इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 4

पीयूष के पिता ओमप्रकाश श्यामदासानी और चाचा मधुसूदन श्यामदासानी भी ज्योति के अपहरण से हतप्रभ थे. दोनों भाई पूरे परिवार के साथ ज्योति की खोज में जुट गए. श्यामदासानी परिवार के पास 12 लग्जरी गाडि़यां थीं, जो सब की सब ज्योति की खोज में कानपुर की सड़कों पर दौड़ने लगीं. इस बीच ओमप्रकाश श्यामदासानी ने ज्योति के मायके वालों को भी इस घटना की खबर दे दी थी.

अपहरण के समय ज्योति के पास मोबाइल फोन था, जो अभी तक औन था. उस के फोन की लोकेशन पता करने के लिए आईजी आशुतोष पांडेय तथा डीआईजी आर.के. चतुर्वेदी ने मैसेज भेजे, फोन की लोकेशन पनकी क्षेत्र में मिली. यह पता लगते ही पांडेय ने पनकी पुलिस को निर्देश दिया कि वह अपना सर्च औपरेशन तेज करे.

रात लगभग 2 बजे थाना पनकी की पुलिस ने आईजी आशुतोष पांडेय को बताया कि वांछित होंडा एकौर्ड पनकी के ई ब्लाक की एक गली में खड़ी है.

सूचना मिलते ही आईजी अपने अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों के साथ वहां पहुंच गए. गाड़ी हालांकि लौक्ड थी, लेकिन उस की चाबी पास ही पड़ी मिल गई. पुलिस ने गाड़ी का दरवाजा खोला तो सब सन्न रह गए. कार की पिछली सीट पर ज्योति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

उस के शरीर को चाकू से बुरी तरह गोदा गया था. गौर से देखने पर यह बात साफ हो गई कि हत्यारों का इरादा सिर्फ ज्योति के साथ लूटपाट करना नहीं था, बल्कि हत्या करना था.

छानबीन में ज्योति के ब्लैकबेरी मोबाइल का कवर गियर बौक्स के पास पड़ा मिला, जबकि उसका मोबाइल डैशबोर्ड पर रखा हुआ था. कार के अंदर एक कंपनी के घरेलू इस्तेमाल के 3 चाकू भी बरामद हुए.

इन चाकुओं की धार बहुत तेज थी और तीनों पर खून के धब्बे थे. लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि हत्या के लिए इन चाकुओं का इस्तेमाल नहीं किया गया था. जिस चाकू या चाकुओं से ज्योति पर वार किए गए थे, बरामद नहीं हो सके. पुलिस ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुला लिया था. इस टीम ने कार और कार के शीशे से फिंगरप्रिंट लिए, साथ ही जांच के लिए खून का नमूना भी ले कर सुरक्षित रख लिया.

ज्योति की हत्या की खबर पा कर ओमप्रकाश श्यामदासानी और उन की पत्नी पूनम घटनास्थल पर आए और बहू की लाश देख कर फफकफफक कर रोने लगे. इस घटना की जानकारी मिलते ही पूरे श्यामदासानी परिवार में कोहराम मच गया. पत्नी की लाश देख कर पीयूष तो बच्चों की तरह रो रहा था.

पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उसे लाश से अलग किया. मौके की प्राथमिक काररवाई निपटातेनिपटाते सुबह हो गई थी. अपना काम खत्म कर के पुलिस ने लाश का पंचनामा भरा और उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने अपहरण और हत्या का केस दर्ज कर लिया.

6 डाक्टरों के पैनल ने किया पोस्टमार्टम

उसी दिन 6 डाक्टरों के पैनल ने ज्योति के शव का पोस्टमार्टम किया, इस पैनल में डा. पुनीत महेश, डा. शंकर अवस्थी, डा. राजेश अग्रवाल, डा. अजीत ओझा, डा. दिव्या द्विवेदी तथा डिप्टी सीएमओ डा. आर.पी. तिवारी शामिल थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ज्योति के शरीर पर 17 घाव पाए गए, जिस में गरदन पर 10-12 सेंटीमीटर के 11 घाव थे, इस के अलावा 2 घाव पेट पर तथा 2 शरीर के पिछले हिस्से पर थे. जबकि एक घाव सिर के पीछे था और एक अंगुली पर था.

चूंकि हत्या का यह मामला एक ऐसे करोड़पति व्यवसायी की बहू से संबंधित था, जिस की पैठ सत्तापक्ष के राजनीतिक गलियारे तक थी, इसलिए इसे सुलझाने की जिम्मेदारी आईजी आशुतोष पांडेय ने स्वयं संभाली. इस के लिए उन्होंने एक सशक्त टीम बनाई.

इस टीम में एसएसपी के.एस. इमैनुएल, एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा, सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक, सीओ (नजीराबाद) अंकिता सिंह, इंसपेक्टर (स्वरूप नगर) शिवकुमार राठौर, एसएचओ (कोहना) पूनम अवस्थी, एसएचओ (काकादेव) शशिभूषण मिश्र, एसआई रीता सिंह, कपिल दुबे और अनिल दुबे को शामिल किया गया.

आईजी आशुतोष पांडेय ने इस टीम के साथ ज्योति मर्डर केस की जांच शुरू की तो ज्योति का पति पीयूष ही शक के दायरे में आया. इस की एक नहीं, कई वजहें थीं. मसलन, अपहरण के समय पीयूष ने ज्योति को बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया.

अपहरण के बाद वह 100 नंबर पर काल कर सकता था जो उस ने नहीं की. उस ने रावतपुर चौराहे पर तैनात पुलिसकर्मियों को अपहरण की सूचना क्यों नहीं दी. वारदात के एक घंटे बाद वह खुद न आ कर घर वालों के साथ थाने क्यों पहुंचा?

पीयूष शक के दायरे में आया तो पुलिस टीम ने कार्निवाल होटल जा कर सीसीटीवी फुटेज खंगाली. फुटेज देख कर लगा जैसे पीयूष वहां शारीरिक रूप से तो मौजूद था, लेकिन उस का दिमाग कहीं और था.

वह काफी विचलित नजर आ रहा था. फुटेज में ज्योति तो खाना खाती नजर आ रही थी, लेकिन पीयूष खाना नहीं खा रहा था. इस के बजाय वह हुक्का गुड़गुड़ाने में लगा हुआ था.

पीयूष के खिलाफ  मिलते गए पुख्ता सबूत

इसी दौरान पीयूष के मोबाइल पर एक एसएमएस आया. फिर उस ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया और बात करते हुए होटल की तीसरी मंजिल से उतर कर सड़क पर जा पहुंचा. इस के बाद वह बातचीत करते हुए अपनी कार के आगे चला गया. फिर वह 15 मिनट बाद वापस होटल लौटा.

सीसीटीवी फुटेज में दिखी गतिविधियों से पुलिस टीम का शक पीयूष पर और गहरा गया. पुलिस टीम ने पीयूष के दोनों मोबाइल फोन कब्जे में ले कर उन की काल डिटेल्स और एसएमएस डिटेल्स निकलवाई. इस से काफी चौंकाने वाली जानकारी मिली.

डिटेल्स से पता चला कि पीयूष ने घटना के दिन यानी 27 जुलाई की शाम 6 बजे से रात एक बजे तक एक नंबर पर करीब डेढ़ सौ एसएमएस किए थे, साथ ही उसी नंबर पर उस की कई बार बात भी हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो पता चला कि वह अंजू युवती का नंबर है. पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाई तो जानकारी मिली कि अंजू से पीयूष के संबंध हैं. वह गुड़गांव की थी और 2 महीने से पीयूष की फैक्ट्री में बतौर कैमिस्ट के पद पर काम कर रही थी. वह बर्रा में रह रही थी. पीयूष ने ही उसे किराए का मकान दिलवाया था.

काल डिटेल्स से ही पुलिस टीम को एक अन्य युवती के बारे में पता चला. उस युवती से भी पीयूष की रोज बात होती थी और पिछले 2 महीने में दोनों ओर से 600 से भी ज्यादा एसएमएस किए गए थे.

पुलिस टीम ने उस युवती के संबंध में छानबीन की तो पता चला कि वह लड़की एक बड़े व्यवसायी हरीश मखीजा की बड़ी बेटी मनीषा मखीजा थी.

अलगअलग युवतियों से पीयूष के नाजायज संबंधों की बात सामने आई तो पुलिस टीम यह सोचने को मजबूर हो गई कि कहीं ज्योति के मर्डर में पीयूष की प्रेमिकाओं का हाथ तो नहीं है.

यह संभव था कि किसी प्रेमिका को अपना हमसफर बनाने के लिए पीयूष ने उसी की मदद से अपनी पत्नी की हत्या न कर दी हो और कानून से बचने के लिए अपहरण की कहानी गढ़ी हो.

चूंकि पीयूष हर तरफ से शक के दायरे में था, इसलिए पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर के उस से सख्ती से पूछताछ करने का फैसला कर लिया.

अब तक ज्योति के पिता शंकर लाल अपनी पत्नी कंचन के साथ जबलपुर (मध्य प्रदेश) से कानपुर आ गए थे. वह अपने दामाद पीयूष के घर न ठहर कर अपने एक रिश्तेदार बलराम के घर रुके. पुलिस टीम उन के बयान लेने पहुंची तो कंचन फफक कर रो पड़ी.

पुलिस के सांत्वना देने के बाद उन्होंने बताया कि उन की बेटी और दामाद के रिश्ते अच्छे नहीं थे. पीयूष 2-2 घंटे तक बाथरूम में बंद हो कर किसी से बात करता था. ज्योति ऐतराज करती तो दोनों में झगड़ा हो जाता था. ज्योति ने यह बात कई बार हम से बताई थी. पर हम ने उसे समझा कर धैर्य रखने को कह दिया था.

29 जुलाई को अपराह्न 3 बजे सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक और एसएचओ शिवकुमार राठौर पुलिस टीम के साथ पीयूष के पांडवनगर स्थित बंगले पर पहुंचे. उस समय वहां तत्कालीन दरजाप्राप्त राज्यमंत्री सुखराम सिंह, सपा विधायक मुनींद्र शुक्ला, विधायक अजय कपूर, उन के भाई कारपोरेट चेयरमैन विजय कपूर तथा अन्य व्यापारी बैठे थे.

सिर कटी लाश का रहस्य – भाग 3

हनीफ ने किया सानिया का सर धड़ से अलग इस के लिए शुरुआत में पति आसिफ ने उस का गला काटना शुरू किया. लेकिन कुछ मिनटों के बाद ही उस के हाथ थम गए, उस ने हार मान ली. तब आसिफ के पिता हनीफ ने आगे का काम किया और सानिया का सिर धड़ से अलग कर दिया.

उस की पहचान छिपाने के लिए कातिल हैवानियत की हदों से आगे निकल गए. उन्होंने उस के सिर के लंबे बालों को काटने के लिए इलैक्ट्रिक ट्रिमर का इस्तेमाल किया और सिर से बालों का पूरी तरह से सफाया कर दिया.

इतना ही नहीं, हत्यारों ने सोचा कि अगर फिर भी सिर पुलिस को मिल गया तो कहीं वे पकड़े न जाएं, इसलिए मृतका के ऊपरी होंठ पर जो तिल था उसे चाकू से हटा दिया. ऐसी गिरी हुई हरकत ससुराल वालों ने सानिया की बच्ची को जबरन गोद लेने के लिए की.

अब हत्यारे पूरी तरह निश्चिंत थे कि यदि सिर पुलिस को मिल भी जाएगा तो वे 7 जन्मों तक इस की पहचान नहीं कर पाएंगे. आसिफ ने सिर को एक पौलीथिन की थैली में पैक कर दिया.

इस के बाद वह सिर को कपड़े में छिपा कर अपने बड़े भाई यासीन के साथ बाइक पर बैठ कर साथ ले गया और सिर को मुंबई अहमदाबाद हाईवे पर खानीवाडे क्रीक में फेंक कर घर लौट आए.

लाश ठिकाने लगा कर मनाई बकरीद

अब उन्हें सानिया के धड़ को निपटाना था. इस के लिए उस के धड़ को चादर में लपेट कर एक बड़े काले रंग के ट्रौली बैग में भर दिया. आसिफ ने मुंब्रा में ही रहने वाले कैब चलाने वाले अपने बहनोई यूसुफ को फोन किया कि वह अपनी गाड़ी ले कर घर आ जाए ताकि शव को आसानी से ठिकाने लगाया जा सके. इस पर यूसुफ कार ले कर कुछ ही देर में घर आ गया.

इस के बाद आसिफ ने कार में ट्रौली बैग रखा और यूसुफ के साथ जा कर उसे मुंबई के वसई के भुईगांव समुद्र तट पर फेंक आए.

आरोपियों ने खून से सने फर्श की सफाई करने के साथ ही अपनेअपने कपड़े बदले. सभी ने शाम को बकरीद का त्यौहार मनाया. क्योंकि विवाद की मुख्य वजह ही अब समाप्त हो गई थी.

यूसुफ भी खुश था कि अब उसे सानिया की बेटी अमायरा मिल जाएगी. इसलिए उस ने लाश को ठिकाने लगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. सानिया की हत्या करने के 3 महीने बाद आसिफ और उस के परिवार ने वह घर बेच दिया और परिवार मुंब्रा इलाके में रहने लगा.

वसई थाने के सीनियर इंसपेक्टर कल्याणराव ए. कर्पे ने बताया कि यह एक सुनियोजित हत्या थी, क्योंकि जिस दिन सानिया की हत्या की गई, उस दिन ससुराल वालों ने मृतका की बेटी अमायरा को बकरीद का त्यौहार मनाने के बहाने यूसुफ की पत्नी के साथ उस के घर भेज दिया था.

जावेद शेख ने बताया, ‘‘अमायरा के जन्म के बाद सानिया के ससुराल वाले इस बात पर जोर देते थे कि सानिया अपनी ननद को अपनी बेटी अमायरा को गोद दे दे. वे हमेशा उस पर दबाव डालते थे और उस की बच्ची को छीनने की कोशिश करते थे.

‘‘कोविड के दौरान जब आसिफ दुबई में फंसा था तो ससुर हनीफ ने नालासोपारा में इस बात को ले कर सानिया के साथ मारपीट भी की थी. इस पर सानिया ने अचोल थाने में भी शिकायत की थी. लेकिन रिश्तेदारों की दखलअंदाजी के बाद कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था.’’

पुलिस को पति आसिफ ने सानिया के घर से जाते समय का जो लैटर दिया वह फरजी निकला. पुलिस ने पति आसिफ, उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ, बहनोई यूसुफ  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सानिया की हत्या के 6 दिन बाद ही उस की सिर कटी लाश पुलिस को मिल गई थी. लेकिन साल भर का वक्त सिर कटी लाश के रहस्य से परदा उठने में लग गया. पुलिस नहीं जानती थी कि सिर कटी लाश के कातिल घर में ही बैठे हुए हैं.

परदाफाश भी एक शख्स (चाचा) के प्रयासों से संभव हो सका, जो अपनी बेटी को तलाशते हुए एक साल बाद मुंबई पहुंचे थे.

वहीं वसई पुलिस की भी समझदारी भी काम आई, जो उस ने लाश के कपड़ों, बैग आदि के फोटो कराने के साथ ही डीएनए सैंपल सुरक्षित रखा.

इसी डीएनए सैंपल ने अनसुलझे हत्या का राज खोल दिया. सानिया के मायके वालों को 13 महीने के लंबे इंतजार के बाद सानिया के बारे में खबर तो जरूर मिली, लेकिन बेटी की मौत की.

यह बात साफ है कि जुर्म करने वाला अपराधी किसी भी क्राइम को अंजाम देने से पहले खुद के बच निकलने का हर रास्ता अपनी समझ से पूरी तरह तैयार रखता है. होशियारी बरतने के बाद भी जानेअनजाने या हड़बड़ी में ही सही, वह ऐसा कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है जिस पर पहुंच कर जांच करने वाली एजेंसी की नजर पड़ ही जाती है.

लिहाजा शातिर से शातिर अपराधी भी अपने द्वारा भूल से भी छोड़े गए अपने मूक गवाह की चाल में फंस कर कानून के शिकंजे में अपनी गरदन खुद ही फंसा बैठता है.

सानिया के जीवन में दुख और गम के सिवाए कुछ नहीं था. बचपन में ही मांबाप के गुजरने के बाद वह अकेली रह गई थी. तब उस के चाचाचाची ने उसे अपनी बेटी की तरह पालपोस कर बड़ा किया और पढ़ाया.

कहते हैं कि जब किसी की किस्मत खराब होती है तो उसे कहीं भी सुकून नहीं मिलता. साल 2017 में जब सानिया 20 साल की थी, चाचा ने उस की शादी आसिफ के साथ कर दी थी.

बेटी पैदा होने के बाद ससुरालीजन उस की जान के प्यासे बन गए. मां की ममता सानिया की जिंदगी पर भारी पड़ गई. चाचा को सपने में भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि बच्ची के लिए ससुरालीजन सानिया की जान ले लेंगे.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाप बेटे की एक बीवी – भाग 3

पिछले कुछ दिनों से पूजा पुरुष सुख से वंचित थी. ऐसे में उस की नजर नारी सुख से वंचित कौर सिंह पर पड़ी तो वह उस की ओर आकर्षित होने लगी. उस ने कौर सिंह की अधेड़ उम्र को भी नहीं देखा. कौर सिंह ने पूजा की नजरों को पहचान लिया और वह भी इशारोंइशारों में उस से मन की बात कहने लगा.

आखिर एक रात जब कालू और संदीप सो रहे थे तो पूजा कौर सिंह की ढाणी में पहुंच गई. उसी दिन से दोनों के बीच संबंध बन गए. एक सप्ताह तक कौर सिंह और पूजा का अनैतिक खेल बेरोकटोक जारी रहा. पर एक रात कालू ने पूजा को कौर सिंह के साथ आपत्तिजनक हालत में रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन कालू ने गुस्से से पूजा की पिटाई कर डाली. साथ ही कौर सिंह को भलाबुरा भी कहा. कभी संदीप की दीवानी पूजा अब कौर सिंह पर फिदा हो गई थी. पूजा ने संदीप से रिश्ता होने की बात भी कौर सिंह को बता दी थी.

कालू को शक हुआ तो उस ने पूजा की निगरानी शुरू कर दी. अब पूजा कौर सिंह या संदीप से एकांत में नहीं मिल पा रही थी. वह मौका तलाश कर कौर सिंह से मिली और उस के सीने पर सिर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तेरे बिनारह नहीं सकती.’’ कहने के साथ ही पूजा सिसकने लगी.

‘‘पूजा, तू घबरा मत, मैं कल ही इस काम का तोड़ निकाल लूंगा.’’ कौर सिंह ने उसे सांत्वना दी. तब तक उन तीनों को वहां आए केवल 20 दिन ही हुए थे.

अगली रात योजना के अनुरूप पूजा ने कालू के खाने में नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. रात 11 बजे के करीब कौर सिंह कालू की ढाणी में आया. उस ने गहरी नींद में सोए अपने बेटे संदीप को उठाया. पूजा पहले से जाग रही थी. कौर सिंह ने पूजा व संदीप को बेसुध पड़े कालू के हाथपांव पकड़ने को कहा. दोनों ने वैसा ही किया.

कौर सिंह ने पूजा का दुपट्टा ले कर कालू के गले में डाला और जोर से खींच दिया. नशे में ही कालू ने दम तोड़ दिया. तीनों ने ठाणी के पीछे पहले से बनाए गड्ढे में कालू के शव को डाल कर दफना दिया. उस रात पूजा ने बापबेटे दोनों के साथ बीच सैक्स का आनंद उठाया.

कौर सिंह भी पूजा का दीवाना हो चुका था. 5 रोज बाद उस ने संदीप को भी डराधमका कर भगा दिया. अब पूजा पर उस का एकाधिकार हो गया था. दोनों ने 10 रोज मजे से गुजार दिए.

एक दिन पूजा के पास उस की मां विद्या का फोन आया. उस ने मां को बताया कि वह मजे में है. विद्या ने कालू से बात करवाने को कहा तो पूजा ने कहा कि वह काम पर गए हैं. विद्या ने रात को फिर फोन किया तो पूजा ने कहा कि वह एक जरूरी काम से गांव चले गए हैं. कल बात करवा दूंगी.

लेकिन कई दिन तक विद्या की कालू राम से बात नहीं हो सकी. अनहोनी की आशंका के चलते विद्या ने कालू के छोटे भाई दीपक को बुलाया. दीपक कमरानी आ गया. दीपक को बताया गया कि 4 दिन से पूजा का फोन बंद है और कई दिनों से कालू का भी कोई अतापता नहीं है.

सलाह मशविरा कर के दोनों परिवारों ने 12 फरवरी, 2018 को टिब्बी पुलिस थाने में दीपक की ओर से कालू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. इस मामले की जांच सहायक उप निरीक्षक लेखराम को सौंप दी गई.

शुरुआती जांच पड़ताल में लेखराम को पूजा के अनैतिक संबंधों की जानकारी मिली तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया. तब तक कौर सिंह को पुलिस की भागदौड़े का पताचल चुका था. वह पूजा को ले कर फरार हो गया था.

कई दिनों तक पुलिस और संदिग्धों के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा. एक दिन विद्यावती के पास पूजा का फोन आया और उस ने अपनी कुशलक्षेम बताते हुए मायके के हालात के बारे में पूछा. फोन आने की सूचना लेखराम तक पहुंचा दी गई. उस अनजान नंबर को ट्रेस किया गया तो वह नंबर पंजाब के गांव वरियामखेड़े के एक किसान का पाया गया.

पुलिस ने दबिश दी तो पूजा और गौर सिंह वहां से भी भाग निकले. अगले दिन कौर सिंह का बेटा संदीप पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने प्रारंभिक पूछताछ में यह राज उगल दिया कि तीनों ने मिल कर कालू की हत्या कर के उस की लाश ठाणी के पिछवाड़े दबा दी है.

गुमशुदगी का मामला हत्या में तब्दील हो चुका था. वारदात रावतसर क्षेत्र में हुई थी. एएसआई लेखराम की रिपोर्ट पर 17 फरवरी को रावतसर में तीनों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत अभियोग दर्ज कर लिया गया.

थानाप्रभारी पुष्पेंद्र सिंह ने शेष हत्यारोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी हेतु अमर सिंह प्रहलाद, अविनाश व महिला कांस्टेबल सावित्री की एक टीम गठित की और अपराधियों को ढूंढने लगे. अपराधबोध से ग्रस्त व भागदौड़ से थके कौर सिंह व पूजा लुकछिप कर विद्या के पास पहुंच गए. पुलिस को सूचना मिली तो दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अगले दिन तीनों को नोहर की अदालत में पेश कर के 3 दिन का पुलिस रिमांड ले लिया. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने कालू का शव, जो हड्डियों में तब्दील हो चुका था, बरामद कर लिया. हत्या में इस्तेमाल किया गया पूजा का दुपट्टा भी जब्तहो गया. व्यापक पूछताछ के बाद पुलिस ने अदालत के आदेश पर पूजा व उस के दोनों आशिक बापबेटे कौर सिंह और संदीप को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

सैक्स की आंच में अंधी हो कर एक वर्षीय अपनी बच्ची के भविष्य को अंधियारे में धकेलने वाली पूजा ने न केवल अपने पति को परलोक पहुंचाया बल्कि स्वयं के साथसाथ बापबेटे को भी काल कोठरी में पहुंचा दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डेढ़ सौ करोड़ की मालकिन शुभांगना की मौत की मिस्ट्री – भाग 3

पुलिस ने एक सितंबर को राजकुमार को थाने बुला कर सुबह से रात तक कई दौर में पूछताछ की. वकील की मौजूदगी में हुई इस पूछताछ में राजकुमार ने पुलिस को बताया कि इसी साल जुलाई में शुभांगना से उस का दोबारा संपर्क हुआ था. राजकुमार के परिचितों का कहना है कि कालेज राजकुमार संभालता था. उस के कालेज में जाने से रोक लगाने के बाद कालेज की स्थिति बिगड़ने लगी थी. तब जुलाई में शुभांगना ने उसे फोन किया था.

इस के बाद भी उस ने कई बार संपर्क किया. इस बार कालेज में उम्मीद के मुताबिक बच्चों के प्रवेश नहीं हुए थे. इस की वजह से भी वह मानसिक रूप से परेशान थी. राजकुमार ने शुभांगना को समझाया भी था. राजकुमार के मोबाइल में इस से संबंधित सबूत मौजूद बताए जाते हैं. पुलिस ने राजकुमार के 2 मोबाइल फोन जब्त किए हैं. उन में राजकुमार और शुभांगना की बातों की कुछ कौल रिकौर्डिंग हैं.

आरोपप्रत्यारोप

पता चला है कि घटना से 5-6 दिनों पहले शुभांगना ने अपने जेठ और सास को फोन कर के घर बुलाया था. मां और भाई ने राजकुमार को भी वहां बुलाया था, लेकिन वह नहीं आया.

बाद में शुभांगना उसे अपनी गाड़ी से ले कर आई थी. उस समय शुभांगना ने राजकुमार से कहा था कि पापा को उस के यहां आने का पता नहीं चलना चाहिए. शुभांगना का जयपुर के मनोचिकित्सक से इलाज चलने की भी बात कही जा रही है.

दूसरी ओर प्रेम सुराणा और शुभांगना के वकील अनिल शर्मा ने राजकुमार और उस के घर वालों पर कई तरह के आरोप लगाए हैं. प्रेम सुराणा का कहना है कि राजकुमार के कई लड़कियों, महिला कर्मचारियों और नौकरानी से संबंध थे. शुभांगना को जब इन बातों का पता चला तो उस ने राजकुमार को टोका. तब शराब के नशे में वह शुभांगना से मारपीट करने लगा.

उस ने कालेज में भी लाखों रुपए का घोटाला किया है. वह शुभांगना की जासूसी भी कराता था. उन्होंने राजकुमार पर शुभांगना की हत्या का शक जताते हुए पुलिस अधिकारियों को कुछ दस्तावेजी सबूत भी दिए हैं. इन में मौत से पहले शुभांगना की ओर से अपने वकील को भेजे गए ईमेल और वाट्सएप पर राजकुमार से हुई बातचीत के अंश शामिल हैं.

प्रेम सुराणा का कहना है कि पुलिस इस मामले में ढंग से जांच नहीं कर रही है. शुभांगना की मौत के मामले में 6 सितंबर को वह समाज के कुछ लागों को ले कर जयपुर में राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया से मिले थे. तब गृहमंत्री ने उन्हें न्याय दिलाने की बात कही थी.

विवादास्पद बातें

शुभांगना के वकील अनिल शर्मा का कहना है कि 25 अगस्त की रात को राजकुमार सीतापुरा स्थित कालेज गया था. उस ने कालेज में रुकने के लिए शुभांगना को फोन किया था.

कालेज में लगे सीसीटीवी कैमरों में राजकुमार के आने की फुटेज थी, जो बाद में नष्ट कर दी गई. उन का यह भी कहना है कि राजकुमार ने शुभांगना के मोबाइल में कोई ऐप डाउनलोड कर दिया था, जिस से जब वह मोबाइल पर किसी से बात करती थी तो वह राजकुमार तक पहुंच जाती थी.

वह जब भी कालेज जाता था, तब वहां आया कैश ले जाता था. शुभांगना के फर्जी हस्ताक्षर कर के उस ने कई जगहों से कर्ज भी लिया था. कुछ दिनों पहले उस ने 90 लाख रुपए का एक फ्लैट बेचा था.

जब वह शुभांगना के साथ रहता था, तब उसे काफी परेशान करता था. कई दिनों के लिए उसे कमरे में बंद कर देता था, खाना भी नहीं देता था. मायके वालों से मिलने पर पाबंदी लगा रखी थी. शुभांगना ने ये सारी बातें वकील प्रदीप शर्मा को ईमेल और वाट्सएप पर लिख कर भेजी थीं.

दूसरी ओर राजकुमार सावलानी का कहना है कि शुभांगना ने 23 अगस्त को उसे घर पर बुलाया था. जब वह नहीं गया तो वह खुद उसे लेने आ गई. घर ले जा कर उस ने नाश्ता कराया था और एक मोबाइल फोन गिफ्ट किया था. नए नंबर ले कर फोन चालू किया, जिस पर शुभांगना के मैसेज और फोन आए थे. 25 अगस्त को जब शुभांगना के मातापिता को पता चला कि वह मुझ से बात कर रही है तो उन्होंने उसे काफी डांटाफटकारा.

शुभांगना पहले से ही मानसिक रूप से परेशान थी, वह दबाव में आ गई. 26 अगस्त की सुबह 3 बज कर 41 मिनट पर मेरे मोबाइल पर उस का मैसेज आया. मैसेज में उस ने कहा था कि ‘मुझे माफ कर दो और कालेज व रिसौर्ट चला दो.’ इस के बाद 4 बजे उस का फोन आया तो उस ने 32 मिनट तक बात की.

वह यही कहती रही कि मेरे मातापिता ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया. राजू हम दोनों साथ रहना चाहते हैं, लेकिन मेरे मातापिता नहीं चाहते कि हम साथ रहें. इसी वजह से मैं डिप्रेशन में हूं. अब मुझ से काम भी नहीं संभल रहा है. मैं ने कहा कि इस बारे में सुबह बात करेंगे. सब ठीक हो जाएगा.

राजकुमार का कथन

सुबह बेटे ने फोन कर के बुलाया, तब पता चला कि शुभांगना की मौत हो गई है. राजकुमार ने शुभांगना की मौत के लिए प्रेम सुराणा और उन के घर वालों को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि ‘मैं ने लवमैरिज की थी, यह बात प्रेम सुराणा कभी नहीं भुला पाए. इसीलिए मुझे शुभांगना की मौत के मामले में फंसाना चाहते हैं.’

शुभांगना की मौत की जांच में लापरवाही बरतने के आरोप में 7 सितंबर को थाना अशोक नगर के थानाप्रभारी बालाराम को जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने लाइनजाहिर कर दिया था. इस के बाद उन्हें जयपुर रेंज में लगा दिया गया. अब उन्हें थानाप्रभारी न लगा कर नौन फील्ड में रखने के निर्देश दिए गए हैं. उन पर आरोप लगा है कि वह शुभांगना की मौत के मामले में न तो घटनास्थल पर गए और ना ही एफएसएल टीम बुलाई. उन्होंने घटनास्थल की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी नहीं कराई. लाश का पोस्टमार्टम भी मैडिकल बोर्ड से नहीं कराया गया.

कथा लिखे जाने तक यह हाईप्रोफाइल मामला एक मिस्ट्री बना हुआ था. पुलिस शुभांगना की मौत का रहस्य पता लगाने की कोशिश में जुटी हुई थी. डीसीपी योगेश दाधीच के नेतृत्व में जांच चल रही है. बहरहाल अगर किसी ने अपराध किया है तो कानून उसे अवश्य सजा देगा. लेकिन वृद्धि और मिहिर को अब मां का प्यार कभी नहीं मिल पाएगा.

शुभांगना भले ही अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उस की आंखें इस दुनिया को देख रही हैं. क्योंकि पति राजकुमार और पिता प्रेम सुराणा ने उस की आंखें दान कर दी थीं. शुभांगना की आंखें जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में भर्ती 2 लोगों को प्रत्यारोपित कर दी गई थीं.

रूपा के रूप का जादू – भाग 3

अलगअलग जाति के होने की बात पर रूपा ने कहा कि वह अपने मांबाप को मना लेगी. वह घर की लाडली है. इसलिए घर वाले उस के फैसले का जरा भी विरोध नहीं करेंगे. हर्षित ने भी रूपा को भरोसा दिया कि वह भी अपने मांबाप को शादी के लिए तैयार करने की कोशिश करेगा. ब्राह्मण परिवार होने के कारण इस में थोड़ा समय लगेगा.

प्रेम की आग दोनों तरफ लगी हुई थी. रूपा हर्षित को प्यार जरूर करती थी, लेकिन उसे अपनी देह छूने तक नहीं दे रही थी, जबकि हर्षित रूपा की देह की गंध को अपने कब्जे में करने को आतुर हुआ जा रहा था. उस ने ही रूपा से कहा कि क्यों न वे दोनों मंदिर में जा कर शादी कर लें. उस के बाद उन के मातापिता को मनाना आसान हो जाएगा.

सच तो यह था कि रूपा भी ऐसा ही चाहती थी, ताकि वह हर्षित की ब्याहता बन जाए और उस की संपत्ति पर अपना हक जता सके. उस ने हर्षित के प्रस्ताव को तुरंत मान लिया. आने वाले कुछ दिनों में ही दोनों ने एक मंदिर में जा कर गुपचुप तरीके से शादी रचा ली. यहां तक कि इस खुशी में उन्होंने अपने दोस्तों को एक होटल में पार्टी भी दे दी.

इस की भनक हर्षित के मांबाप को लगी तो उन्होंने हर्षित को डांट लगाई और रूपा से तुरंत संबंध तोड़ने का दबाव बनाया. तब तक रूपा भी पत्नी का अधिकार हासिल कर चुकी थी. उस ने हर्षित के मांबाप के विरोध का सामना किया और रात को हर्षित के साथ एक ही कमरे में रहने लगी.

थोड़े दिनों में ही हर्षित को रूपा की लालची नजर का अंदाज हो गया. इस का उसे सबूत तब मिल गया, जब रूपा ने उस से कहा कि वह कोई दूसरा बड़ा मकान बना ले, जिस में उस के मांबाप नहीं रहेंगे और उन का विरोध भी नहीं झेलना पड़ेगा.

हर्षित को यह बात कुछ अच्छी नहीं लगी, लेकिन वह चुप बना रहा. उसे इतना तो अंदाजा लग ही गया कि रूपा की नजर उस की पुश्तैनी संपत्ति पर है.

उसी संपत्ति की बदौलत उस ने अलग मकान खरीद कर हर्षित के साथ अपना अलग घर बसाने की बात कही थी. दिखाने के लिए रूपा हर्षित के मांबाप का मन जीतने की कोशिश में भी लगी रहती थी.

हर्षित के मातापिता बेहद सरल स्वभाव के थे. वे हर्षित की भावनाओं को समझते थे. फिर भी उन्हें गैरजातीय लड़की के साथ दांपत्य जीवन गुजारना पसंद नहीं था.

हर्षित और रूपा ने उन के विवाह को मानने से साफतौर पर मना कर दिया. साथ ही हर्षित को सख्त हिदायत दी कि वह रूपा के साथ अपना संबंध तोड़ ले. उन्होंने रूपा को डांटते हुए उसे कहीं और जा कर रहने का फरमान सुना दिया. लेकिन रूपा पर इन बातों का जरा भी असर नहीं हुआ.

घर वालों ने नहीं मानी यह शादी

एक रोज शाम के समय रूपा जब हर्षित के साथ सैरसपाटा कर अपने कमरे में आई, तब तब माधुरी शुक्ला नीचे आंगन से ही दोनों को डांट लगाई.

रूपा भागती हुई माधुरी शुक्ला के पास गई और पांव छूने का प्रयास किया. उन्होंने उसे झटक दिया और बोली, ‘‘चल भाग यहां से. हर्षित के पिता इस अंतरजातीय विवाह के लिए तैयार नहीं हैं. हमें अपने समाज में रहना है. तुम हमारी जातिबिरादरी की नहीं हो. जितनी जल्दी हो सके, तुम यहां से अपना सारा सामान ले कर भागो. उस के बाद यहां दिखाई मत देना.’’

माधुरी शुक्ला की बात सुन कर रूपा को जैसे सांप सूंघ गया. उस के बाद उस ने हर्षित से दूरी बनानी शुरू कर दी. रूपा ने साफ लफ्जों में हर्षित से कह दिया कि वह उस से संबंध तोड़ लेगी. वह भी हौस्टल में नहीं आया करे.

हर्षित को रूपा की बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन कई दिन तक उस के बगैर तन्हाई में रातें काटनी पड़ीं. उसे रूपा से मिलने नहीं दिया गया और मां के कहने पर उस ने दूरी बनानी शुरू कर दी.

किंतु एक दिन हर्षित ने हौस्टल में जा कर रूपा से कहा कि उस के द्वारा दी गई अंगूठी और स्कूटी वापस कर दे या फिर वह पहले की तरह उस के साथ हमबिस्तर होती रहे. इस के लिए रूपा राजी नहीं हुई और झिड़कते हुए हौस्टल से बेइज्जती कर भगा दिया.

हालांकि बाद में रूपा ने उस की अंगूठी और स्कूटी वापस करने के लिए कुछ समय इंतजार करने को कहा. हर्षित रूपा के कहे अनुसार इंतजार करता रहा. किंतु रूपा उस की अंगूठी और स्कूटी वापस देने नहीं आई. एक दिन हर्षित ने मोबाइल फोन पर उस से दबाब बनाते हुए कमरे पर आ कर मिलने के लिए कहा.

हर्षित मातापिता की बातों को ले कर भी परेशान हो गया था. काफी दबाव डालने के बाद रूपा 12 सितंबर को हर्षित सें मिलने उस के घर पर आई थी. उस दिन हर्षित ने रूपा के साथ जबरन सैक्स संबंध बनाए और इस पर नाराज होने पर उस की गला घोंट कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

इस घटना से पहले भी कई दिनों से रूपा और हर्षित के बीच झगड़े होते रहते थे. इस बारे में रूपा ने कृष्णानगर पुलिस में शिकायत भी दर्ज कर रखी थी और अपनी जान को खतरा भी बताया था.

तब पुलिस ने शांति भंग करने के आरोप में हर्षित का चालान कर दिया था. तभी से हर्षित रूपा से और भी बौखलाया हुआ था. मोबाइल फोन पर हर्षित उसे अपने साथ जबरन रहने को कहता था. इनकार करने पर उसे जान से मारने की धमकी भी दे रहा था.

हर्षित ने पुलिस को बताया था कि शादी के नाम पर रूपा को उस ने 25 हजार रुपए नकद दिए थे. उस ने रूपा को स्कूटी खरीद कर दी थी. 18 सितंबर, 2022 जेल जाने से पहले माधुरी शुक्ला और प्रेमचंद्र शुक्ला ने बताया था कि 12 सितंबर को हर्षित  ने अपनी मां को बताया था कि उस ने रूपा की हत्या कर दी है.

उस के बाद माधुरी ने अपने पति के साथ मिल कर रूपा के शव को कंबल में लपेट कर तख्त के नीचे छिपा दिया था. हर्षित देर रात घर वापस लौटा था. तीनों ने रूपा के शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, किंतु उन्हें मौका नहीं मिल पाया. उसी दौरान बरसात में शव फूलने लगा और उस से बदबू भी आने लगी. शव को घर में पड़े हुए 2 दिन निकल गए थे.

हर्षित ने 14 सितंबर की रात में तेज बारिश के दौरान कूड़ा गाड़ी लाया. शव को बोरे में ठूंस दिया. फिर उसे रामदास खेड़ा के बाग में बने उमाशंकर यादव के खेत के निकट एक ट्यूबवैल के गड्ढे में फेंक आया.

कथा लिखे जाने तक हर्षित शुक्ला, उस की मां माधुरी शुक्ला और पिता प्रेमचंद्र शुक्ला जेल में बंद थे.    द्य

नफरत की आग में खाक हुए रिश्ते – भाग 3

खतरा भांप कर विनीता ने करन गोस्वामी को आगाह किया कि वह कोमल को साथ ले कर कहीं दूर चला जाए. यहां उन की जान को खतरा हो सकता है. इस पर करन गोस्वामी सीना तान कर बोला कि वह खतरों का खिलाड़ी है. उसे खतरों से खेलना और खतरों से निपटना अच्छी तरह आता है. वह किसी से डरने वाला नहीं है.

फिर अपनी बहन व उस के पति करन गोस्वामी को सबक सिखाने का फैसला करन ने कर लिया. करन खटीक ने अपने दोस्त गौरव व धर्मवीर को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

ये दोनों पुरोहिताना मोहल्ले के ही रहने वाले थे और अपराधी प्रवृत्ति के थे. करन खटीक ने इन्हीं दोनों की मदद से तमंचा तथा कारतूसों का भी इंतजाम कर लिया.

कोमल की शादी को अभी 5 दिन ही हुए थे. वह ससुराल में खुश थी. उसे विश्वास था कि शादी के बाद सब कुछ सामान्य हो गया है. भाई और चाचा लोगों का गुस्सा भी ठंडा पड़ गया है. लेकिन यह उस की भूल थी. उसे क्या पता था कि नफरत की आग में रिश्ते खाक होने वाले हैं.

योेजना के तहत 26 अप्रैल, 2022 की शाम 4 बजे करन खटीक अपने चाचा दिलीप, सनी व रविंद्र के साथ छत के रास्ते अपनी बहन की ससुराल वाले घर में दाखिल हुआ.

कोमल उस समय कमरे में थी और पलंग पर लेटी थी. भाई व चाचा लोगों को देख कर वह समझ गई कि उन के इरादे नेक नहीं हैं. वह चीखती उस के पहले ही करन खटीक ने बहन कोमल के सीने में गोली दाग दी. कोमल पलंग पर ही लुढ़क गई.

गोली चलने की आवाज सुन कर करन गोस्वामी कमरे में आया तो करन खटीक ने उस पर भी गोली चला दी. वह भी फर्श पर गिर पड़ा और छटपटाने लगा. इसी समय करन गोस्वामी का भाई रौकी व मां पिंकी कमरे में आ गईं. करन खटीक व उस के चाचा सनी, रविंद्र व दिलीप उन दोनों पर टूट पड़े. उन्होंने तमंचे की बट से दोनों के सिर पर प्रहार किया फिर फायरिंग करते हुए भाग गए.

भागते हमलावरों को पड़ोसियों ने देखा, लेकिन उन्हें पकड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा सका. तड़ातड़ गोलियों की आवाज सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए थे. उन्हीं में से किसी ने थाना कोतवाली पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही कोतवाल अनिल कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल आ गए. घटनास्थल देख कर कोतवाल भी सन्न रह गए. पलंग पर 20-22 वर्षीया नवविवाहिता मृत पड़ी थी. उस के सीने में गोली दागी गई थी. फर्श पर एक युवक मूर्छित पड़ा था. उस की कनपटी में गोली लगी थी. एक अन्य युवक व अधेड़ महिला के सिर से खून बह रहा था. लेकिन वे दोनों होश में थे.

थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने महिला से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम पिंकी बताया. उस ने कहा कि पलंग पर मृत पड़ी युवती उस की बहू कोमल है. फर्श पर मूर्छित पड़ा उस का बड़ा बेटा करन गोस्वामी है तथा घायल छोटा बेटा रौकी है.

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने घायलों को तत्काल मैनपुरी के जिला अस्पताल में भरती करा दिया. चूंकि करन गोस्वामी की हालत नाजुक थी, अत: डाक्टरों ने उसे सैफई के मैडिकल कालेज रेफर कर दिया.

थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने इस वीभत्स कांड की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अशोक कुमार राय तथा सीओ (सिटी) अमर बहादुर सिंह घटनास्थल पर आ गए.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर मृतका कोमल के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पूछताछ के बाद एसपी अशोक कुमार राय ने कोतवाल अनिल कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह मुकदमा दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू करें. इसी के साथ उन्होंने सीओ (सिटी) अमर बहादुर सिंह की निगरानी में एक पुलिस टीम गठित कर दी. सहयोग के लिये सर्विलांस टीम को भी लगा दिया.

एसपी के आदेश पर थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह ने मृतका के देवर रौकी की तरफ से करन खटीक, दिलीप, सनी, रविंद्र, गौरव व धर्मवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/307/452/147/308/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.

28 अप्रैल, 2022 की सुबह 4 बजे पुलिस टीम को पता चला कि मुख्य आरोपी करन खटीक अपने सहयोगियों के साथ सिंधिया तिराहे पर मौजूद है. शायद वह फरार होने के उद्देश्य से किसी गाड़ी के आने का इंतजार कर रहा है.

यह पता चलते ही पुलिस टीम घेराबंदी के लिए वहां पहुंच गई. पुलिस टीम को देखते ही लगभग आधा दरजन लोग भागने लगे. लेकिन टीम ने घेराबंदी कर 4 लोगों को पकड़ लिया, जबकि 2 पुलिस को चकमा दे कर भाग गए.

पकड़े गए युवकोें को थाना कोतवाली लाया गया. इन में एक आरोपी करन खटीक था, जबकि दूसरा उस का चाचा सनी खटीक था.

2 अन्य आरोपी गौरव व धर्मवीर थे, जो करन खटीक के दोस्त थे. फरार आरोपी दिलीप व रविंद्र थे. उन की जामातलाशी ली गई तो करन व सनी खटीक के पास से .315 बोर के 2 तमंचे बरामद हुए. जबकि गौरव व धर्मवीर के पास से 2-2 जिंदा कारतूस मिले.

चूंकि आरोपियों के पास से तमंचा व कारतूस बरामद हुए थे, अत: पुलिस ने उन के खिलाफ 3/25/27 आर्म्स ऐक्ट के तहत एक अन्य मुकदमा भी दर्ज कर लिया. पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ की गई तो उन्होंने सहज ही जुर्म कुबूल कर लिया.

पुलिस ने दर्ज मुकदमे के तहत करन खटीक, सनी, गौरव व धर्मवीर को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाल अनिल कुमार सिंह ने कोमल के हत्यारोपियों को पकड़ने और जुर्म कुबूल करने की जानकारी एसपी अशोक कुमार राय को दी, तो उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और मीडिया के समक्ष हत्या का खुलासा किया.

29 अप्रैल, 2022 को पुलिस ने आरोपी करन खटीक, सनी खटीक, गौरव व धर्मवीर को मैनपुरी कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. दिलीप तथा रविंद्र खटीक फरार थे.

कथा संकलन तक पुलिस उन की तलाश में जुटी थी. मृतका कोमल का पति करन गोस्वामी सैफई अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 3

पार्टियों में वह शैंपेन के नशे में हो जाती थी, जिस के बाद पीयूष ही उसे घर ले कर आता था. अब तक ड्राइवर अवधेश ने मनीषा की कार चलानी छोड़ दी थी. लेकिन वह पीयूष और मनीषा के संपर्क में बराबर रहता था. उसे जब भी पैसों की जरूरत होती थी, वह दोनों को ब्लैकमेल कर के पैसा ले लेता था.

दूसरी ओर ज्योति को पति पर शक होने लगा था. क्योंकि पीयूष उस से नजर बचा कर फोन पर बातें करता था. कभीकभी तो वह बाथरूम में घुस कर घंटों बातें करता रहता था. बात कर के वह फोन से नंबर डिलीट कर देता था. इसी तरह वह रात में मैसेज करता था और उन्हें डिलीट कर देता था.

ज्योति मोबाइल फोन उठाती तो वह उस से फोन छीन लेता और झगड़े पर उतारू हो जाता. ज्योति ने इस रहस्य का गुप्तरूप से पता लगाया तो उसे पता चला कि उस का पति रसिया स्वभाव का है. उस के पड़ोस में रहने वाली मनीषा से नाजायज संबंध हैं.

वह उसी से घंटों बातें करता है. ज्योति ने पति की इस हरकत की जानकारी मातापिता को दी तो मां कंचन ने उसे समझाया कि सब ठीक हो जाएगा. ज्योति ने अपनी सास पूनम से पति के नाजायज रिश्तों की बात बताई, लेकिन उन्होंने यह बात नहीं मानी.

एक रोज पीयूष मनीषा से मिला तो उस ने मनीषा को बताया कि ज्योति को उन दोनों के संबंधों के बारे में पता चल गया है और वह विरोध करने लगी है. इस पर मनीषा बोली, ‘‘पीयूष, एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. अगर तुम मुझ से प्यार करते हो और शादी करना चाहते हो तो ज्योति को रास्ते से हटाना ही होगा.’’

‘‘ज्योति को रास्ते से कैसे हटाया जा सकता है?’’ पीयूष ने पूछा.

‘‘ड्राइवर अवधेश की मार्फत. वह भरोसेमंद है, पैसों के लालच में आसानी से राजी हो जाएगा. वैसे भी उसे हम दोनों के संबंधों के बारे में सब कुछ पता है.’’ मनीषा बोली.

पीयूष ने अपनी फैक्ट्री की कैमिस्ट को भी फांस लिया

बात पीयूष की समझ में आ गई. उसी दिन से दोनों ने मिल कर ज्योति की हत्या का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया. इसी के बाद योजना को अंजाम देने के लिए पीयूष ने मोबाइल की 5 सिम खरीदीं. 2 सिम अपनी आईडी से और 3 सिम फरजी आईडी से.

फरजी आईडी वाली 2 सिम उस ने मनीषा को दे दीं. इन्हीं फरजी सिमों पर दोनों के बीच हर रोज बातचीत और मैसेजबाजी होती थी. बाद में वे दोनों नंबर और मैसेज डिलीट कर देते थे.

इसी बीच पीयूष एक अन्य लड़की अंजू के संपर्क में आया. अंजू गुड़गांव की रहने वाली थी और पीयूष की फैक्ट्री में बतौर कैमिस्ट तैनात थी. अंजू से भी पीयूष के संबंध हो गए.

2 जुलाई, 2014 को पीयूष ने अवधेश को देवकी टाकीज के पास बुलाया और उस से बात कर के 80 हजार रुपए में ज्योति की हत्या की सुपारी दे दी. उस ने अवधेश को 30 हजार रुपए की पेशगी दी और शेष पैसे काम हो जाने के बाद देने को कहा. हत्या की सुपारी देने की बात उस ने मनीषा को भी बता दी.

इस के बाद अवधेश, मनीषा और पीयूष के संपर्क में रहने लगा. अवधेश ने हत्या की सुपारी लेने के बाद अपनी योजना में सोनू, रेनू और आशीष को भी शामिल कर लिया. ये तीनों अवधेश के पड़ोस में रहते थे. सोनू परचून की दुकान चलाता था. जबकि रेनू कनौजिया ड्राइवर था. तीनों मुकर न जाएं, इसलिए अवधेश ने उन्हें 10-10 हजार रुपए एडवांस दे दिए.

सब कुछ तय हो जाने के बाद पीयूष, मनीषा और अवधेश ने मिल कर ज्योति के अपहरण और हत्या की योजना बनाई. योजना को अंजाम देने से पहले इन लोगों ने रिहर्सल भी किया. ज्योति की हत्या की पूरी स्क्रिप्ट तैयार करने के बाद अंजाम देने की तारीख तय हुई 27 जुलाई, 2014.

पत्नी को ठिकाने लगाने की बना ली पूरी योजना

योजना के तहत 27 जुलाई, 2014 को पीयूष ने ज्योति के साथ अच्छा बरताव कर के उसे घुमाने और होटल में खाना खाने के लिए राजी कर लिया. उसी रात साढ़े 9 बजे वह ज्योति के साथ रैना मार्केट स्थित होटल कार्निवाल पहुंच गया.

होटल में खाना खाते वक्त ज्योति तो सामान्य थी, लेकिन पीयूष बेचैन था. वह कभी किसी को मैसेज करता तो कभी किसी को. उस के हावभावों की सारी तसवीरें होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद हो रही थीं. उस के मोबाइल पर कभी मनीषा का मैसेज आ रहा था तो कभी उस की दूसरी प्रेमिका का.

रात साढ़े 10 बजे पीयूष के मोबाइल पर एक काल आई. यह अवधेश की काल थी. वह बात करते हुए होटल के तीसरे माले से उतर कर नीचे आया. वहां अवधेश उस का इंतजार कर रहा था. उस ने छिप कर अवधेश से बात की और उसे 500 रुपए दिए.

इस के बाद वह वापस होटल में चला गया. अवधेश अपने साथियों के साथ रैना मार्केट गया, वहां सब ने बीयर पी तथा मैगी खाई, फिर तीनों रावतपुर जाने वाली रोड पर चल पड़े. योजना के तहत पीयूष रात सवा 11 बजे ज्योति को कार में बिठा कर रावतपुर जाने वाली रोड पर चल दिया. कुछ दूर आगे जा कर उसे अवधेश अपने साथियों सहित खड़ा दिखा.

पीयूष ने अवधेश के पास पहुंच कर गाड़ी रोक दी और खुद कार से नीचे उतर गया. उस वक्त ज्योति आगे की सीट पर बैठी हुई थी. उस के उतरते ही अवधेश ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और रेनू तथा सोनू पीछे वाली सीट पर. ज्योति खतरा भांप कर चिल्लाई, ‘‘पीयूष, ये तुम अच्छा नहीं कर रहे हो.’’

ज्योति की चीख सुन कर सोनू व रेनू ने उस के बाल पकड़ कर उसे पीछे की सीट पर खींच लिया, तब तक अवधेश ने कार आगे बढ़ा दी थी. ज्योति के चीखने की आवाज बाहर न जा पाए, इस के लिए सोनू ने ज्योति का सिर नीचे किया और रेनू ने उस पर चाकू से वार करने शुरू कर दिए. तेजधार वाले चाकू के ताबड़तोड़ वारों से कार के अंदर खून ही खून फैल गया और कुछ ही देर में ज्योति की चीखें बंद हो गईं.

योजना के अनुसार, अवधेश कार को पनकी के ई ब्लौक में ले गया और कार एक गली में खड़ी कर दी. इस बीच सोनू और रेनू ने ज्योति के गहने उतार लिए थे.

उन दोनों ने वे गहने वहीं लोहे के एंगलों के बीच छिपा दिए. अवधेश ने गाड़ी बंद कर के चाबी वहीं फेंक दी और फरार हो गया. जबकि रेनू व सोनू पैदलपैदल भाटिया होटल तक आए. वहां पर आशीष मोटरसाइकिल लिए खड़ा था. सोनू व रेनू उसी मोटरसाइकिल से घर लौट आए. उधर अवधेश ने मैसेज भेज कर काम हो जाने की जानकारी पीयूष को दे दी.

मैसेज मिलने के बाद पीयूष मनीषा से मिला. उस ने यह कह कर अपना सिम मनीषा को दे दिया कि वह उस का और अपना सिम तोड़ दे, ताकि किसी को कुछ पता न चल सके. इस के बाद वह अपने घर गया और शर्ट बदल कर घर वालों के साथ रात 12 बजे स्वरूप नगर थाने पहुंचा. तब तत्कालीन एसएचओ शिवकुमार राठौर थाने में ही मौजूद थे. पीयूष ने उन्हें बताया कि कुछ लोगों ने उस की पत्नी ज्योति का कार सहित अपहरण कर लिया है. इसलिए तुरंत रिपोर्ट दर्ज कर के उस की खोजबीन में मदद करें.

अपहरण का नाम सुनते ही एसएचओ शिवकुमार राठौर चौंके. पीयूष एक अमीर और सम्मानित परिवार का युवक था. उस के पिता ओमप्रकाश श्यामदासानी शहर के जानेमाने उद्योगपति थे. इस मामले में तत्काल एक्शन लेना जरूरी था, इसलिए शिवकुमार राठौर ने पीयूष से पूरी बात विस्तार से बताने को कहा.

इस पर पीयूष ने बताया कि रात करीब 9 बजे वह अपनी पत्नी ज्योति के साथ अपनी होंडा एकौर्ड कार से घर से निकला और सैरसपाटा करते हुए रैना मार्केट, नवाबगंज के होटल कार्निवाल पहुंचा. वहां दोनों ने साथ खाना खाया. वहां से वापसी के लिए दोनों सवा 11 बजे निकले.

जब वे कंपनी बाग चौराहे से रावतपुर की ओर जा रहे थे, तभी 4 मोटरसाइकिलों पर सवार 8 लड़कों ने उन की कार को ओवरटेक किया. इस बीच उन से हलकीफुलकी बहस हुई तो उन लोगों ने अपनी मोटरसाइकिलें कार के सामने रोक दीं और 3 लड़के उन की ओर लपके. उन में से एक ने कार का दरवाजा खोला और 2 ने उसे कार से नीचे खींच कर 3-4 तमाचे जड़ दिए. इस के बाद वह कार सहित ज्योति का अपहरण कर फरार हो गए.

पीयूष की पूरी बात सुन कर एसएचओ शिवकुमार राठौर ने इस सनसनीखेज अपहरण की जानकारी सीनियर पुलिस अधिकारियों को दे दी. चूंकि घटना एक बड़े परिवार की बहू से जुड़ी थी, इसलिए तत्कालीन आईजी आशुतोष पांडेय, डीआईजी आर.के. चतुर्वेदी, एसएसपी के.एस. इमैनुएल, एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा तथा सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक थाना स्वरूप नगर आ गए.

आईजी आशुतोष पांडेय के निर्देश पर कानपुर के सभी थानों को इस घटना की सूचना दे कर पूरे शहर में चैकिंग शुरू करा दी गई. पुलिस अधिकारी भी अलगअलग टीमों के साथ कार सहित ज्योति की खोज में जुट गए. आईजी आशुतोष पांडेय ने पीयूष को साथ ले कर खुद कार्नीवाल होटल से घटनास्थल तक का मुआयना किया. उन्होंने पीयूष से खुद भी पूछताछ की.