एक लड़की का कमाल – भाग 3

होटल में रचाई शादी

प्रियंका के घर वालों ने लेमन होटल में सगाई के कार्यक्रम का दिन निश्चित किया. तब निर्धारित तिथि पर कृष्णा अपनी मां निर्मला देवी, बहन सोनल और भाई गौरव को ले कर लेमन होटल पहुंच गई. सगाई के बाद 14 फरवरी, 2018 को कृष्णा घोड़ी, बैंडबाजे के साथ बारात ले कर प्रियंका के यहां पहुंची. बारात में उस के घर वाले, रिश्तेदार सहित करीब 50 लोग भी शामिल थे.

अब यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि बारात में शामिल अधिकांश लोग जानते थे कि कृष्णा लड़का नहीं लड़की है. वह पति की जिम्मेदारियां कैसे निभाएगी. इस के बावजूद भी वे प्रियंका की जिंदगी बरबाद होने की शुरुआत होने के गवाह बनने को आतुर थे. लड़की वालों ने शादी के लिए हल्द्वानी का देवाशीष होटल बुक करा रखा था.

बहरहाल 14 फरवरी, 2018 को बैंडबाजे के साथ कृष्णा सेन की बारात हल्द्वानी के देवाशीष होटल पहुंची और सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह संपन्न होने के बाद प्रियंका कृष्णा सेन की पत्नी बन कर धामपुर चली गई.

प्रियंका के घर वालों ने अपनी हैसियत के अनुसार उसे दहेज भी दिया. शादी के बाद अपनी नवविवाहिता से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कृष्णा ने औनलाइन  बुकिंग कर के कृत्रिम लिंग मंगा लिया था. कमरे में अंधेरा करने के बाद उस कृत्रिम लिंग को बेल्ट से बांध कर उस ने अपनी सुहागरात मनाई. इसी के द्वारा वह प्रियंका को संतुष्ट करती थी. प्रियंका उस के साथ रह कर खुश थी.

किसी को उस पर शक न हो इसलिए वह सिगरेट और शराब भी पीने लगी थी. लड़कों की तरह वह तेज गति से मोटरसाइकिल चलाती थी.

एक दिन कृष्णा ने प्रियंका को विश्वास में ले कर कहा, ‘‘प्रियंका मैं भी अपने पिता की तरह सीएफएल बल्ब की फैक्ट्री लगाना चाहता हूं. मैं काम शुरू करने के लिए अपने पिता से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लेना चाहता. ऐसा करो कि तुम अपने घर वालों से ही 8 लाख रुपए का इंतजाम करा दो तो मैं हल्द्वानी या हरिद्वार में सीएफएल बल्ब की अपनी फैक्ट्री लगा लूंगा.’’

यह बात प्रियंका को भी अच्छी लगी कि जब अपनी फैक्ट्री लग जाएगी तो वह भी पति के काम में हाथ बंटा दिया करेगी. यही सोच कर प्रियंका ने अपने मांबाप से जिद कर के कृष्णा के लिए 8 लाख रुपए दिलवा दिए.

ससुराल से पैसे मिले ही कृष्णा ने सेवरले कंपनी की एक नई कार और एक बाइक खरीदी. प्रियंका के घर वालों को शक हुआ कि दामाद ने तो बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे लिए थे पर वह तो गाडि़यां खरीद लाया. उन्होंने इस बारे में कृष्णा से बात की तो उस ने बताया कि बड़ा कारोबार है. फैक्ट्री खोलने के लिए मेरे पास पैसा है, लेकिन कारोबार चलाने के लिए कार का होना जरूरी है.

शादी के बाद कृष्णा सेन प्रियंका से दूर रहने लगी थी. वह 10-15 दिन तक घर नहीं आती थी. बाद में कृष्णा ने हल्द्वानी की तिकोनिया कालोनी में एक मकान किराए पर ले लिया. किराए के मकान में भी वह 10-15 दिन तक घर नहीं आती तो प्रियंका उस से इस बारे में पूछती. तब वह कह देती कि बिजनैस के सिलसिले में उसे अलगअलग शहरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

अब वह शराब पी कर भी आने लगी थी. प्रियंका उस से शराब पीने को मना करती तो वह उसे धमका देती थी. इस के अलावा धमकी भी दे देती कि मेरे बडे़ लोगों से संबंध हैं. उस के डर की वजह से प्रियंका डरीसहमी सी रहती थी. धीरेधीरे उन का जुबानी झगड़ा मारपीट पर पहुंचने लगा. इस परेशानी के चलते जब प्रियंका का मन होता, वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जाती थी.

इसी बीच कृष्णा सेन ने कालाढूंगी के रहने वाले अपने दोस्त की बहन सरिता को भी अपने प्रेमजाल में फांस लिया. सरिता उस समय 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. फिर दोस्त के घर वालों की सहमति से उस ने 14 अप्रैल, 2016 को सरिता से भी शादी कर ली. प्रियंका उस समय अपने मायके में थी. कृष्णा सेन दूसरी पत्नी सरिता को अपने तिकोनिया कालोनी वाले घर में ले आई. साथ रहने के बावजूद सरिता को यह पता नहीं लग सका कि जिस कृष्णा को वह पति समझती है, वह खुद एक लड़की है.

सरिता को यह भी जानकारी नहीं थी कि कृष्णा पहले से शादीशुदा है. उस के पहले से शादीशुदा होने वाली बात तो तब पता लगी जब प्रियंका ने हंगामा किया था. इस के बाद कृष्णा अपनी दोनों बीवियों को धमकी देती रही कि वे शांत हो कर रहें, नहीं तो उन के मायके वालों को नुकसान हो सकता है.

दोनों पत्नियां करीब 4 महीने तक साथसाथ रहीं. यानी कृष्णा दोनों को धमकाती रही. इस के बाद प्रियंका और सरिता अपने मायके चली गईं. उन के जाने के बाद कृष्णा ने तिकोनिया कालोनी वाला मकान खाली कर दिया.

प्रियंका कृष्णा सेन के साथ करीब 4 सालों तक रही लेकिन वह उस की सच्चाई नहीं जान सकी. पति की कुछ बातों को ले कर प्रियंका को एक दो बार शक जरूर हुआ लेकिन उस ने उसे गंभीरता से नहीं लिया.

कृष्णा कभी भी खुले में अपने कपड़े नहीं बदलती थी. दूसरे वह अन्य मर्दों की तरह खुले में पेशाब नहीं करती थी. जब वह उस के साथ वैष्णो देवी गई तो कृष्णा ने हमेशा दरवाजे वाला बाथरूम ही प्रयोग किया था. अब हकीकत सामने आने पर प्रियंका की समझ में आ गया कि वह ऐसा क्यों करती थी.

कृष्णा के गिरफ्तार होने के बाद पुलिस को एक और जानकारी यह मिली कि वह एक जालसाज है. उस ने शहर के कई लोगों के साथ ठगी की थी. उस ने हल्द्वानी के एक कारोबारी से करीब डेढ़ लाख रुपए का फरनीचर बनवाया था, जिस के पैसे उस ने कारोबारी को नहीं दिए थे.

और लोगों को भी ठगा कृष्णा ने शहर में ही मंगल पड़ाव स्थित मोबाइल की एक दुकान से उस ने करीब डेढ़ लाख रुपए की कीमत का एक आईफोन लिया था. उस ने दुकानदार को इस के बदले जो चेक दिया था वह वाउंस हो गया था. तब दुकानदार ने कृष्णा सेन के खिलाफ न्यायालय में केस दायर कर दिया था.

दूसरी पत्नी सरिता के घर वालों से भी उस ने 65 हजार रुपए ठगे थे. इस के अलावा उस ने हरिद्वार के ज्वालापुर में रहने वाली एक शादीशुदा महिला को भी अपने प्रेमजाल में फांस रखा था.

पुलिस ने कृष्णा सेन उर्फ स्वीटी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. जेल में बैरक में भेजने से पहले जेल प्रशासन ने उस की 2 बार जांच कराई. जेल अधीक्षक मनोज आर्य ने खुद पुलिस और न्यायालय से आए सभी दस्तावेजों को गौर से देखा.

जेल में महिला कर्मचारियों ने उस की 2 बार सघन तलाशी ली. जब जेल प्रशासन को इस बात की पुष्टि हो गई कि कृष्णा सेन महिला है, तभी उसे महिला बैरक में भेजा गया.

पुलिस को यह बात समझ नहीं आ रही कि कृष्णा सेन के घर वालों को जब उस के लड़की होने की जानकारी थी तो उन्होंने प्रियंका से उस की शादी क्यों कराई. पुलिस उस के घर वालों से पूछताछ कर यह पता लगाएगी कि कहीं ठगी के धंधे में घर वाले तो शरीक नहीं थे.

पुलिस ने कृष्णा सेन का राशन कार्ड बरामद कर लिया है, जिस में वह फीमेल के रूप में दर्ज है. जबकि उस के पैन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड में उसे मेल दर्शाया गया है. कथा लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी.

– कथा में सरिता परिवर्तित नाम है.

शीतल का अशांत मन

जब महिलाएं पति की व्यस्तता या किसी मजबूरी की वजह से अन्य पुरुष से संबंध बनाती हैं, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की होती है कि यह उन की बरबादी की शुरुआत है. सेना के जवान संजय की पत्नी शीतल ने भी यही किया. नतीजा यह निकला कि उस का पति संजय…   श अशोक शर्मा    38वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग

भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे.

संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया.

28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया.

जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी.

आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था.

8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया. पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था.

भटकने लगा शीतल का मन

हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती.

एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं. यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ.

संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था.

उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा.

योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली, लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है.

बनने लगी बरबादी की भूमिका

साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया.

बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी.

मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया.

8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके. सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है.

एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया.

संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए.

आखिर सच आ ही गया सामने

शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी.

रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी.

अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया, जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके.

शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया.

उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया .

शहजादी का गुलाम : एक नई प्रेम कहानी

परिवार बढ़ा तो जावेद ने स्वयं को पूरी तरह काम में डुबो दिया. उसे लगा कि काम अधिक होगा तो लाभ भी उसी तरह होगा. जावेद मोटर मैकेनिक था. सुबह 9 बजे घर से निकलता तो देर रात 8-9 बजे ही वापस घर लौटता था.

जब वह पूरे दिन काम में व्यस्त रहने लगा तो सिकंदर की बांछें खिल गईं. उस के लिए यह सुनहरा अवसर था, शहजादी के दिल में जगह बनाने का.

उस ने जावेद के घर में आवाजाही बढ़ा दी. जावेद की पत्नी शहजादी सिकंदर के हवास पर छाई थी और वह उसे किसी भी कीमत पर पाना चाहता था. जावेद की अनुपस्थिति में मौका पाते ही वह शहजादी के पास पहुंच जाता और उसे रिझाने का प्रयास करता.

उस दिन भी पूर्वाहन में सिकंदर शहजादी के घर पहुंचा तो वह हरी मटर छील रही थी. सिकंदर ने मटर के कुछ दाने उठाए और मुंह में डालते हुए बोला, ‘‘मटर तो एकदम ताजा और मिठास से भरी हुई है, इस का कौन सा व्यंजन बनाने जा रही हो?’’

‘‘तहरी बनाऊंगी,’’ शहजादी मुस्कराई, ‘‘सर्दी में आलूमटर की गरमागरम तहरी हरी मिर्च और लहसुन की चटनी से अच्छा व्यंजन कोई दूसरा नहीं होता.’’ वह सिकंदर की आंखों में देखते हुए बोली, ‘‘तहरी खाओगे?’’

‘‘भाभी, मेरा ऐसा नसीब कहां, जो तुम्हारे हाथों का पका स्वादिष्ट खाना खा सकूं.’’ सिकंदर मटर के दाने चबाता शहजादी के पास बैठ गया, ‘‘नसीब तो जावेद भाई का है, खाना भी टेस्टी मिलता है और पत्नी भी सुंदर व टेस्टी मिली है.’’ सिकंदर और शहजादी में देवरभाभी का रिश्ता था.

इस रिश्ते के चलते उन में स्वाभाविक हंसीठिठोली और नोकझोंक होती रहती थी. शहजादी ने भी मुस्करा कर पलटवार किया, ‘‘मुझ से शादी कर के तुम्हारे भाई ने किस्मत चमका ली तो तुम भी किसी से शादी कर के किस्मत चमका लो.’’  फिर उस ने शोखी से मुसकरा कर बोली, ‘‘बीवी बनाने के लिए ऐसी लड़की चुनना जो खाना भी टेस्टी पकाती हो और खुद भी टेस्टी हो.’’

सिकंदर थोड़ा पास खिसक आया और भेदभरे स्वर में बोला, ‘‘भाभी, ऐसी एक लड़की है मेरी नजर में.’’

‘‘कौन है वह खुशनसीब, मुझे भी तो बताओ.’’

सिकंदर कुछ देर शहजादी की आंखों में देखता रहा, फिर बोला, ‘‘वह तुम हो.’’

‘‘अच्छा मजाक कर लेते हो,’’ शहजादी खिलखिला कर हंसी, ‘‘बुद्धू, मैं लड़की नहीं, औरत हूं. 3 बच्चों की मां.’’

‘‘मेरे लिए तो तुम कुंवारी जैसी हो,’’ सिकंदर ने शहजादी की कलाई पकड़ ली, ‘‘मेरी बात मजाक में मत लो भाभी. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. छोड़ो जावेद भाई को मुझ से शादी कर लो. कसम से, पलकों से तुम्हारे नाज उठाऊंगा.’’

शहजादी गंभीर हो गई. कोई जवाब दिए बगैर उस ने सिकंदर से कलाई छुड़ाई, फिर छिली मटर की थाली उठाई और रसोई में चली गई.

सिकंदर भी उस के पीछे जाने वाला था कि एक पड़ोसन आ गई. सिकंदर को लगा कि अब उस का वहां रूकना फिजूल है. उस ने शहजादी से अपने मन की बात खुले शब्दों में कह दी थी. अब निर्णय शहजादी को करना था. इसलिए वह भी उठ कर बाहर चला गया.

30 वर्षीय शहजादी का मायका पश्चिम बंगाल के हावड़ा स्थित अमांता थाना क्षेत्र में था. पिता का नाम मो. सुलेमान और मां का नाम नजमा. 4 भाइयों की एकलौती बहन थी शहजादी.

जवानी की पहली बहार आते ही शहजादी के कदम बहक गए थे. वह घर से घंटों लापता रहने लगी थी. मातापिता सोचते थे कि अभी बच्ची है, नादान है. थोड़ा घूमटहल ले तो अच्छा है. शादी हो जाएगी तब उसे ऐसी आजादी फिर कहां मिलेगी?

सुलेमान के कान तब खड़े हुए, जब एक दोस्त ने शहजादी के चरित्र का आईना दिखाया ‘लड़केलड़कियों के पीछे मंडराते हैं, उन्हें पटाने की कोशिश में रहते हैं. मगर मैं ने एक शहजादी ही ऐसी देखी है जो लड़के पटाती घूमती है.’

सुलेमान को काटो तो खून नहीं. उस ने अपने स्तर से पता किया तो मालूम हुआ कि दोस्त ने गलत नहीं कहा था. अपनी रंगरलियों के चलते शहजादी काफी बदनाम थी.

घर लौट कर सुलेमान ने यह बात अपनी बेगम नजमा को बताई. इस के बाद दोनों ने मिल कर उस की खबर ली. सुलेमान ने उसे मारापीटा तो नजमा ने गालीगलौज के बाद समझाया, ‘‘मुझ पर भी जवानी आई थी, मगर तेरी तरह इज्जत हथेली पर ले कर नहीं घूमती थी. आइंदा कोई गंदी हरकत की तो जमीन में जिंदा दफन कर दूंगी.’’

शहजादी को नएनए लड़कों का जो चस्का लगा था, वह पिता की पिटाई और मां की धमकी से छूटने वाला नहीं था. सुलेमान और नजमा अपनी तरफ से लाख कोशिशें कर के हार गए, लेकिन शहजादी ने नेकचलनी की राह अख्तियार नहीं की. तब नजमा पति से बोली, ‘‘जितनी जल्दी हो, अपनी इस बिगड़ैल लड़की को मजबूत खूंटे से बांध दो.’’

सुलेमान ने युद्ध स्तर पर शहजादी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. इस दिशा में उन को सफलता भी मिली. भावी दामाद के रूप में जावेद खां उन के मन को भा गया.

जावेद खां हावड़ा के अमांता थाना क्षेत्र के जोका गांव नवासी शाहजहां का बेटा था. दोनों पक्षों की बातचीत तथा भावी वरवधू देखने के बाद रिश्ता तय हो गया. फिर निश्चित तिथि पर दोनों का निकाह हो गया. मायके से विदा हो कर शहजादी ससुराल आ गई.

ससुराल में शहजादी के भटकाव को ठहराव मिला. ठहराव तो मिलना ही था, जिस चीज की तलाश में वह लड़कों के पीछे भागती थी, अब वह चीज उसे चौबीसों घंटे घर में मुहैया रहने लगी. शहजादी की कामनाओं के तूफान को संभालने में भी जावेद सक्षम था. फलस्वरूप शहजादी शादी से पहले का अपना शौक भूल गई.

निकाह के कुछ समय बाद जावेद उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में आ कर बस गया. वह गाजीपुर के थाना कोतवाली क्षेत्र के बड़ीबाग चुंगी पर स्थित कांशीराम आवासीय कालोनी में रहने लगा.

वह एक गैराज में मोटर मैकेनिक का काम करने लगा. यह काम वह पहले से ही करता आ रहा था. बीतते समय के साथसाथ शहजादी 3 बच्चों की मां बन गई. दो बेटी नर्गिस, (10 वर्ष) नेहा परवीन, (8 वर्ष) और बेटा इब्राहिम (3 वर्ष).

सिकंदर शहजादी के घर के सामने मोहल्ले में रहने वाले करीम का बेटा था. सिकंदर अविवाहित था और कार ड्राइवर था. सिकंदर का शहजादी के घर आनाजाना था.

आयु में सिकंदर जावेद से 5 साल छोटा था. इस नाते जावेद को भाई और शहजादी को भाभी कह कर बुलाता था. सिकंदर का स्वभाव ऐसा था कि शहजादी उस से जल्द हिलमिल गई.

बदलते वक्त के साथ शहजादी के प्रति सिकंदर की नीयत बदलने लगी. वह मन ही मन उसे चाहने लगा. उस की चाहत में शहजादी को पाने की तमन्ना सिर उठाने लगी. सिकंदर यह भी भूल गया कि शहजादी शादीशुदा और 3 बच्चों की मां है.

जावेद तो पूरे दिन गैराज में काम में लगा रहता था. इस से सिकंदर की चांदी हो गई. शहजादी को पटाने के लिए वह अकसर उस के घर में घुसा रहने लगा. अपनी लच्छेदार बातों से वह उसे लुभाने की कोशिश करता रहता.

एक दिन सिकंदर को सही मौका मिला तो उस ने खुले शब्दों में शहजादी से कह दिया कि वह उस से प्यार करता है. वह अपने पति जावेद को छोड़ कर उस से निकाह कर ले, वह उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखेगा.

उस दिन के बाद से सिकंदर अकसर शहजादी से प्यार के दावे करने लगा. प्यार के बदले उस का प्यार मांगने लगा. अकेले में उस ने भाभी के बजाय उसे शहजादी कह कर पुकारना शुरू कर दिया. वह पहले प्यार की दुहाई देता, फिर कहता, ‘‘शहजादी, जावेद का जोश और प्यार खत्म हो चुका है. उसे छोड़ो और मेरा हाथ थाम लो. दोनों मिल कर मौज करेंगे.’’

एक ही बात बारबार, रोजाना कही जाए तो वह असर छोड़ती ही है. सिकंदर की मनुहार शहजादी पर असर करने लगी. उस का पुराना शौक भी अंगड़ाई लेने लगा. वैसे भी जावेद उस से प्यार से कम गुस्से से ज्यादा बात करता था, झगड़ा करता था और मारतापीटता भी था. वह उस से परेशान रहने लगी थी. इसलिए उसे सिकंदर की प्यार भरी बातें भाने लगीं.

एक दिन शहजादी ने सिकंदर से पूछा, ‘‘सहीसही बताओ, तुम्हारी मंशा क्या है. तुम चाहते क्या हो?’’

‘‘शहजादी, कितनी बार बताऊं, मैं तुम्हें चाहता हूं.’’

‘‘मेरी चाहत पा कर क्या करोगे?’’

‘‘सीने से लगा कर रखूंगा.’’

‘‘मेरा अपना बसाबसाया घर है, पति है, बच्चे हैं,’’ शहजादी ने सिकंदर को समझाया, ‘‘तुम से आशिकी कर के मैं अपना घरसंसार दांव पर नहीं लगाना चाहती.’’

‘‘मुहब्बत से घर बनते है, दुनिया आबाद होती है. बर्बादी की बात मत किया करो.’’

‘‘सिकंदर, जब तुम प्यार की बात करते हो तो मैं कमजोर पड़ने लगती हूं.’’

‘‘इस का मतलब यह कि तुम्हारे दिल में भी मुहब्बत जाग चुकी है,’’ सिकंदर मुस्कराया, ‘‘छोड़ो जावेद को और हमेशा के लिए मेरी हो जाओ.’’

शहजादी जानती थी कि वह सिकंदर का कहना मान लेती है तो बच्चों का भविष्य खराब हो जाएगा. वह असमंजस में थी कि बच्चे साथ ले जाए या जावेद के पास छोड़ दे. दोनों परिस्थिति में उन्हें सौतेलेपन का दंश लगना ही है. सिकंदर से पीछा छुड़ाने के लिए एक दिन उस ने प्रस्ताव रख दिया, ‘‘ सिकंदर, मुझ से निकाह के बाद जो तुम्हें चाहिए, वह मुझ से बिना निकाह किए ही ले लो. उस के बाद मुझ से निकाह का ख्याल छोड़ देना.’’

सिकंदर मुस्कराया, ‘‘मंजूर है.’’

‘‘शर्त यह है कि एक बार ही तुम्हे प्यार दूंगी. दूसरी बार के लिए मत कहना.’’

‘‘भाभी, एक बार जन्नत दिखा दो, फिर कोई ख्वाहिश बाकी नहीं रह जाएगी. मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है.’’ सिकंदर चहका.

उस वक्त घर में कोई नहीं था. अत: शहजादी ने उसे अपने कमरे में जाने को कहा. फिर खुद पहुंची और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. शहजादी का इरादा व नीयत भांप कर सिकंदर ने उसे आलिंगनबद्ध कर लिया. शहजादी भी उस से लिपट गई. कुंवारे और जोशीले बादल खूब उमड़े, खूब गरजे और अंत में तेजतेज बरसे. इस बरसात से शहजादी की देह मानो तृप्त हो गई.

शहजादी की तरफ से शर्त एक बार की थी, मगर सिकंदर ने अपने पौरूष का ऐसा जबरदस्त प्रदर्शन किया कि वह उस की दिवानी हो गई. पुराना शौक भी सिर उठा चुका था. इसलिए वह खुद ही बारबार सिकंदर को बुला कर उसे देह का संगीत सुनाने लगी.

बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है. अवैध संबंध की इस कहानी का अंत भी बुरा ही हुआ.

24 अप्रैल को सुबह 6:30 बजे का समय था. कांशीराम कालोनी के सामने कृषि विभाग के फार्म हाउस में कटे गेंहू के खेत में किसी ने एक युवक की लाश पड़ी देखी. उस ने लाश की सूचना थाना कोतवाली पुलिस को दे दी.

कोरोना वायरस के चलते लौकडाउन चल रहा था तो सभी पुलिस अधिकारी मुस्तैद थे. सूचना मिलते ही इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा मय पुलिस टीम के घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद डीएम ओमप्रकाश मौर्या, एसपी ओमप्रकाश सिंह व अन्य पुलिस अधिकारी भी वहां आ गए.

मृतक की उम्र 30-35 वर्ष के बीच रही होगी. उस के गले पर दबाए जाने के निशान मौजूद थे. शिनाख्त के लिए आसपास के लोगों को बुला कर मदद ली जाती कि तभी एक औरत अपनी एक बच्ची के साथ वहां पहुंची. उस ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उसका नाम शहजादी है, वह कांशीराम कालोनी में रहती है. यह उस के पति जावेद खां की लाश है.

एक दिन पहले 23 तारीख को सुबह वह गैराज में काम करने गए थे लेकिन देर रात तक वापस नहीं लौटे. एसपी ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि लौकडाउन में सब बंद है तो मृतक काम करने क्यों और कैसे जाएगा?

इस के जवाब में शहजादी ने कहा कि शटर बाहर से बंद रहता है, अंदर काम होता रहता है.

उस से कुछ आवश्यक पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

फिर शहजादी को साथ ले कर कोतवाली आ गए. वहां शहजादी की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरूद्ध भा.द.वि. की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया.

इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा का शक बारबार शहजादी पर जा रहा था. पति की मौत का जो गम चेहरे पर दिखाई देना चाहिए था, वह शहजादी के चेहरे पर नहीं था. वह रो जरूर रही थी लेकिन उस के आंसू बाहर नहीं आ रहे थे. लगता था जैसे रोने का नाटक कर रही हो.

इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा ने शहजादी के बारे में कालोनी में उस के पड़ोसियों से पूछताछ की तो पता चला उस का प्रेमप्रसंग सिकंदर नाम के युवक से चल रहा था. पति जावेद से शहजादी को कोई लगाव नहीं था, वजह यह थी जावेद उसे मारतापीटता था.

इस के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने शहजादी के मोबाइल नंबर की कालडिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि शहजादी एक नंबर पर दिन में कई बार लंबीलंबी बातें करती थी. घटना वाली रात भी उस ने उसी नंबर पर साढ़े ग्यारह बजे तक बात की थी.

जिस नंबर पर शहजादी की बात होती थी, वह सिकंदर के नाम पर था.

26 अप्रैल को इंस्पेक्टर धनंजय मिश्रा पूछताछ के लिए शहजादी को हिरासत में ले कर कोतवाली आ गए.

वहां महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

उस से  पूछताछ के बाद इंसपेक्टर मिश्रा ने उसी दिन दोपहर 12:30 बजे छावनी लाइन स्थित एक ढाबे के पास से सिकंदर और उस के दोस्त रहीस गोरख को गिरफ्तार कर लिया.

शहजादी सिकंदर की मुरीद हो गई थी. उस के बिना शहजादी को अपनी जिंदगी सूनीसूनी लगती थी. वह सिकंदर के साथ भाग कर अपनी नई दुनिया बसाना चाहती थी. लेकिन बच्चों की वजह से उस के कदम आगे नहीं बढ़ते थे.

दूसरी ओर जावेद ने उस की जिंदगी को नर्क से बदतर बना दिया था. इसलिए उस ने फैसला किया कि जावेद को ही रास्ते से हटा दे तो सिकंदर भी उसे मिल जाएगा और बच्चों को भी उसे नहीं छोड़ना पडे़गा.

इस संबंध में शहजादी ने सिकंदर से बात की. सिकंदर तो शहजादी का गुलाम था और गुलाम शहजादी की बात को नकार नहीं सकता था. वैसे वह भी कई दिनों से यही तरीका सोच रहा था.

शहजादी ने उस के तरीके पर अपनी मोहर लगा दी तो सिकंदर तैयार हो गया. उस ने इस संबंध में वंशीबाजार में रहने वाले दोस्त रहीस गोरख से बात की और जावेद की हत्या करने में सहयोग मांगा. रहीस ने हां कर दी. रहीस भी जावेद से अपना एक हिसाब चुकता करना चाहता था.

रहीस ने जावेद के जरीए एक सैकंड हैंड मोटर साइकिल खरीदी थी. इस के बाद पुलिस ने उसे बाइक चोरी में गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. साढे़ चार साल की सजा काटने के बाद वह बीते 4 अप्रैल को जेल से रिहा हुआ था.

रहीस को लगता था कि जावेद ने उसे चोरी की मोटर साइकिल खरीदवा कर पुलिस से उस को पकड़वा दिया था. इसलिए वह जावेद से उस का बदला लेना चाहता था.

रहीस तैयार हुआ तो तीनों ने मिल कर जावेद की हत्या की योजना बनाई.

योजनानुसार 23 अप्रैल की रात जब जावेद काम से लौट रहा था तो सिकंदर और रहीस ने उसे रास्ते में ही रोक लिया और शराब दिखा कर शराब पीने के लिए चलने को कहा तो उस ने मना कर दिया लेकिन उन की जिद पर जावेद उन के साथ हो लिया.

सरकारी फार्म हाउस पर पहुंच कर तीनों एक खेत में शराब पीने बैठ गए. दोनों ने जावेद को ज्यादा शराब पिलाई.

खुद कम पी. जावेद के नशे में बेसुध होने पर उन दोनों ने साथ लाए तौलिया से उस का गला घोंट दिया, जिस से जावेद की मौत हो गई.

जावेद को मारने के बाद इन लोगों ने उस की जेब से मोबाइल निकाल लिया. वहां से दोनों ईदगाह के पीछे पहुंचे वहां एक जगह जावेद का तौलिया और मोबाइल छिपा दिया. फिर सिकंदर ने शहजादी को जावेद की मौत की सूचना दे दी और उस से काफी देर तक बात करने के बाद अपने घर चला गया. रहीस भी वहां से अपने घर लौट गया.

तीनों बड़ी असानी से पुलिस के जाल में फंस गए. इंसपेक्टर धनंजय मिश्रा ने अभियुक्तों की निशानदेही पर ईदगाह के पीछे से हत्या में इस्तेमाल तौलिया और जावेद का मोबाइल बरामद कर लिया. इस के बाद आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद तीनों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.  द्य

  (कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

शक का कीड़ा : परिवार का हुआ नाश

कहा जाता है कि शक का कोई इलाज नहीं है. पतिपत्नी के संबंध विश्वास की बुनियाद पर ही कायम रहते हैं. यदि इन संबंधों से भरोसा उठा कर बेवजह शक का कीड़ा मन में बैठा लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है. ये कहानी भी ऐसे ही एक शक्की पति सुदर्शन वाल्मीकि की है, जिस ने अपनी पत्नी पर किए गए शक की वजह से अपनी गृहस्थी खुद उजाड़ दी.

मध्य प्रदेश के जबलपुर के तिलवारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत मदनमहल की पहाडि़यों के पास के एक इलाके का नाम भैरों नगर है,  इस जगह पर गिट्टी क्रेशर लगे होने के कारण इसे क्रेशर बस्ती के नाम से भी जाना जाता है. इसी बस्ती में दशरथ वाल्मीकि का परिवार रहता है. दशरथ के परिवार में उस की पत्नी के अलावा उस का 39 साल का बेटा सुदर्शन उर्फ मोनू वाल्मीकि, उस की पत्नी प्रीति और 22 माह की बेटी देविका भी रहती थी.

दशरथ के परिवार के सभी वयस्क सदस्य जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मैडिकल कालेज में साफसफाई का काम करते थे. सुदर्शन मैडिकल कालेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. परिवार के सदस्यों के कामधंधा करने से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है और परिवार हंसीखुशी से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

17 जनवरी, 2020 की सुबह सभी लोग अभी बिस्तर से सो कर उठे भी नहीं थे कि सुदर्शन और उस की पत्नी ने घर में यह कह कर कोहराम मचा दिया कि उन की बेटी देविका बिस्तर पर नहीं है. उन्होंने अपने मातापिता को बताया कि शायद किसी ने देविका का अपहरण कर लिया है. देविका के दादादादी का तो यह खबर सुन कर बुरा हाल हो गया था. देविका को वे बहुत लाड़प्यार करते थे.

जैसे ही बस्ती में देविका के कमरे के भीतर से गायब होने की खबर फैली तो आसपास के लोगों की भीड़ सुदर्शन के घर पर जमा हो गई. लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी छोटी सी बच्ची का अपहरण कर सकता है.

चूंकि कुछ दिनों पहले ही जबलपुर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सुदर्शन के मकान का पिछला हिस्सा तोड़ दिया था, जिस की वजह से पीछे की ओर ईंटें जमा कर उस हिस्से को बंद कर दिया था.

लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी दीवार की ईंटों को हटा कर अपहर्त्ता शायद अंदर घुसे होंगे. देविका की मां प्रीति लोगों को रोरो कर बता रही थी कि 16 जनवरी की रात वे अपनी बेटी देविका को बीच में लिटा कर ही सोए थे, पर अपहर्त्ताओं ने देविका के अपहरण को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उन्हें इस की आहट तक नहीं हुई.

लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन ऐसा दुस्साहस कर सकता है कि अपने मां बाप के बीच सो रही बच्ची का अपहरण कर के ले जाए. मासूम बच्ची देविका की खोजबीन आसपास के इलाकों में लोगों द्वारा करने के बाद भी उस का कोई अतापता नहीं चला तो उस के गायब होने की रिपोर्ट जबलपुर के तिलवारा पुलिस थाने में दर्ज करा दी.

पुलिस थाने में सुदर्शन ने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि रात को 11 बजे वह खाना खा कर पत्नी और बच्ची के साथ सो गया था, रात लगभग 2 बजे देविका ने उठने की कोशिश की तो उसे दोबारा सुला दिया गया. सुबह 8 बजे वह सो कर उठे तो विस्तर से देविका गायब थी.

तिलवारा थाने की टीआई रीना पांडेय ने आईपीसी की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी तुरंत ही पुलिस के आला अधिकारियों को दे दी और वह घटनास्थल की ओर निकल पड़ीं. जैसे ही रीना पांडेय भैरों नगर पहुंचीं, वहां तब तक भारी भीड़ जमा हो चुकी थी.

उन्होंने एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी वहां बुला कर मौका मुआयना करवाया. खोजी कुत्ता सुदर्शन के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहा.

घटना की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर के एसपी अमित सिंह ने एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल एवं एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान के मार्गदर्शन में थानाप्रभारी तिलवारा रीना पांडेय के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसआई राजेश शुक्ला, विनोद द्विवेदी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने भैरों नगर के तमाम लोगों से जानकारी ले कर कुछ संदिग्ध लोगों को पुलिस थाने में बुला कर पूछताछ भी की, मगर किसी से भी देविका का कोई सुराग हासिल नहीं हो सका. इस घटनाक्रम से भैरों नगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों की पुलिस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रशासन के खिलाफ धरना देना शुरू कर दिया था. वे पुलिस प्रशासन से मांग कर रहे थे कि जल्द ही मासूम बच्ची देविका को खोज निकाला जाए.

इधर पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो चुकी थी. देविका को गायब हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका था, पर पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि देविका का अपहरण आखिर किसलिए किया गया है. यदि फिरोती के लिए अपहरण हुआ है तो अभी तक किसी ने फिरोती की रकम के लिए सुदर्शन के परिवार से संपर्क क्यों नहीं किया. पुलिस टीम को जांच करते एक माह से अधिक समय हो गया था, लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी.

26 फरवरी 2020 को भैरों नगर की नई बस्ती इलाके में बने एक कुएं के इर्दगिर्द बच्चे खेल रहे थे. खेल के दौरान कुएं में अंदर झांकने पर उन्हें कोई चीज तैरती दिखाई दी, तो बच्चों ने चिल्ला कर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया. बस्ती के लोगों ने कुएं में उतराते शव को देखा तो इस की सूचना तिलवारा पुलिस को दे दी. सूचना पा कर पुलिस दल मौके पर पहुंचा और शव को कुएं से बाहर निकलवाया गया. शव की हालत इतनी खराब हो चुकी थी, कि उसे पहचान पाना मुश्किल था.

शव के सिर की ओर से रस्सी से लगभग 15 किलोग्राम वजन का पत्थर बंधा हुआ था. पुलिस की मौजूदगी में आसपास के लोगों ने मोटरपंप लगा

कर कुएं का पानी खाली किया तो कुएं की निचली सतह पर कपड़े मिले, जिस के आधार पर सुदर्शन के परिजनों द्वारा उस की पहचान देविका के रूप में की गई.

पुलिस ने काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर द्वारा देविका की मृत्यु पानी में डूबने के कारण होनी बताई. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पुलिस ने प्रकरण में धारा 364, 302 और इजाफा कर दी.

अब पुलिस के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि देविका के हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए. 40 दिनों तक चली तफ्तीश में टीआई रीना पांडेय को बस्ती के लोगों ने बताया था कि सुदर्शन और उस की पत्नी में अकसर विवाद होता रहता था. सुदर्शन अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. जब सुदर्शन के शक का कीड़ा कुलबुलाता तो उन के बीच विवाद हो जाता.

इसी आधार पर पुलिस टीम को यह संदेह भी हो रहा था कि कहीं इसी वजह से सुदर्शन ने ही तो देविका की हत्या नहीं की? जांच टीम ने जब देविका की मां प्रीति और पिता सुदर्शन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

पूछताछ के दौरान प्रीति ने जब यह बताया कि कुछ माह पहले सुदर्शन देविका को जान से मारने का प्रयास कर चुका है, तो पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि देविका का कातिल उस का पिता ही है. जब पुलिस ने सुदर्शन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही अपना गुनाह कबूल कर लिया.

अपनी फूल सी नाजुक बेटी की हत्या करने का गुनाह करने वाले सुदर्शन उर्फ मोनू ने पुलिस को जो कहानी बताई उस ने तो बस यही साबित कर दिया कि अपने दिमाग में शक का कीड़ा पालने वाला मोनू देविका को अपनी बेटी ही नहीं मानता था.

सुदर्शन की शादी अब से 3 साल पहले बड़े धूमधाम से रांझी, जबलपुर निवासी प्रीति से हुई थी.

शादी के पहले से सुदर्शन रंगीनमिजाज नौजवान था और उस की आशिकमिजाजी शादी के बाद भी जारी रही. इसी के चलते भेड़ाघाट में एक लड़की के बलात्कार के मामले में शादी के 2 माह बाद ही उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी.

जैसेतैसे वह कुछ माह बाद जमानत पर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की पत्नी गर्भ से है. बस उसी समय से सुदर्शन के दिमाग के अंदर शक का कीड़ा बैठ गया. वह बारबार यही बात सोचता कि मेरे जेल के अंदर रहने पर प्रीति गर्भवती कैसे हो गई.

देविका के जन्म के बाद तो अकसर पतिपत्नी में इसी बात को ले कर विवाद होता रहता. सुदर्शन प्रीति को हर समय यही ताने देता कि यह लड़की न जाने किस की औलाद  है. इसी तरह लड़तेझगड़ते जिंदगी गुजारते प्रीति फिर से गर्भवती हो गई.

पत्नी के चरित्र पर हरदम शक करने वाले सुदर्शन को लगता था कि देविका उस की बेटी नहीं है. उस का मन करता कि देविका का काम तमाम कर दे.

एक बार तो उस ने देविका को मारने की कोशिश भी की थी, मगर वह कामयाब न हो सका. पतिपत्नी के विवाद की वजह से देविका की देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी, जिस की वजह से वह अकसर बीमार रहती थी.

16 जनवरी, 2020 की रात 10 बजे सुदर्शन मैडिकल कालेज के बाहर बैठा अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था. तभी उस की पत्नी प्रीति का फोन आया कि जल्दी से घर आ जाओ, देविका की तबीयत ठीक नहीं है. सुदर्शन को तो देविका की कोई फिक्र ही नहीं थी. वह तो चाहता था कि उस की मौत हो जाए.

इधर प्रीति देविका की तबीयत को ले कर परेशान थी. वह बारबार पति को फोन लगाती और वह जल्दी आने की कह कर शराब पीने में मस्त था.

प्रीति के बारबार फोन आने पर वह तकरीबन 11 बजे अपने घर पहुंचा तब तक उस के मातापिता दूसरे कमरे में सो चुके थे. देविका की तबीयत के हालचाल लेने की बजाय वह बारबार फोन लगाने की बात पर पत्नी से विवाद करने लगा, जिसे देख कर मासूम देविका रोने लगी.

सुदर्शन ने गुस्से में देविका का गला दबा दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. देविका की हालत देख कर प्रीति जोरजोर से रोने लगी तो सुदर्शन ने उसे डराधमका कर चुप करा दिया. सुदर्शन ने प्रीति को धमकाया कि यदि इस के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ उसे भी खत्म कर देगा. बेचारी प्रीति अपने होने वाले बच्चे की खातिर इस दर्द को चुपचाप सह कर रह गई.

सुदर्शन ने प्रीति को पाठ पढ़ाया कि सुबह लोगों को देविका के अपहरण की कहानी बता कर मामले को शांत कर देंगे.

इस के लिए उस ने घर के पिछले हिस्से में रखी कुछ ईंटों को हटा दिया, जिस से लोग यह अनुमान लगा सकें कि यहीं से घुस कर देविका का अपहरण किया गया है. रात के लगभग 2 बजे सुदर्शन एक रस्सी ले कर देविका के शव को कंधे पर रख कर घर के बाहर कुछ दूरी पर बने एक कुएं के पास ले गया.

वहां पर उस ने रस्सी के सहारे शव को एक पत्थर से बांध कर कुएं में फेंक दिया और वापस आ कर चुपचाप सो गया. सुबह उठते ही उस ने अपनी बेटी देविका के गायब होने की खबर फैला दी.

6 मार्च 2010 को जबलपुर के पुलिस कप्तान अमित सिंह, एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान, एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल, टीआई तिलवारा रीना पांडेय की मौजूदगी में प्रैस कौन्फ्रैंस कर हत्याकांड के राज से परदा उठाते हुए आरोपी को प्रेस के समक्ष पेश किया.

सुदर्शन को देविका की हत्या के अपराध में धारा 363, 364, 302, 201 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जबलपुर जेल भेज दिया गया.

मामी का उफनता शबाब – भाग 3

कपड़े धोने के कारण उस वक्त उस ने अपनी चुन्नी भी उतार कर पास में ही रख दी थी. प्रीति कौर का चेहरामोहरा तो मनमोहक था ही साथ ही उस का रंग भी गोराचिट्टा था.

प्रीति के वक्ष बड़े होने के कारण बारबार बाहर निकलने को आतुर थे. भले ही सौरभ और प्रीति के बीच मामीभांजे का रिश्ता था, लेकिन उस दिन सौरभ बारबार अपनी मामी के उभारों को ही निहार रहा था.

उस दिन ही सौरभ समझ गया था कि उस की मामी की क्या परेशानी है. इस से पहले वह अपनी मामी के पास कभीकभार ही आता जाता था. लेकिन उस दिन के बाद उस का आनाजाना बढ़ गया था.

सौरभ अभी पढ़ाई कर रहा था. स्कूल से आने के बाद वह जल्दी से अपना काम निपटाता और शाम होते ही वह अपने मामा के घर गोपीपुरा चला जाता था. जिस वक्त वह शाम को मामा के घर पहुंचता तो उस के मामा बृजमोहन उसे शराब पीते मिलते थे. बृजमोहन कभीकभी सौरभ से ही गांव में लगे पंचायती वाटर कूलर से ही ठंडा पानी मंगाता था.

शराब पीने के कुछ समय बाद ही बृजमोहन नशे में झूमने लगता और फिर कुछ खापी कर जल्दी ही सो जाता था. उस के बाद सौरभ मामी के साथ बतियाने लगता था.

कुछ दिनों में सौरभ ने अपनी मामी के दिल में अपने लिए खास जगह बना ली थी. प्रीति कौर भी सौरभ को चाहने लगी थी. इस से पहले सौरभ शराब को हाथ तक नहीं लगाता था. लेकिन मामी की चाहत में उस ने अपने मामा के साथ शराब भी पीनी शुरू कर दी थी.

फिर वह अकसर ही अपने मामा के साथ बैठ कर शराब पीने लगा था. सौरभ को शराब का शौक लगने पर बृजमोहन हमेशा ही उसे बुला लेता था. यही सौरभ भी चाहता था.

29 मार्च, 2021 को होली का दिन था. जिस वक्त सौरभ अपने मामा के घर पहुंचा, उस की मामी घर पर अकेली ही थी. अपनी मामी को घर पर अकेले देख सौरभ का दिल बागबाग हो गया. फिर भी उस ने मामी से पूछा, ‘‘मामी, मामा कहां गए?’’

‘‘गए होंगे अपने दोस्तों के साथ घूमने. अब यह बताओ कि तुम्हें केवल मामा से ही काम है. क्या मामी के काम भी आओगे?’’

‘‘क्या बात कही आप ने मामी. पहले तो मामी ही है मामा तो बाद में हैं. मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताओ.’’ चापलूसी करता हुआ सौरभ बोला.

‘‘अरे बुद्धू, तुम्हें इतना भी नहीं पता कि आज होली मिलन का त्यौहार है. तुम मुझ से इतनी दूर खड़े हो. होली नहीं मिलोगे मामी से?’’

‘‘क्यों नहीं मामी, आप ने यह क्या बात कही.’’ इतना कहते ही प्रीति ने सामने खड़े सौरभ की कोली भर ली. मामी की आगोश में जाते ही सौरभ के नसों में खून का संचार बढ़ गया.

उस ने जिंदगी में पहली बार किसी औरत के तन से तन मिलाया था. मामी के बड़ेबड़े वक्षों का संपर्क पा कर उस की जवानी बेकाबू हो उठी. सौरभ पल भर के लिए दुनियादारी भूल गया.

सौरभ अपनी मामी को रंग लगाने के लिए रंग भी साथ ही लाया था. सौरभ अभी अपनी मामी की कोली भर के ही खड़ा हुआ था. तभी बाहर किसी के आने की आहट हुई. बाहर आहट सुन कर दोनों अलगअलग हो गए . तब तक बृजमोहन घर के अंदर आ पहुंचा था.

अचानक घर में मामा को आया देख कर सौरभ सकपका गया. उस की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. उस ने फुरती दिखाई और अपनी जेब से वह रंग निकाल कर सामने खड़ी मामी के चेहरे पर लगा दिया.

बृजमोहन उस वक्त भी नशे में था. उस के घर में उस के पीछे कौन सा खेल चल रहा था, वह समझ नहीं पाया. बृजमोहन प्रीति पर बहुत ही विश्वास करता था. चेहरे पर रंग लगवाने के बाद प्रीति ने अपने बेटे को गोद में उठाया और बाहर घर के आंगन में आ कर बैठ गई.

बृजमोहन नशे में इतना धुत था कि उस ने घर में मामीभांजे को अकेला पा कर भी किसी तरह का शक नहीं किया. उस के बाद प्रीति कौर अपने घर के कामों में लग गई. बृजमोहन सौरभ को देख कर घर के अंदर रखी बोतल निकाल लाया था. फिर मामाभांजे एक साथ बैठे तो पीनेपिलाने का सिलसिला शुरू हुआ.

बृजमोहन पहले से ही नशे में धुत था.  सौरभ के साथ उस ने 1-2 पेग और पिए तो होशोहवास खो बैठा. देखते ही देखते वह चारपाई पर पसर गया. प्रीति बृजमोहन को अच्छी तरह से जानती थी.

बृजमोहन एक बार खापी कर सो जाता था तो सुबह ही उठ पाता था. उस वक्त तक प्रीति के दोनों ही बच्चे सो चुके थे. घर में अपने जवान भांजे को देखते ही प्रीति कौर के तनबदन में आग लग गई.

सौरभ काफी दिनों से ऐसे ही मौके की तलाश में था. मामा को बेहोशी की हालत में सोया देख उस का पौरुष जाग उठा. मामी को सामने देखते ही वह भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ा. जवानी के आगोश में पल भर में मामी भांजे के रिश्ते तारतार हो गए.

सौरभ जिंदगी में पहली बार किसी औरत के संपर्क में आया था. प्रीति भी सौरभ जैसे हट्टेकट्टे भांजे से शारीरिक संबंध बना कर काफी खुश हुई थी. एक बार रिश्तों की मर्यादा खत्म हुई तो दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हो गया.

मामी के प्यार में सौरभ हर रोज ही मामा के साथ बैठ कर शराब पीनेपिलाने लगा था. फिर मौका पाते ही शराब के साथ शबाब का मजा लेने लगा था.

सौरभ पढ़ाई के साथसाथ मजदूरी भी करता था. वह जो भी कमाता उस पैसे को प्रीति मामी पर खर्च कर डालता था.

सौरभ ने ही मेहनतमजदूरी कर पैसे इकट्ठा कर एक स्मार्टफोन खरीद कर प्रीति को दे दिया था. ताकि वह उस से किसी भी समय बात कर सके. कई बार तो सौरभ अपने मामा की गैरमौजूदगी में सारीसारी रात उसी के घर पर पड़ा रहता था.

प्रीति कौर अपने बच्चों को जल्दी खाना खिलापिला कर सुला देती और फिर सौरभ के साथ मौजमस्ती में डूब जाती थी. प्रीति कौर और सौरभ के बारबार मिलने से उस के परिवार वालों को भी उन के बीच पक रही खिचड़ी हजम नहीं हो पा रही थी.

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या

पहली बीवी का खेल – भाग 3

पानी सिर से ऊंचा होते देख यासीन पत्नी शहर बानो की बातें सुन कर बुरी तरह बौखला उठा था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग सोफिया के बारे में बुराभला कहने वाले कौन होते हो.’’

शहर बानो और उस की बहन रेशमा को तो उस दिन जैसे भूत सवार था. यासीन ने रेशमा को डांटते हुए खामोश रहने की हिदायत दी.

विवाद बढ़ता गया और यासीन ने गुस्से में सोफिया के सामने शहर बानो पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया और शहर बानो को जला कर मारने की धमकी दे डाली.

उस दिन कोई अनहोनी न हो, इसलिए मातापिता के द्वारा मामला रफादफा कर दिया गया और यासीन अगले दिन शहर बानो की बिना रुकसती कराए सोफिया को साथ ले कर बहराइच से लखनऊ वापस लौट आया और शहर बानो को धमकी दे डाली कि अगर तुम्हारी गर्ज हो तो तुम लखनऊ खुद चली आना.

लेकिन सोफिया के कारण शहर बानो लखनऊ वापस लौट कर नहीं आई. यासीन उसे ले कर परेशान रहने लगा था क्योंकि सोफिया के कारण शहर बानो से अब उस की तलाक की नौबत आ गई थी. कहावत है कि नारी नदिया की धार होती है और पुरुष एक किनारा होता है. दोनों विमुख भी नहीं रह सकते हैं.

शहर बानो भी यासीन से लगाव होने के कारण उसे दिल से निकाल नहीं पा रही थी. शहर बानो के मातापिता ने अपनी बेटी की जिंदगी में फिर से बहार लाने के लिए यासीन को रुखसत कराने के लिए खबर भेजी.

यासीन ने भी उत्तर में कहलवा दिया कि यदि वह अपनी बेटी को भेजने के लिए तैयार हैं तो वह उसे खुद पहुंचा दें. वह उसे अपने पास रखने को तैयार है.

शहर बानो के वालिद मुल्ला खान ने बेटी को समझाया कि तुम्हें अपने शौहर के यहां खुद चले जाना चाहिए. उस दिन 18 जनवरी, 2022 को एक लंबे अरसे के बाद लखनऊ स्थित कांशीराम कालोनी वह खुद आ गई थी.

शहर बानो जब कांशीराम कालोनी वाले आवास पर पहुंची तो यासीन बरामदे में बैठाबैठा दूसरी पत्नी शिवा उर्फ सोफिया से हंसहंस कर बातें कर रहा था.

शहर बानो को अचानक आया देख कर वह भड़क उठा और बोला कि आने से पहले तुम्हें फोन करना चाहिए था. शिवा उर्फ सोफिया ने भी यासीन का साथ दिया, ‘‘यासीन ठीक तो कह रहे हैं. कम से कम आने से पहले तुम्हें फोन तो करना चाहिए था. जब से यासीन ने मुझ से निकाह किया है तुम बातबात में रूठ कर चली जाती हो.’’

शहर बानो ने कहा कि तुम लोगों से मेरा यहां रहना देखा नहीं जाता है तो मैं बहराइच न जाऊं तो फिर क्या करूं.

लंबे अरसे बाद लखनऊ आने पर शहर बानो को यासीन खान से यह उम्मीद नहीं थी. वह उलाहना सुन कर मन मसोस कर रह गई थी.

पुलिस के पूछने पर यासीन खान ने बताया कि सोफिया ने अपने भाई शरद विश्वकर्मा के इलाज के लिए 30-40 हजार रुपया अलमारी में बचा कर रखे थे, गुरुवार को सोफिया को बिना बताए वह पैसे उस ने निकाल लिए.

इस पर पहले तो उस का शक शहर बानो पर गया था. जिस पर दोनों में काफी कहासुनी हुई थी. लेकिन सोफिया को उस ने बताया कि वह रुपए शहर ने नहीं बल्कि उस ने निकाले थे. इस पर उस का उस से भी काफी झगड़ा हुआ.

जब रात को सोफिया अपने अंदर के कमरे में जा कर सो गई, तभी शहर बानो ने यासीन खान को अपने बाहुपाश में लेते हुए सोफिया की हत्या करने और हमेशा के लिए रास्ते का कांटा हटाने के लिए उकसाया, ताकि वह बाकी जिंदगी चैन से जी सके.

यासीन उस की बात सुन कर राजी हो गया. शहर बानो जानती थी कि जब से शिवा उर्फ सोफिया खान उस के पति यासीन की जिंदगी में आई है, यासीन की महीने भर की कमाई अपने भाई शरद को भेज दिया करती है, जिस से यासीन मन मसोस कर रह जाता है.

20 जनवरी, 2022 को शिवा उर्फ सोफिया जब सो गई तो शहर बानो ने सोफिया की हत्या करने के लिए यासीन को अस्पताल में शरद विश्वकर्मा के पास न भेज कर घर पर ही रोक लिया.

सुबह होने पर जब सोफिया ने अस्पताल में भरती अपने भाई शरद के लिए खाना बना कर और उस के औपरेशन के लिए रुपए ले कर यासीन को साथ चलने को कहा तो यासीन ने रुपए न देने की बात कही.

जिस के कारण उस की सोफिया से कहासुनी हो गई. उसी दौरान यासीन के इशारे पर शहर बानो ने सोफिया के हाथ पकड़ लिए और यासीन ने गला दबा कर शिवा उर्फ सोफिया की हत्या कर दी. हत्या के बाद शव को पलंग पर गद्दे में लपेट कर छिपा दिया.

जब शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया खाना और रुपए ले कर अस्पताल नहीं पहुंची, तब शरद ने उसे कई बार फोन किया. जब उस की बहन से बात नहीं हो पाई तो शरद ने संदेह होने पर हंसखेड़ा पुलिस चौकीप्रभारी को फोन कर सूचना देते हुए बहन के घर पहुंचने को कहा था.

गिरफ्तारी के बाद थानाप्रभारी दधिबल तिवारी, एडिशनल सीपी राजेश श्रीवास्तव, डीसीपी गोपालकृष्ण चौधरी व एसीपी आशुतोष कुमार के समक्ष शहर बानो व यासीन खान को पेश किया गया. आरोपियों ने इन सभी अधिकारियों को भी हत्या की कहानी बताई.

इस के बाद यासीन खान और शहर बानो को 23 जनवरी, 2022 को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विवेचना जारी थी.           द्

कुंवारे बदन का दर्द : शबनम की कहानी

जावेद ने अपनी बीवी रह चुकी शबनम को बड़े ही गौर से देखा तो हक्काबक्का रह गया. यह एक होटल था जहां सब लोग खाना खा रहे थे. तलाक के बाद तो वे दोनों एकदूसरे के लिए अजनबी थे लेकिन 5 सालों तक साथ रहने के बाद, एक ही बिस्तर पर सोने के बावजूद कैसे अजनबी रह सकते थे.

शबनम अकेले ही एक टेबल पर बैठ कर खाना खा रही थी और जावेद अलग टेबल पर. 5 सालों के बाद उन के चेहरों में कोई खास फर्क नहीं आया था.

शबनम को खातेखाते कुछ याद आया और वह खाना छोड़ कर जावेद के टेबल की तरफ बढ़ी. शायद उसे 5 साल पहले की कोई बात याद आई थी.

‘‘आप ने खाने से पहले इंसुलिन का इंजैक्शन लिया है कि नहीं?’’ शबनम ने जावेद से पूछा.

‘‘इंजैक्शन लिया है. लेकिन 5 साल तक तलाकशुदा जिंदगी गुजारने के बाद तुम्हें कैसे याद है?’’ जावेद ने पूछा.

‘‘जावेद, मैं एक औरत हूं.’’

‘‘तुम्हारे जाने के बाद, इतना मेरा किसी ने खयाल नहीं रखा,’’ जावेद ने कहा.

‘‘अगर ऐसी बात थी तो तुम ने मुझे तलाक क्यों दिया?’’

‘‘वह तो तुम जानती हो…

5 साल साथ रहने के बाद भी तुम मां नहीं बन पाई और बच्चा तो हर किसी को चाहिए.’’

‘‘अगर तुम बच्चा पैदा करने के लायक होते तो क्या मैं नहीं देती?’’ शबनम ने कहा और अपनी टेबल की तरफ बढ़ गई.

जब वे दोनों होटल से बाहर निकले तो फिर मेन गेट पर उन की मुलाकात हो गई.

‘‘चलो, कुछ दूर साथ चलते हैं,’’ जावेद ने कहा.

‘‘जिंदगीभर साथ चलने का वादा था लेकिन तुम ने ही मुझे तलाक दे कर घर से निकाल दिया,’’ शबनम बोली.

‘‘जो होना था, हो गया. अब यह बताओ कि तुम यहां आई कैसे?’’

‘‘जब तुम ने तलाक दिया तो मैं अपने मांबाप के पास गई. वे इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सके और 6 महीने के अंदर ही दोनों चल बसे. मैं तो उन की कब्र पर भी नहीं जा सकी क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना सख्त मना है.

‘‘उस के बाद मैं भाई के पास रही थी. भाई तो कुछ नहीं बोलता था, लेकिन भाभी के लिए मैं बोझ बन गई थी. वह रातदिन मेरे भाई के पीछे पड़ी रहती और मुझे जलील करते हुए कहती थी कि इस की दूसरी शादी कराओ, नहीं तो किसी के साथ भाग जाएगी.

‘‘तुम नहीं जानते कि कोई मर्द तलाकशुदा औरत से शादी नहीं करता. सब को कुंआरी लड़की और कुंआरा बदन चाहिए.

‘‘भाई बहुत इधरउधर भागा, पर कहीं कोई मेरा हाथ थामने वाला नहीं मिला. आखिरकार उस ने एक बूढ़े आदमी से मेरी शादी करा दी. वह दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहता और मैं उस की एक नर्स हूं. उसे समय से दवा देना, खाना खिलाना या बाथरूम ले जाना, यही मेरी ड्यूटी?थी.

‘‘मुझे यह भी मालूम है कि तुम ने दूसरी शादी कर ली और तुम को दोबारा एक कुंआरी लड़की मिल गई. लेकिन मेरी जिंदगी को तो तुम ने सीधे आग की लपटों में फेंक दिया. और मैं नामुराद दूसरी शादी के बाद भी जल रही हूं.

‘‘तुम ने मुझे तलाक दे दिया और मेरे कुंआरे बदन का सारा रस निचोड़ लिया. एक औरत की जिंदगी क्या होती?है, तुम्हें मालूम नहीं है,’’ शबनम ने अपना दर्द बताया. उस की आंखों में आंसू आ गए. वह रोतेरोते पत्थर की बनी एक कुरसी पर बैठ गई.

जावेद सबकुछ एक बुत की तरह सुनता रहा और फिर अपना वही सवाल दोहराया, ‘‘तुम इस शहर में कैसे आई?’’

‘‘मेरा बूढ़ा पति बहुत बीमार है. मैं ने उसे एक अस्पताल में भरती कराया है.’’

‘‘उस की उम्र क्या है?’’ जावेद ने पूछा.

‘‘70 साल से भी ऊपर?है,’’ शबनम ने जवाब दिया.

‘‘फिर तो उम्र का बहुत फर्क है,’’ जावेद बोला.

जब शबनम वहां से उठ कर जाने लगी तो जावेद ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो.’’

‘‘तलाक माफी मांगने से नहीं खत्म होता है. तुम ने मुझे तलाक दे कर जैसे किसी ऊंची पहाड़ी से नीचे धकेल दिया और मैं नरक में चली गई,’’ और फिर शबनम अपना हाथ छुड़ा कर वहां से चली गई.

दूसरे दिन जावेद शाम को उसी होटल के सामने शबनम का इंतजार करता रहा. वह आई और बगैर कुछ बोले ही होटल के अंदर चली गई.

जावेद पीछेपीछे गया और उस के पास बैठ गया. दोनों ने एकदूसरे को देखा और उन के बीच रस्मी बातचीत शुरू हो गई.

‘‘तुम्हारी मम्मी कैसी हैं?’’ शबनम ने पूछा.

‘‘ठीक हैं. अब वे भी काफी बूढ़ी हो चुकी हैं.’’

‘‘उन को मेरी याद तो नहीं आती होगी. मुझे 5 साल तक बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने मेरा तुम से तलाक करा दिया और तुम्हारी बहन जरीना को 7 साल से बच्चा नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, क्योंकि जरीना उन की अपनी बेटी है, बहू नहीं.’’

‘‘चलो जो होना था हो गया. यह हम दोनों का नसीब था,’’ जावेद ने अफसोस जताते हुए कहा.

‘‘नसीब बनाया भी जाता है और बिगाड़ा भी जाता है. अगर औरतों की सोच गलत होती?है तो घर के मर्द एक लोहे की दीवार की तरह खड़े हो जाते हैं. वैसे, औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं.’’

जावेद के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. वह होटल की छत की तरफ देखने लगा. फिर उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘क्या मेरी मम्मी से बात करोगी?’’

‘‘हां, लगाओ फोन. मैं बात कर लेती हूं.’’

जावेद ने अपनी मां को फोन लगा कर कहा, ‘‘मम्मी, शबनम आप से बात करना चाहती है.’’

‘‘तोबातोबा, तुम अपनी तलाकशुदा औरत के साथ हो. यह हमारे मजहब के खिलाफ है. मैं उस से बात नहीं करूंगी,’’ उस की मां की आवाज स्पीकर पर शबनम को भी सुनाई दी.

‘‘जावेद, तुम उन का नंबर दो. मैं अपने मोबाइल फोन से बात करूंगी.’’

जावेद ने शबनम का मोबाइल फोन ले कर खुद ही नंबर लगा दिया. घंटी बजने लगी. उधर से आवाज आई, ‘कौन?’

‘‘मैं आप की बहू शबनम बोल रही हूं. आप ने अपने लड़के से मुझे तलाक दिलवाया, वह एकतरफा तलाक था. मेरे मांबाप को इस का इतना दुख हुआ कि वे मर गए. अब मैं तुम्हारे लड़के जावेद को ऐसा तलाक दूंगी कि वह भी तुम्हारी जिंदगी से चला जाएगा.’’

उधर से टैलीफोन कट गया, लेकिन जावेद के चेहरे पर सन्नाटा छा गया. उस ने कहा, ‘‘तुम मेरी मम्मी से क्या फालतू बात करने लगी थी…’’

शबनम ने जावेद की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

अब भी वे दोनों कई दिनों तक रात का खाना खाने उस होटल में आए लेकिन अलगअलग टेबलों पर बैठ कर चले गए, क्योंकि रिश्ता तो टूट ही गया था और अब बातों में कड़वाहट भी आ गई थी.

एक दिन होटल में शबनम जल्दी आई, खाना खा कर बाहर पत्थर की बनी कुरसी पर बैठ गई और जावेद का इंतजार करने लगी. जावेद जब खाना खा कर निकला तो शबनम ने उसे आवाज दी, ‘‘आओ, कहीं दूर तक इन पहाड़ों में घूम कर आते हैं. मेरे बूढ़े पति की अस्पताल से छुट्टी हो गई है. मैं अब चली जाऊंगी. इस के बाद यहां नहीं मिलूंगी.’’

वे दोनों एकदूसरे के साथ गलबहियां करते हुए टाइगर हिल के पास चले आए जहां ऐसी ढलान थी कि अगर किसी का पैर फिसल जाए तो सीधे कई गहरे फुट नीचे नदी में जा गिरे.

शबनम ने साथ चलतेचलते जावेद से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा अपने मोबाइल फोन से फोटो लेना चाहती हूं क्योंकि अब हम नहीं मिलेंगे. तुम इस ढलान पर खड़े हो जाओ ताकि पीछे पहाड़ों का सीन फोटो में अच्छा लगे.’’

जावेद मुसकराया और फोटो खिंचवाने के लिए खड़ा हो गया. शबनम उस के पास आई, मानो वह सैल्फी लेगी. तभी उस ने जावेद को जोर से धक्का दिया और चिल्लाई, ‘‘तलाक… तलाक… तलाक…’’ जावेद ढलान से गिरा, फिर नीचे नदी में न जाने कहां गुम हो गया.