कर्मों का फल : कैसे बदली सुनील की जिदंगी

हजारीबाग की हरीभरी वादियों में बसे टनकपुर गांव की गिनती आदर्श गांवों में होती थी. झिलिया नदी के तट पर बसे इस गांव की आबादी तकरीबन सवा सौ परिवारों की थी.अयोध्या राम गांव के अमीर लोगों में से एक थे. मजबूत कदकाठी के चलते उन की अलग पहचान थी. उन के पास खेतखलिहान, नौकरचाकर थे.

वर्तमान समय में किसी चीज की कमी नहीं थी. लेकिन पर्वत्योहार के मौके पर उन की स्वर्गीय पत्नी सुलोचना की याद ताजा हो जाती थी, जिन्होंने बेटे सुनील को जन्म देने के बाद अस्पताल में ही दम तोड़ दिया था.सुनील का लालनपालन अयोध्या राम ने खुद किया था. पुत्र मोह में उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. पता नहीं सौतेली मां कैसी मिलेगी, यह सोच कर उन्होंने अपने लिए आए हर रिश्ते को मना कर दिया था.

टनकपुर में हर साल हाई स्कूल के निकट बने मंदिर में भारी मेला लगता था, जिस में गांवदेहात में बनी चीजों से ले कर शहर में बने फैंसी सामान तक बिकते थे. 3 दिन के इस मेले में झूले, जादू घर, मौत का कुआं, कठ घोड़वा जैसे मनोरंजन के साधन थे, जो मेला देखने वालों के आकर्षण का केंद्र थे. बच्चों के लिए तरहतरह के खिलौने, औरतों के लिए सजनेसंवरने की चीजें भी खूब बिकती थीं.

टनकपुर के आसपास के लोग भी मेले में पहुंचते थे. गांव के लोग बहती झिलिया नदी में स्नान कर मंदिर में पूजाअर्चना करते और मेले में से सामान खरीद कर घर लौट जाते. वहीं बगल में मवेशियों का हाट लगा हुआ था, जहां तरहतरह के मवेशी बिकने के लिए आए हुए थे. मेले में भेड़, बैल, बकरा, मुरगा की लड़ाई की प्रतियोगिता भी होती थी. जीतने वाले पशु मालिकों को नकद इनाम आयोजकों द्वारा दिया जाता था. पशुओं की सेहत व सुंदरता की परख भी की जाती थी.

अयोध्या राम अपने बैलों को नहला कर और रंगबिरंगे रंगों से सजा कर सजी हुई बैलगाड़ी में जोत कर मेले में पहुंचे. बैलगाड़ी को एक पेड़ की छाया में खड़ा कर बापबेटा लिट्टी की दुकान पर चले गए और वहां गरमागरम लिट्टीचोखा और हरी मिर्च का स्वाद लिया. लिट्टी खाते समय सुनील की नजर बकरी के एक नटखट खस्सी पर जा पड़ी. उस का सफेद रंग, शीशे जैसी चमचमाती आंखें, खड़़े कान, उस का उछलनाकूदना और मचलना बहुत ही मनभावन था. सुनील अपने पिता से वह खस्सी खरीदने की जिद करने लगा.

अयोध्या राम ने भी सोचा कि बेटा घर में अकेला रहता है. खस्सी का साथ मिलेगा, तो उस का समय अच्छा कट जाएगा. उन्होंने बिना मोलभाव किए उस खस्सी को 1,000 रुपए में खरीद लिया. घर के अहाते में ला कर खस्सी को छोड़ दिया. सुनील खस्सी के साथ इतना घुलमिल गया कि अब वह उसे अपने बिछावन पर सुलाने लगा. देखते ही देखते 4 साल में वह खस्सी बकरा बन गया. सुनील ने उस की निडरता को देख कर उस का नाम शेरा रख दिया था, साथ ही उस के गले में पीतल की एक घंटी भी बांध दी थी.

जब शेरा उछलताकूदता तो घंटी की ‘टनटन’ की मधुर आवाज सब का मन मोह लेती. पूरे गांव में शेरा की चर्चा होने लगी थी. गांव के मंदिर में फिर मेला लगा और उस में मवेशियों की प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिस में शेरा ने भी भाग लिया. उस ने खस्सी मुकाबला, परेड और दौड़ में पहला नंबर पाया. दूसरे खस्सी उस का मुकबला नहीं कर सके. तीनों प्रतियोगिताओं में सुनील को 3,000 रुपए मिले. शेरा की यह बढ़त कई साल तक जारी रही.

अब टनकपुर के लोग शेरा को इतना प्यार करते, जैसे वह उन के घर का सदस्य हो. वह दिनरात सुनील के साथ रहता, उस के साथ खातापीता और घूमता था. इधर सुनील ने अपने गांव के स्कूल से मैट्रिक पास कर ली थी. अयोध्या राम ने उस का दाखिला रांची के नामीगिरामी कालेज में करा दिया था. कालेज के होस्टल में उस के रहने का इंतजाम हो गया था.

कालेज में सीधासादा सुनील बुरे लड़कों की संगत में पड़ गया. गबरी गाय का दूधदही खाने वाला सुनील अब कालेज में नशा करने लगा था. इतना ही नहीं, अब सुनील स्मैक की सप्लाई करने लगा था. वह अपनी फुजूलखर्ची को पूरा करने के लिए अपने पिता से और ज्यादा रुपयों की मांग करता था.

सुनील के ड्रग्स लेने की जानकारी कालेज के शिक्षकों द्वारा प्रिंसिपल तक पहुंच गई. नतीजतन, पहले उसे चेतावनी दी गई और बाद में जब वह नहीं माना, तो प्रिंसिपल ने उसे कालेज से निकाल दिया.

सुनील कालेज से अपना सामान समेट कर अपने घर टनकपुर पहुंचा. बेटे को देख कर अयोध्या राम ने कालेज छोड़ने की वजह पूछी, तो सुनील ने उन्हें बताया कि कोरोना काल में कालेज बंद हो गया है. कालेज की पढ़ाई औनलाइन घर पर होगी. इसी बहाने सुनील ने लैपटौप खरीदने के लिए अपने पिता से 65,000 रुपए झटक लिए. पैसा मिलते ही सुनील रांची चला गया. वहां उस ने 15,000 रुपए में एक पुराना लैपटौप खरीदा और बाकी रुपयों की उस ने स्मैक और नशे की गोलियां खरीद लीं.

रांची से लौटने के बाद वह घर में भी नशा करने लगा. जब उसे नशा हो जाता, तो वह शेरा को भी भूल जाता. शेरा को पहले जैसा प्यारदुलार नहीं दे पाता, जिस का आभास शेरा को हो चुका था. जब अयोध्या राम को सुनील के नशेड़ी होने की बात मालूम हुई, तो उन्होंने सुनील के जेबखर्च पर रोक लगा दी. तब सुनील ने अपना लैपटौप पतंग के भाव में बेच डाला. लेकिन, वह पैसा भी खत्म होने के बाद सुनील अपना सिर धुन रहा था कि स्मैक के लिए पैसा कहां से लाए. पास में बैठा शेरा उस को निरीह आंखों से देख रहा था.

गांव के एक कसाई जुम्मन की नजर शेरा पर थी. वह शेरा को खरीदने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन वह सुनील के पास पहुंचा और बोला, ‘‘सुनील बाबू, आप को कुछ पैसे चाहिए क्या?’’ चाहिए तो, पर कौन देगा पैसे? मेरे पास अब बेचने को है ही क्या?’’

सरकार अभी तो आप के पास खजाना है,’’ जुम्मन अपनी चाटुकारिता पर उतर आया. कैसा खजाना? क्यों मजाक करते हो जुम्मन भाई.’’‘हुजूर, शेरा तो आप का खजाना ही है. कहिए तो इस के लिए 12,000 रुपए अभी गिन दूं…’’12,000…’’ यह सुन कर सुनील का मुरझाया मन खिल उठा. उस की नजरें शेरा पर जा कर ठहर गईं. उस ने शेरा को देखा और जुम्मन से बोला, ‘‘अच्छा, लाओ रुपए.’’ जुम्मन ने रुपए निकालने में देर न की. उस ने तुरंत अपनी झोली में हाथ डाला और नोट सुनील के हाथों पर रख दिए.

अब जुम्मन शेरा के पास आया और उस के पुट्ठे पर हाथ फेरा. साथ ही, उस की कमर को ऊपर उठा कर वजन का अंदाजा लगाया. उस ने बिना देर किए शेरा को ले जाने के लिए उस की गरदन में रस्सी बांध कर खींचा, मगर शेरा अपनी जगह से हिला तक नहीं.जब जुम्मन ने पूरा जोर लगा कर शेरा को खींचा, तो वह मिमियाने लगा. पर सुनील को कोई खास फर्क नहीं पड़ा.

उस का ध्यान तो जेब में रखे पैसों पर था. लेकिन रात को उसे शेरा की खूब याद आई और वह अगली ही सुबह बाजार में जुम्मन की दुकान पर जा पहुंचा. उस ने अपनी जेब से 12,000 रुपए निकाल कर जुम्मन की तरफ बढ़ाए, तो जुम्मन ने शेरा के कटे हुए सिर व टंगे हुए धड़ को दिखाया.

यह देख कर सुनील बेकाबू हो गया और वह एकाएक जुम्मन पर टूट पड़ा. उस ने जुम्मन का चाकू छीन लिया. उन दोनों में मारपीट होने लगी कि इसी दौरान वे एक दीवार से टकरा गए. दीवार सुनील के ऊपर भरभरा कर गिर पड़ी और वह गंभीर रूप से घायल हो कर बेहोश हो गया.

आसपास के लोगों ने सुनील को मलबे से बाहर निकाला. इस घटना की खबर अयोध्या राम को दी गई. वे एक डाक्टर और पंचायत के मुखिया के साथ वहां पहुंचे. डाक्टर ने सुनील के प्राथमिक उपचार के बाद उसे रांची ले जाने की सलाह दी.

अयोध्या राम की हिम्मत ने जवाब दे दिया. तब मुखियाजी ने एक एंबुलैंस मंगवाई और सुनील को ले कर रांची रवाना हुए.

अस्पताल के बड़े डाक्टर जल्दी ही वहां पहुंचे और स्ट्रैचर पर ही सुनील का चैकअप करते हुए बोले, ‘‘आप लोगों ने लाने में देर कर दी. यह लड़का अब इस दुनिया में नहीं है…’’

इतना सुनते ही उस माहौल में अयोध्या राम के चीखने की आवाज गूंजने लगी. गांव के मुखिया उन्हें समझाने में लगे हुए थे. वे किसी तरह उन्हें ले कर कार में बैठे और गांव जाने के लिए रवाना हो गए.

इश्क की बिसात पर बिजली का करंट

14नवंबर, 2022 की रात यही कोई 2 बजे की बात है. मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गोरमी थाने के गांव सिकरौदा की रहने वाली एक महिला ने 100 नंबर पर फोन कर के कहा, ‘‘मैं कृष्णपाल केवट की पत्नी रामकली बोल रही हूं, मेरे पति की किसी बदमाश ने हत्या कर के उनकी लाश मेरे घर के पीछे डाल दी है.’’

चूंकि मामला गोरमी थाने का था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने गोरमी थाने को घटना की जानकारी दे दी.

सूचना मिलते ही गोरमी के एसएचओ सुधाकर सिंह तोमर, एसआई मनीराम, नादिर, एएसआई देवेंद्र भदौरिया, हैडकांस्टेबल कौशलेंद्र सिंह को साथ ले कर महिला द्वारा बताए पते की ओर रवाना हो गए. मौकाएवारदात पर पहुंचने के बाद एसएचओ ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी मामले की सूचना दे दी.

मृतक के शव और आसपास की जांचपड़ताल से पता चला कि कृष्णपाल केवट उर्फ टिंकू की हत्या करने के बाद हत्यारे उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए वहां तक घसीट कर लाए थे.

लाश को घसीटे जाने के निशान देख कर अनुमान लगाया गया कि हत्यारा किसी अन्य स्थान पर हत्या कर लाश को ठिकाने लगाने ले जा रहा होगा, लेकिन किसी ने लाश घसीटते हुए उसे देख लिया होगा. अत: वह पकड़े जाने के डर से लाश छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. उस के पैर के दोनों अंगूठों पर बिली के करंट से जलाने के निशान थे.

कृष्णपाल सिंह को उस के दोनों हाथ साड़ी से बांधने के बाद उस के पैरों के अंगूठे में बिजली का करंट लगा कर मौत के घाट उतारा गया था, मृतक के दोनों हाथ अभी भी साड़ी से बंधे हुए थे. उस की आयु 37-38 साल के आसपास पास रही होगी.

लाश पड़ी होने का सब से पहले पता रात के अंधेरे में दिशामैदान के लिए गई एक महिला को चला था. उसी ने घर आ कर लाश के बारे में अपने पति को बताया था. फिर जानकारी मिलते ही और लोग भी वहां जुटने लगे थे. उसी भीड़ में शामिल मृतक की पत्नी ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस हत्या की सूचना दी थी.

घटनास्थल की स्थिति और शुरुआती जांच में ही परिस्थितियां रामकली के खिलाफ थीं. एसएचओ को कृष्णपाल उर्फ टिंकू केवट की हत्या के मामले में उस की पत्नी रामकली की भूमिका स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही थी.

पुलिस ने रामकली के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि उस का सिकरौदा के ही 20 वर्षीय युवक राजू से पिछले 6 महीने से चक्कर चल रहा था.

कुछ महीने पहले वह उस के साथ घर से भाग गई थी, काफी प्रयास के बाद उस का पति उसे खोज लाया था. रामकली की इस करतूत के बाद पतिपत्नी में विवाद रहने लगा था, उन दोनों के रिश्तों में दरार आती चली गई. यह दरार इतनी बढ़ गई कि रामकली ने अपने पति को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

एसएचओ सुधाकर सिंह तोमर को लगा कि कहीं कृष्णपाल की हत्या प्रेम संबंध में बाधा बनने की वजह से तो नहीं हुई? अगर ऐसा हुआ तो रामकली भी शामिल रही होगी. उन्होंने बिना वक्त गंवाए शक के आधार पर रामकली को थाने बुलाया और उस से गहराई से पूछताछ की.

इस पूछताछ में उस ने प्रेम प्रसंग से ले कर राजू के साथ नाजायज ताल्लुकात की बात बेहिचक स्वीकार कर ली. लेकिन पति की हत्या में किसी तरह का हाथ होने से स्पष्ट तौर से मना करती रही.

उलटे वह एसएचओ से बोली, ‘‘साहब, मेरे ही पति की हत्या हुई है और आप मुझ से ही इस तरह पूछ रहे हैं, जैसे मैं ने ही उन्हें मारा हो. जिन लोगों ने मेरे पति को मार कर मेरे घर के पीछे उन की लाश फेंकी, उन्हें पकड़ने में आप कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे. आप ही बताइए, भला मैं अपने पति को क्यों मारूंगी? यदि मैं ने अपने पति की हत्या की होती तो इतनी रात गए पुलिस को खबर क्यों देती? अगर आप मुझे ज्यादा तंग करेंगे तो मैं एसपी साहब से आप की शिकायत कर दूंगी.’’

पूछताछ के बाद उसी दिन एसएचओ ने रामकली और राजू के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर वह हैरान रह गए. काल डिटेल्स से पता चला कि दोनों एकदूसरे से अकसर घंटों तक बातें किया करते थे.

घटना वाली रात भी घटना से कुछ देर पहले और बाद में भी दोनों की काफी लंबी बातें हुई थीं. सबूत मिल जाने के बाद सुधाकर सिंह तोमर ने रामकली से कहा, ‘‘तुम जिस से चाहो मेरी शिकायत कर देना, मुझे तो इस अंधे कत्ल की पड़ताल कर जल्द से जल्द इस का खुलासा करना है.’’

सुधाकर सिंह तोमर ने रामकली से पूछा, ‘‘अब तुम यह बताओ कि तुम्हारे पति की हत्या से पहले और बाद में राजू से तुम्हारी क्या बातें हुई थीं? तुम्हारे मोबाइल फोन में मौजूद इस नंबर के बारे में भी बताओ कि यह किस का है?’’

रामकली ने तपाक से बताया कि यह नंबर  उस के प्रेमी राजू के मुंहबोले चाचा वीर सिंह का है.

इस बीच एसएचओ को अपने भरोसेमंद मुखबिर से पता चला कि घटना वाली रात सिकरौदा गांव के शातिर बदमाश वीर सिंह जिस पर अपनी पत्नी की हत्या सहित आधा दरजन आपराधिक मामले दर्ज हैं, को कृष्णपाल के घर में जाते हुए देखा गया था.

इस महत्त्वपूर्ण जानकारी से एसएचओ सुधाकर तोमर का माथा ठनका कि कहीं   रामकली के प्रेमी के साथसाथ वीर सिंह भी तो कृष्णपाल की हत्या में शामिल नहीं था.

एसएचओ ने राजू और उस के मुंहबोले चाचा वीर सिंह को भी पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. उन दोनों से कृष्णपाल की हत्या के बारे में पूछताछ की गई. राजू ने बताया कि जिस वक्त कृष्णपाल की हत्या होने की बात कही जा रही है, उस समय वह सिकरौदा में नहीं था. वह तो किसी काम से उत्तर प्रदेश गया हुआ था.

राजू बारबार यही बात दोहराता रहा, उस के मोबाइल फोन की लोकेशन चैक करने से एक बात साफ हो गई कि कृष्णपाल की हत्या के समय राजू की मौजूदगी सिकरौदा में नहीं थी. यानी कृष्णपाल का हत्यारा कोई और था.

इस के बाद तोमर ने रामकली से पूछा, ‘‘तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारे पति की हत्या से पहले और बाद में राजू और उस के मुंहबोले चाचा से तुम्हारी क्या बातें हुई थीं?’’

इस सवाल पर रामकली के चेहरे का रंग उड़ गया. वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहीं, मेरी उन दोनों से कोई बात नहीं हुई. साहब, किसी ने आप को गलत जानकारी दी है.’’

‘‘गलत नहीं बताया, यह देख लो. तुम ने घटना वाले दिन, कबकब और किस से बात की है. इस कागज में पूरी डिटेल है. एक नजर मार लो,’’ एसएचओ ने काल डिटेल्स वाला कागज उस के हाथ में थमाते हुए कहा.

रामकली अब झूठ नहीं बोल सकती थी, क्योंकि सुधाकर सिंह तोमर ने सारी हकीकत उस के सामने जो रख दी थी. उस की चुप्पी से तोमर समझ गए कि उन की जांच सही दिशा में चल रही है.

इस के बाद उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो रामकली ने कुबूल कर लिया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी के मुंहबोले चाचा वीर सिंह के साथ मिल कर की थी. उस ने पति के पैर के अंगूठे पर हीटर का तार बांधने के बाद एक घंटे तक करंट लगाया था. उस ने इस हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

तकरीबन 9 साल पहले घर वालों ने रामकली का विवाह सिकरौदा के कृष्णपाल केवट के साथ कर दिया था. रामकली इस विवाह से काफी खुश थी. उस ने बेहतर जिंदगी के सपने संजो लिए थे.

उस का लालनपालन भले ही एक गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन उसे उम्मीद थी कि विवाह के बाद उस की सभी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी और उस का पति उस के हर शौक को पूरा करेगा.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि कृष्णपाल सिंह अव्वल दरजे का शराबी था. वह जो कुछ कमाता था, शराब में उड़ा देता था. ऐसी स्थिति में उस के सारे अरमान चकनाचूर हो गए. समय अपनी गति से चलता रहा. रामकली 4 बच्चों की मां बन गई.

रामकली जितनी सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा चंचल भी थी. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, मगर उस की खासियत यह थी कि वह गजब की चालाक थी. उसे जो भी करना होता था, बेहिचक हो कर करती थी. उस के इसी स्वभाव की वजह से जो भी उस से एक बार मुलाकात कर लेता था, वह उस का दीवाना हो जाता था.

राजू भी पहली ही मुलाकात में उस का दीवाना हो गया था. यही नहीं, वह मन ही मन उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने के सपने संजोने लगा था. वह जब भी अल्हड़ रामकली को देखता तो उस के दिल की धड़कनें बढ़ जातीं और वह रामकली का मादक जिस्म पाने के लिए छटपटा उठता.

हालांकि शुरू में तो राजू रामकली से ठीक तरह नजर भी नहीं मिला पाता था. लेकिन जब उसे पता चला कि रामकली अपने पति से खुश नहीं है तो उस की हिम्मत बढ़ गई. जैसा कि कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. राजू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

रामकली के पति कृष्णपाल केवट को शराब पीने का शौक था. इसी के जरिए राजू को उस के करीब पहुंचने का मौका मिल गया. राजू भी अपने मुंहबोले चाचा वीर सिंह के साथ रोज कृष्णपाल के संग उस के घर पर शराब पीने जाता था.

इसी दौरान रामकली से उस की आंखें चार हो जाती थीं. फिर इसी बहाने वह रामकली के पति से ही नहीं, रामकली से भी घुलमिल गया. राजू उस की आर्थिक मदद भी करने लगा. हालांकि वीर सिंह भी रामकली से जिस्मानी संबंध बनाना चाहता था, मगर 40 वर्षीय वीर सिंह के आपराधिक चरित्र को देखते हुए रामकली इस के लिए तैयार नहीं हुई.

रामकली कोई दूधपीती बच्ची नहीं थी. वह राजू के दिल की बात अच्छी तरह से समझ रही थी. राजू को अपनी तरफ आकर्षित होते देख वह भी उस की ओर खिंची चली गई. राजू और रामकली के दिल में प्यार के अंकुर फूटे तो जल्द ही वह समय भी आ गया, जब दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया.

रामकली अकसर पति के नशे में मदहोश होते ही प्यार का अनैतिक खेल खेलने और अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए राजू को अपने घर पर बुलाने लगी थी. जैसेजैसे यह खेल आगे बढ़ रहा था, उन दोनों के प्यार का बंधन मजबूत होता जा रहा था.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि रामकली को अपने पति कृष्णपाल की बाहों की अपेक्षा राजू की बाहें सख्त और ज्यादा अच्छी लगने लगी थीं. जो जिस्मानी सुख उसे राजू की बाहों में मिलता था, वह अपने पति की बाहों में नहीं मिल पाता था.

यही वजह थी कि उन दोनों को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते. हालांकि राजू ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन एक रोज रामकली ने उस से कहा, ‘‘राजू, अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. मैं अब तुम से शादी करना चाहती हूं.’’

इस पर राजू ने उस से मजाक करते हुए कहा, ‘‘ऐसा कभी नहीं हो सकता, क्योंकि तुम सिर्फ शादीशुदा ही नहीं, बल्कि बालबच्चेदार भी हो.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं. तुम अगर मुझ से सच में प्यार करते हो और मुझे हमेशाहमेशा के लिए अपना बनना चाहते हो तो इस के लिए तुम्हें मेरे पति की हत्या करनी पड़ेगी.’’ रामकली ने साफ कह दिया.

अपनी प्रेमिका के मुंह से यह सब सुन कर राजू की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस ने रामकली से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘मुझ से ऐसा निहायत ही घिनौना काम नहीं हो सकेगा. ऐसा करने पर हम दोनों को ही सारी उम्र जेल में गुजारनी पड़ेगी.’’

राजू ने रामकली से कहा, ‘‘हम दोनों को जो चाहिए वह हमें मिल रहा है तो फिर हम ऐसा काम क्यों करें?’’

राजू ने उसे समझाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन इस का उस पर लेश मात्र भी असर नहीं हुआ. क्योंकि वह अपने शराबी पति से हमेशा के लिए पीछा छुड़ाना चाहती थी. राजू के प्यार में अंधी हो चुकी रामकली कभी राजू से कहती कि मेरे पति को शराब में जहर दे कर मार दो, तो कभी कहती गला घोट कर किस्सा हमेशा के लिए खत्म कर दो.

रामकली किसी भी तरह अपने पति को हटाना चाहती थी. लेकिन राजू इस के लिए तैयार नहीं हो रहा था. रामकली इस बात को अच्छी तरह जानती थी कि जब तक शराबी पति जिंदा रहेगा, वह तसल्ली से अपने प्रेमी को अपना जिस्म सौंप कर तनमन की प्यास नहीं बुझा सकेगी.

13 नबंबर, 2022 की रात रामकली ने राजू को फोन कर के कहा, ‘‘राजू, कृष्णपाल इस वक्त शराब के नशे में बेसुध हो कर बिस्तर पर पड़ा है. आज अच्छा मौका है उसे रास्ते से हटाने का. जल्दी से तुम यहां आ जाओ.’’

मगर राजू ने रामकली से कहा, ‘‘आज मैं सिकरौदा में नहीं हूं, अत: मैं नहीं आ सकूंगा. तुम मेरे मुंहबोले चाचा वीर सिंह को तो जानती ही हो, उन्हें फोन कर के अपने घर पर बुला लो. उन की मदद से अपने पति का खेल खत्म कर दो.’’

कहते हैं कि औरत जब चरित्रहीनता पर उतर आती है तो उसे किसी लोकलाज का भय नहीं रहता. रामकली भी ऐसी ही औरत थी. जिस वक्त रामकली ने अपने प्रेमी के मुंहबोले चाचा वीर सिंह को फोन किया, उस समय रात के 11 बज रहे थे.

रामकली ने पहले तो उस से इधरउधर की बातें कीं, इस के बाद उस ने बिना किसी हिचकिचाहट के वीर सिंह से कहा, ‘‘मुझे आज अपने पति को अपने और राजू के रास्ते से हटाना है. पति नहीं रहेगा तो मैं राजू के साथ हमेशा के लिए रह सकूंगी.’’

उस का इतना कहना था कि वीर सिंह ने कहा, ‘‘मैं तेरी इच्छा के मुताबिक रास्ते के कांटे को आज ही हटाए देता हूं. मगर इस के बदले में तुझे मेरे संग सोना होगा.’’

रामकली पति को ठिकाने लगाने के एवज में वीर सिंह के साथ शारीरिक संबंध बनाने को तैयार हो गई. वीर सिंह खुशी से चहका और मोबाइल फोन बंद कर के सीधे रामकली के घर जा पहुंचा.

उस ने रामकली के दरवाजे पर दस्तक दी और धीरे से दरवाजे को धकेला. दरवाजा खुल गया. वीर सिंह के दिल की धड़कनें बेकाबू होने लगीं. वह उन पलों की कल्पना कर के ही रोमांचित होने लगा, जब रामकली उस की बाहों में समाने वाली थी. अब वह क्षण बहुत करीब था.

रामकली के घर पहुंच कर वीर सिंह ने रामकली की मदद से शराब के नशे में मदहोश पड़े कृष्णपाल के दोनों हाथ साड़ी से बांध दिए. उस के बाद पैर के अंगूठों पर हीटर के तार से करंट देना शुरू कर दिया. जब कृष्णपाल की सांसें थम गईं, तब रामकली ने अपनी साड़ी से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद वादे के मुताबिक रामकली ने अपने पति की लाश के सामने ही वीर सिंह के साथ सहवास कर उस की कामोत्तेजना शांत की.

इस के बाद रामकली ने पति की नब्ज टटोलने के बाद नफरत से उस की लाश पर थूकते हुए कहा, ‘‘मर गया कमीना. मेरे और राजू के रास्ते का कांटा हमेशा के लिए निकल गया. चलो वीर सिंह, अब इसे कुंवारी नदी में फेंक कर देते हैं.’’

रामकली ने सोचा कि लाश नदी के पानी के साथ बह जाएगी, जिस से इस की पहचान नहीं हो पाएगी तो मामला रफादफा हो जाएगा’ लेकिन जब 14 नवंबर, 2022 की रात कृष्णपाल की लाश को रस्सी से बांध कर घसीटते हुए पास में बहने वाली नदी में प्रवाहित करने दोनों ले जा रहे थे, तभी उन्हें किसी के आने की आहट सुनाई दी. तब दोनों लाश को रास्ते में ही पड़ा छोड़ कर भाग खड़े हुए.

रामकली, राजू और वीर सिंह से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बिजली का तार, रस्सी और 3 मोबाइल फोन बरामद कर लिए.

इस के बाद उन्हें आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.     द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्लडी डैडी : बेटी ने खोया अपना आपा

दिसंबर का महीना था. रात के 12 बज रहे थे. ठंड भी ज्यादा थी, जिस के कारण मुंबई जैसे व्यस्त महानगर को भी ठंड ने अपनी आगोश में ले लिया था. लोग अपने घरों में रजाई, कंबल में सो रहे थे. कुछ अभी सोने की तैयारी में लगे थे.

मुंबई का ही एक इलाका है मीरा रोड. मीरा रोड में ही एक बंगला था शांति विला. जहां अभी लोग इतनी रात को ठंड के कारण रजाई में दुबके हुए थे, वहीं शांति विला के एक कमरे में अभी भी बहुत हलचल मची हुई थी.

16 साल की एक लड़की जिस का नाम कृति था, अपने हाथ में लिए चाकू से एक आदमी पर बदहवास अपनी पूरी ताकत लगा कर वार पे वार किए जा रही थी, जिस से खून के छींटे उस के चेहरे और कपड़ों पर फव्वारे की तरह आ रहे थे.

उसी कमरे में एक आलीशान पलंग भी था, जिस पर 14 साल की एक लड़की जिस का नाम नयना था, इन बातों से बेखबर बेसुध अभी भी सो रही थी. जबकि खून के छींटे उस के भी कपड़ों पर गिर रहे थे. खून की कुछ बूंदें उस के चेहरे पर भी आ गई थीं.

कृति इतनी बेसुध हो कर सामने वाले इंसान को चाकू घोंपती जा रही थी कि उसे जरा भी आभास नहीं हुआ था कि वह आदमी तो कब का मर चुका है. मगर वह अभी भी उस के पूरे जिस्म पर चाकू से अनगिनत जख्म बनाए जा रही थी. पता नहीं उसे उस आदमी से कितनी नफरत थी, जो वह उसे छलनी बना रही थी.

जब कृति के अंदर का गुस्सा कुछ कम हुआ तो वह रुक कर जोरजोर से सांसें लेने लगी. मगर जैसे ही उस की नजर खून से रंगे अपने हाथों और कपड़ों पर पड़ी तो पता नहीं क्या सोच कर वह जोरजोर से चीखने लगी.

पास के पलंग पर नयना अभी भी कमरे में हो रहे खूनखराबे से अनजान कुंभकरण की नींद सो रही थी. ऐसा लग रहा था, मानो वह नींद की गोली खा कर सो रही हो.  पलंग के पास ही फर्श पर उस मृत आदमी का जिस्म खून से लथपथ पड़ा था. उस के शरीर पर एक महंगा नाइट गाऊन था.

शांति विला के चारों ओर ऊंची चारदीवारी थी. चारदीवारी और मकान के बीच में 25 से 30 फीट का फासला था. जिस के कारण कृति के रोनेचिल्लाने की आवाज आसपास के घरों एवं फ्लैटों में नहीं के बराबर ही जा रही थी. वैसे भी जाड़े की रात में लोग ज्यादा ओढ़ढांक कर सोते हैं.

कृति के चीखने एवं जोरजोर से रोने की आवाज सुन कर नयना की नींद आखिर टूट ही गई. वह हड़बड़ा कर झट से उठ कर बैठ गई.

सामने का दृश्य देख कर उस के होश उड़ गए. कृति नयना की बड़ी बहन थी. और कमरे में मृत पड़ा इंसान कोई और नहीं बल्कि दोनों का पिता गजेंद्र मेहरा था. कृति ने अभी अपने ही डैडी का खून किया था.

आखिर उस ने अपने ही डैडी का इतनी बेरहमी से कत्ल क्यों किया था? नयना के दिमाग में भी ऐसे ही अनगिनत सवाल उमड़ रहे थे.

‘‘दीदी, यह तुम ने क्या किया? तुम ने अपने ही हाथों से डैडी का खून…’’

‘‘नयना, यह इंसान हमारा डैडी नहीं था, बल्कि डैडी के वेश में छिपा हुआ एक जालिम भेडि़या था. जिस की घिनौनी हरकतों के बारे में सिर्फ सोच कर ही रूह कांप जाती है. दुनिया में इस से ज्यादा कमीना और गिरी हुई सोच वाला बाप कोई नहीं होगा.’’ कृति अपने अंदर की धधकती हुई  ज्वालामुखी को शांत करती हुई बीच में ही बोल पड़ी थी.

‘‘दीदी, तुम ऐसा क्यों बोल रही हो? मुझे पूरी बात बताओ, आखिर हुआ क्या था?’’  नयना अपनी बड़ी बहन कृति के पास आ कर उस के कंधे पर धीरे से हाथ रखते हुए बोली.

कृति अभी भी गुस्से पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. कृति फर्श से धीरे से उठ कर पलंग पर आ कर बैठ गई. पीछे से नयना भी उसी के बगल में बैठ गई.

उन के डैडी गजेंद्र मेहरा, जोकि मुंबई के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन थे, की लाश अभी भी वैसे ही फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी.

‘‘नयना, हर एक इंसान के बरदाश्त और धैर्य करने की सीमा एक न एक दिन टूट ही जाती है. आखिर इंसान तो इंसान ही होता है न. यह मरा हुआ हम दोनों का डैडी, मगर पता नहीं अब मैं इसे किस नाम से पुकारूं, पापी पापा, ब्लडी डैडी, कुकर्मी बाप या पता नहीं और क्याक्या उपमा दूं इसे. मुझ जैसी बेटी ऐसे कुकर्मी बाप को कुछ भी कहेगी, कम ही होगा. काश! ऐसा डैडी किसी का न हो.’’ कृति अपने चेहरे पर जमाने भर के कठोर भाव लाते हुए बोली.

‘‘नयना, आज मैं ने जो काम किया है न, वह मुझे बहुत पहले ही कर देना चाहिए था. कम से कम मुझ जैसी बेटी की उस का अपना सगा बाप ही इज्जत तो नहीं लूटता.’’

कृति की बात सुन कर नयना के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई.

‘‘दीदी, यह तुम क्या कह रही हो, डैडी ने तुम्हारी…’’

‘‘हां, एक बार नहीं बहुत बार. आज यह कमीना बाप तुम्हारी भी इज्जत लूटने इस कमरे में आया था. तुम्हें आज इस ने दूध में नींद की गोलियां मिला कर दी थीं, ताकि तुम बेफिक्र हो कर सो जाओ और यह कुकर्मी अपनी हवस आराम से मिटा ले. मगर आज मेरी सहनशक्ति की सीमा टूट गई और मैं ने इसे मार दिया.’’

यह सुन कर नयना पर तो मानो पहाड़ ही टूट कर गिर पड़ा.

‘‘ये मैं क्या सुन रही हूं, यह इंसान जिसे आज तक मैं अपना डैडी समझती आ रही थी, वह इतना घिनौना और ब्लडी था. इसे तो अब डैडी कहने में भी शर्म आ रही है. दुनिया की कोई भी बेटी कभी ऐसे डैडी की कल्पना भी नहीं कर सकती है.’’ नयना भी गुस्से में मृत पड़े अपने डैडी को खा जाने वाली निगाहों से देखती हुई बोली.

‘‘दीदी, आज तुम मुझे पूरी बात बताओ. आखिर यह इंसान ऐसा कर क्यों रहा था? ’’

‘‘नयना, पता नहीं इस कुकर्मी बाप के कत्ल के इल्जाम में मुझे फांसी होगी या उम्रकैद की सजा. लेकिन मैं सीने में सच्चाई रूपी बोझ को दबाए नहीं मरना चाहती हूं. इसलिए आज मैं तुम को पूरी बात बताऊंगी.’’

कृति ने एक लंबी सांस ली. उस समय रात के एक बज रहे थे. ठंड अधिक होने के कारण बाहर श्मशान सा सन्नाटा पसरा हुआ था. कृति उसी समय अपनी बहन को पूरी बात विस्तार से बताने लगी.

कृति ने कहा कि जानती हो नयना, यह शांति विला मां की मां यानी नानी के लिए नाना ने ही बनवाया था. शांति नानी का ही नाम था. मां अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान थीं. इसलिए नानानानी के मरने के बाद यह घर और उन की पूरी जायदाद मां को ही मिली थी.

मां बचपन से ही बहुत जिद्दी थीं. उन्होंने कालेज में अपने साथ पढ़ने वाले एक गरीब परिवार के युवक गजेंद्र मेहरा यानी हम दोनों के इस कुकर्मी बाप से अपने मम्मीपापा से झगड़ा कर के शादी की थी. नानानानी को भी अंत में अपनी इकलौती बेटी की जिद के आगे झुकना ही पड़ा था.

शुरूशुरू में तो सब कुछ ठीक रहा. नाना ने भी अपना सारा बिजनैस डैडी को सौंप दिया था. डैडी भी मन लगा कर बिजनैस की अच्छी तरह से देखभाल कर रहे थे.

शादी के 2 साल बाद मेरा और मेरे जन्म के 2 साल बाद तुम्हारा जन्म हुआ था. तुम्हारे जन्म के एक साल बाद ही एक कार दुर्घटना में नानानानी मर गए थे. नानानानी के मरते ही पता नहीं क्यों डैडी का स्वभाव एकदम से बदल गया था. अब वह बातबात पर मां से झगड़ा करने लगे थे. फिर भी मां हम दोनों की खातिर सब कुछ चुपचाप सहती जा रही थी.

उधर डैडी की हरकतें दिनप्रतिदिन और बदलती जा रही थीं. अब वह काम के बहाने अकसर घर से रात में भी बाहर ही रहने लगे थे. जबकि ये सब झूठ था. उन का अपनी ही सेक्रेटरी के साथ चक्कर चल रहा था और वो रात उसी के पास गुजारते थे.

जब मां को इस बात का पता चला तो उन्होंने गुस्से में डैडी से तलाक के लिए कोर्ट में अरजी दी. सारा कारोबार एवं यह घर भी मां के नाम पर ही था और मां यदि डैडी से तलाक ले लेतीं तो वह कंगाल बन कर सड़क पर आ जाते. इसीलिए वह किसी भी हालत में तलाक नहीं लेना चाहते थे. इस के लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. पैसे से वकील और जज को खरीद कर बारबार तलाक की अरजी को नामंजूर करवा दे रहे थे.

तारीख दर तारीख सिर्फ सुनवाई की तिथि बढ़ रही थी. देखते ही देखते तलाक के लिए कोर्ट का चक्कर लगाते मां को 7 साल बीत गए. फिर भी तलाक पर कोर्ट का कोई फैसला नहीं हुआ.

इसी बीच मां का बिना तलाक लिए ही दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. मगर अब हमें लगता है कि नाना, नानी और मां को भी डैडी ने ही पूरी प्लानिंग के साथ सिर्फ जायदाद हड़पने के लिए मरवा दिया था.

यह सुनातेसुनाते कृति की आखों से फिर आंसू निकलने लगे. जबकि नयना ध्यान से पूरी बात सुन रही थी. उस ने कहा, ‘‘डैडी के साथ आए दिन होने वाले झगड़े के कारण ही शायद मां ने हम दोनों बहनों को बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने को भेज दिया था. जिस के कारण ही हम दोनों आज तक घर के सारे हालात से अनजान थे. मां को शायद अपने मरने का भी आभास हो गया था, इसीलिए उन्होंने अपनी सारी जायदाद मेरे नाम कर दी थी.

‘‘यह जायदाद बाद में जब तुम्हारी भी उम्र 20 साल की हो जाओगी तो इस में से आधी तुम्हारे नाम हो जाएगी. इसीलिए डैडी मां के मरते ही मुझे तुरंत हौस्टल से अपने पास बुला लिया था, ताकि वो मुझ से बहलाफुसला कर सारी जायदाद अपने नाम करवा सके.’’ कहतेकहते फिर से कृति सिसकने लगी.

‘‘जानती हो नयना, मुझे मां की एक दोस्त जाह्नवी आंटी ने सारी बातें मेरे घर आने के ठीक अगले ही दिन बता दी थीं. इसीलिए मुझे डैडी की सारी सच्चाई और उन की काली करतूतों का पता चल गया था. अब तो मुझे भी उन से नफरत हो गई थी. तभी उन के लाख कोशिश के बावजूद भी मैं जायदाद उन के नाम नहीं की थी.

‘‘इस के बाद ही डैडी का घिनौना चेहरा मेरे सामने उजागर हुआ था. मेरा घर से निकलना बंद करवा दिया गया था. मुझे तुम से फोन पर डैडी अपने सामने बैठा कर ही बात करवाते थे. उस के बाद फिर मुझे कमरे में भूखेप्यासे बंद कर दिया जाता था.

‘‘इस पर भी जब इस जालिम बाप का दिल नहीं भरा तो वह जायदाद को जबरदस्ती अपने नाम करवाने के लिए मुझे मारनेपीटने भी लगा था. मगर मैं ने भी फैसला कर लिया था कि जीते जी मां की अमानत को इस निर्दयी इंसान के नाम कभी नहीं लिखूंगी.’’

कृति ने रुक कर एक लंबी सांस ली और कहा, ‘‘नयना, इस के बाद तो इंसानियत की सारी मर्यादाएं ही टूट गईं, जब यह बेशर्म बाप अपनी ही बेटी की अस्मत रोज तारतार करने लगा.’’

उस की बात सुन कर नयना दंग रह गई. वह बोली, ‘‘दीदी, इस इंसान को तो डैडी कहते हुए भी अब शर्म आ रही है. आखिर कोई इंसान इतना घिनौना काम कैसे कर सकता है? क्या आज आदमी के अंदर की इंसानियत एकदम खत्म हो गई है, जो उसे अपनी बेटी को भी हवस का शिकार बनाने में जरा भी शर्म और ग्लानि महसूस नहीं हो रही थी.’’

नयना का क्रोध भी सारी बातें सुन कर सातवें आसमान पर पहुंच गया था.

‘‘नयना, पूरी बात सुनोगी तो तुम भी दंग रह जाओगी. तुम को भी हौस्टल से यहां इसीलिए इस जालिम ने बुलाया था, ताकि यह तुम्हें भी अपनी हवस का शिकार बना कर मुझे जायदाद अपने नाम लिखने को मजबूर कर सके.’’  कहतेकहते कृति नयना से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी.

‘‘नयना, अब इस दुनिया में तुम्हारे सिवाय मेरा था ही कौन. मैं खुद तो रोज तिलतिल कर मर ही रही थी, आखिर तुम्हें भी कैसे यह जिल्लत भरी जिंदगी जीने देती, इसीलिए मैं ने इस जालिम इंसान का खून कर दिया.’’

कृति नयना से लिपटी रोती हुई अपने दिल की भड़ास निकाले जा रही थी. बीचबीच में नयना भी रोती हुई अपनी बहन को सांत्वना दे रही थी.

रात के सन्नाटे को चीरती हुई दोनों बहनों की सिसकियां धीरेधीरे संपूर्ण वातावरण में फैलने लगी थीं, मगर उसे कोई सुनने वाला नहीं था.

आज दौलत के चक्कर में इंसान की इंसानियत इतनी गिर गई है कि उसे अपने खून के रिश्ते भी नहीं दिख रहे. शायद सच में वह ब्लडी डैडी ही था.

अगली सुबह खुद कृति ने ही पुलिस को फोन कर के पिता की हत्या की सूचना दे दी. पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर गजेंद्र मेहरा के शव को बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने हत्या की आरोपी कृति को हिरासत में ले कर बाल न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया. बाल सुधार गृह से कृति को 2 साल बाद रिहा कर दिया गया. इस के बाद कृति और नयना ने मिल कर एक्सपोर्ट बिजनैस शुरू कर दिया. दोनों बहनें अब अपने बीते हुए कल को भूल चुकी हैं.     द्य

बेटी के नाम पर कलंक है हरमीत कौर

पंजाब के जिला गुरदासपुर के कस्बाथाना धारीवाल के रहने वाले जाट सरदार पलविंदर सिंह के परिवार में पत्नी परमजीत कौर के अलावा 20 साल की बेटी हरमीत कौर थी. वह पंजाब पुलिस में हवलदार थे और इन दिनों पीएसी की 75वीं बटालियन की ओर से धार्मिक गुरु बाबा भनियार वाले की सुरक्षा में तैनात थे.

वह शरीफ, ईमानदार और जांबाज सिपाही थे. पलविंदर सिंह एक जिम्मेदार पिता और पति ही नहीं, समाजसेवक भी थे. उन्होंने कई रक्तदान कैंप अपने खर्चे पर लगवाए थे और जरूरतमंद लोगों के लिए सैकड़ों यूनिट खून जमा करा कर प्रशासन को दिया था. बाबा भनियार वाले की सुरक्षा में तैनाती के बाद से वह काफी व्यस्त हो गए थे. वह महीने, डेढ़ महीने में ही घर आ पाते थे.

28 अगस्त, 2016 को वह 4 दिनों की छुट्टी ले कर घर आए थे. सोमवार की रात को खाना खा कर वह आंगन में ही चारपाई डाल कर सो गए थे, जबकि पत्नी और बेटी अपनेअपने कमरों में जा कर सो गई थीं. रात करीब 2 बजे कमरे में सो रही परमजीत कौर को आंगन में सो रहे पति के कराहने की आवाज सुनाई दी तो वह कमरे से निकल कर पति के पास आ गई. उस समय पलविंदर सिंह तड़पते हुए छाती को जोरजोर से मसल रहे थे.

परमजीत कौर को लगा कि पति को हार्ट अटैक आया है, वह भी उन के सीने को सहलाने लगी. तभी उन्होंने देखा कि पति के नाक और मुंह से खून निकल रहा है. यह देख कर वह घबरा गईं और जल्दी से जा कर पड़ोस में रहने वाले जेठ मंगल सिंह को बुला लाई. पत्नी के साथ वह तुरंत आ गए. लेकिन जब वह आए तो पलविंदर एकदम शांति से बिस्तर पर लेटे थे. उन्होंने उन्हें हिलाडुला कर भी देखा. ऐसा लगा, जैसे उन में जान ही नहीं है. अब तक मंगल सिंह का बेटा और पलविंदर की बेटी हरमीत कौर भी वहां आ गई थी.

पलविंदर को उठा कर गाड़ी में डाल कर गुरदासपुर के सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने चैकअप कर के उन्हें मृत घोषित कर दिया. घर वालों ने बताया था कि यह मौत हार्ट अटैक से हुई है, लेकिन चैकअप करने वालों डाक्टरों को यह मौत हार्ट अटैक से नहीं लगी तो उन्होंने इस की सूचना थाना धारीवाल पुलिस को दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर कुलवंत सिंह अधीनस्थों के साथ सिविल अस्पताल पहुंच गए थे.

पलविंदर की लाश कब्जे में ले कर कुलवंत सिंह ने परमजीत कौर से पूछताछ की तो उन्होंने उन से भी बताया कि रात में सोने के दौरान उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. इस के बाद कुलवंत सिंह ने सीआरपीसी की धारा 174 के तहत काररवाई करते हुए मौत की पुष्टि के लिए लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी में रखवा दिया.

पर परमजीत कौर का कहना था कि उस के पति की मौत हार्ट अटैक से हुई है तो पोस्टमार्टम कराने की क्या जरूरत है, अंतिम संस्कार के लिए लाश उन के हवाले कर दी जाए. इस बात को ले कर परमजीत कौर और हरमीत कौर ने अस्पताल में अच्छाखासा हंगामा भी किया, लेकिन कुलवंत सिंह ने यह कह कर उन्हें शांत करा दिया कि सच्चाई का पता लगाने के लिए यह जरूरी है. यह 30 अगस्त, 2016 की बात है.

सिविल अस्पताल के डाक्टरों ने एक पैनल बना कर उसी दिन पलविंदर सिंह की लाश का पोस्टमार्टम कर के रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी, जो काफी चौंकाने वाली थी. रिपोर्ट के अनुसार मृतक का गला किसी तेजधार हथियार से काटा गया था. श्वांस नली कटने से पलविंदर की मौत हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से कुलवंत सिंह को यह मामला काफी संदिग्ध लगा. उन्हें परमजीत का बयान रहस्यमय लगने लगा, इसलिए उन्होंने तुरंत एएसआई जसबीर सिंह और हैडकांस्टेबल गुरमुख सिंह को मृतक पलविंदर सिंह के घर भेज कर घटनास्थल को सील करा दिया, जिस से घटनास्थल पर किसी चीज से छेड़छाड़ न की जा सके. इस के बाद उन्होंने इस घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दे दी थी.

चूंकि मामला विभाग के एक पुलिसकर्मी की रहस्यमयी मौत का था,इसलिए सूचना मिलते ही एसएसपी जगदीप सिंह, एसपी प्रदीप मलिक, डीएसपी ए.डी. सिंह मृतक पलविंदर सिंह के घर पहुंच गए थे. क्राइम टीम, डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया गया था.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया तो उन्हें यह मामला हत्या का लगा. क्योंकि पलविंदर सिंह जिस बिस्तर पर सोए थे, वह खून से तर था. नाक और कान से इतना खून नहीं निकल सकता था.

एसएसपी जगदीप सिंह के आदेश पर थाना धारीवाल पुलिस ने पलविंदर सिंह की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. कुलवंत सिंह को लगा था कि परमजीत कौर को या तो कुछ पता नहीं है या फिर वह झूठ बोल रही है. क्योंकि हार्ट अटैक से हुई मौत और हत्या में जमीनआसमान का फर्क होता है.

उन्होंने एएसआई जसबीर सिंह, विजय कुमार, हैडकांस्टेबल ओंकार सिंह, गुरमुख सिंह, कुलविंदर सिंह, कांस्टेबल मंजीत को मिला कर एक टीम बनाई और उसे सच्चाई का पता लगाने के लिए लगा दिया. पड़ोसियों से की गई पूछताछ में कुलवंत सिंह को पता चला कि पलविंदर सिंह की बेटी हरमीत कौर से किसी बात को ले कर अकसर कहासुनी होती रहती थी.

ऐसी ही एक हैरान करने वाली जानकारी यह भी मिली कि हरमीत कौर का किसी लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था और वह उस से शादी करना चाहती थी. जबकि पलविंदर सिंह इस शादी के लिए राजी नहीं थे, लेकिन उन की पत्नी परमजीत कौर राजी थी. इसी बात को ले कर अकसर घर में झगड़ा होता रहता था.

कुलवंत सिंह ने इस बात को ध्यान में रख कर जांच शुरू की. महिला सिपाही सुरजीत कौर ने हरमीत कौर से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि अपने प्रेमी के साथ मिल कर उसी ने वासनापूर्ति के लिए जिस बाप ने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया, पढ़ालिखा कर समाज में जीने का मकसद दिया, उसी को मार दिया था.

इस के बाद परमजीत कौर ने भी स्वीकार कर लिया था कि उस ने भी बेटी को बचाने के लिए झूठ बोला था. कुलवंत सिंह ने उसी दिन हरमीत कौर की निशानदेही पर गांव दोस्तपुर से हरमीत कौर के प्रेमी गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी तथा उस के दोस्त मनजिंदर सिंह को गिरफ्तार कर सभी को जिला मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया था.

रिमांड अवधि के दौरान सभी से हुई पूछताछ में पलविंदर सिंह की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अधिक लाडप्यार में बिगड़ी औलाद और स्वार्थ की खोखली नींव पर टिके रिश्ते की कहानी थी—

हरमीत कौर बचपन से ही पलविंदर सिंह की बेहद लाडली थी. वह बेटी को दुनिया की तमाम खुशियां देना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने उस की पढ़ाई महंगे स्कूलों में कराई. वह चाहते थे कि हरमीत कौर उच्च शिक्षा हासिल कर आईपीएस बने. लेकिन कालेज में कदम रखते ही हरमीत कौर उन के अरमानों पर पानी फेर कर आधुनिकता के रंग में रंग कर आशिकी के चक्कर में पड़ गई.

हरमीत कौर सुंदर तो थी ही, उस की बातचीत की शैली और व्यक्तित्व भी काफी प्रभावशाली था. उस के चाहने वाले तो बहुत थे, पर उस का दिल गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी पर आ गया.  धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. नजदीकियां बढ़ीं तो दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए. फिर तो हरमीत को इस का ऐसा चस्का लगा कि वह गुरप्रीत से बाहर तो मिलती ही थी, घर भी बुलाने लगी.

क्योंकि घर में उसे पूरी तरह एकांत मिलता था. उस की मां का अलग कमरा था. वह ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती थीं. पलविंदर महीने, डेढ़ महीने में आते थे. ऐसे में हरमीत मरजी की मालिक बन गई थी. यही नहीं, वह दिन पर दिन जिद्दी भी होती जा रही थी.

अपने इसी जिद्दी स्वभाव की वजह उस ने तय कर लिया था कि वह शादी करेगी तो गुरप्रीत से ही करेगी. पलविंदर सिंह बेटी के इस फैसले और हरकत से अंजान उस के भविष्य को संवारने के लिए एकएक पैसा जोड़ रहे थे. जिस दिन उन्हें हरमीत की इस आवारगी का पता चला, गहरा आघात लगा.

पहले तो उन्होंने पत्नी परमजीत को आड़े हाथों लिया, उस के बाद हरमीत कौर की खबर ली. उन्होंने साफसाफ कह दिया कि इश्कमुश्क और शादीब्याह को दिमाग से निकाल कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. अब अगर उन्होंने सुन लिया कि वह उस लड़के से मिली है तो ठीक नहीं होगा.

लेकिन जिद्दी हरमीत कौर ने पिता की बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और बेहिचक पहले की ही तरह गुरप्रीत से मिलती रही. ऐसे में ही किसी दिन उस ने गुरप्रीत से कहा, ‘‘पापा के जीते जी तो हम दोनों कभी शादी कर नहीं सकते, क्यों न हम दोनों भाग कर शादी कर लें?’’

‘‘घर से भाग कर शादी करने के लिए काफी रुपयों की जरूरत होती है, जो हमारे पास नहीं है.’’ गुरप्रीत ने कहा तो हरमीत ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम रुपयों की चिंता मत करो. मेरे पापा ने मेरे भविष्य के लिए बहुत रुपए जमा कर रखे हैं.’’

हरमीत कौर ने गुरप्रीत के साथ भागने की कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार वह यह सोच कर शांत बैठ गई कि अंजान जगह पर अंजान लोगों के बीच वह कैसे रह पाएगी? एक दिन किसी ने पलविंदर को हरमीत और गुरप्रीत के मिलने की जगह और समय बता दिया तो पलविंदर ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया.

इस बार उस ने हरमीत कौर को लताड़ा ही नहीं, 2-4 थप्पड़ जड़ कर हाथ जोड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘मेरे सपने और अपना भविष्य बरबाद मत कर बेटी. मैं यह सब सह नहीं पाऊंगा और आत्महत्या कर लूंगा.’’

हरमीत कौर को पिता पर दया आने के बजाय घृणा हो गई. उस के मन में आया कि पिता की सर्विस रिवौल्वर से गोली मार उन्हें खत्म कर दे. बाद में कह देगी कि किसी बदमाश ने उन पर हमला किया है. इस के बाद दिनरात वह केवल एक ही बात सोचने लगी कि प्रेम कहानी में रोड़ा बन रहे पिता को कैसे रास्ते से हटाया जाए?

एक दिन पलविंदर सिंह पत्नी के साथ सो रहा था, तभी रात 1 बजे उसे हरमीत कौर के कमरे से खटरपटर की आवाजें आती सुनाई दीं. वह उठ कर बाहर आया तो उस के कमरे से एक साए को निकल कर दीवार फांदते देखा.

पलविंदर सिंह समझ गया कि वह गुरप्रीत ही था. अगले दिन ड्यूटी पर जाने से पहले पलविंदर ने हरमीत को खूब समझाया. अंत में उस ने यह भी बताया कि रात को उस ने सब कुछ देख लिया है. वह यह सब बंद कर दे, वरना परिणाम बहुत भयानक होगा.

बस, उसी दिन हरमीत कौर ने तय कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो, वह पिता को जिंदा नहीं छोड़ेगी. उसी दिन गुरप्रीत से मिल कर उस ने पिता की हत्या की योजना बना डाली.

चूंकि गुरप्रीत यह काम अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने जिगरी दोस्त मनजिंदर सिंह को अपने साथ मिला लिया. उस ने इस काम के लिए उसे कुछ पैसे भी देने को कहा. हरमीत कौर ने कुछ रुपए गुरप्रीत को दिए, जिस से उस ने एक तेजधार वाला दातर खरीदा और कुछ रुपए मनजिंदर को दे दिए.

अब उन्हें इंतजार था पलविंदर सिंह के छुट्टी आने का. 29 अगस्त को वह छुट्टी पर घर आए और हरमीत कौर पर नजर रखने के लिए अपना बिस्तर आंगन में लगाया.

हरमीत कौर ने रात 9 बजे गुरप्रीत को पिता के घर आने और आंगन में सोने की सूचना दे दी. रात करीब 1 बजे हरमीत कौर ने उठ कर बाहर के दरवाजे की कुंडी खोल दी, जिस से गुरप्रीत को अंदर आने में परेशानी न हो. रात 2 बजे के करीब गुरप्रीत अपने दोस्त मनजिंदर के साथ हरमीत के घर पहुंचा तो वह उसे बरामदे में खड़ी मिली.

बिना आवाज किए तीनों पलविंदर सिंह की चारपाई के पास पहुंचे. मनजिंदर और हरमीत कौर ने गहरी नींद सो रहे पलविंदर सिंह के हाथपैर पकड़ लिए तो गुरप्रीत ने दातर से उस की श्वांस नली काट दी, जिस से उस की तुरंत मौत हो गई. पलविंदर सिंह की हत्या कर के गुरप्रीत और मनजिंदर चले गए तो हरमीत कौर मां के साथ मिल कर पिता की हार्ट अटैक से हुई मौत का नाटक करने लगी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने वह दातर बरामद कर लिया था, जिस से पलविंदर सिंह की हत्या की गई थी. इस के बाद 3 सितंबर, 2016 को सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस तरह स्वार्थी रिश्तों ने खून को पानी बना दिया और एक कानून के रक्षक की बेटी यह भी नहीं सोच सकी कि चाहे कितना भी झूठ क्यों न बोला जाए, सच से आखिर परदा उठ कर ही रहता है.

 – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सूनी होने से बची सोनी की गोद

4 जून, 2017 को आधी रात तक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर ज्यादातर लोग सो गए थे. सिर्फ वही जाग रहे थे, जिन की गाड़ियां आने वाली थीं. स्टेशन के वेटिंग रूम में सोने वाले यात्रियों में सोनी और राम सिंह चौहान भी थे. ये मध्य प्रदेश के जिला सीधी के रहने वाले थे. इन्हें पंजाब के अमृतसर जाना था.

उन की गाड़ी सुबह की थी, इसलिए पतिपत्नी वेटिंग रूम में जा कर साथ लाया बिस्तर लगा कर अपने 5 महीने के बेटे कुलदीप उर्फ हर्ष के साथ सो गए थे. सुबह 3, साढ़े 3 बजे सोनी की आंखें खुली तो उस ने बगल में सो रहे बेटे को टटोला. बेटे को अपनी जगह न पा कर वह एकदम से हकबका कर उठी और इधरउधर देखने लगी. उसे लगा कि बेटा खिसक गया होगा. लेकिन बेटा कहीं दिखाई नहीं दिया. उस ने झकझोर कर बगल में सो रहे पति को जगाया, ‘‘हर्ष कहां है?’’

आंखें मलते हुए राम सिंह ने भी इधरउधर देखा. बेटा कहीं नहीं दिखाई दिया तो उसे समझते देर नहीं लगी कि उस के बेटे को कोई उठा ले गया है. जैसे ही उस ने यह बात सोनी से कही, वह रोनेचीखने लगी. फिर तो जरा सी देर में उन के पास भीड़ लग गई. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे, जबकि सोनी का रोरो कर बुरा हाल था. राम सिंह भी सकते में था कि अब वह क्या करे, बेटे को कहां खोजे?

थोड़ी ही देर में मासूम बच्चे की चोरी की बात पूरे रेलवे स्टेशन में फैल गई, जिस से वेटिंग रूम में खासी भीड़ लग गई थी. बच्चे के मांबाप की हालत देख कर सभी दुखी थे. लोग उन पर तरस तो खा रहे थे, लेकिन कुछ करने की स्थिति में नहीं थे. बच्चा चोरी की सूचना स्टेशन पर स्थित थाना जीआरपी को मिली तो जीआरपी की टीम बच्चे की खोजबीन में लग गई. लेकिन काफी मेहनत के बाद कोई सफलता नहीं मिली.

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सुबह जीआरपी थानाप्रभारी मनोज सिंह ने चोरी गए बच्चे के पिता राम सिंह से तहरीर ले कर अज्ञात के खिलाफ बच्चे की चोरी का मुकदमा दर्ज कर बच्चा चोरी की जानकारी एसपी रेलवे इलाहाबाद दीपक भट्ट को दे दी. सूचना मिलते ही दीपक भट्ट स्टेशन पर पहुंचे और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई.

सीसीटीवी फुटेज देखी गई तो उस में काले रंग की एक महिला सोनी और राम सिंह के बेटे कुलदीप उर्फ हर्ष को चुरा कर ले जाती साफ दिखाई दी. वह औरत बच्चे को ले कर सिविल लाइंस की ओर स्टेशन से बाहर निकली और पैदल ही अंधेरे में गायब हो गई थी. इस तरह पुलिस को बच्चा चुराने वाली औरत का फोटो मिल गया था.

इस के बाद दीपक भट्ट के आदेश पर थानाप्रभारी मनोज सिंह ने सीसीटीवी फुटेज से उस औरत का फोटो निकलवा कर पोस्टर छपवाए और पूरे शहर में सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. पोस्टर में पुलिस वालों के फोन नंबर के साथ बच्चे के बारे में सूचना देने वाले के लिए इनाम की भी घोषणा की गई थी.

इसी के साथ बच्चे की तलाश और उसे चुराने वाली औरत की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित की गई, जिस में जीआरपी थानाप्रभारी मनोज सिंह, एसएसआई कैलाशपति सिंह, एसआई अंजनी सिंह, विनोद कुमार मौर्य, सर्विलांस प्रभारी सुबोध कुमार सिंह, एसआई मनोज कुमार और उदयशंकर कुशवाह को शामिल किया गया था.

पुलिस ने शहर के दारागंज रेलवे स्टेशन पर भी बच्चा चुराने वाली उस औरत के फोटो वाला पोस्टर चस्पा कराया था. स्टेशन पर ही चायपकौड़ा की दुकान लगाने वाले रामखेलावन (बदला हुआ नाम) ने वह पोस्टर देखा तो जीआरपी द्वारा पोस्टर में दिए गए फोन नंबर पर उस ने फोन किया. थानाप्रभारी मनोज सिंह ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, आप लोगों को बच्चा चुराने वाली जिस महिला की तलाश है, वह बच्चे को ले कर मेरी दुकान पर आई थी.’’

‘‘तुम ऐसा करो, तुरंत इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी थाने आ जाओ.’’ मनोज सिंह ने कुछ पूछने के बजाय सीधे कहा, ‘‘तुम्हें थाने आने में कोई परेशानी तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं साहब, अगर मेरी वजह से किसी का बच्चा मिल जाता है तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’ रामखेलावन ने कहा.

थोड़ी देर में रामखेलावन जीआरपी थाना पहुंच गया. पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि बच्चा चुराने वाली महिला सुबह मुंह अंधेरे उस की दुकान पर आई थी. उस के पास पैसे नहीं थे. उस ने कुछ खाने को मांगा तो उस की हालत पर तरस खा कर उस ने उसे पकौड़ा भी खिलाया था और चाय भी पिलाई थी. उस समय उस की गोद में एक बच्चा था, जिसे वह साड़ी के पल्लू से ढके थी.

रामखेलावन की सहानुभूति पा कर उस ने उसे एक मोबाइल नंबर दे कर कहा था, ‘‘भइया, आप ने मुझ पर इतनी मेहरबानी की है तो एक मेहरबानी और कर दीजिए.’’

‘‘बताओ और क्या चाहिए?’’ रामखेलावन ने पूछा.

इस के बाद उस महिला ने एक पर्ची देते हुए कहा, ‘‘इस कागज पर लिखे नंबर पर फोन कर के मेरी बात करा दीजिए. यह नंबर मेरे दामाद का है. आप मेरा इतना काम और कर दीजिए, आप की बड़ी मेहरबानी होगी.’’

रामखेलावन ने पर्ची पर लिखा फोन नंबर मिला कर फोन महिला को दे दिया था. उस ने क्या बात की, यह रामखेलावन नहीं जान सका था, क्योंकि वह अपनी दुकानदारी में लग गया था. फिर उसे क्या पता था कि वह औरत बच्चा चुरा कर ले जा रही है.

‘‘उस महिला ने जो मोबाइल नंबर तुम्हें दिया था, वह नंबर तो तुम्हारे मोबाइल में होगा?’’ मनोज सिंह ने पूछा.

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‘‘जी साहब, वह नंबर अभी भी मेरे मोबाइल में है?’’ रामखेलावन ने कहा.

इस के बाद रामखेलान ने वह नंबर निकाल कर थानाप्रभारी को दे दिया. उन्होंने वह नंबर डायरी में नोट किया और रामखेलावन का आभार व्यक्त कर के उसे विदा कर दिया.

थानाप्रभारी ने यह सारी जानकारी एसपी दीपक भट्ट को दी तो उन्होंने तुरंत रामखेलावन से मिले मोबाइन नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. चूंकि वह नंबर चल रहा था, इसलिए उस नंबर की लोकेशन मिल गई. वह नंबर जिला जौनपुर के गांव सुरेरी में चल रहा था.

रामखेलावन ने मनोज सिंह को यह भी बताया था कि महिला ने कहा था कि वह ज्ञानपुर रेलवे स्टेशन पर उतर कर अपने गांव जाएगी. किस गांव जाएगी, यह उस ने नहीं बताया था. पुलिस के लिए यह एक अहम सुराग था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो पता चला कि वह सुरेरी गांव के सिपाही के नाम है.

बच्चे की खोज के लिए गठित टीम 14 जून को जौनपुर के गांव सुरेरी पहुंच गई. पुलिस ने बच्चा चुराने वाली महिला का पोस्टर गांव वालों को दिखाया तो गांव का कोई आदमी उसे पहचान नहीं सका. पुलिस ने सिपाही के बारे में पता किया तो उस गांव में सिपाही नाम के कई लोग थे. लेकिन वह सिपाही नहीं मिला, जिस से महिला ने बात की थी.

जीआरपी टीम उसे फोन कर सकती थी, लेकिन पुलिस ने उसे इसलिए फोन नहीं किया था कि कहीं सिपाही भी इस खेल में शामिल न हो, उसे शक हो गया हो वह बच्चे को ले कर भाग सकता है. लेकिन जब उस सिपाही का पता नहीं चला, जिस से उस औरत ने बात की थी तो मजबूर हो कर पुलिस ने उसे फोन किया. वह गलत आदमी नहीं था, इसलिए उस ने पुलिस से बात ही नहीं की, बल्कि पुलिस टीम से मिलने भी आ पहुंचा.

जीआरपी ने जब उसे वह पोस्टर दिखाया तो उस ने बताया कि इस औरत का नाम करुणा है और यह उस की चाचिया सास है. यह भदोही के ज्ञानपुर में रहती है. लेकिन यह ज्यादातर मुंबई में रहती है, क्योंकि यह वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी करती है.

इस के बाद जीआरपी टीम सिपाही को साथ ले कर उस की ससुराल पहुंची, जहां करुणा बच्चे के साथ मिल गई. लेकिन जैसे ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार करना चाहा, उस ने शोर मचा कर पूरा गांव इकट्ठा कर लिया.

उस का कहना था कि यह बच्चा उस का है और उस के बेटे को किसी और का बता कर पुलिस उस से छीन रही है. उस ने धमकी दी कि इस बात की शिकायत वह पुलिस अधिकारियों से करेगी. लेकिन जब पुलिस ने अपना पुलिसिया हथकंडा दिखाया तो वह शांत हो गई. इस की एक वजह यह भी थी कि गांव वालों की कौन कहे, उस की ससुराल वालों ने भी उस का साथ नहीं दिया था.

इस की वजह यह थी कि सभी को लगता था कि यह बच्चा उस का नहीं हो सकता. क्योंकि करुणा जहां गहरे रंग की थी, वहीं बच्चा काफी सुंदर था. जिस से लोगों को संदेह हो रहा था कि करुणा यह बच्चा कहीं से चोरी कर के लाई है.

करुणा की ससुराल वालों की मदद से पुलिस ने बच्चे को कब्जे में ले कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस टीम उसे ले कर इलाहाबाद आ गई. बच्चे को उस के मांबाप राम सिंह और सोनी को सौंप कर करुणा से पूछताछ की गई तो उस ने बच्चा चोरी का अपना अपराध स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह पूरी कहानी इस प्रकार थी—

मुंबई के उपनगर ठाणे की रहने वाली करुणा का विवाह वहीं के विजय के साथ 8 साल पहले हुआ था. विजय से उसे एक बेटा भी हुआ. लेकिन बेटा पैदा होने के बाद ऐसा न जाने क्या हुआ कि बेटे को अपने पास रख कर विजय ने उसे घर से भगा दिया. पति के घर से भगाए जाने के बाद करुणा अलग रह कर एक कपड़ा फैक्ट्री में नौकरी करने लगी, जिस से उस का गुजरबसर आराम से होने लगा.

करुणा जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर का रहने वाला पिंटू भी नौकरी करता था. एक साथ काम करने की वजह से पहले दोनों में परिचय हुआ, उस के दोनों में प्यार हो गया. दोनों में शारीरिक संबंध बन गए तो आपसी रजामंदी से उन्होंने शादी कर ली.

पिंटू से विवाह के बाद करुणा को एक बेटी पैदा हुई, जो इस समय 7 साल की है. लेकिन उस की सास को बेटा चाहिए था. करीब 3 साल पहले पिंटू मुंबई से घर आ गया तो करुणा भी उस के साथ आ गई. लेकिन पिछले साल वह गर्भवती हुई तो अपने मायके ठाणे चली गई, जहां उस ने 4 महीने पहले बेटे को जन्म दिया. दुर्भाग्य से 2 महीने बाद ही उस के बेटे की मौत हो गई.

बेटा पैदा होने की बात तो उस ने पति और सास को बता दी थी, लेकिन उस की मौत की बात उस ने छिपा ली थी. उस की सास बारबार फोन कर के पोते को ले कर गांव आने को कह रही थी. पर करुणा के पास बेटा होता तब तो वह उसे ले कर आती. वह कोई न कोई बहाना बना कर टालती रही. अंत में उस की सास ने कहा, ‘‘तुम जब भी आना, मेरे पोते को ले कर आना, वरना मेरे यहां मत आना. तुम अपने मायके में ही रहना, यहां आने की जरूरत नहीं है.’’

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सास की इस धमकी से करुणा परेशान हो उठी. वह सोचने लगी कि अब क्या करे? बिना बच्चे के वह ससुराल आ नहीं सकती थी. काफी सोचविचार कर उस ने कहीं से 4 महीने का बच्चा चुराने की योजना बनाई. जिसे ले जा कर वह ससुराल में जगह पा सके.

यही सोच कर करुणा 27 मई को मुंबई से चली तो अगले दिन इलाहाबाद आ गई. स्टेशन पर इधरउधर भटकते हुए वह 4 महीने के बच्चे की तलाश में लग गई. चूंकि वह शक्लसूरत और पहनावे से भिखारिन जैसी लगती थी, इसलिए उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. क्योंकि स्टेशन पर इस तरह के लोग पड़े ही रहते हैं. फिर वह सचमुच भीख मांग कर अपना पेट भर रही थी.

आखिर 4 जून, 2017 को उस की तलाश पूरी हुई. सोनी और राम सिंह के 4 महीने के बेटे पर उस की नजर पड़ी तो वह उसे ले कर चंपत हो गई.

पूछताछ के बाद मनोज सिंह ने करुणा के खिलाफ अपराध संख्या 448/2017 पर आईपीसी की धारा 363, 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. सोनी बेटे को पा कर बहुत खुश थी. वह बेटे को सीने से लगा कर बारबार पुलिस वालों को दुआएं देते हुए बेटे को दुलार रही थी.