प्यार और इंतकाम के लिए मौत की अनोखी साजिश – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले की दादरी तहसील दादरी में एक गांव है बढ़पुरा. यहीं पर रहता है रविंद्र भाटी का परिवार. ब्रह्म सिंह भाटी के 3 बेटों में रविंद्र भाटी मंझले थे. उन के दोनों भाई भी इसी गांव में अपने परिवार के साथ आसपास ही रहते हैं.

रविंद्र के परिवार में पत्नी राकेश भाटी के अलावा 3 बच्चे थे, 2 बेटे व एक बेटी. सब से बड़ी बेटी है पायल भाटी (26), उस से छोटे 2 बेटे हैं, अरुण और अजय. पायल ने बीए तक की पढ़ाई की थी. बड़े बेटे अरुण (24) की शादी दादरी की रहने वाली स्वाति से हो चुकी है. छोटा बेटा अजय भाटी (22) अभी अविवाहित है.

रविंद्र भाटी खेतीबाड़ी कर के परिवार की गुजरबसर करते थे. दोनों बेटे भी खेती के काम में उन का हाथ बंटाते थे. बेटी अभी शादी नहीं करना चाहती थी, इसलिए कई अच्छे रिश्ते आने के बावजूद भी वह बेटी के हाथ पीले नहीं कर सके.

इस की एक वजह यह भी थी कि 2 साल पहले उन्होंने बड़े बेटे अरुण की शादी की थी. शादी के कुछ समय बाद से ही उस का अपनी पत्नी स्वाति से विवाद रहने लगा. उस के बाद स्वाति पति का घर छोड़ कर मायके चली गई.

बात इतनी बढ़ गई कि थानेचौकी में शिकायतों के बाद पत्नी से दहेज की मांग व उस के उत्पीड़न के आरोप में आए दिन रविंद्र भाटी, उन की पत्नी व बेटे, बेटियों को थाने के चक्कर लगाने पड़ गए. इसी परेशानी से आजिज हो कर जून, 2022 में एक दिन रविंद्र भाटी व उन की पत्नी राकेश भाटी ने जहर खा कर अपनी जान दे दी.

हंसतेखेलते परिवार में अचानक मातम छा गया. बड़ी बहन होने के कारण पायल के ऊपर ही दोनों भाइयों की देखभाल और उन के खानपान की जिम्मेदारी आ गई.

कुछ वक्त गुजरा तो दादा ब्रह्म सिंह और चाचाताऊ को जवान होती पायल की चिंता सताने लगी. सब ने सोचा कि कोई अच्छा लड़का देख कर उस की शादी कर देंगे तो बाद में भाइयों की जिदंगी किसी तरह पटरी पर आ जाएगी. इसीलिए पायल के लिए बिरादरी में अच्छे लड़के देखे जाने लगे.

रविंद्र और उन की पत्नी की मौत के बाद परिवार की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लौट ही रही थी कि एक और हादसे ने परिवार को तोड़ कर रख दिया.

13 नवंबर, 2022 को सुबह दादरी पुलिस को सूचना मिली कि बढ़पुरा गांव में एक लड़की की लाश उस के घर के अंदर मिली है. पुलिस जब गांव में पहुंची तो पता चला कि लाश रविंद्र भाटी की इकलौती बेटी पायल भाटी की है.

हालांकि लाश का चेहरा इतनी बुरी तरह जल चुका था कि उसे पहचानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. गरदन भी बुरी तरह जली हुई थी. जबकि हाथ की कलाई पर किसी धारदार हथियार से काटे जाने के बाद ज्यादा खून बहने के कारण उस की मौत हो गई थी. ऐसा लगता था कि किसी हादसे के कारण उस का चेहरा जलने से क्षतविक्षत हुआ था.

चूंकि लाश घर के अंदर ही मिली थी और शव के ऊपर कपड़े भी वही थे, जिन्हें पायल रात को पहन कर सोई थी. इसलिए परिवार को पुलिस से ये बताने में कोई संकोच नहीं हुआ कि मरने वाली पायल थी.

‘‘पायल की मौत कैसे हुई और जब वो खुदकुशी कर रही थी तो परिवार में किसी को पता क्यों नहीं चला?’’ परिवार वालों से जब पुलिस ने ये वाजिब सवाल किया तो इस का उत्तर भी पायल के भाइयों ने बड़े वाजिब तरीके से ही दिया.

उन्होंने बताया कि 12 नवंबर की रात को वे करीब 9 बजे खाना खा कर सोए तो जल्द ही गहरी नींद की आगोश में समा गए. उन्होंने बताया कि ऐसा लगा कि वे महीनों से सोए नहीं हैं.

घर वालों ने कर ली लाश की शिनाख्त

सुबह उठे तो देखा कि पायल अपने कमरे में बिस्तर के पास जमीन पर मृत पड़ी थी. उस का चेहरा बुरी तरह जला हुआ था और हाथ की नस धारदार हथियार से कटी थी, जिस से निकलने वाले खून का सैलाब आसपास फैल चुका था.

बिस्तर पर ही पायल की हैंड राइटिंग में लिखा हुआ एक पत्र पड़ा था, जो उस ने शायद मरने से पहले लिखा था.

पुलिस ने भाइयों से वह पत्र ले कर पढ़ा तो पायल के खुदकुशी करने की वजह भी साफ हो गई. सुसाइड नोट में पायल ने लिखा था, ‘आज पूड़ी बनाते समय मेरा चेहरा कड़ाही का गर्म तेल छलकने के कारण बुरी तरह झुलस गया. मेरा चेहरा इतना विकृत हो गया कि अब समाज में मुझे कोई पसंद नहीं करेगा.

‘मेरे मातापिता ने कर्ज के बोझ के कारण पहले ही अपनी जान दे दी थी. ऐसी हालत में मैं अपने भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहती.  इस वजह से मैं अपने हाथ की नस काट कर अपनी जान दे रही हूं. अपने परिवार के सभी लोगों से मैं इस के लिए माफी चाहती हूं.’

जला हुआ चेहरा, हाथ की कटी हुई नस और परिवार वालों का यह कहना कि जो शव मिला है वो पायल का ही है. इस से शक की गुजांइश नहीं थी.

लिहाजा दादरी पुलिस ने आत्महत्या का मामला दर्ज कर पायल के शव का पोस्टमार्टम कराया और उसे घर वालों को सौंप दिया. घर वालों ने उसी दिन पायल के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. 21 नवंबर को तेरहवीं की रस्म भी कर दी गई.

इस दौरान पूरे गांव में एक ही बात की चर्चा होती रही कि ऐसी कौन सी बुरी दशा थी कि 6 महीने के भीतर ही भाटी परिवार में 3 लोगों ने मौत को गले लगा लिया. लेकिन कहते हैं कि वक्त का मरहम बड़े से बड़े जख्म को भर देता है. वक्त फिर तेजी से बीतने लगा.

जिस वक्त दादरी थाना क्षेत्र के बढ़पुरा गांव में ये हादसा हो रहा था, उसी दिन बिसरख थाना क्षेत्र के सूरजपुर से एक युवती हेमा चौधरी अचानक रहस्यमय ढंग से लापता हो गई थी.

दरअसल, 15 नवंबर की सुबह सूरजपुर के सुनारों वाली गली में रहने वाली मुमतेश चौधरी नाम की महिला ने बिसरख थाने में पहुंच कर एसएचओ उपेंद्र कुमार से मुलाकात की और उन्हें शिकायत दी कि उस की छोटी बहन हेमा (28), जो उस के पास रहती थी और गौर सिटी माल के वेन हुसैन मौल में काम करती थी, वह 12 नवंबर से लापता है.

मुमतेश ने बताया कि उस की बहन हेमा ने शाम को उसे फोन कर के बताया था कि वह एक सहेली के घर बर्थडे में जा रही है, रात को घर नहीं आएगी.

लेकिन अगले दिन जब मुमतेश ने हेमा को फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. कई बार प्रयास करने पर भी जब हेमा से संपर्क नहीं हो सका तो मुमतेश ने उस के शोरूम में फोन किया. वहां से पता चला कि वो तो उस रोज काम पर पहुंची ही नहीं.

12 नवंबर की शाम को जाने के बाद उस ने फोन करके भी ये नहीं बताया कि वह अगले दिन काम पर नहीं आएगी. मुमतेश को यह भी नहीं पता था कि हेमा किस सहेली के घर गई है. उस ने हेमा के सभी पहचान वालों को फोन कर के उस की खैरखबर जानने का प्रयास किए. लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला.

थकहार कर मुमतेश ने 15 नवंबर को बिसरख थाने में हेमा की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 5

रसूखदार लोगों को देख कर पुलिस पीयूष को गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और औपचारिकता पूरी कर के वापस लौट आई.

लगभग आधे घंटे बाद पुलिस फिर पीयूष के घर पहुंची. सीओ राकेश नायक ने ओमप्रकाश श्यामदासानी को अपने विश्वास में ले कर उन से कहा, ‘‘पीयूष, जैसे आप का बेटा है, वैसे ही हमारा भी है. उस से हमें कुछ पूछताछ करनी है. हम उसे जैसे ले जाएंगे वैसे ही घर छोड़ जाएंगे.’’

ओमप्रकाश ने उन की इन बातों पर विश्वास कर लिया. इस के बाद नायक पीयूष को जीप में बिठा कर अपने औफिस ले आए. उन्होंने पीयूष को अपने कमरे में बिठा कर कमरा बंद कर लिया ताकि कोई भी पूछताछ में व्यवधान न खड़ा कर सके.

तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक पहुंची बात

उधर पीयूष पुलिस के साथ सीओ औफिस गया तो चेयरमैन विजय कपूर कई रसूखदार लोगों के साथ वहां पहुंच गए. उन लोगों ने सीओ राकेश नायक के कमरे में जाने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सख्ती से रोक दिया गया. इस से उन लोगों को शक हुआ कि पीयूष के साथ सख्ती की जाएगी.

फलस्वरूप उसे बचाने के लिए राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गईं. स्थिति यहां तक पहुंच गई कि यह मामला तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक जा पहुंचा. लेकिन पुलिस भी फूंकफूंक कर कदम रख रही थी, उस ने सबूतों के साथ पूरी जानकारी मुख्यमंत्री तक पहुंचा दी, जिस से नेताओं के हौसले पस्त हो गए.

इधर बंद कमरे में पुलिस ने पीयूष से पूछताछ शुरू की तो वह हर बात पर नहीं में गरदन हिलाता और रोने लगता. जब काफी देर तक यही क्रम चला तो पुलिस टीम ने उसे होटल की वीडियो क्लिप दिखाई और घटना वाले दिन की मोबाइल की काल डिटेल्स सामने रख कर उस से संबंधित सवाल पूछे.

इस पर उस की हिम्मत जवाब दे गई और वह टूट गया. उस ने बताया कि उस ने अपनी प्रेमिका मनीषा मखीजा के साथ मिल कर ज्योति की हत्या की योजना बनाई थी. इस के लिए उस ने मनीषा के ड्राइवर अवधेश को 80 हजार की सुपारी दी थी. अवधेश ने ही अपने साथियों के साथ ज्योति की हत्या की थी. हत्या का राज खुला तो पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापा मार कर पीयूष की प्रेमिका मनीषा मखीजा और उस के ड्राइवर अवधेश के साथसाथ अवधेश के साथी सोनू, रेनू व आशीष को भी गोल चौराहे से गिरफ्तार कर लिया.

पकड़े गए आरोपियों ने षडयंत्र रचने, ज्योति का अपहरण करने और हत्या का जुर्म कुबूलते हुए लूटी गई ज्वैलरी, चाबी तथा खून से सने कपड़े तथा चाकू बरामद करा दिया.

पुलिस ने उस मौल से भी सीसीटीवी फुटेज और रसीद हासिल कर ली, जहां से इन लोगों ने एक कंपनी के 3 चाकू खरीदे थे. इस के बाद आईजी आशुतोष पांडेय ने प्रैसवार्ता बुला कर ज्योति की हत्या का खुलासा कर दिया.

इस के बाद एसएचओ शिवकुमार राठौर ने भादंवि की धारा 364/302/201/120बी के तहत पीयूष श्यामदासानी, अवधेश, सोनू, रेनू, आशीष तथा मनीषा मखीजा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की और उन्हें विधिवत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने बड़ी सतर्कता के साथ इस जघन्य हत्याकांड की विवेचना शुरू की. एक मुख्य विवेचक के साथ 6 सहविवेचक की बड़ी टीम लगाई गई. 3 माह तक विवेचना चली.

उस के बाद मुख्य विवेचक राजीव द्विवेदी ने 2,700 पेज की केस डायरी कोर्ट में दाखिल की. चार्जशीट दाखिल करने के बाद 20 जनवरी, 2015 को मुकदमा कोर्ट में दर्ज किया गया. 13 फरवरी, 2015 को मुकदमे में पहली सुनवाई हुई.

8 साल न्यायिक प्रक्रिया चली. 560 तारीखों पर सुनवाई हुई. ज्योति के वकील धर्मेंद्र पाल सिंह तथा शासकीय अधिवक्ता दामोदर मिश्र ने जम कर बहस की. कोर्ट में कुल 45 गवाहों की गवाही हुई. अभियोजन की ओर से 37, बचाव पक्ष की ओर से 5 तथा कोर्ट साक्षी के रूप में 3 गवाह पेश किए गए. पुलिस ने कोर्ट में मजबूत साक्ष्य रखे. मृतका ज्योति के पिता शंकरलाल नागदेव ने जान लगा कर केस की पैरवी की.

मामले की सुनवाई के दौरान पीयूष को हाईकोर्ट से जमानत मिली तो ज्योति के पिता शंकर नागदेव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जमानत खारिज करने की गुहार लगाई. कोर्ट ने जमानत तो खारिज नहीं की, लेकिन 6 माह में मुकदमे के निस्तारण के निर्देश दिए. लेकिन फैसला नहीं आ सका.

अवधि खत्म होने पर अपर जिला जज ने समय मांगा तो 11 अगस्त, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने 3 माह का समय दिया. उस के बाद इस केस की सुनवाई 23 अगस्त, 2022 से 20 अक्तूबर, 2022 तक नियमित चली. 21 अक्टूबर, 2022 को अपर जिला जज (प्रथम) अजय कुमार त्रिपाठी ने सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई तथा अर्थ दंड लगाया.

कथा संकलन तक मुजरिम पीयूष श्यामदासानी, मनीषा मखीजा, अवधेश चतुर्वेदी, रेनू कनौजिया, सोनू कश्यप तथा आशीष कश्यप कानपुर जेल में बंद थे और आजीवन कैद की सजा भुगत रहे थे. द्य

—कथा लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

बुझ गई रोशनी : परिवार ही बना अपराधी

11 नवंबर, 2016 की बात है. रामदुरेश के मंझले बेटे पवन कुमार की 4 दिनों बाद शादी थी. घर में शादी की तैयारियां जोरों पर चल रही थीं. चूंकि वह मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे, इसलिए वहां से भी उन के तमाम रिश्तेदार आ चुके थे. पवन का बड़ा भाई रंजन राजेश, जो दुबई में नौकरी करता था, वह भी आ चुका था.

दोपहर के करीब 3 बजे रामदुरेश अपनी दोनों पोतियों, रिधिमा और रौशनी को स्टालर पर बैठा कर सड़क पर घुमा रहे थे. उन्हें आए अभी 10 मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से आए 3 युवकों ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था, इसलिए रामदुरेश उन्हें पहचान नहीं सके.

मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए.

रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए. रामदुरेश काफी घबराए हुए थे. उन्हें पानी पिलाया गया. जब वह कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने पूरी घटना कह सुनाई

घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम और थाना बहराम पुलिस को फोन द्वारा दी गई. अपहरण की सूचना मिलते ही थाना बहराम के थानाप्रभारी सुरेश चांद दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दिनदहाड़े बच्ची के अपहरण की बात सुन कर सभी हैरान थे. कुछ ही देर में डीएसपी बगां हरविंदर सिंह, डीएसपी (आई) राजपाल सिंह, सीआईए प्रभारी सुखजीत सिंह, थाना सदर बगां के थानाप्रभारी रमनदीप सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. आधे घंटे बाद एसएसपी नवीन सिंगला भी आ गए थे.

रामदुरेश ने पुलिस अधिकारियों को अपनी पोती रौशनी के अपरहण की बात बता दी. एसएसपी नवीन सिंगला के निर्देश पर 2 जिलों कपूरथला और नवांशहर की पुलिस अपहृत बच्ची की तलाश में जुट गई. थानाप्रभारी सुरेश चांद ने रामदुरेश के बयान के आधार पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ रौशनी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

सुरेश चांद ने रामदुरेश और उन के परिवार वालों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन का किसी से कोई लेनादेना या झगड़ा आदि नहीं था. सभी अपने काम से काम रखते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि 4 दिनों बाद उन के यहां लड़के की शादी है. उस का पहला रिश्ता 3 महीने पहले फगवाड़ा के एक परिवार में तय हुआ था, जो बाद में किन्हीं कारणों से उन्होंने तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने के बाद उन लोगों ने खूब झगड़ा किया था और देख लेने की धमकी दी थी.

रामदुरेश ने जिन लोगों पर शक जाहिर किया था, सुरेश चांद ने उन लोगों को थाने बुला कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें वे लोग बेकसूर लगे. उन का इस वारदात से कोई लेनादेना नहीं था.

डीएसपी हरविंदर सिंह के आदेश पर इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया. घटनास्थल के निकट एक कैमरा लगा था, जो काफी समय से खराब था. अन्य जगहों पर लगे कैमरों से भी कोई सुराग नहीं मिला. दोनों जिलों की पुलिस टीमें बच्ची की तलाश में जुटी थीं. लेकिन देर रात तक कोई सुराग नहीं मिला.

रामदुरेश के घर में जो खुशी का माहौल था, वह उदासी में बदल चुका था. रौशनी की मां नेहा का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले दिन अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि बच्ची उस के कब्जे में है और अगर बच्ची चाहिए तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. रामदुरेश ने यह बात पुलिस को बता दी. अपहर्त्ताओं के फोन नंबर से पुलिस को उन के पास तक पहुंचने की राह मिल गई थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन पता की तो पता चला कि वह नंबर कस्बे के ही एक दुकानदार का था. उस की मोबाइल फोन की दुकान थी. दुकानदार ने बताया कि लगभग 2 महीने पहले यह सिम उस की दुकान से चोरी हो गया था. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस की दुकान पर किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना है और किन लोगों से उस का दोस्ताना व्यवहार है तो उस ने 8 लोगों के नाम बताए.

उन लोगों के नामपते ले कर पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो उन में से 5 युवक तो मिल गए, 3 फरार मिले. पुलिस का सीधा शक उन 3 फरार युवकों पर गया. अगले दिन पुलिस ने शहर के सभी छोटेबड़े रास्तों की नाकेबंदी कर दी, साथ ही अपहर्त्ताओं के फोन का भी इंतजार था, पर फोन नहीं आया.

थाना सदर बगां प्रभारी रमनदीप सिंह पौइंट फराला के नाके पर मौजूद थे. उन्होंने गांव मुन्ना की ओर से एक मोटरसाइकिल पर 3 युवकों को आते देखा. लेकिन पुलिस को देख कर उन युवकों ने मोटरसाइकिल वापस घुमा दी थी. रमनदीप सिंह ने बोलेरो जीप से उन का पीछा किया. कुछ दूरी पर ही ओवरटेक कर के उन्हें दबोच लिया गया. तीनों का हुलिया रामदुरेश द्वारा बताए गए अपहर्त्ताओं के हुलिए से मिल रहा था, इसलिए पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

उन्होंने अपने नाम गोयल कुमार उर्फ गोरी, हरमन कुमार उर्फ हैप्पी तथा रिशी बताए. रिशी कुमार जिला होशियारपुर के गांव टोडरपुर का रहने वाला था, जबकि गोयल और हरमन रामदुरेश के ही गांव खोथड़ा के रहने वाले थे. तीनों से जब रौशनी के अपहरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रौशनी का अपहरण उन्होंने ही किया था, लेकिन अब वह जीवित नहीं है. उन्होंने उस की हत्या कर लाश जला दी थी.

यह खबर जब रामदुरेश के घर वालों तक पहुंची तो उन के यहां कोहराम मच गया. जब यह खबर पूरे शहर में फैली तो अपहर्त्ताओं को देखने के लिए थाने के बाहर भीड़ लग गई. लोग अपहर्त्ताओं को अपने हवाले करने की मांग करने लगे, ताकि वे उन्हें खुद सजा दे सकें.

तीनों अपहर्त्ताओं की उम्र 18 से 20 साल थी. थाने पर जनता का जमावड़ा और आक्रोश देख कर अतिरिक्त पुलिस बल बुलाना पड़ा. एसएसपी नवीन सिंगला ने आ कर लोगों को समझाया कि कानून के अनुसार दोषियों को सजा दी जाएगी, तब कहीं जा कर भीड़ शांत हुई.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर होशियारपुर के गांव नडालो के पास से गुजरती ड्रेन के नजदीक एक खेत से ड्यूटी मजिस्ट्रैट भूपिंदर सिंह, तहसीलदार गढ़शंकर और एसएसपी नवीन सिंगला की मौजूदगी में रौशनी की अधजली लाश बरामद कर ली.

जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए बगां के सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया. चूंकि शव बुरी तरह से जला हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम में तकनीकी दिक्कतें आने के अंदेशों के चलते वहां के डाक्टरों ने अमृतसर के मैडिकल कालेज में पोस्टमार्टम कराने का सुझाव दिया.

इस के बाद डीसी के आदेश पर शव को अमृतसर मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. पुलिस ने भी एफआईआर में भादंवि की धारा 364 को 364ए, 302, 34, 129 जोड़ दिया. आरोपियों से पूछताछ में रौशनी के अपहरण व हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह उन की विकृत मानसिकता और शार्टकट से करोड़पति बनने का नतीजा थी.

रिशी, हैप्पी और गौरी बचपन से ही शातिर और महत्त्वाकांक्षी किस्म के युवक थे. पढ़ाई के दौरान ही वे आवारागर्दी करने लगे थे, जिस से ज्यादा पढ़ नहीं सके. उन के गांव के तमाम युवक विदेशों में रह कर अच्छी कमाई कर रहे थे, जिस से वे भी विदेश जाना चाहते थे, पर पैसे न होने के कारण जा नहीं पा रहे थे. मजबूर हो कर वे घर पर रह कर ही आसानी से मोटी कमाई करने का उपाय खोजने लगे.

गौरी और हैप्पी की ननिहाल रिशी के गांव टोडरपुर में थी, जिस से उन का वहां आनाजाना होता रहता था. इसी वजह से उन की रिशी से दोस्ती भी हो गई थी.

खोथड़ा गांव में ही रामदुरेश का परिवार रहता था. वैसे तो रामदुरेश मूलत: छपरा, बिहार के रहने वाले थे, पर लगभग 35 सालों से वह यहीं रह रहे थे. वह फगवाड़ा की जेसीटी कपड़ा मिल में नौकरी करते थे. उन के 3 बेटे थे, रंजन राजेश, पवन कुमार और पमा कुमार.

रामदुरेश जिस इलाके में रहते थे, वहां शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिस घर का कोई आदमी विदेश में न हो. किसी तरह रामदुरेश ने भी अपने बड़े बेटे राजेश को सन 2005 में दुबई भिजवा दिया था. राजेश की दुबई में नौकरी लगने के बाद रामदुरेश की काया पलट हो गई थी. बेटे द्वारा दुबई से भेजे पैसों से उन्होंने खोथड़ा के सैफर्न एनक्लेव में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई थी. सन 2010 में उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

राजेश 2 बेटियों का पिता बना, जिस में बड़ी बेटी रिधिमा 4 साल की और छोटी रौशनी 2 साल की थी. सन 2014 के अंत में रामदुरेश नौकरी से रिटायर हुए तो उन्हें काफी पैसा मिला. इसी बीच उन का मंझला बेटा पवन भी शादी लायक हो गया.

उन्होंने उस का रिश्ता फगवाड़ा की ही एक लड़की से तय कर दिया, पर किसी वजह से वह रिश्ता टूट गया तो बाद में दूसरी जगह उस का रिश्ता तय हो गया. 16 नवंबर, 2016 को शादी का दिन भी तय कर दिया गया था.

हैप्पी, रिशी और गौरी रामदुरेश की हैसियत जानते थे. उन्हें पता था कि उन का बड़ा बेटा दुबई से मोटी रकम भेजता है, साथ ही यह भी उम्मीद थी कि उन्हें रिटायरमेंट पर भी अच्छा पैसा मिला होगा. यही सब सोच कर उन्होंने उन के घर लूट की योजना बना डाली.

चूंकि रामदुरेश के बेटे पवन की शादी के कुछ ही दिन बचे थे. घर पर तमाम मेहमान जुट गए थे. उधर हैप्पी, रिशी और गौरी योजनानुसार लूट की घटना को अंजाम देने के लिए रैकी कर रहे थे.

कोठी पर रिश्तेदारों की भीड़भाड़ देख कर उन्हें लूट करना रिस्की लगा, इसलिए उन्होंने योजना बदल दी. रिशी ने उन के परिवार से किसी बच्चे का अपहरण करने की सलाह दी. उस की सलाह हैप्पी और गौरी को पसंद आ गई. फिरौती की रकम मांगने के लिए उन्होंने सिम का इंतजाम भी कर लिया, जो उन में से किसी के नाम पर नहीं था.

वह सिमकार्ड उन्होंने मेहली के ललित जुनेजा से साढ़े 3 सौ रुपए में खरीदा था. ललित जुनेजा की फोन एसेसरीज की दुकान थी. वह चोरी के फोन खरीदनेबेचने का भी काम करता था. ललित ने किसी से चोरी का एक मोबाइल खरीदा था, उस के अंदर जो सिमकार्ड निकला था, वही उस ने हैप्पी को बेच दिया था.

रामदुरेश के घर की रैकी करते हुए तीनों उन की पोती का अपहरण करने का मौका तलाशते रहे. इसी चक्कर में वे 11 नवंबर, 2016 को दोपहर 3 बजे उन की कोठी की तरफ आए थे. उन्होंने रामदुरेश को अपनी दोनों पोतियों के साथ देखा तो उन्हें धक्का दे कर वे उन की 2 साल की पोती रौशनी का अपहरण कर ले गए.

उस बच्ची को ले कर वे टोडरपुर पहुंचे और वहां एक खेत में छिप कर बैठ गए. बीचबीच में रिशी अपने घर और बाजार जा कर खानेपीने की चीजें लाता रहा. वहीं खेत से ही उन्होंने रामदुरेश को फिरौती के लिए फोन किया.

भूख की वजह से रौशनी जोरजोर रोने लगी. तीनों ने उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, पर वह चुप नहीं हुई. आसपास के खेतों में काम करने वालों ने खेत में बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो उन्हें संदेह हुआ. लोग उधर आने लगे तो वे बच्ची को ले कर दूसरे खेत में पहुंचे. वहां भी हालात वही रहे. वह लगातार रोए जा रही थी.

बच्ची की वजह से वे पकड़े जा सकते थे, इसलिए उन्होंने रौशनी का गला दबा दिया. कुछ ही पलों में उस मासूम ने दम तोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने उस की लाश पर पराली डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लगाने के बाद सभी टोडरपुर में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या किया जाए. अंत में वे मोटरसाइकिल से यह देखने अपने गांव की ओर जा रहे थे कि रामदुरेश और पुलिस इस मामले में क्या कर रही है. पर उन्होंने नाके पर पुलिस देखी तो वहीं से मोटरसाइकिल मोड़ कर भागे, तभी पुलिस ने पीछा कर के उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इन की निशानदेही पर पुलिस ने चोरी का सिम बेचने वाले ललित जुनेजा को भी गिरफ्तार कर लिया था. रिमांड अवधि खत्म होने के बाद 14 नवंबर, 2016 को थानाप्रभारी सुरेश चांद ने इस हत्याकांड से जुड़े तीनों अभियुक्तों, गोयल उर्फ गौरी, हेमंत उर्फ हैप्पी और रिशी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. केस की जांच थानाप्रभारी सुरेश चांद कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मामी का उफनता शबाब – भाग 4

मई 2021 में एक दिन सौरभ का मोबाइल घर पर ही रह गया. जिस के तुरंत बाद ही उस की मम्मी बाला देवी ने उस के मोबाइल की काल रिकौर्डिंग निकाल कर सुनी तो दोनों के बीच सबंधों का खुलासा हो गया.

प्रीति कौर और सौरभ के बीच प्रेम प्रसंग का मामला जल्दी ही घर वालों के सामने आ गया. जब यह सच्चाई बृजमोहन के सामने आई तो उस ने सौरभ के साथ शराब पी कर हाथापाई भी की.

इसी बात को ले कर कई बार बृजमोहन ने अपनी बीवी के साथ भी लड़ाई की थी. लेकिन प्रीति उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के ऊपर ही राशनपानी ले कर चढ़ जाती थी.

बृजमोहन ने सौरभ के साथ लड़ाईझगड़ा कर उस के घर आने पर तो पाबंदी लगा दी थी. लेकिन प्रीति कौर और सौरभ अभी भी मोबाइल के माध्यम से संपर्क बनाए हुए थे. लेकिन दोनों एकदूसरे से न मिलने के कारण परेशान भी थे.

इसी दौरान एक दिन प्रीति ने सौरभ के सामने बोझिल मन से कहा कि इस तरह से कब तक चलेगा. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रहना चाहती.

बृजमोहन जब भी घर आता है तो उस का मुंह फूला होता है. वह तुम्हारे चक्कर में ठीक से बात भी नहीं करता. जिस के कारण हम दोनों के बीच हमेशा ही टेंशन बनी रहती है. मैं हमेशा ही खुश रहना चाहती हूं. यह खुशी मुझे तुम ही दे सकते हो.

अगर तुम मुझे इतना ही प्यार करते हो तो कुछ ऐसा करो कि जिंदगी की सारी टेंशन हमेशाहमेशा के लिए खत्म हो जाए. बृजमोहन तुम से बुरी तरह से खार खाए बैठा है. वह कभी भी तुम्हारी हत्या कर सकता है. इस से पहले कि वह तुम्हारे साथ कुछ अनहोनी कर पाए, तुम ही उस का इलाज कर डालो.

मामा को मामी के रास्ते से हटाने की हरी झंडी मिलते ही सौरभ का दिल शेर बन बैठा. सौरभ ने सोचा अगर वह किसी तरह से मामा को मौत की नींद सुला दे तो मामी पर उस का ही कब्जा हो जाएगा.

मन में यह विचार आते ही वह अपने मामा को मौत की नींद सुलाने के लिए हर रोज नईनई योजनाएं बनाने लगा. सौरभ ने कई बार बृजमोहन को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था.

इस घटना से 10 दिन पहले ही सौरभ और प्रीति ने मिल कर बृजमोहन को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. योजना बनते ही एक दिन सौरभ ने अपने मामा को फोन कर अपनी गलती मानते हुए क्षमा

याचना की. जिस के बाद उस ने भविष्य में कभी भी ऐसी गलती न करने की कसम भी खाई.

बृजमोहन बहुत ही सीधा था. वह सौरभ की चाल को समझ नहीं पाया. वह उस की मीठीमीठी बातों में आ गया. फिर उस ने सौरभ को अपने घर आने के लिए भी कह दिया.

इस पर सौरभ ने कहा, ‘‘मामा, मैं ने आप के साथ जो किया है, उस से मुझे खुद से नफरत हो गई है. इसी कारण मैं आप के घर नहीं आऊंगा. अगर आप ने मुझे माफ कर दिया हो तो आज की पार्टी मेरी तरफ से है. आप मुझे गांव के बाहर आ कर मिलो.’’

सौरभ की बात सुनते ही बृजमोहन ने हामी भर ली. उस से गांव के बाहर मिलने के लिए तैयार भी हो गया.

उसी योजना के तहत ही 20 मई, 2022 शुक्रवार की देर शाम सौरभ ने अपने मामा को शराब पीने के लिए बुलाया. बृजमोहन हर शाम गांव में लगे वाटर कूलर से पानी लाता था.

उस ने सोचा उसे आने में देर हो जाएगी. इसी कारण वह पहले पानी ले कर घर रख देगा, उस के बाद सौरभ के साथ चला जाएगा.

यही सोच कर वह घर से खाली बोतलें ले कर पानी लाने गया था. सौरभ को पता था कि उस के मामा इसी वक्त पानी लाने जाते हैं. वह पहले ही रास्ते में खड़ा हो गया था.

बृजमोहन के आते ही सौरभ उसे बुला कर गांव के बाहर चला गया. वाटर कूलर से लगभग 500 मीटर दूसरी दिशा में ले जा कर सौरभ ने अपने मामा को शराब पिलाई.

जब बृजमोहन शराब के नशे में धुत हो गया तो मौका पाते ही पास में पड़े पत्थर से उस के सिर पर जोरदार प्रहार कर डाले. उस के बाद अपना लोअर निकाल कर उस से उस का गला घोट दिया.

गला दबने के कुछ क्षण में ही बृजमोहन की मौत हो गई. बृजमोहन की हत्या करने के बाद घटना में प्रयुक्त कपड़े नहर के किनारे कूड़े में छिपा दिए. उस के बाद वह अपने घर चला गया.

इस केस का खुलासा होते ही पुलिस ने हत्यारोपी की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल आलाकत्ल पत्थर, खून से सने कपड़े व शराब की खाली बोतल के साथ ही डिस्पोजल गिलास भी बरामद कर लिए थे.

बृजमोहन मर्डर केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी उसकी बीवी प्रीति कौर उस के भांजे सौरभ को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

इस मामले का जल्दी खुलासा करने के कारण एसएसपी डा. मंजूनाथ टी.सी. ने केस का खुलासा करने वाली टीम में शामिल काशीपुर कोतवाल मनोज रतूड़ी, एसएसआई प्रदीप मिश्रा, धीरेंद्र परिहार, नवीन बुधानी, रूबी मौर्या, एसओजी प्रभारी रविंद्र सिंह बिष्ट इत्यादि को 5000 रुपए का पुरस्कार दे कर सम्मानित किया.

उन के साथ ही एसएसपी ने मनोहर कहानियां के लिए अच्छी फोटोग्राफी के लिए लेखक के सहयोगी फोटोग्राफर प्रदीप बंटी को भी 1000 रुपए दे कर सम्मानित किया गया. द्य