माहौल : सुलझ गई आत्महत्या की गुत्थी

सुमन ने फांसी लगा ली, यह सुन कर मैं अवाक रह गया. अभी उस की उम्र ही क्या थी, महज 20 साल. यह उम्र तो पढ़नेलिखने और सुनहरे भविष्य के सपने बुनने की होती है. ऐसी कौन सी समस्या आ गई जिस के चलते सुमन ने इतना कठोर फैसला ले लिया. घर के सभी सदस्य जहां इस को ले कर तरहतरह की अटकलें लगाने लगे, वहीं मैं कुछ पल के लिए अतीत के पन्नों में उलझ गया. सुमन मेरी चचेरी बहन थी.

सुमन के पिता यानी मेरे चाचा कलराज कचहरी में पेशकार थे. जाहिर है रुपएपैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी. ललिता चाची, चाचा की दूसरी पत्नी थीं. उन की पहली पत्नी उच्चकुलीन थीं लेकिन ललिता चाची अतिनिम्न परिवार से आई थीं. एकदम अनपढ़, गंवार. दिनभर महल्ले की मजदूर छाप औरतों के साथ मजमा लगा कर गपें हांकती रहती थीं. उन का रहनसहन भी उसी स्तर का था. बच्चे भी उन्हीं पर गए थे.

मां के संस्कारों का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है. कहते हैं न कि पिता लाख व्यभिचारी, लंपट हो लेकिन अगर मां के संस्कार अच्छे हों तो बच्चे लायक बन जाते हैं. चाचा और चाची बच्चों से बेखबर सिर्फ रुपए कमाने में लगे रहते. चाचा शाम को कचहरी से घर आते तो उन के हाथ में विदेशी शराब की बोतल होती. आते ही घर पर मुरगा व शराब का दौर शुरू हो जाता. एक आदमी रखा था जो भोजन पकाने का काम करता था. खापी कर वे बेसुध बिस्तर पर पड़ जाते.

ललिता चाची को उन की हरकतों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि चाचा पैसों से सब का मुंह बंद रखते थे. अगले दिन फिर वही चर्चा. हालत यह थी कि दिन चाची और बच्चों का, तो शाम चाचा की. उन को 6 संतानों में 3 बेटे व 3 बेटियों थीं, जिन में सुमन बड़ी थी.

फैजाबाद में मेरे एक चाचा विश्वभान का भी घर था. उन के 2 टीनएजर लड़के दीपक और संदीप थे, जो अकसर ललिता चाची के घर पर ही जमे रहते. वहां चाची की संतानें दीपक व संदीप और कुछ महल्ले के लड़के आ जाते, जो दिनभर खूब मस्ती करते.

मेरे पिता की सरकारी नौकरी थी, संयोग से 3 साल फैजाबाद में हमें भी रहने का मौका मिला. सो कभीकभार मैं भी चाचा के घर चला जाता. हालांकि इस के लिए सख्त निर्देश था पापा का कि कोई भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर वहां नहीं जाएगा, लेकिन मैं चोरीछिपे वहां चला जाता.

निरंकुश जिंदगी किसे अच्छी नहीं लगती? मेरा भी यही हाल था. वहां न कोई रोकटोक, न ही पढ़ाईलिखाई की चर्चा. बस, दिन भर ताश, लूडो, कैरम या फिर पतंगबाजी करना. यह सिलसिला कई साल चला. फिर एकाएक क्या हुआ जो सुमन ने खुदकुशी कर ली? मैं तो खैर पापा के तबादले के कारण लखनऊ आ गया. इसलिए कुछ अनुमान लगाना मेरे लिए संभव नहीं था.

मैं पापा के साथ फैजाबाद आया. मेरा मन उदास था. मुझे सुमन से ऐसी अपेक्षा नहीं थी. वह एक चंचल और हंसमुख लड़की थी. उस का यों चले जाना मुझे अखर गया. सुमन एक ऐसा अनबुझा सवाल छोड़ गई, जो मेरे मन को बेचैन किए हुए था कि आखिर ऐसी कौन सी विपदा आ गई थी, जिस के कारण सुमन ने इतना बड़ा फैसला ले लिया.

जान देना कोई आसान काम नहीं होता? सुमन का चेहरा देखना मुझे नसीब नहीं हुआ, सिर्फ लाश को कफन में लिपटा देखा. मेरी आंखें भर आईं. शवयात्रा में मैं भी पापा के साथ गया. लाश श्मशान घाट पर जलाने के लिए रखी गई. तभी विश्वभान चाचा आए. उन्हें देखते ही कलराज चाचा आपे से बाहर हो गए, ‘‘खबरदार जो दोबारा यहां आने की हिम्मत की. हमारातुम्हारा रिश्ता खत्म.’’

कुछ लोगों ने चाचा को संभाला वरना लगा जैसे वे विश्वभान चाचा को खा जाएंगे.

ऐसा उन्होंने क्यों किया? वहां उपस्थित लोगों को समझ नहीं आया. हो सकता है पट्टेदारी का झगड़ा हो? जमीनजायदाद को ले कर भाईभतीजों में खुन्नस आम बात है. मगर ऐसे दुख के वक्त लोग गुस्सा भूल जाते हैं.

यहां भी चाचा ने गुस्सा निकाला तो मुझे उन की हरकतें नागवार गुजरीं. कम से कम इस वक्त तो वे अपनी जबान बंद रखते. गम के मौके पर विश्वभान चाचा खानदान का खयाल कर के मातमपुरसी के लिए आए थे.

पापा को भी कलराज चाचा की हरकतें अनुचित लगीं. चूंकि वे उम्र में बड़े थे इसलिए पापा भी खुल कर कुछ कह न सके. विश्वभान चाचा उलटेपांव लौट गए. पापा ने उन्हें रोकना चाहा मगर वे रुके नहीं.

दाहसंस्कार के बाद घर में जब कुछ शांति हुई तो पापा ने सुमन का जिक्र किया. सुन कर कलराज चाचा कुछ देर के लिए कहीं खो गए. जब बाहर निकले तो उन की आंखों के दोनों कोर भीगे हुए थे. बेटी का गम हर बाप को होता है. एकाएक वे उबरे तो बमक पड़े, ‘‘सब इस कलमुंही का दोष है,’’ चाची की तरफ इशारा करते हुए बोले. यह सुन कर चाची का सुबकना और तेज हो गया.

‘‘इसे कुछ नहीं आता. न घर संभाल सकती है न ही बच्चे,’’ कलराज चाचा ने कहा. फिर किसी तरह पापा ने चाचा को शांत किया. मैं सोचने लगा, ’चाचा को घर और बच्चों की कब से इतनी चिंता होने लगी. अगर इतना ही था तो शुरू से ही नकेल कसी होती. जरूर कोई और बात है जो चाचा छिपा रहे थे, उन्होंने सफाई दी, ‘‘पढ़ाई के लिए डांटा था. अब क्या बाप हो कर इतना भी हक नहीं?’’

क्या इसी से नाराज हो कर सुमन ने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया? मेरा मन नहीं मान रहा था. चाचा ने बच्चों की पढ़ाई की कभी फिक्र नहीं की, क्योंकि उन के घर में पढ़ाई का माहौल ही नहीं था. स्कूल जाना सिर्फ नाम का था.

बहरहाल, इस घटना के 10 साल गुजर गए. इस बीच मैं ने मैडिकल की पढ़ाई पूरी की और संयोग से फैजाबाद के सरकारी अस्पताल में बतौर मैडिकल औफिसर नियुक्त हुआ. वहीं मेरी मुलाकात डाक्टर नलिनी से हुई. उन का नर्सिंगहोम था. उन्हें देखते ही मैं पहचान गया. एक बार ललिता चाची के साथ उन के यहां गया था.

चाची की तबीयत ठीक नहीं थी. एक तरह से वे ललिता चाची की फैमिली डाक्टर थीं. चाची ने ही बताया कि तुम्हारे चाचा ने इन के कचहरी से जुड़े कई मामले निबटाने में मदद की थी. तभी से परिचय हुआ. मैं ने उन्हें अपना परिचय दिया. भले ही उन्हें मेरा चेहरा याद न आया हो मगर जब चाचा और चाची का जिक्र किया तो बोलीं, ‘‘कहीं तुम सुमन की मां की तो बात नहीं कर रहे?’’

‘‘हांहां, उन्हीं की बात कर रहा हूं,’’ मैं खुश हो कर बोला.

‘‘उन के साथ बहुत बुरा हुआ,’’ उन का चेहरा लटक गया.

‘‘कहीं आप सुमन की तो बात नहीं कर रहीं?’’

‘‘हां, उसी की बात कर रही हूं. सुमन को ले कर दोनों मेरे पास आए थे,’’

डा. नलिनी को कुछ नहीं भूला था. नहीं भूला तो निश्चय ही कुछ खास होगा?

‘‘क्यों आए थे?’’ जैसे ही मैं ने पूछा तो उन्होंने सजग हो कर बातों का रुख दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘‘मैडम, बताइए आप के पास वे सुमन को क्यों ले कर आए,’’ मैं ने मनुहार की.

‘‘आप से उन का रिश्ता क्या है?’’

‘‘वे मेरे चाचाचाची हैं. सुमन मेरी चचेरी बहन थी,’’ कुछ सोच कर डा. नलिनी बोलीं, ‘‘आप उन के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘यही कि सुमन ने पापा से डांट खा कर खुदकुशी कर ली.’’

‘‘खबर तो मुझे भी अखबार से यही लगी,’’ उन्होंने उसांस ली. कुछ क्षण की चुप्पी के बाद बोलीं, ‘‘कुछ अच्छा नहीं हुआ.’’

‘‘क्या अच्छा नहीं हुआ?’’ मेरी उत्कंठा बढ़ती गई.

‘‘अब छोडि़ए भी गड़े मुरदे उखाड़ने से क्या फायदा?’’ उन्होंने टाला.

‘‘मैडम, बात तो सही है. फिर भी मेरे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर सुमन ने खुदकुशी क्यों की?’’

‘‘जान कर क्या करोगे?’’

‘‘मैं उन हालातों को जानना चाहूंगा जिन की वजह से सुमन ने खुदकुशी की. मैं कोई खुफिया विभाग का अधिकारी नहीं फिर भी रिश्तों की गहराई के कारण मेरा मन हमेशा सुमन को ले कर उद्विग्न रहा.’’

‘‘आप को क्या बताया गया है?’’

‘‘यही कि पढ़ाई के लिए चाचा ने डांटा इसलिए उस ने खुदकुशी कर ली.’’

इस कथन पर मैं ने देखा कि डा. नलिनी के अधरों पर एक कुटिल मुसकान तैर गई. अब तो मेरा विश्वास पक्का हो गया कि हो न हो बात कुछ और है जिसे डा. नलिनी के अलावा कोई नहीं जानता. मैं उन का मुंह जोहता रहा कि अब वे राज से परदा हटाएंगी. मेरा प्रयास रंग लाया.

वे कहने लगीं, ‘‘मेरा पेशा मुझे इस की इजाजत नहीं देता मगर सुमन आप की बहन थी इसलिए आप की जिज्ञासा शांत करने के लिए बता रही हूं. आप को मुझे भरोसा देना होगा कि यह बात यहीं तक सीमित रहेगी.’’

‘‘विश्वास रखिए मैडम, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से आप को रुसवा होना पड़े.’’

‘‘सुमन गर्भवती थी.’’  सुन कर सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैं सन्न रह गया.

‘‘सुमन के गार्जियन गर्भ गिरवाने के लिए मेरे पास आए थे. गर्भ 5 माह का था. इसलिए मैं ने कोई रिस्क नहीं लिया.’’

मैं भरे मन से वापस आ गया. यह मेरे लिए एक आघात से कम नहीं था. 20 वर्षीय सुमन गर्भवती हो गई? कितनी लज्जा की बात थी मेरे लिए. जो भी हो वह मेरी बहन थी. क्या बीती होगी चाचाचाची पर, जब उन्हें पता चला होगा कि सुमन पेट से है? चाचा ने पहले चाची को डांटा होगा फिर सुमन को. बच निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो सुमन ने खुदकुशी कर ली.

मेरे सवाल का जवाब अब भी अधूरा रहा. मैं ने सोचा डा. नलिनी से खुदकुशी का कारण पता चल जाएगा तो मेरी जिज्ञासा खत्म हो जाएगी मगर नहीं, यहां तो एक पेंच और जुड़ गया. किस ने सुमन को गर्भवती बनाया? मैं ने दिमाग दौड़ाना शुरू किया. चाचा ने श्मशान घाट पर विश्वभान चाचा को देख कर क्यों आपा खोया? उन्होंने तो मर्यादा की सारी सीमा तोड़ डाली थी. वे उन्हें मारने तक दौड़ पड़े थे. मेरी विचार प्रक्रिया आगे बढ़ी. उस रोज वहां विश्वभान चाचा के परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखा. यहां तक कि दिन भर डेरा डालने वाले उन के दोनों बेटे दीपक और संदीप भी नहीं दिखे. क्या रिश्तों में सेंध लगाने वाले विश्वभान चाचा के दोनों लड़कों में से कोई एक था? मेरी जिज्ञासा का समाधान मिल चुका था.

पहचान : मां की मौत के बाद क्या था अजीम का हाल – भाग 3

नीरद की मां का इस तरह बोल कर निकल जाना अम्मी को काफी मायूस कर गया. अब चोरों की तरह अपनी ही नजरों से खुद को छिपाना भारी हो गया था. हमेशा बस यही डर कि किसी को पता न लग जाए कि वे सरकारी लिस्ट के बाहर के लोग हैं. जाने कितनी पुश्तों से इस माटी में रचेबसे अब अचानक खुद को घुसपैठिए सा महसूस करने लगे हैं. जैसे धरती पर बोझ. जैसे चोरी की जिंदगी छिपाए नहीं छिप रही.

भरोसा उन्हें इस अनजान धरती पर भले ही नीरद का था, लेकिन काम के सिलसिले में वह भी तो अकसर शहर से बाहर ही रहता. इस घटना को अभी 4-5 दिन बीते होंगे. नीरद अभी भी शहर से बाहर ही था और दूसरे दिन आने वाला था. राबिया ने शाम को अपनी रसोई की खिड़की से एक साया सा देखा. वह साया एक पल को खिड़की के सामने रुक कर तुरंत हट गया.

उस रात थोड़ा डर कर भी वह शांत रह गई, किसी से कुछ नहीं कहा. नीरद दूसरे दिन घर वापस आया और उन से मिला भी, लेकिन बात आईगईर् हो गई. नीरद 3 दिनों बाद फिर शहर से बाहर गया. शाम को रसोई की खिड़की के बाहर राबिया ने फिर एक आकृति देखी. एक पल रुक कर वह आकृति सामने से हट गई. राबिया दौड़ कर बाहर गई. कोई नहीं था. राबिया पसोपेश में थी. अम्मी खामख्वाह परेशान हो जाएंगी. यह सोच कर वह बात को दबा गई.

हां, राबिया को इन सब से छुट्टी नहीं मिली. खिड़की, एक आकृति, इन सब का डर और फिर बाहर झपटना और कुछ न देख पाना. राबिया मानसिक रूप से लगातार टूट रही थी.

अगले हफ्ते नीरद वापस आया तो उसे सारी बातें बताने की सोच कर भी वह डर कर पहले चुप रह गई.

दरअसल, राबिया का डर लाजिमी था. एक तो नीरद ने उन दोनों के आपसी रिश्ते पर अब तक बात नहीं की थी, दूसरे, अम्मी और अजीम की जिंदगी राबिया की किसी गलती की वजह से अधर में न लटक जाए. दरअसल, राबिया तो अब तक नीरद की चुप्पी देख खुद के एहसासों को भी खत्म कर लेने का जिगर पैदा कर चुकी थी.

खिड़की पर रोजरोज किसी का दिखना कोई छोड़ा जाने वाला मसला नहीं लगा राबिया को और उस ने हिम्मत कर ही ली कि नीरद को सारी बातें बताई जाएं.

नीरद समझदार था. उसे अंदेशा हुआ कि हो न हो कोई राबिया के लिए ही आता हो. गिद्दों की नजर पड़ने में देर ही कहां लगती है. एक परिवार को वह खुद के भरोसे उन की जमीन से उखाड़ लाया है. क्या वह राबिया के लिए कोई जिम्मेदारी महसूस करता है? क्या यह सिर्फ जिम्मेदारी ही है?

अजीम बाहर खेल रहा था, और अम्मी टेलर की दुकान से अभी तक नहीं लौटी थीं. नीरद को यह सही वक्त लगा. उस ने राबिया से कहा, ‘‘राबिया, मैं तुम से एक बात पूछना चाहता हूं.’’

राबिया की धड़कनें धनसिरी के उफानों से भी तेज चलने लगीं. आशानिराशा के बीच डोलती उसकी आंखों की पुतलियां भरसक स्थिर होने की कोशिश में लगीं नीरद की आंखों से जा टकराईं.

नीरद ने कहा, ‘‘राबिया, तुम्हारा नाम मुझे लंबा लगता है, मैं तुम्हें ‘राबी’ कह कर बुलाना चाहता हूं. इजाजत है?’’

‘‘है, है, सबकुछ के लिए इजाजत है.’’

राबिया का दिल खुशी के मारे मन ही मन बल्लियों उछल पड़ा. मगर शर्मीली राबिया बर्फ की मूरत बनी एक ही जगह शांत खड़ी रही और जमीन की ओर देखती स्वीकृति में बस सिर ही हिला सकी.

नीरद ने धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हारी पसंद में कोई लड़का है जिस से तुम शादी कर सको? मुझे बता दो, यहां मैं ही तुम सब का अपना हूं?’’

‘इस की बातें किसी पराए की तरह चुभती हैं. कभी इस ने मेरे मन को टटोलने की कोशिश नहीं की. जबकि मैं न जाने इसे कब से अपना सबकुछ…’ राबिया आक्रोश पर काबू नहीं रख सकी और नीरद के सामने अपनेआप को जैसे पूरा खोल कर रख दिया अचानक, ‘‘चूल्हे में जाए

तुम्हारा अपनापन. आठों पहर दिल में कुढ़ती हूं, आंखों का पानी अब तेजाब बन गया है. अब सब्र नहीं मुझ में.’’

नीरद नजदीक आ कर उस की दोनों बांहें पकड़ उस की आंखों की गहरी झील में उतरता रहा. कितनी सीपियां यहां मोती छिपाए पड़ी हैं. वह कितना बेवकूफ था जो झिझकता ही रह गया.

राबिया प्रेम समर्पण और लज्जा से थरथरा उठी. धीरेधीरे वह नीरद के बलिष्ठ बाजुओं के घेरे में खुद को समर्पित कर उस के सीने से जा लगी.

नीरद ने उस पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए पूछा, ‘‘शादी करोगी मुझ से?’’

‘‘पर कैसे? तुम कर पाओगे? मेरा तो कोई नहीं, लेकिन तुम्हारा परिवार और समाज?’’

‘‘तुम प्यार करती हो न मुझ से?’’

‘‘क्या अब और भी कुछ कहना पड़ेगा मुझे?’’

‘‘फिर तुम मेरी हो चुकी, राबी. कोईर् इस सच को अब झुठला नहीं सकता.’’

नीरद के मन की हूर अब नीरद के लिए सच बन कर जमीन पर उतर चुकी थी. लेकिन इस सच को परिवार और समाज की जड़बुद्धि को कुबूल करवाना कोई हंसीखेल नहीं था.

प्यासी दुल्हन : प्रेमी संग रची साजिश – भाग 3

चचेरे देवर गोपाल से हो गए संबंध

कुछ समय में ही गोपाल भूसाघर के पास जा पहुंचा था. रंजना के मना करने के बावजूद उसे आया देख चुपचाप दरवाजे की कुंडी पर लगा ताला खोल दिया. इधरउधर नजर घुमा कर देखा और फिर दूर खड़े गोपाल को देखने लगी. गोपाल उस के देखने का मतलब समझ गया और भूसा घर में चला गया. भीतर कमरे में केवल छोटे से रोशनदान से रोशनी आ रही थी.

भूसा चारों तरफ फैला हुआ था. गोपाल बिना कुछ कहे पास रखे भूसा समेटने वाले डंडे से बिखरे भूसे को सहेजने लगा. इस बीच रंजना भूसा भरा एक बोरा सिर पर उठाए हुए कमरे में ले आई. बोरे को जमीन पर पटकने से पहले ही गोपाल ने हाथ लगा कर उतार दिया.

ऐसा करते हुए भूसा भरभरा कर गोपाल के सिर और कपड़े पर गिर गया. रंजना तुरंत उस के सिर और कपड़े पर गिरे भूसे को हाथों से झाड़ने लगी. उस के चेहरे को अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछ दिया.

गोपाल इस लाड़प्यार को पा कर हतप्रभ था. कुछ भी कहे बगैर कमरे के बिखरे भूसे को सहेजने लगा. रंजना उसे ऐसा करते देखती रही.

इसी बीच एक छोटा बच्चा कमरे में घुस आया. वह बोलने लगा, ‘‘चाची…चाची! बाहर किसी की गाय आप का चारा खा रही है.’’

लड़के को अचानक कमरे में आया देख रंजना चौंक गई. कभी उसे तो कभी गोपाल को देखने लगी. गोपाल बोल पड़ा, ‘‘मेरी ही गाय है, अभी उसे ले जाता हूं.’’

गोपाल के जाने के बाद रंजना लड़के से बोली, ‘‘देख चाचा को गोपाल के बारे में मत बताना कि वह यहां आया था… मैं तुझे मिठाई दूंगी.’’

‘‘अच्छा चाची, मैं यह नहीं बताउंगा कि गोपाल की गाय आप का चारा खा गई है.’’ जवाब में लड़का बोल पड़ा.

उस रोज की बात आईगई हो गई. शाम को रामसुशील घर आया और सीधा भूसाघर गया. वहां एक कोने में जमा भूसे के ढेर को देख कर खुश हो गया. रंजना की तारीफ में बोला, ‘‘रोज थोड़ाथोड़ा कर काम निपटा लो, तब एक बार इतना बोझ नहीं रहता है.’’

रंजना भी अपनी तारीफ सुन कर खुश हो गई. वह कुछ बोलने वाली ही थी, इस से पहले ही रामसुशील बोल पड़ा, ‘‘अगर तुम थकी न हो तो आज रात को कुछ मीठा पका लो.’’

‘‘हां, मैं भी सोच रही थी. दूध कल

का भी बचा है. कहो तो खीर और दालपूड़ी बना लूं.’’

‘‘अरे, तुम ने तो मेरे मन की बात कह दी. कुछ ज्यादा पकाना. एक कटोरा खीर और 4-5 दालपूड़ी उस गोपू को भी दे देना.’’

‘‘कौन उस गोपाल को?’’ रंजना के दिमाग में सुबह से ही गोपाल घूम रहा था, जो जाते वक्त बोल गया था कि कोई जरूरत हो तो गोपू पुकार लेना. कोई शक नहीं करेगा.

‘‘अरे उसे क्यों देना वह तो बदमाश है, मेरे हर काम में टांग अड़ाता रहता है. वह छोटा लड़का है न, बगल में रहता है.’’

‘‘अच्छा उसे! उसे तो नहीं भी कहोगे तब भी दूंगी. घर के आसपास खेलता रहता है. और क्या मजाल है कि उस के रहते कोई कुत्ताबिल्ली घर में घुस जाए.’’ गहरी सांस लेती हुई रंजना बोली और रसोई के काम में लग गई.

रामसुशील और रंजना के दिन हंसीखुशी में बीतने लगे थे. उन की खुशी को ग्रहण तब लग गया जब एक दिन गांव की एक बुढि़या ने रामसुशील को अपने पास बिठा लिया और हालचाल पूछने के बहाने रंजना की ढेर सारी शिकायतें कर डालीं.

उन शिकायतों में एक शिकायत गोपाल को ले कर भी थी. उस ने बताया कि उस के पीछे में गोपाल और रंजना का मिलनाजुलना होता है. यह गलत बात है. गांव के दूसरे लोग भी उन के बारे में कानाफूसी करने लगे हैं. ये बातें रामसुशील के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह पड़ीं. उस रोज तो वह चुप रहा. रंजना पर इस की जरा भी प्रतिक्रिया नहीं की.

लेकिन वह उस पर नजर रखने लगा. जल्द ही उसे भी सच का पता चल गया. एक दिन उस ने अपनी आंखों के सामने गोपाल को रंजना से बातें करते देख लिया. इस पर रंजना को डांट भी लगाई. डांट खा कर रंजना बिफर गई, लेकिन उसे यह मालूम हो गया कि उस का भेद पति को मालूम हो चुका है.

छिपछिप कर होने लगीं मुलाकातें

असल में रंजना और गोपाल के मिलने का सिलसिला लगातार चल पड़ा था. रंजना उस के बांकेपन पर फिदा हो गई थी. जबकि गोपाल रंजना की भरी जवानी पर मर मिटा था. जैसे ही रामसुशील खेती के काम से शहर जाता था, गोपाल उस के घर आ धमकता था. यहां तक कि खेत के पास बने छोटे से कमरे में वे अकसर मिला करते थे.

उन का छिपछिप कर मिलना ज्यादा दिनों तक लोगों की नजरों से नहीं बचा. एक दिन गांव की कुछ औरतों को इस की भनक लग गई. यहां तक कि गोपाल के पिता और दूसरे चाचा को भी इस की जानकारी मिल गई कि उन के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा है. इस कारण उन्हें रामसुशील को बदनाम करने का एक कारण भी मिल गया.

रामसुशील जब भी रंजना पर गुस्सा होता, तब उसे ताना भी दे देता. उस के साथ छोटीछोटी बातों पर मारपीट करने लगा, जिस से रंजना तिलमिला जाती थी.

एक दिन रंजना ने गोपाल से बोल कर इस समस्या का समाधान निकालने का दबाव बनाया. रंजना के कहने पर गोपाल ने रामसुशील को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

उस के द्वारा रची गई साजिश में मृतक के भाई गुलाब पाल, अंजनी पाल और रामपति पाल के बेटे पंकज और छोटू भी शामिल हो गए.

उन्हें रामसुशील को ठिकाने लगाने में दोहरा फायदा नजर आ रहा था. गोपाल को एक फायदा जहां रंजना का था, वहीं अन्य को उस की खेती की जमीन पर आसानी से कब्जा मिल जाने का था.

मई 2021 का महीना था. योजना के मुताबिक रंजना ने घर में ही समोसा बनाने की तैयारी की. इस बारे में उस ने पति को बताया कि वह शाम को जल्द घर आ जाएं, वह घर में ही समोसा चाट बनाएगी. अचार का मसाला और दही घर में ही है. रामसुशील खुश हो गया. उस ने महसूस किया रंजना में सुधार आ गया है.

शाम हुई, रंजना ने समोसा चाट बना कर रामसुशील को खिला दी, लेकिन उस में नींद की गोलियां भी मिला दीं. गोलियों का असर तेजी से हुआ.

उस के नींद में हो जाने पर रात के समय गोपाल भी अपने चाचा को ले कर आ गया. दोनों ने मिल कर उसे गला दबा कर मार डाला. गला भी काट डाला. लाश को ठिकाने लगाने के लिए भूसाघर के ढेर में दबा दी.

गोपाल ने कई बार लाश को कहीं और ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन इस में वह सफल नहीं हो पाया. जिस से लाश भूसे के ढेर में ही डेढ़ साल तक पड़ी रही. लाश भूसे के काफी भीतर थी, जिस से उस के सड़ने की ज्यादा गंध बाहर नहीं निकल पाई.

रंजना ने पासपड़ोस में यह बात फैला दी कि उस का पति शहर में ही काम करने लगा है. बीचबीच में खेती का काम देखने के लिए आ जाता है.

संयोग से गोपाल पाल की कदकाठी रामसुशील से मिलतीजुलती थी. जब वह अंधेरा होने के बाद रंजना के घर पर आता था, तब रामसुशील के कपडे़ पहन कर इधरउधर खेतों में घूम आता था. उसे दूर से देख कर आसपास  के लोग रामसुशील ही समझ लेते थे.

इस बार दीपावाली से पहले भूसे की खपत अधिक हो गई थी, जिस से उस में से लाश के सड़ने की तेज गंध आने लगी थी. आननफानन में रंजना ने गोपाल से लाश को कहीं बाहर फेंक आने के लिए कहा.

गोपाल ने भी भेद खुल जाने के डर से लाश को ठिकाने लगाने के लिए अपने चाचा और अन्य की मदद ली. वे लाश को एक बोरे में ठूंस कर मऊगंज के जंगली इलाके में एक पुलिया के नीचे नाले में फेंक आए.

बाद में किसी के द्वारा सूचना मिलने पर पुलिस ने लाश बरामद कर ली. कंकाल के रूप मिली लाश की पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की और गहन तहकीकात के बाद रंजना, उस के प्रेमी और अन्य आरोपियों को हिरासत में लेने में सफल हो पाई.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की जांच टीआई श्वेता मौर्या कर रही थीं. द्य

हनिट्रैप : अर्चना के चंगुल में कैसे फंसे विधायक – भाग 3

12वीं क्लास तक अपनी पढ़ाई पूरी कर के उस ने मां का हाथ बंटाने के लिए एक प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड की जौब कर ली थी. यहीं से अर्चना की तकदीर ने अपना रास्ता खोल लिया था.

अर्चना कमसिन और खूबसूरत थी. उस पर सिक्योरिटी एजेंसी के मालिक का दिल आ गया था और वह अपनी हवस मिटाना चाहता था. लेकिन अर्चना अपने मालिक की नीयत भांप चुकी थी और अपनी इज्जत बचाती हुई सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी छोड़ कर खुद का ब्यूटीपार्लर खोल लिया.

थोड़ी सी मेहनत से उस का पार्लर चल निकला और वह आर्थिक तंगी से निजात पाने लगी थी और अपनी कमाई में से अधिकांश अपनी मां को खर्च के लिए देती रही. यह 2017 की बात है.

इसी दौरान अर्चना के जीवन में एक और कहानी ने जगबंधु चांद के रूप में जन्म लिया, जहां से उस के जीवन का रुख ही बदल गया.

ओडिशा के ही बालासोर का रहने वाला जगबंधु चांद गांव में अपनी किराने की दुकान चलाता था. दुकान से अच्छी कमाई हो जाती थी लेकिन वह अपने इस काम से खुश नहीं था और गांव में उस का मन भी नहीं लगता था. जगबंधु चांद कुछ बड़ा करना चाहता था, जिस से वह कम समय में अमीर बन जाए.

अपने सपनों को पंख लगाए जगबंधु बालासोर से राजधानी भुवनेश्वर आ पहुंचा और यहां आ कर उस ने उसी इलाके में अपनी पुरानी कार बेचने की दुकान खोली जिस इलाके में अर्चना का ब्यूटीपार्लर था.

अर्चना अपनी मां के साथ खंडगिरी में किराए के कमरे में रहती थी. उसी रास्ते में वह ब्यूटीपार्लर जातीआती थी. इसे इत्तफाक ही कहा जाएगा, इसी क्षेत्र में जगबंधु चांद भी किराए का कमरा ले कर रहता था और उसी रास्ते से हो कर अपनी दुकान आताजाता था.

आतेजाते रास्ते में ही अकसर दोनों की मुलाकात हो जाया करती थी. यह मुलाकात धीरेधीरे परिचय में बदल गई. फिर दोनों में बातचीत होने लगी और फिर प्यार हो गया. साल 2018 में दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली और साथ में रहने लगे. अर्चना ने अपनी मां को साथ रख लिया था.

जगबंधु चांद पुरानी कार बेचने का धंधा करता था, इसलिए उस का परिचय शहर के बड़े व्यापारियों, विधायकों और नेताओं से था. जबकि उस की पत्नी अर्चना नाग, जो अब तक अर्चना नाग चांद बन चुकी थी, ब्यूटीपार्लर चलाती थी.

पार्लर में लड़कियां और औरतें आती थीं. वह ब्यूटीपार्लर चलती तो थी, लेकिन उस से उसे मनमुताबिक आमदनी नहीं होती थी और जगबंधु का भी बिजनैस कोई खास नहीं चलता था.

हालात को देखते हुए जगबंधु ने पत्नी को उस के व्यवसाय के ट्रेंड को बदलने की युक्ति समझाई, जिस से उन्हें अमीर बनने से कोई रोक नहीं सकता था. उसे पति की वह युक्ति पसंद आ गई.

उस के पार्लर में मेकअप के लिए कुछ ऐसी भी लड़कियां आती थीं, जिन के घरों में आर्थिक तंगी रहती थी लेकिन मेकअप कराने में वे पीछे नहीं हटती थीं. ऐसी ही मजबूर और बेबस युवतियों की अर्चना ने शिनाख्त कर के उन्हें देह व्यापार के धंधे में उतारने के लिए राजी कर लिया और उन्हें धंधे में उतारने लगी.

वह जान चुकी थी कि पेट की आग क्या होती है और जब पेट की आग धधकती है तो उसे शांत करने के लिए रोटी चाहिए होती है और रोटी के लिए पैसे. पैसे कैसे मिलते हैं, अर्चना से बेहतर और कौन समझ सकता था.

ब्यूटीपार्लर की ओट में अर्चना ने देह व्यापार का धंधा शुरू कर दिया था. उस के पीछे उस का पति जगबंधु खड़ा था. देह व्यापार के धंधे से उस के घर में नोटों की बारिश होने लगी. दोनों पतिपत्नी उस बारिश में खूब भीग रहे थे. वह इस धंधे को बड़े स्तर पर करना चाहते थे.

कुछ ऐसा करना चाहते थे जिस से जो कोई भी मोटी आसामी उन के जाल में एक बार फंस जाए, ताउम्र वह सोने के अंडे देने वाली मुरगी बनी रहे और वे मालामाल बनते रहें. अपने इस धंधे में जगबंधु ने एक और सहयोगी को जोड़ लिया, जिस का नाम था खगेश्वर नाथ.

अर्चना और जगबंधु के पास जब पैसे आए तो उस ने भुवनेश्वर के खंडगिरी के जगमरा न्यू रोड पर एक प्लौट लिया और पार्लर के उन जगहों पर गुप्त कैमरे फिट करा दिए.

जहां कहीं लड़कियां तैयार होती थीं. अथवा ग्राहकों को दैहिक सुख भोगने के लिए कमरे उपलब्ध कराती थीं तो उन के वीडियो शूट कर लेते थे और उसी वीडियो के जरिए लड़कियों को देह व्यापार के लिए यह कह कर मजबूत करते थे कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा.

लड़कियां डर कर अपनी इज्जत बचाने के लिए वही करती थीं, जो अर्चना नाग उन्हें करने को कहती थी. पुरुष भी उसे मुंहमांगी रकम देते थे ताकि उन की इज्जत बची रहे.

देखने में भोलीभाली और बला की खूबसूरत अर्चना नाग, अब तक ऐसी जहरीली नागिन बन चुकी थी कि उस के काटे से कोई पानी नहीं मांगता था बल्कि इज्जत के हमाम में मरने के लिए मजबूर हो जाता था.

वह साल 2019 का था, जब अर्चना से महिमा की मुलाकात हुई थी. अर्चना ने अपने रसूख का ऐसा ट्रैप बिछाया, ऐसी मोहिनी मंत्र उस के सामने फेंका था कि वह उस की चिकनीचुपड़ी बातों में फंस गई.

महिमा यह नहीं जानती थी कि इज्जत की साड़ी में लिपटी सामने खड़ी यह औरत ऐसी नागिन बन चुकी है कि अपने मोहिनी रूप के जहर से अनगिनत बालाओं की जिंदगी बरबाद कर चुकी है, अब उस की बारी है.

जाल में ऐसे फंसी थी महिमा

मुलाकात के बाद एक दिन अर्चना ने महिमा को अपने घर पर खाने के लिए बुलाया था तो वह न नहीं कर सकी और खाने पर चली आई. बाहर से उस की आलीशान कोठी देख कर उस की आंखें फटी रह गई थीं. दरवाजे पर बड़ीबड़ी गाडि़यां, विदेशी नस्ल के 4-4 कुत्ते और सफेद रंग का एक घोड़ा था जो किसी राजामहाराजा की तरह प्रदर्शन कराता था.

महिमा जब घर के अंदर दाखिल हुई तो अंदर का वैभव देख कर चकित रह गई. घर के अंदर की चीजें काफी कीमती थीं. फर्श तो ऐसे चमक रहा था जैसे पांव रखते ही मैला हो जाएगा.

बहरहाल, अर्चना उसे एक कमरे में ले गई जहां एक बड़ा सा डाइनिंग टेबल बिछा था और उस के चारों ओर चमचमाती कुरसियां बिछी थीं. एक कुरसी पर खुद बैठती हुई अर्चना ने सामने की कुरसी पर महिमा को बैठने का इशारा किया. इशारा पा कर महिमा कुरसी पर बैठ गई. उस वक्त वहां दोनों के अलावा कोई और मौजूद नहीं था.

थोड़ी देर बाद नौकर 2 गिलासों में कोल्डड्रिंक लाया. दोनों कोल्डड्रिंक की चुस्की लेते हुए भविष्य की योजनाओं पर भी बातें करती रहीं.

बात करतेकरते कब घंटा बीत गया न तो अर्चना को पता चला और न ही महिमा को. इस के बाद नौकर खाना ले आया. दोनों ने साथ मिल कर खाना खाया. खाना खातेखाते महिमा का सिर भारी हो गया और उस की आंखें बोझिल हो झपकने लगीं. वह जहां बैठी थी, वहीं बैठेबैठे सो गई.

जब उस की आंखें खुलीं तो उस ने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर पाया. सिर उस का अभी भी भारी था और आंखें अधखुली थीं. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस के साथ क्या हो रहा था. जब उस की खुद पर पड़ी तो वह बुरी तरह चौंक गई. उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था.

वह पूरी तरह से नग्न थी. तब तक कमरे में अर्चना दाखिल हो चुकी थी. उस के साथ उस का पति जगबंधु चांद और उस का साथी खगेश्वर नाथ भी था. तीनों को एक साथ देख कर वह समझ गई कि अर्चना ने उस के साथ धोखा किया है.

प्यार और इंतकाम के लिए मौत की अनोखी साजिश – भाग 3

अजय ठाकुर के नंबर पर लगातार सर्विलांस की मदद से निगाह रखी जाने लगीं. पुलिस ने अजय ठाकुर के घर से उस का फोटो व अन्य जानकारियां हासिल कर ली थीं.

इंसपेक्टर अनिल राजपूत को पहली दिसंबर, 2022 की दोपहर एसआई उपेंद्र कुमार ने बताया कि अजय पाल शाम को चार मूर्ति गोल चक्कर के पास किसी से मिलने के लिए आने वाला है.

सूचना चूंकि सर्विलांस की मदद से और एक ऐसे व्यक्ति के जरिए मिली थी, जो अजय ठाकुर के लगातार संपर्क में था, इसलिए संदेह की गुंजाइश नहीं थी.

शाम को 4 बजे से ही पुलिस ने उस इलाके में जाल बिछा कर घेराबंदी कर दी, जहां अजय ठाकुर के आने की सूचना मिली थी. पुलिस का टारगेट वो इंसान था, जिस से अजय मिलने आने वाला था.

शाम को 8 बजे इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. बाइक पर सवार हो कर अजय ठाकुर जब अपने परिचित से मिलने पहुंचा तो उस के साथ एक युवती भी थी. पुलिस ने दोनों को दबोच लिया.

अजय ठाकुर को पकड़ते ही इंसपेक्टर अनिल राजपूत का उस से पहला सवाल था, ‘‘हेमलता कहां है? कहां छिपा रखा है उसे.’’

पुलिस के चंगुल में फंसते ही अजय के पांवों तले से जमीन खिसक गई. सकपकाए अजय को समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे.

हकलाते हुए उस ने जवाब दिया, ‘‘कौन हेमलता साहब, मैं किसी हेमलता को नहीं जानता तो उसे छिपाऊंगा क्यों?’’

‘‘लगता है ये ऐसे नहीं बताएगा. थाने ले चलो इसे. वहीं इसे सब याद आ जाएगा.’’ इंसपेक्टर राजपूत ने कहा.

पुलिस दोनों को पकड़ कर बिसरख थाने ले आई. तब तक पुलिस को ये पता ही नहीं था कि उस के साथ जो लड़की है, वो कौन है. अलबत्ता थाने ला कर जब दोनों की तलाशी ली गई तो पुलिस को अजय ठाकुर की जेब से एक मैरिज सर्टिफिकेट मिला, जो उस युवती के साथ अजय की अदालत में रजिस्टर्ड हुई मैरिज का था, जो उस के साथ थी. सर्टिफिकेट पर अजय के साथ युवती का नाम पायल लिखा था.

मैरिज सर्टिफिकेट देख कर अनिल राजपूत का दिमाग भी घूम गया. क्योंकि शादीशुदा अजय ठाकुर अपनी पत्नी और बच्चों के रहते दूसरी शादी कैसे कर सकता था. इंसपेक्टर राजपूत का दिमाग घूमने की सब से बड़ी वजह यह थी कि जिस लड़की से उस ने शादी की थी, वो पायल थी. वही पायल, जिस के घर के पास हेमलता और राकेश के फोन की लोकेशन मिली थी. जिस रात वह गायब हुई थी.

सब से हैरानी की बात यह थी कि पायल की तो मौत हो चुकी थी. अगर पायल सहीसलामत है तो उस के घर में जो लड़की मृत पाई गई थी, वो कौन थी.

एसएचओ अनिल राजपूत ने महिला पुलिस के माध्यम से पायल के साथ पूछताछ की और उस के परिवार की जानकारी ले कर बढपुरा गांव से उस के भाइयों व दादा को बुलवा लिया.

थाने में आने के बाद जब परिवार ने पायल को जिंदा देखा तो सब के पांवों तले की जमीन खिसक गई. घर की जिस बेटी को मृत समझ कर वे उस का अंतिम संस्कार, यहां तक कि तेरहवीं कर चुके थे, वो आखिर जिंदा कैसे हो गई. उन्होंने इंसपेक्टर राजपूत को पायल की खुदकुशी के बारे में सब कुछ बता दिया तो माजरा कुछकुछ उन की समझ में आ गया.  अजय ठाकुर और पायल भाटी से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो सारी कहानी सामने आ गई.

पुलिस पूछताछ में सामने आया कि कि पायल भाटी ने कैसे अपने प्रेमी अजय ठाकुर के साथ जिंदगी बिताने और अपने मातापिता की मौत के जिम्मेदार लोगों से इंतकाम लेने के लिए एक फिल्मी साजिश रच कर एक बेगुनाह लड़की का कत्ल कर दिया. इस के बाद उस की लाश को अपनी पहचान दे कर खुद को मरा हुआ साबित कर दिया.

अजय और उस की प्रेमिका पायल ने उगल दी कहानी

पायल और अजय ठाकुर से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अनिल राजपूत ने एसीपी अरविंद कुमार और एडीशनल डीसीपी साद मियां खान को विस्तार से इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया. वे भी तत्काल थाने पहुंच गए.

जिस हेमलता की वे गुमशुदा मान कर तलाश की रहे थे, उस की हत्या हो चुकी थी. इतना ही नहीं उस के शव का अंतिम संस्कार भी हो चुका था. लिहाजा सबूतों की तलाश में पुलिस की टीम फोरैंसिक टीम को ले कर पायल के घर पहुंची.

टीम ने उस के पूरे घर के साथ उस कमरे को बारीकी से खंगाला, जहां हेमलता की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना दिए थे और उसे खुदकुशी का रंग दे दिया था.

वारदात को 18 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को पायल के घर की सीढि़यों से खून के कुछ सूखे हुए निशान मिल गए, जो शायद हेमा के खून के थे.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पायल ने बताया कि मातापिता की मौत के बाद वह बुरी तरह टूट गई थी. लेकिन कुछ दिन बाद ही उस की जानपहचान फेसबुक के जरिए सिकंदराबाद के रहने वाले अजय ठाकुर से हुई.

पहली ही नजर में अजय उस के दिल को भा गया. पायल फेसबुक और इंस्टाग्राम पर दिल टूटने वाली शायरी और ऐसे ही वीडियो बना कर डालती थी, जो अजय को बहुत पसंद आते थे.

फेसबुक की जानपहचान जल्द ही मुलाकात में बदल गई और मिलतेजुलते न जाने कब वो एकदूसरे को दिल दे बैठे, पता ही नहीं चला. उन्हें अहसास तब हुआ जब दोनों का एकदूसरे के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता.

इस के बाद दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें खानी शुरू कर दीं. अजय शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था, यह बात उस ने पायल को साफ बता दी. लेकिन उस ने यह भी कहा कि अगर वो उस की बनने के लिए तैयार है तो वह पत्नीबच्चे और परिवार सब कुछ छोड़ देगा.

प्रेमी अजय से शादी के खिलाफ थे घर वाले

ऐसा प्यार करने वाला किसी लड़की को मिल जाए तो कौन उससे दूर होना चाहेगा. अजय को अपना बनाने के लिए पायल ने अपने भाइयों से जब उस के बारे में बात की तो उन्होंने अपने चाचा, ताऊ और दादा से जिक्र किया.

उन्हें जब पता चला कि पायल एक शादीशुदा लड़के के प्यार में पड़ गई है तो उन्होंने उसे डांटफटकार कर साफ मना कर दिया कि किसी भी हालत में अजय से उस की शादी नहीं हो सकती वो उसे भूल जाए.

मां के लिए बेटियां बनी अपराधी – भाग 2

भरतपुर के सरकारी अस्पताल से नवजात लड़का चोरी होने की घटना से पूरे अस्पताल में सनसनी फैल गई. मनीषा के ताया ससुर सद्दीक ने इस की सूचना मथुरा गेट थाना पुलिस को दी. पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर जांचपड़ताल की. अस्पताल के बाहर वाहन पार्किंग वाले से पूछताछ में पता चला कि जिस स्कूटी पर दोनों युवतियां गई हैं, उस का नंबर 1361 है. यह नंबर पार्किंग वाले के पास रहने वाली आधी पर्ची पर लिखा मिला.

पार्किंग वाले ने वाहन की सीरीज व जिले का कोड नंबर नहीं लिखा था. पुलिस ने अस्पताल के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग खंगाली. कैमरों की फुटेज में एक युवती गोद में बच्चा लिए हुए जाती नजर आई.

पुलिस के पास जांच करने के लिए केवल सफेद रंग की स्कूटी का नंबर 1361 था. पुलिस को इसी के सहारे अपनी जांच करनी थी. भरतपुर के एसपी अनिल कुमार टांक ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एडीशनल एसपी सुरेश खींची और डीएसपी (सिटी) आवड़दान रत्नू के नेतृत्व में कई पुलिस टीमें गठित कीं.

पुलिस टीमों ने स्कूटी के अलावा रंजिशवश ऐसी वारदात करने और दूसरे कारणों को भी ध्यान में रखा. पुलिस को यह भी शक हुआ कि किसी पारिवारिक रंजिशवश तो बच्चे का अपहरण नहीं हुआ. इसी अस्पताल में उसी दिन एक प्रसूता के 2 जुड़वां नवजात बच्चों की मौत हो गई थी, इस एंगल पर भी बच्चा चोरी की आशंका को ध्यान में रख कर जांच की गई.

SOCIETY

पुलिस का ध्यान इस बात पर भी गया कि युवती जब बच्चा ले जा रही थी तो उसे समीना ने देख लिया था. इस से घबरा कर उस ने कहीं नवजात को भरतपुर की सुजानगंगा नहर में न फेंक दिया हो.

पुलिस की एक टीम ने परिवहन कार्यालय जा कर जांचपड़ताल की तो भरतपुर में 1361 नंबर की 2 स्कूटी मिलीं. ये दोनों स्कूटी लाल रंग की थीं, जबकि बच्चा चोरी में इस्तेमाल की गई स्कूटी सफेद रंग की थी. इस पर आसपास के जिलों के परिवहन कार्यालयों की मदद लेने का निर्णय लिया गया.

मथुरा गेट थानाप्रभारी राजेश पाठक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम ने सुजानगंगा नहर और आसपास के इलाकों में नवजात की तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने प्रसूता मनीषा के गांव से भी जानकारी कराई कि कोई आपसी रंजिश का ऐसा मामला तो नहीं है, जिस के चलते नवजात का अपरहण कर लिया जाए.

दूसरे दिन पुलिस ने भरतपुर और आसपास के अस्पतालों व निजी नर्सिंगहोमों में बच्चे की तलाश की. पुलिस का मानना था कि नवजात की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उसे किसी अस्पताल या नर्सिंगहोम में भरती कराया जा सकता है. लेकिन पुलिस को इस भागदौड़ में भी सफलता नहीं मिली.

जांच में एक तथ्य यह जरूर सामने आया कि बच्चे की अपहर्त्ता युवती एक दिन पहले और उस से पहले भी कई बार अस्पताल में रैकी करने आई थी. एक संभावना यह भी थी कि किसी की सूनी गोद भरने के लिए बच्चे की चोरी की गई हो.

पुलिस की एक टीम भरतपुर जिले के कुम्हेर भी भेजी गई. वहां 2 मृत बच्चों को जन्म देने वाली महिला बदहवास स्थिति में थी, इसलिए बच्चा चोरी की आशंका जताई गई थी, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं मिला. फतेहपुर सीकरी में भी पुलिस टीम जांच करने गई, लेकिन नवजात का कोई सुराग नहीं मिला.

मामला उछलने पर दूसरे दिन पुलिस के साथ इस मामले की जांच बाल कल्याण समिति एवं अस्पताल प्रशासन ने भी शुरू की. अस्पताल प्रशासन ने जनाना अस्पताल की प्रभारी डा. ऊषा गुप्ता के नेतृत्व में 3 सदस्यीय जांच कमेटी बनाई.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद उन रास्तों पर जांच शुरू की, जहां से बच्चे को ले जाया गया था. इसी क्रम में पुलिस की टीमें जांच के लिए मथुरा और आगरा भेजी गईं. भरतपुर के पास सब से बड़ा शहर मथुरा और आगरा है. पुलिस की एक टीम ने भरतपुर के वाहन शोरूमों पर पहुंच कर सफेद रंग की स्कूटी की बिक्री के रिकौर्ड की पड़ताल की. इस के अलावा निस्संतान दंपतियों और बावरिया बस्ती में भी नवजात की खोजबीन की गई.

तीसरे दिन अस्पताल प्रशासन ने प्रसूता मनीषा, उस की सास समीना, दादी सास, देवर व अन्य परिजनों से कई घंटे पूछताछ की. उधर नवजात बेटे का कोई अतापता नहीं मिलने पर मनीषा रोरो कर बेहाल हो गई थी.

भरतपुर से मथुरा गई पुलिस टीम को 12 जनवरी को वहां के परिवहन कार्यालय का रिकौर्ड देखने के बाद 1361 नंबर की सफेद रंग की एक स्कूटी के बारे में पता चला. यह स्कूटी यूपी85 सीरीज की थी. पुलिस को इस स्कूटी के मालिक का नामपता मिल गया.

इस बीच, 12 जनवरी को ही पूरे भरतपुर जिले में यह अफवाह तेजी से फैल गई कि अस्पताल से चोरी हुआ नवजात भरतपुर शहर के पास सरसों के एक खेत में पड़ा मिल गया है. यह अफवाह पुलिस तक पहुंची तो जांचपड़ताल की गई.

कई लोगों की काल डिटेल्स निकलवाई गईं. जांच में सामने आया कि मनीषा के मायके से फोन आया था. उन लोगों को भी यह बात किसी और ने बताई थी.

घटना के चौथे दिन यानी 13 जनवरी की सुबह भरतपुर से 15 किलोमीटर दूर सांतरुक की सड़क पर गोवर्धन नहर के किनारे झाडि़यों में कंबल में लिपटा एक नवजात बालक मिला. यह नवजात मनीषा का ही बेटा था, जो 10 जनवरी को भरतपुर के अस्पताल से चोरी हुआ था.

झाडि़यों में पड़े इस नवजात को 2 बाइक सवार युवकों ने देखा था. उन्होंने शोर मचाया तो आसपास के लोग एकत्र हो गए.

कभी-कभी ऐसा भी – भाग 2

मुझ में ज्यादा समझ तो नहीं थी लेकिन यह जरूर पता था कि जिंदगी में शार्टकट कहीं नहीं मारने चाहिए. उन से पहुंच तो आप जरूर जल्दी जाएंगे लेकिन बाद में लगेगा कि जल्दबाजी में गलत ही आ गए. कई बार घर पर भी ए.सी., फ्रिज, वाशिंग मशीन या अन्य किसी सामान की सर्विसिंग के लिए मेकैनिक बुलाओ तो वे भी अब यही कहने लगे हैं कि मैडम, बिल अगर नहीं बनवाएंगी तो थोड़ा कम पड़ जाएगा. बाकी तो फिर कंपनी के जो रेट हैं, वही देने पड़ेंगे.

श्रेयस हमेशा यह रास्ता अपनाने को मना करते हैं. कहते हैं कि थोड़े लालच की वजह से यह शार्टकट ठीक नहीं. अरे, यथोचित ढंग से बिल बनवाओ ताकि कोई समस्या हो तो कंपनी वालों को हड़का तो सको. वह आदमी तो अपनी बात से मुकर भी सकता है, कंपनी छोड़ कर इधरउधर जा भी सकता है मगर कंपनी भाग कर कहां जाएगी. इतना सब सोच कर मैं ने कहा, ‘‘नहीं, आप चालान की रसीद काटिए. मैं पूरा जुर्माना भरूंगी.’’

मेरे इस निर्णय से उन दोनों के चेहरे लटक गए, उन की जेबें जो गरम होने से रह गई थीं. मुझे उन का मायूस चेहरा देख कर वाकई बहुत अच्छा लगा. तभी मन में आया कि इनसान चाहे तो कुछ भी कर सकता है, जरूरत है अपने पर विश्वास की और पहल करने की.

वैसे तो श्रेयस के साथ के कई अफसर यहां थे और पापा के समय के भी कई अंकल मेरे जानकार थे. चाहती तो किसी को भी फोन कर के हेल्प ले सकती थी लेकिन श्रेयस के पीछे पहली बार घर संभालना पड़ रहा था और अब तो नईनई चुनौतियों का सामना खुद करने में मजा आने लगा था. ये आएदिन की मुश्किलें, मुसीबतें, जब इन्हें खुद हल करती थी तो जो खुशी और संतुष्टि मिलती उस का स्वाद वाकई कुछ और ही होता था.

पूरा जुर्माना अदा कर के आत्म- विश्वास से भरी जब थाने से बाहर निकल रही थी तो देखा कि 2 पुलिस वाले बड़ी बेदर्दी से 2 लड़कों को घसीट कर ला रहे थे. उन में से एक पुलिस वाला चीखता जा रहा था, ‘‘झूठ बोलते हो कि उन मैडम का पर्स तुम ने नहीं झपटा है.’’

‘‘नाक में दम कर रखा है तुम बाइक वालों ने. कभी किसी औरत की चेन तो कभी पर्स. झपट कर बाइक पर भागते हो कि किसी की पकड़ में नहीं आते. आज आए हो जैसेतैसे पकड़ में. तुम बाइक वालों की वजह से पुलिस विभाग बदनाम हो गया है. तुम्हारी वजह से कहीं नारी शक्ति प्रदर्शन किए जा रहे हैं तो कहीं मंत्रीजी के शहर में शांति बनाए रखने के फोन पर फोन आते रहते हैं. बस, अब तुम पकड़ में आए हो, अब देखना कैसे तुम से तुम्हारे पूरे गैंग का भंडाफोड़ हम करते हैं.’’

एक पुलिस वाला बके जा रहा था तो दूसरा कालर से घसीटता हुआ उन्हें थाने के अंदर ले जा रहा था. ऐसा दृश्य मैं ने तो सिर्फ फिल्मों में ही देखा था. डर के मारे मेरी तो घिग्गी ही बंध गई. नजर बचा कर साइड से निकलना चाहती थी कि बड़ी तेजी से आवाज आई, ‘‘मैडम, मैडम, अरे…अरे यह तो वही मैडम हैं…’’

मैं चौंकी कि यहां मुझे जानने वाला कौन आ गया. पीछे मुड़ कर देखा. बड़ी मुश्किल से पुलिस की गिरफ्त से खुद को छुड़ाते हुए वे दोनों लड़के मेरी तरफ लपके. मैं डर कर पीछे हटने लगी. अब जाने यह किस नई मुसीबत में फंस गई.

‘‘मैडम, आप ने हमें पहचाना नहीं,’’ उन में से एक बोला. मुझे देख कर कुछ अजीब सी उम्मीद दिखी उस के चेहरे पर.

‘‘मैं ने…आप को…’’ मैं असमंजस में थी…लग तो रहा था कि जरूर इन दोनों को कहीं देखा है. मगर कहां?

‘‘मैडम, हम वही दोनों हैं जिन्होंने अभी कुछ दिनों पहले आप की गाड़ी की स्टेपनी बदली थी, उस दिन जब बीच रास्ते में…याद आया आप को,’’ अब दूसरे ने मुझे याद दिलाने की कोशिश की.

उन के याद दिलाने पर सब याद आ गया. इस गाड़ी की वजह से मैं एक नहीं, कई बार मुश्किल में फंसी हूं. श्रेयस ने यहां से जाते वक्त कहा भी था, ‘एक ड्राइवर रख देता हूं, तुम्हें आसानी रहेगी. तुम अकेली कहांकहां आतीजाती रहोगी. बाहर के कामों व रास्तों की तुम्हें कुछ जानकारी भी नहीं है.’ मगर तब मैं ने ही यह कह कर मना कर दिया था कि अरे, मुझे ड्राइविंग आती तो है. फिर ड्राइवर की क्या जरूरत है.

रोजरोज मुझे कहीं जाना नहीं होता है. कभीकभी की जरूरत के लिए खामखां ही किसी को सारे वक्त सिर पर बिठाए रखूं. लेकिन बाद में लगा कि सिर्फ गाड़ी चलाना आने से ही कुछ नहीं होता. घर से बाहर निकलने पर एक महिला के लिए कई और भी मुसीबतें सामने आती हैं, जैसे आज यह आई और आज से करीब 2 महीने पहले वह आई थी.

उस दिन मेरी गाड़ी का बीच रास्ते में चलतेचलते ही टायर पंक्चर हो गया था. गाड़ी को एक तरफ रोकने के अलावा और कोई चारा नहीं था. बड़ी बेटी को उस की कोचिंग क्लास से लेने जा रही थी कि यह घटना घट गई. उस के फोन पर फोन आ रहे थे और मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करूं.

गाड़ी में दूसरी स्टेपनी रखी तो थी लेकिन उसे लगाने वाला कोई चाहिए था. आसपास न कोई मैकेनिक शौप थी और न कोई मददगार. कितनी ही गाडि़यां, टेंपो, आटोरिक्शा आए और देखते हुए चले गए. मुझ में डर, घबराहट और चिंता बढ़ती जा रही थी. उधर, बेटी भी कोचिंग क्लास से बाहर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. श्रेयस को फोन मिलाया तो वह फिर कहीं व्यस्त थे, सो खीझ कर बोले, ‘अरे, पूरबी, इसीलिए तुम से बोला था कि ड्राइवर रख लेते हैं…अब मैं यहां इतनी दूर से क्या करूं?’ कह कर उन्होंने फोन रख दिया.

काफी समय यों ही खड़ेखड़े निकल गया. तभी 2 लड़के मसीहा बन कर प्रकट हो गए. उन में से एक बाइक से उतर कर बोला, ‘मे आई हेल्प यू, मैडम?’

समझ में ही नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दूं. बस, मुंह से स्वत: ही निकल गया, ‘यस…प्लीज.’ और फिर 10 मिनट में ही दोनों लड़कों ने मेरी समस्या हल कर मुझे इतने बड़े संकट से उबार लिया. मैं तो तब उन दोनों लड़कों की इतनी कृतज्ञ हो गई कि बस, थैंक्स…थैंक्स ही कहती रही.

रुंधे गले से आभार व्यक्त करती हुई बोली थी, ‘‘तुम लोगों ने आज मेरी इतनी मदद की है कि लगता है कि इनसानियत और मानवता अभी इस दुनिया में हैं. इतनी देर से अकेली परेशान खड़ी थी मैं. कोई नहीं रुका मेरी मदद को.’’ थोड़ी देर बाद फिर श्रेयस का फोन आया तो उन्हें जब उन लड़कों के बारे में बताया तो वह भी बहुत आभारी हुए उन के. बोले, ‘जहां इस समाज में बुरे लोग हैं तो अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है.’

और आज मेरे वे 2 मसीहा, मेरे मददगार इस हालत में थे. पहचानते ही तुरंत उन के पास आ कर बोली, ‘‘अरे, यह सब क्या है? तुम लोग इस हालत में. इंस्पेक्टर साहब, इन्हें क्यों पकड़ रखा है? ये बहुत अच्छे लड़के हैं.’’

‘‘अरे, मैडम, आप को नहीं पता. ये वे बाइक सवार हैं जिन की शिकायतें लेले के आप लोग आएदिन पुलिस थाने आया करते हैं. बमुश्किल आज ये पकड़ में आए हैं. बस, अब इन के संगसंग इन के पूरे गिरोह को भी पकड़ लेंगे और आप लोगों की शिकायतें दूर कर देंगे.’’

इतना बोल कर वे दोनों पुलिस वाले उन्हें खींचते हुए अंदर ले गए. मैं भी उन के पीछेपीछे हो ली.

मुझे अपने साथ खड़ा देख कर वे दोनों मेरी तरफ बड़ी उम्मीद से देखने लगे. फिर बोले, ‘‘मैडम, यकीन कीजिए, हम ने कुछ नहीं किया है. आप को तो पता है कि हम कैसे हैं. उन मैडम का पर्स झपट कर हम से आगे बाइक सवार ले जा रहे थे और उन मैडम ने हमें पकड़वा दिया. हम सचमुच निर्दोष हैं. हमें बचा लीजिए, प्लीज…’’

एक लड़का तो बच्चों की तरह जोरजोर से रोने लगा था. दूसरा बोला, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, हम तो वहां से गुजर रहे थे बस. आप ने हमें पकड़ लिया. वे चोर तो भाग निकले. हमें छोड़ दीजिए. हम अच्छे घर के लड़के हैं. हमारे मम्मीपापा को पता चलेगा तो उन पर तो आफत ही आ जाएगी.’’

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर – भाग 2

सोनी की एक झलक पाने के लिए वह बेताब था. पागलदीवानों की तरह वह यहांवहां भटकता फिरता था. उस की हालत देख कर मां जेलस देवी काफी परेशान रहती थी. मां ने भी बेटे को काफी समझाया कि उस ने जो किया, उसे समाजबिरादरी कभी मान्यता नहीं दे सकती. रिश्ते के बुआभतीजे की शादी को कोई स्वीकार नहीं करेगा. बेहतर है, तुम इसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ.

मगर हिमांशु मां की बात को मानने को तैयार नहीं था. उधर सोनी ने भी अपनी मां से कह दिया कि वह हिमांशु के अलावा किसी और लड़के से शादीनहीं करेगी. मां ने बहुत समझाया लेकिन प्रेम में अंधी सोनी की समझ में नहीं आया. वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

मां भी क्या करती, जब समझातेसमझाते वह थक गई तो उस ने कुछ भी कहना छोड़ दिया. काफी देर बाद सोनी की समझ में आया कि उसे आजादी पानी है तो पहले घर वालों को विश्वास दिलाना होगा कि वह हिमांशु को पूरी तरह भूल चुकी है. घर वालों को जब उस पर विश्वास हो जाएगा तब वह इस का फायदा उठा कर हिमांशु तक पहुंच सकती है. अगर एक बार वह उस के पास पहुंच गई तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा.

ये दिमाग में विचार आते ही सोनी का चेहरा खिल उठा और वह घडि़याली आंसू बहाते हुए मां की गोद में जा कर समा गई, ‘‘मां मुझे माफ कर दो. वाकई मुझ से बड़ी भूल हो गई थी. मैं ने आप की बात नहीं मानी, इसलिए आप के मानसम्मान को ठेस पहुंची. मेरी ही वजह से आप को और पापा को बेइज्जती का सामना करना पड़ा. पता नहीं ये सब कैसे हो गया. बताओ अब मैं क्या करूं.’’

‘‘देख बेटी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. फिर तू तो मेरा अपना खून है.’’ मां ने सोनी को समझाया, ‘‘मैं तो कहती हूं बेटी कि जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जा. तेरी शादी मैं अच्छे से अच्छे खानदान में करूंगी.’’

उस के बाद मांबेटी एकदूसरे के गले मिल कर पश्चाताप के आंसू पोंछती रहीं. मां को विश्वास में ले कर सोनी मन ही मन खुश थी. उस के होंठों पर एक अजीब सी कुटिल मुसकान थिरक उठी थी.

मांबाप को भी जब पक्का यकीन हो गया कि सोनी ने हिमांशु से बात तक करनी बंद कर दी है तो उन्होंने धीरेधीरे उस के ऊपर की पाबंदी हटा ली. पिता परमानंद अब उस के लिए लड़का ढूंढने लगे ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें.

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परमानंद को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी, उन की बेटी मांबाप की आंखों में धूल झोंक रही है. जबकि उस की योजना प्रेमी के साथ फुर्र हो जाने की है.

योजना मुताबिक, सोनी ने मां के सामने ननिहाल जाने की इच्छा प्रकट की तो मां उसे मना नहीं कर सकी. सोचा कि बेटी ननिहाल घूम आएगी तो मन भी बदल जाएगा. यही सोच कर सितंबर, 2016 में उसे बेटे के साथ ननिहाल भेजवा दिया.

ननिहाल पहुंचते ही सोनी आजाद पंछी की तरह हो गई. उस ने हिमांशु को फोन कर दिया कि वह ननिहाल में आ गई है. यहां उस पर किसी तरह की कोई पाबंदी या बंदिश नहीं है. इसलिए वह यहां आ कर उस से मिल सकता है. यह खबर मिलते ही हिमांशु उस की ननिहाल पहुंच गया.

महीनों बाद दोनों एकदूसरे से मिले थे. उन्होंने पहले जी भर कर एकदूसरे को प्यार किया. उसी वक्त सोनी ने हिमांशु से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वो उसे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चले, जहां उन के अलावा कोई तीसरा न हो. हिमांशु भी यही चाहता था कि सोनी को ले कर वह इतनी दूर चला जाए, जहां अपनों का साया तक न पहुंच सके.

सोनी घर से भागने के लिए हिमांशु पर दबाव बनाने लगी. प्यार के सामने विवश हिमांशु यार दोस्तों से कुछ रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे ले कर दिल्ली भाग गया. परमानंद को जब पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस ने हिमांशु और उस के घर वालों के खिलाफ कजरैली थाने में बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

अपहरण का मुकदमा दर्ज होते ही कजरैली  थाने की पुलिस सक्रिय हुई. पुलिस ने हिमांशु के घर पर दबिश दी. हिमांशु घर से गायब मिला तो पुलिस हिमांशु की मां जेलस देवी को थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाई. तब पुलिस ने जेलस देवी को घर भेज दिया.

कई महीने बाद भी जब सोनी का पता नहीं चला तो पुलिस हिमांशु और सोनी को हाजिर कराने के लिए जेलस देवी पर बारबार दबाव बनाती रही. कहीं से यह बात हिमांशु को पता चल गई कि पुलिस उस की मां को बारबार परेशान कर रही है. तब 8 महीने बाद हिमांशु सोनी को ले कर घर लौट आया.

सोनी ने अदालत में हाजिर हो कर न्यायाधीश के सामने यह बयान दिया कि वह बालिग हो चुकी है. अपनी मनमरजी से कहीं आजा सकती है. उसे अच्छेबुरे का ज्ञान है. अब रही बात मेरे अपहरण करने की तो मैं अपने मरजी से ननिहाल गई थी. वहीं रह रही थी, हिमांशु ने मेरा अपहरण नहीं किया था. बल्कि मैं अपनी मरजी से कहीं गई थी. हिमांशु निर्दोष है.

भरी अदालत में सोनी के बयान सुन कर परमानंद और उन के साथ आए लोग दंग रह गए, क्योंकि उस ने हिमांशु के पक्ष में बयान दिया था. सोनी के बयान के आधार पर अदालत ने उसे मुक्त दिया.

यह सब सोनी की वजह से ही हुआ था. इसलिए परमानंद भीतर ही भीतर जलभुन कर रह गया. उस समय तो उस ने समझदारी से काम लिया. वह सोनी को ले कर घर आ गया और हिमांशु अपने घर चला गया. घर ला कर परमानंद ने सोनी को बंद कमरे में खूब मारापीटा. फिर उसे उसी कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दिया.

इस के बाद परमानंद ने ठान लिया कि हिमांशु की वजह से ही पूरे समाज में उस के परिवार की नाक कटी है, इसलिए वह उसे ऐसा सबक सिखाएगा कि सब देखते रह जाएंगे. वह धीरेधीरे गांव के लोगों को भी हिमांशु के खिलाफ भड़काने लगा कि उस की वजह से ही पूरे गांव की बदनामी हुई है.

घर से निकलते ही – भाग 2

प्रदीप उस का जरा भी विरोध नहीं कर पाता था. इस का कारण था कि वह घर का काफी खर्च अपने सिर उठाए हुए थी. वह उस से अधिक कमाई कर रही थी. उसे लगता था कि जैसे वह घरपरिवार की झंझटों से फ्री हो गई हो.

दूसरी तरफ प्रदीप सुस्त मिजाज का आलसी इंसान था. उस के पास कोई ठोस कामधंधा नहीं था. जो कुछ काम जानता था, वह कोरोना की भेंट चढ़ गया था. ज्योति की निगाह में वह एकदम निखट्टू था.

प्रदीप उसी के पास के गांव का रहने वाला 35-36 का था. हालांकि वह हंसमुख, मिलनसार और स्वभाव का सरल व्यक्ति था. वह ज्योति की तरह खुले विचारों का नहीं था.

यही कारण था कि ज्योति हर समय उस की नाक में दम किए रहती थी. प्रदीप ने मात्र इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. वह एक समय में बंटाई पर खेतीबाड़ी किया करता था. वही उस के परिवार के लिए आमदनी का जरिया था.

परिवार में उस का बड़ा भाई महेंद्र सिंह था. बनी गांव के संतोष सिंह की बेटी ज्योति के साथ उस का विवाह साल 2012 में हुआ था. उस ने भी इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. पढ़ाई के दरम्यान ही उस के दिमाग में आत्मनिर्भर बनने की बात बैठ गई थी. वह नौकरी करना चाहती थी.

विवाह के बाद उस के सपने एक तरह से मिटने लगे थे. जल्द ही बेटी की मां बन गई. फिर 2 साल बाद बेटा पैदा हुआ. 2 साल बाद उस ने एक और बच्चे को जन्म दिया.

शादी के कुछ साल बाद से ही उस का मन घर से बाहर निकल कर काम करने के लिए बेचैन रहता था. 5-6 सालों में घर का खर्च भी बढ़ने लगा था. इस के लिए उस ने पति को मना लिया कि वह शहर में कहीं काम तलाश करेगी.

वह प्रदीप के साथ सासससुर से नजर बचा कर कंपनियों में काम की तलाश में लगी रहती थी. प्रदीप पर भी नौकरी खोजने के लिए दबाव डालती थी. कई बार इस बात को ले कर उन के बीच बहस भी हो जाती थी.

पति लगने लगा निठल्ला

इस बहस और विवाद के चलते ज्योति ने प्रदीप को निठल्ला कह कर ताने मारने शुरू कर दिए थे. वह कहती थी, ‘‘खुद तो निठल्ले पडे़ रहते हो. अगर तुम्हारी बहुत जानपचान है तो मुझे भी किसी स्कूल या कंपनी में 8-10 हजार की नौकरी का इंतजाम क्यों नहीं करवा देते हो?’’

इस ताने से तंग आ कर प्रदीप ने ईरिक्शा चलाने का निर्णय ले लिया. उस ने अपने बड़े भाई महेंद्र सिंह के एक परिचित की मदद से मोहनलाल गंज से 50 हजार रुपए में एक ईरिक्शा निकलवा लिया. बाकी की किस्त बन गई थी.

महेंद्र की मदद से प्रदीप रिक्शा चलाने लगा था. गांव से शहर तक आनेजाने की सवारियां होती थीं. उन में स्कूल जाने वाली लड़कियां और गांव के मजदूर भी होते थे.

दोपहर तक फेरे लगाने के बाद बैटरी चार्ज करने के लिए घर चला आता था. दोबारा 3 बजे निकलता था और शाम के 7 बजे तक वापस आ जाता था. मोहनलालगंज के धनवारा गांव तक आने के कारण उस की आमदनी ठीकठाक होने लगी थी.

कुछ महीने गुजर जाने के बाद ज्योति फिर से पति पर दबाव बनाने लगी कि उसे शहर में कोई काम दिलवा दे या कोई छोटामोटा धंधा ही करवा दे. उस ने तर्क दिया कि अब तो ईरिक्शा भी है. शाम को साथसाथ उस पर वापस लौट आएगी. प्रदीप को उस का सुझाव पसंद आया और उस ने हामी भर दी. वह पत्नी के लिए काम की तलाश करने लगा.

ज्योति के कहने पर ही प्रदीप ने बड़ी बेटी और बेटे को मोहनलालगंज के एक स्कूल में दाखिला करवा दिया था. प्रदीप को रिक्शा चलाते हुए करीब 9 महीने निकल गए. उस की बाकी किस्तें भी चुका दीं. उन्हीं दिनों उस की जानपहचान दारोगा खेड़ा निवासी जोगेंद्र सिंह चौहान से हो गई. वह उस के ननिहाल से रिश्ते में ममेरा भाई लगता था.

उन्नाव जिले के सोहरामऊ के गांव बल्लूखेड़ा का मूल निवासी जोगेंद्र 40 साल का हट्टाकट्टा मर्द था. मजबूत कदकाठी के साथसाथ आकर्षक व्यक्तित्व का था. वह  उन दिनों बंथरा थाना क्षेत्र में एक नेटवर्किंग कंपनी में काम करता था. इस कारण वह अलग से किराए का कमरा ले कर रह रहा था.

इस कंपनी में उस की मार्केटिंग टीम थी. टीम के लड़केलड़कियों और शादीशुदा औरतें घरघर जा कर सदस्य बनाने का काम करती थीं.

प्रदीप ने अपनी पत्नी ज्योति के बारे में जोगेंद्र सिंह से बात की. जोगेंद्र ने अपने फुफेरे भाई के आग्रह को गंभीरता से लिया. उस की सीनियर से सिफारिश कर ज्योति को भी कंपनी में काम मिल गया.

संयोग से ज्योति जोगेंद्र सिंह के अंडर में काम करने लगी. जोगेंद्र लड़कियों के रोजमर्रा के उपयोग की चीजों की सप्लाई का काम स्वयं करता था.

इस तरह ज्योति मन लगा कर काम करने लगी. कहने को तो जोगेंद्र उस का रिश्ते में जेठ लगता था, लेकिन बहुत जल्द ही उस से घुलमिल गई. उसे नाम ले कर बुलाने लगी और साथसाथ उठनेबैठने लगी.

लिवइन में रहकर बेटी और बहू पर बुरी नजर – भाग 2

एक दिन जैसे ही पूनम के पिता पुरोहिताई में घर से बाहर निकले तो एक पड़ोसी ने टोका, ‘‘क्यों पंडितजी, बेटी का ब्याह घर में बैठने के लिए किए थे? समाज में कोई मानमार्यादा है या नहीं?’’

दरवाजे की ओट में बैठी पूनम अपने बेटी को दूध पिला रही थी. पिता से इस तरह की गई बात उसे चुभ गई. उस के पिता ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन एक नजर उसे देखते हुए तेज कदमों निकल गए.

अगले दिन ही पड़ोस की चाची आई और मांबाबूजी को ताना मारती हुई बोली, ‘‘का हो पंडिताइन नतिनी के बयाह ताही करबहूं की?’’

‘‘ऐसा काहे बोलती हो? अभी नतनी 3 महीना के है.’’

‘‘पूनम के दूल्हा कहां है? बेटी जन्म लेवे पर कोय हालचाल लेवे नहीं आया, ऐही से कहलियो. हमर बात के बुरा मता मानिह…’’

‘‘आइथिन कैसे नय! दिल्ली यहीं है? आबेजाय में खरचा हय…समय लाग हय…तोर बेटिया के ससुराल सुलतानपुर जैसन थोड़े हय कि कुछो गाड़ीघोड़ा से घंटा भर में आ जाय.’’ पूनम की मां ने जवाब दिया.

पूनम को अपने पड़ोस में चाची की बात बहुत बुरी लगी. उस के जाते ही वह बोली, ‘‘माई गे 1000 रुपया के इंतजाम कर दे हम दिल्ली जायम.’’

‘‘तू दिल्ली जयबे? कैसे? दूल्हा के पता मालूम हउ?’’ पूनम की मां बोली.

‘‘हां गे माई, ससुराल से अबे घड़ लक्ष्मी नगर बोललथिन.’’ पूनम बोली.

‘‘कहां खोजवहीं? पूनम की मां ने प्रश्न किया.

‘‘कल्लू के साथे रह हथिन न! उ ओहजे मदर डेरी के बगल में काम कर हथिन.’’ पूनम ने मां को समझाया.

‘‘अच्छा आवे दे बाबूजी के… सांझ के बोलवउ.’’ मां ने कहा.

पूनम की मां ने उसे आश्वासन दिया. शाम को जैसे ही पंडित जी आए, उन्होंने पूनम के बारे बात की. पहले तो वह यह सुन कर तमतमा गए. सिर्फ इतना कह पाए, ‘अकेले गोदी में बच्चा के ले कर कैसे जाएगी?’

इस पर पूनम की मां ने ही बताया कि मोहल्ले का एक लड़का 2 दिन बाद दिल्ली जा रहा है. उस के साथ पूनम जा सकती है. वह भरोसे का लड़का है. वहीं लक्ष्मी नगर में ही पढ़ता है. उस से बात भी कर ली है.

‘‘जब तुम मांबेटी ने पहले से ही मन बना लिया है तो मुझ से पूछने की क्या जरूरत?’’ पंडितजी बोले.

‘‘जाय खातिर कुछ पैसा चाहिए.’’

‘‘अच्छाअच्छा! केतान में हो जयतइ?’’ पंडितजी के इतना कहने पर कमरे के बाहर दरवाजे पर कान लगाए पूनम के चेहरे पर चमक आ गई. वहीं से बोल पड़ी, ‘‘जादे नय बाबूजी एक हजार रुपया, 3 सौ रुपया हमारो पास हकय.’’

‘‘अरे ओतना में की होतव…साथ में बच्चा हकउ… ओकर चिंता मत कर…आजे यजमान के हिंआ से दक्षिणा के पैसा मिललउ है…ले देख तो एकरा में केतना है?’’ यह कहते हुए पंडितजी ने कमर से खोंसी हुई छोटी सी थैली निकाल कर पूनम को दे दी. पूनम थैली ले कर उन के सामने ही 10, 20, 50, 100 के नोट और सिक्के निकाल कर गिनने लगी, ‘‘1800 रुपया.’’

‘‘सिक्का गिन…’’

‘‘350 रुपया.’’

‘‘सब रख ले. खुदरा पैसा है, रास्ता में काम अइतव…थैली भी रख ले…कल्हे बउवा और तोरा लगी नया कपड़ा ला देवअ.’’ पंडितजी बोले.

‘‘जी बाबूजी!‘‘ बोलती हुई पंडितजी के गले लग गई. उस की आंखों से आंसू आ गए.

‘‘अगे अभीए काहे रावे हें…जाय में अभी 2 दिना बाकी हकउ.’’ कह कर उस की मां अपनी आंचल से पूनम के गालों पर आए आंसू पोछने लगी.

…और फिर पूनम 2 दिन बाद भागलपुर से नई दिल्ली को आने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस से जाने के लिए जमालपुर जंक्शन स्टेशन पर आ गई थी. उस ने जनरल का टिकट ले लिया था. संयोग से उसी ट्रेन से जाने वाले लड़के का कोच जनरल डिब्बे से सटा हुआ था. ट्रेन समय से जमालपुर से चल दी थी.

ट्रेन सुबहसुबह नई दिल्ली आ गई थी. पूनम के साथ आए लड़के की मदद से पांडव नगर स्थित मदर डेयरी पहुंच गई. लड़का वहां से अपने ठहरने वाली जगह चला गया, जबकि पूनम ने कल्लू के बारे में पता करने लगी.

कल्लू तो मिल गया, लेकिन उस ने बताया कि उस का पति सुखदेव तिवारी अब उस के साथ नहीं रहता है. वह गाजियाबाद की किसी फैक्ट्री में काम करता है, इसलिए वहीं रहने चला गया है.

पूनम की गोद में नवजात बच्चा देख कर कल्लू ने पूछा, ‘‘तुम्हारा कोई और रहने का ठिकाना है?’’

पूनम ने ‘न’ में सिर हिला दिया. इस पर कल्लू उस से अपने किराए के कमरे पर ले गया, जो पास में ही था. छोटे से कमरे में ही एक स्लैब पर स्टोव और कुछ बरतन थे. कल्लू ने कहा अभी यहीं थोड़ा आराम कर ले. पहले वह उस के लिए इधर ही कहीं कोई कमरा दिलवा देगा. फिर सुखदेव के बारे में पता करेगा.

शाम को जब कल्लू अपने कमरे पर आया तब साफसुथरा घर देख कर चौंक गया. स्लैब पर करीने से धुले बरतन सजे हुए थे. स्टोव भी चमक रहा था. बिछावन ढंग से बिछे हुए थे. इधरउधर बिखरे कपड़े अलमारी में तह लगाए गए थे. बच्ची सो रही थी.

कल्लू खुश हो कर बोला, ‘‘अरे वाह! तुम ने तो हमारे घर को चमका दिया. यही होता है किसी औरत के घर में आने का असर. बच्ची ने दूध पिया? तुम ने कुछ खाया?’’

‘‘हां, नीचे दुकान से दूध लाई थी, आटा भी लाई. आलू यहीं थे. खाना पका दिया है है, परोस दूं?’’ पूनम झेंपती हुई बोली.

‘‘अरे इतना सब कुछ कर लिया?’’ कल्लू बोला.

‘‘…दूध भी बचा है, चाय पीनी हो तो बोलिए?’’ पूनम बोली.

‘‘मैं ने तुम्हारे लिए भी पास में ही एक कमरा देख लिया है, चलो दिखाए देता हूं.’’ कल्लू बोला.

‘‘पहले कुछ खा लीजिए.’’ पूनम बोली.

‘‘आ कर खाऊंगा…पहले कमरा देख लेता हूं…’’ कल्लू बोला.

‘‘जी अच्छा!’’ पूनम बोली.

संयोग से उन लोगों की आवाज सुन कर सो रही बच्ची भी जाग गई.