फरजी डाक्टर, औपरेशन धड़ाधड़, 9 मौतें – भाग 1

जहां ये अग्रवाल मैडिकल सेंटर चलता था, वहां 10 किलोमीटर के अंदर ऐसे कई क्लीनिक चलते हैं, जहां पर बिना डिग्री के डाक्टर व स्टाफ काम करते हैं. जांच के दौरान अग्रवाल मैडिकल सेंटर के अंदर सब से अधिक सफदरजंग अस्पताल से आए मरीजों के कागजात मिले.

दिल्ली के इन फरजी डाक्टरों का सालों से फरजी गोरखधंधा देश की राजधानी में अग्रवाल मैडिकल सेंटर में धड़ल्ले से चल रहा था. यह अस्पताल गैंग की तरह चलता था. बेहद सस्ते में इलाज और सर्जरी का लालच दे कर यह मरीजों को फंसाते थे. यह गैंग मरीजों को डरा कर उन से मोटी रकम वसूल कर धड़ाधड़ सर्जरी करता था. पैसों की खातिर गैंग की नजरों में मरीज की जान की कोई कीमत ही नहीं थी.

इस अस्पताल में सिर्फ 2 डाक्टर ही थे, डा. नीरज अग्रवाल और डा. जसप्रीत सिंह.  नीरज एमबीबीएस है, लेकिन दिल्ली मैडिकल काउंसिल उस के रजिस्ट्रेशन को 3 बार रद्द कर चुकी है. हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि सर्जन डा. जसप्रीत सिंह तो बिना औपरेशन थिएटर में पहुंचे, बिना मरीज को छुए ही अस्पताल के लिए कागजों पर सर्जरी कर दिया करता था. सर्जरी तो डा. जसप्रीत के नाम पर होती थी, लेकिन उसे अंजाम देते थे अस्पताल में कार्यरत मुन्नाभाई एमबीबीएस.

दक्षिणी दिल्ली के ईस्ट औफ कैलाश के गढ़ी गांव निवासी 44 वर्षीय जय नारायण कई दिनों से पेट के दर्द से परेशान चल रहे थे. उन के चचेरे भाई ने उन का चैकअप कराया.  अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट से पता चला कि उन के पित्ताशय में पथरी है.

पथरी से निजात पाने के लिए उन को औपरेशन की सलाह दी गई. तब उन्हें बताया गया कि दिल्ली के पौश इलाके ग्रेटर कैलाश में अग्रवाल मैडिकल सेंटर नाम का एक नर्सिंग होम है. इस में इलाज सस्ता और अच्छे डाक्टरों द्वारा किया जाता है.

इस जानकारी के बाद जय नारायण अपने चचेरे भाई राजपाल सिंह, जो दिल्ली के ही श्रीनिवासपुरी वार्ड के निगम पार्षद हैं, के साथ इस अस्पताल में 26 अक्तूबर, 2023 को जा पहुंचे. परिजनों ने अस्पताल के डाक्टरों से बातचीत के बाद औपरेशन फीस जमा कर दी. इस के साथ ही औपरेशन के लिए आवश्यक दवाएं, इंजेक्शन, सर्जिकल ब्लेड आदि सामान भी डाक्टरों के कहने पर ला कर दिए. अगले दिन की तारीख जय नारायण के औपरेशन के लिए दे दी गई.

27 अक्तूबर को नर्सिंग होम के डाक्टरों की टीम ने जय नारायण की पित्ताशय की पथरी का औपरेशन किया. औपरेशन के बाद जय नारायण की तबीयत बिगड़ गई और उन की मौत हो गई. नर्सिंग होम के डाक्टरों ने जय नारायण की मौत की खबर घर वालों को दी.

जय नारायण की मौत की खबर सुनते ही घर वालों के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. भाई ने जब डाक्टरों से मौत का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि औपरेशन सफल रहा था, लेकिन उस के बाद हार्ट अटैक आने से जय नारायण की मौत हो गई.

अजीब बात यह थी मरीज को सर्जरी के लिए उन्हीं कपड़ों में ले जाया गया था, जो उस ने उस समय पहने हुए थे. जबकि मरीज को औपरेशन थिएटर में ले जाने से पूर्व अस्पताल के कपड़े पहनाए जाते हैं. फिर ऐसा क्यों किया गया? यह बात घर वालों के गले नहीं उतर रही थी.

मृतक जय नारायण की पत्नी के अलावा 21 व 14 साल के बच्चे हैं. वह परिवार के मुखिया थे. उन की मौत की खबर मिलते ही परिवार में कोहराम मच गया. घर वालों ने डाक्टरों की बातों पर विश्वास नहीं किया और पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में पुलिस आ गई और शिकायत पर मृतक जय नारायण के शव को अपने कब्जे में ले लिया.

पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम एम्स में कराया. शव का पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल द्वारा किया गया. अपनी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टरों ने बताया कि जय नारायण की मौत हार्ट अटैक से नहीं, बल्कि ज्यादा खून के निकलने के कारण हुई थी.

फरजी डाक्टरों के गैंग में कौनकौन थे शामिल

इस अस्पताल के खिलाफ पिछले साल भी की गई एक शिकायत की जांच चल रही थी. 10 अक्तूबर, 2022 को दक्षिणपूर्वी दिल्ली के संगम विहार की एक महिला ने ग्रेटर कैलाश थाने में शिकायत दर्ज कराई थी.

शिकायत में आरोप लगाया कि 19 सितंबर, 2022 को वह अपने पति असगर अली की पित्ताशय की पथरी निकलवाने के लिए अग्रवाल मैडिकल सेंटर ले गई थी. उस का आरोप था कि सर्जरी शुरू होने से पहले नर्सिंग होम के निदेशक डा. नीरज अग्रवाल ने उस से कहा कि सर्जरी डा. जसप्रीत सिंह द्वारा की जाएगी, लेकिन सर्जरी होने से पहले डा. नीरज अग्रवाल ने महिला को बताया कि डा. जसप्रीत सिंह सर्जरी करने नहीं आ सके हैं और अब सर्जरी डा. महेंद्र सिंह करेंगे.

इस के बाद डा. नीरज अग्रवाल ने उस महिला से डा. महेंद्र सिंह को भी मिलवाया. इस के साथ ही वहां मौजूद एक नर्स ने भी उस महिला का परिचय डा. पूजा के रूप में कराया.

असगर अली की सर्जरी डा. महेंद्र सिंह, डा. नीरज अग्रवाल और पूजा ने की. औपरेशन के बाद मरीज को औपरेशन थिएटर से जब बाहर लाया गया तो वह तेज दर्द की शिकायत करने लगा. इस के बाद हालत बिगड़ने पर उसे एंबुलेंस से सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया तो वहां के डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

फोटो से कैसे खुला असगर अली की मौत का राज

संगम विहार निवासी असगर का अग्रवाल मैडिकल सेंटर में पित्ताशय की पथरी का औपरेशन किया गया था. पथरी को निकालने के बाद पूजा ने असगर के बेटे को पित्ताशय व पथरी दिखाई थी. ये दोनों चीजें दिखाते समय बेटे ने अपने मोबाइल से फोटो खींच ली थी. यही फोटो थी, जिस से डा. अग्रवाल के सारे राज खुल गए.

हुआ यह कि जब असगर की हालत खराब होने पर उसे सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया तो अग्रवाल मैडिकल सेंटर से असगर की जो समरी सफदरजंग अस्पताल भेजी थी, उस में टाइम कुछ और था. इस टाइम के अंतर में डा. नीरज अग्रवाल फंस गया.

पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद 25 अक्तूबर, 2022 को थाना ग्रेटर कैलाश-1 में आईपीसी की धारा 304/196/197/198/201/120बी के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने इस मामले की जब जांच शुरू की तो उसे पता चला कि 19 सितंबर, 2022 को मृतक असगर अली की सर्जरी के समय डा. जसप्रीत सिंह ग्रेटर कैलाश-1 में मौजूद नहीं था, लेकिन उस ने मृतक की सर्जरी के संबंध में फरजी दस्तावेज तैयार किए थे.

आगे की जांच के दौरान पुलिस को यह भी पता चला कि वर्ष 2016 से अब तक विभिन्न शिकायतकर्ताओं द्वारा अग्रवाल मैडिकल सेंटर और डा. नीरज अग्रवाल व उन की पत्नी पूजा अग्रवाल के खिलाफ दिल्ली मैडिकल काउंसिल में लगभग 7 शिकायतें दर्ज कराई थीं. इलाज में कई मरीजों की जान चली गई थी.

जांच के बाद पुलिस ने आरोपी की करतूतों से परदा उठा दिया. यदि उस समय इस अस्पताल के खिलाफ कोई सख्त काररवाई हो जाती तो कई जिंदगियां बचाई जा सकती थीं. लेकिन ढुलमुल रवैए के चलते ऐसा नहीं किया गया, जिस से यहां लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ होता रहा.

Press Confrence me Farji Hospital Ki Jankari Deti DCP Chandan Chaudhari

अग्रवाल मैडिकल सेंटर की जांच के लिए 4 सदस्यीय डाक्टरों वाले एक मैडिकल बोर्ड को पहली नवंबर, 2023 को बुलाया गया. बोर्ड ने अपनी जांच के दौरान इस नर्सिंग होम में अनेक कमियां देखीं.

बोर्ड को जांच के दौरान जानकारी मिली कि अग्रवाल मैडिकल सेंटर का निदेशक डा. नीरज अग्रवाल अकसर मरीजों के इलाज व सर्जरी से संबंधित फरजी दस्तावेज तैयार करता था. इस के बाद वह इन्हें मरीजों को सौंप देता था. पुलिस उपायुक्त ने अग्रवाल मैडिकल सेंटर का लाइसेंस रद्द कराने के लिए दिल्ली मैडिकल काउंसिल के अध्यक्ष को पत्र लिखा है.

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 1

तकरीबन 200 से अधिक मरीजों की दर्दनाक मौत कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि इन मौतों के पीछे लालच, धोखा और हैवानियत की एक ऐसी कहानी छिपी है, जिस पर यकीन करना भी मुश्किल है. इन सभी  मरीजों का इलाज एक ही डाक्टर ने किया था और उस निर्दयी डा. समीर सर्राफ ने चंद रुपयों के लालच में मरीजों को घटिया क्वालिटी के पेसमेकर लगा दिए थे. जिस का नतीजा यह हुआ कि कुछ दिनों तक सस्ते और घटिया पेसमेकर से जूझने के बाद करीब 200 मरीजों की जान चली गई.

सरकारी अस्पतालों में आमतौर पर पेसमेकर लगाने में 75 हजार रुपए से ले कर डेढ़ लाख रुपए तक खर्च आता है, लेकिन डा. समीर पेसमेकर लेने और इस के लिए अलग से रुपए खर्च करने की सलाह देता था. इस तरह वह एक मरीज से 4 से 5 लाख रुपए तक चार्ज कर लिया करता था.

हाल ही में एक दिल को झकझोर देने वाली खबर देश के सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से सामने आई है. यह खबर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के पिता स्व. मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का गढ़ कहे जाने वाले सैफई से है.

उत्तर प्रदेश के सैफई में एक डाक्टर की काली करतूत पूरे देश और समूचे विश्व के सामने आई है. सैफई की मैडिकल यूनिवर्सिटी के डाक्टर की काली करतूत ने भारत को समूचे विश्व के सामने शर्मसार कर के रख दिया है. डा. समीर सर्राफ, जो मैडिकल यूनिवर्सिटी का हार्ट स्पैशलिस्ट था, उसे घटिया और नकली पेसमेकर लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

सैफई मैडिकल यूनिवर्सिटी में तैनात रहे कार्डियोलौजिस्ट डा. समीर सर्राफ पर बेहद संगीन आरोप लगा है कि उस ने 600 मरीजों में खराब पेसमेकर इंप्लाट किए थे, जिन में से अब तक करीब 200 मरीजों की मौत हो चुकी है. डा. समीर सर्राफ पर मरीजों से अधिक पैसे वसूलने सहित कई संगीन आरोप भी लगे हैं.

कैसे खुला नकली पेसमेकर लगाने का मामला?

नकली पेसमेकर लगाने का मामला तब प्रकाश में आया, जब मोहम्मद ताहिर ने यह मामला मीडिया और पुलिस के सामने उजागर किया. मोहम्मद ताहिर ने 12 जून, 2019 को अपनी बीवी रेशमा की तबीयत खराब होने और कमजोरी महसूस होने पर सैफई यूनिवर्सिटी में भरती कराया था. उन की गैरमौजूदगी में डाक्टर ने उन्हें पेसमेकर लगा दिया.

पेसमेकर लगाने के बाद ताहिर से एक लाख 85 हजार रुपए ले लिए गए. ताहिर ने जब डाक्टर से रसीद की मांग की तो दूसरे दिन कानपुर के कृष्णा हेल्थकेयर (फर्म) की हस्तलिखित रसीद थमा दी गई.

डा. समीर सर्राफ ने ताहिर से ये बात कही थी कि जो पेसमेकर हम ने आप की पत्नी रेशमा के शरीर पर प्रत्यारोपित किया है, वह पूरे 20 साल चलेगा, लेकिन महज 2 महीने बाद ही वह 20 साल गारंटी वाला पेसमेकर खराब हो गया था.

एक दिन रेशमा अपने घर पर ही बेहोश हो कर गिर गई. 24 अगस्त, 2019 को रेशमा को घर वालों ने फिर गंमीर हालत में सैफई मैडिकल कालेज में भरती कराया तो वहां पर डाक्टर ने बताया गया कि इन का पेसमेकर खराब हो गया है. वहां पर एक दूसरा पेसमेकर उन्हें लगवाया गया और 5 दिन तक सैफई मैडिकल कालेज में भरती होने के बाद रेशमा को 29 अगस्त, 2019 को बाहर ले जाने के लिए रेफर कर दिया गया.

पत्नी को बाहर किसी अच्छे अस्पताल में रेफर किए जाने के बाद घर वाले उसे ले कर दिल्ली के होली फैमिली हौस्पिटल में ले गए, वहां पर 11 डाक्टरों की एक पूरी टीम ने रेशमा का पूरा चेकअप किया और फिर उन्होंने बताया कि पेसमेकर लगाने के कारण ही रेशमा की ऐसी बद से बदतर हालत हुई है. क्योंकि जो पेसमेकर उन्हें लगाया गया, वह बहुत ही खराब क्वालिटी का था.

दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल में रेशमा का पूरे 13 दिन कोमा की हालत में इलाज किया गया और उस के बाद 10 सितंबर, 2019 को रेशमा को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया.

करीब एक महीने बाद 9 अक्तूबर, 2019 को रेशमा की तबीयत एक बार फिर से बहुत सीरियस हो गई. घर वाले उसे ले कर आगरा के एक अस्पताल में ले गए. आगरा में एशिया के जानेमाने न्यूरोसर्जन आर.सी. मिश्रा ने रेशमा को देखा.

उन्होंने भी जांच करने के बाद यही बताया कि पेसमेकर अच्छी क्वालिटी का नहीं था. उसी की वजह से आज उन की यह स्थिति हो गई है और उन का दिमाग डेड हो चुका है. इस के बाद रेशमा की मृत्यु हो गई.

डा. समीर सर्राफ पर आरोप लगाने वाले केवल मोहम्मद ताहिर ही नहीं, बल्कि अन्य कई लोग भी हैं, जिन्होंने उस पर गंभीर आरोप लगाए हैं. जनपद मैनपुरी निवासी रेनू चौहान ने बताया कि 24 सितंबर, 2019 को उस के पति चेतन चौहान की तबीयत खराब होने पर सैफई मैडिकल कालेज ले गए थे. कार्डियोलौजी विभाग में मौजूद असिस्टेंट प्रोफेसर डा. समीर सर्राफ ने अस्पताल में उन्हें भरती कर लिया. फिर 26 सितंबर, 2019 को पेसमेकर लगा दिया और अगले दिन 27 सितंबर को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया.

रेनू ने बताया कि जब हम कानपुर में अपने पति को दिखाने के लिए ले गए तो वहां पर जांच के दौरान पता चला कि पति के नौन एमआई पेसमेकर डाला गया है. रेनू ने इस की शिकायत सैफई के विश्वविद्यालय प्रशासन से कई बार की, मगर उस की सुनवाई नहीं हुई.

विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्यों नहीं की थी काररवाई

इस के बाद उस ने मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल पर भी शिकायत की. पति का इलाज करवाते करवाते वह साहूकारों की कर्जदार हो गई, लेकिन पति आज भी बीमार हैं. एक अन्य मरीज सोमवंशी का पेसमेकर डा. समीर सर्राफ ने 12 अगस्त, 2017 को डाला था. खराब गुणवत्ता के कारण वह बाहर निकल आया. यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में भी गया था.

इसी तरह 20 दिसंबर, 2017 को मरीज दिनेशचंद्र के परिजनों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत संख्या 60000170119949 पर शिकायत की थी. इस में डा. समीर सर्राफ के खिलाफ लापरवाही बरतने से मरीज की मौत होने की बात कही गई थी.

9 मई, 2018 को मरीज रामप्रकाश ने भी मुख्यमंत्री पोर्टल जन सुनवाई संख्या 40016118007850 के अंतर्गत डा. समीर सर्राफ के खिलाफ पेसमेकर की अनुचित कीमत के संदर्भ में शिकायत दर्ज कराई थी.

मरीजों के हेल्थ कार्ड होने के बावजूद क्यों लिया पैसा

डा. समीर सर्राफ के खिलाफ जब शासनप्रशासन तक शिकायतें पहुंचने लगीं तो 24 दिसंबर, 2021 को सैफई थाने में डा. समीर सर्राफ व अन्य लोगों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता करने का मुकदमा दर्ज किया गया था. मामले की जांच के लिए सैफई आयुर्वेद विश्वविद्यालय प्रशासन ने 5 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी.

जहरीला कफ सिरप – भाग 3

अब जब मनाली के बारे में तहकीकात की बात सामने आई, तब उस ने ठाकुर या डिजिटल के साथ किसी भी तरह के कारोबार करने से इनकार कर दिया. उस ने इसे पूरी तरह से गलत और भ्रामक बताया. साथ ही ठाकुर ने भी मनाली के साथ व्यापार करने का सबूत देने से इनकार कर दिया.

डिजिटल विजन कंपनी द्वारा कथित आरोप और इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों के बारे में पूछताछ की गई, तब उस ने अगस्त 2020 में हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय को बताया था कि जब वह वहां अपने कारखाने को फिर से खोलने की अपील कर रहा था, तब उस ने नई दिल्ली की एक प्रयोगशाला में डीईजी और ईजी के लिए अपने सिरप के परीक्षण का अनुरोध किया था, लेकिन इस ने कोई सबूत नहीं दिया.

उस के बाद हिमाचल उच्च न्यायालय ने अगस्त 2020 में फैसला सुनाया कि डिजिटल ने यह साबित नहीं किया है कि उस ने पीजी को एक लाइसेंस प्राप्त डीलर से खरीदा है, न ही डीईजी के लिए इस का परीक्षण किया है. इसी के साथ अदालत ने डिजिटल को दवाओं का उत्पादन फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी.

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तब गोयल ने जोर दे कर कहा था कि उन के अवयव फार्मास्युटिकल-ग्रेड मानकों को पूरा करते हैं, जिन्हें फार्माकोपिया के रूप में जाना जाता है. कई फार्मा कंपनियां गैरफार्माकोपिया पीजी खरीदती हैं. बहुत से लोग पीजी का परीक्षण भी नहीं करते हैं. वे सोचते हैं कि यह एक बड़े ड्रम में है, बस इसे इस में डाल दो.

मैरियन बायोटेक के मामले में भी कुछ ऐसी बात सामने आई, जिस के कफ सिरप को उज्बेकिस्तान के अधिकारियों ने जहरीला होने का दोषी ठहराया था. इन की रिपोर्ट जून 2003 में आई थी. इस का पीजी आपूर्तिकर्ता माया केमटेक रसायनों का कारोबार करता था. केवल औद्योगिक-ग्रेड बेचने का लाइसेंस था. मैरियन ने इस कहानी पर की गई टिप्पणी पर भी कोई जवाब नहीं दिया.

इसी बीच मेडेन ने भारतीय अधिकारियों को बताया कि उस का पीजी दक्षिण कोरिया के एसकेसी द्वारा बनाया गया था, लेकिन एसकेसी कहना था कि उस ने रायटर को बताया कि कभी भी मेडेन या उस के कथित रसायन आपूर्तिकर्ता, दिल्ली स्थित गोयल फार्मा केम को पीजी की आपूर्ति नहीं की.

भारतीय नियमों के अनुसार दवा निर्माताओं को कच्चे माल और उत्पादों के प्रत्येक बैच की मजबूती, गुणवत्ता और शुद्धता का परीक्षण करना आवश्यक है. उन्हें स्पष्ट रूप से डीईजी और ईजी के लिए परीक्षणों की आवश्यकता है.

यदि कोई उत्पाद गंभीर नुकसान या मृत्यु का कारण बनता पाया जाता है तो उल्लंघन के लिए जुरमाना या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. हालांकि, जहरीली दवाएं बेचने या परीक्षण करने में विफल रहने पर सजा का कोई राष्ट्रव्यापी रिकौर्ड नहीं है.

कभीकभी दवा भी हो सकती है जानलेवा : डा. मनोज कुमार

एलोपैथी की दवाओं को आम बोलचाल में अंगरेजी दवाएं कहा जाता है, जिसे डाक्टर  उम्र, रोग, समय अंतराल और मौसम के अनुसार खाने की सलाह देते हैं. यह सब उन में शामिल किए गए रासायनिक कंपोजिशन के आधार पर निर्धारित होता है. अकसर लोग सामान्य बीमारियों के उपचार के लिए सीधे मैडिकल स्टोर से दवाएं खरीद लाते हैं. उस के डोज और खाने का तरीका पता किए बगैर गोलिया निगल लेते हैं या सिरप आदि पी लेते हैं.

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यह कई बार जानलेवा बन जाता है, जैसा कि कफ सिरप के लिए हो चुका है. इसलिए दवा सेवन से पहले उस के बारे में किस तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत है, बता रहे हैं गया (बिहार) मैडिकल कालेज के प्रोफेसर डा. मनोज कुमार—

दवाइयां बगैर डाक्टर की परची के सीधे दुकानों से खरीद कर खाना कई बार बहुत खतरनाक हो जाता है. कारण, इन में कई दवाइयां ऐसी भी हैं, जिन्हें डाक्टर की सलाह के बगैर नहीं खाना चाहिए. दवाइयों को ओटीसी, शेड्यूल एच, शेड्यूल एच1, शेड्यूल एक्स आदि श्रेणियों में बांटा गया है.

ओटीसी श्रेणी वाली दवाइयां बिना डाक्टर की सलाह के खरीदा और सेवन किया जा सकता है. पैरासिटामोल, एस्प्रिन आदि प्रचलित दवाइयां हैं. किंतु ऐसी दवाओं के पैकेट पर दी गई एक्सपयरी डेट के बाद इन का सेवन नहीं करना चाहिए.

शेड्यूल एच, शेड्यूल एच1 और शेड्यूल एक्स की दवाइयों का सेवन तो बगैर डाक्टरी सलाह यानी उन की परची के बिना खरीदने की मनाही की गई है. इन पर ड्रग्स ऐंड कास्मेटिक्स एक्ट लागू होता है. इन दवाओं की खुराक डाक्टर मरीज की हालत के अनुसार करते हैं.

शेड्यूल एच में 500 से भी अधिक दवाएं हैं. एजिथ्रोमाइसिन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवाएं इसी श्रेणी में आती हैं. इन के लेबल पर क्र3 लिखा होता है. उस के साथ ही प्रयोग को ले कर चेतावनी भी लिखी होती है. शेड्यूल एच1 दवा में तीसरे और चौथे जेनेरेशन की एंटीबायोटिक्स, एंटी ट्यूबरकुलोसिस और साइकोट्रोपिक ड्रग्स जैसी नशीली और आदत बनाने वाली दवाएं शामिल हैं.

शेड्यूल एक्स में नारकोटिक और साइकोट्रोपिक दवाएं आती हैं, जो अत्यंत प्रभावी और नशीली होती हैं. ये दवाएं सीधे दिमाग पर असर करती हैं. ऐसे में इन की गलत खुराक या ओवरडोज घातक भी साबित हो सकती हैं. इसलिए दवाओं के सेवन के मामले में डाक्टर की सलाह लेनी बहुत जरूरी है.

किसी भी तरह की दवाओं के सेवन को ले कर दुविधा होने की स्थिति में सीधे डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. उन से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या उन की दवाई पीबीएस अर्थात फार्मास्युटिक बेनिफिट्स स्कीम पर है. उन से यह भी पूछा जाना चाहिए कि सेवन की जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट्स क्या हो सकते हैं?

दवाई के असर के बारे में भी डाक्टर से पूछताछ की जा सकती है. दर्द दूर करने वाली दवाओं के अलावा कुछ दवाएं तुरंत काम करती हैं. जबकि कई दवाइयों के असर को देखने में कई सप्ताह तक लग सकते हैं. इसलिए दवा शुरू करने से ले कर उस के बंद करने तक के बारे में भी डाक्टर की सलाह लेना जरूरी होता है.

जहरीला कफ सिरप – भाग 2

सभी मामलों में सिरप में डीईजी और उस से संबंधित रसायन एथिलीन ग्लाइकोल (ईजी) का उच्च स्तर पाया गया. इस पर डब्ल्यूएचओ का कहना था कि कम से कम 15 देशों में विभिन्न कंपनियों द्वारा बनाए गए दूषित सिरप बिक्री की जा सकती है.

साथ ही सिरप के नाम पर जहर पिलाए जाने की घटना के कारण भारत और विदेशों में आपराधिक जांच, मुकदमे और नियामक जांच में तेजी आ गई. भारतीय नियामकों ने कई निरीक्षण किए. कुल 160 कारखानों को निशाना बनाया गया. जांच में पाया गया कि 10 में से 9 कंपनियों के कारखानों में नियमों का उल्लंघन किया गया था.

किन किन कंपनियों के थे ये कफ सिरप

एक तरफ जम्मूकश्मीर से ले कर अफ्रीकी देशों में कफ सिरप पी कर मरने वाले बच्चों का सिलसिला जारी था, दूसरी तरफ जम्मू में बच्चों के परिवार उन मौतों के लिए अदालत तक में गुहार लगा चुके थे. इन में रामनगर की वीणा कुमारी भी थी, जिस के बेटे अनिरुद्ध की 2 साल की उम्र में 10 जनवरी, 2020 को जहरीला कफ सिरप पीने के बाद मृत्यु हो गई थी. उस ने जांचकर्ताओं को बारबार बच्चे की तसवीरें दिखाईं.

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जांच में असुरक्षित पाए गए मिलावटी 20 कफ सिरप, विटामिन सिरप और पैरासिटामोल सिरप थे. वे भारत और इंडोनेशिया की 15 फार्मा कंपनियों द्वारा बनाए गए थे.

इन में से 7 भारतीय कंपनियों में मेडन फार्मास्युटिकल्स (हरियाणा) के 4 सिरप, मैरियन बायोटेक (उत्तर प्रदेश) के 2 सिरप और एक सिरप क्यूपी फार्माकेम (पंजाब) के अलावा डिजिटल विजन कंपनी के सिरप भी थे. इन दवाओं को ले कर डब्ल्यूएचओ ने गांबिया, उज्बेकिस्तान, माइक्रोनेशिया और मार्शल आइलैंड्स में मैडिकल प्रोडक्ट अलर्ट जारी कर दिया था.

दूसरी तरफ कई मामले अदालत तक जा चुके थे और भारतीय कानून की मदद से इस के दोषियों पर शिकंजा कसने की कोशिश जारी थी. साथ ही यह मामला स्वास्थ्य मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय और संघीय दवा नियामक, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) तक चर्चा का विषय बना रहा.

भारत, उज्बेकिस्तान और गांबिया में मामलों में फंसे 3 दवा निर्माताओं ने दावा किया कि उन्होंने फार्मास्युटिकल गुणवत्ता वाली रासायनिक सामग्री खरीदी थी. जबकि जांच में तीनों मामलों में रसायन आपूर्तिकर्ताओं ने दावों का खंडन किया.

इसी के साथ 7 भारतीय फार्मास्युटिकल अधिकारियों और नियामकों ने यह माना कि कफ सिरप बनाते समय कुछ निर्माताओं द्वारा सस्ती सामग्री का इस्तेमाल किया जाना आम बात है. यह किस कंपनी द्वारा हुआ, इस की पहचान वह नहीं कर पाए.

दिसंबर 2020 में जम्मू और कश्मीर में पुलिस ने डिजिटल विजन के संस्थापक पुरुषोत्तम गोयल और उन के बेटों मैनिक और कोनिक पर जहर देने के संबंध में गैरइरादतन हत्या सहित अन्य अपराधों का आरोप लगाया गया था. इन आरोपों में आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. इस बारे में कथा लिखे जाने तक उन पर कोई आंच नहीं आई थी. उल्टे उन्होंने अपने खिलाफ किसी भी मामले को चुनौती देने की बात कही, साथ ही यह कहा कि हो सकता है कि किसी ने कुछ लगा दिया हो और कौन जानता है कि किस को क्या खिलाया गया?

किस पदार्थ से बनाए जाते हैं कफ सिरप

डिजिटल कंपनी ने अगस्त 2020 में राज्य दवा नियामक द्वारा विनिर्माण लाइसेंस रद्द किए जाने के खिलाफ हिमाचल की एक अदालत में अपील की. इस की सुनवाई में उस की अपील बरकरार रही, क्योंकि जम्मू में बेची गई केवल एक खेप की कफ सिरप में ही जहरीला पदार्थ पाया गया था.

अदालत ने कंपनी को कुछ अवयवों वाली दवाएं बनाने से रोक दिया. इस तरह से यह मामला जम्मू में हुई बच्चों की मौतों के दोषी कौन हैं, निर्णय के बगैर खत्म हो गया.

जबकि कफ सिरप की खुराक से मौत के कई उदाहरण अदालत में पेश किए गए. उन्हीं में एक पोली देवी की 11 माह की बेटी जाह्नवी का वीडियो भी था, जिस की मौत 19 दिसंबर, 2019 को हुई थी. उन्हीं दिनों 3 जनवरी, 2020 को जफरुद्दीन के 2 साल के बेटे इरफान की मौत का भी हवाला दिया गया था.

खांसी और सर्दी के सिरप प्रोपलीन ग्लाइकोल (पीजी) से बनाए जाते हैं, जो एक रंगहीन, चिपचिपा तरल होता है और अन्य पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता है. यह सिरप वाली दवाओं के लिए एक अच्छा द्रव माना जाता है. इसे आमतौर पर 2 ग्रेडों फार्मास्युटिकल और औद्योगिक के रूप में बेचा जाता है.

औद्योगिक ग्रेड पीजी व्यापक रूप से तरल डिटर्जेंट, एंटीफीज, पेंट या कोटिंग्स में उपयोग किया जाता है और यह फार्मास्युटिकल संस्करण वाले पीजी से सस्ता होता है. यह मानव उपयोग के लिए नहीं होता है, क्योंकि इस में डीईजी या ईजी की मात्रा अधिक हो सकती है.

मुंबई स्थित रसायन पदार्थों के बाजार ट्रैकर केमएनालिस्ट के अनुसार भारत में फार्मास्युटिकल ग्रेड पीजी की कीमतें हाल के सालों में कई गुना बढ़ गई हैं.

जहरीला कैसे बना कफ सीरप

डब्ल्यूएचओ के अनुसार उसे भी जम्मूकश्मीर में 2019 में इस जहरीले पदार्थ के बारे में तभी पता चला था, जब उस ने पिछले साल 2022 में गांबिया में हुई मौतों की जांच के सिलसिले में पहल की थी. संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने पश्चिम अफ्रीकी देशों में कम से कम 70 बच्चों की मौत का संबंध मेडेन फार्मास्युटिकल्स द्वारा बने कफ सिरप से जोड़ा था.

इस कंपनी की फैक्टरी हरियाणा में है. उस ने भी गलत काम से इनकार किया है. डब्ल्यूएचओ की टीम के प्रमुख रुतेंडो कुवाना का इस बारे में कहना है कि इस तरह के जहर एक साथ जमा हो जाते हैं.

जम्मू में बच्चों की मौतों पर जांच से यह भी पता चला कि भारत के 42 अरब डालर सालाना के फार्मास्युटिकल उद्योग में रसायनों का पता लगाना काफी मुश्किल काम है. डिजिटल विजन के अनुसार उस ने सितंबर 2019 में हरियाणा राज्य में स्थित एक आपूर्तिकर्ता ठाकुर एंटरप्राइजेज से फार्मास्युटिकल ग्रेड पीजी का उपयोग किया था.

कहने को तो कंपनी ने जो सिरप बनाए वह गलत नहीं थे, लेकिन ठाकुर एंटरप्राइजेज के बारे में यह भी मालूम हुआ कि उस ने डिजिटल को भले ही पीजी बेचा हो, लेकिन वह केवल औद्योगिक ग्रेड रसायनों की आपूर्ति करता है. ठाकुर को चलाने वाले विभोर चितकारा का कहना था कि उस के सभी उत्पाद केवल औद्योगिक उपयोग के लिए हैं.

तो फिर सवाल था कि डिजिटल को पीजी कैसे बेचा? इस बाबत चितकारा का कहना था कि उस ने पीजी एक अन्य कंपनी मनाली पैट्रोकेमिकल्स से खरीदा, जो भारत की एकमात्र पीजी निर्माता है और फार्मा और औद्योगिक ग्रेड दोनों बेचती है.

जहरीला कफ सिरप – भाग 1

जम्मू के रामनगर में रहने वाले जफरुद्दीन का 2 महीने का बेटा इरफान रात को खांसी से काफी परेशान था. दिसंबर 2019 में सन्नाटे को चीरती हुई उस की बारबार उठने वाली खांसी से एक ओर परिवार और  पड़ोसियों की नींद में बारबार खलल पड़ रही थी, वहीं दूसरी ओर उस की सांस फूलने की हालत को देख कर जफरुद्दीन बेहद परेशान हो गया था. बच्चे को बुखार भी था. वह सो नहीं पा रहा था.

जफरुद्दीन और उस की बीवी जैसेतैसे रात काटते हुए सुबह होने का इंतजार करने लगे, ताकि उस के लिए बाजार से खांसी का कोई सिरप ला कर पिला सके. सूर्योदय से पहले ही जफरुद्दीन पहाड़ों में अपने एक कमरे वाले घर से निकला. करीब 10 किलोमीटर का सफर तय कर नजदीकी दवा की दुकान पर गया.

वहां से उस ने खांसी की एक सिरप खरीदी. वापस लौट कर बच्चे को चम्मच से एक खुराक सिरप पिला दी. मीठी सिरप पी कर बच्चा कुछ देर में ही सो गया. जफरुद्दीन ने भी चैन की सांस ली और बेफिक्र हो गया कि बच्चे की अब खांसी ठीक हो जाएगी.

कुछ घंटे बाद इरफान की नींद खुल गई. वह बेचैनी की हालत में था. अचानक जोर की खांसी उठी और उसे उल्टियां होने लगीं. जफर ने दवाई दुकानदार के कहे अनुसार उसे दूसरी खुराक पिला दी. बच्चा फिर सो गया. गहरी नींद में सो रहे बच्चे को देख कर जफर एक बार फिर आश्वस्त हो गया कि उस का बेटा स्वस्थ होने की स्थिति में आ चुका है. किंतु उस ने बच्चे में एक बदलाव भी देखा. उस का पेट फूला हुआ था. उसे काफी समय से पेशाब नहीं हुआ था.

जफरुद्दीन तुरंत उसे ले कर जम्मू शहर के अस्पताल गए. डाक्टर को दिखाया. डाक्टर ने उस की हालत देख कर भरती कर लिया. उस का इलाज शुरू हुआ, लेकिन हालत सुधरने के बजाय दिनबदिन बिगड़ती चली गई. और सप्ताह भर बाद इरफान की मृत्यु हो गई.

इरफान उन 16 बच्चों में से एक था, जिन के बारे में भारत के उत्तरी क्षेत्र जम्मू और कश्मीर में पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने अनुमान लगाया था कि उन की मौत जहर से हुई होगी. बाद में गहन जांच और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस की चार्जशीट से पता चला कि उन की किडनी और अन्य अंगों के काम करना बंद कर देने से 12 बच्चों की मौत हो गई थी, जबकि 4 अन्य बच्चे गंभीर रूप से विकलांग हो गए थे.

दिसंबर 2019 और जनवरी 2020 के बीच 11 महीने से 4 साल की उम्र के 12 बच्चों की मौत हो गई थी, ये सभी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के काला अंब शहर में स्थित डिजिटल विजन द्वारा निर्मित कोल्डबेस्ट-पीसी कफ सिरप के सेवन से मर गए थे.

इस मामले ने पुलिस और राज्य औषधि निरीक्षकों की जांच में  डिजिटल विजन फार्मा का नाम आया, जिस के द्वारा सिरप बनाई गई थी. जांच में यह भी पाया गया कि कंपनी का मालिक पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश का है और उस की फार्मा कंपनी भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग की ही नहीं, बल्कि एशिया के सब से बड़ी दवा निर्माता कंपनियों में से एक है.

तब ऊधमपुर के एसएसपी विनोद कुमार की निगरानी में जांच के लिए कुछ पुलिस अधिकारियों को विशेष रूप से यह जानने के लिए तैनात कर दिया गया था कि मृतक बच्चों के परिवारों को मृत्यु प्रमाणपत्र क्यों नहीं जारी किए गए. उस के बाद सरकार सचेत हो गई. डिजिटल विजन द्वारा बनाए गए सिरप का अध्ययन किया गया. फरवरी 2020 में कफ सिरप की जांच में पाया गया कि इस में डायथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी) एक जहरीला यौगिक है.

इस के बाद 8 राज्यों से दवा की करीब 5,500 बोतलें वापस मंगवा ली गईं. साथ ही हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य सुरक्षा और विनियमन अधिकारियों ने सिरमौर जिले के काला अंब में डिजिटल विजन की इकाई में सभी उत्पादन पर रोक लगा दी.

कंपनी के कारखाने और उस के वितरक से लिए गए नमूनों की भी जांच की गई. पाया गया कि उन में टौक्सिन डीईजी की सांद्रता अर्थात किसी घोल में घोले जाने वाले पदार्थ की मात्रा 34 प्रतिशत है. आरोप के अनुसार डिजिटल विजन के मालिकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले की चार्जशीट और जम्मूकश्मीर के ड्रग्स नियामक की एक जांच रिपोर्ट को देखने पर और भी कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं.

पहली बात यह है कि डीईजी की सांद्रता सुरक्षित स्तर से काफी अधिक थी, जो कार ब्रेक में उपयोग किया जाने वाला एक रासायनिक तरल पदार्थ है. इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों के आधार पर इस की सुरक्षित सीमा 0.10 से अधिक नहीं होनी चाहिए.

इस जांच आरोप के बारे में कंपनी डिजिटल विजन ने दावा किया था कि इस के सिरप में कोई डीईजी नहीं था और उन की दवाएं गलत नहीं हैं. हालांकि कंपनी ने इस के साबित होने के कोई सबूत भी नहीं दिए, फिर भी कंपनी संस्थापक पुरुषोत्तम गोयल ने उस पर लगाए गए मामले को चुनौती देने की बात कही.

मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक जा पहुंचा. उस ने ड्रग्स विभाग को लापरवाह पाया और जम्मू कश्मीर प्रशासन को प्रत्येक बच्चे के परिवारों को 3-3 लाख रुपए का मुआवजा देने को कहा.

दूषित कफ सिरप के मामले में एक और नाम मेडेन फार्मास्युटिकल लिमिटेड का भी शामिल हो गया.

यह मामला तब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गया, जब एक भारत निर्मित कफ सिरप से गांबिया में धड़ाधड़ बच्चों की मौतें होने लगीं और कुछ दिनों में ही 66 बच्चों की मौतें हो गईं. फिर तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी ऐक्शन में आ गया. उस ने 5 अक्तूबर, 2022 को घोषणा की कि मेडेन द्वारा बनाए गए कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल है.

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इस मामले को ले कर डब्ल्यूएचओ भी सचेत हो गया. उस का मानना था कि जम्मू में मौतें 3 अन्य कंपनियों द्वारा भारत में बनाई गई दवाओं के कारण ‘जहर की लहरÓ की शुरुआत हो सकती है, जो पिछले साल गांबिया, उज्बेकिस्तान और कैमरून में 141 बच्चों की मौत से जुड़ी हुई हैं. यह इस तरह के सब से बड़े मामलों का एक हिस्सा हो सकती है.