बच्चों की सुरक्षा के लिए सतर्कता जरूरी

7 साल का प्रद्युम्न ठाकुर गुड़गांव के ख्यातिप्राप्त रायन इंटरनैशनल स्कूल की कक्षा 2 का छात्र था. रोजाना की तरह गत 8 सितंबर को मां ने प्यार से तैयार कर उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा. पिता द्वारा प्रद्युम्न को स्कूल में पहुंचाने के आधे घंटे के अंदर घर पर फोन आ गया कि बच्चे के साथ हादसा हो गया है. प्रद्युम्न को संदिग्ध परिस्थितियों में ग्राउंडफ्लोर पर मौजूद वाशरूम में खून से लथपथ मृत अवस्था में पाया गया. देखने से स्पष्ट था कि उस की हत्या की गई है. उस पर 2 बार चाकू से वार किए गए थे. अत्यधिक खून बहने से उस की मौत हो गई.

प्रारंभिक जांच में बस कंडक्टर को दोषी पाया गया मगर बाद की जांच में उसी स्कूल की 11वीं कक्षा के एक छात्र को हिरासत में लिया गया. आरोपी छात्र ने स्वीकार किया कि महज परीक्षा की तिथि और टीचर पेरैंट्स मीटिंग की तारीख आगे बढ़वाने के मकसद से उस ने, जानबूझ कर, इस घटना को अंजाम दिया.

वैसे, इस केस में स्कूल प्रशासन पर सुबूत छिपाने के इलजाम भी लगे और एक बार फिर स्कूलों में बच्चों की लचर सुरक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने आ गई.

बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता ऐसा ही मामला द्वारका, दिल्ली के एक स्कूल का है. यहां 4 साल की बच्ची के साथ यौनशोषण की घटना सामने आई. आरोप बच्ची की ही कक्षा में पढ़ने वाले 4 साल के बच्चे पर लगा. छोटी सी बच्ची से बलात्कार का एक मामला 14 नवंबर को दिल्ली के अमन विहार इलाके में भी सामने आया. यह नाबालिग बच्ची अपने मातापिता के साथ किराए के मकान में रहती थी. आरोपी युवक उसी मकान में पहली मंजिल पर रहता था.

दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ स्कूल के चपरासी द्वारा बलात्कार की घटना ने भी सभी को स्तब्ध कर दिया. इन घटनाओं ने स्कूल परिसरों में बच्चों की सुरक्षा को ले कर कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. स्कूल परिसरों में मासूम लड़कियां ही नहीं, लड़के भी यौनशोषण के शिकार हो रहे हैं.

इस संदर्भ में सभी राज्य सरकारों, स्कूल प्रशासनों और मातापिता को सतर्क होने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घट सकें.

स्कूल की जिम्मेदारियां

कोई भी मातापिता जब अपने बच्चे के लिए किसी स्कूल का चुनाव करते हैं तो स्कूल की आधारभूत संरचना और वहां की पढ़ाई के स्तर को जांचने के साथ ही उन का विश्वास भी होता है जो उन्हें किसी विशेष स्कूल को अपने बच्चे के लिए चुनने हेतु प्रेरित करता है. ऐसे में स्कूल प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वह न सिर्फ बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराए, बल्कि मातापिता के विश्वास पर भी खरा उतरे.

मातापिता की जिम्मेदारियां

हर मातापिता का कर्तव्य है कि वे घरबाहर अपने बच्चों की सुरक्षा को ले कर सतर्क रहें. घर के बाद बच्चे सब से अधिक समय स्कूल में बिताते हैं. ऐसे में स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है. द्य मातापिता को चाहिए कि जिस स्कूल में वे बच्चे को दाखिल कराने जा रहे हैं, वहां की सुरक्षा व्यवस्था की वे विस्तृत जानकारी लें.

हमेशा टीचरपेरैंट्स मीटिंग में जाएं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नजर आए तो टीचर से उस की चर्चा जरूर करें. द्य बच्चों से स्कूल में उन के अनुभवों के बारे में खुल कर चर्चा करें. अगर अचानक बच्चा स्कूल जाने से घबराने लगे या उस के नंबर कम आने लगें तो इन संकेतों को गंभीरता से लें और इन का कारण जानने का प्रयास करें.

बच्चों को अच्छे और बुरे टच के बारे में समझाएं ताकि यदि कोई उन्हें गलत मकसद से छुए तो वे शोर मचा दें. द्य बच्चों को यह भी समझाएं कि यदि कोई बच्चा उन्हें डराधमका रहा है तो वे टीचर या मम्मीपापा को सारी बात बताएं.

बच्चों को मोबाइल और दूसरी कीमती चीजें स्कूल न ले जाने दें. द्य अगर आप के बच्चे का व्यवहार कुछ दिनों से बदलाबदला नजर आ रहा है, वह आक्रामक होने लगा है या ज्यादा चुप रहने लगा है तो इस की वजह जानने का प्रयास करें.

रोज स्कूल से आने के बाद बच्चे का बैग चैक करें. उस के होमवर्क, क्लासवर्क और ग्रेड्स पर नजर रखें. उस के दोस्तों के बारे में भी सारी जानकारी रखें. द्य छोटे बच्चे को बस में चढ़नाउतरना सिखाएं.

बसस्टौप पर कम से कम 5 मिनट पहले पहुंचें. द्य आप अपने बच्चों को सिखाएं कि किसी आपातकालीन स्थिति में किस तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं. हो सके तो बच्चों को सैल्फडिफैंस के गुर, जैसे मार्शल आर्ट व कराटे वगैरा सिखाएं.

मनोवैज्ञानिक पहलू तुलसी हैल्थ केयर, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. गौरव गुप्ता बताते हैं कि गुड़गांव के प्रद्युम्न केस की बात हो या 4 साल की बच्ची का यौनशोषण, इस तरह की घटनाएं बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति व गलत कामों के प्रति आकर्षण को चिह्नित करती हैं.

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आज लोगों के पास वक्त कम है. हर कोई भागदौड़भरी जिंदगी में व्यस्त है. संयुक्त परिवारों की प्रथा खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. नतीजा यह है कि बच्चों का लालनपालन एक मशीनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है. परिवार वालों के साथ रह कर जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होने और टीवी धारावाहिक व फिल्में देख कर जिंदगी को समझने में बहुत अंतर है. एकाकीपन के माहौल में पल रहे बच्चों के मन की बातों और कुंठाओं को समझना जरूरी है. मांबाप द्वारा बच्चों के आगे झूठ बोलने, बेमतलब की कलह और विवादों में फंसने, छोटीछोटी बातों पर हिंसा करने पर उतारू हो जाने जैसी बातें ऐसी घटनाओं का सबब बनती हैं क्योंकि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं.

स्कूल भी पीछे कहां हैं? स्कूल आज शिक्षाग्रहण करने का स्थान कम, पैसा कमाने का जरिया अधिक बन गए हैं. स्कूल का जितना नाम, उतनी ही महंगी पढ़ाई. जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली में बाल मनोविज्ञान का खास खयाल रखा जाए. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. यदि हम सब आज भी अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और उसे सही ढंग से निभाएं तो अवश्य ही हम उन्हें बेहतर भविष्य दे सकते हैं.

साइबर बुलिंग

बुलिंग का अर्थ है तंग करना. इतना तंग करना कि पीडि़त का मानसिक संतुलन बिगड़ जाए. बुलिंग व्यक्ति को भावनात्मक और दिमागी दोनों ही तौर पर प्रभावित करती है. बुलिंग जब इंटरनैट के जरिए होती है तो इसे साइबर बुलिंग कहते हैं.

साइबर बुलिंग के कहर से भी स्कूली बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. हाल ही में 174 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 17 फीसदी बच्चे बुलिंग के शिकार हैं. स्टडी में पाया गया कि 15 फीसदी बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलिंग के शिकार हो रहे हैं. इस में मारपीट की धमकी प्रमुख है. लड़कियों की तुलना में लड़के इस के ज्यादा शिकार होते हैं.

अपराध के बढ़ते मामले चिंताजनक

एनसीआरबी द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2016 के बीच बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. क्राइ यानी चाइल्ड राइट्स ऐंड यू द्वारा किए गए विश्लेषण दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध तेजी से बढ़े हैं. 2006 में 18,967 से बढ़ कर 2016 में यह संख्या 1,06,958 हो गई. राज्यों के अनुसार बात करें तो 50 फीसदी से ज्यादा अपराध केवल 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए है. उत्तर प्रदेश 15 फीसदी अपराधों के साथ इस सूची में सब से ऊपर है. वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश क्रमश: 14 और 13 फीसदी अपराधों के साथ ज्यादा पीछे नहीं हैं.

अपराध की प्रवृत्ति और कैटिगरी की बात करें तो सूची में सब से ऊपर अपहरण रहा. 2016 में दर्ज किए गए कुल अपराधों में से लगभग आधे अपराध इसी प्रवृत्ति (48.9 फीसदी) के थे. इस के बाद अगली सब से बड़ी कैटिगरी बलात्कार की रही. बच्चों के खिलाफ दर्ज किए गए 18 फीसदी से ज्यादा अपराध इस श्रेणी में दर्ज किए गए.

खून : अवैध संबंधों का फलितार्थ!

छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में एक ऐसी ही घटना घटित हुई है जिसे देखने पर विचार करना पड़ता है कि शराब किस तरह छत्तीसगढ़ के गरीब आदिवासियों को  बर्बाद कर रही है. एक “शराब विक्रेता” आदिवासी महिला के घर शराब पीने के लिए गए एक वृद्ध को  अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया.

गांव के ही  युवक से अवैध संबंध रखने वाली इस महिला के पति ने अपने भाई के साथ पत्नी की हत्या करने हमला कर दिया… लेकिन नशे में धुत्त होकर सोए वृद्ध को अपनी पत्नी समझकर  टांगिया से वार कर वृद्ध पिअकड़ को वहीं ढेर कर दिया. यही नहीं पास में ही सोया प्रेमी भी उनके गुस्से का शिकार हुआ लेकिन शोर मचाकर जान बचा नौ दो ग्यारह हो गया.

इस संपूर्ण हत्याकांड में महत्वपूर्ण यह बात रही की शराब बेचकर जीवन यापन करने वाली पत्नी दूसरे कमरे में सोने के कारण बाल बाल बच गई. शायद इसीलिए कहते हैं जाकर राखे साइयां मार सके ना कोई.

पति पत्नी और “वो” का किस्सा

छत्तीसगढ़ के औघोगिक जिला कोरबा  के आदिवासी बाहुल्य पाली थाना क्षेत्र के ग्राम बांधाखार  स्थित नीम चौक निवासी वृद्ध चमरा सिंह नामक व्यक्ति की  विगत 17 सितंबर को रक्त रंजित लाश गांव के मीना बाई कोल के घर में मिली थी. इस मामले की गुत्थी पुलिस ने अंततः सुलझा ली.

थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने हमारे संवाददाता को बताया कि मृतक के पुत्र मनोहर सिंह मरावी (35 वर्ष) के द्वारा उसके पिता की 16 सितंबर की रात 7-8 बजे घर से निकलने और अधिकतर मीना बाई कोल के यहां जाकर शराब पीने के लिए जाने व घर वापस नहीं लौटने की सूचना दी गई थी.

17 सितंबर को सुबह 8 बजे ग्राम सरपंच तानू सिंह मरावी ने मनोहर को उसके पिता के मीना बाई के घर में लहूलुहान मृत हालत में पड़े होने की सूचना दी. मनोहर सिंह वहां पहुंचा तो मीना बाई के घर के एक कमरे में चमरा सिंह मृत पड़ा था और उसके सिर पर गंभीर चोट थी. मीना बाई और पड़ोसी घायल शिव सिंह वहां कुर्सी पर बैठे मिले.शिव सिंह के गले, पीठ और सीने में चोट थी.

मामले में पुलिस ने  जब मीना बाई व शिव सिंह से  पूछताछ की तो संपूर्ण मामला सामने आ गया – घटना  की रात मीना का पति गोरेलाल (45 वर्ष )और उसका भाई मूरित राम कोल( 30 वर्ष) दोनों पिता सुरूज लाल, है निवासी ग्राम बांधाखार शराब के नशे में धुत्त होकर मीना की हत्या करने की नीयत घर पहुंचे थे.

जांच अधिकारी राठौर ने बताया कि दोनों भाई कमरे में घुसे जहां औंधे मुंह वृद्ध चमरा सिंह सोया हुआ था और पास ही  शिव सिंह सोया था.वृद्ध को अपनी पत्नी मीना समझकर गोरेलाल ने टांगी से लगातार 3 वार किया तो तत्काल  उसकी मौत हो गई. इसके बाद शिव सिंह का गला काटने टांगी चलाया लेकिन शिव की नींद उचट गई और बचाव किया. उसके कंधे व गर्दन में जख्म आए हैं.

शिव ने जोर-जोर से शोर मचाया तो गोरेलाल व मूरित राम भाग निकले.इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मीना बाई अपने मकान के ही एक अन्य कमरे में बच्चे के साथ सोई हुई थी. थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने आरोपियों को गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त टांगी को जब्त कर दोनों को जेल दाखिल कराया.बताया गया कि महिला का उसके पति गोरेलाल से वैवाहिक संबंध  ठीक नहीं था.

पत्नी की शराब बेचने वाले अन्य हरकतों से गोरेलाल परेशान भी रहता था .उसने शिव सिंह के साथ पत्नी को आपत्तिजनक हालत में पकड़ भी लिया था तब दोनों घर से भाग गए थे. इस मामले में गोरेलाल ने पंचायत भी बुलाई पर पत्नी ने पंचायत की बात नहीं मानी और अपने पति को ही घर से मारपीट कर निकाल दिया.

अपने घर में रह रहे गोरेलाल ने सबक सिखाने की ठान रखी थी और 16 सितंबर को शिव सिंह के संबंध में पता चला कि वह उसके घर जाने वाला है तब उसे खत्म करने के लिए गोरेलाल ने अपने भाई मूरित राम से मदद मांगी और सनसनीखेज वारदात कर डाली.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के अनुसार उनके 20 वर्ष के कार्यकाल में अनेक घटनाओं को उन्होंने निकट से देखा है जिसमें अवैध संबंधों के कारण हत्याएं हुई जिसके मूल में शराब भी एक कारक रहा. उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बीके शुक्ला बताते हैं कि आदिवासी बाहुल्य होने के कारण छत्तीसगढ़ में शराब एक बहुत बड़ा कारण हत्या का मैं मानता हूं अच्छा हो सरकार इस पर अंकुश लगाने का निर्णय ले.

चमत्कारी संदूक के लालच में 40 लाख गंवाए – भाग 3

शिवनाथ तांत्रिक का वह कमरा, जहां वह तंत्रसाधना करता था, बहुत रहस्यमयी था. कमरे में काली की आदमकद मिट्टी की मूर्ति रखी थी, उस के गले में हड्डियों की माला पड़ी हुई थी.

कमरे के बीच में धूनी जली हुई थी, जिस में से इंसानी या किसी जानवर के मांस के जलने की सड़ांध आ रही थी. धूनी के पास एक आसन बिछा हुआ था, जिस के करीब पानी का एक कटोरा, कमंडल और हड्डी रखी हुई थी. घूनी के धुएं से कमरा काला पड़ चुका था.

कमरे में लाल रंग की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था, जिस की मद्धिम रोशनी ने कमरे को रहस्यमयी बना दिया था.

शिवनाथ दुबलापतला, सांवली रंगत वाला इंसान था. उस के लंबे बाल कंधे तक झूल रहे थे, वह लाल रंग का कुरतापायजामा पहने हुए था. उस ने हाथों की अंगुलियों में राशिनग वाली अंगूठियां और दाएं हाथ में मोटा कड़ा पहना हुआ था. चेहरे से वह बहुत चालाक इंसान लग रहा था.

उस कक्ष में शिवनाथ के सामने बेहद खूबसूरत, छरहरे बदन वाली युवती बैठी हुई थी. वहां तंत्र क्रिया हो रही थी.

शिवनाथ उन दोनों को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसे हो जयप्रकाश?’’

‘‘अच्छा हूं गुरुजी.’’ जयप्रकाश ने शिवनाथ के चरण छू कर कहा, ‘‘और तुम अशोक मीणा, यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तुम्हें?’’ शिवनाथ ने अशोक की तरफ देखा.

शिवनाथ के मुंह से अपना परिचय सुन कर इस बार अशोक को कोई हैरानी नहीं हुई.

तांत्रिक शक्ति का यह चमत्कार वह जयप्रकाश द्वारा पहले भी देख चुका था. उस ने श्रद्धा से शिवनाथ के चरण स्पर्श कर के कहा, ‘‘हम आराम से यहां तक पहुंच गए हैं गुरुजी. रास्ते में कोई कष्ट नहीं हुआ.’’

‘‘बैठ जाओ. मैं इस पीडि़ता की क्रिया से निपटने के बाद तुम दोनों से बात करूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा.

दोनों आसन ले कर बैठ गए.

‘‘बेटी, कल मैं ने तुम्हें कुछ चावल के दाने रुमाल में बांध कर दिए थे, वह साथ लाई हो तुम?’’ शिवनाथ ने युवती से पूछा.

‘‘हां महाराज.’’ युवती ने अपने सूट के गले में हाथ डाल कर एक सफेद रंग का रुमाल निकाल कर शिवनाथ के सामने रख दिया.

‘‘इसे खोल कर देखो, चावल सफेद हैं या उन का रंग बदल गया है?’’ शिवनाथ ने आदेश देते हुए कहा.

युवती ने रुमाल की गांठ खोली तो उस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़ आए. रुमाल में रखे चावलों का रंग सुर्ख लाल हो गया था.

‘‘यह तो लाल रंग के हो गए महाराज.’’ युवती हैरत से बोली.

शिवनाथ गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हारा प्रेमी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला पुरुष है, वह तुम से प्यार का ढोंग कर रहा है, उस के अन्य युवतियों से भी प्रेमिल संबंध हैं.’’

‘‘मुझे पहले ही शक था महाराज. योगेश मुझे बेवकूफ बना रहा है, वह मुझे मिलने का समय दे कर नहीं आता…’’

‘‘कैसे आएगा, दूसरी युवती का भूत जो उस के सिर पर सवार रहता है.’’ शिवनाथ ने कहने के बाद कंधे झटके, ‘‘चिंता मत करो. मेरे जिन्न उस का भूत उतार देंगे. बोलो, तुम्हें अपना प्रेमी चाहिए या इसे सबक सिखा कर छोड़ना पसंद करोगी?’’

‘‘मैं योगेश से बहुत प्यार करती हूं महाराज, उस के बगैर जिंदा नहीं रह सकती. आप तो उस का दिमाग ठीक कर दीजिए, योगेश हमेशा मेरा रहे, मैं यही चाहती हूं.’’ युवती ने भावुक स्वर में कहा.

शिवनाथ ने हवा में हाथ लहराया तो उस के हाथ में गुलाब का लाल फूल आ गया. फूल को उस ने युवती की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘लो, यह फूल पानी में घोल कर योगेश को पिला देना, वह तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरी लड़की के पास नहीं जाएगा. जाओ मौज करो.’’

‘‘आप की दक्षिणा देनी है महाराज, क्या सेवा करूं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मैं ने यह काम तुम्हारे लिए फ्री किया है, जब कभी आवश्यकता पड़ेगी दक्षिणा ले लूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा तो युवती उस के चरणस्पर्श कर वहां से चली गई.

अशोक मीणा शिवनाथ के द्वारा हवा में हाथ लहरा कर फूल पकड़ लेने की क्रिया से हैरान था. हवा में गुलाब का फूल कहां से आया, उस की समझ में नहीं आया था. वह सोच में डूबा था कि शिवनाथ की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कहो जयप्रकाश शर्मा, तुम्हारा कार्य कैसा चल रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा चल रहा है गुरुदेव.’’

‘‘कैसे आने का कष्ट किया तुम ने?’’

‘‘मैं अपने लिए नहीं आया हूं, मैं अशोक के लिए आप की शरण में आया हूं. मैं एकांत में आप से बात करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ, हम भीतर के कक्ष में चल कर बात करते हैं.’’ शिवनाथ ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

वह जयप्रकाश को साथ ले कर अंदर चला गया. अशोक वहीं बैठा उन के बाहर आने का इंतजार करता रहा. काफी देर बाद अंदर से जयप्रकाश बाहर आया. उस ने अशोक के कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता से पूछा, ‘‘बोर तो नहीं हुए अशोक?’’

‘‘नहीं महाराज.’’

‘‘मैं तुम्हारे ही काम के लिए गुरुजी को अंदर ले गया था. गुरुजी वह चमत्कारी बक्सा तुम्हें देने को मान गए हैं. लेकिन तुम्हें इस के लिए 3 लाख रुपए की दक्षिणा देनी होगी.’’

‘‘दे दूंगा महाराज, लेकिन वह चमत्कारी बक्सा मुझे गुरुजी दे तो देंगे न?’’ कुछ शंकित सा स्वर था अशोक का.

‘‘जब जयप्रकाश ने कह दिया तो मैं इस की बात कैसे काट दूं.’’ अंदर से शिवनाथ हाथ में एक लकड़ी का बक्सा ले कर आते हुए बोला. उस ने पास आ कर वह बक्सा अशोक को दे दिया.

यह एक वर्गफुट का चौकोर नक्काशीदार बक्सा था. देखने में वह काफी पुराना लगता था, लेकिन उस की मजबूती अभी भी बरकरार थी.

‘‘देखो अशोक, तुम्हें रोज सुबह स्नान कर के बक्से के आगे धूप जलानी होगी, फिर हाथ जोड़ कर कहना होगा, ‘अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से.’ यह तुम्हें जो देगा, चुपचाप रख लेना. इस का जिक्र बाहरी व्यक्ति से कभी मत करना. करोगे तो तुम्हारे मन की मुराद पूरी नहीं होगी.’’ शिवनाथ ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जयप्रकाश के साथ अजमेर लौट जाओ. 3 लाख रुपए तुम इस के खाते में अजमेर पहुंच कर डाल देना.’’

‘‘ठीक है गुरुदेव,’’ अशोक ने खुशी से बक्सा अपने बैग में रखते हुए शिवनाथ के चरण स्पर्श किए और जयप्रकाश के साथ स्टेशन के लिए निकल पड़ा. उसी रात वे अजमेर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए.

अशोक मीणा को शिवनाथ तांत्रिक द्वारा जो बक्सा दिया गया था, उस ने 6 दिन तक पूरा चमत्कार दिखाया. उस में से 10 हजार रुपए 6 दिनों तक निकले. इस के बाद उस बक्से से रुपए निकलने बंद हो गए.

अशोक मीणा पूरी श्रद्धा से नहाधो कर बक्से के सामने धूप आदि जला कर ‘मुझे अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से’, कहता लेकिन बक्सा खाली रहता.

उस ने नोट देना अब बंद कर दिया था. अशोक मीणा ने परेशान हो कर यह बात जयप्रकाश शर्मा को बताई तो उस ने अशोक से कहा कि वह जा कर शिवनाथ से मिले, वही बताएंगे कि बक्से से नोट क्यों नहीं निकल रहे हैं.

अशोक मीणा को अकेले मुंबई में शाहपुरा जाना पड़ा. तांत्रिक शिवनाथ भी मिला. जब उसे चमत्कारी बक्से के काम न करने की बात अशोक ने बताई तो वह हैरानी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए अशोक, अगर ऐसा हो रहा है तो देखना पड़ेगा. चूंकि अभी कोरोना काल चल रहा है, इस वजह से सभी देवालय बंद पडे़ हैं. ये खुलेंगे तो मैं इस को दुरुस्त कर के दे दूंगा. कोरोना संक्रमण फैल रहा है, इसलिए तुम अजमेर लौट आओ.’’

अशोक मीणा बक्सा शिवनाथ के पास छोड़ कर अजमेर आ गया.

यह मार्च 2020 की बात है. अशोक दीदारनाथ आश्रम में रोज हाजिरी देता और पंडित जयप्रकाश शर्मा से मिलता. एक दिन उस ने अशोक मीणा को बताया कि जमीन में एक जगह करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. यदि तुम एक लाख रुपया दोगे तो मैं तुम्हें 5 प्रतिशत का हिस्सेदार बना दूंगा. चूंकि मैं तुम्हारा हितैषी हूं, इसलिए यह औफर तुम्हें दे रहा हूं. सोच कर जबाब देना.

अशोक मीणा को लालच आ गया. उस ने उस के कहने पर तुरंत उस के एकाउंट में एक लाख रुपए जमा कर दिए.

अशोक मीणा के लालची मन को टटोल कर जयप्रकाश ने उस से सोने के हिस्से में सहभागी बनाने का लालच दे कर 14 लाख 95 हजार 255 रुपए अपने एकाउंट में जमा करवा लिए. 6 लाख 50 हजार जयप्रकाश ने अशोक से नकद ले लिए. यह रकम जमीन से सोना निकालने में मजदूरों की मेहनत और पूजापाठ के नाम पर ली थी.

अशोक मीणा मार्च 2019 से अक्तूबर 2022 तक जयप्रकाश को 41 लाख 45 हजार 235 रुपए दे चुका था. अब उसे अहसास होने लगा था कि वह जयप्रकाश और शिवनाथ तांत्रिक द्वारा ठगा गया है.

उस ने जयप्रकाश से अपना रुपया वापस मांगना शुरू किया तो जयप्रकाश टालमटोल करने लगा और फिर एक दिन वह केकड़ी से गायब हो गया.

14 जनवरी, 2023 को अशोक मीणा रोते हुए सिटी थाने में पहुंच गया. एसएचओ राजवीर सिंह को अशोक ने अपने ठगे जाने की पूरी कहानी बता कर जयप्रकाश शर्मा और शाहपुरा (ठाणे) के तांत्रिक शिवनाथ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

एसएचओ राजवीर सिंह ने धूर्त तांत्रिकों के लिए छापेमारी शुरू करवा दी. शाहपुरा (ठाणे) में शिवनाथ तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस से मदद मांगी गई, लेकिन वहां से बताया गया कि तांत्रिक शिवनाथ यहां से लापता हो गया है.

इन धूर्त तांत्रिकों ने केवल अशोक मीणा को ही ठगा होगा, यह बात एसएचओ राजवीर सिंह मानने को तैयार नहीं थे. दोनों तांत्रिकों ने और भी अनेक लोगों को चूना लगाया होगा, किंतु ये लोग जगहंसाई के डर से सामने नहीं आना चाहते थे.

जयप्रकाश तंत्र विघ्न से संबंधित एक यूट्यूब चैनल भी चलाता था.

आध्यात्मिक चमत्कारों और देवीदेवताओं में गहरी आस्था होने के कारण ये लोग चालाक मक्कार लोगों द्वारा ठग लिए जाते हैं. पीडि़त व्यक्ति जगहंसाई और शरम के कारण पुलिस के पास नहीं जाते, यह बात ठग तांत्रिक भलीभांति जानते हैं. इसी वजह से ये ठग कानून के शिंकजे में नहीं फंसते. ये ठग लोग धर्म की आड़ में भोलेभाले लोगों को आज भी ठग रहे हैं.

कथा लिखने तक पुलिस तथाकथित तांत्रिकों शिवनाथ और जयप्रकाश को उन के ठिकानों पर तलाश रही थी, लेकिन वे पुलिस को मिल नहीं सके.   द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त से की गई बातचीत पर आधारित

खौफनाक इरादों वाले सीरियल किलर्स

भारत के कुछ खौफनाक सीरियल किलर्स के अपराधों के तौर तरीके और उन के द्वारा अंजाम दी गई वारदातों के बारे में सुन कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उन्होंने अपने शैतानी दिमाग से डर की जो दहशत फैलाई थी, उस से न केवल सामान्य लोगों की जिंदगी आतंक और भय से गुजरने लगी थी, बल्कि पुलिस महकमा भी सकते में आ गया था.

वैसे अपराधियों को कानूनी शिकस्त मिली, वे सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए. बावजूद इस के नए सिरे से अपराध की घटनाएं होती रहीं. वैसे खूंखार अपराधियों की बात करें तो उन में रमन राघव, चार्ल्स शोभराज, साइनाइड मोहन, देवेंद्र शर्मा, मोहिंदर सिंह पंढेर, एम. जयशंकर, डाक्टर डेथ और संतोष पोल के नाम प्रमुख हैं.

इन  में से कई अपराधियों पर फीचर फिल्में और टीवी सीरियल भी बन चुके हैं. जबकि एक सच्चाई तो यह भी है कि फिल्मों में उन के कुकर्मों और अपराधों को जितनी शिद्दत के साथ फिल्माया गया, वे उस से कहीं अधिक खूंखार और खौफनाक थे.

वैसे अपराधी देश के विभिन्न हिस्सों के रहे हैं. महानगर से ले कर छोटेमोटे कस्बाई इलाकों तक में उन का खौफ बना रहा है. उन में अधिकतर के अपराध सैक्स, हत्या और रेप जैसी वारदातों के रहे हैं.

रमन राघव : एक साइको किलर

मुंबई में 1960 के दशक का दौर था. तब बंबई नाम के इस महानगर में देश के कोनेकोने से लोग रोजगार की तलाश के लिए लगातार आ रहे थे. उन का वहां कोई ठौरठिकाना नहीं था, फिर भी उन के आने का सिलसिला बना हुआ था.

वे महानगर में जहांतहां किसी तरह से रहने की जगह बनाते जा रहे थे, जहां सिर्फ सिर छिपाने की जगह थी. दैनिक क्रिया के लिए सार्वजनिक शौचालय थे. नहानेधोने के लिए भी वैसी खुले में कोई जगह थी. सोने के लिए सड़कों का फुटपाथ भी उन के लिए कम पड़ने लगा था.

रोजगार का इंतजाम हो जाने के बाद लोग जैसेतैसे चकाचौंध की जिंदगी में किसी तरह से गुजारा कर ले रहे थे.

उन में अधिकतर गरीब और मजदूर किस्म के लोगों के छोटेछोटे परिवार थे. उन के नसीब में घरेलू परदा और सुरक्षा नाम मात्र की थी. वे कब किसी घटना या दुर्घटना के शिकार हो जाएं, कहना मुश्किल था. उन में या फिर उन से बाहर अपराधी किस्म के लोग भी थे, जिन की नजर भोलीभाली लड़कियों और अकेली औरतों पर रहती थी. ऐसा ही एक व्यक्ति रमन राघव था.

उस के बारे में बहुत अधिक रिकौर्ड तो नहीं है, सिवाय इस के कि उस ने कई जघन्य अपराध किए. हालांकि तब यह माना गया था कि वह दक्षिण भारत का रहने वाला था.

1965-66 के समय में मुंबई में फुटपाथ पर सोने वाले लोगों की हत्याओं की खबरों ने मुंबई पुलिस की नाक में दम कर रखा था. गरीब बस्तियों में उस के नाम का भय बना हुआ था. उस के ताबड़तोड़ अपराध ने सभी को सन्न कर दिया था. पुलिस उस के हुलिए तक से अनजान थी.

रात के अंधेरे में जब किसी बेसहारे की मौत हो जाती थी, तब पुलिस मरने वाले की शिनाख्त तो कर लेती थी, लेकिन उस हत्यारे तक नहीं पहुंच पाती थी. पुलिस को सभी कत्ल में एक जैसे तरीके के अलावा और कुछ नहीं मालूम हो पाया था. वह तरीका था लोगों के सिर पर किसी भारी चीज से हमला किया जाना. हत्यारा एक ही वार में व्यक्ति को मौत की नींद सुला देता था.

सिर्फ एक साल के अंदर ही करीब डेढ़ दरजन लोगों पर इस तरह के जानलेवा हमले हुए थे, जिन में 9 लोग मारे गए थे. इस अनजान हमलावर को पकड़ने में मुंबई पुलिस पूरी तरह से नाकाम थी. लोग शाम होते ही अपनेअपने घरों की ओर लौटने लगे थे.

स्थिति यहां तक आ गई थी कि लोग अपनी सुरक्षा के लिए साथ में लकड़ी या डंडा रखने लगे थे. उस के बाद कुछ समय तक वारदातें नहीं हुईं.

पुलिस जांच में जुटी थी और कई घायलों की मदद से इस हमलावर का स्केच बनवाया गया, जिस के आधार पर मुंबई क्राइम ब्रांच पुलिस के 27 अगस्त, 1968 को इस खूंखार हत्यारे रमन राघव को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पुलिस पूछताछ में उस ने बताया कि 3 साल के अपने आपराधिक जीवन में करीब 40 लोगों को मौत के घाट उतार चुका था. जबकि पुलिस का मानना था कि यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है. पुलिस ने पूछताछ में यह भी पाया कि रमन ने फुटपाथ पर सोए बुजुर्ग महिला, पुरुष, युवा और बच्चों सभी को अपना शिकार बनाया.

पूछताछ के दौरान पुलिस ने जब उस की मैडिकल जांच करवाई, तब डाक्टरों के पैनल ने उसे मानसिक रूप से विकृत बताया. फिर निचली अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद उसे मौत की सजा सुना दी. इस सब के बीच रमन राघव ने सजा के खिलाफ कोई अपील भी नहीं की. हाईकोर्ट ने 3 मनोवैज्ञानिकों के पैनल से उस के मानसिक स्तर की फिर से जांच कराई.

मनोचिकित्सकों के पैनल द्वारा किए गए कई घंटों के इंटरव्यू के बाद निष्कर्ष निकला कि वह दिमागी रूप से बीमार है. ऐसे में उस की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया. इस के बाद उसे पुणे की यरवदा जेल में भेज दिया गया, जहां कई सालों तक उस का इलाज भी चला. साल 1995 में साइको किलर रमन राघव की किडनी की बीमारी के चलते सस्सून अस्पताल में मौत हो गई.

साल 2016 में उस की जीवनी पर एक हिंदी फिल्म ‘रमर 2.0’ भी बनी थी, जिस में मुख्य भूमिका रघुवीर यादव ने निभाई थी. फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी एक अहम किरदार में थे.

डा. देवेंद्र शर्मा : बेरहमी से 100 जानें लेने वाला हैवान

सीरियल किलर डा. देवेंद्र शर्मा की हैवानियत को दिल्ली, गुड़गांव, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोग 2 दशक बाद भी याद कर सिहर जाते हैं. उस के खौफनाक किस्सों में किडनी रैकेट, फरजी गैस एजेंसी और कारों की चोरी के कारनामे आज भी सब की जुबान पर हैं.

लोगों का कहना है कि उस ने 100 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, जिन में कैब ड्राइवर और दूसरी गाडि़यों के ड्राइवर थे. उन की लाशों को यूपी की मगरमच्छों वाली नहर में फेंक दिया था.

साल 2002 और 2004 के बीच उस के कारनामे ज्यादा चर्चित हुए. वह कारें और दूसरे वाहनों को चुराया करता था. उस ने करीब 40 ड्राइवरों को मौत के घाट उतार दिया था. हैरानी की बात यह थी कि वह एक आयुर्वेदिक चिकित्सक था. अपने पेशे से अलग लगातार आय के अन्य साधनों पर नजर रखे हुए था.

हत्याओं में से 50 को कुबूल करने के बाद उसे 2008 में मौत की सजा सुना दी गई थी. वह ऐसा सीरियल किलर था, जो 50 कत्ल करने के बाद उस की गिनती भूल गया था. बाद में उस ने माना कि वह 100 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है.

वह 2004 में पकड़ा गया था. फिर जेल में अच्छे बर्ताव के कारण उसे जनवरी 2020 में 20 दिन की पैरोल मिली थी. पैरोल खत्म होने के बाद भी वह जेल नहीं पहुंचा बल्कि वह दिल्ली के मोहन गार्डन में छिप कर रहने लगा. यहां वह एक बिजनसमैन को चूना लगाने वाला था, लेकिन पुलिस को उस के यहां होने की भनक लगी और आखिर में उसे पकड़ लिया गया. दिल्ली में पकड़े गए देवेंद्र को किडनी मामले का अपराधी करार दिया गया था.

देवेंद्र शर्मा डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजस्थान में निजी प्रैक्टिस करता था. उस में उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितने कि वह उम्मीद किए हुए था. साल 1984 में देवेंद्र शर्मा ने आयुर्वेदिक मेडिसिन में अपनी ग्रैजुएशन पूरी कर के राजस्थान में क्लीनिक खोला था. फिर 1994 में उस ने गैस एजेंसी के लिए एक कंपनी में 11 लाख रुपए का निवेश किया था. लेकिन कंपनी अचानक गायब हो गई, फिर नुकसान के बाद उस ने 1995 में फरजी गैस एजेंसी खोल ली.

उस के बाद शर्मा ने एक गैंग बनाया, जो एलपीजी सिलेंडर ले कर जाते ट्रकों को लूट लेता था. इस के लिए वे लोग ड्राइवर को मार देते और ट्रक को भी कहीं ठिकाने लगा देते. इस दौरान उस ने गैंग के साथ मिल कर करीब 24 मर्डर किए.

वह अपने पेशे से ही जुड़ कर पैसा कमाने का काम करने लगा. उस के पास उन मरीजों की संख्या अच्छीखासी थी, जिन की किडनी खराब हो चुकी थी. उन्हें वह आयुर्वेदिक दवाइयां दिया करता था. उस ने उपचार करते हुए देखा कि बहुतों की दोनों किडनियां खराब हैं, जिसे ट्रांसप्लांट करने की जरूरत है.

फिर क्या था, देवेंद्र शर्मा किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह में शामिल हो गया. वह किडनी डोनर का इंतजाम करने लगा. कार के ड्राइवर को इस का निशाना बनाया और उन्हें मार कर जरूरतमंदों को उस की किडनी बेच कर मोटा पैसा बनाने लगा. इस काम में उसे दोहरा लाभ हुआ.

किडनी बेचने के साथसाथ देवेंद्र शर्मा ने लूटी हुई कारों से भी पैसे कमाए. उस ने 7 लाख रुपए प्रति ट्रांसप्लांट के हिसाब से 125 ट्रांसप्लांट करवाए. ड्राइवर की बौडी को नहर में फेंकने के बाद कैब को यूज्ड कार बता कर बेच देता.

वह फरजी गैस एजेंसी भी चलाने लगा. अपनी फरजी गैस एजेंसी के लिए जब उसे सिलेंडर चाहिए होते तो वह गैस डिलिवरी ट्रक को लूट लेता था और उस के ड्राइवर को मार देता था.

देवेंद्र ने पूरी गैंग तैयार कर रखी थी. वे गाडि़यों की लूट से ले कर लाश को  ठिकाने लगाने के लिए उसे उत्तर प्रदेश में कासगंज स्थित हजारा नहर में फेंक दिया करता था. इस नहर में बड़ी संख्या में मगरमच्छ रहते हैं.

साइनाइड किलर मोहन : 20 महिलाओं की हत्या

सीरियल किलर मोहन कुमार को साइनाइड किलर के नाम से भी जाना जाता है. मोहन कुमार को 20 महिलाओं की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था. उन महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने

के बाद, वह उन्हें गर्भनिरोधक गोलियां खिलाता था.

दरअसल, वे गर्भनिरोधक गोलियां नहीं, बल्कि साइनाइड की गोलियां हुआ करती थीं. उस ने ये जुर्म साल 2005 से 2009 के बीच किए थे. उस के बारे में कहा जाता है कि वह कई बैंक धोखाधड़ी और वित्तीय घोटालों में भी शामिल था. उसे दिसंबर 2013 में मौत की सजा सुनाई गई थी.

मोहिंदर सिंह पंढेर : निठारी हत्याकांड

साल 2005 और 2006 के बीच दिल्ली के नोएडा इलाके में निठारी हत्याकांड काफी चर्चा में रहा था. इस खौफनाक घटना की पूरे देश में बहुत चर्चा हुई. मोहिंदर सिंह पंढेर और सुरिंदर कोली दोनों पर निठारी में 16 से अधिक बच्चों की हत्या और बलात्कार का आरोप था.

मोहिंदर सिंह पंढेर दिल्ली के नोएडा का एक धनी व्यापारी था. 2005 से 2006 के बीच निठारी गांव के 16 लापता बच्चों की खोपड़ी उस के घर के पीछे एक नाले में मिली थी. उस इलाके के सभी लापता बच्चों की लाशें पंढेर के घर के पास ही मिली थीं.

पुलिस ने पंढेर और उस के नौकर सुरिंदर कोली को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पर रेप, नरभक्षण और मानव अंगों की तस्करी का आरोप लगाया गया था. कुछ आरोप सही थे तो कई अफवाहें भी थीं. कोली और पंढेर दोनों को 2017 में मौत की सजा सुनाई गई थी.

एम. जयशंकर : रेप और मर्डर

एम. जयशंकर पर 30 महिलाओं से रेप और 15 महिलाओं की हत्या का आरोप था. उस ने 2008 से 2011 के बीच रेप और हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया था. उस ने तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 30 बलात्कार, 15 हत्याएं और कई डकैती की घटनाओं को अंजाम दिया था.

गिरफ्तारी के बाद उसे बंगलुरु की एक जेल में बंद कर दिया गया था. हालांकि उसे  मानसिक रूप से बीमार भी बताया गया था. बाद में जेल से भागने के कई असफल प्रयासों के बाद एम. जयशंकर ने 2018 में आत्महत्या कर ली थी.

डाक्टर डेथ : महिलाओं को जिंदा दफनाने वाला

वैसे दुनिया भर में डाक्टर को प्राणरक्षक माना जाता है, लेकिन महाराष्ट्र के सातारा में एक ऐसा डाक्टर सामने आया, जिसे ‘डाक्टर डेथ’ का नाम दिया गया. इस डाक्टर की कहानी इतनी खौफनाक थी कि उस के कारनामे उजागर होते ही सभी चौंक पड़े थे.

डाक्टर ने पुलिस को बताया कि उस ने 5 औरतों को जिंदा दफना दिया था उन की कब्रों के ऊपर नारियल के पेड़ भी लगा दिए थे.

डाक्टर डेथ के इस सनकी रवैए का खुलासा 2016 में तब हुआ, जब उसे पुलिस ने एक कत्ल के मामले में गिरफ्तार किया था. महाराष्ट्र के पुणे से करीब 120 किलोमीटर दूर सातारा में रहने वाले इस कातिल डाक्टर की पहचान संतोष पोल के रूप में की गई थी.

कातिल डाक्टर ने पुलिस को अपने कुबूलनामे में बताया कि वह साल 2003 से ऐसी वारदातों को अंजाम देता आया है.

संतोष पोल पेशे से एलेक्ट्रोपैथ डाक्टर था और उस के पास बैचलर औफ इलैक्ट्रोहोमियोपैथी मैडिसिन एंड सर्जरी (बीईएमएस) की डिग्री थी. इस के अलावा उस ने मुंबई के घोटवडेकर अस्पताल में 8 साल तक नौकरी भी की थी.

वहां काम करने वाले वरिष्ठ डाक्टरों का मानना था कि वह मैडिकली सर्टिफाइड नहीं था. संतोष खुद को डाक्टर बताने के साथसाथ समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट भी बताता था.

साल 2016 में वेलम गांव की आंगनबाड़ी कार्यकत्री मंगला जेधे लापता हो गई. उस के परिजनों ने इस का आरोप संतोष पर लगा दिया था. शिकायत में नामजद होने के बाद पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन सबूत नहीं होने की वजह से उसे छोड़ दिया गया.

मामले की चल रही जांच में सामने आया कि मंगला के फोन की आखिरी लोकेशन संतोष पोल के फार्महाउस के पास दिखी और मंगला का फोन ज्योति नाम की नर्स के पास से बरामद किया गया.

इस के बाद पूछताछ में ज्योति ने बताया कि संतोष पोल ने ही मंगला जेधे की हत्या की और उस के शव को दफना दिया. उधर संतोष को जैसे ही यह सब पता चला तो वह मुंबई भाग गया. ज्योति के द्वारा बताई गई जगह पर खुदाई की गई, तो एक कंकाल बरामद हुआ और लैब रिपोर्ट्स में साबित हो गया कि वह कंकाल मंगला जेधे का ही था.

गिरफ्तारी के बाद संतोष ने बताया कि उस ने 13 सालों में 5 महिलाओं और एक पुरुष की हत्या की है. इस के बाद पुलिस के जरिए चारों महिलाओं के कंकाल बरामद कर लिए गए, लेकिन एक पुरुष का कंकाल बरामद नहीं हुआ.

संतोष ने उस की लाश नदी में फेंक दी थी. उस ने बताया कि वह महिलाओं को नशे का इंजेक्शन देता था, फिर नशे की हालत में रहने के दौरान ही उन्हें फार्महाउस में दफना देता था. साथ ही लाशों के सड़ने की गंध छिपाने के लिए उस ने कुछ मुर्गियां भी पाल रखी थीं. पुलिस ने इस ‘डाक्टर डेथ’ के घर से नशीली दवाएं, इंजेक्शन, ईसीजी मशीन और आरटीआई से जुड़े कुछ दस्तावेज बरामद किए थे.

संतोष ने बताया था कि वह हर हत्या के बाद एक जेसीबी बुलाता था और नारियल के पेड़ों को लगाने के लिए गड्ढे खुदवाता था, लेकिन इन गड्ढों में लाशें दफना कर उन के ऊपर नारियल के पेड़ लगा दिया करता था.      द्य

दुविधा : जब बेईमानों का साथ देना पड़े

बिहार में डेहरी औन सोन के रहने वाले मदन कुमार एक राष्ट्रीय अखबार के लिए ब्लौक लैवल के प्रैस रिपोर्टर का काम करते हैं. वे पत्रकारिता को समाजसेवा ही मानते हैं.

बेखौफ हो कर वे अपने लेखन से समाज को बदलना चाहते हैं, लेकिन उन के स्थानीय प्रभारी से यह दबाव रहता है कि खबर उन्हीं लोगों की दी जाए, जिन से उन्हें इश्तिहार मिलते हैं. जो इश्तिहार नहीं दे पाते हैं, उन की खबर बिलकुल नहीं दी जाए, भले ही खबर कितनी भी खास क्यों न हो.

मदन कुमार के प्रभारी उन लोगों के बारे में अकसर लिखते रहते हैं, जिन से उन्हें दान के तौर पर कुछ मिलता रहता है. भले ही वे लोग दलाली और भ्रष्टाचार कर के पैसा कमा रहे हैं. अपने ब्लौक के भ्रष्टाचारियों और दलालों की खबरों को ज्यादा अहमियत दी जाती है. उन के बारे में गुणगान पढ़ कर मन दुखी हो जाता है. कभीकभी तो उन के प्रभारी कुछ लोगों से मुंह खोल कर पैट्रोल खर्च, आनेजाने के खर्चे के नाम पर पैसे लेते रहते हैं.

वहीं मदन कुमार द्वारा काफी मेहनत और खोजबीन कर के लाई गई खबरों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, न ही छापा जाता है या बहुत छोटा कर दिया जाता है, क्योंकि उन संस्थाओं से प्रभारी महोदय को नाराजगी पहले से रहती है या कोई ‘दान’ नहीं मिला होता है, इसलिए वे कुछ दिनों से अपने प्रभारी से बहुत नाराज हैं.

वे अकसर कहते हैं कि अब पत्रकारिता छोड़ कर दूसरा काम करना ठीक रहेगा और इस के लिए वे कोशिश भी कर रहे हैं. उन्हें इस प्रकार की दलाली पत्रकारिता से नफरत होती जा रही है.

मदन कुमार का कहना है, ‘‘अगर बेईमानी से ही कमाना है तो फिर पत्रकारिता में आने की क्या जरूरत है? बेईमानी के लिए बहुत सारे रास्ते खुले हुए हैं. और फिर मुंह खोल कर किसी से पैट्रोल और आनेजाने के खर्चे के नाम  पर पैसे मांग कर अपना ही कद छोटा करते हैं.

‘‘आम लोग इस तरह के बरताव से सभी रिपोर्टरों को एक ही तराजू पर तौलते हैं, इसीलिए आज स्थानीय पत्रकारों को कोई तवज्जुह नहीं देता है. लोग उन्हें बिकाऊ और दो टके का सम झते हैं, जबकि पत्रकारिता देश का चौथा स्तंभ माना जाता है.

‘‘इस तरह के बेईमानों के साथ काम करने पर मन को ठेस पहुंचती है. ईमानदारी से काम करने वाले के दिल को यह सब कचोटता है, खासकर तब जब आप का बड़ा अधिकारी ही बेईमान हो. आप उस का खुल कर विरोध भी नहीं कर सकते हैं. विरोध करने का मतलब है, अपनी नौकरी को जोखिम में डालना.’’

औरंगाबाद के रहने वाले नीरज कुमार सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं. सरकारी विद्यालय में बच्चों को मिड डे मील के लिए सरकार द्वारा चावल और पैसे दिए जाते हैं. उन के विद्यालय के प्रधानाध्यापक मिड डे मील के चावल और पैसे की हेराफेरी करते रहते हैं.

जब कभी बच्चों की लिस्ट बनानी हो, तो उसे नीरज कुमार ही तैयार करते हैं. वे जानते हैं कि गलत रिपोर्ट बना रहे हैं, फिर भी वे उस गलत रिपोर्ट का विरोध नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें हर हाल में प्रधानाध्यापक की बात माननी पड़ती है.

एक बार प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को इस बारे में शिकायत की थी. तब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी का कहना था, ‘आप अपने काम से मतलब रखिए. दूसरों के काम में अड़ंगा मत डालिए. आप सिर्फ अपने फर्ज को पूरा कीजिए.’

बाद में नीरज कुमार को पता चला कि इस हेराफेरी में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को भी कमीशन के रूप में पैसा मिलता है. उन का कमीशन फिक्स है, इसलिए वे ऐसे शिक्षकों को हेराफेरी करने से रोकते नहीं हैं, बल्कि सपोर्ट करते हैं. इस सब में नाजायज कमाई करने का एक नैटवर्क बना हुआ है.

तब से नीरज कुमार अपने विद्यालय के गरीब बच्चों के निवाला की हेराफेरी करने वाले अपने प्रधानाचार्य का विरोध नहीं करते हैं. उन का कहना है, ‘‘मैं सिर्फ अपने फर्ज को पूरा करता हूं. यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, इसलिए मैं इस के बारे में चुप रहता हूं.

‘‘मैं सिर्फ पढ़ानेलिखाने पर ध्यान देता हूं. मैं आर्थिक मामलों में कुछ भी दखलअंदाजी नहीं करता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि ऐसा करने का मतलब है अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना यानी अपना ही नुकसान करना.

‘‘वैसे भी आप शिकायत करने किस के पास जाएंगे? जिन के पास भी जाएंगे यानी आप ऊपर के अधिकारी के पास जाएंगे तो उस की कमाई भी उस हेराफेरी से होती है, इसलिए वैसे लोग उस हेराफेरी को रोकने से तो रहे. बदले में आप का नुकसान भी कर सकते हैं. आप का ट्रांसफर करा देंगे.

‘‘आप को दूसरे मामले में फंसा कर नुकसान पहुंचाना चाहेंगे. अगर आप को शांति से नौकरी करनी है, तो अपना मुंह बंद रखना ही होगा.’’

इस तरह की बातों से यह साफ है कि जब बेईमानों के साथ काम करना पड़े या साथ देना पड़े, तो यह जरूरी है कि हम उन से अपनेआप को अलगथलग रखें. हमें जो काम और जिम्मेदारी दी गई है, उस को बखूबी निभाएं.

बेईमान सहकर्मी के बारे में जहांतहां शिकायत करना भी ठीक नहीं है. इस  से आप की उस से दुश्मनी बढ़ने लगती है. शिकायत से कोई फायदा नहीं  होता है. आप के बनेबनाए काम भी बिगड़ जाते हैं, इस से खुद का ही नुकसान होता है. आप दूसरों को सुधारने के फेर में खुद का ही नुकसान कर लेते हैं.

अगर आप अपनी भलाई चाहते हैं, तो ज्यादा रोकटोक न करें. उन की बेईमानी की कमाई में किसी तरह का अड़ंगा न डालें.

मुमकिन हो, तो उन्हें किसी दूसरे तरीके से बताने की कोशिश करें. अगर वे आप के इशारे को समझ जाते हैं, तो उचित है वरना अपने काम से मतलब रखें, क्योंकि उन का सीधा विरोध करने पर दुश्मनी महंगी पड़ सकती है.