हनिट्रैप : अर्चना के चंगुल में कैसे फंसे विधायक – भाग 4

अर्चना के पिंजरे की चिडि़या बन गई थी महिमा

वह कुछ बोलती उस से पहले अर्चना ही बोल पड़ी, ‘‘अब तो तुम समझ गई होगी कि तुम्हारे साथ क्या हुआ होगा?’’

‘‘हां, मैं तो समझ ही गई कि मेरे साथ क्या हुआ होगा, लेकिन तुम्हारे जैसी कमीनी औरत मैं ने अपनी जिंदगी में नहीं देखी.’’

‘‘मैं कमीनी हूं, कुतिया हूं वगैरहवगैरह. बहरहाल, अब काम की बात सुनो मेरी जान. तुम्हारी जान अब मेरी मुट्ठी में कैद है. जब तक तुम मेरी बात मानती रहोगी, तब तक तुम सुरक्षित रहोगी. जिस दिन तुम मुझ से पंगा लेने की कोशिश करोगी, उसी दिन तुम्हारी ब्लू फिल्म को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा. उस के बाद क्या होगा…’’

‘‘नहीं…नहीं तुम ऐसा कुछ भी मत करना, आप जो कहोगी, मैं वह सब करने को तैयार हूं. बस आप मुझे मेरे कपड़े लौटा दीजिए ताकि मैं अपने घर जा सकूं. मैं आप के सामने हाथ जोड़ती हूं प्लीज. भगवान के लिए मुझ पर तरस खाओ. मुझे मेरे घर जाने दो. मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूं.’’ महिमा गिड़गिड़ाने लगी.

‘‘ये हुई न गुड गर्ल वाली बात. मैं इतनी भी बुरी नहीं हूं जिस से तुम्हारी इज्जत को ठेस पहुंचे.’’ फिर अर्चना ने एक नौकर को आवाज दे कर महिमा के कपड़े मंगाए.

उस दिन से महिमा अर्चना नाग के हाथ की कठपुतली बन गई थी और सालों तक उस के गोरे बदन का सौदा करती रही. हालात के हाथों मजबूर महिमा बिकती रही.

उस दिन भी एक बड़े टारगेट को ले कर मीटिंग चल रही थी, जिस में अर्चना नाग, उस का पति जगबंधु चांद और महिमा हाल में बैठे थे. वह टारगेट था फिल्म प्रमोटर अक्षय पारिजा. जिस से ब्लैकमेल कर के 3 करोड़ रुपए ऐंठने थे.

इस काम के लिए अर्चना ने महिमा को चुना था, इसीलिए उस ने उसे रंगमहल हवेली पर बुला कर उसे समझा और धमकी रही थी कि शिकार हाथ से निकलना नहीं चाहिए.

महिमा टारगेट पूरा करने के लिए राजी नहीं थी तो वह उसे धमका रही थी कि अगर उस ने टारगेट पूरा नहीं किया तो उस के वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर देगी. फिर बीच में जगबंधु ने हस्तक्षेप कर के जैसेतैसे महिमा को मना लिया था. फिर उस के बाद जो हुआ, ऊपर कहानी में आ चुका है.

7 अक्तूबर, 2022 को पुलिस ने अर्चना नाग, जगबंधु चांद और खगेश्वर नाथ को गिरफ्तार कर झारपाड़ा जेल भेज दिया गया. 10 दिन बीत जाने के बाद भी खंडगिरी एसएचओ ने आरोपियों को रिमांड पर ले कर दोबारा पूछताछ नहीं की थी.

पुलिस के ढुलमुल रवैए को देखते हुए सामाजिक संस्थान भारतीय विकास परिषद के जगतसिंहपुर के जिलाध्यक्ष भंवर सिंह ने भुवनेश्वर उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दाखिल की.

उन्होंने अपनी याचिका में कहा, ‘‘कमिश्नरेट पुलिस इस हाईप्रोफाइल हनीट्रैप मामले की जांच में ढिलाई बरत रही है. ऐसे में मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय से कराने के निर्देश दिए जाएं. अर्चना नाग के भुवनेश्वर के मंचेश्वर और सत्य विहार में 2 आलीशान मकान, महंगी कारें और करोड़ों रुपए की संपत्ति के बारे में पता चला है.’’

जिलाध्यक्ष भंवर सिंह ने केंद्र और राज्य सरकार, प्रवर्तन निदेशालय, डीजी पुलिस, खंडगिरी पुलिस स्टेशन और भुवनेश्वर के आईआईसी को याचिका में पक्ष बनाया है. इस में मनी लांड्रिंग का भी मामला सामने आ रहा है.

मनी लांड्रिंग का मामला सामने आने के बाद पुलिस आयुक्त सोमेंद्र प्रियदर्शी ने कहा, ‘‘पुलिस ईमानदारी से अपना काम कर रही है. हनीट्रैप की आरोपी अर्चना नाग और उस के सहयोगी गिरफ्तार किए जा चुके हैं. रही बात मनी लांड्रिंग की तो जांच में 2018 से 2022 तक यानी 4 सालों में 30 करोड़ रुपए की संपत्ति अर्जित किए जाने का मामला प्रकाश में आया है, जो अर्जित किया हुआ बताया जाता है. मनी लांड्रिंग का ये मामला प्रवर्तन निदेशालय का है जोकि वह अपना काम कर रहा है. एफआईआर की प्रति ईडी को सौंपी जा चुकी है.’’

उन्होंने आगे कहा कि पुलिस ने अर्चना के घर से स्पाई कैमरा, लैपटाप, पैन ड्राइव आदि अपने कब्जे में ले लिया है, जिस से वह शिकार बनाती थी. रही बात अर्चना के साथ जुड़े रहने वाले बड़े लोगों की तो जांच अभी चल रही है. सही समय आने पर उन पर आवश्यक काररवाई की जाएगी.

जो भी हो, अर्चना के हनीट्रैप का शिकार बने मंत्री, विधायक, व्यापारी और नौकरशाहों की जान अटकी है, जिन्हें बचाने की कोशिश में पुलिस जुटी है. अब देखना है कि आगे क्या होता है.

कथा लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी. पुलिस ने महिमा को सरकारी गवाह बना लिया था और बाकी तीनों आरोपियों अर्चना नाग, जगबंधु चांद और खगेश्वर नाथ को जेल भेज दिया गया था.

इस हनीट्रैप स्कैंडल से भुवनेश्वर में भूचाल आ गया था, सामाजिक संस्थाएं अर्चना नाग का साथ देने वालों के नाम उजागर करने के लिए पुलिस पर दबाव बनाए हुए थे.    द्य

—कथा में महिमा परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर – भाग 3

योजना को अंजाम देने के लिए परमानंद ने एक योजना बनाई. योजना के अनुसार, वह और उस का परिवार एकदम शांति से रहने लगा ताकि हिमांशु को रास्ते से हटाने के बाद सभी को यही लगे कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है. परमानंद अभी यह तानाबाना बुन ही रहा था कि एक नई घटना घट गई.

20 अप्रैन, 2017 को सोनी फिर हिमांशु के साथ भाग गई. इस बार हिमांशु के साथ हिमांशु का परिवार भी खड़ा था. दोनों का प्यार देख कर घर वालों ने दोनों की सहमति से मंदिर में शादी करा दी थी. शादी के 15 दिनों बाद हिमांशु और सोनी फिर गांव लौट आए. इस बार सोनी अपने घर के बजाय हिमांशु के घर गई.

हिमांशु और सोनी के लौटने की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. गांव वाले दोनों की हिम्मत देख कर हतप्रभ थे कि हिम्मत तो देखिए रिश्तों को कलंकित करते कलेजे को ठंडक नहीं पहुंची जो गांव को बदनाम करने फिर से यहां आ गए. खैर, जैसे ही ये खबर परमानंद को मिली तो उस का खून खौल उठा. वह आपे से बाहर हो गया.

अगले दिन यानी 5 जून, 2017 को सुबह के करीब 10 बजे गांव में पंचायत बुलाई गई. पंचायत परमानंद के दरवाजे के सामने रखी गई. उस में सैकड़ों की तादाद में गांव वालों के अलावा 21 पंच जुटे. सभी पंच परमानंद के पक्ष में खड़े उस की हां में हां मिला रहे थे. पंचायत में हिमांशु के परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं था.

पंचायत की अगुवाई गांव का गणेश यादव कर रहा था. एक दिन पहले ही गणेश यादव जेल से जमानत पर रिहा हुआ था. पंचायत में प्रताप यादव सिपाही भी था. वह बक्सर में तैनात था और कुछ दिनों की छुट्टी पर घर आया था. इसी की मध्यस्थता में पंचायत शुरू हुई थी.

10 बजे शुरू हुई पंचायत शाम 5 बजे तक चली. अंत में पंचों ने एकमत हो कर हिमांशु के खिलाफ तुगलकी फरमान सुना दिया कि हिमांशु ने जो किया वह बहुत गलत किया. उस की करतूतों से गांव की भारी बदनामी हुई है. उसे उस की गलती की सजा तो मिलनी ही चाहिए ताकि आइंदा गांव का कोई दूसरा युवक ऐसी जुर्रत करने के बारे में सोच भी न सके.

सभी पंचों ने कहा कि हिमांशु की गलती की सजा मौत है. उसे जान से मार देना चाहिए. इस पर पंचायत के सभी लोग सहमत हो गए. सभी ने लाठी, डंडा, तलवार, पिस्टल, ईंट आदि ले कर उस के घर पर एकाएक हमला बोल दिया.

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हिमांशु यादव घर पर ही था. उस के घर का दरवाजा बंद था. दरवाजे को तोड़ कर लोग उसे घर के भीतर से खींच लाए और उस का शरीर गोलियों से छलनी कर के पूरी भड़ास निकाल दी. इस के बाद महिलाएं उस की गर्भवती पत्नी सोनी को भी कमरे से खींच कर कहीं ले गईं. उस दिन के बाद से आज तक उस का कहीं पता नहीं चला कि वह जिंदा भी है या उस के साथ कोई अनहोनी हो चुकी है.

बेटे और बहू को बचाने गई हिमांशु की मां जेलस देवी भी पंचों के कोप का शिकार बन गई. उसे भी मारमार कर अधमरा कर दिया गया. पंच बने आतताइयों का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उन्होंने उस के घर को आग लगा दी और फरार हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना की सूचना जैसे ही थाना कजरैली के थानाप्रभारी विजय कुमार को मिली तो उन के हाथपांव फूल गए. वह तत्काल मयफोर्स के घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. मौके पर पहुंचते ही सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएसपी मनोज कुमार, एसपी (सिटी)  और सीओ गौराचक्क गांव पहुंच गए. पीडि़त परिवार के लोगों से मिलने के बाद पुलिस ने आतताइयों के घर दबिश दी लेकिन वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले.

पुलिस ने हिमांशु की घायल मां जेलस देवी को इलाज के लिए मायागंज अस्पताल पहुंचवा दिया. हिमांशु की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. मौके से कई खाली खोखे बरामद हुए. गांव का तनावपूर्ण माहौल देखते हुए एसएसपी ने वहां पीएसी की 2 टुकडि़यां तैनात कर दीं ताकि शांति व्यवस्था बनी रहे.

पुलिस ने अस्पताल में जेलस देवी के बयान लिए तो उस ने पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. उस के बयान के आधार पर कजरैली थाने में हत्या, हत्या का प्रयास और बलवा करने की विभिन्न धाराओं में 21 आरोपियों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज हुआ.

मामले में बहू सोनी के पिता और मुख्य आरोपी परमानंद यादव सहित सुनील यादव, भितो यादव, सुमन यादव, सीताराम यादव, विवेक यादव, प्रकाश यादव उर्फ विक्की, पूसो यादव, राजा यादव, पंकज यादव, प्रकाश यादव, अधिक यादव, प्रताप यादव (सिपाही), विजय यादव, अजब लाल यादव, गणेश यादव, वरुण यादव, सुमन यादव, अरुण यादव, कुशी यादव और गोपाल यादव को नामजद आरोपी बनाया गया.

हिमांशु यादव की पत्नी सोनी यादव के अपहरण का अलग से मुकदमा दर्ज किया गया. इस मुकदमे में आरोपी आशा देवी, राधा देवी, रुक्मिणी देवी, मनीषा देवी, अंजू देवी, अन्नू देवी, नागो यादव और अब्बो देवी को नामजद दिया गया. यह सब भी अपनेअपने घर से फरार मिलीं. पर 2 हमलावर प्रकाश यादव और राजा यादव पुलिस के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने उन से पूछताछ कर उन्हें जेल भेज दिया. घटना के बाद गांव के लोग 2 खेमों में बंट गए.

धीरेधीरे 10-12 दिन बीत गए. हिमांशु हत्याकांड और सोनी अपहरण के आरोपियों का पुलिस पता तक नहीं लगा सकी. समाचार पत्र इस लोमहर्षक घटना की खबरें छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर रहे थे. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने 20 जून, 2017 को न्यायालय से आरोपियों की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए.

आरोपियों को जब पता चला कि पुलिस ने न्यायालय से उन की संपत्ति के कुर्कीजब्ती के आदेश ले लिए हैं तो सीताराम यादव, सुनील यादव, विवेक यादव, अरुण यादव, कुशो यादव और सुमन यादव ने 14 जुलाई, 2017 को अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार मिश्रा की कोर्ट में सरेंडर कर दिया. कोर्ट से सभी आरोपियों को जेल भेज दिया.

इस के पहले भी 2 आरोपियों ने कोर्ट में सरेंडर किया था और 3 को पुलिस पहले गिरफ्तार कर चुकी थी. बाकी अभियुक्तों को भी पुलिस तलाशती रही. 30 जुलाई, 2017 को मुख्य आरोपी परमानंद यादव को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बांका जिले से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से सोनी के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जताई.

इस केस में अजब लाल यादव भी आरोपी था. जबकि उस के घर वालों का कहना है कि उस का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है. उस की बेटी अनुष्ठा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयेग को पत्र लिख कर कहा कि उस के पिता को गलत फंसाया गया है. मानवाधिकार आयोग ने 8 जनवरी, 2018 को एसएसपी मनोज कुमार से हिमांशु हत्याकांड की ताजा रिपोर्ट देने को कहा.

आयोग के सवालों के जवाब देने के लिए एसएसपी ने डीएसपी (सिटी) को अधिकृत कर दिया. कथा लिखे जाने तक जवाब तैयार नहीं हुआ था. अपहृत सोनी का कुछ पता नहीं चल सका था. हिमांशु के घर वालों ने अपहरण कर के सोनी की हत्या की आशंका जताई है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां के लिए बेटियां बनी अपराधी – भाग 3

कंबल में लिपटे नवजात के पास दूध की बोतल रखी थी. उस के सिर पर गर्म टोपा और पैरों में गर्म पायजामी थी. बच्चे के फुल स्लीव स्वेटर पर सेफ्टी पिन से एक पत्र लगा हुआ था. पत्र पर लिखा था, ‘यह बच्चा भरतपुर के जनाना अस्पताल से चोरी हुआ है, कृपया इसे इस के मांबाप को सौंप दें.’

लोगों की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची. नवजात को एंबूलेंस से भरतपुर के जनाना अस्पताल लाया गया. अस्पताल में 4 दिन से बदहवास पड़ी मनीषा ने अपने कलेजे के टुकड़े को देखते ही पहचान लिया.

मनीषा और उस की सास समीना ने बच्चे की बलाइयां लीं और उसे जी भर के दुलार किया. डाक्टरों ने नवजात का स्वास्थ्य परीक्षण कर के उसे आईसीयू में भरती करा दिया.

SOCIETY

दूसरी ओर भरतपुर पुलिस ने मथुरा में 1361 नंबर की सफेद स्कूटी के मालिक का पता लगा कर स्कूटी जब्त कर ली. यह स्कूटी मथुरा के रामवीर नगर निवासी सेना के सूबेदार की पत्नी मीना देवी के नाम पर थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने मीना देवी की शिक्षिका बेटी शिवानी को हिरासत में ले लिया.

शिवानी को पुलिस भरतपुर ले आई और उस से व्यापक पूछताछ की. पूछताछ के आधार पर पुलिस शिवानी की बहन प्रियंका को भी आगरा से भरतपुर ले आई.

भरतपुर की मथुरा गेट थाना पुलिस ने 14 जनवरी को दोनों बहनों को बच्चे के अपरहण के मामले में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में दोनों बहनों से जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी—

मथुरा के रहने वाले सेना के सूबेदार लक्ष्मण सिंह जाट की शादी मीना देवी से हुई थी. कालांतर में उन के 4 बच्चे हुए. 3 बेटियां और 1 बेटा. उन्होंने 2 बेटियों की शादी कर दी थी, जबकि 14 साल के एकलौते बेटे की 2016 में असामयिक मौत हो गई थी. तीसरी 15 वर्षीय बेटी खुशबू मथुरा में मातापिता के पास रहती थी.

एकलौते भाई की मौत से दोनों बड़ी बहनों को तो झटका लगा ही, उन की मां मीना देवी डिप्रेशन में आ गई थीं. लक्ष्मण सिंह को बेटे की चाहत थी. इस के लिए रिश्तेदार और करीबी लक्ष्मण सिंह पर दूसरी शादी के लिए दबाव बना रहे थे. क्योंकि मीना देवी फिर गर्भवती नहीं हो पा रही थीं.

डिप्रेशन की हालत में मीना देवी ने एक बार सुसाइड करने का भी प्रयास किया था. उन्होंने कोई बेटा गोद लेने की भी कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली थी. मां का घर न उजड़े, इस के लिए दोनों बड़ी बेटियां शिवानी व प्रियंका तरकीब सोचने लगीं. दोनों बहनों के नाना लाल सिंह भी चाहते थे कि उन की बेटी मीना का घर बसा रहे. इस बीच दोनों बहनों ने पिता व अन्य घर वालों के बीच यह बात फैला दी कि उन की मां गर्भवती है.

दोनों बहनों ने किसी नवजात को खरीदने के लिए मथुरा व आगरा के निजी अस्पतालों में भी बात की थी. एक नर्स के माध्यम से बच्चा खरीदने की बात तय भी हो गई थी, लेकिन जिस प्रसूता का बच्चा लेना था, उस की मौत हो गई. इस से दोनों बहनों को अपनी मां के गर्भवती बताने की योजना पर पानी फिरता नजर आया.

इस के बाद मीना देवी के पिता लाल सिंह कई दिनों तक हरियाणा के मेवात इलाके में नवजात खरीदने के लिए घूमे. उन्हें किसी नर्स ने बताया था कि मेवात इलाके में गरीब लोग सक्षम न होने के कारण नवजात बच्चा बेच सकते हैं.

काफी प्रयासों के बाद भी जब किसी नवजात का इंतजाम नहीं हुआ तो दोनों बहनों शिवानी व प्रियंका ने अपनी मां के लिए बच्चा चोरी करने की योजना बनाई. इस के लिए उन्हें भरतपुर का सरकारी अस्पताल सुरक्षित जगह लगी. इस पर दोनों बहनें 9 जनवरी को भरतपुर आईं और अस्पताल में किसी नवजात बच्चे की तलाश की, लेकिन वे किसी बच्चे को ले जाने में कामयाब नहीं हुईं.

इस के अगले दिन 10 जनवरी को दोनों बहनें मां की स्कूटी से मथुरा से भरपुर आईं. उन्होंने अपनी स्कूटी जनाना अस्पताल के बाहर पार्किंग में खड़ी की. शिवानी अस्पताल में अंदर चली गई, जबकि प्रियंका अस्पताल के अंदरबाहर चक्कर लगा कर शिवानी पर नजर रखती रही.

शिवानी ने अस्पताल के वार्ड में भरती मनीषा की सास की गोद में नवजात को देख कर सब से पहले यही पूछा कि लड़का है या लड़की.

समीना ने जब उसे बताया कि लड़का है तो शिवानी को अपनी योजना सफल होती नजर आई. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा कर बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. इस बीच समीना जब चायनाश्ता करने अस्पताल से बाहर चली गई तो शिवानी ने मनीषा को शौचालय चलने की बात कही. मनीषा के शौचालय में घुसते ही शिवानी बच्चे को ले कर तेजी से अस्पताल से बाहर निकल आई.

प्रियंका ने उसे बच्चे के साथ आता देख कर पार्किंग से स्कूटी निकाल ली. इस दौरान समीना ने अपने पोते का कंबल पहचान कर शिवानी को टोका तो वह रुकने के बजाय बाहर स्कूटी ले कर तैयार खड़ी प्रियंका के साथ भाग निकली.

दोनों बहनें स्कूटी से बच्चे को ले कर भरतपुर से सीधे मथुरा पहुंचीं. मथुरा से उन्होंने मां मीना देवी और आगरा में नाना लाल सिंह को बच्चा खरीद कर लाने की बात बताई. बाद में प्रियंका अपनी ससुराल आगरा चली गई.

जांच में सामने आया कि वारदात के बाद दोनों बहनें पुलिस की गतिविधि पर नजर रखे हुए थीं. पुलिस का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था. यह देख कर दोनों बहनें 13 जनवरी की सुबह बच्चे को भरतपुर सीमा में रारह में सांतरुक स्थित नहर के पास लावारिस छोड़ कर लौट आई थीं.

दोनों बहनों में 20 साल की प्रियंका छोटी है और 23 साल की शिवानी बड़ी. मथुरा के रहने वाले पुष्पेंद्र जाट की पत्नी शिवानी एक निजी स्कूल में शिक्षिका है, जबकि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हाथरस के सरूपा नौगावां निवासी और आजकल आगरा में रह रहे भूपेंद्र सिंह जाट की पत्नी प्रियंका बीए की पढ़ाई कर रही है.

शिवानी को औपरेशन से बेटी हुई थी. उसे डाक्टरों ने 2 साल तक बच्चा पैदा नहीं करने की सलाह दी थी. प्रियंका शादी के तुरंत बाद गर्भवती हो गई थी, लेकिन परीक्षा होने के कारण उस ने गर्भपात करा दिया था. इस से उस के ससुराल वाले नाराज थे. वारदात के दौरान वह 15 दिन से मायके में थी.

पुलिस ने शिवानी व प्रियंका को 15 जनवरी, 2018 को अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. शिक्षा के पेशे से जुड़ी और एक बेटी की मां शिवानी ने पढ़ीलिखी छोटी बहन के साथ मिल कर अपनी मां का टूटता घर बसाए रखने के लिए बच्चे को चुरा कर एक मां को जो यातना दी, उस अपराध के लिए कानून उन्हें सजा देगा. लेकिन इस वारदात ने दोनों के घर वालों व ससुराल वालों के सिर भी शर्म से झुका दिए.

कभी-कभी ऐसा भी – भाग 3

हालांकि मैं उन्हें बिलकुल नहीं जानती थी. यहां तक कि उन का नामपता भी मुझे मालूम नहीं था लेकिन कोई भी अच्छाबुरा व्यक्ति अपने कर्मों से पहचाना जाता है. मेरी मदद कर के उन्होंने साबित कर दिया था कि वे अच्छे लड़के हैं और अब उन की मदद करने की मेरी बारी थी. ऐसे कैसे ये पुलिस वाले किसी को भी जबरदस्ती पकड़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेंगे और गुनाहगार शहर में दंगा मचाने को आजाद घूमते रहेंगे.

मैं ने कहा, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, मैं इन्हें जानती हूं. ये बड़े अच्छे लड़के हैं. मेरे भाई हैं. आप गलत लोगों को पकड़ लाए हैं. इन्हें छोड़ दीजिए.’’

‘‘अरे मैडम, इन के मासूम और भोले चेहरों पर मत जाइए. जब चोर पकड़ में आता है तो वह ऐसे ही भोला बनता है. बड़ी मुश्किल से तो ये दोनों पकड़ में आए हैं और आप कहती हैं कि इन्हें छोड़ दें… और फिर ये आप के भाई कैसे हुए? दोनों तो मुसलिम हैं और अभी आप ने चालान की रसीद पर पूरबी अग्रवाल के नाम से साइन किया है तो आप हिंदू हुईं न,’’ बीच में वह पुलिस वाला बोल पड़ा जिस से मैं ने अपनी गाड़ी छुड़वाई थी.

उस के बेढंगे बोलने के अंदाज पर मुझे बहुत ताव आया और बोली, ‘‘इंस्पेक्टर, कुछ इनसानियत के रिश्ते हर धर्म, हर जाति से बड़े होते हैं. वक्त पड़ने पर जो आप के काम आ जाए, आप का सहारा बन जाए, बस उस मानवतारूपी धर्म और जाति का ही रिश्ता सब से बड़ा होता है. कुछ दिन पहले मैं एक मुसीबत में फंस गई थी, उस समय मेरी मदद करने को तत्पर इन लड़कों ने मुझ से मेरी जाति और धर्म नहीं पूछा था. इन्होंने मुझ से तब यह नहीं कहा था कि अगर आप मुसलिम होंगी तभी हम आप की मदद करेंगे. इन्होंने महज इनसानियत का धर्म निभाया था और मुश्किल में फंसी मेरी मदद की थी.’’

‘‘इंस्पेक्टर साहब, शायद मेरी समझ से जो इस धर्म को अपना ले, वह इनसान सच्चा होता है, निर्दोष होता, बेगुनाह होता है, गुनहगार नहीं. उस वक्त अपनी खुशी से मैं ने इन्हें कुछ देना चाहा तो इन्होंने लिया नहीं और आप कह रहे हैं कि…’’

मेरी उन बातों का शायद उन पुलिस वालों पर कुछ असर पड़ा. लड़के भी मेरी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे थे. एक बोला, ‘‘मैडम, आप बचा लीजिए हमें. यह जबरदस्ती की पकड़ हमारी जिंदगी बरबाद कर देगी.’’

मैं ने भरोसा दिलाते हुए उन से कहा, ‘‘डोंट वरी, कुछ नहीं होगा तुम लोगों को. अगर उस दिन मैं ने तुम्हें न जाना होता और तुम ने मेरी मदद नहीं की होती तो शायद मैं भी कुछ नहीं कर पाती लेकिन किसी की निस्वार्थ भाव से की गई सेवा का फल तो मिलता ही है. इसीलिए कहते हैं न कि जिंदगी में कभीकभी मिलने वाले ऐसे मौकों को छोड़ना नहीं चाहिए. अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए कि आप के हाथों किसी का भला हो जाए.’’

मेरी बातों के प्रभाव में आया एक पुलिस वाला नरम लहजे में बोला, ‘‘देखिए मैडम, इन लड़कों को उस पर्स वाली मैडम ने पकड़वाया है. अब अगर वह अपनी शिकायत वापस ले लें तो हम इन्हें छोड़ देंगे. नहीं तो इन्हें अंदर करने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.’’

‘‘तो वह मैडम कहां हैं? फिर उन से ही बात करते हैं,’’ मैं ने तेजी से कहा. ऐसा लग रहा था जैसे कि कुछ अच्छा करने के लिए ऊर्जा अंदर से ही मिल रही थी और रास्ता खुदबखुद बन रहा था.

‘‘वह तो इन लोगों को पकड़वा कर कहीं चली गई हैं. अपना फोन नंबर दे गई हैं, कह रही थीं कि जब ये उन के पर्स के बारे में बता दें तो आ जाएंगी.’’

‘‘अच्छा तो उन्हें फोन कर के यहां बुलाइए. देखते हैं कि वह क्या कहती हैं? उन से ही अनुरोध करेंगे कि वह अपनी शिकायत वापस ले लें.’’

पुलिस वाले अब कुछ मूड में दिख रहे थे. एक पुलिस वाले ने फोन नंबर डायल कर उन्हें थाने आने को कहा.

फोन पहुंचते ही वह मैडम आ गईं. उन्हें देखते ही मेरे मुंह से निकला, ‘‘अरे, मिसेज सान्याल…’’ वह हमारे आफिसर्स लेडीज क्लब की प्रेसीडेंट थीं और मैं सेके्रटरी. इसी चक्कर में हम लोग अकसर मिलते ही रहते थे. आज तो इत्तफाक पर इत्तफाक हो रहे थे.

मुझे थाने में देख कर वह भी चौंक गईं. बोलीं, ‘‘अरे पूरबी, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मिसेज सान्याल, मेरी गाड़ी को पुलिस वाले बाजार से उठा कर थाने लाए थे, उसी चक्कर में मुझे यहां आना पड़ा. पर ये लड़के, जिन्हें आप ने पकड़वाया है, असली मुजरिम नहीं हैं. आप देखिए, क्या इन्होंने ही आप का पर्स झपटा था.’’

‘‘पूरबी, पर्स तो वे मेरा पीछे से मेरे कंधे पर से खींच कर तेजी से चले गए थे. एक बाइक चला रहा था और दूसरे ने चलतेचलते ही…’’ इत्तफाक से मेरे पीछे से एक पुलिस जीप आई, जिस में ये दोनों पुलिस वाले बैठे थे. मेरी चीख सुन के इन्होंने मुझे अपनी जीप में बिठा लिया. तेजी से पीछा करने पर बाइक पर सवार ये दोनों मिले और बस पुलिस वालों ने इन दोनों को पकड़ लिया. मुझे लगा भी कि ये दोनों वे नहीं हैं, क्योंकि इतनी तेजी में भी मैं ने यह देखा था कि पीछे बैठने वाले के, जिस ने मेरा पर्स झपटा था, घुंघराले बाल नहीं थे, जैसे कि इस लड़के के हैं. वह गंजा सा था और उस ने शाल लपेट रखी थी, जबकि ये लड़के तो जैकेट पहने हुए हैं.

‘‘इन पुलिस वाले भाईसाहब से मैं ने कहा भी कि ये लोग वे नहीं हैं मगर इन्होंने मेरी सुनी ही नहीं और कहा कि अरे, आप को ध्यान नहीं है, ये ही हैं. जब मारमार के इन से आप का कीमती पर्स निकलवा लेंगे न तब आप को यकीन आएगा कि पुलिस वालों की आंखें आम आदमी से कितनी तेज होती हैं.’’

फिर मिसेज सान्याल ने तेज स्वर में उन से कहा, ‘‘क्यों, कहा था कि नहीं?’’

पुलिस वालों से तो कुछ कहते नहीं बना, लेकिन बेचारे बेकसूर लड़के जरूर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए बोले, ‘‘मैडम, अगर हम आप का पर्स छीन कर भागे होते तो क्या इतनी आसानी से पकड़ में आ जाते. अगर आप को जरा भी याद हो तो आप ने देखा होगा कि मैं बहुत धीरेधीरे बाइक चला रहा था क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले ही मेरे हाथ में फ्रैक्चर हो गया था. आप चाहें तो शहर के जानेमाने हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. संजीव लूथरा से पता कर सकते हैं, जिन्होंने मेरा इलाज किया था.

‘‘हम दोनों यहां के एक मैनेजमेंट कालिज से एम.बी.ए. कर रहे हैं. आप चाहें तो कालिज से हमारे बारे में सबकुछ पता कर सकती हैं. इंस्पेक्टर साहब, आप की जरा सी लापरवाही और गलतफहमी हमारा कैरियर चौपट कर देगी. देश का कानून और देश की पुलिस जनता की रक्षा के लिए है, उन्हें बरबाद करने के लिए नहीं. हमें छोड़ दीजिए, प्लीज.’’अब बात बिलकुल साफ हो चुकी थी. पुलिस वालों की आंखों में भी अपनी गलती मानने की झलक दिखी. मिसेज सान्याल ने भी पुलिस से अपनी शिकायत वापस लेते हुए उन लोगों को छोड़ देने और असली मुजरिम को पकड़ने की प्रार्थना की. मुझे भी अपने दिल में कहीं बहुत अच्छा लग रहा था कि मैं ने किसी की मदद कर एक नेक काम किया है.

सचमुच, जिंदगी में कभीकभी ऐसे मोड़ भी आ जाते हैं जो आप के जीने की दिशा ही बदल दें. पुलिस के छोड़ देने पर वे दोनों लड़के वाकई मेरे भाई जैसे ही बन गए. बाहर निकलते ही बोले, ‘‘आप ने पुलिस से हमें बचाने के लिए अपना भाई कहा था न, आज से हम आप के बस भाई ही हैं. अब आप को हम मैडम नहीं ‘दीदी’ कहेंगे और हमारे अलगअलग धर्म कभी हमारे और आप के पाक रिश्ते में आड़े नहीं आएंगे. हमारा मोबाइल नंबर आप रख लीजिए, कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय अच्छीबुरी कोई बात हो, अपने इन भाइयों को जरूर याद कर लेना दीदी, हम तुरंत आप की सेवा में हाजिर हो जाएंगे.’’

उन का मोबाइल नंबर अपने मोबाइल में फीड कर के मैं मुसकरा दी थी और अपनी पकड़ी गई गाड़ी को ले कर घर आ गई. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये सब हकीकत में मेरे साथ हुआ, लग रहा था कि जैसे किसी फिल्म की शूटिंग देख कर आ रही हूं. घर पहुंच कर, इत्मीनान से चाय के सिप लेती हुई श्रेयस को फोन किया और सब घटना उन्हें सुनाई तो खोएखोए से वह भी कह उठे, ‘‘पूरबी, होता है, कभीकभी ऐसा भी जिंदगी में…’

पहले सास के साथ बनाए अवैध संबंध, फिर इस वजह से कर दिया मर्डर

दिलचस्प और चिंतनीय मामला भोपाल के अशोका गार्डन इलाके का है. जुर्म और देह व्यापार के लिए बदनाम इस इलाके में बीती 20 अक्तूबर को उस वक्त सनसनी मच गई जब एक अधेड़ उम्र की औरत की लाश अशोक विहार कालोनी के एक फ्लेट से बरामद हुई. पुलिस को इसी इलाके के एक वाशिंदे ने खबर दी थी कि कालोनी के एक फ्लेट में कत्ल हो गया है. पुलिस जब फ्लेट पर पहुंची तो वहां उसका सामना खून से लथपथ पड़ी शाहीन नाम की औरत की लाश से हुआ.

लाश को पोस्ट मार्टम के लिए भेजकर पुलिस ने पूछताछ और छानबीन शुरू की तो कई चौंका देने वाली बातें सामने आईं जिनमें से पहली यह थी कि शाहीन देह व्यापार करती थी और इस फ्लेट में एक नौजवान नाम शाहरुख खान के साथ रहते थी जो उसका दामाद है. दरअसल में कुछ साल पहले ही शाहरुख की शादी शाहीन के बेटी शबनम ( बदला नाम ) से हुई थी.

आमतौर पर जैसा होता है कि शादी के बाद के कुछ दिन तो ठीक ठाक गुजरे लेकिन इसके बाद शाहीन और शाहरुख एक दूसरे को दिल दे बैठे. जब सास जवाईं के मन मिल गए तो तन मिलने में भी देर नहीं लगी. दोनों पहले तो चोरी छुपे और फिर चोरी न छुपने पर दिन दहाड़े जिस्मानी ताल्लुकात बनाने लगे. नौबत यहां तक आ पहुंची कि शबनम कुछ न कर पाने की बेबसी के चलते अपने नाना के यहां रहने चली गई और शाहीन ने दामाद शाहरुख को पाने के लिए अपने शौहर को तलाक दे दिया. इसके बाद सास दामाद दोनों अलग लिव इन में रहने लगे.

अब तक बात समाज और रिश्तेदारी में आम हो चुकी थी लेकिन किसी ने इनके चक्कर में अपनी टांग नहीं अड़ाई . कुछ दिनों बाद ही शाहरुख को एक ऐसी बात पता चली जो कुछ लोगों को पहले से ही मालूम थी कि शाहीन देह व्यापार करती है. यह बात जानकारी में आते ही शाहरुख ने उसे इस दलदल से बाहर आने को कहा तो शाहीन ने इंकार कर दिया. लिहाजा दोनों में हर कभी झगड़ा होने लगा. अब शाहरुख को समझ आया कि देह व्यापार करने वाली अपनी सास के लिए उसने शबनम जैसी नेक बीवी को छोडकर भारी गलती कर डाली है लेकिन बात इतनी बिगड़ चुकी थी कि अब कुछ हो भी नहीं सकता था.

शबनम पर जो गुजर रही थी उसका अंदाजा शायद ही कोई लगा सके. एक तरफ जन्म देने वाली मां थी तो दूसरे तरफ वह शख्स था जिसे वह निकाह के बाद सरताज मानने लगी थी लेकिन इन दोनों ने ही उसके जज़्बातों और अपने रिश्ते की कद्र और परवाह ना करते जो किया था वह किसी भी बीवी के लिए किसी सदमे से कम नहीं था .

बहरहाल अपने किए पर पछता रहे शाहरुख ने शाहीन को 19 अक्तूबर को फिर समझाया कि वह जिस्म के कारोबार को छोड़ दे और उसके साथ इज्जत से रहे तो शाहीन ने साफ मना कर दिया. इस पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ और गुस्साये शाहरुख ने अपनी सास या लिव इन पार्टनर कुछ भी कह लें का गला रेत दिया और उसे तड़प तड़प कर मरने छोड़ फरार हो गया.

जाते जाते उसने यह बात और शाहीन की हकीकत अपने एक दोस्त को बता दी थी. इसी दोस्त के जरिये पुलिस को पता चला कि मामला क्या था तो पुराने मामले खोलने यानि तफ्शीश में उसे पता चला कि शाहीन एक साल पहले ही देह व्यापार के मामले में गिरफ्तार भी हो चुकी है. इन लाइनों के लिखे जाने तक शाहरुख गिरफ्तार नहीं हो पाया था लेकिन लग नहीं पा रहा कि वह ज्यादा दिनों तक पुलिस से बच पाएगा.

लेकिन सोचने वाली बात यह है कि शाहीन ने क्या सोचकर अपनी ही बेटी का घर उजाड़ डाला और बेटे समान दामाद के साथ शारीरिक संबंध बना डाले, इस बारे में हालफिलहाल सभी खामोश हैं शाहीन का शौहर भी कुछ नहीं बोल रहा और शबनम भी चुप है और यह तय है कि इन दोनों के पास बोलने को कुछ बचा भी नहीं है, एक का शौहर बेईमान निकला तो दूसरे की बीबी बेवफा निकली.

जाने क्यों शाहरुख ने भी यह नहीं सोचा कि अच्छी खासी जवान बीवी को छोड़ अधेड़ उम्र की बदचलन सास के साथ नाजायज तरीके से रहने से उसे क्या मिलेगा. अब अदालत में जो होगा सो होगा लेकिन असल इंसाफ तो हो ही गया है. शाहीन ने बेटी से उसका शौहर छीनने का जो गुनाह किया था उसकी सजा तो उसे वही दामाद दे गया और शाहरुख बीवी को छोड़ सास को ही बीवी बनाने की सजा अभी फरारी की शक्ल में भुगत रहा है और पकड़े जाने के बाद जेल की चक्की पीसते भुगतेगा.

हर मां चाहती है कि बेटी को हेंडसम और स्मार्ट पति मिले जो उसे दुनिया भर के सुख दे लेकिन इस मामले को देख लगता है कि शायद शाहीन शबनम से जलती थी जो उसने जानबूझकर शाहरुख को अपने हुस्न और अदाओं के जाल में फंसाया, तब उसे लगा होगा कि अब शाहरुख भी उसके इशारों पर नाचेगा लेकिन यह वह भूल गई थी कि शाहरुख उसका ग्राहक नहीं बल्कि कम उम्र कच्चा आशिक है जो उसे सही रास्ते पर लाना चाहता था पर वह नहीं मानी तो अंजाम एक हैरतअंगेज जुर्म की शक्ल में सामने आया.

प्यार और इंतकाम के लिए मौत की अनोखी साजिश – भाग 4

दादा ब्रह्म सिंह ने दुनिया देखी थी, उन्हें पता था कि जवान लड़की जब एक बार किसी इंसान से दिल लगा बैठती है तो ज्यादा दिन तक उस के पांव में बंधन की बेडि़यां नहीं डाली जा सकतीं. लिहाजा उन्होंने जल्द से जल्द पायल के हाथ पीले करने का मन बना लिया.

इस के बाद चाचा, ताऊ और दादा सब मिल कर पायल के लिए लड़का देखने लगे. उस के लिए गहने भी तैयार करवाए जा रहे थे. दिल्ली और दूसरे इलाकों में पायल के लिए लड़के भी देखे जा रहे थे. लेकिन पायल तो अजय के साथ रहना चाहती थी.

पायल के दिल में पहले से ही इस बात की टीस थी कि उस के मातापिता ने जिन लोगों से परेशान हो कर खुदकुशी की थी, वे आजाद घूम रहे हैं.

दरअसल, पायल के परिवार ने जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था, उन्होंने कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की और 3 आरोपियों को अग्रिम जमानत मिल गई थी. इधर चाचा, ताऊ व दादा ने उस के प्यार को भी उस से दूर रखने की जिद पकड़ ली थी.

अपने प्यार को हासिल करने और इंतकाम को पूरा करने के लिए पायल के दिमाग में अपराध का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वह सोचने लगी कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि अजय हमेशा के लिए उस का हो जाए और मातापिता की मौत के जिम्मेदार लोगों को भी वह सजा दे सके.

दादरी पुलिस ने पायल के परिवार की शिकायत पर पायल के मातापिता की मौत में आत्महत्या के लिए प्रेरित करने की धारा में मुकदमा दर्ज किया था. जिस में स्वाति, उस के भाई और 2 अन्य लोगों को नामजद कराया गया था. लेकिन दादरी पुलिस नामजद किए गए आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी.

क्योंकि उन की गिरफ्तारी से पहले पायल के मातापिता की विसरा रिपोर्ट की जरूरत थी, जो अभी तक नहीं मिली थी. इसलिए पायल दुखी थी और मातापिता की मौत के जिम्मेदार लोगों से खुद ही बदला लेना चाहती थी.

टीवी सीरियल से पायल को मिला था आइडिया

पायल के दिमाग में अपराध का जो कीड़ा कुलबुला रहा था, उस के तहत उस ने एक फिल्मी साजिश रची, जिस में पायल को अपनी जगह किसी दूसरी लड़की का कत्ल कर के उसेअपनी पहचान दे कर फरार होना था. पायल को यह आइडिया एक टीवी सीरियल से मिला था.

दरअसल, कई साल पहले पायल ने एक टीवी सीरियल देखा था ‘कुबूल है’, जिस में एक लड़की अपनी शक्लसूरत और कदकाठी से मिलती किसी दूसरी लड़की की हत्या कर उस का चेहरा जला देती है ताकि उस की पहचान न हो सके.

बाद में शव के पास कुछ ऐसी चीजें छोड़ देती है, जिस से लोग दूसरी लड़की के शव को उसी का समझें. बाद में खुद को मरा साबित करने वाली लड़की अपराध की वारदातों को अंजाम देती है.

इस सीरियल के अलावा भी पायल ने ऐसे कुछ किस्सेकहानियां पढ़े थे, जिन में कोई शख्स किसी दूसरे आदमी की हत्या कर उसे अपनी पहचान दे देता है. इसी से प्रेरित हो कर पायल ने भी अजय ठाकुर से कहा कि अगर वह उस की मदद कर दे तो 2 काम एक साथ हो सकते हैं. वे जिंदगी भर के लिए साथ हो सकते हैं और वह अपने मातापिता की मौत के जिम्मेदार लोगों से बदला भी ले सकती है.

अजय ने पूछा, ‘‘कैसे?’’

तो पायल ने उसे तरकीब भी बता दी. पायल ने कहा कि वो किसी ऐसी लड़की का इंतजाम कर दे, जिस की लंबाई 5 फुट 4 इंच हो और कदकाठी उस से मिलती होने के साथ हुलिया और बालों की बनावट भी उस के जैसी हो.

‘‘उस से क्या होगा,’’ अजय ने पूछा

‘‘तुम उस लड़की को पटा कर मेरे पास लाओगे और हम उस की हत्या कर देंगे. उस लड़की का चेहरा ऐसा कर देंगे कि उस की पहचान न हो सके. उसे अपने कपड़े पहना कर हम दोनों यहां से भाग जाएंगे. उस के बाद हम शादी भी कर लेंगे और मैं अपने दुश्मनों से इंतकाम भी ले लूंगी.’’ पायल ने पूरी प्लानिंग अजय को बता दी.

‘आइडिया तो एकदम बेहतरीन है, लेकिन पायल जैसी लड़की मिलेगी कहां.’ इस बात पर दिमाग लड़ातेलड़ाते अजय ने अपने 1-2 दोस्तों से इस बात का जिक्र भी किया. अजय का एक दोस्त था नवीन जो गौर सिटी मौल में काम करता था.

नवीन कुछ रंगीनमिजाज का था. कालगर्ल का पेशा करने वाली बहुत सी लड़कियां उस के संपर्क में थीं. वैसे भी जिस काम के लिए अजय को लड़की चाहिए थी, उस के लिए बदनाम लड़की ही उस के साथ चलने के लिए तैयार हो सकती थी.

अजय ने अपने दोस्त नवीन से कहा कि किसी अच्छी सी लड़की से उस की भी दोस्ती करवा दे ताकि वो भी मौजमस्ती कर सके. साथ ही उस ने कदकाठी और हुलिए के बारे में भी बता दिया कि कैसी लड़की चाहिए.

नवीन के पास तो ऐसी लड़कियों की भरमार थी. उस ने अपने पास मौजूद कई लड़कियों की फोटो अजय को वाट्सऐप पर भेजी, लेकिन कोई भी लड़की ऐसी नहीं थी जिस का हुलिया व कदकाठी पायल से मिलती हो.

आखिर जब उस ने हेमा चौधरी की फोटो अजय को भेजी और अजय ने वह फोटो पायल को दिखाई तो उस ने एकदम हामी भर दी. हेमा का हुलिया ही नहीं, कदकाठी और बालों की बनावट भी पायल जैसी ही थी.

दोस्त ने अजय की हेमा से कराई थी मुलाकात

बस, उस के बाद तो इस साजिश को आगे बढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया. पहले अजय ने अपने दोस्त नवीन के जरिए गौर सिटी मौल के वेन हुसैन शोरूम में काम करने वाली हेमा से मुलाकात की. शुरू की 1-2 मुलाकातों में अजय ने उस से बस कौफी शौप और पिज्जा कार्नर में बैठ कर बातचीत की और उस के साथ खानापीना किया.

इन 2 मुलाकातों में ही उस ने हेमा को 2 बार गिफ्ट दे कर उसे पूरी तरह प्रभावित कर लिया. दूसरी मुलाकात में तो उस ने हेमा को शौपिग में कुछ कपड़ों की खरीदारी भी करवा दी. इस दौरान बातों ही बातों में उस ने हेमा से इस बात की टोह ले ली थी कि अगर वो उसे अपने साथ कहीं चलने को कहे तो वह इंकार तो नहीं करेगी.

हेमा आर्थिक परेशानियों में घिरी थी. उस ने कहा कि वह चल सकती है अगर वो इस बात के लिए उसे 5 हजार रुपए दे तो. अजय को पहले से ही इस बात का अंदाजा था. लिहाजा उस ने झट से हामी भर दी. अब उसे भरोसा हो गया कि हेमा उस के साथ आंख बंद कर के चल देगी. लिहाजा उस ने पायल को यह बात बता दी.

इस के बाद 12 नवंबर, 2022 की तारीख तय हुई, जब अजय को हेमा को ले कर बढ़पुरा गांव में पायल के घर जाना था. उस दिन अजय ने सुबह ही हेमा को बता दिया कि शाम को उसे उस का दिल बहलाने के लिए साथ चलना होगा.

बिना तलाक के तलाकशुदा – भाग 3

शबाना ससुराल आ गई. ससुराल में 10-15 दिन तो ठीक से गुजरे, लेकिन उस के बाद उसे फिर से प्रताडि़त किया जाने लगा. शबाना के 3 माह के गर्भ को अफसरी गिराने में जुट गई. वह उसे तरहतरह की दवाएं खिलाने लगी. आसिफ भी उस के साथ मारपीट करने लगा.

परेशान हो कर शबाना ने पिता को फोन कर के सारी बात बता दी. समरुद्दीन दिल्ली पहुंचे और थाना संगम विहार में शिकायत दर्ज करा दी. शिकायत की एक प्रति उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग को भी भेज दी. यह मामला साकेत स्थित महिला सेल में पहुंचा. वहां सुनवाई भी हुई, पर कोई फैसला नहीं हुआ.

अफसरी और आसिफ ने तय कर लिया था कि उन्हें शबाना से छुटकारा पाना है. अब उसे उस के पिता समरुद्दीन से भी मिलने नहीं दिया जाता था. चूंकि शबाना गर्भवती थी, इसलिए आसिफ उसे तलाक भी नहीं दे सकता था. क्योंकि इसलाम में गर्भवती महिला को तलाक नहीं दिया जा सकता. उन्होंने मौलवियों से मशविरा कर के एक योजना बनाई और उसी योजना के तहत समरुद्दीन से कहा कि वह 11 जून, 2016 को पंचायत में आ कर अपनी बात कहें.

11 जून, 2016 को अलीदराज की फैक्ट्री में पंचायत बैठी. समरुद्दीन भी उस पंचायत में पहुंचे. शबाना भी अपने बच्चों के साथ पंचायत में आई. पंचों के पूछने पर शबाना ने कहा कि वह आसिफ के साथ रहना चाहती है, पर वह उस के साथ मारपीट न करे. परंतु आसिफ ने कहा कि अब वह उसे तलाक देना चाहता है. इस पर पंचों ने कहा कि वह गर्भवती पत्नी को तलाक नहीं दे सकता.

शबाना और समरुद्दीन परेशान थे. आखिर एक सादे कागज पर दोनों से जबरदस्ती दस्तखत करा लिए गए. फिर उसी कागज पर अलगअलग रहने का समझौता तैयार किया गया. उस में जो लिखा गया, उस के अनुसार मनमुटाव की वजह से शबाना और आसिफ एक साथ नहीं रहना चाहते. अत: दहेज का 30 हजार रुपए का चैक शबाना को दिया जाता है. इस के अलावा 5 हजार रुपए इद्दत के दौरान का खर्च भी दिया जाता है.

समझौते में यह भी लिखा गया था कि दोनों बच्चे अलीशा और आतिश आसिफ के पास रहेंगे. पंचायत में आसिफ ने शबाना से कह दिया कि वह समझ ले कि उस का तलाक हो चुका है. उस के दोनों बच्चे उस के पास ही रहेंगे. शबाना कहती रही कि उस के बच्चे उसे दे दिए जाएं, लेकिन किसी ने उस की एक नहीं सुनी और बापबेटी को जबरन बाहर निकाल दिया गया.

शबाना पिता के साथ एटा आ गई. मां रजिया को जब पता चला कि बेटी को उस के पति ने छोड़ दिया है तो उस पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा. गर्भवती बेटी की हालत भी खराब थी. आखिर रजिया ने अपने आंसू पोंछ कर बेटी को संभाला.

पंचायत ने आसिफ से कहा था कि वह गर्भवती पत्नी को तलाक नहीं दे सकता, लेकिन बच्चा पैदा होने के बाद वह फोन कर के 3 तलाक कह सकता है. यही योजना बना कर इद्दत के दौरान दिया जाने वाला भरणपोषण का खर्च आसिफ ने 5 हजार रुपए पहले ही दे दिए थे.

इस के बाद आसिफ ने समझ लिया कि उस का तलाक हो चुका है. बस कहना भर बाकी है. लेकिन शबाना और उस के मांबाप आसिफ और उस के घर वालों को सबक सिखाना चाहते थे.

इस संबंध में समरुद्दीन एडवोकेट मोहम्मद इरफान से मिले. समझौता देख कर उन्होंने कहा कि किसी भी दृष्टि से शबाना और आसिफ का तलाक नहीं हुआ है. इसलिए शबाना को अपने पति से बच्चे और भरणपोषण का खर्च पाने का पूरा हक है.

एडवोकेट मोहम्मद इरफान ने 24 नवंबर, 2016 को शबाना की तरफ से मुकदमा दायर करा दिया. शबाना ने 4 दिसंबर, 2016 को एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अहमद रखा गया. वह पूरी तरह से स्वस्थ है. जुलाई, 2017 में आसिफ ने बरेली की किसी लड़की से निकाह कर लिया. शादी की बात सुन कर शबाना काफी दुखी हुई. मांबाप के समझाने पर शबाना ने खुद को संभाला और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस ली.

शबाना आसिफ से अपने बच्चों की वापसी का और भरणपोषण का मुकदमा लड़ रही है. उस का कहना है कि सौतेली मां उस के बच्चों को कभी खुश नहीं रख सकेगी. 9 अगस्त, 2017 को उस ने परिवार न्यायालय एटा में सैक्शन 10 के अंतर्गत गार्जियन ऐंड वार्ड्स एक्ट का केस दायर कर दिया है.

22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. शबाना खुश है कि अब आसिफ उसे कम से कम 3 तलाक तो नहीं दे सकता. वह अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ कर उस से अपने बच्चे और गुजाराभत्ता ले लेगी. वह एक चरित्रहीन शौहर के पास जाने के बजाय अकेली रह कर स्वाभिमान के साथ जीने का प्रण कर चुकी है.

शराब के लिए पैसे नहीं दिए तो दे दिया तलाक

बिहार के जिला बेगूसराय के थाना वीरपुर की पश्चिमी पंचायत क्षेत्र में मोहम्मद शकील अपनी पत्नी रूबेदा खातून के साथ रहता था. दोनों का विवाह 22 साल पहले हुआ था और घर में 6 बच्चे थे.

शकील शराब का लती था, मजबूरी में रूबेदा ही जैसेतैसे परिवार का भरणपोषण करती थी. बिहार में नीतीश सरकार ने शराब पर पाबंदी लगाई तो शराबियों को दिन में तारे नजर आने लगे.

लेकिन शराब ऐसी चीज है, जो पाबंदी के बावजूद भी बंद नहीं होती. लोग बेचनेखरीदने के नएनए रास्ते खोज लेते हैं. गुजरात की तरह बिहार का भी हाल है. मोहम्मद शकील ने भी शराब मिलने का अड्डा तो खोज लिया, पर उसे ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ने लगी. एक दिन जब शकील ने रूबेदा से पैसे मांगे तो उस ने पैसे देने से इनकार कर दिया.

इस से शकील आपे से बाहर हो गया और गुस्से में रूबेदा को 3 बार तलाक बोल कर उस से रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दिया. घबरा कर रूबेदा ने पासपड़ोस के लोगों को हकीकत बताई. वे लोग जानते थे कि शकील आए दिन रूबेदा के साथ मारपीट करता है.

वे रूबेदा का साथ देने के वादे के साथ उसे थाना वीरपुर ले गए. जहां रूबेदा ने पूरी बात थानाप्रभारी बाबूलाल को बताई. थानाप्रभारी ने 15 अगस्त, 2017 को रूबेदा की ओर से शकील के खिलाफ उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया. लेकिन तलाक के मामले में वह भी कुछ नहीं कर सकते थे. बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद रूबेदा और उस के 6 बच्चों का भविष्य अंधकारमय होने से बच गया.

आला हजरत के खानदान की बहू भी 3 तलाक के फेर में

कोई सोच भी नहीं सकता कि 3 तलाक के चक्कर में बरेली के आला हजरत खानदान की बहू रही निदा खान मौत के आगोाश में जाने से बामुश्किल बच पाई है. 5 मई, 2017 को निदा जब अपने वालिद के घर थी, तभी करीब दर्जन भर गुंडों ने घर में घुस कर तोड़फोड़ की. निदा को कमरे में बंद कर के ताला लगा दिया गया था, इसलिए वह बच गई. बाकी घर वालों के साथ गुंडों ने मारपीट की.

बदमाश जातेजाते धमकी दे कर गए कि निदा बच नहीं पाएगी. निदा को उस के पति ने 3 तलाक कह कर घर से निकाल दिया था. इस मामले को ले कर निदा अदालत गई. उस का केस तो दर्ज हो गया, लेकिन बदले में दुश्मनी भी मिली.

निदा के भाई मोइन खान का कहना है कि जब एक दिन वह और निदा अदालत से घर लौट रहे थे तो रास्ते में कुछ बाइक सवारों ने उन के साथ बदसलूकी की और केस वापस न लेने पर जान से मारने की धमकी दी. इस के बाद उन के घर पर गुंडे आए थे. निदा अपनी लड़ाई तो लड़ ही रही है, साथ ही अपने जैसी महिलाओं की मदद भी करती है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से निदा खुश है. उसे न्याय मिल सकेगा या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा.

घर से निकलते ही – भाग 3

जोगेंद्र को सिगरेट पीने की आदत थी. उस के साथ रह कर ज्योति भी सिगरेट पीने लगी. एक दिन उस ने साथ बैठ कर शराब भी पी ली थी. उस के बाद तो दोनों बातचीत करने में काफी खुल गए. एकदूसरे की तारीफ भी करने लगे.

जोगेंद्र से हो गए अवैध संबंध

धीरेधीरे 4 महीने बीत गए. जोगेंद्र रोजाना ज्योति को साथ ले कर जाने लगा. ज्योति के घर से जाने के बाद प्रदीप पर तीनों बच्चों की जिम्मेदारी आ गई. वह ईरिक्शा चलाने के साथसाथ बच्चों की देखभाल करने लगा.

धीरेधीरे प्रदीप की दिनचर्या ही बदल गई. बच्चों की देखभाल और घरेलू कामकाज बढ़ने से रिक्शे की फेरी में कमी आ गई. जिस से आमदनी भी कम होने लगी. कामधंधा चौपट होने के कारण प्रदीप तनाव में रहने लगा. तीनों बच्चों की जिम्मेदारी संभालना प्रदीप को पहाड़ के समान लगने लगा.

इसे ले कर उस ने ज्योति से कहा, लेकिन उस ने साफ लहजे में कह दिया कि वह कंपनी में काम करना बंद नहीं करेगी. उस ने जोगेंद्र से भी बात की और ज्योति को अपने बच्चों पर भी ध्यान देने के लिए कहा. किंतु उस से भी प्रदीप को खरा जवाब ही सुनने को मिला.

दरअसल, ज्योति और जोगेंद्र के बीच नजदीकियां इतनी बढ़ गई थीं कि वे अब एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते थे. अविवाहित जोगेंद्र को शराब के साथसाथ स्त्री सुख भी मिल रहा था. ज्योति की भी तमाम इच्छाएं पूरी हो रही थीं, जो प्रदीप से पूरी होनी संभव नहीं थीं.

प्रदीप को यही बात खटकती रहती थी, लेकिन वह उन का विरोध नहीं कर रहा था.  प्रदीप के जीवन में जोगेंद्र ने जहर घोल दिया था. कहने को तो ज्योति उस की बीवी थी, लेकिन कहना जोगेंद्र का मानती थी. ज्योति का ध्यान पति समेत अपने बच्चों से भी हट चुका था, जिस से प्रदीप का जीवन नीरस बन गया था.

हालांकि प्रदीप ने ज्योति को उस की हरकत को ले कर समझाने की कोशिश की. बच्चों पर इस का गलत असर पड़ने का हवाला दिया. समाजिक और पारिवारिक मानमर्यादा की बातें समझाईं, लेकिन ज्योति के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

गांव में भी फैल गईं प्रेम प्रसंग की बातें

प्रदीप को अब अपने परिवार और खानदान की चिंता सताने लगी थी. उस के स्वाभिमान को गहरी ठेस लगी थी. कारण उस ने गांव वालों को भी ज्योति और जोगेंद्र के बीच अनैतिक संबंध को ले कर अनापशनाप बातें कहते सुना था. कुछ लोग उसे दबी जुबान में ‘जोरू का गुलाम’ कहने लगे थे.

इसे ले कर गांव वालों ने प्रदीप के बड़े भाई महेंद्र सिंह को बुला कर हिदायत तक दे दी थी कि वह अपने भाई प्रदीप को समझाए. गांव वालों की नजर में बेहयाई का पानी सिर के ऊपर जा चुका था. चेतावनी भी दी कि अगर प्रदीप ने ज्योति के खिलाफ कोई कड़ा कदम नहीं उठाया तो उस का गांव से बहिष्कार कर दिया जाएगा.

प्रदीप अपने हालात पर गमजदा हो गया था. उस रोज 26 अक्तूबर, 2022 को उस ने ठान लिया था कि ज्योति शाम को काम से लौटेगी तब वह उस से बात करेगा, समझाएगा. अगले रोज से काम पर जाने से मना करेगा.

लेकिन उस का निर्णय तब धरा का धरा रह गया, जब उस ने ज्योति को नशे की हालत में देखा और उस के सामने ही वह जोगेंद्र के साथ रात के साढ़े 10 बजे के करीब चली गई.

अगले रोज 27 अक्तूबर को ज्योति फिर नशे की हालत में आई थी. साथ में जोगेंद्र भी था. आते ही उस ने खाने की मांग की. नहीं देने पर उस ने प्रदीप की जम कर पिटाई कर दी.

यह बात पूरे गांव में फैल गई. गांव के कुछ बुजुर्गों ने प्रदीप और महेंद्र को बुला कर समझाया. उन्होंने सामाजिक रिवाज को ध्यान में रखते हुए ज्योति को अपने काबू में रखने की हिदायत दी.

उस के बाद प्रदीप और बड़े भाई महेंद्र ने ज्योति की आदत को सुधारने का निर्णय लिया. लेकिन उन के सामने सवाल था कि वह क्या करें कि ज्योति में सुधार आए. वह रंगरलियां मनाने में मस्त थी. उस बारे में कानूनी मदद भी नहीं मिल सकती थी. इस बारे में कोई कदम उठाने से परिवार की ही बदनामी होती.

प्रदीप 2 दिनों तक चुप रहा. ज्योति के सामने हिम्मत जुटा कर बात करने के लिए मन को मजबूत बनाता रहा. ज्योति भी 28 अक्तूबर की सुबह खामोश बनी रही. छोटेमोटे घरेलू कामकाज निपटाए, नहाधो कर नाश्ता बनाया और काम पर निकल गई. शाम को घर आ कर सीधा सोने चली गई. बच्चों से पूछा तक नहीं कि उन्होंने खाना खाया या नहीं.

अगले रोज 29 अक्तूबर को भी ज्योति ने ऐसा ही किया. हालांकि उस रोज बेटे ने उसे रसोई में सिगरेट पीते देख लिया था. वह उसे पुचकारते हुए पूछ बैठी थी कि रात को उस ने कुछ खाया था या नहीं? इस पर बेटे ने बोला पापा ने पकाया ही नहीं था. दिन का ही बचा खाना खा कर वह सो गया था. बहनों ने भी वही खाया था.

इस के बाद वह ‘आने दो रात को उसे बताती हूं’ कह कर काम पर चली गई थी. उस रोज शाम को ज्योति ने प्रदीप को बहुत भलाबुरा सुनाया था.

लिवइन में रहकर बेटी और बहू पर बुरी नजर – भाग 3

कल्लू ने बच्ची को गोद में उठा लिया. उसे पुचकारने लगा. तब तक पूनम उस के लिए बोतल में थोड़ा दूध भर लाई. किलकारी मारती बच्ची को कल्लू की गोद से ले कर दूध के बोतल की निप्पल उस के मुंह में लगा दी.

कल्लू और पूनम थोड़ी देर बाद कमरा देख कर लौट आए. कमरा 4 मकान के बाद ही था. कल्लू ने उस के वहां रहने का इंतजाम कर दिया. कुछ जरूरत के बरतन भी दे दिए. एक एक्सट्रा स्टोव को ठीक करवा कर उसे दे दिया. बाजार से पानी रखने के लिए बाल्टी का इंतजाम कर दिया. किराए का कुछ पैसा एडवांस भी दे दिया.

पूनम ने नए घर में पहली बार अकेले में रात गुजारी. पति की याद भी आती रही. अगले रोज सुबहसुबह कल्लू उस के कमरे पर आया और हालसमाचार लिया. पूनम ने पति के बारे में पता करने की उस से मिन्नत की.

कल्लू बोला कि उस में थोड़ा समय लगेगा. तब तक उस ने उस के लिए घरेलू नौकरानी का काम दिलवा दिया. उसे एक परिवार में बच्चा संभालने और बरतन मांजने का काम मिल गया. इस तरह से पूनम की मासिक आमदनी का रास्ता भी बन गया.

पूनम कल्लू द्वारा किए गए सहयोग से बहुत प्रभावित हो गई थी. कल्लू हरसंभव उस की मदद को तत्पर रहता था, सिर्फ उस के पति सुखदेव की खोज में सफल नहीं हो रहा था.

सप्ताह में एक दिन छुट्टी ले कर गजियाबाद की फैक्ट्रियों में चक्कर लगाता था. वहां काम करने वालों से पूछता था, लेकिन उस का पता नहीं चल पा रहा था. इस तरह करीब 3 महीने बीत गए थे.

एक दिन उसे मालूम हुआ कि सुखदेव गुजरात चला गया है. यह बात जब कल्लू ने पूनम को आ कर बताई, तब वह रोने लगी. रोतेरोते वह कल्लू से लिपट गई. भावुक और दुखी पूनम को कल्लू ने तसल्ली दी. बोला कि आज नहीं तो कल वह उस से मिलने आएगा. जब तक वह यहां रहे, उसे किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.

कल्लू स्त्री का संपर्क पा कर रोमांचित हो उठा था. उस ने अपने कुंवारेपन में सुखद अहसास का अनुभव किया था. मन थोड़ा विचलित हो उठा था. जब पूनम ने कहा कि अब उस का क्या होगा, तब रोती पूनम की आंखों के आंसू पोंछे और एक बार फिर गले लगाते हुए बोला, ‘‘अगर तुम चाहो तो मेरे साथ रह सकती हो. तुम्हारे बच्चे की देखभाल और परवरिश मेरी जिम्मेदारी होगी.’’

यह सुन कर पूनम अवाक रह गई. तुरंत अपनी बच्ची को गोद में उठाया और अपने कमरे पर जाने लगी. कल्लू को लगा कि उस ने कुछ गलत बोल दिया है. वह चुपचाप उसे जाते हुए देखता रहा.

थोड़ी देर बाद कल्लू रात का खाना पकाने का इंतजाम करने लगा था. बरतन धोने के लिए बाहर नल के पास रख आया. कमरे में बिखरी गंदगी साफ करने के लिए झाड़ू उठा ली. तभी पूनम की आवाज आई, ‘‘रात को झाड़ू नहीं लगाते.’’

कल्लू ने नजर उठा कर देखा, सामने पूनम बच्चे को लिए खड़ी थी. एक हाथ में एक बड़ा थैला भी था. संभवत: उस में कपड़े थे. कल्लू ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘कहीं नहीं, तुम्हारे पास रहने आई हूं. अब मैं यहीं तुम्हारे साथ रहूंगी. कल कमरा खाली कर दूंगी.’’

कल्लू उसे हैरानी से देखने लगा. एकदम से वह बुत बना रहा.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो, मैं गलत नहीं कह रही हूं. जाओ बाजार से दूध और कुछ सब्जियां ले आओ, खाना पकाती हूं.’’

कल्लू तुरंत कमरे से बाहर चला गया. थोड़ी देर में सब्जियां, दूध और दूसरा कुछ सामान ले आया. तब तक पूनम बरतन वगैरह धो चुकी थी.

उस रोज पूनम ने पूरे मनोयोग से खाना बनाया. कल्लू सब्जियों के साथ थोड़ा पनीर और मटर भी ले आया था. पूनम ने पनीर और मटर की सब्जी पकाई. कल्लू भी आरा के एक गांव का रहने वाला था, लेकिन काफी कम उम्र में ही दिल्ली आ गया था. गांव में उस का कोई अपना नहीं था. वह उम्र में पूनम से करीब 15 साल बड़ा था.

साथसाथ खाना खाने से पहले पूनम एक दीपक जला लाई. कल्लू के सामने रख कर उस का हाथ उस की लौ पर रख दिया. अपना हाथ भी साथ लगा दिया. बोलने लगी, ‘‘मैं देवी मां की सौगंध खाती हूं कि आज से तुम्हीं मेरे पति हो.’’

…और फिर उस रोज से कल्लू ने भी पूनम को अपनी पत्नी मान लिया. इस तरह दोनों त्रिलोकपुरी में साथसाथ रहने लगे. यहीं से उन की लिवइन की शुरुआत और नींव पड़ी थी. कल्लू जब साथ रहने लगा, तब पूनम को पता चला कि उसे शराब पीने की आदत है, लेकिन वह क्या कर सकती थी.

मजा, जो बन गया सजा

न्यू आगरा के रहने वाले रामप्रसाद ने मंजू की शादी कर के यही सोचा था कि वह बेटी से मुक्ति पा गए हैं. लेकिन मंजू को न पति अच्छा लगा था, न उस के घर वाले. यही वजह थी कि एक बेटी पैदा होने के बाद भी वह ससुराल में मन नहीं लगा पाई और एक दिन बेटी को ले कर बाप के घर आ गई.

बेटी ससुराल वालों से लड़ाईझगड़ा कर के हमेशा के लिए मायके आ गई है, यह बात न तो रामप्रसाद को अच्छी लगी थी और न उन की पत्नी को. उन्होंने मंजू को ऊंचनीच समझा कर ससुराल भेजना चाहा तो उस ने साफ कह दिया कि उन्हें उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है, वह कहीं नौकरी कर के अपना और बेटी का गुजारा कर लेगी.

मंजू ने यह बात कही ही नहीं, बल्कि कोशिश कर के नौकरी कर भी ली. उसे एक कंपनी में चपरासी की नौकरी मिल गई थी. इस के बाद वह निश्चिंत हो गई, क्योंकि उसे वहां से गुजारे लायक वेतन मिल जाता था. रहने के लिए पिता का घर था ही.

मंजू अपनी नौकरी पर औटो से आतीजाती थी. इसी आनेजाने में कभी मंजू की मुलाकात औटोचालक करन शर्मा से हुई तो दोनों में जल्दी ही जानपहचान हो गई.

करन अकसर मंजू को अपने औटो से लाने ले जाने लगा तो धीरेधीरे उन की यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई. उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन यहां परेशानी यह थी कि दोनों ही शादीशुदा नहीं, बच्चे वाले थे.

मंजू तो खैर पति को छोड़ कर आ गई थी, लेकिन करन शर्मा तो पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा था. इस के बावजूद वह मजा लेने के चक्कर में मंजू से प्यार कर बैठा.

करीब 7 साल पहले करन की शादी भावना से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे  बेटा ललित और बेटी आयुषि. भावना अपने इस छोटे से परिवार में खुश थी. प्यार करने वाला पति था तो सुंदर से 2 बच्चे. इन्हीं सब की देखभाल में उस का समय बीत जाता था.

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लेकिन अचानक मंजू ने उस के प्यार में सेंध लगा दी थी. मंजू के ही चक्कर में पड़ कर करन देर से घर आने लगा. वह भावना को घर का खर्च भी कम देने लगा. इस की वजह यह थी कि अब वह अपनी कमाई का एक हिस्सा मंजू पर खर्च करने लगा था.

कुछ दिनों तक तो भावना की समझ में ही नहीं आया कि पति में यह बदलाव कैसे आ गया? लेकिन जब उस ने देखा कि करन देर रात तक न जाने किस से फोन पर बातें करता रहता है तो उसे संदेह हुआ. उस ने पूछा भी कि इतनी रात तक वह किस से बातें करता रहता है? करन ने लापरवाही से कह दिया कि उस का एक दोस्त है, उसी से वह बातें करता है.

आखिर बहाना कब तक चलता. भावना को लगा कि पति झूठ बोल रहा है तो उसे डर लगा कि पति कहीं किसी गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहा है. भावना का डर गलत भी नहीं था.

उधर मंजू के दबाव में करन ने उस से नोटरी के यहां शादी कर ली थी. शादी के बाद मंजू मायके में नहीं रहना चाहती थी, इसलिए करन ने थाना सिकंदरा की राधागली में किराए पर एक कमरा ले लिया और उसी में दोनों पतिपत्नी के रूप में रहने लगे. मंजू की बेटी इच्छा भी उसी के साथ रह रही थी.

मंजू को लगता था कि वह करन को अपने प्यार की डोर में इस तरह से बांध लेगी कि वह अपनी ब्याहता पत्नी को भूल जाएगा. जबकि वास्तविकता यह थी कि करन 2 नावों की सवारी कर रहा था. वह मंजू से इस तरह मिल रहा था कि भावना को पता न चले, क्योंकि वह जानता था कि अगर उसे पता चल गया तो घर में तूफान आ जाएगा.

यही वजह थी कि करन रात में मंजू के यहां जाता तो कोई न कोई बहाना बना कर जाता था. लेकिन पति के बदले हावभाव से परेशान हो कर भावना ने उस की शिकायत ससुर से कर दी. राधेश्याम ने बेटे को डांटफटकार कर तरीके से रहने को कहा. भावना ने भी धमकी दी कि अगर वह ढंग से नहीं रहा तो वह बच्चों को छोड़ कर मायके चली जाएगी.

पत्नी की इस धमकी से करन डर गया, क्योंकि अगर पत्नी घर छोड़ कर चली जाती तो वह बच्चों को कैसे संभालता? आखिर पत्नी की धमकी के आगे करन ने सरेंडर कर दिया और मंजू से मिलनाजुलना कम कर दिया. उस के इस व्यवहार से मंजू को लगा कि वह परेशानी में फंस गई है, क्योंकि करन से शादी करने के बाद वह नौकरी भी छोड़ चुकी थी. अब वह पूरी तरह से करन पर ही निर्भर थी. मकान के किराए के अलावा घर के खर्चे की भी चिंता थी.

एक दिन ऐसा भी आया, जब करन का मोबाइल फोन बंद हो गया. मंजू परेशान हो उठी. करन के बिना वह कैसे रह सकती थी? वह मायके भी नहीं जा सकती थी. करन के घर का पता भी उस के पास नहीं था. आखिर औटो वालों की मदद से उस ने करन को खोज निकाला.

मंजू करन के घर पहुंच गई. उस ने करन से साथ चलने को कहा तो भावना भड़क उठी. मंजू को भलाबुरा कहते हुए भावना ने कहा कि करन उसे छोड़ कर कैसे जा सकता है. उस ने उस से ब्याह किया है. उस से उस के 2 बच्चे हैं.

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मंजू और भावना में लड़ाई होने लगी. शोर सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए. किसी ने थाना पुलिस को फोन कर दिया. सूचना पा कर थाना सिकंदरा के थानाप्रभारी ब्रजेश पांडेय करन के घर पहुंच गए. वह करन, मंजू और भावना को थाने ले आए.

तीनों की बातें सुन कर ब्रजेश पांडेय की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? एक आदमी ने मौजमस्ती के लिए 2 औरतों और 3 बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया था. करन को न मंजू छोड़ रही थी और न भावना. छोड़ती भी कैसे, दोनों का भविष्य अब उसी पर टिका था. इस परेशानी को ध्यान में रख कर थानाप्रभारी ब्रजेश पांडेय ने कहा कि करन एक महीने मंजू के साथ रहेगा और एक महीने भावना के साथ. जब तक वह जिस के साथ रहेगा, उस की कमाई पर उसी का हक होगा.

मंजू को यह समझौता कतई मंजूर नहीं था, क्योंकि उस का रिश्ता तो रेत की दीवार की तरह था, जो कभी भी ढह सकती थी. लेकिन भावना इस समझौते पर राजी थी. मंजू ने इस समझौते का विरोध करते हुए कहा कि एक दिन करन उस के साथ रहेगा और एक दिन भावना के साथ.

हालांकि इस समझौते का कोई कानूनी मूल्य नहीं था, फिर भी ब्रजेश पांडेय ने एक कागज पर लिखवा कर दोनों औरतों और करन के दस्तखत करवा लिए. इस समझौते से जहां मंजू ने राहत की सांस ली, वहीं भावना को मजबूरी में सौतन के लिए अपने पति का बंटवारा करना पड़ा.

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करन ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा भी होगा, इसलिए अब वह परेशान था. उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था, लेकिन उस ने जो गलती की थी, अब उस का खामियाजा तो उसे भोगना ही था.

थानाप्रभारी ने जो समझौता कराया था, करन के घर वालों ने उस का सख्ती से विरोध किया. जब इस समझौते की खबर अखबारों में छपी तो सभी हैरान थे कि एक पुलिस अधिकारी ने ऐसा समझौता कैसे करा दिया? बात उच्चाधिकारियों तक पहुंची तो कोई बवाल होता, उस के पहले ही इंसपेक्टर ब्रजेश पांडेय का तबादला कर दिया गया.

कुछ भी हो, मंजू को लग रहा है कि उस की अपनी गृहस्थी बस गई है. करन अब एक दिन उस के साथ रहता है तो अगले दिन भावना के साथ. उस दिन वह जो कमाता है, उसे देता है जिस के साथ रहता है. लेकिन करन का लगाव भावना और अपने बच्चों के प्रति अधिक था, इसलिए अब वह मंजू पर उतना ध्यान नहीं देता, जितना देना चाहिए. इस से आए दिन उस का मंजू से झगड़ा होता रहता है.

करन ने जो गलती की है, अब वह उस का खामियाजा भोग रहा है. उसे भी कहां सुख मिल रहा है. कभी वह मंजू की ओर भागता है तो कभी भावना की ओर. परेशानी की बात तो यह है कि अभी इस समझौते को हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, खींचतान शुरू हो गई है. आगे क्या होगा, कौन जानता है.

आखिर एक आदमी की गलती से 2 औरतों और 3 बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. उस का भी क्या होगा, यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है. यह समझौता भी कितने दिनों तक चलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.