ही मिला. वे दोनों भी परेशान हो गए कि आखिर उस का फोन बंद क्यों है.

इस के करीब आधे घंटे बाद सौरभ ने अपनी मम्मी रीना गुप्ता के मोबाइल पर फोन किया. इस से पहले कि मां उन से कुछ पूछती, सौरभ ने कहा कि पापा से बात कराओ. तब रीना ने फोन अपने पति आनंद कुमार को दे दिया. जैसे ही आनंद कुमार ने हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘हम ने सौरभ को धर लिया है, यह अभी गाड़ी चला रहे हैं. आप कोई टेंशन नहीं लेना. न ही कोई काररवाई करने की जरूरत है. अब सुबह तुम से वाट्सऐप पर बात करेंगे.’’ इस के बाद फोन कट गया.

बेटे के अपहरण की बात सुनते ही आनंद कुमार के जैसे होश उड़ गए. बेटा किस हाल में और कहां है, यह जानने के लिए उन्होंने बेटे का नंबर मिलाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ था. इस से उन की बेचैनी बढ़ गई. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. पत्नी रीना को उन्होंने बेटे का अपहरण हो जाने की जानकारी दी तो उन की आंखों में आंसू छलक आए.

वैसे अपहर्त्ता ने उन्हें किसी से बात न करने की चेतावनी दी थी लेकिन आनंद बेटे को ले कर बहुत चिंतित हो गए थे, इसलिए उन्होंने उसी समय अपने शुभचिंतकों को फोन कर के इस बारे में सलाह मांगी तो सभी ने यही सुझाव दिया कि ऐसे मामले बहुत संवेदनशील होते हैं, इसलिए सूचना थाने में दे देना ही ठीक रहेगा.

आनंद कुमार ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर काल कर दी. पुलिस कंट्रोल रूम की तरफ से वह काल पश्चिमी जिले के मोतीनगर थाने को फारवर्ड कर दी गई. मोतीनगर थाने की पुलिस आनंद कुमार से मिली. तब पता चला कि घटनास्थल मोतीनगर थाने का न हो कर बाहरी जिले के पश्चिम विहार थानाक्षेत्र का है.

रात 3 बजे के करीब आनंद कुमार थाना पश्चिम विहार पहुंच गए. थानाप्रभारी उस समय रात्रि पैट्रोलिंग के लिए गए हुए थे. ड्यूटी अफसर ने अपहरण की सूचना दी तो वह थाने लौट आए. आनंद कुमार ने थानाप्रभारी को पूरी बात बताते हुए बेटे के अपहरण की आशंका जताई.

मामला एक उच्च व्यवसाई के बेटे का था, इसलिए थानाप्रभारी ने यह जानकारी डीसीपी एम.एन. तिवारी को दी. डीसीपी ने तुरंत रिपोर्ट दर्ज कर थानाप्रभारी को जरूरी काररवाई करने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 365 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

बेटे के अपहरण पर सन्न रह गए मांबाप  सौरभ चूंकि अपनी सफेद रंग की होंडा सिटी कार में थे और उन्हें कार सहित ही अगवा कर लिया था, इसलिए पुलिस ने दिल्ली के सभी थानों में वायरलैस से मैसेज प्रसारित कर के यह जानकारी पाने की कोशिश की कि डीएल7सी ई4000 नंबर की कार कहीं लावारिस हालत में तो नहीं मिली. लेकिन सुबह होने तक भी पश्चिम विहार पुलिस को इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

रात भर सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलने पर उन के घर वाले बहुत परेशान थे. वह उस की सलामती की दुआ मांग रहे थे. 10 दिसंबर को ही सुबह 10 बज कर 40 मिनट पर आनंद कुमार के मोबाइल पर बेटे सौरभ का फोन आया. फोन स्क्रीन पर उस का नाम देख कर आनंद कुमार की आंखों में कुछ चमक आई. उन्होंने तुरंत काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, कैसे हो तुम?’’ पर दूसरी ओर से सौरभ नहीं बल्कि कोई और शख्स था. वह बड़ी ही शालीनता से बोला, ‘‘आनंद भाई.’’

‘‘हां जी.’’ आनंद कुमार बोले.

‘‘ध्यान से सुनो, आप का लड़का हमारे पास सुरक्षित है.’’ अपहर्त्ता बोला.

‘‘ठीक है जी.’’ आनंद कुमार ने भी प्यार से जवाब दिया.

तभी अपहर्त्ता बोला, ‘‘बस आप से यह विनती है कि जैसे हम आप को श्योरिटी दे रहे हैं न कि आप का लड़का हम सुरक्षित देंगे, वैसे ही आप को भी श्योरिटी देनी पड़ेगी कि आप को कोई कदम नहीं उठाना है. देखो जी, आप भी परिवार वाले हो और हम भी परिवार वाले हैं.’’

‘‘ठीक है भाईसाहब.’’ आनंद कुमार बोले.

‘‘समझते हैं हम, आप की भी मजबूरी है…ठीक है जी.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

‘‘हां जी.’’ आनंद कुमार ने जवाब दिया.

‘‘आप का छोरा एकदम ठीक है. हम ने उस से कुछ भी नहीं कहा है. जब वह घर आएगा तो आप उस से मालूम कर लेना.’’ अपहर्त्ता बोला.

‘‘बहुत बढि़या जी, आप का शुक्रिया.’’ आनंद कुमार ने कहा.

‘‘हम तो ठीक ही करते आ रहे हैं,’’ वह बोला, ‘‘अब मुद्दे की बात सुन लो. हमें 5 करोड़ रुपए चाहिए. रकम हमें मिल जाएगी तो आप का छोरा सहीसलामत मिल जाएगा, वरना मजबूरी में हमें…’’

‘‘नहींनहीं, आप बेटे को कुछ नहीं करना. जैसा आप कहेंगे मैं वैसा ही करने को तैयार हूं.’’ आनंद कुमार ने भी उसे आश्वासन दिया.

‘‘पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह हम बाद में बता देंगे.’’ कह कर अपहर्त्ता ने फोन काट दिया.

आनंद कुमार की अपहर्त्ता से जो बात हुई थी, वह सब उन्होंने पुलिस को बता दी. पुलिस ने सौरभ के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 9 दिसंबर की रात साढ़े 10 बजे के करीब जो काल की गई थी, उस की लोकेशन विकासपुरी की थी, अब जो काल आई थी, उस की लोकेशन निलोठी (निहाल विहार) की थी.

10 दिसंबर की सुबह को ही आनंद कुमार ने बाहरी दिल्ली जिले के डीसीपी एम.एन. तिवारी से मुलाकात कर अपने बेटे की सुरक्षित बरामदगी की मांग की. पश्चिम विहार के थानाप्रभारी डीसीपी को इस मामले से पहले ही अवगत करा चुके थे.

इसलिए इस हाईप्रोफाइल किडनैपिंग के मामले को गंभीरता से लिया गया. उन्होंने केस को सुलझाने में स्पैशल सेल, थाना पुलिस, बाहरी जिले के स्पैशल स्टाफ सहित 5 टीमें लगा दीं. सभी टीमें अपनेअपने तरीके से किडनैपर्स तक पहुंचने की कोशिश में लग गईं.

जिन जगहों से आनंद कुमार को फिरौती की काल की गई थी, पुलिस टीम वहां भी गई. इसी दौरान दोपहर लगभग 12 बजे और साढ़े 12 बजे किडनैपर ने आनंद कुमार को फोन किया. उस ने जल्द से जल्द पैसे उपलब्ध कराने को कहा. उस ने चेतावनी दी कि ऐसा न होने पर आप बेटे से हाथ धो बैठेंगे. उस की लाश टुकड़ेटुकड़े कर के ऐसी जगह ठिकाने लगा दी जाएगी कि ढूंढते रह जाओगे.

‘‘ऐसा मत कीजिए. देखिए, आप हमारी प्रौब्लम को समझने की कोशिश कीजिए. यह बात तो आप भी समझते हैं कि इतनी बड़ी रकम कोई भी आदमी घर में तो रखता नहीं है. आज संडे की वजह से बैंक भी बंद हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि 5 करोड़ रुपए मैं कल सोमवार को बैंक से निकाल कर आप को दे दूंगा. आप मुझे कल तक का समय दे दीजिए. कल आप का काम हो जाएगा.’’ आनंद कुमार ने अपहर्त्ता को विश्वास दिलाते हुए कहा.

‘‘हम आप को कल यानी सोमवार 2 बजे तक का समय दे रहे हैं. बस यह समझ लीजिए कि 2 बजे तक पैसे न देने पर आप का जो नुकसान होगा, उस के जिम्मेदार आप ही होंगे. और इस गलती का आप जिंदगी भर अफसोस करते रहेंगे.’’ अपहर्त्ता ने धमकी दी.

अपहर्त्ता द्वारा दोपहर 12 और साढ़े 12 बजे जो काल की गई थी, उन की लोकेशन कंझावला के घेबड़ा गांव और बहादुरगढ़ के कसार गांव की पाई गईं. एक खास बात यह थी कि अबकी बार बात सौरभ के फोन नंबर से नहीं की गई थीं. फोन नंबर कोई दूसरा था पर आईएमईआई नंबर सौरभ के फोन का था. इस का मतलब यह था कि अपहर्त्ताओं ने सौरभ के फोन में अपना सिमकार्ड डाल लिया था. उस फोन में जो सिमकार्ड डाला था, जांच में पता चला कि वह सिमकार्ड फरजी कागजों पर लिया गया था. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई. उस की आखिरी लोकेशन दिल्ली के ही चंदरविहार इलाके की मिली. अब सभी पुलिस टीमें चंदरविहार पहुंच गई.

बाहरी जिले के स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर सुखबीर मलिक के नेतृत्व में भी एक टीम काम कर रही थी. इस टीम में एसआई प्रह्लाद, कमलेश, महिला एसआई निशू, एएसआई संजय, राजवीर सिंह, हेडकांस्टेबल धर्मेंद्र, जसबीर, कांस्टेबल परमजीत, संदीप यादव, राजेंद्र, हनुमान, संदीप, दिलीप, अजय, अमित, सुनील आदि शामिल थे.

पुलिस ने सेल्समेन बन कर की जांच डीसीपी ने इंसपेक्टर सुखबीर मलिक की टीम को निर्देश दिए कि वह किसी मोबाइल कंपनी का प्रतिनिधि बन कर चंदरविहार में डोर टू डोर सर्वे करने में लग जाए. उन्होंने ऐसा ही किया. उन्होंने लोगों को बताया कि वह मोबाइल नंबर को आधार नंबर से लिंक करने की प्रक्रिया के तहत सर्वे कर रहे हैं. इस औपरेशन के द्वारा वह उस फोन नंबर तक पहुंचना चाहते थे, जिस से अपहर्त्ता ने फिरौती के लिए फोन किए थे. पूरे दिन टीम डोर टू डोर करीब 250 घरों में गई. 4-5 मकान ऐसे थे जो बंद मिले.

उन बंद मकानों में कौनकौन रह रहा है, पुलिस ने पड़ोसियों से इस बात की जानकारी हासिल की. उन्हीं में से एक बंद मकान था सी-111ए. लोगों ने बताया कि इस में कुछ दिनों पहले ही एक किराएदार आया था. कभीकभी यहां 2 लड़के आते हैं. पुलिस के पास अपहृत सौरभ गुप्ता का फोटो था ही, इसलिए पुलिस लोगों को वह फोटो दिखा कर यह भी पूछ रही थी कि इसे यहां देखा है क्या? पर लोगों ने मना कर दिया.

पासपड़ोस में जो सीसीटीवी कैमरे लगे थे, पुलिस ने उन की फुटेज देखी. एक डाक्टर के मकान के आगे जो सीसीटीवी कैमरा लगा था, उस की फुटेज में 3 आदमी जाते दिखे. जिस में 2 आदमी पैदल ही एक अन्य आदमी को पकड़ कर ले जा रहे थे. जिस मकान की तरफ वे गए थे वह सी-111ए नंबर का ही मकान था, जो बंद था. स्पैशल स्टाफ की टीम पूरी रात उस मकान के आसपास रह कर उस की निगरानी करती रही. 11 दिसंबर की सुबह 5 बजे के करीब एक आदमी गली में टहलता दिखा. पुलिस ने उस आदमी से बात की तो उस ने बताया कि इस मकान के बाहर जो सफेद रंग की वैगनआर कार नंबर डीएल1सी वी5242 खड़ी है, वह उन्हीं की है जो इस कमरे में रहते हैं और ये कभीकभी आते हैं.

यह कार और उस मकान में रहने वाले लोग पुलिस के शक के दायरे में आ गए. इंसपेक्टर सुखबीर मलिक ने उस वैगनआर कार का टायर पंक्चर कर दिया, ताकि उस कार को कोई नहीं ले जा सके. इस के अलावा चंदरविहार के बाहर जाने वाले रास्तों को भी सील कर दिया गया. सुबह 8 बजे के करीब एक लड़का उस सफेद रंग की वैगनआर के पास आया और वह कार का मुआयना कर के चला गया. इंसपेक्टर मलिक ने तभी अपनी टीम को सतर्क कर दिया.

फिर सवा 9 बजे वहां एक ओला कैब आ कर रुकी. कुछ देर बाद 2 लड़के एक लड़के को पकड़ कर ओला कैब की तरफ लाते हुए दिखे. जिस लड़के को वे पकड़ कर ला रहे थे, वह लंगड़ा रहा था. उस लड़के को देख कर इंसपेक्टर मलिक चौंक गए क्योंकि वह वही सौरभ गुप्ता था, जिस का अपहरण हुआ था.

बिना मौका गंवाए उन्होंने टीम को इशारा कर दिया, जिस से पुलिस टीम ने उन सभी को घेर लिया. पुलिस ने उन दोनों युवकों को हिरासत में ले कर सौरभ गुप्ता को अपने कब्जे में ले लिया.

दोनों युवकों की तलाशी ली गई तो उन में से एक के पास से .380 बोर की पिस्टल मिली. पूछताछ में एक ने अपना नाम मनीष निवासी पश्चिमपुरी, दिल्ली तो दूसरे ने सतनाम सिंह उर्फ राजू निवासी तिलकनगर, दिल्ली बताया. पुलिस उन के कब्जे से अपहृत सौरभ गुप्ता को सकुशल बरामद कर चुकी थी.

पुलिस दोनों अपहर्त्ताओं को स्पैशल स्टाफ के औफिस ले गई, वहां पूछताछ के दौरान उन्होंने सौरभ गुप्ता के अपहरण की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

आनंद कुमार गुप्ता की गिनती जानेमाने सफल बिजनैसमैनों में होती है. सरगम इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दिल्ली और एनसीआर में उन के 46 मेगास्टोर हैं. सरगम इलैक्ट्रौनिक्स के जरिए वह सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

23 वर्षीय मनीष 4-5 साल पहले करोलबाग में उन्हीं के सरगम इलैक्ट्रौनिक्स में नौकरी करता था. उस समय वह उत्तरपश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी क्षेत्र में रहता था. वहां उस ने दोढाई साल तक नौकरी की थी. नौकरी के दौरान वह इस कंपनी के मालिक आनंद कुमार और उन के बेटे सौरभ गुप्ता को भी जान गया था.

2 साल पहले मनीष की बहन अलका की शादी थी तो उस ने दहेज में दिए जाने वाले इलैक्ट्रौनिक्स आइटम खरीदने के बारे में आनंद कुमार से बात की. चूंकि मनीष उन के यहां काम कर चुका था, इसलिए उन्होंने उसे भारी छूट के साथ अपने पश्चिमविहार वाले स्टोर से उस के द्वारा मांगा गया सारा सामान दिलवा दिया. उस स्टोर पर आनंद कुमार का बेटा सौरभ गुप्ता बैठता था.

सरगम इलैक्ट्रौनिक्स से नौकरी छोड़ने के बाद मनीष गुरप्रीत के ओबराय कार सेल परचेज नाम के औफिस में नौकरी करने लगा था. यह औफिस विकासपुरी में था. यहीं पर मनीष की मुलाकात सतनाम से हुई थी. सतनाम गुरप्रीत का साला था. सतनाम और मनीष की गहरी दोस्ती हो गई थी. दोनों ही कोई ऐेसे काम की तलाश में थे, जिस से उन्हें मोटी कमाई हो सके.

उसी समय मनीष ने आइडिया दिया कि सरगम इलैक्ट्रौनिक्स के मालिक का अपहरण कर लिया जाए तो एक ही झटके में मोटी कमाई हो सकती है.

‘‘किसी का अपहरण करना क्या कोई बच्चों का खेल है. और फिर वह कोई छोटामोटा आदमी तो है नहीं.’’ सतनाम बोला.

‘‘छोटेमोटे से हमें कुछ मिलेगा भी नहीं. देखो, मैं सौरभ को जानता हूं. वह बहुत डरपोक है. वह पश्चिम विहार के शोरूम पर बैठता है. बस वहीं से किसी तरह उस का अपहरण कर लिया जाए तो एक ही झटके में हमारी किस्मत बदल जाएगी. यह समझो कि कम से कम 4-5 करोड़ रुपए तो मिल ही जाएंगे.’’ मनीष ने बताया.

‘‘मगर यह सब होगा कैसे?’’ सतनाम ने पूछा.

‘‘इस की चिंता मत कर. हम प्लानिंग कर लेंगे.’’ मनीष ने समझाया.

इस के बाद दोनों ने सौरभ गुप्ता के अपहरण की योजना बनानी शुरू कर दी. सब से पहले मनीष ने चंदरविहार में एक कमरा किराए पर लिया ताकि अपहरण के बाद सौरभ को वहां रखा जा सके. फिर दोनों ने पश्चिमविहार में उन के स्टोर जा कर रेकी की. सौरभ कितने बजे शोरूम आते हैं और कितने बजे शोरूम से घर किन रास्तों से लौटते हैं, यह सब जानकारी हासिल कर ली.

पूरी योजना बनाने के बाद 9 दिसंबर को इस काम को अंजाम देने की फिराक में लग गए. रोजाना की तरह 9 दिसंबर को भी सौरभ रात साढ़े 9 बजे शोरूम बंद करा कर अपनी होंडा सिटी कार से अपने घर की तरफ चले. जैसे ही उन की गाड़ी कुछ दूर विद्यापीठ एजुकेशन के पास पहुंची तो पल्सर बाइक पर सवार मनीष और सतनाम ने उन की कार रोक ली. कार रोक कर सतनाम ने उन से कहा, ‘‘आप अपनी कार से एक बाइक वाले का एक्सीडेंट कर आए हैं. रुकने के बजाय आप भागे जा रहे हैं.’’

एक्सीडेंट की बात सुन कर सौरभ चौंके. क्योंकि उन से कोई एक्सीडेंट हुआ ही नहीं था. उन्होंने सफाई दी कि उन की कार से कोई एक्सीडेंट नहीं हुआ है. इसी बहस के दौरान मनीष ने नशीला पदार्थ लगा रूमाल सौरभ के मुंह पर रख दिया.

कुछ ही पल में सौरभ बेहोश हो गए तो उन के हाथपैर बांध कर उन्होंने होंडा सिटी की पिछली सीट पर डाल दिया. फिर वे उन्हें विकासपुरी की तरफ ले गए. वहां से वह चंदरविहार स्थित अपने किराए के कमरे पर ले गए. इस के बाद वे इधरउधर जा कर सौरभ के पिता को फोन कर के फिरौती मांगने लगे. इस बीच होश आने पर सौरभ ने कुछ चालाकी दिखाने की कोशिश की तो उन्होंने उस की जबरदस्त पिटाई कर के उसे इतना डरा दिया कि वह कुछ बोल तक न सके.

11 दिसंबर को वह सौरभ को दिल्ली से कहीं दूसरे प्रदेश में ले जाना चाहते थे. जब उन्होंने देखा कि उन की वैगनआर कार पंक्चर है तो उन्होंने ओला कैब मंगाई. उन का इरादा सौरभ को पानीपत ले जाने का था, वहां से वे उसे पठानकोट ले जाते. लेकिन इस से पहले ही वे पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने पश्चिमपुरी में एक पार्किंग के पास खड़ी की गई सौरभ की होंडा सिटी कार भी बरामद कर ली.

दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस को इस वारदात में उन के तीसरे साथी के भी शमिल होने की जानकारी मिली. पुलिस उसे भी तलाश रही है. मनीष और सतनाम को गिरफ्तार कर 11 दिसंबर को पुलिस ने उन्हें तीसहजारी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी मनोज कुमार की अदालत में पेश कर एक दिन का पुलिस रिमांड लिया. रिमांड अवधि में अभियुक्तों से कुछ और सबूत जुटा कर उन्हें फिर से 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस हाईप्रोफाइल अपहरण के मामले को 36 घंटे के अंदर हल कर के अपहृत सौरभ को सकुशल बरामद करने वाले इंसपेक्टर सुखबीर मलिक और उन की टीम की पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक, विशेष आयुक्त (वेस्ट रेंज) सतीश गोलचा, विशेष आयुक्त (कानून व्यवस्था) पी. कामराज, डीसीपी एम.एन. तिवारी, एसीपी दिनेश कुमार ने पीठ थपथपा कर सराहना की है. ?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शूलों की शैय्या पर लेटा प्यार : खुशियों के लिए किया अपनों का क़त्ल

31जुलाई, 2019 का दिन था. सुबह के  करीब 10 बज रहे थे. कानपुर जिले की एसपी (साउथ) रवीना त्यागी अपने कार्यालय में मौजूद थीं, तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उन के पास आया. वह बेहद मायूस नजर आ रहा था. उस के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थीं.

वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा है. मैं नौबस्ता थाने के राजीव विहार मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बेटी सुमन ने करीब 8 साल पहले राजेश वर्मा के बेटे अमित वर्मा के साथ प्रेम विवाह किया था. चूंकि बेटी ने यह काम हम लोगों की मरजी के खिलाफ किया था, इसलिए हम ने उस से नाता तोड़ लिया था.

बच्चों के लिए मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. 2 साल पहले जब वह घर लौटी तो हमें अच्छा ही लगा. तब से बेटी ने हमारे घर आनाजाना शुरू कर दिया था. उस के साथ उस का बेटा निश्चय भी आता था. उस ने हमें बताया था कि वह रवींद्रनगर, नौबस्ता में अमित वर्मा के साथ रह रही है. पर दिसंबर, 2018 से वह हमारे घर नहीं आई.

हम ने उस के मोबाइल फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उस का मोबाइल भी बंद मिला. हम ने बेटी सुमन व नाती निश्चय के संबंध में दामाद अमित वर्मा से फोन पर बात की तो वह पहले तो खिलखिला कर हंसा फिर बोला, ‘‘ससुरजी, अपनी बेटी और नाती को भूल जाओ.’’

मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा ने बताया कि अमित वर्मा की बात सुन कर मेरा माथा ठनका. हम ने गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह से सुमन अपने बेटे के साथ घर से लापता हैं. यह भी जानकारी मिली कि 3 माह पहले अमित ने खुशी नाम की युवती से दूसरा विवाह रचा लिया है. वह हंसपुरम में उसी के साथ रह रहा है.

मकसूद ने एसपी के सामने आशंका जताई कि अमित वर्मा ने सुमन व नाती निश्चय की हत्या कर लाश कहीं ठिकाने लगा दी है. उस ने मांग की कि अमित के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर उचित काररवाई करें.

मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की बातों से एसपी रवीना त्यागी को मामला गंभीर लगा. उन्होंने उसी समय थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह यादव को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि इस मामले की तुरंत जांच करें और अगर कोई दोषी है तो उसे तुरंत गिरफ्तार करें. एसपी साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी मकसूद प्रसाद को साथ ले कर थाने लौट गए और उन्होंने मकसूद से इस संबंध में विस्तार से बात की.

इस के बाद उन्होंने उसी शाम आरोपी अमित वर्मा को थाने बुलवा लिया. थाने में उन्होंने उस से उस की पत्नी सुमन और बेटे निश्चय के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 24 दिसंबर, 2018 की रात सुमन अपने बेटे को ले कर बिना कुछ बताए कहीं चली गई थी.

अमित वर्मा के अनुसार, उस ने उन दोनों को हर संभावित जगह पर खोजा, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब उस ने 28 दिसंबर को नौबस्ता थाने में पत्नी और बेटे के गुम होने की सूचना दर्ज करा दी थी.

यही नहीं, शक होने पर उस ने पड़ोस में रहने वाली मनोरमा नाम की महिला पर कोर्ट के माध्यम से पत्नी व बेटे को गायब कराने को ले कर उस के खिलाफ धारा 156 (3) के तहत कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज कराया था लेकिन पुलिस ने जांच के बाद उसे क्लीन चिट दे दी थी.

थानाप्रभारी ने अमित वर्मा की बात की पुष्टि के लिए थाने का रिकौर्ड खंगाला तो उस की बात सही निकली. थाने में उस ने पत्नी और बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई थी और पड़ोसी महिला मनोरमा पर कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था. चूंकि मनोरमा पर आरोप लगा था, अत: थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने मनोरमा को थाने बुलवाया.

उन्होंने उस से सुमन और उस के बेटे निश्चय के गुम होने के संबंध में सख्ती से पूछताछ की. तब मनोरमा ने उन्हें बताया कि अमित वर्मा बेहद शातिरदिमाग है. वह पुलिस को बारबार गुमराह कर के उसे फंसाने की कोशिश कर रहा है. जबकि वह बेकसूर है.

मनोरमा ने थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह को यह भी बताया कि 23 दिसंबर, 2018 को उस की सुमन से बात हुई थी. उस ने बताया था कि वह अपने पति के साथ कुंभ स्नान करने प्रयागराज जा रही है. दूसरे रोज वह अमित के साथ चली गई थी. लेकिन वह उस के साथ वापस नहीं आई. शक है कि अमित ने पत्नी व बेटे की हत्या कर उन की लाशें कहीं ठिकाने लगा दी हैं. मनोरमा से पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया गया.

अमित वर्मा की ओर शक की सुई घूमी तो थानाप्रभारी ने सच का पता लगाने के लिए अपने मुखबिर लगा दिए. साथ ही खुद भी हकीकत का पता लगाने में जुट गए.

मुखबिरों ने राजीव विहार, गल्लामंडी तथा रवींद्र नगर में दरजनों लोगों से अमित के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा मुखबिरों ने अमित पर भी नजर रखी. मसलन वह कहां जाता है, किस से मिलता है और उस के मददगार कौन हैं.

11 अगस्त, 2019 की सुबह 10 बजे 2 मुखबिरों ने थानाप्रभारी को एक चौंकाने वाली जानकारी दी. मुखबिरों ने बताया कि सुमन और उस के बेटे निश्चय की हत्या अमित वर्मा ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर की है. दरअसल, अमित वर्मा के नाजायज संबंध देवकीनगर की खुशी नाम की युवती से बन गए थे. इन रिश्तों का सुमन विरोध करती थी. खुशी से शादी रचाने के लिए सुमन बाधक बनी हुई थी.

यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने अमित वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और पत्नी सुमन तथा बेटे निश्चय की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि पत्नी और 6 साल के बेटे की हत्या उस ने देवकीनगर निवासी संजय शर्मा तथा कबीरनगर निवासी मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री की मदद से की थी. यह पता चलते ही थानाप्रभारी ने पुलिस टीम के साथ संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब दोनों का सामना अमित वर्मा से हुआ तो उन्होंने भी हत्या का जुर्म कबूल लिया.

पूछताछ करने पर अमित वर्मा ने बताया कि उस ने सुमन व उस के बेटे की हत्या कौशांबी जिले में लाडपुर के पास एक सुनसान जगह पर की थी और वहीं सड़क किनारे लाशें फेंक दी थीं.

दोनों की हत्या किए 7 महीने से ज्यादा बीत गए थे, इसलिए मौके पर लाशें नहीं मिल सकती थीं. उम्मीद थी कि लाशें संबंधित थाने की पुलिस ने बरामद की होंगी.

यह सोच कर थानाप्रभारी तीनों आरोपियों और शिकायतकर्ता मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा को साथ ले कर कौशांबी के लिए निकल पड़े. सब से पहले वह लाडपुर गांव की उस पुलिया के पास पहुंचे, जहां आरोपियों ने सुमन को तेजाब से झुलसाने के बाद गला दबा कर उन की हत्याएं कीं और लाशें फेंक दी थीं.

पुलिस ने सड़क किनारे झाडि़यों में सुमन की लाश ढूंढी लेकिन वहां लाश मिलनी तो दूर, उस का कोई सबूत भी नहीं मिला. तीनों आरोपियों ने बताया कि 6 वर्षीय निश्चय की हत्या उन्होंने लोडर के डाले से सिर टकरा कर की थी. इस के बाद उसे निर्वस्त्र कर लाश पुलिया से करीब एक किलोमीटर दूर चमरूपुर गांव के पास सड़क किनारे फेंकी थी.

पुलिस उन्हें ले कर चमरूपुर गांव के पास उस जगह पहुंची, जहां उन्होंने बच्चे की लाश फेंकने की बात बताई थी. पुलिस ने वहां भी झाडि़यों वगैरह में लाश ढूंढी, लेकिन लाश नहीं मिल सकी. जिन जगहों पर दोनों लाशें फेंकी गई थीं, वह क्षेत्र थाना कोखराज के अंतर्गत आता था. अत: पुलिस थाना कोखराज पहुंच गई.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने कोखराज थाना पुलिस को सुमन व उस के बेटे की हत्या की बात बताई. कोखराज पुलिस ने रिकौर्ड खंगाला तो पता चला 25 दिसंबर, 2018 की सुबह क्षेत्र के 2 अलगअलग स्थानों से 2 लाशें मिली थीं. एक लाश महिला की थी, जिस की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस का चेहरा तेजाब डाल कर जलाया गया था.

दूसरी लाश निर्वस्त्र हालत में एक बालक की थी, जिस की उम्र करीब 6 वर्ष थी. इन दोनों लाशों की सूचना कोखराज गांव के प्रधान गुलेश बाबू ने दी थी. दोनों लाशों की शिनाख्त नहीं हो पाने पर अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

थाना कोखराज पुलिस के पास दोनों लाशों के फोटोग्राफ्स मौजूद थे. फोटोग्राफ्स मकसूद प्रसाद को दिखाए तो वह फोटो देखते ही फफक कर रो पड़ा. उस ने बताया कि फोटो उस की बेटी सुमन तथा नाती निश्चय के हैं. सिंह ने उसे धैर्य बंधाया और थाने का रिकौर्ड तथा फोटो आदि हासिल कर थाना नौबस्ता लौट आए.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने सारी जानकारी एसपी रवीना त्यागी को दे दी और मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की तरफ से अमित वर्मा, संजय शर्मा और मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 326 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता आयोजित कर मीडिया के सामने इस घटना का खुलासा किया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी—

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कस्बा नौबस्ता में एक मोहल्ला है राजीव विहार. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला देवी के अलावा एक बेटी सुमन और 2 बेटे थे. मेहनतमजदूरी कर के वह जैसेतैसे अपने परिवार को पाल रहा था.

मकसूद प्रसाद की बेटी सुमन खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. एक रोज सुमन छत पर खड़ी अपने गीले बालों को सुखा रही थी. तभी उस के कानों में फेरी लगा कर ज्वैलरी की सफाई करने वाले की आवाज आई.

उस की आवाज सुनते ही सुमन छत से नीचे उतर आई. उस की चांदी की पायल गंदी दिख रही थी, वह उन की सफाई कराना चाहती थी, इसलिए फटाफट बक्से में रखी अपनी पायल निकाल कर साफ कराने के लिए ले गई.

ज्वैलरी की सफाई करने वाला नौजवान युवक था. खूबसूरत सुमन को देख कर वह प्रभावित हो गया. उस ने सुमन की पायल कैमिकल घोल में डाल कर साफ कर दीं. पायल एकदम नई जैसी चमकने लगीं. पायल देख कर सुमन बहुत खुश हुई. पायल ले कर वह घर जाने लगी तो कारीगर बोला, ‘‘बेबी, पायल पहन कर देख लो, मैं भी तो देखूं तुम्हारे दूधिया पैरों में ये कैसी लगेंगी.’’

अपने पैरों की तारीफ सुन कर सुमन की निगाहें अनायास ही कारीगर के चेहरे पर जा टिकीं. उस समय उस की आंखों में प्यार का समंदर उमड़ रहा था. कारीगर की बात मानते हुए सुमन ने उस के सामने बैठ कर पायल पहनीं तो वह बोला, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत पैरों में पायल खूब फब रही हैं. वैसे बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो, क्या जानना चाहते हो?’’ वह बोली.

‘‘तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘मेरा नाम सुमन है.’’ कुछ पल रुकने के बाद सुमन बोली, ‘‘तुम ने मेरा नाम तो पूछ लिया, पर अपना नहीं बताया.’’

‘‘मेरा नाम अमित वर्मा है. मैं राजीव विहार में ही रहता हूं. राजीव विहार में मेरा अपना मकान है. मेरे पिता भी यही काम करते हैं. फेरी लगा कर जेवरों की सफाई करना मेरा पुश्तैनी धंधा है.’’

पहली ही नजर में सुमन और अमित एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. उसी समय दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. फिर सुमन घर चली गई. अमित भी हांक लगाता हुआ आगे बढ़ गया. उस रोज रात में न तो सुमन को नींद आई और न ही अमित को. दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोचते रहे.

दोनों के दिलों में चाहत बढ़ी तो उन की मुलाकातें भी होने लगीं. मोबाइल फोन पर बात कर के मिलने का समय व स्थान तय हो जाता था. इस तरह उन की मुलाकातें कभी संजय वन में तो कभी किदवई पार्क में होने लगीं. एक रोज अमित ने उस से कहा, ‘‘सुमन, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं नहीं रह सकता. मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

सुमन कुछ पल मौन रही. फिर बोली, ‘‘अमित, मैं भी हर कदम पर तुम्हारा साथ देने को तैयार हूं.’’

सुमन और अमित का प्यार परवान चढ़ ही रह था कि एक रोज उन के प्यार का भांडा फूट गया. सुमन के भाई दीपू ने दोनों को किदवई पार्क में हंसीठिठोली करते देख लिया. उस ने यह बात अपने मातापिता को बता दी. कुछ देर बाद सुमन वापस घर आई तो मां कमला ने उसे आड़े हाथों लेते हुए खूब डांटाफटकारा. इस के बाद घर वालों ने सुमन के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया.

लेकिन सुमन को प्रतिबंध मंजूर नहीं था. वह अमित के प्यार में इतनी गहराई तक डूब गई थी, जहां से बाहर निकलना संभव नहीं था. आखिर एक रोज सुमन अपने मांबाप की इज्जत को धता बता कर घर से निकल गई. फिर बाराह देवी मंदिर जा कर अमित से शादी कर ली. अमित ने सुमन की मांग में सिंदूर भर कर उसे पत्नी के रूप में अपना लिया.

सुमन से शादी करने के बाद अमित, सुमन को साथ ले कर अपने राजीव विहार स्थित घर पहुंचा तो उस के मातापिता ने सुमन को बहू के रूप में स्वीकारने से मना कर दिया. क्योंकि वह उन की बिरादरी की नहीं थी. हां, उन्होंने दोनों को घर में पनाह जरूर दे दी.

सुमन ने अपनी सेवा से सासससुर का मन जीतने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुई. अमित के पिता राजेश वर्मा को सदैव इस बात का भय बना रहता था कि सुमन को ले कर उस के घर वाले कोई बवाल न खड़ा कर दें. अत: उन्होंने राजीव विहार वाला अपना मकान बेच दिया और नौबस्ता गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

चूंकि पिता का मकान बिक चुका था, इसलिए अमित भी नौबस्ता के रवींद्र नगर में किराए पर मकान ले कर सुमन के साथ रहने लगा. इधर सुमन के मातापिता भी गायब हुई बेटी को अपने स्तर से ढूंढ रहे थे. उन्होंने बदनामी की वजह से पुलिस में शिकायत नहीं की थी.

कुछ समय बाद उन्हें जानकारी हुई कि सुमन ने अमित के साथ ब्याह रचा लिया है. इस का उन्हें बहुत दुख हुआ. इतना ही नहीं, उन्होंने सुमन से नाता तक तोड़ लिया. उन्होंने यह सोच कर कलेजे पर पत्थर रख लिया कि सुमन उन के लिए मर गई है.

अमित सुमन को बहुत प्यार करता था. वह हर काम सुमन की इच्छानुसार करता था. सुमन भी पति का भरपूर खयाल रखती थी. इस तरह हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इन 3 सालों में सुमन ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम निश्चय रखा गया.

बेटे के जन्म के बाद सुमन के घरआंगन में किलकारियां गूंजने लगीं. निश्चय जब 3 साल का हुआ तो सुमन ने उस का दाखिला विवेकानंद विद्यालय में करा दिया. सुमन ही निश्चय को स्कूल भेजने व छुट्टी होने पर घर लाने का काम करती थी.

कुछ समय बीतने के बाद स्थितियों ने करवट बदली. धीरेधीरे सुमन की मुसकान गायब हो गई. पति न केवल उस से दूर भागने लगा बल्कि बातबात पर उसे डांटनेफटकारने भी लगा. वह देर रात घर लौटता था. कभीकभी तो पूरी रात गायब रहता. यह सब सुमन की चिंता का कारण बन गया.

वह हमेशा उदास रहने लगी. वह सब कुछ सहती रही. आखिरकार जब स्थिति सहन सीमा से बाहर हो गई, तब उस ने पति के स्वभाव में इस परिवर्तन का पता लगाने का निश्चय किया.

सुमन को यह जान कर गहरा सदमा लगा कि उस का पति खुशी नाम की युवती के प्रेम जाल में फंस गया है. उसे खुशी के बारे में यह भी पता चला कि वह जितनी सुंदर है, उतनी ही चंचल और मुंहफट भी है.

वह देवकीनगर में किराए के मकान में रहती है. उस के मांबाप नहीं हैं. एक भाई है, जो शराबी तथा आवारा है. बहन पर उस का कोई नियंत्रण नहीं है.

फेरी लगाने के दौरान जिस तरह अमित ने सुमन को फांसा था, उसी तरह उस ने खुशी को भी फांस लिया था. वह उस का इतना दीवाना हो गया था कि अपनी पत्नी और बच्चे को भी भूल गया. हर रोज घर में देर से आना और पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देना, उस की दिनचर्या बन गई थी.

सुमन पहले तो अमित की बातों पर विश्वास कर लेती थी किंतु जब असलियत का पता चला तो उस का नारी मन विद्रोह पर उतर आया. भला उसे यह कैसे गवारा हो सकता था कि उस के रहते उस का पति किसी दूसरी औरत की ओर आंख उठा कर देखे.

वह इस का विरोध करने लगी. लेकिन अमित अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उलटे वह सुमन को ही प्रताडि़त करने लगा. खुशी से नाजायज रिश्तों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. पतिपत्नी आए दिन एकदूसरे से झगड़ने लगे. इस तनावपूर्ण वातावरण में एक बुराई और घर में घुस आई. अमित को शराब की लत पड़ गई.

शराब पीने के बाद वह सुमन को बेतहाशा पीटता पर सुमन थी कि सब कुछ सह लेती थी. उस के सामने समस्या यह भी थी कि वह किसी से अपना दुखदर्द बांट भी नहीं सकती थी. मांबाप से उस के संबंध पहले ही खराब हो चुके थे.

एक दिन तो अमित ने हद ही कर दी. वह खुशी को अपने घर ले आया. उस समय सुमन घर पर ही थी. खुशी को देख कर सुमन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पति को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उस ने खुशी की बेइज्जती करते हुए उसे भी खूब लताड़ा.

बेइज्जती हुई तो खुशी उसी समय वहां से चली गई. उस के यूं चले जाने पर अमित सुमन पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने सुमन की जम कर पिटाई की. सुमन रोतीतड़पती रही.

सुमन की एक पड़ोसन थी मनोरमा. अमित जब घर पर नहीं होता तब वह मनोरमा के घर चली जाया करती थी. सुमन उस से बातें कर अपना गम हलका कर लेती थी.

एक रोज मनोरमा ने सुमन से कहा कि बुरे वक्त में अपने ही काम आते हैं. ऐसे में तुम्हें अपने मायके आनाजाना शुरू कर देना चाहिए. मांबाप बड़े दयालु होते हैं, हो सकता है कि वे तुम्हारी गलती को माफ कर दें.

पड़ोसन की यह बात सुमन को अच्छी लगी. वह हिम्मत जुटा कर एक रोज मायके जा पहुंची. सुमन के मातापिता ने पहले तो उस के गलत कदम की शिकायत की फिर उन्होंने उसे माफ कर दिया. इस के बाद सुमन मायके आनेजाने लगी. सुमन ने मायके में कभी यह शिकायत नहीं की कि उस का पति उसे मारतापीटता है और उस का किसी महिला से चक्कर चल रहा है.

इधर ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों खुशी अमित के दिलोदिमाग पर छाती जा रही थी. वह खुशी से शादी रचा कर उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था, लेकिन इस रास्ते में सुमन बाधा बनी हुई थी. खुशी ने अपना इरादा जता दिया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. यानी जब तक सुमन उस के साथ है, तब तक वह उस की जीवनसंगिनी नहीं बन सकती.

खुशी का यह फैसला सुनने के बाद अमित परेशान रहने लगा कि वह किस तरह इस समस्या का समाधान करे. अमित वर्मा का एक दोस्त था संजय शर्मा. वह देवकीनगर में रहता था और केबल औपरेटर था. वह भी अमित की तरह अपनी पत्नी से पीडि़त था. उस की पत्नी संजय को छोड़ कर मायके में रह रही थी.

उस ने संजय के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा भी दर्ज करा रखा था. अमित ने अपनी परेशानी संजय शर्मा को बताई तो संजय ने सलाह दी कि वह अपनी पत्नी सुमन व उस के बच्चे को खत्म कर दे. तभी उस की समस्या का निदान हो सकता है.

खुशी से विवाह रचाने के लिए अमित पत्नीबेटे की हत्या करने को राजी हो गया. उस ने इस बारे में संजय से चर्चा की तो उस ने अमित की मुलाकात मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री से कराई. अख्तर नौबस्ता क्षेत्र के कबीरनगर में रहता था. वह लोडर चलाता था.

साथ ही लोडर मिस्त्री भी था. मोहम्मद अख्तर मूलरूप से कौशांबी जिले के कोखराज थाना क्षेत्र के गांव मारूकपुरवा का रहने वाला था. उस की पत्नी मेहरुन्निसा गांव में ही रहती थी.

अमित, संजय व मोहम्मद अख्तर ने सिर से सिर जोड़ कर हत्या की योजना बनाई. संजय ने गुड्डू मिस्त्री से सलाह मशविरा कर अमित से 35 हजार रुपए में हत्या का सौदा कर लिया. अमित ने संजय को 10 हजार रुपए एडवांस दे दिए.

चूंकि अब योजना को अंजाम देना था, इसलिए अमित ने सुमन के साथ अच्छा बर्ताव करना शुरू कर दिया. वह उस से प्यार भरा व्यवहार करने लगा. उस ने सुमन से वादा किया कि अब वह खुशी के संपर्क में नहीं रहेगा. पति के इस व्यवहार से सुमन गदगद हो उठी. उस ने सहज ही पति की बातों पर भरोसा कर लिया. यही उस की सब से बड़ी भूल थी.

योजना के तहत 23 दिसंबर, 2018 को अमित वर्मा और संजय मूलगंज बाजार पहुंचे. वहां से अमित ने एक बोतल तेजाब खरीदा. शाम को अमित ने सुमन से कहा कि कल हम लोग कुंभ स्नान को प्रयागराज जाएंगे. सुमन राजी हो गई. उस ने रात में ही प्रयागराज जाने की सारी तैयारी कर ली.

योजना के मुताबिक 24 दिसंबर, 2018 की शाम 7 बजे अमित, पत्नी सुमन व बेटे निश्चय को साथ ले कर रामादेवी चौराहा पहुंचा. पीछे से मोहम्मद अख्तर भी लोडर ले कर रामादेवी चौराहा पहुंच गया. उस के साथ संजय शर्मा भी था. लोडर अमित के पास रोक कर अख्तर ने उस से पूछा कि कहां जा रहे हो तुम लोग॒. तब अमित ने कहा, ‘‘हम कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज जा रहे हैं.’’

‘‘मैं भी लोडर ले कर प्रयागराज जा रहा हूं, उधर से वापसी के समय लोडर में पत्थर लाऊंगा. अगर तुम लोग चाहो तो मेरे साथ चल सकते हो.’’ मोहम्मद अख्तर बोला.

अमित ने सुमन से कहा कि लोडर चालक उस का दोस्त है. वह प्रयागराज जा रहा है. ऐतराज न हो तो लोडर से ही निकल चलें. किराया भी बच जाएगा.

सुमन को क्या पता थी कि यह अमित की चाल है और इस में उस का पति भी शामिल है. वह तो पति पर विश्वास कर के राजी हो गई. उस के बाद अमित वर्मा, पत्नी व बेटे के साथ लोडर में पीछे बैठ गया, जबकि संजय आगे बैठा. उस के बाद मोहम्मद अख्तर लोडर स्टार्ट कर चल पड़ा.

मोहम्मद अख्तर ने जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर लोडर रोक दिया. वहां अमित, संजय व गुड्डू ने खाना खाया तथा शराब पी. अधिक सर्दी होने का बहाना बना कर अमित ने सुमन को भी शराब पिला दी. इस के बाद ये लोग चल दिए. कौशांबी जिले के लाडपुर गांव के पास पहुंच कर मोहम्मद अख्तर ने एक पुलिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.

संजय और मोहम्मद अख्तर उतर कर पीछे आ गए. इस के बाद संजय व मोहम्मद अख्तर ने सुमन को दबोच लिया और अमित ने सुमन कोतेजाब से  नहला दिया. सुमन जलन से चीखी तो अमित ने उसे गला दबा कर मार डाला.

मां की चीख सुन कर 6 साल का बेटा निश्चय जाग गया. संजय ने बच्चे का सिर लोडर के डाले से पटकपटक कर उसे मार डाला. इन लोगों ने सुमन की लाश लाडपुर पुलिया के पास सड़क किनारे फेंक दी तथा वहां से लगभग एक किलोमीटर आगे जा कर निश्चय की निर्वस्त्र लाश भी फेंक दी. इस के बाद तीनों प्रयागराज गए. वहां से दूसरे रोज लोडर पर पत्थर लाद कर वापस कानपुर आ गए.

25 दिसंबर, 2018 की सुबह कोखराज के ग्रामप्रधान गुलेश बाबू सुबह की सैर पर निकले तो उन्होंने लाडपुर पुलिया के पास महिला की लाश तथा कुछ दूरी पर एक मासूम बच्चे की लाश देखी. उन्होंने यह सूचना कोखराज थाना पुलिस को दी.

पुलिस ने दोनों लाशें बरामद कर उन की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई भी नहीं पहचान सका. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. गुलेश बाबू को वादी बना कर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इधर शातिरदिमाग अमित वर्मा ने दोस्त संजय की सलाह पर 28 दिसंबर को थाना नौबस्ता में तहरीर दी कि उस की पत्नी सुमन 24 दिसंबर की रात अपने बेटे निश्चय के साथ बिना कुछ बताए घर से चली गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है. इस तहरीर पर पुलिस ने साधारण पूछताछ की, फिर शांत हो कर बैठ गई.

इस के बाद अमित ने पड़ोसी महिला मनोरमा को फंसाने के लिए 156 (3) के तहत कोर्ट से मुकदमा कायम करा दिया. उस ने मनोरमा पर आरोप लगाया कि उस की पत्नी व बच्चे को गायब करने से उस का ही हाथ है. पर जांच में आरोप सही नहीं पाया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने मनोरमा को छोड़ दिया. अप्रैल, 2019 को अमित ने खुशी से शादी कर ली और हंसपुरम में उस के साथ रहने लगा.

सुमन, महीने में एक या 2 बार मायके आ जाती थी. पर पिछले 7 महीने से वह मायके नहीं आई थी, जिस से सुमन के पिता मकसूद प्रसाद को चिंता हुई. उस ने दामाद अमित से बात की तो उस ने बेटी नाती को भूल जाने की बात कही. शक होने पर मकसूद ने 31 जुलाई, 2019 को एसपी रवीना त्यागी को जानकारी दी. इस के बाद ही केस का खुलासा हो सका.

12 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अमित वर्मा, संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर को कानपुर कोर्ट के रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला कारागार भेज दिया गया.         —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौतेली मां : बच्चों को मिला नया प्यार

मां की मौत के बाद ऋजुता ही अनुष्का का सब से बड़ा सहारा थी. अनुष्का को क्या करना है, यह ऋजुता ही तय करती थी. वही तय करती थी कि अनुष्का को क्या पहनना है, किस के साथ खेलना है, कब सोना है. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था. मां की मौत के बाद ऋजुता ने मां की तरह अनुष्का को ही नहीं संभाला, बल्कि घर की पूरी जिम्मेदारी वही संभालती थी.

ऋजुआ तो मनु का भी उसी तरह खयाल रखना चाहती थी, पर मनु उम्र में मात्र उस से ढाई साल छोटा था. इसलिए वह ऋजुता को अभिभावक के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं था. तमाम बातों में उन दोनों में मतभेद रहता था. कई बार तो उन का झगड़ा मौखिक न रह कर हिंसक हो उठता था. तब अंगूठा चूसने की आदत छोड़ चुकी अनुष्का तुरंत अंगूठा मुंह में डाल लेती. कोने में खड़ी हो कर वह देखती कि भाई और बहन में कौन जीतता है.

कुछ भी हो, तीनों भाईबहनों में पटती खूब थी. बड़ों की दुनिया से अलग रह सकें, उन्होंने अपने आसपास इस तरह की एक दीवार खड़ी कर ली थी, जहां निश्चित रूप से ऋजुता का राज चलता था. मनु कभीकभार विरोध करता तो मात्र अपना अस्तित्व भर जाहिर करने के लिए.

अनुष्का की कोई ऐसी इच्छा नहीं होती थी. वह बड़ी बहन के संरक्षण में एक तरह का सुख और सुरक्षा की भावना का अनुभव करती थी. वह सुंदर थी, इसलिए ऋजुता को बहुत प्यारी लगती थी. यह बात वह कह भी देती थी. अनुष्का की अपनी कोई इच्छाअनिच्छा होगी, ऋजुता को कभी इस बात का खयाल नहीं आया.

अगर अविनाश को दूसरी शादी न करनी होती तो घर में सबकुछ इसी तरह चलता रहता. घर में दादी मां यानी अविनाश की मां थीं ही, इसलिए बच्चों को मां की कमी उतनी नहीं खल रही थी. घर के संचालन के लिए या बच्चों की देखभाल के लिए अविनाश का दूसरी शादी करना जरूरी नहीं रह गया था.

इस के बावजूद उस ने घर में बिना किसी को बताए दूसरी शादी कर ली. अचानक एक दिन शाम को एक महिला के साथ घर आ कर उस ने कहा, ‘‘तुम लोगों की नई मम्मी.’’

उस महिला को देख कर बच्चे स्तब्ध रह गए. वे कुछ कहते या इस नई परिस्थिति को समझ पाते, उस के पहले ही अविनाश ने मां की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘संविधा, यह मेरी मां है.’’

बूढ़ी मां ने सिर झुका कर पैर छू रही संविधा के सिर पर हाथ तो रखा, पर वह कहे बिना नहीं रह सकीं. उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इस तरह अचानक… कभी सांस तक नहीं ली, चर्चा की होती तो 2-4 सगेसंबंधी बुला लेती.’’

‘‘बेकार का झंझट करने की क्या जरूरत है मां.’’ अविनाश ने लापरवाही से कहा.

‘‘फिर भी कम से कम मुझ से तो बताना चाहिए था.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है,’’ अविनाश ने उसी तरह लापरवाही से कहा, ‘‘नोटिस तो पहले ही दे दी थी. आज दोपहर को दस्तखत कर दिए. संविधा का यहां कोई सगासंबंधी नहीं है. एक भाई है, वह दुबई में रहता है. रात को फोन कर के बता देंगे. बेटा ऋजुता, मम्मी को अपना घर तो दिखाओ.’’

उस समय क्या करना चाहिए, यह ऋजुता तुरंत तय नहीं कर सकी. इसलिए उस समय अविनाश की जीत हुई. घर में जैसे कुछ खास न हुआ हो, अखबार ले कर सोफे पर बैठते हुए उस ने मां से पूछा, ‘‘मां, किसी का फोन या डाकवाक तो नहीं आई, कोई मिलनेजुलने वाला तो नहीं आया?’’

संविधा जरा भी नरवस नहीं थी. अविनाश ने जब उस से कहा कि हमारी शादी हम दोनों का व्यक्तिगत मामला है. इस से किसी का कोई कुछ लेनादेना नहीं है. तब संविधा उस की निडरता पर आश्चर्यचकित हुई थी. उस ने अविनाश से शादी के लिए तुरंत हामी भर दी थी. वैसे भी अविनाश ने उस से कुछ नहीं छिपाया था. उस ने पहले ही अपने बच्चों और मां के बारे में बता दिया था. पर इस तरह बिना किसी तैयारी के नए घर में, नए लोगों के बीच…

‘‘चलो,’’ ऋजुता ने बेरुखी से कहा.

संविधा उस के साथ चल पड़ी. उसे पता था कि विधुर के साथ शादी करने पर रिसैप्शन या हनीमून पर नहीं जाया जाता, पर घर में तो स्वागत होगा ही. जबकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं था. अविनाश निश्चिंत हो कर अखबार पढ़ने लगा था. वहीं यह 17-18 साल की लड़की घर की मालकिन की तरह एक अनचाहे मेहमान को घर दिखा रही थी. घर के सब से ठीकठाक कमरे में पहुंच कर ऋजुता ने कहा, ‘‘यह पापा का कमरा है.’’

‘‘यहां थोड़ा बैठ जाऊं?’’ संविधा ने कहा.

‘‘आप जानो, आप का सामान कहां है?’’ ऋजुता ने पूछा.

‘‘बाद में ले आऊंगी. अभी तो ऐसे ही…’’

‘‘खैर, आप जानो.’’ कह कर ऋजुता चली गई.

पूरा घर अंधकार से घिर गया तो ऋजुता ने फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘मनु, तू जाग रहा है?’’

‘‘हां,’’ मनु ने कहा, ‘‘दीदी, अब हमें क्या करना चाहिए?’’

‘‘हमें भाग जाना चाहिए.’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘कहां, पर अनुष्का तो अभी बहुत छोटी है. यह बेचारी तो कुछ समझी भी नहीं.’’

‘‘सब समझ रही हूं,’’ अनुष्का ने धीरे से कहा.

‘‘अरे तू जाग गई?’’ हैरानी से ऋजुता ने पूछा.

‘‘मैं अभी सोई ही कहां थी,’’ अनुष्का ने कहा और उठ कर ऋजुता के पास आ गई. ऋजुता उस की पीठ पर हाथ फेरने लगी. हाथ फेरते हुए अनजाने में ही उस की आंखों में आंसू आ गए. भर्राई आवाज में उस ने कहा, ‘‘अनुष्का, तू मेरी प्यारी बहन है न?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘देख, वह जो आई है न, उसे मम्मी नहीं कहना. उस से बात भी नहीं करनी. यही नहीं, उस की ओर देखना भी नहीं है.’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘क्यों?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘वह अपनी मम्मी थोड़े ही है. वह कोई अच्छी औरत नहीं है. वह हम सभी को धोखा दे कर अपने घर में घुस आई है.’’

‘‘चलो, उसे मार कर घर से भगा देते हैं,’’ मनु ने कहा.

‘‘मनु, तुझे अक्ल है या नहीं? अगर हम उसे मारेंगे तो पापा हम से बात नहीं करेंगे.’’

‘‘भले न करें बात, पर हम उसे मारेंगे.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते मनु, पापा उसे ब्याह कर लाए हैं.’’

‘‘तो फिर क्या करें?’’ मनु ने कहा, ‘‘मुझे वह जरा भी अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘मुझे भी. अनुष्का तुझे?’’

‘‘मुझे भी अच्छी नहीं लगती.’’ अनुष्का ने कहा.

‘‘बस, तो फिर हम सब उस से बात नहीं करेंगे.’’

‘‘पापा कहेंगे, तब भी?’’ मनु और अनुष्का ने एक साथ पूछा.

‘‘हां, तब भी बात नहीं करेंगे. उसे देख कर हंसना भी नहीं है, न ही उसे कुछ देना है. उस से कुछ मांगना भी नहीं है. यही नहीं, उस की ओर देखना भी नहीं है. समझ गए न?’’

‘‘हां, समझ गए.’’ मनु और अनुष्का ने एक साथ कहा, ‘‘पर दादी मां कहेंगी कि उसे बुलाओ तो…’’

‘‘तब देखा जाएगा. दोनों ध्यान रखना, हमें उस से बिलकुल बात नहीं करनी है.’’

‘‘पापा, इसे क्यों ले आए?’’ मासूम अनुष्का ने पूछा.

‘‘पता नहीं.’’ ऋजुता ने लापरवाही से कहा.

‘‘दीदी, एक बात कहूं, मुझे तो अब पापा भी अच्छे नहीं लगते.’’

‘‘मुझे भी,’’ मनु ने कहा. मनु ने यह बात कही जरूर, पर उसे पापा अच्छे लगते थे. वह उस से बहुत प्यार करते थे. उस की हर इच्छा पूरी करते थे. पर दोनों बहनें कह रही थीं, इसलिए उस ने भी कह दिया. इतना ही नहीं, उस ने आगे भी कहा, ‘‘दीदी, अब यहां रहने का मन नहीं होता.’’

‘‘फिर भी रहना तो पड़ेगा ही. अच्छा, चलो अब सो जाओ.’’

‘‘मैं तुम्हारे पास सो जाऊं दीदी?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘लात तो नहीं मारेगी?’’

‘‘नहीं मारूंगी.’’ कह कर वह ऋजुता का हाथ पकड़ कर क्षण भर में सो गई.

ऋजुता को अनुष्का का इस तरह सो जाना अच्छा नहीं लगा. घर में इतनी बड़ी घटना घटी है, फिर भी यह इस तरह निश्चिंत हो कर सो गई. कुछ भी हो, 17-18 साल की एक लड़की पूरी रात तो नहीं जाग सकती थी. वह भी थोड़ी देर में सो गई.

सुबह वह सो कर उठी तो पिछले दिन का सब कुछ याद आ गया. उस ने अनुष्का को जगाया, ‘‘कल रात जैसा कहा था, वैसा ही करना.’’

‘‘उस से बात नहीं करना न?’’ अनुष्का ने कहा.

‘‘किस से?’’

‘‘अरे वही, जिसे पापा ले आए हैं, नई मम्मी. भूल गई क्या? दीदी, उस का नाम क्या है?’’

‘‘संविधा. पर हमें उस के नाम का क्या करना है. हमें उस से बात नहीं करनी है बस. याद रहेगा न?’’ ऋजुता ने कहा.

‘‘अरे हां, हंसना भी नहीं है.’’

‘‘ठीक है.’’

इस के बाद ऋजुता ने मनु को भी समझा दिया कि नई मम्मी से बात नहीं करेगा. जबकि वह समझदार था और खुद भी उस से चिढ़ा हुआ था. इसलिए तय था कि वह भी संविधा से बात नहीं करेगा. विघ्न आया दादी की ओर से. चायनाश्ते के समय वह बच्चों का व्यवहार देख कर सब समझ गईं. अकेली पड़ने पर वह ऋजुता से कहने लगीं, ‘‘बेटा, अब तो वह घर आ ही गई है. उस के प्रति अगर इस तरह की बात सोचोगी, तो कैसे चलेगा. अविनाश को पता चलेगा तो वह चिढ़ जाएगा.’’

‘‘कोई बात नहीं दादी,’’ पीछे खड़े मनु ने कहा.

‘‘बेटा, तू तो समझदार है. आखिर बात करने में क्या जाता है.’’

दादी की इस बात का जवाब देने के बजाए ऋजुता ने पूछा, ‘‘दादी, आप को पता था कि पापा शादी कर के नई पत्नी ला रहे हैं?’’

‘‘नहीं, जब बताया ही नहीं तो कैसे पता चलता.’’

‘‘इस तरह शादी कर के नई पत्नी लाना आप को अच्छा लगा?’’

‘‘अच्छा तो नहीं लगा, पर कर ही क्या सकते हैं. वह उसे शादी कर के लाए हैं, इसलिए अब साथ रहना ही होगा. तुम सब बचपना कर सकते हो, पर मुझे तो बातचीत करनी ही होगी.’’ दादी ने समझाया.

‘‘क्यों?’’ ऋजुता ने पूछा.

‘‘बेटा, इस तरह घरपरिवार नहीं चलता.’’

‘‘पर दादी, हम लोग तो उस से बात नहीं करेंगे.’’

‘‘ऋजुता, तू बड़ी है. जरा सोच, इस बात का पता अविनाश को चलेगा तो उसे दुख नहीं होगा.’’ दादी ने समझाया.

‘‘इस में हम क्या करें. पापा ने हम सब के बारे में सोचा क्या? दादी, वह मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती. हम उस से बिलकुल बात नहीं करेंगे. पापा कहेंगे, तब भी नहीं.’’ ऋजुता ने कहा. उस की इस बात में मनु ने भी हां में हां मिलाई.

‘‘बेटा, तू बड़ी हो गई है, समझदार भी.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘बिलकुल नहीं करेगी बात?’’ दादी ने फिर पूछा. इसी के साथ वहां खड़ी अनुष्का से भी पूछा, ‘‘तू भी बात नहीं करेगी अनुष्का?’’

अनुष्का घबरा गई. उसे प्यारी बच्ची होना अच्छा लगता था. अब तक उसे यही सिखाया गया था कि जो बड़े कहें, वही करना चाहिए. ऋजुता ने तो मना किया था, अब क्या किया जाए? वह अंगूठा मुंह में डालना चाहती थी, तभी उसे याद आ गया कि वह क्या जवाब दे. उस ने झट से कहा, ‘‘दीदी कहेंगी तो बात करूंगी.’’

अनुष्का सोच रही थी कि यह सुन कर ऋजुता खुश हो जाएगी. पर खुश होने के बजाए ऋजुता ने आंखें दिखाईं तो अनुष्का हड़बड़ा गई. उस हड़बड़ाहट में उसे रात की बात याद आ गई. उस ने कहा, ‘‘बात की छोड़ो, हंसना भी मना है. अगर कुछ देती है तो लेना भी नहीं है. वह मुझे ही नहीं मनु भैया को भी अच्छी नहीं लगती. और ऋजुता दीदी को भी, है न मनु भैया?’’

‘‘हां, दादी मां, हम लोग उस से बात नहीं करेंगे.’’ मनु ने कहा.

‘‘जैसी तुम लोगों की इच्छा. तुम लोग जानो और अविनाश जाने.’’

पर जैसा सोचा था, वैसा हुआ नहीं. बच्चों के मन में क्या है, इस बात से अनजान अविनाश औफिस चले गए. जातेजाते संविधा से कहा था कि वह चिंता न करे, जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.

संविधा ने औफिस से 2 दिनों की छुट्टी ले रखी थी. नया घर, जिस में 3 बच्चों के मौन का बोझ उसे असह्य लगने लगा. उसे लगा, उस ने छुट्टी न ली होती, तो अच्छा रहता.   अविनाश के साथ वह भी अपने औफिस चली गई होती.

अविनाश उसे अच्छा तो लग रहा था, पर 40 की उम्र में ब्याह करना उसे खलने लगा था. बालबच्चों वाला एक परिवार…साथ में बड़ों की छत्रछाया और एक समझदार आदमी का जिंदगी भर का साथ…उस ने हामी भर दी और इस अनजान घर में आ गई. पहले से परिचय की क्या जरूरत है, अविनाश ने मना कर दिया था.

उस ने कहा था, ‘‘जानती हो संविधा, अचानक आक्रमण से विजय मिलती है. अगर पहले से बात करेंगे तो रुकावटें आ सकती हैं. बच्चे भी पूर्वाग्रह में बंध जाएंगे. तुम एक बार किसी से मिलो और उसे अच्छी न लगो, ऐसा नहीं हो सकता. यह अलग बात है कि तुम्हें मेरे बच्चे न अच्छे लगें.’’

तब संविधा ने खुश हो कर कहा था, ‘‘तुम्हारे बच्चे तो अच्छे लगेंगे ही.’’

‘‘बस, बात खत्म हो गई. अब शादी कर लेते हैं.’’ अविनाश ने कहा.

फिर दोनों ने शादी कर ली.

संविधा ने पहला दिन तो अपना सामान लाने और उसे रखने में बिता दिया था पर चैन नहीं पड़ रहा था. बच्चे सचमुच बहुत सुंदर थे, पर उस से बिलकुल बात नहीं कर रहे थे. चौकलेट भी नहीं ली थी. बड़ी बेटी ने स्थिर नजरों से देखते हुए कहा था, ‘‘मेरे दांत खराब हैं.’’

संविधा ढीली पड़ गई थी. अविनाश से शिकायत करने का कोई मतलब नहीं था. वह बच्चों से बात करने के लिए कह सकता है. बच्चे बात तो करेंगे, पर उन के मन में सम्मान के बजाए उपेक्षा ज्यादा होगी. ऐसे में कुछ दिनों इंतजार कर लेना ज्यादा ठीक रहेगा. पर बाद में भी ऐसा ही रहा तो? छोड़ कर चली जाएगी.

रोजाना कितने तलाक होते हैं, एक और सही. अविनाश अपनी बूढ़ी मां और बच्चों को छोड़ कर उस के साथ तो रहने नहीं जा सकता. आखिर उस का भी तो कुछ फर्ज बनता है. ऐसा करना उस के लिए उचित भी नहीं होगा. पर उस का क्या, वह क्या करे, उस की समझ में नहीं आ रहा था. वह बच्चों के लिए ही तो आई थी. अब बच्चे ही उस के नहीं हो रहे तो यहां वह कैसे रह पाएगी.

दूसरा दिन किस्सेकहानियों की किताबें पढ़ कर काटा. मांजी से थोड़ी बातचीत हुई. पर बच्चों ने तो उस की ओर ताका तक नहीं. फिर भी उसे लगा, सब ठीक हो जाएगा. पर ठीक हुआ नहीं. पूरे दिन संविधा को यही लगता रहा कि उस ने बहुत बड़ी गलती कर डाली है. ऐसी गलती, जो अब सुधर नहीं सकती. इस एक गलती को सुधारने में दूसरी कई गलतियां हो सकती हैं.

दूसरी ओर बच्चे अपनी जिद पर अड़े थे. जैसेजैसे दिन बीतते गए, संविधा का मन बैठने लगा. अब तो उस ने बच्चों को मनाने की निरर्थक चेष्टा भी छोड़ दी थी. उसे लगने लगा कि कुछ दिनों के लिए वह भाई के पास आस्ट्रेलिया चली जाए. पर वहां जाने से क्या होगा? अब रहना तो यहीं है. कहने को सब ठीक है, पर देखा तो बच्चों की वजह से कुछ भी ठीक नहीं है. फिर भी इस आस में दिन बीत ही रहे थे. कभी न कभी तो सब ठीक हो ही जाएगा.

उस दिन शाम को अविनाश को देर से आना था. उदास मन से संविधा गैलरी में आ कर बैठ गई. अभी अचानक उस का मन रेलिंग पर सिर रख कर खूब रोने का हुआ. कितनी देर हो गई उसे याद ही नहीं रहा. अचानक उस के बगल से आवाज आई, ‘‘आप रोइए मत.’’

संविधा ने चौंक कर देखा तो अनुष्का खड़ी थी. उस ने हाथ में थामा चाय का प्याला रखते हुए कहा, ‘‘रोइए मत, इसे पी लीजिए.’’

ममता से अभिभूत हो कर संविधा ने अनुष्का को खींच कर गोद में बैठा कर सीने से लगा लिया. इस के बाद उस के गोरे चिकने गालों को चूम कर वह सोचने लगी, ‘अब मैं मर भी जाऊं तो चिंता नहीं है.’

तभी अनुष्का ने संविधा के सिर पर हाथ रख कर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मम्मी ही तो हूं, इसलिए तुम मम्मी कह सकती हो.’’

‘‘पर दीदी ने मना किया था,’’ सकुचाते हुए अनुष्का ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मन का बोझ झटकते हुए संविधा ने पूछा.

‘‘दीदी, आप से और पापा से नाराज हैं.’’

‘‘क्यों?’’ संविधा ने फिर वही दोहराया.

‘‘पता नहीं.’’

‘‘तुम मान गई न, अब दीदी को भी मैं मना लूंगी.’’ खुद को संभालते हुए बड़े ही आत्मविश्वास के साथ संविधा ने कहा.

संविधा की आंखों में झांकते हुए अनुष्का ने कहा, ‘‘अब मैं जाऊं?’’

‘‘ठीक है, जाओ.’’ संविधा ने प्यार से कहा.

‘‘अब आप रोओगी तो नहीं?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम जैसी प्यारी बेटी को पा कर भला कोई कैसे रोएगा.’’

छोटेछोटे पग भरती अनुष्का चली गई. नन्हीं अनुष्का को बेवफाई का मतलब भले ही पता नहीं था, पर उस के मन में एक बोझ सा जरूर था. उस ने बहन से वादा जो किया था कि वह दूसरी मां से बात नहीं करेगी. पर संविधा को रोती देख कर वह खुद को रोक नहीं पाई और बड़ी बहन से किए वादे को भूल कर दूसरी मां के आंसू पोंछने पहुंच गई.

जाते हुए अनुष्का बारबार पलट कर संविधा को देख रही थी. शायद बड़ी बहन से की गई बेवफाई का बोझ वह सहन नहीं कर पा रही थी. इसलिए उस के कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे.

टूटा जाल शिकारी का : असफल योजना बनी कारावास की सजा

28अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकील, पुलिस और तीनों आरोपी चंद्रमोहन शर्मा, प्रीति नागर, विदेश अदालत में मौजूद थे. उस दिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश निरंजन कुमार एक ऐसे केस में सजा सुनाने वाले थे, जिस में शातिराना ढंग से खुद को मृत साबित करने के लिए चंद्रमोहन शर्मा ने एक पागल व्यक्ति को अपनी कार में बैठा कर जिंदा जला दिया था.

दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी. पिछली तारीख पर अदालत चंद्रमोहन को भादंवि की धारा 302 के तहत दोषी भी ठहरा चुकी थी. उस दिन सिर्फ फैसला सुनाया जाना था. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद न्यायाधीश निरंजन कुमार ने फैसला सुनाते हुए चंद्रमोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

दरअसल 28 अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश निरंजन कुमार ने जो फैसला सुनाया, उस की शुरुआत 7 जून, 2014 की शाम को तब हुई थी, जब शाम करीब 7 बजे अचानक एक लड़की का अपहरण हो गया.

दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में अल्फा- 2, सेक्टर के मकान नंबर आई-33 में रहने वाले संतराम नागर की बेटी प्रीति नागर (22) अपने घर के बाहर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

प्रीति नागर शाम के अंधेरे में घर के बाहर बिछी चारपाई उठाने आई थी और गायब हो गई. चूंकि उस वक्त इलाके में बिजली नहीं थी इसलिए किसी ने भी प्रीति को कहीं आतेजाते नहीं देखा था. प्रीति को इधरउधर तलाश करने के बाद उस के पिता संतराम ने पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नंबर पर फोन कर के इत्तिला दे दी.

सूचना मिलने के बाद कासना थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई. संतराम नागर ने पुलिस को वे सारी बातें बता दीं, जो प्रीति के गायब होने से जुड़ी थीं. पुलिस ने संतराम नागर व आसपड़ोस के लोगों के बयान दर्ज किए. फिर अगली सुबह संतराम की शिकायत पर थाना कासना में धारा 364 के तहत प्रीति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

8 जून को प्रीति के अपहरण की जांच का केस एसआई विनय शर्मा के सुपुर्द कर दिया गया. जांच का काम संभालते ही जांच अधिकारी शर्मा अपनी टीम के साथ संतराम के घर पहुंचे और विवेचना शुरू कर दी.

तमाम बिंदुओं पर पूछताछ और जांच करने के बाद विनय शर्मा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. प्रीति का कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला. अचानक 2 महीने बाद 9 अगस्त, 2014 को प्रीति के पिता संतराम के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. काल करने वाले ने अपना नाम बताए बिना कहा कि वह तिरुपति बालाजी से बोल रहा है और उन की बेटी प्रीति उस के पास है.

फोन करने वाले ने बताया कि प्रीति कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई थी, लेकिन किसी तरह वह बच गई और अब उस के पास है. फोनकर्ता ने संतराम से आगे कहा कि वह तिरुपति बालाजी पहुंच जाएं, वह उन से बालाजी में मिलेगा और उन की बेटी उन के सुपुर्द कर देगा. काफी अनुरोध करने पर भी उस ने अपना नामपता नहीं बताया.

संतराम ने कासना थाने जा कर इस फोन के बारे में जांच अधिकारी विनय शर्मा को बताया.

शर्मा ने तुंरत उस फोन के बारे में साइबर सेल से जानकारी हासिल की तो पता चला कि जिस नंबर से संतराम को काल आई थी, उस की लोकेशन बंगलुरु के एक पीसीओ की थी.

विनय शर्मा ने थानाप्रभारी समरपाल सिंह और एसएसपी को इस जानकारी से अवगत कराया तो उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को विनय शर्मा को कांस्टेबल धामा के साथ बंगलुरु रवाना कर दिया. उन के साथ संतराम भी अपने साले के साथ बंगलुरु पहुंच गए.

बंगलुरु पहुंच कर विनय शर्मा सब से पहले उस पीसीओ पर पहुंचे, जहां से संतराम के मोबाइल पर फोन किया था. लेकिन उस पीसीओ के संचालक से फोन करने वाले की पहचान के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. संयोग से उसी दिन संतराम के मोबाइल पर लोकल नंबर से एक और काल आई.

फोन उसी व्यक्ति का था, जिस ने पहले फोन किया था. लेकिन इस बार फोन करने वाला काफी गुस्से में था उस ने पुलिस को साथ ले कर आने के लिए संतराम को खूब खरीखोटी सुनाई. संतराम ने उसे समझाने की कोशिश की कि उस का इरादा गलत नहीं था, लेकिन फोन करने वाला इतने गुस्से में था कि उस ने प्रीति का बुरा अंजाम करने की धमकी दे कर फोन काट दिया.

संतराम ने जब उसी नंबर पर काल बैक की तो फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. जांच अधिकारी विनय शर्मा संतराम के साथ ही थे. वे समझ गए कि फोन करने वाला उन पर नजर रख रहा है. जिस नंबर से संतराम को फोन आया था, विनय शर्मा ने वह नंबर नोएडा में बैठी अपनी साइबर टीम को भेज दिया तो पता चला कि वह नंबर बंगलुरु के ही एक पीसीओ का है.

विनय शर्मा ने तत्काल पता नोट किया और बताए गए पते पर पहुंच गए. पीसीओ के मालिक से जब फोन करने वाले की बाबत जानकारी मांगी, तो वह उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. क्योंकि पीसीओ पर तमाम लोग आते हैं और सब के बारे में जानकारी रखना पीसीओ वाले के लिए संभव नहीं होता.

निराश हो कर 1-2 दिन बाद संतराम बंगलुरु से नोएडा लौट आए. अब जांच के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. लेकिन उच्चाधिकारियों  के आदेश के कारण विनय शर्मा अपने कांस्टेबल धामा के साथ वहीं रुके रहे और अपनी जांचपड़ताल करते रहे.

इस बीच संतराम जब नोएडा पहुंच गए तो 15 अगस्त को उसी अज्ञात फोन करने वाले ने फिर फोन किया. उस ने संतराम से कहा कि उन की लड़की के गिड़गिड़ाने की वजह से वह उसे छोड़ देगा, लेकिन शर्त यह है कि वह इस बार अकेला आए और अगली सुबह तिरुपति बालाजी मंदिर के बाहर उस का इंतजार करे.

संतराम ने तुरंत फ्लाइट पकड़ी और तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच गए. इस दौरान उन्होंने फोन कर के विनय शर्मा को भी ये बात बता दी थी. फलस्वरूप 16 अगस्त की सुबह विनय शर्मा संतराम व उन के साले के साथ फोन करने वाले का इंतजार करने लगे.

लेकिन अज्ञात फोनकर्ता ने इस बार भी धोखा दे दिया . देर शाम तक इंतजार करने के बाद वे फिर निराश हो गए, क्योंकि न तो फोन करने वाला आया और न ही उस की कोई काल आई. हालांकि इस बार जांच अधिकारी ने सावधानी बरतते हुए खुद को संतराम के से दूर रखा था. निराश हो कर संतराम नोएडा लौट आए.

वह यह मान बैठे थे कि उन्हें कोई परेशान करने के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन विनय शर्मा इस बार भी वापस नहीं लौटे. और प्रीति के फोटो के आधार पर थानेथाने जा कर वह उस की तलाश करते रहे.

जिस वक्त पुलिस टीम प्रीति को बंगलुरु में तलाश कर रही थी, 22 अगस्त, 2014 को संतराम ने विनय शर्मा को फोन कर के बताया कि उन के पास फोन करने वाले का एक और धमकी भरा फोन आया है. इस बार उस ने प्रीति को जान से मारने की धमकी दी है.

संतराम ने बताया कि इस बार फोनकर्ता ने एक अन्य नंबर का इस्तेमाल किया था. विनय शर्मा के मांगने पर संतराम ने उन्हें वह नंबर नोट करा दिया.

एसआई विनय शर्मा ने वह नंबर साइबर टीम को भेज कर पता करा लिया कि वह नंबर बंगलुरु में हांसे कोटे इलाके के एक पीसीओ का है.

पता मिलते ही विनय शर्मा पीसीओ मालिक के पास पहुंच गए. यहां भी पीसीओ संचालक से उन्होंने फोनकर्ता की जानकारी जुटाने की कोशिश की, मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. फिर भी इस बार उन्हें एक क्लू जरूर मिल गया.

विनय शर्मा की नजर पीसीओ के सामने स्थित एक ज्वैलरी शौप पर पड़ी. ज्वैलरी शौप के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. सीसीटीवी कैमरा देखते ही विनय शर्मा का चेहरा खिल उठा. उन्होंने पीसीओ के संचालक के साथ जा कर ज्वैलरी शौप संचालक को अपना परिचय दिया और सीसीटीवी फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

ज्वैलरी शौप के मालिक ने विनय शर्मा को सहयोग करते हुए उक्त समय की वीडियो फुटेज दिखा दी.

संयोग की बात थी कि पीसीओ ज्वैलरी शौप के सीसीटीवी कैमरे की रेंज में था. विनय शर्मा के साथ सीसीटीवी देख रहे पीसीओ संचालक ने सफेद पैंट, काली जैकेट और काले जूते पहने एक गंजे व्यक्ति को देख कर बताया कि उस के पीसीओ पर वही शख्स आया था. काल करने के बाद वह वापस चला गया था. वापस लौटते हुए उस शख्स का चेहरा पूरी तरह कैमरे की जद में आ गया था.

उस आदमी की वेशभूषा देख कर ज्वैलरी शौप के मालिक ने बताया कि यह व्यक्ति जो ड्रेस पहने है, वह कोलार में दुपहिया वाहन बनाने वाली होंडा फैक्ट्री के कर्मचारियों की ड्रेस है. यह सुराग डूबते को तिनके का सहारा मिलने जैसा था.

आगे की छानबीन के लिए विनय शर्मा ने ज्वैलरी शौप के संचालक से उस फुटेज की कौपी ले कर अपनी टीम के साथ कोलार के नस्सापुर स्थित टू व्हीलर बनाने वाली होंडा कंपनी के औफिस में पहुंच गए. जांच अधिकारी ने मैनेजर को पूरा मामला बताया. उस से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ महीनों में उन के यहां किसी उत्तर भारतीय कर्मचारी ने नौकरी जौइन की है. इस के जवाब में मैनेजर ने उन्हें पिछले 3 महीनों में नौकरी जौइन करने वाले 3 कर्मचारियों का फोटो समेत बायोडाटा मिल गया.

तीनों बायोडाटा देखने के बाद विनय शर्मा की नजर एक शख्स पर अटक गई, क्योंकि वह उन का जानापहचाना था.

वह शख्स चंद्रमोहन शर्मा था, लेकिन बायोडाटा में उस का नाम नितिन लिखा था, जिस ने 6 मई, 2014 को फिटर कर्मचारी के रूप में उन के यहां नौकरी जौइन की थी. उस ने अपना मूल पता हरियाणा, हिसार लिखवाया था.

चंद्रमोहन को विनय अच्छी तरह जानते थे. क्योंकि वह नोएडा का एक आरटीआई एक्टिविस्ट था और वह उस से कई बार मिले भी थे. लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि चंद्रमोहन यहां क्या कर रहा है और उस ने अपना नाम नितिन क्यों लिखवाया है. साथ ही प्रीति की तलाश करतेकरते उन्हें चंद्रमोहन की बंगलुरु में उपस्थिति समझ नहीं आ रही थी.

विनय शर्मा ने अपने मोबाइल से बायोडाटा में लगी फोटो ले कर अपने एसएचओ समरजीत सिंह को भेजी और उन्हें पूरी बात बताई.

कुछ देर में इंसपेक्टर समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को जो कुछ बताया, उस से उन के दिमाग की नसें हिल गईं. समरजीत सिंह ने बताया कि नितिन नाम का शख्स चंद्रमोहन शर्मा ही है और वह उस के मर्डर केस की जांच कर रहे हैं. समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को बिना वक्त गंवाए नितिन को पकड़ने की हिदायत दी.

मामले की तसवीर अब काफी हद तक साफ हो चुकी थी. विनय शर्मा के कहने पर नितिन शर्मा उर्फ चंद्रमोहन को एचआर मैनेजर ने फैक्ट्री से बुलवा लिया. पुलिस को सादे लिबास में देख कर कथित नितिन शर्मा घबरा गया. विनय शर्मा को वह पहले से ही जानता था. विनय शर्मा ने उसे यह नहीं बताया कि उन्हें उस की मौत के ड्रामे के बारे में कोई जानकारी है.

उन्होंने उस से सब से पहले प्रीति के बारे पूछताछ शुरू की. चंद्रमोहन को पता नहीं था कि विनय शर्मा को उस के बारे में सब पता चल चुका है. उस ने बताया कि प्रीति से उस ने शादी कर ली है. वह अपनी इच्छा से अपना घर छोड़ कर उस के साथ आई है.

चंद्रमोहन विनय कुमार को काउंटी कट्टा इलाके में अपने किराए के घर पर भी ले गया, जहां वह प्रीति के साथ रहता था. विनय शर्मा ने घर में घुसते ही प्रीति को पहचान लिया, क्योंकि नोएडा से इतनी दूर वह उसी तलाश में आए थे.

विनय शर्मा ने 27 अगस्त, 2014 को स्थानीय पुलिस के सहयोग से प्रीति व चंद्रमोहन को हिरासत में ले लिया. दोनों को स्थानीय अदालत में पेश कर के उन्होंने उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर लिया और उन्हें ग्रेटर नोएडा के कासना थाने ले आए.

विनय शर्मा ग्रेटर नोएडा से बंगलुरु जिस प्रीति की तलाश में गए थे, वह मकसद पूरा हो चुका था. लेकिन इसी के साथ खुद को मुर्दा साबित कर के प्रीति के साथ मौज कर रहा वह चंद्रमोहन नाम का कथित मृतक भी उन के हाथ लग गया था.

29 अगस्त को पुलिस ने प्रीति नागर और चंद्रमोहन को अदालत में पेश कर के 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में चंद्रमोहन व प्रीति से अलगअलग पूछताछ की गई, तो उन की प्रेम कहानी तथा चंद्रमोहन द्वारा रची गई गहरी साजिश का भी परदाफाश हो गया.

चंद्रमोहन शर्मा आरटीआई कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य था. वह ग्रेटर नोएडा के अल्फा-2 में आई ब्लौक के मकान नंबर 480 में रहता था. चंद्रमोहन के परिवार में पत्नी सविता तथा 2 बच्चे थे, 12 वर्ष का बेटा तथा 7 वर्ष की बेटी.

हुआ यूं था कि 17 मई, 2014 को चंद्रमोहन की पत्नी सविता ने थाना कासना में आ कर एक लिखित तहरीर दी थी. तहरीर में सविता ने लिखा था कि उस का पति चंद्रमोहन 30 अप्रैल, 2014 से लापता था. 2 मई को उस की जली हुई लाश उसी की कार में मिली थी. तहरीर में सविता ने आरोप लगाया था कि उस के पति की मौत दुर्घटना में नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

सविता की तहरीर के मुताबिक कासना क्षेत्र के बृजेश, शानी, राजकुमार उर्फ राजू, बबलू उर्फ आनंद और प्रवीण ने गांव कासना के मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था. उस का पति गांव की तरफ से मंदिर की जमीन के मुकदमे में पैरवी कर रहा था, इसलिए उपरोक्त सभी लोग चंद्रमोहन से दुश्मनी रखते थे.

इन सभी लोगों से चंद्रमोहन ने अपनी जान का खतरा भी बताया था, जिस के संबंध में 30 अप्रैल, 2014 को ही थाना कासना में तत्कालीन थानाप्रभारी वीरपाल सिंह को शिकायत दे कर प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी, जिस में चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि 28 अप्रैल को ड्यूटी पर जाते समय उस से रंजिश मानने वाले बृजेश ने अपने साथियों के साथ परी चौक के पास उसे जान से मारने की धमकी दी थी.

सविता ने अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि उक्त सभी व्यक्तियों ने साजिश कर के उस के पति चंद्रमोहन की हत्या कर लाश को कार समेत जला दिया है, ताकि घटना को दुर्घटना का रूप दिया जा सके.

सविता की तहरीर के आधार पर कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर के नामजद आरोपियों से पूछताछ करने का प्रयास किया तो पता चला कि वे फरार हैं.

चंद्रमोहन शर्मा की मौत का प्रकरण कुछ इस तरह सामने आया था. 1/ 2 मई, 2014 की रात करीब 12 बजे ग्रेटर नोएडा के अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने जेपी ग्रीन के पास एक जली हुई कार मिली थी. कार की ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा था, वह भी बुरी तरह जल कर कोयला हो चुका था.

जली कार में लाश की सूचना पा कर कासना थाना पुलिस मौके पर पहुंची. प्रथमदृष्टया पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हादसा रहा होगा. गैस रिसने से कार आग का गोला बन गई होगी. कार ड्राइव करने वाले को इतनी भी मोहलत नहीं मिली कि दरवाजा खोल कर वह बाहर निकल पाता.

वह सीट पर बैठेबैठे ही जल कर मर गया. कार का रजिस्ट्रेशन नंबर और चेसिस नंबर सहीसलामत था. उसी के माध्यम से पुलिस ने अगले दिन आरटीओ से मालूमात की तो पता चला वह कार चंद्रमोहन की थी. पुलिस उस पते पर पहुंची, जिस पते पर कार पंजीकृत थी.

वहां पता चला कि वह घर चंद्रमोहन का है. चंद्रमोहन तो नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी जरूर पुलिस को मिल गई. पुलिस ने चंद्रमोहन की पत्नी सविता को बुला कर कार में लाश की शिनाख्त कराई. सविता ने लाश के साथ कार की भी शिनाख्त कर दी.

चंद्रमोहन के परिजनों ने उस की लाश की शिनाख्त 2 मई को ही कर दी थी. पहली नजर में पुलिस को ये मामला दुर्घटनावश आग लगने से हुई मौत का लग रहा था. लेकिन कुछ रोज बाद सविता ने इस मामले में हत्या की आशंका जताते हुए 5 लोगों को नामजद करा दिया.

जिस के बाद कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन सभी आरोपी फरार हो गए. इस केस के जांच अधिकारी कासना थाने के एसएचओ समरजीत सिंह थे.

होंडा टू व्हीलर कंपनी में मैकेनिक की हैसियत से काम करने वाला चंद्रमोहन सामाजिक कार्यों तथा राजनीति में गहरी रुचि रखता था. इसी कारण वह आरटीआई कार्यकर्ता होने के साथ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य बन गया था.

चंद्रमोहन का जीवन सुख में बीत रहा था. 15 वर्ष पहले उस ने सविता से प्रेम विवाह किया था. उन के 2 बच्चे भी थे. निजी उपयोग के लिए चंद्रमोहन ने एक शेवरले कार भी खरीद ली थी.

चंद्रमोहन के सुखी जीवन में उथलपुथल तब हुई, जब प्रीति से उस की आंखें लड़ीं. आसपास रहने के कारण प्रीति और सविता की दोस्ती हो गई थी. सविता से मिलने के लिए प्रीति अकसर उस के घर पर आती थी. इसी दौरान चंद्रमोहन पत्नी की सहेली के आकर्षण में बंध गया. चंद्रमोहन उम्र में प्रीति से कई साल बड़ा था, वह विवाहित तथा 2 बच्चों का पिता भी, इस के बावजूद 22 साल की प्रीति उसे अपना बनाने का सपना देखने लगी.

पहले आंखोंआंखों में उन की रसीली बातें हुई, फिर कभी रूबरू तो कभी फोन पर बातें होने लगीं. चंद्रमोहन ने प्रेम निवेदन किया, तो प्रीति ने उसे सशर्त स्वीकार कर लिया. शर्त यह थी कि चंद्रमोहन उसे मौजमजे की चीज नहीं समझेगा. उस से विवाह कर के जीवन भर साथ निभाएगा.

15 साल पहले जब चंद्रमोहन ने सविता से प्रेम विवाह किया था, तब वह बेहद हसीन थी. लेकिन वक्त की धूप ने सविता के रंगरूप को झुलसाया, तो घरपरिवार की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह निचुड़ सी गई. बनावसिंगार से भी वह दूर रहने लगी थी. इसी वजह से चंद्रमोहन को वह बासी और रूखीफीकी महसूस होने लगी थी.  वह खुद भी सविता से ऊबा हुआ था. यही कारण था कि उस ने प्रीति की विवाह वाली शर्त मंजूर कर ली.

बस इस के बाद दोनों की बेमेल प्रेम कहानी शुरू हो गई. प्रेम की पगडंडियां तय करतेकरते कुछ महीने बीत गए, तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर विवाह के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.

एक बीवी के होते चंद्रमोहन दूसरा विवाह नहीं कर सकता था. उसे मालूम था कि यह कानूनन जुर्म है. सविता को तलाक वह दे नहीं सकता था, क्योंकि करीबी रिश्तेदारों पर सविता की अच्छीखासी पकड़ थी. तलाक देता, तो सभी एकजुट हो कर चंद्रमोहन का गला दबाने आ जाते.

चंद्रमोहन समझ नहीं पा रहा था, किस तरह सविता से पीछा छुड़ाए. एक तो चंद्रमोहन को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, दूसरी ओर प्रीति विवाह के लिए दबाव बनाए हुए थी. विवाह में अनावश्यक विलंब होता देख प्रीति उसे जेल भिजवाने और पत्नी से दोनों का रिश्ता बताने की धमकी भी देने लगी.

चंद्रमोहन ऐसा कुछ नहीं चाहता था, जिस से उस का जीना हराम हो जाए. जब उसे कोई राह नहीं सूझी, तब उस ने प्रीति से गुप्तरूप से विवाह करने का निश्चय कर लिया.

28 नवंबर, 2013 को चंद्रमोहन प्रीति को दादरी स्थित आर्यसमाज मंदिर में ले गया और वहां उस से प्रेम विवाह कर लिया.

प्रीति खुश थी. उस ने मान लिया कि आज चंद्रमोहन ने मांग में सिंदूर भरा है, तो कल घर भी ले जाएगा. चंद्रमोहन इसलिए खुश था कि वक्ती तौर पर ही सही, कुछ समय के लिए मुसीबत से निजात तो मिल गई.

चंद्रमोहन व प्रीति अलगअलग रहते रहे. प्रीति ने अपने परिवार में रहते हुए किसी को अपनी शादी की भनक नहीं लगने दी. दूसरी तरफ चंद्रमोहन भी अपने परिवार से प्रीति के साथ की गई दूसरी शादी का राज छिपाता रहा.

जब शादी को कुछ सप्ताह बीत गए और कोई सकारात्मक रास्ता निकलता नहीं दिखा तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर फिर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द अपने घर से सविता की छुट्टी करे और उसे घर ले जाए.

पहले प्रीति से प्रेम और फिर विवाह कर के चंद्रमोहन बुरी तरह फंस गया था. न वह सविता को घर से निकाल सकता था, न ही प्रीति के बगैर रह सकता था. प्रीति भी अब अपने मायके में रहने को राजी नहीं थी. प्रीति ने जब चंद्रमोहन पर लगातार दबाव बनाना शुरू किया तो बहुत सोचनेसमझने के बाद चंद्रमोहन ने एक खौफनाक योजना बना डाली.

चंद्रमोहन ने जो योजना बनाई थी, उसे अकेले अंजाम दे पाना संभव नहीं था. अत: योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने अपने साले विदेश शर्मा को नकद रुपए देने का लालच दिया. साथ ही उस ने सविता को उस के बदले होंडा कंपनी में नौकरी मिलने का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

दरअसल, अंसल प्लाजा के आसपास एक विक्षिप्त युवक घूमा करता था. उस की और चंद्रमोहन की कदकाठी में काफी समानता थी. उस विक्षिप्त युवक को देख कर चंद्रमोहन के दिमाग में एक आइडिया आया था कि क्यों न वह उस पागल को मार कर स्वयं को मुर्दा साबित कर दें.

परिजन व पुलिस उसे मुर्दा मान लेंगे, तो कोई उस की तलाश नहीं करेगा. प्रीति को ले कर वह कहीं दूर चला जाएगा और आगे का उस के संग जीवन गुजारेगा.

प्रीति भी चंद्रमोहन की इस योजना से सहमत हो गई. आपसी विचारविमर्श के बाद 30 अप्रैल, 2014 को योजना को अंतिम रूप दे दिया गया और अगले दिन यानी 1 मई की रात को उसे क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया. योजना को अंजाम देने के लिए चंद्रमोहन ने तुगलपुर स्थित पैट्रोल पंप से एक डिब्बे में 3 लीटर पैट्रोल भरवा कर कार में रख लिया.

1 मई की रात को 11 बजे सविता का भाई विदेश अंसल प्लाजा के आसपास घूमने वाले पागल युवक को बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल पर बैठा लाया. चंद्रमोहन अपनी कार में बैठा पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

चंद्रमोहन ने एक सुनसान जगह पर कार रोकी और विक्षिप्त युवक को पिछली सीट पर बैठा कर अपनी बेल्ट से उस का गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद चंद्रमोहन ने अपने कपडे़ उतार कर विदेश को दिए, जिन्हें विदेश ने पागल के पहने कपड़े उतार कर उसे चंद्रमोहन के कपड़े पहना दिए. अपना फोन व पर्स भी चंद्रमोहन ने उस की जेब में रख दिया.

चंद्रमोहन ने पहले से ही अपने लिए एक जोड़ी कपड़े गाड़ी में रख रखे थे, जो उस ने खुद पहन लिए. इस के बाद चंद्रमोहन और विदेश ने मृत पड़े विक्षिप्त युवक का शरीर उठा कर गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और कार को ड्राइव करते हुए अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने वाली जेपी ग्रीन वाली रोड पर ले गए.

पागल युवक के मृत शरीर को उन्होंने पिछली सीट से हटा कर ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया और फिर सीट बेल्ट से उसे कस दिया, ताकि वह जीवित भी हो तो कार से उतर कर भाग ना सके. तब तक आधी रात का वक्त हो चला था. चंद्रमोहन और विदेश ने प्लास्टिक की कैन में भरा पैट्रोल कार पर चारों तरफ और भीतर की सीटों के साथ विक्षिप्त युवक पर अच्छी तरह से छिड़का. इस के बाद उन्होंने कार में आग लगा दी.

चंद पलों में ही कार धूधू कर के जलने लगी. कार को धूधू जलता देख दोनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. आधी रात का वक्त था. वहां से गुजरती कुछ गाडि़यों ने जब कार जलती देखी तो रुक गए. लेकिन तब तक कार इतनी बुरी तरह जल चुकी थी कि उसे बुझाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. किसी ने फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया.

सूचना मिलने के 15-20 मिनट बाद दमकल की गाड़ी भी मौके पर पहुंच गई. कुछ देर में आग पर काबू तो पा लिया गया. लेकिन तब तक कार जल कर कोयला हो चुकी थी. दमकलकर्मियों ने देखा कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे एक व्यक्ति की भी जलने से मौत हो गई थी.

मौके से फरार होने के बाद विदेश तो अपने घर चला गया, जबकि चंद्रमोहन ने ट्रेन से बंगलुरु की राह पकड़ ली. बंगलुरु पहुंच कर चंद्रमोहन ने सब से पहले अपने सिर के बाल और मूंछ मुंडवाई. फिर अपने शातिरदिमाग का इस्तेमाल कर जोड़तोड़ से उस ने नितिन शर्मा के नाम की एक आईडी बनवा ली.

नई आईडी बनवाते समय उस ने अपना पता नलवा, हिसार, हरियाणा दर्ज कराया. उस के बाद चंद्रमोहन ने अपनी पहचान से जुड़े दूसरे नकली दस्तावेज भी तैयार करवा लिए. इतना सब होने के बाद चंद्रमोहन ने अगले 4 दिनों में इन तमाम दस्तावेजों के बल पर होंडा टू व्हीलर कंपनी में नौकरी भी पा ली.

बंगलुरु में अज्ञातवास के दौरान चंद्रमोहन सेलफोन के माध्यम से प्रीति के साथ निरंतर संपर्क में रहा. आईडी बन जाने के बाद 7 जून को चंद्रमोहन प्रीति को ले जाने के लिए दिल्ली आया.

फोन के माध्यम से योजना पहले ही बन चुकी थी. योजना के तहत 7 जून की रात 8 बजे प्रीति अपने घर से इस तरह का नाटक कर के लापता हुई ताकि सब को लगे उस का अपहरण हो गया है.

प्रीति अपने लापता होने की घटना को अपहरण का रंग देना चाहती थी, इसलिए घर से बाहर निकलते ही उस ने हलक से हल्की सी चीख भी निकाली. किस्मत ने भी उस वक्त उस का साथ दिया और बिजली गुल हो गई.

घर से कुछ दूर पर ही प्रीति को एक आटोरिक्शा मिल गया, जिसे पकड़ कर वह दिल्ली पहुंच गई, जहां तय स्थान पर वह चंद्रमोहन से मिली. चंद्रमोहन ने पहले ही नई दिल्ली से बंगलुरु जाने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस में 2 बर्थ आरक्षित करा रखी थीं.

दोनों सीधे नई दिल्ली स्टेशन जा कर ट्रेन में सवार हो गए और अगले दिन बंगलुरु पहुंच गए. बंगलुरु पहुंचने के बाद चंद्रमोहन ने नकली आईडी से 2 सिम कार्ड खरीदे. वे जिन नंबरों को इस्तेमाल करते थे, वे नंबर दोनों ने किसी को नहीं दिए थे.

रिमांड अवधि में जब पुलिस ने चंद्रमोहन से संतराम को फोन करने का कारण पूछा, तो चंद्रमोहन ने बताया कि वह पुलिस को गुमराह करना चाहता था, इसीलिए उस ने पीसीओ पर जा कर संतराम को फोन कर के कहा था कि उन की बेटी उस के पास है.

लेकिन उस वक्त चंद्रमोहन ने यह कल्पना तक नहीं की थी कि उस की यही गलती उस की गिरफ्तारी का आधार बन जाएगी. क्योंकि इसी एक फोन काल का पीछा करतेकरते पुलिस प्रीति की तलाश में बंगलुरु पहुंच गई बंगलुरु में पुलिस जब प्रीति तक पहुंची तो पुलिस के हाथ चंद्रमोहन की गरदन तक पहुंच गए.

पुलिस रिमांड में हुई पूछताछ के दौरान इस मामले के जांच अधिकारी कासना थानाप्रभारी समरजीत सिंह ने 31 अगस्त, 2014 को चंद्रमोहन की निशानदेही पर जेपी ग्रीन की दीवार से 200 मीटर की दूरी पर फेंकी गई वह प्लास्टिक की कैन भी बरामद कर ली, जिस में पैट्रोल ला कर चंद्रमोहन ने पागल व्यक्ति के ऊपर डाल कर आग लगाई थी.

पुलिस ने अदालत में बतौर गवाह पैट्रोल पंप के उस सेल्समैन को भी पेश किया, जिस से चंद्रमोहन ने कैन में पैट्रोल खरीद कर भरवाया था.

पुलिस ने इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश को भी हत्या में सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों आरोपियों को आवश्यक पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

जांच अधिकारी समरजीत सिंह ने 23 नवंबर, 2014 को एक विक्षिप्त युवक को कार में जला कर हत्या करने के आरोप में और खुद की पहचान छिपा कर दूसरे राज्य में छिपने के मुकदमे में हत्या की धारा 302 के साथ भादंसं की धारा 201, 202, 120बी, 420, 467, 468 व 471 की धारा भी जोड़ दी और आरोपपत्र अदालत में पेश कर दिया.

आरोपपत्र पर सुनवाई के दौरान ही बचावपक्ष की दलीलों के आधार पर अभियुक्ता प्रीति और विदेश के खिलाफ लगाए गए कुछ आरोपों को अदालत ने खारिज कर दिया था. बाद में मार्च, 2016 में यह वाद सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय में भेज दिया गया.

इस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने अदालत में चंद्रमोहन द्वारा कालोर की होंडा कंपनी में नौकरी पाने के लिए दी गई नकली आईडी व दूसरे दस्तावेज साक्ष्य के तौर पर पेश किए, जिस से उस के खिलाफ अपनी पहचान छिपाने के लिए जालसाजी करने और नकली दस्तावेज तैयार करने के आरोप सही पाए गए.

सरकारी वकील जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता हरीश सिसोदिया ने अभियोजन की तरफ से ठोस सबूत दिए, लेकिन अभियोजन पक्ष इस बात को साबित नहीं कर पाया कि इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश की कोई भूमिका थी. इसलिए अदालत ने उसे दोषी न पा कर बरी कर दिया.

अभियोजन की तरफ से चंद्रमोहन और प्रीति की दादरी के आर्यसमाज मंदिर में हुई शादी के प्रमाण भी अदालत में पेश किए गए. इतना ही नहीं, अभियोजन पक्ष की तरफ से ऐसे कई ठोस साक्ष्य और गवाह अदालत में पेश गए, जिस से ये साबित हो गया कि चंद्रमोहन ने एक साजिश के तहत अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए अपनी मृत्यु का झूठा नाटक रचा.

खुद को मरा साबित करने के लिए चंद्रमोहन ने एक विक्षिप्त व्यक्ति की हत्या कर उस के शव को अपनी कार में डाल कर कार समेत जला दिया. चूंकि प्रीति को चंद्रमोहन के अपराध की जानकारी थी और उस ने ये जानकारी छिपाई, इसलिए उसे 6 माह के कारावास की सजा मिली.

प्रीति जेल से जमानत मिलने के पूर्व पहले ही न्यायालय की तरफ से मिली सजा काट चुकी थी, इसलिए उसे जेल नहीं जाना पड़ा. जबकि विदेश को इस मामले में अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.

—कथा पुलिस की जांच व न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तथ्यों पर आधारित है

 

जहरीली आशिकी का जहर : जीजा से किया प्रेम विवाह

राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी.

राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी.

इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.

मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था.

विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.

जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया.

विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया.

घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.

कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे.  इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया.

सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली.

सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.

जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी.

राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था.

मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.

राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’

‘‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.

संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’

राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था.

संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही.

दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.

अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’

‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’

राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी.

संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो.

फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’

‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.

संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा.

उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी.

लेकिन राधा के दिलोदिमाग पर तो जीजा छाया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद तुलसी ने राधा का बिस्तर अलग कमरे में लगा दिया और निश्चिंत हो कर सो गई. लेकिन राधा और संजय की आंखों में नींद नहीं थी.

देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.

जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’

‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की.

आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली.

अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’

उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं.

तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया.

तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.

राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी.

इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.

संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए.

सतही तौर पर सब ठीक था, पर अंदर ही अंदर लावा उबल रहा था. राधा को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका था. ससुराल वालों से भी अपनेपन की कोई उम्मीद नहीं थी. उसे यह अपराधबोध भी परेशान कर रहा था कि उस ने अपनी ही बहन के दांपत्य में सेंध लगा दी है.

परिवार की बड़ी बहू तो तुलसी ही थी. राधा को जबतब तुलसी के ताने भी सहने पड़ते थे. जिंदगी में सुखचैन नहीं था. आगे देखती तो भी अंधेरा ही नजर आता था. एक संजय का प्यार ही था, जिस के सहारे वह सौतन की भूमिका निभा रही थी.

23 मई, 2016 को संजय को उस के किसी दुश्मन ने गोली मार दी. जख्मी हालत में उसे अलीगढ़ मैडिकल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर थी. राधा डर गई कि अगर संजय मर गया तो वह कहां जाएगी.

संजय की देखरेख कभी तुलसी करती तो कभी राधा. तभी तुलसी ने राधा से कहा, ‘‘संजय की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है, तुम जा कर बच्चों को देखो, मैं यहां संभालती हूं.’’

जुलाई महीने में संजय की हालत कुछ सुधरी तो घर वाले उसे कासगंज वाले घर में ले आए. तुलसी अपने पति के साथ थी, जबकि राधा बच्चों के साथ पति से दूर थी.

अस्पताल में संजय ने एक बार राधा से कहा, ‘‘मेरी हालत ठीक नहीं है. अगर तुम किसी और से शादी करना चाहो तो कर लो.’’

सुन कर राधा सन्न रह गई, ‘‘यह क्या कह रहे हो संजय, मैं सिर्फ तुम्हारी हूं. तुम्हारे लिए कितना कुछ सह रही हूं. मेरे जैसी औरत से कौन शादी करेगा और कौन मुझे मानसम्मान देगा.’’

उस दिन के बाद से राधा डिप्रेशन में रहने लगी. पति और बच्चा दोनों ही उस की ख्वाहिश थीं. अगर पूरी नहीं होती तो वह कुछ भी नहीं थी. नितिन और शिवम इस बात से अनभिज्ञ थे कि मौसी क्यों परेशान है और उस की परेशानी कौन सा तूफान लाने वाली थी.

19 अगस्त, 2016 को बच्चे स्कूल से आए तो राधा ने उन्हें खाना दिया. फिर दोनों पढ़ने बैठ गए. राधा ने रात के खाने की तैयारी शुरू कर दी. रात का खाना खा कर सब टीवी देखने बैठ गए. किसी को पता ही नहीं चला कि मौत ने कब दस्तक दे दी थी. कुछ देर बाद  राधा ने कहा, ‘‘तुम लोग सो जाओ,सुबह उठ कर स्कूल भी जाना है.’’

कुछ देर बाद बच्चे सो गए. राधा ने संजय को फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही. फोन नहीं उठा. यह सोच कर राधा का गुस्सा बढ़ने लगा कि क्या मैं सिर्फ सौतन के बच्चों की नौकरानी हूं. मेरे बच्चे नहीं होंगे तो क्या मुझे घर की बहू का सम्मान नहीं मिलेगा. संजय ने तो परिवार में सम्मान दिलाने का वादा किया था, पर वह मर गया तो?

ऐसे ही विचार उसे आहत कर रहे थे, गुस्सा दिला रहे थे. उस ने देखा शिवम निश्चिंत हो कर सो रहा था. यंत्रचालित से उस के हाथ शिवम की गरदन तक पहुंच गए और जरा सी देर में 4 वर्ष का के शिवम का सिर एक ओर लुढ़क गया. बच्चे की मौत से राधा घबरा गई.

उस ने सोचा सुबह होते ही शिवम की मौत की खबर नितिन के जरिए सब को मिल जाएगी.

इस के बाद तो पुलिस, थाना, कचहरी और जेल. संजय भी उसे माफ नहीं करेगा, ऐसे में क्या करे? उसे लगा, शिवम के भाई नितिन को भी मार देने में ही भलाई है. उस ने नितिन के गले पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. नितिन कुछ देर छटपटाया, फिर बेहोश हो गया.

राधा ने जल्दी से एक बैग में कपड़े, कुछ गहने, पैसे और सर्टिफिकेट भरे और कमरे में ताला लगा कर बस अड्डे पहुंच गई, जहां मथुरा वाली बस खड़ी थी. वह बस में बैठ गई. मथुरा पहुंच कर वह स्टेशन पर गई, वहां जो भी ट्रेन खड़ी मिली, वह उसी में सवार हो गई.

इधर सुबह जब नितिन को होश आया तो उस ने खिड़की में से शोर मचाया. जरा सी देर में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने देखा कमरे के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था.

ताला तोड़ कर जब लोग अंदर पहुंचे तो शिवम मरा पड़ा था. नितिन ने बताया, ‘‘इसे राधा मौसी ने मारा है और मुझे भी जान से मारने की कोशिश की, लेकिन मैं बेहोश हो गया था.’’

लोगों ने कोतवाली में फोन किया, कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर कुमार पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. पुलिस जांच में जुट गई. शिवम को अस्पताल भेजा गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. नितिन ठीक था, उस का मैडिकल परीक्षण नहीं किया गया. बच्चे के पोस्टमार्टम में मौत का कारण दम घुटना बताया गया.

इस मामले की सूचना कासगंज में विजय पाल को दे दी गई थी. विजय पाल ने 28 जुलाई, 2016 को थाना एटा में राधा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

राधा के इस कृत्य से सभी हैरान थे. राधा कहां गई, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को राधा की लोकेशन मथुरा में मिली थी लेकिन आगे की कोई जानकारी नहीं थी.

23 अगस्त, 2016 को लुधियाना के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी ने फोन कर के एटा पुलिस को बताया कि लुधियाना में एक लावारिस महिला मिली है जो खुद को कासगंज की बता रही है.

यह खबर मिलते ही पुलिस राधा की गिरफ्तारी के लिए रवाना हो गई. लुधियाना पहुंच कर एटा पुलिस ने राधा को हिरासत में ले लिया और एटा लौट आई. एटा में उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में राधा से पूछताछ की गई.

उस ने बताया कि वह सौतन के तानों से परेशान थी, जिस के चलते उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. अकेले हो जाने के तनाव में उस से यह गलती हो गई. राधा ने यह बात पुलिस के सामने दिए गए बयान में तो कही. लेकिन बाद में अदालत में अपना गुनाह स्वीकार नहीं किया.

केस संख्या 572/2016 के अंतर्गत दायर इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट द्वारा 5 दिसंबर, 2016 को भादंवि की धारा 307, 302 का चार्ज लगा कर केस सत्र न्यायालय के सुपुर्द कर दिया गया.

घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, राधा ने अपने बचाव में कहा कि उस के खिलाफ रंजिशन मुकदमा चलाया जा रहा है, वह निर्दोष है. उस ने किसी को नहीं मारा. तुलसी ने गवाही में कहा कि उस का राधा के साथ कोई विवाद नहीं है. उसे नहीं मालूम कि शिवम को किस ने मारा.

घटना के गवाह मुकेश ने कहा कि उसे जानकारी नहीं है कि राधा ने किस वजह से शिवम की हत्या कर दी और नितिन को भी मार डालने की कोशिश की. मुकेश विजय पाल का मंझला बेटा था.

संजय ने अपनी गवाही में दूसरी पत्नी राधा को बचाने का भरसक प्रयास करते हुए कहा कि उस ने अपनी पहली पत्नी तुलसी की सहमति से राधा से शादी की थी.

राधा बच्चों से प्यार करती थी. जब दुश्मनी के चलते किसी ने उसे गोली मार दी तो वह अस्पताल में था. तुलसी भी उस के साथ अलीगढ़ के अस्पताल में थी.

घटना वाले दिन राधा घर पर नहीं थी, जिस से सब को लगा कि राधा ही शिवम की हत्या कर के कहीं भाग गई होगी. इसी आधार पर मेरे पिता ने उस के खिलाफ कोतवाली एटा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, पर सच्चाई यह है कि घटना वाले दिन रात में 2 बदमाश घर में घुस आए, जिन्होंने शिवम को मार डाला और नितिन को भी मरा समझ राधा को अपने साथ ले गए. बाद में उन्होंने राधा को कुछ न बताने की धमकी दे कर छोड़ दिया था.

राधा कोतवाली एटा पहुंची और पुलिस  को घटना के बारे में बताना चाहा, लेकिन पुलिस ने उस की बात नहीं सुनी.

राधा के अनुसार बदमाशों से डर कर शिवम रोने लगा और उन्होंने शिवम की हत्या कर दी और जेवर लूट लिए. लेकिन अदालत ने कहा कि राधा ने अदालत को यह बात कभी नहीं बताई.

पुलिस के अनुसार राधा ने कभी भी अपने साथ लूट और बदमाशों द्वारा शिवम की हत्या की कभी कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई, न ही अपने 164 के बयानों में इस बात का जिक्र किया.

8 वर्षीय नितिन ने अपनी गवाही में कहा, ‘‘मां ने बताया कि मुझे अपनी गवाही में कहना है कि राधा ने मेरा गला दबाया था. लेकिन उस ने राधा द्वारा शिवम की हत्या किए जाने के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि वह राधा के साथ ही सो रहा था.’’

सत्र न्यायाधीश रेणु अग्रवाल ने 21 जनवरी, 2019 के अपने फैसले में लिखा कि नितिन की हत्या की कोशिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले और न ही नितिन का कोई चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. अत: आईपीसी की धारा 307 से उसे बरी किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य राधा द्वारा शिवम की हत्या करना बताते हैं. अत: अभियुक्ता राधा जो जेल में है, को आईपीसी की धारा 302 का दोषी माना जाता है.

अभियुक्त राधा को भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में अभियुक्ता को 2 माह की साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

अर्थदंड की वसूली होने पर 10 हजार रुपए मृतक शिवम की मां तुलसी देवी को देय होंगे. अभियुक्ता की सजा का वारंट बना कर जिला कारागार एटा में अविलंब भेजा जाए. दोषी को फैसले की प्रति नि:शुल्क दी जाए.

आजीवन कारावास यानी बाकी का जीवन जेल में गुजरेगा, फैसला सुनते ही राधा का चेहरा पीला पड़ गया. संजय की मोहब्बत और उस के साथ जीने, उस के बच्चों की मां बनने की उम्मीद राधा के लिए सिर्फ एक मृगतृष्णा बन गई थी.

जीनेमरने की स्थिति में राधा ने इधरउधर देखा, वहां आसपास कोई नहीं था. संजय उस से कहता था कि वह बेदाग छूट कर बाहर आएगी और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देगा.

बेजान सी राधा ने जेल में अपनी बैरक में पहुंचने के बाद इधरउधर देखा. चलचित्र की तरह सारी घटनाएं उस की आंखों के सामने गुजर गईं. कुछ ही देर में अचानक महिला बैरक में हंगामा मच गया. किसी ने जेलर को बताया कि राधा उल्टियां कर रही है, उस की तबीयत बिगड़ गई है.

जेल के अधिकारी महिला बैरक में पहुंच गए. उन के हाथपैर फूल गए. राधा की हालत बता रही थी कि उस ने जहर खाया है, पर उसे जहर किस ने दिया, कहां से आया, यह बड़ा सवाल था. राधा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. राधा का मामला काफी संदिग्ध था. उस का विसरा सुरक्षित कर लिया गया और जांच के लिए अनुसंधान शाखा में भेज दिया गया.

राधा के ससुराल और मायके में उस की मौत की खबर दी गई, लेकिन दोनों परिवारों ने शव लेने से इनकार कर दिया. राधा की विषैली आशिकी ने उस के जीवन में ही विष घोल दिया. राधा के शव का सरकारी खर्च पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.