आशिक पति ने ली जान – भाग 1

एटा-कासगंज रोड पर स्थित है एक गांव असरौली, जो कोतवाली (देहात) क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इसी गांव के रहने वाले चोखेलाल के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा 3 बेटियां सावित्री, बिमला, मोहरश्री तथा 2 बेटे सत्यप्रकाश और चंद्रपाल थे. सत्यप्रकाश खेतीकिसानी में बाप की मदद करता था तो चंद्रपाल सड़क पर खोखा रख कर अंडे बेचता था. चोखेलाल की गुजरबसर आराम से हो रही थी. उन्होंने सभी बच्चों की शादियां भी कर दी थीं. सभी अपनेअपने परिवार के साथ खुश थे. उन की छोटी बेटी मोहरश्री का विवाह कासगंज के कस्बा नदरई में प्रकाश के साथ हुआ था.

सब से छोटी होने की वजह से मोहरश्री मांबाप की ही नहीं, भाईबहनों की भी लाडली थी. शादी के लगभग डेढ़ साल बाद वह एक बेटे की मां बन गई. यह खुशी की बात थी, लेकिन बेटा पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही उस के पति प्रकाश का दिमागी संतुलन बिगड़ गया और एक दिन वह घर से गायब हो गया. घर वालों ने उसे बहुत ढूंढ़ा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

पति के गायब होते ही ससुराल में मोहरश्री की स्थिति गंभीर हो गई. ससुराल वालों का मानना था कि उसी की वजह से प्रकाश गायब हुआ है, इसलिए उसे दोषी मान कर सभी उसे परेशान करने लगे. चंद्रपाल मोहरश्री से मिलने उस की ससुराल गया तो उसे लगा कि बहन यहां खुश नहीं है. वह उसे अपने यहां लिवा लाया.

घर आ कर मोहरश्री ने जब मांबाप और भाइयों से ससुराल वालों के बदले व्यवहार के बारे में बताया तो सभी ने तय किया कि अब उसे ससुराल नहीं भेजा जाएगा. लेकिन ससुराल वालों ने खुद ही मोहरश्री की सुधि नहीं ली. अब घर वालों को उस की चिंता सताने लगी, क्योंकि अभी उस की उम्र कोई ज्यादा नहीं थी.  अकेली जवान औरत के लिए जीवन काटना बहुत मुश्किल होता है. अगर कोई ऊंचनीच हो जाए तो सभी उन्हीं को दोष देते हैं, इसलिए पिता और भाइयों ने तय किया कि वे मोहरश्री की शादी कहीं और कर देंगे.

मोहरश्री को जब पता चला कि घर वाले उस की दूसरी शादी करना चाहते हैं तो उस ने कहा, ‘‘आप लोगों को मेरे लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं अपने बेटे के सहारे जी लूंगी. सभी के साथ मेहनतमजदूरी कर के जिंदगी बीत जाएगा.’’  लेकिन पिता और भाई उस की इस बात से सहमत नहीं थे. वे किसी भी तरह मोहरश्री का घर बसाना चाहते थे. वह बहुत ही सीधीसादी थी. उस के स्वभाव की वजह से गांव का हर आदमी उस की मदद और सम्मान करता था. यही वजह थी कि इस परेशानी में भी वह खुश थी.

चोखेलाल की बड़ी बेटी सावित्री एटा में ब्याही थी. मायके आने पर जब उसे पता चला कि घर वाले मोहरश्री का पुन: विवाह करना चाहते हैं तो उस ने बताया कि उस के पड़ोस में रहने वाली रानी का भाई दामोदर शादी लायक है. अगर सभी लोग तैयार हों तो वह बात चलाए.

मोहरश्री की शादी में उस के पहले पति का बेटा कृष्णा बाधा बन रहा था. घर वाले चाहते थे कि वह बेटे को मायके में छोड़ दे, लेकिन मोहरश्री इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह उसी आदमी से शादी करेगी, जो उस के बेटे को अपनाएगा. सावित्री ने बताया कि दामोदर मोहरश्री के बेटे को अपना सकता है, इसलिए सभी को उस के फोन का इंतजार था.

सावित्री ने फोन कर के बताया कि दामोदर अपनी बहन रानी के साथ सावित्री को देखने आ रहा है तो घर वालों ने तैयारी शुरू कर दी. देखासुनी के बाद मोहरश्री और दामोदर की शादी इस शर्त पर हो गई कि वह मोहरश्री के पहले पति के बेटे कृष्णा को अपना नाम देगा.

दामोदर जिला फर्रुखाबाद के थाना पाटियाली के गांव शाहपुर का रहने वाला था. उस की 2 बहनें और 2 भाई थे. दोनों भाई पंजाब में नौकरी करते थे. शादी के बाद मोहरश्री बेटे के साथ शाहपुर आ गई.  ससुराल आने पर पता चला कि दामोदर की कमाई से घर नहीं चल सकता. इसलिए उस ने दामोदर को अपने मायके असरौली चलने को कहा.

दामोदर असरौली जाने को राजी नहीं हुआ तो मोहरश्री ने फोन द्वारा सारे हालात अपने भाई चंद्रपाल को बताए तो वह खुद शाहपुर पहुंचा और सभी को असरौली ले आया. इस तरह लगभग 10 साल पहले दामोदर परिवार के साथ ससुराल आ गया था.  ससुराल आ कर वह पूरी तरह से निश्चिंत हो गया. चंद्रपाल ने भागदौड़ कर के उसे एटा रोड पर स्थित आलोक की फैक्ट्री में चौकीदारी की नौकरी दिला दी. फैक्ट्री में उसे रहने के लिए कमरा भी मिल गया था. इस तरह एक बार फिर मोहरश्री की जिंदगी ढर्रे पर आ गई.

समय के साथ मोहरश्री दामोदर के 3 बच्चों अजय, सुमित और प्रेमपाल की मां बनी. शुरूशुरू में तो दामोदर का व्यवहार कृष्णा के प्रति ठीक रहा, लेकिन जब उस के अपने 3-3 बेटे हो गए तो उस का व्यवहार एकदम से बदल गया. अब वह बातबात में कृष्णा से मारपीट करने लगा. मोहरश्री को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. उस ने देखा कि दामोदर बच्चों में भेदभाव कर रहा है तो उस ने उसे टोका. लेकिन दामोदर पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. कृष्णा के प्रति उस की हिंसा बढ़ती ही जा रही थी.

मोहरश्री ने दामोदर से शादी जीवन को सुखी बनाने के लिए की थी. लेकिन दामोदर तनाव पैदा करने लगा था. परिवार बढ़ा तो घर में आर्थिक तंगी रहने लगी. बहन की परेशानी देख कर चंद्रपाल ने एक खेत पट्टे पर ले कर बहन को दे दिया. मोहरश्री मेहनत कर के खेत की कमाई से बच्चों को पालने लगी. उस ने बेटों को समझाया कि वे अपनी जिंदगी संवारना चाहते हैं तो मेहनत कर के पढ़ें.

दामोदर न तो अच्छा पति साबित हुआ और न अच्छा बाप. इसलिए मोहरश्री को उस से कोई उम्मीद नहीं थी. उस ने चौकीदारी वाली नौकरी भी छोड़ दी थी. अपना खर्च चलाने के लिए वह खेतों में चोरी से शराब बना कर बेचने लगा था. जब इस बात का पता मोहरश्री को चला तो वह बहुत नाराज हुई. लेकिन दामोदर पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

जिद ने उजाड़ा आशियाना – भाग 2

इकबाल और शफकत का प्यार जब इतना गहरा हो गया कि वे जुदा होने के नाम पर घबराने लगे तो एक दिन इकबाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘शफकत, तुम मेरे चक्कर में कहां पड़ रही हो? शायद तुम्हें पता नहीं कि मैं पहले से ही शादीशुदा हूं. मेरी एक बेटी भी है. लेकिन मेरी बीवी मुझ से अलग रहती है, जिस के लिए मुझे गुजाराभत्ता देना पड़ता है.’’

शफकत अब तक इकबाल के प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि उस की इन बातों पर उसे विश्वास नहीं हुआ, इसलिए इस बात को मजाक समझ कर वह उस के साथ जिंदगी के सुनहरे सपने बुनती रही. दोनों के दिल एकदूसरे के लिए मचल रहे थे. इकबाल शफकत से बेपनाह मोहब्बत करने लगा था, इसलिए एक दिन उस ने अपने दिल की बात अब्दुल्ला से कह दी, ‘‘दोस्त, आप की भतीजी शफकत से मुझे प्यार हो गया है. मैं उस से निकाह करना चाहता हूं. आप अपने भैया से बात करो.’’

अब्दुल्ला को इस निकाह से कोई ऐतराज नहीं था. इकबाल और शफकत पढ़ेलिखे और समझदार थे. दोनों ही अपना अच्छाबुरा सोचनेसमझने लायक थे. इसलिए दोनों के निकाह में उसे कोई बुराई नजर नहीं आई. इस के बाद अब्दुल्ला जयपुर गया तो उस ने भाई शमशाद से शफकत और इकबाल के रिश्ते की बात चलाई. थोड़ी नानुकुर के बाद शमशाद ने इस रिश्ते की मंजूरी दे दी.

इकबाल के पहले निकाह की बात जब अब्दुल्ला को ही नहीं मालूम थी तो शमशाद को कैसे मालूम होती. शफकत से उस ने कहा था तो उस ने इसे मजाक समझा था, इसलिए उस के पहले निकाह की बात राज ही बनी रही. शमशाद अहमद के हामी भरने के बाद 23 दिसंबर, 2012 को इकबाल और शफकत का निकाह दिल्ली में हो गया.

इस निकाह में शफकत के घर वालों के साथ रिश्तेदार भी शरीक हुए थे, लेकिन इकबाल के घर वालों के साथ केवल कुछ दोस्त ही आए थे. शफकत के घर वालों ने इस बात पर ज्यादा तूल नहीं दिया, क्योंकि अब्दुल्ला और इकबाल में अच्छी दोस्ती थी, इसलिए सब को यही लगा था कि वह उसे अच्छी तरह जानता होगा. उस के व्यवहार से भी वाकिफ होगा.

निकाह के बाद इकबाल अपनी बेगम शफकत को गांव बिछोर ले गया. बिछोर में रहते हुए भी शफकत को इकबाल के पहले निकाह की जानकारी नहीं हो सकी. जबकि सच्चाई यह थी कि उस का हरियाणा के नूंह की ही रहने वाली साजिदा से 26 मई, 2006 को निकाह हो चुका था. 2 साल बाद साजिदा ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम इकबाल ने सदर रखा था.

बेटी के जन्म के कुछ दिनों बाद इकबाल और साजिदा के बीच जमीन नाम कराने को ले कर मनमुटाव हो गया. यह मनमुटाव इतना बढ़ा कि साजिदा ने इकबाल और उस के घर वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने इकबाल, उस के वालिद याकूब खां और मां जमीला को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. यह दिसंबर, 2008 की बात थी.

बाद में सभी जमानत पर रिहा हुए. इस के बाद पारिवारिक न्यायालय के आदेश पर इकबाल को साजिदा को हर महीने 3 हजार रुपए गुजाराभत्ता देना पड़ रहा था.

शफकत गांव बिछोर में ही रह रही थी, जबकि इकबाल दिल्ली रह कर अपनी पढ़ाई कर रहा था. बीचबीच में वह गांव भी जाता रहता था. 2-4 बार वह शफकत को भी दिल्ली ले आया. जयपुर शहर में रह कर पढ़ीलिखी शफकत को उम्मीद थी कि पढ़ाई पूरी होने के बाद इकबाल की नौकरी लग जाएगी तो वह उस के साथ दिल्ली या किसी अन्य शहर में रह कर मजे से जिंदगी गुजारेगी. इसी उम्मीद में वह गांव में रह रही थी.

9 नवंबर, 2013 को शफकत ने एक बेटे को जन्म दिया. इकबाल ने उस का नाम अथर रखा. शफकत का निकाह हुए एक साल से ज्यादा हो गया, एक बेटा भी हो गया, इस के बाद भी इकबाल उसे साथ रखने को तैयार नहीं था. शहर में रहने वाली शफकत को बिछोर जैसे छोटे से गांव में अच्छा नहीं लगता था.

दिन भर परदे में रहने और पढ़ाईलिखाई का कोई उपयोग न होने से शफकत कुंठित होने लगी. उसे घुटन सी होने लगी तो वह इकबाल से जयपुर चल कर रहने के लिए कहने लगी. जबकि इकबाल इस के लिए राजी नहीं था. वह दिल्ली में रह कर पढ़ाई पूरी करना चाहता था. इसी बात को ले कर दोनों में अनबन रहने लगी.

शफकत जब बारबार जयपुर चल कर रहने की जिद करने लगी तो इकबाल को उस के चरित्र पर संदेह होने लगा. उसे लगने लगा कि इस का वहां किसी लड़के से प्रेम संबंध होगा, इसीलिए यह जयपुर चलने की जिद कर रही है. शक ऐसी बला है, जिस से जल्दी पीछा नहीं छूटता. यही हाल इकबाल का हुआ. इस तरह उस की और शफकत की प्रेम कहानी में शक का घुन लग गया, जो दांपत्य के विश्वास को धीरेधीरे खोखला करने लगा.

शफकत की छोटी बहन का निकाह लखनऊ में तय हुआ, जिसे अप्रैल, 2014 में होना था. संयोग से उसी बीच इकबाल के छोटे भाई अब्बास का भी निकाह तय हो गया. शफकत की बहन का निकाह पहले था, इसलिए शमशाद अहमद अपनी बीवी के साथ एक दिन बिछोर गए और शफकत को विदा करा लाए. अब तक शक की वजह से इकबाल और शफकत के बीच मनमुटाव इतना बढ़ गया था कि इकबाल न तो शफकत की बहन की शादी में गया और न ही शफकत इकबाल के भाई की शादी में आई.

बिछोर से जयपुर आने के बाद शफकत ने अपने गुजरबसर के लिए नौकरी ढूंढ़ ली. उसे एक प्राइवेट स्कूल में मैथ और साइंस पढ़ाने की नौकरी मिल गई. भले ही वह इकबाल से दूर थी और जयपुर में नौकरी कर रही थी, लेकिन उस की इकबाल से मोबाइल पर बातचीत होने के साथ वाट्सएप पर चैटिंग भी होती रहती थी.

इस बातचीत और चैटिंग में शफकत उसे जयपुर आ कर रहने के लिए कहती थी. इस बात पर इकबाल को गुस्सा आ जाता तो वह उसे भलाबुरा कहता. इस के बाद शफकत भी उसे उसी तरह जवाब देती. पुलिस के अनुसार, शफकत उसे चिढ़ाने के लिए यह भी कहने लगी थी कि उस ने दूसरा हमसफर ढूंढ लिया है, इसलिए अब वह उस के साथ नहीं जाएगी.

जिद ने उजाड़ा आशियाना – भाग 1

अदालत के आदेश पर बीवी पर गोली चलाने वाले इकबाल को जेल पहुंचाने आई पुलिस टीम उसे जेल स्टाफ को सौंपने के लिए लिखापढ़ी की काररवाई कर रही थी, तभी थाना रामगंज के थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई के रीडर जगदीश चौधरी ने इकबाल को जो बताया, उसे सुन कर उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे.

जेल में ऐसा होना आम बात है. लेकिन इकबाल का मामला कुछ अलग तरह का था. वह नासमझ नहीं, पढ़ालिखा इंसान था. दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से एम.फिल. कर रहा था. पढ़ालिखा और समझदार होने के बावजूद उस ने गुस्से में बीवी को एक नहीं, 2 गोलियां मार दी थीं. उस ने गोलियां ऐसी जगह मारी थीं, जिस से वह मरे न, लेकिन वह मर गई थी.

इस बात की जानकारी इकबाल को तब तक नहीं थी. उसे यही मालूम था कि उस का अस्पताल में इस इलाज चल रहा है. यही वजह थी कि जेल स्टाफ को सौंपते समय जब रीडर जगदीश चौधरी ने उसे बताया कि उस की बीवी शफकत मर चुकी है तो वह सन्न रह गया था.

बीवी की मौत के बारे में जान कर इकबाल की आंखों से आंसू बहने लगे थे. उस के दोनों हाथ दुआओं के लिए उठ गए थे. इस के बाद हथेली से आंसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं शफकत से बहुत प्यार करता था और शायद इतना ही प्यार हमेशा करता रहूंगा. आप मेरे सासससुर से कहिएगा कि वे उस की कब्र पर कोई निशान लगा कर रखेंगे. मैं जेल से बाहर आऊंगा तो बाकी की जिंदगी उसी की कब्र पर बिताऊंगा. क्योंकि अब मैं सिर्फ उसी का हो कर रहना चाहता हूं. मैं अपने सासससुर से भी दूर नहीं रहना चाहता. ताउम्र उन से नाता बनाए रखना चाहता हूं.’’

जयपुर (उत्तर) के थाना रामगंज की पुलिस ने इकबाल को 19 अगस्त को अपनी बीवी शफकत को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार किया था. लेकिन अस्पताल पहुंचतेपहुंचते शफकत की मौत हो गई थी. पुलिस ने इकबाल को अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया था.

उस की मनोस्थिति को देखते हुए पुलिस ने उसे यह नहीं बताया था कि शफकत अब इस दुनिया में नहीं रही. बीवी की मौत के बारे में जानकारी न होने की वजह से इकबाल रिमांड अवधि के दौरान खुदा से शफकत के जल्द से जल्द ठीक होने की दुआएं मांगता रहा.

लेकिन रिमांड अवधि खत्म होने पर अदालत के आदेश पर इकबाल को न्यायिक हिरासत में भेजा गया तो उसे जेल पहुंचाने आई पुलिस टीम में शामिल रीडर जगदीश चौधरी ने जब उसे बताया कि शफकत अब इस दुनिया में नहीं रही तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं. ऐसा कैसे हो सकता है. उस ने साथ जीने और मरने की कसमें खाई थीं. वह मुझे इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकती. सासससुर ने शफकत को मेरे साथ नहीं भेजा, इसीलिए मैं ने उसे गोली मारी थी. मुझे पता नहीं था कि इस तरह वह मेरा साथ छोड़ देगी.’’

इकबाल की बातें सुन कर पुलिस वालों को भी उस पर दया आ गई थी. पुलिस वालों ने इकबाल को समझाबुझा कर शांत किया और उसे जेलकर्मियों के हवाले कर दिया. जेल वाले उसे बैरक में ले गए. जेल की बैरक में पहुंच कर इकबाल अपनी मोहब्बत की दुनिया में खो गया. उस की आंखों के सामने शफकत से प्यार, निकाह और बेटे अथर के पैदा होने से ले कर गोली मारने तक की पूरी घटना फिल्म की तरह चलने लगी.

हरियाणा के नूंह जिले की पुन्हाना तहसील के गांव बिछोर के रहने वाले याकूब खां के बड़े बेटे इकबाल ने गांव से इंटर पास कर के आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था.  जिन दिनों इकबाल एमए कर रहा था, उस की जानपहचान अब्दुल्ला से हुई. लखनऊ का रहने वाला अब्दुल्ला इकबाल से सीनियर था. उस समय वह जामिया से ही पीएचडी कर रहा था, साथ ही वह किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता भी था.

अब्दुल्ला से इकबाल की जानपहचान हुई तो वह उसी के साथ उसी के कमरे में रहने लगा. साथ रहने की वजह से दोनों की दोस्ती और गहरी हो गई तो वे अपनेअपने परिवारों तथा दुखदर्द के साथसाथ दुनियाजहान की बातें करने लगे. अब्दुल्ला के रिश्ते के एक भाई शमशाद अहमद जयपुर में रहते थे. मूलरूप से वह उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के थाना नांगल सोती के गांव सबलपुरा बीतरा के रहने वाले थे. सन 2008 में वह अपने परिवार के साथ जयपुर आ गए थे और वहां वह रामगंज स्थित रैगरों की कोठी में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे.

शमशाद अहमद एमए पास थे, लेकिन उन्होंने नौकरी करने के बजाय व्यवसाय को महत्व दिया. जयपुर में उन्होंने हल्दियों का रास्ता में बच्चों के कपड़ों की दुकान खोली, जो बढि़या चल रही है. दुकान से उन्हें ठीकठाक आमदनी होती थी, जिस से वह आराम की जिंदगी बसर कर रहे थे. वह खुद पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों की भी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया. शमशाद की 6 संतानों में 4 बेटियां और 2 बेटे थे. शफकत उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस का पूरा नाम था शफकत खानम.

अब्दुल्ला और इकबाल में जब कभी घरपरिवार और नातेरिश्तेदारों की बातें होतीं तो कभीकभी शमशाद अहमद की बेटी शफकत का भी जिक्र हो जाता. शफकत जयपुर के वैदिक कन्या कालेज से बीएससी कर रही थी. उसी बीच अब्दुल्ला के साथ इकबाल भी एकदो बार जयपुर घूमने गया.

चूंकि वहां अब्दुल्ला भाई के घर रुकता था, इसलिए दोस्त होने के नाते इकबाल भी वहीं रुकता था. इसी आनेजाने और घर में रुकने की वजह से इकबाल और शफकत खानम के दिलों में एकदूसरे के लिए चाहत पैदा हो गई. इस के बाद कभीकभी इकबाल से मिलने के लिए शफकत अपने चाचा अब्दुल्ला के पास दिल्ली आने लगी.

अब तक दोनों एकदूसरे से काफी खुल चुके थे. अब्दुल्ला को दोस्त पर विश्वास था, इसलिए वह शफकत को उस के साथ अकेली छोड़ कर चला जाता था. ऐसे में ही एक दिन इकबाल और शफकत शाहरुख खान की फिल्म ‘बाजीगर’ देख रहे थे तो टीवी स्क्रीन पर गाना आया, ‘किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुम ने, मगर कोई चेहरा भी तुम ने पढ़ा है..?’

इस लाइन के पूरा होते ही शफकत ने इकबाल की कलाई थाम कर शरारत भरे अंदाज में कहा, ‘‘क्या तुम ने भी किसी का चेहरा पढ़ा है?’’

इकबाल उस की शरारत को समझ गया. इसलिए गाने की लय से लय मिलाते हुए बोला, ‘‘पढ़ा है, मेरी जां नजर से पढ़ा है…’’

अब भला शफकत क्यों चुप रहती. उस ने गाने को आगे बढ़ाया, ‘‘बता, मेरे चेहरे पर क्याक्या लिखा है?’’

इस तरह शरारतशरारत में मोहब्बत का इजहार हो गया तो कभी इकबाल शफकत से मिलने जयपुर जाने लगा तो कभी शफकत उस से मिलने दिल्ली आने लगी. इन मुलाकातों में दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए भविष्य के सपने बुनने लगे.

पाक प्यार में नापाक इरादे – भाग 2

पुलिस ने देखा कि सर्वेश इस तरह लाइन पर नहीं आ रही है तो पुलिस ने उस के साथ ऐसा खेल खेला कि बड़ी आसानी से वह उस में फंस गई. पुलिस ने उस से कहा था कि नेत्रपाल उन के कब्जे में है और उस ने बता दिया है कि तुम्हारी मदद से उसी ने पाकेश की हत्या की थी.

सर्वेश एकदम से बोली, ‘‘साहब, वह झूठ बोल रहा है. मैं ने उस से पाकेश की हत्या के लिए नहीं कहा था. उस ने अपने आप उस की हत्या की थी.’’

इस तरह सर्वेश ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद लंबी पूछताछ में पुलिस ने सर्वेश से पाकेश की हत्या की पूरी कहानी उगलवा ली, जो इस प्रकार थी.

उत्तराखंड के जसपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर का एक गांव है मोहद्दीपुर हसनपुर. कृपाल सिंह का परिवार इसी गांव में रहता था. उस के पास जो खेतीबाड़ी थी, उसी में मेहनत कर के वह गुजरबसर कर रहा था. शादी के बाद बड़ा बेटा हरियाणा में जा कर रहने लगा था. उस से छोटा धर्मवीर मंदबुद्धि था.

भाईबहनों में पाकेश सब से छोटा था, जो खेतीबाड़ी में कृपाल सिंह की मदद करता था. धर्मवीर मंदबुद्धि था, इसलिए उस की शादी नहीं हो रही थी. तब कृपाल सिंह ने सोचा कि वह पाकेश की शादी कर दें, क्योंकि उस की शादी के लिए लोग आने लगे थे.

बिजनौर के थाना रेहड के पास एक गांव है देहलावाला. उसी गांव के रहने वाले देवेंद्र सिंह चौहान की बेटी सर्वेश कृपाल सिंह को पसंद आ गई तो उस ने पाकेश की शादी उसी से कर दी.

देवेंद्र सिंह भी कृपाल सिंह की ही तरह सीधासादा आदमी था. लेकिन उस की पत्नी मूर्ति देवी काफी तेजतर्रार थी और घर में उसी की चलती थी. सर्वेश ने जैसा अपने घर में देखा था, वैसा ही कुछ ससुराल में करने की कोशिश करने लगी. पाकेश सीधा और शांत स्वभाव का था, इसलिए चंचल स्वभाव वाली सर्वेश को ससुराल में अपनी चलाने में जरा भी परेशानी नहीं हुई.

देहलावाला गांव की गिनती इलाके में अच्छे गांवों में नहीं होती, क्योंकि यहां की कई औरतें देह के धंधे से जुड़ी थीं. वे खुद तो यह धंधा करती ही थीं, अपने साथ कई लड़कियों को भी जोड़ रखा था. इसी देह के धंधे की कमाई से उन के रहनसहन में और गांव के अन्य लोगों के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था.

उन्हीं के रहनसहन को देख कर सर्वेश की मां मूर्ति देवी भी गांव छोड़ कर काशीपुर आ गई थी. काशीपुर आने के बाद उस ने भी वही रास्ता अपना लिया था और नोट कमाने लगी थी. हालांकि सर्वेश को मां के इस धंधे की जानकारी नहीं थी. लेकिन मां के रहनसहन को ही देख कर उस की भी काशीपुर में रहने की इच्छा होने लगी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही कृपाल सिंह की मौत हो गई थी, इसलिए पाकेश अकेला पड़ गया था. वह सीधासादा तो था ही, इसलिए सर्वेश जैसा कहती थी, वह वैसा ही करती थी. सर्वेश उस पर काशीपुर चलने के लिए दबाव बनाने लगी. वह पत्नी को बहुत प्यार करता था, इसलिए उसे नाराज नहीं करना चाहता था. पत्नी के कहने पर ही उस ने अपनी एक एकड़ जमीन बेचने का मन बना लिया.

गांव की जमीन बिकते ही सर्वेश अपनी मां की मदद से काशीपुर में घर बनाने के लिए प्लौट ढूंढने लगी. मूर्ति देवी की काशीपुर के कई प्रौपर्टी डीलरों से अच्छी जानपहचान थी. उन्हीं प्रौपर्टी डीलरों की मदद से मूर्ति देवी ने सर्वेश को बाजपुर रेलवे लाइन के किनारे काशीपुर विकास कालोनी में एक प्लौट दिला दिया.

काशीपुर में प्लौट तो खरीद लिया गया, लेकिन जब उस की रजिस्ट्री करानी हुई तो पाकेश और सर्वेश में तकरार होने लगी. पाकेश उस प्लौट की रजिस्ट्री अपने नाम से कराना चाहता था, जबकि सर्वेश चाहती थी कि रजिस्ट्री उस के नाम हो. इस बात को ले कर विवाद ज्यादा बढ़ा तो पाकेश को ही झुकना पड़ा. क्योंकि वह पत्नी को नाराज नहीं करना चाहता था.

सर्वेश के नाम प्लौट की रजिस्ट्री करा कर पाकेश ने घर बनवा लिया. अब तक सर्वेश 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, जिन में बेटा तुषार और बेटी गार्गी थी. सर्वेश ने अपने दोनों बच्चों का दाखिला भी काशीपुर में करा दिया था.

काशीपुर में गुजरबसर के लिए पाकेश महुआखेड़ा की फैक्ट्री में नौकरी करने लगा था. पाकेश का घर जिस मोहल्ले में था, वहां अभी इक्कादुक्का घर ही बने थे. दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और पाकेश अपनी नौकरी पर. उस के बाद सर्वेश घर में अकेली रह जाती, ऐसे में उस के लिए समय काटना मुश्किल हो जाता था.

काशीपुर आने के बाद सर्वेश का अपनी मां के यहां आनाजाना बढ़ गया था. इसी आनेजाने में उसे मां की हकीकत का पता चल गया. वैसे तो वह महुआखेड़ा की किसी फैक्ट्री में नौकरी करती थी, लेकिन उस की कमाई का मुख्य स्रोत लड़कियों की दलाली थी. यह काम वह मोबाइल फोन से करती थी. उसे लड़कियों की दलाली से अच्छी कमाई हो रही थी.

मां की हकीकत जान कर सर्वेश ने भी उसी राह पर चलने का इरादा बना लिया. उस ने पाकेश से दिन में अकेली रहने वाली परेशानी बता कर एक जूता फैक्ट्री में नौकरी कर ली. उसी जूता फैक्ट्री में उस की मुलाकात नेत्रपाल से हुई. नेत्रपाल वहां सुपरवाइजर था. सर्वेश जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा चंचल और शोख थी.

नेत्रपाल उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के गांव चतरपुर का रहने वाला था. उस का गांव महुआखेड़ा के नजदीक ही था, इसलिए वह घर से ही अपनी ड्यूटी पर आताजाता था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. इसलिए नेत्रपाल के नेत्र सर्वेश से लड़े तो वह उस के लिए पागल हो उठा. जबकि सर्वेश 2 बच्चों की मां थी. लेकिन उस की कदकाठी ऐसी थी कि देखने में वह कुंवारी लगती थी.

कुछ ही दिनों में नेत्रपाल सर्वेश के लिए ऐसा पागल हुआ कि दिनरात उसी के बारे में सोचने लगा. नेत्रपाल के पास सर्वेश का मोबाइल नंबर था ही, इसलिए वह छुट्टी के बाद भी फोन कर के उस से बातें करने लगा.

पाकेश पूरे दिन नौकरी पर रहता था. शाम को थकामांदा आता तो खाना खा कर सो जाता. उसे इस बात की भी चिंता नहीं रहती थी कि पत्नी क्या कर रही है. सर्वेश इसी बात का फायदा उठा कर नेत्रपाल से देर रात तक बातें करती रहती. मोबाइल पर बातें करतेकरते ही नेत्रपाल सर्वेश को अपने इतने नजदीक ले आया कि मौका मिलते ही उस ने उस से अवैध संबंध बना लिए.

नेत्रपाल से संबंध बनने के बाद सर्वेश को पाकेश की अपेक्षा नेत्रपाल की जरूरत ज्यादा महसूस होने लगी थी. सर्वेश को जब भी मौका मिलता, नेत्रपाल को फोन कर देती. नेत्रपाल को उस के फोन का इंतजार रहता ही था, संदेश मिलते ही वह सर्वेश के घर आ जाता.

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 3

शादी की बात सुनते ही खुशबू सन्न रह गई. जिस की खातिर उस ने अपना घर त्यागा, वही किसी और का हो जाएगा, यह उस ने सोचा भी नहीं था. उस ने सोचा कि राहुल की जिस लड़की के साथ शादी होने जा रही है, उस से उस का रिश्ता एक दिन में तो तय नहीं हुआ होगा. राहुल को इस की पहले से ही जानकारी रही होगी, लेकिन उस ने यह बात उस से छिपाए रखी. इसलिए वह बोली, ‘‘राहुल ऐसी बात तो नहीं है कि घर वालों ने तुम्हारी मरजी के बिना शादी तय कर दी हो. जब तुम से पूछा होगा तो तुम्हें शादी के लिए मना कर देना चाहिए था. लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया.’’

‘‘खुशबू, मैं चाह कर भी घर वालों की बात का विरोध नहीं कर सका. लेकिन तुम थोड़ी सूझबूझ से काम लो तो समस्या का हल निकल सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘इस का एक ही तरीका है कि शादी होने के बाद तुम भी उसे स्वीकार लो. यानी दोनों साथ रहो.’’

कोई भी औरत नहीं चाहती कि उस के पति को कोई दूसरी औरत बांटे, इसलिए राहुल की बात सुन कर खुशबू भड़क उठी, ‘‘राहुल, तुम ने यह सोच भी कैसे लिया कि दोनों एक साथ रहेंगी. यह हरगिज नहीं हो सकता. तुम एक बात और जान लो, 16 तारीख को जो तुम्हारी सगाई है, वह हरगिज नहीं होगी. उस दिन तुम घर नहीं जाओगे.’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मेरे घर न पहुंचने पर हंगामा हो जाएगा.’’

‘‘और गए तो यहां हंगामा हो जाएगा. अब खुद ही सोच लो कि क्या करना है?’’

खुशबू के सख्त तेवर देख कर राहुल परेशान हो गया. उस ने खुशबू को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह जिद पर अड़ी रही.  उसी दौरान राहुल ने तय कर लिया कि वह अपने घर वालों की इज्जत हरगिज खराब नहीं होने देगा, भले ही उसे खुशबू को रास्ते से क्यों न हटाना पड़े. इसी के मद्देनजर उस ने खुशबू को रास्ते से हटाने की योजना तैयार कर ली. योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए वह बाजार से एक छुरा भी खरीद लाया.

16 नवंबर, 2013 को राहुल के तिलक का कार्यक्रम निश्चित था. उस के कार्यक्रम में किसी तरह की कोई अड़चन न पड़े, इसलिए उस ने तिलक के कार्यक्रम से पहले ही खुशबू को ठिकाने लगाना उचित समझा. 15 नवंबर की शाम को खाना खाने के बाद खुशबू और राहुल सोने के लिए बिस्तर पर लेटे थे. थोड़ी देर बाद खुशबू को तो नींद आ गई, लेकिन राहुल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह रात गहराने का इंतजार कर रहा था.

जब उसे लगा कि मकान मालिक वगैरह सो चुके हैं तो उस ने गहरी नींद में सोई खुशबू के गले पर छुरे से वार किया. एक ही बार में खुशबू की सांस की नली कट गई और वह छटपटाने लगी. वह छटपटाती हुई बेड से नीचे गिर गई और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

पत्नी को ठिकाने लगाने के बाद राहुल ने राहत की सांस ली और बाथरूम में जा कर खून से सने हाथपैर धोए. इस के बाद चादर से लाश ढंक कर वह सुबह को अपने गांव चला गया. उसी दिन उस के तिलक का कार्यक्रम था, जिस में उस के सभी सगेसंबंधी इकट्ठा हुए थे. उस कार्यक्रम में भी वह पूरी तरह सामान्य रहा. उस ने किसी को जरा भी महसूस नहीं होने दिया कि वह कोई बड़ा अपराध कर के आया है.

लाश को छिपाने के लिए राहुल 19 नवंबर को बाजार से खेलने का सामान रखने वाला एक बड़ा सा बैग खरीद कर अंबिका विहार वाले कमरे पर पहुंच गया. खुशबू की लाश को उस ने चादर में लपेट कर प्लास्टिक के एक बोरे में भर कर बंद कर दिया. उस बोरे को उस ने साथ लाए बैग में रख दिया. उस ने सोचा था कि शादी के बाद उस बैग को कहीं ठिकाने लगा देगा.

19 नवंबर को पत्नी की लाश को बैग में रखने के बाद वह शाम को कमरे का ताला लगा कर जीने से उतर ही रहा था कि उसी समय उसे मकान मालिक राजकुमार गिरि मिल गया. उस ने राहुल को अकेले जाते देखा तो उस ने वैसे ही खुशबू के बारे में पूछ लिया. इस पर राहुल ने कहा कि खुशबू की बहन की डिलीवरी होने वाली है, वह आगे निकल गई है. उसे उस की बहन के यहां छोड़ने जा रहा है.

मकान मालिक ने उस की बात पर विश्वास कर लिया. उसे क्या पता था कि उस का किराएदार उस के कमरे में एक बड़ा अपराध कर चुका है. अंबिका विहार से राहुल सीधे अपने गांव पहुंचा. अगले दिन 20 नवंबर को बड़ी धूमधाम के साथ उस की बारात बुलंदशहर पहुंची और वह शिखा को दुलहन बना कर घर ले आया.

राहुल निश्चिंत था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सकेगी. 22 नवंबर को राजकुमार जब पहली मंजिल पर सफाई करने के लिए पहुंचा तो उसे बदबू महसूस हुई. क्योंकि बोरे में बंद लाश सड़ने लगी थी. राजकुमार की सूचना पर पुलिस उस के घर पहुंची और लाश के बारे में पता लगा. 23 नवंबर को राहुल खुशबू की लाश को ठिकाने लगाने के लिए अंबिका विहार वाले कमरे पर पहुंचा. जब वह करावलनगर में चौक के पास एक दुकान पर बैठा चाय पी रहा था, तब उसे यह पता नहीं था कि पुलिस उस के पीछे लगी हुई है. इसलिए पुलिस ने उसे आसानी से गिरफ्तार कर लिया.

राहुल शर्मा से पूछताछ के बाद जांच अधिकारी इंसपेक्टर अरविंद प्रताप सिंह ने 24 नवंबर को उसे कड़कड़डूमा कोर्ट में मुख्य महानगर दंडाधिकारी रविंद्र वेदी के समक्ष पेश कर उसे एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में पुलिस ने राहुल को उन जगहों पर ले जा कर तसदीक की, जहां से उस ने छुरा और बैग आदि खरीदे थे. फिर 25 नवंबर, 2013 को उसे पुन: अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया.

पति के जेल जाने के बाद शिखा की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उसे क्या पता था कि दुलहन बनने की जो खुशी वह मन में समेटे हुए थी, वह हाथ की मेहंदी धूमिल होने से पहले ही काफूर हो जाएगी. इस के बाद भी उसे उम्मीद है कि राहुल जल्द ही जेल से बाहर आ जाएगा.

(कहानी में शिखा परिवर्तित नाम है)

—कथा पुलिस सूत्रों एवं जनचर्चा पर आधारित

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 2

एकलौता बेटा होने की वजह से राहुल घर में सब का चहेता था. उसे सब आंखों पर बिठाए रखते थे. हाजीपुर वेहटा गांव में ही खुशबू नाम की एक खूबसूरत लड़की रहती थी. नजदीकी बढ़ाने के लिए गांव के कई लड़के उस पर डोरे डालने की कोशिश करते थे लेकिन वह उन्हें कतई लिफ्ट नहीं देती थी. इस की वजह यह थी कि वह राहुल शर्मा को चाहती थी.

जवान होने के बावजूद राहुल शर्मा अन्य लड़कों की तरह मटरगश्ती करता नहीं घूमता था, बल्कि अपना पूरा ध्यान प्रौपर्टी डीलिंग के काम में लगाता था. खुशबू राहुल के नजदीक आने की जुगत लगाती रहती थी. बताया जाता है कि एक दिन खुशबू राहुल की दुकान पर पहुंची और अपने एक जानकार का मकान बिकवाने के लिए राहुल से बात की. बातचीत के दौरान ही दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए.

इस मुलाकात के बाद दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. धीरेधीरे राहुल को भी उस से बातें करना अच्छा लगने लगा. दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे और उन की प्रेम कहानी शुरू हो गई. उन के बीच होने वाली बातों का दायरा सिमटता गया. जल्दी ही स्थिति यह हो गई कि जब तक वे रोजाना बातें नहीं कर लेते, उन्हें चैन नहीं आता था. बाद में राहुल उसे दिल्ली घुमाने के लिए भी ले जाने लगा. इसी दौरान उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

दोनों ही बालिग थे, इसलिए उन्होंने शादी कर के ताउम्र साथ रहने का फैसला कर लिया. इस तरह कई सालों तक उन के प्रेम संबंधों की घर वालों को भनक नहीं लगी. लेकिन गांव के तमाम लोग उन के बारे में जानते थे. लिहाजा गांव वालों के मुंह से होती हुई यह बात राहुल के घर वालों के कानों तक भी पहुंच गई.

अपने एकलौते बेटे के बारे में जान कर आदेश कुमार परेशान हो उठे. उन्होंने उस की किसी अच्छे घर से शादी करने के सपने संजो रखे थे. उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि बेटा ऐसा कदम उठा सकता है. उन्होंने राहुल को समझाया तो उस ने पिता से झूठ बोल दिया, ‘‘मेरे बारे में जो भी बातें उड़ रही हैं, वे सरासर झूठी हैं. मेरा किसी लड़की से कोई संबंध नहीं है. और रही बात शादी की तो आप अपनी मरजी से किसी भी लड़की से मेरी शादी करा सकते हैं.’’

बेटे की बात सुन कर आदेश कुमार को लगा कि गांव वाले यूं ही राहुल के बारे में अफवाह उड़ा रहे हैं. उन्हें यह पता नहीं चल सका था कि बेटे ने उन के सामने कितनी चालाकी से झूठ बोला है. आदेश कुमार को बेटे पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस के लिए लड़की देखने लगे.

उधर पिता से बातें करने के बाद राहुल समझ गया कि उस के प्रेमसंबंधों की भनक घर वालों को लग गई है, इसलिए उस ने खुशबू से मिलने में एहतियात बरतनी शुरू कर दी. चूंकि गांव में भी उस के संबंधों की चर्चा थी इसलिए उस ने खुशबू के साथ रहने की दूसरी युक्ति सोची.

खुशबू एक सामान्य परिवार से थी. राहुल से प्रेमसंबंध की बात उस ने अपनी मां को बता रखी थी. राहुल एक अच्छे परिवार का इकलौता लड़का था. इसलिए मां ने भी सोचा था कि उस के साथ बेटी को कोई परेशानी नहीं होगी.  उस की खुशहाल जिंदगी को ध्यान में रखते हुए मां ने भी खुशबू का विरोध नहीं किया. इस तरह खुशबू बेधड़क अपने प्रेमी से मिलती रही.

एक दिन राहुल ने आदेश कुमार से कहा, ‘‘पापा, एक जानकार के जरिए मेरी गुड़गांव स्थित सैमसंग कंपनी में नौकरी लग रही है. आप तो औफिस में बैठते ही हैं, इसलिए मैं नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं.’’

‘‘तुम्हें नौकरी की क्या जरूरत है? अपना अच्छाखासा काम है, इसे ही आगे बढ़ाओ.’’ आदेश कुमार ने कहा तो राहुल बोला, ‘‘कुछ दिनों में नौकरी कर के भी देख लेता हूं. बाहर जाने से तजुर्बा मिलेगा, रात की शिफ्ट में काम कर के मैं सुबह को घर आ जाया करूंगा.’’  राहुल के जिद करने पर आदेश कुमार ने स्वीकृति दे दी.

दरअसल राहुल घर वालों की नजरों में एक अच्छा बेटा बने रहने के लिए उन का विश्वास बनाए रखना चाहता था. इसलिए उस ने उत्तरपूर्वी दिल्ली के करावलनगर के अंबिका विहार में रामकुमार के यहां किराए पर एक कमरा ले लिया और खुशबू के साथ रहने लगा. मकान मालिक को उस ने खुशबू को अपनी पत्नी बताया था. इसी बीच दोनों ने एक मंदिर में शादी भी कर ली थी. राहुल रात में किराए के कमरे पर खुशबू के साथ रहता था और सुबह अपने घर चला जाता था.

राहुल ने घर वालों को बता रखा था कि उस की ड्यूटी रात की शिफ्ट में है. उस मकान में 11 महीने रहने के बाद वह पास में ही उमेश के घर रहने लगा. लेकिन उमेश का मकान उसे पसंद नहीं आया तो उस ने 15 दिनों बाद ही मकान बदल दिया और 15 अप्रैल, 2013 से वह अंबिका विहार की गली नंबर- 3 में राजकुमार गिरि के यहां रहने लगा.

खुशबू की अपने घर वालों से फोन पर अकसर बात होती रहती थी. खुशबू ने अपनी मां को बता दिया था कि राहुल ने अपने घरवालों की मरजी के खिलाफ उस से शादी की है, इसलिए घर वाले अभी नाराज हैं. उस की मां सोचती थी कि एक न एक दिन जब घर वालों का गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह खुशबू को बहू के रूप में स्वीकार कर लेंगे.

खुशबू राहुल के साथ खुश थी. राहुल भी उस का हर तरह से खयाल रख रहा था. उधर राहुल के घर वालों ने उस के लिए उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक लड़की देख ली थी. उन्होंने जब इस बारे में राहुल से बात की तो वह यह नहीं कह सका कि वह किसी और से प्यार करता है. वह बुलंदशहर वाली लड़की शिखा से शादी न करने की बात भी नहीं कह सका.

दोनों तरफ से जांचपरख के बाद राहुल का रिश्ता शिखा से तय हो गया. खुशबू को इस की भनक तक नहीं लगी. शिखा से शादी तय हो जाने के बाद राहुल असमंजस में पड़ गया, क्योंकि वह खुशबू से पहले ही शादी कर चुका था. उस की स्थिति यह थी कि वह न तो खुशबू को शिखा से शादी तय होने की बात बता सकता था और न ही घर वालों को खुशबू के बारे में बता पा रहा था. चालाकी दिखा कर वह जो खुशहाल जिंदगी जीने के सपने देख रहा था, अब वह उसी चालाकी के भंवर में फंस चुका था. कुछ नहीं सूझा तो वह उस भंवर से निकलने के उपाय खोजने लगा.

एक दिन उस ने खुशबू से कहा, ‘‘खुशबू मैं एक समस्या में फंसा हुआ हूं और समस्या भी ऐसी है, जिसे तुम ही सुलझा सकती हो.’’

यह सुन कर खुशबू ने चौंक कर पूछा, ‘‘क्या समस्या है, बताओ?’’

‘‘तुम तो जानती हो कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं. घर वालों की मरजी के बिना भी मैं तुम्हारे साथ रह रहा हूं. उन्हें तुम्हारे साथ रहने का तो पता नहीं है. इसलिए उन्होंने मेरे लिए बुलंदशहर में कोई लड़की देख कर मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है. 16 नवंबर को उन्होंने सगाई का दिन भी तय कर दिया है. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?’’

अपनी ही गलती से बना हत्यारा – भाग 1

22 नवंबर, 2013 की शाम को राजकुमार अपने घर की पहली मंजिल पर साफसफाई करने गया तो उसे वहां कुछ बदबू महसूस हुई. वह इधरउधर देखने लगा. जिस तरफ से बदबू आ रही थी, वह उसी तरफ बढ़ गया. बालकनी से होते हुए राजकुमार एक कमरे के पास पहुंचा तो वहां बदबू और बढ़ गई. वह समझ गया कि बदबू शायद उसी कमरे से आ रही है. उस कमरे में बाहर से ताला बंद था, क्योंकि उस में रहने वाला किराएदार राहुल 3 दिनों पहले अपनी पत्नी खुशबू को ले कर कहीं चला गया था.

कमरे से आने वाली बदबू किसी चूहे वगैरह के मरने की नहीं लग रही थी. किसी गड़बड़ी की आशंका से राजकुमार डर गया. वह सीधासादा आदमी था, इसलिए उस ने तुरंत 100 नंबर पर फोन कर दिया. पुलिस को जो काल मिली थी. उस में पता— मकान नंबर बी-13/1 बी, गली नंबर-3, अंबिका विहार, करावलनगर बताया गया था.  पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना करावलनगर को दे दी, साथ ही पीसीआर वैन भी बताए गए पते पर पहुंच गई. यह शाम करीब साढ़े 6 बजे की बात है. राजकुमार पुलिस वालों को पहली मंजिल पर स्थित उस कमरे पर ले गया, जिस में से बदबू आ रही थी.

चूंकि कमरे में बाहर से ताला बंद था, इसलिए पुलिस भी नहीं समझ पाई कि बदबू किस चीज की है. पीसीआर की काल मिलने पर थाना करावलनगर से एएसआई कविराज शर्मा और कांस्टेबल कृष्ण पाल को बताए गए पते पर भेजा गया. थाना पुलिस के पहुंचने तक राजकुमार के घर के पास काफी लोग जमा हो चुके थे. सभी तरहतरह के कयास लगा रहे थे. कविराज शर्मा ने भी उस कमरे के पास जा कर देखा, जिस में से दुर्गंध आ रही थी. कमरे पर लगे ताले को उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के आने से पहले छेड़ना उचित नहीं समझा.

उस कमरे में दरवाजे के ऊपर एक रोशनदान था. उस रोशनदान से कमरे में झांका जा सकता था. कविराज ने एक सीढ़ी मंगाई और उस पर चढ़ कर कमरे में झांक कर देखा. कमरे में घुप्प अंधेरा होने की वजह से कुछ दिखाई नहीं दिया. उन्होंने रोशनदान से टौर्च की रोशनी डाल कर अंदर देखा तो फर्श पर पड़े खून के साथसाथ एक बड़ा सा बैग भी दिखाई दिया. कविराज शर्मा माजरा समझ गए. उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया.

क्राइम टीम द्वारा बंद दरवाजे के फोटो वगैरह लेने के बाद कविराज शर्मा ने कमरे का ताला तोड़ा. जब दरवाजा खोला गया तो बदबू के भभके ने सभी को नाक बंद करने के लिए मजबूर कर दिया. अंदर कमरे में फर्श पर एक बड़ा सा लालकाले रंग का बैग रखा था. फर्श पर खून फैला था, जो सूख कर काला पड़ चुका था. बेड पर बिछी चादर और वहां रखी रजाई पर भी खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे. बेड पर चूडि़यों के टुकड़े पड़े थे. यह सब देख कर यही लगा कि इस बैग में किसी की लाश ही होगी.

बैग की चेन खुली थी. अंदर प्लास्टिक का एक बोरा रखा था. बोरा बैग से बाहर निकाला गया तो उस में से खून रिस रहा था. बोरा को खोला गया तो उस में से एक युवती की लाश निकली, जिस की गरदन कटी हुई थी. लाश सड़ चुकी थी. लाश देख कर राजकुमार ने बताया कि यह राहुल की बीवी खुशबू है. चूंकि राहुल वहां से गायब था, इसलिए यह बात साफ हो गई कि पत्नी की हत्या राहुल ने ही की है.

एएसआई कविराज ने इस मामले की सूचना थानाप्रभारी लेखराज सिंह को दी तो वह इंसपेक्टर अरविंद प्रताप सिंह और सबइंसपेक्टर जफर खान को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना कर के मकान मालिक राजकुमार गिरि से पूछताछ की. राजकुमार ने बताया कि राहुल शर्मा अपनी पत्नी खुशबू के साथ 15 अप्रैल, 2013 से वहां रह रहा था. 19 नवंबर को जब वह नीचे गैलरी में खड़ा था, तभी उस ने राहुल को जीने से उतरते देखा था.

पूछने पर राहुल ने बताया था कि खुशबू की बहन की डिलीवरी होनी है, इसलिए वह अपनी बहन के यहां जा रही है. वह आगे चली गई है. 19 तारीख के बाद राहुल वापस नहीं लौटा था. आज जब वह ऊपर की साफसफाई करने गया तो बदबू महसूस हुई. तब उस ने इस की सूचना पुलिस को दे दी थी. घनास्थल की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए गुरु तेग बहादुर अस्पताल भेज दी और हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस केस को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी लेखराज सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंस्पेक्टर अरविंद प्रताप सिंह, सबइंसपेक्टर जफर खान, सहायक सबइंसपेक्टर कविराज शर्मा, कांस्टेबल कृष्णपाल और दयानंद आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को राजकुमार से पता चला कि राहुल को अंबिका विहार के रहने वाले उस के एक परिचित उमेश ने किराए पर रखवाया था. इस से पहले राहुल के यहां किराए पर रहता था. पुलिस ने उमेश से संपर्क किया तो उस के पास से राहुल का फोन नंबर और पता मिल गया. वह लोनी क्षेत्र के गांव हाजीपुर वेहटा का रहने वाला था.

पुलिस ने राहुल का फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. हत्या करने के बाद कोई व्यक्ति घर पर मिले, ऐसा कम ही संभव होता है. फिर भी राहुल के बारे में पता लगाने के लिए पुलिस उस के गांव हाजीपुर वेहटा गई. पुलिस ने गोपनीय रूप से राहुल के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह घर पर नहीं है. इसी पूछताछ में पुलिस को एक चौंकाने वाली बात पता चली. चौंकाने वाली बात यह थी कि राहुल शर्मा ने 20 नवंबर को बुलंदशहर की एक लड़की से शादी की थी और यह शादी घर वालों की मरजी से सामाजिक रीतिरिवाज से हुई थी. सवाल यह था कि राजकुमार दिल्ली में खुशबू नाम की जिस लड़की के साथ रहता था, वह कौन थी?

बहरहाल पुलिस टीम दिल्ली लौट आई. पुलिस राहुल के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा कर बराबर वाच कर ही रही थी. 23 नवंबर की शाम को पता चला कि राहुल के फोन की लोकेशन करावलनगर चौक के आसपास है. राजकुमार गिरि राहुल को पहचानता था, इसलिए पुलिस टीम उसे अपने साथ ले कर करावलनगर चौक पहुंच गई.

पुलिस टीम सादा कपड़ों में थी. वह काफी देर तक राजकुमार को इधरउधर टहलाती रही. इसी बीच राजकुमार की नजर चाय की एक दुकान पर गई. राहुल शर्मा वहां एक बैंच पर बैठा चाय पी रहा था. राजकुमार के इशारे पर पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. थाने ला कर जब उस से खुशबू की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी ही आसानी से हत्या की बात कुबूल ली. उस से पूछताछ के बाद एक दिलचस्प कहानी पता चली.

राहुल शर्मा के पिता आदेश कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 ही बच्चे थे. बेटा राहुल और एक बेटी. हालांकि उन का छोटा सा परिवार था, लेकिन वह परिवार को हर तरह से खुश देखना चाहते थे. इसी चाह में वह गढ़मुक्तेश्वर से लोनी चले आए. लोनी में वह इसलिए आए, क्योंकि यह दिल्ली की सीमा से सटा हुआ था. उन्होंने सोचा था कि वहां रह कर अपने लिए दिल्ली में कोई कामधंधा खोज लेंगे.

थोड़ी कोशिश के बाद उन की दिल्ली होमगार्ड में नौकरी लग गई. शुरू में तो उन्हें होमगार्ड का काम करते हुए अच्छा लगा, लेकिन 5-6 सालों बाद ही इस काम से ऊबने लगे. वजह यह थी कि इस से उन्हें अच्छी आमदनी नहीं हो पाती थी. अब तक उन्होंने लोनी के पास के गांव वेहटा हाजीपुर वेहटा में मकान भी बना लिया था.  उन्होंने वेहटा रेलवे स्टेशन के नजदीक प्रौपर्टी डीलिंग की दुकान खोल ली. ड्यूटी से लौटने के बाद वह दुकान पर बैठते थे. उन का बेटा राहुल बड़ा हो चुका था, इसलिए पिता की गैरमौजूदगी में वह दुकान संभालता था.

आदेश कुमार का प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा जम गया तो उन्होंने होमगार्ड की नौकरी छोड़ दी और पूरे समय दुकान पर बैठने लगे. उन की मेहनत रंग लाने लगी. आमदनी बढ़ने लगी तो उन्होंने अपने प्रौपर्टी के बिजनैस को नए आयाम देने शुरू कर दिए. लोनी के नजदीक ही उन्होंने कई एकड़ जमीन खरीद ली. उस जमीन पर उन्होंने अपने बेटे के नाम पर ‘राहुल विहार’ नाम की कालोनी बसानी शुरू कर दी.

रहस्यमय हवेली: आखिरी क्या था उस हवेली का राज

जून का महीना था, समय दोपहर के लगभग ढाई बजे. विवेक अपने मित्र सुदर्शन के साथ राजस्थान के राज्यमार्ग पर कार में सफर कर रहे थे.

‘‘दर्शी, आज गरमी कुछ ज्यादा है, कार का एयरकंडीशनर भी काम नहीं कर रहा है.’’ विवेक ने सुदर्शन से कहा, जो कार की स्टीयरिंग पर एकाग्रता से बैठा था.

दोस्त का नाम तो सुदर्शन था, पर सब मित्र और परिवार के लोग उसे दर्शी ही कहते थे. उस की उम्र भले ही 40 साल हो गई थी, लेकिन बचपन से अब तक प्यार का नाम दर्शी ही प्रचलन में था. यही हाल विवेक का भी था, उसे सब विक्की कहते थे.

‘‘विक्की, एक तो जून का महीना है, ऊपर से दोपहर का समय. गरमी के इस प्रकोप में वह भी राजस्थान में कार का एयरकंडीशनर क्या काम करेगा.’’

‘‘दर्शी, थोड़ी देर रुक कर आराम कर लिया जाए.’’

‘‘यार, दूर तक सिर्फ रेत के टीले ही नजर आ रहे हैं. रुकने लायक कोई जगह नजर आए तभी तो रुक कर आराम करेंगे.’’ दर्शी ने दूर तक नजर दौड़ाते हुए जवाब दिया.

‘‘दर्शी, आज तक हम राजस्थान की अंदरूनी जगहों पर नहीं गए. जयपुर, अजमेर और उदयपुर तक ही सीमित रहे. आज हमें राजस्थान की एकदम अंदरूनी जगह के लिए एक चुनौती मिली है, जहां हमें अपना हुनर दिखाना है.’’

‘‘विक्की, हम ने उस सेठ की बातों में आ कर चुनौती स्वीकार तो कर ली है, लेकिन क्या हमारी मेहनत का पैसा मिलेगा?’’

‘‘दिल छोटा मत कर यार. इन सेठों के पास पैसों की कोई कमी नहीं है.’’

‘‘यार, आधा घंटा हो गया, रेतीला रेगिस्तान समाप्त ही नहीं हो रहा है. जून के महीने की दोपहर में अगर कार के एसी ने बिलकुल जवाब दे दिया, तब क्या हालत होगी?’’

‘‘जो होगा देखा जाएगा, अब क्या कर सकते हैं.’’ विक्की ने कहा.

विवेक और सुदर्शन, दोनों बचपन के दोस्त थे. स्कूल से ही लंगोटिया यार, पेशे से आर्किटेक्ट, एक साथ पार्टनरशिप में काम करते थे. दोनों ने एक महीने पहले ही उदयपुर में एक हवेलीनुमा कोठी का नक्शा बनाया था. जब कोठी बन कर तैयार हुई, तो उस की जम कर तारीफ हुई. आज के आधुनिक युग में पुरानी हवेली जैसी कोठी का निर्माण विवेक और  सुदर्शन की देखरेख में हुआ.

पुराने नक्शे में कोठी के अंदर सभी आधुनिक सुविधाएं इस तरह से दी गईं कि हवेली का अंदाज बरकरार रहे. गृह प्रवेश पर हवेली के मालिक ने एक शानदार दावत दी, जिस में राजस्थान के धन्ना सेठों की पूरी बिरादरी आई थी. विवेक और सुदर्शन के काम से प्रभावित हो कर सेठ पन्नालाल ने उन्हें अपनी हवेली के निर्माण का कार्य सौंपा था.

सेठ पन्नालाल ने अपने पुश्तैनी मकान की जमीन पर उन्हें विशाल हवेली तैयार करने का जिम्मा दिया था.

गर्मी में कार चलाते हुए दोनों आशंकित हो रहे थे. कहीं कार जवाब न दे जाए. कार का एसी न के बराबर ठंडा कर रहा था और पीने का पानी भी समाप्त हो गया था. दोनों का गला प्यास से सूखने लगा, तभी उन्हें कुछ दूर आगे आबादी नजर आई. वह एक छोटा सा गांव था. गांव में सड़क किनारे ट्रक रिपेयर की वर्कशौप थी. कुछ दुकानें भी थीं, पर दोपहर की गरमी की वजह से बंद थीं. सुदर्शन ने कार ट्रक रिपेयर वर्कशौप के पास रोकी. वर्कशौप से एक मिस्त्री बाहर आया.

‘‘साहब, कार दिखानी है. ठीक हो जाएगी. हमारी वर्कशौप में स्कूटर, बाइक से ले कर कार, ट्रक सभी रिपेयर होते हैं.’’ मिस्त्री ने बताया.

विवेक और सुदर्शन उस की बात सुन कर मुसकरा दिए. भारत तरक्की पर है, एक ही जगह सभी सुविधाएं और वह भी गांव में.

‘‘कार तो ठीक है, पर गर्मी बहुत है, पीने के लिए पानी चाहिए.’’ विक्की ने कहा.

उस आदमी ने आवाज दी. एक लड़का वर्कशौप से निकला और साथ वाली दुकान खोली, जिस में किराने का सभी सामान मौजूद था.

‘‘क्या लोगे साहब, सब कुछ मिलेगा. कोल्डड्रिंक्स भी और ठंडी बियर भी. क्या पिओगे साहब?’’

‘‘अभी तो सादा पानी चाहिए. बाकी बाद में देखते हैं.’’

पानी पीने के बाद विवेक और सुदर्शन वहां पड़ी चारपाई पर बैठ गए.

‘‘थकान हो गई है विक्की. थोड़ा आराम कर लें?’’ सुदर्शन ने विवेक से उस की राय पूछी.

‘‘अगर आराम के लिए जगह मिल जाए तो जरूर करेंगे.’’

सुदर्शन ने वर्कशौप वाले आदमी से थोड़ी देर आराम करने के लिए थोड़ी जगह देने के लिए कहा.

‘‘साहब आप को कहां जाना है?’’

‘‘रंग बांगडू में सेठ पन्नालाल के यहां जाना है. वह अपने पुश्तैनी घर की जगह हवेली का निर्माण करवाना चाहते हैं. हम दोनों आर्किटेक्ट हैं.’’

‘‘रंग बांगडू वैसे तो करीब 80 किलोमीटर होगा. लेकिन यहां से आगे सड़क का भरोसा नहीं है. सड़क पक्की जरूर है. रेत उड़ती है तो सड़क पर सिर्फ रेत ही रेत नजर आती है. कार चलाने में भी दिक्कत होती है. मेरी राय तो यह है कि आप रात यहीं गुजार लें. सुबह चले जाना. मौसम भी थोड़ा ठंडा रहता है और रेत भी नहीं उड़ती.’’

‘‘रात में रुकने की जगह मिल जाएगी?’’ सुदर्शन ने पूछा.

‘‘सामने देखिए, आप को एक हवेली नजर आएगी.’’

‘‘जो ऊंचा मकान है, क्या उस की बात कर रहे हो?’’ विवेक ने हाथ से इशारा करते हुए पूछा.

‘‘जी साहब, यह हवेली सेठ मूंगालाल की है. छोटा सा यह गांव उन्हीं का बसाया हुआ है. आप वहां रुक सकते हैं.’’

‘‘हम उन्हें जानते तक नहीं. वह हमें अपनी हवेली में क्यों रुकने देंगे?’’

‘‘हवेली के कुछ कमरे मेहमानों के लिए हैं. आप वहां रुक सकते हैं. चलिए मैं आप को वहां ले चलता हूं.’’

उस आदमी को कार में बैठा कर तंग गली से गुजरते हुए दोनों हवेली के गेट तक पहुंचे. मुख्य सड़क से हवेली तक गली के दोनों ओर कच्चेपक्के कहीं एक मंजिल के और कहीं 2 मंजिल के मकान थे. हवेली पर जा कर गली समाप्त हो गई थी. गली के ठीक सामने हवेली का बहुत बड़ा दरवाजा था, जो बंद था.

सुदर्शन ने हवेली की दीवार से कार सटा कर पार्क की. जैसे किसी किले का बड़ा सा दरवाजा होता है, ठीक उसी तरह का दरवाजा था हवेली का. विवेक और सुदर्शन चूंकि आर्किटेक्ट थे, वे बहुत सूक्ष्म दृष्टि से दरवाजे पर हुई नक्काशी का निरीक्षण करने लगे. नक्काशी धूल से लथपथ थी और अपने पुराने इतिहास की कहानी खुद बयां कर रही थी.

‘‘दर्शी, यह हवेली तो कम से कम एक सौ साल पुरानी होगी. दरवाजे की नक्काशी अपने जन्म का खुद बयान कर रही है.’’

‘‘विक्की, बिलकुल ठीक कहा तुम ने.’’

उस बडे़ दरवाजे में एक छोटा दरवाजा था. वह खुला और तीनों अंदर चले गए. हवेली की देखभाल करने वाले रखवालों में से एक रखवाले ने दरवाजा खोला. वर्कशौप वाले व्यक्ति ने उस से कुछ बात की, जिस के बाद उस रखवाले ने हवेली की बैठक खोली. धूल देख कर विवेक और सुदर्शन समझ गए कि हवेली के मालिक वहां कभी नहीं आते होंगे. रखवाले ने कुर्सियां पोंछ कर साफ कीं.

‘‘आइए साहबजी, थोड़ा आराम कीजिए. चाय लेंगे?’’

विवेक और सुदर्शन ने हामी भर दी. आरामकुर्सी पर धीरेधीरे आगेपीछे झूलते हुए दोनों हवेली का निरीक्षण करने लगे. बैठक बहुत बड़ी थी, जो 3 मंजिल की थी. दूसरी और तीसरी मंजिल पर खिड़कियां थीं. तभी चाय आ गई. बोनचाइना के सुंदर कप में चाय की चुस्कियां लेते हुए विवेक ने रखवाले से पूछा, ‘‘क्या नाम है आप का?’’

‘‘मेरा नाम भंवर सिंह है.’’ उस ने बताया.

‘‘इस हवेली में कब से हो?’’

‘‘मैं तो जनाब पैदा ही इसी हवेली में हुआ हूं. पहले मेरे दादा ने यह हवेली संभाली, फिर मेरे पिता ने और अब मैं इसे संभाल रहा हूं.’’

‘‘बहुत खूब, ऐसी सेवा भी किस्मत से मिलती है.’’

‘‘जी जनाब, चाय कैसी लगी?’’

‘‘चाय एकदम मस्त है, तुलसी और अदरक के स्वाद से चाय पौष्टिक हो जाती है.’’

‘‘यह तो है जनाब.’’

‘‘इस हवेली के बारे में कुछ बताओ. देखने में बहुत पुरानी लगती है.’’

‘‘यह हवेली 200 साल पुरानी है. सौ साल से तो हमारा परिवार ही इसे संभाल रहा है. इस के मालिक सेठ मूंगालाल हैं. 80 के लपेटे में होंगे. उन की तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही है, इसलिए अब यहां नहीं आते.

बहुत बड़े व्यापारी हैं, देशविदेश में औफिस हैं. बेशुमार दौलत है उन के पास. धन का समंदर कहूं तो गलत नहीं होगा. बोरों में रकम पड़ी रहती है. यह हवेली मूंगालाल के पुरखों ने बनवाई थी. मूंगालाल के बच्चे यहां नहीं आते. वे विदेश में अधिक रहते हैं.’’

‘‘भंवर सिंह, हम आर्किटेक्ट हैं. इसी नाते इस हवेली को ठीक से देखना चाहते हैं. हम रंग बंगडू में सेठ पन्नालाल के पुश्तैनी मकान की जगह एक हवेली के निर्माण के सिलसिले में जा रहे हैं. आर्किटेक्ट होने के नाते इस हवेली की बनावट शायद हमारे काम आए.’’

‘‘जनाब अभी धूप और गर्मी दोनों ही तेज है. शाम के समय आप को हवेली के दर्शन करवाएंगे.’’

‘‘हमें आगे रंग बंगडू भी जाना है.’’

‘‘रंग बंगडू कल सुबह जाना, आज हमारे मेहमान रहिए. आप को हवेली देखने का आनंद रात को ही आएगा. बहुत सी रहस्य की बातें हैं, मुझे लगता है, उन बातों को आप को जरूर जानना चाहिए.’’

भंवर सिंह की बातें सुन कर विवेक ने सुदर्शन की ओर देखा. सुदर्शन ने गर्दन हिला कर हामी भर दी. भंवर सिंह चला गया.

भंवर सिंह के जाने के बाद विवेक और सुदर्शन हवेली की बैठक का निरीक्षण करने लगे. भंवर सिंह के मुताबिक हवेली 2 सौ साल पुरानी थी. हवेली की बैठक बहुत बड़ी, करीब एक हौल के बराबर थी. लाल किले के दीवान ए खास जैसी. दूसरी और तीसरी मंजिल की खिड़कियां बंद थीं.

दोनों ओर 6-6 खिड़कियां अर्थात 24 खिड़कियां देख कर विवेक ने सुदर्शन से कहा, ‘‘दर्शी, इन खिड़कियों को देख कर हवा महल की याद आ गई. मुझे ये कमरे ऐसे लगते हैं, जैसे महल में राजा जब मंत्रियों से वार्तालाप करता था, तो रानियां ऊपर झरोखों से देखती थीं. कुछ इसी तरह जब इस हवेली के बुजुर्ग पुरुष बैठक में बैठते रहे होंगे, तब बच्चे और महिलाएं अपने कमरे की खिड़की में से मूक दर्शक बन कर बैठती होंगी. उस जमाने में महिलाएं घूंघट में रहती थीं.’’

‘‘बिलकुल सही, इन झाड़फानूस को देखो. जरूर बेल्जियम से मंगाए गए होंगे. सेठ ने दिल खोल कर हवेली बनाई है. ऊपर खिड़कियों के रंगीन शीशे देखो, नीले, पीले और हरे रंग की नक्काशी वाले शीशे. अब ये शीशे न तो बनते हैं और न ही कोई लगाता है. एकदम सादे शीशों पर फिल्म चढ़ती है.’’

‘‘दर्शी, इन टाइल्स को देखो, उभरी हुई आकृतियां कितनी खूबसूरत लग रही हैं.’’

‘‘उमर खैयाम की इस तस्वीर को देखो. कितनी टाइल्स को जोड़ कर बनाई गई होगी यह तसवीर, कितनी आकर्षक, कितनी अतुलनीय है.’’

‘‘दर्शी, आजकल यह कला लुप्त हो गई है. वाकई ये खूबसूरत कलाकृति लाजवाब है.’’

‘‘सच में राजस्थान में वास्तुकला देखने लायक होती है. एक से बढ़ कर एक महल और हवेलियां हैं.’’

‘‘दर्शी, बैठक का गुंबद देखो, रोशनी आ रही है.’’

विक्की ने इशारा कर के कहा तो सुदर्शन उधर देखते हुए बोला, ‘‘हवेली दो सदी पुरानी है और रखरखाव न के बराबर है. मुझे दरारें लग रही हैं, जिन से धूप छन कर आ रही है.’’

दोनों मित्र बातें करते हुए हवेली को देखने बैठक से बाहर आ गए. हवेली के पिछले भाग में बहुत बड़ा बगीचा था, जिस में फव्वारे लगे थे. फलदार पेड़ शोभा बढ़ा रहे थे. रखरखाव की कमी वहां भी साफ झलक रही थी. परंतु पेड़ फलों से लदे हुए थे. एक तरफ गुलाब के फूलों की क्यारियां थीं और पीछे सब्जियों की क्यारियां.

‘‘दर्शी, देख फल, फूल और सब्जियां, सभी कुछ है हवेली के अंदर. सुखसुविधा का पूरा प्रबंध है. यह हवेली किसी छोटे महल जैसी है.’’

दोनों मित्र बातें कर रहे थे कि भंवर सिंह मिल गया. वह अपने परिवार समेत कोठी के पिछले हिस्से में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था. दोनों भंवर सिंह से हवेली का इतिहास जानने के लिए उत्सुक थे. पूछने पर उस ने बताना शुरू किया.

‘‘इस गांव को सेठ मूंगालाल के पूर्वजों ने बसाया था. गांव के आसपास कई गांव और हवेलिया थीं. गांवों और हवेलियों का यह सिलसिला रंग बांगडू पर समाप्त होता था. इस हवेली के पीछे पर्वत है, पर्वत की चोटी पर देवी का मंदिर है. चाहे आप हवेली को पुरानी और खंडर समझें, पर इस हवेली और गांव पर कभी कोई आंच नहीं आ सकती.

‘‘यह हवेली और गांव दो सदियों से ऐसा ही है. यहां कभी कोई विपदा नहीं आई. इस गांव के आसपास मीलों तक आप को कोई बस्ती न तो नजर आई होगी और न आगे नजर आएगी. आप रंग बांगडू जा रहे हैं, वहां तक आप को कोई बस्ती नहीं मिलेगी. लगभग 100 साल पहले विपदा आई और सारी बस्तियां उजड़ गईं लेकिन इस हवेली पर कोई आंच नहीं आई.’’

‘‘यह कैसे संभव है?’’ विवेक और सुदर्शन ने एक साथ पूछा.

‘‘साहब, यह एक रहस्य है, जिसे मेरे सिवा कोई दूसरा नहीं जानता.’’

उस की बात से विवेक और सुदर्शन की उत्सुकता बढ़ने लगी.

‘‘भंवर सिंह हम ठहरे आर्किटेक्ट, बिना देखे नहीं समझ पाएंगे?’’

‘‘ठीक है, रात के ठीक 12 बजे मैं आप को उस जगह ले जाऊंगा, आप आज रात यहीं रुकें.’’

विवेक और सुदर्शन रात को हवेली में रुक गए. अमावस की रात थी. बादलों से घिरा आसमान काला स्याह नजर आ रहा था. गांव वाले सभी नींद में थे. भंवर सिंह का परिवार भी सो रहा था. विवेक और सुदर्शन की आंखों में नींद नहीं थी. हवा धीमी गति से चल रही थी. शाम को गई बिजली अभी तक नहीं आई थी.

गांव में 24 घंटे बिजली का सुख नसीब नहीं होता. एक बार गई न जाने कब आए. काली घनी अमावस की रात एक डरावना माहौल पैदा कर रही थी. हवेली के पीछे बगीचे में एक बेंच पर विवेक बैठा था, जबकि सुदर्शन चहल कदमी कर रहा था.

‘‘विक्की, मुझे ठीक नहीं लग रहा है. माहौल बहुत डरावना है, निकल चलते हैं.’’

‘‘दर्शी, आज जिंदगी में पहली बार ऐसे डरावने माहौल का सामना कर रहे हैं, फिर भी हमें हिम्मत रखनी होगी. यहां से जाएंगे भी तो कहां जाएंगे.’’

‘‘विक्की, बाहर कार खड़ी है. चलते हैं, या तो रंग बांगडू या फिर दिल्ली अपने घर.’’

उसी बीच भंवर सिंह लालटेन के साथ आता नजर आया. वह पास आ कर बोला, ‘‘साहबजी, 12 बज रहे हैं. आइए मेरे साथ.’’

विवेक और सुदर्शन चुपचाप भंवर सिंह के पीछे चल दिए. हवेली के एक छोर पर जा कर उस ने एक दरवाजा खोला. दरवाजे के पास नीचे जाने के लिए सीढि़यां थीं. सीढि़यां उतर कर वे एक कमरे में पहुंचे. यह तहखाना था, जिस की दीवारों पर विचित्र सी आकृतियां बनी थीं. अंधेरे को दूर करने के लिए लालटेन की रोशनी कम थी.

‘‘भंवर सिंह यह सामने क्या है?’’ अंधेरे में नजर टिका कर विवेक और सुदर्शन ने पूछा.

‘‘साहबजी, यह नर कंकाल हैं.’’

‘‘किसलिए?’’ विवेक और सुदर्शन की आवाज कांप गई.

भंवर सिंह के उत्तर में एक रहस्यमयी मुसकान थी, ‘‘यह नरकंकाल सेठ मूंगालाल के पिता का है, जिस की बलि मेरे पिता ने दी थी और वह सेठ मूंगालाल के दादा का है, जिस की बलि मेरे दादा के हाथों द्वारा दी गई थी. अब सेठ मूंगालाल की बलि का वक्त आ गया है, जो मेरे हाथों होगी. अभी वह अस्पताल में है, उन्हें यहां आना ही होगा. डाक्टर बलि के लिए उन्हें जिंदा रखेंगे. इन के वंश पर लक्ष्मी की कृपा हो, इस के लिए.

‘‘इस जगह को देखो, सेठ मूंगालाल के पूर्वजों ने बलि से पहले यहां पर रतन गाड़े हैं. बलि के बाद लक्ष्मी की असीम कृपा होती है और छप्पर फटता है सेठ के परिवार में. साथ ही इस हवेली के गुंबद में एक दरार आ जाती है. आप गुंबद की वह दरार देख रहे थे, जहां से धूप छन कर आ रही थी. जब तक बलि चढ़ती रहेगी, इस हवेली का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.’’

भंवर सिंह की बातें सुन कर विवेक और सुदर्शन थरथर कांपने लगे. तभी भंवर सिंह ने एक कटार निकालते हुए कहा, ‘‘यही है खानदानी कटार, जिस से बलि होगी.’’

 

विवेक और सुदर्शन को ऐसा लगा, जैसे कटार उन दोनों की ओर बढ़ रही है. पता नहीं कहां से शक्ति मिली कि दोनों सीढि़यों की ओर भागे. तहखाने का दरवाजा खुला था. भागते हुए हवेली के मुख्य द्वार तक पहुंचे. भंवर सिंह कटार ले कर उन के पीछे था. द्वार पर मोटी सांकल लगी थी, जिसे खोल कर दोनों छोटे द्वार से बाहर आए और कार में बैठ कर कार स्टार्ट की.

भंवर सिंह पीछे से आया और कार का दरवाजा खोलने की चेष्टा करने लगा. सुदर्शन ने तेजी से कार को पीछे किया, जिस की टक्कर से भंवर सिंह गिर पड़ा. इसी मौके का फायदा उठा कर सुदर्शन ने कार को एकदम से बढ़ा दिया.

रात के सन्नाटे में तंग सी वह गली बिलकुल सुनसान थी. एक रेहड़ी तिरछी खड़ी था, जिसे टक्कर मार कर सुदर्शन ने कार की गति बढ़ाई और वे चंद पलों में मुख्य राजमार्ग पर आ गए. कार की गति बढ़ती गई. दोनों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उन्हें नहीं मालूम था कि वे किस ओर जा रहे थे. सुनसान सड़क, अंधेरी अमावस की रात, सड़क पर कोई स्ट्रीट लाइट नहीं.

कार की हैडलाइट अंधेरे को चीर रही थी. फर्राटा भरती कार 2 घंटे तक भागती रही. कुछ दूर जा कर रोशनी दिखी तो दोनों की हिम्मत बढ़ी. नजदीक पहुंचे तो वह रेलवे स्टेशन था.

रात के लगभग ढाई बजे थे, रेलवे स्टेशन सुनसान पड़ा था. उन्होंने रेलवे स्टेशन के बाहर कार खड़ी की. कार की आवाज सुन कर स्टेशन मास्टर बाहर निकला.

‘‘कौन है, इतनी रात को? क्या काम है?’’ स्टेशन मास्टर ने पूछा.

विवेक और सुदर्शन डर की वजह से कार से बाहर नहीं निकले. स्टेशन मास्टर ने टौर्च की रोशनी कार पर डाली और कार के शीशे को खटखटाया. सुदर्शन ने कार का शीशा थोड़ा नीचे कर के कहा, ‘‘हमें रंग बांगड़ू जाना है. शायद हम रास्ता भूल गए हैं?’’

‘‘रास्ता तो एकदम सही है. यह रंग बांगडू का ही स्टेशन है. आप को किस के यहां जाना है?’’

यह सुन कर दोनों की जान में जान आई और दोनों कार से उतर आए.

‘‘हमें सेठ पन्नालाल ने बुलाया है, जो अपने पुश्तैनी मकान की जगह हवेली बनवाना चाहते हैं. हम आर्किटेक्ट हैं और हमारी देखरेख में ही निर्माण शुरू होना है.’’

‘‘सेठजी ने आप को बताया नहीं कि रेल से आना. सड़क पर कई बार हादसे हो जाते हैं. इसलिए सेठजी भी ट्रेन से ही आते हैं. यहां 2 टे्रन आती हैं. सुबह साढ़े 5 बजे, जिस में सेठजी आ रहे हैं और दूसरी रात के साढ़े 8 बजे. आप यहां आराम कीजिए, सुबह सेठजी के साथ जाना. यहां से 10 मिनट का रास्ता है, उन के गांव का.’’

‘‘ठीक है, हम कार में आराम कर लेंगे.’’

‘‘अभी तो 3 घंटे हैं, टे्रन आने में. स्टेशन का कमरा है, जहां कुर्सी और चारपाई भी है. आप बिस्तर पर आराम कीजिए.’’

‘‘आराम अब नहीं होगा. आंखों में नींद नहीं है.’’

‘‘आप कुछ घबराए से लग रहे हैं. क्या हुआ?’’ स्टेशन मास्टर ने पूछा.

विवेक और सुदर्शन ने आपबीती बताई.

‘‘साहबजी, आप की किस्मत अच्छी थी. तभी आप बच गए. अमावस की रात बलि की खबरें हम ने भी सुनी हैं. अमावस की रात उस हवेली से कोई भी बच कर नहीं निकलता. अच्छा है, आप बच गए. इसी वजह से सेठ पन्नालाल ट्रेन से आते हैं, वरना एक से बढ़ एक देशीविदेशी कारों की लाइन लगी है, उन के यहां.’’

बातों में 3 घंटे बीत गए. साढ़े 5 बजे रेल प्लेटफार्म पर आ कर लगी. सेठजी विवेक और सुदर्शन को देख आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने कार में सेठ पन्नालाल को अपनी आपबीती सुनाई.

‘‘सेठ मूंगालाल का निधन 4 दिन पहले हो चुका है. उन का अंतिम संस्कार कल हुआ, क्योंकि उन के लड़के विदेश में थे. पिछले 3 महीने से अस्पताल में उन का इलाज चल रहा था. उन से हमारे बहुत अच्छे व्यापारिक संबंध थे. उन की हवेली के बारे में कई विचित्र बातें सुनते रहते हैं. हो सकता है, भंवर सिंह को सेठ मूंगालाल की मृत्यु का समाचार मिल गया हो और बलि के लिए उस ने तुम दोनों को रात में वहां रुकने के लिए कहा हो. खैर, अब वहां मत जाना.’’

विवेक और सुदर्शन सेठ पन्नालाल के साथ 2 दिन रहे. हवेली का पूरा खाका तैयार कर के वापसी के लिए सेठजी की अनुमति ली. सेठजी ने उन्हें सुबह के समय जाने की सलाह दी, ताकि फिर से कोई हादसा न हो.

सुबह नाश्ते के बाद विवेक और सुदर्शन ने वापसी की. रास्ते में उन्होंने मूंगालाल की हवेली के पास कार रोक कर उसी कार मैकेनिक से हवेली के बारे में बात की.

‘‘साहबजी, आप को मैं ही हवेली ले कर गया था. उस रात हवेली का एक हिस्सा ढह गया और भंवर सिंह का पूरा परिवार हादसे का शिकार हो गया.’’ उस व्यक्ति ने बताया.

मुख्य सड़क से हवेली की ओर देखा. बैठक का वह गुंबद ढह चुका था, जिस की दरारों से उन्होंने रोशनी आते देखी थी.

सुदर्शन ने कार आगे बढ़ाई. इस बार कार की रफ्तार धीमी थी. दोनों के होंठों पर हल्की मुसकान थी. अब उन के दिल में डर नाम की कोई चीज नहीं थी.