
समस्तीपुर जिले में विद्यापति नगर थाना क्षेत्र के मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मनोज झा के परिवार में थोड़ी चहलपहल थी. कई दिनों बाद परिवार में खुशी का माहौल बना था. क्योंकि मनोज झा की 2 महीने पहले ब्याही गई बेटी निभा अपने पति आशीष के साथ मायके आई थी.
उन के लिए साधारण दिनों से अच्छा अलग खाना पकाया जाना था. शाम होने से पहले मनोज झा मछली ले कर आए थे. मछली देख कर उन की पत्नी सुंदरमणी देवी तुनकती हुई बोली, ‘‘ई मछली पकतई कैसे?’’
‘‘काहे की भेलई?’’ मनोज झा ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘की भेलई! गैस सिलेंडर ले गेलई हरामजादा!’’ सुंदरमणी बोली.
‘‘के ले गेलई, अहां के बुझौव्वल काहे बुझाव छियय हो सत्यम के माई.’’
मनोज बोले.
‘‘अरे मनोज, हम बताव छियय. सहुकरवा के दूगो आदमी आइल छियय. खूब गोस्सा में गारीगलौज कैलकय. हम केतनो समझैलियय, लेकिन नय मानलौ औ सिलेंडर उठा के लो गेलौ.’’ मनोज झा की विधवा मां सीता देवी दुखी मन से बोलीं.
‘‘ओक्कर ई मजाल, किश्त के सूद लेवे के बाद ई हरकत कईलकय. अच्छा, कल्हे जा के ओकरा से फरिया लेव. लकड़ी पर पकावे के इंतजाम कअर्.’’ सुंदरमणी की ओर मुंह कर मनोज बोले.
अपने पिता, मां और बाबूजी की बातें निभा भी सुन रही थी. वह जानती थी कि उस के पिता पिछले 5 साल से कर्ज में डूबे हैं. कर्ज की किश्तें नहीं चुकाने के चलते घर की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई है. उन्होंने बड़ी दीदी किरण की शादी में जो कर्ज लिया था, वह अभी तक नहीं चुक पाया था. वह उदास मन से मछली का थैला ले कर आंगन में धोने चली गई.
निभा के दिमाग में अचानक किरण की शादी का वह दृश्य घूम गया. बारात आने वाली थी. सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन मनोज झा एक कोने में उदास बैठे थे. उन के सामने गांव का एक आदमी भी बैठा था. वह एकदम से झकाझक कुरता पायजामे में दबंग की तरह दिख रहा था.
उस ने पिता मनोज का हाथ पकड़ रखा था. निभा उन के लिए एक गिलास पानी और प्लेट में नाश्ता ले कर गई थी. दरअसल, वह संभ्रांत व्यक्ति चौधरी था. गांव का ही था और गांव में किसी की भी मदद के लिए तत्पर रहता था. राजनीति करता था. किसानों और छोटेछोटे काम करने वालों के लिए जरूरी पूंजी का कर्ज देता था.
निभा ने उसे बोलते हुए सुना, ‘‘देख मनोज, तेरा दुख मुझ से छिपा नहीं है. बाबूजी के कर्ज का तू मेरा कर्जदार है, वह आज नहीं तो कल चुका ही देगा. लेकिन शादीब्याह के मौके पर तुम्हें अकेला कैसे छोड़ सकता हूं….अरे मेरा भी फर्ज है कि नहीं. गांव की बेटी है. अच्छे से शादी संपन्न हो जानी चाहिए. बराती के स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए. बाजाबत्ती के लिए हम ने इंतजाम कर दिया है. गांव वालों को भी लगना चाहिए कि ब्राह्मण परिवार की शादी है.’’
‘‘बाबूजी, ई नाश्ता और पानी,’’ निभा बोली.
‘‘हांहां, लाओ बेटी.’’ चौधरी हाथ बढ़ा कर निभा के हाथ से प्लेट लेते हुए बोला, ‘‘पानी यहीं नीचे रख दे. और तू जा! मम्मी दादी की मदद कर.’’
‘‘अरे निभा इतना धीमेधीमे क्यों साफ कर रही है, जरा तेजी से हाथ चला. अंधेरा होने से पहले मछली तल लेना है. लाइट भी कट गई है.’’ मम्मी की आवाज सुन कर पुरानी यादों में खोई निभा हड़बड़ाहट में बोली, ‘‘हां मम्मी, अभी करती हूं.’’
‘‘क्या हुआ बेटी, लगता है तू कहीं खोई हुई थी,’’ मां सुंदरमणी बोली.
‘‘हां मम्मी, चौधरी का आदमी किस्त लेने आया था न?’’ निभा ने सवाल किया.
‘‘अरे बेटी तू क्यों इन बातों को याद करती हो… तू और दामादजी तो 1-2 दिन की हमारे मेहमान हो. अपने परिवार के बारे सोचो.’’ मां ने समझाया.
‘‘नहीं मां, बताओ न दीदी की शादी का कर्ज ही अभी तक चला आ रहा है न?’’ निभा ने जानने की जिद की.
‘‘क्या करोगी जान कर, वह एक कर्ज थोड़े है. कर्ज पर कर्ज लद चुका है. कोरोना में काम खत्म हो गया तो कर्ज और बढ़ गया. अब तो क्या बताऊं…’’ मां मायूस हो गई और आंचल के पल्लू से नम हो चुकी आंखें पोछती हुई चली गई.
आर्थिक तंगी से जूझते हुए एक परिवार की यह बात 5 जून, 2022 की है. उस परिवार के मुखिया 45 वर्षीय मनोज झा थे, लेकिन परिवार की सब से बड़ी सदस्या 66 वर्षीया सीता देवी थीं. उन के पति की साल भर पहले आकस्मिक मौत हो गई थी. बताते हैं कि वह भी कर्ज में डूबे थे और उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.
परिवार के दूसरे सदस्यों में मनोज झा की 42 वर्षीया पत्नी सुंदरमणी के अलावा 2 बेटे सत्यम (8) और शिवम (7) थे. मनोज की दोनों बेटियों किरण और निभा की शादी हो चुकी थी और वे अपनीअपनी ससुराल में रह रही थीं. हालांकि दोनों बेटियां अपने मायके का हालसमाचार लेती रहती थीं और बीचबीच में उन से मिलने आतीजाती रहती थी.
इसी सिलसिले में निभा अपने पति के साथ मायके आई थी. उस के आने की सूचना मां ने फोन पर पति को देते हुए चावल और आटा लाने को भी कहा था. यह सब निभा ने भी सुन लिया था. मायके में अपने मातापिता, दादी, छोटेछोटे भाइयों की हालत देख कर उसे बहुत दुख हुआ था.
अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद मनोज झा अपने दामाद की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे. उन को स्पैशल खाना खिलाने के लिए मछली ले कर आए थे.
घर के आंगन में मछली और चावल पकते हुए रात के करीब 9 बज गए थे. सीता देवी और सुंदरमणी को छोड़ कर सभी ने मछली भात खाया था. शिवम और सत्यम के लिए उस दिन का बेहद ही मजेदार खाना था, लेकिन रात को लालटेन की रोशनी में मछली खाने में उसे काफी समय लग गया था.
रात के साढ़े 10 बज चुके थे. छोटे से घर में सभी के लिए सोने का इंतजाम भी करना था. उस काम में निभा ने अपनी मां की मदद की.
उस दिन गरमी अधिक थी. सोने के इंतजाम के तौर पर मनोज झा ने अपने छोटे बेटे को ले कर गेट पर अपना बिस्तर लगा लिया, जबकि सासबहू और सत्यम एक कमरे में चले गए. निभा ने अपने पति के साथ उस के ठीक बगल के कमरे में अपना बिछावन लगा ली.
अगले दिन निभा की नींद शोरगुल के साथ टूटी. सूरज निकल चुका था और बाहर गेट पर कई लोग उस के पापा को पुकार रहे थे. उन में एक आवाज उस के चचेरे भाई की भी थी. उस ने तुरंत अपने पति को जगाया और कमरे से बाहर आई.
बाहर आते ही उस की नजर बगल के कमरे में खुले दरवाजे पर गई. उस के बाहर ही कुछ लोग खड़े थे. दरवाजे से उस के पिता, मां और दादी फंदे से झूलते दिख रहे थे. उन के बाद पीछे की ओर उस के दोनों भाई भी फंदे में लटके थे.
इस दृश्य को देख कर निभा वहीं धड़ाम से गिर पड़ी. उसे पति ने किसी तरह संभाला. उस समय सुबह के करीब 6 बज चुके थे. उस दृश्य को देख कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे. किसी ने कहा उन्हें मार कर फांसी पर लटका दिया गया है. तो कोई कहने लगा मनोज ने सभी को जहर दे कर मार डाला, फिर उन्हें फांसी पर लटका दिया होगा.
इस घटना ने दिल्ली में बुराड़ी की सामूहिक आत्महत्या की घटना की याद ताजा कर दी. घर और गांव में कोहराम मच गया. एक परिवार के सामूहिक मौत की खबर जंगल में आग की तरह पूरे गांव से हो कर जिला मुख्यालय तक जा पहुंची.
घटना की सूचना पा कर दलसिंह सराय के एसडीपीओ दिनेश पांडेय समेत विद्यापति नगर थाने की पुलिस पूरे फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गई. इसी बीच मनोज झा की बड़ी बेटी किरण और परिवार के दूसरे सदस्यों को इस की सूचना मिल गई. वे लोग भी तुरंत वहां पहुंच गए.
राजधानी पटना से फोरैंसिक विभाग की 5 सदस्यीय टीम भी पहुंच गई. सभी ने घटनास्थल का जायजा लिया. निरीक्षण के बाद टीम के सदस्यों ने शवों को फांसी के फंदे से उतार कर समस्तीपुर सदर अस्पताल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. इसी के साथ मनोज झा के घर को जांच के लिए सील कर दिया गया.
घटना के बाद से मऊ धनेशपुर दक्षिण गांव में मीडिया, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं समेत गैर राजनीतिक संस्थाओं के लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया, जो कई दिनों तक जारी रहा.
मनोज झा के परिजनों से उस रोज की पारिवारिक गतिविधियों के बारे में जुटाई गई जानकारी के मुताबिक सीता देवी ने एक दिन पहले ही अपनी बेटी यानी मनोज की बहन रीना झा से बात की थी. उन्होंने उस से अपने घर की माली हालत का दुख सुनाया था.
यहां तक कहा था कि सूदखोर घर का गैस सिलेंडर तक ले जा चुके हैं. गांव में रहने की इच्छा अब नहीं होती है. हर दूसरे दिन साहूकार का आदमी कर्ज की किश्त मांगने आ धमकता है. उसी दिन उन की बात पोती किरण से भी उस की ससुराल में हुई थी.
गांव में सीता देवी सहायता समूह का संचालन करती थी. वह ‘जीविका दीदी’ का भी काम संभालती थी. जबकि मनोज खैनी की दुकान चला कर परिवार का पेट भरता था.
मनोज झा की एकलौती बहन रीना ने भी पुलिस को बताया कि उस के भाई मनोज ने लोन पर गाड़ी ले कर काम शुरू किया था, लेकिन लोगों ने उस गाड़ी को भी सही से चलने नहीं दिया. फिर उस ने गांव में ही छोटी सी खैनी की दुकान खोली थी. वह भी गांव के दबंगों ने बंद करवा दी थी. दबंगों द्वारा भतीजे को मारने की धमकी दी जाती थी.
भाई ने अपनी बड़ी बेटी किरण कुमारी की शादी के लिए गांव के साहूकार से 3 लाख रुपए कर्ज लिया था. उस की शादी 28 जून, 2017 को धूमधाम से हुई थी.
साहूकार 5 वर्ष पहले लिए गए 3 लाख रुपए कर्ज का सूद सहित 17 लाख रुपए मांग रहा था, जिस से वह परेशान था. उस की किश्त चुकाता था, जिसे वह किश्त को सूद के रूप में रख लेता था और उस का कर्ज बढ़ता ही जा रहा था.
किरण के पति गोविंद झा ने बताया कि साहूकार ने कई किश्तों में 3 लाख रुपए का कर्ज दिया था, जिस में कुछ पैसा उन के ससुर ने साहूकार को कई किश्तों में लौटाया भी था. इस की जानकारी डायरी में लिखी मिली है.
इस मामले के तूल पकड़ने पर घटना के दूसरे दिन राजग सरकार के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री एवं स्थानीय सांसद नित्यानंद राय पहुंचे. मृतक मनोज झा की बेटियों से मिले. उन्होंने उन से गुहार लगाई कि कर्ज देने वालों ने उन के जमीन के कागज ले लिए हैं. और अब उन्हें भी अपनी जान का खतरा लग रहा है.
मनोज झा की बेटी किरण ने बताया कि साहूकार के आतंक के चलते उसके दादा रतिकांत झा ने भी मौत को गले लगा लिया था. उन की मृत्यु 16 अगस्त, 2021 को हुई थी. लेकिन उस वक्त गांव वालों ने मामला सलटाने की बात कह कर चुप करा दिया था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उन की मौत का कारण नहीं मालूम हो पाया था. सभी का मऊ गांव में ही प्रशासन की देखरेख में गंगा की सहायक नदी वाया के तट अखाड़ा घाट पर दाह संस्कार करवा दिया गया.
इस मौके पर परिजनों, रिश्तेदारों व ग्रामीणों की मौजूदगी में सभी शवों की मुखाग्नि मनोज झा के छोटे दामाद पटना जिले के खुसरूपुर निवासी आशीष मिश्रा ने दी. इस मौके पर अंचलाधिकारी अजय कुमार व थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार सहित अन्य लोग मौजूद थे.
इस मामले को ले कर किरण ने विद्यापतिनगर थाने में एक रिपोर्ट लिखवाई, जिस में गांव के श्रवण झा, उस के बेटे मुकुंद कुमार झा और अर्जुन सिंह के बेटे बच्चा सिंह पर कर्ज का रुपया वापस करने के लिए हमेशा प्रताडि़त करने और घर में घुस कर हत्या करने का आरोप लगाया.
वहीं घटना के विभिन्न पहलुओं पर नजर रखते हुए पुलिस जांच में जुट गई थी. कथा लिखे जाने तक घटना में आरोपी बनाए गए श्रवण झा और उस के बेटे मुकुंद कुमार झा ने दलसिंहसराय कोर्ट में 14 जून को आत्मसमर्पण कर दिया था.
जबकि बच्चा सिंह फरार था. थानाप्रभारी प्रसुंजय कुमार ने कहा कि पुलिस आगे की काररवाई पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर करेगी. उन्होंने मनोज झा के खानदान में बची बेटियों की सुरक्षा का भी आश्वासन दिया. द्य
6 जून, 2022 का वाकया है. रात के तकरीबन 3 बजे थे. थाटीपुर के अत्यंत पौश इलाके रामनगर में सन्नाटा पसरा हुआ था. गरमी के चलते लोग घरों के भीतर एसी, कूलर चला कर गहरी नींद में सोए हुए थे. इन्हीं में एक परिवार कृष्णकांत भदौरिया का भी था, जो एक आलीशान कोठी में रहता था. इसी कोठी में उन का बेटा ऋषभ, पुत्रवधू भावना अपने 2 मासूम बच्चों के साथ रहती थी.
परिवार संपन्न और खुशहाल था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. कोई बड़ी डिग्री न होने के कारण ऋषभ को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी थी, अत: वह कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले कर नेतागिरी करने लगा था. इस के साथ ही जोड़जुगत बैठा कर पार्टी का प्रदेश प्रवक्ता तक बन बैठा था.
इस के अलावा वह वक्त गुजारने और पैसा कमाने के मकसद से प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त का काम भी करने लगा था, इसलिए दिन में उस का वक्त घर के बाहर ही गुजरता था. ऐसी स्थिति में घर की सारी जिम्मेदारियां उस की पत्नी भावना निभाती थी. दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद घर पर भावना दिन भर अकेली रहती थी, जिस से उसे बोरियत सी होने लगी थी.
टाइम पास करने के लिए उस की सहेली ने उसे मोबाइल पर रिश्तेदारों और सहेलियों से बातचीत कर वक्त बिताने की सलाह दी. यह सलाह भावना को बेहद पसंद आई.
अब भावना का ज्यादातर समय मोबाइल फोन पर बातचीत में बीतने लगा. कभीकभी वह मोबाइल फोन पर बातचीत में इतना खो जाती कि उसे पति ऋषभ की भी चिंता नहीं रहती. पति का फोन आता तो कई बार वह उठाती ही नहीं.
उधर बारबार फोन करने पर भी जब भावना काल रिसीव नहीं करती तो ऋषभ के दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. उसे लगता कि कहीं भावना कौशलेंद्र से तो बात नहीं कर रही. यही सोच कर वह परेशान हो उठता. शहर के हर्षनगर में रहने वाला कौशलेंद्र ऋषभ के बचपन का दोस्त था.
काफी देर बाद जब वह पति को फोन लगा कर बताती कि मैं अपने पिताजी से बात कर रही थी, इसलिए आप का फोन नहीं उठा सकी तब कहीं जा कर ऋषभ को तसल्ली मिलती. ऋषभ ने भावना से स्पष्ट तौर पर कह रखा था कि 1-2 घंटी बजने के बाद वह उस का फोन जरूर उठा लिया करे, क्योंकि फोन नहीं उठने पर उसे घबराहट होने लगती है.
लेकिन भावना ने ऋषभ की इस बात पर कतई ध्यान नहीं दिया. वह अपनी सहेलियों और नातेदारों से मोबाइल पर घंटों बातें करने में मशगूल रहती. इस बीच जब कभी ऋषभ का फोन आता, वह उसे कबाब में हड्डी सा लगता.
भावना की इस हरकत से ऋषभ को शक हो गया कि भावना उस से छिपा कर किसी और से बतियाती है. ऋषभ को भावना का इस तरह मोबाइल पर बतियाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन भावना पति की नसीहत को जरा भी अहमियत नहीं देती थी.
वह पति की बात को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती थी. वैसे भी शक की फांस बहुत खतरनाक होती है, इसे जल्द ही दूर न किया जाए तो वह मजबूत से मजबूत दांपत्य जीवन में भी दरार पैदा कर देती है.
भावना अपने दांपत्य में लगी इस फांस को गंभीरता से नहीं ले रही थी, जिस का नतीजा यह निकला कि इस बात को ले कर उस की पति से अकसर नोकझोंक होने लगी. इस की वजह यह थी कि ऋषभ घर से बाहर होने पर जब कभी भी पत्नी के मोबाइल पर फोन लगाता, हर बार उस का फोन व्यस्त ही मिलता था.
ऐसा अनेक बार होने पर ऋषभ के मन में शक बैठ गया कि वह जरूर उस के बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र से बतियाती होगी. बाद में जब घर लौट कर ऋषभ भावना से मोबाइल फोन के बिजी होने की वजह पूछता तो वह कह देती कि सहेली से बात कर रही थी. इस तरह ऋषभ के मन में शक की जो फांस लगी थी, वह नासूर बनती जा रही थी.
धीरेधीरे भावना और ऋषभ के बीच दूरियां बढ़ती चली जा रही थीं, जिस की वजह से ऋषभ उखड़ाउखड़ा सा रहता था. इस तनाव की वजह से पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध नाममात्र के थे. दूरियां बढ़ने की अहम वजह सिर्फ इतनी थी कि ऋषभ अपनी पत्नी पर शक करने लगा था कि उस का झुकाव कहीं उस के बचपन के मित्र कौशलेंद्र की ओर है.
इसी शक के चलते उसे जब भी मौका मिलता, वह पत्नी के मोबाइल की काल हिस्ट्री चैक करता रहता था. कोई भी नंबर उसे अनजान लगता तो वह उसे ले
कर भावना के साथ झगड़ा और मारपीट करता था.
इन सब के पीछे एक खास वजह यह भी थी कि वह यह भी समझ चुका था कि उस की हकीकत पत्नी के सामने खुल चुकी है. यानी वह उस की आपराधिक छवि को भी जान चुकी है.
भावना को जैसे ही पता चला कि उस का पति आपराधिक छवि का है तो उस के दिल को काफी ठेस पहुंची. उस ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की कि वह गुनाह के रास्ते छोड़ कर अच्छे रास्ते पर चले, पर वह भावना की बात को महत्त्व नहीं देता था. जब भावना यही बात बारबार कहती तो वह उस की पिटाई कर देता.
भावना पति के तुनकमिजाज और शक्की स्वभाव से आजिज आ कर अकसर गुस्से में दोनों बच्चों को ले कर मायके चली जाती थी और अपने पिता महेश सिंह को सारी बात बता देती थी.
बेटी की बात सुन कर महेश सिंह को काफी आघात पहुंचता था, तब महेश सिंह नाराज होते हुए दामाद ऋषभ को कड़ी फटकार लगाते थे. ऐसा कई बार हुआ था. हालांकि इस के बाद भी महेश सिंह 10-15 दिन बाद ही बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज देते थे.
6 जून, 2022 की रात को भी ऋषभ और भावना के बीच कहासुनी हुई. भावना ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन ऋषभ उस पर कुछ ज्यादा ही भड़क गया. उन दोनों के बीच तकरार इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उसी दौरान ऋषभ ने पत्नी पर पिस्टल तान दी.
भावना समझ गई कि पति के सिर पर खून सवार है, वह बचने के लिए बैडरूम से बाहर निकल कर लान की तरफ भागी. वह चीखती, उस के पहले ही ऋषभ ने उस के सिर को निशाना बना कर फायर कर दिया. वह इतना ज्यादा गुस्से में था कि रिश्तों की गहराई और परिवार की मर्यादा को भूल कर एक के बाद एक 3 गोलियां पत्नी के सिर में मार दीं.
गोलियां लगने से भावना लान में ही ढेर हो गई. इस के बाद वह हथियार और अपनी जरूरत का सामान ले कर वहां से फरार हो गया. ऋषभ ने अनायास ही एक ऐसी घटना को अंजाम दे डाला, जिसे देख कर हर किसी का कलेजा कांप उठा.
रात 3 बजे जब इलाके के सभी लोग सो रहे थे, तभी चीखनेचिल्लाने के शोर से लोगों की आंखें खुल गईं. शोरगुल सुन कर घबराए लोग अपनेअपने घरों से बाहर आए तो कृष्णकांत भदौरिया को बदहवास हाल में रोतेबिलखते देख कर हैरान रह गए.
वह ऋषभ के दोनों मासूम बच्चों की अंगुली पकड़े हुए जोरजोर से रोते हुए कह रहे थे, ‘‘मेरी मदद करो, मेरे बेटे ऋषभ ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’
कृष्णकांत भदौरिया जो कुछ कह रहे थे, उसे सुन कर लोगों के होश उड़ गए.
इसी दौरान किसी ने पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी. कुछ देर में वहां थाना थाटीपुर पुलिस भी आ गई. पुलिस के आने पर कुछ लोग हिम्मत कर के उन की आलीशान कोठी में दाखिल हुए तो वहां की स्थिति देख कर उन सभी की आंखें हैरत से फटी रह गईं. भावना की लाश कोठी में कमरे के बाहर लान में खून से लथपथ पड़ी हुई थी.
हत्या का मामला था, अब तक पूरी रामनगर सोसाइटी के लोग घटनास्थल पर एकत्रित हो चुके थे. इस बीच ऋषभ के पिता कृष्णकांत भदौरिया ने घटना की सूचना अपने समधी महेश सिंह को दे दी.
मामला शहर के पौश इलाके रामनगर के रहने वाले बहुचर्चित कांग्रेसी नेता से जुड़ा हुआ था, जिस में उस ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर निर्मम हत्या कर दी थी. हत्या कर के वह फरार हो गया था. सीएसपी ऋषिकेश मीणा और टीआई पंकज त्यागी घटनास्थल पर जांच कर रहे थे.
थोड़ी देर बाद ही एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया फोरैंसिक एक्सपर्ट व डौग स्क्वायड की टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे.
पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और क्राइम सीन को समझा. पुलिस टीम के पहुंचने तक रामनगर के बाशिंदे काफी बड़ी संख्या में भदौरिया के घर के सामने जुट गए थे. सभी लोग भावना के मासूम बच्चों के बारे में सोचसोच कर परेशान थे.
इधर हत्यारे के पिता कृष्णकांत भदौरिया की हालत सदमे के कारण कुछ ज्यादा ही खराब हो रही थी. पड़ोसी उन्हें सांत्वना दे कर जैसेतैसे संभाल रहे थे.
पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.
पुलिस को यह तो पता लग ही चुका था कि भावना की हत्या उस के पति ऋषभ ने की है. इसलिए ऋषभ के खिलाफ उस के सुसर महेश सिंह की तहरीर पर थाना थाटीपुर में धारा 302 भादंवि के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने हत्यारोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ पर 10 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी थी.
इसी बीच एसपी अमित सांघी को मुखबिर के जरिए सूचना मिली कि पत्नी की हत्या के मामले में फरार चल रहे ऋषभ भदौरिया को उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के बेवर कस्बे में देखा गया है.
यह सूचना मिलने के बाद एसपी ने बिना देर किए एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर संतोष यादव व थाटीपुर टीआई पंकज त्यागी को शामिल किया गया. उन्होंने टीम मैनपुरी रवाना कर दी.
आखिर पुलिस टीम द्वारा ऋषभ भदौरिया को हत्या के 21 दिन बाद उस के ही रिश्तेदार के घर से हिरासत में ले लिया गया. वह अपने रिश्तेदार के घर पर रह कर फरारी काट रहा था.
उस ने बताया कि पुलिस द्वारा उस की गिरफ्तारी पर 10 हजार का ईनाम घोषित किए जाने के बाद से उसे एनकाउंटर का भय सता रहा था. पुलिस टीम उसे बेवर से ग्वालियर ले आई. उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल व खून से सने कपड़े भी बरामद कर लिए.
इस के अलावा पुलिस ने उस के पास से वह क्रेटा कार भी बरामद कर ली, जिस में बैठ कर वह पत्नी की हत्या के बाद फरार हुआ था.
प्रारंभिक जांच में ही पुलिस को पता चला कि 10 मई, 2022 की रात को भी ऋषभ ने अपने बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र कुशवाहा पर 5 राउंड फायर किए थे. ऋषभ के खौफ के चलते वह थाने में रिपोर्ट लिखवाने का साहस नहीं जुटा सका था. लेकिन जैसे ही ऋषभ अपनी पत्नी को मार कर फरार हुआ और उस पर ईनाम घोषित हुआ तो हर्ष नगर निवासी कौशलेंद्र कुशवाहा थाने में रिपोर्ट लिखवाने पहुंच गया था.
हत्या के आरोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ भदौरिया पर पहले से हत्या व हत्या के प्रयास सहित 14 मामले दर्ज हैं.
उस के खिलाफ 2 बार जिला बदर की काररवाई भी की गई थी. अब पुलिस उस पर एनएसए लगाने की तैयारी में लगी हुई थी.
ऋषभ को सुंदर और सुशील पत्नी मिली थी. सुसराल भी अच्छी थी. 2 सुंदर बच्चे भी थे. लेकिन शक के नासूर ने उस की बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ कर रख दिया. पत्नी को मार कर वह जेल चला गया, जिस से उस के मासूम बच्चे अनाथ हो गए.
ऋषभ के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक ऋषभ भदौरिया के दोनों बच्चे अपने नाना महेश सिंह के
पास थे. द्य
असम के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ का प्रकोप कुछ कम हुआ तो एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटीजन्स का प्रकरण फिर शुरू हुआ.
राबिया का परिवार अपना घरबार, जमीन खो कर जड़ से कट चुका था. अभी के हालात में दो जून की रोटी और अमन से जीने की हसरत इतनी माने रखती थी कि अम्मी और राबिया फिर से उसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थीं.
इधर, नीरद चाहता था कि एनआरसी की दूसरी लिस्ट में उन का नाम आ जाए. अभी नीरद इसी मामले में बात कर अपने घर की सीढि़यों से ऊपर चढ़ा ही था, और बाहर तक उसे छोड़ने आई राबिया अपने घर की तरफ मुड़ी ही थी, कि शाम के धुंधलके वाले सन्नाटे में कोई राबिया का मुंह झटके से अपने हाथों में दबा, तेजी से पीछे जंगल की ओर घसीट ले गया. वह इतनी फुरती में था कि राबिया को संभलने का मौका न मिला.
राबिया के घर के पीछे घनी अंधेरी झाडि़यों में ले जा कर उस ने राबिया को जमीन पर पटक दिया और उस के सीने पर बैठ गया. उस के चेहरे के पास अपना चेहरा ले जा कर अपना मोबाइल औन कर के उस ने अपना चेहरा दिखाया और शैतानी स्वर में पूछा, ‘‘पहचाना?’’
राबिया घृणा और भय से सिहर उठी. उस ने अपना चेहरा राबिया के चेहरे के और करीब ला कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘जो सोचा भी नहीं जा सकता वह कभीकभी हो जाता है. अब तुम्हारे सामने 3 विकल्प हैं. पहला, तुम रोज रात को इसी जगह मेरी हसरतें पूरी करो चाहे नीरद से रिश्ता रखो. दूसरा, अपने परिवार को ले कर चुपचाप यहां से चली जाओ, किसी से बिना कुछ कहे, नीरद से भी नहीं. अंतिम विकल्प, मुझ से बगावत करो, इसी घर में रहो, नीरद को फांसो और अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो.
‘‘वैसे, अंजाम भी सुन ही लो. 3 जिंदगियां खतरे में होंगी. नीरद, अजीम और तुम्हारी अम्मी की. हां, तुम्हें आंच नहीं आने दूंगा जानेमन. तुम तो मेरी हसरतों की आग में घी का काम करोगी.’’
सन्नाटे पर चोट सी पड़ती उस की खूंखार आवाज से बर्फ सी ठंडी पड़ चुकी राबिया दहल गई थी. उस के शरीर को अश्लील तरीके से छूता हुआ वह परे हट बैठा और अपनी कठोर हथेली में उस के गालों को भींच कर बोला, ‘‘देखा, मैं कितना शानदार इंसान हूं. मैं तुम्हें आसानी से हासिल कर सकता था, लेकिन मैं चाहता हूं तुम खुद को खुद ही मुझे सौंपो. जैसे सौंपोगी नीरद को. उफ, वह क्या मंजर होगा. तुम मेरी आगोश में होगी- और वह पल, नीरद के साथ धोखा… कयामत आएगी उस पर.
‘‘लगेहाथ यह भी बता दूं, नीरद की शादी तय हो गई है, खानदानी लड़की से, सरकारी लिस्ट वाली.’’
राबिया बेहोशी सी हालत में घर पहुंची तो यथासंभव खुद को संभाले रही और नीरद के साथ बाहर चले जाने का बहाना बना दिया. लड़की जात ही ऐसी होती है, ड्रामेबाज. कभी मां से, कभी प्रेमी, पति, भाई या पिता से झूठ बोलती ही रहती है. अपना दर्द छिपाती है, डर छिपाती है ताकि अपने निश्चित रहें, शांत और खुश रहें.
सुबह हुई तो राबिया को फिर शाम का डर सताने लगा. इतने में नीरद आ गया. उस का व्यवहार उखड़ा सा था. आते ही वह कह पड़ा, चलो, अब और नहीं रुकूंगा. रजिस्ट्री मैरिज के लिए आज ही आवेदन दे दूंगा.’’
राबिया सकते में थी. ‘‘इतनी जल्दी? सब मानेंगे कैसे?’’ फिर रजिस्ट्री होगी कैसे? वह तो सब की नजर में घुसपैठिया है.
कागज का टुकड़ा जाने कब कहां किस बाढ़ में बह गया. वे तो बेगाने ही हो गए. नीरद ने अम्मी के पांव छू लिए. कहा, ‘‘अम्मी, आप बस आशीर्वाद दे दो, बाकी मैं संभाल लूंगा. रात को घर में मां और भाई ने खूब हंगामा किया.
‘‘मां ने मेरी शादी एक नामी खानदानी परिवार में तय कर रखी है. मोटी रकम देंगे वे. मुझे कल रात यह बात पता चली. मेरे पिता की मृत्यु के बाद से मैं ही घर की जिम्मेदारी उठा रहा हूं. पिता की पैंशन से मां मनमाना खर्च करती हैं और 32 साल के मेरे निकम्मे बड़े भाई को दे देती हैं. बड़ा भाई पहली शादी से तलाक ले कर आवारागर्दी करता है. पार्टी से जुड़ा है और पार्टी फंड के नाम पर उगाही कर के जेब गरम करता है. अब इन दोनों का मेरी निजी जिंदगी में दखल मैं कतई बरदाश्त नहीं करूंगा.’’
राबिया के दिल में तूफान उठा. वह अपने साथ हुए उस भयानक हादसे को जेहन में रोक कर न रख सकी. आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा, ‘‘नीरद,’’ कहते हुए उस की हिचकियां बंध गईं. अम्मी अजीम को ले कर बाहर चली गईं.
नीरद पास आ गया था. उस की आंखों में बेइंतहा प्रेम और हाथों में अगाध विश्वास का स्पर्श था. उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है, राबी? बताओ मुझे. शायद कहीं मेरा अंदेशा तो सही नहीं? तुम ही बताओ राबी?’’
‘‘तुम्हारा बड़ा भाई,’’ सिर झुकाए हुए आंसुओं की धार में राबिया के सारे मलाल बाहर निकल आए. नीरद को गुस्से में होश न रहा, चिल्ला कर पूछा, ‘‘क्या कर दिया कमजर्फ ने?’’
राबिया सकते में आ गई. नीरद के हाथ पकड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘कुछ कर नहीं पाया, मगर जंगल में खींच कर ले गया था मुझे.’’ बाकी बातें सुनते ही नीरद आपे से बाहर हो गया, कहा, ‘‘चलो थाने, रिपोर्ट लिखाएंगे.’’
‘‘आप के परिवार की इज्जत?’’
‘‘तुम्हारे दुख से बड़ी नहीं. क्या तुम ने उस का चेहरा देखा था? उस ने जैसा तुम्हें धमकाया था, वैसा वाकई कर दिखाया?’’
‘‘साफसाफ देखा मैं ने उसे. वह खुद चाहता था कि मैं उसे पहचानूं, खौफ खाऊं.’’
नीरद उन तीनों को ले कर थाने तो गया लेकिन वहां उन की नागरिकता के प्रश्न पर उन्हें जलील ही होना पड़ा. पुलिस वालों ने कहा, ‘‘तब तो पहले एनआरसी में नाम दर्ज करवाओ, फिर यहां आओ. जब हमारे यहां के नागरिक हो ही नहीं, तो हमें क्या वास्ता?’’
न्याय, अन्याय और सुखदुख की मीमांसा अब इंसानियत के हाथों में नहीं थी. बाध्य हो कर नीरद ने अपने कद्दावर दोस्त माणिक का सहारा लिया. वह एक सामाजिक संस्था का मुखिया था और समाज व राजनीतिक जीवन में उस की गहरी पैठ थी.
उस ने उन लोगों को शरण भी दी और देखभाल का जिम्मा भी लिया. नीरद भी कुछ दिन माणिक के घर से औफिस आनाजाना करता रहा.
इस बीच, नीरद ने अपने बड़े भाई की हरकतों का उस की ही पार्टी के राज्य हाईकमान से शिकायत की और उसे काबू में रखने का इशारा करते हुए उन की पार्टी की बदनामी का जिक्र किया. हाईकमान को बात समझ आ गई. उसी शाम जब वह फिर राबिया को तहसनहस करने के मंसूबे बांध उस के खाली घर के पास बिना कुछ जाने मंडरा रहा था. पार्र्टी हाईकमान के गुर्गों ने राबिया के घर के पीछे की झाडि़यों में ले जा कर उस की सारी हसरतें पूरी कर दीं. साथ ही, हाईकमान का आदेश भी सुना दिया, ‘पार्टी बदनाम हुई तो वह जिंदा नहीं बचेगा.’
इधर, यह कहानी यहां रुक तो गई, लेकिन नीरद की जिंदगी की नई कहानी कैसे शुरू हो? रजिस्ट्री तो तब होगी जब राबिया खुद को असम की लड़की साबित कर पाएगी.
पर क्या नीरद का प्रेम इन बातों का मुहताज है? जब उस ने धर्मजाति नहीं देखी तो अब नागरिकता पर अपने प्रेम की बलि चढ़ा दे?
प्रेम तो मासूम तितली सा नादान, दूसरों के दर्द, दूसरों की खुशी का वाहक है जैसे परागकणों को तितलियां ले जाती हैं एक से दूसरे फूलों में.
नीरद ने अपना तबादला दिसपुर कर देने की अर्जी लगाई. भले ही वहां काम ज्यादा हो, लेकिन राबिया को नजदीक पाने के लिए वह कुछ ज्यादा भी मेहनत कर लेगा.
सच कहते हैं, भला मानुष कभी अकेला नहीं पड़ता. चार दुश्मन अगर उस के हों भी, सौ दोस्त भी उस के हर सुखदुख में साथ होते हैं. नीरद भी ऐसा ही था. ज्यादातर वह लोगों से मदद लेता कम था, देता अधिक था. औफिस के सारे स्टाफ वाले उस की अच्छाई के कायल थे. इसलिए कानून भले ही अड़ंगा था, मगर इंसानों ने इंसानियत का तकाजा अपने कंधों पर संभाल लिया था. नीरद और राबिया के प्यार की मासूमियत को सभी दिल से महसूस कर रहे थे और औफिस में फाइलें आगे बढ़ाते हुए उस के दिसपुर स्थानांतरण की राह प्रशस्त कर दी थी.
दिसपुर पहुंच कर नीरद और नीरद की राबी ने गुवाहाटी और दिसपुर के कुछ लोगों के सामने एकदूसरे को अपना बना लिया.
देश अभी भी बड़ी अफरातफरी में था. इंसानों पर जाति, धर्म और नागरिकता के टैग लगाने की बड़ी रेलमपेल लगी थी. इधर, नीरद और राबी ने दुनिया की रीत पर लिख दी अपने प्यार की पहचान. इंसान की सब से बड़ी पहचान राबी और उस के परिवार को मिल गई थी.
हेमा ने शाम को 7 बजे मिलने की हामी भी भर दी. इधर पायल ने अपने घर में तैयारी कर ली. उस ने शाम को जब खाना बनाया तो उस में प्रेमी के द्वारा लाई गईं नींद की 20 गोलियां मिला कर दोनों भाइयों को खाना खिला दिया. रात को 9 बजे खाना खाते ही दोनों भाई कुछ देर में गहरी नींद सो गए.
रात को करीब 10 बजे अजय अपनी बाइक पर हेमा को साथ ले कर पायल के घर पहुंचा. हेमा ने उस के बारे में पूछा तो अजय ने उस का परिचय अपनी रिश्तेदार के रूप में कराया. पायल ने उसे भी नशे की गोलियां मिला खाना खिलाया. लेकिन पायल और अजय ने दूसरा खाना खाया. खाना खाने के बाद हेमा पर नींद सवार होने लगी तो दोनों ने मिल कर उसे पायल के कमरे में सुला दिया. हेमा की बेहोशी के बाद उन्होंने उस की हत्या कर दी.
पहले उस का गला दबाया फिर उसे रसोई में ले जा कर उस के चेहरे व गरदन पर खौलता हुआ सरसों का तेल डाल दिया. उस की मौत आत्महत्या लगे, इसलिए कलाई की नस भी चाकू से काट दी. इस के बाद शव को बिस्तर के पास जमीन पर डाल दिया.
बाद में पायल ने रसोई व कमरे में फैले तेल के धब्बे साफ कर दिए और इस तरह के हालात बना दिए, जैसी कहानी वो बनाने वाली थी. बाद में उस ने सुसाइड नोट के रूप में अपनी आत्महत्या का एक पत्र लिख कर बिस्तर पर रख दिया.
उस ने जिस चेहरे के साथ हेमा की गरदन पर इसलिए खौलता तेल डाल कर जलाया था क्योंकि पायल की गरदन पर एक ऐसा निशान था, जिसे देखने के बाद ये साफ हो जाता कि शव पायल का नहीं है. इसलिए उस जगह पर उस ने तेल डाल दिया, जिस से निशान का पता ही न चले.
4 लोगों की हत्या कर बदलालेना चाहती थी पायल
पूरे इत्मानीन से हेमलता की मौत को अपनी पहचान दे कर घर से कुछ जेवर, नकदी व कुछ कपड़े ले कर पायल तड़के अजय ठाकुर के साथ बाइक से फरार हो गई.
फरार होने के बाद दोनों इधर से उधर छिप कर रहते रहे. कुछ रोज बाद उन्होंने बुलंदशहर में भुनी चौराहा के पास भीमा कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया और एक साथ रहने लगे. उन्होंने इस दौरान बुलंदशहर के काला आम के पास स्थित आर्य समाज मंदिर में 19 नवंबर, 2022 को शादी भी कर ली.
इस सब से अंजान पायल के घर वालों ने 13 नवंबर को अंतिम संस्कार के बाद 21 नंवबर को पायल की तेरहवीं भी कर दी थी.
इस दौरान पायल के कहने पर अजय ने एक तमंचा और 10 कारतूस खरीद लिए थे. ताकि पायल अपने दुश्मनों को मार कर अपना इंतकाम पूरा कर सके.
दरअसल, पायल के भाई अरुण की शादी उस की बुआ का बेटे सुनील ने करवाई थी, जो दादरी में रहता है. सुनील ने शादी के लिए पायल के पिता रविंद्र भाटी को 5 लाख रुपए उधार दिए थे. पायल का मानना था कि फुफेरे भाई सुनील के कारण ही उस के भाई की शादी एक गलत लड़की से हुई थी.
उस की भाभी की बुआ का बेटा सुनील, उस की भाभी स्वाति व भाभी के 2 भाई कौशिंद्र व गोलू की प्रताड़ना की वजह से उस के मातापिता ने जान दी है.
ये चारों न केवल उस के परिवार की बरबादी का कारण थे, बल्कि सुनील अपनी उधार की रकम के लिए रविंद्र भाटी पर दबाव डालने के साथ बिरादरी में उन की बदनामी भी कर रहा था. इसलिए मांबाप की मौत का जिम्मेदार मान कर पायल इन चारों की हत्या करना चाहती थी.
पायल सब से पहले अपनी भाभी के भाई गोलू की हत्या करना चाहती थी. उस ने अजय के साथ बाइक से 3 बार उस का पीछा भी किया था, लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला इसलिए वे उसे मार नहीं सके.
पायल और अजय अपने चारों टारगेट की हत्या करने के बाद यूपी छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जा कर बसने का प्लान बना चुके थे. इसीलिए दोनों ने अपनी थोड़ीबहुत पहचान छिपा कर सनातन धर्म मंदिर में जो शादी की, उस में अपने सही नाम लिखवाए. जिस दिन वे गिरफ्तार हुए, उस दिन वे मेरठ से अपनी इसी शादी का अदालती रजिस्ट्रैशन सर्टिफिकेट ले कर आ रहे थे.
पुलिस अगर पायल की मौत हेमलता और अजय ठाकुर की गुमशुदगी को एक साथ जोड़ कर जांच को आगे नहीं बढ़ाती तो इस फिल्मी अपराध की गुत्थी कभी नहीं सुलझती. इसे सुलझाने में पुलिस को अजय ठाकुर के एक ऐसे दोस्त की मदद भी मिली, जो अजय के लगातार संपर्क में था. उसी की मदद से पुलिस दोनों को गिरफ्तार कर सकी.
फरार होने के बाद पायल अपने फोन में उस दूसरे सिम का इस्तेमाल कर रही थी जो अजय ने पहले से अपने नाम से खरीदा हुआ था. यह नंबर उस के घर वालों के पास भी नहीं था.
पायल की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने पायल और उस के प्रेमी अजय ठाकुर की निशानदेही पर हत्या के इरादे से खरीदे गए तमंचे के अलावा हेमा की नस काटने में प्रयुक्त चाकू, हेमा का फोन, घड़ी और उस का बैग बरामद कर लिया है.
एडीसीपी ताज मियां खान ने हत्याकांड का खुलासा करने वाले एसएचओ अनिल राजपूत की टीम को ईनाम देने की घोषणा की है. विस्तार से पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर लुकसर जेल भेज दिया गया. द्य
—कहानी आरोपियों से पूछताछ, पुलिस की जांच और पीडि़तों के बयान पर आधारित
प्रदीप काफी उदास था. 30 अक्तूबर को रविवार होने के बावजूद वह सुबहसुबह ईरिक्शा ले कर निकल गया था. ज्योति ने भी जल्दीजल्दी कुछ पकाया और काम पर चली गई.
उस रोज शाम का अंधेरा होने से पहले लौट आई थी. उस का मूड ठीक था. उस ने बच्चों से प्यार से बातें की और बच्चों की पसंद का खाना पकाने को बोल कर रसोई में चली गई. प्रदीप भी घर पर था. वह भी चुपचाप उस के काम में हाथ बंटाने लगा.
प्रदीप को लगा कि वह ज्योति से अपने दिल की बात कह सकता है. वह रसोई में गया. जूठे बरतनों को साफ करता हुआ उस के और जोगेंद्र को ले कर गांव में लोगों के बीच चल रही बातें बताने लगा. पहले तो कुछ देर तक ज्योति उस की बातें सुनती रही, लेकिन जैसे ही जोगेंद्र के साथ नशा करने और अवैध संबंध की बात आई, वह भड़क उठी.
गांव वालों को गालियां बकने लगी, ‘‘हरामजादे वे कौन होते हैं टोकाटाकी करने वाले? दारू उन के बाप के पैसे की नहीं पीती हूं… मेहनत करती हूं… कमाती हूं तब पीती हूं… जोगेंद्र नहीं होता तो मैं इस काम को कर ही नहीं पाती…’’
दोनों ने प्रदीप की कर दी धुनाई
तभी जोगेंद्र भी आ गया. उस ने ज्योति के गुस्से को शांत किया. चाय की फरमाइश कर दी. ज्योति चाय ले कर जोगेंद्र को देने उस के पास गई. वहीं बैठे प्रदीप को चाय नहीं दी. इस पर प्रदीप ने ताना मारा, ‘‘पहले प्रेमी. पति गया भाड़ में…’’
‘‘तू है ही इसी लायक तो कोई क्या करेगा? चल जा भाग यहां से… चाय पीनी है तो अपने लिए बना ले. और हां, रात का खाना भी तुम्हें ही पकाना है.’’ बोलती हुई ज्योति ने जोगेंद्र को आंखों ही आंखों में इशारा किया.
इस ताने से आहत प्रदीप उल्टे पांव वहां से चला आया. उस के जाते ही दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.
थोड़ी देर में प्रदीप जब उधर से गुजरा, तब उस ने देखा कि ज्योति और जोगेंद्र पलंग पर बांहों में बांहें डाले लेटेलेटे बातें कर रहे थे. यह देख कर प्रदीप आगबबूला हो गया. उस ने गुस्से में ज्योति का नाम लिया.
प्रदीप ने किसी तरह से अपना गिरेबान छुड़ाया, लेकिन तब तक उस ने उस पर लातघूंसे बरसाने शुरू कर दिए थे. उस ने प्रेमी जोगेंद्र को भी बुला लिया था. वह भी ज्योति का साथ देने लगा था. प्रदीप को पिटता देख कर तीनों बच्चे कमरे में दुबक गए थे.
प्रदीप कुछ देर तक बचाव के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन उसे बचाने कोई नहीं आया. पासपड़ोस के लोगों को मालूम था कि उस के साथ यह कोई नई बात नहीं. थोड़ी देर बाद मारपिटाई बंद हो गई. माहौल शांत हो गया. करीब घंटे भर बाद रात के 9 बज चुके थे. बच्चे अपने कमरे से बाहर निकले तो देखा घर में कोई नहीं था. ज्योति और जोगेंद्र भी नहीं थे. वे समझ गए कि दोनों जा चुके हैं.
उस के पिता अपने कमरे में होंगे. यह सोच कर भिड़े हुए दरवाजे पर झांकने तक नहीं गए. बेटी ने बाहर के दरवाजे की कुंडी भीतर से लगा ली. चुपचाप सभी ने खाना खाया और कमरे में जा कर सो गए.
31 अक्तूबर, 2022 की सुबह प्रदीप का बेटा अपने ऊपरी कमरे से नीचे उतर कर आया. घर में सन्नाटा पसरा हुआ था. आमतौर पर सुबह रसोई में बरतनों की आवाज और गली के शोरगुल से उस की नींद खुल जाती थी. वह रसोई में गया. वहां खाना और बरतन जस के तस पड़े थे. वह पिता के कमरे के दरवाजे तक गया. दरवाजे को धकेला. भीतर का दृश्य देख कर डर गया.
भागता हुआ घर से बाहर आ गया. वहां रोने लगा. वह समझ नहीं पाया कि क्या करे… भागता हुआ सीधा ताऊ महेंद्र सिंह के पास गया. उन्हें कमरे का दृश्य बताया. रात ज्योति और प्रदीप के बीच हुए झगड़े के बारे में भी पूरा किस्सा एक सांस में सुना दिया.
महेंद्र अपने भतीजे की बात सुन कर हैरान रह गया. वह परिवार के कुछ सदस्यों को साथ ले कर प्रदीप के घर आया. उस की दोनों बेटियां रो रही थीं. सीधा प्रदीप के कमरे में गया. वहां प्रदीप फंदे से झूल रहा था. घर में ज्योति नहीं थी. महेंद्र ने तुरंत मोहनलालगंज थाने में सूचना दी. सूचना पा कर एसएचओ कुलदीप दुबे टीम के साथ वहां पहुंच गए. उन्होंने पहले प्रदीप को फंदे से नीचे उतारा. उस की जांच की. वह मर चुका था.
पुलिस ने प्रारंभिक तहकीकात में आत्महत्या का अनुमान लगाया. क्योंकि बेटे ने पुलिस को बताया कि बीती रात मम्मी के साथ उस के पिता के बीच काफी झगड़ा हुआ था. वे आपस में हमेशा मारपीट भी करते थे. झगड़े के वक्त वह बहनों के साथ अपने कमरे में बंद था. उस की मम्मी जोगेंद्र के साथ कब चली गई, उन्हें नहीं पता.
महेंद्र ने भी अपने भाई और ज्योति के बीच हमेशा होने वाले झगड़े की बात बताई. उस ने यह भी बताया कि उस का भाई अपनी पत्नी के व्यवहार से काफी दुखी था. वह जिंदगी से ऊब चुका था. जब भी मिलता था उदास रहता था. यहां तक कि एक बार प्रदीप ने आत्महत्या करने की बात भी कही थी, तब उस ने काफी समझाया था. घर में ज्योति नहीं थी, इसे ले कर महेंद्र या पासपड़ोस में से किसी को अटपटा नहीं लगा. कारण उस की प्रदीप से नहीं पटती थी.
वह अपनी मरजी से आतीजाती थी. फिर भी पुलिस और घर वालों ने उसे मोबाइल से वारदात की सूचना देना मुनासिब समझा. किंतु ज्योति का फोन बंद मिला. एसएचओ कुलदीप दुबे ने जांच को आगे बढ़ाते हुए काररवाई शुरू की.
महेंद्र ने पुलिस को बताया कि हो न हो ज्योति ने ही अपने प्रेमी जोगेंद्र सिंह के साथ मिल कर उस की हत्या की है. इस के बाद उन्होंने आत्महत्या दिखाने के लिए उस की लाश को फंदे पर लटका दिया.
महेंद्र की तरफ से पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर लिया. एसएचओ दुबे ने इस की सूचना डीसीपी (दक्षिणी जोन) मनीषा सिंह और एसीपी (मोहनलालगंज) धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को भी दे दी. घटनास्थल का ब्यौरा जुटाने वाली पुलिस टीम में एसआई बेचू सिंह यादव, शैलेष तिवारी, राहुल त्रिपाठी, कांस्टेबल दीपेंद्र कुमार, रोहित कुमार और वर्षा शर्मा शामिल थे.
शुरुआती जांच में प्रदीप के शरीर पर चोटों के निशान साफ दिखे थे. उस की पत्नी के द्वारा प्रेमी के साथ मिल कर पिटाई की बात भी सामने आ गई थी. ऐसा अनुमान लगाया गया कि मृतक को गले में फांसी का फंदा डालने पर मजबूर किया गया हो और वह बुरी तरह से प्रताडि़त होने के सिलसिले में ही फांसी पर झूल गया हो.
एसएचओ कुलदीप दुबे ने घर वालों और कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. इस बीच ज्योति का लापता होना भी हत्या का संदेह पैदा कर रहा था. उस के साथ जोगेंद्र की तलाश के अलावा शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया, ताकि आगे की जांच की जा सके.
एसएचओ ने ज्योति और उस के कथित प्रेमी जोगेंद्र सिंह उर्फ रंगोली की सुरागसी के लिए मुखबिर भी लगा दिए. जल्द ही पुलिस को सफलता मिल गई. वारदात के 2 दिन बाद ही 2 नवंबर, 2022 को जोगेंद्र और ज्योति के बंथरा में होने की सूचना मिली. उन्हें रतोली तिराहे के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.
उन्हें डीसीपी राहुल राज और एसीपी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी के सामने पेश किया गया. सख्ती से की गई पूछताछ में दोनों ने न केवल अपने संबंधों के बारे में सच बता दिया, बल्कि प्रदीप की हत्या के बारे में भी सब कुछ उगल दिया.
ज्योति ने बताया कि वारदात की रात को जब प्रदीप के साथ काफी बहस हो गई थी, तब वह काफी गुस्से में थी.
हालांकि इस से पहले ही उस ने पति को मौत के घाट उतारने की योजना बना ली थी और बच्चों को उन के कमरे में भेज दिया था.
प्रदीप की गला दबा कर हत्या करने के बाद उसे स्टूल के सहारे प्रदीप के गले मे फंदा डाल कर लटका दिया था. फिर बाद में वह जोगेंद्र के साथ सो गई थी. सुबह पौ फटने से पहले ही दोनों वहां से फरार हो गए थे.
दोनों के बयानों को दर्ज कर लिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी प्रदीप के गला दबने से सांसें रुकने की बात बताई गई. गले में फांसी के फंदे से खरोंच के निशान भी पाए गए. साथ ही शरीर पर डंडे से पीटे जाने के निशान की पुष्टि हो गई. दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
समय बीता कल्लू से पूनम को 3 बच्चे हुए. एक दीपक और 2 बेटियां. कल्लू ने सुखदेव की बेटी को भी अपना नाम दे दिया. वह समाज की नजर में 2 बेटियां और एक बेटे का बाप बन गया था. कुछ सालों बाद उन की एक बेटी की 4 साल की उम्र में ही छत से गिर कर मौत हो गई थी.
धीरेधीरे कल्लू के शराब पीने की आदत बढ़ती चली गई. उम्र बढ़ने के साथसाथ उस की तबीयत भी खराब रहने लगी. वह एक शराबी बन चुका था और कोई काम नहीं करता था. जिस को ले कर अकसर पूनम और कल्लू के बीच झगड़ा होने लगा था.
इसी दौरान सन 2011 में पूनम की मुलाकात अंजन दास से हुई. अंजन दास एक लिफ्ट मैकेनिक था. थोड़े ही दिनों में पूनम और अंजन दास एक दूसरे से प्यार करने लगे. इसी बीच 2016 में कल्लू की मौत हो गई.
कल्लू की मौत के साल भर बाद ही 2017 से पूनम अपने बच्चों के साथ अंजन दास के साथ रहने लगी. अंजन दास के साथ रहते हुए तब पहली बार पूनम को पता चला कि वह पहले से शादीशुदा है. उस के 8 बच्चे हैं, जो अपनी मां के साथ बिहार में ही रहते हैं.
अंजन को भी शराब पीने की लत थी. पूनम के साथ रहने के दौरान उस ने कामकाज भी छोड़ दिया था. वह पूरी तरह से पूनम पर निर्भर हो गया था. बिहार अपने घर बीवी बच्चों को खर्चा भेजने के लिए पूनम के गहने और पैसे चुराने लगा था.
अगले साल 2018 में पूनम के बेटे दीपक की शादी हो गई. शादी के बाद वह अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगा. पूनम की एक बेटी की शादी पहले ही हो चुकी थी, लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही पति को छोड़ कर वह मां पूनम के पास रहने आ गई थी. मांबेटी एक साथ रहते थे. बहू बीचबीच में आती रहती थी. वहां अंजन दास आताजाता था.
एक दिन पूनम को पता चला कि अंजन दास उस की तलाकशुदा बेटी और बहू यानी दीपक की पत्नी पर बुरी नजर रखता है. उस ने कई बार दोनों के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश भी की थी.
पूनम ने यह बात बेटे दीपक को भी बताई. तब तक पूनम भी अंजन के व्यवहार से ऊब चुकी थी. उस ने बेटे से कहा कि वह उस से छुटकारा पाना चाहती है, इसलिए कोई उपाय करे. बेटे ने मां को बोला कि मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊंगा कि दुनिया याद रखेगी.
30 मई, 2022 को प्यार से पूनम ने अंजन को त्रिलोकपुरी के घर में बुलाया. उस के लिए अच्छी मंहगी शराब मंगवाई. साथ में दीपक भी शराब पीने के लिए बैठ गया. मांबेटे ने मिल कर अंजन को खूब शराब पिलाई. पूनम ने शराब में नींद की दवा मिला दी थी.
दीपक पहले से ही एक डैगर खरीद कर घर में छिपा चुका था. शराब और दवा का असर होते ही अंजन बेसुध हो गया. तब दीपक ने डैगर निकाल कर अंजन के गले पर वार कर दिया. इस के बाद उस ने उस के पूरे जिस्म पर कई वार किए.
अंजन की हत्या करने के बाद पूरी रात लाश इसी कमरे में छोड़ दी. अगली सुबह तक खून जम चुका था. मांबेटे ने मिल कर सारा खून साफ किया. फिर दोनों ने लाश के 10 टुकडे़ किए. लाश के टुकड़ों को पौलीथिन में भरा और थैलियां फ्रिज में रख दीं.
मांबेटे ने 31 मई, 2022 की रात को फ्रिज से टुकड़ों की एक पौलीथिन निकाली. दोनों मांबेटे घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर पांडव नगर के रामलीला मैदान में जा पहुंचे और थैली फेंक दी. पुलिस ने पहली सीसीटीवी फुटेज उसी वक्त की देखी थी.
इस के बाद अगले 3-4 दिनों तक वे इसी तरह दिन और रात में लाशों के टुकड़ों को फ्रिज से निकालनिकाल कर रामलीला मैदान की झाडि़यों और गंदे नाले में फेंकते रहे. यह सिलसिला 8-10 दिन तक चला.
जब लाश के सारे टुकड़े ठिकाने लग गए, तब इन्होंने पूरे घर की फिनाइल से सफाई की. फ्रिज साफ किया और फिर पूरे कमरे को पेंट भी करवा दिया.
अंजन के सिर को भी पुलिस ने बरामद कर लिया था. पुलिस ने आगे की काररवाई करते हुए बिहार में रह रहे अंजन के घर वालों से संपर्क कर उन्हें दिल्ली आने को कह दिया. जिस से पुलिस डीएनए टेस्ट करवा सके.
पुलिस ने पूनम देवी और दीपक से पूछताछ कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. द्य