दोस्त की शराबी गोली : दोस्ती पड़ी महंगी

छत्तीसगढ़ के सरगुजा का शहर अंबिकापुर.रात के लगभग 8 बजे थे, कोरोना महामारी के चलते देशभर में लौकडाउन चल रहा था. जिधर देखो, उधर ही सन्नाटा. छत्तीसगढ़़ सरगुजा संभाग के ब्रह्म रोड, अंबिकापुर स्थित अपने आवास के बाहर खड़े सौरभ अग्रवाल ने मोबाइल से अपने चचेरे भाई सुनील अग्रवाल को काल लगाई.

काल रिसीव हुई तो उस ने पूछा, ‘‘क्या कर रहे हो भाई? वैसे कर ही क्या सकते हो, चारों ओर तो सन्नाटा पसरा है.’’

हैलो के साथ सुनील ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘घर पर बैठा हूं, टीवी पर कोरोना की खबरों के अलावा कुछ है ही नहीं. देखदेख कर बोर हो रहा हूं. कभी मौतों के आंकड़े आते हैं तो कभी मरीजों के. देख कर लगता है, जैसे अगला नंबर मेरा ही है.’’

हलकी हंसी के साथ सौरभ बोला, ‘‘आओ, आकाश के यहां चलते हैं. कह रहा था, टाइम पास नहीं हो रहा, सारी व्यवस्था कर रखी है उस ने.’’

सौरभ ने इशारे में सुनील को बता दिया. लेकिन वह तल्ख स्वर में बोला, ‘‘तू आकाश के चक्कर में मत रहा कर. उस क ी जुबान की कोई कीमत नहीं है. पिछले डेढ़ साल से चक्कर पर चक्कर कटवा रहा है, एक नंबर का बदमाश है.’’

‘‘भाई, समयसमय की बात है, कभी करोड़ों का आसामी था, उस के पिता की तूती बोलती थी सरगुजा में… समय का मारा है बेचारा. रही बात मकान की तो चिंता क्यों करते हो, पक्की लिखापढ़ी है, मकान तो उस के पुरखे भी खाली करेंगे.’’ सौरभ ने आकाश का पक्ष रखने की कोशिश की.

‘‘ठीक है, मैं आता हूं.’’ सुनील अग्रवाल ने बात बंद कर दी. सुनील उस का चचेरा भाई था, उम्र लगभग 40 वर्ष. दोनों में खूब छनती थी. दोनों मिलजुल कर अंबिकापुर में बिल्डिंग वर्क और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. सौरभ अपनी इनोवा सीजी 15डी एच8949 पर आ कर बैठ गया. थोड़ी देर में सुनील अग्रवाल आ गया .

दोनों कार से शहर का चक्कर लगा कर आकाश गुप्ता के घर पहुंच गए. हमेशा की तरह आकाश ने मुसकरा कर दोनों का स्वागत किया. तीनों के आपस में मित्रवत संबंध थे, एक ही शहर एक ही मोहल्ले में रहने के कारण एकदूसरे के काफी करीब थे. आपस में लेनदेन भी चलता था.

वह आकाश का पुश्तैनी घर था, जो अकसर खाली रहता था. जब पीनेपिलाने का प्रोग्राम बनता था तो सब दोस्त अक्सर यहीं एकत्र होते थे. फिर कैरम खेलने और पीनेपिलाने का दौर चलता था, इसी के चलते आकाश ने यह मकान 2. 30 करोड़ में सौरभ को बेच दिया था और पैसे भी ले लिए थे, मगर वह मकान को सुपुर्द करने में आनाकानी कर रहा था.

बहरहाल, इन सब बातों को दरकिनार कर सुनील और सौरभ आकाश गुप्ता के घर पहुंचे और महफिल सज गई. आकाश ने बेशकीमती शराब, मुर्गमुसल्लम वगैरह मंगा रखा था. लौकडाउन के समय में ऐसी बेहतरीन व्यवस्था देख कर सौरभ अग्रवाल चहका, ‘‘अरे भाई क्या इंतजाम किया है, लग ही नहीं रहा लौकडाउन चल रहा है.’’ इस पर आकाश गुप्ता और सुनील अग्रवाल दोनों हंसने लगे.

बातचीत और पीनेपिलाने का दौर शुरू हुआ. इसी बीच अपने उग्र स्वभाव के मुताबिक सुनील अग्रवाल ने आकाश की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘यार, ये सब तो ठीक है मगर तू यह बता… सौरभ को मकान कब दे रहा है, 6 महीने हो गए.’’

यह सुन कर आकाश गुप्ता मुसकराते हुए बोला, ‘‘यार, तुम मौजमजा करने आए हो. मजे करो. कोरोना पर बात करो. ये मकान कहां जाएगा.’’

इस पर सौरभ बोला, ‘‘बात बिलकुल ठीक है. आज कोरोना की वजह से हुए लौकडाउन को 17वां दिन है. त्राहित्राहि मची है.’’

सौरभ की बात पर सुनील गंभीर हो गया और चुपचाप शराब का गिलास हाथों में उठा लिया. आकाश ने अपने एक साथी सिद्धार्थ यादव को भी बुला रखा था जो उन की सेवा में तैनात था, साथ ही हमप्याला भी बना हुआ था.

हंसतेमुसकराते तीनों शराब पी रहे थे. तभी एकाएक सुनील अग्रवाल ने कहा, ‘‘यार, तूने यह आदमी कहां से ढूंढ निकाला, पहले तो तेरे यहां कभी नहीं देखा.’’

कुछ सकुचाते हुए आकाश गुप्ता ने कहा,

‘‘हां, नयानया रखा है  तुम्हारी सेवाटहल के लिए.’’

‘‘इसे कहीं देखा है…’’ सुनील ने शराब का घूंट गले से नीचे उतारते हुए कहा

‘‘हां देखा होगा. मैं यहीं का हूं भैया, पास में ही मेरा घर है.’’

‘‘नाम  क्या  है  तेरा?’’

‘‘सिद्धार्थ… सिद्धार्थ यादव.’’

‘‘हूं, तू जेल गया था न, कब छूटा?’’ सुनील ने उस पर तीखी नजर डालते हुए कहा

‘‘मैं…अभी एक महीना हुआ है.’’ सिद्धार्थ ने हकलाते हुए दोनों की ओर देख कर कहा.

‘‘अरे, तुम भी यार… सिद्धार्थ बहुत काम का लड़का है. अब सुधर गया है.’’ कहते हुए आकाश गुप्ता ने दोनों के खाली गिलास फिर से भर दिए. दोनों पीते रहे. जब नशा तारी हुआ तो अचानक आकाश गुप्ता जेब से पिस्तौल निकालते हुए बोला, ‘‘आज तुम दोनों खल्लास, मेरा… मेरा मकान चाहिए. ब्याज  पर ब्याज …ब्याज पर ब्याज… आज तुम दोनों को मार कर यहीं दफन कर दूंगा.’

आकाश का रौद्र रूप देख सौरभ और सुनील दोनों के होश उड़ गए. वे कुछ कहते समझते, इस से पहले ही आकाश ने गोली चला दी जो सीधे सुनील अग्रवाल के सिर में लगी. वह चीखता हुआ वहीं ढेर हो गया.

सुनील को गोली लगते देख सौरभ कांप  उठा और वहां से भागने लगा. यह देख पास खड़े सिद्धार्थ यादव ने गुप्ती निकाली और सौरभ अग्रवाल के पेट में घुसेड़ दी. उस के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह वहीं गिर गया. आकाश ने उस पर भी एक गोली दाग दी. सुनील और सौरभ फर्श पर गिर कर थोड़ी देर तड़पते रहे और फिर मौत के आगोश में चले गए.

आकाश ॒गुप्ता ने पिस्तौल जेब में रख ली. फिर उस ने सिद्धार्थ के साथ मिल कर सौरभ और सुनील की लाशों को घर में पहले से ही खोद कर रखे गए गड्ढे में डाल कर ऊपर से मिट्टी डाल दी. इस से पहले सिद्धार्थ यादव ने सौरभ और सुनील की जेब से पर्स, हाथ से अंगूठी, चेन, इनोवा गाड़ी की चाबी अपने कब्जे में ले ली थी.

आकाश के निर्देशानुसार वह घर से निकला और इनोवा को चला कर आकाशवाणी मार्ग पर पहुंचा. उस ने इनोवा वहीं खड़ी कर उस में पर्स, मोबाइल रख दिया. लेकिन वह यह नहीं देख सका कि उस का चेहरा कैमरे की जद में आ गया है.

10 अप्रैल, 2020 शुक्रवार को देर रात तक जब सौरभ अग्रवाल और सुनील अग्रवाल घर नहीं पहुंचे तो घर वालों को चिंता हुई. देश के साथसाथ अंबिकापुर में भी लौकडाउन का असर था. सड़कें सूनी थीं. सौरभ के भाई सुमित अग्रवाल ने सौरभ व सुनील के कुछ मित्रों को उन के मोबाइल पर काल कर के दोनों के बारे में पूछताछ की, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. दोनों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ थे. इस से घर वाले चिंतातुर थे.

अगले दिन सुबह सुमित अग्रवाल ने सौरभ के पिता बलराज अग्रवाल से आकाश गुप्ता का मोबाइल नंबर ले कर उसे काल की और सौरभ व सुनील के बारे में पूछा. आकाश गुप्ता ने इस बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है?’’

यह बताने पर कि सौरभ व सुनील भैया दोनों रात भर घर नहीं आए तो आकाश ने नाटकीयता पूर्वक कहा, ‘‘अरे, यह तो चिंता की बात है… रुको, मैं पता लगाता हूं.’’

सभी को यह जानकारी थी कि आकाश गुप्ता से सौरभ के घनिष्ठ संबंध थे. ऐसे में आकाश ने उस के परिजनों का विश्वास जीतने का प्रयास किया. थोड़ी देर बाद वह स्वयं सौरभ अग्रवाल के घर आ पहुंचा और बातचीत में शामिल हो गया.

जब सुबह भी सौरभ व सुनील का पता नहीं चल पाया तो तय हुआ कि इस बात की जानकारी पुलिस को दे दी जाए. सुनील और सौरभ के भाई सुमित थाने पहुंचे. उन्हें कोतवाल विलियम टोप्पो से मिल कर उन्हें पूरी बात बता दी.

कोतवाल टोप्पो ने पूछा, ‘‘पहले कभी ऐसा हुआ था?’’

‘‘नहीं…सर, ऐसा कभी नहीं हुआ, दोनों रात 11 बजे तक घर आ जाया करते थे. दोनों के मोबाइल भी औफ हैं. हम ने सारे परिचितों से भी पूछताछ कर ली है.’’ सुमित अग्रवाल यह सब बताते हुए रुआंसा हो गया.

‘‘देखो, चिंता मत करो, तुम्हारी तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर हम खोजबीन शुरू करते हैं.’’ कोतवाल  विलियम टोप्पो ने आश्वासन दिया.

कोतवाल दोनों के घर पहुंचे और जरूरी बातें पूछने के बाद उच्चाधिकारियों एसपी आशुतोष सिंह, एडीशनल एसपी ओम चंदेल और एसपी (सिटी) एस.एस. पैकरा को इस घटना की जानकारी दे दी. मामला अंबिकापुर के धनाढ्य परिवार से जुड़ा था.

सौरभ और सुनील के गायब होने की खबर बहुत तेजी से फैली. पुलिस पर सम्मानित लोगों का प्रेशर बढ़ने लगा. दोपहर होते होते एसपी आशुतोष सिंह और सभी अधिकारी व डीएसपी फोरैंसिक टीम के साथ सौरभ अग्रवाल व सुनील के घर पहुंच गए. इस के साथ ही जांच तेजी से शुरू हो गई.

इसी बीच खबर मिली कि सौरभ व सुनील जिस इनोवा कार में घर से निकले थे, वह अंबिकापुर के आकाशवाणी चौक के पास खड़ी है.

यह सूचना मिलते ही कोतवाल विलियम टोप्पो आकाशवाणी चौक पहुंचे और गाड़ी की सूक्ष्मता से जांच की. गाड़ी में सुनील और सौरभ के पर्स व मोबाइल मिल गए. इस से मामला और भी संदिग्ध हो गया.

पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों की जांच की तो एक शख्स गाड़ी पार्क करते और उस में से निकलते दिखाई दे गया. पुलिस ने तफ्तीश की तो पता चला वह शातिर अपराधी  सिद्धार्थ यादव उर्फ श्रवण है, जो फरवरी 2020 में ही एक अपराध में जेल से बाहर आया है. पुलिस ने उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी.

पहले तो सिद्धार्थ एकदम भोला बन कर कहने लगा, ‘‘मैं तो घर पर था, कहीं गया ही नहीं.’’

मगर जब उसे सीसीटीवी में कैद उस की फुटेज दिखाई गई तो उस का चेहरा स्याह पड़ गया. उस के कसबल ढीले पड़ गए. आखिर उस ने पुलिस को चौंकाने वाली बात बताई. उस ने कहा कि सौरभ व सुनील अग्रवाल की गोली मार कर हत्या कर दी गई है.

सिद्धार्थ यादव के बयान के आधार पर पुलिस ने आकाश गुप्ता के यहां दबिश दी. वह शराब में डूबा घर पर बैठा था. पुलिस ने उसे गिरफ्त मे ले कर पूछताछ शुरू की. साथ ही सिद्धार्थ यादव की निशानदेही पर आकाश गुप्ता के घर में खोदे गए गड्ढे से सौरभ व सुनील की लाशें भी बरामद कर ली.

हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल भी जब्त कर ली गई. तब तक यह खबर अंबिकापुर के कोनेकोने तक पहुंच गई थी. लौकडाउन के बावजूद आकाश गुप्ता के घर के बाहर लोगों का हुजूम जुट गया.

पुलिस हिरासत में आ कर आकाश गुप्ता का नशा हिरन हो गया था. थरथर कांपते हुए उस ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और पुलिस को सब कुछ बता दिया. आकाश के पिता काशी प्रसाद गुप्ता कभी शहर के बहुत बड़े आसामी थे, पांच बहनों में अकेले भाई आकाश को पिता की अर्जित धनसंपत्ति शौक में उड़ाने  के अलावा कोई काम नहीं था.

धीरेधीरे वह करोड़ों की जमीनजायदाद बेचता रहा. उस ने अपना पुश्तैनी मकान भी सौरभ को 2 करोड़ 30 लाख रुपए में बेच दिया था. वह उस से रुपए भी ले चुका था, लेकिन उस की नीयत खराब हो गई थी.

वह चाहता था किसी तरह मकान उस के कब्जे में रह जाए. दूसरी तरफ 2016 में आकाश गुप्ता ने सौरभ के पिता बलराज अग्रवाल से 20  लाख रुपए का कर्ज  लिया था और इन 4 वर्षों में 50 लाख रुपए अदा करने के बावजूद उस से ब्याज के 50 लाख रुपए मांगे जा रहे थे.

परेशान आकाश गुप्ता ने सिद्धार्थ को विश्वास में लिया. उसे सिद्धार्थ की आपराधिक पृष्ठभूमि पता थी. आकाश ने धीरेधीरे सिद्धार्थ से घनिष्ठ संबंध बनाए और उसे बताया कि वह किस तरह करोड़पति से बरबादी की ओर जा रहा है.

इस पर सिद्धार्थ यादव ने आकाश गुप्ता के साथ हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘ऐसा है तो क्यों ना सौरभ को रास्ते से हटा दिया जाए. आकाश को सिद्धार्थ की कही बात जम गई. दोनों ने साथ मिल कर पहले सौरभ के अपहरण की योजना बनाई. लेकिन उस में बड़े पेंच देख कर तय किया कि हत्या ज्यादा आसान है. दोनों ने इसी योजना पर काम किया.

सौरभ की हत्या की योजना बनने लगी तो सिद्धार्थ ने आकाश को पास के उपनगर  गंगापुर के रमेश अग्रवाल से मिलवाया. रमेश ने बरगीडीह निवासी शिव पटेल से 90 हजार रुपए में एक पिस्तौल व गोलियां दिला दीं.

हत्या की योजना बना कर पहले ही यह तय कर लिया गया था कि सौरभ व सुनील को मार कर उन की लाशें घर में ही दफन कर दी जाएंगी. सिद्धार्थ और आकाश ने 4 अप्रैल से धीरेधीरे गड्ढा खोदने का काम शुरू कर दिया था.

आकाश गुप्ता ने सिद्धार्थ को मोटी रकम देने का लालच दे कर अपने साथ मिला लिया. सिद्धार्थ भी आकाश गुप्ता की रईसी से प्रभावित था और धारणा बना चुका था कि इस काम में उस की मदद कर के उस का जिंदगी भर का राजदार बन जाएगा और आगे की जिंदगी मौजमजे से गुजारेगा.

11 अप्रैल 2020 की देर शाम तक आकाश गुप्ता और सिद्धार्थ को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने सौरभ अग्रवाल, सुनील अग्रवाल की हत्या के आरोप में आकाश और सिद्धार्थ के विरुद्ध भारतीय दंड विधान की धारा 302, 201, 120बी 34,25, 27 आर्म्स एक्ट  के तहत मामला दर्ज कर के आरोपियों को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें अंबिकापुर कारागार भेज दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, अगस्त 2020

ये भी पढ़े  : हर्ष नहीं था हर्षिता के ससुराल में
ये भी पढ़े  : अंधविश्वास की पराकाष्ठा 

सोने की तस्करी: स्वप्न सुंदरी ने दूतावास को बनाया मोहरा

इसी साल जुलाई के पहले सप्ताह की बात है. केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एयर कार्गो से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के

वाणिज्य दूतावास के नाम से कुछ बैगों में राजनयिक सामान आया था. यूएई का वाणिज्य दूतावास तिरुवनंतपुरम शहर के मनाक में स्थित है. सामान क्या शौचालयों में उपयोग होने वाले उपकरण थे, जो खाड़ी देश से आई फ्लाइट से आए थे.

विमान से आए बैग उतार कर कार्गो यार्ड में रख दिए गए. इन बैगों को लेने के लिए 2 दिनों तक कोई भी संबंधित व्यक्ति हवाई अड्डे नहीं पहुंचा, तो कस्टम अधिकारियों ने भारतीय विदेश मंत्रालय से इजाजत ले कर 5 जुलाई को बैगों की जांच की.

जांच के दौरान एक बैग में छिपा कर रखा गया 30 किलो से ज्यादा सोना मिला. सोने को इस तरह पिघला कर रखा गया था कि वह शौचालय के सामानों में पूरी तरह फिट हो जाए.

भारतीय बाजार में इस सोने की कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई. यूएई के वाणिज्य दूतावास ने बैग में मिला सोना अपना होने से इनकार कर दिया. इस पर सोने को सीज कर सीमा शुल्क विभाग ने मामले की जांच शुरू की.

प्रारंभिक जांच में अधिकारियों को यह मामला सोने की तस्करी से जुड़ा होने का संदेह हुआ. अधिकारियों को शक हुआ कि इस संदिग्ध मामले में राजनयिक को मिलने वाली छूट का दुरुपयोग किया गया है.

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा सम्मेलन में लिए गए फैसलों के तहत भारत सरकार की ओर से दूसरे देशों के राजनयिकों को कई तरह की छूट दी गई थीं. इस में उन की और उन के सामान की जांच पड़ताल की छूट भी शामिल है.

जांच शुरू करने के दूसरे दिन 6 जुलाई को कस्टम अधिकारियों ने संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के एक पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. से पूछताछ की. पूछताछ के बाद अधिकारियों को रहस्य की परतों में उलझा और दूसरे देशों से जुड़ा यह मामला काफी बड़ा होने का अंदाजा हो गया. इस मामले में एक महिला अधिकारी पर भी शक जताया गया.

सीमा शुल्क अधिकारियों ने दूतावास के पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. को गिरफ्तार कर शक के दायरे में आई महिला अधिकारी की तलाश शुरू कर दी.

कस्टम अधिकारियों की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि सरित पी.आर. ने पहले भी ऐसी कई खेप हासिल की थी. इस मामले में केरल सरकार की एक महिला अधिकारी स्वप्ना सुरेश भी शामिल थी.

सोने की तस्करी का यह मामला केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की जानकारी तक भी पहुंच गया. मुख्यमंत्री को अपने स्तर पर पता चला कि इस मामले में संदेह के दायरे में आई महिला अधिकारी स्वप्ना के संबंध राज्य के कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से हैं. मुख्यमंत्री खुद भी उस महिला से परिचित थे. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बात से इनकार किया कि सीएम उस महिला को जानते थे.

विपक्ष ने उठाई आवाज

इस बीच, यह मामला राजनीतिक स्तर पर उछल गया. विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस ने प्रदर्शन करते हुए केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार को घेरने की कोशिश शुरू कर दी. केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने 7 जुलाई को प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री कार्यालय में सोना तसकरी गिरोह के कथित प्रभाव की सीबीआई से जांच कराने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि एक महिला इस रैकेट की कथित सरगना है. यह महिला केरल सरकार के आईटी विभाग के तहत केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में आपरेशंस मैनेजर के तौर पर 6 जुलाई, 2020 तक कार्यरत थी. संदेह है कि इस तसकरी की मास्टरमाइंड वही है.

इस महिला के केरल के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. यह महिला कई बार मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण आयोजनों में भी नजर आई थी.

महिला का नाम स्वप्ना सुरेश है. सोना तसकरी रैकेट में स्वप्ना सुरेश का नाम आने पर केरल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री कार्यालय और आईटी सचिव ने स्वप्ना सुरेश का नाम हटाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाया.

शीर्ष स्तर पर संपर्कों के लिए जानी जाने वाली स्वप्ना सुरेश को आईटी सचिव एम. शिवशंकर संरक्षण दे रहे हैं. वे स्वप्ना के आवास पर अक्सर आतेजाते हैं. सुरेंद्रन ने स्वप्ना की नियुक्ति की सीबीआई से जांच कराने की भी मांग की.

राजनीतिक स्तर पर इस मामले के तूल पकड़ने पर केरल सरकार ने 7 जुलाई को सूचना प्रौद्योगिकी सचिव एम. शिवशंकर को मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटा दिया. पद से हटाए जाने के बाद शिवशंकर एक साल की छुट्टी पर चले गए. दूसरी ओर, सरकार ने स्वप्ना सुरेश को केरल स्टेट आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर से बर्खास्त कर दिया. मुख्यमंत्री कार्यालय ने स्वप्ना से किसी तरह के संबंध होने से इनकार किया.

8 जुलाई को केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने केरल सरकार की ओर से आयोजित स्पेस कौंक्लेव-2020 में पूरा ब्यौरा मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि इस कौंक्लेव का प्रबंधन स्वप्ना सुरेश ही संभाल रही थी.

स्वप्ना ने ही राज्य सरकार की ओर से गणमान्य लोगों को आमंत्रण पत्र भेजे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि इसरो से संबंधित एक संस्था में कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में स्वप्ना की नियुक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती है.

सोना तस्करी का यह मामला देशभर में चर्चित हो जाने और इस घटना का राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ने की संभावना को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 जुलाई को इस की जांच एनआईए को सौंप दी. वहीं, भूमिगत हुई स्वप्ना सुरेश ने इस मामले में पहली बार औडियो संदेश जारी कर चुप्पी तोड़ी.

उस ने कहा कि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. मैं ने यूएई के राजनयिक राशिद खमीस के निर्देशों के अनुसार काम किया है. कार्गो परिसर में सामान को जब क्लियर नहीं किया गया, तो राशिद ने मुझे सीमा शुल्क अधिकारियों से संपर्क करने को कहा था. तब तक मुझे पता नहीं था कि यह खेप कहां से आई थी और इस में क्या था? सोना जब्त किए जाने का पता लगने पर राशिद के कहने पर वे बैग वापस भेजने की कोशिश भी की गई थी.

दूसरी ओर, गिरफ्तारी की आशंका से स्वप्ना सुरेश ने 9 जुलाई को केरल हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की. अगले दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने यह याचिका 14 जुलाई तक के लिए टाल दी. एनआईए ने 10 जुलाई को सोने की तस्करी के मामले को आतंकवाद से जोड़ते हुए 4 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत सरित पीआर, स्वप्ना सुरेश, संदीप नैयर के अलावा एर्नाकुलम के फैसल फरीद को आरोपी बनाया गया.

इस के दूसरे ही दिन 11 जुलाई को एनआईए ने स्वप्ना सुरेश को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा संदीप नैयर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों को अगले दिन 12 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

विशेष अदालत ने एनआईए की अर्जी पर दोनों आरोपियों को 13 जुलाई को 8 दिन के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी की हिरासत में दे दिया. कहानी में आगे बढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि सोना तसकरी के मामले में केरल में सियासी भूचाल लाने वाली हाई प्रोफाइल महिला स्वप्ना सुरेश है कौन?

बहुत ऊंचे तक थी स्वप्ना सुरेश की पहुंच

केरल के राजनीतिक गलियारों और ब्यूरोक्रेट्स के बीच अपना प्रभाव रखने वाली स्वप्ना सुरेश का जन्म यूएई के अबूधाबी में हुआ था. अबूधाबी में ही उस ने पढ़ाई की. इस के बाद उसे एयरपोर्ट पर नौकरी मिल गई. स्वप्ना ने शादी भी की, लेकिन जल्दी ही तलाक हो गया था.

इस के बाद वह बेटी के साथ रहने के लिए केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई. भारत आने के बाद स्वप्ना सुरेश ने तिरुवनंतपुरम में 2011 से 2 साल तक एक ट्रेवल एजेंसी में काम किया.

वर्ष 2013 में उसे एयर इंडिया में एसएटीएस में एचआर मैनेजर पद पर नौकरी मिल गई. यह एयर इंडिया और सिंगापुर एयरपोर्ट टर्मिनल सर्विसेज का संयुक्त उद्यम है. साल 2016 में जब केरल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जालसाजी के एक मामले में उस की जांच शुरू की, तो वह अबूधाबी चली गई.

फर्राटेदार अंग्रेजी और अरबी भाषा बोलने वाली स्वप्ना सुरेश ने अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में नौकरी हासिल कर ली. पिछले साल यानी 2019 में उस ने यह नौकरी छोड़ दी.

कहा यह भी जाता है कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. बताया जाता है कि एयर इंडिया एसएटीएस और अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में काम करते हुए स्वप्ना सुरेश हवाई अड्डों और सीमा शुल्क विभाग के कई अधिकारियों के संपर्क में आ गई थी. उसे राजनयिक खेपों की आपूर्ति और हैंडलिंग के सारे तौरतरीके पता चल गए थे.

यूएई के महावाणिज्य दूतावास में की गई नौकरी स्वप्ना सुरेश को जिंदगी के एक नए मोड़ पर ले गई. वहां उस ने बड़ेबड़े लोगों से अपनी जानपहचान बना ली थी. इस दौरान उस के यूएई से केरल आने वाले कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी किया. अबूधाबी में नौकरी से हटने के बाद वह अपने संपर्कों की गठरी बांध कर वापस केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई.

यूएई के अपने संपर्कों के बल पर इस बार वह तिरुवनंतपुरम में हाई प्रोफाइल तरीके से सामने आई. उस ने राजनीतिज्ञों और ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे संबंध बना लिए. केरल के मुख्यमंत्री के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर से उस के गहरे ताल्लुकात बन गए.

कहा जाता है कि शिवशंकर उस के घर भी आतेजाते थे. आरोप यह भी है कि शिवशंकर की सिफारिश पर ही स्वप्ना को केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में अनुबंध पर आपरेशंस मैनेजर की नौकरी मिली थी. स्वप्ना सुरेश केरल के बड़े होटलों में होने वाली पार्टियों में अकसर शामिल होती थी. अरबी समेत कई भाषाएं जानने वाली स्वप्ना केरल आने वाले अरब नेताओं की अगुवाई करने वाली टीम में शामिल रहती थी.

सोने की तस्करी का मामला सामने आने के बाद ऐसे कई वीडियो और फोटो वायरल हुए, जिन में स्वप्ना सुरेश केरल के मुख्यमंत्री, अरब नेताओं और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर के साथ दिखाई दी.

एनआईए की हिरासत में भेजे जाने के बाद स्वप्ना सुरेश के बुरे दिन शुरू हो गए. 13 जुलाई को उस के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मामले में स्वप्ना के साथ 2 कंपनियों प्राइम वाटर हाउस कूपर्स और विजन टेक्नोलोजी को भी आरोपी बनाया गया. आरोप है कि स्वप्ना ने केरल के आईटी विभाग में नौकरी हासिल करने के लिए फर्जी अकादमिक डिग्री का इस्तेमाल किया था.

स्वप्ना के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच करने की जिम्मेदारी कंसल्टिंग एजेंसी प्राइस वाटर हाउस कूपर्स और विजन टैक्नोलोजी पर थी. केरल के आईटी विभाग के अधीन केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की शिकायत पर दर्ज इस मामले में स्वप्ना पर आरोप है कि उस ने महाराष्ट्र के डा. बाबा साहेब आंबेडकर विश्वविद्यालय की बीकौम की फर्जी डिगरी से नौकरी हासिल की थी.

मुख्यमंत्री के सचिव शिवशंकर की करीबी थी स्वप्ना

14 जुलाई को यह बात काल डिटेल्स से सामने आई कि केरल के मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटाए गए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर ने स्वप्ना सुरेश सहित सोने की तसकरी के 2 आरोपियों से फोन पर बातचीत की थी. उसी दिन कस्टम अधिकारियों की एक टीम ने आईएएस अधिकारी शिवशंकर के घर जा कर उन्हें नोटिस दिया और उन से पूछताछ की.

बाद में शिवशंकर उसी दिन शाम को तिरुवनंतपुरम में सीमा शुल्क विभाग के कार्यालय पहुंचे, अधिकारियों ने उन से शाम से रात 2 बजे तक 9 घंटे पूछताछ की.

कोच्चि से कस्टम कमिश्नर और अन्य अधिकारियों ने भी वीडियो कौंफ्रेंस के जरीए शिवशंकर से पूछताछ की. रात 2 बजे पूछताछ पूरी होने के बाद कस्टम अधिकारियों ने उन्हें घर ले जा कर छोड़ दिया. पूछताछ में शिवशंकर ने स्वीकार किया कि स्वप्ना सुरेश ने उन के पास काम किया था, और सरित पीआर उन का दोस्त है.

कस्टम अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि आईएएस अधिकारी ने अपने पद का दुरुपयोग कर सोना तस्करी के आरोपियों स्वप्ना सुरेश, संदीप नायर और सरित पीआर को किसी तरह की मदद तो नहीं पहुंचाई थी.

इस बीच, कस्टम अधिकारियों ने एक होटल के एक और 2 जुलाई के सीसीटीवी फुटेज हासिल किए, जहां आईएएस अधिकारी शिवशंकर और आरोपी ठहरे थे. कहा जाता है कि शिवशंकर के एक कर्मचारी ने इस होटल में कमरा बुक कराया था.

शिवशंकर पर गंभीर आरोप लगने पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर केरल के मुख्य सचिव डा. विश्वास मेहता के नेतृत्व में अधिकारियों के एक पैनल ने जांच शुरू कर दी. सोना तस्करों से कथित रूप से तार जुड़े होने की बातें सामने आने के बाद केरल सरकार ने 16 जुलाई को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर को निलंबित कर दिया.

इस मामले की जांच चल ही रही थी कि 17 जुलाई को यूएई वाणिज्य दूतावास से जुड़ा केरल पुलिस का एक जवान जयघोष अपने घर से करीब 150 मीटर दूर बेहोशी की हालत में पड़ा मिला.

पुलिस ने संदेह जताया कि उस ने कलाई काट कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. पुलिस ने उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया. जयघोष के परिजनों ने इस से एक दिन पहले ही उस के लापता होने की शिकायत थुंबा थाने में दर्ज कराई थी.

परिजनों ने कहा था कि अज्ञात लोगों की ओर से धमकी दिए जाने के कारण वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा था. इस से पहले जयघोष ने वट्टियोरकावु थाने में अपनी सर्विस पिस्तौल जमा करा दी थी. जयघोष के मोबाइल पर जुलाई के पहले हफ्ते में स्वप्ना सुरेश ने भी फोन किया था.

केरल सोना तस्करी मामले की जांच कर रही एनआईए ने 18 जुलाई को आरोपी फैजल फरीद के खिलाफ इंटरपोल से ब्लू कौर्नर नोटिस जारी करने का अनुरोध किया. इस से पहले कोच्चि की विशेष एनआईए अदालत ने फरीद के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था.

एनआईए ने विशेष अदालत को बताया था कि वे वारंट को इंटरपोल को सौंप देंगे, क्योंकि फरीद के दुबई में होने का संदेह है. एनआईए ने दावा किया कि फरीद ने ही संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास की फरजी मुहर और फरजी दस्तावेज बनाए थे.

एनआईए और कस्टम विभाग की प्रारंभिक जांच में जो तथ्य उभर कर सामने आए, उन के मुताबिक यूएई के वाणिज्य दूतावास के नाम पर सोने की तसकरी करीब एक साल से हो रही थी. इस तसकरी में एक पूरा गिरोह संलिप्त था.

स्वप्ना सुरेश इस गिरोह की मास्टर माइंड थी और गिरोह से दूतावास के कुछ मौजूदा और पूर्व कर्मचारी जुड़े हुए थे.

यह गिरोह डिप्लोमैटिक चैनल के जरीए पिछले एक साल में खाड़ी देशों से तस्करी का करीब 300 किलो सोना भारत ला चुका था. तस्करी के सोने की पहली खेप का कंसाइनमेंट डिप्लोमेटिक चैनल के जरीए पिछले साल जुलाई में तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर आया था.

इस साल जुलाई के पहले हफ्ते में पकड़े गए सोने सहित 13 खेप लाई गई थीं. सोने की तस्करी के मामले में नाम उछलने पर तिरुवनंतपुरम स्थित यूएई के वाणिज्य दूतावास में तैनात राजनयिक अताशे राशिद खमिस जुलाई के दूसरे हफ्ते में भारत छोड़ कर स्वदेश चले गए.

स्वप्ना सुरेश ने राशिद के इशारे पर ही काम करने की बात कही है. हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और कस्टम विभाग सोना तस्करी मामले की जांच कर रहे हैं. मामले में कुछ और प्रभावशाली लोगों की गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं.

लेकिन चिंता की बात यह है कि सोने की तस्करी में राजनयिक चैनल का दुरुपयोग किया जा रहा था. एक खास तथ्य यह भी है कि भारत में सोने की सब से ज्यादा तसकरी केरल में होती है.

हालांकि अब जयपुर का एयरपोर्ट भी सोने की तस्करी का एक नया माध्यम बन कर उभर रहा है. जयपुर में जुलाई के ही पहले हफ्ते में 2 फ्लाइटों से लाया गया 32 किलो सोना पकड़ा गया था. इस मामले में 14 यात्रियों को गिरफ्तार किया गया था.

सोने की तसकरी में केरल नंबर एक पर है. इस के अलावा मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु और चेन्नई एयरपोर्ट पर सोने की तसकरी के सब से ज्यादा मामले पकड़े जाते हैं.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, अगस्त 2020

ये भी पढ़े  : जानलेवा गेम ‘ब्लू व्हेल’
ये भी पढ़े  : बेसमेंट में छिपा राज

मंदिर में बाहुबल-भाग 4 : पाठक परिवार की दबंगई

इस घटना के बाद मुलायम सिंह नाराज हो गए, लेकिन दबंग नेता की छवि बना चुके कमलेश पाठक के आगे उन की नाराजगी ज्यादा दिन टिक न सकी. सन 2007 में नेताजी ने उन्हें पुन: टिकट दे दिया, लेकिन कमलेश दिबियापुर विधानसभा सीट से हार गए.

साल 2009 में कमलेश पाठक ने जेल में रहते सपा के टिकट पर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा पर हार गए. इस के बाद उन्होंने साल 2012 में सिकंदरा विधानसभा से चुनाव लड़ा, पर इस बार भी हार गए.

हारने के बावजूद वर्ष 2013 में कमलेश पाठक को राज्यमंत्री का दरजा दे कर उन्हें रेशम विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. इस के बाद 10 जून 2016 को समाजवादी पार्टी से उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना कर भेजा. वर्तमान में वह सपा से एमएलसी थे. सपा सरकार के रहते कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई से अवैध साम्राज्य कायम किया.

उन्होंने ग्राम समाज के तालाबों तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे किए. उन्होंने पक्का तालाब के पास नगरपालिका की जमीन पर कब्जा कर गेस्टहाउस बनवाया. साथ ही औरैया शहर में 2 आलीशान मकान बनवाए. अन्य जिलों व कस्बों में भी उन्होंने भूमि हथियाई. जिले का कोई अधिकारी उन के खिलाफ जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. कमलेश की राजनीतिक पहुंच से उन के भाई संतोष व रामू भी दबंग बन गए थे. दबंगई के बल पर संतोष पाठक ब्लौक प्रमुख का चुनाव भी जीत चुका था. दोनों भाइयों का भी क्षेत्र में खूब दबदबा था. सभी के पास लाइसैंसी हथियार थे.

कमलेश पाठक की दबंगई का फायदा उन के भाई ही नहीं बल्कि शुभम, कुलदीप तथा विकल्प अवस्थी जैसे रिश्तेदार भी उठा रहे थे. ये लोग कमलेश का भय दिखा कर शराब के ठेके, सड़क निर्माण के ठेके तथा तालाबों आदि के ठेके हासिल करते और खूब पैसा कमाते. ये लोग कदम दर कदम कमलेश का साथ देते थे और उन के कहने पर कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे. कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई के चलते धार्मिक स्थलों को ही नहीं छोड़ा और उन पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया. औरैया शहर के नारायणपुर मोहल्ले में स्थित प्राचीन पंचमुखी हनुमान मंदिर पर भी कमलेश पाठक ने अपना कब्जा जमा लिया था. साथ ही वहां अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप पाठक को पुजारी नियुक्त कर दिया था. कमलेश की नजर इस मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती भूमि पर थी.

इसी नारायणपुरवा मोहल्ले में पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास शिवकुमार उर्फ मुनुवां चौबे का मकान था. इस मकान में वह परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे संजय, मंजुल और 3 बेटियां रश्मि, रुचि तथा रागिनी थीं. तीनों बेटियों तथा संजय की शादी हो चुकी थी.

मुनुवां चौबे मोहल्ले के सम्मानित व्यक्ति थे. धर्मकर्म में भी उन की रुचि थी. वह हर रोज पंचमुखी हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते थे. पुजारी वीरेंद्र स्वरूप से उन की खूब पटती थी. पुजारी मंदिर बंद कर चाबी उन्हीं को सौंप देता था.

मुनुवां चौबे का छोटा बेटा मंजुल पढ़ाई के साथसाथ राजनीति में भी रुचि रखता था. उन दिनों कमलेश पाठक का राजनीति में दबदबा था. मंजुल ने कमलेश पाठक का दामन थामा और राजनीति का ककहरा पढ़ना शुरू किया. वह समाजवादी पार्टी के हर कार्यक्रम में जाने लगा और कई कद्दावर नेताओं से संपर्क बना लिए. कमलेश पाठक का भी वह चहेता बन गया.

मंजुल औरैया के तिलक महाविद्यालय का छात्र था. वर्ष 2003 में उस ने कमलेश पाठक की मदद से छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस के बाद मंजुल ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी. उस ने अपने दर्जनों समर्थक बना लिए. अब उस की भी गिनती दबंगों में होने लगी. इसी महाविद्यालय से उस ने एलएलबी की डिग्री हासिल की और औरैया में ही वकालत करने लगा.

मंजुल के घर के पास ही उस के चाचा अरविंद चौबे रहते थे. उन के बेटे का नाम आशीष तथा बेटी का नाम सुधा था. मंजुल की अपने चचेरे भाईबहन से खूब पटती थी. सुधा पढ़ीलिखी व शिक्षिका थी. पर उसे देश प्रदेश की राजनीति में भी दिलचस्पी थी.

मंजुल की ताकत बढ़ी तो कमलेश पाठक से दूरियां भी बढ़ने लगीं. ये दूरियां तब और बढ़ गईं, जब मंजुल को अपने पिता से पता चला कि कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती भूमि पर कब्जा करना चाहता है. चूंकि मंदिर मंजुल के घर के पास और उस के मोहल्ले में था, इसलिए मंजुल व उस का परिवार चाहता कि मंदिर किसी बाहरी व्यक्ति के कब्जे में न रहे. वह स्वयं मंदिर पर आधिपत्य जमाने की सोचने लगा. पर दबंग कमलेश के रहते, यह आसान न था.

16 मार्च, 2020 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त कमलेश पाठक, रामू पाठक, संतोष पाठक, अवनीश प्रताप, लवकुश उर्फ छोटू तथा राजेश शुक्ला को औरैया कोर्ट में सीजेएम अर्चना तिवारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें इटावा जेल भेज दिया गया.

दूसरे रोज बाहुबली कमलेश पाठक को आगरा सेंट्रल जेल भेजा गया. रामू पाठक को उरई तथा संतोष पाठक को फिरोजाबाद जेल भेजा गया. लवकुश, अवनीश प्रताप तथा राजेश शुक्ला को इटावा जेल में ही रखा गया. 18 मार्च को पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा शुभम को भी गिरफ्तार कर लिया. उन्हें औरैया कोर्ट में अर्चना तिवारी की अदालत मे पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मंदिर में बाहुबल-भाग 3 : पाठक परिवार की दबंगई

गठित पुलिस टीमों ने आधी रात को भड़ारीपुर गांव, बनारसीदास मोहल्ला तथा विधिचंद्र मोहल्ला में छापा मारा और 6 नामजद अभियुक्तों को मय असलहों के धर दबोचा.

सभी को औरैया कोतवाली लाया गया. पकड़े गए हत्यारोपियों में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष, रामू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू तथा कथावाचक राजेश शुक्ला थे. 3 हत्यारोपी शुभम अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा कुलदीप अवस्थी विधिचंद्र मोहल्ले में रहते थे. वे अपनेअपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस के हाथ नहीं आए.

पुलिस ने पकड़े गए अभियुक्तों के पास से एक लाइसेंसी रिवौल्वर, 13 कारतूस, 4 तमंचे 315 बोर व 8 कारतूस, सेमी राइफल व 23 कारतूस, गनर अवनीश प्रताप सिंह की सरकारी कार्बाइन व उस के कारतूस बरामद किए.

16 मार्च की सुबह मंजुल चौबे व सुधा चौबे का शव पोस्टमार्टम के बाद भारी पुलिस सुरक्षा के बीच उन के नारायणपुर स्थित घर लाया गया. शव पहुंचते ही दोनों घरों में कोहराम मच गया. पति का शव देख कर आरती दहाड़ें मार कर रो पड़ी. आरती की शादी को अभी 2 साल भी नहीं हुए थे कि उस का सुहाग उजड़ गया था. उस की गोद में 3 माह की बच्ची थी. मंजुल चौबे की बहनें रश्मि, रागिनी व रुचि भी शव के पास बिलख रही थीं.

सुबह 10 बजे मंजुल व सुधा की शवयात्रा कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हुई. सुरक्षा की जिम्मेदारी सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव को सौंपी गई थी. अंतिम यात्रा में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था, जिसे संभालना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था. कुछ देर बाद शवयात्रा यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पहुंची, वहीं पर दोनों का अंतिम संस्कार हुआ.

एसपी सुनीति ने गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ की. इस पूछताछ के आधार पर इस खूनी संघर्ष की जो कहानी प्रकाश में आई, उस का विवरण कुछ इस प्रकार है—

गांव भड़ारीपुर औरैया जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र में आता है. ब्राह्मण बहुल इस गांव में राम अवतार पाठक अपने परिवार के साथ रहते थे. सालों पहले भड़ारीपुर इटावा जिले का गांव था. जब विधूना तथा औरैया तहसील को जोड़ कर औरैया को नया जिला बनाया गया, तब से यह भड़ारीपुर गांव औरैया जिले में आ गया.

राम अवतार पाठक इसी गांव के संपन्न किसान थे. उन के 3 बेटे रामू, संतोष व कमलेश पाठक थे. चूंकि वह स्वयं पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को भी पढ़ायालिखाया. तीनों भाइयों में कमलेश ज्यादा ही प्रखर था. उस की भाषा शैली भी अच्छी थी, जिस से लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. कमलेश पाठक पढ़ेलिखे योग्य व्यक्ति जरूर थे, लेकिन वह जिद्दी स्वभाव के थे. अपने मन में जो निश्चय कर लेते, उसे पूरा कर के ही मानते थे. यही कारण था कि 20 वर्ष की कम आयु में ही औरैया कोतवाली में उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो गया था.

कुछ साल बाद कमलेश और उन के भाई संतोष और रामू की दबंगई का डंका बजने लगा. लोग उन से भय खाने लगे. अपनी फरियाद ले कर भी लोग उन के पास आने लगे थे. जो काम पुलिस डंडे के बल पर न करवा पाती, वह काम कमलेश का नाम सुनते ही हो जाता.

जब तक कमलेश गांव में रहे, तब तक गांव में उन की चलती रही. गांव छोड़ कर औरैया में रहने लगे तो यहां भी अपना साम्राज्य कायम करने में जुट गए. उन दिनों औरैया में स्वामीचरण की तूती बोलती थी. वह हिस्ट्रीशीटर था.

गांव से आए युवा कमलेश ने एक रोज शहर के प्रमुख चौराहे सुभाष चौक पर हिस्ट्रीशीटर स्वामीचरण को घेर लिया और भरे बाजार में उसे गिरागिरा कर मारा.

इस घटना के बाद कमलेश की औरैया में भी धाक जम गई. अब तक वह स्थायी रूप से औरैया में बस गए थे. बनारसीदास मोहल्ले में उन्होंने अपना निजी मकान बनवा लिया.

दबंग व्यक्ति पर हर राजनीतिक पार्टी डोरे डालती है. यही कमलेश के साथ भी हुआ. बसपा, सपा जैसी पार्टियां उन पर डोरे डालने लगीं. कमलेश को पहले से ही राजनीति में रुचि थी, सो वह पार्टियों के प्रमुख नेताओं से मिलने लगे और उन के कार्यक्रमों में शिरकत भी करने लगे. वैसे उन्हें सिर्फ एक ही नेता ज्यादा प्रिय थे सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव.

सन 1985 के विधानसभा चुनाव में कमलेश पाठक को औरैया सदर से लोकदल से टिकट मिला.

इस चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की और 28 वर्ष की उम्र में विधायक बन गए. लेकिन विधायक रहते सन 1989 में उन्होंने लोकदल के विधायकों को तोड़ कर मुलायम सिंह की सरकार बनवा दी.

इस के बाद से वह मुलायम सिंह के अति करीबी बन गए. लोग उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहने लगे थे. वर्ष 1990 में सपा ने उन्हें एमएलसी बनाया और 1991 में कमलेश दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बने.

सन 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने कमलेश पाठक को कानपुर देहात की डेरापुर सीट से मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन के सामने थे भाजपा से भोले सिंह. यह चुनाव बेहद संघर्षपूर्ण रहा.

दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में जम कर गोलियां चलीं. इस के बाद ब्राह्मणों ने एक मत से कमलेश पाठक को जीत दिलाई. तब से उन्हें ब्राह्मणों का कद्दावर नेता माना जाने लगा.

चुनाव के बाद मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह ने औरैया को जिला बनाने के नियम को रद्द कर दिया. इस पर कमलेश ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. उन्होंने जिला बचाओ आंदोलन छेड़ कर जगहजगह धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह औरैया में सभा करने आए तो उन्होंने गोलियां बरसा कर उन के हैलीकाप्टर को सभास्थल पर नहीं उतरने दिया. एक घंटा हेलीकाप्टर हवा में उड़ता रहा, तब कहीं जा कर मानमनौव्वल के बाद उतर सका.

बुझ गई रोशनी : वहम बना अपराध

‘‘शिवम, तुम को केवल गलतफहमी है, मेरा तुम्हारे अलावा किसी से कोई संबंध नहीं है. जब एक बार हमारी शादी तय हो गई तो ऐसे कैसे छोड़ सकते हो? इस से मेरी बदनामी होगी.’’ 19 साल की रोशनी ने अपने मंगेतर शिवम को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

रोशनी गांव के परिवेश में पलीबढ़ी थी, जहां लड़की का रिश्ता एक बार तय होने के बाद अगर टूट जाए तो सारी जिम्मेदारी लड़की पर डाल दी जाती है. सब उसी पर ही अंगुली उठाते हैं. इस से बचने के लिए लड़की हर तरह का समझौता करती है.

गांव हो या शहर, अगर 2 लोगों में से किसी एक के मन में अविश्वास की रेखा खिंच जाए, तो फिर उस का मिटना आसान नहीं होता. शिवम की हालत भी कुछ ऐसी ही थी. वह रोशनी की बात समझ तो रहा था पर उस की बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था.

उस ने कहा, ‘‘रोशनी, जो भी हो पर मेरा मन तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर पा रहा है. ऐसे में हम शादी जैसा बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं. अगर हम शादी कर भी लें तो हमारा जीवन सहज नहीं रह पाएगा. अविश्वास की रेखा जिंदगी भर कचोटती रहेगी.’’

‘‘शिवम, तुम कुछ भी कहो पर मैं इस रिश्ते को जीवन भर निभाने के लिए तैयार हूं. तुम्हें मेरी तरफ से कोई शिकायत नहीं मिलेगी.’’ रोशनी किसी भी तरह अपने रिश्ते को बचाने की कोशिश कर रही थी. उसे पता था कि शादी टूटने का सारा असर उसी पर पड़ेगा. घरबाहर सब उसी को दोष देंगे. पर शिवम टस से मस नहीं हो रहा था.

‘‘रोशनी, मैं किसी ऐसे रिश्ते में नहीं बंधना चाहता, जिस में मुझे जीवन भर पछताना पड़े. तुम मुझ पर ज्यादा दबाव मत डालो.’’ शिवम ने रोशनी को समझाते हुए कहा.

रोशनी को उस की बातों से लगने लगा था कि अब वह समझाने से नहीं मानेगा. उस ने सोचा कि शायद वह कुछ डराधमका कर लाइन पर आ जाए. प्यार से न सही, हो सकता है कि डर से मान जाए.

‘‘शिवम, समझ लो मेरा जीवन तो खत्म हो गया. पर एक बात याद रखना, मैं इतनी कमजोर नहीं हूं. मैं तुम्हें भी चैन से नहीं बैठने दूंगी. मुझे यह बात कतई मंजूर नहीं है कि तुम मुझ पर कलंक लगा कर छोड़ दो. मैं आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

रोशनी और शिवम की प्यार भरी जिंदगी में शक और अविश्वास की दरार पड़ चुकी थी. हरसंभव कोशिश के बाद भी वह दरार चौड़ी होती जा रही थी. रोशनी किसी भी कीमत पर अपने दामन पर कलंक नहीं लगवाना चाहती थी.

रोशनी रावत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर गोसाईंगंज के चांद सराय गांव में रहने वाली पढ़ीलिखी लड़की थी.

गांवों में अभी भी कम उम्र में ही शादी का चलन है. रोशनी के साथ भी यही हुआ. बालिग होते ही 19 साल की उम्र में उस की शादी शिवम रावत से तय हो गई.

शिवम भी गोसाईंगंज इलाके के ही गांव चमरतलिया का रहने वाला था. शादी तय होने के बाद शिवम और रोशनी फोन पर बातें करने लगे थे. धीरेधीरे दोनों की दोस्तों से भी बातें होने लगीं. ऐसे ही किसी दोस्त ने शिवम से कह दिया कि रोशनी के गांव में रहने वाले किसी लड़के से संबंध हैं.

दुनिया भले ही चांद पर पहुंच जाए, आदमी नाम के जीव की सोच और समझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. दोस्त की बातों से शिवम को यकीन हो गया कि रोशनी ऐसी ही होगी. शिवम ने यह भी नहीं सोचा कि जो आदमी उसे भड़का रहा है, या उसे बता रहा है, उस की मंशा क्या है.

गांवों में अभी भी कितने ही लोग ऐसी मानसिकता वाले होते हैं जो बनते रिश्ते बिगाड़ने की कोशिश करते हैं. जब शिवम ने यह बात रोशनी को बताई और रिश्ता तोड़ने की बात कही तो रोशनी डर गई.

उस की आंखों के सामने अपना यह रिश्ता ही नहीं, पिता का घरपरिवार टूटता नजर आया. उस की आंखों में मातापिता के दुखी, निराश चेहरे घूमने लगे. उसे लगा कि केवल उस का रिश्ता ही नहीं टूट रहा, उस की हिम्मत, घरपरिवार का नाम और इज्जत भी मिट्टी में मिलने वाली है.

रिश्ता भले ही किसी भी कारण से टूटे, गलती लड़की की मानी जाती है. दूसरी तरफ शिवम था, जो किसी भी हालत में यह सोचने को तैयार नहीं था कि उस की होने वाली पत्नी के चरित्र पर कोई अंगुली उठे.

रोशनी ने उसे समझाते हुए कहा था कि अगर हमारी शादी हो जाने के बाद कोई ऐसा आरोप लगाता तो क्या तुम मुझे छोड़ देते? शिवम ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, जिस से रोशनी की आंखों में उम्मीद की लौ जलती.

शादी के पहले आरोप लगी लड़की के साथ शादी करना शिवम के लिए आंख मूंद कर दूध में पड़ी मक्खी वाला दूध पीने जैसा था. इस के लिए वह राजी नहीं था. ऐसे में शिवम और रोशनी का रिश्ता शादी से पहले ही ऐसे दोराहे पर खड़ा हो गया, जहां कोई एक राह तय करना संभव नहीं था.

इसी बीच अचानक 4 मई, 2020 को रोशनी अपने घर से गायब हो गई. उस के पिता बंसीलाल ने सब से पहले उसे हर जगह तलाश किया. जब कहीं से भी रोशनी की खबर नहीं मिली तो वह गोसाईंगंज थाने गए और इंसपेक्टर धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा से मिल कर उन्हें बेटी के गायब होने की जानकारी दी.

पुलिस अपने हिसाब से रोशनी को तलाश करती रही. बंसीलाल भी अपने परिवार के साथ रोशनी को ढूंढते रहे. रोशनी का कहीं से कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

रोशनी के साथ ही उस का मोबाइल और कपड़े भी गायब थे. सब लोग यही सोच रहे थे कि रोशनी घर छोड़ कर भाग गई है. लेकिन किसी के पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं था. एकएक कर के दिन गुजर रहे थे पर रोशनी का पता नहीं चल रहा था.

रोशनी की गुमशुदगी के 6 दिन बाद गोसाईंगंज पुलिस को सूचना मिली कि चमरतलिया के जंगल में किसी लड़की की लाश मिली है, जो पूरी तरह से कंकाल हो चुकी है.

पुलिस ने अपने इलाके की गायब लड़कियों के बारे में पता किया तो रोशनी की गुमशुदगी का मामला भी सामने आया.

गोसाईंगंज पुलिस ने रोशनी के पिता बंसीलाल को बुला कर लाश को देखने के लिए कहा. लाश को देख कर कपड़ों वगैरह से बंसीलाल को लगा कि यह उन की बेटी रोशनी का ही अस्थिपंजर है.

रोशनी की मौत का राज पता लगाना जरूरी था जबकि गोसाईंगंज पुलिस के लिए यह काम किसी चुनौती से कम नहीं था. पुलिस के पास रोशनी के गायब होने से ले कर उस की हत्या तक कोई सुराग नहीं था. यह ब्लाइंड मर्डर था. पुलिस को जो भी कड़ी मिल रही थी, वह पुलिस के किसी काम की नहीं थी.

मोहनलालगंज सर्किल के सीओ संजीव मोहन ने इंसपेक्टर गोसाईंगंज धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा को जल्द से जल्द इस मामले की तह तक जाने का आदेश दिया.

तेजतर्रार इंसपेक्टर धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा अपनी टीम के साथ मामले को सुलझाने में लग गए. सब से पहले पुलिस ने रोशनी के मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया. एक हफ्ते बाद 16 मई को रोशनी के मोबाइल पर चमरतलिया गांव के शिवम का नंबर एक्टिव दिखने लगा. पुलिस को इस बात का पक्का सबूत मिल गया कि रोशनी का मोबाइल शिवम के पास है.

रोशनी के पिता के बताने पर रोशनी और शिवम के शादी के रिश्ते का भी खुलासा हो गया.

इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि रोशनी के बारे में शिवम को जानकारी होगी. पुलिस ने शिवम को पकड़ा तो उस के पास से रोशनी के कपड़े भी मिल गए.

शिवम ने बताया कि जब रोशनी शादी के लिए जिद करने लगी तो उस ने उस की हत्या कर के लाश जंगल में छिपा दी और मोबाइल व कपड़े ले कर अपने घर चला आया.

पुलिस ने शिवम के पास से रोशनी का मोबाइल फोन, कपड़े और घटना में प्रयोग की गई बाइक बरामद कर ली. शिवम ने रोशनी के फोन से उस का सिम निकाल कर तालाब में फेंक दिया था.

कुछ दिन बाद जब उस ने रोशनी के मोबाइल में अपना सिम डाला तो सर्विलांस से पुलिस को पता चल गया. उस के बाद पुलिस ने शिवम को धर दबोचा.

पुलिस ने शिवम को रोशनी की हत्या और उस के शव को छिपाने के आरोप में जेल भेज दिया. शिवम ने अगर उस दिन रोशनी की बात मान ली होती तो उसे रोशनी की हत्या जैसा कदम नहीं उठाना पड़ता.

रोशनी शिवम की पत्नी नहीं बनी थी, ऐसे में शिवम के पास उस के साथ शादी न करने का विकल्प था. शिवम अगर घरपरिवार के लोगों की सहमति से कोई कदम उठाता तो हालात ऐसे नहीं बनते. गुस्से में उठाए गए कदम ऐसे ही जीवन को नष्ट होने की कगार तक पहुंचा देते हैं.

परेशानी की बात यह है कि आज के युवा घरपरिवार और मांबाप से अपने मन की बात नहीं कहते. उन से बातें छिपाते हैं, जो कई बार अपराध की वजह बन जाती है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

2 पत्नियों वाले हिंदूवादी नेता की हत्या

लखनऊ के सिकंदरबाग चौराहे पर निशातगंज की तरफ जाने वाली सड़क पर बैटरी से चलने वाले 5-7 रिक्शे खड़े थे, जिन की वजह से काफी भीड़ थी. चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस भी थी, वहां से लगभग 500 कदम दूर 25 साल की लड़की खड़ी थी.

तभी एक कार आ कर रुकी. उस कार से भगवा कपड़े पहने 40-45 साल का एक आदमी उतरा, जो वहां खड़ी लड़की के पास पहुंच कर उस से झगड़ने लगा. झगड़ा बढ़ा तो लड़की वहीं पास में फुटपाथ पर सब्जी बेचने वाले की तरफ बढ़ने लगी. उन की बातचीत से ऐसा लग रहा था, जैसे दोनों पहले से परिचित हों.

उस लड़की की आवाज सुन कर तमाम लोग वहां आ गए. लोगों ने लड़की से बात कर पुलिस को फोन करने को कहा तो उस ने मना कर दिया.

भगवाधारी रणजीत श्रीवास्तव बच्चन था जो गोरखपुर के अहरौली गांव का रहने वाला था. 2 फरवरी, 2020 को ग्लोब पार्क के सामने रणजीत श्रीवास्तव की लाश मिली तो लोगों को उस दिन का झगड़ा याद आ गया.

करीब 20 साल पहले रणजीत के पिता तारालाल अपने परिवार के साथ अहरौली गांव से गोरखपुर के भेडि़याघाट रहने आए थे. इस के बाद तारालाल ने पतरका गांव में जमीन खरीदी. रणजीत खुद गोरखपुर में रहता था.

रणजीत श्रीवारुतव को एक्टिंग का शौक था. इसी शौक के चलते उस ने अपना नाम रणजीत श्रीवास्तव से बदल कर रणजीत बच्चन कर लिया था. वह फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन से बहुत प्रभावित था. उस ने अमिताभ बच्चन की तरह से कपडे़ पहनने और उन के जैसा ही हेयरस्टाइल रखना शुरू कर दिया.

अमिताभ बच्चन की नकल करने से कोई उन के जैसा नहीं बन जाता, यह बात रणजीत की समझ में आ गई. तब उस ने गांव की अपनी जमीन पर टीन शेड के नीचे नए लोगों को अभिनय का प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया. रंगमंच से जुड़े होने के बाद भी जब वह सफल नहीं हो पाया तो उस ने राजनीति और समाजसेवा को अपना रास्ता बनाया.

रणजीत को सुर्खियों में रहने का शौक था. इस के लिए उस ने कई सामाजिक संस्थाएं बनाईं. सुर्खियों में रहने के लिए उस ने पत्रकार संगठन और जातीय संगठन भी बनाए.

इस बहाने वह खुद को राजनीति से जोड़े रखना चाहता था. ऐसे में उस ने गोरखपुर से दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपना काम शुरू करने का फैसला किया. रणजीत के तमाम लड़कियों से संबंध थे. उन्हें ले कर वह चर्चा में रहता था.

कालिंदी सन 2002 से रणजीत के संपर्क में थी, वह कुशीनगर के नेअुबा नौगरियां क्षेत्र के बरई पट्टी गांव की रहने वाली थी. उस के पिता गोरखपुर नगर निगम में नौकरी करते थे. कालिंदी अच्छी एथलीट थी. रणजीत के साथ मिल कर उस ने देश भर में साइकिल यात्रा की थी.

बाद में कालिंदी और रणजीत पतिपत्नी की तरह रहने लगे. 2014 में रणजीत ने कालिंदी से गोरखपुर के कुसम्ही जंगल स्थित बुढि़यामाई के मंदिर में शादी कर ली. इस बीच रणजीत का राजनीतिक रसूख बढ़ता रहा. जिस के आधार पर सन 2009 में रणजीत को लखनऊ की ओसीआर बिल्डिंग में सरकारी आवास मिल गया.

महिलाओं को ले कर रणजीत का व्यवहार बहुत अच्छा नहीं था. सन 2017 में रणजीत की साली ने शाहपुर थाने में उस के खिलाफ छेड़खानी, मारपीट और बलात्कार का मामला दर्ज कराया था. पुलिस की मिलीभगत से रणजीत कागजों पर फरार चल रहा था. पुलिस ने खानापूर्ति के लिए रणजीत के पतरका गांव स्थित टीन शेड वाले घर पर कुर्की का आदेश चस्पा कर के अदालत में उसे कागजों में फरार दिखा दिया.

इस के बाद रणजीत ने ससुराल से अपने संबंध खत्म कर लिए थे. रणजीत की पत्नी कालिंदी भी अपनी बहन पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रही थी.

साल 2014 की बात है. रणजीत की लखनऊ के विकास नगर की रहने वाली स्मृति नामक महिला से मुलाकात हुई. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. स्मृति अपने पिता की जगह पर नौकरी कर रही थी.

बातचीत में रणजीत को पता चला कि स्मृति पिता की पेंशन को ले कर परेशान है. ऐसे में रणजीत ने उसे मदद करने का भरोसा दिया. राजनीतिक रसूख के चलते उस ने स्मृति की मदद की भी. तभी से दोनों के दोस्ताना रिश्ते और मजबूत हो गए.

यही दोस्ती आगे चल कर प्यार में बदल गई. 18 जनवरी, 2015 को रणजीत और स्मृति की शादी हो गई. जब स्मृति गर्भवती हुई तो उसे पहली बार पता चला कि रणजीत पहले से शादीशुदा है. इस के बाद दोनों के बीच विवाद होने लगा.

रणजीत की पहली पत्नी कालिंदी को भी रणजीत और स्मृति के रिश्ते की जानकारी हो गई थी. स्मृति से रिश्तों का विरोध करने पर कालिंदी और रणजीत की लड़ाई होती रहती थी. तब कालिंदी ने पति के खिलाफ महिला थाने में शिकायत भी दर्ज करा दी.

काफी समय तक रणजीत ने कालिंदी और स्मृति को एक ही घर में रखे रखा. बाद में वह दोनों से झगड़ा तो करता ही था, उन्हें प्रताडि़त भी करता था. रणजीत ने बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी से अपने रिश्ते मधुर बना लिए थे, जिस से उसे राजनीतिक संरक्षण मिल सके. बसपा के बजाय उसे समाजवादी पार्टी से लाभ हुआ. प्रभाव बढ़ने पर पुलिस भी उसे संरक्षण देने लगी थी.

समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के समय रणजीत ने साइकिल से पूरे भारत भ्रमण का कार्यक्रम बनाया. जब भारत भूटान साइकिल यात्रा निकली तो दल के नायक के रूप में रणजीत ने ही अगुवाई की थी. इस के बाद रणजीत का नाम लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में जुड़ गया था.

जब से अखिलेश सरकार सत्ता से हटी तो उसे नए आसरे की तलाश करनी पड़ी. गोरखपुर शहर के रहने वाले महंत योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. ऐसे में रणजीत ने भी समाजवादी रूप छोड़ कर योगी आदित्यनाथ की तरह हिंदूवादी रूप बनाने का काम शुरू किया.

प्रदेश में हिंदुत्व की राजनीति चमकाने के लिए रणजीत ने हिंदूवादी नेता की छवि बनानी शुरू कर दी. ऐसे में उस ने विश्व हिंदू महासभा के अंतरराष्ट्रीय प्रमुख के रूप में खुद को प्रस्तुत करना शुरू किया. वह अखिलेश सरकार के समय में दिए गए ओसीआर के सरकारी आवास में रहता था.

यहीं पर उस ने पहली फरवरी, 2020 को अपने जन्मदिन की पार्टी भी की. कई लोग उसे बधाई देने भी पहुंचे थे. 2 फरवरी को सुबह करीब साढ़े 5 बजे रणजीत अपने ओसीआर स्थित आवास से बाहर मौर्निंग वाक के लिए निकला.

रणजीत के साथ पत्नी कालिंदी और रिश्तेदार आदित्य भी था. पत्नी कालिंदी ओसीआर से विधानसभा मार्ग स्थित भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय से होते हुए लालबाग ग्राउंड की तरफ मुड़ गई, जहां वह जौगिंग करती थी. रणजीत और आदित्य आगे बढ़ गए और हजरतगंज चौराहे से परिवर्तन चौक होते हुए ग्लोब पार्क पहुंच गए.

ग्लोब पार्क के पास शाल लपेटे एक युवक रणजीत के पास पहुंचा और उस ने दोनों पर पिस्टल तान दी. उस ने रणजीत और आदित्य के मोबाइल फोन छीन लिए. इस के बाद रणजीत के सिर पर पिस्टल सटा कर गोली मार दी. हमलावर ने आदित्य पर भी गोली चलाई, जो उस के हाथ में लगी. फिर हमलावर वहां से भाग गया.

आदित्य के शोर मचाने पर राहगीरों ने पुलिस को खबर दी. पुलिस हत्या की जानकारी देने रणजीत के आवास पर पहुंची तो गोरखपुर से रणजीत के साथ आए अभिषेक की पत्नी ज्योति घर पर मिली. ज्योति ने फोन कर के रणजीत की पत्नी कालिंदी को हत्या की सूचना दी.

पति की हत्या का पता चलते ही कालिंदी सिविल अस्पताल पहुंच गई. वहां से पुलिस कालिंदी को अपने साथ ले गई, जिसे बाद में पूछताछ के बाद चिनहट निवासी चचेरे भाई के साथ भेज दिया. हिंदूवादी नेता की हत्या से पूरी राजधानी सकते में आ गई. कुछ महीने पहले कमलेश तिवारी नामक एक और हिंदूवादी नेता की हत्या हो चुकी थी.

इस के बाद मार्निंग वाक के समय रणजीत की हत्या ने लखनऊ पुलिस और नए कमिश्नरी सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर दिया. रणजीत की हत्या के बाद आननफानन में जौइंट कमिश्नर नवीन अरोड़ा, एसीपी हजरतगंज अभय कुमार मिश्रा, एसीपी कैसरबाग संजीव कांत सिन्हा सहित कई अफसर मामले की छानबीन में लग गए.

पुलिस पर सब से बड़ा सवाल इसलिए भी है कि हुसैनगंज स्थित ओसीआर से ले कर ग्लोब पार्क के बीच 6 पुलिस चौकियां हैं, इस के बाद भी हत्यारों को पकड़ा नहीं जा सका. पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने इस मामले में 4 पुलिसकर्मियों संदीप तिवारी, अनिल गुप्ता, अरविंद और आशीष को सस्पेंड कर दिया.

रणजीत की हत्या को ले कर उस की पत्नी कालिंदी का कहना था कि रणजीत कुछ दिनों से प्रखर हिंदुत्व को ले कर बहस कर रहा था. नागरिकता कानून का भी समर्थन कर रहा था. ऐसे में हिंदू विरोधी लोग उस के दुश्मन बने हुए थे. कालिंदी ने 50 लाख रुपए का मुआवजा, मकान और सरकारी नौकरी की मांग सरकार के सामने रखी.

डीसीपी (मध्य) दिनेश सिंह के जरिए यह मांग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजी गई. पुलिस हत्या की पड़ताल में पारिवारिक बातों को ले कर छानबीन कर रही है.

पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने इस मामले की जांच के लिए 8 टीमें बनाई थीं. पुलिस ने 87 लोगों के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स खंगाली. कुछ होटलों के 72 सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले. पुलिस के लिए सब से पहले यह जानना जरूरी था कि हत्या की वजह क्या हो सकती है.

इस में नौकरी दिलाने के नाम पर रुपए का लेनदेन, पारिवारिक विवाद, जमीन से जुड़ा विवाद, पतिपत्नी के बीच संबंधों का विवाद, रणजीत  के रिश्ते का विवाद और आतंकी हमले जैसे विवाद प्रमुख थे.

पुलिस को सब से चौंकाने वाले तथ्य दोनों पत्नियों की जानकारी होने पर मिले. पुलिस ने जब रणजीत की दूसरी पत्नी स्मृति को कुछ फोटो दिखाए जिन में से एक फोटो को उस ने पहचान लिया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उसे दीपेंद्र के बारे में पता चला. दीपेंद्र रणजीत की दूसरी पत्नी स्मृति का करीबी था. दोनों की मुलाकात सन 2019 में हुई थी. इस के बाद दोनों करीब आ गए और शादी कर के घर बसाने चक्कर में थे. दीपेंद्र स्मृति से मिलने विकास नगर आता था.

यहां दोनों एक होटल में रुकते भी थे. इस बात की जानकारी जब रणजीत को हुई तो उस ने स्मृति से झगड़ा किया. सिकंदरबाग चौराहे पर रणजीत ने ही स्मृति को थप्पड़ मारा था.

यह बात दीपेंद्र को पता चली तो उस ने रणजीत को ही रास्ते से हटाने का प्लान तैयार करना शुरू कर दिया. दीपेंद्र ने अपने प्लान को सफल बनाने के लिए 11 दिन तक रणजीत की रेकी की.

इन लोगों को यह जानकारी मिली कि रणजीत ओसीआर स्थित अपने फ्लैट नंबर 604 से सुबह मार्निंग वाक के लिए निकलता है. उस के साथ पत्नी कालिंदी और एकदो लोग भी होते हैं.

2 फरवरी को जब रणजीत मार्निंग वाक पर निकला तो योजना के मुताबिक दीपेंद्र ने ग्लोब पार्क के पास रणजीत को गोली मार दी. उस का मोबाइल भैंसाकुंड के पास फेंक कर वह हैदरगढ़ होते हुए रायबरेली चला गया. वहां से दीपेंद्र मुंबई चला गया. पुलिस ने दीपेंद्र के साथ ही साथ संजीत और जितेंद्र को भी पकड़ लिया. पुलिस ने स्मृति के खिलाफ भी साजिश रचने का मुकदमा दर्ज हुआ.

रणजीत हत्याकांड का खुलासा करने में जौइंट सीपी नवीन अरोड़ा, नीलाब्जा चौधरी, डीसीपी (मध्य) दिनेश सिंह, एडीशनल डीसीपी चिरंजीव नाथ सिन्हा, एडीशनल डीसीपी (क्राइम) दिनेश पुरी, एसीपी (हजरतगंज) अभय कुमार मिश्रा, आलोक कुमार सिंह के साथ पुलिस की सर्विलांस सेल और साइबर सेल ने अहम भूमिका अदा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आसमान में दस्तक : सिरीशा के अंतरिक्ष सफर की कहानी

सिरिशा बांदला

वर्जिन गैलेक्टेटिक स्पेसशिप ने 11 जुलाई, रविवार की शाम अंतरिक्ष की दुनिया में कदम रख दिया. इसी के साथ वर्जिन गैलेक्टेटिक के मालिक निजी स्पेसशिप से अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले उद्योगपति बन गए हैं.

इस स्पेसशिप में उन के साथ जाने वाले 5 लोगों में भारतीय मूल की सिरिशा बांदला भी थीं. सिरिशा ने अंतरिक्ष की यह यात्रा कर के अपने परिवार का ही नहीं, एक तरह से देश का भी नाम रोशन किया है.

एक कहावत है, ‘‘मेरे अंदर हौसला अभी जिंदा है, हम वो हैं जहां मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं.’’ कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स के बाद अब इस कहावत को चरितार्थ किया है सिरिशा बांदला ने. पूरी दुनिया में भारत का लोहा मनवाने वाली और एक नया इतिहास रचने वाली सिरिशा आंध्र प्रदेश के गुंटूर की रहने वाली हैं.

सिरिशा बांदला भारत की ओर से अंतरिक्ष में गई हैं. भारत की ओर से अंतरिक्ष में जाने वाली कल्पना चावला के बाद वह दूसरी महिला हैं और भारतीय मूल की चौथी. इन से पहले राकेश शर्मा, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष की यात्रा कर चुकी हैं.

अंतरिक्ष में जाने वाली सिरिशा बांदला का जन्म 1987 में आंध्र प्रदेश के जिला गुंटूर शहर में डा. मुरलीधर बांदला और अनुराधा बांदला के घर हुआ था. उन का एक भाई भी है गणेश बांदला. फिलहाल उन का परिवार अमेरिका में ह्यूस्टन, टेक्सास में रहता है.

उन का पालनपोषण और पढ़ाईलिखाई ह्यूस्टन टेक्सास में ही हुई थी. उन के पिता डा. मुरलीधर बांदला एक वैज्ञानिक हैं. वह अमेरिकी सरकार में सीनियर एग्जीक्यूटिव सर्विसेज के सदस्य भी हैं.

पिता अमेरिका में रहते थे, इसलिए सिरिशा का बचपन अमेरिका में ही बीता. वैज्ञानिक बाप की बेटी होने की वजह से उन्होंने राकेट और स्पेसक्राफ्ट बहुत नजदीक से देखे थे.

आसमान में राकेट को उड़ता देख कर उन के मन में स्पेस के बारे में जिज्ञासा होती थी. पर उस समय तो उन्हें यह सपना लगता था. उन्होंने तब नहीं सोचा था कि आगे चल कर उन का यह सपना पूरा भी होगा. सिरिशा ने पर्ड्यू यूनिवर्सिटी से एयरोनौटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया और उस के बाद जार्जटाउन यूनिवर्सिटी से मास्टर औफ बिजनैस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) किया.

पढ़ाई पूरी होने के बाद वह एयरफोर्स में भरती हो कर पायलट बनना चाहती थीं. लेकिन आंख में कोई समस्या होने की वजह से उन का यह सपना अधूरा ही रह गया.

तब किसी और की छोड़ो, उन्होंने भी नहीं सोचा था कि आगे चल कर वह मांबाप का ही नहीं, देश का भी नाम रोशन करेंगीं.

वह एयरफोर्स में नहीं जा सकीं तो 2015 में टेक्सास की एक एयरस्पेस कंपनी वर्जिन गैलेक्टेटिक में इंजीनियर की नौकरी कर ली. उन्होंने कमर्शियल स्पेस फ्लाइट फेडरेशन में काम किया.

बहुत ही कम समय में वह वर्जिन गैलेक्टेटिक कंपनी में सरकारी कामों की वाइस प्रेसिडेंट हो गईं. जल्दी ही उन्होंने 747 विमान का उपयोग कर के अंतरिक्ष में एक उपग्रह भी पहुंचाया.

अपनी प्रतिभा की ही बदौलत मात्र 6 साल की नौकरी में सीनियर पद हासिल कर आज उद्योगपति रिचर्ड ब्रैनसन की स्पेस कंपनी वर्जिन गैलेक्टेटिक के अंतरिक्ष यान वर्जिन और्बिट से 11 जुलाई को वह अंतरिक्ष की यात्रा कर आईं.

रिचर्ड ब्रैनसन सहित 6 अंतरिक्ष यात्रियों में एक सिरिशा बांदला भी थीं. इस घोषणा के बाद सिरिशा बांदला ने ट्वीट किया था, ‘मुझे यूनिटी-22 क्रू और उस कंपनी का हिस्सा होने पर गर्व महसूस हो रहा है.’

फिलहाल वह वर्जिन और्बिट के वाशिंगटन औपरेशंस के पद को संभाल रही हैं. रिचर्ड ब्रैनसन ने पहली जुलाई को घोषणा की थी कि उन की अगली अंतरिक्ष यात्रा 11 जुलाई को होगी. तभी उन्होंने कहा था कि इस अंतरिक्ष यात्रा में उन्हें मिला कर कुल 6 लोग होंगे.

उन का कहना था कि अंतरिक्ष में किसी बाहरी को भेजने के बजाय पहले वह अपनी कंपनी के कर्मचारियों को मौका देंगे. इस से उन की कंपनी द्वारा तैयार किए गए अंतरिक्ष यान की अच्छी तरह जांचपरख हो जाएगी.

वर्जिन गैलेक्टेटिक कंपनी आम लोगों के लिए अंतरिक्ष यात्रा आसान बनाना चाहती है. वर्जिन और्बिट अंतरिक्ष यान को कैरियर प्लेन कास्मिक गर्ल द्वारा पृथ्वी से लगभग 35 हजार फुट की ऊंचाई पर ले जाया गया.

सिरिशा तेलुगू एसोसिएशन आफ नौर्थ अमेरिका (टीएएनए) की सदस्य भी हैं. यह उत्तरी अमेरिका का सब से बड़ा और पुराना इंडो अमेरिकन संगठन है. कुछ साल पहले ही इस संगठन ने सिरिशा को यूथ स्टार अवार्ड से नवाजा था.

इस के अलावा सिरिशा अमेरिका एस्ट्रोनौटिकल सोसायटी एंड फ्यूचर स्पेस लीडर्स फाउंडेशन के बोर्ड औफ डायरेक्टर्स में भी शामिल हैं. इस के अलावा वह पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के यंग प्रोफेशनल एडवाइजरी काउंसिल की भी सदस्य हैं.

सिरिशा बांदला मैक्सिको से विंग्ड राकेट शिप द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा के लिए उड़ान भरेंगी. वह ह्यूमन टेंडेड रिसर्च एक्सपीरियंस की इंचार्ज भी थीं, जिस की वजह से उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा के दौरान एस्ट्रोनौट पर होने वाले असर का अध्ययन भी किया.

यह यात्रा पूरी करने के बाद सिरिशा बांदला की कंपनी के मालिक 71 साल के रिचर्ड ब्रैनसन ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन की कंपनी वर्जिन गैलेक्टेटिक की टीम की यह 17 साल की मेहनत का परिणाम है.

अंतरिक्ष में जाने वाले स्पेसशिप के उड़ान भरने से ले कर वापस आने में कुल एक घंटे का समय लगा. इस यात्रा पर जाने वाले सभी लोगों ने अंतरिक्ष में करीब 5 मिनट तक रुक कर भारहीनता का अनुभव किया.

अंतरिक्ष की यात्रा पर जाने वाला अंतरिक्ष यान साढ़े 8 मील यानी 13 किलोमीटर की ऊंचाई पर जा कर मूल विमान से अलग हो गया और करीब 88 किलोमीटर की ऊंचाई पर जा कर अंतरिक्ष के छोर पर पहुंच गया, जहां इस यात्रा पर सभी लोगों ने भारहीनता का अनुभव किया.

कामुक तांत्रिक की काम विधा

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की रहने वाली तबस्सुम बेहद खूबसूरत थी. उस की शादी शहर के ही रहने वाले नफीस अहमद से हुई थी. नफीस का अपना कारोबार था जिस से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. नफीस से निकाह कर के तबस्सुम खुश थी. उसे नफीस अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही मिला था. नफीस भी तबस्सुम को बहुत प्यार करता था. तबस्सुम के व्यवहार की वजह से उस के सासससुर भी उसे बहुत चाहते थे. धीरेधीरे उन्होंने भी घर की बागडोर बहू तबस्सुम को सौंप दी थी. इस तरह हंसीखुशी के साथ उस का समय बीत रहा था.

हर सासससुर की तरह तबस्सुम के सासससुर भी यही चाहते थे कि उन की बहू जल्द मां बन जाए और यदि पहली बार में ही बेटे का जन्म हो जाए तो बात ही कुछ और होगी. फिर वह अपने पोते के साथ ही लगे रहेंगे. पर शादी को डेढ़दो साल हो गए, लेकिन वह मां नहीं बनी. धीरेधीरे 4 साल बीत गए लेकिन तबस्सुम गर्भवती नहीं हुई.

इस के बाद तो सासससुर ही नहीं बल्कि खुद तबस्सुम और नफीस भी परेशान रहने लगे. नफीस पत्नी को ले कर डाक्टर के पास गया. दोनों की कई तरह की जांच कराई गईं, जो सामान्य आईं. डाक्टर भी हैरान था कि सब कुछ सामान्य होने के बावजूद भी आखिर तबस्सुम को गर्भ क्यों नहीं ठहर रहा. फिर भी डाक्टर ने अपने हिसाब से उन दोनों का इलाज किया. इस के बावजूद भी तबस्सुम की कोख सूनी रही.

इस से तबस्सुम बहुत चिंतित रहने लगी. परेशान हाल इंसान को समाज में तमाम सलाहकार फ्री में मिल जाते हैं. लोग नफीस और तबस्सुम को भी तरहतरह की सलाह देने लगे. और वह सलाह भी उदाहरण के साथ देते थे कि फलां औरत वहां गई थी या उस डाक्टर, हकीम से इलाज कराया तो वह मां बन गई.

अपने मन में उम्मीद ले कर तबस्सुम भी लोगों की सलाह के अनुसार कई डाक्टरों, हकीमों के पास गई. तमाम धार्मिक स्थलों पर जा कर उस ने माथा टेका लेकिन उस की इच्छा पूरी नहीं हुई.

इस तरह शादी के 7 साल बाद भी तबस्सुम  की कोख नहीं भरी तो मोहल्ले के लोग ही नहीं, बल्कि सासससुर भी उसे बांझ समझने लगे. जो सास उसे सरआंखों पर बिठाए रहती थी वह ही उसे ताने देने लगी.

बातबात पर वह उसे बांझ कहती. अब तबस्सुम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. हां, नफीस उसे समझाने की कोशिश करता था. केवल उस का पति ही था, जो हमेशा उस की हिम्मत बढ़ाता था.

तबस्सुम को जिस घर की जिम्मेदारी दी गई थी, सास के तानों ने उस का उसी घर में रहना दूभर कर दिया था. उस के जीवन में शांति तो जैसे कोसों दूर चली गई थी, इसलिए उस घर में रहना उसे अब अच्छा नहीं लगता था.

अब वह उस घर के बजाए कहीं और रहना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो नफीस ने उस का साथ दिया और वह अपना घर छोड़ कर शहर की ही एडवोकेट कालोनी में किराए पर एक मकान में रहने लगा.

नफीस जिस कालोनी में रहता था, वह मकान शफीउल्लाह नाम के एक तांत्रिक का था. उस ने शहर के ही चंदननगर के एक मकान में अपना औफिस बना रखा था. वह यह धंधा कर के मोटी रकम कमा रहा था.

किराए के मकान में रहने पर तबस्सुम को एक सुकून यह मिल रहा था कि उसे यहां ताने देने वाला कोई नहीं था. इस तरह वह वहां रह कर शांति महसूस कर रही थी.

इस मकान में आए हुए तबस्सुम को करीब 20-22 दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर के समय में जब वह कमरे में अकेली थी तभी मकान मालिक तांत्रिक शफीउल्लाह उस के कमरे में आया और उस का हालचाल पूछने लगा.

औपचारिकतावश तबस्सुम ने उसे चाय बना कर पिलाई. इसी दौरान शफी ने उस से कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम संतान न होने की वजह से परेशान हो.  लेकिन अब चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हारी गोद भरने के लिए ही तुम्हें मेरे यहां किराएदार बना कर भेजा है.’’

तबस्सुम की कुछ समझ में नहीं आया तो शफी ने उसे बताया कि वह तंत्रमंत्र का बड़ा जानकार है. तंत्रमंत्र से संतानहीन महिला की गोद भरने में उसे महारथ हासिल है. न मालूम कितनी महिलाएं उस से यह लाभ ले चुकी हैं. जिस के चलते लोग उसे गोद स्पेशलिस्ट बाबा भी कहते हैं.

तुम चिंता मत करो जल्द ही वक्त आने पर वह अपनी तांत्रिक शक्ति से उस की गोद भर देगा. साथ ही उस ने यह भी सलाह दी कि वह इस बारे में अपने पति से कोई बात नहीं करे. शफी की बात सुन कर तबस्सुम खुश हो गई. उसे लगा कि सचमुच अब उस का सपना सच हो जाएगा.

उस दिन के बाद शफी उसे अकसर अपने एक कमरे में उस के पति की गैरमौजूदगी में पूजा के लिए बुलाने लगा. चूंकि पूजा के बारे में पति को कुछ भी बताने से तांत्रिक शफी ने उसे मना कर रखा था इसलिए यह सारे काम तबस्सुम अपने शौहर से छिपा कर कर रही थी.

शुरुआती दौर में तो शफी पूजा के दौरान पूरी शराफत दिखाता था लेकिन बाद में धीरेधीरे वह उसे कभीकभार छूने भी लगा. तबस्सुम को छूने का उस का लगातार क्रम बढ़ता गया. कभीकभार वह पूजा के नाम पर उस के वक्षस्थल पर भी हाथ रख देता था. तबस्सुम को यह अजीब सा लगा.

उसे तांत्रिक शफी की नीयत पर शक होने लगा. इसलिए वह उस की पूजा में अरुचि दिखाने लगी. इस से शफीउल्लाह को इस बात का अंदाजा होने लगा कि यह उस से दूरी बनाने लगी है. चिडि़या कहीं पिंजरे से उड़ न जाए, यह सोच कर शफी ने भी वक्त जाया करना उचित नहीं समझा.

19 सितंबर, 2018 को शफी को इस का मौका भी मिल गया. एक रात तबस्सुम का पति नफीस इंदौर से बाहर गया था. यह देख कर शफी ने उसे रात में पूजा करने को बुलाया.

तबस्सुम का मन तो नहीं हुआ लेकिन जब शफी ने उसे पूजा को अधूरा बीच में छोड़ देने  के नुकसान बता कर डराया तो वह उस रोज तांत्रिक के कहने पर आधी रात में नहाने के बाद खुले गीले बाल ले कर उस के कमरे में चली गई. पूजा करते समय शफीउल्लाह ने उसे पीने के लिए जन्नती जल के नाम पर पीला सा पानी दिया, जिसे पी कर तबस्सुम को चक्कर सा आने लगा.

इस के बाद पूजा करने के नाम पर शफी  काफी देर तक उस के शरीर से छेड़छाड़ करता रहा, फिर उस ने उसे जमीन पर लिटा दिया और खुद भी उस के ऊपर लेट गया. तबस्सुम पर बेहोशी सी छाई हुई थी. उस समय वह उस का विरोध करने की हालत में नहीं थी. शफी ने उस के साथ बलात्कार किया.

इस के बाद तबस्सुम को होश आया तो उस ने शफी को खरीखोटी सुनाई. उस के तेवर देख शफी ने कहा कि यह सब उस ने उस की भलाई के लिए ही किया है. अब पूजा पूरी हो गई है. वह अपने पति के साथ पहली बार सोते ही गर्भधारण कर लेगी. शफी ने उसे धमकाया कि इस बारे में यदि उस ने किसी को बताया तो वह अपनी व पति की जान खो देगी.

तबस्सुम जान गई थी कि यह पूरा नाटक शफी ने उसे हासिल करने के लिए किया था. उसे खुद से नफरत हो रही थी, इसलिए उस ने कमरे पर पहुंचने के बाद अगले दिन गले में फंदा डाल कर आत्महत्या करने की कोशिश की. लेकिन अचानक पति के आ जाने के बाद वह ऐसा नहीं कर सकी.

पति ने उसे बचा लिया. फिर तबस्सुम ने पति को सारी कहानी बता दी. नफीस ने उसी दिन तांत्रिक का कमरा खाली कर दिया. चूंकि तांत्रिक शफीउल्लाह ने तबस्सुम को डरा दिया था इसलिए उस के पति की भी तांत्रिक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं हुई.

इस वाकये को हुए करीब 3 सप्ताह गुजर गए. तभी तबस्सुम के दिमाग में आया कि तांत्रिक के खिलाफ पुलिस से शिकायत जरूर करनी चाहिए वरना वह किसी और को अपना शिकार बनाएगा.

इस के बाद वह 9 अक्तूबर, 2018 को पति को साथ ले कर खजराना थाने पहुंच गई. टीआई कमलेश शर्मा को तबस्सुम ने सारी बात विस्तार से बता दी. उस की शिकायत पर पुलिस ने तांत्रिक शफीउल्लाह के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह के घर दबिश डाली लेकिन वह घर पर नहीं मिला. वह फरार हो चुका था. तब पुलिस ने उस के पीछे मुखबिर लगा दिए.

10 अक्तूबर, 2018 को टीआई कमलेश शर्मा को मुखबिर द्वारा तांत्रिक के बारे में सूचना मिली. सूचना के बाद टीआई कमलेश शर्मा पुलिस टीम के साथ चंदननगर में स्थित एक मकान के पास पहुंचे.

उस समय रात हो चुकी थी. घर से लोभान के सुलगने की महक आ रही थी. टीआई ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद एक 26-27 साल की बेहद खूबसूरत युवती ने दरवाजा खोला. उस वक्त रात के 10 बजे थे. उस युवती के लंबे खुले बालों से टपकती पानी की बूंदों को देख कर लग रहा था कि वह अभीअभी नहा कर निकली है.

इतनी रात को उस के नहाने की बात आसानी से टीआई शर्मा के गले नहीं उतर रही थी. परंतु टीआई कमलेश शर्मा का टारगेट वह युवती नहीं बल्कि शफीउल्लाह था. उन्होंने उस युवती से शफीउल्लाह के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि बाबा अभी पूजा पर बैठ चुके हैं.

यह सुन कर टीआई ने कहा कि बाबा की पूजा हम थाने में करवा देंगे. फिर वह कमरे में घुस गए. पूजा का ढोंग कर रहे तांत्रिक शफीउल्लाह को उन्होंने गिरफ्तार कर लिया और इस की सूचना डीआईजी हरिनारायण चारी को दे दी. उन के निर्देश पर उन्होंने तांत्रिक के खिलाफ काररवाई शुरू की.

टीआई कमलेश शर्मा ने थाने ले जा कर शफीउल्लाह से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को नेक बंदा साबित करने पर तुला रहा. लेकिन पुलिस ने सख्ती की तो उस ने तंत्रमंत्र के नाम पर तबस्सुम को धोखे में रख कर उस के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार कर ली.

उस ने बताया कि वह आज फिर यही काम एक दूसरी महिला के साथ करने वाला था. वह अपने मकसद में सफल हो पाता उस से पहले वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

तथाकथित तांत्रिक शफीउल्लाह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह का मैडिकल करवा कर उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया.        द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में तबस्सुम और नफीस अहमद परिवर्तित नाम हैं.

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018

क्या मिला प्रियंका तनेजा को हनीप्रीत बनकर

प्रियंका तनेजा को भले ही कम लोग जानते हैं, लेकिन हनीप्रीत की चर्चा आज घरघर में हो रही है. हनीप्रीत का नाम लेते ही मेकअप से लकदक जो लुभावना चेहरा आंखों के सामने आता है, वह दुष्कर्म के जुर्म में 20 साल की सजा पाए कथित संत गुरमीत राम रहीम द्वारा बनाई गई फिल्मों की नायिका ही नहीं, उन की सहनिर्देशक एवं सहनिर्मात्री भी थी. लेकिन सब के बीच बाबा गुरमीत राम रहीम उसे अपनी दत्तक पुत्री कहते थे.

बाबा के जेल जाते ही हनीप्रीत अचानक गायब हो गई. कई राज्यों की पुलिस उस की तलाश में मारीमारी फिरती रही, पर उस के बारे में पता नहीं कर सकी. उस के नेपाल में होने की आशंका पर वहां भी उस की तलाश की गई, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

उसी बीच वकील प्रदीप कुमार आर्य ने हनीप्रीत की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में 25 सितंबर, 2017 को एक याचिका दाखिल की, जिस में हनीप्रीत 3 सप्ताह की अंतरिम ट्रांजिट जमानत मांग रही थी. इस याचिका में उस ने कहा था कि उस की जान को खतरा है. इस याचिका में उसे अदालत में पेश न होने की अनुमति मिल गई थी.

26 सितंबर की सुबह साढ़े 10 बजे वकील प्रदीप कुमार आर्य ने कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल के सम्मुख पेश हो कर कहा था कि उन की मुवक्किल हनीप्रीत को जान का खतरा है, इसलिए उन्हें 3 सप्ताह के लिए अंतरिम ट्रांजिट जमानत दी जाए.

अदालत द्वारा जब पूछा गया कि हनीप्रीत को किस से जान का खतरा है तो वकील प्रदीप कुमार आर्य ने बताया, ‘‘ड्रग माफिया से. वे हनीप्रीत को ढूंढ रहे हैं और मिलते ही उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.’’

‘‘पर पूरा देश तो यह जानना चाहता है कि हनीप्रीत कहां है? सिंगल बेंच आप के मामले की सुनवाई करेगा. सब को नोटिस भेजे जा चुके हैं.’’ यह कहते हुए जस्टिस गीता मित्तल ने वकील प्रदीप कुमार आर्य को फारिग कर दिया.

दोपहर बाद पौने 3 बजे जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई. दिल्ली पुलिस की ओर से स्टैंडिंग काउंसिल राहुल मेहरा, एपीपी अनिल अहलावत, वकील जैमल अख्तर तथा हरियाणा सरकार की ओर से एएजी अनिल ग्रोवर, वकील नूपुर सिंघल के साथ पेश हुए.

वकील प्रदीप कुमार आर्य के साथ उन के आधा दरजन से ज्यादा सहयोगी वकील भास्कर भारद्वाज,राजकरन शर्मा, कपिल ढाका, राणा कुनाल, अमरेश आनंद, अश्विन कालरा और के.के. छाबड़ा आए थे.

बहस शुरू होते ही वकील प्रदीप कुमार आर्य ने अदालत के सामने दलील रखी कि हनीप्रीत के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, सिर्फ बयानों से कोई अपराधी नहीं बन जाता. वह एक शांतिप्रिय और कानून को मानने वाली नागरिक है. ड्रग माफिया से उसे पहले से ही खतरा था और अब उस पर ये आरोप लगा दिए गए हैं.

इस के जवाब में राहुल मेहरा ने कहा, ‘‘किसी भी आरोपी की मदद करना ठीक नहीं है. हनीप्रीत तो कहती है कि उस के पिता भगवान हैं, फिर उसे खतरा किस बात का है?’’

अनिल ग्रोवर का कहना था कि हनीप्रीत को सिर्फ अपनी गिरफ्तारी का खतरा है, बाकी उसे किसी से कोई खतरा नहीं है. उस पर पंचकूला में हिंसा करवाने का गंभीर आरोप है, इसीलिए पुलिस उस की तलाश कर रही है.

दोनों तरफ की दलीलें सुन कर जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल ने कहा कि जमानत देने के बाद भी हनीप्रीत को पंजाब अथवा हरियाणा की कोर्ट में जाना पड़ेगा. इसलिए वह सीधे वहीं क्यों नहीं जाती. जाने में 4 घंटे तो ही लगेंगे. आत्मसमर्पण ही उस के लिए सब से आसान रास्ता है.

कोर्ट ने हनीप्रीत की जमानत याचिका पर कोई फैसला सुनाने के बजाय उसे रिजर्व कर लिया. हनीप्रीत का क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा उस के बारे में जान लेते हैं.

कौन है हनीप्रीत हनीप्रीत का असली नाम प्रियंका तनेजा उर्फ अनु था. सन 1975 में वह रामानंद तनेजा के घर पैदा हुई थी. हरियाणा के नगर फतेहाबाद के जगजीवनपुरा के रहने वाले रामानंद का नैशनल हाइवे पर किसान टायर्स नाम से शोरूम था.

रामानंद के पिता यानी प्रियंका के दादाजी सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के प्रबल अनुयायी थे और नियमित वहां जाते थे. धीरेधीरे इस परिवार के सभी लोग डेरा से जुड़ गए. हनीप्रीत भी घर वालों के साथ डेरे पर जाती थी.

जल्दी ही प्रियंका डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम इंसां की करीबी बन गई. बाबा उसे पसंद करते थे, इसलिए उसे खुश करने की कोशिश करते रहते थे. उसी बीच बाबा ने उसे अपनी दत्तक पुत्री घोषित कर के उस का नया नाम रखा हनीप्रीत इंसां.

सन 1999 में बाबा ने डेरा के ही एक अनुयायी के बेटे विश्वास गुप्ता से हनीप्रीत की शादी करा दी. बाबा जहां हनीप्रीत को अपनी दत्तक पुत्री कहते थे, वहीं विश्वास गुप्ता को बेटा कहते थे. जबकि विश्वास गुप्ता का कहना है कि उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ था. कहने को हनीप्रीत उस की ब्याहता थी, लेकिन उस के बाबा गुरमीत राम रहीम से संबंध थे.

विश्वास गुप्ता के अनुसार, बाबा ने एक दिन कहा कि डेरे के खास लोगों के साथ वह ‘बिग बौस’ खेलेंगे. उस में बाबा के परिवार के भी लोग शामिल थे. हनीप्रीत और विश्वास गुप्ता खास लोगों में थे, इसलिए उन्हें भी शामिल किया गया था. खेल की शर्तों में था कि खेल में जिस से भी कोई गलती होगी, उसे बाबा की गुफा में बैठ कर उन के नाम का जाप करना होगा.

विश्वास गुप्ता का कहना है कि हनीप्रीत जानबूझ कर गलती करती और नियम के अनुसार बाबा की गुफा में चली जाती, जहां से एक रास्ता बाबा के बैडरूम तक जाता था. इस तरह वह जानबूझ कर गलतियां कर रही थी, जिस की वजह से उसे घंटों गुफा में रहना पड़ता था.

जब हनीप्रीत हो गई बाबा गुरमीत राम रहीम की विश्वास गुप्ता के बताए अनुसार, उसे हनीप्रीत की इन हरकतों से लगा कि कहीं बाबा और उस के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही है. लेकिन उस समय वह किसी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. क्योंकि उस ने अपनी आंखों से कुछ गलत देखा भी नहीं था, इसलिए कुछ कहना उचित भी नहीं था. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि जब तक वह अपनी आंखों से ऐसा कुछ देख नहीं लेता, तब तक वह किसी से कुछ नहीं कहेगा.

विश्वास गुप्ता के अनुसार, डेरे में खेले गए बिग बौस का शो समाप्त होतेहोते हनीप्रीत पूरी तरह बाबा गुरमीत राम रहीम की हो गई थी. कहने को सोती वह उस के साथ थी, लेकिन रात में गुप्त दरवाजे से निकल कर वह बाबा के पास पहुंच जाती थी. पूरी रात बाबा के पास बिता कर वह सुबह उस के पास आ जाती थी.

न चाहते हुए भी विश्वास गुप्ता ने एक दिन इस बारे में हनीप्रीत से पूछ लिया तो उस ने तुनक कर जवाब दिया कि पिताजी की तबीयत ठीक नहीं रहती, इसलिए वह उन की सेवा के लिए जाती है. इस के बाद उस ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने उस पर इस तरह बेवजह शक किया तो वह पिताजी से यह बात बता देगी. उस के बाद वह उसे जान से मरवा देंगे.

बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां के कहने पर विश्वास गुप्ता डेरे पर ही रहने लगा था. बाबा हनीप्रीत को बेटी कहता था, इसलिए विश्वास गुप्ता को दामाद कहता था. उसे डेरे में कहीं भी घूमनेफिरने की पूरी आजादी थी. यहां तक कि वह बाबा की गुफा में भी बिना अनुमति के आजा सकता था. इस से उसे बाबा की कई करतूतों की जानकारी हो गई थी. बाबा ने अपने बैडरूम के बगल वाले कमरे को विश्वास गुप्ता का बैडरूम बनवा दिया था.

इन दोनों कमरों के बीच एक गुप्त दरवाजा था, जिस से रात में हनीप्रीत बाबा के बैडरूम में चली जाती थी. विश्वास गुप्ता अपने बैडरूम में करवटें बदलते हुए रात बिताता था. दूसरी ओर उस की ब्याहता बाबा के साथ मौजमस्ती कर रही होती. एक रात विश्वास गुप्ता हिम्मत कर के बाबा के बैडरूम में चला गया तो दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.

बस, उसी दिन के बाद विश्वास गुप्ता के बुरे दिन शुरू हो गए. उस से साफ कह दिया गया कि जैसा चल रहा है, आगे भी वैसा ही चलता रहेगा. आंखें मूंद कर उसे चुपचाप यह सब सहन करना होगा. अगर उस ने इस बारे में किसी से कुछ कहा या विरोध जताने की कोशिश की तो यह उस के लिए ठीक नहीं होगा. उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

विश्वास गुप्ता हनीप्रीत का पति था. पत्नी की हरकतें उस के लिए बरदाश्त से बाहर थीं. न चाहते हुए भी हलकाफुलका ही सही, हनीप्रीत और बाबा के संबंधों पर वह अंगुली उठाने लगा. फिर क्या था, उसे परेशानियों ने घेरना शुरू कर दिया. उसे जान का खतरा भी महसूस होने लगा. ऐसे में उसे हनीप्रीत से भी ज्यादा परिवार की चिंता सताने लगी.

उस के पिता का अच्छाखासा चलता कारोबार था, जिसे बाबा ने बिकवा कर करोड़ों की सारी रकम अपने डेरे में निवेश करवा दी थी. उस के बाद उस के घर वाले घरबार बेच कर डेरा सच्चा सौदा में ही रहने लगे थे.

डेरे की बदली स्थिति देख कर विश्वास गुप्ता हनीप्रीत को वहीं छोड़ कर किसी तरह अपने मांबाप के साथ डेरे से निकलने में कामयाब हो गया. पंचकूला में किराए का मकान ले कर एक बार फिर व्यवस्थित होने की कोशिश करने लगा. भले ही वह पंचकूला आ गया था, लेकिन हनीप्रीत ने उस का पीछा नहीं छोड़ा.

हनीप्रीत ने विश्वास गुप्ता के खिलाफ ही नहीं, उस के पूरे परिवार के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के अलावा डेरे की ओर से डीफेमेशन व चैक बाउंस के मुकदमे दर्ज करवा दिए गए.

विश्वास गुप्ता द्वारा बताए अनुसार, इन मुकदमों में जब वह विचाराधीन कैदी के रूप में पटियाला की सैंट्रल जेल में बंद था तो बाबा गुरमीत राम रहीम ने 10 लाख रुपए की सुपारी दे कर उसे जेल में मरवाने की कोशिश की थी. लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद बलवंत सिंह राजोआना ने उसे बचा लिया था.

विश्वास गुप्ता उस से अकसर बातें किया करता था. उसे विश्वास के बारे में सारी जानकारी थी. उसे पता था कि बाबा गुरमीत राम रहीम ने उस की पत्नी को हथिया कर उसे झूठे आरोपों में फंसा कर जेल भिजवा दिया है. जेल में अपराधी गिरोहों को 10 लाख रुपए की सुपारी दे कर उस की हत्या की कोशिश चल रही है. इसलिए यह बात उस ने जेलर को तो बता ही दी थी. यही नहीं, उस ने विश्वास गुप्ता की जान भी बचाई. बाबा के 10 लाख रुपए भी वापस भिजवा दिए गए थे.

हनीप्रीत ने बरबाद कर दिया ससुराल वालों को विश्वास गुप्ता ने जो बताया, उस के अनुसार, इस के बाद भी हनीप्रीत और बाबा गुरमीत राम रहीम ने ऐसेऐसे हथकंडे अपनाए कि वह परिवार के साथ बुरी तरह टूट गया. बाबा उन की करोड़ों की संपत्ति तो डकार ही गया था, झूठे मुकदमे दर्ज करवा कर सभी को खूब प्रताडि़त भी करवाया. विश्वास गुप्ता ने पत्नी हनीप्रीत को कभी कुछ नहीं कहा था, इस के बावजूद उस ने उस के परिवार को तरहतरह की धमकियां दे कर खूब परेशान किया.

डेरे के कोप से बचने के लिए विश्वास गुप्ता के सामने 2 शर्तें रखी गईं. पहली शर्त यह थी कि सत्संग के वक्त वह अपने परिवार को ले कर डेरे में आएगा और वह और उस के पिता डेरे के लाखों श्रद्धालुओं के सामने रोते हुए बाबा गुरमीत राम रहीम से माफी मांगेंगे. दूसरी शर्त यह थी कि वह हनीप्रीत से तलाक ले लेगा. यह सन 2009 की बात है.

विश्वास गुप्ता ने बाबा की ये दोनों ही शर्तें मानते हुए परिवार के साथ डेरे में जा कर बाबा से माफी भी मांगी और हनीप्रीत को तलाक भी दे दिया. इस के बाद उसे और उस के परिवार को डेरे की ओर कभी न देखने की चेतावनी दे कर भगा दिया गया था.

इस के बाद हनीप्रीत और उस का परिवार डेरे में ही रहने लगा था. उस के पिता रामानंद ने बेटे साहिल के साथ मिल कर सीड्स प्लांट का कारोबार शुरू कर दिया. हनीप्रीत की छोटी बहन निशा की शादी फतेहाबाद निवासी संजू बजाज से हुई तो डेरे की ओर से इस शादी में उम्मीद से बढ़ कर मदद की गई.

कहते हैं, धीरेधीरे हनीप्रीत इस तरह बाबा की चहेती बन गई कि डेरा में बाबा के बाद उसी का हुक्म चलता था. बाबा के परिवार में भी अगर किसी को किसी चीज की जरूरत होती थी तो वह बिना हनीप्रीत की अनुमति के नहीं मिलती थी. पैसों तक के लिए उन्हें हनीप्रीत के सामने हाथ फैलाने पड़ते थे.

बाबा गुरमीत राम रहीम जहां अपने घर वालों से भी कम मिलते थे, वहीं हनीप्रीत हमेशा उन के साथ रहती थी. बाबा जब फिल्में बनाने लगे तो हनीप्रीत को उन फिल्मों की नायिका बनाने के साथसाथ उन की सहनिर्देशक और सहनिर्मात्री भी बनाया गया.

कैटरीना कैफ बनने के सपने देख रही थी हनीप्रीत कहा जाता है कि हनीप्रीत खुद को परदे पर अभिनय करते हुए देखने को बेताब थी. वह कैटरीना कैफ बनने के सपने देख रही थी. उस की इसी इच्छा पूरी करने के लिए बाबा ने फिल्में बनाई थीं. कहते हैं, हनीप्रीत ने ही बाबा के मन में यह बात बैठा दी थी कि वह इतना बढि़या अभिनय करते हैं कि बड़ेबड़े फिल्मी सितारे उन के सामने बेकार हैं. इसी के बाद करोड़ों रुपए खर्च कर के बाबा फिल्में बनाने लगे थे.

बाबा अकसर हनीप्रीत को साथ ले कर मुंबई जाते थे,जहां दोनों ने कई फिल्मी सितारों से अच्छे रिश्ते बना लिए थे. उन के हिसाब से सब बहुत बढि़या चल रहा था. धार्मिक डेरे के नाम पर उन्होंने अपना ऐसा साम्राज्य स्थापित कर लिया था, जहां राजाओंमहाराजाओं जैसी सुखसुविधाएं उपलब्ध थीं. उन्हें लगता था कि जल्दी फिल्म इंडस्ट्री में भी उन की तूती बोलने लगेगी.

हनीप्रीत नायिका के रूप में सलमान खान के साथ एक ऐसी फिल्म में आना चाहती थी, जो तमाम भव्यता से बनाई जाए. उसे अपना यह सपना जल्दी पूरा होता भी नजर आ रहा था. क्योंकि इस फिल्म में बाबा गुरमीत राम रहीम को ही पैसा लगाना था, जो अकूत संपत्ति के मालिक तो थे ही, वह फिल्म पर पैसा लगाने को भी तैयार थे.

लेकिन एक बात यह भी सच है कि इंसान जैसे कर्म करता है, उसे वैसे ही फल भी भोगने पड़ते हैं. अपने बारे में ये लोग कुछ भी कहते रहे, पर सच्चाई यह थी कि इन के बुरे दिन शुरू हो गए थे. लोग कहने भी लगे थे कि बाबा गुरमीत राम रहीम ने जिंदगी में जो बुरे कर्म किए हैं, अब उन्हें उन का परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.

ऐसा ही हुआ भी. बाबा के खिलाफ चल रहे कई आपराधिक मामलों में डेरे की 2 साध्वियों से दुष्कर्म वाला मामला अंतिम चरण में था. 25 अगस्त, 2017 को 100 से ज्यादा गाडि़यों के काफिले के साथ बाबा पंचकूला पहुंचे तो हनीप्रीत भी उन के साथ थी. बाबा को अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद पंचकूला में दंगे भड़क उठे. इस बीच बाबा को एक हेलीकौप्टर में बिठा कर रोहतक की सुनारिया जेल ले जाया गया तो हनीप्रीत भी उन के साथ हेलीकौप्टर से गई थी.

रात में वह सफेद रंग की कार नंबर एचआर 26बीएस 5426 पर कुछ लोगों के साथ सवार हो कर सिरसा के लिए चल पड़ी थी. यहां तक अधिकांश लोगों को उस के बारे में यही जानकारी थी कि वह बाबा गुरमीत राम रहीम की मुंहबोली बेटी थी और अदालत से अनुमति ले कर अपने कथित पिताजी के साथ उन्हें जेल तक छोड़ने गई थी.

लेकिन इस के बाद हनीप्रीत का नाम रोज ही चर्चा में आने लगा. इस की वजह यह थी कि सिरसा स्थित डेरे पर पहुंचने के बाद वह गायब हो गई थी. दरअसल, बाबा की गिरफ्तारी के बाद पंचकूला में भड़के दंगों के आरोप में मुकदमे दर्ज कर के पुलिस ने गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि इन दंगों के पीछे डेरे के कुछ प्रमुख लोगों के अलावा मुख्यरूप से हनीप्रीत का हाथ था.

लिहाजा पुलिस की वांछित सूची में हनीप्रीत का नाम सब से ऊपर था. इस मामले की तह में जाने के लिए पुलिस की एसआईटी का गठन किया गया. 21 सितंबर को इस टीम के कुछ सदस्यों ने सिरसा जा कर डेरे पर छापा मार कर हनीप्रीत के बारे में जानकारियां जुटाने का प्रयास किया तो पता चला कि वह वहां रुकी तो थी, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही निकल गई थी.

पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में पता चला था कि इस दंगे की प्लानिंग पहले ही हो चुकी थी. डेरा ने 8 दिनों पहले ही पंचकूला का सर्वे करा लिया था. इसे ले कर कुल 10 मीटिंग हुई थीं.

23 सितंबर तक पंचकूला में हुई हिंसा को ले कर साढ़े 11 सौ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी थी. लेकिन हनीप्रीत के बारे में कहीं से कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल रही थी. उसी दिन बौलीवुड अदाकारा राखी सावंत के भाई राकेश सावंत ने सार्वजनिक रूप से खुलासा किया कि हनीप्रीत अब जिंदा नहीं है. चूंकि वह बाबा गुरमीत राम रहीम के कई राज जानती थी, इसलिए बाबा ने उसे मरवा दिया है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द की हनीप्रीत की जमानत याचिका हरियाणा के डीजीपी बी.एस. संधू को पूरी उम्मीद थी कि हनीप्रीत जल्दी ही पकड़ी जाएगी. उन्होंने संकेत भी दिया था कि अगर वह पकड़ी न गई तो पुलिस उसे भगोड़ा घोषित कर देगी.

25 सितंबर को बाबा की ओर से उस के वकीलों ने सीबीआई द्वारा सुनाई 20 साल कैद की सजा को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी. उसी दिन बाबा गुरमीत राम रहीम के बेटे जसमीत की पत्नी खुशप्रीत के ममेरे भाई भूपेंद्र सिंह गोरा ने हनीप्रीत की सूचना देने वाले को 5 लाख रुपए रकद ईनाम देने की घोषणा कर दी.

उसी दिन दिल्ली के हाईकोर्ट में हनीप्रीत की ओर से 3 हफ्ते का ट्रांजिट बेल हासिल करने की याचिका दायर कर दी गई, जिस पर  26 सितंबर को सुनवाई हुई. जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

रात में पौने 8 बजे सुनाए अपने फैसले में सक्षम न्यायाधीश ने हनीप्रीत को अंतरिम ट्रांजिट बेल देने की याचिका रद्द कर दी. उस की ओर से दी जाने वाली एक भी दलील को अदालत ने नहीं माना. उन्होंने कहा कि अगर हनीप्रीत खुद को कानून की इज्जत करने वाला मानती है तो आगे आ कर जांच में मदद करे.  पर हनीप्रीत तो शायद दूसरी मिट्टी की बनी थी. वह छिपतीछिपाती दिल्ली के लाजपतनगर स्थित वकील प्रदीप कुमार आर्य के औफिस पहुंच गई और वहां 2 घंटे तक रुकी पर आत्मसमर्पण नहीं किया. वह अच्छी तरह जानती थी कि पुलिस ने कुछ लोगों के साथ उस का भी गिरफ्तारी वारंट हासिल कर लिया है. किसी बात की चिंता किए बगैर हनीप्रीत ट्रांजिट बेल की अर्जी रद्द होने के बाद एक बार फिर अंडरग्राउंड हो गई.

3 अक्तूबर की सुबह अचानक ‘आजतक’ टीवी चैनल पर उस का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू शुरू हुआ, जो दिन भर बारबार दिखाया जाता रहा.

यह भी बताया गया कि पिछली रात साढ़े 11 बजे हनीप्रीत का इंटरव्यू करने के लिए आजतक के औफिस में इस निर्देश के साथ फोन आया कि इंटरव्यू की खातिर सिर्फ एक रिपोर्टर व एक फोटोग्राफर ही बताई गई जगह पर पहुंचेंगे.

रिपोर्टर सतिंदर चौहान अपने कैमरामैन के साथ तय जगह पर पहुंच गए, जहां उन के चेहरों पर काले मास्क चढ़ा कर उन्हें दूसरी गाड़ी में बैठा कर ले जाया गया. जहां इन के चेहरों से मास्क हटाया गया तो वहां हनीप्रीत मौजूद थी.

बिना मेकअप के हनीप्रीत पहचान में नहीं आ रही थी. साक्षात्कार में ज्यादातर रोते हुए वह खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश कर रही थी. इंटरव्यू के अंत में रिपोर्टर ने उसे सलाह दी कि 38 दिनों से वह जो लुकाछिपी का खेल खेल रही है, उस के लिए बेहतर यही है कि वह आत्मसमर्पण कर दे.

जब हनीप्रीत चढ़ी पुलिस के हत्थे पर हनीप्रीत ने ऐसा नहीं किया. अब तक वह नेपाल सहित 7 राज्यों की पुलिस को गच्चा दे चुकी थी. उसका सोचना था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी. लिहाजा शिमला रोड पर पंचकूला को पार कर के पटियाला जाने के लिए वह जीरकपुर क्रौस कर गई. 3 अक्तूबर की दोपहर को वह जीरकपुर से थोड़ा आगे गई थी कि पंचकूला पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस समय उस के साथ एक अन्य महिला थी. वह बठिंडा की सुखप्रीत कौर थी, जिस का पति हनीप्रीत का ड्राइवर था.

शुरुआती पूछताछ में हनीप्रीत बस एक ही बात कहती रही कि उसे कुछ याद नहीं है और वह तथा बाबा गुरमीत राम रहीम निर्दोष हैं. अगले दिन उसे सीजेएम की अदालत पर पेश कर के 6 दिनों के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. लेकिन पुलिस उस से कुछ भी उगलवा नहीं सकी. 3 दिनों का रिमांड और बढ़ाया गया. आखिर हनीप्रीत टूट गई और उस ने माना कि बाबा गुरमीत राम रहीम को छुड़ा कर भगाने की खातिर ही पंचकूला में दंगा करवाने की योजना बनाई गई थी, जिस में वह भी शामिल थी.

दरअसल, पहले तो उन्हें लगता ही नहीं था कि दुष्कर्म के आरोप में बाबा को सजा होगी. उस ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि वे तो यह सोच कर चले थे कि खुशीखुशी पंचकूला जाएंगे और खुशीखुशी लौट आएंगे. लेकिन उन्हें इस बात की भी आशंका थी कि अगर अदालत ने बाबा को दोषी ठहराते हुए जेल भेज दिया तो बड़ी बदनामी होगी.

इसी आशंका के तहत जो योजना बनाई गई, उस का संचालन हनीप्रीत और कुछ अन्य लोगों को करना था. इस संबंध में डेरे के अंदर कई बैठकें हुईं. 17 अगस्त, 2017 को जो अंतिम निर्णय लिया गया, उस के लिए 5 करोड़ रुपए मुहैया कराए गए.

योजना के अनुसार, 25 अगस्त को पंचकूला की सीबीआई कोर्ट के पास लाखों लोगों को इकट्ठा करना था. उन लोगों को यही कहना था कि वे अपने गुरुजी के दर्शन को आए हैं. चूंकि सभी लोग खाली हाथ रहेंगे, इसलिए धार्मिक भावना के चलते उन से ज्यादा टोकाटाकी नहीं होगी. आने वालों को प्रति व्यक्ति एक हजार रुपए अदा करना था.

अगर बाबा बरी हो जाते तो वे बाबा की जयकार करते हुए उन्हें ट्राइसिटी में घुमाते. लेकिन अगर कहीं अदालत बाबा को दोषी करार देते हुए गिरफ्तार करने का आदेश देती तो वे हंगामा शुरू कर देते.

पुलिस इन्हें संभालने लगती तो उसी बीच हथियारों से लैस गुंडे आ कर बाबा को छुड़ा ले जाते. उन गुंडों को मोटी रकम दी गई थी. पूछताछ में हनीप्रीत ने माना कि दंगा करवाने के लिए उस ने उन्हें सवा करोड़ रुपए एडवांस दिए थे. असलियत सामने लाने के लिए पुलिस हनीप्रीत का ब्रेन मैपिंग करवाना चाहती है.

कस्टडी रिमांड के दौरान 8 अक्तूबर को हनीप्रीत ने करवाचौथ का व्रत रखा. यह व्रत किस के लिए रखा, इस बारे में उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. बाद में पता चला कि दोपहर में ही उस ने व्रत तोड़ कर खाना खा लिया था.

हनीप्रीत ने बनाई थी दंगे की योजना पुलिस पूछताछ में हनीप्रीत ने 10 अक्तूबर को बताया कि बाबा को दोषी करार दिए जाने से पहले ही समर्थक पंचकूला पहुंचने लगे थे. वहां से वीडियो बना कर हनीप्रीत को भेजी जाती रही. हनीप्रीत देखती रही कि कहां समर्थक ज्यादा हैं और कहां लोगों को व्यवस्थित करना है. इस के बाद वह दोबारा वीडियो बना कर उसे वायरल करती.

इस तरह दिन में 10-12 वीडियो बनवाए जाते थे. हनीप्रीत ने माना कि दुनिया से हिंदुस्तान का नक्शा मिटाने का वीडियो बना कर उसी ने वायरल किया था. उस की निशानदेही पर पुलिस ने कई दस्तावेज बरामद किए. सिरसा डेरे से उस का निजी मोबाइल और लैपटौप भी बरामद किया गया. एक बार डेरे की चेयरपरसन विपासना इंसां को भी हनीप्रीत के सामने बैठा कर साढ़े 4 घंटे तक पूछताछ की गई.

सुनारिया जेल, रोहतक से निकल कर पहले वह सिरसा स्थित डेरे पर आई और वहां तमाम दस्तावेज नष्ट कर के वह कुछ दस्तावेजों और धनदौलत के साथ राजस्थान से ले कर नेपाल तक कई स्थानों पर छिपती रही. उस ने ज्यादातर समय बठिंडा में अपने ड्राइवर की पत्नी सुखदीप कौर के यहां बिताया, जो आखिर तक उस के साथ रही और दोषी को पनाह देने के आरोप में गिरफ्तार की गई. अन्य आरोपों के अलावा हनीप्रीत पर देशद्रोह का केस भी दर्ज है.

13 अक्तूबर को कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर हनीप्रीत और सुखदीप कौर को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में अंबाला की सैंट्रल जेल भेज दिया गया. हनीप्रीत अदालत से रोरो कर एक ही गुहार लगाती रही कि उसे कहीं और न भेज कर बाबा गुरमीत राम रहीम वाली जेल में भेजा जाए.

उसी बीच खबर आई कि 16 अक्तूबर को बाबा गुरमीत राम रहीम के परिवार के लोग उस से मिलने सुनारिया जेल पहुंचे तो बाबा अपनी पत्नी हरजीत कौर से मिल कर फूटफूट कर रोया. उस के बाद परिवार के अन्य सदस्यों से मिला. उस की दाढ़ी और सिर के बाल सफेद हो चुके थे. चेहरे पर झुर्रियां भी झलकने लगी थीं.

18 अक्तूबर को डीजीपी (जेल) के.पी. सिंह से अनुमति ले कर हनीप्रीत के पिता रामानंद तनेजा, मां आशा तनेजा, भाई साहिल तनेजा, भाभी सोनाली और कजिन सिद्धार्थ सिंगला उस से मिलने अंबाला की जेल पहुंचे. यहां हनीप्रीत को जेल की .32 चक्की की 11 नंबर सैल में कड़ी सुरक्षा में रखा गया था. मिठाई और मोमबत्ती ले कर वहां पहुंचे घर वालों से उस की मुलाकात कांच के मोटे शीशे के पीछे से और बातचीत इंटरकौम पर करवाई गई.

हनीप्रीत से की गई पूछताछ के आधार पर गिरफ्तार हो रहे हैं लोग हनीप्रीत द्वारा की गई पूछताछ के आधार पर लगभग रोज ही किसी न किसी को गिरफ्तार किया जा रहा है. 19 अक्तूबर को गिरफ्तार किए गए डेरे से जुड़े 2 लोगों सी.पी. अरोड़ा और लालचंद ने पूछताछ में बताया कि बिगड़ते हालात को देख कर जब सरकार ने इंटरनेट बंद करने के आदेश दिए तो उन लोगों ने 100 वायरलैस सैट मंगवा लिए थे, जिन की फ्रीक्वेंसी कई किलोमीटर की एरिया में काम करती थी.

पंचकूला के सैक्टर-3 में एक कंट्रोल रूम बनाया गया था, ताकि संदेश आराम से फ्लैश हो सके. इन सेटों के इस्तेमाल के लिए एक खास टीम लगाई गई थी, जो उन लोगों से संपर्क करती थी, जिन्हें 17 अगस्त को डेरा में हुई विशेष मीटिंग के दौरान हनीप्रीत और डेरा के डा. आदित्य इंसां ने जिम्मेदारियां सौंपी थीं. ऐसे ही एक सेट से सी.पी. अरोड़ा ने सैक्टर 2 और 4 की डिवाइडिंग रोड पर दंगा भड़काने का संदेश प्रसारित करवाया था.

उसी के बाद ढकौली की ओर जाने वाले हाईवे पर इकट्ठा हुए लोगों को पता चला था कि बाबा को दोषी करार दे दिया गया है. इस के बाद बाबा के समर्थकों की भीड़ भड़क उठी थी, जिस में आ मिले असामाजिक तत्वों ने भयंकर गुंडागर्दी शुरू कर दी थी.

पकड़े गए लोगों के अनुसार, हनीप्रीत के निर्देश पर सारा काम प्लानिंग के अनुसार किया गया था. अगर उन की यह योजना सफल हो जाती तो आज बाबा गुरमीत राम रहीम जेल में न होता. हनीप्रीत भी खुला घूम रही होती.

हनीप्रीत के घर के कुछ लोगों को आज इस बात का भारी अफसोस है कि उन की सीधीसादी और भोलीभाली प्रियंका तनेजा ने हनीप्रीत बन कर खुद को परेशानियों के दलदल में झोंक दिया है. शादी के बाद उस ने घर संभाल रखा होता तो आज वह जवान हो रहे बच्चों की मां होती. चमकदमक के चक्कर में फंसी हनीप्रीत ने हमदर्दी वाला कोई काम नहीं किया.  ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

बंगलों के चोर

मुंबई शहर के मुलुंड इलाके के रहने वाले सुरेश एस. नुजाजे एक होटल व्यवसायी थे. मुंबई के अलावा उन के बेंगलुरु और दुबई में भी होटल थे. इस के अलावा ठाणे जिले की तहसील शहापुर के खंडोबा गांव में उन का एक फार्महाउस के रूप में ‘ॐ’ नाम का बंगला भी था. वैसे तो 48 वर्षीय सुरेश एस. नुजाजे अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहते थे, लेकिन समय निकाल कर अपने परिवार के साथ वह ठाणे स्थित बंगले में आते रहते थे. यहां 4-5 दिन रह कर वह मुंबई लौट जाते थे.

जुलाई, 2019 के दूसरे सप्ताह में भी वह 8 दिनों के लिए परिवार के साथ अपने इस बंगले में आए थे. मुंबई पहुंचने के बाद उन्हें खबर मिली कि बंगले में रहने वाले 8 कुत्तों में से एक कुत्ता बीमार है. उस की बीमारी की खबर सुन कर वह परिवार को मुंबई छोड़ कर अकेले ही कुत्ते के इलाज के लिए फिर से अपने बंगले पर पहुंच गए.

उन्होंने अपने बीमार कुत्ते का इलाज कराया. उन के बंगले की सफाई आदि करने के लिए दीपिका नामक एक महिला आती थी. हमेशा की तरह 19 जुलाई, 2019 को भी वह सुबह करीब 7 बजे बंगले पर पहुंची. उसे सुरेश नुजाजे के बैडरूम की भी सफाई करनी थी, लिहाजा उन के बैडरूम में जाने से पहले उस ने दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खटखटाने और आवाज देने के बाद भी जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह अपने साहब को आवाज देते हुए उन के कमरे में चली गई. तभी उस ने देखा कि उस के मलिक सुरेश नुजाजे बैड से नीचे पड़े थे. उन के हाथ बंधे दिखे.

दीपिका ने उन्हें गौर से देखा तो वह लहूलुहान हालत में थे. उन के हाथों के अलावा पैर भी बंधे थे और उन के पेट पर घाव थे. दीपिका ने उन्हें उठाने की कोशिश की पर वह नहीं उठे और न ही कुछ बोले. वह डर गई और बाहर की ओर भागी. वह सीधे वहां रहने वाले जगन्नाथ पवार के कमरे पर गई. उस ने जगन्नाथ पवार को यह खबर दी.

जगन्नाथ पवार ने उसी समय फोन द्वारा उपसरपंच नामदेव दुधाले और भाई रमेश पवार को बता दिया कि सुरेश नुजाजे बंगले में लहूलुहान हालत में हैं. जगन्नाथ पवार के बुलावे पर दोनों उस के पास पहुंच गए.

इस के बाद वे तीनों इकट्ठे हो कर सुरेश नुजाजे के बंगले पर दीपिका के साथ गए. जब उन्होंने बंगले में जा कर देखा तो सुरेश नुजाजे अपने बैडरूम में मृत हालत में थे. यानी किसी ने उन की हत्या कर दी थी.

इस के बाद जगन्नाथ पवार ने मोबाइल फोन से शहापुर पुलिस को सूचना दे दी. हत्या की सूचना मिलने के बाद शहापुर थाने से इंसपेक्टर घनश्याम आढाव, एसआई नीलेश कदम, हवलदार बांलू अवसरे, कैलाश पाटील, कांस्टेबल सुरेश खड़के को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

खून से लथपथ मिली लाश जब वे ‘ॐ’ बंगले में गए तब वहां उन्हें सुरेश नुजाजे की खून से लथपथ लाश मिली. लाश फर्श पर लकड़ी की मेज के पास पड़ी थी. उन के बगल में एक नीले रंग का तकिया गिरा पड़ा था. साथ ही उन के बैडरूम में लकड़ी की 2 अलमारियां उखड़ी हुई थीं.

अलमारियों का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. शोकेस भी टूटा हुआ था. साथ ही बैड पर मच्छर मारने का इलैक्ट्रिक रैकेट टूटी हुई अवस्था में नजर आया. किसी ने सुरेश के दोनों पैर टावेल से मजबूती से बांधे थे और दोनों हाथ लाल रंग की शर्ट से बांधे थे.

पुलिस को वैसे तो लग ही रहा था कि सुरेश नुजाजे की मृत्यु हो चुकी है लेकिन वहां मौजूद लोगों के अनुरोध पर पुलिस उन्हें इलाज के लिए शहापुर के सरकारी अस्पताल ले गई लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने प्रारंभिक जांच में पाया कि गंभीर रूप से घायल करने के बाद हत्यारों ने इन का गला घोंटा था.

इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने इस वारदात की खबर एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर और एसडीपीओ दीपक सावंत, क्राइम ब्रांच के इंचार्ज व्यंकट आंधले को दी. कुछ ही देर में ये सभी अधिकारी अस्पताल पहुंच गए.

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया. जांच में पुलिस ने देखा कि बंगले के पीछे का गेट खुला था. इस के अलावा बंगले की खिड़की का ग्रिल भी उखड़ा हुआ था. हत्यारे ग्रिल उखाड़ कर सरकने वाली कांच की खिड़की सरका कर बैडरूम में घुसे थे.

बैडरूम की उखड़ी अलमारियों और शोकेस के टूटने पर पुलिस ने अंदाजा लगाया कि ये हत्यारों ने लूटपाट के इरादे से किया होगा, तभी तो अलमारियों का सामान कमरे में फैला है. इस जांच से यही पता चल रहा था कि सुरेश नुजाजे की हत्या लूट के इरादे से की गई होगी.

पुलिस ने अंदाजा लगाया कि अंदर घुसने पर बंगले के मालिक सुरेश नुजाजे ने शायद बदमाशों का विरोध किया होगा, फिर बदमाशों ने हाथपैर बांधने के बाद उन की हत्या कर दी होगी.

मृतक के घर वाले भी आ चुके थे. उन्होंने पुलिस को बताया कि सुरेश के हाथ की अंगूठियां, ब्रेसलेट, गले में सोने की चेन रहती थी. अलमारी में भी लाखों रुपए रखे रहते थे. ये सब गायब थे. क्राइम ब्रांच ने मौके से कई साक्ष्य जुटाए. एसपी (ग्रामीण) डा. शिवाजी राव राठौर ने हत्या के इस केस को खोलने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया.

पुराने अपराधियों की हुई धरपकड़  पुलिस टीम ने पुराने अपराधियों के रिकौर्ड खंगालने शुरू किए. उन में से कुछ को पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया. उन से पूछताछ की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. कोंकण परिक्षेत्र के स्पैशल आईजी निकेत कौशिक टीम के सीधे संपर्क में थे. इस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीम भी मामले की समानांतर जांच कर रही थी.

क्राइम ब्रांच की टीम में सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले, इंसपेक्टर प्रमोद गड़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, गणपत सुले, शांताराम महाले, कांस्टेबल आशा मुंडे, जगताप राय, एएसआई वेले, हैडकांस्टेबल चालके, अमोल कदम, गायकवाड़ पाटी, सोनावणे, थापा आदि शामिल थे.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच की. जांच के दौरान एक खबरची ने पुलिस को सूचना दी कि जिन लोगों ने सुरेश नुजाजे के बंगले में वारदात को अंजाम दिया, वे भिवंडी इलाके के नवजीवन अस्पताल के पीछे स्थित एक टूटीफूटी इमारत में छिपे हुए हैं.

इस सूचना पर सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले अपनी पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए और वहां उस बिल्डिंग को चारों ओर से घेर कर उस में छिपे चमन चौहान (25 वर्ष), अनिल सालुंखे (32 वर्ष) और संतोष सालुंखे (35 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया.

उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने सुरेश नुजाजे की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उन से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर पुलिस ने 22 जुलाई, 2019 को औरंगाबाद से उन के साथी रोहित पिंपले (19 वर्ष), बाबूभाई चौहान (18 वर्ष) व रोशन खरे (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया. ये सभी बदमाश महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले थे.

पूछताछ में पता चला कि कत्लेआम के साथ डकैती करने वाली यह अंतरराज्यीय टोली दिन में गुब्बारे या अन्य चीजें बेचने का बहाना कर रेकी करती और रात में वारदात को अंजाम देती थी. इसी तरह इस टोली के सदस्यों ने सुदेश नुजाजे के बंगले की रेकी की थी.

तकिए से मुंह दबा कर घोंटा था गला  वारदात के दिन जब ये बदमाश उन के बंगले के पास गए, तब चोरों की आहट से सुरेश सतर्क हो चुके थे. फिर मौका देख कर ये किसी तरह उन के बंगले में घुस गए. सुरेश ने इन का विरोध किया, पर इतने लोगों का वह मुकाबला नहीं कर सके. बदमाशों ने उन के हाथपैर बांध कर उन पर फावड़े के हत्थे से प्रहार किया.

वहीं बैडरूम में पड़े तकिए से उन का मुंह दबा कर उन्हें मार दिया. कत्ल के बाद सुरेश के शरीर के सारे जेवरात उन्होंने उतार लिए. लकड़ी की अलमारी उखाड़ कर उन्होंने उस में रखे 28 हजार रुपए भी निकाल लिए. हत्या और डकैती की वारदात को अंजाम दे कर वे वहां से फरार हो गए.

पूछताछ में उन्होंने उस इलाके में 17 वारदातों को अंजाम देने की बात स्वीकार की. सुरेश नुजाजे के बंगले के पास ही दूर्वांकुर और शिवनलिनी बंगले में भी इन अभियुक्तों ने दरवाजे तोड़ कर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था.

पुलिस ने इन बदमाशों से बरमा, तराजू, पेचकस, एक मोटरसाइकिल एवं बोलेरो कार के साथ सोनेचांदी के जेवरात भी बरामद किए. पुलिस को पता चला कि इस टोली के साथ कुछ महिलाएं भी अपराध में शामिल रहती हैं. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के साथ की 2 महिलाओं को भी हिरासत में ले लिया.

इस अपराध में पुलिस के पास कोई भी सुराग न होने के बावजूद भी स्थानीय पुलिस ने न सिर्फ मर्डर और डकैती की घटना का खुलासा किया, बल्कि 17 अन्य वारदातों को भी खोल दिया. स्पैशल आईजी निकेत कौशिक ने इस केस को खोलने वाली टीम की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन किया.