जीजा के चक्रव्यूह में साली

‘‘जीजू, हम लोगों को इस तरह मिलते हुए करीब एक साल हो चुका है. आखिर इस तरह हम लोग चोरीछिपे कब तक मिलते रहेंगे. अगर घर वालों को हमारे संबंधों के बारे में पता चल गया तो क्या होगा? इस से पहले कि किसी को हमारे संबंधों के बारे में पता चले, तुम पापा से बात कर के मेरा हाथ मांग लो वरना मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.’’ कविता ने अपने जीजा वीरेंद्र दयाल से कहा.

‘‘कविता तुम चिंता मत करो. मौका आने दो, मैं पापा से बात कर लूंगा. लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी बड़ी बहन के रहते वह तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में दे देंगे. मैं खुद इसी उलझन में हूं कि इस मामले को कैसे सुलझाऊं.’’ वीरेंद्र दयाल ने कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. तुम्हें यह बात क्लियर करनी पड़ेगी कि मेरे साथ शादी करोगे या नहीं? यह सब तुम्हें पहले सोचना चाहिए था. पहले तो बड़े लंबेचौड़े वादे करते थे. कहते थे कि तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं. वो वादे कहां गए. इस का मतलब तो यह हुआ कि तुम मेरी इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए मुझे बहकाते रहे.’’

‘‘नहीं कविता, ऐसी बात नहीं है. तुम मुझे गलत मत समझो. मैं आज भी तुम से उतना ही प्यार करता हूं. मगर इस समय मैं दुविधा में फंसा हूं. तुम मेरे मन की स्थिति को समझने की कोशिश करो.’’

‘‘देखो जीजू, टालतेटालते कई महीने हो चुके हैं. मैं अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. मैं तुम्हें 15 दिन का समय देती हूं. इन 15 दिनों में अगर तुम ने पापा से मेरा हाथ नहीं मांगा तो मैं खुद अपना घर हमेशा के लिए छोड़ कर तुम्हारे घर आ जाऊंगी.’’ कविता ने धमकी दी.

‘‘नहीं कविता, ऐसा मत करना. मैं कोई न कोई रास्ता निकाल लूंगा.’’ वीरेंद्र दयाल ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. वीरेंद्र जानता था कि कविता बहुत जिद्दी स्वभाव की है. वह एक बार मन में जो ठान लेती थी, उसे पूरा कर के ही मानती थी. इसी वजह से वीरेंद्र उस से परेशान रहता था.  कविता ने अपने जीजा को 15 दिन के अंदर घर वालों से शादी की बात करने का अल्टीमेटम दिया था. इस से पहले कि वीरेंद्र दयाल अपने सासससुर से बात करता, कविता रहस्यमय तरीके से गायब हो गई.

दरअसल 5 फरवरी, 2014 को शाम 4 बजे के करीब कविता बाजार जाने को कह कर घर से निकली थी. जब वह 2 घंटे तक घर नहीं लौटी तो मां ने उस का फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन बंद मिला. उन्होंने ऐसा कई बार किया. फोन हर बार बंद मिला. बेटी का मामला था. इस से वह घबरा गईं. वीरेंद्र सिंह उस समय तक अपनी ड्यूटी से नहीं लौटे थे. मां ने बेटी के अभी तक घर न लौटने वाली बात पति को फोन से बता दी.

शाम का अंधेरा घिर आया था. जवान बेटी के घर न लौटने पर वीरेंद्र सिंह को भी चिंता हो रही थी. घर पहुंचने के बाद उन्होंने अपने स्तर से उसे ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन उस के बारे में कोई खबर नहीं मिली. अंत में वह आदर्श नगर स्थित पुलिस चौकी पहुंचे और चौकीप्रभारी कुलदीप सिंह को बेटी के गायब होने की जानकारी दी.

चौकीप्रभारी ने कविता की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद यह सूचना अपने अधिकारियों को दे दी और कविता के हुलिए के साथ गुमशुदगी की खबर पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा बल्लभगढ़ जिले के सभी थानों को प्रसारित करा दी. इस के साथ ही इस मामले की जांच एएसआई लाजपत को सौंप दी.

कविता 20-22 साल की थी. वह इतनी नादान नहीं थी कि उस के कहीं खो जाने की संभावना हो. ऐसे में 2 ही बातें हो सकती थीं. एक यह कि उस का किसी ने फिरौती के लिए अपहरण किया हो, दूसरी यह कि वह अपने किसी बौयफ्रेंड के साथ कहीं चली गई हो.   पूरी रात गुजर गई, लेकिन कविता घर नहीं लौटी. उस के घर वाले उस के इंतजार में ऐसे ही बैठे रहे. इस से पहले वह बिना बताए इतनी देर तक कभी गायब नहीं रही थी. इसलिए घर वालों के दिमाग में उसे ले कर तरहतरह के खयाल आ रहे थे.

उधर पुलिस भी अपने स्तर से कविता के बारे में पता लगाने की कोशिश कर रही थी. पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर कविता की काफी ज्यादा और देर तक बातें होती थीं. उस नंबर के बारे में कविता के घर वालों से पूछा गया तो पता चला वह नंबर कविता के जीजा वीरेंद्र दयाल का है.

चूंकि वीरेंद्र दयाल उन का रिश्तेदार था, इसलिए घर वालों को उन दोनों की बातों पर कोई आश्चर्य नहीं था. अलबत्ता पुलिस को उन के बीच होने वाली लंबी बातों पर शक जरूर हुआ.  चूंकि कविता के मातापिता ने अपने दामाद पर कोई शक वगैरह नहीं जताया था, इसलिए पुलिस ने उस समय वीरेंद्र दयाल से पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा. लेकिन उस पर शक जरूर बना रहा.

देखतेदेखते कविता को रहस्यमय तरीके से गायब हुए 15 दिन बीत गए. उस के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. उधर पुलिस को भी कविता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. अंतत: उस का पता लगाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में एसआई कुलदीप, एएसआई लाजपत, हेडकांस्टेबल संजीव सिंह आदि को शामिल किया गया.

एसआई कुलदीप ने कविता के पिता वीरेंद्र सिंह से कहा, ‘‘अब तक जो भी जांच की गई है, उस में घूमफिर कर शक आप के दामाद वीरेंद्र दयाल पर ही जा रहा है. इसलिए उन से पूछताछ करने पर आप को ऐतराज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘ऐतराज की कोई बात नहीं है, लेकिन आप खुद सोचिए कि वह हमारे दामाद हैं, हमें नहीं लगता कि वह ऐसा कुछ कर सकते हैं, जिस से हमारे परिवार को ठेस लगे. हमारे घर के बाहर के जो लोग शक के दायरे में आ रहे हैं, आप उन से पूछताछ कीजिए.’’ वीरेंद्र सिंह बोले.

‘‘अगर वीरेंद्र दयाल से पूछताछ करने के बाद हमें कोई जानकारी नहीं मिलती तो हम उसे छोड़ देंगे.’’ चौकीप्रभारी ने कहा.

चौकीप्रभारी ने वीरेंद्र सिंह को काफी समझाया. इस का नतीजा यह हुआ कि वह अपने दामाद वीरेंद्र दयाल को 21 फरवरी, 2014 को साथ ले कर पुलिस चौकी आदर्श नगर आ गए.   कुलदीप सिंह ने वीरेंद्र दयाल से कविता के बारे में मालूमात की तो वह यही बताता रहा कि उसे कविता के बारे में कोई जानकारी नहीं है और उस के गायब होने के कई दिनों पहले से उस की उस से कोई बात नहीं हुई थी.

चौकीप्रभारी के पास कविता और वीरेंद्र दयाल के फोन नंबरों की काल डिटेल्स थी. इसलिए वीरेंद्र दयाल ने उन से जो बात बताई उस पर चौकीप्रभारी को शक हुआ. क्योंकि 4 फरवरी को शाम करीब साढ़े 5 बजे उस की कविता से बात हुई थी. उस काल की डिटेल जब वीरेंद्र दयाल को दिखाई गई तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह उस रिकौर्ड को झुठला नहीं सकता था.

उस की इस घबराहट को चौकीप्रभारी भांप गए. उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हें कविता के बारे में सब पता है. अब बेहतर यही होगा कि तुम उस के बारे में सचसच बता दो, वरना…’’

सच्चाई यह थी कि वीरेंद्र दयाल को पता था कि कविता कहां है, इसलिए उस ने सोचा कि अगर उस ने पुलिस को नहीं बताया तो वह पिटाई कर के सच उगलवा लेगी. इसलिए इस से पहले कि पुलिस उस के साथ सख्ती करे, उस ने सच्चाई उगलते हुए कहा, ‘‘सर मैं ने कविता को मार दिया है.’’

उस की बात सुन कर चौकीप्रभारी चौंके, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘सर, मैं सच कह रहा हूं. उस ने मेरे सामने ऐसे हालात खड़े कर दिए थे कि उस की हत्या करने के अलावा मेरे सामने कोई दूसरा चारा नहीं था.’’ वीरेंद्र दयाल ने कहा.

‘‘उस की लाश कहां है?’’

‘‘लाश मैं ने आगरा कैनाल में डाल दी थी.’’

आगरा कैनाल यमुना नदी से निकाली गई है. यह दिल्ली के मदनपुर खादर से शुरू हो कर मथुरा, आगरा होते हुए राजस्थान के भरतपुर तक जाती है. वीरेंद्र दयाल ने पुलिस को बताया कि उस ने 5 फरवरी, 2014 को कविता की लाश आगरा कैनाल में फेंकी थी.   यानी लाश डाले हुए उसे 15 दिन हो चुके थे. पुलिस ने सोचा कि इस बीच लाश जहां भी पुलिया आदि के पास रुकी होगी, उस क्षेत्र की पुलिस ने उसे बरामद किया होगा.

इसलिए चौकीइंचार्ज कुलदीप ने आसपास के थानों में फोन कर के किसी लड़की की लाश बरामद होने के बारे में जानकारी मांगी. पता चला कि पलवल के सदर थाने के सबइंस्पेक्टर मोहम्मद इलियास ने 8 फरवरी, 2014 को रजवाहा, गोपालगढ़ की पुलिया के पास से एक अज्ञात लड़की की लाश बरामद की थी.  शिनाख्त के लिए उस लाश को रोहतक पीजीआई की मोर्चरी में रखवाया गया था. 4-5 दिनों बाद भी जब उस की शिनाख्त नहीं हो पाई तो 12 फरवरी को उस लाश का अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

जिस लड़की की लाश सदर पुलिस ने बरामद की थी, उस के कपड़े आदि सदर थाने में रखे थे. चौकीप्रभारी कुलदीप, एएसआई लापजत, हेडकांस्टेबल संजीत सिंह कविता के पिता वीरेंद्र सिंह को ले कर थाना सदर पहुंचे. वहां एसआई मोहम्मद इलियास ने उन्हें उस अज्ञात लड़की की लाश के फोटो, कपड़े आदि दिखाए.

कपड़े देखते ही वीरेंद्र सिंह रो पड़े. क्योंकि वह कपड़े उन की बेटी कविता के थे. जिस दामाद को वीरेंद्र सिंह अपने बेटे की तरह मानते थे, उस के द्वारा बेटी की हत्या करने पर उन्हें बहुत दुख हुआ. पुलिस चौकी लौटने के बाद जब वीरेंद्र दयाल से पूछताछ की गई तो उस ने कविता की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी.

दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा का एक जिला है बल्लभगढ़. इसी जिले के सुभाषनगर में बीरेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. वह ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित यामाहा कंपनी में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां थीं. बड़ी बेटी रेनू की शादी वह 4 साल पहले फरीदाबाद के सेक्टर-8 में रहने वाले धर्मपाल दयाल के बेटे वीरेंद्र दयाल से कर चुके थे.

वीरेंद्र दयाल दिल्ली स्थित एक शिपिंग कंपनी में नौकरी करता था. वह 1 बेटी का बाप भी बन चुका था.  वीरेंद्र सिंह की छोटी बेटी कविता अच्छी नौकरी के लिए पढ़ाई में जुटी थी. वह बीसीए कर रही थी. बीसीए के बाद उस की इच्छा एमसीए करने की थी. लेकिन इस से पहले ही उस के साथ घटी एक घटना ने उस के अरमानों पर पानी फेर दिया.

पढ़ाई के समय ही हर छात्र या छात्रा अपने मन में सोच लेता है कि उसे पढ़लिख कर क्या बनना है. बाद में वह अपने सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश करता है. कविता ने भी कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने के सपने देखे थे. उसी के अनुसार वह अपनी पढ़ाई भी कर रही थी.

उसी दौरान उस के जीजा वीरेंद्र दयाल ने उसे अपने प्रेमजाल में फांस लिया. कविता के अंदर अभी दुनियादारी की इतनी समझ नहीं थी. वह तो उस की बातों में फंस कर सच में उस से मोहब्बत करने लगी थी. उसे क्या पता था कि जीजा उस की इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए उसे अपनी मीठीमीठी बातों में फांस रहा है.

इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. करीब एक-डेढ़ साल पहले तक दोनों के बीच संबंध जारी रहे. दोनों फोन पर अकसर देर तक बातें करते रहते थे. वीरेंद्र दयाल ने उसे झांसा दे रखा था कि वह रेनू के रहते हुए भी उस से शादी कर लेगा. कविता इसी उम्मीद में थी कि जीजा उस के साथ शादी जरूर करेगा.

कविता जब भी वीरेंद्र दयाल से शादी के लिए कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टालता रहता. कुछ दिनों तक तो वह उस पर विश्वास करती रही, लेकिन जब उस के सब्र का बांध टूटने लगा तो उस ने जीजा पर शादी का दबाव बढ़ा दिया.

वह जल्द से जल्द शादी करने की जिद करने लगी. वीरेंद्र दयाल फंस चुका था. उस की हालत ऐसी हो गई थी कि वह कविता से न तो शादी कर सकता था और न ही उस से पीछा छुड़ा सकता था. उसे यह उम्मीद नहीं थी कि कविता उस के गले की हड्डी बन जाएगी. उस ने यही सोच कर उस से संबंध बनाए थे कि मौजमस्ती करने के बाद वह उस से किनारा कर लेगा. लेकिन यहां दांव उलटा पड़ गया था.

चूंकि वीरेंद्र दयाल पहले से ही शादीशुदा और एक बेटी का बाप था. पत्नी को वह छोड़ नहीं सकता था और पत्नी के रहते वह उस की छोटी बहन कविता को रख नहीं सकता था. जबकि हालात एक म्यान में 2 तलवार रखने के बन गए थे. अब उस के सामने एक ही रास्ता था कि वह दोनों में से एक को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दे. यही उपाय उसे ठीक लगा.

अंतत: सोचविचार कर उस ने पत्नी के बजाय साली कविता का ही काम तमाम करने का फैसला कर लिया. उस का सोचना था कि कविता को ठिकाने लगा कर उस की गृहस्थी पहले की तरह चलती रहेगी. पूरी योजना बनाने के बाद वीरेंद्र दयाल ने 4 फरवरी, 2014 को कविता को फोन कर के 5 फरवरी को बल्लभगढ़ बस स्टैंड के पास मिलने को कहा.

अगले दिन वीरेंद्र दयाल मोटरसाइकिल से निर्धारित जगह पर पहुंच गया. तय समय पर कविता भी वहां पहुंच गई. दोनों मोटरसाइकिल से इधरउधर घूमते रहे. वीरेंद्र दयाल को अपना मंसूबा पूरा करने के लिए अंधेरा होने का इंतजार था.

शाम 7 बजे के करीब वह उसे ले कर फरीदाबाद सेक्टर-18 पहुंच गया और वहां आगरा कैनाल के किनारे बैठ कर बातें करने लगा.  कविता जीजा के मंसूबे से अनजान थी. उसी दौरान मौका पा कर वीरेंद्र दयाल ने कविता की चुनरी से गला घोंट दिया. कुछ ही पलों में उस की मौत हो गई. इस के बाद आननफानन में उस ने उस की लाश आगरा कैनाल में फेंक दी.

उसे उम्मीद थी कि नहर से लाश बह कर कहीं दूर निकल जाएगी और उस पर किसी को शक भी नहीं होगा. लाश को ठिकाने लगा कर वह अपने घर लौट गया. कविता के घर वाले जब उसे ढूंढ रहे थे तो वीरेंद्र दयाल भी उन के साथ रह कर उसे ढूंढने का नाटक करता रहा.

वीरेंद्र दयाल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. चौकीइंचार्ज कुलदीप ने उस से विस्तार से पूछताछ के बाद न्यायालय में पेश कर के उसे जेल भेज दिया. फिर तफ्तीश करने के बाद उन्होंने 11 मार्च, 2014 को इस मामले की चार्जशीट न्यायालय में पेश कर दी. कथा संकलन तक अभियुक्त वीरेंद्र दयाल की जमानत नहीं हो सकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

दूर की सोच : प्यार या पैसा – भाग 1

फिलिप रौजर की जेब में मौजूद पीले रंग का वह पुराना कागज एक तरह से उस के बाप की वसीयत थी, जिस में उस ने आशीर्वाद के बाद लिखा था कि वह उस के और उस की बहन के लिए भारी कर्ज छोड़े जा रहा है. खानदानी जायदाद और घर रेहन रखने के बाद भाईबहन को वह तकदीर के भरोसे छोड़ कर मौत को गले लगा रहा है. इस के अलावा अब उस के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा है.

उस वसीयत के साथ फिलिप को 14 साल की एक लड़की और 24 साल के एक नौजवान की याद आ गई, जो बाप के आत्महत्या कर लेने के बाद बेसहारा हो गए थे. उस दिन पूरे 24 साल बाद फिलिप ने डौल्टन का दरवाजा खटखटाने के लिए दरवाजे पर हाथ रखा तो मन में दहक रही बदले की आग के साथ गर्व का अहसास हुआ, क्योंकि अब उस के पास वह ताकत थी, जिस से वह अपना अतीत खरीद सकता था.

डौल्टन ने दरवाजा खोला. उस के सिर के बाल सफेद हो गए थे, चेहरे पर परेशानी और गरीबी साफ झलक रही थी. फिलिप ने तो उसे पहचान लिया, लेकिन वह उसे नहीं पहचान सका, क्योंकि फिलिप अब 24 साल का दुबलापतला नौजवान नहीं, 48 साल का कीमती सूट में लिपटा शानदार व्यक्तित्व का मालिक था.

फिलिप ने हाथ मिलाते हुए गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मि. डौल्टन, मैं फिलिप रौजर. क्या अंदर आ सकता हूं?’’

डौल्टन घबरा सा गया. हकला कर बोला, ‘‘ओह मि. रौजर, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि यह आप हैं. आइए, यह आप का ही तो घर है.’’

‘‘है नहीं मि. डौल्टन, था. सचमुच 24 साल पहले यह मेरा ही घर था. लेकिन अब नहीं है.’’

‘‘मि. फिलिप प्लीज, ऐसा मत कहिए. आज भी यह आप का ही घर है. आप अंदर तो आइए.’’ डौल्टन ने बेचैन हो कर कहा.

पूरे 24 सालों बाद फिलिप ने अपने घर में कदम रखा था, जहां आज भी उस का अतीत जिंदा था और उस के मांबाप की यादें थीं. घर की हालत काफी खस्ता हो चुकी थी. वहां रखा फर्नीचर भी काफी पुराना था. हर तरफ गरीबी झलक रही थी. यह सब देख कर फिलिप को खुशी हुई. कीमती पेंटिंग्स, फानूस, बड़ीबड़ी लाइटें, सब गायब थीं.

फिलिप ने एक पुरानी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, ‘‘मैं यहां अपने मतलब की जरूरी बात करने आया हूं.’’

‘‘हां…हां, जरूर कहिएगा, पहले मैं आप को अपने घर वालों से तो मिलवा दूं.’’

‘‘मैं यहां किसी से मिलने नहीं, सिर्फ काम की बात करने आया हूं.’’ कह कर फिलिप ने साथ लाया बड़ा सा सूटकेस खोला और फर्श पर बिछे कालीन पर पलट दिया. नोटों का ढेर सा लग गया. उस ढेर की ओर इशारा करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप ने विज्ञापन दिया है कि आप यह घर बेच रहे हैं. इसलिए मैं यहां आया हूं. शायद मुझ से ज्यादा इस घर की कीमत कोई दूसरा नहीं दे सकता. जितनी रकम चाहो, इस में से निकाल लो.’’

डौल्टन की आंखें हैरत से चौड़ी हो गईं. बातचीत सुन कर डौल्टन की पत्नी भी उस कमरे में आ गई थी. नोटों के उस ढेर को देख कर वह भी हैरान रह गई. फिलिप ने डौल्टन को घूरते हुए कहा, ‘‘24 साल पहले आप ने बड़ी होशियारी से मेरे बाप को मार दिया था.’’

‘‘यह सरासर गलत है मिस्टर रौजर,’’ डौल्टन ने जल्दी से कहा, ‘‘दीवालिया हो जाने के बाद आप के पिता ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘आप ने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर किया था. उस के बाद मुझे और मेरी बहन को धक्के खाने और भूखे मरने के लिए घर से निकाल दिया था. लेकिन संयोग देखो, पांसा पलट गया. बताइए, इस घर के लिए आप को कितनी रकम चाहिए?’’

‘‘मैं इसे 5 लाख डौलर में बेचना चाहता हूं.’’ डौल्टन ने धीरे से कहा.

फिलिप ने गर्व से कहा, ‘‘ये 7 लाख डौलर हैं, लेकिन मेरी एक शर्त है, आप को आज शाम तक यह मकान खाली कर देना होगा.’’

डौल्टन और उस की पत्नी का मुंह हैरत से खुला रह गया. पल भर बाद डौल्टन ने कहा, ‘‘लेकिन मि. फिलिप कानूनी काररवाही में समय लगेगा.’’

‘‘कानूनी काररवाही होती रहेगी, मुझे आज शाम तक घर चाहिए.’’

डौल्टन ने कांपते हाथों से नोट समेटते हुए कहा, ‘‘मि. फिलिप यह मकान आप का हुआ, लेकिन मैं भी उसूलों वाला आदमी हूं. इसलिए आप जो 2 लाख डौलर ज्यादा दे रहे हैं, वे मुझे नहीं चाहिए.’’

फिलिप के गुरूर को धक्का लगा. क्योंकि 2 लाख डौलर डौल्टन ने लौटा दिए थे. इस तरह फिलिप रौजर का पुश्तैनी मकान उस के कब्जे में आ गया था.

इस के कुछ दिनों बाद फिलिप की बहन रोजा ने बाल संवारते हुए कहा, ‘‘फिलिप, तुम्हें तो आज डौल्टन के यहां पार्टी में जाना था?’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जा पाऊंगा उस के यहां पार्टी में.’’ फिलिफ ने बेरुखी से कहा.

‘‘यह गलत बात है फिलिप. हमारे उस के यहां से पुराने संबंध हैं, इसलिए उस के यहां तुम्हें जरूर जाना चाहिए.’’ रोजा ने भाई को समझाया.

‘‘मुझे उस आदमी से नफरत है. उसी की वजह से मेरे बाप ने आत्महत्या की थी.’’

‘‘यह इल्जाम झूठा है फिलिप. हमारे पिताजी यह मकान और जायदाद जुए और शराब में हार गए थे. इस में खरीदार का क्या दोष? उस ने पैसे दिए थे, बदले में यह सब ले लिया. अब तुम्हें इस में क्या परेशानी है, तुम ने तो अपना मकान वापस ले लिया है. अब डौल्टन के बच्चों का क्या हक है कि वे तुम से नफरत करें, तुम्हें जलील करें? अगर वह आत्महत्या कर लेता तो क्या तुम हत्यारे कहे जाओगे?’’

‘‘तुम तो वकालत बहुत अच्छी कर लेती हो.’’ फिलिफ ने हार मानते हुए कहा.

डौल्टन का नया घर काफी छोटा और पुराना था. उस के इस घर को देख कर फिलिप को बहुत खुशी हुई थी. लेकिन डौल्टन ने दिल से उस का स्वागत किया था. इस के बाद उस ने अपने बगल खड़ी एक लड़की की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘मि. फिलिप, यह मेरी बेटी इजाबेला है.’’

फिलिप ने इजाबेला पर एक नजर डाली और एक किनारे बैठ गया. उस ने किसी से बात नहीं की तो लोग भी उस से दूरी बनाए रहे. शायद वे उस की संपन्नता से सहमे हुए थे. डौल्टन ने वह पार्टी अपना कर्ज अदा करने और यह घर खरीदने की खुशी में दी थी.

पैग ले कर फिलिप धीरेधीरे चुस्कियां ले रहा था. क्योंकि वह शराब उसे पसंद नहीं थी. यह बात उस के चेहरे से ही पता चल रही थी. कर्ज अदा करने और मकान खरीदने में डौल्टन ने काफी रकम खर्च कर दी थी.   गुजरबसर के लिए उस की बेटी इजाबेला एक स्कूल में पढ़ा रही थी तो वह किसी अखबार के दफ्तर में छोटामोटा काम कर रहा था. पार्टी में आए मेहमान खानेपीने में मशगूल थे.

अचानक फिलिप की नजर अपने बेटे एलेक्स पर पड़ी. कीमती सूट में लिपटा शानदार पर्सनैलिटी वाला एलेक्स सब से अलग नजर आ रहा था. वह हंसहंस कर बातें कर रहा था. इजाबेला भी उस से उसी तरह बातें कर रही थी.

जाल में उलझी जिंदगी – भाग 1

मैं थाने में बैठा कत्ल की एक फाइल को पढ़ रहा था, तभी एक आदमी आया जो आते ही बोला, “साहब, मेरा नाम जाहिद है और मैं इसी कस्बे में रहता हूं. मेरी पत्नी भाग गई है. मेरी रिपोर्ट दर्ज कर के उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करिए.”

उस की बात सुन कर मैं चौंका. उस की तरफ देखते हुए मैं ने पूछा, “यह तुम कैसे कह सकते हो?”

“पिछली रात, जब मैं बाथरूम गया था तो वह बिस्तर पर नहीं थी, बाहर का दरवाजा देखा तो कुंडी अंदर से खुली थी. इस

से मुझे लगा कि वह भाग गई है.”

“तुम्हारी बातों से यही लगता है कि तुम्हें पहले से ही शक था कि तुम्हारी पत्नी भाग जाएगी. क्या तुम ने उस के मायके वालों

से पता किया है कि वह वहां तो नहीं चली गई? तुम्हारी ससुराल कहां है?”

“ससुराल तो यहीं है, लेकिन मैं ने वहां पता नहीं किया,” उस ने जवाब में कहा.

“क्या तुम अपने मातापिता के साथ रहते हो?”

“नहीं जी, मैं अलग रहता हूं. लेकिन वह आधी रात को मेरे या अपने मातापिता के घर जा कर क्या करेगी? वह गांव के ही

करामत के साथ गई होगी.”

“यह बात तुम इतने दावे से कैसे कह सकते हो?”

“वह इसलिए कि उस का पहले से ही उस के साथ चक्कर चल रहा था. वह भी अपने घर पर नहीं है.”

“उसे रोकने के लिए तुम ने कुछ नहीं किया?”

“बहुत कुछ किया था. उस के मातापिता से भी शिकायत की थी. मैं ने उस की कई बार पिटाई भी की, लेकिन वह नहीं मानी. मेरे ससुर डीसी औफिस में हैडक्लर्क हैं. मेरे शिकायत करने पर उलटे उन्होंने मेरा अपमान करते हुए मुझे बंद कराने की धमकी दी थी. वह जिस आदमी के साथ गई है, वह भी बहुत पैसे वाला बदमाश किस्म का है.

“अच्छा, तुम मलिक नूर अहमद की बात कर रहे हो,” मैं ने कहा, “वह तुम्हारे ससुर हैं?”

उस के ससुर को मैं जानता था. वह डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में हैडक्लर्क थे, डीसी दफ्तर में नौकरी करना बड़े सम्मान की बात थी.

“आप देख लीजिएगा, वह कभी नहीं मानेंगे कि उस की बेटी भाग गई है. वह मेरे खिलाफ कोई न कोई फंदा डाल देंगे.” उस ने कहा.

मैं ने जाहिद से वह सभी बातें पूछीं, जो ऐसे मामले में पूछनी जरूरी होती हैं. करामत नाम के जिस शादीशुदा आदमी के साथ वह बीवी के भागने की बात कर रहा था, मैं ने उस का भी नामपता नोट कर के एक कांस्टेबल को करामत को बुलाने के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन कांस्टेबल उस की जगह उस के पिता और भाई को ले आया. दोनों ही डरे हुए थे.

उन्होंने बताया कि करामत घर पर नहीं है. पिता ने कहा कि वह सुबह ही घर से निकल गया था, जबकि भाई का कहना था कि वह रात का खाना खा कर निकला था और घर नहीं आया था. दोनों के बयान अलगअलग होने की वजह से मैं ने बाप से पूछा. मेरे सवालों से बाप परेशान हो गया. उस की आंखें लाल हो गईं. लग रहा था कि वह रोने वाला है.

वह कहने लगा, “साहब, मेरा यह बेटा पता नहीं मुझे कहांकहां अपमानित कराएगा. उसी की वजह से मुझे आज थाने आना पड़ा.”

यह कहते समय उस के चेहरे पर जो भाव उभरे, वह मुझे आज भी याद हैं. उस ने आगे कहा, “बड़ी इज्जत से जिंदगी गुजारी थी. लेकिन आज उस की वजह से मुझे झूठ बोलना पड़ा. करामत शाम को ही घर से निकला था. अभी तक उस के घर न लौटने पर मुझे भी लगने लगा है कि कहीं वह उसी के साथ ही तो नहीं भागी? बेटे को बचाने के लिए ही मैं झूठ बोल रहा था.”

वह एक सम्मानित आदमी था, इसलिए मैं उसे पूरा सम्मान दे रहा था. वह अपने बेटे को बचाने की पूरी कोशिश में था. मैं ने उसे झूठी सांत्वना देते हुए कहा कि मैं उस के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश करूंगा.

इस के बाद उस ने कहा, “साहब मैं ने करामत की शादी 4 साल पहले एक सुंदर, सुघड़ और सुशील लडक़ी से की थी. लेकिन उस ने उसे दिल से कबूल नहीं किया, क्योंकि वह मुनव्वरी नाम की एक लडक़ी से शादी करना चाहता था. हम ने मुनव्वरी का हाथ उस के बाप से मांगा, लेकिन पता नहीं क्यों उस ने मना कर दिया. मुनव्वरी बड़ी दिलेर निकली, उस ने अपने पति की परवाह नहीं की और करामत से मिलना जारी रखा.

“पता चला है कि इसी बात को ले कर मुनव्वरी की अपने पति से रोज लड़ाई होती थी. मैं ने भी अपने बेटे को समझाया, लेकिन वह मेरी सुनता ही नहीं था. इसी वजह से वह अपनी बीवी में ज्यादा रुचि नहीं लेता था.

“इस के बावजूद भी उस की बीवी संतोष कर के बैठी रही. उसे एक बच्चा भी हो गया, फिर भी करामत ने घर को घर नहीं समझा. मुनव्वरी के जाल में ऐसा फंसा रहा कि मांबाप और बीवीबच्चों को भूल गया.

“मुनव्वरी के बाप को भी पता था कि उस की बेटी क्या कर रही है. लेकिन डीसी औफिस में नौकरी करने की वजह से वह घमंड में चूर रहता था. उस ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.”

मैं ने उस से पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि करामत मुनव्वरी को ले कर कहां गया होगा?”

वह सोच कर बोला, “जबलपुर छावनी में उस के चाचा का लडक़ा रहता है. वह फौज में है. उस से करामत की गहरी दोस्ती है. हो सकता है वह वहीं गया हो?”

मैं ने उन दोनों से पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. मुनव्वरी और करामत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी. यह मामला खोजबीन का नहीं, पीछा करने का था. खोजबीन उस मामले में होती है, जिस में अपराधी का पता न हो. इस मामले में अपराधी का नामपता सब कुछ था. उन दोनों को सिर्फ ढूंढना था. मैं ने दोनों की फोटो ले कर विभिन्न थानों को सूचना भेज दी. इस मामले को मैं खुद देख रहा था. करामत के चरित्र के बारे में पता चला कि वह इसी कस्बे में एक बैंक में नौकरी करता था, साथ ही एक बीमा कंपनी में एजेंट भी था.

भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी – भाग 1

तेलंगाना के हैदराबाद शहर के थाना राजीव गांधी इंटरनैशनल एयरपोर्ट (थाना आरजीआईए) में 5 जून, 2023 दिन सोमवार की सुबह एक साधु जैसे कपड़े पहने हुआ आदमी पहुंचा. उस की उम्र यही कोई 35-36 साल थी. तंदुरुस्त शरीर, सफेद धोती, काले बाल और दाढ़ी, गले में माला, माथे पर बड़ा सा तिलक और उस के हाथ में मोबाइल था. उस ने एसएचओ टी.के. रेड्डी को नमस्कार किया तो जवाब में उन्होंने भी नमस्कार कर के उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

कुरसी पर बैठते ही उस ने कहा, “सर मैं बांगारू माइसम्मा मंदिर का पुजारी हूं. मेरा नाम अय्यागिरि वेंकट सूर्या साईंकृष्णाहै.”

इस के बाद उस ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, “सर, कल से मेरी भांजी गायब है. उसी के गायब होने की रिपोर्ट लिखाने आया हूं. उस की गुमशुदगी दर्ज कर के उसे खोज दीजिए प्लीज.”

“फोटो लाए हैं उस का?” एसएचओ टी.के. रेड्डी ने पूछा.

“जी सर, मैं उस का फोटो साथ लाया हूं. उस का नाम कुरूंगाती अप्सरा है. उम्र 30 साल और लंबाई 5 फुट 7 इंच है.” अप्सरा का फोटो मेज पर रखते हुए साईंकृष्णा ने कहा.

एसएचओ ने फोटो पर एक नजर डाली. अप्सरा सचमुच अप्सरा जैसी ही सुंदर थी.

एसएचओ ने फोटो देखते हुए पूछा, “अप्सरा कैसे और कहां से गायब हुई? पूरी बात विस्तार से बताइए?”

एक लंबी सांस ले कर पुजारी साईंकृष्णा ने कहा, “सर, मेरा घर और मंदिर सरूरनगर में है. मेरी बहन और भांजी भी सरूरनगर में ही रहती थीं. 3 जून शनिवार को अप्सरा को अपनी सहेलियों के साथ भद्राचलम जाना था. सारी सहेलियां शम्साबाद में बस स्टैंड पर मिलने वाली थीं. इसलिए उस ने मुझ से वहां छोड़ आने के लिए कहा.”

एसएचओ साईंकृष्णा की बातें ध्यान से सुन रहे थे. याद करते हुए साईंकृष्णा ने आगे कहा, “मैं ने अप्सरा को उस के घर से ले कर शम्साबाद पहुंचा दिया. इस के बाद सुबह से उस का फोन बंद बता रहा है. वह भद्राचलम भी नहीं पहुंची है और न अभी तक घर ही लौट कर आई है. पता नहीं वह कहां गई? कहीं रास्ते से उसे किसी ने उठा तो नहीं लिया? कुछ समझ में नहीं आता. उस की मां के साथ मैं ने उसे सब जगह तलाश लिया है, पर उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. अब सर, जो कुछ कर सकते हैं आप ही कर सकते हैं.”

अप्सरा के फोटो को घूरते हुए एसएचओ ने पूछा, “कहीं किसी लड़के से प्रेम वगैरह तो नहीं था? घर में मां से लड़ाईझगड़ा तो नहीं होता था?”

“जी नहीं, ऐसी कोई बात नहीं थी. अप्सरा अपने काम से काम रखने वाली लड़की है.” साईंकृष्णा ने कहा.

“यह तुम्हारी सगी भांजी है?” एसएचओ ने पूछा.

एसएचओ के इस सवाल के जवाब में ‘न’ में सिर हिलाते हुए साईंकृष्णा ने कहा, “इस की मां अरुणा को मैं धर्म बहन मानता हूं. इसी रिश्ते से भांजी हुई. बाकी खून का कोई संबंध नहीं है.”

मामला थोड़ा विचित्र लगा, इसलिए कुछ सोचते हुए एसएचओ टी.के. रेड्डी ने कहा, “आप की शिकायत यहां दर्ज कर के थाना शम्साबाद को ट्रांसफर करनी पड़ेगी, क्योंकि घटना उसी इलाके की है. इसलिए इनवैस्टीगेशन वही लोग करेंगे.”

30 वर्षीया सुंदर युवती की गुमशुदगी का मामला था, इसलिए शिकायत मिलते ही थाना शम्साबाद पुलिस की टीम अप्सरा की खोज में लग गई. साईंकृष्णा के बताए अनुसार, सरूरनगर से अपनी कार में बैठा कर उस ने उसे शम्साबाद में बस स्टैंड पर उतारा था. सरूरनगर से शम्साबाद 21 किलोमीटर दूर है.

पुलिस की एक टीम सरूरनगर से शम्साबाद के बीच लगे सीसीटीवी की फुटेज की जांच करने में लग गई थी. सरूरनगर में साईंकृष्णा अप्सरा को कार में बैठाते तो दिखाई दिया, पर शम्साबाद में कहीं अप्सरा साईंकृष्णा की कार से उतर रही हो, ऐसा एक भी दृश्य वहां की सीसीटीवी फुटेज में दिखाई नहीं दिया.

टीम के सदस्यों ने यह जानकरी थाना शम्साबाद के एसएचओ को दी तो उन्होंने साईंकृष्णा को थाने बुला कर एक बार फिर पूरी जानकारी देने को कहा. इस बार थोड़ीथोड़ी देर में साईंकृष्णा अपना बयान बदलने लगा. उस के इस तरह बारबार बयान बदलने से एसएचओ को शक हुआ कि यह पुजारी निर्दोष तो बिलकुल नहीं लग रहा. इस की बात पूरी तरह सच बिलकुल नहीं है.

तब उन्होंने पुजारी से पूछा, “तुम ने अप्सरा को कहां उतारा था, वह एग्जैक्ट जगह बताओ.”

एसएचओ (शम्साबाद) के इस सवाल पर पुजारी थोड़ा बेचैन हुआ और बारबार बयान बदलने लगा. अब एसएचओ का शक विश्वास में बदलने लगा. उन्होंने सवाल पल सवाल करने शुरू किए तो पुजारी साईंकृष्णा ज्यादा देर तक अपने बयान पर टिका नहीं रह सका और सच्चाई उगल दी.

उस ने पुलिस को बता दिया कि अप्सरा अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने खुद उस की हत्या कर के लाश मेनहोल में डाल दी है. उस की यह बात सुनते ही वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मी चौंक गए. पुलिस को सब से पहले अप्सरा की लाश बरामद करनी थी, इसलिए पुलिस ने साईंकृष्णा को घटनास्थल पर ले जा कर घटना का रिकंस्ट्रक्शन कराया.

चूंकि पुजारी ने मेनहोल में लाश डालने के बाद उस के ऊपर 2 ट्रक मिट्टी डलवा दी थी, इसलिए पुलिस ने मेनहोल की मिट्टी हटवा कर अप्सरा की लाश निकलवा कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पोस्टमार्टम के बाद अप्सरा की लाश उस की मां अरुणा को सौंप दी गई. मां ने उस का अंतिम संस्कार करा दिया.

अभिनेत्री बनना चाहती थी अप्सरा

फिर 9 जून, 2023 को पुलिस ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर पुजारी साईंकृष्णा को पत्रकारों के सामने पेश किया. इस प्रैस कौन्फ्रैंस में साईंकृष्णा ने अप्सरा हत्याकांड में अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

अप्सरा पहले अपनी मां अरुणा के साथ चेन्नै में रहती थी. वहां उस का विवाह भी हो गया था, लेकिन पति ने आत्महत्या कर ली थी तो अप्सरा अकेली पड़ गई. अप्सरा खूबसूरत तो थी ही, उसे अभिनय में रुचि भी थी. इसलिए वह मां के साथ हैदराबाद आ गई. यहां सरूरनगर की वेंकट कालोनी में किराए का मकान ले कर मांबेटी रहने लगीं. घर खर्च चलाने के लिए अप्सरा ने प्राइवेट नौकरी कर ली.

दर्द जब हद से गुजर जाए

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन

काल बनी एक बहू

देवर के इश्क़ में – भाग 3

गायत्री ने उसी दिन फोन कर के अनिल को बहू की करतूतें बताते हुए तुरंत घर आने को कहा. अनिल छुट्टी ले कर अगले ही दिन घर आ गया. पत्नी की बेवफाई पर उस का खून खौल उठा था. उस ने पुष्पा की खूब पिटाई की, साथ ही उस ने यह भी कह दिया कि अब वह उसे दिल्ली ले जाएगा. उस ने पुष्पा से दिल्ली चलने की तैयारी करने के लिए कह दिया.

लेकिन पुष्पा ने दिल्ली जाने से साफ मना कर दिया. इस की शिकायत उस ने पत्नी के मायके वालों से की. उन्होंने भी पुष्पा को समझाया. अगले दिन सुबह अनिल जब घर से निकला तो उसे रामखिलौने दिख गया. गुस्से में अनिल उस के पास पहुंचा और बोला, ‘‘रामखिलौने तुम होश में आ जाओ, वरना इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.’’

रामखिलौने ने कुछ नहीं कहा. वह वहां से चला गया.

अनिल केवल 2 दिनों की छुट्टी ले कर आया था. पत्नी ने जब उस के साथ जाने से मना कर दिया तो मन मसोस कर वह अकेला ही दिल्ली चला गया. दिल्ली जाने के बाद उस का मन अपने काम में नहीं लगा. उस का ध्यान पत्नी पर ही लगा रहता था. मन चिंता से भरा हुआ था. आखिर एक दिन वह नौकरी छोड़ कर गांव चला आया.  पुष्पा को जब पता चला कि उस का पति अब घर में ही रहेगा तो उस के पांव के नीचे से जमीन खिसक गई.

अनिल घर तो आ गया, पर मन में शक बना रहा. उस ने पुष्पा पर नजर रखनी शुरू कर दी. साथ ही उस ने उस पर कई तरह की बंदिशें भी लगा दीं. इस से उन के दांपत्य रिश्ते में खटास पैदा हो गई. पति की मौजूदगी और बंदिशों की वजह से उस की अपने प्रेमी रामखिलौने से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, इसलिए पति उसे दुश्मन लगने लगा. वह उस से छुटकारा पाने के उपाय खोजने लगी.

एक दिन उस ने रामखिलौने से कह भी दिया, ‘‘या तो तुम मुझे यहां से कहीं दूर ले चलो या फिर मेरा खयाल दिल से निकाल दो.’’

‘‘देखो  पुष्पा, मैं तुम्हें भगा कर नहीं ले जा सकता, क्योंकि बाद में पुलिस मुझे पकड़ कर जेल में डाल देगी और मैं तुम से दूर नहीं रहना चाहता. मुझे लगता है अनिल को ही रास्ते से हटा देना चाहिए.’’ रामखिलौने ने कहा.

‘‘तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो. यही ठीक रहेगा.’’ इस तरह पुष्पा ने पति को ठिकाने लगाने की अनुमति दे दी. इस के बाद पुष्पा और रामखिलौने ने अनिल को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

21 जुलाई, 2014 को अनिल थकामांदा खेत से घर लौटा और खाना खा कर अपने कमरे में चला गया. आने वाली मुसीबत से बेखबर घर के अन्य लोग भी सो गए. सुबह पुष्पा उठी और चूल्हे पर चाय चढ़ा दी. गायत्री ने पुष्पा से कहा कि वह अनिल को जगा दे, जिस से वह भी नाश्ता कर ले.

तभी पुष्पा बोली, ‘‘अम्मां मैं परांठे बना रही हूं, तुम्हीं उन्हें उठा दो.’’

गायत्री अनिल को जगाने उस के कमरे में गई तो वह कमरे में नहीं मिला. वहीं से उस ने कहा, ‘‘बहू, लगता है अनिल बाहर निकल गया है.’’

‘‘नहीं अम्मा, बाहर का दरवाजा तो बंद है. अगर वह बाहर जाते तो दरवाजा खुला होता. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह छत पर चले गए हों.’’  पुष्पा ने कहा.

बहू के कहने पर गायत्री छत पर गई. छत पर पहुंचते ही वह चीखी तो रामनिवास ने पूछा, ‘‘क्या हुआ गायत्री?’’

‘‘हम लुट गए, बर्बाद हो गए.’’ गायत्री रोते हुए बोली.

पत्नी के इस तरह रोने से परेशान हो कर रामनिवास भी छत पर पहुंच गया. ऊपर का नजारा देख कर वह भी सन्न रह गया. छत पर अनिल की लाश पड़ी थी. बेटे की लाश देख कर वह भी चीखने लगा. इस के बाद तो तमाम लोग वहां जमा हो गए. उसी दौरान किसी ने थाना नया गांव को फोन द्वारा इस बात की सूचना दे दी.

थोड़ी देर में थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश का मुआयना किया तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आए. सिर्फ गले पर निशान मिले, जिस से अनुमान लगाया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई है.  अनिल के घर वालों से पूछताछ करने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.  मुखराम ने पुष्पा और रामखिलौने पर हत्या का आरोप लगाते हुए एक तहरीर थानाप्रभारी को दी. थानाप्रभारी ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी को ध्यान आया कि जब वह अनिल की हत्या की सूचना पर उस के घर गए थे तो उस समय उस की पत्नी पुष्पा रोते हुए कह रही थी कि उस के पति को बदमाशों ने मारा है, जबकि उस के मांबाप का कहना था कि  पुष्पा और रामखिलौने के बीच नाजायज संबंध थे. इसलिए अनिल की हत्या उन्हीं दोनों ने की है.

थानाप्रभारी ने  पुष्पा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. सख्ती से पूछताछ करने पर पुष्पा ने कुबूल कर लिया कि उसी ने प्रेमी रामखिलौने के साथ मिल कर कमरे में पति की हत्या गला दबा कर की थी और बाद में लाश छत पर डाल दी थी.

इस के बाद पुलिस ने रामखिलौने के घर दबिश दी, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पूछताछ के बाद पुलिस ने पुष्पा को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया. 2 दिनों बाद अनिल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. उस में बताया गया था कि अनिल की मौत जहर खाने से हुई थी.

इस से पता चला कि पुष्पा ने पति को जहर खिलाने वाली बात छिपा ली थी. उसी दौरान रामखिलौने ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया था. मामले की तफ्तीश सबइंसपेक्टर विनोद कुमार कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गुनाह : भूल का एहसास – भाग 3

‘‘तुम पहले ही मुझे इतना छल चुके हो कि अब और गुंजाइश बाकी नहीं है. सच तो यह है कि तुम्हारे लिए मेरी अहमियत उस फूल से अधिक कभी नहीं रही, जिसे जब चाहा मसल दिया. तुम ने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की कि बिस्तर से परे भी मेरा कोई वजूद है. मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूं. मेरा शरीर भी हाड़मांस से बना हुआ है, जिस के भीतर दिल धड़कता है और जो तुम्हारी तरह ही सुखदुख का अनुभव करता है.’’

‘‘इस बीच रीना ने मेरी बहुत सहायता की. जीने की प्रेरणा दी. कदमकदम पर हौसला बढ़ाया. वह भावनात्मक संबल न देती तो मैं टूट गई होती. अपना अस्तित्व बचाने के लिए मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. उस ने भरपूर साथ दिया. तुम ने कभी नहीं चाहा मैं नौकरी करूं. इस के लिए तुम ने हर संभव कोशिश भी की. अपने बराबर मुझे खड़ी होते देख तुम विचलित होने लगे थे. दरअसल, मेरे आंसुओं से तुम्हारा अहं तुष्ट होता था, शायद इसीलिए तुम्हारी कुंठा छटपटाने लगीथी.’’

‘‘मुझे अपने सारे जुर्म स्वीकार हैं. जो चाहे सजा दो मुझे, पर प्लीज अपने घर लौट चलो,’’ मैं असहाय भाव से गिड़गिड़ाता हुआ बोला.

‘‘कौन सा घर?’’ वह आपे से बाहर हो गई, ‘‘ईंट पत्थर की बेजान दीवारों से बना वह ढांचा, जहां तुम्हारे तुगलकी फरमान चलते हैं? तुम्हें जो अच्छा लगता वही होता था वहां. बैडरूम की लोकेशन से ले कर ड्राइंगरूम की सजावट तक सब में तुम्हारी ही मरजी चलती थी. मुझे किस रंग की साड़ी पहननी है, किचन में कब क्या बनना है, इस सब का निर्णय भी तुम ही लेते थे. वह सब मुझे पसंद है भी या नहीं, इस से तुम्हें कुछ लेनादेना नहीं था. मैं टीवी देखने बैठती तो रिमोट तुम झपट लेते. जो कार्यक्रम मुझे पसंद थे उन से तुम्हें चिढ़ थी.

‘‘वहां दूरदूर तक मुझे अपना अस्तित्व कहीं भी नजर नहीं आता था… हर ओर तुम ही तुम पसरे हुए थे. मेरे विचार, मेरी भावनाएं, मेरा अस्तित्व सब कुछ तिरोहित हो गया तुम्हारी विक्षिप्त कुंठाओं में. तुम्हारी हिटलरशाही की वजह से मेरा जीना हराम हो गया था. उस अंधेरी कोठरी में दम घुटता था मेरा, इसीलिए उस से दूर बहुत दूर यहां आ गई हूं ताकि सुकून के 2 पल जी सकूं, अपनी मरजी से.’’

‘‘अब तुम जो चाहोगी वही होगा वहां. तुम्हारी मरजी के बिना एक कदम भी नहीं चलूंगा मैं. तुम्हारे आने के बाद से वह घर खंडहर हो गया है. दीवारें काट खाने को दौड़ती हैं. बेटी की किलकारियां सुनने को मन तरस गया है. उस खंडहर को फिर से घर बना दो रेवा,’’ मेरा गला भर आया था.

‘‘अपनी गंदी जबान से मेरी बेटी का नाम मत लो,’’ उस की आवाज से नफरत टपकने लगी, ‘‘भौतिक सुख और रासायनिक प्रक्रिया मात्र से कोई बाप कहलाने का हकदार नहीं हो जाता. बहुत कुछ कुरबान करना पड़ता है औलाद के लिए. याद करो उन लमहों को, जब मेरे गर्भवती होने पर तुम गला फाड़फाड़ कर चीख रहे थे कि मेरे गर्भ में तुम्हारा रक्त नहीं, मेरे बौस का पल रहा है. तुम्हारे दिमाग में गंदगी का अंबार देख कर मैं स्तब्ध रह गई थी. कितनी आसानी से तुम ने यह सब कह दिया था, पर मैं भीतर तक घायल हो गईथी तुम्हारी बकवास सुन कर. जी तो चाहा था कि तुम्हारी जबान खींच लूं, पर संस्कारों ने हाथ जकड़ लिए थे मेरे.

‘‘तुम चाहते थे कि मैं गर्भपात करा लूं. अपनी बात मनवाने के लिए जुल्मों का हथकंडा भी अपनाया पर मैं अपने अंश को जन्म देने के लिए दृढ़संकल्प थी. प्रसव कक्ष में मैं मौत से संघर्ष कर रही थी और तुम श्रुति के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे. एक बार भी देखने नहीं आए कि मैं किस स्थिति में हूं. तुम तो चाहते ही थे कि मैं मर जाऊं ताकि तुम्हारा रास्ता साफ हो जाए. इस मुश्किल घड़ी में रीना साथ न देती तो मर ही जाती मैं.’’

आंखों में आंसू लिए मैं अपराधी की भांति सिर झुकाए उस की बात सुनता रहा.

‘‘मुझे परेशान करने के तुम ने नएनए तरीके खोज लिए थे. तुम मेरी तुलना अकसर श्रुति से करते थे. तुम्हारी निगाह में मेरा चेहरा, लिपस्टिक लगाने का तरीका, हेयरस्टाइल, पहनावा और फिगर सब कुछ उस के आगे बेहूदा था. मेरी हर बात में नुक्स निकालना तुम्हारी आदत में शामिल हो गया था. मूर्ख, पागल, बेअक्ल… तुम्हारे मुंह से निकले ऐसे ही जाने कितने शब्द तीर बन कर मेरे दिल के पार हो जाते थे. मैं छटपटा कर रह जाती थी. भीतर ही भीतर सुलगती रहती थी तुम्हारे शब्दालंकारों की अग्नि में. इतनी ही बुरी लगती हूं तो शादी क्यों की थी मुझ से? मेरे इस प्रश्न पर तुम तिलमिला कर रह जाते थे.

‘‘उकता गई थी मैं उस जीवन से. ऐसा लगता था जैसे किसी ने अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया हो. मेरी रगरग में विषैले बिच्छुओं के डंक चुभने लगे थे. जहर घुल गया था मेरे लहू में. सांस घुटने लगी थी मेरी. उस दमघोंटू माहौल में मैं अपनी बेटी का जीवन बरबाद नहीं कर सकती. उपेक्षा के जो दंश मैं ने झेले हैं, उस की छाया उस पर हरगिज नहीं पड़ने दूंगी. बेहतर है, तुम खुद ही चले जाओ वरना तुम जैसे बेगैरत इंसान को धक्के मार कर बाहर का रास्ता दिखाना भी मुझे अच्छी तरह आता है.

एक बात और समझ लो,’’ मेरी ओर उंगली तान कर वह शेरनी की तरह गुर्राई, ‘‘भविष्य में भूल कर भी इधर का रुख किया तो बाकी बची जिंदगी जेल में सड़ जाएगी,’’ मेरी ओर देखे बिना उस ने अंदर जा कर इस तरह दरवाजा बंद किया जैसे मेरे मुंह पर तमाचा मारा हो.

मैं किंकर्तव्यविमूढ सा खड़ा रहा. इंसान के गुनाह साए की तरह उस का पीछा करते हैं. लाख कोशिशों के बाद भी वह परिणाम भुगते बगैर उन से मुक्त नहीं हो सकता. कल मैं ने जिस का मोल नहीं समझा, आज मैं उस के लिए मूल्यहीन था. यह दुनिया कुएं की तरह है. जैसी आवाज दोगे वैसी ही प्रतिध्वनि सुनाई देगी. जो जैसे बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है. तनहाई की स्याह सुरंगों की कल्पना कर मेरी आंखों में मुर्दनी छाने लगी. आवारा बादल सा मैं खुद को घसीटता अनजानी राह पर चल दिया. टूटतेभटकते जैसे भी हो, अब सारा जीवन मुझे अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना था.

देवर के इश्क़ में – भाग 2

अब रामखिलौने का उस के यहां आनाजाना उस समय होने लगा, जब रामनिवास और गायत्री खेतों पर होते. एक दिन मौका पा कर रामखिलौने घर आया तो बातोंबातों में उस ने पुष्पा की खूबसूरती की तारीफ शुरू कर दी. पुष्पा हैरानी से उस की ओर देखने लगी. इस से पहले कि वह उस से कुछ कह पाती, उस ने लपक कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं और अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’  पुष्पा अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘जानते हो मैं तुम्हारे बड़े भाई की पत्नी हूं.’’

पुष्पा कहने को तो यह बात कह गई, लेकिन उसे रामखिलौने का स्पर्श अच्छा लगा था.

रामखिलौने ने कहा, ‘‘भाभी, मैं वादा करता हूं कि हमेशा तुम्हारा साथ दूंगा और जीवन भर तुम्हें प्यार करता रहूंगा.’’

पुष्पा रामखिलौने की बात का जवाब दिए बगैर दूसरे कमरे में चली गई. उस के तेवर देख कर रामखिलौने डर गया और वहां से चला गया. उस के जाने के बाद  पुष्पा परेशान हो कर चारपाई पर बैठ गई और अभीअभी जो हुआ था, उसी के बारे में देर तक सोचती रही. आखिर उस के बागी मन ने तय कर लिया कि वह रामखिलौने की मोहब्बत को कुबूल कर लेगी.

अगले कुछ दिनों तक रामखिलौने डर की वजह से  पुष्पा के यहां नहीं आया. पुष्पा काफी परेशान थी. एक दिन उस ने गली में रामखिलौने को खड़ा देखा तो उसे चाहत भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘बस यही है तुम्हारी मोहब्बत. उस दिन तो बड़ीबड़ी बातें कर रहे थे.’’

पुष्पा की बातें सुन कर रामखिलौने खुश हो गया. वह समझ गया कि पुष्पा उस से नाराज नहीं है. उस ने कहा, ‘‘भाभी, मैं तो आने ही वाला था.’’

‘‘सब जानती हूं मैं.’’  पुष्पा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज आधी रात को आ जाना, मैं इंतजार करूंगी.’’

रामखिलौने का दिल बल्लियों उछलने लगा. वह अपने घर चला गया और रात होने का इंतजार करने लगा. अब उस के लिए एकएक पल बहुत लंबा महसूस हो रहा था. वह चाह रहा था कि जल्द से जल्द रात हो, जिस से वह पुष्पा से मिल सके. सूरज छिपने के बाद जैसेजैसे अंधेरा गहरा रहा था, रामखिलौने के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं.

दूसरी ओर पुष्पा को पूरा विश्वास था कि रामखिलौने रात को जरूर आएगा. इसलिए उस ने फटाफट घर का काम निपटाया और बेटे को सुला दिया. सासससुर भी खापी कर सो गए. वह बेसब्री से रामखिलौने का इंतजार करने लगी. आधी रात के करीब उस के दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुई.  पुष्पा का दिल धड़कने लगा.

दबे पांव पुष्पा दरवाजे पर पहुंची. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने रामखिलौने को देख कर खुश हो गई. इशारे से उस ने उसे अंदर बुला लिया और अपने कमरे में ले गई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. कुछ ही देर में उन के रिश्ते तारतार हो गए.

इस के बाद रामखिलौने खुश हो कर चुपचाप वहां से चला गया. दिल्ली में बैठा अनिल अपनी नौकरी में व्यस्त था. उस की गृहस्थी में उस का चचेरा भाई सेंध लगा सकता है, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था. वह तो इसी कोशिश में लगा था कि किसी तरह वह दिल्ली में अपना घर बना ले.

अवैध संबंधों की राह बड़ी ही ढलवां होती है, जो कोई एक बार इस राह पर कदम बढ़ाता है, वह गर्त में धंसता चला जाता है. अब तो पुष्पा को जब भी मौका मिलता, वह रामखिलौने को अपने घर बुला लेती. चूंकि उन का यह खेल घर में होता था, इसलिए काफी समय उन के संबंधों की किसी को भनक नहीं लगी.

इस बीच पुष्पा के तेवर काफी बदल गए थे. गायत्री समझ नहीं पा रही थी कि वह बहू से कुछ काम करने को कहती है तो वह तबीयत खराब होने की बात कह कर टाल क्यों देती है, जबकि जब कभी रामखिलौने आता है, तुरंत उठ कर चाय बनाने चली जाती है.

गायत्री ने पहले तो इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब एक पड़ोसन ने रामखिलौने के उन के घर रोजाना आने की बात बताई तो वह चौंकी. गायत्री सोचने लगी कि कहीं उस की बहू और रामखिलौने के बीच कोई चक्कर तो नहीं है. यह शक गायत्री के दिमाग में बैठ गया.

अगले दिन वह पति के साथ खेत पर नहीं गई. दोपहर में रामखिलौने घर आया तो ताई को देख कर सकपका गया. उस ने कहा, ‘‘रामिखलौने, तू दिनभर इधरउधर घूमता रहता है, तेरे पास कोई काम नहीं क्या है?’’

रामखिलौने हंसने लगा, ‘‘तुम ने यह कैसे सोच लिया ताई कि मैं कोई काम नहीं करूंगा? देखना एक दिन मैं ऐसा काम करूंगा कि तुम हैरान रह जाओगी.’’

‘‘ठीक है, जब करना तब करना, लेकिन दिन भर मेरे घर के फेरे लगाने की जरूरत नहीं है.’’

सास की यह बात पुष्पा ने भी सुन ली थी. वह डर गई कि कहीं सास को उन के संबंधों पर शक तो नहीं हो गया, जो वह रामखिलौने से इस तरह कह रही है. ताई की बात सुन कर रामखिलौने का भी चेहरा उतर गया. वह उसी समय बिना कुछ कहे वहां से चला गया.  रामखिलौने ने अब पुष्पा के यहां जाना बंद कर दिया. प्रेमी से मुलाकात न होने की वजह से पुष्पा बेचैन रहने लगी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस से कैसे मिले.

एक दिन पुष्पा की तबीयत खराब हो गई. वह गांव के डाक्टर से दवा लेने गई. घर लौटते समय उसे रामखिलौने मिल गया. उस ने रामखिलौने से बेचैनी प्रकट की तो उस ने कहा, ‘‘तुम चिंता न करो भाभी. मैं तुम्हें एक मोबाइल दे दूंगा. तुम जब भी बुलाओगी, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? मैं जानती हूं कि जब अनिल आएगा तो इस बात को ले कर घर में तूफान खड़ा हो जाएगा. इसलिए बेहतर होगा कि तुम सतर्क रहो.’’

2 दिनों बाद रामखिलौने ने एक मोबाइल फोन खरीद कर पुष्पा को दे दिया. अब दोनों मोबाइल से रात को अपने मन की बातें करने लगे. चूंकि अब पुष्पा की सास सतर्क हो चुकी थी, इसलिए वह बहू की गतिविधियों पर नजर रखने लगी थी. एक रात उस ने बहू और रामखिलौने को छत पर देख लिया. गायत्री को देख कर रामखिलौने छत से कूद कर भाग गया. इस के बाद गायत्री ने पुष्पा को बहुत फटकारा.