प्यार में कुलांचें भरने की फितरत – भाग 1

कानपुर (देहात) जनपद के गजनेर थानांतर्गत भिलसी नाम का एक गांव बसा है. कालीचरन अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे थे. कालीचरन किसान था. उस के पास 3 बीघा उपजाऊ जमीन थी. कृषि उपज से ही वह परिवार का भरणपोषण करता था. अब तक उस ने अपनी 2 बेटियों की शादी कर दी थी.

सब से छोटी बेटी का नाम सरोजनी था. वह शादी लायक हुई तो मांबाप को उस की शादी की चिंता हुई. कालीचरन उस के लिए लड़का तलाशने लगा. उस की तलाश औरैया जिले के गांव रैपुरा में खत्म हुई. यहीं का रहने वाला दिनेश सरोजनी के लिए सही लगा तो उन्होंने उस की शादी दिनेश से कर दी.

सरोजनी भले ही साधारण परिवार की थी, लेकिन उस के मन में भी तमाम सपने थे. उसे उम्मीद थी कि पति के यहां उस के सारे सपने पूरे हो जाएंगे. जब वह ससुराल गई तो पता चला कि ससुराल में सास जमुना का हुक्म चलता है. वही सब को इधर से उधर नचाती है.

दिनेश दिबियापुर कस्बे में एक आढ़त पर काम करता था. वह कईकई दिनों बाद घर आता था. जब भी घर आता, शराब की बोतल ले कर आता. जब तक यहां रहता, दिन भर घर के बाहर ही रहता. सरोजनी को बहुत जल्दी ही पता चल गया कि दिनेश न केवल दारूबाज है, बल्कि चरित्रहीन भी है.

शादी के एक सप्ताह बाद ही सरोजनी को गृहस्थी की सारी जिम्मेदारी मिल गई. वह अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभा भी रही थी, लेकिन सास जमुना की चिकचिक उसे चैन नहीं लेने देती थी. घर पर दिनेश होता तब भी, न होता तब भी. वह उसे छोटीछोटी बातों पर डांटती रहती थी.

एक दिन दिनेश शराब पी कर आया तो सरोजनी ने उसे प्यार व तकरार से समझाया. यह तकरार सास ने सुन ली तो गुस्से में बोली, ‘‘तेरा बाप तो इसे शराब ला कर देता नहीं. अपनी कमाई से पीता है. फिर इस में तुझे क्या परेशानी है?’’

‘‘सासू मां, शराब पीना अच्छी बात नहीं. फिर मुझे बदबू भी आती है,’’ सरोजनी ने कहा.

सरोजनी की यह बात दिनेश को इसलिए बुरी लगी, क्योंकि उस ने मां की बात का जवाब दिया था.

उस ने सरोजनी के बाल पकड़े और घसीटता हुआ कमरे में ले गया. इस के बाद उस की जम कर पिटाई की. अभी शादी को एक महीना भी नहीं बीता था कि पति ने उस पर हाथ उठा दिया था.

उस दिन के बाद दिनेश शराब पी कर किसी न किसी बात पर उस की पिटाई करने लगा. सरोजनी को लगा कि दिनेश के साथ जीवन बिताना संभव नहीं है. उस ने निश्चय कर लिया कि वह मायके जाने के बाद दोबारा ससुराल नहीं आएगी.

रक्षाबंधन का त्यौहार आया तो उस का भाई उसे अपने साथ लिवा लाया. मायके में सरोजनी को उदास देख कर एक दिन उस की मां जयदेवी ने उदासी का कारण पूछा तो उस ने बताया कि दिनेश अच्छा इंसान नहीं है. वह शराब पीता है और उस के साथ मारपीट करता है. इसलिए अब वह उस के साथ रहना नहीं चाहती.

तलाक के बाद बेटी की कर दी दूसरी शादी

बेटी की बात सुन कर जयदेवी परेशान हो उठी. शाम को कालीचरन लौटा तो उस ने सारी बात उसे बताई. बेटी के साथ ज्यादती की बात सुन कर कालीचरन भड़क उठा. उस ने कहा हम ने तो कभी बेटी को डांटा तक नहीं और वह उसे पीटता है. उस की यह ज्यादती बरदाश्त के बाहर है.

कुछ दिन बाद दिनेश पत्नी को विदा कराने ससुराल पहुंचा, लेकिन सरोजनी ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया. दिनेश अपमानित हो कर वापस घर आ गया. इस के बाद दिनेश कई बार ससुराल गया. पत्नी से मिन्नतें कीं, लेकिन सरोजनी टस से मस नहीं हुई. आखिर सहमति से दोनों का तलाक हो गया.

मायके में सरोजनी तो खुश थी, लेकिन कालीचरन की आंखों की नींद हराम थी. वह तलाकशुदा बेटी का घर बसाना चाहता था, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी. कई महीनों की दौड़धूप के बाद उसे ललित पासवान पसंद आ गया.

ललित पासवान कानपुर शहर से 15 किलोमीटर दूर विधनू कस्बे का रहने वाला था. वह कस्बे के तुलसियापुर (नई बस्ती) मोहल्ले में रहता था. यहां उस का अपना निजी मकान था. मकान के भूतल पर उस की किराने की दुकान थी. ललित दुजहा था. यानी उस की शादी पासी खेड़ा (भीतर गांव) निवासी गीता के साथ हुई थी.

गीता से एक बेटी अनन्या थी. अनन्या जब 5 साल की थी, तभी बीमारी के दौरान गीता की मौत हो गई. ललित को बेटी के पालनपोषण में दिक्कत हो रही थी, सो वह शादी के लिए लालायित था.

ललित और सरोजनी की उम्र में लगभग 10 साल का अंतर था. इस के बाद भी कालीचरन अपनी बेटी का विवाह ललित के साथ करने को राजी हो गया था. उस के 2 कारण थे. पहला कारण यह था कि उस की बेटी सरोजनी भी तलाकशुदा थी.

दूसरा कारण था कि कालीचरन को भय सता रहा था कि बेटी के कदम डगमगा गए तो समाज में उस की बदनामी होगी. अत: खामियों के बावजूद कालीचरन ने 10 जनवरी, 2017 को अपनी बेटी सरोजनी का विवाह ललित पासवान के साथ कर दिया.

शादी के बाद सरोजनी ललित की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. उन्होंने बड़े प्यार से जिंदगी की शुरुआत की. दोनों एकदूसरे को असीम प्यार करते थे. ललित सरोजनी की हर जरूरत पूरी करता था. सरोजनी भी ललित की खूब सेवा करती थी. ललित के प्यार में वह इस कदर डूब गई थी कि अपने मांबाप को भी भूल गई थी.

सरोजनी सुंदर होने के साथ तेजतर्रार भी थी, इसलिए ललित उस से दबादबा सा रहता था. कुछ ही दिनों के बाद सरोजनी पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी. किराने की दुकान से होने वाली आमदनी तथा खेती से होने वाली आमदनी का हिसाब वह खुद रखने लगी थी. उस ने कस्बे की बैंक में बचत खाता भी खोल लिया था.

ललित के परिवार वालों का मानना था कि ललित की दूसरी पत्नी उस की बेटी अनन्या का पालनपोषण ठीक से नहीं करेगी और उस के साथ सौतेला व्यवहार करेगी. लेकिन उन का यह सोचना गलत साबित हुआ. सरोजनी अनन्या का पालनपोषण बड़े लाड़प्यार से कर रही थी. वह उसे अपनी बेटी जैसा व्यवहार कर रही थी.

वह अनन्या की हर जिद पूरी करती थी. अनन्या सरोजनी को मम्मी ही कहती थी. उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह उस की सौतेली मां है. लाड़प्यार और खानपान का ही परिणाम था कि अनन्या अपनी उम्र से अधिक की दिखने लगी थी.

बीवी ने मरवाया अमीर पति को – भाग 1

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले का एक बड़ा व्यावसायिक कस्बा है-बिंदकी. इसी कस्बे के कजियानी मोहल्ले में जगदीश गुप्ता अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी देवी के अलावा एक बेटा अमित गुप्ता व बेटी अनीता थी. जगदीश गुप्ता व्यापारी थे. उपजाऊ जमीन भी उन के पास थी, जिस से उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. कस्बे में वह प्रतिष्ठित व्यवसाई थे. धर्मकर्म में भी उन की रुचि थी और असहाय लोगों की मदद भी करते रहते थे.

जगदीश गुप्ता ने बड़ी बेटी अनीता का विवाह संपन्न घर में कर दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह शादी के कुछ सालों बाद ही विधवा हो गई. तब वह 2 बच्चों के साथ मायके में आ कर ही रहने लगी थी. जगदीश व उन की पत्नी माधुरी देवी उस का पूरा खर्च उठाती थी. उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देते थे.

जगदीश कुमार का बेटा अमित कुमार तेज दिमाग का था. वह पढ़लिख कर पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा. बेटे के साथ देने पर जगदीश कुमार का व्यवसाय और भी बढ़ गया. उधार की रकम वसूलने के लिए अब अमित ही जाने लगा.

एक रोज अमित बाइक से तगादे पर जा रहा था. तभी स्टेशन रोड पर खड़ी एक युवती ने उसे रुकने का इशारा किया. उस खूबसूरत युवती को देख कर अमित ने अपनी बाइक रोक दी. युवती बोली, ‘‘मेरा नाम पूनम कुशवाहा है. मैं कालेज में पढ़ती हूं. काफी देर से आटो का इंतजार कर रही हूं, लेकिन कोई आटो वाला इधर से आ ही नहीं रहा है. आप मुझे कालेज तक छोड़ देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ठीक है, बैठिए.’’ कह कर अमित ने पूनम को बाइक पर बिठा लिया और उस के कालेज की तरफ चल पड़ा. स्टेशन रोड से कालेज तक वह उस से बातें करती रही. एक मिनट के लिए भी उस का मुंह बंद नहीं हुआ. जिस तरह वह उस से मुसकरामुसकरा कर बातें कर रही थी, उस से अमित बहुत प्रभावित हुआ. बाइक चलातेचलाते वह सामने लगे मिरर में उस का चेहरा देखते हुए उस की बातों का जवाब देता रहा. बातोंबातों में उस ने पूनम का मोबाइल नंबर ले लिया.

पूनम से हुई पहली मुलाकात में ही अमित जैसे उस का दीवाना हो गया. उस का फोन नंबर तो उस के पास था ही, इसलिए जब भी उस का मन करता, फोन पर बातें कर लेता. पूनम को भी अमित से बातें करना अच्छा लगता था. धीरेधीरे उन दोनों के बीच दोस्ती हो गई. यही दोस्ती बाद में प्यार में बदल गई. दोनों ही एकदूसरे को चाहने लगे.

पूनम के पिता नरेश कुशवाहा बिंदकी कस्बे में ही रहते थे. उन की 2 बेटियां नीलम व पूनम थीं. नीलम की शादी वह फतेहपुर जिले के चमनगंज निवासी राम खेलावन कुशवाहा  के साथ कर चुके थे. पूनम पढ़ रही थी.

लव मैरिज से मांबाप का टूटा दिल

इधर पूनम और अमित का प्यार परवान चढ़ा तो दोनों ने शादी रचाने का मन बना  लिया. दोनों के घरवालों को शादी करने की बात पता चली तो उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. जगदीश गुप्ता रसूखदार व्यक्ति थे. वह बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से किसी व्यापारी घराने की लड़की से करना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि उन का बेटा किसी विजातीय लड़की से इश्क कर बैठा है और उसी से शादी करना चाहता है तो उन के दिल को ठेस लगी.

चूंकि अमित गुप्ता पूनम के प्यार में आकंठ डूबा था, इसलिए घर वालों की मरजी के बिना ही उस ने पूनम के साथ प्रेम विवाह कर लिया. यह सन 2011 की बात है.

शादी के बाद पूनम अमित की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. थोड़ी नाराजगी के साथ माधुरी व जगदीश गुप्ता ने भी पूनम को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. पूनम ने भी एक आदर्श बहू की तरह घर का कामकाज संभाल लिया और पति तथा सासससुर की सेवा करने लगी. हंसीखुशी से 4 साल बीत गए. इन 4 सालों में पूनम एक बेटे व एक बेटी की मां बन गई.

पूनम 2 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन गाय की तरह एक खूंटे से बंधना उसे पसंद नहीं था. इसलिए वह अपने यारदोस्तों से फोन पर बतियाती रहती थी. खासकर वह अपने जीजा रामखेलावन से फोन पर खूब बतियाती थी, उस से हंसीमजाक करती थी.

पूनम की सास माधुरी को यह सब पसंद नहीं था. वह उसे टोकती तो कहती, ‘‘सासू मां, जवानी में आप ने भी तो घाटघाट का पानी पिया होगा. कितनों पर बिजलियां गिराई होंगी. फिर मुझे क्यों टोक रही हो. कुछ दिन ऐश की जिंदगी जीने दो.’’

बहू की बात सुन कर माधुरी सन्न रह गईं. वह जान गईं कि पूनम खेलीखाई है. उन्होंने उस के मुंह लगना उचित नहीं समझा. हां, इतना जरूर हुआ कि उन का बहू पर से विश्वास उठ गया. भाभी द्वारा मां की बेइज्जती अनीता को बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने पूनम को लताड़ा और मां से माफी मांगने को कहा तो पूनम ने उस की बेइज्जती कर दी.

मां, बहन से ऊलजुलूल बातों की जानकारी अमित को हुई तो उस ने पूनम की जम कर खबर ली. लेकिन चालाक पूनम ने घडि़याली आंसू बहा कर पति के गुस्से को ठंडा कर दिया. इन्हीं दिनों जगदीश गुप्ता की बीमारी से मौत हो गई. पिता की मौत के बाद परिवार का सारा बोझ अमित पर ही आ गया था. वह व्यापार बढ़ाने की सोचने लगा.

अमित कुमार गुप्ता का एक परिचित भिवंडी (मुंबई) में रहता था. वहां वह किराए का कारखाना ले कर धागा बनाने का काम करता था. इस व्यवसाय से वह अच्छा कमाता था. अमित ने भी इसी व्यवसाय से जुड़ने का मन बनाया.

इस के लिए उस ने अपने परिचित से संपर्क बनाया, फिर उस की मदद से धागा बनाने वाली मशीनें व कारखाना किराए पर ले कर धागा बनाने का काम शुरू कर दिया. शुरू में अमित को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उस के बाद सब कुछ ठीक हो गया. धागे का काम सुचारु रूप से चलने लगा और कमाई भी होने लगी.

कहते हैं, जब इंसान का सितारा बुलंद होता है तो तरक्की की राहें अपने आप खुलती जाती हैं. अमित के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस का धागे का काम तो चल ही रहा था, इसी बीच उसे मिडडे मील का काम भी मिल गया. अमित ने शुद्धता और बेहतर क्वालिटी के साथ मिडडे मील का वितरण कराया तो उस की धाक जम गई. अब उसे इस काम में भी आमदनी होने लगी.

इधर अमित मुंबई गया तो पूनम को आजादी के पंख लग गए. उस का जीजा रामखेलावन भी अब उस की ससुराल आने लगा था. उन दोनों के जिस्मानी संबंध भी बन गए.

बहनों से छेड़छाड़, भाइयों की मुसीबत

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाला राजा नामक नौजवान दिल्ली से लगे नोएडा के एक कार गैराज में नौकरी करता था. उसे घायल हालत में अस्पताल में भरती कराया गया. 3 दिन जिंदगी और मौत से जूझने के बाद राजा की सांसों की डोर हमेशा के लिए टूट गई. वह मारपीट में बुरी तरह से घायल हुआ था. उस के सिर व बदन के दूसरे हिस्सों पर चोटों के निशान थे.

उस की मौत ने न सिर्फ उस के परिवार, बल्कि उस के जानकारों को भी हिला कर रख दिया. राजा की गलती महज इतनी थी कि वह अपनी बहन के साथ आएदिन होने वाली छेड़छाड़ का विरोध करता था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि विरोध करने पर मनचला अपने साथियों के साथ उसे इस तरह निशाना बना लेगा.

एक भाई के लिए यह जरूरी भी हो जाता है कि जब कोई सिरफिरा शोहदा उस की बहन को छेड़े, तो वह विरोध करे, लेकिन मनचलों के हौसले बुलंद होते हैं. उन्हें लगता है कि ऐसे विरोध से उन की तौहीन हो गई है और वे सीनाजोरी कर के मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.

दरअसल, राजा की बहन को एक शोहदा वसीम अकसर ही परेशान किया करता था. मौका लगने पर छेड़छाड़ और फब्तियां कसता था. राजा ने इस बात का कई बार विरोध किया, लेकिन उस की हरकतें बंद नहीं हुईं.

एक दिन वसीम ने अपने साथियों के साथ मिल कर राजा की जम कर पिटाई कर दी. गंभीर चोटों के बाद उस की मौत हो गई.

पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कानून ने अपना काम किया, लेकिन बात सिर्फ इतने पर खत्म नहीं हो जाती. सवाल है कि किसी सभ्य समाज में क्या एक भाई को यह सब सहना चाहिए?

समाज में इस तरह की वारदातों में इजाफा हो रहा है. हर छोटेबड़े शहर में शोहदे हैं. हर मिनट कोई लड़की आहत हो कर खून का घूंट पी रही होती है और शोहदे कौलर तान कर निकल जाते हैं. विरोध करने पर सिरफुटौव्वल होती है.

बहन के साथ होने वाली छेड़छाड़ के विरोध की कीमत चुकाने वाला राजा कोई एक अकेला नौजवान नहीं था. उत्तर प्रदेश के बरेली में तो बहन से छेड़छाड़ करने पर दबंगों ने एक भाई की सरेआम हत्या कर दी.

दरअसल, संजय नगर इलाके में एक लड़की सावित्री घर के बाहर खड़े हो कर अपने भाई नन्हे से बात कर रही थी. इसी बीच मोटरसाइकिल सवार एक लड़के ने उसे हलकी टक्कर मार दी.

सावित्री ने विरोध किया, तो उस ने दबंगई दिखा कर छेड़छाड़ कर दी. गुस्से में आए भाई ने उस लड़के को पीट दिया.

वह लड़का तब तो चला गया, लेकिन कुछ देर बाद वह अपने दोस्तों के साथ आया और भाई से मारपीट कर दी. उन्होंने उस के सिर पर फरसे से वार किए. तेज वार से नन्हे लहूलुहान हो कर गिर गया और उस की मौत हो गई.

मामला किसी छोटी जाति की लड़की का हो, तो दबंग उस पर अपना हक समझते हैं कि वह बिना नानुकर किए उन की बात मान ले.

सुलतानपुर का मामला कुछ ऐसा ही है. कादीपुर कोतवाली क्षेत्र में पिछड़ी जाति के निषाद की बेटी रीना (बदला नाम) खेत पर गई थी, तभी 3 दबंगों ने छेड़छाड़ करते हुए उसे दबोच लिया.

इसी बीच रीना का भाई उधर पहुंच गया. बहन की चीखपुकार सुन कर उस की आबरू बचाने के लिए वह दबंगों से भिड़ गया. उन्होंने उसे मारपीट कर अधमरा कर दिया. बाद में अस्पताल में उस की मौत हो गई.

गांवदेहात में कमजोर लोगों की बहूबेटियों पर दबंगों की गंदी नजरें मंडराती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. विरोध करने पर उन्हें तरहतरह से सताया जाता है.

हापुड़ के हरसांव गांव का रहने वाला एक लड़का अपनी बहन के साथ जा रहा था, तभी रास्ते में एक मनचले ने उस की बहन का हाथ पकड़ लिया. भाई ने विरोध किया, तो उस के साथ मारपीट कर मनचला मौके से फरार हो गया.

छेड़छाड़ करने वाले सड़कों, महल्लों से ले कर स्कूलकालेजों के बाहर तक मंडराते हैं. गाजियाबाद शहर के एक कालेज के बाहर 10वीं जमात की एक छात्रा के साथ मनचले अकसर छेड़छाड़ किया करते थे. उस ने इस की शिकायत अपने भाई से की.

एक दिन उस छात्रा का भाई छुट्टी के वक्त पहुंच गया. मनचलों ने वही हरकत दोहराई, तो भाई ने विरोध किया. मनचलों को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने भाई को दौड़ादौड़ा कर इतना पीटा कि उसे आईसीयू में भरती कराना पड़ा. हालांकि बाद में पुलिस ने मनचलों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

इसी तरह कानपुर शहर में एक वारदात हुई. 12वीं जमात की एक छात्रा के साथ एक मनचला अकसर छेड़खानी किया करता था. एक दिन वह घर से कोचिंग क्लास के लिए निकली, तो मनचले ने रास्ता घेर कर उसे रोक लिया और उसे जबरन मोटरसाइकिल पर बैठाने की कोशिश की.

घर पहुंच कर उस लड़की ने अपने भाई को जानकारी दी. गुस्साया भाई अपने एक दोस्त के साथ मनचले के घर शिकायत करने पहुंचा. मनचले ने उलटा उन पर हमला बोल दिया. बैल्ट व डंडों से पीट कर उन दोनों को घायल कर दिया.

मेरठ शहर के सदर इलाके में भी एक नौजवान को अपनी बहन के साथ हुई छेड़छाड़ का विरोध करना भारी पड़ गया. हुआ यों कि एक लड़की अपने घर के बाहर खड़ी थी. इसी दौरान 2 दोस्तों के साथ जा रहे एक लड़के ने लड़की पर फब्तियां कसीं और उस का मोबाइल नंबर पूछा.

इसी बीच घर से बाहर निकले भाई ने उन लड़कों की इस हरकत का विरोध किया, तो उन्होंने उस के साथ मारपीट कर दी. मौके पर खड़ी भीड़ तमाशा देखती रही. पुलिस के पहुंचने तक हमलावर फरार हो गए.

छेड़छाड़ करने वाले ज्यादातर मनचले इस सोच के मारे होते हैं कि वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं. जो लड़की के पक्ष में आता है, उसे गुंडई कर के सबक भी सिखाते हैं. ऐसे मनचले लड़कियों को गंदे इशारे करते हैं, उन्हें छू कर निकलते हैं, वासना भरी नजरों से घूरते हैं और सीटी बजाते हैं.

अमूमन हर रोज ऐसी हरकतों को सहा जाता है. जब कोई भाई अपनी बहन को छेड़छाड़ से बचाने की कोशिश करता है, तो उसे बहुतकुछ सहना पड़ता है. मामला मारपीट और पुलिस तक जाए, तो समाज कई बार लड़की को ही गलत नजर से देखता है. उस का घर से निकलना तक बंद हो जाता है. मनचलों को कानून का डर नहीं होता. छेड़छाड़ के मामले में शायद ही कभी किसी को सजा हुई हो.

वकील सुदेश त्यागी बताते हैं कि पुलिस ऐसे मामलों में छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ धारा-294 के तहत कार्यवाही करती है. इस में ज्यादा से ज्यादा 3 महीने की सजा या जुर्माने का प्रावधान है. ऐसे में अपराध अदालत के सामने साबित भी करना होता है.

समाज में बढ़ती छेड़छाड़ की बीमारी से उन भाइयों की हालत का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, जो अपनी बहन की आबरू को ले कर फिक्रमंद रहते हैं. वे गलत हरकत का विरोध करते हैं, तो उन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है, रंजिशें पनपती हैं और हत्याएं तक हो जाती हैं.

पुलिस अफसर नरेंद्र प्रताप कहते हैं कि इस तरह के मामलों में तुरंत पुलिस को सूचित करना चाहिए. औरतों के लिए अलग से भी हैल्पलाइन नंबर हैं. उन पर भी सूचना दी जा सकती है.

दुखी हो कर बने कातिल

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले का रहने वाला संतराम भी ऐसा ही एक भाई है, जिसे छेड़छाड़ से तंग आ कर हत्या तक करनी पड़ गई. दरअसल, राजीव नामक दबंग लड़का संतराम की बहन पर बुरी नजर रखता था. वह अकसर उस के साथ छेड़छाड़ करता था. बारबार समझाने पर भी जब वह नहीं माना, तो संतराम ने दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया.

एक दिन संतराम ने अपने साथी के साथ मिल कर राजीव को बुलाया. पहले उसे शराब पिलाई, फिर डंडे से सिर पर वार कर के उस की हत्या कर दी. तफतीश में मामला खुला, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

हरियाणा के करनाल शहर का मामला भी कुछ ऐसा ही रहा. 5 नौजवानों ने चाकुओं से गोद कर बसस्टैंड इलाके में एक लड़के विजय राणा की हत्या कर दी. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि विजय राणा आरोपियों में से एक की बहन के साथ छेड़छाड़ व पीछा किया करता था. इसी बात से गुस्साए भाई ने अपने साथियों के साथ मिल कर उस की हत्या कर डाली.

ये है असली ‘शोले’, शौहर ही बन गया ‘गब्बर’

मनोज ने बांहों में जोर से कस कर अपनी बीवी फूलकुमारी को जकड़ लिया और भाभी सविता देवी ने उस के जिस्म पर गरम सलाखों से मारना शुरू कर दिया. बीचबीच में मनोज का बड़ा भाई सरोज उसे उकसाता रहा. फूलकुमारी रोतीचिल्लाती, तो उसे फिल्म ‘शोले’ की हीरोइन बसंती की तरह नाचने के लिए कहा जाता. जब वह नाचने से इनकार करती, तो गरम सलाखों से दागा जाता. दर्द से तड़पती फूलकुमारी नाचने की कोशिश करती, पर गश खा कर जमीन पर गिर पड़ती थी. चेहरे पर पानी डाल कर उसे होश में लाया जाता और उस के बाद फिर से उसे नाचने का फरमान सुना दिया जाता. फिल्म ‘शोले’ के खतरनाक विलेन गब्बर सिंह की हैवानियत को भी फूलकुमारी के पति और ससुराल वालों ने मात दे दी थी.

फूलकुमारी के बेटी को जन्म देने के साथ ही परेशानियों का सिलसिला शुरू हो गया था और उस की शादीशुदा और पारिवारिक जिंदगी लगातार खराब होती गई थी.

बेटी को जनने वाली फूलकुमारी पर उस के सास, ससुर, भैसुर, गोतनी और उस के पति का जोरजुल्म शुरू हो गया. फूलकुमारी और उस के मांबाप को परेशान करने के लिए मनोज ने यह रट लगानी शुरू कर दी कि उसे दहेज में मोटरसाइकिल नहीं मिली है. वह फूलकुमारी पर दबाव बनाने लगा कि वह अपने मांबाप से मोटरसाइकिल दिलाए, नहीं तो तलाक के लिए तैयार हो जाए.

मनोज की इस कारिस्तानी में गांव का ही रामानंद केवट भी बढ़चढ़ कर मदद करने लगा. रामानंद केवट पर औरतों को सताने के पहले से कई मुकदमे दर्ज हैं. उस ने अपने बड़ी बहू को इस कदर तंग किया था कि उस ने फांसी लगा कर अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली थी. वह छोटी बहू को भी डराधमका कर रखता है और कहीं बाहर आनेजाने भी नहीं देता है.

फूलकुमारी देवी बताती है कि मनोज ने मायके वालों से फोन पर बात करने पर भी पाबंदी लगा दी. 4 जून, 2016 को उसे घर के एक कमरे में धकेल कर दरवाजा बंद कर दिया गया और सास मुन्नी देवी पहरेदार के रूप में बाहर डंडा ले कर बैठी रहती थीं.

24 मई, 2014 को बिहार की राजधानी पटना के दीघा थाने की बिंद टोली में काफी धूमधाम से मनोज और फूलकुमारी की शादी हुई थी. भोजपुर जिले के आरा शहर के रघु टोला में रहने वाले किसान रामदयाल केवट और मुन्नी देवी के बेटे मनोज के साथ फूलकुमारी आरा आ गई.

इस बीच मनोज के बड़े भाई धनोज की बीवी रिंकू ने 6 मार्च, 2015 को बेटी को जन्म दिया. घर में खुशियां मनाई गईं और जम कर पार्टी हुई. उस के बाद जनवरी, 2016 को धनोज और रिंकू मुंबई चले गए.

धनोज मुंबई में गरम मसाले का कारोबार करता है. उस के बाद मनोज और फूलकुमारी देवी के घर भी 27 अक्तूबर, 2015 को बेटी का जन्म हुआ. फूलकुमारी के बेटी होने के बाद पूरे घर में कुहराम मच गया.

जब फूलकुमारी के पिता रवींद्र महतो को अपनी बेटी की दर्दभरी कहानी का पता चला, तो वे बेटी की ससुराल आरा पहुंचे. उन्हें बेटी से नहीं मिलने दिया गया और बेइज्जत कर के घर से भगा दिया गया. उस के बाद रवींद्र महतो महिला थाने पहुंचे और इंचार्ज पूनम कुमारी से मिल कर पूरी घटना की जानकारी दी.

रवींद्र ने जब एफआईआर दर्ज करने की गुजारिश की, तो थाना इंचार्ज ने उन से कहा कि आप लोग पटना के दीघा थाना इलाके में रहते हैं, इसलिए आरा में एफआईआर दर्ज करने से आप लोगों को बारबार पटना से आरा आनेजाने में काफी पैसा और समय बरबाद होगा. आरा के सभी मामले पटना में ही रैफर कर दिए जाते हैं, इसलिए दीघा थाने जा कर एफआईआर दर्ज कराएं, तो अच्छा रहेगा.

थानाध्यक्ष पूनम कुमारी ने कहा कि दीघा थाने के थानाध्यक्ष के पास जा कर मामला दर्ज कराएं. पूनम कुमारी ने यह भी भरोसा दिलाया कि अगर दीघा थानाध्यक्ष मामला दर्ज नहीं करेंगे, तो उन से उन की बात करा देना.

महिला थाने से निराशा हाथ लगने के बाद रवींद्र महतो पटना के दीघा थाने गए. वहां पर पुलिस वालों को बेटी के साथ हुए अत्याचार की कहानी सुनाई और एफआईआर दर्ज करने की गुहार लगाई.

रवींद्र की बातों को सुनने के बाद पुलिस वालों ने साफतौर पर कहा कि यह मामला तो भोजपुर जिले के आरा शहर का है, इसलिए यहां तो किसी भी हालत में एफआईआर दर्ज नहीं होगी. आरा में जा कर ही मामला दर्ज कराएं.

इस के बाद फूलकुमारी के पिता रवींद्र महतो थाने में ही बैठ कर रोने लगे और बेटी को इंसाफ दिलाने की रट लगाने लगे. इस के बाद भी पुलिस वालों ने उन की मदद नहीं की.

पटना पुलिस हैडक्वार्टर के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, 9 जून, 2016 को दोपहर में महिला थाने की थानाध्यक्ष पूनम कुमारी ने रिपोर्ट में कहा था कि घायल के परिजन खुद ही इंजरी रिपोर्ट और एफआईआर दर्ज नहीं कराना चाह रहे थे. उन का कहना था कि पटना में एफआईआर दर्ज करेंगे.

इस से यह साफ हो जाता है कि महिला थानों में भी औरतों के मामले को ले कर किस कदर लापरवाही बरती जाती है.

परिवार में अपराध : हादसे का दर्द, मुकदमे का बोझ

पारिवारिक अपराध घरपरिवार पर दोहरी मुसीबत ले कर आते हैं. एक तरफ परिवार को नुकसान उठाना होता है, तो वहीं दूसरी तरफ जेल में बंद परिवार के सदस्य को सजा से बचाने के लिए जेल से ले कर कचहरी तक परिवार के बचे लोगों को दौड़ना पड़ता है. वकील और पुलिस के चक्कर में फंस कर केवल पैसा ही नहीं,  समय भी बरबाद होता है.

कितने गरीब परिवारों को अपने घर और जमीन तक बेचने या गिरवी रखने पड़ते हैं. परिवार का जेल गया सदस्य जब तक जेल से बाहर आता है, तब तक उस का बचा हुआ परिवार टूट कर बिखर चुका होता है. देश की न्याय प्रणाली की भारीभरकम कीमत ने ज्यादातर भारतीयों की पहुंच से इस को दूर कर दिया है. बहुत से मामलों में सजा पाए लोग लोअर कोर्ट से आगे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात सोच ही नहीं सकते.

बेंगलुरु के गैरसरकारी संगठन ‘एक्सेस टू जस्टिस’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 90 फीसदी अपील करने वाले वे लोग हैं, जो साल में 3 लाख रुपए से कम कमाते हैं. अपील पर आने वाला उन का औसत खर्च एक बार का 16 हजार रुपए हो जाता है.

आंकड़ों से अलग कचहरी में आने वाले खर्च और परेशानियों की हकीकत बहुत अलग होती है. परेशानी की बात यह है कि परिवार में बढ़ते तनाव, जरूरतों और इच्छाओं के चलते अपराध की वारदातें बढ़ रही हैं.

ऐसी वारदातें 25 साल से 35 साल की उम्र में ज्यादा होती हैं. इस समय  नौजवान अपने कैरियर में कामयाबी की तरफ बढ़ रहा होता है. यहां पर अपराध की वारदातों में फंस कर पूरा परिवार तबाह हो जाता है. घरों में होने वाले ऐसे अपराध की सब से बड़ी वजह नाजायज संबंध या पारिवारिक तनातनी होती है.

पिता की मौत, मां को जेल

लखनऊ, उत्तर प्रदेश की बक्शी का तालाब तहसील के इंटौजा थाने के गोहनाखुर्द गांव में रामस्वरूप रावत अपनी पत्नी कुसुमा, मां बिट्टो, 5 साल के बेटे संजय और 3 साल की बेटी रीना के साथ रहता था. रामस्वरूप रावत की शादी 7 साल पहले रामधीन पुरवा की रहने वाली कुसुमा से हुई थी.

इसी गांव में भानुप्रताप सिंह भी रहता था. वह ईंटभट्ठा का मालिक था. उस के 2 ईंटभट्ठे थे. उस का एक भट्ठा प्रताप ब्रिक फील्ड के नाम से गोहनाखुर्द गांव में था और दूसरा बिसवा में था.

रामस्वरूप भानुप्रताप के यहां काम करता था. इस वजह से उस की पत्नी कुसुमा का भी वहां पर आनाजाना होता रहता था.

कुसुमा देखने में खूबसूरत थी. उस में कुछ ऐसा खिंचाव था, जो भानुप्रताप को पसंद आ गया. वह जिस अंदाज से कुसुमा को देखता था, वह अंदाज कुसुमा को पसंद था. जब दोनों तरफ से रजामंदी हो, तो रिश्ता बनते देर नहीं लगती.

अब भानुप्रताप कुसुमा के पति की ओर कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगा था. उस ने आम का 2 बीघा बाग खरीदा और उस की रखवाली करने का काम रामस्वरूप को दे दिया.

नतीजतन, रामस्वरूप दिनरात घर से बाहर ही रहता. भानुप्रताप भी रामस्वरूप की माली मदद करने लगा था.

रामस्वरूप को यह पता नहीं था कि कुसुमा और भानुप्रताप के बीच संबंध हैं. इधर मौके का फायदा उठा कर कुसुमा और भानुप्रताप अब रोज ही संबंध बनाने लगे थे.

एक दिन रामस्वरूप ने कुसुमा और भानुप्रताप को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था, पर भानुप्रताप के डर और झिझक के चलते उस ने उन से कुछ नहीं कहा. पर अब वह इन दोनों पर नजर भी रखने लगा था.

एक दिन रामस्वरूप गांव से बाहर था, तब कुसुमा और भानुप्रताप मिले. कुसुमा ने बताया कि किस तरह से उस का पति उसे अब परेशान करने लगा है. कुसुमा और भानुप्रताप ने तय कर लिया कि अब रामस्वरूप को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.

एक दिन भानुप्रताप ने अपने 2 साथियों और कुसुमा को साथ ले कर रामस्वरूप की उस समय हत्या कर दी, जब वह आम के बाग में सो रहा था, लेकिन बहुत से उपाय करने के बाद भी पुलिस से यह अपराध छिपा नहीं.

पुलिस ने रामस्वरूप की लाश को गड्ढे से खोद कर बरामद कर लिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या करने का मामला सामने आया.

पुलिस ने धारा 302 के तहत कुसुमा, भानुप्रताप, बबलू और लल्लू के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. कुसुमा, भानुप्रताप और बबलू को पुलिस ने फौरन पकड़ लिया, जबकि लल्लू फरार हो चुका था. पुलिस की पूरी छानबीन और पुख्ता सुबूतों के आधार पर ही तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया. पिता की मौत और मां के जेल चले जाने के बाद 5 साल का बेटा संजय और 3 साल की बेटी रीना अनाथ हो गए.

केवल कुसुमा का परिवार ही नहीं, बल्कि भानुप्रताप का परिवार भी तबाह हो गया. उस ने अपनी मेहनत और लगन से ईंटभट्ठे के जिस कारोबार को जमाया था, वह बरबाद हो गया. अब उस की जमानत से ले कर मुकदमे तक में लाखों रुपए बरबाद हो रहे हैं.

10 साल की सजा

बक्शी का तालाब, लखनऊ के रहने वाले वंशीलाल ने अपनी बेटी शिवदेवी की शादी सत्यपाल के साथ की थी. शादी के बाद ही सत्यपाल और उस के घर वालों ने शिवदेवी से मोटरसाइकिल और सोने की चेन की मांग शुरू कर दी.

दहेज की मांग पूरी न होने पर 8-9 अक्तूबर, 2015 को उन लोगों ने शिवदेवी को सोते समय जला दिया. 13 अक्तूबर को इलाज के दौरान अस्पताल में शिवदेवी की मौत हो गई.

शिवदेवी के पिता ने अपनी बेटी के पति सत्यपाल और जेठ सत्यवान के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया.

अदालत ने सत्यवान के खिलाफ कोई सुबूत नहीं पाया, तो उसे मुकदमे से बरी कर दिया और पति सत्यपाल को 10 साल की सजा और 15 हजार रुपए का जुर्माना देने का फैसला सुनाया.

अदालत ने यह भी कहा कि जुर्माने में से 10 हजार रुपए वादी यानी शिवदेवी के पिता को दिए जाएं.

हत्या की इस वारदात में 2 परिवार तबाह हो गए. बेटी की मौत का दर्द लिए जी रहा पिता इस फैसले से खुश नहीं था. उसे लग रहा है कि उस की बेटी की हत्या करने वालों को वैसी सजा नहीं मिली, जैसी उस की बेटी ने भोगी.

वह इस मामले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ले जाना चाहता है, पर माली तौर पर मजबूर है. सोने की चेन और मोटरसाइकिल से ज्यादा कीमत शिवदेवी की हत्या में फंसे उस के पति सत्यपाल के परिवार ने थाना और कचहरी के चक्कर में खर्च कर डाली.

लखनऊ के ही थाना गोसाईंगंज क्षेत्र में रहने वाले महादेव ने 9 मई, 2015 को अपनी बेटी रानी की शादी हरिश्चंद्र से की थी. एक लाख रुपए के दहेज की मांग को ले कर हरिश्चंद्र अपनी पत्नी रीना को तंग करता था. इस से परेशान हो कर महादेव अपनी बेटी को ससुराल से मायके ले आया. कुछ दिन बाद हरिश्चंद्र अपनी ससुराल आया और पत्नी को विदा करा कर ले गया. उस ने कहा कि वह उसे दोबारा परेशान नहीं करेगा.

14 फरवरी, 2016 को रीना की हत्या हो गई. रीना की लाश रस्सी से लटकी मिली. उस के घर वालों का आरोप था कि रीना को मार कर रस्सी से लटकाया गया है.

पुलिस ने हत्या के आरोपी पति की जमानत की अपील खारिज कर दी और उसे सुनवाई तक जेल में रहना होगा.

इस तरह दहेज कानून के तहत लोग सालोंसाल से जेलों में बंद हैं. पैरवी में हर पेशी पर घर वालों को वकीलों से ले कर जेल मुलाजिमों तक को पैसा देना पड़ता है.

जायदाद की जगह जेल

लखनऊ के माल थाना क्षेत्र के नबी पनाह गांव में मुन्ना सिंह अपने 2 बेटों संजय और रणविजय के साथ रहते थे. 60 साल के मुन्ना सिंह का आम का बाग था, जिस की कीमत करोड़ों में थी.

मुन्ना के बड़े बेटे संजय की शादी रायबरेली जिले की रहने वाली सुशीला के साथ 5 साल पहले हुई थी. सुशीला के 2 बच्चे, 4 साल की बेटी और डेढ़ साल का बेटा थे. वह पूरे घर पर कब्जा जमाना चाहती थी. इसलिए उस ने सगे देवर रणविजय से संबंध बना लिए, जिस से वह शादी न करे.

सुशीला को डर था कि देवर की शादी के बाद उस की पत्नी और बच्चों का भी जायदाद में हक हो जाएगा.

यह बात जब मुन्ना सिंह को पता चली, तो वे अपने छोटे बेटे की शादी कराने की कोशिश करने लगे. सुशीला को जायदाद की चिंता थी. वह जानती थी कि देवर रणविजय ससुर को राह से हटाने में उस की मदद नहीं करेगा. तब उस ने अपने चचेरे देवर शिवम को भी अपने संबंधों से जाल में फंसा लिया.

जब शिवम पूरी तरह से उस के काबू में आ गया, तो उस ने ससुर मुन्ना सिंह की हत्या की योजना पर काम करने के लिए कहा. शिवम जब इस के लिए तैयार नहीं हुआ, तो सुशीला ने शिवम को बदनाम करने का डर दिखाया और बात मान लेने पर 20 हजार रुपए देने का लालच भी दिया. डर और लालच में शिवम सुशीला का साथ देने को तैयार हो गया.

12 जून की रात मुन्ना सिंह आम की फसल बेच कर घर आए. इस के बाद खाना खा कर आम के बाग में सोने के लिए चले गए. वे अपने पैसे हमेशा साथ ही रखते थे.

सुशीला ने शिवम को फोन कर के गांव के बाहर बुला लिया. शिवम अपने साथ राघवेंद्र को भी ले आया था. तीनों एक जगह मिले और फिर मुन्ना सिंह को मारने की योजना बना ली.

मुन्ना सिंह उस समय बाग में सो रहे थे. दबे पैर पहुंच कर तीनों ने उन को दबोचने के पहले चेहरे पर कंबल डाल दिया. सुशीला ने उन के पैर पकड़ लिए और शिवम व राघवेंद्र ने उन को काबू में किया, जान बचाने के संघर्ष में मुन्ना सिंह चारपाई से नीचे गिर गए. वहीं पर दोनों ने गमछे से गला दबा कर उन की हत्या कर दी.

मुन्ना सिंह के बेटे संजय और रणविजय ने हत्या का मुकदमा माल थाने में दर्ज कराया. एसओ विनय कुमार सिंह ने मामले की जांच शुरू की.

पुलिस ने हत्या में जायदाद को वजह मान कर अपनी खोजबीन शुरू की. सुशीला बारबार पुलिस को यह समझाने की कोशिश में थी कि ससुर मुन्ना सिंह के संबंध अपने बेटों से अच्छे नहीं थे.

इस बीच गांव में यह पता चला कि सुशीला का देवर रणविजय और चचेरे देवर शिवम से संबंध है. इस बात पर पुलिस ने सुशीला से पूछताछ शुरू की.

पुलिस ने सुशीला के मोबाइल फोन की काल डिटेल देखनी शुरू की, तो पता चला कि सुशीला ने उस दिन शिवम से देर रात तक बात की थी.

पुलिस ने शिवम का फोन देखा, तो उस में राघवेंद्र का नंबर मिला. इस के बाद पुलिस ने राघवेंद्र, शिवम और सुशीला से अलगअलग बात की.

सुशीला अपने देवर रणविजय को हत्या के मामले में फंसाना चाहती थी. वह पुलिस को बता रही थी कि शिवम का फोन उस के देवर रणविजय के मोबाइल पर आ रहा था.

सुशीला सोच रही थी कि पुलिस हत्या के मामले में देवर रणविजय को जेल भेज दे, तो वह अकेली पूरी जायदाद की मालकिन बन जाएगी, पर पुलिस को सच का पता चल चुका था.

जायदाद के लालच में फंसी बहू जेल चली गई. उस के डेढ़ साल के बेटे को बिना कुसूर जेल जाना पड़ा.

जिस जायदाद को पा कर वह ऐश की जिंदगी जीना चाहती थी, उसी को बेच कर घर वाले थानाकचहरी के चक्कर लगाएंगे.

एक नजर में मुकदमों का खर्च

बेंगलुरु के एक गैरसरकारी संगठन ‘एक्सैस टू जस्टिस’ की एक रिपोर्ट में मुकदमों पर होने वाले खर्चों को दिखाने का काम किया गया है. औसतन मुकदमों में इंसाफ मिलने में एक से 5 साल तक का समय लग जाता है. तमाम लोगों के पास अपनी जमानत देने का भी पैसा नहीं होता, जिस वजह से वे जेल में ही पड़े रहते हैं. पैसे की कमी में लोग लोअर कोर्ट से हाईकोर्ट में नहीं जा पाते हैं. कई बार पैसों का इंतजाम करने में घरजमीन तक बिक जाते हैं. सब से बड़ी परेशानी यह है कि मुवक्किल के प्रति वकीलों में जवाबदेही की कमी होती है.

24 राज्यों की 305 जगहों पर 9329 लोगों के बीच किए गए सर्वे में पता चलता है कि 48 फीसदी परिवार 3 लाख सालाना कमाई करने वाले मध्यम वर्ग के होते हैं. एक लाख से कम कमाई वाले 43 फीसदी परिवार मुकदमेबाजी में उलझे हैं. 3 लाख से ज्यादा सालाना आमदनी वाले केवल 10 फीसदी परिवार ही मुकदमेबाजी में उलझे हैं.

सर्वे में यह भी पता चला है कि 66 फीसदी मामलों में जमीन और जायदाद के मुकदमे होते हैं. 80 हजार करोड़ रुपए हर साल खर्च होते हैं. 84 फीसदी मुकदमे मर्दों की तरफ से होते हैं, जबकि 15 फीसदी मुकदमे औरतों की ओर से होते हैं.

44 फीसदी सामान्य वर्ग के लोग मुकदमा दर्ज करते हैं. 34 फीसदी पिछड़ा वर्ग और 14 फीसदी दलित जातियों के लोग मुकदमा दर्ज करते हैं.

सालाना एक लाख रुपए से कम आमदनी वाले मुकदमे पर 10 हजार रुपए, एक लाख से 3 लाख सालाना आमदनी वाले 16 हजार रुपए, 3 लाख से 5 लाख सालाना आमदनी वाले 26 हजार रुपए और 5 लाख से 10 लाख सालाना आमदनी वाले 25 हजार रुपए मुकदमों पर खर्च करते हैं.

अधूरे रह गए अरमान

6 जनवरी, 2018 को मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के बेरछा थाने के थानाप्रभारी उदय सिंह अपने औफिस में बैठे थे. तभी मालीखेड़ी की आदर्श कालोनी का रहने वाला मुकेश नाम का युवक उन के पास आया. उस ने बताया कि उस के छोटे भाई रमेश का 10 महीने का बेटा अनमोल घर से अचानक गायब हो गया है.

उस ने कहा कि शाम 6 बजे तक अनमोल घर पर ही था. उस की मां शीला खाना बना रही थी. खाना बनाने के बाद जब वह बच्चे को दूध पिलाने के लिए आई तो वह बिस्तर से गायब मिला. घर में जितने भी लोग थे, सभी से पूछा पर बच्चे का पता नहीं चला.

मुकेश की बात सुन कर थानाप्रभारी भी चौंक गए कि 10 महीने का बच्चा घर वालों के बीच से आखिर कैसे गायब हो गया. वह अपने आप तो कहीं जा नहीं सकता था और घर में कोई बाहरी व्यक्ति आया नहीं तो वह कहां चला गया.

बहरहाल, उन्होंने मुकेश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर सूचना आला अधिकारियों को दे दी.

एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान ने अपहरण के इस केस को सुलझाने के लिए रात में ही एसडीपीओ रवि सिंह अंब की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी उदय सिंह, आरक्षक विनोद शर्मा, महेश यादव, अनिल मंडलोई, विक्रम धनवाल, निलेख क्षोत्रिय, सोहन पटेल, महिला आरक्षक मंजू कुमारी, साइबर सेल के भूपेंद्र सिंह आदि को शामिल किया गया. टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी एडीशनल एसपी ज्योति ठाकुर को दी गई. यह टीम रात में ही अनमोल की खोज में जुट गई.

एसडीपीओ रवि सिंह अंब ने जब परिवार वालों से विस्तार से बात की तो मुकेश ने बताया कि शाम के लगभग 6 बजे अनमोल झूले में सो रहा था. 3 दिन पहले उस की बहन का बेटा राकेश सिंह देवास से उन के घर आया हुआ है. वह अनमोल को झूले से उठा कर ऊपर गैलरी में ले गया. गैलरी में मेरा छोटा भाई राकेश भी था. भांजा और भाई दोनों अनमोल को काफी देर तक खेलाते रहे.

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इस के बाद भांजा राकेश सिंह यह कहते हुए अनमोल को ले कर नीचे आ गया कि ऊपर बहुत ठंड बढ़ गई है, इसे नीचे मामी को दे कर आता हूं. फिर वह अनमोल को ले कर नीचे आया. इस के कुछ देर बाद दूध पिलाने के लिए जब अनमोल की मां शीला कमरे में आई तो अनमोल वहां नहीं मिला.

जाहिर है कि आखिरी बार अनमोल मुकेश के भांजे राकेश सिंह की गोद में था, इसलिए पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि छत से नीचे आने के बाद उस ने अनमोल को झूले में सुला दिया था. अनमोल को सुलाने के बाद वह वापस गैलरी में चला गया था.

राकेश सिंह की यह बात एसडीपीओ रवि सिंह अंब के गले नहीं उतरी. दूसरे सब से बड़ी बात यह थी कि राकेश सिंह जब अनमोल को गैलरी से लाया था, तब अनमोल जाग रहा था. उसे झूले में सुलाते हुए घर के किसी सदस्य ने नहीं देखा था.

अगर मान भी लिया जाए कि उस ने ऐसा किया था तो गौर करने वाली बात यह थी कि 10 महीने का अनमोल खुद तो झूले से नीचे उतर नहीं सकता था. दूसरे झूला घर के अंदर ऐसी जगह पर था, जहां आ कर कोई बाहरी इंसान आसानी से उसे ले कर घर से बाहर नहीं जा सकता.

एसडीपीओ आर.एस. अंब ने राकेश सिंह का मोबाइल फोन चैक किया तो पता चला कि उस ने अपनी सारी काल हिस्ट्री डिलीट कर दी थी. इस से राकेश सिंह पूरी तरह से पुलिस के शक के घेरे में आ गया. एसडीपीओ रवि सिंह अंब ने एडीशनल एसपी ज्योति ठाकुर को यह सारी बात बताई तो उन्होंने राकेश सिंह की काल डिटेल्स निकलवाने के अलावा उस से सख्ती से पूछताछ करने को कहा.

पुलिस टीम राकेश सिंह को थाने ले आई. जब राकेश सिंह से गंभीरता से पूछताछ की तो वह ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. उस ने अनमोल के अपहरण की बात स्वीकार करते हुए बता दिया कि इस समय अनमोल देवास में अमृता शर्मा के पास है. अमृता उस के साथ ही काम करती है.

एसडीपीओ रवि सिंह अंब के निर्देश पर थानाप्रभारी उदय सिंह के नेतृत्व में पुलिस देवास के लिए निकल गई. टीम ने राकेश सिंह को भी अपने साथ ले लिया था.

अमृता शर्मा घर पर ही मिल गई. उस की निशानदेही पर पुलिस ने 10 महीने के अनमोल को सुरक्षित बरामद कर लिया. पुलिस ने अमृता के पति गगन शर्मा को भी हिरासत में ले लिया. बेरछा थाने ले जा कर जब उन सब से विस्तार से पूछताछ की गई तो अनमोल के अपहरण की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

मालीखेड़ी निवासी मुकेश कारपेंटर के परिवार की गिनती क्षेत्र के अच्छे परिवारों में होती थी. मुकेश अपने छोटे भाई राकेश के साथ रहता था. संयुक्त परिवार में दोनों ही खुश थे. मुकेश की बहन का एक बेटा था राकेश सिंह, जो देवास में स्थित रैनबैक्सी कंपनी में नौकरी करता था.

राकेश सिंह की संगत ठीक नहीं थी. वह आवारा, नशेड़ी किस्म का था, इसलिए अनेक रिश्तेदार उस से दूरी बना कर रहते थे. लेकिन बहन का बेटा होने के कारण मुकेश के परिवार में राकेश को भांजे की तरह मानसम्मान और प्यार दिया जाता था. इसलिए राकेश अपने मामा के घर आताजाता रहता था.

राकेश जिस रैनबैक्सी कंपनी में काम करता था, उसी में अमृता शर्मा भी नौकरी करती थी. वह बेहद सुंदर थी, इसलिए राकेश उस से दोस्ती बनाने के चक्कर में लगा रहता था. इसी कारण उस ने अमृता के पति गगन से भी गहरी दोस्ती कर ली थी. गगन इंदौर के एक निजी अस्पताल में काम करता था.

अमृता राकेश की नीयत व हावभाव को समझती थी, इसलिए वह राकेश से हद में रह कर बात करती थी. जबकि राकेश को विश्वास था कि एक न एक दिन अमृता के साथ हुई उस की दोस्ती प्यार में बदल जाएगी.

इस दौरान अमृता ने इंदौर में एक मकान खरीद लिया, जिस से उस पर काफी कर्ज हो गया था. राकेश तो था ही अय्याश प्रवृत्ति का. अमृता को पाने के चक्कर में वह उस के ऊपर काफी पैसे बरबाद कर चुका था. इस से उस पर भी लाखों रुपए का कर्ज हो चुका था.

राकेश भले ही कर्ज में था पर उस के दिमाग पर यही चढ़ा हुआ था कि वह अमृता का कर्ज उतारने में उस की किस तरह मदद कर सकता है. उसे उम्मीद थी कि अगर ऐसा हो गया तो अमृता उस के करीब आ सकती है. इसलिए वह अमृता की मदद करने की योजना बनाने लगा.

अब वह यही सोचने लगा कि इतनी मोटी रकम वह कहां से लाए. तभी उस के दिमाग में आया कि यदि वह अपने छोटे मामा राकेश कुमार के बेटे अनमोल का अपहरण कर ले तो उस के दोनों मामा मिल कर आसानी से 20-25 लाख रुपए की फिरौती तो दे ही देंगे.

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उस ने यह बात अमृता को बताई. अमृता खुश हो गई. उस ने राकेश सिंह से कहा, ‘‘अगर तुम किसी तरह से मेरे ऊपर चढ़े कर्ज से छुटकारा दिलवा दोगे तो तुम मुझ से जो कहोगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

‘‘सोच लो, बाद में बदल मत जाना.’’ राकेश ने अपना मतलब सीधा होते देख अमृता से कहा.

‘‘देखो, मैं अपने वादे से पीछे नहीं हटूंगी और मैं योजना को अंजाम देने में भी तुम्हारा हर तरह से सहयोग करने को तैयार हूं.’’

अमृता द्वारा अनमोल के अपहरण में साथ देने की बात सुन कर राकेश खुश हो गया. इस के बाद दोनों अनमोल के अपहरण की योजना बनाने में जुट गए. इस बारे में अमृता ने पति गगन से बात की तो वह भी साथ देने को तैयार हो गया.

योजना में तय हुआ कि राकेश अपने छोटे मामा राकेश कुमार के 10 महीने के बेटे अनमोल का अपहरण कर के अमृता को दे देगा. फिर अमृता पति के साथ अनमोल को कार से देवास ले जाएगी. जिस के बाद तीनों मिल कर अनमोल के बदले 25 लाख की फिरौती वसूल कर लेंगे. यह भी तय हो गया कि फिरौती की रकम राकेश अकेला खुद ले कर आएगा.

योजना के अनुसार, राकेश सिंह कुछ दिन पहले अपने साथ अमृता को ले कर अपने मामा राकेश कुमार के यहां बेरछा आ गया.

मामा से उस ने कहा कि वे दोनों भोपाल से लौटते हुए काफी थक गए हैं, इसलिए रात में यहीं रहेंगे. इस पर मामामामी को भला क्या ऐतराज हो सकता था. इसलिए उन्होंने अपने भांजे राकेश व उस के साथ आई अमृता की खूब खातिरदारी की.

इस दौरान अमृता राकेश के छोटे बेटे अनमोल को खूब खेलाती रही, ताकि वह उसे अच्छी तरह से पहचानने लगे. अमृता और राकेश 2 दिन बेरछा में रहे और लगातार अनमोल को लाड़प्यार करते रहे.

अमृता ने राकेश कुमार के घर के आगेपीछे के रास्तों को भी अच्छी तरह से देख लिया था.

इस के बाद घटना से 3 दिन पहले योजना बना कर राकेश बेरछा आ गया. फिर 6 जनवरी, 2018 को गगन और अमृता अपनी मारुति कार ले कर देवास से निकले.

बेरछा पहुंच कर गगन कुछ दूरी पर कार ले कर खड़ा हो गया, जबकि अमृता अंधेरा होने पर पैदल चल कर राकेश के मामा के घर के पिछवाड़े पहुंच कर खड़ी हो गई.

उस के बाद उस ने राकेश को मिस काल की तो राकेश गैलरी से अनमोल को ले कर नीचे आ गया और उसे अमृता को सौंप दिया. जहां से अमृता उसे पति के साथ ले कर देवास आ गई.

25 लाख रुपए मिलने के सपने देखते हुए वह कार में पति को प्यार करते हुए लिपट गई. दोनों को उम्मीद थी कि अब उन का कर्ज जल्द उतर जाएगा. इधर राकेश अमृता से प्यार के सपने देख रहा था.

उसे उम्मीद थी कि इस अहसान के बदले अमृता उसे किसी बात के लिए इंकार नहीं करेगी. परंतु पुलिस ने अनमोल को सकुशल बरामद कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर के उन के अरमानों पर पानी फेर दिया.

एसपी शैलेंद्र सिंह ने इस केस को सुलझाने वाली पुलिस टीम के कार्य की सराहना की. पुलिस ने तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पति के बर्थडे पर पत्नी ने दिया मौत का तोहफा

मूल रूप से चमौली, उत्तराखंड का रहने वाला यशपाल मध्य प्रदेश के पीथमपुर इलाके में बनी सिप्ला दवा कंपनी में काम करता था. यशपाल ने पूजा से पहले प्यार किया, फिर घर वालों के भारी विरोध के बाद उस ने पूजा से शादी की थी. यशपाल और पूजा एक ही कालेज में पढ़ते थे. इस दौरान दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

एक दिन पूजा अचानक गश खा कर गिर पड़ी. डाक्टरों ने जांच कर पूजा के दिल में दिक्कत बताई. डाक्टरों के मुताबिक, उस के एक वौल्व में छेद था. जो ठीक तो हो सकता था, पर इस के लिए लंबा समय और महंगी दवा की जरूरत थी. पूजा की बीमारी जान कर यशपाल बहुत दुखी हुआ. पूजा की बीमारी जानने के बावजूद यशपाल ने उस से शादी का प्रपोजल रखा, जिसे पूजा ने तुरंत मान लिया. इस के बाद उन दोनों की प्रेम कहानी की चर्चा पूरे कालेज में होने लगी.

साल 2011 में यशपाल की नौकरी सिप्ला दवा कंपनी, इंदौर में लग गई. नौकरी के बाद जब शादी की बात आई, तो यशपाल के घर वाले लड़की देखने लगे. यशपाल ने कहा कि वह अपनी गर्लफ्रैंड पूजा से ही शादी करेगा.

यशपाल ने घर वालों से पूजा के दिल की बीमारी की बात नहीं छिपाई. पूजा की बीमारी जान कर घर वालों ने यशपाल को काफी समझाने की कोशिश की, पर उस ने किसी की एक न सुनी.

आखिरकार यशपाल की जिद के आगे घर वालों को झुकना पड़ा. साल 2012 में यशपाल और पूजा की शादी बड़े धूमधाम से हो गई. शादी के बाद यशपाल पूजा को ले कर इंदौर आ गया. वह इंदौर के एबी रोड पर राऊ इलाके में ओमप्रकाश चौधरी के मकान में किराए पर रहने लगा.

इंदौर का राऊ इलाका धूल, धुआं और शोरशराबे वाला इलाका है. पूजा को दिल की बीमारी थी, इसलिए प्रदूषण की वजह से उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी. उसे दिखाने पर डाक्टर ने कहा कि पूजा को अगर सेहतमंद देखना चाहते हो, तो उसे किसी हिल स्टेशन पर ले जाओ.

यशपाल पहाड़ी इलाके का रहने वाला था. उस ने देहरादून में अपने मामा के घर के पास ही एक मकान किराए पर ले कर पूजा को वहां शिफ्ट कर दिया. पूजा देहरादून में अकेले रहने लगी. इधर इंदौर में यशपाल पूजा के इलाज के लिए पैसे जुटाने में लग गया. वह हर महीने पूजा से मिलने देहरादून आता था. डाक्टरी चैकअप के बाद उस की दवा वगैरह का इंतजाम कर के फिर इंदौर लौट आता. यह सिलसिला पिछले 3 सालों से चल रहा था.

यशपाल पूजा को खुश देखना चाहता था. पूजा ने भी यशपाल को प्यार देने में कोई कमी नहीं रखी. टाइमपास करने के लिए पूजा अपना समय इंटरनैट पर गुजारने लगी. उस ने फेसबुक पर अंजलि के नाम से अकाउंट खोल लिया.

बस, यहीं से उस का मन बहकने लगा. वह फेसबुक पर नएनए लड़कों से चैटिंग करने लगी. पूजा जिन लड़कों से चैटिंग करती थी, उन में कोटा, राजस्थान का रहने वाला करन सिंह सिद्धू भी था. धीरेधीरे उन की फेसबुक की दोस्ती प्यार में बदल गई. इस के बाद दोनों मोबाइल फोन पर घंटों बातें करने लगे. जब करन को यह पता चला कि पूजा देहरादून में अकेली रहती है, तो उस ने मिलने की इच्छा जाहिर की.

पूजा ने तुरंत करन सिंह को अपना पता दे दिया. पता मिलते ही वह देहरादून पहुंच गया. करन सिंह रात में पूजा के घर पर ही रुका. दोनों में उसी रात सैक्स संबंध बन गए. इस के बाद तो करन सिंह अकसर उस से मिलने कोटा से देहरादून पहुंचने लगा.

पूजा करन सिंह को दिलोजान से इतना चाहने लगी कि अब उसे यशपाल का प्यार फीका लगने लगा था. वह यशपाल को छोड़ कर करन सिंह के साथ घर बसाने की सोचने लगी.

करन सिंह भी पूजा के प्यार में पागल था. उसे पूजा के रूप में सोने के अंडे देने वाली मुरगी मिल गई थी. पूजा उसे प्यार और सैक्स के अलावा पैसा भी देती थी. उधर यशपाल पूजा की ठीक से देखभाल नहीं कर पा रहा था. इस का उसे मलाल था. इस के लिए उस ने इंदौर की दवा कंपनी सिप्ला को छोड़ने का फैसला लिया. यही फैसला उस के लिए जन्मदिन पर मौत का तोहफा साबित हुआ.

पूजा के पास वह रह सके और उस की देखभाल कर सके, इस के लिए यशपाल ने देहरादून की दवा कंपनी में नौकरी के लिए अर्जी दी.चूंकि यशपाल को सिप्ला जैसी अच्छी दवा कंपनी में काम करने का तजरबा था. सो, उसे देहरादून में एक दवा कंपनी में नौकरी मिल गई. उसे 1 जुलाई को कंपनी जौइन करनी थी.

यह खुशखबरी उस ने पूजा को सुनाई, तो वह खुश होने के बजाय दुखी हो गई.  जाहिर सी बात थी, यशपाल के देहरादून आने के बाद करन सिंह के साथ ऐयाशी कर पाना उस के लिए मुश्किल हो जाएगा. उस ने तुरंत करन सिंह को देहरादून बुलाया. पूजा ने उस से कहा कि अगर वह आगे भी उस से जिस्मानी संबंध बनाए रखना चाहता है, तो यशपाल के देहरादून पहुंचने से पहले ही उसे ठिकाने लगाना होगा.

पहले तो यह सुन कर करन सिंह चौंका, पर जब पूजा ने यशपाल को रास्ते से हटाने का प्लान बताया, तो उसे सुन कर करन सिंह राजी हो गया. 20 जून की सुबह इंदौर पुलिस ने यशपाल को अपने कमरे में मरा पाए जाने की बात बताई. यशपाल की मौत की खबर मिलते ही उस का भाई हरी सिंह, ताऊ आनंद सिंह, जीजा व दूसरे रिश्तेदार इंदौर पहुंच गए.

पूजा को भी यशपाल की मौत की सूचना मिल चुकी थी. वह भी इंदौर पहुंच गई. उस का रोतेरोते बुरा हाल था. पूजा की हालत देख कर यशपाल के घर वाले आंसू रोक न सके.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद यशपाल की लाश उस के परिवार वालों को दे दी गई. लेकिन अंतिम संस्कार से लौटते ही पुलिस ने पूजा को यशपाल की हत्या के आरोप में हिरासत में ले लिया. यशपाल के घर वालों ने इस का विरोध किया. पूजा भी इस बात से इनकार करती रही.

शाम तक पुलिस टीम करन सिंह को राजस्थान के हनुमानगढ़ से गिरफ्तार कर उसे इंदौर ले कर पहुंची. करन सिंह को अपने सामने देख पूजा टूट गई.

पूजा ने बताया कि यशपाल से दूर रहने के बाद वह करन सिंह से प्यार करने लगी थी. वह यशपाल से अलग हो कर करन सिंह के साथ घर बसाना चाहती थी. जब यशपाल ने फोन पर उसे बताया कि वह देहरादून की कंपनी में 1 जुलाई से जौइन करने वाला है, तो वह चौंक गई. वह हर हाल में करन सिंह को पाना चाहती थी, इसलिए उस ने यशपाल से छुटकारा पाने का प्लान बना लिया.

20 जून को यशपाल का बर्थडे था. प्लान के मुताबिक, पूजा ने यशपाल से फोन पर कहा कि वह इस बार उस के बर्थडे पर एक खास तोहफा देना चाहती है. यह तोहफा उस का फेसबुक फ्रैंड करन सिंह 19 तारीख की रात को ले कर पहुंच जाएगा. यशपाल ने पूजा से बारबार पूछा, वह तोहफे में क्या दे रही है, यह बता दे. पूजा ने सस्पैंस है कह कर उसे चुप करा दिया.

यशपाल की पत्नी पूजा उसे पहली बार उस के बर्थडे पर तोहफा भेजने वाली थी. वह तोहफे में क्या देने वाली है, इसी सोच में वह कई दिनों तक खोया रहा. वह 19 जून की रात को बेसब्री से इंतजार करने लगा.

यशपाल ने करन सिंह के लिए अपने ही घर पर एक छोटी सी पार्टी रखी थी. 19 तारीख की रात को करीब 10 बजे करन सिंह यशपाल के घर पर पहुंचा. यशपाल ने उस का जोरदार स्वागत किया. दोनों बैठ कर देर रात तक शराब पीते रहे.

करन सिंह दिखावे के लिए शराब लेता रहा. उस ने यशपाल को जम कर शराब पिलाई. नशा होने की वजह से यशपाल बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गया. मौका पा कर करन सिंह ने यशपाल के मुंह में रूई ठूंस दी, ताकि उस की आवाज न निकल सके. इस के बाद गला दबा कर उस की हत्या कर दी और बाहर से दरवाजे पर ताला लगा कर वहां से चला गया.

लेकिन करन सिंह और पूजा का एकसाथ रहने का प्लान धरा रह गया और वे पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

बहू भी कराती है हत्या

आमतौर पर यह माना जाता है कि ससुराल में बहू पर ही अत्याचार होता है. यह अत्याचार कभी ससुर करता है कभी सास. लखनऊ के माल थाना क्षेत्र के नबीपनाह गांव की रहने वाली बहू पर उसकी ससुराल वालों ने कोई अत्याचार नहीं किया बल्कि खुद उसने ही करोडों की जायदाद के लालच में अपने ससुर की हत्या चचेरे देवर और उसके दोस्त के साथ मिलकर कर दी और हत्या के आरोप में अपने पति और सगे देवर को फंसाने की कोशिश की, पर अपराध छिपाये नही छिपता और बहू को अपने डेढ साल के बच्चे के साथ जेल जाना पड़ा.

नबी पनाह गांव में मुन्ना सिंह अपने दो बेटो संजय और रणविजय सिंह के साथ रहते थे. 60 साल के मुन्ना सिंह की आम कह बाग और दूसरी जायदाद थी. जिसकी कीमत करोडो में थी. मुन्ना के बडे बेटे संजय की शादी रायबरेली जिले की रहने वाली सुशीला के साथ 5 साल पहले हुई थी.

सुशीला के 2 बच्चे 4 साल की बडी लडकी और डेढ साल का बेटा था. सुशीला पूरे घर पर कब्जा जमाना चाहती थी. इस कारण उसने अपने सगे देवर रणविजय से संबंध बना लिये. जिससे वह अपनी शादी न करे. सुशील को डर था कि देवर की शादी के बाद उसकी पत्नी और बच्चों का भी जायदाद में हक लगेगा. यह बात जब मुन्ना सिह को पता चली तो वह अपने छोटे बेटे की शादी कराने का प्रयास करने लगे. सुशीला को जायदाद की चिन्ता थी. वह जानती थी कि देवर रणविजय ससुर को राह से हटाने में उसकी मदद नहीं करेगा.

तब उसने अपने चचेरे देवर शिवम को भी अपने संबंधों से जाल में फंसा लिया. जब शिवम पूरी तरह से उसके काबू में आ गया तो उसने ससुर मुन्ना सिंह की हत्या की योजना पर काम करने के लिये कहा. शिवम जब इसके लिये तैयार नहीं हुआ तो सुशीला ने शिवम को बदनाम करने का डर दिखाया और बात मान लेने पर 20 हजार रूपये देने का लालच भी दिया. डर और लालच में शिवम सुशीला का साथ देने को तैयार हो गया.

12 जून की रात सुशीला के सुसर बुजुर्ग किसान मुन्ना सिंह चैहान आम की फसल बेचकर अपने घर आये. इसके बाद खाना खाकर आम की बाग में सोने के लिये चले गये. वह अपने पैसे भी हमेशा अपने साथ ही रखते थे. सुशीला ने शिवम को फोन गांव के बाहर बुला लिया. शिवम अपने साथ राघवेन्द्र को भी ले आया था.

तीनों एक जगह मिले और फिर मुन्ना सिंह को मारने की योजना बना ली. मुन्ना सिंह उस समय बाग में सो रहे थे. दबे पांव पहुंच कर तीनो ने उनको दबोचने के पहले चेहरे पर कंबल ड़ाल दिया. सुशीला ने उनके पांव पकड लिया और शिवम,राघवेन्द्र ने उनको काबू में किया. जान बचाने के संघर्ष में मुन्ना सिंह चारपाई से नीचे गिर गये. वही पर दोनो ने गमझे से गला दबा कर उनकी हत्या कर दी.

मुन्ना सिंह की जेब में 9 हजार 2 सौ रूपये मिले. शिवम ने 45 सौ रूपये राघवेन्द्र को दे दिये. सुशीला ने आलमारी और बक्से की चाबी ले ली. सबलोग अपने घर चले आये. सुबह पूरे गांव मे मुन्ना सिह की हत्या की खबर फैल गई. मुन्ना सिंह के बेटे संजय और रणविजय ने हत्या का मुकदमा माल थाने में दर्ज कराया.

एसओ माल विनय कुमार सिंह ने मामले की जांच शुरू की. पुलिस ने हत्या में जायदाद को वजह मान कर अपनी खोजबीन शुरू की. मुन्ना सिंह की बहु सुशीला बारबार पुलिस को यह समझाने की कोशिश में थी कि ससुर मुन्ना के संबंध अपने बेटो से अच्छे नहीं थे. पुलिस ने जब मुन्ना सिंह के दोनो बेटो संजय और रणविजय से पूछताछ शुरू की तो दोनो बेकसूर नजर आये.

इस बीच गांव में यह पता चला कि मुन्ना सिंह की बहू सुशीला के देवर से संबंध है. इस बात पर पुलिस ने सुशीला से पूछताछ शुरू की तो उसकी कुछ हरकते संदेह प्रकट करने लगी.

पुलिस ने सुशीला के मोबाइल की काल डिटेल देखनी शुरू की तो उनको पता चला कि सुशीला ने शिवम से देर रात तक उस दिन बात की थी. पुलिस ने शिवम के फोन को देखा तो उसमें राघवेन्द्र का फोन मिला. इसके बाद पुलिस ने राघवेन्द्र, शिवम और सुशीला से सबसे पहले अलग अलग बातचीत शुरू की.

सुशीला अपने देवर रणविजय को हत्या के मामले में फंसाना चाहती थी. वह पुलिस को बता रही थी कि शिवम का फोन उसके देवर रणविजय के मोबाइल पर आ रहा था. सुशीला सोच रही थी कि पुलिस हत्या के मामले में देवर रणविजय को जेल भेज दे तो वह अकेली पूरे जायदाद की मालकिन बन जायेगी. पर पुलिस को सच का पता चल चुका था. पुलिस ने राघवेन्द्र, शिवम और सुशीला तीनो को आमने सामने बैठाया.तो सबने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

14 जून को माल पुलिस ने राघवेन्द्र, शिवम और सुशीला को मजिस्ट्रेट के समाने पेश किया. वहां से तीनो को जेल भेज दिया गया. सुशीला अपने साथ डेढ साल के बेटे को भी जेल ले गई. उसकी 4 साल की बेटी को पिता संजय और चाचा रणविजय ने अपने पास रख लिया. जेल जाते वक्त भी सुशीला के चेहरे पर कोई शिकन नहीं था. वह बारबार शिवम और राघवेंद्र पर इस बात से नाराज हो रही थी कि उन लोगों ने यह क्यों बताया कि मारने के समय उसने ससुर मुन्ना सिंह के पैर पकड रखे थे.