मां के लिए बेटियां बनी अपराधी – भाग 1

‘अम्मा, यह बेटा है या बेटी?’’ एक युवती ने समीना से पूछा. अस्पताल के वार्ड में एक स्टूल पर बैठी समीना ने कहा, ‘‘अरी लाली, यह मेरा पोता है. आज सुबह ही पैदा हुआ है.’’

‘‘अम्मा, पोता होने से तेरी तो मौज हो गई,’’ उस युवती ने समीना को बातें में लगाते हुए कहा.

‘‘हां लाली, सब अल्लाह की मेहर है,’’ समीना आसमान की ओर हाथ उठा कर बोली.

‘‘अम्मा, तेरा पोता बड़ा खूबसूरत और गोलमटोल है,’’ युवती ने नवजात बच्चे को दुलारते हुए कहा, ‘‘अम्मा, तू कहे तो मैं इसे गोद में ले कर खिला लूं.’’

‘‘ले तेरा मन बालक को गोद में खिलाने की है तो खिला ले.’’ समीना ने अपने पोते को युवती की गोद में देते हुए कहा.

युवती नवजात को गोद में ले कर दुलारने, प्यार करने लगी. उसे अपने पोते पर इतना प्यार बरसाते देख कर समीना ने पूछा, ‘‘लाली, तू यहां क्या कर रही है?’’

‘‘अम्मा, मेरी चाची के औपरेशन से बच्चा हुआ है. वह इसी अस्पताल के बच्चा वार्ड में मशीन में रखा है.’’ युवती ने समीना को बताया, ‘‘मैं तो चाची की मदद के लिए आई थी, लेकिन बालक मशीन में रखा है, इसलिए इधर आ गई. मुझे बच्चा खिलाना अच्छा लगता है.’’

समीना ने उस युवती को आशीर्वाद दिया.

यह बीती 10 जनवरी की बात है. भरतपुर जिले की पहाड़ी तहसील के हैवतका गांव के निवासी तारीफ की पत्नी मनीषा ने तड़के 4 बज कर 20 मिनट पर पहाड़ी के राजकीय अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था. प्रसव के दौरान मनीषा को चूंकि अधिक रक्तस्राव हुआ था और वह एनीमिक भी थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे जिला मुख्यालय भरतपुर के जनाना अस्पताल रेफर कर दिया था.

मनीषा के परिवार वाले उसे पहाड़ी से भरतपुर के राजकीय जनाना अस्पताल ले आए. भरतपुर, राजस्थान का संभाग मुख्यालय है. वहां अच्छी चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं.

मनीषा दोपहर करीब 12 बज कर 28 मिनट पर अस्पताल पहुंची. कागजी खानापूर्ति के बाद उसे 12 बज कर 50 मिनट पर अस्पताल के पोस्ट नैटल केयर वार्ड नंबर-1 में बैड नंबर 7 पर भरती कर लिया गया.

अस्पताल में भरती होने पर प्रसूता मनीषा बैड पर लेट गई. मनीषा के साथ उस की सास समीना और समीना की सास जुम्मी सहित गांव के कई पुरुष भी भरतपुर आए थे. मनीषा का पति तारीफ साथ नहीं था. वह ट्रक चलाता था और ट्रक ले कर दिल्ली से मुंबई गया हुआ था. मनीषा की शादी करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. पहली संतान के रूप में उसे बेटा हुआ था.

SOCIETY

मनीषा के नवजात बेटे को समीना गोद में ले कर खिला रही थी, तभी वह युवती वहां आ गई थी. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा लिया. हंसहंस कर बात करते हुए उस ने समीना से उस का पोता अपनी गोद में ले लिया.

वह युवती जब नवजात को गोद में ले कर दुलार रही थी, तभी डाक्टर ने मनीषा को ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई. इस पर मनीषा का जेठ मुफीद और ताया ससुर सद्दीक भरतपुर के ही आरबीएम अस्पताल से ब्लड लेने चले गए. अस्पताल में भरती मनीषा, उस की सास समीना और दादी सास जुम्मी अस्पताल में रह गईं.

उस युवती को अपने पोते के साथ खेलता देख कर समीना ने उस से कहा, ‘‘लाली, हम ने सुबह से चाय तक नहीं पी है. तू हमारी बहू के पास बैठ कर बच्चे को खिला, हम अस्पताल के बाहर कैंटीन पर चायनाश्ता कर आते हैं.’’

इस के लिए वह युवती खुशीखुशी तैयार हो गई. दोपहर करीब 2 बजे युवती को वहां बैठा छोड़ कर समीना और उस की सास जुम्मी चाय पीने अस्पताल के बाहर चली गईं.

समीना और उस की सास के बाहर जाने के बाद उस युवती ने मनीषा से कहा कि तुम्हें शौचालय जाना हो तो मैं ले चलती हूं. मनीषा के हां कहने पर वह युवती उस का हाथ पकड़ कर उसे शौचालय ले गई. मनीषा का बेटा युवती की गोद में ही था. मनीषा शौचालय के अंदर चली गई.

कुछ देर बाद मनीषा शौचालय से बाहर निकली तो वहां वह युवती नहीं थी. मनीषा ने सोचा कि शायद वह बैड पर जा कर बैठ गई होगी.

मनीषा जैसेतैसे सहारा ले कर अपने बैड तक आई, लेकिन वह वहां भी नहीं थी. इस पर मनीषा ने शोर मचाया तो वार्ड में भरती अन्य प्रसूताओं के घर वाले एकत्र हो गए.

उधर अस्पताल के बाहर मनीषा की सास समीना जब चाय पी रही थी तो उस ने उस युवती को बच्चे को कंबल में लपेट कर ले जाते हुए देखा. समीना ने कंबल देख कर युवती को टोका भी लेकिन वह रुकी नहीं.

वह तेज कदमों से चली गई. इस से समीना को संदेह हुआ. वह वार्ड में बहू के पास आई तो वह रो रही थी. मनीषा ने बताया कि जो युवती बच्चे को गोद में ले कर खिला रही थी, वह उसे ले कर भाग गई है.

समीना तुरंत अस्पताल के बाहर आई, लेकिन युवती वहां कहीं नहीं थी. तब तक अस्पताल में भरती प्रसूताओं के घर वाले भी बाहर आ गए थे. लोगों ने पूछताछ की तो पता चला, कंबल में बच्चे को लपेटे हुए एक युवती सफेद रंग की स्कूटी पर गई है. उस स्कूटी के पास पहले से ही एक और युवती खड़ी थी. दोनों स्कूटी से गई हैं.

करीब 10 घंटे पहले कोख से जन्मा कलेजे का टुकड़ा चोरी हो जाने से मनीषा पीली पड़ गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे डाक्टरों ने संभाला.

 

कभी-कभी ऐसा भी – भाग 1

शौपिंग कर के बाहर आई तो देखा मेरी गाड़ी गायब थी. मेरे तो होश ही उड़ गए कि यह क्या हो गया, गाड़ी कहां गई मेरी? अभी थोड़ी देर पहले यहीं तो पार्क कर के गई थी. आगेपीछे, इधरउधर बदहवास सी मैं ने सब जगह जा कर देखा कि शायद मैं ही जल्दी में सही जगह भूल गई हूं. मगर नहीं, मेरी गाड़ी का तो वहां नामोनिशान भी नहीं था. चूंकि वहां कई और गाडि़यां खड़ी थीं, इसलिए मैं ने भी वहीं एक जगह अपनी गाड़ी लगा दी थी और अंदर बाजार में चली गई थी. बेबसी में मेरी आंखों से आंसू निकल आए.

पिछले साल, जब से श्रेयस का ट्रांसफर गाजियाबाद से गोरखपुर हुआ है और मुझे बच्चों की पढ़ाई की वजह से यहां अकेले रहना पड़ रहा है, जिंदगी का जैसे रुख ही बदल गया है. जिंदगी बहुत बेरंग और मुश्किल लगने लगी है.

श्रेयस उत्तर प्रदेश सरकार की उच्च सरकारी सेवा में है, सो हमेशा नौकर- चाकर, गाड़ी सभी सुविधाएं मिलती रहीं. कभी कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. बैठेबिठाए ही एक हुक्म के साथ सब काम हो जाता था. पिछले साल प्रमोशन के साथ जब उन का तबादला हुआ तो उस समय बड़ी बेटी 10वीं कक्षा में थी, सो मैं उस के साथ जा ही नहीं सकती थी और इस साल अब छोटी बेटी 10वीं कक्षा में है. सही माने में तो अब अकेले रहने पर मुझे आटेदाल का भाव पता चल रहा था.

सही में कितना मुश्किल है अकेले रहना, वह भी एक औरत के लिए. जिंदगी की कितनी ही सचाइयां इस 1 साल के दौरान आईना जैसे बन कर मेरे सामने आई थीं.

औरों की तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरे संग तो ऐसा ही था. शादी से पहले भी कभी कुछ नहीं सीख पाई क्योंकि पापा भी उच्च सरकारी नौकरी में थे, सो जहां जाते थे, बस हर दम गार्ड, अर्दली आदि संग ही रहते थे. शादी के बाद श्रेयस के संग भी सब मजे से चलता रहा. मुश्किलें तो अब आ रही हैं अकेले रह के.

मोबाइल फोन से अपनी परेशानी श्रेयस के साथ शेयर करनी चाही तो वह भी एक मीटिंग में थे, सो जल्दी से बोले, ‘‘परेशान मत हो पूरबी. हो सकता है कि नौनपार्किंग की वजह से पुलिस वाले गाड़ी थाने खींच ले गए हों. मिल जाएगी…’’उन से बात कर के थोड़ी हिम्मत तो खैर मिली ही मगर मेरी गाड़ी…मरती क्या न करती. पता कर के जैसेतैसे रिकशा से पास ही के थाने पहुंची. वहां दूर से ही अपनी गाड़ी खड़ी देख कर जान में जान आई.

श्रेयस ने अभी फोन पर समझाया था कि पुलिस वालों से ज्यादा कुछ नहीं बोलना. वे जो जुर्माना, चालान भरने को कहें, चुपचाप भर के अपनी गाड़ी ले आना. मुझे पता है कि अगर उन्होंने जरा भी ऐसावैसा तुम से कह दिया तो तुम्हें सहन नहीं होगा. अपनी इज्जत अपने ही हाथ में है, पूरबी.

दूर रह कर के भी श्रेयस इसी तरह मेरा मनोबल बनाए रखते थे और आज भी उन के शब्दों से मुझ में बहुत हिम्मत आ गई और मैं लपकते हुए अंदर पहुंची. जो थानेदार सा वहां बैठा था उस से बोली, ‘‘मेरी गाड़ी, जो आप यहां ले आए हैं, मैं वापस लेने आई हूं.’’

उस ने पहले मुझे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर बहुत अजीब ढंग से बोला, ‘‘अच्छा तो वह ‘वेगनार’ आप की है. अरे, मैडमजी, क्यों इधरउधर गाड़ी खड़ी कर देती हैं आप और परेशानी हम लोगों को होती है.’’

मैं तो चुपचाप श्रेयस के कहे मुताबिक शांति से जुर्माना भर कर अपनी गाड़ी ले जाती लेकिन जिस बुरे ढंग से उस ने मुझ से कहा, वह भला मुझे कहां सहन होने वाला था. श्रेयस कितना सही समझते हैं मुझे, क्योंकि बचपन से अब तक मैं जिस माहौल में रही थी ऐसी किसी परिस्थिति से कभी सामना हुआ ही नहीं था. गुस्से से बोली, ‘‘देखा था मैं ने, वहां कोई ‘नो पार्किंग’ का बोर्ड नहीं था. और भी कई गाडि़यां वहां खड़ी थीं तो उन्हें क्यों नहीं खींच लाए आप लोग. मेरी ही गाड़ी से क्या दुश्मनी है भैया,’’ कहतेकहते अपने गुस्से पर थोड़ा सा नियंत्रण हो गया था मेरा.

इतने में अंदर से एक और पुलिस वाला भी वहां आ पहुंचा. मेरी बात उस ने सुन ली थी. आते ही गुस्से से बोला, ‘‘नो पार्किंग का बोर्ड तो कई बार लगा चुके हैं हम लोग पर आप जैसे लोग ही उसे हटा कर इधरउधर रख देते हैं और फिर आप से भला हमारी क्या दुश्मनी होगी. बस, पुलिस के हाथों जब जो आ जाए. हो सकता है और गाडि़यों में उस वक्त ड्राइवर बैठे हों. खैर, यह तो बताइए कि पेपर्स, लाइसेंस, आर.सी. आदि सब हैं न आप की गाड़ी में. नहीं तो और मुश्किल हो जाएगी. जुर्माना भी ज्यादा भरना पड़ेगा और काररवाई भी लंबी होगी.’’

उस के शब्दों से मैं फिर डर गई मगर ऊपर से बोल्ड हो कर बोली, ‘‘वह सब है. चाहें तो चेक कर लें और जुर्माना बताएं, कितना भरना है.’’

मेरे बोलने के अंदाज से शायद वे दोनों पुलिस वाले समझ गए कि मैं कोई ऊंची चीज हूं. पहले वाला बोला, ‘‘परेशान मत होइए मैडम, ऐसा है कि अगर आप परची कटवाएंगी तो 500 रुपए देने पड़ेंगे और नहीं तो 300 रुपए में ही काम चल जाएगा. आप भी क्या करोगी परची कटा कर. आप 300 रुपए हमें दे जाएं और अपनी गाड़ी ले जाएं.’’

उस की बात सुन कर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, मगर मैं अकेली कर भी क्या सकती थी. हर जगह हर कोने में यही सब चल रहा है एक भयंकर बीमारी के रूप में, जिस का कोई इलाज कम से कम अकेले मेरे पास तो नहीं है. 300 रुपए ले कर चालान की परची नहीं काटने वाले ये लोग रुपए अपनीअपनी जेब में ही रख लेंगे.

घर से निकलते ही – भाग 1

रात के 10 बज चुके थे. रोजाना की तरह प्रदीप पत्नी ज्योति का इंतजार कर रहा था. बच्चे उस का इंतजार कर सो चुके थे. वैसे तो वह अकसर शाम का अंधेरा घिरते ही लखनऊ के धनवारा भसंडा गांव स्थित अपने घर आ जाती थी. हालांकि कई बार उसे थोड़ी देर भी हो जाती थी, किंतु उस रोज कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी.

प्रदीप ने कई बार फोन किया था. लेकिन वह बारबार काल डिसकनेक्ट कर देती थी. फिर फोन पर ‘पहुंच से बाहर’ होने का संदेश मिलता था.

घर के दरवाजे पर नजर टिकाए गुमसुम प्रदीप ने अपनी 9 वर्षीया बेटी और 7 वर्षीय बेटे को खाना खिला कर सोने के लिए कमरे में भेज दिया था. सब से छोटा वाला बेटा तो काफी पहले ही सो गया था. जैसेजैसे रात गहराने लगी थी और गलियों में सन्नाटा पसरने लगा था, वैसेवैसे उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

खैर! इंतजार खत्म हुआ. दरवाजे की कुंडी बजी. और बाहर से किवाड़ पर लात मारने की आवाज भी आई. वह तेज कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ा, तब तक किवाड़ एक झटके से खुल चुके थे.

दरअसल, दरवाजे की भीतरी चिटकनी नहीं लगी थी. लड़खड़ाती ज्योति 2-3 कदम ही बढ़ पाई थी कि प्रदीप ने उसे गिरने से पहले पकड़ लिया.

उस के पीछे जोगेंद्र सिंह चौहान भी खड़ा था. घर में घुसते ही जोगेंद्र ने ताना देते हुए प्रदीप से कहा, ‘‘ले भई, संभाल अपनी बीवी को. जब बीवी तुम से संभलती नहीं है, तुम्हारा कहना नहीं मानती है, तब तुम उस से पीछा क्यों नहीं छुड़ा लेते हो?’’

ज्योति को पकड़े हुए प्रदीप ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ उसे गुस्साई नजरों से देखता रहा.

‘हांहां, इस से नाता तोड़ कर अपना अलग ही घर बसा लो.’’ जोगेंद्र बोला.

‘‘अरे जोगेंद्र, ये मुझे क्या छोड़ेगा. देखना, एक दिन मैं ही इस से नाता तोड़ कर तुम्हारे साथ घर बसाऊंगी.’’ लड़खड़ाती आवाज में ज्योति बोली. प्रदीप चुप बना रहा. दोनों की उलटीसीधी बातें सुनता रहा.

ज्योति शराब के नशे में धुत थी. जोगेंद्र भी नशे में था. ज्योति प्रदीप का हाथ छुड़ाते हुए लड़खड़ाती आवाज में बोली, ‘‘तुम इतना फोन क्यों कर रहे थे? नाक में दम कर रखा था. तुम्हें कितनी बार मना किया है कि जब मैं कंपनी के काम से घर से बाहर रहूं तब बारबार फोन कर मुझे डिस्टर्ब मत किया करो. लेकिन तुम हो कि…’’

‘‘…अरे बच्चे खाने के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ धीमी आवाज में प्रदीप बोला.

‘‘तो क्या हुआ? उन्हें खाना पका कर खिलाया या यूं ही सो गए?’’ ज्योति नाराजगी दिखाती हुई बोली.

तभी जोगेंद्र बोला, ‘‘अच्छा ज्योति, मैं चलता हूं तुम आराम करो. तुम ने बहुत पी ली है.’’

‘‘अरे अकेले कहां जाएगा तू, मुझे भी तो तेरे साथ चलना है. थोड़ा दम तो लेने दे.’’ जोगेंद्र का हाथ खींचते हुए ज्योति बोली और उसे अपने साथ कमरे में पड़ी चारपाई पर बिठा लिया.

प्रदीप वहीं खड़ा रहा, जबकि ज्योति चारपाई पर पसर गई. लेटेलेटे प्रदीप से बोली,  ‘‘तुम ने तो मेरी पसंद का खाना पकाया नहीं होगा. मैं जोगेंद्र के साथ फिर वहीं दारोगा खेड़ा जा रही हूं. तुम्हारे और बच्चों के लिए खाना देने आई थी. हम ने कंपनी के काम की थकान उतारने के लिए वहीं दारू पी थी. अभी एक चौथाई बोतल बची है.’’

जोगेंद्र के कंधे का सहारा ले कर पसरी हुई ज्योति चारपाई पर बैठ गई. बोली, ‘‘चल जोगेंद्र, वहीं चलते हैं दारोगा खेड़ा के कमरे पर. फील्ड में जाने के लिए सुबह 7 बजे ही निकलना होगा. सामान भी तो वहीं पड़ा है. यहां से समय पर वहां पहुंचना मुश्किल है.’’

‘‘बच्चे पूछेंगे तब उन्हें क्या बोलूं?’’ प्रदीप बोला.

‘‘यह खाना तुम्हारे लिए है. रेस्टोरेंट का अच्छा खाना है. बच्चों को भी सुबह गर्म कर के खिला देना, खराब नहीं होगा. मैं वापस जा रही हूं. कल कंपनी की 9 बजे मीटिंग भी है. शाम तक वापस लौटूंगी. खाना बना कर रखना, जोगेंद्र के लिए भी.’’ ज्योति आदेश देने के अंदाज में बोली.

ज्योति प्रेमी के साथ छलकाने लगी जाम

ज्योति को जोगेंद्र के साथ जाने से प्रदीप रोक नहीं पाया. उस के सामने ही ज्योति जोगेंद्र के प्रति प्रेम दर्शाती रही. उस ने यहां तक कह दिया कि उस ने उस के साथ ही दारू पी है और रात भी उसी के साथ गुजारेगी.

दरअसल, ज्योति अब कहने भर को प्रदीप की ब्याहता थी. उस ने अपना प्रेमी तलाश लिया था. जब जी में आता था, उस के साथ कंपनी के काम के बहाने चली जाती थी. घर में शराब नहीं पीती थी, लेकिन बच्चों से छिपा कर सिगरेट जरूर पीने लगी थी.

कोरोना के बाद जब से ज्योति ने कंपनी का काम पकड़ा था, तब से ज्योति बहुत बदल गई थी. उस पर शहरी रंग चढ़ चुका था. फैशन भी करने लगी थी. उम्र 30-32 की हो चली थी, किंतु चालढाल और बनावशृंगार से वह 24-25 की ही दिखती थी. साड़ी जैसे पारंपरिक पहनावे के अलावा जींस टौप भी पहनने लगी थी.

जुबान कड़वी हो चुकी थी. छूटते ही मुंह से गाली निकलती थी. पति को तो कुछ समझती ही नहीं थी. जब भी वह गुस्से में होती, तब उसे मांबहन की गालियां बकनी शुरू कर देती थी.

और जब नशे में होती, तब प्रदीप को सैक्स के लिए परेशान कर देती थी. यौन संतुष्टि नहीं मिलने पर उसे पीट तक डालती थी. बातबात पर दबंगई दिखाती थी.

बिना तलाक के तलाकशुदा – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की शबाना का अलग ही मामला है. उस के पति ने उसे तलाक नहीं दिया है, फिर भी इद्दत के दौरान भरणपोषण की रकम दे कर उस से छुटकारा पा लिया है. जबकि इद्दत 2 स्थितियों में होता है. एक औरत विधवा हो जाए, दूसरा उस का तलाक हो जाए. लेकिन शबाना के साथ इन दोनों स्थितियों में एक भी नहीं है.

एटा शहर के किदवईनगर में समरुद्दीन पत्नी रजिया, 2 बेटियों शबाना, शमा तथा 2 बेटों सरताज और नूर आलम के साथ रहते थे. उन का खातापीता परिवार था. बेटियों में शबाना शादी लायक हुई तो वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगे.

एटा में ही उन के एक रिश्तेदार अलीदराज रहते थे. बाद में वह काम की तलाश में दिल्ली चले गए और वहां दक्षिणपूर्वी दिल्ली जिले के संगम विहार में रहने लगे. उन्होंने वहीं स्टील फरनीचर का अपना कारखाना लगा लिया, जो ठीकठाक चल पड़ा.

अलीदराज के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और 1 बेटी थी. वह बेटी की शादी कर चुके थे. बड़े बेटे आसिफ की शादी के लिए उन्होंने समरुद्दीन के पास प्रस्ताव भेजा. क्योंकि शबाना उन्हें पसंद थी. आसिफ पिता के स्टील फरनीचर के धंधे में हाथ बंटा रहा था. लड़का ठीकठाक था, इसलिए समरुद्दीन ने हामी भर दी. इस के बाद आसिफ और शबाना का निकाह हो गया.

शादी के बाद शबाना दिल्ली आ गई. वह समझदार लड़की थी, इसलिए रजिया को पूरा विश्वास था कि बेटी अपने बातव्यवहार से ससुराल वालों का दिल जीत लेगी और खुशहाल जीवन जिएगी. हुआ भी ऐसा ही. शबाना के दांपत्य के शुरुआती दिन काफी खुशहाल थे. मांबाप ने शादी में 4-5 लाख रुपए खर्च किए थे.

आसिफ का भी काम ठीक चल रहा था. सासससुर, पति, देवर सभी उसे प्यार करते थे. इसलिए शबाना भविष्य को ले कर निश्ंिचत थी. शादी के साल भर बाद शबाना को एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम अलीशा रखा गया. अलीशा घर की पहली संतान थी, इसलिए उसे ले कर सभी खुश थे. सब कुछ बढि़या चल रहा था, लेकिन अचानक शबाना के सुख के दिन दुखों में बदल गए.

एक दिन आसिफ शराब पी कर घर आया तो शबाना को गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘यह क्या कर के आए हो तुम? यह नया शौक कब से पाल लिया? पीने वाले मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं हैं. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे मायके में शराब की छोड़ो, कोई बीड़ीसिगरेट तक नहीं पीता.’’

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पत्नी की नसीहत सुन कर उसे अमल में लाने के बजाय आसिफ ने शबाना के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, ‘‘क्या मैं तेरे बाप के पैसों से पी कर आया हूं, जो तू मुझे समझा रही है? तू कौन होती है मुझे रोकने वाली?’’

शौहर के इस व्यवहार से शबाना हैरान रह गई. उस ने कहा, ‘‘भले तुम मेरे बाप के पैसों की नहीं पी रहे हो, पर शराब पीना अच्छा तो नहीं है.’’

‘‘तू ठीक कह रही है. तू ही कौन सी अच्छी है. मेरे दोस्त मुझ पर हंसते हैं, वे कहते हैं कि कहां मोटी के चक्कर में फंस गया.’’

कह कर आसिफ कमरे में चला गया. उस की इस बात पर शबाना हैरान थी. उस ने तो उसे पसंद कर के निकाह किया था. अब यह क्या कह रहा है? शबाना डर गई. उस ने मन को समझाया कि आसिफ ने नशे में यह बात कह दी होगी.

लेकिन सुबह भी आसिफ का व्यवहार जस का तस रहा तो शबाना सहम उठी. क्योंकि इस से उस का दांपत्य सुखी नहीं हो सकता था. शबाना ने शौहर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘देखो, अब मैं जैसी भी हूं, तुम्हारी बीवी हूं. अब पूरा जीवन तुम्हें मेरे साथ ही बिताना होगा.’’

आसिफ ने उस की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. वह खापी कर फैक्ट्री चला गया.  शबाना को परेशान देख कर सास अफसरी ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहू, तुम कुछ परेशान लग रही हो?’’

‘‘अम्मी आप ही बताइए कि अगर मैं मोटी हूं, तो इस में मेरा क्या दोष है?’’ शबाना ने कहा.

‘‘नहीं, इस में तुम्हारा दोष नहीं, हमारा दोष है.’’ अफसरी बेगम ने व्यंग्य किया.

उसी बीच सामूहिक विवाह समारोह में शबाना के देवर असद की शादी दिल्ली की कमरुन्निसा के साथ हो गई थी. कमरुन्निसा छरहरे बदन की काफी खूबसूरत लड़की थी. भाई की दुलहन देख कर आसिफ को लगा कि मांबाप ने उस के निकाह में कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दी थी, वरना उस का निकाह भी किसी खूबसूरत लड़की के साथ हुआ होता.

यह बात मन में आते ही आसिफ को भाई से ईर्ष्या होने लगी. पर मन की बात बाहर नहीं आने दी. बेटी के पहले जन्मदिन पर आसिफ के कुछ दोस्त घर आए तो उन्होंने कहा, ‘‘भाई आसिफ, असद की बीवी तो बहुत सुंदर है.’’

पहचान : मां की मौत के बाद क्या था अजीम का हाल – भाग 1

बाढ़ राहत शिविर के बाहर सांप सी लहराती लंबी लाइन के आखिरी छोर पर खड़ी वह बारबार लाइन से बाहर झांक कर पहले नंबर पर खड़े उस व्यक्ति को देख लेती थी कि कब वह जंग जीत कर लाइन से बाहर निकले और उसे एक कदम आगे आने का मौका मिले.

असम के गोलाघाट में धनसिरी नदी का उफान ताडंव करता सबकुछ लील गया है. तिनकातिनका जुटाए सामान के साथ पसीनों की लंबी फेहरिस्त बह गई है. बह गए हैं झोंपड़े और उन के साथ खड़ेभर होने तक की जमीन भी. ऐसे हालात में राबिया के भाई 8 साल के अजीम के टूटेफूटे मिट्टी के खिलौनों की क्या बिसात थी.

खिलौनों को झोंपड़ी में भर आए बाढ़ के पानी से बचाने के लिए अजीम ने न जाने क्याक्या जुगतें की, और जब झोंपड़ी ही जड़ से उखड़ गई तब उसे जिंदगी की असली लड़ाई का पता मालूम हुआ.

राबिया ने 20 साल की उम्र तक क्याक्या न देखा. वह शरणार्थी शिविर के बाहर लाइन में खड़ीखड़ी अपनी जिंदगी के पिछले सालों के ब्योरे में कहीं गुम सी हो गई थी.

राबिया अपनी मां और छोटे भाई अजीम को पास ही शरणार्थी शिविर में छोड़ यहां सरकारी राहत कैंप में खाना व कपड़ा लेने के लिए खड़ी है. परिवार के सदस्यों के हिसाब से कंबल, चादर, ब्रैड, बिस्कुट आदि दिए जा रहे थे.

2 साल का ही तो था अजीम जब उस के अब्बा की मौत हो गई थी. उन्होंने कितनी लड़ाइयां देखीं, लड़ीं, कब से वे भी शांति से दो वक्त की रोटी को दरबदर होते रहे. एक टुकड़ा जमीन में चार सांसें जैसे सब पर भारी थीं. कौन सी राजनीति, कैसेकैसे नेता, कितने छल, कितने ही झूठ, सूखी जमीन तो कभी बाढ़ में बहती जिंदगियां. कहां जाएं वे अब? कैसे जिएं? लाखों जानेअनजाने लोगों की भीड़ में तो बस वही चेहरा पहचाना लगता है जो जरा सी संवेदना और इंसानियत दिखा दे.

पैदा होने के बाद से ही देख रही थी राबिया एक अंतहीन जिहाद. क्यों? क्यों इतना फसाद था, इतनी बगावत और शोर था?

अब्बा के पास एक छोटी सी जमीन थी. धान की रोपाई, कटाई और फसल होने के बाद 2 मुट्ठी अनाज के दाने घर तक लाने के लिए उन्हें कितने ही पापड़ बेलने पड़ते. और फिर भूख और अनाज के बीच अम्मी की ढेरों जुगतें, ताकि नई फसल होने तक भूख का निवाला खुद ही न बन जाएं वे.

इस संघर्ष में भी अम्मी व अब्बा को कभी किसी से शिकायत नहीं रही. न तो सरकार से, न ग्राम पंचायती व्यवस्था से और न जमाने से. जैसा कि अकसर सोनेहीरों में खेलने वाले लोगों को रहती है. शिकायत भी क्या करें? मुसलिम होने की वजह से हर वक्त वे इस कैफियत में ही पड़े रहते कि कहीं वे बंगलादेशी घुसपैठिए न करार दे दिए जाएं. अब्बा न चाहते हुए भी इस खूनी आग की लपटों में घिर गए.

वह 2012 के जुलाई माह का एक दिन था. अब्बा अपने खेत गए हुए थे. खेत हो या घर, हमेशा कई मुद्दे सवाल बन कर उन के सिर पर सवार रहते. ‘कौन हो?’ ‘क्या हो?’ ‘कहां से हो?’ ‘क्यों हो?’ ‘कब से हो?’ ‘कब तक हो?’

इतने सारे सवालों के चक्रव्यूह में घिरे अब्बा तब भी अमन की दुआ मांगते रहते. बोडो, असमिया लोगों की आपत्ति थी कि असम में कोई बाहरी व्यक्ति न रहे. उन का आंतरिक मसला जो भी हो लेकिन आम लोग जिंदगी के लिए जिंदगी की जंग में झोंके जा चुके थे.अब्बा खेत से न लौटे. बस, तब से भूख ने मौत के खौफ की शक्ल ले ली थी. भूख, भय, जमीन से बेदखल हो जाने का संकट, रोजीरोटी की समस्या, बच्चों की बीमारी, देशनिकाला, अंतहीन अंधेरा. घर में ही अब्बा से या कभी किसी पहचान वाले से राबिया ने थोड़ाबहुत पढ़ा था.

पागलों की तरह अम्मी को कागज का एक टुकड़ा ढूंढ़ते देखती. कभी संदूकों में, कभी बिस्तर के नीचे, कभी अब्बा के सामान में. वह सुबूत जो सिद्ध कर दे कि उन के पूर्वज 1972 के पहले से ही असम में हैं. नहीं मिल पाया कोई सुबूत. बस, जो था वह वक्त के पंजर में दफन था. अब्बा के जाने के बाद अम्मी जैसे पथरा गईर् थीं. आखिरकार 14 साल की राबिया को मां और भाई के लिए काम की खोज में जाना ही पड़ा.

कभी कहीं मकान, कभी दुकान में जब जहां काम मिलता, वह करती. बेटी की तकलीफों ने अम्मी को फिर से जिंदा होने को मजबूर कर दिया. इधरउधर काम कर के किसी तरह वे बच्चों को संभालती रहीं.

जिंदगी जैसी भी हो, चलने लगी थी. लेकिन आएदिन असमिया और अन्य लोगों के बीच पहचान व स्थायित्व का विवाद बढ़ता ही रहा. प्राकृतिक आपदा असम जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए नई बात नहीं थी, तो बाढ़ भी जैसे उनकी जिंदगी की लड़ाई का एक जरूरी हिस्सा ही था. राबिया अब तक लाइन के पहले नंबर पर पहुंच गई थी.

सामने टेबल बिछा कर कुरसी पर जो बाबू बैठे थे, राबिया उन्हें ही देख रही थी.

‘‘कार्ड निकालो जो एनआरसी पहचान के लिए दिए गए हैं.’’

‘‘कौन सा?’’ राबिया घबरा गई थी.

बाबू ने थोड़ा झल्लाते हुए कहा, ‘‘एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स का पहचानपत्र, वह दिखाओ, वरना सामान अभी नहीं दिया जा सकेगा. जिन का नाम है, पहले उन्हें मिलेगा.’’

‘‘जी, दूसरी अर्जी दाखिल की हुई है, पर अभी बहुतों का नाम शामिल नहीं है. मेहरबानी कर के सामान दे दीजिए. मैं कई घंटे से लाइन में लगी हूं. उधर अम्मी और छोटा भाई इंतजार में होंगे.’’

मिलने, न मिलने की दुविधा में पड़ी लड़की को देख मुहरवाले कार्डधारी पीछे से चिल्लाने लगे और किसी डकैत पर टूट पड़ने जैसा राबिया पर पिल पड़ते हुए उसे धकिया कर निकालने की कोशिश में जुट गए. राबिया के लिए जैसे ‘करो या मरो’ की बात हो गई थी. 2 जिंदगियां उस की राह देख रही थीं. ऐसे में राबिया समझ चुकी थी कि कई कानूनी बातें लोगों के लिए होते हुए भी लोगों के लिए ही तकलीफदेह हो जाती हैं.

बाबू के पीछे खड़े 27-28 साल के हट्टेकट्टे असमिया नौजवान नीरद ने राबिया को मुश्किल में देख उस से कहा, ‘‘आप इधर अंदर आइए. आप बड़े बाबू से बात कर लीजिए, शायद कुछ हो सके.’’

राबिया भीड़ के पंजों से छूट कर अंदर आ गई थी. लोग खासे चिढ़े थे. कुछ तो अश्लील फब्तियां कसने से भी बाज नहीं आ रहे थे. राबिया दरवाजे के अंदर आ कर उसी कोने में दुबक कर खड़ी हो गई.

नीरद पास आया और एक मददगार की हैसियत से उस ने उस पर नजर डाली. दुबलीपतली, गोरी, सुंदर, कजरारी आंखों वाली राबिया मायूसी और चिंता से डूबी जा रही थी. उस ने हया छोड़ मिन्नतभरी नजरों से नीरद को देखा.

नीरद ने आहिस्ते से कहा, ‘‘सामान की जिम्मेदारी मेरी ही है, मैं राहत कार्य निबटा कर शाम को शिविर आ कर तुम्हें सामान दे जाऊंगा. तुम अपना नाम बता दो.’’

राबिया ने नाम तो बता दिया लेकिन खुद की इस जिल्लत के लिए खुद को ही मन ही मन कोसती रही.

नीरद भोलाभाला, धानी रंग का असमिया युवक था. वह गुवाहाटी में आपदा नियंत्रण और सहायता विभाग में सरकारी नौकर था. नौकरी, पैसा, नियम, रजिस्टर, सरकारी सुबूतों के बीच भी उस का अपना एक मानवीय तंत्र हमेशा काम करता था. और इसलिए ही वह मुश्किल में पड़े लोगों को अपनी तरफ से वह अतिरिक्त मदद कर देता जो कायदेकानूनों के आड़े आने से अटक जाते थे.

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर – भाग 1

बिहार के जिला भागलपुर स्थित कजरैली इलाके का एक गांव है गौराचक्क. वैसे तो इस गांव में सभी जातियों के लोग रहते हैं. लेकिन यहां बहुतायत यादवों की है. यहां के यादव साधनसंपन्न हैं. उन में एकता भी है. उन की एकजुटता की वजह से पासपड़ोस के गांवों के लोग उन से टकराने से बचते हैं.

इसी गांव में परमानंद यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 1 बेटी और 2 बेटे थे. बेटी बड़ी थी, जिस का नाम सोनी था. साधारण शक्लसूरत और भरेपूरे बदन की सोनी काफी मिलनसार और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के अंदर काफी कुछ कर गुजरने की जिजीविषा थी.

2 बेटों के बीच एकलौती बेटी होने की वजह से सोनी को घर में सभी प्यार करते थे. उस की हर एक फरमाइश वह पूरी करते थे. सोनी के पड़ोस में हिमांशु यादव रहता था. रिश्ते में सोनी उस की बुआ लगती थी. यानी दोनों में बुआभतीजे का रिश्ता था. दोनों हमउम्र थे और साथसाथ पलेबढे़ पढ़े भी थे.

वह बचपन से एकदूसरे के करीब रहतेरहते जवानी में पहुंच कर और ज्यादा करीब आ गए. यानी बचपन के रिश्ते जवानी में आ कर सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए प्यार के रिश्ते की माला में गुथ गए.

सोनी और हिमांशु एकदूसरे से प्यार करते थे. इतना प्यार कि एकदूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकते थे. वे जानते थे कि उन के बीच बुआभतीजे का रिश्ता है. इस के बावजूद अंजाम की परवाह किए बगैर प्यार की पींग बढ़ाने लगे. बुआभतीजे का रिश्ता होने की वजह से घर वालों ने भी उन की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया.

एक दिन दोपहर का वक्त था. सोनी से मिलने हिमांशु उस के घर गया. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. सोनी सोफे पर अकेली बैठी कुछ सोच रही थी. हिमांशु को देखते ही मारे खुशी के उस का चेहरा खिल उठा. हिमांशु के भी चेहरे पर रौनक आ गई. वह भी मुसकरा दिया. तभी सोनी ने उसे पास बैठने का इशारा किया तो वह उस के करीब बैठ गया.

‘‘क्या बात है सोनी, घर में इतना सन्नाटा क्यों है?’’ हिमांशु चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए बोला, ‘‘चाचाचाची कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘हां, आज सुबह ही मम्मीपापा किसी काम से बाहर चले गए. वे शाम तक ही घर लौटेंगे और दोनों भाई भी स्कूल गए हैं.’’ वह बोली.

society

‘‘इस एकांत में बैठी तुम क्या सोच रही थी?’’  हिमांशु ने पूछा.

‘‘यही कि सामाजिक मानमर्यादाओं को तोड़ कर जिस रास्ते पर हम ने कदम बढ़ाए हैं, क्या समाज हमारे इस रिश्ते को स्वीकार करेगा?’’ सोनी बोली.

‘‘शायद समाज हमारे इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेगा.’’ हिमांशु ने तुरंत कहा.

‘‘फिर क्या होगा हमारे प्यार का? मुझे तो उस दिन की सोच कर डर लगता है, जिस दिन हमारे इस रिश्ते के बारे में मांबाप को पता चलेगा तो पता नहीं क्या होगा?’’ सोनी ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वे हमें जुदा करने की कोशिश करेंगे.’’ सोनी की आंखों में आंखें डाले हिमांशु आगे बोला, ‘‘इस से भी जब उन का जी नहीं भरेगा तो हमें सूली पर चढ़ा देंगे. अरे हम ने प्यार किया है तो डरना क्या? सोनी, मेरे जीते जी तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘सच में इतना प्यार करते हो मुझ से?’’ वह बोली.

‘‘चाहो तो आजमा लो, पता चल जाएगा.’’ हिमांशु ने तैश में कहा.

‘‘ना बाबा ना. मैं ने तो ऐसे ही तुम्हें तंग करने के लिए पूछ लिया.’’

‘‘अच्छा, अभी बताता हूं, रुक.’’ कहते हुए हिमांशु ने सोनी को बांहों में भींच लिया. वह कसमसाती हुई उस में समाती चली गई. एकदूसरे के स्पर्श से उन के तनबदन की आग भड़क उठी. कुछ देर तक वे एकदूसरे में समाए रहे, जब होश आया तो वे नजरें मिला कर मुसकरा पड़े. फिर हिमांशु वहां से चला गया.

लेकिन उन का यह प्यार और ज्यादा दिनों तक घर वालों की आंखों से छिपा हुआ नहीं रह सका. सोनी के पिता को जब जानकारी मिली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. परमानंद यादव बेटी को ले कर गंभीर हुए तो दूसरी ओर उन्होंने हिमांशु से साफतौर पर मना कर दिया कि आइंदा वह न तो सोनी से बातचीत करेगा और न ही उन के घर की ओर मुड़ कर देखने की कोशिश करेगा. अगर उस ने दोबारा ऐसी ओछी हरकत करने की कोशिश की तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.

प्रेम प्रसंग की बातें गांवमोहल्ले में बहुत तेजी से फैलती  हैं. परमानंद ने बहुत कोशिश की कि यह बात वह किसी और के कानों तक न पहुंचे पर ऐसा हो नहीं सका. लाख छिपाने के बावजूद पूरे मोहल्ले में सोनी और हिमांशु की प्रेम कहानी के चर्चे होने लगे. इस से परमानंद का मोहल्ले में निकलना दूभर हो गया.

परमानंद ने सोनी पर कड़ा पहरा बिछा दिया. सोनी के घर से बाहर अकेला जाने पर पाबंदी लगा दी. पत्नी से भी उन्होंने कह दिया कि सेनी को अगर घर से बाहर जाना भी पड़ेगा तो उस के साथ घर का कोई एक सदस्य जरूर जाएगा.

पिता द्वारा पहरा बिठा देने से हिमांशु और सोनी की मुलाकात नहीं हो पा रही थी. सोनी की हालत जल बिन मछली की तरह हो गई थी. उसे न तो खानापीना अच्छा लगता था और न ही किसी से मिलनाजुलना. उस के लिए एकएक पल काटना पहाड़ जैसा लगता था.

लिवइन में रहकर बेटी और बहू पर बुरी नजर – भाग 1

राजधानी दिल्ली के पूर्वी इलाके पांडव नगर में एक छोटा सा रामलीला मैदान है. साल 2022 की 5 जून को उसी मैदान में लाश के टुकड़े तब मिले थे, जब दिल्ली पुलिस उस इलाके में पैट्रोलिंग कर रही थी. इस दौरान झाडि़यों से बदबू आने पर पैट्रोलिंग टीम ने पांडव नगर थाने में जानकारी दी.

वे टुकड़े 2 सफेद पौलीथिन में थे. एक में पैर के घुटने का निचला हिस्सा, जबकि दूसरी में जांघ का हिस्सा था. पुलिस ने इन टुकड़ों को जांच के लिए फौरैंसिक टीम के हवाले कर दिया. अगले दिन फिर उसी रामलीला ग्राउंड और पास के जंगल में लाश के टुकड़े मिले. इस के बाद पुलिस चौकन्नी हो गई.

लगातार कई दिनों तक लाश के टुकड़े मिलते रहे, लेकिन उन्हें कौन फेंक रहा था? कोई उन्हें कब फेंका जाता था, पता नहीं चल पा रहा था. यहां तक कि पौलीथिन में बंद उन टुकड़ों की पहचान तक नहीं हो पा रही थी.

फोरैंसिक जांच में लाश के टुकड़ों से सिर्फ यही पता लग पाया कि यह 42-45 साल के व्यक्ति के हैं. फोरैंसिक टीम ने बताया कि ये इंसानी टुकड़े किसी पुरुष के हैं, लेकिन किस के, यह तो पता नहीं चला.

पुलिस ने उस की पहचान कराने के लिए आसपास के इलाके में लापता हुए लोगों की रिपोर्ट निकाली. उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जो पांडव नगर या उस के आसपास के इलाके से लापता हो.

यहां तक कि पुलिस ने दूसरे थानों के अलावा एनसीआर के नोएडा, गाजियाबाद से ले कर गुड़गांव तक से जानकारी जुटाई. फिर भी उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. उस के बाद पांडव नगर थाने की पुलिस ने हत्या और सबूत मिटाने की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

यानी कि बरामद टुकड़ों में पैर, जांघ, एक हाथ मिलने के बाद पांडव नगर थाने में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 201 (सबूत छिपाने तथा झूठी सूचना देने) के तहत एक मामला दर्ज कर लिया गया.

जब कई लोगों से पूछताछ के बाद भी कोई जानकारी नहीं मिल पाई, तब पुलिस ने अपनी जांच को आगे बढ़ाने के लिए रामलीला मैदान और आसपास में लगे सीसीटीवी फुटेज की जांच शुरू कर दी. इस में कई दिन लग गए. इसी बीच कटा हुआ एक सिर भी मिला. वह काफी सड़गल चुका था, जिस की पहचान नहीं हो सकी.

सीसीटीवी फुटेज में 31 मई और पहली जून की रात को 2 लोग संदिग्ध हालात में उस मैदान की तरफ आते हुए दिखे थे. धुंधली दिख रही उस फुटेज को काफी बड़ा कर देखने पर एक लड़का और दूसरी किसी महिला की गतिविधियों का पता चला.

वे दूरदूर थे. आगे की ओर लड़का चलता हुआ और कुछ फेंकता दिखा था, जबकि महिला पीछे से दूर चलती हुई और फिर खड़ी दिखी थी. उन के चेहरे साफ नहीं दिख रहे थे, लेकिन संदिग्ध लड़के के हाथ में कुछ बैग जैसा जरूर दिखा था.

इस आधार पर पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि लाश के टुकड़े फेंकने के मामले में जरूर 2 लोग शामिल हैं, जिन में एक महिला भी है. हो न हो, उन के संबंध हत्या से हों.

पुलिस के सामने बड़ा सवाल था कि ये दोनों कौन हो सकते हैं? उन्होंने किस की हत्या की गई होगी? क्यों उसे मारा होगा? इस का कुछ नहीं पता चल पाया. सिर्फ इतना ही पता था कि मरने वाला अधेड़ उम्र का पुरुष था.

पुलिस इस बात को ले कर भी हैरान थी कि आसपास के थानों में इस उम्र के व्यक्ति के लापता होने की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी. सवाल था कि आखिर एक इंसान हफ्तों तक गायब रहे और गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट भी दर्ज न हो और न ही किसी थाने में कोई इस की शिकायत करे. यह कैसे हो सकता है.

फिर भी पांडव नगर थाने की पुलिस चुप नहीं बैठी. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर घरघर जा कर यह पता लगाना शुरू किया कि कहीं कोई गायब तो नहीं है. खासतौर पर आसपास के इलाके में.

यह सब करने के लिए पुलिस की कई टीमों को लगा दिया गया था. पुलिस आसपास के इलाके के उन मोबाइल फोन नंबरों का पता लगाने में जुट गई, जो कुछ समय के लिए बंद रहा. पुलिस को संदेह था कि उन के डंप डाटा से कुछ सुराग मिल सकता है, जिस का इस्तेमाल कुछ दिन के लिए लाश के टुकड़े मिलने के दौरान नहीं किया गया हो.

पांडव नगर और पूर्वी दिल्ली की घनी आबादी वाले इलाके में इस तरीके से जांच करते हुए करीब 5 से 6 महीने निकल गए. हालांकि इस दौरान पुलिस को एक सफलता मिल गई, जिस में लापता व्यक्ति का पता चल गया.

पांडव नगर के ही अंजन दास नाम के एक शख्स को लोगों ने काफी समय से नहीं देखा था. जब पुलिस उस के मकान पर गई, तब वहां उन्हें मांबेटे के रहने के बारे में मालूम हुआ, लेकिन वे उस समय वहां नहीं मिले. पड़ोसियों ने बताया कि दीपक नाम का एक लड़का अपनी मां पूनम देवी के साथ रहता था, जो अब त्रिलोकपुरी में रहने लगे हैं.

पुलिस को यह सुराग काफी अहम लगा, क्योंकि सीसीटीवी में एक महिला और एक लड़का 2 लोग ही देखे गए थे. इस का पता लगाने के लिए पुलिस त्रिलोकपुरी पहुंची. वहां लड़का और महिला दोनों मिल गए.

जांच में पता चला कि महिला का नाम पूनम देवी और उस के लड़के का नाम दीपक है. पुलिस दोनों से पूछताछ करने लगी, लेकिन दोनों ने अंजन दास के बारे में कोई ठोस जवाब नहीं दिया.

इसी बीच महरौली में मुंबई की रहने वाली युवती श्रद्धा के 35 टुकड़े किए जाने की खबर से पांडव नगर थाने की पुलिस भी चौकन्नी हो गई. फिर क्या था, पुलिस ने दोनों मांबेटे से अंजन दास के बारे में कई सवाल पूछे. उन्हें सीसीटीवी फुटेज में पहचाने जाने का झांसा भी दिया. उस के बाद अंजन दास मर्डर का पूरा राज सामने आ गया.

अंजन मर्डर के मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा दोनों मांबेटे पूनम देवी और दीपक 28 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार कर लिए गए.

पूछताछ में पता चला कि अंजन दास के मर्डर की घटना त्रिलोकपुरी में हुई थी. वहां के ब्लौक नंबर 4 के एक मकान में पूनम देवी अपने 30 साल के बेटे दीपक, उस की बहू और शादीशुदा बेटी के साथ रहती थी.

पूनम मरने वाले व्यक्ति अंजन दास के साथ लिवइन रिलेशन में पांडव नगर के मकान में रहती थी. वह उस के साथ लिवइन में 2017 से रह रही थी.

अंजन दास लिफ्ट मैकेनिक था और उस की ड्यूटी नोएडा में थी. हालांकि उस से उस की पहली मुलाकात 2011 में ही हुई थी और उन के बीच प्रेम संबंध बन गए थे.

इस से पहले पूनम देवी कल्लू नाम के व्यक्ति के साथ पांडव नगर में ही रह रही थी. उस से उस का एक बेटा और एक बेटी थी. कल्लू के साथ भी उस ने शादी नहीं की थी. पूनम और उस के बेटे ने जांच के सिलसिले में अंजन दास मर्डर के बारे में जो बताया, वह अनैतिक संबंधों और लिवइन रिलेशन से बिगड़े पारिवारिक माहौल की कहानी निकली—

देवघर (झारखंड) के एक ब्राह्मण परिवार की 13 वर्षीय बेटी पूनम की शादी आरा के रहने वाले सुखदेव तिवारी से साल 1996 में हुई थी. तब देवघर बिहार राज्य में ही था.

अगले साल पूनम एक बेटी की मां भी बन गई. इसी बीच उस का पति रोजीरोटी कमाने के लिए दिल्ली चला आया. इस बीच पूनम अपने मायके में थी. वहीं उस ने बेटी को जन्म दिया था.

एक तो ब्याहता बेटी, वह भी मायके में नवजात बेटी के साथ रह रही थी. पति दूर परदेस में था. गरीब ब्राह्मण पिता और परिवार को पड़ोसी व रिश्तेदारों से ताने सुनने को मिलने लगे थे. पूनम ने पिता पर कसे गए ताने अपने कानों से सुने थे.

प्यासी दुल्हन : प्रेमी संग रची साजिश – भाग 1

रामसुशील के साथ रंजना पाल के दिन मजे में गुजर रहे थे. परिवार में पति के अलावा और कोई नहीं था. कहने को तो रिश्तेनाते में चचेरे सासससुर का भरापूरा परिवार था, जिस में 22-24 की उम्र के देवर और चेचेरे रिश्तेदारों के बच्चे भी थे, लेकिन अपने परिवार में केवल 40 वर्षीय पति रामसुशील पाल ही था, जिस के साथ उस की 3 साल पहले शादी हुई थी.

गरीब परिवार की रंजना जब ब्याह कर मध्य प्रदेश के रीवा जिले के उमरी श्रीपत गांव आई थी, तब ससुराल में अच्छीखासी खेती देख कर बहुत खुश हुई थी. पति रामसुशील पाल अकेले ही अपनी खेती को संभालता था. हालांकि उस की कुछ जमीन पर चाचा और उन के रिश्तेदारों ने कब्जा भी कर रखा था. इस कारण उन से उस की नहीं बनती थी.

रामसुशील से उन के बीच खेती के लिए बुवाई, कटाई या सिंचाई के दरम्यान अकसर झगड़ा हो जाता था. चाचा और चचेरे भाइयों के साथ बहस हो जाती थी, कमजोर कदकाठी का रामसुशील अकेला था और वो लोग संख्या में ज्यादा थे, इसलिए वह उन के सामने कमजोर पड़ जाता था. सभी उसे दबा देते थे.

रामसुशील ने पत्नी रंजना पर भी इस बात की पाबंदी लगा रखी थी कि वह चाचा के परिवार से कोई बातचीत नहीं करे और न ही उन के घर जाए. इस कारण उस के घर में आसपास के लोगों का भी आनाजाना नहीं था.

लेकिन पति के घर से चले जाने के बाद रंजना घर में अकेली रह जाती थी, जिस से पति की हिदायतों के बावजूद रंजना का मन परिवार के लोगों से बातें करने को मचलता रहता था. हमउम्र सदस्यों में उन लड़कों को वह तिरछी निगाहों से देखती रहती थी, जिन से उस का देवर का रिश्ता था. उन से हंसीमजाक करने का दिल करता था, जबकि चचेरे ससुर को दूर से देख कर ही घूंघट का परदा कर लेती थी. या सिर पर आंचल संभालती हुई गरदन पीछे की ओर घुमा लेती थी

बात साल 2022 के अक्तूबर महीने की है. दशहरा और दीपावली का त्यौहार भी खत्म हो चुका था. रंजना ने भी 24 अक्तूबर को अपने घर में मिट्टी के दीए जलाए थे. इस से पहले उस ने घर की अच्छी तरह से साफसफाई की थी. इस में उस ने कुछ पड़ोसी लड़कों से मदद भी ली थी.

पुलिस के आने से शुरू हुई कानाफूसी

महीनों से बंद पड़े भूसा घर की भी सफाई की थी. उस की सफाई करने के दौरान कुछ लोगों ने उस में से आने वाली दुर्गंध की शिकायत की थी. इस पर रंजना ने कहा था कि शायद उस में चूहा वगैरह मर गया हो. इस तरह बात आई गई हो गई.

दुर्गंध की शिकायत पर रंजना ने दीपावली के दिन अच्छी सुगंध वाली धूप व अगरबत्तियां जलाई थीं. फिर भी कई दिनों तक धीमीधीमी दुर्गंध का असर बना हुआ था. बच्चे उधर से गुजरते थे, तब नाक बंद कर लिया करते थे.

दीपावली के 2 दिन बाद सुबहसुबह रंजना के घर के पास आई पुलिस को देख कर गांव वाले चौंक गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर पुलिस यहां क्यों आई है? किसे तलाश रही है? गांव में किस ने क्या गुनाह किया है?

पासपड़ोस के कई लोग वहां जुट गए. युवा, औरतों के अलावा बच्चे भी वहां आ गए थे. उन में रंजना और उस के दूसरे कुनबे वाले भी थे. कोई पुलिस से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

एएसआई हुकुमलाल मिश्रा ने ही एक बुजुर्ग से पूछा, ‘‘क्या गांव का कोई आदमी लंबे समय से लापता है?’’

‘‘पता नहीं साहब,’’ बुजुर्ग बोला.

‘‘ठीक से ध्यान करो, शायद कोई हो जो दशहरा, दीवाली पर भी नजर नहीं आया हो?’’ एएसआई ने पूछा.

‘‘मुझे तो ध्यान नहीं आ रहा है साहब,’’ अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बुजुर्ग बोला. तभी भीड़ से ही आवाज आई, ‘‘रामसुशील भैया.’’

‘‘कौन बोला, सामने आओ जरा…’’ एएसआई मिश्रा ने रौबदार आवाज में कहा.

गरदन में गमछा लपेटे और लुंगी पहने एक मजदूर किस्म का व्यक्ति सामने आया. उस ने बताया कि रामसुशील बहुत दिन से नहीं दिखा है. इसी दौरान एक युवक बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘अरे, क्या कहते हो, हम ने तो कल सुबह ही उसे अपने खेत पर जाते देखा था.’’

‘‘अरे, वह रामसुशील नहीं, उस के चाचा का लड़का था. एकदम उसी की तरह चलता है, इसलिए तुम्हें ऐसा लगा होगा.’’ तीसरा बोला.

‘‘क्या कहते हो, रामसुशील का चचेरा भाई उस के खेत पर क्यों जाएगा? उस की उस से बनती ही कहां है? वह रामसुशील ही था.’’

रामसुशील के नाम से बातें होती देख एएसआई मिश्रा ने पूछा, ‘‘रामसुशील का घर कौन सा है?’’

इस पर पास खड़े एक बच्चे ने उस के घर की ओर इशारा कर दिया, जहां दरवाजे पर रंजना आंचल संभाल रही थी.

गांव वालों से पता चली सच्चाई

पुलिस वाले को उस ओर आता देख रंजना घर के भीतर जाने को मुड़ी. तभी महिला सिपाही ने उसे आवाज दी, ‘‘अरे कहां जा रही हो, ठहरो!’’ सुन कर रंजना वहीं ठिठक गई.

‘‘रामसुशील का घर यही है? तुम कौन हो उस की?’’ पुलिस वाले ने पूछा.

‘‘पत्नी है…दूसरी पत्नी,’’ एक आदमी तपाक से बोल पड़ा.

‘‘यह कौन बोला? मैं ने तुम से पूछा क्या पहली या दूसरी पत्नी के बारे में?’’ पुलिस वाले की कड़क आवाज सुन कर बोलने वाला शख्स सहम गया और सामने नहीं आया.

इस बार कांस्टेबल चंद्रभान जाटव ने रंजना के पास जा कर सीधा सवाल किया, ‘‘रामसुशील का घर यही है?’’

रंजना ने ‘हां’ में सिर हिला दिया.

‘‘वह घर में है? बाहर बुलाओ?’’ कुछ जवाब दिए बगैर वह वहीं खड़ी रही.

फिर वही आवाज आई, ‘‘अरे घर में होगा तभी न उसे बुलाएगी. वह तो गांव में महीनों से नजर नहीं आया है.’’

‘‘कौन बोल रहा है भई, उस के बारे में जो कुछ जानते हो सामने आ कर बताओ.’’ कांस्टेबल चंद्रभान जाटव के प्यार से बोलने पर एक व्यक्ति सामने आया.

उस ने बताया कि रामसुशील को गांव से गए हुए साल भर से ज्यादा हो गया. यह हमेशा उस से झगड़ती रहती थी, लगता है इसी कारण ऊब कर कहीं चला गया है.

‘‘सचसच बता, क्या यह आदमी रामसुशील के बारे सही कह रहा है?’’ एएसआई मिश्रा ने रंजना से पूछा.

‘‘गलत बोल रहा है साहब,’’ रंजना बोली.

‘‘तो फिर वह कहां है, बुलाओ उसे.’’

‘‘साहब, वह दीवाली के बाद ही रीवा चला गया था. वहां तो वह कोरोना के बाद से ही मजदूरी कर रहा है. कुछ दिन के लिए आया था. दशहरे पर भी आया था साहब.’’ रंजना सहमती हुई बोली.

‘‘लेकिन वह लड़का तो बोल रहा है कि उसे कल सुबह अपने खेत की तरफ जाते

देखा था.’’ एएसआई मिश्रा ने संदेह भरा सवाल किया.

‘‘वह गलत बोला था साहब, जिस के बारे में बताया वह मेरा चचेरा देवर है. उसी की तरह चालढाल है उस की,’’ रंजना बोली.

‘‘अरे तो फिर यह बताओ कि जिसे तुम अपना चचेरा देवर बता रही हो, तुम्हारे घर से निकल कर तुम्हारे ही खेत की तरफ क्यों जा रहा था? तुम्हारी तो उस के बाप से दुश्मनी है.’’ एक अन्य आदमी बोला.

‘‘वह मेरे कहने पर खेत में पानी पटाने आया था.’’ रंजना ने कहा.

‘‘फिर झूठ बोल रही है. इस वक्त कौन सी फसल लगी है तुम्हारे खेत में… अभी तो जुताई ही हुई है.’’ उस व्यक्ति ने तर्क किया. पुलिस वाले रंजना और गांव वालों की बातें सुन कर उलझन में पड़ गए.

थाने पहुंचते ही रंजना ने स्वीकारा जुर्म

दरअसल, रीवा जिले के मऊगंज थाने के अंतर्गत 25 अक्तूबर, 2022 को एक नाले से लाश बरामद हुई थी, जिस की गरदन कटी थी. उस की शिनाख्त के सिलसिले में पुलिस पता लगा रही थी कि आसपास के गांव का कोई व्यक्ति महीनों से गायब तो नहीं है.

इसी सिलसिले में पुलिस उमरी श्रीपत गांव भी आई थी. यहीं पर पुलिस को पता चला था कि रामसुशील भी गायब है. पूछताछ के दौरान पुलिस को रामसुशील के बारे में संदिग्ध बातों की जानकारी से लाश की पहचान के संबंध में एक उम्मीद जाग गई. रंजना समेत जिन्होंने भी रामसुशील के बारे में जो कुछ बताया, उन्हें पुलिस मऊगंज थाने ले आई, ताकि उन से विस्तार से पूछताछ की जा सके.

थाने में टीआई श्वेता मौर्या ने सब से पहले बरामद लाश के कपडे़ ला कर रंजना के सामने रखते हुए पूछा, ‘‘इन्हें पहचानती हो?’’

हनिट्रैप : अर्चना के चंगुल में कैसे फंसे विधायक – भाग 1

वह बड़ा और भव्य महलनुमा आलीशान भवन था. भवन के बीचोबीच कई कीमती सोफे बिछे हुए थे और हाल की चारों दीवारों से सटे खूबसूरत गमले रखे हुए थे. उस में आर्टिफिशियल फूल के सुंदरसुंदर पौधे लगे हुए हाल ही खूबसूरती की शोभा बढ़ाए जा रहे थे. यही नहीं, आधुनिक साजसज्जा युक्त ये आलीशान भवन किसी रजवाड़े से कम नहीं था.

दिन के साढ़े 10 बज रहे थे. हाल में बिछे सोफे पर 27 वर्षीय अर्चना नाग चांद बैठी हुई थी तो दाहिनी ओर बिछे सोफे पर बेहद खूबसूरत और कमसिन युवती महिमा बैठी थी. उस की उम्र 20 साल के करीब रही होगी. अर्चना का पति जगबंधु चांद महिमा के ही बगल में सोफे पर बैठा था और उसे ही खा जाने वाली नजरों से देखे जा रहा था.

‘‘तो क्या सोचा महिमा?’’ अर्चना नाग ने सवाल किया.

‘‘फिलहाल इस बारे में मुझे कुछ सोचना भी नहीं है,’’ नफरत भरे स्वर में महिमा ने उत्तर दिया था.

‘‘अभी वक्त भी है और किस्मत भी तुम्हारे हाथों में. खूब ठंडे दिमाग से फैसला लेना ताकि आगे चल कर तुम्हें पछताना न पड़े.’’

‘‘मैडम, आप मुझे मजबूर नहीं कर सकतीं.’’ वह बोली.

‘‘कहां मजबूर कर रही हूं मैं तुम्हें. मैं तो बस अपना जान कर समझा रही हूं. तुम हो कि मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं हो. लेकिन अगर बात समझने के लिए तैयार नहीं होगी तो मुझे अंगुली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘धमकी दे रही हो आप मुझे?’’ अचानक गुस्से से महिमा तमतमा उठी, ‘‘मैम! आप मुझे धमकी मत देना, कहे देती हूं. जिस दिन मैं अपनी पर उतर आई न…’’

‘‘शांत महिमा शांत. शांत हो जाओ.’’ इस बार महिमा की बात काट कर जगबंधु चांद बोला था, ‘‘घड़ीघड़ी नाक पर गुस्सा तुम जैसी खूबसूरत लड़कियों को शोभा नहीं देता है. रही बात मैम की तो मैं उन्हें समझाता हूं कि गुस्से या धमकी से नहीं, बल्कि प्यार से किसी के दिल में जगह बनाई जाती है.’’

थोड़ी देर पहले तक वह जिस महिमा को खा जाने वाली नजरों से घूरघूर कर देख रहा था, इस वक्त उस के सुर बदले हुए थे.

जगबंधु चांद जानता था कि महिमा अगर बिदक गई तो बनाबनाया खेल बिगड़ जाएगा और उस के बड़े मकसद पर पानी फिर जाएगा, इसलिए मौके की नजाकत को समझने में ही समझदारी थी. उस ने इशारों में पत्नी अर्चना नाग को समझाया कि टारगेट पूरा हो जाने दो, उस के बाद क्या करना है, सोचेंगे.

पति का इशारा पा कर अर्चना शांत तो गई थी मगर उस का बदन गुस्से से तप रहा था कि उस की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि वह मुझे धमकाए. अब बदले सुर में वह बोली, ‘‘माफ कर दो महिमा मुझे. कान पकड़ कर सौरी बोलती हूं. पता नहीं जरा सी देर में मुझे क्या हो जाता है कि आपा खो बैठती हूं. मुझे माफ कर दो, प्लीज.’’

अचानक अर्चना नाग के बदले तेवर देख कर महिमा चकित रह गई. वह सपने में भी कल्पना नहीं कर सकती थी कि उस का एक रूप यह भी देखने को मिलेगा. 3 सालों से वह उस के संपर्क में थी. इस दौरान उस ने उस का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था.

इस डील से मिलने थे 3 करोड़ रुपए

वक्त की नजाकत को समझते हुए महिमा वह टारगेट पूरा करने को तैयार हो गई, जिसे अर्चना नाग पूरा करने के लिए उसे धमका रही थी. उस का गुस्सा शांत हो चुका था, ‘‘सौरी मैम.’’

अर्चना नाग से माफी मांगते हुए वह बोली, ‘‘मैं भी आपा खो कर गुस्से में न जाने क्याक्या बोल गई. आइंदा कुछ भी बोलने से पहले हजार बार सोच कर ही बोलूंगी. फिलहाल मैं चलती हूं उस से मिलने का वक्त हो गया है. मेरे इंतजार में कहीं ऐसा न हो कि टारगेट हाथ से निकल जाए.’’

‘‘ठीक है, अब तुम जाओ.’’

‘‘बाय मैम,’’ हाल से बाहर निकलती हुई महिमा बोली.

‘‘बाय बाय, अपना ध्यान रखना. कहीं कोई मुश्किल आए तो मुझे फोन कर देना.’’

‘‘ओके मैम.’’

‘‘ओके.’’ हाथ हिलाते हुए अर्चना ने महिमा को विदाई दी और होंठों में बुदबुदाती हुई पति जगबंधु की ओर देखने लगी.

अर्चना को पूरी उम्मीद थी कि महिमा को जो जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसे वह पूरा कर के ही लौटेगी. अब तो उसे मालामाल होने से कोई नहीं रोक सकता. एक बार यह टारगेट पूरा हो जाए तो वह नोटों के बिस्तर पर सोएगी.

दरअसल, वह काम ही ऐसा था जिस के पूरे हो जाने पर 3 करोड़ रुपए उसे एक झटके में मिल जाते. 3 करोड़ रुपए की डील हो रही थी, जिसे महिमा ने टारगेट बनाया था और उस की मास्टरमाइंड थी अर्चना नाग.

जिसे टारगेट बनाया गया था वह कोई मामूली इंसान नहीं था. वह भुवनेश्वर के फिल्म प्रमोटर अक्षय पारिजा थे, जो ओडिशा का जानामाना नाम था. महिमा के जरिए अर्चना 3 करोड़ की डील कर रही थी. दरअसल, उन की कुछ आपत्तिजनक तसवीरें अर्चना के हाथ लग गई थीं. उन्हीं तसवीरों के जरिए उस ने रुपयों की मांग की थी.

3 करोड़ रुपए कोई मामूली रकम नहीं होती. अर्चना की इस डिमांड से वह परेशान थे और कोई बीच का रास्ता निकालने की अर्चना से सिफारिश कर रहे थे. लेकिन अर्चना थी कि अड़ी हुई थी. उस ने अक्षय पारिजा को धमकाया था कि अगर वह रुपए जल्द से जल्द उसे नहीं दिए तो उन तसवीरों को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा.

जिस बात का डर था आखिरकार वही हुआ. 29 सितंबर, 2022 को सोशल मीडिया फेसबुक पर अक्षय पारिजा की आपत्तिजनक तसवीरें वायरल हो गईं, जिन्हें देख कर उन्हें बड़ा दुख पहुंचा था. वायरल तसवीरों ने उन के सम्मान को काफी क्षति पहुंचाई.

फिल्म प्रमोटर अक्षय पारिजा चुप बैठने वालों में नहीं थे. दमदार छवि और रसूखदार फिल्मकार पारिजा नयापल्ली थाने पहुंचे. उन्होंने एसएचओ विश्वरंजन साहू को अपने साथ हुई घटना की लिखित तहरीर सौंप दी, जिस में उन्होंने ब्लैकमेलिंग के जरिए उन से 3 करोड़ रुपए की मांग का भी उल्लेख किया था. इस के लिए उन्होंने अर्चना नाग और महिमा को नामजद किया था.

जिस अर्चना नाग के खिलाफ पहली बार किसी ने ब्लैकमेलिंग की शिकायत की थी, वह मामूली हैसियत की औरत नहीं थी. उस की पहुंच सत्ता के गलियारों में बहुत ऊंचाई तक थी. कानून के बड़ेबड़े दिग्गज उस की चौखट चूमते थे. शाम होते ही नौकरशाहों और बड़ेबड़े उद्योगपतियों की उस के यहां कतारें लगी रहती थीं.

ऐसे में एसएचओ विश्वरंजन साहू उस पर हाथ डालने से कतरा रहे थे. फिर उन्होंने डीसीपी प्रतीक सिंह से बात की तो उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए कानूनी काररवाई करने की इजाजत दे दी.

फिर क्या था, अधिकारी की ओर से हरी झंडी मिलते ही एसएचओ ने आईपीसी की धारा 384, 385, 387, 506, 120बी और आईटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. यह 30 सितंबर, 2022 की बात है.