अंधविश्वासी वकील की बलि

प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे साधु आशीष दीक्षित अपने शिष्य नीतीश सैनी के साथ धीमे कदमों से चला जा रहा था. सर्दी की सुबह थी. धूप निकल चुकी थी,

फिर भी दोनों गेरूआ चादर ओढ़े सर्दी से बचते हुए बढ़ रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं थी.

आशीष के हाथ में स्मार्टफोन था. उस पर एक वीडियो चल रही थी, जिसे दोनों गौर से देख रहे थे. अचानक शिष्य बोल पड़ा, ‘‘गुरुजी, जब बर्बरीक इतना ताकतवर था तब उस ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा क्यों नहीं लिया?’’

‘‘क्योंकि श्रीकृष्ण जानते थे कि वह शिव का अवतार है और उसे दिव्य शक्ति प्राप्त है. उस के एक बाण से युद्ध का अंत हो सकता है.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो और अच्छी बात थी. भीम का पोता था, पांडव की तरफ से ही युद्ध लड़ता. और उस की जीत तुरंत हो जाती,’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘ऐसा नहीं होता. उस की मां ने उस से वचन लिया था कि वह युद्ध में हमेशा कमजोर का साथ देगा. और उस वक्त कौरवों की सेना हार रही थी. इस कारण कृष्ण को पता था कि वह पांडवों की तरफ से युद्ध नहीं लड़ेगा.’’ गुरु ने समझाया.

‘‘फिर क्या हुआ गुरुजी?’’ नीतीश ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘वीडियो में देखो, सब पता चल जाएगा.’’

‘‘जी, गुरुजी.’’

उस के बाद दोनों ध्यान से वीडियो में महाभारत के बर्बरीक की कहानी देखने लगे. तब तक श्रीकृष्ण और बर्बरीक के बीच संवाद शुरू हो चुका था. वीडियो के खत्म होने के बाद आशीष ने कहा, ‘‘मुझे भी बर्बरीक की तरह दोबारा जिंदा होने की सिद्धि मिल चुकी है.’’

‘‘सच में गुरुजी?’’ नीतीश आश्चर्य से बोल पड़ा.

‘‘सच नहीं तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. मैं यहां हरिद्वार में घरबार, ऐशोआराम छोड़ कर ऐसे ही बैठा हुआ हूं. मैं ने काफी तपस्या की है. दैवीय शक्ति हासिल करने के लिए तंत्रमंत्र की कठिन साधना की है, अनुष्ठान किए हैं.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो आप भी दोबारा जिंदा हो सकते हैं?’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘हां, क्यों नहीं!’’

‘‘अच्छा..?’’ नीतीश का मुंह खुला का खुला रह गया.

यह बात 8 दिसंबर, 2022 की थी. आशीष ने शिष्य नीतीश को एक योजना समझाते हुए कहा कि उसे ऐसी सिद्धि प्राप्त हो चुकी है, जिस से वह उस के जीवन के सारे कष्टों को दूर कर देगा. उसे केवल उस के इशारे पर वह सब करना होगा, जो वह बताएगा.

नीतीश ने गुरु आशीष की बातें मान लीं और अपने गुरु के कहे अनुसार कार्य करने को तैयार हो गया.

गुरु आशीष द्वारा बनाए गए कार्यक्रम के मुताबिक दोनों उसी रोज 8 दिसंबर, 2022 को प्रयागराज से विंध्यवासिनी मां के दर्शन करने के लिए निकल पड़े. वहां से लौटते समय उन के सारे पैसे खत्म हो गए थे. अगले रोज वे 9 दिसंबर को पैदल ही प्रयागराज के लिए चल दिए.

जब वे करछना थानांतर्गत मर्दापुर गांव पहुंचे, तब आशीष ने नीतीश को बताया कि मां विंध्यवासिनी देवी की कृपा से देवी शक्ति प्राप्त हो गई है. उसे भीतर से शक्ति का एहसास भी होने लगा है. इसी के साथ उस ने एक बार फिर महाभारत के बर्बरीक की चर्चा छेड़ दी.

कहने लगा, ‘‘अब मैं अपनी ही बलि दे सकता हूं और मुझे देवी दोबारा जिंदा कर देंगी. उस के बाद मैं किसी के भी दुखतकलीफ और दूसरी समस्याओं को दूर कर सकता हूं. तुम्हारी आर्थिक समस्या भी मैं दूर का दूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा गुरुदेव?’’ नीतीश पूछा.

‘‘तुम्हें ठीक वैसे ही करना होगा, जैसा मैं बताऊंगा. वह भी आज ही रात में हो जाना चाहिए.’’ यह कहते हुए आशीष ने नीतीश को तांत्रिक पूजा और बलि के अनुष्ठान का एक वीडियो दिखाया.

उसी रात को नीतीश ने अपने गुरु के बताए तरीके के मुताबिक ठीक वैसा ही किया, जैसा उस ने वीडियो में देखा और समझाया था. तंत्रमंत्र की साधना संपन्न हुई और यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद नीतीश निश्चिंत भाव से अपने घर हरिद्वार लौट आया. इस से पहले उस ने पूजन सामग्री प्रयागराज गंगा में ही प्रवाहित कर दी थी.

आशीष के वादे के मुताबिक उसे अपने चेले नीतीश से प्रयागराज स्टेशन पर ही मिलना था. नीतीश के दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. तांत्रिक अनुष्ठान के बाद से ही मन में भय भी समाया हुआ था. देवी शक्ति के प्रभाव और चमत्कार के साथसाथ हत्या जैसे भय से वह परेशान हो गया था. हालांकि वह दोनों ही स्थितियों में अपने मन को समझाने की कोशिश कर रहा था.

यदि चमत्कार हुआ, तब गुरु के कहे मुताबिक उस के सारे दुखों का अंत हो जाना था और दैवीय चमत्कार नहीं हुआ तब भी उस का कोई अधिक नुकसान होने की बात नहीं थी. उस ने प्रयागराज जंक्शन पर अपने गुरु आशीष दीक्षित का 2 घंटे तक इंतजार किया, जब वह नहीं आया तब उस ने हरिद्वार की गाड़ी पकड़ ली.

यशपाल सैनी का पुत्र नीतीश सैनी हरिद्वार जनपद में लश्कर गांव का रहने वाला एक 22 वर्षीय युवक है. वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करता था. जौब प्राइवेट थी, इस कारण वह अच्छी सरकारी नौकरी की तलाश में था. वह पैसा कमाना चाहता था, जो उसे इस प्राइवेट नौकरी में नहीं मिल पा रहा था.

उसे लगता था कि उस की जिंदगी में दैवीय शक्ति से आज नहीं तो कल जरूर चमत्कार होगा और तब उस की जिंदगी में बहार आ जाएगी. इसी चक्कर में एक दिन उस ने अपनी वह प्राइवेट नौकरी भी छोड़ दी.

नीतीश बन गया चेला

एक दिन यूं ही वह हरिद्वार में गंगा किनारे सीढि़यों पर उदास बैठा था. उस की मुलाकात आशीष दीक्षित से हो गई. वह साधु की वेशभूषा में था, लेकिन जब उस से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तब उस ने पाया कि वह कोई साधारण साधु नहीं है.

साधु ने अपना नाम आशीष दीक्षित बताया और खुद को एक तपस्वी और तंत्रमंत्र साधक बताया. इसी के साथ उस ने कहा कि उसे उस जैसे ही एक नवयुवक की तलाश है, जो चेला बन कर उस के कामकाज और पूजापाठ के अनुष्ठानों में सहयोग कर सके. यदि वह इच्छुक हो तो उस के साथ रह सकता है.

नीतीश को साधु आशीष की बात पसंद आई और वह उस के साथ रहने को तैयार हो गया. किंतु उस ने अपनी मजबूरी बताई कि उस के पास पैसे नहीं हैं. वह बेरोजगार है. इस समस्या का समाधान भी आशीष ने ही निकाला और उस का सारा खर्च उठाने को तैयार हो गया.

यही नहीं, आशीष ने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे भरोसा दिया कि उस के तंत्रमंत्र से सारे कष्ट अवश्य दूर हो जाएंगे. घर की आर्थिक परिस्थितियों में भी सुधार हो जाएगा.

दोनों ने हरिद्वार में ही एक कमरा किराए पर ले लिया था. बहुत पूछने पर भी आशीष अपनी पिछली जिंदगी के बारे में उसे कुछ नहीं बताता था.

नीतीश 10 दिसंबर, 2022 को अपने घर हरिद्वार आ तो गया था, लेकिन वह भीतर से डरा था. वह एक अपराधबोध के द्वंद से भी जूझ रहा था. मन जब विचलित होने लगा, तब वह हरिद्वार से चल कर वाराणसी जा पहुंचा.

वहां भी ज्यादा समय तक नहीं रह पाया. उसी रोज कानपुर की राह पकड़ ली और फिर लखनऊ, आगरा होते हुए प्रयागराज में आ कर ठहर गया. इस का एक कारण यह भी था कि उस के गुरु आशीष ने उसे वहीं उस का इंतजार करने को कहा था.

आशीष तो नहीं आया, लेकिन हां उसे मोबाइल ट्रैकिंग के जरिए तलाशती हुई प्रयागराज पुलिस जरूर आ गई. प्रयागराज के  करछना थाने की पुलिस ने बगैर कुछ कहेसुने उसे दबोच लिया और उसे थाने ले आई.

इस तरह से पकड़े जाने पर नीतीश हक्काबक्का था, किंतु जब पता चला कि उस पर आशीष की हत्या का आरोप लगाया गया है तो वह बहुत डर गया.

दरअसल, नैनी के नंदन तालाब निवासी आशीष दीक्षित की सिरकटी लाश 10 दिसंबर को प्रयागराज-मिर्जापुर हाईवे पर मर्दापुर गांव के पास पाई गई थी. लाश तालाब के किनारे झाडि़यों में पड़ी थी.

रक्तरंजित लाश पहले दोपहर के समय उन लोगों ने देखी थी, जो मृत्युशैय्या बनाने के लिए बांस काटने के लिए लीलैंड सर्विस सेंटर के बगल में स्थित मर्दारपुर गांव के बंसवार में गए थे. उन्होंने जब लाश के करीब जा कर देखा तब भी वह उसे पहचान नहीं पाए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और धड़ अलग पड़ा था. उन लोगों ने ही पुलिस कंट्रोलरूम के 112 नंबर पर काल कर जंगल में अज्ञात लाश होने की सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही कुछ देर में 112 नंबर वैन में सवार सबइंसपेक्टर और सिपाही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने इस सूचना को संबंधित थाना करछना को दे दी थी.

सूचना पा कर थाने से तुरंत इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह दलबल के साथ पहुंच गए थे. करछना थानांतर्गत बंसवार में लाश मिलने की सूचना पूरे इलाके में फैल गई. देखते ही देखते तमाशबीनों की भीड़ जमा हो गई.

मृतक की शिनाख्त करने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी. उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से पर्स और आधार कार्ड मिल गया. उस से मृतक के निवास की जानकारी मिल गई.

इस सूचना को पा कर डीसीपी (यमुनापार) सौरभ दीक्षित के साथ दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर फोरैंसिक और डौग स्क्वायड की टीम भी आ गई.

घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया, जहां लाश के पास शराब की खाली बोतल, मुरझाए फूल, माला, लौंग, सुपारी, काली पीली सरसों के दाने मिले. इन चीजों को देख कर जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों को समझते देर नहीं लगी कि मामला तंत्रमंत्र साधना और बलि देने का हो सकता है.

लाश की शिनाख्त के लिए वहां से बरामद आधार कार्ड से कई जानकारी मिल गईं. मृतक का नाम आशीष दीक्षित और उस का निवास स्थान प्रयागराज था.

पार्टी बनाने पर डूब गया कर्जे में

डीसीपी सौरभ दीक्षित ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह, एसआई दिवाकर सिंह, अखिलेश कुमार राय, कांस्टेबल गब्बर, विजय बहादुर चौहान आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने मृतक के पते पर जा कर उस के बारे में पता किया. वहां उन्हें मृतक के बारे में कई जानकारी मिलीं. पता चला कि आशीष दीक्षित कई साल पहले ही घरबार छोड़ चुका था.

आशीष के परिवार में उस के पिता संतोष दीक्षित, पत्नी सुमन देवी और भाई रवि दीक्षित मिले. उन से पूछताछ में पुलिस को कई अहम जानकारी मिली.

उन लोगों से पूछताछ से पता चला कि आशीष दीक्षित एक अतिमहत्त्वाकांक्षी इंसान था, लेकिन अंधविश्वास से भी भरा हुआ था. पेशे से वकील था. जीवन में सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए स्थानीय राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल था. उस ने जनाधार शक्ति नामक पार्टी का गठन भी किया था.

इस राजनीतिक पार्टी के विस्तार के लिए उस ने लोगों से चंदा लेना शुरू कर दिया था. पहले तो उस ने पार्टी को चलाने के लिए कुछ लोगों से कर्ज लिया, जो करीब 40 लाख रुपए तक हो गया था.

कर्ज देने वालों में मुकेश पाल नाम का व्यक्ति भी था. करीब 6 महीने में ही कर्ज देने वाले कर्ज का पैसा वापस मांगने लगे. इस संबंध में लोगों का जब दबाव बढ़ गया, तब वह काफी परेशान हो गया. और फिर मई 2022 में अपने घर से गायब हो गया.

एक तरह से वह प्रयागराज से फरार हो कर हरिद्वार चला गया था. वहां वह हरि की पौड़ी में साधु के वेश में रहने लगा. वहां रहते हुए वह लोगों की समस्याओं का समाधान बताने लगा. यही उस की आमदनी का जरिया बन गया. उसी दौरान उस ने तंत्रमंत्र की कुछ जानकारी ले ली.

उन्हीं दिनों उस की मुलाकात नीतीश सैनी से हो गई थी और उसे भी उस ने अपने अंधविश्वास की चपेट में ले लिया था. नीतीश उसी का चेला बन कर उस के साथ ही रहने लगा था. साथ ही आशीष खुद अंधविश्वास और पुनर्जन्म की चपेट में आ गया था. खुद को दैवीय शक्ति के प्रभाव का खास व्यक्ति समझ बैठा था.

खुद कटवा ली अपनी गरदन

वह बारबार नीतीश को कहता था कि उस पर देवी की खास कृपा है. वह भी महाभारत के बर्बरीक की तरह मर कर दोबारा जिंदा हो सकता है. जब यह बात नीतीश को बताई, तब पहली बार में उसे भी विश्वास नहीं हुआ, लेकिन धीरेधीरे कर उस ने नीतीश को अपने रंग में रंग लिया.

उन्हीं दिनों परिस्थतियां कुछ ऐसी बनीं कि आशीष ने अपनी योजना के बारे में नीतीश को बताया और इस के लिए राजी भी कर लिया. तब उस ने नीतीश से कहा था, ‘‘मुझे मार दो, मैं जिंदा हो जाऊंगा और तुम से हरिद्वार में ही मिलूंगा.’’

उस के कहे अनुसार ही नीतीश ने किया. इस बारे में नीतीश ने पुलिस को बताया कि वह कैसे उस के साथ अंधविश्वास की धारा में बह गया था. उस के कहे अनुसार करता चला गया था.

उस ने कहा था कि ‘मुझे दैवीय सिद्धियां प्राप्त हैं, अगर तुम मुझे मार दोगे तो मैं फिर से जिंदा हो जाऊंगा. बस, मेरा गला काट कर महाशक्तियों के साथ छोड़ देना. जिस के बाद मैं पुनर्जीवित हो कर वापस उस से आ कर मिलूंगा. उस ने यह भी कहा था कि मेरा गला काटने के बाद सभी वस्तुओं को गंगाजी में प्रभावित कर के वह हरिद्वार चला जाए. मैं वहीं आ कर उसे मिलूंगा.’

अपनी योजना का पूरा खाका खींचते हुए आशीष ने नीतीश को समझाया कि पूजा कैसे करनी है? उस का गला किस तरह से काटना है? उस के बाद क्या करना है? नीतीश के मुताबिक आशीष ने कहा था कि पूजापाठ करने के बाद जब मैं जमीन पर लेट जाऊंगा, तब करीब एक घंटे बाद तुम मुझे हिलाडुला कर देखना. अगर मेरे शरीर में कोई हलचल नहीं हो तो फौरन चापड़ से मेरी गरदन धड़ से अलग कर देना और मेरे खून से अपने माथे पर आभिषेक लगा कर मंत्रोच्चार करना.

उस के बाद चापड़ और सभी पूजन सामग्री गंगा किनारे प्रवाहित कर देना. इस के बाद तुम प्रयागराज स्टेशन पर पहुंचना. अगर मैं वहां घंटे भर के भीतर नहीं आऊं, तब तुम वहां से हरिद्वार चले जाना. जीवित हो कर मैं हरिद्वार में ही मिलूंगा.

आशीष ने नीतीश को यह भी कहा था, ‘‘मैं मां कामाख्या देवी के पास जीवित हो कर दर्शन प्राप्त कर तुम से फिर मिलूंगा.’’

यह सब सुन कर पहले तो नीतीश डर गया, लेकिन बाद में जब उस ने चमात्कारी प्रभाव से भविष्य सुधरने की बात की, तब वह तैयार हो गया.

उस के दिमाग में यह बात भी आई कि आशीष मरने के बाद दोबारा जिंदा हो गया तब वह उस का भविष्य बदल देगा, अगर जिंदा नहीं हो पाया तब उसे उस के पैसे नहीं लौटाने पड़ेंगे. जब वह आशीष के साथ था, तब उस का खर्च उसी ने उठाया था, जो कर्ज के तौर पर था. थोड़े दिनों बाद ही उस से पैसे मांगने लगा था.

घटना की रात तालाब के किनारे बांस की झाडि़यों के बीच में नीतीश के सामने आशीष ने तंत्र साधना की, शराब और दवा का सेवन किया. उस के बाद शराब पी. एक पैग शराब नीतीश ने भी पी. आशीष दवा खाने के बाद अपनी जैकेट और टीशर्ट उतार कर जमीन पर लेट गया.

आशीष के कहे अनुसार नीतीश ने उसे झकझोर कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई. उस के बाद नीतीश ने आशीष की गरदन पर चापड़ से वार कर दिया. उस की गरदन एक झटके में ही धड़ से अलग हो गई. आशीष ने जैसे मंत्र पढ़ने और रक्त का तिलक लगाने को कहा था, नीतीश ने ठीक वैसा ही किया.

पुलिस ने नीतीश के  कहे अनुसार, हत्या में इस्तेमाल चापड़ भी बरामद कर ली. इस पूरे मामले में मुख्य आरोपी नीतीश सैनी को बनाया गया. उसे भादंवि की धारा 302 के तहत सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से जिला कारागार नैनी भेज दिया गया.      द्य

30 साल बाद लिया पत्रकार की हत्या का बदला

अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद रह चुके 70 वर्षीय सवाई सिंह अपने बेटे की शादी का निमंत्रण देने के लिए 7 जनवरी, 2023 को बंसेली गांव स्थित युवराज फोर्ट रिजार्ट गए थे. उस समय दिन का करीब एक बज चुका था. वहां उन के दोस्त राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष दिनेश तिवाड़ी (68) और खलील पुष्कर मौजूद थे.

तीनों एकदूसरे का हालसमाचार लेते हुए शादी के बारे में बातें कर रहे थे. सवाई सिंह के बेटे की 16 जनवरी को शादी थी. उस वक्त सब कुछ सामान्य था. चारों हलकेफुलके माहौल में परिवार समाज के साथसाथ प्रदेश, देश की राजनीति की भी चर्चा कर रहे थे. कुछ समय में ही अचानक कुछ बदमाश रिजार्ट में घुस आए और उन पर दनादन फायरिंग शुरू कर दी.

उन के निशाने पर कौन थे, कौन नहीं समझना मुश्किल था. तभी एक गोली सवाई सिंह के सिर में जा धंसी और वह वहीं गिर गए. उस धुआंधार फायरिंग में दिनेश तिवाड़ी को भी गोली लग गई. गोली चलने की आवाज सुन कर रिजार्ट के कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी दौड़ते हुए उस ओर आ गए.

हमलावर उन्हें देख कर भागने लगे. वे 3 की संख्या में थे. उन में से 2 भागने में सफल हो गए, जबकि एक मौके पर ही दबोच लिया गया.

संयोग से खलील को गोली नहीं लगी थी, जबकि सवाई सिंह पूरी तरह से बेसुध जमीन पर गिरे हुए थे. उन के सिर से काफी खून रिस कर जमीन पर फैल गया था. तिवाड़ी भी पेट पकड़े वहीं जमीन पर गिरे हुए थे, किंतु वह होश में थे. सभी घायलों को तुरंत जेएलएन अस्पताल ले जाया गया.

साथ ही दिनदहाड़े हुई इस वारदात की सूचना भी पुष्कर थाने को दे दी गई. एसएचओ डा. रवीश सामरिया सूचना पाते ही दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां दबोचे गए एक आरोपी सूर्य प्रताप सिंह को हिरासत में ले लिया और आगे की तहकीकात के लिए एसएचओ अस्पताल जा पहुंचे.

तब तक घायलों में सवाई सिंह को डाक्टर मृत घोषित कर चुके थे, जबकि दिनेश तिवाड़ी का इलाज चल रहा था. वह होश में थे. गोली उन के पेट में लगी थी. उन के बयानों के आधार पर सूर्य प्रताप सिंह, धर्म प्रताप सिंह और अन्य एक अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

पूर्व पार्षद सवाई सिंह की मौत की खबर कुछ मिनटों में ही पूरे शहर में फैल गई. स्थानीय नेता और उन के परिवार के लोग भागेभागे अस्पताल पहुंच गए. इस वारदात के बारे में सीओ छवि शर्मा, अजमेर के एसपी चूनाराम जाट, एएसपी वैभव शर्मा, प्रशिक्षु आईपीएस सुमित मेहरड़ा समेत गंज के एसएचओ महावीर प्रसाद ने भी घटनास्थल और अस्पताल आ कर मामले का जायजा लिया. पुलिस को शुरुआती जानकारी घायल दिनेश तिवाड़ी से मिल गई थी.

घटनास्थल पर मौजूद खलील ने भी हमले से संबंधित कई जानकारियां दीं. उन्होंने बताया कि सभी रिजार्ट के स्विमिंग पूल के पास बैठे चाय पी रहे थे. तभी 3 युवक हथियार ले कर अचानक वहां आ धमके थे. उन से कोई पूछताछ होती, इस का उन्होंने मौका ही नहीं दिया.

उन के बयान लेने के बाद सवाई सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी रोज पोस्टमार्टम हो जाने के बाद शव परिजनों को भी सौंप दिया गया.

इस घटना में मारे गए सवाई सिंह इलाके के एक बहुचर्चित शख्स थे. वह 1990 के दशक में अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद थे. अपने दोस्त दिनेश तिवाड़ी को बेटे की शादी का कार्ड देने के लिए पुष्कर गए हुए थे. वहीं उन पर जानलेवा हमला हुआ था और उन की मौत हो गई थी.

वारदात की जांचपड़ताल के दरम्यान पुलिस को अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी, क्योंकि तीनों हमलावार पकड़े जा चुके थे, जिन में एक व्यक्ति हमले के बाद चिल्लाने लगा था, ‘‘मैं ने पिता की मौत का बदला ले लिया… आज मेरी कसम पूरी हुई.’’

जांच अधिकारी के सामने हमलावर सूर्यप्रताप सिंह खुद सब कुछ बताने को तैयार था कि उस ने सवाई सिंह को गोली क्यों मारी.

दरअसल, उस ने 30 साल पहले अपने पिता की हत्या का बदला लिया था. उस के पिता मदन सिंह एक स्थानीय पत्रकार थे, जिन की हत्या कर दी गई थी, उस वक्त वह बच्चा था.

इस तरह पुराने हत्याकांड की उलझी हुई गुत्थी भी इस से जुड़ गई थी, जिस के मुख्य आरोपी सवाई सिंह थे, किंतु वह दूसरे आरोपियों की तरह बरी कर दिए गए थे. उस हत्याकांड की कहानी से जुड़ी इस वारदात की कहानी इस प्रकार सामने आई—

बात अप्रैल-मई 1992 के महीने की है. उन दिनों अजमेर शहर में एक सैक्स स्कैंडल की चर्चा लोगों की जुबान पर थी. इस स्कैंडल में 100 से अधिक छात्राओं के साथ ब्लैकमेलिंग की चर्चा अखबारों की सुर्खियां बन गई थीं. वे अजमेर के एक नामी गर्ल्स हौस्टल की छात्राएं थीं, जो राजस्थान और दूसरे पड़ोसी प्रदेशों के विभिन्न इलाकों से आई थीं.

यौन शोषण की शिकार कुछ लड़कियां अपनी आपबीती पुलिस को भी सुना चुकी थीं. उस स्कैंडल में लिप्त लोगों के गिरेबान तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पा रहे थे. इस मामले पर कुछ स्थानीय पत्रकार और अखबार भी नजर गड़ाए हुए थे. उन्हीं में एक पत्रकार मदन सिंह भी थे. वह एक स्थानीय अखबार ‘लहरों की बरखा’ के संपादक थे.

मदन सिंह ने इस अखबार में छात्राओं के सैक्स स्कैंडल की सीरीज छापनी शुरू कर दी थी. हर सीरीज में पुलिस, प्रशासन और दूसरे सफेदपोश राजनेताओं के इस में शामिल होने का खुलासा किया जाने लगा था. इस तरह की सीरीज 2-4 ही नहीं, बल्कि सितंबर 1992 के पहले सप्ताह तक कुल 76 सीरीज छापी गई थीं.

यह आखिरी सीरीज साबित हुई. कारण 4 सितंबर, 1992 को संपादक मदन सिंह पर रात के 10 बजे हमलावरों ने गोलियों की बौछार कर दी थी. उस वक्त वह अपने स्कूटर में पैट्रोल भरवाने घर से निकले ही थे. हमलावर श्रीनगर रोड पर अंबेसडर कार में सवार थे. हमले से घायल होने पर मदन सिंह ने बचाव के लिए पास के नाले में छलांग लगा दी थी, हमलावर उन्हें मरा समझ फरार हो गए थे. उन्हें जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भरती करवाया गया.

मदन सिंह को बचा लिया गया था. कई दिनों तक उन का इलाज चलता रहा. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. तभी 11 सितंबर को अस्पताल के वार्ड में ही रात के अंधेरे में मौका देख कर हथियारों से लैस 4-5 हमलावर फिर आ धमके. वे कंबल से अपना चेहरा ढंके हुए थे.

आते ही उन्होंने सो रहे मदन सिंह पर फायरिंग कर दी और फरार हो गए. इस हमले में उन्हें 5 गोलियां लगी थीं. तब उन्हें बचाया नहीं जा सका. उन की 3 दिन बाद ही मौत हो गई.

इस हमले की एकमात्र चश्मदीद उन की मां घीसी कंवर थीं. उन की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस के पूर्व विधायक डा. राजकुमार जायसवाल, पूर्व पार्षद सवाई सिंह, नरेंद्र सिंह समेत अन्य लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

मामला एक पत्रकार की हत्या का था, इस कारण पुलिस और प्रशासन पर काफी दबाव था. फिर भी आरोपी पकड़े जाने के बावजूद तुरंत जमानत पर छूटते रहे. जिन की अदालत में पेशी हुई और सबूत के अभाव में वे बरी होते चले गए.

मदन सिंह के परिवार में उन की पत्नी और 2 बेटे धर्मप्रताप 8 साल का और सूर्यप्रताप 7 साल के थे. उन्होंने अपने पिता पर हमला भले ही नहीं देखा था, लेकिन उन की अस्पताल में दर्दनाक मौत को जरूर महसूस किया था. तभी से उन के मन में बदले की भावना भर गई थी.

दूसरी तरफ पुलिस की लापरवाही और गवाहों के लगातार बदलने से आरोपियों पर कानूनी शिकंजा कमजोर पड़ गया था. समय बीतने के साथ सूर्यप्रताप किशोरावस्था पार कर 18 साल का नवयुवक बन गया था. इसी के साथ उस के मन में दबी पिता के हत्यारे से बदले की भावना भी मजबूत हो गई थी.

गर्म खून के जोश में आ कर उस ने अपने मन की बात एक साल छोटे भाई को बताई. उस ने बड़े भाई की इच्छा के साथ अपनी सहमति जता दी. उन्हें एक दिन मौका भी मिल गया और उन्होंने एक आरोपी शिवहरे को घात लगा कर दबोच लिया. उस की लातघूंसे से जम कर पिटाई कर दी. उस के हाथपैर तोड़ डाले.

इस हमले से शिवहरे बुरी तरह से घायल हो गया था. उस का अस्पताल में इलाज चला जरूर, लेकिन वह बच नहीं पाया. तब बात आईगई हो गई. इस से दोनों भाइयों के कलेजे में थोड़ी ठंडक महसूस हुई, फिर भी बदले की चिंगारी सुलगती रही.

दोनों ने पूरे 10 साल तक अपने सीने में सुलगती चिंगारी को दबाए रखा. इस बीच वे मुख्य आरोपियों में डा. राजकुमार जायसवाल और सवाई सिंह को निशाना बनाए रहे. आखिरकार एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया.

अजमेर के रीजनल कालेज के सामने एक रेस्टोरेंट में उन नेताओं पर दोनों भाइयों ने ठीक उसी तरह से हमला कर दिया, जिस तरह से उस के पिता पर हुआ था.

इस बार दोनों भाइयों की किस्मत ने साथ नहीं दिया. जायसवाल और सिंह का इस हमले में बाल भी बांका नहीं हुआ, उल्टे दोनों भाई जानलेवा हमले के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए. हालांकि वे जल्द ही जमानत पर छूट भी गए.

जहां तक मदन सिंह की हत्या की बात है तो उस मामले में कई तरह ही अड़चनें थीं. उस हत्याकांड से जुड़े वकील अजय प्रताप वर्मा के अनुसार मदन सिंह पर 2 बार जानलेवा हमले हुए थे. पहली बार बाजार के हमले की रिपोर्ट अलवर गेट थाने में दर्ज हुई थी, जबकि दूसरी बार उन पर हमला अस्पताल में हुआ था. उस की रिपोर्ट सदर कोतवाली (अब कोतवाली) में दर्ज की गई थी. बाद में दोनों मामलों को जोड़ कर जांच की गई थी.

मदन सिंह के अस्पताल में इलाज चलने संबंधी बातें और उन की मां के बयानों के आधार जांच की प्रक्रिया बहुत आगे तक नहीं बढ़ पाई थी. अदालत में उसे ले कर कई विरोधाभास पैदा हो गए थे.

मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था, लेकिन उस के द्वारा वारदात को रीक्रिएट करने के बाद तैयार की गई रिपोर्ट से चश्मदीद गवाहों के बयान मेल नहीं खाने के कारण आरोपी 2004 में बरी हो गए थे. उस दौरान सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में की गई थी. हालांकि बरी होने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा चुकी है, जो  लिखे जाने तक लंबित थी.

सवाई सिंह और दूसरे रसूख वाले आरोपी यह मान कर चल रहे थे कि उन्हें मदन सिंह हत्याकांड से छुटकारा मिल गया है. सवाई सिंह के बेटे सूर्यदेव सिंह तंवर की 15 जनवरी, 2023 को शादी होनी थी, जिस का उन्होंने स्नेह भोज 16 जनवरी को रखा था.

सवाई सिंह की मौत से दिवंगत पत्रकार मदन सिंह के बेटे खुश हैं कि उन्होंने अपने पिता के हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया. यहां तक कि उस की पत्नी नीमा शेखावत ने भी मीडिया के सामने इस बाबत खुशी जताई.

पुलिस जांच के बाद अजमेर एसपी चूनाराम जाट ने बताया कि सवाई सिंह से बदला लेने के लिए सूर्यप्रताप ने इलाके के नामी बदमाश आकाश सोनी से शूटर्स मांगे थे.

उस के बाद उन्होंने अपनी योजना में भरतपुर के शूटर कपिल और विकास को शामिल कर लिया था. सूर्यप्रताप ने उन्हें अजमेर में ठहराया था. उस के बाद उस ने अपने भाई धर्मप्रताप और विनय प्रताप सिंह के साथ मिल कर सवाई सिंह के बारे में जानकारी दी. उस की तसवीरें दिखा कर पहचान करवाई. पूरी तैयारी के बाद सूर्यप्रताप, धर्मप्रताप और विनय प्रताप ने दोनों शूटर्स को रिजार्ट में ले जा कर हमला बोल दिया.

इस तरह से इस हमले में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया है. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपियों के खिलाफ काररवाई पूरी नहीं हो पाई थी.     द्य

बाबाओं के वेश में ठग

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर व पाली जिलों में भगवा कपड़े पहने बाबा दानदक्षिणा लेते दिख जाएंगे. पश्चिमी जिलों के हजारों गांवढाणियों में अकसर ऊपर वाले या दुखदर्द दूर करने के नाम पर ये भगवाधारी ठगी करते फिरते हैं.

4-5 के समूह में ये बाबा गांवकसबों में घूम कर लोगों के हाथ देख कर उन की किस्मत चमकाने के नाम पर मनका या अंगूठी देते हैं और बदले में 2-3 हजार रुपए तक ऐंठ लेते हैं. गांवदेहात के लोग इन बाबाओं की मीठीमीठी बातों में आ कर ठगे जा रहे हैं.

अचलवंशी कालोनी, जैसलमेर में रहने वाले दिनेश के पास नवरात्र में 4-5 बाबा पहुंचे. उन बाबाओं ने दुकानदार दिनेश को चारों तरफ से घेर लिया. एक बाबा दिनेश का हाथ पकड़ कर देखने लगा. उस बाबा ने हाथ की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘बच्चा, किस्मत वाला है तू. मगर कुछ पूजापाठ करनी होगी. पूजापाठ कराने से धंधे में जो फायदा नहीं हो रहा, वह बाधा दूर हो जाएगी. तुम देखना कि पूजापाठ के बाद किस्मत बदल जाएगी.’’

बाबा एक सांस में यह सब कह गया. दिनेश कुछ बोलता, उस से पहले ही दूसरे बाबा ने फोटो का अलबम आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, ये फोटो देख. ये पुलिस सुपरिंटैंडैंट और कलक्टर हैं. ये हमारे चेले हैं. अब तो तुम मान ही गए होगे कि हम ऐरेगैरे भिखारी नहीं हैं.’’

दिनेश ने अलबम देखा, तो उस की आंखें फटी रह गईं. उन फोटो में वे बाबा पुलिस अफसरों, नेताओं व दूसरे बड़े सरकारी अफसरों के साथ खड़े थे. बाबा उन्हें अपना चेला बता रहे थे.

दिनेश का धंधा चल नहीं रहा था. इस वजह से वह ठग बाबाओं की बातों में आ गया.

उन बाबाओं ने 25 सौ रुपए नकद, 5 किलो देशी घी, 10 किलो शक्कर, 5 किलो तेल, 5 किलो नारियल और अगरबत्ती, धूप, कपूर, सिंदूर, मौली व चांदी के 5 सिक्के पूजा के नाम पर लिए और तकरीबन 8 हजार रुपए का चूना लगा कर चलते बने.

दिनेश अब पछता रहा है कि उस ने क्यों उन ठग बाबाओं पर भरोसा किया. छोटी सी दुकान से महीनेभर में जो मुनाफा होता था, वह बाबा ले गए. अब दिनेश औरों से कह रहा है कि वे बाबाओं के चंगुल में न फंसें.

दिनेश की तरह महेंद्र भी बाबाओं की ठगी के शिकार हो चुके हैं. वे पोखरण में अपनी पत्नी सुनीता के साथ रहते हैं. उन की शादी को 10 साल हो चुके हैं, मगर उन्हें अब तक औलाद का सुख नहीं मिला है. दोनों ने खूब मंदिरों के चक्कर काटे और तांत्रिकओझाओं की शरण में गए, मगर कहीं से उन्हें औलाद का सुख नहीं मिला.

ऐसे में एक दिन जब बाबा उन के पास पहुंचे और महेंद्र से कहा कि उन की किस्मत में औलाद का सुख तो है, मगर कुछ पूर्वजों की आत्माएं इस में रोड़ा अटका रही हैं. उन आत्माओं की शांति के लिए पूजा करनी होगी.

महेंद्र अपने जानने वालों और आसपड़ोस के लोगों के तानों से परेशान थे. बाबाओं ने मोबाइल फोन में बड़े अफसरों व मंत्रियों के साथ अपने फोटो दिखाए, तो महेंद्र को लगा कि जब इतने बड़े अफसर इन बाबाओं के चेले हैं, तो जरूर ये बाबा पहुंचे हुए हैं.

महेंद्र बाबा से बोला, ‘‘मैं मंदिरों के चक्कर में लाखों रुपए उड़ा चुका हूं. आप लोगों पर मुझे भरोसा है. मुझे पूजापाठ के लिए कितना खर्च करना होगा?’’

तब एक बाबा ने कहा, ‘‘आप हमें 11 हजार रुपए दे दें. इन रुपयों से हम पूजापाठ का सामान खरीद कर पूजा कर देंगे. अगली बार जब हम आएंगे, तो तुम औलाद होने की खुशी में हमें 51 हजार रुपए दोगे. यह हमारा वादा है.’’

बस, उस बाबा की बातों में आ कर महेंद्र 11 हजार रुपए गंवा बैठे. ऐसे बाबाओं की ठगी के हजारों किस्से हर रोज होते हैं. बाड़मेर जिले की पचपदरा थाना पुलिस ने ऐसे ही 6 ठग बाबाओं को 18-19 सितंबर, 2017 को पचपदरा कसबे से अपनी गिरफ्त में लिया. किसी ने फोन कर के थाने में सूचना दी थी कि बाबाओं ने लोगों को ठगने का धंधा चला रखा है. ये लोग पीडि़तों को झूठे आश्वासन दे कर उन से जबरदस्ती रुपए ऐंठ रहे हैं.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने पुलिस टीम के साथ दबिश दे कर 6 बाबाओं को पकड़ लिया. उन ठग बाबाओं को थाने ला कर पूछताछ की गई. जो बात सामने आई, उसे सुन कर हर कोई हैरान रह गया.

दरअसल, वे लोग नागा बाबा के वेश में दिनभर लोगों को नौकरी दिलाने, घरों में सुखशांति, औलाद का सुख हासिल करने के साथ ही कई तरह के झांसे दे कर नगीने, अंगूठी व मनका वगैरह बेच कर ठगी करते थे. कई लोगों के हाथ देख कर उन्हें किस्मत बताते थे. दिन में लोगों से ठगी कर के जो रकम ऐंठते थे, रात में उसे शराब पार्टी, नाचगाने में उड़ाते थे.

पचपदरा पुलिस ने जिन 6 ठग बाबाओं को गिरफ्तार किया, वे सभी सीकरीगोविंदगढ़ के रहने वाले सिख परिवार से थे.

पूछताछ में ठग बाबाओं ने पुलिस को बताया कि सीकरीगोविंदगढ़ के तकरीबन ढाई सौ परिवार इसी तरह साधुसंत बन कर ठगी का काम करते हैं. अलगअलग जगहों पर घूम कर ये बड़े अफसरों को धार्मिक बातों में उलझा कर उन के साथ फोटो खिंचवाते हैं और फिर वे इन फोटो को दिखा कर गांव वालों को बताते हैं कि ये सब उन के भक्त हैं और इस तरह भोलेभाले लोगों को ठग कर रुपए ऐंठ लेते थे. शाम को वे शराब पार्टियां करते थे.

पुलिस ने उन बाबाओं के कब्जे से मोबाइल फोन बरामद किए, जिन में कई बेहूदा नाचगाने और शराब पार्टी के फोटो थे. साथ ही, कई अश्लील क्लिपें भी बरामद हुईं.

इन बाबाओं ने खुद को गुजरात में जूना अखाड़े का साधु बताया. थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने कवाना मठ के महंत परशुरामगिरी महाराज, जो जूना अखाड़ा में पदाधिकारी भी हैं, को थाने बुलवा कर इन गिरफ्तार बाबाओं के बारे में पूछा, तो इन बाबाओं के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई.

इस के बाद बाबाओं ने मुकरते हुए कहा कि वे तो उदासीन अखाड़े से हैं. इस पर महंत परशुरामगिरी ने बाबाओं से उदासीन अखाड़े के बारे में पूछताछ की, तो वे जवाब न दे सके. इस के बाद पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

ये ठग बाबा पूरे राजस्थान में घूमते थे और लोगों को झांसे में ले कर शिकार बनाते थे. महंगी गाडि़यों और शानदार महंगे कपड़ों में इन बाबाओं के फोटो देख कर पुलिस भी हैरान रह गई.

ये सब बाबा इतने अमीर हैं. इन के घर पक्के हैं. इन के पास गाडि़यां भी हैं. इन को बगैर कोई काम किए लोगों के अंधविश्वास के चलते लाखों रुपए की महीने में कमाई हो जाती थी.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने इन ठग बाबाओं के बारे में कहा, ‘‘इन के बरताव से पता चला कि ये फर्जी पाखंडी संत हैं. ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए.’’

ठग बिल्डरों को बचाने वाले कानून के रखवाले

जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले दबंगों, अपराधियों और धोखेबाज बिल्डरों का साथ देने वाले पुलिस वालों के सिर पर कानून की तलवार लटक गई है. पटना के सभी ठग बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया का कच्चाचिट्ठा तैयार किया जा रहा है.

पटना के थानों में दर्ज जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले बिल्डरों, अपराधियों और उन का साथ देने वाले भ्रष्ट पुलिस वालों की फाइल तैयार करने की कवायद शुरू की गई है.

पुलिस के पास लगातार ऐसी शिकायतें आ रही थीं कि कुछ पुलिस वाले दबंगों के साथ मिल कर कीमती जमीनों पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा कर रहे हैं.

दबंग अपराधी किसी भी जमीन पर अपना खूंटा गाड़ देते हैं और जमीन मालिक को औनेपौने भाव में जमीन बेचने का दबाव बनाते हैं. कई बिल्डर और प्रोपर्टी डीलर तो ग्राहकों के लाखों रुपए ठग कर फ्लैट देने में भी आनाकानी कर रहे हैं.

जब कोई पीडि़त ग्राहक या जमीन मालिक पुलिस से गुहार लगाता है, तो दबंगों पर कार्यवाही करने के बजाय भ्रष्ट पुलिस वाले उलटे जमीन मालिक को ही समझातेधमकाते हैं कि जो पैसा मिल रहा है, उतने में ही जमीन बेच दो, वरना अपराधी जबरन कब्जा कर लेंगे और जमीन के एवज में कुछ भी नहीं मिलेगा.

डीआईजी शालीन के आदेश पर सभी थानों के दागी पुलिस वालों की पहचान शुरू कर दी गई है.

मिसाल के तौर पर कंकड़बाग महल्ले के एक रिटायर्ड अफसर ने मकान बनवाया था और उन के बच्चे बिहार से बाहर नौकरी करते थे. एक दबंग ने उन से मकान बेचने को कहा. जब उन्होंने मकान नहीं बेचा, तो उस दबंग ने अपने गुरगों के साथ उन के घर पर धावा बोल दिया और घर में रखा सामान उठा कर बाहर फेंकने लगा.

उस रिटायर्ड अफसर ने पुलिस के पास गुहार लगाई, पर एफआईआर दर्ज करने के बजाय पुलिस वालों ने उन से कहा कि जितना रुपया मिल रहा है, उतने में मकान बेच दो. ज्यादा जिद और थानाकचहरी करोगे, तो आप को कुछ भी नहीं मिलेगा.

पिछले साल ऐसे मामलों में शामिल तकरीबन 6 पुलिस वालों को सस्पैंड किया गया था, इस के बाद भी पुलिस वालों ने कोई सबक नहीं सीखा है.  राजीव नगर थाना, सचिवालय थाना, गांधी मैदान थाना समेत कई थानों के पुलिस वाले ऐसे केसों में शामिल पाए गए हैं.

पिछले साल राजीव नगर थाने के तब के थाना इंचार्ज सिंधुशेखर पर कानूनी कार्यवाही की गई थी. इसी तरह दीदारगंज थाने के इंस्पैक्टर मुखलाल पासवान को सस्पैंड किया गया था. दोनों पर आरोप था कि उन्होंने जबरन जमीन बिकवाने के लिए दबंगों का साथ दिया था.

मोकामा के विधायक के बौडीगार्ड रह चुके विपिन सिंह को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वहीं सचिवालय थाने के सिपाही दीपक कुमार को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. जक्कनपुर थाने के एक सिपाही को खुलेआम रंगदारी मांगने के आरोप में सस्पैंड किया गया था.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो पटना और दूसरे कई शहरों में कई धोखेबाज और ठग बिल्डरों पर नकेल कसने के लिए बिल्डरों के केसों की समीक्षा, वारंट जारी होने, गिरफ्तारी के हालात पैदा होने, बेल बौंड का सत्यापन कराए जाने को ले कर बिल्डरों में हड़कंप मचा हुआ है. इन से बचने के लिए कई बिल्डर पुलिस वालों की मदद ले रहे हैं.

इन केसों की समीक्षा में डीआईजी शालीन को थाना लैवल पर ही मामलों को दबाने, जमीन माफिया और ठग बिल्डरों से मिलीभगत के संकेत मिल थे.

ठग बिल्डरों के बेल बौंड के सत्यापन का काम शुरू कर दिया गया है. जांच में यह पता करने की कोशिश की जा रही है कि किनकिन लोगों ने झूठे कागजात लगा कर कोर्ट को गुमराह कर जमानत हासिल की थी. पता चलने पर ऐसे लोगों पर केस दर्ज होगा.

बिल्डर अनिल सिंह के केस में फर्जी कागजात सामने आने पर डीआईजी ने कुल 30 केसों में आरोपित पटना के बिल्डरों के बेल बौंड की समीक्षा करने का आदेश जारी किया है.

जमीन पर जबरन कब्जे को ले कर रक्सौल में हुई गोलीबारी के तार पटना के बेऊर जेल से जुड़ने लगे हैं. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, गोलीबारी करने वाले गिरोह का सरगना कई मामलों में जेल में बंद है. उस के इशारे पर ही रक्सौल में जमीन कब्जाने की कोशिश की गई थी. इस मामले में फिलहाल 12 लोगों को पकड़ा गया है. गिरफ्तार अपराधियों ने ही बेऊर जेल में बंद सरगना का नाम लिया है.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो अपराधियों के लिए रक्सौल में एक होटल बुक कराने का काम पटना पुलिस के ही एक सिपाही ने किया था. उस सिपाही ने अपने आई कार्ड की फोटोकौपी होटल में जमा करा कर 3 कमरे बुक किए थे. पुलिस इस मामले में सिपाही के शामिल होने की जांच कर रही है.

पटना सैंट्रल के डीआईजी शालीन ने बताया कि सभी थानों से ऐसे पुलिस वालों की लिस्ट मांगी गई है, जो माफिआ से सांठगांठ कर उन की मदद करते रहे हैं. आरोप साबित होने पर उन पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी. अगर किसी जमीन मालिक को जमीन के मामले में कोई पुलिस वाला धमकी दे या किसी के खिलाफ एफआईआर न लिखे, तो सीधे डीआईजी से शिकायत की जा सकती है.

पुलिस ने उन बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया पर नकेल कसने की कवायद शुरू की है, जो फ्लैट, मकान या जमीन देने के नाम पर ग्राहकों से मोटी रकम वसूल चुके हैं, इस के बाद भी ग्राहकों को फ्लैट या जमीन नहीं दे रहे हैं.

कई बिल्डर तो ग्राहकों के साथ मारपीट कर रहे हैं और धमका रहे हैं. ग्राहक जब पुलिस थाने में केस करता है, तो बिल्डर मामले की जांच कर रहे अफसर की मुट्ठी गरम कर केस दबा रहे हैं.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, हर थाने में ऐसे 10-12 मामले हैं, जिन पर पुलिस ने कार्यवाही नहीं की है. अब हर थाने से रिपोर्ट मांगी गई है कि किसकिस बिल्डर, प्रोपर्टी डीलर और जमीन माफिया पर केस दर्ज हैं? किसकिस के खिलाफ अदालत से वारंट जारी हुआ है? किसकिस थाने में कितनों के खिलाफ मामले दर्ज हैं और उस का केस नंबर क्या है? किस तारीख को किनकिन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है?

एक ताजा मामले में बिल्डर अब्दुल खालिद के खिलाफ कोर्ट से जारी गिरफ्तारी वारंट को 6 महीने तक दबा कर रखने के आरोप में पटना के शास्त्री नगर थाने में तैनात दारोगा पर पुलिस महकमे ने कार्यवाही शुरू कर दी है. डीआईजी शालीन ने एसएसपी को आदेश दिया है कि उस दारोगा पर तुरंत कार्यवाही की जाए.

इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब 2 औरतें दारोगा के खिलाफ शिकायत ले कर डीआईजी के पास पहुंची थीं. उन औरतों ने कहा कि फ्लैट देने के नाम पर बिल्डर अब्दुल खालिद ने उस से लाखों रुपए ले लिए हैं, पर पिछले कई महीनों से वह फ्लैट देने में टालमटोल कर रहा है.

पुलिस ने जांच की, तो पता चला कि उस बिल्डर के खिलाफ पिछले 6 महीने से कोर्ट से वारंट निकला हुआ था, पर दारोगा उसे दबा कर बैठा रहा.

पटना में जिन बिल्डरों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, उन की समीक्षा की गई. दर्ज मामलों में अगर कोई बिल्डर जमानत पर है, तो उस के बेलर की जांच की जाएगी. बिल्डर अनिल सिंह का मामला सामने आने के बाद सभी बिल्डरों पर दर्ज मामलों की लिस्ट तैयार की जा रही है.

29 मामले ऐसे सामने आए हैं, जिन की पड़ताल की जा रही है. जांच में अगर पाया गया कि किसी ने फर्जी बेलर के जरीए जमानत ली है, तो बिल्डर के खिलाफ धोखाधड़ी का नया केस भी दर्ज किया जाएगा. बेलर के खिलाफ भी गलत जानकारी देने का केस दर्ज होगा.

28 अप्रैल, 2016 को एक्जिबिशन रोड पर एक जमीन को ले कर पैदा हुए विवाद में अनिल सिंह और लोकल लोगों के खिलाफ जम कर मारपीट और आगजनी हुई थी. वारदात के बाद बिल्डर और उस के गुरगों के खिलाफ गांधी मैदान थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी. वारदात के बाद ही अनिल सिंह फरार हो गया था, पर उस के पिछले रिकौर्ड की जांच में पुलिस ने पाया कि पिछले 2 मामलों में उस के बेलर ने गलत जानकारी दी थी.

गांधी मैदान थाने में दर्ज केस नंबर 331/2014 में जमानत पर चल रहे अनिल सिंह के बेलर नरेंद्र उर्फ नरेश कुमार चौधरी की खोज शुरू हुई. बेल बौंड में नरेश का पता आकाशवाणी रोड, आशियाना मोड़, राजीव नगर, पटना लिखा हुआ है. पुलिस ने जब उस पते पर नरेश कुमार की खोज की, तो उस नाम का कोई आदमी ही नहीं मिला.

इसी तरह आलमगंज थाने में दर्ज केस नंबर 211/2013 के मामले में भी अनिल सिंह ने फर्जी तरीके से जमानत ली है. कोर्ट को गुमराह करने और फर्जी तरीके से जमानत लेने के मामले में अनिल सिंह पर स्पीडी ट्रायल चलेगा.

यह केस हत्या की कोशिश, मारपीट और आर्म्स ऐक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

सांसद मनोज तिवारी भी फंसे?

भारतीय जनता पार्टी के सांसद और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी पर रियल ऐस्टेट कंपनी का गलत प्रचार करने के आरोप में पटना के गांधी मैदान थाने में केस दर्ज किया गया है. मनोज तिवारी समेत रियल ऐस्टेट कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर और डायरैक्टर समेत 9 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ है.

मनोज तिवारी इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. यह केस पटना हाईकोर्ट के वकील चंद्रभूषण वर्मा की बीवी मीना रानी सिन्हा ने दर्ज कराया है. उन्होंने बताया कि कंपनी ने बिना खरीदे ही जमीन बेच डाली. जब वे अपनी जमीन पर कब्जा करने मनेर गईं, तो पता चला कि वह जमीन कंपनी की नहीं है. कंपनी ने वादा किया था कि जमीन नहीं देने की हालत में वह सूद के साथ पूरी रकम वापस करेगी. वे कंपनी से पिछले कई महीनों से अपनी मूल रकम 6 लाख, 58 हजार वापस मांग रही हैं, पर कंपनी रकम नहीं दे रही है.

इस बारे में मनोज तिवारी ने बताया कि वे पिछले 10 सालों से इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. अगर किसी की शिकायत सही है, तो वे समस्या का निबटारा करते हैं. एक शिकायतकर्ता का पैसा वापस करने के लिए चैक तैयार किया गया है और किसी की कोई शिकायत होगी, तो उस का भी निबटारा किया जाएगा

सोने की मोहरों से भरे घड़े

कमरे का वातावरण रहस्यमय था. लाल रंग का मद्धिम रोशनी वाला बल्ब टिमटिमा रहा था. कमरे के एक कोने में बिछी काली दरी पर एक बाबाजी बैठे थे. उन की उम्र 35 से 40 साल के बीच रही होगी. वह साधुसंन्यासियों या तांत्रिकों जैसे कपड़े पहनने के बजाय पैंटशर्ट पहने था. सिर पर गुलाबी रंग की पगड़ी बांधे उस बाबा के सामने 30-32 साल का एक युवक बैठा था. उस के पीछे 2 अन्य लोग भी बैठे थे. उन की उम्र 55-60 साल रही होगी. सामने गद्दी पर बैठे बाबा ने थोड़ी सख्त आवाज में पूछा, ‘‘आप लोग घर के आंगन की मिट्टी लाए हैं?’’

बाबाजी के सामने बैठे युवक ने झट से अपने हाथ में थामी कपड़े की छोटी सी पोटली बाबा की ओर बढ़ा दी. उस में शायद मिट्टी थी. बाबा ने पोटली से चुटकी भर मिट्टी निकाल कर अपनी हथेली पर रख कर उसे सूंघा. उस के बाद हैरानी से आंखें फाड़ कर सामने बैठे युवक को घूरते हुए कहा, ‘‘हूं…मैं ने पहले ही कहा था कि जरूर कोई बला है. अब पता चला कि वह बला नहीं, बल्कि शेषनाग बैठा है धन पर कुंडली मारे.’’

‘‘शेषनाग…धन…कुंडली..? हम कुछ समझे नहीं बाबाजी.’’ सामने बैठे युवक ने ही नहीं, उस के पीछे बैठै दोनों लोगों ने हैरानी से कहा.

‘‘अरे भाई, तुम लोग तो बड़े भाग्यशाली हो, तुम्हारे घर के अंदर बहुत बड़ा खजाना दबा है.’’ बाबा ने उन्हें समझाते हुए कहा.

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं बाजाजी, हम कुछ समझ नहीं पाए? हमारे घर की समस्याएं, परेशानियां..?’’

‘‘सब इसी खजाने की वजह से है.’’ बाबा ने उन की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘वह खजाना इन समस्याओं के माध्यम से बारबार चेतावनी दे रहा है कि मुझे बाहर निकालो. लेकिन बात तुम लोगों की समझ में नहीं आ रही है. खैर, कोई बात नहीं, अब तुम मेरे पास आ गए हो तो समझ लो कि तुम्हारे भाग्य खुल गए.’’

‘‘लेकिन बाबाजी, हमें क्या पता कि हमारे घर में खजाना कहां गड़ा है?’’ युवक ने कहा.

‘‘यह काम तुम्हारा नहीं है. कहीं खजाने के चक्कर में अपने घर को मत खोद डालना. गड़ा धन ऐसे नहीं मिल जाता. उस के लिए बड़ी पूजा करनी पड़ती है. तरहतरह के उपाय और साधना करनी पड़ती है. इस के लिए काफी रुपए खर्च करने पड़ेंगे. अगर बिना पूजापाठ के धन निकालने की कोशिश की गई तो परिवार तबाह हो जाता है.

‘‘तुम्हारे घर के अंदर 16 मटके दबे हुए हैं, जिन में सोने की मोहरें भरी हैं. एक बात और ध्यान से सुन लो, मैं श्री गुरुनानक देवजी का वंशज हूं. वह बेदी थे और मैं भी बेदी हूं, इसीलिए यह काम पूरी दुनिया में सिर्फ मैं ही कर सकता हूं. दूसरा कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ, जो यह काम कर सके. समझे कि नहीं?’’

‘‘नहीं महाराज, हम खुद धन निकालने की कैसे सोच सकते हैं, क्योंकि हमें कहां पता है कि मटके कहां गड़े हैं? अब आप ही बताइए कि इस काम में कितना खर्च आएगा?’’

‘‘लगभग 3 लाख रुपए तो खर्च हो ही जाएंगे. और सुनो, अगर यह काम इसी सप्ताह शुरू नहीं हुआ तो धन तो जाएगा ही, तुम्हारा सब सत्यानाश कर के जाएगा. इसलिए यह काम 2-4 दिनों में ही शुरू करना होगा.’’ बाबा ने चेतावनी देते हुए कहा.

बाबा की बात सुन कर युवक और उस के पीछे बैठे दोनों लोगों ने एक साथ कहा, ‘‘ठीक है बाबाजी, हम 2 दिनों में रुपयों की व्यवस्था कर के आते हैं.’’

इस के बाद तीनों बाबा को प्रणाम कर के चले गए.

करतारपुर और कपूरथला के बीचोबीच कपूरथला के थाना सदर का एक गांव है कोट करार. इसी गांव में सरदार तरसेम सिंह पत्नी और 2 बेटों हरजिंदर सिंह तथा चरणजीत सिंह के साथ रहते थे. उन के पास भले ही जमीन ज्यादा नहीं थी, पर उन के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी.

दोनों बेटों को उन्होंने 12वीं तक पढ़ा कर समय से उन की शादियां कर दी थीं. शादी के बाद दोनों बेटे टैंपो खरीद कर चलाने लगे थे. कुछ सालों पहले तरसेम और उन की पत्नी की मौत हो गई थी.

दोनों भाइयों की कमउम्र में ही शादियां हो गई थीं, इसलिए उन्हें बच्चे भी जल्दी हो गए थे. इस समय हरजिंदर का बेटा 12वीं में पढ़ रहा है तो चरणजीत का 9वीं में. वैसे तो दोनों भाइयों को किसी चीज की कमी नहीं थी, पर इधर कुछ दिनों से उन के सारे काम उलटेपुलटे हो रहे थे.

यह इत्तफाक था या कुछ और कि पूरे परिवार को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर यह हो क्या रहा है? उन के बने काम भी एकदम से बिगड़ने लगे थे. घर का वातावरण भी नकारात्मक हो गया था. परिवार के सदस्यों को बुरे और डरावने सपने आने लगे थे.

हालांकि यह सब मात्र संयोग था, लेकिन वहम हो जाए तो उस का इलाज किसी के पास नहीं है. ऐसे में किसी ने कह दिया कि यह सब किसी ऊपरी साए की वजह से हो रहा है तो सब ने मान भी लिया. फिर तो सभी ने यही माना कि बिना किसी उपचार के यह ठीक नहीं होगा.

चरणजीत के चाचा परमजीत सिंह भी गांव में ही रहते थे. उन के एक मित्र थे जसवीर सिंह. वह काफी समझदार और अनुभवी आदमी थे. उन्होंने किसी अखबार में एक इश्तहार देखा था, जिस में लिखा था, ‘बनते काम बिगड़ते हों, ऊपरी हवा का चक्कर हो, संतान हो कर गुजर जाती हो, बीमारी या मुकदमेबाजी हो, दुश्मनों का भय या फिर काम बंद हो, हर समस्या का समाधान, हर मुसीबत से शर्तिया छुटकारा. एक बार अवश्य मिलें. नोट: कृपया आने से पहले फोन अवश्य कर लें.’

समाचारपत्र में छपा यह विज्ञापन देख कर जसवीर सिंह ने यह बात अपने मित्र परमजीत को बता कर कहा, ‘‘क्यों न तुम्हारे भतीजों को इस के यहां दिखाया जाए, शायद उन की समस्या का समाधान हो ही जाए?’’

‘‘बात तो तुम ठीक कह रहे हो. जाने में कोई हर्ज भी नहीं है.’’ परमजीत सिंह ने कहा था.

दरअसल, उन्हें भी यह बात जंच गई थी. उस समय हरजिंदर घर पर नहीं था. उन्होंने छोटे भतीजे चरणजीत से बात की और उसे साथ चलने को राजी कर लिया. हालांकि वह बड़े भाई से पूछे या सलाह किए बिना जाना नहीं चाहता था, पर चाचा की वजह से वह इनकार भी नहीं कर सका.

24 दिसंबर, 2016 को चरणजीत सिंह, जसवीर सिंह और परमजीत सिंह समाचारपत्र में दिए पते के अनुसार फ्लैट-2055 नियर बीएमसी स्कूल, चंडीगढ़ रोड, लुधियाना पहुंच गए.

चलने से पहले जसवीर ने फोन कर दिया था. वहां पहुंचने पर तीनों की मुलाकात रविंदर सिंह बेदी नामक सिख युवक से हुई. वह खुद को तंत्रमंत्र, ज्योतिष आदि का विशेषज्ञ बताता था. इन लोगों की समस्या सुन कर उस ने इन्हें अगले दिन घर की मिट्टी ले कर आने को कहा. इस तरह ये लोग 2-3 दिनों तक कपूरथला से लुधियाना आतेजाते रहे.

26 दिसंबर, 2016 को रविंदर सिंह बेदी ने चरणजीत से उस के घर में खजाना दबे होने की बात बता कर उसे निकालने के लिए पूजा के लिए 3 लाख रुपए का खर्च बताया.

चरणजीत का बड़ा भाई हरजिंदर गाड़ी ले कर बाहर गया था. उस के वापस आने का कोई निश्चित दिन नहीं था. दूसरी ओर रविंदर के कहे अनुसार, एक भी दिन देर करना उचित नहीं था. अकेले कोई फैसला लेने में चरणजीत को मुश्किल हो रही थी. दूसरी ओर चाचा और जसवीर सिंह बारबार कह रहे थे कि वह चिंता न करे, सब ठीक हो जाएगा.

दिमाग पर ज्यादा जोर न देते हुए चरणजीत ने रुपयों का इंतजाम किया और 28 दिसंबर, 2016 को चाचा परमजीत और जसवीर सिंह के साथ अपनी अल्टो कार से लुधियाना रविंदर के यहां पहुंच गया. रविंदर ने कहा, ‘‘मैं कोई भी काम गलत या कच्चा नहीं करता. हर काम लिखित और गारंटी के साथ करता हूं. इसलिए पहले कोर्ट चल कर इस काम को करने के लिए एग्रीमेंट बनवाते हैं.’’

जसवीर, परमजीत और चरणजीत ने बहुत कहा कि उन्हें उस पर पूरा विश्वास है, लेकिन रविंदर ने उन की एक नहीं सुनी. वह तीनों को लुधियाना की न्यू कोर्ट ले गया और नोटरी के माध्यम से चरणजीत की अल्टो कार अपने नाम पर यह कह कर ट्रांसफर करवा ली कि अभी उसे इस की जरूरत है. काम हो जाने के बाद वह उसे वापस कर देगा.

जिस एग्रीमेंट के लिए रविंदर उन्हें कोर्ट ले गया था, वह पीछे रह गया. कोर्ट से लौट कर चरणजीत सिंह ने 50-50 हजार कर के 2 लाख रुपए रविंदर बेदी को नकद दे दिए. इस के अलावा उस ने चरणजीत से हजारों रुपए के महंगे स्टोन, पुखराज, पन्ना, नीलम आदि मंगवाए.

रविंदर बेदी का कहना था कि पूजा के समय ये स्टोन पूजा वाले स्थान पर रखे जाएंगे. जिस जगह खजाना दबा होगा, ये स्टोन अपने आप चल कर उस जगह को बताएंगे. उस दिन के बाद चरणजीत को वे स्टोन खजाने का पता क्या बताते, रविंदर बेदी खुद ही गायब हो गया.

चरणजीत लुधियाना स्थित रविंदर बेदी के घर के चक्कर लगालगा कर थक गया, उसे न उस की कार मिली और न खजाना. उस के रुपए भी चले गए. रविंदर का कुछ अतापता नहीं था, काफी चक्कर लगाने के बाद एक दिन बेदी मिला भी तो सिवाय आश्वासन के उस ने कुछ नहीं दिया. उस ने कहा, ‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. शुभ मुहूर्त आते ही वह पूजा शुरू कर के तुम्हें राजा बना देगा.’’

इस के बाद न कभी वह शुभ मुहूर्त आया और न ही चरणजीत राजा बन सका. धीरेधीरे चरणजीत की समझ में आ गया कि रविंदर बेदी ने उसे ठग लिया है. एक दिन वह अपने बड़े भाई हरजिंदर और 2 रिश्तेदारों को साथ ले कर रविंदर बेदी के घर पहुंचा. उस ने अपनी कार और 2 लाख रुपए वापस मांगे.

रविंदर ने उन्हें टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘कैसे रुपए? जो रुपए तुम ने दिए थे, वे पूजापाठ की सामग्री में खर्च हो गए. रही बात कार की तो उसे खुद तुम ने मुझे बेचा था. बाबाजी की सेवा के लिए.’’

रविंदर की बात सुन कर चरणजीत सिंह के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दुख तो उसे 2 लाख रुपयों का भी था, लेकिन कार की चिंता अधिक थी, क्योंकि कार उस ने एचडीएफसी बैंक से फाइनैंस करवाई थी, जिस की किस्तें वह अभी भी भर रहा था.

वह समझ गया कि खजाने का लालच दे कर रविंदर ने उस के साथ जबरदस्त चीटिंग की है. एक बार और उस ने बेदी से निवेदन करते हुए कहा कि उसे खजानावजाना कुछ नहीं चाहिए. वह उस की कार और 2 लाख रुपए लौटा दे. इस के बाद वह उस के द्वारा ठगी का किसी के सामने जिक्र नहीं करेगा.

चरणजीत का इतना कहना था कि रविंदर आगबबूला हो उठा. उस ने चरणजीत को धमकी देते हुए कहा, ‘‘चुपचाप शराफत से चले जाओ, वरना पुलिस को बुला कर बंद करवा दूंगा.’’

‘‘कमाल है, एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी. ठगा भी मैं ही गया हूं और तुम बंद भी मुझे ही कराओगे. बदमाशी की भी हद होती है. अब मैं पुलिस के पास जाता हूं.’’

‘‘जाओ, शौक से जाओ. पुलिस थानों में मेरी इतनी चलती है कि वहां कोई तुम्हारी बात नहीं सुनेगा. तुम्हें पता नहीं कि मैं पुलिस को हफ्ता देता हूं.’’

सच पूछो तो उस समय रविंदर बेदी की धमकी से चरणजीत डर गया था. उस ने घर जा कर यह बात अपने बड़े भाई और रिश्तेदारों को बताई. तब सब ने यही सलाह दी कि उसे पुलिस के पास जाना चाहिए. लेकिन सब ने सोचा कि एक बार और रविंदर के पास जा कर बात कर लेनी चाहिए. पर जब वे रविंदर के फ्लैट पर पहुंचे तो उस ने कोई बात सुने बिना सभी को धमका कर भगा दिया.

पूरे 6 महीने हो गए थे चरणजीत को रविंदर के पीछे भटकते हुए. हार कर लुधियाना के थाना डिवीजन-7 में जा कर उस ने थानाप्रभारी सतवंत सिंह को अपने साथ रविंदर बेदी द्वारा की गई ठगी की पूरी कहानी सुना दी. चरणजीत की पूरी बात सुन कर सतवंत सिंह ने एएसआई सुखविंदर सिंह को बुला कर यह मामला उन के हवाले कर काररवाई करने को कहा.

सुखविंदर सिंह चरणजीत की शिकायत पर काररवाई करते हुए सिपाही बलबीर सिंह को रविंदर बेदी के घर बुलाने भेजा, ताकि आमनेसामने बैठ कर बात की जा सके.

दरअसल, ऐसे मामलों में काफी हद तक पीडि़त खुद ही दोषी होता है, जो अंधविश्वास के झूठे मायाजाल में फंस कर अपना नुकसान कर बैठता है. सोचना चरणजीत को चाहिए था कि उस के घर से लगभग 150 किलोमीटर दूर बैठा आदमी यह बात कैसे जान गया कि उस के घर में खजाना दबा है. लालच और अंधविश्वास में ही उलझ कर चरणजीत जैसे लोग रविंदर बेदी जैसे फरेबी तांत्रिकों के मायाजाल में फंस कर उल्लू बन जाते हैं.

बहरहाल, सुखविंदर सिंह के बुलवाने पर रविंदर बेदी थाने नहीं आया. वह घर से ही गायब हो गया. पुलिस उस की तलाश करती रही. पुलिस अपना काम अपने तरीके से कर रही थी. कार और 2 लाख रुपए तो चरणजीत के फंसे हुए थे, इसलिए वह और उस के रिश्तेदार गुपचुप तरीके से रविंदर के घर की निगरानी कर रहे थे.

एक दिन रविंदर बेदी कपड़े और कुछ रुपए लेने जैसे ही घर आया, चरणजीत और उस के रिश्तेदारों को देख कर ठिठका. वह शहर छोड़ कर भाग जाना चाहता था. चरणजीत और उस के रिश्तेदारों को देख कर वह गली में भागा, पर चरणजीत और उस के रिश्तेदारों ने दौड़ा कर उसे पकड़ लिया. इस में मोहल्ले वालों ने भी उन की मदद की. क्योंकि मोहल्ले वाले भी उस की ठगी के धंधे से अच्छी तरह परिचित थे. सभी रविंदर को पकड़ कर थाने ले गए.

रविंदर का साथी कमल शर्मा उर्फ ड्राइवर भी पकड़ा गया था. वह रविंदर के हर काम में उस का सहायक था. चरणजीत की कार भी रविंदर ने उसी के नाम करवाई थी. थाने पहुंच कर रविंदर ने नौटंकी शुरू कर दी. काफी देर तक उस की नौटंकी चलती रही.

कभी वह कहता कि अपनी तंत्रमंत्र की ताकत से सभी को भस्म कर देगा तो कभी कहता कि वह इन के 2 लाख रुपए किस्तों में लौटा देगा. रही बात कार की तो इसे उस ने चरणजीत से खरीदी थी, जिस के उस के पास बाकायदा कागज हैं.

लेकिन पुलिस ने न उस की बातों पर ध्यान दिया और न नौटंकी पर. 16 मई, 2017 को अपराध संख्या 109/2017 पर भादंवि की धारा 420, 406, 120बी के तहत उस के और उस के साथी कमल शर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश कर के एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

लेकिन रिमांड अवधि में पुलिस उस से ज्यादा जानकारी हासिल नहीं कर सकी. रिमांड खत्म होने पर उसे अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया था. बाद में चरणजीत ने अपनी कोशिश से उस से कार वापस ली थी.

इस मामले में चरणजीत का कहना है कि पुलिस ने उस की बात ठीक से नहीं सुनी. लेकिन पुलिस ऐसे मामलों में कर भी क्या सकती है?

पुलिस या कानून किसी से नहीं कहता कि लालच में अपना सब कुछ लुटा दो. यहां तो हर कोई लूटने को बैठा है. लुटने वाले को भी तो कुछ सोचना चाहिए.

लुटना या बचना आदमी के अपने हाथ में है. कुदरत ने हर इंसान को बराबर दिमाग दिया है. अगर कोई फंसाने के लिए दिमाग लगाता है तो सामने वाले को बचने के लिए अपने दिमाग का उपयोग करना चाहिए. ऐसे में अगर कोई फंस जाता है तो वह भी कम दोषी नहीं है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपराध, कानून, सजा : कातिलों को मिली सजा

दुनिया के खूबसूरत माने जाने वाले केंद्रशासित आधुनिक शहर चंडीगढ़ के सैक्टर-22 में एक जानामाना रेस्टोरेंट है नुक्कड़ ढाबा. इस रेस्टोरेंट का खाना इतना लजीज है कि दूरदूर से लोग यहां खाना खाने आते हैं, जिस की वजह से वहां हमेशा ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है.

इसी रेस्टोरेंट के मालिक जोगिंदर सिंह की 20 साल की बेटी मनीषा सिंह सैक्टर-34 के एक इंस्टीट्यूट से आर्किटैक्चर का कोर्स कर रही थी. पढ़ने में वह ठीकठाक थी, इसलिए वह एक अच्छी आर्किटैक्ट बनना चाहती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन मनीषा काफी खूबसूरत थी. पिता जोगिंदर सिंह को अपनी इस एकलौती बेटी से लगाव तो था ही, साथ ही नाज भी था कि आगे चल कर वह खानदान का नाम रौशन करेगी.

लेकिन यह सोच कर उन का मन उदास भी हो जाता था कि बेटियां तो पराया धन होती हैं. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मनीषा की शादी कर देंगे तो वह उन्हें छोड़ कर अपनी ससुराल चली जाएगी.

खैर, रोज की तरह 18 अक्तूबर, 2014 की सुबह मनीषा इंस्टीट्यूट जाने के लिए घर से निकली. उस दिन शनिवार था, इसलिए दोपहर तक उसे घर वापस आ जाना था. लेकिन वह शाम तक भी नहीं लौटी तो घर में सभी को उस की चिंता हुई. चिंता की वजह यह थी कि उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ बता रहा था.

जोगिंदर सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथ गुमशुदगी एवं किडनैपिंग की आशंका संबंधी एक लिखित शिकायत सैक्टर-22 की पुलिस चौकी जा कर दे दी. यह चौकी सैक्टर-17 स्थित थाना सैंट्रल के अंतर्गत आती थी, इसलिए थाना सैंट्रल में इस की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

पुलिस रात भर मनीषा की तलाश करती रही. जब सफलता नहीं मिली तो पुलिस ने अगले दिन उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाली. इस से पता चला कि वह शनिवार को सुबह से ही रजत के संपर्क में थी. 21 वर्षीय रजत बेनीवाल चंडीगढ़ के सैक्टर-51ए में रहता था और पंजाब यूनिवर्सिटी के इवनिंग कालेज में बीए द्वितीय वर्ष का छात्र था.

संदेह के आधार पर पुलिस ने रजत को हिरासत में ले कर औपचारिक पूछताछ तो की ही, उस के मोबाइल फोन की लोकेशन भी निकलवाई. इस से पता चला कि उस के और मनीषा के मोबाइल फोन की लोकेशन एक साथ थी.

इसी जानकारी के आधार पर पुलिस ने रजत को विधिवत गिरफ्तार कर पूछताछ शुरू की. पहले तो वह पुलिस को बहकाने की कोशिश करता रहा, लेकिन 2 घंटे की सघन पूछताछ में आखिर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि मनीषा ने किसी नशीले पदार्थ का सेवन कर लिया था, जिस से उस की मौत हो गई थी. डर की वजह से उस ने उस की लाश को चंडीगढ़ से 40 किलोमीटर दूर ले जा कर राजपुरा रोड के एक गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस को रजत के इस बयान में पूरी तरह से सच्चाई नजर नहीं आ रही थी. इस के बावजूद डीएसपी सैंट्रल डा. गुरइकबाल सिंह सिद्धू के नेतृत्व में सैंट्रल थाना के कार्यकारी थानाप्रभारी इंसपेक्टर जसबीर सिंह और सैक्टर-22 चौकीप्रभारी देशराज सिंह के अलावा एक विशेष टीम रजत को ले कर राजपुरा रोड पर कस्बे बनूड़ से होते हुए शंभु बैरियर के समीप स्थित गांव टेपला पहुंची, जहां वह बदबूदार गंदा नाला था.

रजत की निशानदेही पर आधे घंटे की कोशिश के बाद गंदे नाले के पास से मनीषा की लाश बरामद की ली गई. लाश पूरी तरह से कीचड़ से सनी थी. पुलिस ने मनीषा के घर वालों को फोन कर के वहीं बुला कर लाश की शिनाख्त करा ली. शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए चंडीगढ़ के सैक्टर-16 स्थित जनरल अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया.

पुलिस का मानना था कि रजत ने मनीषा की मौत की जो वजह बताई थी, वह सही नहीं हो सकती. इस मामले में अकेला रजत ही नहीं शामिल था, बल्कि कुछ अन्य लोग भी उस के साथ थे. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मनीषा की मौत का रहस्य काफी गहरा है.

चंडीगढ़ लौट कर रात में एक बार फिर रजत से गहन पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने चौंकाने वाला जो खुलासा किया, उस के अनुसार, इस वारदात में उस के अलावा 2 अन्य लोग शामिल थे. वे थे— चंडीगढ़ के सैक्टर-56 का रहने वाला कमल सिंह और मोहाली के फेज-10 का रहने वाला दिलप्रीत सिंह. 29 साल का कमल सिंह एक रेस्तरां का मालिक होने के साथसाथ शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. 22 साल का दिलप्रीत सिंह इंटीरियर डिजाइनिंग का डिप्लोमा कर रहा था.

पुलिस ने उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया था. दोनों से हुई पूछताछ में पता चला कि दिलप्रीत मृतका मनीषा का बौयफ्रैंड था. उसी ने उस की जानपहचान अपने दोस्तों रजत और कमल से कराई थी. पुलिस को दिए अपने बयानों में उन्होंने बताया था कि 18 अक्तूबर, 2014 को चारों एक पार्टी में गए थे, जहां सब ने ड्रग्स लिया और शराब भी पी.

सभी आ कर गाड़ी में बैठे थे, तभी अचानक मनीषा की मौत हो गई. इस के बाद वे उस की लाश को ले कर पहले पल्सौरा गांव गए. वहां उन्हें लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो वे लाश को ले कर राजपुरा रोड पर स्थित गंदे नाले पर पहुंचे और वहीं लाश को एक कपड़े में लपेट कर फेंक दिया.

20 अक्तूबर, 2014 को तीनों अभियुक्तों को जिला अदालत में पेश कर के एक दिन के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. उसी दिन सैक्टर-16 के जीएमएसएच अस्पताल में मनीषा की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों के हवाले कर दी गई. लाश पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस समय मौत की वजह भी स्पष्ट नहीं हो सकी थी. सीएफएसएल जांच के लिए मृतका के शरीर के कुछ हिस्सों के अलावा विसरा सुरक्षित कर लिया गया था.

21 अक्तूबर को सैक्टर-25 के श्मशानगृह में मनीषा के घर वालों ने उस का दाहसंस्कार कर दिया. उस समय वहां कुछ पत्रकार भी मौजूद थे, जिन से मनीषा के घर वालों ने कहा था कि पुलिस वाले कुछ भी कहें, पर साफ है कि मनीषा की हत्या की गई है, वह भी रंजिशन एवं योजनाबद्ध तरीके से.

क्योंकि मनीषा किसी भी तरह का नशा नहीं करती थी. वह इस तरह के लड़कों के साथ कहीं जाती भी नहीं थी. कमल ने योजनाबद्ध तरीके से उन से बदला लेने के लिए मनीषा की हत्या की थी. क्योंकि एक साल पहले वह उन के ढाबे पर खाना खाने आया था.

तब उस ने बिल न अदा करते हुए उन के ढाबे पर काम करने वाले एक लड़के के साथ मारपीट की थी. उस के बाद उन लोगों ने भी उसे उस की बदतमीजी का थोड़ा सबक सिखाया था. उस ने उस समय काफी बेइज्जती महसूस की थी. अपनी उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने योजना बना कर दिलप्रीत, जो मनीषा के इंस्टीट्यूट में पढ़ता था, के जरिए मनीषा का अपहरण कर योजनाबद्ध तरीके से उस की हत्या कर दी थी.

दूसरी ओर पुलिस ने जो जांच की थी, उस के अनुसार, रजत, कमल और दिलप्रीत ड्रग्स के आदी थे. मोबाइल पर संदेश भेज कर किसी जिंदर नामक शख्स से उन्होंने ड्रग्स मंगवाया था. जिंदर के बारे में इन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. हां, पूछताछ में यह जरूर पता चला है कि अभियुक्त कमल पर थाना सैक्टर-39 में हत्या का एक मुकदमा दर्ज था, जो अदालत में विचाराधीन है.

अभियुक्तों का कहना था कि मनीषा भी कभीकभी ड्रग्स लेती थी. उस दिन भी उन चारों ने नशे के लिए एक साथ ड्रग्स लिया था. तभी ओवरडोज की वजह से मनीषा की मौत हो गई थी. उस के बाद डर की वजह से उन्होंने उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस की इस कहानी से मनीषा के घर वाले कतई सहमत नहीं थे. उन्होंने पत्रकारों के माध्यम से पुलिस के सामने सवाल खड़े किए थे कि क्या पुलिस ने इस बात की जांच की है कि जिसे ड्रग्स की ओवरडोज से मौत माना जा रहा है, कहीं वह ड्रग्स दे कर हत्या करने का मामला तो नहीं है?

नशेबाजों ने उस की 2 लाख रुपए की ज्वैलरी हथियाने के लिए तो उस की हत्या नहीं की, जो उस ने उस दिन पहन रखी थी? योजना बना कर मनीषा का अपहरण तो नहीं किया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रभावी परिवारों के लड़कों के पकड़े जाने से पूरी कहानी बदल दी गई हो?

चंडीगढ़ में आम चर्चा थी कि वहां ड्रग पैडलर्स का पूरा रैकेट सक्रिय है. ड्रग्स ओवरडोज मामलों में पहले भी वहां कुछ मौतें हो चुकी थीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि मनीषा को उस रैकेट की जानकारी हो गई थी और इसी वजह से उसे मौत की नींद सुला दिया गया हो? लगातार हो रही इस तरह की मौतों के बाद भी पुलिस नशे के सौदागरों की धरपकड़ कर उन के खिलाफ सख्त काररवाई क्यों नहीं कर रही?

चंडीगढ़ में एक प्रतिष्ठित संस्था है फौसवेक (फेडरेशन औफ सेक्टर वेलफेयर एसोसिएशंज). इस संस्था के सदस्यों ने साफ कहा था कि वे नशे से जुड़े लोगों को पकड़ कर पुलिस के पास ले जाते हैं और पुलिस वाले अकसर उन्हें चेतावनी दे कर छोड़ देते हैं.

मनीषा के मामले को ले कर शहर में प्रदर्शन होते रहे, कैंडल मार्च निकाले जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने अपने ढंग से काररवाई करते हुए मनीषा की मौत के ठीक 81 दिनों बाद 8 जनवरी, 2015 को रजत, कमल और दिलप्रीत के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया. यह चार्जशीट नशे की अहम धाराओं के तहत दाखिल की गई थी.

लेकिन अदालती काररवाई अपने ढंग से चली. मामले की गहराई में जाने का प्रयास करते हुए अदालत ने तीनों आरोपियों के खिलाफ 4 फरवरी, 2015 को गैरइरादतन हत्या, सबूतों से छेड़छाड़ और किडनैपिंग की धाराओं के आरोप तय कर दिए. सुनवाई की अगली तारीख 24 फरवरी तय की गई.

उस दिन चंडीगढ़ की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंशु शुक्ला की अदालत में केस की विधिवत सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के पहले दिन मृतका के भाई 25 वर्षीय ऋषभ सिंह ने अपना बयान दर्ज कराया कि घटना वाले दिन सुबह कार से उस की बहन को लिवाने दिलप्रीत आया था. घर के बाहर मनीषा ने कुछ देर उस से बातचीत की और फिर वह इंस्टीट्यूट जाने की बात कह कर गाड़ी में बैठ गई. कार में पहले से ही 2 अन्य लोग मौजूद थे.

इस के बाद अदालत में मौजूद तीनों अभियुक्तों की उस ने पहचान भी की. इस के बाद केस की तारीख पड़ी 12 मार्च, 2015 को. उस दिन आरोपी दिलप्रीत के वकील तरमिंदर सिंह ने अदालत में अरजी दायर कर के मनीषा के फोन की जांच कराने की मांग की, जो स्वीकार कर ली गई.

लेकिन अगले दिन जब मनीषा का मोबाइल फोन कोर्ट में पेश किया गया तो उस का लौक नहीं खोला जा सका. इस पर मुकदमा 20 मार्च तक के लिए टल गया. कोर्ट ने सीएफएसएल को मोबाइल फोन भेज कर उस की जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा.

20 मार्च को यह रिपोर्ट पेश नहीं हो सकी तो अगली तारीख 31 मार्च की पड़ी. उस दिन केस के जांच अधिकारी ने सीएफएसएल की ओर से 5 सीडीज में दिया गया मोबाइल का डाटा कोर्ट को सौंपा. इस के बाद लगातार कई पेशियों तक अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने के अलावा उन का क्रौस एग्जामिनेशन हुआ.

6 जून, 2015 को सीएफएसएल ने मनीषा की जनरल विसरा रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी, जिस में बताया गया था कि मौत से पहले उस के साथ रेप और अननैचुरल सैक्स किया गया था. वहीं विसरा से एक आरोपी का सीमन भी बरामद कर प्रिजर्व किया गया था. अब आगे तीनों आरोपियों से इस का मिलान कराया जाना था. इस के अलावा सीएफएसएल ने मनीषा के जिस्म के कुछ हिस्सों की गहन जांच के आधार पर अपनी एक विशेष रिपोर्ट भी तैयार की थी.

इस रिपोर्ट के आने के बाद पुलिस की आरोपियों से मिलीभगत अथवा पूछताछ में की गई ढील अब पूरी तरह से सामने आ गई थी. इन तमाम मुद्दों पर बहस होने के बाद 24 जुलाई, 2015 को मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने इस केस में सामूहिक दुराचार और आपराधिक दुराचार के अलावा आपराधिक साजिश रचने की धाराएं क्रमश: 376डी, 377 एवं 120बी जोड़ने की अपील अदालत से की. तीनों आरोपियों का डीएनए सैंपल लेने की भी बात कही गई.

इस विशेष रिपोर्ट में मनीषा की मौत का कारण इंट्राक्रैनियल हैमरेज बताया गया था. सेरोलौजिकल जांच में उस के गुप्तांगों में वीर्य मिला था. विसरा जांच के रासायनिक विश्लेषण में मनीषा के शरीर में 85.57 प्रतिशत इथाइल अल्कोहल की मात्रा पाई गई थी. वहीं नार्पसेयूडोफिड्राइन नामक साइकोट्रोपिक सब्सटांस (नशीला पदार्थ) के मौजूद होने की बात भी कही गई थी. इस सब के अलावा हिस्टोपैथोलौजी रिपोर्ट में ब्रौंकोन्यूमोनिया एवं माइक्रोवेसिकुलर स्टीटोसिस मिलने की बात भी पता चली थी.

सरकारी वकील ने जो नई धाराएं इस केस में जोड़ने की दरख्वास्त अदालत से की थी, उस का विरोध करते हुए बचाव पक्ष के वकील इंदरजीत बस्सी ने अदालत से कहा कि धाराओं में संशोधन अथवा बढ़ोत्तरी की अरजी मान्य नहीं है. केस की जांच करने वालों ने अपनी जांच पूरी कर के चार्जशीट दायर की है और इस समय केस गवाहियों की स्टेज पर है.

अपने इस विरोध के संबंध में बचावपक्ष के वकील ने अपने ये नुक्ते अदालत के सामने रखे थे—

मृतका के साथ यौन प्रताड़ना के मुद्दे पर किसी भी गवाह ने अभी तक अपना बयान दर्ज नहीं कराया है. अभियोजन पक्ष की कहानी के हिसाब से कहीं भी इस का जिक्र नहीं किया गया कि आरोपियों के पीडि़ता के साथ यौनसंबंध बने थे. अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतका खुद आरोपियों के साथ गई थी, जिस में कहीं भी जबरदस्ती का कोई आरोप नहीं लगाया गया है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका के जिस्म पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे, जिस से उस के साथ जबरदस्ती की बात साबित नहीं होती. सीएफएसएल रिपोर्ट और चार्जशीट में इस बात का जिक्र नहीं है कि यौनसंबंध कब और किस समय बने थे? डीएनए प्रोफाइल के तहत अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के ब्लड सैंपल लेने के लिए अरजी दायर की है, ताकि वीर्य से इस का मिलान किया जा सके. ऐसे में यह प्रतीत होता है कि अभियोजन पक्ष खुद इस बात को ले कर संशय में है कि यह वीर्य किस का है?

यह बहस भी कुछ दिनों तक चलती रही. 29 जुलाई को विद्वान जज अंशु शुक्ला ने इस मुद्दे पर और्डर पास किया कि दुराचार और कुकर्म की अतिरिक्त धाराएं जोड़ने पर फैसला अभियुक्तों की ब्लड सैंपल रिपोर्ट और डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट के आने के बाद होगा. इस के लिए तारीख दी गई 29 अक्तूबर, 2015. लेकिन उस दिन रिपोर्ट न आने की वजह से सुनवाई टल गई.

बाद में रिपोर्ट आई तो नई धाराएं जोड़ कर अदालत की काररवाई फिर से शुरू हुई. देखतेदेखते एक साल से अधिक का समय गुजर गया. 31 जनवरी, 2017 को अदालत ने अपनी काररवाई मुकम्मल कर के इस केस के तीनों अभियुक्तों को दोषी करार दे कर सजा सुनाने की तारीख 4 फरवरी, 2017 तय कर दी.

इस तरह सक्षम एडीजे अंशु शुक्ला ने केस से जुड़े 17 गवाहों के बयान एवं साक्ष्यों के आधार पर अपने 160 पृष्ठों के फैसले में 4 फरवरी, 2017 को मनीषा सिंह केस के तीनों अभियुक्तों रजत बेनीवाल, कमल सिंह और दिलप्रीत सिंह को सामूहिक दुष्कर्म, अप्राकृतिक यौनसंबंध, गैरइरादतन हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में 20-20 साल की कैद के अलावा तीनों को 5 लाख 22 हजार रुपए प्रति दोषी जुरमाने की सजा सुनाई. अदालत के इस फैसले के खिलाफ दोषियों ने समयावधि के भीतर हाईकोर्ट में अपील की है, जो विचाराधीन है.

बहरहाल, मनीषा के पिता द्वारा जारी किया गया यह संदेश काबिलेगौर है कि अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए मातापिता कोशिश तो करें, लेकिन बच्चे किसी के बहकावे में न आ सकें, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है. अगर उन की आदतों या व्यवहार में जरा भी बदलाव नजर आए तो बच्चों को एक दोस्त की तरह समझा कर किसी के बहकावे में आने से रोकें. आप का बच्चा कितना भी सही क्यों न हो, उसे बहकाने वाले तब तक उस का पीछा नहीं छोड़ते, जब तक वह उन के जाल में फंस नहीं जाता.