मौत जो बन गई पहेली

6 जनवरी 2020 को रात करीब 10 बजे का वक्त था. ग्रेटर नोएडा के गौर सिटी एवेन्यू-5 में रहने वाले 40 साल के वर्किंग प्रोफेशनल गौरव चंदेल गुरुग्राम स्थित अपने दफ्तर से नोएडा एक्सटेंशन में स्थित अपने घर लौट रहे थे. रास्ते में चंदेल ने अपनी पत्नी प्रीति को फोन कर के कहा कि वह रात 10 बजे तक घर पहुंच जाएंगे. लेकिन वे दिल्ली एनसीआर के हमेशा रहने वाले जाम के कारण जब समय पर घर नहीं पहुंचे तो आदतन उन की पत्नी प्रीति ने रात करीब साढ़े 10 बजे फिर से गौरव चंदेल को फोन कर के पूछा कि वह घर कब तक पहुंचेंगे.

ज्यादा बात तो नहीं हो सकी लेकिन गौरव ने पत्नी को इतना जरूर बताया कि वह पर्थला चौक पर हैं और थोड़ी देर में घर पहुंच जाएंगे. पूछने पर उन्होंने पत्नी को इतना ही बताया था कि वह इस वक्त अपनी गाड़ी के पेपर चैक करा रहे हैं. इस के बाद गौरव ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. लेकिन उस के पहले प्रीति ने फोन पर दूसरी तरफ से स्पष्ट सुना था. गौरव से कोई कह रहा था कि कार सड़क किनारे ले लो. प्रीति को लगा कि शायद पुलिस वाले होंगे जो चैकिंग कर रहे होंगे.

पर्थला चौक से चंदेल का घर महज 4 किलोमीटर ही रह गया था. कायदे से अगले 10 या 15 मिनट में गौरव चंदेल को अपने घर पर होना चाहिए था. लेकिन काफी वक्त गुजर जाने के बाद भी वह अपने घर नहीं पहुंचे.आमतौर पर जब भी काम से फुरसत होती, गौरव अपनी पत्नी से फोन पर बातें किया करते थे. इस रोज भी दफ्तर से रवाना होने से पहले उन्होंने प्रीति को फोन किया था. इस हिसाब से गौरव को रात करीब 10 बजे तक गुरुग्राम से नोएडा एक्सटेंशन के अपने फ्लैट पर पहुंच जाना चाहिए था. गौरव चंदेल गुरुग्राम के उद्योग विहार स्थित सर्जिकल इक्विपमेंट बनाने वाली 3एम इंडिया लिमिटेड कंपनी में रीजनल मैनेजर थे.

गौरव चंदेल ने पत्नी से फोन पर जो कहा था, उस के हिसाब से गौरव को कम से कम अगले आधे घंटे यानी रात पौने 11 या 11 बजे तक घर पहुंच जाना चाहिए था. लेकिन जब 40-45 मिनट गुजर जाने के बाद भी गौरव घर नहीं पहुंचे तो प्रीति की बेचैनी बढ़ने लगी.अब उस ने गौरव को एक के बाद एक कई फोन किए. घंटी बजती रही लेकिन गौरव ने फोन नहीं उठाया. प्रीति को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अपनी गाड़ी के कागज चैक करवा रहे गौरव के साथ बीच रास्ते में ऐसा क्या हुआ कि वह न तो घर लौटे और न ही फोन उठा रहे हैं. ये हालत प्रीति ही नहीं, बल्कि पूरे चंदेल परिवार और रिश्तेदारों को बेचैन करने के लिए काफी थे.

लिहाजा प्रीति ने अब अपने पड़ोसियों से बात की और फोन पर ही कुछ और देर तक गौरव का पता लगाने की कोशिश चलती रही. लेकिन जब सारी कोशिशें नाकाम हो गईं तो उस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों को बुलाया और सभी लोग सीधे बिसरख पुलिस स्टेशन पहुंचे.

थाने में उन के साथ वैसा ही हुआ जैसा कि आमतौर पर पुलिस थानों में होता है, बिसरख थाने के पुलिस वालों ने परेशान चंदेल परिवार को बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया और ये समझाने की कोशिश की कि गौरव अपनी मरजी से कहीं चले गए होंगे और खुद ही वापस लौट आएंगे.चूंकि गौरव की पत्नी प्रीति को पूरे सीक्वेंस यानी घटनाक्रम का पता था तो वह पुलिस की बात मानने को तैयार नहीं हुई. ऐसे में जिद करने पर बिसरख के पुलिस वालों ने चंदेल परिवार को पहले थाना फेस-3 फिर चेरी काउंटी पुलिस चौकी और तब गौड़ सिटी पुलिस चौकी के लिए टरका किया.

परिवार के लोग पड़ोसियों के साथ इस चौकी से उस चौकी तक भटकते रहे, लेकिन हर जगह उन्हें वहां तैनात पुलिस वालों ने यह कह कर टरका दिया कि ये हमारे क्षेत्र का मामला नहीं है.इस तरह गौरव के परिवार वाले रात भर थाने और पुलिस चौकी में ढूंढते और पुलिस से फरियाद करते रहे. आधी रात बीत जाने के बाद परिवार के लोग फिर से बिसरख थाने पहुंचे. जहां इस बार उन्हें बिसरख थानाप्रभारी मनोज पाठक मिले.

पाठक को जब सारी बात पता चली तो उन्होंने गौरव की गुमशुदगी दर्ज करवा कर उन के फोन की लोकेशन ट्रेस करने के लिए उसी समय कुछ पुलिसकर्मियों को काम पर लगा दिया. कुछ ही देर में बिसरख पुलिस को पता चल गया कि गौरव के मोबाइल फोन की लोकेशन एक्टिव थी.पुलिस को नोएडा एक्सटेंशन के ही रोजा जलालपुर और हैबतपुर जैसे गांवों का पता चला जहां गौरव के मोबाइल फोन की लोकेशन नजर आ रही थी. परिजनों ने राहत की सांस ली. उन्हें लगा कि गौरव कुशल से है, लिहाजा परिवार तथा पड़ोस के लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाया कि वह इन जगहों पर चल कर गौरव को तलाशने के लिए उन के साथ चले.

पुलिस को जिन मामलों में अपना कोई फायदा नजर नहीं आता, उन में वह बहुत मेहनत नहीं करना चाहती. लिहाजा पुलिस अनमने ढंग से चंदेल परिवार के साथ गौरव को ढूंढने के लिए गई. लेकिन रात के अंतिम पहर में इधरउधर भटकने के अलावा उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली.घर वाले खुद गौरव की तलाश में जुट गए. घर वालों ने पड़ोसियों के साथ मिल कर एक बार फिर पर्थला गोल चक्कर से गौड़ सिटी तक गौरव को ढूंढने का काम शुरू किया. क्योंकि गौरव को इसी रूट से अपने घर आना था और आखिरी बार उस की अपनी बीवी प्रीति से पर्थला चौक पर ही फोन पर बात हुई थी. इसी तमाम भागदौड में सुबह के करीब साढ़े 4 बज गए थे.

चंदेल परिवार से जुड़े लोगों की गाड़ी पर्थला चौक से गौड़ चौक की तरफ सर्विस लेन पर चल रही थी. तभी उन्हें हिंडन पुलिया से पहले एक क्रिकेट ग्राउंड के पास कोई जमीन पर पड़ा नजर आया.बेचैन घर वालों ने अंधेरे में उस शख्स को टटोलने की कोशिश की, लेकिन करीब पहुंचते ही सब के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्योंकि ये गौरव ही थे, जो औंधे मुंह जमीन पर पड़े थे और उन के सिर से खून निकल रहा था. यहां तक की सांसें भी थम चुकी थीं.

प्रीति ने पति को इस हाल में देखा तो उस के जान हलक में आ गई और वह छाती पीट कर रोने लगी. लेकिन परिवार के कुछ लोगों को फिर भी करिश्मे की उम्मीद थी, लिहाजा वे सब फौरन गौरव को नजदीक के अस्पताल ले कर गए लेकिन वहां पहुंचते ही चिकित्सकों ने बताया कि उन की सांसें थम चुकी हैं.

गौरव की मौत की खबर पूरे चंदेल परिवार पर बिजली बन कर गिरी. रात भर गौरव को तलाशते रहे घर वालों को अब ये समझ नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें, क्योंकि गौरव तो मिल चुका था मगर जिंदा नहीं मुर्दा.

कुछ परिजनों ने खुद को संयत किया और तत्काल गौरव चंदेल की हत्या की सूचना बिसरख पुलिस को दी. जैसे ही बिसरख थानाप्रभारी मनोज पाठक को गौरव चंदेल की हत्या और उन का शव मिलने की सूचना मिली. वे आननफानन में अपने आला अधिकारियों को इस की सूचना दे कर सहयोगियों को ले कर उस निजी अस्पताल में पहुंचे, जहां परिजन गौरव चंदेल को ले कर गए थे.

पाठक ने अस्पताल जा कर परिजनों से पूछताछ कर के जानकारी हासिल की. उन्होंने पुलिस की एक टीम को मौके पर ही आगे की काररवाई करने के लिए छोड़ दिया और खुद एक टीम ले कर परिवार के कुछ सदस्यों को ले कर उस जगह पहुंच गए, जहां गौरव चंदेल की लाश मिली थी.घटनास्थल पर इलाके के सीओ और क्राइम टीम के लोग भी पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल की फोटोग्राफी और रिकौर्डिंग करवाई ताकि अपराधियों तक पहुंचने का कोई सुराग मिल सके. लेकिन पुलिस को कोई ऐसी चीज हाथ नहीं लगी, जिस से कामयाबी मिलती. सवाल यह था कि अगर गौरव चंदेल की लाश वहां थी तो उन की कार
कहां गई.

इसी सवाल का जवाब पाने के लिए पुलिस की कुछ टीमों को आसपास के इलाकों में दौड़ाया गया. एक बात साफ हो रही थी कि गौरव चंदेल की हत्या ऐसे लोगों ने की थी, जिन का मकसद लूटपाट करना रहा होगा.  बहरहाल, पुलिस ने गौरव चंदेल की गुमशुदगी को अपराध संख्या 17 पर भारतीय दंड संहिता में लूटपाट की नीयत से हुई हत्या का मामला दर्ज कर लिया.इस की जांच का काम इंसपेक्टर मनोज पाठक को सौंप दिया गया. इधर, गौरव चंदेल की रहस्यमय ढंग से हुई गुमशुदगी और उन का शव बरामद की जानकारी मीडिया को भी लग चुकी थी. लिहाजा मीडिया ने पुलिस के खिलाफ अगले ही दिन से गौरव चंदेल हत्याकांड में बरती लापरवाही को ले कर परतें उधेड़नी शुरू कर दीं.

इधर उच्चाधिकारियों ने मामले के तूल पकड़ने पर न सिर्फ एसटीएफ को इस मामले का खुलासा करने की जिम्मेदारी सौंप दी बल्कि बिसरख पुलिस से एसएसपी ने जवाबतलब भी कर लिया कि किन परिस्थितियों में पुलिस ने लापरवाही बरती.इधर पुलिस जांच आगे बढ़ती रही, उधर वक्त बीतने के साथ पुलिस के खिलाफ लोगों का गुबार सामने आता रहा. नोएडा में गौरव चंदेल के परिवार को न्याय दिलाने के लिए लोग सडकों पर उतर आए. कैंडल मार्च से ले कर पुलिस के खिलाफ विरोध प्रर्दशन शुरू हो गए.

परेशानी यह थी कि गौरव अपने परिवार का एकलौता सहारा थे. परिवार में उन की वृद्ध मां और पत्नी प्रीति के अलावा 14 साल का एक बेटा ही था. दूर के कुछ रिश्तेदार जो नोएडा या आसपास के इलाकों में रहते थे, वे ही मामले का खुलासा कराने के लिए पुलिस के पास भागदौड़ कर रहे थे.

कानून व्यवस्था को ले कर जब सवाल खड़े होते हैं तो उस पर सियासत भी शुरू हो जाती है. सरकार और पुलिस के खिलाफ विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी सवाल खड़े करने शुरू किए तो लखनऊ से सरकार ने भी नोएडा पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.पुलिस भी अब तक की जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी. सवाल यह था कि गौरव चंदेल के मोबाइल पर आखिरी काल रात करीब साढ़े 10 बजे पत्नी की आई थी. तब चंदेल की लोकेशन पर्थला चौक थी.

इस के बाद अगले कुछ घंटों में चंदेल का मोबाइल 3 अलगअलग लोकेशन बता रहा था. पर्थला चौक के बाद दूसरी लोकेशन हैबतपुर थी. हैबतपुर पर्थला चौक से करीब साढ़े 3 किलोमीटर दूर है. लेकिन हैबतपुर चंदेल के घर के रूट पर नहीं पड़ता तो चंदेल उधर क्यों गया था. कहीं ऐसा तो नहीं उसे जबरन ले जाया गया?हैबतपुर के बाद चंदेल की दूसरी लोकेशन करीब 9 किलोमीटर दूर रोजा जलालपुर की थी. रोजा जलालपुर के बाद चंदेल के मोबाइल ने जिस आखिरी लोकेशन का पता दिया, वह थी सैदुल्लापुर. रोजा जलालपुर से करीब ढाई किलोमीटर आगे. ये तीनों ही लोकेशन मेनरोड से हट कर कच्ची सड़कों की थीं और चंदेल के घर के रूट पर तो बिलकुल भी नहीं.

इन 3 लोकेशन के बाद 7 जनवरी की सुबह खुद चंदेल की लाश जिस हिंडन नदी के किनारे मिली, वह इन तीनों लोकेशन से अलग थी. इस से साफ था कि गौरव चंदेल के साथ किसी कार जैकर गिरोह ने वारदात की थी.यह अनुमान इसलिए भी लगाया जा रहा था कि अभी तक न तो गौरव चंदेल की कार मिली थी और न ही उस में रखा लैपटौप और मोबाइल आदि बरामद हुए थे. गौरव चंदेल का मोबाइल भी आखिरी लोकेशन मिलने के बाद से लगातार बंद चल रहा था.

चूंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि गौरव चंदेल के सिर में 2 गोलियां मारी गई थीं. आमतौर पर इस तरह की वारदात को लूटपाट करने वाले गिरोह ही अंजाम देते हैं. इसलिए नोएडा पुलिस ने अब सारा फोकस आसपास के इलाकों में सक्रिय उन गिरोह पर कर दिया जो कार जैकिंग और लूटपाट की वारदातों को अंजाम देते हैं.पुलिस की सब से बड़ी परेशानी कत्ल के साथसाथ कातिल की पहचान को ले कर भी थी. क्योंकि चंदेल की पत्नी प्रीति के मुताबिक आखिरी बातचीत के दौरान चंदेल अपनी गाड़ी के कागजात दिखा रहे थे. अब कागजात पुलिस वाले ही चैक करते हैं. तो क्या चंदेल की आखिरी मुलाकात पुलिसवालों से ही हुई थी? या फिर पुलिस के वेश में लुटेरे थे?

पुलिस सोच रही थी कि ये काम लुटेरों के अलावा किसी और का भी हो सकता है. चंदेल के किसी दुश्मन का तो ये काम नहीं था. इस बिंदु पर भी जांच हुई, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.अब सवाल ये भी था कि आखिर गौरव की ब्रैंड न्यू सेल्टोस कार कहां है? 2 मोबाइल, लैपटौप और दूसरी कीमती चीजें भी गायब थीं. तो क्या ये मामला लूट और उस के लिए हुए कत्ल का है.

अब तक की जांच में पुलिस के सामने खुलासा हुआ था कि गुरुग्राम की एक कंपनी में रीजनल मैनेजर का काम करने वाले गौरव खुशमिजाज इंसान थे. उन्हें कारों से बड़ा लगाव था और शायद यही वजह थी कि गौरव ने अपनेलिए बमुश्किल महीने भर पहले हाल ही में लौंच हुई किया सेल्टोस कार खरीदी थी.

कार खरीदने के दौरान शोरूम में खिंचवाई गई गौरव की तसवीर उस की खुशी और जिंदगी को ले कर उस की उम्मीदों की गवाह बन कर रह गई है. लेकिन इसी गौरव के साथ 6 और 7 जनवरी की दरमियानी रात को जो कुछ हुआ वो भी मानो एक पहेली बन कर रह गया.

गौरव चंदेल की हत्या में पुलिस की भूमिका को ले कर सवार यूं ही नहीं उठ रहे थे. अगर वारदात की रात सचमुच ग्रेटर नोएडा पुलिस की कार्यशैली पर गौर करें, तो सामने आ रहा था कि गौरव की जिंदगी बचाने के लिए पुलिस ने उस रात वह नहीं किया, जो उसे करना चाहिए था.बल्कि सच्चाई तो यह है कि मोबाइल फोन की लोकेशन निकाल लेने के बावजूद सीमा विवाद में उलझी ग्रेटर नोएडा की पुलिस उसे ढूंढने के बजाय टोपी ट्रांसफर करने के खेल में उलझी रही और यही वजह रही कि नोएडा के आखिरी एसएसपी वैभवकृष्ण ने बिसरख थाने के एसएचओ से इस सिलसिले में जवाबतलब किया था.

पुलिस की कई टीमें गौरव चंदेल हत्याकांड के आरोपियों तक पहुंचने के लिए लगातार काम कर रही थीं. पुलिस टीमें चंदेल की कार के अलावा उस के मोबाइल फोन को लगातार ट्रैक किया जा रहा था.

इसी दौरान 15 जनवरी को अचानक सर्विलांस टीम को गौरव चंदेल का एक मोबाइल फोन एक्टिव होने का पता चला. पुलिस टीमों ने उसी रात मोबाइल की लोकेशन के आधार पर मजदूरी करने वाले एक शख्स को हिरासत में ले लिया और उस से पूछताछ की जाने लगी.पूछताछ करने पर पता चला कि वह शख्स एक फैक्ट्री में काम करने वाला मामूली सा मजदूर था. 7 जनवरी को उसे गौरव चंदेल का मोबाइल फोन लावारिस अवस्था में उस स्थान से थोड़ी दूर झाडि़यों में पड़ा मिला था, जहां गौरव चंदेल की लाश मिली थी. रामकुमार नाम के इस राहगीर ने लावारिस पड़े इस मोबाइल को अपने पास रख लिया.

1 सप्ताह अपने पास रखने के बाद रामकुमार ने इस मोबाइल को 15 जनवरी की सुबह जैसे ही अपना नंबर डाल कर फोन किया, बिसरख पुलिस ने उसे दबोच लिया. पुलिस ने हर बिंदु पर इस बात की पुष्टि कर ली कि रामकुमार का संबंध किसी गैंग या अपराधी गिरोह से नहीं है.पूरी संतुष्टि होने के बाद पुलिस ने उसे रिहा तो कर दिया लेकिन न सिर्फ उस की निगरानी शुरू कर दी, बल्कि उसे यह भी ताकीद कर दिया कि पुलिस को जब भी उस की जरूरत पड़ेगी, वह पूछताछ के लिए थाने में हाजिर होगा.

मोबाइल फोन की इस बरामदगी से पुलिस को गौरव  चंदेल हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की उम्मीद बढ़ गई थी. पुलिस चंदेल के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाल ही रही थी कि इसी दौरान पड़ोसी जनपद गाजियाबाद पुलिस की मसूरी थाना पुलिस को गौरव चंदेल की किया सेल्टोस कार लावारिस अवस्था में बरामद हो गई.

मसूरी पुलिस ने 16 जनवरी को ग्रेटर नोएडा से लगभग 40 किलोमीटर दूर गाजियाबाद के मसूरी की आकाश नगर कालोनी से कार लावारिस हालत में बरामद की थी. बरामदगी के वक्त कार लौक्ड थी.

गौरव चंदेल की कार किया सेल्टोस नंबर यूपी16सी एल0133 को कब्जे में ले कर पुलिस ने जांच शुरू कर दी. पुलिस ने कार की फोरैंसिक जांच भी शुरू करवा दी.

हालांकि बरामद की गई कार पर नंबर प्लेट नहीं लगी हुई थी. दरअसल हत्यारों ने गाड़ी की पहचान छिपाने के लिए नंबर प्लेट तोड़ डाली थी, लेकिन कार के शीशे पर लगे गेट पास से कार के चंदेल की होने की पुष्टि हो गई.आकाश नगर में  जिस मकान के बाहर यह कार खड़ी हुई थी, उस के आसपास सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जब उन्हें खंगाला गया तो पुलिस को उस में कार को खड़ा करने वाले नजर आ गए. सीसीटीवी में दिख रहे लोगों की पहचान करने की कोशिश की गई मगर तसवीरें इतनी धुंधली थीं कि उन की पहचान नहीं हो सकी.

फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम ने गाड़ी की जांच की, मगर उस से कोई मदद नहीं मिली. अलबत्ता गौरव चंदेल का लैपटौप बैग, आईडी, मोबाइल व दूसरे सामान कार में नहीं मिले.इस मामले में नया ट्विस्ट तब आया, जब 3 दिन बाद मसूरी थाना पुलिस ने ही आकाश नगर इलाके में गौरव चंदेल की कार से करीब एक किलोमीटर दूर चिराग अग्रवाल नाम के एक कारोबारी की टियागो कार को बरामद किया.

उस कार की नंबर प्लेट बदली गई थी, लेकिन कार पर लगे स्टिकर से कार के सही नंबर का पता चल गया.चिराग अग्रवाल की टियागो कार मिलने के बाद यह बात साफ हो गई कि इस इलाके में सक्रिय कोई गिरोह है, जिस ने इन वारदातों को अंजाम दिया है. नोएडा और गाजियाबाद पुलिस के साथ यूपी एसटीएफ की टीम इलाके के बदमाशों और सक्रिय गैंगों की कुंडली खंगालने लगी. पुलिस की जांच मसूरी इलाके में सक्रिय मिर्ची गैंग पर आ कर ठहर गई.

एसटीएफ ने मिर्ची गैंग की फाइलें खंगालीं तो पता चला कि इस गिरोह का सरगना आशु जाट है. गैंग में कई और गुर्गे भी हैं जिन में से ज्यादातर का ताल्लुक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर इलाके से है. ये गैंग दिल्ली के अलावा एनसीआर में वारदात को अंजाम दे कर वापस अपनेअपने इलाकों में लौट आता है.

यही वजह है कि पुलिस या तो इन तक पहुंच नहीं पाती या फिर उसे इन तक पहुंचने में काफी वक्त लग जाता है. इन का यानी वारदात को अंजाम देने का तरीका यह है कि ये या तो किराए की गाड़ी या आटो से किसी मौल या पौश इलाकों में घूम कर पहले रेकी करते हैं और फिर जैसे ही इन्हें कोई अकेला आदमी नजर आता है ये उसे टारगेट करते हैं.

वारदात को अंजाम देने वाला ये गैंग लाल मिर्च का पाउडर ले कर चलता है. किसी बहाने से बात की शुरुआत करने की कोशिश करते हैं. और जैसे ही कोई इन के जाल में वह फंस जाता है तो ये उस की आंखों में लाल मिर्च झोंक देते हैं. फिर उसे या तो जख्मी कर के लूट लेते हैं या फिर ये गैंग उस का अपहरण कर लेते हैं और मार देते हैं. दिल्ली एनसीआर में पिछले कई सालों में मिर्ची गैंग ने ऐसी कई वारदातों को अंजाम दिया है.

पुलिस का टारगेट अब मिर्ची गैंग और उस का सरगना आशु जाट था. आशु जाट तक पहुंचना इतना आसान नहीं था, लेकिन पुलिस ने उस तक पहुंचने के लिए मसूरी इलाके में ही रहने वाली आशु जाट की पत्नी पूनम की निगरानी शुरू करा दी और पूनम के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया. गौरव चंदेल हत्याकांड के बाद आशु जाट एसटीएफ के अलावा आसपास के जिलों की पुलिस की नजरों में भी चढ़ चुका था. सब अपनी तरह से उस तक पहुंचने की रणनीति पर काम कर रहे थे.

लेकिन सफलता मिली हापुड़ पुलिस को. 26 जनवरी को हापुड़ जिले की सर्विलांस टीम को सूचना मिली कि आशु जाट की पत्नी पूनम आशु के एक करीबी सहयोगी के साथ मोटरसाइकिल पर सवार हो कर धौलाना थाना क्षेत्र के करणपुर जट्ट गांव में किसी से मिलने जाने वाली है.इस सूचना के बाद सर्विलांस टीम ने स्वाट टीम और धौलाना पुलिस के साथ उस इलाके की घेराबंदी कर दी.

सूचना सटीक निकली और पुलिस टीम ने दोनों को दबोच लिया. उस के पास से एक .32 बोर की पिस्टल भी बरामद हुई. आशु जाट की पत्नी पूनम से महिला पुलिस पूछताछ करने लगी, जबकि धौलाना थाने के एसएसआई राजीव कुमार शर्मा, शिकारपुर, बुलंदशहर निवासी उमेश से उस के गिरोह के सरगना आशु जाट के बारे में पूछताछ  करने लगे.

आशु जाट के बारे में तो उमेश कोई सटीक जानकारी नहीं दे सका, लेकिन उस ने बताया कि 6 जनवरी की रात उस ने आशु जाट व अपने 3 साथियों के साथ मिल कर ग्रेटर नोएडा में एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी और उस की सेल्टोस कार लूट ली थी.जैसे ही पुलिस को पता चला कि उन के सामने गौरव चंदेल हत्याकांड का एक आरोपी है तो पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए लूट के सामान की बरामदगी का प्रयास शुरू कर दिया.उमेश ने बताया कि वे लूटे गए एक मोबाइल व लैपटौप को नोएडा के फेस-3 इलाके से बरामद करवा सकता है तो राजीव शर्मा की टीम उसे माल बरामद करने के लिए रवाना हो गई.

लेकिन उमेश पुलिस टीम की उम्मीदों से कहीं ज्यादा शातिर और चालाक निकला. पुलिस की गाड़ी जब गुलावठी मसूरी रोड पर डहाना गांव के पास से गुजर रही थी तो अचानक वह शौच के बहाने गाड़ी से उतरा. वह एसएसआई राजीव शर्मा के हाथ से उन की सरकारी पिस्टल छीन कर

भागने लगा.पुलिस ने पहले तो उसे पकड़ने की कोशिश की, मगर जब देखा कि वह उन की पकड़ से निकल सकता है तो उन्होंने उस पर गोली चला दी. एक के बाद एक 2 गोलियां उमेश के दाएं पैर में लगी और वो वहीं गिर पड़ा. इस के बाद पुलिस उसे घायलावस्था में ले कर अस्पताल पहुंची.

पूछताछ करने पर पता चला कि उमेश ने भागने का रास्ता खोजने के लिए ही पुलिस को लूट का माल बरामद करवाने का झांसा दिया था. लेकिन पुलिस को इतना तो पता चल ही चुका था कि मिर्ची गैंग ने ही गौरव चंदेल की हत्या को लूट के इरादे से अंजाम दिया था.पुलिस ने उसी दिन कविनगर के काजीपुरा इलाके में रहने वाले आशु जाट उर्फ प्रवीण उर्फ धर्मेंद्र की पत्नी पूनम के साथ उमेश के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला दर्ज कर लिया और आगे की काररवाई के लिए एसटीएफ तथा नोएडा पुलिस को सूचित कर दिया.

नोएडा पुलिस व एसटीएफ की टीम सूचना मिलने के तत्काल बाद धौलाना पहुंच गई और इस मामले की आगे की जांच अपने हाथ में ले ली. उमेश पर लूटपाट, अपहरण और हत्या के एक दरजन से ज्यादा मामले दर्ज हैं. इस गैंग के बौस यानी सरगना आशु जाट पर भी ऐसे ही 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं.

पुलिस उमेश की गिरफ्तारी को बड़ी उपलब्धि मान रही थी. लेकिन आशु जाट की गिरफ्तारी न होना और बदमाशों से लूट का कोई भी माल बरामद न होना उस की काररवाई पर प्रश्नचिह्न खड़े कर रहा था. हालांकि हापुड़ पुलिस की उमेश से पूछताछ के आधार पर दावा किया था कि 6 जनवरी को नोएडा के गौरव चंदेल का कत्ल मिर्ची गैंग ने ही किया था और इस कत्ल और लूटपाट में उमेश भी शामिल था.

उमेश ने पुलिस को पूछताछ में बताया था कि गौरव चंदेल वारदात वाली रात करीब साढ़े 10 बजे हिंडन विहार स्टेडियम के करीब सड़क किनारे अपनी कार रोक कर फोन पर बात कर रहे थे. उसी उमेश व उस के साथी कार के करीब पहुंचे. इस के बाद गौरव को .32 बोर के पिस्टल से 2 गोली मारीं और उन की कार ले कर मौके से फरार हो गए. हापुड़ पुलिस के मुताबिक गौरव चंदेल को जिस .32 बोर के पिस्टल से गोरी मारी गई वह पिस्टल और उस के साथ 3 गोलियां भी उमेश से बरामद हो गई हैं.

हापुड़ पुलिस का कहना है कि गौरव चंदेल के कत्ल का असली मास्टरमाइंड मिर्ची गैंग का सरगना आशु जाट है, जो अभी फरार है. लेकिन इतना सब होने के बाद भी नोएडा पुलिस हापुड़ पुलिस के इस दावे को ले कर चुप्पी साधे हुए है. पर क्यों? क्या हापुड़ पुलिस के दावे में कोई झोल है या फिर बात कुछ और है?

मामला चूंकि समूची राज्य की पुलिस की विश्वसनीयता का है, इसलिए हो सकता है कि नोएडा पुलिस हापुड़ पुलिस के दावों पर चुप हो. नोएडा पुलिस अब इस कोशिश में है कि किसी तरह मिर्ची गैंग का सरगना आशु उस के हाथ लग जाए तो उस की कुछ इज्जत बच सकती है.

इसी इंतजार में अभी तक गौरव चंदेल के कत्ल की गुत्थी सुलझा लेने का दावा करने से पुलिस बच रही है. दूसरा नोएडा पुलिस उमेश के बयान पर आंख मूंद कर भरोसा करने के बजाए पहले केस की सारी कडि़यों को भी जोड़ लेना चाहती है, ताकि आगे फजीहत न हो.

दिलचस्प बात यह है कि अपने गुडवर्क को बढ़ाचढ़ा कर बताने वाली नोएडा पुलिस न तो इस मामले में कोई जानकारी साझा कर रही है और न ही इस मामले में उसे अभी कोई दूसरी सफलता मिली है.

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पुलिस ने शासन के दबाव और फजीहत से बचने के लिए मिर्ची गैंग के सरगना पर इस हत्या व लूटकांड का ठीकरा फोड़ा है या वास्तव में इसी गिरोह ने इस वारदात को अंजाम दिया था?

लेकिन ऐसे कई सवाल हैं जिस से ये पूरा मामला एक पहेली बन गया है. अगर आशु जाट के मिर्ची गैंग ने ही इस पूरी वारदात को अंजाम दिया था तो उन्होंने वारदात के बाद गौरव चंदेल से लूटी गई किया सेल्टोस कार मसूरी इलाके में लावारिस क्यों छोड़ी?

आमतौर पर लूटपाट के लिए वारदात को अंजाम देने वाले इन बदमाशों ने कीमती कार छोड़ कर सिर्फ गौरव चंदेल का एक मोबाइल व लैपटाप लूटा था. जबकि एक मोबाइल वे पहले ही उस जगह फेंक चुके थे, जहां गौरव चंदेल की हत्या कर के उसके शव को फेंका था.

पुलिस अभी तक गौरव चंदेल के डेबिट व क्रेडिट कार्ड तथा उस की सोने की चेन व अंगूछी के बारे में नहीं बता सकी है कि वे किस के पास हैं. अगर उमेश इस वारदात में शामिल था, तो पुलिस उस से इन सामानों का खुलासा क्यों नहीं करवा सकी? अगर पुलिस की कहानी पर विश्वास कर भी लिया जाए तो वे लूटे गए सामान कहां हैं?

सवाल उठ रहे हैं कि पुलिस ने इस मामले में फजीहत से बचने और गरदन बचाने के लिए केस का खुलासा तो कर दिया, लेकिन अभी तक उस के पास हत्या की ठोस वजह नहीं है.हो सकता है कि गौरव चंदेल की हत्या उस के किसी दुश्मन की सोची- समझी साजिश का कारनामा हो लेकिन पुलिस उस चक्रव्यूह को तोड़ने में नाकाम रही है. पुलिस ने सिर्फ मिर्ची गिरोह की कार्यशैली को देख कर इस के ऊपर हत्याकांड का ठीकरा फोड़ दिया है.

कॉलगर्ल : होटल में उस रात क्या हुआ

मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.

मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर.

थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा.

मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली.

तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.

मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’

‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.

कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’

इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’

और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई.

मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.

लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’

उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’

मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी.

मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.

मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.

फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’

‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’

हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई.

मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’

मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था.

फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’

‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली.

मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’

‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’

‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’

‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’

मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी.

थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया.

इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे.

प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’

प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे.

मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’

‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’

‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’

‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’

‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’

‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’

‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’

प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था.

मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा.

तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया.

प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.

प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’

‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’

इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’

वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’

‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’

‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’

‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’

मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’

‘‘और कुछ लोगी?’’

‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’

इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’

डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.

‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे.

‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.

प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था.

‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’

‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.

‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’

‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’

इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था.

इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’

प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’

‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’

मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी.

प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई.

थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई.

सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.

मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’

‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’

‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’

प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले.

नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘बेशक दूंगी.’’

थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी.

‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’

प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’

प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई.

सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’

मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’

‘‘एयरपोर्ट.’’

मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’

‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’

और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’

‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’

‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’

और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं.

मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है.

एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’

‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’

आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.

गैंगस्टर बनने के लिए किए 4 मर्डर – भाग 2

सीरियल किलर ने सागर में आर्ट ऐंड कामर्स कालेज में गार्ड शंभुदयाल को मार कर उन का मोबाइल अपने पास रख लिया था. मोबाइल उस ने स्विच औफ कर रखा था.  उधर, सागर पुलिस ने भी शंभुदयाल के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था. सागर शहर में नाकाबंदी कर पुलिस टीमें संदिग्ध की तलाश कर रही थीं.  पुलिस नाइट गश्त में लगी थी.

किलर ने पहली सितंबर, 2022 की रात 11 बजे चंद सेकेंड के लिए जैसे ही मोबाइल औन किया, पुलिस टीम के अधिकारियों के चेहरों पर चमक आ गई. मोबाइल की लोकेशन ट्रेस होते ही 10 सदस्यीय टीम बनाई और 2 कारों से उसे भोपाल रवाना किया गया.

पुलिस टीम भोपाल तो पहुंच गई, मगर मोबाइल बंद होने की वजह से किलर को खोजना आसान काम नहीं था. भोपाल में साइबर सेल की टीम लोकेशन ट्रेस कर खजूरी थाना क्षेत्र में कई घंटों तक आरोपी की तलाश में इधरउधर भटकती रही.

रात करीब डेढ़ बजे से पुलिस उसे बैरागढ़, कोहेफिजा, लालघाटी इलाके में खोजती रही, लेकिन वह नहीं मिला. रात करीब साढ़े 3 बजे किलर ने एक बार फिर मोबाइल को औन किया. पुलिस को उस की लोकशन लालघाटी इलाके में पता चली.

सीरियल किलर चढ़ गया हत्थे

पुलिस टीम उस की तलाश में करीब सुबह 5 बजे जैसे ही लालघाटी पहुंची तो लाल कलर की शर्ट पहने करीब 19-20 साल का एक नौजवान संदिग्ध हालत में घूमता नजर आया. पुलिस ने उसे रोक कर पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शिवप्रसाद धुर्वे बताया.

उस की तलाशी के दौरान पुलिस को शंभुदयाल का वही मोबाइल फोन मिल गया, जिस की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस तक पहुंची थी. पुलिस ने उसे दबोच लिया.

भोपाल से सागर ले जाने के लिए पुलिस उसे ले कर करीब 40 किलोमीटर दूर पहुंची ही थी कि उस ने पुलिस को बताया कि थोड़ी देर पहले ही उस ने भोपाल में मार्बल दुकान में एक गार्ड की हत्या कर दी है.

पुलिस को शिवप्रसाद के पास से भोपाल वाले गार्ड का भी मोबाइल फोन मिला. सागर पुलिस ने तुरंत ही भोपाल पुलिस के अधिकारियों को सूचना दी. खजूरी रोड पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो गार्ड सोनू वर्मा खून से लथपथ मिला. मरने वाला सिक्योरिटी गार्ड सोनू वर्मा था.

शिवप्रसाद ने पुलिस को बताया कि 1-2 सितंबर की दरमियानी रात करीब डेढ़ बजे खजूरी रोड स्थित गोराजी मार्बल की दुकान पर काम करने वाले गार्ड सोनू वर्मा की मार्बल के टुकड़ों से हमला कर हत्या की है.

सोनू का परिवार मूलरूप से भिंड जिले का रहने वाला है. 2005 में उन का परिवार रोजगार के लिए भोपाल आ कर बस गया.

भोपाल आ कर उस के पिता सुरेश वर्मा ने गोराजी मार्बल की दुकान पर चौकीदार की नौकरी शुरू कर दी. उन के 4 बेटे और एक बेटी है. सोनू चौथे नंबर का था. कुछ महीने पहले ही सोनू के पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी, जिस के बाद सोनू गोराजी मार्बल की दुकान पर चौकीदारी करने लगा था.

25 साल का सोनू पांचवीं तक ही पढ़ा था. सोनू रात में चौकीदारी करता था. वह शाम 7 बजे ड्यूटी पर आता और सुबह 7 बजे घर जाता था. 12 घंटे की ड्यूटी के बाद उसे महीने के 5 हजार रुपए मिलते थे.

घर चलाने के लिए सोनू दिन के समय पानी सप्लाई करने वाले टैंकर पर पार्टटाइम काम करता था. वहां काम करने के बाद उसे मुश्किल से 3-4 हजार रुपए मिलते थे. महीने में इस तरह दिनरात काम करने के बाद भी वह मुश्किल से 8-9 हजार रुपए ही कमा पाता था.

सागर आ कर पुलिस अधिकारियों ने जब साइकोकिलर शिवप्रसाद से विस्तार से पूछताछ की तो उस ने चारों गार्डों की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

किलर शिवप्रसाद की गिरफ्तारी पर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित पुलिस के आला अधिकारियों ने सागर पुलिस को बधाई दी. साथ ही सागर शहर के लागों ने भी राहत की सांस ली.

6 दिनों में हुई 4 सिलसिलेवार हत्याओं की वजह से चर्चा में आए सीरियल किलर की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

सागर जिले के केसला ब्लौक के केकरा गांव का रहने वाला 19 साल का शिवप्रसाद धुर्वे अपने पिता नन्हेलाल का छोटा बेटा है. उस का बड़ा भाई पुणे में मजदूरी करता है, जबकि 2 बेटियों की शादी हो चुकी है.

नन्हेलाल के पास करीब 2 एकड़ जमीन है, जिस पर खेतीबाड़ी कर वह अपने परिवार की गुजरबसर करता है. शिवप्रसाद कुल 8वीं जमात तक ही पढ़ा है. वह बचपन से ही लड़ाकू प्रवृत्ति का था.

स्कूल में पढ़ते समय गांव के लड़कों को छोटीछोटी बात पर पीट देता था. सभी से झगड़ते रहने के कारण गांव में किसी से भी उसकी दोस्ती नहीं  थी. मातापिता भी उस की हरकतों से परेशान रहने लगे थे.

2016 में 13 साल की उम्र में किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उस ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर दी, जिस की वजह से गांव के लोगों ने उस की पिटाई कर दी. उसी दौरान वह घर से भाग कर सागर आया और ट्रेन में बैठ कर पुणे चला गया. फिर वहां एक होटल में नौकरी करने लगा.

शिवप्रसाद बीचबीच में होली, दीवाली पर एकदो दिन के लिए गांव आता था, लेकिन किसी से मिलताजुलता नहीं था. पुणे में एक दिन होटल मालिक के साथ किसी बात को ले कर विवाद हो गया तो शिवप्रसाद ने उसे इतना पीटा कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा.

उस के खिलाफ पुलिस ने काररवाई कर  उसे बाल सुधार गृह भेज दिया था. बाद में उस के पिता नन्हेलाल आदिवासी उसे छुड़ा कर गांव ले आए. गांव में कुछ समय रहने के बाद वह गोवा चला गया था.

गोवा में काम करतेकरते वह अच्छीखासी इंग्लिश बोलनेसमझने लगा. अभी हाल ही में रक्षाबंधन पर वह 7-8 दिनों के लिए गांव आया था, इस के बाद बिना किसी को कुछ बताए वह घर से चला गया. पिता नन्हेलाल को कभी भी उस ने यह नहीं बताया कि वह क्या काम करता है. मां सीताबाई भी उस से पूछती,  ‘‘बेटा, यह तो बता तू शहर में कामधंघा क्या करता है?’’

तो शिवप्रसाद कहता, ‘‘मां, तू काहे को चिंता करती है मैं ऐसा काम करता हूं कि जल्द ही मुझे लोग जानने लगेंगे.’’

मां यही समझ कर चुप हो जाती कि उस का बेटा अमीर आदमी बन कर नाम कमाने वाला है.

फिल्मों से प्रभावित हो कर बना किलर

सागर में 3 और भोपाल में एक सिक्योरिटी गार्ड्स की हत्या करने के आरोपी सीरियल किलर शिवप्रसाद धुर्वे फिल्में देखने का शौकीन था. फिल्में देख कर उस ने गैंगस्टर बनने की ठानी थी. वह बिना मेहनत किए पैसा कमा कर फेमस होना चाहता था.

वारदात को अंजाम देने से पहले मोबाइल पर उस ने कई फिल्में और वीडियोज देखे.  सागर पुलिस को पूछताछ में उस ने बताया कि मध्य प्रदेश के उज्जैन के गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप को वह रोल मौडल मानता है और उस के जैसा बनने की चाहत उस के दिल में थी.

उस ने जल्द फेमस होने का सपना देखा और जुर्म की दुनिया में कदम बढ़ा दिए.   शिवप्रसाद दिन भर सोता रहता था और रात होते ही अपने शिकार की तलाश में निकल पड़ता था.

डॉक्टर और इंजीनियर बनाने लगे कैंसर की नकली दवाएं- भाग 2

एएसआई गुलाब को कैंसर जैसी भयानक बीमारी की नकली दवाएं बना कर पैसा कमाने वालों पर उस दिन बेहद गुस्सा आया. लोगों को नकली दवाएं उपलब्ध करा कर झूठी उम्मीदें बेचने वाले जरूर ये काम बड़़े पैमाने पर करते होंगे. उन्होंने सोचा कि क्यों न इस गंभीर अपराध को अंजाम देने वालों को उन के अंजाम तक पहुंचाया जाए.

बस यही सोच कर एएसआई गुलाब सिंह ने अपने परिचित से जानकारी लेने के बाद इस पूरे मामले की जानकारी अपने स्तर से एकत्र करनी शुरू कर दी. मसलन परिचित का रिश्तेदार भारी छूट की दवाएं कहां से मंगवाता था. उस बंदे को दवाएं कहां से मिलती थीं. कभीकभी एक खास कुरियर कंपनी से भी दवा आती थी.

करीब डेढ़ महीने तक गुलाब पूरी जानकारी एकत्र करता रहा. उस के पास जब इतनी जानकारी एकत्र हो गई कि इस गिरोह को पकड़ा जा सके तो उस की समझ में आ गया कि यह एक बड़ा गैंग है, जिसे पकड़ने के लिए एक बड़ी टीम की जरूरत पड़ेगी.

लिहाजा एएसआई गुलाब ने अपने इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन और एसीपी रमेशचंद्र लांबा को इस पूरे मामले की जानकारी दी. मामला वाकई गंभीर था, इसलिए उन्होंने क्राइम ब्रांच के डीसीपी अमित गोयल को सारी बात बता कर आवश्यक दिशानिर्देश मांगे.

डीसीपी अमित गोयल ने क्राइम ब्रांच के स्पैशल कमिश्नर रविंद्र सिंह यादव से सलाहमशविरा करने के बाद एसीपी लांबा को मामले का खुलासा करने के लिए एक बड़ी टीम गठित करने का निर्देश दिया. साथ ही ये हिदायत भी दी कि काररवाई एक साथ इतनी तेजी से हो कि किसी भी अपराधी को भागने का मौका न मिले.

एसीपी लांबा ने संभाली कमान

एसीपी रमेशचंद्र लांबा के नेतृत्व में 4 टीमें बनाई गईं. एक टीम की अगुवाई कर थे इंसपेक्टर कमल कुमार, दूसरी टीम को इंसपेक्टर पवन कुमार, तीसरी को  इंसपेक्टर महिपाल और चौथी का नेतृत्व इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन सिंह कर रहे थे.

चारों टीमों में एसआई सुरेंद्र राणा, एएसआई रमेश, राकेश, जफरुद्दीन, सुकेंदर, गुलाब के अलावा हैडकांस्टेबल रामकेश, वरुण, शक्ति, सुरेंद्र, सुनील, दलबीर, ललित, तरुण व नवीन को शमिल किया गया था.

सभी टीमों को एसीपी लांबा ने अलगअलग काम सौंप दिए. इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन की टीम में शामिल एएसआई गुलाब इस पूरे मामले में अहम जानकारियां जुटा चुके थे. लिहाजा इस पूरे मामले की अहम कड़ी तक पहुंचने की जिम्मेदारी भी उन्हीं को सौंपी गई.

गुलाब ने 2 महीनों की मेहनत से जो जानकारियां एकत्र की थीं और जिन लोगों को अपने भरोसे में ले कर पूरे मामले की जड़ तक पहुंचे थे, उन्हीं के माध्यम से पता चला कि 13 नवंबर की दोपहर 3 बजे इस गिरोह का एक आदमी स्कूटी ले कर प्रगति मैदान के सामने से हो कर भागीरथ प्लेस में किसी को नकली दवाओं की डिलीवरी देने जाएगा.

सूचना एकदम सटीक थी. इसलिए एसीपी लांबा के निर्देश पर इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन ने जाल बिछा दिया. इंतजार लंबा रहा, लेकिन आखिरकार जब पंकज बोहरा नकली दवाइयां ले कर वहां से गुजरा तो पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. उस के बाद क्राइम ब्रांच के औफिस में पहुंच कर उस ने अपने गैंग की पूरी कलई खोल दी.

सब कुछ साफ था. बस, अब आगे का काम बाकी के आरोपियों को पकड़ कर माल की बरामदगी करनी थी. एसीपी लांबा ने एक साथ चारों टीमों को एक छापेमारी के लिए रवाना किया.

पहली टीम पंकज बोहरा को ले कर लोनी पहुंची, जहां दवाओं पर लेबल लगा कर उन की पैंकिंग होती थी. वहां से लेबलिंग और पैंकेजिंग की पूरी यूनिट और उपकरण बरामद कर 2 लोगों को पकड़ा गया.

दूसरी टीम ने नोएडा में छापा मारा, जहां से इस गिरोह के मास्टरमाइंड सरगना डा. पवित्रा नारायण प्रधान और उस के ममेरे भाई शुभम मन्ना को एक करोड़ से अधिक की तैयार नकली दवाओं के साथ पकड़ा गया.

पुलिस की एक टीम ने सोनीपत के गन्नौर में उस फैक्ट्री पर छापा मारा, जहां ये दवाएं तैयार की जाती थीं. पुलिस ने फैक्ट्री के मालिक को गिरफ्तार कर वहां से तैयार दवाएं और उपकरण भी बरामद कर लिए. इस के बाद पुलिस ने 2 अन्य लोगों को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया.

एक साथ की गई काररवाई से मिली बड़ी सफलता

सभी आरोपियों की पहचान इस प्रकार हुई. फ्लैट नंबर 207, दूसरी मंजिल, चौहान रेजीडेंसी, सेक्टर-45, नोएडा का रहने वाला 34 साल का डा. पवित्रा नारायण प्रधान इस गिरोह का सरगना था. उस के साथ पुलिस ने उस के 39 वर्षीय ममेरे भाई शुभम मन्ना को गिरफ्तार किया, जो उसी के साथ रहता था.

सब से पहले पकड़ा गया आरोपी 27 वर्षीय पंकज सिंह बोहरा से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने लोनी की फैक्ट्री से अंकित शर्मा उर्फ अंकू उर्फ भज्जी निवासी मकान नंबर 355, नेब सराय, नई दिल्ली को गिरफ्तार किया.

पुलिस टीम ने मकान नंबर 257, बादशाही रोड, बीएसएनएल एक्सचेंज के पास, गन्नौर, जिला सोनीपत में नकली दवा बनाने वाली फैक्ट्री के मालिक 43 साल के रामकुमार उर्फ हरबीर को भी गिरफ्तार किया.

इन के अलावा दवाओं की आपूर्ति से ले कर उन की मार्केटिंग करने वाले एकांश वर्मा निवासी 1127, एस्कान एरिना, नगला रोड, चंडीगढ़ तथा फ्लैट नंबर 904, एमराल्ड-2, गार्डेनिया ग्लैमर सोसाइटी, सेक्टर-3, वसुंधरा, गाजियाबाद में रहने वाले प्रभात कुमार को गिरफ्तार किया.

सभी आरोपियों से पूछताछ हुई तो पता चला कि उन के कब्जे से जो भी दवाएं बरामद हुईं, वे सभी कैंसर में इस्तेमाल होने वाली दवाएं थीं. लेकिन वे मोटा मुनाफा कमाने के लिए ये नकली दवाइयां बना कर बेचते थे.

पुलिस ने कैंसर की दवा बेचने की अधिकृत कंपनी एस्ट्राजेनेका के मैनेजर रेग्युलेटरी अफेयर्स अमित कुमार को बुला कर जब वे दवाइयां दिखाईं तो उन्होंने भी इन के नकली होने की पुष्टि कर दी. जिस के बाद क्राइम ब्रांच ने सातों आरोपियों के खिलाफ  आईपीसी की धारा 274/275/276/420/468/471/120बी/34  के तहत मामला दर्ज कर सभी आरोपियों से विस्तृत पूछताछ शुरू कर दी.

डा. पवित्रा नारायण निकला मास्टरमाइंड

पता चला कि पिछले 4 सालों से आरोपी डा. पवित्रा नारायण प्रधान कैंसर की नकली दवा का धंधा कर रहा था. उस ने चीन की एक सरकारी यूनिवर्सिटी से वर्ष 2012 में एमबीबीएस किया था. चीन में ही उस की मुलाकात बांग्लादेशी नागरिक व उस के क्लासमेट डा. रसैल से हुई थी. रसैल ने ही उसे कैंसर की नकली दवाइयां बनाने का आइडिया दिया था.

रसैल ने बताया था कि वह उसे कैंसर की दवाई बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला एपीआई (एक्चुअल फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स) उपलब्ध करा देगा. उस ने बताया कि कैंसर की दवाओं की भारत और चीन में खासी मांग है. दवाएं महंगी हैं, इसलिए उन को अगर आधे दामों पर भी  बेचा जाए तो भी बहुत फायदा होगा.

श्रद्धा मर्डर केस : 35 टुकड़ों में बिखर गया प्यार – भाग 2

आखिरकार 23 जनवरी, 2020 को सुमन की मौत हो गई. इस की सूचना उसे पिता की मार्फत मिली. सुमन की मौत पर 4 साल पहले से अलग रहने वाले उन के पति और एक साल से लिवइन में रहने वाली बेटी श्रद्धा आखिरी बार मिले. बापबेटी के बीच तनाव का माहौल बना रहा.

मोहब्बत में आई खटास

मां के गुजर जाने के बाद श्रद्धा अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी थी. एक रोज सुबहसुबह चाय पीते हुए वह आफताब से अचानक पूछ बैठी, ‘‘फैमिली से हमारी शादी के बारे में कोई बात हुई?’’

कप में अपनी चाय निकालता हुआ आफताब अचानक यह सवाल सुन कर तिलमिला गया, ‘‘तुम्हें कितनी बार कहा है, उस बारे में कोई बात नहीं हुई है.’’

‘‘बात कब करोगे?’’श्रद्धा थोड़ी नाराजगी दिखाते हुई बोली.

‘‘वे लोग हमारे रिश्ते को ले कर ऐसे ही चिढ़े हुए हैं…और कोरोना भी है. लौकडाउन खत्म होते ही घर जा कर बात करूंगा.’’ आफताब टालने के अंदाज में बोला.

इस पर श्रद्धा चिढ़ती हुई बोली, ‘‘तुम मेरी कोई बात नहीं सुनते हो. हर बात को टाल देते हो. तुम्हारे चलते मैं ने अपना घरबार छोड़ा है …और तुम्हें जरा भी परवाह नहीं है.’’

उस के बाद श्रद्धा सांस लिए बगैर आफताब की खामियां गिनवाने लगी. चीखते हुए आफताब पर दनादन आरोप लगा दिए, जिस से वह भन्ना गया. गुस्से में उस ने चाय की प्याली श्रद्धा की ओर उछाल दी. गर्म चाय टेबल पर कुछ श्रद्धा के हाथों पर गिरी. वह गुस्से में आ कर और चीखने लगी, ‘‘जला दोगे क्या मुझे?’’

आफताब श्रद्धा के गर्म चाय से जले हाथ को देखने के बजाए कमरे में चला गया. गुस्से से भरी श्रद्धा तौलिए से हाथ पोंछती हुई उस के पीछेपीछे कमरे तक आ गई. आफताब ने उसे धक्का दे दिया. वह वहीं जमीन पर गिर पड़ी. आफताब का गुस्से से तमतमाया हुआ खौफनाक चेहरा देख श्रद्धा सहम गई. दोनों हाथों से चेहरा छिपा लिया और सिसकने लगी.

थोड़ी देर बाद आफताब तैयार हो कर घर से बाहर चला गया. उदास श्रद्धा ने अपने क्लासमेट लक्ष्मण नाडर को फोन मिलाया. वह उस के बचपन का दोस्त था. उस से अपनी बातें बेहिचक शेयर कर लेती थी.

वह जब कभी किसी उलझन में होती थी, तब उस से सलाह लेती थी या फिर उस के जरिए अपनी कोई जरूरी बात मम्मीपापा तक पहुंचा दिया करती थी.

उस रोज की घटना को ले कर श्रद्धा ने दोस्त को विस्तार से तो नहीं बताया, लेकिन इतना जरूर कहा कि आफताब उस से शादी करने में टालमटोल कर रहा है. इस बारे में बात करते ही गुस्से में आ जाता है. उस ने लक्ष्मण से यह भी बताया कि आफताब की क्या मजबूरी है, उसे नहीं मालूम, लेकिन उसे लगता है कि उस की मोहब्बत में खटास आ गई है.

इतना कहने के साथ ही वह फोन पर रोने लगी. तभी कालबेल बजी. उस ने फोन कट किया. आंसू पोंछे और आईव्यू से देखा.

बाहर गार्ड खड़ा था. दरवाजा खोल कर उस के आने का कारण पूछने ही वाली थी कि उस ने पीले रंग की दवाई की ट्यूब उस ओर बढ़ा दी, ‘‘मैडम, सर ने आप को देने के लिए कहा है.’’

गार्ड ट्यूब दे कर चला गया. श्रद्धा ने उसे भरी नजर से देखा. वह जले में लगाने वाली दवा का ट्यूब था. वह समझ नहीं पाई कि जिसे वह कोस रही थी, आखिर वह उस से कैसी हमदर्दी भी रखता है.

फिर भी श्रद्धा लिवइन पार्टनर के बारे में अपने पिता से बात करना चाहती थी. उसे भरोसा था कि उस के पिता आफताब के परिवार वालों को शादी के लिए राजी कर लेंगे. वह अकेली हिंदू लड़की नहीं है, जो मुसलिम युवक से प्रेम करती है और भी तो लिवइन में रह रही हैं.

करीना कपूर भी तो काफी समय तक शादीशुदा सैफ अली खान के साथ लिवइन पार्टनर बन कर रही. कई सालों बाद शादी की. उन्हें तो तब किसी ने कुछ नहीं कहा. इसलिए न, क्योंकि वे अमीर घराने की सेलिब्रेटी थे. हम साधारण लोगों पर ही पाबंदियां क्यों लगाते हैं लोग?

पिता से मांगा शादी कराने में सहयोग

इसी उधेड़बुन में खोई श्रद्धा के मन में कई तरह के खयाल आ रहे थे. आखिरकार उस ने अपने पिता से ही इस बारे में सलाह लेने और कोई रास्ता निकालने की सोची. वह अगले रोज ही सीधा पिता के पास जा पहुंची.

उस ने पिता से सब कुछ सचसच बता दिया. उन से मदद मांगी कि चाहे जैसे भी हो, वह उस की आफताब से शादी करवाने की कोई तरकीब निकालें. उस के परिजनों को इस के लिए तैयार कर लें.

पिता ने आफताब को भी अपने घर बुलवाया. श्रद्धा खुश थी कि शायद कोई बात बन जाए. किंतु वह जैसा सोच रही थी, वैसा पिता ने नहीं किया. उन की शादी के लिए पहल करने के बजाय उन्होंने आफताब को ही बेटी से संबंध तोड़ लेने के लिए कहा.

आफताब को अंतरधार्मिक भावना की बातें समझाने की कोशिश करने लगे. उन्होंने यहां तक कहा कि उस की शादी को लोग सिर्फ हिंदू और मुसलिम कीनजर से देखेंगे. वह नहीं चाहते कि उन की वजह से समाज परिवार में उन के उठनेबैठने पर असर पड़ जाए और उन का बिजनैस चौपट हो जाए.

पिता की इस पहल से श्रद्धा और भी आहत हो गई. वह असहाय और अकेला महसूस करने लगी. पिता ने तो दोनों पर अपनी राय के साथसाथ फैसला भी थोप दिया. और आगे का निर्णय उन पर छोड़ कर चले गए.

दुखी मन से श्रद्धा ने आफताब को देखा. आफताब ने उसे गले लगा लिया. बीते दिनों की अपनी गलतियों के लिए माफी मांगी और भरोसा दिया कि अब उन्हें कोई सही राह निकालनी होगी.

इसी बीच कोरोना लहर का दूसरा दौर भी आ चुका था, जिस से काफी अफरातफरी मची हुई थी. लगातार मौतें हो रही थीं. मुंबई में भी मौतें हो रही थीं. लोग निगम से ले कर राज्य और केंद्र सरकार तक की पाबंदियां झेलने को मजबूर थे. श्रद्धा और आफताब को इस दौर में वर्क फ्रौम होम काम मिलता रहा. वे लौकडाउन की छूट का इंतजार करने लगे.

श्रद्धा धीरेधीरे मां की मौत के गम से उबर रही थी, लेकिन पिता द्वारा लाख मनाने के बाद भी वह आफताब के साथ रहती रही. हालांकि उन के रिश्ते की मधुरता में पहले जैसी ताजगी नहीं बची थी. दोनों एकदूसरे से खीझे रहते थे.

तांत्रिक का इंद्रजाल : समाज में फैल रहा अंधविश्वास – भाग 2

‘‘साहब, पप्पू बताता था कि घर की अलमारी से बहू सुनीता के गहने और रुपए चोरी हो रहे थे, जिस का पता लगाने के लिए योगेश ने घर पर एक तांत्रिक से तांत्रिक क्रियाएं जरूर कराई थीं.’’

विनोद नामदेव के मुंह से तांत्रिक क्रियाएं कराने की बात सुन कर पुलिस टीम के कान खड़े हो गए. पुलिस ने घटनास्थल पर जलते हुए दीपक और पूजन सामग्री को देखा था, इस से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि दीपावली के एक दिन पहले तंत्रमंत्र का खेल हुआ था.

‘‘तांत्रिक क्रियाएं करने वाला तांत्रिक कौन था?’’ पुलिस ने विनोद से पूछा.

‘‘साहब, हरदा जिले का गणेश काशिव अकसर योगेश के घर पर आ कर तंत्रमंत्र करता रहता था. वह चोरी गई वस्तुओं को वापस दिलाने के लिए तंत्रमंत्र का सहारा लेता था. घटना वाले दिन भी गणेश मुझ से बाइक में पैट्रोल भरवाने के लिए पैसे ले कर आया था.’’ विनोद नामदेव ने साफसाफ बता दिया.

पुलिस ने योगेश के घर सहित दुर्गा कालोनी में सुरक्षा बढ़ा कर आरोपियों की तलाश शुरू की तो कालोनी के लोगों से पता चला कि योगेश के घर तांत्रिक क्रियाओं को हरदा जिले के आदमपुर गांव का तांत्रिक गणेश काशिव अंजाम देता था.

तांत्रिक पिछले कुछ दिनों से मृतक के घर बारबार आ रहा था. दीपावली के एक दिन पहले भी लोगों ने उसे योगेश के घर पर देखा था.

पुलिस को तीनों मृतकों योगेश नामदेव, पत्नी सुनीता बाई व बच्चे दिव्यांश के शवों पर चोटों के निशान मिले थे. मृतकों के पास पूजा का स्थान एवं उस के पास पड़े खून के छींटे, जलता हुआ दीपक ये सभी साक्ष्य पुलिस के लिए तांत्रिक क्रियाओं की तरफ इशारा कर रहे थे.

योगेश के मौसेरे भाई से भी तांत्रिक गणेश के पूजा करने की बात पुलिस को पता चली. पुलिस की एक टीम हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर पहुंची और शक के आधार पर तांत्रिक गणेश काशिव को ले कर सिवनी मालवा आ गई.

गणेश ने तांत्रिक क्रियाएं करने की बात तो स्वीकार कर ली, मगर हत्या की बात से अंजान बनने की कोशिश करता रहा. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया.

पुलिस पूछताछ में तांत्रिक गणेश काशिव ने अपने साथी मोनू उर्फ मोहन बामने के साथ मिल कर 3-4 नवंबर, 2021 की रात 12 बजे अमावस्या को मृतक के घर पूजा करने और उन की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

आरोपी गणेश ने बताया कि उस ने इंद्रजाल नामक पुस्तक से तंत्र विद्या सीखी थी. उस ने पुलिस के सामने दावा किया कि वह गायब पैसा और गायब सामग्री को वापस दिलाने की तंत्र विद्या अच्छी तरह जानता है.

वैज्ञानिक अविष्कारों के बावजूद भी पढ़ेलिखे परिवार द्वारा रुपए और गहने वापस पाने के लिए अंधविश्वास के चक्कर में पड़ कर तांत्रिक से तंत्रमंत्र कराने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

70 साल के विनोद नामदेव मूलत: होशंगाबाद जिले के आंवली घाट के निवासी हैं. नर्मदा नदी के तट पर पूजन सामग्री की दुकान से उन के परिवार की रोजीरोटी चलती है. विनोद का एकलौता बेटा योगेश पढ़लिख कर जवान हुआ तो वह काम की तलाश में गांव से 30 किलोमीटर दूर बनापुरा आ गया. बनापुरा में योगेश ने पान की दुकान खोल ली.

योगेश के बनाए पान के लोग दीवाने हो गए. योगेश की पान की दुकान चल पड़ी तो रोजाना हजारों रुपए की कमाई होने लगी. सन 2008 में योगेश की शादी सुनीता से हो गई. शादी के कुछ समय बाद ही बनापुरा की दुर्गा कालोनी में योगेश और सुनीता ने प्लौट ले कर मकान बना लिया.

2 बेटे दिव्यांश और अक्षांश के जन्म के बाद सुनीता के कहने पर योगेश ने घर पर आटा चक्की और छोटी सी किराना दुकान खोल ली. योगेश घर के बाहर पान की दुकान चलाता और सुनीता घर पर रह कर आटा चक्की और किराना दुकान चलाने लगी. सुबह बच्चों को स्कूल भेज कर वह दिन भर दुकान चलाने में व्यस्त रहती.

2021 के सितंबर महीने की बात है. सुनीता अपनी अलमारी में रखे गहने देख रही थी, मगर उसे उस की सोने की बालियां और अंगूठी नहीं मिल रही थी. परेशान हो कर उस ने अपने पति योगेश को यह बात बताई तो योगेश ने कहा, ‘‘अच्छे से देख लो सुनीता, तुम ने ये चीजें कहीं दूसरी जगह रख दी होंगी.’’

सुनीता ने अलमारी का कोनाकोना छान कर देख लिया, मगर उसे अंगूठी और कान की बालियां नहीं मिलीं. इस के हफ्ते भर बाद जब सुनीता ने अपना पर्स खोल कर देखा तो उस के करीब 5 हजार रुपए पर्स से गायब थे.

सुनीता इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. उस ने योगेश से कहा, ‘‘देखो, घर से रुपए और अंगूठी, कान की बालियां गायब हो गई हैं, जरूर कोई हमारे ऊपर जादूटोना कर रहा है.’’

‘‘तुम कैसी दकियानूसी बातें कर रही हो, घर से कैसे कोई चीज गायब हो सकती है, तुम्हें कुछ याद रहता नहीं. कहीं रख दी होगी.’’ योगेश ने उसे झिड़कते हुए कहा.

सुनीता के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था, उसे लग रहा था कि किसी ने उस के रुपए और गहने गायब कर दिए हैं.

इसी दौरान जब योगेश की मौसी का लड़का मनीष उस के घर आया तो सुनीता ने उसे रुपए और गहने गायब होने की बात बताई तो मनीष बोला, ‘‘भाभी, मैं एक तांत्रिक बंजारा बाबा को जानता हूं, वह लोगों के गुम हो गए सामान को वापस दिला देता है.’’

‘‘भैया, तुम बंजारा बाबा से बात कर लो न, मुझे भी मेरे रुपए और गहने वापस चाहिए.’’ सुनीता के तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई, उस ने चहकते हुए मनीष से कहा.

मनीष 2-3 दिन बाद बंजारा बाबा को ले कर योगेश के घर आ गया. बंजारा बाबा का असली नाम गणेश काशिव था. 25 साल का गणेश काशिव हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर का रहने वाला था.

गणेश को जिस उम्र में स्कूल की किताबें पढ़नी चाहिए थीं, उस उम्र में वह तंत्रमंत्र की किताबें पढ़ने लगा था. तंत्रमंत्र और झाड़फूंक में उस का नाम आसपास के इलाकों में प्रसिद्ध हो गया था.

गणेश झाड़फूंक और तांत्रिक साधना के लिए बनापुरा आता रहता था. वह लोगों को बताता था कि उस के पास इंद्रजाल नाम की पुस्तक है, जिस में जमीन में गड़े धन का पता लगाने और चोरी किया धन वापस करने के लिए तंत्रमंत्र करने के उपाय बताए गए हैं.

बंजारा बाबा अकसर अमावस्या की रात को सुनसान जगह पर तंत्र साधना करता था. उस के इस काम में मोहन बामने उर्फ मोनू उस की मदद करता था. 30 साल का मोनू भी उस के गांव के पास रीझगांव का रहने वाला था.

हमारे समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी अमरबेल की तरह इस तरह फैली हुई हैं कि पढ़ेलिखे लोग भी इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं. सुनीता और योगेश भी तांत्रिक के बिछाए इंद्रजाल में फंस ही गए.

गणेश अकसर योगेश के घर आ कर कहता कि उस के घर में किसी प्रेत का साया है, इसी वजह से घर का सामान गायब हो रहा है. गणेश ने योगेश को 6 ताबीज बना कर देते हुए कहा था कि इन्हें घर के सभी लोग अपने गले में हमेशा पहन कर रखें तो प्रेत का साया उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

दीपावली के सप्ताह भर पहले गणेश ने सुनीता को बताया कि दीपावली के एक दिन पहले की रात में वह उस के घर आ कर तांत्रिक साधना करेगा, इस से उस के घर से गायब सभी सामान घर में आ जाएगा.

उस ने तांत्रिक साधना के लिए कुछ सामान की लिस्ट बना कर उसे दी थी. योगेश काफी मशक्कत के बाद तांत्रिक क्रिया में उपयोग होने वाले सामान जुटा पाया था. तांत्रिक गणेश के बनाए प्लान के मुताबिक वह अपने सहयोगी मोनू को ले कर योगेश के घर रूप चौदस की शाम ही पहुंच गया.

गणेश ने इंद्रजाल नाम की तंत्रमंत्र से संबंधित पुस्तक में पढ़ा था कि अमावस्या की मध्यरात्रि में किसी की बलि चढ़ाने से उसे तांत्रिक शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं. इन शक्तियों के द्वारा वह जमीन में गड़े धन का पता लगाने के साथ खोए हुए रुपए, जेवरात वापस ला सकते हैं.

गणेश तंत्रमंत्र के जरिए उन शक्तियों को हासिल करना चाहता था. इसलिए उस ने अपने साथी मोनू की मदद से दीपावली के एक दिन पहले की मध्यरात्रि में तांत्रिक अनुष्ठान कर के बलि चढ़ाने का प्लान बनाया था.

योजना के मुताबिक, वे रात 9 बजे ही पूजापाठ की तैयारियों में लग गए थे. योगेश के घर में बने एक कमरे में दीपक जला कर पूजा में उपयोग होने वाले सामान को सजा कर रख लिया गया था.

सुनीता पूजा की तैयारियों के साथ खाना बनाने की तैयारी भी कर रही थी, क्योंकि गणेश ने सुनीता से बोल दिया था कि खाना तैयार कर परिवार के लोग खा लें, तांत्रिक अनुष्ठान के बाद वह खाना खा कर ही घर जाएगा.

दोस्त का कत्ल : वफादारी की मिली सजा

मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर की एक तहसील है गोटेगांव. इस तहसील क्षेत्र में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल झोतेश्वर होने की वजह से छोटा शहर होने के बावजूद गोटेगांव खासा प्रसिद्ध है. गोटेगांव के इलाके में ही एक गांव है कोरेगांव.

8 दिसंबर, 2019 की सुबह कोरेगांव का रहने वाला खुमान ठाकुर झोतेश्वर पुलिस चौकी की इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री के पास आया. उस ने अंजलि को बताया कि उस के भाई का बड़ा लड़का आशीष 6 दिसंबर को किसी काम से घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. उन्होंने उसे गांव के आसपास के अलावा सभी रिश्तेदारों के यहां तलाश किया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. उस ने आशीष की गुमशुदगी दर्ज कर उसे तलाशने की मांग की.

एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान से पूछा, ‘‘आप को किसी पर कोई शक हो तो बताओ.’’

खुमान के साथ आए उस के दामाद कृपाल ने बताया कि 6 दिसंबर को उस ने आशीष को उस के दोस्तों पंकज और सुरेंद्र के साथ खेतों की तरफ जाते देखा था. उस ने यह भी बताया कि आशीष के परिवार के लोगों ने जब पंकज और सुरेंद्र को बुला कर पूछताछ की तो वे इस बात से साफ मुकर गए कि आशीष उन के साथ था. इसलिए हमें उन पर शक हो रहा है.

चौकी इंचार्ज अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान की शिकायत दर्ज कर इस घटना की सूचना तत्काल एसपी गुरुचरण सिंह, एसडीपीओ (गोटेगांव) पी.एस. बालरे और टीआई प्रभात शुक्ला को दे दी.

एसडीपीओ के निर्देश पर चौकी इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने कोरेगांव में पंकज और सुरेंद्र के घर दबिश तो दोनों घर पर ही मिल गए. उन दोनों से पुलिस चौकी में पूछताछ की गई तो पंकज और सुरेंद्र ने बताया कि हम तीनों दोस्त मछली मारने के लिए गांव से बाहर खेतों के पास वाले नाले पर गए थे.

मछली मारते समय नाले के पास से जाने वाली मोटरपंप की सर्विस लाइन से आशीष को करंट लग गया, जिस से उस की मौत हो गई.

उन्होंने बताया कि आशीष की इस तरह हुई मौत से वे दोनों घबरा गए. डर के मारे उन्होंने आशीष के शव को नाले के समीप ही गड्ढा खोद कर दफना दिया.

पुलिस को पंकज और सुरेंद्र द्वारा गढ़ी गई इस कहानी पर विश्वास नहीं हुआ. उधर आशीष का छोटा भाई आनंद ठाकुर पुलिस से कह रहा था कि उस के भाई की हत्या की गई है.

मामला संदेहपूर्ण होने के कारण पुलिस ने गोटेगांव के एसडीएम जी.सी. डहरिया को पूरे घटना क्रम की जानकारी दे कर दफन की गई लाश को निकालने की अनुमति ली.

उसी दिन गोटेगांव एसडीपीओ पी.एस. बालरे, फोरैंसिक टीम सहित दोनों आरोपियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. आरोपियों की निशानदेही पर कोरेगांव के नाले के पास खेत में बने एक गड्ढे से लाश निकाली गई.

आशीष के पिता ने लाश के हाथ पर बने टैटू को देखा तो वह फूटफूट कर रोने लगा. लाश के गले पर घाव और खून का निशान था. इस से स्पष्ट हो गया कि आशीष की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए जबलपुर मैडिकल कालेज भेज दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि आशीष की मौत बिजली के करंट से नहीं, बल्कि किसी धारदार हथियार से गले पर किए गए प्रहार से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि आशीष की हत्या पंकज और सुरेंद्र ने ही की है.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से जब सख्ती से पूछताछ की तो पंकज जल्दी ही टूट गया. उस ने पुलिस के सामने आशीष की हत्या करने की बात कबूल ली. आशीष ठाकुर की हत्या के संबंध में उस ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह अवैध संबध्ाोंं पर गढ़ी हुई निकली—

आदिवासी अंचल के छोटे से गांव कोरेगांव के साधारण किसान पुन्नूलाल का बड़ा बेटा आशीष और गांव के ही जगदीश ठाकुर के बेटे पंकज की आपस में गहरी दोस्ती थी. हमउम्र होने के कारण दोनों का दिनरात मिलनाजुलना बना रहता था. आशीष पंकज के घर आताजाता रहता था. पंकज ठाकुर की शादी हो गई थी और पंकज की पत्नी अनीता (परिवर्तित नाम) से भाभी होने के नाते आशीष हंसीमजाक किया करता था.

एक लड़की के जन्म के बाद भी अनीता का बदन गठीला और आकर्षक था. अनीता आशीष की शादी की बातों को ले कर उस से मजाक किया करती थी. 24 साल का आशीष उस समय कुंवारा था. वह अनीता की चुहल भरे हंसीमजाक का मतलब अच्छी तरह समझता था. देवरभाभी के बीच होने वाली इस मजाक का कभीकभार पंकज भी मजा ले लेता था.

दोस्तों के साथ मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देख कर आशीष के मन में अनीता को ले कर वासना का तूफान उठने लगा था. इसी के चलते वह अनीता से दैहिक प्यार करने लगा. उसे सोतेजागते अनीता की ही सूरत नजर आने लगी थी.

पंकज का परिवार खेतीकिसानी का काम करता था. घर के सदस्य दिन में अकसर खेतों में काम करते थे. इसी का फायदा उठा कर आशीष पंकज की गैरमौजूदगी में अनीता से मिलने आने लगा.

करीब 2 साल पहले सर्दियों की एक दोपहर में आशीष पंकज के घर पहुंचा तो अनीता की 2 साल की बेटी सोई हुई थी और अनीता नहाने के बाद घर की बैठक पर कपड़े बदल रही थी.

अनीता के खुले हुए अंगों और उस की खूबसूरती को देखते ही आशीष के अंदर का शैतान जाग उठा. वह घर की बैठक के एक कोने में पड़ी चारपाई पर बैठ गया और अनीता से इधरउधर की बातें करने लगा.

बातचीत के दौरान जैसे ही अनीता उस के पास आई, उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

आशीष के बंधन में जकड़ी अनीता ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, छोड़ो, कोई देख लेगा.’’

इस पर आशीष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करता हूं तो डरना क्या.’’

अनीता कुछ शरमाई तो आशीष ने उसे अपने सीने से दबाते हुए अपने होंठे उस के होंठों पर रख दिए. देखते ही देखते आशीष के कृत्य की इस चिंगारी से उठी वासना की आग ने अनीता को भी अपने आगोश में ले लिया.

आपस की हंसीमजाक से शुरू हुआ प्यार का यह सफर वासना के खेल में बदल गया. अनीता अपना सब कुछ आशीष को सौंप चुकी थी. अब जब भी पंकज के घर के लोग काम के लिए निकल जाते, आशीष अनीता के पास पहुंच जाता और दोनों मिल कर अपनी हसरतें पूरी करते.

एक बार पंकज ने आशीष को अनीता के साथ ज्यादा नजदीकी से बात करते देख लिया, तब से उस के दिमाग में शक का कीड़ा बैठ गया. उस ने अनीता को आशीष से दूर रहने की हिदायत दे कर आशीष से इस बारे में बात की तो वह दोस्ती की दुहाई देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें गलतफहमी हुई है, मैं तो भाभी को मां की तरह मानता हूं.’’

लेकिन प्यार के उन्मुक्त आकाश में उड़ने वाले इन पंछियों पर किसी की बंदिश और समझाइश का कोई असर नहीं पड़ा. आशीष और अनीता के प्यार का खेल बेरोकटोक चल रहा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, दोनों अपनी जिस्मानी भूख मिटा लेते थे.

पंकज भी अब पत्नी अनीता पर नजर रखने लगा था. पंकज अकसर सुबह को खेतों में काम के लिए निकल जाता और शाम को ही वापस आता था. लेकिन एक दिन जब वह दोपहर में ही घर लौट आया तो अपने बिस्तर पर आशीष और अनीता को एकदूसरे के आगोश में देख लिया.

अपनी पत्नी को पराए मर्द की बांहों में देख कर उस का खून खौल उठा. आशीष तो जल्दीसे अपने कपड़े ठीक कर के वहां से चुपचाप निकल गया, मगर क्रोध की आग में जल रहे पंकज ने अपनी पत्नी अनीता की जम कर धुनाई कर दी.

पंकज ने बदनामी के डर से यह बात किसी को नहीं बताई. वह गुमसुम सा रहने लगा और आशीष से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब उस ने गांव के एक अन्य युवक सुरेंद्र ठाकुर से दोस्ती कर ली. इसी दौरान आशीष की शादी भी हो गई और उस ने अनीता से मिलनाजुलना बंद कर दिया. लेकिन पंकज के दिल में बदले की आग अब भी जल रही थी.

उस की आंखों में आशीष और अनीता का आलिंगन वाला दृश्य घूमता रहता था. उस के मन में हर समय यही खयाल आता था कि कब उसे मौका मिले और वह आशीष का गला दबा दे.

पंकज सोचता था कि जिस दोस्त के लिए वह जान की बाजी लगाने को तैयार रहता, उसी दोस्त ने उस की थाली में छेद कर दिया.

6 दिसंबर के दिन योजना के मुताबिक सुरेंद्र ठाकुर आशीष को मछली मारने के लिए गांव के बाहर नाले पर ले गया. नाले के पास ही पंकज ठाकुर अपने खेतों पर उन दोनों का इंतजार कर रहा था.

उस ने आशीष और सुरेंद्र को नाले में मछती मारते हुए देखा तो वह खेत पर रखे चाकू को जेब में छिपा कर नाले के पास आ गया.

आशीष नाले के पानी में कांटा डाले मछली पकड़ने में तल्लीन था. तभी पंकज ने मौका पा कर आशीष के गले पर चाकू से धड़ाधड़ कई वार किए तो आशीष छटपटा कर जमीन पर गिर गया.

कुछ देर में उस ने दम तोड़ दिया. यह देख पंकज ने अपने खेतों से फावड़ा ला कर गड्ढा खोदा और सुरेंद्र की मदद से आशीष को दफना दिया. चाकू और फावड़े को इन लोगों ने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिया. फिर कपड़ों पर लगे खून के छींटों को नाले में धोया और दोनों अपनेअपने घर चले गए.

हत्या के बाद दोनों सोच रहे थे कि उन्हें किसी ने नहीं देखा. लेकिन आशीष के जीजा कृपाल ने सुरेंद्र और आशीष को नाले की तरफ जाते देख लिया था. इसी आधार पर घर वालों ने सुरेंद्र और पंकज पर संदेह होने की बात पुलिस को बताई थी. पंकज ने बिना सोचेसमझे बदले की आग में अपने दोस्त पंकज का कत्ल तो कर दिया, लेकिन कानून की पकड़ से नहीं बच सका.

पंकज और सुरेंद्र के इकबालिया बयान के आधार पर आशीष ठाकुर की हत्या के आरोप में गोटेगांव थाने में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहम मामला कायम कर उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जवानी के जोश में अपने दोस्त की पत्नी से अवैध संबंध बनाने वाले आशीष को अपनी जान गंवानी पड़ी तो पंकज ठाकुर और सुरेंद्र ठाकुर को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

डॉक्टर और इंजीनियर बनाने लगे कैंसर की नकली दवाएं – भाग 1

दिल्ली के प्रगति मैदान के सामने भैरों मंदिर के पास सफेद रंग की स्कौर्पियो गाड़ी में बैठे दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन सिंह को करीब एक घंटा हो चुका था, लेकिन जिस शख्स का वह बेसब्री से इंतजार कर रहे थे वो अभी तक नहीं आया था.

अपने स्टाफ के साथ सादा लिबास में सतेंद्र मोहन ही नहीं 2-3 अलगअलग प्राइवेट गाडि़यों में उन की टीम के दूसरे लोग भी इसी तरह की बेचैनी से पहलू बदल रहे थे.

‘‘गुलाब, तुम्हें यकीन तो है कि तुम्हारा शिकार इसी रास्ते से निकलेगा और आज ही आएगा.’’ इंसपेक्टर सतेंद्र जब इंतजार करतेकरते ऊब गए तो उन्होंने एएसआई गुलाब से पूछ ही लिया. क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि गुलाब के पास शायद पूरी जानकारी नहीं है.

‘‘जनाब सूचना एकदम सटीक है. बस ये नहीं पता कि उस को आने में इतनी देर कैसे हो गई. मैं अपने सोर्स से एक बार फिर कनफर्म कर लेता हूं.’’ कहते हुए एएसआई गुलाब ने जेब से फोन निकाला और किसी से बात करने लगा.

बात करने के बाद जब उस ने फोन बंद किया तो उस के चेहरे की चमक देखने लायक थी. वह बोला, ‘‘जनाब शिकार अगले 5 से 10 मिनट में आने वाला है, रास्ते में है.’’

इस के बाद भैरों मंदिर के बाहर खड़ी चारों प्राइवेट गाडि़यों में बैठे पुलिस वाले गाडि़यों से उतर कर इधरउधर फैल गए. जबकि कुछ गाडि़यों में ही बैठे रहे.

करीब 10 मिनट बाद स्कूटी पर सवार एक व्यक्ति वहां से गुजरा तो अचानक सतेंद्र मोहन की गाड़ी ने ओवरटेक कर के स्कूटी सवार को रुकने पर मजबूर कर दिया. इस से पहले कि स्कूटी सवार कोई सवालजवाब करता, आसपास फैली टीम के लोगों ने उसे घेर लिया.

‘‘भाई, कौन हो आप लोग और मुझे इस तरह क्यों घेरा है?’’ स्कूटी सवार ने सवाल पूछा तो उस से पहले ही सतेंद्र मोहन ने उस की स्कूटी की चाबी निकाल ली और चालक को स्कूटी से हटा कर उस की सीट वाली डिक्की खोली.

डिक्की में एक बैग रखा था, जिसे देख कर इंसपेक्टर सतेंद्र की आंखें चमक उठीं. बैग खोल कर देखा तो उस में कुछ मैडिसिन थीं. सतेंद्र मोहन सिंह की आंखों की चमक से ही लग रहा था कि उन्हें मानो उन दवाइयों की ही तलाश थी.

‘‘अरे…रे भाईसाहब, आप हैं कौन और इस तरह किसी का बैग आप कैसे चैक कर सकते हैं. देख नहीं रहे इस में दवाइयां हैं.’’ स्कूटी सवार को अब तक गुस्सा आ गया था. उस ने आंखें तरेरते हुए कहा तो अचानक सतेंद्र सिंह ने जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दिया. जिस के बाद स्कूटी सवार एकदम सन्न रह गया.

‘‘हमें पता है ये दवाइयां हैं और हमें ये भी पता है कि ये दवाइयां एकदम नकली हैं. लेकिन तुझे ये नहीं पता कि हम कौन हैं. हम दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच से हैं. अब तू वहीं चल कर बताएगा कि इन दवाइयों का खेल क्या है.’’ कहते हुए इंसपेक्टर सतेंद्र मोहन ने अपनी टीम को इशारा किया.

जिस के बाद स्कूटी सवार को गाड़ी में बैठा लिया. फिर टीम का एक सदस्य उस की स्कूटी ले कर गाड़ी के पीछेपीछे चलने लगा. कुछ ही देर में टीम उसे ले कर चाणक्यपुरी में क्राइम ब्रांच के इंटरस्टेट सेल में ले आई.

विदेशी कंपनियों की नकली दवाइयां

वहां एसीपी रमेशचंद्र लांबा पहले ही बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. स्कूटी सवार 27 साल का पंकज सिंह बोहरा था, जो मूलरूप से गांव नौखुना, पिथौरागढ़, उत्तराखंड का रहने वाला था. थोड़ी सी सख्ती बरतने के बाद ही पंकज तोते की तरह बताता चला गया.

उस के पास से पुलिस टीम ने टैग्रीसो 80 मिलीग्राम एस्ट्राजेनेका की 190 टैबलेट, वेंटोक्सेन 100 मिलीग्राम इंसेप्टा फार्मास्युटिकल्स की 600 टैबलेट्स और ओसिंट 80 मिलीग्राम इंसेप्टा फार्मास्युटिकल्स की 1,500 टैबलेट्स बरामद हुई थीं, जो कैंसर के इलाज में काम आती हैं.

ये सभी दवाइयां अमेरिका की दवा कंपनियों की थीं और भारत में इन्हें बेचने का अधिकार केवल एस्ट्राजेनेका कंपनी के पास था. पंकज बोहरा ने बताया कि उन दवाओं की पैंकिग भले ही असली दवाओं जैसी थी, लेकिन उन कैप्सूलों में दवा के नाम पर प्रोटीन पाउडर भरा था. यानी दवाइयां एकदम नकली थीं.

एसीपी लांबा और उनकी टीम के लोग पंकज की जुबानी कैंसर की नकली दवाइयों की कहानी सुनकर सन्न रह गए.

कहानी की शुरुआत दरअसल 2 महीना पहले हुई थी. क्राइम ब्रांच की इंटरस्टेट ब्रांच में तैनात एएसआई गुलाब सिंह के एक परिचित के नजदीकी रिश्तेदार की कैंसर के कारण मौत हो गई.

गुलाब सिंह जब उसे सांत्वना देने पहुंचे तो परिचित ने बताया कि उन का रिश्तेदार पिछले 6 महीने से कैंसर की जो दवा खा रहा था, उसे पता ही नहीं था कि वे नकली हैं. नकली दवा खाने के कारण उस की हालत बिगड़ती चली गई. जब डाक्टरों ने दवा की पड़ताल की तो खुलासा हुआ कि दवाएं नकली हैं.

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. मरीज की मौत हो गई. तभी गुलाब सिंह को ये भी पता चला कि कैंसर की ये दवाएं बहुत महंगी हैं लेकिन उन्हें किसी दवा एजेंट के जरिए ये दवाएं 50 फीसदी छूट पर मिलती थीं. इसीलिए इस का कोई बिल नहीं दिया जाता था.

बताया जाता था कि ये सीधे दवा कंपनी के स्टाकिस्ट के गोदाम से चोरीछिपे निकाल कर नीचे के कर्मचारी डिस्कांउट में बेचते थे. अब गंभीर बीमारी के शिकार व्यक्ति को जिसे हर महीने हजारों रुपए की महंगी दवाइयां खानी होती हैं. उसे यहीं दवाएं अगर आधे दाम पर मिल जाएं तो उसे इस बात से क्या मतलब कि दवा किसी बड़ी दुकान से खरीदी गई है या दवा गोदाम से उस का कोई कर्मचारी चुरा कर बेच रहा है.

भारीभरकम छूट में दवाइयां मिलती रहीं और मरीज खाता रहा. पता उस वक्त लगा जब मरीज अच्छा होने की जगह और ज्यादा बीमार होने लगा. तबीयत इतनी बिगड़ गई कि अस्पताल में दाखिल होना पड़ा.

एएसआई गुलाब सिंह जुट गए जांच में

डाक्टरों को जब यह पता चला कि उन के ही द्वारा लिखी गई दवा देने के बावजूद तबीयत खराब हो रही है तो उन्होंने दवा खरीदने वाली दुकान के बारे में पूछा. तब जा कर भेद खुला कि दवाओं के रैपर असली दवा से मिलतेजुलते जरूर हैं लेकिन वे नकली दवाएं हैं. लेकिन तब तक मरीज के लिए बहुत देर हो चुकी थी और उस की मौत हो गई.

देवेंद्र से देविका बनने की दर्द भरी दास्तां

मुसीबत और परेशानियां ऐसी थीं कि देवेंद्र को उनका कोई हल नहीं सूझ रहा था और जो सूझा वह हैरान कर देने वाला है. साल 2017 तक एक एनजीओ में काम करने बाला यह हट्टा कट्टा  युवा आम लड़कों की तरह ही रहता था लेकिन अब औपरेशन के जरिये लड़की यानि ट्रांसजेंडर बनकर अपने ही शहर भोपाल में किन्नरों की टोली में तालियां बजाता नजर आता है .

आमतौर पर कोई भी लड़का ट्रांसजेंडर तभी बनने की सोचेगा जब उसमें बचपन से ही लड़कियों जैसे लक्षण हों या फिर वह खुद को सेक्स कर पाने में असमर्थ पाये पर देवेंद्र के साथ ऐसा कुछ नहीं था, बल्कि उसकी कहानी दिल को छू जाने वाली है. खासतौर से उस वक्त जब रक्षा बंधन का त्योहार आने वाला है. देवेंद्र अपनी बहन के लिए देविका बना था जिसका उसे कोई मलाल भी नहीं है, उल्टे वह खुश है कि बलात्कार के झूठे आरोप में फंसने से भी बच गया.

देवेंद्र अपनी बहन को बहुत चाहता था और उसकी विदाई 20 मई 2016 को इन दुआओं के साथ उसने की थी कि बहन ससुराल जाकर खुशहाल ज़िंदगी जिये लेकिन भगवान कहीं होता तो उसकी सुनता. हुआ यूं कि शादी के कुछ दिनों बाद ही बहन की ससुराल वालों ने उस पर तरह तरह के जुल्मों सितम ढाने शुरू कर दिये ठीक वैसे ही जैसे फिल्मों और टीवी सीरियलों में दिखाये जाते हैं. दहेज के लालची ससुराल वालों ने उसकी बहन को इतना सताया कि वह खून के आंसू रो दी .

अब देवेंद्र ने वही गलती की जो आमतौर पर दहेज के लिए सताई जाने वाली लड़कियों के घर वाले करते हैं. यह गलती थी ससुराल वालों के हाथ पैर जोड़ना और अपनी पगड़ी उनके चरणों में रख देना. ऐसे फिल्मी टोटकों से तो फिल्मों में भी बात नहीं बनती फिर यह तो सामने से होकर गुजर रही हकीकत थी. देवेंद्र ने मध्यस्थता करते हर मुमकिन कोशिश की कि जैसे भी हो बगैर किसी झगड़े फसाद विवाद या कोर्ट कचहरी के बहन की ज़िंदगी में खुशियां आ जाएं पर कोई कोशिश कामयाब नहीं हुई तो उसने भी थकहार कर वही रास्ता पकड़ा जो सभी पकड़ते हैं.

ननद की धमकी

लेकिन थाने जाने से पहले उसने बहन की ससुराल बालों को आगाह करना या धोंस देना कुछ भी समझ लें जरूरी समझा कि शायद इससे उनमें अक्ल आ जाए. आमतौर पर ससुराल वाले इस बात से डरते हैं कि अगर बहू या उसके घर वालों ने रिपोर्ट दर्ज करा दी तो कभी कभी जमानत के भी लाले पड़ जाते हैं. यही इस मामले में भी हुआ, शुरू में तो बहन के ससुराल वाले डरे लेकिन जल्द ही बहन की चालाक ननद ने इस का भी तोड़ निकाल लिया और ऐसा निकाला कि देवेंद्र की सारी हेकड़ी तो हेकड़ी मर्दानगी भी हमेशा के लिए हवा हो गई.

इस ननद ने उसे ही यह धमकी देना शुरू कर दिया था कि अगर वह थाने गया तो वह भी थाने जाकर देवेंद्र के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखा देगी. इस धमकी का उम्मीद के मुताबिक असर हुआ और देवेंद्र ने बहन की ससुराल जाना बंद कर दिया. लेकिन इससे बहन का कोई भला या मदद नहीं हो पा रही थी इसलिए एक दिन उसने जी कडा करते बचाव का रास्ता ढूंढ़ ही लिया कि अगर वह मर्द ही न रह जाये तो बहन की ननद क्या खाकर उसके खिलाफ बलात्कार की झूठी रिपोर्ट लिखाएगी .

नवंबर 2017 में देवेंद्र ऑपरेशन करा कर लड़की बन गया और अपना नया नाम रखा देविका . अब उसे ननद का डर नहीं रह गया था लिहाजा उसने बहन को बचाने पुलिसिया और कानूनी काररवाई शुरू कर दी . मामला जब विधिक सेवा प्राधिकरण पहुंचा तो उसने बेहिचक सारे पत्ते सचिव आशुतोष मिश्रा के सामने खोलते अपने  मेडिकल दस्तावेज़ भी दिखाये  और बताया कि बहन की ननद की धमकियों से आजिज़ आकर उसने यह फैसला लिया था .

देखते ही देखते बहन को तलाक मिल गया और वह ससुराल नाम की जेल से आजाद हो गई . लेकिन डर के चलते और बहन की सलामती के लिए देविका बन गए देवेंद्र को बहुत बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ी जिसकी मिसाल शायद ही ढूंढे से मिले. साड़ी और सलवार सूट पहने देविका माथे पर बिंदी और बड़ा सा टीका भी लगाती है और चूड़ियां भी पहनती है. उसका मेकअप भी लड़कियों जैसा तड़क भड़क भरा होता है .

देवेंद्र, देविका बनकर खुश है और अब ट्रांसजेंडर्स के भले के लिए काम करना चाहता है . मुमकिन है जल्द ही उसकी ज़िंदगी और बहन के लिए त्याग पर कोई फिल्म निर्माता फिल्म बनाए जिसमें भरपूर मसाला और जायका होगा लेकिन देवेंद्र की ज़िंदगी में जरूर कोई जायका नहीं रह गया है. बेहतर तो यह होगा कि वह फिर से आपरेशन कराके पहले की तरह लड़का बन जाये और ज़िंदगी का भरपूर लुत्फ उठाए.

गैंगस्टर बनने के लिए किए 4 मर्डर – भाग 1

27अगस्त, 2022 की रात को मध्य प्रदेश के सागर जिले के कैंट थाना टीआई अजय कुमार सनकत को सूचना मिली कि भैंसा गांव में ट्रक बौडी रिपेयरिंग कारखाने में चौकीदार की हत्या हुई है. सूचना मिलते ही पुलिस टीम ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू कर दी.

जांच के दौरान पता चला कि भैंसा गांव का 50 साल का कल्याण लोधी कारखाने में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था. सुबह जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस का बड़ा बेटा संजय उस की तलाश में कारखाने पहुंच गया.

कारखाने के बाहर लोगों की भीड़ और पुलिस देख कर उस के होश उड़ गए. पास जा कर देखा तो उस के पिता कल्याण का शव पड़ा हुआ था. पिता की लाश को देख कर वह चीखचीख कर रोने लगा.

पुलिस ने उसे ढांढस बंधाते हुए बताया कि किसी हमलावर ने सिर पर हथौड़ा मार कर उस की हत्या कर दी है. मृतक कल्याण का मोबाइल भी उस के पास नहीं मिला था.

घटनास्थल की सभी काररवाई पूरी कर के पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतक के बेटे संजय लोधी की तरफ से हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस इस केस की जांच में जुट गई.

सागर पुलिस कल्याण लोधी के अंधे कत्ल की जांच कर ही रही थी कि 2 दिन बाद 29 अगस्त को सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में गवर्नमेंट आर्ट ऐंड कामर्स कालेज के चौकीदार 60 साल के शंभुदयाल दुबे की हत्या हो गई. उस की हत्या सिर पर पत्थर मार कर की गई थी.

घटनास्थल पर जांच के दौरान पुलिस को शव के पास से एक मोबाइल मिला. पहले वह मोबाइल मृतक चौकीदार दुबे का माना जा रहा था, लेकिन बाद में पता चला कि वह मोबाइल कैंट थाना क्षेत्र के भैंसा के कारखाने में मारे गए चौकीदार कल्याण लोधी का है.

इस आधार पर पुलिस अधिकारियों को इस बात का पूरा भरोसा हो गया था कि दोनों वारदातों के पीछे एक ही हत्यारे का हाथ होगा.

दोनों अंधे कत्ल के खून की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि मोतीनगर थाना क्षेत्र के गांव रतौना में एक निर्माणाधीन मकान में चौकीदारी कर रहे 40 साल के मंगल अहिरवार पर जानलेवा हमला हो गया. मंगल की लाश के पास खून से सना फावड़ा मिला था, जिस के आधार पर माना जा रहा था कि मंगल की हत्या सिर पर फावड़ा मार कर की गई थी.

एक के बाद एक 3 वारदातों ने अमूमन शांत रहने वाले सागर शहर में दहशत का माहौल पैदा कर दिया था. हत्या करने वाले आरोपी का न कोई नाम था, न कोई सुराग. हत्याओं के पीछे का मकसद भी समझ नहीं आ रहा था. सुराग के नाम पर हाथ खाली थे, आरोपी को तलाशना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसी चुनौती थी.

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल का शहर सागर वैसे तो झीलों और डा. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी जैसे शैक्षणिक संस्थान के लिए जाना जाता है, लेकिन अगस्त महीने के आखिरी 4 दिनों में हुई 3 सिक्योरिटी गार्डों की हत्याओं से सुर्खियों में आ चुका था. सागर में हुईं ये हत्याएं रात के एक निश्चित समय और एक ही पैटर्न से की गई थीं.

हत्या में किसी तरह की लूटपाट और किसी खास किस्म के हथियार का इस्तेमाल भी नहीं किया था. हत्या की कोई वजह सामने नहीं आ रही थी और न ही मरने वाले सिक्योरिटी गार्डों का आपस में कोई संबंध था. लिहाजा पुलिस का अनुमान था कि इन हत्याओं के पीछे किसी सीरियल किलर का हाथ हो सकता है.

पुलिस अधिकारियों की बढ़ गई चिंता

सागर जिले के एसपी तरुण नायक और एडिशनल एसपी विक्रम सिंह इन घटनाओं को ले कर खुद मोर्चे पर आ चुके थे. उन्होंने जिले की पुलिस फोर्स को मुस्तैद कर दिया था.

एसपी तरुण नायक ने चौकीदारों की सिलसिलेवार हत्या की वारदातों को अंजाम देने वाले आरोपी की गिरफ्तारी के लिए एएसपी विक्रम सिंह कुशवाहा, एएसपी ज्योति ठाकुर और सीएसपी (सिटी) के निर्देशन में पुलिस अधिकारियों की टीम बनाई. इस टीम में सिविल लाइंस टीआई नेहा सिंह गुर्जर, मोतीनगर टीआई सतीश सिंह, कैंट टीआई अजय कुमार सनकत, गोपालगंज टीआई कमलसिंह ठाकुर को शामिल किया.

एक के बाद एक हो रही चौकीदारों की हत्या को ले कर शहर में भी डर और दहशत का माहौल बन गया था. पुलिस रातरात भर गश्त कर पूरे शहर में तैनात सिक्योरिटी गार्डों को सचेत कर रही थी.

तीनों घटनाओं से जुड़े लोगों से पूछताछ और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज के आधार पर पुलिस ने हत्यारे का स्कैच जारी कर शहर के लोगों को सावधान कर दिया था.

पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती यह थी कि यदि एक व्यक्ति ही यह वारदात कर रहा है तो उस का अगला टारगेट अब कहां होगा. जैसेजैसे समय निकल रहा था, वैसेवैसे वारदात होने की आशंका बढ़ती जा रही थी.

पुलिस को किलर के अगली वारदात को अंजाम देने की चिंता ज्यादा थी. पुलिस टीमों ने शहर कवर कर लिया था, लेकिन टेंशन ग्रामीण इलाकों की थी. जांच के दौरान मिले साक्ष्यों और लोगों के अनुसार किलर का स्कैच जारी किया गया. इस के बावजूद आरोपी की न तो पहचान हुई और न ही उस के बारे में कोई सुराग मिल सका.

चौकीदार शंभुदयाल दुबे की हत्या की वारदात के बाद आक्रोशित ब्राह्मण समाज ने मकरोनिया चौराहे पर परिजनों की मौजूदगी में शव रख कर प्रदर्शन किया. शव को सड़क से हटाने की कोशिश के दौरान युवा ब्राह्मण समाज प्रदेश अध्यक्ष दिनकर तिवारी व प्रदर्शनकारियों की अधिकारियों व पुलिस से तीखी बहस भी हुई.

आक्रोश बढ़ता देख डीएम दीपक आर्य एवं नरयावली विधायक प्रदीप लारिया मौके पर पहुंचे और दुबे के परिवार को 4 लाख रुपए की आर्थिक मदद स्वीकृत करने के आश्वासन के साथ ही तात्कालिक सहायता के रूप में 50 हजार रुपए की राशि भी उपलब्ध कराई.

वहीं आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने का भी वायदा किया. तब जा कर मृतक के घर वाले लाश को सड़क से हटाने को तैयार हुए.

काफी मानमनौवल के बाद चौकीदार शंभुदयाल दुबे का अंतिम संस्कार पुलिस बल की मौजूदगी में मकरोनिया के श्मशान घाट में किया गया.

भोपाल में मिली मोबाइल लोकेशन

तीसरे गार्ड की हत्या के बाद सागर से भोपाल तक हड़कंप मच गया. गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सागर एसपी तरुण नायक से बात कर सीरियल किलर को जल्द पकड़ने के निर्देश दिए. लिहाजा पुलिस चारों तरह फैल गई.