दिल का मामला या कोई बड़ी साजिश – भाग 3

किरन ने नरिंदर के साथ प्रेम विवाह करने के लिए हिंदू धर्म से सिख धर्म अपनाया था और अब मोहम्मद आजम से निकाह करने के लिए इसलाम धर्म को कबूल कर लिया. पाकिस्तान जाने से पहले वह दिल्ली के अस्पताल में अपने बीमार पिता को भी देखने गई थी. किरन द्वारा यह कदम उठाने के बाद उस के बच्चे भी डरने लगे हैं. किरन की बेटी अपनी मां के धर्म परिवर्तन कर पुनर्विवाह करने पर काफी शर्मिंदा है. वह स्कूल जाना नहीं चाहती. वह कहती है कि बच्चे उसे तंग करते हैं और उस का मजाक उड़ाते हैं.

किरन की भूमिका संदेह के घेरे में

इस बीच होशियारपुर, महिलपुर और गढ़शंकर के सभी निर्वाचित और चुने गए एसजीपीसी सदस्यों ने किरन के लिए वीजा की सिफारिश करने से इनकार कर दिया. सुरिंदर सिंह भुलेवाल राथन, जंगबहादुर सिंह, रणजीत कौर और चरनजीत सिंह ने कहा कि उन्हें बैसाखी तीर्थयात्रा के लिए उस का कोई आवेदन नहीं मिला था.

तरसेम सिंह ने अब इस मामले में एसजीपीसी की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. उन का कहना है कि इस मामले में एसजीपीसी उन की लगातार अनदेखी कर रही है. लिहाजा, इस की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए. उन्होंने मांग की है कि किरन को वीजा दिलाने के लिए मदद करने वालों, उस के नाम की सिफारिश करने वाले एसजीपीसी के अधिकारियों और अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया जाना चाहिए.

तरसेम सिंह ने होशियारपुर के एसएसपी को दी गई शिकायत में देश को बदनाम करने और धोखा देने के आरोप में किरनबाला के खिलाफ भी मामला दर्ज किए जाने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया है कि इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तानी पुलिस भी शामिल रही है. किरन पाकिस्तानी पुलिस के संपर्क में थी.

तरसेम सिंह ने बताया कि नंगल के रहने वाले और पाकिस्तान जत्थे में गए नछत्तर सिंह से उन की फोन पर बात हुई थी. तरसेम के मुताबिक, नछत्तर ने उन्हें बताया था कि पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद से ही पाकिस्तानी पुलिस किरन के आसपास मंडरा रही थी. पाकिस्तानी पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी थोड़ीथोड़ी देर में उस से बातचीत कर रहे थे.

नछत्तर का कहना था कि लाहौर पहुंचने के बाद जब जत्थे में शामिल महिलाओं व पुरुषों को अलगअलग कमरों में भेजा गया तो भी पाकिस्तानी पुलिस के कर्मचारी किरन से मिलते रहे थे. इस के बाद 15 अप्रैल तक लगातार किरन जत्थे के साथ रही और पाकिस्तान पुलिस ने उस से संपर्क बनाए रखा था. इस के बाद 16 अप्रैल को वह रुमाला लाने के बहाने से जत्थे से अलग हो कर गायब हो गई थी.

इस मामले की होनी चाहिए उच्चस्तरीय जांच

तरसेम सिंह ने एसएसपी को शिकायती पत्र दे कर किरन के वहां जाने, जत्थे में शामिल होने और वहां से गायब होने के मामले में एसजीपीसी के अधिकारियों और पदाधिकारियों पर संदेह जताते हुए मामले की जांच कराए जाने और संबंधित लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर कड़ी काररवाई किए जाने की मांग की है.

तरसेम सिंह ने किरनबाला को पाकिस्तान सरकार से तालमेल कर वापस लाए जाने की मांग को ले कर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना से भी मुलाकात की. खन्ना को दिए पत्र में तरसेम सिंह ने कहा है कि किरनबाला को पाकिस्तान से वापस ला कर परिवार को सौंपा जाए, ताकि उस के बच्चों की परवरिश सही ढंग से हो सके.

दूसरी ओर, किरनबाला उर्फ आमना बीबी ने पति मोहम्मद आजम के साथ लाहौर हाईकोर्ट में अब याचिका दायर की है. इस में बताया गया है कि उस ने दिल्ली में रहते हुए पहले फेसबुक के माध्यम से लाहौर निवासी मोहम्मद आजम से दोस्ती की थी और अब पाकिस्तान आ कर रजामंदी से इसलाम धर्म कबूल कर के उस ने निकाह भी कर लिया है. इसलिए पाकिस्तान सरकार उसे यहां की नागरिकता दे, यह उस का अधिकार है.

इस सब के बीच आमना बीबी बनने के बाद उस के पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने के वायरल वीडियो ने खुफिया एजेंसियों को सकते में डाल दिया है. इस से उस के ससुर तरसेम सिंह की इस बात को बल मिल रहा है कि कहीं वह आईएसआई की एजेंट तो नहीं बन गई. वीडियो फुटेज में किरनबाला अपने नए पाकिस्तानी पति मोहम्मद आजम के साथ कोर्ट के बाहर खड़ी दिखाई दी.

बहरहाल, यह दिल का मामला है या कोई बड़ी साजिश, कहा नहीं जा सकता. परंतु किरनबाला से आमना बीबी बनी पाकिस्तान की नई दुलहन के बारे में अब ताजा बात यह सामने आई है कि अपने फेसबुक के प्रेम और इसलाम धर्म के साथ वफादारी निभाते हुए उस ने लाहौर स्थित अपने घर में रोजे रखे. किरन वहां पर बच्चों से उर्दू भी सीख रही है और कुरआन शरीफ की आयतें भी याद कर रही है.

इन दिनों उस का पति काम के सिलसिले में सऊदी अरब चला गया है. पंजाब पुलिस और अन्य खुफिया एजेंसियां अब किरन के फेसबुक एकाउंट को स्कैन कर के गहनता से इस मामले की जांच कर रही हैं

दिल का मामला या कोई बड़ी साजिश – भाग 2

किरनबाला के ससुर तरसेम सिंह के मुताबिक, वह सन 1971 की जंग में भारतीय सेना में सेवा के दौरान जख्मी हो गए थे. इस के बाद वह वीआरएस ले कर घर लौट आए थे. सन 2005 में वह अपने बेटे को फौज में भरती कराने के लिए दिल्ली गए थे. दिल्ली प्रवास के दौरान उन के बेटे नरिंदर की किरनबाला से मुलाकात हो गई.

किरन का घर भरती केंद्र के पास ही था. उस वक्त किरनबाला 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. इस दौरान कब उन के बेटे और किरन के बीच प्यार परवान चढ़ा, इस का पता परिजनों को भी नहीं लगा और फिर एक दिन उन का बेटा नरिंदर किरनबाला को साथ ले कर घर आ गया.

उस ने बताया कि किरन अपना घर छोड़ कर उस के साथ घर बसाने के लिए आई है और अब वह इस घर की बहू बन कर यहां रहेगी. उस समय किरन की उम्र 18 साल थी. शादी के बाद किरन ने 5 बच्चों को जन्म दिया, जिन में से 2 बच्चों की मौत हो गई थी और 3 बच्चे मौजूद हैं.

नरिंदर की सेना में भरती तो नहीं हो सकी पर उस ने एक गैस एजेंसी में डिलीवरीमैन का काम करना शुरू कर दिया था. वह थोड़ेथोड़े समय बाद दिल्ली जाया करता था. इसी बीच नवंबर, 2013 को एक दुर्घटना में नरिंदर की मौत हो गई. बेटे की मौत के बाद नवंबर, 2013 में ही किरन घर छोड़ कर अपने मायके दिल्ली चली गई थी. अपने पोतीपोतों के बिना तरसेम का मन नहीं लग रहा था तो वह बहू और बच्चों को लेने के लिए दिल्ली चले गए और बाकायदा एग्रीमेंट कर के किरनबाला को अपने यहां ले आए.

उन्होंने कई बार किरनबाला से दूसरी शादी करने की भी बात कही और कहा कि वह खुद अपनी बेटी की तरह उस का कन्यादान करेंगे, लेकिन वह दूसरी शादी के लिए राजी नहीं हुई. लिहाजा अब उस का इस तरह घर छोड़ कर पाकिस्तान जाना और निकाह करना तरसेम सिंह की समझ में नहीं आ रहा था.

वहीं किरनबाला की सास कृष्णा कौर के मुताबिक, बेटे की मौत के बाद किरनबाला का चालचलन कुछ अच्छा नहीं रहा था. कई बार उन्होंने उसे रंगेहाथ पकड़ भी लिया था. इस बीच साल डेढ़ साल के लिए उस ने नंगल के करीब टाहलीवाल में एक फैक्ट्री में भी काम किया, लेकिन जब लोग उस के बारे में तरहतरह की बातें बनाने लगे तो उन्होंने उसे काम करने से मना कर दिया था.

किरन की बदल गई पहचान

तरसेम सिंह का कहना है कि अगर उन्हें जरा भी पता होता कि किरन के मन में ऐसा कुछ चल रहा है तो वह उसे किसी भी कीमत पर पाकिस्तान नहीं जाने देते. पाकिस्तान जाने के बाद 15 तारीख तक तो वह लगातार उन्हें फोन कर के बच्चों और परिवार का हाल जानती रही थी लेकिन एकाएक उस ने बच्चों व परिवार से मुंह मोड़ लिया.

इस के बाद 16 तारीख को उस ने तरसेम सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘पिताजी, अब मैं लौट कर नहीं आऊंगी. मैं ने यहां इसलाम धर्म कबूल कर के मोहम्मद आजम नाम के शख्स से निकाह कर लिया है. और अब मेरा नाम आमना बीबी हो गया है.’’

तरसेम सिंह को लगा कि किरन मजाक कर रही है. इस पर उन्होंने उस से कहा, ‘‘क्यों मजाक करती हो बेटा. छोड़ो कोई बात नहीं, तुम यात्रा पूरी कर के जल्दी घर आ जाओ. बच्चे और हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’ इस के बाद किरन का कोई फोन नहीं आया और न ही उस से कोई संपर्क हो सका था.

18 अप्रैल, 2018 को जब तरसेम सिंह को एक अंतरराष्ट्रीय संवाद एजेंसी के पत्रकार का फोन आया और उस ने भी वही बात दोहराई तो वह चकित रह गए. तरसेम का मानना है कि किरन शायद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई या आतंकी संगठनों की साजिश का शिकार हो सकती है. जिस तरह वह बात कर रही है और जो बोल रही है, उस से जाहिर है कि उस का ब्रेनवाश किया गया है. अब वह वही बोल रही है जो आईएसआई या आईएसआईएस के लोगों ने उसे सिखाया होगा.

लेकिन इतना सब होने के बावजूद अब भी वह बच्चों की खातिर किरनबाला को वापस लाना चाहते हैं ताकि वह किसी साजिश का शिकार हो कर नारकीय जीवन जीने को मजबूर न हो सके और बच्चे भी मां की देखभाल से महरूम न रहें.

तरसेम सिंह ने अंदेशा जताया कि शायद सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए वह पाकिस्तान के लोगों के संपर्क में आई होगी. इस के बाद वह शायद आईएसआई के हाथों में पड़ गई हो. यह भी हो सकता है कि उसे धर्म परिवर्तन या फिर से शादी करने के लिए मजबूर किया गया हो.

किरनबाला ने फैक्ट्री में काम कर के बचाए अपने पैसों को अपने पास ही रखा था. पति की मौत के बाद मुआवजे के तौर पर मिले 25 हजार रुपए भी उसी के पास थे. इन्हीं पैसों से साल भर पहले उस ने एक स्मार्टफोन खरीदा था, जिस के बाद वह सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़ी और सोशल नेटवर्क पर चैटिंग और वाइस काल में ऐसी डूबी कि ये कारनामा कर डाला.

वह घंटों तक फोन पर बातें करती रहती थी. जब उस के ससुर उस पूछते तो वह अपनी मां, भाई या किसी अन्य रिश्तेदार से बात करने की बात कह कर टाल देती थी. तरसेम सिंह उसे फोन पर ज्यादा बात करने को ले कर टोकते थे, लेकिन उस ने कभी उन की एक नहीं सुनी और फोन पर उस की यह बातचीत लगातार बढ़ती ही चली गई.

सोशल नेटवर्किंग से जुड़ी मोहम्मद आजम से

किरनबाला की पड़ोसन और सहेली रही गिस्टी ने बताया था, ‘‘पति की मौत के बाद अपने मायके दिल्ली रहने के दौरान ही वह मोहम्मद आजम के संपर्क में आई थी.’’ किरन ने मुझे बताया था कि आजम दुबई में रहता है. पाकिस्तान जाने से पहले किरन ने अपने बैंक खाते से साढ़े 14 हजार रुपए निकलवाए थे. किरन फेसबुक पर ज्यादा सक्रिय थी. वह बिग लाइव, एक वीडियो आधारित सोशल नेटवर्क साइट पर भी बहुत सक्रिय थी.

दिल का मामला या कोई बड़ी साजिश – भाग 1

हर साल बैसाखी के पर्व पर भारत से सिख व हिंदू श्रद्धालुओं का एक जत्था पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब ननकाना साहिब जाता है. वैसे समय समय पर गुरुओं के प्रकाशपर्व या गुरुपर्व पर श्रद्धालु पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों के दर्शन, सेवा आदि करने जाते रहते हैं. पर 13 अप्रैल, 2018 की बैसाखी के पर्व का अपना एक विशेष महत्त्व होता है.

वहां जाने वाले श्रद्धालुओं में उस समय एक अजीब सा उत्साह होता है. जो जत्था पाकिस्तान जाता है, उस की तैयारियां और श्रद्धालुओं की बुकिंग का काम कई महीने पहले से ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की देखरेख में किया जाता है और जत्थे को सहीसलामत पाकिस्तान ले कर जाने और दर्शन करवा कर वहां से वापस भारत आने तक की जिम्मेदारी एसजीपीसी की ही होती है.

इस साल 12 अप्रैल को एसजीपीसी के कार्यकारी सदस्य गुरमीत सिंह की अगुवाई में 717 सदस्यों का जत्था गुरुद्वारा पंजा साहिब में बैसाखी का जश्न मनाने के लिए भारत से पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ. पाकिस्तान के पवित्र मंदिरों, गुरुद्वारों की यात्रा करने के बाद यात्री जत्था जब 21 अप्रैल को वापस भारतपाक बौर्डर पर पहुंचा तो पता चला कि जत्थे में एक यात्री कम है.

इस मामले में जब छानबीन की गई तो पंजाब के होशियारपुर जिले के गढ़शंकर की एक सिख महिला किरनबाला जत्थे में नहीं थी. वह तीर्थयात्रा के दौरान गायब हो गई थी. उस समय ऐसा संभव नहीं था कि किरनबाला की तलाश की जाए, अत: जत्था किरनबाला के बिना ही अमृतसर लौट आया.

किरनबाला हुई लापता

बाद में पता चला कि जत्थे से अलग हो कर किरनबाला ने 16 अप्रैल, 2018 को लाहौर में एक मुसलमान युवक से विवाह कर लिया था. यात्रियों से पूछताछ के बाद पता चला कि पंजा साहिब से लाहौर लौटते समय रावी नदी के निकट से ही किरनबाला अचानक बस से गायब हा गई थी. वह अपना सामान भी बस में ही छोड़ गई थी. उस समय इस बात की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया था कि उस के मन में क्या खिचड़ी पक रही है.

किरनबाला एसजीपीसी के प्रतिनिधिमंडल की ओर से बतौर तीर्थयात्री 12 अपैल को पाकिस्तान रवाना हुई थी. वह भारतीय पासपोर्ट पर पाकिस्तानी वीजा के साथ गई थी, जो 21 अप्रैल तक वैध था. बाद में उस ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर अनुरोध किया कि मैं ने लाहौर के दारुल उलूम जामिया नईमिया में अपनी मरजी से इसलाम धर्म अपनाया है और लाहौर के हंजरवाल मुलतान रोड निवासी मोहम्मद आजम से निकाह कर लिया है. इसलिए मेरे वीजा की अवधि बढ़ाई जाए ताकि मैं अपने शौहर के साथ पाकिस्तान में रह सकूं.

आवेदन में उस का नाम आमना बीबी लिखा था. मंत्रालय ने उस की अरजी स्वीकार कर वीजा की अवधि 30 दिन के लिए बढ़ा दी. यह मामला पाकिस्तानी मीडिया में भी चर्चित हो गया. यह जानकारी मिलने के बाद एसजीपीसी और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया. सुरक्षा एजेंसियों को जांच के बाद पता चला कि किरनबाला को सिख जत्थे के साथ श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे के मैनेजर की सिफारिश पर जत्थे के साथ पाकिस्तान भेजा गया था. जब मैनेजर के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह छुट्टी ले कर कनाडा जा चुका है.

खुफिया एजेंसियों ने मैनेजर का भी रिकौर्ड खंगालना शुरू कर दिया कि उस की ओर से अब तक पाकिस्तान गए सिख श्रद्धालुओं के जत्थे में किनकिन लोगों की सिफारिश की गई है. कुछ केंद्रीय एजेंसियों और राज्य की खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों ने भी एसजीपीसी के कर्मचारियों से बात कर के तथ्य जुटाने की कोशिश की.

खुफिया एजेंसियों का अलर्ट

खुफिया एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही थीं कि किरनबाला ने जत्थे के साथ जाने के लिए अपने क्षेत्र के एसजीपीसी के सदस्यों से सिफारिश न करवा कर अमृतसर जिले के रहने वाले उस मैनेजर से ही क्यों सिफारिश करवाई. यह मैनेजर एक पूर्वमंत्री के पीए का अतिकरीबी था.

किरनबाला पंजाब में अपने 3 बच्चे छोड़ गई थी, जिन में 2 बेटे और एक बेटी है. लेकिन पाकिस्तान में मोहम्मद आजम से शादी करने के बाद वह अपने 3 बच्चों के होने से भी मुकर गई. उस ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा कि उस के कोई बच्चा नहीं है. अपने तीनों बच्चों को उस ने अपनी मौसी के बच्चे बताया. जबकि उस की सास और ससुर ने बताया कि किरनबाला वैसे तो 5 बच्चों की मां है. उस के एक बच्चे की मौत उस के जन्म के 4 दिन बाद ही हो गई थी, जबकि दूसरा बच्चा मृत पैदा हुआ था.

अपनी बात को साबित करने के लिए उस के ससुर तरसेम सिंह ने किरनबाला का आधार कार्ड, राशन कार्ड और किरनबाला के तीनों बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र, बीपीएल कार्ड और बेटी के साथ खोले गए बैंक खाते की प्रतियां भी दिखाईं. पाकिस्तान जाते समय किरनबाला 12 साल की अपनी बड़ी बेटी को यह समझा कर गई थी कि वह 21 तारीख को लौट आएगी. तब तक वह अपने छोटे भाइयों का ध्यान रखे. उस ने बच्चों को यह भी समझाया था कि वह दादादादी की बात मानें और घर में किसी को तंग न करें.

किरनबाला की पृष्ठभूमि

किरनबाला का परिवार मूलरूप से पठानकोट के गांव शेरपुर का निवासी था. लेकिन उस के पिता मनोहरलाल लंबे समय से उत्तरी दिल्ली के मुखर्जीनगर इलाके में रहने लगे थे. किरन का जन्म पंजाब के होशियारपुर  के गढ़शंकर गांव में हुआ था. मातापिता के अलावा मायके में उस की एक छोटी बहन और छोटा भाई है. बहन की शादी हो चुकी है, जबकि भाई दिल्ली में पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता है.

प्यार के लिए अपहरण – भाग 3

अजीम अहमद की इस नेकी से आसिफा बहुत प्रभावित हुई. उस ने उसे चाय पिए बगैर नहीं जाने दिया. आसिफा से उस की यह दूसरी मुलाकात थी. बातचीत में आसिफा ने बताया कि वह मोहम्मद शमीम की दूसरी बीवी है. हमजा और अयान उस की पहली बीवी के बच्चे हैं. पहली बीवी की मौत के बाद मोहम्मद शमीम ने उस से निकाह किया था. जवान बीवी को यहां अकेली छोड़ कर वह सऊदी अरब में कोई बिजनैस कर रहा है.

आसिफा ने बताया था कि ये दोनों बच्चे उस की बहन के हैं. आसिफा बेहद खूबसूरत थी. अजीम को जब पता चला कि अभी उस के बच्चे नहीं हुए हैं तो उस का झुकाव आसिफा की तरफ हो गया. वह मन ही मन उसे चाहने लगा. वक्तजरूरत के लिए दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर भी दे दिए थे.

इस के बाद अजीम जबतब आसिफा से फोन पर बातें करने लगा था. किसी न किसी बहाने वह उस के घर भी जाने लगा. आसिफा से नजदीकी बढ़ाने के लिए उस ने उस के दोनों बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की पेशकश की. आसिफा ने हामी भर दी तो वह स्कूल से छुट्टी के बाद हमजा और अयान को ट्यूशन पढ़ाने उन के घर जाने लगा. अयान पास के ही एक स्कूल में यूकेजी में पढ़ता था.

अजीम का कहना था कि घर आनेजाने से आसिफा और उस के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. आसिफा भी उस से प्यार करने लगी थी. बात आगे बढ़ी तो दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. अजीम के अनुसार दोनों ने साथ रहने की ठान ली थी. बच्चों को भी साथ रखने की बात तय हो गई थी. आसिफा से बात होने के बाद ही वह बच्चों को ले गया था. जैसे ही बच्चे कनफैक्शनरी की दुकान के नजदीक पहुंचे थे, उस ने हमजा और अयान को चीज दिलाने के बहाने बाइक पर बैठा लिया था. आसिफा को भी आना था, लेकिन बाद में उस ने आने से मना कर दिया था.

आसिफा का मना करना अजीम को अच्छा नहीं लगा. दबाव बनाने के लिए उस ने आसिफा को धमकी दी कि अगर आसिफा नहीं आएगी तो वह बच्चों को जान से मार देगा. लेकिन आसिफा उस की धमकी में नहीं आई. तब वह बच्चों को ले कर हरिद्वार के लिए रवाना हो गया. श्यामपुर के नजदीक उसे जंगल दिखाई दिया तो उस ने हमजा को वहीं खत्म करने की योजना बना डाली.

मोटरसाइकिल को सड़क के किनारे खड़ी कर के वह हमजा को जंगल में ले गया और जिस जंजीर से उस की बाइक की चाबी बंधी थी, उसी जंजीर से उस का गला घोंटने लगा. हमजा जमीन पर औंधी पड़ी थी. उस ने गले पर जंजीर के नीचे 2 अंगुलियां लगा ली थीं, जिस से उस का गला घुट नहीं सका और वह बेहोश हो कर रह गई. अजीम को लगा कि वह मर चुकी है, इसलिए वह अयान को ले कर हरिद्वार के अपने एक दोस्त के घर चला गया.

थोड़ी देर बाद हमजा को होश आया तो वह जंगल में खुद को अकेली पा कर डर के मारे रोने लगी. वह ऐसा जंगल था, जहां जंगली जानवर घूमते रहते थे. वनकर्मी भी उधर बंद गाड़ी ले कर जाते थे. लेकिन इत्तफाक से उस समय कोई जंगली जानवर उधर नहीं आया था.

संयोग से उधर कुछ वनकर्मी आए तो अकेली लड़की को देख कर वे चौंके. हमजा ने उन्हें सारी बात बताई तो वनकर्मी हमजा को थाना श्यामपुर ले गए. थानाप्रभारी चंदन सिंह ने मुरादाबाद की 11 साल की लड़की हमजा के बरामद होने की सूचना एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार को दी तो उन्होंने यह खबर मुरादाबाद के एसएसपी को दे दी.

अगली सुबह यानी 26 नवंबर, 2013 को अजीम अयान को मोटरसाइकिल से ले कर निकला. वह उसे भी ठिकाने लगाना चाहता था. इस के लिए वह देहरादून की तरफ चल दिया. बच्चे को मोटरसाइकिल से अपहरण कर के ले जाने की खबर देहरादून के पुलिस कंट्रोलरूम से फ्लैश होने के बाद पूरे शहर में वाहनों की चैकिंग शुरू हो गई थी. इसलिए सुबह 9 बजे के करीब अजीम ने आईएसबीटी पुलिस चौकी के नजदीक चैकिंग होती देखी तो डर की वजह से अयान को वहीं उतार कर भाग गया. अकेले पड़ने पर अयान रोने लगा तो पुलिस उस के पास पहुंच गई, जिस से वह भी सकुशल मिल गया.

अजीम अब कहीं दूर भाग जाना चाहता था, इसलिए उस ने अपनी मोटरसाइकिल देहरादून रेलवे स्टेशन की पार्किंग में खड़ी कर दी और ट्रेन से दिल्ली में रहने वाले अपने दोस्त जुबैर के पास चला गया. जुबैर कपड़ों की सिलाई करता था. दूसरी ओर मुरादाबाद पुलिस उस के मोबाइल फोन के जरिए उस के पास पहुंचने की कोशिश कर रही थी. इस से पहले मुरादाबाद पुलिस जुबैर के पास पहुंचती, वह वहां से मांडवा में रहने वाले अपने दोस्त अनमोल के यहां चला गया. लेकिन वहां अनमोल नहीं मिला.

अजीम को पैसों की जरूरत थी. तब वह अपना सैमसंग का मोबाइल फोन 2 हजार रुपए में बेच कर बंगलुरु चला गया. इस बीच वह एसटीडी बूथ से घर वालों को फोन करता रहता था. जब उसे पता लगा कि उस के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है और पुलिस कुर्की की काररवाई कर रही है तो वह अजमेर आ गया. वह मुरादाबाद पहुंच कर पुलिस के सामने हाजिर होना चाहता था, लेकिन मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे अजमेर से गिरफ्तार कर लिया.

अजीम के फोन की काल डिटेल्स से पुलिस को यह भी पता चल गया था कि अजीम की आसिफा से अकसर बात होती रहती थी. कभीकभी ये बातें काफी लंबी होती थीं. पुलिस यह जानने की कोशिश कर रही है कि उन दोनों के बीच किस तरह के संबंध थे. बहरहाल, पुलिस ने अजीम उर्फ अजमल से पूछताछ कर के उसे न्यायालय में पेश कर दिया था, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 3

एक विवाहित औरत का किसी पुरुष को इस तरह ताकने का मतलब राजेश्वर तुरंत समझ गया. बोतल खुली और शराब का दौर चलने लगा. दोनों ने एकएक पैग पिया था कि अनीता ने राजेश्वर की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘आज आप पहली बार हमारे घर आए हैं, इसलिए बिना खाना खाए मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी.’’

‘‘नहीं भाभी, आज नहीं. घर जाने में देर हो जाएगी तो घर वाले परेशान होंगे. अगली बार आऊंगा तो जरूर खा कर जाऊंगा. उसी बहाने आप से मिलने का मौका भी मिल जाएगा.’’ राजेश्वर ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.

‘‘आइएगा जरूर, मुझे आप का इंतजार रहेगा. अब भाभी कहा है तो मेरा आप पर कुछ तो हक बनता ही है.’’

‘‘कुछ नहीं, आप का मेरे ऊपर पूरा हक बनता है. जल्दी ही मैं आप के हाथ का खाना खाने आऊंगा.’’ राजेश्वर ने कहा और वहां से चला गया.  यह बात बिलकुल सच है कि भूख आदमी के ईमान को कभी भी डिगा सकती है, चाहे वह पेट की भूख हो या शरीर की. भूखे इंसान को भटकने में देर नहीं लगती. और तब तो बिलकुल नहीं, जब सामने आंखों को भाने वाला खाना या साथी मौजूद हो.

ऐसा ही हुआ अनीता के साथ. राजेश्वर जैसे सजीले नौजवान को देख कर उस का भी ईमान डोल गया. कपड़ों की छपाई के गुर सीखने आया राजेश्वर अपने काम को भूल कर ज्यादा दिनों तक अनीता नाम की इस कामाग्नि से खुद को बचा नहीं सका और उस आग में खुद को स्वाहा कर दिया.

यह भी सच है कि जवानी नौजवानों को गुस्ताख बना देती है. जिस पर जवानी चढ़ती है वह अपने सामाजिक ही नहीं, पारिवारिक दायित्वों को भी भूल जाता है. ऐसा ही कुछ राजेश्वर के साथ भी हुआ.  जवान हुए राजेश्वर को अपने मातापिता का सहारा बनना चाहिए था, जबकि वह एक विवाहिता औरत के प्रेम में ऐसा उलझा कि मांबाप का सहारा बनने के बजाय जान तक गंवा बैठा.

राजेश्वर अनीता के जाल में उलझा तो काम से लगातार गैरहाजिर रहने लगा. जब इस बात की खबर राजकुमार तक पहुंची तो उन्होंने पता किया कि राजेश्वर काम पर क्यों नहीं जाता.  उन्हें जो जानकारी मिली, वह परेशान करने वाली थी. उन्हें पता चला कि उन का बेटा एक शादीशुदा औरत के चक्कर में पड़ गया है. वह उस पर काफी पैसा भी खर्च कर चुका है. उस ने अपनी जो मोटरसाइकिल बेची थी, उस का पैसा भी उस ने उसी पर खर्च किया था.

राजकुमार समझदार आदमी थे. उन्होंने दुनिया देखी थी. वह जानते थे कि सख्ती से बेटा बगावत कर सकता है, इसलिए एक दिन उन्होंने राजेश्वर को अपने पास बिठा कर प्यार से समझाया कि वह जो कर रहा है, वह न तो उस के लिए ठीक है और न घरपरिवार के लिए. अपना फर्ज समझते हुए राजेश्वर ने पिता की बातें ध्यान से सुनी ही नहीं, बल्कि वादा भी किया कि वह उन की बातों पर गौर करेगा. लेकिन पिता के पास से हटते ही उस ने पिता की जो बातें सुनी थीं, दूसरे कान से निकाल दीं. वह अनीता से पहले की ही तरह मिलता रहा.

राजकुमार ने जब देखा कि उन की बातों का बेटे पर कोई असर नहीं पड़ रहा है तो उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. हद तो तब हो गई, जब मार्च के अंतिम सप्ताह में राजेश्वर ने घर में रखे 10 तोले के सोने के गहने चोरी से ले जा कर अनीता को दे दिए. जब इस चोरी की जानकारी बिटई देवी को हुई तो बिना देर किए वह लोनी में रह रही अनीता के घर जा पहुंचीं.  उन्होंने अनीता को बुराभला तो कहा ही, साथ ही धमकी भी दी कि अगर उस ने गहने वापस नहीं किए तो वह उस के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा देंगी.

बिटई देवी ने अनीता को रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का भी डर था कि अगर बात पुलिस तक पहुंचेगी तो उन का बेटा भी इस मामले में फंसेगा. इसलिए वह सिर्फ धमकी ही दे कर रह गई थीं.  लेकिन बिटई देवी की इस धमकी से अनीता और नीरज इस कदर डर गए थे कि वे बचने का रास्ता खोजने लगे. काफी सोचविचार कर उन्हें जो रास्ता सूझा, वह काफी खतरनाक था. फिर भी उन्होंने उसी पर चलने का निश्चय कर लिया.

19 अप्रैल की शाम को अनीता ने 7 बजे फोन कर के राजेश्वर को घर बुलाया और पति के साथ मिल कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. राजेश्वर की हत्या कर के लाश उन्होंने कमरे में ही छोड़ दी और बाहर से ताला लगा कर रात 2 बजे फरार हो गए.

राजेश्वर की हत्या की सारी कहानी उगलवा कर थाना लोनी पुलिस ने अगले दिन नीरज और अनीता को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. उन के बच्चों को घर वाले आ कर ले गए.

प्यार के लिए अपहरण – भाग 2

हमजा को अपनी सुपुर्दगी में ले कर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो पता चला कि उसे और उस के भाई अयान को उन्हें ट्यूशन पढ़ाने वाला अजीम मोटरसाइकिल से ले गया था. हमजा की बातों से साफ हो गया कि बच्चों का अपहरण करने वाला कोई और नहीं, उन्हें ट्यूशन पढ़ाने वाला अजीम था.

हमजा तो सकुशल मिल गई थी, लेकिन उस का भाई अयान अभी भी अजीम के कब्जे में था. पुलिस को आसिफा से अजीम की मोटरसाइकिल का नंबर मिल गया था, इसलिए हरिद्वार पुलिस ने कंट्रोलरूम द्वारा उस की मोटरसाइकिल का नंबर फ्लैश करा कर जगहजगह बैरिकेड्स लगा कर वाहनों की चैकिंग शुरू करा दी. कोतवाली पुलिस हमजा को ले कर मुरादाबाद लौट आई. हमजा के गले व हाथ की अंगुलियों पर चोट के निशान थे, इसलिए पुलिस पहले उसे इलाज के लिए जिला चिकित्सालय ले गई. वहां से लौट कर उस से विस्तार से पूछताछ की गई.

चूंकि अयान अभी भी अजीम के कब्जे में था, इसलिए पुलिस को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं वह उस के साथ कुछ बुरा न कर दे. मुरादाबाद पुलिस के आग्रह पर हरिद्वार पुलिस अपने स्तर से उस की तलाश कर रही थी. संभावना यह भी थी कि कहीं वह अयान को ले कर देहरादून न चला गया हो. इसलिए हरिद्वार पुलिस ने इस बात की सूचना देहरादून पुलिस को भी दे दी थी.

मामला एक मासूम की जान का था, इसलिए देहरादून पुलिस ने भी वाहनों की चैकिंग शुरू करा दी. पुलिस की इस मुस्तैदी का नतीजा यह निकला कि 25 नवंबर की सुबह यही कोई 9 बजे देहरादून की आईएसबीटी पुलिस चौकी के पास पुलिस ने एक बच्चे को बरामद किया, जिस ने अपना नाम अयान बताया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह मुरादाबाद का रहने वाला है. बच्चा बहुत घबराया हुआ था. देहरादून के पुलिस अधिकारियों ने अयान से पूछताछ के बाद मुरादाबाद पुलिस को सूचना दे दी. इस के बाद मुरादाबाद पुलिस देहरादून पहुंची और अयान को ले आई. बेटे को सहीसलामत पा कर आसिफा सारे दुख भूल गई.

बच्चों को सकुशल बरामद कर के पुलिस का आधा काम खत्म हो चुका था. अब उसे बच्चों का अपहरण करने वाले अजीम को गिरफ्तार करना था. वह मुरादाबाद के बंगला गांव में रहता था, जबकि मूलरूप से वह बिजनौर के स्योहरा का रहने वाला था. एक पुलिस टीम स्योहरा भेजी गई तो दूसरी ने बंगला गांव वाले कमरे पर भी दबिश दी. लेकिन वह दोनों जगहों पर नहीं मिला.

पुलिस को अजीम का मोबाइल नंबर मिल गया था. उस की लोकेशन का पता किया गया तो वह दिल्ली की मिली. एक पुलिस टीम दिल्ली रवाना कर दी गई. दबाव बनाने के लिए पुलिस ने अजीम के भाई हफीज को कोतवाली में बैठा लिया था. उस से अजीम के ठिकानों के बारे में पूछताछ की जा रही थी.

अजीम को जब पता चला कि पुलिस ने उस के भाई को उठा लिया है तो उस ने 26 नवंबर की सुबह साढ़े 10 बजे आसिफा को फोन कर के अपने भाई को पुलिस से छुड़वाने के लिए कहा. इस बातचीत में आसिफा ने उसे आश्वासन दिया कि वह मुरादाबाद आ जाए. अगर वह कहेगा तो वह मुकदमा भी वापस ले लेगी.

दिल्ली पहुंची पुलिस टीम को अजीम तो नहीं मिला, लेकिन उस का मोबाइल फोन जरूर मिल गया. जिस आदमी के पास वह मोबाइल फोन मिला, उस आदमी से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि अजीम वह मोबाइल उसे बेच गया था. फोन बेच कर वह कहां गया, यह उसे पता नहीं था. पुलिस टीम दिल्ली से मुरादाबाद लौट आई. अजीम के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो चुका था. पुलिस कुर्की की तैयारी कर रही थी. इस के अलावा एसएसपी ने उस की गिरफ्तारी पर ढाई हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया था. इस तरह उसे घेरने की पूरी काररवाई कर ली गई थी.

आखिर एक मुखबिर की सूचना पर 12 दिसंबर, 2013 को पुलिस ने आरोपी अजीम को अजमेर से गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर अजीम उर्फ अजमल से पूछताछ की गई तो बच्चों के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.

अजीम अहमद उर्फ अजमल स्योहरा, बिजनौर के रहने वाले अब्दुल हमीद का बेटा था. उस के पिता और भाई सऊदी अरब में नौकरी करते थे. वह भी पढ़लिख कर कोई सरकारी नौकरी करना चाहता था. देहरादून के डीएवी कालेज से एमए करने के बाद वह नौकरी की तैयारी करने के लिए मुरादाबाद आ गया. यहां वह बंगला गांव में किराए पर रहने लगा. अपना खर्च चलाने के लिए वह मुरादाबाद के सिविललाइंस स्थित एस.एस. चिल्ड्रन एकेडमी में क्लर्क के रूप में काम करने लगा. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

अपनी लच्छेदार बातों से वह स्कूल के प्रिंसिपल और टीचरों का प्रिय बन गया. अगर किसी वजह से स्कूल में पढ़ने वाले किसी बच्चे का रिक्शे वाला नहीं आ पाता तो वह अपनी मोटरसाइकिल से उस बच्चे को उस के घर तक छोड़ आता था. इस तरह अभिभावकों की नजरों में भी वह भलामानस बन गया था.

पिछले साल मुरादाबाद के ही रेती स्ट्रीट की रहने वाली आसिफा अपनी बेटी हमजा का छठी क्लास में दाखिला कराने के लिए एस.एस. चिल्ड्रन एकेडमी गई तो किसी वजह से वहां बेटी का एडमिशन नहीं हो रहा था. बाद में अजीम अहमद की मदद से हमजा का दाखिला उस स्कूल में हो गया. बेटी के एडमिशन के बाद आसिफा उस की अहसानमंद हो गई.

3, साढ़े 3 महीने पहले की बात है. एक दिन स्कूल की छुट्टी के बाद अजीम गेट की तरफ जा रहा था तो वहां हमजा खड़ी दिखाई दी. स्कूल के ज्यादातर बच्चे जा चुके थे. उसे अकेली देख कर अजीम ने उस से वहां खड़ी होने की वजह पूछी तो उस ने बताया कि उस का रिक्शे वाला अभी तक नहीं आया है. स्कूल का काम निपटाने के बाद अजीम मोटरसाइकिल से हमजा को ले कर उस के घर पहुंच गया.

सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 4

सोनी से भले ही रोशन राय दूर भागता जा रहा था, लेकिन वह अपने कप्तान धवल जायसवाल से दूर नहीं भाग सकता था. उन्होंने वायरलैस सेट के जरिए संदेश भिजवा कर सिपाही रोशन राय को अपने दफ्तर में जल्द से जल्द हाजिर होने का आदेश दिया. अपने कप्तान के आदेश को वह ठुकरा नहीं सकता था, उसे उन के सामने हाजिर होना ही पड़ा. इस तरह सिपाही रोशन राय और सोनी का मामला विभाग में भी फैल गया.

कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कप्तान धवल जायसवाल ने सिपाही रोशन राय को फटकार लगाई, ‘‘सोनी नाम की जिस युवती के साथ तुम ने रिश्ते बनाए थे, शादी का झांसा दे कर उस की जिंदगी चौपट की है, उस के साथ न्याय करो. शादी कर के उसे अपना लो वरना जेल में सड़ जाओगे. उस ने तुम्हारे खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए प्रार्थना पत्र दिया है.’’

एसपी के आदेश पर की शादी…

उस के बाद एसपी धवल जायसवाल ने रोशन को बहुत समझाया. कप्तान के दबाव में आ कर रोशन राय ने उस समय शादी करने की तो हामी भर दी थी. कप्तान के आदेश पर सोनी से रोशन राय ने 28 नवंबर, 2022 को जटहां बाजार स्थित शिव मंदिर में सोनी अंसारी से शादी कर ली थी और हेतिमपुर के सटर टोला भैंसहा स्थित राजेंद्र सिंह के मकान में ऊपर का कमरा ले कर प्रेमिका से पत्नी बनी सोनी को ले कर रहने लगा.

कभी जिस सोनी पर वह जान छिडक़ता था, आज उसी से बेहद नफरत करने लगा था. उस को इस बात का बेहद मलाल था कि उस ने उस की शिकायत कप्तान से क्यों की? उन की नजरों में उस की क्या इज्जत रह गई? इस की सजा तो उसे भुगतनी ही पड़ेगी. इस बात को ले कर दोनों के बीच झगड़ा होने लगा था. यह झगड़ा बाद में मारपीर में बदल गया था.  बातबात पर रोशन पत्नी सोनी को जलील करता और उसे पीटता था. अपने साथ हो रही हर यातनाओं और जुल्मों को सोनी अपनी मां से कहती थी. मां के पास इस का विकल्प भी नहीं था, क्योंकि उस का ही फैसला था कि शादी जब भी करेगी तो रोशन से ही करेगी, उस ने मां से यही कहा थी.

अब सोनी को अपने फैसले पर बहुत पछतावा हो रहा था कि काश! उस ने मांबाप की बात मान ली होती तो शायद उस की हालत ऐसी नहीं होती, लेकिन अब पछताने से क्या होना था. बहरहाल, पतिपत्नी के बीच रोजरोज के झगड़े, हाथापाई से दोनों का जीवन असहज बन गया था. रोशन ने सोनी को अपने जीवन से हमेशाहमेशा के लिए निकाल कर फेंकने की योजना बना ली थी. वह योजना थी उस की हत्या.

सिपाही ने की पत्नी की हत्या…

17 जनवरी, 2023 को रात में सोनी की बात मां अश्मीना से हुई तो इस बात को ले कर रोशन राय ने सोनी से खूब झगड़ा किया और उसे जम कर लातघूसों से मारा. उस ने सोनी से पहले ही कह दिया दिया था कि उसे अपने मांबाप से कोई रिश्ता नहीं रखना है, अगर उन से रिश्ता रखा तो उस से बुरा कोई नहीं होगा. पति की पिटाई से सोनी रात भर बिस्तर पर दुबक कर सिसकती रही और अपनी किस्मत पर आंसू बहाती रही.

बहरहाल, रात जैसेतैसे बीती. सोनी का रोरो कर बुरा हाल हो गया था, उस की आंखें सूज गई थीं, लेकिन रोशन के दिल में सुलग रही नफरत की आग अभी ठंडी नहीं हुई थी. 18 जनवरी, 2023 की रात उस के और सोनी के बीच फिर लड़ाईझगड़ा हुआ. गुस्से में आ कर उस ने पत्नी सोनी को गला घोट कर मौत के घाट उतार दिया और कमरे की बत्ती औफ कर उसी रात कमरे पर बाहर से ताला लगा कर चला गया. यानी पत्नी की हत्या कर सिपाही फरार हो गया था. आगे क्या हुआ? कहानी में ऊपर वर्णन किया जा चुका है.

खैर, होनी को कौन टाल सकता है जो होना है, सो तो हो कर रहता है. अगर सोनी ने अपने मांबाप का कहना माना होता तो शायद आज वह भी जिंदा होती. आरोपी रोशन राय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कोर्ट में पेश कर उसे जेल भेज दिया था. उधर घर वाले जब सोनी अंसारी की लाश कब्रिस्तान में दफनाने के लिए ले गए थे, तब समाज के लोगों ने उस की लाश नहीं दफनाने दी. उन का कहना था कि मृतका ने दूसरे धर्म में शादी की थी. कई थानों की पुलिस के पहुंचने के बाद भी उन लोगों ने शव कब्रिस्तान में नहीं दफनाने दिया. कथा लिखे जाने तक सिपाही रोशन जेल में बंद था. उसे अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं हो रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के लिए अपहरण – भाग 1

हमजा और अयान पास की ही कनफैक्शनरी की दुकान से केक लेने गए थे. काफी देर होने के बाद भी वे घर नहीं लौटे तो मां आसिफा परेशान हो उठीं. घर से दुकान ज्यादा दूर नहीं थी. उतनी देर में बच्चों को आ जाना चाहिए था. वे कहीं खेलने तो नहीं लगे, यह सोच कर वह कनफैक्शनरी की दुकान की ओर चल पड़ी. उसे रास्ते में ही नहीं, दुकान पर भी बच्चे दिखाई नहीं दिए.

उस ने दुकानदार से बच्चों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस के बच्चे तो दुकान पर आए ही नहीं थे. यह सुन कर आसिफा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि बच्चे घर से शाम सवा 5 बजे निकले थे और उस समय 6 बज रहे थे. उसे बताए बगैर उस के बच्चे कहीं नहीं जाते थे. वह परेशान हो गई कि बच्चे कहां चले गए.

आसिफा के पति सऊदी अरब में थे. घर पर वह अकेली ही थी. इसलिए बच्चों के न मिलने से वह परेशान थी. उस ने बच्चों को इधरउधर गलियों में ढूंढ़ने के अलावा रिश्तेदारों और जानकारों को फोन कर के पूछा. लेकिन कहीं से भी उसे बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. यह 24 नवंबर, 2013 की बात है.

आसिफा के बच्चों के लापता होने की बात थोड़ी ही देर में मोहल्ले भर में फैल गई. हमदर्दी में सभी लोग अपनेअपने स्तर से बच्चों को इधरउधर ढूंढ़ने लगे. लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद किसी को भी पता नहीं चल सका कि दुकान तक गए बच्चे आखिर कहां चले गए. बच्चों की तलाश कर के थक हार कर आसिफा मोहल्ले के लोगों के साथ रात 8 बजे के आसपास मुरादाबाद शहर की कोतवाली जा पहुंची. क्योंकि वह रेती स्ट्रीट मोहल्ले में रहती थी और यह मोहल्ला कोतवाली के अंतर्गत आता था.

आसिफा ने बच्चों के गायब होने की बात कोतवाली प्रभारी को बताई तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. दोनों बच्चों के गायब होने से आसिफा के दिल पर क्या बीत रही थी, इस बात को कोतवाली प्रभारी ने समझने के बजाए सीधा सा जवाब दे दिया कि बच्चे इधरउधर कहीं खेलने चले गए होंगे, 2-4 घंटे में खुद ही लौट आ जाएंगे.

कोतवाली प्रभारी की यह बात आसिफा को ही नहीं, उस के साथ आए लोगों को भी अच्छी नहीं लगी. लिहाजा सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आशुतोष कुमार के पास जा पहुंचे. जब उन लोगों ने 11 साल की हमजा और 6 साल के अयान के गायब होने की जानकारी उन्हें दी तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से लिया. इस के बाद उन के आदेश पर कोतवाली में बच्चों की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई.

जिस दुकान से बच्चे केक खरीदने गए थे, पुलिस उस दुकान के मालिक को पूछताछ के लिए कोतवाली ले आई. दुकानदार ने पुलिस को बताया कि वह सुबह से दुकान पर ही बैठा था, शाम तक उस के यहां कोई भी बच्चा केक खरीदने नहीं आया था.

बच्चों के पिता मोहम्मद शमीम सऊदी अरब में कोई बिजनैस करते थे, इसलिए पुलिस को इस बात की भी आशंका थी कि कहीं फिरौती के लिए तो नहीं बच्चों को उठा लिया गया. लेकिन अगर ऐसी बात होती तो अब तक फिरौती के लिए फोन आ गया होता. बच्चों की चिंता में आसिफा का रोरो कर बुरा हाल था. उस के निकट संबंधी उसे समझाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन आसिफा की चिंता कम नहीं हो रही थी.

एसएसपी आशुतोष कुमार भी कोतवाली पहुंच गए थे. वहीं पर उन्होंने एसपी सिटी महेंद्र सिंह यादव, क्षेत्राधिकारी रफीक अहमद को बुला कर कोतवाली प्रभारी के साथ मीटिंग की. रेती स्ट्रीट मोहल्ला अतिसंवेदनशील माना जाता है, इसलिए एसएसपी ने इस मामले को जल्द ही खोलने के निर्देश दिए, ताकि मोहल्ले के लोग किसी तरह का हंगामा न खड़ा करें.

क्षेत्राधिकारी रफीक अहमद ने आसिफा से किसी से दुश्मनी या रंजिश के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस तरह की उस के साथ कोई बात नहीं है. घूमफिर कर पुलिस को यही लग रहा था कि बच्चों का अपहरण शायद फिरौती के लिए किया गया है. इसीलिए पुलिस ने आसिफा से भी कह दिया था कि अगर किसी का फिरौती की बाबत फोन आता है तो वह फोन करने वाले से विनम्रता से बात करेगी और इस की जानकारी पुलिस को अवश्य देगी. रात के 10 बज चुके थे. लेकिन हमजा और अयान का कुछ पता नहीं चला था. बच्चों को ले कर आसिफा के दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे, जिस से वह काफी परेशान हो रही थी.

अपहरण की आशंका की वजह से पुलिस इलाके के आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को उठाउठा कर पूछताछ करने लगी. उन से भी बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

24 नवंबर की रात 11 बजे के आसपास एसएसपी आशुतोष कुमार को हरिद्वार के एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार द्वारा मिली सूचना से काफी राहत मिली. सुरजीत सिंह पंवार ने उन्हें बताया था कि थाना श्यामपुर के रसिया जंगल में 11 साल की एक लड़की हमजा मिली है. उस के शरीर पर कुछ चोट के निशान हैं, लेकिन वह सकुशल है. पूछताछ में उस ने बताया है कि वह मुरादाबाद के मोहल्ला रेती स्ट्रीट की रहने वाली है.

एसएसपी ने यह खबर आसिफा को दी तो वह घर वालों के साथ कोतवाली पहुंच गई. हमजा हरिद्वार कैसे पहुंची, यह बात उस से बात कर के ही पता चल सकती थी. कोतवाली पुलिस रात में ही हरिद्वार के लिए रवाना हो गई और रात दो, ढाई बजे थाना श्यामपुर पहुंच गई.

अनीता की अनीति : मतलबी प्यार – भाग 2

मकान मालिक के पास नीरज शर्मा और उस की पत्नी अनीता का फोन नंबर तो था, लेकिन उस के घरपरिवार के बारे में उसे कुछ पता नहीं था. यह भी पता नहीं था कि वह नौकरी कहां करता था. तब पुलिस ने उस से पूछा कि उस ने उसे अपना मकान किस के कहने पर किराए पर दिया था. इस पर प्रदीप ने बताया कि उस ने पड़ोस में रहने वाले श्यामवीर के कहने पर अपना मकान किराए पर दिया था. वह भी फिरोजाबाद का ही रहने वाला था. शायद उसे नीरज के बारे में पता होगा. क्योंकि उस ने उसी की जिम्मेदारी पर अपना कमरा किराए पर दिया था.

श्यामवीर के बारे में पता किया गया तो वह गांव गया हुआ था. मकान मालिक से नीरज और अनीता के फोन नंबर मिल गए थे. लेकिन जब उन नंबरों पर फोन किया गया तो वे बंद थे. शायद उन्हें पता था कि मोबाइल फोन से पुलिस उन तक पहुंच सकती है, इसलिए उन्होंने फोन बंद कर दिए थे.

जब थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव को नीरज और अनीता तक पहुंचने का कोई भी सूत्र नहीं मिला तो उन्होंने फोरेंसिक टीम बुला कर जरूरी साक्ष्य जुटाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम के बाद 2-3 दिनों तक लाश शिनाख्त के लिए रखी रही, लेकिन सड़ीगली लाश ज्यादा दिनों तक रखी भी नहीं जा सकती थी, इसलिए उस लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करवा दिया गया.

जांच की जिम्मेदारी मिलते ही भानुप्रताप सिंह ने नीरज और अनीता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए थे. लेकिन उन के फोन बंद होने की वजह से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. श्यामवीर गांव से लौट कर आया तो उस से नीरज के घर का पता मिल गया. तब लोनी पुलिस ने फिरोजाबाद जा कर स्थानीय पुलिस की मदद से उस के घर छापा मारा. लेकिन वे दोनों वहां भी नहीं थे. वहां पता चला कि वे वहां आए तो थे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही चले गए थे. वहां से जाने के बाद वह कहां है, यह किसी को पता नहीं था.

नीरज शातिर दिमाग है. अब तक यह सीनियर सबइंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की समझ में आ गया था. लेकिन फिलहाल वह इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे थे. लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद थी कि एक न एक दिन उन दोनों के मोबाइल फोन जरूर चालू होंगे. और सचमुच ढाई महीने बाद अचानक अनीता का फोन चालू हुआ. साइबर एक्सपर्ट ने जांच अधिकारी भानुप्रताप सिंह को बताया कि अनीता ने अपने मोबाइल फोन में नया सिम डाल कर लोनी की ही रहने वाली किसी सुनीता को फोन किया था. इस के बाद वह फोन फिर बंद कर दिया गया था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो मिली जानकारी के अनुसार वह नंबर सुनीता के नाम से ही लिया गया था. फोन भले ही बंद हो गया था, लेकिन पुलिस को उस तक पहुंचने का रास्ता मिल गया था. पुलिस ने उस नंबर वाली कंपनी से सुनीता का पता ले कर अगले ही दिन लोनी स्थित उस के घर छापा मार दिया.

सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि अनीता उस की सहेली है और आजकल वह मोहननगर चौराहे के पास किराए के मकान में छिप कर रह रही है. लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह किस मकान में रह रही थी.

पुलिस के लिए इतनी जानकारी काफी थी. पुलिस ने मोहननगर चौराहे के आसपास अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया. इस का परिणाम पुलिस के लिए सुखद ही निकला. मुखबिरों ने कुछ ही दिनों में नीरज और उस की पत्नी अनीता को ढूंढ निकाला. इस के बाद मुखबिरों की सूचना पर थाना लोनी पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने राजेश्वर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

राजकुमार अपनी पत्नी बिटई देवी और 4 बच्चों के साथ दिल्ली के दयालपुर की गली नंबर-3 में रहते थे. वह जिस मकान में रहते थे, वह उन का अपना था. गुजरबसर के लिए उन्होंने मकान के ऊपरी हिस्से में कपड़े की छपाई का कारखाना लगा रखा था. इस काम से इतनी आमदनी हो जाती थी कि उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था.

इसी कमाई से उन्होंने दोनों बड़ी बेटियों की शादी कर दी थी, जो अपनेअपने घरपरिवार की हो चुकी थीं. उन के बाद था बेटा राजेश्वर, जिस ने किसी तरह बारहवीं पास कर लिया था. वह उसे आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन आगे पढ़ने की उस की हिम्मत नहीं हुई.

राजेश्वर ने पढ़ाई छोड़ दी तो राजकुमार उसे काम से लगाना चाहते  थे. राजकुमार के एक मित्र लोनी में रहते थे, जो उन्हीं की तरह कपड़ों की छपाई का काम करते थे. राजकुमार ने सोचा, बेटा उन के पास रहेगा तो मालिक की तरह रहेगा, इसलिए अगर उसे काम सिखाना है तो कहीं और ही भेजना ठीक रहेगा. इसलिए उन्होंने राजेश्वर को अपने उसी लोनी वाले दोस्त के यहां भेजना शुरू कर दिया.

राजेश्वर जहां जाता था, वहां तमाम लोग काम करते थे. उन्हीं में से एक फिरोजाबाद का रहने वाला नीरज शर्मा था. 35 वर्षीय नीरज शर्मा अच्छा कारीगर था. एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि वह छपाई के काम का उस्ताद था. लेकिन उस में एक कमी यह थी कि वह पक्का शराबी था.

चूंकि वह काम में माहिर था, इसलिए मालिक से ले कर साथ काम करने वाले तक उस की इज्जत करते थे. इतनी इज्जत मिलने के बावजूद शराब देखते ही उस के मुंह में पानी आने लगता था. फिर तो वह सारे कामधाम भूल कर शराब का हो जाता था. अधिक शराब पीने की वजह से उस का शरीर एकदम खोखला हो चुका था. सही बात तो यह थी कि अब वह शराब नहीं, बल्कि शराब उसे पी रही थी.

कुछ दिनों तक साथ काम करने के बाद राजेश्वर जान गया कि अगर नीरज से छपाई के गुर सीखने हैं तो इसे इस की पसंद शराब की दावत देनी पड़ेगी. यही सोच कर एक दिन वह शराब की बोतल ले कर उस के घर पहुंच गया. राजेश्वर को शराब की बोतल के साथ अपने घर आया देख कर नीरज की आंखों में चमक आ गई. उस ने उसे अंदर बुला कर प्यार से बैठाया.  राजेश्वर की आवभगत में नीरज की पत्नी अनीता ने भी पति का साथ दिया. राजेश्वर मजबूत कदकाठी का जवान और खूबसूरत लड़का था, इसलिए अनीता की नजरें उस पर जम गईं.

सिपाही की शादी बनी बरबादी – भाग 3

सोनी का दिल प्रेमी रोशन की प्यार भरी बातें सुन कर बागबाग हो गया था. “इतना प्यार करते हैं आप मुझ से?’’

“मैं हनुमान तो नहीं हूं, वरना अपना सीना चीर कर दिखा देता. मेरे दिल में आप ही की तसवीर छपी है. मेरी हर एक सांस पर आप का ही नाम लिखा है. मेरी धडक़नों में, मेरी रगों में और मेरी सांसों में बस आप ही आप हो, इतना प्यार करता हूं मैं आप से.’’

:ओह रोशनजी! मैं कितनी खुशनसीब हूं जो मुझे आप जैसा चाहने वाला सच्चा प्यार मिला. मैं अपने प्यार को पलकों के बीच छिपा कर रखूंगी, ताकि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे.’’

सिपाही का प्यार बढऩे लगा, यही हाल सोनी का भी था. घंटों दोनों ऐसे ही प्यार भरी बातें करते रहे, कब दोपहर से शाम हुई पता ही नहीं चला. दोनों पास के रेस्टोरेंट में गए वहां रोशन ने प्रेमिका सोनी को उस के पसंद की चीजें खिलाईं और उसे बस पर बैठा कर अपने कमरे पर चला गया. वह सोनी से मिल कर बहुत खुश था.

सिपाही रोशन को चुन लिया हमसफर…

सोनी भी बहुत खुश थी. अपने जीवनसाथी को ले कर उस ने जो सपने देखे थे, वे सपने पूरे हो गए थे. फिर सोनी ने एक दिन मौका देख कर अपने मन की बात अम्मी को बता दी. बेटी के मुंह से प्यार वाली बात सुन वह हायतौबा मचाने लगी. बेटी को उस ने खूब खरीखोटी सुनाई. सामाजिक मर्यादा में रहने का सबक भी दिया. यह भी कहा कि उन का परिवार एक मध्यमवर्गीय है. इज्जत हमारा गहना है, अगर एक बार चली जाए, तो समाजबिरादरी में किसी को मुंह नहीं दिखा सकते. हम जीते जी मर जाएंगे.

इस पर सोनी ने मां को भरोसा दिलाया कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप की इज्जत और सम्मान पर बट्टा लगे. उसे अपनी मानमर्यादा का सब से ज्यादा खयाल है. लेकिन उस ने अपने जीवनसाथी को चुन लिया है, निकाह करेगी तो रोशन से ही करेगी, रोशन के अलावा हर पुरुष उस के लिए बापभाई के समान होगा. सोनी भले ही सिपाही रोशन के प्यार में अंधी हो गई थी. यूं कह लें कि वह उस से अंधा प्यार करती थी तो इस में कोई दो राय नहीं थी, मगर रोशन सोनी को ले कर बहुत संजीदा नहीं था. लिवइन रिलेशन में खेलना चाहता था के सोनी जिस्म से.

शातिर सिपाही रोशन के दिमाग में प्रेमिका सोनी को  ले कर कुछ और ही चल रहा था. अच्छाई की चादर में लिपटा उस के मन में बड़ा घिनौना और गंदा विचार उमड़घुमड़ रहा था. वह सोनी से नहीं बल्कि उस के खूबसूरत बदन से प्यार करता था. उस के जिस्म को पाने के लिए उस की झूठी तारीफ कर रहा था ताकि सोनी के गदराए जिस्म को नोचनोच कर खाए और मन भर जाने के बाद उसे दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंके. रोशन अकसर सुनसान जगह पर मिलने के लिए बुलाया करता था, वह आ भी जाती थी.

बातोंबातों में उस ने उस के जिस्म को पाने की इच्छा भी जाहिर की थी, मगर सोनी ने यह कहते हुए साफ मना कर दिया कि शादी के बाद मैं अपना तनमन सब कुछ अपने शौहर का सौंपूंगी, लेकिन शादी से पहले नहीं. फिर उस ने रोशन पर शादी करने के लिए दबाव बनाया. जिस गदराए जिस्म को पाने के लिए रोशन ने सोनी को अपने प्यार के जाल में फंसाया था, उस का वह मकसद पूरा नहीं हुआ तो वह सोनी से दूरियां बनाने लगा. धीरेधीरे वह उस से दूर भागने लगा था. जो प्रेमी पहले दिन भर में कई बार अपनी प्रेमिका को फोन कर बातें किया करता था, वही अब हफ्तोंहफ्तों उस से बात नहीं करता था. उस के सिर से सोनी के प्यार का भूत जैसे उतर चुका था.

अचानक प्रेमी रोशन में आए बदलाव देख सोनी परेशान रहने लगी थी. जब भी वह उसे फोन करती थी तो उस का फोन काट देता था. वह उस से मिलने कसया जाती तो वह उस से मिलता भी नहीं था. सोनी समझ गई थी कि रोशन ने उसे धोखा दिया है, लेकिन वह इतनी आसानी से अपना प्यार खोने वाली नहीं थी और न ही धोखा दे कर अपना पीछा छुड़ाने वाले रोशन को ही छोडऩे वाली थी.

एसपी से मिलीं मांबेटी…

फिलवक्त सोनी का दिल शीशे के समान चूरचूर हो गया था. प्यार में धोखा खाई वह घायल शेरनी के माफिक हो गई थी. अब तो बेटी के साथ उस की मां भी हो गई थी. मांबेटी दोनों मिल कर उसे सबक सिखाने की तैयारी में जुट गई थीं. कोई बड़ा कदम उठाने से पहले सोनी और उस की मां अश्मीना खातून ठंडे दिमाग से सोच कर एक बार फिर से सिपाही रोशन राय को सोचने का मौका देना चाहती थीं, किंतु वह था कि न तो सोनी की काल रिसीव कर रहा था और न ही अपनी ओर से काल कर के उस से दूरियां बनाने की वजह बता रहा था.

इस पर दोनों मांबेटी मिल कर उसे सबक सिखाने के लिए 23 नवंबर, 2022 को एसपी धवल जायसवाल के दफ्तर पहुंच गईं. उन्होंने उन के सामने अपना दुखड़ा रोते हुए सिपाही रोशन राय की पूरी कलई खोल कर रख दी. एसपी धवल जायसवाल ने सोनी को भरोसा दिलाया कि उस के साथ न्याय किया जाएगा. यदि रोशन ने उस के साथ कुछ गलत किया है तो उसे अपनी करनी का फल भुगतना पड़ेगा.

जैसे ही सोनी एसपी जायसवाल के समक्ष पेश हुई, वैसे ही इस की जानकारी रोशन राय तक पहुंच गई थी. सोनी का दुस्साहस देख कर रोशन का गुस्से से नथुना फूलनेपिचकने लगा था. उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह मामूली लडक़ी एसपी दफ्तर पहुंच कर उस की शिकायत कर देगी. यह बात उसे बहुत बुरी लगी. वह फडफ़ड़ा कर रह गया. इसी बीच बड़ी चालाकी से रोशन राय ने कसया थाने से अपना ट्रांसफर जटहां थाने करवा लिया था, ताकि उस तक जल्दी कोई पहुंच न सके.