वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 2

शुरुआती कहानी है पकाऊ

शुरुआती एपिसोड्स में कहानी पक रही है, किरदार पनप रहे हैं तो इन खुलती परतों के बीच स्पीड अच्छी लगती है. लेकिन चौथे एपिसोड से 8वें एपिसोड तक कहानी बस गोलगोल धूम रही है. सस्पेंस की लेयर्स कम हो जाती हैं. शुरुआत से ही पता है कि सीरियल किलर कौन है, वह कैसे काम कर रहा है तो सस्पेंस या थ्रिल जैसा कुछ नहीं है, बल्कि कई बार पुलिस पर तरस आ रहा है कि ये कर क्या रही है.

‘दहाड़’ वेब सीरीज की सब से बड़ी कमजोरी है, इस के अधपके किरदार. शुरू से ले कर आखिर तक किसी भी किरदार की यात्रा नजर नहीं आती. पहले सीन में प्रेस की हुई ड्रेस पहने तन कर खड़ी अंजलि भाटी आखिरी सीन तक उसी अवतार में नजर आती है. इस किरदार की कोई इमोशनल जर्नी नहीं है, जिस से आप जुड़ें. लेकिन ये अकेली अंजलि के किरदार के साथ नहीं है, बल्कि किसी भी किरदार की परतों को खोलने की जहमत लेखक ने नहीं उठाई है.

जैसे खुद रिश्वत लेने के चक्कर में डिमोशन झेल रहा पारगी (सोहम शाह) आखिर अपनी पत्नी के पहली बार प्रेग्नेंट होने पर खुश क्यों नहीं है? इस बात के तर्क में वह कहता है, ‘दुनिया कितनी बेकार है, कैसेकैसे लोग हैं यहां. ऐसे में यहां बच्चे को कैसे पैदा किया जाए.

ऐसे ही शो के कई सीन हैं जो अनसुलझे या अधूरे से हैं. पूरा थाना अंजलि को भाटी साहब कह रहा है, लेकिन एक शख्स है जो उस के निकलते ही अगरबत्ती जला कर धुआं करता है.

इस सीरियल किलर की कहानी में कई ड्रामा हैं. इसी के तहत दहेज, लड़कियों पर शादी का दबाव बनाता परिवार, उसे बोझ साबित करते लोगों पर सटीक प्रहार हैं. ये सब साइड में हैं, जो आप को समझ आएगा, लेकिन आखिर आनंद स्वर्णकार कैसे पकड़ा जाएगा, यह खोजतेखोजते आप को 8 एपिसोड यानी साढ़े 7 घंटे का इंतजार करना होगा, जो थोड़ा बोझिल हो जाता है. डायरेक्टर ने यहां पका दिया है.

8 के बजाए अगर 6 एपिसोड में इस कहानी को कसा जाता तो ये सीरीज और भी पैनी हो सकती थी. राजस्थानी पृष्ठभूमि में रची इस कहानी में कलाकारों द्वारा स्थानीय भाषा की पकड़ दिखाई नहीं दी. उन की भाषा हरियाणवी सी लगने लगती है. कलाकारों की भाषा बारबार खटकती है.

ढंग से नहीं दहाड़ सकीं सोनाक्षी

पूरी सीरीज में सब से बारीक काम विजय वर्मा ने किया है. दरअसल, डायरेक्टर ने सीरीज में गुलशन देवैया, सोहम शाह, विजय वर्मा जैसे कलाकारों को उस स्तर पर जा कर इस्तेमाल ही नहीं किया गया है, जहां वह कुछ नया या कमाल कर पाएं. गुलशन देवैया सीरीज में बस अंजलि भाटी के मोहपाश में बंधा उस की थ्योरीज सुनता रहता है.

अंजलि, जिस के साथ बारबार जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है, पर खुद अपने थाने में अपने सीनियर देवीलाल सिंह पर चिल्ला पड़ती है. पारगी को तो वह नाम से बुलाती है. कहानी के ये सारे पहलू इसे काफी कमजोर बनाते हैं. ओटीटी पर अपनी इस पहली ‘दहाड़’ से सोनाक्षी अपने स्लो करिअर को एक स्पीड दे सकती थीं. लेकिन ये ‘दहाड़’ उस का कोई भी नया अंदाज या पहलू परदे पर नहीं उतार पाई. ये ‘दहाड़’ उतनी नहीं गूंजी जितनी गूंजनी चाहिए थी.

निर्देशक रीमा कागती के साथसाथ जोया अख्तर इस सीरीज की क्रिएटर, प्रोड्यूसर और स्क्रीनप्ले राइटर है. जहां जोया अख्तर को ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011)’ और गली बौय (2019)’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. रीमा कागती ‘तलाश (2012)’ और ‘गोल्ड (2018)’ जैसी बड़ी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी है.

चूंकि ‘दहाड़’ बौलीवुड वेब सीरीज है तो इस में प्रोपेगैंडा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है. ‘दहाड़’ जब शुरू होती है तो आप को पहले 5-10 मिनट में ही दिख जाता है कि इसे बनाने वाले लोगों की मंशा कितनी घटिया हो सकती है.

अंजलि भाटी बाकी साथियों की तरह अपने कोच के पांव नहीं छूती, क्योंकि वह कहती है कि उस के बाप ने ऐसा करने से मना किया है. उसे एक दलित थानेदार के किरदार में दिखाया गया है, जिसे विभाग में ही नहीं, हर जगह जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

एक दलित एसआई, जो बिना हेलमेट बुलेट दौड़ाती फिरती है. वह हेलमेट नहीं पहनने का गलत संदेश देती दिख रही है. अंजलि की ऐक्टिंग इस में एकदम बोरिंग और चिड़चिड़ी टाइप की है. सीरीज में ठाकुरों की एक लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है और हिंदू संगठन पुलिस के कामकाज में बाधा डालते हैं. हिंदू कार्यकर्ताओं को उपद्रव करने वाला दिखाया गया है.

यह वेब सीरीज वास्तविकता को नकारने के लिए वामपंथियों के नैरेटिव को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है. इस में यह बताने की कोशिश की गई है कि लव जिहाद कुछ होता ही नहीं है. मुसलिम लड़कों के प्यार में हिंदू लड़कियां स्वेच्छा से पड़ती हैं. सब से बड़ा प्रोपेगैंडा है कि हिंदू कार्यकताओं और हिंदू संगठनों को उपद्रवियों के रूप में चित्रित करना.

जाति का किया है अपमान

इस में दिखाया गया है कि एक हिंदूवादी विधायक और उस के कार्यकर्ता जहांतहां उपद्रव करते हैं, हिंसा करते हैं, मुसलिमों के खिलाफ हिंसा करते हैं और पुलिस के काम में बाधा डालते हैं. वेब सीरीज में विजय वर्मा मुख्य विलेन के किरदार में हैं. यह आदमी दरजनों लड़कियों को फंसा कर उन के साथ बलात्कार करता है और उन की हत्या कर देता है. जानबूझ कर बारबार एक सीरियल किलर के परिवार की जाति को हाइलाइट किया गया है, जो डायरेक्टर की ओछी मानसिकता को जाहिर करता है.

विलेन का पिता अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) पुलिस थानेदार को घर में घुसने से रोकता है, क्योंकि वह उसे नीची जाति का समझता है. फिर वह संविधान के डायलौग मारती हुई रेड मारने के लिए उस के घर में घुस जाती है.

क्या आप ने वास्तविक जिंदगी में कहीं ऐसा होते हुए देखा है? फिल्म का जो सब से अच्छा किरदार दिखाया गया है वो एक मुसलिम होता है. अंजलि किसी भी समस्या के समाधान और मार्गदर्शन के लिए उस के पास ही जाती है, उस ने उसे पढ़ाया होता है. इस तरह जहां विलेन को ठाकुर दिखाया गया है, उसे पकड़वाने में मदद करने वाला मुसलिम और उसे पकड़ने वाली दलित होती है. इस में कुछ भी बुरा नहीं है, बशर्ते जातियों पर विशेष जोर दिया जाए. इस में यही किया गया है.

वेब सीरीज में अंजलि को पूजापाठ करने से दूर भागते दिखाया गया है. क्या यह भी अपमानजनक नहीं है? इस वेब सीरीज में लड़के लड़की के बीच शादी के बिना अस्थायी रिश्तों पर जोर दिया गया है. इस से लगता है कि शायद डायरेक्टर को भी ऐसे रिश्ते में रहना पसंद होगा. इस से समाज में गलत संदेश जाता है.

इस की कहानी स्लो है, जिस से पूरी सीरीज काफी सुस्त दिखती है. स्क्रिप्ट के चलते कहानी बहुत धीरेधीरे आगे बढ़ती है, जिस से थ्रिलर और सस्पेंस का फील ही कई बार खत्म हो जाता है. वहीं सीरीज को एडिटिंग टेबल पर और वक्त मिलना चाहिए था, जिस से एडिटिंग और बेहतर हो सकती थी.

सीरीज में बैंकग्राउंड म्यूजिक पर भी और मेहनत हो सकती थी. ‘दहाड़’ देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि निर्देशक रीमा का जादू इस में दिखा ही नहीं है. कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ‘दहाड़’ को हरगिज नहीं देखना चाहिए. इसे तब देखा जा सकता है, जब आप के पास कोई और कंटेंट देखने का आप्शन नहीं है.

रुचिका ओबेराय

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से पढ़ाई करने वाली रुचिका ओबेराय की पहचान ‘लस्ट स्टोरी’ और ‘आइलैंड सिटी’ से बन चुकी है. इन में रुचिका ने महानगरीय शहर को परदे पर बेहतर ढंग से उतारा. रुचिका ओबेराय के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ थी.

वह भले ही अभी तक एक घरेलू नाम नहीं हैं, लेकिन रुचिका ओबेराय बौलीवुड की सब से रोमांचक प्रतिभाओं में से एक है. उस की पहली और एकमात्र फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ को बौलीवुड फिल्म कहना इस का विस्तार होगा.

उस के बाद उस ने नेटफ्लिक्स की ‘लस्ट स्टोरीज’ को लिखा, जो जोया अख्तर द्वारा निर्देशित की गई थी. यह फिल्म गरिमा और शालीनता से भरपूर थी. नील भूपालम और भूमि पेडनेकर अभिनीत इस लघु फिल्म में मौन रहते हुए अपने भीतर के संघर्ष से निपटाने की कहानी को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म के कथानक में अपने महानगरीय जीवन के अनुभव को समेटने की असफल कोशिश की गई है. उस ने बताया कि कैसे शहर अपनी असमानताओं में क्रूर है?

स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 2

तेलगी की डिग्री से प्रभावित हो कर शौकतभाई उसे अपने यहां काम करने के लिए मुंबई बुला लेता है. शौकतभाई की भूमिका तलत अजीज ने की है. वह गजल गायक भी है. शौकतभाई से मुलाकात के बाद तेलगी अपने घर जाता है और यह बात वह अपनी मां और भाई से बताता है. उस के पिता की मौत हो चुकी है.

तेलगी ने चलाया शातिर दिमाग

अब्दुल करीम तेलगी शौकतभाई के पास खाली जेब मुंबई पहुंच जाता है. वहां उस का होटल का बिजनैस था, लेकिन उस का यह बिजनैस खास नहीं चल रहा होता. तेलगी यहां अपना दिमाग लगाता है और टैक्सी, पान की दुकान वालों को ही नहीं वड़ापाव वालों तक को उन के होटल का कार्ड दे कर आता है. टैक्सी वालों को ग्राहक लाने पर 5 रुपए कमीशन देता है.

इस तरह शौकतभाई का होटल चल निकलता है. इस बीच शौकतभाई की बेटी नफीसा तेलगी को पसंद आ जाती है. नफीसा का रोल सना अमीन शेख ने निभाया है. वह सुंदर भी है और अपनी भूमिका में अच्छी भी लगती है. शौकतभाई दोनों का निकाह करा देते हैं. इस के अलावा उस की एक और बेटी है दीया.

ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में तेलगी गल्फ देश चला जाता है, जहां 7 सालों तक रहता है, लेकिन परिवार की याद आती है तो मुंबई वापस आ जाता है और यहां फरजी दस्तावेज तैयार कर के लोगों को गल्फ और यूएई जैसे देशों में भेजने लगता है. लेकिन इस फरजीवाड़े में पकड़ा जाता है. थाने में उस की जम कर ठुकाई होती है.

इंसपेक्टर मधुकर डोंबे की भूमिका नंदू माधव ने की है. पर एक इंसपेक्टर किस तरह काम करता है, यह वह ठीक से कर नहीं पाया. इसे डायरेक्टर की कमी कही जा सकती है. क्योंकि अभिनेता तो उसी तरह काम करता है, जैसा डायरेक्टर कराता है.

थाने में तेलगी को उस के जैसा ही एक आदमी मिलता है कौशल झवेरी. वह भी उस के साथ पिट रहा होता है. कौशल का रोल हेमंग व्यास ने निभाया है. यहीं तेलगी और कौशल अच्छे दोस्त बन जाते हैं. शौकतभाई तेलगी की जमानत करा देता है और उस से पुलिस रिकौर्ड से अपना नाम निकलवाने के लिए कहता है.

इस के लिए वह उसे एक वकील के पास भेजता है. वकील बहुत ज्यादा पैसे मांगता है, पर तेलगी यहां उस वकील को अपनी बातों में फंसा कर उसी से पैसे भरवा कर अपना काम करवा लेता है कि वह उस का काम करवा कर फेमस हो जाएगा और अपने नेटवर्क का यूज कर के वह उसे खूब क्लाइंट दिलवाएगा, फिर वह खूब पैसे कमाएगा.

वैसे यह सीन ओवर लगता है, क्योंकि एक वकील अपने पैसे खर्च कर के भला किसी क्लाइंट का काम क्यों कराएगा? पर डायरेक्टर की समझ की बात है. शायद वह तेलगी को कुछ ज्यादा ही सयाना दिखाना चाहता था. इसलिए उस ने ऐसा किया है. पर इस सीन पर दर्शकों को हंसी ही आएगी.

क्लर्क से मिल कर बनाया नया प्लान

तेलगी के इस टैलेंट को देख कर कौशल उस से खूब प्रभावित होता है और अपना बिजनैस पार्टनर बना लेता है. इस के बाद कौशल तेलगी को अपना बिजनैस मौडल समझाता है कि जब भी कोई कंपनी बड़े अमाउंट में शेयर खरीदती है तो उस का शेयर सर्टिफिकेट इशू होता है.

फिर जब भी कोई शेयर मार्केट में ये शेयर खरीदता है तो ये शेयर सर्टिफिकेट उसे ट्रांसफर होता है, जिस के ऊपर एक स्टैंप लगाया जाता है और उस पर एक साइन होता है. यह प्रोसेस सिर्फ 5 बार होता है, जिस के बाद ये शेयर सर्टिफिकेट किसी काम के नहीं रहते. इन्हें डेड शेयर सर्टिफिकेट कहा जाता है. इस के बाद नया शेयर सर्टिफिकेट जारी किया जाता है. अब इन डेड सर्टिफिकेट की कंपनी को कोई जरूरत नहीं रहती. जिस के बाद कंपनी इन्हें गोडाउन में स्टोर कर के रख देती है.

कौशल कंपनी के क्लर्क से मिल कर इन डेड शेयर सर्टिफिकेट को निकलवा लेता था और कैमिकल की मदद से स्टैंप और साइन को हटा कर स्टौक एक्सचेंज में जा कर इन्हें सस्ते दामों में बेच देता था, जिस से वह महीने में 15 हजार तक कमा लेता था. लेकिन बाद में पता चला कि कोलकाता गैंग उस से भी कम प्राइस में बेच रहा है.

तेलगी और कौशल मोनोपोली मेनटेन करने के लिए नुकसान में भी स्टैंप बेचने का प्लान बनाते हैं और ओल्ड कस्टम हाउस जहां कोलकाता गैंग का बिजनैस होता है, वहां जा कर क्लर्क के साथ अपनी डील फाइनल करते हैं.

वह क्लर्क अगले दिन स्टैंप के साथ कुछ स्टैंप पेपर भी देता है. यह देख कर कौशल उस पर गुस्सा होता है. यह सब चल रहा होता है कि कोलकाता गैंग उन पर हमला कर देता है और सभी को खूब मारता है. तभी तेलगी की नजर एक आदमी पर पड़ती है, जो स्टैंप पेपर ले रहा होता है और स्टैंप फेंक देता है.

अगले दिन वह क्लर्क से मिलने जाता है तो क्लर्क उस पर भड़क उठता है, क्योंकि वह बड़ी मुश्किल से वह स्टैंप और स्टैंप पेपर ले कर आया था. इस पर तेलगी उसे समझाता है कि मार तो सभी ने खाई है. इस के बाद वह पूछता है कि वह आदमी स्टैंप क्यों फेंक रहा था और स्टैंप पेपर क्यों कलेक्ट कर रहा था.

तब वह क्लर्क बताता है कि वे सारे स्टैंप पेपर थे और स्टैंप से स्टैंप पेपर का बिजनैस कहीं बड़ा और फायदेमंद है. तेलगी उस क्लर्क से सारी इन्फौर्मेशन लेता है, जिस से उस के दिमाग में एक और बिजनैस प्लान आता है और वह कौशल को समझाता है कि सरकार हर साल 33 हजार करोड़ स्टैंप पेपर से कमाती है, जिस में से 80 प्रतिशत स्टैंप पेपर मुंबई से और 10 प्रतिशत महाराष्ट्र से और बाकी 10 प्रतिशत अन्य सब जगहों से मिला कर आता है.

अगर वह केवल मुंबई के स्टैंप पेपर में एक प्रतिशत का भी हिस्सा ले लेता है तो 70 से 80 करोड़ रुपया कमाया जा सकता है और इसी प्लान के साथ तेलगी और कौशल अपना नया बिजनैस शुरू करते हैं.

दूसरे एपीसोड के शुरुआत में दिखाया गया है कि वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के वैश्वीकरण के कारण देश काफी आर्थिक प्रगति कर रहा होता है. लेकिन उसी दौरान बाबरी मसजिद विध्वंस के कारण मुंबई में दंगे हो रहे होते हैं तो दूसरी ओर तेलगी अपने साथी कौशल के साथ मिल कर नकली स्टैंप पेपर खपाने की योजना बना रहा होता है.

वह एक प्रैस में नकली स्टैंप पेपर छपवाता है और वाणी बंदर रेलवे स्टेशन के पहले पुणे से छप कर आने वाले ओरिजनल स्टैंप पेपर चोरी करवा कर उस की जगह नकली स्टैंप पेपर रखवा देता है, लेकिन उस ने जैसा सोचा था, उस हिसाब से वह स्टैंप पेपर बेच नहीं पाता.

नेता ने भी किया तेलगी को सहयोग

तब वह पुलिस से सांठगांठ करता है और स्टैंप पेपर वेंडर का लाइसेंस लेने के लिए विधायक तुकाराम से मिलता है, लेकिन वह भी उस का काम नहीं करवा पाता. विधायक तुकाराम का रोल समीर धर्माधिकारी ने किया है. इस बीच उस का अपने साथी कौशल से झगड़ा हो जाता है, क्योंकि तेलगी का ही नाम हो रहा था और उसे कोई नहीं जानता. इस झगड़े के बाद कौशल उसे छोड़ कर चला जाता है.

तीसरे एपीसोड में तेलगी स्टैंप पेपर वेंडर के लाइसैंस के लिए एक बार फिर विधायक तुकाराम से मिलता है और चुनाव के लिए उसे मोटी रकम देने के लिए कहता है. तब विधायक तुकाराम उसे गरिमा तलपड़े से मिलवाने यूनाइटेड शक्ति पार्टी के हैडऔफिस ले जाता है.

वेब सीरीज – बंबई मेरी जान (रिव्यू) – भाग 1

कलाकार: केके मेनन, सौरभ सचदेवा, नवाब शाह, विवान भटेना, कर्मवीर चौधरी, शिव पंडित, जितिन गुलाटी, सुमित व्यास, आदित्य रावल, कन्नन अरुणाचलम, निवेदिता भट्टाचार्य, अमाया दस्तूर, अविनाश तिवारी, कृतिका कामरा, जयसिंह राजपूत, सुनील पलवल, चैतन्य चोपड़ा, दिनेश प्रभाकर, लक्ष्य कोचर, चेष्टा भगत, तान्या खान झा, समारा खान, प्रिंसी सुधाकरन, गरिमा जैन

डायलौग: अब्बास दलाल और हुसैन दलाल

निर्देशक: शुजात सौदागर

निर्माता: कासिम जगमिगया, रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर

अभिनय के लिए जिस तरह केके मेनन को जाना जाता है वैसा अभिनय इस सीरीज में नहीं है. वेब सीरीज में जगहजगह बिखराव देखने को मिला. तीनों के चेहरे पर किसी तरह का पुलिसिया रौब दिखाई ही नहीं दिया. इसी एपिसोड में 2 नए किरदारों की एंट्री बेहद हास्यास्पद नजर आई.

दर्शकों का मूड सीरीज से ही ऊब चुका होता है. घटिया डायरेक्शन की इसे हम निशानी कह सकते हैं. यहां भी मेनन से ज्यादा डायरेक्टर की कमजोरी उजागर होती है. यहां डायरेक्टर की चूक है. लगता है उस की अक्ल खाली हो गई. यहां वेब सीरीज के डायरेक्टर सुजात सौदागर ने फिर जबरिया सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की है. कुल मिला कर कहानी यह है कि वेब सीरीज के डायरेक्टर इस पूरे घटनाक्रम में तारतम्य मिलाने में कामयाब नहीं हो सके. इस एपिसोड के एक हिस्से में भी डायरेक्टर की विफलता साफ दिखती है.

बंबई मेरी जान’ की कहानी फौजी पत्रकार एस. हुसैन जैदी की 2012 में प्रकाशित हुई किताब ‘डोंगरी टू दुबई’ के जरिए बनाई गई है. इसी किताब पर संजय गुप्ता ने भी फिल्म बनाई थी. जिस का नाम ‘शूटआउट ऐट वडाला’ था. यह किताब दाऊद इब्राहिम पर केंद्रित है, जो देश की आजादी से 2012 तक मुंबई के कुख्यात गैंगस्टरों पर लिखी गई है.

‘बंबई मेरी जान’ वेब सीरीज में डायलौग अब्बास दलाल और हुसैन दलाल ने दिए हैं. जैदी के बाद मुंबई के माफियाओं को हीरो बनाने के लिए कई किताबें बाजार में आ चुकी हैं. इन्हीं किताबों के अंश पर संजय लीला भंसाली ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से ले कर कई अन्य डायरेक्टर फिल्म बना कर जबरिया माफियाओं को नेताओं और अफसरों के कारिंदे बता चुके हैं.

वेब सीरीज के पहले एपिसोड की शुरुआत दारा कादरी से होती है. उस की पूरी फैमिली भारत छोड़ कर दुबई भागने की तैयारी में होती है, जहांं उस का पिता इस्माइल कादरी जाने से साफ इंकार कर देता है तो दारा और उस की पूरी फैमिली उस पर दुबई चलने के लिए दबाव बनाने लगती है.

तब इस्माइल कादरी गन निकाल कर दारा पर तान देता है. फिर बाद में उन्हें डराने के लिए वह गन अपनी कनपटी पर लगा लेता है. वह दारा को सलाह देता है कि तुम यहां से चले जाओ वरना अपने पीछे एक और लाश छोड़ कर जाओगे.

इस के बाद वेब सीरीज की कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. जहां पर इस्माइल कादरी को एक शादी समारोह में अपने दोस्तों के साथ दिखाया जाता है. इस्माइल कादरी की बीवी प्रेग्नेंट है, जो अपनी सहेलियों से बात कर रही होती है. यहीं बताया जाता है कि इस्माइल कादरी पुलिस वाला है.

शादी फंक्शन के दौरान एक कौमेडीनुमा और भद्दा सीन दिखाया जाता है. जहां केके मेनन यानी इस्माइल कादरी के तीनों बच्चे वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान लोगों पर बाथरूम करते हैं. ऐसा करते हुए एक बच्ची देख लेती है जो वेब सीरीज में आगे जा कर दारा कादरी की माशूका दिखाई जाती है. उस का नाम परी पटेल है. वेब सीरीज में परी पटेल का किरदार अमायरा दस्तूर ने निभाया है.

वेब सीरीज आगे बढ़ती है. शादी के दौरान ही हाजी मकबूल और अजीम पठान दोनों की एंट्री होती है. हाजी मकबूल की भूमिका सौरभ सचदेवा ने निभाई है. वहीं अजीम पठान का किरदार नवाब शाह ने निभाया है.

फिर वौइस ओवर में दोनों के बारे में जानकारी दी जाती है. इस से साफ है कि डायरेक्टर सुजीत सौदागर को अहसास हो गया था कि फिल्म काफी लंबी होने वाली है. हाजी मकबूल और अजीम पठान मुंबई में कुली का काम करता था.

उसी दौरान वह बहुत सारी चीजों की स्मगलिंग करने लगा. स्मगलिंग के दौरान ही वह कुछ सामान चोरी करने लगता है. धीरेधीरे कर के चुराए हुए पैसों से वह हज पर भी जाता है. यह बात डायरेक्टर ने बाकायदा वौइस ओवर के जरिए बताई है.

वेब सीरीज पहले ही एपिसोड से दर्शकों को बोर करने न लगे, इसलिए डायरेक्टर ने जगहजगह वौइस ओवर की मदद ली है. यह आवाज केके मेनन की है. आवाज के बीच मेनन यानी इस्माइल कादरी जो पुलिस अधिकारी बना है. वह हाजी मकबूल के इशारों पर अजीम पठान के सुपारी किलिंग के बाद ऐक्शन में दिखाया है.

जिस तरह के अभिनय के लिए केके मेनन को जाना जाता है वैसा अभिनय इस सीरीज में नहीं है. अगर आप मेनन के लिए सीरीज देखने के इच्छुक हैं तो निराशा हाथ लग सकती है. यहां डायरेक्टर का प्रभाव उस के अभिनय पर हावी दिखाई दिया.

डायरेक्टर ने पात्रों के साथ नहीं किया न्याय

अच्छे कलाकार की प्रतिभा के अनुरूप वेब सीरीज में उस से काम नहीं लिया गया. पुलिस की दमदार पर्सनैल्टी में खरा भी नहीं दिखा. क्लब पर दबिश देते वक्त उस का गेटअप पुलिस के बजाय टपोरी जैसा दिखाया गया है. पुलिस वरदी के 2 बटन खोल कर कौन अधिकारी अपने ही ओहदे के सीनियर अफसर को पकड़ता है. इसे देख कर लगता है कि डायरेक्टर ने या तो कोई नशा कर रखा होगा या उस का दिमाग पगला गया.

पहले एपिसोड में वेब सीरीज के कलाकारों की एंट्री एकएक कर के दिखाई गई है. डायरेक्टर किसी भी पात्र के साथ पहले एपिसोड में न्याय करते हुए दिखाई नहीं दिया. इस कारण वेब सीरीज में जगहजगह बिखराव देखने को मिला.

यह बात साबित करने के लिए पहले एपिसोड का केंद्रीय गृहमंत्री और राज्य के एक अधिकारी के बीच हुई बातचीत से पता चल जाती है. इसी बातचीत के बाद एक स्पैशल दस्ता बनता है, जिसे बंबई क्राइम क्लीन करने का टारगेट मिलता है. इस का प्रभारी इस्माइल कादरी को बनाया जाता है और टीम को पठान स्क्वायड कोड वर्ड दिया जाता है. यहां डायरेक्टर कास्टिंग चूक में चूकते हुए दिखाई दे जाता है.

दरअसल, इस्माइल कादरी के साथ टीम में दिखाए गए 2 अन्य अफसर पुलिस की आभा से दूर दिखे. तीनों के चेहरे पर किसी तरह का पुलिसिया रौब दिखाई ही नहीं दिया. इसी एपिसोड में 2 नए किरदारों की एंट्री बेहद हास्यास्पद नजर आई. यहां एक मोटा सेठ गरीब दिखने वाले व्यक्ति को पीट रहा होता है. उस की जेब से सेठ का बटुआ निकलता है.

उसे पीटते वक्त ही इस्माइल कादरी के तीनों नाबालिग बच्चे वहां पहुंच जाते हैं. बीचबचाव करते हुए उसे पीटने से रोकने का काम बच्चे करते हैं. यह दृश्य हटने के बाद पता चलता है कि पिट रहा व्यक्ति इस्माइल कादरी का साला है.

वह भांजों की मदद से बच तो जाता है, लेकिन मोटा सेठ से छूटने के बाद पता चलता है कि पर्स से नकदी वह पहले ही निकाल चुका होता है. अगले सीन में इस्माइल कादरी उसे डपट कर घर से भगाते हुए दिखाया गया.

एपिसोड का महत्त्वपूर्ण किरदार अब्दुल्ला बताया गया है. यह भूमिका विवान भतेना ने निभाई है. इस सीरीज में यही एकमात्र कलाकार है, जिस का योगदान कुछ खास दिखा. यूपी का रहने वाला अब्दुला पठान के अखाड़े में कुश्ती करता था. उसे पछाड़ने वाला पठान के गैंग में कोई नहीं था. जिस कारण ईर्ष्या के चलते दोनों पठान भाई उसे अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. लेकिन, हाजी मकबूल इस हुनर का काफी दीवाना दिखाया गया.

एपिसोड में एक जैसे दिखने वाले 3 सीन पुलिस रेड के दिखाए गए हैं, जिस में दर्शकों को कुछ भी नया नहीं मिलेगा. आखिरी रेड में जब सफलता हाथ लगती है, तब तक दर्शकों का मूड सीरीज से ही ऊब चुका होता है. घटिया डायरेक्शन की इसे हम निशानी कह सकते हैं.

दूसरे एपिसोड की शुरुआत हाजी मकबूल से होती है. रेड के बाद इस्माइल कादरी के घर आ कर उसे वह लालच दे कर साथ देने के लिए बोलता है, लेकिन हाजी मकबूल को शैतान बोल कर उसे अपमानित करने लगता है. अपनी कहानी सुना कर वह अपने साथ मिल कर काम करने के लिए उकसाता है, लेकिन हाजी मकबूल की बातों का असर उस पर नहीं होता. वह उसे घर से निकाल देता है.

जब वह बाहर जा रहा होता है, तब कादरी के तीनों बच्चे आ जाते हैं, जो हाजी मकबूल के ड्राइवर से बहस करते हैं. यह बेतुका सीन डायरेक्टर ने जबरदस्ती क्रिएट किया है. दूसरे एपिसोड में डायरेक्टर द्वारा इस्माइल कादरी के साले के जरिए उस के ईमानदार होने की फिर एक बार जबरिया पटकथा लिखी जाती है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 1

डायरेक्टर: रूचिका ओबेराय, रीमा कागती

लेखक: रीमा कागती

स्क्रीन राइटर: रितेश शाह, मानसी जैन, सुनयना कुमारी, करण शाह, चैतन्य चोपड़ा, सुमित अरोड़ा

प्रोड्यूसर: फरहान अख्तर, रीमा कागती, जोया अख्तर, रितेश सिंघवानी

कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, विजय वर्मा, गुलशन देवैया, सोहम शाह

दहाड़ वेब सीरीज की कहानी राजस्थान के मंडावा में लगातार हो रही हत्याओं के इर्दगिर्द रही है. अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) इन हत्याओं की जांच करती हैं. इस में सब से अनोखी बात यह है कि कातिल हत्याओं को सार्वजनिक शौचालय में अंजाम देता है. शुरुआत में ऐसा लगता है कि घटना आत्महत्या है, लेकिन एक के बाद एक मिल रही लाशें इसे सीरियल किलिंग का सबूत देती हैं.

‘दहाड़’ वेब सीरीज एक सच्ची कहानी है. फिल्म में विजय वर्मा का किरदार आनंद स्वर्णकार ने निभाया है, जो एक महिला कालेज में प्रोफेसर है. वह वास्तविक जीवन में सीरियल किलर मोहन कुमार से प्रेरित है, जिसे साइनाइड मोहन के नाम से भी जाना जाता है. साइनाइड मोहन पर 2003 से 2009 तक कर्नाटक में 20 महिलाओं की हत्या का आरोप है.

प्राइम वीडियो की वेब सीरीज ‘दहाड़’ में अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा अंजलि भाटी एक दरोगा बनी है. केस है उस के पास एक लापता लड़की के मामले की जांच का. कहानी में आगे पता चलता है कि आसपास के तमाम जिलों की दरजनों लड़कियां लापता हैं.

सीरीज में विजय वर्मा विलेन के किरदार में है. इस सीरीज की कहानी एक असल घटना पर आधारित है. और विजय वर्मा ने जिस अपराधी का किरदार निभाया है, वह भी एक स्कूल में टीचर ही था. चलिए हम आप को बताते हैं इस खूंखार कातिल के बारे में.

मोहन कुमार एक 57 वर्षीय हिंदी विषय का अध्यापक था, जो कर्नाटक के मंगलोर में रहता था. ज्यादातर वहीं आसपास की लड़कियों को वह टारगेट करता था. मोहन 25 से 30 वर्ष की महिलाएं, जो अविवाहित होती थीं, उन को ही निशाना बनाता था.

मोहन उन लड़कियों से संपर्क करता था, उन से दोस्ती करता था और फिर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए फंसाता था. फिर वह उन्हें गर्भधारण से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोली लेने के लिए कहता था. वह गोलियों में पोटैशियम साइनाइड मिला देता था. यानी गोली के जरिए वह महिलाओं को मार देता था.

उस ने पुलिस और किसी भी संदेह से बचने के लिए महिलाओं से सार्वजनिक शौचालय में गोलियां लेने के लिए कहा. वह महिलाओं को इन गोलियों को शौचालय के अंदर लेने के लिए कहता था, क्योंकि गोली लेने के बाद उल्टी होने की संभावना रहती थी.

पीड़िता की मौत के बाद वह उन के आभूषण लूट कर भाग जाता था. इन महिलाओं के लिए मोहन की अनूठी पेशकश यह थी कि वह दहेज मांगे बिना उन से शादी करेगा. उस की यह रणनीति उन महिलाओं पर काम करती थी, जो युवा और अविवाहित थीं क्योंकि उन के मातापिता दहेज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे. महिलाओं को ठिकाने लगाने के लिए साइनाइड के इस्तेमाल के कारण मोहन कुमार को साइनाइड मोहन के नाम से जाना जाने लगा.

‘दहाड़’ में विजय वर्मा का चरित्र युवा अविवाहित महिलाओं को निशाना बनाने, होटल में एक रात बिताने और उन्हें साइनाइडयुक्त जहर देने की उसी पद्धति का पालन करता है, जिस से उन की मृत्यु हो जाती है.

पुलिस 2009 में एक लापता लड़की अनीता (22 वर्ष) के मामले की जांच कर रही थी और उस के फोन काल के आधार पर पुलिस जो कुछ जानकारी हासिल करना चाहती थी, उस से कहीं अधिक पुलिस को जानकारी मिल गई.

अनीता के फोन रिकौर्ड से पता चला कि वह एक अन्य लड़की कावेरी के संपर्क में थी, लेकिन कावेरी भी गायब थी. इस से पुलिस को उस व्यक्ति का पता चल गया जो उस लड़की का सेलफोन इस्तेमाल कर रहा था. यह वह व्यक्ति था, जो पुलिस को कर्नाटक में मंगलोर के पास एक गांव में मोहन कुमार के घर तक ले गया था.

पुलिस को मोहन कुमार के पास से 8 साइनाइड टैबलेट, 4 मोबाइल फोन और अनीता के आभूषण मिले. पुलिस ने मोहन को हिरासत में लिया. उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस पर न केवल अनीता के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया, बल्कि 17 लापता लड़कियों के मामलों को फिर से खोलने का फैसला किया.

2009 में मोहन कुमार की गिरफ्तारी के बाद उस पर 2 साल तक मुकदमा चलाया गया और 2013 में उसे अनीता की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और फांसी की सजा सुनाई गई. लेकिन कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 2017 में उस की मौत की सजा को घटा कर आजीवन कारावास में बदल दिया.

फिलहाल मोहन हत्या के 15 मामलों में बेलगावी के हिंडाल्गा सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा भुगत रहा है. यह सत्य घटना कर्नाटक की है, मगर ‘दहाड़’ वेब सीरीज में इन घटनाओं को मंडावा के आसपास के जिलों यानी राजस्थान की दिखाया गया है.

पता नहीं वेब सीरीज बनाने वालों को क्या पागल कुत्ते ने काटा था जो कर्नाटक की सत्यघटना को राजस्थान में फिल्माया. जोया अख्तर और रीमा कागती के प्रोडक्शन में बनी वेब सीरीज ‘दहाड़’ के जरिए सोनाक्षी सिन्हा ने ओटीटी पर एंट्री की है. 8 एपिसोड की इस वेब सीरीज में सीरियल किलर के अवतार में विजय वर्मा को लिया है. सोनाक्षी सिन्हा इस सीरीज में ‘लेडी सिंघम’ यानी पुलिस वाली के किरदार में नजर आई है.

इस वेब सीरीज में एक सीरियल किलर की कहानी है, जो लड़कियों को मार रहा है. किलर के अवतार में नजर आए हैं एक्टर विजय वर्मा. वेब सीरीज में राजस्थान के मंडावा की कहानी दिखाई है, जहां एक भाई अपनी बहन के लापता होने की रिपोर्ट लिखाने मंडावा थाने आता है. इसी बीच एक लव जिहाद का मामला भी सामने आया है, क्योंकि ठाकुरों की लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है.

पुलिस इस लड़की को ढूंढना शुरू करती है और उसी लड़की को ढूंढतेढूंढते पुलिस को पता चलता है कि ऐसी एकदो नहीं, बल्कि कई लड़कियां अपनेअपने घरों से भागी हैं और बाद में इन के साइनाइड खा कर सुसाइड करने की खबर सामने आती है.

कुल 29 लड़कियों की सेम पैटर्न में मौत हुई है और धीरेधीरे पता चलता है कि ये सुसाइड नहीं, बल्कि सीरियल किलिंग का मामला है. इन सारे मामलों की छानबीन कर रही है मंडावा पुलिस थाने की एसआई अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा). उस का साथी पारगी (सोहम शाह) उन्हें ज्यादा पसंद नहीं करता, जबकि अंजलि पर एसएचओ देवीलाल सिंह (गुलशन देवैया) थोड़ा सौफ्ट कौर्नर रखता है, इसलिए सारे जरूरी केस उसे ही देता है.

इस वेब सीरीज का हर एपिसोड लगभग 55-56 मिनट का है. शुरुआत से 2 एपिसोड में लगता है कि मामला हिंदू मुसलिम लव ऐंगल और लव जिहाद वाले ऐंगल को टटोल रहा है, लेकिन तीसरे एपिसोड से कहानी का पूरा रुख सीरियल किलर की तरफ मुड़ जाता है. लव जिहाद और सीरियल किलिंग के इस मामले में बीचबीच में जाति व्यवस्था की भी बातें सामने आई हैं.

स्कैम 2003 : द तेलगी स्टोरी (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 1

प्रोड्यूसर : हरिलाल जे. ठक्कर

डायरेक्टर: तुषार हीरानंदानी

लेखक: करण व्यास

कहानी: केदार पटनाकार, किरण

सिनेमैटोग्राफी: स्टेनली मुद्दा

म्यूजिक: इशान चाबड़ा

आर्ट डायरेक्शन: फोरम सनूरा

कास्ट्यूम डिजाइन: अरुण जे. चौहान

कलाकार :  गगन देव रियार, मुकेश तिवारी, सना अमीन शेख, नंदू माधव, समीर धर्माधिकारी, जादव, शाद रंधावा, किरन करमाकर, इरावती हर्षे, पंकज बेरी, तलत अजीज, अमन वर्मा, दिनेश लाल यादव, कोमल छाबरिया, भावना बलसावर

साल 2020 में हंसल मेहता और तुषार हीरानंदानी की जोड़ी “स्कैम 1992’ में हर्षद मेहता की कहानी ले कर आई थी. हर्षद मेहता ऐसा शख्स था, जिस की वजह से स्टाक एक्सचेंज, सेबी और यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक की नींद हराम हो गई थी.

हंसल मेहता शायद अपनी इस सीरीज में यह दिखाना चाहते थे कि हमारे यहां इस के पहले ऐसा नहीं हुआ था. हमारे यहां बायोपिक बनाने के लिए उन लोगों को चुना जाता है, जिन्होंने अपने जीवन में कुछ कमाल किया हो. कमाल शब्द का प्रयोग अधिकतर पौजिटिव मामलों में किया जाता है. हर्षद मेहता अपनी कहानी का हीरो और देश का विलेन था, लेकिन इन की मौलिकता को ले कर जेहन में अनेक सवाल उठते हैं.

उसी तरह अब 3 साल बाद एक बार फिर तुषार हीरानंदानी “स्कैम 2003: द तेलगी स्टोरी’ (टीवी सरीज 2023) के साथ हाजिर है. इस बार कहानी घोटालेबाज अब्दुल करीम तेलगी की है, जिस ने सरकारी फरजी स्टैंप पेपर छापने शुरू कर दिए थे. कहा जाता है कि उस ने 30 हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया था.

ट्रेन में घूमघूम कर फल बेचने वाला अब्दुल करीम तेलगी अचानक अरबपति बन गया था. यह ऐसा कांड था कि पुलिस से ले कर सरकारें तक उस के पीछे पड़ गई थीं. जबकि यही वे लोग थे, जिन्होंने उसे इतना बड़ा अपराधी बनने दिया था.

तेलगी के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत वाकपटु था. उसे बातें बनानी आती थीं. अपनी इसी कला का इस्तेमाल उस ने पैसा बनाने में किया था. जबकि वह खुद को अमीर दिखाने में विश्वास नहीं करता था. इतना बड़ा कांड कर के बेइंतहा पैसा कमाने के बावजूद वह एकदम साधारण कपड़ों में दिखाई देता था. वह मटीरियलिस्टिक आदमी नहीं था. वह बालबच्चेदार, परिवार वाला था.

अब्दुल करीम तेलगी को इस सीरीज में ठीक उसी तरह दिखाने की कोशिश की गई है, मगर तमाम कोशिशों और वन लाइनर्स के बावजूद यह सीरीज उतनी एंटरटेनिंग नहीं बन पाई. इस की वजह यह है कि फरजी स्टैंप पेपर छापना कोई मजेदार काम नहीं है.

हालांकि सीरीज में इस विषय पर बहुत डिटेल में दिखाया गया है, पर डायरेक्टर को सोचना चाहिए था कि दर्शकों को इस में क्या आनंद आएगा. जबकि अब तो स्टैंप ई-पेपर आ गए हैं. कहां छपते हैं, कैसे छपते हैं, कैसे बाजार में आते हैं, यह सब सीरीज में जरूर दिखाया गया है, लेकिन अब यह दर्शकों के मतलब की चीज नहीं रह गई है. इस के अलावा तेलगी भी कोई मजेदार आदमी नहीं था, जिस से दर्शक कुछ सीख सकें.

“स्कैम 2003’ तेलगी के आसपास की दुनिया को बड़े करीब से देखती है. पर यह समझ में नहीं आता कि तेलगी का जो मकसद था, वह क्यों था? यह सब सीरीज में साफ नहीं हो पाता. यह बात सच है कि वह बहुत गरीब परिवार से था, जहां उसे भरपेट खाना भी नहीं मिलता था. वह पैसों का भूखा था. सीरीज में उस की कहानी को क्रम से दिखाया गया है, पर ऐसे तमाम दृश्य हैं, जिन्हें देख कर लगता है कि यह ओवर हो गया है.

दर्शकों की सोच नहीं समझ पाया डायरेक्टर

अपराध कथाओं पर सीरीज बनाने में डायरेक्टर यह नहीं देखते कि दर्शक क्या पसंद करता है या क्या चाहता है. सभी जिस अपराधी के अपराध को ले कर सीरीज बना रहे होते हैं, अपना पूरा ध्यान उसी पर देते हैं. जबकि दर्शक पुलिस की कारवाई और नेताओं की भूमिका को ज्यादा देखना चाहते हैं. यही गलती हंसल मेहता ने भी की है.

उन्होंने सिर्फ तेलगी को और उस के कारनामों को दिखाया है, जबकि पुलिस और नेताओं के कारनामों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. जबकि दर्शक यह जानना चाहता है कि पुलिस को तेलगी के कारनामों का कैसे पता चला? तेलगी ने पुलिस को पटाया, नेताओं से कैसे दोस्ती की?

डायरेक्टर ने इस तरह की बातों पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. इसलिए सीरीज एकदम बकवास हो गई है. अगर इन बातों पर ध्यान दिया होता तो यह सीरीज कुछ सही बन सकती थी, जिसे दर्शक पसंद भी करते.

यह सत्यकथा पत्रकार संजय सिंह की लिखी किताब “तेलगी स्कैम: रिपोर्टर की डायरी से’ ली गई है. सीरीज की कहानी तेलगी के 30 हजार करोड़ के स्टांप पेपर घोटाले को ले कर है, जिस में अब्दुल करीम तेलगी के ऊंचाइयों तक पहुंचने से ले कर जेल तक की यात्रा की कहानी है.

ट्रेन में घूमघूम कर फल बेचने वाला अब्दुल करीम तेलगी एक दिन देश का सब से बड़ा कुख्यात घोटालेबाज बनेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. अब्दुल करीम तेलगी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. मजे की बात यह है कि वह अन्य घोटालेबाजों के विपरीत ऐसा इंसान नहीं था, जिस की पर्सनैलिटी या लाइफस्टाइल चर्चा में रही हो. फिर भी वह हजारों करोड़ रुपए के घोटाले का सरगना बना.

तेलगी की सरलता, सादगी को देख कर कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि वह इतना बड़ा घोटालेबाज हो सकता है. तेलगी एक रिलेटेबल आदमी था. वह ऐसा आदमी था, जिसे भीड़ में देख कर कोई नोटिस नहीं कर सकता था. उस ने अपने इसी आम आदमीपन को इस्तेमाल किया था. वह खुद को चूहा बोलता था, क्योंकि उसे शेर नहीं बनना था. शेर का शिकार किया जा सकता है, चूहे का नहीं.

हर पैसा बनाने वाले, क्राइम करने वाले की पर्सनैलिटी आकर्षक हो, यह जरूरी नहीं है. इसलिए इस सीरीज की शुरुआत तो फुल स्पीड में होती है, मगर दूसरे, तीसरे एपीसोड तक पहुंचते पहुंचते बोरियत होने लगती है. पांचवें एपीसोड में रफ्तार हासिल करती है, पर बीच के 2 एपीसोड इतने भारी पड़ जाते हैं कि सीरीज से जुड़ाव कमजोर पड़ जाता है.

यह एक ऐसे आदमी की कहानी है, जो ख्वाब को जिंदगी से बढ़ कर मानता है. उस का कहना है कि इंसान को जिंदगी एक ही मिलती है और इस जिंदगी में सपने पूरे नहीं किए तो जिंदगी अधूरी रह जाएगी. सीरीज की शुरुआत अब्दुल करीम के नारको टेस्ट से होती है. उसे डाक्टर एक इंजेक्शन लगाता है और वह अर्धबेहोशी की हालत में चला जाता है फिर डाक्टर पूछता है कि तुम्हारे साथ कौन कौन पौलिटिशियन इस स्कैम में शामिल थे?

तब तेलगी कहता है, “पौलिटिशियंस आर द बैक बोन औफ द बिजनैस.’

इस के बाद कहानी फ्लैशबैक में चलती है. तेलगी अपनी कहानी सुनाता है. कर्नाटक का खानपुर, जहां बीकौम कंपलीट करने के बाद तेलगी ट्रेन में फल बेचा करता था और अपनी वाकपटुता तथा मीठीमीठी बातों से सारे फल बेच दिया करता था. तभी शौकतभाई से उस की मुलाकात होती है.

वह उसे अपनी बीकौम की डिग्री के फोटोस्टेट में फल देता है, जिस से उस की काबीलियत का पता चलता है यानी फ्री की मार्केटिंग. अब्दुल करीम तेलगी की भूमिका गगनदेव रियार ने की है. इस की वजह यह है कि देखने में वह तेलगी जैसा लगता है. उस की पर्सनैलिटी भी तेलगी जैसी ही है.

वेब सीरीज : कोहरा (रिव्यू) – भाग 4

ओटीटी पर प्रदर्शित ‘कोहरा’ को ले कर कई बातें अब धीरेधीरे सामने आने लगी हैं. इस वेब सीरीज को अनुपमा चोपड़ा ने लिखा है. वह पत्रकार भी हैं. इस के अलावा उन्होंने फिल्म जगत को ले कर कई किताबें भी लिखी हैं. वह काफी चैनलों के लिए फिल्म समीक्षा का भी काम करती हैं.

उन की कहानी पर ही रणदीप झा ने ‘कोहरा’ प्रोजेक्ट लांच किया था. रणदीप झा इन दिनों चर्चा में हैं. उस की वजह कई हैं. जिस में से एक प्रमुख यह है कि उन की अंगरेजी काफी तंग हैं. यह बात एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू के दौरान देखने को भी मिली थी.

यह इंटरव्यू हाल ही में रिलीज ‘कोहरा’ वेब सीरीज को ले कर कई चैनलों में दे रहे थे. ‘कोहरा’ वेब सीरीज मर्डर मिस्ट्री पर बनाई गई है.

इस सीरीज के कलाकार

इस में वरुण वडोला, मनीष चौधरी, सौरभ खुराना समेत अन्य ने भूमिका निभाई हैं. सौरव खुराना 2020 में प्रदर्शित फिल्म ‘दिल बेचारा’ में बतौर कलाकार और सहायक निर्देशक की भी भूमिका निभा चुके हैं.

वहीं ‘कोहरा’ के केंद्र बिंदु में इस वक्त रणदीप झा का नाम पहले लिया जा रहा है. निर्देशक रणदीप झा जो बौलीवुड के लिए अनजान चेहरा नहीं हैं.

मुंबई में जन्मे रणदीप झा ने लघु फिल्म से ले कर फिल्म और वेब सीरीज बना कर अपनी विशेष पहचान बनाने का प्रयास किया. वह फिल्म में जगत में अभी तक कोई हिट हासिल नहीं कर सके हैं. जिस के लिए वह लगभग एक दशक से काफी संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने अनुराग कश्यप के साथ सिनेमाटोग्राफी का कोर्स भी किया है. यह कोर्स उन्होंने बैरी जौन के थिएटर ग्रुप से किया था.

अनुराग कश्यप भी सामाजिक बुराइयों पर केंद्रित फिल्मों में काम करते हैं. उन के मुकाबले रणदीप झा अभी तक कोई मील का पत्थर फिल्म के जरिए नहीं रख सके हैं. इस के साथ ही कई फिल्मों में सहायक निर्देशक की भूमिका में काम किया. रणदीप झा की पहली फिल्म ‘हलाहल’ थी.

यह फिल्म मध्य प्रदेश के चर्चित व्यापमं घोटाले पर केंद्रित थी. फिल्म के जरिए शिक्षा माफिया के खेल को बताने का प्रयास किया गया था. यह 2020 में रिलीज हुई थी. जिस के बाद वे कई लोगों की निगाह में आने लगे. इस से पहले 2012 में बनी ‘शंघाई’ फिल्म में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी.

रणदीप झा एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार से हैं. वह मुख्यरूप से एक सहायक निर्देशक या एक निर्देशक के रूप में काम करते हैं. लेकिन इस के अलावा उन्होंने विभिन्न फिल्मों में कैमियो भूमिकाएं भी की हैं. उन्होंने 2012 में राजनीतिक थ्रिलर फिल्म ‘शंघाई’ में दिबाकर बनर्जी की सहायता की.

2 साल बाद उन्होंने फिल्म ‘अग्ली’ में अनुराग कश्यप के मार्गदर्शन में दूसरे सहायक निर्देशक के रूप में काम किया. वर्तमान में वह एक स्वतंत्र निदेशक हैं. निर्देशन के अलावा बतौर कलाकार 2015 में आई ‘हीरो’ फिल्म में भी काम किया था. उन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘कर्ता’ लघु फिल्म भी सुर्खियों में रही थी.

लघु फिल्म ‘कर्ता’ महज 20 मिनट की है. जिस को उन्होंने खुद लिखा और निर्मित किया है. कोहरा में बरून सोबती के साथ उन्होंने दूसरी बार काम किया है. इस से पहले 2020 में रिलीज ‘हलाहल’ में दोनों ने एक साथ काम किया था.

बरुन सोबती

बरुन सोबती एक भारतीय अभिनेता हैं, जिन्हें टीवी सीरियल में काफी लोकप्रियता हासिल है. सोबती का जन्म 30 अगस्त, 1984 को दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत साल 2009 में की थी. उन्हें पहला मौका स्टार प्लस पर ‘श्रद्धा’ टेलीविजन शो में मिला था. इस के बाद उन्होंने ‘बात हमारी पक्की है’ और ‘दिल मिल गए’ जैसे टीवी सीरियल में काम किया. शानदार अभिनय के चलते बरुन सोबती को साल 2012 में बेस्ट पापुलर एक्टर के लिए इंडियन टेलीविजन अकैडमी अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था.

उन के परिवार में पिता राज सोबती तथा मां वीनू सोबती है. इस के अलावा उन के परिवार में उन की बड़ी बहन रिचा अरोरा है. अगर बात करें बरुन सोबती की प्रारंभिक शिक्षा की तो उन्होंने पश्चिम विहार के सेंट मार्क स्कूल से पढ़ाई की है. उन की शादी को ले कर बहुत दिलचस्प वाकया भी है. बरुन सोबती की पत्नी का नाम पश्मीन मनचंदा है, जिन की शादी दिसंबर 2010 को एक गुरुद्वारे में हुई थी.

बताया जाता है कि बरुन सोबती ने अपनी पत्नी पश्मीन मनचंदा से पहली बार मुलाकात अपने स्कूल में की. इस रिश्ते को लंबे समय तक चलने के बाद एकदूसरे से शादी की. वर्तमान में इन की एक बेटी है, जिस का नाम सिफत है.

टीवी जगत की दुनिया में आने से पहले चर्चित इस कलाकार ने 7 साल तक जिंदल टेलीकाम में एक संचालन प्रबंधक के रूप में काम किया था. इस के बाद उन्होंने अपने एक्टिंग करिअर की शुरुआत की. टेलीविजन के बाद बरुन सोबती ने फिल्म इंडस्ट्री में भी अपना हाथ आजमाया. टीवी जगत और ओटीटी के स्टार बनने के अलावा उन्होंने अपने थिएटर में भी परचम फहराया है. उन की 2014 में ‘मैं और मिस्टर राइट’ चर्चित नाटक रहा है.

इस के बाद उन्होंने साल 2016 में ‘तू है मेरा संडे’ में अर्जुन आनंद का बेहद खूबसूरत रोल निभाया है. इस थिएटर के बाद 2019 में ‘22 यार्ड’ में अभिनय करते हुए नजर आए. ओटीटी की दुनिया में 2020 में उन के सितारे गर्दिश में पहुंच गए. एमेजान पर आई ‘असुर’ वेब सीरीज में निखिल नायर का किरदार निभाया, जिसे दर्शकों ने बहुत ज्यादा पसंद किया था. इस का दूसरा सीजन 2023 में आया, जिस ने पहले सीजन से भी ज्यादा सुर्खियां बटोरीं. उन्होंने 2020 ‘हलाहल’ वेब सीरीज में इंसपेक्टर यूसुफ कुरैशी का अभिनय किया.

इस सीरीज ने इन की इमेज फिल्म दुनिया में पुलिस औफिसर के किरदार के लिए डायरेक्टरों की पहली पसंद बना दिया है.

रचेल शैली

आप को आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ याद ही होगी. उस फिल्म में एक गाना है ‘ओ री छोरी मान भी ले बात मोरी…’ इस गीत में अंगरेजी गाने पर अपनी फीलिंग बता रही गोरी मेम. यह अमेरिका की मशहूर कलाकार है. ‘लगान’ फिल्म में वह एलिजाबेथ बनती है, जिस के बारे में बहुत लोग ज्यादा नहीं जानते हैं.

इस फिल्म के बाद वह बौलीवुड में दिखाई भी नहीं दी थी. हालांकि 2 दशक बाद हौलीवुड में चर्चित रहने वाली मौडल, अभिनेत्री और लेखिका रचेल शैली एक बार फिर सुर्खियों में हैं. उन्होंने बौलीवुड में ओटीटी के जरिए फिर फिर एंट्री मारी है.

यहां उन से जुड़ी कई बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं. रचेल शैली ने आशुतोष गोवारिकर की सुपरहिट फिल्म ‘लगान’ में काम किया था. उन का चयन अभिनेता आमिर खान और गोवारिकर ने लंदन में जा कर किया था. यह फिल्म जून, 2001 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में आधे से ज्यादा कलाकार ब्रिटिश मूल के नागरिक थे.

इस से पहले अमेरिका और यूके में रचेल शैली टीवी और फिल्म इंडस्ट्रीज में जानामाना चेहरा थी. रचेल शैली 54 वर्ष की हैं और वह बौलीवुड और हौलीवुड में 3 बार ब्रेक ले कर पारिवारिक जीवन को सफल बनाने में जुटी रही. उन्होंने शादी नहीं की है लेकिन लिवइन पार्टनर मैट लेब्लैंक के साथ उन के किस्से काफी चर्चा में रहते थे. अभी उन के पार्टनर मैथ्यू पार्खिल है.

रचेल ने एक बेटी को भी जन्म दिया है. बच्ची के लिए फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने किनारा किया था. लिवइन पार्टनर अमेरिका में टीवी जगत के स्टार हैं. रचेल शैली का जन्म इंग्लैंड में हुआ था और शिक्षा लंदन में हासिल की थी. वह परिवार में सब से छोटी हैं.

लंदन के ड्रामा स्कूल से 1992 में उन्होंने पढ़ाई की थी, जिस के बाद थिएटर के द्वारा अभिनय की दुनिया में उन्होंने शुरुआत की थी. जब वह सफल हो रही थीं तभी 3 साल यानी 1997 तक फिल्म और टीवी सीरियलों से ब्रेक ले लिया. इस के बाद फिर उन्होंने टीवी और फिल्म जगत में वापसी की. दूसरी पारी में उन के 2 दरजन से अधिक टीवी सीरियल अमेरिका के कई निजी चैनलों पर आते थे. उन्हें टीवी सीरियल हेलेना पिबौडी से काफी सुर्खियां मिली थीं. यह सीरियल कई साल चला था. टीआरपी के कारण उन की चैनलों में काफी डिमांड होने लगी थी.

‘लगान’ फिल्म की शूटिंग के लिए वह लंदन से भारत के गुजरात में स्थित भुज शहर में आ कर ठहरी थी. रचेल शैली ने अब बौलीवुड में ओटीटी में प्रदर्शित ‘कोहरा’ के जरिए अपने आप को रिलांच किया है. वह वेब सीरीज में लियोम की मां का किरदार निभा रही हैं.

वेब सीरीज में दर्शकों को वह केवल 4-5 सीन में देखने को मिलीं. लियोम जोकि वेब सीरीज में समलैंगिक होने का अभिनय कर रहा है. वहीं असली जीवन में रचेल शैली एलजीबीटीक्यू यानी समलैंगिक संगठनों के लिए पूर्व से काम करती चली आ रही हैं. वेब सीरीज में उन का रोल काफी सीमित रखा गया है. जबकि वह भारत के लिए जानामाना चेहरा हैं. इस के अलावा लंदन और यूके में उन के अभिनय की काफी सराहना की जाती है.

डायरेक्टर रणदीप झा ने चर्चित कलाकार के प्रशंसकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम किया है. वेब सीरीज में डायरेक्टर ने उन के चर्चित चेहरे को प्रमोशन के लिहाज से लिया हुआ प्रतीत होता है. ताकि उन के चेहरे के जरिए वह वेब सीरीज को अंतराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचा सकें. क्योंकि कई भारतीय मूल के नागरिक उन के बहुत ज्यादा प्रशंसक हैं.

वेब सीरीज : कोहरा (रिव्यू) – भाग 3

जैसे वेब सीरीज अंतिम पड़ाव की तरफ जाती है, तब हैप्पी को ब्लैकमेल करने वाला बस ड्राइवर पैसे छीन कर भागता है. उस की लाश अंत में नाले से बरामद होते दिखाई है. जिस का पूरी वेब सीरीज में कहीं भी कोई सिरा नहीं मिलता है. उस की हत्या का कनेक्शन कहीं भी देखने को नहीं मिला. इस से साफ है कि डायरेक्टर वेब सीरीज बनाते वक्त भूल जाते हैं कि वे मर्डर मिस्ट्री पर फिल्म बना रहे हैं.

वेब सीरीज में नई कड़ी एक नए ट्रक ड्राइवर के रूप में जुड़ती है, जिस का हेल्पर ट्रक से उतर कर देखता है कि बंपर पर खून के धब्बे लगे हैं. यह देख कर ‘खून साफ करो’ कहते हुए शोर मचाने लगाता है. यहां पात्र और उस का अभिनय बताता है कि डायरेक्टर को इस कमी का अहसास ही नहीं हुआ. इस के अलावा बहुत जल्दीजल्दी नए कैरेक्टर वेब सीरीज में आने लगते हैं.

पुराने सारे किरदार और घटनाएं गायब होती हैं, जबकि वेब सीरीज में मर्डर मिस्ट्री का खुलासा ट्रक में काम करने वाले हेल्पर के जरिए ही होता है. लेकिन डायरेक्टर थ्रिल पैदा करने में नाकाम साबित हुए. काफी उबाऊ तरीके से इस दृश्य का फिल्मांकन किया गया.

तफ्तीश के दौरान पुलिस अधिकारी गरूंडी सिंह को ट्रक ड्राइवर की बीवी का एक सीन दिखाया गया है, जिस को डायरेक्टर ट्रक ड्राइवर की बीवी के जरिए यहां फिर वेब सीरीज को ‘ए’ सर्टिफिकेट पाने के लिए सीन क्रिएट करते हैं. यहां ट्रक ड्रायवर की बीवी एक डायलौग पुलिस अधिकारी को मारती है.

डायरेक्टर ने यदि उस में कोई क्रिएटिविटी की होती तो आशुतोष राणा या फिर अक्षय कुमार जिन्होंने किन्नर की भूमिका निभा कर अपनीअपनी फिल्म को सुपरहिट कर दिया था. दरअसल, ट्रक ड्राइवर को महिलाओं के बजाय किन्नरों में शौक होना दिखाया गया है. यह सारे सीन देख कर हम यकीन से कह सकते हैं कि वेब सीरीज का टाइम बढ़ाने के लिए ट्रक ड्राइवर और उस की बीवी के जरिए ऐसा किया है.

वेब सीरीज में गरूंडी सिंह के 2 जबरिया सेक्स सीन डाले गए हैं. इसी तरह फिल्म की शुरुआत में सेक्स सीन डायरेक्टर ने डाला. जिस का मर्डर हुआ, उस के मंगेतर के साथ भी जबरिया 2 सेक्स सीन वेब सीरीज में बनाए गए. डायरेक्टर रणदीप झा को यह लगता है कि फिल्म अभी भी छोटी हो रही है तो वे फिर एक नई कहानी को पैदा करते हैं. यह कहानी पुलिस अधिकारी गरूंडी सिंह के साथ बनाई गई.

गरूंडी सिंह, जिस के भाभी से रिश्ते बनते थे, शादी करने जा रहा होता है. इस बात से उस की भाभी खफा होती है. फिल्म में थ्रिलर की आड़ में सिलेंडर को फोड़ा गया. ऐसा गरूंडी सिंह की भाभी ने किया था. इसी सीन से डायरेक्टर पुलिस अधिकारी बलवीर सिंह पर ले जाते हैं.

वह जब गरूंडी सिंह से मिल कर बाहर आते हैं तो तेज रफ्तार ट्रक उन की कार को उड़ा देता है. उस के भीतर बलवीर सिंह पोते के साथ होते हैं, लेकिन डायरेक्टर उन के जाते वक्त पोते को दिखाना ही भूल गए. इस दुर्घटना के बाद उन को अगवा भी कर लिया जाता है. अपहरण करने वाले फोन बंद करना भूल जाते हैं. ऐसा डायरेक्टर के दिमाग की उपज है. जबकि पेशेवर बदमाश मोबाइल को पहले ही कब्जे में ले कर बंद कर देते हैं.

फिल्मांकन में दिखीं खामियां

यहां एक और अतिशयोक्ति डायरेक्टर ने दिखाई. गरूंडी सिंह मोबाइल काल डिटेल के जरिए बलवीर सिंह को अपने दम पर छुड़ा लाता है. अधिकांश वेब सीरीज सत्य घटनाओं पर केंद्रित होती हैं. इस के बावजूद डायरेक्टर को लगा कि वे रोहित शेट्टी को पीछे छोड़ सकते हैं. शायद यह दृश्य फिल्माते वक्त उन्हें ‘सिंघम’, ‘सूर्यवंशम’ और ‘राउडी राठौर’ याद आ गए. वह भूल ही गए कि फिल्म नहीं, बल्कि वह तो वेब सीरीज बना रहे हैं.

फिल्म का क्लाईमेक्स भी बहुत ज्यादा कमजोर रहा. अचानक ट्रक ड्राइवर यह कुबूल कर लेता है कि कोहरे के कारण दिखाई नहीं देने पर एक गोरा व्यक्ति टकराया था, जिस से उस की मौके पर मौत हो गई थी. यह गोरा लियाम था जोकि एनआरआई पौल का दोस्त था.

ड्राइवर के बताने पर उस की लाश बताई गई. लाश मिलने वाला दृश्य काफी हास्यास्पद तरीके से डायरेक्टर ने शूट कराया है. लाश काफी पुरानी हो जाती है इस के बावजूद फिल्म में ग्लव्स या मास्क पहने बिना ही अधिकारी जांच करते दिखाए गए हैं. वास्तविकता पैदा करने का डायरेक्टर ने बिलकुल भी प्रयास नहीं किया.

क्लाइमेक्स में भी सीन के जरिए बताने के बजाय कपोल कल्पनाओं में उसे दिखाया गया. जिस से लगता है कि आखिरी दौर में ‘कोहरा’ का बजट लगभग खत्म हो गया था. यह सारी कपोल कल्पनाएं बलवीर सिंह को सोचते हुए दिखाया गया है. अंत में मर्डर मिस्ट्री को साधारण ट्रक दुर्घटना बता कर समाप्त कर दिया जाता है.

वेब सीरीज में डायरेक्टर रणदीप झा लियाम और पौल के बीच बनने वाले गे संबंध को साबित करने में नाकाम साबित हुए. दरअसल, लियाम नहीं चाहता था कि पौल उस की निगाह से दूर जाए.

पौल अपनी मंगेतर से जब मिलने आता है, तब वहां लियाम भी होता है. वह दोनों के प्यार को देख कर नाराज हो जाता है. मंगेतर जब चली जाती है तब लियाम और पौल के बीच लड़ाई होती है. उस वक्त पौल उस के साथ ओरल सेक्स करता है.

यह बात वेब सीरीज के पांचवें एपिसोड में फोरैंसिक रिपोर्ट के जरिए बताई गई. पौल के लिंग में फोरैंसिक रिपोर्ट में दूसरे का डीएनए मिलता है. वहीं मुंह के भीतर लियाम का डीएनए होता है. यह सब कुछ आखिरी एपिसोड में डायरेक्टर साफ करते हैं.

कुल मिला कर इस कहानी के साथ डायरेक्टर रणदीप झा ने न्याय नहीं किया है. जनता को पूरी तरह से फिल्म में नाटकीय सीन बना कर पूरी तरह से गुमराह किया गया है.

वेब सीरीज : कोहरा (रिव्यू) – भाग 2

डायरेक्टर रणदीप झा जो एनआरआई पौल की मर्डर मिस्ट्री और उस के लापता दोस्त लियाम पर बनाई वेब सीरीज को भूल जाते हैं. एपिसोड पुलिस अधिकारी बलवीर सिंह के जरिए कहानी को आगे बढ़ाते हैं. वह जिस खबरी का एनकाउंटर करते हैं, उस की पत्नी के जरिए ऐसा करने का नाकाम प्रयास करते हैं.

बलवीर सिंह फिल्म में मुख्य पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं. लेकिन जांच और सस्पेंस को छोड़ कर उन के रोमांटिक लाइफ की आड़ में उसे बढ़ाने की कोशिश डायरेक्टर ने की है. यहां डायरेक्टर बलवीर सिंह की बेटी के चलते थोड़ा भारतीय संस्कृति को बख्शने की कोशिश करते दिखे.

दरअसल, एपिसोड में खबरी की पत्नी बलवीर सिंह को सेक्स करने के लिए उकसाती है. उसे रिझाने के कई बार एपिसोड में सीन बनाए गए हैं. आखिरी में यह साफ तब होता है जब खबरी की बीवी उस के गले से लिपट कर सेक्स करने के लिए तैयार होने का संकेत देती है.

डायरेक्टर को फिल्म बनाते बनाते याद आता है कि वह पौल की मर्डर मिस्ट्री दर्शकों को बताना चाह रहे थे. इसलिए एपिसोड के मध्यांतर में अचानक सस्पेंस पैदा करने के लिए पौल की कार आ जाती है. यह कार उस की जहां लाश मिली थी, उस के नजदीक दिखाई थी. अब बलवीर सिंह और उस के सहयोगी गरूंडी सिंह कार में लगे डेंट को देखते हैं.

जबरिया सस्पेंस वाली बात इसलिए की जा रही है क्योंकि विदेश से आए पौल की गला रेत कर हत्या की गई थी. फिर कार में लगे डेंट को दिखा कर एपिसोड के मध्य में सस्पेंस पैदा किया गया है. इसी डेंट की आड़ में तफ्तीश के नाम पर फिल्म आगे बढ़ाई जाती है.

वेब सीरीज में डायरेक्टर रणदीप झा की तरफ से कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि वह मर्डर मिस्ट्री पर काम कर रहे हैं. पूरे एपिसोड में वह दर्शकों के सामने सिर्फ टाइटल कोहरा को ही सच साबित करने में दिखाई देते हैं. यहां डेंट की आड़ में फिर जबरिया मिस्ट्री डायरेक्टर ने पैदा की है.

दरअसल, कार का डेंट बस की टक्कर से आता है. पौल की लाश के नजदीक उस के चाचा के बेटे हैप्पी को दिखाया गया है. वह डेंट को देख कर सकपका जाता है. यह भूमिका अमनिंदर पाल सिंह ने निभाई है. सीरीज में वह हैप्पी नाम से दिखाई देते हैं. एपिसोड में दर्शक उन के अभिनय को देख कर अनहैप्पी ही होंगे.

कार के डेंट को काफी गहरा दिखाया गया है, जिस को तलाशने के लिए सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाते हैं. यहां फिर डायरेक्टर हैप्पी की आड़ में वेब सीरीज को धकेलने का प्रयास करते हैं. यहां डायरेक्टर पुलिस जांच की आड़ में बस ड्राइवर की निजी लाइफ के जरिए बढ़ाते हैं.

दरअसल, पौल को परिवार में तवज्जो देने के कारण हैप्पी उस से नफरत करता था. इस कारण उस ने बस ड्राइवर को दुर्घटना कर के पौल को मारने की सुपारी दी थी. फिर कहानी पौल के चचेरे भाई हैप्पी से हुई पूछताछ के जरिए ड्राइवर पर फोकस की जाती है. ड्राइवर इस बात को न बताने के लिए उसे ब्लैकमेल करता है. फिर वह फिल्म में पुलिस को चकमा दे कर जांच के दौरान ही अचानक गायब हो जाता है.

वेब सीरीज में अचानक बिना किसी पूर्व सूचना और जानकारी के नए किरदार की एंट्री दिखाई गई है, जिस का अभिनय सौरभ खुराना ने सकार नाम से निभाया है. उसे वेब सीरीज में रैप गायक दिखाया गया है. उसे सीरीज में अकसर नशे में धुत दिखाया है.

उबाऊ दिखे कई कैरेक्टर

वेब सीरीज देखने वाले हर दर्शक को सौरभ खुराना उबाऊ किरदार नजर आया. वह एपिसोड में पौल की मंगेतर का बौयफ्रेंड दिखाया गया है. मंगेतर की भूमिका में आनंद प्रिया है जिस का नाम वीरा सोनी है. वह एनआरआई लडक़े की संपत्ति के लालच में आ कर बौयफ्रेंड को ठुकरा कर उस से शादी करने का फैसला लेती है.

मर्डर मिस्ट्री में खराब वाकया यह है कि जिस रात पौल की हत्या हुई, उस से 2 घंटे पहले उसे बौयफ्रेंड सकार के साथ घर पर सेक्स करते हुए दिखाया गया. कहानी के अगले सीन में इस बात को वह कबूल करती है.

जांच करने वाली महिला पुलिस अधिकारी के सामने वह बताती है कि उस ने बौयफ्रेंड के साथ ओरल सेक्स किया था. वेब सीरीज में फोरैंसिक जांच का खुलेआम मखौल उड़ाया गया है. ओरल सेक्स की रिपोर्ट एपिसोड के अंतिम दौर में दिखाई गई है. जबकि इसे शुरुआत में सामने आना था. वीरा सोनी ने अभिनय के साथ इंसाफ नहीं किया. उन्होंने सतही भूमिका निभाई.

सीरीज के आखिरी एपिसोड में पता चलता है कि वह बौयफ्रेंड को छोड़ कर एनआरआई से शादी करती है. उस की हत्या के बाद वह तीसरे के साथ वैवाहिक जीवन जीने के लिए तैयार हो जाती है. ऐसा कर के डायरेक्टर ने एक बार फिर भारतीय संस्कृति को विकृत रूप में प्रस्तुत करने का साहस किया है.

एपिसोड में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाने वाले बलवीर सिंह की बेटी निमरत कौर भी सामने आती है. यह भूमिका हरलीन सेठी ने निभाई है. उस के बचपन को फ्लैशबैक में दिखाते हुए मातापिता की कलह के कारण उस के दिलोदिमाग में पिता का भय घर कर गया था. उस की भी अलग कहानी बनाते हुए अपने 6 साल के बच्चे को पति के घर छोड़ कर आ जाती है.

आधी वेब सीरीज देखने के बाद डायरेक्टर यह बताते हैं कि वह ऐसा अपने एक्स बौयफ्रेंड के साथ बाकी लाइफ जीने के लिए ऐसा करती है. वेब सीरीज का हैप्पी एंडिंग के लिए जबरिया फिल्मांकन डायरेक्टर ने किया. पुलिस अधिकारी पिता उस की बेटी को बौयफ्रेंड के साथ भेजने के लिए तैयार हो जाता है.

वेब सीरीज में पौल के चाचा के जरिए ओटीटी में जाने के लिए डायरेक्टर ने कहानी को यहां फिर लंबा किया. चाचा की भूमिका वरुण वडोला ने निभाई है. उन का नाम मनिंदर ढिल्लन है, जिसे पुलिस अधिकारी मन्ना करते हैं. यहां ‘जवान’ फिल्म से काफी मेल खाता हुआ डायलौग सुनने को मिलता है. ढिल्लन को वेब सीरीज में रसूखदार दिखाया गया है. वह पौल की हत्या करने के लिए सुपारी देने वाले हैप्पी का पिता और पौल का चाचा है.

किरदार से भटके दिखे कलाकार

टीवी जगत में वरुण वडोला काफी चर्चित चेहरा है. लेकिन वेब सीरीज में वह अभिनय करने के दौरान कई जगहों पर जूझते हुए दिखाई दिए. इस में दोष कलाकार से ज्यादा डायरेक्टर को दिया जा सकता है कि वह सफल कलाकार के भीतर छिपी प्रतिभा का इस्तेमाल ही नहीं कर सके.