पुलिस वाली ने लिया जिस्म से इंतकाम -भाग 2

करीब 250 सीसीटीवी फुटेज को खंगालने के बाद 15 अगस्त की रात शिवाजी की कुर्ला रेलवे स्टेशन से बाहर निकलने की एक फुटेज कैमरे में मिल ही गई.

जांच आगे बढ़ी तो पनवेल के बस स्टैंड पर बस पकड़ने के लिए पैदल चलते एक और सीसीटीवी कैमरे में उन की फुटेज मिल गई. कडि़यों को जोड़ते हुए सड़क को कवर करने वाले सीसीटीवी कैमरों को भी खंगालना शुरू किया तो एक कैमरे में वह वारदात भी कैद मिली, जिस में शिवाजी को तेज रफ्तार नैनो कार कुचलती हुई आगे निकली थी.

इस से एक बात साफ हो गई कि घटना वाली रात करीब 2 किलोमीटर दूर जो नैनो कार जली मिली, उस का संबंध शिवाजी सानप से ही था.

अब नेहरू नगर के सीनियर पीआई अजय कुमार लांडगे को यह समझ आने लगा कि शिवाजी के परिवार ने उन की हत्या की जो आशंका जताई थी, उस में जरूर सच्चाई छिपी थी क्योंकि अगर शिवाजी की मौत सिर्फ हादसा होती तो नैनो कार को जलाने की जरूरत ही नहीं थी.

यानी साफ था कि कातिल सबूत मिटाने के लिए कत्ल के लिए इस्तेमाल हुई कार को जला कर सबूत खत्म करना चाहता था. पुलिस ने जब कुछ और कैमरों को खंगाला तो पता चला कि उस में 2 लोग सवार थे.

पुलिस ने एक्सपर्ट की मदद से कार में बैठे दोनों लोगों की तसवीर जूम कर के तैयार करवाई. पहले पुलिस ने अपने रिकौर्ड खंगाले कि कहीं ऐसा तो नहीं किसी पुराने अपराधी ने शिवाजी से अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने के लिए उन की योजनाबद्ध तरीके से हत्या कर दी हो. पुलिस रिकौर्ड में जितने भी अपराधी दर्ज थे, सीसीटीवी से मिले फोटो कहीं भी मैच नहीं हुए.

इस दौरान पुलिस की एक दूसरी टीम जो इस बात की जांच कर रही थी कि शिवाजी सानप की तैनाती कहांकहां रही और उन का रिकौर्ड कैसा था. इस बिंदु पर तफ्तीश करने वाली पुलिस टीम को एक और कहानी पता चली.

कहानी के मुताबिक, साल 2019 में शीतल पंचारी नाम की एक महिला कांस्टेबल ने शिवाजी के खिलाफ 2 अलगअलग पुलिस थानों में 2 रिपोर्ट लिखाई थीं.

ये दोनों रिपोर्ट छेड़खानी और यौनशोषण की थीं. नई कहानी सामने आने के बाद पुलिस ने 2019 में झांकने का फैसला किया, तब एक नई कहानी सुनने को मिली.

दरअसल, 2019 तक शिवाजी सानप और शीतल पंचारी मुंबई के नेहरू नगर पुलिस स्टेशन में एक साथ काम करते थे. इन दोनों के बीच काफी गहरे रिश्ते भी थे. लेकिन फिर अचानक रिश्तों में काफी कड़वाहट आ गई. दोनों के बीच झगड़े होने लगे और इसी झगड़े के बाद 2019 में शीतल ने 2 अलगअलग पुलिस थानों में शिवाजी के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी.

यह बात शिवाजी की पत्नी और साले को भी पता थी. यही वजह है कि दोनों ने यह शक जताया कि शिवाजी की मौत सड़क हादसा नहीं, बल्कि कत्ल है और इस कत्ल में शीतल का हाथ होने का उन्होंने इशारा किया था.

पनवेल पुलिस स्टेशन नवी मुंबई के जोन-2 एरिया में आता है जिस के डीसीपी हैं शिवराज पाटिल. मामला चूंकि एक पुलिस वाले की मौत का था और शक की सुई विभाग की ही एक महिला कांस्टेबल की तरफ घूम रही थी.

इसलिए इंसपेक्टर लांडगे और एसीपी भगवत सोनावने ने शीतल पंचारी के बारे में डीसीपी पाटिल को बताया गया तो उन्होंने लांडगे को क्लीन चिट दे दी कि कोशिश कर के शीतल के खिलाफ पहले सबूत एकत्र करें, उस के बाद ही उस पर हाथ डालें.

लेकिन अभी तक शीतल के खिलाफ केवल शक था. पुलिस के पास कोई सबूत नहीं था कि वह उसे कातिल ठहरा सके. इसीलिए इंसपेक्टर लाडंगे ने अपनी टीम को बड़ी खामोशी के साथ शीतल के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के काम पर लगा दिया.

शीतल उस समय शस्त्र शाखा में काम कर रही थी. पुलिस ने शीतल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा ली. इतना ही नहीं, उस के सोशल मीडिया अकांउट का पता लगा कर उस में भी झांकना शुरू किया, कोशिश रंग लाई.

शीतल के इंस्टाग्राम पर पुलिस को एक मर्द का चेहरा और एक पोस्ट नजर आई, जिस का नाम धनराज यादव था. पुलिस ने शीतल के परिचितों को खंगालना शुरू किया तो जानकारी मिली कि धनराज यादव पेशे से एक बस ड्राइवर है.

शीतल की इंस्टाग्राम पर धनराज से दोस्ती हुई थी. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि शीतल ने धनराज से दोस्ती करने के 5 दिनों बाद ही उस से शादी कर ली. यह बात 2019 के आखिर की है.

यह अपने आप में हैरानी की बात जरूर थी. इंसपेक्टर लांडगे को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं धनराज यादव ने ही अपनी पत्नी के साथ हुए यौन शोषण का बदला लेने के लिए शिवाजी की सड़क हादसा कर हत्या कर दी हो. वह पेशे से ड्राइवर भी था.

पुलिस को लगने लगा कि कातिल अब उस से एक हाथ की दूरी पर है. गुपचुप तरीके से शीतल के जानकारों से पुलिस ने पता कर लिया कि धनराज तमिलनाडु का रहने वाला है. शादी के सिर्फ एक महीने बाद ही धनराज रहस्यमय तरीके से अचानक शीतल को छोड़ कर तमिलनाडु चला गया. उस के बाद धनराज को किसी ने नहीं देखा.

डीसीपी शिवराज पाटिल को केस की इस नई जानकारी का पता चलने पर एक टीम को तमिलनाडु भेज दिया गया. एक सप्ताह तक सुरागरसी करतेकरते पुलिस टीम आखिर तमिलनाडु में धनराज के घर तक पहुंच गई और उसे पकड़ कर मुंबई ले आई.

हालांकि पुलिस ने नैनो कार में बैठे जिन 2 लोगों की सीसीटीवी फुटेज हासिल की थी, उन से धनराज का चेहरा कहीं भी मेल नहीं खाता था. लेकिन फिर भी उस से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ तो नई जानकारी मिली.

उस ने कुबूल कर लिया कि उस ने इंस्टाग्राम पर कांस्टेबल शीतल से दोस्ती करने के बाद 5 दिनों में ही शादी कर ली थी, लेकिन एक महीने के बाद ही वह शीतल को छोड़ कर अपने गांव चला गया था.

‘‘क्यों, ऐसा क्यों किया तुम ने?’’ इंसपेक्टर लांडगे ने सवाल किया.

‘‘सर, मैं बहुत डर गया था. पहले तो दोस्ती करने के बाद इतनी जल्द मेरे जैसे ड्राइवर से एक पुलिस वाली के शादी करने का राज ही मेरी समझ में नहीं आया था. लेकिन शादी के 5 दिन बाद ही जब शीतल ने मुझ से एक खतरनाक काम करने के लिए कहा तो मेरी समझ में आ गया कि उस ने अपना काम कराने के लिए मुझ से शादी की है और मुझे हथियार बनाना चाहती है.’’ धनराज ने सहमते हुए एकएक राज उगलना शुरू कर दिया.

लड़की नहीं खिलौना : धर्म के नाम पर बनाया मोहरा

जिला: सोनभद्र, उत्तर प्रदेश. तारीख: 21 सितंबर 2020. वक्त: अपराह्न 3 बजे. स्थान: वाराणसी-शक्ति नगर राजमार्ग.  इस राजमार्ग पर वन विभाग के एक भुखंड की झाडि़यों में किसी युवती की सिर कटी लाश मिली. जिस झाड़ी में लाश पड़ी थी, वह मुख्य मार्ग से 10 मीटर अंदर थी.

यह खबर तेजी से फैली. कुछ ही देर में स्थानीय लोगों का वहां जमावड़ा लग गया. वहां के चौकीदार ने लाश देखी तो तत्काल स्थानीय थाना चोपन को लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही चोपन थाना इंसपेक्टर नवीन तिवारी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. लाश घासफूस से ढकी हुई थी, जिसे हटवा कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र लगभग 20-25 साल के बीच रही होगी. उस के धड़ पर जींस पैंट, टीशर्ट और पैरों में जूते थे. कपड़ों के साथ जूते भी काले रंग के थे.

इंसपेक्टर तिवारी ने आसपास सिर की तलाश कराई, लेकिन सिर कहीं नहीं मिला. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर पाया. लाश के फोटो आदि करवाने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. फिर थाने वापस लौट गए.

थाने में चौकीदार को वादी बना कर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

लाश की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. वह फोटो देखने के बाद मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर-7 निवासी लक्ष्मी नारायण सोनी अपनी छोटी बेटी शर्मिला के साथ थाना चोपन पहुंचे. जिस वन भूखंड में लाश मिली थी, वह प्रीतनगर में ही आता था.

थाने पहुंचे लक्ष्मी नारायण ने मृतका के कपड़ों, जूतों व शरीर की बनावट के आधार पर लाश की शिनाख्त कर दी. वह उन की 21 वर्षीया बेटी प्रिया सोनी थी. लक्ष्मी नारायण ने बताया कि प्रिया ने उन की मरजी के बिना पड़ोसी युवक एजाज अहमद उर्फ आशिक से प्रेम विवाह कर लिया था और फिलहाल वह ओबरा में रह रही थी.

शिनाख्त होने के बाद मृतका के संबंध में कुछ अहम बातें पता चलीं तो इंसपेक्टर तिवारी ने राहत की सांस ली. लेकिन अभी तक प्रिया का सिर बरामद नहीं हुआ था. देर रात एएसपी (मुख्यालय) ओ.पी. सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

जबकि एसपी आशीष श्रीवास्तव ने मोर्चरी पहुंच कर प्रिया की लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने स्वाट टीम प्रभारी प्रदीप सिंह को और सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को थाना पुलिस की मदद के लिए लगा दिया ताकि जांच तेजी से और जल्दी हो.

अगले दिन यानी 22 सितंबर को फिर से घटनास्थल पहुंच कर सिर की तलाश शुरू की गई. तलाशी के दौरान एक झाड़ी से लोहे की रौड और एक फावड़ा मिला.

फावड़ा मिलने से यह संभावना बढ़ गई कि हत्यारों ने सिर को कहीं जमीन में गड्ढा खोद कर दफनाया होगा. फावड़ा मिलने से तलाश तेज की गई तो एक झाड़ी से प्रिया का सिर मिल गया. सिर लाश मिलने वाली जगह से 150 मीटर की दूरी पर मिला.

इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने प्रिया के पति एजाज अहमद और उस के संपर्क में रहने वालों की लिस्ट बनाई. उन के मोबाइल नंबरों का पता लगा कर सारे नंबर सर्विलांस प्रभारी सरोजमा सिंह को सौंप दिए गए.

सरोजमा सिंह और स्वाट प्रभारी प्रदीप सिंह ने उन सभी नंबरों की लोकेशन व काल रिकौर्ड की जांच की तो प्रिया का पति एजाज शक के घेरे में आ गया.

 संदेह के फंदे में एजाज

प्रिया और एजाज के मोबाइल नंबरों के काल रिकौर्ड की जांच की गई तो घटना के दिन दोपहर में दोनों के बीच बातचीत होने के सुबूत मिले. बातचीत के समय प्रिया की लोकेशन ओबरा में थी. बात होने के बाद प्रिया की लोकेशन ओबरा से होते हुए घटनास्थल तक आई. सड़क किनारे जिस जगह प्रिया की लाश मिली. उस के दूसरे किनारे पर एजाज की टायर रिपेयरिंग की दुकान थी.

पुख्ता साक्ष्य मिलने के बाद इंसपेक्टर नवीन तिवारी ने 24 सितंबर को शाम साढ़े 5 बजे बग्घा नाला पुल के नीचे से एजाज अहमद को उस के साथी शोएब के साथ गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयां कर दी.

लक्ष्मीनारायण सोनी का परिवार जिला सोनभद्र के थाना चोपन के मोहल्ला प्रीतनगर के वार्ड नंबर 7 में रहता था. उन की पत्नी सुमित्रा का देहांत हो चुका था. उन की 4 बेटियां थीं— प्रीति, शीना, प्रिया और शर्मिला. प्रीति और शीना का विवाह हो चुका था.

लक्ष्मी नारायण ‘कन्हैया स्वीट हाउस ऐंड रेस्टोरेंट’ पर काम करते थे. इसी नौकरी से वह घर का खर्च चलाते थे. उन की सभी बेटियां होनहार और समझदार थीं. उन्होंने दिल लगा कर पढ़ाई की और जब कुछ करने लायक हुई तो नौकरी करने लगीं, जिस से खुद का खर्च स्वयं उठा सकें.

प्रिया ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण कर ली थी. गोरा रंग, आकर्षक चेहरा और छरहरा बदन प्रिया की अलग पहचान बनाते थे. इसीलिए वह आसानी से किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी. महत्त्वाकांक्षी प्रिया फैशनेबल कपड़े पहनती थी, मौडर्न बनने की चाह में वह अपने बालों को अलगअलग रंगों में रंगवा लेती थी. उस का रहनसहन हाईसोसायटी की लड़कियों की तरह था. जब फैशन उन की तरह था तो प्रिया की सोच भी उन की तरह ही थी. वह हर किसी से आसानी से हंसबोल लेती थी. शर्मसंकोच से वह कोसो दूर थी.

प्रिया के घर से कुछ ही दूरी पर एजाज अहमद उर्फ आशिक का मकान था. उस के पिता जाकिर हुसैन टायर रिपेयरिंग का काम करते थे. एजाज भी पिता की दुकान पर बैठ कर उन के काम में हाथ बंटाता था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर का था. प्रिया पर एजाज की नजर भी थी. उस की खूबसूरती को देख वह पागल सा हो गया था. यह जान कर भी कि वह उस के धर्म की नहीं है, इस के बावजूद वह उस की चाहत को पाने के लिए आतुर था.

पड़ोसी होने की वजह से प्रिया और एजाज एकदूसरे को जानते तो थे ही, जबतब बातचीत भी हो जाती थी. लेकिन जब से प्रिया ने अपने रूपयौवन को आधुनिक रूप से सजाना शुरू किया था, तब से वह कयामत ढाने लगी थी. प्रिया का यौवन जब कदमताल पर थिरकता तो एजाज का दिल तेजी से धड़कने लगता.

एजाज अब प्रिया के नजदीक रहने की कोशिश करता. उस से किसी न किसी बहाने से बात करने की कोशिश करता. जब बारबार ऐसा होने लगा तो प्रिया भी समझ गई कि एजाज उस के नजदीक रहने और बात करने के बहाने ढूंढढूंढ कर पास आता है, ऐसा तभी होता है जब दिल में चाहत होती है.

वह समझ गई कि एजाज उसे चाहने लगा है, इसलिए उस के नजदीक रहने की कोशिश करता है. यह सब जान कर भी न जाने क्यों प्रिया को खराब नहीं लगा. बल्कि उस के दिल में भी कुछ कुछ होने लगा. इस का मतलब था कि उस के दिल में एजाज के लिए सौफ्ट कौर्नर था, जो उसे बुरा मानने नहीं दे रहा था.

प्रिया ने एजाज को यह बात जाहिर नहीं होने दी कि वह उस की हरकतों को जान गई है. अपनी धुन में डूबा एजाज उस के नजदीक रह कर अपने दिल को तसल्ली देता रहता था. वह सोचता था कि एक न एक दिन अपनी बातों से प्रिया का दिल जीत ही लेगा.

प्रिया भी उस की बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी. बातों में वह भी पीछे नहीं रहती थी. बातें बढ़ीं तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. अब दोनों को कोई भी बात कहने में संकोच नहीं होता था. दोनों साथ घूमने भी जाने लगे थे. दोनों खातेपीते और मौजमस्ती करते.

इस से दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. अब प्रिया एजाज पर विश्वास करने लगी थी. साथ ही वह यह भी सोचने लगी थी कि एजाज उसे हमेशा खुश रखेगा, कभी कोई कष्ट नहीं होने देगा.

एजाज बड़ी ऐहतियात से कदम दर कदम आगे बढ़ रहा था. वह प्रिया के दिल में अपनी जगह बनाने के लिए वह सब कर रहा था, जो उसे करना चाहिए था. जब उसे लगा कि प्रिया उस के रंग में पूरी तरह रंग गई है, तो उस ने प्रिया से प्रेम का इजहार करने का फैसला कर लिया.

एजाज की दुकान के सामने सड़क पार किनारे पर वन विभाग की जमीन का छोटा सा टुकड़ा था. प्रिया से वह वहीं मिलता था. प्रिया भी जानती थी कि वह सुरक्षित जगह है, वहां कोई आताजाता नहीं था. उन दोनों को साथ देख बात मोहल्ले में फैल सकती थी. इसलिए प्रिया को एजाज से वहां मिलने से कोई गुरेज नहीं था.

पहली मुलाकात में जब दोनों वहां बैठे थे, तो एजाज ने प्यार से प्रिया को निहारते हुए उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोला, ‘‘प्रिया,  मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं जो काफी दिन से मेरे दिल में कैद है.’’

‘‘कहो, तुम कब से अपनी बात कहने में संकोच करने लगे.’’ प्रिया ने उस की आंखों में देखते हुए मुसकरा अपनी भौंहें उचकाईं.

इस से एजाज की हिम्मत बढ़ गई और वह बेसाख्ता बोल पड़ा, ‘‘प्रिया, आई लव यू… आई लव यू प्रिया.’’ कह कर एजाज ने बड़ी उम्मीद से प्रिया की ओर देखा.

प्रिया को पहले ही एजाज से ऐसी उम्मीद थी. क्योंकि वह जो भूमिका बना रहा था, उस से ही जाहिर हो गया था कि एजाज अपने प्यार का इजहार करेगा.

प्रिया ने भी बिना देरी लगाए प्यार का जवाब प्यार से दे दिया, ‘‘लव यू टू एजाज.’’

प्रिया के मुंह से प्यार के मीठे शब्द निकले तो एजाज ने खुशी से उसे अपनी बांहों में भर लिया. प्रिया ने भी उस की खुशी देख कर उस का साथ दिया.

उस का जवाब सुन एजाज ने उस के होंठों को चूम लिया. प्रिया ने उस में भी उस का साथ दिया. लेकिन एजाज जब इस से आगे बढ़ने लगा तो प्रिया ने उसे रोक दिया, ‘‘इतने तक ठीक है, इस के आगे नहीं.’’

एजाज ने मन मसोस कर उस की बात मान ली. इस के बाद दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. प्रिया अच्छी तरह जानती थी कि एजाज से प्यार की बात जानते ही घर में कोहराम मच जाएगा.

उस के पिता लक्ष्मी नारायण कभी भी गैरधर्म के युवक से शादी को तैयार नहीं होंगे. इसलिए उस ने एजाज से बात की. सलाह मशवरे के बाद दोनों ने घरवालों की बिना मरजी के शादी करने का मन बना लिया.

धर्म के नाम पर पंगा

घटना से डेढ़ महीने पहले दोनों ने चोरीछिपे शादी कर ली. शादी के बाद एजाज ने प्रिया को ओबरा के एक महिला लौज में ठहरा दिया. उस ने प्रिया से कहा कि जब मामला ठंडा हो जाएगा, तब उसे घर ले जाएगा. इस बीच वह अपने घर वालों को भी मना लेगा. प्रिया ने उस की बात मान ली. वह महिला लौज में रहने लगी. उस ने पास की ही कपड़े की एक दुकान में नौकरी जौइन कर ली.

शादी के कुछ ही दिन बीते थे कि एजाज प्रिया पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. प्रिया इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एजाज से कहा, ‘‘मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे साथ रहने को तैयार हूं. लेकिन मैं अपना धर्म नहीं बदल सकती. जैसे तुम को अपने धर्म से प्यार है, वैसे ही मुझे अपना धर्म प्यारा है. जैसे मैं ने तुम्हें तुम्हारे धर्म के साथ स्वीकारा है, वैसे ही तुम मुझे मेरे धर्म के साथ स्वीकार करो. इस में दिक्कत क्या है. हमारे प्यार के बीच धर्म को क्यों ला रहे हो.’’

‘‘प्रिया, हमारे यहां गैरधर्म की लड़की को उस के धर्म के साथ नहीं स्वीकारा जाता. उसे अपना धर्म परिवर्तन करना ही पड़ता है. तुम मेरा धर्म स्वीकार कर लो तो मैं तुम्हें अपने घर ले चलूं.’’

‘‘मैं किसी भी हालत में अपना धर्म नहीं बदलूंगी. यह बात तुम्हें शादी और प्यार करने से पहले सोचना चाहिए था. मुझ से ही पूछ लेते तो ये नौबत न आती.’’

‘‘मैं ने सोचा जब तुम मुझ से प्यार कर सकती हो, शादी कर सकती हो तो मेरा धर्म भी स्वीकार कर लोगी.’’

‘‘सब तुम ने अपने आप ही सोच लिया, मुझ से एक बार भी पूछने की जहमत नहीं उठाई. इस में गलती तुम्हारी है, मेरी नहीं.’’

दोनों के बीच इस बात को ले कर काफी देर तक बहस होती रही लेकिन प्रिया नहीं मानी. फिर दो दोनों के बीच जबतब इस बात को ले कर विवाद होने लगा.

19 सितंबर को शाम 6:05 बजे प्रिया की एजाज से बात हुई. प्रिया ने उस से मिलने आने की बात कही. एजाज ने आने के लिए हां कर दी. प्रिया से बात होने के बाद एजाज ने फोन कर अपने दोस्त शोएब को बुला लिया. उस के साथ मिल कर उस ने योजना बनाई.

प्रेमी का असली रूप

कुछ देर बाद प्रिया ओबरा से आटो ले कर आई और एजाज की दुकान के सामने उतरी. एजाज ने उसे आते देख लिया था. वह उसे सड़क के दूसरी ओर वन विभाग की जमीन पर ले गया, जहां दोनों शादी से पहले मिला करते थे.

एजाज और प्रिया लगभग 10 मीटर अंदर जा कर एक जगह बैठ गए. दोनों में बात हुई. एजाज ने एक बार फिर प्रिया से धर्म परिवर्तन करने की बात छेड़ी लेकिन प्रिया ने दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘नहीं.’’

एजाज गुस्से से भर उठा, लेकिन उस ने प्रिया पर जाहिर नहीं होने दिया. एक मिनट में आने की बात कह कर वह दुकान पर आ गया. वहां से उस ने एक लीवर रौड और चाकू उठाया और शोएब को पीछे आने को कहा.

एजाज फिर वहां पहुंचा, जहां प्रिया बैठी थी. प्रिया की पीठ उस की तरफ थी. एजाज ने प्रिया के सिर पर पीछे से लीवर रौड से तेज प्रहार किया. उस का वार इतने जोरों का था कि प्रिया चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.

इस के बाद शोएब के वहां पहुंचने पर एजाज ने तेज धारदार चाकू से प्रिया का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. फिर सिर को वहां से डेढ़ सौ मीटर दूर एक झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद धड़ को जमीन में दफनाने के लिए एजाज अपनी मारुति आल्टो कार से फावड़ा लेने चला गया.

बाजार से फावड़ा खरीद कर लाने के बाद दोनों ने जमीन को खोदने का प्रयास किया, लेकिन जमीन पथरीली होने के कारण दोनों गड्ढा नहीं खोद पाए. लाश को दफना नहीं सके तो दोनों ने आसपास उगी घास और पौधों से लाश ढक दी. प्रिया का मोबाइल उस की जींस की जेब में था. एजाज ने उस का मोबाइल निकाल कर अपनी जेब में रख लिया.

लोहे की रौड, चाकू और फावड़ा झाडि़यों में छिपाने के बाद दोनों वापस लौट आए. अगले दिन 20 सितंबर को एजाज ने प्रिया के मोबाइल में उस का वाट्सऐप एकाउंट खोल कर प्रिया की तरफ से अपने नंबर पर न मिलने आने का मैसेज भेज दिया, जिस से उस पर शक न जाए. फिर उस ने प्रिया का मोबाइल स्विच्ड औफ कर के अपनी दुकान के पीछे फेंक दिया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. आखिर वह और शोएब कानून की गिरफ्त में आ ही गए. एजाज की निशानदेही पर प्रिया का मोबाइल और आल्टो कार भी पुलिस ने बरामद कर ली. हत्या में इस्तेमाल बाकी हथियार घटनास्थल से बरामद हो चुके थे. जरूरी कानूनी लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यमनोहर कहानियां, नवंबर 2020

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37 सेकेंड में 35 लाख की लूट

यूंतो ज्यादातर दुकानदार कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हैं, लेकिन बड़े दुकानदार खासकर शोरूम मालिक अपने और ग्राहकों के नजरिए से नियमों का पूरा पालन करते हैं. इस से ग्राहकों पर भी अच्छा इंप्रेशन पड़ता है. इसी के मद्देनजर सुंदर ज्वैलर्स के मालिक सुंदर वर्मा ने यह जिम्मेदारी गेट के पास बैठने वाले सेल्समैन को सौंप रखी थी.

कोई भी ग्राहक आता तो सेल्समैन सेनेटाइजर की बोतल उठा कर पहले उसके हाथ सेनेटाइज कराता, फिर वेलकम के साथ अंदर जाने को कहता.

उस दिन शोरूम में जूलरी खरीदने वाले 2-3 ग्राहक मौजूद थे. तभी मास्क लगाए 2 युवकों ने शोरूम में प्रवेश किया. गेट के पास काउंटर पर बैठे सेल्समैन ने सेनेटाइजर से दोनों के हाथ सेनेटाइज कराए. तभी दोनों युवकों ने अपनीअपनी शर्ट के अंदर हाथ डाल कर तमंचे निकाल लिए. उसी वक्त उन का तीसरा साथी अंदर आ गया.

यह देख शोरूम में मौजूद सभी लोग दहशत में आ गए. एक युवक ने तमंचा तानते हुए काउंटर पर रखा जूलरी बौक्स उठा लिया. इतना ही नहीं, सुंदर वर्मा के बेटे यश को तमंचे के निशाने पर ले कर वह काउंटर लांघ कर तिजोरी के पास पहुंच गया.

तिजोरी में कीमती जेवर रखे हुए थे. तिजोरी से जेवरों के डिब्बे, नकदी निकाल कर वह अपने साथी को देने लगा. साथी लुटेरे के पास बैग था, वह जेवर बैग में भरता रहा. इस काम में उस का तीसरा साथी भी मदद कर रहा था.

बैग को जेवरों के डिब्बों और नकदी से भर कर वे तीनों तमंचे लहराते हुए शोरूम से बाहर निकल गए. यह सारा काम महज 37 सेकेंड में निपट गया.

शोरूम के बाहर लुटेरों की मोटरसाइकिल खड़ी थी. तीनों बाइक पर बैठ कर भाग निकले. यह 11 सितंबर, 2020 की बात है.

लुटेरों ने शोरूम में प्रवेश कर के जब अपने हाथ सैनेटाइज किए, तभी उन के हावभाव से खतरे की आशंका भांप कर शोरूम मालिक सुंदर वर्मा फुरती से शोरूम के पिछले गेट से बाहर निकल कर पीछे बने जीने से छत पर चढ़ गए थे. ऊपर जा कर वह चोरचोर चिल्लाते हुए शोर मचाने लगे.

इसी बीच लुटेरे लूट की घटना को अंजाम दे कर शोरूम से भाग निकले. सुंदर वर्मा के शोर मचाने पर आसपास के दुकानदारों और सड़क पर आतेजाते लोगों का ध्यान उन की तरफ गया, लेकिन बदमाशों के हाथों में हथियार देख कर लोग दहशत में आ गए. किसी ने भी बदमाशों को रोकने या टोकने की हिम्मत नहीं दिखाई. लुटेरे खैर रोड की ओर भाग गए.

दिनदहाड़े जूलरी शोरूम में हुई लूट की जानकारी होते ही आसपास के दुकानदारों में सनसनी फैल गई. घटना की खबर मिलने पर आईजी पीयूष मोर्डिया, एसएसपी मुनिराज, एसपी (सिटी) अभिषेक, थाना बन्नादेवी के प्रभारी निरीक्षक रविंद्र दुबे, एसओजी और सर्विलांस टीमें शोरूम पर पहुंच गईं.

पुलिस अधिकारियों ने शोरूम मालिक सुंदर वर्मा से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली.

पुलिस पूछताछ में सुंदर वर्मा से पता चला कि 37 सेकेंड की लूट में लुटेरों ने लगभग 35 लाख की जूलरी और 50 हजार की नकदी लूट ली थी.

शोरूम में मौजूद महिला ग्राहक ने लुटेरों की नजरों से बचा कर अपना बैग पीछे छिपा कर बचा लिया था. एक पुरुष ग्राहक काउंटर पर जिस बौक्स में जूलरी देख रहा था, लुटेरे ने उस बौक्स को खींच कर बैग में डाल लिया था. इस दौरान शोरूम के बाहर बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए थे. सुंदर वर्मा ने एसएसपी पर बिफर कर गुस्से का इजहार किया. उन्होंने कहा कि 4 साल पहले भी उन के शोरूम पर लूट हुई थी. आज तक न तो माल मिला और न ही लुटेरे पकड़े गए. इस पर इलाके के लोग भी सुंदर वर्मा के समर्थन में आ गए. दिनदहाड़े हुई इस लूट पर सभी ने नाराजगी जताई.

एसएसपी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि संयम रखें. इलाके में पुलिस का विश्वास कायम होगा. इस में कुछ समय जरूर लग सकता है, लेकिन इस बार आप को लगेगा कि पुलिस आप के साथ है.

बहरहाल, सुंदर वर्मा की तहरीर पर 3 अज्ञात लुटेरों के विरुद्ध लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया, जिस में 50 हजार रुपए नकदी और करीब 35 लाख रुपए मूल्य के आभूषण लूटने की बात कही गई. घटना के बाद जांच में जुटी पुलिस टीमों ने खैर रोड के सीसीटीवी देखे तो तीनों बदमाश नादा चौराहे से पहले गोमती गार्डन गेस्टहाउस की ओर जाते दिखे. बाद में उन के खैर रोड पर भागने का पता चला. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बदमाश खैर या खोड़ा क्षेत्र के रहे होंगे.

इस को आधार बना कर पुलिस ने अपना ध्यान इसी क्षेत्र के बदमाशों पर लगाया. शोरूम के सीसीटीवी में पूरी घटना रिकौर्ड हुई थी. वहां से जो फुटेज मिले, वे बिलकुल साफ थे, उस से तीनों बदमाशों को पहचाना जा सकता था. इसलिए पुलिस ने उसी फुटेज से बदमाशों के फोटो निकलवा कर जारी कर दिए गए. इस के साथ ही लोगों को बदमाशों का हुलिया बता कर जानकारी जुटाने का प्रयास किया जाने लगा.

ज्वैलरी शोरूम में दिनदहाड़े लूट को अंजाम देने वाले तीनों लुटेरे बेशक मास्क पहने थे, लेकिन उन के चेहरे और कदकाठी सीसीटीवी में कैद हो गई थी, जिसे पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था.

एसएसपी मुनिराज की ओर से लोगों से अपील की गई कि जो भी लुटेरों के बारे में जानकारी देगा, उस का नाम गुप्त रखा जाएगा, साथ में पुलिस स्तर से उसे पुरस्कार भी दिया जाएगा. लूट के खुलासे के लिए पुलिस ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था. इस के साथ ही एसएसपी ने पुलिस पैट्रोलिंग में लापरवाही को ले कर इंसपेक्टर रविंद्र दुबे को निलंबित कर दिया. लूट के दूसरे दिन यानी शनिवार को एडीजी (जोन) अजय आनंद भी घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने सुंदर वर्मा से पूरी घटना के बारे में बारीकी से जानकारी ली.

इस लूटकांड के लिए इंसपेक्टर बन्नादेवी को निलंबित किए जाने के बाद से जांच टीम से थाना पुलिस को अलग कर दिया गया था. एसपी (सिटी) अभिषेक और एसपी (क्राइम) के नेतृत्व में एसओजी, सर्विलांस के अलावा इंस्पेक्टर क्वार्सी छोटेलाल व एसओ (जवां) अभय कुमार की टीमें जांच में लगाई गईं.

बदमाशों की कदकाठी, बालों के स्टाइल से एक सवाल यह भी खड़ा हुआ कि बदमाश कहीं पुलिस मैडीकल में शामिल होने तो नहीं आए थे. इस बात की तस्दीक करने के लिए एक टीम ने पुलिस लाइन मेडीकल बोर्ड कक्ष के अंदर व बाहर लगे सीसीटीवी चैक कर के बदमाशों के हुलिया का मिलान किया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.

इस लूटकांड की जांच में जुटी पुलिस को अब तक की जांच में कई चौंकाने वाले सुराग हाथ लगे. इन में सब से खास यह था कि घटना के समय शोरूम में मौजूद 3 ग्राहकों में जहां एक दंपति थे, वहीं एक पुरुष ग्राहक पेशेवर लुटेरा भी था, जो अपने गिरवी जेवर छुड़ाने के लिए पहुंचा था. हालांकि ज्वैलर ने उसे पुलिस के सामने क्लीन चिट दे दी थी कि वह पुराना कस्टमर है.

मगर पुलिस ने उस से भी व्यापक पूछताछ की. वह मूलरूप से खैर क्षेत्र का रहने वाला था, जो थाना बन्नादेवी क्षेत्र में आता था. वह पहले भी देहली गेट की एक लूट में जेल गया था. पुलिस ने उस से पूछताछ की. कुछ हाथ नहीं लगा तो उसे छोड़ दिया गया.

घटना के समय शोरूम में मौजूद ग्राहक दंपति नगला कलार के रहने वाले थे, वे भी पुराने ग्राहक थे. बदमाशों के भागते समय कुछ जेवर शोरूम के फर्श पर गिर गए थे, उन्हें महिला ने बटोर कर अपने कपड़ों में छिपा लिया था. यह दृश्य सीसीटीवी में कैद हो गया था.

पुलिस ने दंपति को पूछताछ के लिए बुला लिया. पहले तो महिला ने जेवर बटोरेने की बात से इनकार किया. लेकिन जब सीसीटीवी में घटना रिकौर्ड होने की बात बताई गई तो महिला डर गई. उस ने चुपचाप जेवर वापस कर दिए.

नहीं जुड़ी टूटीफूटी कडि़यां

35 लाख के जेवरात की लूट में अभी कोई लुटेरा पुलिस के हाथ नहीं लगा था. जबकि पुलिस दावा कर रही थी कि वह लूट के खुलासे के करीब है.

शिनाख्त के बाद पुलिस लूट और लुटेरों की कडि़यां जोड़ रही थी. पुलिस टीमें लुटेरों की धरपकड़ के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाए हुए थीं. उम्मीद की जा रही थी कि जल्द ही पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगेगी. एक पुलिस टीम यह पता लगाने में जुटी थी कि लुटेरे किस की मुखबिरी से लूट करने आए थे. लूट के बाद कहां गए और उन्होंने लूटा हुआ माल कहां गलाया या छिपाया.

पुलिस ने उस बदमाश को भी क्लीनचिट नहीं दी थी जो मौके पर अपने गिरवी जेवरात छुड़ाने पहुंचा था. इसी बीच अचानक कुछ ऐसा हुआ कि अलीगढ़ पुलिस हैरान रह गई.

16 सितंबर बुधवार की शाम नोएडा पुलिस ने मुठभेड़ के बाद अलीगढ़ के एक ज्वैलर के यहां लूट करने वाले 3 लुटेरों को सेक्टर 38ए स्थित जीआईपी मौल के पास से गिरफ्तार कर लिया. मुठभेड़ के दौरान तीनों बदमाशों को पैर में गोली लगी.

कोतवाली सेक्टर-39 पुलिस ने तीनों घायल लुटेरों को अस्पताल में भरती कराया. पुलिस ने उन से सुंदर ज्वैलर्स शोरूम से लूटी गई 35 लाख की जूलरी में से लगभग 6 लाख की जूलरी, एक मोटरसाइकिल और 3 तंमचे, जिंदा कारतूस व खोखे बरामद किए.

गिरफ्तार बदमाशों की पहचान अलीगढ़ के गांव सोफा खेड़ा निवासी सौरव कालिया, रोहित और मोहित के रूप में हुई.

पूछताछ में तीनों ने सुंदर ज्वैलर्स शोरूम में दिनदहाड़े लूट करने का जुर्म कबूल करते हुए जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

इन बदमाशों ने सुंदर ज्वैलर्स को लूटने की योजना फरवरी महीने में ही बना ली थी. तीनों बदमाश नोएडा की एक नामचीन पान मसाला बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी करते थे और गाहेबगाहे अपराधों को भी अंजाम देते थे.

तीनों बदमाशों में से एक का चाचा अलीगड़ में खैर रोड स्थित नादा पुल के पास रहता था. बदमाश अकसर उस के पास आया करते थे. इसी दौरान इन की नजर खैर रोड स्थित सुंदर ज्वैलर्स के शोरूम पर पड़ी.

फरवरी में तीनों बदमाश सुंदर ज्वैलर्स शोरूम के सामने से हो कर गुजरे थे. लूट को अंजाम देने से पहले इन बदमाशों ने शोरूम की लोकेशन देखने के साथ आसपास के पूरे इलाके की रेकी की थी.

वारदात को अंजाम देने के बाद इन्हें वापसी के लिए यह शोरूम सब से सही लगा था, लेकिन फरवरी महीने के बाद लौकडाउन लगने से ये लोग लूट को अंजाम नहीं दे पाए. इस के बाद लौकडाउन में तीनों की नौकरी चली गई.

पैसों की जरूरत महसूस हुई तो तीनों को एक बार फिर खैर रोड स्थित सुंदर ज्वैलर्स के शोरूम की याद आई और फिर मौका मिलते ही इन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

ज्वैलर लूटकांड में शामिल लुटेरे पेशेवर अपराधी हैं. खास बात यह है कि ये लोग उत्तर प्रदेश में पहली बार पकड़े गए हैं. इस से पहले इन की गिरफ्तारी गुरुग्राम में हुई थी. वहां से जमानत पर छूटने के बाद तीनों गाजियाबाद के खोड़ा में जा कर रहने लगे थे.

ये लोग वहीं से इधरउधर अपराध करने जाते थे. चूंकि तीनों बदमाश पान मसाला फैक्टरी में नौकरी करते थे, इसलिए गांव के आसपास के ज्यादा लोगों को इन पर शक नहीं होता था. बाद में जब इन के कारनामे उजागर हुए तो लोग हैरान रह गए. 11 सितंबर को अलीगढ़ स्थित जूलरी शोरूम में लूट की घटना को अंजाम के बाद तीनों मोटरसाइकिल पर सवार हो कर फरार हो गए थे.

घटना के बाद ये लोग फरीदाबाद में छिप गए. मुठभेड़ वाले दिन तीनों लुटेरे मोटरसाइकिल से खोड़ा में किराए पर लिए कमरे पर जा रहे थे. पुलिस ने जब खोड़ा स्थित इन बदमाशों के कमरे की तलाशी ली तो वैसे ही कपड़े मिले जैसे एक बदमाश घटना के समय पहने था, जो सीसीटीवी फुटेज में साफ दिखाई दे रहे थे.

लौकडाउन में आई याद ज्वैलरी शोरूम की

सुंदर ज्वैलर्स के शोरूम पर लूट करने वाले तीनों बदमाशों ने एक साल पहले 12 अक्टूबर, 2019 को अपने गांव सोफा खेड़ा की प्रधान शांतिदेवी के 53 वर्षीय पति कालीचरण की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

कालीचरण की हत्या इन्होंने सुपारी ले कर की थी. कालीचरण पर गांव के ही हरिओम की हत्या का आरोप था. हरिओम का बेटा अमन जो जेल में है, ने इन तीनों लुटेरों को सुपारी दे कर कालीचरण की हत्या कराई थी. इस के बाद से ये तीनों गांव से फरार थे.

तीनों बदमाशों का अपराधों से गहरा संबंध रहा है. इन का गिरोह अलीगढ़ जनपद में डी श्रेणी में सौरभ गैंग के रूप में दर्ज है. अलीगढ़ के अलावा दिल्ली एनसीआर क्षेत्र, गुरुग्राम, नोएडा, सिकंदराराऊ, अतरौली और खैर आदि में भी इन पर संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं. इन में सौरव कालिया पर 7, रोहित पर 8 तथा मोहित पर 9 मुकदमे लूट, चोरी, धमकी देने, आर्म्स एक्ट, हत्या और हत्या के प्रयास के मुकदमे दर्ज हैं.

सौरव और मोहित पर गैंगस्टर एक्ट में काररवाई भी हो चुकी है. लौकडाउन में भी गुरुग्राम की पुलिस खैर स्थित सोफा खेड़ा में इन बदमाशों के घर पहुंची थी और कुर्की नोटिस चस्पा कर गई थी.

बन्नादेवी पुलिस ने न्यायालय में बी वारंट के लिए आवेदन किया था, जिस पर न्यायालय ने तीनों आरोपियों को अलीगढ़ न्यायालय में पेश करने का आदेश दिया. नोएडा पुलिस ने 21 सितंबर को बी वारंट पर तीनों को अलीगढ़ न्यायालय में पेश किया. अदालत ने इन तीनों को लूट के मुकदमे में अभिरक्षा में जिला कारागार भेज दिया.

पकड़े गए बदमाशों की आजीविका का मुख्य आधार लूटपाट ही था. लूटपाट कर के ये लोग उस पैसे को अपने शौक और ऐशोआराम पर खर्च करते थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यमनोहर कहानियां, नवंबर 2020

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ऊधमसिंह नगर में धंधा पुराना लेकिन तरीके नए : भाग 1

सदियों पहले उस दौर की बात है, जब देश में राजेरजवाड़ों का अपना साम्राज्य हुआ करता था. समूचे इलाके में उन की तूती बोलती थी. उन के मनोरंजन के 2 ही मुख्य साधन हुआ करते थे. एक, जंगली जानवरों का शिकार करना और दूसरा, सुंदर स्त्री की लुभावनी अदाओं के नाचगाने का आनंद उठाने के अलावा यौनाचार में लिप्त हो जाना.

ऐसा ही कुछ आज के उत्तराखंड स्थित ऊधमसिंह नगर के काशीपुर में था. तब काशीपुर के कई मोहल्ले तो इस के लिए दूरदूर तक विख्यात थे. उस मोहल्ले की मुख्य सड़क के दोनों ओर वेश्याएं रहती थीं.

देह व्यापार में लिप्त ऐसी औरतें अब वैश्या कहलाना पसंद नहीं करतीं, उन्हें सैक्स वर्कर कहा जाता है. यहां पर कई छोटेबड़े नगरों के लोग अपनी कामपिपासा शांत करने आते थे. बाद में ऐसी औरतों की संख्या बढ़ने पर उन के धंधे को जबरन बंद करवाना पड़ा.

सामाजिक दबाव और प्रशासन की सख्ती के आगे इन वेश्याओं को नगर छोड़ कर जाने पर मजबूर होना पड़ा था. उस के बाद उन्होंने मेरठ शहर के लिए पलायन कर लिया था. उन्हीं में कुछ वेश्याएं ऐसी भी थीं, जिन्होंने नगर के आसपास रह कर गुप्तरूप से चोरीछिपे धंधे में लिप्त रहीं. वही सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है.

पुलिस समयसमय पर उन के ठिकानों पर छापामारी करती रहती है. उन्हें हिरासत में ले कर नारी सुधार गृह या जेल भेज दिया जाता है.

बात 30 जुलाई की है. पुलिस को जानकारी मिली थी कि काशीपुर के ढकिया गुलाबो मोहल्ले का एक दोमंजिला मकान काफी समय से देह व्यापार का ठिकाना बना हुआ है. इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए सीओ अक्षय प्रह्लाद कोंडे के निर्देश पर एक पुलिस टीम गठित की गई.

टीम में महिला इंसपेक्टर धना देवी, कोतवाली एसएसआई देवेंद्र गौरव, टांडा चौकी इंचार्ज जितेंद्र कुमार, कांस्टेबल भूपेंद्र जीना, देवानंद, कांस्टेबल गिरीश कांडपाल, दीपक, मुकेश कुमार शामिल थे.

पुलिस टीम ने काफी सावधानी से छापेमारी को अंजाम दिया. सभी पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में थे. छापेमारी में उन्हें बताए गए ठिकाने से 4 महिलाएं और 2 पुरुषों को धर दबोचने में सफलता मिली.

वे मकान के अलगअलग कमरों में आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए थे. देह व्यापार मामले में आरोपी को रंगेहाथों पकड़ना जरूरी होता है. वरना वे संदेह के आधार पर आसानी से छूट जाते हैं. इस छापेमारी में देहव्यापार की सरगना फरार हो गई. पकड़े गए आरोपियों को पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

वैसे काशीपुर में इस तरह की छापेमारी पहली बार नहीं हुई थी. पहले भी कई बार इलाके में देह व्यापार के ठिकानों पर छापेमारी हो चुकी थी. देह के गंदे धंधे में लगे लोग हमेशा अड्डा बदलते रहते हैं.

देह व्यापार के धंधे में आधुनिकता और बदलाव कई रूपों में सामने आया है, जिस का एक मामला हल्द्वानी पुलिस के सामने 3 अगस्त को आया. पुलिस को सूचना मिली कि हाइडिल गेट स्थित स्पा सेंटर में काफी समय से देह व्यापार का खुला खेल चल रहा है.

इस सूचना के आधार पर हल्द्वानी सीओ शांतनु पराशर ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की टीम को साथ ले कर स्पा सेंटर पर छापा मारा. छापेमारी के दौरान एक युवक को युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा गया.

स्पा सेंटर में पुलिस की रेड पड़ते ही हलचल मच गई. सेंटर की संचालिका दिल्ली निवासी सुमन और स्वाति वर्मा फरार हो गईं. जबकि सेंटर के मैनेजर पश्चिम बंगाल के वरुणपारा वारूईपुरा, निवासी नादिया पकड़े गए.

छापेमारी के दौरान स्पा सेंटर से देह व्यापार से संबंधित कई आपत्तिजनक वस्तुएं भी बरामद हुईं. यहां तक कि उस के बेसमेंट से 9 लड़कियां निकाली गईं.

उन में 2 उत्तर प्रदेश, एक मध्य प्रदेश, एक मणिपुर, 2 पश्चिम बंगाल और 3 हरियाणा की थीं. पकड़ा गया युवक आशीष उनियाल काठगोदाम का रहने वाला निकला. वह एक निजी कंपनी में काम करता था.

स्पा सेंटर में सुनियोजित तरीके से देह व्यापार का धंधा चलाया जा रहा था. धंधेबाजों ने बड़े पैमाने पर मसाज की आड़ में यौनाचार के सारे इंतजाम कर रखे थे.

वहां से पकड़ी गई सभी युवतियों के रहने की व्यवस्था सेंटर के बेसमेंट में की गई थी. उन के खानेपीने की पूरी सुविधाएं वहीं की गई थीं.

ग्राहक को स्पा सेंटर आने से पहले ही वाट्सऐप पर युवती की फोटो दिखा कर उस का सौदा कर लिया जाता था. ग्राहक को युवतियों के टाइम के हिसाब से अपौइंटमेंट तय किया जाता था.

स्पा सेंटर आते ही ग्राहक को रिसैप्शन पर बाकायदा बिल चुकाना होता था, जो स्पा से संबंधित होते थे. उस के बाद उसे कमरे में बने केबिन में जाने की इजाजत मिलती थी.

अपने फिक्स टाइम पर ग्राहक स्पा सेंटर पहुंच जाता था. उन्हें स्पीकर पर आवाज लगाई जाती थी. उस के साथ फिक्स युवती को इस की सूचना पहले होती थी और कुछ समय में ही अपने ग्राहक के पास चली जाती थी. एक युवती को एक दिन में 3 सर्विस देनी होती थी.

सेंटर में आने वाले ग्राहकों का कोई आंकड़ा मौजूद नहीं था. जबकि उन की बिलिंग होती थी. उसे किसी रजिस्टर में दर्ज नहीं किया जाता था. फिर भी पुलिस ने जांच में पता लगाया कि सेंटर को प्रतिदिन 50 हजार की कमाई होती थी.

स्पा सेंटर से बरामद सभी युवतियों ने स्वीकार किया कि वे किसी न किसी मजबूरी की वजह से मसाज की आड़ में देह बेचने का काम करती हैं.

इसी के साथ उन्होंने सेंटर के मालिक पर आरोप भी लगाया कि उन्हें बहुत कम पैसा मिलने के कारण मजबूरी के चलते बेसमेंट में रहना होता है, जहां काफी मुश्किल होती है.

पुलिस पूछताछ के बाद सीओ के निर्देश पर सभी युवतियों को मुखानी स्थित वन स्टौप सेंटर में भेज दिया गया. उसी दौरान 7 अगस्त, 2021 को पुलिस को पता चला कि स्पा सेंटर की आड़ में कई जगहों पर देह व्यापार चल रहा है.

पुलिस वाली ने लिया जिस्म से इंतकाम -भाग 1

शिवाजी माधवराव सानप (54) मुंबई पुलिस के नेहरू नगर थाने में हैडकांस्टेबल के पद पर तैनात था. वह पुणे में रहता था. वहीं से रोजाना ड्यूटी के लिए अपडाउन करता था. पुणे से वह बस से पनवेल जाता था, फिर पनवेल से दूसरी बस पकड़ कर कुर्ला पहुंचता और कुर्ला से लोकल ट्रेन के जरिए वह नेहरू नगर थाने पहुंचता. आनेजाने के लिए उस का रुटीन ठीक उसी तरह तय था, जैसे सुबह उठ कर लोग दैनिक काम करते हैं.

इस साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के कारण काफी भागदौड़ रही. दिन भर की थकान के बाद वह उस रात भी कुर्ला स्टेशन से उतरने के बाद पनवेल के लिए बस पकड़ने के लिए लगभग रात के साढ़े 10 बजे सड़क से गुजर रहा था.

तभी सड़क पार करते समय एक तेज रफ्तार नैनो कार ने शिवाजी को इतनी जोर की टक्कर मारी कि उस का शरीर हवा में उछलता हुआ सड़क के किनारे दूर जा गिरा.

इस बीच शिवाजी को टक्कर मारने वाली कार हवा की गति से नौ दो ग्यारह हो गई. शिवाजी सानप गंभीर रूप से घायल हो गया. आनेजाने वाले कुछ राहगीरों ने यह माजरा अपनी आखों से देखा था. लिहाजा वहां मौजूद हुए लोगों में से किसी ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम को इस की सूचना दे दी.

पहले पीसीआर की गाड़ी आई जिस ने घायल शिवाजी को पास के एक अस्पताल में भरती करा दिया. लेकिन कुछ देर की जद्दोजहद के बाद आखिरकार शिवाजी को मृत घोषित कर दिया गया.

मामला बिलकुल सीधासाधा सड़क हादसे का दिख रहा था, इस में शक की कोई गुंजाइश भी नहीं लग रही थी. लिहाजा पनवेल शहर पुलिस स्टेशन के सीनियर पीआई अजय कुमार लांडगे ने सड़क दुर्घटना का मामला दर्ज करवा दिया.

शिवाजी के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद जेब से उस का महाराष्ट्र पुलिस का परिचय पत्र, आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज मिले थे. इस से पुलिस को उस की पहचान कराने में भी ज्यादा जहमत नहीं उठानी पड़ी.

सड़क दुर्घटना का केस दर्ज करने के बाद पनवेल पुलिस स्टेशन ने पुणे में रहने वाले शिवाजी के घर वालों को भी हादसे की खबर कर दे दी. अगली सुबह ही शिवाजी सानप की पत्नी गायत्री अपने भाई व रिश्तेदारों को ले कर पनवेल पुलिस स्टेशन पहुंची, जहां उन्हें हादसे के बारे में बताया गया.

पुलिस ने विभाग का आदमी होने के कारण जल्दी ही शिवाजी के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के परिजनों का सौंप दिया.

1-2 दिन गुजरने के बाद अचानक शिवाजी की पत्नी गायत्री अपने भाई के साथ पनवेल पुलिस स्टेशन पहुंची और सीनियर पीआई अजय कुमार लांडगे से मुलाकात की.

गायत्री ने अपने मन में छिपे शक का इजहार करते हुए कहा, ‘‘सर, मेरे पति का ऐक्सीडेंट नहीं हुआ उन की हत्या की गई है. हत्या भी इस तरह कि लोगों को लगे कि ये पूरी तरह से सड़क दुर्घटना है.’’

यह सुन कर अजय लांडगे के होंठों पर हलकी सी मुसकान तैर गई. वह बोले, ‘‘देखो गायत्री, मैं तुम्हारा दुख समझता हूं. तुम्हारे पति की मौत हुई है और तुम्हारे दिमाग की हालत अभी ठीक नहीं है. लेकिन इस का मतलब ये नहीं कि तुम्हारे पति की हत्या हुई है. भला तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है. सड़कों पर हर रोज ऐसे हजारों ऐक्सीडेंट होते हैं, लेकिन इस का मतलब ये तो नहीं कि सब हत्या कही जाएंगी.’’

‘‘हां साहब, इस की वजह मैं आप को बताती हूं,’’ कहने के बाद गायत्री ने इंसपेक्टर अजय कुमार लांडगे को जो कुछ बताया, उसे सुन कर लांडगे की आंखें फैल गईं.

कुछ देर शांत रहने के बाद इंसपेक्टर लांडगे ने कहा, ‘‘ठीक है गायत्री, तुम ने जो कुछ बताया, अगर वो सच है तो हम इस की जांच करेंगे. अगर तुम्हारे पति की मौत हत्या है तो तुम्हें इंसाफ जरूर मिलेगा और कातिल जेल की सलाखों के पीछे होगा.’’

इंसपेक्टर लांडगे ने उसी दिन पनवेल डिवीजन के एसीपी भगवत सोनावने को शिवाजी की पत्नी और उस के साले के इस शक के बारे में जानकारी दे कर यह भी बता दिया कि उन्हें क्यों शक है कि शिवाजी की मौत सड़क हादसा नहीं बल्कि मर्डर है.

सुनने के बाद एसीपी सोनावने भी सोच में पड़ गए, ‘‘लांडगे साहब, हम ऐसे ही किसी पर हाथ नहीं डाल सकते, क्योंकि हमारे पास कोई सबूत नहीं हैं. आप ऐसा करो, एक टीम तैयार करो और जरा पता करो कि इन आरोपों में कितनी सच्चाई है.’’

शिवाजी की पत्नी के कहने पर पनवेल पुलिस ने जांच तो शुरू कर दी, लेकिन खुद लांडगे के पास अभी भी इस केस को सड़क दुर्घटना नहीं मानने के लिए कोई सबूत नहीं था.

हालांकि पुलिस को अभी तक यह भी नहीं पता था कि शिवाजी का ऐक्सीडेंट जिस कार से हुआ था, वह कौन सी कार थी.

लेकिन कहानी में पहला ट्विस्ट तब आया, जब इंसपेक्टर लांडगे को पता चला कि शिवाजी सानप के ऐक्सीडेंट वाले स्थान से 2 किलोमीटर की दूरी पर एक सुनसान जगह पर उसी रात एक नैनो कार जली हालत में मिली.

संबंधित चौकी के स्टाफ से जानकारी मिलने के बाद लांडगे सोच में पड़ गए. लांडगे एक ही रात में शिवाजी तथा ऐक्सीडेंट स्पौट से करीब 2 किलोमीटर दूर एक जली हुई कार के मिलने की कडि़यों को जोड़ने की कोशिश कर रहे थे.

इस के अगले ही दिन जब शिवाजी की पत्नी गायत्री ने यह शक जताया कि उस के पति की मौत सड़क दुर्घटना नहीं, बल्कि सोचीसमझी साजिश के तहत की गई है तो पुलिस मौत की जांच का काम करने में जुट गई.

जिस जगह यह हादसा हुआ था, पुलिस ने उस के आसपास लगे तमाम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकालनी शुरू कर दी. पुलिस ने थाना नेहरू नगर के ड्यूटी औफिसर और शिवाजी के परिवार वालों से शिवाजी के आनेजाने के रुटीन का पता किया कि वह पुणे से नेहरू नगर पुलिस स्टेशन कैसे आताजाता था.

इस के बाद उन्होंने नेहरू नगर थाने से ले कर कुर्ला स्टेशन तक जितने भी सीसीटीवी लगे थे, सब को चैक किया. यह एक लंबी कवायद थी, लेकिन मामला चूंकि अपने ही विभाग से जुड़े हैडकांस्टेबल की संदिग्ध मौत से जुड़ी जांच का था, लिहाजा पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी.

छोटा पाखंडी, बड़ा अपराध: पुजारी का कारनामा

 छत्तीसगढ़ के जिला बलौदा बाजार भाटापारा के पलारी थाने के अंतर्गत एक गांव है छेरकाडीह. यशवंत साहू इसी गांव में अपनी पत्नी, छोटे भाई जितेंद्र साहू व मातापिता के साथ संयुक्त परिवार में रहता था. यह परिवार धार्मिक आस्थावान था. घर में अकसर पूजापाठ, कथा का आयोजन होता रहता था. यह पूजापाठ के ये कार्यक्रम पंडित रविशंकर शुक्ला संपन्न कराता था.

पंडित रविशंकर पास के ही गांव जारा में रहता था. आसपास के कई गांवों के लोग उसी के यजमान थे. रविशंकर शुक्ला ने होश संभालने के साथ ही पुरोहित का काम करना शुरू कर दिया था.

एक बार की बात है. सुबह के 10 बजे यशवंत साहू के यहां सत्यनारायण की कथा का आयोजन था. उस दिन 32 वर्षीय रविशंकर शुक्ला यशवंत साहू के घर पहुंचा. यशवंत साहू ने उस का स्वागत किया. रविशंकर शुक्ला ने घर में इधरउधर नजरें दौड़ाने के बाद पूछा, ‘‘यजमान, देवी माहेश्वरी कहां हैं, दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘रसोई में है महराज, अभी आ जाएगी. आप बैठिए, मैं पूजा की कुछ सामग्री लाना भूल गया हूं, बाजार से ले कर आता हूं, तब तक आप चाय आदि ग्रहण करें.’’ यशवंत साहू ने कहा.

यशवंत साहू मोटरसाइकिल ले कर बाजार के लिए रवाना हुआ तो पंडित रविशंकर उठ खड़ा हुआ और रसोई की ओर दबे पांव आगे बढ़ा.

रसोई में माहेश्वरी साहू पूजा के लिए प्रसाद बना रही थी. तभी पंडित रविशंकर ने किचन में पहुंच कर पीछे से माहेश्वरी के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘अरे! कौन.’’ माहेश्वरी ने घबरा कर देखा तो पीछे पंडितजी थे. वह बोली, ‘‘अरे महाराज आप?’’

‘‘हां, साहूजी को मैं ने बाजार भेजा है. घबराने की जरूरत नहीं है.’’ कह कर पंडित रविशंकर रहस्यमय भाव से  मुसकराया .

‘‘अरे, घर में  पूजा है ,बच्चे हैं और तुम…’’

‘‘अरेअरे, क्या कहती हो… चलो.’’ पंडित अपने रंग में आने लगा.

‘‘नहीं… नहीं तुम आज पूजा कराने आए हो… तुम्हें थोड़ी भी समझ नहीं है क्या.’’ माहेश्वरी ने मीठी झिड़की दी.

‘‘मुझे तुम्हारे अलावा कुछ दिखाई नहीं देता… सच कहूं तो तुम ही मेरी भगवान हो.’’ वह बेशरमी से बोला.

‘‘छि…छि… यह क्या कह रहे हो. थोड़ी तो शर्म करो, मैं तुम्हें कितना अच्छा समझती थी.’’

‘‘क्यों, मुझे क्या हो गया है… मैं तो तुम्हें अभी भी उसी तरह चाहता हूं जैसा कि ठीक 2 साल पहले… जब तुम्हारीहमारी पहली मुलाकात हुई थी.’’

‘‘अच्छा, सब याद है,’’ अचरज से माहेश्वरी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘हां तारीख, दिन, समय… सब कुछ… वह दिन मैं भला कैसे भूल सकता हूं. क्या तुम भूल गई हो?’’ रविशंकर शुक्ला ने पूछा .

‘‘अच्छा, अभी तुम बैठक मैं पहुंचो… मैं 2 मिनट में आती हूं…’’ कह कर माहेश्वरी ने रविशंकर को जाने को कहा तो रविशंकर इठला कर बोला, ‘‘मैं चाय पीऊंगा तुम्हारे हाथों की. इस के बाद ही यहां से टलूंगा.’’

‘‘हां, मैं बनाती हूं महाराज,’’ कह कर माहेश्वरी मुसकराई और बोली, ‘‘अब तुम मुझ से दूर रहा करो. बच्चे बड़े हैं, अच्छा नहीं लगता. कहीं किसी ने देख लिया तो मुझे जहर खा कर मरना पड़ेगा.’’

रविशंकर और माहेश्वरी अभी बातें कर ही रहे थे कि यशवंत साहू पूजा की सामग्री ले कर आ गया. पंडितजी को बैठक में न पा कर वह स्वाभाविक रूप से रसोई की ओर बढ़ा तो पंडित रविशंकर की आवाज सुन वह ठिठक कर रुक गया.

यशवंत साहू ने रविशंकर और माहेश्वरी की बातें सुनी तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. वह गुस्से के मारे चिल्ला कर बोला, ‘‘पंडित, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अरे, यजमान… भाभीजी चाय बना रही थीं, तो हम ने सोचा कि यहीं बैठ कर पी लें.’’ मीठी वाणी में रविशंकर शुक्ला ने बात बनानी चाही.

‘‘मगर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां तक घुसने की… और सुनो, मैं ने सब सुन लिया है. मुझे  तुम  पर बहुत  दिनों से  शक था, आज तू पकड़ा गया. तू पंडित नहीं, राक्षस है. चला जा, मेरे घर से.’’ यशवंत साहू ने आंखें दिखाईं तो पंडित घबराया मगर हिम्मत कर के बोला, ‘‘यजमान, तुम कहना क्या चाहते हो? तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है. तुम ने मुझे  सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया है.’’

‘‘देखो, मैं तुम से साफसाफ कह रहा हूं… मेरे घर से अभी चले जाओ.’’

‘‘मगर मैं तो पूजा करने आया था… तुम नाराज क्यों हो रहे हो भाई?’’ रविशंकर ने बात बनाने की पूरी कोशिश की मगर यशवंत साहू की आंखों के सामने से मानो परदा उठ चुका था.

यशवंत साहू ने जलती हुई आंखों से देखते हुए कहा, ‘‘भाग जाओ, यहां से. अब तुम्हारी पोल खुल गई है.’’

मामले की गंभीरता को देखते हुए रविशंकर वहां से चले जाने में ही भलाई समझी.

इस घटना के बाद यशवंत और माहेश्वरी के वैवाहिक जीवन पर मानो ग्रहण लग गया. माहेश्वरी ने यशवंत के पैरों पर गिर कर सब कुछ स्वीकार कर लिया और फिर कभी दोबारा गलती नहीं करने की कसम खाई.

परिवार की इज्जत बचाए रखने और बच्चों के भविष्य को देखते हुए यशवंत साहू ने उसे एक तरह से खून का घूंट पी कर माफ कर दिया.

पुजारी ने दी धमकी

मगर पंडित रविशंकर शुक्ला जब कभी गांव छेरकाडीह आता और कहीं अचानक से उसे माहेश्वरी दिख जाती तो वह उस से बात करने की कोशिश करता. लेकिन माहेश्वरी उसे देख मुंह फेर लेती तो रविशंकर मनुहार करता. जब कई बार के प्रयासों से भी महेश्वरी नहीं पिघली तो अंतत: एक दिन गुस्से में आ कर उस ने कहा, ‘‘माहेश्वरी, मैं तुम्हें आसपास के सभी गांव में बदनाम कर दूंगा… तुम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी.’’

माहेश्वरी यह सुन कर घबराई फिर बोली, ‘‘तुम क्या चाहते हो, क्या यह चाहते हो कि मेरा पति और परिवार वाले मुझे अहिल्या की तरह त्याग दें. नहीं… मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. तुम चले जाओ…’’

मगर पंडित रविशंकर शुक्ला धमकी दे कर चला गया. जब यह बात यशवंत को मालूम हुई तो वह चिंता में पड़ गया. एक दिन वह अपने मित्र और गांव जारा के सरपंच नारायण दास से मिला. सरपंच को सारी बात बताते हुए यशवंत ने उस से मदद मांगी तो सरपंच ने कहा, ‘‘साहूजी, मामला घरेलू है, मगर मैं इस में तुम्हारी पूरी मदद करूंगा.’’

एक दिन सरपंच ने चुनिंदा लोगों की सभा बुलाई. वहां पुजारी रविशंकर शुक्ला को बुला कर सरपंच ने सब के सामने साफसाफ कहा, ‘‘पंडितजी, अगर तुम ने दोबारा माहेश्वरी

भाभी को देखने, धमकाने की कोशिश की तो मामला पुलिस तक पहुंच जाएगा और तुम्हारी पुरोहिती सभी  गांवों  में बंद करा दी जाएगी.’’

मामला हाथ से निकलता देख कर पुजारी रविशंकर शुक्ला ने उस दिन हाथ जोड़ कर माफी मांगी और वहां से चला गया.

यशवंत साहू और माहेश्वरी को लगा कि मामले का पटाक्षेप हो गया है, मगर ऐसा हुआ नहीं था.

यशवंत साहू का परिवार मूलत: किसान था. छेरकाडीह में रह रहे उस के संयुक्त परिवार में पिता दानसाय साहू, मां लक्ष्मी, भाई  जितेंद्र साहू जो शिक्षक थे, उन की पत्नी मीना, बेटा शशिमणि व बेटी तनिशा थे.

यह गांव का धनाढ्य परिवार था. यही कारण था कि हाल ही में घर के

पास पिछवाड़े में आलीशान घर बनवाया था, जिस में छोटा भाई  जितेंद्र साहू अपने परिवार व पिता और मां के साथ रहता था. जबकि यशवंत साहू पत्नी व बेटे देवेंद्र के साथ

पुराने मकान में ही रह रहा था. बेटी पूनम ज्यादातर दादादादी और चाचा की लड़की तनिशा के साथ रहना पसंद करती थी, वह रहती भी वहीं थी.

जब यशवंत साहू ने पंडित रविशंकर को भलाबुरा कह कर घर से निकाला था तो उस समय यशवंत का बेटा देवेंद्र साहू भी मौजूद था. बाद में जब एक बार पंडित रविशंकर गांव छेरकाडीह आया तो उस की देवेंद्र साहू से मुठभेड़ हो गई थी.

इस पर पंडित रविशंकर ने धान काटने के हंसिए से देवेंद्र को मार फेंकने की धमकी दी थी. मगर यशवंत साहू ने इसे  गंभीरता से लेते हुए बेटे देवेंद्र को समझाया कि पंडित रविशंकर से मुंह न लगा करे.

चाह कर भी रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को भुला नहीं पा रहा था. गांव में सभा हो जाने के बाद कुछ समय वह शरीफ बना रहा, फिर उस के भीतर का प्रेमी जागृत हो उठा. उस ने सोचा, जरूर माहेश्वरी पति के दबाव में उसे नकार रही है. वह उस से अभी भी प्यार करती है. उस ने सोचा कि क्यों न माहेश्वरी से बात करे… मिले… अंतिम बार.

यही सोच कर रविशंकर शुक्ला ने माहेश्वरी को मोबाइल पर काल की लेकिन माहेश्वरी ने उस की काल रिसीव नहीं की. कई बार काल करने पर भी काल रिसीव नहीं हो रही थी, ऐसे में पंडित के मन में कई शंकाएं जन्म ले रही थीं. वह सोच में डूबा था कि उस का मोबाइल घनघना उठा.

उस ने देखा काल माहेश्वरी की तरफ से आ रही थी, वह खुश हो कर काल रिसीव करते हुए वह बोला, ‘‘माहेश्वरी, मैं जानता था कि तुम मुझे नहीं छोड़ सकतीं… मुझे विश्वास था कि तुम्हारा फोन आएगा. सुनो, तुम मेरे पास आ जाओ.’’

तभी माहेश्वरी गुस्से में बोली, ‘‘देखो पंडितजी, पंचायत में तुम्हें हिदायत दे दी थी, अब तुम मर्यादा में रहो.’’

‘‘मैं…मैं जानता हूं, तुम दबाव, पति के प्रभाव में हो, सचसच कहो.’’ पंडित ने पूछा .

‘‘नहीं, मैं किसी दबाव में नहीं हूं. मैं ने विवाह किया है, मेरे 2 बच्चे हैं. और तुम भी शादीशुदा हो. इसलिए आगे से फोन किया तो ठीक नहीं होगा.’’ कह कर माहेश्वरी ने गुस्से से फोन बंद कर दिया.

रविशंकर शुक्ला के माथे में बल पड़ गए. वह सोचने लगा कि यह तो अलग ही सुर निकाल रही है, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि इस की सात पुश्तें भी याद रखेंगी.

पुजारी ने रची खूनी साजिश

रविशंकर शुक्ला माहेश्वरी को सबक सिखाने की योजना बनाने में जुट गया. उस ने अपनी ससुराल के एक दोस्त दुर्गेश वर्मा से बात की. फिर गांव के तालाब किनारे ले जा कर उसे अपनपा दर्द बताया और सहयोग मांगा.

जब वह साथ देने और मरनेमारने पर उतारू हो गया तो रविशंकर शुक्ला बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘मैं माहेश्वरी को सबक सिखाना चाहता हूं. उस के बेटे देवेंद्र व पति का काम तमाम करते ही वह मजबूर  हो कर मेरे आगोश मे आ जाएगी.’’

दुर्गेश ने पंडित रविशंकर की दोस्ती के कारण शनिवार 11-12 अप्रैल 2020 की रात यशवंत साहू के घर में घुस कर यशवंत साहू की हत्या की योजना बनाई. दोनों रविशंकर शुक्ला की बाइक सीजी22 एसी 7453 पर गांव गातापारा से छेरकाडीह के लिए रवाना हुए.

इसी दौरान दुर्गेश वर्मा को अपने  घर के पास एक मित्र नेमीचंद धु्रव दिखाई दिया. उस ने उसे भी बाइक पर बैठा लिया और कहा, ‘‘चल, तुझे भी एक मिशन पर ले चलते  हैं.’’

रात लगभग 11 बजे छेरकाडीह पहुंच कर इन लोगों ने एक जगह बाइक खड़ी कर के नेमीचंद को वहीं खड़ा छोड़ दिया और एक टंगिया, एक फरसी ले कर दोनों  यशवंत साहू के घर की ओर बढ़े. पंडित रविशंकर जानता था कि पिछवाड़े से यशवंत के घर में आसानी से दाखिल हुआ जा सकता है. वह दुर्गेश के साथ भीतर गया.

एक कमरे में यशवंत साहू अपने बेटे देवेंद्र के साथ सोया था. रविशंकर ने नींद में सोए देवेंद्र पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. फरसे  की चोट लगते ही देवेंद्र उठ खड़ा हुआ तो दोनों ने मिल कर उसे वहीं ढेर कर दिया. इस बीच यशवंत की नींद टूट गई. वह डर से कांप रहा था. दोनों ने हमला कर के उस भी मार डाला.

दूसरे कमरे में माहेश्वरी अकेली सो रही थी. चीखपुकार सुन वह जब घटनास्थल पर पहुंची तो पति यशवंत व बेटे देवेंद्र की लाश देख कर चीख पड़ी. इस पर पंडित रविशंकर शुक्ला ने पोल खुल जाने के डर से वहां रखे  सब्बल से उस के सिर पर वार कर उसे भी मार डाला.

उसी समय  घर के पिछवाड़े में नए घर में बैठी यशवंत की बेटी पूनम ने मां के चीखने की आवाज सुनी और घबरा कर चार कदम आगे बढ़ी. मगर यह सोच कर खामोश बैठ गई कि मां का पिताजी के साथ झगड़ा हो रहा होगा.

उधर चारों तरफ खून फैला हुआ था, जिसे देख कर दुर्गेश और रविशंकर शुक्ला घबराए और वहां से भाग खड़े हुए. बाहर थोड़ी दूरी पर नेमीचंद धु्रव उन का इंतजार कर रहा था. तीनों बाइक से गातापार की तरफ चले गए.

सुबह 6 बजे यशवंत के पिता दानसाय साहू उठे और टहलते हुए जब यशवंत के घर की ओर बढ़े तो परछी में बहू माहेश्वरी को खून से लथपथ पडे़ देख घबरा कर उलटे पांव वापस लौटे और पत्नी लक्ष्मी को वहां की यह बात बताई. सुनते ही पास बैठी पूनम दौड़ कर घटनास्थल पर पहुंची.

वह मां को मृत देख रोने लगी. जब उस ने कमरे में लाइट जलाई तो वहां पिता और भाई की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं. यह देख कर वह फूटफूट कर रोने लगी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे और क्या हो गया. पूनम के रोने की आवाज सुन चाचा जितेंद्र व सारा परिवार वहां आ गया. ग्राम पंचायत छेरकाडीह के सरपंच रामलखन भी घटनास्थल पर पहुंचे और थाना पलारी फोन कर के घटना की जानकारी दी.

12 अप्रैल, 2020 को लगभग 8 बजे पलारी थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह डौग स्क्वायड टीम व स्टाफ के साथ छेरकाडीह पहुंचे और घटनास्थल का मुआयना किया. चारों तरफ खून फैला हुआ था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि किसी ने दुश्मनी के कारण यह नृशंस हत्याकांड किया है.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर तीनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. इसी दरम्यान थानाप्रभारी को यह खबर मिली कि हाल ही में यशवंत साहू ने सरपंच से कह कर सभा बुलाई थी, जिस में सरपंच ने पुजारी रविशंकर को हिदायत दी थी कि वह माहेश्वरी के पीछे न पड़े.

पुलिस के हत्थे चढ़े आरोपी

थानाप्रभारी प्रमोद कुमार सिंह को पूरा मामला शीशे की तरह साफ नजर आ रहा था. शक की सुई पुजारी रविशंकर की ओर घूम चुकी थी. उन्होंने एसपी प्रशांत ठाकुर बलोदाबाजार, भाटापारा  को संपूर्ण जानकारी दे कर मार्गदर्शन मांगा. तब एसपी ने इस केस को खोलने के लिए थाना गिधौरी के थानाप्रभारी ओमप्रकाश त्रिपाठी और थाना सुहेला के थानाप्रभारी रोशन सिंह को भी उन के साथ लगा दिया.

पुलिस टीम ने रविशंकर शुक्ला को शाम को ही धर दबोचा. उसे पलारी थाना ला कर पूछताछ शुरू की गई, लेकिन वह शातिराना ढंग से स्वयं को पंडित बता कर  बचना चाह रहा था मगर जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गया और तिहरे हत्याकांड को अंजाम देने की कहानी बता दी. उस ने बताया कि उस के इस काम में दुर्गेश व नेमीचंद भी साथ थे.

पुजारी रविशंकर शुक्ला ने बताया कि वह 5 वर्षों से गांवगांव घूम कर यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराता था, 2 साल पहले यशवंत साहू ने उसे पहली बार सत्यनारायण की कथा के लिए बुलाया था, जहां उस का परिचय उस की पत्नी माहेश्वरी से हुआ और बहुत जल्द दोनों के अंतरंग संबंध बन गए.

मगर बाद में माहेश्वरी उस से दूर छिटकने की कोशिश करने लगी और वह एक बार रंगेहाथों पकड़ा भी गया था.

पंचायत में बात जाने के बाद वह माहेश्वरी से बातचीत कर उसे भगा ले जाने को तैयार था मगर जब माहेश्वरी ने साफ इंकार कर दिया तो उस ने दुर्गेश को विश्वास में ले कर यशवंत साहू को सबक सिखाने की सोची. फिर माहेश्वरी सहित उस के बेटे देवेंद्र साहू को मार डाला.

आरोपी रविशंकर शुक्ला ने जांच अधिकारी प्रमोद कुमार सिंह को अपने इकबालिया  बयान में  बताया कि वह माहेश्वरी से दिलोजान से प्रेम करता था, इसलिए प्रेम में अंधे हो कर उस के हाथों यह हत्याकांड हो गया.

पुलिस ने आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला और दुर्गेश वर्मा से हत्या में इस्तेमाल हथियार  टंगिया, फरसा व खून से सने कपड़े जब्त कर लिए.

प्राथमिक विवेचना के बाद पुलिस ने पलारी थाने में धारा 302 भादंवि के तहत केस दर्ज किया और मुख्य आरोपी पंडित रविशंकर शुक्ला, सहआरोपी दुर्गेश और नेमीचंद को गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कृष्णकुमार सूर्यवंशी की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. द्य   —कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, सितबंर 2020

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फिरौती 1 करोड़ की: अपराधियों का आतंक

लगातार बढ़ रही घटनाओं से पुलिस भी शक के घेरे में आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में 14 वर्षीय बलराम गुप्ता की अपहरण के बाद हुई हत्या से प्रदेश के लोगों में डर बैठ गया है. लोगों का सोचना है कि जब मुख्यमंत्री के जिले के लोग ही सुरक्षित नहीं हैं तो और लोग कैसे सुरक्षित रह सकते हैं.

गोरखपुर जिले के थाना पिपराइच के गांव जंगल छत्रधारी टोला मिश्रौलिया के रहने वाले बच्चे बलराम गुप्ता का जिस तरह अपहरण करने के बाद उस की हत्या कर दी गई, उस से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई.

5वीं कक्षा में पढ़ने वाला बलराम गुप्ता 26 जुलाई, 2020 को दोपहर 12 बजे खाना खा कर रोजाना की तरह घर से बाहर खेलने निकला. अपने दोस्तों के साथ खेलने के बाद वह अकसर डेढ़दो घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह घर नहीं लौटा. उस की मां और बहन ने उसे आसपास ढूंढा, लेकिन बलराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

बलराम के पिता महाजन गुप्ता घर के पास में ही पान की दुकान चलाते थे. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करते थे. जब उन्हें पता लगा कि बलराम दोपहर के बाद से गायब है तो वह भी परेशान हो गए. करीब 3 बजे महाजन गुप्ता के मोबाइल फोन पर एक ऐसी काल आई जिस से घर के सभी लोग असमंजस में पड़ गए.

फोन करने वाले ने कहा कि तुम्हारा बेटा बलराम हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा चाहते हो तो एक करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो, अन्यथा बहुत पछताना पड़ेगा.

यह खबर सुनते ही महाजन गुप्ता घबरा गए. उन्होंने अपहर्त्ता से कहा कि वह उन के बेटे का कुछ न करें. जैसा वे कहेंगे वैसा ही करने को तैयार हैं. बलराम अपनी 5 बहनों के बीच इकलौता भाई था, इसलिए वह घर में सभी का लाडला था. बलराम के अपहरण की जानकारी उस की मां और बहनों को हुई तो सभी परेशान हो गईं.

महाजन गुप्ता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वह एक करोड़ रुपए की व्यवस्था कर सकें, इसलिए वह यह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि इतने पैसों का इंतजाम कहां से करें. उसी दौरान अपहर्त्ताओं ने उन्हें दोबारा फोन किया, ‘‘एक बात याद रखना पुलिस को सूचना देने की भूल मत करना…’’

‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा. लेकिन आप जितने पैसे मांग रहे हैं, मेरे पास नहीं हैं. अगर कुछ कम कर लेंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’ महाजन गुप्ता ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘इस बारे में हम 5 बजे के करीब फिर बात करेंगे. तब तक तुम पैसों का इंतजाम करो.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

महाजन को लगा कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा मांगी गई फिरौती का इंतजाम नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को दे दी. बच्चे के अपहरण की सूचना मिलते ही थाना पपराइच पुलिस उसी समय महाजन के घर पहुंच गई. घर वालों से बातचीत करने के बाद पुलिस ने उन बच्चों से भी पूछताछ की, जिन के साथ बलराम अकसर खेला करता था.

थाना पुलिस अभी यह जांच कर ही रही थी कि पुलिस को सूचना मिली कि गांव से 3-4 किलोमीटर दूर नहर में एक बच्चे की लाश पड़ी है. सूचना मिलने पर पुलिस महाजन गुप्ता को ले कर नहर पर पहुंच गई. नहर में मिली लाश बलराम की ही निकली, जिस की शिनाख्त महाजन ने कर ली.

बेटे की लाश देखते ही महाजन गुप्ता गश खा कर वहीं गिर गए. गांव में यह खबर फैली तो सभी सन्न रह गए. महाजन के घर में तो हाहाकार मच गया. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि प्रदेश में यह क्या हो रहा है. अपराधी बेलगाम हो कर वारदात पर वारदात कर रहे हैं और पुलिस कान में तेल डाले सो रही है.

लिहाजा बलराम की हत्या के बाद ग्रामीणों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा, जिस के बाद खबर मिलने पर जिला स्तर के पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. चूंकि मामला प्रदेश के मुख्यमंत्री के गृह जनपद का था, इसलिए मुख्यमंत्री को भी इस घटना की जानकारी मिल गई. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए शीघ्र ही केस का खुलासा करने के आदेश दिए.

मुख्यमंत्री के आदेश पर थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच और एसटीएफ भी केस को खोलने में जुट गई. पुलिस टीमों ने सब से पहले महाजन गुप्ता से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. महाजन ने जब दुश्मनी होने से इनकार कर दिया तो जांच टीमों ने उस फोन नंबर की जांच शुरू कर दी,जिस से महाजन के पास फिरौती की काल आई थी.

उस फोन नंबर की जांच के सहारे पुलिस रिंकू नाम के उस शख्स के पास पहुंच गई, जिस ने वह सिम कार्ड फरजी आईडी पर दिया था. रिंकू ने बताया कि वह सिम उस ने दयानंद राजभर नाम के व्यक्ति को दिया था.

रिंकू को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने  उस की निशानदेही पर दयानंद राजभर को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि बलराम की हत्या में अजय चौहान और नितिन चौहान भी शामिल थे. उन्होंने फिरौती के चक्कर में उस की हत्या की थी.

बलराम की हत्या का केस लगभग खुल चुका था. अब केवल अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी बाकी थी. पुलिस टीमों ने अन्य अभियुक्तों की तलाश में संभावित स्थानों पर दबिश डालनी शुरू की. अगले दिन 27 जुलाई को पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी अजय चौहान और नितिन उर्फ मुन्ना चौहान को हैदरगंज के गुलरिहा गांव में रहने वाले उन के एक रिश्तेदार ने कमरे में बंद कर लिया है.

सूचना मिलने पर भारी तादाद में पुलिस गुलरिहा पहुंच गई और दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अब तक पुलिस के हत्थे 5 आरोपी चढ़ चुके थे, जिन में 3 लोग बलराम के अपहरण और हत्या में शामिल थे और 2 पर फरजी कागजात के जरिए सिम कार्ड बेचने की बात सामने आई.

पूछताछ में अभियुक्तों ने बताया कि उन्हें खबर मिली थी कि महाजन गुप्ता प्रौपर्टी डीलिंग में अच्छी कमाई करते हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी कोई जमीन अच्छे पैसों में बेची थी. मोटी फिरौती के लालच में उन्होंने उन के इकलौते बेटे बलराम का अपहरण किया था. बलराम का अपहरण करने के बाद वे उसे एक दुकान में ले गए थे और भेद खुलने के डर से उस की गला घोंट कर हत्या कर दी थी.

फिर उस की लाश नहर में डाल आए थे. लाश ठिकाने लगाने के बाद आरोपी नितिन उर्फ मुन्ना चौहान और अजय चौहान गुलरिहा स्थित अपनी मौसी के घर छिपने के लिए पहुंचे. उन्होंने मौसी को सच्चाई बता दी. मौसी को इस बात का डर था कि कहीं उन के चक्कर में पुलिस एनकाउंटर कर के उस के बच्चों की जान न ले ले, इसलिए उन्होंने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी.

दोनों आरोपियों को डर था कि आत्मसमर्पण के बाद भी पुलिस उन का एनकाउंटर कर सकती है. तब रिश्तेदारों ने पूरे गांव वालों के सामने उन का आत्मसमर्पण करने की योजना बनाई. अजय और नितिन को एक कमरे में बंद कर उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया और जब पुलिस उन दोनों को गिरफ्तार कर ले जा रही थी तो उस समय पूरा गांव जमा हो गया था.

14 वर्षीय बलराम के अपहरण और हत्या के आरोप में पुलिस ने 5 अभियुक्तों को गिरफ्तारकर लिया. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने लापरवाही बरतने के आरोप में एक दरोगा और 2 सिपाहियो ंको सस्पेंड कर दिया.

उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलराम गुप्ता की हत्या पर संवेदना व्यक्त की और उस के परिजनों को 5 लाख रुपए की सहायता राशि जिलाधिकारी के माध्यम से भिजवाई.

बलराम एक साल पहले एक रिश्तेदार के घर से रहस्यमय तरीके से लापता हो गया था, जिसे 4-5 दिन बाद पुलिस ने कुसमही के जंगल से बरामद किया था. लेकिन इस बार गायब होने पर उस की लाश मिली.

सौजन्य: मनोहर कहानियां, सितबंर 2020

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सौफ्टवेयर की दोस्ती, प्यार और दुश्मनी

फिरोजाबाद जिले का एक थाना है नगला खंगर. इसी के थाना क्षेत्र में एक गांव है धौनई. यहीं के रहने वाले अजयपाल का बेटा है प्रदीप यादव. वह झारखंड की एक कंपनी में नौकरी करता था.

अजयपाल रक्षाबंधन से 9-10 दिन पहले अपने गांव धौनई आ गया था ताकि त्यौहार अच्छे से मनाया जा सके. उस के आने से पूरा परिवार खुश था. वजह यह कि नौकरी की वजह से अजय को झारखंड में रहना पड़ता था. वहां से वह कईकई महीने में आ पाता था.

करीब 8 महीने पहले अजयपाल की फेसबुक के माध्यम से एक युवती ज्योति शर्मा से दोस्ती हो गई थी. बाद में दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे. इस के बाद मोबाइल पर दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था.

बातों बातों में प्रदीप को पता चला कि ज्योति फिरोजाबाद जिले के गांव नगला मानसिंह की रहने वाली है. ज्योति ने बताया था कि वह बीए में पढ़ रही है. फेसबुक से शुरू हुई दोनों की दोस्ती धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी. अब ज्योति और प्रदीप मोबाइल पर प्यार भरी बातें भी करने लगे.

अगर किसी लड़केलड़की के बीच लगातार बातचीत होती रहे तो कई बार प्यार हो जाता है. यही अजयपाल और ज्योति के बीच भी हुआ. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे. दोनों ने एकदूसरे पर अपने प्रेम को भी उजागर कर दिया.

प्रदीप ने ज्योति को बताया कि वह भी फिरोजाबाद जिले के थाना नगला खंगर के गांव धौनई का रहने वाला है. यह जानने के बाद दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए उतावले हो गए. लेकिन प्रदीप को कंपनी से छुट्टी नहीं मिल पा रही थी. अपने गांव जाने से वह इसलिए भी कतरा रहा था कि घर वाले पूछेंगे कि तुम अचानक क्यों आ गए? इसलिए प्रदीप ने ज्योति को बताया, वह रक्षाबंधन पर घर आएगा तो उस से जरूर मुलाकात करेगा.

प्रदीप अपनी प्रेयसी से मिलने को आतुर था. इसलिए उस ने रक्षाबंधन से पहले ही घर जाने का निर्णय कर लिया. उस ने घर जाने के लिए छुट्टी ले ली. फिर वह रक्षाबंधन से 10 दिन पहले ही गांव आ गया. रक्षाबंधन 3 अगस्त को था. इस बीच उस की ज्योति से फोन पर बातचीत होती रही.

प्रदीप का गांव में एक ही दोस्त था सत्येंद्र. वह गांव में ही खेतीकिसानी करता था. उस के पिता रामनिवास की मृत्यु हो चुकी थी. सत्येंद्र फौज में भरती होने की तैयारी कर रहा था.

2 अगस्त की शाम 7 बजे थे. सत्येंद्र खेत से काम कर के वापस घर लौटा था. हाथमुंह धो कर उस ने मां से खाना परोसने के लिए कहा. मां थाली परोस कर लाई ही थी कि सत्येंद्र का दोस्त प्रदीप आ पहुंचा. प्रदीप ने इशारे से सत्येंद्र को अपने पास बुलाया.

प्रदीप ने उस के कान के पास मुंह ले जा कर धीमी आवाज में कुछ कहा. इस पर सत्येंद्र बोला, ‘‘खाना खा कर चलते हैं.’’

लेकिन प्रदीप ने कहा, ‘‘अभी लौट कर आते हैं, तभी खा लेना.’’

इस पर सत्येंद्र ने परोसी थाली छोड़ कर मां से कहा कि वह जरूरी काम से प्रदीप के साथ तिलियानी गांव जा रहा है. थोड़ी देर में लौट आएगा और वह जाने लगा तो मां ने कहा, ‘‘बेटा खाना तो खा ले, अभी तो कह रहा था तेज भूख लग रही है.’’

‘‘चिंता मत करो मां, वापस आ कर खा लूंगा.’’ कह कर 23 वर्षीय सत्येंद्र अपने 24 वर्षीय दोस्त प्रदीप की मोटरसाइकिल पर बैठ कर उस के साथ चला गया.

दोस्ती में सत्येंद्र बना शिकार

रात सवा 8 बजे सत्येंद्र के घर वालों को सूचना मिली कि सत्येंद्र तिलियानी रोड पर नगला मानसिंह के पास लहूलुहान पड़ा है. यह सुन कर घर वालों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

घर वाले आननफानन में घटनास्थल पर पहुंचे और घायल सत्येंद्र को उपचार के लिए जिला अस्पताल ले आए. उस के माथे पर गोली लगी थी. उस की गंभीर हालत देख डाक्टरों ने उसे आगरा रेफर कर दिया.

घर वाले सत्येंद्र को उपचार के लिए जब आगरा ले जा रहे थे, तो रास्ते में उस की मौत हो गई. पोस्टमार्टम के लिए उस के शव को जिला अस्पताल वापस लाया गया. सत्येंद्र के शरीर में गोली न मिलने के कारण उस के शव का एक्सरे किया गया.

पता चला कि गोली माथे में लगने के बाद पार हो गई थी. सुबह जब सत्येंद्र की मौत की खबर गांव पहुंची तो सनसनी फैल गई. सभी उसे सीधासादा बता कर उस की हत्या पर शोक जताने लगे.

उधर पुलिस की पूछताछ में सत्येंद्र के भाई धर्मवीर ने बताया कि कल शाम 7 बजे जब सत्येंद्र खाना खाने बैठा था, तभी गांव का उस का दोस्त प्रदीप आया और भाई को जबरन साथ ले गया. धर्मवीर ने आरोप लगाया कि उसी ने भाई की गोली मार कर हत्या कर दी है.

धर्मवीर की तहरीर पर पुलिस ने प्रदीप के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में लेने के साथसाथ उस के मोबाइल को भी कब्जे में ले लिया और उस से पूछताछ शुरू कर दी.

पूछताछ के दौरान प्रदीप ने पुलिस को बताया कि वह सत्येंद्र के साथ तिलियानी गांव की ओर जा रहा था. इसी दौरान रास्ते में अचानक गोली चली और मोटरसाइकिल चला रहे सत्येंद्र के माथे में आ लगी, उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. सत्येंद्र को गोली लगने पर वह डर गया और अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गया.

हत्या का यह मामला आईजी (आगरा रेंज) ए. सतीश गणेश तक पहुंचा. उन्होंने कहा, ‘कहानी जितनी सीधी दिख रही है उतनी है नहीं. कोई पागल ही होगा जो अपने साथ किसी को उस के घर से ले कर आए और उस की हत्या कर दे. इस मामले में गहराई से जांच कराई जाए.’

पुलिस को प्रदीप की बात गले नहीं उतर रही थी. पुलिस को लगा कि वह सच्चाई छिपा रहा है. सवाल यह था कि रात में दोनों तिलियानी गांव किस से मिलने जा रहे थे और क्या काम था, पुलिस प्रदीप से जानना चाहती थी कि हत्या से पहले क्याक्या हुआ था, अब प्रदीप के पास सच बताने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

पुलिस ने इस बारे में प्रदीप से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बहुत बाद में बताया कि उस की एक गर्लफ्रैंड है ज्योति शर्मा. उस ने ही उसे मिलने के लिए नगला मानसिंह मोड़ पर बुलाया था, दोनों उसी के पास जा रहे थे कि रास्ते में यह घटना घट गई. उस ने पुलिस से कहा कि वह चाहें तो ज्योति से पूछ ले.

प्रदीप के बयानों की सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने ज्योति की तलाश शुरू की. लेकिन ज्योति होती तो मिलती. प्रदीप से उस का मोबाइल नंबर लेने के बाद सर्विलांस पर लगा दिया गया. साइबर सेल ने यह गुत्थी सुलझा दी.

दरअसल प्रदीप को फंसाने के लिए ज्योति शर्मा के नाम से एक हाईटेक जाल फैलाया गया था, जांच में पुलिस को पता चला कि जो नंबर ज्योति शर्मा का बताया जा रहा था वह नंबर गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र उर्फ काके का है. पुलिस ने प्रदीप से कहा, तुम जिस नंबर को ज्योति शर्मा का बता रहे हो, वह तो राघवेंद्र का है.

यह सुनते ही प्रदीप का माथा ठनका. उस ने पुलिस को बताया कि इशहाकपुर का राघवेंद्र तो उस से रंजिश रखता है. लगता है वह मेरी बात ज्योति शर्मा नाम की किसी लड़की से कराता था. वह लड़की कौन है, यह बात तो राघवेंद्र ही बता सकता है.

एसएसपी सचिंद्र पटेल इस सनसनीखेज हत्याकांड की पलपल की जानकारी ले रहे थे. उन्होंने इस केस के आरोपियों की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (देहात) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने उन की मदद के लिए एएसपी डा. इरज रजा और थाना सिरसागंज के प्रभारी गिरीश चंद्र गौतम को ले कर एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

इस पुलिस टीम में थानाप्रभारी के साथ ही एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह, एसआई रनवीर सिंह, अंकित मलिक, प्रवीन कुमार, कांस्टेबल विजय कुमार, परमानंद, राघव दुबे, हिमांशु, महिला कांस्टेबल हेमलता शामिल थे.

इस टीम के सहयोग के लिए एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया. पुलिस शुरू से ही इस मामले की गहनता से जांच कर रही थी.

सौफ्टवेयर का कमाल

जांच कार्य में एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश के बाद और तेजी आ गई. 7 अगस्त को पुलिस को मुखबिर से जानकारी मिली कि नगला मानसिंह में हुई हत्या के आरोपी गड़सान रोड पर व्यास आश्रम के गेट के पास खड़े हैं.

इस सूचना पर थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम पुलिस टीम के साथ बताए गए स्थान पर पहुंच गए और घेराबंदी कर राघवेंद्र यादव उर्फ काके और उस के दोस्त अनिल यादव को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस दोनों हत्यारोपियों को थाने ले आई. पुलिस ने उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल 315 बोर का तमंचा, एक खोखा, एक कारतूस, 3 मोबाइल और हत्या में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली.

दोनों आरोपियों ने सत्येंद्र की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस लाइन सभागार में आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

राघवेंद्र प्रदीप से रंजिश के चलते उस की हत्या करना चाहता था. उस ने फूलप्रूफ षडयंत्र भी रचा. हत्यारोपियों ने हाईटेक जाल बिछाया और प्रदीप को अपने जाल में फंसा कर उसे अपनी मनपसंद जगह पर भी बुला लिया लेकिन निशाना चूक गया. हत्या प्रदीप की करनी थी, लेकिन हो गई उस के दोस्त सत्येंद्र की.

हत्यारोपियों ने इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी बताई, वह चाैंकाने वाली थी—

सन 2014 की बात है. प्रदीप के गांव धौनई की रहने वाली एक लड़की से थाना नगला खंगर क्षेत्र के गांव इशहाकपुर निवासी राघवेंद्र का प्रेमप्रसंग चल रहा था. एक दिन प्रदीप राघवेंद्र को उसी लड़की के चक्कर में धोखे से बुला कर अपने गांव ले गया था. उस ने अपने परिवार के युवक हिमाचल से राघवेंद्र की पिटाई करवाने के साथसाथ उसे बेइज्जत भी कराया. तभी से वह प्रदीप से रंजिश मानने लगा था.वह प्रदीप से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. लेकिन इस घटना के बाद प्रदीप नौकरी के लिए झारखंड चला गया था.

राघवेंद्र के सीने में प्रतिशोध की आग धधक रही थी. करीब 8 माह पहले उसे प्रदीप की फेसबुक से पता चला कि वह झारखंड की एक कंपनी में काम करता है. इस के बाद उस ने ज्योति शर्मा बन कर उस से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

प्रदीप का मोबाइल नंबर लेने के बाद राघवेंद्र ने अपने मोबाइल में वौइस चेंजर ऐप डाउनलोड किया. इसी ऐप के माध्यम से वह नगला मानसिंह की ज्योति शर्मा बन कर प्रदीप से बातें करने लगा.

रक्षाबंधन पर प्रदीप को गांव आना था, राघवेंद्र को इस की जानकारी थी. उस ने कई दिन पहले से प्रदीप की हत्या की साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया था. उस ने ज्योति शर्मा बन कर आवाज बदलने वाले सौफ्टवेयर से आवाज बदल कर प्रदीप को फोन किया. दोनों के बीच फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. मिलने के वादे हुए.

फोन पर प्रदीप जिसे ज्योति समझ कर हंसीमजाक करता था, उस से अपने दिल की बात कहता था वह राघवेंद्र था. वह भी ज्योति बन कर प्रदीप से पूरे मजे लेता था.

रक्षाबंधन पर प्रदीप के घर आने की जानकारी राघवेंद्र को थी. प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका देख उस ने ज्योति की आवाज में पहली अगस्त को प्रदीप को नगला मानसिंह मोड़ पर मिलने के लिए शाम को बुलाया. उस से वादा किया कि आज मिलने पर उस की सारी हसरतें पूरी कर देगी.

पहले दिन मोटरसाइकिल पर 2 लोग होने के कारण राघवेंद्र घटना को अंजाम नहीं दे सका था. 2 अगस्त को उस ने दोबारा ज्योति बन कर प्रदीप को फोन किया और मिलने के लिए बुलाया. प्रदीप ने ज्योति से कहा कि वह कुछ ही देर में उस से मिलने आ रहा है. इस के बाद प्रदीप अपने दोस्त सत्येंद्र के घर गया और उसे साथ ले कर तिलियानी रोड स्थित नगला मानसिंह मोड़ की ओर चल दिया.

नगला मानसिंह के पास रास्ते में राघवेंद्र अपने गांव के ही दोस्त अनिल यादव के साथ मोटरसाइकिल से पहले ही पहुंच गया था. प्रदीप को मोटरसाइकिल पर आते देख कर राघवेंद्र ने गोली चला दी. गोली प्रदीप को न लग कर उस के दोस्त सत्येंद्र के माथे में लगी, जिस से बाद में उस की मौत हो गई थी.

पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. इस सनसनीखेज घटना का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी सचिंद्र पटेल ने 15 हजार रुपए का पुरस्कार दिया.

यह सच है कि युवक हों या युवतियां प्यार में अंधे हो जाते हैं. न तो खुद गहराई से सोचते हैं और न दूसरे को सोचने देते हैं. इसी वजह से कभीकभी ऐसा कुछ हो जाता है, जो सावधानी बरतने पर नहीं होता. उस के अंधे प्यार ने उस के दोस्त की बलि ले ली.

आईजी के शक के चलते प्रदीप हत्या का आरोपी बनने से बच गया. उस की जगह उस का दोस्त सत्येंद्र बिना वजह मारा गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां, सितबंर 2020

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गुरू-चेले का खेल : खौफनाक संधि विच्छेद

42वर्षीय अजय पाठक जानेमाने सिंगर थे. भजन गायन में उन का देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी नाम था. वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला शामली के लाइनपार क्षेत्र में स्थित पंजाबी कालोनी में अपने परिवार के साथ रहते थे. यह एक पौश कालोनी है.

उन के परिवार में पत्नी स्नेहलता के अलावा एक बेटी वसुंधरा (15 वर्ष) और बेटा भागवत (10 वर्ष) था. जिस मकान में उस का परिवार रहता था, उस के भूतल पर अजय पाठक के चाचा दर्शन पाठक रहते थे. 31 दिसंबर, 2019 की सुबह जब बुजुर्ग दर्शन पाठक सो कर उठे तो उन्हें अपने भतीजे अजय और उस के बच्चों की आवाज सुनाई नहीं दी.

दर्शन जब उन्हें देखने ऊपर की मंजिल पर गए तो वहां ताला लगा मिला. उन की ईको स्पोर्ट कार भी वहां नहीं थी. यह देख कर वह समझे कि अजय बीवीबच्चों के साथ ससुराल करनाल गया होगा. क्योंकि अजय ने उन से पिछली शाम ही कहा था कि वह कल सुबह करनाल जाएगा. जब भी अजय को ससुराल जाना होता था वह सुबह 5 बजे के करीब बीवीबच्चों को ले कर निकल जाया करते थे. यही सोच कर दर्शन पाठक अपने रोजमर्रा के कामों में लग गए.

अजय पाठक के अन्य भाई उसी कालोनी में अलगअलग मकानों में रहते थे. शाम के समय जब वह चाचा दर्शन पाठक के पास आए तो उन्हें पता चला कि अजय अपनी बीवी और बच्चों के साथ ससुराल करनाल गए हैं. उसी समय एक भाई दिनेश ने अजय से बात करने के लिए उन का फोन मिलाया. लेकिन अजय का फोन स्विच्ड औफ था.

इस के बाद दिनेश ने अजय की ससुराल वालों को फोन किया तो उन्होंने बताया कि अजय और स्नेहलता में से कोई भी यहां नहीं आया है. यह सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गए. अजय और उन के बच्चे करनाल नहीं पहुंचे तो कहां चले गए. अजय की कार भी नहीं थी. इस से उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वह कार से बच्चों को ले कर कहीं घूमने निकल गया हो.

लेकिन अजय के फोन का स्विच्ड औफ होना घर वालों के मन में शक पैदा कर रहा था. दिनेश पाठक ने अजय की पत्नी स्नेहलता का फोन मिलाया तो उन के फोन ने भी आउट औफ कवरेज एरिया बताया. दोनों के ही फोन कनेक्ट न हो पाने पर घर वालों की चिंता बढ़नी लाजिमी थी. यह जानकारी मिलने पर दिनेश पाठक के घर के अन्य लोग और पड़ोसी भी आ गए.

अजय के मकान के ऊपर के फ्लोर का ताला बंद था. वहां मौजूद सभी लोगों को जिज्ञासा हुई कि क्यों न ऊपर के फ्लोर के दरवाजे पर लगा ताला तोड़ कर अजय के कमरे को देख लिया जाए.

लिहाजा अजय के भाई ताला तोड़ने की कोशिश करने लगे. किसी तरह ताला टूटा तो लोग कमरे में पहुंचे, लेकिन वहां का दृश्य देख सब की चीख निकल गई. कमरे में अजय पाठक, पत्नी स्नेहलता और 15 वर्षीय बेटी वसुंधरा की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

दृश्य बड़ा ही वीभत्स था, घर में 3-3 लाशें देख कर घर में चीखपुकार होने लगी. रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले के लोग भी वहां पहुंच गए. सभी आश्चर्यचकित थे कि आखिर इतने भले इंसान और उस के घर परिवार को किस ने मौत के घाट उतार दिया.  घर में अजय का 10 वर्षीय बेटा भागवत कहीं नजर नहीं आया. वह तो गायब था ही, अजय की कार भी लापता थी. इस से लोगों ने अनुमान लगाया कि हत्यारे भागवत का अपहरण कर ले गए होंगे.

पंजाबी कालोनी थाना आदर्शनगर क्षेत्र में आती थी. इसी दौरान मोहल्ले के किसी व्यक्ति ने थाना आदर्शनगर में फोन कर के इस तिहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह उस समय थाने में ही मौजूद थे.

सूचना मिलते ही वह पुलिस टीम के साथ पंजाबी कालोनी स्थित अजय पाठक के घर पहुंच गए. उस समय वहां भारी तादाद में लोग जमा थे. कर्मवीर उस कमरे में पहुंचे, जहां तीनों लाशें पड़ी थीं.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. अजय पाठक, उन की पत्नी स्नेहलता और बेटी वसुंधरा की लाशें फर्श पर पड़ी थीं. उन सभी के गले किसी धारदार हथियार से काटे गए थे, जिस से कमरे के फर्श पर खून ही खून फैला हुआ था.

कमरे की अलमारियां खुली हुई थीं और सामान फर्श पर फैला हुआ था. इस से यही लग रहा था कि हत्यारों ने अलमारी में कोई खास चीज ढूंढने की कोशिश की थी. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और जानेमाने सिंगर की हत्या से जुड़ा था, इसलिए कुछ ही देर में एसपी विनीत जायसवाल और डीएम अखिलेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एक ही परिवार के 3 लोगों की लाशें देख कर डीएम और एसपी भी आश्चर्यचकित रह गए. लोगों ने उन्हें बताया कि मृतक अजय पाठक का 10 वर्षीय बेटा भागवत गायब है. इस के अलावा अजय पाठक की ईको स्पोर्ट कार भी लापता थी.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे भागवत का अपहरण कर ले गए हैं. पुलिस को गायब हुए भागवत की भी चिंता होने लगी. हत्यारे बच्चे को कोई नुकसान न पहुंचा सकें, इसलिए एसपी विनीत जायसवाल ने सीमावर्ती जिलों के पुलिस कप्तानों से फोन से संपर्क कर घटना की जानकारी दे दी और कह दिया कि हत्यारे ईको स्पोर्ट कार में 10 वर्षीय बच्चे भागवत को भी साथ ले गए हैं.

इस सूचना के बाद आसपास के जिलों की पुलिस भी सतर्क हो गई. पुलिस बैरिकेड्स लगा कर कारों की चैकिंग करने लगी. पर वह ईको स्पोर्ट्स कार नहीं मिली.

31 दिसंबर, 2019 की रात के समय पानीपत पुलिस रोड गश्त पर थी, तभी रात करीब 12 बजे टोलप्लाजा के पास एक जलती कार दिखी. पुलिस जब वहां पहुंची तो कार के पास एक युवक खड़ा मिला. पुलिस ने उस से कार में आग लगने की वजह जाननी चाही तो वह वहां से भागने लगा. लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया और तुरंत फायर ब्रिगेड को सूचना दे दी.

पुलिस ने देखा तो यह वही ईको स्पोर्ट्स कार थी, जिस के गायब होने की सूचना शामली पुलिस ने दी थी. पानीपत पुलिस ने उस युवक से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम हिमांशु सैनी निवासी झाड़खेड़ी, थाना कैराना बताया.

उस ने पुलिस को बताया कि उस ने ही शामली में भजन गायक अजय पाठक, उन की पत्नी और बेटी की हत्या की है और कार की डिक्की में उन के बेटे भागवत की लाश है, जो उस ने जला दी है. पुलिस ने हिमांशु सैनी को हिरासत में ले लिया.

तब तक फायर ब्रिगेड कर्मचारी भी आ गए थे. उन्होंने कुछ ही देर में कार की आग बुझा दी. इस के बाद पानीपत पुलिस ने भागवत का अधजला शव बरामद कर उसे सिविल अस्पताल भेज दिया. हिमांशु को हिरासत में लेने की जानकारी शामली पुलिस को भी दे दी गई. पानीपत पुलिस हिमांशु को ले कर थाना सदर लौट आई.

अजय पाठक के भाइयों वगैरह को जब 10 वर्षीय भागवत की भी हत्या की जानकारी मिली तो उन्हें एक और झटका लगा. हिमांशु सैनी को वह अच्छी तरह जानते थे, वह अजय पाठक का शिष्य था. वह भी सिंगर था और उन के घर आताजाता था. वही घर का सर्वनाश करने वाला निकलेगा, ऐसा उन्होंने सोचा तक नहीं था.

अगले दिन यानी पहली जनवरी, 2020 को थाना आदर्श मंडी पुलिस के साथ विजय पाठक और उन के रिश्तेदार पानीपत के थाना सदर पहुंच गए ताकि पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए भागवत की लाश शामली ले आएं, लेकिन जली हुई लाश का पोस्टमार्टम करने वाला डाक्टर उस दिन छुट्टी पर था.

घर वालों को शामली के अस्पताल से पोस्टमार्टम के बाद 3 अन्य लाशें भी लेनी थीं, लिहाजा वे पानीपत से शामली लौट आए. शामली के सरकारी अस्पताल में अजय पाठक, उन की पत्नी स्नेहलता और बेटी वसुंधरा की लाशें पोस्टमार्टम के बाद उन के घर वालों को सौंप दी गईं.

उधर शामली के थाना आदर्श मंडी के थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह हत्यारोपी हिमांशु सैनी को पूछताछ के लिए पानीपत से आदर्श मंडी ले आए. शामली के लोगों को जब यह जानकारी मिली कि जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले हिमांशु सैनी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है तो हजारों लोग थाना आदर्श मंडी के बाहर एकत्र हो गए. लोग मांग कर रहे थे कि हत्यारे को उन के हवाले किया जाए, उसे वे खुद सजा देंगे.

भीड़ का गुस्सा स्वाभाविक था, लेकिन पुलिस को तो कानून के हिसाब से चलना पड़ता है. लिहाजा वहां पहुंचे एसपी विनीत जायसवाल ने भीड़ को समझाया और भरोसा दिया कि वह हत्यारे को सख्त सजा दिलाने की कोशिश करेंगे. इस के बाद भीड़ शांत हुई.

एसपी विनीत जायसवाल की मौजूदगी में थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह ने अभियुक्त हिमांशु सैनी से इस चौहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर शामली के लाइनपार इलाके में स्थित है पंजाबी कालोनी. हंसराज पाठक अपने परिवार के साथ यहीं पर रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे, क्रमश: सूरज पाठक, विनय पाठक, दिनेश पाठक, हरिओम पाठक, कपिल पाठक और अजय पाठक. अजय सब से छोटे थे. पाठक परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था. शहर में होने वाली रामलीला में इस परिवार के बच्चे अलगअलग किरदार का अभिनय करते थे. अजय ने 15 साल की उम्र से रामलीला में भिन्नभिन्न किरदारों का अभिनय करना शुरू कर दिया था.

इस के बाद अजय पाठक की रुचि गायन के प्रति हो गई. वह भजन गाने लगे. उन की आवाज और भजन गाने का अंदाज लोगों को बहुत पसंद आया, जिस से उन की ख्याति बढ़ने लगी. इसी दौरान उन का विवाह स्नेहलता से हो गया.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. अजय पाठक के सितारे बुलंदियां छूने लगे थे. भजन गायन के क्षेत्र में उन की पहचान बन चुकी थी. इस के साथ ही वह 2 बच्चों, एक बेटी वसुंधरा और बेटे भागवत के पिता बन गए थे. भजन गायन में उन्होंने अपनी अलग पहचान तो बनाई, साथ ही काफी पैसा भी कमाया. उन की अपनी जागरण मंडली थी, जिस में संगीत से जुड़े कई कलाकार शामिल थे.

हिमांशु सैनी करीब ढाई साल पहले अजय पाठक के संपर्क में आया था. वह नजदीक के ही कस्बा कैराना  का रहने वाला था. हिमांशु अजय पाठक से बहुत प्रभावित था. वह उन की तरह सिंगर बनना चाहता था.

इस बारे में उस ने अजय से बात की तो उन्होंने उसे अपनी मंडली में शामिल कर लिया. भजन मंडली में रह कर हिमांशु गानाबजाना सीखने लगा. शिष्य की मर्यादा निभाते हुए हिमांशु अपने गुरु अजय पाठक की खूब सेवा करता था. जब वह अजय के घर जाता तो उन के पैर तक दबाता था. अजय भी हिमांशु की लगन से खुश थे. वह उसे अपने हुनर देने लगे. इन ढाई सालों में हिमांशु गानेबजाने के काफी गुर सीख गया था. गुरु के घर उस का अकसर आनाजाना लगा रहता था. कई बार वह उन के यहां ठहर भी जाता था.

पिछले कुछ दिनों से हिमांशु कुछ ज्यादा ही परेशान था. इस की वजह यह थी कि उस ने एक बैंक से 5 लाख रुपए का लोन ले रखा था, जिस की किस्तें वह अदा नहीं कर पा रहा था. इस के अलावा उस ने कुछ लोगों से भी पैसे उधार ले रखे थे. उन पैसों को भी वह नहीं चुका पा रहा था, जिस से वह आए दिन लोगों के तगादों से परेशान हो गया था. बैंक ने तो उसे पैसे रिकवरी का नोटिस भी भेज दिया था, जिस से उस की चिंताएं बढ़ती जा रही थीं. इस सब की जानकारी उस ने अपने गुरु अजय पाठक को भी दे दी थी. हिमांशु का आरोप है कि अजय पाठक पर उस के मेहनताने के 60 हजार रुपए बकाया थे. वह उन से जब भी अपने पैसे मांगता तो वह उसे न सिर्फ टाल देते बल्कि गालियां देते हुए बेइज्जत भी कर देते थे.

हिमांशु पाईपाई के लिए मोहताज था. ऐसे में उसे पैसे मिलना तो दूर, बेइज्जती सहनी पड़ती थी. हिमांशु की समझ में नहीं आता था कि वह करे तो क्या करे. हिमांशु चारों तरफ से परेशानियों से घिरा था. 30 दिसंबर, 2019 की शाम को अजय पाठक किसी कार्यक्रम से घर लौटे. उस समय हिमांशु भी उन के साथ था. अजय ने अपने मकान के ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाले चाचा दर्शन पाठक से कह दिया था कि कल सुबह उसे बच्चों के साथ करनाल जाना है. अजय के अन्य 5 भाइयों में से सब से बड़े सूरज पाठक लुधियाना में रहते हैं, बाकी सभी पंजाबी कालोनी में ही अलगअलग रहते हैं.

30 दिसंबर को हिमांशु अपने गुरु अजय के कहने पर वहीं रुक गया. रात का खाना खाने के बाद हिमांशु ने अजय पाठक के पैर दबाए. उसी समय हिमांशु ने अजय के सामने अपनी समस्या रखते हुए अपने पैसे मांगे. हिमांशु का आरोप है कि अजय ने उस दिन भी अपशब्द कहते हुए उसे बेइज्जत किया.

यह बात हिमांशु को नागवार लगी. उसी समय उस ने एक भयानक फैसला कर लिया. उस ने तय कर लिया कि वह आज इस बेइज्जती का जवाब जरूर देगा. लिहाजा वह मौके का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद अजय पाठक और परिवार के सभी लोग गहरी नींद में सो गए, लेकिन हिमांशु की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस के दिमाग में खूनी योजना घूम रही थी. रात करीब साढ़े 4 बजे वह आहिस्ता से अपने बिस्तर से उठा.

हिमांशु वहां अकसर आताजाता रहता था, इसलिए उसे पता था कि घर में कौन सी चीज कहां रखी है. वह चुपके से मकान के निचले हिस्से में गया. वहां कार में रखी छोटी तलवार और चाकू ले आया.

इन्हीं हथियारों से उस ने सब से पहले अपने गुरु अजय पाठक पर वार कर के उन्हें मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद उस ने अजय की पत्नी स्नेहलता, 15 वर्षीय बेटी वसुंधरा और 10 वर्षीय भागवत को एकएक कर के मौत के घाट उतारा. चूंकि ये सभी लोग गहरी नींद में थे, इसलिए वार करते वक्त उन की चीख तक नहीं निकली.

चारों को मौत के घाट उतारने के बाद उस ने घर की अलमारियों के ताले तोड़ कर नकदी और ज्वैलरी ढूंढी, लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा.

इस के बाद उस ने भागवत की लाश उठा कर अजय की कार में रखी, फिर ऊपर वाले फ्लोर का ताला बंद कर के वह कार ले कर निकल गया. ताकि लोग समझें कि बदमाश लूट और हत्या के बाद भागवत का अपहरण कर के ले गए.

दिन में वह इधरउधर घूमता रहा. रात के समय वह पानीपत के टोलप्लाजा के पास पहुंचा. हिमांशु भागवत के शव को आग के हवाले कर के सारे सबूत नष्ट करना चाहता था ताकि पुलिस उस तक न पहुंच सके. लेकिन वह पानीपत पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

हिमांशु से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कैराना के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इसी दौरान कचहरी में वकीलों ने हिमांशु को घेर लिया और पुलिस की गिरफ्त से उसे छीनने का प्रयास करने लगे. पुलिस ने जैसेतैसे वकीलों को शांत कर हत्यारोपी को जेल तक पहुंचाया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- मनोहर कहानियां, जून 2020

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लौकडाउन में लुट गया बैंक: खतरनाक वारदात का अंजाम

भारत में लोगों की सुविधा के लिए अलगअलग नामों से ग्रामीण बैंकों की शाखाएं खोली गई हैं, जो किसानों और ग्रामीण कामगारों के लिए मुफीद हैं. ये शाखाएं लोगों के बचत खाते भी चलाती हैं और उन की जरूरत के हिसाब से लोन भी देती हैं. ऐसे ही एक ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त की शाखा जिला मथुरा के दामोदरपुरा में है. यह शाखा कचहरी से औरंगाबाद जाने वाली रोड के किनारे बसे पूरन वाटिका की पहली मंजिल पर है.

इस बैंक में कुल जमा 5 कर्मचारी हैं. 12 मई, 2020 को तो कुल 3 ही कर्मचारी थे, क्योंकि एक महिला छुट्टी पर थी और बैंक मैनेजर प्रभात कुमार किसी काम से बाहर गए हुए थे.

दोपहर करीब ढाई बजे का समय था. चारों ओर लौकडाउन का सन्नाटा फैला था. लंच ब्रेक के बाद बैंककर्मियों को बैंक के गेट का चैनल खोले अभी 5 मिनट ही हुए थे कि 5 नकाबपोश बैंक में आए. उस समय बैंक की कैशियर सृष्टि सक्सेना, सहायक शाखा प्रबंधक नीलम गर्ग और नरेंद्र चौधरी बैंक में मौजूद थे.

तब तक तीनों बैंककर्मी अपनीअपनी सीट पर बैठ कर काम करने लगे थे. जो 5 लोग बैंक के अंदर आए थे, उन्होंने गेट में प्रवेश करने के बाद एकदो मिनट तो ग्राहक बनने का नाटक किया.

जब कैशियर सृष्टि ने उन से पूछा कि बताइए क्या काम है? तो बदमाश अपने असली रूप में आ गए और अपने तमंचे कैशियर सहित दोनों कर्मचारियों की ओर तान दिए. बदमाशों ने उन्हें धमकी देते हुए कहा, ‘‘जैसा हम कहें, वैसा करते रहो, वरना तीनों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा.’’

बैंक में उस समय कोई ग्राहक नहीं था, इसलिए बदमाशों ने बड़ी फुरती से बैंक के तीनों कर्मचारियों के मोबाइल फोन छीन लिए. हथियार देख कर सभी बैंककर्मी डर गए. बदमाशों के तेवरों से भयभीत कैशियर सृष्टि सक्सेना ने अपने पास मौजूद कैश उन्हें दे दिया.

इस के बाद बदमाशों ने सृष्टि से स्ट्रांग रूम में चलने को कहा. आनाकानी करने पर एक बदमाश ने उन की कनपटी पर तमंचा सटा दिया. 2 बदमाश कैशियर को स्ट्रांग रूम में ले गए. तब तक बाकी बदमाश शेष 2 बैंक कर्मियों पर तमंचे ताने रहे. कैश इकट्ठा

करने के बाद कैशियर को स्ट्रांग रूम में तथा अन्य स्टाफ को बाथरूम में बंद कर लुटेरे भाग गए.

भागते समय लुटेरे लूटे गए रुपए दोनों महिला बैंककर्मियों के बैगों में भर कर ले गए. इस दौरान न तो बैंक का सायरन ही बजा और न ही किसी बैंककर्मी ने शोर मचाया. दरअसल, अलार्म केवल मैनेजर औफिस में था और मैनेजर उस समय बैंक में नहीं थे.  कुछ देर बाद 2 बैंककर्मी बाथरूम के दरवाजे को धकेल कर बाहर आए और कैशियर सृष्टि सक्सेना को स्ट्रांग रूम से निकाला.

बदमाशों के जाने के 10 मिनट बाद बैंककर्मी नरेंद्र और नीलम बैंक से बाहर निकले. नरेंद्र नीचे उतर कर आए तो उन्हें सभी के मोबाइल सीढि़यों पर रखे मिल गए. कैशियर ने घटना की खबर मैनेजर प्रभात कुमार के साथसाथ 112 नंबर पर काल कर पुलिस को दी. मैनेजर ने भी लूट की सूचना थाना सदर बाजार पुलिस को दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सत्यपाल देशवाल सहित सीओ (सिटी) आलोक दुबे, एसपी (सिटी) अशोक मीणा मौके पर पहुंच गए. बाद में एसएसपी गौरव ग्रोवर और आईजी ए. सतीश गणेश ने भी मौकामुआयना किया. फोरैंसिक टीम भी बैंक पहुंच गई थी.

बैंक लूट के प्रत्यक्षदर्शी तीनों बैंक कर्मचारियों ने बदमाशों का उग्र रूप देखा था और डर गए थे. कैशियर सृष्टि सक्सेना ने बताया कि बैंक में घुसे पांचों बदमाशों ने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. कोरोना संक्रमण के चलते कपड़ा बंधे होने पर शक नहीं हुआ. उन लोगों के बैंक में घूमने पर जब टोका गया तो बदमाशों ने तमंचे निकाल कर सभी को निशाने पर ले लिया. उस समय बैंक में कोई कस्टमर भी नहीं था.

सहायक शाखा प्रबंधक नीलम गर्ग ने बताया कि हम सभी अपनीअपनी सीट पर काम कर रहे थे. लंच समाप्त हुए 5 मिनट ही हुए थे. लौकडाउन के चलते बैंक के नीचे की दुकानें भी बंद थीं. बदमाशों द्वारा तमंचे निकालने पर वह काफी डर गई थीं. लगा जैसे मौत सामने ही खड़ी है.

कोई मदद करने वाला भी नहीं था. इसी दौरान बदमाशों ने हम सभी के मोबाइल छीन लिए थे. लूट के बाद बदमाश धमकाते हुए चले गए. उन्होंने बताया कि बदमाश बैंक से 21 लाख 17 हजार 400 रुपए लूट कर ले गए. तमंचे के बल पर बैंक लूट को अंजाम दे कर लुटेरे पुलिस को चुनौती दे गए थे. पुलिस बदमाशों को घेरने में जुट गई.

लौकडाउन की वजह से नीचे की दुकानें भी बंद थी. सन्नाटे के चलते बदमाशों को भागने में आसानी हुई. वहां मौजूद एक ग्रामीण ने बदमाशों को आते और जाते देखा था. उस ने पुलिस को बताया कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों पर आए थे.

मोटरसाइकिल बैंक के नीचे खड़ी कर वे बैंक में गए थे. थाना सदर पुलिस ने मैनेजर प्रभात कुमार की तरफ से अज्ञात बदमाशों के खिलाफ लूट की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

लौकडाउन के कारण थाना सदर बाजार पुलिस ने कृष्णानगर तिराहे से औरंगाबाद तक पुलिस की 5 पिकेट लगा रखी थीं. इन के बीच में ही बैंक है. कृष्णानगर तिराहे पर पिकेट के बाद टैंक चौराहे पर पिकेट, इस के बाद कचहरी से औरंगाबाद के रास्ते में दामोदरपुरा का बैंक है.

इस के अलावा गोकुल बैराज और औरंगाबाद पर भी पुलिस पिकेट तैनात थी. बदमाशों के पुलिस से बच निकलने के 2 ही कारण थे, या तो वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर निकल भागे या फिर बीच के रास्तों से ही आए और वहीं से चले गए.

बताते चलें कि बैंक के निकट से ही राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर जाने के लिए आर्मी एरिया से रास्ता जाता है, जहां पर पुलिस से आमनासामना होने की आशंका नहीं थी. वहीं दूसरी ओर औरंगाबाद से पहले बैराज की तरफ कच्चा रास्ता जाता है, जहां से बदमाश जमुनापार निकल सकते थे.

इतना कुछ होने के बाद भी लुटेरे बेखौफ लूट को अंजाम दे कर पुलिस को चकमा दे भाग निकले थे. कड़ी सुरक्षा के बीच दिनदहाड़े बैंक लूट की वारदात से क्षेत्र में सनसनी फैल गई. वहीं लूट की यह घटना पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी.

पुलिस ने जांच की तो पता चला बैंक का सीसीटीवी कैमरा पिछले 6 महीने से खराब था और बैंक में सुरक्षा गार्ड भी नहीं था. कोई बैंककर्मी अलार्म बजाने की हिम्मत नहीं कर सका.

पुलिस ने बैंक और आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. बदमाशों ने मात्र 10 मिनट में ही लूट की वारदात को अंजाम दिया था. घटना के बाद पुलिस ने कई रास्तों की कड़ी नाकेबंदी कर दी.

बदमाशों ने लूट की वारदात को जिस तरह अंजाम दिया, उस से लग रहा था कि वे पहले से ही बैंक की रेकी कर चुके थे. उन्होंने पता लगा लिया था कि कब बैंक में भीड़ कम रहती है. इसीलिए लूट के लिए उन्होंने दोपहर लगभग ढाई बजे का समय तय किया.

दोपहर ढाई बजे लंच समाप्त हुआ. बैंककर्मियों ने जैसे ही गेट का चैनल खोला, 2 बज कर 35 मिनट पर बदमाश बैंक में घुस गए और फिल्मी अंदाज में लूट की वारदात को अंजाम दे कर फरार हो गए.

बदमाशों ने कोरोना वायरस को ले कर प्रशासन द्वारा किए गए लौकडाउन का भरपूर फायदा उठाया. बदमाशों ने कपड़ों से चेहरा छिपा रखा था. चूंकि मास्क लगाना अनिवार्य था, इसी वजह से बैंककर्मियों को उन पर शक नहीं हुआ.

एडीजी अजय आनंद ने दूसरे दिन ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त पहुंच कर 10 मिनट के भय और आतंक के साए की हर पल की जानकारी ली, जबकि पहले दिन आईजी ए. सतीश गणेश ने पूछताछ की थी.

एडीजी ने 21.17 लाख रुपए की लूट की घटना के हर पहलू की कैशियर से ले कर प्रबंधक तक से जानकारी ली. वह बैंक कैशियर सृष्टि को ले कर स्ट्रांग रूम में भी गए और पूछा कि बदमाशों ने किस तरह तमंचों के बल पर कैश लूटा था. इस के साथ ही बदमाशों के कपड़े और कदकाठी की भी पूछताछ की.

इस तरह से उन्होंने पूरी घटना का रिहर्सल किया. इस के साथ ही बैंक प्रबंधन तथा बैंककर्मियों को विश्वास दिलाया कि वारदात का शीघ्र खुलासा करेंगे. बैंककर्मियों का दूसरा दिन पुलिस की जांच और तहकीकात में गुजरा.

आगरा के एत्मादपुर विधानसभा क्षेत्र के थाना बरहन के आंवलखेड़ा स्थित आर्यावर्त बैंक में 29 जनवरी को दिनदहाड़े 5 बदमाशों ने डकैती को अंजाम दिया था. बदमाश बैंक से लाखों की रकम लूट कर ले गए थे.

पुलिस मथुरा के आर्यावर्त बैंक में हुई इस लूट की वारदात को भी एत्मादपुर की बैंक लूट की वारदात से जोड़ कर चल रही थी. पुलिस उस लूट के आरोपियों की जानकारी जुटाने में लग गई.

इस लूट की घटना को खोलने के लिए पुलिस ने पूरी ताकत झोंक दी थी. लूट की घटना के कुछ घंटे बाद ही आईजी ए.सतीश गणेश के निर्देश पर लुटेरों तक पहुंचने के लिए सर्विलांस और स्वाट टीमों के साथसाथ 6 पुलिस टीमें तैयार कर दी गईं.

सभी टीमें अपनेअपने काम में लग गईं. पुलिस पिकेट ऐसे स्थानों पर लगाई गईं, जहां से कच्चे रास्तों से बदमाश जिले से बाहर निकल सकते थे. खुलासे में लगी टीमों ने 12 मई की रात से 13 मई की शाम तक मगोर्रा हाइवे सहित कई थाना क्षेत्रों में दबिश दे कर 10 बदमाशों को उठाया. थाने ला कर उन से गहनता से पूछताछ की गई. इस से पुलिस को काफी महत्त्वपूर्ण सुराग मिले.

40 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस को 14 मई, 2020 को बैंक लूट कांड का परदाफाश करने में सफलता मिल गई. थाना सदर बाजार में आयोजित प्रैसवार्ता में एसपी (सिटी) अशोक मीणा ने बैंक लूट का खुलासा करते हुए जानकारी दी कि 14 मई की सुबह मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि बदमाश बैंक से लूटे गए रुपयों का बंटवारा करने के लिए जल शोधन संस्थान पर एकत्र हैं. जहां वे किसी साथी के आने का इंतजार कर रहे हैं.

सूचना पर पुलिस ने जल शोधन संस्थान यमुना के किनारे से बैंक लूट में शामिल राहुल तिवारी उर्फ रवि, निवासी सतोहा असगरपुर, गौतम गुर्जर व अमन गुर्जर निवासी नगला बोहरा, थाना हाइवे, अवनीत चौधरी निवासी ऋषिनगर निकट बजरंग चौराहा, महोली रोड, थाना कोतवाली को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में एक महिला का नाम भी सामने आया. पुलिस ने योजना में शामिल रही महिला राजो पत्नी रामवीर निवासी अमरकालोनी, थाना हाइवे को मछली फाटक फ्लाईओवर के नीचे से लूट के रुपयों के बैग के साथ गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने बदमाशों के कब्जे से 17.10 लाख रुपए, 4 तमंचे, 11 कारतूस, 2 बैगों के साथ ही कुछ बैंक दस्तावेज भी बरामद किए. ये दोनों बैग बैंककर्मी दोनों महिलाओं के थे, जिन की अन्य जेबों में महिलाओं का डेली यूज का सामान रखा मिला.

दोपहर में गोकुल बैराज के पास बाइक पर जा रहे बदमाश परविंदर, निवासी लाजपत नगर से पुलिस की मुठभेड़ हो गई. पुलिस की गोली परविंदर के पैर में लगने से वह वहीं गिर पड़ा. परविंदर बिना नंबर की बाइक पर था.

घायल बदमाश को पुलिस ने उपचार के लिए जिला अस्पताल में भरती कराया. परविंदर के कब्जे से पुलिस ने लूट के 2 लाख 51 हजार 500 रुपए, बाइक, एक तमंचा और कारतूस बरामद किए.

मुठभेड़ कर के परविंदर को गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी (सदर बाजार) सत्यपाल देशवाल, स्वाट प्रभारी सदुवन राम गौतम, सर्विलांस प्रभारी इंसपेक्टर जसवीर सिंह, एसओजी प्रभारी सुलतान सिंह आदि शामिल थे. बैंक लूट का मास्टरमाइंड सम्राट गुर्जर पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. वह हाइवे थाने का हिस्ट्रीशीटर है.

सम्राट गुर्जर ने बैंक लूट की ऐसी साजिश रची कि पुलिस घटना को खोल भी ले तो उस तक न पहुंच पाए. लूट की पटकथा रचने वाला नगला बोहरा निवासी सम्राट गुर्जर खुद घटना को अंजाम देने बैंक नहीं आया था. वह घटना के समय आसपास कहीं खड़ा हो कर टोह ले रहा था. उस के खिलाफ विभिन्न थानों में एक दरजन से ज्यादा मामले दर्ज हैं.

मास्टरमाइंड सम्राट ने खुद को बचाने के लिए मास्टर स्ट्रोक खेला था. उस ने अपने 2 भतीजों गौतम और अमन तथा 2 अन्य साथियों को ले कर बैंक लूट की पटकथा तैयार की थी. सारी योजना उस की खुद की बनाई हुई थी. लेकिन घटना को अंजाम देने वाले दूसरे लोग थे.

पकड़े गए बदमाशों ने पुलिस को बताया कि सफलतापूर्वक घटना को अंजाम देने के बाद वह अपना हिस्सा ले कर फरार हो गया. वहीं पकड़ी गई महिला राजो पकड़े गए गौतम और अमन की बुआ तथा सम्राट गुर्जर की बहन है. पुलिस के अनुसार राजो का काम लूट के माल की हिफाजत करना था. पुलिस को शक है कि एक सीसीटीवी फुटेज में लूट की घटना के बाद एक महिला बैंक के बाहर खड़ी हो कर रखवाली करती दिखी थी, वह संभवत: राजो ही थी.

बैंक लूट की इस घटना के बाद सीसीटीवी फुटेज न मिलने से पुलिस हताश हो गई थी. उसे लगा कि घटना का खुलासा मुश्किल होगा. लेकिन लूट के बाद बदमाशों को भागते देख रहे एक ग्रामीण ने पुलिस को लूट की चाबी पकड़ा दी थी. इस चाबी के बाद पुलिस चंद घंटों में ही बदमाशों तक पहुंच गई थी.

दरअसल, हुआ यह था कि घटना के बाद बैंक के बाहर मौजूद ग्रामीणों से पुलिस ने पूछताछ की तो एक ग्रामीण को बदमाशों द्वारा लूट में प्रयोग की गई एक मोटरसाइकिल का नंबर याद आ गया था. यह नंबर उस ने पुलिस को बता दिया. यहां तक कि ग्रामीण की तेज नजरों से मोटरसाइकिल के एक नंबर को घिस कर खत्म करने की चालाकी भी नहीं छिप सकी थी.

पुलिस ने जब उस नंबर की जांच की तो मोटरसाइकिल मालिक की सारी डिटेल्स मिल गई. पुलिस मोटरसाइकिल मालिक के पते पर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला, जिस से पुलिस को उस पर शक हो गया. तब पुलिस ने उस की व उस के साथियों की तलाश शुरू की. लेकिन पुलिस के हाथ कोई नहीं लगा. पुलिस भांप गई कि घटना को इसी गैंग ने अंजाम दिया है.

इस के बाद मुखबिरों को लगा दिया गया और लुटेरे पुलिस के जाल में फंस गए. दरअसल बैंक की चेस्ट में कुछ पैसा इस प्रकार का रखा जाता है, जिस का प्रयोग बैंक कभी नहीं करते हैं. यह पैसा सिर्फ इसी प्रकार की घटना में बदमाशों को फंसाने के लिए रखा जाता है.

बैट मनी के नोटों के नंबर बैंक के रिकौर्ड में दर्ज होते हैं. इस तरह की बैट मनी ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त में भी थी, जिसे बदमाश लूट कर ले गए थे. पुलिस ने जब लूट की रकम बरामद की थी, उस में बैट मनी भी पुलिस को मिली थी. बैंक रिकौर्ड में यह नंबर कोर्ट में बदमाशों के खिलाफ मजबूत सबूत बनेंगे.

17 मई को पुलिस के हाथ एक और महत्त्वपूर्ण कड़ी लगी. पुलिस ने ग्रामीण बैंक औफ आर्यावर्त की सौख रोड स्थित शाखा के चपरासी शांतनु, निवासी असगरपुर सतोहा को यमुना पुल के पास से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की जानकारी में आया था कि इसी चपरासी ने बैंक की दामोदरपुरा स्थित शाखा में लूट के लिए बदमाशों की मुखबिरी की थी. उस ने दामोदरपुरा की बैंक शाखा के संबंध में सभी सूचनाएं बदमाशों को उपलब्ध कराई थीं.

शांतनु ने सम्राट गुर्जर गैंग के बदमाशों को सौंख रोड स्थित बैंक की शाखा को लूटने की सलाह दी, लेकिन बाद में योजना बदल गई और दामोदरपुरा स्थित शाखा में लूट की गई. बैंक चपरासी शांतनु के पास से 5500 रुपए की बैंक की बैट करेंसी भी बरामद हुई है. लुटेरों ने लूट की योजना घटना से 15 दिन पहले बनाई थी.

पुलिस ने बैंक  लूट के 21.18 लाख रुपयों में से लगभग 19.67 लाख रुपए बरामद कर इस घटना में शामिल महिला सहित 7 लुटेरों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. बैंक लूट की घटना का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी गौरव ग्रोवर ने 50 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- मनोहर कहानियां, जून 2020

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